Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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"मैं तुम्हें यह इसलिए कह रही हूं क्योंकि मेरे खयाल से तुम अब तक कुँवारे हो और और हो सकता है कि तुमने किसी स्त्री का अनुभव न किया हो इस कारण अपने नीचे लेटी स्त्री को देखकर, प्रलोभन तुम पर हावी हो जाएगा। पर तुम ऐसे किसी भी प्रलोभन के वश में आकर कुछ नहीं करोगे। तुम्हें बस अपना काम करना है और चले जाना है।। समझे?" युवा शक्ति सिंह की आँखों में देखते हुए महारानी ने आदेश दिया।

शक्ति सिंह अभी भी सकते में था। राजमाता की बातों से लगे सदमे के साथ दूसरा झटका उसे तब लगा जब उसे एहसास हुआ की उनकी यह बातें सुनकर उसका लँड खड़ा हो गया था। गनीमत थी की सैनिक की पोशाक और कवच के नीचे उसके उत्थान को राजमाता देख नहीं पा रही थी।

अगर यही बात राजमाता ने आधे घंटे बाद कही होती तो वह सामान्य कपड़ों में अपने तंबू में बैठा होता और उसके वस्त्रों मे लँड तंबू बनाकर राजमाता को सलाम ठोक रहा होता!!

वास्तव में, अभी वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं उसकी जरा सी भी हरकत उसकी उत्तेजित स्थिति को उजागर न कर दे।

"मैं यह नहीं कर सकता," वह बुदबुदाया, हालांकि उसके मन में महारानी के दो पैरों के बीच बैठकर, उसकी नरम मुलायम गुलाबी गद्देदार चुत में अपना लंड डालने का विचार दृढ़ता से चल रहा था।

"तुम्हें यह करना ही होगा। जिस राजा और राज्य के लिए तुम अपना जीवन देने के लिए तैयार रहते हो, उस मुकाबले यह तो बड़ा ही क्षुल्लक छोटा सा कार्य है। इसे अपना कर्तव्य समझकर तुम्हें यह करना है," राजमाता ने आदेश दिया। शक्तिसिंह का यह जवाब राजमाता के लिए अपेक्षित था और वह पहले से ही तैयार थी।

राजमाता की आदेशात्मक आवाज सुनकर शक्तिसिंह ने चुप्पी साध ली। उनके स्वभाव से वह भलीभाँति परिचित था। वह किसी भी बात के लिए "ना" सुनने की आदि नहीं थी।

शक्तिसिंह की चुप्पी से राजमाता को पूरी स्थिति नियंत्रण में रहती दिखी।

"राजमाता, आप कहो तो में अभी अपनी जान देने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप जो आदेश दे रही है वह मुझे उचित नहीं लग रहा है। मैंने कभी भी महामहिम महारानी जी की ओर किसी भी तरह से नहीं देखा है और हमेशा अपना सिर उनके सामने झुकाकर रखता हूं। जो कार्य आप कह रहे है वह में सपने में भी सोच नहीं सकता... इस तरह का विश्वासघात में अपने महाराज के साथ कतई नहीं कर सकता" शक्ति सिंह ने अपना विरोध प्रकट करते हुए कहा. महारानी के संग अपना कौमार्य खोने के विचार से उसका दिमाग चकरा गया। उसके मन को वह अवसर याद आया जब उसने पहली बार महारानी के पुष्ट स्तन युग्म के उरोजों को पहली बार देखा था!! दो बड़े गुंबज जैसे उनके बेहद सख्त दिखने वाले स्तन इतने ललचाने वाले थे के देखने वाले की लार टपक जाएँ!! उन विराट स्तनों को खुला देखने के विचार से ही उसके लंड में हरकत हुई और सुपाड़े के छेद पर गीलापन भी महसूस हुआ।

शक्ति सिंह घुटने टेक कर झुक गया ; आंशिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके खड़े लँड का राजमाता को का पता न चले और आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि वह सोचने का वक्त चुराना चाहता था।

"यह कहना जरूरी नहीं समझती पर फिर भी कह रही हूँ, इस कार्य के लिए महाराज की मंजूरी है। तुझे क्या लगता है कि महारानी और मैं उनकी जानकारी के बिना इतनी लंबी तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं?" राजमाता हँसी।

