Romance तुझ को भुला ना पाऊँगा

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Update 1
दोस्तो, कहानी शुरू करने से पहले एक बात कहना चाहूँगा कि जो लोग वास्तव में कहानी पढ़ने का शौक रखते हैं उनको यह कहानी अच्छी लगेगी पर जो लोग सिर्फ़ सेक्स ही पढ़ना चाहते हैं शायद उन लोगों को यह कहानी उतनी अच्छी ना लगे।

घटना बहुत पुरानी है और जिसके बारे में यह कथा है उसका मेरे जीवन में एक विशेष महत्व है और उसके कारण मेरे वर्तमान जीवन पर भी बहुत प्रभाव है लेकिन वो थी ही ऐसी कि शायद मरते दम तक मैं उसे भुला नहीं पाऊँगा।

1984 के एक वर्ग विरोधी दंगों के बाद मेरे परिवार के लोग पंजाब शिफ्ट हो गये थे और मैं क्योंकि उस समय 11वीं में पढ़ता था, तो मैं और पिता जी दिल्ली में ही रहे और मेरी 12वीं की परीक्षा होने के बाद ही मैं पंजाब गया।

दोस्तो, आप जानते हैं कि जब कोई जमा-जमाया काम बंद करके नई जगह पर जाता है तो वहाँ काम भी धीरे धीरे ही चलता है।
हमारा परिवार बड़ा होने के कारण हमें वहाँ पर कोई भी ऐसा मकान नहीं मिला जहाँ कि हम सारा परिजन एक साथ रह पाते तो हमें किराए पर 3 मकान लेने पड़े, बड़े भाई साहब निरंजन सिंह के मकान में थे और हमें मकान बाज़ार में मिला।
हमारे घर से भाई साहब वाला मकान लगभग 7-8 मिनट की दूरी पर था।
निरंजन सिंह का अपना टेंट का काम था और हम लोगों ने वहाँ जाकर अपना पुराना दवाई का काम शुरू किया था।

मैं उस वक्त एक साधारण से व्यक्तित्व का मालिक था परंतु मेरी मुस्कुराहट और मेरी आँखें बचपन से आकर्षक रही हैं। मैं शरीर से दुबला पतला था, क्योंकि पिछले कई साल से लंबी दौड़ का धावक था इस लिए शरीर दुबला होते हुए भी मज़बूत था और स्टेमिना काफ़ी अच्छा था और स्वाभाव से मैं थोड़ा शरारती और हँसमुख था इसलिए मेरे दोस्त जल्दी बन जाते थे और यह खूबी परमात्मा की कृपा से आज भी मुझ में है।

निरंजन सिंह की 4 बेटियाँ और 3 लड़के थे, बड़ी लड़की और बड़े लड़के की शादी हो चुकी थी, बीच वाला लड़का घर छोड़ कर निहंगों की टोली में शामिल हो गया था, बड़ा लड़का भी टेंट का काम करता था पर वो वहाँ से करीब 12-13 किलोमीटर दूर था और रहता भी वहीं पर था, छोटा लड़का रॉकी अपने पिता के साथ ही काम करता था।

उनकी छोटी लड़की लाडो और उससे बड़ी थी बिल्लो किशोरावस्था में थी, बहुत शरारती थी।

पर यह कहानी मेरी और दीपो की है जोकि बिल्कुल बीच की थी, 3 बहन भाई उससे बड़े और 3 ही उससे छोटे थे, वो भी बहुत हँसमुख थी।
मैंने जब उसे पहली बार देखा तो मुझे तभी बहुत ज़ोर का झटका सा लगा पर मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसे इज़हार कर सकूँ।
मैं यह तो महसूस करता था कि वो भी मुझे पसंद करती है पर कभी मौका नहीं मिला कि मैं उससे अपने दिल की बात कह पाता।
पर वक्त ज्यों ज्यों गुज़र रहा था, मेरी बेकरारी बढ़ती जा रही थी।

ऐसे ही 2 साल गुज़र गये, मेरे भाई साहब के भी 3 बेटे हैं जिन्हें मैं बहुत प्यार करता था, आज भी करता हूँ पर इस इश्क वाले मामले के बाद तो मेरे चक्कर उस घर में कुछ ज़्यादा ही लगने लगे।
मुझे लगता था कि वो भी समझ रही है पर फिर भी पहल करने में मेरी फटती थी।

इसी इंतज़ार में 1988 आ पहुँचा, उन दिनों पूरे भारत में बाढ़ आई हुई थी और हमारे इलाक़े में भी सरकारी मुनादी हो गई कि सतलुज नदी ख़तरे के निशन से ऊपर हो गई है और हमारे यहाँ पर भी बाढ़ आ सकती है।
जहाँ पर हमारा घर था वो इलाक़ा कुछ निचली सतह पर था और निरंजन अंकल का घर थोड़े ऊँचे एरिया में था तो दीपो ने अपनी माँ से कह कर हमारे यहाँ कहलवाया कि हम उनके यहाँ पर आ जाएँ मेरी माँ ने भी हाँ कह दिया और हम घर का बहुत ज़रूरी सामान लेकर उनके घर चले गये।

पिताजी उस टाइम ब्यास गये हुए थे। इलाक़े की बिजली काट दी जाने वाली थी तो मैंने ये सोचा कि इस बाढ़ के चक्कर में तो बोर हो जाऊँगा इस लिए मैंने 3-4 नावलों का जुगाड़ कर लिया।

जिस दिन हम उनके घर पहुँचे, उसी रात को हमारे यहाँ भी पानी आ गया यानि कि बाढ़ आ गई। हम अपने घर का सामान पहले ही ईंटें वग़ैरह रख कर कर उँचा करके रख आए थे।

अब क्योंकि दिन रात उनके घर में रहना था तो दीपो भी मेरे आस-पास ही रहने लगी और मैं जैसे ही नावल रखता तो वो उठा कर ले जाती, तो यह देख मैंने रिस्क लेने की ठान ली।

उस दिन यह सोचने के बाद मैंने अपना इरादा पक्का कर लिया और उससे नावल लेने के बाद मैंने जिस पेज पर उसकी निशानी थी, उस पेज पर मैंने लिख दिया- ‘D, I L U’ और नावल वापस रख दिया।
अब यह तो पक्का था ही कि दीपो वो नावल लेकर जाएगी तो मेरे सोचे अनुसार ही लगभग एक घंटे बाद जब वो घर के काम से फ्री हुई तो नावल उठा कर ले गई।
अब मैं एक तरफ तो उत्साहित था कि मैंने इज़हारे मौहब्बत कर दिया है और दूसरी तरफ फट भी रही थी कि कहीं वो किसी से कह ना दे।

उसने नावल मुझे शाम को लौटा दिया और उसमें एक छोटी सी पर्ची रखी थी जिस पर लिखा था कि ऐसे नहीं लिखना चाहिए था, अगर किसी को पता चल जाता तो क्या होता?

यह पढ़कर मैं तो मानो सातवें आसमान पर पहुँच गया, क्योंकि मेरी समझ में आ गया था कि उसने हाँ तो नहीं कहा पर फिर उसकी इस बात का मतलब एक तरह से हाँ ही है।
मैंने उसी पर्ची के पीछे लिख दिया ‘किसी को कैसे पता लगता जब हमारे अलावा किसी और को नावल का शौक ही नहीं है।’
और यहाँ फिर से इसके नीचे मैंने लिख दिया DEEPO I LOVE YOU!

