Incest अनोखे संबंध

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हमारे बीच में इसी तरह की बातें घर हुया करती थी। मैं और शीतल माँ से छेड़खानी करते रहते थे। इसी दौरान एक दिन शाम के टाईम पे माँ को मास्टर जी के घर जाते हुये देखा। जैसा की मुझे पता था माँ की माहवारी पिछ्ले दिन ही खतम हूई थी। जाहिर सी बात है माहवारी के बाद हर औरत का चुदाई का मन करता है। उस दिन बापू भी अनाज ले कर शहर गए हुये थे। माँ को मास्टर जी के घर जाते देख कर मेरा खुन खौलने लगा। मैं इधर माँ को पटाने की कोशिश कर रहा था उधर साला मास्टर सारा मजा लुट रहा था। मैं ने सोच लिया आज माँ से आमने सामने बात करनी होगी।

अन्धेरा हो चुका था। मास्टर के घर से कुछ दुरी पर मैं नदी के पुल के उपर माँ का इन्तज़ार करने लगा। देखा माँ बड़े मजे में इत्राती हुई चली आ रही थी। पुल के पास आ के जब मुझे माँ ने देखा तो एकदम सहम गई।

वह पास आकर बोली: रामू तू यहां क्या कर रहा है?

मैं ने माँ को पलट कर जवाब दिया: माँ यह बात तो मुझे आप से पूछनी चाहिए आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं?

माँ:मतलब?

मैं: मतलब,,, माँ मुझे यह अच्छा नहीं लगता की आप इस तरह किसी के पास चली जाओ। माँ मेरे सामने खडी थी। और मुझे देख रही थी।

माँ: तुझे क्या फर्क पड़ता है मैं किसी के पास जाऊँ या ना जाऊँ?

मैं: पर माँ मुझे यह बर्दाश्त नहीं होता की कोई आप को।।।। और चुप हो गया।

माँ: क्या बर्दाश्त नहीं होता? बोल रामू।

मैं: यही कि आप किसी और के साथ…!

माँ: लेकिन क्यूँ?

मैं: मैनें एक लम्बी सांस ली और एक दम से बोल दिया:: क्यौंकि मैं तुम से प्यार करता हूँ और मैं नहीं चाहता कि आपको कोई छुए।

माँ मांद मांद मुस्कुरा ने लगी। माँ ने नदी की तरह देखते हुये बोला: देख रामू: यह नदी का पानी एक लहर में बहता जा रहा है। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। लेकिन नदी के पास अगर कोई अपनी नाली बनाएगा तो नदी के पानी का मोड़ उस तरफ भी बहने लगेगा। है ना।

मैं ने बोला: मैं समझा नहीं माँ।

माँ फिर मेरी तरफ मुहं फेरके बोलने लगी: मैं भी इस नदी की लहर की तरह हूँ रामू।

मैं ने माँ को अपनी तरफ घुमा के उनकी आंखों में देखते हुये कहा: मेरी माँ सिर्फ मेरी है। और उस्पे किसी का हक नहीं । और यह कहते हुए माँ को अपनी बाहों में भर लिया। माँ भी मेरे से लिपट गई।
हम दौनों काफी देर तक इसी तरह एक दुसरे से लिपटे रहे।

माँ मेरे से लिपटे हुए बोली: जब मेरे से इतना प्यार करता है तो फिर कभी मुझे कहा क्यों नहीं। और हम अलग होके एक दुसरे की आंखों में देखने लगे।

मैं: क्या कहता! कई बार अपने दिल की बात तुम्हें बोलने की कोशिश की। लेकिन तुम क्या सोचोगी इस लिये कह नहीं पाया।

माँ: अगर तू नहीं बोल पाया तो फिर मैं भी केसे आगे बड़ती?

मैं: अब तुम मेरे वादा करो तुम कहीं भी कभी भी नहीं जायोगी!

माँ: फिर कहाँ जाऊँगी बोल। आखिर मेरी भी तो कुछ इच्छाएं हैं।

मैं: अब जब तुम मेरी हो गई हो तो तुम्हारी सारी इच्छाएं मैं पूरी करूंगा।

माँ: चल घर चलते हैं। काफी देर हो गई है। और हम घर की और चलने लगे।

माँ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। और हम दौनों कुछ दूर तक चुपचाप चलते रहे।
मैं ने माँ से पुछा: माँ तुम ने मेरी बात पर कुछ बोला नहीं।

माँ ने मेरी तरफ देख कर कहा: अब जब तू ने तय कर ही लिया है अब मैं क्या बोलूं।

मेरे दिल एक उलझन सी थी। मुझे सब पता तो था लेकिन मुझे माँ के मुहं से सुनना था।

मैं: मतलब! क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ?

माँ: एसा तो मैं ने नहीं कहा।

मैं: लेकिन तुम्हारी बातों से लग रहा है जैसे मैं तुम पर जबरदस्ती कर रहा हूँ।

माँ: एसा नहीं है मेरे लाल। मैं तेरी माँ हूँ। तू मुझ पर जबरदस्ती नहीं कर सकता यह मुझे भी पता है। मैं तो बस यह बोल रही थी की देखा जायेगा मेरा बेटा केसे मेरी सारी इच्छाएं पूरी करता है। और हंस देती है।

इस तरह हम घर आ जाते हैं। घर के आँगन में शीतल रात की सब्जी काट रही थी। शीतल ने माँ से पुछा: माँ तुम इतनी देर कहाँ थी?

माँ ने मेरी तरफ घुरते हुए कहा: वह मैं और रामू जरा गावँ घुमने गए थे। वैसे शीतल अब अपने भाई को जरा अच्छी अच्छी चीजें खिलाया कर, क्यौंकि बहुत जल्द तेरे भाई को शायद मेरी सेवा करनी पड़े।

मैं और शीतल दौनों इस बात पर मुस्कुरा रहे थे। माँ यह कह कर जाने ही लग रही थी की शीतल ने माँ को सुनाते हुए मुझे कहा: भाई माँ की खुब मन लगाकर सेवा करना कहीं उन्हें दुसरे किसी के पास जाने की जरुरत न पड़े। फिर वह भी तुझे जी जान लगाकर प्यार देगी। शीतल की इस बात पर मैं और माँ एक दुसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।
 
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रघु को रामू की बातों से काफी अच्छा लगा। वह रामू की बात सुनके बहुत खुश हुआ। कोमल मौसी जेसी औरत को बस में करना कोई खेल नहीं था। वैसे तो कोमल मौसी का दिल भी कोमल ही था। इसी लिये उन्हें पाना रामू के लिए आसान रहा। भगवान जाने उसकी किस्मत में क्या होगा।

रामू से बात करके शाम के वक्त वह घर आया। घर के पास आया तो देखा उसके बापू रामू के बापू कमल चाचा के साथ निकल रहे है। जाते जाते कमल चाचा के मुहं से "यार काफी खरीदारी करनी है। जल्दी चल। पता नहीं आज रात शहर से लौट पाऊंगा भी या नहीं!" की बात रघु को मालुम हो जाता है वह दौनों की शादी की तैयारी कर रहे हैं। उसके बापू ने कहा"कोई बात नहीं, अगर देर हुई तो मेरे कोयर्टर में रुक जायेंगें। फिर कल सुबह सुबह वहाँ से चल देंगें" यह कहते हुए दौनों दोस्त निकल गए।

घर के अन्दर आके रघु को कोई दिखता नहीं। इधर उधर देखने के बाद उसकी माँ और बहन कमरे में बातें करते हुए मिले। उसके घर में आने का किसी को पता नहीं चला। उनकी बातों से लग रहा था कि बापू निकल जाने के बाद ही दौनों बात करने लगी थी। दरवाजे के पास खड़ा हो कर रघु उनकी बातें सुनने लगा। उसकी माँ राधा बहन रेखा से कह रही थी।

माँ: देख इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं। अगर तुझे अच्छा लगे तभी तू करना।

उसकी बहन रेखा पास बेठे माँ का हाथ पकड़ कर बोल रही थी: माँ । मैं जानती हूँ। आप मेरे फेसले का सम्मान करोगी। बचपन से ही आप मेरी माँ कम और सहेली ज्यादा रही हो। जो बातें मैं शीतल को बताया करती हूँ वह बातें आप को भी बताती हूँ।

माँ: हाँ मुझे पता है। तू मुझे अपनी दोस्त समझती है। अब देख तू बड़ी हो गई है। और बेटियां बड़ी हो जाये तो वह माँ की सहेली बन जाती हैं।

रेखा ने माँ हँसते हुए कहा: पर माँ मुझे लगता है, मैं आपकी सहेली नहीं बलकी कुछ दिनों में सौतन बन जाऊँगी। है ना?

