Incest खेल है या बवाल

Active member
943
4,633
125
धीनू: अच्छा है नाय निकरि, हमाई निकरी तौ चिल्लाय पड़ी माई।
रतनू: फिर अब का करें कहूं सै तौ पैसन की जुगाड़ करने पड़ेगी ना।
धीनू: मेरे पास एक उपाय है।
रतनू: सही में? बता फिर सारे..
धीनू: सुन…

अपडेट 4
रतनू: सुन हमें जे ठीक नाय लग रहो सारे(साले) पकड़े गए तो गांड टूट जायेगी।
धीनू: सासुके( साले का पर्यायवाची) तेरी अभिई ते लुप लुप करन लगी। हम कह रहे ना कछु न हैगो।
धीनू ने एक खेत से गन्ने उखाड़ते हुए रतनू को दिलासा दी तो रतनू भी भारी मन से ही इस अनैतिक काम में अपने जिगड़ी दोस्त का हाथ बटाने लगा, यही उपाय था धीनू का कि दूसरे गांव के किसी खेत से कुछ गन्ने चुपचाप चुरा कर ले जायेंगे और कोल्हू पर बेच देंगे और उससे जो पैसे मिलेंगे उससे लल्लन को गेंद तो कम से कम दिलवा ही देंगे अगर बच गए तो मेला तो लगा ही है।

रतनू: अब तौ है गए होंगे, अब चल झांते (यहां से)।
धीनू: हट सारे इतने की तो चवन्नी भी न मिलेगी, जल्दी जल्दी हाथन को चला और उखाड़त जा।
रतनू: हां हां उखाड़ तो रहो हूं।

रतनू के बार बार याद दिलाने पर भी धीनू था की चलने को राज़ी नहीं हो रहा था वो चाह रहा था ज्यादा से ज्यादा गन्ने मिल जाएं जिससे ज्यादा पैसे मिल सकें, पर लालच बुरी बला है ये तो सबने ही सुना है,

ख़ैर जब धीनू को संतुष्टि हो गई तो दोनों ने मिलकर गन्ने को दो ढेरों में बांधा और अपने अपने सिरों पर टिकाया और चल दिए, चुप चाप से किसी तरह से खेत से निकल कर आगे बढ़े ही थे कि पीछे से किसी की आवाज़ आई

अरे एईईई को है जू (कौन है ये) रुक सारे।
ये आवाज सुनते ही दोनों के पैरों से जमीन खिसक गई ये खेत के मालिक की आवाज़ थी जिसने दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया था, रतनू की हालत तो बिलकुल रोने वाली हो गई। डरा हुआ तो धीनू भी था पर उसके डरा हुआ दिमाग और तेज भागने लगा और वो बचने के तरीके ढूंढने लगा।

धीनू ने फुसफुसाते हुए रतनू से बोला,
धीनू: भाग रतनुआ वाने (उसने) अभई तक हमाओं चेहरा नाय देखो है भाग,
और ये कह धीनू ने दौड़ लगा दी, रतनू को धीनू की बात तो समझ नहीं आई पर धीनु को भागते देख उसके पैर भी दौड़ने लगे।

आगे आगे धीनू और रतनू एक हाथ से अपने सिर पर रखे बोझ को पकड़ कर भाग रहे थे तो वहीं उनके पीछे खेत का मालिक भाग रहा था और भागते हुए चिल्लाता जा रहा था,


धीनू और रतनू दोनों को पीछे से गालियां दिए जा रहा था, अपनी गालियों में ही वो दोनों को ही मां को न जाने अब तक कितनी बार सम्मिलित कर चुका था और न जाने उनके साथ क्या क्या करने की धमकी दे चुका था, पर दोनों दोस्त बेचारे सब सुनते हुए भी बिना पीछे मुड़े भागे जा रहे थे, एक खेत पार करते तो दूसरा खेत आ जाता, पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो चुका था, उधर खेत के मालिक का भी बुरा हाल था एक तो अधेड़ उम्र का शरीर ऊपर से थुलथुला पेट, दिल ने इतनी मेहनत कर ली थी कि रेल के इंजन से भी तेज दौड़ने लगा था और लग रहा था कि थोड़ी देर में ही फट जायेगा। कितनी दूर तक भागता बेचारा तो थोड़ा आगे आकर उसके पैरों और हिम्मत दोनों ने ही जवाब दे दिया, और हांफते हुए चिल्लाता रहा: रुक जाओ आआह्ह्ह आह्ह्ह्ह सारे मादरचोदों, अह्ह्ह्ह तुमाई मैय्या चोद दूंगो, अअह्ह्ह्हह, रांडों के रुक जाओ।

खेत के मालिक के रुक जाने से रतनू और धीनू को राहत मिली दोनों ही बुरी तरह थक गए थे, थोड़ा आगे जाकर पोखर किनारे गन्नों को एक झाड़ी के पीछे डालकर वहीं गिर गए और सांस भरने लगे,
रतनू: आज तौ मरई( मर ही) गए हते। हमाई तौ फटि गई बिलकुल खेत बारे की आवाज सुनिकै।

