Adultery कम्मो का काम सूत्र

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कम्मो का काम सूत्र

आडीटर देवराज पाण्डे उर्फ़ देबू भाई अपनी आडीटर मण्ड्ली जिसमें उनके अतिरिक्त तीन पुरुष आडीटर (चन्दन चौहान उर्फ़ चन्दू, नन्दराम त्रिवेदी उर्फ़ नन्दू और राजेन्द्र यादव उर्फ़ रज्जू) और दो महिला आडीटर (हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी) के साथ ट्रेन से तीन दिन का लम्बा सफ़र कर वीराने में बने इस बड़े पावर जनरेशन स्टेशन की आडिट करने करीब शाम के चार बजे पहुँचे। यहाँ आने के निर्णय से रज्जू इस मण्डली में सबसे अधिक उत्साहित था क्योंकि वो इसी इलाके का रहने वाला था। वहाँ के चीफ़ एकाउन्टैन्ट ने इन्हे बताया कि यहाँ बिजली बनाने वाली मशीनो के शोर शराबे की वजह से हमने गेस्ट हाउस न बना कर पास के गाँव मे स्थित सराय को गेस्ट हाउस का ठेका दिया हुआ है आप सब वहीं ठहरेंगे । ये सुनकर रज्जू बहुत खुश हुआ उसे खुश होते देख अपने आडीटर इन्चार्ज पाण्डेयजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा –
“वहाँ गाँव की सराय में मच्छरों से जिस्म नुचवाने में इतना खुश होने की क्या बात है जो दाँत निकाल रहे हो।”
ये सुन रज्जू यादव, पाण्डेयजी को एक तरफ़ ले जाकर बोला –
“अरे पाण्डेजी, साफ़ सुथरा गाँव है समझदार जागरूक लोग हैं रोज शाम को जगह जगह नारियल के अलाव जलते हैं मच्छरों का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। (फ़िर हुमा और मोना की तरफ़ इशारा कर बोला) घर में तो हम ये शहरी शामी कवाब, खीर पूरी, खाते ही हैं अब आफ़िस से इतनी दूर, तीन दिन का सफ़र कर आने के बाद भी क्या गाँव के आम, खरबूजों का स्वाद न लेंगे।”
पाण्डेयजी(चौंककर) –“अबे कुछ जुगाड़ है क्या रज्जू?
रज्जू तपाक से बोला–“अरे सब यहीं पूछ लेंगे । आप चलिये तो सही।”
पाण्डेयजी को रज्जू की बात में दम नजर आया कि आफ़िस मे तो आफ़िस की महिला आडीटरों, क्लर्कों की चूते मिलती ही रहती हैं क्यों न चलकर कुछ नया किया जाय यानि रज्जू के शब्दों में गाँव के आम, खरबूजों का स्वाद लिया जाय । फ़िर भी सफ़र के मजे के लिए चारो हरामी अपने साथ दो महिला आडीटर हुमा और मोना को ले के ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास केबिन में गये थे। तीन दिन तीन रात कूपा बन्द कर चारो हरामियों ने हुमा और मोना की चूतें खूब बजाई थी । हुमा और मोना भी उस आफ़िस की मानी हुई चुदक्कड़ थी, उस फ़र्स्ट क्लास केबिन में तीन दिन तीन रात दोनों नाइटी में ही रहीं, कच्छी तो पहनी ही नहीं, लण्ड बदल बदल कर अपनी चूतों की प्यास जम के बुझवाई थी । जाहिर था कि इन तीन दिनों में आडीटर मण्डली के लण्ड और चूत एक दूसरे के लिए दाल भात हो गये थे । बस पाण्डेयजी गाँव की सराय में जाने को तैयार हो गये। उधर रज्जू ने हुमा और मोना को भी समझा दिया कि हम तो (मतलब था हमारे लण्ड) तो आप लोगों की (यानि कि चूतों की) सेवा करते ही हैं जरा गाँव के लठैतों को (मतलब लठैतों के लण्डों को) भी सेवा का मौका दीजिये । दोनों चुदक्कड़ फ़ौरन मान गईं।
ये छोटा सा गाँव पावर जनरेशन स्टेशन के पास मुख्य सड़क पर ही है इस गाँव में यही कोई 40-50 मकान बने होंगे। आस पास कोई बड़ा शहर भी नहीं है सो पावर स्टेशन में किसी काम आने वालों के लिये रात मे ठहरने के लिए इस गाँव में होटल के नाम पर कम्मो भटियारिन की सराय ही एक आसरा है। उस पे तुर्रा ये कि मुख्य सड़क पर बसा होने के बावजूद मुख्य सड़क केवल गाँव का प्रवेश द्वार ही है अर्थात मुख्य सड़क से एक दूसरी सड़क निकली थी जोकि गाँव के अन्दर गई थी। इस सड़क पर चलते हुए पूरा गाँव पार कर आखीर में एक बड़ा हाता है इसे ही कम्मो भटियारिन की सराय भी कहते हैं गाँव से होकर एक नदी भी गुजरती है। जिसके किनारे गाँव वालों ने तमाम नारियल के पेड़ लगाये हुए हैं, नारियल की पैदावार अच्छी है । नदी की तरफ के मकानों से देखा जाय तो भी कम्मो भटियारिन की सराय का हाता ही आखरी मकान है, क्योंकि उसके बाद कोई मकान नही है उसी सड़क पर आगे चलें तो थोड़ी दूर पर एक पुलिया है। पुलिया के पीछे आम का काफ़ी बड़ा बगीचा है, और उस बगीचे के पीछे से थोड़ा बहुत जंगल शुरू हो जाता है और आगे की सड़क कच्ची है । सराय के दूसरी ओर एक और रास्ता भी है जिसे पूरा गाँव पास की नदी पर जाने के लिए इस्तेमाल करता है उस नदी का घाट भी सराय से करीब 200 मीटर की दूरी पर ही है। सराय का दरवाजा या फ़ाटक सड़क से लगा हुआ है। रज्जू सबको लेके फ़ाटक पर पहुँचा्।
पाण्डेय जी –“अबे रज्जू ये तू कहाँ ले आया। देखने में तो ये किसी पुराने जमाने की गोदाम का फ़ाटक लगता है?
रज्जू –“हाँ पर चार दीवारी के अन्दर काफ़ी बड़ी सराय है।”
तभी कम्मो भटियारिन किसी काम से बाहर निकली। रज्जू को देखते ही बोली –“अरे रज्जू भैया! आओ आओ, बड़े दिनो पे सुध ली(याद किया)।”
रज्जू –“हाँ, दरअसल मेरी शहर में नौकरी लग गई इसीलिए इस तरफ़ आने का मौका नही लगा। ये हमारे बड़े आडीटर साहब श्री पाण्डेय जी हैं और ये हमारे बाकी आडीटर साथी चन्दन चौहान उर्फ़ चन्दू, नन्दराम त्रिवेदी उर्फ़ नन्दू, मिसेस हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी हैं।
कम्मो ने सबका मुस्कुरा के स्वागत करने के बाद उसने पीछे घूम के आवाज दी –“बल्लू! बिरजू! साहब लोग का सामान उठवा के कमरों मे पहुँचवाओ।”
फ़िर बोली –“आइये आपलोगों को आपके कमरे दिखला दूँ।”
वो सबको अपने पीछे आने का इशारा कर मुड़ के वापस चल दी।
कम्मो के रंग, रूप की छटा देख पाण्डेय जी की तो जैसे साँस ही रुकने लगी थी। मंझोला कद, मांसल गदराया बदन, बड़े बड़े बेलों जैसे ऊपर को मुँह उठाये स्तन, गोल और गहरी नाभी वाला माँसल गदराया कसा हुआ पेट, मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल जाँघो के ऊपर बाहर की ओर उठे हुए भारी चूतड़ और जब वो मुड़ के वापस जाने लगी तो उसके ज़्यादा विपरीत दिशा थिरकते चूतड़ के पाट देख कर तो अपने पाण्डेय जी इतने बदहवास हो गये कि ठोकर खा गये और गिरते गिरते बचे।
सब अन्दर पहुँचे तो देखा कि ये एक बहुत बड़ा खपरैल वाला मकान है जिसमे एक बड़े से आँगन के चारो तरफ़ वराण्डा और वराण्डे के पीछे लोगों के ठहरने के लिए कमरे हैं रज्जू ने बताया कि मकान के दाईं ओर से(हाते के अन्दर ही) मकान के पीछे चली गई गली में इस सराय के मालिक लोग (कम्मो भटियारिन और उसका परिवार) का अपना घर है।
पाण्डे जी को आश्चर्य हुआ कि सबकुछ बेहद मामूली किस्म का है पर इतना मामूली होने के बावजूद सराय मे काफ़ी चहल पहल थी जो कि इस बात को साबित कर रही थी कि सराय का कामकाज अच्छा चल रहा है।
सबको उनके उनके कमरे दिखा कर कम्मो पाण्डेजी से मुखतिब हो मुस्कुरा के बोली – ये छ: कमरे इकट्ठे एक लाइन से खाली हैं आप लोगों के लिए ठीक रहेंगे। आप लोग पहली बार आये हैं सो हमारे मेहमान हैं पर रज्जू भैया इसी इलाके के हैं और हम लोगों को अच्छी तरह जानते हैं किसी चीज की जरूरत हो तो रज्जू भैया से कहलवा दें।”
इतना कह मुस्कुराते हुए पलटकर लहराती हुई जाने लगी अपने चोदू पाण्डे जी पीछे से उसके थिरकते चूतड़ देख गश खाने लगे।
तभी रज्जू ने आवाज दी –“पाण्डे जी!”
चौंककर पाण्डे जी होश में आये और इतनी देर से कम्मो के जिस्म की गरमी और चमक से सूख रहे गले को थूक घुटक के गीला किया और धम से कुर्सी पर ढेर हो गये ताकि पैंट में सुगबुगाते लण्ड पर किसी की नजर न पड़ जाय ।
पाण्डे जी –“ यार रज्जू! सराय में तो काफ़ी चहल पहल है लगता है सराय का कामकाज अच्छा चल रहा है।
रज्जू –“ जी हाँ सराय दूर दूर तक मशहूर भी है। हालाँकि पहले ऐसा नहीं था, हफ़्ते मे चार छ: मुसाफ़िर आकर ठहर जाय तो गनीमत समझो बस यों समझो कि किसी तरह खींचतान के खर्चा चल रहा था। अब आप पूछेंगे कि फ़िर अब ऐसी क्या बात हो गई कि व्यापार न सिर्फ़ चलने लगा बल्कि सराय मशहूर भी हो गई। ये एक लम्बी और दिलचस्प कहानी है वो मैं आपको फ़िर कभी सुनाऊँगा। अभी आप लोग इस गाँव की दूसरी दिलचस्प चीजों का आनन्द लें।
तभी बल्लू और बिरजू सबका सामान ले के आ पहुँचे। उनके लम्बे चौड़े गठीले बदन देख हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी की चूतें सिहर कर दुपदुपाने लगी।
पाण्डे जी -“रज्जू मेरा सामान यही रखवा दो और बगल वाले कमरे में तुम अपना रखवाओ जिससे मैं जब चाहूँ तुमसे आसानी से सम्पर्क कर सकूँ। बाकी सब अपने लिए कमरे पसन्द कर अपने सामान रखवा कर अपनी दैनिक क्रियाओं से निबटे फ़िर रात के खाने के लिए यहीं मेरे कमरे पर मिलें ।
जब सब फ़ारिग हो के पान्डेजी के कमरे में इकट्ठे हुए तो पाण्डे जी ने खाना अपने कमरे की मेज पर ही मंगवा लिया। सराय में इस समय काफ़ी चहल पहल थी। कमरों में इस समय खाना पहुँचाने परोसने में बल्लू और बिरजू के अलावा कम्मो भटियारिन की बेटी बेला, कम्मो की देवरानी धन्नो भटियारिन और धन्नो की बहू चम्पा भी थे । रज्जू ने सबका परिचय करवाया। धन्नो भटियारिन और रज्जू एक दूसरे को अर्थ पूर्ण ढंग से देखकर मुस्कुरा रहे थे । उधर चन्दू चौहान का चौहानी लण्ड चम्पा के लम्बे गदराये माँसल बदन को देख देख ताव खा रहा था । अपने नन्दू पण्डितजी को गोरी चिट्टी गोल मटोल सी बेला को देख, अपनी पण्डिताईन की याद आ रही थी और उनका मन उसे दबोच लेने का कर रहा था । मोना बिरजू को ऐसे घूर रही थी जैसे आँखो से ही निगल जायेगी। हुमा सुलेमान की हालत और भी खराब थी । वो तो बल्लू को देख देख सबकी नजरे बचा के टेबिल के नीचे अपनी बुरी तरह पनियाती चूत की पावरोटी सहला भी रही थीं।
खैर खाना खतम हुआ और सराय के लोग जूठे बर्तन वगैरह हटा टेबिल साफ़ कर चले गये तो पाण्डेजी ने दरवाजा अन्दर से बन्द करते हुए कहा –
“हाँ तो रज्जू! अब बताओ कहाँ हैं तुम्हारे आम, खरबूजे?”
रज्जू- “क्यों देख के अनदेखा करते हैं पाण्डे जी, अरे! इतने सारे तो दिखला दिये। अरे ये कम्मो, धन्नो, बेला, चम्पा में से क्या कोई आम, कोई खरबू्जा आप को पसन्द नहीं आया।”
पाण्डेजी –“अबे क्यों मजाक करता है वो तो सराय के मालिक का परिवार है।”
रज्जू- “इससे आपको क्या, आप बस इशारा करो जिसे बताओ भिजवा दूँ।”
पाण्डेजी एक मिनट तक घूरते रहे फ़िर उसे पास बुला के उसके कान में धीरे से कहा –“यार अपनी हसरत तो कम्मो को ही रगड़ डालने की है ।
रज्जू- “मँज़ूर्।”
पाण्डे जी की देखा देखी बाकियों ने भी बिरजू के कान में अपनी अपनी ख्वाहिश बता दी।
चन्दू –“यार अपन तो चम्पा से दो दो हाथ (कुश्ती) करना चाहते हैं ।
नन्दू –“इस पण्डित को तो बेला खीर से भरा कटोरा लगती है जिजमान।”
मोना –“ मुझे तो बिरजू से पैर दबवा के ही चैन पड़ेगा।”
हुमा –“यार तुम लोगों ने ट्रेन में इतना थका डाला। बल्लू तगड़ा भी है और उसके हाथ काफ़ी बड़े बड़े हैं अब तू उसे भेज दे तो मैं बदन की मालिश करवाऊँ तो चैन पड़े।”
रज्जू-“आप सब अपने अपने कमरों में पहुँचे और जब कोई तीन बार कमरा खट खटाये तो कमरे की बत्ती बुझा के कमरा खोल दे जब आने वाला अन्दर आ जाये तो दरवाजा बन्द कर यदि चाहे तो बत्ती जला सकते हैं।”
बस फ़िर क्या था जैसे ही रज्जू कमरे से निकला बाकी सब भी निकल निकल के अपने कमरे में चले गये।
पाण्डे जी अपने हाथ से अपना लण्ड सहलाते हुए इन्तजार कर रहे थे आधा घण्टा भी ना बीता होगा कि किसी ने दरवाजा खटखटाया । पाण्डे जी ने बत्ती बुझा के धड़कते दिल से दरवाजा खोला । वराण्डे की धीमी रोशनी में उन्होंने बाहर खड़ी कम्मो भटियारिन को पहचाना और उसे कमरे के अन्दर ले जल्दी से दरवाजा बन्द कर लिया । उतावले पाण्डे जी ने अन्धेरे में ही कम्मो को बाहों में भर उसके होठों पर होठ रखने की कोशिश की तो कम्मो ने मुँह घुमा लिया और पाण्डे जी के होठ उसके उभरे हुए टमाटर से गाल से टकराये। पाण्डे जी ने चुम्मा जड़ दिया ।
एक दबी दबी हँसी के साथ कसमसा के कम्मो ने खुद को छुड़ा लिया और बत्ती जला दी।”
रोशनी होते ही पाण्डे जी ने देखा कि कम्मो अपने रूप रंग की पूरी छटा लिए खड़ी मुस्कुरा रही है पाण्डे जी एक बार फ़िर उसके बदन को आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ के देखने लगे।
कम्मो साड़ी खोल कर एक तरफ़ फ़ेकते हुए –“क्या आडीटर साहब आपको भी मैं बुढ़िया पसन्द आई उस पे इतनी उतावली?”
– “रसगुल्ले को अपना स्वाद थोड़े ही पता होता है।” कहते हुए देबू पाण्डे ने बत्ती बुझा के नाइट लैम्प जला दिया।
तबतक कम्मो जाकर बिस्तर पर लेट चुकी थी पाण्डेजी भी बगल में लेट गये और ब्लाउज के ऊपर से ही जोर जोर से उसका भरा पूरा सीना दबाने लगे। ब्लाउज ज्यादा देर पांडे जी के हाथों की ताब बरदास्त न कर सका, उन्होंने ब्लाउज में हाथ डाला तो चुटपुटिया वाले बटन खुल गये उन्होंने ब्लाउज उतार के फेंक दिया और ब्रा में से फटी पड़ रही छातियों पर टूट पड़े।
पांडेजी की हरकतों से बुरी तरह से उत्तेजित कम्मो ने अचानक करवट ले के कहा -' इनके लिए इतने उतावले हो तो हुक खोल क्यों नहीं देते। पांडेजी ने वैसा ही क्या तो कम्मो फिर से चित हो कर लेट गयी।अब तक तो पांडेजी की बर्दास्त चूक गयी इसलिए उन्होंने एक ही झटके में ब्रा नोंच कर फेंक दी।
दो बड़े बड़े ऊपर को मुँह उठाये लक्का कबूतरो जैसे सफ़ेद स्तन फ़ड़फ़ड़ा के बाहर आ गये । पाण्डे जी किसी बाज की तरह उनपर झपटे और दोनों हाथों मे दबोच उनपर मुँह मारने लगे । कम्मों ने सिसकारी ली और टाँगे समेट अपनी मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल जाँघो को उजागर कर फ़ैलाते हुए कहा- “इस्स्स्स्स्स! मैं शुरू से ही देख रही थी कि आप मुझे घूरे जा रहे थे अब निकाल लो अपने सारे अरमान।”
कहकर उसने ने पाण्डेजी की तरफ़ करवट ली और पायजामे का नारा खींच कर खोल दिया और अन्दर अपनी गुदाज कोमल हथेली डाल के उनका बुरी तरह फ़नफ़नाता करीब साढ़े सात इन्चीं लम्बा फ़ौलादी लण्ड थाम लिया और सहलाने लगी । पाण्डे जी उसके बड़े बड़े बेल जैसे स्तनों को दबा दबा के चूसे जा रहे थे । कम्मो ने लण्ड बाहर निकाला और अपनी चूत से सटा के अपनी दोनों मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा लिया । पाण्डेजी अपनी कमर चला के अपनी चुदाई के लिए बेचैनी जाहिर कर रहे थे। इतनी देर से चूचियाँ चुसवाते और चूत से लण्ड रगड़ते रहने के कारण कम्मो की चूत भी बुरी तरह पनिया रही थी। सो उसने सुपाड़ा चूत के मुहाने से लगाया और दोनों खेले खाये माहिर चुदक्कड़ थे ही। धीरे धीरे अपनी कमर चला के पूरा लण्ड चूत के अन्दर पहुँचा दिया तो पाण्डेय जी ने आराम से कम्मो के गदराये बदन का मजा लेते हुए धीरे धीरे चुदाई शुरू की।
उधर अपने नन्दू पण्डित का लण्ड उनकी धोती के अन्दर फ़ड़फ़ड़ा रहा था वो धोती आधी खोलकर आधी पहने आधी ओढ़े लेटे थे कि दरवाजा खड़का तो बेला खीर से भरा कटोरा लिए अन्दर आयी नन्दू पण्डित ने दरवाजा बन्द किया और बत्ती जलायी अपनी शरारती आँखे नचाते हुए बोली आपने खीर का कटोरा मंगवाया था पण्डितजी! नन्दू –“हाँ मगर सिर्फ़ एक कटोरा, पता नहीं रज्जू ने दो क्यों भिजवा दीं ।
अब चौंकने की बारी बेला की थी बोली –“दो कहाँ मैं तो एक ही लाई हूँ ।
नन्दू ने झपट कर बेला का मांसल गदराया बदन दोनों हाथों में दबोच लिया और कहा –“दूसरी ये रही ।”
कहकर नन्दू बेला के मांसल गोलमटोल जिस्म पर मुँह मारने और चाटने लगा जैसे सच में खीर के मजे ले रहा हो । थोड़ी ही देर में नन्दू बेला को प्यार से बिस्तर पर लिटा के बड़े ही घरेलू मियाँ बीबी वाले अन्दाज में चोद रहा था।
इधर चम्पा ने चन्दू का दरवाजा धीरे से खटखटाया। कमरे की बत्ती बुझी दरवाजा खुला और किसी ने चम्पा को अन्दर खीच के ऐसे गोद में उठा लिया जैसे वो फ़ूल की तरह हल्की हो ये थे अपने चौहान साहब यानी चन्दू ठाकुर । चम्पाने महसूस किया कि चौहान साहब के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है चम्पा को गोद में उठाये उठाये ही बिस्तर तक गये । चन्दू के अभ्यस्त हाथों ने दरवाजे से बिस्तर तक पहुँचने के दौरान एक हाथ से चम्पा को दबोचे दबोचे दूसरे हाथ से उसकी साड़ी खींच कर उतार दी, फ़िर पेटीकोट का नारा खींच दिया तो वो भी नीचे सरक गया। ब्लाउज के चुट्पुटिया वाले बटनों की तो औकात ही क्या कि ठाकुर के हाथ की ताब बरदास्त कर पाते । कहने का मतलब जब चम्पाको चन्दू ठाकुर ने बिस्तर पर डाला तो उसके बदन पर मात्र ब्रा बची थी जिसे चम्पा ने हँसते हुए खुद ही उतार के चन्दू ठाकुर के गले में माला की तरह डाल दी। तभी बिस्तर पर नंगधड़ग पड़ी चम्पा की नजर चन्दू के चौहानी लण्ड पर पड़ी जो खूँटे की तरह खड़ा था। बस वो उछल कर बिस्तर पर ही खड़ी हो गयी । उसने चन्दू के गले में अपनी बायी बाँह डाल, दाहिने हाथ से उनका लण्ड पकड़ा और अपनी दाहिनी टाँग ऊँची कर लण्ड को पनियाती चूत के मुहाने से लगाया और टाँग को उनकी कमर पर लपेटते हुए बोली –“क्या ऐसे चोद सकते हो राजा ठाकुर ?”
