दृश्य-1
रीतिका खन्ना..... एक जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार। आज उनके घर के बाहर भारी संख्या में लोग एकत्रित हुए थे। मीडियाकर्मी का जमवाड़ा लगा हुआ था वहाँ पर। तभी पुलिस और एंबुलेंस का तेज सायरन सुनकर भीड़ तितर-बितर हो उन्हें आगे जाने का रास्ता देती है। पुलिसवाले गाड़ी से धड़धड़ाते हुए नीचे उतरते हैं और साथ में ही डॉक्टर के साथ स्वास्थ्यकर्मी भी एंबुलेंस से नीचे उतरते हैं।
जैसे ही पुलिस कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी अपनी गाड़ी से नीचे उतरते हैं। मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ ने उन्हें घेर लिया।
सर. क्या आप बता सकते हैं कि रीतिका खन्ना की हत्या में किसका हाथ हो सकता है। एक पत्रकार ने अग्नेय त्रिपाठी से पूछा।
अग्नेय त्रिपाठी ने एक विशेष अदाज में अपने सिर को जुंबिश दी और मुँह में भरे पान को जमीन पर थूकते हुए कहा।
देखिए हम तो अभी अभी यहाँ पर आएँ हैं। आप सब तो हमसे पहले ही यहाँ पर मौजूद हैं। तो आपसब ही हमें ये बताइए कि रीतिका खन्ना की हत्या में किसका हाथ है।
कमिश्नर त्रिपाठी की बात सुनकर सभी पत्रकार एक दूसरे को देखने लगे। तभी एक दूसरे पत्रकार ने कहा।
सर, हत्यारे का पता लगाना तो पुलिस का काम है। हमारा काम हो सच्चाई को जनता तक पहुँचाना।
तो हमें अभी अपनी छानबीन करने दीजिए आप। अभी तो हम नहीं बता सकते कि इसमें किसका हाथ है लेकिन इतना विश्वास जरूर दिलाते हैं कि बहुत ही जल्द हत्यारा हमारी गिरफ्त में होगा। तो कृपा करके आप लोग मुझे अंदर जाने दीजिए।
इतना कहकर कमिश्नर त्रिपाठी ने एक बार फिर थूका और वारदात की जगह चले गए जहाँ पर रीतिका खन्ना की लाश सोफे पर पड़ी हुई थी।
बाहर एक रिपोर्टर दूसरे रिपोर्टर से- पता नहीं कैसा आदमी है ये। इसे कमिश्नर किसने बना दिया। इसे देखकर तो शहंशाह फिल्म के अमिताभ बच्चन के किरदार की याद आती है।
सही कहा तुमने। पता नहीं ये कमिश्नर जैसे उच्च पद पर कैसे पहुँच गया जबकि ये उसके योग्य ही नहीं। दूसरे पत्रकार ने कहा।
नहीं दोस्त तुम लोग गलत समझ रहे हो। ये इनका छद्मरूप है। इनके काम करने के अलग तरीके के कारण ही इन्हें कमिश्नर बनाया गया है। इनके पान खाने और बात करने के अंदाज पर मत जाओ बल्कि इनके काम करने के तौर तरीके पर जाओ। अगर इन्हें रीतिका हत्याकांड का केस सौंपा गया है तो कोई बात तो जरूर होगी। देखना ये कितनी जल्दी और समझदारी से इस केस को सुलझाते हैं। एक अन्य पत्रकार ने उन्हें समझाया।
अंदर कमिश्नर त्रिपाठी लाश के चारों ओर घूम रहे थे। उनकी आँखें किसी गिद्ध की मानिंद अपने शिकार की तलाश कर रही थी। उन्होंने लाश का बारीकी से मुआयना किया। माथे के आर-पार हो चुकी गोली के अलावा लाश के शरीर पर चोट का कोई निशान न था।
तभी उनकी आँखें एक जगह अटक गई। लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने जाँच के लिए भेजे गए क्राइम विभाग के दोनों अफसरों चैतन्य और आदित्य ठकराल को जल्दी से लाख का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेजने को कहा और रसोईघर की तरफ चले गए। फ्रिज से पानी पीने के बाद वो बाहर चले गए। उनकी आँखों में अजीब तरह की चमक थी।
अब तक घर के बाहर प्रवेश निषिद्ध के फीते लग चुके थे। कुछ देर बाद चैतन्य और आदित्य भी बाहर आ गए।
यार चैतन्य हमने इतने सारे केस हल किए हैं। तुम्हें नहीं लगता कि ये केस कुछ हटके हैं। गाड़ी चलाते हुए आदित्य ने कहा।
मैं भी यही सोच रहा हूँ कि जिसने भी ये हत्या ही होगी वो रीतिका खन्ना का करीबी रहा होगा। वरना इतने कारगर तरीके से हत्या को अंजाम नहीं दिया जा सकता था। न ही कातिल ने कोई सबूत छोड़ा है न ही फिंगरप्रिंट न ही कोई अन्य निशान। ऊपर से गोली भी आरपार हो कर गायब हो गई। चैतन्य ने गंभीरता से कहा।
भाई दुनिया में आजतक कोई अपराधी पैदा नहीं हुआ है जो सबूत न छोड़ा हो। बस हमें थोड़ी बारीकी से जाँच करनी होगी। आदित्य ने चैतन्य से कहा।
लेकिन एक बात मुझे अभी भी समझ में नहीं आई। चैतन्य ने गाड़ी एक कैफे के सामने रोकते हुए कहा।
कौन सी बात। दोनों कैफे में जाकर बैठ गए और कॉपी का ऑर्डर देने के बाद सिगरेट का कश लगाते हुए आदित्य ने कहा।
यही कि रीतिका के पास अकूत संपत्ति के साथ ऐशोआराम के सारे साधन मौजूद थे फिर उसने किसी से रुपए उधार क्यों लिया था। चैतन्य ने कहा।
क्या। ये तुम्हें किसने बताया। आदित्य ने चौकते हुए कहा।
यार मैं भी तेरी तरह ही क्राइम विभाग के स्पेशल इनवेस्टीगेशन विंग का अधिकारी हूँ। चैतन्य ने कॉफी के बाद धुएँ का छल्ला बनाते हुए कहा।
तुम्हें कैसे पता चला। आदित्य ने हैरान परेशान होते हुए कहा।
तुम्हें इतना हैरान परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मुझे सुबूत ढूँढते हुए कूड़ेदान में कुछ कागज मिले थे जिसमें कुछ लिखा तो नहीं था, लेकिन जब मैंने उसे लाल रोशनी में स्कैन किया तो उन पर डॉलर का चिह्न मिला। तभी मैं समझ गया कि भारत में रहकर रीतिका का रुपयों के बजाय डॉलर से संबंध होना किसी गहरी साजिश का हिस्सा है। मैं वो कागज अपने साथ में लाया हूँ। ले तू भी देख। चैतन्य ने आदित्य को कागज पकड़ाते हुए कहा।
आदित्य ने कागज को उलट पुलट कर देखा फिर उसने लाइटर जलाकर कागज के नीचे किया तो उसे भी चैतन्य का शक सही प्रतीत हुआ क्योंकि डॉलर के चिह्न के नीचे कुछ रकम लिखी हुई थी, लेकिन रीतिका ने ये रकम किसी को दी थी या किसी से उधार ली थी ये कहना मुश्किल था।
क्या हुआ आदित्य। कुछ समझ में आया कि ये डॉलर वाली पहेली क्या है। चैतन्य ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा।
आदित्य की आँखें अभी भी कागज को ही देख रही थी। डॉलर चिह्न के पहले तीन अंकों की संख्या लिखी थी और उसके पहले किसका नाम लिखा था ये समझ में नहीं आ रहा था। चैतन्य की बात सुनकर आदित्य ने कहा।
