Incest अनोखे संबंध

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Komal raghu hoke dekhti hai raghu apne chehre pe ek shararati muskan le ke khada tha.

"Haan mousi. Mere paas jo gadhe ka musal land hai usse tumhe jo maja milega woh maja tumhe ramu bhi nehi sakta"

"Accha.apne land pe tujhe bada naaz hai raghu! "

"Agar yakeen na aaye to khud dekh lo mousi! "

Yeh kehte huye raghu apni pant khol ke niche utar deta hai. Fir usse jo cheez ekdam se fudak ke samne aati hai usse sach me komal hayraan ho jaati hai. Raghu ka land sach me bhimkay tha. Yun to land ki tareef me koi keh deta hai gadhe ka land ya ghode ka land. Lekin raghu ka sach me gadhe ka land hi tha. Komal dari sehmi hui uspe haath dete huye thoda masaaj karti hai jis raghu ka land aur jyada fanfanane laga.

"Kyon mousi! Hai na kamal ka land? "

"Are ise Tu land bolta hai. Eh to sach me gadhe ka hi land hai. Hay daiiya! Eh to mere haath me bhi sama nehi raha. Itna mota! Ek haath ka land leke Tu kaise sambhalta hai?"

"Haan mousi badi dikkat hoti hai. Ab to ise sambhalna bhi mere liye mushkil hota hai. Hamesha jee karta hai kisi ki choot me pel doon. Aur jaam kar chod ke birye nikal doon. Aaahhhh mousi bada maja aa raha hai. Thoda tej tej hilao na! Aaahhh aaaaahhhh! "

"Raghu! Tere is land ke layak sach me koi ladki payda nehi hui. Accha hua ke tu apni maa se hi shaadi kar raha hai. Ek maa hi apne bete ke is land ko apni choot me le payegi. Haaye re kitna bhayanak lag raha hai re eh musal!"

"Haan mousi pata hai. Tabhi to main kisi laoundi ke chakkar me padhta nehi. Mujhe pata hai eh land koi aurat hi le sakti hai. Aur woh tum ho aur meri maa hai."

"Nehi re raghu! Main tere se chudwa nehi sakti. Kam se kam ramu se shadi se pehle to nehi. Woh bechara kitni aas lagaye baitha hai mujhe suhagraat me chodne ke liye. Agar use pata chala ke main ne tere se chudwa liya hai to use bahut dukh pahnchega. Lekin main wada karti hoon meri shaadi ke baad main Tere is bhimkay land jarur chudwaungi."

"Aaahhh mousi! Zara tej tej haath chalao na. Bahut maja aa raha hai. Aaahhhh kash abhi tumhe ek baar chod leta. Lekin thik hai main tumhe tumhari shadi ke baad hi chodunga.""

"Main tera intezar karungi raghu is land chudwane me" Komal tej tej haath hiltai rehti hai aur raghu wahin khada khada hi kuch der baad tej dharo ke saath aple land se jhar jata hai.
 
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कोमल के साथ साथ राधा भी अब अपनी शादी की तैयारी में लगी हुई थी। उस की चिंता थी की शादी के बाद वह कौन से कमरे में रहा करेगी। जब उसका बेटा रघु शादी के बाद उसका दूल्हा या पति बन जायेगा तब तो उसी के साथ एक ही कमरे में उसे स्त्री धर्म का पालन करना पडेगा। उसने सोचा क्यों न कोमल की तरह वह भी अपना कमरा अलग सा इन्तज़ाम करले। ताकी वह और रघु एक अलग जगह पर रहें। लेकिन इतनी जल्दी उसका इन्तज़ाम करना कठिन था। इस लिये वह कमरों की सेटिंग करने में लग गई।

राधा इन दिनों में काफी शर्म महसूस करती रहती है। उसे इस बात का जब भी एहसास होता के वह अब अपने इस नए पति के साथ रहने लगेगी और उसे वह सब कुछ करना पडेगा जो एक नई बहू या पत्नी को अपने पति के लिये करना पड्ता है वह मारे शर्म के अकेली तन्हाई में हँसती रहती।

अब तो उसकी बेटी रेखा भी उसे छेड़ने को लगी रहती। रेखा उसके साथ कमरे की सेटिंग करने में मदद कर रही थी। इसी काम करने के बीच बीच रेखा उसे कहती:" माँ तुम शीशा यहां पर लगा लो। यहां से तुम्हें पुरा नजारा दिख जायेगा।" रेखा हँसती रहती।

"तु ना बहुत बदमाश हो गई है। मुझे तो लगता था की मेरे से पहले तेरी शादी होनी चाहिये थी।"

"अब घर का बड़ा मेरा भाई है तो उसकी शादी तो पहले होनी ही थी। मैं तो बहुत खुश हूँ। आखिर मुझे मेरी भाभी मिल जायेगी। है ना?"

