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उफ्फ्फ जामुनाजमुना को जब लाला की थोड़ी बात समझ आई साथ ही उसने जब लाला की नजर का पीछा किया तो उसे खुद की कमर को घूरता हुआ पाया बस जमुना तो जैसे वहाँ खडे खडे बुत सी बन गई, उसे यहाँ आने से पहले जो डर सता रहा था वो सच होता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे क्या बोले, वो चाह रही थी कि धरती फट जाए ओर वो धरती के सीने में समा जाए।
जमुना: ज्ज ज्जी जी लालाजी हम कछू समझे नाय।
लाला: हम समझाय देत हैं जमुना रानी।
और ये बोलकर लाला ने जो किया उससे तो जमुना के होश ही उड गए वो शर्म से मरने को हो गई। लाला ने अपना हाथ बढ़ाकर जमुना की नँगी कमर पर रख दिया और उसे मसलने लगा।।
अपडेट
जमुना का शरीर डर और शरम से जम सा गया उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही नहीं है उसका खूंन जैसे जम सा गया है उसके मांसल पेट के जिस हिस्से पर लाला का हाथ था उसे लग रहा था वो हिस्सा जल रहा है, वो बहुत तेज चिल्लाकर लाला को दूर कर देना चाहती थी, धक्का दे कर भाग जाना चाहती थी, पर उसका गला जैसे जम गया हो उसकी ज़बान पत्थर की हो गई थी उसके गले से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी, लाला का हाथ उसकी कोमल कमर को अपनी घिनौनी उंगलियों से मसल रहा था उसे खुद से घिन आ रही थी और तभी अचानक जैसे उसकी खोई हुई ताकत वापस आ गई, उसके पत्थर बने हाथ वापिस हाड़ मांस के हो गए। दोनों हाथ साथ उठे और दोनों हाथों ने मिलकर लाला को धक्का दिया तो लाला पीछे की ओर दरवाज़े के बगल में दीवार से जा लगा,
जमुना की सांसे किसी रेल के इंजन की तरह चल रही थीं, अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसका बदन हल्का हो गया है, उसके बदन से न जाने कितना भारी बोझ हट गया है और वो बोझ लाला के हाथ का था जो उसकी कमर से हट चुका था, कहने को तो हाथ सिर्फ कमर पर था पर उसके नीचे जमुना का पूरा वजूद उसका आत्म। सम्मान सब कुछ दबा हुआ था, लाला की उंगलिया सिर्फ उसके कमर के माँस को नहीं मसल रही थी, बल्कि जमुना की इज्जत, उसके सर उठाकर चलने के अरमानो को मसल रही थीं, उसके पतिव्रत जीवन को मसल रही थीं। जमुना को अब जाकर थोड़ा होश आया तो उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने लाला जैसे बलशाली और बड़ी काया के व्यक्ति को धक्का देकर इतनी दूर फेंक दिया है, इतनी शक्ति न जाने कहां से उसके अंदर आ गई।
दीवार से लगे लाला को तो जैसे एक हैरानी और अचंभे ने घेर लिया, उसे यकीन नहीं हुआ कि उससे आधे कद वाली स्त्री जिसकी उसके आगे कोई औकात नहीं है उस औरत ने उसे यूं धकेला कि वो दीवार से जा लगा, लाला को जिसका पूरे गांव क्या आस पास के सभी गांवों में इतना रसूख था, कि उसकी बात को काटने की किसी में हिम्मत नहीं होती थी उस लाला को एक मामूली सी गरीब पुरानी साड़ी लपेटे एक औरत ने धक्का दे दिया। लाला के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई भी औरत उसके जाल में न फंसी हो,
जमुना की तरह ही जब भी कोई औरत लाला से कर्जा मांगने आई तो उसके कुछ देर बाद ही वो औरत लाला के नीचे होती थी, और लाला कर्जे के बदले में औरत के जिस्म को नंगा कर भोगता था, जब वो उनके बदन को मसलता था अपनी मर्दानगी के तले रौंदता था, अपने मजबूत हाथों से उनकी छातियों को गूंथता था तो हर औरत चीखती चिल्लाती थी आहें भरती थी, उससे रहम की भीख मांगती थी और वो चीखें वो आहें सुनकर लाला को जो सुख मिलता था वो उसके लिए जीवन का परम सुख था, औरतों की चीखें, उनकी रहम की गुहारें, उनकी आहें, लाला के कानों का सबसे पसंदीदा संगीत था,
