Adultery MayaJal.....

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Update 1

मायाजाल


गुरदासपुर । प्रकृति की अदभुत सुन्दरता और पंजाब की मिट्टी से उठती सोंधी सोंधी खुशबू को देखकर निश्चित ही कोई भी कह सकता था कि प्रकृति की देवी प्रथ्वी के इस हिस्से पर खास मेहरवान ही है ।
हरे भरे खेतों में लहराती युवा अल्हङ मदमस्त जवानी सी फ़सलें बुझे दिलों की भी उमंगे जवान करने वाली थी । इस इलाके की आबादी औसत यानी न बहुत कम और न बहुत ज्यादा थी । अधिकतर जनता खेती बाङी करती थी । और किसी न किसी रूप में खेती से जुङी थी । झूठी 21 सेंचुरी की आधुनिक कल्पना के मुँह पर करारा तमाचा सा मारते हुये यहाँ अधिकतर घरों में अभी भी गाय भैंसे आराम से देखी जा सकती थी ।
गुरुदासपुर की औरतें पूरे पंजाब में सबसे खूबसुरत होती हैं । शुद्ध हवा पानी और स्वस्थ जीवन का मूलमन्त्र असली शुद्ध घी दूध दही छाछ लस्सी का प्रचुर मात्रा में सहज उपलब्ध होना । उन्हें भरपूर औरत में बदल देता था । और इसीलिये पंजाब की हर छोरी एकदम तेजी से जवानी की ओर बढती थी । मानों पतंग की तरह बङती ही चली जा रही हो ।
सुन्दर चेहरे भरे हुये शरीर और लम्बे कद की औरतें इस क्षेत्र की पहचान थी । उनके गोल तीखे नोकीले उन्नत उरोज किसी के भी दिल को डांवाडोल कर सकते थे । चलते समय थिरकते उनके विशाल नितम्ब नारी सौंदर्य के मनमोहिनी रूप को रेखांकित करते थे ।
पंजाब के ज्यादातर लोग 1947 के बाद पाकिस्तान बनने के बाद यहाँ भारत आकर बसे थे । इसलिये इन लोगों यानि इनकी नस्ल पर पाकिस्तानी प्रभाव स्पष्ट नजर आता है ।
इसी गुरुदास पुर के एक इलाके में वह एक खूबसूरत सुबह थी । बदन को हौले हौले सहलाती हुयी सी ठण्डी हवा धीरे धीरे बह रही थी । कालेज जाने वाले लङके लङकियों के समूह सङक पर नजर आ रहे थे । तभी एक कार में फ़ुल वाल्यूम पर बजता स्टीरियो में मीका का गाना इस मदमस्त फ़िजा को मानों और भी रोमांटिक कर गया । और लहराती हुयी वह कार सङक पर जाती दो युवा लङकियों को मानों चूमती हुयी सी गुजरी - सावण में लग गयी आग । दिल मेरा फ़ाग..सुण ओ हसीणा पागल दिवाणी.. आज न सोया सारी रात दिल मेरा फ़ाग..।
- आऊऽऽच ..ओये सालिया..भैण के..। जस्सी एकदम बौखलाकर बोली - ऊपर ही चढाये दे रहा है । हरामी साला ।
जस्सी यानि जसमीत कौर । जसमीत कौर बराड उर्फ़ जस्सी 1 बेहद सुन्दर और जवान लडकी थी । और अभी सिर्फ़ 20 साल की थी । उसका कद 5 फ़ीट 8 इंच था । और शरीर 36-29-36 के नाप में दिलकश अन्दाज में ढला हुआ था । वह इतनी सुन्दर थी कि अगर फ़िल्मों में होती । तो शायद सभी हीरोइनों की छु्ट्टी ही कर देती ।
जस्सी लडकियों के कालेज में पढती थी । उसका चेहरा भरा हुआ और गोल था । उसके नैन नक्श बहुत तीखे थे । उसकी आँखे एकदम हरी और खूब बङी बङी थी । जस्सी के उभरे और विशाल नितम्ब चलते वक्त कम्पन सा करते थे । उसकी त्वचा बहुत ही चिकनी थी । और इस तरह वह 1 तरह से शुद्ध नेचुरल ब्यूटी ही थी । उसके काले घने लम्बे बाल थे । जिनका वह महिलाओं की तरह पीछे की तरफ़ जूङा लगाती थी । वह कालेज जाते वक्त ऊँची ऐडी के सैंडल पहनती थी । कालेज आदि जाने हेतु जस्सी को उसके बाप ने नया स्कूटर लाकर दिया था । उसकी गोरी गोरी टांगे और पिण्डलियाँ बेहद तन्दुरस्त थी । उसकी कमर मजबूत थी । उसका पेट एकदम सपाट और उसकी पीठ भरी हुई और मांसल थी । उसकी बाहें लम्बी और मुलायम थी । उसके हाथ बहुत सुन्दर थे । उसकी गरदन लम्बी चिकनी और सुराहीदार थी । उसके स्तन बिलकुल गोल और तीखे थे । वह अक्सर ही कसे हुए पंजाबी सूट पहनती थी । कभी कभार बेहद टाइट जीन्स भी पहनती थी । वह एक अच्छे खाते पीते जमींदार परिवार की 1 ही बेटी थी । उसका कोई बहन भाई नहीं था । इसलिये उसके माँ बाप उसे जरुरत से ज्यादा प्यार करते थे । घर में गाय भैंसे होने से और बचपन से ही जस्सी को घर का दूध । मक्खन । दही । लस्सी । मलाई मिलने से उसका शरीर बहुत विकसित हो गया था । उसके शरीर में 1 नेचरल निखार आ गया था । उसकी खूबसूरती में 1 नेचरल आकर्षण था ।
- क्या हुआ ? उसके साथ चल रही गगन एकदम से चौंककर बोली - कौन था ?
जस्सी के साथ चल रही लङकी का नाम गगन कौर था । उसके बाप का मुर्गे बेचने का बिजनेस था । उसके बाप की दुकान का नाम " न्यू चिकन कार्नर " था । जिसके चलते लोग मजाक में उसे " न्यू चिकन वाली " कहकर बुलाते थे ।
गगन कौर उर्फ़ न्यू चिकन कार्नर वाली की फ़िगर का नाप 34-28-34 था । और कद 5 फ़ीट 6 इंच था ।
उसके बाप का नाम गुरमीत सिंह था । उसकी माँ मर चुकी थी । इसलिये वह एकदम आवारा सी हो गयी थी । उसका 1 भाई था । जिसका नाम चरनदीप सिंह था



ओये गगन ! क्या पूरी बेबकूफ़ ही है तू । जस्सी झुँझलाकर बोली - तू कौन से ख्यालों में खोयी रहती है । ऐसे तो कोई मुण्डिया किसी दिन तेरी पप्पिया झप्पियाँ कर देगा । और तू यही बोलेगी । क्या हुआ । ओये होश कर कुडिये होश ।
- हाये ! गगन ने चलते चलते उसके पीछे हाथ मारा - तेरे मुँह में गुलाब जामुन । कब लेगा वो मेरी । पप्पियाँ झप्पियाँ ।
उसके बेतुके सेक्सी जबाब पर जस्सी खिलखिला उठी । गगन बङी मस्त जवानी थी । उसके ख्वावों ख्यालों सोते जागते खाते पीते में हर वक्त एक ही तस्वीर बनती थी । लङके और रोमांस । ओनली LOL
पढाई में भी उसका खास दिल नहीं लगता था । टीचर जब ब्लैक बोर्ड पर कुछ समझा रहा होता था । वह बगल वाली लङकी से दबे स्वर में सेक्सी जोक सुन रही होती थी । जोक सुनकर उसे उत्तेजना होती थी । और तब वह जस्सी के नितम्ब पर चिकोटी काटती थी । और जगह जगह उसको कामुक स्पर्श करती थी । पढाई में दिल लगाती जस्सी कसमसा कर रह जाती थी ।
पर वह यहीं पर बस नहीं करती थी । वही जोक वह जस्सी को रास्ते में सुनाती थी । और उसकी काम भावनायें भङका देती थी ।
- गगन ! अचानक जस्सी कुछ सोचती हुयी बोली - तू ऐसा क्यों नहीं करती । तेरे पापा को बोल । तेरी जल्दी शादी करा दें । क्यूँ तरसती रहती है ।
- ओ माय जस्सी । जस्सी डार्लिंग ! वह एकदम मचलकर बोली - तू मेरा ये काम कर दे । तू ही मेरे पापा को बोल । लेकिन ऐसा न हो । ऐसा न हो कि कुछ और बात कर दो । नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगी । उदास हो जाऊँगी । निराश हो जाऊँगी । मैं रो पङूँगी । गुस्से में आकर उसका... काट दूँगी । टुईं.. टुईं । आई लव यू दूल्हे राजा ।
तभी सहसा ही जस्सी को हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा बाजार उसे गोल गोल घूमता सा प्रतीत हुआ । सङक पर चलते लोग । वाहन । दुकानें । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक तेज आँधी सी चलने लगी । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । गगन । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
उसके साथ साथ चलती हुयी गगन उसकी बदली हालत से अनभिज्ञ थी । और अभी भी अपनी रौ में कुछ न कुछ बके जा रही थी । उसके नितम्बों पर हाथ मार देती थी । पर जस्सी को मानों कोई होश ही नहीं था । वह किसी रोबोट की भांति चले ही जा रही थी ।
और फ़िर यकायक जस्सी की आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उन्हें उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वे दोनों जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उनको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकङाती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वे दोनों बिछङ गयीं । और जस्सी एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
सङक पर चल रही जस्सी का सिर तब बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकर गिर गयी । अपनी धुन में मगन गगन कौर के मानों होश ही उङ गये । उसे अचानक कुछ नहीं सूझ रहा था । वह तो बस बेजुबान सी जस्सी के पास इकठ्ठी हुयी पब्लिक को देखे जा रही थी । लोग उससे क्या पूछ रहे हैं । और वह उसका क्या जबाब दे रही है । उसको ये भी होश नही था ।
गोल बवंडर शून्य 0 स्थान में जस का तस थमा हुआ था । और अब उसकी मुश्किल और भी दुगनी हो गयी थी । जब जिसकी वजह से वह सब क्रिया हो रही थी । उसे ही कुछ मालूम नहीं था । तब फ़िर उसका कोई इलाज उसके पास क्या होता ।
- दाता ! उसने आह भरी - तेरा अन्त न जाणा कोय ।
अब सब कुछ संभालना उसका ही काम था । अगर कोई छोटी बङी शक्ति के स्वयँ जान में ये घटना हो रही थी । तब बात एकदम अलग थी । और अब बात एकदम अलग । उसने अन्दाजा लगाया । प्रथ्वी पर सुबह हो चुकी होगी । तब जस्सी को लेकर बराङ परिवार में क्या भूचाल मचा होगा । जस्सी मरी पङी होगी । वह भी मरा पङा होगा । कहीं ऐसा ना हो । वे उन दोनों का अन्तिम संस्कार ही कर दें । यहाँ से वापिसी भी कब होगी । कुछ पता नहीं था । और अब तो ये भी पता नहीं था कि वापिसी होगी भी या नहीं । यदि उनके शरीर नष्ट कर दिये गये । तो उनकी पहचान हमेशा के लिये खो जायेगी ।



अंधेरा ।
बङा ही अजीव और रहस्यमय होता है ये अंधेरा । बहुत सारे रहस्यों को अपने काले आवरण में समेटे जब अंधेरे का साम्राज्य कायम होता है । तो अच्छे से अच्छा इंसान भी अपने आप में सिमट कर ही रह जाता है । और जहाँ का तहाँ रुक जाता है । मानों समय का पहिया ही रुक गया हो ।
संध्या ढल चुकी थी । रजनी जवान हो रही थी । निशा के लगभग बारह बजने वाले थे । पर राजवीर कौर की आँखों से नींद उङ सी चुकी थी । वह बारबार बिस्तर पर करवट बदल रही थी । बाहर कोई कुत्ता दुखी आवाज में हूऊऊ..ऊऽऽऽ करता हुआ बारबार रो रहा था । उसकी ये रहस्यमय आवाज राजवीर के दिल को चाक सी कर देती थी । उसने किसी से सुना था । कुत्ते को प्रेत या यमदूत दिखाई देते हैं । तब वह अजीव सी दुखी आवाज में रोता है । और आज कोई कुत्ता बारबार रो रहा था ।
ये भी हो सकता था । उसने सोचा । मैंने आज ही सुना हो । ये अक्सर ही रोता हो । पर आज उसका ध्यान जा रहा हो । कुत्ता जैसे ही हूऊऊ करना बन्द करता । वह सोचती । अभी फ़िर रोयेगा । और वास्तव में कुत्ता कुछ देर बाद ही फ़िर रोने लगता था ।
उसने एक निगाह बगल में सोयी जस्सी पर डाली । और बैचेनी से उठ गयी । उसने फ़्रिज से एक ठण्डी बोतल निकाली । और गटागट पी गयी । तब उसे कुछ राहत सी महसूस हुयी ।
राजबीर कौर जस्सी का माँ थी । उसकी उमर अभी 40 साल थी । और उसके सेक्सी बदन का साइज 37-33-39 था । उसका कद 5 फ़ीट 7 इंच था । वह लम्बी चौडी बहुत ही खूबसूरत औरत थी । और बहुत बन सवर कर रहती थी । वह हमेशा महंगे फ़ैशनेबल सूट पहनती थी । जो उसके बेमिसाल सौन्दर्य में चार चाँद लगाते थे ।
राजबीर की नयी जवानी में 18 साल की उमर में ही शादी हो जाने के कारण वो अभी भी जवान ही लगती थी । अभी 40 साल की राजवीर 30 से ज्यादा नहीं लगती थी । और अब तो बेटी भी जवान हो चुकी थी । लेकिन अक्सर पराये मर्दों को समझ में नही आता कि माँ या बेटी में किसको देखे । हरामी किस्म के लोग माँ और बेटी को देख देखकर मन ही मन आँहे भरते थे ।
जब भी दोनों माँ बेटी किसी शादी । पार्टी । बाजार । किसी के घर । या सडक पर निकलती थी । तो उन्हें देखने वाले मन ही मन आँहें भर कर रह जाते थे । लेकिन जस्सी के बाप के डर के कारण उन्हें कोई अश्लील टिप्पणी नहीं कर पाते थे । पर जो अनजान थे । वो जस्सी और राजवीर के बेहद सुन्दर चेहरों और उठते गिरते नितम्बों की मदमस्त चाल को देखकर टिप्पणी करने से बाज नहीं आते । जिसे अक्सर वे दोनों ऐसे नजर अन्दाज कर देती थी । जैसे कुछ हुआ ही न हो । पर मन ही मन अपनी सुन्दरता और जवानी पर नाज करती हुयी इठलाती थीं ।
राजवीर चलते हुये उस कमरे में आयी । जहाँ बेड पर पसरा हुआ उसका पति मनदीप सिंह सो रहा था । कैसा अजीव आदमी था । बेटी की हालत से बेफ़िक्र मस्ती में सो रहा था । या कहिये । रोज पीने वाली दारू के नशे में था । उसका तगङा महाकाय शरीर बिस्तर पर फ़ैल सा गया था ।
राजवीर धीरे से उसके पास बैठ गयी । और उसे थपथपा कर जगाने की कोशिश करने लगी । हूँ ऊँ हूँ..करता हुआ मनदीप पहले तो मानों जागने को तैयार ही नहीं था । फ़िर वह जाग गया । शायद वह कल की बात भूल सा चुका था । इसलिये उसने राजवीर को अभिसार आमन्त्रण हेतु आयी नायिका ही समझा । उसने राजवीर को अपने सीने पर गिरा लिया । और उसके स्तनों को सहलाने लगा । राजवीर हैरान रह गयी । उसे यकायक कोई बात नहीं सूझी । वह जस्सी के बारे में बात करने आयी थी । पर पति का यह रुख देखकर हैरान रह गयी ।
वास्तव में मनदीप अभी भी नशे की खुमारी में था । नियमित पीने वाले को पीने का बहाना चाहिये । खुशी हो गम । वे दोनों हालत में ही पीते हैं । सो मनदीप ने उस शाम को भी पी थी । उसने राजवीर को बोलने का कोई मौका ही नहीं दिया । और नाइटी सरकाकर उसके उरोंजो को खोल लिया । ब्रा रहित उसके दूधिया गोरे उरोज मनदीप को बहकाने लगे ।
किसी भी टेंशन में कामवासना भी शराब के नशे की तरह गम दूर करने वाली ही होती है । सो कोई आश्चर्य नहीं था । पति के मजबूत हाथ का अपने स्तनों पर दबाब महसूस करती हुयी राजवीर भी जस्सी के बारे में उस समय लगभग भूल ही गयी । और उत्तेजित होने लगी । मनदीप के बहकते हाथ उसके विशाल नितम्बों पर गये । और फ़िर उसने राजवीर को अपने ऊपर खींच लिया ।
तब उसने अपनी नाईटी उतार दी । और मनदीप को पूरी तरह सहयोग करने लगी । बङी प्रभावी होती है ये कामवासना भी । सामना मुर्दा रखा होने पर भी जाग सकती है । स्त्री और पुरुष का एकान्तमय सामीप्य इसको तुरन्त भङकाने वाला सावित होता है । सो राजवीर तुरन्त बिस्तर पर झुक गयी । और मनदीप उसके पीछे से सट गया । अपने अन्दर वह मनदीप का प्रवेश महसूस करने लगी । वह अभी भी दम खम वाला इंसान था । सो राजवीर के मुँह से आह निकल गयी । फ़िर वह मानों झूले में झूलती हुयी ऊपर नीचे होने लगी । सारे पंजावी मर्द ही अप्राकृतिकता के शौकीन थे । गुदा मैथुन के दीवाने थे । और उनके इसी विपरीत मार्गी शौक के चलते सभी औरतों की भी वैसी ही आदत बन गयी थी ।
उसके मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी । और शरीर में गर्म दृव्य सा महसूस हुआ । फ़िर वह आनन्द से कराहने लगी । मनदीप भी निढाल हुआ सा उसके पास ही लुढक गया ।
राजवीर ने कपङे पहनने की कोई कोशिश नहीं की । और मनदीप के सहज होने का इंतजार करने लगी ।
- मुझे बङी फ़िक्र हो रही है । वह गौर से मनदीप के चेहरे को देखते हुये बोली - पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ । लङकी जवान है ।
मनदीप को तुरन्त कोई बात न सूझी । जस्सी यकायक बाजार में चक्कर खाकर गिर गयी थी । और जैसे तैसे लोगों ने उसे घर तक पहुँचाया था । घर तक आते आते उसकी हालत में थोङा सुधार सा नजर आने लगा था । पर वह इससे ज्यादा कुछ न बता सकी कि अचानक ही उसे चक्कर सा आ गया था । और वह गिर गयी । डाक्टर ने उसका चेकअप किया । और फ़ौरी तौर पर किसी गम्भीर परेशानी से इंकार किया । उसके कुछ मेडिकल टेस्ट भी कराये गये । जिनकी रिपोर्ट अभी मिलनी थी ।
करीब शाम होते होते जस्सी की हालत काफ़ी सुधर गयी । पर वह कमजोरी सी महसूस कर रही थी । जैसे उसके शरीर का रस सा निचोङ लिया गया हो ।
- पर मुझे तो । मनदीप बोला - फ़िक्र जैसी कोई बात नहीं लगती । शरीर है । इसमें कभी कभी ऐसी परेशानियाँ हो जाना आम बात है ।
दरअसल राजवीर जो कहना चाहती थी । वो कह नहीं पा रही थी । उसे लग रहा था । मनदीप पता नहीं क्या सोचने लगे ।
मनदीप सिंह जस्सी का बाप था । सब उसे बराङ साहब बोलते थे । उसकी उमर 45 साल थी । और उसका कद 5 फ़ीट 11 इंच और शरीर बहुत मजबूत था । वह हमेशा कुर्ता पजामा पहनता था ।
 
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Update 2
मनदीप सिंह बेहद अहंकारी आदमी था । उसे अपने अमीर होने का बहुत अहम था । जिसके चलते वो दूसरों को हमेशा नीचा ही समझता था । वह पगडी बाँधता था । और उसके चेहरे पर बङी बङी दाङी मूँछे थी । मनदीप रोज ही शराब पीता था । और मुर्गा चिकन खाने का बहुत शौकीन था ।
वैसे जस्सी और उसके माँ बाप कभी कभी गुरुद्वारा जाते थे । लेकिन फ़िर भी मनदीप नास्तिक ही था । इसके विपरीत राजवीर काम चलाऊ धार्मिक थी । जस्सी न आस्तिक थी । और न ही नास्तिक । वो बस अपनी मदमस्त जवानी में मस्त थी ।
- सुनो जी । अचानक राजवीर अजीव से स्वर में बोली - ऐसा तो नहीं । कहीं ये भूत प्रेत का चक्कर हो ?
मनदीप ने उसकी तरफ़ ऐसे देखा । जैसे वह पागल हो गयी हो । दुनियाँ 21 वीं सदी में आ गयी । पर इन औरतों और जाहिल लोगों के दिमाग से सदियों पुराने भूत प्रेत के झूठे ख्याल नहीं गये ।
वह उठकर तकिये के सहारे बैठ गया । और उसने राजवीर को अपनी गोद में गिरा लिया । फ़िर उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला - कैसे होते हैं भूत प्रेत ? तूने आज तक देखे हैं । तुझे पता है । सिख लोग भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानते । ये सब जाहिल गंवारों की बातें हैं । भूत प्रेत । आज तक किसी ने देखा है । भूत प्रेत को ।
फ़िर उसने मानों मूड सा खराब होने का अनुभव करते हुये राजवीर के स्तनों को सहला दिया । मानों उसका ध्यान इस फ़ालतू की बकबास से हटाने की कोशिश कर रहा हो । लेकिन राजवीर के दिलोदिमाग में कुछ अलग ही उधेङबुन चल रही थी । जिसे वह मनदीप को बता नहीं पा रही थी । फ़िर उसने सोचा । अभी मनदीप से बात करना बेकार है । शायद वह सीरियस नहीं है । इसलिये फ़िर कभी दूसरे मूड में बात करेगी । यही सोचते हुये उसने मनदीप का हाथ अपने स्तनों से हटाया । और कपङे ठीक करके बाहर निकल गयी ।
जस्सी दीन दुनियाँ से बेखबर सो रही थी । पर राजवीर की आँखों में नींद नहीं थी । वह रह रहकर करबटें बदल रही थी ।
दोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटादोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटा सा दूध पीता बच्चा था । वह एक हसीन और जवानी से भरपूर लदी हुयी मादक बनाबट वाली औरत थी । भरपूर औरत ।करम कौर गरेवाल जबर जंग सिंह की विधवा थी । और राजवीर की खास सहेली थी । उसका फ़िगर 37-33-40 था । और उसका कद 5 फ़ीट 9 इंच था । वह गुदा मैथुन की बहुत शौकीन थी । और ऐसे कामोत्तेजक क्षणों में वह स्वर्गिक आनन्द महसूस करती थी । उसके विशाल और अति उत्तेजक नितम्बों की बनावट अच्छे अच्छों की नीयत खराब कर देती थी । और तब वे हर संभव उसे पाने का प्रयत्न करते थे ।
करम कौर की पहली शादी से जो बेटा था । वो अभी 15 साल का था । उसका नाम " गुर निहाल सिंह " था । करम कौर का पहला पति । जो मर चुका था । उसका नाम " जबर जंग सिंह " था । और अभी दूसरे पति का नाम " शमशेर सिंह " था । करम कौर के पहले शादी से 2 बच्चे थे । जिनमें 1 बेटा और दूसरा बेटी थी । उसकी बेटी का नाम " गुरलीन कौर " था । दूसरी शादी से जो बच्चा पैदा हुआ । उसका नाम " हरकीरत सिंह " था ।
- ओये राजवीर ! वह उसके सामने बैठती हुयी बोली - तू बङी फ़िक्रमन्द सी मालूम हुयी फ़ोन पर । क्या बात हुयी ।
राजवीर ने रिमोट उठाकर टीवी का वाल्यूम बेहद हल्का कर दिया । और करम कौर की तरफ़ देखा । उसके और करम कौर के बीच कुछ छुपा हुआ नहीं था । वे एक दूसरे की पूरी तरह से राजदार थी । और अक्सर फ़ुरसत के क्षणों में अपने सेक्स अनुभवों को बाँटती हुयी काल्पनिक सुख महसूस करती थीं । करम कौर का बच्चा शायद भूख से मचलने लगा था । उसको शान्त कराने के उद्देश्य से वह स्तनपान कराने लगी ।
- समझ नहीं आ रहा । फ़िर राजवीर उसकी तरफ़ देखती हुयी बोली - क्या कहूँ । और कैसे कहूँ । और कहाँ से कहूँ
करम कौर ने इसे हमेशा की तरह सेक्सी मजाक ही समझा । अतः बोली - कहीं से भी बोल । आगे से पीछे से । ऊपर से नीचे से । आखिर तो साँप जायेगा । बिल के अन्दर ही ।
- वो बात नहीं । राजवीर बोली - मैं वाकई सीरियस हूँ । और जस्सी को लेकर सीरियस हूँ । पिछले कुछ दिनों से मैं कुछ अजीव सा देख रही हूँ । अनुभव कर रही हूँ ।
करम कौर बात की नजाकत को समझते हुये तुरन्त सीरियस हो गयी । और प्रश्नात्मक निगाहों से राजवीर की तरफ़ देखने लगी ।
- मैं ! राजवीर बोली - पिछले कुछ दिनों से । या लगभग बीस दिनों से । जस्सी के पास ही सो रही हूँ । मैंने सोचा । अगर वो वजह पूछेगी भी । तो मैं कुछ भी बहाना बोल दूँगी । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा । तुझे मालूम ही है । मैं अक्सर ग्यारह के बाद ही सोती हूँ । जबकि जस्सी दस बजे से कुछ पहले ही सो जाती है । मनदीप का नशा ग्यारह के लगभग ही कुछ हल्का होता है । और तब वह रोमान्टिक मूड में होता है । मुझे उन पलों का ही इंतजार रहता है । उस समय वह भूखे शेर के समान होता है । लिहाजा उसका ये रुटीन पता लगते ही मेरी बहुत सालों से ऐसी आदत सी बन गयी है ।
ऐसे ही एक दिन । लगभग बीस दिन पहले । जब मैं सोने से पहले टायलेट जा रही थी । मैंने जस्सी को कमरे में टहलते हुये देखा । ऐसा लग रहा था । जैसे वह बहुत धीरे धीरे किसी से मोबायल फ़ोन पर बात कर रही हो । मैंने सोचा । लङकी जवान हो चुकी है । शायद किसी ब्वाय फ़्रेंड से चुपके से बात कर रही हो । उस वक्त उसके कमरे की लाइट बन्द थी । और बाहर का बहुत ही मामूली प्रकाश कमरे में जा रहा था । फ़िर उसे गौर से देखते हुये मुझे इसे बात का ताज्जुब हुआ कि उसके हाथ में कोई मोबायल था ही नहीं । और करमा तू यकीन कर । वह उसके गोल स्तन पर एक दृष्टि डालकर बोली - वह निश्चय ही किसी से बात कर रही थी । और ये मेरा भृम नहीं था । और ये एकाध मिनट की भी बात नहीं थी । मैं उसको लगभग बीस मिनट से देख रही थी । और सुन भी रही थी । पर उसकी बातचीत में मुझे बहुत ही हल्का हल्का हाँ । हूँ । ठीक है । ओ माय डार्लिंग .. जैसे शब्द ही मुश्किल से सुनाई दे रहे थे ।



करम कौर के चेहरे पर गहन आश्चर्य के भाव आये । उसकी आँखे गोल गोल हो गयीं । तभी राजवीर का नौकर सतीश वहाँ आया । उसने एक चोर निगाह करम कौर के खुले स्तन पर डाली । और राजवीर से बोला - मैं बाजार जा रहा हूँ । कुछ आना तो नहीं है ?
राजवीर ने ना ना में सिर हिलाया ।
सतीश यूपी का रहने वाला पढा लिखा नौजवान था । और एक प्रायवेट नौकरी के चक्कर में पंजाब आया था । बाद
में न सिर्फ़ वह पंजाब में ही रम गया । बल्कि अपनी कंपनी टायप नौकरी छोङकर वह बराङ साहब के घर नौकर के रूप में काम करने लगा । ये नौकरी न सिर्फ़ उसके लिये आरामदायक सावित हुयी थी । बल्कि कई तरह से उसके लिये पाँचों उँगलियाँ घी में कहावत को भी पूरा कर रही थी ।
वास्तव में U.P वाला भईया के नाम से मशहूर सतीश करम कौर गरेवाल का बेहद आशिक था । और चोरी चोरी उसको देखता हुआ नयन सुख लेता था ।
सतीश ने करम कौर के लङके गुरु निहाल से नकली दोस्ती की हुई थी । और उसे बातों ही बातों में फ़ुसलाकर वह उससे उसकी मम्मी की दिन भर की गतिविधियाँ पूछता रहता था । उसकी नीयत से अनजान गुरु निहाल उसे
सब कुछ बताता रहता था । उसकी माँ रोज कितने बजे उठती है । कितने बजे नहाती है । कैसा खाना खाती है । क्या पीती है । किस समय अपने दूसरी शादी के बच्चे को स्तनपान कराती है । ये सब बातें पूछकर सतीश एकान्त में सोने से पहले करम कौर के साथ मानसिक संभोग की कल्पना करता हुआ हस्तमैथुन करता था ।
और वास्तविक रूप में उसको पाने का बेहद इच्छुक था । करम कौर भी इस बात को खूब समझती थी । और मौके बे मौके शायद वो कभी काम आये । इस हेतु अपने स्तनों की भरपूर झलक दिखाने से नहीं चूकती थी ।
उसको मरदों को ऐसे तङपाने में भी खास सुख मिलता था । दूसरे एक हिन्दू युवा पठ्ठा और और डिफ़रेंट टेस्ट की छुपी चाहत भी उसको सतीश के प्रति आकर्षित करती थी । और वह भी उसके साथ हमबिस्तर पर होने की अभिसारी कल्पना करती थी । पर अभी दोनों में से किसी की तरफ़ से कोई पहल नहीं हुयी थी ।
- अब करमा ! मुझे और भी । सतीश के जाने के बाद राजवीर फ़िर से बोली - और भी ताज्जुब इस बात का हुआ कि बात करते करते अचानक वह मेरी तरफ़ घूम गयी । हम दोनों की निगाहें मिली । मैं चौंक गयी । पर उसने मानों मुझे देखा ही नहीं । मुझसे कुछ बोली भी नहीं । और उसी तरह बात करती रही । तब मैं उसको टोकना चाहती थी । उससे कुछ पूछना चाहती थी । पर न जाने क्यों मेरी हिम्मत नहीं पङी । फ़िर चलते चलते वह अचानक वापिस बेड पर बैठ गयी । और अचानक इस तरह लुङकी । मानों नशे में गिरी हो । या नींद में लुङक गयी हो । ये पहले दिन की बात थी ।
करम कौर के चेहरे पर घबराहट के भाव फ़ैले हुये थे । वह हैरत से राजवीर को देखने लगी ।
- अब तू समझ सकती है । राजवीर फ़िर से बोली - ये देखने के बाद मेरे दिल का चैन और रातों की नींद उङ गयी । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । जस्सी को अचानक क्या हुआ था ? मेरी फ़ूल सी बच्ची किस तिलिस्मी चंगुल में थी ?
- वन मिनिट । करम कौर ने टोका - तिलिस्मी चंगुल । तिलिस्मी चंगुल से क्या मतलब है तेरा । तू ये कैसे कह सकती है । जसमीत किसी तिलिस्मी चंगुल में थी ?
थी के बजाय है कहा जाये । राजवीर बजते हुये मोबायल के नम्बर पर निगाह डालते हुये उसे साइलेंट करती हुयी बोली - है कहा जाये । तो ज्यादा उचित होगा । मैंने बोला ना । ये बीस दिन पहले की बात है । पहले मैंने यही सोचा था कि उससे सुबह नार्मली प्यार से सब पूछूँगी । ये सब क्या है ? वो लङका कौन है ? पर फ़िर मुझे ख्याल आया कि मैं उससे क्या पूछूँगी ? उसके पास मोबायल तो था ही नहीं । और जब मोबायल नहीं था । तब कैसे कहा जाये । वो किसी ब्वाय फ़्रेंड से बात कर रही थी । और ब्वाय फ़्रेंड से बात भी कर रही थी । तो ये कोई पूछने वाली बात ही नहीं थी । ऐसी ही तमाम बातें सोचते हुये मैंने कुछ दिन और इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की । और इसीलिये मैंने बराङ साहब को भी कुछ नहीं बोला ।
और लगातार बीच बीच में जागकर उसकी छुपी निगरानी की । तब कुछ और उसका रहस्यमय व्यवहार देखा । फ़िर मेरे को एक आयडिया आया । यदि मैं बहाने से उसके पास सोने लगूँ । तब शायद वह कुछ विरोध करे । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया । एक बार भी नहीं किया । बल्कि उसके व्यवहार से ऐसा कभी लगता ही नहीं था कि वह मेरे लेटने के प्रति कोई नोटिस भी लेती है । वह पहले जैसी ही रही ।
- राजवीर ! अचानक करम कौर ने फ़िर से टोका - अभी अभी तूने कहा कि तूने और भी उसका रहस्यमय व्यवहार नोट किया । वो क्या था ?
- हाँ ! वो ये कि वो अक्सर रात को कभी कभी उठ जाती थी । और कभी भी उठ जाती थी । फ़िर खिङकी के पास खङे होकर उसके पार ऐसे देखती थी । मानों किसी दूसरी दुनियाँ को देख रही हो । खिङकी के एकदम पार कोई दूसरा लोक कोई दूसरी धरती उसे नजर आ रही हो । उसके चेहरे के भाव भी ऐसे बदलते थे । जैसे लगातार कुछ दिलचस्प सा देख रही हो । इसके भी अलावा मैंने उसे खङे खङे दीवाल पर या यूँ ही खाली जगह में किसी काल्पनिक बेस पर कुछ लिखते सा भी देखा । अब इससे भी ज्यादा चौंकने वाली बात तुझे बताती हूँ । एक दिन जब ये सब देखना मेरी बरदाश्त के बाहर हो गया । तो मैंने अपना जागना शो करते हुये आहट की । पर उस पर कोई असर नहीं हुआ । मैं भौंचक्का रह गयी । तब डायरेक्ट मैंने उसको आवाज ही दी । करमा ताज्जुब उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । अब तो मैं चीख पङना चाहती थी । पर फ़िर भी मैंने खुद को कंट्रोल करते हुये उसे जस्सी जस्सी मेरी बेटी कहते हुये झंझोङ ही दिया ।



