Horror पिशाच की वापसी

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पिशाच की वापसी – 1

रात का अंधेरा काला साया, खामोशी से भरा, हल्की हल्की गिरती बारिश की बूँदें. एक पतली सी सड़क और उस सड़क के दोनों तरफ घना जंगल, बारिश की वजह से सड़क गीली हो चुकी थी, तभी उस सुनसान सड़क पे एक इंसान नज़र आया जो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.

काले अंधेरे के साये में वह आदमी धीरे धीरे उस सड़क पे आगे बढ़ रहा था, उसने ब्लैक कलर का लंबा सा कोट पहना हुआ था, गर्दन में मोटा सा मफ्लर, हाथों में ब्लैक कलर के ग्लव्स पहन रखे थे और बारिश से बचने के लिए उसने छतरी ली हुई थी.. सड़क गीली होने की वजह से एक अजीब सी आवाज़ उस आदमी के चलने की वजह से आ रही थी, अजीब सी आवाज़ … पकच..पकचह… पकचह……पकचह, उस जगह पे इतनी शांति थी की वह इंसान इस आवाज़ को साफ साफ सुन पा रहा था, अचानक वह आदमी चलते चलते रुक गया और उसने अपनी गर्दन पीछे की तरफ घुमाई, उस इंसान ने आधे चेहरे पे कपड़ा बाँध रखा था, उसकी आँखों से देख के ऐसा लग रहा था मानो वह कुछ ढूँढ रहा हो, धीरे धीरे उसने अपने हाथ से चेहरे पे पहना मास्क हटाया, लेकिन पीछे देखने का कोई फायदा नहीं मिल रहा था क्यों की पीछे सिर्फ़ अंधेरा था और कुछ नहीं, उस आदमी ने फिर से अपनी नज़रे सामने की और की फिर वह सामने चलने लगा.

बारिश अब काफी धीमी हो चुकी थी, और ठंडी हवा धीरे धीरे चलने लगी, वह आदमी चलते चलते कभी अपने लेफ्ट देखता तो कभी राइट, उसके चेहरे पे हल्की सी घबराहट दिखाई दे रही थी.

माहौल ही कुछ ऐसा था, काला अंधेरा, सुनसान जगह, जहाँ सिर्फ़ एक इंसान के अलावा कोई ना हो ऐसे में अगर इंसान डरा हुआ हो तो ये पल काफी होता है किसी की भी दिल की धड़कने तेज करने के लिए, यही हुआ इस इंसान के साथ भी, आगे तो वह धीरे धीरे बढ़ रहा था पर उसके दिल की धड़कने उसके चलने से कई ज्यादा गुना तेज चल रही थी.

“11 बज गये, मुझे जल्दी पहुंच के सारेी बात अच्छे से बतानी पड़ेगी"
उसने टाइम देखते हुए अपने आप से कहा और बोलते हुए फिर आगे बढ़ने लगा की तभी उसे ऐसा आभास हुआ मानो उसके पीछे कोई हो और उसके साथ साथ उसके पीछे चल रहा हो, उस आदमी की दिल की धड़कने और तेज हो गयी, चेहरे पे घबराहट की लकीरें और फैल गयी, उसके माथे की शिकन फैल गयी, उसकी साँसें तेज चल रही थी, पर फिर भी वह चले जा रहा था, लेकिन कुछ ही सेकेंड वह आगे चला था की वह रुक गया, क्यों की उसके दिमाग और उसके मन से अभी तक वह डर नहीं गया था, उस अभी तक लग रहा था की कोई उसके पीछे चल रहा है, वह रुकते ही पीछे घूम गया और एक बार फिर से उस काले अंधेरे में देखने की कोशिश करने लगा, लेकिन जब उसे लगा की कोई नहीं है वह वापिस घूमके चलने लगा.

धीरे धीरे चल रही हवा तेज होने लगी, हवा चलने की वजह से पेड़ों की आवाज़ ने उस जगह को खामोशी से बाहर निकल लिया.

वह आदमी कुछ बड़बड़ाते हुई आगे बढ़ रहा था, उसके चेहरे पे घबराहट अभी तक बननी हुई थी..

"कौन है"
अचानक वह चलते चलते रुक गया और एक दम से चिल्ला पड़ा,
“कौन है"
इधर उधर देखते हुए वह फिर से एक बार चिल्लाया. लेकिन कुछ नहीं था, हवा के चलने की वजह से वहां पेड़ों के पत्ते हिल रहे थे और उसके अलावा कुछ नहीं.

उस आदमी ने अपने चेहरे को अपने हाथों से सहलाया,

"क्या हो गया मुझे, ये सब सिर्फ़ उन सब चीज़ों की वजह से हो रहा है जो 2 दिन से में सुन रहा हूँ, देख रहा हूँ, ये सब उसी का असर है"

अपने आप से कहते हुए एक बार फिर वह चलने लगा और कुछ सोचने लगा ….

दूसरी तरफ……

घर के हॉल में बहुत से आदमी ज़मीन पे बैठे थे और आपस में बातें कर रहे थे, उनकी आवाज़ से उस हॉल में अजीब सा शोर गूँज रहा था की तभी..

"अरे साहब आ गये"

एक आदमी हाथ जोड़ के खड़े होते हुए बोला, उसके साथ में सभी खड़े हो गये.

उन सब के सामने एक आदमी खड़ा था जो देखने में करीब 30-35 साल का नॉर्मल सा इंसान लग रहा था, गर्म कपड़े पहन रखे थे, वह सीधा चलता हुआ आया और कुर्सी पे आकर बैठ गया.

"छोटू ज़रा आग को थोड़ा और बड़ा दे, ठंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है"

उस आदमी ने अपने नौकर से अपनी वज़नदार आवाज़ में कहा, और फिर सामने सभी को देखने लगा.

"जी साहब, लकड़ियाँ पीछे वाले कमरे में है, में अभी लेकर आता हूँ"

बोल के वह निकल गया.

“आप लोग खड़े क्यों है बैठ जाइये"

उस आदमी ने सामने खड़े लोगों को बैठने के लिए कहा, सभी ज़मीन पे बिछे कार्पेट पे बैठ गये.

"कहिए ऐसी क्या जरूरी बात करनी थी जो आप सब यहाँ तक आए वह भी इस ठंड में"

"हम वहां काम नहीं कर सकते"

एक आदमी थोड़ा गुस्से में खड़े होते हुई बोला.

“काम नहीं कर सकते पर क्यों, क्या वजह है"

कुर्सी पे बैठे आदमी ने जवाब बड़ी नर्मी से दिया.

"वजह नहीं पता आपको, पिछले 2 दीनों में क्या क्या हुआ है वहां उसके बारे में आपको कुछ नहीं पता है,या फिर पता होते हुए भी हमसे छुपाने का नाटक कर रहे हैं"

फिर से वह आदमी थोड़ी ऊंची आवाज मैं बोला.
 
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पिशाच की वापसी – 2

"देखो मुझे कुछ नहीं पता है, तुम क्या कहना चाहते हो साफ साफ बताओ"

नर्मी से एक बार फिर से जवाब आया.

"ये चुप हो जा, बडे साहब से बात करने की तुझे तमीज है की नहीं"

दूसरे आदमी ने उसका हाथ पकड़ के उसे कहा.

"माफ करना साहब, जवान खून है जोश में थोड़ा ऊंचा बोल गया, ये नहीं ध्यान रहा की मजदूर और मालिक में बहुत फर्क होता है"

उस आदमी ने सामने हाथ जोड़ के माफी माँगी

"कोई बात नहीं, तुम ये सब छोड़ो और ये बताओ आख़िर क्या हुआ है, जो तुम सब इतने घबराए हुए लग रहे हो मुझे”

"बात ही कुछ ऐसी है साहब की जिसे सुन और देख के घबराहट की लहर हम सभी के शरीर में दौड़ रही है"
उस आदमी ने थोड़ी धीमी आवाज़ में कहा, उसने आगे कहना शुरू करा और कहते कहते उसके चेहरे के भाव बदलने लगे.

"जिस जगह पे हम काम कर रहे हैं साहब, वहां कुछ बहुत गलत चीज़ है, कोई है जो हमें काम करने देना नहीं चाहता, कोई है जो हमें चेतावनी दे रहा है वहां से चले जाने की"

“कोन है वह"?

कुर्सी पे बैठे आदमी ने भी धीमी आवाज़ में पूछा..

"शायद कोई शैतान है साहब, क्यों की एक शैतान ही ऐसे काम कर सकता है”

"कैसे काम की बात कर रहे हो तुम, क्या हुआ है वहां”

"मौत, मौत हुई है वहां, वह भी कोई आम मौत नहीं साहब, दर्दनाक मौत"

मौत का नाम सुनते ही कुर्सी पे बैठे आदमी की आँखें बड़ी हो गयी, मानो उसे बहुत बड़ा झटका दिया हो अभी..

“मौत, शैतान, क्या बोल रहे हो रघु तुम, मुझे अभी तक कुछ समझ नहीं आया, आख़िर हुआ क्या है मुझे साफ साफ क्यों नहीं बता रहे हो तुम लोग"

इस बार थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा.

एक पल के लिए वहां शांति हो गयी, रघु भी चुप था, कुर्सी पे बैठा आदमी और ज़मीन पे बैठे सारेे आदमी रघु की तरफ देख रहे थे और रघु अपनी बात को कहने के लिए शब्द ढूँढ रहा था.

आख़िर उसने कहना शुरू किया……….

"साहब कल की बात है जब हम सब वहां काम के लिए पहुंचे ………."

रघु ने आगे बताना शुरू किया….

सुबह का समय, अच्छा ख़ासा दिन निकल रहा था, सूरज ने उस जगह पे अपनी अच्छी छाप छोड रखी थी.

खुली जगह, जगह की हालत काफी बिगड़ी हुई थी, और शायद तभी उस बड़ी सी जगह पे शोर हो रहा था, काम होने का शोर.

