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हमारे बीच में इसी तरह की बातें घर हुया करती थी। मैं और शीतल माँ से छेड़खानी करते रहते थे। इसी दौरान एक दिन शाम के टाईम पे माँ को मास्टर जी के घर जाते हुये देखा। जैसा की मुझे पता था माँ की माहवारी पिछ्ले दिन ही खतम हूई थी। जाहिर सी बात है माहवारी के बाद हर औरत का चुदाई का मन करता है। उस दिन बापू भी अनाज ले कर शहर गए हुये थे। माँ को मास्टर जी के घर जाते देख कर मेरा खुन खौलने लगा। मैं इधर माँ को पटाने की कोशिश कर रहा था उधर साला मास्टर सारा मजा लुट रहा था। मैं ने सोच लिया आज माँ से आमने सामने बात करनी होगी।
अन्धेरा हो चुका था। मास्टर के घर से कुछ दुरी पर मैं नदी के पुल के उपर माँ का इन्तज़ार करने लगा। देखा माँ बड़े मजे में इत्राती हुई चली आ रही थी। पुल के पास आ के जब मुझे माँ ने देखा तो एकदम सहम गई।
वह पास आकर बोली: रामू तू यहां क्या कर रहा है?
मैं ने माँ को पलट कर जवाब दिया: माँ यह बात तो मुझे आप से पूछनी चाहिए आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं?
माँ:मतलब?
मैं: मतलब,,, माँ मुझे यह अच्छा नहीं लगता की आप इस तरह किसी के पास चली जाओ। माँ मेरे सामने खडी थी। और मुझे देख रही थी।
माँ: तुझे क्या फर्क पड़ता है मैं किसी के पास जाऊँ या ना जाऊँ?
मैं: पर माँ मुझे यह बर्दाश्त नहीं होता की कोई आप को।।।। और चुप हो गया।
माँ: क्या बर्दाश्त नहीं होता? बोल रामू।
मैं: यही कि आप किसी और के साथ…!
माँ: लेकिन क्यूँ?
मैं: मैनें एक लम्बी सांस ली और एक दम से बोल दिया:: क्यौंकि मैं तुम से प्यार करता हूँ और मैं नहीं चाहता कि आपको कोई छुए।
माँ मांद मांद मुस्कुरा ने लगी। माँ ने नदी की तरह देखते हुये बोला: देख रामू: यह नदी का पानी एक लहर में बहता जा रहा है। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। लेकिन नदी के पास अगर कोई अपनी नाली बनाएगा तो नदी के पानी का मोड़ उस तरफ भी बहने लगेगा। है ना।
मैं ने बोला: मैं समझा नहीं माँ।
माँ फिर मेरी तरफ मुहं फेरके बोलने लगी: मैं भी इस नदी की लहर की तरह हूँ रामू।
मैं ने माँ को अपनी तरफ घुमा के उनकी आंखों में देखते हुये कहा: मेरी माँ सिर्फ मेरी है। और उस्पे किसी का हक नहीं । और यह कहते हुए माँ को अपनी बाहों में भर लिया। माँ भी मेरे से लिपट गई।
हम दौनों काफी देर तक इसी तरह एक दुसरे से लिपटे रहे।
माँ मेरे से लिपटे हुए बोली: जब मेरे से इतना प्यार करता है तो फिर कभी मुझे कहा क्यों नहीं। और हम अलग होके एक दुसरे की आंखों में देखने लगे।
मैं: क्या कहता! कई बार अपने दिल की बात तुम्हें बोलने की कोशिश की। लेकिन तुम क्या सोचोगी इस लिये कह नहीं पाया।
माँ: अगर तू नहीं बोल पाया तो फिर मैं भी केसे आगे बड़ती?
मैं: अब तुम मेरे वादा करो तुम कहीं भी कभी भी नहीं जायोगी!
