Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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उन्होंने यौन इच्छा सहित सभी पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनके योग के गहन अभ्यास, शारीरिक सौष्ठव और उनके शरीर में ऊर्जा को केंद्रित व नियंत्रित करने की शक्ति के कारण वह कई भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का निवारण करने में महारथ रखते थे। वे हिमालय में, विशाल नदियों के किनारे तलहटी में रहते थे। उन मे से कुछ आगे पहाड़ों और जंगलों में चले गए और उन्हों ने ऐसी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ हासिल कीं जहाँ से वे कभी वापस नहीं लौटे।

और जो गुरु शाही परिवारों से जुड़े थे, उन्हें कई पीढ़ियों में एक बार इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए याद किया जाता था; जब राजा प्रजोत्पति के लिए सक्षम ना हो तब इन गुरुओं की मदद ली जाती थी। किसी भी तरह शाही राजवंश का अंत होने से बचाने के लिए यह अंतिम उपाय का प्रयोग किया जाता था।

यह सब ज्ञान महाराजा को उनके किशोरावस्था के दिनों में प्रशिक्षण के दौरान दिया जाता था लेकिन राजा कमलसिंह ने यह कभी नहीं सोचा था कि उसके साथ ही ऐसा करने की नोबत आएगी।

काफी हिचकिचाहट और अनिच्छा के बावजूद अंत में कमलसिंह को राजमाता कौशल्यादेवी के इस प्रस्ताव पर सहमत होना ही पड़ा। तैयारियां होने लगी। लेकिन यह सब बेहद गुप्त तरीके से करना जरूरी था। राजमाता ने अपनी खास तीन दासियों का एक दल बनाया और उनके साथ शाही रक्षकों में से तीन बहादुर, शक्तिशाली और विश्वसनीय जवानों को अपनी 'तीर्थयात्रा' के लिए तैयार होने को कहा।

इस अनुचर में केवल राजमाता और महारानी को ही इस यात्रा का वास्तविक उद्देश्य पता था। यात्रा में दो रात्री पड़ाव में अलग अलग जगहों पर रुकना था और गंतव्य स्थान पर पहुँच जाने पर वहां ४ से ६ सप्ताह बिताने थे और गर्भावस्था की पुष्टि होने के पश्चात ही वापस लौटना था।

शाही रक्षकों के दल का प्रमुख पथ की जाँच करते हुए, अनुचर के आगे-आगे चले। कभी-कभी वह आगे के मार्ग का निरीक्षण करने के लिए अपने सैनिकों को आगे भेजता था। अन्य समय में वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीछे से कोई खतरा ना आए, वह दल के पीछे की ओर चलता था।

इस दल में शामिल एक २० साल का युवक, जो सेना के अश्वदल के प्रमुख का बेटा था और उसका परिवार कई पीढ़ियों से बिल्कुल इसी तरह राज परिवार की बड़ी ही वफादारी से सेवा कर रहा था। १८ साल की उम्र में ही वह शाही रक्षक दल में जुड़ा, सेवा की, विभिन्न अभियानों में भाग लिया और परिपक्व हुआ।

उसका नाम शक्ति सिंह था। वह एक अनुभवी सैनिक था, अपनी युवावस्था के बावजूद काफी ताकतवर और बहादुर था। वह अपने महाराजा से केवल तीन वर्ष ही छोटा था। उसका लंबा, चौड़े कंधे वाला और तंदूरस्त मांसपेशियो से पुष्ट शरीर शाही पोशाक और कवच में बड़ा ही शानदार लग रहा था। अपनी मुछ पर ताव देते वह बड़े ही नियंत्रण के साथ अपने अश्व पर सवार था।

दल की सारी महिलायें शक्ति सिंह की मौजूदगी से बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी। राजमाता को उस लड़के से विशेष स्नेह था क्योंकी वह उसे बचपन से देखती आई थी और वह उनके बेटे के साथ खेला भी करता था।

राजमाता ने बग्गी की खिड़की से शक्ति सिंह को देखा, उसे इतनी शालीनता और आत्मविश्वास से खुद को संभालते हुए देखकर उन्हे गर्व महसूस हुआ। उन्हों ने मन में एक आह भरी। शक्ति सिंह को यह नहीं पता था कि राजमाता के मन में क्या चल रहा था। असल में किसी को नहीं पता था कि उनकी वास्तविक योजना क्या थी.. उन्हे बस यही उम्मीद थी कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाएं।

राजमाता ने पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर विचार किया. वह जानती थी कि उसका बेटा नामर्द था। उसने कमलसिंह दो कनिष्ठ दासियों को भी चोदने की इजाजत सिर्फ इसलिए दी थी ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसकी बात सुनने के अलावा राजा के पास ओर कोई विकल्प ना हो।

उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनके बेटे को कम उम्र में ही राजगद्दी पर बिराजमान कर दिया गया था। उस खेमे में साज़िश और षड्यन्त्र इस कदर चल रहे थे की राजनीति में बिननुभवी और भोगविलास में डूबे रहते नए महाराजा की स्थिति काफी कमज़ोर थी।

कमलसिंह की राजगद्दी को बरकरार रखने के लिए और पड़ोसी राज्यों से मजबूत सहयोग बनाए रखने के हेतु वहाँ की राजकुंवरिओ से उनका विवाह भी करवाया गया था।

कमलसिंह की स्थिति कोई और मजबूती से स्थापित करने के लिए, उसका वारिस होना राजमाता को अंत्यन्त आवश्यक महसूस हुआ। अभी के योजना के अनुसार वह गर्भाधान के लिए महारानी को गुरुजी के आश्रम ले जा रही थी। उनका संयोजन उन्हे बौद्धिक और आध्यात्मिक रुझान वाली संतान दे सकता था। लेकिन राजमाता तो निर्भीक, बहादुर और मजबूत वारिस चाहती थी जो इस राज्य को आने वाले समय में संभाल सके।

राजमाता कौशल्यादेवी का यह दृढ़ता से मानना था की गुरुओं द्वारा प्रदत्त पुत्र उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगा। वह चाहती थी की महारानी की कोख ऐसा कोई मजबूत, बलिष्ठ व बहादुर मर्द भरे, जिससे आने वाली संतान में वह सारे गुण प्राकृतिक रूप से आ जाए। अश्वदल का प्रमुख, शक्ति सिंह, इन सारे मापदंडों में खरा उतरता था। वह भरोसेमंद, सक्षम और व्यावहारिक रूप से पारिवारिक भी था। सभी मायनों में राजमाता को शक्ति सिंह का चयन सबसे श्रेष्ठ प्रतीत हुआ।

राजमाता जानती थी की इस योजना का अमल इतना आसान नहीं होने वाला था. महारानी और शक्ति सिंह दोनों इस बात को लेकर सहमत होने जरूरी थे। महारानी पद्मिनी, पड़ोसी राज्य के एक शक्तिशाली राजा की बेटी थीं; यदि वह इस बात को मानने से इनकार कर दे तो उनकी सारी योजना पर पानी फिर सकता था।

रही बात शक्ति सिंह की... इस मामले में राजमाता को उसकी वफ़ादारी पर भरोसा तो था, पर संभावना यह भी थी की वह अपने महाराज की पत्नी के साथ संभोग करने से इनकार कर दे।

योजना के अमल करने पर आखिर क्या होगा इस विचार ने राजमाता के मन को द्विधा से भर दिया।

अंत में उन्हों ने आज रात ही महारानी पद्मिनी और शक्ति सिंह से इस बारे में बात करने का मन बना लिया। ऐसा करने से उन दोनों को इस विचार से अभ्यस्त होने का समय मिल जाएगा और वह अगले दो दिनों तक इस पर विचार कर सकें।

राजमाता ने तो संभोग के लिए रात्री के तीसरे प्रहार का शुभ समय चुन रखा था। उन्हों ने यह भी सोच रखा थी की वह स्वयं कार्य की निगरानी करेगी ताकि कार्य समय सीमा के भीतर हो और सुनिश्चित ढंग से हो। वह चाहती थी कि गर्भधारण के लिए संभोग चिकित्सकीय तरीके से किया जाए और इसमें किसी भी प्रकार की आत्मीयता या संबंधों की जटिलता न हो। संभोग का मतलब सिर्फ और सिर्फ जननांगों का संयोग और कुछ नहीं। उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी।

योजना के अनुसार, राजमाता ने शक्ति सिंह को इस बारे में बताया। शक्ति सिंह हैरान रह गया!! उसने सपने भी यह नहीं सोचा था की राजमाता इतने भद्दे शब्दों में उसे महरानी को चोदने के लिए कहेगी!!! राजमाता ने यह भी स्पष्ट किया की महारानी पद्मिनी को चोदते समय ना ही उसके स्तन दबाने है, ना ही चुंबन करना है!! जितनी जल्दी हो सके लिंग और योनि का घर्षण कर, अपना गाढ़ा गरम पुष्ट वीर्य महारानी की योनिमार्ग में काफी भीतर तक छोड़ना है, बस!!!
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अपनी सास के तंबू में रात्री के इस प्रहार पर शक्तिसिंह को खड़ा देख रानी चौंक गई। दोनों अभी भी एक दूसरे के इतने करीब खड़े थे जो की एक राजमाता और सैनिक के बीच जितना अंतर होना चाहिए उससे काफी कम था। राजमाता के वस्त्र उन्हे थोड़े अस्त-व्यस्त लगे। और उन्होंने अब तक वस्त्र बदले ही नहीं थे। पद्मिनी बड़े ही आश्चर्य से उन दोनों की तरफ देखती रही।

"आओ बेटी.." इससे पहले की रानी कोई प्रश्न पूछे, राजमाता ने उनका स्वागत किया "तुम बिल्कुल सही वक्त पर आई हो "

"इससे सही वक्त तो हो ही नहीं सकता था" शक्तिसिंह ने सोचा "अगर कुछ समय पहली आ गई होती तो!! " सोचके ही शक्तिसिंह के पैर कांप गए। उसने तुरंत दोनों को झुककर सलाम की और तंबू से बाहर चला गया।

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रेशम के बने पारदर्शी परदे के उस तरफ राजमाता अपनी बहु, रानी पद्मिनी, टाँगे फैलाए लेटी थी और उसके ऊपर शक्तिसिंह की परछाई, उन्हे साफ नजर आ रही थी।