काफी सारे आदमी वहां लगे हुए थे काम में, कोई पेड़ काट रहा था तो कोई एक तरफ खुदाई कर रहा था, कोई मिट्टी उठा उठा के ट्रक में डाल रहा था, सब अपना काम कर रहे थे, कोई उस आधे घने जंगल में काम कर रहा था, जहाँ काफी कम पेड़ बचे थे, तो कुछ लोग एक कुछ खुदायी का काम कर रहे थे …

ये सब करते हुए सुबह शाम में कब बदली पता ही नहीं चला, एक एक कर के उस जगह से सारे आदमी जाने लगे, उस जगह पे चल रहा शोर, धीरे धीरे कम होने लगा, लेकिन अब भी कोई था जिसने उस जगह पे अपना काम जारी रखते हुई उस शोर को बना रखा था …

ककचह…….ककचह……ककचह…….ककचह……..ककचह……….ककचह… ककककचह……..ककककचह……ककककचह……कककचह……ककचह….. लगातार एक के बाद एक प्रहार ज़मीन पे करता हुए एक मजदूर अपने काम में लगा हुआ था, मिट्टी खोदते खोदते उसका आधा शरीर इस वक्त उस गढ्ढे में था जो वह खोद के बना चुका था..

"अरे कालू टाइम हो गया है"

थोड़ी दूर से एक आदमी चील्लाया

"हाँ पता है बस 5 मिनट दे, इसे पूरा कर लू"

चील्लाते हुए उसने एक बार फिर ज़मीन पे जब मारा तो इस बार मिट्टी की नहीं किसी और चीज़ की आवाज़ आई.

कालू ने उस जगह पे दुबारा मारा तो फिर वही आवाज़ आई, फिर वह झुका और उसने अपने हाथ से उस जगह की मिट्टी हटाने लगा, जैसे जैसे उसने मिट्टी हटानी शुरू की वैसे वैसे उसकी आँखों के सामने उसे कुछ चमकता हुआ नज़र आने लगा…

मिट्टी हटते ही उसके सामने चमकदार चीज़ आ गयी, जो सूरज की रोशनी में और ज्यादा चमक रही थी, कालू के चेहरे पे बड़ी सी मुस्कान आ गयी जब उसने उस चमकती चीज़ को देखा, फिर उसने धीरे धीरे अपने हाथ उस चीज़ की तरफ बड़ाये, धीरे धीरे वह हाथ उस चीज़ पे पहुंच रहे थे

"अरे चल भी शाम होने को आई, घर जाते जाते देर हो जायेगी"

फिर से दूर से एक आदमी की चिल्लाने की आवाज़ आई.

"तू चल में आ रहा हूँ"

कालू ने गर्दन घुमा के कहा और फिर उस चमकदार चीज़ को देखने लगा, और अपने हाथ को उस तरफ ले जाने लगा, आख़िर उसने उस चमकदार चीज़ को अपने हाथों से पकड़ा और उठा लिया, जैसे ही उसने उस उठाया ……….

"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ……….."

एक दर्दनाक आवाज़ ने उस जगह को घर लिया…….

ककचह…….ककचह……ककचह…….ककचह……..ककचह……….ककचह… ककककचह……..ककककचह……ककककचह……कककचह……ककचह….. लगातार एक के बाद एक प्रहार ज़मीन पे करते हुए एक मजदूर अपने कम में लगा हुआ था, मिट्टी खोदते खोदते उसका आधा शरीर इस वक्त उस गढ्ढे में था जो वह खोद के बना चुका था..

"अरे कालू टाइम हो गया है"

थोड़ी दूर से एक आदमी चिल्लाया,

"हाँ पता है बस 5 मिनट दे, इसे पूरा कर लू"

चील्लाते हुए वह एक बार फिर काम में लग गया.

जैसे ही उसने दुबारा खोदना स्टार्ट किया, अचानक ही वहां के वातावरण में बदलाव होने लगा,धीरे धीरे हवा के शोर ने वहां कदम रख लिया, एक तरफ कालू मिट्टी हटा के गढ़ा खोदने में लगा हुआ था, दूसरी तरफ हवा आवाज़ करते हुए तेज चलने लगी.

"अचानक से इतनी हवा"
दूसरा आदमी जंगल से बाहर निकल रहा था, उसे भी उस ठंडी हवा का एहसास होने लगा, उसने अपने शरीर पे हाथ बाँध लिए जिससे वह हवा से बच सके.

ककचह … कककच…. कालू अपने काम में लगा हुआ था, गढ्ढा गहरा होता जा रहा था, हवा भी तेज होती जा रही थी.

"अरे. का…लू.. चल आजा"

उस दूसरे आदमी ने कपकपाते स्वर में कहा, उसे अपने बदन पे वह ठंडी हवा अब चुभने लगी थी, उसका शरीर कांप रहा था, उसने अपनी नज़रे आसमान की तरफ की, तो उसने पाया की धीरे धीरे ढलता सूरज नीले बादलों में खोता जा रहा था, नीले घने बदल आगे की तरफ बढ़ने लगे.
 
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पिशाच की वापसी – 3

“हाँ बस हो गया, आया"

बोलने के लिए कालू रुका और फिर उसने हाथ उप्पर उठाकर ज़मीन पे दे मारा, लेकिन इस बार मिट्टी की आवाज़ नहीं किसी और चीज़ की आवाज़ आई, कालू कुछ सेकेंड ऐसे ही खड़ा कुछ सोचता रहा, उसने एक बार फिर हाथ उठाया और उस जगह पे दुबारा मारा तो फिर वही आवाज़ आई, आवाज़ से उसके चेहरे पे थोड़ी शिकन आ गयी, वह झुका और हाथ से मिट्टी को हटाने लगा, जैसे जैसे उसने मिट्टी हटानी शुरू की वैसे वैसे उसकी आँखों के सामने उस कुछ चमकता हुआ नज़र आने लगा…

इधर वह आदमी आसमान में देख रहा था, जहाँ अभी साफ मौसम था अब वहां घने नीले बादलों ने उस जगह पे क़ब्ज़ा कर लिया था, हवा भी जोरों से चल रही थी, ये सब देख के उस आदमी की शकल पे थोड़ी सी घबराहट उभर आई थी.

इधर कालू ने मिट्टी हटा दी और उसके सामने एक चमकदार चीज़ आ गयी जिसे देख के,कालू के चेहरे पे बड़ी सी मुस्कान आ गयी, फिर उसने धीरे धीरे अपने हाथ उस चीज़ की तरफ बड़ा ये, धीरे धीरे वह हाथ उस चीज़ पे पहुंच रहे थे, जा रहे थे और जैसे ही उसने उस चीज़ को छुआ,

कड़दड़… कड़कड़कड़…..कद्द्द्दद्ड…कड़कड़कड़……. वहां ज़ोरदार बिजली कड़कने लगी, बादलों की वजह से जो अंधेरा वहां हुआ था, अब बिजली की वजह से रोशनी हो रही थी, ये दृश्य देख के दूर खड़े आदमी की तो हालत बुरी हो गयी, उसका हलक सुख रहा था, और यही हाल कालू का भी था वह भी एक पल के लिए सहम गया इस अजीब सी बिजली की कड़कने की आवाज़ सुन के.

"अरे चल भी कालू, देख नहीं रहा, लगता है कोई बहुत बड़ा तूफान आने वाला है जल्दी कर मुझे बहुत घबराहट हो रही है"

वह आदमी जैसे तैसे कर के कांपती आवाज़ में चिल्लाया.

"हाँ हाँ बस हो गया"
कालू ने चिल्ला के कहा, और जिस चीज़ पे उसने अपना हाथ रखा हुआ था उस चीज़ को उठा लिया, जैसे ही उसने उसे उठाया, एक ज़ोरदार कड़कड़ाती हुई बिजली चमकी, जिसकी रोशनी में कालू का चेहरा और उसके हाथ में वह चीज़ भी चमक उठी.

दूसरी तरफ वह आदमी जंगल के बाहर खड़ा था, अचानक उस कुछ आभास हुआ,

"एका एक इतनी ठंड कैसे बढ़ गयी"

उसने अपने आप से कहा, और अपने हाथ मसलते हुई सामने देखने लगा और तभी उसकी आँखों के सामने एक बहुत ही अजीब वाक्य दिखाई दिया ….

सामने खड़े ट्रक पे धीरे धीरे बर्फ की कठोर चादर सी बिछने लगी, उसके देखते देखते ट्रक का शीशा बर्फ की कठोर चादर में अकड़ गया, ये देख के उस आदमी की सांस ही अटक गयी एक पल के लिए.शायद ये अभी कुछ नहीं था, तभी उसके कानों में कुछ अजीब सी आवाज़ पडी, वह फौरन पीछे घुमा और फिर जो उसने देखा उसके कदम खुद बीए खुद पीछे हटते चले गये, उसके सामना वाला पेड़ एका एक अजीब सी आवाज़ करते हुई ज़मने लगा, और यही हाल उसके बगल वाले पेड़ों का भी हुआ, बहुत ही अजीब और एक पल के लिए दिल दहला देने वाला दृश्य था उसके लिए, पर शायद अभी इसे भी ज्यादा होना बाकी था.

उधर कालू उस चीज़ पे से अच्छी तरह से मिट्टी हटा चुका था, और उस चीज़ को देख के उसके चेहरे पे एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी,

"सोने का लगता है, क्या पता कुछ और भी मिल जाए"

कालू की आँखों में लालच दिखाई दे रहा था.

उसने उस चीज़ को अपने कमर के अंदर अच्छे से फँसा लिया, और फिर मिट्टी हटाने लगा, कुछ ही सेकेंड हुए थे उसे मिट्टी हटाए की उसके चेहरे के भाव बदल गये, उसकी चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी, माथे की शिकन बढ़ के गहरी होती चली गयी, और उसकी आँखें बिलकुल बड़ी होकर फटने को हो गयी और तभी बिजली की कड़कड़ने की आवाज़ में कालू की एक भयंकर चीख निकली ……. “आआआआआआआआआआआआ”

ये आवाज़ उस जगह पे एक पल के लिए गूँज उठी,

"ये तो कालू की आवाज़ है"
उस आदमी ने अपने आप से कहा,

"कालू, कालू,"

वह चीलाया, लेकिन फिर कोई आवाज़ नहीं आई,

"ये सब क्या हो रहा है, मुझे लग ही रहा था कोई गड़बड़ है, कालू क्या हुआ"

वह चीलाया पर कोई जवाब नहीं आया, फिर वह खुद ही जंगल के अंदर घुसने लगा.

