Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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[अंग्रेजी कथा "राजमाता" का हिन्दी तर्जुमा - कथा का श्रेय मूल लेखक (अज्ञात) को जाता है ]
 
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यह कथा है सूरजगढ़ की..

सन १७६५ में स्थापित हुए इस राज्य की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। स्थापक राजा वीरप्रताप सिंह के शौर्य और अथाग प्रयत्नों से निर्माण हुई यह नगरी, कई मायनों में अपने पड़ोसी राज्यों से कोसों आगे थी। नदी के तट पर बसे होने के कारण विपुल मात्रा में जल राशि उपलब्ध थी। जमीन उपजाऊ थी और किसान महेनतकश थे इसलिए धान की कोई कमी न थी। तट से होकर समंदर के रास्ते चलते व्यापार के कारण यह राज्य समृद्ध व्यापारीओ से भरा पड़ा था। कुल मिलाकर यह एक सुखी और समर्थ राज्य था।

राजा वीरप्रताप सिंह के वंशज राजा कमलसिंह राजगद्दी पर विराजमान थे। उनकी पाँच रानियाँ थी जिसमे से मुख्य रानी पद्मिनी उनकी सबसे प्रिय रानी थी। कमलसिंह की माँ, राजमाता कौशल्यादेवी की निगरानी में राज्य का सारा कारभार चलता था। वैभवशाली जीवन और भोगविलास में व्यस्त रहते राजा कमलसिंह दरबार के दैनिक कार्यों में ज्यादा रुचि न लेते। राजमाता को हमेशा यह डर सताता की कोई पड़ोसी राजा या फिर मंत्रीगण मे से कोई, इस बात का फायदा उठाकर कहीं राज ना हड़प ले। पुत्रमोह के कारण वह कमलसिंह को कुछ कह नहीं पाती थी। उनकी चिंताओ में एक कारण और तब जुड़ गया जब पांचों रानियों में से किसी भी गोद भरने में कमलसिंह समर्थ नहीं रहे थे।

राजमाता कौशल्यादेवी यह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी की लोगों को पता चले कि महाराज (राजा) नपुंसक थे। वह चाहती तो कमलसिंह को मनाकर बाकी राजाओं की तरह किसी को गोद ले सकती थी, लेकिन उनके शासन की राजनीतिक कमज़ोरी ने उन्हें इस मानवीय विफलता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की अनुमति नहीं दे रही थी।

राजमाता को प्रथम विचार यह आया की हो सकता है की मुख्य रानी पद्मिनी ही बाँझ हो। इसलिए उनका दूसरा कदम था बाकी की रानियों के साथ कमलसिंह का वैद्यकीय मार्गदर्शन के साथ संभोग करवाकर गर्भधारण करवाने का प्रयत्न करना। हालांकि, यह करने से पहले, कमलसिंह ने अपने दूत भेजकर रानी पद्मिनी के पिता, जो एक पड़ोसी मुल्क के शक्तिशाली राजा थे, उनको इस बारे में संदेश भेजा। उस समय में, शादियाँ संबंध के लिए नहीं, राजकीय समीकरणों के लिए की जाती थी। उनकी पुत्री, जो मुख्य रानी थी, उसे छोड़कर राजा अगर दूसरी रानी के साथ संतान के लिए प्रयत्न करता तो रानी के मायके मे बताना बेहद जरूरी था। उनका विवाह ही इसलिए कराया गया था की रानी पद्मिनी की आने वाली नस्ल राज करे। ऐसी नाजुक बातों में लापरवाही बरतने से महत्वपूर्ण राजनैतिक गठबंधन अस्वस्थ हो सकते थे।
 
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महारानी पद्मिनी को जब इस बारे में पता चला तब उन्हे विश्वास नहीं हुआ। उनका शाही बिस्तर कई काम-युद्धों का साक्षी था लेकिन वह हमेशा राजा को अपने वश में रखने मे कामयाब रही थी। महारानी मुख्य रानी के रूप में अपना पद को बरकरार रखने के लिए सभी प्रकार की यौन राजनीति में व्यस्त रहती। वह न केवल कानूनी अर्थ में बल्कि वैवाहिक अर्थ में भी सभी रानियों में मुख्य बनी रहना चाहती थी। वह चाहती थी की आने वाले समय में राजगद्दी पर उसकी संतान बैठी हो।