कौशल्यादेवी खड़ी हुई और शक्तिसिंह के पास आई जहां वह घुटनों के बल बैठा था। उसके कंधे पर हाथ रखकर उसके ताकतवर शरीर को महसूस किया। महारानी ऐसे तगड़े जिस्म से स्पर्श और संभोग कर कैसी प्रतिक्रिया देगी, वह मन ही मन में सोचने लगी। कंधे से आगे बढ़कर राजमाता के हाथ शक्तिसिंह की स्नायुबद्ध छाती पर पहुंचे। उनके मुंह से एक धीमी आह निकाल गई।

शक्तिसिंह को वह उस नजर से देख रही थी जिस नजर से ऋतु में आई मादा किसी तंदुरुस्त पुरुष को संभोग हेतु देखती है। उस एक पल के लिए वह यह भूल गई की वह एक सैनिक या साधारण प्रजागण को देख रही थी।

"बेटा, तुम एक अच्छे इंसान हो। अगर इस बात का इतना गंभीर महत्व ना होता तो मैं तुमसे कभी ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहती। और मैं अपने आंतरिक दायरे के बाहर किसी से भी इस बात का जिक्र नहीं कर सकती। क्या तुम्हें एहसास है, अगर तुम यह नहीं करोगे तो मुझे किसी ओर की मदद लेकर महारानी को गर्भवती करना होगा?" राजमाता ने अपना तर्क दिया।

शक्ति सिंह ने राजमाता की ओर देखा। उनकी भावपूर्ण, बड़ी, सुंदर और दयालु आँखें देखकर वह पिघलने लगा। वह उन्हे मना ना कर सका. और वह नहीं चाहता था कि कोई और महारानी को छुए। किसी ओर की बजाए वह खुद ही यह कार्य करे तो बेहतर है।

केवल विडंबना यह थी की महारानी के बारे में सोचकर ही वह इतना उत्तेजित हो गया था, जब उनका वास्तविक नंगा शरीर उसके नीचे चुदवाने के लिए पड़ा होगा, तब वह कैसे अपने आप को उनके बड़े बड़े स्तनों को छूने से, उन्हे चूसने, चूमने से, दूर रख पाएगा!!

राजमाता का आदेश था के केवल लँड-चुत का घर्षण कर वीर्य गिराना था। पर शक्तिसिंह की अपनी भावनाओ का क्या!! विश्व का कौन सा मर्द अपने साथ सोई अति सुंदर मदमस्त नग्न स्त्री को बिना कुछ किए संभोग कर सकता है!! राजमाता की बातें सुनते वक्त ही वह मन ही मन में महारानी के बड़े गुंबजदार स्तनों के साथ खेलने लगा था... उनकी केले के जड़ जैसी मस्त जांघों को सहलाने लगा था... उनकी सुडौल गांड को अपनी दोनों हथेलियों में भरकर नापने लगा था!!

शक्तिसिंह के मन में लड्डू फूटने लगे पर फिर भी वह राजमाता के सामने ऐसा दिखावा कर रहा था जैसे वह झिझक में हो।

उसने कहा
"फिर भी राजमाता, आप जो मांग रही हो वह मेरे बस के बाहर है, में कुँवर जरूर हूँ पर वह इसलिए नहीं की मुझे कभी मौका नहीं मिल!! इसलिए हूँ क्योंकी मैंने अपने प्रथम संभोग के बारे में कई बातें सोच रखी है। में चाहता हूँ की मेरा प्रथम संभोग एकदम खास हो और किसी खास के साथ हो!!" शक्तिसिंह ने थोड़ी हिम्मत जुटाकर कह दिया। अब सामने वाले का हाथ नीचे ही है तो थोड़ा सा भाव खाने में भला क्या ही हर्ज!!

