Incest ससुराल में बीवी और उसकी भानजी संग

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यह कहानी लगभग 5 वर्ष पुरानी है। मेरी पत्नी शशि को सुबह 4:00 बजे फोन आया कि उसके ताऊ जी (पिता के बड़े भाई) का स्वर्गवास हो गया है.
खबर सुनकर ही पत्नी विचलित हो गई. पत्नी के रोने की आवाज सुनकर मेरी आंखें खुलीं तो मुझे भी इस दुखद खबर का पता चला।

आनन-फानन में पत्नी के मायके जाने की तैयारियां शुरू हुईं और 1 घंटे के भीतर ही हम दोनों अपनी कार से निकल भी गए।
मेरठ से लुधियाना के सफर में मेरी पत्नी शशि के कई बार आंसू ढलक आये क्योंकि उसके मायके में संयुक्त परिवार है तो आपस में लगाव होना स्वाभाविक ही है.

हालांकि 5 घंटे के सफर की थकान मुझपर भी हावी थी मगर वहां का गमगीन माहौल देखकर मैं भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने ताऊ ससुर के अंतिम संस्कार में शामिल हो गया।

धीरे-धीरे परिवार के सभी सदस्य वहां पहुंच गए। दोपहर को 2:00 बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया।

तब तक थकान इतनी हो गयी थी कि घर आकर स्नान करने के बाद कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

रात्रि भोज के समय भी जब मेरी आंख खुली तब तक बचे हुए कुछ मेहमान भी आ रहे थे.
मैंने शशि से पूछा कि वापस अभी चलना है या सुबह चलोगी?

इतना बोलते ही मेरी सासू मां मुझ पर गुस्सा करने लगीं और बोलीं- कम से कम ऐसे में तो लड़की को कुछ दिन मायके में रहने दो?
सासू मां की स्नेहपूर्ण डांट सुनकर मैंने शशि को वहीं छोड़ने का निर्णय किया और अगले दिन सुबह अपनी कार से अकेला ही घर वापस आ गया।

अब 13 दिन के लिए शशि अपने मायके में ही रहने वाली थी और मेरी शादी के बाद यह पहला मौका था जब मुझे शशि के बिना अकेले इतने दिन और रात दोनों ही काटने थे।

मेरे लिए यह समय किसी सज़ा से कम नहीं था मगर परिस्थिति के आगे हम दोनों ही नतमस्तक थे।

शुरू के चार-पांच दिन तो बच्चों के साथ खेलते खेलते और शशि को याद करते बीत गए. फिर उसके बाद धीरे धीरे विरह की ज्वाला बहुत तेजी से धधकने लगी।

दसवां दिन आते आते तो मेरे लिए एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था।
मैं और शशि रोज एक दूसरे से फोन पर बात करते थे. अगर मौका लग जाता तो फोन पर ही थोड़ा बहुत कामक्रीड़ा का आनंद भी ले लेते।

मगर यह तो उस आनंद का एक प्रतिशत भी नहीं था जो शशि के मेरी बांहों में होने के बाद मिलता था।

मेरी तो रातों की नींद भी उड़ चुकी थी। अब अक्सर मैं दिन और रात जागता रहता।

कई बार शशि मुझे डांट भी चुकी थी मगर मैं क्या करूं कुछ किये नहीं बन रहा था। मुझे तो उसी के नग्न बदन से चिपक कर सोने की आदत पड़ी हुई थी। उसके बिना कैसे नींद आती?

आखिर में इंतजार करते-करते 11 दिन पूरे बीत गए।
12वें दिन जब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने अपनी गाड़ी उठाई और लुधियाना के लिए निकल गया।
इस बारे में मैंने किसी को कुछ नहीं बताया था।

शाम को 6:00 बजे जब मैं शशि के मायके पहुंचा तो वह भी मुझे अचानक सामने देखकर हतप्रभ थी।
उससे ज्यादा मजा तो तब आया जब शशि की सहेली मनजीत ने शशि पर चुटकी मारते हुए पीछे से कहा- कौन सी घुट्टी पिलाती है तू जीजा जी को … जो ये तेरे बिना रह ही नहीं पाते?

शशि तो बेचारी शर्माकर सिर झुकाकर ही रह गई और मेरी सब सालियां मेरा मजाक उड़ाते हुए मुझे घर के अंदर ले गईं।
अब घर के अंदर का माहौल ठीक हो चुका था। अगले दिन होने वाले तेरहवीं के संस्कार की तैयारियां चल रही थीं।

मैंने भी जाकर थोड़ा आराम करने के बाद काम में सबका हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
शाम तक सब अपने-अपने काम से निवृत हो चुके थे।

मैंने मौका देखकर शशि को इशारा भी कर दिया कि आज रात को उसे मेरे साथ कहीं अलग कमरे में सोना है।
मेरा बदन उसके बदन के लिए तड़प रहा था।

शशि ने भी मेरे कान में फुसफुसाकर कहा- जानेमन … मैं कितनी बेचैन हूं बता नहीं सकती. मेरे पूरे बदन को तुम्हारी जरूरत है, चाहे कैसे भी करूं मगर आज रात यह बेचैनी जरूर मिटा दूंगी।

उसके प्यास भरे शब्दों से आश्वस्त होकर मैं नहाने चला गया और रात्रि भोज के पश्चात शशि के इशारे का इंतजार करने लगा।
मुझे पक्का विश्वास था कि जल्दी या देर से ही सही … मगर शशि कुछ ना कुछ इंतज़ाम जरूर करेगी।

तभी मेरे साले ने आकर कहा- जीजा जी … आपके सोने का इंतजाम पड़ोस वाले चड्ढा जी के घर में किया गया है। चलिए मैं आपको वहां छोड़ आता हूं।

साला सामने खड़ा था और मैं चारों तरफ नजर घुमाकर शशि को ढूंढ रहा था। वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं मन मसोसकर चुपचाप अपने साले के साथ चड्ढा जी के घर पहुंच गया और बिस्तर पर लेटकर सोने की तैयारी करने लगा।

लेट तो गया किंतु नींद तो मुझसे कोसों दूर थी।
मैंने मोबाइल निकालकर शशि को कॉल करने की कोशिश भी की मगर उसके फोन पर घंटी तो बज रही थी लेकिन वह कॉल नहीं उठा रही थी।

अब मुझे झुंझलाहट होने लगी थी। गुस्सा भी सातवें आसमान पर था। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

रात के करीब 11:00 बज चुके थे और आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।

बराबर में ही शशि के मायके से सभी लोगों के बातें करने की आवाजें आ रही थीं मगर शशि की आवाज उसमें भी नहीं थी। ना ही शशि मेरा फोन उठा रही थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या चल रहा है?

सोच रहा था कि शशि गई तो कहां गई? उसको कम से कम मेरा फोन तो उठाना चाहिए था?

अभी मैं इसी ऊहापोह में था कि किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया।
मुझे लगा कि शायद शशि ही होगी।

मैंने उसे सीधे अंदर आने को कहा और तभी ‘मौसा जी, नमस्ते!’ की आवाज के साथ शशि की बड़ी बहन अनीता की पुत्री दिव्या कमरे में दाखिल हुई।

पहले मैं दिव्या के बारे में आपको बता दूं. दिव्या शशि की बड़ी बहन की सबसे बड़ी बेटी थी. दिव्या और शशि की उम्र में सिर्फ 8 साल का अंतर था।

यूं तो शशि दिव्या की मौसी लगती थी लेकिन वो दोनों आपस में पक्की सहेलियां थीं। दिव्या मुझे अपना जीजा ही मानती थी और अक्सर मुझे जीजाजी कहकर भी पुकार लेती थी.