जवाब में चन्दू ने कमर उचका कर पक से सुपाड़ा चूत के अन्दर कर दिया। चम्पा ने भी तुर्की ब तुर्की दोनो बाहें चन्दू के गले में डाल, कमर उचका उचका कर चार बार में पूरा लण्ड चूत में ले लिया फ़िर उचककर दोनों टाँगे उनकी कमर मे लपेट गोद में चढ़ गयी । चन्दू ने सहारा देने के लिए अपने दोनों हाथों से उसके घड़े जैसे मांसल चूतड़ दबोच लिये और कमर उछाल उछाल के चोदने लगा ।
अब बच रहे इसी गाँव के अपने रज्जू भय्या और उनके हिस्से में पड़ी उनकी जानी पहचानी देखी समझी धन्नो काकी सो धन्नो ने रज्जू का कमरा खटकाया रज्जू बत्ती बुझा के दरवाजा खोलते हुए फ़ुसफ़ुसाया –“आओ काकी!”
धन्नो भटियारिन ने अन्दर आ के खुद ही दरवाजा बन्द किया और पलट के रज्जू का लण्ड लुंगी के ऊपर से ही दबोच कर बोली –“काकी के बच्चे! कहाँ रहा इतने दिन।”
कहते हुए उसने रज्जू को बिस्तर पर धक्का दे दिया और अपना पेटीकोट समेटते हुए उसके ऊपर कूद कर चढ़ गयी और उसके हलव्वी लण्ड को अपनी चूत की दोनो फ़ाकों और भारी चूतड़ों के बीच रगड़ने लगी। जब लण्ड उसकी चूत के पानी से भीग गया तो धन्नो ने लण्ड का सुपाड़ा अपनी चूत के मुहाने पर लगाया और धीरे धीरे उसपर बैठते हुए पूरा लण्ड चूत मे ले लिया और वो लण्ड पर उचक उचक कर चुदवाने लगी।
थोड़ी देर तक तो ये सब धीरे धीरे बे आवाज चलता रहा फ़िर धन्नो के भटियारी खून ने जोर मारा और जोर जोर से उछल उछल कर रज्जू का अपनी चूत में ठँसवाने लगी। जिसकी फ़ट फ़ट और रज्जू और धन्नो की सासों की आवाजें दूसरे कमरों में पहुँची तो उसे सुन बाकी की तीनों भटियारिनों कम्मो चम्पा और बेला को भी जोश आ गया और अपने ऊपर चढ़े आराम से चुदाई का मजा ले रहे मर्दो से बोली –“क्यों धन्नो के सामने हमारी नाक कटवा रहे हो ।”
कहकर तीनों अपने ऊपर चढ़े मर्दो को पलट उनके ऊपर चढ़ बैठी और धन्नों की ही तरह ऊपर से लण्ड ठँसवा के जोर जोर से उछल उछल कर चुदवाने लगी । अब चुदाई भटियारिनों के हाथों थी चारो कमरों में घमासान चुदाई हुई। जैसे ही वो और उनके साथ के मर्द झड़े एक दूसरे का दरवाजा खटखटा के उन्होंने लण्ड बदल लिये। एक तो औरत बदलते ही वैसे ही मर्द का झड़ा लण्ड फ़िर से खड़ा होने लगता है ऊपर से ये भटियारिनें अपने मादक जिस्म और खूबसूरती मे एक दूसरे से बढ़चढ़ के थी सो उनकी कातिल अदाओं औए करतबों से मर्दों के लण्ड जल्दी ही फ़िर से टन्नाने लगे। बस, चारो ने फ़िर चुदाई शुरू कर दी इस तरह सारी रात लण्ड बदल बदल कर उन्होंने अपनी चूतों के कोल्हुओं मे चारो लण्डों के गन्नों को बुरी तरह पेर डाला।
मोना और हुमा की कहानी थोड़ी फ़रक है ।
हुआ यों कि बिरजू ने मोना के कमरे का दरवाजा खटखटाया । मोना ने बत्ती बुझा के दरवाजा खोला जैसे ही बिरजू अन्दर आया और मोना ने बत्ती जला दी । मोना सिर्फ़ झीनी सी नाइटी में खड़ी थी जिसमें उसका गदराया पूरा नंग़ा बदन चमचमा रहा था देख के तो बिचारा बिरजू हक्का बक्का रह गया उसका मुँह खुला का खुला रह गया ।
तभी मोना ने बिस्तर पर लेटते हुए घुड़का –“अब मुँह बाये क्या खड़ा है, मैं बहुत थक गई हूँ आ के पैर दबा तो कुछ चैन पड़े।”
बिरजू तो इसी बात के इन्तजार में था बोला –“जी मेम साहब।”
मोना पेट के बल पिन्डलियों तक नाइटी ऊपर खींच के लेट गई। और बिरजू बिस्तर के किनारे से खड़े खड़े ही उनके पैर दबाने लगा । गोरी-गोरी मांसल पिन्डलियों पर हाथ लगते ही बिरजू का लण्ड खड़ा होने लगा। बिरजू के अभ्यस्त हाथों से उनकी नाइटी धीरे धीरे सरकती हुई घुटनों से ऊपर हो गई अब उनकी गोरी-गोरी जांघों तक उसके हाथ पहुँचने लगे वो कुछ नहीं बोली तो बिरजू की हिम्मत और बढ़ गई। बिरजू ने धीरे धीरे उनकी नाइटी और ऊपर खिसकाकर उनकी केले के खम्बे जैसी जाँघे पूरी तरह नंग़ी कर दी, जिन्हें देख देख बिरजू का लण्ड टन्नाने लगा उसने डरते डरते धीरे से पूछा -“ऊपर तक दबाऊँ?
मोना- हाँ! और नही तो क्या?
बस उनकी मोटी मोटी जाँघे बिरजू के हाथों में आ गयी और अब बिरजू के हाथ पैरों से माँसल जाँघों तक पर फ़िसल रहे थे हर बार हाथ तेजी से फ़िसलते हुए जब जाँघों तक आते हाथों के झटके से नाइटी थोड़ी और ऊपर कि तरफ़ हट जाती जिससे थोड़ी ही देर मे मोना की चूत भी नंगी हो गयी।
बिरजू के हाथ तेजी से फ़िसलते हुए नाइटी की डोरी खोलने लगे कुछ ही क्षणों मे मोना का गोरा गुदाज बदन पूरी तरह नंगा हो गया । अब मोना ने थोड़ा सो मुँह घुमा कर देखा तो बिरजू डर गया पर वो मुस्कुराई तभी मोना की नजर बिरजू की पैंट के अन्दर से पैंट को तम्बू बना रहे उसके लण्ड के उभार पर पड़ी तो वो बोली- मेरी तो नंग़ी कर दी फ़िर अपना क्यो छिपा रहे हो।”
ये कहकर उसने हाथ बढ़ाकर फुर्ती से पैंट फुर्ती से पैंट खोलकर नीचे खिसका दी, जिससे उसका फ़नफ़नाता हुआ फ़ौलादी लण्ड उछलकर बाहर आ के लहराने लगा उसे देखते ही मोना की पहले से पनिया रही चूत सिहर उठी। वो बोली –“बाप रे इतना बड़ा।”
ऐसा बोलते हुए उसने झपट के उसका लण्ड थाम लिया और अपनी तरफ़ खीचा।
बिरजू लड़खड़ाया तो तो मोना पर गिरने से बचने के लिए उसने अपने हाथ आगे किये और उसके हाथ मोना की चूचियों पर पड़े । मोना के मुँह से निकला –“उफ़! खाली यहाँ वहाँ दबाता ही रहेगा या कुछ और भी करेगा?”
फ़िर क्या था बिरजू मोना की टाँगों के बीच आ गया, पर मोना के हाथ ने उसका लण्ड अपने हाथ से छूटने नही दिया । उसने टाँगे फ़ैला के बिरजू के लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा अपनी बुरी तरह पनिया रही पावरोटी सी फ़ूली हुई चूत के मुहाने पर रखा तो उसे लगा जैसे किसी ने उस की चूत पर जलता हुआ अंगारा रख दिया हो। मोना की सिसकी निकल गई। बिरजू सुपाड़ा चूत पर रगड़ने लगा।
नाइट लैम्प की रोशनी में उसकी आसमान की तरफ़ मुँह उठाये बड़े बड़े बेलों जैसी थिरकती चूचियाँ देख बिरजू ने उत्तेजना से बुरी तरह बौखला के उन्हें दोनो हाथों में दबोच लिया और धक्का मारा। सुपाड़ा पक की आवाज के साथ चूत में घुस गया ।
“आआह!!!!!!!!!!” मोना के मुँह से निकला।
बिरजू ने चार धक्कों मे पूरा लण्ड चूत में ठाँस दिया और दोनों हाथों से मोना के गुदाज कन्धे थाम कर उसके जिस्म पर मुँह मारते और होठों का रस चूसते हुए धकापेल चोदने लगा।
उधर बल्लू के बड़े बड़े हाथों की याद कर कर के उत्तेजना के मारे हुमा की हालत ज्यादा ही पतली हो रही थी, वो ख्यालों मे बल्लू के बड़े बड़े हाथ अपने सारे जिस्म पर फ़िसलते अपनी हलव्वी चूचियाँ दबाते सहलाते हुए महसूस कर रही थी
सो उसने चुदाई के पहले शुरुआत का माहौल बनाने के लिए किये जाने वाले नाटक नखरे छोटे करने के ख्याल से बत्ती बुझा के दरवाजा की कुन्डी अन्दर से खुली ही छोड़ दी हालांकि बाहर से देखने पर दरवाजा बन्द ही नजर आ रहा था । इतना कर वो कपड़े उतार नंग़ी ही बिस्तर में चादर ओढ़ के लेट गयी । बल्लू ने दरवाजा धीरे से खटखटाया पर कोई जवाब नहीं मिला जैसे कमरे में कोई न हो। उत्सुकतावश उसने दरवाजा को धीरे से धक्का दिया तो वो खुल गया। बल्लू ने अन्दर सिर डाल के धीरे से पुकारा –“मेमसाहब।”
हुमा ने बिस्तर के अन्दर से ही धीमे सुर मे कहा –“अन्दर आ जा और दरवाजा बन्द कर ले।”
बल्लू ने अन्दर आके कुन्डी लगा ली तो हुमा ने फ़िर कहा –“बत्ती न जलाना मेज पे क्रीम रखी है उठा के ला और मालिश कर ।”
अन्धा क्या चाहे दो आँखे। बल्लू ने क्रीम उठाई और ढेर सारी दोनों हाथों मे ले के बिस्तर के पास आया और बोला –“कहाँ से शुरू करूँ मेमसाब।”
हुमा –“पैरों से।”
बल्लू ने चादर के अन्दर हाथ डाले तो हुमा की मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल नंग़ी जाँघे उसके हाथों मे आ गयी। उसका लण्ड खड़ा हो गया । बल्लू को अहसास हो गया कि मेमसाब चादर के नीचे बिलकुल नंगी हैं वो समझ गया कि ये बुरी तरह चुदासी है। बस उसके दोनों हाथ क्रीम भर भर के गोरी-गोरी मांसल पिन्डलियों से ले के केले के तनों जैसी मोटी मोटी माँसल जाँघो बड़े बड़े हुए भारी चूतड़ों से होते हुए माँसल गदराये कसे पेट पर मचलने लगे । ऐसा करते समय उसका खड़ा लण्ड हुमा की मोटी मोटी माँसल जाँघो से टकरा जाता था। अब हुमा से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था उसने बल्लू का अपने पेट पर मचलता दाहिना हाथ पकड़कर अपनी गोल गहरी नाभी तक सरकाया तो बल्लू ने नाभी में उंगली डाल दी हुमा ने सिसकारी ली –“उम्म्म्ह।”
और नाभी से उंगली निकालने के लिए बल्लू के हाथ को झटका दिया तो हाथ फ़िसल कर चूत पर आ गया । बल्लू ने अपनी बड़ी सी हथेली में उसकी बुरी तरह से पनिया रही पावरोटी सी चूत दबोच के मसल दी । हुमा ने जोर से सिसकारी ली –“आआअ आअःह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।”
और पेट पर मचलता उसका दूसरा (बायाँ) हाथ पकड़ के अपने गुब्बारे से उभरे दायें स्तन पे रख दिया और खुद बल्लू की लुंगी के अन्दर हाथ डाल के उसका फ़नफ़नाता फ़ौलादी लण्ड थाम लिया। अब तो बल्लू भी आपे से बाहर हो गया उसने एक झटके से हुमा के ऊपर से चादर खींच ली । अब उसके सामने हुमा सुलेमान का गदराया गुलाबी बदन नंग धड़ंग पड़ा था । बल्लू उनके ऊपर कूद गया और अपने दोनों हाथों से उनके बदन को दबोच कर सहलाने दबाने नोचने और मुँह मारने लगा हुमा को अपने बड़े बड़े स्तनों और सारे शरीर पर उसके बड़े बड़े हाथ जादू जगाते महसूस हो रहे थे और उसे बड़ा मजा आ रहा था। हुमा ने ढेर सारी क्रींम उसके लण्ड के सुपाड़े पर थोप दी और लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा अपनी बुरी तरह पनिया रही पावरोटी सी फ़ूली हुई चूत के मुहाने पर जैसे ही रखा कि बल्लू ने हुमच के धक्का मारा और एक ही बार मे पूरा लण्ड ठाँस दिया हुमा की चीख निकल गई -
“उइई माँ” फ़िर बोली “शाबाश!”
बस शाबाशी मिलते ही बल्लू हुमच हुमच के चोदने लगा ।
चुदाई के बाद अपने अपने बिस्तर पर मस्त पड़ी हुमा और मोना अपनी साँसे काबू में करने की कोशिश कर रही थी तो उन्हें बाहर कुछ खटर पटर सुनाई दी । दोनों ने नाइटी डाल के धीरे से दरवाजा थोड़ा सा खोल के बाहर झाँका तो पाया कि उनके आडीटर साथियो के कमरों से चारो भटियारिने निकल कर एक दूसरे के कमरे में जा रही हैं। दोनों चुदक्कड़ समझ गई कि साले चूते बदल बदल कर चोदने जा रहे हैं। जब बाहर सन्नाटा हो गया तो दोनो अपने कमरों से लगभग साथ ही निकलीं सो आमने सामने ही पड़ गयीं ।
हुमा(फ़ुसफ़ुसाके) –“ तूने देखा।”
मोना –“हाँ साले चूते बदल बदल कर चोद रहे हैं।”
हुमा –“क्या ख्याल है हम भी लण्ड बदल लें।”
मोना –“क्यों नही मैं इसे भेजती हूँ तू उसे भेज।”
हुमा –“ठीक है”
बस फ़िर क्या था उन्होंने भी लण्ड बदल लिए और जम के मजे लिये।
आज आडिटर पार्टी वापस जा रही है ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास के कूपे में पाण्डे जी और रज्जू के बीच में हुमा सुलेमान बैठी हुई है उसका ब्लाउज खुला है, पाण्डे जी और रज्जू उसका एक एक स्तन थाम कर दबा दबा के निपल चूस रहे हैं और दूसरे हाथ से हुमा सुलेमान की केले के तने सी चिकनी जाँघें सहला रहे थे । पाण्डे जी और रज्जू की पैंट की जिप खुली हुई है, हुमा एक हाथ में पाण्डे जी का और दूसरे मे रज्जू का फ़ौलादी हथौड़े जैसा लण्ड थाम सिसकारियाँ भरते हुए सहला रही है। -“आह देबू(पाण्डेजी) उई रज्जू थोड़ा धीरे से शैतानों आह!”
लगभग वैसा ही हाल उधर चन्दू और नन्दू के बीच में बैठी मोना का था। बल्कि चन्दू एक हाथ तो मोना की चूत के ऊपर पहुँच चुका था।
पाण्डे जी (हुमा सुलेमान के बायें स्तन के निपल पर जीभ चलाते और केले के तने सी चिकनी जाँघ पर हाथ फ़ेरते हुए) –“अबे चन्दू! चार दिनों तक दोनो मुस्टण्डों(बल्लू और बिरजू) से अपनी चूत कुटवा के तो ये और खिल उठी है ।
चन्दू –“मोना का भी यही हाल है उस्ताद पहले हजार गुना ज्यादा मस्त लग रही है।
हुमा (सिसकारी भरते हुए) –“ह्म्म आ ---ह स्स्स्स्स्स्स्स्स्सईईई हाय! हमारे हिस्से में तो दो ही नये लण्ड आये तुम सालों ने तो चार नई चूतें चोदीं। पर अल्ला बचाये जाने कितने जनम के भूखे हो चार दिन इतनी सारी चूतें चोदने के बाद भी कूपे मे घुसते ही हम दोनों पर ऐसे टूट पड़े जैसे मुद्दतों से औरत जात की शकल नहीं देखी।”
पाण्डे जी (हुमा के बायें स्तन के निपल को होठों में दबा के चुभलाते हुए) –“उम्म्ह! इसमें हमारी क्या गलती है तुम दोनो पर दिन पर दिन निखार भी तो आता जा रहा है पर यार रज्जू! भाई मान गये तुम्हें, मजा आ गया, अरे हाँ तुम कह रहे थे सराय का कामकाज पहले ऐसा अच्छा नहीं चलता था। इसकी कहानी तो दिलचस्प होगी?
