Incest खेल है या बवाल

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मिली का??? धीनू??? ओ धीनू….

धीनू: नहीं ई ई ई…

रतनू: धत्त तेरे की, हमने पहले ही बोली हती की मत मार इत्ती तेज पर सारो(साला) सुने तब न, बनेगो सचिन तो और का हेग्गो।

इधर रतनू अकेले में ही गांव के तालाब के किनारे बैठे बैठे बडबडा रहा था, वहीं धीनू छाती तक पानी में डूबा हुआ तालाब में कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था ।

धीनू: सारी(साली) गेंद गई तो गई काँ? आधो घंटा है गओ ढूंढ़त ढूंडत।

रतनू: बाहर निकर आ अब न मिलैगी.

धीनु: एक लाट्ट बार देख रहे फिर निकर आयेंगे।

धीनू गहरे पानी में कदम बढ़ाता हुआ थोड़ा आगे बढ़ा कि उसकी चप्पल किसी चीज़ में फंस कर उतर गई।

धीनु: इसके बाप की बुर मारूं, सारी गेंद तो मिल न रही चप्पल और उतर गई।

रतनू: का कर रहो है, सारे बाहर निकर देर है रही है।

धीनू: और रुकेगो दो मिंट, हमाई चप्पल उतर गई।

रतनू: सारे पूरो बावरो है तू, गेंद ढूंढन गओ है और चप्पल भी गुमा बैठो। अब वो सारे लल्लन को देवे पड़ेंगे रुपिया, यहां सारे हम वैसे ही कंगाल बैठे।

धीनू: सारे वहां बैठे बैठे चोदनो मति सिखा हमें, बोल रहे न रुक जा दो मिंट। एक तो वैसे ही हमाइ खोपड़ी खराब है रही है।

धीनू ने पैर को इधर उधर चलाकर चप्पल टटोलने की कोशिश की पर कहीं नहीं मिल रही थी तो हार मानते हुए एक लंबी सांस ली और फिर दो उंगलियों से नाक को दबाया और झुक कर लगादी डुबकी पानी में मुंह डुबा कर अपनी कला दिखाते हुए आंखें खोल कर देखा तो पहले कुछ नहीं दिखा पर फिर दूसरे हाथ की मदद से टटोलते हुए देखा तो पाया एक लकड़ी के डिब्बे के नीचे अपनी चप्पल को देखा।

धीनू: जे रही सारी परेशानी ही कर दओ।

एक हाथ से उस लकड़ी के डिब्बे को पलट कर चप्पल को तुरंत पैर से दबा लिया और पहन लिया पर साथ ही उस डिब्बे पर भी नजर मारी जो पलट गया था तो कुछ अजीब सा लग रहा था।

खैर जल्दी से डिब्बा हाथ में उठा लिया।

रतनू: नाय मिली न गेंद, अब कांसे(कहां से) दिंगे लल्लन को गेंद। और जे का उठा लाओ?

रतनू ने भीगे हुए धीनू के हाथ में एक लकड़ी के डिब्बा सा देखकर पूछा।

धीनू: पता न यार मैं भी भए सोच रहूं हूं कांसे दिंगे लल्लन को गेंद, ना दी तो सारो आगे से खेलन नाय देगो।

रतनू: जे का है?

धीनू: अरे जे तो तलबिया में ही मिलो मोए अजीब सो है न? मेरी चप्पल दब गई हती जाके नीचे।

रतनू: है तो कछु अजीब सो ही,

रतनू ने अपने हाथ में डिब्बा लेकर उसे पलटते हुए कहा,

और जे कैसो कुंदा सो लगो है ऊपर की ओर खोल के देखें।

धीनू: सारे बाद में देख लियो मैं पूरो भीजो हूं और तोए डिब्बा की पड़ी है।

रतनू: अच्छा चल घर चल रहे हैं, सारो आज को दिन ही टट्टी है, गेंद खो गई और मास्टरनी चाची को टेम भी निकर गओ।

धीनू: अरे हां यार धत्त तेरे की। ना खेल पाए ना हिला पाए।

रतनू: यार सही कह रहो है, चाची के चूतड़ देखे बिना मुठियाने को मजा ही नहीं है।

दोनों की हर शाम की दिनचर्या का ये समय काफी महत्वपूर्ण और दोनों का ही पसंदीदा था जब वो मास्टरनी चाची जो कि गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती थी, शाम के समय स्कूल के पीछे के ही खेत में लोटा लेकर बैठती थीं और ये दोनों ही झाड़ियों में छुपकर उनके चिकने गोरे पतीलों को देखकर अपने अपने सांपों का गला घोंटते थे। और आज गेंद के खो जाने के कारण वहीं दिनचर्या अधूरी रह गई थी।

धीनू: अब का कर सकत हैं, सही कह रहो तू सारो दिन ही टट्टी है।

रतनू: अरे चल, अब जे सोच लल्लन को रुपया कैसे दिंगे।

धीनू: एक उपाय है

रतनू: का?