माँ: फिर कहाँ जाऊँगी बोल। आखिर मेरी भी तो कुछ इच्छाएं हैं।
मैं: अब जब तुम मेरी हो गई हो तो तुम्हारी सारी इच्छाएं मैं पूरी करूंगा।
माँ: चल घर चलते हैं। काफी देर हो गई है। और हम घर की और चलने लगे।
माँ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। और हम दौनों कुछ दूर तक चुपचाप चलते रहे।
मैं ने माँ से पुछा: माँ तुम ने मेरी बात पर कुछ बोला नहीं।
माँ ने मेरी तरफ देख कर कहा: अब जब तू ने तय कर ही लिया है अब मैं क्या बोलूं।
मेरे दिल एक उलझन सी थी। मुझे सब पता तो था लेकिन मुझे माँ के मुहं से सुनना था।
मैं: मतलब! क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ?
माँ: एसा तो मैं ने नहीं कहा।
मैं: लेकिन तुम्हारी बातों से लग रहा है जैसे मैं तुम पर जबरदस्ती कर रहा हूँ।
माँ: एसा नहीं है मेरे लाल। मैं तेरी माँ हूँ। तू मुझ पर जबरदस्ती नहीं कर सकता यह मुझे भी पता है। मैं तो बस यह बोल रही थी की देखा जायेगा मेरा बेटा केसे मेरी सारी इच्छाएं पूरी करता है। और हंस देती है।
इस तरह हम घर आ जाते हैं। घर के आँगन में शीतल रात की सब्जी काट रही थी। शीतल ने माँ से पुछा: माँ तुम इतनी देर कहाँ थी?
माँ ने मेरी तरफ घुरते हुए कहा: वह मैं और रामू जरा गावँ घुमने गए थे। वैसे शीतल अब अपने भाई को जरा अच्छी अच्छी चीजें खिलाया कर, क्यौंकि बहुत जल्द तेरे भाई को शायद मेरी सेवा करनी पड़े।
मैं और शीतल दौनों इस बात पर मुस्कुरा रहे थे। माँ यह कह कर जाने ही लग रही थी की शीतल ने माँ को सुनाते हुए मुझे कहा: भाई माँ की खुब मन लगाकर सेवा करना कहीं उन्हें दुसरे किसी के पास जाने की जरुरत न पड़े। फिर वह भी तुझे जी जान लगाकर प्यार देगी। शीतल की इस बात पर मैं और माँ एक दुसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।
अन्धेरा हो चुका था। मास्टर के घर से कुछ दुरी पर मैं नदी के पुल के उपर माँ का इन्तज़ार करने लगा। देखा माँ बड़े मजे में इत्राती हुई चली आ रही थी। पुल के पास आ के जब मुझे माँ ने देखा तो एकदम सहम गई।
वह पास आकर बोली: रामू तू यहां क्या कर रहा है?
मैं ने माँ को पलट कर जवाब दिया: माँ यह बात तो मुझे आप से पूछनी चाहिए आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं?
माँ:मतलब?
मैं: मतलब,,, माँ मुझे यह अच्छा नहीं लगता की आप इस तरह किसी के पास चली जाओ। माँ मेरे सामने खडी थी। और मुझे देख रही थी।
माँ: तुझे क्या फर्क पड़ता है मैं किसी के पास जाऊँ या ना जाऊँ?
मैं: पर माँ मुझे यह बर्दाश्त नहीं होता की कोई आप को।।।। और चुप हो गया।
माँ: क्या बर्दाश्त नहीं होता? बोल रामू।
मैं: यही कि आप किसी और के साथ…!
माँ: लेकिन क्यूँ?