आज जमुना को अपने दरवाजे पर देखकर लाला को बेहद प्रसन्नता हुई थी, न जाने कब से वो जमुना के जिस्म को नोचना चाहता था उसे नंगा कर के अपने नीचे मसलना चाहता था, कई बार उसने जमुना को खेतों में काम करते देखा था, पसीने से भीगे जमुना के मादक बदन को देखकर लाला के पजामे में न जाने कितनी बार तनाव आया था, जमुना के गोल मटोल बड़े बड़े नितम्ब उसे बहुत आकर्षक लगते थे, वो उन मांस के तरबूजों को चखना चाहता था, खाना चाहता था, भीगे हुए ब्लाउज में कैद जमुना के पपीते के आकार के स्तन देख लाला का गला सूख जाता था और वो जानता था उसके सूखे गले की प्यास बस जमुना के ब्लाउज को खोलकर ही बुझ सकती थी
तो आज जमुना को दरवाजे पर देखकर लाला को अपनी प्यास बुझती नजर आई थी, उसने सोच लिया था कि आज जमुना को खूब रगडूंगा।
पर हुआ उसका बिलकुल उलट जमुना ने तो उसे दूर धकेल दिया, आज तक किसी भी औरत की इतनी हिम्मत नहीं हुई थी, जमुना ने धक्का तो लाला के बदन को दिया था पर उसकी चोट लाला के आत्मसम्मान पर हुई थी, उसके अहंकार पर हुई थी,
कैसे एक मामूली सी औरत ने लाला को धक्का दे दिया, क्या इज्जत रह जायेगी उसकी समाज में अब, लाला के दिमाग में यही सब घूमने लगा दीवार से लगे लगे उसके चेहरे के भाव बदलने लगे, हर एक पल के साथ लाला को उसके आत्मसम्मान की चोट का एहसास गुस्से में बदलने लगा, उसका मन ये यकीन नहीं कर पा रहा था की ऐसा भी कोई औरत कर सकती थी उसके साथ, आज तक हर औरत ने उसके आगे अपना पल्लू ही गिराया है, बचपन से लेकर अब तक उसके सामने हर औरत साड़ी खोलती ही आई है, और ऐसा हो भी क्यों ना, उसके बाप दादा सब ने ही तो ये किया था, उसके सामने ही न जाने कितनी औरतों को उसके बाप ने अपने नीचे कुचला था, तो अगर वो ऐसा न कर पाया और कोई औरत उसके चंगुल से निकल गई तो इसका मतलब तो वो अपने पूर्वजों को मुंह तक नहीं दिखा पाएगा।
लाला ने जमुना के एक धक्के सोच सोच कर इतना बढ़ा बना लिया उसका क्रोध सातवे आसमान पर पहुंच गया, उसी क्रोध में लाला जमुना की तरफ पलटा,
सहमी हुई सी जमुना जो कि अब तक जो हुआ उसे ही समझने की कोशिश कर रही थी उसकी नजर लाला के चेहरे पर पड़ी और लाला का क्रोध में लाल चेहरा देख तो जमुना डर से कांप गई वो सोचने लगी उसने धक्का देकर कहीं कुछ गलत तो नहीं कर दिया लाला के चेहरे को देखकर उसे लगने लगा ये उसके जीवन का आखिरी दिन है, उसका पूरा बदन डर से थरथरा रहा था, कहां वो बेचारी गरीब दुखियारी औरत और सामने कहां लाला जिसकी पूरे ही गांव में कितनी चलती थी,
गुस्से में लाला बिना सोचे समझे जमुना की ओर बढ़ने लगा,
लाला को अपनी तरफ आता देख जमुना का पूरा बदन कांपने लगा, उसे अपना जीवन खत्म होता दिखने लगा उसकी आंखों के सामने अपना पूरा जीवन किसी फिल्म की तरह चलने लगा।
उसी बीच लाला लगातार जमुना की ओर बढ़ रहा था लाला जमुना के करीब जैसे ही पहुंचा जमुना की हालत ऐसी थी जैसे वो अभी बेहोश हो जायेगी, वो अपना बचाव तक करने की हालत में नहीं थी, लाला ने गुस्से में ये ठान लिया था कि अब वो जमुना को उसके किए की सजा देकर ही रहेगा, लाला ने जैसे ही जमुना के पास पहुंचकर अपना हाथ आगे बढाया ही था कि अचानक से दरवाज़े पर दस्तक हुई,
और लाला का ध्यान दरवाज़े पर गया, दोबारा से खट खट हुई तो लाला न चाहते हुए भी जमुना के सामने से हटा और दरवाज़े की ओर बढ़ा, लाला के घूमते ही जमुना की जान जैसे वापस आने लगी, जमुना को लगा जैसे आज पहली बार ईश्वर ने उसकी सुध ली है। लाला ने दरवाज़ा खोला तो सामने लाला की पत्नी रज्जो जिसका नाम रजनी था पर गांव में असल नाम से कोई कहां पुकारता है तो हो गई वो रज्जो वोही थी।
रज्जो को देख लाला थोड़ा निराश हुआ पर अब क्या कर सकता था, तो अपने अंदर भरे गुस्से को अपनी पत्नी पर निकालते हुए ही वो बोला: कां मर गई हती इत्ती देर लगत है मंदिर में?
