Erotica वो कौन थी ??? - दाग्रेटवॉरियर

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🎖Yash🎖

UPDATE -1

यह उस समय की बात है जब मैं इंटर फर्स्ट एअर का एग्ज़ॅम दे चुका था और अभी सेकेंड एअर के लिए कॉलेजस नही खुले थे. मेरे डॅड जो एक लीगल प्रॅक्टिशनर ( वकील ) हैं उन्हों ने हमारे घर के ऊपेर के हिस्से मे एक पोल्ट्री फार्म बनाने का निर्णय लिया. पहले मैं आपको अपने घर के बारे मे

बता दू. हमारा घर बोहोत ही बड़ा है. 2 माले की पुरानी हवेली टाइप जिसके कमरे भी बोहोत बड़े बड़े हैं और बोहोत सारे हैं. घर का आँगन भी बोहोत बड़ा है जहाँ गर्मिओ के मौसम मे शाम को पानी का छिड़काव करके बैठ ते हैं. आँगन मे नीम के पेड़ भी हैं जिनसे ठंडी हवा भी आती रहती है. घर बड़ा है तो घर की छतें ( रूफ ) भी बोहोत ही ऊँची ऊँची हैं. वही एक पोर्षन मे पोल्ट्री फार्म का सोचा मेरे डॅडी ने छत पर एक टेंपोररी शेड डलवा दिया चारों तरफ से जाली लगा दी गई और उसके फ्लोर पे धान की लियरिंग भी करवा दी गई. पोल्ट्री का एक छोटा सा फार्म तो रेडी हो गया अब लाना था तो बॅस चिकन को. यह पोल्ट्री फार्म बिज़्नेस के लिए नही खोला गया था बस घर के लिए और आस पड़ोस के लोगो को फ्री मे एग्स देने के लिए बनाया गया था.

डॅडी को उनके किसी दोस्त ने किसी गाँव का पता बताया के वाहा अछी चिकन मिल जयगी. वो गाँव मेरे शहेर से बोहोत ज़ियादा दूर तो नही था पर हा ट्रेन से सफ़र कर ने के लिए पहले कुछ डिफरेंट डाइरेक्षन मे जाना पड़ता था फिर वाहा से दूसरी ट्रेन पकड़ के उस गाँव के करीब वाले रेलवे स्टेशन तक जाना पड़ता था उसके बाद शाएद 30 से 45 मिनिट का रास्ता बैल गाड़ी ( बुलक कार्ट ) मे तय करना पड़ता था. उस गाओं मे मेरे डॅडी का एक क्लाइंट भी रहता था जो गाँव का मुखिया भी था तो उस ने मेरे डॅडी से कहा के आप किसी को भेज दीजिए मैं सारा इंतज़ाम कर दूँगा और पोल्ट्री को भी डाइरेक्ट आपके शहेर के लिए लॉरी मे बुक कर दूँगा.

मैं ने सिर्फ़ गाँव का नाम ही सुना था और कभी ट्रेन या बस से सफ़र करते हुए विलेजस को दूर से ही देखा था पर सही मानो मैं विलेज लाइफ से वाकिफ़ नही था और ऐसे मौके को हाथ से जाने भी नही देना चाहता था. सोचा के एक साथ ट्रेन और बैल गाड़ी का सफ़र !!! मज़ा आ जाएगा मैं बोहोत एग्ज़ाइटेड हो गया था.

डॅडी से बोला तो उन्हो ने भी सोचा के चलो कॉलेज की भी छुट्टियाँ है तुम ही चले जाओ. मेरी समझ मे चिकन की सेलेक्षन क्या आनी थी वो तो बॅस नॉमिनल ही जाना था और अंदाज़े से कुछ पेमेंट करना था बाकी पेमेंट तो चिकेन्स के आने के बाद ही करनी थी. 300 चिकेंस का ऑर्डर करना था. यह कोई बिज़्नेस के लिए नही था बॅस ऐसे ही शौकिया तौर पे रखना था ता के घर के लोग और खानदान के लोग इस्तेमाल कर सके और पास पड़ोस मे बाँट सके.

