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संस्कार या मजबूरी
प्रिय पाठकों से कहानी समाज में होने वाली घटनाओं पर आधारित है | ये एक सेक्सुअल कहानी नहीं है इसलिए हो सकता हैं सब को पसंद न आये फिर भी मै चाहुंगा कि आप सब मेरे द्वारा रचित इस कहानी को पढें ओर अपना कमेंट जरूर दे |
सामाजिक ताना बाना से अनभिज्ञ जिंदगी की परेशानियों को किनारे कर सौम्या अपने बिस्तर पर सोती हुई कितनी मासूम लग रही हैं | उसके चहरे पर खिली हुयीं मिठी सी मुस्कान मानों, ये एहसास करा रही हो जैसे किसी परिचित व्यक्ति से उसकी मुलाकात, सपनो में हुई हो | खिड़की से आती सुबह की उजली किरण उसकी मुस्कान को बार-बार फिकी कर रहीं हैं| उसी वक्त सौम्या के रूम का दरवाजा खटखटाता हैं और एक आवाज आतीं हैं | सौम्या, ओ सौम्या उठ जा बेटी ओर कितनी देर सोऐगी, देख सुरज सर पर चढ़ आया और तु अब तक सो रही हैं उठ जा बेटी, अंदर से कोई आहट न पाकर माँ फिर से आवाज देती है, सौम्या, ओ सौम्या, सौम्या, सौम्या उठ न कितना सोयगी | इस बार आवाज में थोडी रूखा पन और नारजगी झलकती है | कोई आहट न पाकर माँ बोलती है रूक तेरे पापा को भेजती हूँ वही तुझे उठाएगी | ये बात माँ मन ही मन कहती है | इसकी आदतें बिगडती जा रही हैं | ये लडकी अभी नहीं सुधरी तो शादी के बाद पता नहीं क्या करेगी | ससुराल में हमारी नाक कटवा कर रहेगी |तभी निचे से आवाज आती हैं आरे ओ भाग्यवान हमारी चाय किधर है | माँ खिसयाकर एक उठ नहीं रही और दूसरा ये चाय के लिए मरे जा रहें हैं | ये कहकर माँ नीचे चल देतीं हैं | इधर सौम्या माँ की पहली आवज से कुनमुना कर उठ जाती हैं | कितना मिठा सपना देखा रहा था | माँ ने इन सब पर पानी फेर दिया | ये माँ भी न हमेशा परेशान करतीं रहेगी | आज कलेज में जाकर सौरभ से अपने प्यार का इजहार करके रहूंगी | उससे तो कुछ बोला नहीं जयेगा | मुझे ही कुछ करना पडेगा | मैं ओर ज्यदा इन्तेज़ार नहीं कर सकता | वरना कोई ओर मेर प्यार पर ढाका डाल देगा| ये कहकर कर सौम्या उठकर बाथरूम कि ओर भागता है | इधर माँ को इस तरह हैरान परेशान देखकर सौम्या का भाई कमल माँ को देखकर क्या हुआ माँ आप को ? माँ तूम्हारे इस लाडं प्यार की बजाय से ये लड़की बहुत बिगाड़ गईं है | मेरी किसी भी काम में हाथ नहीं बटायागी | अभी घर का काम करके नहीं सिकेगी तो फिर ससुराल में जाकर क्या करेगी |
कमल- मेरी गुड़िया इस घर की राजकुमारी है | उसका जब भी मन करेगा तब ही कोई काम करेगी वरना नहीं करेगी | आप देखती नहीं हो सौम्या कितनी होशियार हैं जब भी वो घर का कोई भी काम चाहे वो खाना बनाये या और कोई काम करे, कितनी अच्छे से और आप से अच्छा ही करता है | आप वे वजह उसे परेशान करती हो और खुद भी परेशान होती हो |
पिता राजनाथ - इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ | अरे भाग्यवान आप इतना परेशान न हुआ किजिए | वो सब कुछ अच्छे से सम्भाल लेगी |
माँ कुसूम- हां मैं ही तो सब को परेशान करती हूँ | देख ले न एक दिन....माँ बुदबुदाता हुआ किचन कि ओर चल देता है|
माँ के किचन में जातें ही सौम्या निचे आकर डायनिंग टेबल पर बैठता है और बोलता है |
सौम्या- राजकुमारी हाज़िर है उनका सही खाना पेश किया जाये उनको बहुत भुख लगी है
ये सुनकर कमल ओर राजनाथ हांस पडते है और कहते हैं हां जी जल्दी से राजकुमारी की साही खाना पेश किया जाये ये सुनकर माँ तिलमिला जाती हैं ओर हाथ में वेलन लेकर बहार आतीं हैं और कहता है रूक सौम्या अभी तेरी राजकुमारी की भुत उतरती हूँ | बड़ी आयी राजकुमार माँ को इस तरहा आता देखकर सौम्या उठकर अपने पिता के पिछे जा कर छिपता है और बोलता है पापा बचाओ आज माम्मी बडक गयी है पापा बचाओ
राजनाथ- (गुस्से में) ये क्या भाग्यवान आप मेरी गुडिया को बेलन से मारेंगे वो भी मेरे रहते ये आप अच्छा नहीं कर रहे हैं मैं कह देता हूँ|
कुसूम- ये क्या आप तो नाराज हो गये |आप सब मेरे साथ मजाक कर सकते हैं | मैंने थोड़ा मजाक क्या किया और आप तो न नाराज हो गये जी | आप को क्या लगता हैं मैं अपने गुड़िया के साथ ऐसा कर सकता हूँ | वो इस घर की राजकुमारी हैं और आगें भी रहें गी | आज में अपनी गुड़िया को अपने हाथों से खाना खिलाऊगी आ बैठे |
सौम्या कभी पापा की तरफ तो कभी माॅं की तरफ ऐसे देखता है माने बकरी को हलाल करने के लिए बुलाया जा रहा है |
राजनाथ - जा बेटी तुझे डरने की जरूरत नहीं मैं यहाँ बैठा हूँ तुझे कुछ नहीं कहेंगे |
सौम्या डरकर माँ के पास जा ही रही थी कि माँ ने फिर से बेलन हाथ में उठा लिया ये देखकर सौम्या डरकर |
सौम्या - पापा देखो माँ ने फिर से बेलन उठा लिया मुझे मारने के लिए मैं नहीं जा रहीं हुं माँ के पास |