नहीं भाई। इसे लैब भेजना पड़ेगा जाँच के लिए। आदित्य ने कागज वापस चैतन्य को देते हुए कहा।
तो चलो लैब ही चलते हैं।
इतना कहकर चैतन्य आदित्य के साथ जैसे ही उठा उसी समय एक शख्स, जिसके काले रंग की लंबी ओवरकोट और लाल रंग की टोपी पहन रखी थी सामने आया और वह कागज का टुकड़ा चैतन्य के हाथ से झपटकर भागने लगा। जब तक ये दोनों कुछ समझ पाते तब तक वो शख्स एक गली में दाखिल हो चुका था। पीछे पीछे आदित्य भी उस गली में पहुँचा, लेकिन तब तक वह शख्स गायब हो चुका था।
तभी वहाँ से सायरन बजाती हुई पुलिस की कई गाड़ियाँ गुजरी। जिसमें कमिश्नर त्रिपाठी की भी गाड़ी थी। आदित्य को देखकर कमिश्नर ने गाड़ी पीछे लेते हुए कहा।
क्या हुआ ऑफीसर्स। यहाँ क्या कर रहे हो आप।
कुछ नहीं सर एक चोर मेरी कुछ चीजें लेकर भागा था। उसी के पीछे पीछे मैं यहाँ आया था, लेकिन वो कम्बख्त पता नहीं कहाँ गायब हो गया। आदित्य ने कहा।
अगर आप कहें तो मैं कुछ पुलिसवालों को आपकी मदद के लिए भेज दूँ। कमिश्नर त्रिपाठी ने कहा।
नहीं सर आप कष्ट न करें। आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा तब तक चैतन्य भी वहाँ पर आ गया। उसके आते ही आदित्य से पूछा।
वह आदमी कहाँ गया आदित्य।
पता नहीं कहाँ गायब हो गया। लगता है हमें खाली हाथ लौटना पड़ेगा। चलो घर चलते हैं। देर हो रही है फिर हमें ऑफिस भी पहुँचना है। आदित्य के इतना कहने के बाद दोनो गाड़ी पर बैठे और चले गए। कमिश्नर त्रिपाठी भी नहाँ से चले गए।
दृश्य- 2
एक बहुत बड़ा सा हॉल। हॉल के बीचों बीच एक गोलाकार मेज और उसके चारो तरफ लगी कुर्सियों पर दो लोग बैठे हुए थे। एक लंबे शख्स ने गिलास में शराब डालते हुए कहा।
बाल बाल बच गए सर आज तो वरना ये क्राइम विभाग वाले तो पीछे ही पड़ गए थे।
बात तो तुम्हारी सही है। ये क्राइम ब्रांच वाले आजकल कुछ ज्यादा ही तेजी दिखा रहे हैं। आज अगर वो कागज उनके हाथ लग जाता और फोरेंसिक लैब चला जाता तो मेरे ऊपर शक उटना लाजिमी भी था। वो तो ठीक समय पर पता चल गया और मैंने तुम्हें भेज दिया वरना मेरे साथ साथ तुम भी सलाखों के पीछे होते। दूसरे शख्स ने शराब की बोतल उठाते हुए कहा।
इसीलिए कहता हूँ सर कि कोई भी सबूत किसी भी कीमत पर मत छोड़ो। आज हमलोग फँसते फँसते बचे हैं। माफ करना सर, परंतु इस कागज के टुकड़े में ऐसा क्या है जो मुझे इसे अपनी जान हथेली पर रखकर क्राइम ब्रांच वालों से छीनकर लाना पड़ा। पहले शख्स ने कहा।
तुम लोग अभी चैतन्य और आदित्य को जानते नहीं हो। वे बेस्ट ऑफिसर्स हैं क्राइम डिपार्टमेंट के। जब भी कोई जटिल केस सामने आता है विभाग उन्ही को चुनता है उसे सुलझाने के लिए। विशेष रूप से उस चैतन्य को।
वह बहुत साहसी और कुशाग्र बुद्धि वाला प्राणी है। तुम्ही दिमाग लगाओ कि चैतन्य की नजर कूड़ेदान में कैसे गई। और तो और कूड़ेदान के इतने कागजों में उसकी नजर इसी कागज पर कैसे पड़ी होगी। दूसरे व्यक्ति ने खाली गिलास मेज पर रखते हुए कहा।
ये तो सोचने वाली बात है। मेरा ध्यान ही इस बात पर नहीं गया। पहले शख्स ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा।
अगर तुम्हारी बुद्धि इतनी ही तेज होती तो तुम चैतन्य नहीं बन जाते। ये देखो। इतना कहकर दूसरे शख्स ने एक हाथ से उस कागज के टुकड़े को खोला और दूसरे हाथ से लाइटर जलाते हुए कहा।
अरे बाप रे बाप। ये तो मैने सोचा ही नहीं था।
उस कागज में डॉलर का निशान साफ दिखाई पड़ रहा था, लेकिन उसके पहले का अंक साफ नहीं था हालांकि दो शून्य जरूर दिख रहे थे।
सर मुझे लगता है कि उन्हें पता नहीं चला होगा कि कितनी रकम लिखी गई है। पहले व्यक्ति ने शराब का गिलास मुँह में लगाते हुए कहा।
मैंने कहा न कि अभी तुम उन दोनों को नहीं जानते। तुम सोच रहे हो कि इस कागज के टुकड़े को उनसे छीनकर तुमने बहुत बड़ा तीर मार लिया है, लेकिन तुम्हें इसकी भनक भी नहीं कि दोनों ने तुम्हें बेवकूफ बनाया। और तुम आसानी से बन भी गए। दूसरे शख्स ने सर्द लहजे में कहा।
ये क्या कह रहे हैं आप सर, लेकिन कैसे। पहले शख्स ने कहा।
वो ऐसे कि क्या तुम्हें लगता है कि तुम उनसे कोई चीज छीनकर सुरक्षित भाग सकते हो। बिना किसी व्यवधान के तुम यहाँ तक पहुँच सकते हो। क्या तुम ये सोच रहे हो कि तुम उन दोनो से ज्यादा चालाक हो। तुम उनसे ज्यादा तेज भाग सकते हो और वो तुम्हें भागने देंगे। इन सारे सवालों का जवाब है नहीं। दूसरे शख्स ने सिगरेट का कश लेते हुए आगे कहा।
तुम गलत कागज का टुकड़ा लेकर आए हो। क्योंकि जिस पैड से वो टुकड़ा फाड़ा गया था वह ये नहीं है। अर्थात् उन्होंने जानबूझकर ये टुकड़ा छिन जाने दिया। अब तुम यहाँ से जल्दी से निकलो मैं भी कुछ देर में आता हूँ।
जी सर। ये कहते हुए पहले शख्स ने अपने काले कोट को उतारकर आलमारी में रखा और वहाँ से निकल गया। दूसरा व्यक्ति कुर्सी पर बैठ गया और सिगरेट का कश लेते हुए अपना दिमाग चलाने लगा।
दृश्य-3
क्राइम विभाग का कार्यालय। सभी कर्मचारी और अधिकारी अपने अपने काम में व्यस्त थे। आदित्य अपनी कुरसी पर बैठा लैपटॉप में कुछ देख रहा था।
क्या देख रहे हो आदित्य। चैतन्य मूँगफली चबाते हुए उसके केबिन में आते हुए बोला।
कुछ नहीं यार एक फिल्म देख रहा हूँ। घर में देख नहीं पाता हूँ तो सोचा यहीं पर देख लूँ। आदित्य ने लैपटॉप से नजरें हटाकर चैतन्य को देखते हुए कहा।
अच्छा में भी तो देखूँ कि कौन सी फिल्म देख रहे हो। इतना कहकर जैसे ही चैतन्य ने लैपटॉप सरकाया। आदित्य ने झट से उसके हाथ से मूँगफली छीन ली और आराम से छीलकर खाने लगा।
अरे ये क्या कर रहे हो। मेरी मूँगफली क्यों छीन ली तुमने। चैतन्य ने कहा।
तो क्या तुम ही खा सकते है।
आदित्य ने जब ये कहा तो चैतन्य ने उसे घूरकर देखा और अचानक मुस्कुराते हुए लैपटॉप में देखने लगा। दरअसल आदित्य कोई फिल्म नहीं बल्कि आगे की योजना का खाका तैयार कर रहा था।