वो शाम पूरी गुज़र गई पर दोबारा उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया, मैं काफ़ी इंतज़ार करता रहा पर मेरा इंतज़ार व्यर्थ ही गया।आप लोगों में से कई लोग ऐसी स्थिति से गुज़रे होंगे आप समझ सकते हैं कि मेरा क्या हाल हुआ होगा।
पूरी रात नींद नहीं आई, अगर थोड़ी देर को आँख लग भी जाती तो फिर खुल जाती, सारी रात ऐसे ही कटी और सुबह जल्दी उठ गया था पर आँखों में जलन हो रही थी।

सुबह दीपो भी जल्दी उठ जाती थी, उसने उठ कर चाय बनाई तो गिलास में डाल कर मुझे दे दी पर मैंने कहा- मैं तो चाय तब पियूँगा जब तुम इसमें से पहले एक घूँट भरोगी।
उसने काफ़ी मना करा पर आख़िर में उसने एक घूँट भर ही ली।

अब मेरा तो खुशी के मारे कोई ठिकाना ही नहीं था और मुझे उसकी तरफ से हरी झंडी मिल गई थी। ऐसे बाढ़ के चक्कर में पूरा डेढ़ हफ़्ता निकल गया। पर इस डेढ़ हफ्ते में मैं उसे ढंग से छू भी नहीं पाया था, कारण यह था कि उनके घर पर हमारे अलावा भी दो परिवार और थे किरायेदार।

फिर धीरे धीरे पानी उतरने लगा और लगभग 12 दिन उनके घर रहने के बाद हम अपने घर आ गये पर मेरा दिल उसी में रहने लगा। अब हमारे बीच में चिट्ठियों का आदान प्रदान होने लगा पर खुले आम चिट्ठी किसी के सामने नहीं दी जा सकती थी तो हमने एक जगह निश्चित करी, वो जगह थी लेटरीन और बाथरूम के बीच में बना हुआ रोशनदान, मैं चिट्ठी वहाँ रख कर उसे इशारे में बता देता और वो भी चिठ्ठी वहीं पर रख देती।

इस प्रकार करीब एक साल और निकल गया और मैं उससे शादी के सपने देखने लगा।
मैंने यह बात भाभी जी के माध्यम से भाई साहब को कहलवाई, उन्होंने उसके पिताजी से बात भी करी पर उसके पिता जी ने जातिवादी सोच के कारण मना कर दिया क्योंकि हम जट्ट हैं और उनकी जाति दूसरी थी। हालाँकि हमारा परिवार जातिवाद को नहीं मानता पर वो लोग मानते थे तो उसके पिताजी नहीं माने।

इस पर हमारे बीच में प्यार और ज़्यादा बढ़ गया और मैंने उसका नाम प्यार से रखा ‘मनप्रीत’ और उसने मुझे प्यार से अमरजोत कहना शुरू कर दिया।

अब जब हमें पता लग गया था कि हमारा मिलन नहीं हो सकता तो हमारे बीच में प्यार और ज़्यादा बढ़ गया, और हम जब तब मिलने का मौका ढूँढते रहते थे। जब भी मौका मिलता हम एक दूसरे को ज़रूर मिलते और तब तक हमारे बीच में सेक्स जैसी कोई इच्छा नहीं होती थी।

जनवरी 89 में हमें पता चला कि उसके पापा उसके लिए रिश्ता ढूँढ रहे हैं, तो मनप्रीत ने मुझे कहा- अमरजोत, चलो हम भाग चलते हैं!
तो मैंने उसे कहा- अगर हम भाग गये तो हम तो अपना घर बसा लेंगे, पर इससे 2 घर बर्बाद होंगे और माँ बाप की जो बदनामी होगी उसका क्या? उनकी बरसों की बनी हुई इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी और फिर कल को हमारी रिश्तेदारी कहाँ होगी?
मैंने कहा- जान मोहब्बत सिर्फ़ हासिल करने का नाम नहीं है बल्कि मौहब्बत कई बार कुर्बानी भी मांगती है।
यह बात मनप्रीत की समझ में आ गई और उसने भागने की बात ख़त्म कर दी।

ये सब उसको समझा कर मैं अपने घर आ गया और छत पर जा कर बहुत देर तक रोता रहा, जब रोते रोते आँखों का पानी सूख गया तो मैं छत से उतर कर आया और दुकान पर चला गया।
 