राजा कमलसिंह, रानी पद्मिनी की इन हरकतों से भलीभाँति वाकिफ था पर फिर भी, सच्चाई यह थी कि वह उसे गर्भवती नहीं कर सका। अपनी शारीरिक अक्षमता को स्वीकारने में उसे अपना अहंकार इजाजत नहीं दे रहा था।

इस तरफ महारानी पद्मिनी बही यह सोचती कि बिस्तर पर वह ही राजा से अधिक आक्रामक थी। उसका लिंग पतला था, लेकिन वह जानती थी कि इसका नपुंसकता से कोई लेना-देना नहीं था।

इसलिए जब राजा कमलसिंह के दूत संदेश लेकर उसके पिता के पास गए तब उसने भी एक पत्र साथ भेजा जिसमें उसने अपने पिता को बताया कि वह इस बात से सहमत थी कि कमलसिंह दूसरी रानियों के साथ अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे। उसके लिए यह विवरण देना कठिन जरूर था लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे अन्य रानियों के बढ़ते प्रभाव को स्वीकारने के लिए वह तैयार थी और इससे उसकी प्रधानता को कोई खतरा नहीं था।
 
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समय बीतता गया..

कई महीनों की चुदाई के पश्चात, जब एक भी रानी गर्भधारण करने में सफल न रही, तब सभी को इस सच्चाई का ज्ञान हुआ की कमी महारानी पद्मिनी में नहीं पर कमलसिंह में ही थी। महारानी पद्मिनी अपने कमरे में बैठी इस बारे में विचार कर रही थी तभी बगल के कक्ष में राजा कमलसिंह प्रतिस्पर्धी रानी को घोड़ी बनाकर धमाधम चोद रहे थे। पद्मिनी के कानों तक उस चुद रही रानी की सिसकियाँ और कराहने के आवाज़े बड़ी स्पष्ट रूप से पहुँच रही थी। महारानी को यह याद आया कि उसने राजा को अपना गुलाम बनाने के लिए शाही बिस्तर पर किस किस तरह के खेल खेले थे, यह याद करके वह शर्म और हया से सुर्ख हो गई। अपनी चुदाई करने की और राजा को आनंद देने की क्षमता पर वह इस हद तक आश्वस्त थी उसे विश्वास था, बाकी की रानियाँ कितनी भी कोशिश कर ले, वह महारानी पद्मिनी का स्थान कभी नहीं ले पाएगी।

रानियों के अलावा, राजा के अंतःस्थल में असंख्य गणिकाए भी थी जो उनके लिए टाँगे फैलाने के लिए हरपल आतुर रहती थी। इन सब के बीच यह सुनिश्चित करना कि राजा को सबसे अच्छी चुदाई उसके साथ ही मिले; यह अपने आप में एक कला थी. और महारानी ने इसे बखूबी निभाया भी था। रानी पद्मिनी अपनी चुनिंदा दासियों के संग मिलकर अपनी विशिष्ट शैली से राजा को भोगविलास की पराकाष्ठा का अनुभव करवाती। राजा भी महारानी की इस कला के कायल थे। पूर्वक्रीडा करते वक्त जब वह महारानी के पुष्ट पयोधर स्तनों में डूब गए हो तब रानी अपने स्तन छुड़वाकर उन्हे बिस्तर पर लिटा देती। इसके पश्चात महारानी की दासियाँ, राजा के दोनों हाथों को जकड़कर रखती और उस दौरान महारानी अपनी मनमर्जी से संभोग को आगे बढ़ाती। कभी कभी राजा को एक नग्न दासी की गोद में बिठाकर महारानी उनके ऊपर चढ़ जाती और तब तक सवारी करती जब तक वह झड़ न जाते।