और करम । उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । बल्कि उसका रियेक्शन ऐसा था । जैसे किसी पुतले को हिलाया गया हो । और तब मेरे छक्के ही छूट गये । फ़िर करमा जैसे ही मैंने उसे छोङा । वह फ़िर से लुङक गयी ।
- ओ माय गाड ! करम कौर के माथे पर पसीना छलछला आया - ओ माय गाड । यकीन नहीं होता । लगता नहीं । ये सच है । तूने बराङ साहब को नहीं बोला । ये सब ।
राजवीर के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये । उसने सूखी भावहीन आँखों से करम कौर को देखा । तब वह जैसे सब कुछ समझ गयी के अंदाज में सिर हिलाने लगी ।
खैर ! राजवीर आगे बोली - रहस्य अभी भी खत्म नहीं हुआ । अब मुझे और भी अजीव सा इसलिये लग रहा था । क्योंकि दिन में उसका व्यवहार एकदम नार्मल था । लगता था । जैसे कोई बात ही न हो । वह चंचल तितली की तरह इधर उधर उङती रहती थी । अपनी पढाई वगैरह कायदे से करती थी । ये मेरे लिये और भी रहस्य था । क्योंकि उसके रात के व्यवहार का दिन पर कोई असर नजर नहीं आता था ।
देख करमा ! वह भावुक स्वर में बोली - तू मेरी सबसे खास सहेली है । तुझसे मेरी कोई बात छिपी नहीं । इतना क्लियरली ये सब मैंने सबसे पहले तुझे और अभी अभी ही बताया है । ये जवान लङकी का मामला है । बराङ साहब को मैं इस मामले में बेबकूफ़ ही समझती हूँ । एक तो वह नास्तिक है । ऐसी बातों का बिना सोचे समझे मजाक उङाता है । पहले बोल देता है । बाद में सोचता है । अरे ये उसने क्या बोल दिया । दूसरे वह दारू के नशे में किसी को क्या बोल दे । इसलिये मैं पहले सभी बात पर खुद विचार करना चाहती थी । फ़िर जब मुझे लगा कि ये मामला सोचना समझना मेरी समझ से बाहर है । तब मैंने तुझे बुलाया । बोल बहन । मैंने कुछ गलत किया क्या ?
करम कौर ने भारी सहानुभूति के साथ पूर्ण हमदर्दी से उसके समर्थन में सिर हिलाया । राजवीर आशा भरी नजरों से उसे देखने लगी । शायद वह रास्ता दिखाने वाली कोई बात बोले । पर उल्टे वह भी गहरे सोच में डूब गयी लगती थी । मानों उसकी समझ में ये चक्कर घनचक्कर क्या है । कुछ भी न आ रहा हो । यहाँ तक कि उसका बच्चा दूध पीते पीते कब का सो गया था । उसका स्तन ज्यों का त्यों खुला था । और राजवीर की बात सुनते सुनते वह किसी अदृश्य लोक में जा पहुँची हो ।
तभी किसी के आने की आहट हुयी । जस्सी कालेज से लौटी थी । जिस समय करम कौर अपना स्तन अन्दर कर रही थी । जस्सी वहाँ आयी । उसने मुस्कराकर करम कौर को देखा । और अपने कमरे में चली गयी ।
सम्पूर्ण सृष्टि का आधार ही है काम वासना । अगर ये काम वासना न होती । स्त्री पुरुष के दैहिक आकर्षण और लैंगिक मिलन की एक अजीव सी और सदा अतृप्त रहने वाली प्यास सभी के अन्दर प्रबल न होती । तो कभी समाज का निर्माण संभव ही नही था । और वास्तव में आदि सृष्टि के समय जब ज्ञान और आत्मभाव की प्रबलता थी । उस समय की आत्मायें काम से बिलकुल मोहित नहीं थी । और हद के पार उदासीन थीं । देवी तुल्य नारियों से भी पुरुष कामभावना के धरातल पर कतई आकर्षित नहीं होते थे । उनके उन्नत गोल स्तन और थिरकते नितम्बों की मादक लय पुरुषों में एक चिनगी पैदा नहीं कर पाती थी ।
जबकि नारी की बात कुछ अलग थी । उसका निर्माण ही प्रकृति रूपा हुआ था । वह पुरुष के अर्धांग से विचार रूप उत्पन्न हुयी थी । और बारबार उसको आत्मसात करती हुयी आलिंगित भाव से उसमें ही समाये रहना चाहती थी । बस उसकी सिर्फ़ यही मात्र एक ख्वाहिश थी । पर आदि संतति प्रबल थी । और इस प्रकृति भाव के अधीन नहीं थी । अतः वे तप को प्रमुखता देते थे । उस माहौल के प्रभाव से देवी नारी भी तब पुरुष के सामीप्य की एक अजीव सी चाहत लिये तप में ही तल्लीन हो जाती थी । पर इस तप का सर्वागीण उद्देश्य यही था । पूर्ण चेतन पुरुष को प्राप्त होना ।
कालपुरुष और दुर्लभ सौन्दर्यता की स्वामिनी अष्टांगी कन्या जीवों के इस काम विरोधी रवैये से बङे हैरान थे । सृष्टि का मूल काम उन्हें कतई आकर्षित नहीं कर रहा था । तब उन्होंने एक निर्णय लेते हुये विष के समान इस काम विषय वासना को अति आकर्षण की मीठी चाशनी में लपेट दिया । ये हथियार कारगर साबित हुआ । और जीव काम मोहित होने लगे । पुरुष को स्त्री हर रूप में आकर्षित करने लगी । उसके हर अंग में एक प्रबल सम्मोहन और जादुई प्रभाव उत्पन्न हो गया । उसकी काली घटाओं सी लहराती जुल्फ़ें । गुलावी लालिमा से दमकते कोमल गाल । रस से भरे हुये अधर । और विभिन्न आकारों से सुशोभित गोल गोल दो स्तन मानों पुरुष के लिये खजाने से भरपूर कलश हो गये । उसकी हरे पेङ की डाली सी लचकती । किसी मदमस्त नागिन की तरह बलखाती कमर पुरुषों के दिल को हिलाने लगी । उसकी कटावदार नाभि में एक उन्मादी सौन्दर्य झलकने लगा । उसकी गोरी गोरी चिकनी जंघायें तपस्वियों के दिल में तूफ़ान उठाने लगी । उसके नितम्बों की चाल से संयमी पुरुषों के दिल भी बेकाबू होने लगे ।
महामाया ने बङा विचित्र खेल खेला । उसने नारी की वाणी में सुरीली कोयल की कूक सी पैदा कर दी । और उसकी वाणी तक में काम को लपेट दिया । उसकी हर क्रिया को उसने काम पूर्ण कर दिया । और इस तरह ये पुरुष जीव भाव में नारी के वशीभूत होता गया । और आज तक हो रहा है ।
और तब ये ठीक उल्टा हो गया । नारी जो वास्तव में पुरुष से उत्पन्न हुयी थी । पुरुष अपने को उसी नारी से उत्पन्न मानने लगा । और उसे ही प्रमुख आदि शक्ति मानता हुआ माया के पूर्ण अधीन हो गया । महामाया । अच्छे अच्छे देव पुरुषों । योग पुरुषों को अपने इशारों पर सदा नचाने वाली महामाया । तब करम कौर में भी उसका ही अंश था ।
रात के नौ बज चुके थे । करमकौर आज राजवीर के घर रुकी हुयी थी । मनदीप जस्सी और राजवीर किसी सिद्ध मठ पर जस्सी की कुशलता हेतु मन्नत माँगने बाहर गये हुये थे । राजवीर ने उन दोनों को स्पष्ट कुछ नहीं बताया था । बस इतना कहा कि बाबा के दरबार में जाने से ऐसी कोई अज्ञात बाधा कष्ट दूर हो जाता है । करमकौर भी ये उपाय ठीक ही लगा । तब मनदीप को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आयी । और वे तीनों करमकौर को अपने घर रोककर दर्शन हेतु चले गये थे ।
स्थिति कोई भी मानुष देही में कामकीङा सदा रेंगता ही रहता है । और अवसर मिलते ही इसके कीटाणु सक्रिय हो उठते हैं । करम कौर को भी आज ये कीङा बार बार काटता हुआ उसके अंगों में प्यास उत्पन्न कर रहा था । एक हिन्दू पुरुष की प्यास । जो सभी सरदार औरतों की विशेष चाहत थी । दिल का हमेशा का अरमान था । और वह पुरुष एक आसान विकल्प के रूप में उसके पास था । बेहद पास । वह अपने मामूली से प्रयास से इस रात को यादगार बना सकती थी । बनाना चाहती थी । और उसने हर हालत में बनाने की ठान ली थी ।
वह दोपहर ग्यारह बजे ही राजवीर के घर आ गयी थी । और उसी समय वे लोग गाङी से निकल गये थे । बस तभी से उसके अंगों में बैचेनी सी समायी हुयी थी । जवानी के पहाङ की तरह खङा सतीश उसे भावना मात्र से दृवित कर रहा था । पर पराये शहर और परायी जाति का बोध उस पर हावी था । नौकर होने की हीन भावना भी उसे मर्यादा में रहने को विवश कर रही थी । और इस तरह करम कौर का बेशकीमती वक्त फ़िजूल जा सकता था । जा रहा था । इसलिये उसने बखूबी समझ लिया था कि पहल उसे ही अपनी तरफ़ से करनी होगी ।
इसलिये उसने किसी न किसी बहाने से सतीश को अपने पास ही रखा । और किसी अभिसार इच्छुक प्रेमिका की भांति उसे अपने स्तनों की बार बार झलक दिखाते हुये अपने कटाक्षों और वाणी से भरपूर उत्तेजित करती रही । और यही सोचती रही कि अब वह उसे बाहों में भरने ही वाला है । पर सतीश जैसे किसी सीमा रेखा में कैद था । और उसे ललचायी नजरों से देखने के बाद भी कुछ कर नहीं पा रहा था ।
सुबह राजवीर का फ़ोन जाते ही उसने यह सब हसरत पूरी करने को तय कर लिया था । और इसीलिये वह अपने घर से बिना वाथ के ही चली आयी थी । बारह बजे वह बाथरूम में थी । और सभी कपङे उतार चुकी थी । उसने अभी वाथ लेना शुरू भी नहीं किया था कि तभी उसका बच्चा अचानक रोने लगा । जिसे संभालने ले लिये तुरन्त सतीश आ गया । पर वह चुप नहीं हो रहा था ।
 
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Update no 3
करमकौर ने तुरन्त एक बङा टावल लपेटा । और बाहर आ गयी । सतीश उसको देखकर हैरान ही रह गया । सिर्फ़
एक टावल में भरपूर जवानी । वह तेजी से पलटकर बाहर जाने को हुआ । पर करमकौर ने उसे अभी रुक कहते हुये रोक दिया । वह चोर निगाहों से उसे देखने लगा । उसकी मोटी मोटी चिकनी जाँघे आधे से अधिक खुल रही थी
उसने टावल को ही उठाकर अपना गोल स्तन बाहर निकाल लिया था । और बच्चे को दूध पिला रही थी ।
- बेबी भूखा था । वह उसे देखती हुयी बोली - दूध पी लेगा । फ़िर तंग नहीं करेगा । और सुन । तेरी मालकिन राजवीर है । मैं करम कौर नहीं । तू मुझे भाभी बोल सकता है । आखिर परदेस में तुझे भी कोई अपना लगने वाला होना चाहिये ना । वैसे तेरी शादी हुयी या नहीं ।
सतीश ने झेंपते हुये ना में सिर हिलाया । कितनी अजीब बात थी । अपने एकान्त क्षणों में वह हमेशा जिस औरत के निर्वस्त्र बदन की कल्पना करता था । वह साक्षात ही लगभग निर्वस्त्र बैठी थी । पर वह एकदम नर्वस हो रहा था ।
- फ़िर तू किसकी लेता है । वह शरारात से बोली - पप्पी झप्पी । कोई कुङी फ़िट की हुयी है । कोई प्रेमिका । कोई मेरे जैसी भाभी भाभी वगैरह ।
उसने फ़िर से इंकार में सिर हिलाया । करम कौर उत्तेजित हो रही थी । उसने बच्चे को दूसरे स्तन से लगाने के बहाने से टावल को खुल जाने दिया । सतीश का दिल तेजी से धक धक करने लगा । एक लगभग आवरण रहित सम्पूर्ण नायिका उसके सामने थी ।
करमकौर छुपी निगाह से उसके बैचेन उठान को महसूस कर रही थी । उसने बच्चे को दूध पिला दिया था । फ़िर उसने टावल को ठीक कर लिया ।
- अरे लल्लू ! वह प्यार से उसका हाथ पकङकर बोली - अब मैं तेरी भाभी हुयी । फ़िर मुझसे क्या शर्म करता है । चल कोई बात नहीं । पर तूने सच बताना । कभी अपनी किसी भाभी को नहाते हुये चुपचाप देखा है । कोई तांक झांक टायप । कभी कुछ ।
सतीश कुछ बोल न सका । बस हल्के से मुस्कराकर रह गया । करम कौर को अजीव सी झुँझलाहट हुयी । पर आज मानों उसने भी सभी दीवार गिरा देने की ही ठान ली थी । उसने उसके पास जाकर उसके गाल पर एक पप्पी ली ।
और बहाने से उसके पेन्ट से हाथ फ़िराते हुये बोली - यकीन कर मैं तेरी भाभी हूँ । गाड प्रामिस । किसी को कुछ नहीं बोलूँगी । अब बता । तू मेरी एक इच्छा पूरी कर देगा । सिर्फ़ एक । देख ना नहीं करना । वरना इस करमा का दिल ही तोङ दे ।
अब सतीश में हिम्मत जागृत हुयी । उसके होठ सूखने से लगे । फ़िर वह बोला - हाँ । बोलो । आप बोलो ।
करम कौर ने उसे मसाज आयल की बाटल थमा दी । और दीवान पर पेट के बल लेटती हुयी बोली - मैंने आज तक सिर्फ़ पुरुष मसाज के बारे में सुना भर है । कभी कराने का चांस नहीं बना । इसलिये उसकी फ़ीलिंग नहीं जानती । तू मुझे वो मसाज एक्स्पीरियेंस करा । और तुझे फ़ुल्ली छूट है । चाहे मुझे भाभी समझ । वाइफ़ समझ । लवर समझ । या सिर्फ़ औरत समझ । सिर्फ़ औरत । कुछ भी क्यों न समझ । लेकिन बस ये मसाज फ़ीलिंग । आनन्दयुक्त और यादगार हो । तू यहाँ से चला भी जाय । तो मुझे तेरी बारबार याद आये ।
सतीश के बदन में गरमाहट की तरंगे सी फ़ैलने लगी । करम कौर दीवान पर लेटी थी । उसने नाम मात्र को तौलिया पीठ पर डाला हुआ था । वह बस एक पल झिझका । आज उसकी सबसे बङी चाहत पूरी होने वाली थी । उसकी हथेलियाँ तेल से भीग चुकी थी । फ़िर वह दीवान पर बैठ गया । और टावल सरका दिया । करम कौर के विशाल दूधिया नितम्ब उसके सामने थे । उसकी वलयाकार पीठ उसके सामने थी ।
- यादगार मसाज । वह आह सी भरती हुयी बोली - और इसके लिये तू ये शर्ट वगैरह उतार दे । जो कि आराम से हाथ पैर चला सके । आराम से । धीरे धीरे । संगीतमय । कोई जल्दी नहीं । बङे हौले हौले करना ।
सतीश ने वैसा ही किया । फ़िर उसके कठोर हाथों का स्पर्श करम कौर को अपने कन्धों से कमर तक होने लगा । तब उसने और आगे हाथ ले जाने का आदेश दिया । सतीश के हाथ उसके चिकने नितम्बों पर घूमते हुये फ़िसलने लगे । फ़िर वह आनन्द से कराहने लगी । अब वह अगले क्षणों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी । और तब उसे अपने बदन में किसी उँगली समान प्रवेश की अनुभूति हुयी । लोहा गर्म हो चुका था । वह तुरन्त उठकर बैठ गयी । और सीधा उसके अंग को सहलाने लगी ।
सतीश ने उसके स्तनों को सहलाया । वह उसका अनाङीपना समझ गयी थी । उसने उसे दीवान पर गिरा दिया । और अपनी कलायें दिखाने लगी । तब उसके अन्दर का पुरुष जागा ।
उसने करमकौर को झुका लिया । और उससे सट गया । वाकई वह मर्द था । अनाङी था । हिन्दू था । और करमकौर का इच्छित अलग टेस्ट था । इधर वह भरपूर पंजाबन औरत थी । वह आनन्द के अतिरेक में कराहती हुयी नितम्ब उछालने लगी । और ढेर होती चली गयी । एक बलिष्ठ पुरुष के समक्ष । एक समर्पित नायिका की भांति । जो उसके अब तक अनुभव से एकदम अलग ही साबित हुआ था । इसलिये यह वाकई एक यादगार अनुभव था । पर अभी तो बहुत समय बाकी थी । बहुत समय । समय ही समय ।

समय की इस किताब में सदियों से जाने क्या क्या लिखा जाता रहा है । क्या लिखने वाला है । और आगे क्या लिखा जायेगा । ये शायद कोई नहीं जानता है । करमकौर को ही सुबह तक ये नहीं मालूम था । आज उसकी जिन्दगी में एक यादगार पुरुष आने वाला है । न सिर्फ़ यादगार पुरुष । बल्कि यादगार एक एक लम्हा भी । जिसको बारबार संजोने का दिल करे ।
क्या अजीव बात थी । उसे घर की देखभाल के लिये छोङ गयी राजवीर के बारे में सोचना चाहिये था । उसकी बेटी जस्सी के बारे में सोचना चाहिये था । उसे एक पराये पुरुषसे अनैतिक पाप संबन्ध के पाप के बारे में सोचना चाहिये था । पर येसभी सोच गायब हो चुकी थी। उसके अन्दर की करम कौरमर चुकी थी । और मुक्त भोग की अभिलाषी स्त्री जाग उठी थी । वासना से भरी हुयी स्त्री । जिसे सम्बन्ध नहीं । पुरुष नजर आता है । और ये पुरुष आज किस्मत की देवी ने मेहरबान होकर उसे उपलब्ध कराया था । अगर ये बेशकीमती पल वह पाप पुण्य को सोचने में गुजार देती । तो ना जानेये पल फ़िर कब उसकी जिन्दगी में आते । आते भी या ना आते । इसलिये वह किसी भी हालत में इसको गंवाना नहीं चाहतीथी ।
सतीश अनाङी था । औरत से उसका पहले वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी। मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था । एक खिलाङिन थी । और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभववाला था । अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित होताथा । अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी । और कुछ वह त्रिया चरित्र करना चाहती थी । इस तन्हाई केएक एक पल को सजाने के लिये ।
वह कपङे पहनने लगी । तब सतीश चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी ?
- यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङकर बोली - दर्द बेदर्द हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही । पर नहाना भी चाहतीहूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत केआवेग में भरी भावना निकल गयी । मैं नहला देता हूँ । वह मसाज से ज्यादा आसान है । वह भौंचक्का रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देताहै । किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायेंपंखुरियों के समान खुलने लगती है । उसने कोई ना नुकुर नहीं की । वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना वह जान रही थी । ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी । अगले ही क्षणों मेंफ़िर से बह आनन्दित होकर सिसकियाँ भर रही थी ।
और अब रात के नौ बज चुकेथे । वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी सांगदेख रही थी । कितनी अदभुत बात थी । पर्दे पररोमांटिक भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश कीही छवि नजर आ रही थी । आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी । शायद ऐसी गोल्डन नाइट जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था । और उसका भी एक बन्द ही लगाया हुआ था । एक बन्द ।
- ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है । ये एक बन्द काफ़ी है । जब दिल अन्दर । जब दिल बाहर।
सतीश अभी काम में लगा हुआ था । तब उसे एक कल्पना हुयी । काश वह राजवीर की जगह होती । औरसतीश
उसका सर्वेंट होता । तो वह उसका भरपूर यूज करती । जवानी का एक एक क्षण ।एक एक एनर्जी बिट । वह स्त्री पुरुष के अभिसारी रंग से रंग देती । शायद आगे भी ऐसा मौका मिले । पर आगे की बात आगे थी । आज की रात तो निश्चय उसके हाथ में थी । और यकीनन गोल्डन थी।
अभिसार युक्त स्नान के बाद दोनों ने लंच किया था । और फ़िर दोपहर तीन बजे थककर चूर होकर सो गये थे । करमकौर रात मेंभी जागने और जगाने की ख्वाहिशमन्द थी । अतः उसने भरपूर नींद ली थी ।और शाम छह बजे उठी थी । वैसे भी मुक्त और सन्तुष्टिदायक यौनाचारके बाद तृप्ति की नींद आना स्वाभाविक ही थी ।
सो जागने के बाद वह खुद को एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी । महज तीन घण्टे पूर्व के वासनात्मक क्षण उसे गुजरे जमाने के पल लगने लगे थे । और वह फ़िर से अभिसार के लिये मानसिक रूप से तैयार थी ।
- कमाल की होती है । औरत के अन्दर छिपी औरत । उसने सोचा - वाकई यह अलग होती है । बाहर की औरत नकली और दिखाबटी होती है । सामाजिक रूढियों परम्पराओं के झूठे आभूषणों से लदी हुयी । बोगस दायरों में कैद । बेबसी की सिसकियाँ लेतीहुयी । मुक्ति और मुक्त औरत के अहसास ही जुदा होते हैं । और वे अहसास फ़िर से जागने लगे थे ।
यही सब सोचते सोचते उसे दस बज गये । सतीश फ़ारिगहोकर उसी कमरे में आ गया। पर वह उससे अपरिचित सीटीवी ही देखती रही । उसका बच्चा सो चुका था ।सतीश सोफ़े पर बैठा हुआ था । वह उसकी तरफ़ से किसी पहल का इन्तजार कर रही थी । पर उसे उदासीन समझकर जब वह भी टीवी देखने में मशगूल हो गया । तब वह खुद ही उसके पास जाकर गाउन समेटकर उसकी गोद में बैठ गयी । ऐसी ही किसी पूर्व कल्पना से आभासी सतीश सिर्फ़ लुंगी में था ।
सो उसका कठोर स्पर्श महसूस करती हुयी वह आनन्द के झूले में झूलने लगी । एक कसमसाहट के बीच दोनों ने खुद को एडजस्ट किया । और फ़िर वे आन्तरिक रूप से बेपर्दा अंगो के स्पर्शको महसूस करने लगे । सतीश ने उसके गाउन में हाथ डाल दिया । और गोलाईयों को सहलाने लगा।
पर अब उसकी इच्छा प्राकृतिकता से विपरीत अप्राकृतिक हो चली थी । जो पंजाबी पुरुषों का खास शौक था । और पंजाबन औरतों की एक अजीव लत । जिसकी वे पागल हद तक दीवानी थी । अतः इस खेल के अनाङी सतीश को वह भटकाती हुयी वासना की भूलभुलैया युक्त अंधेरी सुरंगों में ले गयी ।
और तब रात के बारह बज चुके थे । अभी अभी सोई करम कौर की अचानक किसी वजह से नींद खुल गयी थी । उसे टायलेट जाने की आवश्यकता महसूस हो रही थी । सतीश अपने कमरे मेंजा चुका था ।
उसने एक नजर अपने बच्चे पर डाली । और बाहर निकल गयी । सबकुछ सामान्य था । रात भरपूर जवान नायिका की भांति अंगङाईयाँ लेती हुयी मुक्त भाव से विचर रही थी । और खुद अनावृत सी होकर उसने अपना आवरण चारों और फ़ैला दिया था । एक जादू से सब सम्मोहित हुये से नींद के आगोश में थे । और निशा अंधेरे से आलिंगन सुख प्राप्त कर रही थी ।
अंधेरा । राजवीर के घर में भी अंधेरा फ़ैला हुआ था । वह टायलेट से फ़ारिग हो चुकी थी । और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तब अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ । कमरा । बेड । टीवी। सोफ़ा । उसका बच्चा । स्वयँ वह सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सव कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो । और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा । एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है । और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । शहर। धरती । आसमान । लोग । वह । राजवीर । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
और फ़िर वह एक दरिया मेंफ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई। और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकरगिर गयी ।
क्या ! राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू ? क्या सच में ऐसा हुआ था ?
- मेरा यकीन कर । राजवीरतू मेरा यकीन कर । करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसीघर में कोई भूत प्रेत काचक्कर मालूम होता है । समझ ले । मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावाकिसी बात में मन ही नहींलगा । रात बारह बजे तक मुझे चैन नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया । पर नींद ऐसी होती है । सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है । सो दिन भर की सूली चढी हुयीमैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी लेभी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी । और मुझे टायलेट जाना हुआ । बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर । तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था । कोई दूसरी ही दुनियाँ थी । भयानक जंगल था । एकऐसा जादुई जंगल । जिसमें जाते ही मैं नंगी हो गयी । और किसी अज्ञात भय से भाग रही थी।
पर राजवीर को अब उसकी बात सुनाई नहीं दे रही थी । वह उठकर खिङकी के पास पहुँची । और बाहर देखने लगी । जहाँ लान में लगे पेङ पौधे नजर आ रहे थे । वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था ।
राजवीर जैसे ही वापिस लौटी । उस समय तो वह घर चली गयी थी । फ़िर उसने पहली फ़ुरसत में ही दोपहर को आकर उसे सव बातबताई । जस्सी अभी घर नहीं थी ।
- सच्ची ! मैं एकदम सच बोल रही हूँ । वह फ़िर से बोली - मुझे एकदम ठीकठीक याद है । टायलेट जाते समय मैंने घङी देखी थी । उस समय बारह बजे थे । फ़िर मैं चकराकर यहाँ । उसने जमीन की तरफ़ उँगली से इशारा किया - यहाँ गिर पङी थी । और जब मुझे होशआया । मैं संभली । मैंनेफ़िर घङी देखी थी । तब तीन बज चुके थे । पूरे तीन घण्टा मैं बेहोश सी पङी रही ।
- ठहर । ठहर । राजवीर ने उसे टोका - जब तू बेहोश सी हो गयी । उस टाइम क्या हुआ ?
- अरी पागल है क्या । करम कौर झुँझलाकर बोली - बेहोश मतलब बेहोश । उसटाइम का भी कुछ पता रहताहै क्या ? क्या हुआ ।
क्या नहीं हुआ । वैसे हुआ हो । तो मुझे पता नहीं । मैं तो मानों आपरेशन से पहले वाले नींद के इंजेक्शन के समान नशे में थी । और पूरे तीन घण्टे रही ।
- नहीं नहीं ! राजवीर बोली - मेरा मतलब था । वोनाविक मछुआरा..कहीं उसने तेरी बेहोशी का..कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया । ऐसा कुछ तुझे फ़ील हुआ हो । जैसे भूत बूत । वह भय से जस्सी कीकल्पना करती हुयी बोली - अक्सर जवान औरत का फ़ायदा उठा लेते हैं । नहीं मैंने ऐसा पढा है ।फ़िल्मों में भी देखा है ।
- अरे नहीं । वो सालिआ ऐसा कुछ करता । करमकौर अपने स्तन पर हाथ रखकर बोली - फ़िर मैं तीन घण्टे नहीं । तीन दिन बेहोश रहने वाली थी । एकदम टार्जन लुक ।..पर अपनी किस्मत में तो ये दाढी वाले सरदार ही लिखे हुये हैं । हिन्दू आदमी की बात ही अलग होतीहै ।
अजीव होती है ये औरत भी। शायद इसको समझना बहुत मुश्किल ही है । वह भयभीत थी । आशंकित थी । पर रोमांचित थी । वह सब क्या था ।



