श्रृष्टि की गजब रित

I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
दृश्य में बदलाव

राघव इस वक्त अपने दफ्तर रूम में बैठा साक्षी की क्लास लगा रहा था। वजह वहीं जिसके लिए राघव लगभग प्रत्येक दिन डांटा करता था। राघव डांटते हुए बोला... साक्षी तुम्हें एक बात बार बार क्यों कहना पड़ता हैं? एक बार में तुम सुन क्यों नही लेती? मैं दूसरो जैसा नहीं हूं जो लड़कियों को नुमाइश की वस्तु समझें मगर तुम हों की नुमाइश करने से बाज नहीं आती। आज तुम्हें आखरी भर चेतावनी दे रहा हूं। अगली बार तुम्हारे शर्ट का बटन, मुझे खुला हुआ दिखा तो वो दिन इस दफ्तर में तुम्हारा आखरी दिन होगा। अब तुम जाओ और अपना काम करो।

साक्षी को झिड़ककर राघव एक फाइल देखने लग गया और साक्षी सनसनीखेज नजरों से राघव को देखा फिर पलट कर जाते हुए मन में बोला... क्या आदमी है कितना भी डोरे डालो फंसता ही नहीं, इनके जगह कोई ओर होता तो अब तक ना जाने कितनी बार इस नदिया में गोते लगा चुका होता और ये है की मेरे स्तनों की गहराई नाप ने के बजाय उसे बंद करने को कह रहा है । खैर कोई बात नहीं इन्हें फंसाने का कोई न कोई पैंतरा ढूंढ ही लूंगी। आज तक ऐसा कोई मर्द नहीं बना जो नारी के जलवे से हारा ना हो! कोई समय ज्यादा लेता है तो कोई तुरंत गोटा लगा देता है| खेर जहा मेहनत नहीं वहा संतुष्टि नहीं|

मन ही मन खुद से बातें करते हुए साक्षी द्वार तक पहुंच गई जैसे ही द्वार खोला सामने श्रृष्टि को खड़ी देखकर सवाल दाग दिया... तुम कौन हों और यहां किस काम से आई हों?

श्रृष्टि... मैम मैं श्रृष्टि हूं और यहां साक्षात्कार देने आई हूं।

साक्षी... तो यहां क्या कर रहीं हो? साक्षात्कार तो दुसरी ओर हो रहा है। उधर जाओ।

श्रृष्टि... पर मुझे तो राघव सर ने यहीं बुलाया था।

श्रृष्टि का इतना बोलना था की साक्षी को सोचने पर मजबूर कर दिया और साक्षी मन ही मन बोलीं...क्यों, आखिर क्यो राघव सर ने इस लड़की को साक्षात्कार देने अपने पास बुलाया? जबकि राघव सर किसी का साक्षात्कार लेते ही नहीं, तो फ़िर क्यों इस लड़की का साक्षात्कार खुद लेना चाहते हैं? इस लड़की के साथ राघव सर का क्या रिश्ता हैं? सोच साक्षी सोच कुछ तो गड़बड़ है। मामला क्या है पाता लगाना पड़ेगा?सुने श्रुष्टि को ऊपर से निचे तक देखा और मन ही मन सोचने लगी की साली भरी हुई है सब जगह से शायद उसने श्रुष्टि को अपने आप से ज्यादा सुन्दर पाया, पर खेर अभी उसके पास कोई अवसर नहीं था जिसे वो श्रुष्टि को वापस भेज सके या उसे कुछ कह सके

यहां साक्षी ख़ुद की सोच में गुम थी और वहां जब राघव की नज़र द्वार पर पडी तो साक्षी को खडा देखकर बोला... साक्षी तुम अभी तक गई नहीं, वहा खड़ी खड़ी क्या कर रहीं हों?

साक्षी अपने सोच से मुक्त होकर जवाब देते हुए बोली... सर कोई श्रृष्टि नाम की लड़की आई है और...।

साक्षी की बात बीच में कटकर राघव बोला... ओ श्रृष्टि! साक्षी तुम जाओ अपना काम करो और उन्हें अंदर भेजो।

"उन्हे! वाहा जी वाहा" मन ही मन इतना बोलकर साक्षी द्वार से हटकर आगे को चली गई और श्रृष्टि द्वार से ही बोलीं… सर मैं भीतर आ सकती हूं।?

राघव... हां बिल्कुल आइए, आपको भीतर आने के लिए ही बुलाया गया था।


अब क्या राघव कोई रिश्तेदार है ?

क्या श्रुष्टि का खेल बनेगा ?

क्या श्रुष्टि अपना इंटरव्यू पास कर पाएगी ?

जानिऐ मेरे साथ अप्गले भाग में ............. तब तक आप अपने मंतव्य देते रहे ..........
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग - 5

भीतर प्रवेश करते ही राघव को देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं... हे भगवान ये तो वहीं है जिन्होंने मेरा डॉक्युमेट लौटाया था। हे भगवान फिर से कोई बखेड़ा खडा मत करवा देना।

मन ही मन बोलते हुए श्रृष्टि जाकर राघव के सामने खडी हों गईं। श्रृष्टि को खडा देखकर राघव ने उसे बैठने को कहा बैठते ही श्रृष्टि बोलीं...सर अभी बहार जो कुछ भी आपसे कहा था उससे अगर आपको बुरा लगा हों तो माफ कर देना।

राघव ने उसके बातों का कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा कर देखा फ़िर एक साक्षत्कार अधिकारी की तरह श्रृष्टि के एक एक क्रियाकलाप पर नज़र बनाए हुए ही कुछ इधर उधर की बाते करने के बाद श्रृष्टि की मूल साक्षत्कार लेना शुरू किया।

श्रृष्टि की प्रमाण पत्र पुस्तिका को लेकर एक एक पेज देख रहा था और उससे वास्ता रखने वाला एक सवाल दाग देता। एक के बाद एक कई सवाल दागा गया। जिसका जवाब श्रृष्टि ने बड़े ही तहजीब और सलीके से दिया। एक वक्त ऐसा भी आया जब श्रृष्टि की फाइल में लगीं कुछ भवन मानचित्र सामने आया जिसे देखकर राघव बोला...एक गैर ज़िम्मेदार लड़की इतना भी ज़िम्मेदार हो सकती हैं कि इतनी बेहतरीन भवन मानचित्र भी बना सकती हैं या फिर ये सभी भवन मानचित्र किसी दूसरे की बनाई हुई हैं।

राघव सपाट लहज़े और गंभीर मुद्रा में ये सवाल दागा, जिसे सुनकर श्रृष्टि को बेहद गुस्सा आया। दोनों मुठ्ठी को भींचे, गुस्से को काबू करने में लग गईं। इसके अलावा श्रृष्टि कर भी क्या सकती थी।

राघव एक माहिर साक्षत्कार अधिकारी होने का पूरा पूरा परिचय दे रहा था उसकी नज़रे प्रमाण पत्रों पर बन हुआ था लेकिन खांकियों से श्रृष्टि के हाव भाव को भी देख रहा था। जब श्रृष्टि ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया तो एक बार फिर राघव बोला...क्या हुआ श्रृष्टि जी अपने कोई जबाव नहीं दिया या फ़िर जो मैंने कहा उसका एक एक लवज़ सही हैं।

श्रृष्टि...सर ये सभी भवन मानचित्र मेरे मेहनत का नतीजा हैं न कि किसी दूसरे की मेहनत हैं।