यार आदित्य। मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है कि ये आखिर किस तरह की पहेली है जो इस डायरी में बनाई गई है। ये कहते हुए चैतन्य ने अपने जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और टेबल पर ऱख दी। फिर आदित्य ने अपनी जेब से कागज का असली टुकड़ा निकाला जिसको छीनने का प्रयास काले कोट वाले ने किया था। फिर डायरी के उस फटे हुए पेज से मिलाया और जोड़कर आगे पीछे देखने लगा, लेकिन वो टुकड़ा डायरी का था नही नहीं।
डायरी के एक पेज पर एक पहेली लिखी हुई थी।
हर घर में हम रहते हैं। लड़ते झगड़ते रहते हैं।
हमपे कहावत बनती है। दादी बाबा कहते हैं।
आखिर ये किसने लिखी होगी और इसका अर्थ क्या निकलता है। चैतन्य की नजरें सोंच वाली मुद्रा में सिकुड़ती चली गई। उधर आदित्य अभी भी मूँगफली खाने में व्यस्त था। चैतन्य ने एक घूसा आदित्य को मारा तो वह गिरते गिरते बचा।
अब मैंने क्या किया है जो मुझे मार रहे हो। आदित्य ने ये कहकर मूँगफली के दाने जमीन से उठाकर साफ करके मुँह में डाल लिया। उसे प्रेम से चबाया और बोला।
देखो भाई मेरा साफ-साफ मानना है कि रीतिका खन्ना की मौत की वजह उसकी अकूत संपत्ति ही रही होगी। किसी अपने ने ही उसकी सम्पत्ति के लिए उसकी हत्या की होगी।
अब तुम ये कोई नई बात नहीं बता रहे हो। इतना तो सभी जानते हैं कि रीतिका खन्ना की मौत की वजह उसकी संपत्ति है। पर हत्या किसने की है प्रश्न ये है। लेकिन पहले इस पहेली को सुलझाना आवश्यक है। चैतन्य ने गंभीर होते हुए फिर वहीं से आरंभ किया जहाँ से छोड़ा था।
तो चलो इस पहेली को सुलझाते हैं।
हाँ तो पहली पंक्ति है।
हर घर में हम रहते हैं। लड़ते झगड़ते रहते हैं।
इसका कुछ भी मतलब हो सकता है।
दूसरी पंक्ति है।
हमपे कहावत बनती है। दादी बाबा कहते हैं।
दूसरी पंक्ति में कहावत का जिक्र है।
अगर दोनों पंक्तियों को साथ में जोड़कर देखें तो चूहा बिल्ली हो सकता है। क्योंकि ये हर घर में रहते हैं और इन्हीं पर कहावत कही गई है।
अर्थात् चूहा बिल्ली।
लेकिन संकेत अक्सर अंग्रजी में ही होते हैं। इसलिए इसका मतलब हो सकता है।
RAT CAT
आखिर हत्यारे ने ऐसा क्यों लिखा। कहीं उसने कोडवर्ड में हमें चुनौती तो नहीं दी है। आदित्य ने पहेली को अपने हिसाब से सुलझाने के बाद कहा।
लग तो यही रहा है। पर शायद वह ये नहीं जानता कि उसने किसे चुनौती दी है। आदित्य और चैतन्य को। वह चाहे पाताल में छुपे या लाख कोशिश कर ले लेकिन हमसे नहीं बच सकता। चैतन्य ने सर्द लहजे में कहा।
तो अब हमें क्या करना चाहिए। आदित्य ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा।
तुम्हीं बताओ हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए। चैतन्य ने आदित्य से सबाल पर ही सवाल कर दिया।
मेरे हिसाब से हमें एक बार फिर से रीतिका खन्ना के घर जाकर कत्ल की जगह को ठीक से और दोबारा बारीकी से जाँच करनी चाहिए।
हम्म्म्म्म। आदित्य के जवाब पर चैतन्य ने बस इतना ही कहा और सिगरेट का कश लेने लगा।
दृश्य-4
जूतों की आवाज से कई कुत्ते एक साथ भौंकने लगे। अंधेरे में दो शख्स धीरे-धीरे चारो तरफ नजर दौड़ाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर बाद कुत्तों का भौंकना भी बंद हो गया। दोनो शख्स चोर नजरों से इधर-उधर देखते हुए रीतिका खन्ना के घर के पिछले हिस्से में पहुँच गए। जहाँ पर एक छोटे से गेट पर लगे ताले को चारों तरफ पुलिस ने कपड़ा बाँधकर सील लगा दिया था।
दोनों ने चारदीवारी फाँदी और दबे पाँव अंदर दाखिल हो गए। एक कमरे की खिड़की में लगी चौकोर काँच के टुकड़े को हटाया और खिड़की की सिटकनी खोल कमरे में दाखिल हो गए और धीरे-धीरे उस उस कमरे में पहुँचने की कोशिश करने लगे जहाँ पर रीतिका खन्ना की हत्या हुई थी।
उनके आने से पहले ही वहाँ पर दो लोग मौजूद थे। दोनों ने हाथों में टार्च ले रखी थी और बड़ी ही तेजी से कमरे में रखी आलमारी को खंगाल रहे थे। आखिर कौन थे वो।
तभी दोनों की नजर दरवाजे पर पड़ी जहाँ से अभी अभी दो परछाई दिखी थी उन्हें। दोनों शख्स यह देखकर चौंक गए। दोनों में से एक ने अपनी टार्च की रोशनी बुझाई और धीरे धीरे दरवाजे की तरफ खिसकने लगा। दोनों व्यक्तियों के चेहरे पर पसीने की बूँदे नजर आने लगी। पहले व्यक्ति दरवाजे की ओट से बाहर की ओर झाँका जहाँ पर उसे परछाई दिखी थी।
उस व्यक्ति ने दरवाजे की ओट से टार्च अचानक से जलाई जिससे बाहर वाले कमरे में तेज रोशनी फैल गई। उसने टार्च की रोशनी में कमरे में चारों तरफ देखा लेकिन उसे कोई नजर नहीं आया। फिर वह कमरे में वापस आया और दूसरे व्यक्ति के कान में फुसफुसाते हुए बोला।
लगता है कोई चोर था जो हमें देखकर भाग गया।
बेवकूफ कहीं के। कोई चोर यहाँ पर कैसे आ सकता है। चारों तरफ से पुलिस का पहरा है। कोई चोर यहाँ पर घुसने की सोच भी नहीं सकता है। जरूर कोई दूसरा व्यक्ति भी यहाँ है जो हमसे ज्यादा चालाक और तेज है। दूसरे व्यक्ति ने धीरे से कहा।
तभी दूसरे कमरे में कुछ आहट सुनाई दी। दूसरे शख्स ने देखने की सोची की बाहर कौन हो सकता है। ये सोचकर उसने टॉर्च बंद की और दरवाजे को पास पहुँचकर दरवाजे से बाहर की तरफ झाँकने लगा।
जब उसे बाहर कोई नजर नहीं आया तो वो कमरे से बाहर निकल गया। बेहद सतर्कता के साथ आगे बढ़ते हुए वो सोफे तक पहुँचा ही था कि आदित्य ने पीछे से उसके ऊपर छलांग लगा दी और उसे दबोच लिया। उसकी गर्दन और मुँह अब आदित्य के कब्जे में थी।
कौन हो तुम। आदित्य की कैद में छटपटाते हुए पहले व्यक्ति ने कहा।
पहले तुम बताओ कि तुम कौन हो। आदित्य ने अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए दूसरे व्यक्ति से पूछा।
आदित्य को अब तक एहसास हो रहा था कि जिस शख्स को उसने पकड़ा है वो शारीरिक रूप से और शारीरिक बल में उसके किसी भी मामले में कम नहीं है। इसलिए आदित्य जितनी अपनी पकड़ मजबूत करने को कोशिश करता। दूसरा व्यक्ति अपनी पूरी ताकत से आदित्य की पकड़ से छूटने की कोशिश करता। जिसके कारण आदित्य की पकड़ उसपर कमजोर पड़ती जा रही थी।