रज्जू –“कहानी क्या, दरअसल इस परिवार के सभी लोगों से मेरी अच्छी पटती है सो सभी अपने जीवन में घटने वाली घटनायें मेरे साथ बाँटते हैं यदि आप कहें तो उन्हें जोड़के मैं आपके लिए कहानी का रूप देने की कोशिश करता सकता हूँ।
चन्दू (मोना को खीच के अपने लण्ड पे बैठाते हुए) –“सुना न यार। दिलचस्प घटनाओं से मिल के बनी कहानी मजेदार होगी ही और सफ़र मे मजेदार कहानी सुनने से सफ़र का मजा दूना हो जाता है।”
तब रज्जू ने जो कहानी सुनाई वो कुछ ऐसे है।
हुआ यों कि कम्मो भटियारिन के पति मनोहर लाल को काफ़ी साल पहले नदी के किनारे एक पेड़ के पीछे गाँव के कुछ लोगो ने गाँव की चौधराइन को चोदते देख लिया और मनोहर लाल को मारते हुए उसके घर ले गये, तभी उसके बाप ने उसके हाथ से सब कामकाज छीन कर कम्मो भटियारिन को सौप दिया । तभी से कम्मो भटियारिन एक ही मकान में रहते हुए भी मनोहर लाल से अलग रहने लगी । इसी बीच कम्मो भटियारिन को करीब 5 बरस के दो लावारिस बच्चे कही आवारा घूमते मिले तो वो उन्हें घर ले आयी। उनका नाम बल्लू और बिरजू रखा। बल्लू और बिरजू को पालने पोसने में कम्मो का दिल भी लगा रहता और सराय के इन्तजाम में दोनो बच्चे उसका हाथ भी बटाते । बल्लू और बिरजू गाँव के दूसरे बच्चों की देखा देखी उसे चाची कहने लगे और तो उसने भी उन्हें अपने मुँहबोले भतीजे बना लिया। धीरे धीरे बच्चे बड़े हो जवान हो गये। दोनो भाई बचपन से ही दोस्तो की तरह रहते थे जैसे जुड़वा हो दोनो हट्टे कट्टे मजबूत कद काठी के है। घर, सराय और खेतों का सारा बन्दोबस्त सम्हालते हैं। पर जैसाकि मैने बताया के सराय ज्यादा नहीं चलती थी सो दोनों को साथ ही पास के जंगल से अतिरिक्त आमदनी, सराय की रसोई और घर के लिए लकड़ियाँ भी काट कर लानी पड़ती थी। ज्यादा लकड़ियों की जरूरत होने के कारण कम्मो और धन्नो भी सुबह सुबह घर का सारा काम करके दोपहर का खाना बाँध कर बारी बारी से उनके साथ ही जंगल जाती थी फिर वहाँ उनके दोनों मुँहबोले भतीजे लकड़ियाँ काटते फ़िर भटियारिन उन लकड़ियों के तीन गट्ठर बना लेती । शाम तक ये लोग लकड़ियाँ लेकर घर आ जाते थे। एक गट्ठर वो बेच देते और बाकी के दोनों सराय की रसोई और घर के काम में लाते। कम्मो भटियारिन की एक बेटी थी बेला, जो बल्लू बिरजू से 2 साल छोटी थी, अभी तीन महीने पहले ही उसका गोना हुआ था सो अभी वह अपने ससुराल मे थी । इसी घर के दूसरे हिस्से में कम्मो भटियारिन के देवर किशन लाल और उनकी पत्नी यानिकि उसकी देवरानी धन्नो भी रहती हैं । धन्नो का एक बेटा था मदन, जिसकी शादी हो चुकी थी वह शहर मे किसी कारखाने मे मैकेनिक था और वही रहता था और उसकी बीबी चम्पा अपने सास ससुर के पास गाँव मे रहती थी वह करीब 25 साल की उमर की रही होगी। सराय का धन्धा दोनों परिवारों के साझे का है। लेकिन चूँकि शुरू से सारा काम कम्मो ही देखती है, सराय इसलिए उसी के नाम से मशहूर है।
काफ़ी पुराने समय से धन्नो भटियारिन, कम्मो की देवरानी जिठानी वाली लड़ाई चलती आई थी। जिसके चलते दोनो में आपस मे बोलचाल नही थी, कम्मो भटियारिन थोड़ी मोटी और भरे भरे बदन की एक कोई सैतिस अड़तिस साल की औरत हो चुकी थी पर उसके सीने के उभार और भारी चूतड़ों के मुक़ाबले पूरे गाँव मे किसी भी औरत के स्तन और चूतड़ न थे न हैं। हाँ धन्नो ज़रूर टक्कर की हैं लेकिन धन्नो और कम्मो में कौन 20 है कहना मुश्किल है, ये तो आप भी मानते होंगे पाण्डे जी!”
पाण्डे जी (गोद में चढ़ी बैठी मिसेस सुलेमान की केले के तने सी चिकनी जाँघ पर हाथ फ़ेरते हुए) –“बिलकुल! हुमा डार्लिंग! क्यों न अगले साल भी आडिट पर यहीं आयें।”
अपने बड़े बड़े गुदगुदे चूतड़ों के बीच की नाली से चूत तक साँप की तरह लेटे पाण्डे जी के लम्बे हलव्वी लण्ड पर अपने चूतड़ और चूत रगड़ते हुए सिसकारती हुई हुमा बोलीं –“इस्स्स आह जरूर देबू डार्लिंग! और कान खोल के सुन ले रज्जू! अगली बार तो मैं बल्लू और बिरजू से इकट्ठे चुदवाऊँगी? सो अगर मोना साथ होगी तो उसके लिए तुझे दो और लण्डों का इन्तजाम करना पड़ेगा।”
रज्जू हुमा के स्तन पर हपक के मुंह मार होठों में निपल दबा के चुभलाते हुए बोला –“फ़िकर न कर साली लण्ड खोर! किशन लाल और मनोहर लाल अगर बाहर न गये होते तो इसी बार तेरी चूत उनसे फ़ड़वा देते। दोनो बुढ़वे भी बिकट चुदक्कड़ हैं। हाँ! तो मैं आपलोगों को इन लोगों की कहानी बता रहा था । आप लोगों ने देखा ही है कि इनके घर के सामने ही हैन्ड पम्प है जो कि कई साल पहले किशन लाल और मनोहर लाल ने मिलकर लगवाया था सो औरतों की लड़ाई होने के बाद भी दोनो घर की औरते उसी से पानी भरती हैं और वही खुले मे नहा भी लेती हैं, और आसपास की कुछ औरते जिनकी पटरी या तो धन्नो या कम्मो भटियारिन से खाती है भी आकर वही नहा लेती थी। उनके सुपर हरामी मुँह बोले भतीजे बल्लू और बिरजू सुबह सराय का जो थोड़ा बहुत काम निबटाकर खाली होने पर घर के सामने लूँगी पहने कुर्सी लगाकर वही बैठकर घर के सामने से नदी की ओर जाती औरतो या हैन्ड पम्प पर नहाती औरतो को देख देख कर बस चूत लंड की बाते करते और लूँगी के ऊपर से अपना लंड मसलते रहते थे, और दोपहर होने पर कभी अपनी कम्मो चाची अथवा धन्नो काकी के साथ जंगल लकड़ी लाने चले जाते और शाम को सराय में जो दो चार ठहरने वाले होते उनका इन्तजाम निबटाकर फिर घर के सामने कुर्सी डाल कर बैठ जाते और जब रात हो जाती तो दोनो भाई पुलिया पर जाकर दारू पीने लगते और जब तक घर से कोई रात के खाने के लिए आवाज़ न लगती तबतक दोनो उठ कर घर की ओर न जाते थे ।
कहने का मतलब कभी भी खाली होने पर इन दोनो भाई का काम था घर के बाहर बैठ जाना और अपने गाँव की सारी नदी की ओर जाने वाली औरतो के मटकते चूतड़ देख देख कर अपना लंड सहलाना और जब कोई औरत नही दिखाई देती तो सारे गाँव की औरतो के गदराए अंगो की चर्चा करना इसके अलावा इन दोनो भाइयो के पास कोई बात नही थी, इस बात चीत में घर की औरतों की चर्चा भी शामिल थी क्योंकि दोनों जानते थे कि इस परिवार से उनका कोई खून का रिश्ता नहीं है । मिसाल के लिए एक दिन का वाकिया है सुबह सुबह दोनो भाई घर के बाहर बैठे बैठे थे कि बिरजू ने बात छेड़ी –
“यार बल्लू देख चम्पा भाभी लाल घाघरा चोली मे क्या मस्त लग रही, बिरजू यार इसकी चूत भी मस्त लाल होगी, मदन तो शहर मे लंड पकड़े आहे भरता रहता होगा, और यह बेचारी यहाँ लंड के लिए तरसती रहती है।”
बल्लू –“हाँ यार बिरजू अपना लंड सहलाते हुए इसकी ही चूत मारने को मिल जाए तो हमारा भी काम बन जाएगा और इस बेचारी की चूत मे भी ठंडक पड़े । यह बेचारी तो हमे दुआए भी देगी की कोई तो इसकी चूत के बारे मे सोचता है ।”
गाँव मे सभी औरते ज़्यादातर लहंगा और चोली ही पहनती थी क्योंकि पॅंटी या ब्रा का गाँव मे रिवाज नही है, चम्पा पानी भरने के लिए हैन्ड पम्प के पास आ जाती है और दोनो भाई उसकी मोटी मोटी चूचियाँ और उसके चिकने पेट और नाभि को घूर घूर कर अपना लंड मसलने लगते है, चम्पा ने अपना घाघरा नाभि के काफ़ी नीचे बाँधा हुआ था जिससे उसकी नाभि और गदराया पेट नज़र आ रहा था उनकी कुर्सी से हैन्ड पम्प लगभग 20 मीटर की दूरी पर था ।
“यार बिरजू अगर इसको एक बार अपना ये काला और मोटा लंड निकालकर दिखा दूँ तो साली अभी पानी भरते भरते पानी पानी हो जाएगी, देख हैन्ड पम्प चलाने से क्या मस्तानी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही हैं।”
बल्लू (हंसते हुए) –“ बिरजू अगर इसको हम यह बता दे कि जिस हैन्ड पम्प के डंडे को इसने पकड़ रखा है वह बिल्कुल हमारे लंड की मोटाई का है तो यह डर के मारे हैन्ड पम्प का डंडा छोड़ देगी और फिर कभी पानी भरने नही आएगी।”
बिरजू हंसते हुए हा हा हा तू ठीक कहता है।
बल्लू –“इतना मोटा डंडा तो कम्मो चाची या धन्नो काकी ही पकड़ सकती है कहाँ है दोनों आज अभी तक बाहर नहीं निकलीं।”
तभी चम्पा पानी की बाल्टी लेकर अपने आँगन मे चली गई और इतने मे धन्नो काकी अपने बड़े बड़े भारी चूतड़ थिरकाते हुए बाहर बरामदे की झाड़ू लगाते हुए आई, धन्नो काकी के बड़े बड़े चूतड़ देख कर बल्लू और बिरजू का लंड झटके मारने लगा ।
“हाय कितने भारी और चौड़े चूतड़ हैं, यार बिरजू एक बार इस घोड़ी के भारी चूतड़ मिल जाए तो मुँह मार मार कर लाल कर दूँ।”
तभी धन्नो काकी उनकी ओर मुँह करके झाड़ू लगाने लगी जिससे उसके बड़े बड़े थन आधे से ज़्यादा उसकी चोली से बाहर दिखने लगे, माँसल पेट और गहरी नाभि और पेट के माँसल उठाव को देख कर दोनो भाई के हाथ उनकी पैंट की जेब के अन्दर से उनके लंडों पर तेज तेज चलने लगा।
बल्लू –“धन्नो काकी नंगी कैसी लगती होगी यार मेरा तो कहीं ये ही सोच सोच कर पानी ना निकल जाए।”
बिरजू –“चिंता मत कर बिरजू अभी थोड़ी देर मे नहाने आएगी तब आधी नंगी तो हो ही जाएगी।”
और दोनों चुपचाप अपने लंड को मसलने लगते है, थोड़ी देर बाद धन्नो काकी अपनी चोली और घाघरा लेकर हैन्ड पम्प पर आई, वह अपने घाघरे को अपने घुटनो के ऊपर करके बैठ कर कपड़े धोने लगी उसकी गदराई पिंडलियो और मोटी मोटी गोरी जाँघो को देख कर बल्लू और बिरजू के मुँह मे पानी आ रहा था, जब जब धन्नो काकी कपड़े को ब्रश से घिसती थीं तब उसकी बड़े बड़े पपीतो जैसी चूचियाँ बहुत तेज़ी से ऊपर नीचे होती थीं ।
“यार इस उमर मे भी इसका गदराया शरीर इतना शान्दार है कि देखकर लंड लूँगी फाड़ कर बाहर आया जा रहा है”
तभी धन्नो काकी ने अपनी चोली के हुक खोल, दोनो हाथ ऊपर करके चोली उतारी तो उनके पहाड़ जैसे बड़े बड़े चूचे दोनो भाई के सामने आ गये, धन्नो काकी पालथी मार कर बैठगई उनका गदराया हलका उभरा हुआ पेट, गहरी नाभि और बड़े बड़े चुचे, देख बिरजू और बल्लू के हलब्बी लंड चिपचिपाने लगे।
धन्नो काकी ने दो चार मग पानी अपने नंगे जिस्म पर डाला और फिर साबुन से अपनी चूचियाँ और पेट पर साबुन मलने लगी, जब वह अपने मोटे पपीते जैसे स्तन पर साबुन लगा कर रगड़ती तो उसके स्तन उसके हाथ मे पूरा समा नही पाते थे, और साबुन की वजह से इधर उधर छटक जाते थे।
बिरजू –“हाय बल्लू क्या मदमस्त घोड़ी है रे मेरा तो पानी छूटने के कगार पर है।”
तभी धन्नो काकी एक टांग लंबी करके अपने घाघरे को जाँघ की जड़ो तक चढ़ा लेती है उसकी जाँघे भरपूर कसी हुई माँसल और गोरी गोरी चिकनी लग रही थी ।
बल्लू –“इसकी मोटी जाँघे ही दोनों हाथों मे भी ना समायेंगी तो फिर इसके चूतड़ पकड़ने के लिए कितने हाथ लगाने पड़ेंगे, अरे बिरजू एक बात तूने देखा है कि औरत की उमर ढल जाती है पर उसके चूतड़ और जाँघो की चिकनाहट वैसी ही रहती है, क्या मस्त चोदने लायक माल है, इसे छोटा मोटा चुड़क्कड़ चोद ही ना पाए इस मस्तानी घोड़ी की चूत और चूतड़ों को तो हमारे जैसा मोटा काला लंड ही मस्त कर पाएगा।” तभी धन्नो काकी ने एक घुटने की जाँघो की जड़ो तक साबुन लगाने के बाद उस जाँघ को मोड मोड दूसरे पैर की जाँघ से भी अपना घाघरा हटा कर मोड़ कर साबुन लगाने लगी अब धन्नो काकी ऊपर से लेकर पेट और कमर तक तो नंगी थी ही साथ ही उसका घाघरा उसकी चूत और जाँघो की जड़ो तक सिमट कर रह गया था और वह अपनी दोनो जाँघो को फैलाए पत्थर से घिस रही थी।”
-“देख बिरजू ऐसे जाँघे फैला कर बैठी है जैसे कह रही हो की आके घुस जा मेरे मस्ताने भोसड़े मे।”
और फिर धन्नो दोनो पैरो के बल बैठ कर बाल्टी का पानी एक साथ अपने सर से डाल कर खड़ी हो गई और बिरजू और बल्लू की ओर अपने चूतड़ करके हैन्ड पम्प चलाने लगी, उसका पूरा घाघरा गीला होकर उसके चूतड़ से चिपक उसके भारी चूतड़ की दरार मे फँस ऐसा लगरहा था जैसे दो बड़े बड़े तरबूज लगा दिए हो।
बिरजू (पैंट के अन्दर) अपना लंड मसलते हुए –“मन तो कर रहा है जा के फँसा दूँ अपना लंड इसके भारी चूतड़ों के बीच मे, हाय रे क्या चूतड़ है रे ये काकी तो हमारी जान लेने पर तुली है, यार बल्लू इसको हमने हमेशा हर तरह से नंगी नहाते देखा है लेकिन इसकी चूत और इसके भारी चूतड़ नंगे देखने को कभी नही मिले, यार कुछ चक्कर चला। इसके भारी चूतड़ और चूत का छेद देखने का बड़ा दिल कर रहा है।
बिरजू –“एक आइडिया है मेरे दिमाग़ मे,
बल्लू –“हाँ तो बता ना यार, सुन यह रोज पुलिया के पीछे के खेत मे संडास करने जाती है बस यही एक तरीका है इसके चूतड़ देखने का वहाँ आसपास काफ़ी पेड़ भी है वही छुप कर हम इसके चूतड़ देखने कल चलते है।
-“ठीक है कल ही इसके चूतड़ का भरपूर मज़ा लेंगे।
धन्नो काकी ने अपने ऊपर अब मग से पानी डालना शुरू कर दिया और फिर अपना घाघरा ढीला करके एक दो मग पानी अपने घाघरे के अंदर चूत के ऊपर भी डाला । तभी गाँव की एक दो औरते और आ गई और वो भी वही कपड़े धोने लगी और
अपनी अपनी चोलियाँ उतार कर नहाने लगी, उनके स्तन और चूतड़ का भरपूर आनंद लेने के बाद जब हैन्ड पम्प पर कोई नही बचा तब बल्लू बोला –“बिरजू निबट गया क्या।”
बिरजू –“नही यार जब तक कम्मो चाची को नंगी न देख लूँ तब तक माल निकलता ही कहाँ है।”
उन दोनो ने अपनी गर्दन अपने घर के दरवाजे की ओर घुमा दी और अपने घर के आँगन मे देखने लगे, कम्मो भटियारिन घर के आँगन मे झाड़ू मार रही थी । उसकी मोटी मोटी केले के तनो जैसे मसल जाँघो के ऊपर उसके भारी चूतड़ ज़रूरत से ज़्यादा बाहर की ओर उठे हुए और उसके चूतड़ के पाट व चूतड़ के बीच की दरार इतनी ज़्यादा विपरीत दिशा मे फैली हुई है कि खड़े खड़े लंड चूतड़ मे घुस सकता है जब वह झुक कर झाड़ू मार रही थी तो उसके विशाल चूतड़ और ज़्यादा बाहर की ओर निकालकर उसके चलने के साथ थिरक रहे थे।”
बल्लू –“चाची के भारी चूतड़ों के मुकाबले के चूतड़ तो इस दुनिया मे कही नही होगे, इन बड़े बड़े चूतड़ों को देख कर तो लगता है मेरे लंड की नसें फट जाएगी, बिरजू मुझे तो लगता है कि अभी जाकर कम्मो चाची का घाघरा उठा कर अपना लंड सीधे चूतड़ मे फसा दू, यार।”
बल्लू –“कम्मो चाची के ये बड़े बड़े चूतड़ देख देख कर मेरा लंड लगता है लूँगी मे छेद कर देगा, यार बिरजू तू ठीक कहता है मुझे तो कम्मो चाची की भारी चूतड़ पर अपना मुँह मारने का मन होता है, अगर यह नंगी होकर मिल जाए तो इसको दिन रात चोदते ही रहे, बिरजू यह नंगी कैसी दिखती होगी रे मैं तो कम्मो चाची को पूरी नंगी करके देखने के लिए मरा जा रहा हूँ।”
कम्मो भटियारिन झाड़ू मार कर सीधी उनकी ओर मुँह करके खड़ी हुई तो उसका पेट दोनो भाइयो के सामने आ गया कम्मो भटियारिन अपनी फूली हुई चूत से बस दो इंच ऊपर अपना घाघरा बाँधती थी।
उसका माँसल गदराया पेट और गहरी नाभी देख कर अच्छे अच्छे तपस्वी मुतने लग जाए, कम्मो भटियारिन की नाभि इतनी बड़ी और गहरी है कि किसी भी जवान लंड के टोपे को अगर नाभि मे डाला जाय तो उसका टोपा नाभि मे फिट हो जाए।
बल्लू-“ यार बिरजू कम्मो चाची का पेट देख कितना गदराया पर कसा हुआ लगता है सोच बिरजू जब कम्मो चाची की नाभि इतनी मस्त और गहरी और पेट कसा हुआ है तो इसकी चूत कितनी फूली कसी हुई और बड़ी भोसड़ा होगी।”
बिरजू –“अरे कम्मो चाची के चूचे भी कितने मोटे मोटे और बिल्कुल तने हुए है एक एक चूची 5-5 किलो का होगा और निप्पल कितने तने हुए और बड़े बड़े, उस दिन जब हमने कम्मो चाची को हैंड्पम्प पर नहाते देखा था तब इसके मोटे चूचे और निप्पल देख कर मन करने लगा कि दोनो भाई एक एक चूची को अपने दोनो हाथो से पकड़कर भी दबाएगे तो हमारे दोनो हाथो मे नही समाएगे, और निप्पल तो इतने मोटे मोटे है जैसे बड़े बड़े आकर के बेर होते है, अभी भी इसके स्तन मे कितना रस भरा हुआ है, अरे बिरजू जब ये कल नहा रही थी तो इसकी जाँघो के पाट देख कर मेरे मुँह मे पानी आ गया था ऐसी मोटी मोटी केले के तने जैसे गोरे गोरे जाँघो के पाट को अपने हाथो से सहलाने मसलने और दबाने मे मज़ा आ जाएगा. चिंता मतकर बिल्लू अब इसके नहाने का टाइम हो रहा है आज फिर हम दोनो इसके मस्ताने नंगे बदन को देख कर पैंट मे ही अपना पानी निकालेंगे।”
