Erotica बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी

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ट्रक हिचकोले खाते हुए पंजाब की कच्ची सड़क को पार करता अपने मुकाम की ओर बढ़ रहा था। ट्रक में जमा 'माल़ ' 14 औरतें / लड़कियां थी। कुछ कुंवारियां थी जिन्हें मुंबई या दिल्ली में काम दिलाने का वादा किया गया था पर अब किसी की गुलाम बनने वाली थी। इनमें से लगभग हर एक रो रही थी। एखाद दो पुरानी रंडियां थी जो एक कोठे से बिक कर दूसरे कोठे के लिए नीलाम हो रही थी।


ऐसी ही दो औरतें मिली। एक थी 18 साल की काली, जो बंगाल में खुद को पांच हजार रुपए में बेच कर एक रण्डी की जिंदगी अपनाने को खुद को तयार कर रही थी। दूसरी थी 37 साल की फुलवा, जिसे उसके बाप ने 18 की होते ही कोठे पर बेचा और फिर एक मर्द से दूसरे मर्द को जाती रही।

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काली

काली ने अपने डर को दबाने के लिए फुलवा से उसकी कहानी पूछी। फुलवा को एहसास था की यह उसका आखरी सफर है और कल उसे कोई याद नहीं रखेगा। किसी की यादों में ही सही पर जिंदा रहने की चाहत बड़ी तेज़ होती है।


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फुलवा

भोली काली की सहमी हुई आंखों में देखते हुए बेजान सी आंखों की फुलवा अपनी कहानी बताने लगी।


*All pics used in the story are from internet and credit to original uploader. No pic is related to the story.
 
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फुलवा पैदाइशी बदनसीब थी। उसकी मां गांव की रण्डी थी। उसका सबसे बड़ा भाई छोड़ बाकी सब उसके पिता के बच्चे नहीं थे। फुलवा के पैदा होने के कुछ साल बाद उसकी मां एक और बार पेट से हो गई। फुलवा की मां ने बच्चा गिराने के लिए जो दावा खाई उस से वह भी मर गई।


फुलवा के बापू ने उसकी मां से शादी के अलावा कोई काम करने का किसी को याद नहीं। जब छोटी की बच्ची घर की औरत बनी तब उसे मदद करने वाला सिर्फ एक था। फुलवा का बड़ा भाई शेखर उस से 6 साल बड़ा था और गांव में चोरी कर अपने भाइयों और बहन को संभालता था। फुलवा के जुड़वा भाई बबलू और बंटी फुलवा से 3 साल बड़े थे। शेखर सबके लिए खाने का इंतजाम करता तो बबलू और बंटी फुलवा को संभालते।


जैसे चारों बढ़ने लगे शेखर मजदूरी करने लगा तो बबलू और बंटी चोरियां करते। फुलवा घर में रहकर सबके लिए खाना बनाती और घर संभालती। फुलवा बड़ी होने लगी तो सबको पता चल गया कि वह अपनी मां जैसी खुबसूरती की मिसाल बनेगी। शेखर ने फुलवा को पराए मर्दों से दूर रहने को कहा और खुद सबकी बेहतर जिंदगी के लिए शहर चला गया। कुछ सालों बाद बबलू और बंटी गांव में गुंडागर्दी करते और फुलवा इन सब की वजह से दुनिया से अनजान अपने घर में बेखबर बची रही।


शेखर हर महीने पैसे भेजता पर बबलू और बंटी अपने बापू से परेशान हो कर अपने भाई की मदद करने 18 के होते ही चले गए। जाते हुए बंटी ने फुलवा को अपने बापू से बच कर रहने को कहा पर भला बापू से क्यों डरना? वह तो अपना है ना? है ना?


जब फुलवा जवानी की कगार पर आ गई तो उसके बापू ने उसकी तारीफ करना शुरू कर दिया। कैसे उसकी खूबसूरती उसकी मां जैसी थी। जिसे अपनी मां याद नहीं उसके लिए इस से ज्यादा खुबसूरती कुछ नही। बापू फुलवा को अक्सर कहता कि वह अपनी राजकुमारी के लिए शहर का राजकुमार लाएगा।


जवानी की कगार पर लड़खड़ाती हसीना के लिए इस से बेहतरीन सपना क्या होगा?


फुलवा के 18वे जन्मदिन पर बापू एक गाड़ी लेकर आया।

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बापू ने फुलवा को बताया की यह गाड़ी उसे और फुलवा को शहर ले जायेगी जहां उसका दोस्त फुलवा के लिए लड़का ढूंढने में उनकी मदद करेगा। फुलवा को बापू पर शक करने की जरूरत नहीं पड़ी और वह अपने कुछ अच्छे कपड़े लेकर बापू के साथ चली गई।


बापू ने गाड़ी दोपहर से रात तक चलाई और देर रात को लखनऊ के बाहर एक सुनसान जगह पर रुक गए।


बापू, "रात बहुत हो चुकी है। इतनी रात किसी के घर पहुंचना ठीक नहीं। हम इस जगह पर आज की रात रुकेंगे और कल सुबह मेरे दोस्त से मिलेंगे।"


फुलवा गांव के बाहर पहली बार आई थी और इस बड़ी हवेली को देख कर अंदर देखने को उत्सुक हो गई। फुलवा का हाथ पकड़ कर बापू उसे अंदर ले गया।


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दरवाजा छूते ही खुल गया और दोनों के अंदर दाखिल होते ही बंद हो गया। फुलवा को इस साफ और सुंदर महल में कुछ अजीब बू आ रही थी। वह गंदी थी पर इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती थी। फुलवा को अपने हर कदम के साथ घुंगरू के आवाज सुनाई दे रहे थे पर उसने तो पायल भी नहीं पहनी थी।


फुलवा, "बापू! ये कैसी जगह है? मुझे डर लग रहा है!"


अंधेरे में से बापू की आवाज अजीब सी हो गई।


बापू, "मेरी बच्ची ये "राज नर्तकी की हवेली" है। आओ, दरबार की इस बड़ी कुर्सी पर बैठो। मैं तुम्हें उसकी कहानी बताता हूं!"


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फुलवा सिंहासन पर बैठ गई और उसे ऐसे लगा जैसे किसी जानवर ने उस पर अपनी ठंडी सांस छोड़ी हो। फुलवा सिकुड़ कर बैठ गई और बापू कहानी बताने लगा।
 
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सदियों पहले जब नवाब पहले लखनऊ आए तो उन्होंने अपना राज बनाते हुए कई जुल्म किए। उन्हीं में से एक दास्तान है राज नर्तकी की। नवाब के 4 बेटे थे। सबसे बड़ा बेटा सबसे बेरहम था तो तीसरा कला प्रेमी था। सबसे बड़े की एक ही कमजोरी थी।

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उसे ना सुनने की आदत नहीं थी।


नवाबजादे को एक दिन एक मंदिर में नाचती नर्तकी दिखी और उसने इस लड़की को अपने कमरे में पेश करने का हुकुम दिया। सिपाही खाली हाथ लौट क्योंकि तीसरे बेटे ने उसे अपनी बीवी बनाने का मंसूबा बनाया था। नवाबजादे का सर घूम गया पर वह अभी नवाब से लड़ने लायक नहीं हुआ था।


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तो नवाबजादे ने लखनऊ के बाहर जंगल में अपना शिकार खेलने का महल बनवाया और वहां पर सबको न्योता दिया। पहले दिन नवाबजादा सिंहासन पर बैठा और उसने कहा की इस महल की सही शुरुवात के लिए इसे किसी काफर का खून पिलाया जाए।


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क्योंकि यहां पर राज नर्तकी के अलावा कोई काफर नही था तो उसे पकड़ कर आगे लाया गया। तीसरे बेटे ने नवाबजादे को रोकने की कोशिश की पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।


राज नर्तकी समझ गई कि आज उसकी मौत होनी है। उसने नवाबजादे को उसे चुनौती देने को कहा।


अगर वह चुनौती हार गई तो उसका गला काट दिया जाए। नवाबजादे ने शर्त मंजूर करते हुए इशारा किया और दीवान ने राज नर्तकी को जबरदस्ती एक घोल पिलाया।


नवाबजादा, "सुन ए काफ़र! तू हमारी खिदमत में पूरे 3 घंटे नाचेगी! अगर तेरे घुंगरू रुके तो तेरा खून बहेगा! और हां, तू मौत के लिए तड़पेगी पर वह भी तुझे नसीब नही होगी! अब नाच!!"