इधर कालू गढ्ढे में से निकल के, भागने लगा, वह बोलना चाह रहा था पर उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी, वह भाग रहा था, लेकिन जंगल खत्म नहीं हो रहा था, उधर वह आदमी उसके पास जाने की कोशिश कर रहा था, पर पहुंच ही नहीं पा रहा था, कालू पागलों की तरह भाग रहा था की तभी उसका पैर मुडा और वह नीचे गिर गया, ज़मीन पे गिर कर वह उठा और फिर भागने लगा, भागता रहा, लेकिन उस जंगल के बाहर का रास्ता ना मिला, वह भागता रहा, भागता रहा, अचानक उसका बैलेन्स फिर बिगड़ा और वह सीधे एक गढ्ढे में जा गिरा.

“आह"

उसके मुंह सी हल्की सी चीख निकली, गिरने की वजह से गढ्ढे में धूल फैल गयी, इसलिए कुछ सेकेंड वह कुछ नहीं देख पाया,

इधर वह आदमी अंदर घुसता चला जा रहा था, उसका दिल इस वक्त बुरी तरह से डरा हुआ था, अभी भी उसकी आँखों के सामने एक एक कर सारे पेड़ बर्फ की चादर को ओढे जा रहे थे, बड़ी मुश्किलों से वह आवाज निकाल पा रहा था
"कालू… कहाँ है"

वह कहता हुआ आगे तरफ रहा था.

“आख़िर मुझे रास्ता क्यों नहीं मिल रहा है"?

जब कुछ मिनट तक चलने के बाद भी उस आदमी को रास्ता नहीं मिला तो उसने अपने आप से कहा, वह फिर वहीं एक जगह खड़ा हो गया, और वहीं से वह कालू को आवाजें लगाने लगा.

जबकि, असल में उसके और कालू के बीच सिर्फ़ कुछ ही मीटर की दूरी थी, लेकिन ना दोनों एक दूसरे को देख पा रहे थे ना ही सुन पा रहे थे.

कालू गढ्ढे में गिरा हुआ था, जब वहां की धूल बैठ गयी तो उसने नज़रे उठा के इधर उधर देखा तो उसकी आँखें फट गयी, उसके बगल में उसी का वह समान रखा था, जहाँ वह थोड़ी देर पहले खुदाई कर रहा था, उसने फौरन अपने नीचे देखा जिसे देख के उसकी दिल की धड़कन बंद हो गयी, वह वहीं जम गया, वह कुछ कर पता उससे पहले, वह हवा में उप्पर की तरफ उड़ते हुई गढ्ढे से बाहर निकला और फिर ….

“आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ"

एक चीख के साथ कालू जंगलों की गहराइयों में खोता चला गया, और इधर जो गढ्ढा खुदा हुआ था, उसमें अपने आप मिट्टी भरने लगी, इतनी तेजी सी मिट्टी भरने लगी की कुछ ही सेकेंड में वह गढ्ढा भर गया, और बिलकुल पहले जैसी ज़मीन हो गयी.

"ये तो कालू की चिल्लाने की आवाज़ है, हे भगवान क्या हो रहा है ये, कालू, कालू"

वह चिल्लाता हुआ इधर उधर देखने लगा और भागता हुआ जंगल की गहराई में खोता चला गया.

"कालू मिला की नहीं"?

कुर्सी पे बैठे आदमी ने बडे ही चिंता जनक स्वर में कहा

"नहीं साहब, कालू का कुछ नहीं पता वह कहाँ गया, अभी तक कुछ भी नहीं"

उस आदमी ने हल्की आवाज़ में कहा

कोई कुछ कह पाता उससे पहले,

“कडाअक्ककककक”,
एक आवाज़ हॉल में हुई, हॉल में बैठे सभी एक पल के लिए सहम गये, पर

"साहब लकड़ियाँ खत्म हो गयी है, बस इतनी ही मिली"

दरवाजे पे खड़े नौकर ने कहा.

“अच्छा ठीक है, कल याद से ले आना, अभी इसे जला दे"

कुर्सी पे बैठे आदमी ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

"जी"
बोलते हुए वह लकड़ियाँ लेकर अपने काम में लग गया.

“वैसे वह आदमी जो कालू के साथ था, वह कहाँ है"?

बात को आगे बढ़ाते हुये उस आदमी ने कहा

"वह यहीं है साहब, ये रहा"
उस आदमी ने एक आदमी की तरफ इशारा किया, जिसने अपने चेहरे को आधा ढका हुआ था.
 
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पिशाच की वापसी – 4

"जब तुमने कालू को खोजा तो वह तुम्हें कहीं क्यों नहीं मिला”?

“नहीं जानता साहब, उसकी और मेरी दूरी कुछ फासले पर ही थी, लेकिन में उस ढूंढ ही नहीं पाया साहब, नहीं ढूंढ. पाया उसे में, सिर्फ़ 2 बार उसकी दर्दनाक, चीख सुनी बस उसके अलावा कुछ और नहीं"

उस आदमी की आवाज़ में डर, कंपन और एक गहरा सवाल झलक रहा था

"बहुत अजीब बात है ये, एक आदमी अचानक ऐसे कैसे गायब हो सकता है, जरूर कोई तो बात होगी”

“में आपको बोल रहा हूँ साहब, वहां कोई शैतान का वास है, जो सो रहा था और शायद, शायद हमने उस जगा दिया"

उस आदमी ने अटकते हुए अपनी बात को पूरा किया

"ऐसा कैसे हो सकता है, ये सब बातें बेकार की है, इनका कोई मतलब नहीं है, ये जरूर कुछ और है"

कुर्सी पे बैठे आदमी ने समझने की कोशिश की

“आपको ऐसा लगता है, तो ये बताइए की ये काम किसका हो सकता है"

बोलते हुए कालू के साथ जो आदमी था उसने अपने चेहरे को भी परदा किया, जिसे देख के कुर्सी पे बैठे आदमी की आवाज़ बंद हो गयी

उस आदमी का आधा चेहरा, अजीब से छालों से भरा हुआ था, जिसपे अजीब अजीब से छोटे छोटे किडे से दिखाई दे रहे थे

“ये, ये क्या है"?

हकलाते हुई उस आदमी ने पूछा

“ये वह चीज़ है साहब, जो मुझे कल मिली उस जगह पे, और इसका इलाज़ किसी दवाखाने पे भी नहीं है"
उस आदमी ने कहा और अपना चेहरा फिर से ढक लिया.

“मेरी बात मानिए साहब, वहां कुछ है, जो नहीं होना चाहिये, शायद कोई बड़ा तूफान आने वाला है, एक ऐसा तूफान, जिसकी असलियत सब को खत्म कर देगी"

पहले वाले आदमी ने इस बात को एक ऐसे लहज़े में कहा, की एक पल के लिए सबकी रूह में अजीब सी कंपन दौड़ गयी, हॉल में शांति फैल गयी की तभी

"चटाककककककककक"

एक बार फिर हॉल में आवाज़ आई, जिससे सबकी दिल को एक ज़ोर का धक्का लगा, लेकिन सबने पाया की हॉल में लगी खिड़की खुल गयी थी, और हवा अंदर आ रही थी, नौकर उठा उसने खिड़की को बंद किया और फिर लकड़ियाँ जलाने में लग गया, जो की अभी तक नहीं जलाई गयी थी क्यों की वह खुद ये सब बातें सुनने में खो गया था, वह लकड़ियाँ जला ही रहा था की इतनी देर में दरवाजे पे नॉक हुआ.

“लगता है वह आ गया, छोटू ज़रा जाकर दरवाजा खोल"

कुर्सी पे बैठे आदमी ने फौरन कहा छोटू उठा, और दरवाजे के पास पहुंच कर उस खोला,

“आइये साहब आपका ही इंतजार कर रहे थे"

छोटू ने इतना कहा, और दरवाजे से एक शॅक्स को अंदर आने की जगह दे दी.

“आइये, साहब आपका ही इंतजार कर रहे हैं"छोटू ने कहा और दरवाजे से हट गया.

अंदर घुसते ही उस आदमी ने अपनी छतरी बंद की और छोटू को दे दी, ब्लैक कोट में चलता हुआ वह आदमी हॉल के अंदर घुसा, जिसे देख कर सब एक बार फिर खड़े हो गये, सिवा उस कुर्सी पे बैठे आदमी के.

“अरे मालिक आप यहाँ"

उनमें से एक आदमी ने कहा.

उस आदमी ने कुछ नहीं कहा, बस अपनी टोपी अपने सर से हटाई और कुर्सी पे बैठे आदमी की तरफ बढ़ा.

“आओ, जावेद आओ, तुम्हारा ही इंतजार किया जा रहा था"

"आपके बुलावे पे तो आना ही था मुख्तार साहब, कैसे हैं आप"

जावेद ने कुर्सी पे बैठते हुए कहा, जो अभी अभी छोटू रख के गया था.

"बस कुछ देर पहले तक तो ठीक था, पर इन सब की बातें सुन के"

मुख्तार ने बस इतना ही कहा और वह चुप हो गया.

"तो आप सब ने इन्हें सब कुछ बता दिया"

जावेद ने सभी की तरफ नज़रे करते हुए कहा.

"क्या करते मालिक, एक के बाद एक हमारे कुछ आदमी इन 2 दीनों में गायब हो गये, इसलिए हमें आना ही पड़ा बडे मालिक से मिलने"

उस आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

"हम्म, में तभी समझ गया था, जब मुख्तार साहब का फोन आया था शाम को, की किस विषय में बात करनी है"

जावेद ने अपने हाथ में पहने ग्लव्स उतारते हुए कहा.

