Fantasy तेरी याद साथ है

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मेरा नाम सोनू है, जमशेदपुर में रहता हूँ। जमशेदपुर झारखण्ड का एक खूबसूरत सा शहर जो टाटा स्टील की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है।

वैसे मेरा जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था, मेरे पापा एक सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थे जिसकी वाजह से उनका हर 2-3 साल में तबादला हो जाता था। पापा की नौकरी की वजह से हम कई शहरों में रह चुके थे, उनका आखिरी पड़ाव जमशेदपुर था। हमारे परिवार में कुल 4 लोग हैं, मेरे मम्मी-पापा, मैं और मेरी बड़ी बहन।

जमशेदपुर आने के बाद हमने तय कर लिया कि हम हमेशा के लिए यहीं रहेंगे, यही सोचकर हमने अपना घर खरीद लिया और वहीं रहने लगे। हम सब लोग बहुत खुश थे।

अब जो बात मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो आज से 4 साल पहले की घटना है, जमशेदपुर में आए हुए और अपने नया घर लिए हुए हमें कुछ ही दिन हुए थे कि मेरे पापा का फिर से ट्रान्सफर हो गया, यह हमारे लिए काफी दुखद था क्यूँकि हमने यह उम्मीद नहीं की थी।

अब हमारे लिए मुश्किल आ खड़ी हुई थी कि क्या करें। पापा का जाना भी जरुरी था, हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

फिर हम लोगों ने यह फैसला किया कि मम्मी पापा के साथ उनकी नई जगह पर जाएँगी और हम दोनों भाई बहन जमशेदपुर में ही रहेंगे। लेकिन हमें यूँ अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता था।

हमारी इस परेशानी का कोई हल नहीं मिल रहा था, तभी अचानक पापा के ऑफिस में पापा की जगह ट्रान्सफर हुए सिन्हा जी ने हमें एक उपाय बताया। उपाय यह था कि सिन्हा जी अपने और अपने परिवार के लिए नया घर ढूंढ रहे थे और उन्हें पता चला कि पापा मम्मी के साथ नई जगह पर जा रहे हैं। सिन्हा अंकल ने पापा को एक ऑफर दिया कि अगर हम चाहें तो सिन्हा अंकल अपने परिवार के साथ हमारे घर के ऊपर वाले हिस्से में किरायेदार बन जाएँ और हमारे साथ रहने लगें। हमारा घर तीन मंजिला है और ऊपर का हिस्सा खाली ही पड़ा था।

हम सब को यह उपाय बहुत पसंद आया, इसी बहाने हमारी देखभाल के लिए एक भरा पूरा परिवार हमारे साथ हो जाता और मम्मी पापा आराम से बिना किसी फ़िक्र के जा सकते थे।

तो यह तय हो गया कि सिन्हा अंकल हमारे घर में किरायदार बनेंगे और हमारे साथ ही रहेंगे। सिन्हा अंकल के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनकी दो बेटियाँ थी, बड़ी बेटी का नाम रिंकी और छोटी का नाम प्रिया था। रिंकी मेरी हम उम्र थी और प्रिया तीन साल छोटी थी। रिंकी की उम्र 21 साल थी और प्रिया 18 साल की। आंटी यानि सिन्हा अंकल की पत्नी की उम्र यही करीब 40 के आसपास थी। लेकिन उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वो 30 साल से ज्यादा की हों। उन्होंने अपने आपको बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखा था।

खैर उनकी कहानी बाद में बताऊँगा। यह कहानी मेरी और उनकी दोनों बेटियों की है।

पापा और मम्मी सिन्हा अंकल के हमारे घर में शिफ्ट होने के दो दिन बाद रांची चले गए। अब घर पर रह गए बस मैं और मेरी दीदी। मैंने अपनी दीदी के बारे में तो बताया ही नहीं, मेरी दीदी का नाम नेहा है और उस वक्त उनकी उम्र 23 साल थी। दीदी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और घर पर रह कर सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही थी। उनका रिश्ता भी तय हो चुका था और दिसम्बर में उनकी शादी होनी थी।