तभी उस व्यक्ति के टॉर्च के पिछले हिस्से से आदित्य के माथे पर भरपूर वार किया। दर्द के कारण आदित्य की पकड़ ढीली पड़ी तो उस शख्स ने अपने आपको आजाद करते हुए टॉर्च की रोशनी पकड़ने वाले के चेहरे पर डाली तो वह चौंक गया।
उसने झट से टॉर्च बुझाई और लगभग दौड़ते हुए उस कमरे में चला गया और अपने साथी को कुछ इशारा किया। उसी रास्ते बाहर निकल गए जिस रास्ते से वो अंदर आए थे। आदित्य भी उन्हें पकड़ने के लिए उनके पीछे भागा, लेकिन तब तक वो दोनों भाग चुके थे।
आदित्य के सिर से खून निकल रहा था। साथ में दर्द भी हो रहा था। उसने दर्द के कारण अपना सिर पकड़ा हुआ था। आदित्य जो कुछ तलाश कर रहा था वो अभी तक उसे नहीं मिला। अचानक उसकी नजर एक चीज पर पड़ी जो भाग चुके शख्स की जेब से गिरी थी। आदित्य ने वो चीज उठाई और अपनी जेब में रख ली।
फिर वो उस कमरे में आया जहाँ पर रीतिका खन्ना की हत्या हुई थी। तभी उस कमरे में चैतन्य एक लैपटॉप के साथ प्रवेश करते हुए बोला।
क्या हुआ आदित्य, तुम्हारे सिर पर ये चोट कैसी।
कुछ नहीं यार। अँधेरे में दरवाजे से टकरा गया था, लेकिन तुम कहाँ रह गए थे। बड़ी देर लगा दी तुमने। आदित्य ने बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए लैपटॉप उसके हाथ से लेते हुए कहा।
मैं तो रीतिका खन्ना के कार्यालय में चला गया था। जहाँ से बड़ी मशक्कत के बाद मुझे उसका व्यक्तिगत लैपटॉप मिला है। इसमें हमें कई महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। अब हमें यहाँ से निकलना चाहिए ताकि बाहर पहरा दे रहे पुलिसवालों को कोई शक न हो की अंदर कोई है। चैतन्य ने कहा।
फिर दोनों जिस रास्ते से आए थे। उसी रास्ते से बाहर चले गए। वो दोनों पुलिस की नजर में नहीं आना चाहते थे लेकिन आवारा कुत्तों को कौन समझाए। उनके भौंकने से पुलिस वालों का ध्यान उनकी तरफ चला गया।
वो देखो, पिछली गली से कोई भाग रहा है। पकड़ो उन्हें। इस आवाज के साथ ही पुलिस की गाड़ी का सायरन बजने लगा। वहाँ अफरा-तफरी मच गई। दोनों ने और तेज दोड़ लगाई और दूर खड़ी कार में जाकर बैठ गए।
सर क्या आपने दो लोगों को इधर से भागते हुए देखा है। क्राइम विभाग की गाड़ी देखकर एक पुलिस कर्मी रुका और ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए चैतन्य से पूछा।
हाँ। अभी अभी दो लोग उधर भागते हुए गए हैं। चैतन्य ने उन्हें उँगली से इशारा करते हुए कहा।
सारे पुलिसवाले उसी दिशा में निकल गए। चैतन्य को लग रहा था कि उसने झूठ बोलकर अपने आपको बचाया है, लेकिन चैतन्य को ये नहीं पता था कि रीतिका खन्ना के घर से जो दो शख्स भागे थे वो उसी तरफ गए थे। जिनमें से एक के साथ आदित्य की झड़प हुई थी और उसी झड़प में आदित्य के सिर पर चोट लगी थी, परंतु ये समझ से परे था कि आदित्य ये बात चैतन्य से क्यों छिपा रहा था।
दृश्य-5
क्राइम विभाग की फोरेंसिक लेबोरेटरी। आदित्य और चैतन्य अपने केबिन में बैठकर रीतिका खन्ना का लैपटॉप खंगालने में लगे थे। वो रैट कैट के बारे में जानकारी जुटाना चाहते थे। वो रीतिका खन्ना की अकूत सम्पत्ति का सारा ब्यौरा जानना चाहते थे। वो ये जानना चाहते थे कि रीतिका खन्ना के बिजनेस में उसका साझीदार कौन-कौन था। वो सिर्फ भारत से ही थे या फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी थे। जिनके साथ रीतिका खन्ना का व्यापारिक रिश्ता था।
लगभग चार घंटे के अथक प्रयास और एक्सपर्ट टेक्नीशियन की मदद से जो जानकारी सामने आई वो सचमुच में बहुत चौकाने वाली थी।
अरे बाप रे बाप। ये तो किसी अतंर्राष्ट्रीय रैकेट का हिस्सा जान पड़ता है। सामने से तो पता ही नहीं चलता था कि ये इतने बड़े कारोबार की मालकिन है। आदित्य ने आश्चर्य जताते हुए कहा।
उसकी आँखों में एक अनजाना सा खौफ़ नजर आ रहा था। दरअसल लैपटॉप में कुछ ऐसी जानकारी भी थी कि वो पुलिसवाला होकर भी डर रहा था।
लैपटॉप से जो बातें खुलकर सामने आई वो इस प्रकार थी।
रीतिका खन्ना ने सबसे पहले अपना कैरियर बिजनेस में आजमाया, चूंकि उसके पापा खुद एक सफल व्यवसायी थे तो वो अपने पापा के काम में हाथ बँटाती थी। धीरे-धीरे उसने एक लड़के से दोस्ती कर ली जो उसके कॉलेज का सहपाठी हुआ करता था।
नाम था सुयस।
सुयस ने बिजनेस में अभी नया नया कदम रखा था। उसने अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए रीतिका का सहारा लिया। चूँकि रीतिका के पापा बड़े बिजनेसमैंन थे तो सुयस के बिजनेस में हुए घाटे की भरपाई करना रीतिका के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। इस तरह सुयस अपने बिजनेस में तरक्की करता चला गया और रीतिका उसके प्यार में पागल होती चली गई।
लेकिन कुछ दिन बाद सुयस ने अपना नाता रीतिका से तोड़ लिया और अपना बिजनेस समेटकर कहीं दूर चला गया। सुयस के प्यार में पागल रीतिका ये सदमा सह न सकी और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
कुछ दिन तक रीतिका अवसाद से ग्रस्त रही। उसके पापा ने उसे सहारा दिया, लेकिन अब रीतिका का मन बिजनेस में नही लगा। उसने इस फील्ड को छोड़कर किसी अन्य फील्ड में नाम कमाने का सोचा। पढ़ी लिखी तो थी ही वो तो उसने पत्रकारिता का रास्ता अपनाया।
कुछ सालों की कड़ी मेहनत के बल पर वह एक जानी-मानी पत्रकार बन गई।
लेकिन उसका इस तरह से अचानक कत्ल हो जाना संदेह पैदा करता था। ऊपर से कातिल का इस तरह चुनौती देना वो भी डायरी के माध्यम से रैट कैट जैसे शब्द का इस्तेमाल करना।
इसका जवाब ढूँढना बहुत जरूरी था।
क्या हुआ चैतन्य। आदित्य ने गंभीर होते हुए कहा। अब हमें क्या करना चाहिए।
कुछ नहीं। अब कातिल को पकड़ने के लिए इस रैट कैट शब्द का पोस्टमार्टम करना ही पड़ेगा।
मतलब। चैतन्य की बात सुनकर आदित्य ने कहा।
मतलब कि अब एक एक अक्षर को जोड़-तोड़ कर इस चुनौती को स्वीकार करना होगा और हमें कातिल तक पहुँचना होगा। चैतन्य ने सुर्ख लहजे में कहा।