"भाभी? और मैं?"

"क्यों नहीं? तुम मेरे भाई से शादी करने जा रही हो तो हुई ना मेरी भाभी।"

"देख रेखा! तेरा अगर जी करेगा तो मुझे अकेले में भाभी बोल देना। लेकिन रघु या किसी और सामने मुझे भाभी मत बोलना। मुझे बहुत शर्म आयेगी।"

रेखा अपनी माँ राधा को पीछे से पकड़ते हुई छेड़ती है। "ओय होय!! मेरी भाभी तो अभी से इतना शर्मा रही है। फिर शादी के बाद रोज रोज रात को मेरे भाई को प्यार केसे दोगी? केसे अपने पति का ख्याल रखोगी? जब मेरा भाई मेरे इस फुल जेसी भाभी को पेल पेल के चोदेगा तब केसे झेल पाओगी? क्या तब भी तुम्हें इतनी ही शर्म आया करेगी? बोलो मेरी भाभी!!"

"रेखा! छोड़ मुझे। रुक, रघु को आने दे उससे कह के आज ही तुझे चुदवा दूंगी। तेरी यह खिल्ली तभी मिटेगी।"

"अरे मेरी प्यारी भाभी! क्या तुम झेल पाओगी अगर तुम्हारा होने वाला पति मुझ चड जायेगा?"

"मुझे तो लगता है तेरा भी दिल करता है की तेरा भाई रघु तुझे चोद दे। है ना?"

"अरी माँ! अब तुम ने जब पुछ ही लिया तो बता देती हूँ। हाँ! जी तो मेरा बहुत करता है की रघु मुझे चोद दे या मैं उससे चुदवा लूँ। लेकिन सिर्फ तुम्हारे खातिर मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया। मेरी चूत अभी भी क्ंवारी है। लेकिन इस की वजा यह नहीं की मुझे उस से चुदाई नहीं करनी। बल्कि मैं चाहती थी कि रघु मुझ से पहले तुम्हें चोदे। क्यों की रघु को मुझे चोदने की जितनी इच्छा है उससे कहीं ज्यादा वह तुम्हें चोद के खुश होना चाहता है।"

"एसा क्यों?" राधा ने पुछा।

"वह इस लिये मेरी माँ! क्यों की तुम्हारे उस गधे जेसे लडके का लण्ड किसी इन्सान का लण्ड नहीं है। तुम्हारा वह होनहार लड़का जिस तरह गधा है उसी तरह उसका तना हुया लण्ड किसी गधे के लण्ड से कम नहीं। इसी वजा से मैं ने उस लण्ड को अपनी चूत में लेने की हिम्मत नहीं की। क्या पता उस एक चुदाई से ही मेरी चूत एक बच्चे की माँ की तरह बन जाये। इसी वजा से मैं चाहती थी की रघु मेरे से पहले तुम्हें चोद ले।"

"हाए!! क्या तू सच कह रही है? रघु का वह इतना लम्बा और मोटा है?"

"हाँ माँ। मैं सच बोल रही हूँ। मेरे भाई का और तुम्हारे होने वाले पति का लण्ड एक हाथ लम्बा और उतना ही मोटा है। तुम्हें एक बात बताती हूँ माँ! भाई को मत बताना की मैं ने कहा। आज तक रघु ने जितनी भी औरतों को चोदा है वह सब या तो गदराई औरत थी या वह औरतें कई बच्चों की माँ थी। क्यों की यह बात रघु को भी पता थी उसका लण्ड कोई जवान लड्की पहली ही बार अपनी चूत में नहीं ले सकती। और इसी वजा से रघु सिर्फ तुम्हें अपनी पत्नी के रुप में पाना चाह रहा था।"