दिव्या एक अति खूबसूरत, दुग्ध वर्ण कामायनी, छरहरी काया वाली महिला थी। फर्क सिर्फ इतना था कि शादी के बाद शशि तो मेरे पास आ गई थी और दिव्या अपने पति के साथ कनाडा चली गई थी।

आज मैंने दिव्या को करीब 5 साल बाद देखा था. अब तो दिव्या पहले से भी ज्यादा निखर गई थी। दिव्या का पति मनोज एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था जो अब कनाडा शिफ्ट हो चुका था।

दिव्या आधुनिक परिपेक्ष में रहने वाली एक आधुनिक महिला थी। उसे सिर्फ एक ही दुख था कि पिछले 5 साल में उसके घर में संतान नहीं आई थी।
इसके अलावा शायद दुनिया का कोई सुख ऐसा नहीं था जो दिव्या की झोली में नहीं था।

अंदर आते ही दिव्या ने अपनी खनकती आवाज में मुझे नमस्ते की और अपने मजाकिया अंदाज में हर बार की तरह मैंने भी उसे ‘आओ स्वीटहार्ट’ कहकर उसका स्वागत किया।

दिव्या मुझे आंख मारते हुए बोली- मौसा जी … मैं अभी आपसे मिलने नहीं आई हूं, अभी तो मैं एक सीक्रेट मिशन पर हूं!
मैंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- कैसा मिशन?
तो दिव्या ने कहा- आपको बिल्कुल चुप रहना है. आपकी आवाज नहीं आनी चाहिए और बिना कोई भी शोर किए आपको मेरे पीछे चुपचाप चलते जाना है!

‘ओके स्वीटहार्ट’ बोलकर हम भी उस कामायिनी के पीछे चुपचाप हो लिए!
कमरे से निकलकर वो मुझे दबे पांव चड्ढा जी की सीढ़ियों से चलाते हुए चड्ढा जी की छत पर ले गई।

चड्ढा जी की छत मेरी ससुराल की छत से मिलती थी। छत पर जाकर दिव्या ने मुझे चड्ढा जी की छत कूदकर मेरी ससुराल की छत पर जाने को कहा।

बिना कोई आवाज निकाले जब मैंने उससे इशारे में सवाल किया तो उसने मुझे प्यार से धक्का देते हुए बहुत हल्की आवाज में कहा- आप जाओ, बस!

उसका इशारा पाकर मैं चुपचाप दोनों छतों के बीच की दीवार को फांदकर अपनी ससुराल की छत पर चला गया।
मेरी ससुराल की छत पर एक छोटा सा कमरा बना हुआ था जिसमें अक्सर घर का पुराना सामान रखा जाता था।

मैंने देखा कि उस कमरे के अंदर की लाइट जल रही थी। मैं दबे पांव उस कमरे की तरफ गया, दरवाजा खुला था। जैसे ही मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ मैं तो देखता ही रह गया।

मेरी शशि बिल्कुल अद्भुत … अति सुंदर … रूपवान अप्सरा सी लग रही थी। मेरा सारा गुस्सा काफ़ूर हो चुका था।
मेरे अंदर जाते ही शशि ने मुझे गले से लगा लिया.
मैंने भी अपनी बांहें पसारकर उसे अपनी बांहों में भर लिया।

2 मिनट तक उसे अपनी बांहों में रखने के बाद मैंने उससे सवाल किया- 2 घंटे से तुम्हें ढूंढ रहा हूं … तुम थी कहां?
तो शशि ने बताया- बुद्धू, तुम्हारे लिए ही तैयार हो रही थी। अब इस तरह के माहौल में अपने घर में तो तैयार नहीं हो सकती थी न? बड़ी मुश्किल से दिव्या को लेकर उसकी एक सहेली के घर गई थी। वहीं जाकर तुम्हारे लिए पूरी तरह से तैयार होकर दिव्या के साथ ही छुपते छुपाते यहां तक आई हूं। घर में किसी को नहीं पता कि मैं कहां हूं। इसीलिए मोबाइल भी साइलेंट कर रखा था, सिर्फ दिव्या ही हमारी राजदार है।

मैंने मन ही मन दिव्या को धन्यवाद दिया और अपने होंठों को शशि के होंठों पर रख दिया।
शशि के होंठ किसी अंगारे की तरह तप रहे थे। ये तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थे कि कब मेरे होंठ उसको छुएं।

शशि मेरे होंठों पर हावी होकर बहुत तेजी से मेरे होंठ चूसने लगी. अब समझ में आ रहा था कि जितना मैं बेचैन था उतनी ही बेचैन मेरे लिए मेरी शशि भी थी।

यह पति पत्नी का प्यार ही कुछ ऐसा होता है। गैरों से तो इंसान अपना प्यार जता भी देता है लेकिन पति पत्नी जितना प्यार एक दूसरे को करते हैं वह जता ही नहीं पाते।

आज शशि की बेचैनी देखकर मेरी पीड़ा खत्म हो गई थी।
मैंने कसकर अपनी बांहों में शशि को दबा लिया।
आह्ह … की सिसकारी के साथ शशि ने मेरे होंठों को छोड़ दिया।

मैं पागलों की तरह शशि के पूरे चेहरे को चूमने लगा। शशि की आंख … नाक … होंठ … गला … ये सभी अंग मेरे प्रिय रहे हैं।

शशि ने मेरी पीठ पर हाथ फिराना शुरू कर दिया।

अब मैंने भी चूमते चूमते शशि की हरे रंग की कुर्ती धीरे धीरे ऊपर सरकानी शुरू कर दी।
शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी।
थोड़ी सी कुर्ती ऊपर सरकते ही उसे निकालने के लिए शशि ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिये।

मैंने बहुत प्यार से शशि की कुर्ती को उसके बदन से अलग कर दिया। अब शशि का गोरा बदन मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में था। मैं चारों तरफ देखते हुए कोई बिस्तर खोजने लगा जहां शशि को लिटा सकूँ।

शायद शशि मेरी बात समझ गई थी।
वो तुरंत बोली- साहब, यहां बिस्तर नहीं मिलेगा. नीचे से चादर लेकर आई हूं. उसे यहीं फर्श पर बिछा लो। उसी से आज काम चलाना पड़ेगा।

मैंने और शशि मिलकर उस चादर को कमरे के फर्श पर बिछा लिया और मैंने शशि को वहीं चादर पर लिटा लिया।
शशि का गोरा गदराया हुआ कामुक बदन सदा से मेरी कमजोरी रहा था।

मैं तो पागलों की तरह शशि का बदन चाटने लगा।
मेरी इस हरकत को देखकर शशि हंसने लगी।
मैं अचानक रुका और शशि से पूछा- हंस क्यों रही हो?

वो बोली- तुम्हारी पागलों वाली हरकत पर हंस रही हूँ! अरे बाबा, अब मैं यही हूं तुम्हारे पास! कोई जल्दी नहीं है, हम आराम से एक दूसरे का साथ इंजॉय कर सकते हैं अब!

बोलकर वो अपने हाथ पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोलने लगी. मैंने उसकी मदद करते हुए उसकी ब्रा का हुक खोला और उसके दोनों दुग्ध कलश को आजाद कर दिया।

टेनिस बॉल की भांति दोनों दूध कूद कर मेरे सामने बाहर आ गए।
शशि की ये चूचियां मेरे लिए ईश्वर के किसी प्रसाद से कम नहीं थीं। शादी के बाद आज तक मैंने इनसे ज्यादा शायद किसी को प्यार नहीं किया था।

आज तेरह दिन बाद यह दोनों मोटी मोटी पहाड़ियां मुझे निमंत्रण सा देती प्रतीत हो रही थीं। मगर अब मुझे भरोसा था कि शशि मेरी बांहों में है तो कोई जल्दी करने की जरूरत नहीं है।

मैं बहुत प्यार से हल्के हल्के अपनी जीभ से शशि के बाएं चूचक को सहलाने लगा और एक हाथ से हल्के हल्के शशि के दाएं चूचक को मसलने लगा। अब तो शशि को भी पूरा आनंद आने लगा।

अब शशि की हंसी सिसकारियों में बदल गई- ह्म्म … उफ़्फ़ … आहह … की मादक आवाज़ मुझे पागल कर रही थी और मैं अपने दोनों हाथों से उसके इस अधनंगे बदन का आनंद ले रहा था।