धीनू: सारे फटि तौ हमाई भी गई हती, तभई ( तभी) तौ भाजे ( भागे) वहां से गांड बचाए कै।

रतनू: हम तोए कह रहे थे कि जल्दी चल जल्दी चल हुए गए होंगे। पर तोए तो सुननी ही नाय हती(थी)।

धीनू: अच्छा दूई गन्ना लै आते का उठाए कै, का फायदा होतो जोखिम उठान को, अगर गेंद भी ना आ पाती तौ।


रतनू: अच्छा और अगर पकड़ जाते तौ का लेते फिर, कित्ती मार पड़ती।

धीनु: पड़ी तो नाय अब रोनोबंद कर लौंडियों की तरह। और चल रहे अब कोल्हू पै ( पर)।
रतनू: चल रहे यार हमाई तो सांस फूल रही है।

धीनू: सांस तौ पिचक जायेगी तेरी जब जेब में रुपिया जागें तौ चल अब उठ।

रुपयों के बारे में सोचकर रतनू भी तुरंत खड़ा हो गया ।

दोनों ने फिर से गट्ठर को सिर पर टिकाया और चल दिए कोल्हू की ओर।

दूसरी ओर

और बताओ मालिक का सेवा करे आपकी?
हाथ जोड़े हुए एक शख्स ने कहा…
लाला: अरे वीरपाल तुमहु (तुम भी) कैसी बात करत हो, तुमसे का सेवा करवांगे, तुम तौ हमाये खास हौ। बस जे गुड़ बढ़िया निकलनो चाहिएं।

वीरपाल: अरे मालिक तुम्हें कभहु खराब चीज दिंगे का? गुड़ नाय है मालिक मलाई है मुंह में रखौगे तो पिघल जायेगी।
लाला कोल्हू के मालिक से बातचीत कर रहा था तभी वहां रतनू और धीनू अपना अपना गट्ठर लिए पहुंच जाते हैं।

धीनू: बाबा ओ बाबा नेक ( थोड़ा) जे गन्ना तोल लियो.
वीरपाल: अरे तोल रहे पहले मालिक को समान दे दें।
लाला ने एक नजर रतनू और धीनू पर डाली तो जैसे उसे जमुना का धक्का याद आ गया, और मन ही मन एक तीस सी उठ गई।

लाला: अरे नाय वीरपाल व्योपार( व्यापार) पहले है जाओ तौल देऊ, हम तौ झाईं( यहीं) खड़े हैं
वीरपाल तुरंत लाला की बात मान धीनू और रतनू के गन्ने तौलने लगता है, गन्ने तौलने के बाद कुछ हिसाब लगाता है और 5 5 रुपए दोनों को पकड़ा देता है।,

धीनू: का बाबा बस पांच रुपिया?
वीरपाल: अच्छा तू का कुंटल ( क्विंटल) भर गन्ने लाओ हतो का?
धीनू: लगि तो ज्यादा रहे थे,
वीरपाल: तौ एसो कर उठा अपने गन्ना और लै जा।
रतनू: अरे नाय नाय बाबा ठीक है इतने के ही हते। हम जाय रहे हैं।
रतनू धीनू का हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ ले गया,
धीनू; सारो डोकर ( बूढ़ा) भौत (बहुत) बोल्त है, सारो एक ही कोल्हू है ना तासे(इसका) फायदा उठात है और मन मर्जी के दाम देत है। चोर सारौ।
रतनु: हेहेहे सारे तू भी ना..
धीनू: का भओ (क्या हुआ) दान्त कियुँ फाड़ रहो है?
रतनू: और का सासुके गन्ना हमनें चुराय कै बेचे और चोर तू डोकर कौ कह रहो है, तौ हँसी ना आयेगी?
धीनु: हाँ यार बात तौ तू कभऊ कभउ सही कह देत है। वैसें इत्ते ( इतने) रूपिया में गेंद भी आ जायेगी और कछू बचि(बच) भी जाँगे।
रतनू: और का चलें फिर मेला में?
धीनू: जे भी कोई पूछने की बात है चल मेरे मुंह में तौ अभई से चाट को स्वाद आए रहो है।
जमुना बकरियों को चारा डाल रही थी किसी तरह से उसने खुद को संभाला था आज जो भी कुछ हुआ उसके बाद, उसका मन बार बार अब भी डर से कांप रहा था, वहीं लकड़ियां तोड़ते हुए सुमन बार बार जमुना के चेहरे को देख रही थी, और जमुना की आंखों का दर्द देखकर सुमन का भी कलेजा कांपने लगा था, आने वाले भयावह कल के बारे में सोचकर वो अंदर ही अंदर चिंता में मरती जा रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था, कि कैसे वो लाला का सामना कर पाएगी, क्योंकी ये तो तय था कि जो जमुना के साथ हुआ उसके साथ भी होने वाला था, पर क्या जो ताकत जमुना ने दिखाइ जो धक्का जमुना ने लाला को मारा क्या उसमें इतनी ताकत होगी, कि वो लाला को धकेल पायेगी, इसी उधेड़बुन में वो लगी हुई थी,
दोनों बेचारी अपने अपने विचरों में खोई हुइ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं,
कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,
हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।
मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,
सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।
मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।



इसके आगे अगली अपडेट में अपने कॉमेंट्स करके ज़रूर बताएं कैसी लगी अपडेट। बहुत बहुत धन्यवाद।
हाय दईया ,,,, जे अब का कयी दई इ धिनू रतनू ने , जे भरे मेलन मा कूटाइ होई रही ।

हमाई सेक्सी जमुना :shag: को कित्ते दुख देवे वाला हो लेखक बाबू । राम जाने....
 