रिंकी, और प्रिया ने आते ही दीदी से दोस्ती कर ली थी और उनकी खूब जमने लगी थी, आंटी भी बहुत अच्छी थीं और हमारा बहुत ख्याल रखती थी, यहाँ तक उन्होंने हमें खाना बनाने के लिए भी मना कर दिया था और हम सबका खाना एक ही जगह यानि उनके घर पर ही बनता था।

रांची ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए मम्मी-पापा हर शनिवार को वापस आ जाते और सोमवार को सुबह सुबह फिर से वापस रांची चले जाते। हमारे दिन बहुत मज़े में कट रहे थे। रिंकी ने हमारे घर के पास ही महिला कॉलेज में दाखिला ले लिया था और प्रिया का स्कूल थोड़ा दूर था। मैं और रिंकी एक ही क्लास में थे और हम अपने अपने फ़ाइनल इयर की तैयारी कर रहे थे, हमारे सब्जेक्ट्स भी एक जैसे ही थे।
 
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हमारे क्लास एक होने की वजह से रिंकी के साथ मेरी बात चीत उसके साथ होती थी और प्रिया भी मुझसे बात कर लिया करती थी। प्रिया मुझे भैया कहती थी और रिंकी मुझे नाम से बुलाया करती थी। मैं भी उसे उसके नाम से ही बुलाता था।

हमारे घर की बनावट ऐसी थी कि सबसे नीचे वाले हिस्से में एक हॉल और दो बड़े बड़े कमरे थे। एक कमरा हमारे मम्मी पापा का था और एक कमरा मेहमानों के लिए। ऊपर यानि बीच वाली मंजिल पर भी वैसा ही एक बड़ा सा हॉल और दो कमरे थे जिनमें से एक कमरा मेरा और एक कमरा नेहा दीदी का था। रिंकी से घुल-मिल जाने के कारण वो नेहा दीदी के साथ उनके कमरे में ही सोती थी और मैं अपने कमरे में अकेला सोता था। बाकि लोग यानि सिन्हा अंकल अपनी पत्नी और प्रिया के साथ सबसे ऊपर वाले हिस्से में रहते थे।

उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है दोस्तो, लेकिन मुझे कभी किसी के साथ चुदाई का मौका नहीं मिला था। अपने दोस्तों और इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई इस अदभुत क्रिया जिसे हम शुद्ध भाषा में सम्भोग और चालू भाषा में चुदाई कहते हैं वो कैसे किया जाता है। इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ और ब्लू फिल्में देखना मेरा रोज का काम था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7 इंच के मोटे तगड़े लंड की तेल से मालिश करता। मालिश करते करते मैंने मुठ मारना भी सीख लिया था और मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलता था। अपनी कल्पनाओं में मैं हमेशा अपनी कॉलेज की प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था और अपना लंड हिला-हिला कर अपन पानी गिरा देता था। घर में ऐसा माहौल था कि कभी किसी के साथ कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। बस अपने हाथों ही अपने आप को खुश करता रहता था।

रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ कहो कि मैंने कभी उनको ठीक से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ घूरते हुए पाया था लेकिन बात आई गई हो जाती थी।

जमशेदपुर आये कुछ वक्त हो गया था और मेरी दोस्ती अपनी कॉलोनी के कुछ लड़कों के साथ हो गई थी। उनमें से एक लड़का था पप्पू जो एक अच्छे परिवार से था और पढ़ने लिखने में भी अच्छा था। उससे मेरी दोस्ती थोड़ी ज्यादा हो गई और वो मेरे घर आने जाने लगा। मुझे तो बाद में पता चला कि वो रिंकी के लिए मेरे घर आता जाता था लेकिन उसने कभी मुझसे इस बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया था। वो तो एक दिन मैंने गलती से उन दोनों को शाम को छत पर एक दूसरे की तरफ इशारे करते हुए पाया और तब जाकर मुझे दाल में कुछ काला नज़र आया।

उसी दिन शाम को जब मैं और पप्पू घूमने निकले तो मैंने उससे पूछ ही लिया- क्या बात है बेटा, आजकल तू छत पर कुछ ज्यादा ही घूमने लगा है?