जस्सी के साथ क्या हुआ था ? क्या वही टार्जन लुक नौजवान उसकाप्रेमी था । बकौल राजवीर जिससे वह बात करती रहती थी । वह उस दृश्य में पहुँचकर नंगीकैसे हो गयी थी । तब जस्सी के साथ क्या होता था । क्या वह उसके साथ काम सुख प्राप्त कर चुकी थी । भय की इन परिस्थितियों में भी येविचार एक साथ दोनों के दिमाग में आ रहे थे । औरभारी हलचल मचाये हुये थे ।
दूसरे राजवीर इस मामले की खेली खायी औरत थी । उसे साफ़ साफ़ लग रहा था। आज करमकौर उससे कुछ छुपा रही है । उसके चेहरे पर भय के वे रंग ही नहीं थे । जो होने चाहिये थे । बस एक क्षण को जब वह रहस्यमय चक्रवात की बात करती थी । तब वाकई लगता था कि वहसच बोल रही है । बाकी औरबात करते समय तो यही लगता था कि वह लण्डन की सैर करके आयी हो । भरपूररंगरेलियाँ मनायी हों ।पर बात इण्डियन कल्चर की कर रही हो । जाने क्यों राजवीर को दाल में कुछ काला सा नजर आया। बल्कि उसे पूरी दाल हीकाली नजर आ रही थी ।ालदाल तो सिर्फ़ उतनी ही थी । जब वह खिङकी के पारटार्जन लुक मछुआरे की बात करती थी । दाता ! क्या माजरा था । क्या बलाय घुस गयी थी घर में । उसकी खासमखास भी झूठ बोल रही थी । उसके मन में ये भी आया । काश ! वहजस्सी या करम कौर की जगहहोती । तो ये अनुभव उसकेसाथ भी होता । तब उसने मन ही मन तय किया । रात बारह बजे वह खुद भी खिङकी के पास आकर जादू देखेगी कि आखिर सच क्या है ?
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- ओये बेबे ! सच मैं साफ़साफ़ देख रहा हूँ । गुरुदेव सिंह दोनों के स्तनों का दृष्टिक रसपान करता हुआ बोला - तेरे घर में बङी तगङी बलाय घुसी हुयी है । चारबङे बङे जिन्नात तो मेरे कू साफ़ साफ़ दिख रहे हैं । बस थामने की देर है । फ़िर देखना । इस बाबे दा हुनर ।
गुरुदेव सिंह चौहान एक हरामी बाबा था । साधुओं के नाम पर कलंक था । दागथा । और अपनी हरामगीरी के चलते ही साधु बना था । वास्तव में उसने बाबाओं की संगति में दो चार जन्तर मन्तर सीख लिये थे । जिन्हें पढकर वो किसी के लिये ताबीज बना देता था । किसी को गण्डा बँधवा देता था । साधुओं की संगति में ही वह
वास्तविकता रहित नकली पूजा पाठ करना सीख गया था । और तांत्रिक गद्दी लगाने के थोथे आडम्बर सीख गया था । जिनसे न किसी को फ़ायदा होना था । और न ही कोई नुकसान । यह कुछ कुछ मनोबैज्ञानिक रूप से उनभृमित लोगों के लिये डिस्टल वाटर के डाक्टरीइंजेक्शन जैसा था । जिसे डाक्टर कोई भी बीमारी न होने पर सिर्फ़ इसलिये लगाते हैं कि उस मरीज को सीरियसली लगता है कि वो बीमार है । और पानी के इसी रंगीन इंजेक्शन के वह खासे पैसे वसूल करता है । और मरीज मनोबैज्ञानिक प्रभाव से ठीक होने लगता है ।
यही हाल बाबा गुरुदेव सिंह का था । उसका सिर्फ़ दिखावे का भेस था । जो अक्सर ही ज्यादातर पंजाब के नकलीबाबाओं की खासियत थी । वो कोई प्रेत बाधा ठीक करना नहीं जानता था । औरन ही उसे इन बातों की कोई समझ थी ।
पर इस बाबागीरी में उसे हर तरफ़ मौज मलाई मिली थी ।सो चैन की छानता हुआ वह इसी में रम गया था । कोईन कोई अक्ल का अंधा अंधीउससे टकरा ही जाता था । और फ़िर उसकी बल्ले बल्ले ही हो जाती थी ।
विधवा हो जाने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर टाइम पास करती करम कौर को किसी औरत के माध्यम से गुरुदेव सिंह का पता चला था । और तब वह उससे मिली थी । अपनी विधवा स्थितियों में वह मानसिक टेंशन में आ गयी थी । और शान्ति के लिये । अपने आगे के अच्छे दिनों की जानकारी के लिये वह बाबाओं के पास घूमती फ़िरी थी । तब से वह गुरुदेव सिंह से परिचित थी ।
गुरुदेव सिंह ने उसकी झाङ फ़ूँक शान्ति के नाम पर पूरा ऊपर से नीचेतक टटोल लिया था । यहाँ तक कि वह बहकने लगी थी ।और खुद उसका दिल होने लगा कि बाबा को स्वयँ बोल दे । मन्तर बाद में चलाना । पहले उसकी बचैनी दूर कर दे । और अभी कल से सतीश से जिस्मानी परिचय होने केबाद उसकी भावनायें अलग ही हो गयी थीं । जिन्दगीका जितना मजा लूट सकते हो लूटो । कल का कोई भरोसा नहीं । और स्वर्ग नरक किसने देखा है ।
- क्या ? वे दोनों सचमुचउछलकर बोली - क्या बाबाजी । चार चार जिन्नात । हाय रब्ब । येक्या मुसीबत है । बाबाजी आप कुछ करो ना । हमें इस मुसीबत से निकालने के लिये ।
गुरुदेव सिंह की बिल्लौरी आँखों में एक भूखी चमक उभरी । पर इस मामले में वह खासा समझदार था । उसने राजवीर को कमरे से बाहर जाने को कहा । और करम कौर को अन्दर ही रोक लिया । फ़िर उसने एक भभूति जैसी राख और कुछ मोरपंखी झाङन जैसा थैलेसे निकाला ।
कोई बीस मिनट बाद उसने राजवीर को अन्दर बुलाया। और करमकौर को बाहर जाने को कहा । अन्दर आतेसमय राजवीर ने देखा । करमकौर के चेहरे पर अजीव से रोमांच के भाव थे । क्या हुआ था । इसकेसाथ । उसने धङकते दिल सेसोचा । और डरते डरते अन्दर आ गयी । गुरुदेव सिंह ने उसे दरबाजा बन्द करने का आदेश दिया ।
कमरे में अजीव सी कसैली और मिश्रित दारू की सी गन्ध आ रही थी । जब वह गुरुदेव सिंह के पास आयी । तो उसे वैसी ही गन्ध उसके मुँह से महसूस हुयी । कमरे में सिगरेट का धुँआ अलग से भरा हुआ था । उस पर कमरा बन्द और होने से दमघोंटू वातावरण था । यह फ़र्जी साधुओं का औरतों को चक्कर में डालकर घनचक्कर बनाने कापुराना साधुई नुस्खा था। जिसे वह बेचारी नहीं जानती थी ।
- देख बेबे ! वह चेतावनी सी देता हुआ कठोर स्वर में बोला - तूने इलाज कराना हो । तो वैसा सोचना । ये जिन्नात का मामला बहुत बुरा होता है । ये औरत को सिर्फ़ औरत के तौर पर देखते हैं। तू समझ गयी ना । अगर तेरी सेवा के बदले राजी होकर तेरी छोरी को छोङ दे । तो उसके देखे । ये ज्यादा बुरा नहीं है । इसलिये तू पहले सोच ले ।फ़िर तू सोचे । इसमें मेरा कोई दोष है । मुझे तो दूसरे का दुख दूर करना ही ठीक लगता है । बाकी हम बाबाओं को दुनियाँदारी से क्या लेना ।
कुछ कुछ समझती हुयी । कुछ कुछ ना भी समझती हुयी राजवीर ने सहमकर उसके समर्थन में सिर हिलाया । जिन्नात का नाम सुनकर ही उसकी हवा खराब हो उठी थी । वो भी उसकी बेटी पर । वो भी उसके घर में । वह पूरा सहयोग करने को तैयार हो गयी ।
तब गुरुदेव सिंह ने उसे कमरे के बीचोबीच खङा कर दिया । और अगरबत्तियाँ सुलगा दी । फ़िर वह राजवीर के पास आया । और कोई तीखी गन्ध वाली जङी सी उसे सुंघाई । राजवीर हल्के हल्के नशे का सा अनुभव करने लगी । पर वह पूरे होश में थी ।
उसने सिन्दूर मिली भभूतउसके माथे पर लगा दी । फ़िर उसके ठीक पीछे आकर खङा हो गया । वह भभूत कीबिन्दियाँ सी उसके गाल पर लगा रहा था । वह राजवीर से एकदम सटकर खङा था । और उसके विशाल नितम्बों से लगा हुआ था ।
उसकी तरफ़ से कोई विरोधी प्रतिक्रिया न पाकर गुरुदेव सिंह ने उसकी कुर्ती में हाथ डाल दिया । और भभूत उसकेस्तनों पर मलने लगा । राजवीर उत्तेजित होने लगी । पर क्या हो सकता था । चुप रहना उसकी मजबूरी थी । बाबा उसके पूरे बदन पर हाथ फ़िरा रहा था । और फ़िर वह उसको बहकाता हुआ सा कमर के पास ले आया । पैरों के बीच उसका हाथ जाते हीराजवीर कसमसाने लगी । बाबा ने उसका बन्द खोल दिया ।
- चिन्ता न कर । वह फ़ुसफ़ुसाया - वह खुश हो जायेगा । फ़िर नुकसान नहीं करेगा । ठीक है ।
राजवीर ने समर्थन में सिर हिला दिया । बाबा नेउसको झुका दिया । और उसके नितम्बों के करीब हुआ । राजवीर ने भय से आँखे बन्द कर ली । फ़िर उसे अपने अन्दर कुछ सरकने का सा आभास हुआ । एक गरमाहट सी उसके अन्दर भरती जा रही थी । रोकते रोकते भी उसके मुँह से आह निकल गयी । फ़िर उसके विशाल अस्तित्व पर चोटों की बौछार सी होने लगी । और वह बेदम सी होती चली गयी।
क्या अजीब बात थी । वह भूल गयी थी । किसलिये आयी है । क्या परेशानी है । और उस नयी स्थिति को अनुभव करती हुयी पूर्णतया आत्मसात करने लगी । एक ऊँची हाँफ़ती सी चढाई चढती हुयी । वह गहरी गहरी सांसे लेने लगी । तब बाबा उसके ऊपर ढेर हो गया । राजवीर के अन्दर गर्म लावा सा बहने लगा ।
खिङकी की झिरी से आँख लगाये खङी करम कौर अलग हट गयी । उसके चेहरे पर अजीव सी मुस्कराहट थी । राजवीर ने कोई विरोध नहीं किया । इस बात की उसे बङी हैरत हुयी । उसेलगने लगा । उसकी तरह शायद राजवीर भी बहुभोग की अभ्यस्त थी । या फ़िर औरत होती ही ऐसी है कि जल्दी समर्पण कर देती है । कुछ भी हो । इस बात के लिये वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची ।
आखिर इस जिन्दगी का ही क्या निष्कर्ष है ? शायद कोई नहीं जानता । एक विशाल तूफ़ानी सैलाव की तरह जिन्दगी सबको बहाये ले जा रही है । कल जो अच्छा बुरा हुआ था ।उस पर हमारा कोई वश नहीं था । आगे भी जो होगा । उस पर भी कोई वश नहीं होगा । बच्चों की टाय ट्रेन की सीट पर बैठे किसी नादान बच्चे के समान ही इंसान जिन्दगी की इस रेल में गोल गोल घूम रहा है ।
रोज दिन होता है । रोज फ़िर वही रात होती है । रोज वही निश्चित दिनचर्या । कोई मरता है । कोई जीता है । कोई सुखी है । कोई दुखी है । कोई अरमानों की सेजपर मिलन के फ़ूल चुन रहा है । कोई विरहा के कांटों से घायल दिन गिन रहा है । पर जिन्दगी मौत को इस सबसे कोई मतलब नहीं ।उसका काम निरन्तर जारी ही रहता है ।
जस्सी की समस्या का भी कोई हल अभी समझ में नहीं आया था । बल्कि अभी समस्या ही समझ में नहीं आयी थी । बल्कि कभी कभी ये भी लगता था कि उसे दरअसल कोई समस्या ही नहीं थी । उसकी सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल आयी थी । उनमें वीकनेस जैसा कुछ शो करने वाला भी कोई प्वाइंट नहीं था । तब डाक्टरों ने वैसे ही उसे टानिक टायप सजेस्ट कर दिया था ।
और वह पहले की तरह आराम से कालेज जाती थी । हाँ बस इतना अवश्य हुआ था कि राजवीर ने अब मनदीप से छुपाना उचित नहीं समझा था । और उसे सब कुछ न सिर्फ़ बता दिया था । बल्कि मौके पर दिखा भी दिया था । तब बराङ पहली बार चिंतित सा नजर आया ।और गम्भीरता से इस पर सोचने लगा । पर वह बेचारा क्या सोचता । ये तो उसके पल्ले से बाहर की बात थी । वह सिर्फ़ महंगे से महंगा इलाज करा सकता था । किसी की ठीकठाक राय पर अमल कर सकता था । या फ़िर शायद वह कुछ भी नहीं कर सकता था । और कुदरत का तमाशा देखने को विवश था । और तमाशा शुरू हो चुका था ।
सुबह के नौ बज चुके थे । जस्सी स्कूटर से कालेज जा रही थी । हमेशा की तरह उसके पीछे चिकन वाली उर्फ़ गगन कौर बैठी हुयी थी । और वह रह रहकर जस्सी के नितम्बों पर हाथ फ़िराती थी ।
जस्सी को उसकी ऐसी हरकतों की आदत सी पङ चुकी थी । बल्कि अब ये सब उसे अच्छा भी लगता था । गगन इस मामले में बहुत बोल्ड थी । जब क्लासरूम में टीचर ब्लेक बोर्ड पर स्टूडेंट की तरफ़ पीठ किये कुछ समझा रहा होता था । वह जस्सी को शलवार के ऊपर से ही सहलाती रहती थी । और जब तब उसके स्तन को पकङ लेती थी । उत्तेजित होकर मसल देती थी ।
- जस्सी । ख्यालों में डूबी गगन बोली - काश यार क्लासरूम की सीट पर कोई ब्वाय हमारे बीच में बैठा होता । तो मैं उसका हैंडिल ही घुमाती रहती । और वह बेचारा चूँ भी नहीं कर पाता ।
- क्यों ! जस्सी मजा लेती हुयी बोली - वो क्यों चूँ नहीं कर पाता । क्या वो टीचर को नहीं बोल सकता । तू उसका पाइप उखाङने पर ही तुली हुयी है ।
- अरे नहीं यार । वह बुरा सा मुँह बनाकर बोली - ये लङके बङे शर्मीले होते हैं । वो बेचारा कैसे बोलता । मैं उसके साथ क्या कर रही हूँ । देख तू कल्पना कर । तू किसी भीङभाङ वाले शाप काउंटर पर झुकी हुयी खङी है । अबाउट45 डिगरी । फ़िर पीछे से तुझे कोई फ़िंगर यूज करे । अपना हैंडिल टच करे । बोल तेरा क्या रियेक्ट होगा ।
- मैं चिल्लाऊँगी । शोर मचाऊँगी । उसको सैंडिल से मारूँगी ।
- ओह शिट यार । ये सब फ़ालतू के ख्यालात है ।कोई भी ऐसा नहीं कर पाता । देख मैं बताती हूँ । क्या होगा । तू यकायक चौंकेगी । सोचेगी । ये क्या हुआ । और फ़िर तेरा माउथ आटोमैटिक लाक्ड हो जायेगा । तू सरप्राइज्ड फ़ील करेगी । एक्साइटिड फ़ील करेगी । अब 1% को मान ले । तू चिल्लायेगी । उसको सैंडिल से मारेगी । मगर जमा पब्लिक को क्या बोलेगी । उसने तुझे सेक्सुअली टच किया । कहाँ किया । कैसे किया । बता सकेगी । साली इण्डियन लेडी । भारतीय नारी । घटिया सोच ।
जस्सी भौंचक्का रह गयी । वह चिकन वाली को बे अक्ल समझती थी । पर वह तो गुरुओं की भी गुरु थी । पहुँची हुयी थी । नम्बर एक कमीनी थी । टाप की नालायक थी ।
- एम आई राइट ! गगन फ़िर से बोली - वो मुण्डा कुछ नहीं कह सकता ।मानती हैं ना । और फ़िर वो सालिआ क्यों कहने लगा । स्टडी और रोमेंस एक साथ । एक टाइम । किसी नसीब वाले को ही नसीब हो सकते हैं ।
जस्सी को लगा । वह एकदम सही कह रही है । हकीकत और कल्पना में जमीन आसमान का अन्तर होता है । एक बार उसको भी एक आदमी ने उसके नितम्ब पर चुटकी काटी थी । पर तब वह सिटपिटा कर भागने के अलावा कुछ नहीं कर पायी थी ।
- जस्सी । गगन फ़िर बोली - तुझे मालूम है । मेरी वर्जिनिटी ब्रेक हो चुकी है । मैंने बहुत बार एंजाय किया है ।
जस्सी लगभग उछलते उछलते बची ।
- हाँ यार । वो साला मेरा एक ब्वाय फ़्रेंड था । मेरे पीछे ही पङ गया सालिआ । एक दिन वो मेरे को अपने दोस्त के खाली के मकान में ले गया । और मेरे लेप डाउन में अपना पेन ड्राइव इनसर्ट कर दिया । सालिआ अपना पूरा डाटा ही डाउनलोड करके उसने मुझे छोङा ।अभी मोटी अक्ल की भैंस । ये मत बोलने लगना कि - ये लेप डाउन क्या
होता है ? लेप टाप साले गंवार बोलते हैं । अभी तू बोल । लेपी कम्प्यूटर गोद में नीचे रखते हैं । या ऊपर ? जब गोद ही नीची हुयी । तो लेपी टाप कैसे हुआ । तब डाउन ही बोलो ना उसको ।
जस्सी के मुँह से जोरदार ठहाका निकला । क्या फ़िलासफ़ी थी साली की । एकदम सेक्सी बिच । इसको हर जगह हर समय एक ही बात नजर आती थी । हर डण्डे में अपनी झण्डी फ़ँसाना । क्या कुङी थी ये चिकन वाली भी ।
उसका अच्छा खासा सुबह सुबह का पढाई का मूड कमोत्तेजना में परिवर्तित हो गया था । एक तो वैसे ही सुन्दर और सेक्सी लङकी हर विपरीत लिंगी नजर के बर्ताव से सेक्सी फ़ीलिंग महसूस करती है ।उस पर गगन जैसी सहेली हो । फ़िर तो क्या बात थी । उसके बदन में चीटियाँ सी रेंगने लगी । एक भीगापन सा उसे साफ़ साफ़ महसूस हो रहा था । उसका दिल करने लगा था । गगन उससे किसी ब्वाय फ़्रेंड सा बर्ताव करे । और उसके जजबातों को दरिया खुलकर बहे । फ़िर उसने अपने आपको कंट्रोल किया ।
लेकिन अब नियन्त्रण करना मुश्किल सा हो रहा था । इस उत्तेजना को चरम पर पहुँचाये बिना रोका नहीं जा सकता था ।इच्छाओं का बाँध पूरे वेग से टूटने वाला था । सो उसने स्कूटर को कालेज की बजाय एक कच्चे रास्ते पर उतार दिया । जहाँ झूमती हुयी हरी भरी लहराती फ़सलों के खेतों का सिलसिला सा था । गगन एक पल को चौंकी । पर कुछ बोली नहीं । वे दोनों खेत में घुस गयी ।और एक दूसरे से खेलती हुयी सुख देने लगी ।
और तब जब जस्सी निढाल सी थकी हुयी सी सुस्त पङी थी । उसका दिमाग शून्य होने लगा । उसे तेज चक्कर से आने लगे । उसकी आँखे बन्द थी । पर उसे सब कुछ दिख रहा था । पूरा खेत मैदान उसे गोल गोल घूमता सा प्रतीत हुआ । खेतों में खङी फ़सल । आसपास उगे पेङ । उसका कालेज । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक भयानक तेज आँधी सी आ रही है । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । गगन । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक जस्सी की आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उन्हें उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वे दोनों जंगल में भागने लगी ।पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उनको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकङाती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वे दोनों बिछङ गयीं । और जस्सी एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
और तब जस्सी का सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी बेहोश हो गयी । अपनी धुन में मगन गगन कौर के मानों होश ही उङ गये । उसकी हालत खराब हो गयी । अचानक उसे कुछ नहीं सूझ रहा था । कुछ भी तो नहीं ।
 
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Update no 4
पंजाब का खूबसूरत दिलकश वातावरण । हरे भरे खेतों से गुजरती हुयी ठण्डी मस्त हवा । बढिया मौसम । साफ़ और निर्मल पानी इस क्षेत्र की पहचान थी । कम आबादी के बीच सुन्दर तन्दुरुस्त औरतों का नजारा यहाँ आम था । ये पंजाब की हरियाली में रंग बिरंगे फ़ूलों की तरह खिली मालूम होती थी । और अपने यौवनांगों से किसी फ़लदार वृक्ष की भांति लदी मालूम होती थी । अलग अलग साइज के मनमोहक विशाल नितम्बों और खूबसूरत गोल नोकीले स्तनों वाली लङकियाँ दिलोदिमाग में आदिम प्यार की लहर सी उठाती थी । पंजाब का खाना पीना भी बहुत बढिया था । मक्की । ईख । गुङ । दूध से बनी बहुत सी चीजों लस्सी । मक्खन । दही । देसी शुद्ध घी । मलाई आदि आराम से शुद्ध रूप में उपलब्ध थी । तमाम पंजाबी लोग सरसों का साग । पालक । गोभी । गाजर । मूली । शलजम । आलू मटर । चने भटूरे । राजमाह । सोयाबीन । पनीर आदि खाने के बहुत शौकीन थे । खायो पियो । मौज उङाओ । जिन्दगी का पूरा पूरा मजा लो । यहाँ का प्रमुख सिद्धांत था । पंजाब की औरतें पनीर की तरह गोरी नरम गरम और तन्दुरुस्त अहसास देने वाली थी । मर्द शराब पीने के बहुत शौकीन थे । चाहे अंग्रेजी हो । या देशी । वे शराब रोज पीते थे । पंजाब की लडकियाँ कम उमर में ही कमसिन और जवान लगने लगती थी ।
ये शायद कुछ अजीव सी ही बात थी कि देश विदेश पूरी दुनियाँ घूम चुका प्रसून पंजाब पहली ही बार आया था । और आधुनिकता और पुरातनता के इस अनोखे खूबसूरत संगम से काफ़ी हद प्रभावित हुआ था । खास जब अधिकांश स्थानों की फ़िजा प्रदूषित हो चुकी थी । पंजाब अभी भी बहुत शुद्ध था । और जीवन की उमंगों से भरपूर था ।
वह पिछले तीन दिनों से यहाँ था । और अजीव सी उलझन में था । मनुष्य की सीधी साधी जिन्दगी में कितनी घटनायें हो सकती हैं । और उनके कितने प्रकार हो सकते हैं ? इसका वह अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पाया था । और ये पहला दिलचस्प केस था । जिसमें व्यक्तिगत तौर पर उसकी खुद की दिलचस्पी जागी थी । और उसे हैरानी थी कि पिछले तीन दिनों में वह किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँचा था । निर्णय पर पहुँचता तो तब । जब सामने कोई बात नजर आती । जस्सी एकदम सामान्य थी । और पिछले तीन दिनों से न सिर्फ़ आराम से सोयी थी । बल्कि उसने सभी रुटीन भी पूरे किये थे ।
तब यदि उसके बाधा क्षणों के शूट किये गये वीडियो क्लिप यदि राजवीर ने न बनाये होते । तो उसे यही लगता कि ये लोग किसी भूत प्रेत के भृम का शिकार हो गये हैं । और तब पहले तो वो यहाँ आता ही नहीं । और यदि आता भी तो उन्हें समझा बुझाकर तुरन्त लौट जाता । वीडियो क्लिप वाली जस्सी और इस बेहद खूबसूरत जस्सी की कहानी एकदम अलग अलग ही थी ।
उसने एक सिगरेट सुलगायी और जस्सी की तरफ़ गौर से देखा । शाम का समय था । और अब तक कुछ भी समझ में न आने से वह घूमने के उद्देश्य से जस्सी के साथ उसके खेतों की तरफ़ निकल आया था । करीना कपूर जैसे लुक वाली गगन कौर उसके साथ थी । क्या कमाल की कुङी थी जस्सी भी । लगता है । ये किसी औरत से पैदा न होकर सीधा आसमान से उतरी हो ।
किसी हाई क्वालिटी अंग्रेज गोरी के लुक वाली इस अनिद्ध सुन्दरी की बिल्लौरी आँखे एकदम गहरे हरे रंग की थी । जो संभवतः उसके बाप मनदीप की गहरी भूरी आँखों पर गयी थी । जबकि राजवीर की आँखें काली ही थी
अत्यन्त तीखे नयन नक्श वाली दूध सी गोरी लम्बी तन्दुरुस्त जस्सी किसी एंगल से पंजाबी नहीं लगती थी । उसके लम्बे नागिन से लहराते बाल उसके घुटनों को छूते थे ।
गगन और जस्सी उससे दूर खङी थी । और शायद आपस में उसी के बारे में बातें कर रही थी । पर उसका पूरा ध्यान जस्सी और उसकी अदभुत समस्या पर ही केन्द्रित था । और अभी तक उसने सिर्फ़ इतना ही महसूस किया था कि उनकी कोठी पर किसी प्रकार की प्रेत छाया नहीं थी । जैसा कि राजवीर और करम कौर का ख्याल था । और जैसा कि अब इस दुनियाँ को रहस्यमय तरीके से अलविदा कह चुके ढोंगी बाबा गुरुदेव सिंह ने उन्हें जिन्न बाधा बताया था । जस्सी के कमरे में या उसकी खिङकी के पार भी कहीं कुछ नहीं था । जैसा कि उसे विवरण में बताया गया था । सबसे बङी बात जस्सी के दिमाग में कुछ नहीं था । जो कि उसने खुद देखा था । मगर उन वीडियो क्लिप में बहुत कुछ था । जो एन बाधा के वक्त किसी अज्ञात प्रेरणा से शूट हो गये थे । और प्रसून को एक नये खेल की चुनौती दे रहे थे ।
वह बखूबी जानता था । यदि इन क्लिप को किसी ऊँचे डाक्टर को दिखाया जाता । तो वो बिना किसी चेकअप के तुरन्त एक बीमारी की घोषणा कर देता - नींद में चलना । खुद उसका भी ख्याल कुछ कुछ ऐसा बनते बनते रह जाता था । पर उन क्लिप में जो वह देख रहा था । वो कोई डाक्टर शायद कभी न देख पाता । और वही तो अदभुत था । बेहद अदभुत ।
उसने आधी हो चुकी सिगरेट का अंतिम कश लिया । और सिगरेट को दूर उछाल दिया । फ़िर जब कोई बात उसे समझ में नहीं आयी । तो वह जवान लङकियों की दिलचस्प बातों में शामिल होने की जिज्ञासा लिये उनके पास आ गया । ये शायद पंजाव की फ़िजा का रोमांटिक प्रभाव था ।
- प्रसून जी ! जस्सी उसकी तरफ़ आकर्षित होकर मधुर स्वर में बोली - वैसे तो आप इंटरनेशनल पर्सन हो । पर पंजाब में । खास हमारे घर में । और हमारे ही सामने आपको मौजूद देखकर हम कितना ग्रेट फ़ील कर रहे हैं । शायद आप सोच भी नहीं सकते । ये चिकन वाली बोल रही है । प्लीज प्रसून जी से राजीव जी के बारे में कुछ पूछ ।
प्रसून यहाँ आने से कुछ ही पहले विदेश से लौटा था । उसके बाल कन्धों तक बङे हुये थे । किसी बर्फ़ीले स्थान में रहने के बाद उसकी गोरी रंगत किसी अंग्रेज के समान ही नजर आने लगी थी । और उसका लुक एकदम माइकल जेक्सन जैसा लग रहा था । जो लगभग उसी जैसे लुक वाली जस्सी को खासा आकर्षित कर रहा था । और चिकन वाली को सेक्सुअली एक्साइटिड कर रहा था । दोनों लङकियों ने उसे इम्प्रेस करने के लिये खासा सेक्सी परिधान पहना था । वे एक लूजर के साथ जींस पहने थी । उनके शर्ट से झलकते अधखुले उरोज मानों छलछलाकर बाहर निकलना चाहते थे ।
पर जब प्रसून ने इसका कोई नोटिस ही नहीं लिया । तो चिकन वाली खास तौर पर झुँझला गयी । और आदतानुसार चिढकर जस्सी से बोली - देख जस्सी । ये सालिआ मेरी बहुत इनसल्ट कर रहा है । ऐसा न हो कि ये कुछ और बात कर दे । नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगी । उदास हो जाऊँगी । निराश हो जाऊँगी । मैं रो पङूँगी । गुस्से में आकर इसका... काट दूँगी । टुईं.. टुईं । आई लव यू प्रसून बाबा ।
तब जस्सी ने बङी मुश्किल से उसका मूड चेंज किया । और फ़िर जब प्रसून उनकी तरफ़ मुङा । तो दोनों के दिल में मीठी मीठी अनुभूति सी हुयी । गगन की दरार तो रोमांच से भर उठी ।
- मैं..मैं इंटरनेशनल पर्सन ! वह उलझता हुआ सा बोला - ये क्या बोल रही हो आप ? और ये मिस्टर राजीव जी कौन हैं ?
- क्या ? दोनों लगभग उछल ही पङी । उनके छक्के छूट गये - आप राजीव जी को नहीं जानते । एक मिनट । गगन कुछ सोचते हुये बोली - और मानसी और नीलेश को ?
प्रसून कुछ देर सोचता सा रहा । मानों कुछ याद कर रहा हो । फ़िर वह बोला - नो । इनको भी नहीं । मैंने यह नाम शायद पहली बार सुने हैं ।
अबकी बार तो वे दोनों हङबङा ही गयीं । तब अचानक गगन कौर को बहुत ही अक्ल की बात सूझी । और वह जस्सी को लेकर थोङी दूर हो गयी । और फ़ुसफ़ुसाकर बोली - ये सालिआ 100% नकली है । ढोंगी है । फ़्राड है । राजीव जी की वजह से प्रसून को पूरा पंजाब जानता है । दुनियाँ जानती है । और ये बोल रहा है कि राजीव जी को नहीं जानता ।
हालांकि जस्सी को उसकी बात में दम लगा । पर वह इस हैंडसम से बहुत आकर्षित थी । एक तरह से दिल ही दिल मर मिटी थी । सो उसे गगन की ये बात उस टाइम बिलकुल अच्छी नहीं लगी ।
और वह भी फ़ु्सफ़ुसाकर बोली - गगन । गगन तू अक्ल से काम ले । तूने कौन सा राजीव जी को देखा है । अभी तू खुद उनसे जाकर बोले - आप प्रसून जी को जानते हैं । और बह बोलें । कौन प्रसून जी ? हो सकता है । यह बात भी हो । वह बोलें । कौन राजीव जी ? डार्लिंग हमें इस घनचक्कर से क्या लेना है । जो सामने हैं । उसको पकङ ना । या उसका पकङ ना ।
ये बात गगन के दिल पर सीधा टकरायी । कोई भी हो सालिआ । इससे क्या लेना । बस उसका स्टेयरिंग घुमाना है । और फ़िर वो जवान भी है । हैण्डसम भी है । भाङ में जाये ये सी आई डी । कौन राजीव जी एण्ड कौन प्रसून जी ।
- अच्छा छोङिये । जस्सी अपनी सुरीली आवाज में बोली - आप यू पी से बिलांग करते हैं ।
- नो ! वह भावहीन स्वर में बोला - कर्नाटक बैंगलौर से । ऐड्रेस बोलूँ क्या ? और मैं कीट बैज्ञानिक हूँ । पर उसके बजाय मनोबिज्ञान में मेरी खास दिलचस्पी है । मैंने अपनी गर्ल फ़्रेंड मार्था के साथ प्रेतों पर भी काफ़ी टाइम रिसर्च किया । और इस निष्कर्ष पर पहुँचा । भूत प्रेत महज अंधविश्वास है । प्रेत के नाम पर मैंने आज तक एक चुहिया भी नहीं देखी । आप लोगों को अभी तक कोई ऐसा एक्सपीरियेंस हुआ है । हुआ हो । तो प्लीज प्लीज मुझे बताईये । प्लीज प्लीज..याद करने की कोशिश करो । यदि कुछ भी..प्रेत के नाम पर एक मच्छर भी साबित हो जाय । तो मेरा रिसर्च से जुङा बहुत बङा काम हो जायेगा । फ़िर मार्था मुझे कम से कम दो नाइट के लिये एंजाय करायेगी । और मैं ऐसा चाहता भी हूँ ।



दोनों हसीनाओं के पास मानों शब्द ही शेष नहीं थे । जो वे कुछ कह पाती । उन्हें ऐसा लग रहा था । मानों उनका मूड ही खराब हो गया हो । उन्हें प्रसून के शब्द सुनाई दे रहे थे । प्लीज..प्लीज..प्लीज ।
जस्सी की निगाह दूर टिमटिमाते बल्ब पर गयी । अंधेरा घिर चुका था । और वे तीनों साये से नजर आने लगे थे । खेतों के आसपास के वातावरण में रात्रिचर कीटों की विभिन्न विचित्र आवाजें गूँजने लगी थी ।
उसकी एकटक निगाह उस जलते बल्ब के लाल बिन्दु पर टिकी सी रह गयी थी । उसकी आँखें किसी प्रेत के समान ही स्थिर हो गयी थी । गगन उसकी हालत से एकदम अनभिज्ञ थी । जस्सी शून्य 0 में घूम रही थी । और उसे रिकार्ड पर अटकी सुई की भांति प्रसून का यही शब्द सुनाई दे रहा था - प्लीज .प्लीज प्लीज..।
तब विलक्षण योगी रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराया । उसका प्रयोग एकदम सफ़ल रहा था । जो घटना जो क्रिया उसके आने से उसके प्रभाव से समाप्त हो गयी थी । उसे वह वापिस ले आया था । और खास इसीलिये वह दोनों लङकियों के साथ यहाँ एकान्त में आया था । और अंधेरा होने का ही इंतजार कर रहा था । जस्सी कहाँ हैं । और क्या देख रही है ? ये सब उसके लिये अब खुली किताब पढने जैसा ही था ।
किसी शराबी की तरह झूमकर गिरती जस्सी को उसने गिरने से पहले ही बाँहों में थाम लिया । और किसी प्रेमिका की तरह अपनी बाँहों में भींच लिया । उसका ढीला ढाला लूजर उसके कन्धों से खिसक गया था । और उसके कठोर स्तन बाहर निकलकर प्रसून के सीने से दबे हुये थे । पर उस तरफ़ उसका कोई ध्यान न था । और वह किसी दीवाने के समान जस्सी के गालों से मुँह सटाये था । जस्सी की सांस बेतरह तेज चल रही थी । और उसके मुँह से हूँ हूँ हूँ की बहुत हल्की आवाज निकल रही थी । तब उसने जस्सी के होठों को अपने होठों में दबा लिया । और एक हाथ से उसके गोल गोल स्तनों को सहलाने लगा ।
गगन तो मानों भौचक्का ही रह गयी । उसके सारे बदन में चीटियाँ रेंगने लगी । उसका हाथ स्वयँ उसकी टाँगों के बीच जा पहुँचा । और स्वाभाविक ही वह अगले पल जस्सी और अपने साथ प्रसून के अभिसार की कल्पना करने लगी । पर वह बेहद हैरान थी । बीस मिनट से ऊपर होने जा रहे थे । और प्रसून उसी तरह जस्सी के होठों का रस पी रहा था । उसके स्तन मसल रहा था । नितम्बों को सहला रहा था । जस्सी तङप तङप कर उससे एकाकार होने को बेताब हो रही थी । पर ये उसे भी दिखाई नहीं दे रहा था कि वास्तव में वह अपने होश में ही नहीं थी ।
और उस समय तो उसे बेहद ताज्जुब हुआ । जब प्रसून ने जस्सी को उठाकर कार की सीट पर लिटाया । और उससे गगन जी बैठिये प्लीज बोला । तब उसने यही सोचा था कि वह कार की सीट पर सेक्स करने वाला है । पर उसके बैठते ही प्रसून ने गाङी स्टार्ट कर आगे बङा दी । जस्सी पीछे बेहोश पङी थी । और गगन जानबूझकर आगे उसके पास बैठी थी कि शायद प्रसून उसके साथ भी वैसा ही कुछ करने वाला है । पर उसने एक सिगरेट सुलगा ली थी । और आराम से सामने देखता हुआ ड्राइव कर रहा था । यहाँ तक झुँझलाकर गगन ने अपने स्तन लगभग बाहर कर लिये । और प्रसून से सटने लगी । पर वह जैसे वहाँ था ही नहीं । उसने कुछ झिझकते हुये से उसकी पेंट पर हाथ रख दिया । और वासना से भरी हुयी उसे टटोलने लगी । लेकिन उसे फ़िर भी कोई प्रतिक्रिया नजर नहीं आयी । तब उसने सोचा । वह साइलेंट गेम का ख्वाहिशमन्द हो रहा है । उसने अपनी शर्ट कन्धों से खिसका दी । और प्रसून की जिप खोल दी ।
वास्तविकता ये थी कि प्रसून अपनी पर्सनालिटी और योग मजबूरियों के चलते कई बार ऐसी स्थितियों में फ़ँस चुका था । इस लङकी को कोपरेट करना उसके लिये आवश्यक था । तब वह जस्सी पर फ़ुल एक्सपेरीमेंट कर सकता था । इस लङकी का जस्सी के साथ होना उसे तमाम शकों से दूर रखता था । दूसरे ये जस्सी के बारे में वह सब बता सकती थी । जो शायद उसके माँ बाप या दूसरा कोई और नहीं बता सकता था ।
इसके साथ ही जस्सी को जिस अटकाव बिन्दु से पार कराने के लिये उसने अभी अभी लोंग किस आदि किया था । उससे वह हल्की उत्तेजना भी महसूस कर रहा था । आखिर वह भी योगी से पहले एक इंसान था । उसके द्वारा कोई विरोध न करने पर चिकन वाली ने इसे उसकी मौन स्वीकृति समझा था । और वह पूरी बेतकल्लुफ़ी से उसकी टांगों के मध्य हाथ चला रही थी । उसने उसकी पेंट ऊपर से भी खोल दी । और जांघिये में हाथ ले गयी । उसकी सहूलियत के लिये प्रसून समकोण से अधिक कोण हो गया था । और उसने पैरों को फ़ैला लिया था ।
गगन को जैसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ये क्षण उसके साथ ही घट रहे हैं । पर उसे हैरत भी हो रही थी । बीस मिनट से अधिक हो गये थे । प्रसून धीमी स्पीड में ड्राइव कर रहा था । पर न तो उसका घर ही आया था । और न ही प्रसून में कोई उत्तेजना पैदा हो रही थी । पर उसे नहीं पता था । गाङी विपरीत दिशा में जा रही थी । और प्रसून समता भाव का प्रयोग दुहराता हुआ योग में स्थित था । गगन की हालत खराब होने लगी । और वह सिसकती हुयी प्लीज प्रसून जी प्लीज सून करने लगी ।
तब उसने गाङी रोक दी । और गगन को सीट पर झुका दिया । उसके कठोर स्पर्श का अहसास होते ही उसकी आँखें बन्द हो गयी । एक पीङा भरी गर्माहट उसके अन्दर समाती जा रही थी । और फ़िर वह मीठे दर्द का अहसास करने लगी । वह दर्द जिसे पाने के लिये हर औरत तङपती है । वह अहसास जिसका रोमांच हर औरत के रोम रोम में समाया होता है ।
- क्या ? जस्सी उछलकर बोली - क्या सच में उसने मेरे साथ ऐसा किया था ।
उसके दरबाजे के समीप आ चुकी करम कौर के एकदम से कान खङे हो गये । शाम के चार बजे थे । वह राजवीर से मिलने आयी थी । पर सतीश से पता चला कि राजवीर बराङ साहब के साथ बाजार गयी हुयी थी । तब वह जस्सी के पास बैठने उसके कमरे की तरफ़ चली आयी थी । लेकिन कमरे में घुसने से पहले ही उसके कानों में गगन की आवाज पङी । और वह वहीं छुपकर सुनने लगी ।
- हाँ यार । गगन मगन सी होती हुयी बोली - पर तू भी साली ना । एकदम बेबकूफ़ ही है । एंजाय के टाइम सो जाती है । पता नहीं बेहोश हो जाती है । पता नहीं क्या हो जाता है तुझे । पूरा थर्टी मिनट उसने तुझे बिना ब्रेक किस किया । इधर का तो । उसने उसके स्तनों से इशारा किया - पूरा रस ही निचोङ दिया सालिआ ने । ओह गाड ! काश मुझे उस वक्त वह सब शूट करने की अक्ल आ गयी होती । क्या यादगार लम्हे थे ।
- फ़िर । जस्सी अपनी बङी बङी ग्रीन आँखें आश्चर्य से गोल गोल घुमाती हुयी बोली - फ़िर । फ़िर क्या किया ।
उन क्षणों को याद कर रोमांचित सी हुयी गगन नमक मिर्च लगाकर उसे सब बताती चली गयी । खासतौर से उसकी पौरुष क्षमता विशालता का उसने आदतानुसार अतिश्योक्ति वर्णन किया । जस्सी के सुन्दर चेहरे पर लज्जा और शर्म की लाली सी फ़ैलती चली गयी । अपने मधुर ख्यालों में वह अपने प्रेमी प्रियतम प्रसून के साथ किसी सुन्दर परी की तरह नीले अनन्त आकाश में उङती ही चली गयी ।
पर करम कौर पर इस आँखों देखे हाल सुनने का अलग ही असर हुआ । एक लस्टी पूर्ण पुरुष । और वह कामनाओं की भूखी एक औरत । स्वाभाविक ही उसने सोचा । क्या प्रसून उसकी तरफ़ आकर्षित हो सकता है । जरूर हो सकता है । वर्णन के अनुसार वह वाकई अनुभवी था । और ऐसे आदमी को तृप्त करना इन अनाङी लङकियों का वश नहीं था । जो इस खेल की सही ए बी सी डी भी नहीं जानती थी । उसको तृप्ति के चरम पर पहुँचाने के लिये करम कौर ही दम खम वाली थी । सेक्सी थी । अनुभवी थी । और हर तरह से पूरी औरत थी ।
वह दबे पाँव हाल में पहुँची । जहाँ सोफ़े पर अधलेटा सा प्रसून टीवी देख रहा था । उस पर निगाह पङते ही करमकौर अन्दर से दृवित सी होने लगी । क्या पर्सनालिटी थी लङके की । जैसे माइकल जैक्सन हेल्दी हो गया हो । करमकौर की आहट मिलते ही प्रसून उसकी तरफ़ आकर्षित होकर औपचारिक भाव से मुस्कराया । और बङी मधुरता से शालीनता से संक्षिप्त में बैठिये बोला ।
करमकौर को लगा । इसके सामने बैठने मात्र से ही वह नियन्त्रण खो देगी । लङकियों से लाइव कमेंटरी सुनकर पहले ही उसका बुरा हाल था । फ़िर प्रसून की मोहिनी मुस्कराहट और सम्मोहिनी दृष्टि से वह भावित होकर पानी पानी होने लगी । उसके अन्दर की पूर्ण औरत की मानों एक दृष्टि में ही धज्जियाँ उङ गयी । अब वह क्या चरित्र करे । अब तो वह सीधा सीधा कहना चाहती थी । प्लीज एक बार मुझे भी जिन्दगी में यह यादगार सुख दे दो । जन्म जन्म को तुम्हारी गुलाम हो जाऊँगी । तुम्हारे तलवे चाटूँगी ।
प्रसून किसी इंगलिश चैनल पर एक अजीव सी बोरिंग जैविक सरंचना पर डाक्यूमेंटरी देख रहा था । और उसने करमकौर पर दोबारा दृष्टि तक नहीं डाली थी । इससे करमकौर मन ही मन कसमसा रही थी । उसने बङे गौर से टीवी में चल रहे दृश्य को समझने मन लगाने की कोशिश की । पर उसको डाक्यूमेंटरी समझना तो दूर ।