Dramatic Entrance
854
1,309
123
हाय दईया ,,,, जे अब का कयी दई इ धिनू रतनू ने , जे भरे मेलन मा कूटाइ होई रही ।

हमाई सेक्सी जमुना :shag: को कित्ते दुख देवे वाला हो लेखक बाबू । राम जाने....
का करें भैया दुख ही दुख लिखे माथे पै, जमुना के, पर अनिल कपूर भैया ने भी कही हती, हार के बाद ही जीत है।
 
expectations
23,454
15,467
143
धीनू: अच्छा है नाय निकरि, हमाई निकरी तौ चिल्लाय पड़ी माई।
रतनू: फिर अब का करें कहूं सै तौ पैसन की जुगाड़ करने पड़ेगी ना।
धीनू: मेरे पास एक उपाय है।
रतनू: सही में? बता फिर सारे..
धीनू: सुन…

अपडेट 4
रतनू: सुन हमें जे ठीक नाय लग रहो सारे(साले) पकड़े गए तो गांड टूट जायेगी।
धीनू: सासुके( साले का पर्यायवाची) तेरी अभिई ते लुप लुप करन लगी। हम कह रहे ना कछु न हैगो।
धीनू ने एक खेत से गन्ने उखाड़ते हुए रतनू को दिलासा दी तो रतनू भी भारी मन से ही इस अनैतिक काम में अपने जिगड़ी दोस्त का हाथ बटाने लगा, यही उपाय था धीनू का कि दूसरे गांव के किसी खेत से कुछ गन्ने चुपचाप चुरा कर ले जायेंगे और कोल्हू पर बेच देंगे और उससे जो पैसे मिलेंगे उससे लल्लन को गेंद तो कम से कम दिलवा ही देंगे अगर बच गए तो मेला तो लगा ही है।

रतनू: अब तौ है गए होंगे, अब चल झांते (यहां से)।
धीनू: हट सारे इतने की तो चवन्नी भी न मिलेगी, जल्दी जल्दी हाथन को चला और उखाड़त जा।
रतनू: हां हां उखाड़ तो रहो हूं।

रतनू के बार बार याद दिलाने पर भी धीनू था की चलने को राज़ी नहीं हो रहा था वो चाह रहा था ज्यादा से ज्यादा गन्ने मिल जाएं जिससे ज्यादा पैसे मिल सकें, पर लालच बुरी बला है ये तो सबने ही सुना है,

ख़ैर जब धीनू को संतुष्टि हो गई तो दोनों ने मिलकर गन्ने को दो ढेरों में बांधा और अपने अपने सिरों पर टिकाया और चल दिए, चुप चाप से किसी तरह से खेत से निकल कर आगे बढ़े ही थे कि पीछे से किसी की आवाज़ आई

अरे एईईई को है जू (कौन है ये) रुक सारे।
ये आवाज सुनते ही दोनों के पैरों से जमीन खिसक गई ये खेत के मालिक की आवाज़ थी जिसने दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया था, रतनू की हालत तो बिलकुल रोने वाली हो गई। डरा हुआ तो धीनू भी था पर उसके डरा हुआ दिमाग और तेज भागने लगा और वो बचने के तरीके ढूंढने लगा।

धीनू ने फुसफुसाते हुए रतनू से बोला,
धीनू: भाग रतनुआ वाने (उसने) अभई तक हमाओं चेहरा नाय देखो है भाग,
और ये कह धीनू ने दौड़ लगा दी, रतनू को धीनू की बात तो समझ नहीं आई पर धीनु को भागते देख उसके पैर भी दौड़ने लगे।

आगे आगे धीनू और रतनू एक हाथ से अपने सिर पर रखे बोझ को पकड़ कर भाग रहे थे तो वहीं उनके पीछे खेत का मालिक भाग रहा था और भागते हुए चिल्लाता जा रहा था,


धीनू और रतनू दोनों को पीछे से गालियां दिए जा रहा था, अपनी गालियों में ही वो दोनों को ही मां को न जाने अब तक कितनी बार सम्मिलित कर चुका था और न जाने उनके साथ क्या क्या करने की धमकी दे चुका था, पर दोनों दोस्त बेचारे सब सुनते हुए भी बिना पीछे मुड़े भागे जा रहे थे, एक खेत पार करते तो दूसरा खेत आ जाता, पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो चुका था, उधर खेत के मालिक का भी बुरा हाल था एक तो अधेड़ उम्र का शरीर ऊपर से थुलथुला पेट, दिल ने इतनी मेहनत कर ली थी कि रेल के इंजन से भी तेज दौड़ने लगा था और लग रहा था कि थोड़ी देर में ही फट जायेगा। कितनी दूर तक भागता बेचारा तो थोड़ा आगे आकर उसके पैरों और हिम्मत दोनों ने ही जवाब दे दिया, और हांफते हुए चिल्लाता रहा: रुक जाओ आआह्ह्ह आह्ह्ह्ह सारे मादरचोदों, अह्ह्ह्ह तुमाई मैय्या चोद दूंगो, अअह्ह्ह्हह, रांडों के रुक जाओ।

