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अगले दिन सबेरे की ठंड में मां बेटे एक दूसरे को ऐसे लिपटे की जब आंख खुली तो उसके बदन ने सहज रूप से चुधाई शुरू कर दी थी। अब गर्मी के ऐसे मजेदार स्त्रोत को माना करने जितना बेवकूफ कोई नहीं था और चिराग अपनी मां पर चढ़ कर उसकी चूत को अपनी गर्मी से भरने के बाद ही रुक गया।
फिर दोनों ने एक दूसरे की बाहों में कुछ वक्त आलस में बिताया और नहाने गए। शावर में पहले अपने बेटे को चूस कर तयार करने के बाद मां ने अपनी गांड़ मरवाई। दुबारा नहाकर साफ होने के बाद मां बेटे ने अपने कपड़े पहने और नाश्ता किया जब ड्राइवर ने दरवाजा खटखटाया।
ड्राइवर इस आम दिखने वाले मां बेटे को मुंबई की कुछ सैर कराकर अंधेरी हवाई अड्डे पर छोड़ कर चला गया। ड्राइवर को यह कभी समझ नहीं आया कि मानव सेठ को इस मां बेटे में क्या खास लगा। सिवाय इसके कि वह बिलकुल आम लोग थे और मानव शाह को आम लोगों की आदत नहीं थी।
लखनऊ में मां बेटे उतरे तो वहां उनके लिए नारायण जी और मोहनजी खुद आए थे। मां बेटे को अपने घर खाने के बहाने ले जा कर मोहनजी ने पूरी बात बताई।
मोहन, “जिस दिन बापू ने यह कंपनी मेरे हाथ में दी तब कहा था कि कंपनी औलाद की तरह होती है पर मेरे लिए यह मेरी बेटी की तरह होगी। इसे मैने बढ़ाया, काबिल बनाया पर अब मुझे इसे तुम्हारे हवाले करना होगा। इसके आगे मैं बस सलाह दे सकता हूं पर मेरी बेटी पर मेरा हक़ नहीं होगा। (नारायण जी ने मोहन के कंधे पर हाथ रखा) मैंने चिराग को मानव शाह जैसे ठग के पास भेजा क्योंकि उसे इंसान को परखना आता है और मैं चिराग को परखने के लिए उसके बहुत करीब हूं।”
चिराग की ओर मुस्कुराकर मोहन, “तुम तो उम्मीद से कहीं बेहतर निकले! तुमने न केवल कंपनी को हफ्ते भर में समझ लिया पर मानव शाह को धंधे में हराया। मानव शाह ने तुम्हें अपनी बेटी का लालच दिया और यह बात अपने आप में अनोखी है। मानव शाह की बेटी को बुरी नजर से देखने वाला ज्यादा दिन नहीं बचता पर तुमने तो उसे भी मना कर दिया।”
मोहन (सोचते हुए), “मैं सोचता हूं कि तुम मेरे साथ 3 साल बिताने के बजाय एक या दो साल बाद मेरा मुंबई ऑफिस संभालने जाओ। वहां से ही असली धंधा होता है। तुम्हारी पहचान भी बनेगी और मेरे भरोसेमंद लोग तुम पर नजर भी रख पाएंगे।”
चिराग, “आप मुझे सिखाने वाले थे! अब क्या हुआ?”
मोहन, “मेरी बेटी को तुम्हारे हाथ देते हुए मुझे डर है कि मैं तुमसे जलने लग जाऊंगा। मैं अपनी बेटी के भविष्य को अपने आप से बचा रहा हूं!”
फुलवा, “मोहनजी आप एक बेहतरीन पिता हैं!”