वह क्या और किसका दृश्य है । यह तक समझ में नहीं आ रहा था । स्क्रीन पर एक मिनट देखना मुश्किल हो रहा था । और वह बेबकूफ़ इस तन्मयता से देख रहा था । मानों कैटरीना कैफ़ सेक्सी डांस कर रही हो ।
वह समझ गयी । यदि वह एक घण्टा भी वहाँ बैठी रहती । तो भी प्रसून उसकी तरफ़ ध्यान देने वाला नहीं था । सो यदि उसे मौके का फ़ायदा उठाना था । तो उसे ही कुछ करना था । उसने बैचेनी से पहलू बदला ।
और बोली - एक्सक्यूज मी । प्रसून जी ! मैं आपको डिस्टर्ब तो नहीं कर रही । ऐसा हो तो मैं फ़िर चली जाऊँ । एक्चुअली मुझे जस्सी के बारे में बङी फ़िक्र है । उसकी कुछ जिज्ञासा सी थी । प्लीज डोंट माइण्ड ।
वह मानों सोते से जागा । और तुरन्त उसकी तरफ़ आकर्षित सा हुआ । वास्तव में यह उसकी असभ्यता थी । एक महिला उसके पास बैठी थी । और वह उसे उपेक्षित कर रहा था ।
- नो नो । वह अफ़सोस सा करता हुआ बोला - इनफ़ेक्ट गलती मेरी ही थी । असल में जो मैं देख रहा था । वह बीच में था । इसलिये मैं आपको कंपनी नहीं दे पा रहा था । पर चलो । अब वह कम्पलीट हो गया । हाँ आप बोलिये ना ।
करमकौर की बाँछे खिल गयी । इसी पल का तो उसे इन्तजार था । और समय उसके पास बिलकुल नहीं था । कभी भी राजवीर आ सकती थी । जस्सी गगन आ सकती थी । कोई और भी आ सकता था । समय कभी रुकता नहीं । किसी का इन्तजार नहीं करता । और तब समय का लाभ न उठाने वाले बेबकूफ़ ही होते हैं । और वह बेबकूफ़ नहीं होना चाहती थी । कभी नहीं ।
उसने अन्दर ही अन्दर चुपके से अपने गोद के बच्चे को चुटकी भरी । जिससे पीङित हुआ सा वह रोने लगा । तब वह उसे चुप कराने लगी । और फ़िर उसने वही किया । जिसके लिये उसने यह किया ।
प्रसून को अनदेखा सा करते हुये उसने अपना विशाल स्तन खोला । और बच्चे को हिलाते डुलाते हुये वह अपने नग्न गोल स्तन की झलक देर तक उसे दिखाती रही । और फ़िर बच्चे को स्तनपान कराने लगी ।
संभवत हर स्त्री को ऐसा ही लगता है कि उसकी कामुक भाव भंगिमा उस पुरुष के सामने पहली ही बार घटित हो रही है । जिसकी वह अभिसारी नायिका बनने हेतु बेताब है । और वह अपनी ऐसी काम अदा से उसे घायल करके ही छोङेगी । तब पुरुष को उसका प्रणय प्रस्ताव मजबूरन स्वीकार करना ही होगा ।
उसकी ऐसी चेष्टा ने प्रसून को उन तमाम योग स्त्रियों की याद दिला दी । जो पहले कभी उसके अनुभव में आयी थीं
। वह अच्छी तरह जानता था । यदि उसने देखा नहीं । उसे अनदेखा करता रहा । तो वह बराबर प्रयास करती रहेगी । और व्यर्थ का समय खराब करेगी । औरत की नस नस से वाकिफ़ उस सबल योगी ने आश्चर्य और प्रशंसा के मिश्रित भावों से तब तक उसके स्तन से निगाह नहीं हटाई । जब तक उसने प्रसून को निगाह मिलाकर ऐसा करते देख नहीं लिया । तब उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आये । और नारीत्व सौन्दर्य का गरिमा बोध भी ।
काफ़ी सुन्दर हैं आप । वह मधुर स्वर में उसे और भी संतुष्ट करता हुआ बोला - ईश्वर ने आपको फ़ुरसत से बनाया है । और सब कुछ भरपूर रूप से दिया है ।
- थैंक्स । वह शर्माकर बोली - पर हीरे की परख सिर्फ़ जौहरी ही जानता है । वही उसकी सही कीमत भी समझता है । आई थिंक । औरत को हरेक कोई नहीं समझ सकता । वह काँच के समान नाजुक होती है । यू नो ।
वास्तव में करम कौर का अपने आप से नियन्त्रण हट गया । उसे अपने भीतर अजीव सी चिपचिपाहट महसूस हुयी । वह पिघलती हुयी सी बहने लगी । क्या पुरुष था । अनोखा और कल्पना से परे । अभी उसने उँगली से भी नहीं छुआ था । और वह भावित होकर पहाङी दरार से फ़ूटते वेगवान झरने की तरह बह गयी थी । ओह गाड ! कोई योग पुरुष ऐसा भी हो सकता है । यदि कोई उसे मुँहजवानी बताता । तो उसे कभी विश्वास ही नहीं होता । पर स्वयँ के अनुभव को भला वह कैसे नकार सकती थी । अब उसे यह बहाना भी नहीं सूझ रहा था कि वह प्रसून से क्या और कैसे बात करे ।
- मैंने वो । तब अनुभवी योगी स्वयँ ही उसकी मनोदशा जानकर बोला - वो ..राजवीर जी द्वारा शूट किये जस्सी जी के वीडियो क्लिप देखे । बट मुझे ताज्जुब इस बात का है कि अकार्डिंग टू राजबीर जी सेम ऐसा ही अनुभव आपको भी हुआ । ये बङी ही अजीव बात है । और वह यानी जस्सी जी इसको आधा अधूरा ही बता पाती है । जबकि आप पूरा और ज्यों का त्यों बताती हैं । वैसे वह सब मैं सुन चुका हूँ । पर प्लीज आप कुछ और न समझें । तो मुझे फ़िर से एक बार बतायें ।
करम कौर के मानों सब अरमानों पर पानी फ़िर गया । वह सिर्फ़ और सिर्फ़ अभी वही सब चाहती थी । जो गगन बता रही थी । पर एकदम ऐसा वह कह भी कैसे सकती थी । तब उसने भी गगन की तरह नमक मिर्च लगाकर उस मैटर का पूरा पूरा फ़ायदा उठाने का निश्चय किया ।
उसने एक निगाह आसपास डाली । अभी कोई नहीं था । वासना वैसे भी मनुष्य को अंधा ही कर देती है । तब यदि कोई होता भी है । तो भी नजर नहीं आता । उसे ख्याल आया । उस चक्रवात में वह एकदम नंगी भाग रही थी । और मूसलाधार पानी बरस रहा था । यहाँ वह स्वयँ खुल जाना चाहती थी । उसके प्यार की बारिश में नहाना चाहती थी । और खुद को वैसा ही आजाद महसूस करना चाहती थी । एक पूर्ण पुरुष को पाने के लिये औरत का भावनात्मक और देहात्मक पूर्ण नग्न होना आवश्यक ही है । तभी वह रीझता है । उसने अपने बच्चे को घुमाया । और दूसरा स्तन भी खोल लिया । अब उसके दोनों उरोज उसके सामने थे । और वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी । जैसे इस तरफ़ उसका ध्यान ही नहीं है । उसे नहीं पता था । गगन और जस्सी भी उसी तरह उसको छिपकर देख रहीं है । जैसे वह उनको सुन रही थी । पर प्रसून एकदम शान्त था । और उसके बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
- अरे प्रसून जी ! वह आँखें चौङी करके बोली - अभी क्या बोलूँ । एक तो मेरे को शर्म सी आती है । आप भी सोचोगे कि ये लेडी कैसे बोल रही है । पर डाक्टर से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिये । जिस तरह एक अच्छी सफ़ल समर्पित प्रेमिका को प्रेमी के सामने शर्म छोङकर नंगा होना ही पङता है । उसी तरह रोग ठीक कराना हो । तो डाक्टर के सामने भी नंगा होना ही पङता है । आप समझ रहे हो ना । मैं क्या कह रही हूँ । सो प्लीज । मैं आपको कोई बात संकेत में ना बताकर ज्यों की त्यों बताती हूँ ।
फ़िर वह सचमुच ही ज्यों का त्यों उस चक्रवाती तूफ़ान का वर्णन । और उसमें खुद के भागने की बात । उस टार्जन लुक युवा लङके को देखने की बात । और दरिया में अपने डूबने तक बताती चली गयी । बस उसने अपनी नग्नता की स्थिति में खामखाह का मिर्च मसाला जोङा था । जो प्रसून को स्पष्ट ही बनाबटी लगा । और एकदम झूठा लगा । पर करमकौर को इसकी कोई परवाह नहीं थी । उसे झूठा सच्चा कुछ भी लगे । उसे अपनी तरफ़ आकर्षित करना ही उसका एकमात्र लक्ष्य था ।
- सोचिये प्रसून जी सोचिये । वह होठ दबाकर रोमांचित हुयी सी बोली - मैं बेचारी यह सोच सोचकर मरी जा रही हूँ । यदि बह नाविक मछुआरा मेरी पुकार सुन लेता । और मेरे पास आता । तब वह मेरे साथ क्या बिहेव करता । ध्यान रहे । मैं बिना कपङों में थी ।
- बही । प्रसून उसकी भावनाओं को मनो सन्तुष्टि देने के ख्याल से बोला - वही करता । जो ऐसी स्थिति में एक पुरुष एक खूबसूरत भरपूर जवान स्त्री के साथ करता है । वैसे मैं उसकी नहीं जानता । पर मैं तो निश्चय ही यही करता ।
तब करमकौर के गाल शर्म से लाल हो उठे । उसे पहली बार लज्जा सी आ गयी । उसे पहली बार मानों ख्याल आया । वह अभी भी नग्न सी ही है । और तब उसने नकली हङबङाहट के साथ अपने स्तनों को कुर्ती के अन्दर कर लिया । प्रसून ने चेहरे पर आती रहस्यमय मुस्कराहट को फ़ौरन रोका । और बहुत हल्का सा सामान्य मुस्कराया ।
आसान नहीं होता । ऐसी परिस्थितियों में ठीक से काम करना । सबको सब कुछ समझा पाना भी आसान नहीं है । किसी विदेशी फ़्री सेक्स धरती की तरह पंजाब में भी काम भावना की लहरें सी बह रही थीं । और सबसे बङी बात थी कि वह इस केस में एकदम से कोई प्रभाव भी नहीं छोङ सकता था । कोई झूठे तन्त्र मन्त्र का दिखावा करने से तो उसे वैसे ही नफ़रत थी । फ़िर वह दामाद की तरह इस घर में कब तक ठहरा रह सकता था । जबकि निजी तौर पर उसकी भारी दिलचस्पी इस केस में थी ।
जस्सी उसे खुद को आकर्षित करती थी । गगन कौर बस उसके साथ सेक्स करने के ख्वाव देखती रहती थी । करम कौर तो बस मौका मिलते ही उस पर टूट पङना चाहती थी । हाँ राजवीर बेकरारी से उस पल के इन्तजार में थी । जब प्रसून इस रहस्य पर से कोई परदा उठायेगा । या कहेगा । तुम्हारी लाङली अब ठीक हो गयी । और जाने किस अज्ञात भावना से उसको ऐसी ही उम्मीद भी थी ।
सिर्फ़ बराङ साहब के लिये उसे लगा था कि वह कोई फ़ालतू का बखेङा खङा कर सकते है । और उसके काम में विघ्न पैदा कर सकते है । उन्होंने एक जवान बेटी का पिता होने के नाते प्रसून को संदेह की नजर से देखा भी था । पर यह क्षणिक भावना ही साबित हुयी थी । प्रसून की किसी को भी सम्मोहित कर देने वाली जादुई पर्सनालिटी से अगले दो मिनट में ही वह खुद को उसके आगे बौना महसूस करने लगा । उसकी अमीरी का रौब पल भर में चूर चूर हो गया । जब उसे इस लङके की हस्ती पता लगी ।
वैसे भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके बताने से नहीं स्वयँ उसकी आभा से झलकता है । जब उसे पता लगा । प्रसून कीट बैज्ञानिक है । और उसका एक पाँव रूस में तो दूसरा योरोप में अक्सर रहता है । जब उसने औपचारिकता वश ही अपने शेयर बिजनेस और रिसर्च वर्क के बारे में बहुत संक्षिप्त सा परिचय दिया । तो बराङ साहब को हिसाब लगाना मुश्किल हो गया । इसकी आमदनी कितनी हो सकती है ।
उसने उसकी आलीशन कोठी और वैभव पर एक मामूली सी निगाह डालना भी उचित नहीं समझा था । उसने उसकी आलीशान बेटी को भरपूर देखना तो दूर अभी देखने की ही कोई कोशिश नहीं की । जबकि वह दस बार उसके सामने आ चुकी थी । यह सब अनुभव किसी इंसान के प्रति होना बराङ की जिन्दगी में पहला वाकया था ।
बह कुछ ही देर पहले आया था । और औपचारिक रूप से भावहीन हल्लो बोलकर अपने पास से एक मैगजीन निकालकर उसे पढने लगा था । क्योंकि अभी बातचीत शुरू नहीं हुयी थी । और राजवीर उसके स्वागत में नाश्ता आदि इन्तजाम में लगी हुयी थी । और ये सब घोर अहंकारी बराङ साहब के जीवन में पहली बार हो रहा था । जब वह अपने ही घर में अपने तमाम रौब दाब के बाबजूद भी उस लङके के आगे खुद को बेहद छोटा महसूस कर रहा था । और उससे कोई बातचीत कर पाने में उसकी खुद की जबान ही अटक जाती थी । शब्द बाहर नहीं आते थे । मगर प्रसून को जैसे उसकी उपस्थिति का अहसास तक नहीं था ।
और फ़िर वही हुआ । अहंकारी बराङ तब तक उससे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । जब तक चाय नाश्ता आ जाने पर प्रसून सबके बैठ जाने पर स्वयँ ही उनकी और आकर्षित नहीं हुआ । और बातचीत शुरू हुयी । उसकी शिष्टता शालीनता और मामूली से मामूली गतिविधि से स्वाभाविक ही झलकता राजसी अन्दाज देखकर दोनों पति पत्नी मानों आकाश में उङने लगे । और मानवीय स्वभाव वश सुन्दर जस्सी के साथ उसकी सुन्दर जोङी की कल्पना करने लगे ।
 
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Update no 5
यहाँ तक तो सामान्य बात थी । दोनों को बेहद खुशी इस बात की हुयी थी कि जबसे तीन चार दिन से वह उनके घर रुका था । जस्सी एकदम नार्मल हो गयी थी । उसे रात या दिन में कोई अज्ञात बाधा नहीं हुयी थी । उनकी फ़ूल सी बच्ची बिलकुल ठीक सी हो गयी लगती थी । जबकि उसका इलाज करने आये उस जादूगर ने किसी पूजा रचा के नाम पर एक अगरबत्ती भी नहीं सुलगाई थी । मुँह से ॐ टायप या किसी गुरु या भगवान या ग्रन्थ का ना नाम लिया था । ना कोई पन्ना खोला था । जिसकी वे आम कल्पना कर रहे थे । उससे भी बङी हैरत उन्हें इस बात की थी कि वे उसके सामान में किसी तान्त्रिकी मान्त्रिकी हड्डियाँ माला गुटके आदि की अपेक्षा कर रहे थे । जबकि उसके पास एक उच्च शिक्षित और उच्च पदाधिकारी वाला ही सामान था । कुछ भी हो । उसने उनकी बेटी को बिना किसी तामझाम के जादुई तरीके से ठीक किया था । यही उनके लिये बहुत बङी राहत थी ।
और जो उनके लिये सबसे बङी राहत थी । दरअसल वही प्रसून के लिये सबसे बङी आफ़त थी । वह चाह रहा था कि बाधा हो । और फ़ुल्ली अटैक हो । जो वह उसका कोई सिरा सूत्र पकङ सके । अगर वह वीडियो क्लिप ना होते । तो खुद वह मानने को तैयार नहीं होता । जस्सी किसी गम्भीर भाव से पीङित है । यह बाधा उसके आने से क्यों नहीं हो रही थी । यह वह भली प्रकार जानता था । दरअसल उसके ध्यानी शरीर से निकलने वाली योग तरंगे ऐसे किसी बाह्य तरंग को पहुँचने से पहले ही नष्ट कर देती थी ।
अब तक बस वह इतने ही निर्णय पर पहुँचा था । ये किसी तरह की सामान्य प्रेत बाधा नहीं थी । नींद में चलने का रोग भी नहीं था । उसके दिमाग में किसी तरह की कोई ऐसी मेमोरी भी उसे नहीं मिली थी । जो ऐसे अटैक का कारण हो सकती थी । और तब बहुत बार सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा था कि जस्सी के कारण शरीर में कोई ऐसा संस्कार जमा है । जो उसके पूर्व जन्म से संबन्धित है । और जब वह किसी विशेष बिन्दु पर पहुँचकर उस संस्कार से जुङती है । तब उसके साथ वो चक्रवाती घटना घटित होती है । और वो विशेष बिन्दु कुछ भी हो सकता है । उसी तरह का कोई दृश्य । कोई सोच । कोई चीज । कोई भावना । कोई इंसान आदि कुछ भी । ये पेशेंट की तरफ़ का एक पक्ष था । और इसमें कोई चिन्ता जैसी बात कम से कम उसके लिये नहीं थी । वह थोङे प्रयास से योग द्वारा जस्सी को उस कारण संस्कार से जोङकर उस कारण को ही जला देता । और जस्सी हमेशा के लिये मुक्त होकर ठीक हो जाती ।
और तब उसे इसके दूसरे पक्ष दूसरी संभावना का ख्याल आया । और उसके बारे में सोचते ही वह काँप गया । अगर वह बात थी । तो सिर्फ़ खतरनाक ही नहीं । बेहद खतरनाक थी । कम से कम इतनी खतरनाक कि उसे भी एक युद्ध सा लङना पङता । और उस युद्ध का अंजाम कुछ भी हो सकता है । स्वयँ उसकी मौत । या फ़िर जस्सी की भी ।
उसने ड्राइव करते हुये बगल में बैठी उस अप्सरा को देखा । जो ऐसी किसी भी सोच से बेपरवाह सी अधमुँदी आँखों से कहीं खोयी हुयी थी । और तब ही प्रसून को पहली बार अहसास हुआ कि उसने किसी प्रेमिका की भांति अपना सिर उसके कन्धे से टिका रखा था । वह उससे एकदम सटकर बैठी थी । और उसका मरमरी गोरा हाथ उसकी गोद में रखा हुआ था । कमाल था । वह अपनी भावनाओं में इस कदर खो गया था कि उसे एक जवानी की गरमाहट भी महसूस नहीं हुयी थी ।
सङक पर काफ़ी अंधेरा फ़ैल गया था । वह बिना किसी उद्देश्य के जस्सी के साथ ड्राइव पर था । बराङ दम्पत्ति ने उसके जेंटलमेनी नेचर और उससे जस्सी की शादी की कल्पना करके उसे खुली छूट दे रखी थी । और स्वयं जस्सी भी किसी प्रेमिका की भांति अधिकतर उसके आसपास ही रहती थी । बस दोनों की सोच में भिन्नता थी । प्रसून उस अज्ञात रहस्य की खोज में उसके नजदीक था । जबकि जस्सी और बराङ दम्पत्ति उसे लङका लङकी का प्रेम आकर्षण समझते हुये मुग्ध हो रहे थे ।
उसका ध्यान फ़िर से दूसरे पक्ष पर गया । और वो दूसरा पक्ष ये था कि किसी अज्ञात भूमि से यह संस्कार आ रहा हो । जिसमें कनेक्टविटी उल्टी यानी उधर से होती हो । और ऐसा सम्पर्क होते ही जस्सी के साथ वह चक्रवाती घटना होती हो । और शायद इसीलिये उसके पास इसका कोई रिकार्ड नहीं था । तब ये दिमाग की मेमोरी का मामला नहीं था । यह किसी ऊँचे नीचे लोक से जुङा मामला था । जो करोंङों इंसानी ग्रन्थियों में से किसी एक से जुङता हो । तब ये बहुत कठिन बात थी । और यही वो बात थी कि प्रसून की पूरी पूरी दिलचस्पी इस केस में थी । जब किसी जीवित इंसान को कहीं अज्ञात भूमि में बैठा हुआ कोई शख्स प्रभावित कर रहा हो । वह क्यों प्रभावित कर रहा है । क्या चाहता है ? उसके इरादे क्या हैं ? ऐसे अनेक प्रश्न उसके दिमाग में तैर रहे थे । और इसके लिये उसे फ़िर से एक बार सूदूर अंतरिक्ष के किसी अज्ञात से लोक में जाना पङ सकता था । पर कहाँ । ये अभी उसे खुद भी पता नहीं था ।
रहस्यमय अस्तित्व का मालिक अंधेरा पूरे यौवन पर था । प्रथ्वी के इस हिस्से पर उसका साम्राज्य कायम हो चुका था । इस अंधेरे शान्त शीतल माहौल में जस्सी के दिल में प्रेम भावनाओं का संचार हो रहा था । वह रह रहकर कंपित सी होती प्रसून के शरीर पर हाथ फ़िरा रही थी । और प्रसून की कोहनी से अपने स्तन को दबा रही थी । ये अंधेरा उसे फ़िर से सब कुछ वही बा होश पाने को उकसा रहा था । जो चिकन वाली के अनुसार प्रसून ने उसके साथ बेहोश किया था ।
जबकि प्रसून के दिलोदिमाग में इस अंधेरे को लेकर बार बार एक ही बात आ रही थी । जस्सी को ज्यादातर अटैक रात यानी अंधेरे में ही होते थे । और स्वयँ उसके सामने वाला अटैक भी अंधेरे में ही हुआ था । या कहना चाहिये । उसकी बहुतेरी कोशिश से किसी तुक्के के समान तीर निशाने पर जा लगा था । बस उसी तुक्के की उसे दोबारा तलाश थी । बो प्वाइंट जिससे जस्सी अज्ञात भूमि से जुङती थी । वो सूत्र । वो सिरा । जो कहीं न कहीं उसे शायद उसके गुजरे अतीत से जोङ देता था । वो क्या था ?
और तब उसे उस टार्जन लुक नाविक मछुआरे का ध्यान आया । जिसे जस्सी दरिया में डूबने से पहले पुकारती थी । क्या वह उसका पूर्व जन्म का प्रेमी था । क्या मन में सेक्स भावना उठने पर उसे वह अटैक होता था । या प्रेमी की अचेतन में दवी याद की वजह से । प्रेमी । एक तरह से अभी वह भी उसका प्रेमी था ।
उसने गाङी साइड में लेकर रोक दी । और कार के स्टीरियो में कार से ही लेकर शकीरा की सीडी प्ले कर दी । बहुत हल्की आवाज में गूँजती शकीरा की मादक सेक्सी आवाज जस्सी के दिल में चाहत की हिलोरें सी पैदा करने लगी । प्रसून उसकी तरफ़ सरक आया । और उसने सिगरेट सुलगा ली । ऐसा लग रहा था । वह कुछ टाइम शान्ति से सुस्ताने के मूड में हो । उसने गाङी की सीट को भी पीछे सरका दिया था । और फ़ैला दिया था । जस्सी को मानों ये भगवान ने वरदान दिया हो । वह उसकी गोद में लेट गयी । और उसके हाथ अपने सीने पर रख लिये । प्रसून हौले हौले उसके स्तनों को सहलाने लगा । वह अन्दर ब्रा नहीं पहने थी । उसके रेशमी वस्त्र के ऊपर से फ़िसलन भरा सा हाथ जस्सी के बदन में काम तरंगे तेजी से फ़ैला रहा था । एक समझदार प्रेमिका की भांति इसी बीच उसने अपनी शर्ट के दो बटन खोल दिये । तब उसका अभिप्राय समझकर प्रसून ने उसकी शर्ट के अन्दर हाथ डाल दिया ।
- आपको ! वह मादकता से भरपूर लरजते स्वर में बोली - मेरे ये अच्छे लगते हैं ।
- अगर ना कहूँ । वह उसका स्तन मसलता हुआ बोला - तो यह एकदम झूठ होगा । ये एक दूध पीते बच्चे से लेकर शक्तिशाली देवताओं को भी आकर्षित करते हैं । और सर्वाधिक प्रिय होते हैं । ये एक सम्पूर्ण नारी का सौन्दर्य आधार है । खुद नारी इनको मनोहर रूप में पाकर स्वयँ को गौरवान्वित महसूस करती है । ये किसी नारी की खूबसूरती के सबसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं में से एक हैं ।
- आप जादूगर हो प्रसून जी ! वह उसकी छाती पर हाथ फ़िराती हुयी बोली - आपकी बातों में जादू है । व्यक्तित्व में जादू है । आपकी निगाहों में जादू है । आप एक पूर्ण पुरुष हो । कोई भी लङकी आपको देखने के बाद सिर्फ़ आपको ही पाने की तमन्ना करेगी । वह अपने आपको आप पर कुरवान कर देगी । प्लीज आपने मुझे इनके बारे में बताया । ये सबकी पसन्द होते हैं । पर वो ?
प्रसून ने फ़ौरन अपनी मुस्कराहट को निकलने से रोका । एक लङका । एक लङकी । एक पुरुष । एक स्त्री । एक आदमी । एक औरत । जब अपनी तमाम सामाजिक बेङियों मर्यादाओं को हटाकर जवां तन्हाई के एकान्तमय सामीप्य में होते हैं । तब वे सिर्फ़ प्रेमी होते हैं । इसके अलावा कुछ नहीं होते । उसके पूछते ही प्रसून को किसी विदेशी लेखक की यह महत्वपूर्ण सूक्ति याद हो आयी - यह कोई ऐसी चीज नहीं । जिसको यूज न करने से इस पर सोने की फ़सल उगने लगेगी ।
पर वह अपनी शिष्टता के चलते इस पर कोई कमेंट नहीं कर पाया । जस्सी की बङी बङी आँखों में चाहत भरे मौन आमन्त्रण के साथ हल्की सी शरारत चंचलता झलक रही थी । जैसे ही प्रसून का हाथ सामान्य होकर उसके शरीर से अलग ठहर जाता । वह फ़िर से उसे थामकर अपने सीने से लगा लेती ।
- मुझे ये वो का तो पता नहीं । वह उसके रेशमी बालों में उँगलिया घुमाता हुआ बोला - पर ये सच है । मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो । सच तुम हो भी बहुत अच्छी । एक पूर्ण प्रेमिका ।
जस्सी फ़ौरन उठकर बैठ गयी । उसके अधरों मे तेज कंपकंपाहट हो रही थी । उसका सारा शरीर कंपित हो रहा था । तेज भावावेश में उसने अपने होंठ प्रसून के होठों से चिपका दिये । बस यही तो वह योगी चाहता था । उसका अब तक का सारा प्रयास इसी के लिये था । उसकी तरफ़ से काम गति का बहना । यही बात यही पहल । वो अपनी तरफ़ से भी कर सकता था । पर वो काम गति की विपरीत धारा होती । तब वह सिर्फ़ समर्पण की मुद्रा में हो जाती । बहाव उसकी तरफ़ से ही होना जरूरी था । क्रिया एक ही थी । खेल एक ही था । पात्र भी एक ही थे । पर घटना में बहुत अन्तर था । उसके परिणामों में बहुत अन्तर था । अब वह किसी उन्मुक्त नदी की तरह बाँध तोङती हुयी बहने लगी थी ।
योगी के सधे संतुलित संगीतमय हाथ उसके बदन पर घूमने लगे । उसका योग शरीरी काम व्यवहार जस्सी को मानों अनन्त आकाश में उङाकर बादलों के बीच ले गया । वह खुली सङक की परवाह किये बिना जोर से कराह रही थी । सीत्कारें भर रही थी । प्रसून उसके स्तनों को बेतरह मसल रहा था । उसके मोटे होठों में दबे उसके सुर्ख रसीले अधर उत्तेजना से फ़ङफ़ङा रहे थे । वह काँटे में फ़ँसी मछली की तरह तङफ़ रही थी । पर उसकी मजबूत पकङ से छूट नहीं पा रही थी । और वह छूटना भी नहीं चाहती थी । उसकी संकरीली संकुचित दरार यौवन रस से पूर्णतः नहा गयी थी । उसमें किसी प्यासी झील के समान तूफ़ान सा मचल रहा था । इस तूफ़ान को परास्त कर देने वाले किसी साहसी नाविक की उसे तीवृ जरूरत हो रही थी । वह मानों आधी रोती हुयी सी सिर्फ़ प्रसून ..ओ प्रसून..क्विक..किल मी.. डियर ही मुश्किल से कह पा रही थी ।
पर योगी ने अभी वीणा के तार सिर्फ़ छेङे भर थे । उसके संगीत का सा रे गा मा अभी शुरू ही हुआ था । उसका शरीर ही किसी यन्त्र की तरह क्रियाशील हो रहा था । पर आंतरिक रूप से वह एकदम शान्त था । और अपने केन्द्र में निर्विकार भाव से स्थित था ।
जिन्दगी का क्या पता । जस्सी उसे आगे कभी मिले ना मिले । इसलिये जब उसने खेल शुरू कर ही दिया था । तो उसे इन लम्हों को जस्सी की जिन्दगी के लिये यादगार तोहफ़ा बना देना था । एक ऐसा तोहफ़ा । जो सिर्फ़ कोई सशक्त योगी ही दे सकता था । कोई बलिष्ठ इंसान भी कभी नहीं ।
- मैं मर.. जाऊँगी । वह अस्फ़ुट स्वर में बोली - मैं मर रही हूँ । प्लीज..बचा लो मुझे । मैं बहुत ..प्यासी हूँ ।
क्या चाहती है । एक लङकी ऐसे क्षणों में । क्या चाहती है । सदियों से भटकती । प्यासी औरत ऐसे क्षणों में । वह अच्छी तरह से जानता था । और तब उसके यन्त्र शरीर से कोमल भावनाओं वाला प्रेमी उतर गया । और एक पूर्ण खिलाङी पुरुष आवरित हुआ । उसने जस्सी को किसी खिलौने की भांति हाथों में उठाकर सीट पर सही स्थिति में बलपूर्वक झुकाया । और झटके से उसकी जींस नीचे कर दी । एक कठोरता । एक निर्दयता । एक वहशीपना । उसके स्वभाव में भर गया । उसने जस्सी की गुलाबी चड्ढी इस अन्दाज में उतार फ़ेंकी । मानों कोई बच्चा डौल पर गुस्सा कर रहा हो । और तब आसमानी झूले की भांति हवा में ऊपर नीचे होती जस्सी ने उसका कठोर स्पर्श अपने विशाल नितम्बों पर महसूस किया । वह आनन्द से कराह उठी । एक तप्त लोहा सा उसके अन्दर समा गया । वह किसी क्रोधित हुये बालक के समान उसे खिलौना गुङिया की तरह तोङे डाल रहा था । बार बार उसके अंग तोङ रहा था । और फ़िर फ़िर जोङ रहा था । एक दहकती मोटी सलाख सा अहसास उसके नारीत्व को तपा रहा था । उस तपन से सहमी सी भयभीत सी वह बार बार बरखा सी बरस रही थी । सब मर्यादायें तोङकर बह रही थी । पर वह किसी क्रोधित नाग की तरह फ़ुफ़कारते हुये दंश पर दंश दिये जा रहा था । और कोई रहम करने को तैयार नहीं था । एक बार । दो बार । तीन बार ।..पांच बार ।
तव वह वास्तविक रो पङी । हाथ जोङ गयी । अब नहीं । और नहीं । बस । मुझ पर रहम करो । मैं तुम्हारी दासी हूँ । प्लीज नार्मल हो जाईये ।
वास्तव में वह पूर्णतया शान्त था । सामान्य था । निर्लेप था । निर्लिप्त था । योगस्थ था । जिसे वह मानवी भला कैसे समझ सकती थी । योग पुरुष का अंगीकार । एक साधारण लङकी कैसे कर सकती थी । उसकी क्षमता बहुत सीमित थी । ये अप्सराओं योग स्त्रियों का मामला था । वे ही इसको आत्मसात कर सकती थी । वह जान बूझकर अपनी मर्दानगी उस कोमल बाला पर नहीं दिखा रहा था । ये उसके योग शरीर की सहज सामान्य क्रिया थी । जिसे वह दो मिनट के साबुन के झाग से बने बुलबुले के समान वासना क्षमता रखने वाली वह मानुष देही जस्सी भला कैसे बरदाश्त कर पाती । तब उसने प्रयत्न करके खुद को सामान्य किया । और तब जस्सी को उसके प्यार में भीगने की अनुभूति होने लगी । भीषण गर्मी के तेज से दहकती जमीन पर जब वह झूमते बादलों के समान बरसा । तब उसका अंग अंग तृप्ति से भर उठा । वह भयभीत बालक के समान उससे चिपक गयी । उसकी आंतरिक मांसपेशियों ने इस अलौकिक प्रेमी के पुरुषत्व को पूरी भावना से एकाकार होकर जकङ लिया । भींच लिया । मानों किसी कीमत पर । और कभी भी जुदा नहीं होना चाहती थी ।
यह जस्सी के लिये एक यादगार मिलन था । पर प्रसून के लिये एक सामान्य शरीरी आचरण । यह मिलन जस्सी के दिलोदिमाग पर अमिट होकर लिख गया था । पर उसके लिये ये एक सिगरेट पीने जैसा भर था ।
उसने एक सिगरेट सुलगाई । उसका ये प्रयास एकदम बेकार रहा था । कोई एक घण्टे तक निढाल जस्सी उसकी गोद में निर्वस्त्र पङी रही । पर कहीं कोई बाधा नहीं हुयी । कोई क्रिया नहीं हुयी । उसके तुक्के का तीर कहीं अंधेरे में व्यर्थ जा गिरा था ।
अंधेरा और गहरा उठा था । उसने रिस्टवाच में समय देखा । और गाङी स्टार्ट कर घर की तरफ़ मोङ दी । ये प्रयोग बेकार भी था । और कारगर भी था । अब वह 99% स्योर था । जस्सी की बाधा का कामभावना से कोई सम्बन्ध न था । वह बात कुछ और ही थी । फ़िर वह और बात आखिर क्या थी ? आखिर क्यों थी ?
क्या पता क्यों थी ।