राज नर्तकी अपने मान के लिए, अपनी साधना के लिए, अपनी जान के लिए नाच रही थी। घोल में एक ऐसा द्रव था जो नवाब के हरम में औरत को नवाब के पास भेजने से पहले उसे पिलाया जाता था।


नचाते हुए राजनर्तकी का खून गरम होते गया। उसकी सांसे फूलने लगी। पसीने से लथपथ हो कर भी राज नर्तकी अपनी साधना में लगी रही। एक प्रहर होने को आया और राज नर्तकी अब भी रुकी नहीं थी। नवाबजादे ने अपनी बंदूक में से छर्रे निकाले और फर्श पर बिखेर दिए।


राज नर्तकी का पैर फिसला और वह जमीन पर गिर गई।


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गुस्से से आग बबूला राज नर्तकी ने इस सभा को श्राप दिया, "अगर मेरी साधना सच्ची है और अगर मैं पवित्र हूं तो जब तक यह जगह न्याय नहीं देखती तब तक यह जगह हर रात की खून में कीमत लेगी! मौत इस जगह पर वास करेगी और कर्ज ना चुकाने वालों का सबेरे हिसाब करेगी!"


नवाबजादा हंस कर बोला की काफ़र के बोलने से नवाब को कुछ नहीं होता पर अब पूरा दरबार देखेगा की नवाबजादे के बोलने से काफ़र का क्या होता है!


नवाबजादे ने इशारा किया और सिपाहियों ने राज नर्तकी के हाथ पकड़ लिए। नवाबजादे ने आगे बढ़कर पूरे दरबार के सामने राज नर्तकी के कपड़े उतार दिए। राज नर्तकी रो रही थी पर घोल अपना असर कर चुका था!


नवाबजादे ने राज नर्तकी के नंगे बदन की पूरे दरबार में नुमाइश करते हुए सबको उसकी सक्त चूचियां और गीली यौन पंखुड़ियां दिखाई। राज नर्तकी अब विरोध भी करने लायक नहीं थी।


नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के हाथ अपने सिंहासन के सर से और राज नर्तकी के पैर सिंहासन के पैरों से बांध कर उसे अपने सिंहासन पर खोल कर बैठा दिया।


यौन उत्तेजना से विवश हो कर राज नर्तकी आहें भरने लगी। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की खुली पंखुड़ियों को सहलाते हुए पूरे दरबार के सामने उसे यौन रसों की बौछार उड़ाने को मजबूर कर दिया। अपनी ही कामाग्नि में जलती राज नर्तकी अब अपने शरीर पर से पूरा संतुलन खो चुकी थी।


यौन स्खलन से बेसुध पड़ी राज नर्तकी के सामने नवाबजादे ने अपना छिला हुआ 7 इंच लम्बा यौन अंग लाया तो राज नर्तकी उसे रोक नहीं पाई। नवाबजादे ने सबके सामने अपने छोटे भाई की पसंद पर कब्जा कर लिया।


नवाबजादे का पूरा अंग बगावत कुचलते सुलतान की तरह राज नर्तकी की पवित्रता को चीरता एक झटके में जड़ तक समा गया। राज नर्तकी की चीख ने उसके धक्के खाते घुंगरुओं के साथ मिलकर महल में जैसे बुरी इच्छाओं को बुलाया।



नवाबजादा चाहता था कि राज नर्तकी की चीखें पूरा दरबार सुनता रहे। इसी वजह से वह राज नर्तकी की कुंवारी जवानी को लूटते हुए उसके मुंह को खुला रख रहा था।


नवाबजादे ने धक्के खाती राज नर्तकी के भरे हुए स्तनों को निचोड़ते हुए उनपार उभरे हुए लाल शिखरों को अपने दातों में पकड़ कर दबाया। अपनी कोरी योनि में पहली बार होती यौन उत्तेजना के साथ अपने स्तनों में से आती तीव्र वेदना से राज नर्तकी स्खलित होने लगी।


राज नर्तकी की वर्षों की साधना से निखरा हुआ शरीर नवाबजादे को निचोडते हुए कामाग्नी की आहुति बन गया। नवाबजादे ने राज नर्तकी का गला दबा कर गर्जना करते हुए उसकी गरम जख्म में अपना विष भर दिया।


नवाबजादे ने कुछ पल राज नर्तकी के लूटे हुए बदन पर आराम करते हुए अपनी जीत का मज़ा लिया। फिर नवाबजादे ने अपने लौड़े को राज नर्तकी की खून से सनी चूत में से बाहर खींच लिया। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की फटी हुई जवानी में से अपना वीर्य सबको दिखाते हुए अपनी नवाबी की झलक दिखाई।


राज नर्तकी ने घोल की चपेट में आकर अपनी सुध खो दी थी। नवाबजादा राज नर्तकी को उसपर अपनी जीत उसे दिखाना चाहता था।


नवाबजादे ने राज नर्तकी के पैरों को खोला और खुद अपनी जगह पर बैठ गया। नंगी बेसुध राज नर्तकी अपने बंधे हुए हाथों से नवाबजादे की गोद में बैठी हुई थी जब उसे किसी अनहोनी का अंदेशा हुआ।


राज नर्तकी ने अपनी आंखे खोली तो पूरा दरबार ललचाती नजरों से उसकी खुली जख्मी जवानी को देख रहा था। राज नर्तकी ने कुछ बोलना चाहा पर उसके गले में से चीख निकल गई।


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नवाबजादे ने अपने सुपाड़े को राज नर्तकी के गुदाद्वार पर लगाकर उसे बिठाना शुरू कर दिया था।
 
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"हे मां!!…
रक्षा!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!…"


पूरा दरबार लार टपकाते हुए देख रहा था कि नवाबजादा अपना नवाबी शौक कैसे पूरा कर रहा था। नवाबजादा राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े की जड़ पर पटक सकता था पर वह चाहता था कि राज नर्तकी और पूरा दरबार देखे की वह कितने संयम से दर्दनाक बदला लेने के काबिल है। हर एक बार राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े पर आधा इंच ज्यादा धंसाते हुए नवाबजादा राज नर्तकी की कुंवारी गांड़ में से एक और बूंद खून अपने सिंहासन पर टपका देता।


सब की नज़र नवाबजादे के लौड़े पर फटती गांड़ पर थी लेकिन किसी ने नहीं देखा कैसे वह खून सफेद फर्श पर पड़ते ही अंदर चूस लिया जाता। पहली रात का कर्ज राज नर्तकी के कौमार्य से चुकाया जा रहा था।


कुछ देर तक राज नर्तकी को तड़पाने के बाद जब नवाबजादे के लौड़े की जड़ पर राज नर्तकी की गांड़ दब गई तो उसने मुस्कुराते हुए अपने हाथ उठाकर दरबारियों को तालियां बजाने को कहा।


राज नर्तकी अपनी गांड़ में नवाबजादे का मोटा लन्ड लिए बेबसी के आंसू बहा रही थी जब उसके मम्मों को दुबारा निचोड़ा जाने लगा। नवाबजादे ने राज नर्तकी की चुचियों को पकड़ कर खींचते हुए उसे आगे बढ़ाया और फिर अपने घुटने उठाकर राज नर्तकी को वापस अपने लौड़े पर दबाया।


इस धीमी चुधाई से राज नर्तकी की गांड़ को फैलकर नवाबजादे के आकार में ढलने का मौका मिला। नवाबजादे को भी आराम करने का मौका मिला था और उसने अब राज नर्तकी को तेज लूटने की तयारी कर ली।


नवाबजादे ने अपने मोटे पंजों में राज नर्तकी की पतली कमर को पकड़ कर उसके नंगे बदन को अपने लौड़े के छोर तक उठाया। नवाबजादे का सुपाड़ा "पक्क्!!…" की आवाज से राज नर्तकी की कसी हुई जख्मी कुंवारी गांड़ में से निकला।


राज नर्तकी ने आह भरी और नवाबजादे ने उसे दुबारा अपने लौड़े से चीर दिया। राज नर्तकी के पैरों ने दर्द से छटपटाकर कांपते हुए उसके घुंगरूओं को बजाते हुए उसकी चीख का साथ दिया।


