Incest रेखा भाभी by chutphar

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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है और मै एक सरकारी नौकरी करता हूँ। मै देख रहा हुँ की ये पलेटफोर्म भी Xosip जैसा ही है और इसके अधिकतर लेखक व पाठक भी Xosip वाले ही है इसलिये मै आप लोगो के लिये एक नयी कहानी लेकर आ रहा हुँ।
 
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चलो अब कहानी शुर करता हुँ। मेरी पहले की कहानी में आपने मेरे घर परीवार और मेरे व मेरी भाभी के सम्बबन्धो के पढा होगा मगर फिर भी मै एक बार उसे संक्षिप्त मे रिफ्रेश कर देता हुँ।

मेरे परीवार मे हम‌ पाँच लोग है। मै, मेरे मम्मी पापा और मेरे भैया भाभी। पापा बैंक से रिटायर्ड है और भैया सेना मे नौकरी करते है। मेरी मम्मी और भाभी हाउसवाईफ है मगर मम्मी की तबियत अधिकतर खराब ही रहती है और इसी के चलते भैया की शादी जल्दी ही कर दी गयी थी।

घर मे एक छोटी सी रसोई, लैटरीन बाथरुम, ड्राईँगरुम और बस दो ही कमरे है जिसमे से एक कमरा मेरे मम्मी‌ पापा का है और एक कमरा मेरे भैया भाभी का है। वैसे भैया का तो वो बस नाम के लिये ही कमरा है क्योकि भैया तो साल मे बस दो तीन महिने ही घर पर रहते है नही तो वो कमरा भाभी का ही है।

वैसे तो मै ड्राईँगरुम मे सोता था मगर उस समय मै बारहवी मे पढ रहा था और मेरी भाभी काफी पढी लिखी है इसलिये उनसे पढने के लिये मै उनके कमरे मे सोने लग गया और मेरे व मेरी भाभी के सम्बन्ध बन गये।

तो ये था पिछली कहानी का फैलश बैक अब चलते है उसके आगे के वाक्ये पर...

मेरी परीक्षाएं समाप्त हुए हफ्ता भर ही हुआ था कि मेरे भैया दो महीने की छुट्टी आ गए जिसके कारण मुझे अब फिर से ड्राईंगरूम में अपना बिस्तर लगाना पङ गया।

मैंने तो सोचा था कि परीक्षाएं समाप्त होने के बाद अपनी पायल भाभी के साथ खुल कर मजे करूंगा.. मगर भैया के छुट्टी आ जाने के कारण मेरे सारे ख्वाब अधूरे रह गए, मेरे दिन अब बड़ी मुश्किल से गुजर रहे थे, भैया को भाभी के कमरे में सोते देखकर, मैं बस अब जलता रहता था और वैसे भी मैं क्या कर सकता था, आखिरकार वो उनकी बीवी है।

बस इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि एक दिन पापा ने मुझे बताया कि गाँव से रामेसर चाचा जी काफी बार फोन कर चुके हैं, वो मुझे गाँव बुला रहे हैं।

पापा ने बताया कि फसल की कटाई होने वाली है और गाँव के मकान की हालत देखे भी काफी दिन हो गए हैं इसलिए छुट्टियों में मैं कुछ दिन गाँव चला जाऊँ।

रामेसर चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं.. वो गाँव में हमारे पड़ोसी हैं जिसके कारण उनसे हमारे काफी अच्छे सम्बन्ध हैं। मेरे पापा की शहर में नौकरी लग गई थी इसलिए हम सब शहर में रहने लग गए थे। गाँव में हमारा एक पुराना मकान और कुछ खेत हैं। घर में तो कोई नहीं रहता है.. पर खेतों में रामेसर चाचा खेती करते हैं, फसल के तीन हिस्से वो खुद रख लेते हैं.. एक चौथाई हिस्सा हमें दे देते हैं।
गाँव में मेरा दिल तो नहीं लगता है.. मगर यहाँ रहकर जलने से अच्छा तो मुझे अब गाँव जाना ही सही लग रहा था इसलिए मैं गाँव जाने के लिए मान गया और अगले ही दिन गाँव चला गया।
 
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अभी तक आपने पढा की घर पर भैया के आ जाने के कारण मेरे अपनी भाभी से तो सम्बन्ध बन नही पा रहे थे इसलिये पापा के कहने पर मै गाँव आ गया अब उसके आगे...

मेरे गाँव जाने पर रानेसर चाचाजी के सभी घर वाले बड़े खुश हो गए। उनके घर में चाचा-चाची, उनकी लड़की सुमन, रेखा भाभी व उनका छः साल का लड़का सोनू है।

रेखा भाभी विधवा हैं उनके पति विनोद भैया का दो साल पहले ही खेत में पानी लगाते समय साँप काटने के कारण स्वर्गवास हो गया था। वैसे तो चाचा जी का एक बङा लङका भी है मगर वो शहर मे नौकरी करता है इसलिये उसका पुरा परिवार शहर मे ही रहता है।

मैं देर शाम से गाँव पहुंचा था इसलिए कुछ देर सभी से बातें करते-करते ही खाने का समय हो गया। वैसे भी गाँव में सब लोग जल्दी खाना खा कर जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ भी जाते हैं। इसलिये खाना खाने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे।

गर्मियों के दिन थे और गर्मियों के दिनों में गाँव के लोग अधिकतर बाहर ही सोते हैं इसलिए मेरी चारपाई भी चाचाजी के पास घर के आँगन में ही लगा दी गई।

वैसे तो उनका घर काफी बड़ा है.. जिसमें चार कमरे और बड़ा सा आँगन है, मगर इस्तेमाल में वो दो ही कमरे लाते हैं। जिसमें से एक कमरे में चाची व रेखा भाभी‌का लङका सोनू सो गए और दूसरे कमरे में सुमन दीदी व रेखा भाभी सो गए। बाकी के कमरों में अनाज, खेती व भैंस का चारा आदि रखा हुआ था।

खैर.. कुछ देर चाचाजी मुझसे बातें करते रहे फिर बाते करते करते चाचा जी तो सो गये मगर उस रात मै रातभर करवट ही बदलता रहा पर मुझे नीँद नही आ सकी। क्योंकि मेरे लिये एक तो वो जगह नयी थी उपर से जहाँ हम सो रहे थे वही पर भैंस भी बँधी हुई थी, जिसके गोबर व मूत्र से बहुत बदबू आ रही थी, साथ ही वहाँ पर इतने अधिक मच्छर थे की बस पुछो मत...!