जवान और कुंवारा शक्तिसिंह को राजमाता ने इस कार्य के लिए चुना था जिसमे उसे महारानी पद्मिनी को गर्भवती करना था। शक्तिसिंह युध्द पारंगत था और उसकी छाती पर कई निशान इस बात की पुष्टि करते थे... हालांकि उसकी पीठ पर अब तक किसी भी उत्तेजित स्त्री के नाखूनों से बने कोई निशान न थे। संभोग के मामले में वह नौसिखिया था।

"बस अब यह ठीक से हो जाए..!! " विधवा राजमाता ने मन में सोचा "जैसा उसे सिखाया था वैसे ही, सिर्फ लिंग और योनि का संगम कर अच्छी मात्रा में वीर्य गिर जाए और बस एक ही बार में काम हो जाए तो अच्छा है"

राजा कमलसिंह नपुंसक था... और ऐसी स्थिति में राजपरिवार के रिवाज अनुसार किसी योगी से रानी का संभोग करवाने हेतु, वह हिमालय के प्रवास पर निकले थे। मूल योजना में इतना ही फेर-बदल हुआ था की योगी के बजाए उनके अश्व-दल के जवान, शक्तिसिंह से ही संभोग करवाना तय हुआ था। उनका तर्क काफी सरल था... वह किसी योगी के बीज से बनी विचारशील और शांत वारिस नहीं चाहती थी। उन्हे तो योद्धा का वीर्य की चाह थी जो उनकी बहु को ऐसा बलिष्ठ और बहादुर संतान प्रदान कर सके जो आने वाले समय में सूरजगढ़ की रक्षा कर सके।

योगी के स्थान पर शक्तिसिंह का चुनाव राजमाता का व्यक्तिगत विचार था। अक्सर योगियों को प्राथमिकता इसलिए दी जाती थी क्योंकि वे अनासक्त होते थे और भविष्य में किसी भी प्रकार की जटिलता की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। अमूमन ऐसा होता था की जैविक पिता का संतान-प्रेम जागृत हो जाता और वह वापिस उसे मिलने की चाह लिए लौटता तब बड़ी संगीन परिस्थिति का निर्माण हो जाता। कभी कभी रानी और उस व्यक्ति के बीच भावनात्मक संबंध भी जुड़ जाते और फिर कई भिन्न जटिलताओ का सामना करना पड़ता। इन सभी कारणों से, प्राचीन काल से, राजपरिवार उन योगियों के पास जाकर समस्या का समाधान करना पसंद करते थे। राजघराने और इन आध्यात्मिक योगी एक-दूसरे को पीढ़ियों से जुड़े होने के कारण उनका चयन आदर्श माना जाता था।

राजमाता ने एक गहरी सांस ली। शक्तिसिंह उनकी आँखों के सामने ही बड़ा हुआ था। उनके बेटे का बाल-सखा था वह। शक्तिसिंह के पिता राज्य की सेना के प्रमुख थे और उनके परिवार ने सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी राज परिवार की सेवा की थी। अब सेवा करने की बारी शक्तिसिंह की थी।

शक्तिसिंह को महारानी को गर्भवती बनाने के लिए समझाने में राजमाता को ज्यादा कष्ट नहीं हुआ। कष्ट होता भी कैसे!! यह उस परिवार का फरजंद था जो राज परिवार के लिए अपनी जान तक न्योछावर करने में पीछे नहीं हटाते थे। पर जिस आसानी से शक्तिसिंह राजी हो गया, उस बात ने राजमाता के दिमाग में शंका के बीज बो दिए। क्या वास्तव में शक्तिसिंह बिना किसी पूर्वक्रिडा किए संभोग करेगा? वाकई में वह संभोग को बिना लंबा किए अपने कार्य को अंजाम देगा? काफी पहलुओ पर संदेह था। आखिरकार उन्होंने खुद इस कार्य को अपने मार्गदर्शन में करवाने का तय किया ताकि वह सुनिश्चित कर सके की हवस के मार्ग पर शक्तिसिंह या पद्मिनी का पैर कहीं फिसल न जाए।

राजमाता इस पुराने रिवाज को अपने तर्क से सोच रही थी। क्या वास्तव में आध्यात्मिक व्यक्ति से रानी का संभोग करवाना उचित था? या फिर शक्तिसिंह को यह सब बताकर कहीं उसने कोई गलती तो नहीं कर दी? डर इसलिए था क्योंकी यह सब वह महाराज की जानकारी के बिना करने वाली थी।

हालांकि ऐसे कार्य में आध्यात्मिक व्यक्तिओ की निपुणता काफी प्रसिद्ध थी। राजमाता को अपने मायके में सुन एक वाकिया याद आ गया। उनके पिताजी के महल में सालों से सेवा करती एक बूढ़ी नौकरानी एक वृतांत सुनाया था। पूर्व समय में किसी रानी का गर्भाधान करवाने हेतु हिमालय की यात्रा में वह नौकरानी भी शामिल थी। यह कार्य बेहद गुप्तता से किया जाता था और इसकी जिम्मेदारी खास लोगों को दी जाती थी। गुप्तता इस लिए जरूरी थी क्योंकी राजा का नपुंसक होने की बात अगर प्रचालन में आए तो वह किसी राजनैतिक भूकंप से कम नहीं होती। जिस राजा पर प्रजा अपनी सुरक्षा का दारोमदार रखकर आराम से जी रही हो, वही नपुंसक निकले तो सबका भरोसा राजा से उठ जाएगा।

उस समय राजमाता राजकुमारी थी और अपने पिता के महल में शास्त्र व राजनीति का अभ्यास कर रही थी। ऐसे ही एक अभ्यास के बीच उन्हे इस तरह का ज्ञान दिया गया। ऐसे कार्य में सम्मिलित होते योगी अक्सर अपनी साधन में लीन रहते है। वह विवाह करते है, पर यौन संबंध केवल संतानोत्पत्ति के लिए बनाते है , आनंद के लिए नहीं। वह लोग अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को संयम के द्वारा और पुष्ट करते है और भौतिक जीवन से उनका कोई वास्ता नहीं होता।

ऐसा भी नहीं था की वह अपनी इच्छाओ को मार देते थे... पर वह उन्हे अपने अस्तित्व पर हावी नहीं होने देते थे। अध्यात्म उन्हे यह सिख देता था की इच्छों का उत्पन्न होने साधारण था क्योंकी वह आखिर हड्डी और माँस से बने थे। पर साधना की अवस्था में वे अपनी प्रतिक्रिया और व्यवहार को वैसे ही देखते थे जैसे कोई त्राहित व्यक्ति उन्हे देखकर मूल्यांकन कर रहा हो। जितना जितना वह अपने आप को देखते गए, स्वयं को नियंत्रित करने की उनकी शक्ति विकसित होती गई। संभोग की प्रचंड शक्ति से वह भलीभाँति परिचित थे। वह इस शक्ति का सर्जनात्मक उपयोग कर इसे मानवजात के विकास या समस्या निवारण हेतु ही उपयोग करते थे।

अपने उस अनुभव के बारे में वह बूढ़ी नौकरानी ने विस्तारपूर्वक बताया

"वह चौकड़ी लगाए साधन में लीन बैठे थे। हम उनके कहे हुए समय पर गए थे इसलिए उन्हे साधन में बैठा देख हमे बेहद आश्चर्य हुआ। हमें तो अपेक्षा थी की वह इस कार्य के लिए तैयार बैठे होंगे। वह ना कोई बिस्तर था, ना ही तकिया या रजाई। जो भी करना था वह जमीन पर ही करना था।" पुरानी बातें बताते हुए ज्ञान बाँट रही थी वह बूढ़ी नौकरानी

"हमारी रानी काफी नाजुक और बेहद सुंदर थी। योगी को देख वह अभिभूत हो गई थी पर साथ ही साथ गर्भवती होने की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के चलते काफी तनाव में भी थी। उन्हे यह पता नहीं चल पा रहा था की उस कार्य की शुरुआत आखिर कैसे करे!!

"नौकरानियाँ और रानी की खास दासी उन्हे योगी के समक्ष ले गई। रानी अपने हाथ जोड़े उस साधन में लीन योगी के सामने प्रस्तुत हो गई। नौकरानियों ने बड़ी ही सफाई से रानी के घाघरे का नाड़ा खोल दिया। पूरा घाघरा रानी के कदमों के इर्दगिर्द गिरकर फैल गया। वैसे तो हम नौकरानियों ने नहलाते और मालिश करते वक्त कई बार रानी को नंगा देखा था, पर उस दिन उन्हे पराए पुरुष के सामने यूं नग्न खड़ा देख बड़ा अजीब और अटपटा सा लग रहा था। "

"रानी अभी भी अपनी चोली पहने थी इसलिए उनके स्तन ढंके हुए थे। उन्हे कुछ पता नहीं चल रहा था की आगे क्या करे!! ध्यान में बैठे योगी अपनी आँखें बंद किए हुए थे। हम नौकरानियों ने रानी को उनके समक्ष धकेल दिया। अब वह बिल्कुल उनके नजदीक खड़ी थी। योगी का मुख उनकी जांघों के सामने था। रानी डर के मारे इस हद तक कांप रही थी की यदि हम दासियों ने उन्हे दोनों तरफ से पकड़े न रखा होता तो वह योगी के ऊपर गिर ही जाती। "

"हम रानी को पलंथी मारकर बैठे योगी के ओर नजदीक ले गए। अब रानी की योनि योगी के मुख के बिल्कुल सामने थी। उनकी दाढ़ी के लंबे बाल रानी की जांघों पर फरफरा रहे थे। रानी अब थरथरा रही थी। खिड़की सी आती हिमालय की ठंडी हवा उनकी चुत के होंठों को सरसरा रही थी। उनका चेहरा शर्म से लाल लाल हो गया था। अगर हमने रानी को पकड़कर ना रखा होता तो वह वहाँ से भाग खड़ी होती। हमने उनके कंधों को हल्के से दबाकर धीरे धीरे योगी की गोद में बैठा दिया। घुटने झुकाकर शरमाते हुए रानी अपनी आँखें झुकाए और चुत फैलाए वह योगी के चेहरे के बिल्कुल सामने आ गई। योगी के तरफ से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। रानी ने चुपके से योगी की तरफ से उनकी हरकत देखने के लिए आँखें खोली। योगी अभी भी शांत बैठा था।