"एसा क्यों?" राधा भोली बनके पूछती है।

"एसा इस लिये मेरी माँ! क्यों की लडके का लौड़ा किसी की चूत मेँ जाये या ना जाये अपनी माँ की चूत में जरुर घुस जाता है। इस वजा से मेरे भाई का लण्ड सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी चूत के लायक ही है। कोई दुसरी औरत उस लण्ड को झेल नहीं सकती। लेकिन तुम्हारी चूत रघु का लण्ड आसानी से घुसा लेगी। हाँ। पर शुरु में तुम्हें थोडा बहुत दर्द जरुर होगा। फिर मेरी इस भाभी को इतना मजा आयेगा की उसकी नई जींदगी शुरु होगी।"

"रेखा ! एक बात पूछूं तुझ से?"

'हाँ। पुछ लो। क्या बात है?"

"तुझे क्या लगता है रेखा! अगर मेरी और रघु की शादी होती है और मैं रघु की पत्नी बनती हूँ। तो क्या मैं खुश रह सकूंगी? क्या रघु एक पति बन कर मुझे वह प्यार, वह सम्मान और अधिकार दे पायेगा जो एक बीबी या पत्नी को मिलनी चाहिए? क्या मैं भी उसे एक बीबी और पत्नी बनके उसे वह प्यार दे पाऊंगी जो उसे चाहिए? तुझे क्या लगता रेखा?"

"देखो माँ! तुम्हारा एसा सोचना स्वभाबिक है। एसा तो मुझे भी लगता है की मेरे साथ जिसका विवाह होगा क्या वह भी मेरा इसी तरह ख्याल रखेगा या नहीं! लेकिन तुम बिल्कुल भी टेंशन मत लो। रघु का एक ही सपना है की तुम्हें पत्नी के रुप में हासिल करना। जब उससे तुम्हारा विवाह होगा तुम दोनों खुश हो जाओगे। वह तुम्हारा एसे ही ध्यान रखेगा जेसे एक पति अपनी पत्नी का रखता है। वह तुम्हें बहुत प्यार देगा। लेकिन हाँ उसे भी तुम बहुत प्यार देना ता की उसे बाहर किसी औरत के पास ना जाना पडे। मेरा भाई और तुम्हारा होनेवाला पति चुदाई का भूखा है उसे हर रोज चुदाई करने देना। और एकबार नहीं। एक दिन में कई कई बार। समझी मेरी प्यारी भाभी!"

"तू ना बड़ी शरारत कर रही है। तुझे मैं क्या पुछ रही हूँ और तू घूम फिर के उसी चुदाई में अटकी पडी हुई है।"

'"हाँ तो सही तो कह रही हूँ।"

"बड़ी आई सही कहनेवाली। घर का इतना सारा काम पड़ा है और तुझे बातें सूझ रही हैं। चल अब काम पे लग जा। कल तेरी मौसी की शादी है। जरा मैं भी उसे देख के आऊँ बेचारी ने सब कुछ ठीक कर लिया की नहीं?"

"हाँ हाँ अब तो मेरी जरुरत काम के लिये बची है। जाओ जाओ तुम चली जाओ अपनी उस सहेली के पास।" रेखा जाते जाते बड़ बड़ करती हुई गई:" दोनों सहेली अपने बेटों से चुदवाने की तैयारी कर रही हैं और मैं उनकी मदद करती फिर रही हैं।"

राधा अपनी बेटी की इस बात पे मुस्कुराते हुई कोमल के घर चली गई।
 
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कोमल अपने आने वाले दिनों को ले कर ख्वाब सजा रही थी। जब उसने राधा को अपने घर आते देखा वह खुश हो गई।

राधा उसे छेड़ते हुई कहती है: "क्या बात है मेरी कोमल रानी! अब रहा नहीं जा रहा है क्या?"

"सच में राधा अब तो बिल्कुल भी धीरज रखा नहीं जाता। शीतल की शादी के बाद तो मैं और ज्यादा उतावली होती जा रही हूँ।"

"हाँ वह तो है। अपनी बेटी और अपने पिछ्ले पति को चुदते देख कौन औरत बर्दाश्त कर सकती है? बता! मुझे तो लगता है तुम्दोनों भी अगर एक হায় मंडप पे शादी कर लेते तो अच्छा होता। एक ही घर के सब के सब चुदाई में ब्यस्त रहते। ही ही ही।"

"चल छोड़ अब बस कल का ही दिन है। तू देख तो सही मैं ने कमरा केसे सजाया है?"