अब जैसे तैसे मैने वो रात बिताई। वैसे तो मुझे देर तक सोने की आदत है मगर उस रात मै सोया ही कहा था इसलिये सुबह पाँच बजे जब चाची जी भैंस का दूध दोहने के लिए उठीं तो मैं उनके साथ ही उठ गया।

वैसे मै ये बताना तो नही चाहता था मगर चाची जी ने मुझे जब इतनी सवेरे सवरे उठा देखा तो उन्होने खुद ही मुझसे पुछ ही लिया... मैने भी अब उनको सारी बात बता दी जिससे चाची जी हँसने लगीं और कहा- तुम्हें रात को ही बता देना चाहिये था, तुम‌ यहाँ पर नये हो ना.. इसलिए तुम्हें आदत नहीं है, कल से तुम रेखा व सुमन के कमरे में सो जाना।

चाची जी ने मुझे अभी रेखा व सुमन के कमरे मे सोने के लिये कहा भी मगर मैंने मना कर दिया और तैयार होकर चाचा-चाची के साथ खेतों में आ गया। रेखा भाभी के लड़के सोनू को भी हम साथ में ले आए। सुमन की परीक्षाएं चल रही थीं इसलिए वो कॉलेज चली गई। रेखा भाभी को खाना बनाना और घर व भैंस के काम करने होते हैं.. इसलिए वो घर पर ही रहीं।

अब खेतो मे फसल की कटाई चल रही थी.. इसलिए चाचा-चाची तो उसमें लग गए.. मगर मुझे कुछ करना तो आता नहीं था इसलिए मैं सोनू के साथ खेलने लग गया और ऐसे ही खेतों में घूमता रहा।

वैसे तो बाकी दिनो घर से दोपहर का खाना रेखा भाभी लेकर आती थी मगर मै उस दिन खाना लाने के लिये चाचा जी ने मुझे बताया।

मैं भी ऐसे ही फ़ालतू घूम रहा था, इसलिये ग्यारह बजे के करीब मैं खाना लेने के लिए घर आ गया मगर जब मैं घर पहुँचा तो देखा की घर पर कोई नहीं है। मैंने सोचा कि रेखा भाभी यहीं कहीं पड़ोस के घर में गई होंगी.. इसलिए मैं रेखा भाभी के कमरे में ही जाकर बैठ गया और उनके आने का इन्तजार करने लगा।

रेखा भाभी के कमरे मे बैठे हुवे मुझे अब कुछ देर ही हुई थी कि तभी रेखा भाभी दौड़ती हुई सी सीधे कमरे में आई जो की वो मात्र पेटीकोट और ब्रा पहने हुवे थी। रेखा भाभी को इस हाल मे और अचानक ऐसे आने से एक बार तो मैं भी घबरा गया मगर जब मेरा ध्यान रेखा भाभी के कपड़ों की तरफ गया तो मै सारा माजरा समझ गया।

दरअसल रेखा भाभी बाथरुम से नहाकर आई थीं.. इसलिए उन्होने नीचे बस काले रंग का पेटीकोट व ऊपर सफेद रंग की केवल एक ब्रा पहनी हुई थी। सिर के गीले बालों को उन्होने तौलिए से बाँध रखा था जिससे रेखा भाभी का संगमरमर सा सफेद बदन.. ना के बराबर ही ढका हुआ था।

मुझे देखते ही रेखा भाभी अब दरवाजे पर ही ठिठक कर रूक गईं क्योंकि उन्हें अन्दाजा भी नहीं था की कमरे में मैं बैठा हो सकता हूँ। मुझे देखकर वो अब इतनी घबरा गईं की कुछ देर तो वो सोच भी नहीं पाईं की अब क्या करें... जिससे वो कुछ देर तो वहीं बुत सी बनकर खड़ी हो गयी, फिर एकदम से हङबङाकर जल्दी से दूसरे कमरे में भाग गईं।

मगर तब तक मै उनके रँग रूप को आँखों ही आँखो से पी गया था जिससे भाभी के दूसरे कमरे में चले जाने के बाद भी मैं उनके रूप में ही खोया रहा। सच में रेखा भाभी इस रूप में इतनी कयामत लग रही थीं की ऐसा लग रहा था शायद ऊपर वाले ने उनको बड़ी ही फुर्सत से बनाया था।

गोल चेहरा.. काली व बड़ी-बड़ी आँखें, पतले सुर्ख गुलाबी होंठ, लम्बा व छरहरा शरीर, बस एक बड़े सन्तरे से कुछ ही बड़े आकार की उन्नत व सख्त गोलाइयां और भरे हुए माँसल नितम्ब.. आह्ह.. उनको देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वो छः साल के बच्चे की माँ भी हो सकती हैं।

मै अभी भी रेखा भाभी के रँगरुप मे ही खोया हुवा था की कुछ देर बाद रेखा भाभी कपड़े पहन कर फिर से कमरे में आईं और उन्होंने मुझसे मेरे आने कारण पूछा। रेखा भाभी मुझसे अब आँखें नहीं मिला रही थीं क्योंकि शायद वो अभी भी उसी सदमे मे थी। वैसे भी वो बहुत ही शरीफ व भोली भाली ही थी ऊपर से विनोद भैया के गुजर जाने के बाद तो वो और भी गुमसुम सी हो गयी थी।

