Thriller ✧ Double Game ✧(completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 11
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बाथरूम के अंदर अभी मैं उस किताब को खोलने ही वाली थी कि तभी बाहर से कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी मुझे। उस आवाज़ को सुन कर मेरा रोम रोम कांप गया। दिल की धड़कनें एकदम से थम गई सी महसूस हुईं मुझे। फिर एकदम से मन में ख़याल उभरा कि अगर ये आवाज़ विशेष जी के द्वारा पैदा हुई होगी तब तो ज़रूर वो जाग गए होंगे। संभव है कि मेरी तरह उनकी भी पेशाब लगने की वजह से नींद खुल गई हो। ये सब सोचते ही एकदम से मैं बुरी तरह घबरा गई। पकड़े जाने का डर मुझ पर इस क़दर हावी हो गया कि लगा मुझे वहीं पर चक्कर आ जाएगा। किसी तरह मैंने ख़ुद को सम्हाला और मोबाइल की टार्च को बुझा कर बहुत ही धीमें से बाथरूम का दरवाज़ा खोला।

बिना कोई आवाज़ किए जब मैं कमरे में आई तो देखा कमरे में पहले की तरह ही अँधेरा था। कुछ देर अपनी जगह पर रुक कर मैंने किसी भी तरह की आवाज़ को सुनने की कोशिश की लेकिन ऐसी कोई आवाज़ मेरे कानों में न सुनाई दी जिससे मैं ये अंदाज़ा लगा सकूं कि वो आवाज़ विशेष जी के द्वारा पैदा हुई थी या किसी चूहे की वजह से। अब क्योंकि मेरे अंदर पकड़े जाने का डर भर गया था इस लिए मैंने इस वक़्त फिर से बाथरूम में जा कर उस किताब को देखना बिलकुल भी सही नहीं समझा। मैंने चुप चाप उस किताब को वैसे ही उस बैग में रख दिया जैसे निकाला था और फिर बैग को बेड के नीचे वैसे ही रख कर बेड पर आहिस्ता से लेट गई। मेरा दिल अभी भी मारे घबराहट के बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि बाल बाल बच गई आज।

अगले दो तीन दिन ऐसे ही गुज़र गए और मैंने भी उस किताब को देखने का ख़याल ज़हन से निकाल दिया था। असल में मैं विशेष जी के प्यार की वजह से मिल रही ख़ुशी को फीका नहीं करना चाहती थी।

उस दिन रविवार था और विशेष जी ने शनिवार की शाम को ही मुझे बता दिया था कि रविवार को वो मुझे बाहर घुमाने ले जाएंगे लेकिन इस बार वो बाहर ही किसी अच्छे से होटल में रुक कर मेरे साथ प्यार से भरी रात गुज़ारेंगे। विशेष जी की इस बात से मैं बेहद खुश हो गई थी। ख़ैर अगले दिन रविवार को मैं विशेष जी के साथ घूमने निकल पड़ी थी। सबसे पहले उन्होंने मुझे सिनेमा में ले जा कर फिल्म दिखाई और उसके बाद चिड़ियाघर घुमाने ले गए। इसी सब में काफी वक़्त गुज़र गया था और मैं थक भी गई थी इस लिए विशेष जी के साथ मैं होटल में पहुंच ग‌ई। वहां खा पी कर मैं बेड पर लेटते ही सो गई थी।

शाम को हम दोनों उठे और थोड़ा बाहर घूमने के बाद रात का खाना खाया। उसके बाद होटल के अपने कमरे में आ गए। रात अपनी ही थी इस लिए मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे जिनकी वजह से मैं मन ही मन खुश हो रही थी। विशेष जी के प्यार की अब आदत सी पड़ गई थी मुझे और मैं चाहती थी कि मैं उनके उस प्यार में ही डूबी रहूं। ख़ैर विशेष जी ने मुझे भरपूर प्यार किया। मैं एकदम से तृप्त और निढाल हो गई थी। काफी देर बाद जब विशेष जी ने मुझे पुकारा तो मैं उठी और जैसे ही मैंने खुद के नंगेपन को देखा तो शर्म से दोहरी हो गई। मेरे सारे कपड़े बेड से दूर फर्श पर पड़े हुए थे।

दूसरे दिन हम दोनों सुबह सुबह ही घर आ गए थे। विशेष जी तो अपने ऑफिस चले गए थे लेकिन मैं सारा दिन अपनी बदली हुई ज़िन्दगी के बारे में जाने क्या क्या सोचती रही थी। उस रात भी विशेष जी ने मुझे प्यार किया था और उसके बाद हम दोनों सो गए थे। इत्तेफ़ाक़ से फिर मेरी नींद पेशाब लगने की वजह से ही टूट गई। मैंने आँखें खोल कर इधर उधर देखा तो मैं ये देख कर चौंकी थी कि आज फिर विशेष जी टेबल लैंप को जला कर उस किताब में कुछ लिख रहे थे। ये देखते ही मेरे ज़हन में फिर से वो ख़याल उभर आए जिनके बारे में मैं भूल गई थी। मन में एक बार फिर से ये जानने की उत्सुकता भर गई कि आख़िर उस किताब में विशेष जी ऐसा क्या लिखते हैं? मैंने अपने ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मैंने उन्हें दिन में किसी दिन भी उस किताब में लिखते नहीं देखा था बल्कि उन्हें कुछ कागज़ों पर सिर खपाते हुए और लिखते हुए ही देखा था।

मेरे मन में एक बार फिर से इस सबके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी इस लिए मैंने फैसला किया कि विशेष जी के सो जाने के बाद आज मैं फिर से उस किताब को उनके बैग से निकाल कर देखूंगी। मैं जानती थी कि इस काम में ख़तरा तो था लेकिन अपने मन की शान्ति और तसल्ली के लिए मुझे ये ख़तरा मोल लेना जैसे मंजूर हो गया था।