कुसूम - आरे नहीं बेटी मैं तो ये बेलन किचन में रखने जा रहा हूँ तू आ कर बैठ जा ये कहकर माँ किचन कि ओर चल देता है|
ये देखकर सौम्या के पापा और भाई हासने लगते हैं सौम्या उनको हंसता हुआ देखकर
सौम्या - (रोता हुआ) पापा-भाइयाॅं आप दोनों मेरे मजाक बना रहे हैं मैं कलेज जा रही हूँ ये कहकर नाराज होकर उठाने लगतें हैं तभी माँ वहाँ आ जाती हैं और वहाँ कि स्थिति सामझकर पापा और भाई को डाटते हुए
कुसूम- आप दोनों को हासने के अलावा कुछ आता भी है खामाखां मेरी गुड़िया को नारज कर दिया | तु बैठ सौम्या और नास्ता कर मैं देखती हूॅं अब कौन हांसता है |
माँ सौम्या को आपने पास बैठाकर नास्ता कराता है | नास्ता करने के बाद सौम्या सब को वाय बोलकर कलेज को निकल जाता हैं |
आज कलेज जाते हुए सौम्य का हाव-भाव कुछ अजीब सा है | कभी वो मुसकुराती तो कभी उदास हो जाती | पाता नहीं सौम्य के मन में क्या चल रहा हैं | ऐसे ही सोचतें हुए सौम्य कालेज पहूंच जाता हैं| जैसे ही सौम्य कालेज गेट से अंदर परवेश करता है | वैसे ही समने खड़ा सौरभ को देखकर सौम्य के चहरे पे एक मधूर मुसकान आ जाती हैं | कालेज आते समय सोची हुयी हर बात को भूलकर सौम्य स्तब्ध खड़ा हो जाता है और सौरभ को एक टक देखता रहता है, मानो वो सौरभ को कुछ कहना चाहता हो या फिर उससे कुछ ऐसा सुनना चहता हैं जिससे उसके दिल को बहुत सकुन मिले |
सौरभ अपने दोस्तों के साथ अपने हाथों को पिछे छुपाये खड़ा था और थोड़ा डारा हुआ किसी सोच में घुम था कि तभी उसके कानों में आवाज गूंजता हैं | क्या हुआ सौरभ जा आज खोल दे अपने दिल का दरवाजा और बंद कर ले सौम्य को अपने दिल के घरोंदे में, देख वो तुझे ऐसे देख रहा है जैसे तुझसे कुछ सुनना चहती हो | जा बोल दे आपने दिल की बात, डर मत मेरे यार, जा ना |
सौरभ- यार बोलना तो मैं भी चहता हूँ, पर डर इस बात की हैं कि वो कही माना न कर दे फिर मैं क्या करुंगा |
दोस्त- डर मत मेरे शेर बोल दे बरना कहीं ऐसा न हो तेरे दिल की बात दिल में रह जाये, ओर तेरे सामने से कोई और सौम्य को उड़ ले जाये ओर तु देखता रह जाये |
सौरभ - नहीं, नहीं, नहीं मैं ऐसा नहीं होने दुंगा |
दोस्त- जा फिर कर दे आपने प्यार का इजहार वरना मैं कर दूंगा (ये बोलकर हंसने लगता हैं)
सौरभ अपने दोस्त को आखें दिखाकर सौम्य कि तरफ बढ़ जता हैं जैसे-जैसे सौम्य कि तरफ बढ़ने लगता हैं वैसे-वैसे सौरभ कि दिल की धड़कन बढने लगता हैं| उसका शरीर थर-थर कापने लगता हैं | किसी तरह खुद को सम्भालते हुए सौरभ सौम्य के सामने जाकर खड़ा होता हैं और सौम्या को ऐसे देखता है , जैसे चाकोर पक्षी चंदनी रात में चांद को तकता रहता है | कुछ समय तक दोनों एक दूसरे को देखता रहता है | पर कोई कुछ बोलता नही है | सौरभ को कुछ बोलता न देखकर |
सौम्य- क्या हुआ सौरभ ऐसे क्यूँ देख रहे हो कुछ बोलना था क्या? ये बोल कर सौम्य खिलखिला कर हांस देता है|
सौम्य कि हंसने की आवज सुनकर सौरभ ऐसे होस में आता है मानो सौरभ कोई मीठा सपना देख रहा था और कोई उसे झकझोर कर सपनो कि दुनिया से बहार लाया हो|सौरभ अपनी चेतना को पाकर सौम्य कि तरफ देखकर अपने घुटनों के बल बैठकर अपने हाथों को आगे कर |
सौरभ- वो -वो वो सौम्य मैं तूमसे, वो मैं तुमसे, वो मै तूमसे.....
सौम्य- वो वो वो आगे भी तो बडो श्रीमान् जी बोलकर बहुत ही जोरो से हंसने लगता है और अपना पेट पकड़ लेता है |
सौरभ- सौम्य ऐसे क्यूँ हांस रही हो बहुत हिम्मत जुटा कर आज मैं तुमसे अपनी दिल की बात कहने आया हूँ ओर तुम मेरी खिल्ली उड़ा रहे हो कही पागल- वागल तो नहीं हो गये
सौम्य सौरभ की हाथों कि ओर देखकर और जोरो से हासने लगता हैं | सौम्य चहकर भी अपने हांसी नही रोक पाता हैं |
सौरभ- ठीक है तुम हंसती रहो मैं जा रहा हूँ |
सौम्य- अच्छा बुद्धू कही के ऐसे ही चली जाओगे आपने दिल की बात बोले बिना | सौरभ तुम न बहूत ही चालक हो मुझे प्रपोज़ करने आये हो ओर लाये क्या हो एक टहनी, एक फूल भी न ला सके हूं
सौरभ- मैं तो फूल ही लाया था ये टहनी कहा से आया पक्का ये मेरे दोस्तों की खुरापात है | छोडुंगा नहीं उन कमिनो को |
(हुआ ये था कि जब सौरभ सौम्य को प्रपोज कर ने डरें सहमे आ रहा ता तभी उसके कमर से रगड खाकर फुल टूटकर गिर गया और सौरभ के हाथ मे सिर्फ टहनी रह गया था)
सौम्य- ठीक है उनको बाद में देखेंगे | जो बोलने आये हो बो तो बोलो |
सौरभ- अब भी बोलना पडेगा तुम समझ ही गये हो मैं क्या बोलने आया हूँ |
सौम्य- मैं समझ तो बहुत पहले गया था | लेकिन मैं तुम्हारे मुहं से सुनना चहती हूं |
सौरभ -ठीक है! लो फिर सुनो सौम्य मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ| I LOVE YOU ❤ सौम्य I LOVE YOU❤
सौम्य- I LOVE YOU❤, I LOVE YOU❤ कहकर दोनों ऐसे गले मिलते हैं | जैसे वरसो से बिछडे प्रेमी आज एक दूसरे से मिले हो