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Update 2

तीन महीने ऐसे ही गुज़र गए और इस बीच में एक रात मैं पूरी रात उसके साथ उसके कमरे में रहा। पूरी रात उसके पास रहने का मौका भी ऐसे बना कि उसके मम्मी पापा को शादी के कार्ड बाँटने के लिए जाना था और उन्हें रिश्तेदारी में रात रुकना था जो कि उसने मुझे पहले ही बता दिया था।
जिस दिन उसके माँ पापा को जाना था, उस दिन रात अपने घर पर आने के लिए दीपो ने मुझसे कह दिया और कहा कि चोरी से आना।
शाम को मैंने भी अपनी मम्मी से कह दिया कि आज मुझे कुक्कु (मेरे एक दोस्त) के घर रुकना है उसके घर वाले घर पर नहीं हैं।
तो मुझे माँ से इजाज़त मिल गई और मैं बहुत ही खुश था, कुक्कु को भी मैंने सारा कुछ पहले ही बता दिया था, ताकि मौका पड़ने पर वो बात को संभाल सके क्योंकि वो मेरे किस्से के बारे में जानता था।
रात करीब 9 बजे मैं उसके घर पहुँचा तो उसने घर का पीछे वाला दरवाज़ा खुला छोड़ रखा था।
हमारा मिलने का टाइम तो पहले से ही निर्धारित था तो वह भी मेरा इंतज़ार कर रही थी और अपनी छोटी बहनों को खाना खिला कर छत पर सुला आई थी। जब मैं उसके दरवाज़े पर पहुँचा तो मेरे मन में हज़ारों सवाल थे और डर भी, कि कहीं वो ना आई तो किसी ने देख लिया तो? किसी को पता लग गया तो? और भी ना जाने कितने सवाल पर जब इश्क की आग लगी होती है तो इंसान को और कुछ सूझता नहीं है, वही हाल मेरा भी था।
उनके घर जा कर दरवाज़े को मैंने हल्का सा बजाया कि कहीं कोई दरवाज़ा बजाने की आवाज़ ना सुन ले पर जैसे ही मैंने बजाया तो दरवाज़ा अंदर को खुल गया और मैं अंदर घुस गया, अंदर की बत्ती बंद थी और मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि मुझे अपने दिल के धड़कने की आवाज़ अपने कानों में सुनाई दे रही थी और साँस ऐसे चल रही थी कि जैसे मैं कोई बहुत लंबी रेस दौड़ कर आ रहा होऊँ।
जैसे ही मैं अंदर घुसा, वो फुसफुसाई- दरवाज़ा बंद कर दो।
और जैसे ही मैंने दरवाज़े की कुण्डी लगाई वो एकदम से मुझ से लिपट गई और मुझे भी और कुछ नहीं सूझा मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और अपने सीने से लगा कर खड़ा हो गया।
मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी और सांस भी ऐसे था जैसे मैं दौड़ कर आया हूँ। जहाँ मैं खड़ा था बिल्कुल वहीं पर एक पलंग भी पड़ा था, उसने मुझे पीछे को धक्का दिया, मैं पीछे की ओर पलंग पर बैठ गया, वो मुझसे लिपटी हुई वहीं मेरे सामने खड़ी थी और मेरे हाथ उसकी कमर से लिपटे हुए थे और उसकी बाहें मेरे गले में थीं और हम ऐसे लिपटे हुए थे कि जैसे अब कभी अलग नहीं होंगे।
काफ़ी देर बाद मेरे मुँह से निकला- ओ प्रीत, यह रात यहीं रुक जाए और हम कभी अलग नहीं हों।
वो मुझे प्यार से अमरजोत बुलाती थी और मैं उसे प्यार से मनप्रीत कहता था मेरी बात के जवाब में उसने एक गहरा लंबा साँस लिया और बोली- अमर मेरी जान, चाहती तो मैं भी यही हूँ पर काश कि ऐसा हो पाता!
और यह कह कर वो रोने लगी और मैंने उसे अपने सीने से और ज़ोर से भींच लिया और उसे चुप करने लगा।
उसका दर्द देख कर मेरी भी आँखें गीली हो गईं पर धीरे धीरे वो शांत हो गई और हम लोग आपस में लिपट कर पलंग पर लेट गये।
कुछ देर बाद हम एक दूसरे के मुँह से मुँह मिलाकर चुम्बन करने लगे, कभी मेरी जीभ उसके मुँह में चली जाती और कभी उसकी जीभ मेरे मुँह में आ जाती।
और पता नहीं कितनी देर तक तक हम दोनों यही करते रहे। काफ़ी देर बाद जब जीभ और होंठ थक गये और दर्द करने लगे तब हम हटे।
मेरे हाथ उसके शरीर पर जहाँ तहाँ फिर रहे थे, वो मेरा कोई विरोध नहीं कर रही थी।
इसके बाद मैंने अपने हाथ उसके कुर्ते में डाल दिए और मैंने तब देखा कि उसने अंदर ब्रा नहीं पहन रखी थी।
मैं धीरे धीरे उसके स्तनों को सहलाने लगा उसके छोटे छोटे निप्प्ल एक दम से कड़क और टाइट हो गये थे और उसके मौसमी के आकार के स्तनों का साइज़ भी उत्तेजना के मारे बढ़ गया था।
पर जैसे ही मैं अपने हाथ उसकी सलवार के नाड़े की ओर ले गया, उसने मुझे रोक दिया और बोली- नहीं अमर, अगर मुझसे प्यार करते हो तो यह नहीं करो।
मैं भी रुक गया और दोबारा से चुम्मा-चाटी करके उसे गर्म करने की कोशिश करने लगा।
सारी रात मैं उसके पास रहा पर उसने मुझे अपनी सीमा से आगे नहीं बढ़ने दिया जब भी मैं उसकी निर्धारित सीमा को पार करने की कोशिश करता, वो मुझे रोक देती।
उस उम्र में मुझे उसकी वो हरकत और मुझे बार बार रोकना बचकनी हरकत लग रही थी और बहुत से पाठक भी कहेंगे कि यह लेखक तो चूतिया है। पर आज जब मैं एक परिपक्व आदमी बन चुका हूँ अब उसके आत्म नियंत्रण की कल्पना करता हूँ तो उसका सम्मान मेरी नज़र में और भी बढ़ जाता है।
जब सुबह के 4.30 बज गये तो मैंने उसे कहा- प्रीत, मेरी प्रीत अब मुझे चलना चाहिए, वर्ना थोड़ी देर में रोशनी हो जाएगी तो मुझे यहाँ से निकलते हुए कोई देख लेगा।
तब वो बोली- अमर, जिस चीज़ की कोशिश तुमने सारी रात करी, मैं भी वो करना चाहती हूँ पर अभी उसका वक्त नहीं है, मैं तुम्हारी यह इच्छा भी ज़रूर पूरी करूँगी क्योंकि मुझे मालूम है कि तुम मुझे जीवन में कभी नहीं मिलोगे और मैं पराई हो जाऊँगी तो मुझे जीवन जब भी तुम्हारा सहारा चाहिए होगा, मैं उन पलों को याद करके अपना जीवन गुजार लूंगी और तुम्हारी मौज़ूदगी का एहसास हमेशा अपने दिल में सॅंजो कर रखूँगी।
उसने ये शब्द ऐसे अंदाज़ में और भावुकतापूर्वक कहे कि मैं भी रो पड़ा।
पर मैंने उसे यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं रो रहा हूँ और मैंने उसे एक बार और गले से लगाया और वहाँ से निकल आया।
उसके बाद 2-3 दिन तक मैं उसके घर नहीं गया क्योंकि जब भी मैं उसके घर जाने के बारे में सोचता तो मेरा मन भारी हो जाता और मैं उदास हो जाता था।
एक दिन उसने मेरे भतीजे के हाथ एक चिट्ठी भेजी जिसमें लिखा था- ‘मैं उस रात के लिए शर्मिंदा हूँ और मैंने तुम्हें कुछ करने नहीं दिया, इसीलिए तुम मुझसे नाराज़ हो ना?’
यह पढ़ कर मुझे बहुत शर्म आई कि वो मुझे कैसा समझती है।
मैंने भतीजे को थोड़ी देर बच्चों के साथ खेलने दिया और और एक चिट्ठी लिखी जिसमें अपने दिल का सारा हाल लिखा और भतीजे को मिठाई खिलाई और उसी के हाथ वो चिट्ठी भेज दी।
उसी दिन शाम को भाभी के घर गया और भाभी से कह कर उसे बुलवा लिया।
भाई साहब और भाभी को हमारे बारे में मैंने बता ही दिया था पर मैं उस रात उसके घर आया था और पूरी रात वहाँ रुका था, यह बात मैंने छुपा ली थी।
वो वहाँ आई तो मेरे मुँह से सिर्फ़ इतना निकला- ‘मनप्रीत, तू मुझे ग़लत समझी… मैं नाराज़ नहीं हूँ, बस तेरे सामने आने की हिम्मत नहीं है क्योंकि तू मुझे देख कर और दुःखी हो जाएगी।
यह कहते कहते मेरा गला भर गया और मैं उससे और कुछ नहीं कह पाया और वो भी मुझसे लिपट कर रोने लगी, बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया और समझाया कि मैं नाराज़ नहीं हूँ।
समय बहुत तेज़ी से गुज़र रहा था… या यूँ कह लें कि हमें लगा रहा था कि समय की गति बढ़ गई है।
आख़िर वो दिन भी आ गया जिस दिन उसकी शादी थी।
वो दिन 7 जून 1989 का दिन मैं कभी भी नहीं भूल सकूँगा जिस दिन उसकी शादी थी, मैं भी उस शादी में शामिल हुआ पर बार बार मेरा रोना सा निकल जाता था और आँखें गीली हो जाती थीं। लेकिन मैं फेरे होने के बाद वहाँ से अपने एक दोस्त के घर चला गया और उसके कमरे में बैठ कर फूट फूट कर रोया।
पर कोई चारा नहीं था, समाज का विरोध कर पाने की हिम्मत नहीं थी, तो रो कर ही सब्र करना पड़ा।
उसके बाद वो जब भी आती तो मुझे मिलने के लिए बुलाती पर मैं क्योंकि उसके जीवन मे कोई विघ्न नहीं चाहता था तो मैं उससे मिलने नहीं जाता था।
 
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Update 3
एक दिन वो जब मायके आई तो अपने घर उसे 2-3 दिन रुकना था तो वो हमारे घर आ गई जब मेरी माँ रसोई में गई तो उसने बड़े शिकयती लहजे में कहा- मैंने कहा था ना कि मुझे भगा कर ले चलो, पर तुम माने नहीं। अब मुझे अपनी शक्ल भी नहीं दिखाते मेरा कसूर तो बता दो, क्या मांगती हूँ तुमसे, सिर्फ़ यही ना कि तुम्हारा चेहरा देख लूँ?