खेत के मालिक के रुक जाने से रतनू और धीनू को राहत मिली दोनों ही बुरी तरह थक गए थे, थोड़ा आगे जाकर पोखर किनारे गन्नों को एक झाड़ी के पीछे डालकर वहीं गिर गए और सांस भरने लगे,
रतनू: आज तौ मरई( मर ही) गए हते। हमाई तौ फटि गई बिलकुल खेत बारे की आवाज सुनिकै।

धीनू: सारे फटि तौ हमाई भी गई हती, तभई ( तभी) तौ भाजे ( भागे) वहां से गांड बचाए कै।

रतनू: हम तोए कह रहे थे कि जल्दी चल जल्दी चल हुए गए होंगे। पर तोए तो सुननी ही नाय हती(थी)।

धीनू: अच्छा दूई गन्ना लै आते का उठाए कै, का फायदा होतो जोखिम उठान को, अगर गेंद भी ना आ पाती तौ।


रतनू: अच्छा और अगर पकड़ जाते तौ का लेते फिर, कित्ती मार पड़ती।

धीनु: पड़ी तो नाय अब रोनोबंद कर लौंडियों की तरह। और चल रहे अब कोल्हू पै ( पर)।
रतनू: चल रहे यार हमाई तो सांस फूल रही है।

धीनू: सांस तौ पिचक जायेगी तेरी जब जेब में रुपिया जागें तौ चल अब उठ।

रुपयों के बारे में सोचकर रतनू भी तुरंत खड़ा हो गया ।

दोनों ने फिर से गट्ठर को सिर पर टिकाया और चल दिए कोल्हू की ओर।

दूसरी ओर

और बताओ मालिक का सेवा करे आपकी?
हाथ जोड़े हुए एक शख्स ने कहा…
लाला: अरे वीरपाल तुमहु (तुम भी) कैसी बात करत हो, तुमसे का सेवा करवांगे, तुम तौ हमाये खास हौ। बस जे गुड़ बढ़िया निकलनो चाहिएं।

वीरपाल: अरे मालिक तुम्हें कभहु खराब चीज दिंगे का? गुड़ नाय है मालिक मलाई है मुंह में रखौगे तो पिघल जायेगी।
लाला कोल्हू के मालिक से बातचीत कर रहा था तभी वहां रतनू और धीनू अपना अपना गट्ठर लिए पहुंच जाते हैं।

धीनू: बाबा ओ बाबा नेक ( थोड़ा) जे गन्ना तोल लियो.
वीरपाल: अरे तोल रहे पहले मालिक को समान दे दें।
लाला ने एक नजर रतनू और धीनू पर डाली तो जैसे उसे जमुना का धक्का याद आ गया, और मन ही मन एक तीस सी उठ गई।

लाला: अरे नाय वीरपाल व्योपार( व्यापार) पहले है जाओ तौल देऊ, हम तौ झाईं( यहीं) खड़े हैं
वीरपाल तुरंत लाला की बात मान धीनू और रतनू के गन्ने तौलने लगता है, गन्ने तौलने के बाद कुछ हिसाब लगाता है और 5 5 रुपए दोनों को पकड़ा देता है।,

धीनू: का बाबा बस पांच रुपिया?
वीरपाल: अच्छा तू का कुंटल ( क्विंटल) भर गन्ने लाओ हतो का?
धीनू: लगि तो ज्यादा रहे थे,
वीरपाल: तौ एसो कर उठा अपने गन्ना और लै जा।
रतनू: अरे नाय नाय बाबा ठीक है इतने के ही हते। हम जाय रहे हैं।
रतनू धीनू का हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ ले गया,
धीनू; सारो डोकर ( बूढ़ा) भौत (बहुत) बोल्त है, सारो एक ही कोल्हू है ना तासे(इसका) फायदा उठात है और मन मर्जी के दाम देत है। चोर सारौ।
रतनु: हेहेहे सारे तू भी ना..
धीनू: का भओ (क्या हुआ) दान्त कियुँ फाड़ रहो है?
रतनू: और का सासुके गन्ना हमनें चुराय कै बेचे और चोर तू डोकर कौ कह रहो है, तौ हँसी ना आयेगी?
धीनु: हाँ यार बात तौ तू कभऊ कभउ सही कह देत है। वैसें इत्ते ( इतने) रूपिया में गेंद भी आ जायेगी और कछू बचि(बच) भी जाँगे।
रतनू: और का चलें फिर मेला में?
धीनू: जे भी कोई पूछने की बात है चल मेरे मुंह में तौ अभई से चाट को स्वाद आए रहो है।
जमुना बकरियों को चारा डाल रही थी किसी तरह से उसने खुद को संभाला था आज जो भी कुछ हुआ उसके बाद, उसका मन बार बार अब भी डर से कांप रहा था, वहीं लकड़ियां तोड़ते हुए सुमन बार बार जमुना के चेहरे को देख रही थी, और जमुना की आंखों का दर्द देखकर सुमन का भी कलेजा कांपने लगा था, आने वाले भयावह कल के बारे में सोचकर वो अंदर ही अंदर चिंता में मरती जा रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था, कि कैसे वो लाला का सामना कर पाएगी, क्योंकी ये तो तय था कि जो जमुना के साथ हुआ उसके साथ भी होने वाला था, पर क्या जो ताकत जमुना ने दिखाइ जो धक्का जमुना ने लाला को मारा क्या उसमें इतनी ताकत होगी, कि वो लाला को धकेल पायेगी, इसी उधेड़बुन में वो लगी हुई थी,
दोनों बेचारी अपने अपने विचरों में खोई हुइ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं,
कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,
हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।
मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,
सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।
मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।