बिरजू –“मुझे तो याद भी नही है की हमने कम्मो चाची की माँसल जवानी का मादक रूप देख देख कर कितनी बार अपना पानी छोड़ा होगा,
बिरजू –“अपनी कम्मो चाची के चूतड़ और चूत सूंघने और चाटने का बड़ा मन करता है यार, कम्मो चाची की फूली हुई चूत और भारी चूतड़ की क्या मदमस्त खुश्बू होगी, मैं तो इसको नंगी करके इस पर चढ़ने के लिए मरा जा रहा हू, और दोनो भाई के काले और मोटे हथौड़े से लंड कम्मो चाची की गदराई जवानी देख देख कर लार टपका रहे थे।
तभी कम्मो भटियारिन कुछ कपड़े लेकर हैंड्पम्प की ओर आ गई, और बिरजू और बिल्लू से बोली
–“क्यो रे तुम दोनो नही नहाओगे, चलो जल्दी नहा लो फिर हमे जंगल भी चलना है, और हैंड्पम्प के पास आकर कपड़े रख कर बैठ जाती है और कपड़े धोना शुरू कर देती है, बिरजू और बिल्लू दोनो के लंड खड़े थे वो दोनो सोच रहे थे कि कैसे पैंट उतार कर केवल कच्छे मे जाए हमारा मोटा लंड तो खड़ा है।”
बिरजू –“अरे चल आज अपनी कम्मो चाची को भी अपने मोटे लंड के दर्शन करवा देते है, कौन जाने इसकी भी फूली हुई चूत हमारे काले डंडे को देख कर फड़कने लगे और अगर यह हम दोनो से चुदवा ले तो फिर घर मे ही बड़े बड़े चूतड़ और चूत का जुगाड़ हो जाएगा और दोनो भाई एक साथ रात भर अपनी गदराई कम्मो चाची को चोद्ते पड़े रहेंगे।
और दोनो भाई अपनी अपनी जगह से उठकर बनियान और लुंगी पहन हैंड्पम्प के पास आकर पानी भरने लगे और वही कम्मो चाची के सामने खड़े हो गये, कम्मो भटियारिन अपने कपड़े धो चुकी थी और उसने बिरजू और बिल्लू से कहा लाओ तुम्हारी बनियान और लुंगी भी दे दो धो देती हूँ, तब दोनो भाइयो ने अपनी अपनी बनियान और लुंगी खोल दी अब तक उनका लंड थोड़ा ढीला पड़ चुका था, कम्मो भटियारिन ने उनकी लुंगी और बनियान धो दी और दोनो मुस्टंडो को कहा कि अब खड़े क्या हो चलो जल्दी से नहा लो और अपनी चोली के हुक खोलने लगी और जैसे ही उसने अपने दोनो हाथ उठाकर अपनी चोली खोली उसके मोटे मोटे पपीते एक दम से बाहर आ गये अपनी कम्मो चाची के मोटे मोटे पपितो और गदराए उठे हुए पेट देखकर बिरजू और बिल्लू का लंड एक दम से खड़ा हो गया और कम्मो भटियारिन की नज़र लड़कों के मोटे मोटे लंबे डंडों पर पड़ी तो उसका मूँह खुला का खुला रह गया क्यो कि दोनो भाई नंगी कम्मो चाची को देख कर अपने लंड को खड़ा होने से रोक नही सके और उनका लंड फुल अवस्था मे आकर झटके मारने लगा कम्मो भटियारिन एक तक बड़े गोर से उन दोनो के मोटे डंडे देखे जा रही थी, तभी दोनो भाई जल्दी से पालथी मार कर बैठ गये और कम्मो चाची की मोटी चुचियो और गदराये पेट को देखते हुए उसका चेहरा देखने लगे जो कि उनके मोटे लंड के दर्शन से लाल हो चुका था।
तभी कम्मो भटियारिन ने देखा कि दोनो भाई अपनी कम्मो चाची के गदराए बदन को घूर रहे है तो वह लड़कों के चेहरो को देख कर कि कैसे कम्मो चाची को अधनंगी देख कर इनका लंड खड़ा हो गया है, उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई,
कम्मो भटियारिन को चुदे हुए एक जमाना बीत गया था कम्मो भटियारिन अपनी फूली चूत की प्यास अपने मन मे दबा कर ही अपनी जिंदगी गुजारने लगी थी, पर
आज कुछ ऐसा हुआ था कि दोनों हट्टे कट्टे लड़कों के मोटे झूलते हुए लंड को देख कर उसकी जनम जनम की चुदासी चूत मे कुलबुलाहट सी होने लगी थी, और वह अपना संयम खोने लगी थी। ना चाहते हुए भी उसका हाथ एक बार अपनी चूत को घाघरे के ऊपर से थोड़ा कुरेदने के लिया चला गया और दोनो भाई उसकी इस हरकत को देख कर उसके मन की स्थिति को भाँप चुके थे उनका मोटा लंड बैठे उए भी उनके कछे मे तंबू की तरह तना हुआ था, और वह बिना कम्मो भटियारिन की परवाह किए अपने शरीर पर साबुन मलते हुए कम्मो चाची की मोटी मोटी गदराई चुचियो को देख देख कर मज़ा ले रहे थे, कम्मो भटियारिन की नज़रे लड़कों के मोटे लंड पर बार बार जाकर टिक जाती थी और वह भी अपने आप को रोक ना सकी और अपने गोरे गदराए बदन पर पानी डाल कर अपनी मोटी चुचियो पर साबुन लगा कर उन्हे कस कस कर रगड़ने लगी और अपनी चुचियो को अपने हाथो से दबा दबा कर कहने लगी सारा दिन झाड़ फुक कर कर के कितना मैल शरीर पर जमा हो जाता है, और अपने हाथो को उठा कर अपनी बगल मे हाथ फेरने लगी, बिल्लू और बिरजू ने जब कम्मो चाची की बालो से भरी बगल देखी तो उनका लंड झटके दे दे कर हिलने लगा, दोनो
भाई साबुन लगाते लगाते बीच बीच मे अपने लंड को भी मसल देते थे जो कि कम्मो भटियारिन की चूत से पानी बहाने के लिए काफ़ी था।
कम्मो भटियारिन ने अब अपनी दोनो जाँघो को थोड़ा फैला कर अपने घाघरे को घुटनो की जड़ो तक चढ़ा कर अपनी गोरी गोरी पिंदलियो और गदराई जाँघो पर साबुन लगाना शुरू कर दिया, दोनो भाई का मन कर रहा था कि कम्मो चाची को यही पटक कर उसके नंगे बदन पर चढ़ बैठें, उसे अभी चोद दे, बीच बीच मे कम्मो भटियारिन अपने घाघरे को जो कि दोनो जाँघो के बीच उसकी चूत के पास सिमट
गया था अपनी चूत पर दबा कर अपनी जाँघो को लड़कों को दिखा दिखा कर रगड़ रही थी, फिर अपनी जाँघो पर जब उसने पानी डाला तो उसकी गोरी मोटी मोटी जाँघे चमकने लगी, तभी कम्मो भटियारिन ने कहा अरे बिल्लू ज़रा मेरी पीठ तो रगड़ दे, बिल्लू –“अच्छा चाची” कहता हुआ खड़ा हो गया और उसका मोटा डंडा कम्मो भटियारिन के सामने तन गया जिसे कम्मो भटियारिन देख कर सिहर गई और उसकी चूत दुपदुपा के रिसने लगी, बिल्लू जल्दी से कम्मो चाची की नंगी पीठ के पीछे अपने दोनो पैरो के पंजो पर बैठ कर कम्मो चाची की गोरी पीठ को बड़े प्यार से सहला सहला कर उसकी जवानी का मज़ा लेने लगा, कम्मो भटियारिन –“अरे बेटा थोड़ा तगड़ा हाथ लगा कर मसल बड़ा मैल हो जाता है पीठ पर।”
बिल्लू कम्मो चाची की पीठ से बिल्कुल लिपट कर तगड़े तरीके से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा और उसका खड़ा लंड कम्मो भटियारिन की कमर पर चुभने लगा, जवान लौडे के मोटे लंड की इतनी गहरी चुभन को महसूस करते ही कम्मो भटियारिन का हाथ अपने बस मे नही रहा और एक बार फिर उसने अपने हाथो के पंजो से अपनी चूत को दबोच लिया, बिल्लू कम्मो चाची की पीठ रगड़ता हुआ उसके बगल तक अपना हाथ भरने की कोशिश करने लगा जिससे कम्मो भटियारिन ने अपने हाथो को थोड़ा फैला दिया और बिल्लू कम्मो चाची की उठी चुचियो को भी साइड से महसूस करने लगा, कुछ देर की पीठ रगड़ाई के बाद कम्मो भटियारिन ने कहा –“चल अब जल्दी से नहा लो बेटा फिर हमे जंगल भी चलना है और कम्मो भटियारिन खड़ी होकर अपना नारा खोलने लगी और फिर मग से पानी भर कर लड़कों के सामने अपने घाघरे के अंदर एक दो मॅग पानी डाल कर घाघरे के ऊपर से खड़े खड़े अपनी चूत को एक दो बार मसला और फिर दूसरा घाघरा उठा कर अपने सर से डाल कर भीगा हुआ घाघरा छोड़ दिया, नीचे बैठे होने के कारण दोनो भाइयों को कम्मो चाची की कमर से लेकर पेरो तक पूरी नंगी चूत, मोटी जाँघे सब कुछ एक पल के लिए उनकी आँखो के सामने आ गया । कम्मो चाची की ऐसी गदराई जवानी और फूली हुई चूत देख कर उनके लंड झटके मारने लगे।
कम्मो भटियारिन दोनो के चेहरे देखकर थोड़ा मुस्कुराई और गीले कपड़े उठाने के लिए झुकी तो उसके चूतड़ दोनो के मुँह से सिर्फ़ 4 इंच की दूरी पर थे जिन्हें दोनो, आँखे फाड़ फाड़कर देख रहे थे तभी कम्मो भटियारिन ने अपना बायाँ हाथ अपने भारी चूतड़ों के पीछे लाकर पानी पोछा और कपड़े उठा अपने घर के दरवाजे की ओर चल दी, कम्मो भटियारिन द्वारा अपने चूतड़ों का पानी पोछने के कारण उसका घाघरा उसके भारी चूतड़ों की दरार मे फँस गया और वह अपने बड़े बड़े घड़े जैसे चूतड़ मटकाती हुई अपने दरवाजे की ओर जाने लगी, दोनो भाइयों का हाल बेहाल हो चुका था और दोनो कम्मो चाची के मटकते चूतड़ों और उसमे फँसे उसके घाघरे को देख कर बर्दाश्त नही कर सके और अपने हाथों लंड दबाने लगे और कम्मो भटियारिन के घर के अंदर तक पहुँचते पहुँचते मारे उत्तेजना के दोनों झड़ गये, और तबीयत से झडे और फिर एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते हुए फिर नहा कर तैयार होकर अपनी लुंगी पहनकर कम्मो चाची के साथ जंगल की ओर कुल्हाड़ी और रस्सिया लेकर चल पड़े।
आगे आगे कम्मो भटियारिन अपने भारी भरकम बड़े बड़े चूतड़ हिलाती चल रही थी और पीछे पीछे उसके पाले दोनो हरामी लड़के बिल्लू और बिरजू चले जा रहे थे, दोनो हवस से भरी निगाहों से कम्मो चाची थिरकते चूतड़ों पर थी और लुंगी मे से उनके खड़े लण्ड साफ़ नज़र आ रहे थे, वो उनके ठीक आगे थी इसलिए दोनो कुछ बोल नही रहे थे लेकिन कम्मो चाची के मस्ताने चूतड़ों को देख देख कर दोनो हरामी बीच बीच मे मंद मंद मुस्कुराते हुए, एक दूसरे की तरफ़ देख नजरो ही नजरों में एक दूसरे से बखूबी बाते कर रहे थे, वह दोनो कम्मो चाची के मस्त चूतड़ों को देखने मे इतना खोए हुए थे कि उन्हे यह भी नही पता चला कि कम्मो भटियारिन ने पीछे मूड कर उनकी नज़र कहाँ है देख लिया था और साथ ही दोनो के मोटे लंड जो लुंगी के अंदर सर उठाए खड़े है उन्हे भी देख चुकी थी. आज जबसे कम्मो भटियारिन ने लड़कों के लंड को देखा तब से उसकी चूत भी एक तगड़े लंड के लिए तड़पने लगी थी, इसीलिए कम्मो भटियारिन को लड़कों द्वारा उसके मस्त चूतड़ों को देखने पर एक अनोखा आनद प्राप्त हो रहा था और वह मन ही मन खुश होती हुई अपने बड़े बड़े चूतड़ों को जानबूझ कर और मटका मटका के चलने लगी, उसकी इस तरह की थिरकन और मटकते चूतड़ों को देख कर दोनो भाई रस से भरे जा रहे थे और उन्ही कम्मो चाची घाघरे के होते हुए भी नंगी नज़र आ रही थी और दोनो चलते चलते अपने मोटे लंड को मसल्ते जा रहे थे, कम्मो भटियारिन बीच बीच मे लड़कों को उसके चूतड़ देख देख कर लंड सहलाते देख और भी मस्त होने लगी और उसकी चूत भी काफ़ी सारा पानी छोड़ रही थी और उसे हिलते चूतड़ देख कर लड़कों के लंड सहलाने मसलने की हरकत ने सनसना दिया था और वो जानबूझ कर चलते हुए अपने भारी चूतड़ों मे खुजली करने लगी जिसे देख कर एक पल को तो बिल्लू और बिरजू का दिमाग काबू के बाहर हो मन करने लगा कि अभी पकड़ कर कम्मो चाची को पूरी नंगी करके यही चोद देते है।
कम्मो भटियारिन थोड़ी थोड़ी देर मे अपने बड़े बड़े चूतड़ों के छेद मे खुजली करती हुई ऐसे मटका रही थी जैसे कह रही हो कि आजा और मेरी चूत मे लंड डालकर चोद दे.
जब कम्मो भटियारिन और लड़कों ने घर के सामने वाली पुलिया पार कर ली तब फिर आम के बगीचे शुरू हो गये, तब कम्मो भटियारिन नीचे गिरे हुए आमो को उठाने के लिए जानबूझ कर झुकती और अपने बड़े बड़े चूतड़ों लड़कों को दिखा दिखा कर मज़े ले रही थी, आम का बगीचा पार करते ही थोड़ा जंगल शुरू हो गया
कम्मो भटियारिन की बुर गीली हो चुकी थी उससे रहा नही जा रहा था, इतने साल कीचुदास अचानक लड़कों के मोटे लंड को देख कर उसकी बुर पानी ही पानी फेक रही
थी। जब जंगल मे थोड़ा आगे पहुचे तो कम्मो भटियारिन ने कहा बेटा मुझे बहुत जोरो की पेशाब लगी है, यह सुन कर दोनो मस्त हो गये, कम्मो भटियारिन बेटा यहाँ कही जगह दिख नही रही है तुम दोनो एक काम करो उधर मुँह घुमा लो तो मैं पेशाब कर लूँ, अच्छा चाची, और उन दोनो ने अपना मुँह दूसरी ओर घुमा लिया। कम्मो भटियारिन जानती थी कि ये दोनो मूड कर ज़रूर देखेंगे इसलिए उसने जानबूझ कर उन दोनो की तरफ पीठ करके बड़े आराम से खड़े खड़े अपना पूरा घाघरा अपनी कमर तक उठा दिया, और दोनो भाइयो ने जल्दी से अपना सर घुमा कर जैसे ही देखा
उनका मुँह खुला का खुला रह गया कम्मो चाची पूरी नंगी थी उसके फैले हुए भारी बड़े बड़े संगमरमरी चूतड़ और केले के खम्बे जैसी गदराई मोटी मोटी जाँघो को थोड़ा फैला कर कम्मो भटियारिन धीरे धीरे अपने भारी चूतड़ पीछे की ओर निकाल कर बैठने लगी, उसके चूतड़ का गहरी लम्बी दरार और पूरे एक बीते का फूला हुआ भोसड़ा और भोसड़े की फटी फांको के बीच गुलाबी कलर का बड़ा सा छेद देख कर दोनो के लंड झटको पर झटके मारने लगा और लुंगी पूरी तन कर खड़ी हो गई, और कम्मो चाची अपने भारी भरकम चूतड़ों को फैलाकर मूतने बैठ गई दोनो भाई अपनी फटी फटी आँखो से कम्मो चाची के भारी चूतड़ देखकर अपना अपना लंड लुंगी मे सहलाने मसलने लगे उनका मोटा काला लंड 10 इंच के लंबे और 3 इंच के मोटे डंडे जैसे खड़ा था, दोनो भाई कम्मो चाची की मस्ताने गोरे चूतड़ देखकर पागल हो गये उन्होने इतनी मस्ताने गोरे चूतड़ नंगे आज तक नही देखी थी, घाघरे के ऊपर से जितने बड़े चूतड़ कम्मो चाची के नज़र आते थी उससे डबल नज़र आ रहे थे, तभी कम्मो भटियारिन की फूली हुई चूत से एक मोटी धार एक सीटी की आवाज़ के साथ निकलने लगी जिसे देखसुनकर दोनो भाई के तोपो का रंग लाल हो गया और दोनो अपने लंड को तेज़ी से मसलने लगे, करीब 2 मिनिट तक कम्मो भटियारिन आराम से बैठी मुतती रही फिर जब खड़ी हुई तो अपने घाघरे से अपनी चूत दोनो जाँघे फैलाकर थोड़ा झुक कर पोछने लगी और फिर दोनो भाइयो ने अपना सर वापस पीछे घुमा लिया, कम्मो भटियारिन मंद मंद मुस्कुराते हुए चलो बेटा मैने पेशाब करली,
तभी बिरजू बोला –“चाची हमको भी पेशाब करना है आप भी अपना मुँह उधर घुमा लो, तो कम्मो भटियारिन ने कहा –“ठीक है बेटा कर लो और दोनो भाई जानबूझ कर थोड़ा सा मुड़े ताकि कम्मो चाची उनके लंड को आराम से देख सके और अपना सर नीचे झुककर दोनो ने जब अपने खड़े काले काले लंड बाहर निकाले तो कम्मो भटियारिन उनका लंड देखती ही रह गई, उसकी आँखे फटी की फटी रह गई क्योकि उसने भी अपने जीवन मे इतने मोटे और बड़े लंड कभी नही देखे थे अपने सामने एक नही दो दो मोटे काले डंडे और उस पर बड़ा सा कत्थे रंग का सूपड़ा देख कर कम्मो भटियारिन के मुँह मे पानी आ गया और उसकी चूत लड़कों के मोटे काले लंड देखकर
फड़कने लगी, दोनो भाई कम्मो चाची के लाल हुए चेहरे को देखने लगे, और अपने अपने लंड को वापस अपनी लुंगी मे छुपा लिया, कम्मो भटियारिन ने जल्दी से अपना मुँह आगे की ओर किया तब दोनो भाई कम्मो चाची के पास पहुच कर दोनो ने एक एक हाथ से कम्मो चाची के चूतड़ों को हाथ लगा कर आगे की ओर धकेलते हुए कहा - चल चाची हम पेशाब कर चुके,”
जब दोनो ने कम्मो चाची के मोटे मोटे चूतड़ों को छुआ तो दोनो ही सिहर गये क्योकि कम्मो चाची ने केवल घाघरा पहना था और घाघरे का कपड़ा काफ़ी चिकना और पतला था । कम्मो भटियारिन चलते हुए लड़कों के सामने अपने भारी चूतड़ ऐसे मटका कर चल रही थी जैसे अभी अपनी चूत मरवा लेगी, दोनो भाइयो के मोटे लंड बैठने का नाम नही ले रहे थे और कम्मो चाची उन्हे नंगी नज़र आ रही थी और वह दोनो बड़े गौर से कम्मो चाची के मस्ताने चूतड़ों को देखते हुए उसके चूतड़ के पीछे चले जा रहे थे, जंगल पहुँचकर दोनो भाइयो ने अपनी अपनी लुंगी को अपनी जाँघो तक मोड़ कर बाँध लिया और पेड़ पर चढ़ कर सुखी सुखी टहनियाँ काटने लगे, कम्मो भटियारिन नीचे बैठ कर लकड़ियाँ समेटने लगी, करीब दो घंटे तक लकड़ियाँ काटने के बाद कम्मो भटियारिन ने कहा अब तुम दोनो नीचे आ जाओ और खाना खा लो।
फिर कम्मो ने अपने साथ लाई हुई रोटियाँ और साग निकालकर दोनो लड़कों को दिया और खुद भी खाने लगी, खाना खानेके बाद एक पेड़ की छाया के नीचे कम्मो लेट गई और बल्लू और बिरजू उसके पैरो की ओर पेड़ से टिककर बैठ गये, कुछ देर पेड़ की छाँव मे लेटे लेटे कम्मो ने आँखे बंद करते हुए बेटा मैं थोड़ा थक गई हूँ तो थोड़ा आराम कर लूँ तुम दोनो कही जाना नही, ।
बल्लू बोला –