मतलब अब होगी लड़ाई RAT CAT की। आदित्य ने बात पूरी की।
लगता तो ऐसे ही है। कहता हुआ चैतन्य ने एक रहस्यमयी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरी जो आदित्य देख नहीं पाया।
तो शुरू करते हैं फिर। आदित्य ने कहा।
फिर चैतन्य ने डायरी से एक पन्ना फाड़ा और कागज पर लिखा।
RAT CAT
R से रीतिका.. नहीं हो सकता क्या। आदित्य ने सवालिया नजरों से चैतन्य की तरफ देखा।
आगे बताओ। चैतन्य ने मुस्कुराते हुए कहा तो आदित्य सकपका गया।
दोनों काफी देर सोचते रहे पर कोई हल न निकला। दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई। आदित्य ने घर के लिए विदा ली। वह रीतिका खन्ना के घर की तरफ जा रहा था। उसके दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था। जितनी जल्दी हो सके वह घर पहुँच जाना चाहता था।
अचानक से उसे कुछ याद आया और उसने तेजी से अपनी गाड़ी यूँ टर्न लेकर कार्यालय की तरफ मोड़ दी। कार्यालय परिसर में पहुँचकर उसने देखा कि चैतन्य गाड़ी निकाल रहा है। आदित्य को देखते ही वो बोल पड़ा- क्या हुआ आदित्य तुम उलटे पाँव वापस क्यों लौट आए।
तुम ऊपर चलो बताता हूँ। आदित्य ने बदहवासी से कहा।
क्या हुआ।
कुछ नहीं। मुझे कुछ याद आ गया है। ऊपर पहुँचकर आदित्य ने रीतिका की डायरी फिर से खोली और बोला।
हमने शायद ठीक से पढ़ा नहीं। आदित्य ने एक-एक शब्द चबाते हुए बोला। उसने इस पहेली का हल स्वयं दे दिया है। ये देखो।
इस तरह आदित्य ने डायरी के एक कोने पर आर डॉट फिर ए डॉट फिर टी डॉट लिखा फिर एक स्पेश देकर सी डाट लिखा फिर ए डाट लिखा फिर टी डाट लिखा।
R.A.T. C.A.T.
इसमें लिखे गए अक्षरों के बीच के बिंदुओं पर हमने ध्यान ही नहीं दिया। अर्थात ये पहला शब्द RAT न होकर R.A.T. है और आगे CAT न होकर C.A.T. है। इसका मतलब तो कुछ और ही निकल रहा है।
इसका मतलब मैं तुम्हें बताता हूँ। कहते हुए कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी ने क्राइम विभाग के कार्यालय में कदम रखा।
अरे सर आप कब आए । कहते हुए आदित्य और चैतन्य खड़े हो गए।
और ये आपकी गरदन को क्या हुआ। कमिश्नर की गरदन पर लगी गद्देदार पट्टी को देखकर चैतन्य ने पूछा।
कुछ नहीं बस रात में सोते हुए गरदन अकड़ गई थी। कमिश्नर त्रिपाठी ने गरदन पर हाथ फेरते हुए कहा
इसके पहले कोई कुछ समझ पाता। कमिश्नर ने एक पुलिसवाले को इशारा किया। उसने झट से आदित्य के हाथों में हथकड़ी पहना दी। आदित्य उसे आश्चर्य से देखने लगा तो कमिश्नर ने कहा।
तुम्हें रीतिका खन्ना की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है।
ये सुनकर आदित्य के साथ-साथ चैतन्य भी चौंक गया।
ये आप क्या कह रहे हैं सर। चैतन्य ने चौकते हुए कहा।
मैं ठीक कह रहा हूँ। कमिश्नर ने अपने वाक्य को चबाते हुए कहा।
लेकिन आपके पास कुछ तो सुबूत होगा न जिसके आधार पर आप आदित्य को गिरफ्तार कर रहे हैं। चैतन्य ने कहा।
हाँ है न। क्यों मिस्टर सुयस।
क्या... सुयस वो भी आदित्य..। चैतन्य ने चौकते हुए कहा।
हाँ मिस्टर चैतन्य। सुयस ही आपका दोस्त आदित्य है। कमिश्नर ने कहा।
ये आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं। चैतन्य ने हैरानी से पूछा।
मेरी बात का विश्वास न हो तो आप खुद पूछ सकते हैं। कमिश्नर ने विश्वास के साथ कहा।
कुछ देर के लिए चैतन्य का सिर चकरा गया।
कुछ समझ में आया मिस्टर चैतन्य। कमिश्नर की इस आवाज के बाद चैतन्य ने कमिश्नर की तरफ देखा।
ये अकाडमिक ट्रस्ट चलाने वाले कोई और नहीं आपके दोस्त आदित्य ही हैं। जिससे दस वर्ष पहले रीतिका खन्ना जुड़ी हुई थी। कमिश्नर अग्नेय ने मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा।
तुम लोग जिस R.A.T. C.A.T. द्वारा हत्या की गुत्थी सुलझाने का प्रयास कर रहे हो उसमें अंतिम के दो अक्षर A और T आदित्य ठकराल ही बनते हैं। जिस R.A.T. की बात तुम लोग सुलझा रहे हो वो और कुछ नहीं बल्कि रीतिका अकाडमिक ट्रस्ट ही है।
इस बात पर आदित्य और चैतन्य दोनों चौंक गए।
तो इससे कहाँ साबित हो जाता है कि आदित्य ने ही रीतिका खन्ना का कत्ल किया है। चैतन्य ने कहा।
मैं ये कहाँ कह रहा हूँ कि आदित्य ने ही रीतिका खन्ना का कत्ल किया है। पर इसके और रीतिका के पुराने संबंधों और बिजनेस के आधार पर शक तो जाता ही है और मैं शक के आधार पर ही इसे गिरफ्तार कर रहा हूँ। आप प्लीज सहयोग करें। कमिश्नर ने कहा।
सर मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि आदित्य हत्या जैसा घिनौना काम कर सकता है।
पैसा कुछ भी करवा सकता है मिस्टर आदित्य। कमिश्नर ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
मुझे विश्वास ही नहीं होता कि आदित्य ने मेरे साथ-साथ पूरे विभाग को इतना बड़ा धोखा दिया है। आप इसे यहाँ से ले जाइए। चैतन्य ने मुट्ठी भींजते हुए कहा।
सर अगर आपकी अनुमति हो तो मैं चैतन्य से कुछ देर बात कर सकता हूँ। आदित्य ने कमिश्नर से कहा।
ठीक है... पर थोड़ी देर के लिए। कमिश्नर ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा और पुलिसवालों के साथ वहाँ से बाहर निकल गए।
ये कमिश्नर क्या कह रहे हैं तुम्हारे बारे में। ये कैसे हो सकता है कि तुम्हारा रिश्ता रीतिका से रहा हो और तुमने मुझे बताया भी नहीं। तुमने मेरे साथ-साथ पूरे विभाग को बदनाम किया है। चैतन्य ने गुस्से से कहा।
हाँ ये सच है। लेकिन कुछ और भी बातें हैं जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ। आदित्य ने चैतन्य के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा।
मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी।
पहले मेरी बात तो सुन लो।
मैंने कहा न कि मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। चैतन्य ने गुस्से से बिफरते हुए कहा।
थक हारकर कुछ देर बाद आदित्य बाहर आकर गाड़ी में बैठ गया। कमिश्नर ने गाड़ी थाने की तरफ बढ़ा दी।
दृश्य-6