खैर मैंने भी अब भाभी से आँखें मिलाने की कोशिश नहीं की.. बस ऐसे ही उन्हें अपने आने का कारण बता दिया। रेखा भाभी ने भी जल्दी से मुझे अब खाना बाँध कर दे दिया जिसे मै भी बिना कुछ कहे चुपचाप लेकर खेतों के लिए आ गया।

अब रास्ते भर मै रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा। रेखा भाभी के बारे में पहले मेरे विचार गन्दे नहीं थे.. मगर भाभी का वो रूप देखकर मेरी नियत खराब सी हो रही थी। खेत मे भी मै बस रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा।

पता नही क्यो मेरे दिल में हवश का शैतान सा जाग रहा था, मैं सोच रहा था कि विनोद भैया का देहान्त हुए दो साल हो गए है इसलिए रेखा भाभी का भी दिल तो करता ही होगा। यही सब सोचते सोचते शाम हो गयी।

अब शाम को मैं चाचा-चाची के साथ ही खेत से वापस आया, घर आकर खाना खाया और फिर सभी सोने की तैयारी करने लगे। चाची ने मेरी चारपाई आज रेखा भाभी व सुमन दीदी के कमरे में लगवा दी थी और साथ ही मेरी चारपाई के नीचे मच्छर भगाने की अगरबत्ती भी जला दी।

उस कमरे में एक डबल बैड था.. जिस पर सुमन व रेखा भाभी सोते थे और साथ ही कुर्सियां टेबल, अल्मारी व कुछ अन्य सामान होने के कारण ज्यादा जगह नहीं थी.. इसलिए मेरी चारपाई बेड के बिल्कुल साथ ही लगी हुई थी।

सुमन दिदी की परीक्षाएं चल रही थीं.. इसलिए खाना खाते ही वो पढ़ाई करने बैठ गयी मगर रेखा भाभी घर के काम निपटा रही थीं.. इसलिए वो थोड़ा देर से कमरे में आईं और आकर चुपचाप सो गईं।

मैंने अब उनसे बात करने की कोशिश की.. मगर उन्होंने बात करने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमन दीदी भी वहीं पढ़ाई कर रही थी।

कुछ देर पढ़ाई करने के बाद सुमन दीदी भी सो गई। दीवार के किनारे की तरफ सुमन दीदी थी और मेरी चारपाई की तरफ रेखा भाभी सो रही थीं। रेखा भाभी के इतने पास होने के कारण मेरे दिल में अब एक अजीब ही गुदगुदी सी हो रही थी।

रेखा भाभी मेरे इतने पास थीं की मैं चारपाई से ही हाथ बढ़ाकर उन्हें आसानी से छू सकता था इसलिये मेरे दिल ही दिल मे उनके लिये सजीब सी भावनाएँ जाग्रत हो रही थी मगर कुछ करने कि मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे भी उस समय कुछ करना मतलब अपनी इज्जत का फालूदा करवाना था।

मैं पिछली रात को ठीक से नहीं सोया था इसलिये रेखा भाभी के बारे मे सोचते सोचते ही पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी...
 
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अभी तक आपने पढा की रेखा भाभी को अधनँगी देखने के बाद मेरा उनके प्रति नजरीया बदल गया था उपर से मै अब उनके कमरे मे सोने लगा था मगर मेरी उनके साथ कुछ करने की हिम्मत नही हो रही थी।
अब उसके आगे....


अगले दिन सुबह जब रेखा भाभी कमरे की सफाई करने के लिए आईं तो उन्होंने ही मुझे जगाया। मैं उठा.. तब तक चाचा-चाची खेत में जा चुके थे और सुमन दीदी भी कॉलेज चली गई थी।

घर में बस मैं और रेखा भाभी ही थे.. मेरा दिल तो कर रहा था कि रेखा भाभी को अभी ही पकड़ लूँ.. मगर इतनी हिम्मत मुझमें कहाँ थी। इसलिए मैं उठकर जल्दी से खेत में जाने के लिए तैयार हो गया।

मैं काफी देर से उठा था तब तक दोपहर के खाने का भी समय हो गया था.. इसलिए खेत में जाते समय रेखा भाभी ने मुझे दोपहर का खाना भी बनाकर दे दिया जिसे लेकर मै अब खेत मे आ गया और उसजे बाद शाम को चाचा चाची के साथ ही खेत से वापस लौटा।

रोजाना मै अब सुमन दीदी व रेखा भाभी के कमरे मे ही सोता और सुबह देर से उठता इसलिए रोजाना की मेरी अब यही दिनचर्या बन गई कि मैं दोपहर का खाना लेकर ही खेत में जाता और शाम को चाचा चाची के साथ ही खेत से लौटता।

इस बीच रेखा भाभी ने तो उस दिन वाली बात को भुला दिया मगर रेखा भाभी के प्रति मेरी वाशना अब बढती चली गयी। मै जब भी घर में रहता किसी ना किसी बहाने से रेखा भाभी के ज्यादा से ज्यादा पास रहने की कोशिश करता और उनको पटाने की कुछ ना कुछ योजनाये बनाता रहता मगर रेखा भाभी ने मुझमे कोई रूचि नहीं दिखाई।

ऐसे ही एक दिन सुबह नींद खुलने के बाद भी मैं ऐसे ही चारपाई पर लेटा हुआ ऊंघ रहा था। अब सुबह-सुबह तो पेशाब के ज्वर के कारण सबका ही लण्ड उत्तेजित होता है, तो मेरा भी था जिसे देख मेरे दिमाग में अब एक योजना आ गई।
मुझे पता था की इस समय घर मे मेरे और रेखा भाभी सिवा कोई और तो है नही। और रेखा भाभी मुझे जगाने के लिए नहीं.. तो कमरे में सफाई करने के लिए तो जरूर ही आएंगी। इसलिये क्यो ना आज रेखा भाभी को अपना लण्ड दिखा दिया जाये, हो सकता है इससे उनके दिल मे भी मेरे लिये कुछ भावनाये जाग जाये और मेरा काम‌ बन जाये..
 