"हम सब दासियाँ मंत्रमुग्ध होकर इस द्रश्य को देख रही थी। इस तरह की घटना का साक्षी बनाने का हमारे लिए भी यह पहला मौका था। हम सब नजरें झुकाएँ खड़े थे पर फिर भी बार बार तिरछी आँखों से आगे की गतिविधि जानने की उत्कंठा से हम देखते रहे। कमरे में एक छोटा सा दिया जल रहा था। मंद रोशनी और अंधेरे के विरोधाभास में द्रश्य काफी अनोखा लग रहा था। रानी जांघे फैलाए ऐसे खड़ी थी की अगर योगी आँखें खोलता तो उसे रानी की चुत का अंदरूनी हिस्सा भलीभाँति नजर आता। लेकिन उसकी आँखें बंद थी। "

"सब यहीं सोच में था की आगे क्या होगा? एक योगी के सामने एक खुली तरसती चुत का भला क्या काम? रानी की दोनों तरफ खड़ी दासियाँ उन्हे सहारा देकर योगी की गोद में उनका संतुलन बनाए रखने में मदद कर रही थी। अचानक रानी के मुंह से एक बड़ी आह निकल गई। उनकी चुत के झांटों पर उभरे हुए लंड का स्पर्श हुआ। योगी की दोनों जांघों के मध्य में से एक मोटा तगड़ा लंड प्रकट हुआ जो बिल्कुल सीधा कोण बनाकर खड़ा हुआ था। लंड के छूते ही रानी उठ खड़ी हुई। दासियों ने उन्हे फिरसे पकड़कर योगी की गोद में धकेला। इस बार रानी की खुली चुत में योगी का लिंग सरपट प्रवेश कर गया!! रानी का ऐसा महसूस हुआ जैसे वह खुली तलवार पर कूद गई हो और वह उसकी चुत को चीरते हुए अंदर घुस गई हो!!"

"अब रानी के कूल्हे योगी की गोद में धंस गए थे और लँड उनकी चुत में फंस गया था। कुल मिलकर स्थिति यह थी की रानी चाहकर भी हिल नहीं सकती थी। लंड बेहद अंदर गर्भाशय के मुख तक पहुँच चुका था। चौकड़ी मारकर बैठे योगी की कमर के इर्दगिर्द अब रानी ने अपनी टाँगे फैला ली थी। "

"संतुलन बनाए रखने के हेतु से रानी ने अपने दोनों हाथों को योगी के कंधों पर रख दिया और नीचे लंड के झटकों का इंतज़ार करने लगी। उसके सुर्ख होंठ एक गहरे चुंबन की अभिलाषा लिए बैठे थे। उनके स्तन चाहते थे के उन्हे मरोड़ा और मसला जाए। उनकी चुत की दीवारें फैलकर इस गधेनुमा लंड के लिए मार्ग देकर अपना रस द्रवित कर रही थी। रानी ने महसूस किया कि वह एक अप्रत्याशित लेकिन अपरिहार्य संभोग क्रिया के प्रति बहती जा रही थी। पर ना ही लंड के झटके लगे, ना ही योगी ने कोई चुंबन किया और ना ही उनके स्तनों को छुआ। रानी के चुत का रस योनि के होंठों से द्रवित होकर योगी के पैरों को गीला कर रहा था।"

"रानीजी ने हमे बाद में बताया की यह संभोग उनके लिए अवर्णनीय और बड़ा ही अनूठा था। इतना अनोखा की वह शायद जीवन भर इसे भूल नहीं पाएगी। इतने सख्त मर्द से संवनन का अवसर मिलने पर वह खुद को धन्य महसूस कर रही थी। इतने विकराल लंड को अपने गुहयानगों में समाकर उसने दिव्यता का एहसास कर लिया था। जिस तरह से संभोग दौरान उस योगी ने उन्हे नियंत्रित किया था वैसा कोई पुरुष कर न सका था। अकेले में रानी ने कुबूल किया था की राजा के अलावा वह कई मर्दों के संग अपना बिस्तर गरम कर चुकी थी। पर इस योगी जैसा अनुभव किसी के साथ नहीं मिला था। इस अनुभव के बाद उनकी कामेच्छा में तीव्र बढ़ोतरी भी महसूस की थी और फिर से योगी के साथ ऐसा संभोग करने की बेहद अभिलाषा हो रही थी। संभोग के दौरान, उस योगी ने एक मर्तबा भी रानी को आँखें खोलकर नहीं देखा था। रानी इस अनुभव से अभिभूत हो गई थी। "

"वह बार बार इस घटना का उल्लेख और वर्णन हम दासियों के समक्ष करती रही। उसका असर हम नौकरानियों पर भी कुछ ऐसा हुआ की अब हम जब भी चुदवाती तब वह योगी के लिंग के साथ तुलना करने लगती। योगी हमारे मस्तिष्क में भी हावी हो चुका था"

"योगी बिना हिलेडुले अपने लिंग का संचालन कर रहा था। रानी की योनि के अंदर लिंग का आकार बढ़ता ही जा रहा था। एक पल के लिए रानी को ऐसा लगा की उसका जिस्म दो हिस्सों में बँट जाएगा। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह लँड रानी की चुत से अंदर ही संवाद कर रहा था। लिंग के फूलने के एहसास से रानी थरथर कर इतनी उत्तेजित हो गई की कुछ ही क्षण में अपनी चरमसीमा का आगाज होता नजर आ गया!! लेकिन यह कैसे मुमकिन था? ना ही लंड ने झटके लगाए, ना ही कोई शारीरिक हरकत हुई थी फिर कैसे वह पराकाष्ठा के नजदीक पहुँच गई!! रानी की समझ से यह बात परे थी। "

"रानी की चुत के अंदर की झुरझुरी और झनझनाहट के कारण उनकी जांघें अब कांपने लगी थी। वह चाहती थी की उन्हे मसला जाए, चूमा जाए, क्रूरता से रगड़ रगड़ कर चोदा जाए... इन सब क्रियाओ के बगैर का स्खलन उसे मंजूर नहीं था। रानी ने दोनों जांघों के बीच योगी की कमर को जकड़ लिया था। अपने दोनों हाथों को उनकी गर्दन पर लपेट दिया था। वह अब नियंत्रण अपने हाथों मे लेना चाहती थी। वह चाहती थी की अंदर लँड और चुत के बीच संवाद नहीं पर युद्ध होना चाहिए। वह बेतहाशा चुदना चाहती थी। वह योगी पर काम-चन्दा प्राप्त करना चाहती थी। "

"रानी ने अब खुद ही लंड पर उछलने का तय कर लिया। वह किलकारियाँ लगाती हुई लँड पर कूदने लगी। अपने मकसद और अगल बगल में खड़ी दासियों का जैसे रानी के लिए कोई अस्तित्व ही नहीं था। वह अपने सफर पर निकल पड़ी थी और मंजिल मिले बगैर वह लौटनी वाली नहीं थी। उसे सिर्फ एक ही चीज के एहसास था... अपनी चुत में फंसे लंड का.. और उससे मिलने वाले अनोखे आनंद का!! अपनी योनि के स्नायु को वह बार बार सिकुड़ती और मुक्त करती... लंड को दुहने की आनंददायक प्रक्रिया में व्यस्त हो गई। "

"योगी ने अपने दोनों हाथों से अपनी गोद में बैठी रानी के कूल्हों को नीचे से पकड़ा... पहली बार उनकी तरफ से कोई हरकत हुई थी। इस दौरान रानी अपनी मंजिल के बेहद करीब थी... पर तभी उसने महसूस किया की योगी के छूते ही वह किसी भी तरह की हलचल करने के लिए अक्षम हो गई। *महसूस करो, अनुभव करो और अपनी सारी ऊर्जा एक ही स्थान पर केंद्रित करो* योगी ने आदेशात्मक भारी आवाज में कहा... और आखिरकार अपनी आँखें खोल दी। उन आँखों में देखती ही रानी को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी सारी शक्ति को योगी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। उनकी अवज्ञा करने में वह बिल्कुल असमर्थ थी।"

"रानी अचानक सचेत हो गई। उसे ज्ञात हुआ की उसे सिर्फ अपने कार्य के प्रति समर्पित और अग्रेसर रहना था... वासना में बह जाना नहीं था.. यह सूचना बड़ी स्पष्ट होने के बावजूद वह अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाई और कामातुर हो गई। और अब योगी भी वह जान गया था इसका एहसास होते ही वह शर्म से पानी पानी हो गई और घबराहट भी महसूस करने लगी। उसे डर था की वह योगी कहीं इस संभोग को नियम विरुद्ध जारी रखने का इनकार ना कर दे। पर योगी ने तो सिर्फ उसे महसूस और अंभव करने का निर्देश दिया। रानी को ऐसा लगा की जैसे योगी ने उसकी हवस को भांप तो लिया था पर उसे मूक सहमति भी दे दी थी। अब योगी ने अपनी आँखें फिर से बंद कर ली।"

"योगी से मंजूरी मिलते ही वह फिर से अपने स्खलन की तलाश में छटपटाने लगी। चुत के अंदर लंड इतनी प्रखरता से फैल गया था की अंदर की सारी दीवारें उसे हर कोने से स्पर्श कर रही थी। रानी अब पूरे उफान में आकार उछलने लग गई। उसे अब किसी भी चीज की परवाह नहीं थी। उसे अब अपनी हवस बुझाने के अलावा किसी बात की चिंता न थी। पराकाष्ठा से दूरी अब वह और सह नहीं पा रही थी।"

"योगी चाहे ना हिल रहा हो, पर उसका लंड अंदर संकुचित-विस्तारित होकर झटकों का विकल्प बनकर अपना काम कर रहा था। अगर चुत की बाहर लंड इतना विस्तारित हुआ होता तो देखकर ही रानी उसे अंदर डालने के लिए मना कर देती। फिलहाल तो इस विकराल लंड को पूरा अंदर निगलकर वह अपने भगांकुर (क्लिटोरिस) को योगी के उरुमूल पर तेजी से रगड़ रही थी। तब रानी को योगी के लंड में एक विचित्र प्रकार के कंपन का एहसास हुआ। वह कंपन इतना तेज था की रानी की जांघें भी थरथराने लगी। लँड का सुपाड़ा अंदर गुब्बारे की तरह इतना फूल चुका था की उसे बिना स्खलित किए बाहर निकालना असंभव हो जाता। अब कंपन के साथ साथ योगी का लंड, रानी की चुत में सांप की तरह सरसराने लगा। रानी की आँखें बंद हो गई और योगी के कहने के मुताबिक उसने अपना सारा ध्यान और ऊर्जा, लँड और चुत के घमासान पर केंद्रित कर दी। "