“ठीक है चाची तुम सो जाओ हम यही बैठे है और कम्मो ने अपनी आँखे बंद कर ली, कम्मो की आँखों मे नींद कहाँ थी उसके दिमाग और बंद आँखो के अन्दर तो बल्लू और बिरजू के काले लंड लहरा रहे थे जिससे उसकी चूत पनिया रही थी। पीठ के बल लेटी हुई कम्मो ने अपने दोनो पैरो को घुटनों से मोड़ थोड़ा फ़ैला लिया ताकि हवा लग के चूत की गर्मी शान्त हो और पनियाना बन्द हो। तभी बल्लू ने कम्मो चाची के पैरो के बिल्कुल पास बैठे बिरजू को, उनके घाघरे की ओर इशारा किया और बिरजू ने उसका इशारा समझ कम्मो चाची के दोनो पैरो के बीच मे लटके घाघरे को धीरे से उठा कर उसके घुटनो पर टिका दिया, जिससे पैरो के बीच की जगह से पूरा घाघरा उठ गया अब दोनो हरामी चुपके से एक एक कर के अपना मुँह कम्मो चाची की दोनो टाँगो के बीच डाल कर उसकी चूत देखने लगे तो उनके मुँह खुले के खुले रह गये । कम्मो भटियारिन का शान्दार चूत बिल्कुल पावरोटी की तरह फूली हुई थी दोनो होठों का मुँह हल्का सा खुला था। ये देख कर उनके लंड झटके मारने लगे और वो अपने अपने लंड अपने हाथ से सहलाने लगे।
बल्लू (धीरे से) –“यार बिरजू कम्मो चाची की चूत कितनी शानदार है मेरा लंड तो कम्मो चाची की चूत को फाड़ने के लिए मचल रहा है।”
उन दोनो की फ़ुस्फ़ुसाहट कम्मो को उस सूनसान जंगल मे स्पष्ट सुनाई दे रही थी और उसने धीरे से अपनी आँखो की कोरों को थोड़ा खोल दोनो के काले काले मोटे लंबे लंड पर नजर डाली तो उसकी चूत दुपदुपाने लगी । उसने धीरे से अपनी जाँघो को थोड़ा फैला दिया जिससे उसकी फूली हुई चूत की फांके पूरी तरह खुल गई और उसकी चूत का गुलाबी रस से भरा छेद दोनो भाइयो के सामने खुल गया जिसे देख कर दोनो की आँखो मे लाल डोरे तेरने लगे और उन दोनो ने अपने लंड को कम्मो चाची की फटी हुई चूत देख कर तबीयत से मुठियाना चालू कर दिया, कम्मो भी उनके लंड देख देख कर बैचैन हो रही थी । उसका बस चलता तो अभी के अभी इन दोनो के मोटे लंड से चूत को फड़वा फड़वाकर खूब कस कस कर चुदवाती।
तभी बिरजू ने धीरे से चाची चाची कहते हुए उसकी दोनो जाँघो को और फ़ैला दिया। कम्मो ने भी अपने पैरो को पूरा फैला कर पसार दिया जिससे उसकी फटी फांके
बिल्कुल अलग हो कर अपनी चूत का पूरा गुलाबी कटाव और काफ़ी तना हुआ लहसुन बल्लू और बिरजू को दिखाने लगी, उसकी जाँघो के बीच इतना गेप हो चुका था कि चूत फ़ैल कर बुलाती सी लग रही थी। तभी बल्लू धीरे से अपने घुटनो के बल आकर कम्मो चाची के घाघरे मे अपना मुँह डाल अपनी नाक को कम्मो चाची की फूली हुई खुली चूत के बिल्कुल पास ले गया और बहुत तेज़ी से साँस खीच कर कम्मो चाची की फटी हुई चूत को सूंघने लगा और बिल्कुल मदहोश हो गया और खूब ज़ोर ज़ोर से साँस ले ले कर कम्मो चाची की फूली हुई चूत की मादक गंध को सूंघने लगा, बल्लू जब अपनी नाक से साँस लेकर कम्मो चाची की फूली हुई चूत सुन्घ्ता फिर जब उसकी साँस भर जाती तो वह अपनी नाक से साँस छोड़ता तो कम्मो की खुली हुई चूत पर गरम गरम सांसो की हवा लगी तो वह समझ गई कि लड़का उसकी चूत के बिल्कुल नज़दीक अपनी नाक लगा कर उसकी चूत की गंध को सूंघ रहा है इससे वो इतनी चुदासी हो गई कि उसकी चूत से पानी बह बह कर उसके चूतड़ों की दरार तक पहुँच गया, फिर बिरजू ने पीछे से हाथ लगा कर बल्लू को इशारा किया तो बल्लू ने कम्मो चाची के घाघरे से अपना मुँह बाहर निकाल और फिर बिरजू ने अपना मुँह कम्मो चाची के घाघरे के अंदर डाल कर उसकी चूत की मादक गंध को अपनी नाक से सूंघना शुरू कर दिया।
काफ़ी देर दोनो भाई बारी बारी से कम्मो चाची की चूत सूंघ सूंघ कर उसे चोदने के मनसूबे बनाते हुए ये सोच रहे थे कि अगर एक बार किसी तरह कम्मो चाची की चूत चोदने का मौका मिल जाये तो इसे इतना मजा दें कि चाची खुद ही हमे अपनी चूत देने को दिन रात तैयार रहे। उधर कम्मो भी बल्लू और बिरजू द्वारा अपनी चूत चोदने की बात सुन कर उत्तेजना से बौखला सनसना रही थी उसे लग रहा था कि जैसे पड़े पड़े ही उसकी चूत झड़ जायेगी। इससे घबरा कर अचानक कम्मो चाची कसमसा कर सोते से उठने का नाटक करती हुई उठ बैठी। दोनो तड़प के रह गये।
कम्मो चाची -“ तुम दोनो कही गये तो नही थे।”
“नही चाची हम दोनो तो तेरे पैरो के पास ही बैठे थे।”
“अच्छा चलो अब लकड़ियाँ रस्सी से बांधो और चलने की तैयारी करो फिर नही तो शाम हो जाएगी।”
दोनो भाई अपनी लूँगी ठीक करते हुए लकड़ियो के गट्ठे बनाने लगे और फिर सबसे छोटा गट्ठा कम्मो चाची के सर पे लाद दिया और बड़े बड़े गट्ठे अपने सर पर लाद कर कम्मो चाची को आगे चलने का कह कर पीछे पीछे चलते हुए कम्मो चाची के बड़े बड़े चूतड़ों को थिरकते देखते हुए घर की ओर चलने लगे।
तभी कम्मो भटियारिन के पैरो मे कोई काँटा चुभा जिससे वह लकड़ियों का गट्ठर फ़ेंक आह करती हुई झुक कर काँटा निकालने लगी दोनो भाई ऐसे मोके की हमेशा तलाश मे ही थे उन दोनो ने झट से कम्मो चाची की भारी चूतड़ पर हाथ फेरते हुए क्या हुआ चाची, कम्मो भटियारिन अरे कुछ नही बेटा ज़रा काँटा चुभ गया, कम्मो भटियारिन झुकी हुई काँटा निकाल रही थी और दोनो भाई प्यार से कम्मो चाची के चूतड़ सहला रहे थे, घाघरा बिल्कुल पतला होने के कारण बिल्लू ने बड़े प्यार से पीछे से कम्मो चाची की फूली हुई चूत को अपने पूरे पंजे से सहलाते हुए -निकला चाची, और कम्मो भटियारिन “सी आह अभी नही निकला रे”, जब कि काँटा निकल चुका था तभी बिल्लू ने चूत से हाथ हटाया तो बिरजू ने इस बार अपना पूरी हथेली को सीधे कम्मो चाची की पूरी फूली हुई चूत पर रख कर दबा कर पूछा –“नही निकल रहा क्या चाची, तब तक कम्मो भटियारिन की चूत से पानी आ गया और उसके घाघरे से लगता हुआ बिरजू के हाथो मे लग गया, और कम्मो भटियारिन सीधी होकर चल दी, तब बिरजू अपने हाथ पर लगे पानी को सूंघने लगा और बिल्लू को भी सूँघाने लगा, कम्मो भटियारिन ने लड़कों को अपनी चूत का पानी सूंघते देख लिया और उसकी चूत बुरी तरह लंड खाने के लिए फड़फड़ाने लगी । लगभग यही बल्की इससे भी बुरा हाल लड़कों का भी था । पर किसी तरह मन पर काबू करते हुए तीनों घर पहुँचे।
रात के खाने के बाद दोनो भाई गाँव की पुलिया जो कम्मो भटियारिन के घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर थी सन्नाटे मे वहाँ बैठ कर दारू का मज़ा ले रहे थे, और साथ मे बीड़ी के लंबे लंबे कस मारते जा रहे थे, फिर बल्लू बोतल बिरजू को दे देता है और उससे बीड़ी ले कर कस मारने लगता है, बिरजू अपने भाई बल्लू को बीड़ी देते हुए बोला –
“ले बल्लू मार सुत्टा, , आज तो नशा ही नही आ रहा है ।”
“नशा आयेगा कहाँ से, जंगल से लौटने के बाद से कम्मो चाची की चूत और उनके बड़े बड़े भारी चूतड़ों का नजारा दिमाग से हट ही नही रहा मन कर रहा है कि सीधे जाकर चूत या चूतड़ जो सामने पड़े उसी में लंड पेल दूँ। साली ने परेशान कर के रख दिया”
कहकर देसी दारू की आधी हो चुकी बोतल उठाकर बिरजू ने मुँह से लगा ली और गटकने लगा।
बल्लू –“यार! क्या चूत है कम्मो चाची की इतनी फूली पावरोटी सी चूत देखने के बाद से मेरा लंड तो पागल हो रहा है।”
बिरजू –“हाँ यार बल्लू! कम्मो चाची की बड़े बड़े थिरकते चूतड़ देखे कितने मस्ताने है यार बल्लू कम्मो चाची की चूत कैसे गीली हो रही थी। चुदते समय तो और भी कितना पानी छोड़ती होगी, ।
बल्लू –“यही नहीं! मैने तो जब से उसकी बड़े बड़े थिरकते चूतड़ और पेशाब करते हुए उसकी चूत से निकलती पेशाब की मोटी धार देखी तब से मेरा लंड तो उसके मोटे गुलाबी चूत के छेद मे घुसने के लिए तड़प रहा है, यार बिरजू! कैसे भी करके आज ही रात हम दोनो को कम्मो चाची को चुदवाने के लिए पटाना होगा क्योंकि आज वो हमारे लण्डों की नुमाइश से चुदासी भी हो रही थी, तूने भी हाथ लगाने पर महसूस किया होगा कि चूत गीली हो रही थी। ऐसा मौका बार बार नहीं आने वाला।”
बिरजू –“मेरी समझ में एक तरीका आया है बल्लू! आज अगर पैर दबवाने के लिए बुलायेगी तो दोनो साथ जायेंगे कहेंगे कि जब दोनो भाई एक एक पैर दबायेंगे तो उसे जल्दी आराम आ जायेगा और वो जल्दी सो जाएगी। जब वह सो जाएगी तब दोनों मिल के कम्मो चाची को पूरी तरह नंगी करके उसकी चूत को अपने हाथो से सहलाएगे चुदासी चूत की पुत्तियाँ सहलाने से फ़ैल के अपना मुँह खोल देगी बस दोनो भाई एक आगे से उसकी चूत, दूसरा पीछे से उसके पिछ्वाड़े में रगड़ मारेगे, फ़िर बस मजे ही मजे हैं। जब कम्मो चाची की चूत और गाँड़ मे हमारे मोटे मोटे काले लंड घुस कर उसे चोदेगे तो दोनो तरफ से ऐसे मोटे मोटे लंड के धक्के खा खा कर वह भी मस्त हो जाएगी। एक बार भोसड़ी वाली हमसे चुद गई तो फिर समझ लो हम दिन रात उसको घर पर नंगी ही रखेंगे और दिन रात उसको चोदेंगे।”
दारू के नशे और आज की घटनाओं से दोनो भाइयों के दिमाग ने आगा पीछा सोचने की ताकत छीन ली थी और उन्होंने आज इस पार या उस पार का खतरनाक इरादा कर घर वापस आ गये।
रात को कम्मो अपनी खाट पर पड़ी पड़ी आज की घटनाओं को याद कर कर के अपनी चूत को अपने घाघरे से सहला रही थी उसकी चूत चुदास के मारे बुरी तरह भीगी हुई थी। तभी उसका मन बल्लू और बिरजू की बाते सुनने का होने लगा और वह चुपचाप दरवाजे के पास कान लगा कर सुनने लगी, अंदर बिरजू और बल्लू अपना लंड अपने हाथ से सहलाते हुए बात कर रहे थे।
बिरजू –“यार बल्लू कम्मो चाची को पूरी नंगी करके देखने का इतना मन कर रहा है कितनी गदराई और मोटी जाँघे है उसकी, और चूतड़ तो इतने मोटे है जब चलती है तो ऐसे मटकते है की सीधा जा कर अपना मोटा लंड उसके मोटे चूतड़ों के बीच फ़ँसा कर रगड़ के झाड़ दूँ।”
बल्लू –“हाँ यार बिरजू! मेरा दिल भी कम्मो चाची की चूत और पिछ्वाड़ा दोनों मारने के लिए तड़प रहा है ।
दोनो भाई दारू के नशे मे मस्त होकर कम्मो चाची की चूत मारने की बाते कर कर के अपना मोटा लंड हिलाते जा रहे थे, और उनके द्वारा खुद को चुदने की बात से कम्मो अपनी मोटी चूत को मसले जा रही थी, और कुछ देर के बाद अपना लंड हिलाते हुए दोनो –“ओह चाची एक बार बल्लू और बिरजू को पूरी नंगी होकर अपने उपर चढ़ा ले, तेरी चूत की ऐसी सेवा करेंगे कि फ़िर चूत कभी हमसे चुदाये बिना रह नही पाएगी।”
दोनो लड़कों द्वारा उसे तरह तरह से चोदने की बात सुन सुन कर कम्मो से रहा नही गया, वो अपना घाघरा उठा कर वही मूतने के अंदाज मे बैठ गई और बल्लू और बिरजू द्वारा उसे चोदने की बाते सुनते हुए अपनी चूत को अपनी चारो उंगलियो से चोदने लगी और कल्पना करने लगी कि जैसे दोनों उसे पूरी नंगी करके कितने तगड़े तगड़े झटके उसकी चूत और पिछ्वाड़े मे मार रहे है।
कम्मो की उत्तेजना ने उसे बेहाल कर दिया था तभी उसे खयाल आया कि अगर उसका पति गाँव की चौधराइन को दिन दहाड़े चोद सकता है तो वो रात के अन्धेरे में इन जवान लड़को से क्यों नही चुदवा सकती। किसी को पता भी नही चलेगा। बस उसने तय कर लिया कि आज वो इन लड़कों को पूरा मौका देगी । रसोई मे जा तेल की कटोरी उठा लाई उसे अपने बिस्तर के पास रख, बल्लू और बिरजू के कमरे के दरवाजे के पास जा धीरे से आवाज दी आवाज दी –“बल्लू! बिरजू!”
बल्लू और बिरजू दोनों एक साथ बोल पड़े –“हाँ चाची!”
कम्मो –“जाग रहे हो बेटा! दोनो मे से कोई भी आ के जरा मेरे पैर दबा दे बेटा! बड़ा दर्द है नींद नहीं आ रही।
दोनो फ़टाफ़ट उठ के आ गये। कम्मो जा के अपने बिस्तर पर लेट गई। दोनों पीछे पीछे आये, आते ही दोनो की नजर तेल की कटोरी पर पड़ी, जिसे देख दोनो भाइयो के लंड और भी टन्नाने लगे।
कम्मो – “अरे दोनों की कोई जरूरत नहीं कोई भी एक मेरे पैर दबा दे जिससे नींद पड़ जाये।”
बल्लू और बिरजू (एक साथ) – “नहीं चाची दोनों एक एक पैर दबायेंगे तो जल्दी आराम आ जायेगा।
कहकर बिना जवाब की प्रतीक्षा किये एक एक पाव दबाने लगे। कम्मो मन ही मन मुस्कुराई और आँखे बन्द कर कराहने लगी जैसे पैरों में बड़ा दर्द हो। थोड़ी ही देर में उसकी कराहट धीरे धीरे बन्द हो गई ऐसा लगा कि वो सो गई है। बल्लू ने आवाज दी –“चाची! सो गईं क्या।”
कम्मो कोई जवाब नही दिया हाँलाकि वो जाग रही थी पर गहरी नींद में होने का नाटक किये पड़ी थी क्योंकि वो जानती थी कि जितनी जल्दी वो सोयेगी उतनी जल्दी लड़कों की कुछ करने की हिम्मत पड़ेगी सो जागते रह के वख्त बरबाद करने का कोई काम नही था क्यों कि उसे भी चुदवाने की जल्दी हो रही थी। जैसे ही दोनो भाइयों को लगा कि चाची सो गई है बस फ़टाफ़ट मिनिटों मे दोनों ने उसका घाघरा और चोली उतार कर फेक दिया।
अब उनके सामने कम्मो चाची पूरी नंगी, मक्कर साधे सोने का नाटक करती चित्त पड़ी थी। दोनो ने अपनी अपनी लूँगी उतार दी । कम्मो ने आँखों की कोरों को हल्के से खोल कर देखा कि दो भारी भरकम लण्ड उसके सामने लहरा रहे हैं, उसकी मुद्दतों से चुदासी चूत दुपदुपा कर पुत्तियाँ फ़ैलाने लगी। वो मन ही मन डरी कि अगर इन हरामी लड़कों की नजर फ़ैलती चूत की पुत्तियों पर पड़ गयी तो हरामियों को शक पड़ जायेगा कि मैं जाग रही हूँ और हिम्मत छोड़ भाग खड़े होंगे, सो उसने आहिस्ते से ऐसे करवट ली जैसे सोते सोते लोग लेते हैं करवट मे चूतड़ों का उभार और भी उभर कर मादक लगने लगा । अब दोनों से बर्दास्त नहीं हो रहा था दोनो धीरे से जाकर ऐसे चिपक कर लेट गये, जैसे बच्चे बेख्याली में सोने के लिए लिपटे हों। बिरजू पीछे से चिपक गया और कम्मो चाची के भारी चूतड़ो से अपना लण्ड सटा दिया और चूतड़ों की नाली में लण्ड रगड़ने लगा । बल्लू सामने से उसकी बड़ी बड़ी चुचियो से चिपट गया और धीरे से उसकी एक टाँग उठाके अपनी जाँघ पेर सटा ली जिससे चूत का मुँह खुल गया । बस फ़िर क्या था बल्लू ने उसकी चूत के मुहाने से अपने हलव्वी लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा सटा दिया और रगड़ने लगा।
अब कम्मो मजे से अपने पाले हरामी लड़कों के मोटे हलव्वी लण्डों से अपनी चूत और चूतड़ रगड़वा रही थी, उसकी चूत उन हरामियों के लंड से रगड़ खाकर पानी छोड़ रही थी। तभी दोनो भाई उठकर कम्मो चाची के आगे और पीछे बैठ गये और बल्लू ने उसकी फूली हुई पाव रोटी सी चूत मे मुँह लगा दिया और बिरजू कम्मो चाची के बड़े बड़े भारी गुदाज संगमरमरी चूतड़ों को चूमने चाटने लगा दोनो ओर से अपनी चु्म्मा चाटी से कम्मो की सांसे तेज होने लगी, दोनो भाई अपना पूरा मुँह भर भर कर मजे ले रहे थे, बल्लू कम्मो चाची के खड़े हुए दाने को अपने मुँह मे भर भर कर उसका रस चूसने लगा है कम्मो की टाँगे आप से आप फ़ैलने लगीं। और पैर फ़ैलने की प्रक्रिया मे वो चित होती जा रही थी। ये देख बिरजू चूतड़ छोड़ बल्लू की तरफ़ आ गया जिससे कम्मो आसानी से चित हो सकें। धीरे धीरे वो पूरी तरह से चित हो गई। बल्लू और बिरजू जानते ही थे कि चाची आज सुबह से चुदासी थी। फ़ैली टाँगों चित पड़ी कम्मो को देख दोनों ने सोचा कि अब कम्मो चाची सो भी रही है तो भी इतना तो पक्का है कि चाची के बदन से चुदास बरदास्त नही हो पा रही है हालाँकि अभी भी वो ये निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि वो जाग रही है या सो रही है । दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और बिरजू ने बल्लू के कान मे धीरे से कहा – या तो कम्मो चाची मक्कर साधे सोने का नाटक कर रही है या गहरी नींद मे चुदने का सपना देख रही हैं लेकि ये तय है कि अब चाची के बदन से चुदास बरदास्त नही हो पा रही है देख चूत की पुत्तियाँ कैसी फ़ैल रही हैं यही मौका है ठाँस दे बल्लू ने अपना लण्ड तेल की कटोरी डुबोया, उनका लंड का सुपाड़ा तेल से चमक उठा । बल्लू ने लण्ड का सुपाड़ा कम्मो की पाव रोटी सी फ़ूली बुरी तरह से भीगी चूत के मुहाने पर रखा और धक्का मारा, पक से सुपाड़ा अन्दर चला गया।
उम्मह! कम्मो के मुँह से कराह निकली कराहने की आवाज सुन बिल्लू ने देर करना उचित नही समझा और कम्मो के पूरी तरह से उठने के पहले पूरा लण्ड ठाँस देने के ख्याल से फ़िर धक्का मारा अब चुदासी कम्मो चाची ने भी ज्यादा नाटक करना ठीक नही समझा धीरे से फ़ुसफ़ुसाई- “शाबाश मेरे शेर!”
