Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

Eaten Alive
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Update 24

1) kehte hai janm se hi koi bacha bura nahi hota,
Balki uske bure ya achhe banne ke piche ya to society ya phir aas paas rehne wale log ya phir parivesh aur paristhitiya ityadi ke haath hote hai...
Apsyu jo aaj itna bigda hua hai uske pichi ki wajah uske ma baap..au sath uske galat sagat ka asar hai..waise bhale hi ravan sukanya, khaskar ravan ne ushe apne jaisa banane ki koshish ki ho par kuch ek mamlo mein usko badal nahi saka...
Jaise uske aur pushpa ke pavitra bhai bahan ke rishte ko.... dono ke ek dusre ke prati fikar ko... apnapan ko... ye nata chaahkar bhi tod nihi paya ravan ne...

2) darasal sukanya ke dilo dimag mein ek ladayi chal rahi hai... ek taraf uski achayi aur aadarsh to dusri taraf uske bade bhai dwara boli gayi wo kadwi baatein...
Wo tay nahi kar pa rahi hai wo kya kare .. karegi to uska zameer ushe dhitkaarega... aur na kiya to pati aur bete ki jaan jaayegi... ab aisi bhanwar mein fanshi sukanya kaise bahri taur samanya reh sakti thi...
waise baaki logo hair and the aur ravan bhi...lekin sabse zyada surbhi chintit hai uski behavior dekh...
Lekin vidambana to ye hai ki sukanya chaah kar bhi khul ke kuch bata nahi sakti thi..

3) kuch log kutte ki dum ki tarah hote hai.. jo kabhi nahi sudhaar sakte,,, jaise wo ravan... usne phir se planning suru kar di ki kaise bhi karke shaadi todi jaaye...
bhed k khal mein bhediya banke sabko yahi jata raha ki usse zyada khush aur koi nahi... lekin andar hi andar kitna jal raha hai ye baat kisiko bhanak tak nahi...

bahot nirale tarike se update ko pesh kiya gaya hai.. jaise saralata ke sath varnan kiye shabdon ka manoranjan may mela ho ...

Khair... let's see what happens next...
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
 
Will Change With Time
Moderator
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Update 24

1) kehte hai janm se hi koi bacha bura nahi hota,
Balki uske bure ya achhe banne ke piche ya to society ya phir aas paas rehne wale log ya phir parivesh aur paristhitiya ityadi ke haath hote hai...
Apsyu jo aaj itna bigda hua hai uske pichi ki wajah uske ma baap..au sath uske galat sagat ka asar hai..waise bhale hi ravan sukanya, khaskar ravan ne ushe apne jaisa banane ki koshish ki ho par kuch ek mamlo mein usko badal nahi saka...
Jaise uske aur pushpa ke pavitra bhai bahan ke rishte ko.... dono ke ek dusre ke prati fikar ko... apnapan ko... ye nata chaahkar bhi tod nihi paya ravan ne...

2) darasal sukanya ke dilo dimag mein ek ladayi chal rahi hai... ek taraf uski achayi aur aadarsh to dusri taraf uske bade bhai dwara boli gayi wo kadwi baatein...
Wo tay nahi kar pa rahi hai wo kya kare .. karegi to uska zameer ushe dhitkaarega... aur na kiya to pati aur bete ki jaan jaayegi... ab aisi bhanwar mein fanshi sukanya kaise bahri taur samanya reh sakti thi...
waise baaki logo hair and the aur ravan bhi...lekin sabse zyada surbhi chintit hai uski behavior dekh...
Lekin vidambana to ye hai ki sukanya chaah kar bhi khul ke kuch bata nahi sakti thi..

3) kuch log kutte ki dum ki tarah hote hai.. jo kabhi nahi sudhaar sakte,,, jaise wo ravan... usne phir se planning suru kar di ki kaise bhi karke shaadi todi jaaye...
bhed k khal mein bhediya banke sabko yahi jata raha ki usse zyada khush aur koi nahi... lekin andar hi andar kitna jal raha hai ye baat kisiko bhanak tak nahi...

bahot nirale tarike se update ko pesh kiya gaya hai.. jaise saralata ke sath varnan kiye shabdon ka manoranjan may mela ho ...