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अब ये बात मेरे दिमाग मे आते ही मेरे लण्ड पेशाब के ज्वर से तो उत्तेजित था ही..अब रेखा भाभी के बारे में सोचने से वो अकङकर और भी सख्त हो गया जिसे अण्डरवियर व पैजाने से बाहर निकालकर मैने अब इस तरह से व्यवस्थित कर लिया की रेखा भाभी जब कमरे में आये.. तो उन्हें मेरा उत्तेजित लण्ड आसानी से नजर आए।

अपने लण्ड को बाहर निकालकर मै अब चुपचाप सोने का बहाना करके भाभी के कमरे में आने का इन्तजार करने लगा। मुझे अब ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा क्योंकि कुछ देर बाद ही रेखा भाभी कमरे में आ गईं।

भाभी के आते ही मैं जल्दी से आँखें बन्द करके सोने का नाटक करने लगा। रेखा भाभी मुझे जगाने के लिए मेरी चारपाई की तरफ बढ़ ही रही थीं की एकदम से वो ठीठकर वहीं रुक गयी। शायद उन्होंने मेरे लण्ड को देख लिया था जिससे वो हङबङाकर जल्दी से वापस कमरे से बाहर भाग गयी।

मैं तो सोच रहा था कि रेखा भाभी मेरे उत्तेजित लण्ड को देखकर शायद खुद ही मेरे पास आ जायेगी... मगर ऐसा कुछ तो नहीं हुआ ऊपर से रेखा भाभी के ऐसे चले जाने के कारण मुझे खुद को ही डर लगने लगा की कहीं रेखा भाभी मेरी शिकायत ना कर दें।

रेखा भाभी के जाने के बाद मैं अब काफी देर तक ऐसे ही लेटा रहा क्योंकि मैं चाहता था की भाभी को ऐसा लगे की मैं सही में ही सो रहा हूँ। मगर भाभी को शायद शक हो गया था की मैंने जानबूझ कर ऐसा किया है क्योंकि जब तक मैं खुद ही उठकर बाहर नहीं गया तब तक भाभी दोबारा कमरे में नहीं आईं और ना ही मुझे जगाने की कोशिश की।

जब मै खुद उठकर बाहर गया तब भी रेखा भाभी मुझसे ठीक से बात नहीं की..मेरी बातो का जवाब वो बस हाँ ना मे ही दे रही थी इसलिए मैं भी अब जल्दी से खेत में जाने के लिए तैयार हो गया और चुपचाप दोपहर का खाना लेकर खेत मे आ गया।

शाम को भी जब मै चाचा चाची के साथ घर आया तो मेरा डर बना रहा की कहीं रेखा भाभी सुबह वाली बात चाचा-चाची को ना बता दें।
खैर उन्होंने ऐसा कुछ तो नहीं किया मगर उन्होने मुझसे अब दुरियाँ बना ली। रेखा भाभी को पता चल गया था की मेरी उनके प्रति क्या नियत है.. इसलिए उन्होने मुझसे अब बातें करना बहुत ही कम कर दिया और मुझसे दूर ही रहने की कोशिश करने लगीं। सुबह भी अब जब तक मैं सोता रहता.. तब तक वो कमरे में नहीं आती थीं। मेरी भी अब दोबारा से रेखा भाभी के साथ कुछ ऐसे वैसी हरकत करने की कभी हिम्मत नहीं हुई।
 
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अब इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया और इस हफ्ते भर में मैंने रेखा भाभी के साथ कुछ करने की तो कोशिश नही की मगर उनके प्रति मेरी वाशना बढती चली गयी। उनको याद करके मैने काफी बार मुठ मारी होगी.. मगर उनके साथ कुछ करने की मैं हिम्मत नहीं कर सका।

अब ऐसे ही दिन गुजर रहे थे की एक रात सोते हुए अचानक मेरी नींद खुल गई। मैंने सोचा की सुबह हो गयी है इसलिये बिस्तर से उठकर बैठ गया मगर जब रेखा भाभी व सुमन की तरफ देखा, वो दोनों भी सो रही थीं, बाहर भी अभी काफी अन्धेरा था इसलिये मैने फिर से सोने की सोची...

मै अब फिर से सोने ही वाला था की तभी मेरा ध्यान रेखा भाभी पर चला गया जिसे देख मेरी आँखें तो खुली की खुली ही रह गईं, क्योंकि रेखा भाभी के कपड़े सोते हुवे अस्त-व्यस्त हो रखे थे। साड़ी अधखुली सी उनसे लिपटी हुई थी तो पेटीकोट भी उनके घुटनों के ऊपर तक हो रखा था।

वैसे तो कमरे में अन्धेरा था। बस खिड़की से चाँद की थोड़ी सी रोशनी ही आ रही थी..मगर फिर भी रेखा भाभी के संगमरमर सी सफेद गोरी चिकनी पिण्डलियाँ ऐसे दमक रही थीं जैसे कि उन्हीं में से ही रोशनी फूट रही हो।

रेखा भाभी के गोरी चिकने पैरो को देखकर मेरी दबी हुई भावनाये अब ऐसे जाग्रत हो गयी जैसे की ज्वार भाटा उफन‌कर बाहर फुटता है। एकदम से साँसे फुल सी गयी और मेरा लण्ड तो मानो अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था।

मुझे डर तो‌ लग रहा था मगर मेरे लिए अपने आप पर काबू पाना अब मुश्किल सा हो रहा था इसलिये मैने धीरे से अपना एक हाथ रेखा भाभी के नंगे घुटने पर रख दिया... अपने हाथ को रेखा भाभी के घुटने पर रखकर मै अब कुछ देर तक बिना कोई हरकत किए ऐसे ही लेटा रहा, ताकि अगर वो जाग भी जाएं तो उन्हें लगे की मैं नींद में हूँ।

अब कुछ देर इन्तजार करने के बाद जब रेखा भाभी ने कोई हरकत नहीं की तो मैं धीरे-धीरे अपने हाथ को रेखा भाभी की जाँघों की तरफ बढ़ाने लगा और साथ ही उनकी साङी व पेटीकोट को भी धीरे धीरे उपर की ओर खिसकाने लगा..