मेरी बात सुनकर पप्पू अचानक चोंक गया और अपनी आँखें नीचे करके इधर उधर देखने लगा। मैं जोर से हंसने लगा और उसकी पीठ पर एक जोर का धौल मारा- साले, तुझे क्या लगा, तू चोरी चोरी अपने मस्ती का इन्तजाम करेगा और मुझे पता भी नहीं चलेगा?

“अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है।” पप्पू मुस्कुराते हुए बोला।

“अबे चूतिये, इसमें डरने की क्या बात है। अगर आग दोनों तरफ लगी है तो हर्ज क्या है?” मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

पप्पू की जान में जान आ गई और वो मुझसे लिपट गया, पप्पू की हालत ऐसी थी जैसे मानो उसे कोई खज़ाना मिल गया हो- यार सोनू, मैं खुद ही तुझे सब कुछ बताने वाला था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि पता नहीं तू क्या समझेगा।

“बात कहाँ तक पहुँची?”

“कुछ नहीं यार, बस अभी तक इशारों इशारों में ही बातें हो रही हैं। आगे कैसे बढ़ूँ समझ में नहीं आ रहा है।”

“हम्म्म्म …, अगर तू चाहे तो मैं तेरी मदद कर सकता हूँ।” मैंने एक मुस्कान के साथ कहा।

“सोनू मेरे यार, अगर तूने ऐसा कर दिया तो मैं तेरा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।” पप्पू मुझसे लिपट कर कहने लगा- यार कुछ कर न !

“अबे गधे, दोस्ती में एहसान नहीं होता। रुक, मुझे कुछ सोचने दे शायद कोई सूरत निकल निकल आये।” इतना कह कर मैं थोड़ी गंभीर मुद्रा में कुछ सोचने लगा और फिर अचानक मैंने उसकी तरफ देखकर मुस्कान दी।

पप्पू ने मेरी आँखों में देखा और उसकी खुद की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।

मैंने पप्पू की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए पूछा- बेटा, मेरे दिमाग में एक प्लान तो है लेकिन थोड़ा खतरा है, अगर तू चाहे तो मेरे कमरे में तुम दोनों को मौका मिल सकता है और तुम अपनी बात आगे बढ़ा सकते हो।

“पर यार तेरे घर पर सबके सामने कैसे मिलेंगे हम?” पप्पू थोड़ा घबराते हुए बोला।

“तू उसकी चिंता मत कर, मैं सब सम्हाल लूंगा ! तू बस कल दोपहर को मेरे घर आ जाना।”

“ठीक है, लेकिन ख्याल रखना कि तू किसी मुसीबत में न पड़ जाये।” पप्पू ने चिंतित होकर कहा।

इतनी सारी बातें करने के बाद हम अपने अपने घर लौट आये। घर आकर मैं अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया।

थोड़ी देर में प्रिया आई और मुझे उठाया- सोनू भैया, चलो माँ बुला रही है खाने के लिए !

मैंने अपनी आँखें खोली और सामने प्रिया को अपने घर के छोटे छोटे कपड़ों में देखकर अचानक से हड़बड़ा गया और फिर से बिस्तर पर गिर पड़ा।
 
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“सम्भल कर भैया, आप तो ऐसे कर रहे हो जैसे कोई भूत देख लिया हो। जल्दी चलो, सब लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं खाने पर !” इतना बोलकर प्रिया दौड़कर वापिस चली गई।

यूँ तो प्रिया को मैं रोज ही देखता था लेकिन आज अचानक मेरी नज़र उसके छोटे छोटे अनारों पर पड़ी और झीने से टॉप के अंदर से मुस्कुराते हुए उसके अनारों को देखकर मैं बेकाबू हो गया और मेरे रामलाल ने सलामी दे दी, यानि मेरा लंड एकदम से खड़ा हो गया।मुझे अजीब सा लगा, लेकिन फिर यह सोचने लगा कि शायद रिंकी और पप्पू के बारे में सोच कर मेरी हालत ऐसी हो रही थी कि मैं प्रिया को देखकर भी उत्तेजित हो रहा था।

