Thriller ✧ Double Game ✧(completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 06
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मैंने बड़ी सफाई से निशांत सोलंकी को शीशे में उतार लिया था। मैंने उसे ज़रा भी इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि असल में मैं करना क्या चाहता था। उसका मोबाइल अभी भी मेरे पास ही था। शाम को मेरी बातें सुनने के बाद वो इतना खुश हो गया था कि उसे अपना मोबाइल वापस मुझसे मांगने का ख़याल ही नहीं आया था और यही तो मैं चाहता था कि उसका मोबाइल मेरे पास ही रहे क्योंकि आने वाले वक़्त में उसका ये मोबाइल और उसके मोबाइल की लोकेशन रूपा को उसके हत्या के केस में फंसाने के लिए अहम भूमिका अदा करती।

मैं डबल प्लान पर काम कर रहा था। एक तो अपने असली प्लान के लिए निशांत को जाल में फांस कर उसे रूपा का प्रेमी साबित करना चाहता था और दूसरे प्लान में निशांत की समझ में मैं उसके लिए अपनी बीवी को तैयार कर रहा था। वो सोच भी नहीं सकता था कि इतने दिनों तक उसका मोबाइल अपने पास रख कर मैं असल में क्या गुल खिला रहा था। वैसे, अगर मेरी बीवी रूपा सुन्दर होती तो मेरे लिए खुद उसे ब्लैकमेल करने की ज़रूरत ही नहीं होती क्योंकि तब मेरा काम सिर्फ इतना ही होता कि मैं उस दिन निशांत को अपने पर्श में किसी और की नहीं बल्कि अपनी बीवी की ही तस्वीर दिखा देता। उसके बाद निशांत वही करने का सोचता जो कि वो बाकी जूनियर्स की बीवियों के साथ कर चुका था लेकिन मेरे केस में ऐसा नहीं हो सकता था। इस लिए मुझे इतना कुछ करना पड़ा।

सबसे पहले मैंने अपनी बीवी और निशांत के सम्बन्धों को साबित करने के लिए निशांत से उसका मोबाइल ले कर वो खेल रचा और जब मेरा वो खेल फिट हो गया तो मैंने निशांत से बहाना बना कर ये कह दिया कि मुझे अब एहसास हो रहा है कि मुझे अपनी ही बीवी को इस तरह ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए बल्कि उसको उसके पास लाने के लिए एक आसान सा तरीका भी है जो अब मेरे ज़हन में आया है। निशांत को भले ही मेरे इन क्रिया कलापों में किसी खेल की गंध न महसूस हुई हो या वो इसमें ऐसा वैसा कुछ भी न सोच सका हो लेकिन मेरी आत्मा और मेरा भगवान तो सब जानता ही है ना कि मैंने ऐसा क्यों किया था?

अपनी कुरूप बीवी से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का मेरे ज़हन में बस यही एक तरीका आया था और फिर मैंने देर न करते हुए इस खेल को रचना शुरू कर दिया था। मेरा मंसूबा यही था कि निशांत जैसे बलि के बकरे की इस तरह से हत्या की जाए कि उसकी हत्या का इल्ज़ाम मेरी बीवी रूपा पर आ जाए। वो भी कुछ इस तरह से कि उसे अदालत में फ़ांसी की या फिर उम्र क़ैद की सज़ा हो जाए।

असल में तो निशांत की हत्या मैं ही करुंगा लेकिन इस तरीके से करुंगा कि पुलिस या कानून निशांत के हत्यारे के रूप में रूपा को ही गिरफ़्तार करे। पुलिस के हाथ रूपा के खिलाफ़ ऐसे ऐसे सबूत लग जाएं कि अदालत में बड़ी आसानी से ये साबित हो जाए कि रूपा ने निशांत की हत्या इस लिए की क्योंकि निशांत से उसके नाजायज़ संबंध तो थे ही लेकिन वो उसे दूसरे मर्दों के साथ संबंध बनाने के लिए ब्लैकमेल भी कर रहा था।

निशांत के फ्लैट में ही निशांत की हत्या को अंजाम देना था और वहीं पर रूपा के खिलाफ़ निशांत की हत्या के सबूत भी प्राप्त करवाने थे। ऐसा तभी संभव था जब रूपा निशांत के फ्लैट पर जाए और जिस चाकू से निशांत की हत्या हो उस चाकू पर रूपा के फिंगर प्रिंट्स पाए जाएं। अब सवाल ये था कि रूपा निशांत के फ्लैट पर जाती कैसे और वहां पर उसके खिलाफ़ ऐसे सबूत पाए कैसे जाते? इसके लिए भी मैंने एक तरीका सोच रखा था।

मैंने निशांत को जो दूसरा तरीका बताया था उसमें भी डबल गेम वाला ही चक्कर था। मैंने निशांत को ये बताया था कि मैं अपनी बीवी को उसके पास ये कह कर लाऊंगा कि मेरे एक दोस्त ने हम दोनों को अपने घर डिनर पर बुलाया है। उसके बाद जब रूपा मेरे साथ निशांत के फ्लैट पर डिनर के लिए आएगी तो डिनर के दौरान निशांत हम दोनों को ही बियर पीने को कहेगा। मैं भी रूपा से बड़े प्यार से कहूंगा कि शहर में थोड़ा बहुत इसका भी आनंद लेना चाहिए। रूपा मेरे कहने पर थोड़ी ना नुकुर के बाद बियर पिएगी ही। मैं उसे थोड़ा और पीने को कहूंगा और वो इंकार नहीं कर सकेगी। इस सबसे होगा ये कि उस पर बियर का नशा चढ़ जाएगा। उसके बाद निशांत उसके साथ जो चाहे कर लेगा।