मैं: मैनें एक लम्बी सांस ली और एक दम से बोल दिया:: क्यौंकि मैं तुम से प्यार करता हूँ और मैं नहीं चाहता कि आपको कोई छुए।
माँ मांद मांद मुस्कुरा ने लगी। माँ ने नदी की तरह देखते हुये बोला: देख रामू: यह नदी का पानी एक लहर में बहता जा रहा है। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। लेकिन नदी के पास अगर कोई अपनी नाली बनाएगा तो नदी के पानी का मोड़ उस तरफ भी बहने लगेगा। है ना।
मैं ने बोला: मैं समझा नहीं माँ।
माँ फिर मेरी तरफ मुहं फेरके बोलने लगी: मैं भी इस नदी की लहर की तरह हूँ रामू।
मैं ने माँ को अपनी तरफ घुमा के उनकी आंखों में देखते हुये कहा: मेरी माँ सिर्फ मेरी है। और उस्पे किसी का हक नहीं । और यह कहते हुए माँ को अपनी बाहों में भर लिया। माँ भी मेरे से लिपट गई।
हम दौनों काफी देर तक इसी तरह एक दुसरे से लिपटे रहे।
माँ मेरे से लिपटे हुए बोली: जब मेरे से इतना प्यार करता है तो फिर कभी मुझे कहा क्यों नहीं। और हम अलग होके एक दुसरे की आंखों में देखने लगे।
मैं: क्या कहता! कई बार अपने दिल की बात तुम्हें बोलने की कोशिश की। लेकिन तुम क्या सोचोगी इस लिये कह नहीं पाया।
माँ: अगर तू नहीं बोल पाया तो फिर मैं भी केसे आगे बड़ती?
मैं: अब तुम मेरे वादा करो तुम कहीं भी कभी भी नहीं जायोगी!
माँ: फिर कहाँ जाऊँगी बोल। आखिर मेरी भी तो कुछ इच्छाएं हैं।
मैं: अब जब तुम मेरी हो गई हो तो तुम्हारी सारी इच्छाएं मैं पूरी करूंगा।
माँ: चल घर चलते हैं। काफी देर हो गई है। और हम घर की और चलने लगे।
माँ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। और हम दौनों कुछ दूर तक चुपचाप चलते रहे।
मैं ने माँ से पुछा: माँ तुम ने मेरी बात पर कुछ बोला नहीं।
माँ ने मेरी तरफ देख कर कहा: अब जब तू ने तय कर ही लिया है अब मैं क्या बोलूं।
मेरे दिल एक उलझन सी थी। मुझे सब पता तो था लेकिन मुझे माँ के मुहं से सुनना था।
मैं: मतलब! क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ?
माँ: एसा तो मैं ने नहीं कहा।
मैं: लेकिन तुम्हारी बातों से लग रहा है जैसे मैं तुम पर जबरदस्ती कर रहा हूँ।
माँ: एसा नहीं है मेरे लाल। मैं तेरी माँ हूँ। तू मुझ पर जबरदस्ती नहीं कर सकता यह मुझे भी पता है। मैं तो बस यह बोल रही थी की देखा जायेगा मेरा बेटा केसे मेरी सारी इच्छाएं पूरी करता है। और हंस देती है।
इस तरह हम घर आ जाते हैं। घर के आँगन में शीतल रात की सब्जी काट रही थी। शीतल ने माँ से पुछा: माँ तुम इतनी देर कहाँ थी?
माँ ने मेरी तरफ घुरते हुए कहा: वह मैं और रामू जरा गावँ घुमने गए थे। वैसे शीतल अब अपने भाई को जरा अच्छी अच्छी चीजें खिलाया कर, क्यौंकि बहुत जल्द तेरे भाई को शायद मेरी सेवा करनी पड़े।
मैं और शीतल दौनों इस बात पर मुस्कुरा रहे थे। माँ यह कह कर जाने ही लग रही थी की शीतल ने माँ को सुनाते हुए मुझे कहा: भाई माँ की खुब मन लगाकर सेवा करना कहीं उन्हें दुसरे किसी के पास जाने की जरुरत न पड़े। फिर वह भी तुझे जी जान लगाकर प्यार देगी। शीतल की इस बात पर मैं और माँ एक दुसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।