दूसरे दिन सुबह आठ बजे का समय था । प्रसून बराङ साहब की कोठी की सबसे ऊपरी छत पर था । उसकी उँगलियों में जलती हुयी सिगरेट फ़ँसी हुयी थी । जिससे निकलती धुँये की लकीरें सी ऊपर आसमान में किसी अज्ञात सफ़र पर जा रही थी । स्वयँ बराङ उसके आसपास टहल रहा था । और जस्सी की बीमारी के बारे में कम । उससे जस्सी की शादी को लेकर ज्यादा फ़िक्रमन्द था । उसके कहने पर राजवीर ने जस्सी और उसके एकान्त साथ के बारे में कुरेद कुरेदकर पूछते हुये उसका रुख जानने की कोशिश की थी । जिस पर जस्सी सिर्फ़ शर्माकर रह गयी थी । और.. मुझे कुछ नहीं पता..उन्हीं से पूछो ना ..कहकर भाग गयी थी । तब राजवीर के दिल में मीठी मीठी गुदगुदी सी हुयी । उन्हीं से पूछो ना..ये उन्हीं वर्ड कुछ न बताता हुआ भी सब कुछ बता गया । ओ रब्ब ! तेनूं लख लख शुक्र है । क्या राजकुमार भेजा था । उसकी कुङी के लिये । जैसी परी सी छोरी । वैसा ही सुन्दर वो राजकुमार ।
उसने बराङ साहब से उसी की शरारत के अन्दाज में बोला । बोलती है - उन्हीं से पूछो ना..। तब वे दोनों भरपूर हँस भी नहीं सके । हँसना चाहते थे । पर सिर्फ़ खुशी के आँसू ही निकले । पहली बार बराङ जैसे अभिमानी ने जाना । जिन्दगी में माधुर्य रस क्या होता है । पहली बार उसे लगा । वह एक जवान बेटी का बाप है । और वह आँसू भरी आँखों वाला बबुला ख्यालों में ही बङे लाङ से अपनी लाङो को उसके प्रियतम की डोली में बैठाकर खुद भावपूर्ण विदाई कर रहा था । ऐसे कितने ही अग्रिम मधुर दृश्य उन सरदार पति पत्नी की आँखों के सामने तैर गये ।
और अब वह बिना देरी किये इस मामले में प्रसून से बात करने वाला था । पर प्रसून के सामने उसके पास आते ही उसके सारे भाव एकदम साबुन के झाग की तरह बैठ गये । प्रसून भावहीन सा सिर्फ़ विचार मग्न था । तब शादी वाली बात कहने की वह हिम्मत नहीं कर पाया । और बात को शुरू करने के लिये जस्सी की स्थिति के बारे में पूछने लगा । जिसके बारे में उसने संक्षिप्त में इतना ही कहा - बराङ साहव ! मैं अपनी जान की कीमत पर भी जस्सी को ठीक करके रहूँगा । चाहे इस बाधा की जङ आकाश से लेकर पाताल तक क्यों न फ़ैली हो ।
वह मोटी अक्ल का सरदार इस बात का कोई अर्थ निकाल पाता । तब तक जस्सी नहाकर ऊपर आ गयी । ये देखते ही वह उन्हें एकान्त देने के लिये वह वहाँ से नीचे चला गया । छत पर टहलते हुये से प्रसून की निगाह बाहर कहीं निकलते सतीश पर पङी । उसके यहाँ आने का कारण सतीश ही था ।
जब जस्सी के घर में हुयी कानाफ़ूसी टायप बातें उसके भी कानों में आयी । तब उसने जस्सी की बात का कोई पता न होने का बहाना सा करते हुये..हमारी तरफ़ के लोग आज के जमाने में भी एक ऐसे अदभुत योगी को जानते हैं । उसके बारे में ऐसा सुना है । वैसा सुना है । जैसी अकारण सी सामान्य चर्चा की तरह बात की । जिसे बराङ दम्पत्ति खास राजवीर ने पूरी दिलचस्पी से ध्यान से सुना । और वे भी जस्सी को अलग रखते हुये उससे प्रसून के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगे । और आखिर में उन्होंने जानना चाहा कि क्या वह जरूरत होने पर उसे बुला भी सकता है । या सिर्फ़ मुँह जबानी ही उसके बारे में जानता है ।
वास्तव में यू पी की मानसिकता वाला सतीश एक तीर से दो शिकार कर रहा था । वह बखूबी जानता था कि प्रसून को बुलाने का मतलब था । उसको कम से कम पचास हजार की इनकम होना । जो उसको योगी के खोजने के लिये मिलनी थी । दूसरे वह अपने घर मुफ़्त में घूमने जाता । तीसरा उनका काम सफ़ल हो जाता । तो न सिर्फ़ बराङ दम्पत्ति बल्कि इस पंजाबी क्षेत्र में उसका रौब गालिब हो जाना था । और खुद उसकी नजर में ये बेबकूफ़ सरदार उसे झुककर सलाम करने वाले थे । हर चालाक आदमी की तरह उसने भी ऐसे ही ढेरों प्लान यकायक सोच लिये थे । जिसे उसके यूपी में बहती गंगा में हाथ धोना कहा जाता था । पर वह सिर्फ़ हाथ धोकर नहीं रह जाना चाहता । पूरा का पूरा स्नान ही कर लेना चाहता था ।
लेकिन जब बराङ दम्पत्ति ने यकायक उससे बुलाने के बारे में कहा । तो मानों उसके हाथों से तोते ही उङ गये । वह जो कल्पना कर रहा था कि प्रसून को थोङी ही कोशिश से खोज लायेगा । अब उसे एकदम फ़ालतू की बात लगी । क्योंकि वह उसे सीधे सीधे नहीं जानता था । उसने किसी से सुना था । उस किसी ने भी किसी से सुना था । और उस किसी ने भी किसी और से बस सुना भर था । उसे जानता कोई भी न था ।
तब फ़िर किसी ने किसी को फ़ोन किया । उस किसी ने और किसी को फ़ोन किया । पूरे दो दिन सतीश दिन भर बैठा हुआ अपने किसी को फ़ोन मिलाता रहा । वह आगे अपने किसी को मिलाता रहा । तब सैकङों बार की बातचीत के बाद उसे बहुत दूर के किसी से प्रसून की कोठी का बस लैंडलाइन नम्बर ही हासिल हुआ । और उस पर भी जिस सख्त पर आंसरिग मशीन की तरह मधुर ध्वनि की लेडी आवाज सुनाई दी । उसने तो मानों उसके सब अरमानों पर पानी ही फ़ेर दिया ।
दूसरी तरफ़ से अल्ला बेबी बोल रही थी । उसने बहुत संक्षेप में बिना कुछ सुने कहा - सर ! अभी घर पर नहीं है । सिक्स मन्थ बाद आयेंगे । तब आप फ़ोन करना । कहकर उसने बिना कुछ सुने फ़ोन काट दिया ।
सतीश की समस्त आशा ही खत्म हो गयी । अभिमानी बराङ को खामखाह ही यूँ लगा । भरे बाजार उसकी बेइज्जती हुयी हो ।
पर राजवीर समझदार थी । उसने दो तीन बार स्वयँ प्रयास किया । तब कहीं फ़ोन उठा । तब अल्ला बेबी से उसकी बात हुयी । प्रोफ़ेशनल लोगों से बात करने का तरीका समझ आया । तब बात बनी ।
उसने बिना किसी भूमिका के कहा - देखिये । प्लीज ये एक जिन्दगी मौत का सवाल समझो । मैं आपसे प्रसून जी का नम्बर नहीं माँग रही । कोई अन्य रिकवेस्ट नहीं कर रही । पर कोई बहुत इम्पोर्टेंट बात आने पर आप उनको डायरेक्ट कान्टेक्ट कर सकती हो । ये तो मैं जानती हूँ । तब यदि आप कहें । तो मैं अपनी बात कहूँ ।
दरअसल सतीश और राजवीर को दूसरी तरफ़ से बोलने वाली कोई युवा लेडी मालूम हो रही थी । जबकि वह महज 13 वर्ष की अल्ला बेबी थी । जो बङी दक्षता से एक कुशल सेक्रेटरी की तरह ऐसी बातों को डील करती थी । और बहुत भावुक दिल भी थी । बस उसकी आवाज एकदम सपाट और भाव रहित थी । उसने राजवीर के स्वर में दर्द महसूस किया । तो स्वतः ही उसकी आवाज अतिरिक्त मधुरता से भर उठी ।
- कहिये । वह नमृ होकर बोली - मैं आपकी हेल्प करने की पूरी पूरी कोशिश करूँगी ।
- देखिये । राजवीर बोली - मैं बहुत संक्षिप्त में बात कहूँगी । आपका कीमती समय खराब नहीं करूँगी । मेरे पास अदृश्य बाधा पीङा के अपनी बेटी के कुछ वीडियो क्लिप्स हैं । आप अपना ई मेल मुझे बता दें । मैं वे क्लिप्स और खास प्वाइंट आपको लिखकर भेज दूँगी । प्लीज आप उन्हें नजर अन्दाज न करना । और किसी की जिन्दगी मौत का सवाल जानकर देखना । और फ़िर आपको मेरी बात सही लगे । खुद विश्वास आये ।
तो ये बात आप अपने सर तक पहुँचा देना । मेरा मतलब मेरे मेल का मैटर आप उन्हें ई मेल कर देना । बाकी मेरी बेटी के भाग्य में जो होगा । जिन्दगी या मौत । ये फ़ैसला तो रब्ब के हाथ ही होता है । कहते कहते राजवीर कुछ भावुक सी हो गयी थी । और उसने सुबकते हुये फ़ोन स्वयँ ही रख दिया था ।
काश ! वह देख पाती । दूसरी तरफ़ उस भावुक लङकी की नीली आँखों में आँसू झिलमिला उठे थे । उसने न सिर्फ़ अपना ई मेल बताया था । बल्कि अगले चार घण्टे में तीन बार क्लिप्स की उत्सुकता में मेल चेक किया था । तब चार घण्टे बाद उसे 14 वीडियो क्लिप मेल से मिले । और एक दो क्लिप देखकर ही वह मामले की गम्भीरता और प्रसून के लिये उसका महत्व समझ गयी । उसने न सिर्फ़ तुरन्त प्रसून को ज्यों का त्यों वह मेल भेजा । बल्कि वह तुरन्त देखे । इस हेतु उसे साथ के साथ फ़ोन भी किया । और फ़िर वो फ़ोन जिस पर हजार कोशिश के बाद लोगों की बात मुश्किल से हो पाती थी । अगले चार सेकेण्ड में पहली बार में ही उसकी बात हुयी । प्रसून इस ईसाई लङकी की समझदारी का बेहद कायल था । जहाँ उसमें बच्चों सा भोलापन भी था । वहीं गजब की समझदारी भी थी ।
उस समय वह विदेश में था । और संयोगवश अभी अभी ही काम से फ़्री हुआ था । और भी डबल संयोगवश उस समय वह नेट पर ही बैठा था । जब उसे अल्ला बेबी का फ़ोन पहुँचा । बेबी ने बङे भावुक स्वर में रिकवेस्ट की थी - प्लीज सर । अभी देखें । बात खास है ।
ओ के डियर कहकर वह क्लिप देखने लगा था । और सबसे पहले तो जस्सी को देखकर ही चौंक गया था । क्या बला की सुन्दरी थी । नेचुरल ब्यूटी । सुन्दरता की देवी । वीनस की प्रतिमा । उसने अपने आपको कंट्रोल किया । और क्लिप को गम्भीरता से देखने लगा । उसने अल्ला बेबी को मन ही मन लाख थेंक्स बोला । और 14 क्लिप देखने में टाइम खराब न करते हुये तुरन्त नम्बर डायल किया ।
राजवीर पर तो मानों भगवान स्वयं ही मेहरवान हुआ था । क्लिप भेजने के महज 50 मिनट बाद उसके फ़ोन की घण्टी बज उठी थी । और तब तो वह एकदम से उछल ही पङी । जब दूसरी तरफ़ से उसे बहुत मधुर और संतुलित स्वर सुनाई दिया - हल्लो ! मैं प्रसून बोल रहा हूँ ।
और फ़िर सीधा ही वह यहाँ आ गया था । उसने महसूस किया था । जस्सी सिगरेट को पसन्द नहीं करती थी । पर बोलती कुछ नहीं थी । उसने सिगरेट नीचे उछाल दी । क्या गजब लग रही थी वह । उसके गीले से लम्बे बाल कन्धों पर लहरा रहे थे । बिना किसी मेकअप के वह गजब ढा रही थी । और सबसे बङी बात प्रसून को उसमें प्रेमिका नजर आ रही थी ।
वह उससे नजरें चुरा रहीं थी । और चोरी चोरी कनखियों से उसे देख रही थी । संभवत कल के अभिसारी क्षण उसे
बारबार याद आते थे । तब तुरन्त ही उसके गोरे गुलाबी गालों पर शर्म की लाली सी दौङ जाती थी । पर एक लङकी की परेशानी शायद वह समझ नहीं पा रहा था । उसे कल के मिलन की वजह से चलने में खास परेशानी थी । इसलिये वह बहुत धीरे धीरे संभलकर चल रही थी । और खास ध्यान रख रही थी कि उसकी चाल का बदला्व किसी के नोटिस में ना आये । पर इसके बाद भी वह अभी भी प्रसून द्वारा उसे बाँहों में लेकर चूमने की प्रेममयी कल्पना कर रही थी ।
वह जानता था । संसार ही कल्पनाओं में जीता है । पर सबकी कल्पनायें उनकी अपनी भावनाओं के अनुसार अलग अलग होती है । बराङ दम्पत्ति उसको जमाई बनाने की कल्पना में खोये हुये थे । जस्सी अपनी कल्पना में उसकी महबूबा बनी हुयी थी । और उसकी कल्पना सिर्फ़ उस रहस्य के लिये भटक रही थी । जिसके अदृश्य तार जस्सी से जुङ रहे थे । ऐसे आखिर वह कब तक वहाँ रुका रह सकता था । मगर दूसरे उसने ये भी तय कर लिया था । चाहे जो हो जाये । इस रहस्य का पता लगाकर ही जायेगा । खेल को खत्म करके ही जायेगा ।
उसने देखा । बालों को हौले हौले सुखाती हुयी जस्सी उसके एकदम करीब आने से बच रही थी । और बारबार करीब भी आ रही थी । इकरार भी । इंकार भी । इजहार भी । मनुहार भी । सभी एक साथ । एक ही समय में । अजीव होती हैं । ये लङकियाँ भी । उसने सोचा । और फ़िर शरारत के अन्दाज में बोला - नाराज हो मुझसे । कल की वजह से ।
- ब्रेकफ़ास्ट ! वह तिरछी निगाहों से परे देखती हुयी बोली - ब्रेकफ़ास्ट कर लीजिये । अब नीचे चलिये ।
कहकर वह तेजी से सीङियाँ उतरती चली गयीं । हठात प्रसून उसके गोल आकर्षक नितम्बों में पङते हुये बल देखता रहा । वह बार बार इस लङकी के प्रति क्यों आकर्षित हो रहा था - उसके चेहरे को ओक में भर लूँ । ज़िंदगी को इस तरह पिया जाएगा ।
वह जानता था । बराङ साहब उससे बात करने के खास इच्छुक थे । पर अभी तक ऐसा कोई संयोग नहीं बन पाया था । वह जानता था । वे क्या बात करेंगे । और फ़िर वह क्या जबाब देगा । जो भी हो सज्जनता यही कहती थी कि उनके दिल की बात भी सुनना चाहिये । उसे महत्व भी देना चाहिये । सो वह नाश्ते पर उनके सामने बैठा था । सामने ही जस्सी और उसके बगल में राजवीर बैठी थी ।
- देखिये प्रसून जी ! बराङ बोला - धर्म और अलौकिक बातों के प्रति मेरी सोच कुछ अलग ही है । वैसे मैं भी और सिखों की तरह गुरुद्वारा जाता हूँ । दिल में कहीं न कहीं उस परम्परा का सम्मान भी करता हूँ । पर जाने क्यों मुझे लगता है । ये मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च जाना महज एक सामाजिक गतिविधि सी बनकर रह गया है । जिस तरह इंसान मेले नुमायश देखने जाता है । और कहीं भी धर्मस्थल देखकर अपनी जाति धर्म से मिले संस्कारवश उसे मत्था टेकता है । तो कोई अलग बात नहीं । मैं भी ऐसा करता हूँ । पर जाने क्यों मैं दिली तौर पर नास्तिक ही हूँ । और नास्तिक होने में ही सुख पाता हूँ । फ़िर जाने क्यों मुझे ऐसा भी लगता है कि मैं धर्म को नहीं मानता । इसलिये बहुत बङा बेबकूफ़ हूँ । मगर दूसरे ही पल मुझे अहसास होता है कि मैं इस प्रचलित परम्परागत धर्म को कट्टरता से मान रहा होता । तो शायद उससे भी बङा बेबकूफ़ होता । मैं दोनों ही तरफ़ से खुद को बेबकूफ़ सा महसूस करता हूँ ।
तभी जस्सी शरारत से बोली - डैडी ! 1 बार 1 सरदार था.. आगे बोलूँ क्या ?
अभी प्रसून इस बात को ठीक से समझ नहीं पाया था कि राजवीर जस्सी की पीठ में धौल मारती हुयी जोर से हँसी । वह पानी का घूँट मुँह में भरे हुये थी । जो उसकी हँसी के साथ फ़व्वारे के रूप में सीधा बराङ साहब के ऊपर गिरा । फ़िर वे दोनों माँ बेटी ठहाका मारते हुये हँसने लगी । बराङ भी मुक्त भाव से हँसा । पर वह नहीं हँसा



देखा मिल गया तुरन्त सबूत । वह टावल से मुँह पोंछता हुआ बोला । दोनों माँ बेटी अभी भी हँस रही थी । और राजवीर उसके धौल जमाती हुयी कह रही थी - चुप भी कर मरी । डैडी को ऐसा क्यों बोलती है । वो संता बंता तो नहीं है ।
- देखा प्रसून जी ! वह खुलकर हँसता हुआ बोला - ये मेरी अपने घर में पोजीशन है । बाइज्जत बामुलाहिजा बराङ साहब । ज्यादातर सिख लङकियाँ सरदार लङकों को पसन्द नहीं करतीं । उनकी फ़र्स्ट च्वाइस सिर्फ़ हिन्दू लङके हैं । और शायद । वह राजबीर की तरफ़ देखता हुआ बोला - यही हाल सरदार औरतों का भी है । इन दोनों को भी ये दाङी वाले कतई नासपसन्द हैं । कम से कम मेरा ख्याल तो अब तक यही बना है ।
- ओये चुप करो जी । राजवीर मानों प्यार से डाँटकर बोली - मैंने ऐसा कब बोला आपको । मुझे तो आप पूरे राजकपूर जैसे हीरो लगते हो ।
- मेरा नाम जोकर वाले । जस्सी फ़िर शरारत से प्रसून की तरफ़ देखते हुये बोली ।
उसकी बात पर एक जोरदार संयुक्त ठहाका लगा । अबकी बराङ साहब भी पहले से ही खुलकर हँसे । फ़िर वे तीनों भी साथ में हँसने लगे ।
- बङी प्यारी फ़ैमिली है मेरी । वह भावुक सा होकर बोला - हम आपस में एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं । लेकिन प्रसून जी मैंने आपसे एक प्रश्न किया है । कुछ जानना चाहा है । मैं नास्तिक क्यों बन गया । जब सदियों से भारत की धार्मिकता की जङों में काफ़ी गहराई है । रूटस जिसे बोलते हैं । फ़िर भी हर आदमी यहाँ नास्तिक सा क्यों है ?
वह गम्भीर हो गया । शायद इसी को संगति का असर कहते हैं । शायद बराङ को अब तक ऐसा कोई मिला नहीं होगा । जँचा नहीं होगा । जिससे वह बरसों से अपने दिल में छिपी इस बात को कह पाता । आज मानों उसने अपनी सारी भङास निकाली थी ।
- आपने ! वह प्रभावशाली सौम्य स्वर में बोला - एकदम सही बात कही है । और ये सिर्फ़ आपकी ही बात नहीं है । एक आम इंसान की बात है । पर किसी को इसको व्यक्त करने का मौका मिलता है । और किसी को नहीं । लाइफ़ में किसी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाता है । किसी को नहीं ।
जब एक छोटा बच्चा जो एक दो साल का होता है । तब उसको बेसिक नालेज के लिये प्रारम्भिक शिक्षा हेतु बुक दी जाती है । उसमें A से एप्पल होता है । B से बनाना होता है । C से कैट होती है । सोचिये बराङ साहब । गहराई से सोचिये । A से एप्पल B से बनाना C से कैट को सचित्र किताब में लिखने की क्या आवश्यकता है ? ये सब चीजें तो हमारे आसपास उपलब्ध ही हैं । किताब से सिखाने की क्या आवश्यकता है ? इसके बाद शिक्षा के लिये स्कूल कालेजों की क्या आवश्यकता है । जब किताब है । प्राइवेट तौर पर सिखाने पढाने वाले शिक्षक भी हैं । तब इस सब फ़ालतू से सिस्टम की क्या आवश्यकता हो सकती है ।
सोचिये । एक बच्चा सिर्फ़ किताब में ही जीवन भर A से एप्पल B से बनाना C से कैट को देखता रहे । और स्कूल भी न जाये । पेङों पर लगा या हाथ में फ़ल रूप में A से एप्पल B से बनाना न कभी देखे । न कभी खाये । C से कैट को भी रियल्टी में न देखे । न किसी तरह का यूज करे । लेकिन उसको बार बार बताया जाये । उसके दिमाग में भर दिया जाये । A से एप्पल स्वीट होता है । ताकतवर होता है । B से बनाना मीठा और टेस्टी होता है । तो उसे क्या कोई उनमें रस आयेगा । उसकी आस्तिकता इन चीजों में होगी । नहीं । तब वह इन सभी चीजों के प्रति अन्दर से नास्तिक ही होगा ।
वही आप हो । दूसरे हैं । आप सिर्फ़ ABCD की किताब पढकर रह गये । आप स्कूल गये अवश्य । पर आपको एप्पल की मिठास का अहसास कराने वाले शिक्षक नहीं मिल सके । यह एप्पल ट्री आप कैसे उगाकर ढेरों एप्पल खुद पैदा कर लो । ये बताने वाला कोई रियल गुरु आपको नहीं मिला ।
एक जिन्दगी में असफ़ल गरीब आदमी भी अमीरी के शौक वैभव को लेकर नास्तिक ही होता है । क्यों ? वह उसे हासिल नहीं है इसलिये । तब उसकी अमीरी में आस्तिकता कैसे उत्पन्न हो । तब वह अपनी कुण्ठावश अमीरी और अमीरों को गालियाँ ही देता है । उनमें झूठे दोष निकालता है । जबकि दोषी वह स्वयँ है । प्लीज डोंट माइण्ड बराङ साहब । यदि आप ऐसा महसूस करते हैं । तो आप धार्मिक गरीव हैं । असफ़ल इंसान हैं । यदि सभी सिख ऐसा सोचते हैं । तो वे सभी बेहद गरीब हैं । ये आपका मकान कोठी गाङी धन आपके साथ अन्त में कुछ नहीं जाने वाला । तव आप एकदम खाली हाथ जाओगे । एक फ़टेहाल भिखारी की तरह । वहाँ सिर्फ़ सुमरन की कमाई साथ होती है । अब आप अपना आंकलन स्वयँ करें ।
बराङ को मानों सरे बाजार जूते पङे हों । उसका सारा घमण्ड इस देवदूत ने कुछ ही शब्दों में चूर चूर कर दिया था । पर कितना आश्चर्य था । उसे अपनी बेइज्जती में एक अजीव सा सुख हासिल हो रहा था । उस लङके ने मानों उसे हकीकत का आइना दिखा दिया हो । कितना जादू था । उसके शब्दों में । उसे लग रहा था । वो ये दिव्य वाणी सी यूँ ही बोलता रहे । और वो सुनता रहे । कितना अजीव सा सुख मिला था उसे । उसने मन ही मन उन तमाम साधुओं बाबाओं धार्मिक लोगों को माँ बहन की भद्दी गालियाँ दी । जो उसे जीवन में अब तक मिले थे । और जो धर्म के नाम पर जाने क्या क्या बकबास करते हुये आदमी को भृमित ही करते हैं । और सत्यता को करीब से तो बहुत दूर । दूर दूर तक नहीं जानते । दूसरे वह सिर्फ़ बोल ही नहीं रहा था । इतने दिनों में जस्सी को एक भी अटैक न आना । उसके घर में एक अजीव सी सात्विकता की खुशबू सी जो उसके आने से फ़ैली थी । वह बिना बताये बहुत कुछ बता रही थी । अब तक के घोर अभिमानी बराङ को दिल में बहुत ही प्रबल इच्छा हुयी कि वह इस पहुँचे हुये महात्मा के चरणों में गिर पङे । और बोले - आप ही मेरे गुरु हो ।
पर वह ऐसा कर न सका । अभी वह कुछ कहना ही चाहता था कि प्रसून फ़िर से बोला ।
- देखिये बराङ साहब ! ये ढोंगी और स्वयँ के लिये भी अज्ञानी बाबाओं द्वारा एक आम पर मजबूत धारणा बना दी गयी हैं कि परमात्म ज्ञान को जानना बेहद कठिन है । जबकि सभी धार्मिक ग्रन्थ बङी सरलता से कहते हैं - आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा आदि अन्त रहित है ।..और आप अपने मूल रूप में आत्मा ही हो । अपनी सिर्फ़ यही मजबूत और स्थायी पहचान हमेशा पक्के तौर पर याद रखने से परमार्थ ज्ञान बहुत सरल हो जाता है । और तब फ़िर आप चाहकर भी नहीं कह पाओगे कि - मैं नास्तिक हूँ ।
अब मनदीप साफ़ साफ़ और पहले से भी अधिक प्रभावित दिखा । राजवीर तो मानों भक्ति सागर में ही डूब रही थी । न आस्तिक न नास्तिक बस अपनी जवानी में मस्त जस्सी भी आश्चर्य से उसकी बातें सुन रही थी । उसका दिल साफ़ साफ़ कर रहा था कि वह प्रसून के गले में तुरन्त बाँहें डाल दे । और उसके होंठ चूम ले । ये वो उसे अभी अभी की ज्ञान वार्ता पर तोहफ़ा देना चाहती थी । पर वह ऐसा कर न सकी ।
रात रोज ही होती है । उसमें क्या नई बात थी । वही अंधेरा । वही बिजली का प्रकाश । वही दस ग्यारह बारह फ़िर एक बजता हैं । और सब नींद के आगोश में सोते हैं । सपने देखते हैं । बिस्तर पर करवटें बदलते हैं । आज भी एक बज गया था । और धीरे धीरे दो बजने वाले थे । पर जस्सी की आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी । बहुत कोशिश के बाद भी वह एक पलक तक न झपका सकी थी ।
क्या कर रहा होगा वह ? आज उसने कैसा रहस्यमय व्यवहार उसके साथ किया था । बल्कि वह पूरा ही रहस्यमय इंसान था । रात के सन्नाटे में उसके साथ पहले हनीमून के बाद वह तबसे बराबर यही सोचती रही थी कि फ़िर से ऐसे मधुर क्षण कब आने वाले हैं । वह उसके साथ यहाँ वहाँ घूमने जाना चाहती थी । उसने सोच लिया था । अब वह हर हालत में उससे शादी करने वाला है । तब क्या हर्ज था । शादी अभी हो । या एक साल बाद । उसने तो अपने मन से उसे हसबैंड मान ही लिया था ।
वह अभी से उससे एक पत्नी की तरह व्यवहार करने लगी थी । पर उसे बेहद हैरत इस बात की थी कि कार में उसे आसमानी झूले की सैर करा देने वाले उस जादूगर ने उसके बाद उसके होठ तक चूमने की कोशिश नहीं की थी । और न जाने किन ख्यालों में उलझा रहा था । ऐसा लग रहा था । किसी बात को लेकर सीरियस है । वह उसके इस बदले हुये व्यवहार से हैरान थी ।
सुबह वह देर तक अकेला कहीं घूमने चला गया था । फ़िर वह बहुत देर तक उसके पेरेंटस से अकेले में बात करता रहा । वह शरमाती हुयी सी रंगीन ख्यालों में खोयी रही थी । वह निश्चय ही उसका हाथ माँग रहा था । और वह निश्चित सी थी । सो उसने वह बात सुनने की कोई कोशिश नहीं की ।
जब उससे वह बैचेनी सहन नहीं हुयी । तब वह उठकर कमरे में टहलने लगी । अजीव इंसान है । क्या कर रहा है । उस अकेले बन्द कमरे में । शाम सात बजे से लेकर अब रात के दो बजने वाले थे । किसी दूर के सफ़र पर गये लौटने वाले इंसान की प्रतीक्षा की भांति हर पल उसकी निगाह कमरे के गेट पर किसी आहट पर ही रही थी । अब आ रहा होगा । अब आ रहा होगा । पर वह नहीं आया ।
वह कमरे से बाहर भी नहीं जा सकता था । ये उसको पक्का पता था । जब वह बाहर आयेगा । सबसे पहले उसे ही मालूम होगा । वह उसे ही आवाज देगा । और उसके आवाज न सुन पाने पर वह उसके मोबायल पर काल करेगा । पर अब तो हद ही हो गयी थी । सात घण्टे से ज्यादा हो गये थे । और वह उसी तरह कमरे में बन्द था । आखिर क्या कर रहा था वह ।
वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी याद आयी । उससे लिया हुआ गाड प्रामिस याद आया । भले ही दस घण्टे हो जाये । दस दिन क्यों न हो जायें । वह न तो दरबाजा खोले । और न ही उसे किसी प्रकार से डिस्टर्ब करे ।
उसने सोचा । वह उसे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगी । बस चुपके से देखेगी । आखिर वह इतनी देर से अकेला क्या कर रहा है । यही सोचते हुये वह उस कमरे के द्वार पर आ गयी । जिसमें प्रसून अन्दर बन्द था । उसने एक बार चारों तरफ़ देखा । सब सोये पङे थे । एकदम सन्नाटा फ़ैला हुआ था । उसने ताले में चाबी लगायी । और बिना आवाज दरबाजा खोला । कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी ।
उसने दरबाजे को हल्का सा धक्का दिया । और थोङी सी जगह बनाती हुयी कमरे में आ गयी । सावधानी से उसने दरबाजा वापिस लगा दिया । और सामने बेड पर देखा । फ़िर वह रहस्यमय अन्दाज में मुस्करायी ।
ओह तो ये बात थी । और वह पता नहीं क्या क्या इतनी देर में सोच गयी थी । दरअसल उसे नींद आ गयी थी । और वह वहीं पङे पङे सो गया था ।
चलो आज यहीं सही । सोचते हुये वह उसके पास जाने को हुयी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी ध्यान आयी । पर अब उस चेतावनी का क्या मतलब रहा । अब तो कोई बात ही नहीं थी । वह नार्मली सो रहा था । तभी उसे शरारत सूझी । हम तुम एक कमरे में बन्द हो जायें । और चाबी खो जाये । उसने ऐसा ही किया । और बाहर से लाक लेकर अन्दर से लगा दिया ।
वह दबे पाँव उसके पास आयी । और बैठ गयी । उसकी निगाह सोते हुये प्रसून पर गयी । और वह आगे के कदम के बारे में सोचने लगी । और फ़िर अचानक वह न सिर्फ़ चौंकी । बल्कि भौंचक्का ही रह गयी । ओह गाड ! ये वह क्या देख रही थी । क्या ये वाकई सच था ? कुछ अजीव सा अहसास उसे हुआ था । प्रसून की सांस नहीं चल रही थी । तब उसने गौर से देखा । वाकई वह मुर्दा पङा था । उसने उसके दिल पर हाथ रखा । कोई धङकन नहीं थी । उसने
उसकी नब्ज देखी । कोई स्पन्दन नहीं था । उसने उसकी छाती से कान लगाकर सुना । वह मर चुका था । निश्चित ही मर गया था । ओह गाड । ओह गाड ! ये सब क्या हुआ था ।
फ़िर उसके मुँह से जोरों की चीख निकलने को हुयी । लेकिन उससे पहले ही उस अटैक से उसका दिमाग शून्य 0 होता चला गया । उसके मुँह से मु मु की हल्की सी आवाज हुयी । और फ़िर उसका सिर तेजी से घूमने लगा । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक तेज आँधी सी चलने लगी । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । सभी तेजी से उङ रहे थे । और बस उङते ही चले जा रहे हैं । किसी अज्ञात अदृश्य की ओर ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी सी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
पानी की तेज भंवर उसे डुबोये दे रही थी । वह गोते खा रही थी । नाव पर झुककर खङा सन्तुलन बनाता हुआ वह मछुआरा डगमाती नाव को बचाने की कोशिश कर रहा था । पर तूफ़ान की प्रचण्डता अपने चरम पर थी । तूफ़ान मानों प्रलय करके ही छोङने वाला था । उसकी चेतना लुप्त होने लगी । और फ़िर वह लहरों की दया पर डूबती उतराती हुयी दरिया में बहने लगी ।
विनाशकारी तूफ़ान अभी थमा नहीं था । पर बेहद ताकतवर लहरों ने उसे किसी दूर अज्ञात किनारे पर ले जाकर पटक दिया था । उसमें उठने की शक्ति नहीं रही थी । और वह निढाल सी पङी थी । फ़िर उसकी मौत हो गयी । और वह शिथिल होकर पङी रह गयी । खेल खत्म हो चुका था ।
पर मौत सिर्फ़ शरीर की हुयी थी । वह अपनी खूबसूरत देह छोङ चुकी थी । और एक नये शरीर सूक्ष्म शरीर में शरीर से बाहर आ गयी थी । अब उसके लिये उस प्रलयकारी तूफ़ान का मानों कोई मतलब ही नहीं था । अब वह आराम से उसी दरिया में लहरों पर चल रही थी । हवा में किसी पक्षी के समान उङ रही थी । और उसे स्वतः बोध था कि यह सब वह आराम से कर सकती है । जो चाहे कर सकती थी ।
तब उसे फ़िर से उस मछुआरे का ख्याल आया । पर वह उस स्थान से बहुत दूर भटक कर आ गयी थी । कौन था वह ? और इस वक्त कहाँ था ?
पर वह तो सिर्फ़ एक रहस्य था । एक दृश्य की तरह था । तब उसकी याददाश्त थोङा ही पहले लौटी । सिर्फ़ कुछ देर पहले । सिर्फ़ कुछ घण्टे पहले । ओह गाड । जस्सी हूँ मैं । नहीं जस्सी थी मैं । प्रसून जी..प्रसून जी मर गये ।
मौत के बाद आने वाला जो नशा सा कुछ देर को मौत जीवन सबको भुला देता है । उससे अब वह उबर गयी थी । और ठीक उसी बिन्दु पर पहुँच गयी थी । जब प्रसून के चेकअप के बाद वह गला फ़ाङकर चिल्लाने वाली थी । और फ़िर वही हुआ ।
- प प प्रसूनऽऽऽऽऽ जीऽऽऽ ! वह पूरी ताकत से चिल्लाई - आप कहाँ हो ?
बङी हैरत की बात थी । अब उसे प्रसून के मरने का कोई दुख नहीं था । वह भी मर चुकी थी । वह भी मर चुका था । पर वे मरे नहीं थे । सिर्फ़ उनकी वह दुनियाँ मर गयी थी । और वे नयी दुनियाँ में आ चुके थे । अब बस उसे प्रसून को तलाश करना था । तलाश । पर कहाँ तलाश करे वह ? वह कहाँ थी । पता नहीं । प्रसून कहाँ था । पता नहीं ।
तब उसने किसी चिङिया के पंखों की तरह हाथ फ़ैलाये । और अनन्त आकाश में उङती चली गयी । वह मुक्त परवाज सा करती हुयी उङती चली जा रही थी । पर न उसे कोई मार्ग पता था । और न ही मंजिल पता थी । उसके दिमाग में बस एक ही बात थी कि उसे अपने प्रेमी प्रियतम को तलाश करना है । जो कहीं इन्हीं चाँद तारों के बीच खो गया है ।
चाँद तारे । काले नीले मिश्रित आसमान के बीच चाँद तारों की अनोखी दुनियाँ । और वह इस दुनियाँ में किसी परी की भांति उङती चली जा रही थी । उफ़ ! शायद इंसान जीते जी कभी नहीं जान पाता । मरने के बाद क्या आनन्द ही आनन्द है ।
तभी सहसा उसकी सुखद कल्पनाओं को एक झटका सा लगा । दो भीमकाय भुजंग काली आकृतियों के राक्षस जैसे देहधारी उसके दोनों तरफ़ आ गये । उन्होंने किसी अपहरणकर्ताओं की तरह उसे घेरे में ले लिया । उन्हें कुछ आश्चर्य सा हो रहा था । उनके भावों की वासना उसे दूर से महसूस हो रही थी । उसने तेजी से उनसे बचते हुये दूर जाना चाहा । पर वह असफ़ल रही । ऐसा लग रहा था । वह किसी अदृश्य घेरे में कैद हो चुकी थी । और उसका नियन्त्रण उनके हाथ में था । तब उसे अन्दर से डर सा लगने लगा ।
वे तेजी से दिशा परिवर्तन कर उसे उत्तर की ओर ले जा रहे थे ।
आसमान की सुन्दरता गायब होने लगी थी । और काले घने अंधकार का शून्य 0 स्पेस सा आने लगा था ।
और तभी उन दोनों ने उसका हाथ थामना चाहा । वह एकदम से घबरा गयी । वे उसके करीब होते जा रहे थे । और बेहद कामुक निगाहों से देख रहे थे । वह एकदम रोने लगी । और फ़िर उसे प्रसून की याद आयी । अगर वह होता । तो इन राक्षसों से बचाता । पर अब वह असहाय लङकी भला क्या कर सकती थी ।
दैत्य सम देहधारियों ने फ़िर से उसको पकङना चाहा । और तब घबराहट में उसके मुँह से करुणा भरी पुकार स्वतः निकल गयी - प्रसून जी । प्रसूनऽऽऽऽ जीऽऽऽऽ ।
अब उसे सिर्फ़ प्रसून याद आ रहा था । वह उससे एक भाव होती जा रही थी । उसका खुद का अस्तित्व खत्म होता जा रहा था । और प्रसून उसके अन्दर समाता जा रहा था । तब वे भुजंगी एकदम आश्चर्य से चौंके । इस अति खूबसूरत लङकी जिसे वे अपहरण कर भोगना चाहते थे । के इर्द गिर्द एक सुरक्षित अदृश्य घेरा सा बन गया था । जिसे वे पार नहीं कर पा रहे थे ।
जस्सी ने भी महसूस किया । जैसे ही उसने पूर्ण भाव से प्रसून को याद किया । वह उनके लिये किसी छाया के समान हो गयी । जिसे वे लाख कोशिशों के बाद भी नहीं पकङ पा रहे थे । जबकि वे उससे अभी कुछ फ़ुट ही दूर थे । फ़िर वे निराश होकर दूसरी तरफ़ चले गये ।
उसने वापिस दिशा परिवर्तन करना चाहा । पर असफ़ल रही । काले घने अंधकार का वह डरावना शून्य 0 स्थान उसे चुम्बक की तरह खींच रहा था । उसे आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा था । स्याह काला । और काजल सा चिकना अंधेरा । और वह इस भयानक अंधेरे में विलीन होती जा रही थी । तब उसे ढोल बजने की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम ढम ढमाढम
 