मैंने निशांत को यही तरीका समझाया था। निशांत मेरे इस तरीके से खुश हो गया था। वैसे भी उसे तो मेरी बीवी को भोगने से ही मतलब होना था। वो इसी बात से बेहद खुश होगा कि उसके एक और जूनियर की बीवी उसको भोगने के लिए मिल गई है। अब भला उसे क्या पता कि ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं था क्योंकि असल में तो ये मेरे प्लान का एक हिस्सा था ताकि निशांत को यही लगे कि मैं प्रमोशन के लिए ही ये सब कर रहा हूं। जब की सच्चाई ये है कि मैं तो रूपा को उसके फ्लैट पर किसी और ही मकसद से ले जाने वाला था और वो मकसद यही था कि मैं उसकी हत्या कर के उस हत्या का इल्ज़ाम अपनी बीवी के सिर रख दूं।

रूपा जैसी कुरूप औरत से हमेशा के लिए मेरा पीछा छूट जाएगा। वो कुरूप औरत मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पनौती बन गई थी जिसकी वजह से मेरी ज़िन्दगी का हर पल मेरे लिए अज़ाबों से भरा हुआ लगता था।

कल के दिन की रात मेरे लिए बेहद ही ख़ास और बेहद ही चुनौती भरी होनी है और इसका मुझे अच्छी तरह एहसास भी है। अगली रात दो लोगों की ज़िन्दिगियों का फ़ैसला होना है। एक की ज़िन्दगी की आख़िरी रात होनी है और एक की ज़िन्दगी का मनहूस साया हमेशा के लिए मेरी ज़िन्दगी से हट जाएगा।

रात में रूपा के सो जाने के बाद मैं चुपके से उठा और अपने सूटकेस से अपनी पर्सनल डायरी निकाली। मेरे इस सूटकेस की चाभी हमेशा मेरे पास मेरे जनेऊ में ही रहती थी। ब्राह्मण हूं इस लिए जनेऊ धारण करता हूं और उसी जनेऊ में सूटकेस की चाभी बाँध के रखता हूं। ख़ैर डायरी निकाल कर मैंने उसमें आज की अपनी दिनचर्या के बारे में लिखा और उस बारे में भी लिखा जो मैंने कल के लिए सोचा था। ये डायरी मेरी ज़िन्दगी की खुली किताब की तरह थी जिसमें मेरी ज़िन्दगी का हर राज़ लिखा हुआ था। ये डायरी हमेशा मेरे साथ मेरे मरते दम तक रहेगी। रूपा को इस डायरी के बारे में कुछ पता नहीं है क्योंकि मैं हमेशा उसके सो जाने के बाद ही रात में अपने अफ़साने लिखता था।

डायरी को वापस सूटकेस में रख कर मैंने उसे अच्छी तरह लॉक कर दिया और फिर बेड पर आ कर रूपा के बगल से लेट गया। अपनी पलकों में कल के ख़्वाब सजाए मैं गहरी नींद में सो गया था।
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अदालत में डिफेंस लॉयर के चुप होते ही गहरा सन्नाटा छा गया था। उसके हाथ में एक डायरी थी जिसे वो न जाने कितनी ही देर से ऊँची आवाज़ में पढ़ कर जज साहब के साथ साथ सभी को सुना रहा था। अदालत कक्ष में बैठा हर शख़्स डिफेंस लॉयर के द्वारा डायरी में लिखी विशेष त्रिपाठी की इस राम कहानी को सुन कर आश्चर्य चकित था। इधर मुजरिम के कटघरे में रूपा खड़ी थी जो खुद भी अपने पति की इस राम कहानी को सुन कर चकित थी। दर्शक दीर्घा में कुछ ऐसे लोग भी बैठे हुए थे जो उसके पति विशेष त्रिपाठी के साथ कंपनी में काम करते थे। दूसरी तरफ की बेंच में रूपा के पिता चक्रधर पाण्डेय और उसका भाई अभिलाष पाण्डेय बैठा हुआ था।

बात आज से तीन दिन पहले की है। उस वक़्त सुबह के ग्यारह बज रहे थे जब अचानक ही घर के बाहर वाले दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से खटखटाया गया था। रूपा को लगा था कि शायद उसका पति होगा इस लिए उसने भागते हुए जा कर दरवाज़ा खोला था और दरवाज़े के बाहर जब उसने चार पुलिस वालों के साथ दो महिला पुलिस को भी देखा तो वो एकदम से हैरान रह गई थी। उसे समझ में नहीं आया था कि उसके दरवाज़े के बाहर पुलिस वाले किस लिए मौजूद हैं? ख़ैर अभी वो ये सोच ही रही थी कि तभी उन पुलिस वालों में से एक पुलिस वाले ने रूपा से जो कहा उसे सुन कर रूपा के पैरों के नीचे से ज़मीन ही ग़ायब हो गई थी।

"मिसेस रूपा, आपको आपके पति और निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में गिरफ़्तार किया जाता है।" पुलिस के इंस्पेक्टर ने जब सपाट लहजे में ये कहा था तो रूपा को ऐसा लगा था जैसे उसके पैरों के नीचे से धरती ही सरक गई हो। उससे कुछ बोलते न बन पड़ा था जबकि इंस्पेक्टर के इशारे पर एक महिला पुलिस आगे बढ़ी थी और उसने रूपा के हाथों में हथकड़ी लगा दी थी।