Khair... let's see what happens next...
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
Iitna shandaar aur ek ek pahlu par gaur kiya uske liye bahut bahut shukriya 🙏🙏🙏

Bacha kaisa bartav karega kaisi uski prvrti hoga kuch had tak rakha gaya naam par nirbhar karta hai. Baki ka parivesh mel jol karne wale log jinke sangat me rahkar parvrti me badlav aa jata hai.

Sahi kaha apaashyu ke bartav me badlav ke piche uske sangi saathi sab se bada karan raha aur kuch had tak ravan bhi isme samil raha.
 
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Update - 25


घर में मस्ती मजाक का माहौल बना हुआ था। ऐसा माहौल बनाने का श्रेय पुष्पा को जाता है। पुष्पा बड़ी हो गई थी लेकिन उसके अंदर का बचपना अभी भी जिंदा था। पुष्पा के बचकानी हरकतों और नटखटपन का असर, सभी से ज्यादा सुकन्या पर हों रहा था। बीते दिनों की अपेक्षा सुकन्या आज सभी से हंस बोल रही थी।

जिसे देख रावण को लगा आज बात करने का अच्छा मौका है आज कुछ भी करके सुकन्या से बात करना ही होगा और जल्दी से रघु के शादी को तुड़वाने का इंतजाम करना होगा। इसलिए रात को खाना पीना होने के बाद रूम में जाते ही रावण ने बोलना शुरू किया…सुकन्या आज तुम बहुत खुश लग रही हो बात किया हैं।

सुकन्या…हां आज मैं ओर दिनों से ज्यादा बेहतर महसूस कर रही हूं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने ऊपर चढ़े शक्त खोल को तोड़कर बाहर निकल आई हूं। खुद को ऊर्जावान महसूस कर रही हूं। मेरे अंदर हर्ष उल्लास की सीमाएं बांध तोड़कर बहाने लगीं हैं। मैं बता नहीं सकती आज मैं कितना खुश हूं।

रावण…पिछले कई दिनों से तुम बुझी बुझी सी रहने लगी थी। इसलिए मै तुम्हें घूमने भी ले गया लेकिन उसका कुछ खास असर तुम पर नहीं हुआ। आज तुम्हें हंसता हुआ देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। रघु की शादी से तुम इतना खुश नही हो सकती, फिर तुम्हारी खुशी का राज किया हैं।

सुकन्या...आप'को किसने कहा रघु के शादी की बात से मैं खुश नहीं हूं। मैं कितना खुश हूं बता नहीं सकती न ही जाता सकती हूं। लेकिन मेरी खुशी को बढ़ाने में हमारी नटखट बच्ची पुष्पा ने बहुत सहायता किया हैं।

सुकन्या खुश होने का राज बता रहीं थीं। लेकिन रावण रघु के शादी से सुकन्या के खुश होने की बात सुनकर मन ही मन बोला…सुकन्या को क्या हों गया रघु के शादी होने से इतना खुश कैसे हो सकती हैं। ये ऐसा क्यों कह रही हैं? शादी कैसे तुड़वाऊ, मैं ये सोच रहा हूं और सुकन्या खुश होने की खबर सुना रहीं हैं। कहीं सुकन्या अभिनय तो नहीं कर रही हैं। इसके हाव भाव से तो ऐसा लग नहीं रहा हैं। कहीं सुकन्या सच में खुश तो नहीं हैं। अगर ऐसा है तो सुकन्या को ऐसे ही रहने देता हूं। इससे फायदा मुझे होगा मैं सुकन्या की ओर से निश्चित हों जाऊंगा।

रावण अपने सोच को विराम देकर सुकन्या की बातों को सुनने लगा…मैं आप'को बताती हूं आज मैं इतना बेहतर क्यू महसूस कर रहीं हूं। आज मैं ओर दिनों की तरह गुमसुम एक कोने में बैठी हुईं थीं। सभी अपने अपने काम करने में लगे हुए थे मुझे खाली बैठा देख पुष्पा मेरे पास आई फिर बोली

Short flashback start….