मैंने काफी देर तक इंतज़ार किया और आख़िर मेरा इंतज़ार ख़त्म हुआ। विशेष जी ने उस किताब को बंद कर के बैग में रखा और उसमें ताला लगाया। उसके बाद उस बैग को बड़ी सावधानी से ला कर बेड के नीचे रख दिया। इधर मैं पलकों की झिरी से उन्हें ही देख रही थी। विशेष जी बेड पर आए और दूसरी तरफ करवट ले कर लेट ग‌ए। काफी देर बाद जब मैंने महसूस किया कि विशेष जी गहरी नींद में पहुंच गए हैं और उनके हल्के हल्के खर्राटे सुनाई देने लगे हैं तो मैं आहिस्ता से उठी और फिर से उसी तरह मैंने उस बैग से उनकी वो किताब निकाली जैसे उस दिन निकाला था। उसके बाद किताब ले कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई।

मेरे अंदर डर और घबराहट समाई हुई तो थी लेकिन इसके बावजूद मैं अब उस किताब के रहस्य को जानना चाहती थी। मैंने मोबाइल की टार्च जला कर मोबाइल को एक जगह रख दिया। मोबाइल वाली टार्च से इतनी तो रौशनी हो ही गई थी कि मैं उस किताब में लिखी बातें आराम से पढ़ सकती। मैंने किताब के मोटे से कवर को खोला तो मेरी नज़र दाएं तरफ सफ़ेद मोटे पन्ने पर लिखे शब्दों पर पड़ी। मोठे शब्दों में लिखा था____'पर्सनल डायरी।'

मेरे बाबू जी ने मुझे इतना पढ़ाया लिखाया तो था ही कि मैं पर्सनल डायरी का मतलब समझ सकूं। ख़ैर इतना तो मैं समझ गई थी कि वो किताब विशेष जी की पर्सनल डायरी थी और मैं ये भी समझती थी कि पर्सनल डायरी में कोई भी इंसान वही लिखता है जो वो अपने जीते जी किसी भी दूसरे को नहीं पढ़ने दे सकता। मुझे पता था कि किसी की ब्यक्तिगत चीज़ को बिना उसकी इजाज़त के हाथ भी नहीं लगाना चाहिए लेकिन उस वक़्त मैं उसे हाथ भी लगा रही थी और पढ़ने का इरादा भी रखे हुए थी। मैं ये जानने के लिए मजबूर हो चुकी थी कि विशेष जी ने आख़िर उस किताब में लिखा क्या होगा?

ऊपर वाले को याद कर के मैंने उस किताब के पन्ने को पलटना शुरू किया तो जल्द ही मुझे एक पन्ने पर बहुत कुछ लिखा नज़र आया जिसे मैंने पढ़ना शुरू कर दिया। उसमें शुरू से यही लिखा था कि_____'हीन भावना कभी कभी ऐसा भी रूप ले लेती है जिसका अंजाम ख़तरनाक भी हो सकता है......।'

शुरु में तो मुझे कुछ समझ न आया लेकिन जैसे जैसे मैं आगे पढ़ती गई वैसे वैसे मेरा दिलो दिमाग़ एक अजीब ही एहसास में डूबता चला गया। मैं किताब में लिखी बातों को पढ़ने में इतना खो गई कि मुझे किसी दूसरी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। विशेष जी ने उस किताब में जो कुछ लिखा था उसने मेरे होश गुम कर दिए थे। मेरे ज़हन ने तो जैसे काम करना ही बंद कर दिया था। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि विशेष जी मेरे बारे में ऐसी सोच रखते थे और इस तरह से मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर कर देना चाहते थे।

अपनी कुरूपता का मुझे भी हमेशा से दुःख था और उसके लिए जब लोग मेरा उपहास उड़ाते थे तो मन करता था कि उस दर्द को पी लेने से तो अच्छा है कि खुद ख़ुशी कर लूं लेकिन अपने माँ बाबू जी का प्यार देख कर हमेशा खुद को समझा लेती थी। अपने जीवन से और बुरे लोगों से भले ही मुझे नफ़रत थी लेकिन इस सबके बावजूद मेरे दिल के किसी कोने में ये हसरत मौजूद थी कि अपने जीवन में कम से कम एक बार तो खुश हो लूं। कम से कम एक बार तो मुझे भी पता चल जाए कि आख़िर ख़ुशी चीज़ क्या होती है? ख़ैर उसके बाद संजोग से जब ख़ुशी मिली तो लगा जैसे अब मुझे सब कुछ मिल गया है। अपने पति का साथ और उनका प्यार मिल गया था मुझे। उस ख़ुशी में मैं जैसे बावली ही हो गई थी। भला मैं ये कल्पना कैसे कर सकती थी कि जिन ख़ुशियों के चलते मैं अपने दुःख दर्द भूल चुकी थी और बावली हो गई थी वो खुशियां मुझे इस दुनियां में चंद दिनों का मेहमान बनाने के लिए मिल रहीं थी।

किताब में जितना कुछ विशेष जी ने लिखा था वो सब मैंने पढ़ लिया था और सच तो ये है कि उस सबको पढ़ने के बाद दिल तो ये कह रहा था कि ऐसे इंसान को सोते में ही उसका गला घोंट कर मार दूं लेकिन फिर मैंने किसी तरह अपने अंदर उमड़ते उन जज़्बातों को रोका। उस किताब में लिखी दास्तान को पढ़ने के बाद जैसे सब कुछ शून्य सा हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे अब इस दुनियां में कुछ है ही नहीं और अगर कुछ है भी तो वो है___हर इंसान से नफ़रत और घृणा। अगर मेरे बस में होता तो मैं इस दुनियां से पूरी मानव जाती को ही समाप्त कर देती।

