Horror प्रेतकन्या

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Update 1



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ए बात लगभग 2 साल पुरानी है संजय मेरे दोस्त था हम कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे संजय और उसका परिवार अन्य प्रदेश से थे नौकरी की वजह से उत्तर प्रदेश में आकर रहने लगी थी जाने क्या वजह थी कि संजय मुझे काफी दिन से दिखाई नहीं दे रहा था शायद इसकी वजह यह भी हो सकती थी कि मैं कॉलेज जाने के बाद शोध के लिए जंगल और निर्जन स्थान पर चला जाता था और शहर और घर में ज्यादातर कम ही रहता था

लेकिन उस दिन जब मैं बाजार में था तो मुझे संजय की मम्मी रजनी आंटी की आवाज सुनाई दी
हाय प्रसून क्या तुम हो जरा रुको मैंने बाइक रोक दी रजनी आंटी मेरे करीब आई वो बेहद उदास दिख रही थी संजय कैसा है और आजकल दिखाई क्यों नहीं दे रहा है मैंने आंटी से पूछा मैंने उसी के बारे में बात करने के लिए तुम्हें रोका है तुम एक बार कह रहे थे कि तुम वानखंडी वाले बाबा को जानते हो और उससे परिचित हो प्लीज प्रसून मुझे एक बार उनसे मिलना है तुम्हारे दोस्त के खातिर अपने बेटे के खातिर मामला सीरियस था आंटी डरी हुई से प्रतीत होती थी मुझे आश्चर्य था कि आज ओ बाबा जी को पूछ रही थी कभी इस परिवार ने मेरी हंसी इस बात के लिए उड़ाया था की दृश्य जगत के अलावा अदृश्य जगत भी है आप मुझे कुछ हिंट दे मैंने कहा बाबा u11 किसी से नहीं मिलते और आप जिस वजह से बाबा से मिलना चाहती हैं उचित भी है कि नहीं आंटी ने मुझे भीड़ से हटकर
एकांत में आने का इशारा किया आते ही बोला संजय 3 महीने से अजीब ,,,, प्लीज प्रसून उसे बचा लो मामला वाकई गंभीर था मैंने पूछा संजय अक्षर कहां मिलता है इत्तेफाक से वह जगह मेरे आवागमन मार्ग के बीच में थी पर यह बात अलग है कि संजय जहां जाता था वहां से आधा किलोमीटर हटकर थी मैं तुरंत बाइक से संजय के पास पहुंचा ओ आराम से मुझे आम के पेड़ के नीचे बैठा नजर आया और अपलक सामने बहती नदी की धारा को देख रहा था मैं यह देख कर चौक गया कुछ ही दिन में उसका हष्ट पुष्ट शरीर मात्र हड्डियों का ढांचा रह गया था उसने बाइक की आवाज सुनकर एक बार मुझे देखा और फिर उसी तरह नदी की धारा को देखने लगा जैसे मुझे पहचानता ही ना हो मैंने बाइक खड़ी करके सिगरेट जलाई टहलते टहलते उसके पास पहुंच गया

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हाय संजय हाउ आर यू मैंने उससे पूछा
तुम यहां क्यों आए हो काफी नफरत से मुझसे पूछा मैं पहले ही काफी परेशान हूं
आई नो आई नो डिअर मैंने उसकी आंखों का अनुसरण करते हुए कहां सिरी आई नहीं क्या अब तक
वह चढ़कर बोला तुम सब मेरे दुश्मन हो
सब जानता हूं बेटा मैंने मन ही मन कहां
मैंने मन ही मन बाबा को याद किया और एक धमाकेदार थप्पड़ मार दिया
वह लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिरने को हुआ
मैंने संभालते हुए उसे एक पेड़ के नीचे बैठाया वापस जाकर बाइक का हारन बजाया उस सुनसान जगह पर हारन डरावनी आवाज करके गूंज गया

कुछ ही दूर में पेड़ की ओट में छिपी


अभी तक आपने पढ़ा संजय कैसी मेरी बात का जवाब दे रहा था और मैं उसे एक धमाकेदार थप्पड़ मारा
आगे


कुछ ही क्षणों में पेड़ में छिपी रजनी आंटी आती हुई दिखाई दी मैं आराम से सिगरेट के कश लगाने लगे
हमें अभी इसे लेकर बाबाजी की गुफा की ओर जाना होगा
मैं रजनी आंटी से कहा
अफसोस मुझे सब आपको पहले बताना चाहिए था
आंटी ने लगभग रोते हुई दूसरी तरफ देखा मैंने सहारा देकर संजय को बाइक पर बैठाया
और आंटी से कहा कि वह पीछे बैठ कर संजय को सहारा दे इस समय वह होश में नहीं है
मैंने बाइक दौड़ा दी निर्जन वन का वह क्षेत्र आम आदमी को डरावने एहसासों
से रू-ब-रू कराता था
पर मेरे लिए तो परिचित जगह थी मैं महसूस कर रहा था की रजनी आंटी भयभीत थी और संजय तो अपने होश में नहीं था आधे घंटे के बाद वन खंडी गुफा के सामने पहुंच गए थे