उसके बाद उसे पुलिस जीप में बैठा कर पुलिस थाने ले जाया गया था। रूपा उन सभी पुलिस वालों से बार बार कह रही थी कि उसे इस तरह क्यों पकड़ कर ले जा रहे हैं? उसने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि वो तो ख़ुद ही सुबह से इस बात से चिंतित और परेशान थी कि उसका पति जाने कहां चला गया है।

पुलिस थाने में पुलिस ने जब रूपा को साफ़ शब्दों में बताया कि उसने क्या किया है तब रूपा ये जान कर फूट फूट कर रोने लगी थी कि जिस पति के लिए वो सुबह से परेशान थी उसकी हत्या हो गई है और इतना ही नहीं उसकी हत्या के जुर्म में पुलिस ने उसको ही गिरफ़्तार कर लिया है। थाने में महिला पुलिस ने जब उसके साथ शख़्ती दिखाते हुए ये पूछा कि उसने अपने पति की हत्या क्यों की है तो उसने रो रो के उस महिला पुलिस से कहा था कि उसने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि उसे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था।

महिला पुलिस को रूपा ने बताया कि सुबह जब वो सो कर उठी थी तो उसका पति कमरे में नहीं था। पहले उसने यही सोचा था कि शायद वो सुबह जल्दी उठ गया होगा और अब बाथरूम में फ्रेश हो रहा होगा लेकिन जब काफी देर हो जाने के बाद भी उसका पति बाथरूम से बाहर न निकला था तो उसने उसे आवाज़ दी थी लेकिन उसकी आवाज़ पर भी जब बाथरूम से कोई आवाज़ न आई थी तो उसने बाथरूम में जा कर देखा। वो ये देख कर हैरान हुई थी कि बाथरूम में उसका पति है ही नहीं। उसके बाद उसने अपने पति को फ्लैट में हर जगह ढूंढ़ा लेकिन वो उसे कहीं न मिला था। फिर उसने अपने पति को फ़ोन लगाया तो पता चला कि उसके पति का फ़ोन कमरे में ही रखा हुआ है। इस सबसे वो बेहद चिंतित हो उठी थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसका पति इस तरह से कहां जा सकता है?

रूपा ने महिला पुलिस को बताया कि जब सुबह के दस बज जाने पर भी उसका पति वापस घर नहीं आया तो उसके मन में तरह तरह की आशंकाए जन्म लेने लगीं थी। वो इस शहर में किसी को जानती भी नहीं थी जिससे वो अपने पति के बारे में पता कर सके। हर गुज़रता हुआ पल उसकी हालत को और भी ज़्यादा ख़राब करता जा रहा था। उसके मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिससे अब उसे रोना आने लगा था। फिर उसे एकदम से अपने माता पिता का ख़याल आया तो उसने अपने बाबू जी को फ़ोन लगा कर उन्हें सब कुछ बताया। उसकी बातें सुन कर उसके बाबू जी ने उसे दिलासा दिया था कि वो चिंता न करे उसका पति किसी ज़रूरी काम से कहीं गया होगा। अपने बाबू जी के दिलासा देने पर उसने किसी तरह खुद को शांत किया था और अपने पति के आने का फिर से इंतज़ार करने लगी थी। उसके कुछ समय बाद अचानक से किसी ने जब दरवाज़ा खटखटाया तो उसने दरवाज़ा खोला था। दरवाज़े के बाहर पुलिस को देख कर वो हैरान रह ग‌‌ई थी।

रूपा की बातें सुन कर महिला पुलिस ने उसकी सारी बातें पुलिस के इंस्पेक्टर को बताई थी। उधर विशेष के साथ निशांत सोलंकी की भी हत्या हुई थी। इस लिए पुलिस ने जल्द ही उससे सम्बंधित लोगों से सम्बन्ध स्थापित करके हत्या की जांच पड़ताल शुरू कर दी थी। हालांकि रूपा को भी पुलिस ने सिर्फ इस आधार पर गिरफ़्तार किया था क्योंकि घटना स्थल पर जो मोबाइल फ़ोन मिले थे उनमें से एक मोबाइल पर रूपा की गन्दी तस्वीरें मिली थीं। पुलिस ने जब आगे की जांच पड़ताल की तो पता चला कि मरने वालों में से एक रूपा का पति था और दूसरा निशांत सोलंकी। दोनों में एक चीज़ कॉमन थी कि दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे। पुलिस ने जब कंपनी में उनके बारे में पता किया तो कंपनी के कुछ लोगों ने पुलिस को ऐसी बातें बताई जिससे पुलिस को हत्या करने का मामला समझ में आया था। उसके बाद पुलिस फ़ौरन ही विशेष के घर पहुंची और रूपा को गिरफ़्तार कर लिया।

थाने में रूपा से बड़ी लम्बी पूछतांछ चली थी लेकिन रूपा ने पुलिस से बार बार यही कहा था कि उसे इस सबके बारे में कुछ भी पता नहीं है। उसके बाद जब पुलिस ने रूपा से ये कहा कि निशांत सोलंकी से उसका क्या सम्बन्ध था तो उसने कहा कि उसे उसके बारे में कुछ नहीं पता लेकिन हाँ कुछ दिन पहले कोई अंजान आदमी उसे गंदे गंदे मैसेजेस करते हुए परेशान ज़रूर कर रहा था और वो उसे धमकी भी दे रहा था कि अगर उसने उसका कहा नहीं माना तो वो उसकी गन्दी तस्वीरें उसके पति को भेज देगा।

उधर कम्पनी के कुछ लोगों ने पुलिस को बताया था कि निशांत और विशेष का कुछ समय से काफी मेल जोल था। उन्होंने निशांत के बारे में भी बताया कि वो कैसा ब्यक्ति था। पुलिस को ये तो समझ आया कि मामला ब्लैकमेलिंग का है लेकिन उसे ये समझ में नहीं आया था कि अगर निशांत ब्लैकमेलर था तो विशेष को इसके बारे में कैसे पता चला और वो उसके फ्लैट में उसके साथ ही कैसे मरा हुआ मिला? पुलिस को रूपा पर शक तो था लेकिन वो ये भी सोच रही थी कि एक औरत दो दो आदमियों को कैसे एक साथ मार सकती है और वो भी दो अलग अलग हथियारों से?