उसकी यह बात सुन कर मैं शर्मिंदा सा हो गया और सिर झुका कर कहा- नहीं, ऐसी बात नहीं है, तुम अब किसी और की हो चुकी हो, और मैं तुम्हारे जीवन में अब कोई दुख नहीं…
पर उसने मेरी बात काटते हुए कहा- मेरा मन पहले भी तुम्हारा था, अब भी तुम्हारा है। यह शादी मैंने मज़बूरी में करी है, वो सामाजिक तौर पर मेरा मलिक है पर मानसिक तौर पर नहीं!
‘और इसके ज़िम्मेदार तुम हो अमर!’ वो एक पल रुक कर बोली।

‘मैं अगले महीने यहाँ रहने आ रही हूँ 2 महीने के लिए!’
इतनी देर में मेरी माँ चाय बना कर ले आई तो वो चुप हो गई। चाय पीकर जब जाने लगी तो बोली- शाम को घर आना!
मैंने हाँ मे सिर हिलाया और गहरी सोच में पड़ गया।

शाम को मैं करीब 4:30 बजे उनके घर पहुँचा तो वो भाभी के घर बैठी थी, भाभी से बोली- भाभी, आप चाय बना लो और ज़रा आराम से बनाना टाइम लगा कर!
भाभी को सारी बात का पता तो था ही, वो उठीं और मुस्कुरा कर चली गईं।

भाभी के जाते ही वो उठ कर मेरे पास आ गई और मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथों में पकड़ कर बोली- अमर, मेरी जान तुम नहीं जानते कि मेरे जीवन में तुम्हारी क्या जगह है? पर यह याद रखना कि मैं मर तो सकती हूँ पर तुम्हें नहीं भुला सकती और मैं जानती हूँ कि इस बात का तुम्हें भी पता है।

मैं कुछ देर तक उसके मुँह की तरफ देखता रहा और फिर मैंने बैठे बैठे ही अपनी बाहों में भर लिया और उसके कंधे पर सिर रख कर रोने लगा और वो मेरे कंधे पर सिर रख रोने लगी, अपनी दोनों बाहें मेरे गिर्द लपेट दीं, काफ़ी देर तक हम दोनों कुछ नहीं बोले और रोते रहे|

फिर एक झटके से मुझसे वो अलग हो गई और बोली- सुनो, जो मैं कहने जा रही हूँ, उसे गौर से सुनो!
मैं प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखने लगा तो वो पुनः बोली- तुम्हें याद है, एक रात तुम मेरे पास रहे थे और मैंने उस रात तुम्हें कुछ भी नहीं करने दिया था?
मैंने सिर्फ़ सिर हिलाया तो वो बोली- मैं अगले महीने यहाँ रहने आ रही हूँ, और वो भी पूरे 2 महीने के लिए, और तुम्हारी वो तमन्ना मैं उस वक्त पूरी करूँगी।

मैंने उसकी बात का विरोध करने के लिए मुँह खोला लेकिन उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोली- तुम मत बोलो, बस मेरी सुनो, और जिस दिन मैं तुम्हें बुलाऊंगी, तुम्हें आना पड़ेगा, यह तुम्हें उस मोहब्बत की कसम है जो कि तुमने मुझे करी थी, हाँ अगर तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर यह कह दो कि तुमने मुझसे प्यार नहीं किया था तो मैं तुम्हें नहीं कहूँगी आने के लिए!

इतना बोल कर वो चुप हो गई और मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखने लगी, उसके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था और मैंने खुद को शर्मिंदा सा महसूस करा और सिर झुकाकर बोला- ठीक है, मैं हारा!
मेरा यह जवाब सुनकर वो सिर्फ़ मुस्कुराई और कुछ भी नहीं बोली।

थोड़ी देर बाद भाभी जी चाय बना कर ले आई, हम तीनों ने साथ साथ चाय पी और थोड़ी देर के बाद मैं अपने मेडिकल स्टोर पर चला गया।

इस बीच मे मेरे से बड़े वाले भाई और पापा जी वापस दिल्ली चले आए थे, मैं और माँ वहीं रह रहे थे, बड़े भाई साहब वहीं निरंजन अंकल के घर पर ही रह रहे थे।

वो महीना गुज़र कर नया महीना कब आ गया, पता भी ना चला। बस इन दिनों मैं कुछ उदास रहता था और मैंने कुछ ग़ज़लें लिखनी शुरू कर दी थीं।

एक दिन सुबह भाई साहब ने मुझे कहा- तुझे तेरी भाभी बुला रही थी, एक बार घर चले जाना!
मैंने कहा- जी भा… जी!

दोपहर को मैं भाई साहब के घर गया तो भाभी जी ने कहा- आज तेरे भाई साहब बाहर जा रहे हैं और तुझे रात इस घर में सोना है।
मैंने कहा- जी, भरजाई जी!

यह कह कर मैं वहाँ से निकल आया और घर आकर माँ से कहा- आज भाअजी बाहर जा रहे हैं तो आज रात भाअजी के घर सोने जाऊँगा।
तो मम्मी बोली- ठीक है, टाइम से चले जाना!
इसके बाद मैं वापस अपनी दुकान पर चला गया।

शाम को मैं घर से 8 बजे के करीब निकला और 10 मिनट में भाई साहब के घर पहुँच गया। मेरे पहुँचने तक खाना तैयार था, मैंने खाना खाया और कुछ देर टी वी देखने के बाद मैंने कहा- भरजाई जी, मुझे कहाँ सोना है?
तो भाभी जी ने कहा- तुम इस कमरे में सो जाओ और मैं बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोऊँगी!
मैंने कहा- ठीक है।

करीब आधे घंटे में बच्चे सो गये और भाभी जी उनको दूसरे कमरे में लिटा आई और मुझसे बोली- सोने से पहले टी वी बंद कर देना! मैंने कहा- जी अच्छा!

और उनके दूसरे कमरे मे जाने के बाद 10-12 मिनट के बाद ही टी वी बंद कर दी और लेट गया।
 
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Update 4
शाम को मैं घर से 8 बजे के करीब निकला और 10 मिनट में भाई साहब के घर पहुँच गया। मेरे पहुँचने तक खाना तैयार था, मैंने खाना खाया और कुछ देर टी वी देखने के बाद मैंने कहा- भरजाई जी, मुझे कहाँ सोना है?
तो भाभी जी ने कहा- तुम इस कमरे में सो जाओ और मैं बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोऊँगी!
मैंने कहा- ठीक है।

करीब आधे घंटे में बच्चे सो गये और भाभी जी उनको दूसरे कमरे में लिटा आई और मुझसे बोली- सोने से पहले टी वी बंद कर देना! मैंने कहा- जी अच्छा!
और उनके दूसरे कमरे मे जाने के बाद 10-12 मिनट के बाद ही टी वी बंद कर दी और लेट गया।