रघु की माँ राधा अपनी बेटी को गले लगा के बोलती है: मुझे इस सौतन से कोई जलन नहीं है। मैं तुझे हमेशा मदद करुंगी।

रेखा: माँ। भाई के बारे में आप ने क्या सोचा?

माँ: किस बारे में?

रेखा: माँ आप भी ना! क्या आप भाई को स्वीकार करोगी या नहीं!

उसकी माँ चुप रही।

रेखा ने फिर पुछा। क्या हुया बताईये ना!

माँ: देख। अभी मैं ने उस बारे में सोचा नहीं। मुझे थोड़ा और टाईम चाहिए। चल बस बहुत बात हो गई। तेरा भाई भी आनेवाला होगा। यह कह कर उसकी माँ कमरे से बाहर आने लगती है।

और रघु वहाँ से फौरन हट जाता है।
 
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रघु को घर के अंदर देख कर उसकी माँ राधा पूछती है: तु कब आया?

बस अभी आया- रघु ने जवाब दिया।"बापू कहाँ गए"? रघु ने अंजान बनते हुए पूछा।

वह कुछ काम से शहर गए हैं रामू के बापू के साथ" राधा अपने रूम की तरफ जाती हूई बोली। रघु भी अपने कमरे के अन्दर चला जाता है। कुछ देर बाद उसकी बहन रेखा उसके कमरे में आती है।

भाई! आज पुरा दिन कहाँ रह गए थे" रेखा पूछती है।

रघु उसकी और देख कर बोलता है: मेरा छोड़। तू बता तुने और माँ ने पुरा दिन क्या क्या किया?

तुम्हें तो पता है भाई, बापू जिस दिन आते हैं उस दिन तो हम दौनों भाई बहन घर रह कर भी अंजान और अजनबी बन जाते हैं।" रेखा यह कहते हुए रघु के बगल में बैठ जाती है।" माँ का तो हमारा ध्यान ही नहीं रहता। वह तो बस बापू को क्या खाना है, उसे कब क्या चाहिए इसी की चिंता लगी रहती है।"

रघु: अब माँ बापू की धर्मपत्नी है। तो माँ को तो बापू का ध्यान रखना ही होगा ना!

रेखा: वैसे भाई। अब बहुत जल्द यह सौभाग्य तुम्हें भी मिलने वाला है।

रघु: मतलब??

रेखा: मतलब, अब बहुत जल्द माँ वह सारा काम तुम्हारे लिये करने वाली है जो वह बापू के लिए किया करती हैं। फिर वह भी तुम्हारा उस तरह ही ध्यान रक्खा करेगी जिस तरह बापू का रखती है। लेकिन तुम्हें भी माँ का अच्छी तरह ख्याल रखना होगा।

"अरी मेरी बहन! एकबार तेरी माँ को तेरी भाभी तो बनने दे, फिर देखना मैं हमेशा उसका ख्याल रखुँगा।" और रघु अपनी बहन को बाहों में कस के पकड़ लेता है।

रेखा अपने आप को रघु से छुड़ाने की कोशिश करती है: अरे भाई। छोडो मुझे। माँ अभी रसोई में है। कहीं हम दौनों को इस तरह देख न ले।"

"अब तो मुझ से बर्दाश्त भी नहीं होता, काफी दिन हो गया किसी को चुदे हुए।" और रघु रेखा को चूमने लगता है।

रेखा खुद छुड़ाने की कोशिश करती रहती है।" चिंता न करो भाई। तुम्हारे इस मुसल के लायक एक ही औरत बनी है। जब वह तुम्हें मिलेगी तो जी भर के उसे अपने मुसल से चोद लेना।" रेखा उसके लण्ड को मसल देती है। और रघु से दूर भाग कर हट जाती है।

रघु: रेखा! आज मुझ से सहन नहीं हो पायेगा। तू आज मेरा अच्छी चुस देना। मेरी बहना।

"अब मेरी आदत छोड़ दो भाई। और अपने होने वाली बीबी से ही मांग लिया करो जो जो तुम्हें चाहिए।" यह बोल कर रेखा रघु के कमरे से चली जाती है। रघु उसे पीछे से बुला भी रहा था। लेकिन रेखा ने जवाब नहीं दिया।
राधा को काफी उम्मीद थी राकेश उसे आज भी चोदेगा। लेकिन शाम को जब राकेश कमल के साथ शहर चला गया तो राधा की उम्मीद पे पानी फिर गया। अपने कमरे में लेटे लेटे यही सब सोच रही थी। इत्ने में राकेश का काल आता है।

उधर से राकेश: क्या कर रही हो राधा!

मासुस राधा: अब क्या करूं। बस खाना खा कर लेट गई।

राकेश: मुझे माफ करना। आज मैं तुम्हें वक्त नहीं दे पाया। तुम्हें पता तो है कल मेरे दोस्त का एक खास दिन है। इसी लिये मुझे उसका साथ देना पड़ा। लेकिन तुम फिक्र मत करो। मैं कुछ दिन गावँ में और रुकुँगा।

राधा: ओ। यह तो अच्छी बात है। तो कल सुबह ही आओगे ना!

राकेश: हाँ हाँ। सुबह आ जाऊंगा। वैसे राधा तुम्हें कुछ बताना था।

राधा: बोलो।

राकेश: राधा। मैं तुम से झुट नहीं बोलूंगा। लेकिन अब गावँ में मेरा मन नहीं लगता।

राधा: मुझे पता है। वैसे अब पहले जेसा तुम्हारा घर पे मन नहीं लगता। यह मुझे भी पता है। तुम जब से शहर गए हो वहाँ की हवा तुम्हें लग गई है। लेकिन इस के लिए मैं तुम्हें दोष नहीं देती। हम दौनों एक दुसरे से प्यार करते हैं। तुम ने शहर का काम सम्भाला और मैं ने घर का। बराबर।

राकेश: लेकिन राधा जाने अनजाने में अगर मैं ने तुम्हें कभी तकलीफ दी है तो मुझे माफ करना।

राधा: उसकी कोई जरुरत नहीं राकेश! तुम ही मेरा पहला प्यार थे।

राकेश: और तुम मेरा। लेकिन अब मैं पूरी तरह से शहर में ही रहना चाहता हूँ। और इस के लिए मुझे तुम्हारी अनुमती चाहिए।

राधा: अगर तुम रहना चाहते हो तो रह सकते हो। लेकिन मैं अपना घर नहीं छोड़ सकती। यह तुम्हें भी पता है ।

राकेश: पता है। लेकिन शहर जाने से पहले मैं रेखा को भी अपने साथ लाना चाहता हुँ। मुझे इसी को लेकर तुम्हारी सहमती चाहिये।