अपने आपको बड़ी मुश्किल से मैंने सम्हाला और चुप चाप कमरे में आ कर उस किताब को उसी तरह बैग में रख दिया जैसे उसमें से निकाला था। बेड पर एक तरफ सोए पड़े विशेष जी पर जब मेरी नज़र पड़ी तो सहसा मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ। मन किया कि उसी वक़्त उस इंसान को जगाऊं और उसका गिरेहबान पकड़ कर उससे पूछूं कि अगर उसे मुझसे इतनी ही नफ़रत थी तो मुझे ऐसी खुशियां क्यों दी थी? वो मुझसे एक बार कह देता कि मैं उसकी ज़िन्दगी से हमेशा के दूर हो जाऊं तो मैं ख़ुशी ख़ुशी उसकी ज़िन्दगी से दूर हो जाती। इसके पहले साढ़े चार सालों तक उससे दूर ही तो थी और उसके बिना जी ही तो रही थी तो बाकी सारी ज़िन्दगी भी उसके बिना ही जी लेती। कम से कम ये सब तो देखना न पड़ता और ना ही इस सबके दुःख में मेरा दिल बुरी तरह से दुःख जाता।

मन में गुस्सा और नफ़रत तो हद से ज़्यादा भर गई थी लेकिन उस वक़्त मैंने विशेष जी को जगा कर उनसे कुछ भी नहीं कहा था। मैं तो बस बेड पर लेटी उस सबके बारे में सोच सोच कर आंसू बहा रही थी। पता नहीं कब उसी हालत में मेरी आँख लग गई थी।

सुबह आँख खुली तो ज़हन में रात की सारी बातें उभर आईं जिसकी वजह से दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। मेरे मन में ख़याल उभरा कि मुझे अपने चेहरे से ऐसा ज़ाहिर नहीं होने देना चाहिए कि मुझे विशेष जी की असलियत पता चल गई है। आख़िर अब मैं भी तो देखूं कि वो बेगैरत इंसान मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए आगे और क्या क्या करता है? ये सोच कर मैंने खुद को सम्हाला और बाथरूम में घुस गई।

मैंने विशेष जी को ज़रा भी इस बात का शक नहीं होने दिया कि उनके मंसूबों के बारे में मुझे पता चल चुका है। मैं उनके सामने वैसा ही बर्ताव करती जैसा अब तक करती आई थी। मैं वैसे ही ख़ुशी में बावली बनी रही जैसे अब तक बनी हुई थी। अकेले में मैं ये सोच सोच कर दुखी होती कि आख़िर वो किस तरह इंसान है जिसके सीने में दिल तो है लेकिन उसमें किसी के लिए कोई जज़्बात नहीं हैं। कोई इंसान इतना कठोर कैसे हो सकता है कि किसी को अपने जीवन से हटाने के लिए इस हद तक गिर कर मंसूबा बना ले?

दूसरे दिन दोपहर को मैं कमरे में बेड पर लेटी हुई विशेष जी के बारे में ही सोच रही थी कि तभी मेरे मोबाइल पर मैसेज की रिंग बजी तो मैंने मोबाइल उठा कर मैसेज देखा। किसी अनजान नंबर से मैसेज आया हुआ था। मैंने उस मैसेज को खोल कर देखा तो बुरी तरह चौंक ग‌ई। भेजने वाले ने इस तरीके से मैसेज लिख कर भेजा था जैसे वो मेरा प्रेमी हो और मैं उसकी प्रेमिका। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया कि ये कौन है जिसने इस तरह का मैसेज भेजा है मुझे। कुछ देर बाद फिर से उसका मैसेज आया और फिर एक के बाद आता ही रह। मैं उन संदेशों को पढ़ कर स्वाभाविक रूप से परेशान हो ग‌ई। मैंने उस अनजान ब्यक्ति के मैसेजेस का कोई जवाब नहीं दिया था। कुछ देर तक मैं मन ही मन सोचती रही कि ऐसा कौन कर सकता है? मेरा मोबाइल नंबर मेरे पति के अलावा सिर्फ मेरे माँ बाबू जी और मेरे भाई के ही पास था तो फिर ये अंजान आदमी कौन है और इस तरह के सन्देश क्यों भेज रहा है मुझे? सहसा मेरे दिमाग की बत्ती जली। मुझे विशेष जी की डायरी में लिखी बातों का ख़याल आ गया। उसमें उन्होंने साफ़ लिखा था कि वो जिस कंपनी में काम करते हैं वहां पर निशांत सोलंकी नाम का कोई उनका सीनियर है जिसे वो अपने ऐसे ख़तरनाक प्लान में फ़साने का सोचे हुए हैं। उसी आदमी के साथ मेरे नाजायज़ सम्बन्ध बने हुए साबित करना चाहते थे।

मैं क्योंकि विशेष जी डायरी पढ़ चुकी थी इस लिए मैं समझ गई थी कि वो अंजान आदमी कोई और नहीं बल्कि मेरा पति ही है। अपनी समझ में वो निशांत सोलंकी बन कर मुझे ऐसे सन्देश भेज रहे थे। अपने प्लान के अनुसार वो अपना कार्य कर रहे थे इस लिए मैंने भी सोचा कि देखूं तो सही कि आख़िर वो ये सब किस तरह से करते हैं? मैंने भी सोच लिया कि मैं भी अब वैसा ही करुँगी जैसा वो चाहते हैं। दो दिन तक मैंने उनके संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया था। आख़िर स्वाभाविक रूप से उन्हें ये तो लगना ही चाहिए था कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या करती? ख़ैर तीसरे दिन मैंने ये सोच कर जवाब दिया कि उन्हें यही लगे कि मैं उन संदेशों से बहुत परेशान हो गई हूं। जब मैंने जवाब दिया तो पहले तो वो मेरा प्रेमी बन कर मैसेज किए किन्तु फिर वो एकदम से मुझसे मेरी नंगी फोटो मांगने लगे और धमकी देते हुए कहा कि अगर मैंने अपनी नंगी फोटो उन्हें नहीं भेजी तो वो मेरी नंगी फोटो मेरे पति के पास भेज देंगे।