मोहन हंसकर, “अभी मेरे बेटे रक्षित को बड़ा होने दो। फिर उस से पूछेंगे।“
मां बेटे ने बाप बेटे से इजाजत ली और अपने घर लौटे। घर में कदम रखते ही फुलवा अपने बेटे पर टूट पड़ी और दोनों को होश आने में आधा घंटा लग गया। फिर रात में यही हाथापाई एक बार और हुई। सुबह चिराग ने अपने खड़े लौड़े को अपनी नींद में होकर भी भूखी मां की भट्टी में भर दिया और फुलवा खुशी खुशी नींद में ही चूध गई। सुबह ऑफिस जाते हुए चिराग अपनी मां से विदा लेते हुए उसकी गांड़ में अपना माल भर कर चला गया और फुलवा का दिन संतुष्टि से शुरू हुआ।
फुलवा ने सत्या के साथ मिलकर कसरत की और उस दौरान दोनों ने खरीददारी का प्लान बनाया। फुलवा के सुझाव अपनाकर सत्या मोहन को बिस्तर में दुबारा अधमरा कर खुश थी। दोपहर को जब सत्या ने मोहन को फोन पर खरीददारी का बिल बताया तो वह चौंक गया। जब सत्या ने उसे खरीदी हुई चीजें बताई तो उसका गला सुख गया। मोहन ने चिराग को आखरी दो मीटिंग संभालने को कहा और मन ही मन फुलवा को आभार जताते हुए रक्षित से पहले अपने घर लौटा।
जल्द ही फुलवा चिराग के साथ अपनी नई दिनचर्या को अपनाकर खुशी खुशी जीने लगी। रोज सुबह चिराग दो बार फुलवा की भूख मिटता और ऑफिस चला जाता। शाम को लौटने के बाद फुलवा चिराग से अपनी भूख मिटाती और फिर रात को सोते हुए दोनों पति पत्नी की तरह धीरे धीरे प्यार से एक दूसरे से प्यार करते। मानसूपचार अब भी चल रहे थे और फुलवा को एहसास हो रहा था कि अब वह एक मर्द के प्यार से संतुष्ट होने लगी थी। फुलवा की भूख अब चिराग के ना होने पर भड़कती नहीं थी। अगर चिराग की तबियत खराब हो तो फुलवा दिन में तीन बार झड़ कर भी सह सकती थी। यह आम घरेलू औरत के लिए ज्यादा होगा पर 20 बार चूधने वाली रण्डी के लिए बड़ी तरक्की थी।
चिराग के हाथों बचकर लगभग एक साल हो गया था जब चूधी हुई फुलवा हमेशा की तरह चिराग से लिपट कर सो रही थी। फुलवा को गहरी नींद में सपना आया जो उसे एक पुराने वादे की याद लाया।
राज नर्तकी ने फुलवा को पुकारा था।
अगले दिन सबेरे की ठंड में मां बेटे एक दूसरे को ऐसे लिपटे की जब आंख खुली तो उसके बदन ने सहज रूप से चुधाई शुरू कर दी थी। अब गर्मी के ऐसे मजेदार स्त्रोत को माना करने जितना बेवकूफ कोई नहीं था और चिराग अपनी मां पर चढ़ कर उसकी चूत को अपनी गर्मी से भरने के बाद ही रुक गया।
फिर दोनों ने एक दूसरे की बाहों में कुछ वक्त आलस में बिताया और नहाने गए। शावर में पहले अपने बेटे को चूस कर तयार करने के बाद मां ने अपनी गांड़ मरवाई। दुबारा नहाकर साफ होने के बाद मां बेटे ने अपने कपड़े पहने और नाश्ता किया जब ड्राइवर ने दरवाजा खटखटाया।
ड्राइवर इस आम दिखने वाले मां बेटे को मुंबई की कुछ सैर कराकर अंधेरी हवाई अड्डे पर छोड़ कर चला गया। ड्राइवर को यह कभी समझ नहीं आया कि मानव सेठ को इस मां बेटे में क्या खास लगा। सिवाय इसके कि वह बिलकुल आम लोग थे और मानव शाह को आम लोगों की आदत नहीं थी।
लखनऊ में मां बेटे उतरे तो वहां उनके लिए नारायण जी और मोहनजी खुद आए थे। मां बेटे को अपने घर खाने के बहाने ले जा कर मोहनजी ने पूरी बात बताई।
मोहन, “जिस दिन बापू ने यह कंपनी मेरे हाथ में दी तब कहा था कि कंपनी औलाद की तरह होती है पर मेरे लिए यह मेरी बेटी की तरह होगी। इसे मैने बढ़ाया, काबिल बनाया पर अब मुझे इसे तुम्हारे हवाले करना होगा। इसके आगे मैं बस सलाह दे सकता हूं पर मेरी बेटी पर मेरा हक़ नहीं होगा। (नारायण जी ने मोहन के कंधे पर हाथ रखा) मैंने चिराग को मानव शाह जैसे ठग के पास भेजा क्योंकि उसे इंसान को परखना आता है और मैं चिराग को परखने के लिए उसके बहुत करीब हूं।”
चिराग की ओर मुस्कुराकर मोहन, “तुम तो उम्मीद से कहीं बेहतर निकले! तुमने न केवल कंपनी को हफ्ते भर में समझ लिया पर मानव शाह को धंधे में हराया। मानव शाह ने तुम्हें अपनी बेटी का लालच दिया और यह बात अपने आप में अनोखी है। मानव शाह की बेटी को बुरी नजर से देखने वाला ज्यादा दिन नहीं बचता पर तुमने तो उसे भी मना कर दिया।”
मोहन (सोचते हुए), “मैं सोचता हूं कि तुम मेरे साथ 3 साल बिताने के बजाय एक या दो साल बाद मेरा मुंबई ऑफिस संभालने जाओ। वहां से ही असली धंधा होता है। तुम्हारी पहचान भी बनेगी और मेरे भरोसेमंद लोग तुम पर नजर भी रख पाएंगे।”
चिराग, “आप मुझे सिखाने वाले थे! अब क्या हुआ?”