"अच्छा सजाया है। लेकिन घर से भी ज्यादा अहम है की तू खुश रहे। तुझे तेरा बेटा खुश रखेगा ना? मेरा मतलब है की जिस चीज के लिये तू शादी कर रही है वह तुझे मिल पायेगी ना? रामू तुझे तन मन से क्या वह प्यार दे पायेगा जो तेरा पति नहीं दे पाया?"

कोमल लज्जाते हुई बोलती है: "हाँ। उम्मिद तो पुरी है। लेकिन पता तो मुझे सुहागरात में ही चलेगा!"

"क्या रामू का लण्ड तुने पहले कभी देखा है?" राधा फुसफुसाती है।

"उम्ममम्म! देखा तो है। उसका लण्ड काफी अच्छा है। कम से कम कमलनाथ से तो बड़ा ही है। अब जवान खुन है। पता नहीं कितनी देर टिक पायेगा। एक बात बोलूं बुरा मत मानना। मेरे बेटे से तेरे बेटे का लण्ड ज्यादा बड़ा और मोटा है।"

"सच में" राधा जान बूझ कर हेरान होती है।

"हाँ री राधा! मैं ने जब उस लण्ड को देखा तब से ही मुझे तेरी फिक्र होने लगी थी। चल में तो जैसे केसे रामू का लण्ड ले ही लुंगी। लेकिन राधा जरा सोच तू पहली बार में वह भीमकाय लण्ड केसे ले पायेगी अपनी चूत में? माना एसे लण्ड से चुदवाना हर औरत का सपना होता है। लेकिन शुरु शुरु में तुझे बहुत तकलीफ होगी। देख लेना!"

"अब क्या किया जाये बता कोमल! अब तो मैं रघु की पत्नी बनने जा रही हूँ। और एक पत्नी का धर्म होता है उसके पति को खुश करना। तभी मैं भी खुश रह पाऊंगी। लेकिन तू चिंता मत कर रघु का लण्ड अगर भीमकाय है तो उसकी माँ की चूत भी गुफा समान है। आखिर वह मेरा ही लड़का है। मैं ने ही उसे अपनी इस चूत से जनम दिया है। अगर मेरी चूत में उसका लण्ड नहीं जायेगा तो किस की चूत में जायेगा बता!"

"माफ कर दे मेरी बहन! तेरी चूत और तू दोनों ला जवाब है।" दोनों सहेली इस बात पर हँसती रहती है।

शाम हो चुकी थी और कोमल के घर पर सभी शादी की तैयारियों में लगे थे। कोमल अपने कमरे में थी। जहाँ राधा उसे सजा रही थी। उसके साथ रेखा और शीतल भी मौजूद थीं। दोनों आपस में कानाफुसी कर रहे थे। राधा उसको तैयार करने के बाद उसका चेहरा पकड़ के कहती हैं:" आय हाय!! मेरी कोमल रानी। तू तो अपनी पहली शादी के दिन भी इतनी खुबसूरत नहीं लगी होगी।"

"हाँ मौसी तुम ने सही कहा। मेरी माँ तो कामदवी लग रही है। है ना रेखा।" शीतल कहती है।

"शीतल सही में आज तो कोमल मौसी जिस तरह से सज धज के तैयार हूई है पता नहीं तेरा भाई रामू मौसी का क्या हाल कर दे।"

तीनों की हंसी पर कोमल मुंह खोलती है:" अरे कम से कम आज तो मेरी थोडी इज्जत कर लो तुम सब।"

"ओह हो! मेरी कोमल रानी तो शर्मा गई। कुछ देर बाद जब तेरा बेटा पति बन कर तुझ पर चडके तुझे आर पार कर देगा तब तेरी यह शर्म कहाँ जायेगी?"