हालांकि मैं शुरू से ही शशि के नंगे बदन का दीवाना रहा हूं लेकिन आज तेरह दिन बाद उसकी ये चूचियां मुझे ज्यादा ही उत्तेजना दे रही थीं। मन तो हो रहा था कि बस इनके साथ ही खेलता जाऊं।

मैंने शशि के बदन को चाटते चाटते उसकी पजामी का नाड़ा भी खोल दिया।
शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी। नाड़ा खुलते ही उसने अपनी पजामी और उसके साथ ही अपनी पैंटी को भी अपनी टांगों से नीचे की तरफ सरका दिया।

शशि का गोरा बदन, शशि की केले के तने जैसी चिकनी जांघें और उसके बीच प्यारी सी चमचमाती हुई मूत्रदायिनी योनि मुझे पागल बना रही थी।

पजामी और पैंटी अपने बदन से अलग करते ही शशि का बायां हाथ सीधे मेरे बरमूडा पर गया।
नाग की तरह फुँकार रहे मेरे लिंग को शशि ने अपने हाथ पाश में जकड़ लिया।

शशि के 36 साइज के मोटे भरे हुए दुग्ध कलश और आह्ह … की एक मीठी सिसकारी के साथ मैं शशि को और करीब से चिपक गया।

मेरी कामुक पत्नी ने अपना हाथ ऊपर करके मेरी टी-शर्ट और बनियान दोनों ही पकड़ कर मेरे बदन से हटा दिये।
अब मैं सिर्फ एक बरमूडा में शशि के ऊपर था। उसने अपना पैर ऊपर करके, मेरे बरमूडा के इलास्टिक में फंसाकर उसे नीचे सरका दिया।

मैंने भी शशि की मदद करते हुए पूरा बरमूडा ही निकाल फेंका। अब शशि और मैं पूरी तरह से नग्नावस्था में एक दूसरे के साथ गुत्थम-गुत्था थे। मैंने वहीं फर्श पर शशि को उल्टा लेटा दिया और पीछे से शशि के बदन के ऊपर पूरा लेट गया।

लेटकर मैं अपने बदन से शशि के बदन की मालिश करने लगा। मेरा यह तरीका शशि को सदा से ही पसंद आया है। मेरा लिंग पूर्णावस्था में शशि के दोनों चूतड़ों के बीच की दरार पर रगड़ मार रहा था।

मैं पूरा शरीर ऊपर नीचे करके शशि के गोरे चिकने और मुलायम बदन की मालिश कर रहा था। शशि की मादक चीत्कार अब उस छोटे से कमरे में गूंज रही थी।
तभी शशि ने मेरे कान में फुसफुसाया- जल्दी करो … कभी कोई छत पर ना आ जाए!

मैंने अपनी घड़ी में समय देखा तो रात के 12:00 बज चुके थे। मैंने भी देर न करते हुए शशि के ऊपर से हटकर उसी अवस्था में शशि को घुटनों के बल मोड़ दिया और शशि को डॉगी स्टाइल में बिठाकर पीछे की तरफ से नीचे लेट गया।

अब शशि के स्वर्गद्वार (योनि) का मुंह बिल्कुल मेरे मुंह के ऊपर था। शशि की योनि से निकलने वाली गर्म भांप सीधे मेरे मुंह पर आ रही थी। उसी से अहसास हो रहा था कि इस समय शशि के अंदर कितनी काम ज्वाला धधक रही है!
 
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Update 2
अभी तक आपने जाना कि मेरे ससुर की मृत्यु पर बीवी 13 दिन तक मायके में रुकी हुई थी. 12वें दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं उसी शाम उसके घर जा पहुंचा और उसे रात को अकेले में मिलने के लिए बुलाया।

हमारा मिलन होते ही दोनों एक दूसरे के जिस्मों में गुत्थमगुत्था हो गये और चुम्बनों के दौर के पश्चात् नग्न जिस्मों की आग को चुदाई से मिटाने के लिए तैयार हो गये.

देर होते देख शशि ने शीघ्रता से चुदाई को अंजाम देने का आग्रह किया और मैंने उसे घुटनों के बल डॉगी स्टाइल में झुका लिया. उसकी योनि का द्वार मेरे मुंह के ठीक सामने आ गया था।

अब आगे :

मैंने अपनी जीभ निकालकर शशि के योनि द्वार के दोनों होंठों को चाटना शुरु कर दिया। अब तो शशि की सिसकारियां उसके काबू से बाहर होने लगीं।
सिसकरती हुई शशि ने कहा- धीरे से करो, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है! कहीं बाहर किसी ने आवाज सुन ली तो ठीक नहीं होगा!

मुझ पर जैसे शशि की चेतावनी का कोई असर ही नहीं था। मैंने तो अपनी जीभ को गोल घुमा कर धीरे से उस काम द्वार (योनि) के अंदर ठेलना शुरू कर दिया। शशि ने अपने घुटनों को एक दूसरे के साथ जोड़ लिया।

चादर उसने कसकर पकड़ ली। उसका पूरा बदन अकड़ने लगा और वो ऐसे ही अपने नितंब हिला हिलाकर जोर जोर से झटके मारने लगी।
मैं समझ गया कि अब शशि के लिए रुकना मुश्किल है।

मैंने उठकर पीछे की तरफ बढ़ते हुए अपना पौरूषांग (लिंग) शशि के योनि द्वार पर लगा दिया।
आज 12 दिन बाद मेरा लिंग उस स्वर्गद्वार को छू रहा था। बेचैनी इतनी कि अभी मैंने उसको छुआ ही था कि शशि ने पीछे की तरफ झटका मारा।

इसी झटके में लोहे की तरह तपता हुआ मेरा लिंग शशि के योनि द्वार को चीरता हुआ अंदर तक प्रवेश कर गया। शशि की बेचैनी का आलम तो यह था कि मेरा इंतजार किए बिना ही उसने बहुत तेजी से अपने शरीर को आगे पीछे सरकाना शुरू कर दिया।

शशि की अधीरता देखकर मैं भी आपे से बाहर हो रहा था। मैंने दोनों हाथों से शशि की पीठ को पकड़ा और धकाधक जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।

हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस बहुत तेजी से चलने लगी और फिर चुदाई करते हुए बीच में ऐसा समय आया कि हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस फेल हो गई। मेरे लिंगमुंड के छोटे से मुख से एक बड़ी सी धार वीर्य लिये हुए मेरी बीवी की योनि के अंदर गिरी और मैं बिल्कुल निढाल हो गया।

मैंने देखा कि शशि भी निढाल हो चुकी थी। हम दोनों वहीं एक दूसरे के बराबर में लेट गए और एक दूसरे से चिपक गए। ऐसा लग रहा था जैसे हम बरसों बाद मिले हों।

हम दोनों के जिस्मों के मध्य में एक सेंटीमीटर भी जगह नहीं थी। हम दोनों निस्तेज अवस्था में आंख बंद किए एक दूसरे से चिपके हुए लेटे थे।

तभी किसी के खखारने की आवाज हुई और उसने पूछा- काम निपट गया हो तो मैं अंदर आ जाऊं?
यह दिव्या की आवाज थी।

हम दोनों घबराकर उठे और अपने अपने कपड़े पहने।
मैंने इशारा करके शशि से पूछा तो शशि ने मुझे बताया कि उसने दिव्या को हमारा काम निपटने तक छत पर ही चौकीदारी करने को कहा था।

झुंझलाहट में मैंने अपना सिर पीट लिया।
हो सकता है कि दिव्या बाहर से सब कुछ देख रही हो!!
अभी हमने पूरे कपड़े पहने ही थे कि दिव्या ने अंदर प्रवेश किया तो मुझे याद आया कि इस दरवाजे में तो कुंडली भी नहीं है!