अदालत का दृश्य। चारों तरफ खचाखच भीड़। पाँव रखने को भी जगह नहीं बची थी। आज रीतिका हत्या केस की सुनवाई थी। जज साहब के केस की कार्रवाई शुरू करने के आदेश के बाद दो पुलिसवाले आदित्य को लेकर आए और कठघरे में खड़ा कर दिया। केस की कार्रवाई शुरू हुई पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा।
मीलार्ड। ये जो शख्स कठघरे में खड़ा है। यह एक ऐसा मुजरिम है जिसने रीतिका खन्ना की बेरहमी से हत्या की है सिर्फ उसकी संपत्ति हथियाने के लिए। ऐसे हत्यारे को किसी भी सूरत में माफ नहीं किया जाना चाहिए।
आई आब्जेक्ट योर ऑनर...। आदित्य के वकील ने पब्लिक प्रोसिक्यूटर की बात को काटते हुए कहा- बिना किसी ठोस सबूत या गवाह के आप ये कैसे कह सकते हैं कि मेरे मुवक्किल ने रीतिका खन्ना की हत्या की है।
सुबूत हैं जज साहब....। अगर आपकी अनुमति हो तो मैं कुछ सवाल आदित्य से पूछना चाहता हूँ। पीपी(पब्लिक प्रोसिक्यूटर) ने कहा।
अनुमति है। जज साहब ने कहा।
पीपी- आदित्य साहब। क्या आप बता सकते हैं कि आप रीतिका खन्ना को कब से जानते हैं।
आदित्य- पिछले दो सालों से।
पीपी- परंतु आपने तो अपने पुलिस बयान में ये बताया है कि आप रीतिका खन्ना को पिछले दस वर्षों से जानते हैं।
आदित्य- हाँ ये भी सत्य है।
पीपी- ये किस तरह का सत्य है जज साहब। यहाँ अदालत में कुछ और बयान दे रहे हैं और पुलिस को कुछ और।
आदित्य- हाँ यही सत्य है। ये बात सही है कि मैं रीतिका को दस साल पहले मिला था। मैंने उस समय एक नया व्यवसाय शुरू किया था आयात-निर्यात का। मेरे पास पूँजी की कमी थी तो मैंने रीतिका से मदद माँगी।
चूँकि मैं और रीतिका कॉलेज में साथ-साथ पढ़े थे तो उसने मेरी मदद की। मेरा पूरा ध्यान अपने कारोबार पर था। मैंने अथक परिश्रम से अपनी कंपनी खड़ी की। उसके पैसे मैंने वापस कर दिए।
रीतिका एक साइको थी जिसे अपने किसी भी काम को जूनून के रूप में लेने की आदत थी। पता नहीं वह कब मुझे पसंद करने लगी मुझे पता ही नहीं चला। इसी बीच मैंने एक संस्था खोली जो गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षा देने का काम करती थी।
मेरा देखा-देखी उसने भी एक ट्रस्ट बना लिया। चूँकि उसके पास पैसों की कमी थी नहीं। उसकी ट्रस्ट चल निकली। देश-विदेश की नामी-गिरामी कई शैक्षणिक संस्थाएँ उससे जुड़ गई।
अकूत संपत्ति होने के बावजूद उसने सामाजिक कार्यों की आड़ में उसने गलत काम करने शुरू कर दिए। उसने एक बार मुझे विदेशी बैंक के सीईओ से मिलवाया और खाता खुलवाने के लिए कहा तो मैंने मना कर दिया। मैं अपने देश की मदद करना चाहता था न कि किसी विदेशी बैंक से मिलकर गलत काम। इसके लिए वो मुझपर दबाव बनाने लगी। मैने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ। मैं उसके पागलपन को जानता था।
हद तो तब हो गई जब उसने मुझे धमकी देनी शुरू कर दी कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मेरे सारे धन्धे को चौपट कर देगी और मेरी संस्था को मिलने वाले अनुदान को भी बंद करवा देगी।
मैं अपनी खुद्दारी के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था। इसलिए मैंने सारे कारोबार और शैक्षणिक संस्था बंद कर दिया और इस शहर में चला आया। कड़ी मेहनत के बाद मैंने पुलिस फोर्स जॉइन कर लिया और अंततः क्राइम विभाग। यही मेरी कहानी थी मीलॉर्ड। ये सही है कि मेरे रीतिका के साथ पुराने ताल्लुकात रहे हैं। लेकिन मैने उसका खून नहीं किया। भला मैं उसका खून क्यों करूँगा।
पीपी- उसकी संपत्ति हड़पने के लिए। सारे शहर को पता है कि उसके पास अकूत संपत्ति थी और आपके पुराने ताल्लुकात भी थे उससे और आपसे बेहतर उसके सारे राज कौन जान सकता है।
संबंध तो एसपी साहब से भी रहे हैं सर. अगर आपकी अनुमति हो तो मैं एसपी अग्नेय त्रिपाठी से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ। आदित्य के वकील शशांक मनोहर ने कहा।
अनुमति मिलने के बाद पुलिस कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी कटघरे में आकर खड़े हो गए और गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की सौगन्ध खाई।
शशांक- एसपी साहब। मैं आपसे कुछ सवाल करना चाहता हूँ उम्मीद है कि आप सच बोलेंगे।
कमिश्नर- (मुस्कुराकर) वकील साहब आपसे गलती हो रही है। में एसपी नहीं पुलिस कमिश्नर हूँ।
शशांक- गलत संबोधन के लिए क्षमा चाहता हूँ सर। आपसे जानना चाहता हूँ कि आप रीतिका खन्ना को कब से जानते थे।
कमिश्नर- (हिचकिचाते हुए) ये कैसा सवाल है। जाहिर सी बात है कि जब से मेरी पोस्टिंग कमिश्नर के पद पर हुई है तब से।
शशांक- (मुस्कुराते हुए) ठीक से याद कीजिए सर।
कमिश्नर- (हिचकिचाते हुए) मुझे अच्छी तरह से याद है।
शशांक- तो फिर ये क्या है।
शशांक ने एक फोटो कमिश्नर को देखते हुए जज साहब की तरफ बढ़ा दी। सारे रूम में सन्नाटा छा गया। सबकी धड़कने बढ़ गई कि आखिर उस फोटो में क्या है।
जज साहब- (फोटो देखते हुए) मिस्टर त्रिपाठी। आप तो कह रहे हैं कि आप रीतिका खन्ना से इस शहर में आने के बात मिले थे। पर इस फोटो में तो आप रीतिका खन्ना के साथ दिख रहे हैं और आपके नाम के आगे एसपी लिखा दिख रहा है।
कमिश्नर- (सकपकाते हुए) मुझे नहीं पता कि ये फोटो इन्हें कहाँ से मिली और कैसे मिली। हो सकता है कि तस्वीर के साथ कुछ छेड़छाड़ की गई हो। पर इससे कहाँ साबित होता है कि मैंने ही रीतिका का कत्ल किया है। ये भी हो सकता है कि किसी पार्टी में ये तस्वीर खीची गई हो जिसमें हम दोनों की तस्वीर साथ में आ गई हो।
शशांक- (मुस्कुराते हुए) जी जज साहब ये हो सकता है कि तस्वीर के साथ छेड़खानी की गई हो। ये भी हो सकता है कि इत्तेफाक से दोनों लोगों की तस्वीर साथ में आ गई हो। लेकिन इसे कैसे झुठला सकेंगे कमिश्नर साहब।
इतना कहते हुए शशांक ने एक वीडियो कैसेट जज साहब की ओर बढ़ाया और अदालत में दिखाने का आग्रह किया। अदालत में वीडियो को दिखाया गया। जिसमें साथ-साथ दिखाई-सुनाई दे रहा था कि कमिश्नर हँस-हँस कर रीतिका खन्ना से बातें कर रहे थे। जज साहब ने कमिश्नर की ओर देखते हुए कहा।