कई अवसरों पर, जब वे सहवास के बाद की गहरी नींद में एक दूसरे के आगोश में पड़े हुए हो, तब महारानी अपनी दासी को बोलकर राजा का लँड चुसवाकर उन्हे जगाने के लिए कहती ताकि वह दोबारा संभोग के लिए तैयार हो जाए। वह चाहती तो यह कार्य स्वयं भी कर सकती थी, लेकिन महारानी जानती थी कि विभिन्न महिलाओं से एक साथ आनंद लेने में राजा का ज्यादा मज़ा आएगा।

इस तरह महारानी ने महाराजा को अपने आधीन रखा। वह बार-बार महारानी के पास घूम फिरकर वापस आता रहा क्योंकी महारानी ने उन्हे वह सब कुछ दिया जिसके बारे में एक पुरुष कल्पना कर सकता है।

महारानी की सभी ऊर्जा राजा को प्रसन्न करने में इस कदर खर्च हो जाती थी की अब उन्हे एहसास होने लगा था की उनकी अपनी शारीरिक तृप्ति की जरूरत को नजर अंदाज किया जा रहा था। राजा को खुश करने के विभिन्न दाव-पेच आजमाते वक्त वह खुद काफी उत्तेजित और गरम हो जाती, पर राजा में यह दम-खम नहीं था की वह महारानी पद्मिनी की योनि के ज्वालामुखी को शांत कर सके।

इसी दौरान....

राजमाता कौशल्यादेवी का आदेश आया कि भोगविलास बहोत हो गया, अब राज्य को एक युवराज की आवश्यकता है। तभी अचानक सबको एहसास हुआ की जिस हिसाब से राजा संभोग में विभिन्न रानियों के साथ व्यस्त रहता था, उस हिसाब से अब तक किसी न किसी का गर्भधारण अवश्य हो जाना चाहिए था!! इस एहसास ने शाही परिवार को गहरी निराशा में डाल दिया। तो अब, महारानी (रानी) और राजमाता (राजा की मां) बड़ी चिंता में थीं क्योंकि राज वैद्य (दरबारी चिकित्सक) ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे। इस स्थिति का न सिर्फ पारिवारिक बल्कि राजनैतिक असर भी हो सकता था। जिस राज्य का वारिस न हो, उस राज्य को हड़पने के लिए राज्ये के दरबारी व पड़ोसी मुल्क ताक में रहते थे।

अंततः राजमाता ने परिस्थिति को अपने हाथों मे लेने का निश्चय किया। वह इस समस्या का समाधान जानती थी; पर उसका अमल करने में बेहद हिचकिचा रही थी। पर जब कोई भी मार्ग नजर नहीं आ रहा था तब उन्हे हस्तक्षेप करने की आवश्यकता महसूस हुई।

उन्होंने आदेश देते हुए घोषणा की, "हम महारानी को विश्राम और यज्ञ के लिए गुरुदेव के आश्रम में ले जाएंगे। युवराज का गर्भाधान भी वहीं होगा।"

"यह आप क्या कह रही है माँ?" आश्चर्य और क्रोध के साथ महाराजा ने गरजते हुए कहा, उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनकी मां यह उपाय सुझाएंगी।

यह एक प्राचीन एवं स्वीकृत परंपरा थी। शाही परिवार से जुड़े गुरुओं, संतों और तपस्वियों के साथ इस किस्म के नाजुक मुद्दों को साझा करने में कोई भय न था और हल ढूँढने में भी आसानी रहती थी। प्रत्येक शाही परिवार के अपने आध्यात्मिक सलाहकार रहते थे और उन्हें राज्यों से संरक्षण व संपदा प्राप्त थी। दोनों पक्षों की आवश्यकता परस्पर थी और वह अपनी जिम्मेदारी बड़ी ही वफ़ादारी से, पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आए थे। उनका महत्व इस कदर था की कोई भी राजा अपने प्रतिद्वंद्वी के राजगुरु के साथ कभी भी किसी प्रकार का खिलवाड़ नहीं करता था। इन गुरुओ व तपस्वियों ने अपनी यौन इच्छा सहित सभी दोषों पर विजय प्राप्त की होती है।
 