सुबह सुबह सफ़र शुरू हो गया. ट्रेन से पहले तो गुंटकाल जंक्षन तक चला गया वाहा से ट्रेन दूसरी चेंज कर के उस गाँव के पास वेल स्टेशन का टिकेट ले लिया ( अब तो उस गाँव का नाम भी याद नही ). गुंटकाल से मीटर गेज ट्रेन मे जाना था. मीटर गेज ट्रेन छोटी ट्रेन होती है. उसके डिब्बे भी छोटे होते हैं. और डिब्बे के बीच मे रास्ता भी छोटा सा ही होता है. यूँ समझ ले के आज कल जैसे ट्रेन्स हैं वो ब्रॉड गेज ट्रेन्स हैं. मीटर गेज उसकी तकरीब 3/4थ होती थी. ( अब तो खैर मीटर गेज ट्रेन्स बंद हो चुकी हैं पर तब चला करती थी लैकिन सिर्फ़ रिमोट टाइप के इंटीरियर विलेजस को करीब के शहेर तक कनेक्ट करने के लिए ही चला करती थी ). खैर मीटर गेज ट्रेन मे सफ़र करने का और देखने का पहला मौका था. ट्रेन चल पड़ी तो एक अजीब सा एहसास हुआ थोडा मज़ा भी आया एक नये सफ़र का. वो ट्रेन बोहोत हिल रही थी जैसे कोई झूला झूला रहा हो. दिन का समय होने के बावजूद ट्रेन के झूला झुलाने से नींद आ रही थी.

दिन के तकरीबन 11 बजे के करीब उस गाओं के करीब वाले स्टेशन पे ट्रेन पहुँची तो मेरे डॅडी के उस क्लाइंट का बेटा जिसका नाम लक्ष्मण था वो बैल गाड़ी लिए स्टेशन पे मेरा इंतेज़ार कर रहा था. लक्ष्मण के साथ उसके गाँव तक एक घंटे मे पहुँच गये. खेतों मे से बैल गाड़ी गुज़र रही थी तो बोहोत अछा लग रहा था. खेतों मे उगी हुई फसल ( पता नही कौनसी थी ) उसकी एक अनोखी सी खुसबू मंन को बोहोत भा रही थी. बैल गाड़ी मे सफ़र करने का अपना ही मज़ा है. एक तरफ बैठो तो एक ही झटके मे दूसरे तरफ हो जाते हैं. हिलते झूलते गाओं को पोहोन्च गये.

लक्ष्मण के घर मे खाना खाया. यह टिपिकल सफ़र की वजह से जो घर से खा के निकला था वो सब हजम हो गया था और पेट पूरा खाली हो गया था. बोहोत ज़ोर की भूक लगी थी. लक्ष्मण की मा ने बोहोत अछा और मज़े दार खाना बनाया था बोहोत जम्म के खाया. खाने के बाद एक बड़ा सा ग्लास लस्सी का पिलाया गया तो तबीयत मस्त हो गई. अब तो मंन कर रहा था के थोड़ा रेस्ट होना चाहिए बॅस यह सोच ही रहा था के लक्ष्मण के पिताजी जिनका नाम विजय आनंद था. .

वो गाओं के मुखिया भी थे. गाओं वाले सब उनको इज़्ज़त से लालजी कह कर बुलाते थे. लाला जी ने मुझ से कहा बेटा थोड़ा सा आराम कर लो थोड़ी ही देर

मे चलते है तुम चिकेन्स देख लेना. मैं तो लेट ते ही सो गया तो शाएद 2 घंटे के बाद आँख खुली.

शाम के ऑलमोस्ट 3 बजे हम राजू के फार्म पे पहुचे. राजू के पास ही चिकेन्स का ऑर्डर देना था. राजू का फार्म लालजी के घर से ज़ियादा दूर नही था. हम चलते चलते ही पोहोन्च गये. देखा तो वाहा पे छोटी छोटी मुर्गियाँ ( चिकेन्स ) थी. मेरी समझ मे नही आया. मैं तो समझ रहा था के बड़ी बड़ी पर्चेस करना है लैकिन यहा तो छोटी छोटी मुर्घियाँ थी.
राजू ने बतया के इतनी छोटी ही पर्चेस की जाती है और फिर उनको खिला पीला के बड़ा किया जाता है और फिर वो अंडे ( एग्स ) देने लगती है और जब अंडे देना बंद कर देती हैं तो उनको बेच दिया जाता है या काट के खा लिया जाता है और फिर से छोटे छोटे बचे पाले जाते हैं.... खैर थोड़ी ही देर मे यह काम भी हो गया. राजू ने कहा के वो उसको बम्बू के टुकड़ों के एस्पेशली बने हुए केज मे पॅक कर के ट्रांसपोर्ट मे डाल देगा.