इस अमानवी गीता और नृत्य के ताल पर नवाबजादे ने राज नर्तकी के कोमल बदन पर अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू कर दिया। तेज रफ्तार झटकों से पूरे लौड़े पर चूधती राज नर्तकी की चीखें धीरे धीरे आहें बन कर फिर खामोश सिसकियां बन गईं।


घोल का असर राज नर्तकी को दर्द से उत्तेजित कर रहा था और राज नर्तकी अपने जोबन से मजबूर हो कर जलने लगी। राज नर्तकी का शरीर गरमी से लाल हो गया और कामागनी की लाली से उसकी मासूमियत जल गई। अपनी गांड़ मराते हुए राज नर्तकी अनेकों बार झड़ती रही।


राज नर्तकी इस अपमान के कड़वे घूंटों को पीते हुए काम उत्तेजना में तड़प रही थी जब नवाबजादे ने वापस कराहते हुए उसे अपने लौड़े पर दबाया। राज नर्तकी को अपनी आतों में नवाबजादे की गरम ज़हर भरने का एहसास हुआ और वह अपने आप से घृणा करने लगी।


नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के हाथ छोड़े और उसे अपने लौड़े पर से उठाया।


राज नर्तकी की जख्मी गांड़ खुली रह गई थी। नवाबजादे ने पूरे दरबार को अपना वीर्य राज नर्तकी की गांड़ में से बाहर बहता दिखाया और दरबारियों ने उसके फतह पर उसे बधाइयां दी। नवाबजादे ने फिर खुद के लिए काम प्रेरक घोल मंगवाया और उसे पीते हुए राज नर्तकी को अपना लौड़ा चूसने को मजबूर किया।


राज नर्तकी अब टूट गई थी और वह नवाबजादे की बात चुप चाप मान गई। नवाबजादे पर घोल का असर होते ही उसने राज नर्तकी को अपनी बाहों में उठा लिया और दरबार के बीच में आ गया।


नवाबजादे ने फिर अपने लौड़े को पीछे से खड़े होकर राज नर्तकी की गांड़ में पेल दिया। राज नर्तकी बस आह भरते हुए खड़ी रही। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की गांड़ मारते हुए उसे हर दरबारी के सामने लाया।


किसी ने राज नर्तकी के मम्मे चूसे तो किसीने राज नर्तकी की जख्मी चूत में उंगली से चुधाई की। जंग के बाद औरतों को लूटने में माहिर सिपहसालार ने तो राज नर्तकी के मम्मों को चूसते हुए उसकी चूत को अपने खंजर की पकड़ से चोद दिया।


सबेरे तक नवाबजादे पर से घोल का असर उतर गया और उसका लौड़ा पिचक गया। नवाबजादे ने फिर चुध कर बेसुध पड़ी राज नर्तकी को दरबार के बीच में फेंक दिया।


सुबह की पहली किरण ने राज नर्तकी के जख्मी नंगे बदन को बस छू लिया था जब नवाबजादे ने राज नर्तकी को मौत की सजा सुनाई।


नवाबजादा, "इस काफ़र को सब मिलकर तब तक चोदो जब तक इसकी रूह जहन्नुम में इसके पुश्तों के साथ जलने ना लगे!"


बाहर के जंगल में भी सन्नाटा छा गया इस कदर राज नर्तकी की चीखों से जमीन तक दहल गई। उस दिन का कोई अंत नहीं था!


सबेरे तक नवाबजादा और सारे दरबारी थक कर दरबार के बीचों बीच नंगे पड़े हुए थे जब घुंगरुओं की हल्की आवाज के साथ एक रूह बाहर की ओर निकली। महल की दहलीज पर कदम रखते ही उसे एहसास हुआ की वह खुद अपने श्राप से श्रापित है।


राज नर्तकी इस महल में कैद हो कर मौत बन कर रह गई।


राज नर्तकी ने अपने राज कुमार की बेड़ियों को छू लिया और वह टूट कर बिखर गए। तीसरे बेटे ने राज नर्तकी से बेखबर अपनी तलवार उठाई और नवाबजादे का सर कलम कर दिया। राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था। लेकिन तीसरा बेटा रुका नहीं। उसने सारे दरबारियों को काट दिया। सुबह की पहली किरण ने दरबार को इंसानी खून से भरा देखा।


राज नर्तकी को उम्मीद थी कि उसका प्रेमी उसके शरीर को ढक कर उसे अग्नि देते हुए इस जगह और उसे श्राप मुक्त करेगा। लेकिन उसके प्रेमी ने उसके टूटे हुए शरीर पर थूंका और वहां से चला गया। दिन भर राज नर्तकी के घुंघरू खून और शवों में चलते रहे पर सूरज की आखरी किरण के साथ महल जिंदा हो गया। महल वहां के सारे शव और खून अपने अंदर समा गया जैसे यह बलि वेदी अगले शिकार के लिए तयार हो गई हो।


अगली शाम नवाबजादे की बेगम तीसरे बेटे के साथ अपने शौहर से मिलने आई। महल में पहुंचते ही तीसरे बेटे ने अपनी भाभी को नोच कर लूट लिया। नवाबजादे का बदला उसने नवाबजादे की बेकसूर बीवी से लिया। बेचारी बेगम सबेरे उठी तो अपनी बर्बादी झेल नहीं पाई। बेगम ने अपने खंजर से अपना दिल काट दिया।


खून फर्श पर गिरा और राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था।


तीसरा बेटा अपनी भाभी का शव वहीं छोड़ शिकार खेलने चला गया। शाम को महल से एक शरीफ औरत ने एक हम दर्द से रुखसत ली और महल के बाहर कदम रखते ही गायब हो गई।


रात को तीसरा बेटा लौटा पर उसे अपनी भाभी का शव नहीं दिखा। वह बिना सोचे सो गया। नवाब के रक्षक दस्ते ने नवाबजादे की मौत का हिसाब लेने के लिए आधी रात को महल पर हमला किया और सोते हुए तीसरे बेटे का गला काट कर चले गए। खून फर्श पर गिर गया और सोख लिया गया। राज नर्तकी नाच उठी।


सदियां बीत गई हैं पर यह महल आज भी वैसा ही है जैसा तब था जब राज नर्तकी ने इसके अंदर अपना कदम रखा था। यहां कई डाकुओं ने अपना खजाना छुपाया पर उसे वापस ले नही पाए। कइयों ने यहां कुंवारियों की नर बलि चढ़ाई उस खजाने के लिए पर कुछ हासिल नहीं हुआ।


आज भी यहां रात गुजारने वालों से राज नर्तकी खून का हिसाब लेती है। कहते हैं कि बेकसूर को उसके घुंघरू सुनाई देते हैं।
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फुलवा रो पड़ी।


फुलवा, "बापू! आप ऐसी जगह पर मुझे क्यों लाए? भाग चलो बापू! अब भी सवेरा नही हुआ!"


गुस्से में राज नर्तकी के घुंघरू बज उठे और फुलवा सहम गई।


बापू मुस्कुराकर, "राज नर्तकी को खून देना पड़ता है, जान नही। तुम्हारे पास कोई चाकू या ब्लेड है क्या?"


फुलवा ने अपना सर हिलाकर मना किया।


बापू, "ओह! ये बहुत बुरी बात है! अब तो खून निकालने का एक ही तरीका है!"


अंधेरे में बापू की आंखें भेड़िए की तरह चमक उठी और फुलवा सहम कर सिंहासन पर बैठ गई।
 
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बापू ने दिलाए कपड़ों में फुलवा


फुलवा डर कर, "बापू!! आप मुझे मार नहीं सकते! मैं आपकी की बेटी हूं!!"


बापू हंसकर, "तेरी मां रण्डी थी! तू किसी की भी बेटी हो सकती है।"


फुलवा हाथ जोड़कर, "बापू मुझे मत मारो!"


बापू, "अरे मनहूस, तुझे मार कर मैं अपना नुकसान करूं क्या? शहर में तेरी अच्छी कीमत मिलने वाली है!"


फुलवा चौंक गई!


बापू, "तुझे एक बार चोद दूं तो मेरे कलेजे में ठंडक आ जाए! चूल्हा जलाते हुए, लकड़ी उठाते हुए तूने मुझे बहुत ललचाया है। आज तुझे अच्छे से चोद कर फिर बेचूंगा!"