लाला ने दरवाजे से हटते हुए कहा, रज्जो पति की डांट सुनकर जरा भी हैरान नही हुई उसे इसकी आदत हो चुकी थी उसका पति किसी न किसी बात का गुस्सा उस पर निकालता रहता था, चाहे उसका उस बात से कोई लेना देना ही न हो, जब सामने से लाला हटा तो रज्जो की नजर सामने डरी सहमी सी खड़ी जमुना पर गई,
जमुना को देखकर रज्जो ने सवालिया निगाहों से लाला को देखा पर खेला खाया लाला खुद को बचाने में माहिर था,
लाला: जे उमेश की घरवाली और कर्जा मांगन आई है, हमने तौ साफ मना कर दई, पर देखो मान ही न रही है, पहले पिछलो हिसाब निपटाओ तभही आगे रुपिया मिलिंगे।
रज्जो बेचारी क्या करती हमेशा की तरह पति की हां में हां मिलादी,
रज्जो: हां री जमुनिया देख बात तो जे ही सही है पहले पिछलो दे जाओ फिर ही नओ कर्जा मिलिगो।
जमुना जो अब तक जमी हुई खड़ी थी उसे कुछ होश आया और वो तुरंत बिना कुछ बोले भागी,
जमुना को यूं बिन कुछ बोले जाते देख लाला अंदर चला गया वहीं रज्जो खड़ी खड़ी दरवाज़े को देख रही थी, उसका पति उसे बेवकूफ समझता था पर वो थी नहीं, वो समझती थी कि कर्जे के लिए मना ही करना था तो अंदर से दरवाज़ा लगाने की क्या जरूरत थी, और बाकी का बचा कूचा हाल जमुना के चेहरे ने बयां कर दिया था, जमुना के चेहरे पर को भाव थे उसे देखकर साफ पता चलता था कि उसके साथ क्या हो रहा होगा,
रज्जो भी औरत थी और उसे पता था औरत कब कैसा महसूस करती है, जब से इस घर में ब्याह कर आई थी, तबसे उसने खुद को ऐसे ही ढाल लिया था उसे सब पता होता था कि उसका पति अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी ही औरतों के जीवन से खेलता है पर वो कर भी क्या सकती थी औरत की जिम्मेदारी है बस घर संभालना और हर तरीके से पति को खुश रखना अपना वजूद था ही कहां उसका, पति ने प्यार दिया तो खुशी खुशी लिया गाली दी तो वो भी खुशी खुशी लेना उसने सीख लिया था, इससे सिर्फ रसोई में क्या बनेगा या घर में किस रंग की रंगाई होगी इसके अलावा कोई फैसला वो नहीं करती थी।
वो सब जानती थी कि उसका पति उसके साथ धोखा करता है दूसरी औरतों की इज्जत के साथ खेलता है पर वो जानबूझ कर इन सब चीजों को अनदेखा करती थी क्योंकि वो जानती थी कि वो अगर इसके बारे में लाला के सामने भी जायेगी तो कुछ नहीं होगा, जो अभी लाला ये सोचकर कि उसे नहीं पता थोड़ा छुप कर करता है फिर वो सामने करने लगेगा जो कि वो देख नहीं पाएगी, तो उसने खुद को इस भ्रम के जीवन में बांध लिया था,
वो भी ये सब सोचते हुए अंदर चली गई।
जमुना लाला के घर से निकली तो सीधी भागी जा रही थी उसकी आंखों से आंसुओं की धारा रुक ही नहीं रही थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज उसका समाज के उस घिनौने चेहरे से, या यूं कहें उस राक्षस से सामना हुआ था जो हमें लगता था कि हमारी पलंग के नीचे है जिस से रात में हम पलंग के नीचे झांकने से डरते थे, आज वोही नीचे का राक्षस जमुना के सामने आ खड़ा हुआ था, उसे ये तो हमेशा से पता था कि समाज का ये चेहरा भी है पर उसका खुद का सामना भी कभी होगा उसने ये न सोचा था।
जमुना उखड़ती सांसों के साथ बस भागी जा रही थी, अपना घर उसे बड़ी दूर लग रहा था वो किसी भी तरह से अपने घर पहुंचना चाहती थी,
सुमन जमुना की बकरियों को पानी देकर खड़ी हुई थी कि अचानक उसकी नज़र भागती हुई आती जमुना पर गई उसको इस तरह भागते देख सुमन डर गई उसे कुछ गलत का अंदेशा होने लगा,
जमुना को तो जैसे आंगन में खड़ी दिखी ही नहीं वो सीधी कमरे के सामने गई कांपते हाथों से दरवाजा खोला और अंदर जमीन पर पड़ी एक चटाई पर गिर गई,
जमुना को यूं अंदर जाते देख सुमन भी बाल्टी छोड़ कर उसके पीछे भागी भाग कर जब कमरे के दरवाज़े पर पहुंच जमुना को इस हाल में देखा तो सुमन कांप गई उसके मन में अनेकों अनचाहे खयाल आने लगे, कुछ अनिष्ठ होने की कल्पना से सुमन का मन घबराने लगा, उसके मन ही मन में ईश्वर की प्रार्थना होने लगी न जाने कितने ही भगवान के नाम का उसने जयकारा लगा दिया इस पल में ही।
भारी कदमों से सुमन ने बढ़ कर जमुना के करीब पहुंची,
सुमन: जीजी का है गओ, ऐसे काय(क्यों) रोए रही हो, जीजी हमाओ करेजा(दिल) मचल रहो है, जीजी का है गओ (गया).