राधा: राकेश! मुझे इस बारे में कोई आपत्ति नहीं है। मुझे आज भी उस दिन की बात याद है जो हम ने एक दूसरे से की थी। हमें जिसे पसंद है उसके साथ हम रह सकते है। तब तो रेखा भी छोटी थी। मुझे यह मालुम था जब तुम्हारी बेटी बड़ी होगी तो तुम्हारी दुलारी बनेगी। इसी वजा से मैं ने बचपन से उसे उसी तरीके से पाला पोसा है।

राकेश: हाँ राधा हम दौनों को यह मालुम। लेकिन मैं भी चाहता हुँ की तुम भी अपनी जिन्दगी हंसी खुशी के साथ गुजारो।

राधा:राकेश। तुम कल यहां आ जाओ। फिर हम बेठ के बात करेंगे।

राकेश: ठीक है। अच्छी तरह सो जाना।

फोन रखने के बाद राधा का दिल काफी हल्का सा लग रहा था। उसे खुशी तो नहीं थी। लेकिन एक बन्धन से उसे छुटकारा मिल चुका था। जिस बन्धन के रहने और ना रहने का कोई फायदा नहीं था। आज से मानो राधा की जिन्दगी एक नए सिरे से शुरु होने वाली थी। वह एक गहरी सांस लेती है और अपने तक्ये को पकड़ के अपनी आंखें बन्द कर लेती है। उसकी आंखों में आने वाले दिनो के सपने सज रहे थे। उसे अपने बचपन की यादें आने लगी। उसका सपना एक एक करके पुरा होने जा रहा था। मन ही मन वह खुश हो रही थी और शरमा भी रही थी।
 
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फ्लेश बेक ।। राधा और कोमल अपने स्कूल के दिनों में।।

राधा अपने माँ बाप की एक लौती सन्तान थी। जहाँ कोमल उसकी पड़ोसी और बचपन की दोस्त थी। वह दोनो थिं भी एक ही उम्र की। स्कूल से घर आने के रास्ते शकुन्तला चाची के घर जाना उँ दौनों का रोज का रूटीन था। शकुन्तला चाची एक भारी भरकम शरीर की मालकिन थी। उन्के साथ उनकी बेटी शांति रहती थी। सुनने में आता है चाची और उनकी बेटी शांति दोनो बहुत चुदककर हैं। पेसे लेके लोगों से चूदवाया करती हैं। पर राधा और कोमल ने कभी उनको चूदवाते हुए देखा नहीं।

स्कूल से लौटते समय जब राधा और कोमल दौनों कूदती हुई उन्के घर मे पहन्च्ती है। तो शकुन्तला एक दम से खुश हो जाती है।

शकुन्तला चाची एक ब्लाऊज व पेतिकोट में थी। उन्के इस भारी गदराई बदन को देखना राधा कोमल के लिये रोजाना का काम था।

कोमल ने पूछा: चाची आप ने साड़ी क्यों नहीं पहनी?

शकुन्तला: अब यहां तुम्हारे सिवा कौन आनेवाला है बताओ। तुम बताओ तुम्हारा स्कूल केसा चल रहा है?

राधा: ठीक ही चल रहा है चाची। बस स्कूल के लडके हमेशा पीछे पड़े रहते है। आये दिन कोई ना कोई लव लेटर दे रहा है।

श्क्कू: अब इस उम्र तो यह आम बात है। मेरी उम्र में उस वक्त स्कूल तो थे नहीं। लेकिन फिर भी गावँ के सारे लडके मुझ पे लाईन मारते थे। और तो और तुम्हारी इस उम्र में आते आते मैं कई लड़कों से चुद भी गई थी।

कोमल: सच में चाची?

उन दौनों को अपने बिठाते हुए श्क्कू ने कहा: अब वह जमाना ही एसा था। आजकल भी हो रहा है। तुम्हें हर बात की खबर नहीं रहती। मेरे टाईम पे तो गावँ में जिस औरत को कोई झोपड़ी में अकेली मिले या खेतों में मिल जाये वहीं चोद लिया करते थे। लेकिन तुम दौनों एसा बिलकुल भी मत करना। तुम्हारी इस उम्र चुत में बहुत खाज होने लगती है। हमेशा मन करता होगा काश की चुत में कुछ घुस जाये। है ना!!

राधा: हाँ। दो साल पहले जब से मेरी माहवारी शुरु हुई है मेरा हमेशा मन करता है काश चुत में कुछ घुस जाये।

कोमल: हाँ चाची। मेरा भी। कभी कभी तो जी करता है की छोटी मूली या गाजर घुसा लूँ। लेकिन चुत काट जाने के डर से कर नहीं पाती।

श्क्कू: सुन मेरी बच्ची। एसा बिलकुल मत करना। औरत की चुत बनी है सिर्फ मर्द का लौडा लेने के लिए। उस में जायेगा तो सिर्फ किसी का लण्ड। तभी चुत को शांति मिलेगी।

राधा: तो उसके लिये ह्म्हें शादी तक इन्तज़ार करना पडेगा?

श्क्कू: हाय हाय मेरी बच्चियों। तुम तो अभी से चुत में लण्ड लेने के लिये बेचैन नजर आ रही हो। हर काम का एक टाईम होता है बिटिया। वैसे तुम चूदवा सकती हो। लेकिन चूदवाना सिर्फ उसी से जिसे तुम प्यार करती हो। समझी?

राधा: चाची यह बात याद रखुँगी। वैसे चाची माँ दवाई मंवाई थी।

श्क्कू: हाँ हाँ। तेरी माँ की दवाई तैयार है। शकुन्तला चाची अन्दर से दवाई ला कर राधा को देती है।

राधा दवाई देख कर पूछती है: चाची यह किस चीज की दवाई है। जो माँ आप से मंवाती है?

श्क्कू: यह चुदाई की दवाई है बेटी।

राधा: ओह। अब समझी।

श्क्कू: क्या समझी रे?

राधा: कुछ नहीं चाची। अब चलती हूँ। कल फिर आ जाऊंगी। दौनों घर की और चल देते हैं।

श्क्कू चाची के घर निकलने बाद दौनों बात चीत करते हुए आ रही थीं कि स्कूल के दो लडके ने उनका रास्ता रोक लिया। यह दौनों राकेश और कमल थे। जो उनसे उपर क्लास में पढते थे। यह दोनो काफी टाईम से इन सहेलियों के पीछे पड़े हुए हैं।

राधा और कोमल उन के पास आ कर बोलती हैं: यहां किस लिये हो तुम दौनों? हम ने तो पहले ही मना कर दिया है ना!

कमल थोड़ा जिद्दी किस्म का लड़का था। उसने कोमल का हाथ पकड़ लिया: देखो। जब तक तुम दौनों राजी नहीं होती हम इसी तरह तुम्हारा इन्तज़ार करेंगें। वैसे भी अगले महीना पूजा है ह्म्हें उम्मीद है तुम दोनो उस से पहले राजी हो जाओगी!

राधा: तुम दौनों तो बहुत बदमाश हो। माना स्कूल में हमारी दोस्ती है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हम तुम्हारे से यह गन्दा काम करने को राजी हो जायेंगें?

राकेश उस से नजरें मिला कर बोलता है: राधा अब तुम इन्कार नहीं कर सकती हो की तुम मुझ से प्यार नहीं करती। अपने दिल पे हाथ रखकर बोलो की यह झुट है।

राधा उस से कुछ बोलती नहीं। कमल कहता है: अब जब हम एक दूसरे को प्यार करते हैं तो फिर एकबार मजे करने में क्या जाता है?