धीनू: कल मेला लगवे वालो है जो रुपिया मिलंगे उनसे ही गेंद लेके दे दिंगे।

रतनू: पता नाय यार हमें मुश्किली मिलेंगे रुपिया पता नाय मेला जायेंगे की नहीं।

धीनू: क्यों का हुआ एसो क्यों बोल रहो है।

रतनू: मां से पूछी हती तो उनको मुंह बन गयो तुरंत।

धीनू: अरे चिंता मति कर अभे घर चल बाद में देखेंगे।



ये हैं दो लंगोटिया यार धीनू ( धीरेन्द्र) और रतनू(रतनेश) , और काफी सारी वजह भी हैं इनके दोस्त होने की, पहली तो दोनों की उम्र में सिर्फ महीने भर का फासला था और उसी वजह से धीनू दोनों में कभी विवाद होने पर बड़े होने का उलाहना दे देता, और रतनू पर हावी हो जाता था, दूसरी वजह थी दोनों के घर पड़ोस में थे, घर क्या कच्ची मिट्टी से बना एक कमरा और सामने आंगन, दोनों ही परिवार की माली हालत कुछ ठीक नहीं थी, जमीन के नाम पर एक दो छोटे छोटे टुकड़े थे जिन पर खेती करके पेट भरना नामुमकिन है। तो दोनों के ही पिता शहर की एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे और जो मिलता उससे किसी तरह दिन तो कट रहे थे पर बहुत कुछ करना था पर होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।



जमुना: पता नाय जे दोनों कहां रह गए, सांझ है गई है,

जमुना ने चूल्हे के लिए गट्ठर में से लकड़ियां निकालते हुए कहा,

सुमन: हां जीजी हम तो समझा समझा कै परेशान है गए हैं।

सुमन ने दीवार के किनारे बंधी एक भैंस के सामने चारा डालते हुए जमुना की बात का जवाब दिया।

जमुना : सुमन हरिया की कोई खबर आई का?

सुमन ये बात सुनते ही थोड़ी उदास हो गई।

सुमन: कहां जिज्जी, दुए महीना हुए गए कछु खबर नाय, वे दोनों तो वां जाए के हम लोगन को भूल ही जात हैं।

जमुना: अरे एसो कछु नाय हैं अब वे लोग भी तो हम लोगन की खातिर रहते हैं दूर, नाय तो अपने परिवार से दूर को ( रहना) चाहत है।

सुमन: जिज्जी तुम हमें कित्तो भी समझा लियो पर तुमने नाय देखो वो लाला कैसे उलाहनो देत है कर्ज के लाय, ब्याज बढ़त जाति है,

सुमन ने दुखी होकर बैठकर कुछ सोचते हुए कहा,

जमुना: परेशान ना हो सुमन हमाए दिन जल्दी ही फिरंगे।

सुमन: पता नाय जिज्जी कब फिरंगे, अब हम घबरान लगे हैं, तुमने नाय देखी लाला की नजरें, एसो लग रहो कि हमाये ब्लाउज को आंखन से फाड़ देगो,

जमुना: जानती हूं सुमन, हम दोनो एक ही नाव में सवार हैं री,

सुमन: जिज्जि अगर जल्दी लाला को कर्ज नाय चुकाओ तो वो कछु भी कर सकतु है। गरीब के पास ले देकर इज्जत ही होत है वो भी न रही तो कैसो जीवन।

सुमन ने शून्य में देखते हुए कहा, ढलते सूरज की प्रतिमा उसकी पनियाई आंखों में तैरने लगी।

जमुना: सुमन ए सुमन… परेशान ना हो गुड़िया ऊपरवाले पर भरोसा रखो, वो कछु न कछु जरूर करेगो