निशांत के घर वालों को पुलिस ने सूचित कर दिया था और इधर रूपा के घर वालों को भी पुलिस ने सूचित कर दिया था। दोनों पक्षों के लोग आ चुके थे और मामला अदालत तक भी पहुंच चुका था। शुरुआत में तो पब्लिक प्रासीक्यूटर ने बड़ी लम्बी लम्बी दलीलें दी थी और रूपा को हत्यारिन साबित करने की भी पूरी कोशिश की थी लेकिन हर बार बात यहाँ पर अटक जाती थी कि कोई भी हत्यारा दो आदमियों को एक ही समय पर दो अलग अलग हथियारों से क्यों मारेगा? डिफेंस लॉयर के पास भी कई सारे ऐसे सवाल थे जिनके जवाब पब्लिक प्रासीक्यूटर के पास नहीं थे।

इधर पुलिस को इस केस से सम्बंधित एक ऐसा सुराग़ मिला जिसने अदालत में इस केस को पूरी तरह साफ़ कर दिया था और वो सुराग़ था विशेष की डायरी। तलाशी में वो डायरी पुलिस को विशेष के सूटकेस से मिली थी। डायरी मिलने के बाद और उसे पढ़ने के बाद सारा मामला तो समझ में आ गया लेकिन हर आदमी ये जान कर चकित भी रह गया था कि ये सब खुद मरने वाले का सोचा समझा एक प्लान था। असल मामला तो ये था कि रूपा का पति खुद ही निशांत की हत्या के जुर्म में अपनी बीवी को फंसाना चाहता था और अपनी बीवी से हमेशा के लिए छुटकारा पा लेना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य से उसका ये मंसूबा पूरा नहीं हुआ।

"योर ऑनर!" उधर छा गए गहन सन्नाटे को भेदते हुए डिफेंस लॉयर ने जज की तरफ देखते हुए ऊँची आवाज़ में कहा____"मेरी मुवक्किल मिसेस रूपा त्रिपाठी के पति विशेष त्रिपाठी की इस डायरी ने इस केस को पूरी तरह से साफ़ कर दिया है। इनके पति ने इस डायरी में अपनी करतूतों का सारा काला चिट्ठा लिखा हुआ था। शुक्र हैं कि तलाशी में ये पुलिस के हाथ लगी जिससे हमें असलियत का पता चल गया। इस डायरी में लिखा हुआ एक एक शब्द खुद इस बात की गवाही देता है कि असल में माजरा क्या था। मिसेस रूपा जी के पति ने अपनी पत्नी को कभी दिल से अपनाया ही नहीं था। वो मज़बूरी में अपनी पत्नी को अपने साथ शहर तो ले आए थे लेकिन हर पल वो अंदर ही अंदर इस बात से कुढ़ते रहे कि ईश्वर ने ऐसी बदसूरत औरत को उनकी पत्नी क्यों बनाया? जब वो किसी भी हाल में ये सब सहन नहीं कर सके तो उन्होंने सोच लिया कि वो अपनी ज़िन्दगी से ऐसी औरत को दूर कर देंगे जिसे वो देखना भी पसंद नहीं करते। इसके लिए उन्होंने एक ऐसा प्लान बनाया जिसके बारे में दूसरा कोई सोच भी नहीं सकता था।"

"माना कि इनके पति ने इन्हें अपनी ज़िन्दगी से दूर करने का ऐसा प्लान बनाया था योर ऑनर।" पब्लिक प्रासीक्यूटर ने डिफेंस लॉयर की बात को बीच में ही काटते हुए कहा____"लेकिन वो अपने प्लान में सफल कहां हुए? बल्कि वो तो ख़ुद उस आदमी के साथ ही उस फ्लैट में मरे हुए पाए गए जिस निशांत नाम के आदमी की हत्या के जुर्म वो अपनी पत्नी को फंसाना चाहते थे। मैं अब भी यही कहूंगा योर ऑनर कि मुजरिम के कटघरे में खड़ी इस औरत ने ही अपने पति के साथ साथ उस आदमी की भी हत्या की है। इन्हें पता चल गया था कि इनका पति इन्हें अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए किस तरह का षड़यंत्र रच रहा है। इन्हें अपने पति से ऐसे किसी षड़यंत्र की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ये तो यही समझती थीं कि इनकी साढ़े चार सालों की तपस्या पूरी हो गई है और भगवान की दया से इनके पति ने इन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है लेकिन, लेकिन योर ऑनर जब इन्हें ये पता चला कि इनके पति इनके लिए क्या मंसूबा बनाए हुए हैं तब इन्हें अपने पति पर भयंकर गुस्सा आया और फिर इन्होंने अपने पति के साथ साथ निशांत सोलंकी की भी इस तरह से हत्या की कि पुलिस या कानून को यही लगे कि एक पति को जब ये पता चला कि निशांत नाम का आदमी उसकी बीवी को ब्लैकमेल कर रहा है तो वो उसे धमकाने के लिए उसके फ्लैट पर जा पहुंचा। फ्लैट पर दोनों के बीच कहा सुनी हुई और बात इस हद तक बिगड़ गई कि एक ने दूसरे को चाकू मारा तो दूसरे ने पहले को गोली मार दी। कहने का मतलब ये कि दोनों ने एक दूसरे को ही जान से मार डाला।"