वापस लालजी के साथ उनके घर चले गये. शाम हो गई थी बाहर ही बैठ के चाइ पी.

वहाँ बाहर खुली हवा मे बैठना बोहोत अछा लग रहा था और अब ठंडी ठंडी हवा चलना शुरू हो गई थी जो अपने साथ खेतों की मस्तानी सी सुगंध ला रही थी. हमेशा सुनते आए थे के गाओं मे जल्दी शाम और जल्दी रात हो जाती है जो सच मे वाहा देखने को मिला. शाम के 5 या 5:30 हो रहे होंगे लैकिन ऐसे लग रहा था जैसे पता नही कितनी रात हो गई. ट्रेन का टाइम 7 बजे का था और फिर एक घंटे का रास्ता स्टेशन तक का था तो लालजी ने बैल गाड़ी का इंतेज़ाम कर के मुझे स्टेशन भेज दिया.

मैं स्टेशन पहुचा तो मेरे सिवा और कोई नही था. स्टेशन की कोई बिल्डिंग जैसी नही थी. बॅस एक छोटा सा रूम था जितने हमारे घरों मे बातरूम्स होते हैं ऑलमोस्ट उसी साइज़ का था. देखने गया के वो क्या है तो पता चला के वो टिकेट काउंटर है जिस्मै कोई भी नही है एक आदमी के बैठने की जगह है और एक चेर पड़ी हुई है. बैल गाड़ी मुझे स्टेशन पे छोड़ के चली गई कियों के उसको वापस गाओं जाना था. मैं स्टेशन पे अकेला रह गया. प्लॅटफॉर्म बोहोत बड़ा तो नही था लैकिन बोहोत छोटा भी नही था लंबा ही लंबा था बॅस.

मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था के इतने बड़े अंधेरे प्लॅटफॉर्म पे मैं अकेला हू. किस्मत से ट्रेन भी आने का नाम नही ले रही थी. थोड़ी ही देर मे अंधेरा छाने लगा और स्टेशन पे कोई लाइट का इंतेज़ाम भी नही था और किस्मेत से रात भी अंधेरी थी शाएद अमावस की रात थी चाँद बिल्कुल भी नही था. बॅस दूर से

ही किसी झोपडे से दिए की रोशनी आ जाती तो आ जाती और अब तो मुझे यह भी समझ मे नही आ रहा था के ट्रेन किस तरफ से आएगी. थोड़ी ही देर मे मुझे एक और आदमी नज़र आया तो मैं उस के पास गया तो पता चला के वो टिकेट काउंटर क्लर्क है. मैं ने टिकेट पर्चेस किया और उस से पूछा के गुंटकाल जंक्षन जाने वाली ट्रेन किस तरफ से आएगी तो उस ने एक डाइरेक्षन बता दी के इधर से आएगी. अब मैं उस डाइरेक्षन से ट्रेन के आने का इंतेज़ार करने लगा.