कोमल: देखो कमल अब ह्म्हें इस बारे में बात नहीं करनी। चल राधा। कल स्कूल में आ के हम इसका जवाब देंगें। दौनों घर की तरफ चलने लगती हैं। और पीछे से राकेश उंची आवाज में कहता है: राधा तुम जो भी बोलो। तुम्हारा दिल भी यही कहता है। अगर अग्ले महीने से पहले तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं दोबारा तुम्हारे रास्ते नहीं आऊँगा।

इस पर कमल भी बोलता है: और मैं भी कोमल। सोच लेना।

दौनों सहेली पीछे मुड़कर एक बार उन्हें देखती हैं। और मुहं बनाकर चल देती है।

राधा का मन बहुत बेचैन था। सिर्फ वह नहीं कोमल भी परेशान थी। दौनों के दिलों में कशमकश चल रही थी। यूँ तो वह अभी कुंवारी थी। आज तक उँ होनें अपनी चुत में एक एक पेन तक नहीं घुसाया। अब अचानक से इस उम्र में चुत लण्ड का खेल खेलना उन के लिये कितना सही था या गलत उसी विचार में वह लगी थी। गावँ में और भी जो लड़कियाँ हैं वह उन पर हंसी मजाक करती रहती हैं। गीता उन की क्लास में पडती है। एक दिन उस ने कहा "शादी के बाद तो सब को आखिर चुदना ही है। मजा तो शादी से पहले चुद्ने में है।"

कई बार राधा और कोमल ने सोचा भी कि चुदवा ही लेती हुँ। पर जब एकान्त में वह अपनी छोटी सी बालों में भरी प्यारी चुत को देखती हैं तो मन में साहस नहीं आता। वह सोचती हैं इतनी जगह में एक मोटा सा लौडा केसे जा सकता है। उन की क्लास की जो लड़कियाँ किसी ना किसी से चुदी हैं वह कहती तो हैं के " बड़ा मजा आता है। एसा लगता है के हमेशा चुत में किसी ना किसी का लौडा घुसा रहे।"
और जब किसी से चूदवाने की बात सुनती हैं तो उनकी चुत में पानी भर जाता है। शकुन्तला चाची कहती हैं"बेटी तेरी चुत जो पानी छोड़ रही है, इसका मतलब है तेरी चुत अब किसी का भी लौडा लेने के लिए तैयार है। लेकिन पहली बार में ही किसी का बड़ा सारा लण्ड मत घुसा लेना।"

फिर इन्ही सोच व विचार में देखते देखते पूजा का मौसम आ गया। उधर राकेश और कमलनाथ उनको रोज किसी ना किसी बहाने से चुदवाने के लिए मना रहे थे। और राधा व कोमल उन्हें और समय मांग के उनसे भाग जाती रहती। लेकिन आखिरकार एक दिन मौका पा कर राकेश और कोमल ने उनको पकड़ लिया। और शकुन्तला चाची की मदद से उन की झोपड़ी के एक कमरे राधा और कोमल की चुत उन्के लौड़े से फट गई। और मजे का यह खेल चलता ही गया।

वैसे शकुन्तला चाची ने उन्हें मना भी किया था। की ईसकी लत लगानी सही नहीं है। लेकिन कोमल और राधा अब मजा आ चुका था। और राकेश व कमल भी अपना पुरा फायदा उठाने में ब्यस्त थे।

और इसी चुत लौडा लेने देने के खेल में शकुन्तला चाची अब राधा कोमल के सामने खुल चुकी थी। वह थी तो बिधवा लेकिन लौडा लेने में उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकती। लेकिन सब ज्यादा उन्के घर में राधा कोमल अपने ही स्कूल के बड़े बड़े लड़कों को देखती थी। जिनसे वह पेसे लेके चुदवाया करती थी। और उनकी बेटी शांति कभी घर में तो कभी बाहर किसी से चूदवाने चली जाया करती थी। राधा कोमल को कभी कभी बड़ा अजीब लगता था की चाची अपने से कितने कम उम्रोंं के लड़कों से चूदवाया करती हैं। आखिर एकदिन राधा ने पुछ लिया: चाची आप इन लड़कों से क्यों चूदवाती हो? क्या आप के पास बड़े उम्र के आदमी नहीं आते?
चाची ने उन्हें जवाब दिया था यह बोलके के: बेटी अभी तुम्हारी उम्र कम है। तुम्हें इस बात की सूझ बूझ नहीं है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो मालुम हो जायेगा की केसे मर्दों से चूदवाने में मजा ज्यादा आता है।"

राधा व कोमल ने पूछा था " आप बताओ ना। हमें भी मालुम हो जायेगा। फिर हम भी चुदाई का पुरा मजा लेंगें।"

शकुन्तला चाची उनकी मासूमियत देख के हंस के कहा: देख राधा! औरतों को अच्छी चुदाई तभी मिलती है जब कोई आदमी कोई चोदनेवाला उसे जी जान से चाहता हो। अब मेरे जैसी औरत को कोई मेरे जैसा मर्द काबू नहीं कर सकता। क्यौंकि उसका पानी जल्द गिर जायेगा। अगर जल्द ना भी गिरे तो एक बार से ज्यादा वह चोद नहीं पायेगा।"

राधा: क्यों चाची। एसा क्यों है?

श्क्कू चाची: वह इस लिये क्यौंकि बड़े उम्र के आदमी कम उम्र जैसे तुम जैसी लडकियों को चोदने के शौक़ीन होते हैं। और लौंडे हम जैसी भारी भरकम शरीर की मालकिन के पीछे लगे रहते हैं। इस लिये जब कोई लौंडा मुझे चोदने आता है मुझे ताबड तोड चुदाई मिलती है। वह एक के बाद एक मेरी चुत की चुदाई करता ही चला जाता है। क्यों की हमारी चुत चुदाई करते करते खुल चुकी हैं तो हम को इसी तरह की चुदाई चाहिये होता है। जब तुम भी बड़ी हो जाओगी तो मेरा यह कहा मिला के देखना। किसी लडके से चूदवाके देखना फिर तुम्हें पता चलेगा तुम्हारी यह चाची क्यों लौंडों से चूदवाती है।

चाची की कही वह सारी बात राधा के दिमाग में अभी भी है। और अपने आने वाले सुनहरे पल के बारे में सोच कर वह खुद में ही उत्तेजित हो जाती है। और जाने अनजाने में राधा की चुत गीली होने लगती है।
 
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एक ही घर के अलग अलग कमरे में रेखा उसका भाई और माँ लेटे हुए थे। एक तरफ राधा। दुसरी तरफ रघु अपनी माँ के सोने का इन्तज़ार कर रहा था। उसे जब लगा माँ शायद सो चुकी होगी वह दबे दबे पाँव उपर अपनी बहन के कमरे के पास आता है। और दरवाज़ा पे हाथ लगाते ही दरवाजा खुल जाता है। उसकी बहन रेखा धीमी आवाज में बोलती है" आ गए भाई!"

रघु बैड के पास आ कर उससे सट कर कहता है" तो तू भी मेरा इन्तज़ार कर रही थी? है ना!!"