मेरे ख्यालों में तो यही घूमने लगा कि जब मैं और शशि काम अवस्था में लीन थे तो शायद दिव्या दरवाजे में से झांक कर हमें देख रही होगी। दिव्या के अंदर आते ही शशि ने मुस्कराकर उसका स्वागत किया।

दिव्या एकदम दोनों के पास बैठ गई।
शशि ने उसको थैंक्यू बोला।
मैंने खुद को संयमित करते हुए बहुत हल्की सी आवाज में दिव्या का स्वागत करते हुए उससे पूछा- स्वीटहार्ट, तुझे कैसे पता लगा क्या काम निबट गया है?

मेरे सवाल का निडरता से सामना करते हुए दिव्या ने बिंदास अंदाज में कहा- मौसा जी … 5 साल तो मेरी शादी को भी हो गए हैं! मैं भी जानती हूं कि एक पारी कितनी देर में खेली जाती है!

मैंने आँख मारते हुए और शशि की तरफ मुखातिब होते हुए कहा- मुझे तो लगता है कि दिव्या बाहर से पूरा गेम देख रही थी!
तभी दिव्या खड़े होते हुए बोली- मौसा जी, फालतू शक मत करो! मैं तो छत के दूसरे किनारे पर खड़ी थी। जब मुझे अंदाजा हो गया कि आप लोगों की पारी खत्म हो चुकी है, तभी इधर आई हूं।

उसने कह तो दिया लेकिन उसके चेहरे पर दिखने वाली शैतानी मुस्कान कुछ और ही बयां कर रही थी।

माहौल को बदलने के लिए शशि ने दिव्या से उसके परिवार की बातें शुरू कर दीं।

मैंने कहा- यार, मैं चला जाता हूं। तुम यहां औरतों वाली बातें कर लो!
दिव्या ने कहा- चलो छोड़ो, आज तो मौसा जी साथ हैं, अगर आपको नींद नहीं आई है तो हम तीनों मिलकर लूडो खेलते हैं?

उसका मूड देख मैंने दिव्या की बात पर तुरंत सहमति दे दी।
दिव्या ने अपना मोबाइल निकाला और उसमें लूडो खेल चलाकर हमारे आगे कर दिया।
हम तीनों काफी देर तक एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हुए लूडो खेलते रहे।

मगर मेरा ध्यान लगातार ही दिव्या की शैतानी मुस्कराहट पर ही था।

करीब 3:00 बजे शशि ने कहा- अब मुझे नींद आ रही है।
दिव्या मुझसे बोली- मौसा जी, मैं आपके साथ चलती हूं … आप उसी तरह छत से नीचे उतर जाना तो मैं चड्ढा जी के गेट की कुंडी लगा लूंगी।

दिव्या मुझे वापस मेरे बिस्तर तक छोड़ कर आई और उसके बाद शशि और दिव्या आकर सो गईं।

मेरी आंखों से तो अभी भी नींद कोसों दूर थी। मुझे रह-रहकर दिव्या की वही शैतानी मुस्कराहट दिखाई दे रही थी।

ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जब शशि की योनि में पीछे से जोर-जोर से अपने लिंग के धक्के मार रहा था, तब दिव्या दरवाजे में से वह नजारा देखकर मुस्करा रही होगी।
यह सोचकर ही मेरे तो पूरे बदन के रोंगटे खड़े हो रहे थे।

अचानक मेरा हाथ बरमूडा पर गया तो पाया कि बरमूडा के अंदर मेरा प्रिय नाग भी फुंफकार रहा था।
उसकी यह तड़प दिव्या की उस मुस्कराहट के लिए थी।

कुछ ही पलों में दिव्या मेरी नजरों में मेरी साली की बेटी की छवि से उतरकर एक कामदेवी बन गई थी।
दिव्या के बारे में सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला।

सुबह 8:00 बजे दिव्या ने ही आकर मुझे जगाया।

नींद खुलते ही मैंने दिव्या को अंदर बुलाया और उससे पूछा कि शशि कहां है?
हंसते हुए दिव्या बोली- मौसा जी, कभी किसी और को भी याद कर लिया करो? आपके दिलो-दिमाग पर हर समय मौसी ही छाई रहती हैं! इतना प्यार मैंने किसी दूसरे पति-पत्नी में नहीं देखा।

ये बोलकर वह हंसती हुई कमरे से बाहर चली गई।
मैं भी उठकर अपने नित्य कर्म में लग गया।

उसके बाद तेरहवीं की रस्म आदि के कार्यक्रम में दिन कब निकल गया पता ही नहीं चला।

शाम को 5:00 बजे तक सब फ्री हो चुके थे। वापस जाने वाले रिश्तेदार भी जा चुके थे। सिर्फ कुछ ही लोग घर में रुके थे।

मैंने भी शशि से वापस चलने के लिए कहा।
तभी दिव्या की मम्मी और दिव्या दोनों आए और बोले- कम से कम आज और रुकिए! आप थक गए हैं। कल हम भी चले जाएंगे, आप भी चले जाइएगा. आज बैठकर ढे़र सारी बातें करेंगे.

मैं शायद दिव्या के रोकने की ही प्रतीक्षा कर रहा था। उसके एक बार बोलते ही मैंने वहां रुकने का निर्णय किया।
शशि के पास वहां न रुकने का कोई कारण भी नहीं था। मायका तो हर लड़की को प्यारा होता है।

हमें वहां बैठाकर दिव्या की मम्मी चाय बनाने चली गई। अब मेरा ध्यान पूरी तरह से दिव्या पर था और मैं सोच रहा था कि कैसे यह कामायनी आज मेरी बांहों में हो।

मेरा दिमाग लगातार दिव्या के कामुक बदन को भोगने की तरकीब लड़ा रहा था। मेरे अंदर का भद्र पुरुष शायद कहीं चला गया था और मेरा शैतानी दिमाग न जाने क्या क्या सोचने लगा था।

मैंने महसूस किया कि मेरी टांगों के बीच में भी यह सोच सोचकर कुछ हलचल हो रही है।
तब तक चाय बन कर आ गई।

चाय की चुस्कियां लेते हुए मैं सिर्फ दिव्या को भोगने की तरकीब ही लड़ा रहा था।

दिव्या और शशि आपस में बातें कर रहे थे।
तभी दिव्या बोली- आज भी हम लोग लूडो खेलेंगे!
ये सुनकर मुझे तो जैसे संजीवनी हाथ लगी!

मैंने तुरंत हां करते हुए कहा- लेकिन वहीं खेलेंगे जहां कल खेले थे!
थोड़ी सी ना नुकुर के बाद शशि और दिव्या ने भी खेल के स्थान पर सहमति जता दी।

अब तो मुझे अपना टारगेट थोड़ा आसान लगने लगा। दिमाग यही सोच रहा था कि दिव्या को कैसे कहूं? वो मानेगी या नहीं? दिव्या से पहले तो मुझे शशि को बोलना पड़ेगा क्योंकि मैंने कभी शशि से छुपाकर कोई काम नहीं किया था।

काफी सोच विचारने के बाद मैंने शशि से थोड़ी देर बाजार चलने के लिए कहा। शशि तुरंत तैयार होकर आ गई। मैं अपने साले की बाइक लेकर शशि को साथ लेकर बाजार के लिए निकल गया।

बाजार में एक अच्छे रेस्टोरेंट में जाकर मैंने सबसे पहले शशि को चाट खिलाई! उसके बाद शशि से कहा कि अपनी पसंद का जो भी लेना है ले लो क्योंकि कल सुबह हम चले जाएंगे।

मैं चाहता था कि जब मैं शशि से दिव्या के लिए कहूं तो उसका मूड बिल्कुल ठीक हो और वह किसी तरह का कोई हंगामा न करे।
करीब एक घंटा बाजार में बिताने के बाद और अपनी जरूरत और पसंद की कुछ चीजें लेने के बाद शशि ने वापस चलने को कहा।

घर की ओर बढ़ने से पहले मैं शशि को लेकर पास के ही एक पार्क में चला गया। बहुत दिन बाद हम पार्क में गए थे।

शाम के लगभग 7:00 बजे थे। पार्क का मौसम बहुत सुहावना था।
पार्क में कई लोग टहल रहे थे।

धीरे-धीरे शशि का मूड भांपकर मैंने शशि से दिव्या के बारे में पूछा- शादी के 6 साल बाद भी दिव्या को कोई औलाद क्यों नहीं है? क्या दिव्या में कोई कमी है या उसके पति मनोज में?