बापू ने फुलवा को सिंहासन पर दबाकर उसकी कमर को आगे खींचा। फुलवा चीख पड़ी।


बापू ने फुलवा के दोनों हाथों को अपने एक हाथ में पकड़ लिया और उन्हें ऊपर उठाया। बापू ने फुलवा के पैरों के बीच में जगह बना ली थी तो वह बापू को लात नहीं मार सकी। बापू ने फुलवा की चोली खोल कर उसकी चोली से उसके हाथ बांध दिए। फुलवा के बंधे हुए हाथों को सिंहासन के सर में अटकाकर बापू ने फुलवा का घागरा उठाया।


फुलवा, "नही बापू!!… नही!!…"


बापू ने फुलवा के घागरे में हाथ डाला और उसकी दो छेद पड़ी पैंटी को उतार दिया।


फुलवा ने अपने घुटनों को जोड़ कर अपनी घुंगराले बालों से ढकी कोरी जवानी को छुपाने की कोशिश की। बापू ने फुलवा की बेबसी पर हंसते हुए उसके घुटनों को उठाकर फैलाया। बापू ने अपनी पीछे की जेब में से एक टॉर्च निकाल कर जलाया।


बापू, "सुन बे रण्डी की बच्ची! अब मैं तेरी चूत में तेरी झिल्ली बची है कि नही देखूंगा! अगर तूने अपनी मां की तरह अपना मुंह काला किया होगा तो इस टॉर्च से तेरी बच्चेदानी फाड़ कर तेरा खून निकलूंगा।"


फुलवा ने डर कर अपनी जांघों को खोल कर बापू को अपनी कुंवारी जवानी दिखाई।


बापू ने अपनी मोटी खुरतरी उंगलियों से फुलवा की नाजुक यौन पंखुड़ियां को जबरदस्ती खोला। डर से सुखी जवानी पर टॉर्च की तेज रोशनी गिरी।


एक बहुतही छोटे छेद वाला महीन गुलाबी पर्दा देख कर बापू खुश हो गया। बापू ने फुलवा को उसकी कोरी जवानी का इनाम देने के लिए उसकी पंखुड़ियों को सहलाना शुरू कर दिया।


डरी हुई फुलवा को गरम करना मुश्किल था पर बापू ने उसकी मां को भी ऐसे ही पटाया था। बापू की छेड़ते हुए उकसाने की कला से फुलवा भी बच नहीं पाई।


फुलवा गरम सांसे लेने लगी। फुलवा की आंसू भरी आंखें बोझल होने लगी। फुलवा अनजाने में अपनी कमर उठाकर बापू का साथ देने लगी।


फुलवा, "बापू!!…
नहीं बापू!!…
बापू!!…
गंदा!!…
ईई!!…
नही!!…
नही बापू!!…
बापू!!…
बापू!!…
बा!!…
आ!!…
आ!!…
पू!!!…
आह!!…
आह!!…
अन्ह्ह!!…"


फुलवा की चूत में यौन रसों की बाढ़ आ गई। फुलवा का कुंवारा बदन कांपते हुए झड़ने लगा। फुलवा की जवानी ने अंगड़ाई ली और फुलवा रोने लगी।


फुलवा, "बापू!!…
ये तुमने क्या कर दिया!!…
अब मैं क्या मुंह दिखाऊंगी!!…
मैं बरबाद हो गई!!…"


बापू हंसकर, "अरे बेवकूफ कुतिया! तू बरबाद हो गई तो मुझे पैसे कौन देगा? तेरी असली कीमत तो तेरी झिल्ली की है! मैने तुझे बस दिखाया है कि अगर तेरा यार मुझ जैसा तजुर्बेदार मर्द हुआ तो तुझे कैसा मजा आयेगा।"


फुलवा, "बापू! तुमने मुझे दिखा दिया। अब मुझे जाने दो!"


बापू ने फुलवा का गला पकड़ कर उसका मुंह अपनी ओर किया।


बापू, "मैं तो तुझे थप्पड़ भी नही मार सकता! वरना आज अभी दिखा देता की मर्द को अधूरा छोड़ने का अंजाम क्या होता है!"


बापू ने अपनी धोती उतारी और अपने लौड़े को फुलवा की कुंवारी चूत पर रगड़ने लगी। भोली फुलवा को अपने बापू के इस सताने से मजा आने लगा।


फुलवा का बदन अभी ठंडा नहीं हुआ था इस लिए जल्द ही गरमा गया। फुलवा की चूत में से यौन रसों का रिसाव बढ़ गया तो बापू का लौड़ा फुलवा की जवानी में गीला हो गया। बापू ने फुलवा की कोरी चूत के मुंह को अपने सुपाड़े से सहलाते हुए अपनी किस्मत को कोसा।


फुलवा की चूत पर रखा लौड़ा अचानक उठ गया और फुलवा ने नीचे देखा।


बापू ने अपने गीले सुपाड़े को पकड़ कर भाले की तरह निशाना लगाया। इस से पहले कि फुलवा कुछ कर पाती बापू के डेढ़ इंच मोटे सुपाड़े ने फुलवा की भूरी संकरी गांड़ पर जोर दिया।


फुलवा चीख पड़ी, "बापू!!…
नही!!…
गंदा!!…
आ!!…
आ!!…
आ!!…
आअंह!!…"


फुलवा की कसी हुई गांड़ को बापू का सुपाड़ा रोकने में कामयाबी मिली। दर्द से इसकी कीमत नापना मुश्किल था।


फुलवा ने आंसू बहाती आंखों से बापू को रुकने की गुहार लगाई। बापू ने अपनी हथेली पर थूंक कर अपने सुपाड़े को और चमकाया। बापू ने दुबारा अपने भाले से निशाना लगाकर हमला किया।


फुलवा की चीखें पहले कि कई कुंवारियों की तरह गूंज उठी और दब गई। बापू के सुपाड़े ने फुलवा की गांड़ को छिल कर खोल दिया था।


फुलवा की ही तरह उसकी गांड़ भी लूटने की वजह से खून के आंसू बहाने लगी। फुलवा की गांड़ में से बाहर निकला खून बापू के लौड़े पर से होते हुए उसकी बूढ़ी गोटियों पर जमा हो गया।


कुछ बूंदें एक हुई तो बापू के तेज धक्के से वह फर्श पर गिर गई।


सफेद फर्श में खून की बूंदें सोख ली गई। राज नर्तकी की भूख मिट गई और वह नाच उठी। खून का कर्ज चुकाया गया था।


फुलवा अपने बापू को रुकने को कहती रही। बापू ने फुलवा की कुंवारी चूत और यौन मोती को सहलाते हुए उसकी गांड़ मारना जारी रखा।


फुलवा अपने बापू से यौन संबंध को पहली बार अनुभव करते हुए मन से घिन्न और बदन से उत्तेजना महसूस कर रही थी। फुलवा की जवानी से किसी माहिर खिलाड़ी की तरह खेलते हुए बापू ने फुलवा को कई बार झड़ने को मजबूर किया। फुलवा झड़ते हुए बेबस हो कर अपनी गांड़ मरवा रही थी।


बापू बड़ा कामिना था! वह जानता था कि वह अपनी उम्र के कारण सिर्फ एक बार झड़ सकता था। तो उसने अपने झड़ने से ठीक पहले फुलवा को झड़ा कर अपना स्खलन रोक रखा। फुलवा की कसी हुई कुंवारी गांड़ बापू के लौड़े को ऐसे निचोड़ती की बापू झड़ने से रुक जाता और इसी बहाने वह फुलवा को और ज्यादा चोदता।


फुलवा आखिरकार इतनी झड़ी की उसकी गांड़ ढीली पड़ गई। फुलवा यौन उत्तेजना में जलकर बेसुध हो गई। बापू का अगला स्खलन उसका आखरी स्खलन था।


बापू "आह!!!…" कर करहाते हुए फुलवा की आतों में झड़ कर उसके कोमल बदन पर गिर कर सो गया।
 
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फुलवा रोते हुए, "बापू, इतना बड़ा धोखा!!… क्यों?"