अभी मुझे लेटे हुए शायद आधा घंटा ही हुआ होगा, आँख हल्की सी लगने ही लगी थी कि मुझे लगा कि कोई मेरे पास आकर लेट गया है, और यह मेरा वहम नहीं था, वास्तव में ही एक जनाना शरीर मेरे साथ लेटा हुआ था।
मुझे अचानक एक झटका सा लगा, ‘दीपो?’
पर मैंने अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए यही जताया कि मैं सो रहा हूँ और यह नियंत्रण रखने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी पर उसने भी मेरे साथ लेट कर कोई भी जल्दबाज़ी या उत्तेजना नहीं दिखाई बस मेरे साथ लेट कर मेरा माथा सहला रही थी जैसे कोई किसी बच्चे को प्यार करता है।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी थी

कुछ देर ऐसे ही मेरा माथा सहलाने के बाद उसने मेरे माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन अंकित कर दिया और उसके इस चुम्बन से मैं एकदम से सिहर गया, पर इसके बाद उसने और कुछ भी नहीं करा बस मुझसे लिपट कर लेट गई और मुझे इस तरह से अपनी बाहों में समेट लिया कि जैसे कभी नहीं छोड़ेगी।

3-4 मिनट के बाद उसने अपना सिर मेरे सीने पर रख दिया और बहुत प्यार से बोली- मेरी जान, मेरे अमर, मैं जानती हूँ कि तुम जाग रहे हो।
यह सुन कर मैंने धीरे से आँख खोली और उसकी तरफ देखा नाइट बल्ब की नीली रोशनी में वो मुझे किसी परी जैसी लग रही थी।

कुछ देर मेरी आँखों से आँखें मिला कर वो बोली- मेरी जान, आज मैं तुम्हारी अधूरी इच्छा पूरी करूँगी।
मैं बोला- जान, अब तुम पराई अमानत हो और…!
तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- यह कोई पाप नहीं है, यह मेरा वादा था अपने आप से, आज मैं तुम्हें बताती हूँ कि उस दिन मैंने तुम्हें क्यों कुछ नहीं करने दिया था।
जिस रात तुम मेरे पास रुके थे उस रात अगर मैं तुम्हें कुछ करने देती भी तो मैं तुम्हारे बच्चे को जन्म नहीं दे सकती थी क्योंकि उस स्थिति में अगर मेरी माँ को कुछ पता लग जाता तो वो मेरी सफाई करवा देती, यह बात उसी दिन मेरे दिमाग़ में आ गई थी कि मैं तुम्हारी नहीं हो सकती तो तुम्हारी कोई निशानी तो अपने पास रख सकती हूँ।

एक पल के लिए रुक कर वो बोली- और वो निशानी तुम्हारे बच्चे से ज़्यादा अच्छी और क्या हो सकती है?
यह बोल कर वो मेरी आँखों में देखने लगी और इतने आत्मविश्वास के साथ देख रही थी कि मुझे कोई जवाब नहीं सूझा और मैंने आँखें बंद कर लीं और सोच में पड़ गया कि क्या यह ठीक है या नहीं।

अभी मैं सोच ही रहा था कि उसने अपने गर्म गर्म होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी।

अब एक जवान लड़के से एक जवान लड़की इस तरह का व्यवहार करे तो कौन है जो खुद पर काबू पा सकेगा, तो मैं भी पिघलने लगा और तनाव मेरे शरीर में भरने लगा और मैं भी उत्तेजित होने लगा और मैंने अपनी बाहें उसकी कमर से लपेट दीं और कस कर अपने और नज़दीक लाने लगा।
अब धीरे धीरे हमारी साँसें गर्म होने लगीं और पता नहीं कितनी देर तक हम एक दूसरे को चूमते और सहलाते रहे पर मैं अभी भी पहल करने में झिझक रहा था।
इसके पीछे भी एक खास वजह यह है कि जिसे आप दिल से चाहते हों उसके साथ सेक्स के बारे में सोचते हुए भी बड़ी हिम्मत करनी पड़ती है।

मैं तो लेटा ही बनियान और पाजामे में था, मुझे तब पता चला जब उसका हाथ मेरे पजामे में घुस गया और जाकर सीधा मेरे लिंग को सहलाने लगा।
अब उत्तेजित तो मैं पहले ही हो गया था पर जैसे ही उसने मेरे लिंग को पकड़ा तो मुझे झट से पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। मेरा लिंग इतना सख़्त हो चुका था जैसे कि रबर की छड़ और मेरी साँसें ऐसे चल रही थी जैसे कि बहुत तेज चल कर आया होऊँ।

जैसे जैसे मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी, मैं उसे और कस कर अपने साथ लिपटा रहा था, मानो आज उसे अपने भीतर ही समा लेना चाहता था।

उसकी पहल को देखते हुए अब मैंने भी आगे बढ़ना शुरू कर दिया था, मेरा दाहिना हाथ तो उसके शरीर के नीचे था तो मैंने अपना बाँया हाथ धीरे से उसके कमीज़ के गले में डाल दिया और उसका दाँया स्तन अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया जिससे वो भी और ज़्यादा गर्म हो गई और सिसकारियाँ लेने लगी।

उसकी पहल को देखते हुए अब मैंने भी आगे बढ़ना शुरू कर दिया था, मेरा दाहिना हाथ तो उसके शरीर के नीचे था, तो मैंने अपना बायां हाथ धीरे से उसके कमीज़ के गले में डाल दिया और उसका दायाँ स्तन अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया जिससे वो भी और ज़्यादा गर्म हो गई और सिसकारियाँ लेने लगी।

अब मैंने थोड़ा नीचे सरक कर उसके तपते हुए होंठों पर अपने होंठ रख दिए और कुछ देर तक ऐसे ही चूमता रहा और फिर उसके दोनों होंठों को एक साथ अपने होंठों में भर लिया और बड़े प्यार से चूसने लगा।
और यह प्यार से चूसना कब ज़ोर से चूसना हो गया मुझे पता ही नहीं लगा, वो भी पुरज़ोर तरीके से और प्यार से मेरा पूरा सहयोग कर रही थी।

अब दीपो ने मेरी बनियान उतारने की कोशिश शुरू कर दी थी और मैंने भी उसका सहयोग करते हुए अपनी बनियान उतार दी और साथ ही उसका कमीज़ भी उतार दिया।
उसने नीचे ब्रा नहीं पहन रखी थी और उसके मध्यम आकार के स्तन मेरे सामने थे, उन पर किशमिश के आकार के निप्पल और करीब एक इंच व्यास का एरोला जो भूरापन लिए हुए था और उसके निप्पल एकदम सख़्त थे और उसके स्तन भी बहुत कसे हुए थे जैसे रबर की गेंद।

मैंने अपना हाथ उसके नीचे से निकल लिया और उसको खींच कर अपने ऊपर ले लिया और उसके एक स्तन को मुँह में भर लिया और कभी प्यार से और कभी ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया और उसी जोश से वो भी मुझे अपनी बाहों में भींच रही थी।
क्योंकि उसका स्तन मेरे मुँह में होने के कारण वो मुझसे कुछ ऊपर की ओर थी तो वो अपनी जीभ से मेरे माथे को चूम और चाट रही थी और उसकी इस हरकत से मेरा जोश और ज़्यादा बढ़ रहा था।