कहते हुए नीचे से चूतड़ उचका के धक्के का जवाब दिया चाची की शाबाशी सुनते ही बल्लू मारे खुशी के चाची से लिपट गया उनके गाल पर जोरदार चुम्मा जड़ दिया कम्मो ने भी उसे चूमते हुए बिस्तर पर रोल कर उसे अपने नीचे कर तीसरा धक्का मार के पूरा लण्ड अपनी चूत मे ठँसवा लिया । ये सब देख बिरजू भी बहुत खुश हुआ बल्लू नीचे और चाची ऊपर होने से चाची के भारी घड़े से चूतड़ बिरजू के सामने थे बस फ़िर क्या था उसने अपना लण्ड तेल की कटोरी में डुबोया और चाची के बड़े बड़े संग़मरमरी गुदाज चूतड़ो के बीच ठाँस दिया।
कम्मो- “आह बिरजू वाह बेटे आज ये पक्का हो गया कि तुम दोनों को सड़क से उठा के पाल पोस के बड़ा कर कम्मो ने एक अच्छा काम किया।”
बस फ़िर क्या था दोनों को और जोश आ गया और कम्मो चाची की चूत और गुदाज पिछवाड़े पर पिल पड़े। बिरजू पीछे से कम्मो की बगलों से हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ दबा दबाकर बिल्लू के मुँह मे दे रहा था। वो कम्मो की गुदाज पीठ से सटा जगह जगह मुँह मार रहा था। कम्मो के पिछवाड़े में कस कस के धक्का मारते हुए उसके बड़े बड़े गुदगुदे चूतड़ों का भरपूर मजा ले चोद रहा था। उधर बिरजू और कम्मो के नीचे दबा बिल्लू आराम से कम्मो की चूत मे लण्ड डाले लेटा कम्मो और बिरजू के द्वारा लगाये धक्कों से फ़ायदा उठाते हुए, कम्मो की बड़ी बड़ी चूचियाँ होठ और उसके टमाटर से गाल चूसते हुए बिना मेहनत की चुदाई कर रहा था, अब कम्मो की चूत और पिछवाड़ा मे दोनो ओर से तगड़े धक्के लग रहे थे, और वह –“आह आह आह आह ओह ओह हाँ हाँ चोद कम्मो चाची को और तेज और तेज और मार खूब
खूब कस कस कर चोदो फाड़ दो मेरी पिछवाड़ा और चूत आह आह और मार।”
बिरजू –“ले कम्मो चाची और ले”
कहकर वो और जोर से उसकी पिछवाड़े मे धक्के मारने लगा, कम्मो की दोनो ओर से जबरदस्त ठुकाई हो रही थी दोनो भाई अपनी नंगी कम्मो चाची को दोनो और से दबोचे हुए उसके नंगे बदन से चिपक चिपक कर उसकी चूत और पिछवाड़ा चोद रहे थे। थोड़ी देर तक कम्मो चाची को कस कर चोदने के बाद, बिरजू बोला –“अबे बल्लू छेद बदल दोनों भाइयों ने जगह बदल ली यानिकि बिरजू नीचे लेट गया और कम्मो ने उसका फ़नफ़नाता लण्ड अपनी चूत मे डाल लण्ड बदल लिया और बल्लू ऊपर आ अपना हलव्वी लंड कम्मो के पिछ्वाड़े में ठाँस दिया। इस तरह कम्मो अपनी चूत और पिछवाड़े में लण्ड बदल स्वाद बदल के चुदवाने लगी। पूरी मुस्ती मे अपनी चूत और पिछवाड़ा मरवाते हुए आह आह करती हुई शाबाश और चोदो आह आह और तेज मार फाड़ दे फाड़ दे मेरी पिछवाड़ा और चूत, तुम दोनो के मोटे डंडो मे बड़ा दम है और चोद ज़ोर से मार आह आह ओह ओह सी सी और बिरजू और बल्लू कस कस कर कम्मो चाची की चूत और पिछवाड़ा की ठुकाई कर रहे थे। काफ़ी देर की चुदाई के बाद दोनो कम्मो चाची से बिल्कुल गुत्थम गुत्था हो उसकी चूत और गुदाज चूतड़ों से खूब रगड़ रगड़ कर झड़ने लगे तभी कम्मो भी खूब ज़ोर ज़ोर से सिस्याती हुई अपने पाले हरामी लड़कों से अपनी चूत और पिछवाड़ा रगड़कर कुटवाते हुए झड़ रही थी।
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यह उन दिनों की बात है जब मै सीमा अपनी बहन रमा के घर रहती थी। मेरे माँ बाप मरने के बाद से मै यहीं रह रही थी। मेरी उमर बढ़ती जाती थी । मगर मेरी शादी के लिए कोई सोचने वाला कोई था ही नही ! अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए , यही मेरे अपने जीजा जी (रमा के पति के) भतीजे के साथ सेक्स सम्बन्ध बने और हम दोनों रात भर एक ही बिस्तर पर सोते थे और कम से कम दो बार चुदाई जरूर होती। रमा को मेरे उसके साथ के सेक्स संबंधों की जानकारी थी और वह ख़ुद ही मुझे डाक्टर के पास ले जा कर मेरी चूत में कापर टी लगवा लायी थी !
रमा मेरी ही तरह एक बहुत ही चुदक्कड़ औरत है । उसकी बड़ी बड़ी पपीते जैसी चूचियाँ और मस्त भारी चूतड हैं। उस की ऊँचाई थोड़ी कम मगर रंग खूब गोरा है। रमा के पति (यानी मेरे जीजा जी चन्द्रमोहन) पुलिस इंस्पेक्टर हैं और उनकी पोस्टिंग बाहर थी। इस कारण रमा जब मौका लगे मर्दों के लण्ड लेती रहती थी. इन लोगों में दो खास थे एक पाण्डेजी और दूसरे चौहान साहब। ये दोनों छोटे मोटे नेता थे और खूब घूमते रहते थे। जब ये लोग हमारे यहां आते तो रमा की जम के चुदाई होती इन लोगों के आते ही रमा दो दो दिन अपने कमरे से नहीं निकलती थी और घर का सारा काम मुझे संभालना होता था ! उन के जाने के बाद कमरा साफ़ करते वक्त ढेर सारे कंडोम , शराब की बोतलें , रमा के अंदर गारमेंट्स कमरे मैं जगह जगह बिखरे होते थे । मगर मैं यह चुप चाप साफ़ आकर देती क्यूँ के रमा मेरे और अपने पति के भतीजे के सेक्स रिलेशन को डिस्टर्ब नहीं कर रही थी । पाण्डेजी और चौहान साहब जब गायब होते तो महीनो गायब हो जाते थे और उन दिनों रमा लण्ड के लिए तड़पती रहती थी तब वो मेरे ऊपर सारा गुस्सा निकालती थी मुझे ३६५ रातों के लिए लण्ड मिला हुआ था । रमा पैसे रुपये को ले कर भी थोड़ी लालची है । पाण्डेजी और चौहान साहब से चुदवाने का एक कारण यह भी था के यह दोनों रमा के ऊपर अच्छा पैसा खर्च कर देते थे । एक बार रमा अपने जेठ के घर दिल्ली गई। रमा के जेठ (डा0 जगमोहन) की पत्नी दो साल पहले स्वर्ग सिधार गई थी और तब से डा0 जगमोहन भी चूत के लिए इधर उधर मुंह मार रहा था । डा0 जगमोहन ने अपनी नर्स, अपने नीचे काम करने वाली लड़किओं और रिश्ते की हर औरत की चूत को पाने के लिए योजनायें बनायी थी और उन पे अमल भी किया था मगर इन सब मैं उसे अभी तक कोई सफलता नहीं मिली थी । सिर्फ उन की नर्स मिसेज नायर ने कभी कभी बड़े बड़े भाटे से स्तन सहलाने तक की छूट डा0 जगमोहन को दी थी । इस से डा0 जगमोहन के लण्ड की प्यास और ज्यादा ही बढ़ जाती थी । डा0 जगमोहन ने मिसेज नायर के भारी चूतड़ अपने हलव्वी लण्ड पर रखकर अपनी गोद में बिठाया था और उनके बड़े बड़े भाटे से स्तन दबाये थे और उस की चूतड़ पर हाथ भी फेर लिया था। मगर मिसेज नायर इस से आगे बढ़ने नहीं देती थी और अस्पताल का माहौल भी इस से ज्यादा कुछ होने नहीं देता था । मिसेज नायर को घर बुलाया तो वह अपने पति कप्तान नायर के साथ आ गयी उस रात डा0 जगमोहन रात भर सो नहीं पाया था ।
आजकल रमा के पेट मैं दर्द उठने लगा था, डा0 जगमोहन जोकि दिल्ली के एक बड़े अस्पताल मैं डाक्टर था, ने रमा को समझाया के उस का इलाज दिल्ली मैं ठीक से हो सकता है। रमा भी जानती थी कि जेठ जी उस का इलाज़ किस तरह करेंगे । रमा के दिल्ली जाने का(या पेट दर्द का) एक और ही मकसद था। वह डा0 जगमोहन की पत्नी की अलमारी मैं पड़े जेवर और साड़िओं पर कब्जा करना चाहती थी । इस अलमारी की चाभी आज कल डा0 जगमोहन के जनेऊ से बंधी रहती थी और रमा को पूरा भरोसा था की वह यह काम कर सकती है।
रमा जब स्टेशन पहुँची तो डा0 जगमोहन कार ले कर उस को लेने आया और घर छोड़ कर वापिस ऑफिस चला गया । शाम को खूब सारे फल सब्जी और एक गजरा ले कर आया जो उस ने रमा को खुद पहनाने की इच्छा प्रगट की। रमा ने कोई आपत्ति नहीं की।
रमा ने खाना बनाया और बड़े प्यार से डा0 जगमोहन को खिलाया । एक एक गरम रोटी ले कर जब रमा आती तो डा0 जगमोहन उस के ब्लाउज के कट गले से झाँकते कटीले आमों और मटकते हुए भारी चूतड देख देख कर निहाल हो रहा था और उस की लूंगी मैं उस का लण्ड लूंगी को तम्बू बना रहा था। रमा उस तम्बू को देख रही थी और रोटी देते वक्त अपने बड़े बड़े कटीले आमों से स्तनों को डा0 जगमोहन के और पास ले जाती थी। जिस से डा0 जगमोहन के अन्दर की आग और ज्यादा भड़क जाए।
खाना खा कर दोनों थोड़ी देर ड्राइंग रूम मैं सोफे पर बैठे। डा0 जगमोहन ने वी सी आर पर एक मस्त पिक्चर लगा दी। रमा देख रही थी के जेठ जी कितने रंगीले हो रहे हैं। जब सोने जाने लगे तब डा0 जगमोहन ने रमा को बोला गरमी बहुत है तुम भी इसी(अपने) कमरे में सो जाओ क्यूँ के एक ही कमरे में ऐसी था । रमा डा0 जगमोहन के डबल बेड पर ही सोने को भी तैयार हो गयी। लाईट बुझा दी गयी और दोनों सोने का व्यर्थ अभिनय करने लगे क्यूँकि दोनों को अभी बकाया काम पूरा करना था। पहल डा0 जगमोहन की तरफ़ से हुयी । उस ने हाथ बढ़ा कर रमा के चूतडों पर रख दिया। रमा न हिली न और कोई हरकत करी।
रमा तो घर से चुदने के लिए ही निकली थी , इसलिए उस ने कोइ विरोध नही दिखाया और चुपचाप पड़ी रही। रमा को यह भी नही समझ आया की सेक्स के इस अचानक हुए हमले मैं वह क्या करे। वह चुपचाप पड़ी रही और डा0 जगमोहन के अगले कदम इंतज़ार करती रही ! डा0 जगमोहन रमा की तरफ़ से कोई विरोध ना देख कर रमा के पास खिसक आया और अपना लण्ड उसके चूतड़ों से सटा दिया उसकी बगलों से हाथ डालकर उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्लाउज के ऊपर से थाम कर दबाने लगा। जब उसने महसूस किया कि रमा के निपल खड़े हो गये हैं तो उसने ब्लाउज उस के हाथो ने पहले रमा के बलाउज के बटन खोले और फ़िर ब्रा के हुक खोलकर रमा के पपीते जैसे स्तनों को आज़ाद किया। और उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ नंगी करके सहलाने दबाने लगा।
डा0 जगमोहन बायें हाथ से रमा की साड़ी ऊपर सरका कर उस की जांघों पर हाथ फिराने लगा । अब डा0 जगमोहन के सधे हुए हाथ रमा की चूत की तरफ़ बढ़ रहे थे। जल्दी ही डा0 जगमोहन की उन्ग्लियाँ रमा की फ़ूली हुई पावरोटी सी चूत पर चल रहीं थी और रमा की चूत गीली होने लगी थी । डा0 जगमोहन रमा की झांटों से खेल रहा था और उस के चूत के मोटे मोटे होठो को सहला रहा था ! डा0 जगमोहन की अनुभवी उन्ग्लिआं रमा के पुत्तियों को छेड रही थी। जल्दी ही रमा की चूत बूरी तरह पनिया के भीग गयी। रमा की चूत से निकलता पानी डा0 जगमोहन जैसे अनुभवी चोदु को बता रहा था की उस की प्यारी भैहो(छोटे भाई की पत्नी) अब चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार है। डा0 जगमोहन ने लुंगी मैं से अपना दस इंच लंबा मूसल निकाला और रमा के बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ों पर फिराने लगा। दो साल से डा0 जगमोहन का लण्ड ने इतनी नरम जगहों को नहीं छुआ था इधर उस का लण्ड सिर्फ़ बिस्तर से या हाथ से रगड़ा जाता था । आज रमा के चिकने गुदगुदे चूतड़ों का स्पर्श पा कर लण्ड मस्त हो सांप की तरह फ़ुफ़कार रहा था ! जैसे जैसे डा0 जगमोहन की मस्ती बढती गयी उस का लण्ड रमा के चूतड़ों के नीचे से उसकी चूत की तरफ़ सांप की तरह फ़ैलता बढ़ता चला जा रहा था। डा0 जगमोहन ने अपने लण्ड को काफी देर रमा की चूत पर रगड़ा। डा0 जगमोहन चुदाई के खेल का पुराना खिलाडी था । उस ने अपनी दो सालिओं समेत कई लड़किओं और औरतों की चूत को पेला था । रमा के साथ डा0 जगमोहन को अपने लंबे लण्ड का पूरा फायदा मिल रहा था । डा0 जगमोहन का दस इंच लंबा हलव्वी लण्ड रमा के मोटे चूतड़ों के बीच की दरार पार कर के उस की जांघो के बीच से होते हुए रस छोड़ती हुयी चूत के होंठो से सटा हुआ था और अभी भी आधी से ज्यादा लम्बाई बाहर बाकी थी । अभी तक रमा की तरफ़ से कोई हरकत नही हुई थी ! रमा को समझ में नहीं आ रहा था की पीछे से हुये इस हमले में वो क्या करे ?
चुदाई के लिए मना करने की उस की कोई इच्छा भी नही थी और चूत के लिए उतावले डा0 जगमोहन ने उस को सेक्स के इस खेल में शामिल होने का कोई मौका नही दिया था ! वैसे रमा को कोई जल्दी नहीं थी क्यूँकि उस मालुम था के अगले दिनों में उसको अपनी भाँति भांति से चुदवाने की कला दिखाने का पूरा मौका मिलेगा । पर जब डा0 जगमोहन की मंझी हुयी उन्ग्लियाँ उस की चूत पर चल रही थी तब उसे यह डर जरूर लग रहा था कि वह जल्दी ही अपने शरीर पर ज्यादा देर वश नहीं रख पायेगी क्यूँ के सेक्स के अन्तिम चरण मैं हम दोनों बहनें रंडी या जानवर की तरह बन जाती हैं। अगर डा0 जगमोहन थोड़ी देर और अपनी काम क्रीडा चलाता तो रमा उस स्थिति में आकर डा0 जगमोहन पर चढ़ बैठती। मगर डा0 जगमोहन काफ़ी अरसे का उतावला था और रमा की रस छोडती चूत उसे बता ही रही थी कि अब उंगली का नहीं बल्कि उस के भुजंग जैसे लण्ड का टाईम आ चुका है। अब डा0 जगमोहन ने रमा की पावरोटी सी रसीली चूत के द्वार से लगे अपने हथौड़े जैसे सुपाड़े की रगड़ और दबाव बढ़ा दिया। जैसे जैसे डा0 जगमोहन के लण्ड का सुपाड़ा रमा की चूत के होठों पर रगड़ खा रहा था, उसकी लण्ड अन्दर लेने को तैयार चूत मुँह खोलती होती जा रही थी। चूत खूब रस फेंक रही थी और चूत के होंठ खुलते धीरे धीरे ऐसी हालत आ गयी की डा0 जगमोहन को अपना लण्ड चूत में डालने के लिए जरा सा भी ज़ोर नही लगाना पडा और डा0 जगमोहन का लण्ड रमा की चूत मै ऐसे घुसने लगा जैसे माखन मै छुरी आराम से चली जारही हो ।जब लण्ड ने रमा की चूत मै प्रवेश किया तब डा0 जगमोहन अपने हाथो का इस्तेमाल रमा के भारी चूतड़ों और भारी बड़े बड़े भाटे से स्तनों को दबोचने पर करने लगा । वह एक तरफ़ रमा की चूत मै धक्के दे रहा था । दूसरी तरफ़ पागलों की तरह उस के बड़े बड़े भाटे से स्तनों को दबोचकर मसल रहा था। रमा जितने बड़े स्तनों वाली औरत उसने आज तक नहीं चोदी थी और उस ने बरसों से रमा के चूतड़ों और बड़े बड़े भाटे से स्तनों को देख देख कर कितने ही सपने दिल मैं पाले थे और आज उस सब को साकार कर लेना चाहता था। अब रमा पर दुहरा हमला हो रहा था उस की चूत मै डा0 जगमोहन का लण्ड मूसल की तरह अन्दर बाहर हो रहा था और उस के निप्पल और बड़े बड़े भाटे से स्तन बुरी तरह मसाले जा रहे थे।
रमा इससे भी बहुत तेज सेक्स के हमले झेल ने की आदी थी। उस ने एक ही बिस्तर पर दो दो जानवरों के हमले झेले थे। इस लिए इस सेक्स का मजा आराम से लेट कर ले रही थी। कमरे मै अब बस फ़च फ़च फ़च फ़च और बेड की चरमराहट की आवाजे थी मगर ना डा0 जगमोहन को और ना रमा को उन आवाजो का ध्यान था। डा0 जगमोहन अपनी बीवी के मरने के बाद से लगा ब्रह्मचर्य एक मस्त चूत की धुआंधार चुदाई से तोड़ रहा था और रमा जिस काम के दिल्ली आयी थी उस को पूरा होता देख कर मस्त थी और उस की चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ डा0 जगमोहन को मूसल उस की मस्ती को बढ़ा दे रहा था।
जैसे जैसे रमा की मस्ती बढ़ती जा रही थी उस के चूतड डा0 जगमोहन के धक्कों के साथ साथ हिलने लगे धीरे धीरे दोनों सेक्स की उस अवस्था पर पहुँच रहे थे जहाँ दिल और दिमाग पर से कंट्रोल समाप्त हो जाता है। रमा तो पहले ही उस अवस्था पार गयी थी । उस ने डा0 जगमोहन को लण्ड को ज्यादा से ज्यादा मजा लेने के लिए लण्ड को पकड़ कर चूत के उन हिस्सों पार दबाना शुरू कर दिया जहाँ उस के काम अंकल विराजते थे। रमा की इन हरकतों से डा0 जगमोहन को पूरा विस्वास हो गया के उस ने रमा के बारे मैं जो सुना था वह पूरा सच है और अब उस को एक ऐसी मस्त चूत मिल गयी है जिस को वह जिंदगी भर चोद सकता है। फ़िर उस के अन्दर का जानवर और भी जाग गया और उसने सब कुछ भूल कर रमा चित किया । रमा ने अपनी मोटी मोटी जाँघें फ़ैला कर हवा मे उठा दीं और पहली बार मुँह खोला-
“आओ जगमोहन भाई हम दो अकेले प्राणी अपना अकेलापन बांट लें। डालो पूरा अन्दर और इत्मिनान से जम के चोदो अपनी भैहो को क्योंकि तेरे भाई को तो नौकरी से ही फ़ुरसत नहीं ।” डा0 जगमोहन ने उसके ऊपर चढ़ कर अपना हलव्वी लण्ड का सुपाड़ा रमा की इतनी देर से चुदने के कारण खुले चूत के होठों पर रखा और एक ही बार में फ़िर से पूरा ठांस दिया । अब डा0 जगमोहन को दस इंच को मूसल रमा की बच्चेदानी की गहराइयों में उतर रहा था । कमरे में जैसे ही एक फ़च की आवाज होती डा0 जगमोहन का सुपाड़ा रमा की चूत की जड़ से जा टकराता और एक मीठा सा दर्द रमा के शरीर मैं समा जाता । अब तक रमा की इन गहराईओं मैं सिर्फ पाण्डे जी का लण्ड ही उतर सका था। दूसरे मर्दों के लण्ड यहाँ से बाहर ही बाहर रहे थे। अब रमा ने अपनी टांगों से डा0 जगमोहन के धड़ को लपेट लिया और उस की संगमरमरी बाहें डा0 जगमोहन गले में लपेट रही थी से रमा के मोटे बड़े बड़े भाटे से स्तन अब डा0 जगमोहन की छाती से चिपक गए थे और डा0 जगमोहन की जीभ रमा के मुंह में घुस कर रमा की जीभ से अपनी मुहब्बत का इज़हार कर रही थी। रमा भी इस प्यार के इज़हार मैं पीछे नहीं थी। उसके नाखून पीठ में गड़ रहे थे। रमा अब जिंदगी भर इस जग्ग्गु (डा0 जगमोहन) की बन कर रहने को तैयार थी। ठीक उसी वक वह चुदाइ की चरम सीमा पार कर गयी और उस के नाखून डा0 जगमोहन की पीठ में और गहरे गड़ गये । उसके मुंह से निकला -
“ अम्म्म्मआह, अम्म्म्मआह।”
उसी समय डा0 जगमोहन के लण्ड ने रमा की चूत में पिचकारी छोड़ी और वो रमा के मखमली बदन पर छा गया। जब सांसो का तूफ़ान रुका तब रमा ने पहले अपने पेटीकोट से फ़िर डा0 जगमोहन की लूंगी से अपनी चूत और डा0 जगमोहन के लण्ड को साफ़ किया और डा0 जगमोहन की तरफ़ करवट लेकर लेट गई।
डा0 जगमोहन –“ अब पेट का दर्द कैसा है रमा?”