बहुत समय तक जब दोनों आलग नहीं होते तो सौरभ के दोस्त पास आकर कहता है अरे ओ लव बर्ड अब अलग हो जाओ क्लास का टाइम हो गया हैं | बद मे ओर गले मिल लेना चलो जल्दी | दोनों अलग होकर अपने अपने क्लास कि ओर चल दे ता है | एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार करने के बाद मानों दोनों प्रेमी जोड़े को पंख लग गये हो और ये आसमान में ऐसे उड़ रहें हैं जैसे कभी निचे ही न आये पर समय का चक्र अपने गर्भ में किया छुपा रखा है ये इन प्रेमीयों को कहा पता | इन दोनों को जब भी मौका मिलाता कभी पार्क में, कभी रेस्टोरेंट में, कभी सिनेमा हॉल में मिलने लगे ओर एक दूसरे को भलीभाँति समझने लगे| ऐसे ही एक पार्क में बैठे ये दोनों बातें कर रहें थे | ये पार्क सिर्फ प्रेमी जोड़े के लिए था | जहाँ ये बैठे थे वहाँ इनके आस-पास बहुत से प्रेमी जोड़े बैठे अपने क्रिया कलाप में व्यस्त थें | सौरभ सौम्य के गोद में सर रखकर लेटा था ओर सौम्य के लटों से खेलते हुए बातें कर रहा है| सौम्य मुझे अब भी ये यकीन नहीं होता कि मैं ने तुम्हे पा लिया है| और सौम्य के गालों पर एक किस कर देता है|
सौम्य- सौरभ क्या करतें हो लाज सरम कुछ हैं कि नहीं रही बात मुझे पाने कि तो जब तक हमारी शादी नहीं होती तब तक हम अधूरें ही रहेंगे समझें बुद्धु
सौरभ- अच्छा मैं बुद्धु हूं अभी बताता हूँ ये कहकर सौम्य के झुके सर से पकडकर अपने नजदीक लाता हैं| और अपने अपने होटों को सौम्य के होटों से जैसे ही मिलाने जाता है वैसे सौम्य सौरभ के होटों पर उगली रख कर सौरभ को माना कर देता है |
सौरभ- देखो हमारे आस पास सभी कर रहे हैं हमें करने में क्या परेशानी है |
सौम्य- मेरे साथ कभी ऐसा कुछ मत करना जिससे मैं अपने ही नजरों में गिर जाऊँ | मैं भी ये करना चहता हूं लेकिन मेरेे संस्कर ये सब करने से रोकता है |
सौरभ- ठीक है ज्यादा सेंटी मत हैं चलो घर चलतें हैं तुम्हें देर है रहीं होगी |
सौम्य- तुम नराज तो नहीं हो न |
सौरभ- नहीं सौम्य मैं नारज नहीं हूँ | मैं भी तुम्हारें साथ ऐसा कुछ नहीं करना चहता जिससेे तुम अंदर ही अंदर घुटन महसूस करो | चलो अब घर चलो
पार्क से निकल कर दोनों अपने अपने घर को चल देता है| समय अपनी रफ्तार से चलने लगता हैं | सौरभ कालेज की पढ़ाई खत्म कर आगे कि पढाई पूरी करने के लिए विदेश चला जाता है | इधर सौम्य के घर वाले सौम्य के लिए लडके डूढने लगते हैं | इस बीच एक ऐसी घटना घटती है जिससे दोनों प्रेमीओ पर गमों के पहाड़ टूट पडते है | होता ये है कि सौम्य के पिता जी अपने पुराने दोस्त से मिलता है जो इनके लंगोटिया यर हैं और इनका अच्छा करोबार भी है | बातों ही बातों में राजनाथ जी अपने से यार कोई अच्छा लडका नजर में हो बताना |
रविन्द्र- तु कब से लडकों का शव्क रखने लागा जहाँ तक मुझे पाता तु ऐसा तो नहीं था |
राजनाथ- छीं कैसी बात करते हो रविन्द्र मुझे ऐसा कोई शव्क नहीं है | वो बिटिया बडी़ हो गयी है उसी के शादी के लिए ढूंढ रहा हूँ |
रविन्द्र - यार लडका मेरा भी जवान हो गया है | मैं भी उसकी शादी के लिए लडकी ढूंढ रहा हूँ |
राजनाथ- ये तो अच्छी बात हैं| तु अपने लडके के साथ मेरे घर पे आ लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद कर ले तो हम बडे मिलकर दोस्तीं को रिस्तेदारी में बदल देते हैं |
रविंद्र- ठीक है राजनाथ आने वाले इतवार को मैं अपने परिवार सहित बिटिया को देखने आयेंगे ये वादा रहा |
अपने दोस्त से विदा लेकर राजनाथ जी घर पहूंच कर
राजनाथ- अरे भाग्यवान किदर हो कभी तो अपने पति की खोज खबर ले लिया करो सिर्फ टीवी कि सीरीयल में डुबा न रहा करो |
कुसूम- कमरे से बहार आतें हुयें! अच्छा जी में दिन बर सीरियलललल... ये क्या आज बहुत खुश लग रहें हो कही मेरी सौतन तो ढुढ़ नहीं लिया |
राजनाथ- अरे भाग्यवान अब वो बात कहा अब तो उम्र ढाल गया कौन पसंद करेंगे |
कुसूम- अच्छा जी मुझसे आपका मन बर गया इसलिए आप ऐसे कह रहे हैं | जाओ जी मैं आपसे बात नहीं करतीं और नाराज होकर बैठ जाता है |
राजनाथ- नहीं भाग्यवान ऐसी कोई बात नहीं आपको तो पता है आपके आलावा मेरे जिंदगी में कोई और आ ही नहीं सकता |
कुसूम- तो फिर आपके चहरे पे ये खूशी किस बात की
राजनाथ- आज मैं बर्षो बाद अपने दोस्त बलवंत से और...
कुसूम- अच्छा तो अपको इस बात कि खुशी हैं |
राजनाथ- अरे पूरी बात तो सुनो बलवंत आने वाले इतवार को हमारें घर आ रहे हैं हमारी बिटिया को देखने |
कुसूम- अब समझा अपको इस बात की खूशी थी ये बहुत अच्छी बात है
राजनाथ- इस बारे में हमें सौम्य से भी पूछना चहिए |
कुसूम- क्या पूछेंगे कि हम तुम्हारी शादी के लिए लडका ढूंढ रहे हैं तुम्हारा क्या मन हैं | क्या अप भी थोड़ी सी भी समझ नहीं है कोई लड़की कैसे कहे कि...