राघव...चलो आप कहती हों तो मान लेता हूं।

एक बार फिर से राघव प्रमाण पत्र पुस्तिका के एक एक पेज पलटकर देखने लग गया और जब अंत में पहुंचा तो उसे देखकर राघव बोला... श्रृष्टि जी आपका कार्य अनुभव बता रहा हैं कि आपने कई छोटे बड़े कंसट्रक्शन कंपनी में काम किया मगर इन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अपने डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप जैसे नामी कंपनी में भी काम किया फिर ऐसा क्या करण रहा जिसके वजह से आपको वो कंपनी छोड़ना पड़ा। कहीं ऐसा तो नहीं आपके गैर जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से आपको निकाल दिया गया हों।

मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं (कुछ पल रूकी और आई हुई गुस्से को काबू करते हुए आगे बोला) सर मैं गैर ज़िम्मेदार नहीं हूं और न ही मैं डीएन कंसट्रक्शन ग्रुप से निकली गई हूं बल्कि मैं ख़ुद उस कंपनी को छोड़ दिया था। अब आप छोड़ने की वजह न पूछ बैठना क्योंकि आप कारण पूछोगे तब भी मैं नहीं बताने वाली।

राघव की नज़र भले ही नीचे प्रमाण पत्र पुस्तिका देखने में था मगर खांकियो से श्रृष्टि पर नज़र बनाया हुआ था। इसलिए उसे दिख गया की कुछ सवालों के दौरान श्रृष्टि को बहुत गुस्सा आया। जिसे देखकर राघव मन ही मन मुस्कुरा दिया। कुछ और सावल जवाब का दौर चला अंत में श्रृष्टि को उसका प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस देते हुए राघव बोला...श्रृष्टि जी अब आप जा सकती हों नौकरी की जानकारी आपको मेल या फिर लेटर द्वारा भेज दिया जाएगा।

बाद में जानकारी देने की बात सुनकर एक बार फिर से श्रृष्टि निराश हों गईं क्योंकि श्रृष्टि को उम्मीद था कि इतने वक्त तक साक्षत्कार चला हैं तो शायद उसको नौकरी मिल जाएं मगर इसका आसार उसे दिख नहीं रहा था। बाद में जानकारी देने का मतलब वो अच्छे से जानती हैं। इसलिए अनमाने मन से उठी और राघव को धन्यवाद कहकर चल दिया। अभी द्वार तक पुछा ही था कि राघव बोला... श्रृष्टि जी रूकिए! अगर आप मेरी कुछ शर्तों को पूरा करने का वादा करती हैं तो ये नौकरी आपको मिल सकता हैं।

नौकरी मिलने की बात सुनते ही श्रृष्टि खुशी से झूम उठी और मुस्कुराते हुए बोलीं... कैसी शर्त?

राघव... शर्त बस इतना हैं कि जो भी काम आपको दिया जाए उसे आप जिम्मेदारी से निभायेंगे।

श्रृष्टि... जी बिल्कुल आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।

राघव... ऐसा है तो अब आप खुशी खुशी घर जा सकती हैं और जब आपको ज्वाइन करने को कहा जाएं तब आकर जॉइन कर लेना।

एक बार फ़िर से श्रृष्टि चहकती मुस्कुराती हुई आभार व्यक्त किया फ़िर चलती बनी और राघव बोला... ओ क्या लड़की हैं? दिखने में जितनी मासूम और भोली हैं उतनी ही तेज तर्रार और गुस्से वाली और सबसे बडी बात स्वाभिमानी हैं मगर मैं उसके बारे में ऐसी बातें क्यों कर रहा हूं?


अब ये तो कौन बतायेगा ?????????

जारी है आगे पढ़िए
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
श्रृष्टि को नौकरी मिल चुका हैं। ये बात घर आकर मां को बताया तो मां भी बेटी के खुशी में सारिका हों गई। मगर मां की ख़ुशी में सेंधमारी करतें हुए ख़ुद के साथ घटी एक एक घटना मां को कह सुनाया उसके बाद बोलीं...मां आपके बला उतराई और दही शक्कर खिलाने के बाद भी मुझे कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा तब कही जाकर नौकरी मिला।

"श्रृष्टि बेटा तुम इस घटना हो नकारत्मक नजरिए से क्यों देख रहीं है? तुम इस घटना को सकारात्मक नजरिया से भी देख सकती हों। जरा सोचकर देखो अगर मैं तुम्हारी बला न उतारती, तुम्हें दही शक्कर न खिलाती तो हों सकता हैं तुम्हारी मुस्किले ओर बढ़ जाती फिर जो नौकरी तुम्हें मिला हैं वो भी नहीं मिलती।"

मां के कहने पर श्रृष्टि अपने साथ घटी एक एक घटना को फिर से रिवाइन करने लग गई तब उसे समझ आया की मां का कहना सही हैं तब श्रृष्टि बोलीं... मां आप कह तो सही रहीं हों अब देखो न कोई ऑटो वाला उस रूट पर जानें को तैयार नहीं हों रहा था। ऐसे में एक ऑटो वाला परमिट न होते हुए भी मुझे उस रूट पर लेकर गया। अनजान होते हुए भी मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस लौटाने आया। मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वहां के सीईओ के हाथ लगना उनके जरिए मुझ तक पहुंचना, साक्षत्कार स्थगित होने के बाद भी मेरा साक्षत्कार सीईओ द्वारा लेना जबकि वो किसी का साक्षत्कार नहीं लेते हैं।

"इसलिए तो कहते है जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब बस मन लगाकर ईमानदारी से नौकरी करना ओर एक बात इन अमीर लोगों से उतना ही वास्ता रखना जीतना काम के लिए जरूरी हों क्योंकि इनकी फितरत आला दर्जे की होती हैं। ये लोग सही गलत नहीं देखते, बस अपना फायदा देखते हैं।"

श्रृष्टि... मैं जानती हूं आप ये बात क्यों कह रहीं हों। आपकी बताई सभी बातों का ध्यान रखूंगी।

मां ने ऐसी बातें क्यों कहा? ये तो सिर्फ़ वो जानें या फिर श्रृष्टि जानें बरहाल समय का पहिया घुमा और देखते ही देखते तीन दिन बीत गया। आज श्रृष्टि को एक मेल आया जिसमे दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करने की बात कहा गया था। खुशी खुशी ये बात श्रृष्टि ने मां को बता दिया।

अगले दिन सुबह के लगभग ग्यारह बजे करीब माताश्री कोई जरूरी काम बताकर कहीं चली गईं। जाना तो श्रृष्टि भी चाहती थीं मगर माताश्री उसे लेकर नहीं गईं। जिस भी काम को निपटाने गई थी उसे निपटाकर माताश्री दोपहर को लौट आईं।

शाम के वक्त दोनो मां बेटी चाय का लुप्त ले रहीं थीं उसी वक्त किसी ने अपने आगमन का संदेश द्वार पर लगी घंटी बजाकर दिया। तब माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाकर देख तो कौन आया हैं?

माताश्री के कहते ही श्रृष्टि बहार गई। वहां एक लड़का चमचमाती न्यू स्कूटी के साथ खडा था। उसके पास जाकर श्रृष्टि बोलीं...जी बोलिए क्या काम था?

"जी आपका ही नाम श्रृष्टि हैं।"

श्रृष्टि...जी मेरा ही नाम श्रृष्टि हैं। लेकिन आपको मूझसे क्या काम?