मेरे लिए बेहद परिचित स्थान किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकता था
वातावरण बेहद अजीब अजीब आवाजों के साथ डरावना बना रहा था
दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था
प्रसून मुझे आंटी की भयभीत आवाज सुनाई दी
डरो मत मैं उनकी तरफ बिना देखे कहा और गुफा के अंदर प्रवेश कर गया
और बोला अलख बाबा अलख
कल्याण हो अंदर से बाबा की रहस्यमई आवाज आई

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इस औरत को बोल डरे नहीं इसका पुत्र ठीक होगा
बिना कुछ बताए बाबा रजनी आंटी के बारे में बोल रहे थे
यह सुनकर मैंने संजय को सहारा दिया और आंटी के साथ गुफा के अंदर प्रवेश कर गया
आंटी भय वश लगभग मुझसे सटी हुई थी
हम लोग अंदर जाकर बैठ गए
आंटी बेहद हैरत से गुफा का मुआयना कर रही थी मुझे उनकी हैरत मालूम थी
वह यह कि बेहद अंदर गुफा होने के बावजूद उसने दूधिया रोशनी मौजूद थी
पर वह प्रकाश किस चीज से हो रहा था यह मालूम नहीं चलता
और बाहर से जंगल जितने डरावना था उधर शांति और सुकून मौजूद थे
गुफा में डरावना एहसास कराने वाली कोई भी चीज नहीं थी बराबरी से चबूतरे में कंबल का आसन लगाए बैठे थे
उनकी बड़ी-बड़ी तेज युक्त आंखों में मानव मात्र के लिए स्नेह
था उनकी लंबी लंबी जटाये उनकी शक्ति बता रही थी
इसको आराम से लेटा दो बाबा संजय की तरफ देखकर कहा
मैंने संजय को आराम से मिटा दिया आंटी अपलक बाबा को देख रही थी
बाबाजी रजनी आंटी ने कुछ बोलने कि कोशिश की
शांत बेटा शांत बाबा ने बीच में ही हाथ उठाकर कहां
यह बताने की आवश्यकता नहीं कि इसे क्या परेशानी है और कैसे हुई और क्या होगा
फिर बाबा मुझसे गुप्त भाषा में बात करने लगे
जिसका मतलब यह था कि मुझसे गलती हो गई
वह यह थी कि मुझे एक हिम्मती पुरुष को साथ में लाना चाहिए
जो तमाम कार्यक्रम में रजनी आंटी को संभाल लेता
दरअसल एक विशेष विधि द्वारा मुझे बाबा जी के साथ प्रेत लोक में जाना था
जहां की एक प्रेत कन्या संजय को अपने साथ ले गई थी अब यह बड़ी रहस्यमई हकीकत थी कि संजय जहांगीर चलती फिरती लाश के रूप में अवश्य नजर आता था
पर वास्तव में वह प्रेत लोक का वासी हो चुका था
और बाबा जी के अनुसार वह अगले 6 महीने में मर जाने वाले था
क्योंकि उसने यह रास्ता खुद चुना था
और एक प्रेत कन्या के रूप जाल में आसक्त होकर धीरे-धीरे प्रेत देही हो रहा था

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अतः अभी तक अपने जाना की संजय प्रेतकन्या के प्रेम में पर चुका था अब आगे




ये समान्य ओझाऔ का झाड़ फूंक का मामला ना था दरअसल मुझे माध्यम बनकर बाबा के साथ किनझर जाना था

और संजय के विगत 3 महीने प्रेतकन्या के साथ गुजारा समय संजय के दिमाग से कनेक्ट करके मिटाना था इसको इस