जमुना थी जो बस रोए जा रही थी उसे देखकर सुमन की आंखों से भी आंशु बहने लगे साथ ही मन में घबराहट कि जरूर कुछ गलत हुआ है नहीं तो जमुना जैसी कठोर औरत यूं नहीं रोती।
सुमन: बस जीजी हम हैं तुमाए पास, बस सब ठीक है, बस अब न रो, शांत है जाओ।
बास्स्स।
सुमन ने जमुना को अपने सीने से लगाकर किसी बच्चे की तरह शांत करते हुए कहा,
जमुना को भी थोड़ा आराम मिला तो उसका रोना भी कम हुआ,
सुमन: जीजी हमें बहुत घबराहट है रही है, का है गाओ हमें बताए दो, तुमाई कसम जीजी करेजा मुंह को आए रहो है।
जमुना ने सुबकते सुबकते हुए ही एक एक बात सुमन को बता दी जिसे सुनकर सुमन भी कांप गई, क्योंकि उसे पता था कि आज जो जमुना के साथ हुआ है कल उसके साथ भी होगा, लाला के कर्ज़ के तले वो भी दबी हुई है, सुमन का दिल भी घबराने लगा, आने वाले खतरे को सोचकर वो कांपने लगी, जमुना को अपने सीने से लगाए वो सोचने लगी, कि जमुना तो तब भी भाग आई और किसी तरह झेल गई पर क्या वो सह पाएगी, हो न हो उससे पहले ही वो अपनी जान दे देगी, उसमे शायद इतना साहस नहीं है कि इस तरह से वो लाला का सामना कर सके।
साहस तो जमुना में भी नहीं था पर अपने बेटे के मोह में आकर चली गई थी, उसने सोचा कहां था कि पुत्र प्रेम की सजा इस तरह से ये समाज उसे देगा। दोनों न जाने कितनी ही देर तक एक दूसरे की बाहों में पड़ी आंसू बहाती रहीं, सुमन हालांकि जमुना को हिम्मत बंधा रही थी पर उसकी खुद की हिम्मत जवाब दे चुकी थी, दोनों एक दूसरे के सीने में शायद सुरक्षित महसूस कर रहीं थी और इसी लिए काफी समय तक ऐसे ही पड़ी रहीं।
एक पीपल के नीचे बैठे हाथ में कंचे लिए हुए दोनों दोस्त अपनी मांओं की परिस्थिति से बेखबर कुछ और ही उधेड़बुन में लगे हुए थे।
धीनू: का करें यार रुपिया की तौ कछु जुगाड़ न भई (हुई)
रतनू: हां यार मां पहले से ही गुस्सा हती हमाई तो बोली भी न निकरी(निकली) उनके आगे।
धीनू: अच्छा है नाय निकरि, हमाई निकरी तौ चिल्लाय पड़ी माई।
रतनू: फिर अब का करें कहूं सै तौ पैसन की जुगाड़ करने पड़ेगी ना।
धीनू: मेरे पास एक उपाय है।
रतनू: सही में? बता फिर सारे..
धीनू: सुन…
क्या हुआ जमुना और सुमन का और साथ ही क्या उपाय निकाला है धीनू ने सब कुछ अगली अपडेट में, अपने रिव्यू ज़रूर दें। बहुत बहुत धन्यवाद।

लाला की चादी हो गयी कि जमुना के मखमली बदन को छुआलिया

धिनू और रतनू की जोडी सुपर हिट

एकदम चौकस अपडेट
मजा आ गया भाई