खैर, मैंने अपने लंड को अपने हाथ से मसला और उसे शांत रहने को कहा। फिर मैंने हाथ-मुँह धोए और सिन्हा अंकल के घर पहुँच गया यानि ऊपर जहाँ सब लोग खाने की मेज पर मेरा इन्तजार कर रहे थे।

सब लोग बैठे थे और मैं भी जाकर प्रिया की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया, मेरे ठीक सामने वाली कुर्सी पर रिंकी बैठी थी। आज पहली बार मैंने उसे गौर से देखा और उसके बदन का मुआयना करने लगा। उसने लाल रंग का एक पतला सा टॉप पहना था और अपने बालों का जूड़ा बना रखा था। सच कहूँ तो उसकी तरफ देखता ही रहा मैं। उसके सुन्दर से चेहरे से मेरी नज़र ही नहीं हट रही थी। उसकी तनी हुई चूचियों की तरफ जब मेरी नज़र गई तो मेरे गले से खाना नीचे ही नहीं उतर रहा था।

इन सबके बीच मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे दो आँखें मुझे बहुत गौर से घूर रही हैं और यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि मैं क्या और किसे देख रहा हूँ।

मैंने अपनी गर्दन थोड़ी मोड़ी तो देखा कि रिंकी की मम्मी यानी सिन्हा आंटी मुझे घूर रही थीं।

मैंने अपनी गर्दन नीचे की और चुपचाप खाकर नीचे चला आया।

मैंने अपने कपड़े बदले और एक छोटा सा पैंट पहन लिया जिसके नीचे कुछ भी नहीं था। मैं अपना दरवाज़ा बंद ही कर रहा था कि फिर से प्रिया अपने हाथों में एक बर्तन लेकर आई- सोनू भैया, यह लो मम्मी ने आपके लिए मिठाई भेजी है।

मैं सोच में पड़ गया कि आज अचानक आंटी ने मुझे मिठाई क्यूँ भेजी। खैर मैंने प्रिया के हाथों से मिठाई ले ली और अपने कंप्यूटर टेबल पर बैठ गया। मेरे दिमाग में अभी तक उथल पुथल चल रही थी। कभी प्रिया की छोटी छोटी चूचियाँ तो कभी रिंकी की बड़ी और गोलगोल चूचियाँ मेरी आँखों के सामने घूम रही थी। मैंने कंप्यूटर चालू किया और इन्टरनेट पर एक पोर्न साईट खोलकर देखने लगा।

अचानक मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कोई मेरे पीछे आकार खड़ा हो गया। मेरी तो जान ही सूख गई, ये सिन्हा आंटी थीं। मैंने झट से अपना मॉनीटर बंद कर दिया। आंटी ने मेरी तरफ देखा और अपने चेहरे पर ऐसे भाव ले आई जैसे उन्होंने मेरा बहुत बड़ा अपराध पकड़ लिया हो। मेरी तो गर्दन ही नीचे हो गई और मैं पसीने से नहा गया।

आंटी ने कुछ कहा नहीं और मिठाई की खाली प्लेट लेकर चली गईं।

मेरी तो गांड ही फट गई, मैं चुपचाप उठा और अपने बिस्तर पर जाकर सो गया। सुबह जब मुझे नाश्ते के लिए बुलाया गया तो मैंने कह दिया कि मेरा मन नहीं है। मैं ऐसे ही बिस्तर पर पड़ा था।

थोड़ी देर में मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरे कमरे में आया है, मैंने उठकर देखा तो सिन्हा आंटी अपने हाथों में खाने का बर्तन लेकर आई थीं। उन्हें देखकर मेरी फिर से फट गई और मैं सोचने लगा कि आज तो पक्का डांट पड़ेगी।