राजनाथ- कि मैं शादी करना चहती हूं ये तो नहीं कहेगी | मुझे सौम्य से कुछ ओर पूछंना है | अब के समय कैसा चल रहा है | क्या पता हमारी गुड़िया किसी ओर लड़की को पसंद करता हो |
कूसूम- थोडा रूठे स्वार में जैसा आप ठीक समझें कहकर किचन में चल देता |
सुबह सभी बैठें नास्ता कर रहें थें तभी राजनाथ जी
राजनाथ- सौम्य बेटी तुम से कुछ बात करनी है |
सौम्य- जी पापा बोलीए क्या पूछना चहते हो |
राजनाथ- परसों कुछ लोग आ रहें हैं तुम्हें देखने..
सौम्य- हैरान होकर क्या पापा मेरे से बिना पुछे...
राजनाथ- पहले मेरी पूरी बात सुनलो बेटी तुम नहीं चहती तो हम उन्हें माना कर देंगें| परंतु हम ये जानना चहते हैं कि तुम किसी ओर लडके को पसंद करती हो क्या
सौम्य- वो पापा मैं (शर्मा कर) एक लडके को पसंद करती हूँ
कुसूम- गुस्से मे कौन है वो लडका और क्या करता है |
सौम्य- माँ वो मेरे साथ ही कलेज में पढता था
कुसूम- (गुस्से में) सौम्य तुम कालेज पढने जाते थे या फिर लडको के संग.....
राजनाथ- भाग्यवान कुछ भी बोलने से पहले सोच समझ कर बोलना |
कुसूम- हा जी मैं तो हमेशा गलत ही बोलता हूँ | मैं ने बोला था कि आगें ओर पढाने की जरुरत नहीं है | आप माने नहीं अब उसका नतीजा देख लो सौम्य हमने तुम्हें ये संस्कार दिए की बहार तुम...
सौम्य- मैनें ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे मैं खुद की और आप सब के नजरों में गिर जाऊँ |
कुसुम- बहार लडको के संग मटर गस्ती करतीं फिरती हो ओर तुम्हें शरम नहीं आती |
सौम्य- माँ आप क्या बोल रहीं हो
राजनाथ- गुस्से में क्या अनप- शनप बोल रहीं हो |
कुसूम- हा मैं तो अनप-शनप ही बोलूंगी अनपढ़ जो ठहरी
राजनाथ- (क्रोध से) भाग्यवान मैंने सुना हैं एक स्त्री को एक स्त्री ही अच्छे से समझ सकती हैं परंतु आप अपने ही बेटी को समझ नहीं पाये |
कुसूम- ये क्या कहा रहें आप |
राजनाथ- मैं ठीक कहा रहा हूँ | आप मुझे ये बातायें कि हमारी राजकुमारी ने ऐसा क्या कर दिया जो आप ऐसा बोल रहीं हो|
कुसुम- अपने ही इसे राजकुमारी बोल बोलकर कर सर चढा रखा हैं जिस कारण सौम्य ने शादी से पहलें ही किसी से सम्बंध बना रखा है जो एक लड़की के लिए ठीक नहीं है|
सौम्य- रोता हुआ.. माँ मैं सौरभ से प्यार करती हूँ और मैने और सौरभ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो आप समझ रही हो|
कुसुम- चुप कर प्यार के नाम पे इस लड़की ने पता नहीं क्या क्या गुल खिलाए | इस लड़की ने तो हमारी नाक कटवा दी |
कमल- माँ ये आप ठीक नहीं कह रही हो अगर सौम्य की जगह मैं ऐसा कुछ करता तो आप क्या कहती |
कुसुम - बेटा तु तो लडाका हैं तु कुछ भी...
राजनाथ- (क्रोध में) एक लडका कुछ भी कर सकता हैं वहां जी वहा तो क्या सारी संस्कार सिर्फ और सिर्फ लडकियों के लिए है| ये संकार नहीं मजबूरी है भाग्यवान |
कुसुम- ये आप क्या कह रहे हो |
राजनाथ- हां भाग्यवान ये मैं सही कहा रहा हूँ | ये मजबूरी नहीं तो और क्या है जहाँ सस्कार के नाम पर लड़की को आपनी खुशियाँ आपनी इच्छाओं को मार कर जीना पडता है | पहले पाने माँ-बाप के लिए फिर शादी के बाद अपने ससुराल वालों और पति के लिए ये कहा तक ठीक है |
कुसूम- आप कहना क्या चलते हो |
राजनाथ- भाग्यवान आप अभी तक समझ नहीं पाए | अच्छा ठीक है मैं अपसे जो-जो पूछूँ आप उसका सही सही जबाब देना |
कुसुम- जी पूछिए जो पूछना हैं|
राजनाथ- आपको अपने मन पंसद कपड़े पहने का , पढने का, अपनी सहलियो के संग घुमने का और ऐसे बहुत कुछ हैं जो आप करना चहती थी लेकिन आप ने संस्कार के नाम पर मजबूरी में नहीं किया मैं सही कहा रहा हूँ न
कुसूम- अपने आसूओ को पोछ कर जी हां आप ठिक कह रहे हैं |
राजनाथ- ऐसे ही बहुत से काम हमारी बिटिया ने संस्कार कहो या मजबूरी में किया है परन्तु आज मैं बहुत खूश हूँ कि मेरी बेटी ने अपनी जीवन साथी चुनने में अपनी इच्छाओं को नहीं दबाया | ओर एक बात और बाता दूं जिस लडके से सौम्य प्यार करता है उस लडके को ओर उस के परिवार वालो को मैं बहुत अच्छे से जनता हूँ |
सौम्य- हैरान होते हुए... क्या!
कुसूम - हैरान होते हुए... क्या!
कमल- हैरान होते हुए.... क्या!