"जी आप ही से काम हैं ये स्कूटी जो आपको सौंपना हैं।"

श्रृष्टि... मुझे पर क्यों? मैंने तो किसी तरह का कोई ऑर्डर नहीं दिया।

"श्रृष्टि बेटा ले लो ये तुम्हारे लिए ही हैं।" माताश्री ने पीछे से बोला तो श्रृष्टि मां की और पलटकर देखा तब माताश्री ने हा में सिर हिला दिया तब कहीं जाकर श्रृष्टि ने स्कूटी की चाबी लिया और वापस पलट कर मां के पास जाकर मां से गले मिलते हुए बोलीं... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

"जरूरत थी बेटा, मैं बहुत दिनों से सोच रहीं थीं तुम्हें एक स्कूटी दिलवाऊँ लेकिन कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। अब जब मौका मिला तो मैंने भी मौका ताड़ लिया अब मेरी बेटी को नौकरी पर जानें के लिऐ ऑटो की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगा।"

श्रृष्टि…. मां पर….।

"पर वर छोड़ और अपनी मां को अपनी नई स्कूटी की सवारी करवा।"

कुछ ही क्षण में दोनों मां बेटी दुपहिया पर सवार होकर घूमने चल दिया। श्रृष्टि के लिए मानो खुशियों का अंबर लग गया पहले कितनी सारी मुस्किलों का सामना करने के बाद नौकरी मिला और अब दुबारा उन्ही मुस्किलों का सामना न करना पड़े सिर्फ इसलिए माताश्री ने उसे न्यू स्कूटी दिलवा दिया।
जारी रहेगा... बने रहिये .....

आज के इस एपिसोड में कुछ खास ऐसी कुरियोसिटी जैसा तो नहीं पर क्या जाने आगे क्या होनेवाला है .......
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग - 6
कहते हैं मुश्किलों के बाद मिली हुई खुशियां अनमोल होती हैं। ठीक वैसे ही श्रृष्टि को मिली हुई खुशियां अनमोल थी। एक दिन बाद श्रृष्टि को नौकरी ज्वाइन करना था। मगर उससे पहले श्रृष्टि अपने एक मात्र सहेली समीक्षा से मिली और उसे मुश्किलों के बाद मिली खुशियों का बखान सुना डाला। दोस्त यार सहेली सभी ऐसे ही मौके के तलाश में रहती है। तो समीक्षा भला ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने देती। नई स्कूटी और नौकरी मिलने की सूचना पाते ही समीक्षा बोल पड़ी...नई स्कूटी नई नौकरी श्रृष्टि तेरे तो बारे नियारे हों गये। अब बता पार्टी कब दे रहीं हैं।

श्रृष्टि... अरे अरे ठहर जा लुटेरी, गांव बसा नहीं की लूटने पहुंच गई। पहले सैलरी तो मिल जानें दे फिर पार्टी ले लेना।

"श्रृष्टि ( दो तीन चपत लगाकर समीक्षा आगे बोलीं) मैं लुटेरी बता, बता मैं लुटेरी हूं।"

"अरे नहीं रे (समीक्षा को कोरिया कर श्रृष्टि आगे बोलीं) तू तो मेरी दोस्त है वो भी अच्छी वाली।

समीक्षा...अच्छा, अच्छा ठीक है। तुझे जब पार्टी देना हों दे देना। मेरे दोस्त को नई नौकरी मिलने की खुशी में आज पार्टी समीक्षा देगी। मगर जायेंगे तेरी नई फटफटिया पे।

इसके बाद दोनों सहेली श्रृष्टि की नई दुपहिया पर सवार हों चल पड़ी। करीब करीब दो से तीन घंटे में पार्टी मानकर दोनों सहेलियां लौट आईं।

अगले दिन श्रृष्टि तैयार होकर अपने लिए सभी जरूरी चीजों को लेकर जैसे ही कमरे से बहार निकली सामने माताश्री हाथ में दही का कटोरा और होंठो पर मुस्कान लिए खडी मिली।

माताश्री ने एक चम्मच दही श्रृष्टि के मुंह में डाला जिसे खाते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां आज एक चम्मच से कुछ नहीं होगा आज तो पूरा कटोरी भर दही खाने के बाद ही जाऊंगी।

इतना बोलकर माताश्री के हाथ से कटोरी झपट लिया और एक एक चम्मच करके पूरा कटोरी खाली कर दिया फ़िर कटोरी मां को थमा दिया। माताश्री एक चपत लगाया फ़िर बोलीं... मां से मशकरी कर रही हैं।

"मेरी भोली मां" इतना बोलकर मां से लिपट गईं फिर "बाय मां शाम को मिलते है" बोलकर चली गई। नई स्कूटी और चालक भी उतना ही बेहतरीन, हवा से बातें करते हुए कुछ ही वक्त में श्रृष्टि दफ़्तर पहुंच गई।

पहला दिन कहा बैठना हैं, काम क्या करना हैं? ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था तो रिसेप्शन पर जाकर तन्वी से पुछा, एक और इशारा करते हुए तन्वी बोली... मैम आप वहा जाकर बैठिए बाकी काम क्या करना हैं राघव सर ही बताएंगे।

बताई हुई जगह पर जाकर श्रृष्टि बैठ गई और दफ़्तर में मौजूद लोगों के हाव भाव का जायजा लेने लग गई। बरहाल कुछ ही देर में श्रृष्टि को बुलावा आ गया। बुलावा आते ही श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गईं।

आज श्रृष्टि का मुखड़ा खिला हुआ था। लबो पर मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहीं थीं। जिसे देखकर राघव की निगाहें एक बार फिर श्रृष्टि के मुखड़े पर अटक गई। दो चार पल अपनी निगाहें टीकाये रखा फ़िर सिर झटक कर मन में बोला... इस लड़की में क्या जादू हैं जो मेरी निगाह उस पर अटक जाती है। ओहो मेरे साथ ये क्या हों रहा हैं? पहले तो कभी नहीं हुआ।

"सर मैं बैठ सकती हूं।" ये आवाज श्रृष्टि की थी। जो कानों से टकराते ही राघव तंद्रा मुक्त हुआ और अचकचाते हुए बोला... जी जी बिल्कुल बैठ जाइए।

थोडी बहुत बाते हुआ फ़िर राघव ने किसी को फ़ोन किया। दो चार मिनट का वक्त बीता ही था कि किसी ने बंद द्वार खटखटाया और भीतर आने की अनुमति मांगा। द्वार पर साक्षी थी जिसे
अनुमति मिलते ही भीतर आई फ़िर बोली... सर कुछ कम था?

राघव... साक्षी इनसे मिलो ये है श्रृष्टि अभी नई नई ज्वाइन किया हैं।

दोनों में हैलो हाय हुआ फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये तो वहीं है जिनका साक्षत्कार आपने लिया था।

राघव.. हां, साक्षी तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला हुआ है अगले एक हफ्ते तक इनके साथ मिलकर काम करो (फ़िर श्रृष्टि से मुखातिब होकर आगे बोला) श्रृष्टि जी आप अगले एक हफ्ते तक साक्षी के साथ काम कीजिए। इस एक हफ्ते में मैं देखना चाहता हूं। आप अपना काम कितना जिम्मेदारी से करती हों। मुझे ठीक लगा तो एक हफ्ते बाद एक नई प्रोजेक्ट पर आप मेरे साथ काम करेंगे।

नई नई ज्वाइन किया और सिर्फ़ एक हफ्ते बाद नया प्रोजेक्ट मिलना, सिर्फ मिलना ही नहीं बल्कि सीईओ के साथ काम करना मतलब श्रृष्टि के लिए बहुत बडी बात हैं। इसलिए श्रृष्टि खुशी खुशी हां कह दिया मगर राघव की बात साक्षी को पसन्द नहीं आई। मुंह भिचकाते हुए साक्षी मन में बोलीं... मेरे साथ तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को राज़ी नहीं हुए और नई आई लड़की के साथ सिर्फ़ एक हफ्ते बाद काम करने को राज़ी हों गए। पक्का कुछ न कुछ रिश्ता दोनों में हैं मगर कोई बात नहीं इस लड़की को पास या फेल करना मेरे हाथ में हैं। मैं नहीं तो किसी और को भी आपके साथ काम नहीं करने दूंगी।

कुछ ओर जरूरी बातें करने के बाद दोनों को जानें को कहा। दोनों के जाते ही राघव रिवोलविंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फिर एक टांग पर दुसरी टांग चढ़ाकर, दोनों हाथों को सिर के पीछे बांधकर सिर सहित रिवोलविंग चेयर के पुस्त से टिका दिया और पैर को नचाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लग गया। राघव का यूं मुस्कुराने का ढंग अलग ही कहानी बयां कर रहा था। ऐसा लग रहा था राघव के मस्तिस्क में कुछ तो चल रहा हैं।

क्रमश:
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग 6 चालु.....