मैं चुपचाप अपने बिस्तर पर कोहनियों के सहारे बैठ गया। आंटी आईं और मेरे सर पर अपना हाथ रखकर बुखार चेक करने लगी- बुखार तो नहीं है, फिर तुम खा क्यूँ नहीं रहे हो। चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ और नाश्ता कर लो।

आंटी का बर्ताव बिल्कुल सामान्य था, लेकिन मेरे मन में तो उथल पुथल थी। मैंने अचानक से आंटी का हाथ पकड़ा और उनकी तरफ विनती भरी नजरों से देखकर कहा,”आंटी, मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। आप गुस्सा तो नहीं हो न। मैं वादा करता हूँ कि दुबारा ऐसा नहीं होगा।” मैंने अपने सूरत ऐसी बना ली जैसे अभी रो पड़ूँगा।
 
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आंटी ने मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ा और मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखें कुछ अजीब लग रही थीं लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं था। आंटी ने मेरे माथे पर एक बार चूमा और कहा,“ मैं तुमसे नाराज़ या गुस्से में नहीं हूँ लेकिन अगर तुमने नाश्ता नहीं किया तो मैं सच में नाराज़ हो जाऊँगी।”

मेरे लिए यह विश्वास से परे था, मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। लेकिन जो भी हुआ उससे मेरे अंदर का डर जाता रहा और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। पता नहीं मुझे क्या हुआ और मैंने आंटी के गाल पर एक चुम्मी दे दी और भाग कर बाथरूम में चला गया। मैं फ्रेश होकर बाहर आया, तब तक आंटी जा चुकी थीं। मैंने फटाफट अपना नाश्ता खत्म किया और बिल्कुल तरोताज़ा हो गया।

अचानक मुझे पप्पू और रिंकी की मुलाकात की बात याद आ गई, मैंने पप्पू को कह तो दिया था कि मैं इन्तजाम कर लूँगा लेकिन अब मुझे सच में कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा था।

तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंधी और मुझे एक ख्याल आया। मैंने फिर से अपने आप को अपने बिस्तर पर गिरा लिया और अपने इन्सटिट्यूट में भी फोन करके कह दिया कि मैं आज नहीं आ सकता।

मैं वापस बिस्तर पर इस तरह गिर गया जैसे मुझे बहुत तकलीफ हो रही हो।

थोड़ी ही देर में मेरी बहन मेरे कमरे में आई मेरा हाल चाल जानने के लिए। उसने मुझे बिस्तर पर देखा तो घबरा गई और पूछने लगी कि मुझे क्या हुआ।

मैंने बहाना बना दिया कि मेरे सर में बहुत दर्द है इसलिए मैं आराम करना चाहता हूँ।

दीदी मेरी हालत देखकर थोड़ा परेशान हो गई। असल में आज मुझे दीदी को शॉपिंग के लिए लेकर जाना था लेकिन अब शायद उनका यह प्रोग्राम खराब होने वाला था। दीदी मेरे कमरे से निकल कर सीधे आंटी के पास गई और उनको मेरे बारे में बताया। आंटी और सारे लोग मेरे कमरे में आ गए और ऐसे करने लगे जैसे मुझे कोई बहुत बड़ी तकलीफ हो रही हो।

उन लोगों का प्यार देखकर मुझे अपने झूठ बोलने पर बुरा भी लग रहा था लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था। दीदी को उदास देखकर आंटी ने उसे हौंसला दिया और कहा कि सब ठीक हो जायेगा, तुम चिंता मत करो।

दीदी ने उन्हें बताया कि आज उनको मेरे साथ शोपिंग के लिए जाना था लेकिन अब वो नहीं जा सकेगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और मांगने लगा कि आंटी दीदी के साथ शोपिंग के लिए चली जाये।
 
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भगवान ने मेरी सुन ली। आंटी ने दीदी को कहा कि उन्हें भी कुछ खरीदारी करनी है तो वो साथ में चलेंगी।