"मैंने तुम्हें इसीलिए बुलाया, की जब मुझे इन सब ने मिलने के लिए कहा तो मुझे लगा कोई बड़ी बात होगी, क्यों की अगर कोई छोटी, मोटी होती तो तुम उसे खुद सुलझा लेते"

मुख्तार ने अपने हाथ मसलते हुए कहा.

"हम्म सही कहा आपने, बात थोड़ी बड़ी ही है मुख्तार साहब"

जावेद ने अजीब सी नजरों से मुख्तार को देखा, दोनों के बीच कुछ सेकेंड के लिए आँखों में इशारे हुए, फिर दोनों सामने मजदूरों को देखने लगे.

"समस्या तो है, पर इतनी भी बड़ी नहीं की, उस सुलझाया ना जा सके"

जावेद अपनी जगह से खड़ा होता हुआ बोला.

"लेकिन ये सब जो कह रहे हैं, वह सब क्या है"?

मुख्तार ने खड़े होते हुए कहा.

"कोई है मुख्तार साहब, जो शायद हमारे साथ खेल कर रहा है, कोई है जो नहीं चाहता वहां काम हो"

जावेद ने पानी का गिलास भरते हुए कहा.

"सही कहा मालिक आपने, वहां कोई शैतानी रूह है, जो नहीं चाहती हम वहां काम करे, नहीं चाहती वह, तभी वह हम सब को गायब कर रही है"

जावेद ने पानी का गिलास खत्म किया और पीछे मूंड़ के सभी को देखने लगा,

"ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सब सोच रहे हो, कोई शैतान नहीं है, तुम सब अपने दिमाग से ये भ्रम निकल दो"

जावेद ने सबको समझाते हुए कहा.

"ये आप कैसे कह सकते हैं मालिक, आप तो थे 2 दिन हमारे साथ, कितना ढूंढा कालू को और बाकियों को, पर कोई नहीं मिला हमें, वहां कोई भटकती रूह है मालिक, कोई बहुत ही शक्तिशाली और खतरनाक रूह, हम वहां काम नहीं करेंगे, कोई नहीं, हम में से कोई भी नहीं करेगा"

उनमें से एक आदमी ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा.

"काम नहीं करोगे, ऐसे कैसे नहीं करोगे तुम सब काम"

पहली बार मुख्तार थोड़े गुस्से में बोले.
 
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पिशाच की वापसी – 5

"मुख्तार साहब आप शांत रहिए, देखो तुम सब, कालू कहाँ गया और बाकी सब कहाँ गये उनका पता पुलिस जल्दी ही लगा लेगी, उसकी फिक्र तुम सब मत करो, रही बात किसी भटकती रूह की तो वह सब तुम्हारे मन का वहम है, में भी तो कल तुम्हारे साथ पूरा दिन था, मुझे तो कुछ ऐसा नहीं दिखा.

"क्यों की साहब आप दोनों दिन, जल्दी चले गये थे, और ये हादसे शाम को तकरीबन 5 से 6 के बीच हुए हैं, हमने आपको और बडे मालिक को अपना फैसला सुना दिया है, हम में से कोई भी काम नहीं करेगा"

"क्या करोगे फिर अगर काम नहीं करोगे तो, क्या होगा तुम्हारे बीवी बच्चों का, जानते हो ना की जीतने पैसे तुम्हें यहाँ रोज़ के मिल रहे हैं, उतने तुम 5 दीनों में भी नहीं कमा पाओगे, वैसे भी यहाँ पे उस हादसे के बाद काम मिलने बंद हो गये हैं, जल्दी तुम्हें कोई काम नहीं मिलेगा"

जावेद ने मज़दुरो की कमज़ोरी को पकड़ते हुए उनको एक दूसरा पहलू दिखाया.

जावेद की बात सुन की सभी मज़दुर का जोश एक पल के लिए ठंडा पढ़ गया, हॉल में शांति थी, बस कुछ आवाज़ थी तो उन लकड़ियों के जलने की.

"पर पैसों के लिए हम अपनी जान जोखिम में नहीं डालेंगे साहब"

शांति को तोड़ते हुए रघु ने कहा.

“तुम्हें क्या लगता है, वहां काम करने से तुम्हारी मौत हो जायेगी"

जावेद ने रघु की तरफ बढ़ते हुए कहा

"मौत हो नहीं जाएगी साहब, मौत हो ही गयी थी, ना जाने कैसे बच गया में, वह जगह शापित है साहब, शापित है वह जगह, वहां कोई इंसान कुछ नहीं कर सकता, उसने मुझे कान में कहा था, हाँ कहा था उसने मुझे कान में, इन्हीं कान में"

रघु थोड़ा गुराते हुई बोल रहा था, उसकी साँसें तेज चल रही थी, उसके चेहरे की रंगत काफी बदली हुई नज़र आ रही थी.

"किसने और क्या कहा था तुमसे रघु"

इस बार जावेद ने थोड़ी नर्मी से कहा.

"उस बहती हवा ने मालिक, मौत, मौत, उस बहती हवा में मौत का संदेश था"

रघु ने आवाज़ उठा के कहा, उसकी आवाज़ में एक ऐसी कंपन थी, जिसे सुन के सभी के शरीर में कंपन हो गयी.

"वह सिर्फ़ तुम्हारा वहम है रघु, वहां ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो, अगर फिर भी आप सब को ऐसा लगता है की वहां कोई शैतानी रूह है, कोई प्रेत, आत्मा या कोई भी अदृष्य शक्ति है तो ठीक है में वहां जाऊंगा आज रात को"

जावेद ने अपना फैसला सुनाया,

"नहीं…..नहीं मालिक, ये भूल मत करना, उस जगह पे कोई जिंदगी जाती तो अपनी मर्जी से है, पर उसको मौत उसकी मर्जी से मिलती है"

रघु ने बहुत बड़ी बात जावेद के लिए गये फैसले पे कह डाली.

जावेद, रघु की बात सुन के कुछ नहीं बोल पाया, और चलता हुआ हॉल की खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया जहाँ अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी पर हवा की वजह से ज़ोर ज़ोर से बाहर बड़े बड़े पेड़ हिल रहे थे, रघु एक पल के लिए जावेद को देखता रहा और फिर वह हॉल से निकल गया, उसके जाते ही उनमें से एक ने कहना शुरू किया.

"देखिए साहब, हम गरीब आदमी है, हमारी जिंदगी और हमारा परिवार ही सब कुछ है, अगर हमें कुछ हो गया तो हमारे परिवार का क्या होगा"

एक आदमी ने हाथ जोड़ के विनती करते हुए कहा

"अरे आप लोगों की चिंता हमें अपने आप से ज्यादा रहती है, में भला आपको कैसे तकलीफ में डाल सकता हूँ, अगर वहां कुछ ऐसी चीज़ है तो जरूर वहां काम नहीं हो सकता, पर अगर वहां ऐसा कुछ नहीं है तो क्या आप सब वहां काम करने के लिए तैयार है"

मुख्तार ने आगे की बात को संभालते हुए, अपनी बात कही.

सब मजदूर एक दूसरे की शकलें देखने लगे,

"लेकिन कैसे पता लगाएँगे"

कुछ मिनट बाद एक ने कहा.

"अभी जावेद ने कहा ना की वह जाएगा आज रात, देखिए आप बेफ़िक्र रहिए, अभी रात बहुत हो गयी है, आप आराम से वापिस जाये, में खुद कल साइट पे आऊंगा और पूरा दिन आपके साथ रहूँगा"

मुख्तार ने बात को खत्म करते हुए कहा.

"ठीक है साहब, अगर ऐसा है तो कल हम सब जगह पे आएँगे, पर साहब एक बात कहना चाहूँगा, हादसे तभी होते हैं जब उसके पीछे कोई वजह होती है, शायद वहां कोई वजह छुपी है"

उस आदमी ने अपनी बात कही और फिर सब एक एक कर के निकल गये.

मुख्तार के कानों में कुछ सेकेंड तक, उस आदमी की कही आखिरी लाइन गूँजती रही,

"वजह होगी हुहह"

मुख्तार ने अजीब से स्वर में कहा और जावेद की तरफ देखा जो की अभी भी वैसे ही खड़ा था.

"ये गाँव वाले बड़े चालू होते हैं, ज्यादा पैसे मिल रहे हैं तो सोचा और लूट लें ऐसी झूठी अफवा ये फैला के, तुमने बहुत अच्छा किया जावेद जो मुझे शाम को फोन कर के बता दिया की इन सब ने काम पे आने के लिए मना कर दिया, और ये सब यहाँ आने वाले हैं"

मुख्तार की आवाज़ ने एक अलग रूप ले लिया

"इतनी देर से इन लोगों की बक-बक सुन के में थक गया था, अच्छा हुआ चले गये, तुमने बहुत सही दाव फेंका"

मुख्तार ने कहा और चलते हुए एक अलमारी खोल के उसमें से वाइन निकल के गिलास में डाली और एक ही झटके निकल के गिलास में डाली और एक ही झटके में पी गया.

"आ…. मजा आ गया, इन लोगों को क्या पता, की कितने करोड का प्रोजेक्ट है ये"

बोलते हुए मुख्तार ने जावेद की तरफ देखा, जो अभी भी बाहर देख रहा था,"

"जावेद किस सोच में डूबे हुए हो, चलो यार आओ थोड़ा चखो तो शरीर में गर्मी आयेगी, भूल जाओ इस सब बकवास को"

बोलते हुए उसने गिलास को मुंह से लगाया.

"बकवास नहीं है ये, मुख्तार साहब"

जावेद ने मूड़ के कहा, उसकी आवाज़ सुन के मुख्तार ने गिलास रोक दिया, और मुंह से हटा के नीचे रख दिया.

"क्या कहना चाहते हो तुम"?