तरह समझ सकते है की किसी टेप कि रील को बैक स्थित मे
लाकर खाली करना या किसी कापी में लिखे गये अनुपयुक्त लेटर को इरेजर द्वारा मिटाना तब संजय अपनी पूर्व स्थिति में उसी तरह से आ जाता मानो गहरी नींद के बाद जागा हो और इस तरह वह मरने से बच जाता
अब समस्या यह थी कि मैं बाबा जी जब किनझर प्रेतलोक जाते तो हमारे शरीर निर्जीव हो जाते और संजय पहले ही बेहोशी जैसी अवस्था में पड़ा हुआ था तब पीछे अकेली रह जाती रजनी आंटी जो निश्चय ही उस बियाबान जंगल में 12 घंटे तक नहीं रह सकती थी जबकि प्रेत कन्या से उलझने में 15 से 20 घंटे तक लग
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सकते हैं अगर मान लो उन्हें भी एक विशेष मूर्छा अवस्था में कर दिया जाता तो गुफा में मौजूद चारों शरीर मृतक के समान होते और कोई दुर्घटना किसी जंगली जानवर या आकस्मिक आपदा से हुआ शरीरिक नुकसान हो जाने पर शरीर किसी भी कीमत पर प्राप्त नहीं किया जा सकता था
अतः शरीरों की रक्षा करने वाली किसी जिगर वाली इंसान का होना जरूरी था इसीलिए एक बार तो बाबाजी ने तय किया कि किसी आदमी का बंदोबस्त कर के ही किनझर जाएंगे
माय बड़े असमंजस में था कि क्या करूं क्या ना करूं दरअसल मैं अब अकेले ही किंजर जाने की सोच रहा था क्योंकि इसके पूर्व भी मैंने बाबाजी से कई बार कहा था कि मैं किसी सुदूर लोग की यात्रा पर चले जाने का अनुभव प्राप्त करना चाहता हूं और बाबा जी ने कहा भी था कि वह मुझे ऐसा मौका अवश्य देंगे
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पर यहां मामला दूसरा था मेरी थोड़ी सी गलती संजय को मौत के मुंह में ले जा सकती थी और यह भी संभव था कि मैं वहां से वापस ना आ पाता क्योंकि किसी शक्तिशाली प्रेत से मुकाबले में यदि में हार जाता है और उन्हें पता चल जाता कि मैं मानव हूं
तो मुझे दिमाग परिवर्तन करके प्रेत बना देते और इस तरह की फीडिंग से मैं खुद को प्रेत ही समझने लगता
इस तरह रिस्क की ढेरों बातें थी जिनका ज्यों का त्यों समझना मुश्किल है पर कहने का अर्थ यही है कि इस तरह में संजय और अपनी दोनों की जान जोखिम में डाल रहा है और बाबा जी इसके लिए तैयार नहीं थे
ओके मैंने अंग्रेजी में कहा सिंपल सी बात है मैं अकेली ही चले जाता हू
फिर मैंने आंटी को जो हमारे वार्तालापो को अजीब तरीकों से सुन रही थी ( क्योंकि वह भाषा उनके पल्ले ही नहीं पड़ रही थी)
को समझाया कि कोई दो-तीन घंटे
जबकि मुझे अच्छे से पता था कि किंजर से मेरी वापसी अगली सुबह को हो

पायेगी
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पर मैं इसलिए निश्चिंत था
क्योंकि एक तो बाबाजी पृथ्वी पर ही रुक रहे थे
अतः आंटी घबराती भी
तो वो उन्हें मूर्छा में भेज देंगे
और आंटी को ऐसा प्रतीत होता मानो उन्हें स्वभाविक नींद आ गई हो दूसरा यही मैं अकेले जाने का बेहद इच्छुक था क्योंकि बाबा जी के साथ सैकड़ों बार अंतरिक्ष यात्रा पर गया
मै बाबा जी से कहा कि मैं ध्यान से जाऊंगा आप फिक्र ना करें
और आंटी से कहा कि आप चिंता ना करें संजय ठीक हो जाएगा
आंटी ने हा की अवस्था में सिर हिला दिया
बाबाजी हल्के से मुस्कुराए उन्हें मेरा यह साहस अच्छा लग
रहा था

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मैं लेट गया और गहरी सांस लेते हुए मृतप्राय सा होने लगा
बाबाजी भी धीरे-धीरे मेरे साथ आने लगे
दरअसल बाबा जी ने तय किया था कि पृथ्वी से ब्रह्मांड तक की सीमा तक वह मेरे साथ आएंगे ऐसी हालत में रजनी आंटी को लगेगा कि वह कुछ सोच रहे हैं
और अगर वह उस हालत में उनसे कोई बातचीत भी करती हैं तो बाबाजी आसानी से उसका जवाब देते रहेंगे
लेकिन अगर बाबा जी ब्रह्मांड की सीमा पार करते हैं तो उसी समय उनका शरीर निर्जीव समान हो जाएगा
खैर बाबा जी मुझे ब्रह्मांड की सीमा के पास छोड़कर ज्यों का त्यों वापस आ गए उनका शरीर सचेत प्रतीत होने लगेगा
मानो किसी सोच से बाहर आए हैं
मुझे इस विचार से हंसी आ गई कि आम मनुष्य के लिए किसी गड़बड़ झाले से
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कम नहीं था
पर यह भी सत्य है कि अलौकिक रहस्य को जानना और उन में प्रविष्ट कर पाना बच्चों का खेल नहीं होता
ब्रह्मांड की सीमा आते ही मैंने
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💀💀💀💀Update 2 💀💀💀💀