अब जितना मेरा हाथ ऊपर की तरफ बढ़ता वो रेखा भाभी की संगमरमरी सफेद पैरो को भी उतना ही नंगा कर रह था और जैसे-जैसे भाभी के पैर नंगे हो रहर थे.. वैसे वैसे ही मानो कमरे में उजाला सा हो रहा था। क्योंकि उनके पैर इतने गोरे थीं कि अन्धेरे में भी दमक से रहे थे।

ऐसे ही धीरे-धीरे करते मेरा हाथ रेखा भाभी के घुटने पर से होता हुआ उनकी मखमल सी नर्म मुलायम, माँसल व भरी हुई जाँघों पर पहुँच गया जो की इतनी नर्म मुलायम व चिकनी थी कि अपने आप ही मेरा हाथ फिसलने सा लगा।

मै भी उन्हे धीरे धीरे बङे ही प्यार से ससहलता चला गया जिससे मेरा हाथ रेखा भाभी की जाँघो के उपर से होता हुआ सीधा उनकी जाँघो के अन्दर की तरफ पहुँच गया.. मगर रेखा भाभी की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई...
शायद वो कुछ ज्यादा ही गहरी नींद में थीं जिससे मेरी भी थोड़ी हिम्मत अब बढ़ गई और मैंने धीरे धीरे अपने हाथ को रेखा भाभी की दोनों जाँघों के बीच अन्दर की तरफ ऊपर की ओर बढ़ाना शुरु कर दिया.. मगर मै अब थोड़ा सा ही ऊपर बढा था की एकदम से डर व घबराहट के कारण मेरा पूरा बदन कँपकँपा सा गया...

दिल की धङकने बढ गयी तो साँसे भी जैसे फुल गयी क्योंकि मेरा हाथ अब रेखा भाभी के जाँघों के जोड़ पर पहुँच गया था। उन्होंने साड़ी व पेटीकोट के नीचे पेंटी पहन रखी थी इसलिये मेरा हाथ उनकी पैँटी के नर्म मुलायम कपङे से जा टकराया था। अन्धेरे के कारण मैं ये तो नहीं देख पा रहा था कि उनकी पेंटी कैसे रंग की थी.. मगर हाँ वो जरूर किसी गहरे रंग की थी।


मैने कुछ देर रुक कर जैसे तैसे अब पहले तो खुद को काबु किया फिर धीरे से, बहुत ही धीरे से हाथ को उनकी पेंटी के ऊपर रख दिया और पेंटी के ऊपर से ही उनकी चुत का मुआयना सा करके देखा। उनकी चुत बालों से भरी हुई थी जो की पेंटी के ऊपर से ही मुझे महसूस हो रहे थे।

मैं धीरे-धीरे उनकी चुत को सहला ही रहा था की तभी अचानक से रेखा भाभी जाग गईं.. उन्होंने मेरा हाथ झटक कर दूर किया और जल्दी से उठकर अपनी साड़ी व पेटीकोट को सही करने लगीं।

ये सभी काम उन्होंने एक साथ और बिजली की सी रफ्तार से किए। डर के मारे मेरी तो साँस ही अटक गई, जिससे मैं जल्दी से अब सोने का नाटक करने लगा मगर भाभी को पता चल गया था की मैं जाग रहा हूँ।
मैंने थोड़ी सी आँख खोलकर देखा तो रेखा भाभी अपने कपड़े सही करके बैठी हुई थीं और मेरी ही तरफ देख रही थीं। मैं डर रहा था कि कहीं रेखा भाभी शोर मचाकर सबको बता ना दें। डर के मारे मेरा दिल अब इतनी जोरों से धड़क रहा था कि मैं खुद ही अपने दिल की धड़कन सुन पा रहा था। मगर फिर कुछ देर बाद रेखा भाभी सुमन की तरफ करवट बदल कर फिर से सो गईं।
 
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मैं सोने का नाटक कर रहा था मगर मुझे अब नींद नहीं आ रही थी। अभी जो कुछ भी हुआ मैं उसी के बारे में सोच रहा था। मैं सोच रहा था की अगर रेखा भाभी को शोर ही मचाना होता और मेरी शिकायत ही करनी होती तो अभी तक वो कब का कर देतीं।

शायद वो डर रही हैं और वैसे भी रेखा भाभी बहुत ही सीधी साधी और बेहद ही शरीफ हैं। इसलिए ही शायद उन्होंने पहले भी मेरी शिकायत नहीं की। अब ये बात मेरे दिमाग में आते ही मुझमें अब फिर से हिम्मत आ गई और एक बार फिर से मैंने अपना हाथ धीरे से रेखा भाभी की जाँघ पर रख दिया....