बापू ने हंसकर अपने लौड़े को फुलवा की फटी हुई पैंटी से पोंचकर धोती पहनते हुए फुलवा को देखा।


बापू, "रण्डी की बच्ची! तेरी मां को मैने पेट से किया और घर से भगा लाया। उसने फिर रण्डी बनकर मेरा पेट पाला। लेकिन तेरे पैदा होने के बाद उसने तुझे लेकर भागने की कोशिश की। मुझे उसकी टांग तोड़नी पड़ी। वह जानती थी कि मैं तुझे भी रण्डी बनाऊंगा! अगली बार पेट से हुई तो चुपके से बच्चा गिराते हुए खुद मर गई। मैं तो कब से तुझे बेचने की कोशिश कर रहा था पर तेरे भाइयों ने तुझे बचा कर रखा। मुझे यकीन है कि वह तीनों तुझे लेने गांव आए होंगे। इसी लिए मैंने घर बेचकर गाड़ी खरीदी। अब तुझे बेचकर मैं मजे की जिंदगी जीऊंगा।"


फुलवा समझ गई कि जब उसके बापू ने उसे कहा था की वह उसके लिए शहर का राजकुमार लाएगा उसने यह नही बताया था कि हर रात एक नया राजकुमार उसे नोच खाएगा।


सबेरा को गया था और बापू फुलवा को पकड़ कर गाड़ी की ओर बढ़ा। फुलवा को अपने पीछे घुंघरुओं की हल्की आवाज सुनाई दे रही थी मानो कोई उसे विदा कर रहा हो।


बापू के धोखे से फुलवा टूट गई थी। वह चुप चाप गाड़ी में पीछे अपने घुटनों को सीने से लगा कर बैठ गई। बापू ने खुशी खुशी सीटी बजाते हुए गाड़ी लखनऊ के एक बदनाम इलाके में लाई। बापू ने एक अच्छे दिखने वाले घर के सामने गाड़ी रोकी और फुलवा को पकड़ कर अंदर ले गया।


घर अंदर से बिलकुल अच्छे से सजा हुआ था मानो किसी शरीफ आदमी का अपना घर हो। आदमी ने दोनों को देखा और उन्हें अंदर लिया। आदमी को बापू Peter uncle बुला रहा था।


Peter uncle ने दोनों को शरबत दिया और फुलवा उसे पी गई। बापू ने शरबत पीने के बजाय सौदे की बात शुरू कर दी। फुलवा को अचानक अपना सर हल्का लगने लगा। फुलवा मानों कहीं दूर से बापू और Peter uncle की बहस देख रही थी।


बापू कोई चीज 2 लाख रुपए से कम में बेचने को तयार नही था और Peter uncle उसे 50 हजार से ज्यादा देने को तयार नही था। Peter uncle ने फिर "माल" को जांचना चाहा तो बापू ने उसे अपना टॉर्च दिया।


Peter uncle ने अपना सर हिलाते हुए एक बक्से में से कोई डॉक्टरी समान निकाला और फुलवा को आगे बुलाया। बापू ने फुलवा को पकड़ कर आगे लाया और मेज के किनारे पर लिटा दिया। फुलवा की पीठ मेज पर थी तो पर अधर में लटके हुए थे।


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Peter uncle ने फुलवा के घुटनों को अपने कंधों पर रख कर उठाते हुए उसकी कुंवारी चूत और जख्मी गांड़ को देखा।


Peter uncle फुलवा को वहीं छोड़ कर बापू से दुबारा लड़ने लगा।


Peter uncle, "इसे कहीं और ले जाओ! मैं ठूकी हुई लड़कियां नहीं परोसता! मेरा भी नाम है! ऐसा काम करूंगा तो बदनाम हो जाऊंगा!"


बापू हंसकर, "कमिने मैं तुझे जानता हूं। तू हर लड़की की गांड़ मारता है और फिर उसकी बोली लगाता है। तुझे बस इस बात का गुस्सा है की मैने पहले मुंह मारा! देख तू झिल्ली बेच रहा है और गांड़ में झिल्ली नहीं होती। तो तुझे क्या फरक पड़ता है? दो दिन हागते हुए रोएगी और फिर गांड़ मराने को तयार हो जायेगी!"


Peter uncle और बापू बहस करते रहे और मांस के दुकान में बंधी बकरी की तरह फुलवा उन्हें देखती रही। आखिर में बापू 1 लाख रुपए लेकर फुलवा को मुड़कर देखे बगैर चला गया।


Peter uncle ने फुलवा को अंदर एक गुलाबी कमरे में ले जाते हुए उसके कपड़े उतारे। फुलवा को अजीब लग रहा था कि Peter uncle उसे किसी गुड़िया की तरह ले जा रहा था।


Peter uncle ने फुलवा को नहलाया और फिर उसे पोंछ कर नंगी बेड पर लिटा दिया। Peter uncle ने फिर फुलवा के बदन पर परफ्यूम को छिड़का और उसके पैरों को फैला दिया।


Peter uncle ने फिर एक कंघी और कैंची से फुलवा के पैरों के बीच की घनी झाड़ियों को छाट कर खुर्तरी घास में बदल दिया। Peter uncle फिर एक लोशन ले कर आया और उसने उस लोशन को फुलवा की गांड़ पर धीरे से लगाया।


फुलवा की आह निकल गई।


Peter uncle, "बेरहम कमिना! कुछ लोगों को गांड़ मारना आता ही नहीं!"


Peter uncle की उंगली ने लोशन को फुलवा की भूरी छिली हुई गांड़ पर हल्के से लगाते हुए वहां पर प्यार से मालिश करने लगा। फुलवा की गांड़ पहले तो कस ली गई पर फिर वहां अच्छा लगने लगा तो फुलवा के शरीर ने गांड़ को कसना बंद कर दिया।


Peter uncle ने फुलवा की झांटों पर दूसरा क्रीम लगाते हुए फुलवा के यौन मोती को सहलाना शुरू किया। फुलवा बेहोशी में अपने बदन को तपता महसूस करने लगी। फुलवा की सांसें तेज़ चलने लगी और उसके माथे पर पसीना आने लगा।


फुलवा Peter uncle को कुछ कहना चाहती थी, कुछ बताना चाहती थी और चीखना चाहती थी पर वह अपने बदन को कुछ करने को कहने की लिए बहुत कमजोर थी। Peter uncle ने फुलवा की झाटों को क्रीम लगाते हुए अपने मुंह से उसकी कोरी जवानी को चाटकर चूमना शुरू किया। फुलवा कसमसाते हुए Peter uncle से उत्तेजित होने लगी।


फुलवा का बदन अचानक कांपने लगा। फुलवा की चूत में से गरम रसों का बहाव होने लगा और Peter uncle की उंगली लोशन लेकर उसकी गांड़ में घुस गई।


लोशन की ठंडक ने फुलवा की गांड़ को आराम देते हुए ढीला किया था। फुलवा को एहसास हुआ कि Peter uncle ने सिर्फ अपनी उंगली के अगले सिरे को उसकी गांड़ में डाल दिया था।


Peter uncle की उंगली फुलवा की गांड़ को अंदर से सहलाते हुए उसे झड़ा रही थी। फुलवा को गांड़ मराते हुए दर्द नहीं हो रहा था। फुलवा अब अपनी गांड़ हिलाकर Peter uncle का साथ देना चाहती थी पर बेहोशी उसे रोक रही थी।


फुलवा को Peter uncle जैसे आजमा रहा था। वह कई घंटों तक फुलवा को सहलाते हुए, चाटते हुए और उंगली से उसकी गांड़ मारते हुए झडाता रहा। फुलवा झड़ते हुए लगभग पगला गई तब जा कर Peter uncle ने उसे सोने दिया।


फुलवा खामोशी से गहरी नींद सो गई।
 
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फुलवा ने अपनी आंखें खोली तो सुबह हो गई थी। फुलवा ने अपने नंगे बदन को चादर से ढक कर सहमी हुई आंखों से फुलवा ने अपने चारों ओर देखा तो उसे कुछ बेधंगे कपड़े मिले। फुलवा ने वह कपड़े पहने और बाहर आ गई।


Peter uncle ने फुलवा को बुलाया और अपने बगल में बैठने को कहा। फुलवा के बदन को निहारते हुए Peter uncle ने उसे चाय टोस्ट का नाश्ता दिया।


बेहद गरीबी में पली बढ़ी फुलवा के लिए चाय और टोस्ट किसी राजभोग जैसा था। Peter uncle ऐसी लड़कियों से वाकिफ था और उसने फुलवा को खाने दिया। फुलवा का नाश्ता होने के बाद Peter uncle उसे उसकी सच्चाई बताने लगा।


Peter uncle, "आज से तेरा नाम पिंकी है। इस धंधे में कोई अपना असली नाम नही रखता।"


फुलवा ने अपना सर नीचे कर Peter uncle की बात मान ली।


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Peter uncle, "देख पिंकी, यह एक मंडी है जहां औरत का जिस्म नही, सपने बिकते हैं! अगर कोई औरत शादी भी कर ले तो उसका पति रोज़ रात उसे नही चोदता! वह कभी अपनी बॉस को तो कभी अपनी assistant को और कभी राह में दिखी लड़की को चोदता है। बस यहां भी हर रोज सपना बिकेगा, तू सिर्फ एक जरिया है!"