"वाह! क्या बात है।" डिफेंस लॉयर एकदम से ताली बजाते हुए बोल पड़ा____"कहानी तो आपने वाकई में बहुत अच्छी गढ़ी है प्रासीक्यूटर साहब लेकिन ये तो आप भी जानते हैं न कि अदालत में किसी भी चीज़ को साबित करने के लिए सबूत और गवाह की ज़रूरत पड़ती है। बिना किसी सबूत के अदालत किसी भी मन गढंत कहानी को सच नहीं मानती।" कहने के साथ ही डिफेंस लॉयर जज साहब की तरफ मुड़ा और फिर बोला____"योर ऑनर! प्रासीक्यूटर साहब के पास अपनी बात को साबित करने के लिए ना तो कोई सबूत है और ना ही कोई गवाह है, जबकि मैं अदालत के समक्ष ये साबित कर चुका हूं कि मेरी मुवक्किल का किसी की भी हत्या से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है। मैं अदालत से गुज़ारिश करता हूं कि मेरी मुवक्किल को हत्या के संगीन आरोपों से मुक्त कर के उन्हें बाइज्ज़त बरी किया जाए...दैट्स आल योर ऑनर।"

डिफेंस लॉयर के इस कथन पर एक बार फिर से अदालत कक्ष में कुछ पलों के लिए गहरा सन्नाटा छा गया। न्याय की कुर्सी पर बैठे जज ने गहरी सांस लेते हुए अदालत कक्ष में बैठे हर शख़्स की तरफ बारी बारी से देखा।

ये सच था कि पब्लिक प्रासीक्यूटर के पास अपनी बात को साबित करने के लिए कोई भी ठोस सबूत नहीं थे जिसके चलते उसकी दलील जज साहब के समक्ष महज एक मन गढंत कहानी ही लगनी थी। इधर रूपा के खिलाफ़ भी पुलिस को ऐसा कोई सबूत नहीं मिला था जिससे उसे अपने पति के साथ साथ निशांत सोलंकी की भी हत्या का दोषी माना जाए। ख़ैर डिफेंस लॉयर के कथन के बाद जज ने भी यही माना कि निशांत सोलंकी को विशेष त्रिपाठी की असलियत पता चल गई रही होगी जिससे दोनों की आपस में कहा सुनी हुई और बात इस हद तक बढ़ गई होगी कि दोनों ने एक दूसरे को जान से मारने का प्रयास किया और इस प्रयास में दोनों की ही जान चली गई। घटना स्थल से क्योंकि रूपा के खिलाफ़ कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला था जिससे ये कहा जा सके कि रूपा निशांत के फ्लैट पर मौजूद थी। इस लिए जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए उसे बाइज्ज़त बरी कर दिया। विषेश त्रिपाठी की डायरी ने केस में अपनी भूमिका निभाते हुए रूपा त्रिपाठी को बाइज्ज़्त बरी करवा दिया था।

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End of chapter - 01
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To be continued... :declare:
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 07
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अदालत से बरी हो जाने के बाद रूपा अपने पिता और भाई के साथ वापस कमरे में आ गई थी। उसके चेहरे पर दुःख और तक़लीफ के भाव थे। उसके पिता और भाई पुलिस द्वारा सूचित करने पर फ़ौरन ही दूसरे दिन अपनी बेटी रूपा के पास पुलिस थाने आ गए थे। सारा मामला जानने समझने के बाद उन्हें भी बेहद दुःख हुआ था लेकिन अदालत में उस वक़्त वो दोनों भी बुरी तरह आश्चर्य चकित रह गए थे जब डिफेंस लॉयर ने विशेष त्रिपाठी की डायरी पढ़ कर पूरी अदालत को सुनाई थी। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनके दामाद ने अपनी पत्नी को अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए इतना ख़तरनाक मंसूबा बनाया हुआ था। वो तो यही सोच कर बेहद खुश थे कि उनके दामाद ने वर्षों बाद उनकी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में अपना लिया था और अब उसे जी जान से प्यार भी करने लगा था। वो तो ये सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी बेटी को अपनाना और उसे इतना प्यार देना उसका महज एक दिखावा था।

ख़ैर बुरे काम का बुरा नतीजा ही निकलता है। जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है वो खुद ही अपने खोदे हुए गड्ढे पर गिर जाता है। यही उनके दामाद के साथ हुआ था लेकिन इतना कुछ होने के बाद उनके ज़हन में बार बार कुछ ऐसे सवाल तांडव सा कर रहे थे कि क्या सच में उनके दामाद की मौत निशांत सोलंकी नाम के उस आदमी के साथ हुए आपसी झगड़े से हुई थी या उन दोनों की मौत की वजह कोई दूसरी थी? यानि क्या सच यही है कि उनका दामाद अपने प्लान के अनुसार जब निशांत के घर उसकी हत्या करने गया तो वहां कुछ ऐसे हालात बन गए कि दोनों में कहा सुनी होने लगी और फिर बात इतनी बिगड़ गई कि दोनों एक दूसरे को जान से मार देने पर उतारू हो गए? एक दूसरे को जान से मार देने की कोशिश में वो दोनों सच में ही अपनी अपनी जान से हाथ धो बैठे।