राजनाथ- इतना हैरान होने की जरूरत नहीं हैं | मैं एक बेटी का पिता हूँ | मेरी बेटी किससे मिल रही हैं और किससे नहीं इतना खबर तो मैं रखता हूँ |
सौम्य- मुस्कुरा कर मैं बहुत खुश हूँ पापा कि आप मेरे इस कदम से नाराज नहीं हो |
राजनाथ- सौम्य के पास जाकर मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ ओर मुझे पाता है की तुमने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मेरे मान सम्मान को ठेस पहूंचे | सौम्य जिस लडके से तुम प्यार करती हो वो मेरे दोस्त का बेटा हैं| वो लोग ही तुम्हें देखने आ रहे हैं अब तो हांस दो राजकुमारी जी |
समाप्त
प्रिय पाठकों से कहानी समाज में होने वाली घटनाओं पर आधारित है | ये एक सेक्सुअल कहानी नहीं है इसलिए हो सकता हैं सब को पसंद न आये फिर भी मै चाहुंगा कि आप सब मेरे द्वारा रचित इस कहानी को पढें ओर अपना कमेंट जरूर दे |
सामाजिक ताना बाना से अनभिज्ञ जिंदगी की परेशानियों को किनारे कर सौम्या अपने बिस्तर पर सोती हुई कितनी मासूम लग रही हैं | उसके चहरे पर खिली हुयीं मिठी सी मुस्कान मानों, ये एहसास करा रही हो जैसे किसी परिचित व्यक्ति से उसकी मुलाकात, सपनो में हुई हो | खिड़की से आती सुबह की उजली किरण उसकी मुस्कान को बार-बार फिकी कर रहीं हैं| उसी वक्त सौम्या के रूम का दरवाजा खटखटाता हैं और एक आवाज आतीं हैं | सौम्या, ओ सौम्या उठ जा बेटी ओर कितनी देर सोऐगी, देख सुरज सर पर चढ़ आया और तु अब तक सो रही हैं उठ जा बेटी, अंदर से कोई आहट न पाकर माँ फिर से आवाज देती है, सौम्या, ओ सौम्या, सौम्या, सौम्या उठ न कितना सोयगी | इस बार आवाज में थोडी रूखा पन और नारजगी झलकती है | कोई आहट न पाकर माँ बोलती है रूक तेरे पापा को भेजती हूँ वही तुझे उठाएगी | ये बात माँ मन ही मन कहती है | इसकी आदतें बिगडती जा रही हैं | ये लडकी अभी नहीं सुधरी तो शादी के बाद पता नहीं क्या करेगी | ससुराल में हमारी नाक कटवा कर रहेगी |तभी निचे से आवाज आती हैं आरे ओ भाग्यवान हमारी चाय किधर है | माँ खिसयाकर एक उठ नहीं रही और दूसरा ये चाय के लिए मरे जा रहें हैं | ये कहकर माँ नीचे चल देतीं हैं | इधर सौम्या माँ की पहली आवज से कुनमुना कर उठ जाती हैं | कितना मिठा सपना देखा रहा था | माँ ने इन सब पर पानी फेर दिया | ये माँ भी न हमेशा परेशान करतीं रहेगी | आज कलेज में जाकर सौरभ से अपने प्यार का इजहार करके रहूंगी | उससे तो कुछ बोला नहीं जयेगा | मुझे ही कुछ करना पडेगा | मैं ओर ज्यदा इन्तेज़ार नहीं कर सकता | वरना कोई ओर मेर प्यार पर ढाका डाल देगा| ये कहकर कर सौम्या उठकर बाथरूम कि ओर भागता है | इधर माँ को इस तरह हैरान परेशान देखकर सौम्या का भाई कमल माँ को देखकर क्या हुआ माँ आप को ? माँ तूम्हारे इस लाडं प्यार की बजाय से ये लड़की बहुत बिगाड़ गईं है | मेरी किसी भी काम में हाथ नहीं बटायागी | अभी घर का काम करके नहीं सिकेगी तो फिर ससुराल में जाकर क्या करेगी |
कमल- मेरी गुड़िया इस घर की राजकुमारी है | उसका जब भी मन करेगा तब ही कोई काम करेगी वरना नहीं करेगी | आप देखती नहीं हो सौम्या कितनी होशियार हैं जब भी वो घर का कोई भी काम चाहे वो खाना बनाये या और कोई काम करे, कितनी अच्छे से और आप से अच्छा ही करता है | आप वे वजह उसे परेशान करती हो और खुद भी परेशान होती हो |
पिता राजनाथ - इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ | अरे भाग्यवान आप इतना परेशान न हुआ किजिए | वो सब कुछ अच्छे से सम्भाल लेगी |
माँ कुसूम- हां मैं ही तो सब को परेशान करती हूँ | देख ले न एक दिन....माँ बुदबुदाता हुआ किचन कि ओर चल देता है|
माँ के किचन में जातें ही सौम्या निचे आकर डायनिंग टेबल पर बैठता है और बोलता है |
सौम्या- राजकुमारी हाज़िर है उनका सही खाना पेश किया जाये उनको बहुत भुख लगी है
ये सुनकर कमल ओर राजनाथ हांस पडते है और कहते हैं हां जी जल्दी से राजकुमारी की साही खाना पेश किया जाये ये सुनकर माँ तिलमिला जाती हैं ओर हाथ में वेलन लेकर बहार आतीं हैं और कहता है रूक सौम्या अभी तेरी राजकुमारी की भुत उतरती हूँ | बड़ी आयी राजकुमार माँ को इस तरहा आता देखकर सौम्या उठकर अपने पिता के पिछे जा कर छिपता है और बोलता है पापा बचाओ आज माम्मी बडक गयी है पापा बचाओ
राजनाथ- (गुस्से में) ये क्या भाग्यवान आप मेरी गुडिया को बेलन से मारेंगे वो भी मेरे रहते ये आप अच्छा नहीं कर रहे हैं मैं कह देता हूँ|
कुसूम- ये क्या आप तो नाराज हो गये |आप सब मेरे साथ मजाक कर सकते हैं | मैंने थोड़ा मजाक क्या किया और आप तो न नाराज हो गये जी | आप को क्या लगता हैं मैं अपने गुड़िया के साथ ऐसा कर सकता हूँ | वो इस घर की राजकुमारी हैं और आगें भी रहें गी | आज में अपनी गुड़िया को अपने हाथों से खाना खिलाऊगी आ बैठे |
सौम्या कभी पापा की तरफ तो कभी माॅं की तरफ ऐसे देखता है माने बकरी को हलाल करने के लिए बुलाया जा रहा है |