डा0 जगमोहन के लण्ड को अपनी जाँघों के बीच में दबा कर डा0 जगमोहन को अपनी बाहों का हार पहना कर बोली –
“आपके इस इन्जक्शन से बहुत आराम मिला आपने तो बिलकुल ठीक कर दिया जगमोहन भाई।”
डा0 जगमोहन(लण्ड उसकी केले के तने सी मोटी संगमरमरी जाँघों के बीच आगे पीछे रगड़ते हुए) –
“पर इस इन्जक्शन की खुराक लगातार लेनी पड़ती है?”
रमा –“अब जितने चाहो इन्जक्शन लगाओ जगमोहन भाई। अब तो मैं यहीं रह कर आपसे अपना इलाज करवाऊंगी।”
डा0 जगमोहन(उसकी बड़ी गुदाज चूँचियों के ऊपर लगे काले अंगूर जैसे निपल होठों और दाँतों से चुभलाते हुए) –और वहाँ तेरे चन्दू(चन्द्रमोहन) का क्या होगा ?”
रमा (सिसकारियाँ भरते हुए) –“ इस्स्स्स आह उनका जब मन करे यहँ आ के मिल जायेंगें, एक रोज को तो आते हैं यहाँ आये तो मैं हूँ ही अगर वहाँ जाये तो सीमा चुदवा लेगी उसे भी मेरी तरह कुछ फ़रक नही पड़ता।”
डा0 जगमोहन(उसके बड़े बड़े चूतड़ों पर हाथ फ़ेर दबोचते हुए) –
अच्छा तो क्या मुझको भी उसकी चूत मिल सकती हैं?”
रमा –“उई माँ क्यों नहीं किसी दिन किसी बहाने बुलवालो फ़िर देखो हम दोनों बहनों का कमाल ।”
इतनी देर से रमा की बड़ी बड़ी गुदाज चूँचियों के ऊपर लगे काले अंगूर जैसे निपल होठों और दाँतों से चुभलाते हुए उसकी केले के तने सी मोटी संगमरमरी जाँघों के बीच आगे पीछे लण्ड रगड़ने से अबतक डा0 जगमोहन का लण्ड फ़िर से टन्ना गया था सो उन्होंने उसकी जाँघों को फ़ैला उसकी पाव रोटी सी चूत के मुहाने पर सुपाड़ा रगड़ते हुए कहा –
“ये ठीक है किसी दिन ऐसा ही करते हैं।”
रमा सिसकारियाँ भरते हुए आखें बन्द कर उस दिन के बारे में सोचने लगी जब दोनों बहने मिल के डा0 जगमोहन का लण्ड और माल हड़प कर पाया करेंगी।
…………………………………………..
ट्रेन का सफर था और मुझे अकेले ही जाना था इसलिए मेरे पति ने प्रथम श्रेणी एसी में मेरे लिए रिज़र्वेशन करवा दिया था.
रात को दस बजे की ट्रेन थी. मुझे मेरे पति स्टेशन तक छोड़ने के लिए आए और मुझे मेरे कूपे में बिठा कर टिकेट चेकर से मिलने चले गए. मेरा कूपा केवल दो सीटों वाला था.
अभी तक दूसरी सीट पर कोई भी पेसेंजेर नहीं आया था. मैंने अपने सामान सेट किया और अपने पति की इंतज़ार करने लगी. थोडी ही देर में मेरे पति वापस आ गए. उनके साथ ब्लैके कोट में एक आदमी भी आया था. वो टिकेट चेकर था. उसके उम्र करीब छब्बीस साल की थी, रंग गोरा और करीब पौने छह फीट लंबा हेंडसम नवयुवके लग रहा था. मेरे पति ने उससे मेरा परिचय करवाया. वो आदमी केवल देखने में ही हेंडसम नहीं था बल्कि बातचीत करने में भी शरीफ लग रहा था.
उसने मुझसे कहा
' चिंता मत कीजिये मैडम मैं इसी कोच में हूँ कोई भी परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा मैं हाज़िर हो जाऊंगा. आपके साथ वाली बर्थ खाली है अगर कोई पेसेंजर आया भी तो कोई महिला ही आएगी इसलिए आप निश्चिंत हो कर सो सकती हैं.'
उसकी बातों से मुझे और मेरे साथ साथ मेरे पति को भी तसल्ली हो गई. ट्रेन चलने वाली थी इसलिए मेरे पति ट्रेन से नीचे उतर गए. उसी समय ट्रेन चल दी. मैंने अपने पति को खिड़की में से बाय किया और फिर अपने सीट पर आराम से बैठ गई. दोस्तों मुझे आज अपने पति से दूर जाने में बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. इसका कारण ये था कि मेरी मौसी हवारी ख़तम हुए अभी एक ही दिन बीता था और जैसा कि आप सब लोग जानते हैं मेरी जैसी चुदक्कड़ औरत की ऐसे दिनों में चूत की प्यास कितनी बढ़ जाती है. मैं अपने पति से जी भर कर चुदवाना चाहती थी लेकिन अचानक मुझे बाहर जाना पड़ रहा था. इसी कारण से मैं मन ही मन दुखी थी.
तभी कूपे में वो हेंडसम टीटी आ गया. उसने कहा
'मैडम आप गेट बंद कर लीजिये मैं कुछ देर में आता हूँ तब आपका टिकेट चेके कर लूँगा.'
उसके जाने के बाद मैंने सोचा की चलो कपड़े बदल लेती हूँ. क्योंकि रात भर का सफर था और मुझे साड़ी में नींद नहीं आती. ये सोच कर मैंने गाउन निकालने के लिए अपना सूटकस खोला तो सर पकड़ लिया. क्योंकि मैं जल्दबाजी में गाउन के ऊपर वाला नेट का पीस तो ले
आई थी लेकिन अन्दर पहनने वाला हिस्सा घर पर ही रह गया था. जो हिस्सा मैं लाई थी वो पूरा जालीदार था जिसमें से सब कुछ दीखता था.
करीब दो मिनट बैठने के बाद मेरी अन्तर्वासना ने मुझे एक नया निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया. मैंने सोचा कि क्यों आज इस हेंडसम नौजवान से चुदाई का मज़ा लिया जाए. ये बात दिमौसी ग में आते ही मैंने वो जालीदार केवर निकाल लिया और ज़ल्दी से अपनी साड़ी, ब्लाउज़ और पेटीकोट निकाल दिए. अब मेरे बदन पर रेड कल र की पेंटी और ब्रा थी. उसके ऊपर मैंने सफ़ेद रंग का जालीदार गाउन पहन लिया. वैसे उसको पहनने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि उसमे से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था और उससे ज्यादा मज़ेदार बात ये थी कि अन्दर पहनी हुई ब्रा और पेंटी भी जालीदार थी. इसलिए बाहर से ही मेरे निपल तक नज़र आ रहे थे. ख़ुद को आईने में देखकर मैं ख़ुद ही गरम हो गई. साड़ी तैयारी करने के बाद मैं अपनी सीट पर लेट गई और मैगज़ीन पढ़ते हुए टीटी का इंतजार करने लगी. मुझे इंतज़ार करते करते पाँच मिनट बीत गए तो मैंने सोचा कि क्यूँ न पहले खाना खाकर फ्री हो लूँ ये सोच कर मैंने अपना खाना निकाल लिया जो मैं घर से साथ लाई थी. खाना शुरू करते हुए मैंने सोचा कि खाने के बीच मैं टीटी टिकेट चेके करने आ गया तो बीच में उठ कर टिकेट निकालना पड़ेगा ये सोच कर मैंने अपने पर्स में रखा टिकेट निकाल लिया. टिकेट हाथ में आते ही मेरी आँखों के सामने उस टीटी का जवान बदन घूम गया और मेरे अन्दर की सेक्सी औरत ने अपना काम करना शुरू कर दिया. मैंने पहले ही जालीदार कपड़े पहने थे जिसमे से मेरा पूरा बदन दिखाई पड़ रहा था और फिर मैंने अपना टिकेट भी अपने बड़े बड़े स्तनों के अन्दर ब्रा के बीच मैं डाल लिया. अब वो टिकेट दूर से ही मेरे बायें उरोज के निप्पल के पास दिखाई दे रहा था.
पूरी तैयारी के बाद मैं खाना खाने लगी. तभी मेरे कूपे का गेट खुला और टीटी अन्दर आ गया. अन्दर आते ही मुझे पारदर्शी केपडों में देखकर बेचारे को पसीना आ गया. वह बिल्कुल सकेपका गया और इधर उधर देखने लगा. मैंने उसका होंसला बढ़ाने के लिए उसकी तरफ़
मुस्कुरा कर देखा और कहा 'आईये टीटी साहब बैठिये, खाना खायेंगे आप ?' मेरी बात सुनते ही वह बोला 'न.न. नहीं मैडम आप लीजिये मैं तो बस आपका टिकेट टिक करने आया था. कोई बात नहीं मैं कुछ देर बाद आ जाऊंगा आप आराम से खा लीजिये.' मैंने उसे सामने वाली
सीट पर बैठने का इशारा करते हुए कहा 'नहीं नहीं!! आप बैठो ना, मैं अभी आप को टिकेट दिखाती हूँ.'
यह कह कर मैंने अपना खाने का डिब्बा नीचे रख दिया और टिकेट ढूँढने का नाटके करने लगी. ये सब करते हुए मैं बार बार नीचे झुक रही थी ताकि वो मेरी छातियाँ जी भर के देख ले. मेरे बड़े बड़े दूधिया उरोज किसी को भी अपना दीवाना बना सकते हैं. ये साड़ी हरकेतें करते हुए मैं ये इंतज़ार कर रही थी की वो ख़ुद मेरे बायें उरोज में रखे हुए टिकेट को देख ले और हुआ भी ऐसा ही उसने मेरे सीने की और इशारा करते हुए कहा
' मैडम लगता है आपने टिकेट अपने ब्लाउज़ में रख लिया है.'
मैंने अनजान बनते हुए अपने गले की तरफ़ देखा और हँसते हुए कहा ' कहाँ यार...मैंने ब्लाउज़ पहना ही कहाँ है ये तो ब्रा में रखा हुआ है.' बोलते बोलते मैंने अपने खाना लगे हुए हाथों से उसको निकालने की नाकाम कोशिश की और इधर उधर से ऊँगली डाल कर टिकेट पकेड़ने की कोशिश करते हुए उसे अपने चूचियाँ के दर्शन करवाती रही.
जब मेरी ऊँगली से टकरा कर टिकेट और अन्दर घुस गया तो मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा
'सॉरी..यार अब तो तुझे को ही मेहनत करनी होगी.' मेरी बात सुनते ही वो उठकर मेरे पास आ गया और मेरे गाउन में हाथ डालता हुआ बोला 'क्यों नहीं मैडम मैं ख़ुद निकाल लूँगा!!'
ये बात कहते हुए वो बड़ी अदा से मुस्कुरा उठा था. उसने डरते डरते मेरे गाउन के अन्दर हाथ डाला और टिकेट पकड़कर बाहर खीचने की कोशिश करने लगा. लेकिन टिकेट भी मेरा पूरा साथ दे रहा था. वो टिकेट उसकी ऊँगली से टकरा कर बिल्कुल मेरे निप्पल के ऊपर आ गया
जिसे अब ब्रा में हाथ डाल कर ही निकाला जा सकता था. वो बेचारा मेरी ब्रा में हाथ डालने में डर रहा था इसलिए मैंने उसको इशारा किया और
बोली 'हाँ.हाँ.. तू ब्रा के अन्दर हाथ डाल कर निकाल ले न प्लीज़ !!' मेरी बात सुनते ही उसके होंसले बुलंद हो गए और उसने अपना पूरा हाथ मेरी ब्रा के अन्दर घुसा दिया.
हाथ अन्दर डालते ही उसको टिकेट तो मिल गया लेकिन साथ में वो भी मिल गया जिसके लिए नौजवान पागल हो जाया करते हैं. मेरी एक चूची उसके हाथ में आते ही वो बदामा श हो गया और उसने मेरी चूची को अपने हाथ से सहलाना और मसलना शुरू कर किया. मैं तो यही चाहती थी इसलिए मैं उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगी. मुझे मुस्कुराता
देख कर वो खुश हो गया और ज़ोर ज़ोर से मेरी चूची दबा डाली. उसके बाद उसने टिकेट निकाल कर चेके किया और मेरी तरफ़ आँख मौसी रते हुए बोला 'आप खाना खा लीजिये..मैं बाकी सवारियों को चेके कर के अभी आता हूँ.'
मैंने भी उसको खुला निमंत्रण देते हुए कहा 'ज़ल्दी आना..!!'
वो मुस्कुराता हुआ ज़ल्दी से बाहर निकल गया.
मैंने भी ज़ल्दी ज़ल्दी अपना खाना खाया और बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगी. जितनी ज़ल्दी मुझे थी उतनी ही उसे भी थी इसीलिए वो भी पाँच-सात मिनट में ही वापस आ गया. अन्दर आते ही उसने कूप अन्दर से लाके कर लिया और मेरे करीब आ कर मुझे अपनी सुडौल बाँहों में भरता हुआ बोला 'आओ..मैडम..आज आपको फर्स्ट एसी का पूरा मज़ा
दिलवाऊंगा'.
मैंने भी उसकी गर्दन में हाथ डालते हुए उसके होठों पर अपने होठ रख दिए. अगले ही पल वो मेरे नीचे वाला होंठ चूस रहा था और मैं उसके ऊपर वाले होंठ को चूसने लगी. इस चूमौसी चाटी से वासना की आग भड़के उठी थी और ना जाने केब मेरी जीभ उसके मुंह में चली गई और वो मेरी जीभ को बड़े प्यार से चूसने लगा. उसके हाथ भी अब हरकत करने लगे थे और उसका दायाँ हाथ मेरी बायीं चूची को दबा रहा था. मुझे मज़ा आने लगा था और वो टी टी भी मस्त हो गया था. करीब दो-तीन मिनट की चूमौसी चाटी के बाद वो अलग हुआ और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला 'मैडम, एक प्रॉब्लम है !'
मैंने पूछा 'क्यूँ क्या हुआ ?'
'मैडम मेरे साथ मेरा एक साथी और है इसी कोच में, अगर मैं उसको ज्यादा देर दिखाई नहीं दूँगा तो वो मुझे ढूँढता हुआ यहाँ आ जाएगा.' वो बोला। 'अगर आप इजाज़त दें तो क्या उसको भी बुला....'.
उसके बात सुनते ही मेरी खुशी ये सोचकर दोगुनी हो गई चलो आज
बहुत दिनों बाद एक साथ दो लण्ड मिलने वाले हैं. इसलिए मैंने तुंरत अहसान सा जाताते हुए जवाब दिया ' अच्छा चलो.. बुला लो उसको भी लेकिन ध्यान रखना किसी और को पता नहीं चलना चाहिए. जाओ जल्दी
से बुला लाओ.'
मेरी बात सुनते ही वो दरवाजा खोल कर बाहर चला गया और तीन-चार मिनट बाद ही वापस आ गया. उसके साथ एक आदमी और था. ये नया बन्दा करीब पैंतीस साल की उम्र का था. रंग काला लेकिन शकल सूरत से ठीक ठाक था बस थोड़ा मोटा ज़्यादा था. मैंने मन ही मन सोचा
चलो दो लण्ड से तो मेरी प्यास बुझ ही जायेगी भले ही दोनों में ताकेत कम ही क्यों ना हो.
उन दोनों ने अन्दर आते ही कूपे को अन्दर से लाके कर लिया और दोनों मेरे पास आ कर खड़े हो गए. पुराने वाले टीटी जिसका नाम मुझे अभी तक पता नहीं था उसने अपने साथी से मुझे मिलवाया 'मैडम ये है मेरा दोस्त वी राजू.'
मैंने खड़े होते हुए उससे हाथ मिलाया और पुराने वाले से बोली 'ये तो ठीक है पर तुमने अभी तक अपना नाम तो बताया ही नहीं.'
मेरी बात पर मुस्कुराते हुए वो बोला 'मैडम मुझे दीपके कहते हैं. वैसे आप मुझे दीपू भी बुला सकती हो.'
मैंने उन दोनों से कहा 'दीपू!! तुम्हारा नाम तो अच्छा है लेकिन यार तुम लोगों ने ये मैडम मैडम क्या लगा रखा है. मेरा नाम प्रतिभा है. वैसे तुम लोग मुझे किसी भी सेक्सी नाम से बुला सकते हो.'
आपस में परिचय पूरा होने के बाद हम लोग थोड़ा खुल गए थे. लेकिन वो दोनों कुछ शरमौसी रहे थे इसलिए पहल मुझे ही करनी पड़ी और मैंने दीपू के गले में हाथ डाल कर उसके होंठ चूसना चालू कर दिए. दीपू भी मेरी कमर को अपने हाथों से पकेड़ते हुए मुझे चिपका कर चूमने लगा. उसका साथी राजू अभी तक खड़ा हुआ था. उस बेचारे की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कुछ कर सके.
उसको अपने करीब बुलाते हुए मैंने ही उससे कहा 'तू क्या लाइव शो देखने आया है।”
ऐसा कहकर मैं उसकी पैन्ट के ऊपर से उसके लण्ड पर हाथ फेरना
चालू कर दिया. अब कभी दीपू मुझे चूमता तो कभी राजू मेरी गर्दन पर अपने दांत गड़ा देता. कुछ देर तक हम लोग खड़े खड़े ही चूमौसी चाटी करते रहे लगे. उन दोनों को उकेसाने के लिए मैंने उन दोनों के लंडों की नाप तौल शुरू कर दी थी. जैसे ही वो दोनों अपने रंग में आए तो उन्होंने मुझे उठा कर सीट पर लेटा दिया और फिर अपना अपना काम बाँट लिया. दीपू मेरे होठों को चूसते हुए मेरी छातियों से खेलने लगा और उधर राजू ने मेरी पेंटी निकाल कर चूत का रास्ता ढूँढ लिया. दीपू मेरी एक एक चूची को बारी बारी से दबा और मसल रहा था साथ में मेरे मुंह में अपनी स्वादिष्ट जीभ भी डाल चुका था. नीचे राजू चूत के आस पास और नीचे वाले होठों को चूसने में मगन था. मुझे ज़न्नत का मिलना चालू हो गया था लेकिन अभी तक उन दोनों ने अपने कपड़े नहीं
उतारे थे इसलिए मैं अभी तक अपने असली हीरो के दर्शन नहीं कर पायी थी. मैंने उन दोनों को रोकते हुए कहा 'रुको..मेरे यारों..केवल मेरे ही कपड़े उतारोगे तो कैसे काम चलेगा तुम लोग भी तो अपने अपने हथियार निकालो.'