फुलवा चौंक कर Peter uncle को देखती रही।


Peter uncle मुस्कुराकर, "चौंक मत! मैं बुरा आदमी नहीं हूं। बस एक दुकानदार हूं। अगर तू अपनी किस्मत को अपना ले तो शायद तुझे भी मज़ा आए! वरना…"


Peter uncle ने मुंह बनाकर, "मैं कुंवारियों को बेचता हूं। मर्दों को कुंवारियों को चोदना होता है फिर वह राजी खुशी बिस्तर में हो या रोटी छटपटाती बिस्तर में बंधी हुई हो!"


फुलवा जानती थी की Peter uncle उसे वह चुनाव करने का मौका दे रहा था जो उसके बापू ने उसे नही दिया।


फुलवा अपनी किस्मत से हार कर, "मैं तयार हूं।"


Peter uncle उसे अपने खजाने के कमरे में ले गया। वहां कई अलग अलग कपड़े थे। Peter uncle ने उसे अलग अलग कपड़े पहन कर दिखाने को कहा। कुछ कपड़े ऐसे जो उसने पहने थे तो कुछ ऐसे जो उसने फिल्मों में देखे थे। कुछ कपड़े तो ऐसे थे जो देख कर वह शर्म से लाल हो गई और उसने उन्हें पहनने से मना कर दिया।


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Peter uncle ने उसे जबरदस्ती नहीं की और उसे अच्छे से निहारा।


Peter uncle, "कच्ची उम्र और ठीक से खाना न खाने की वजह से तुझे और भरना बाकी है। अगर तू अच्छा खाना खाए और एकाध बच्चे की मां बने तो तेरा बदन सच में निखर जाएगा! अफसोस मैं तेरा वो रूप नही देख पाऊंगा।"


फुलवा के मुंह से निकल गया, "आप कहीं जा रहे हो?"


Peter uncle हंस पड़ा।


Peter uncle, "अरे नही पिंकी! लेकिन मैं सिर्फ कुंवारियां और कच्ची कलियां बेचता हूं। एक बार कच्ची कली खिल जाए तो मैं उसे दूसरे दुकानदार को बेच कर नया माल खरीदता हूं। टीना, पिंकी, बिल्ली, रीना तो आती जाती हैं पर Peter uncle यहीं पर रहेगा!"


फुलवा ने अपना सर झुकाया। Peter uncle ने फिर फुलवा के अलग अलग कपड़ों में फोटो खींचे। सब कपड़े अक्सर गुलाबी और सफेद थे जिस से वह भोली और नाजुक दिखे पर इतने पारदर्शी की उसके बदन की रूप रेखा आसानी से नजर आए।


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Peter uncle ने फिर फुलवा को एक क्रीम दिया जो उसे अपने हाथों और जांघों के बीच के बालों पर लगाना था। इस क्रीम से उसके मेहनत से खुरतरे हाथ और झांटों के बाल नरम और मुलायम होने थे।


फुलवा को Peter uncle रोज अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हुए उसका बदन भरने में मदद कर रहे थे। साथ ही रोज उसे अलग अलग क्रीम और लोशन लगाकर उसके बदन को ज्यादा गोरा, मुलायम, चमकीला और खुशबूदार बना रहे थे।


फुलवा समझ गई की रोज रात के खाने में उसे नींद की दवा दी जाती जिस से वह भागे नही। तीसरी रात से फुलवा को यकीन हो गया कि उसे सुलाकर Peter uncle उसकी गांड़ मारता था। हालांकि Peter uncle उसके कपड़े ठीक कर देता पर आतों में से बाहर आती चिकनाहट फुलवा को सच्चाई बता देती।


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Peter uncle के साथ 15 दिन गुजारने के बाद एक दिन Peter uncle ने पार्टी रखी। इस पार्टी में शहर की बड़ी बड़ी हस्तियां आई थी। फुलवा को पिंकी कर पुकारते हुए Peter uncle ने सब से मिलवाया।


उन लोगों की हवस भरी नजर से फुलवा बेहद डर गई। सिमटकर कांपती हुई फुलवा को Peter uncle ने वापस कमरे में भेज दिया और उसके कमरे को बाहर से बंद किया गया।


बाहर Peter uncle ने सबको पर्चियां देकर उन पर अपना नाम और बोली लिखने को कहा। Peter uncle विजेता को कॉल कर उसकी पसंद का इंतजाम कर फिर तय तारीख को "माल" देने वाले थे।


फुलवा बिस्तर पर पड़ी रोने लगी। आज वह दुबारा बिक रही थी।
 
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Peter uncle ने अगली सुबह फुलवा को उसके पहले ग्राहक का नाम बताया।


Peter uncle, "आज रात सेठ कौडीमल तुझे मिलने आ रहा है। कौडीमल मेरा पुराना ग्राहक है। उसे रोती बिलबिलाती लड़कियां पसंद नही। तो तू उसका स्वागत तेरे कमरे के दरवाजे में करेगी। फिर उसे बिस्तर पर बिठाकर उसे मेज पर रखा दूध पिलाएगी। फिर उसका हर कहा मान कर उसे अपने बदन के साथ खेलने देगी। अगर तूने कुछ भी गलती की तो सेठ कौडीमल गुस्सा हो कर चला जायेगा और यह बात मुझे अच्छी नहीं लगेगी। समझी!"


फुलवा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा पर मन ही मन कौडीमल को भगाने का मन बना लिया।


शाम को 7 बजे Peter uncle ने फुलवा को खाना परोसा। फुलवा को शक था की खाने में नशा मिलाया गया हो ताकि वह चटपटाए बगैर साथ दे। इस लिए फुलवा ने सिर्फ शरबत पिया। वैसे भी उसकी भूख डर से मर गई थी।


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फुलवा ने अपने कमरे में बिस्तर पर बैठने के बजाय कोने में अपने आप को मेज के नीचे पुराने मैले कंबल से छुपा लिया। बाहर के कमरे में से आती हर आवाज से फुलवा का दिल दहल जाता। Peter uncle की हर आहट से फुलवा को पसीने छूट जाते।


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फुलवा को एहसास हुआ कि उसकी चूत में से पानी बह रहा था। फुलवा समझ गई कि उसे शरबत में से कुछ पिलाया गया था। भड़कती जवानी और सहमे मन की कश्मकश से फुलवा को रोना आया और उसने अपने हाथों से अपने मुंह को दबाकर रोने लगी।


फुलवा की बर्दाश्त बस टूट ही चुकी थी जब Peter uncle ने किसी का स्वागत किया। एक पतली आवाज के आदमी ने किसी बात पर हंसकर Peter uncle को गाली देते हुए फुलवा के कमरे का दरवाजा खोला।


फुलवा को उम्मीद थी की कौडीमल फुलवा को ना देख गुस्सा हो कर चला जायेगा। वह Peter uncle से पीटने को तयार थी बस उसकी जवानी…


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"पिंकी रानी!!…"


कौडीमल जैसे गाना गाते हुए उसे बुला रहा था।


"पिंकी रानी!!… देखो कौन आया है?…"


फुलवा अपनी सांसे रोक कर बैठी रही।


"क्या पिंकी रानी अपने राजाजी से खेलना चाहती है?"