राजनाथ - जा बेटी तुझे डरने की जरूरत नहीं मैं यहाँ बैठा हूँ तुझे कुछ नहीं कहेंगे |
सौम्या डरकर माँ के पास जा ही रही थी कि माँ ने फिर से बेलन हाथ में उठा लिया ये देखकर सौम्या डरकर |
सौम्या - पापा देखो माँ ने फिर से बेलन उठा लिया मुझे मारने के लिए मैं नहीं जा रहीं हुं माँ के पास |
कुसूम - आरे नहीं बेटी मैं तो ये बेलन किचन में रखने जा रहा हूँ तू आ कर बैठ जा ये कहकर माँ किचन कि ओर चल देता है|
ये देखकर सौम्या के पापा और भाई हासने लगते हैं सौम्या उनको हंसता हुआ देखकर
सौम्या - (रोता हुआ) पापा-भाइयाॅं आप दोनों मेरे मजाक बना रहे हैं मैं कलेज जा रही हूँ ये कहकर नाराज होकर उठाने लगतें हैं तभी माँ वहाँ आ जाती हैं और वहाँ कि स्थिति सामझकर पापा और भाई को डाटते हुए
कुसूम- आप दोनों को हासने के अलावा कुछ आता भी है खामाखां मेरी गुड़िया को नारज कर दिया | तु बैठ सौम्या और नास्ता कर मैं देखती हूॅं अब कौन हांसता है |
माँ सौम्या को आपने पास बैठाकर नास्ता कराता है | नास्ता करने के बाद सौम्या सब को वाय बोलकर कलेज को निकल जाता हैं |
आज कलेज जाते हुए सौम्य का हाव-भाव कुछ अजीब सा है | कभी वो मुसकुराती तो कभी उदास हो जाती | पाता नहीं सौम्य के मन में क्या चल रहा हैं | ऐसे ही सोचतें हुए सौम्य कालेज पहूंच जाता हैं| जैसे ही सौम्य कालेज गेट से अंदर परवेश करता है | वैसे ही समने खड़ा सौरभ को देखकर सौम्य के चहरे पे एक मधूर मुसकान आ जाती हैं | कालेज आते समय सोची हुयी हर बात को भूलकर सौम्य स्तब्ध खड़ा हो जाता है और सौरभ को एक टक देखता रहता है, मानो वो सौरभ को कुछ कहना चाहता हो या फिर उससे कुछ ऐसा सुनना चहता हैं जिससे उसके दिल को बहुत सकुन मिले |
सौरभ अपने दोस्तों के साथ अपने हाथों को पिछे छुपाये खड़ा था और थोड़ा डारा हुआ किसी सोच में घुम था कि तभी उसके कानों में आवाज गूंजता हैं | क्या हुआ सौरभ जा आज खोल दे अपने दिल का दरवाजा और बंद कर ले सौम्य को अपने दिल के घरोंदे में, देख वो तुझे ऐसे देख रहा है जैसे तुझसे कुछ सुनना चहती हो | जा बोल दे आपने दिल की बात, डर मत मेरे यार, जा ना |
सौरभ- यार बोलना तो मैं भी चहता हूँ, पर डर इस बात की हैं कि वो कही माना न कर दे फिर मैं क्या करुंगा |
दोस्त- डर मत मेरे शेर बोल दे बरना कहीं ऐसा न हो तेरे दिल की बात दिल में रह जाये, ओर तेरे सामने से कोई और सौम्य को उड़ ले जाये ओर तु देखता रह जाये |
सौरभ - नहीं, नहीं, नहीं मैं ऐसा नहीं होने दुंगा |
दोस्त- जा फिर कर दे आपने प्यार का इजहार वरना मैं कर दूंगा (ये बोलकर हंसने लगता हैं)
सौरभ अपने दोस्त को आखें दिखाकर सौम्य कि तरफ बढ़ जता हैं जैसे-जैसे सौम्य कि तरफ बढ़ने लगता हैं वैसे-वैसे सौरभ कि दिल की धड़कन बढने लगता हैं| उसका शरीर थर-थर कापने लगता हैं | किसी तरह खुद को सम्भालते हुए सौरभ सौम्य के सामने जाकर खड़ा होता हैं और सौम्या को ऐसे देखता है , जैसे चाकोर पक्षी चंदनी रात में चांद को तकता रहता है | कुछ समय तक दोनों एक दूसरे को देखता रहता है | पर कोई कुछ बोलता नही है | सौरभ को कुछ बोलता न देखकर |
सौम्य- क्या हुआ सौरभ ऐसे क्यूँ देख रहे हो कुछ बोलना था क्या? ये बोल कर सौम्य खिलखिला कर हांस देता है|
सौम्य कि हंसने की आवज सुनकर सौरभ ऐसे होस में आता है मानो सौरभ कोई मीठा सपना देख रहा था और कोई उसे झकझोर कर सपनो कि दुनिया से बहार लाया हो|सौरभ अपनी चेतना को पाकर सौम्य कि तरफ देखकर अपने घुटनों के बल बैठकर अपने हाथों को आगे कर |
सौरभ- वो -वो वो सौम्य मैं तूमसे, वो मैं तुमसे, वो मै तूमसे.....
सौम्य- वो वो वो आगे भी तो बडो श्रीमान् जी बोलकर बहुत ही जोरो से हंसने लगता है और अपना पेट पकड़ लेता है |
सौरभ- सौम्य ऐसे क्यूँ हांस रही हो बहुत हिम्मत जुटा कर आज मैं तुमसे अपनी दिल की बात कहने आया हूँ ओर तुम मेरी खिल्ली उड़ा रहे हो कही पागल- वागल तो नहीं हो गये
सौम्य सौरभ की हाथों कि ओर देखकर और जोरो से हासने लगता हैं | सौम्य चहकर भी अपने हांसी नही रोक पाता हैं |
सौरभ- ठीक है तुम हंसती रहो मैं जा रहा हूँ |
सौम्य- अच्छा बुद्धू कही के ऐसे ही चली जाओगे आपने दिल की बात बोले बिना | सौरभ तुम न बहूत ही चालक हो मुझे प्रपोज़ करने आये हो ओर लाये क्या हो एक टहनी, एक फूल भी न ला सके हूं
सौरभ- मैं तो फूल ही लाया था ये टहनी कहा से आया पक्का ये मेरे दोस्तों की खुरापात है | छोडुंगा नहीं उन कमिनो को |
(हुआ ये था कि जब सौरभ सौम्य को प्रपोज कर ने डरें सहमे आ रहा ता तभी उसके कमर से रगड खाकर फुल टूटकर गिर गया और सौरभ के हाथ मे सिर्फ टहनी रह गया था)
सौम्य- ठीक है उनको बाद में देखेंगे | जो बोलने आये हो बो तो बोलो |
सौरभ- अब भी बोलना पडेगा तुम समझ ही गये हो मैं क्या बोलने आया हूँ |
सौम्य- मैं समझ तो बहुत पहले गया था | लेकिन मैं तुम्हारे मुहं से सुनना चहती हूं |
सौरभ -ठीक है! लो फिर सुनो सौम्य मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ| I LOVE YOU ❤ सौम्य I LOVE YOU❤
