किसी कहानी की पुर्णता , उसके मुल भाव की पुर्णता पर निर्भर करती है ओर यदी एक लेखक के रूप मे हम किसी कहानी को लिखते है, तो उस कहानी के साथ न्याय करना व कहानी के मुल का स्ममान करना हमारा नेतिक धर्म है।
हम हमारी निजी , इच्छाओ के वशीभूत हो , कहानी के मुल के साथ छेड-छाड नही कर सकते।
आपने जिस मंच के बारे मे , हमे सुचीत किया , उसके लिए आपका धन्यवाद , किन्तु उस मान्नय मंच के लेखक ने अपनी इच्छाओ के वशीभूत हो, कहानी के मुल के साथ छेड-छाड की है।
एक लेखक होकर किसी अन्य लेखक की लेखनी पर टिप्पणी करना मुझे अच्छा नही लगता, किन्तु अपना दृष्टिकोण रखना आवसयक था।
ओर रही बात कहानी की, तो आप सभी आदरणीय पाठक आपस मे विचार-विमर्श कर फैसला करले की मे यह कहानी लिखू या नही।
अंत मे, आप सभी आदरणीय पाठक को मेरा परणाम।