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Update no 6
रात और अंधेरा । अंधेरा और रात । क्या सम्बन्ध है । इनका आपस में । देखने सुनने में ये बङी साधारण सी बात लगती है । पर वास्तव में ये बङी गहन बात है । अंधेरे के मजबूत आलिंगन में कसमसाती हु्यी जवान रजनी कैसे एक रोमांचक सफ़र तय करती है । कैसे उससे एकाकार होकर पूर्णता को प्राप्त होती है । यह रहस्य सिर्फ़ सफ़ल योगी ही जानते हैं । ये काली खूबसूरत निशा यौवन से भरपूर अपने अंग अंग में क्या क्या रस माधुर्य छिपाये है । ये इसके साथ रहने वाले योगी ही जान पाते है । इसकी कालिमा में एक अनोखी खूबसूरती और आकर्षण छुपा हुआ है ।
प्रसून किसी अंतरिक्ष केन्द्र से छोङे गये राकेट की तरह तीवृ गति से अंतरिक्ष में जा रहा था । उसके चारों तरफ़ गहरा काला काला काजल सा पदार्थ था । काले और गीले बर्फ़ीले घने ठण्डे बादलों में उसे कठिनाई सी हो रही थी । उसका योग प्रकाश और बल अभी इस स्तर की सूक्ष्म यात्राओं के लिये पर्याप्त नहीं था । वास्तव में उसे ऐसी यात्रा का जोखिम लेना भी नहीं चाहिये था । वह किसी ऐसी दूरस्थ सृष्टि में जा सकता था । जहाँ से फ़िर कभी उसके लिये लौट पाना संभव ही न हो । ऐसी हठ पूर्वक की गयी अनजानी योग यात्रा उसका योग बल समाप्त कर सकती थी । ये जीवन भी समाप्त कर सकती थी ।
पर ओमियो तारा के अनुभव से गुजरने के बाद उसने तय कर लिया था कि वह जिन्दगी का प्रत्येक खतरनाक अनुभव अब खतरनाक ढंग से ही करेगा । उसका अंजाम क्या होगा । अब इसकी उसे कोई परवाह ही नही थी । वह अब तक खामखाह की भूलभुलैया में था कि वह योगी है । अमर है । उसके जीवन पर उसका पूर्ण अधिकार है । और वह जीवन को अपने तरीके से निर्माण करेगा । जियेगा ।
पर वास्तव में अब वह जान गया था कि दूसरों की तरह वह भी महज एक खिलौना ही है । जिसका रिमोट दूर कहीं किसी के हाथ में है । अन्य आम इंसानों की तरह उसकी भी जिन्दगी कभी भी किसी मोङ पर खत्म हो सकती है । और तब इस धारणा से डरने के बजाय वह आंतरिक तौर पर और भी मजबूत हो गया था । और जिन्दगी का एक एक पल योग एडवेंचर के रोमांच में जीना चाहता था । वह किसी स्लाटर हाउस में कटे पशु की तरह अपने शरीर की बोटी बोटी का उपयोग दूसरों की भलाई के लिये करना चाहता था ।
और इसीलिये इस अदृश्य और अनजानी यात्रा में उसका क्या अंजाम होने वाला है । पता न होते हुये भी वह तेजी से मंजिल की और जा रहा था । उसका स्थूल शरीर बराङ साहब की कोठी के एक कमरे में बेड पर मृत समान पङा हुआ था । वह कमरा बाहर से लाक्ड था । उसकी चाबी जस्सी के पास थी । उसने जस्सी को कसम दी थी । उससे गाड प्रामिस लिया था कि चाहे दस दिन हो जायें । जब तक वह आवाज न दे । वह दरबाजा न स्वयं खोले । और न किसी को खोलने दे ।
हालांकि वे सब उस रहस्य से अधिक बैचेनी महसूस न करें । इससे उसने संकेत में बता दिया था कि वह कुछ दिनों के लिये योग समाधि में जा रहा है । और सिर्फ़ जस्सी की खातिर जा रहा है । और ऐसी हालत में देखना हिलाना डुलाना पुकारना उचित नहीं होता । वास्तव में उन्हें इस बात की बेहद उत्सुकता हुयी थी । पर मौके की नजाकत समझकर वे चुप ही रहे । और उसका कहा मानने में ही भलाई समझी । उनके घर में योग समाधि । शायद यही उनके लिये बहुत बङा अजूबा था ।
पर प्रसून के लिये ये साली जिन्दगी ही अजूबा बनी हुयी थी । क्या अजीब होती है । ये जिन्दगी भी । सिर्फ़ कुछ दिन पहले न कोई जस्सी थी । न उसका वो रहस्यमय केस था । न उसे कल तक पता था कि आज इस समय वह अंतरिक्ष की ऊँचाईयों पर अशरीरी जा रहा होगा । कहाँ जा रहा था वह । क्या पता । कहाँ जा रहा था ।
ये परसों रात की बात थी । कोई दस बजे वह जस्सी के रूम में लेटा हुआ था । बहुत धीमी आवाज में टीवी चल रहा था । जस्सी उसके पास ही बेड पर बैठी हुयी थी । वे दोनों अकेले थे । कल उसने बराङ साहब और राजवीर से स्पष्ट कर दिया था कि उसे जस्सी की समस्या किस तरह की मालूम होती है । और वास्तव में वह चाहता है कि एक बार पूरे जोर से जस्सी पर अटैक हो । जो वह उसकी रियल स्थिति को जान सके । अगर उनकी बेटी की किसी रहस्यमय वजह से मौत हो जाती है । उससे लाख गुना अच्छा है । उस वजह को जानकर उससे लङने की कोशिश की जाय । और बचने का रास्ता खोजा जाये । और इसके लिये उसका ज्यादा से ज्यादा जस्सी के पास रहना जरूरी था ।
दोनों को ये बात तुरन्त समझ में आयी । अगर कोई बाधा उनकी बेटी को मार भी सकती थी । तो फ़िर उनकी
लाडली बेटी अगर जिन्दगी के अन्तिम दिनों को भरपूर जीती थी । तो क्या हर्ज था । और ये बेचारा वो सिर्फ़ उनकी बेटी से एंजाय करने के लिये नहीं कर रहा था । उसने कम्प्यूटर पर उन क्लिप को चलाकर कई एंगल से मामले की गम्भीरता उनको समझाई भी थी कि ये कितना गम्भीर मामला था । दूसरे इस लङके में उन्होंने कोई छिछोरापन भी नहीं देखा था । तीसरे वह तो स्वयँ ही बङे ख्वाहिशमन्द थे कि वह जस्सी को पसन्द करने लगे । तो उनका जीवन ही सफ़ल हो जाये । और इसीलिये वह एक इज्जतदार दामाद के समान जस्सी के साथ उसके रूम में उसके बेड पर मौजूद था । जबसे उसने जस्सी के साथ सेक्स किया था । वह उससे बहुत शरमाने सी लगी थी । सब बातों से अनजान जस्सी उसे सिर्फ़ एक प्रेमिका के रूप में देखती थी । और वह उसे एक सफ़ल योगी की तरह किसी अदृश्य तिलिस्मी जाल में फ़ँसी खूबसूरत चिङिया के रूप में । खूबसूरत गोरी चिङिया । हरी आँखों वाली ।
अपनी बहुत कोशिशों के बाद वह सिर्फ़ इतना ही दृश्य देख जान पाया था कि किसी अज्ञात कारण से जस्सी की चेतना जब एक खास बिन्दु पर पहुँच जाती है । तब बवंडर उठता है । और फ़िर उसे तेज चक्कर सा महसूस होता है । उसका सर बहुत तेज चकराता है । और उसे दुनियाँ क्या पूरी सृष्टि ही घूमती हुयी उङती हुयी सी नजर आती है ।
स्वाभाविक ही ये भयंकर चक्रवाती तूफ़ान की स्थिति होती है । और उसमें घनघोर बारिश के साथ बिजली कङकङाती है । फ़िर जस्सी किसी दरिया में फ़ँसकर डूबने लगती है । तब उसे एक टार्जन लुक वाला युवा मछुआरा नजर आता है । वह उससे बचाने के लिये पुकारती है । बस ।
लेकिन इसके आगे क्या रहस्य था । और ठीक यही दृश्य करम कौर को भी क्यों दिखायी दिया । उसे याद रहा । जबकि जस्सी को याद नहीं रहता था । ये बहुत से सवाल उसके जहन में थे । कामुक और लंपट बाबा गुरुदेव सिंह इस तिलिस्म जाल में फ़ँसकर अकाल मारा गया था । इसकी भी क्या वजह थी । ये सब खेल क्या था ? और सबसे बङी बात कहाँ से संचालित हो रहा था । इसके तार कहाँ से जुङ रहे थे । यह उसके लिये सबसे अहम प्रश्न था ।
इस सृष्टि में कोई भी रहस्य कितना ही बङा क्यों न हो । उसका कोई न कोई सूत्र कहीं न कहीं मिल ही जाता है । और फ़िर गुत्थी को सुलझाना ही शेष रहता है । कितनी मजे की बात थी । बीमार जस्सी के रहस्य का सिरा सूत्र उसे करम कौर के दिमाग से हासिल हुआ था । उसके दिमाग में वह AV फ़ाइल के समान मौजूद था । जबकि जस्सी के दिमाग में नहीं था । यही हैरत की बात थी । तब उसने बङी मुश्किल से सिर्फ़ अन्दाजा ही लगाया था कि दोनों के साथ एक ही घटना घटी थी ।
अब आगे का रास्ता भले ही अनिश्चित था । पर शायद उससे ही कुछ हासिल हो सकता था । वह पूरा बवंडरी दृश्य उसके दिमाग की मेमोरी के एक हिस्से में फ़ीड था । और किसी वीडियो क्लिप की तरह वह उसे बार बार चलाता हुआ यह पहचानने की कोशिश कर रहा था कि आखिर यह जगह कहाँ और कौन सी है ? अगर वह उस जगह से कनेक्ट हो सकता था । उसको पहचान सकता था । और वह उसकी योग रेंज में आती थी । तो बात बन सकती थी ।
पर उसे बहुत झुँझलाहट सी हो रही थी । वह दृश्य उतना ही चलकर खत्म हो जाता था । और जो वह उसमें प्रवेश करने की चेष्टा कर रहा था । वह एकदम नाकाम ही सावित हो रही थी । सीधी सी बात थी । उसकी योग क्षमता अभी उतनी विकसित नहीं थी कि वह किसी अतीतकालिक घटना में सीधा ही हस्तक्षेप कर सके । ऐसी ही बारबार की कोशिशों में वह वहीं लेटा हुआ ट्रांस में जाता था ।
तभी उसे अपने शरीर से लिपटे एक कोमल बदन की गरमाहट सी महसूस हुयी । और उसकी क्षणिक विकल्प समाधि भंग हो गयी । उसने हौले से आँखे खौल दी । कमरे में अंधेरा फ़ैला हुआ था । सुन्दर जस्सी उसके साथ किसी मासूम बच्चे की भांति लिपटी हुयी थी । उसने टीवी लाइट बन्द कर दी थी ।
ये उसके लिये एक साथ कई मोर्चों पर लङने जैसा था । एक योगी के स्तर पर किसी पिता के समान वह जस्सी की किसी मासूम बालक की भांति रक्षा करने को दृण संकल्पित हो चुका था । पर बारबार दिक्कत यही आती थी कि उसकी तरफ़ से भी इसी भाव में पूरा सहयोग होता । तब कुछ बात थी । पर वह तो प्रेमिका होने के अतिरिक्त कुछ सोचना ही नहीं चाहती थी । वास्तव में वह सो गयी थी । और उसका मासूम चेहरा किसी अबोध बच्चे के समान किसी सुन्दर सपने में खोये अहसास का भाव प्रकट कर रहा था ।
वह सावधानी से ऊपर खिसककर अधलेटा सा हुआ । और सिगरेट सुलगायी । इस तरह बात बनेगी नहीं । उसने सोचा । उसे किसी अलग कमरे में खास व्यवस्था के तहत गहन समाधि में जाना ही होगा । और कुछ % तक सच्चाई से जस्सी के परिजनों को परिचित कराना ही होगा । और फ़िर उसने यही किया था ।
और परिणाम स्वरूप इस विशाल अंतरिक्ष के रहस्यमय अंधेरे में भटक रहा था ।
और तब अचानक वह बुरी तरह चौंका । जब उत्तर दिशा में किसी नीच लोक से उसे तेज बवंडर उठता नजर आया । वह उस बवंडर से बहुत ऊँचाई पर था । उसके नीचे बादल गहराने लगे थे । उज्जवल उजास दामन वाली दामिनी अपना भरपूर कटाक्ष फ़ेंकती थी । और आकाश में कङकङाहट सी गूँज जाती थी । क्या चपल देवी होती है । ये चपला भी । उसने सोचा । ये अनिंद्ध सुन्दरी उच्च देवों को भी सिर्फ़ आह भरने पर मजबूर अवश्य करती थी । पर उसे छू पाने की भी हिम्मत उनके अन्दर नहीं थी । क्योंकि उसे छूना आसान नहीं था । बल्कि संभव ही नहीं था । वह सिर्फ़ अद्वैत शक्तियों की दासी थी । और विशेष कार्यों हेतु मुक्त विचरण पर निकलती थी । उसने सोचा । जिन चेतन पुरुषों को ये नायिका सुख पहुँचाती होगी । उसका आनन्द न सिर्फ़ अवर्णनीय होगा । कल्पनातीत भी होगा । जिसका एक मादक कटाक्ष ही बृह्माण्डी गतिविधियों में तमाम परिवर्तन कर देता है । अंतरिक्षीय हलचल में उलट फ़ेर कर देता है । उस सुन्दरी की बस कल्पना ही की जा सकती है ।
पर अभी ये सब सोचना उसके कार्यकृम का हिस्सा नही था । उसे उस बवंडर से खास मतलब था । और इसके लिये उसे वापिस नीचे उतरना था । और फ़िर उसने वैसा ही किया । उसकी गति नीचे की तरफ़ होने लगी । वह बादलों के झुण्ड में खोता चला जा रहा था ।



वास्तव में कोई योगी कितना ही पहुँच वाला और जानकार क्यों ना हो जाये । प्रकृति के रहस्यों और दैत की मायावी भूमि से पार पाना उसके लिये कभी संभव नहीं है । अब उसका यही विचार पक्का होने लगा था । और अब उसे अपनी मूर्खता पर स्वयं ही हँसी भी आ रही थी । अपनी उलझन के चलते वह एक मामूली सी बात भी नहीं सोच पाया था । क्या थी वह मामूली बात ?
जस्सी और करम कौर के साथ अतीतकाल में जब भी यह घटना घटी होगी । निश्चय ही किसी भी प्रथ्वी पर ही घटी होगी । और उनके विगत मनुष्य जीवन में ही घटी होगी । जिसका कोई न कोई सम्बन्ध उस मछुआरे नाविक से हो सकता है । और सबसे बङी बात यह थी कि जो वह अपनी आदत अनुसार उसकी जङें उच्च लोकों में तलाश रहा था । वे दरअसल किसी नीच लोकों में भी हो सकती थी । बल्कि नीचे लोकों में ही होने की संभावना अधिक थी । क्योंकि ऊँचे लोकों के ऐसे दैवीय अटैक वह आसानी से समझ सकता था । वे उसके तमाम अनुभवों का हिस्सा से थे ।
काले सफ़ेद मटमैले अजीव से बादल मंडरा रहे थे । उनका नियुक्त प्रतिनिधि पुरुष बेहद काला सा था । और सपाट भाव से अपने कार्य में लगा था । उसने प्रसून पर एक उपेक्षित सी निगाह डाली । और ट्रेफ़िक पुलिस की तरह हाथ हिलाता बादलों को नियन्त्रित करने लगा ।
तब प्रसून स्वतः ही उसकी ओर आकर्षित हुआ । और उसके एकदम करीब पहुँच गया । उसकी भंगिमा से ही वह मेघदूत उसके योगत्व को जान गया । उसने प्रसून का औपचारिक अभिवादन किया । और वह उसके लिये क्या कर सकता है । ऐसा उसने आगृह किया । पर प्रसून उससे सिर्फ़ उस स्थान के बारे में जानकारी चाहता था । और आगे किस तरह के लोक थे । वहाँ के निवासी कौन से वर्ग में आते थे । बस यही जानना चाहता था । उसने प्रसून को बहुत कुछ बता दिया । जहाँ तक उसका कार्य क्षेत्र था । उसने बता दिया ।
यह स्थान यमपुरी के निकट था । आगे सजा पाये जीवों के लिये अंधेरे और नीच लोकों का सिलसिला शुरू हो गया था । उससे और आगे नीचाई पर जाने पर नरक और फ़िर महा नरकों का सिलसिला शुरू होता था ।
पर उसे नरकों से कोई वास्ता नहीं था । शायद उसका वास्ता क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से बहुत छोटे ही अंधेरे लोकों से था । जस्सी का सम्बन्ध वहीं कहीं से जुङ रहा था । उत्तर दिशा की यह भूमियाँ तामसिक और निकृष्ट साधकों की अधिक होती थी । अतः उसका ज्यादा सरोकार इनसे नहीं रहा था । पर वह शुरूआती दौर में प्रेतों के काफ़ी करीब रहा था । अतः ऐसे लोकों का इतिहास भूगोल अच्छी तरह जानता था । समझ सकता था । यमपुरी के आसपास का एरिया एक तरह से प्रशासनिक क्षेत्र था । और यहाँ साधारण स्वतन्त्र प्रेतों के बजाय नियुक्त गण होते थे । या होने चाहिये । जबकि तान्त्रिक लोक जैसे सिद्ध लोकों का मामला अलग था । वहाँ के प्रेत और विभिन्न भाव रूहें अलग प्रकार की थी ।
वह गुरुत्व बल के योग दायरे में आधार रहित स्थिर खङा विचार मग्न था । बादलों के सफ़ेद बर्फ़ीले टुकङे उसको छूते हुये गुजर रहे थे । पर वह स्थूल देही की भांति कोई ठण्डक अनुभव नहीं कर रहा था ।
- हेऽऽऽ । तभी उसे आश्चर्य मिश्रित चीख सी सुनाई दी - मानव । देख मानव ।
उसने आवाज की तरफ़ देखा । वे दोनों योगिनियाँ थी । और शायद कहीं नियुक्त भी थी । उसे थोङी सी हैरत हुयी । सूक्ष्म शरीर में होने के बाद भी वे उसे मनुष्य स्थिति में महसूस कर सकती थी । और उसकी असलियत से वाकिफ़ थी । ये क्षेत्रिय असर था । इंसान जिस भूमि जिस स्थित जिस भाव से जुङा होता है । उसका असर उस पर निश्चय ही होता है । उसके मूल पर चङा भाव आवरण अपना परिचय दे ही देता है । पर मूल । उसने सोचा । और उनके मूल में स्त्री थी । सदियों से वे स्त्री मूल में थी । और वह स्त्री आज भी उनके अन्दर होगी । एक स्त्री । जो एक पूर्ण पुरुष की निकटता के अहसास से ही भीगने लगती है । उसे जकङने पकङने को संकुचित होने लगती है ।
- कमाल है । वह उनकी प्रशंसा सी करता हुआ बोला - आपने मुझे एकदम ठीक से पहचान लिया । मैं मानव ही हूँ । और मुझे स्वयँ आश्चर्य सा होता है । दूसरे मानव मेरे जैसे क्यों नहीं हैं ? जैसे मैं किसी पक्षी की भांति मुक्त आसमान में घूमता हूँ । पता नहीं मै औरों से अलग ऐसा कैसे कर लेता हूँ ।
उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराई ।
फ़िर एक बोली - इसका नाम कनिका और मेरा रक्षा है । कहिये हम आपकी क्या सेवा कर सकती हैं । भले ही आप उसका कोई मूल्य ना चुकाना । दरअसल यहाँ मृत्यु पश्चात तो बहुत मानव आते हैं । रोज ही लाखों जीवात्माओं का लेन देन इधर उधर होना जारी रहता है । पर यूँ स्वतन्त्र रूप से बहुत कम आते हैं ।
वह मोहक भाव से मुस्कराया । जो योगिनियों के दिल में तीर सा लगा । वे बैचेन सी होने लगी । यह किसी दूर देश के अनोखे पर पुरुष का स्वाभाविक चुम्बकीय आकर्षण था । उससे भोग करने की जबरदस्त कामना वाला आकर्षण ।
- जहाँ हम लोग खङे हैं । वह बहुत हल्का सा कटाक्ष करती हुयी बोली - ये प्रेतराज का क्षेत्र है । उसका काम सजा पाये लोगों पर निगाह रखना है । कुछ अंधेरे लोक उसके संचालन में होते हैं । वैसे उसका काम कुछ नहीं होता । पर वह वहाँ से जुङी गतिविधियों पर निगाह रखता है । वहाँ कोई बाहरी हलचल होने पर उसका उपाय करता है । और मामला उसकी शक्ति से बाहर होने पर केन्द्र को सूचित कर देता है ।
- अंधेरे लोक । वह उसके पूछने पर बोली । और उसने उँगली से एक तरफ़ इशारा किया - उनका मार्ग इधर से है । पर आप वहाँ क्यों जाना चाहते हैं ? तो फ़िर बिना प्रेतराज की अनुमति और उसके संज्ञान में लाये बिना आप कैसे जाओगे ? इसी पर निगाह रखना तो उसका काम है ।
अभी वह कुछ जबाब देना चाहता था कि उसे हल्के हल्के ढोल की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम.. ढम ढमाढम । किसी कुशल संगीतज्ञ की तरह कोई ढोल बादक बङे लयताल से ढोल बजा रहा था । उसे सुर का अच्छा ज्ञान मालूम होता था ।
अभी वह उनसे इस बारे में कुछ पूछना ही चाहता था कि आगे का दृश्य देखकर उसके छक्के ही छूट गये । न सिर्फ़ उसके छक्के छूट गये । योगिनियों ने भी बहुत आश्चर्य से लगभग चीखते हुये उस दृश्य को देखा ।
- जस्सी । प्रसून के मुँह से निकला - ओह गाड । जस्सी । क्या ये मर गयी ?
एक तेज चक्रवाती बवंडर के बेहद ऊँचे गोल दायरे में जस्सी का सूक्ष्म शरीर ऊँचा और ऊँचा उठता हुआ आ रहा था । और वह तेजी से अंधेरे लोक की तरफ़ जा रही थी । अब कुछ पूछने बताने का समय नहीं था । वह तेजी से उधर ही जाने लगा । यहाँ बवंडर की गति अधिक नहीं थी । और अगर होती भी । तो वह योगी की गति से ज्यादा कभी नहीं हो सकती थी ।
अब उसके दिमाग में तुरन्त दो ख्याल आये । पहला । तुरन्त जस्सी को उस बवंडर से मुक्त कराकर उसकी असलियत पता करना । वह मर गयी । या जीवित थी । दूसरा । शायद इस बवंडर का सम्बन्ध उसकी कारण समस्या से जुङा हो । तब उसका हस्तक्षेप पूरे मामले को बिगाङ सकता था । और वह जो शायद स्वतः ही रहस्य की तह में जा रही थी । वो रास्ता बन्द हो सकता था । दूसरी बात अधिक उचित थी ।
वह सावधानी से उसके पीछे जाता हुआ देखने लगा ।
इसी को कहते हैं । मारने वाले से बचाने वाला बङा । हर समस्या का समाधान निश्चित होता है । हर रोग का इलाज निश्चित होता है । हर घटना का सटीक कारण होता है । और ये सब हो रहा है । केवल अज्ञान भृमवश अहम मूल से बने जीव को ऐसा भासता है कि वह इसका कर्ता है । आज जो प्रयोग उसके जीवन में घटा था । वह अदभुत ही था । अल्ला बेबी के मेल से लेकर उसके यहाँ तक पहुँचने और अब जस्सी के यकायक हैरत अंगेज तरीके से वहाँ बवंडर में होने के पीछे की सारी बातें उसके सामने रील की तरह घूम गयी । और वह कैसे और क्यों इस घटना में निमित्त था । यह सारी बात स्पष्ट हो गयी । अगर वह न होता । तो वह लङकी एकदम असहाय ही थी । पर अब वह एक मजबूत सहारे की तरह उसके साथ था । कितनी अजीब है । ये प्रभु की लीला भी । कौन इसका पार पा सकता है । वह उसका पूरक बना था । और वह उसकी पूरक बनी थी । और प्रकृति का कार्य भी चल रहा था । एक सीख रहा था । एक प्रयोग वस्तु था । और सृष्टि का कार्य भी हो रहा था । अदभुत । अदभुत खेल ।
वह काफ़ी आगे निकल आया था । कई सौ योजन की दूरी तय हो चुकी थी । जस्सी किसी उमेठे गये तार में फ़ँसी खिलौना गुङिया की भांति चक्रवाती बवंडर में ऊपर नीचे जा रही थी । और फ़िर वह एक जगह रुक गयी । बवंडर मानों वहीं थमकर खङा हो गया । अब ढोल की आवाज काफ़ी तेज हो गयी थी । पर वह जैसे कहीं बहुत नीचे से आ रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । उसने नीचे की तरफ़ दृष्टि डाली । काला गहन अंधेरा । अंधेरा ही अंधेरा । अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं था । वह नीचे उतरने लगा ।
ये आप क्या कह रहे हो । वह बेहद हैरत से बोला - मुझे बिलकुल भी विश्वास ही नहीं हो रहा ।
- मुझे भी नहीं होता । प्रसून भावहीन स्वर में बोला - पर कभी कभी अजीव बातों पर भी विश्वास करना ही पङता है । तुम्हारी ये ढोलक क्या गजब ढा रही है । शायद कोई भी इस पर यकीन न करे । एक मासूम लङकी तुम्हारी वजह से कटी पतंग की तरह बिना लक्ष्य भटकती हुयी यहाँ तक आ पहुँची है । और निराधार अंतरिक्ष में लटकी हुयी है । बल्कि लटकी कहना भी गलत है । वह तूफ़ानी बवंडर में कैद है । अभी मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो जीती है । या मर चुकी है ।
उस बूङे के चेहरे पर गहरे अफ़सोस के भाव थे । वह मानों रो पङना चाहता था । उसकी वजह से किसी को घोर कष्ट हुआ था । यह सोच उसको मारे ही डाल रही थी । प्रसून को कम से कम अब इस बात की तो तसल्ली हो चुकी थी कि जो भी क्रिया हो रही थी । या अनजाने में की जा रही थी । उसका लक्ष्य जस्सी को कोई नुकसान पहुँचाना नहीं था ।
गोल बवंडर शून्य 0 स्थान में जस का तस थमा हुआ था । और अब उसकी मुश्किल और भी दुगनी हो गयी थी । जब जिसकी वजह से वह सब क्रिया हो रही थी । उसे ही कुछ मालूम नहीं था । तब फ़िर उसका कोई इलाज उसके पास क्या होता ।
- दाता ! उसने आह भरी - तेरा अन्त न जाणा कोय ।
अब सब कुछ संभालना उसका ही काम था । अगर कोई छोटी बङी शक्ति के स्वयँ जान में ये घटना हो रही थी । तब बात एकदम अलग थी । और अब बात एकदम अलग । उसने अन्दाजा लगाया । प्रथ्वी पर सुबह हो चुकी होगी । तब जस्सी को लेकर बराङ परिवार में क्या भूचाल मचा होगा । जस्सी मरी पङी होगी । वह भी मरा पङा होगा । कहीं ऐसा ना हो । वे उन दोनों का अन्तिम संस्कार ही कर दें । यहाँ से वापिसी भी कब होगी । कुछ पता नहीं था । और अब तो ये भी पता नहीं था कि वापिसी होगी भी या नहीं । यदि उनके शरीर नष्ट कर दिये गये । तो उनकी पहचान हमेशा के लिये खो जायेगी ।
तब क्या उसे यूँ ही वापिस लौटकर सारी स्थिति को देखना संभालना चाहिये । अचानक उसके पीछे क्या बात हुयी थी । वह न तो उन वर्तमान परिस्थितियों में अभी पता लगा सकता था । न ही उसके पास इतना समय था ।
उसने इतने अलौकिक स्थानों की यात्रायें की थी कि उसे याद भी नहीं था । पर ये अंधेरे नीच लोक अजीव ही थे । चमकता सूर्य और खिली धूप का क्या मतलब होता है । यहाँ के निवासी शायद जानते ही नहीं थे । हर समय धुंध सी फ़ैली रहती थी । और बहुत पीला सा मटमैला प्रकाश फ़ैला रहता था ।
सृष्टि नियम में काले पानी की सजा जैसा ये अजीव ही विधान था । लगता था । सृष्टि अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थी । अलग अलग जगह अलग अलग लोकों में जीवन की कितनी अजीव परिस्थितियाँ विकसित थी ।
उसने बूङे को गौर से देखा । एक अजीव सा सूनापन उसकी आँखों में समाया हुआ था । वह जैसे ठहरा हुआ समय था । उसके पास ढोल रखा हुआ था । और शायद वही उसका अब साथी भी था । वह भारत के किसी पिछङे गाँव की तरह एक कच्चे से मकान में रहता था । जिसमें सिर्फ़ एक कमरा था । और बाहर बहुत सी खुली जगह थी । उसका ही घर क्या । अधिकतर बहाँ की आवादी ऐसी ही हालत में थी । उसके कमरे में पाँच छह पुरुष और तीन स्त्रियाँ बैठी हुयी थी । उन सबको उसको लेकर बहुत आश्चर्य था । वे बार बार उस पवित्र आत्मा को देख रहे थे । जो स्वेच्छा से यहाँ तक आ गया था । और उसकी दिव्य आभा से वहाँ एक अजीव सा प्रकाश फ़ैला हुआ था ।
पर उसकी हालत खुद अजीव हो रही थी । उसका अगला कदम अब क्या हो ? उसे ही ये तय करना मुश्किल हो रहा
था । तब उसकी निगाह उस ढोल पर गयी । सारा रहस्य शायद इस ढोल में ही छुपा हुआ था । पहले उसने सोचा कि वह बूङे से उसके बारे में पूछे । उसका दिमाग कैप्चर कर ले । और समस्या को बारीकी से देखे । और वह यही करने वाला था ।
तब हठात ही उसे दूसरी बात सूझी । जो अधिक उचित थी । दरअसल वह जब तक यहाँ पहुँचा था । ढोल कृमशः मद्धिम होता हुआ रुक गया था । और वह इसी ध्वनि के सहारे यहाँ तक आया था । आज उसने योग का एक अजीव अनुभव किया था । उस ढोल की ध्वनि के साथ अजीव तरंगे आकार ले रही थी । और उनमें मानवीय आकार और जमीनी दृश्य किसी ग्राफ़िक विजुअलाइजेशन की तरह हौले हौले आकार ले रहे थे । जैसे किसी आडियों फ़ाइल को प्ले करने पर ध्वनि के आधार पर तरंगो की तीवृता और क्षीणता के आरोह अवरोह पर डिजायन बनती है ।
खास बात ये थी कि इसमें जस्सी करम कौर एक युवा नाविक मछुआरा एक बूङा और कुछ नटगीरी के करतब उसे नजर आये थे । लेकिन जैसे जैसे वह करीव आता गया । इन सब शरीरों की रूप आकृतियाँ बदलने लगीं । यही बङा अदभुत बिज्ञान उसने देखा था । वह इसे जानता तो था । पर ऐसा प्रत्यक्ष रूप पहली बार देखा था । उसने सोचा । किसी टीवी सेट इंटरनेट आदि में दृश्य ध्वनि का प्रसारण और रिसीविंग के मध्य कुछ कुछ ऐसा ही होता होगा ।
तब सारा रहस्य इसी बात में छुपा था । और वह बारबार इसी को सोच रहा था । वह जब उधर से आ रहा था । तब जस्सी और करम कौर की आवृतियाँ उनके वर्तमान स्वरूप की बन रही थी । लेकिन बीच रास्ते में उसने उतनी ही संख्या में दूसरी अपरिचित आवृतियाँ देखीं । जो इस नीच लोक की तरफ़ से उसी पथ पर जा रही थी । और इसका चित्रण इस तरह से बनता था । जैसे जस्सी करम कौर और अन्य एक रास्ते पर आ रहे हों । और उतनी ही संख्या में वैसे ही लिंगी इधर से जा रहे हों । तब एक बिन्दु पर वे शरीर मिले । और जस्सी उस अपरिचित लङकी में समा गयी । करम कौर एक औरत में समा गयी । इधर का दृश्य उधर के दृश्य से मिल गया । और मामला ठहर गया । फ़िर ये वीडियो क्लिप जैसा चित्र पाज होकर स्टिल चित्र में बदल गया । ये उसने देखा था ।
बूङा सूनी आँखों से उसी की तरफ़ देखता हुआ कुछ बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था । पर क्या बोले वह ? वह खुद चाहता था कि वह बोले ।
- बाबा ! तब वह ही बोला - मैं आपके इस ढोल को बजते हुये सुनना चाहता हूँ । मेरा मतलब जैसा आप हमेशा से करते आये । जिन भावों से । जिन वजह से आप ढोल बजाते रहे । ठीक सब कुछ वैसा ही देखना सुनना चाहता हूँ । लेकिन मनोरंजन के लिये नहीं । इसमें किसी की जिन्दगी मौत का सवाल छुपा है । और शायद मेरी जिन्दगी मौत का सवाल भी ।
सबने चौंककर उसकी तरफ़ देखा । एक ढोल बजने से किसी की जिन्दगी मौत का क्या लेना देना । ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था । बूङे ने बङे असहाय भाव से इंकार में सिर हिलाया । उसकी बूङी आँखों में दुख का सागर लहरा रहा था । उसके इंकार पर प्रसून को बङी हैरत सी हुयी । उसका आगे का पूरा कार्यकृम ही उसके ढोल बजने पर निर्भर था ।
- ये सब । वह कमजोर आवाज में बोला - खुद होता है । मैं वैसा ढोल हमेशा नहीं बजा सकता । बल्कि ये मान लो । वह खुद ब खुद बजने लगता है । और ये यहाँ । उसने छाती पर हाथ रखा - यहाँ हूक उठने पर होता है । अभी मैं बहुत देर से ढोल बजाता रहा हूँ । इसलिये मेरा दर्द शान्त हो चुका है । भावनाओं का ज्वार शान्त हो चुका है ।
ये भावना हमेशा पूरे जोर पर नहीं होती । बल्कि कभी कभी ही होती है । तब मैं ढोल बजाने लगता हूँ । और गाता हूँ । अपना दुख व्यक्त करता हूँ । ये सब मैं यकायक करता हूँ । तब ये लोग । उसने कमरे में मौजूद लोगों पर दृष्टि डाली - खिंचे से चले आते हैं । ये भी अपने वाध्य यन्त्र बजाते हैं । और गाने में मेरा साथ देते हैं । तब एक अजीव सा तरंगित माहौल बन जाता है । और मैं पूरी तरह डूबा हुआ अपने अतीत में लौट जाता हूँ ।
प्रसून के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कराहट आयी । उसका ख्याल एकदम सही था । पर उससे क्या होना था । उसका ढोल बजना बहुत जरूरी था । उसी बात पर उसकी और जस्सी की जिन्दगी निर्भर करती थी । जस्सी जो चक्रवाती बवंडर में यहाँ से दूर निराधार लटकी हुयी थी ।
मगर बूङा भी अपनी जगह सही कह रहा था । सुख और दुख का असली भाव कृतिम रूप से पैदा करना संभव ही नहीं था । वो भी तब जब अभी अभी वह उस स्थिति से उबरा हो । उसने एक निगाह खुले आसमान की तरफ़ डाली । क्या टाइम हो रहा था । इसका भी अन्दाज नही हो पा रहा था । कितनी देर हो चुकी थी । इस बात को लेकर भी वह असमंजस में था । उसे जल्दी ही कोई निर्णय लेना था । और अब इसके लिये एक ही उपाय बचा था ।