दृश्य में बदलाव

श्रृष्टि को साथ लिए साक्षी एक कमरे में पहुंची जिसे देखकर ही बतलाया जा सकता हैं। ये एक आर्किटेक का स्प्रेट कार्यालय है मगर ऐसा नहीं था वह पहले से ही चार पांच लोग मौजूद थे। उन सभी को आवाज़ देते हुए साक्षी बोला... हैलो गायेज इनसे मिलो इनका नाम है श्रृष्टि आज ही ज्वाइन किया हैं और अगले एक हफ्ते तक हमारे साथ काम करेंगे।

"नाईस नेम एंड स्वीट गर्ल।" "सो स्वीट नेम एंड सेक्सी गर्ल।" ऐसे तरह तरह के कॉमेंट सभी ने पास किया। जो श्रृष्टि को पसन्द नहीं आया मगर वो जानती थी इस तरह का कॉमेंट आम बात हैं। जो अमूमन साथ में काम करने वालो से सुनने को मिल जाता हैं। इसलिए ज्यादा बुरा नहीं माना, एक एक कर अपने बारे में बताते जा रहें थे। वो कहा से हैं, पहले कहा काम करता था। यह तक कैसे पंहुचा अब तक कितने प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। फलाना डिमाका एक विस्तृत जानकारी देने लग गए। जिस कारण बहुत अधिक समय जाया हों रहा था। इसलिए श्रृष्टि उन्हें रोकते हुए बोलीं...हे गायेज अपने बारे में जानकारी बाद में दे देना अभी काम क्या करना हैं इस पर बात कर लेते हैं।

"अरे श्रृष्टि भले ही एक हफ्ते के लिए हमें साथ में काम करना हैं फ़िर भी एक दूसरे की जानकारी तो होना ही चाहिए हों सकता है आगे भी हमें साथ में काम करना पड़े इसलिए अभी जान पहचाना हों जाएं तो आगे चलकर काम करने में आसानी होगा (सामने खडे साथियों को एक आंख दबाकर समीक्षा आगे बोलीं) चलो गायेज हमारी नई साथी को अपने बारे में जानकारी दो, ओर हा ठीक से देना जिससे कि श्रृष्टि हमारे साथ अच्छे से घुल मिल जाएं।"

श्रृष्टि उन्हें कुछ कहती या रोकती उससे पहले ही सभी अपनी अपनी राम कहानी का पिटारा खोलकर शुरू हों गए। अभी उनकी राम कहानी चल ही रहा था कि "ये क्या हों रहा हैं सभी काम धाम छोड़कर गप्पे हाकने में लगे हों। तुम्हें गप्पे मारने की नहीं काम करने की सैलरी दिया जाता हैं।" ये आवाज़ वहा गूंजा जो की राघव का था।

राघव को आया देखकर सभी तुंरत संभले ओर साक्षी चापलूसी करते हुए बोलीं...सर हम तो काम ही करना चाहते थे मगर श्रृष्टि ही कह रहीं थीं वो नई हैं सभी उसे अपने बारे में विस्तृत जानकारी दे, काम तो बाद में होता रहेगा।

साक्षी के साथ में काम करने वाले दूसरे साथियों ने उसके हां में हां मिलाकर सारा दोष श्रृष्टि पर मढ दिया। ये सुन और देखकर श्रृष्टि मन में बोलीं...सभी के सभी नम्बर वन कमीने हैं। इनसे बचकर रहना होगा नहीं तो गलती ये करेंगे और दोष मेरे सिर थोप देंगे। ये तो बाद की बात है अभी क्या करूं? अभी कुछ नहीं बोला तो बात और बिगड़ जाएगी। हे प्रभु तेरी मूझसे क्या दुश्मनी हैं? गलती न होते हुए भी मुझे पाचेडे में फसवा देता है। क्यों, आखिर क्यो ऐसा करता हैं?

मन ही मन खुद से बातें और ऊपर वाले से सावल करने के बाद श्रृष्टि अपने बचाव में बोलने जा ही रहीं थीं कि राघव बीच में बोला...श्रृष्टि जी मुझे लगता हैं एक गैर ज़िम्मेदार लड़की को नौकरी देखकर मैंने ख़ुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं। मुझे डर हैं कहीं आपकी संगत में रहकर मेरे काबिल और ज़िम्मेदार मुलाजिम कहीं आप की तरह गैर ज़िम्मेदार न बन जाएं।

श्रृष्टि... सर...।

"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।

क्या अब गेंद साक्षी के पास में है ???
साक्षी कुछ अपना नया रंग दिखायेगी या फिर श्रुष्टि से मिलजुल के काम को आगे बढ़ाएगी ?
राघव के मन में क्या चल रहा है ?
श्रुष्टि की जो पहली छाप उसके दिमांग में है क्या वो कायम रहेगी?
श्रुष्टि को अब क्या एक नयी नौकरी की तलाश कर लेना चाहिए ?
जानिये मेरे साथ अगले भाग में

जारी रहेगा...
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग - 7
"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।

बिना कारण, बिना कोई गलती किए पहले ही दिन बॉस से सुनने को मिला जिस कारण श्रृष्टि उदास सी सिर झुकाए खडी थीं और साक्षी अपने साथियों को थम्स अप का इशारा करते हुए कह रहीं थीं उनका पैंतरा काम कर गया फ़िर श्रृष्टि के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि (बस इतना बोलकर रूकी फिर चासनी की मिठास शब्दों में घोलकर आगे बोलीं) श्रृष्टि माना कि जो हुआ उसमे सारी गलती हमारी थीं फ़िर भी गलती का ठीकरा तुम पर ही फोड़ दिया इसके लिए माफ कर देना यार।

इतना बोलकर अपने साथियों की और देखकर इशारा किया तो वो लोग भी अपना अपना तर्क देकर माफ़ी मांगने लग गए। सभी को माफी मांगते देखकर श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोलीं...तुम लोग जीतना मुझे बुद्धू समझ रहें हों मैं उतनी हूं नहीं, हां माना की मैं भोली दिखती हूं और कुछ हद तक भोली भी हूं भी पर इतना भी नहीं कि तुम लोगों की चापलूसी समझ न पाऊं, मैं तुम जैसे लोगों का सामना पहले भी कर चुकी हूं और अच्छा किया जो पहले ही दिन तुम लोगों ने अपनी असलियत दिखा दी।

श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में लगीं हुईं थीं और साक्षी एक बार फिर से बोलीं...अरे यार तुम न ज्यादा तनाव न लो हम ख़ुद सर से बात करेंगे और कहेंगे तुम्हारी कोई गलती नहीं थी हम ने ही तुम्हें काम करने से रोका था। (फ़िर अपने साथियों की ओर देखकर बोलीं) अरे तुम लोग भी कुछ बोलों।

सभी हामी भरते हुए अपनी अपनी बात कहने लग गए और श्रृष्टि मुस्कुराकर देखते हुए बोलीं... चलो अच्छा हुआ तुम लोगों को गलती का आभास तो हुआ। अब कुछ काम कर लेते हैं। आखिर हमे पगार गप्पे हाकने की नहीं बल्कि काम करने की मिलती हैं।