जावेद को घूरते हुए मुख्तार ने सवाल किया.

"यही कहना चाहता हूँ, की उन मज़दुरो की बातों में कुछ तो सच्चाई है"

“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया, तुम भी इन सब बातों में आ गये जावेद, जानते हो क्या कह रहे हो तुम, बहुत, प्रेत, रूह क्या तुम भी इन सब चीज़ों में मानते हो"

मुख्तार थोड़े गुस्से में बोला.

"नहीं, साहब, नहीं में ये नहीं कह रहा की में ये सब मानता हूँ, लेकिन जो मैंने देखा, उस भूलना मुश्किल है और इस बात को भी नकारना मुश्किल है की मजदूर गलत कह रहे हैं".

“कहना क्या चाह रहे हो तुम"?

जावेद की शकल पे शिकन देख के मुख्तार का गुस्सा शांत हो गया

"यही साहब, कालू और बाकी सभी की लाशे मिल चुकी है"

जावेद के इतना कहने पर मुख्तार को एक बड़ा झटका लगा.

"ये क्या कह रहे हो तुम, इन मजदूरों ने कहा था की नहीं मिली है"

मुख्तार एक दम से घबरा गया था, जावेद की ये बात सुन के.

"मुख्तार साहब, उन सब को कुछ नहीं पता है, अगर पता चल जाता तो अभी तक बहुत बड़ा बवाल मचा देते ये लोग क्यों की जिस हालत में मुझे वह लाशें मिली, ना तो मैंने ऐसी लाशें कभी देखी है ना ही सुनी है"

जावेद ने थोड़ी घबराहट के साथ कहा.

"कैसी मिली है तुम्हें वह लाशें"

"आप वीरा को तो जानते ही हैं"

“हाँ, जो इन सब का लीडर है, हाँ वैसे वह नहीं आया आज
 
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पिशाच की वापसी – 6

"उसे मैंने ही मना किया था, असल में आज हम बचे हैं तो उसकी वजह से ही, वीरा ही था जिसने उन लाशों को खोजा और फिर ……………"जावेद धीरे धीरे सारेी बात बताने लगता है.

"अच्छा हुआ, जो तुमने और वीरा ने सब संभाल लिया, जावेद इस बात को यहीं दफ़न कर दो, किसी को कभी भी कुछ पता नहीं चलना कहिए, पुलिस को में संभाल लूँगा"मुख्तार की चेहरे पे घबराहट दिखाई दे रही थी.

कुछ पल के लिए हॉल में शांति फैल गयी, फिर उसे शांति को जावेद ने खत्म किया

"एक चीज़ है जो मुझे बार बार मजबूर कर रहा है, इन सब बातों को मानने के लिए"
जावेद ने थोड़े कंपन के साथ कहा.

"क्या"

"यही जो मैंने दृश्य आज देखा, क्या वह सपना था, या फिर हकीकत"
उसने फिर सहमी आवाज़ में कहा

“ऐसा क्या देख लिया तुमने"

"वह निशान मुख्तार साहब, वह खून से बनते निशान, और उसे निशान में कुछ ऐसे शब्द, जो शायद किसी तूफान की तरफ दर्शा रहे हैं"
इस बार जावेद ने आने वाले खतरे को भाँपते हुए कहा.

"कैसे शब्द"

"वह तो एक अंत था, इस नयी दर्दनाक शुरूवात का"

जावेद ने इतना कहा, और दोनों एक दूसरे को घूरने लगे.
"कैसे मिली तुम्हें वह लाशें"?

"आप वीरा को तो जानते ही हैं"

“हाँ, जो इन सब का लीडर है, हाँ वैसे वह नहीं आया आज"

"उसे मैंने ही मना किया था, असल में आज हम बचे हैं तो उसकी वजह से ही, वीरा ही था जिसने उन लाशों को खोजा ……………"

जावेद ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी......

जावेद कमरे में बैठा, कुछ देख रहा था, बड़े बड़े चार्ट्स उसके सामने रखे थे, उसेमें डिज़ाइन बनने हुए थे, की तभी उसके घर के दरवाजे पे दस्तक हुई,
"कौन है"?
जावेद चीलाया.

"साहब में हूँ, वीरा, जल्दी खोलिए बहुत जरूरी काम है आपसे"
बाहर से आवाज़ आई.

"ये यहाँ अचानक से कैसे आ गया"?

जावेद ने अपने आप से कहा और उन बड़े बड़े चार्ट्स को फोल्ड कर के रखने लगा.

“साहब खोलिए"
बाहर से फिर आवाज़ आई.

"हाँ हाँ आया"
जावेद ने उन चार्ट्स को एक अलमारी में डाल के लॉक किया और बाहर पहुंच के दरवाजा खोला.

सामने वीरा खड़ा था, उसके चेहरे पे एक अजीब सी शिकन दिखाई दे रही थी,

"अरे वीरा तू, कैसे आना हुआ, और क्या बात है जो तू इतनी जल्दी क्यों मचा रहा है"?

जावेद ने उसे अंदर बुलाया और दरवाजा बूंद कर दिया.

"क्या करूँ साहब, आप अगर मेरे आने का मतलब जानेंगे तब आपको पता चलेगा"

वीरा ने थोड़ी दबी आवाज़ में कहा.

"क्या हुआ, तेरी शकल देख के ऐसा लग रहा है कोई परेशानी की बात है, क्या हुआ है"?

जावेद ने भी थोड़ा परेशान होते हुए कहा.

"साहब आपको पता है, कल कल्लू गायब हो गया"?

"क्या"?

जावेद ने चौंकते हुए कहा.

"हाँ साहब, उसके साथ दो मजदूर और भी गायब हुए हैं, यही सब देख के सारे मजदूर आज बड़े मालिक के पास जाने का सोच रहे हैं, उन्होंने काम करने से मना कर दिया है, मैंने बहुत समझाया लेकिन वह सब नहीं मानने.”

“कैसे गायब हुए सब, कल तक तो सब कुछ ठीक था, कल क्यों किसी ने नहीं बताया की कालू गायब हुआ है”

"कल तक किसी को नहीं पता था साहब, वह तो आज रघु ने आकर बताया, उसके चेहरे का भी बहुत बुरा हाल है, उसके बाद जब सभी मजदूरों को इकट्ठा किया तो पाया की 2 और मजदूर गायब है”

"क्या कालू और बाकी सब अभी तक मिले नहीं"?

जावेद ने चिंता दिखाते हुए पूछा.

"मिल गये साहब पर"!

वीरा कहते हुए रुक गया,

"पर, पर क्या वीरा, कहाँ है तीनों"?

"जंगल में"

वीरा ने धीमी आवाज़ में कहा और जावेद की आँखों में देखने लगा, दोनों की नज़रे मिली और जावेद को समझते देर ना लगी की कोई बहुत बड़ी गड़बड़ हुई है.

दोनों जंगल की तरफ बढ़ रहे थे, जावेद के चेहरे पे गहरी चिंता छायी हुई थी, वहां का वातावरण बिलकुल शांत था, मानो खाने को दौड़ रहा हो, हवा में जबरदस्त ठंड थी, कोहरा इतना घना था मानो आसमान से बादल उतर के नीचे आ गये हो.

"और कितनी दूर है"?

जावेद ने आगे चल रहे वीरा से पूछा.

"बस साहब, पहुंच ही गये, लेकिन एक बार मेरी बात फिर से मान लीजिए, आप उन लाशों को नहीं देख पायेंगे"

वीरा ने जावेद की तरफ देखते हुए कहा, लेकिन जावेद ने सिर्फ़ उसे आगे बढ़ने का इशारा किया.
कुछ ही मिनट और चले थे दोनों, की तभी वीरा चलते चलते रुक गया, सामने इतना घना कोहरा था की सामने सिर्फ़ वह सफेद रोशनी दिख रही थी उसके अलावा और कुछ नहीं.

“क्या हम पहुंच गये"?

जावेद ने धीमी आवाज़ में पूछा, बदले में वीरा ने सिर्फ़ हाँ में गर्दन हिलाई.

"पर यहाँ तो मुझे कुछ नहीं दिखाई दे रहा, कुछ"

जावेद वीरा की तरफ देखते हुए बस इतना ही कह पाया क्यों की जब उसकी नज़र सामने पड़ा तब …

अपने आप सामने से वह सफेद चादर हटने लगी, वह घना कोहरा छटने लगा, धीरे धीरे सामने का नज़ारा दिखने लगा, जैसे ही जावेद ने सामने का नज़ारा देखा उसके कुछ कदम पीछे की तरफ हो गये.

सामने का नज़ारा सच में बहुत ही खौफनाक नज़ारा था, ये वह पल था जो एक आम इंसान शायद ही भुला पाए, सामने पेड़ पे लटकती वह तीन लाशें, शरीर से वह टपकता खून, पर दिल दहला देने वाली चीज़ थी उनके शरीर की वह हालत जो उसे वक्त उन दोनों के सामने थी.

एक के उपर एक लाश दो पेड़ से जुड़ के लटकी हुई थी, मानो दो पेड़ को जोड़ने के लिए एक रास्ता बनाया गया हो तीनो लाश एक के उपर एक थी, तीनो लाशों के बीच एक समान गैप था पर दिल दहला देने वाली बात उनके शरीर पे वह घाव थे जिसे देख के कोई भी इंसान सहम जाए.

तीनो के शरीर पे करीब, गोल गोल 2 इंच के होल थे, हर एक के शरीर पे, पर सिर्फ़ एक, दो या तीन नहीं, बल्कि ऐसे एक के बाद होल बनने हुए थी, चेहरे का तो बहुत बुरा हाल था, आंखे तो थी ही नहीं बल्कि उसकी जगह होल था, उपर वाली लाश के होल से टपकता खून, नीचे वाले के होल में से गिरता हुआ, उसके नीचे वाले के होल में से होता हुआ ज़मीन पे गिर रहा था, और यही चीज़ हर एक होल में हो रही थी, खून बूंद बूंद टपक रहा था, ये एक ऐसा दृश्य था जो शायद एक आम इंसान की जिंदगी में शायद हे कभी आए.