पुष्पा…छोटी मां आप यहां महारानी की तरह बैठी बैठी हुकम चला रहीं हों। आप भुल गई हों महारानी आप नहीं मैं हूं। मैं जो बोलती हूं सभी को करना पड़ता हैं।

पुष्पा नटखट अदाओं से और बोहे हिलाते हुए कह रही थीं। पुष्पा की नटखट अदा देख पल भर में सुकन्या का बुझा हुआ मुखड़ा खिल उठा। खिली सी मुस्कान मुखड़े पर सजाकर बोली…हां हां मुझे पता हैं मेरी नटखट बच्ची इस घर की महारानी हैं। तो महारानी जी बोलों आप'की किया आज्ञा हैं।

पुष्पा ने भी एक खिली सी मुस्कान दे'कर ठोड़ी को उंगली पर टिका सोचते हुए बोली... किया काम दू apkooooo सोचना पड़ेगा। अच्छा आप मेरे साथ चलो आज आप'को मेरे साथ किचन में काम करना हैं।

इतना कहकर पुष्पा, सुकन्या का हाथ थामकर किचन की ओर ले गई। सुकन्या ने कोई आनाकानी नहीं किया। खिलखिलाते हुए उसके साथ चली गईं। किचन में जाकर पुष्पा ने एक बेलन सुकन्या के हाथ में दिया और एक बेलन खुद ले लिया फिर बोली...चलो चलो सब हटो आज रोटी मैं और छोटी मां मिलकर बेलेंगे

पुष्पा की बाते सुन सब एक तरफ हाट गए लेकिन उनके आश्चर्य का विषय सुकन्या बनी हुई थीं। जो कभी एक गिलास पानी अपने हाथ से लेकर नहीं पीती थी आज पुष्पा के साथ रोटी बेलने आई हैं। लेकिन उनकी विडंबना है वो कुछ बोल नहीं सकते हैं। उनके बोलने से पुष्पा तो कुछ नहीं कहेगी लेकिन सुकन्या कहीं उनके गाल न छेक दे इसलिए चुप चाप अपना अपना काम करते रहें।

सुकन्या और पुष्पा रोटी बेलने लग गई। पुष्पा तो ठीक ठाक बेल रही थीं लेकिन सुकन्या की बेली हुई रोटी थोड़ी ज्यादा टेडी मेडी हों गई। ऐसा तो होना ही था न जानें कब से सुकन्या ने किचन में काम ही नहीं किया था। टेडी मेडी रोटी बेलते देख पुष्पा ने बेलन से सुकन्या के हाथ पर हल्का सा मारा फिर बेलन हिलाते हुए बोहे चढ़ाकर बोली…छोटी मां ये किया आप'को रोटी बेलना भी नहीं आता आप'के मां ने आप'को रोटी कैसे बेला जाता है नहीं सिखाया।

पुष्पा की बोलने की अदा से सुकन्या नाराज होने के जगह खिल खिला कर हस दिया। सुकन्या को हंसते देख पुष्पा बोली... एक तो रोटी ठीक से बेल नहीं पा रही हों। ऊपर से बत्तीसी फाड़ रहीं हों अब तो आप'को सजा मिलेगी चलो कान पकड़ो और तीस बार उठक बैठक लगाओ।

उठक बैठक लगाने की बात सुनकर सुकन्या चुप चाप खड़ी हो गईं। सुकन्या के ओर से कोई हलचल होता न देख पुष्पा नौकरों से बोली...चलो आप सब बहार जाओ आप'के सामने छोटी मां शर्मा रही हैं। जब तक मैं आवाज न दू तब तक कोई न अन्दर आएगा न ही ताका झाकी करेगा ऐसा हुआ तो सब को बर्खास्त कर दूंगी। मैं महारानी हूं मेरी आदेश कोई नहीं टाल सकता।