ऐसे न जाने कितने ही सवाल रूपा के पिता चक्रधर पाण्डेय के ज़हन में गूंजने लगते थे लेकिन उन्हें अपने किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता था। ख़ैर पोस्ट मोर्टेम के बाद उनके दामाद की डेड बॉडी उन्हें मिल गई थी इस लिए वो एम्बुलेंस में अपने दामाद की डेड बॉडी ले कर गांव चले गए थे जबकि अपने बेटे अभिलाष को उन्होंने अपनी बेटी को ट्रेन से ले आने के लिए कह दिया था।

सब गांव पहुंच चुके थे। विशेष की मौत की ख़बर एक दो लोगों को हुई तो उनके द्वारा ये ख़बर जंगल की आग तरह पूरे गांव में फ़ैल गई। लोगों ने अपनी सोच के अनुसार इस बात को मिर्च मसाला लगा कर एक दूसरे से कहना शुरू कर दिया। विशेष के परिवार में बाकी और तो कोई नहीं था, लेकिन उसकी ननिहाल वाले ज़रूर थे इस लिए उन तक ख़बर भेजवा दी गई थी। दूसरे दिन विशेष के ननिहाल वालों की सहमति से उसका दाह संस्कार कर दिया गया। रूपा जो पहले ही विधवा हो गई थी वो अब गांव आने के बाद गांव के नियमानुसार विधवा के लिबाश में आ चुकी थी। हर वक़्त उसकी आँखों में वीरानी सी छाई रहती थी। चेहरा पत्थर की तरह शख़्त रहता था। उसकी इस हालत को देख कर उसकी माँ रेणुका बेहद चिंतित और परेशान थी। वो जानती थी कि उसकी बेटी को भगवान ने जो दुःख दिया है वो अब कभी मिटने वाला नहीं है लेकिन जीवन में इस दुःख को ले कर बैठे भी तो नहीं रहा जा सकता था।

रूपा के पिता अपनी बेटी को अब अपने घर ही ले आए थे। वैसे भी अब उसकी ससुराल में ऐसा कोई नहीं बचा था जिसके सहारे उसे वहां पर छोड़ दिया जाता इस लिए चक्रधर जी उसे अपने घर ही ले आए थे और उसकी जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले ली थी। अपनी बेटी के लिए वो भी दुखी थे लेकिन जीवन-मरण और सुख-दुःख तो सब भगवान के हाथ में था जिस पर उनका कोई ज़ोर नहीं चल सकता था। ख़ैर ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। रूपा की ज़िन्दगी में ख़ामोशी छा गई थी और वैसी ही ख़ामोशी उसने अपने होठों पर भी सजा ली थी। उसकी माँ रेणुका उसे बहुत समझाती थी लेकिन उसके समझाने का जैसे उस पर कोई असर ही नहीं होता था। सबके सामने तो वो बस ख़ामोश ही रहती लेकिन अकेले कमरे में वो सिसक सिसक कर रोती थी।

एक दिन उसकी माँ ने अपनी क़सम दे कर उससे पूछ ही लिया कि आख़िर अब ऐसी कौन सी बात है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है? इतना तो वो भी समझती थी कि जो दुःख उनकी बेटी को भगवान ने दिया है वो अब किसी के भी मिटाए नहीं मिटेगा लेकिन फिर भी इंसान किसी न किसी तरह खुद को समझा कर तसल्ली देता ही है ताकि जीवन में आगे बढ़ सके। अपनी माँ की क़सम से मजबूर हो कर रूपा को अपनी ख़ामोशी तोड़नी ही पड़ी।

"अदालत में न्याय की कुर्सी पर बैठे हुए जज ने मुझे निर्दोष मानते हुए भले ही बाइज्ज़त बरी कर दिया है मां।" रूपा ने गंभीर भाव से कहा____"लेकिन ऊपर बैठा हम सबका भगवान हर किसी की सच्चाई को भली-भांति जानता है। उससे किसी का कुछ भी छुपा हुआ नहीं है।"

"तू कहना क्या चाहती है बेटी?" रेणुका ने ना समझने वाले भाव से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"आख़िर किस सच्चाई को जानने की बात कर रही है तू?"

"तुम्हें पता है मां।" कहते हुए रूपा की आँखों में आंसू भर आए, आवाज़ जैसे कांप गई, बोली____"अपने पति और तुम्हारे दामाद की हत्या मैंने की है, लेकिन अदालत में कोई ये साबित नहीं कर पाया कि मैंने ही अपने पति की हत्या की है, बल्कि साबित ये हुआ कि उन हत्याओं में मेरा कोई हाथ नहीं था। मेरे वकील ने अदालत में मुझे निर्दोष साबित कर दिया और न्याय की कुर्सी पर बैठे हुए जज को मुझे बाइज्ज़त बरी का देना पड़ा।"

"ये...ये तू क्या कह रही है रूपा???" रेणुका को जैसे ज़बरदस्त झटका लगा था। आश्चर्य और अविश्वास से उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं थी।

"यही सच है मां।" कहने के साथ ही रूपा के चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता उभर आई, बोली____"ईश्वर का हर फ़ैसला मुझे मंजूर था लेकिन उस बेगैरत इंसान का वो फैसला मुझे हर्गिज़ मंजूर नहीं था जो उसने मेरे लिए किया था। मैंने उसको उसके किए की सज़ा दे कर अच्छा ही किया मां। यकीन मानो मुझे अपने किए पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है। साढ़े चार सालों से उसके सहारे के बिना ये ज़िन्दगी जी ही तो रही थी, अब बाकी की सारी ज़िन्दगी भी उसके सहारे के बिना ही जी लूंगी तो भला क्या फ़र्क पड़ जाएगा?"