सौम्य- I LOVE YOU❤, I LOVE YOU❤ कहकर दोनों ऐसे गले मिलते हैं | जैसे वरसो से बिछडे प्रेमी आज एक दूसरे से मिले हो
बहुत समय तक जब दोनों आलग नहीं होते तो सौरभ के दोस्त पास आकर कहता है अरे ओ लव बर्ड अब अलग हो जाओ क्लास का टाइम हो गया हैं | बद मे ओर गले मिल लेना चलो जल्दी | दोनों अलग होकर अपने अपने क्लास कि ओर चल दे ता है | एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार करने के बाद मानों दोनों प्रेमी जोड़े को पंख लग गये हो और ये आसमान में ऐसे उड़ रहें हैं जैसे कभी निचे ही न आये पर समय का चक्र अपने गर्भ में किया छुपा रखा है ये इन प्रेमीयों को कहा पता | इन दोनों को जब भी मौका मिलाता कभी पार्क में, कभी रेस्टोरेंट में, कभी सिनेमा हॉल में मिलने लगे ओर एक दूसरे को भलीभाँति समझने लगे| ऐसे ही एक पार्क में बैठे ये दोनों बातें कर रहें थे | ये पार्क सिर्फ प्रेमी जोड़े के लिए था | जहाँ ये बैठे थे वहाँ इनके आस-पास बहुत से प्रेमी जोड़े बैठे अपने क्रिया कलाप में व्यस्त थें | सौरभ सौम्य के गोद में सर रखकर लेटा था ओर सौम्य के लटों से खेलते हुए बातें कर रहा है| सौम्य मुझे अब भी ये यकीन नहीं होता कि मैं ने तुम्हे पा लिया है| और सौम्य के गालों पर एक किस कर देता है|
सौम्य- सौरभ क्या करतें हो लाज सरम कुछ हैं कि नहीं रही बात मुझे पाने कि तो जब तक हमारी शादी नहीं होती तब तक हम अधूरें ही रहेंगे समझें बुद्धु
सौरभ- अच्छा मैं बुद्धु हूं अभी बताता हूँ ये कहकर सौम्य के झुके सर से पकडकर अपने नजदीक लाता हैं| और अपने अपने होटों को सौम्य के होटों से जैसे ही मिलाने जाता है वैसे सौम्य सौरभ के होटों पर उगली रख कर सौरभ को माना कर देता है |
सौरभ- देखो हमारे आस पास सभी कर रहे हैं हमें करने में क्या परेशानी है |
सौम्य- मेरे साथ कभी ऐसा कुछ मत करना जिससे मैं अपने ही नजरों में गिर जाऊँ | मैं भी ये करना चहता हूं लेकिन मेरेे संस्कर ये सब करने से रोकता है |
सौरभ- ठीक है ज्यादा सेंटी मत हैं चलो घर चलतें हैं तुम्हें देर है रहीं होगी |
सौम्य- तुम नराज तो नहीं हो न |
सौरभ- नहीं सौम्य मैं नारज नहीं हूँ | मैं भी तुम्हारें साथ ऐसा कुछ नहीं करना चहता जिससेे तुम अंदर ही अंदर घुटन महसूस करो | चलो अब घर चलो
पार्क से निकल कर दोनों अपने अपने घर को चल देता है| समय अपनी रफ्तार से चलने लगता हैं | सौरभ कालेज की पढ़ाई खत्म कर आगे कि पढाई पूरी करने के लिए विदेश चला जाता है | इधर सौम्य के घर वाले सौम्य के लिए लडके डूढने लगते हैं | इस बीच एक ऐसी घटना घटती है जिससे दोनों प्रेमीओ पर गमों के पहाड़ टूट पडते है | होता ये है कि सौम्य के पिता जी अपने पुराने दोस्त से मिलता है जो इनके लंगोटिया यर हैं और इनका अच्छा करोबार भी है | बातों ही बातों में राजनाथ जी अपने से यार कोई अच्छा लडका नजर में हो बताना |
रविन्द्र- तु कब से लडकों का शव्क रखने लागा जहाँ तक मुझे पाता तु ऐसा तो नहीं था |
राजनाथ- छीं कैसी बात करते हो रविन्द्र मुझे ऐसा कोई शव्क नहीं है | वो बिटिया बडी़ हो गयी है उसी के शादी के लिए ढूंढ रहा हूँ |
रविन्द्र - यार लडका मेरा भी जवान हो गया है | मैं भी उसकी शादी के लिए लडकी ढूंढ रहा हूँ |
राजनाथ- ये तो अच्छी बात हैं| तु अपने लडके के साथ मेरे घर पे आ लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद कर ले तो हम बडे मिलकर दोस्तीं को रिस्तेदारी में बदल देते हैं |
रविंद्र- ठीक है राजनाथ आने वाले इतवार को मैं अपने परिवार सहित बिटिया को देखने आयेंगे ये वादा रहा |
अपने दोस्त से विदा लेकर राजनाथ जी घर पहूंच कर
राजनाथ- अरे भाग्यवान किदर हो कभी तो अपने पति की खोज खबर ले लिया करो सिर्फ टीवी कि सीरीयल में डुबा न रहा करो |
कुसूम- कमरे से बहार आतें हुयें! अच्छा जी में दिन बर सीरियलललल... ये क्या आज बहुत खुश लग रहें हो कही मेरी सौतन तो ढुढ़ नहीं लिया |
राजनाथ- अरे भाग्यवान अब वो बात कहा अब तो उम्र ढाल गया कौन पसंद करेंगे |
कुसूम- अच्छा जी मुझसे आपका मन बर गया इसलिए आप ऐसे कह रहे हैं | जाओ जी मैं आपसे बात नहीं करतीं और नाराज होकर बैठ जाता है |
राजनाथ- नहीं भाग्यवान ऐसी कोई बात नहीं आपको तो पता है आपके आलावा मेरे जिंदगी में कोई और आ ही नहीं सकता |
कुसूम- तो फिर आपके चहरे पे ये खूशी किस बात की
राजनाथ- आज मैं बर्षो बाद अपने दोस्त बलवंत से और...
कुसूम- अच्छा तो अपको इस बात कि खुशी हैं |
राजनाथ- अरे पूरी बात तो सुनो बलवंत आने वाले इतवार को हमारें घर आ रहे हैं हमारी बिटिया को देखने |
कुसूम- अब समझा अपको इस बात की खूशी थी ये बहुत अच्छी बात है
राजनाथ- इस बारे में हमें सौम्य से भी पूछना चहिए |
कुसूम- क्या पूछेंगे कि हम तुम्हारी शादी के लिए लडका ढूंढ रहे हैं तुम्हारा क्या मन हैं | क्या अप भी थोड़ी सी भी समझ नहीं है कोई लड़की कैसे कहे कि...