"रानी का कहना था की उस वक्त ऐसा महसूस हो रहा था की वह सुपाड़ा उसके गर्भाशय के अंदर घुस गया था। ऐसा लग रहा था जैसे सेंकड़ों हाथ उसकी चुत की दीवारों पर नगाड़े बजा रहे हो!! रानी की चुत ने ऐसी मांसल सुरंग का स्वरूप ले लिया था जिसने योगी के लंड को अपनी गिरफ्त में भर लिया हो। लिंग के कंपनों का अब उसकी चुत की दीवारें भी माकूल जवाब दे रही थी। चुत और लँड दोनों लय और ताल के साथ एक दूसरे संग झूम रहे थे। रानी की चुत का हर एक कोश अति-आनंद महसूस कर रहा था। रानी को इस दिव्य डंडे पर झमने में इतना मज़ा आ रहा था की उस पल अगर उसके प्राण भी चले जाते तो उसे कोई गम ना होता। "

"अब दोनों के जननांग एक दूसरे में इस हद तक मिल गए जैसे उनका अलग अलग अस्तित्व था ही नहीं। वह अलग अलग अंग ना होकर एक दूसरे के पूरक बन गए थे। जब चुत की दीवारें जकड़ती तब लंड सिकुड़ता और जब लंड फूलता तब चुत फैल जाती। दोनों की ऊर्जा अब एक होने लगी थी। अचानक उसे अपनी चुत में एक गर्माहट का एहसास हुआ... एक विस्फोट के समान... ऐसा विस्फोट जिसने पूरी चुत में बिजली के झटके महसूस करवा दिए!! रानी का दिमाग एक पल के लिए सुन्न हो गया। वह अपना सारा नियंत्रण गंवा बैठी। उसके नाखूनों ने योगी के कंधों से रक्त निकाल दिया। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई... होंठों के दोनों किनारों से लार टपकने लगी। जांघें ऐसे झटके लेकर तड़पने लगी जैसे चुत में तेजाब डाल दिया गया हो।"

"योगी अभी भी शांत और बिना हिले आँखें बंद किए बैठा था। रानी की सिसकारियाँ अब चीखो में तब्दील हो गई। वह पूरे स्थान उनकी आवाजों से गूंजने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे रानी को पागलपन का गहरा दौरा पड़ा था। सारी शक्ति खर्च हो जाने पर वह योगी के शरीर पर ढेर हो गई।"

"धीरे धीरे अब रानी वास्तविकता में वापिस लौट रही थी। उसके पैर अभी भी योगी की कमर से लिपटे हुए थे, घुटने ऊपर की और थे। योगी का लिंग अभी रानी की चुत के अंदर ही अपनी ऊर्जा स्थानांतरण कर रहा था। रानी का शरीर किसी मरीज सा कमजोर लग रहा था। अभी भी वह थोड़ी थोड़ी देर पर कांप रही थी। उसकी चुत के अंदर वीर्य की बाढ़ सी आ गई थी और उसका गर्भाशय बड़ी ही आतुरता से उस वीर्य को ग्रहण कर रहा था। जिस मात्रा में अंदर वीर्य की वर्षा हुई थी, रानी के संग दासियों को भी यह यकीन हो गया था की रानी निश्चित रूप से गर्भवती हो जाएगी। "

"इतने अलौकिक आनंद को महसूस करने के बाद रानी को बेहद थकान महसूस हो रही थी। शरीर की सारी शक्ति जैसे भांप बनकर उड़ चुकी थी। योगी का लंड अब सिकुड़कर योनि की बाहर निकल गया था। हम दासियों ने रानी को कंधे से पकड़कर योगी की गोद से खड़ा किया और कमरे से बाहर निकल गई। योगी फिरसे अपनी साधना में लीन हो गया।" वह बूढ़ी दासी ने विवरण का समापन करते हुए कहा

उस बूढ़ी दासी से यह कहानी सुनकर राजमाता अपनी युवानी में अक्सर यह कल्पना करती थी की शायद उसे भी उस तरह का दिव्य संभोग करने का अवसर प्रदान हो। पर उनके पति ने शुरुआती दिनों में ही उनकी कुंवारी चुत को फलित कर दिया। जब वह गर्भवती हुई तब पूरे राज्य में १० दिन के उत्सव की घोषणा कर दी गई थी। और अब इतने वर्षों बाद उनके बेटे को वही समस्या का सामना करना पड़ रहा था। अपनी बहु के लिए, किसी योगी के बजाए अपने ही सैन्य के सैनिक का संभोग के लिए चयन किया था।

सैनिक के चयन ने राजमाता को जितना चकित किया था उससे किया गुना ज्यादा आश्चर्य महारानी पद्मिनी को तब हुआ जब उन्होंने शक्तिसिंह का मजबूत मोटा लंबा लिंग देखा जिसके मुकाबले राजा कमलसिंह का लंड तो केवल नून्नी समान था। वह लंड देखते ही महारानी की मुंह से सिसकारी निकल गई। सिसकी की आवाज सुनते ही राजमाता सतर्क हो गई। उन्होंने दोनों को स्पष्ट तरीके से सूचित किया था की ना कोई सिसकी होगी और ना ही किसी तरह की पूर्वक्रीडा। सिर्फ और सिर्फ लिंग-योनि का मिलन और उसके पश्चात वीर्य स्खलन होगा, बस्स!!!
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एक अजीब सी कशिश थी हिमालय के तलहटी की हवाओ में!! सुखी ठंडी हवा और उसकी सरसराहट महारानी की उत्तेजना को और उकसा रही थी।

महारानी को सूचित किया गया था की गर्भधारण के महत्वपूर्ण कार्य के लिए शक्तिसिंह को चुना गया था। आशय स्पष्ट था.. महारानी को इस लंबे, तगड़े सैनिक से चुदवाकर गर्भधारण करना है ताकि आने वाले दिनों में राज्य को युवराज रूपी भेट मिले और राजा कमलसिंह की नपुंसकता एक राज ही रहे।

एक दिन पूर्व, जब अपनी सास ने महारानी को अपने निर्णय के बारे में जानकारी दी, तब वह अचंभित जरूर हुई पर चौंकी नहीं। वह इसलिए नहीं चौंकी क्योंकी किसी गैर मर्द से चुदना तो तबसे तय था जब से उसे राजा की नपुंसकता के बारे में पता चला था। पुराने रीति-रिवाज और उसके ज्ञान के मुताबिक उसे किसी योगी या आध्यात्मिक पुरुष से बड़ी ही गुप्ततापूर्वक संभोग कर गर्भाधान करना था। अब राजमाता ने शक्तिसिंह को इस कार्य के लिए चुना था... और इसकी जानकारी इन तीनों के अलावा और किसीको भी नहीं थी।

हालांकि महारानी को इस बात में शुरुआत में अचंभा हुआ था पर वह किसी योगी के मुकाबले शक्तिसिंह से संभोग करने की संभावना ज्यादा उत्तेजक लगी। वह अब शक्तिसिंह को भूखी नज़रों से देखने लगी। उसका कसा हुआ शरीर, मजबूत कंधे, और गठीले बाँहों को देखकर महारानी का हाथ अनायास ही अपनी जांघों के बीच चला जाता था। शक्तिसिंह की धोती के उभार को देख वह सोच रही थी की क्या वह वस्त्र ही वैसा होगा या फिर जो वो सोच रही थी वह इतना लंबा तगड़ा था!!! उसे कहाँ पता था की शक्तिसिंह के तगड़े मूसल का मुआयना राजमाता पहले ही कर चुकी थी। मुआयने के साथ साथ राजमाता ने इस कार्य को किस तरह से अंजाम देना था उसकी पूरी जानकारी भी दी थी। महारानी तो यह भी नहीं जानती थी की इस अभ्यास के दौरान, शक्तिसिंह ने उत्तेजित होकर राजमाता का स्तन उनकी चोली से बाहर निकालकर रगड़ा भी था और चूसा भी। हालांकि उस वाकये के बाद शक्तिसिंह का लंड पूरा समय महारानी को चोदने के सपने देखते हुए हरदम सख्त ही रहता था। उस रात तो राजमाता ने उसका लंड हिलाकर संतुष्ट कर दिया था पर अब शक्तिसिंह की भूख खुल गई थी। अब वह एक जबरदस्त विस्फोटक चुदाई करना चाहता था।

हाँ, धोती के आगे का उभार जो था वह उसका वस्त्र नहीं पर उसका सख्त खड़ा लंड का आकार ही थी। महारानी के मन ने तो उसे लंड समझ ही लिया था। उत्तेजित तो वह बेहद थी पर राजमाता ने चुदाई के जो अंकुशात्मक नियम बताए थी वह महारानी को खटक रहे थे।

तो अब तक की कहानी का निष्कर्ष यह है की राजमाता के आदेश पर शक्तिसिंह और महारानी पद्मिनी को संभोग करना है। संभोग दौरान किसी भी प्रकार की पूर्वक्रिडा या किसी आनंददायक प्रक्रिया के लिए कोई अवकाश नहीं था। केवल संभोग कर महारानी को गर्भवती बनाने का निर्देश दिया गया था। महारानी का दिमाग यह सोचकर ही चकरा जाता था की अगर शक्तिसिंह जैसे बलिष्ठ सैनिक के साथ निरंकुश चुदाई करने का मौका मिले तो कैसा होगा!! हालांकि राजमाता के कहर के डर से लगता नहीं था की शक्तिसिंह उनके साथ यह छूट लेने की जुर्रत भी करेगा। ऊपर से संभोग दौरान, परदे के पीछे, राजमाता की उपस्थिति भी होगी। इसलिए तय योजना के अलावा कुछ भी ज्यादा होने या करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

महारानी अपने तंबू में बिस्तर पर शक्तिसिंह के इंतज़ार में बैठी हुई थी। परदे के उस तरफ राजमाता टकटकी लगाए उसे देख रही थी। थोड़े से दूर बहती नदी की कलकल आवाज महारानी के बढ़े हुए रक्तचाप से काफी मेल खाती थी। तंबू एक अंदर दो दिये की रोशनी थी। बाहर गहरे अंधकार ने समग्र जंगल को अपने आगोश में भर रखा था।

अब इस दिव्य वातावरण में, महारानी उस मर्द से चुदने वाली थी जो ना तो उसका पति था ना ही उसका प्रेमी। ना ही वह एक दूसरे के अंगों को छु पाएंगे और ना ही किसी भी प्रकार का आनंद ले पाएंगे। फिलहाल सम्पूर्ण वस्त्रों में सज्ज वह पुरुष उसके ऊपर आ गया था।

सूचना बड़ी साफ थी। शक्तिसिंह को उपनी धोती से सिर्फ लंड बाहर निकालना था और महारानी को घाघरा उठाकर अपनी चुत खोल देनी थी। अब इस वृतांत में सिर्फ दो ही पात्रों की भूमिका थी... लंड और चुत!! शक्तिसिंह को महारानी पद्मिनी के ऊपर चढ़ना जरूर था पर यह ध्यान रखते हुए की उसकी छाती महारानी के स्तनों का ना छूए!!