मोहन, “मेरी बेटी को तुम्हारे हाथ देते हुए मुझे डर है कि मैं तुमसे जलने लग जाऊंगा। मैं अपनी बेटी के भविष्य को अपने आप से बचा रहा हूं!”
फुलवा, “मोहनजी आप एक बेहतरीन पिता हैं!”
मोहन हंसकर, “अभी मेरे बेटे रक्षित को बड़ा होने दो। फिर उस से पूछेंगे।“
मां बेटे ने बाप बेटे से इजाजत ली और अपने घर लौटे। घर में कदम रखते ही फुलवा अपने बेटे पर टूट पड़ी और दोनों को होश आने में आधा घंटा लग गया। फिर रात में यही हाथापाई एक बार और हुई। सुबह चिराग ने अपने खड़े लौड़े को अपनी नींद में होकर भी भूखी मां की भट्टी में भर दिया और फुलवा खुशी खुशी नींद में ही चूध गई। सुबह ऑफिस जाते हुए चिराग अपनी मां से विदा लेते हुए उसकी गांड़ में अपना माल भर कर चला गया और फुलवा का दिन संतुष्टि से शुरू हुआ।
फुलवा ने सत्या के साथ मिलकर कसरत की और उस दौरान दोनों ने खरीददारी का प्लान बनाया। फुलवा के सुझाव अपनाकर सत्या मोहन को बिस्तर में दुबारा अधमरा कर खुश थी। दोपहर को जब सत्या ने मोहन को फोन पर खरीददारी का बिल बताया तो वह चौंक गया। जब सत्या ने उसे खरीदी हुई चीजें बताई तो उसका गला सुख गया। मोहन ने चिराग को आखरी दो मीटिंग संभालने को कहा और मन ही मन फुलवा को आभार जताते हुए रक्षित से पहले अपने घर लौटा।
जल्द ही फुलवा चिराग के साथ अपनी नई दिनचर्या को अपनाकर खुशी खुशी जीने लगी। रोज सुबह चिराग दो बार फुलवा की भूख मिटता और ऑफिस चला जाता। शाम को लौटने के बाद फुलवा चिराग से अपनी भूख मिटाती और फिर रात को सोते हुए दोनों पति पत्नी की तरह धीरे धीरे प्यार से एक दूसरे से प्यार करते। मानसूपचार अब भी चल रहे थे और फुलवा को एहसास हो रहा था कि अब वह एक मर्द के प्यार से संतुष्ट होने लगी थी। फुलवा की भूख अब चिराग के ना होने पर भड़कती नहीं थी। अगर चिराग की तबियत खराब हो तो फुलवा दिन में तीन बार झड़ कर भी सह सकती थी। यह आम घरेलू औरत के लिए ज्यादा होगा पर 20 बार चूधने वाली रण्डी के लिए बड़ी तरक्की थी।
चिराग के हाथों बचकर लगभग एक साल हो गया था जब चूधी हुई फुलवा हमेशा की तरह चिराग से लिपट कर सो रही थी। फुलवा को गहरी नींद में सपना आया जो उसे एक पुराने वादे की याद लाया।
राज नर्तकी ने फुलवा को पुकारा था।