राजमाता ने उत्तर दिया,
"हाँ, में मानती हूँ की जो में मांग रही हूँ वह तुम्हारे लिए बेहद कठिन है। पर यह मांग में किसी और से कर नहीं सकती इसीलिए मैं तुमसे कह रही हूँ।"

शक्ति सिंह की बातों का उन पर गहरा असर हुआ। उसकी बातों से राजमाता स्पष्ट रूप से समझ गई की उसकी झिझक संभोग करने को लेकर नहीं पर जो शर्ते उन्हों ने रखी थी उसको लेकर थी। वह जानती थी की किसी भी पुरुष के लिए सुंदर नग्न तंदूरस्त स्त्री को बिना किसी पूर्वक्रीडा के भोगना असंभव सा था। वह स्वयं चालीस वर्ष की थी और उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनकी भी इच्छाएँ अधूरी रह गई थीं। उनका खाली बिस्तर रोज रात को उन्हे काटने को दौड़ता था पर अपने पद की गरिमा को बरकरार रखने के लिए उन्हों ने अपनी शारीरिक इच्छाओं का गला घोंट दिया था।

एक पल के लिए राजमाता का जिस्म अपने आप की कल्पना शक्तिसिंह के साथ करने लगा। कैसा होता अगर वह खुद ही वो खास व्यक्ति बन जाए जिसकी इस नौजवान सिपाही को अपेक्षा थी!! वह मन ही मन सोचने लगी, की अगर परिस्थिति अलग होती तो वह खुद ही सामने से शक्तिसिंह को आमंत्रित कर अपने भांप छोड़ते भूखे भोंसड़े की आग बुझा लेती!! और साथ ही साथ उसे महारानी के साथ संभोग के लिए तैयार भी कर लेती। इससे उसकी आग भी बुझ जाती और साथ ही साथ महारानी को किस नाजुकता से संभालना है, इसका जायज भी शक्तिसिंह को दिला देती। साथ ही साथ शक्तिसिंह की कामुकता और उसके कौमार्य की गर्मी भी शांत हो जाती और महारानी के साथ भावनात्मक या यौन जुड़ाव का जोखिम भी सीमित हो जाता।

अपनी जांघों के बीच की गर्माहट और गिलेपन की मात्र बढ़ते ही राजमाता ने अपने विचारों पर लगाम कस दी।

वह बोली

"तुम इसे अपने पहले संभोग की तरह मत सोचो। यह सिर्फ तुम्हारा काम और कर्तव्य है जिसे तुम्हें बिना दिमाग लगाए निभाना है। अपने सपने और इच्छाएँ तुम किसी और के साथ पूरे कर लेना" कठोर चेहरे के साथ उन्हों ने कहा।

वातावरण में नीरव शांति छा गई।

शक्ति सिंह घुटनों के बल ही बैठ रहा . "जैसी आपकी आज्ञा राजमाता। में तैयार हूँ। लेकिन जाहिर तौर पर इस कार्य के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं करनी पड़ेगी। क्या महारानी इस बात के लिए राजी है?"

राजमाता ने उत्तर दिया:

"हां, वह जानती है कि उन्हे क्या करना है। बस यह नहीं जानती कि इस कार्य के लिए मैंने तुम्हें चुना है," यह कहते वक्त राजमाता के चेहरे पर जो खुशी का भाव था वह शक्तिसिंह देख न पाया क्योंकी राजमाता की पीठ उसकी ओर थी।

"राजमाता, क्या आप को नहीं लगता की कुछ भी निश्चित करने से पहले, महारानी की सहमति जान लेना आवश्यक है? शक्तिसिंह ने पूछा

"तुम सिर्फ अपने काम से काम रखो... किस से क्या कहना है या किसकी सहमति लेनी है यह मुझे तुमसे जानने की जरूरत नहीं है समझे!!" राजमाता गुस्से से तमतमाते हुए बोली.. और फिर उन्हे एहसास हुआ की अभी तो शक्तिसिंह से काम निकलवाना है... जब तक कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न ना हो जाए तब तक उसे अपने क्रोध पर काबू रख बड़े ही विवेक से काम लेना होगा।

उन्होंने थोड़ी सी नीची आवाज में धीरे से कहा

"महरानी पद्मिनी बिल्कुल वैसा ही करेगी जैसा मैं कहूँगी। आप दोनों को मानसिक रूप से इस कार्य के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है, बस इतना ही। इस बात से संबंधित अन्य तैयारियां और समय सब में संभाल लूँगी। बस तुम महारानी के साथ मिलन के लिए स्नान करके तैयार रहना। एक स्त्री को कैसे चोदते है वो तो तुम्हें पता है न!!"