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जबकि मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि किनझर से मेरी वापसी अगली सुबह तक ही हो पायेगी ।

पर मैं इसलिये निश्चित था ।

क्योंकि एक तो बाबाजी प्रथ्वी पर ही रुक रहे थे ।

अतः आंटी यदि घबराती भी ।

तो वो उन्हें मूर्क्षा में भेज देंगे ।

और आंटी को ऐसा प्रतीत होगा ।

मानों उन्हें स्वाभाविक नींद आ गयी हो ।

दूसरे ये एक इंसान ।


मेरे दोस्त की जिन्दगी का सवाल भी था ।


तीसरे मैं अकेला जाने का बेहद इच्छुक था ।

क्योंकि बाबाजी के साथ तो मैं सैकङों बार अंतरिक्ष यात्रा पर गया था । ) तक मैं ध्यान में जाऊँगा ।

और आप फ़िक्र न करें । संजय ठीक हो जायेगा ।आंटी ने किंकर्तव्यबिमूढ अवस्था में सिर हिला दिया । बाबाजी हल्के से मुस्कराये ।

उन्हें मेरा साहस अच्छा लग रहा था ।

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मैं लेट गया । और गहरी सांस लेते हुये मृतप्राय सा होने लगा ।
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बाबाजी भी धीरे धीरे मेरे साथ आने लगे । दरअसल बाबाजी ने तय किया था कि प्रथ्वी के बृह्माण्ड की सीमा तक वे मेरे साथ आयेंगे ।

😨 ऐसी हालत में नीचे रजनी आंटी को लगेगा कि वे कुछ सोच रहे हैं । और अगर वो उस हालत में उनसे कोई बातचीत भी करती हैं । तो बाबाजी आसानी से उसका जबाब देते रहेंगे ।लेकिन अगर बाबाजी बृह्माण्ड की सीमा पार करते हैं । तो उसी समय उनका शरीर
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निर्जीव समान हो जायेगा । और मुझे बृह्माण्ड सीमा पर छोङकर बाबाजी ज्यों ज्यों वापस गुफ़ा के पास आते जायेंगे । 😨😨😨

उनका शरीर सचेत प्रतीत होने लगेगा । मानों किसी सोच से बाहर आये हों ।मुझे इस विचार से हँसी आ गयी कि आम मनुष्यों के लिये ये किसी गङबङझाला से कम नहीं था ।😕😕😕😕😕

पर ये भी सत्य है कि अलौकिक रहस्यों को जानना । और उनमें प्रविष्ट कर पाना । बच्चों का खेल नहीं होता ।बृह्माण्ड की सीमा आते ही मैंने " अलख बाबाजी अलख " कहा । और गहन सुदूर अंतरिक्ष में छलांग लगा दी ।
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😵😵😵😵😵😵😵😵😵😵😵😵😵बाबाजी के मच्छर भिनभिनाने जैसी आवाज में सुनायी दे रहे शब्द " तेरा कल्याण हो.. .तेरा कल्याण हो " लगातार मेरे साथ चल रहे थे ।वास्तव में ये एक प्रकार की कनेक्टिविटी थी । अब ऐसी ही आवाज में जब तक बाबाजी को मेरे शब्द " अलख बाबाजी अलख " और मुझे तेरा कल्याण हो सुनाई देते रहते ।
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तब तक मैं बाबाजी के सम्पर्क में था । शब्द बन्द हो जाने का मतलब साफ़ था कि सम्पर्क टूट गया । बाबाजी तेजी से वापस गुफ़ा की तरफ़ जाने लगे । और मैं अंतरिक्ष की गहराईयों में बढ रहा था ।अंतरिक्ष में किसी भी लोकवासी या अन्य जीव की आवाज प्रथ्वी की तरह भारी ( बेसयुक्त ) और क्लियर न होकर एक भिनभिनाहट या छनछनाहट युक्त होती है । इस बात को इस तरह समझे कि टीवी मोबायल फ़ोन या अन्य किसी खराव प्रसारण में जब कभी मुख्य आवाज हल्की और उसके साथ छनछनाहट की आवाज अक्सर सुनाई देती है ।
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कुछ कुछ वैसी ही मिलती जुलती आवाज अंतरिक्ष में परस्पर सम्पर्क का माध्यम होती है ।और अंतरिक्ष की एक निश्चित सीमा पार करते ही किसी भी सामान्य आदमी की आवाज स्वतः ही हल्की और वैसी ही छनछनाहटयुक्त हो जाती है । आप कल्पना करें कि प्रथ्वी पर करोंङो लोग मोबायल पर बात कर रहे हों । और बो सभी आवाजें आपको बिना किसी मोबायल या यन्त्र के इकठ्ठी सुनाई दें । वस ऐसी
स्थिति होती है ।