उनकी डायरी के द्वारा मैं जान चुकी थी कि उस दिन उन्होंने चोरी से होटल के कमरे में मेरी फोटो खींच ली थी इस लिए मैं ये समझ गई थी कि वो उन्हीं फोटो को भेज देने की मुझे धमकी दे रहे थे लेकिन मैंने मैसेज में यही लिखा कि उनके पास मेरी फोटो कैसे हो सकती है? मेरे पूछने पर उन्होंने सबूत के तौर पर मेरी फोटो भेज दी जिसे देख कर यकीनन मेरे होश उड़ गए थे। मैं ये सोच कर हैरान भी हुई थी कि वो आदमी अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। ख़ैर फोटो देख कर मैंने वैसा ही बर्ताव किया जैसा कि उस परिस्थिति में किसी भी साधारण घरेलू पत्नी को करना चाहिए था। उसके बाद उनके अनुसार जब मैं मजबूर हो गई तो मैंने बेबस और लाचार बन कर उन्हें अपनी फोटो भेज दी। शर्म तो मुझे बहुत आई थी लेकिन खुद को तसल्ली भी दी कि आख़िर मेरी फोटो गई तो मेरे पति के पास ही है ना और वैसे भी मैं तो ये देखना चाहती थी कि वो अपने मंसूबों को परवान कैसे चढ़ाते हैं?

शाम को विशेष जी जब घर आए तो मैं उनके सीने से वैसे ही लिपट गई जैसे ऐसी परिस्थिति में कोई भी बेबस और दुखी बीवी करती। आख़िर विशेष जी को भी तो ये लगना चाहिए था ना कि सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा वो चाहते हैं या जैसा उन्होंने प्लान बनाया हुआ है। इतना तो मैं भी समझ गई थी कि वो मुझे बिल्कुल ही बेवकूफ और मूर्ख समझते थे। उन्हें लगता था कि मैं गांव देहात की एक मामूली सी लड़की हूं जिसके ज़हन में ऐसी बातें आ ही नहीं सकतीं थी और शायद यही वजह थी कि वो कमरे में मेरी मौजूदगी के बावजूद मेरे सो जाने के बाद उस किताब में वो सब लिखते थे। इंसान जब ख़ुद को कुछ ज़्यादा ही होशियार और चालाक समझने लगता है तो फिर वो बाकी सबको मूर्ख ही समझता है। यही हाल विशेष जी का था।

इन्सान को जब पता चल जाए कि उसका कोई अपना उसके लिए किस तरह का षड़यंत्र रच रहा है और उसे खुद से हमेशा के लिए दूर कर देने के लिए किस हद तक गिर जाने वाला है तो भला ऐसे में उस इंसान को चैन की नींद कैसे आ सकती है? मेरा भी यही हाल था। वैसे तो मैं विशेष जी के सामने वैसा ही बर्ताव और वैसी ही ख़ुशी में बावली हो जाने का दिखावा कर रही थी लेकिन मन में चौबीसों घंटे यही ख़याल रहता था कि अब वो आगे क्या और कैसे करने वाले हैं? उस रात भी उन्होंने मुझे एक अच्छे पति की तरह प्यार दे कर खुश कर दिया था। उसके बाद जैसा कि हमेशा होता था मैं प्यार की मदहोशी में ही सो गई थी। हालांकि सच तो ये था कि उस रात मैं सोइ नहीं थी बल्कि सो जाने का नाटक किया था मैंने। मेरे मन में कहीं न कहीं ये बात ज़रूर थी कि मेरे सो जाने के बाद विशेष जी फिर से उस किताब में आगे का अपना प्लान लिखेंगे।

जब विशेष जी को पूरी तरह यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में जा चुकी हूं तो वो चुपके से उठे और अपने काम में लग गए। बेड पर लेटी मैं पलकों की झिरी से देख रही थी कि वो क्या कर रहे थे। कमरे में अँधेरा था लेकिन बहुत ही हल्की हल्की ऐसी आवाज़ सुनाई दे रही थी जैसे बेड के नीचे से कोई किसी चीज़ को सरका रहा है। मैं जानती थी कि वो चीज़ उनका वो बैग ही था जिसमें उनकी पर्सनल डायरी थी।

थोड़ी ही देर में मैंने देखा कि कमरे के एक कोने में टेबल लैंप जला और विशेष जी उस किताब को ले कर कुर्सी पर बैठ ग‌ए। मेरे दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं थी कि आज वो अपनी डायरी में अपने प्लान का आख़िरी हिस्सा लिखने वाले हैं। यानी वो लिखने वाले हैं कि किस तरह वो मुझे निशांत सोलंकी के फ्लैट पर ले जाएंगे और फिर वहां पर मेरे साथ क्या क्या होगा? उनकी डायरी में मैंने जहां तक पढ़ा था वहां तक यही लिखा था उन्होंने कि वो निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में मुझे फंसा देना चाहते हैं लेकिन ऐसा वो करेंगे कैसे ये उन्होंने नहीं लिखा था। मेरे मन में भी यही जानने की उत्सुकता थी कि आख़िर वो ऐसा किस तरह से करेंगे कि मैं निशांत सोलंकी की हत्या के जुर्म में फंस जाऊं और फिर अदालत में मुझे फांसी की या उम्र क़ैद की सज़ा हो जाएगी?

