हमारे क्लास एक होने की वजह से रिंकी के साथ मेरी बात चीत उसके साथ होती थी और प्रिया भी मुझसे बात कर लिया करती थी। प्रिया मुझे भैया कहती थी और रिंकी मुझे नाम से बुलाया करती थी। मैं भी उसे उसके नाम से ही बुलाता था।
हमारे घर की बनावट ऐसी थी कि सबसे नीचे वाले हिस्से में एक हॉल और दो बड़े बड़े कमरे थे। एक कमरा हमारे मम्मी पापा का था और एक कमरा मेहमानों के लिए। ऊपर यानि बीच वाली मंजिल पर भी वैसा ही एक बड़ा सा हॉल और दो कमरे थे जिनमें से एक कमरा मेरा और एक कमरा नेहा दीदी का था। रिंकी से घुल-मिल जाने के कारण वो नेहा दीदी के साथ उनके कमरे में ही सोती थी और मैं अपने कमरे में अकेला सोता था। बाकि लोग यानि सिन्हा अंकल अपनी पत्नी और प्रिया के साथ सबसे ऊपर वाले हिस्से में रहते थे।
उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है दोस्तो, लेकिन मुझे कभी किसी के साथ चुदाई का मौका नहीं मिला था। अपने दोस्तों और इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई इस अदभुत क्रिया जिसे हम शुद्ध भाषा में सम्भोग और चालू भाषा में चुदाई कहते हैं वो कैसे किया जाता है। इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ और ब्लू फिल्में देखना मेरा रोज का काम था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7 इंच के मोटे तगड़े लंड की तेल से मालिश करता। मालिश करते करते मैंने मुठ मारना भी सीख लिया था और मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलता था। अपनी कल्पनाओं में मैं हमेशा अपनी कॉलेज की प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था और अपना लंड हिला-हिला कर अपन पानी गिरा देता था। घर में ऐसा माहौल था कि कभी किसी के साथ कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। बस अपने हाथों ही अपने आप को खुश करता रहता था।
रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ कहो कि मैंने कभी उनको ठीक से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ घूरते हुए पाया था लेकिन बात आई गई हो जाती थी।
जमशेदपुर आये कुछ वक्त हो गया था और मेरी दोस्ती अपनी कॉलोनी के कुछ लड़कों के साथ हो गई थी। उनमें से एक लड़का था पप्पू जो एक अच्छे परिवार से था और पढ़ने लिखने में भी अच्छा था। उससे मेरी दोस्ती थोड़ी ज्यादा हो गई और वो मेरे घर आने जाने लगा। मुझे तो बाद में पता चला कि वो रिंकी के लिए मेरे घर आता जाता था लेकिन उसने कभी मुझसे इस बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया था। वो तो एक दिन मैंने गलती से उन दोनों को शाम को छत पर एक दूसरे की तरफ इशारे करते हुए पाया और तब जाकर मुझे दाल में कुछ काला नज़र आया।
उसी दिन शाम को जब मैं और पप्पू घूमने निकले तो मैंने उससे पूछ ही लिया- क्या बात है बेटा, आजकल तू छत पर कुछ ज्यादा ही घूमने लगा है?
मेरी बात सुनकर पप्पू अचानक चोंक गया और अपनी आँखें नीचे करके इधर उधर देखने लगा। मैं जोर से हंसने लगा और उसकी पीठ पर एक जोर का धौल मारा- साले, तुझे क्या लगा, तू चोरी चोरी अपने मस्ती का इन्तजाम करेगा और मुझे पता भी नहीं चलेगा?
“अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है।” पप्पू मुस्कुराते हुए बोला।
“अबे चूतिये, इसमें डरने की क्या बात है। अगर आग दोनों तरफ लगी है तो हर्ज क्या है?” मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
पप्पू की जान में जान आ गई और वो मुझसे लिपट गया, पप्पू की हालत ऐसी थी जैसे मानो उसे कोई खज़ाना मिल गया हो- यार सोनू, मैं खुद ही तुझे सब कुछ बताने वाला था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि पता नहीं तू क्या समझेगा।
“बात कहाँ तक पहुँची?”
“कुछ नहीं यार, बस अभी तक इशारों इशारों में ही बातें हो रही हैं। आगे कैसे बढ़ूँ समझ में नहीं आ रहा है।”
“हम्म्म्म …, अगर तू चाहे तो मैं तेरी मदद कर सकता हूँ।” मैंने एक मुस्कान के साथ कहा।
“सोनू मेरे यार, अगर तूने ऐसा कर दिया तो मैं तेरा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।” पप्पू मुझसे लिपट कर कहने लगा- यार कुछ कर न !
“अबे गधे, दोस्ती में एहसान नहीं होता। रुक, मुझे कुछ सोचने दे शायद कोई सूरत निकल निकल आये।” इतना कह कर मैं थोड़ी गंभीर मुद्रा में कुछ सोचने लगा और फिर अचानक मैंने उसकी तरफ देखकर मुस्कान दी।
पप्पू ने मेरी आँखों में देखा और उसकी खुद की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।
मैंने पप्पू की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए पूछा- बेटा, मेरे दिमाग में एक प्लान तो है लेकिन थोड़ा खतरा है, अगर तू चाहे तो मेरे कमरे में तुम दोनों को मौका मिल सकता है और तुम अपनी बात आगे बढ़ा सकते हो।
“पर यार तेरे घर पर सबके सामने कैसे मिलेंगे हम?” पप्पू थोड़ा घबराते हुए बोला।
“तू उसकी चिंता मत कर, मैं सब सम्हाल लूंगा ! तू बस कल दोपहर को मेरे घर आ जाना।”
“ठीक है, लेकिन ख्याल रखना कि तू किसी मुसीबत में न पड़ जाये।” पप्पू ने चिंतित होकर कहा।
इतनी सारी बातें करने के बाद हम अपने अपने घर लौट आये। घर आकर मैं अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया।
थोड़ी देर में प्रिया आई और मुझे उठाया- सोनू भैया, चलो माँ बुला रही है खाने के लिए !
मैंने अपनी आँखें खोली और सामने प्रिया को अपने घर के छोटे छोटे कपड़ों में देखकर अचानक से हड़बड़ा गया और फिर से बिस्तर पर गिर पड़ा।