"ठीक है। मैं भी देखूँगी। तेरी शादी के दिन मेरी भी बारि आयेगी।"

"क्या मौसी तुम भी ना! आज के दिन तो गुस्सा थूक दो।"
इसी दौरान कमलनाथ बाहर से आवाज लगाता है " तैयारी हो गई हो तो बाहर आ जाओ। पंडित जी आ गये हैं।"

कोमल को लेकर राधा और रेखा बाहर आती हैं। जहाँ मंडप पे पहले ही से रामू के पास रघु बेठा था। कोमल जा के रामू के बगल में बेठ जाती है। पण्डित जी मन्त्र पढ्ने के बाद दोनों को अग्नी के सात फेरे लेने को कहते हैं। फिर जब दोनों एक दूसरों को माला पहनाते हैं तो पण्डित जी कहते हैं: "बधू का कन्यादान कौन करेगा?"

कमलनाथ आगे बढते हुये:"मैं करूंगा।"

कमलनाथ ने जब कोमल का हाथ पकड़ा तो कोमल कुछ कांप उठी। उसे शर्म और लज्जा आने लगी। कमलनाथ ने कोमल का पकड़ के रामू के हाथ में देते हुए कहा:" बेटा कल तक यह मेरी पत्नी थी। मैं ने तेरी माँ को खुश रखने की पुरी कोशिश की है। लेकिन आज से यह तेरी धर्मपत्नी है। अब उसका ख्याल और जिम्मेदारी तेरे उपर है। अपनी बीबी को हमेशा खुश रखना।"

कमलनाथ वहां से हट जाता है। पण्डित जी कहते हैं:"अब से आप दोनों पति पत्नी हुए। भगवान आप दोनों को खुश रखे।"

शादी की रस्म अब पुरी हो चुकी थी। कोमल ने कमलनाथ को तन्हाई में बुला कर कहा:" अब तुम घर चले जाओ। तुम्हारे सामने मुझे बहुत ही लज्जा आ रही है।" जिस से कमलनाथ अपनी बेटी संग घर लौट जाती है।

कोमल को लेकर राधा उसके सुहागरात वाले कमरे में छोड़ने आती है। जहाँ रघु भी रामू को लेकर आ जाता है। कोमल के पास बेड पे रामू बेठ जाता है।

दोनों को सामने बिठा कर राधा बोलती है:'" देख रामू। अब यह तो असली जिन्दगी शुरु होती है। अब तू क्ंवारा नहीं रहा। अब तू शादीशुदा बन चुका है। और यह रही तेरी लोग्नी। तेरी बियाही पत्नी। इसी के साथ तुझे अब जिन्दगी गुजारनी है। आज तुम्हारी सुहागरात है। इस रात को तुम दोनों एक दुसरे को प्यार करो। क्यों की यह रात एक ही बार आती है।"

"और रामू मेरे दोस्त! मेरी इस भाभी को आज रात एसी खुशी देना की इनकी चीख मेरे घर तक सुनाई दे। आज के बाद मैं तुम्हें भाभी कह कर ही बुलाया करूंगा।"

"रघु इन्हें छेड़ा ना कर। कोमल अब हम चलते हैं। लेकिन कल आके मैं पूछूंगी की मेरी इस बहन को आज रात कितना मजा आया। रामू आज रात अपनी इस नई बीबी को सोने मत दे ना। ठीक है?"

"मौसी! तुम चिंता ना करो। तुम्हारी बहन और अपनी नई नवेली दुलहन को मैं आज रात बिल्कुल भी सोने नहीं दूँगा। पुरी रात मैं तुम्हारी इस सहेली को पेलता रहूंगा।"
 
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राधा और रघु के चले जाते ही रामू उठ के कमरे का दरवाजा लगा देता है। वह फिर से अपनी दुलहन बनी माँ के पास बेठता है। कुछ देर चुप रहने के बाद कोमल बोल पडती है:"क्या हुया रामू! मेरा घूंघट नहीं उठायेगा क्या?"