ट्रेन 7 बजे नही बलके ऑलमोस्ट 8 बजे के करीब आई. देखा तो बॅस एंजिन मे ही लाइट थी बाकी सारे डिब्बे अंधेरे मे डूबे हुए थे. किसी भी डिब्बे मे लाइट नही थी. लगता था अंधेरी ट्रेन है. नॉर्मली जैसे ट्रेन स्टेशन पे रुकती है तो चाइ पानी वालो की आवाज़ें या पॅसेंजर का उतरना चढ़ना लगा रहता है वैसा कुछ नही था. सामने डिब्बा आया मैं उस मे ही चढ़ के अंदर घुस्स गया. . अंधेरा डिब्बा खेत मे काम करने वाले मज़दूरों से खचा खच भरा हुआ था. बड़ी मुश्किल से उस का दरवाज़ा खोला और मैं अंदर घुस गया. अंधेरे डिब्बे मे जब आँखें अड्जस्ट हुई तो और डिब्बे के अंदर देखा तो पता चला के डिब्बे के सारे फ्लोर पे खेतों मे काम करने वाले मज़दूर सो रहे हैं. कोई बैठे बैठे ही सो रहा है कोई छोटी सी जगह मे पैर मोड़ के लेट के सो गया है. बड़ी मुश्किल से खड़े रहने की जगह मिली वो भी दरवाज़ा बंद करने के बाद वही की जो जगह होती है वोही मिली बस. हर तरफ लोग बैठे सो रहे थे और इतनी जगह भी नही थी के मैं दोनो पैर एक साथ रख के खड़ा रहूं तो मुझे ऐसी जगह मिली जहा कोई ऑलरेडी बैठा हुआ था तो मैं ऐसे खड़ा हुआ के मेरा एक पैर उसके एक तरफ और दूसरा पैर उसके दूसरे तरफ था मानो के जैसे वो मेरी टाँगों के बीच बैठा सो रहा हो मेरा मूह दरवाज़े की तरफ था और मैं बाहर की तरफ देख रहा था बाहर भी अंधेरा छाया हुआ था और एक अजीब सा साइलेन्स था स्टेशन पे और डिब्बे मे से मज़दूरों के सोने की गहरी गहरी साँसें सुनाई दे रही थी.

ट्रेन 2 – 4 मिनिट मे ही धीमी रफ़्तार से चल पड़ी. बाहर ठंडी हवा चल रही थी और ट्रेन के चलने से कुछ ज़ियादा ही महसूस हो रही थी और ट्रेन के हिलने झूलने से और सारा दिन काम करने से थक कर लोग और मस्त हो के गहरी नींद सो रहे थे जैसे उनको ट्रेन मे ही सोते रहना है सुबह तक. ट्रेन के अंधेरे मे यह भी पता नही चल रहा था के बैठे लोगो मे कौन मर्द है और कौन औरत है.

बाहर की ठंडी हवा मुझे बोहोत अछी लग रही थी बदन मे एक मस्ती की सरसराहट हो रही थी. मैं दोपेहेर मे सो गया था इसी लिए मुझे नींद नही आ रही थी और इस पोज़िशन मे सोना भी मुश्किल था. मैं खिड़की से बाहर देख रहा था. मेरे टाँगों के बीच जो भी बैठा था उसका हेड का पोर्षन मेरे जाँघो के करीब लग रहा था और जब ट्रेन झटका खाती तो उसका हेड भी मेरी जाँघो से टकराता तो लंड मे भी एक मस्ती आ रही थी और मेरा लंड धीरे धीरे उठने लगा था.
थोड़ी ही देर मे मुझे महसूस हुआ के मेरे लंड पे किसी का हाथ लगा. पहले तो मैं यह समझा के जो भी नीचे बैठा है उसने अपने सर को खुज़ाया होगा और इसी लिए उसका हाथ बाइ मिस्टेक मेरे लंड पे लगा होगा. पर अब कुछ नही हो सकता था इस बात का लंड को तो पता नही होता ना लंड तो बस इतना जानता है के किसी ने उसको नींद से जगाया है और फिर मेरा लंड एक ही सेकेंड मे बल खा के सीधा खड़ा हो गया. पॅंट के अंदर अंडरवेर भी नही पहना था इसी लिए अंदर ही मेरे पॅंट की ज़िप से रगड़ रा था और बाहर निकलने को मचल रहा था. 2 मिनिट के अंदर ही वो हाथ फिर से ऊपेर आया और मेरे लंड पे रुक गया. मैं ने सोचा के देखते है यह हाथ क्या करवाई करता है मैं अंजान ही बना रहा. वो हाथ अब मेरे लंड को धीरे से पॅंट के ऊपेर से ही सहला रहा रहा था मसाज जैसे कर रहा था. मेरा और मेरे लंड का मस्ती के मारे बुरा हाल था. हाथ छोटा ही था तो ऐसा गेस हुआ के किसी लड़की का हाथ है और लड़की भी ज़ियादा बड़ी नही है.