मगर इस बार रेखा भाभी को नींद नहीं आई थी इसलिए जैसे ही मैने अपना हाथ उनकी जाँघ पर रखा वो एक बार तो हल्का सा कुनकुनाई फिर उन्होंने तुरन्त ही मेरा हाथ झटक कर दूर कर दिया और पास ही रखी चद्धर को ओढ़कर सुमन दीदी के नजदीक खिसक गईं।
अब तो मुझे और भी यकीन हो गया की रेखा भाभी डर रही हैं इसलिए वो किसी से कुछ नहीं कहेंगी। रेखा भाभी के अब इसी डर का मैने फायदा उठाने की सोची और कुछ देर ऐसे ही सोने का नाटक करके उनको नींद आने का इन्तजार करने लगा.
 
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करीब अब आधे-पौने घण्टे तक तो मै ऐसे ही बिना कोई हरकत किये इन्तजार करता रहा और जब मुझे लगा की रेखा भाभी गहरी नींद सो गई हैं.. तो मैंने धीरे से उनकी तरफ फिर से अपना हाथ बढ़ा दिया... मगर अबकी बार रेखा मेरे हाथ की पहुँच से दुर थीं।

वो सुमन दीदी के बिल्कुल पास होकर सो रही थीं इसलिये लेटे-लेटे मेरा हाथ उन तक नहीं पहुँच पा रहा था। अब मैने भी जब लेटे-लेटे मेरा हाथ रेखा भाभी तक नहीं पहुँचा, तो धीरे से खिसक कर अपने आधे शरीर को उनके बेड पर कर लिया और आधे शरीर को अपनी चारपाई पर ही रहने दिया।

फिर धीरे, बिल्कुल ही धीरे से पहले तो उनके पैरों की तरफ से चद्धर को हटाया, फिर धीरे-धीरे उनकी साड़ी व पेटीकोट में हाथ डालकर ऊपर की ओर बढाना शुरु कर दिया...

पर इस बार मैं रेखा भाभी की साड़ी व पेटीकोट को उनके जाँघों तक ही ऊपर कर सका, क्योंकि इसके ऊपर वो उनके पैरो के नीचे दबे हुए थे और उनको ऊपर करने के लिए मैंने उन्हें अब जैसे ही खींचा... रेखा भाभी ने तुरन्त मेरा हाथ पकङ लिया।

रेखा भाभी की नींद खुल गयी थी इसलिये मुझे हटाने के लिये वो अब जल्दी से उठकर बिस्तर पर बैठ गयी और दोनो हाथो से मुझे हटाने की कोशिश करने लगीं, मगर अब मैं कहाँ हटने वाला था, मैं दोनों हाथों को रेखा भाभी के पैरो के नीचे से डालकर उनकी नर्म मुलायम जाँघों से लिपट गया और उनकी साड़ी व पेटीकोट में सिर डालकर उनकी नंगी जाँघों को चुम्बना शुरु कर दिया...

रेखा भाभी मुझसे बचने के लिए अब अपने घुटने मोड़ना चाहती थीं.. मगर मेरे शरीर का भार उनके पैरों पर था इसलिए वो ऐसा नहीं कर सकीं। तब तक मै रेखा भाभी की जाँघों को चूमते हुवे ऊपर उनकी जाँघो के जोङ पर भी पहुँच गया जहाँ उन्होंने अपना खजाना छुपा रखा था।

रेखा भाभी ने नीचे पेँटी पहनी हुई थी इसलिये मै अब पेंटी के ऊपर से ही उनकी चुत के आस पास के भाग को चूमने चाटने लगा... साथ ही उनके कूल्हों के नीचे से साड़ी व पेटीकोट में हाथ डालकर उनकी पेंटी को भी निकालने कोशिश करने लगा...

मगर तभी रेखा भाभी ने मेरे सिर के बालों को पकड़ लिया और मेरे बालों को खींचकर मुझे हटाने की कोशिश करने लगीं। बाल खिंचने से मुझे अब दर्द होने लगा था.. इसलिए मैं भी पीछे हटने लगा, मगर मेरे हाथ रेखा भाभी की पेंटी को पकड़े हुए थे इसलिए मेरे पीछे हटने के साथ-साथ उनकी पेंटी भी नीचे उतरती चली गयी।

रेखा भाभी अब एक साथ एक ही काम कर सकती थी, या तो वो अपनी पेंटी को पकड़ लेतीं या फिर मेरे बालों को..? और जब तक वो मेरे बालों को छोड़कर अपनी पेंटी को पकड़तीं.. तब तक उनकी पेंटी घुटनो तक उतर गयी...

अब रेखा भाभी उसे दोबारा ऊपर करें.. उससे पहले ही मैं फिर से उनकी जाँघों से चिपक गया और उनकी गोरी चिकनी जाँघों पर फिर से चुम्बनो की झङी लगा दी।

रेखा भाभी मुझे हटाने के लिए अपनी पूरी कोशिश तो कर रही थीं मगर इतना अधिक भी नही की वो‌ मुझे हटा सके, क्योंकि सुमन दीदी भी वही पर सो रही थी। हमारी हरकत से कही सुमन दीदी जाग ना जाये इस बात का डर मुझे तो था ही, मगर रेखा भाभी इस बात से कुछ ज्यादा ही डर रही थी और उसके चलते ही वो मेरा इतना अधिक विरोध नही‌ कर पा रही थी।

अब इन मामलो मे तो, मै हुँ ही पक्का कमीना, क्योंकि मै उनके इसी डर का तो फायदा उठा रहा था, और इसके चलते ही मै रेखा भाभी की जाँघो को चुमते चाटते फिर से अपना सिर उनकी साङी व पेटीकोट मे घुसा दिया...

रेखा भाभी का पूरा बदन अब डर के मारे काँप रहा था, वो बार-बार सुमन दीदी की तरफ देख रही थीं की कही वो जाग ना जाये, तो कभी मुझे हटाने की कोशिश कर रही थी, पर अब मै कहाँ मानने वाला था...