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जब ये आवाजें बेहद हल्की या ना के बराबर हों । तो हम किसी भी लोक से उस समय दूर हैं । और आवाज जितनी क्लियर होती जाय । उतना ही हम किसी लोक के नजदीक हैं ।

दूसरी बात अंतरिक्ष की यात्रा में अधिक परिश्रम नहीं होता । और न ही किसी प्रकार का खतरा होता है कि हम गिर जायेंगे । या टकरा जायेंगे । लेकिन अन्य अंतरिक्ष जीवों से मुकाबला या दोस्ती का गुण होना अनिवार्य होता है । 🎺🎺🎺🎺

अन्यथा कदम कदम पर खतरा ही समझो ।तब जब मैं कई लाख योजन की ऊँचाईयों पर पहुँच चुका था । और इस प्रकार के विचारों के बीच अपना सफ़र तय कर रहा था कि प्रथ्वी पर भी कितना रहस्यमय जीवन है । मेरे परिवार के लोग या अन्य परिचित कोई भी तो नहीं जानता कि मैं अंतरिक्ष की अनंत ऊँचाईयों पर अक्सर भृमण करता हूँ । बाइचान्स अगर मुझे यहाँ कुछ हो जाय । तो यही कहावत सटीक बैठेगी कि जमीन निगल गयी । या आसमान खा गया ।
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और बाबाजी के सम्पर्क में होने से सौ के लगभग मैं ऐसे लोगों को जानता था । जो आराम से अदृश्य लोकों का भृमण करते थे । पर उन्हें आम लोग नहीं जानते थे ।ऐसे ही विचारों के बीच मेरे दिमाग में मानों विस्फ़ोट सा हुआ । जल्दबाजी में मैं प्रेतकन्या का हुलिया ( जो कि मुझे बाबाजी द्वारा अपने दिमाग में फ़ीड कराना था ) और वास्तविक नाम का पता करना भूल गया था ।

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संजय की मम्मी ने तो लङकी ( अपनी समझ से ) का नाम शीरीं बताया था । जो कि संजय बङबङाता था । पर ये एकदम झूठा भी हो सकता था । और उस वक्त तो मेरे छक्के ही छूट गये । जब मुझे पता चला कि विचारों के भंवरजाल में डूबकर मैं कनेक्टिविटी लाइन से कब अलग हो गया । इसका मुझे पता ही नहीं चला ।

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अलख..बाबा..अलख..बार बार ये शब्द पुकारता हुआ मैं सम्पर्क जोङने की कोशिश करने लगा । पर तेरा कल्याण हो । मुझे दूर दूर तक सुनायी नहीं दिया ।💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉💉
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अतः मैं बार बार कहने लगा । तो तू ही बता दे..पर कोई लाभ न हुआ । लूढा वहाँ से पता नहीं कहाँ था । और मेरी यात्रा के चार घन्टे पूरे हो चुके थे । और तभी मेरी कनेक्टिविटी में एक नया वाक्य आने लगा..। लेकिन तू जो है.. ।
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पर ये सम्पर्क अस्पष्ट था । और इसकी वजह मैं अच्छी तरह से जानता था । दरअसल प्रेतलोकों से अंतरिक्ष यात्री की कनेक्टिविटी में मेरे शब्द इस कोड से मेल खा रहे थे । पर इसका एकदम सही अन्य कोड क्या था ।
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ये मुझे नहीं पता था । तभी
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मेरे पास कोड के साथ भीनी भीनी तेज खुशबू आने लगी । और मैं एक अग्यात लोक में उतर गया ।अभी मेरे लिये ये कहना मुश्किल था कि ये प्रेतलोक है । या अन्य प्रकार के जीवों का लोक ।- स्वागत..हे.. मैंने तुम्हें यहाँ उतारा है । कौन हो तुम । और किस प्रयोजन से अंतरिक्ष में हो ?- अंतरिक्ष क्या किसी के बाप की जागीर है.. और तू.. मुझे इस तरह उतारने वाली कौन भला ?कहते हुये मैंने उस प्रेतकन्या को देखा । अब मैं अपने पूर्व अनुभवों से जान गया था कि ये भी कोई अन्य प्रेतलोक है ।दरअसल इन लोकों में प्रथ्वी की तरह मर्दानगी वाला सिद्धांत