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उन्होंने यौन इच्छा सहित सभी पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनके योग के गहन अभ्यास, शारीरिक सौष्ठव और उनके शरीर में ऊर्जा को केंद्रित व नियंत्रित करने की शक्ति के कारण वह कई भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का निवारण करने में महारथ रखते थे। वे हिमालय में, विशाल नदियों के किनारे तलहटी में रहते थे। उन मे से कुछ आगे पहाड़ों और जंगलों में चले गए और उन्हों ने ऐसी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ हासिल कीं जहाँ से वे कभी वापस नहीं लौटे।

और जो गुरु शाही परिवारों से जुड़े थे, उन्हें कई पीढ़ियों में एक बार इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए याद किया जाता था; जब राजा प्रजोत्पति के लिए सक्षम ना हो तब इन गुरुओं की मदद ली जाती थी। किसी भी तरह शाही राजवंश का अंत होने से बचाने के लिए यह अंतिम उपाय का प्रयोग किया जाता था।

यह सब ज्ञान महाराजा को उनके किशोरावस्था के दिनों में प्रशिक्षण के दौरान दिया जाता था लेकिन राजा कमलसिंह ने यह कभी नहीं सोचा था कि उसके साथ ही ऐसा करने की नोबत आएगी।

काफी हिचकिचाहट और अनिच्छा के बावजूद अंत में कमलसिंह को राजमाता कौशल्यादेवी के इस प्रस्ताव पर सहमत होना ही पड़ा। तैयारियां होने लगी। लेकिन यह सब बेहद गुप्त तरीके से करना जरूरी था। राजमाता ने अपनी खास तीन दासियों का एक दल बनाया और उनके साथ शाही रक्षकों में से तीन बहादुर, शक्तिशाली और विश्वसनीय जवानों को अपनी 'तीर्थयात्रा' के लिए तैयार होने को कहा।

इस अनुचर में केवल राजमाता और महारानी को ही इस यात्रा का वास्तविक उद्देश्य पता था। यात्रा में दो रात्री पड़ाव में अलग अलग जगहों पर रुकना था और गंतव्य स्थान पर पहुँच जाने पर वहां ४ से ६ सप्ताह बिताने थे और गर्भावस्था की पुष्टि होने के पश्चात ही वापस लौटना था।

शाही रक्षकों के दल का प्रमुख पथ की जाँच करते हुए, अनुचर के आगे-आगे चले। कभी-कभी वह आगे के मार्ग का निरीक्षण करने के लिए अपने सैनिकों को आगे भेजता था। अन्य समय में वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीछे से कोई खतरा ना आए, वह दल के पीछे की ओर चलता था।

इस दल में शामिल एक २० साल का युवक, जो सेना के अश्वदल के प्रमुख का बेटा था और उसका परिवार कई पीढ़ियों से बिल्कुल इसी तरह राज परिवार की बड़ी ही वफादारी से सेवा कर रहा था। १८ साल की उम्र में ही वह शाही रक्षक दल में जुड़ा, सेवा की, विभिन्न अभियानों में भाग लिया और परिपक्व हुआ।

उसका नाम शक्ति सिंह था। वह एक अनुभवी सैनिक था, अपनी युवावस्था के बावजूद काफी ताकतवर और बहादुर था। वह अपने महाराजा से केवल तीन वर्ष ही छोटा था। उसका लंबा, चौड़े कंधे वाला और तंदूरस्त मांसपेशियो से पुष्ट शरीर शाही पोशाक और कवच में बड़ा ही शानदार लग रहा था। अपनी मुछ पर ताव देते वह बड़े ही नियंत्रण के साथ अपने अश्व पर सवार था।

दल की सारी महिलायें शक्ति सिंह की मौजूदगी से बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी। राजमाता को उस लड़के से विशेष स्नेह था क्योंकी वह उसे बचपन से देखती आई थी और वह उनके बेटे के साथ खेला भी करता था।

राजमाता ने बग्गी की खिड़की से शक्ति सिंह को देखा, उसे इतनी शालीनता और आत्मविश्वास से खुद को संभालते हुए देखकर उन्हे गर्व महसूस हुआ। उन्हों ने मन में एक आह भरी। शक्ति सिंह को यह नहीं पता था कि राजमाता के मन में क्या चल रहा था। असल में किसी को नहीं पता था कि उनकी वास्तविक योजना क्या थी.. उन्हे बस यही उम्मीद थी कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाएं।