सुमन ने साड़ी के पल्लू से अपनी आंखों की नमी को पोंछा और फिर से लग गई काम पर,

जमुना सुमन को यूं उदास देख मन मसोस कर रह गई, ऐसा नहीं था की जमुना पर कम दुख था पर अब उसने इसे ही अपना जीवन मान लिया था, कर्जे के उलाहने पर लाला की नज़र उसे भी नंगा करती थी और वो सुमन का डर समझती थी की अगर जल्दी से लाला का कर्ज़ नहीं चुकाया गया तो अभी तो वो सिर्फ नजर से नंगा करता है फिर तो, और अच्छा है लक्ष्मी अपने मामा के यहां रहती है नहीं तो यहां पर लाला की नज़रें उसे भी,

ये खयाल आते ही जमुना ने अपना सिर झटका और फिर से लकड़ियां निकलने में लग गई।



जमुना एक गरीब मां बाप की बेटी थी जिन्हें दो वक्त खाने को मिल जाए तो उस दिन को अच्छा समझते थे ऐसे परिवार में बेटी एक बेटी से ज्यादा जिम्मेदारी होती है जिसे मां बाप जल्द से जल्द अपने कंधे से उतरना चाहते हैं जमुना के साथ भी ऐसा ही हुआ, पन्द्रह वर्ष की हुई तो उसका ब्याह उमेश के साथ कर दिया गया जो कि जाहिर है गरीब घर से था उमेश के घर में एक बूढ़ी बीमार मां के सिवा कोई नहीं था और वो मां भी ब्याह के तीन महीने बाद चल बसी, ब्याह के एक साल के बाद ही जमुना ने एक लड़की को जन्म दिया, जिसका नाम लक्ष्मी रखा गया, और उसके अगले साल एक लड़का हुआ धीनू। आज जमुना 35 साल की है, दो बच्चों को जन्म देने की वजह से बदन भर गया है, रंग थोड़ा सांवला है पर फटी पुरानी साड़ी में भी ऐसा की किसी का भी मन डोल जाए, इसी लिए लाला जैसे लोगों की नज़रें उसके गदराए बदन से हटती नहीं हैं, लक्ष्मी 19 की हो चुकी है, पर घर के हालात ऐसे नहीं कि उसका ब्याह किया जा सके पहले से ही इतना कर्जा है, लड़का धीनू 18 का हो गया है और वोही जमुना की आखिरी उम्मीद है अपने परिवार के लिए।

सुमन भारी मन के साथ शाम के खाने के लिए सिल बट्टे पर चटनी पीस रही थी, रह रह के उसके मन में सारी बातें घूमें जा रहीं थी, पति की दो महीने से कोई चिठ्ठी नहीं आई थी, कर्ज़ वाले रोज़ तकादा कर रहे थे, उसे जीवन संभालने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। सिल बट्टे के बीच में पिसती हुई चटनी उसे अपने जैसी लग रही थी, वो भी तो चटनी ही थी जिसे जिंदगी की सिल पर मुश्किलों का बट्टा पीसता जा रहा था,

सुमन ने जिंदगी में कभी अच्छा वक्त देखा ही नहीं, मां बाप का तो उसे चेहरा भी नहीं याद, बस ये सुना के बाप उसके जन्म से कुछ महीने पहले ही शराब की लत के कारण चल बसा और मां उसको जन्म देते हुए, सुमन को उसके चाचा चाची ने पाला और चाची का उसे मनहूस कहना पैदा होते ही मां बाप को खा जाने वाली कहना आम बात थी,चाची ने बस उसे इसलिए पाला था की समाज क्या कहेगा कि बाकी चाची का ऐसा कोई उसके प्रति मोह नहीं था, चाचा थोड़ा दुलार भी करता था ये कहकर की उसके भाई की आखिरी निशानी है, पर चाची कभी खरी खोटी सुनाने से पीछे नहीं रहती, सुमन जी तोड़ के काम करती सोचती चाची खुश हो जाएंगी, पर चाची को बस अपने बच्चों पर ही दुलार आता था, 14वर्ष की होते होते पतली दुबली सी सुमन का वजन उसकी चाची को बहुत ज़्यादा लगने लगा और 15 की होते होते उन्होंने सुमन की शादी राजेश से कर दी, राजेश अच्छा आदमी था पर बहुत सीधा, किसी की भी बातों में आ जाने वाला, इसी का फायदा उठा उसके भाइयों ने राजेश के हिस्से की जमीन अपने नाम करवाली और शादी के एक साल बाद लड़ाई कर दोनों पति पत्नी को घर से निकाल दिया, दोनों पति पत्नी और गोद में एक महीने का रतनू, बेघर थे वो तो शुक्र था राजेश की स्वर्गीय मौसी का जिनके कोई संतान नहीं थी तो बचपन में राजेश उनके पास ही रहा था तो मौसी ने अपना घर और एक खेत राजेश के नाम कर दिया था बस वो ही मुश्किल में उनके काम आया और तब से राजेश का परिवार अपनी मौसी के गांव में आकर बस गया। दुबली पतली सुमन अब चौंतीस साल की गदरायी हुई औरत हो गई थी, बदन इतना भर गया था की साड़ी के ऊपर से ही हर कटाव नज़र आता था, गेहूंए रंग की सुमन बिना कपड़े उतारे ही किसी के भी ईमान दुलवाने के काबिल थी और गांव में कइयों के ईमान सुमन पर डोल भी चुके थे पर समझ के डर से कोई खुल कर कोशिश नहीं करता था पर सुमन की मजबूरी का फायदा उठाने को कई गिद्ध तैयार थे गांव में। पर सुमन ने किसी तरह खुद को बचाकर रखा था। रतनू भी अब 18 का हो गया था और हो न हो सुमन को भी अब रतनू से ही सहारा था उसे लगता था कि अब उसके दिन उसका पूत ही फेरेगा।