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चलता है । यदि आपने सभ्यता का प्रदर्शन किया । तो आपको डरपोक माना जायेगा । और ये भी पहचान हो जायेगी कि आप पहली बार यहाँ आये है । न सिर्फ़ नये बल्कि अंतरिक्ष के लिये अजनबी भी । और ये दोनों बातें बेहद खतरनाक हैं ।प्रेतकन्या एक सफ़ेद घांघरा पहने थी । और कमर से ऊपर निर्वस्त्र थी । उसके बेहद लम्बे बाल हवा में लहरा रहे थे ।- तुम वाकई सख्त और बङे..। उसने मेरे कमर के पास निगाह फ़ेंकते हुये होठों पर जीभ फ़िरायी - जिगरवाले हो । आओ..मेरे जैसा सुख पहुँचाने वाली । यहाँ दूसरी नहीं है । क्या तुम..। उसने पुनः अपने उन्नतउरोजों को उभारते हुये कहा - भोग करना चाहोगे
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मैं एक अजीव चक्कर में पङ गया । दरअसल उससे सम्भोग करने का मतलब था कि अपने दिमाग को उसे रीड करने देना । और लगभग दस परसेंट प्रेतभाव का फ़ीड हो जाना । और सम्भोग नहीं करने का मतलब था कि उसका रुष्ट हो जाना :D
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तो जो जानकारी मैं उससे प्राप्त करना चाहता था । उससे वंचित रह जाना । मैंने फ़ैसला लेते हुये बीच का रास्ता अपनाया । और उसे पेङ के नीचे टेकरी पर गिराकर उसके उरोजों से खेलने लगा ।- पहले तुझे कभी नहीं देखा..। किस लोक का प्रेत है तू ? वह आनन्द से आँखे बन्द करते हुये बोली ।- देख इस बक्त मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात है..। उस साली किनझर वाली की अकङ ढीली करना .।मानों विस्फ़ोट सा हुआ हो ।
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" किनझर " सुनते ही वह चौंककर उठकर बैठ गयी । और लगभग चिल्लाकरबोली - तू प्रेत नहीं हैं ।..अन्य है.. । प्रेत किनझर का मुकाबला नहीं कर सकता..।- देख मैं जो भी हूँ । मैंने प्रेतकन्या की कमजोर नस पर चोट की - तू मुझे किनझर का शार्टकट बता दे । मेरे पास समय कम है । लेकिन लौटते समय..समझ गयी । कहाँ चोट मारूँगा..।मेरा पेंतरा काम कर गया । वह बेहद अश्लील भाव से हँसी ।
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चींटी से लेकर..मनुष्य..देवता. .किसकी कमजोरी नहीं होती । ये कामवासना ।अबकी बार जब मैंने अंतरिक्ष में छलांग लगायी । तो मेरे पास पूरी जानकारी थी ।किनझर बेहद शक्तिशाली किस्म के वेताल प्रेतों का लोक था । वहाँ का आम जीवन बेहद उन्मुक्त किस्म का था । हस्तिनी किस्म की स्थूलकाय प्रेतनियां पूर्णतः नग्न अवस्था में रहती थी । और लगभग दैत्याकार पुरुष भी एकदम निर्वस्त्र रहते थे ।

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सार्वजनिक जगहों पर सम्भोग और सामूहिक सम्भोग वहाँ के आम दृश्य थे । कुछ ही देर में मैं किनझर पर मौजूद था । किनझर क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से काफ़ी विशालकाय प्रेतलोक था । अभी मैं सोच विचार में मग्न ही था कि मेरे पास से बीस बाईस युवतियों का दल गुजरा । वे बङे कामुक भाव से मुझ अजनबी को देख रही थी ।
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अब मुझे ट्रिक से काम लेना था । मैंने बेलनुमा एक पेङ की टहनी तोङी । और उसे यूँ ही हिलाता हुआ एक प्रेतकन्या के पास पहुँचा । और उसके नितम्ब पर सांकेतिक रूप से हल्का सा वार काम आमन्त्रण हेतु किया । उसने आश्चर्य से पलटकर देखा । मैंने उसका हाथ पकङकर अपनी तरफ़ खींच लिया ।ये वहाँ की जीवन शैली का स्टायल था ।
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इसके विपरीत अगर मैं प्रथ्वी की तरह बहन जी या भाभी जी जरा सुनना ...जैसी स्टायल में बात करता । तो वो तुरन्त समझ जाती कि मैं प्रथ्वी या उस जैसे किसी अन्य लोक का हूँ । और ये स्थिति मुझे कैद करा सकती थी ।मेरे शरीर से मानव की बू नहीं आती थी । क्योंकि पूर्व की अंतरिक्ष यात्राओं में ही मैं वह बू छिपाने की तरकीबें जान गया था ।
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वह कामक्रीङा हेतु तैयार होकर एक पेङ के नीचे लेट गयी । और मदभरी नजरों से मुझे देखने लगी ।मुझे उससे सम्भोग तो करना ही नही था । सो उसे गोद में लिटाकर उसके उरोंजो पर हाथ फ़िराते हुये मैंने कहा - ये शीरीं आज मुझे कहीं नजर नहीं आयी...। मुझे उसे एक सन्देश देना था..।- शैरी..ओह..इधर भी..। वह मेरा हाथ अपनी इच्छानुसार करती हुयी बोली - वह नदी पार अजगर के साथ सम्भोग करती है । और अक्सर वहीं मिलती हैं ।- पर अजगर के साथ क्यूँ । प्रेतों की कमी है क्या..?