जज साहब- मिस्टर त्रिपाठी आपने अदालत से झूठ बोलकर अदालत की तौहीन की है। अदालत में झूठ बोलने के एवज में आपको सजा भी हो सकती है।
जज साहब की बात सुनकर कमिश्नर का चेहरा उतर गया। उन्होने हाथ जोड़ते हुए कहा।
कमिश्नर- मीलॉर्ड। मुझे इस बात के लिए माफ कर दिया जाए कि मैंने रीतिका खन्ना से मिलने की बात छुपाई, पर मैं ये भी कहना चाहूँगा कि सिर्फ बात कर लेने या मिलने से ये साबित नहीं होता कि मैंने ही रीतिका की हत्या की है।
पीपी- आई ऑब्जेक्ट योर हॉनर.. जज साहब मेरे मुवक्किल को जबरन इस केस में घसीटा जा रहा है। उन्हें फँसाने की कोशिश की जा रही है। कल को अगर मेरे या आपके साथ भी रीतिका खन्ना की जान-पहचान निकल आई तो क्या मुझे या आपको भी रीतिका खन्ना का हत्यारा घोषित कर दिया जाएगा।
शशांक- नहीं जज साहब मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि सिर्फ जान-पहचान होना ही हत्यारा साबित करता है किसी को। इस बिना पर तो मेरे मुवक्किल भी हत्यारे साबित नहीं होते। लेकिन अभी भी मेरे कुछ और सबूत हैं जो इन्हें गुनहगार साबित करते हैं।
मैं अदालत में इनके एक पुराने साथी और मददगार मिस्टर चतुर मिश्रा जी को बुलाना चाहता हूँ। जो इनके सहकर्मी हैं और इनके ही विभाग में सब-इंस्पेक्टर हैं।
इजाजत मिलने के बाद मिस्टर चतुर को दूसरे कठघरे में बुलाया गया। शशांक ने उन्हें कसम दिलाई।
शशांक- मिस्टर चतुर मैं कुछ कहूँ या आप खुद ही सच्चाई बताएँगे।
चतुर- जज साहब। मुझे जितनी जानकारी है मैं सब सच-सच बताने के लिए तैयार हूँ। हाँ मैंने कमिश्नर साहब का सहयोग किया है। चूँकि ये मेरे सीनियर थे तो मुझे इनकी मदद करनी पड़ी। मैंने इनके कहने पर आदित्य से एक कागज का टुकड़ा छीनकर भागा था पर मुझे पता नहीं था कि उस कागज के टुकड़े में क्या था। मैं बस इतना ही जानता हूँ कि मैंने जो भी किया इनके अंडर में रहने की एवज में किया।
ठीक है आप जा सकते हैं। कहकर शशांक ने चैतन्य को बुलाने की इजाजत माँगी। कुछ देर में चैतन्य कठघरे में था। शशांक ने उसे शपत दिलाई।
शशांक- सर क्या आप बता सकते हैं कि उस कागज में क्या लिखा था।
चैतन्य- जज साहब मैं उस कागज के बारे में कुछ कहने से पहले कुछ और बताना चाहता हूँ। रीतिका मर्डर के बाद मुझे और आदित्य को उस केस को सुलझाने का काम सौंपा गया था।
जिस समय रीतिका के लाश का पंचनामा तैयार किया जा रहा था उस समय वहाँ पर कमिश्नर साहब भी मौजूद थे। मुझे वहाँ पर दो चीजें मिली थी। कूड़ेदान में वो कागज का टुकड़ा और एक डायरी जिसमें किसी ने रीतिका की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए हमारे लिए एक चैलेंज छोड़ा था। जिसपर लिखा था।
R.A.T. C.A.T.
मैने और आदित्य ने इस गुत्थी को सुलझाने में बहुत मेहनत की और एक-एक अक्षर की बारीकी से जाँच की।
R का अर्थ रीतिका
A.T का अर्थ था अकाडमिक ट्रस्ट, लेकिन CAT का अर्थ नहीं मिल पाया था। हम किसी ठोस नतीजे तक पहुँचे भी नहीं थे कि अचानक कमिश्नर साहब वहाँ पहुँच गए। कमिश्नर साहब ने कहा कि अतिंम के दो अक्षर A.T. का मतलब कहीं आदित्य ठकराल तो नहीं।
तब हमारे दिमाग में किसी का नाम फिट करने की बात कौंधी, चूँकि डायरी का हम दोनो के अलावा किसी को नहीं पता था। फिर इन्हें R.A.T. C.A.T. के बारे में किसने बताया। जिसके कारण हमारा शक इनके ऊपर गया। मुझे तो लगता है कि
C. का अर्थ चतुर है और
A.T. का अर्थ अग्नेय त्रिपाठी है।
मतलब ये डायरी अग्नेय त्रिपाठी की ही चाल थी। वह हमें चैलेंज करना चाहते थे कि हम नतीजे तक नहीं पहुँच पाएँगे।
अब आते हैं उस कागज के टुकड़े पर। उस कागज के टुकड़े पर हमें कुछ लिखी हुई राशि के चिह्न नजर आए। हमने इंफ्रा रेड तकनीक की सहायता से देखा तो पता चला कि उसमें 100 मिलिटन डॉलर के लेनदेन का जिक्र था।
इतनी बड़ी रकम आखिर किसके साथ लेन-देन कर सकती है रीतिका। इसी की जानकारी लेने हम रात को दोबारा रीतिका के घर गए। जहाँ कमिश्नर साहब और चतुर जी पहले से मौजूद थे। जहाँ रीतिका की हत्या हुई थी उसके बगल वाले कमरे में आदित्य की कमिश्नर साहब के साथ झड़प भी हुई थी।
कमिश्नर साहब को पता ही नहीं चला की इस झड़प में कब रीतिका की पार्टी वाली तस्वीर नीचे गिर गई जिसमें इनकी फोटो भी थी। शायह वही हासिल करने के लिए ये वहाँ पर गए थे।
झड़प के बीच वो यह भी भूल गए कि जिस कागज पैड पर 100 मिलियन डॉलर का हिसाब-किताब था वह वहीं रह गया जो किस्मत से हमारे हाथ लग गया। असली कागज की तलाश में कल रात मैं कमिश्नर साहब के घर गया था तो गद्दे के नीचे मुझे वो असली कागज मिला।
जिसमें लिखावट कमिश्नर साहब की है। जिससे ये क्लीयर हो गया कि रीतिका और कमिश्नर साहब के बीच 100 मिलियन डॉलर का लेनदेन हुआ है। अब उन्होंने रीतिका की हत्या क्यों की ये तो वही बता सकते हैं।
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। सभी साँसे थामे बैठे थे। केस कभी आदित्य की तरफ मुड़ता तो कभी कमिश्नर की तरफ। कभी कातिल आदित्य लगता तो कभी कमिश्नर।
आई ऑब्जेस्ट योर हॉनर..। पता नहीं त्रिपाठी सर से क्या दुश्मनी है क्राइम विभाग वालों की जो उन्हें फँसाना चाहते हैं। पर इतना जरूर है कि वे कमिश्नर साहब को एक फर्जी केस बनाकर, झूठे गवाह और सबूत पेश कर जानबूझकर कातिल साबित करने चाह रहे हैं। पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने उठते हुए कहा।
ये आप किस बिनाह पर कह सकते हैं। क्या आपके पास कोई सुबूत है। जज साहब ने प्रोसिक्यूटर से कहा तो वकील ने मुस्कुराते हुए कहा।
पीपी- है जज साहब। एक ठोस वजह है। अभी चैतन्य जी ने कहा कि इनके पास दो सबूत हैं। एक वह कागज का टुकड़ा और दूसरी वह डायरी। जिसपर इनका कहना है कि इस डायरी के माध्यम से कमिश्नर साहब ने इनको चैलेंज किया और उस 100 मिलियन डॉलर वाले कागज पर लिखी लिखावट उनकी ही है जो उनके गद्दे के नीचे से निकली थी।