शशि ने बताया कि 3 साल पहले इस बारे में जब दिव्या की मम्मी से उसकी बात हुई थी तो उन्होंने बताया था कि डॉक्टर के हिसाब से तो दोनों ही ठीक हैं, कोई कमी नहीं है। फिर पता नहीं दिव्या के घर में औलाद क्यों नहीं है? इस बात पर वह और पूरा परिवार दुखी भी है।

मैंने हंसते हुए कहा- अरे तो दिव्या को एक बार हमारी सेवाएं लेनी चाहिएं!

अचानक शशि ने मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर बोली- सुधर जाओ! दिव्या मेरी भांजी है!
मैंने भी पलटवार करते हुए कहा- तेरी भांजी है ना! मेरी तो स्वीटहार्ट है!

शशि को मालूम था कि मैं शुरू से ही दिव्या को स्वीटहार्ट बोलता आया हूं।
शशि ने तुरंत मुझे रोकते हुए कहा- ए मिस्टर, आपकी निगाह गलत जगह पर है।

मैंने भी शशि के अच्छे मूड का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए अगला प्रयास किया और कहा- यार एक बात बताओ … क्या पता दिव्या की गोद भराई मेरे ही हाथों से लिखी हो? एक बार कोशिश करने में क्या जाता है?

मेरी इस बात पर अचानक शशि सीरियस हो गई और बोली- मैं भी चाहती हूं कि दिव्या के घर में जल्द से जल्द नन्हा-मुन्ना बालक खेलने लगे लेकिन जो तुम सोच रहे हो वह सोचना बंद कर दो।
मैंने महसूस किया कि मेरी बात पर शशि सीरियस जरूर थी लेकिन गुस्सा नहीं थी।

तो मैंने प्रयास जारी रखते हुए कहा- देखो मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं और तुमको धोखा नहीं देना चाहता हूं मगर मुझे ऐसा लगता है कि मेरा एक चांस दिव्या के घर में खुशियां ला सकता है और मैं यह काम तुम्हारी सहमति से ही करना चाहता हूं. हां, अगर तुम नहीं चाहती तो मैं दिव्या की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा!

मेरी इसी बात ने शायद शशि का दिल जीत लिया.
उसने पार्क में ही मुझे अपने गले से लगा लिया और बोली- मुझे तुम पर पूरा विश्वास है और शायद तुम्हारी बात भी सही है कि दिव्या अगर शायद कहीं बाहर ट्राई करे तो हो सकता है कि उसकी गोद भर जाए!

ऐसा लग रहा था कि मेरा तीर सही निशाने पर लगा है।

कुछ देर चुप बैठने के बाद अचानक शशि बोली- क्या तुम सच में दिव्या को इतना खुश देखना चाहते हो?

मैंने पलट कर कहा- ये सिर्फ दिव्या की खुशी का नहीं बल्कि तेरी और पूरे परिवार की खुशी का सवाल है बाबू! अगर दिव्या की गोद भर जाएगी तो तुम्हारा पूरा परिवार खुश हो जाएगा!

शशि ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- तुम कितना सोचते हो मेरे परिवार के बारे में!
मैंने भी चुपचाप एक मुस्कान के साथ शशि को गले से लगा लिया परंतु अभी भी पूरा प्लान फाइनल नहीं था।

फिर शशि ने घर चलने को कहा।

मैं सोचने लगा कि शशि लगभग सहमत है परंतु बात आगे कैसे बढ़ेगी! इस बारे में शशि से ज्यादा बात करना मुझे उचित नहीं लगा।

मैं भी शशि के साथ साथ घर को निकल लिया। घर आकर ये सब रात्रि भोज की तैयारी में लग गए।

खाना खाने के बाद मेरे साले ने मुझे पुनः चड्ढा जी वाले कमरे में ही चलने के लिए कहा।

सच कहूं तो मैं खुद उसी कमरे में सोना चाहता था। मैं तो 9:00 बजे ही चड्ढा जी वाले कमरे में जाकर लेट गया और शशि और दिव्या के संदेश का इंतजार करने लगा।

करीब 10:00 बजे दिव्या ने मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप पर मैसेज करके मुझे छत पर उसी कमरे में लूडो खेलने के लिए बुलाया।

मैं तो जैसे इसी इंतजार में था; मैं तुरंत उठ कर दबे पांव छत की तरफ चल दिया और अपने पूर्व रात्रि वाले कामकक्ष को बढ़ता चला गया।

शशि और दिव्या मुझसे पहले ही वहां बैठी थीं। आज तो फर्श पर एक गद्दा भी बिछा हुआ था।

कमरे में जाते ही दोनों ने एक मीठी सी मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया और दिव्या ने तुरंत अपने मोबाइल में लूडो लगा लिया.
हम तीनों करीब आधा घंटा लूडो खेलते रहे।

आधे घंटे बाद शशि बोली- मुझे थोड़ा काम है। मैं घर में सब लोगों के लिए दूध बनाकर आती हूं। तुम दोनों के लिए भी दूध लेकर आऊंगी तब तक तुम खेलते रहो।

यह कहकर शशि वहां से उठकर चली गई। शशि के जाते ही मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप के मैसेज की घंटी बजी.

मैंने जैसे ही मैसेज खोलकर देखा तो शशि का मैसेज था जिसमें लिखा था- मैं कम से कम एक घंटा नहीं आऊंगी. कोशिश करके देख लो. मगर प्लीज जबरदस्ती मत करना और ऐसा कोई काम मत करना जिससे कल को तुम्हारी बदनामी हो।

मैसेज पढ़ते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। मैंने मन ही मन शशि को धन्यवाद दिया.
दिव्या ने तो जैसे मेरी मुस्कराहट को पढ़ लिया था; तुरंत मुझे चिढ़ाते हुए बोली- लगता है मौसी का मैसेज है.

उसके सवाल पर मैंने हां में सर हिला दिया.
दिव्या मेरी चुटकी लेते हुए बोली- मौसी ने लिखा होगा कि दिव्या को जल्दी से यहां से भगाओ!

मैंने भी उसके मजाक का मजाक में ही जवाब देते हुए कहा- तेरी मौसी ने लिखा है कि अभी तो मैं नीचे हूं, तुम दिव्या पर चढ़ जाओ!
“धत्त!! “कुछ तो शर्म करो मौसा जी!” बोलकर दिव्या ने नजरें झुका लीं।

यह तो मैं समझ गया था कि दिव्या ने मेरी बात को मजाक में ही लिया है और बुरा नहीं माना है।
अब मेरा दिमाग बहुत तेजी से काम कर रहा था कि कैसे जल्दी से जल्दी दिव्या को बांहों में लिया जाए!

तभी दिव्या ने लूडो का नया मैच लगा लिया और मुझे खेलने को कहा।
मैंने कहा- कुछ शर्त लगाएगी तभी खेलूंगा!
दिव्या बोली- आप हार जाते हो, आज भी फिर से हार जाओगे!

मैंने कहा- चल तू ही जीत जाना, मगर शर्त तो लगा ले!
दिव्या बोली- जो आप चाहो वो मंजूर!
मैंने भी नजरों ही नजरों में दिव्या पर वार करते हुए कहा- सोच ले, कभी बाद में मुकर मत जाना?

दिव्या बोली- मौसा जी, आपकी स्वीटहार्ट का वादा है … जो बोलती है वो करती भी है. कभी नहीं मुकरती!
ये बोलकर उसने तुरंत नया गेम स्टार्ट कर दिया.