बाबा ! वह भावुक होकर बोला - अपनों का गम । उनके बिछुङने का गम । शायद सबसे बङा होता है । भले ही अपनों से बिछङा इंसान जन्म दर जन्म कालखण्डों के तूफ़ानों में अपनी डगमगाती कश्ती यहाँ से वहाँ ले जाता रहे । जुदाई की ये तङप । विरहा की ये आग । उसके अन्दर कभी नहीं बुझती । माया के वशीभूत जीवात्मा पिछली बातों को भूल अवश्य जाता है । पर एक अज्ञात सी हूक उसके कलेजे में जागती रहती है । क्या अजीव विधान है सृष्टि रचियता का । इंसान अपने बीबी बच्चों में खुश होता है । जीवन की बगिया में महकते फ़ूल खिल रहे होते हैं । उसका युवा जवान पुत्र होता है । और उस पुत्र की बहुत सुन्दर पत्नी या प्रेमिका होती है । उसकी खुद की भी पत्नी होती है ।
वह अमीर होता है । या गरीब होता है । इससे ज्यादा मतलब नहीं होता । वह अपनी जीवन की फ़ुल बगिया में सुखी ही महसूस करता है । पर कितना अजीब है ना । तब एक.. तूफ़ान आता है । प्रलयकारी तूफ़ान...।
अचानक बूङे का बदन हिलने लगा । उसने ढोल बजाने वाली लकङी उठा ली । उसके बूङे हाथ तेजी से कांप रहे थे । प्रसून अन्दर ही अन्दर सन्तुष्ट हुआ । पर अभी भी मामला खराब हो सकता था ।
- और वह तूफ़ान । वह फ़िर से सधे स्वर में बोला - कभी कभी जिन्दगियों को उजाङ देने वाला होता है । हँसती खेलती जिन्दगी उजाङ देने वाला तूफ़ान..बिजली कङकङाती है ..और फ़िर..।
बूङे का हाथ हिला । उसकी गर्दन हिल रही थी । और फ़िर मुठिया वाली लकङी की थाप ढोल पर पङी । ढमऽऽ की आवाज गूँजी । मौजूद स्त्री पुरुषों के चेहरे पर अजीव सी रौनक खिल उठी । वे इस जादुई पुरुष को गौर से देख रहे थे ।
- किसी की बीबी ! वह फ़िर से बूङे को गौर से देखता हुआ भावुक होकर बोला - किसी का जवान बेटा । किसी का पति । और किसी की प्रेमिका भी..ये तूफ़ान..भयानक जंगलों में ..
ढम ढम..ढमाढम..बूङा तेजी से हाथ चला रहा था । अब प्रसून की बातों से उसका ध्यान हट चुका था । क्या अजीव जादू था । उस ढोल की लय में । सब उसकी बातें सुनना छोङकर ढोल में मगन हो गये । प्रसून रहस्यमय मुस्कराहट के साथ उन सबको देखने लगा । उसका उद्देश्य पूरा हो चुका था । देखते हैं । आगे क्या होता है । उसने सोचा । बूङा दर्द भरी आवाज में कोई गीत गा रहा था । और वे लोग भीगी आवाज में उसकी किसी मुख्य कङी में सुर मिलाते थे । वे प्रसून को भूल सा गये थे । उसे गीत के बोल और उसका अर्थ समझ नहीं आ रहा था । पर आवाज का गहरा दर्द एक अंधा भी महसूस कर सकता था ।
ये आवाज मानों आत्मा की आवाज थी । तब उसने दर्द की आवृति का गोल छोटा सा भंवर बनते देखा । उसके गानों में रूसी गाने की तरह एक अजीव सी शैली समायी हुयी थी । जो गाते वक्त रोने की फ़ीलिंग देता था । तभी बाहर की तरफ़ से कुछ शोर सा सुनाई दिया । उसे जस्सी द्वारा खुद को पुकारने की आवाज सुनाई दी ।
- सत्यानाश ! उसके मुँह से निकला । सब किया कराया चौपट हो गया था । पूरी मेहनत पर पानी फ़िर गया था । अन्य लोग भी चौंककर उधर ही देखने लगे । व्यवधान आते ही बूङे ने ढोल फ़िर बन्द कर दिया था । उसका भाव रुक गया । बाहर कुछ गणों के साथ जस्सी खङी थी । वे किसी कैदी की भांति उसे पकङे हुये थे ।
वह तुरन्त वहाँ पहुँचा । जस्सी बङी हैरत से उसे देख रही थी । और खुशी से उससे लिपट जाना चाहती थी । उसने एक गहरी सांस भरी । क्या सब कुछ खत्म होने वाला था । कितना बङा हस्तक्षेप हुआ था । बस एक घण्टे भी और वही स्थिति रहती । तो सब कुछ खुली किताब की तरह हो जाने वाला था ।
- महोदय ! एक प्रहरी बोला - आप कोई योगी मालूम होते हैं । पर कृपया आपको प्रेतराज को सूचना देकर उनकी जानकारी में आना चाहिये था । क्या इस जीवात्मा से आपका कोई सम्बन्ध जुङता है ? आपके यहाँ आने का उद्देश्य क्या है ? ये देवी कौन है ? आप कब तक यहाँ रहने वाले हैं ?
उसने जस्सी को देखा । कमाल की लङकी थी । कैसे उसके पास एक जादू की तरह आ गयी थी । और मुश्किल बात ये थी कि अभी यही नहीं पता था कि वो जिन्दा थी । या मर चुकी थी । पर प्रहरी को उसके मनोभावों से कोई मतलब नहीं था । उसे अपने उत्तरों की शीघ्रता थी । वह जानता था कि उसकी जगह कोई रूह भटकती हुयी गलती से इधर पहुँच जाती । तो ये पहरेदार तुरन्त उसे कैद कर लेते । जैसे जस्सी अभी कैद थी । पर वे योगियों के लिये नियम जानते थे ।
- उसे छोङ दो । वह जस्सी की तरफ़ देखता हुआ बोला - वो मेरी प्रेमिका है । उसी की बाधा के चलते मैं यहाँ आया हूँ । दरअसल मैं अपने अभियान के बीच यकायक यहाँ आया । मुझे इसकी अभी की स्थिति का भान था । मैं अपने अभियान के पूरा होते ही वापिस जाऊँगा । ये लङकी और मैं दोनों बाहरी व्यक्ति हैं । इसके अलावा हमारे
साथ कोई नहीं है । तब तक तुम हमारे बारे में यही से पता कर सकते हो । क्योंकि इस बाधा का सम्बन्ध यहीं से है । वैसे तुम जानते ही होगे । फ़िर भी हम दोनों प्रथ्वी से हैं । अनावश्यक चिंता न करो । हम यहाँ कोई परेशानी वाली बात नहीं करेंगे । प्रेतराज को मेरा नमस्कार कहना ।
ये सब बात उसने विशिष्ट अन्दाज में सूक्ष्म लोकों में योगियों की स्थिति अनुसार कही थीं । वे तुरन्त समझ गये । और आदर के साथ उन्होंने जस्सी को छोङ दिया । वह दौङकर प्रसून से लिपट गयी । लोक वायु प्रहरियों ने उसका अभिवादन किया । और वापिस चले गये ।
चाहे वह मामूली चींटी चींटा हो । इंसान हो । या फ़िर देवतुल्य बङी शक्तियाँ ही क्यों न हों । हरेक का जीवन शतरंज पर बिछी बिसात के समान है । एक मामूली मोहरे के इधर से उधर होते ही जिन्दगी के खेल की पूरी चाल ही बदल जाती है । और तब बङे से बङे खिलाङी के माथे पर बल पङ जाते हैं । एक चाल हजारों नई चालों को जन्म देती हुयी आती है । अब क्या हो ? कैसे हो । ऐसा हो । तो वैसा हो । वैसा हो । तो ऐसा हो । फ़िर भी पता नहीं । उसका परिणाम कैसा हो । कभी कभी कितना असहाय महसूस होने लगता है । जब किसी बङे मोहरे से जूझता राजा भी थोङी सी लापरवाही से मामूली पैदल सैनिक के निशाने पर मरने को मजबूर होता है । राजा हो या रंक सभी का अन्त एक सा होय ।
अंधेरा गहराने लगा था । पहले से ही अंधेरे इस लोक में रात होने लगी थी । सो उसकी प्रारम्भिक अवस्था ही प्रथ्वी की आधी रात के समान थी । वह और जस्सी बाहर ही खुले में मिट्टी के चबूतरे पर बैठ गये थे । उन्होंने किसी सोलर सिस्टम के उपकरण की भांति किसी अजीव से साधन से प्रकाश किया था । जिसका उजाला अधिक नहीं पर पर्याप्त था । उसे सिगरेट की भी तलब महसूस हो रही थी । पर इस तलब को पूरा नहीं कर सकता था ।
बूङा मिचमिची आँखों से उन्हें ही देख रहा था । अन्य लोगों को भी उत्सुकता थी । कुछ और लोग भी आने लगे थे । वे यह सब जानना चाहते थे । पर वह क्या बताता । और कैसे बताता । और बताने का शायद टाइम भी नहीं था । उसने जस्सी की तरफ़ देखा । तो उसने शरमाकर नजरें झुका लीं ।
अजीव पागल है । पहले उसने सोचा । ये प्रथ्वी से बहुत दूर कितनी अजीव स्थितियों में है । फ़िर भी कैसी निश्चिन्त सी थी । फ़िर उसे लगा । पागल बह नहीं । बल्कि वह स्वयं पागल है । जब उसने इधर का सफ़र किया होगा । भले ही वह जीते जी या मरे हुये किया होगा । तब उसके दिलोदिमाग में सिर्फ़ वही छाया होगा । वह उससे किसी पूर्ण समर्पित प्रेमिका की तरह एक भाव हो गयी होगी । तब रास्ते में जो भी व्यवधान या डरावनी परिस्थितियाँ बनी होगी । उसका ध्यान सहायता के लिये उसी की तरफ़ गया होगा । तब सूक्ष्म शरीरी होने से उसकी आसान योग स्थिति बनी होगी । और इस तरह उसका एक विशिष्ट वी आई पी दर्जा बन गया होगा । इससे तमाम बाधक तत्व उससे स्वतः दूर हो गये होंगे । दूसरे उससे एकभाव होने से उसके सूक्ष्म शरीर में योगत्व प्रभाव खुद भी पैदा हो गया होगा । तब उसे ये मरना या ये यात्रा भी रोमांचक ही लगी होगी । एकाएक उसके दिल में जस्सी के लिये प्यार सा उमङा । और उसने उसके गले में बाँहें डालकर उसे अपने साथ सटा लिया । वह किसी भयभीत चिङिया सी उसके सीने से लग गयी ।
कितनी मजे की बात थी । वह उसके होते निश्चिन्त थी । और कुछ भी नहीं सोच रही थी । जबकि वह उसके होते परेशानी में उलझा हुआ था । और लगातार उसी के बारे में सोच रहा था । बात शायद अभी वहीं के वहीं थी ।
प्रसून जी ! अचानक उसे कुछ याद सा आया । और वह हँसती हुयी बोली - आपको मालूम है । मैं मर चुकी हूँ । ओह गाड ! कितना अजीव है ना । अब मैं मर चुकी हूँ ।
ये बात उसने ऐसी मासूमियत से कही थी कि सब कुछ भूलकर वह जोर जोर से हँसने लगा । उस अजीव सी लाइट में वह उसके सुन्दर मुखङे को देखता रह गया । उसने आसमान को देखा । वहाँ चाँद कहीं नहीं था । पर तारे बहुत नजर आ रहे थे । गहरे काले घुप्प अंधेरे में वे मद्धिम चमक वाले तारे रात की रानी की काली चुनरी में टंके सितारों के समान थे ।
- जस्सी ! क्या पागल हो तुम । वह हँसता हुआ ही बोला - अगर तुम मर गयी हो । फ़िर मेरे सामने बैठी कैसे हो । बोल कैसे रही हो । क्या तुम्हें किसी तरह लग रहा है कि तुम मर गयी हो । मरा इंसान तो बस बिना हिले डुले एक ही स्थान पर पङा रहता है । क्या तुम्हे अपने अन्दर कोई मरने वाली बात लग रही है ?
वह एकदम झुंझलाई सी हो गयी कि इस पागल को क्या समझाये । फ़िर वह मानों और भी चौंकती हुयी बोली - उफ़ ! आप मेरा यकीन क्यों नहीं करते । सच्चाई..सच्चाई तो ये है । सिर्फ़ मैं ही नहीं आप भी मर चुके हो ।
- ओ गाड । ओ गाड । अबकी वह दुगनी जोर से हँसा - लङकी कहीं तू पागल तो नहीं है । उसने मुझे भी मार डाला । फ़िर ये जो मैं हट्टा कट्टा तेरे सामने बैठा हूँ । ये क्या मेरा भूत है । भूत..हा हा हा हू हू..डर अब तू डर ।
उसने अजीव से असमंजस में नजरें झुका लीं । अब वह क्या बोले । अब वह प्रसून को क्या समझाती कि वाकई वह दोनों मर चुके थे । उसने खुद सब कुछ देखा था । प्रसून उसकी हालत का मजा ले रहा था । जीवन के पार जीवन का ये उसका इस जीवन में पहला अनुभव था । वह उससे अपने पीछे के हालात जानना चाहता था । उसने ऐसा क्या किया था । जो यहाँ तक आ गयी थी । पर ये सब अभी पूछने का समय नहीं था । क्योंकि अपने बारे में तो वह बता आया था । पर जस्सी को मरा देखकर राजवीर और बराङ पर क्या गुजरी होगी ? बस यही ख्याल उसे हलकान कर रहा था । खास उसे बस एक ही चिन्ता थी कि कहीं वे वाकई उनके शरीर का संस्कार करके उसे नष्ट न कर दें । बस उसके दिल में एक ही आशा बनती थी कि अगर वे योग स्थितियों के बारे में थोङा भी जानते होंगे । उसके कहे पर विचार करेंगे । तो फ़िर ऐसा नहीं करेंगे । कम से कम उसने अपनी बातों में उन्हें ऐसी झलक सी महसूस करवा दी थी कि वह उन्हें मरा हुआ भी लग सकता है । और तब वे शायद बाधा के चलते जस्सी को भी ऐसा ही कुछ समझ लें । और धैर्य से कुछ दिन इन्तजार करें । जो भी हो । उसकी समझ में नहीं आ रहा था । वाकई वे क्या सोचेंगे । और फ़िर क्या करेंगे ?
कुछ लोग अतिथि भाव से भोजन ले आये थे । और वे सब भोजन कर रहे थे । पर वह भोजन करता हुआ भी आगे के लिये विचार मग्न था । आगे क्या करना चाहिये ।
- ये सुन्दर सी लङकी मेरी प्रेमिका है । भोजन आदि के बाद वह उन सबका संस्पेंस दूर करता हुआ बोला - मैं अचानक चला आया । तो मेरे पीछे पीछे यह भी चली आयी......।
पर बूङा उनकी बात नहीं सुन रहा था । वह बङे गौर से अति सुन्दर जस्सी को देख रहा था । उसके होंठ कंपकपा रहे थे । उसकी आँखें दूर शून्य 0 में स्थिर हो चुकी थी । उन दोनों को पास पास बैठा हुआ देखकर उसका शरीर जोर जोर से कांप रहा था । उसकी गर्दन हिलने लगी थी ।
क्योंकि सभी लोगों का ध्यान उसकी तरफ़ नहीं था । सो जैसे ही यकायक उसने ढोल पर जोरदार थाप दी । सब चौंक ही गये । प्रसून भी चौंक गया । जस्सी ने अजीव भाव से उसकी तरफ़ देखा । पर बूङा अब किसी को नहीं देख रहा था । वह कृमबद्ध लय से धीरे धीरे ढोल को थाप दे रहा था । जो हर थाप पर तेज हो रही थी । फ़िर ढोल बजने लगा । क्या संगीत था । क्या लय थी । क्या ताल थी । मानों प्रकृति भी झूम उठी हो । पूरा हुजूम संगीत में डूबने लगा । अब उससे किसी को कोई मतलब नहीं रह गया था । सबने अपने अपने सहायक वाध यन्त्र उठा लिये थे । और ताल से ताल मिला रहे थे ।
- हे प्रभु ! वह आसमान की ओर हाथ उठाकर बोला - आपकी लीला अपरम्पार है । इसे बङे से बङे ज्ञानी भी नहीं समझ सकते । मैं मूर्ख कर्ता बना हुआ अभी भी सोच रहा था कि आगे क्या और कैसे करूँगा । पर आपने पल में ही मेरा ये अहम भी चूर चूर कर दिया । कोटिष वन्दन ।
किसी आदिवासी इलाके जैसा माहौल बन गया था । संगीत धीरे धीरे अपने चरम पर पहुँच रहा था । प्रसून की गहरी आँखों में अनोखी चमक सी पैदा होती जा रही थी । वह बङी दिलचस्पी से आने वाले क्षणों का इन्तजार कर रहा था । और सावधानी से अनदेखा सा करते हुये बेहद लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ जस्सी को ही देख रहा था । फ़िर अचानक उसे कुछ याद आया । और वह चौंककर उसके पास से हटकर अलग टहलने लगा । जस्सी मन्त्रमुग्ध सी वहीं बैठी रह गयी । वह पूरी तन्मयता से उन्हें देखती हुयी सुन रही थी ।
फ़िर अचानक उसका शरीर हिलने लगा । उसमें किसी प्रेत के आवेश की भांति वायु भरने लगी । उसका सर बहुत तेज चकरा रहा था । और वह गोल गोल घूम रही थी । घूमती ही चली जा रही थी ।
प्रसून गौर से उसकी एक एक गतिविधि देख रहा था । वह थोङा और थोङा और करके पीछे हटता जा रहा था । उसकी यहाँ मौजूदगी इस रहस्य के खुलने में बाधा हो सकती थी । अतः उस संगीत से और उससे जुङे भावों से जो विचार वृत बन रहा था । वह उससे दो कदम पीछे हटता ही चला जा रहा था । जैसे किसी भीङ के गोल घेरे में किसी जादूगर को तमाशा करता हुअ देख रहा हो ।
- नल्लाऽऽऽऽ ! अचानक संगीत के बीच वह बूङा गला फ़ाङकर चिल्लाया - देख तेरी दमयन्ती आ गयी । वो लौट आयी । नल्ला मेरे लाल । अब तू भी लौट आ । लौट आ मेरे बच्चे ।
ये दर्द भरी पुकार उसने ढोल बजाने के मध्य कही थी । और फ़िर से झूमता हुआ ढोल बजाने लगा था । विचार वृत गहराता जा रहा था । उसके शरीर की भाव रूपी तरंगों से निकली किरणों में अणु परमाणु जमा होते जा रहे थे । तमाम रंगों के अणु परमाणु मानवीय आकार लेते हुये लहराते हुये से उङ रहे थे । और एक बङे गोल दायरे में कैद थे । और फ़िर वो हुआ । जिसका प्रसून जाने कब से बेकरारी से इन्तजार कर रहा था । उन सभी विचार वृतियों का एक छोटा बवंडर बनने लगा । और किसी लट्टू की भांति तेजी से घूमने लगा । धुनी हुयी रुई के बहुत छोटे छोटे रंगीन टुकङों की भांति वे सभी मानव आकृतियाँ उस बवंडर में फ़ँसकर गोल गोल घूमने लगी ।
तब वो क्षण आ गया । जो आगे आना ही चाहिये था । जस्सी अपनी जगह से मदहोश सी उठी । और झूमती हुयी नाचने लगी । उसने पास ही से एक बांस के समान लम्बा डण्डा उठा लिया था । और किसी कुशल नटनी की भांति कलाबाजियाँ दिखा रही थी । पर सिवाय उसके कोई किसी को नहीं देख रहा था ।
सिर्फ़ वह किसी साक्षी की भांति दिलचस्पी से इस खेल को देख रहा था । खेल । असली खेल । जो अब शुरू हुआ था ।
प्रसून इस बात को लेकर स्योर था । अगर नटों की कलाबाजी के तमाशे हेतु बंधी रस्सी पहिया और थाली आदि दूसरे उपकरण होते । तो उसे खूबसूरत जस्सी के यादगार क्षण देखने को मिलते । काश ! ये क्रिया उसके स्थूल शरीर से होती । और उसे शूट करने का कोई साधन उसके पास होता । पर ये दोनों ही बातें फ़िलहाल तो संभव नहीं थी ।
उसने कैसा भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया । और जो हो रहा था । उसे साक्षी बनकर सिर्फ़ देखता रहा । काली रात गहराती जा रही थी । स्याह काले अंधेरे ने उस रहस्यमय लोक को अपनी लपेट में ले लिया था ।
उस अंधेरे के बीच मद्धिम प्रकाश में वह दृश्य प्रेतों के उत्सव जैसा नजर आ रहा था ।
तभी उसे एक बात सूझी । उसने जस्सी को मध्यम स्वर में पुकारा । जो उसकी आवाज उस तक आरा्म से पहुँच सके । पर जस्सी की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी । वह पूर्ववत नाचती ही रही । तब उसके चेहरे पर गहन सन्तुष्टि के भाव आये । यानी सब कुछ सही था । उसे बहुत बेकरारी से अगले क्षणों का इन्तजार था । और उन्हीं की सफ़लता पर सारा दारोमदार निर्भर भी था । अगले क्षण । जो अब आने ही वाले थे ।
 