राजमाता ने पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर विचार किया. वह जानती थी कि उसका बेटा नामर्द था। उसने कमलसिंह दो कनिष्ठ दासियों को भी चोदने की इजाजत सिर्फ इसलिए दी थी ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसकी बात सुनने के अलावा राजा के पास ओर कोई विकल्प ना हो।

उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनके बेटे को कम उम्र में ही राजगद्दी पर बिराजमान कर दिया गया था। उस खेमे में साज़िश और षड्यन्त्र इस कदर चल रहे थे की राजनीति में बिननुभवी और भोगविलास में डूबे रहते नए महाराजा की स्थिति काफी कमज़ोर थी।

कमलसिंह की राजगद्दी को बरकरार रखने के लिए और पड़ोसी राज्यों से मजबूत सहयोग बनाए रखने के हेतु वहाँ की राजकुंवरिओ से उनका विवाह भी करवाया गया था।

कमलसिंह की स्थिति कोई और मजबूती से स्थापित करने के लिए, उसका वारिस होना राजमाता को अंत्यन्त आवश्यक महसूस हुआ। अभी के योजना के अनुसार वह गर्भाधान के लिए महारानी को गुरुजी के आश्रम ले जा रही थी। उनका संयोजन उन्हे बौद्धिक और आध्यात्मिक रुझान वाली संतान दे सकता था। लेकिन राजमाता तो निर्भीक, बहादुर और मजबूत वारिस चाहती थी जो इस राज्य को आने वाले समय में संभाल सके।

राजमाता कौशल्यादेवी का यह दृढ़ता से मानना था की गुरुओं द्वारा प्रदत्त पुत्र उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगा। वह चाहती थी की महारानी की कोख ऐसा कोई मजबूत, बलिष्ठ व बहादुर मर्द भरे, जिससे आने वाली संतान में वह सारे गुण प्राकृतिक रूप से आ जाए। अश्वदल का प्रमुख, शक्ति सिंह, इन सारे मापदंडों में खरा उतरता था। वह भरोसेमंद, सक्षम और व्यावहारिक रूप से पारिवारिक भी था। सभी मायनों में राजमाता को शक्ति सिंह का चयन सबसे श्रेष्ठ प्रतीत हुआ।

राजमाता जानती थी की इस योजना का अमल इतना आसान नहीं होने वाला था. महारानी और शक्ति सिंह दोनों इस बात को लेकर सहमत होने जरूरी थे। महारानी पद्मिनी, पड़ोसी राज्य के एक शक्तिशाली राजा की बेटी थीं; यदि वह इस बात को मानने से इनकार कर दे तो उनकी सारी योजना पर पानी फिर सकता था।

रही बात शक्ति सिंह की... इस मामले में राजमाता को उसकी वफ़ादारी पर भरोसा तो था, पर संभावना यह भी थी की वह अपने महाराज की पत्नी के साथ संभोग करने से इनकार कर दे।

योजना के अमल करने पर आखिर क्या होगा इस विचार ने राजमाता के मन को द्विधा से भर दिया।

अंत में उन्हों ने आज रात ही महारानी पद्मिनी और शक्ति सिंह से इस बारे में बात करने का मन बना लिया। ऐसा करने से उन दोनों को इस विचार से अभ्यस्त होने का समय मिल जाएगा और वह अगले दो दिनों तक इस पर विचार कर सकें।

राजमाता ने तो संभोग के लिए रात्री के तीसरे प्रहार का शुभ समय चुन रखा था। उन्हों ने यह भी सोच रखा थी की वह स्वयं कार्य की निगरानी करेगी ताकि कार्य समय सीमा के भीतर हो और सुनिश्चित ढंग से हो। वह चाहती थी कि गर्भधारण के लिए संभोग चिकित्सकीय तरीके से किया जाए और इसमें किसी भी प्रकार की आत्मीयता या संबंधों की जटिलता न हो। संभोग का मतलब सिर्फ और सिर्फ जननांगों का संयोग और कुछ नहीं। उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी।