अब भला कौन महारानी की आदेश को टल पाता सभी एक एक करके बाहर निकल गए। नौकरों के जाते ही पुष्पा बोली…चलो छोटी मां अब आप भी शुरू हों जाओ सभी को भागा दिया हैं कोई देखने वाला नहीं हैं।

सुकन्या खिली सी मुस्कान देकर कान पकड़ी और उठक बैठक लगाने लग गईं।

(यहां कुछ बातें जानने को हैं। सुकन्या भले ही सुरभि और घर के नौकरों या बाकी के सदस्य के साथ बूरा बरताव करती हो लेकिन पुष्पा से कभी कोई गलत बरताव नहीं करती थीं, न ही उसका कहा कभी टलती थी। ऐसा ही व्यवहार सुकन्या, रघु के साथ करती थीं। सुकन्या आज भी बिना आनाकानी के पुष्पा की बात मन लिया।)

सुकन्या किचन में उठक बैठक करने लगी और पुष्पा सामने खड़ी होकर गिनने लग गई। इधर किचन में काम करने वाले सभी नौकर बाहर जाकर हॉल में खड़े हों गए। सुरभि किचन में खाना बनाने का काम कहा तक पंहुचा देखने आ रहीं थीं। सभी वाबर्चिओ को हॉल में खडा देख उनके पास गई फिर बोली...आप सभी बाहर क्या कर रहे हों खान बनाने का काम पूरा हों गया।

"नहीं रानी मां वो पुष्पा मेमसाहब छोटी मालकिन को किचन में काम करवाने लेकर आई थीं। छोटी मालकिन से रोटी ठीक से बेली नहीं जा रहीं थीं इसलिए पुष्पा मेमसहब हमे बहार निकाल दिया और छोटी मालकिन को सजा दे रही हैं।"

सुकन्या के किचन में काम करने की बात सुन सुरभि अचंभित हो गई। उसका अचंभा तब टूटा जब उसे याद आया सुकन्या के साथ पुष्पा भी हैं। इसलिए सुरभि समझ गया ये सब पुष्पा के करण हों रही हैं। इसलिए सुरभि किचन की ओर बढ़ गई। किचन पहुंचकर वहां का नज़ारा देख सुरभि मुस्कुरा दिया फिर पुष्पा के पास जाकर पुष्पा के कान उमेठते हुए बोली...तू बडी दादी अम्मा बन रहीं हैं जिसको देखो सजा दिए जा रहीं। सजा दे दे कर सब की चल चलन बिगाड़ दिया हैं।

पुष्पा….ahaaa मां दादी अम्मा नहीं मैं महारानी हूं। जो भी गलती करेगा उसको सजा देने का हक महारानी को हैं। आप मेरी कान छोड़ों नहीं तो आप'को भी सजा दे दूंगी।

सुरभि...मुझे सजा देगी।

इतना कहकर सुरभि ने पुष्पा के कान ओर ज्यादा जोर से उमेठ दिया जिससे पुष्पा ahaaa maaaa कर चिक पड़ी। पुष्पा के चीखने से सुकन्या कान छोड़कर पुष्पा के पास आई। सुरभि से पुष्पा का कान छुड़ाया फिर पुष्पा को गले से लगाते हुए बोली...दीदी अपने अच्छा नहीं किया। मेरी बेटी का कान अपने इतनी तेज क्यों उमेठा देखो कितनी लाल हों गई हैं। ये आपने अच्छा नहीं किया।