"ये, ये, कैसे सब"?

जावेद की जबान बोलते हुए लड़खड़ा रही थी.

"ये तो में भी नहीं जानता साहब, पर ये मौत देख रहे हैं आप, कैसे बुरी तरह तीनों के लाश में ये छेद किए हैं, ऐसा लगता है बिलकुल नाप तोल के किए गये हो, बहुत ही दर्दनाक मौत मिली है तीनों को"

“किसी जानवर का काम"
जावेद ने अपनी शंका जाहिर की.

"मुश्किल लगता है साहब, कोई जानवर ऐसे इतनी बुरी तरह से कैसे मार सकता है, इनके शरीर में कुछ बचा ही नहीं है, हर जगह छेद ही छेद दिखाई दे रहे हैं, और"

बोलते बोलते वीरा रुक गया, जावेद ने वीरा की तरफ देखा जो एक टक नीचे ज़मीन पे देख रहा था.

“क्या हुआ"?

जावेद ने वीरा से पूछा, बदले में वीरा ने सामने की तरफ उंगली कर दी, जावेद ने सामने की तरफ देखा तो एक पल के लिए उसकी धड़कने तेज हो गयी, उसकी रूह कांप उठी, शरीर से टपकता खून नीचे ज़मीन पे गिर रहा था, पर वह एक जगह इकट्ठा नहीं हो रहा था, बल्कि खून से कुछ बनता दिखाई दे रहा था.

धीरे धीरे टपक टपक कर खून ने ज़मीन पे अपनी कलाकारी बनानी शुरू करी
 
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पिशाच की वापसी – 7

"वह तो अंत था इस दर्दनाक शुरूवात का"

टपकते खून से ज़मीन पे ये शब्द छाप गये, जावेद ने इन शब्दों को जब पढा और बनते देखा तो उसकी रूह कांप गयी, यही हाल वीरा का भी था, दोनों इस पल को देख के बुरी तरह घबरा गये.

“अभी तक वह पल में नहीं भूल पाया हूँ, वह खून से बनते शब्द मुख्तार साहब अभी तक वह दृश्य मेरी आँखों के सामने घूम रहे हैं"

जावेद ने मुख्तार की आँखों में देखते हुए कहा.

“लेकिन फिर भी ये कहना है की वहां कोई शैतान, या कोई आत्मा है, मुझे ठीक नहीं लगता”

"क्या आपको नहीं लगता, की पिछले दो दीनों में कुछ बदला बदला सा है"

जावेद ने मुख्तार की बात पे ध्यान ना देते हुए उसके बिलकुल करीब आकर कहना शुरू किया,

"क्या आपको नहीं लगता पिछले 2 दीनों में यहाँ ठंड कुछ ज्यादा बढ़ गयी है, क्या आपको नहीं लगता यहाँ की हवा हमें कुछ बताना चाहती है, क्या आपको ऐसा महसूस नहीं होता की मानो हर समय कोई आपके साथ है, कोई है जिसे आप देख नहीं सकते पर ऐसा लगता है वह आपके साथ हो, और आपकी जिंदगी से खेलना चाहता हो"

जावेद ने ये बात इस लिहाज़ से करी की मुख्तार की साँसें थाम सी गयी.

"ये, ये तुम्हें क्या हो गया है जावेद, कैसी बातें कर रहे हो"

मुख्तार थोड़ा पीछे होते हुए बोला.

"ये सब में नहीं मुख्तार साहब, उन मजदूरों का कहना है, उनकी ये बातें ना जाने क्यों मेरे दिमाग में घूम रही है"

जावेद ने इस बार नॉर्मल आवाज़ में कहा.

"तुमने तो डरा दिया था एक मिनट के लिए मुझे"

"मुख्तार साहब, बात इतनी छोटी नहीं है जितनी दिख रही है, वीरा को पैसे का लालच था इसलिए उसने किसी को नहीं बताया, और बिना किसी को पता चले हमने वह लाशें ज़मीन में गडवा दी, पर अगर ये हादसे होते रहे तो शायद अगली बार बचना मुश्किल होगा, हमें ये मौत के सिलसिले को रोकना पड़ेगा"

"में जानता हूँ जावेद, पर तुम तो जानते ही हो, की ये काम कितना जरूरी है, मेयर साहब जबान दे चुके हैं, उसके साथ साथ करोडो रुपये भी ले चुके हैं, अगर ये काम नहीं हुआ तो मेयर साहब हमारा पता नहीं क्या करेंगे, मिस्टर विल्सन का पैसा उन्होंने ले लिया है, अब उनको सिर्फ़ काम से मतलब है, इसके अलावा और कुछ नहीं, वैसे भी यहाँ पे उसे हादसे के बाद, कुछ नहीं बचा, मिस्टर विल्सन की बदौलत अब यहाँ कुछ बनेगा तो लोगों की दिलचस्पी एक बार फिर इस जगह में आ जाएगी, नहीं तो यहाँ कुछ नहीं बचा था सारा पैसा खत्म हो गया था, तुमसे बेहतर कोन जान सकता है ये बात"

मुख्तार ने एक गिलास शराब का भर के उसे खत्म करते करते अपनी बात कही.

"में अच्छी तरह से जानता हूँ, की ये काम कितना जरूरी है"

"इसलिए कह रहा हूँ, किसी भी तरह इस काम को कारवांओ, पुलिस की चिंता मत करो उसेे में संभाल लूँगा तुम बस इन मजदूरों को संभालो, अगर ये बात की अफवा बन गयी तो कोई नहीं आएगा यहाँ"

"हम्म, आप बेफ़िक्र रहिए मुख्तार साहब, अब में इस बात को जान कर रहूँगा की आख़िर क्या हो रहा है ये सब, में आज रात जाऊंगा वहां, आख़िर देखूं तो सही की इस राज़ के पीछे असलियत क्या छुपी है"

जावेद ने माथे पे शिकन लाते हुए कहा.

बारिश बंद हो चुकी थी, पर ठंड बहुत जबरदस्त थी, जावेद रोड पे धीरे धीरे देर रात अकेले उसे रास्ते पे चल रहा था, दिल में एक खौफ और दिमाग में घूम रहा डरावाना मंजर किसी भी इंसान को डराने पे मजबूर कर ही देता है, पर कहते हैं की विश्वास उसे डर को खत्म करता है, लेकिन इस वक्त जावेद के चेहरे पे वह डर की बनावट और चिंता भरी शिकन माथे पे दिखाई दे रही थी, वह धीरे धीरे चलता हुआ उसे सुनसान सड़क पे आख़िर कार वहां पहुंच गया.

सामने वही मंजर जहाँ दिन में जोरों शोरों से काम होता है, पर इस वक्त सिर्फ़ सन्नाटा था, अंधेरा और वह खामोशी थी, जिसे सुना जा सकता था, दिल की धड़कने इस वक्त सहमी हुई थी शायद आने वाले पल के डर से, या फिर इस खौफनाक खामोशी से……….

जावेद ने अपने कदम धीरे धीरे उठाए और जंगल की तरफ बड़ा दिए……. जावेद, मुख्तार के घर से निकल के उसे तरफ चल पड़ा, जहाँ शायद उसेे नहीं जाना चाहिए, उसे जगह पे जहाँ इस वक्त कोई है, जो कुछ चाहता है, शायद जिंदगी……
चलते चलते थोड़ी देर में जावेद उसे जगह पे पहुंच गया…….

जावेद ने अपने कदम धीरे धीरे उठाए और जंगल की तरफ बड़ा दिए, जेब से छोटी सी टॉर्च निकल के ऑन की, तो कुछ उजाला हो गया आँखों के सामने, उसने टॉर्च को सामने की जिसकी रोशनी से बस थोड़ी बहुत आधी अधूरी चीज़ दिखाई दे रही थी और चल पड़ा आगे की तरफ धीरे धीरे.

जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे जावेद के दिल की धड़कन बढ़ रही थी, माथे पे एक शिकन थी, आँखें आधी खुली हुई थी, वह चल ही रहा था की तभी उसका पैर किसी चीज़ पे पड़ा और पैर पडते हे वह वहां रुक गया, क्यों की उसे समझ आ गया था की उसके पैर के नीचे मिट्टी नहीं कुछ और है, कुछ सेकेंड वह वैसे ही खड़ा रहा उसके बाद उसने वह कदम पीछे खीचा, और धीरे धीरे टॉर्च को नीचे की तरफ करने लगा जैसे ही टॉर्च की रोशनी नीचे पडी, उसकी साँसें थम गयी, नीचे एक आदमी लेटा हुआ था जिसने ब्लैक कलर के कपड़े पहने हुए थे, वह पेट के बल पड़ा था इसलिए उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, जावेद एक पल के लिए सोच में पढ़ गया वह घुटनों के बल बैठा और अपने हाथ धीरे धीरे ले जाकर उसके कंधे पे रख के उसको हिलाया, लेकिन वह नहीं हिला

"इतनी रात को एक आदमी यहाँ पड़ा है, कोन हो सकता है ये कहीं मर तो नहीं गया, आप ठीक तो हैं"

बोलते हुई जावेद ने फिर से उसके कंधे को हिलाया, इस बार हिलने पर वह शरीर हिला, तो जावेद के जान में जान आई.