फुलवा ने अपनी सिसकी को पूरे जोर से दबाया।


"आ जाओ, छोटी बच्ची!!… राजाजी तुम्हें लॉलीपॉप देंगे!…"


"आओ!!… (हवा में चूमते हुए) राजाजी को इंतजार नहीं करते!!…"


कौडीमल उसके पास आ कर उसे बुलाते हुए चला गया और फुलवा की सांस छूट गई। कौडीमल पिंकी रानी को बुलाते हुए दरवाजे तक गया।


फुलवा ने कौडीमल को दरवाजा खोल कर बंद करते सुना और सोचा की कौडीमल Peter uncle से लड़ने बाहर निकल गया।


फुलवा की चीख निकल गई जब किसी ने उसके दोनों पैरों को पकड़ कर बाहर खींचा।

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फुलवा हाथ पांव मारते हुए उसे से लड़ पड़ी पर अचानक उसके ऊपर एक बड़ा भरी बोझ पड़ गया।


कौडीमल कुछ 100 किलो का फूला हुआ आदमी था जिसने फूल सी नाजुक फुलवा के 50 किलो के छरहरे बदन को अपने बड़े आकार से आसानी से काबू कर लिया।


फुलवा के दोनों हाथों को अपने एक बड़े पंजे में पकड़ कर कौडीमल ने उसे अपने बदन के नीचे दबाकर बिस्तर की ओर खींचना शुरू किया। फुलवा का हमला कौडीमल आसानी से दबाते हुए उसे बेड पर लिटाने में कामयाब हो गया।



फुलवा को कौडीमल की आंखों में शिकार की खुशी दिख रही थी।


फुलवा रोते हुए, "सेठजी, ऐसा जुलुम ना करें!… मैं अच्छी लड़की हूं!!… जीते जी मर जाऊंगी!!… रहम करो!!…"


फुलवा रोती गिड़गिड़ाती रही पर कौडीमल से अपने हाथ को दोनों के बीच में डालते हुए फुलवा का घाघरा उठा कर अपने बड़े पेट के नीचे दबाया। फुलवा ने झल्ला कर कौडीमल को काटने की कोशिश की पर वह अपने आप को उसके दातों से दूर रखने में कामयाब रहा।


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कौडीमल ने दांत निकालकर हमला करती फुलवा के मुंह में थूंक ते हुए अपनी धोती खोली। कौडीमल का लौड़ा सिर्फ 3 इंच लम्बा और 1 इंच मोटा था पर कोरी जवानी के लिए यह भी बहुत बड़ा हमलावर था।


कौडीमल ने एक झटके में अपनी 3 इंची सुई फुलवा की झिल्ली को भेद कर घुसा दी।


"मां!!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!!…"


फुलवा की आंखों में आंसू भर आए। खून की एक बूंद जख्मी झिल्ली से कौडीमल के लौड़े को रंग गई। फूलवा की आंखों में से आंसू बहते रहे।


कौडीमल ने अपने जीत को मानते हुए फुलवा को चूमा।


फुलवा को कौडीमल की सांसों पर तंबाखू और पुदीने के बदबूदार मिलाव को सूंघते हुए अपनी पहली चुम्मी मिली। उसके बापू ने तो उसे चूमे बगैर चोद दिया था।


Peter uncle के नशे ने असर दिखाते हुए फुलवा के दर्द को दबाया। फुलवा की जख्मी झिल्ली पर यौन रसों ने मरहम लगाते हुए कौडीमल के लौड़े को चिकनाहट दी। कौडीमल जोर जोर से अपने मोटे बदन को हिला रहा था।


फुलवा उस मोटे हांफते पसीने से लथपथ बदन को देख कर घिन महसूस कर रही थी पर नशा उसे उत्तेजित होने को मजबूर कर रहा था। कौडीमल अपनी कमर हिलाते हुए पिंकी रानी की तारीफ कर रहा था।


कौडीमल ने हांफते हुए आह भरना शुरू किया और फुलवा के ऊपर गिर गया। फुलवा दबने से सांस नहीं ले सकती थी और ना ही अपने से दुगना वजन हिला सकती थी।


फुलवा की जख्मी चूत में गरमाहट फैल गई और सांस दबने से वह उत्तेजना वश झड़ने लगी।


कौडीमल ने फुलवा को बिस्तर पर रोता छोड़ा और अपने सफेद रूमाल से उसके कौमार्य के खून को पोंछ लिया।


कौडीमल, "Peter uncle ने तेरे लिए मुझ से पूरे 2 लाख रुपए लिए हैं। पिंकी रानी, आज की रात तुझे मेरे जुड़वा बच्चों से भर कर ही दम लूंगा!"


फुलवा कौडीमल की बात सुनकर अपना सर पीटते हुए रोने लगी।


कौडीमल ने मेज़ पर रखा दूध पी लिया और फुलवा को पकड़ कर सुस्ताने लगा। जल्द ही कौडीमल गहरी नींद सो गया।


चाबी से दरवाजा चुपके से खोला गया और Peter uncle ने दबे पांव अंदर कदम रखा।


Peter uncle, "मुझे कौडीमल पसंद है क्योंकि इसके मुताबिक ये बड़ा तोप है पर असलियत में इसके कीड़े से कुंवारियों की झिल्ली फटती भी नहीं।"


Peter uncle ने अपनी जेब में से एक बड़ी इंजेक्शन निकली जिसे सुई नही थी। फिर उस इंजेक्शन से सफेद गाढ़ा घोल उसने फुलवा की चूत में फटी हुई झिल्ली के हिस्से से भरा अर्ज सोने को कहा।


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फुलवा पराए मर्द के नीचे दबी हुई रात भर जागी रही। सबेरे उसे लगा की काश राज नर्तकी आकर उसे ले जाए। पर सबेरे कौडीमल उठ गया।


कौडीमल ने फुलवा की चूत में से बाहर निकला गाढ़ा घोल और खून के छीटें देखे। कौडीमल अपनी पिंकी रानी को चूम कर चला गया।


फुलवा ने थोड़ी देर बाद अपने बदन को रगड़ रगड़ कर धोते हुए कौडीमल के स्पर्श को अपने बदन से मिटाने की कोशिश करते हुए अपने आप को लगभग छिल दिया। फुलवा ने बाहर आकर Peter uncle से आजादी के लिए मिन्नतें की।


फुलवा, "Peter uncle, आप ने बापू को 1 लाख दिए और आप को 2 लाख मिले! अब मुझे जाने दो!"


Peter uncle ने हंसते हुए फुलवा के गाल पर हाथ घुमाया और फिर घुमाकर थप्पड़ मारा।


Peter uncle, "तुझ जैसी कई आई और गई। Peter uncle यूं ही नहीं टिका रहा! हम दोनों मेरे दोस्त से मिलने जा रहे हैं। फिर तुझे असली सौदा पता चलेगा!"


Peter uncle का दोस्त एक डॉक्टर था जो जानना बीमारियों का इलाज करता था। उसके पास ऐसी लड़कियां भी आती थी जो पहले अपने प्रेमी से चुधवाकर अब अपने पति को यकीन दिलाना चाहती थी कि वह कुंवारी है।


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डॉक्टर ने Peter uncle को अपना दवाखाना बंद होने के बाद अंदर लिया और फुलवा को हवस भरी नजरों से देखा।


डॉक्टर, "नया माल Peter uncle!"


Peter uncle, "हमेशा की तरह मेरे दोस्त!"


डॉक्टर ने Peter uncle को फुलवा को पकड़ने का काम दिया और खुद उसकी फटी हुई झिल्ली को देखा।


डॉक्टर, "लगता है कौडीमल का कीड़ा भी अब दम तोड़ने लगा है! चलो इसे सिल देता हूं। दो दिन बाद फिर मजे करना!!"