दौनों का शरीर अब एक हो चुका था। रेखा: क्या करूं। अब मेरे इस भाई को कोई देखने वाला नहीं है। इसी लिये उसकी सेवा करने के लिए मुझे दरवाजा खोल के रखना पड्ता है। कहीं मेरे भाई को ज्यादा बेचैनी ना हो जाये। रेखा और रघु दोनो एक दूसरे को टटोलने में बिजी थे। यूँ तो रेखा ने आज तक किसी से चूदवाया नहीं। लेकिन अपनी चुद की प्यास बुझाने में वह दूसरे से सारा काम करवा लेती है। और यह बात रघु भी अच्छी तरह जानता है के उसकी नाजुक कमसिन कली जैसी बहन की चुत उसके बाप को मिलनी है। बाकी रेखा के शरीर के जितने उभार है, वह सब अपने भाई रघु की क्र्पया है। दो साल से अपने भाई के हाथों मसलते मसलते रेखा के बुब्स उसकी गांड और बाकी शरीर काफी भरपुर हो गये हैं। दौनों भाई बहन चुम्मा चाटी के बाद नंगे हो गये। और रघु रेखा के उभरे हुए छाती से खेलने लगता है। वह बारि बारि एक एक दुध को चुस्ता और दबाता रहता। रेखा ने रघु गुस्से से भरा हुया लौडा अपने हाथ पकड़ लेती है।

रेखा: भाई आज तो तुम्हारा यह लण्ड कुछ ज्यादा ही सख्त मालुम हो रहा है। क्या बात है?

रघु: क्या करूं! अब रहा नहीं जाता। अब हर वक्त लगता है के किसी गदराई औरत की चुत ढूंड के मेरा यह लौड़ा उसकी चुत में डाल दूँ। और उसे तब तक चोदूं जब मेरा यह लण्ड पानी ना छोड़ दे।

रेखा उसके लौड़े को सहलाती हुई बोली: फिक्र क्यों करते हो भाई। तुम्हारे इस लौड़े का दिन भी आयेगा। और जब आयेगा तब इस से खुब अच्छी तरह चोद लेना। कभी कभी तो मैं भी बेचैन हो जाती हुँ। मुझे भी लगता के बस चुदवा ही लूँ। जो होगा देखा जायेगा। लेकिन अपने दिल पर पत्थर रख कर काबू करती हुँ।

रघु उसकी चुत पे हाथ फेरता हुया बोलता है: हाँ रेखा। हम दौनों ही चोदने और चुदवाने के मारे बहुत बेचैन हैं। बस एक दूसरों को कब तक इस तरह प्यार करते रहेंगे पता नहीं। वैसे अब तेरी चुत को ही देख किस तरह मुझे इशारा कर रही है। मानो मेरा लौड़ा मांग रही हो।" रघु अपनी बहन की चुत को गौर से देखता रहता है। चुत की खुबसूरती से उसकी नजर नहीं हटती।

रेखा: भाई इतने गौर से क्या देख रहे हो। पहली बार देख रहे हो क्या मेरी चुत?

रघु अपनी उंगली से चुत के दाने पे रगड़ देता है। उस से रेखा एकदम सहम जाती है। "भईया! इस तरह क्यों तडपा रहे हो" रेखा बेचैन होकर बोलती है।

रघु अपना हाथ चुत पे फेरता हुया गांड की कुच्ली जगह लेकर जाता है और अपनी एक उंगली से रेखा की गांड के दरारों पे घिस्ता रहता है। "रेखा जरा अपनी चूतड को उपर उठा ना" रघु के यह बोलते ही रेखा जो अपनी आंखों को बन्द करके सहलाने का मजा ले रही थी, अपने भाई की मदद करती हुई गांड उपर उठा लेती है। रघु अपनी नाक को रेखा की सफेद चुतड़ के बीच सुक्ड़ी हुई हल्की काली दरार की गांड के पास ले जाके रख देता है। और फुल सूंघने के अन्दाज में गांड के दरारों को नाक में लेने की कोशिश करता है।

रेखा अपने भाई की इस हरकत से हंस के पूछती है: भईय्या क्या हुया है तुम्हें?

रघु: तेरे शरीर के हर हिस्सों को देख कर मैं बेकाबू हो रहा हुँ। मन करता है की पुरा दिन तुझे नंगी करके यूँ ही देखता रहूँ।

रेखा: भाई आज एक साथ करते है!

रघु: ठीक है। इस में और मजा आयेगा। तू मेरे उपर चढ़ जा। मैं नीचे से तेरी चुत चुसंगा। और तू उपर से मेरा लण्ड चूसना।

दोनो ने पोजीशन बदल ली। और चुत लौड़ा चूसने चुस्वाने में मगन हो गये। आज रघु का लण्ड सच में कुछ ज्यादा ही सख्त था। इस लिये रेखा कडक लोड़ा मुहं में लेने में कुछ दिक्कत आ रही थी। लेकिन रघु को अपनी बहन की चुत हमेशा प्यारी लगती है। वह तो बस ललिपॉप की तरह चुसता ही जा रहा था। रघु का लण्ड चाहे जितना भी गुर्राये रेखा के प्यार में वह कुछ देर में अपना जवाब देने लगा था। करीब 15 20 मिनिट की चुसाई के बाद दोनो अपना अपना पानी गेर के बेड पर निढ्ल हो कर लेट गए। थोडी देर बाद रघु रेखा को अपनी बाहों में भर के बोलता है: रेखा यह बात तू भी जानता है के माँ से मैं कितना प्यार करता हुँ और उसे पाना चाहता हुँ। चोद चोद के मैं उसका बुरा हाल बनाना चाहता हुँ। लेकिन मैं तेरे से भी कम प्यार नहीं करता। कभी कभी मेरी एसी इच्छाएं भी होती हैं के माँ के साथ साथ तेरे साथ भी शादी कर लूँ। और तुझे भी वह प्यार दूँ जो मैं माँ को दूँगा।

रेखा रघु को एक प्यार भरा चुम्मा दे कर कहती है: भाई मुझे पता है तुम अगर मेरे से और माँ से एक साथ शादी करते हो तो हम दौनों को खुश रखोगे। और मुझे माँ को अपनी सौतन बनाने में भी कोई तकलीफ नहीं। भाई एक दिन एसा शायद आयेगा भी के मैं तुम्हारी पत्नी बनूँगी। तब माँ भी मेरी सौतन बनेगी।

रघु उसके मुलायम चुतड़ को सहलाता हुया बेचैन हो जाता है:: लेकिन केसे रेखा। तुझे बापू लेकर शहर चले जायेंगे। फिर मैं तुझे अपनी बीबी केसे बना पाऊँगा।

रेखा: देखो भाई यह तो तुम भी जानते हो माँ और बापू दोनो की उम्र हो गई है। अगर मैं बापू की लगाई बन भी जाऊँगी तो भी मुझे नहीं लगता के बापू 10 साल से ज्यादा से ज्यादा मेरी प्यास बुझा पाये। क्यौंकि तुम खुद सोचो जूं जूं मैं बड़ी होती जाऊँगी मेरी चुदाई की प्यास भी बड़ती जायेगी एसे में बापू मुझे केसे सम्भाल पायेंगें। फिर उसके बाद तो मुझे तुम्हारे पास ही आना है। और तब माँ भी तुम्हारे से चुदवा चुदवा के निढ्ल हो चुकी होगी। एसे में मैं ही तुम्हारे इस लौड़े की प्यास बुझा सकती हुँ।

रघु: हाँ राधा। मैं ने इतना दूर का सोचा भी नहीं था।" रघु खुशी के मारे रेखा को अपनी बाहों में कस के जकड़ लेता है। और बे तहाशा उसे चूमने लगता है।

र्रेखा: भाई बस भी करो। इसी लिये तो मैं कहती हुँ के तुम तब तक माँ का ख्याल रखो। उन्हें जी भर के चुदाई का सुख दो। और जब मैं तुम्हारे पास आऊँगी तब तो तुम चुदाई में पुरे खिलाडी बन जाओगे फिर मुझे भी तुम्हारे चुदवाने ज्यादा मजा आयेगा। तब देख लेना मैं ही तुम्हारी असली पत्नी बनूँगी। मैं पत्नी होने की सारी जिम्मेदारियां पूरी करूंगी। तुम्हारे साथ एक पत्नी के रुप में रहूँगी।