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🙆- वो अजगर नहीं हैं । वो कामुक भाव से हँसी - वो एक इंसान की रूह में है । और जल्दी ही प्रेत हो जाने वाला है । क्योंकि वो अपनी इच्छा से प्रेत बन रहा है । अतः वो बहुत शक्तिशाली प्रेत होगा । सौ प्रेतनी को एक साथ कामत्रप्त करने की क्षमता बाला होगा वो । अरे तू क्या फ़ालतू की बात ले बैठा । अन्दर नहीं जायेगा ।मैंने उसे एक झटके से अलग कर दिया । और बोला - अभी मैं उसको संदेश दे आऊँ । फ़िर तुझे घायल करता हूँ..।
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फ़िर उसकी प्रतिक्रिया जाने विना मैं कुछ ही दूर पर स्थिति एक पेङ पर बैठ गया । और ध्यान स्थिति में संजय को रीड करने की कोशिश करने लगा । लेकिन मुझे बेहद थोङी सफ़लता ही मिली । अब मुझे उसी हथियार को फ़िर से इस्तेमाल करना था । यानी नारी की कामलोलुपता का लाभ उठाकर उसे सही बात सोचने का अवसर न देना
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इसके लिये अब मैं पूरी तरह से तैयार था ।मुझे शीरी का सही नाम शैरी पता चल चुका था । मैंने खुद को संजय के रूप में ढाला । और कुछ ही देर में मैं शैरी के सामने था । वो वास्तव में अजगर को लिपटाये हुये थी । जो उसके कामुक अंगों को स्पर्श सुख दे रहा था ।- हे ..शैरी..अब फ़ेंक इसे..मैं असली जो आ गया ..।
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उसने अविश्वसनीय निगाहों से मुझे देखा । मैं उसे सोचने का कोई मौका नहीं देना चाहता था । मैंने अजगर को छीनकर बाबाजी को स्मरण किया । और उनकी गुफ़ा को लक्ष्य बनाकर अलौकिक शक्ति का उपयोग करते हुये अजगर को पूरी ताकत से अंतरिक्ष में फ़ेंक दिया ।अब ये अजगर अपनी यात्रा पूरी करके गुफ़ा के द्वार पर गिरने बाला था । और इस तरह से संजय की रूह प्रेतभाव से आधी मुक्त हो जाती । इसके बाद संजय के दिमाग ( जो अब मेरे दिमाग से जुङा था ) से मुझे वह लिखावट ( फ़ीडिंग ) मिटा देनी थी । जो उसके और शैरी
के वीच हुआ था । बस इस तरह संजय मुक्त हो जाता ।इस हेतु मैंने शैरी को बेहद उत्तेजित भाव से पकङ लिया । और पूरी तरह कामुकता में डुबोने की कोशिश करने लगा ।
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शैरी सम्भोग के लिये व्याकुल हो रही थी ।जब मैंने कहा - हे ..शैरी ! अब जब कि मैं पूरी तरह से प्रथ्वी छोङकर तेरे पास आ गया हूँ । मेरा दिल कर रहा है कि तू मुझे हमारी प्रेमकहानी खुद सुनाये । ताकि आज से हम नया जीवन शुरू कर सके । वरना तू जानती ही है कि मैं सौ प्रेतनी को एक साथ संतुष्ट करने वाला वेताल हूँ । तेरी जैसी मेरे लिये लाइन लगाये खङी हैं..।मेरी चोट निशाने पर बैठी । उसे और भी सोचने का मौका न मिले । इस हेतु मैं उसके स्तनों को सहलाने लगा ।

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- तुम कितने शर्मीले थे । वह जैसे तीन महीने पहले चली गयी - मैं प्रथ्वी पर नदी में निर्वस्त्र नहा रही थी । जब तुम उस रास्ते से स्कूल से लौटकर आये थे । मैं प्रथ्वी पर नया वेताल बनाने के आदेश पर गयी थी । क्योंकि आकस्मिक दुर्घटना में मरे हुये का प्रेत बनना । और स्वेच्छा से प्रेतभाव धारण करने वाला प्रेत इनकी ताकत में लाख गुने का फ़र्क होता है