वक़्त बड़ी मुश्किल से गुज़रा। विशेष जी ने उस किताब को बैग में रख कर ताला लगाया और बैग को बेड के नीचे बहुत ही आहिस्ता से सरका दिया। उसके बाद टेबल लैंप बुझा कर वो बेड पर आ कर लेट ग‌ए। इसके पहले जहां वो मेरे सो जाने का इंतज़ार कर रहे थे वहीं अब मैं उनके सो जाने का इंतज़ार करने लगी थी। आधे घंटे बाद मुझे उनकी तरफ से हल्के खर्राटों की आवाज़ सुनाई देने लगी तो मैं समझ गई कि मेरा पति अब घोड़े बेंच कर चैन की नींद सो चुका है। कुछ देर मैंने और परखा और फिर बहुत ही आहिस्ता से बेड से उतर कर उनके बैग से उसी तरह वो डायरी निकाली जैसे पहले दो बार निकाल चुकी थी। डायरी ले कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई।

बाथरूम में आ कर मैंने जल्दी से मोबाइल की टोर्च जलाई और उसकी रौशनी में उस डायरी को खोल कर उसी जगह से आगे पढ़ना शुरू किया जहां पर विशेष जी ने उस रात डायरी में आगे लिखा था। मैं साँसें रोके पढ़ती ही चली जा रही थी। मेरे चेहरे पर हैरत के साथ साथ दुःख तक़लीफ के भाव भी उभरते जा रहे थे।

डायरी में मैंने उनका लिखा हुआ बाकी सब कुछ तो पढ़ लिया लेकिन मुझे ये देख कर बहुत ज़्यादा दुःख हुआ कि कहीं पर भी उन्होंने ये नहीं लिखा था कि मेरे प्रति उनके दिल में ज़रा से भी जज़्बात थे। एक मैं थी कि उनका प्यार देख कर ख़ुशी से बावली हो गई थी और एक वो थे कि पत्थर के पत्थर ही बने रहे। दिलो दिमाग़ में आग सी सुलग उठी थी। एक ऐसा तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था जो अब मेरे रोकने पर भी रुकने वाला नहीं था। जिसने मुझे ऐसा रंग रूप दिया था उसको याद कर के एक बार फिर उससे कहा कि मेरी इतनी इबादत करने के बावजूद तुमने मेरे पति के दिल में मेरे प्रति प्रेम के जज़्बात पैदा नहीं किए। मेरे जज़्बात जैसे बगावत करने पर उतारू हो गए थे। गुस्सा नफ़रत और घृणा इस क़दर भर गई थी कि अब बस यही लगने लगा था कि सब कुछ तहस नहस कर दूं।

अपने पति की डायरी को चुप चाप बैग में डाल कर उसे बेड के नीचे रख दिया और फिर बेड पर आ कर लेट गई। ह्रदय जल रहा था, रूह विलाप कर रही थी और आँखों से गर्म नीर बह रहा था जो किसी तेज़ाब से कम नहीं था। ऐसी हालत में भला मुझे नींद कैसे आ सकती थी इस लिए सारी रात अपने और अपने जीवन के बारे में सोचती रही। आख़िर में मैंने एक ऐसा फैसला किया जिसके बारे में उसके पहले मैं खुद भी कभी कल्पना नहीं कर सकती थी। जिस इंसान के लिए मैंने अपना मायका तक त्याग दिया था और ये सोच कर साढ़े चार सालों से अपने सास ससुर की सेवा करती रही थी कि शायद एक दिन उस इंसान को मुझ में मेरी कुरूपता के अलावा भी कुछ दिख जाए और वो मुझे अपना ले, लेकिन वो इंसान तो हमेशा पत्थर दिल ही बना रहा। अगर वो उसी तरह सारी ज़िन्दगी भी पत्थर दिल बना रहता तो मुझे इतना दुःख न होता लेकिन उसने झूठे प्यार का दिखावा कर के मुझे छला और मेरे जज़्बातों के साथ खेला। इतना ही नहीं बल्कि किसी पराए इंसान के साथ मेरा सम्बन्ध जोड़ कर मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालने का भी सोच लिया। क्या ऐसे इंसान को इस सबके बावजूद इस दुनियां में जीने का हक़ हो सकता था? मेरी नज़र में तो हर्गिज़ नहीं, बल्कि उसे तो उसी के खोदे हुए उस गढ्ढे में गिरा कर दफ़न कर देना चाहिए था जो गड्ढा वो मेरे लिए खोद चुका था।

डायरी के अनुसार अगले दिन की रात वो दो ज़िन्दिगियों का फ़ैसला करने वाला था और इसके लिए वो क्या करने वाला था ये मैं उसकी डायरी के द्वारा जान चुकी थी। इस लिए मैंने भी मन ही मन सोच लिया था कि अब मुझे क्या करना है।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 12
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दूसरे दिन सब कुछ वैसा ही शुरू हुआ जैसा कि हमेशा ही होता था। न विशेष जी ने अपने चेहरे से कुछ ज़ाहिर किया और ना ही मैंने। वो अपने मंसूबों की तरफ बढ़ रहे थे और मैं ये सोच रही थी कि जिस इंसान के दिल में मेरे प्रति ज़रा सा भी दया या प्रेम भाव नहीं है उस इंसान को उसकी करनी की सज़ा कैसे दूं? अपने पति को सज़ा देने का तो मैंने पूरी तरह फ़ैसला कर लिया था। इसके लिए अब मैं किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहती थी लेकिन मेरे सामने सबसे बड़ा सवाल ये था कि मैं उस इंसान को सज़ा दूं तो दूं कैसे? मुझे अपने जीवन का अब कोई मोह नहीं रह गया था। मैं चाहती तो उसी रात सोते में चाक़ू से उसका गाला घोंट कर उसको जान से मार देती लेकिन मेरे मन में ख़याल उभरा था कि ऐसे आदमी को भी उसी तरीके से मारा जाए जिस तरीके से इसने मुझे अपनी ज़िन्दगी से दूर करने का मंसूबा बनाया था।

विशेष जी ऑफिस चले गए थे। मैं जानती थी कि आज शाम जब वो आएंगे तो मुझसे कहेंगे कि उनके एक दोस्त ने हम दोनों को अपने यहाँ डिनर पर बुलाया है। उनके ऐसा कहने पर एक अच्छी पत्नी होने का सबूत देते हुए मुझे उनके साथ जाना ही पड़ेगा। उनका यही तो प्लान था और मैं भी उनके प्लान के अनुसार ही चलना चाहती थी। ख़ैर बड़ी मुश्किल से दिन गुज़रा और शाम हुई। जैसे जैसे वक़्त क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें कभी तेज़ होने लगतीं तो कभी थम सी जाती थीं।