रामू हडबडी में कह पड्ता है:"हाँ हाँ। उठा रहा हूँ।"
यह कहकर वह अपनी नई नवेली दुल्हन की घूंघट उठाता है। अन्दर उसका ही जाना पहचाना चेहरा था, लेकिन आज वह चेहरा किसी सुन्दर प्रतिमा से कम नहीं लग रही थी। इस रुप में रामू ने कभी अपनी माँ को नहीं देखा था। इस लिये इस रुप और सौंदर्य में अपनी माँ को देख कर उसे अपने अन्दर का प्यार दिखता है।

"क्या हुया रामू! तू घबरा रहा है क्या?" कोमल मुस्कराहट के साथ रामू का हाथ पकड़के पूछती है।

"असल में मुझे अपने उपर यकीन नहीं हो रहा है कि सच में तुम्हारी और मेरी शादी हो चुकी है और अब हम पति पत्नी भी बन गए हैं।"

"तो यह बात है! मेरा पति मुझे पा कर इतना खुश हो गया ! अरे बाबा! हाँ। अब मैं सच में तेरी दुलहन बन गई हूँ। तेरी बीबी हो गई हूँ। और तेरी पत्नी भी। कल तक तेरे बापू का जो जो अधिकार मेरे उपर था अब वह सारे अधिकार तेरे भी हो गए हैं। समझा?"

"अच्छा! तो क्या तुम्हें चूम सकता हूँ? इस तरह!" रामू यह कहकर कोमल के हाथों को चूम लेता है।

"हाँ।। क्यों नहीं"

"और इस तरह" रामू झट से अपना मुंह कोमल के गाल के पास ले जा कर उसके गाल पे एक चुम्मा लगा देता है।

कोमल थोडी शर्मा जाती है। "हाँ इस तरह भी" और वह रामू की और प्यार भरी निगाहों से देखती रहती है।

"तो इस्का मतलब है मैं अब अपनी पत्नी को इस तरह भी चूम सकता हूँ।" रामू यह कहते हुए अपने होंठ अपनी माँ की होठों के साथ मिला देता है। और रामू एक प्यासे आशिक की तरह अपनी माँ बनी दुल्हन के होठों पे टूट पड्ता है। कोमल के लिपस्टिक लगे हुए मुलायम होठों को रामू किसी भुके की तरह काट खाए जा रहा था। दोनों एक दुसरे को माँ बेटा कम, एक प्रेमी प्रेमिका की तरह होंठ चूमने में लगे हुए थे।

दो चार मिनट के बाद जब दोनों कुछ शान्त हुए तो एक दुसरे की तरफ देखने लगते हैं।

कोमल पूछती है:"क्या हुया मेरे पति को! एसे क्या देख रहा है?"

"तुम्हारा जवाब नहीं माँ। तुम्हारे होंठ तो गुलाब के पत्तियों को भी मात दे दे। इतनी मुलायम है यह!" रामू कोमल के होंठों पर उंगलियाँ फेरता है।

"तो मुझे चूम कर मेरे पति को अच्छा लगा। है ना?"

"बहुत। बता नहीं सकता। मुझे इसकी मिठास और चाहिए और हमेशा चाहिए। दोगी ना मुझे?"

"बिल्कुल दूँगी। और हमेशा दूँगी। मैं ने कहा ना जो जो अधिकार मेरे पहले पति के थे वह सारे अधिकार अब……….." कोमल बात पुरी नहीं कर पाई की रामू ने अपने होंठ फिर से कोमल के होंठों से चिपका दिया। कोमल भी मानो इसका इन्तज़ार कर रही थी। दोनों एक दुसरे के गले लग के बेतहाशा चूमे जा रहे थे। चूमने की तिब्र्ता इतनी थी की बहुत जल्द कोमल सांसे फूलने लगती है। जहाँ रामू का लण्ड खडा हो कर सलामी दे रहा था।

दोनों की इसी बेतहाशा प्यार में कोमल की आँचल भी सरक के एक तरफ हो गई। जिस से कोमल के बड़े बड़े मम्मे और दुध जो ब्लाऊज में फंसे हुए बाहर आने को मचल रहे थे। दोनों चुम्मा चाटी में इतने ब्यस्त हो जाते हैं की उन्हें पता ही नहीं चलता की कब वह दोनों बैड पर गिर पडे। रामू को जब उभरती हुई मम्मे नजर आती है वह उन्हें अपने हाथों से हल्के से दबाने लग जाता है। जिस से कोमल को और मजा आने लगता है। रामू अब होठों से होता हुआ गले पे फिर सीने पे और फिर अपनी माँ के इन बड़े बड़े मम्मे की बीच में अपना मुंह डाल देता है। और सूंघने के साथ साथ वहां भी चुम्मा चाटी करने लगता है।