अब दीदी और मेरे दोनों के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। दीदी क्यूँ खुश थी ये तो आप समझ ही सकते हैं लेकिन मैं सबसे ज्यादा खुश था क्यूंकि दीदी और आंटी के जाने से घर में सिर्फ मैं और रिंकी ही बचते। प्रिया तो स्कूल जा चुकी थी।

करीब एक घंटे के बाद दीदी और आंटी शोपिंग के लिए निकल गईं। जाते जाते आंटी ने रिंकी को मेरा ख्याल रखने के लिए कह दिया। रिंकी ने भी कहा कि वो नहा कर नीचे ही आ जायेगी और अगर मुझे कुछ जरुरत हुई तो वो ख्याल रखेगी।

मैं खुश हो गया और पप्पू को फोन करके सारी बात बता दी। दीदी और आंटी को गए हुए आधा घंटा हुआ था कि पप्पू मेरे घर आ गया और हम दोनों ने एक दूसरे को देखकर आँख मारी।

“सोनू मेरे भाई, तेरा यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगा। अगर कभी मौका मिला तो मैं तेरे लिए अपने जान भी दे दूँगा।” पप्पू बहुत भावुक हो गया।

“अबे यार, मैंने पहले भी कहा था न कि दोस्ती में एहसान नहीं होता। और रही बात आगे कि तो ऐसे कई मौके आयेंगे जब तुझे मेरी हेल्प करनी पड़ेगी।” मैंने मुस्कुरा कर कहा।

“तू जो कहे मेरे भाई !” पप्पू ने उछल कर कहा।

हम बैठ कर इधर उधर की बातें करने लगे, तभी हम दोनों को किसी के सीढ़ियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी। हम समझ गए कि यह रिंकी ही है। मैं जल्दी से वापस बिस्तर पर लेट गया और पप्पू मेरे बिस्तर के पास कुर्सी लेकर बैठ गया।

रिंकी अचानक कमरे में घुसी और वहाँ पप्पू को देखकर चौंक गई। वो अभी अभी नहाकर आई थी और उसके बाल भीगे हुए थे। रिंकी के बाल बहुत लंबे थे और लंबे बालों वाली लड़कियाँ और औरतें मुझे हमेशा से आकर्षित करती हैं। उसने एक झीना सा टॉप पहन रखा था जिसके अंदर से उसकी काली ब्रा नज़र आ रही थी जिनमें उसने अपने गोल और उन्नत उभारों को छुपा रखा था।

मेरी नज़र तो वहीं टिक सी गई थी लेकिन फिर मुझे पप्पू के होने का एहसास हुआ और मैंने अपनी नज़रें उसके उभारों से हटा दी।

रिंकी थोड़ा सामान्य होकर मेरे पास पहुँची और मेरे माथे पर अपना हाथ रखा और मेरी तबीयत देखने लगी। उसके नर्म और मुलायम हाथ जब मेरे माथे पर आये तो मैं सच में गर्म हो गया और उसके बदन से आ रही खुशबू ने मुझे मदहोश कर दिया था।

अगर थोड़ा देर और उसका हाथ मेरे सर पर होता तो सच में मैं कुछ कर बैठता। मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दिया और उसे बैठने को कहा।

रिंकी ने एक कुर्सी खींची और मेरे सिरहाने बैठ गई। पप्पू ठीक मेरे सामने था और रिंकी मेरे पीछे इसलिए मैं उसे देख नहीं पा रहा था। मैंने ध्यान से पप्पू की आँखों में देखा और यह पाया कि उसकी आँखें चमक रही थीं और वो अंकों ही आँखों में इशारे कर रहा था, शायद रिंकी भी उसकी तरफ इशारे कर रही थी। पप्पू बीच बीच में मुझे देख कर मुस्कुरा भी रहा था और तभी मैंने उसकी आँखों में एक आग्रह देखा जैसे वो मुझसे यह कह रहा हो कि हमें अकेला छोड़ दो।
 
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उसकी तड़प मैं समझ सकता था, मैंने अपने बिस्तर से उठने की कोशिश की तो पप्पू भाग कर मेरे पास आया और मुझे सहारा देने लगा। हम दोनों ही बढ़िया एक्टिंग कर रहे थे।