शाम को विशेष जी ऑफिस से आए तो मैंने देखा था कि वो बड़ा खुश लग रहे थे। ज़ाहिर है कि वो ख़ुशी इसी बात की थी कि सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा उन्होंने प्लान बनाया था। आते ही उन्होंने पहले तो मुझे ख़ुशी से अपने गले लगाया और फिर मुझसे कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ जान क्योंकि हम दोनों को मेरे एक दोस्त ने अपने यहाँ डिनर पर बुलाया है। उनकी बात सुन कर मैंने स्वाभाविक रूप से कुछ सवाल किए और अपने रंग रूप की बात कर के उनसे ये भी कहा कि मुझे अपने साथ ले जाने से उनका दोस्त क्या सोचेगा उनके बारे में? मेरी इस बात पर उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के कुछ भी सोचने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता जान क्योंकि अब तुम मेरी जान हो और मेरे लिए सबसे ख़ास हो। मैं भला कैसे उनके प्लान को ख़राब कर सकती थी इस लिए मैंने ख़ुशी से उन्हें हाँ कह दिया था।

घर से क़रीब साढ़े आठ बजे हम दोनों निकले थे। विशेष जी के कहने पर मैंने शलवार शूट पहन रखा था और उसके साथ मेरे हाथ में मेरा एक छोटा सा पर्श था। सड़क पर आ कर मैंने विशेष जी से पूछा कि हम उनके दोस्त के यहाँ तक क्या किसी टैक्सी या ऑटो में जाएंगे तो उन्होंने कहा कि उनके दोस्त का घर ज़्यादा दूर नहीं है इस लिए हम दोनों पैदल ही चलते हैं। कम से कम इसी बहाने थोड़ा टहलना भी हो जाएगा। उनकी बात सुन कर मुझे थोड़ा अटपटा सा तो लगा पर फिर मुझे ये ख़याल आया कि हो सकता है कि वो किसी ऑटो या टैक्सी से इस लिए न जाना चाहते होंगे ताकि बाद में कोई ऑटो या टैक्सी वाला सबूत या गवाह न बन जाए पुलिस के लिए। मुझे अपना ये ख़याल पूरी तरह ठीक लगा, और इस ख़याल के साथ ही मैंने ये सोचा कि मेरे पति ने काफी कुछ सोच कर प्लान बनाया हुआ था। अगर मैंने उनकी डायरी न पढ़ी होती तो यकीनन मैं इस सबके बारे में कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

निशांत सोलंकी जिस जगह रहता था वहां पर न‌ई न‌ई इमारतें बन रहीं थी। सब एक ही तरह की इमारतें थी। निशांत वाली इमारत भी न‌ई ही थी किन्तु इसका काम आधा हो चुका था। तीन फ्लोर में से एक फ्लोर उसका था और बाकी के फ्लोर अभी खाली पड़े थे। इस तरफ का पूरा एरिया मुख्य सड़क से दाईं तरफ मुड़ने के बाद थोड़ा अंदर की तरफ पड़ता था। हालांकि मुख्य सड़क से यहाँ की इमारतें साफ़ दिखाई पड़ती थीं। सड़क के दूसरी तरफ भी वैसी ही इमारतें थी जिनमें कई इमारतों पर लोगों की रिहाइश हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि विशेष जी का दोस्त ऐसी जगह पर क्यों रहता होगा? एक पल के लिए तो मेरे ज़हन में ये ख़याल भी आ गया था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विशेष जी इस सुनसान एरिया में मुझे जान से मारने ही ले आए हों और उन्होंने अपना पहले वाला प्लान रद्द कर दिया हो? ख़ैर मेरे पूछने पर विशेष जी ने बताया कि निशांत सोलंकी कंपनी के काम के अलावा भी कुछ ऐसे काम करता है जिनमें उसकी अच्छी कमाई होती थी। इस जगह पर रहने की यही वजह है। विशेष जी ने मुझे निशांत की असलियत खुल कर नहीं बताई थी, जबकि मैं उनकी डायरी के द्वारा जान चुकी थी कि निशांत एक औरतबाज़ आदमी था और उसके लिए ऐसी जगह पर रहना बिलकुल ठीक ही था क्योंकि यहाँ रह कर वो अपने तरीके से कुछ भी कर सकता था।

विशेष जी अपनी डायरी में साफ़ लिख चुके थे कि वो निशांत के साथ दोहरा खेल खेल रहे थे। यानि एक तरफ तो वो उससे कह चुके थे कि वो अपनी बीवी को डिनर का बहाना करके उसके फ्लैट पर ले आएंगे और फिर बियर पिला कर उसको नशे में चूर कर देंगे। जब वो नशे में चूर हो जाएगी तो उसके साथ फिर कुछ भी किया जा सकता है। निशांत सोलंकी भी यही समझ रहा था लेकिन विशेष जी का असल मकसद तो कुछ और ही था। क्योंकि वो भी जानते थे कि निशांत जब मुझ कुरूप औरत को देखेगा तो ज़ाहिर है कि वो कितना भी औरतबाज़ हो लेकिन मेरे साथ कुछ भी करने का नहीं सोचेगा। यही सब सोच कर विशेष जी ने अपने असल मकसद को अंजाम देने के लिए कुछ और ही सोचा होगा। डायरी में उन्होंने ये नहीं लिखा था कि वो निशांत की हत्या कैसे करेंगे और कैसे उसकी हत्या में मुझे फंसाएँगे? शायद वो ये सब तब लिखने वाले थे जब वो सब कुछ करने के बाद निशांत की हत्या में मुझे फंसा देते। वो हत्या कैसे करेंगे और कैसे उस हत्या में मुझे फसाएँगे अगर इसके बारे में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा होता तो मुझे भी समझने में आसानी हो जाती कि मुझे इसके आगे क्या करना चाहिए था अपने बचाव के लिए या उन्हें सज़ा देने के लिए। ख़ैर मन में तो हज़ारों तरह के ख़याल उभर रहे थे लेकिन मैं विशेष जी के अगले क़दम का इंतज़ार कर रही थी।