अचानक वो मेरे ऊपर से उठी और मेरे पैरों की तरफ पलट गई और मेरे पाजामे का नाड़ा पकड़ कर खींच दिया और पाजामा खींच कर पर पैरों में से निकाल दिया। अब मैं खाली अंडरवियर में था और वो सलवार में !
मैंने भी तुरंत प्रतिउत्तर देते हुए उसकी सलवार उतार दी, काम वासना का मुझ पर इतना असर हो चुका था कि मैं यह भूल गया था कि यह मेरा पहला प्यार है।

उसने सलवार के नीचे पेंटी भी नहीं पहन रखी थी, मैं समझ गया कि आज पहले ही से प्लानिंग बनाकर उसने यह कदम उठाया है।
अभी तक मन दुविधा में था पर अब जब काम वासना सिर पर सवार हो चुकी थी तो अब मैंने भी पूरा बेशर्म हो जाना ही उचित समझा, और मैंने अपने हाथ से अपना अंडरवियर उतार दिया और अपना पूर्ण उत्तेजित लिंग उसके हाथ में पकड़ा दिया।
उसने भी मेरे लिंग को इस तरह से पकड़ा जैसे कि उसेक हाथ में उसका कोई मनपसंद खिलौना आ गया हो और उसे डर हो कि अगर इसे ढीला छोड़ा तो कोई और ले लेगा।

मेरे मुँह से से बरबस ही एक आह निकल गई और मैं बोला- जान, उस दिन मैं ये सब करने को कह रहा था तो तुमने कुछ करने नहीं दिया तो फिर आज ये सब क्यों?
वो बोली- अभी बता तो दिया, अभी जो कर रहे हो वो करो।
और यह बोल कर उसने अपने हाथ से पकड़ कर अपना एक स्तन मेरे मुँह में ठूंस दिया।

मैं करवट लेकर उसके ऊपर आ गया और बारी बारी से उसके स्तनों को चूसने लगा, एक स्तन मुँह में तो दूसरे को पूरी हथेली में ले कर ज़ोर से दबा रहा था तो कभी अपने हाथ की पहली दोनों उंगलियों से से उसकी योनि को रगड़ने लगता था और जैसे ही मेरा हाथ उसकी योनि पर नीचे से ऊपर की ओर आता, उसके मुँह से ‘आआहह’ की आवाज़ निकल जाती जिससे मेरा जोश और उत्तेजना और ज़्यादा बढ़ जाती।

उसने नीचे से मुझे धक्का दिया और पलटने का संकेत किया तो मैं करवट लेकर लेट गया, जैसे ही मैं करवट लेकर लेटा, वो मुझे सीधा करते हुए मेरे ऊपर आ गई, उसने अपनी जीभ मेरे निप्पल पर फेरी और धीरे से उसे मुँह मे भर लिया तो मेरा सारा शरीर सनसनाहट से भर गया।
उस अनुभव को शायद ही कोई लेखक शब्द दे पाए!
मेरे मुँह से बहुत ज़ोर की सिसकारी निकली ‘सस्सीईईई…’ और मेरे हाथ उसके चूतड़ों पर कस गये और वो भी इतने ज़ोर से कि मानो सारा रस उनमें से ही निकलेगा।
पर ये सारी क्रियाएँ अंजाने में ही हो रही थीं।

उस समय मेरी उम्र यही कोई 22 साल के करीब थी और सेक्स का कोई ज़्यादा अनुभव नहीं था, इससे पहले नीता भाभी की और माला की ही ली थी पर उस सब में और अब में बहुत फ़र्क था, तब मैं मुश्किल से 18 साल का था और अब एक भरपूर जवान लड़का था और सेक्स के लिहाज से फिट था, पर अनुभव हीनता के कारण मुझे मालूम नहीं था कि क्या क्या करना है पर दीपो की क्योंकि शादी हो चुकी थी और उसके पास 5 महीने का तज़ुर्बा था।

उसने मेरे पहले निप्पल को छोड़ कर दूसरे को अपने मुँह में भर लिया और मुँह में भर कर जब वो मेरे छोटे छोटे निप्पलों पर जीभ फेरती तो लगता कि बस दुनिया यहीं पर ख़त्म है और शायद इससे आगे जहाँ और नहीं है।

अब मेरा लिंग फटने को तैयार हो रहा था, अब दीपो ने मेरे निप्पल छोड़ कर मेरी पूरी छाती को चाटना शुरू कर दिया था, मेरी छाती पर ज़्यादा बाल नहीं थे, और वो धीरे धीरे छाती से चाटते हुए पेट की तरफ बढ़ी और मेरे पेट की साइड को चाटने लगी।

मेरी जान निकली जा रही थी पर मज़ा भी बहुत आ रहा था और यह एक ऐसा अनुभव था जो मैंने पहले कभी नहीं पाया था और मेरे लिए बिल्कुल नया था।

पेट के बाद वो और नीचे गई और मेरी जांघों के जोड़ों के चाटने लगी कभी चाटती और कभी हल्के हल्के दाँतों से काटती, मुझे तो स्वर्ग का नज़ारा दिख रहा था और और रह रह कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे।

अब मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया और दीपो को जबरन लिटा दिया।
 
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वो और नीचे गई और मेरी जांघों के जोड़ों के चाटने लगी कभी चाटती और कभी हल्के हल्के दाँतों से काटती, मुझे तो स्वर्ग का नज़ारा दिख रहा था और और रह रह कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे।
अब मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया और दीपो को जबरन लिटा दिया।

मैंने भी उसके साथ वही कुछ करना शुरू कर दिया जो वो अब तक मेरे साथ कर रही थी।
और वो मेरी उन हरकतों से ऐसे तड़पने लगी जैसे बिना पानी के मछली… अब वो बुदबुदा रही थी- ‘आअहह मेरे सरताज़ मेरे…ए… प्यार, मैनूं पूर्ण कर दो अज्ज, मेरी कोख विच अपना बीज दे दे मेरी जान, मेरे कोल होर कुछ वी नहीं इस दे सहारे ही अपना जीवन कॅट लॅवांगी जानुउऊँ…

मैं भी कभी उसकी गर्दन की बाँई तरफ चाट और कभी दाँईं ओर, इससे वो और ज़्यादा गर्म हो गई थी।
मैं अब उसके अंदर समा जाना चाहता था पर फिर भी मैं अपना लिंग अभी प्रवेश नहीं करवा रहा था।

अब दीपो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि उसने अपने हाथ से मेरा लिंग पकड़ कर अपनी योनि के मुँह पर रख दिया और मेरे से बोली- करो ना!
और नीचे से अपनी कमर उठाई।

अब मेरे से भी सबर नहीं हो पाया तो मैंने भी एक हल्का सा धक्का लगाया तो मेरा लिंग आधा उसकी योनि में जा चुका था, उसकी योनि गीली थी लेकिन फिर भी मेरा लिंग उसमें एकदम फँस कर कर घुसा, उसकी योनि बहुत ही ज़्यादा गर्म थी।
जैसे ही मेरा लिंग उसकी योनि में प्रवेश करा तो उसने भी नीचे से ऊपर की ओर ज़ोर लगाया जिससे मेरा लिंग उसकी योनि में और भीतर की ओर चला गया और साथ ही मेरे मुँह से सिसकारी सी निकल गई- सस्स्स स्स्सईईईई आआआहह…

मेरे लिंग का प्रवेश होते ही उसने मेरी कमर को कस कर अपनी बाहों में भींच लिया और कचकचा कर मेरे ऊपर वाले होंठ को मुँह में भर लिया और काट लिया।
मेरा बाँया हाथ उसकी कमर के नीचे से जाकर उसके चूतड़ को दबा रहा था और दाँया हाथ उसके बाँये स्तन को दबा रहा था, मुँह से मुँह चिपका हुआ था, अपने आपको इस स्थिति में पाकर मान मर्यादा प्यार सम्मान आदि शायद मेरे ज़हन से निकल चुके थे और अब मैं और वो मात्र एक मर्द और औरत ही थे जिनमें सिर्फ़ जिस्मानी रिश्ता होता है जो मनुष्य के सभ्य होने से पूर्व से चला आ रहा है।

मुझे अब सिर्फ़ हम दोनों की जिस्मानी आग के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था, मेरा शरीर धीरे धीरे क्रियाशील होने लगा और मैंने अपने जिस्म को थोड़ा ऊपर उठाया और फिर से पूरे जोश के साथ अगला धक्का मारा, वो मेरा होंठ छोड़ कर बोली- हाँ जान, ऐसे हीईईई ईईई करो आअज मेरा जीवन धन्य हो गयायययया आआअ!