"रामू! मेरे पति! मेरे लाल। अपनी माँ को बहुत प्यार कर। अब मैं तुझे नहीं रोकूँगी। तुझे जितना मर्जी मुझे प्यार करने का कर लेना। अब मैं पुरी तरह से तेरी बन चुकी हूँ। अआह आह अह्ह उम्म उम्म। तेरे इस तरह चूमने से भी मैं सिहर जा रही हूँ रामू। आह आह।" यह कहती हुई कोमल रामू का सिर पकड़ के अपने दुध के बीच रखके रखती है।

रामू नजरें उठा कर अपनी माँ को देखता है। कोमल भी उसकी आंखों में देखती रहती है। दोनों इस एक दूसरे को देखते ही कोमल शर्मा जाती है। "क्या हूआ?" कोमल का सवाल।

"मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ माँ!"

"देख तो रहा है?"

"इस तरह नहीं। एक दूल्हा अपनी दुल्हन को जिस तरह देखता है उस तरह देखना चाहता हूँ। जिस तरह एक पति अपनी पत्नी को देखता है उस तरह!"

"और वह भला किस तरह होता है?"

"एक पत्नी अपने पति के पास बिना कपडों के बिल्कुल नंगी होती है। बस इसी तरह।" रामू हवस भरी नजरों से कोमल को देखे जा रहा था।

"मैं ने कब मना किया बुद्धुराम!" कोमल रामू की नाक पकड़ के मोड़ देती है। "आज तो हमारी सुहागरात है रामू। और मैं ने अपने आप को तुझे सौंपने के लिये ही तो तुझे से शादी करी है।"

"अच्छा! तो मेरी माँ! मतलब मेरी दुल्हन भी बेकरार हो रही है की मैं कब उसके कपड़े निकाल के नंगी कर दूँ। है ना?"

"हाँ मेरे पतिदेव! तुम्हारी पत्नी की भी यही इच्छा है की जल्द से जल्द तुम उसे नंगी देख लो। आखिर देख तो लो जिस के लिये तुम मुझे पाना चाह रहे थे वह सब कुछ तुम्हारे लायक है भी या नहीं?"

"एसा हो ही नहीं सकता कि मैं ने जैसा सोच रखा है वैसा ना मिले। आखिर देख ही लेता हूँ।" यह कहता हुआ रामू कोमल के घाघरा का नाड़ा ढिला करता है और पैरों की तरफ से ही उसे एक झटके में खींचता हुया निकाल लेता है। जिस से कोमल सिवाए एक पैन्टी के नीचे से बिल्कुल नंगी हो जाती है। अब सिर्फ उपर ब्लाउज था। उसे भी रामू बड़े प्यार से खोल देता है। अब कोमल नीचे से पेंटी और उपर ब्लाउज में पडी थी। उसे शर्म तो आ रही थी। लेकिन हवस में वह शर्म भी एक तरफ हटी हुई नजर आ रही थी।

रामू उसे गौर से देखता रह्ता है। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि इस शरीर की मालकिन उसकी माँ है। अब पति होने के नाते इस शरीर का मालिक वह है।

"क्या देख रहा है मेरे लाल! पसंद नहीं आया क्या?" अपने शरीर पर कामुक हाथ फेरती हुई कोमल बोली।

"आय हाय!! क्या खजाना छुपा रखा था तुम ने मेरी माँ! मैं तो इसी के लिये तुम्हारा दीवाना बन गया था। की कब तुम्हारे इस शरीर का कब्जा मेरे हाथ आयेगा। क्या बला की खुबसूरत लग रही हो। तुम्हें देख के लग ही नहीं रहा की तुम ने मुझे और शीतल को जनम भी दे चुकी हो। तुम तो अब भी कितनी मस्त लग रही हो मेरी जान। मैं तो तुम्हें खा जाऊंगा।" यह कहता हुआ अब रामू भी अपना कपडा खोल के अब सिर्फ क्च्छा और सेंडो बनयान में आ गया था। कोमल के उपर किसी शेर की तरह वह हमला आवर होता है। शरीर के हर हिस्से को रामू मारे खुशी और पागलपन के चुम्ता रह्ता है। इसी बीच उस ने ब्लाऊज भी खोल दिया। जिस से कोमल के बड़े बड़े दुध की टंकी उछल के लटक जाते हैं। रामू दोनों दुध को कभी चुस्ता कभी काटता कभी अपने हाथों से खेलता और कभी मस्ती में देखता ही रह्ता है।