“आप ठीक तो है, आप इतनी रात में यहाँ क्या कर रहे हैं"

बोलते हुये जावेद ने उसके कंधे को उपर की तरफ खींचा, जैसे ही उसे कंधे को उपर की तरफ खींचा, वह कंधा उस शरीर में से अलग होता हुआ जावेद के हाथ में आ गया, मानो किसी गुड़िया के शरीर से उसका हाथ निकाल लिया हो, जावेद उपर से लेकर नीचे तक कांप उठा, उसके मुंह से हल्की से चीख निकल गयी और वह पीछे की तरफ हुआ, उसके पीछे की तरफ होते ही उस शरीर ने अपना चेहरा उपर उठाया और जावेद की तरफ देखने लगा, उसका चेहरा देख के जावेद की रूह कांप उठी, चेहरा इतना भयनक था की इस काली रात में देखने वाला कोई भी इंसान कांप उठे
 
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पिशाच की वापसी – 8

चेहरे पे अजीब से खुदे हुये बड़े बड़े निशान, मानो किसी ने चेहरे को नोंच लिया हो, खून की बहती परत और अंदर की हड्डियाँ तक दिखाई दे रही थी, आधे होंठ गायब थे और आधी नाक कटती हुई थी, आँखें एक दम हरी हो चुकी थी, पर सबसे ज्यादा हैरान और रूह को हिला देनी वाली बात ये थी की वह शरीर किसी और का नहीं बल्कि खुद जावेद का था, जावेद तो थोड़ा पीछे होकर एक पल के लिए अकड़ ही गया था उसे शरीर को देख के, लेकिन उसे होश तो तब आया जब वह लाश गुराते हुई उसकी तरफ बड़ी..

"उहह एयाया…..ईएहह…

करते हुए वह लाश आगे बड़ी, जिसे देख के जावेद तेजी से पीछे मिट्टी में घिसटने लगा, वह शरीर अपने एक हाथ की मदद से आगे भी बढ़ने लगा, जावेद पीछे होने लगा, पर अचानक ही जावेद एक जगह जाकर रुक गया वह पीछे नहीं हो पाया, पीछे ट्रक खड़ा था और जावेद ठीक उस ट्रक के टायर के आगे आ चुका था, वह शरीर गुराते हुई आगे तरफ रहा था और बिलकुल करीब पहुंच चुका था, वह गुराया, इधर जावेद चीलाया, उस शरीर ने अपना वह एक हाथ उपर उठाया और जावेद की तरफ बड़ा, जावेद एक बार ज़ोर से चीलाया.

"नहियीईईईईईईईईईईईईई.....!

और फिर उस खामोश जगह पे एक बार फिर खामोशी छा गयी.

अपने हाथ से अपना चेहरा छुपाया, जावेद वहीं खड़ा था उसकी टॉर्च नीचे गिरी हुई थी, उसकी साँसें तेज चल रही थी, वह वहीं खड़ा था कुछ मिनट बाद उसने अपने चेहरे से हाथ हटाया, उसके चेहरे पे पसीने की बोंदें इतनी ठंड में उभर आई थी, डर चीज़ ही ऐसा है जिसे महसूस करके शरीर और आत्मा साथ छोड देती है, जावेद ने इधर उधर देखा और फिर नीचे गिरी टॉर्च को उठाया.

"वह सब क्या था, कोई सपना ही होगा, हकीकत तो नहीं हो सकती, पर जो भी था इतना भयानक आज तक मैंने कभी महसूस नहीं किया था"

जावेद ने अपने आप से कहा और जंगल की तरफ भी बढ़ने लगा, वह आगे निकल गया पर शायद जो उसने महसूस किया वह सच था, ट्रक से थोड़ी दूर वही हाथ पड़ा था जिसे जावेद ने फेंका था.

जावेद जंगल के अंदर घुस चुका था, अंदर घुसते ही जावेद ने महसूस किया की ठंड बहुत ही ज्यादा है यहाँ, उसको अचानक ही सांस लेने में दिक्कत होने लगी, वह गहरी गहरी सांस खींचने लगा, लेकिन उसको सांस नहीं आ रहा थी, तभी उसने अपनी नाक पे कुछ महसूस किया, उसने अपनी उंगली से अपनी नाक को छुआ तो उसने पाया की उसकी नाक के अंदरूनी सिरे में बर्फ जम गयी है, उसने फौरन उसे बर्फ को अपनी नाक से हटाया तब जाकर उसे सांस आई.

वह आगे कुछ करता की तभी उसके कानों में कुछ आवाज़ पड़ा, किसी के खांसने की आवाज़, जावेद पीछे घुमा और उसने उसे तरफ टॉर्च मर्री, लेकिन उसे टॉर्च में उसे कोई नहीं दिखा,

"कौन है"

बड़ी मुश्किल से उसने आवाज़ निकली.

"उन्हुंण… उन्हुंण…."

एक बार फिर किसी के खांसने की आवाज़ आई, वह धीरे धीरे उसे आवाज़ को ढूंढ़ने आगे की तरफ चल पड़ा, जैसे जैसे वह आगे बढ़ता वैसे वैसे उसे वह आवाज़ तेज होती जाती थी, वह कुछ मिनट तक उसे खामोश जंगल में आगे बढ़ता रहा की तभी उसे कोई दिखा, जो ठीक उसके सामने पेड़ के सहारे खड़ा था, अपना सर झुकाए, जावेद ने अपनी टॉर्च की रोशनी उस की तरफ करी हुई थी, उसकी जान, उसका शरीर इस वक्त ठंड से ज्यादा डर से कांप रहा था.

“कोन हो तुम"

जावेद ने उस इंसान से थोड़ा दूर खड़े रह कर सवाल किया.

"रास्ता भटक गया हूँ, ठंड लगी है, और भूख भी बहुत लगी है"
उसे तरफ से आवाज़ आई.

"पर तुमने अपना सर क्यों झुका रहा है, मेरी तरफ देखो"

जावेद ने वहीं खड़े रहना उचित समझा

"नहीं उठा सकता"

"अच्छा, तो फिर आओ मेरे पास में तुम्हारी मदद करूँगा, आओ"

जावेद ने उसे अपने पास बुलाने के लिए कहा.

"नहीं आ सकता, आप आ जाओ मेरे पास, में बहुत तकलीफ में हूँ, मेरी मदद कीजिए, प्लीज़ मेरी मदद कीजिए"

सामने से फिर धीरे धीरे रोने की आवाज़ आने लगी, जावेद ने एक बार तो एक कदम आगे बढाया और फिर वह अचानक से रुक गया और वह कुछ सोचने लगा, उसके माथे पे शिकन और गहरी होती चली गयी, उसकी आँखें उसके कुछ सोचने पर बड़ी होती चली गयी, उसने पाया की अभी थोड़ी देर पहले जो भी उसे आदमी के साथ बात हुई उसेमें एक फर्क था वह ये की जो में बोल रहा हूँ वह आवाज़ यहाँ गूँज रही है, पर जब वह बोल रहा है तो वह आवाज़ नहीं गूँज रही ऐसे कैसे, इतना सोच ही रहा था की अगले पल उसके दिमाग ने ज़ोर डाला और तब उसने रूह को हिला देना वाला सच पाया.

"ये तो मेरी ही आवाज़ है, जो वह इंसान बोल रहा है"

जावेद ने इतना कहा और कुछ कदम पीछे की तरफ हो गया.

"आप मेरी मदद नहीं करेंगे"?

सामने से बोलते हुये अचानक उस शरीर ने अपनी गर्दन उपर उठा ली, जिसे देख के जावेद की साँसें उखड़ने लगी, सामने उस चेहरे की हालत ही खौफनाक थी, चेहरा आधा जला हुआ था और उस जले हुये चेहरे की चमडी नीचे छोटे छोटे टुकड़ों में गिर रही थी मानो गल गयी और चेहरे से फिसल रही हो, दूसरी तरफ बड़े बड़े गढ्ढे हो रहे थे और उसेमें से खून रिस रहा था, आँखों के नाम पे सफेद रंग के पत्थर दिखाई दे रहे थे.

जावेद बुरी तरह से कांप उठा उसे देख के वह इस बार भी कोई और नहीं उसी का चेहरा था जो इस वक्त इतना भयानक दिखाई दे रहा था, वह शरीर जावेद की तरफ बढ़ने लगा, जैसे ही उसने बड़ना शुरू किया.

“मदद करो मेरी, मदद करो"

इतना बोलते हुई आगे बड़ा की उसका लेफ्ट पैर घुटनों के नीचे से टूट के अलग हो गया, वह शरीर टेडा हो गया, पर फिर भी जावेद की तरफ आने लगा, थोड़ा आगे चला की उसका दूसरा पैर भी घुटने के नीचे से टूट के अलग हो गया और वह शरीर नीचे गिर गया, लेकिन फिर भी वह नहीं रुका वह शरीर घिसट घिसट के जावेद की तरफ आने लगा, जावेद कुछ पल उसे शरीर को ऐसे ही देखता रहा लेकिन फिर एक ज़ोर दार चीख उसके मुंह से निकल गयी.

"नहियीईईईई….."

बोलते हुई वह वहां से भागने लगा, उसके कानों में बार बार यही आवाज़ आ रही थी

"मदद करो, मदद करो"

लेकीन जावेद नहीं सुन रहा था वह बस भागे जा रहा था, भागते भागते वह थक गया लेकिन जंगल खत्म नहीं हुआ, थक हार के वह एक पैर के सहारे खड़ा हो गया और हांफने लगा.

"ये जंगल खत्म क्यों नहीं हो रहा, यहाँ जरूर कुछ गड़बड़ है, मुझे मुख्तार साहब से मिलना ही होगा, उन्हें सब कुछ बताना होगा, यहाँ पे कुछ है जो ठीक नहीं हो रहा है"

जावेद हांफते हुए अपने आप से बोल ही रहा था की तभी उसे कुछ आवाज़ आई, अजीब सी चटकने की आवाज़, तभी उसे उसके हाथों पे कुछ महसूस हुआ, उसने महसूस किया जो हाथ उसका पेड़ पे था उसे हाथ पे कोई वजन है उसने उसे हाथ की तरफ देखा, तो उसे एक और झटका लगा जो की यहाँ आने के बाद ना जाने कितनी बार लग चुका था..

पूरा पेड़ बर्फ की चादर के नीचे थे, पर उसके लिए चिंता की ये बात थी की उसके हाथ पे बर्फ जमने लगी थी, जावेद ने फौरन उसे पीछे खींचने की सोची, पर वह चिपक गया था इसलिए खिच नहीं पाया.