मेरी गति बढ़ने के साथ ही उसके मुँह से भी अजीब अजीब सी बातें और आवाज़ें निकालने लगी और उनमें से कुछ समझ में आ रही थीं और कुछ नहीं, मैं भी जोश में भरता जा रहा था और मेरे धक्कों की गति अब बढ़ चुकी थी, मेरे हर धक्के का स्वागत वो पूरे जोश के साथ कर रही थी, पूरी कमर उठा कर वो भी बराबर का ज़ोर लगा रही थी और मेरे हर धक्के पर वो कहती थी- आआहह अमरररर… मेरी जान और ज़ोर से!
वो मुझे प्यार से अमरजोत बुलाती थी।

मुझे उसके साथ संभोग करते हुए करीब 6-7 मिनट हो चुके थे, दीपो की सिसकारियाँ बढ़ने लगी थीं और मुझे भी लग रहा था कि अब जल्दी ही स्खलित हो जाऊँगा और वो भी इस बात को समझ गई थी और वो भी नीचे से पूरे ज़ोर से हिलने लगी थी, बोली- मेरे अमर, मुझे माँ बनने का सुख दे दो… यार मेरे, मैं तेरे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!

इधर मेरे शरीर मे भी लावा फटने को तैयार था और वो भी संतुष्टि की कगार पर पहुँच चुकी थी।
अचानक उसका शरीर बहुत ज़ोर से अकड़ने लगा और मेरा शरीर भी मुझे तो यूँ लग रहा था जैसे मेरे जिस्म की सारी ताक़त आज मेरे लिंग के रास्ते बाहर निकल जाएगी और अचानक ज़ोर से बदल ग़रजा और मेरे शरीर की गर्मी लावा बन कर उसके जिस्म में जाने लगी।
वो भी बहुत ज़ोर से स्खलित हुई और मैं भी।

मुझे यूँ लग रहा था जैसे मेरे जिस्म की सारी जान निकल गई हो और मैं एकदम से निढाल सा होकर उसके ऊपर ही लेट गया।
पता नहीं कितनी देर तक मैं ऐसे ही लेटा रहा, फिर जब शरीर मे थोड़ी सी जान आई तो मैं होश में आया और उसके ऊपर से हटा।
वो भी सो गई थी, मेरे हटने से वो जाग गई, उसने आँखें खोलीं और मेरी ओर बड़े हो मनमोहक भाव से देखा, मैं भी उसकी आँखों में देखने लगा तो उसने शर्मा कर आँखें बंद कर लीं और अपनी बाहें मेरी ओर बढ़ा दीं, मैंने भी उसे प्यार से बाहों में भर लिया।

मैं उससे बोला- तुम्हारा यह रूप मेरी समझ में नहीं आया?
तो उसने सबसे पहले चादर खींच कर अपना शरीर ढका, मेरी ओर करवट लेकर लेट गई और बड़े ही गंभीर स्वर में बोली- देखो, मैं तुम्हें सब समझाती हूँ!
फिर कुछ पल के लिए मौन हो गई और आँखें बंद कर के सोचने लगी, कुछ सेकिंड चुप रहकर फिर बोली- मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी शादी तुमसे नहीं हो पाएगी, और मैंने तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर लिया, और जब प्यार में आगे बढ़ गये तो यह समझ में आया कि हमारा मिलन नहीं हो सकता। जब मैंने तुमसे कहा था कि मुझे भगा कर ले चलो तो तुमने मना कर दिया, फिर उस दिन जब रात को तुम्हें मैंने बुलाया था और रात तुम मेरे पास रुके थे तो उस रात मेरे मन में भी आया था कि मैं तुमसे सेक्स कर लूँ पर उस वक्त अचनाक मेरे मन में आया कि तुमसे सेक्स करने के बाद मैं वो नहीं पा सकती जो मैं चाहती हूँ तो उस रात मेरा मन होने के बावज़ूद मैं खुद पर कंट्रोल किया और तुम्हें कुछ करने नहीं दिया/

एक पल रुक कर वो फिर बोली- मैंने उसी दिन सोच लिया था कि मैं तुम्हारा बच्चा पैदा करूँगी और सारा जीवन उसी में तुम्हें देख कर अपना जीवन काट लूँगी।
ये शब्द कहते वक्त उसकी आँखें भर आईं और वो रोती हुई मुझसे लिपट गई, मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और प्यार से उसका सिर सहलाने लगा।
मेरी आदत है कि मैं पानी का जग पास में रख कर सोता हूँ तो मैंने उसी जग में से उसे आधा गिलास पानी दिया, पानी पीकर वो कुछ सामान्य हुई फिर काफ़ी देर तक हम बातें करते रहे।

कुछ देर बाद वो बोली- अमर आज का यह दिन हमारे जीवन में शायद दोबारा नहीं आएगा, ऐसा मौका जीवन में कभी मिले या ना मिले इस लिए मैं यह चाहती हूँ कि आज ही मैं अपनी कोख में तुम्हारा बीज लेकर जाऊँ, मैंने दिनों की गिनती के हिसाब से ही ये सारा प्लान बनाया था।

उसकी ये बातें सुन कर मैंने कहा- मनप्रीत, अगर इस बात का किसी को पता चल गया तो?
वो थोड़ा सा मुस्कुराई और बोली- क्या तुम किसी को बताओगे?
मैंने ना में सिर हिला दिया तो वो फिर से बोली- और मैं भी किसी को नहीं बताऊंगी, और भरजाई भी किसी को नहीं बताएगी, फिर और कौन है जो हमारा राज़दार होगा?
उसकी इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था, मैं भी कुछ निश्चिंत हो गया।

इसके बाद वो फिर से मुझ से लिपटने लगी और मेरे शरीर मे भी लावा दोबारा से गर्म होने लगा।

उस रात में हमने तीन बार संभोग किया और सुबह 4 बजे के करीब वो अपने कमरे में जाकर सो गई और मैं भी सो गया।
तीन बार संभोग करने के बाद थकावट तो हो ही गई थी, सुबह 8:30 बजे तक सोता रहा, फिर भाभी जी ने जगा दिया और चाय पीकर मैं अपने घर चला आया।

इसके बाद करीब 4 महीने तक उससे ना तो कोई मुलाकात ही हुई और ना ही कोई खबर ही मिली।

करीब 4 महीने बाद मैं एक दिन भाई साहब के घर गया तो मनप्रीत आई हुई थी जैसे ही उसे यह पता चला कि मैं आया हूँ तो वो किसी बहाने से भाभी की रसोई में आई और वहाँ से चीनी के डिब्बे में से चीनी लेकर आई और बोली- लो मुँह मीठा करो!
मैं कुछ कुछ समझ गया था पर अनजान बनते हुए पूछा- किस खुशी में?