इसके आगे अगली अपडेट में अपने कॉमेंट्स करके ज़रूर बताएं कैसी लगी अपडेट। बहुत बहुत धन्यवाद।
Badhiya update dono ne chori kiya ganne ke khet me bach gaye khet ka malik budha tha ishiliye udhar lala ji ke achche din aane wale hain
 
Member
151
92
28
जमुना को जब लाला की थोड़ी बात समझ आई साथ ही उसने जब लाला की नजर का पीछा किया तो उसे खुद की कमर को घूरता हुआ पाया बस जमुना तो जैसे वहाँ खडे खडे बुत सी बन गई, उसे यहाँ आने से पहले जो डर सता रहा था वो सच होता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे क्या बोले, वो चाह रही थी कि धरती फट जाए ओर वो धरती के सीने में समा जाए।

जमुना: ज्ज ज्जी जी लालाजी हम कछू समझे नाय।

लाला: हम समझाय देत हैं जमुना रानी।

और ये बोलकर लाला ने जो किया उससे तो जमुना के होश ही उड गए वो शर्म से मरने को हो गई। लाला ने अपना हाथ बढ़ाकर जमुना की नँगी कमर पर रख दिया और उसे मसलने लगा।।




अपडेट



जमुना का शरीर डर और शरम से जम सा गया उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही नहीं है उसका खूंन जैसे जम सा गया है उसके मांसल पेट के जिस हिस्से पर लाला का हाथ था उसे लग रहा था वो हिस्सा जल रहा है, वो बहुत तेज चिल्लाकर लाला को दूर कर देना चाहती थी, धक्का दे कर भाग जाना चाहती थी, पर उसका गला जैसे जम गया हो उसकी ज़बान पत्थर की हो गई थी उसके गले से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी, लाला का हाथ उसकी कोमल कमर को अपनी घिनौनी उंगलियों से मसल रहा था उसे खुद से घिन आ रही थी और तभी अचानक जैसे उसकी खोई हुई ताकत वापस आ गई, उसके पत्थर बने हाथ वापिस हाड़ मांस के हो गए। दोनों हाथ साथ उठे और दोनों हाथों ने मिलकर लाला को धक्का दिया तो लाला पीछे की ओर दरवाज़े के बगल में दीवार से जा लगा,



जमुना की सांसे किसी रेल के इंजन की तरह चल रही थीं, अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसका बदन हल्का हो गया है, उसके बदन से न जाने कितना भारी बोझ हट गया है और वो बोझ लाला के हाथ का था जो उसकी कमर से हट चुका था, कहने को तो हाथ सिर्फ कमर पर था पर उसके नीचे जमुना का पूरा वजूद उसका आत्म। सम्मान सब कुछ दबा हुआ था, लाला की उंगलिया सिर्फ उसके कमर के माँस को नहीं मसल रही थी, बल्कि जमुना की इज्जत, उसके सर उठाकर चलने के अरमानो को मसल रही थीं, उसके पतिव्रत जीवन को मसल रही थीं। जमुना को अब जाकर थोड़ा होश आया तो उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने लाला जैसे बलशाली और बड़ी काया के व्यक्ति को धक्का देकर इतनी दूर फेंक दिया है, इतनी शक्ति न जाने कहां से उसके अंदर आ गई।



दीवार से लगे लाला को तो जैसे एक हैरानी और अचंभे ने घेर लिया, उसे यकीन नहीं हुआ कि उससे आधे कद वाली स्त्री जिसकी उसके आगे कोई औकात नहीं है उस औरत ने उसे यूं धकेला कि वो दीवार से जा लगा, लाला को जिसका पूरे गांव क्या आस पास के सभी गांवों में इतना रसूख था, कि उसकी बात को काटने की किसी में हिम्मत नहीं होती थी उस लाला को एक मामूली सी गरीब पुरानी साड़ी लपेटे एक औरत ने धक्का दे दिया। लाला के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई भी औरत उसके जाल में न फंसी हो,