राजनाथ- कि मैं शादी करना चहती हूं ये तो नहीं कहेगी | मुझे सौम्य से कुछ ओर पूछंना है | अब के समय कैसा चल रहा है | क्या पता हमारी गुड़िया किसी ओर लड़की को पसंद करता हो |
कूसूम- थोडा रूठे स्वार में जैसा आप ठीक समझें कहकर किचन में चल देता |
सुबह सभी बैठें नास्ता कर रहें थें तभी राजनाथ जी
राजनाथ- सौम्य बेटी तुम से कुछ बात करनी है |
सौम्य- जी पापा बोलीए क्या पूछना चहते हो |
राजनाथ- परसों कुछ लोग आ रहें हैं तुम्हें देखने..
सौम्य- हैरान होकर क्या पापा मेरे से बिना पुछे...
राजनाथ- पहले मेरी पूरी बात सुनलो बेटी तुम नहीं चहती तो हम उन्हें माना कर देंगें| परंतु हम ये जानना चहते हैं कि तुम किसी ओर लडके को पसंद करती हो क्या
सौम्य- वो पापा मैं (शर्मा कर) एक लडके को पसंद करती हूँ
कुसूम- गुस्से मे कौन है वो लडका और क्या करता है |
सौम्य- माँ वो मेरे साथ ही कलेज में पढता था
कुसूम- (गुस्से में) सौम्य तुम कालेज पढने जाते थे या फिर लडको के संग.....
राजनाथ- भाग्यवान कुछ भी बोलने से पहले सोच समझ कर बोलना |
कुसूम- हा जी मैं तो हमेशा गलत ही बोलता हूँ | मैं ने बोला था कि आगें ओर पढाने की जरुरत नहीं है | आप माने नहीं अब उसका नतीजा देख लो सौम्य हमने तुम्हें ये संस्कार दिए की बहार तुम...
सौम्य- मैनें ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे मैं खुद की और आप सब के नजरों में गिर जाऊँ |
कुसुम- बहार लडको के संग मटर गस्ती करतीं फिरती हो ओर तुम्हें शरम नहीं आती |
सौम्य- माँ आप क्या बोल रहीं हो
राजनाथ- गुस्से में क्या अनप- शनप बोल रहीं हो |
कुसूम- हा मैं तो अनप-शनप ही बोलूंगी अनपढ़ जो ठहरी
राजनाथ- (क्रोध से) भाग्यवान मैंने सुना हैं एक स्त्री को एक स्त्री ही अच्छे से समझ सकती हैं परंतु आप अपने ही बेटी को समझ नहीं पाये |
कुसूम- ये क्या कहा रहें आप |
राजनाथ- मैं ठीक कहा रहा हूँ | आप मुझे ये बातायें कि हमारी राजकुमारी ने ऐसा क्या कर दिया जो आप ऐसा बोल रहीं हो|
कुसुम- अपने ही इसे राजकुमारी बोल बोलकर कर सर चढा रखा हैं जिस कारण सौम्य ने शादी से पहलें ही किसी से सम्बंध बना रखा है जो एक लड़की के लिए ठीक नहीं है|
सौम्य- रोता हुआ.. माँ मैं सौरभ से प्यार करती हूँ और मैने और सौरभ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो आप समझ रही हो|
कुसुम- चुप कर प्यार के नाम पे इस लड़की ने पता नहीं क्या क्या गुल खिलाए | इस लड़की ने तो हमारी नाक कटवा दी |
कमल- माँ ये आप ठीक नहीं कह रही हो अगर सौम्य की जगह मैं ऐसा कुछ करता तो आप क्या कहती |
कुसुम - बेटा तु तो लडाका हैं तु कुछ भी...
राजनाथ- (क्रोध में) एक लडका कुछ भी कर सकता हैं वहां जी वहा तो क्या सारी संस्कार सिर्फ और सिर्फ लडकियों के लिए है| ये संकार नहीं मजबूरी है भाग्यवान |
कुसुम- ये आप क्या कह रहे हो |
राजनाथ- हां भाग्यवान ये मैं सही कहा रहा हूँ | ये मजबूरी नहीं तो और क्या है जहाँ सस्कार के नाम पर लड़की को आपनी खुशियाँ आपनी इच्छाओं को मार कर जीना पडता है | पहले पाने माँ-बाप के लिए फिर शादी के बाद अपने ससुराल वालों और पति के लिए ये कहा तक ठीक है |
कुसूम- आप कहना क्या चलते हो |
राजनाथ- भाग्यवान आप अभी तक समझ नहीं पाए | अच्छा ठीक है मैं अपसे जो-जो पूछूँ आप उसका सही सही जबाब देना |
कुसुम- जी पूछिए जो पूछना हैं|
राजनाथ- आपको अपने मन पंसद कपड़े पहने का , पढने का, अपनी सहलियो के संग घुमने का और ऐसे बहुत कुछ हैं जो आप करना चहती थी लेकिन आप ने संस्कार के नाम पर मजबूरी में नहीं किया मैं सही कहा रहा हूँ न
कुसूम- अपने आसूओ को पोछ कर जी हां आप ठिक कह रहे हैं |
राजनाथ- ऐसे ही बहुत से काम हमारी बिटिया ने संस्कार कहो या मजबूरी में किया है परन्तु आज मैं बहुत खूश हूँ कि मेरी बेटी ने अपनी जीवन साथी चुनने में अपनी इच्छाओं को नहीं दबाया | ओर एक बात और बाता दूं जिस लडके से सौम्य प्यार करता है उस लडके को ओर उस के परिवार वालो को मैं बहुत अच्छे से जनता हूँ |
सौम्य- हैरान होते हुए... क्या!
कुसूम - हैरान होते हुए... क्या!
कमल- हैरान होते हुए.... क्या!
राजनाथ- इतना हैरान होने की जरूरत नहीं हैं | मैं एक बेटी का पिता हूँ | मेरी बेटी किससे मिल रही हैं और किससे नहीं इतना खबर तो मैं रखता हूँ |
सौम्य- मुस्कुरा कर मैं बहुत खुश हूँ पापा कि आप मेरे इस कदम से नाराज नहीं हो |
राजनाथ- सौम्य के पास जाकर मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ ओर मुझे पाता है की तुमने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मेरे मान सम्मान को ठेस पहूंचे | सौम्य जिस लडके से तुम प्यार करती हो वो मेरे दोस्त का बेटा हैं| वो लोग ही तुम्हें देखने आ रहे हैं अब तो हांस दो राजकुमारी जी |
समाप्त