रघु: हाय रेखा मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा। मेरी जिन्दगी में अपने ही घर की औरतों को बीबी बनाने का सुख मिलेगा मुझे। मैं भी तेरे साथ वादा करता हूँ जब भी तू मेरी बीबी या पत्नी बन कर आयेगी मैं पुरे रीति रिवाजों के साथ तेरे साथ बियाह करूंगा। और तुझे एक पति वाला प्यार दूँगा।

रेखा: हाँ मुझे तुम पर यकीन हैं। मैं जब तुम्हारी पत्नी बनूँगी तब तुम मुझे एक पति वाला प्यार ही दोगे। मैं भी तुम्हें यह कभी एहसास नहीं होने दूँगी के तुम मेरे भाई हो या मैं तुम्हारी बहन हुँ। तुम्हारे साथ एक पत्नी की तरह ही रहा करूंगी। तुम्हारी हर तरह से सेवा करूंगी। तुम्हारे नाम की अपने मांग में सिंदूर लगाती रहूँगी। ता की सब को चले के मैं तुम्हारी धर्मपत्नी हुँ। और तो और तुम्हारे दिये हुए बच्चों को भी अपने पेट में पालुंगी। तुम जितना बच्चा बोलोगे मैं अपने कोख में भर कर उन्हें जनम दूँगी। फिर हम भाई बहन होने के बा वजुद अपने बच्चों के माँ बाप कहलवाएंगे।
रघु अपनी बहन की इन सपनों भरी बातों से रोमांचित हो जाता है। कुछ देर पहले ही उसका लण्ड पानी छोड़ चुका था। लेकिन बहन की इन सपनों भरी बातों से उसका लण्ड फिर से तन जाता है। वह अपनी बहन को प्यार से और ताकत से अपने शरीर के साथ समा लेता है। उसके अन्दर खो जाना चाहता है।

रघु: मेरी प्यारी बहना। आज तेरी बात सुनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। मुझे तो अभी से लग रहा है के तुझे बापू के पास जाने न दूँ। और माँ के साथ साथ मैं तुझे भी एक ही मंडप पे शादी कर लूँ। लेकिन मुझे पता है यह मुमकिन नहीं है। बापू के भी तुझे लेकर बहुत अरमान है। जो वह तेरे साथ पुरा करना चाहता है। तेरे साथ एक नई जिन्दगी की शुरुआत करना चाहता है।

रेखा: हाँ भईया! और हमें अपने साथ साथ बापू का भी ख्याल रखना चाहिये!

रघु: हाँ। तू सही कह रही है। वैसे मुझे और माँ को भी यहां थोड़ा एकान्त मिल जायेगा और तू और बापू शहर जाके अपने अपने मन की कर सकेंगें।

रेखा: हाँ भईया।

रघु: अच्छा रेखा क्या तू बापू से चुदवा के गर्भवती हो जायेगी?

रेखा: अरे भईया। चिंता क्यौ करते हो। वैसे भी मैं ने अभी तक इस बारे में ज्यादा कुछ सोचा नहीं। और वैसे भी मुझे लगता है अभी आप को अपने कमरे में जाना चाहिये। माँ रात को एकबार जरुर बाथरुम जाती है। अगर उन्होनें तुम्हे मेरे साथ यहाँ देखा तो वह बुरा मान जायेगी।

रघु: अच्छा अच्छा ठीक है। तुझे भी सोना है। कल तो तुझे शीतल के घर भी जाना है। चल मैं चलता हुँ। आज मैं इस उम्मीद के तेरे से जा रहा हुँ के एक दिन हमारा कमरा एक होगा। एक पति पत्नी के कमरे के जैसा।" और यह बोल के वह रेखा को प्यार भरे एक चुम्बन देता है। और अपने कमरे में चला जाता है।

अगला दिन

दो पहर से पहले ही राकेश और कमल शादी की खरीदारी करके अपने घर आ गए थे। राकेश नहा धोकर अपने कमरे में आराम कर रहा था। वहीं राधा और रेखा घर का काम सम्भाल के कोमल के घर जाने की तैयारी कर रही थीं। रेखा ने अपनी माँ से कहा उसे जाने में थोड़ा टाईम लगेगा।

रेखा बोलती है: माँ। एक साथ चलते है ना!

राधा: नहीं रे। अगर एसी हालात में हमने तेरी मौसी का साथ नहीं दिया तो वह बुरा मान जायेगी। वैसे भी शीतल तेरी फ्रेंड कम बहन ज्यादा लगती है। उसकी खुशीवाले दिन में तुझे उसके साथ रहना चाहिए।

रेखा: हाँ माँ। लेकिन शीतल से मेरी बात हो चुकी है। मुहुरत रात के 9 बजे है। अगर मैं शाम को भी जाऊँगी तब भी चलेगा। वैसे माँ आप को जाना चाहिये क्योंकि फिलहाल वहाँ मौसी का हाथ बटाने में आप की जरुरत पड़ेगी। मेरी नहीं।

राधा: ठीक है फिर। मैं कोमल के पास चली जाती हुँ। खाना तो बन ही गया। तेरे बापू को किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ेगी तो सम्भाल लेना।

रेखा: कोई बात नहीं माँ। मैं देख लुंगी। आप कोमल मौसी के पास चली जाओ।

राधा, रेखा और राकेश को घर पे छोड़ के कोमल के घर चली जाती है। अपनी माँ के जाते ही रेखा के दिल की धड़कन बढ्ने लगी। कल जब बापू घर आये थे तो एक बार बापू ने रेखा को कहा था" रेखा तेरे से कुछ बात करनी है, जब तेरी माँ आस पास नहीं होगी तो मेरे पास आ जाना" रेखा को कल से यह बात सताने लगी के उसके बापू पता नहीं उसके साथ क्या बात करने वाले हैं! लेकिन अब लगता है बापू से बात करनी पड़ेगी। शायद कुछ देर बाद वह भी कमल अंकल के पास चले जाये। रेखा अपने दिल की धड़कनों को मह्सूस करती हुई अपने बापू के कमरे की तरफ पावँ जाने लगती है।।।
 
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कोमल के घर का नजारा

शीतल अपने कमरे थी। वह अपने बापू के लाये हुए कपड़े देख रही थी। उसके साथ महल्ले की कल्लो चाची की लड्की सपना बेठी हुई थी। दोनों आपस में हंसी मजाक भरी बातें कर रही थीं। राधा मौसी को देख कर शीतल का चेहरा खिल उठता है।

मौसी तुम कब आई" शीतल अपनी जगह से उठती हूई बोली।

तेरी शादी में तो मुझे आना ही था" राधा उसके माथे पर हाथ रख देती है। और अपने सीने से लगा लेती है।

"राधा मौसी कल से ही यह खुशी के मारे झूम रही है" पास बेठी सपना बोल पडी।

राधा उसके शरीर को टटोलती " और नहीं तो क्या! मेरी लाड्ली बिटिया की शादी है। खुश तो वह होगी ही ना!"

"मौसी! रेखा नहीं आई"

राधा: हाँ। वह बस घर का कुछ काम है। वह निपटाके आ जायेगी। और तेरी माँ कहाँ है? कहीं आस पास दिख भी नहीं रही?

शीतल सपना के पास बेठ्ती हूई "होगी आस पास कहीं। बाथरूम में तो नहीं है! मौसी यह देखो ना बापू मेरे लिये शादी का जोड़ा लाये हैं।"

राधा कपड़ों देखती हूई बोली "सारे कपड़े अच्छे हैं। तेरे उपर अच्छा दिखेगा। और अब कमल तेरे बापू नहीं रहे। जब उन्के साथ मंडप में सात फेरे लेगी। उन्के हाथों से अपने गले में मंगल्सूत्र पहनेगी। तो क्या उसी आदमी को तू बापू बापू कह कर बुलाया करेगी!