जमुना की तरह ही जब भी कोई औरत लाला से कर्जा मांगने आई तो उसके कुछ देर बाद ही वो औरत लाला के नीचे होती थी, और लाला कर्जे के बदले में औरत के जिस्म को नंगा कर भोगता था, जब वो उनके बदन को मसलता था अपनी मर्दानगी के तले रौंदता था, अपने मजबूत हाथों से उनकी छातियों को गूंथता था तो हर औरत चीखती चिल्लाती थी आहें भरती थी, उससे रहम की भीख मांगती थी और वो चीखें वो आहें सुनकर लाला को जो सुख मिलता था वो उसके लिए जीवन का परम सुख था, औरतों की चीखें, उनकी रहम की गुहारें, उनकी आहें, लाला के कानों का सबसे पसंदीदा संगीत था,

आज जमुना को अपने दरवाजे पर देखकर लाला को बेहद प्रसन्नता हुई थी, न जाने कब से वो जमुना के जिस्म को नोचना चाहता था उसे नंगा कर के अपने नीचे मसलना चाहता था, कई बार उसने जमुना को खेतों में काम करते देखा था, पसीने से भीगे जमुना के मादक बदन को देखकर लाला के पजामे में न जाने कितनी बार तनाव आया था, जमुना के गोल मटोल बड़े बड़े नितम्ब उसे बहुत आकर्षक लगते थे, वो उन मांस के तरबूजों को चखना चाहता था, खाना चाहता था, भीगे हुए ब्लाउज में कैद जमुना के पपीते के आकार के स्तन देख लाला का गला सूख जाता था और वो जानता था उसके सूखे गले की प्यास बस जमुना के ब्लाउज को खोलकर ही बुझ सकती थी

तो आज जमुना को दरवाजे पर देखकर लाला को अपनी प्यास बुझती नजर आई थी, उसने सोच लिया था कि आज जमुना को खूब रगडूंगा।

पर हुआ उसका बिलकुल उलट जमुना ने तो उसे दूर धकेल दिया, आज तक किसी भी औरत की इतनी हिम्मत नहीं हुई थी, जमुना ने धक्का तो लाला के बदन को दिया था पर उसकी चोट लाला के आत्मसम्मान पर हुई थी, उसके अहंकार पर हुई थी,

कैसे एक मामूली सी औरत ने लाला को धक्का दे दिया, क्या इज्जत रह जायेगी उसकी समाज में अब, लाला के दिमाग में यही सब घूमने लगा दीवार से लगे लगे उसके चेहरे के भाव बदलने लगे, हर एक पल के साथ लाला को उसके आत्मसम्मान की चोट का एहसास गुस्से में बदलने लगा, उसका मन ये यकीन नहीं कर पा रहा था की ऐसा भी कोई औरत कर सकती थी उसके साथ, आज तक हर औरत ने उसके आगे अपना पल्लू ही गिराया है, बचपन से लेकर अब तक उसके सामने हर औरत साड़ी खोलती ही आई है, और ऐसा हो भी क्यों ना, उसके बाप दादा सब ने ही तो ये किया था, उसके सामने ही न जाने कितनी औरतों को उसके बाप ने अपने नीचे कुचला था, तो अगर वो ऐसा न कर पाया और कोई औरत उसके चंगुल से निकल गई तो इसका मतलब तो वो अपने पूर्वजों को मुंह तक नहीं दिखा पाएगा।



लाला ने जमुना के एक धक्के सोच सोच कर इतना बढ़ा बना लिया उसका क्रोध सातवे आसमान पर पहुंच गया, उसी क्रोध में लाला जमुना की तरफ पलटा,

सहमी हुई सी जमुना जो कि अब तक जो हुआ उसे ही समझने की कोशिश कर रही थी उसकी नजर लाला के चेहरे पर पड़ी और लाला का क्रोध में लाल चेहरा देख तो जमुना डर से कांप गई वो सोचने लगी उसने धक्का देकर कहीं कुछ गलत तो नहीं कर दिया लाला के चेहरे को देखकर उसे लगने लगा ये उसके जीवन का आखिरी दिन है, उसका पूरा बदन डर से थरथरा रहा था, कहां वो बेचारी गरीब दुखियारी औरत और सामने कहां लाला जिसकी पूरे ही गांव में कितनी चलती थी,

गुस्से में लाला बिना सोचे समझे जमुना की ओर बढ़ने लगा,

लाला को अपनी तरफ आता देख जमुना का पूरा बदन कांपने लगा, उसे अपना जीवन खत्म होता दिखने लगा उसकी आंखों के सामने अपना पूरा जीवन किसी फिल्म की तरह चलने लगा।

उसी बीच लाला लगातार जमुना की ओर बढ़ रहा था लाला जमुना के करीब जैसे ही पहुंचा जमुना की हालत ऐसी थी जैसे वो अभी बेहोश हो जायेगी, वो अपना बचाव तक करने की हालत में नहीं थी, लाला ने गुस्से में ये ठान लिया था कि अब वो जमुना को उसके किए की सजा देकर ही रहेगा, लाला ने जैसे ही जमुना के पास पहुंचकर अपना हाथ आगे बढाया ही था कि अचानक से दरवाज़े पर दस्तक हुई,

और लाला का ध्यान दरवाज़े पर गया, दोबारा से खट खट हुई तो लाला न चाहते हुए भी जमुना के सामने से हटा और दरवाज़े की ओर बढ़ा, लाला के घूमते ही जमुना की जान जैसे वापस आने लगी, जमुना को लगा जैसे आज पहली बार ईश्वर ने उसकी सुध ली है। लाला ने दरवाज़ा खोला तो सामने लाला की पत्नी रज्जो जिसका नाम रजनी था पर गांव में असल नाम से कोई कहां पुकारता है तो हो गई वो रज्जो वोही थी।

रज्जो को देख लाला थोड़ा निराश हुआ पर अब क्या कर सकता था, तो अपने अंदर भरे गुस्से को अपनी पत्नी पर निकालते हुए ही वो बोला: कां मर गई हती इत्ती देर लगत है मंदिर में?