योजना के अनुसार, राजमाता ने शक्ति सिंह को इस बारे में बताया। शक्ति सिंह हैरान रह गया!! उसने सपने भी यह नहीं सोचा था की राजमाता इतने भद्दे शब्दों में उसे महरानी को चोदने के लिए कहेगी!!! राजमाता ने यह भी स्पष्ट किया की महारानी पद्मिनी को चोदते समय ना ही उसके स्तन दबाने है, ना ही चुंबन करना है!! जितनी जल्दी हो सके लिंग और योनि का घर्षण कर, अपना गाढ़ा गरम पुष्ट वीर्य महारानी की योनिमार्ग में काफी भीतर तक छोड़ना है, बस!!!
 
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उन्होंने यौन इच्छा सहित सभी पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनके योग के गहन अभ्यास, शारीरिक सौष्ठव और उनके शरीर में ऊर्जा को केंद्रित व नियंत्रित करने की शक्ति के कारण वह कई भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का निवारण करने में महारथ रखते थे। वे हिमालय में, विशाल नदियों के किनारे तलहटी में रहते थे। उन मे से कुछ आगे पहाड़ों और जंगलों में चले गए और उन्हों ने ऐसी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ हासिल कीं जहाँ से वे कभी वापस नहीं लौटे।

और जो गुरु शाही परिवारों से जुड़े थे, उन्हें कई पीढ़ियों में एक बार इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए याद किया जाता था; जब राजा प्रजोत्पति के लिए सक्षम ना हो तब इन गुरुओं की मदद ली जाती थी। किसी भी तरह शाही राजवंश का अंत होने से बचाने के लिए यह अंतिम उपाय का प्रयोग किया जाता था।

यह सब ज्ञान महाराजा को उनके किशोरावस्था के दिनों में प्रशिक्षण के दौरान दिया जाता था लेकिन राजा कमलसिंह ने यह कभी नहीं सोचा था कि उसके साथ ही ऐसा करने की नोबत आएगी।

काफी हिचकिचाहट और अनिच्छा के बावजूद अंत में कमलसिंह को राजमाता कौशल्यादेवी के इस प्रस्ताव पर सहमत होना ही पड़ा। तैयारियां होने लगी। लेकिन यह सब बेहद गुप्त तरीके से करना जरूरी था। राजमाता ने अपनी खास तीन दासियों का एक दल बनाया और उनके साथ शाही रक्षकों में से तीन बहादुर, शक्तिशाली और विश्वसनीय जवानों को अपनी 'तीर्थयात्रा' के लिए तैयार होने को कहा।

इस अनुचर में केवल राजमाता और महारानी को ही इस यात्रा का वास्तविक उद्देश्य पता था। यात्रा में दो रात्री पड़ाव में अलग अलग जगहों पर रुकना था और गंतव्य स्थान पर पहुँच जाने पर वहां ४ से ६ सप्ताह बिताने थे और गर्भावस्था की पुष्टि होने के पश्चात ही वापस लौटना था।

शाही रक्षकों के दल का प्रमुख पथ की जाँच करते हुए, अनुचर के आगे-आगे चले। कभी-कभी वह आगे के मार्ग का निरीक्षण करने के लिए अपने सैनिकों को आगे भेजता था। अन्य समय में वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीछे से कोई खतरा ना आए, वह दल के पीछे की ओर चलता था।

इस दल में शामिल एक २० साल का युवक, जो सेना के अश्वदल के प्रमुख का बेटा था और उसका परिवार कई पीढ़ियों से बिल्कुल इसी तरह राज परिवार की बड़ी ही वफादारी से सेवा कर रहा था। १८ साल की उम्र में ही वह शाही रक्षक दल में जुड़ा, सेवा की, विभिन्न अभियानों में भाग लिया और परिपक्व हुआ।