सुकन्या के मुंह से दीदी शब्द सुनकर सुरभि खुश हों या अचंभित हों कैसा रिएक्ट करे ये समझ नहीं पाई। सुरभि के साथ ऐसा होना लाजमी था। जब कोई ऐसा कुछ बोल दे जिसे सुनने की कोई उम्मीद ही न हों और अचानक वैसा ही कुछ सुनने को मिले तो कैसा रिएक्ट करे समझ ही नहीं आता। बरहाल सुरभि से कुछ बोला नहीं जा रहा था इसलिए चुप होकर सुकन्या को देखने लग गई। सुकन्या बिना सुरभि की ओर देखें पुष्पा के कान सहालती रहीं। पुष्पा अलग होकर सुरभि की ओर देखा फिर बोला….मां आप छोटी मां को ऐसे क्यों देख रही हों छोटा मां ने ऐसा कुछ नहीं बोला जो अजूबा हों उन्होंने वोही बोला जो रिश्ता आप'का छोटी मां के साथ हैं। लेकिन अपने किया किया बडी बहन होने का फर्ज बिल्कुल नहीं निभाया जब से मैं आई हूं तब से छोटी मां गुमसुम सी एक कोने में बैठी रहती हैं, न जानें किस सोच में गुम रहती हैं। इसलिए आज मुझे ऐसा करना पड़ा ताकि छोटी मां थोड़ी खिलखिलाए आप ख़ुद ही देखो छोटी मां कैसे खिलखिला रहीं हैं। अपने दो गलती किया हैं एक तो मेरी कान उमेठा दुसरी छोटी मां से उनकी परेशानी जानना नहीं चाहा इसलिए आप भी सजा पाने के हकदार हों। अब आपको किया सजा दू सोचना पड़ेगा।

इतना कहकर पुष्पा ठोड़ी पर उंगली टीकाकर सोचने लग गई। सोचते हुए सिर को इधर उधर हिलने लगी। पुष्पा की ये अदा देख सुरभि और सुकन्या मुस्कुराए बिना रह न सकीं। कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा बोली…मां आप'को किया सजा देनी है, मिल गया। बहुत दूर से ढूंढ कर लाया हूं। आप'की सजा ये हैं आप अभी के अभी छोटी मां से गले मिलकर जो भी गीले सिकबे हैं दूर करके हमेशा दोनों बहन की तरह रहेंगे।

पुष्पा के कहते ही दोनों पुष्पा की ओर ऐसे देखने लगे जैसे पुष्पा ने अनहोनी जैसा कुछ करने को कह दिया हों। पुष्पा इशारे से दोनों को आगे बढ़ने को कहा लेकिन दोनों में से कोई आगे बढ़ ही नहीं रहें थे बस एक दुसरे को टकटकी लगाए देखने में लगी रहीं। जब कभी ऐसा कुछ करना पड़े जो याद न हों ऐसा कब किया था तो झिझक होगा ही। इसलिए दोनों आगे बड़ने से झिझक रहें थे। दोनों को झिजकते देख पुष्पा बोली...आप दोनों को कितना वक्त लगाना हैं। जल्दी करो मेरे पास इतना वक्त नहीं हैं। मुझे बहुत सारा काम करना हैं। सभी काम का जिम्मा मेरे सिर पर हैं। अब आप दोनों जल्दी करो नहीं तो आप दोनों के लिए मुझे कुछ ओर सजा सोचना पड़ेगा।

दोनों फिर से एक बार पुष्पा को देखा। तब पुष्पा ने फिर से इशारे से दोनों को आगे बढ़ने को कहा। दोनों धीरे धीरे आगे बढ़कर एक दूसरे के गले लग गए, गले मिलते ही दोनों को अपर शांति का अनुभव हुआ। पुष्पा दोनों को गले मिलते देख मुस्कुरा दिया फिर किचन से जाते हुए बोली...जल्दी से दोनों देवरानी जेठानी भारत मिलप खत्म करके बाहर आ जाना तब तक मैं सोचती हूं आप दोनों को कौन सा काम करने दिया जाए।

पुष्पा ये बोलकर चली गई। दोनों एक दूसरे से गले मिलकर गीले सिकवे मिटते रहें। दोनों के मान में जो गीले सिलबे थे आंसू बनकर बहनें लग गया। अजब गजब किस्सा हों गया। रघु और कमला के गठबन्धन की तैयारी चल रहा था। रघु और कमला की रिश्तों के गांठ बंधने में अभी देर थीं लेकिन दोनों देवरानी जेठानी के रिश्तों की खुली गांठ जो न जाने कब से खुली हुई थीं फिर से बंध गया। बरहाल दोनों के गीले सिकबे आंसुओ में बह जानें के बाद दोनों अलग हुए। सुकन्या सुरभि के बहते आंसू को पोछते हुए बोली...दीदी मैंने जीतने भी बूरा बरताव आप'के साथ किया उसे चाहकर भी मैं बदल नहीं सकती। मैने आप'के साथ जो बूरा बरताव किया वो माफ़ी के काबिल भी नहीं हैं फिर भी मैं आप'से माफ़ी मांगकर मेरे दिल पर जो बोझ हैं उसे हल्का करना चाहती हूं। आप'का मन हों तो मुझे माफ़ कर देना।