लगातार गेम के दौरान मैं दिव्या को किसी न किसी बात पर छेड़ता रहा.

मैं भी यह चाहता था कि दिव्या और मेरे बीच की झिझक थोड़ी कम हो जाए।
मैंने जानबूझकर दिव्या से पिछली रात का जिक्र करते हुए पूछा- जब मैं और शशि अंदर थे तब तू देख रही थी न कि हम क्या कर रहे हैं?

दिव्या ने नजरें नीची करके हंसते हुए कहा- मौसा जी, रात गई बात गई!
मैंने बस इसी बात को पकड़ कर बात आगे बढ़ाते हुए अगला सवाल दागा- अच्छा एक बात बता … हम दोनों को प्यार करते देख कर तेरा मन नहीं हुआ?

उसने भी तपाक से जवाब दिया- मौसा जी मन होने से क्या होता है? मैं तो यहां अकेली आई हूं!
मैंने अगला पासा फेंकते हुए कहा- तो क्या हुआ? हम हैं ना तेरे स्वीटहार्ट, तू तो खुद को मेरी साली मानती है और साली तो आधी घरवाली होती है!

दिव्या ने खनकती सी हंसी के साथ कहा- लगता है मौसी ने कई दिनों से आपकी पिटाई नहीं की है।
मैंने कहा- क्यों? तूने कल रात देखा नहीं कि वह अपने होंठों से कितनी बुरी तरह मेरी पिटाई कर रही थी?

वो बोली- आखिर मौसी के अंदर तेरह दिन का जोश जो था!
मैंने बस दिव्या की इस बात को पकड़ा और तुरंत उसकी नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा- जोश में ही तो मजा आता है!

मेरे कहते ही जैसे अचानक दिव्या की चोरी पकड़ी गई। उसने नजरें नीचे कर लीं. मैंने महसूस किया कि दिव्या की सांसों में हल्की हल्की गर्मी थी।
अब दिव्या की तपती जवानी पर बस अंतिम वार करना बाकी था।
 
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मेरी बीवी की चुदाई की कहानी की दूसरी किश्त

में आपने पढ़ा कि पड़ोस के घर में मैंने उसकी चुदाई की जिसमें मेरी बीवी की भांजी यानि कि मेरी साली दिव्या ने हमारी मदद की।

चुदाई के बाद उसकी रहस्यमयी मुस्कान देखकर मुझे पूरा संदेह था कि उसने मेरे लिंग को अवश्य ही मेरी बीवी की योनि को चोदते हुए देख लिया है.
इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर मैं उसकी भी चुदाई के सपने देखने लगा.

अगले रोज मेरे ताऊ ससुर की तेहरवीं के बाद दिव्या की मां ने हमें वहीं रुकने का आग्रह किया और मेरा सपना जैसे पूरा होता दिखा.

रात को दिव्या मेरे साथ शर्त लगाकर लूडो खेल रही थी और मैंने बीती रात की चुदाई वाली बात छेड़ दी।

अब आगे :

मैंने पूरा ध्यान लूडो पर लगा दिया मगर बदकिस्मती से हार गया। मैंने महसूस किया कि इस खेल के दौरान मेरे बरमूडा के अंदर मेरा लिंग पूरी तरह तनतना चुका था।

लूडो में हारने के बाद मैं जानबूझकर गद्दे पर सीधा लेट गया ताकि ना चाहते हुए भी दिव्या की नजर मेरे लिंग की तरफ जरूर जाए।

हुआ भी ऐसा ही!

मेरे लेटते ही दिव्या की नजर मेरे बरमूडा पर गई और उसने नजरें नीची कर लीं.
मैंने तुरंत दिव्या से कहा- हम हार गए स्वीटहार्ट, मांगो क्या मांगती हो?

दिव्या बोली- मौसा जी, बस आप ऐसे ही सदा खुश रहिए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
मुझे लगा जैसे रेत का किला ढहने वाला है।

मैंने तुरंत अगला पासा फेंका और बोला- या तो तुम मांगो जो मांगना है वर्ना तो फिर मैं मांगूगा और फिर तुम्हें देना भी पड़ेगा।
दिव्या बोली- बस मुझे तो कुछ नहीं चाहिए, आप मांग लो जो आपको चाहिए, मैं दे दूंगी।

अब मेरे लिए परीक्षा की घड़ी थी। मुझे नहीं पता था कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
मैंने फिर भी आग में हाथ डालने का निर्णय किया और हंसते हुए दिव्या से कहा- चल तो … फिर अपने स्वीटहार्ट, को एक किस्सी दे दे।

दिव्या बोली- क्यों? बीती रात को मौसी ने इतनी सारी किस्सी दी थी। आपका पेट नहीं भरा?
मैंने भी बेशर्म बनकर बरमूडा के ऊपर से ही अपने तने हुए लिंग पर हाथ फेरते हुए कहा- भला इश्क से कभी किसी का पेट भरा है?

मैंने महसूस किया कि दिव्या की नज़र लगातार वहां जा रही थी। मैं भी तो यही चाहता था. मैं जल्दी बिल्कुल नहीं करना चाहता था।

अभी मेरे पास काफी समय था। मैंने तुरंत दिव्या से फिर से किस्सी देने के लिए कहा।

दिव्या बोली- मौसा जी, अच्छा नहीं लगता। अब मुझे चलना चाहिए।
ये बोलकर वो वहां से उठ खड़ी हुई।

मैं भी दिव्या के पीछे पीछे उठ खड़ा हुआ। दिव्या ने तुरंत मेरी तरफ अपनी पीठ कर ली। मैंने पीछे से दिव्या की एक बाजू पकड़ते हुए उसे रोका।

मैंने महसूस किया कि दिव्या का बदन गर्म हो रहा था। यह मेरे लिए सकारात्मक संदेश था।

मेरा दिमाग बहुत तेजी से काम कर रहा था।
मौके को अपने हाथ में पकड़ते हुए मैंने पीछे से ही दिव्या के और करीब जाते हुए उसकी गर्दन के पास अपना मुंह ले जाकर बहुत हल्की सी फुसफुसती हुई आवाज ने कहा- स्वीटहार्ट, तू मेरी साली है यार … एक किस का हक तो बनता है।

दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप खड़ी हो गयी। मैंने दिव्या की चुप्पी को हाँ मानते हुए थोड़ा और आगे बढ़ते हुए पीछे से ही दिव्या को अपनी बलिष्ठ बांहों में भर लिया।

वो तो जैसे इसी इंतजार में थी। उसने एक बार भी मुझसे छूटने की बजाए पीछे को होकर अपने पूरे बदन को मेरे बदन से चिपका लिया।
मैंने महसूस किया कि बरमूडा के ऊपर से मेरा लिंग दिव्या के नितंबों के बीच की दरार में जा लगा है जिसका अहसास दिव्या को भी जरूर हो रहा होगा।

मैंने एक हाथ से दिव्या के खूबसूरत घुंघराले बालों को उसके कान के पास से हटाया और बहुत हल्के से होंठों से उसके कान के नीचे एक प्यारी सी चुम्मी दी।

दिव्या ने बिना मेरे हाथ से छूटने की कोशिश किए ही वहीं खड़े खड़े एक बहुत मीठी सी सिसकारी ली और अपनी गर्दन झुका ली।
मगर जैसे ही मैंने अपने होंठ दिव्या की गर्दन से अलग किए वह मेरी बाजू से छूटते हुए बोली- अच्छा अब मैं चलती हूं।

मुझे तो लगा जैसे आज चिड़िया हाथ से निकल गई।
मैंने तुरंत दिव्या को जोर से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा.
दिव्या एक झटके से मेरी तरफ घूम कर मेरे बदन से टकराती हुई बोली- प्लीज मौसा जी … मुझे जाने दो।

मगर मैंने महसूस किया यह बोलने के बाद भी दिव्या वहीं खड़ी रही।
मैंने मौके का फायदा उठाते हुए दिव्या के होंठों पर अपने होंठ रख दिये और दिव्या को बांहों में भर लिया।

दिव्या मेरी बांहों से छूटने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन उसने एक बार भी मेरे होंठों से अपने होंठ अलग करने की कोशिश नहीं की। मेरे लिए यह एक सकारात्मक संदेश था.