अब वो हाथ मेरे लंड को अछी तरह से दबा रहा था मैं अंजान ही बना रहा. उस हाथ ने मेरे जीन्स की चैन खोली और पिंजरे मे बंद शेर को आज़ाद कर दिया. ठंडी हवा का झोका तने हुए लंड से लगते ही वो और जोश मे आ गया और हिलने लगा. उस ने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. मेरे लंड मे से प्री कम निकल रहा था. मेरा बॅस नही चल रहा था के वो जो भी हो उसको नीचे लिटा के चोद डालूं. थोड़ी देर तक दबाने के बाद वो अपनी जगह पे खड़ी हो गयी और मेरे हाथ पकड़ के अपने सीने पे रखा तो पता चला कि वो कोई लड़की थी और उसने नीचे बैठे ही बैठे अपने ब्लाउस के सामने के पूरे बटन्स खोल दिए हैं. खेतों के मज़दूर लोग तो अंदर ब्रस्सिएर वाघहैरा नही पेहेन्ते इसी लिए मेरा हाथ डाइरेक्ट उसके नंगी चूचियो पे लगा और मैं उसको पकड़ के दबाने लगा.

आअह क्या मस्त और वंडरफुल छातियाँ थी उस लड़की की कि क्या बताऊं. छोटी छोटी चुचियाँ पूरे हाथ मे समा गयी थी शाएद 28 या 30 का साइज़ होगा.

सख़्त चुचिओ को मैं दबा रहा था. उसके पास से पसीने की स्मेल भी आ रही थी पर अब वो स्मेल मुझे क्रिस्चियन डियार के महनगे पर्फ्यूम से भी ज़ियादा अछी लग रही थी.

उसकी हाइट मुझे से कम थी. मेरे चेस्ट तक की हाइट होगी उसकी. उसका हाथ मेरे लंड से कंटिन्यू खेल रहा था मुझे बोहोत ही मज़ा आ रहा था. ट्रेन के धक्को से कभी मैं सामने को खिसक जाता तो मेरा तना हुआ लंड उसके खुले ब्लाउस से उसके बदन से लग जाता तो और ज़ियादा मज़ा आता. मुझे उसका फेस बिल्कुल भी नज़र नही आ रहा था. ट्रेन मे तो अंधेरा था ही बाहर भी अंधेरा ही था. और ट्रेन भी धीमी गति से चल रही थी.

मैं अब थोड़ा और बोल्ड हो गया और उसकी जाँघो को तलाश करते करते उसकी चूत पे हाथ रख दिया और उसकी चूत को मसल ने लगा. उसने मीडियम साइज़ की स्कर्ट पहनी हुई थी जो उसके घुटने तक आती थी. थोड़ा सा झुक के उसके स्कर्ट के ऊपेर से ही उसकी चूत का मसाज करने लगा. मेरा हाथ उसकी चूत पे लगते ही पहले तो उसने अपनी टाँगो को खोल दिया और फिर उसने अपने चूतड़ उठा के मेरे हाथ पे अपनी चूत घिसना शुरू किया. अब मैं हाथ से आहिस्ता आहिस्ता उसके स्कर्ट को उठा के उसकी चूत पे डाइरेक्ट हाथ रख दिया. अफ मुझे लगा जैसे कोई गरम भट्टी मे मेरा हाथ लगा हो उतनी गरम चूत थी उसकी जैसे चूत मैं आग लगी हो. पॅंटी तो शाएद खेतों मे काम करने वाले पेहेन्ते ही नही. उसकी चूत पे हल्की हल्की और सिल्की सॉफ्ट जैसी झांतें भी उगी हुई थी ऐसा लगता था के अभी नई नई झातें आना शुरू हुई हैं. चूत के लिप्स के बीचे मे उंगली डाला तो पता चला के वो तो बे इंतेहा गीली हो चुकी है पता नही कब से मुझे देख रही थी और अंदर ही अंदर गरम हो रही थी.
एक हाथ से उसकी चूत को मसल रहा था दूसरे हाथ से एक ब्रेस्ट को दबा रहा था और दूसरे ब्रेस्ट को चूस रहा था और उसका हाथ मेरे लोहे जैसे सख़्त लंड को पकड़े हुए था. लंड पकड़ के किसी एक्सपर्ट की तरह आगे पीछे कर रही थी और साथ मे दबा भी रही थी. उसकी बिल्ट बोहोत बड़ी नही थी उसके फिगर को देखते हुए लगता था के शाएद 14 या 15 साल की लड़की होगी. बूब्स भी बोहोत ज़ियादा बड़े नही थे पर थे बड़े सख़्त. मीडियम साइज़ के सेब जितना साइज़ होगा. दबाने मे और चूसने मे बोहोत मज़ा आ रहा था. अब और ज़ियादा सबर करना मुश्किल हो रहा था तो मैं ने उसकी गंद को दोनो हाथो से पकड़ के मसलना शुरू किया और उसकी गंद पकड़ के उसको उठा लिया. मेरे उठा ते ही उसने इमीडीयेट्ली अपनी टाँगें मेरे कमर पे लपेट ली. उसकी गंद को मैं ने डोर की खुली खिड़की से टीका दिया. मेरा लंड अकड़ के मेरे पेट से टीका के ऑलमोस्ट 45 डिग्रीस का आंगल बना रहा था ऊपेर को उठ गया था जोश मे और हिल रहा था.