सुकन्या के मन में जो पश्ताबा था वो आंसू बनकर बहने लगा। सुरभि बहते आंसू और सुकन्या की बाते सुन परख लिया सुकन्या को अपने किए कृत्य पर दिल से पश्तबा होंने लगा है। इसलिए सुकन्या के बहते आंसू को पोछते हुए बोली…छोटी मैंने तुझे कभी देवरानी नहीं मेरी छोटी बहन माना हैं। दो बहनों में ऐसी छोटी मोटी बाते होती रहती हैं। इसलिए मै तुझ'से कभी नाराज नहीं थी। तू माफ़ी मांग कर हमारे बीच के रिश्ते को शर्मिंदा न कर।

ये कह कर दोनों फिर से गले मिल गये। सुकन्या सुबक सुबक कर रो रही थीं और मन में जमे मैल को धो रहीं थीं। सुरभि पीठ सहलाते हुए सुकन्या को चुप करने में लगी रहीं। सुकन्या मन में बोली...दीदी मैं आप'को कैसे बताऊं मैं आप'के साथ क्यों ऐसा व्यवहार करती थीं। मैं चाहकर भी आप'को सच्चाई बता नहीं सकती हूं। आप'को कुछ भी बताया तो मैं अपना पति और बेटा खो दूंगी। मैं कभी समझ ही नहीं पाई मेरे अपने ही मेरे साथ ऐसा करेंगे। मैं उनके कहे अनुसर सब करती रहीं जिन्होंने कभी मुझे अपना समझा ही नहीं अगर समझे होते तो मुझे दुसरे को न सोफ देते। दीदी मुझे माफ़ कर देना।

End short flash back

सुकन्या मन में जो कहीं वो छोड़ बाकी बाते रावण को बता दिया। सुनाते हुए सुकन्या के चहरे की आभा से अपर खुशी झलकने लग गई। सभी बाते सुनाने के बाद सुकन्या के चुप होते ही रावण बोला…सुकन्या तुमने अच्छा किया जो भाभी के साथ अपना रिश्ता सुधार लिया इससे हमें अपनी योजना को अंजाम देने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगा। बिना किसी के नज़र में आए हम अपनी मकसद को पूरा कर लेंगे।

सुकन्या...मैंने दिखावे के लिए दीदी से अपना रिश्ता नहीं सुधरा हैं। जो कुछ भी मैंने किया दिल से किया हैं। आगे ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जिससे दीदी को कोई कष्ट पहुंचे। आप ख़ुद ही सोचिए हमने कितना बुरा किया। आप अपने बनाए योजना को अंजाम देने के लिए दलाल के साथ मिलकर न जाने कितने निरीह लोगों को मौत के घाट उतर दिया। अपने कितनी बार रघु के रिश्ते को जुड़ने से पहले तुड़वा दिया और मैं बिना सोचे समझे आप'का साथ देती रहीं। आज मुझे समझ आया मै कितनी गलत कर रहा था। (मन में भाले ही मैं कुछ काम अपने भाई के कहने पर किया था लेकिन किया तो गलत ही था) आज देखो हमारे नक्शे कदम पर हमारा बेटा चल पड़ा हैं। अभी भी समय हैं। अपने कदम पीछे खींच लो नहीं तो हमारा बना बनाया सभी रिश्ता खत्म हों जाएगा।

रावण...सुकन्या लगता है तुम्हे किसी ने सम्मोहन विद्या से अपने बस में कर लिया हैं। इसलिए तुम ऐसा कह रही हों। लेकिन तुम एक बात सुन लो मैं अपना कदम पीछे नहीं खीचूंगा चाहें कुछ भी हों जाए।