महारानी को जितनी हो सके उतनी टाँगे चौड़ी करनी थी ताकि शक्तिसिंह का शरीर उससे कम से कम संपर्क में आए।

इतनी सूचनाओ को बावजूद, महारानी ने कब शक्तिसिंह के लंड को अपने हाथ में ले लिए उसका उन्हे खुद पता न चला। आखिर इस अंधेरे में चुत में घुसने के लिए दिशा निर्देश की आवश्यकता भी थी। पर लंड हाथ में लेने के बाद, उसकी लंबाई और मोटाई का अंदाज लगने के बाद, महारानी के कंठ से "आहह" निकल जाना काफी स्वाभाविक था। महाराज के लंड के मुकाबले वह सभी मामलों में चार गुना था... ऐसा लंड अपनी गरम गीली चुत में लेकर वह धन्य होने वाली थी इस विचार से ही उसका मन गुनगुना उठा।

पर महारानी की "आहह" ने राजमाता को तुरंत ही सतर्क कर दिया।

"पद्मिनी... !!! " उन्होंने बड़े तीखे सुर में आवाज लगाई

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी की लंड पर पकड़ ढीली हो गई पर उन्होंने उसे छोड़ा नहीं। वह अब भी इस कड़े स्नायु के खंबे को ओर महसूस करना चाहती थी। पूरे लंड पर हल्के से हाथ फेरते हुए उसने लंड की चमड़ी, उसके नसें, उसका सुपाड़ा सब कुछ नाप लिया।

अब कराहने की बारी शक्तिसिंह की थी। बेहद खूबसूरत महारानी का काम-जवर से तपता बदन उसके नीचे सोया था। महारानी के विशाल स्तन उनकी चोली फाड़कर बाहर आने के लिए तड़प रहे थे। महारानी की चुत गीली होकर भांप छोड़ रही थी और उसकी गंध पूरे तंबू में फैल गई थी।

शक्तिसिंह का गला सुख गया। उसे अब एहसास हो रहा था की कितना कठिन कार्य था!! उसका तो मन कर रहा था की वह नीचे सोई महारानी को रगड़ रगड़ कर भरपूर चुदाई करे। पर राजमाता की उपस्थिति में उनकी यागया का पालन न करना मतलब मौत को डावात देने के बराबर था।

शक्तिसिंह ने धीरे से महारानी के हाथों से अपने लंड को छुड़वाया, उस दौरान उसके सुपाड़े पर लगी वीर्य की बूंदों को अपनी उंगली से महारानी को पोंछते देख वह सहम गया। जिस सख्ती से महारानी ने लंड को पकड़ रखा था उससे यह साफ था की वह बेहद उत्तेजित हो गई थी।

"महारानी साहिब की जय हो!!" शक्तिसिंह ने इस तरह से कहा ताकि राजमाता सुन सके, और उन्हे यह एहसास हो की वह अपनी जिम्मेदारी और आदेश को भूल नहीं था।

शक्तिसिंह की सलामी से महारानी भी सतर्क हो गई और उसने अपने दोनों हाथ बिस्तर पर नीचे रख दिए, जिस तरह उसे कहा गया था। राजमाता थोड़े से तनाव में यह द्रश्य को देख रही थी। महारानी को अपने हाथ नीचे रखता देख उन्हे स्थिति नियंत्रण में आती लगी। इन दोनों को अंतरंग होते देख राजमाता की चुत भी गीली होने लगी थी।

शुरुआत में राजमाता को यह डर था की शक्तिसिंह का हथियार देखकर कहीं महारानी घबरा न जाए। पर महारानी की शारीरिक भाषा से यह स्पष्ट था की वह उसके लंड को अपनी राजवी गुफा में लेने के लिए आतुर थी। राजमाता भी गरम साँसे छोड़ रही थी। आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उनकी चुत ने नीचे बिछी रजाई पर गीला धब्बा बना दिया था।

महारानी पद्मिनी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें डालकर देखा और फिर अपनी दोनों जांघें मस्ती से चौड़ी कर दी। उनका जिस्म, शक्तिसिंह के लंड-प्रवेश के लिए तत्पर हो चुका था।

रानी ने अपनी दोनों मुठ्ठियों को मजबूती से बंद कर रखा था। हकीकत में वह आनेवाली आनंद की घड़ी के स्वागत के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

शक्तिसिंह के सुपाड़े का मुंह महारानी पद्मिनी की गुलाबी चुत के पंखुड़ी जैसे होंठों पर लगते ही, महारानी का पूरा जिस्म सिहर उठा। एक अजीब सा कंपन सारे शरीर को झुंझुनाने लगा। शक्तिसिंह को अपने लंड पर महारानी के चुत के बालों का नुकीला स्पर्श हुआ। अब वह हमला करने के लिए तैयार था।

शुरुआत में उसे थोड़े से प्रतिरोध सा महसूस हुआ क्योंकी महारानी अपना पूरा शरीर ऐसे भींच रखा था की चुत का द्वार सिकुड़ गया था और उसके होंठ भी अंदर की तरफ दब गए थे। उस सुराख के मुकाबले शक्तिसिंह का सुपाद काफी बड़ा भी था।

शक्तिसिंह एक कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिककी तरह, दर्द या चोट रूपी परिणाम की परवाह किए बगैर आगे बढ़ता रहा। नौसिखिया होने की वजह से उसे यह भी द्विधा थी की जिस छेद में वह घुसा रहा था वह सही था भी या नहीं। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमे ना कोई नक्शा, ना कोई आयोजन और ना ही किसी युक्ति-प्रयुक्ति का अवकाश था। यह तो शक्तिसिंह और महारानी के जननांगों के बीच आपस की लड़ाई थी।

शुरुआती शारीरिक प्रतिरोध के पश्चात जब प्रथम प्रवेश सफलता पूर्वक हो गया फिर आगे की राह आसान बनती गई। रानी की चुत की दीवारों ने बड़े ही उन्माद के साथ लंड का स्वागत करते हुए मार्ग दे दिया था... साथ साथ उन दीवारों ने पर्याप्त मात्र में स्निग्ध रस का रिसाव शुरू कर दिया था ताकि मेहमान को जरा सी भी तकलीफ का एहसास ना हो।

लंड को स्वीकृति मिलते ही, वह महारानी पद्मिनी की चुत की अंधेरी गलियों में मस्ती से अंदर बाहर करने लगा। चिकनी चिपचिपी सतह पर लंड रगड़ खाते ही शक्तिसिंह की सिसकी निकल गई।

"आउच... आहह... हाँ... आह" महारानी ने भी कराहते हुए तुरंत अभिवादन किया।
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आखिरकार शक्तिसिंह का कौमार्यभंग हो ही गया। उसके टट्टों में अजीब सनसनी हो रही थी। वास्तविक चुदाई का अनुभव उसे हस्तमैथुन से काफी भिन्न महसूस हुआ। गरम, गीली और उत्तेजित चुत की तुलना ऋक्ष हथेली से कदापि नहीं की जा सकती। स्त्री को भोगने के लिए पुरुष क्यों इतने पगलाये रहते है इसका ज्ञान आज भलीभाँति हो गया शक्तिसिंह को।

शुरुआती प्रवेश के आनंद से अभी वह उभर भी नहीं पाया था की तभी उसके कानों पर राजमाता की रूखी आवाज पड़ी.. "अब जैसा मैंने सिखाया था वैसे ही अंदर बाहर करना शुरू कर दे!!"

महारानी पद्मिनी जो शक्तिसिंह के सख्त लंड को अपनी चुत की दीवारों के गिरफ्त में लेकर दुहने का आनंद ले ही रही थी तभी अपनी सास की आवाज ने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया। तगड़े लंड के मोटे सुपाड़े ने चुत की दीवारों को जिस तरह चौड़ा कर रखा था, महारानी पद्मिनी तो वहीं उसकी कायल हो चली थी। वह चाहती थी की जितना लंबा हो सके इस समय को खींचा जाए।

क्या राजमाता ने खुद इस मूसल का भरपूर मज़ा अभ्यास के बहाने लिया होगा? हो सकता है की उसकी कामिनी सास ने इस मुस्टंडे से भरपूर चुदवाया हो और अब वह उसे आनंद लेने से रोक रही हो!! पद्मिनी के दिमाग में ऐसे कई विचारों की शृंखला सी चल पड़ी थी। मन के किसी कोने में उसे इस बात का यकीन था की राजमाता ने पहले ही शक्तिसिंह के संग गुलछर्रे उड़ा लिए थे।

लिंग-प्रवेश के दौरान ही रानी की चुत ने स्खलित होते हुए एक डकार मार ली थी। चुत के अंदर काम-रस का गरम प्रवाह शक्तिसिंह को और उकसा रहा था। प्रथम योनि प्रवेश के कारण उसके लिए भी यह अनुभव नया और अनोखा था। इस गर्माहट के एहसास से फिर से शक्तिसिंह की आह निकल गई।

चुत गीली होने पर घर्षण कम होगा और स्खलन तक पहुचने की अवधि का बढ़ जाने का अंदेशा था। इस बारे में राजमाता ने पहले ही उसे चेतावनी दे रखी थी। संभोग की सीमा को न्यूनतम रखनी थी और उसे लंबा करने की कोशिश नहीं करनी थी। जितना जल्दी हो सके उसे स्खलित होना था। उसने तुरंत अपना लंड रानी की चुत से बाहर निकाल और अपनी धोती के कपड़े से पोंछ लिया। पोंछते वक्त एक पल के लिए उसे लगा की वही स्खलित हो जाएगा। बड़ी मुश्किल से उसने अपने स्खलन को काबू में रखा। यदि उसका वीर्य चुत के बाहर ही निकल जाता तो पता नहीं राजमाता उसका क्या हश्र करती!!