"पता नहीं ये क्या अनाप शनाप बोले जा रही है तू??" रेणुका की बुद्धि ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था, बोली____"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा? आख़िर ये सब क्या है और तूने दामाद जी की हत्या क्यों की? आख़िर ऐसा उन्होंने क्या कर दिया था तेरे साथ? मुझे सब कुछ अच्छे से बता रूपा। मेरा दिल बहुत बुरी तरह घबराने लगा है।"

अपनी माँ रेणुका की ये बातें सुन कर रूपा कुछ देर तक जाने क्या सोचती रही और फिर जब उसकी माँ ने एक बार फिर उससे वही सब पूछा तो उसने उनकी तरफ देखते हुए एक गहरी सांस ली। रेणुका अपनी बेटी के साथ कमरे में रखी चारपाई पर ही बैठी हुई थी और वो इस वक़्त अपने चेहरे पर अजीब से भाव लिए रूपा को ही देखे जा रही थी। उधर सामने की दीवार को देखते हुए रूपा ने सब कुछ इस तरह से बताना शुरू कर दिया जैसे सामने की उस दीवार पर उसका गुज़रा हुआ कल एकदम से किसी चलचित्र की मानिन्द उसे दिखने लगा हो।

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ईश्वर जब मनुष्य की रचना कर के इस धरती पर भेजता है तो हर मनुष्य जन्म के समय एक जैसा ही होता है। हालांकि उनका रंग रूप ज़रूर भिन्न होता है, यानी कोई गोरा रंग ले कर पैदा होता तो कोई सांवला रंग ले कर, लेकिन दोनों रंग रूप के प्राणी में एक ही चीज़ सामान होती है कि वो जन्म के समय अबोध होता है। उसे दुनियां संसार की किसी भी अच्छाई या बुराई का ज्ञान नहीं होता। उसके बाद धीरे धीरे वो बड़ा होता है और माता पिता के साथ साथ बाकी लोगों के भी सहयोग से उसमें बुद्धि का विकास होने लगता है। कहते हैं कि अगर किसी बालक को उसके जन्म से ही अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिली होती है तो वो आगे चल कर एक अच्छा इंसान ही बनता है और फिर अपने अच्छे आचरण और अपने अच्छे कर्मों के द्वारा वो अपने माता पिता, कुल-खानदान के साथ साथ दूसरों को भी सुख की अनुभूति कराता है। अपने जीवन के अब तक के सफ़र में मैंने अक्सर ये सोचा है कि क्या लोगों की ये बातें वास्तव में सच होती हैं? यानि क्या सच में ऐसा कोई इंसान जिसे जन्म से ही अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिली होती है वो आगे चल कर एक अच्छा इंसान ही बनता है? मेरा ख़याल है कि ऐसा बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं होता। ये सच है कि एक अच्छे माता पिता की यही कोशिश रहती है कि वो अपने बालक को अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा दे कर उसे एक अच्छा इंसान बनाए और वो ऐसा करते भी हैं लेकिन अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिलने के बावजूद वो बालक एक दिन ऐसा इंसान भी बन जाता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती। यानि अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा वाला इंसान एक दिन बुरी सोच वाला बन जाता है और उस बुरी सोच के साथ वो बुरा कर्म करने लगता है।

ईश्वर ने मुझे अगर ऐसा रंग रूप दिया था तो इसमें मेरा क्या दोष था? क्या किसी ऐसे इंसान का इस धरती पर पैदा होना गुनाह है जिसका रंग रूप काला हो और दिखने में वो भद्दा नज़र आता हो? बचपन से ले कर जवानी तक मैं खुद भी अपने ऐसे रंग रूप के लिए ईश्वर को दोष दे कर उससे शिकायतें करती थी क्योंकि बचपन से मैंने अपने लिए लोगों के मुख से ऐसी बातें सुनी थी जिससे मेरा दिल दुखता था और अकेले में मैं रोया करती थी। कभी कभी दिल का दर्द जब हद से ज़्यादा बढ़ जाता था तो ज़हन में बस एक ही ख़याल आता था कि ऐसे जीवन को एक पल में समाप्त कर दूं लेकिन हमेशा ये सोच कर रुक जाती थी कि क्या हुआ अगर बाहर के लोग मुझे कुरूपा कहते हैं? मेरे अपने माता पिता और भाई तो मुझे बेहद प्यार करते हैं न। मेरे माता पिता ने तो कभी मेरे रंग रूप के लिए मुझे ताना नहीं मारा। यानि मेरे माता पिता और भाई के प्यार और स्नेह ने मुझे अपने जीवन को कभी समाप्त नहीं करने दिया।

दुनियां में ऐसा कौन है जिसके दिल में किसी तरह की कोई ख़्वाहिश नहीं होती? हर किसी की तरह मेरे भी दिल में ख़्वाहिशें थीं। मेरे भी दिल में अरमान थे और हर लड़की की तरह मैं भी सपने देखती थी। मुझे अच्छी तरह इस बात का एहसास था कि मेरा रंग रूप ऐसा है कि कोई भी सुन्दर लड़का मुझसे शादी करने का सोचेगा भी नहीं लेकिन इसके बावजूद मैं ऐसे ही लड़के के सपने देखती थी, क्योंकि इस पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था।