मैं एक स्टेप और आगे हो गया और उसकी खुली स्कर्ट मे से उसकी चूत पे लंड को टीका दिया. चूत तो बोहोत ही गीली हो गई थी मेरे लंड मे से निकलता हुआ प्री कम उसकी गीली चूत को और ज़ियादा गीला और स्लिपरी बना रहा था. मैं अपनी गंद को धक्का देके लंड उसकी चूत मे घुसेड़ना शुरू किया तो वो चूत के लिप्स के बीच मे से स्लिप हो के उसकी क्लाइटॉरिस से टकराया तो उसके मूह से एक सिसकारी निकल गई. ऐसे ही एक बार फिर से ट्राइ किया, लंड तो ऊपेर को उठा हुआ था इसी लिए एक बार फिर स्लिप हो गया तो उसने अपने हाथ मे मेरा लंड पकड़ के अपने चूत के खुले लिप्स के अंदर से चूत के होल से सटा दिया और चूत मे मेरे लंड को घिसने लगी आअहह बोहोत मज़ा आ रहा था. मैं उसके बूब्स को चूस रहा था और वो मेरा लंड पकड़े अपनी गीली गीली गरम चूत मे घिस्स रही थी.

क्रमशः.......................
 
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Sakshi ji , thoda es story k baare mai bataiye taaki mai es dhuned saku
Horror story h strting me dikhta h ki jungle k bich se ek road jti h wha se jo bhi gadi jti h uska accident ho jta h aur log mar jte h koi kuch pta nhi lga pata ki ye kse ho rha wha k police wle pta krne ki kosis krte h aur uski beti bhi, phr usi raste se ek gadi jti h pr uska accident nhi hota kyuki usme us admi k sth bcha bhi hota h to pta chlta h wo chudail bche ko nhi mrti, wo police wle ki beti aur uska bf pta krte h to unhe us jungle k bich ek haweli milti h wha ek aadmi milta h wo phr back story btata h ki jo chudail rhti h wo dr rhti h aur uske ppa uske bdy pr ye haweli gft diye the to usko hospital me ek patient se pyr ho jta h wo thida middle clss wle hote h pr phr bhi dono ki shdi ho jti h pr us aadmi ka bhai aur uski maa harami hote h jo us ldki se chidte h, uske pti ko bhdkate h aur jadu tona krke usko was me kr lete h (gudiya me) aur uska devar uske sth phycl hota h uski sri property apne nm kr lete h aur uske khilaf sabut bna k uske pati ko dikhate h wo bhi apne ghr wlo pr bhrosa kr keta h usko pta nhi hota ki uski ptni ko bas me kiye h aur phr usko mar dalte h, bd me wo aatma bn k apni saas devar sbko mar deti h pati ko chor deti h aur roj usko satati h wo pagal khne me hota h aur uska beta kisi relative k sth rhta, to phr wo police wle ki beti aur uska bf us chudail k bete ko leke us haweli me jte h aur uski aatma ko azad krte h
 

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