लंड को दोबारा चुत में डालते ही महारानी की आह निकल गई। जिस तरह का आनंद उन्हे मिल रहा था उस वजह से ऐसी आवाज निकल जानी स्वाभाविक थी। पर फिलहाल इस खेल के नियम अलग थे और उनका पालन करवाने हेतु राजमाता उनके सर पर बैठी थी।

"ऊँहहह ... " महारानी पद्मिनी से रहा न गया और एक और आवाज निकल गई। रानी के दोनों हाथ तकिये के कौनों को पकड़कर भींच रहे थे। अगर उसने अपने हाथों को रोके नहीं रखा होता तो अब तक वह अपने नाखूनों से शक्तिसिंह की छाती को चीर देती। पर अफसोस, एक दूसरे को छूने की इजाजत नहीं थी। रानी अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह को जितना ज्यादा हो सके अपने अंदर समाने की कोशिश कर रही थी।

रह रह कर शक्तिसिंह के मन में राजमाता के आदेश मंडरा रहे थे। आदेश था की लंड को केवल अंदर बाहर करना था और कुछ भी नहीं। राजमाता का आदेश उसका कर्तव्य था। उसके शरीर में प्रवेश चुके कामरूपी राक्षस को नियंत्रित करने की शक्तिसिंह ने ठान ली।

वह अपने आप से संवाद करने लगा "तुम्हें बस अंदर बाहर करना है... अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. और कुछ भी नहीं!!"

अब वह यंत्रवत रानी की चुत में अंदर और बाहर धक्के लगाने लगा। उसने अपनी उमड़ रही सारी भावनाओ को किनारे कर दिया। वह बस आँखें बंद कर धक्के लगाने लगा। इस बीच वह यह भी भूल गया की उसका लंड फिर से रानी के चुत रस से लिप्त होकर चिपचिपा हो गया था और उसे पोंछने की जरूरत थी।

वह ये भी भूल गया की उसके नीचे वासना से तड़पती हुई स्त्री थी जो चाहती थी की ऐसे यंत्रवत रूखे झटकों के बजाए उसकी जानदार चुदाई हो। वह चाहती थी की अपनी दोनों टांगों को शक्तिसिंह के कंधों पर टाँगकर अपनी चुत को इस हद तक चौड़ा करे की लंड के धक्के उसकी चुत की हर गहराई तक महसूस हो। उसकी चूचियाँ चोली फाड़कर बाहर आना चाहती थी ताकि मर्दाना हाथों से उन्हे मसला जा सके। पर राजमाता की उपस्थिति में ऐसा कुछ भी करना मुमकिन ना था।

फिर भी वह अपने चूतड़ों को झटके देने से रोक ना पाई। उसकी साँसे बेहद तेज चल रही थी। उसके उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। वह रानी नहीं पर एक भूखी चुदक्कड़ स्त्री का स्वरूप धारण कर चुकी थी।

इन सारी बातों से बेखबर उनका वफादार सिपाही, आनन फानन में धक्के लगाए जा रहा था। शक्तिसिंह के मस्तिष्क में फिलहाल राजमाता के शब्द हावी हो चले थे।

पद्मिनी के जिस्म में आग लग चुकी थी। फिलहाल वह इतना चाहती थी की शक्तिसिंह के साथ उसकी चुदाई जितनी लंबी हो सके उतनी चलती रहे। उसने आखिर उत्तेजित होकर शक्तिसिंह का दाहिना हाथ पकड़ लिया। उस तरफ का द्रश्य राजमाता की नज़रों से बाहर था। इस निराश में की वह अपने स्तनों को नहीं मसल पा रही, वह अपने दूसरे हाथ से अपनी गर्दन को सहलाने लगी।

अब तक जो कुछ भी चल रहा था वह राजमाता को योजना के मुताबिक होता नजर आया। वह जानती थी की वीर्य स्खलन के लिए शक्तिसिंह अभी कुछ और झटकों की जरूरत थी। पिछली रात को शक्तिसिंह का लंड हिलाकर स्खलित होने में कितना वक्त लगा था उसकी गणना उनका दिमाग करने लगा। उसने कोई हस्तक्षेप करने से पहले थोड़ा और वक्त देने का फैसला किया।

राजमाता यह देख नहीं पा रही थी पर शक्तिसिंह यह महसूस कर पा रहा था की महारानी नीचे से अपनी कमर और चूतड़ उठाकर सामने से झटके लगा रही थी। उसने अपनी आँखें खोलकर अपनी नीचे लेटी वासना से लिप्त स्त्री की तरफ देखा। दोनों की नजरें मिली। महारानी पद्मिनी की आँखों में बस चुदाई का बहुत शक्तिसिंह को बखूबी नजर या रहा था। रानी के चेहरे की त्वचा उत्तेजना के कारण लाल और पसीने से लथबथ हो गई थी। रानी ने अपना चेहरा दाहिनी और किया और चुपके से शक्तिसिंह के उस तरफ के हाथ को चूम लिया।

बहुत ही मस्त काम भीभौर कर देने वाला अपडेट दिया
 
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शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता छीलकर खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी। पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगायत जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौनसा आसमान टूट पड़ेगा!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर।

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक माध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही आपकी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।
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संभोग के बाद थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में लाश की तरह सो रहा था। उसे सपने भी महारानी की गद्देदार गुलाबी चुत, गहरी नाभि और बड़े मोटे स्तन ही नजर आ रहे थे। एक बार की चुदाई से उसका मन नहीं भरा था। उल्टा उसकी भूख चौगुनी बढ़ गई थी। लंड अभी भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। क्या मतलब था महारानी का जब उन्होंने यह कहा था की "में दोबारा आऊँगी"??

खर्राटे मारकर सोते हुए शक्तिसिंह की नींद में तब विक्षेप पड़ा जब उसे अपनी धोती में कुछ अजीब हलचल महसूस हुई। आँखें खोलकर देखा तो महारानी पद्मिनी उसकी बगल में लेटे हुए धोती से लंड बाहर निकालकर सहला सहला कर उसे मोटा कर रही थी!! एक पल के लिए शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ की वह सपना ही था। कुछ पल के बाद यह स्पष्ट हुआ की वह सपना नहीं था... वाकई महारानी उसके बिस्तर पर लंड से खेल रही थी!!

महारानी अपना चेहरा, अचंभित शक्तिसिंह के कान के पास ले गई और बोली

"यदि हमे यह खेल को आगे बढ़ाना हो तो यहाँ नहीं, मेरे तंबू में जाना पड़ेगा" सुपाड़े को अपनी मुठ्ठी में दबाकर वह मुसकुराते हुए बोली "में नहीं चाहती की राजमाता या किसी पहरेदार सैनकी को मेरी गैरमौजूदगी के बारे में पता चले!!"

विरोध करने में असमर्थ और अनिच्छुक शक्तिसिंह ने महारानी के हाथ को अपने लंड से हटाना चाहा ताकि वह उठकर खड़ा हो सके। पर महारानी उसके ऊपर से नहीं हटी। उन्होंने अपने हाथ में खेल रहे लंड को अपने मुंह में ले लिया।

"महारानी जी.." शक्तिसिंह महारानी की इस हरकत से चोंक उठा "आप यह क्या कर रही है?"

"पद्मिनी... " लंड को पल भर के लिए मुंह से बाहर निकालकर महारानी ने कहा "मुझे पद्मिनी कहकर पुकारो... जिस तरह की हरकतें हम साथ साथ करने वाले है, वह पद्मिनी ही कर सकती है... महारानी नहीं!!"

इतना कहकर उन्होंने वापिस शक्तिसिंह के मूसल को अपने मुंह में भर लिया। अपनी लार से गीला करते हुए, होंठों के बीच गोलाकार रचकर वह लंड को मुख-मैथुन का अनोखा सुख देने लगी। उनके लंबे घने बालों की ज़ुल्फ़ें लहराकर शक्तिसिंह के लंड के इर्दगिर्द फैलकर बड़ी मदहोश प्रतीत हो रही थी। उन झुलफ़ों से शक्तिसिंह को यह शिकायत थी की उन्हे पीछे महारानी के सुंदर गाल नजर नहीं आ रहे थे।

कुछ देर रसभरी चुसाई करने के बाद जब पद्मिनी ने लंड एक मस्त चटकारा लेकर मुक्त किया तब उनके होंठों के किनारों से वीर्य की धार बह रही थी जिसे अपनी उंगली के ऊपर लेकर, एक कुटिल मुस्कान देकर, वह चाट गई। शक्तिसिंह यह देख हक्का-बक्का रह गया।

पद्मिनी अब उठ खड़ी हुई और तंबू के दरवाजे तक पहुंचकर पलटी। मुड़कर उसने शक्तिसिंह की ओर देखा और मुसकुराते हुए उंगलियों से इशारा कर अपने पीछे आने का निर्देश दिया। ऐसे लटके-झटके किसी गणिका की तरह प्रतीत हो रहे थे।

जब वह दोनों उनके तंबू में पहुंचे तब पर्दा डालकर पद्मिनी ने शक्तिसिंह को बाहों में भरकर चूमते हुए उसका हाथ अपनी चोली के अंदर डाल दिया। पद्मिनी के कोमल लाल अधरों का रसपान करते हुए उसने चोली में से उसके स्तनों को दबाया और फिर हाथ नीचे ले जाकर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया। घाघरा ऐसे नीचे गिर जैसे युद्ध की घोषणा होने पर बाजार गिर जाता है। घाघरे को लात मारकर खुद से दूर धकेलते वक्त पद्मिनी ने शक्तिसिंह की धोती खोल दी।