लाला ने दरवाजे से हटते हुए कहा, रज्जो पति की डांट सुनकर जरा भी हैरान नही हुई उसे इसकी आदत हो चुकी थी उसका पति किसी न किसी बात का गुस्सा उस पर निकालता रहता था, चाहे उसका उस बात से कोई लेना देना ही न हो, जब सामने से लाला हटा तो रज्जो की नजर सामने डरी सहमी सी खड़ी जमुना पर गई,

जमुना को देखकर रज्जो ने सवालिया निगाहों से लाला को देखा पर खेला खाया लाला खुद को बचाने में माहिर था,

लाला: जे उमेश की घरवाली और कर्जा मांगन आई है, हमने तौ साफ मना कर दई, पर देखो मान ही न रही है, पहले पिछलो हिसाब निपटाओ तभही आगे रुपिया मिलिंगे।



रज्जो बेचारी क्या करती हमेशा की तरह पति की हां में हां मिलादी,

रज्जो: हां री जमुनिया देख बात तो जे ही सही है पहले पिछलो दे जाओ फिर ही नओ कर्जा मिलिगो।



जमुना जो अब तक जमी हुई खड़ी थी उसे कुछ होश आया और वो तुरंत बिना कुछ बोले भागी,



जमुना को यूं बिन कुछ बोले जाते देख लाला अंदर चला गया वहीं रज्जो खड़ी खड़ी दरवाज़े को देख रही थी, उसका पति उसे बेवकूफ समझता था पर वो थी नहीं, वो समझती थी कि कर्जे के लिए मना ही करना था तो अंदर से दरवाज़ा लगाने की क्या जरूरत थी, और बाकी का बचा कूचा हाल जमुना के चेहरे ने बयां कर दिया था, जमुना के चेहरे पर को भाव थे उसे देखकर साफ पता चलता था कि उसके साथ क्या हो रहा होगा,

रज्जो भी औरत थी और उसे पता था औरत कब कैसा महसूस करती है, जब से इस घर में ब्याह कर आई थी, तबसे उसने खुद को ऐसे ही ढाल लिया था उसे सब पता होता था कि उसका पति अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी ही औरतों के जीवन से खेलता है पर वो कर भी क्या सकती थी औरत की जिम्मेदारी है बस घर संभालना और हर तरीके से पति को खुश रखना अपना वजूद था ही कहां उसका, पति ने प्यार दिया तो खुशी खुशी लिया गाली दी तो वो भी खुशी खुशी लेना उसने सीख लिया था, इससे सिर्फ रसोई में क्या बनेगा या घर में किस रंग की रंगाई होगी इसके अलावा कोई फैसला वो नहीं करती थी।

वो सब जानती थी कि उसका पति उसके साथ धोखा करता है दूसरी औरतों की इज्जत के साथ खेलता है पर वो जानबूझ कर इन सब चीजों को अनदेखा करती थी क्योंकि वो जानती थी कि वो अगर इसके बारे में लाला के सामने भी जायेगी तो कुछ नहीं होगा, जो अभी लाला ये सोचकर कि उसे नहीं पता थोड़ा छुप कर करता है फिर वो सामने करने लगेगा जो कि वो देख नहीं पाएगी, तो उसने खुद को इस भ्रम के जीवन में बांध लिया था,

वो भी ये सब सोचते हुए अंदर चली गई।



जमुना लाला के घर से निकली तो सीधी भागी जा रही थी उसकी आंखों से आंसुओं की धारा रुक ही नहीं रही थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज उसका समाज के उस घिनौने चेहरे से, या यूं कहें उस राक्षस से सामना हुआ था जो हमें लगता था कि हमारी पलंग के नीचे है जिस से रात में हम पलंग के नीचे झांकने से डरते थे, आज वोही नीचे का राक्षस जमुना के सामने आ खड़ा हुआ था, उसे ये तो हमेशा से पता था कि समाज का ये चेहरा भी है पर उसका खुद का सामना भी कभी होगा उसने ये न सोचा था।

जमुना उखड़ती सांसों के साथ बस भागी जा रही थी, अपना घर उसे बड़ी दूर लग रहा था वो किसी भी तरह से अपने घर पहुंचना चाहती थी,



सुमन जमुना की बकरियों को पानी देकर खड़ी हुई थी कि अचानक उसकी नज़र भागती हुई आती जमुना पर गई उसको इस तरह भागते देख सुमन डर गई उसे कुछ गलत का अंदेशा होने लगा,