उसका नाम शक्ति सिंह था। वह एक अनुभवी सैनिक था, अपनी युवावस्था के बावजूद काफी ताकतवर और बहादुर था। वह अपने महाराजा से केवल तीन वर्ष ही छोटा था। उसका लंबा, चौड़े कंधे वाला और तंदूरस्त मांसपेशियो से पुष्ट शरीर शाही पोशाक और कवच में बड़ा ही शानदार लग रहा था। अपनी मुछ पर ताव देते वह बड़े ही नियंत्रण के साथ अपने अश्व पर सवार था।

दल की सारी महिलायें शक्ति सिंह की मौजूदगी से बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी। राजमाता को उस लड़के से विशेष स्नेह था क्योंकी वह उसे बचपन से देखती आई थी और वह उनके बेटे के साथ खेला भी करता था।

राजमाता ने बग्गी की खिड़की से शक्ति सिंह को देखा, उसे इतनी शालीनता और आत्मविश्वास से खुद को संभालते हुए देखकर उन्हे गर्व महसूस हुआ। उन्हों ने मन में एक आह भरी। शक्ति सिंह को यह नहीं पता था कि राजमाता के मन में क्या चल रहा था। असल में किसी को नहीं पता था कि उनकी वास्तविक योजना क्या थी.. उन्हे बस यही उम्मीद थी कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाएं।

राजमाता ने पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर विचार किया. वह जानती थी कि उसका बेटा नामर्द था। उसने कमलसिंह दो कनिष्ठ दासियों को भी चोदने की इजाजत सिर्फ इसलिए दी थी ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसकी बात सुनने के अलावा राजा के पास ओर कोई विकल्प ना हो।

उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनके बेटे को कम उम्र में ही राजगद्दी पर बिराजमान कर दिया गया था। उस खेमे में साज़िश और षड्यन्त्र इस कदर चल रहे थे की राजनीति में बिननुभवी और भोगविलास में डूबे रहते नए महाराजा की स्थिति काफी कमज़ोर थी।

कमलसिंह की राजगद्दी को बरकरार रखने के लिए और पड़ोसी राज्यों से मजबूत सहयोग बनाए रखने के हेतु वहाँ की राजकुंवरिओ से उनका विवाह भी करवाया गया था।

कमलसिंह की स्थिति कोई और मजबूती से स्थापित करने के लिए, उसका वारिस होना राजमाता को अंत्यन्त आवश्यक महसूस हुआ। अभी के योजना के अनुसार वह गर्भाधान के लिए महारानी को गुरुजी के आश्रम ले जा रही थी। उनका संयोजन उन्हे बौद्धिक और आध्यात्मिक रुझान वाली संतान दे सकता था। लेकिन राजमाता तो निर्भीक, बहादुर और मजबूत वारिस चाहती थी जो इस राज्य को आने वाले समय में संभाल सके।

राजमाता कौशल्यादेवी का यह दृढ़ता से मानना था की गुरुओं द्वारा प्रदत्त पुत्र उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगा। वह चाहती थी की महारानी की कोख ऐसा कोई मजबूत, बलिष्ठ व बहादुर मर्द भरे, जिससे आने वाली संतान में वह सारे गुण प्राकृतिक रूप से आ जाए। अश्वदल का प्रमुख, शक्ति सिंह, इन सारे मापदंडों में खरा उतरता था। वह भरोसेमंद, सक्षम और व्यावहारिक रूप से पारिवारिक भी था। सभी मायनों में राजमाता को शक्ति सिंह का चयन सबसे श्रेष्ठ प्रतीत हुआ।

राजमाता जानती थी की इस योजना का अमल इतना आसान नहीं होने वाला था. महारानी और शक्ति सिंह दोनों इस बात को लेकर सहमत होने जरूरी थे। महारानी पद्मिनी, पड़ोसी राज्य के एक शक्तिशाली राजा की बेटी थीं; यदि वह इस बात को मानने से इनकार कर दे तो उनकी सारी योजना पर पानी फिर सकता था।

रही बात शक्ति सिंह की... इस मामले में राजमाता को उसकी वफ़ादारी पर भरोसा तो था, पर संभावना यह भी थी की वह अपने महाराज की पत्नी के साथ संभोग करने से इनकार कर दे।