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।तुम फ़िर अक्सर उधर से ही आने लगे । लेकिन तुम इतने शर्मीले थे कि सिर्फ़ मेरी नग्न देह को देखते रहते थे । जबकि तुम्हारे द्वारा सम्भोग किये बिना मैं तुम में प्रेतभाव नहीं डाल सकती थी..तब एक दिन हारकर मैंने योनि को सामने करते हुये तुम्हें आमन्त्रण दिया और पहली बार तुमने मेरे साथ सम्भोग किया..वो कितना सुख पहुँचाने वाला था.. मैं....संजय तुम .. अब ..... दिनों ... उसने ... गयी ... कि ... जब ....

💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤💤 दिया ....देना..नदी..किनझर..।शैरी नही जानती थी कि मैं उसके बोलने के साथ साथ ही संजय के दिमाग से वह लेखा मिटाता जा रहाथा । हालाँकि इस प्रयास में कामोत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल हो चुका था । उसके नाजुक अंगो से

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खिलवाङ करते हुये मुझे उत्तेजना हो रही थी । पर सम्भोग करते ही मेरी असलियत खुल जाती । और संजय तो मुक्त हो जाता । उसकी जगह मैं प्रेतभाव से ग्रसित हो जाता । आखिरकार संयम से काम लेते हुये मैं वो पूरी फ़ीडिंग मिटाने में कामयाब हो गया ।शैरी कामभावना को प्रस्तुत करती हुयी मेरे सामने लेट गयी ।

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जब अचानक मैं उसे छोङकर उठ खङा हुआ । और बोला कि अभी मैं थकान महसूस कर रहा हूँ । कुछ देर आराम के बाद मैं तुम्हें संतुष्ट करता हूँ ।कहकर मैं लगभग दस हजार फ़ीट ऊँचाई वाले उस वृक्ष पर चढ गया । और एक निगाह किनझर को देखते हुये मैंने विशाल अंतरिक्ष में नीचे की और छलांग लगा दी । अब मैं बिना किसी प्रयास के प्रथ्वी की तरफ़ जा रहा था ।
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񦴮ेरा ये सफ़र लगभग तीन घन्टे में पूरा होना था । जब मैं बाबाजी के गुफ़ा द्वार पर होता ।इस पूरे मिशन में मुझे लगभग तेरह घन्टे का समय लगा था । यानी कल शाम तीन बजे से जब आज मैं गुफ़ा के द्वार पर होऊँगा । उस समय सुबह के चार बज चुके होंगे ।मेरा अनुमान लगभग सटीक ही बैठा । ठीक सवा चार पर मैं गुफ़ा के द्वार पर था । बाबाजी ने मेरी सराहना की । और शेष कार्य खत्म कर दिये । आंटी सोकर उठी थी ।

🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀🛀संजय अभी भी अर्धबेहोशी की हालत में था ।बाबाजी ने एक विशेष भभूत आंटी और संजय के माथे पर लगा दी । जिसके प्रभाव से वे अपनी तीन महीने की इस जिन्दगी के ये खौफ़नाक लम्हें हमेशा के लिये भूल जाने वाले थे । यहाँ तक कि उन्हें कुछ ही समय बाद ये गुफ़ा और बाबाजी भी याद नहीं रहने वाले थे
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मैंने आंटी को साथ लेकर उन्हें और संजय को उनके घर छोङ दिया । मैं काफ़ी थक चुका था अतः घर जाकर गहरी नींद में सो गया ।अगले दिन सुबह दस बजे मैं संजय की स्थिति पता करने उसके घर पहुँचा । तो दोनों माँ बेटे बेहद गर्मजोशी से मिले - हे प्रसून तुम इतने दिनों बाद मिले । आज छह महीने बाद तुम घर पर आये हो ।आंटी ने भी कहा - प्रसून तुम तो हमें भूल ही जाते हो । कहाँ व्यस्त रहते हो ?उन्हे अब कुछ भी याद नहीं था । मैंने देखा संजय कल की तुलना
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में स्वस्थ और प्रसन्नचित्त लग रहा था । आंटी में भी वही खुशमिजाजी दिखायी दे रही थी । उनके साथ क्या घटित हो चुका था । इसका उन्हें लेशमात्र भी अन्दाजा न था । बाबाजी ने उनकी दुखद स्मृति को भुला दिया था । एक तरह से वो पन्ने ही उनकी जिन्दगी की किताब से फ़ट चुके थे ।मैंने एक सिगरेट सुलगायी और हौले हौले कश लगाने लगा

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