सुमन दीदी के जाग जाने का डर तो मुझे भी था.. मगर एक तो सुमन दीदी दीवार की तरफ करवट करके सो रही थी और दूसरा इतना कुछ हो जाने के बाद मैं अब पीछे नही हटना चाहता था इसलिए मैं उनकी दोनों जाँघों को बांहों में भर कर उनसे चिपटा रहा और उन्हे चुमते चाटते हुवे उपर उनकी चुत की ओर बढता रहा...
रेखा भाभी भी अब विवश सी हो गयी थी, वो ना तो शोर मचा सकती थीं और ना ही मुझे हटा पा रही थीं बस कसमसाये जा रही थी। तब तक मै उनकी जाँघो को चुमते हुवे उनकी जाँघो व पेट के जोङ वाले त्रिकोण पर पहुँच गया जहाँ से उनकी चुत की बेहद ही मादक सी गंध आ रही थी।
 
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मेरा मुँह अब रेखा भाभी की चुत के उपर तो था मगर अभी भी उनकी चुत मेरी पहुँच से काफी दुर थी, क्योंकि एक तो रेखा भाभी ने अपनी दोनों जाँघों को जोरो से भींचा हुवा था और दूसरा उनके बैठे होने के कारण उनकी चुत दोनो जाँघो के बीच बिल्कुल छिपी हुई थी।

अब मेरा मुँह रेखा भाभी की चुत तक तो नही पहुँच सकता था इसलिए मैं उनकी जाँघों व पेट के जोङ वाले त्रिकोण के ऊपरी भाग को ही अपनी जीभ व होंठों से सहलाने लगा, साथ ही नीचे दोनों हाथों से उनकी जाँघों को अन्दर की तरफ से भी सहलाना शुरु कर दिया... जिससे रेखा भाभी अब और भी जोरो से कसमसाते हुवे मुझे हटाने की कोशिश करने लगी...

मगर मेरे इस दोहरे हमले को वो ज्यादा देर तक सहन‌ नही कर सकी... और कुछ ही देर बाद इसका असर रेखा भाभी पर भी दिखने लगा, उनकी जाँघों की पकड़ अब ढीली सी पड़ने लगी थी..

अब मैं तो इसी मौके की तलाश में था इसलिये अब जैसे ही रेखा भाभी की जाँघो की पकङ कुछ हल्की हुई मैंने धीरे धीरे करके पहले तो रेखा भाभी की पेंटी को खिसका कर उसे पुरा उतार दिया, फिर धीरे से अपबे दोनों हाथों को उनकी जाँघों के बीच घुसा दिया...

मेरी इस चालाकी का शायद अब रेखा भाभी को भी अहसास हो गया था इसलिए उन्होंने अब फिर से अपनी टाँगों को सिकोड़ने की कोशिश भी की.. लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी... क्योंकि तब तक मैंने अपने दोनों हाथों को उनकी जाँघो के बीच घुसाकर उनकी जाँघों को फैला दिया...

रेखा भाभी की जाँघो को फैलाकर मैने अब अपना सिर सीधा उनकी दोनों जाँघों के बीच घुसा जिससे मेरे प्यासे होठो अब सीधा उनकी नँगी चुत से जा टकराये.. अपनी नँगी चुत पर मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही एक बार तो अब रेखा भाभी भी सिहर सी गयी.. मगर फिर वो कसमसाते हुवे मुझे हटाने के लिए फिर से धक्के मारने लगीं...

पर अब मैं कहाँ हटने वाला था, मैं उनकी जाँघों को पकड़ कर उनसे चिपटा रहा और धीरे धीरे भाभी की चुत को चूमता चाटता रहा.. अबकी बार मैने रेखा भाभी की सीधे चुत पर हमला किया था और इस हमले का असर तो जो होना था वही हुवा...

फिर रेखा भाभी तो ना जाने कब से इस प्यार की प्यासी थी इसलिये कुछ ही पलों बाद उनका विरोध क्षीण पड़ गया और मैं उनकी चुत की फाँकों को चूमता चाटता चला गया।

रेखा भाभी की चुत की फाँको को चुमते चाटते हुवे अपनी जीभ से धीरे-धीरे चुत के अनारदाने को भी तलाश रहा था। मगर मुझे चुत का अनारदाना तो‌ नही मिला पर थोड़ा सा नीचे बढ़ते ही मुझे चुत की फाँको के बीच कुछ गीलापन सा महसूस हुआ..

और इसका मतलब ये था की मेरी इस हरकत से रेखा भाभी को भी अब मजा आ रहा था.. इसलिए मैं रेखा भाभी की चुत को चूमते हुवे अब धीरे-धीरे सीधा नीचे उनके प्रेमद्वार‌ की तरफ बढ़ गया।

रेखा भाभी के बैठे होने के कारण उनकी चुत का प्रेमद्वार तो नीचे दबा हुआ था.. इसलिए मैं उनके प्रेम‌द्वार तक नहीं पहुँच सका। मगर फिर भी रेखा भाभी के प्रेमरस से भीगे चुत के बालों को ही चाट लिया, जो की बङे ही नमकीन व कसैले से रश से भीगे थे।

मेरे होठ व जीभ अब रेखा भाभी के प्रेमद्वार के करीब जाते ही उनके मुँह से ना चाहते हुए भी एक हल्की सीत्कार फूट पड़ी और उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के बालो को पकङकर मेरे मुँह को अपनी चुत से दुर हटा दिया...

सिर के बाल‌ खिँचने से मुझे भी अब दर्द हुवा इसलिये एक बार तो मैने भी अपने होठो को उनकी चुत से अलग कर लिया मगर उसके अगले ही पल मैने फिर से से अपने होठो को चुत की फाँको से जोङ दिया..

इस बार रेखा भाभी ने भी मेरा विरोध नही किया बस हल्का सा सिसककर रह गयी। मैंने भी अब एक बार तो रेखा भाभी की चुत से रिसते हुए प्रेमरस को चखकर देखा, फिर वापस अपनी जीभ को ऊपर की तरफ ले जाकर चुत के अनारदाने को तलाश करने लगा...