योजना के अमल करने पर आखिर क्या होगा इस विचार ने राजमाता के मन को द्विधा से भर दिया।

अंत में उन्हों ने आज रात ही महारानी पद्मिनी और शक्ति सिंह से इस बारे में बात करने का मन बना लिया। ऐसा करने से उन दोनों को इस विचार से अभ्यस्त होने का समय मिल जाएगा और वह अगले दो दिनों तक इस पर विचार कर सकें।

राजमाता ने तो संभोग के लिए रात्री के तीसरे प्रहार का शुभ समय चुन रखा था। उन्हों ने यह भी सोच रखा थी की वह स्वयं कार्य की निगरानी करेगी ताकि कार्य समय सीमा के भीतर हो और सुनिश्चित ढंग से हो। वह चाहती थी कि गर्भधारण के लिए संभोग चिकित्सकीय तरीके से किया जाए और इसमें किसी भी प्रकार की आत्मीयता या संबंधों की जटिलता न हो। संभोग का मतलब सिर्फ और सिर्फ जननांगों का संयोग और कुछ नहीं। उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी।

योजना के अनुसार, राजमाता ने शक्ति सिंह को इस बारे में बताया। शक्ति सिंह हैरान रह गया!! उसने सपने भी यह नहीं सोचा था की राजमाता इतने भद्दे शब्दों में उसे महरानी को चोदने के लिए कहेगी!!! राजमाता ने यह भी स्पष्ट किया की महारानी पद्मिनी को चोदते समय ना ही उसके स्तन दबाने है, ना ही चुंबन करना है!! जितनी जल्दी हो सके लिंग और योनि का घर्षण कर, अपना गाढ़ा गरम पुष्ट वीर्य महारानी की योनिमार्ग में काफी भीतर तक छोड़ना है, बस!!!


Bahut hi badiya story suru kiya aur adult forum ke bahut purane membar hone ke naate bas itna sujav dena chahunga ki aage ke story' ke kisi bhi bhag me kisi bhi tarh ka koyi dharmik anusthan na hi rakhe to hi behtar hoga
 
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Bahut hi badiya story suru kiya aur adult forum ke bahut purane membar hone ke naate bas itna sujav dena chahunga ki aage ke story' ke kisi bhi bhag me kisi bhi tarh ka koyi dharmik anusthan na hi rakhe to hi behtar hoga
धार्मिक अनुष्ठान का कोई विवरण नहीं है... हालांकि योगी द्वारा किसी और रानी के संग संभोग का उल्लेख है। अगर ऐसे विवरण से कोई आपत्ति हो तो में आगे पोस्ट नहीं करूंगा। किसी भी सूरत में कोई भी धर्म की अवहेलना करना या तो किसी की भी भावनाओ को आहत करना, में नहीं चाहता।

सुझाव के लिए शुक्रिया मित्र
 
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धार्मिक अनुष्ठान का कोई विवरण नहीं है... हालांकि योगी द्वारा किसी और रानी के संग संभोग का उल्लेख है। अगर ऐसे विवरण से कोई आपत्ति हो तो में आगे पोस्ट नहीं करूंगा। किसी भी सूरत में कोई भी धर्म की अवहेलना करना या तो किसी की भी भावनाओ को आहत करना, में नहीं चाहता।

सुझाव के लिए शुक्रिया मित्र

किसी योगी द्वारा संभोग के उल्लेख से कोई अप्पति नहीं हो सकता हैं फिर भी आप इस बारे मे किसी भी सीनियर mod से सुझाव ले ले तो बेहतर होगा।
 
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धार्मिक अनुष्ठान का कोई विवरण नहीं है... हालांकि योगी द्वारा किसी और रानी के संग संभोग का उल्लेख है। अगर ऐसे विवरण से कोई आपत्ति हो तो में आगे पोस्ट नहीं करूंगा। किसी भी सूरत में कोई भी धर्म की अवहेलना करना या तो किसी की भी भावनाओ को आहत करना, में नहीं चाहता।

सुझाव के लिए शुक्रिया मित्र
Nice update
 

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