फुलवा यह बात सुनकर रोने लगी पर दोनों मर्दों को इस से फरक नही पड़ा। Peter uncle ने डॉक्टर को हिसाब रखने को कहा और फुलवा को वापस अपने अड्डे पर ले गया। अगले 2 दिन फुलवा को अपनी चूत में बेहद खुजली हो रही थी पर Peter uncle ने उसके हाथ बांध रखे थे जिस से वह खुजा नही पाई।


दो दिन बाद शाम को Peter uncle ने फुलवा को जल्दी खाना खिलाते हुए कहा की आज उसकी मुलाकात शेरा पठान से होनी है। Peter uncle चाहता था कि वह इस बार भी छीना झपटी करे ताकि पठान साहब को भी शिकार का मज़ा मिले।
 
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फुलवा को Peter uncle ने शाम को पांच बजे नहलाया और उसके झांटों को साफ कर उसकी चूत को चिकना कर दिया। फुलवा ने Peter uncle को कोई विरोध नहीं किया। Peter uncle ने फुलवा के नंगे बदन को इत्र से महकाया। फिर फुलवा को एक लगभग पारदर्शी सफेद रेशमी कपड़ा पहनाया गया।


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फुलवा को देख कर कोई शक नही था की आज वह चूधने के लिए तयार की गई थी। फुलवा जानती थी की बचने की कोशिश करना बेकार है पर वह 3 दिन पहला दर्द और घिन को भूल नही पाई।


Peter uncle ने फिर फुलवा को मुंह से दुर्गंध दूर करने के लिए मीठा पान दिया। फुलवा ने आज खाना या शरबत लेने से मना कर दिया था। Peter uncle ने फिर फुलवा को बिस्तर पर बिठाया और बाहर से दरवाजा लगाया।


कुछ देर बाद फुलवा की आंखों से आंसू बहने लगे। Peter uncle ने उसे वापस धोखा दिया था।


Peter uncle ने नशा पान में छुपाया था। फुलवा की सांसे तेज और चूत पनिया गई थी। फुलवा का बदन गरम हो कर पसीने छूट रहे थे। सफेद रेशमी कपड़ा फुलवा के पसीने से भीगते हुए उसके बदन से चिपक गया था।


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बाहर के कमरे में कोई भारी आवाज का आदमी Peter uncle से बात कर अंदर आने लगा। Peter uncle ने उस से इज्जत से बात करते हुए उसे अंदर भेजा।


फुलवा अपने आप को रोक नहीं पाई और कोने में जा कर खड़ी हो गई। दरवाजा खुला और शेरा पठान ने अंदर आकर दरवाजा लगाया।


फुलवा, "रहम करो! मुझे बक्श दो! मैं तुम्हें…"


शेरा पठान ने अपना हाथ उठाकर उसे रोक दिया।


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शेरा पठान, "लड़की तू सच बोलेगी और अभी बोलेगी। अगर तूने झूठ बोला तो मुझे पता चल जायेगा!"


फुलवा सहमकर सिसकियां लेती खड़ी हो गई।


शेरा पठान, "क्या तुझे किसी ने चोदा है? क्योंकि अगर तुम दोनों ने मुझ से झूठ कहा है तो मैं तेरा गला काट कर फिर Peter uncle से अपना हिसाब लेने जाऊंगा!"


फुलवा ने जल्दी जल्दी सोचा की उसकी झिल्ली जोड़ दी गई थी। अगर उसने सच कहा तो उसे मार दिया जाएगा पर अगर झूठ कहा तो शायद वह कल का सूरज देख पाए।


फुलवा ने झूठ नहीं बोलते हुए सच छुपने का फैसला किया।


फुलवा रोते हुए, "मेरे…
मेरे…
बापू ने…
मुझे… (आंसू बह गए)
पीछे…
गंदा किया…"


पठान हंस पड़ा, "हा!!… हा!!… हा!!… हा!!… अरे मैने तेरी गांड़ की कीमत नही चुकाई! खैर अब तूने सच बोला है तो मैं तेरी गांड़ भी मारूंगा!!…"


फुलवा ने डर कर भागने की कोशिश की पर छोटे से कमरे में पकड़ी गई।


फुलवा अपने आप को रोक नहीं पाई और बुरी तरह हाथ पैर झटककर बचने की कोशिश करने लगी। शेरा पठान ने फुलवा को बेड पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़ गया। शेरा ने छटपटाती फुलवा के बदन से भीगा हुआ रेशमी कपड़ा फाड़ उतारा।


फुलवा नंगी हो कर भी बचने की कोशिश कर रही थी जब शेरा पठान ने एक हाथ से अपने पठानी सलवार को खोल दिया। शेरा पठान फुलवा पर झपट पड़ा और फुलवा चीख पड़ी।


शेरा ने फुलवा के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और अपने लौड़े से फुलवा की नशे से उबलती जवानी की छू लिया। फुलवा नशे से बेबस बस इतने स्पर्श से झड़ने लगी।


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शेरा पठान, "कमिनी!! कुंवारी होकर भी तुझे चुधने की इतनी खुजली है की बस छू लेने से झड़ गई! आ तुझे मर्द का मज़ा सिखाता हूं।"


फुलवा की पंखुड़ियों ने फैलते हुए शेरा पठान की ढाई इंच मोटाई को महसूस किया।


फुलवा, "नही!!…"


शेरा पठान ने मुस्कुराकर अपनी कमर को तेज झटका दिया। शेरा पठान का 6 इंच लंबा हथियार फुलवा के कौमार्य को फाड़ता हुआ अंदर तक धस गया।


फुलवा का मुंह खुला रह गया और उसकी चीख गले में अटक कर रह गई। फुलवा की आंखें घूम गईं और वह सफेद पड़ गई। फुलवा का बदन बेड पर बेसुध गिर गया और शेरा पठान ने खुश होकर अपनी मूछें सहलाई।


तेज दर्द ने फुलवा को होश में आने पर मजबूर कर दिया।


फुलवा चीख पड़ी, "मां!!…
आ!!…
आ!!…
आन्न्ह्ह!!…
आन्न्ह्ह्ह!!…
ई!!…
ई!!…
आंः!!…
हुन!!…
हुन!!…
आन्ह्ह्ह!!…
मां!!…
मां!!…
मांऽ!!!…"


शेरा पठान ने अपना लौड़ा पूरी तरह बाहर निकाल कर फुलवा की खून से लथपथ चूत में ठूंस दिया। फुलवा का बदन दर्द से तड़प उठा और वह रोने लगी।


शेरा पठान, "पिंकी गुड़िया, अपने आशिक को अकेला छोड़कर सोते नही हैं। मैं तेरा पहला आशिक हूं इस लिए प्यार से समझा रहा हूं!"


शेरा पठान का प्यार इतना बेरहम था कि फुलवा मौत की दुहाई मांगने लगी। फुलवा को चीखता छोड़ शेरा ने उसके मम्मे दबोच लिए। फुलवा को एहसास हुआ कि उसकी बेहोशी में उसके हाथ और पैरों को फैला कर बांध दिया गया था।


शेरा पठान ने जोर से मम्मे दबाते हुए फुलवा को बेरहमी से कूटना जारी रखा। छिली हुई चूत में से खून के साथ गाढ़ी चिकनाई भी फुलवा को महसूस हुई।


फुलवा समझ गई कि शेरा पठान का यह पहला हमला नहीं था। शेरा पठान अब अपने वीर्य को चिकनाहट के लिए इस्तमाल करता फुलवा को ऐसे फाड़ रहा था कि दूसरा कोई उसे इस्तमाल ना कर पाए।


फुलवा दर्द से तिलमिलाते हुए भी उत्तेजना में जल रही थी। शेरा पठान ने फुलवा का मम्मा दबाते हुए उसकी चूची को चूसा और फुलवा के मुंह से आह निकल गई। शेरा पठान अपना पूरा लौड़ा बाहर निकाल कर फुलवा को फाड़ते हुए चोद रहा था पर फुलवा की चूत में से खून के साथ यौन रसों का बहाव होने लगा। फुलवा अपने तन को जलाते कामग्न को रोक नहीं पाई और शेरा पठान के लौड़े को अपनी चूत में निचोड़ते हुए झड़ने लगी।


शेरा पठान ने अपना पान से रंगा मुंह फुलवा के नाजुक होठों पर दबाते हुए उसे अपनी थूंक के साथ अपनी मर्दाना ललकार खिलाई। शेरा पठान का गरम गंदा पानी फुलवा की कोख में भरने लगा और फुलवा वापस रोने लगी।


फुलवा, "आप को जो चाहिए था वो तो आप ने ले लिया! अब मुझे छोड़ दो! बहुत दर्द हो रहा है!"


शेरा पठान ने हंसते हुए अपनी जेब में से एक गोली निकाली। फुलवा को कल रात दूध का कमाल याद आया और उसने दूध की ओर इशारा किया।


शेरा पठान, "रण्डी इस दूध को पीने से पहले मैं तेरा मुत पी जाऊं। Peter uncle ने जरूर इस में नींद की दवा मिलाई होगी! याद रख शेरा अपना हिसाब पूरा होने से पहले अपनी मां को भी नही छोड़ता तो तुझे कैसे छोड़ दे!"


शेरा पठान ने बिना पानी के गोली खा ली। फुलवा की आंखों के सामने शेरा पठान का पिचका हुआ औजार फूलने लगा। शेरा पठान फुलवा की फटी आंखों को देख ठहाके लगा कर हंसने लगा।


फुलवा फूट फूट कर रोने लगी।
 

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