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Update no 7
बूङे के स्वर में दर्द बढता ही जा रहा था । उसके दिमाग में खुद का अतीत गहराने लगा था । ज्यों ज्यों उसके दिमाग में अतीत गहरा रहा था । अन्दर उसका दृश्य स्पष्ट और स्पष्ट होता जा रहा था । तब बाह्य रूप से भी दृश्य भूमि का निर्माण हो रहा था । अन्दर दृश्य का चित्र और उससे पूरी एकाग्रता से चेतना जुङी होने से बाहर उसका आकार लेना । अलौकिक बिज्ञान का एक सामान्य सूत्र था । सफ़ल योग की एक साधारण क्रिया थी । पर सामान्य इंसान इसी को अदभुत विलक्षण चमत्कारिक मानता था ।
जबकि जीवन में ठीक ऐसा ही घटित होता है । पहले अंतर में विचार चित्र बनता है । फ़िर व्यक्ति की चेतना और उसकी कार्य क्षमता के योग से वह चीज आकार लेती हैं । अन्दर बाहर दो नहीं है । एक ही है । एक दर्पण में नजर आता है । और एक नजर आने वाला स्वयं है । कैसा अदभुत खेल बनाया । मोह माया में जीव फ़ँसाया ।
आज की रात अदभुत रात थी । कितनी अजीव बात थी । उनका विगत जीवन समय के चक्र से उल्टा घूमता हुआ वापिस आ रहा था । और वे स्वयँ ही उसको नहीं जान सकते थे । प्रसून को बीच बीच में बूङे की करुण पुकार में.. नल्ला.. मेरे लाल.. मेरे सुवना..आ जा..सुनाई देता । बीच बीच में वह दुष्यन्ती भी बोलता था ।
वह सब कुछ शान्ति से देख रहा था । और बङी बेकरारी से प्रतीक्षा भी कर रहा था ।
और तब आधा पौन घण्टा बाद वह क्षण आया । जिसका उसे इन्तजार था । चारूऽऽऽ चारूऽऽऽ चारूलता.. तू कहाँ हैं ? जैसी आवाजें पश्चिम दिशा से आने लगी । वह सावधान हो गया । अगला एक एक पल सचेत रहने का था ।
यहाँ की भूमि में उठने वाला बूङे का याद रूपी बवंडर मध्यम आकार लेने के बाद धीरे धीरे वापिस छोटा हो रहा था । और शून्य 0 होने वाला था । उसका दृश्य इतना ही बनता था । तब उसे पश्चिम दिशा से आता विशाल बवंडर और तूफ़ान नजर आया ।
दरअसल जस्सी को देखकर वह बूङा बिना किसी भाव के प्रयास के विगत भूमि में चला गया था । जैसे दुख आपत्तिकाल में किसी बहुत अपने को अचानक आया देखकर स्वतः रुलाई फ़ूट पङती है । आँसू रुकते नहीं । भाव थमते नहीं । वही हुआ था । अब प्रसून को प्रभु की लीला रहस्य और उसका कारण पता चला था । जस्सी के आने का कारण पता चला था । उसने जस्सी की तरफ़ निगाह डाली । वह चबूतरे पर वापिस मुर्दा सी होकर पङी थी ।
प्रसून को उसकी हालत पता थी । उसने उसके पास जाने की कोई कोशिश नहीं की । बवंडर अपनी तेज गति से उधर ही आ रहा था । और आखिरकार वह सबसे खास पल आ ही गया । जिसका प्रसून को बेसबरी से इन्तजार था । बूङे के अनजाने योग द्वारा अतीत की दृश्य भूमि का निर्माण हो चुका था । और वह स्वयं किसी साक्षी की भांति उस दृश्य भूमि के अन्दर मौजूद था । ठीक यही क्रिया वह पंजाव में जस्सी के साथ करना चाहता था । पर तब नहीं हो पायी थी ।
अब यहाँ एक ही भूमि पर दो दृश्य थे । दो भूमियाँ थी । एक बूङा और उसके घर लोगों आदि वाला वर्तमान दृश्य । और दूसरा बूङे के प्रबल भाव से अतीत में जाने से अतीत के किसी कालखण्ड का दृश्य । बस फ़र्क इतना था । उन लोगों के लिये बस अपना दृश्य ही था । पर प्रसून के लिये अब वहाँ अतीत भूमि भी दृश्यमान थी । और प्रसून अब उसी अतीत में अपने वर्तमान के साथ साक्षी बना खङा था ।
वह एक मनोहारी जंगल था । पर अभी भयानक हो चला था । आसमान में काली काली तेज घटायें घिरी हुयी थी । मूसलाधार बारिश हो रही थी । रह रहकर बिजली कङकङाती थी । जस्सी उर्फ़ दमयन्ती उर्फ़ चारूलता इस तूफ़ान में भटक गयी थी । और बेतहाशा भागती हुयी अपने प्रेमी नल्ला उर्फ़ नल को पुकार रही थी । पर उसकी असहाय पुकार को तूफ़ान बारबार उङा ले जाता था । बहुत हल्की हल्की उसकी पुकार हवा के तेज झोंको के साथ नल्ला तक पहुँचती थी । पर वह आवाज की दिशा का सही अनुमान नहीं लगा पा रहा था ।
पहले वह इधर उधर भागता रहा था । उसके जानवर कुत्ता आदि बिछुङ चुके थे । पर उसे उनकी कोई परवाह नहीं थी । वह सिर्फ़ अपनी चारू को खोजना चाहता था । उसे सिर्फ़ उसी की खास चिन्ता थी ।
वह एक सुन्दर बलिष्ठ शरीर का हट्टा कट्टा नट युवक था । और सिर्फ़ कमर पर अंगोछा लपेटे हुये थे । उसके बालों की लम्बी लटें उसके चेहरे पर चिपक गयी थी ।
तूफ़ान मानों प्रलय ही लाना चाहता था । पर नल्ला को उसकी कोई परवाह नहीं थी । उसने उसी तूफ़ान में अपनी कश्ती दरिया में उतार दी थी । और उछलती बेकाबू लहरों पर नाव पर झुककर खङा सन्तुलन बनाता हुआ अपनी प्यारी चारू को देखता खोजता हुआ तलाश कर रहा था ।
चारू उससे सिर्फ़ कुछ सौ मीटर ही दूर थी । वह उसे देख पा रही थी । और हाथ हिला हिलाकर पुकार रही थी । पर दरिया के घुमाव से वीच में वृक्ष और घनी झाङियाँ बाधक थी । होनी के वशीभूत नल्ला भी अपनी कश्ती को दूसरी तरफ़ विपरीत ही ले जा रहा था । और फ़िर चारू डूबने लगी । गोते खाने लगी ।
उसको चारू चारू..पुकारता हुआ नल्ला उससे दूर और दूर होता जा रहा था ।
प्रसून की आँखें हल्की हल्की भीगने सी लगी थी । उसने सोचा । ये वो दृश्य था । जो जस्सी देखती थी । पर करम कौर से इसका क्या सम्बन्ध था ?
लेकिन करम कौर अभी दूर की बात थी । अभी उसे सिर्फ़ वजह और सबूत मिला था । अभी उसे सब कुछ पता करना था । तभी जस्सी अपने अतीत से छूट सकती थी । बूङे का आधा दृश्य वह देख ही चुका था । जस्सी का वह पूरा दृश्य देख चुका था । अब उसे नल्ला का पता करना था । और ये अब उसके लिये बहुत आसान था । नल्ला की रूह वहाँ योग भावना बवंडर के साथ आयी मौजूद थी । एक मामूली सी प्रेत रूह । वह उसे कैप्चर करने लगा । उस घटना और उस जिन्दगी से जुङा पूरा डाटा उसके पास आता जा रहा था ।
क्या हुआ था । इस विनाशकारी तूफ़ान से पहले ?
वह एक बेहद खूबसूरत दोपहर थी । पर ये कौन सी प्रथ्वी थी । और कितने समय पीछे की घटना थी । उन हालिया परिस्थितियों में जानना उसके लिये सम्भव नहीं था । और ये जानना महत्वपूर्ण भी नहीं था । उसे तो बस तूफ़ान से पहले के क्षणों में दिलचस्पी थी ।
चारू एक खूबसूरत नटनी थी । और नल्ला की प्रेमिका थी । बल्कि एक तरह से मंगेतर भी थी । बस अभी उनकी शादी नहीं हुयी थी । वह नटों में अमीरी हैसियत वाली थी । और चटक मटक कपङे पहनने की शौकीन थी । उसके पुष्ट उरोज कसी चोली से बाहर आने को बेताब से रहते थे । नटों की वेशभूषा में वह उस समय के अनुसार ही चोली और घांघरा पहनती थी । उसके दूधिया गोरे स्तन आधे बाहर ही होते थे । उसकी कमर नटी करतबों के फ़लस्वरूप बेहद लचक वाली और विशाल नितम्ब माँस से लबालब भरे हुये थे । उस समय वह दो चोटियाँ करके उनमें प्राकृतिक फ़ूलों का गजरा बांधती थी ।
नट समुदाय के सभी लङके उसके दीवाने थे । और उससे विवाह करना चाहते थे । पर अकेली वह नल्ला की दीवानी थी । और उसे दिल दे बैठी थी । उसका बाप कहीं लालच में आकर उसका लगन और कहीं ना कर दे । उसने नल्ला से पहले ही अपना कौमार्य भंग कराकर अपने बाप को साफ़ साफ़ बोल दिया था । अब ऐसी हालत में वह कोई चालाकी करता । तो इसे नट समाज के तब कानून अनुसार धोखाधङी माना जाता । और उसे सजा मिलती ।
इसलिये चारू और नल्ला अब निश्चिन्त थे । अब उनके विवाह को भगवान भी नहीं रोक सकता था । फ़ूलों और झाङियों से भरपूर उस जंगल में चारू रंगीन तितली सी इठलाती फ़िर रही थी । और पेङ की डाली पर बैठा बांसुरी बजाता नल्ला उसके थिरकते नितम्बों की लचकन देख रहा था । वह सोच रहा था । आज जंगल से लौटने से पहले वह उसको झाङी में नरम पत्तों पर लिटायेगा । वह कहेगी । बङा बेसबरी हे रे तू । अब तो मैं तेरी ही हो चुकी । मुझे पूरा अभी ही खा जायेगा । या आगे को भी कुछ बाकी रहने देगा ।
- आगे किसने देखा है चारू । तब वह भावुक होकर झूठमूठ बोलेगा - इंसान की जिन्दगी का कोई ठिकाना नही । जवानी के ये दिन हमें भरपूर जीना चाहिये । किसकी जिन्दगी में कब क्या तूफ़ान आ जाये । कोई बता सकता है क्या ?
- देख नल्ला । वह उसके मुँह पर हाथ रखकर कहेगी - तुझे जो करना है । कर ले मेरे साथ । पर ऐसा मत बोल यार । मैं तेरे दस बच्चे पैदा करूँगी । हम लौग सौ वर्ष तक जियेंगे । मैं अपने बच्चों के साथ तेरे लिये जंगल में खाना लेकर आऊँगी । और बोलूँगी - खाना खा लो । मन्नू के बापू । अब आपको भूख लगी होगी ।
हमेशा बहुत भूखी ही रहती है ये मौत भी । बूङा दूर कहीं शून्य 0 में देखता हुआ कह रहा था - सदियाँ हो गयी । इसे जिन्दगियों को खाते खाते । पर इसकी भूख नहीं मिटी । ये अपनी भूख के चलते कभी यह भी नहीं देखती कि उससे कौन मिट रहा है । कौन उजङ रहा है ।.. उस हाहाकारी तूफ़ान के साथ ताण्डव नृत्य करती आयी मौत चारू को खा गयी । मेरी घरवाली को भी खा गयी । उसका नाम दुष्यन्ती थी । बङी अच्छी और सुन्दर नटनी थी वो ।
जस्सी एक तरफ़ बिछावन पर लुढकी हुयी सी सो गयी थी । सभी लोकवासी अपने अपने घरों को चले गये थे । सिर्फ़ प्रसून और वह बूङा जाग रहे थे । शायद आज वह किसी को अपना गम सुना पा रहा था । गम जो हजारों साल से उसके सीने में दफ़न था । तब प्रसून को एक बात की कुछ हैरत सी हुयी । बूङा चिलम सुलगा रहा था । वास्तव में उसे भी धूमृपान की तेज इच्छा हो रही थी । सिगरेट तो शायद ही यहाँ मिलती ।
- धुँआ पीते हो कभी । वह उसकी और प्रस्तावित करता हुआ बोला - जिन्दगी भी एक धुँआ ही हैं । ये धुँआ धुँआ कर जलती रहती है ।
उसने चिलम ले ली । और तेज सुट्टा मारा । लम्बे समय बाद तम्बाकू युक्त धुँआ उसको पान करने को मिला था । उसे एक अजीव सी राहत मिली । और वह एक नयी स्फ़ूर्ति का अनुभव करने लगा । कमाल था । बिना धूप के भी यहाँ उगने वाली तम्बाकू एक अलग शाही टेस्ट वाली थी । बूङे ने अपने लिये दूसरी चिलम सुलगा ली थी ।
- आधी रात हो गयी है । बूङा दम लगाता हुआ बोला - परदेसी बाबू ! आपको नींद आ रही होगी ।
- नहीं । नहीं आ रही । फ़िर.. । वह उत्सुकता से बोला - फ़िर क्या हुआ ?
वास्तव में यह सब पूछने की अब उसे कोई जरूरत नहीं थी । घटना का मुख्य विवरण उसके दिमाग में पूरे सही आंकङों सहित अंकित हो चुका था । वह चाहता । तो तुरन्त जस्सी के साथ वापिस प्रथ्वी पर लौट सकता था । और बाधा का समाधान आसानी से कर सकता था । पर उसके अन्दर का योगी उसे ऐसा नहीं करने दे रहा था ।
नल्ला प्रेत योनि में था । दुष्यन्ती मनुष्य रूप में जन्म ले चुकी थी । प्रेत योनि में जा चुके पुत्र के अति मोह वश वह इस सजायाफ़्ता लोक में गिर चुका था । जिसके बहुत से कारण बनते थे । अब उसका एक साधु के तौर पर फ़र्ज था कि वह इन सबके लिये क्या कर सकता था । यही उसकी योग परीक्षा थी । अब वह निमित्त भी था । और कर्ता भी । प्रकृति अपना काम कर चुकी थी । अब उसकी बारी थी ।
- बङा भयानक दिन था । बूङा फ़िर बोला - बहुत भयंकर तूफ़ान आया था । सो तमाशा दिखाकर मैं घर लौट आया था । पर मुझे क्या पता था । मेरे घर में खुद मौत का असली तमाशा हो रहा था । वह जलजला मेरे घर को ही उजाङने आया था ।
उस दोपहर को नल्ला पेङ पर बाँसुरी बजा रहा था । चारू बंसी लेकर दरिया में मछलियाँ पकङने चली गयी थी । वह दो तरह से मछलियाँ पकङती थी । अपनी और नल्ला की पाँच छह बंसी दरिया में चुग्गा लगाकर डुबो देती थी । और फ़िर डण्डे से दरिया की लहरों में उछलती मछलियों को अलग से मारती थी । ऐसे वह अकेले ही दोनों परिवारों के लिये पूरा खाना ले आती थी ।
ये इत्तफ़ाक ही था कि ज्यादातर उसके साथ रहने वाला नल्ला आज उसके साथ नहीं था । उछलती लहरों में मछलियों पर डण्डे चलाती खुद भी उछलती कूदती चारू कितनी दूर निकल गयी थी । उसे ख्याल ही नहीं रहा था । नल्ला उससे बहुत दूर हो चुका था । और तब उत्तर दिशा से तूफ़ान उठा । आसमान में विशाल बवंडर घूमने लगा । मौत का बवंडर । इतनी मूसलाधार बारिश मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी ।
मैं घर पर लौट आया था । दुष्यन्ती रह रहकर दरबाजे पर देख रही थी । उसे जंगल से नल्ला और चारू के लौटने का इन्तजार था । तूफ़ान के जोर पकङने से पहले ही हमारे ढोर मवेशी खुद भागते हुये घर आ गये थे । नहीं आये । तो नल्ला और चारू । जब इन्तजार करते करते घण्टा भर से अधिक हो गया । और चारू नल्ला नहीं लौटे । तब मैं उनकी तलाश में जाने लगा । पर दुष्यन्ती ने ये कहकर कि तुम थक गये हो । मैं जाती हूँ । कहकर वह भी चली गयी । और फ़िर कभी नहीं लौटी । आज तक नहीं लौटी ।
तूफ़ान बीच बीच में हल्का होकर फ़िर भयंकर रूप धारण कर लेता था । जब दुष्यन्ती को जाये भी धीरे धीरे एक घण्टा फ़िर दो घण्टा हो गया । तब मुझे बेहद चिन्ता हुयी । पर मुश्किल यह थी कि घर अकेला था । उस तूफ़ान में मवेशी कौन देखता । इसीलिये मैं बारबार जाने की सोचकर भी रह ही जाता था । फ़िर आखिर में मैं उनकी चिन्ता छोङकर दूर दूर तक देखने गया ।
एक भयानक काला अंधेरा सर्वत्र फ़ैला हुआ था । जिन्दगी का चप्पा चप्पा वह अंधेरा निगल गया था । मैं देर तक उस सुनसान जंगल में दरिया के किनारे भटकता हुआ अब उन तीनों को तलाशता रहा । और कोई चार घण्टे बाद निराश खाली हाथ बिना साथ लौट आया । मेरी औरत भी जाने उस तूफ़ान में कहाँ खो गयी थी ।
तब कोई रात के दो बजे आहट हुयी । और मैं चौंक गया । तूफ़ान थम चुका था । नल्ला लौट आया था । मैं जानता था । ये भयंकर तूफ़ान भी उस जवान का कुछ नहीं बिगाङ सकता था । पर वह बेहद निराश था । चारू कहीं नहीं मिली थी । तब उसे और भी झटका लगा । जब उसे पता चला कि उन दोनों को तलाश करने गयी । उसकी माँ भी तूफ़ान से वापिस नहीं लौटी है । वह बेहद थका हुआ था । पर उसी वक्त मशालों का इन्तजाम करके फ़िर से तलाश में जाने लगा । वह मुझे वहीं रोक रहा था । पर अब मुझे उसकी चिन्ता थी । मैं उसको खोना नहीं चाहता था । मैं भी उसके साथ चला गया ।
नल्ला ने कश्ती दरिया में वापिस उतार दी थी । हम दोनों सुबह तक उन दोनों को तलाश करते रहे । तब दुष्यन्ती मिल गयी । मगर मुर्दा । वह मर चुकी थी । वह बवंडर एक साथ हमारी पत्नियों को छीन ले गया था । मेरा भी अब किसी काम में मन नहीं लगता था । मैंने तमाशा दिखाना छोङ दिया था । चारू का कुछ पता नहीं चला था । पर दीवाना सा नल्ला सुबह होते ही उसकी तलाश में निकल जाता था ।
फ़िर महीनों गुजर गये । पर वो नहीं मिली । वह दीवाना सा उसकी याद में जंगल में बाँसुरी बजाता । चारू चारूलता पुकारता । पर वो निर्मोही लङकी उसकी पुकार पर कोई ध्यान नहीं देती थी । उसने बहुत बङी बेबफ़ाई की थी ।
अब ढोल ही मेरा साथी था । और नल्ला का जंगल । वह जंगल में बाँसुरी पर दर्द भरे जुदाई के गीत गाता । और फ़िर एक दिन दोबारा तूफ़ान आया । नल्ला के पास मवेशी चराने गये नटों के लङके भी खेल रहे थे । वह पहले से बहुत कमजोर हो गया था । उसमें अब वो दम खम नहीं था । उसे खाने पीने से कोई मतलब ही नहीं रह गया था । जीने मरने से भी अब उसे कोई मतलब नहीं था ।
तब फ़िर एक दिन तूफ़ान आया । और नल्ला खुशी से चीख पङा । वह अपने साथियों से बोला - देखो चारू लौट आयी । मेरी माँ भी लौट आयी । सुनो । तुम.. सुनो । वे मुझे पुकार रही हैं । ये तूफ़ान ही उन दोनों को ले गया था । और अब लौटा भी लाया है ।
लङके हैरत से उसे देख रहे थे । उन्हें कहीं कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी । और न हीं कोई दिखाई दे रहा था । नल्ला ने कश्ती दरिया में डाल दी थी । और तेजी से उसे आगे ले जा रहा था । अचानक बूङे का चेहरा तेजी से कंपकंपाने लगा । वह फ़फ़कता हुआ रोने लगा ।
और हिचकियाँ भरता हुआ बोला - पर नल्ला नहीं जानता था कि उसे पुकारने वाली चारू नहीं मौत थी । मौत । डरावनी मौत । जो उस दिन मेरी एकमात्र बुङापे की आस को भी खा गयी ।
बङे बङे तूफ़ानों का मुँह मोङ देने वाले नल्ला को वो छोटा सा तूफ़ान लील गया था । उसकी कश्ती चट्टान से टकरायी । और उसका सर कहीं टकराकर फ़ट गया । नट समुदाय उसकी लाश लेकर आया था । मैं उस दिन भी बैठा ढोल बजा रहा था । जब दो पैरों पर चलने वाला मेरा बेटा उस दिन आखिरी बार चार कन्धों पर चलकर आया । और फ़िर वो भी मुझसे विदा लेकर हमेशा को चला गया ।
अजीव थी । इस लोक की रात भी । प्रसून बारबार आसमान पर निगाह डाल रहा था । पर उसे अब तक कहीं चांद नजर नहीं आया था । क्या दुनियाँ थी । इन लोगों की भी । न सूरज । न चाँद । बस अंधेरा । अंधेरा ही अंधेरा । उजाले का सबसे बङा शत्रु अंधेरा ।
पर आज एक चाँद इस लोक में निकला था । खूबसूरत जस्सी के रूप में । उसने गौर से उसे देखा । वह किसी मासूम बच्चे की भांति सो रही थी । उसका चाँद सा मुखङा इस अंधेरे में भी चमक रहा था । अब सारी कहानी उसके सामने शीशे की तरह साफ़ हो चुकी थी ।
- बाबा ! वह गम्भीरता से बोला - क्या आप चाहते हो कि आपका बेटा नल्ला और पत्नी और चारू जहाँ भी हैं । हमेशा खुश रहें । तो फ़िर आपको मेरी एक बात माननी होगी ।
बूङे को उसकी बात पर बङी हैरत सी हुयी । उसने चौंककर उसकी तरफ़ देखा । और फ़िर बिना कुछ समझे ही समर्थन में सिर हिलाया ।
- बाबा ! उसने एक बार जस्सी की तरफ़ देखा । फ़िर एक अजीब सी निगाह ढोल पर डाली । और बोला - ये ढोल अभी का अभी फ़ोङ दो । इसके बाद जीवन में कभी ढोल मत बजाना ।
बूङा हैरान रह गया । और इस विलक्षण योगी को देखने लगा ।



Final update
ये आत्मा । वह प्रभावशाली स्वर में बोला - अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है । क्षिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम शरीरा । प्रगटु सो तनु जो आवा जावा । जीव नित्य तब केहि शोक मनावा ।
बाबा । उसने जस्सी की तरफ़ उंगली दिखाई - ये चारूलता है । ये पंजाब में जन्म ले चुकी है । और अभी देखो इतनी बङी भी हो गयी है । ये पहले की ही तरह सुन्दर है । आपकी पत्नी दुष्यन्ती भी पंजाब में जन्म ले चुकी है । उसका नाम अभी करम कौर है । करम कौर इसकी माँ राजवीर की खास सहेली है । आपका बेटा नल्ला । कहते कहते वह रुका । उसने सोचा । बताना ठीक है । या नहीं । फ़िर उसने बताना ही उचित समझा । किसी को धोखे में रखने से बेहतर उसे कङबी सच्चाई बता देना हमेशा ही ज्यादा उचित होता है - और आपका बेटा नल्ला प्रेत योनि में चला गया है । और ये आप दोनों के मोहवश ही हुआ है । नल्ला चारू का मोह न छोङ सका । और इसके प्रेत जीवन के दौरान इसे याद करता हुआ । वह भी प्रेत हो गया । यह प्राकृतिक दुर्घटना से अकाल मरी थी । पर नल्ला इसके मोह में मरा था । मरने के बाद भी उसका मोह नहीं छूटा । तब वह स्थायी रूप से प्रेत बन गया । करम कौर के जस्सी से अभी भी संस्कार जुङे थे । सो वह उसे खोजते खोजते उसकी माँ की सहेली बनी ।
और आप अपने खोये परिवार को भुला न सके । वह हर पल आपकी यादों में बना रहा । आप भगवान को भूल गये । उससे उदासीन ही हो गये । आप भूल गये । ये परिवार भी आपको उसी प्रभु ने दिया था । और समय आने पर अपनी इच्छानुसार ले लिया । आप भूल गये कि इससे पहले कितने ही लाख परिवार आप पहले भी छोङ आये हैं । आप तुच्छ से तुच्छ कीङा मकोङा जीव भी बन चुके थे । कभी आप राजा भी बने थे । कभी आप राक्षस और फ़िर कभी देवता भी बने थे । पर ये सब झूठा खेल था । एकमात्र ठोस सच्चाई सिर्फ़ यही है - ये आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है ।
पर आप इस ठोस सच्चाई को भूलकर । शाश्वत सत्य को त्याग कर माया के झूठे खेल में उलझ गये । और उस परम दयालु प्रभु से उदासीन हो गये । तब प्रभु नाम सुमरन से रहित परिणाम स्वरूप आपको नियमानुसार इस उदासीन लोक में भेज दिया गया । पर अपनी घोर और मोह जनित अज्ञानता वश आप अभी भी अपने पुत्र पत्नी और चारू को कष्ट पहुँचा रहे हैं । आप उनकी याद में गहरे डूबकर जब ये ढोल बजाते हुये । उसने एक भावहीन निगाह डालते हुये ढोल की तरफ़ उँगली उठाई - अपने परिवार या नल्ला को याद करते हैं ।
तब इसकी ध्वनि का सधा तीवृ कंपन आपकी याद के सहारे खोजता हुआ भाव को लेकर आसमानी शब्द में जाता है । वहाँ से वह भाव चुम्बकीय तरंगों में परिवर्तित होकर नल्ला के पास प्रेतलोक में पहुँचता है । और फ़िर नल्ला चुम्बकत्व के प्रभाव से अपने उस अतीत कालखण्ड में खिंचा चला आता है । तब उसकी प्रबल तरंगे चारू या दुष्यन्ती को वापिस अतीत में खींचने लगती हैं । आप जानते हैं । आपकी वजह से उन तीन आत्माओं को कितना कष्ट होता है । शायद आप नहीं जानते । और उसकी वजह है ये ढोल ।
बूङे के चेहरे पर भूचाल सा नजर आने लगा । उसकी गर्दन तेज तेज हिल रही थी । वह बुरी तरह कंपकंपा रहा था । शायद उतना बङा तूफ़ान उस दिन भी नहीं आया था । जितना आज इस लङके के शब्दों से आया था । फ़िर वह बङी मुश्किल से लङखङाता हुआ सा उठा । उसने एक निगाह सुन्दर जस्सी के चेहरे पर प्यार से डाली । वह उसके पास झुककर बैठ गया । और बङे स्नेह से उसका माथा चूमा ।
फ़िर उसने एक लकङी उठाकर ढोल के पुरे में भोंक दी । ढोल दोनों तरफ़ से फ़ट गया । उसने बेहद नफ़रत से ढोल में एक लात मारी । गोल ढोल बाहर लुढकता ही चला गया । लुङकता ही चला गया । फ़िर उसने घुटनों के बल बैठकर खुदा की इबादत की ।
और कंपकंपाये स्वर में बोला - हे मालिक ! आज तूने मेरी आँखे खोल दी । ये लङका स्वयँ आपका ही रूप है ।
फ़िर वह किसी शराबी के समान झूमता हुआ आया । और प्रसून के पैरों में गिर पङा । प्रसून हतप्रभ रह गया । उसे एकाएक कुछ नहीं सूझा । वह भावुक सा हो उठा था । और बूङे को उठाने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था । अंधेरा अब पहले की अपेक्षा कम होने लगा था । शायद कुछ ही देर में पौ फ़टने वाली थी । अब उसे वापिसी की भी जल्दी हो रही थी ।
कोई पन्द्रह मिनट तक अपनी भावुकता के चलते वह अनेकों बातें सोच गया । बूङा अभी भी उसके पैरों में गिरा पङा था । तब उसे मानों चौंकते हुये होश आया । उसने कन्धा पकङकर - उठो बाबा ..कहते हुये बूङे को उठाया । मगर वह एक तरफ़ को ढोल की तरह ही लुङक गया । वह एकदम हक्का बक्का रह गया । बूङा मर चुका था । उसकी सजा खत्म हो गयी थी । वह इस उदासीन जेल से रिहा कर दिया गया था ।
राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । अभी यही तो हुआ था ।
- दाता ! वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगा - कैसा अजीव खेल खेलता है तू भी । शायद इसी को बोलते हैं । खबर नहीं पल की । तेरा खेल । मैं भला मूरख क्या जान सकता हूँ । मैं तो सिर्फ़ निमित्त था । मैं जान गया प्रभु । मैं सिर्फ़ निमित्त था । आपके पवित्र नाम को सुनाने ही मैं यहाँ आया था । जिसके सुनने मात्र से उसकी बेङियाँ कट गयीं । और वह आजाद हो गया । किसी अगली खुशहाल लहलहाती जिन्दगी के लिये ।
उसने अपनी आँखें पोंछी । अंधेरा काफ़ी हद तक छट चुका था । भोर की हल्की हल्की लालिमा फ़ैलने लगी थी । मगर जस्सी अभी भी सो रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । जस्सी को यहीं जगा लेने पर उसके दिल पर कोई असर पङ सकता है । आगे के लिये फ़िर कोई बात उसके दिलोदिमाग में अंकित हो सकती है । वह परेशान हो सकती है । तमाम सवाल जबाब कर सकती है ।
तब उसने सोती जस्सी को बाँहो में उठाया । और आखिरी निगाह डालकर वह वहाँ से बाहर निकल आया । काफ़ी आगे निकल आने पर उसने सोती हुयी जस्सी को बाहों में लिये ही खङा किया । और जोर से भींचा । वह हङबङा कर जाग गयी । और हैरानी से उसे देखने लगी ।
- घर नहीं चलना क्या । वह अजीव निगाहों से उसे देखने लगा - क्या ऐसे ही सोती रहेगी ।
- घर । वह बौखलाकर बोली - कौन से घर ? पर मैं तो मर चुकी हूँ । आप भी मर चुके हो । अब हम घर कैसे जा सकते हैं । प्रसून जी ! अब हम लोग हैं ना । भूत बन गये हैं । सच्ची आप मेरा यकीन करो जी । अब हम घर नहीं जा सकते । आप ये बात मानते क्यों नहीं ।
- अरे ! वह झुंझलाकर बोला - भूत क्या घर नहीं जाते । सुबह हो चुकी है । बोल अभी तू टी कैसे पियेगी । ब्रेकफ़ास्ट कहाँ से करेगी । तुझे कालेज भी जाना है ।
- भूत ! वह आश्चर्य से बोली - भूत भी ये सब करते हैं ।
- नहीं रानी । वह प्यार से बोला - भूत सिर्फ़ बियर पीते हैं । भंगङा करते हैं । पप्पियाँ झप्पियाँ करते हैं । अब चल भी दे भूतनी ।
ये प्रसून के लिये अजीव यात्रा थी । वह अक्सर ऊँचे लोकों में ही अधिक जाता था । पर आज वह प्रथ्वी से भी काफ़ी नीचे लोकों में आया था । जहाँ चारो तरफ़ अंधेरे का साम्राज्य कायम था । पर अब अंधेरा छंट चुका था । उसने प्रथ्वी की तरफ़ जाने के लिये यात्रा शुरू कर दी ।
बराङ साहब के घर में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था । शाम के सात बज चुके थे । सुबह से लेकर अब तक बारह घण्टे गुजर चुके थे । बारबार राजवीर की रुलाई सी फ़ूट रही थी । मनदीप भी भौचक्का सा कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करे । प्रसून और जस्सी कमरे में मरे पङे थे ।
और वे ठीक से यह भी नहीं कह सकते थे । वे वाकई मरे पङे थे । प्रसून ने कहा था । हो सकता है । उन्हें ऐसा लगे कि वह मर गया है । लेकिन वास्तव में वह मरा नहीं होगा । पर यह बात उसने सिर्फ़ अपने लिये कही थी । उसकी बेटी के लिये नहीं । तब जस्सी क्या मर गयी थी । वह कब और कैसे प्रसून के कमरे में पहुँच गयी थी ।
राजवीर को रह रहकर अपने आप पर क्रोध आ रहा था । क्यों उसने जस्सी को उस रात अकेला छोङ दिया था । सुबह वह उठी । तो जस्सी घर में कहीं नहीं थी । वह देर तक चारों तरफ़ उसे देखती रही । उसने हर तरफ़ जस्सी को खोजा । पर वह कहीं नहीं थी । तब यकायक उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया । क्या वह घर में ही था । या कहीं..कहीं वो साधु युवक उनकी लङकी को चुपके से भगा ले गया था ।
और जैसे ही वो उस कमरे के द्वार पर आये । उनका शक विश्वास में बदल गया । कमरे का लाक खुला था । जस्सी उसके साथ घर छोङकर भाग गयी थी । उन्होंने हङबङाहट में दरबाजे को धक्का मारा । पर दरबाजा अन्दर से बन्द था । अब उनकी उलझन और भी बङ गयी थी । दरबाजा बाहर से लाक था । उसकी चाबी जस्सी के पास थी । क्या वे दोनों अन्दर बन्द थे । फ़िर वे अभी तक क्या कर रहे थे ?
बहुत आवाजें लगाने के बाद आखिर दरबाजा तोङ दिया गया । और अन्दर का दृश्य देखकर उन सबके छक्के छूट गये । वे दोनों मरे पङे थे । इस नई स्थिति की किसी को कल्पना भी नहीं थी । उन्होंने भली प्रकार से चैक किया था । दोनों की सांस नब्ज नाङी का कुछ भी पता नहीं था । बस एक ही बात थी । उनके शरीर हल्के गर्म थे । और मरे के समान नहीं हुये थे । वे दोनों किसी प्रेमी प्रेमिका के समान एक दूसरे से सटे पङे थे । जस्सी उसकी छाती पर सिर रखकर सो रही थी । अब वे कर भी क्या सकते थे ।
उन्होंने कमरा ज्यों का त्यों बन्द कर दिया । और गौर से प्रसून की समझायी हुयी बातों को याद करने लगे । तब उन्हें शान्ति से बिना कोई हंगामा किये इन्तजार करना ही उचित लगा । चाहे इस इन्तजार में दस दिन ही क्यों न लग जायें ।
जीवन में कभी कभी ऐसी स्थितियाँ बन जाती हैं । जब अच्छे से अच्छा इंसान भी कोई निर्णय नहीं ले पाता । सही गलत को नहीं सोच पाता । बराङ को भी जब कुछ नहीं सूझा । तो उसने एक बङा सा पैग बनाया । और धीरे धीरे घूँट भरने लगा । उसके माथे पर बल पङे हुये थे । घर में एक अजीब सी उदासी छायी हुयी थी । वे सब हाल में टीवी के सामने सिर झुकाये गमगीन से बैठे थे ।
और तभी एक चमत्कार सा हुआ । उस रहस्यमय कमरे का दरबाजा खुलने की आवाज आयी । और फ़िर जस्सी प्रसून का हाथ थामे हुये बाहर आयी । राजवीर खुशी से रो पङी । और दौङकर जस्सी से लिपट गयी । बराङ की आँखे भी भीगने लगी ।
- बराङ साहब ! प्रसून उसके सामने बैठता हुआ बोला - नाउ आल इज वेल । जस्सी पूरी तरह ठीक हो चुकी है । इसी खुशी में एक पटियाला पैग हो जाये ।
- ओये जुरूर जुरूर । बराङ भावुक सा होकर आँसू पोंछता हुआ बोला - ज्यूँदा रह पुत्तर । मेरा शेर । पंजाब दा शेर । बब्बर शेरया । वह बाटल से उसके लिये गिलास में व्हिस्की उङेलता हुआ बोला - राजवीर अब तू बैठी बैठी क्या देख रही है । बच्चों के लिये खाना वाना ला । इन्हें भूख लगी होगी ।
- हाँ जी । सरदार जी । वह उठते हुये बोली - आप ठीक ही बोल रहे हो ।
- डैड । जस्सी मनदीप के पास आकर बोली - एक बार एक सरदार था । पर वह कोई सन्ता बन्ता नहीं था । वह बहुत अच्छा और रब्ब दा नेक बन्दा था । और वह आप हो । मेरे प्यारे पप्पा । सच आय लव यू वेरी मच डैड ।
बराङ ने उसे सीने से लिपटा लिया । और कसकर भींचते हुये सुबकने लगा । वाकई सबको ऐसा ही लग रहा था । जैसे जस्सी मरकर जीवित हुयी हो । उसे नयी जिन्दगी मिली हो । सो उस कोठी में अजीब सा खुशी गम का मिश्रित माहौल था ।
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इसके आठ दिन बाद जब जस्सी कालेज में थी । अचानक उसका सेलफ़ोन बजा । कालर आई डी पर निगाह पङते ही वह मुस्करा उठी । अभी वह क्लास से बाहर थीं । उसने चिकन वाली का हाथ पकङा । और तेजी से एक तरफ़ ले गयी । दूसरी तरफ़ से प्रसून बोल रहा था । जस्सी ने जानबूझकर चिकन वाली गगन को उत्तेजित करने हेतु इतना वाल्यूम बङा दिया था कि वह आराम से सुन सके । उसने ये बात प्रसून को भी बता दी थी । जब उसने गगन का हालचाल पूछा था कि वह उसके पास ही खङी है । और आपकी बात भी सुन रही है ।
तब जैसे प्रसून को यकायक कुछ याद आया । और वह सीधा गगन से सम्बोधित होता हुआ बोला - ओ सारी ..सारी गगन जी । वेरी सारी । जल्दी में मैं आपको एक बात बताना भूल गया था । जो आपने खास तौर पर पूछी थी । चलिये अब बताये देता हूँ । मैं राजीव जी को जानता हूँ । और नीलेश को भी । और उसकी गर्लफ़्रेंड मानसी को भी.. । अब तो आपको विश्वास हो गया । मैं नकली प्रसून नहीं हूँ ।
- क्याऽऽ । गगन एकदम से उछलकर बोली - सालिया डफ़र । यू चीटर । भैण..भैण..देख जस्सी..समझा दे इसको । मेरा मूड बिगङ गया है । अब मुझे बहुत गुस्सा चङ गया है । ऐसा न हो कि साली तू भी कुछ और बात कर दे । नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगी । उदास हो जाऊँगी । निराश हो जाऊँगी । मैं रो पङूँगी । गुस्से में आकर प्रसून का... काट दूँगी । टुईं.. टुईं । आई लव यू लल्लू बाबा । बाय बाय ।
जस्सी हौले हौले हँस रही थी । उसे पता था । प्रसून उसकी पगली सहेली का गुस्सा सुन रहा था । उसने फ़ोन काटने की कोई कोशिश नहीं की थी । फ़िर उसने फ़ोन को बेहद करीब लाकर स्वीट किस की ध्वनि की । और शरमा कर जल्दी से फ़ोन काट दिया ।
और अन्त में - वास्तव में इस पूरी कहानी की प्रेरणा मुझे मेरी सहेली से मिली है । उसका बहुत बङा योगदान इसमें रहा है । मैंने तो बस इसे शब्द ही दिये हैं । बाकी सब कुछ उसी का है । अतः मेरी ये कहानी उसी को समर्पित है ।
उसको जो मुझे बहुत प्रिय है ।
और सदा मेरी यादों में रहती है.....
 

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