अपनी जीभ को पद्मिनी के मुख के कोने कोने मे फेरते हुए शक्तिसिंह ने रानी की चोली की गांठ खोल दी... दोनों चूचियाँ मुक्त हो गई। शक्तिसिंह ने कोमलता से दोनों हथेलियों में भरकर उन्हे सहलाया। अब उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए और रानी के मदद से अपना कुर्ता उतार दिया। अब दोनों एक दूसरे के सामने सम्पूर्ण नग्नावस्था में खड़े थे।

पद्मिनी की दोनों जांघों से उठाकर शक्तिसिंह ने उठाया। इशारा समझते ही रानी ने अपनी टाँगे फैलाई और शक्तिसिंह की कमर पर पैरों को लपेट लिया। थोड़ी सी कमर उठाई और शक्तिसिंह के कड़े लंड को अपनी चुत के होंठों को फैलाकर उसके ऊपर अपने जिस्म का वज़न डाल दिया।

"जानवर जैसा तगड़ा लंड है तुम्हारा... " हँसते हुए पद्मिनी ने कहा

महारानी पद्मिनी के अंदर की हवसखोर औरत अब पूर्णतः जाग चुकी थी। जैसे ही उनकी चुत में पर्याप्त मात्र में रस का रिसाव हो गया, उसने लंड पर ऊपर-नीचे उछलना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह के अंदर का योद्धा, महारानी को ऐसे ही नियंत्रण देना नहीं चाहता था। पर फिलहाल रानी के सर पर ऐसा भूत सवार था की उनको वश में करना कठिन था। फिर भी उसने रानी की जांघों को इस कदर मजबूती से पकड़ लिया की वह अब लंड पर ऊपर नीचे कर नहीं पा रही थी।

"छोड़ो भी... क्या कर रहे हो?" महारानी गुर्राई

"अब आप कुछ नहीं करेगी... अब जो भी करना है मुझे ही करना है, महारानी जी" शक्तिसिंह ने अधिकारपूर्वक कहा

शक्तिसिंह ने महारानी को थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने लंड पर पटक दिया।

"आईईईईईईई..... " महारानी की धीमी सी चीख निकल गई।

महारानी के उस संकेत से प्रोत्साहित होकर, उसने संयुक्ता के स्तनों के साथ छेड़छाड़ शुरू की और उसे ऊपर नीचे करता रहा। कुछ मिनटों तक, वह उसके लंड को अपनी चुत में भरकर चोदती रही।

"हाँ.. हां.. बिल्कुल ऐसे ही... करते रहो.. मज़ा आ रहा है.. चोदते रहो " वह मस्ती में बड़बड़ाई

महारानी की नुकीली निप्पल शक्तिसिंह की छाती पर घिसती जा रही थी। चर्बीयुक्त मांसल चूचियाँ दोनों के शरीरों के बीच दब चुकी थी। शक्तिसिंह खुद को इन मदमस्त स्तनों को चूसने से रोक नहीं पाया। उसने अपनी गर्दन झुकाई और एक स्तन को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर किया ताकि उसकी निप्पल मुंह तक पहुंचे। रसभरी लंबी निप्पल को उसने एक क्षण के लिए मन भरकर निहारा और फिर एक ही झटके में उसे मुंह में ले कर चटकारे लेटे हुए चूसने लगा।

पद्मिनी ने पास के खंभे पर अपने एक हाथ को रखकर सहारा लिया और दूसरा हाथ शक्तिसिंह के कंधे पर रखकर हुमच हुमचकर लंड पर कूदती रही। अब संतुलन ठीक से स्थापित हो जाने पर अब वह चुदाई के झटकों का संचालन करने की बेहतर मुद्रा में आ गई। उसने उछलने की गति को और तीव्र कर दिया।
 
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शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता छीलकर खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी। पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगायत जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौनसा आसमान टूट पड़ेगा!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर।

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक माध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही आपकी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।
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संभोग के बाद थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में लाश की तरह सो रहा था। उसे सपने भी महारानी की गद्देदार गुलाबी चुत, गहरी नाभि और बड़े मोटे स्तन ही नजर आ रहे थे। एक बार की चुदाई से उसका मन नहीं भरा था। उल्टा उसकी भूख चौगुनी बढ़ गई थी। लंड अभी भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। क्या मतलब था महारानी का जब उन्होंने यह कहा था की "में दोबारा आऊँगी"??


खर्राटे मारकर सोते हुए शक्तिसिंह की नींद में तब विक्षेप पड़ा जब उसे अपनी धोती में कुछ अजीब हलचल महसूस हुई। आँखें खोलकर देखा तो महारानी पद्मिनी उसकी बगल में लेटे हुए धोती से लंड बाहर निकालकर सहला सहला कर उसे मोटा कर रही थी!! एक पल के लिए शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ की वह सपना ही था। कुछ पल के बाद यह स्पष्ट हुआ की वह सपना नहीं था... वाकई महारानी उसके बिस्तर पर लंड से खेल रही थी!!

महारानी अपना चेहरा, अचंभित शक्तिसिंह के कान के पास ले गई और बोली

"यदि हमे यह खेल को आगे बढ़ाना हो तो यहाँ नहीं, मेरे तंबू में जाना पड़ेगा" सुपाड़े को अपनी मुठ्ठी में दबाकर वह मुसकुराते हुए बोली "में नहीं चाहती की राजमाता या किसी पहरेदार सैनकी को मेरी गैरमौजूदगी के बारे में पता चले!!"

विरोध करने में असमर्थ और अनिच्छुक शक्तिसिंह ने महारानी के हाथ को अपने लंड से हटाना चाहा ताकि वह उठकर खड़ा हो सके। पर महारानी उसके ऊपर से नहीं हटी। उन्होंने अपने हाथ में खेल रहे लंड को अपने मुंह में ले लिया।

"महारानी जी.." शक्तिसिंह महारानी की इस हरकत से चोंक उठा "आप यह क्या कर रही है?"

"पद्मिनी... " लंड को पल भर के लिए मुंह से बाहर निकालकर महारानी ने कहा "मुझे पद्मिनी कहकर पुकारो... जिस तरह की हरकतें हम साथ साथ करने वाले है, वह पद्मिनी ही कर सकती है... महारानी नहीं!!"

इतना कहकर उन्होंने वापिस शक्तिसिंह के मूसल को अपने मुंह में भर लिया। अपनी लार से गीला करते हुए, होंठों के बीच गोलाकार रचकर वह लंड को मुख-मैथुन का अनोखा सुख देने लगी। उनके लंबे घने बालों की ज़ुल्फ़ें लहराकर शक्तिसिंह के लंड के इर्दगिर्द फैलकर बड़ी मदहोश प्रतीत हो रही थी। उन झुलफ़ों से शक्तिसिंह को यह शिकायत थी की उन्हे पीछे महारानी के सुंदर गाल नजर नहीं आ रहे थे।

कुछ देर रसभरी चुसाई करने के बाद जब पद्मिनी ने लंड एक मस्त चटकारा लेकर मुक्त किया तब उनके होंठों के किनारों से वीर्य की धार बह रही थी जिसे अपनी उंगली के ऊपर लेकर, एक कुटिल मुस्कान देकर, वह चाट गई। शक्तिसिंह यह देख हक्का-बक्का रह गया।

पद्मिनी अब उठ खड़ी हुई और तंबू के दरवाजे तक पहुंचकर पलटी। मुड़कर उसने शक्तिसिंह की ओर देखा और मुसकुराते हुए उंगलियों से इशारा कर अपने पीछे आने का निर्देश दिया। ऐसे लटके-झटके किसी गणिका की तरह प्रतीत हो रहे थे।

जब वह दोनों उनके तंबू में पहुंचे तब पर्दा डालकर पद्मिनी ने शक्तिसिंह को बाहों में भरकर चूमते हुए उसका हाथ अपनी चोली के अंदर डाल दिया। पद्मिनी के कोमल लाल अधरों का रसपान करते हुए उसने चोली में से उसके स्तनों को दबाया और फिर हाथ नीचे ले जाकर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया। घाघरा ऐसे नीचे गिर जैसे युद्ध की घोषणा होने पर बाजार गिर जाता है। घाघरे को लात मारकर खुद से दूर धकेलते वक्त पद्मिनी ने शक्तिसिंह की धोती खोल दी।

अपनी जीभ को पद्मिनी के मुख के कोने कोने मे फेरते हुए शक्तिसिंह ने रानी की चोली की गांठ खोल दी... दोनों चूचियाँ मुक्त हो गई। शक्तिसिंह ने कोमलता से दोनों हथेलियों में भरकर उन्हे सहलाया। अब उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए और रानी के मदद से अपना कुर्ता उतार दिया। अब दोनों एक दूसरे के सामने सम्पूर्ण नग्नावस्था में खड़े थे।

पद्मिनी की दोनों जांघों से उठाकर शक्तिसिंह ने उठाया। इशारा समझते ही रानी ने अपनी टाँगे फैलाई और शक्तिसिंह की कमर पर पैरों को लपेट लिया। थोड़ी सी कमर उठाई और शक्तिसिंह के कड़े लंड को अपनी चुत के होंठों को फैलाकर उसके ऊपर अपने जिस्म का वज़न डाल दिया।

"जानवर जैसा तगड़ा लंड है तुम्हारा... " हँसते हुए पद्मिनी ने कहा

महारानी पद्मिनी के अंदर की हवसखोर औरत अब पूर्णतः जाग चुकी थी। जैसे ही उनकी चुत में पर्याप्त मात्र में रस का रिसाव हो गया, उसने लंड पर ऊपर-नीचे उछलना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह के अंदर का योद्धा, महारानी को ऐसे ही नियंत्रण देना नहीं चाहता था। पर फिलहाल रानी के सर पर ऐसा भूत सवार था की उनको वश में करना कठिन था। फिर भी उसने रानी की जांघों को इस कदर मजबूती से पकड़ लिया की वह अब लंड पर ऊपर नीचे कर नहीं पा रही थी।