श्रृष्टि के कहने के बाद सभी काम में जुट गए। श्रृष्टि के पास पहले से ही काम का अनुभव था इसलिए उसे समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुआ। बीच बीच में अल्प विराम लिया जिसे साक्षी और उसके साथियों ने लंबा खींचना चाहा मगर श्रृष्टि उनके मनसा पर पानी फेरते हुए अपने काम में लग गई। मजबूरन उन्हें भी श्रृष्टि के साथ काम में लगना पड़ा।

शाम के वक्त सभी बैठें चाय की चुस्कियां ले रहे थे साथ ही हसीं ठिठौली भी कर रहें थे। उसी वक्त राघव वहा आया, द्वार भिड़ा हुआ था लेकिन पूरी तरह बंद नहीं था। लगभग चार इंची जितना झिर्री खुला हुआ था। वहा से भीतर देखा तो उसे श्रृष्टि दिखा जो चाय की चुस्कियां लेते हुए हंस हंस कर बात कर रहीं थीं। यह देखकर राघव की निगाह श्रृष्टि पर ठहर गइ।

सहसा श्रृष्टि को लगा द्वार पर कोई हैं। इसलिए अपनी निगाह उस ओर कर लिया पर वहा उसे कोई नहीं दिखा तो भ्रम समझकर जानें दिया।

एक एक कर लगभग तीन दिन का समय बीत गया। इन तीन दिनों में साक्षी और उसके साथियों ने कई नए पैंतरे आजमाए ताकि वो श्रृष्टि को राघव की नजरो में गिरा सकें मगर ऐसा हों नहीं पाया बल्की इसका उल्टा ही असर हुए। काम के प्रति श्रृष्टि की लगन और जज्बा देखकर साक्षी के साथी श्रृष्टि की कायल हों गए। मगर साक्षी इससे ओर ज्यादा चीड़ गई इसलिए अपने तरकश में से एक और पैंतरा ढूंढ़ निकाला।

अगले दिन सभी काम में व्यस्त थे और साक्षी संडास जानें की बात कहकर निकल आई और जा पहुंची राघव के पास, साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कोई जरुरी काम था जो तुम इस वक्त मेंरे पास आई हों जबकि मैंने तुम्हें बुलाया भी नहीं!

साक्षी... हां सर बहुत जरुरी काम हैं।

राघव...अच्छा, चलो अपना जरुरी काम बाद में बताना पहले न्यू ज्वाइन श्रृष्टि के बारे मे बताओं वो काम कैसे कर रहीं हैं।

"ओ हो नई ज्वाइन श्रृष्टि की बडी फिक्र हैं।" मन ही मन इतना बोलकर अपने तरकश से तीर निकाला और राघव पर छोड़ दिया... सर मै श्रृष्टि के बारे में ही बात करने आई थीं। वो न अपने काम के प्रति बिलकुल भी ज़िम्मेदार नहीं हैं। अपने सही कहा था उसे नौकरी देकर अपने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं।

"ऐसा हैं।" खेद व्यक्त करते हुए ऐसे बोला जैसे उसे उसकी गलती का पछतावा हो रहा हो। तो साक्षी थोड़ ओर बढ़ा चढ़कर बोलीं... सर ये श्रृष्टि न, काम कम करती हैं और गप्पे ज्यादा हाकती हैं। कितना भी कह लो सुनती ही नहीं हैं। मैं तो उससे परेशान हों चुकी हूं। मैं और मेरे साथी काम करते हैं और वो हम में से किसी को काम करने से रोककर बतियाने लग जाती हैं।

"ये तो श्रृष्टि बहुत गलत कर रहीं हैं।" पूरी बात राघव गुस्सैल लहजे में कहा तो साक्षी आगे बोलीं... सर मेरा काम था आपको अगाह करना जो मैंने कर दिया अब आपको जो करना हैं वो करे बाद में मुझे न कहना कि मैंने आपको पहले से अगाह क्यों नहीं किया?

राघव... ठीक हैं तुम जाओ ओर अपना काम करो, श्रृष्टि का क्या करना हैं? मैं सोचता हूं।

श्रृष्टि वहां जी जान लगाकर काम कर रहीं है और यहां साक्षी संडास जानें का बहाना करके श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान भरके चली गईं। साक्षी के जाते ही रिवोल्विंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फ़िर एक टांग पर टांग चढ़ाए दोनों हाथों को सिर के पीछे लगाकर रिवोल्विंग चेयर के पूस्त से टिकाए पैर को नाचते हुए रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।

जायिगा नहीं अभी भाग चालू है
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
अब आगे
दृश्य में बदलाब

साक्षी काम करने वाली कमरे में पहुंच चुकी थी। उसे देखकर श्रृष्टि बोलीं...साक्षी संडास में बहुत वक्त लगा दिया। क्या करने गई थीं जो इतना वक्त लग गया?

साक्षी... वहीं जो सभी करने जाते हैं।

श्रृष्टि... अच्छा, मैं तो कुछ और ही सोचा था। खैर छोड़ो चलो काम पर लगते हैं।

"हां हां करले जीतना काम करना है। तू यहां जी जान से काम कर रहीं है और वहां सर सोच रहे हैं तू गप्पे करने में मस्त हैं।" मन ही मन बोलकर काम में लग गई।

शाम को चाय के वक्त राघव उस कमरे के पास आया पर भीतर नहीं गया बहार खड़े होकर हसीं मजाक करते हुए चाय पीती हुई श्रृष्टि को कुछ वक्त तक देखता रहा फ़िर वापस जाते वक्त खुद से बोला…मुझे क्या हों गया हैं? क्यो श्रृष्टि को देखते ही मेरा दिल मचल सा उठता हैं? क्यों अलग सा अहसास मेरे दिल में जाग उठता हैं? क्यों मैं उसकी और खींचा चला आता हूं?

क्यों, क्यों और क्यो? राघव इस क्यों का जवाब ढूंढ रहा था मगर उसे मिल नहीं रहा था। यहां दिन पर दिन बीतता जा रहा था और राघव श्रृष्टि पर कोई करवाई नहीं कर रहा था जबकि साक्षी ने इस बीच मौका देखकर श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान कई बार भर चुकी था। मगर राघव हैं कि दर्शक बने सपेरे का खेल देख रहा था। ऐसा क्यो कर रहा था? ये तो राघव ही जानता हैं। किंतु इसका नतीजा उलट ही दिख रहा था। राघव के बेपरवाह रवैया से साक्षी हद से ज्यादा चीड़ गईं। वो श्रृष्टि के सामने अच्छे होने का ढोंग करते रहना चाहती थी और पीठ पीछे श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान भी भरना चाहती थी। इसलिए खुलकर सामने से कुछ कर नहीं पा रही थीं।

साक्षी की चालबाजी से अंजान श्रृष्टि ईमानदारी और लगन से काम करने में लगीं हुईं थीं। श्रृष्टि के देखा देखी साक्षी सहित बाकी साथियों को भी लगन से काम करना पड़ रहा था या यू कहूं श्रृष्टि ख़ुद भी काम कर रहीं थी और बाकियों से भी काम करवा रहीं थीं। जिसका नतीजा ये हुआ। यहां प्रोजेक्ट जो काफी समय से लटका हुआ था लगभग समाप्ति के कगार पर आ चुका था।

राघव ने श्रृष्टि को मात्र एक हफ्ता साक्षी के साथ काम करने को कहा था। मगर दो हफ्ता श्रृष्टि को साक्षी के साथ काम करते हुए बीत चुका था। जिसकी चिंता साक्षी का वजन दिन पर दिन कम करता जा रहा था मगर श्रृष्टि पर इस बात का कोई असर ही नहीं पड़ रहा था उसे तो काम से मतलब था चाहे वो साक्षी के साथ करे या किसी और के साथ करें। ऐसे में एक दिन सुबह ऑफिस आते ही राघव ने श्रृष्टि और साक्षी सहित पूरे टीम को बुलावा भेजा।

दोनों यही सोच रही होगी अब क्या हुआ सर को?
साक्षी को क्या ठंडक पहोची की आखिर उसका मुकाम आ ही गया ?
या फिर राघव खुद ही कुछ करने वाला था ?? क्यों की उसने पूरी टीम को बुलाया है ??
बने रहिये मेरे साथ अगले भाग तक !!!!!!!