जमुना को तो जैसे आंगन में खड़ी दिखी ही नहीं वो सीधी कमरे के सामने गई कांपते हाथों से दरवाजा खोला और अंदर जमीन पर पड़ी एक चटाई पर गिर गई,

जमुना को यूं अंदर जाते देख सुमन भी बाल्टी छोड़ कर उसके पीछे भागी भाग कर जब कमरे के दरवाज़े पर पहुंच जमुना को इस हाल में देखा तो सुमन कांप गई उसके मन में अनेकों अनचाहे खयाल आने लगे, कुछ अनिष्ठ होने की कल्पना से सुमन का मन घबराने लगा, उसके मन ही मन में ईश्वर की प्रार्थना होने लगी न जाने कितने ही भगवान के नाम का उसने जयकारा लगा दिया इस पल में ही।

भारी कदमों से सुमन ने बढ़ कर जमुना के करीब पहुंची,

सुमन: जीजी का है गओ, ऐसे काय(क्यों) रोए रही हो, जीजी हमाओ करेजा(दिल) मचल रहो है, जीजी का है गओ (गया).

जमुना थी जो बस रोए जा रही थी उसे देखकर सुमन की आंखों से भी आंशु बहने लगे साथ ही मन में घबराहट कि जरूर कुछ गलत हुआ है नहीं तो जमुना जैसी कठोर औरत यूं नहीं रोती।



सुमन: बस जीजी हम हैं तुमाए पास, बस सब ठीक है, बस अब न रो, शांत है जाओ।

बास्स्स।

सुमन ने जमुना को अपने सीने से लगाकर किसी बच्चे की तरह शांत करते हुए कहा,

जमुना को भी थोड़ा आराम मिला तो उसका रोना भी कम हुआ,

सुमन: जीजी हमें बहुत घबराहट है रही है, का है गाओ हमें बताए दो, तुमाई कसम जीजी करेजा मुंह को आए रहो है।

जमुना ने सुबकते सुबकते हुए ही एक एक बात सुमन को बता दी जिसे सुनकर सुमन भी कांप गई, क्योंकि उसे पता था कि आज जो जमुना के साथ हुआ है कल उसके साथ भी होगा, लाला के कर्ज़ के तले वो भी दबी हुई है, सुमन का दिल भी घबराने लगा, आने वाले खतरे को सोचकर वो कांपने लगी, जमुना को अपने सीने से लगाए वो सोचने लगी, कि जमुना तो तब भी भाग आई और किसी तरह झेल गई पर क्या वो सह पाएगी, हो न हो उससे पहले ही वो अपनी जान दे देगी, उसमे शायद इतना साहस नहीं है कि इस तरह से वो लाला का सामना कर सके।



साहस तो जमुना में भी नहीं था पर अपने बेटे के मोह में आकर चली गई थी, उसने सोचा कहां था कि पुत्र प्रेम की सजा इस तरह से ये समाज उसे देगा। दोनों न जाने कितनी ही देर तक एक दूसरे की बाहों में पड़ी आंसू बहाती रहीं, सुमन हालांकि जमुना को हिम्मत बंधा रही थी पर उसकी खुद की हिम्मत जवाब दे चुकी थी, दोनों एक दूसरे के सीने में शायद सुरक्षित महसूस कर रहीं थी और इसी लिए काफी समय तक ऐसे ही पड़ी रहीं।



एक पीपल के नीचे बैठे हाथ में कंचे लिए हुए दोनों दोस्त अपनी मांओं की परिस्थिति से बेखबर कुछ और ही उधेड़बुन में लगे हुए थे।

धीनू: का करें यार रुपिया की तौ कछु जुगाड़ न भई (हुई)

रतनू: हां यार मां पहले से ही गुस्सा हती हमाई तो बोली भी न निकरी(निकली) उनके आगे।

धीनू: अच्छा है नाय निकरि, हमाई निकरी तौ चिल्लाय पड़ी माई।



रतनू: फिर अब का करें कहूं सै तौ पैसन की जुगाड़ करने पड़ेगी ना।

धीनू: मेरे पास एक उपाय है।

रतनू: सही में? बता फिर सारे..

धीनू: सुन…





क्या हुआ जमुना और सुमन का और साथ ही क्या उपाय निकाला है धीनू ने सब कुछ अगली अपडेट में, अपने रिव्यू ज़रूर दें। बहुत बहुत धन्यवाद।
Nice update Bhai
 
ADMIN :D
Senior Moderator
12,182
10,232
145
दोस्तों आप सब के सामने पेश कर रहा हूं एक दम ताज़ा नई कहानी आशा है की आप इसे भी मेरी दूसरी कहानी कथा चोदमपुर की जितना ही प्यार देंगे, अपडेट रेगुलर देने की कोशिश रहेगी पर समय मिलने पर ही, बाकी ये कहानी कैसी होगी क्या क्या होगा इसके बारे में आप कहानी पढ़कर ही जानिए पर आशा है कि आपको पसंद ज़रूर आएगी। बहुत बहुत धन्यवाद।
:congrats: for new story
 

Top