सुकन्या...ऐसा लगना स्वाभाविक है जब किसी से ऐसी बात की उम्मीद न हो और वो अचानक ही ऐसी बाते करने लगें तो सभी को लगता है वो किसी के सम्मोहन शक्ति के बस में हैं। लेकिन ऐसा नहीं हैं। मैं आप'को ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि किसी अपने ने मुझे अहसास करवा दिया अब तक जो मै करती आ रही थीं वो सभी गलत ही करती आ रही थीं। (मन में मै अब तक सम्मोहन शक्ति के बस में थीं जो टूट गया हैं। मैं अपने भाई के कहने पर ऐसा कर रही थीं लेकिन उसने मुझे अहसास करा दिया मैं उसका साथ देकर गलत कर रही थीं। जिसने कभी मुझे अपना बहन माना ही नहीं लेकिन मैं चाहकर भी उसकी सच्चाई नहीं बता सकती।)

सुकन्या रावण को समझा रहीं थीं लेकिन रावण समझने के जगह कुछ और ही सोच रहा था (सुकन्या तो पूरी तरह बादल गई। कभी सोचा न था सुकन्या कभी ऐसा कहेंगी। इसकी बाते सुनकर लग रहा हैं ये अब किसी भी काम में मेरा साथ नहीं देगी। साला आया था रघु की शादी कैसे तुड़वाई जाए इस पर बात करुंगा लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रहीं है बहने दो उल्टी गंगा अब जो कुछ भी करुंगा मैं अकेले ही करुंगा और सुकन्या से भी छुपा कर रखूंगा कही पता चला किसी दिन इसने दादा भाई और भाभी को सब सच सच बता दिया। नही नही मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मै इतनी दूर तक आकर नहीं रूक सकता। इससे ओर ज्यादा देर तक बात करना सही नहीं होगा नहीं तो खुद की तरह मेरा भी मानसिक परिवर्तन कर देगी।

मन ही मन बाते करने के बाद सुकन्या से बोला…अच्छा तुम कहती हो तो मैं मान लेता हूं और अपना कदम पीछे खींच लेता हूं चलो अब सो जाते है रात बहुत हो गया।

सुकन्या...आप कदम पीछे लेने की बात मन से कह रहे हों कि नहीं ये मैं नही जानती लेकिन अगर आप ऐसा सच में करेगें तो हमारे और हमारे परिवार के लिए अच्छा होगा। कई रिश्ते टूटने से बच जाएगा और शायद कुछ अनहोनी होने से टाल जाए।

रावण मन में (साला बीबी नहीं ज्ञान की देवी हों प्रवचन पे प्रवचन दिए जा रहीं हैं। इसकी बात सुनता रहा तो सच में मेरा मानसिक परिवर्तन हों जाएगा। रावण जितना हो सके इसकेे बातो को सुनने से बच, नहीं तो पाने से पहले सब खो देगा।)

फिर रावण बोला...सुकन्य सच में मै तुम्हारी बातो से प्रभावित हो गया हूं और अपने विचार बदल दिया चलो अब सोने चलते हैं।

सुकन्या एक खिली सी स्माइल देखकर बिस्तर सही करने लग गईं और रावण मन में बोला "बच गया जो मान गई नहीं तो आज तो अनर्थ ही हों जाता। इससे बच कर रहना पड़ेगा। कल ही कुछ न कुछ सोचना पड़ेगा नहीं तो रघु की शादी हो जाएगा। मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रह जाऊंगा।"

अगले दिन एक नई सुबह नई उम्मीद लेकर आया। घर का माहौल सौहार्द पूर्ण बना हुआ था। सुबह नाश्ता से निपटने के बाद रावण बोला..दादा भाई आज कुछ जरुरी काम हैं।