विशेष के पिता और मेरे बाबू जी एक दूसरे को सालों से जानते थे। मेरे बाबू जी को भले ही अपनी बेटी इतनी प्यारी थी लेकिन इस यथार्थ सच्चाई का तो उन्हें भी एहसास था कि उनकी बेटी रंग रूप में ऐसी नहीं है जैसे कि हर लड़के को चाह होती है। जब मैं ब्याह के लायक हो गई तो उन्हें मेरे ब्याह की फ़िक्र होने लगी। उन्होंने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की कि कहीं पर मेरा रिश्ता तय हो जाए लेकिन इसे मेरा दुर्भाग्य कहें या कुदरत का षड़यंत्र कि कहीं पर भी मेरा रिश्ता तय नहीं हो पाया। मेरे बाबू जी इस बात से अंदर ही अंदर भले ही चिंतित और परेशान रहने लगे थे लेकिन मेरे सामने कभी वो अपने चेहरे पर चिंता के भाव नहीं लाते थे। शायद वो नहीं चाहते थे कि उनका उतरा हुआ चेहरा देख कर मुझे किसी तरह की तक़लीफ हो। इधर मैं भी इन बातों से अब अंदर ही अंदर दुखी रहने लगी थी। मुझे अपना ब्याह न होने का दुःख नहीं था क्योंकि अपना ब्याह होने की तो मैंने पहले ही उम्मीद छोड़ दी थी, बल्कि मुझे दुःख तो इस बात का था कि मेरी वजह से मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे बाबू जी कितना चिंतित और परेशान रहने लगे हैं। जहां एक तरफ मेरी किस्मत मुझे दुःख दे रही थी तो वहीं दूसरी तरफ मेरे माता पिता और मेरा छोटा भाई मुझे छोटी सी बच्ची समझ कर प्यार से समझाते रहते थे और मैं सिर्फ उनके लिए अपना दुःख दर्द और अपने आंसू पी कर मुस्कुरा उठती थी।

एक दिन मेरे बाबू जी घर आए तो वो बड़ा खुश दिख रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि रूपा बिटिया का रिश्ता एक जगह तय हो गया है। मैं रसोई में शाम के लिए खाना बना रही थी और बाबू जी आँगन में चारपाई पर बैठे माँ से ख़ुशी ख़ुशी सारी बातें बता रहे थे। मैंने सुना कि पास के गांव में कोई सोभनाथ त्रिपाठी हैं जिनके बेटे विशेष से मेरा रिश्ता तय हो गया है। बाबू जी की बातें सुन कर मेरे अंदर किसी भी तरह के एहसास जागृत नहीं हुए थे। होते भी कैसे? मैं तो अब ऐसी मानसिकता में पहुंच चुकी थी जहां पर किसी बात से मुझे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। माँ के पूछने पर ही बाबू जी से मैंने सुना कि उनका होने वाला दामाद काफी पढ़ा लिखा है और आज कल शहर में किसी नौकरी के लिए चक्कर लगाता रहता है। घर दुवार ज़मीन जायदाद सब ठीक ठाक है और समाज में उनकी अच्छी खासी इज्ज़त भी है। पहले तो माँ को बाबू जी की बातों पर यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन जब बाबू जी ने उन्हें बताया कि अगले महीने की उन्नीस तारीख़ को मेरा ब्याह तय हो गया है तो माँ को यकीन करना ही पड़ा। उसके बाद ब्याह की तैयारियां शुरू हो गईं थी।

देर से ही सही लेकिन अब इस ब्याह के तय हो जाने की बात से मेरे दिल की भी धड़कनें एक अलग ही एहसास के तहत धड़कने लगीं थी। मेरे अंदर के अरमान जो अंदर ही कहीं मर खप से गए थे वो एक बार फिर से अंगड़ाईया लेने लगे थे। मुरझाए हुए चेहरे पर जब खुशियों की बहार के झोंके का स्पर्श हुआ तो जैसे वो एकदम से खिल उठा। हर गुज़रते दिन के साथ मन में तरह तरह की बातें और तरह की कल्पनाएं उभरने लगीं थी। हर रोज़ रात में चारपाई पर लेटी मैं अपने होने वाले पति के बारे में न जाने कैसे कैसे सपने बुनने लगी थी और ये ख़्वाहिश जगाने लगी थी कि जब उनसे मेरा मिलन होगा तब क्या होगा? फिर एकदम से ये ख़याल मुझे बुरी तरह हिला कर रख देता कि क्या मेरे माता पिता और भाई की तरह वो भी मुझे प्यार और स्नेह देंगे? कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा कि ग़ैरों की तरह वो भी मुझे देख कर मुझसे मुँह फेर लें? इन्हीं ख़यालों में सारी रात जागते हुए गुज़र जाती थी। घर में भले ही ख़ुशी का माहौल छाया हुआ था लेकिन मेरे मन में अब ये ख़याल कुछ ज़्यादा ही घर करने लगा था कि मेरा होने वाला पति कहीं मुझे देख कर मुझे अपनाने से इंकार न कर दे। ये ख़याल मेरे दिलो दिमाग़ से जा ही नहीं रहा था, जिसकी वजह से कुछ दिन पहले जिस एहसास से मेरा चेहरा खिल उठा था वो फिर से किसी बेचारगी का शिकार होने लगा था। मंदिर में जा कर घंटों पूजा करती और सभी देवी देवताओं से बस यही विनती करती कि चाहे भले ही मेरा होने वाला पति मुझे प्यार न करे लेकिन मुझे देखने के बाद वो मुझसे मुँह न फेरे, बल्कि अपने दिल में मेरे लिए थोड़ी सी जगह बना कर मुझे अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाए रखे।

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