मैंने धीरे से अपने पाँव बिस्तर से नीचे किये और उठ कर बाथरूम की तरफ चल पड़ा,“तुम लोग बैठ कर बातें करो, मैं अभी आता हूँ।” इतना कह कर मैं अपने बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा और धीरे से पलट कर पप्पू को आँख मारी।

पप्पू ने एक कातिल मुस्कान के साथ मुझे वापस आँख मारी। मैं बाथरूम में घुस गया और उन दोनों को मौका दे दिया अकेले रहने का।

मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और कमोड पर बैठ गया। पाँच मिनट ही हुए थे कि मुझे रिंकी की सिसकारी सुनाई दी। मेरा दिमाग झन्ना उठा। मैं जल्दी से बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा और दरवाजे के छेद से कमरे में देखने की कोशिश करने लगा।

“हे भगवान !!” मेरे मुँह से निकल पड़ा। मैंने जब ठीक से अपनी आँखें कमरे में दौड़ाई तो मेरे होश उड़ गए। पप्पू ने रिंकी को अपनी बाहों में भर रखा था और दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे जैसे बरसों के बिछड़े हुए प्रेमी मिले हों।

मेरी आँखे फटी रह गईं। मैंने चुपचाप अपना कार्यक्रम जारी रखा और उन दोनो ने अपना।

पप्पू ने रिंकी को अपने आगोश में बिल्कुल जकड़ लिया था। उन दोनों के बीच से हवा के गुजरने की भी जगह नहीं बची थी। रिंकी की पीठ मेरी तरफ थी और पप्पू उसके सामने की तरफ। दोनों एक दूसरे के बदन को अपने अपने हाथों से सहला रहे थे।

तभी दोनों धीरे धीरे बिस्तर की तरफ बढ़े और एक दूसरे की बाहों में ही बिस्तर पर लेट गए। दोनों एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे।

उनके बिस्तर पर जाने से मुझे देखने में आसानी हो गई थी क्यूंकि बिस्तर ठीक मेरे बाथरूम के सामने था।

पप्पू ने धीरे धीरे रिंकी के सर पर हाथ फेरा और उसके लंबे लंबे बालों को उसके गर्दन से हटाया और उसके गर्दन के पिछले हिस्से पर चूमने लगा। रिंकी की हालत खराब हो रही थी, इसका पता उसके पैरों को देख कर लगा, उसके पैर उत्तेजना में इधर उधर हो रहे थे। रिंकी अपने हाथों से पप्पू के बालों में उँगलियाँ फिरने लगी। पप्पू धीरे धीरे उसके गले पर चूमते हुए गर्दन के नीचे बढ़ने लगा। मज़े वो दोनों ले रहे थे और यहाँ मेरा हाल बुरा था। उन दोनों की रासलीला देख देख कर मेरा हाथ न जाने कब मेरे पैंट के ऊपर से मेरे लण्ड पर चला गया पता ही नहीं चला। मेरे लंड ने सलामी दे दी थी और इतना अकड़ गया था मानो अभी बाहर आ जायेगा।

मैंने उसे सहलाना शुरू कर दिया।

उधर पप्पू और रिंकी अपने काम में लगे हुए थे। पप्पू का हाथ अब नीचे की तरफ बढ़ने लगा था और रिंकी के झीने से टॉप के ऊपर उसके गोल बड़ी बड़ी चूचियों तक पहुँच गया। जैसे ही पप्पू ने अपनी हथेली उसकी चूचियों पर रखा, रिंकी में मुँह से एक जोर की सिसकारी निकली और उसने झट से पप्पू का हाथ पकड़ लिया।

दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और फ़ुसफ़ुसा कर कुछ बातें की। दोनों अचानक उठ गए और अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ गए।

मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि अचानक उन दोनों ने सब रोक क्यों दिया। कितनी अच्छी फिल्म चल रही थी और मेरा माल भी निकलने वाला था।

“खड़े लण्ड पर धोखा !” मेरे मुँह से निकल पड़ा।
 

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