मगर उनकी चुत इतने घने गहरे बालों से भरी हुई थी की वो मेरे मुँह में आ रहे थे। शायद कई महीनों से..., महिने नही शायद सालो से रेखा भाभी ने उन्हें साफ नहीं किया था। इसलिये मैंने अब रेखा भाभी की जाँघों को छोड़ दिया और दोनों हाथों की उंगलियों से उनकी काम सुरंग की दोनों फांकों को फैलाकर फिर से अपनी जुबान को रेखा भाभी की चुत पर रख दिया।

अब की बार मेरे होठो ने सीधा रेखा भाभी के अनारदाने को स्पर्श किया था इसलिए एक बार फिर उनके मुँह से हल्की सी सीत्कार फूट पड़ी और वो हल्का कसमसाकर थोङा पीछे हट गयी। मेरे होठ अब रेखा भाभी की चुत से अलग हो गये थे मगर मैने अपना काम कर दिया था।
रेखा भाभी अब काफी उत्तेजित लग रही थीं क्योंकि उनका विरोध अब ना के बराबर रह गया था। मौके का फायदा उठाकर मैने उन्हे अब हल्का सा ही धकेला तो वो चुपचाप बैड पर लेट गयी।
 
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रेखा भाभी अब पूरी तरह से मेरे वश में थी इसलिए मैं रेखा भाभी को अपनी चारपाई पर ले जाने के लिए धीरे-धीरे उन्हें अपनी तरफ खींचने लगा। मगर रेखा भाभी खिसक कर थोड़ा सा तो मेरी तरफ आईं.. फिर रूक गईं। शायद उन्हें अहसास हो गया था की मैं उन्हें चारपाई पर ले जाकर क्या करना चाहता हूँ..?

सुमन दीदी के वहाँ होते हुए शायद रेखा भाभी मुझे ऐसा कुछ करने भी नहीं देंगी.. इसलिए मैंने भी सोचा की जो मिल रहा है उसी से काम चला लिया जाये। अब ज्यादा जोर जबर्दस्तीके चक्कर मे हो सकता है कही जो मिल रहा है वो भी हाथ से जाता रहे...

ये सोचकर मैंने अब रेखा भाभी को थोङा सा अपनी तरफ खिँचकर बस सुमन दीदी से दुर किया, फिर अपने सिर को उनकी साङी व पेटीकोट मे घुसाकर फिर से उनकी गोरी चिकनी जाँघो को चुमना शुरु कर दिया...

रेखा भाभी अब भी बार-बार सुमन दीदी की तरफ ही देख रही थी और कभी कभी हल्के हल्के वो मुझे हटाने का भी प्रयास कर रही थी मगर उनका ये प्रयास बस अब दिखावा ही चल रहा था, नही तो वो अब पुरी तरह से मेरे वश मे थी।

तब तक मै रेखा भाभी की जाँघो को चुमते हुवे मै अब फिर से उनकी चुत पर पहुँच गया और अपने प्यासे होठो को फिर से उनकी चुत के होठो से जोङ दिया...

रेखा भाभी ने भी अब मुझे हटाने की या अपने कपड़े सही करने की ज्यादा कोशिश नहीं की बल्कि जो चद्धर उन्होंने पहले ओढ रखी थी उस चद्धर को ही सही से करके अपनी नँगी जाँघो पर डाल लिया साथ ही मुझ पर भी वही चादर डालकर मुझे उस चादर से छिपा लिया। ताकी अगर सुमन दीदी गलती उठ भी जाये तो हमे इस हाल मे ना देख सके।

रेखा भाभी ने मुझे अब चद्दर मे तो घुसा लिया था मगर उन तक पहुँचने के लिए मेरा आधा शरीर बेड पर था और आधा चारपाई पर लटक रहा था। मैं और रेखा भाभी अग्रेजी के अक्षर टी (T) की तरह हो रखे थे.. जिस कारण मुझे रेखा भाभी की चुत तक पहुँचने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी।

मैं रेखा भाभी को खीँचकर उनका मुँह अब अपनी तरफ करना चाहता था.. मगर जैसे ही मैने उन्हे अपनी तरफ खीँचा रेखा भाभी ने सुमन दीदी की तरफ करवट बदल ली और अपने घुटनो को मोड़कर अपने कुल्हो को मेरी तरफ निकाल दिया।

रेखा भाभी के कूल्हे अब मेरी तरफ हो गये थे.. इसलिए मैंने अब एक बार उनके नँगे कूल्हों को ही चूमा फिर धीरे से भाभी के एक पैर को उठाकर उसके नीचे से अपना सिर दोनो जाँघो के बीच घुसा दिया.. जिसका उन्होंने अब कोई विरोध नहीं किया बल्की खुद ही अपना घुटना मोड़कर मेरे कंधे पर रख दिया..

मेरे लिए ये तो और भी अच्छा हो गया था क्योंकि इससे रेखा भाभी की दोनों जाँघें अब अपने आप ही खुल गयी थी और मेरा मुँह अब रेखा भाभी की दोनों जाँघों के बीच बिल्कुल उनकी चुत के प्रवेशद्वार पर ही पहुँच गया था।
शायद रेखा भाभी ने ऐसा जानबूझ कर और मेरी सहूलियत के लिए ही किया था, इसलिए मैंने भी अब प्यार से रेखा भाभी की गीली चुत को एक‌ बार जोरों से चूम लिया, जिससे रेखा भाभी जोरो से सिसक उठी और उपर की ओर उकसकर मरे होठो से अपनी चुत को अलग कर लिया।

मगर इस बार उन्होने ऐसा बस कुछ पल के लिये ही किया और मेरे बिना कुछ किये ही वापस अपनी चुत को मेरे होठो से लगा दिया...
 

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