जारी रहेगा...
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
बिलकुल सही बात है आपकी हर जगह साक्षी जैसे मिलेंगे और अगर हम दूसरी तरीके से ले तो ऐसे लोगो की जरुरत भी है क्यों की
1 ऐसे लोग हमें अपने काम में ज्यादा ध्यान रखने के लिए प्रेरित करते है और काम तो हमेशा दीखता ही है हमें और बेहतर परिणाम देने के लिए प्रोत्साहित करते है .......
2ऐसे लोग हमें सिखाते है की जब हम राघव जैसे पोस्ट पे पहोचेगे तो ऐसे चापलूसी करनेवाले भी होंगे तो कौन क्या करता है ये जान ने में बहोत आसानी रहती है क्यों की हम उस दौर से गुजर चुके है ......शायद इसे ही अनुभव कहते है ...... जिस से हम और बेहतर परिणाम प्रकाशित कर सकते है
3 ऐसे लोगो को वैसे ही शिख मिल जाती है जब उसके जूनियर और आगे बढ़ जाते है

सही कहा आपने मुझे लगता है की या तो राघव साक्षी को अच्छी तरह जानता है या फिर वो ज्यादा अनुभवी और मेच्योर है होना भी चाहिए अगर अपनी कंपनी को आगे लेके जाना है तो अंदरवाले को और बाहरवाले दोनों को अच्छे से समजना पड़ेगा ......
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग - 8
बॉस का बुलावा आए और कलीग न जाए ऐसा भाला हों सकता हैं क्या।? सभी एक के बाद एक कमरे के भीतर प्रवेश कर गए। सबसे अंत में श्रृष्टि ने कमरे के भीतर प्रवेश किया। न चाहते हुए भी राघव की निगाह एक बार फ़िर श्रृष्टि के भोला, मासूम, खिला हुआ चेहरा और लबों पर तैरती मुस्कान पर अटक गया।


निगाहें अटकाए राघव श्रृष्टि को देखने में व्यस्त था और श्रृष्टि दो चार कदम भीतर की ओर बढ़ी ही थी कि सहसा उसे आभास हुआ। उसका बॉस उसे टकटकी लगाए देख रहा हैं।


आभास होते ही श्रृष्टि के गालों पर शर्म की लाली छा गईं और मंद मंद मुस्कान से मुस्कराते हुए अपने निगाहों को नीचे झुका लिया। और अपने कपड़ो को ठीक करने लगी कही कोई चुक तो नहीं है ना| और ये हर नारी का प्राकृतिक स्वभाव है उसने अपने कपड़ो की व्यवष्ठिता कु सिनिश्चित कर लिया और ठाडा आगे बढ़ी! उधर राघव के लवों पर भी स्वतः ही मुस्कान तैर गया।


दोनों के इस बरताव पर भले ही किसी ओर की नज़र पड़ा हों चाहें न पड़ा हों लेकिन साक्षी की निगाहों से बच न सका।


राघव को द्वार की ओर टकटकी लगाए देखते हुए मुस्कुराता देखकर साक्षी ने भी अपनी निगाह उस ओर कर लिया। वहा शरमाई सी मुस्कुराती हुई श्रृष्टि, साक्षी की निगाह में आ गईं। ये देखकर मन ही मन बोलीं... तो ये बात हैं। ये श्रृष्टि तो बडी तेज निकली अभी आए हुए कुछ ही दिन हुआ हैं और देखो कैसे सर से नैन लड़ा रहीं हैं। एक मैं हूं जो कब से कोशिश कर रहीं हूं और सर है की पिघलते ही नहीं! मुज से आगे है ये श्रुष्टि और लगता है इस मामले में काभी अनुभवि भी है


दोनों के नैनों से नैनों का टकराव शायद साक्षी को हजम नहीं हुआ इसलिए मेज पर रखा फ्लॉवर पॉट को टेबल से नीचे धकेलकर गिरा दिया।


फ्लॉवर पॉट के टूटने की आवाज़ कानों को छूते ही राघव की तंद्रा टूटा और हकलताते हुए बोला... क क क्या टूटा


"टूटा तो फ्लॉवर पॉट हैं पर लगाता है किसी का कुछ ओर भी टूट गया।" यहां आवाज साक्षी की थी। जिसमे तंज का घोल शब्दो में घुला हुआ था।


कोई बात नहीं, कभी न कभी इसे टूटना ही था तो आज ही टूट गया। (फिर सामने की और देखकर बोला) अरे श्रृष्टि जी आप वहा खडी क्यों हो आगे आओ।


राघव की आवाज कानों को छूते ही श्रृष्टि की झुकी हुई निगाहें ऊपर उठा तब एक बार फ़िर से दोनों की निगाह टकरा गई। मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं कुछ कदम की दुरी तय कर मेज के पास आकर खड़ी हों गईं।


राघव की निगाह जो अब तक श्रृष्टि पर टिका हुआ था। श्रृष्टि के नजदीक आते ही राघव बोला... श्रृष्टि जी आप अपना काम जिम्मेदारी से कर रहीं हों न (फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी जरा इनके काम काज का विवरण दो आखिर पता तो चले श्रृष्टि जी जिम्मेदारी से काम कर रहीं हैं कि नहीं या फ़िर बतियाने में ही समय काट रहीं हैं।


राघव की बाते श्रृष्टि को चुभ गई। उसका असर यूं हुआ लवों से मुस्कान नदारद हों गई और खिला हुआ चेहरा बुझ सा गया।


यहाँ साक्षी का भी चेहरा उतर ही गया! बोले तो क्या बोले ?? राघव सर ने एक ऐसी गेंद डाल दी जो उसके पसीने छुडाने के लिए काफी थी ! साक्षी से जवाब देते नहीं बन रहा था। आखिर कहती भी तो क्या कहती श्रृष्टि के खिलाफ कान उसी ने भरे थे। अब उसी मुंह से श्रृष्टि का गुण गान करना था जो उससे हों नहीं रहा था। इसलिए साक्षी चुप रहीं मगर दूसरे साथियों में से एक बोला पड़ा...सर सिर्फ जिम्मेदारी कहना गलत होगा बल्की श्रृष्टि मैम बहुत ज्यादा जिम्मेदारी से काम कर रहीं हैं। इनके भीतर काम को लेकर अलग ही जज्बा और जुनून हैं। श्रृष्टि मैम जब काम करती हैं तो सूद बूद खोए इनका ध्यान सिर्फ़ काम पर ही रहता हैं। सर हम तो इनके कायल हों गए हैं।


"सर वैसे तो कहना नहीं चाहिए क्योंकि यह बात हमारे साख पर भी सवाल खड़ा करता हैं। मगर सच कहने में कोई गुरेज नहीं हैं। श्रृष्टि मैम की योग्यता अतुलनीय है। जिस प्रॉजेक्ट को हम पूर्ण नहीं कर पा रहे थे। सिर्फ़ कुछ ही दिनों में श्रृष्टि मैम के वजह से वह प्रॉजेक्ट पूर्ण होने के कगार पर पहुंच गया।" ये शब्द दूसरे सहयोगी का था।