शीतल थोडी शरमा जाती है "तो क्या कह कर बुलाऊं मौसी?"

राधा: अब से तो उन्हें अजी सुनते हो। अजी क्या खाओगे। यही कह कर पुकारना पडेगा।" यह बोल के राधा और सपना दोनों हंसने लग जाते हैं।

अच्छा तुम दोनों बातें करो। मैं कोमल के पास जाती हुँ।" यह बोल कर राधा शीतल के कमरे से निकल आती है।

कोमल का एक मंजिले का घर था। जिस में नीचे तीन कमरे बने हुए थे। साथ में छोटा सा आँगन, बाथरूम और रसोई। राधा कोमल के कमरे में जा के देखती है वह कमरा खाली है। फिर उसे एहसास होता है कोमल जो इस कमरे में कमल के साथ रहती थी वह शायद कमल के लिये आज के बाद छोड़ने वाली है। इसी लिये कमरे का आधा सामान यहां से खाली किया गया है। मतलब शीतल और कमल की शादी के बाद वह दौनों इसी कमरे में अपनी जिन्दगी शुरु करने जा रहे हैं। राधा इधर उधर देखती हूई जिस कमरे में कोमल का बेटा रामू रहता वहाँ जाती है। कमरे के पास जाते ही कमरे के अन्दर से रामू और कोमल दोनों माँ बेटे की फुसफुसाने की आवाज आती है। कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था। रामू के कमरे में दायीं तरफ पलंग था। जिस से दरवाजे से झांकने से दौनों दिख रहे थे। लेकिन उन दोनो माँ बेटे का कोई ध्यान नहीं था। द्रष्य व नजारा कुछ एसा था। रामू अपनी माँ कोमल को अपनी बाहों में लिये अपने पलंग में पड़ा था। कोमल की साड़ी का पल्लू उसके सीने से हट चुका था। दोनो माँ बेटे एक दूसरे की आंखों में खोये बातें कर रहे थे। और प्यार करने की कोशिश कर रहे थे। कोमल का मुड देख के राधा समझ नहीं पाई कोमल अपने बेटे का साथ दे रही है या उसके बेटे रामू ने जबर्दस्ती कोमल को पकड़ रखा है। दोनो को इस हालत में देख कर राधा का दिल घबरा जाता है। इसी बीच रामू की आवाज आने लगती है।

रामू: माँ। अब तो मेरे से रहा भी नहीं जा रहा है। अब तुम ही बताओ माँ मैं क्या करूं।" रामू अपनी माँ कोमल के उभरे हुए चुची पर अपना मुंह फेरता रहता है।

कोमल: जब मैं पूरी तरह से तेरी हो जाऊँगी तब तेरी हर इच्छाएं मैं पूरी कर दूँगी।

रामू: तो क्या मुझे और कुछ इन्तज़ार करना पड़ेगा?

कोमल: बेटा इन्तज़ार तो करना ही पड़ेगा। अगर तुझे मैं चाहिये तो सबर करना ही पड़ेगा। अब तू भी तो समझ रहा है ना की आज शीतल की शादी होने जा रही है। अब इस हालत में सब मे सामने मैं किस तरह तेरे पास आ सकती हुँ बोल।

रामू: तो क्या हम कल ही उस घर में चले जायेंगे?

कोमल:देखते हैं। अब तू मुझे छोड़ेगा तभी तो मैं कुछ इन्तज़ाम कर सकूँगी। जिस दिन से मैं ने तेरे हँ में हामी भरी तू जब चाहे मुझे अपने कमरे में खींच लाता है। एक तो तेरे बापू से साथ भी मैं ने लेटना छोड़ दिया। अब एसे में अगर मुझे इस तरह रगडता रहेगा तो तू ही बोल मेरा क्या हाल होता होगा?

रामू अपनी माँ को और ज्यादा कस के बोलता है: तुम चिंता क्यों करती हो माँ। एकबार तुम्हारी पेतिकोट उतारने का मौका तो दो मैं तुम्हारी सारी गर्मी और खुजली मिटा दूँगा।

कोमल: आह।। इस तरह अपने डंडे से धक्का क्यों मार रहा है रामू।

रामू: माँ किस धक्के की बात कर रही हो तुम?

कोमल उसकी आंखों में देखती हुई बोली: जो तेरे पेन्ट के अन्दर छुपा है उस डंडे की बात कर रही हुँ पग्ले!

रामू अपनी माँ को एक किस करता हुया बोलता है: अब मेरा डंडा मेरी बात नहीं सुनता। जब भी तुम्हारी मोटी गांड देखता है यह बदमाश गुस्से से अपना मुंह फुला लेता है।

कोमल: हाँ मैं भी देखूँगी उसका मुंह कितना फूलता है। उसकी सारी अकड निकाल दूँगी मैं। कोमल मुस्कुराने लगती है।

रामू अपने लण्ड को अपनी माँ के पेट में औरज्यादा घिस्ता हुया बोलता है: तुम इसकी अकड कभी भी निकाल नहीं सकोगी। मैं रोज तेल से इसकी मालिश करता हुँ। जब यह तुम्हारे कब्जे में आयेगा उसका गुस्सा और ज्यादा बड़ जायेगा। देख लेना।

कोमल अपने हाथों से रामू के लण्ड को नीचे से पकड़ लेती है। जिस से रामू मारे मजे के सटपटा जाता है। बाहर से राधा को रामू के लण्ड के साईज का एहसास हो जाता है। रामू का साईज देख कर ही राधा का दिल मचलने लगता है। हाय राम। इतना मोटा लण्ड। केसे लेगी इसे कोमल अपनी चुत में। कमल का लण्ड राधा ने देख रखा है। उसका लण्ड रामू का आधा ही होगा। लेकिन कमल चोद्ता बहुत अच्छा है।
कोमल रामू का लण्ड पकड़ के कहती है: अरे पग्ले! इसकी जितनी भी अकड हो उसे काबू करने के लिये मजबुत गुफा की जरुरत होती है। और वह गुफा तेरी माँ के पास है। एकबार जब इसे लुंगी तो मैं भी देखूँगी तेरी और इसकी अकड कितनी है।

रामू अपने लण्ड पर माँ के हाथों का स्पर्श मह्सुस करता हुया बोलता है: तो अभी आजमा लेते हैं। देखते हैं तुम्हारे उस गुफा की मजबूती कितनी है?

कोमल अपने बेटे रामू को धक्के मार के अपने उपर से हटा देती है: हाय दईया! तू तो अभी से शुरु होना चाहता है। तेरे चक्कर में मैं भी फंस गई। आज राधा रेखा सभी आनेवाले हैं। क्या तुझे पता नहीं। अगर उनकी नजरों में मैं तेरे से इस तरह लिपटी पाई गईं मैं तो शर्म से पानी पानी हो जाऊंगी। अब जा बाहर जा।

रामू का मुड खराब हो गया।:: क्या माँ। तुम भी। हर बार मुझे इसी तरह हटा देती हो। मैं भी देखता हुँ आखिर कब तक तुम मुझ से इस तरह दूर भागती हो।

कोमल: गुस्सा क्यों करता है मेरे लाल। आज बहुत काम पड़ा है। कोमल अपनी साड़ी ठीक करके उठ खड़ी होती है। राधा को यह महसुस होते ही की कोमल अब कमरे से निकलने वाली है वह झट से वहाँ से दौड़ भागती है।


एकेली रेखा घर पे

रेखा का दिल जोरो से धडक रहा था। पता नहीं उसका बापू उससे क्या कहेगा! वह अपने कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टेंशन के मारे चल फिरने लगी। लेकिन उसके दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता बढ ही रहा था की पीछे से अचानक उसके बापू की आवाज उसके कान में गुंजने लगी।

बापू: रेखा तेरी माँ कहीं दिखाई नहीं दे रही?