"छोड़ो भी... क्या कर रहे हो?" महारानी गुर्राई

"अब आप कुछ नहीं करेगी... अब जो भी करना है मुझे ही करना है, महारानी जी" शक्तिसिंह ने अधिकारपूर्वक कहा

शक्तिसिंह ने महारानी को थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने लंड पर पटक दिया।

"आईईईईईईई..... " महारानी की धीमी सी चीख निकल गई।

महारानी के उस संकेत से प्रोत्साहित होकर, उसने संयुक्ता के स्तनों के साथ छेड़छाड़ शुरू की और उसे ऊपर नीचे करता रहा। कुछ मिनटों तक, वह उसके लंड को अपनी चुत में भरकर चोदती रही।

"हाँ.. हां.. बिल्कुल ऐसे ही... करते रहो.. मज़ा आ रहा है.. चोदते रहो " वह मस्ती में बड़बड़ाई

महारानी की नुकीली निप्पल शक्तिसिंह की छाती पर घिसती जा रही थी। चर्बीयुक्त मांसल चूचियाँ दोनों के शरीरों के बीच दब चुकी थी। शक्तिसिंह खुद को इन मदमस्त स्तनों को चूसने से रोक नहीं पाया। उसने अपनी गर्दन झुकाई और एक स्तन को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर किया ताकि उसकी निप्पल मुंह तक पहुंचे। रसभरी लंबी निप्पल को उसने एक क्षण के लिए मन भरकर निहारा और फिर एक ही झटके में उसे मुंह में ले कर चटकारे लेटे हुए चूसने लगा।

पद्मिनी ने पास के खंभे पर अपने एक हाथ को रखकर सहारा लिया और दूसरा हाथ शक्तिसिंह के कंधे पर रखकर हुमच हुमचकर लंड पर कूदती रही। अब संतुलन ठीक से स्थापित हो जाने पर अब वह चुदाई के झटकों का संचालन करने की बेहतर मुद्रा में आ गई। उसने उछलने की गति को और तीव्र कर दिया।

Bahut hi mast aur kaam bhibhor kar dene wala update diya.
 
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शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता छीलकर खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी। पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगायत जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौनसा आसमान टूट पड़ेगा!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर।

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक माध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही आपकी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।
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संभोग के बाद थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में लाश की तरह सो रहा था। उसे सपने भी महारानी की गद्देदार गुलाबी चुत, गहरी नाभि और बड़े मोटे स्तन ही नजर आ रहे थे। एक बार की चुदाई से उसका मन नहीं भरा था। उल्टा उसकी भूख चौगुनी बढ़ गई थी। लंड अभी भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। क्या मतलब था महारानी का जब उन्होंने यह कहा था की "में दोबारा आऊँगी"??


खर्राटे मारकर सोते हुए शक्तिसिंह की नींद में तब विक्षेप पड़ा जब उसे अपनी धोती में कुछ अजीब हलचल महसूस हुई। आँखें खोलकर देखा तो महारानी पद्मिनी उसकी बगल में लेटे हुए धोती से लंड बाहर निकालकर सहला सहला कर उसे मोटा कर रही थी!! एक पल के लिए शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ की वह सपना ही था। कुछ पल के बाद यह स्पष्ट हुआ की वह सपना नहीं था... वाकई महारानी उसके बिस्तर पर लंड से खेल रही थी!!

महारानी अपना चेहरा, अचंभित शक्तिसिंह के कान के पास ले गई और बोली

"यदि हमे यह खेल को आगे बढ़ाना हो तो यहाँ नहीं, मेरे तंबू में जाना पड़ेगा" सुपाड़े को अपनी मुठ्ठी में दबाकर वह मुसकुराते हुए बोली "में नहीं चाहती की राजमाता या किसी पहरेदार सैनकी को मेरी गैरमौजूदगी के बारे में पता चले!!"

विरोध करने में असमर्थ और अनिच्छुक शक्तिसिंह ने महारानी के हाथ को अपने लंड से हटाना चाहा ताकि वह उठकर खड़ा हो सके। पर महारानी उसके ऊपर से नहीं हटी। उन्होंने अपने हाथ में खेल रहे लंड को अपने मुंह में ले लिया।

"महारानी जी.." शक्तिसिंह महारानी की इस हरकत से चोंक उठा "आप यह क्या कर रही है?"

"पद्मिनी... " लंड को पल भर के लिए मुंह से बाहर निकालकर महारानी ने कहा "मुझे पद्मिनी कहकर पुकारो... जिस तरह की हरकतें हम साथ साथ करने वाले है, वह पद्मिनी ही कर सकती है... महारानी नहीं!!"

इतना कहकर उन्होंने वापिस शक्तिसिंह के मूसल को अपने मुंह में भर लिया। अपनी लार से गीला करते हुए, होंठों के बीच गोलाकार रचकर वह लंड को मुख-मैथुन का अनोखा सुख देने लगी। उनके लंबे घने बालों की ज़ुल्फ़ें लहराकर शक्तिसिंह के लंड के इर्दगिर्द फैलकर बड़ी मदहोश प्रतीत हो रही थी। उन झुलफ़ों से शक्तिसिंह को यह शिकायत थी की उन्हे पीछे महारानी के सुंदर गाल नजर नहीं आ रहे थे।

कुछ देर रसभरी चुसाई करने के बाद जब पद्मिनी ने लंड एक मस्त चटकारा लेकर मुक्त किया तब उनके होंठों के किनारों से वीर्य की धार बह रही थी जिसे अपनी उंगली के ऊपर लेकर, एक कुटिल मुस्कान देकर, वह चाट गई। शक्तिसिंह यह देख हक्का-बक्का रह गया।

पद्मिनी अब उठ खड़ी हुई और तंबू के दरवाजे तक पहुंचकर पलटी। मुड़कर उसने शक्तिसिंह की ओर देखा और मुसकुराते हुए उंगलियों से इशारा कर अपने पीछे आने का निर्देश दिया। ऐसे लटके-झटके किसी गणिका की तरह प्रतीत हो रहे थे।

जब वह दोनों उनके तंबू में पहुंचे तब पर्दा डालकर पद्मिनी ने शक्तिसिंह को बाहों में भरकर चूमते हुए उसका हाथ अपनी चोली के अंदर डाल दिया। पद्मिनी के कोमल लाल अधरों का रसपान करते हुए उसने चोली में से उसके स्तनों को दबाया और फिर हाथ नीचे ले जाकर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया। घाघरा ऐसे नीचे गिर जैसे युद्ध की घोषणा होने पर बाजार गिर जाता है। घाघरे को लात मारकर खुद से दूर धकेलते वक्त पद्मिनी ने शक्तिसिंह की धोती खोल दी।

अपनी जीभ को पद्मिनी के मुख के कोने कोने मे फेरते हुए शक्तिसिंह ने रानी की चोली की गांठ खोल दी... दोनों चूचियाँ मुक्त हो गई। शक्तिसिंह ने कोमलता से दोनों हथेलियों में भरकर उन्हे सहलाया। अब उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए और रानी के मदद से अपना कुर्ता उतार दिया। अब दोनों एक दूसरे के सामने सम्पूर्ण नग्नावस्था में खड़े थे।

पद्मिनी की दोनों जांघों से उठाकर शक्तिसिंह ने उठाया। इशारा समझते ही रानी ने अपनी टाँगे फैलाई और शक्तिसिंह की कमर पर पैरों को लपेट लिया। थोड़ी सी कमर उठाई और शक्तिसिंह के कड़े लंड को अपनी चुत के होंठों को फैलाकर उसके ऊपर अपने जिस्म का वज़न डाल दिया।

"जानवर जैसा तगड़ा लंड है तुम्हारा... " हँसते हुए पद्मिनी ने कहा

महारानी पद्मिनी के अंदर की हवसखोर औरत अब पूर्णतः जाग चुकी थी। जैसे ही उनकी चुत में पर्याप्त मात्र में रस का रिसाव हो गया, उसने लंड पर ऊपर-नीचे उछलना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह के अंदर का योद्धा, महारानी को ऐसे ही नियंत्रण देना नहीं चाहता था। पर फिलहाल रानी के सर पर ऐसा भूत सवार था की उनको वश में करना कठिन था। फिर भी उसने रानी की जांघों को इस कदर मजबूती से पकड़ लिया की वह अब लंड पर ऊपर नीचे कर नहीं पा रही थी।

"छोड़ो भी... क्या कर रहे हो?" महारानी गुर्राई

"अब आप कुछ नहीं करेगी... अब जो भी करना है मुझे ही करना है, महारानी जी" शक्तिसिंह ने अधिकारपूर्वक कहा

शक्तिसिंह ने महारानी को थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने लंड पर पटक दिया।

"आईईईईईईई..... " महारानी की धीमी सी चीख निकल गई।

महारानी के उस संकेत से प्रोत्साहित होकर, उसने संयुक्ता के स्तनों के साथ छेड़छाड़ शुरू की और उसे ऊपर नीचे करता रहा। कुछ मिनटों तक, वह उसके लंड को अपनी चुत में भरकर चोदती रही।

"हाँ.. हां.. बिल्कुल ऐसे ही... करते रहो.. मज़ा आ रहा है.. चोदते रहो " वह मस्ती में बड़बड़ाई

महारानी की नुकीली निप्पल शक्तिसिंह की छाती पर घिसती जा रही थी। चर्बीयुक्त मांसल चूचियाँ दोनों के शरीरों के बीच दब चुकी थी। शक्तिसिंह खुद को इन मदमस्त स्तनों को चूसने से रोक नहीं पाया। उसने अपनी गर्दन झुकाई और एक स्तन को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर किया ताकि उसकी निप्पल मुंह तक पहुंचे। रसभरी लंबी निप्पल को उसने एक क्षण के लिए मन भरकर निहारा और फिर एक ही झटके में उसे मुंह में ले कर चटकारे लेटे हुए चूसने लगा।

पद्मिनी ने पास के खंभे पर अपने एक हाथ को रखकर सहारा लिया और दूसरा हाथ शक्तिसिंह के कंधे पर रखकर हुमच हुमचकर लंड पर कूदती रही। अब संतुलन ठीक से स्थापित हो जाने पर अब वह चुदाई के झटकों का संचालन करने की बेहतर मुद्रा में आ गई। उसने उछलने की गति को और तीव्र कर दिया।

Nice and hot update dear
 

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