मैंने दिव्या के होंठों को चूमने के बाद उसकी ठोड़ी और गले के निचले भाग को अपनी जीभ से सहलाना शुरू कर दिया.
मेरा यही कृत्य बस दिव्या को पिघलाने लगा.

हालांकि उसके मुंह पर लगातार ‘ना’ ही थी लेकिन उसका बदन मुझसे दूर होने की कोशिश नहीं कर रहा था। शशि के आने में अभी आधा घंटा बाकी था. मैंने दिव्या की गर्दन और गले के पूरे क्षेत्र को अपनी जीभ से सहलाना शुरू कर दिया।

दिव्या की सिसकारियां लगातार बढ़ती जा रही थीं- छोड़ दो, मौस्स्सा जी ईई … बड़ी प्रॉब्लम हो रही है, प्लीज छोड़ दो।
ये बोलते हुए भी दिव्या नीचे अपने हाथ को लगातार मेरे लिंग पर टकरा रही थी।

मैं समझ चुका था कि अब दिव्या को इसकी जरूरत है. बस उसकी झिझक को तोड़ना बाकी था।
मैंने दिव्या की पीठ को अपनी तरफ घुमाया और उसके बाल हटाकर फिर से उसकी गर्दन के निचले हिस्से को चाटना चालू कर दिया।

साथ ही मैंने दिव्या की टी-शर्ट के अंदर हाथ डाल कर जैसे ही मैंने हाथ ऊपर की तरफ चलाए तो मैंने महसूस किया कि दिव्या ने तो अंदर कोई ब्रा पहनी ही नहीं थी।

मैं हैरान था यह देखकर कि बिना ब्रा के भी दिव्या की चूचियां ऐसे तनी हुई थीं कि पता ही नहीं लग रहा था।
टी-शर्ट के अंदर ही मैंने दिव्या के दोनों निप्पल के ऊपर अपनी उंगलियां फिरानी शुरू कर दीं।

अब मेरे दोनों हाथ दिव्या के निप्पल पर थे और मेरी जीभ दिव्या की गर्दन को सहला रही थी.
अचानक दिव्या ने पीछे हाथ करके मेरे लिंग को जोर से पकड़ लिया और फिर बोली- मौसा जी, प्लीज छोड़ दो … मौसी आने वाली है।

मैंने हंसते हुए कहा- मैं जब तक नहीं बुलाऊंगा तेरी मौसी नहीं आएगी।
यह जवाब सुनकर दिव्या की पकड़ और कड़ी हो गई और वह मनुहार करते हुए बोली- प्लीज … प्लीज … मौसा जी … प्लीज मौसा जी।

बिना अब कोई देर किए मैंने दिव्या की टीशर्ट को निकाल दिया. दिव्या की छाती पर लगी दो खूबसूरत पहाड़ियां मुझे आश्चर्यचकित कर रही थीं. मैंने बिल्कुल एक ही शेप की ऐसी खूबसूरत चूचियाँ और उनके ऊपर अति सुंदर भूरे गुलाबी रंग के गोले आज से पहले कभी नहीं देखे थे.

अब दिव्या मेरे हाथों से छूटने का प्रयास बिल्कुल नहीं कर रही थी.

मैंने दिव्या को वहीं नीचे बिछे गद्दे पर लिटा लिया और अपने हाथ उसके बदन पर फिराते हुए एक-एक करके उसके दोनों निप्पल को चूसने लगा।

“उफ … उफ … उफ … आह ओ… मा … प्लीज … हाए … जीजा जी … आह्ह … नहीं मौसा जी … आह्ह … ओह्ह जैसी उसके मुंह से निकलने वाली कामुक आवाजें केवल यही बता रही थीं कि उसका विरोध बनावटी था और असल में उसको लिंग का सुख चाहिए था।

दिव्या मेरे द्वारा उसके निप्पल चुसवाने का पूरा आनंद ले रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे दिव्या किसी नशे में है.
मैंने बिना कोई समय गँवाए निप्पल को चूसना जारी रखा और एक हाथ उसके बदन पर फिराते हुए दूसरे हाथ से उसके पाजामे को धीरे से नीचे सरका दिया।

उसने भी अपने नितंब हल्के से हिला कर इसमें मेरा सहयोग किया और जैसे ही पजामा नीचे सरका तो दिव्या की गोरी चिकनी चूत मेरे सामने रोशन थी।

दिव्या के बदन की तरह उसकी कामायनी चूत भी बहुत गोरी थी। लगता है बाल भी अभी कुछ दिन पहले ही साफ किए थे; इसीलिए वह चमक रही थी।

मैं तो उसके इस काम द्वार को देखकर अभीभूत सा हो गया।
दिव्या गद्दे पर पूरी तरह से नंगी पड़ी थी।

मैंने नीचे उसकी टांगों के बीच में जाकर उसकी प्यारी सी … खूबसूरत … क्यूट सी दिखने वाली चूत को चाटने का निर्णय किया।

मगर यह क्या? जैसे ही मैं दिव्या की टांगों के बीच में पहुंचा उसे तो जैसे होश आ गया। उसने अपनी दोनों टांगें जोड़ लीं और तुरंत उठ कर बैठ गई।

अपना पजामा पकड़ते हुए बोली- नहीं मौसा जी … मुझे जाना है … मौसी आ जाएगी। प्लीज मुझे जाने दो।
मुझ पर तो जैसे पहाड़ सा टूट गया।

बड़ी मुश्किल से तो दिव्या को यहां तक लाया था। एक कोशिश और करके देख ली जाए यही सोचकर मैंने फिर से दिव्या को लिटा दिया और उसके होंठों और गर्दन को चूसना शुरू कर दिया.

एक उंगली से मैं उसके दोनों निप्पल को सहलाने लगा और दूसरे हाथ की उंगली से हल्के हल्के उसके योनि द्वार की बीच की गहराई सहलाने लगा।

दिव्या जैसे उड़ना चाह रही थी मगर किसी अदृश्य बंधन में बंधी थी।
मैं चाहता था यह अदृश्य बंधन कुछ देर और बना रहे.

दिव्या का बदन किसी अप्सरा से कम नहीं था. उसकी दोनों चूचियां छाती पर सीधी तनी खड़ी थीं।
मैंने धीरे धीरे फिर से दिव्या का बदन से सहलाना शुरु कर दिया।

सहलाते हुए मैंने महसूस किया कि दिव्या की योनि में हल्का सा गीलापन है।
मैं बस इसी समय के इंतजार में था. मैंने कोई देर नहीं की और अपना हाथ वहां से हटाकर तुरंत अपना बरमूडा नीचे सरका दिया।

जैसे ही मेरा बरमूडा नीचे हुआ और मेरा तमतमाया हुआ लिंग बाहर निकला दिव्या ने अपने हाथ से तुरंत उसे पकड़ लिया- ओ हो मौसा जी … प्लीज मौसा जी!
की आवाज़ के साथ दिव्या मेरे लिंग को सहलाने लगी।

अब मुझे लग रहा था कि काम पूरा हो ही जाएगा. मैं वहां से उठकर दिव्या की योनि की तरफ मुंह करके लेट गया. मैं जानबूझकर इस तरह लेटा कि मेरा लिंग दिव्या की चुचियों से टकराने लगे.