सहयोगियों से तारीफ, जिसकी शायद ही श्रृष्टि ने उम्मीद किया था क्योंकि पहले ही दिन उन लोगों ने जो सलूक उसके साथ किया था। उसके बाद उनसे तारीफ की उम्मीद करना व्यर्थ था मगर आज उन्होंने श्रृष्टि के इस भ्रम को तोड़ दिया। जिस कारण श्रृष्टि का बुझा हुआ मुखड़ा फिर से खिल उठा।


उम्मीद तो साक्षी को भी नही था कि लंबे समय से उसके साथ काम कर रहे उसके साथीगण बस कुछ दिन श्रृष्टि के साथ काम करके उसकी मुरीद बन जायेंगे और बॉस के सामने तारीफो के पुल बांध देंगे मगर उन्होंने वहीं कहा जो सच था। और उसमे वो कुछ कर भी नहीं सकती थी! उसका पलड़ा अब दोनों तरफ था अगर श्रुष्टि के विरोध में बोलती तो वो गलत साबित होता और भुतकाल में वो जो कर चुकी थी अब वो गलत साबित हो रहा था दूसरा पलड़ा भी उसके तरफ नहीं था ! उसकी हालत ये थी की काटो तो खून ना निकले मानो की फ्रिज हो गई थी!
जिसे सुनकर राघव बोला... श्रृष्टि जी अपने मेरी धरना को गलत ठहरा दिया। अपने सिद्ध कर दिया मैंने आपको नौकरी देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारा हैं। ( फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोल) श्रृष्टि जी का रिपोर्ट कार्ड साक्षी तुमसे मांगा था। तुमने कुछ कहा नहीं मगर तुम्हारे दूसरे साथियों ने कह दिया। मुझे लगाता हैं तुम्हारा भी यहीं कहना होगा। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?


राघव सर ने बहोत बड़ा बम साक्षी के सन्मुख फोड़ दिया अब साक्षी के पास हां कहने के अलावा दुसरा कोई रास्ता बचा ही नहीं था। इसलिए उसके मुंह से सिर्फ़ हां ही निकला इसका मतलब साक्षी की हां उसके मन से नहीं निकला था। अपितु सहयोगियों से श्रृष्टि की तारीफे सुनकर श्रृष्टि के प्रति साक्षी के मन में द्वेष पैदा हों गया।


साक्षी से हां सुनने के बाद राघव बोला... चलो अच्छा हुआ जो यहां प्रॉजेक्ट पूर्ण होने के कगार पर आ गया। श्रृष्टि जी कितने दिन और लगेंगे कुछ अंदाजा हैं?। या बता सकते हो आप ?


श्रृष्टि… सर तीन से चार दिन ओर लग जायेंगे।


"जी सर इतने दिन ओर लग जायेंगे।" सहसा सहयोगियों में से एक बोला जिसके जवाब में राघव बोला... ठीक है। उस प्रॉजेक्ट को खत्म करो फ़िर तुम सभी को मेरे और से उपहार मिलेगा और श्रृष्टि जी के लिए मेरे पास एक खाश उपहार हैं।(फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) तुम क्या कहती हो श्रृष्टि जी को खाश उपहार मिलना चाहिए की नही?


हर एक बात के लिए साक्षी को बीच में खीच लेना साक्षी को सुहा नहीं रहा था। मन ही मन वो श्रुष्टि और राघव सर दोनों को मा बाहें की दे रही थी, भीतर ही भीतर साक्षी गुस्से में खौल रहीं थीं, उबाल रहीं थी मगर विडंबना ये थी कि प्रत्यक्ष रूप से दर्शा नहीं पा रही थीं। साक्षी का यूं गुस्सा करना जायज़ नहीं था क्योंकि साक्षी सच्चाई से अवगत थीं। श्रृष्टि ने काम ही तारीफो वाला किया था। खैर साक्षी से कुछ बोला नहीं गया मगर श्रृष्टि बोलने से खुद को रोक नहीं पाई... सर अपने खास उपहार मुझे देने की बात कहा जानकार अच्छा लगा मगर मुझे लगाता हैं खास उपहार साक्षी मैम को मिलना चाहिए क्योंकि वो प्रॉजेक्ट हेड हैं और प्रॉजेक्ट पूर्ण होने का सारा श्रेय साक्षी मैम को दिया जाना चाहिए। उनके विचार, अनुभव और सुजाव से ही ये सब मुमकिन हो पाया है (वो भी तो शातिर ही थी अपनी होशियारी को बखूबी उपयोग करना जानती थी )


श्रृष्टि की ये बातें राघव सहित सभी को भा गया। एक पल को साक्षी के कानों को सुखद अनुभूति करवाया लेकिन अगले ही पल साक्षी पूर्ववत हों गई क्योंकि उसे लगा श्रृष्टि उसकी पैरवी करके उस पर कोई अहसान कर रही हैं। जो एक जूनियर से उम्मीद नहीं थी


श्रृष्टि की बाते सुनकर राघव मुस्कुरा दिया फ़िर शांत लहजे में बोला... श्रृष्टि जी आपकी सोच की मैं दाद देता हूं क्योंकि आज कल लोग बिना कुछ किए भी श्रेय लेने के ताक में रहते हैं और अपने तो श्रेय पाने लायक काम किया हैं इसलिए आप सभी के बॉस होने के नाते फैसला लेने का मै अधिकार रखता हूं। किसको क्या मिलना चाहिए ये मुझ पर छोड़ दीजिए। अब आप सभी जाइए ओर अपना काम कीजिए।


राघव के कहने पर एक एक कर सभी चलते बने सभी के जाते ही राघव एक बार फ़िर से अपने रिवोल्विंग चेयर को पीछे खिसकाकर एक पैर पर दुसरा पैर चढ़ाकर दोनों हाथों को सिर के पीछे टिकाए हाथ सहित सिर को चेयर के पुस्त से टिका लिया फ़िर रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए मुस्कुराने लग गया।



अब बात ये है की आगे साक्षी क्या करेगी ? इत्निअसानी से वो पीछे हट जाए वैसी तो शायद नहीं है
उसके मन में जो श्रुष्टि के प्रति ध्वेश है वो उसे और श्रुष्टि को कहा तक ले जायेगी ????
राघव सर का ये श्रुष्टि को टिकटिकाना क्या कहता है ????
राघव का ये रहस्यमय मुश्कान का मतलब क्या समजे ?????
चलिए ये सब सवालो के जवाब हम अगले भाग में जानने की कोशिश करेंगे
बने रहिये मेरे साथ



जारी रहेगा...
 
I am here only for sex stories No personal contact
316
102
43
भाग - 9
राघव के कहने पर एक एक कर सभी चलते बने सभी के जाते ही राघव एक बार फ़िर से अपने रिवोल्विंग चेयर को पीछे खिसकाकर एक पैर पर दुसरा पैर चढ़ाकर दोनों हाथों को सिर के पीछे टिकाए हाथ सहित सिर को चेयर के पुस्त से टिका लिया फ़िर रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए मुस्कुराने लग गया।
दिन भर की कामों से निजात पाकर शाम को श्रृष्टि घर पहुंची, थकान से परिपूर्ण बेटी का चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाओ कपड़े बदलकर आओ फिर तेरी सिर की मालिश करके दिन भर की थकान दूर कर देती हूं।

"बस अभी आई" बोलकर श्रृष्टि कमरे में चली गई। श्रुष्टि को ये सुजाव बचपन से ही अच्छा लगता था! मा के हाथ से मालिश वाह क्या बात है! कुछ ही देर में कपड़े बदलकर बहार आई। तब तक माताश्री कटोरी में तेल लिए मालिश की तैयारी कर चुकी थीं।

माताश्री के सामने जाकर श्रृष्टि पलथी मारकर जमीन पर बैठ गई और मताश्री तेल डालकर बालों में अच्छे से फैला दिया फ़िर.. ठप.. ठप, ठप ठपाठप, ठप ठप…