“आ….आहह"

वह ताक़त लगा रहा था पर नहीं खिच पा रहा था, तभी उसके कानों में फिर वही आवाज़ पड़ी,

"मदत करो"

जो जंगल के अंधेरे में सी आ रही थी, जावेद की जान सूखने लगी, उसने पूरा दम लगाया और हाथ पीछे की तरफ खींचा, जैसे उसका हाथ पेड़ से अलग हो गया और पीछे की तरफ जा गिरा, पर ज़ोर ज़ोर सी चिल्लाते हुई छटपटाने लगा,

"आहह …. एयाया…आस….."

दर्द में करहता हुआ जावेद किसी तरह खड़ा हुआ, उसके हाथ से खून बह रहा था, उसके हाथों में बेहद जलन हो रही थी, उसकी हतेली का मास उसके हाथ में नहीं था, खींचने के चक्कर में उसकी खाल पेड़ पे ही चिपकी रही गयी..

कुछ मिनट तक वह ऐसे ही छटपटाता रहा, पर जैसे ही उसे वह आवाज़ और करीब से आने लगी तो वह फिर से भागने लगा बाहर की तरफ, और इस बार वह जंगल से बाहर निकल गया.
 
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पिशाच की वापसी – 9

"मुझे जल्दी से यहाँ से निकल के जाना होगा, हाँ आह.."

दर्द में करहते हुए जावेद अपने हाथ को दूसरे हाथ से पकड़ा हुआ था, शायद इसे दर्द में कुछ कमी महसूस हो रही थी.

तभी जावेद ने सामने ट्रक खड़ा हुआ देखा वह उसे ट्रक की बढ़ भगा… जल्दी से उसेमें बैठा, पर उसेमें चाबी नहीं थी, उसने अपना एक हाथ स्टेरिंग वील पे मारा, और एक बार फिर उसे हैरानी का सामना करना पड़ा जिसे उसके दिल की धड़कने बढ़ गयी, वील पे हाथ मारते ही ट्रक शोर करते हुई अपने आप स्टार्ट हो गया, कुछ सेकेंड जावेद ऐसे ही सोचता रहा लेकिन फिर गियर डाल के ट्रक को वहां से निकाल ले गया.

"मुझे जल्दी पहुचना होगा, हाँ…"

बोलते हुई जावेद तेजी से ट्रक चला रहा था, रास्ता तेजी से पार हो रहा था, कुछ देर की ड्राइविंग में जावेद ने ट्रक पे ब्रेक लगाया, उसके खिड़की से देखा तो सामने मुख्तार का घर था उसने ट्रक को ऐसे ही खुला छोड, दरवाजा से बाहर निकल गया और जैसे ही उसके कदम ज़मीन पे पड़े और कुछ कदम आगे गये, उसे एक बड़ा हिला देने वाला झटका लगा जिसे उसके मुंह से एक ज़ोर दार चीख निकल गयी

“नहियीईईईईईईईईईईई…….."

जावेद सामने की तरफ देख के चिल्ला पड़ा, क्यों की सामने वही जगह, वही खामोशी और वही अंधेरा जंगल.

"खीखीखीखीखीखीखीखी……….."

तभी जावेद के कानो में एक अजीब सी भारी आवाज़ में किसी की हँसी सुनाई दी, जिसे सुन के उसकी रूह में एक बार फिर कपकपि की लहर दौड़ गयी.

"कौन है, कौन है"?

जावेद इधर उधर अपनी गर्दन को घुमा के चिल्लाता है, लेकिन उसका जवाब देने वाला उसे कोई नहीं दिखा, रात के उसे अंधेरे में जब सर्द हवा के साथ, जिंदगी मौत से टकरा रही हो तब जो चेहरा किसी इंसान का होता है इस वक्त उसे इंसान यानि की जावेद का था, साँसें उखड़ी जा रही थी, हाथ और चेहरा इतना ठंडा हो गया था की वह नीला पढ़ चुका था, जावेद हैरान परेशान वहां खड़ा कुछ सोचने में लगा हुआ था, लेकिन ऐसे वक्त में दिमाग साथ छोड देता है, सुनाई देता है तो सिर्फ़ वह डर जो अपनी तरफ खीचे इंसान को और खिंचता है, शायद इस वक्त भी डर ही जीत गया था.

"खीखीखीखीखीखीखी"
हवा की लहर के साथ एक अजीब सी भारी और बेहद धीमी आवाज़ जावेद को सुनाई दी.

"कौन है, कौन है वहां, सामने आ, आ सामने"

इस बार जावेद अपने डर को काबू करते हुए ज़ोर से चीलाया और उसके पैर खुद ब खुद जंगल की तरफ चल पड़े, उसे गीली मिट्टी पे चल रहे जूतों की आवाज़ भी इस वक्त डर की लहर शरीर में छोड रही थी

"कौन है वहां, सामने आ जा, जो भी हो"

बोलते हुए जावेद जंगल के अंदर घुस गया, पर फिर चलते चलते रुक गया, सामने कुछ नहीं था, ना कोई रोशनी, ना कोई इंसान और ना ही कोई आवाज़, जावेद सोच ही रहा था की क्या किया जाए तभी एक हाथ पीछे से आकर सीधे उसके कंधे पे पड़ा.

“आअहह…"

सहमते हुए जावेद दो कदम आगे चला गया और पीछे घूम गया, जावेद को इस वक्त अंधेरे में एक साया खड़ा हुआ दिखाई दिया, जिसे देख के जावेद का हलक सुख गया

“क..क..कौन हो तुम, देखो चले जाओ नहीं तो, नहीं तो में"

बोलते हुई जावेद ज़मीन पे कुछ ढूंढ़ने लगा, कुछ मारने के लिए हथियार, लेकिन तभी

“साहब में हूँ"

जैसे ही ये आवाज़ जावेद के कानों में पडी, उसने चैन की सांस ली और सामने देखने लगा, तभी सामने से वह साया चलता हुआ जावेद के करीब पहुंचा.

"तू यहाँ क्या कर रहा है रघु"?

जावेद ने अपना चेहरा साफ करते हुए कहा.

"साहब, जब अपने कहा था की आप यहाँ आओगे तब से आपकी चिंता हो रही थी, इसलिए में यहाँ आपको देखने आया"

रघु ने चिंता जताते हुए कहा.

"हम्म, पर तू कब आया, और तुझे कैसे पता चला की में यहाँ हूँ"?

जावेद ने थोड़ी आशंका जताते हुए कहा

“साहब में तो बहुत देर से आया हुआ हूँ, आपको ढूंढ़ते हुये जंगल के आखिरी कोने तक पहुंच भी गया था, फिर जब आप नहीं मिले तो वापिस आते हुए आपके चिल्लाने की आवाज़ सुनी, एक पल के लिए में डर गया था की कहीं आपके साथ कोई अनहोनी तो नहीं होगयी, लेकिन जब आपको देखा तब राहत मिली"

रघु ने अपनी बात से जावेद की शंका को दूर करना चाहा.

"हम्म… रघु तुमने सही कहा था, यहाँ कुछ है, जिसे में महसूस कर सकता हूँ, सुन सकता हूँ पर देख नहीं सकता, जब से यहाँ आया हूँ अजीब अजीब अनहोनी हो रही है, सच यहाँ कुछ अजीब है, कुछ ऐसा है जिसे इंसानियत का अंत नज़र आता है"

जावेद एक ही सांस में बोलता चला गया.

"मैंने तो आपको पहले ही कहा था साहब, यहाँ कोई बुरी शक्ति है, कोई बहुत बुरी जो नहीं चाहती की हम यहाँ काम करे, लेकिन अपने मेरी नहीं सुनी, यहाँ आकर ठीक नहीं किया साहब सच यहाँ से निकलना बहुत मुश्किल है"

बहुत धीमी आवाज़ में रघु ने कहा.

"लेकिन जब तुम्हें पता है, तो तुम यहाँ क्यों आए"?

"क्यों की में उस मौत से लड़ चुका हूँ साहब, मैंने सामना करा है उससे और मुझे कुछ मिला भी है, वहां पे"

रघु ने बोलते हुए जंगल के अंधेरी गहराई में अपनी उंगली से इशारा किया.

जावेद ने उसे तरफ अंधेरे जंगल में देखा और उसके दिमाग में वह सब कुछ आ गया जो उसके साथ थोड़ी देर पहले हुआ, जिसे सोचते ही उसकी रूह सहम गयी, जावेद को ऐसे सोच में पड़ता देख रघु ने सवाल किया.

"क्या हुआ साहब, क्या सोच रहे हैं”?

"बस वही सब सोच रहा हूँ, जो कुछ हुआ मेरे साथ, उसके बाद इस जंगल में जाने का सोच के ही"

जावेद ने अपनी बात यहीं खत्म कर दी.

"लेकिन साहब आप जानते हैं, की अगर यहाँ कुछ है, अगर कोई शैतानी रूह है तो उसके बिना मर्जी के आप यहाँ से नहीं जा सकते"

रघु ने डरे हुए जावेद को अपनी बात से और डरा दिया.

"मुझे मुख्तार साहब को बताना पड़ेगा की यहाँ कुछ है, यहाँ काम नहीं कर सकते, शायद सबकी जान को खतरा भी हो सकता है"

जावेद ने असमंजस में कहा,

“रघु मुझे यहाँ से फौरन निकल के मुख्तार साहब के पास जाना है, किसी भी तरह"

इस बार जावेद थोड़ी ऊंची आवाज़ में बोला

"फोन, साहब, आपके पास फोन तो होगा मिला लीजिए"

रघु ने जावेद का काम आसान कर दिया.

"हाँ राइट, फोन ये तो मेरे दिमाग में ही नहीं आया, बहुत बढ़िया रघु"

बोलते हुए जावेद अपनी जेब में फोन ढूंढ़ने लगा, उसके हाथ कांप रहे थे, डर चीज़ ही ऐसी है, हर छोटे काम को मुश्किल बना देती है, अक्खिर उसने अपनी जेब से फोन निकाला पर.....????
 

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