मैं और विशेष जी सीढ़ियों के द्वारा निशांत के फ्लैट की तरफ बढ़ चले। मैं उनके चेहरे को कनखियों से देख लेती थी और उस वक़्त मुझे उनके चेहरे पर सोचो के हल्के भाव और हल्का पसीना उभरा हुआ महसूस हो रहा था। मैं समझ सकती थी कि कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है। अब तक उन्होंने जो कुछ किया था वो भले ही उनके लिए आसान रहा था लेकिन किसी की हत्या करना आसान काम नहीं हो सकता था। उन्होंने कोट पहना हुआ था और अपनी कोट की जेब में ही उन्होंने वो चाक़ू छुपा रखा था जिसे वो किचन से उठा कर लाए थे और ये मैंने खुद अपनी आँखों से देखा था। ख़ैर फ्लैट के दरवाज़े पर पहुंच कर विशेष जी रुके और मुझसे बोले कि निशांत को शराब पीने की आदत है इस लिए पहले वो अंदर जाएंगे और अंदर जा कर देखेंगे कि निशांत इस वक़्त किस कंडीशन में है? अगर वो नशे में हुआ तो वो मुझे अंदर नहीं ले जाएंगे क्योंकि उनके अनुसार निशांत नशे में बहुत गन्दी गन्दी बातें करता है और वो नहीं चाहते कि मेरी मौजूदगी में वो कोई गन्दी बातें करे।

विशेष जी की बातें सुन कर पता नहीं क्यों मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि वो ख़ुद पहले जाने की बात इसी लिए कर रहे हैं तांकि वो अकेले अंदर जाएं और निशांत की उस चाक़ू से हत्या कर दें। उसके बाद वो मुझे अंदर बुलाएँगे और जब मैं अंदर जाऊंगी तो वो चुपके से बाहर निकल कर दरवाज़े को या तो बाहर से बंद कर देंगे या फिर यहाँ से भाग जाएंगे। उसके बाद ज़ाहिर है कि हत्या का इल्ज़ाम मेरे ऊपर ही आएगा। इसके लिए संभव है कि वो पुलिस को इस हत्या की सुचना दे दें। इस ख़याल के आते ही मैं अंदर ही अंदर बुरी तरह कांप गई थी। दिल ज़ोरों से धड़कनें लगा था। फिर एकदम से मेरे ज़हन में ख़याल आया कि क्यों न उनके जाने के बाद मैं भी चुपके से अंदर जाऊं और देखूं कि वो क्या करते हैं?

मैंने विशेष जी की बातें सुन कर हाँ में सिर हिलाया तो वो दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गए। मैं ये देख कर थोड़ा चौंक गई थी कि दरवाज़ा पहले से ही खुला हुआ था। इसका मतलब उन्होंने निशांत से पहले ही बोल दिया रहा होगा कि वो दरवाज़ा खुला ही रखें। वैसे भी निशांत के अलावा इस इमारत में कोई रहता तो था नहीं। ख़ैर विशेष जी अंदर दाखिल हुए और दरवाज़े को ऐसे ही भिड़ा कर अंदर की तरफ चले गए। उनके ज़हन में दूर दूर तक ये बात नहीं थी कि मैं उनकी असलियत के बारे में सब जानती हूं और उनके पीछे अंदर भी आ सकती हूं। उनके जाते ही मैं भी अंदर दाखिल हो ग‌ई।

अंदर एक मध्यम साइज़ का ड्राइंग रूम था जहां पर कुछ सोफे रखे हुए थे। उसके बगल से एक कमरा था। दूसरी तरफ एक और कमरा था जो कि उस वक़्त बंद था। ड्राइंग रूम में बाएं तरफ थोड़ी दूरी पर एक और छोटा सा हॉल था जहां पर एक आयताकार टेबल थी और उसके चारो तरफ कुर्सियां रखी हुईं थी। बाहर वाले दरवाज़े से अंदर आने के बाद क़रीब चार फिट चौड़ी गैलरी पड़ती थी जिसकी लम्बाई मुश्किल से दस मीटर रही होगी। यानि अगर बाहर से कोई दबे पाँव अंदर आए तो अंदर वाले को न तो दिखेगा और ना ही उसे पता चल सकेगा।

उस गैलरी से चल कर जब मैं अंदर की तरफ दबे पाँव आई तो मेरे कानों में बहुत ही धीमी आवाज़ सुनाई पड़ी जो कि निशांत की थी। वो विशेष जी से कह रहा था कि वो अकेला क्यों आया है, बल्कि भाभी जी को साथ में क्यों नहीं ले आया? उसके सवाल पर विशेष जी ने उसे बताया कि वो मुझे ले कर ही आए हैं और मैं इस वक़्त बाहर ही हूं। मैंने थोड़ा सा उस तरफ झाँक कर देखा तो मेरी नज़र टेबल के पास ही खड़े विशेष जी पर पड़ी। उनका एक हाथ कोट की जेब में था और वो कुर्सी पर बैठे निशांत को ही देख कर बातें कर रहे थे। मेरी तरफ निशांत की पीठ थी जबकि विशेष जी मुझे बगल से दिख रहे थे। मेरा दिल बड़े ज़ोरों से धड़क रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे वक़्त में मुझे क्या करना चाहिए? मैं अच्छी तरह जानती थी कि विशेष जी अपने उस सीनियर की हत्या करने वाले थे और फिर उसकी हत्या में मुझे फंसा देने वाले थे।

सहसा मेरी नज़र बाएं तरफ पड़ी। उस तरफ एक कमरा था, जबकि दूसरा कमरा उस तरफ था जहां पर वो लोग मौजूद थे। मुझे समझ में तो कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं लेकिन मैं यूं ही उस कमरे की तरफ बड़ी सावधानी से खिसक चली थी। कुछ ही पलों में मैं उस कमरे में थी। कमरे में आई तो देखा बड़े से कमरे में एक तरफ बेड बिछा हुआ था और एक तरफ एक आलमारी रखी हुई थी। आलमारी के बगल से एक टेबल था जिसमें कई सारे खंधे थे। कमरे में पूरी तरह प्रकाश फैला हुआ था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस कमरे में आख़िर मैं आई किस लिए थी, जबकि मैं ये अच्छी तरह जानती थी कि दूसरी तरफ मेरा पति निशांत सोलंकी की हत्या कर के मुझे फंसा देने वाला था।