राजेंद्र...नहीं तो बस निमंत्रण पत्र आ जाएं उसके बाद फिर से भगा दौड़ी शुरू।

रावण…ठीक हैं। मेरा कुछ जरुरी काम हैं जल्दी से उसे निपटा लेता हूं।

राजेंद्र...ठीक हैं लेकिन जल्दी से निपटा ले हों सकता हैं निमंत्रण पत्र दोपहर तक आ जाएगा फिर निमंत्रण पत्र बांटना शूरू करना हैं। आज ओर कल में जितना बांटता हैं। बांट देंगे बाकी का तू और मुंशी बांट देना। हम परसों कलकत्ता वापस जा रहे हैं तू निमंत्रण पत्र बाटने के बाद आ जाना।

रावण ने हा कहा फिर घर से चले गए। रावण सीधा जा पहुंचा दलाल के घर दलाल को एक शॉक के साथ रघु की शादी का खुशी वाला खबर दिया ये सुनकर दलाल तिलमिला उठा ओर बोला...साला मैं बिस्तर पर किया लेटा यह तो पाशा ही पलट गया तेरे भाई ने सही चल चला बिना किसी को खबर दिए शादी तय कर आया। बहुत बडा गेम खेल गया।

रावण...जो गेम खेलना था दादाभाई ने खेल लिया अब बता आगे किया करना हैं। शादी नहीं रुका तो हमारे किए कराए पर पानी फेर जाएगा। एक बार फ़िर से नए सिरे से योजना बनाना पड़ेगा।

दलाल...करना किया हैं वोही पुरना वाला पैंतरा आजमाते हैं। किसी को भेजते हैं। रघु की बुराई कर उसके होने वाले ससुर की कान भर देंगे फिर न बनेगा ससुर न बनेगा रघु दामाद।

Haaaaaa haaaaaa haaaaa दानवीय हसी दलाल के पूरे घर को दहलाने लग गया। हसी इतनी भयानक और दिल को दहला देने वाला था। जिसे सुनकर संभू और बाकि नौकर भागे भागे दलाल के कमरे में आ गए। दोनों को हंसते देख बाकी नौकर तो चले गए लेकिन संभू छुप कर दलाल और रावण की बाते सुनने लग गया।

रावण…अब की बार रघु की शादी टूटा तो दादाभाई किसी को मुंह दिखने के काबिल नहीं रहेंगे। मुझे तो लगता हैं कहीं दादा भाई पूरे परिवार सहित आत्महत्या न कर ले।

एक बार फिर से दानवीय हसी का भयबहा गूंज पूरे घर को हिलाने लग गया। संभू जो छुप कर सुन रहा था। वो मन ही मन बोला…रावण तुझ जैसे कमिने भाई को राजा जी के घर जन्म ही नहीं लेना चाहिए था। तुझे तो तेरे जैसे किसी दानव के घर जन्म लेना चाहिए थे। जिनके लिए सिर्फ अपना सार्थ सिद्धि ही सबसे पहले हैं। एक बार मुझे पता चल जानें दे तुम दोनों क्यों ऐसा कर रहे हों उस दिन मैं तुम दोनों को अच्छे से सबक सिखाऊंगा।

रावण की बाते सुन कुछ क्षण तक दोनों दनवीय हसी हंसकर पूरे घर को दहलाते रहे फिर हसी रोक कर दलाल बोला...अरे तेरा भाई इतनी जल्दी नहीं मरने वाला बहुत शक्त जान हैं बहुत से अच्छे काम किए हैं बहुत लोग उसके जान की सलामती की दुआ मांगते हैं।

रावण...मांगने दे देखते हैं कब तक उनकी दुआएं काम आता हैं। आज कल उनको दुआओं की ज्यादा जरूरत हैं। अच्छा तू आराम कर मुझे रघु की शादी का निमंत्रण पत्र बाटने जाना हैं।

दलाल...जल्दी जा जितना ज्यादा रघु की शादी का निमंत्रण पत्र बांटेगा उतना ही बदनामी शादी टूटने के बाद होगा।

एक बार फिर से दानवीय हसी की गूंज सुनाई दिया। कुछ क्षण हसने के बाद रावण दलाल से जानें की बात कहा। रावण के जाने की बात सुन संभू चुप चाप खिसक गया। कुछ देर बाद रावण भी चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
 

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