"पता तो है पर केवल सैद्धांतिक रूप से" शक्ति सिंह ने जवाब दिया। वह अपनी इस स्थिति को कोस रहा था जिसमें उसे अपने यौन रहस्यों को एक बड़ी उम्र की महिला के साथ साझा करना पड़ रहा था।, वह भी उसकी शाही राजमाता के साथ, जिनसे ज्यादातर लोगों को बात करने का भी मौका नहीं मिलता था।

"और यह सैद्धांतिक ज्ञान तुमने कैसे प्राप्त किया?" राजमाता ने पूछा

"जी, मैंने वात्स्यायन की कामसूत्र की पुस्तक पढ़ी है" हल्की सी शर्म के साथ शक्तिसिंह ने उत्तर दिया।

"मतलब तुम मूलभूत बातों का ज्ञान है.. हम्मम" राजमाता यह सुनिश्चित करना चाहती थी की यह नौसिखिया सैनिक उसकी योजना की मुताबिक कार्य करे और कैसे भी करके महारानी को गर्भवती बनाने में सफल रहे। वह चाहती थी की एक बार के सटीक संभोग से ही उन्हे फल प्रदान हो जाए ताकि उन दोनों का दोबारा मिलन करवाने का जोखिम ना उठाना पड़े। वह किसी भी प्रकार की चूक होने की कोई गुंजाइश छोड़ना नहीं चाहती थी।

"जी, मूलभूत ज्ञान से थोड़ा ज्यादा ही जानता हूँ में" शक्तिसिंह ने आँखें झुकाकर उत्तर दिया

"इसमें ज्यादा ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है। बस तुम्हें उसके सुराख में अपना लंड घुसाकर, मजबूती से आगे पीछे करते हुए तेजी से झटके तब तक लगाने है जब तक तुम्हारा वीर्य-स्खलन ना हो जाए" राजमाता ने बताया और फिर पूछा " क्या सच में तुमने कभी किसी कन्या या स्त्री के साथ संभोग नहीं किया है?"

"जी नहीं," शक्तिसिंह ने दृढ़ता से उत्तर दिया। वह अब राजमाता से इस बारे में ज्यादा बात करना नहीं चाहता था।

"पक्का किसी के साथ नहीं किया है? संग्रामसिंह की बेटी के साथ भी नहीं?" राजमाता ने शैतानी मुस्कान देते हुए पूछा

शक्तिसिंह चकित रह गया। राजमाता की जानकारी पर वह अचंभित रह गया। वैसे राजपरिवारों के संपर्क में रहते गुप्तचरो के चलते यह सब बातें उनके ज्ञान में होना कोई बड़ी बात नहीं थी। राज्य का असली कारभार तो राजमाता ही कहलाती थी। चप्पे चप्पे की खबर उन्हे होना लाज़मी ही था।

शक्तिसिंह सकपकाकर बोला

"हाँ, वो बस एक बार... जब वह मेरे घाव पर मरहम लगा रही थी तब..." शर्म से उसकी आँखें झुक गई

"अच्छा...!! क्या हुआ था तब? विस्तार से बता मुझे..." राजमाता ने फट से पूछा और फिर मन में सोचा "गजब की कटिली लड़की है संग्रामसिंह की बेटी.. बेचारे इस कुँवारे का क्या दोष?"

"जी.. वो.. जब मेरे पीठ पर मरहम लगा रही थी तब उसने अपने स्तन पीछे रगड़ दिए और मेरे ऊपर अपने पूरे जिस्म का वज़न डाल दिया..." शक्तिसिंह ने शरमाते हुए कहा

"बस इतना ही!! उसे तो सिर्फ खेल कहते है... चुदाई थोड़ी न हुई थी!!" राजमाता ने चैन की सांस ली... और फिर मन में सोचने लगी "मतलब अभी भी कुंवारा लड़का मिलने की संभावना है.. क्यों ना इस युवा भमरे को अपनी विधवा छत्ते में... नहीं नहीं... कैसे गंदे खयाल आ रहे है मन में" उन्हों ने अपने आप को कोसा
 

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