मेरी बात सुनकर राजू ने अपने कपड़े खोलना चालू कर दिया लेकिन दीपू मेरी चूत का दीवाना हो गया था और चूत छोड़ने के लिए राजी नहीं था. मुझे ज़बरदस्ती उसका मुंह हटाना पड़ा तो वो बोला 'मेरी जान पहले तुम भी अपने सारे कपड़े निकालो!'
'क्यूँ नहीं जानू मैं भी निकालती हूँ तभी तो असली मज़ा आएगा..!'
मैंने जवाब दिया और अपने बदन से गाउन और ब्रा, पेंटी निकाल कर एक तरफ़ रख दी.इसी बीच राजू अपने कपड़े खोल चुका था. वोह अपना लण्ड हाथ में लेकर मेरे मुंह की तरफ़ बड़ा. उसके लण्ड की शेप बड़ी अजीब थी. उसके लण्ड का रंग बिल्कुल स्याह काला था और लम्बाई करीब छः इंच थी लेकिन मोटाई काफी ज्यादा थी करीब तीन इंच मोटा था.
मैं उसके लण्ड की बनावट देखते ही सोचने लगी कि ये तो मेरी भारी चूतड़ के लिए बिल्कुल फिट रहेगा. ये सोचते हुए मैं उसका मोटा लण्ड अपने हाथ में ले सहलाने लगी लेकिन मोटाई इतनी ज्यादा थी कि मेरे हाथ में आ रहा था. मुझे लण्ड सहलाने में मज़ा आ रहा था इसी बीच में दीपू ने भी अपने कपड़े खोल दिए और मेरे पास आ कर मुझे लण्ड सहलाते हुए देखने लगा. मैंने राजू का लण्ड एक हाथ में और दीपू का लण्ड दूसरे हाथ में ले थाम लिया. उसका लण्ड मेरी उम्मीद से ज्यादा लंबा था. करीब सात इंच लंबा और दो इंच मोटा बिल्कुल गोरा बहुत खूबसूरत लौड़ा था दीपू का. मैंने ज़ल्दी से ट्रेन की सीट पर अधलेटते हुए दीपू का लण्ड अपने उरोजों के बीच दबा लिया. उधर राजू मेरी टांगों के बीच में बैठकर मेरी चूत चाटने लगा.उसने मेरी चूत में अपने पूरी जीभ डाल दी. अचानक जीभ अन्दर डालने से मेरी सिसकारी निकल गई. 'आह..औ..आ..ह.ह..मेरे..पहलवान...मज़ा आ गया...ऐसे ही चोदो
आ.ह..आ.अ..हह..मुझे..जीभ सी...से.मेरी
दाना....रगड़ो..उधर...हाँ...ऐसे..ही...करते..रहो...शाबाश...राजू..वाह....' मैं मस्त होने लगी थी.
मैंने फ़िर एक बार दीपू का पूरा लण्ड अपनी बड़ी बड़ी चूचियों के बीच दबाकर अन्दर बाहर करते हुए अपनी चूचियों की चुदाई करवाने लगी. राजू अपनी खुरदरी जीभ से मेरी चिकनी चूत चाट रहा था और ट्रेन अपनी फुल स्पीड पर चल रही थी.
मिली जुली आवाजें आ रहीं थीं
'धडके..धडके..खटाके..ख़त..चड़प..चाप..औयो..औ..थाधके.......' दीपू के मुंह से भी आवाजें आने लगीं थीं.
'आह...ये...या.इस ...वाह...मेरी...जान...चूस...चूसले..ले...और अन्दर...और आदर ले...भोसड़ी...की..और जोर..से..ले..और ले..ले...वाह...' अब उसने मेरी चूचियों में धक्के मौसी रना चालू कर दिया था. मुझे लगा कि उसे मज़ा आ रहा है तो कुछ देर और करने देती हूँ क्यूँकि उधर मुझे भी चूत चटवाने में मज़ा आ रहा था. लेकिन अचानक दीपू ने मेरी चूचियों पर धक्कों की स्पीड बढ़ा दी और मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ पकड़कर अपना
पूरा लण्ड उनमें धांसकर अन्दर बाहर करते हुए ज़ोर से चिल्लाने लगा 'आ.....ह....
.ह....आ...ले...कॉम...ओं...नं....मेरी...जान...ले..ले...पूरा....ले..मौसी.....चोद....ले....' अचानक पिचकारी चल गई. मैं समझ गई एक तो बिना चूत का स्वाद चखे ही चल बसा. झड़ने के बाद उसने अपने लण्ड बाहर निकाल लिया और हंसने लगा. उधर शायद राजू भी चूत चूस चूस कर थक गया था इसलिए वो भी उठ कर खड़ा हो गया और मेरे मुंह के पास लण्ड ला कर बोला 'प्लीज़ जान मेरा भी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों में दबाओ न..' मैंने हँसते हुए उससे कहा 'तुम दोनों अगर बिना चोदे ही उलटी करके चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी..'
'नहीं मेरी जान, मैं तो तुम्हारी चूत में ही पानी डालूँगा चिंता मत करो.' राजू ने जवाब दिया.
मैंने राजू का लण्ड अपनी बड़ी बड़ी चूचियों के बीच दबाकर अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया. थोडी देर तक लण्ड अन्दर बाहर केर्ने के बाद उसने अपना लण्ड निकाल लिया और मुझसे बोला. 'चल..मेरी रानी..अब..कुतिया..बन जा...आज तेरी चूत का बाजा बजाऊंगा.' मैंने फ़ौरन उसका आदेश माना और उलटी हो कर चूत को उसकी तरफ़ कर दिया. उसने भी आसन लगा कर मेरी चूत की छेद पर लण्ड लगाया और एक केरारा धक्का दिया.
' आ.इ.ई.गई....आ..आ गया...आ.गया..मेरे राजा..पूरा..अन्दर..आ..गया..' मैं चिल्लाने लगी.
हमारी चुदाई चालू हो गई थी और उधर इस बीच दीपू ने ज़ल्दी ज़ल्दी अपने कपड़े पहन लिए थे. जब मैंने दीपू को कपड़े पहने हुए देखा तो चुदवाते हुए ही बोली
'क्या..आ.अ.हुआ..दीपू...तुम..नहीं..आ.आ..हह..डालोगे...क्या..आ..हह...एक...ही..बार...में...ठंडा..पड़.आ.ह.. ह..गया...क्या ?'
दीपू ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और मुझे चोद रहे राजू के कान में आ कर कुछ बोला और कूपे से बाहर निकल गया. मुझे चुदाई में बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और ट्रेन के हिलने की गति के साथ ही हिल हिल कर लण्ड लेने लगी. अब राजू की धक्को की स्पीड बढ़ने लगी थी और ट्रेन के हिलने की वजह से मुझे भी दोगुना मज़ा आ रहा था.
राजू अब बड़बड़ाने लगा 'या..ले...मेरी....जान..ले... पूरा...ले.....ले...
मेरा..लण्ड..तेरी...चूत फाड़ डालूँगा...बहन...चोद...ले..'
मुझे भी उसकी बातें सुन सुन आकर जोश आने लगा था इसलिए मैं भी बोलने लगी,'चल..और...ज़ोर..से..दे...
हाँ..कर...मेरे..राजा.. कर..ले... च.चल..अगर..तेरे..लण्ड..में..दम..है ..तो..
मेरी..भारी चूतड़...में..डाल.. डाल..न..गांडू...भारी चूतड़..में...डाल...' मेरी बात सुन कर उसने चूत में से अपना लण्ड निकाल लिया और मेरे गाण्ड के छेद पर लगाने लगा. मैंने भी अपनी पोज़िशन ठीक की और भारी चूतड़ का छेद ऊपर की तरफ़ निकाल कर झुक गई और बोली 'चल.. आ.जा.ज़ल्दी..... डाल..दे... भारी चूतड़...में... धीरे....धीरे.डालना...'
राजू ने भारी चूतड़ के छेद पर निशाना लगाया और एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया लेकिन उसका लण्ड मेरी चूत के पानी से चिकेना हो रहा था इसलिए फिसल गया और नीचे चला गया. उसने दुबारा कोशिश की और इस बार पहले से भी ज़ोर से धक्का लगाया. इस बार लण्ड ने भारी चूतड़ की पटरी पकड़ ली और मेरी भारी चूतड़ को चीरता हुआ अन्दर चला गया.
और मेरी जैसी चुदक्कड़ औरत की भी चीख निकल गई 'आ....अ.अ.. आ..ईई. ई.ई.इ.ई. मार डाला मौसी दरचोद...
ऐसे...डालते..हैं..क्या.. फाड़ डाली..मेरी..भारी चूतड़.. गांडू... मुझे एक बार थोड़ा
मरवानी है... आ..ई.ई.ई...' लेकिन उसने मुझे पीछे से पकड़ रखा था इसलिए मैं उसका लण्ड निकाल नहीं पायी और उसने धक्के लगाने चालू कर दिए. वाकई उसका लण्ड गज़ब का मोटा था मुझे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उसने मेरी एक भी नहीं सुनी और धक्का लगाना चालू रखा. आठ दस धक्कों के बाद मुझे भी दर्द कम हुआ और मज़ा आने लगा. अब मैंने नीचे से हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलना चालू कर दिया था.
मेरी इच्छा हो रही थी की मेरी चूत में भी कोई चीज डाल लूँ लेकिन वो दीपू का बच्चा तो खेल बीच में ही छोड़ कर चला गया था. तभी अचानक कूपे का दरवाजा खुला और तीन आदमी एक साथ अन्दर आ गए. ट्रेन किसी बड़े स्टेशन पर रुकी हुई थी. अचानक उन लोगों के अन्दर आने से मैं चौंक गई और जल्दी से अलग होकर अपने कपड़े उठा कर अपना बदन छुपाने की कोशिश करने लगी. उन तीन लोगों के अन्दर आते ही राजू ज़ोर से चहके कर बोला 'आओ बॉस !! मैं आप लोगों का ही इंतज़ार कर रहा था. उसने ज़ल्दी से कूपे का दरवाजा अन्दर से लॉके कर लिया और मेरी तरफ़ मुड कर बोला ' चिंता मत करो मैडम ये लोग भी अपने दोस्त हैं, अभी तुम्हारी इच्छा चूत में कुछ डलवाने की हो रही थी ना इसलिए इन लोगों को बुलवाया है. चलो शुरू करते हैं.'
मुझे इस तरह से उन लोगों का अन्दर आना अच्छा नहीं लगा. मैंने नाराज होते हुए कहा
'चुप रहो तुम !! मुझे क्या तुम लोगों ने रंडी समझ रखा है. जो भी आएगा मैं उससे चुदवा लूंगी. तुम लोग अभी मेरे कूपे से बाहर चले जाओ नहीं तो मैं शोर मचा दूंगी.'
मेरे इस तरह नाराज होने से वो लोग डर गए और मुझे मनाते हुए राजू ने कहा ' नहीं मैडम ऐसा नहीं है अगर आप नहीं चाहोगी तो कुछ भी नहीं करेंगे.'
जो लोग अभी अभी अन्दर आए थे उनमें से एक ने कहा 'नहीं मैडम हमें तो दीपके ने भेजा था अगर आप को बुरा लगता है तो हम लोग बाहर चले जाते हैं. प्लीज़ आप शोर मत मचाना हमारी नौकरी चली जायेगी.'
इस तरह वो चारों ही मुझे मनाने में लग गए. मन ही मन मेरे अन्दर की चुदक्कड़ औरत सोचने लगी कि अब इन लोगों ने मुझे नंगा तो देख ही लिया है और अभी तक अपना काम भी नहीं हुआ है. सुबह तो ट्रेन से
उतर कर चले ही जाना है फ़िर ये बेचारे शरीफ़ लोग लगते हैं और कौन सा कभी दुबारा मिलने वाले हैं. चलो आज आज तो चुदाई का मजा ले ही लिया जाए. फ़िर पता नहीं केब इतने लंडों की बारात मिले. ये सोच कर मैंने उनको डराते हुए कहा 'ठीक है मैं तुम लोगों को केवल आधा घंटे का समय देती हूँ तुम लोग जल्दी जल्दी अपना काम करो और यहाँ से निकल जाओ और अब कोई और इस कूपे में नहीं आना चाहिए.'
वो चारों खुश हो गए और 'जी मैडम ! जी मैडम' करने लगे. राजू ने उन लोगों से कहा कि चलो अब मैडम का मूड दुबारा से बनाना पड़ेगा तुम लोग आगे आ जाओ'.
वो चारों मेरे करीब आ गए और दो लोगों ने मेरी एक एक बड़ी बड़ी चूचियाँ हाथों में थाम दबाना शुरू कर दिया और एक जना नीचे बैठ कर मेरी चूत में जीभ डालने लगा. राजू ने अपना लण्ड जो अब कुछ ढीला हो गया था उसे मेरे मुंह में डाल दिया. अभी उसका लण्ड पूरा टाइट नहीं हुआ
था इसलिए मेरे मुंह आराम से आ गया और मैं फिर से उसका लण्ड चूसने लगी. थोड़ी ही देर में मेरी आग फिर भड़के गई और मैं फ़िर से उसी मूड में आ गई. मैंने राजू का लण्ड तैयार करते हुए उससे कहा,'चलो राजू तुम अपना अधूरा काम पूरा करो !'
मेरी बात सुनते ही राजू हँसते हुए मेरे पीछे आ गया और बोला 'क्यों नहीं मैडम अभी लो !!'
अब सब लोगों ने अपनी अपनी पोज़िशन ले ली. मै डौगी स्टाईल में झुक गई एक जन मेरे नीचे था मैंने अपनी भारी चूतड़ नीचे झुकाते हुए उसका लण्ड अपनी चूत में डाल लिया और पीछे से राजू ने अपना लण्ड मेरी भारी चूतड़ में डाल दिया. मेरे मुंह के पास दो लोग अपने लण्ड निकाल कर खड़े हो गए. इस पोज़िशन में आने के बाद घमौसी सान चुदाई चालू हो गई. अपने सभी छेदों में लण्ड डलवाने के बाद मैं जल्दी ही अपने चरम पर पहुँच गई और मेरे मुंह से फिर ना जाने क्या क्या निकल ने लगा. 'आ..आ.ई.. आबी..अबे..हरामी... राजू...ज़ोर...से. स.ऐ.ऐ.ऐ कर फाड़ दे दे.दे. आ..ऐ.ऐ.एई.. मेरी...गा..गा..न्ड. चलो चोदो...मुझे. हराम...के..पिल्लों .. चोदो मुझे...फाड़...दो.. मेरी..चूत भी...बहुत आग..है..इसमे......'
मैं ना जाने क्या क्या बोल रही थी और मेरी बातों से वो लोग और भड़के रहे थे. अचानक राजू ने मेरी भारी चूतड़ में से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मेरे मुंह में लण्ड डाल कर खड़े आदमी से बोला 'चल अब तू आ जा बे तू डाल अब भारी चूतड़ में मैं तो झड़ने वाला हूँ.'
ये बोलता हुए राजू मेरे मुंह के पास लण्ड लाता हुए बोला 'ले मेरी जान मेरा रस पी ले मजा आ जाएगा.' मैं भी यही चाहती थी इसलिए फ़ौरन उसका लण्ड अपने मुंह में ले लिया. राजू ने दो चार धक्कों में ही अपना रस मेरे मुंह में उलट दिया.उधर जिसने मेरी चूत में अपना लण्ड डाल रखा था उसने भी नीचे से धक्के बढ़ा दिए और जल्दी ही मेरी चूत में उसके वीर्य की बाढ़ आ गई. अब दो लोग बचे थे और मेरी चूत की
आग अभी भी नहीं बुझी थी लेकिन मैं डोगी ढंग में खड़े खड़े थक गई थी इसलिए मैं सीट पर पीठ के बल लेट गई और उन बचे हुए दो लोगों से कहा' चलो अब तुम दोनों मेरी चूत में बारी बारी से अपना पानी डाल कर चलते बनो.'
पहले एक ने मेरी चूत में लण्ड डाल कर हिलाना शुरू किया. मुझे पूरा मजा जा आ रहा था. यूँ तो मैं अब तक चार पाँच बार झड़ चुकी थी लेकिन चूत में लण्ड डलवाने से होने वाली तृप्ति अभी तक नहीं हुई थी इसलिए मैं जल्दी ही अपने चरम पर पहुँच गई और नीचे लेटे लेटे ही अपने चूतड़ उछाल उछाल कर लण्ड अन्दर लेने लगी. 'आ..हा. हा.अ.अ.अ. आ.जा.. आ.जा.और अन्दर... आ.जा.चोद.. हरामी...ज़ोर..से.. चोद...आ.ह, आ,आ,,जा,'
मैं झड़ने ही वाली थी कि उससे पहले वो हरामी अपना पानी छोड़ बैठा.
मेरी चूत उसके गरम गरम पानी से भीग गई और मेरा जगन दो गुना हो गया था और मैं सोच रही थी की ये पाँच दस धक्के और मार दे तो मैं भी झड़ जाऊं. लेकिन वो ढीला लण्ड था और उसने झड़ते ही अपना लण्ड बाहर निकाल लिया. मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और
मैं बोली 'क्या..हुआ...मौसी दरचोद...चोदा..नहीं..जाता..तो लण्ड..खड़ा..करके क्यूँ आ जाते हो..चल अब तू आ जा जल्दी से चोद.'
जो आखड़ी बचा हुआ था वो मेरी गाली सुनकर भड़के गया और झपट्टा मौसी रकर मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ हाथों में दबोच अपना खड़ा लण्ड मेरी चूत पर लण्ड टिकाते हुए बोला '
ले..बहन..की..लौड़ी..अभी..तेर.चूत का भोसड़ा बनाता हूँ. अगर आज तेरी चूत नहीं फाड़ी तो मेरा नाम भी पंवार नहीं.' उसने जैसे ही अपना लण्ड मेरी चूत में डाला वैसे ही मैं समझ गई कि ये वास्तव में खिलाड़ी है. उसका लण्ड काफी मोटा और केड़के था. और फ़िर उसने बहुत तेज तेज पेलना शुरू कर दिया. मैं तो पहले ही झड़ने के करीब थी इसलिए उसका लण्ड आराम से झेल गई और चिल्लाते हुए झड़ने लगी,' हाँ..ये..बात... शाबाश...तू..ही...मर्द र्द..है..रे..फाड़..डाल...तेरे...बाप..का मौसी ल.है..और जोर..से..मैं..आ.. रही..हूँ.. मेरे..राजा... ले..मैं..आ.अ.अ. अ.अ.एई ....आ.ई.इ.इ. अ.ऐ.इ.'
और मैं झड़ गई. लेकिन उसने मेरी चूत की चुदाई बंद नहीं की और उल्टा उसके धक्के बढ़ते चले जा रहे थे. अब मेरी नस नस में दर्द महसूस हो रहा था लेकिन वो ज़ोर ज़ोर से मुझे चोदे जा रहा था. करीब आधे घंटे बाद वो अपने चरम पर आ गया और बड़बड़ाने लगा 'ले...मेरी जान..अब तैयार हो जा तेरी चूत की प्यास ऐसी बुझेगी ..कि तू भी याद करेगी..'
उसके बात सुनते ही मैंने सोचा कि ऐसे लण्ड का पानी तो चूत में लेना ही चाहिए. ये सोच कर मैंने उससे कहा,
' तो आ मेरे राजा मेरे चूत में डाल दे अपने लण्ड का पानी....'
शायद उसकी भी इच्छा ये ही थी इसलिए मेरी बात सुन थोडी ही देर में उसने अपने लण्ड से दही जैसा गाढ़ा वीर्य चूत में डाल मेरी चूत की प्यास बुझा दी।
 
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बेहतरीन कथा. दोस्त विषय इतना अच्छा चुना है कि शुरू के कूच पंक्ती मी हि दिल खुश हुआ.दिल mange more के हिसाबसे
लागता है मोना और हुमा कि रेल्वे कुपे मी तीन दिन तक हुई चुदाई से हि शुरूवात होती. माझा आगया.
 
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भाई कम्मो कि कहानी बडी छोटी कि आपने is पे तो नोवेल बन सक्ती थी.
 

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