तो वो बोली- तुम्हारी मेहनत सफल हो गई, तुम बाप बनने वाले हो!
यह सुन कर मैं भी बहुत खुश हुआ और उसे बाहों में भर लिया, तो वो एकदम से पीछे को हटी और बोली ‘हटो कोई देख लेगा!’
तो मैंने उसे छोड़ तो दिया और बोला- अब तुम डरने लगी हो।
तो वो पेट पर हाथ रख कर बोली- इसकी खातिर डरना पड़ता है।

इसी तरह से 5 महीने और निकल गये तो पता लगा कि मेरी मनप्रीत ने 2 जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया है, मैं बहुत खुश था पर किसी से अपनी खुशी का इज़हार भी नहीं कर सकता था। मैं यह भूल गया था कि भाभी जी भी इस बात की राज़दार हैं।
शाम को भाभी जी ने मुझे अपने घर बुलवाया और प्लेट में रखकर बर्फी दी और साथ ही बोलीं- पप्पू बधाई हो।

मैंने उनको धन्यवाद कहा और थोड़ी देर बाद घर आ गया, मैं बड़ा बेचैन था अपने बच्चों को देखने के लिए… पर मेरा कोई चारा नहीं चल रहा था।

इस बीच मेरे रिश्ते की भी बात चलने लगी थी, मैं शादी नहीं करना चाहता था पर फिर भी मेरे माँ बाप ने लड़की वालों को ज़बान दे दी थी, मेरे लाख विरोध करने के बाद भी कोई मेरी बात मान नहीं रहा था और आख़िर 22 नवम्बर 89 के दिन मेरी शादी भी हो गई।

मेरी शादी को अभी कुछ ही दिन हुए थे कि मनप्रीत के ससुर बीमार हो गये और कुछ दिनों के बाद गुज़र गये, घर में काम करने वाला कोई और नहीं था, दोनों सास बहू ही थीं, सास तो गम के मारे ही कुछ नहीं करती थी तो सारा काम मनप्रीत पर ही आ पड़ा था। मनप्रीत को आख़िरी बार तब ही देखा था जब उसके ससुर की मौत हो गई थी और मैं अपने बड़े भाई साहब के साथ उनके घर अफ़सोस करने गया था।

घर की ज़िम्मेवारी बढ़ने से और सर्दी के मौसम की वजह से बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं हो पाई और बच्चे बीमार हो गये।
दो महीने का होने से पहले ही एक बेटे की डेथ हो गई, उस दिन मैं बहुत रोया था।

इस बीच मेरी पत्नी को मेरी रिश्ते की एक बहन ने मेरे और प्रीत के रिश्ते के बारे में बता दिया और मेरे पास संभाली हुई उसकी चिट्ठियाँ भी दिखा दीं।
उससे मेरे जीवन बुरी तरह से ज़हर घुल गया और हमारे पति पत्नी के बीच के रिश्ते कुछ कड़वे हो गये।
इसी बीच मेरी पत्नी अप्रैल 90 में अपने मायके गई वो अभी वहीं पर ही थी कि मेरे बड़े भाई की पानीपत में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
उसके बाद जीवन में बहुत तेज़ी से बहुत सारी नकारात्मक घटनाएँ घटीं और हम जुलाई 1990 में वापस दिल्ली आ गये।
काम का बोझ और अपने जीवन को दोबारा से शुरू करने मे इतना व्यस्त हो गया कि समय का पता ही नहीं चलता था।
22 अक्तूबर 1990 को मेरे घर 2 जुड़वाँ बेटों ने जन्म लिया। पर जीवन इतना व्यस्त हो गया कि चाह कर भी कुछ सोचने का समय नहीं मिल पाता था क्योंकि एक बार उखड़ कर ही दोबारा आदमी को संभलने में बहुत वक्त लगता है पर हम तो 4 साल में दूसरी बार उजड़े थे।

1994 में एक बार मैंने प्रीत को भाभी जी की तरफ से एक चिट्ठी लिखी थी और उसे वो मिल भी गई थी और वो पहचान भी गई थी मेरी लिखाई से, उसने उसका जवाब भी दिया था।

उसके लगभग एक साल बाद यानि की जून 1995 में मैं पंजाब गया था, तो मैं वापस अपने उसी कस्बे में भी गया था मैं मनप्रीत के घर यानि कि उसके मायके में गया था, उसकी माँ मिली थी उन्होने चाय वग़ैरह पिलाई।

जब मैंने पूछा कि ‘दीपो का क्या हाल है?’
तो उन्होने बताया कि उसकी करीब गयारह महीने पहले डेथ हो गई तो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई।
उन्होंने बताया कि उसकी टाँग में दर्द होता था, उसे अमृतसर लेकर गये थे, हस्पताल में भरती भी करा, पर बस 8 दिनों में ही वो गुज़र गई।
‘उसके बच्चे?’ मैंने पूछा।
तो जवाब मिला कि ‘एक तो तभी गुज़र गया था जब उसका ससुर गुज़रा था और दूसरा भी 6 महीने के बाद गुज़र गया था, और तभी से दीपो बीमार रहने लगी थी।’

मैंने कहा- मौसी जी आपने हमें बताया भी नहीं, क्या हम इतने पराए हो गये थे?
‘बेटा दीपो ने ही मना करा था।’ और मरने से पहले वो मुझे सब कुछ बता गई थी।
मैं आगे कुछ भी नहीं बोला, बस उठ कर उनके पैर छुए और वापस चल पड़ा।

वहाँ से अमृतसर तक लौटते हुए मैं जैसे अधमरा हो गया था। अगले तीन दिन तक मुझे बहुत तेज़ बुखार आता रहा, इतना तेज़ कि मेरे ससुराल वाले भी घबरा गये।
पर फिर तीसरे दिन वो मुझे सपने में दिखी और बोली- अमर, तुझे मेरी कसम है अब मेरी फ़िक्र छोड़ दे अब!
यह मैं नहीं जानता कि क्यों पर अगले दिन से मुझे बुखार नहीं आया।
आज उसको गुज़रे हुए भी 20 साल से कुछ ऊपर हो गये हैं पर मुझे अभी भी यही लगता है कि अभी कल की बात है।


आज दीपो हमारे बीच में नहीं है पर मेरी विवाहित ज़िंदगी हमेशा डिस्टर्ब ही रही, काट ली, बस काटी ही। जब पत्नी से भरपूर शारीरिक सुख नहीं मिलता था तो मेरे जीवन में और काफ़ी औरतें आईं पर मैं दीपो को कभी भी भूल ना सका, शायद मरते दम तक भूल भी नहीं पाऊँ।
the end

written by - डा. दलबीर
 
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Hello Everyone :hi: ,
We are Happy to present to you The Exclusive story contest of Lustyweb "The Exclusive Story Contest" (ESC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne ESC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat aka discussion thread toh pehle se he Hindi section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 2000 words and maximum 8000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Lustyweb dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki ESC Ki stories ko pure Lustyweb k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.


Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Lustyweb k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.


Entry thread aaj yaani 5th February ko open hogaya hai matlab aap aaj se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 25 February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.


Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Lweb Staff.
 

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