कोमल को एसा प्यार करनेवाला पति मिला यह एहसास होते ही वह भी उसके प्यार में निढ्ल हो गई।

"माँ! यह तुम्हारे दुध बिल्कुल मेरे लायक है। मुझे एसे बड़े बड़े लटके हुए दुध बड़े अच्छे लगते हैं।"

"कहाँ मेरे अच्छे हैं! जवान लड़कियों के दुध तो सुडौल होते हैं। मेरे तो लटक गए हैं।"

"मुझे नहीं पसंद सुडौल दुध। मुझे तो एसे ही पसंद है।" रामू बारि बारि दोनों मम्मे को दबाता और फिर चुस्ता रह्ता है।
"कितना अच्छा होगा ना जब इनमें दुध आयेगा! बड़ी छाती होने का फाएदा ही यही की इनमें दुध भी भर भर के आता है! है ना माँ!"

कोमल रामू की आंखों में शरारत और मासूमियत दोनों देखती है। वह अभी पडी थी और रामू उसकी छाती से चिपका हुया एक बच्चे की तरह दुध को चुस रहा था।

"मेरे भोले पति! मेरी इस उम्र मेरी छाती में से दुध कहाँ से आयेगा जरा बता!" वह रामू के सिर पे प्यार से हाथ फेरती है।

"क्यों जब बच्चा होगा तब तो दुध भी आयेगा ना!"

"तो तुझे बच्चा भी चाहिए? दुध पीने के लिये?"

"नहीं मेरी माँ! मुझे बच्चा दुध पीने के लिये नहीं। बल्कि किसी और वजा से चाहिए। तुम नहीं समझोगी!"

"मेरे बच्चे! बच्चा पैदा करना कोई खेल नहीं। बच्चा पैदा करने के लिये बहुत मेहनत लगती है। बच्चा जब माँ के पेट में आता है तब तो माँ मेहनत करती है। लेकिन बच्चे को माँ के पेट में डालने के लिये बच्चे के बाप को बड़ी मेहनत करनी पडती है। क्या कर पायेगा इतनी मेहनत?" कोमल पडी थी रामू भी उसके उपर लेट कर उसे सहला रहा था।

"क्यों नहीं मेरी माँ! तुम्हारा लड़का मेहनत से कभी पीछे नहीं हटता। जब तक मैं बच्चा तुम्हारे पेट में डाल नहीं देता मैं रोजाना तुम्हारे उपर मेहनत करूंगा। आखिर उसी मेहनत के लिये ही तो आज हमारी सुहागरात है।"
रामू यह कह कर अपनी माँ को अपने उपर उठा कर खुद नीचे आ जाता है। रामू का कडक लण्ड कोमल की चूत के बीचो बीच घिस रहा था। कोमल को लण्ड को इतने पास से महसूस होते ही वह सहम जाती है।
"अब मेरी माँ यह भी बता दो कि वह मेहनत मुझे किस जगह करनी है! और कैसे करनी है?ताकी मैं भी जान लूँ।" रामू कोमल के सुन्दर गाल को चुम्ता हुया कान के पास ले जा कर कहता है।

"धत! वह मुझे नहीं पता। तू खुद पता कर ले।" कोमल अपना चेहरा रामू के सीने में छुपाती है।

"जहाँ तक मुझे पता है मेरे पास एक काला नाग है और तुम्हारे पास एक गुफा है। काले नाग को उस गुफा में ले जा कर नाग का जहर उस गुफा में छोड़ के आना है। एसा ही है ना?"

""छिः एसा भी कोई बोलता है।"

"तो फिर केसे बोलूं। फिर तो मुझे यही कहना पडेगा मुझे अपने लण्ड से तुम्हारी चूत में डाल के तुम्हें अच्छी तरह चोद ना है!"

"छिः गंदे बच्चे! कितना शरारती हो गया है रे तू!अपनी नई नवेली दुल्हन से भला कोई एसे बोलता है क्या? मुझे शर्म नहीं आती क्या?"
 

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