लेटकर मैंने दिव्या की योनि को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया और वो एकदम से सिसकारी- आह्ह … प्लीज मौसा जीईई ईईईई … मत करो प्लीज … नहीं … मौसा जी … मत करो … बर्दाश्त नहीं हो रहा है।

ऐसा बोलते हुए दिव्या अपना मुंह ऊपर करके मेरे लिंग को चाटने का प्रयास करने लगी।
मैं समझ गया कि अब दिव्या मेरे हाथ से भागने वाली नहीं है।

मैंने पूरी तरह से दिव्या के ऊपर आकर अपना लिंग इस प्रकार उसके मुंह पर सेट किया कि मेरा मुंह उसकी योनि के ऊपर ही रहे।
वो फिर बड़बड़ायी- मान जाओ ना मौसा जी… प्लीज मान जाओ … बहुत परेशानी हो रही है … सारे बदन में चीटियां दौड़ रही हैं।

बोलते हुए दिव्या ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे लिंग पर रखकर उसको चाटना शुरू कर दिया.
यह मेरे लिए अति सुखद क्षण था क्योंकि शशि कभी भी लिंग को चाटना पसंद नहीं करती थी।

मैंने अपने हाथ से दिव्या की योनि के दोनों होंठों को खोलकर जीभ को योनि के अंदर तक डालना शुरू कर दिया। उसकी योनि अंदर से भी बिल्कुल गुलाबी थी जो मुझे और ज्यादा उत्तेजना दे रही थी।

अब मैं तेजी से अपनी जीभ उसकी योनि के अंदर बाहर करने लगा।

अब दिव्या बिना कुछ बोले एक हाथ से मेरा लिंग पकड़ कर अपने मुंह के अंदर ले जाकर लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी।

थोड़ी देर बाद मुझे लगने लगा कि अगर मैंने जल्दी नहीं की तो मैं शायद दिव्या के मुंह में छूट जाऊंगा।

बिना कोई देरी किए मैं दिव्या के ऊपर से जैसे ही हटा दिव्या तुरंत बोली- प्लीज मौसा जी … मर जाऊंगी … बहुत बेचैनी हो रही है। मुझे छोड़ दो।

मैं उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दे रहा था. मैंने दिव्या की दोनों टांगों को फैलाया और उनके बीच में जाकर बैठ गया.

मुझे यह भी नहीं पता था कि दिव्या मेरा लिंग आराम से ले ली पाएगी या नहीं।

इसीलिए मैंने अपने मुंह से थोड़ा सा थूक निकालकर अपने लिंग पर लगा दिया. हालांकि इस काम में 2 सेकंड ही लगे होंगे मगर इसी बीच दिव्या ने अचानक आंखें खोलीं और मेरे तरफ देखा।

हम दोनों की नजरें एक दूसरे से मिलीं और दिव्या मुस्कराई।
मैंने नीचे झुक कर उसकी योनि पर बहुत प्यार से एक किस्सी दी तो दिव्या हंसते हुए बोली- अब रहने दो, कहां-कहां किस करोगे। आप बहुत गंदे हो।

इसी बीच मैंने अपना लिंग दिव्या के योनि द्वार पर लगाया और दिव्या से पूछा- डालूं?
दिव्या ने भी झुँझलाते हुए कहा- नहीं, आप रहने दो, मुझे जाने दो

मैं समझ चुका था कि दिव्या भी खेल का मजा ले रही है। मैंने अपने हाथ से लिंग को पकड़कर दिव्या की योनि के ऊपर लिंग से सहलाना शुरू कर दिया।

मुश्किल से 10 सेकंड ही बीतने पाए थे कि दिव्या फिर बोली- प्लीज मौसा जी … मैं मर जाऊं क्या? अंदर तक चीटियां दौड़ रही हैं … कुछ करो।

मैंने कहा- अरे स्वीटहार्ट, इसी बात का तो इंतजार कर रहा था। तू पहले बोल देती!
यह बोलते ही मैंने उसके बदन को पकड़कर लिंग को अंदर करना शुरू कर दिया।

दिव्या की योनि बहुत कसी हुई थी। दिव्या की भी आह … निकल रही थी।
पूरा लिंग अंदर नहीं जा रहा था.

तभी दिव्या बोली- मौसा जी, धीरे से करो, आपका बहुत मोटा है। मुझे दर्द हो रहा है।

मैंने एक झटके में अपना पूरा लिंग बाहर निकाल लिया।
एक बार फिर अपने हाथ पर थूक लेकर पूरे लिंग पर अच्छे से लगाया और दिव्या की भट्टी जैसी तपती योनि में धीरे-धीरे सरकाना शुरू कर दिया।

वो तड़प कर सिसकारी- ऊईई … मां आह … उफ्फ़ … मौसा जी!
इसी चीत्कार के साथ दिव्या भी अपने नितंबों को उछाल कर पूरा प्रेम दंड अंदर लेना चाह रही थी।

तीन चार बार हल्के हल्के धक्के मारने के बाद मैंने अचानक एक जोर का झटका मारा और पूरा लिंग दिव्या की योनि में उतार दिया।
“हाय … रेएए एएएए … की एक चीख के बाद आह … आह … उफ्फ़ … मौसा जी!” बोलते हुए दिव्या भी मेरा सहयोग करने लगी।

अब मेरे झटके पूरे जोरदार लगने लगे थे. हम दोनों पसीने पसीने हो रहे थे.
दिव्या भी अपने चूतड़ उचका उचका कर पूरा सहयोग कर रही थी.

कुछ सेकंड के बाद आह … आह … की आवाज के साथ दिव्या अचानक शांत हो गई।

अभी मेरे धक्के बाकी थे।
मैंने पूछा- क्या हुआ?”
दिव्या ने आंखें खोलीं और मेरे गाल पर हल्की सी चपत लगाकर बोली- गंदे मौसा जी, जल्दी करो।

मेरे झटकों की रफ्तार तेज हो चली थी. दस बारह धक्के मारने के बाद मेरा फव्वारा भी दिव्या के अंदर ही छूट गया।
एक बार फिर ‘उफ्फ़ … मौसा जी!’ बोल कर दिव्या ने नीचे खींच कर मुझे अपने से चिपका लिया.

हम दोनों शांत होकर उसी गद्दे पर लेट गए।
तभी अचानक खखारने की आवाज आई और बाहर से सुनाई दिया- काम निपट गया हो तो मैं अंदर आऊं?

आवाज सुनकर हम दोनों ने दरवाजे की तरफ देखा तो वहां शशि खड़ी थी.
दिव्या ने झटके में चादर अपने ऊपर ओढ़ ली।
शशि हंसने लगी और बोली- मैं जल्दी तो नहीं आ गई?

दिव्या आश्चर्यचकित होकर मेरी और शशि की तरफ देखने लगी.
तब शशि ने बात को संभालते हुए कहा- कोई बात नहीं साली भी तो आधी घरवाली होती है।

अपने साथ लाए हुए दूध को हमें पकड़ाते हुए वो बोली- बहुत मेहनत की है. चलो दूध पी लो।
दिव्या ने फटाफट से अपने कपड़े पहने और दूध पकड़ लिया।

वो हम दोनों के साथ नजरें झुकाए बैठी थी। कुछ भी नहीं बोल रही थी।

अब माहौल को सामान्य करने की जिम्मेदारी मेरी थी।
मैंने जानबूझकर शशि को छेड़ते हुए कहा- यार दिव्या सच में तुम्हारी तरह ही सेक्सी है।
तो शशि बोली- मेरी तरह नहीं, मुझसे भी ज्यादा!

दिव्या नजरें झुकाए बैठी थी. मैंने अपना बरमूडा उठाया और पहनकर दिव्या से लूडो खेलने को कहा।
दिव्या तो जैसे अपनी जगह से हिल ही नहीं रही थी.

मैंने जानबूझकर दिव्या के मोबाइल में लूडो लगाया और अपनी गोटी चल दी.
फिर शशि से चलने को कहा. शशि ने भी अपनी चाल चल दी।

अब दिव्या की चाल थी.
हम दोनों ने दिव्या को कहा कि अब ध्यान लूडो पर लगाओ और गेम खेलते हैं।

दिव्या समझ चुकी थी कि शशि को इस बारे में सब मालूम है.

कुछ देर अनुरोध करने के बाद दिव्या भी लूडो खेलने लगी।
 

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