दोनों परिवार अगल बगल रहते थे कच्ची मिट्टी की कोठरी और ऊपर छप्पर बस ये ही था घर के नाम पर दोनों का आंगन बस एक ही समझो क्योंकि बीच में चिकनी मिट्टी की ही एक छोटी सी दीवार थी जो आंगन को दो हिस्सों में बांटती थी।

सुमन के पास एक भैंस थी जो आंगन में बंधी रहती थी उसके ऊपर एक छप्पर डाल दीया था जहां भैंस और चारा वगैरा रहता था वहीं जमुना के यहां दो तीन बकरियां पली हुईं थी।

दोनों के ही पति साथ में मजदूरी करते थे, और महीने दो महीने में आते जाते रहते थे पर इस बार दो महीने में कोई खबर नहीं थी, दोनों ही कुछ नहीं जानती थीं किससे पता करें कैसे करें तो मन मसोस कर इंतजार करने के अलावा दोनों के पास ही कुछ और चारा नहीं था।

पहली अपडेट पोस्ट की जा चुकी है अपने रिव्यू देकर हौसला जरूर बढ़ाएं।
धन्यवाद
:congrats:
mast bhaavuk update tha.
Jamuna aur suman ke sath itna kuch ho gaya aur mujhe khabar tak nahi di kisine. ye to galat hai na bhai .
yarr meko le lete story me . tab to itna kuch complex aata hi nai . dono ko me sambhal leta, khyal bhi rakhta. :D
Karma ke style me us lala ko mast topi pehna ke apne jhanse me le leta aur uski biwi ko bhi pata leta 😘
 
Dramatic Entrance
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:congrats:
mast bhaavuk update tha.
Jamuna aur suman ke sath itna kuch ho gaya aur mujhe khabar tak nahi di kisine. ye to galat hai na bhai .
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Karma ke style me us lala ko mast topi pehna ke apne jhanse me le leta aur uski biwi ko bhi pata leta 😘
Bahut hi nek irade hain apke... Dukhiyaron ki madad karna bahut hi achi baat hai... Dekhte hain kitne safal hote hain apke irade..
Bahut bahut dhanyawad
 
Dramatic Entrance
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Emotion,Drama and Humor.
Teeno ko balance kar ke update likha hain aapne. Too good.
Humor se start kar ke reality mein lekar aaye aap jaha emotion touch huva. Alag alag dynamics ke emotion ko touch kiya saath mein reality show ki. Aur saath hi saath thodi lust and pleasure ko attach kiya kahani mein.
Abhi ye kahana kaafi jaldebaaji hogi ki kahani ki direaction kya hone waali hain.
Par ek baat toh paki hain. Ye kahani chodumpur se aage jaaegi. Kyuki yaha aapke pass chodumpur ka experience hain ( Ab ye mat puchna konsa :D) .
Waiting for next update...and index mein link aap khude update kar loge ya mein karun. Bata dena.
Pratikriya ke liye bahut bahut dhanyawad... Khushi hui ki apko pasand aai... Aage usi Chodampur ke experience ko lekar kuch acha likhne ki...
And index update main khud kar lunga thankyou.
 

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