रेखा अपने बापू को देखती है जो दरवाजे के सामने बनयान व धोती में खड़ा था। हाफ बनयान में उसके बापू का शरीर एक नौजवान मर्द से किसी भी रुप से कम नहीं था। काफी दिनो के बाद उसके बापू को रेखा ने इस तरह देखा। रेखा ने अपने बापू की तरफ देखती हुयी बोली: वह माँ तो अभी अभी कोमल मौसी के वहाँ गई है । कुछ काम था बापू?

उसके बापू उसे ही घुरे जा रहे थे। रेखा ने अभी तक रात की पहनी हुई नाईटी पहन रखी थी। घर के माहोल में रेखा और उसकी माँ राधा नाईटी पहने हुई ही ज्यादतर रहती थी। जिसके अन्दर दोनों कुछ भी नहीं पहना करती। ना ब्रा ना पेन्टि व क्च्छा।

बापू: तू कब जानेवाली है?

रेखा: मैं! मैं बाद में चली जाऊँगी। आप कब जाओगे बापू?

बापू: मैं तो शाम को ही जाऊँगा। वैसे तू अभी शीतल को देख के आ सकती थी।

रेखा: बस बापू मैं जाने ही लग रही थी।

बापू: अच्छा। रेखा!! यह बोलते हुए राकेश रेखा के कमरे के अन्दर आ जाता है।

"मुझे तेरे साथ कुछ बात करनी थी, कल सुबह वैसे भी मैं शहर चला जाऊँगा।"
राकेश रेखा के पलंग पर बैठ जाता है । रेखा उसके सामने खड़ी थी।

रेखा: हाँ बोलो बापू" रेखा की धड़कन जोरो से बजने लगती है।

राकेश उसे पकड़ कर अपने पास बिठा लेता है। राकेश के छूते ही रेखा के शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती है। वह अपने बापू को देखती रहती है।

बापू: तुझे पता है, जब मैं पहली बार शहर गया था उस वक्त तू छोटी सी थी। मैं उधर काम में बिजी रहा और तू यहाँ जवान होती गई। और आज मेरी बेटी इतनी खुबसूरत हो गई है की अच्छे अच्छे लौंडों का भी दिमाग़ खराब हो जाये।

रेखा अपने बापू के एक हाथ के बन्धन में फंसी हुई थी। उसे अपने बापू से छूटने की कोई जल्दी नहीं थी। वह बोली:: वैसे आप भी तो शहर में जा कर पहले से कितना हेंड्सम हो गए।

राकेश ने रेखा का चेहरा उठा कर अपनी तरफ करके उसकी आंखों में देख कर कहा: मुझे तो मेरी बेटी बहुत पसंद है। मैं तुझ बहुत प्यार करता हूँ। क्या तू भी मुझे प्यार करती है?

रेखा: हाँ बापू। मैं भी आप से सच्चे मन से प्यार करती हूँ।

राकेश: हाँ रेखा मेरी बच्ची। मुझे पता है। हम दोनो ही एक दूसरे को प्यार करते हैं। वैसे मैं तुझ से पूछना चाहता हूँ क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी?

रेखा अपने बापू से इस तरह लिपटे अन्दर ही अन्दर सट्पटाने लगती है। वह सिवाय इस के और कुछ ना बोल सकी "हाँ बापू जाऊँगी"

राकेश ने रेखा का जवाब सुन्के रेखा के गाल पर एक चुम्मा दे देता है। रेखा अपना चेहरा नीचे झुका लेती है।

राकेश: मेरे दिल में यह अरमान बहुत पहले से है। जब तू छोटी सी थी। तुझे पता है मैं तुझे चिड़हाया करता था।

रेखा: हाँ बापू मुझे याद है। माँ कभी कभी बोलती थी जब मेरी रेखा बिटिया बड़ी हो जायेगी तो खुब धूमधाम से इसकी शादी करवाउँगी। उस वक्त आप बोलते थे, "क्यों मेरी बेटी है। मैं उसे अपनी दुल्हन बनाऊँगा।"

राकेश: हाँ। रेखा मैं तुझे यही बोलता था। और आज जब तू बड़ी हो गई है मैं तुझ से पूछना चाहता हुँ "क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी? वहाँ जाके मेरी दुल्हन बन कर रहेगी? बोल रेखा!"

रेखा ने अपना चेहरा अपने बापू के सीने में छुपा लिया।

रेखा: हाँ बापू मैं बनूँगी तुम्हारी दुल्हन। और दुल्हन बन कर तुम्हारे साथ शहर जाऊँगी।

राकेश ने रेखा को अपनी बाहों नें भर लिया।: : अब तो मेरा दोस्त कमल भी अपनी बेटी शीतल से शादी कर रहा है। मैं भी जल्द ही तुझे अपनी दुल्हन बना कर शहर ले चलूंगा। दोनो बाप-बेटी एक दूसरे को बाहों में भर के प्यार में मगन हो जाते हैं। राकेश अपनी बेटी को बाहों में भर के उसके कंधे को चूमने लगता है। उसे एहसास हो जाता है की रेखा ने अपने अन्दर कुछ भी नहीं पहना। जिससे उसके हाथ का स्पर्श पूरी तरह से रेखा के शरीर को छू रहा था। वह अपनी बेटी के शरीर की बनावट को मह्सुस करता हुया उसके होंट चूमने लगता है। रेखा भी अपने बापू का पुरा साथ देती है। दोनो के अन्दर धीरे धीरे एक भुके आग की चिंगारी फूटने लगती है।

रेखा: बापू आप जितनी जल्दी हो सके मुझे यहां से शहर ले चलो। शीतल की शादी हो जाने के बाद मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।

राकेश: मैं भी रेखा। मैं ने तेरी माँ को भी बता दिया है की मैं तुझे ले जाऊँगा।

रेखा: बापू आप ने सोचा हमारे शहर जाने के बाद माँ किस तरह रहेगी!

राकेश: हाँ रेखा! मैं ने इस बारे में भी सोचा। मैं तेरी माँ को पूरी छुट दे रखी थी। की वह जिसे चाहे अपने साथ करवा सकती है। लेकिन पता नहीं क्योंलेकिन पता नहीं क्यों वह मानती ही नहीं।

रेखा: बापू अगर मेरी और तुम्हारी तरह माँ और भईया भी एक हो जाये तो कितना अच्छा होता बोलो।।

राकेश: हाँ रे। यह तो सही है। अगर तेरी माँ रघु को अपना ले फिर तेरी माँ को कोई दुख नहीं होगा।

रेखा: हाँ बापू। मुझे लगता है, जब तक आप उन्के पति बनके सामने रहेंगे तब तक वह कुछ करेगी नहीं। अगर एक बार आप के साथ उनका तलाक हो जाये फिर वह जिसे मर्जी अपना जीवन साथी चुन सकती है। हो सके तो भाई को भी।।

राकेश: एसा तो मैं ने भी सोचा है जब तू पूरी तरह से मेरी दुलहन बन जायेगी तब मैं तेरी माँ से तलाक करवा लूँगा।

रेखा: लेकिन बापू क्या यह सही नहीं रहेगा की आप पहले ही उन्हें तलाक दे दो। फिर हमारी शादी हो। फिर वह भी अजाद हो जायेगी सारे बन्धन से। और अपना फैसला करने में उन्हे आसानी होगी।

राकेश: ठीक है। तू जो कह रही है मैं वही करूँगा। आखिर अब तो तू ही मेरी दुलहन है। यह बोलके फिर से दोनो एक दूसरे से लिपट जाते हैं।
 

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