"अहा मां दर्द होता हैं।" मा से नाटक करते हुए

"उमहु रूक न मालिश वाले गाने की सज ढूंढ़ रहीं हूं।"

"उसके लिए बाध्य यंत्र बजाओ मेरा सिर क्यों बजा रहीं हो।"

"अहा तू कुछ देर चुप बैठ न"

ठप.. ठप, ठप ठपाठप, ठप ठप…

हूं हूं हूं हूं…
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये...
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये...
तन की थकन मैं दूर करूं
मन में नयी उमंग भरूं
ताक धीना धीन, ताक धीना धीन
ताक धीना धीन, दीधीन दीधीन...
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये
बम अकड बम के….
दुनिया है क्या सर्कस नया
कुछ भी नहीं जोकर है हम…

"मां रूको इससे आगे मैं गाऊंगी"
दुनिया है क्या सर्कस नया
कुछ भी नहीं जोकर है हम
तुम जो बोलो वो करके दिखाऊं
उंगली पे सारे जग को नचाऊँ
कह रहे है ज़मीन आसमान
ऐसा परिवार होगा कहा
इस घर पे मेरा
सब कुछ निसार है…

आगे के बोल मां बेटी ने साथ में गया
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये…
बूम अकड बूम के
मैं चम्पी करून जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये
मालिक हो तुम….


"मां रूको ऐसे नहीं आगे का मै गाकर सुनती हूं।"
मां हो तुम, बेटी हूं मैं
इस बात की मुझको है खुशी
मां हो तुम, बेटी हूं मैं
इस बात की मुझको है खुशी
कहना मानूं सदा आपकी
खिदमत में आपकी शीश झुकाऊं
माँ ने दी है मुझे जिंदगी
मेहनत ही शौहरत हैं मेरी
ये बात आपने सिखाया
बम अकड बम के
चम्पी करो जमके
तो बंद अकल मेरी खुल जाये…

(नोट:- यहां गाना अपने जमाने का एक मशहूर गाना है जिसे समीर साहब ने लिखा। मैं इस गाने में कुछ फेर बदल किया जो कि गलत हैं इसके लिए मैं आप सभी प्रिय पाठक बंधुओं से माफी मांगती हूं।)
अंत के जितने भी बोल श्रृष्टि ने ख़ुद से बनाया फिर गाकर सुनाया उसे सुनकर माताश्री के हाथ स्वत ही रूक गए और आंखो से कुछ बूंद आंसू के मोती श्रृष्टि के सिर पर गिर गया।

माताश्री के हाथ रूकते ही अच्छी खासी चल रही मालिश में विघ्न पड़ गया। जिसका आभास होते ही श्रृष्टि बोलीं... मां रूक क्यों गईं। मालिश करो न बड़ा सकून मिल रहा था।

श्रृष्टि की आवाज कानों को छूते ही। माताश्री ने बहते आसुओं को पोछकार फिर से मालिश करने में लग गईं। कुछ देर की मालिश के बाद श्रृष्टि मां की ओर पलटी फ़िर उनके गोद में सिर रखकर बोलीं... मां आपको पता है आज ऑफिस में क्या हुआ?

"मुझे कैसे पाता चलेगा। तू ने अभी तक बताया ही नहीं।" बेटी के सिर पर हाथ फिरते हुए माताश्री बोलीं।

श्रृष्टि.. मां आप तो जानती हों पहले ही दिन मेरे सहयोगियों ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया था लेकिन आज जब सर मेरा रिपोर्ट कार्ड जानने सभी को बुलाया तब चमत्कार हों गया सभी ने सिर्फ मेरी तारीफ़ किया। उनकी बातें सुनकर मैं हैरान रह गई।

"मेरी बेटी इतनी हुनरमंद और मेहनती हैं कि उन्हें तारीफ तो करना ही था।" शाबाशी का भाव शब्दों में घोलकर माताश्री बोलीं।

"पर मां वो साक्षी मैम मूझसे बिलकुल भी खुश नही थी। जब सर ने मुझे खास उपहार देने की बात कहीं उसके बाद मेरे सभी सहयोगियों ने मुझे बधाई दिया मगर साक्षी मैम ने कुछ भी नहीं बोला सिर्फ़ इतना ही नहीं वो दिन भर मूझसे ठीक से बात भी नहीं किया , मूझसे रूठी रूठी सी रहीं।" शिकायती लहजे में माताश्री को सारा सार सुना दिया।

"श्रृष्टि बेटा ये जो श्रृष्टि है न ये बड़ा अजीब है इसे जितना समझना चाहो उतना ही उलझा देती हैं। जैसे हाथ की पांचों उंगलियां एक बराबर नहीं होती वैसे ही सभी लोग एक जैसे नहीं होते। किसी को तुम्हारा काम पसन्द आयेगा किसी को नहीं, जिन्हे तुम्हारा काम पसन्द नहीं आ रहा है उन पर तुम्हें खास ध्यान देने की जरूरत हैं क्योंकि ऐसे लोगों के मन में तुम्हारे लिए द्वेष उत्पन्न हों जायेगा फ़िर द्वेष के चलते तुम्हें सभी के नजरों में गिराने की ताक में लगे रहेंगे।" ज्ञान का घोल बेटी को पिलाते हुए माताश्री बोलीं।

माताश्री की बातों का जवाब सिर्फ़ हां में दिया फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद श्रृष्टि बोलीं... मां साक्षात्कार वाले दिन जिन अंकल ने मेरी मदद किया था मैं उन्हें धन्यवाद कहना चहती हूं। मगर मेरे पास उनका पता ठिकाना नहीं हैं।

"तो क्या तुम खाली हाथ धन्यवाद देने जाओगी। उन्होंने तुम पर बहुत बड़ा अहसान किया हैं। सिर्फ़ उन्हीं के कारण तुम्हें नौकरी मिली है इसलिए मुझे लगाता हैं तुम्हें खाली हाथ नहीं बल्की कुछ लेकर जाना चाहिए"

श्रृष्टि…मां मैं उनका अहसान जिंदगी भर उतार नहीं पाऊंगी फ़िर भी मैं सोच रहीं थी जब मेरी पहली सेलरी मिलेगी तब सबसे पहले उनके लिए मिठाई और एक जोड़ी पैंट शर्ट का कपड़ा लेकर जाऊं क्योंकि उस दिन मैंने देखा था उनका शार्ट कई जगह से फटा हुआ था जिसे सिल रखे थे मगर कहां जाने पर वो मिलेंगे यहीं तो पता नहीं हैं।

"पहले तुम्हें सैलरी मिल जाएं फ़िर क्या करना हैं बता दूंगी। अगर इस बीच वो दिख जाएं तो उनसे उनका पता ठिकाना या फ़िर नम्बर मांग लेना।"

"ये आपने सही कहा। अच्छा मां मैं बाल धोकर आती हूं तब तक आप कड़क चाय बना लो।"
सब मुझे ही करके देना पड़ेगा ??? क्या तुम अपनी आप कुछ नहीं कर सकती ??? एक जूठा और घिसापिटा डायलोग माताश्री ने सुनाया जो श्रुति के लिए रोज का था.
क्या करेगी ये लड़की कही जाके ?? अपने पति, बच्चे और घर को कैसे संभालेगी ???
सब जगह तेरी मा आएगी क्या ??? वो ही सब कहती हुई रसोई की तरफ चल दी!
जाते जाते श्रुष्टि के बोल मा के कर्णपटल पर पड़े
"सब से पहले शादी का कोई इरादा नहीं दूसरा अगर जाना ही हुआ तो दहेज़ में आप को लेके जाउंगी " हा हा हा हा

बने रहिए
 

Top