फिर तो दोनो लिखावट मिलानी चाहिए। इसलिए मेरी दरख्वास्त है कि किसी राइटिंग एक्सपर्ट को बुलाकर कागज, डायरी और कमिश्नर साहब तथा आदित्य की लिखाई का मिलान किया जाए।
जज साहब ने ध्यान से कुछ देर सोचा और किसी राइटिंग एक्सपर्ट को बुलाने का कह मध्यान्तर बाद कार्रवाई जारी रखने का कहकर अपनी जगह से उठ गए। सभी लोगों में कानाफूसी होने लगी। कमिश्नर और आदित्य को पुलिस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया।
लगभग एक घंटे बाद सुनवाई फिर से शुरू हो गई। कोर्ट रूम शांत था। सामने ही एक राइटिंग एक्सपर्ट बड़े ही ध्यान से सभी लिखावट का मिलान कर रहा था। उसने अपनी रिपोर्ट बनाई और जज साहब को थमा दिया। खामोशी से रिपोर्ट देखने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया।
जज साहब- तमाम सबूतों, गवाहों और राइटिंग एक्सपर्ट के किए गए जाँच के आधार पर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि मिस्टर आदित्य ने ही रीतिका खन्ना की हत्या की है। इसलिए उन्हें दफा 302 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है।
पुलिस कमिश्नर त्रिपाठी को रीतिका की हत्या की साजिश रचने, हत्या का प्रयाश करने और उनकी संपत्ति हड़पने की साजिश में पाँच साल की सजा दी जाती है और सरकार को ये आदेश देती है कि उनकी बेनामी और अवैध संपत्ति को जब्त करे एवं समिति द्वारा इसकी जाँच करवाए। रीतिका खन्ना की हत्या आदित्य ने क्यों की इसका खुलासा वह स्वयं करेंगे।
जज साहब के फैसले के बाद वहाँ एक भूचाल सा आ गया। लोग कानाफूसी करने लगे।
इधर आदित्य कटघरे में खड़ा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इतनी सफाई से सबकुछ करने के बाद भी वह पकड़ा जाएगा। लेकिन कातिल कितना भी चालाक क्यों न हो कोई-न-कोई सुराग जरूर छोड़ देता है। काश वो अतिउत्साह में वो डायरी वहाँ पर नहीं छोड़ता तो आज वह नहीं बल्कि कमिश्नर त्रिपाठी को उम्र कैद होती।
जज साहब...। मैं अपना गुनाह कबूल करता हूँ।
कहानी तब शुरू होती है जब मैंने अपना छोटा सा आयात-निर्यात का व्यवसाय शुरू किया था। बिजनेस में नया होने के कारण मेरी मदद रीतिका खन्ना ने की। जब मेरा बिजनेस चल निकला तो मैंने उसके पैसे वापस कर दिए। मैंने एक अकाडमी खोली जो गरीब और कमजोर बच्चों को शिक्षा देने का काम करती थी।
देखा-देखी रीतिका ने भी एक अकाडमी खोल दी। रीतिका एक साइको थी जो मुझे प्यार के नाम पर जबरन शादी के लिए दबाव डालने लगी।
मेरे लाख समझाने के बाद भी वो नहीं मानी बल्कि मुझे ब्लैकमेल करने लगी। मेरी दोस्ती को प्यार का नाम देने लगी। मेरी अकाडमी के विरुद्ध वो अपने पैसे और ताकत का इस्तेमाल करने लगी। उस समय कमिश्नर साहब वहाँ के एसपी हुआ करते थे। जो बहुत ही कड़क पुलिस अधिकारी थे। मेरी उनकी जान-पहचान नहीं थी, बस पार्टियों में कभी-कभी मिलना हो जाता था। बाद में पता चला कि उनका धन्धा कई अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के गिरोह से था।
रीतिका की मनमानी के कारण मैंने अपना व्यवसाय बंद करने की कोशिश की तो उसने यहाँ भी अपना अड़ंगा लगा दिया और मुझसे शादी के लिए दबाव डालने लगी। मेरे इनकार करने पर उसने मेरे खिलाफ कई तरह के आरोप लगाए और मुझे झूठे केस में फँसा दिया। मेरी माँ ये सदमा न सह सकी और उनकी हृदयघात से मौत हो गई।
उस समय चैतन्य ने मेरा साथ दिया और केस रफा-दफा करवाया। मैं उसके साथ इस शहर चला आया और अथक मेहनत से पुलिस फोर्स जॉइन किया और फिर क्राइम विभाग का बेस्ट ऑफीसर बना।
पर दुर्भाग्य ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा और अरसे बाद एक केस के सिलसिले में मेरी मुलाकात फिर रीतिका से हो गई जो सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बन चुकी थी। उसके बाद उसकी मनमानी फिर से शुरू हो गई।
एसपी त्रिपाठी अब कमिश्नर बन चुके थे और एक अलग रुतबा था उनका अब। उनके पास इतना पैसा कहाँ से और कैसै आया ये पूछने की हिम्मत डिपार्टमेंट को नहीं थी। पता नहीं क्यों ये जानने के बाद कि रीतिका और कमिश्नर के बीच अवैध ताल्लुकात हैं, इसी रीतिका की वजह से मेरी माँ की मौत हुई। इसी वजह से मुझे अपना शहर छोड़ना पड़ा, मुझे उसकी जान लेने के लिए मजबूर कर दिया।
मेरी योजना तब पूरी होती हुई नजर आई जब शराब के नशे में मिस्टर चतुर ने ये बताया कि रीतिका की संपत्ति हड़पने के लिए उसे मारने वाले हैं। मैंने पुलिस को गुमराह करने के लिए वो पहेली लिखी और डायरी रखने जब रीतिका के घर गया तो वहाँ किसी बात को लेकर रीतिका और कमिश्नर के बीच बहस हो रही थी।
बहस इतनी बढ़ गई की कमिश्नर ने बंदूक निकाल ली और गोली चला दी। लेकिन उनका निशाना चूक गया ठीक उसी समय मैंने साइलेंसर लगी बंदूक से उसपर गोली चला दी।
कमिश्नर को लगा कि उनकी गोली लगी है रीतिका को तो वो उसकी लाश का मुआयना करने लगे। मैंने डायरी चुपचाप टेबल के दराज में डाल दी और छुप गया। डायरी कमिश्नर ने भी देखा लेकिन किसी काम का न जानकर वहीं छोड़ दिया और जिस कागज पैड पर 100 डॉलर की डील हुई थी उसे फाड़ लिया।
लेकिन गलती से उसके तीन पेज फट गए तो दो पेज को कमिश्नर ने मोड़कर कूड़ेदान में डाल दिया।
चैतन्य मेरा बहुत अच्छा मित्र है, लेकिन उसका इसमें कोई हाथ नहीं है। सारा गुनाह मेरा है। मैंने मेरी जिंदगी बरबाद करने वाली, मेरी माँ की कातिल को बदले की भावनावश मारने का प्लान बनाया।
पूरा कोर्ट रूम गहरे सन्नाटे में डूब गया। चैतन्य भावनाशून्य होकर एक टक आदित्य को देखे जा रहा था।
लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि गुनहगार कौन है। क्या रीतिका अपनी मौत की जिम्मेदार खुद है। क्या आदित्य ने रीतिका की हत्या करके सही किया। यही एक विचारणीय प्रश्न था जिसे सारे लोगों को सोचना था।
समाप्त