उस वक़्त पता नहीं मेरे ज़हन में क्या आया था कि मैं टेबल के पास गई और एक एक कर के सभी खंधों को खोल कर देखने लगी। मैं खुद नहीं जानती थी कि मैं उस वक़्त उन खंधों में क्या खोज रही थी, लेकिन उस वक़्त मेरे हड़बड़ाए हुए ज़हन में जो आ रहा था मैं वही करती जा रही थी। इतनी सावधानी ज़रूर बरत रही थी कि कोई आवाज़ न हो क्योंकि आवाज़ होने से मेरे लिए ही ख़तरा हो जाना था। टेबल में दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे तीन तीन करके खंधे थे। दाएं तरफ के सभी खंधे खोल कर देखने के बाद जैसे ही मैंने बीच वाली लाइन के ऊपर वाले खंधे को खोला तो मैं एकदम से जाम सी हो गई। मेरी नज़र उस खंधे में रखे पिस्तौल को देख कर ठहर गई थी और मेरी सारी हरकतों को जैसे एक ही पल में ब्रेक सा लग गया था।

पिस्तौल देख कर कुछ देर तक तो मैं भौचक्की सी खड़ी ही रह गई थी, फिर जैसे ज़हन सक्रिय हुआ तो एकदम से मेरे दिमाग़ में ख़याल आया कि इस पिस्तौल से मैं अपने पति को सज़ा दे सकती हूं। ख़याल अच्छा भी था और बेहद ख़तरनाक भी। मेरा दिल ज़ोरों से धड़के जा रहा था लेकिन मेरे अंदर डर और घबराहट जैसी बात नहीं आई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मुझे न तो अपने जीवन की परवाह थी और ना ही किसी और के। दिलो दिमाग़ में तो बस एक ही हसरत रह गई थी कि उस इंसान को ख़त्म कर दूं जिसने प्यार के नाम पर मेरे जज़्बातों से खेला था और जिसके लिए मैंने इतना कुछ किया था। उसके दिल में मेरे प्रति ज़रा सा भी कहीं कोई एहसास नहीं था। अरे! एहसास को छोड़ो, उसने तो मुझ पर ज़रा सा तरस भी नहीं खाया था।

पिस्तौल को देख कर और ये सब सोच सोच कर मेरे अंदर के जज़्बात एक बार फिर से बुरी तरह मचल उठे थे। मैंने टेबल के उस खंधे से पिस्तौल को हाथ में लिया। ठंडी पिस्तौल हाथ में आते ही मेरे जिस्म का रोयां रोयां एक अजीब से एहसास से कंपकंपा गया। मैंने आँखें बंद कर के दो तीन बार गहरी गहरी साँसें ली और चुपके से कमरे के दरवाज़े की तरफ चल पड़ी।

कमरे के दरवाज़े से झाँक कर मैंने उन दोनों की तरफ देखा तो इस बार चौंक ग‌ई थी मैं, क्योंकि इस बार विशेष जी के हाथ में चाक़ू था और उन्होंने उस चाक़ू वाले हाथ को अपने पीछे किया हुआ था। मैं समझ गई कि अब वो निशांत की हत्या करने का मन बना चुके हैं। इससे पहले कि वो गर्दन घुमा कर इस तरफ देखते मैं जल्दी से निकल कर गैलरी में आ कर छुप ग‌ई। मेरी धड़कनें बुरी तरह धड़कते हुए मेरी कनपटियों पर चोट कर रहीं थी। मैं अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को अभी काबू ही कर रही थी कि तभी किसी के आने की पदचाप मेरे कानों में पड़ी तो मैं थोड़ा और पीछे खिसक कर छुप ग‌ई। कुछ ही पलों में मैंने देखा विशेष जी चाकू वाला हाथ अपनी कोट में डाले उसी कमरे की तरफ बढ़ गए जिस कमरे से अभी मैं निकली थी। मुझे समझ न आया कि वो उस कमरे में क्यों गए थे? अभी मैं ये सोच ही रही थी कि तभी विशेष जी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी। वो निशांत को आवाज़ दे कर कमरे में आने को कह रहे थे। उनके आवाज़ देने पर निशांत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। वो बोल रहा था अब क्या है यार? अपनी बीवी को आख़िर कब मेरे पास ले कर आओगे तुम? मेरा सारा नशा उतर जाएगा तब ले कर आओगे क्या? निशांत की इस बात पर विशेष जी ने कहा कि मेरी बीवी तो आपके कमरे में ही है सर। असल में मैंने उसे सब कुछ साफ़ साफ़ बता दिया था। जब मैंने उससे ये कहा कि उस सबके बदले मेरा प्रमोशन हो जाएगा और उसके साथ साथ ज़्यादा सैलरी, नया फ़्लैट और एक कार भी मिल जाएगी आने जाने के लिए तो वो बेहद खुश हो गई थी। मैंने उसे समझाते हुए कहा था कि बस एक ही बार की तो बात है जान उसके बाद तो हमारी ज़िन्दगी ऐशो आराम वाली हो जाएगी। मेरी बात सुन कर वो भी ख़ुशी से इस सबके लिए राज़ी हो गई थी। विशेष जी की ये बातें सुन कर निशांत बोला कि तो तुमने अब तक मुझे धोखे में क्यों रखा हुआ था भाई? निशांत की इस बात पर विशेष जी ने उससे कहा कि वो उसे सर्प्राइज़ देना चाहते थे।

निशांत सोलंकी ख़ुशी से झूम उठा था इस लिए बिना कुछ सोचे समझे वो शराब के नशे में झूमते हुए फ़ौरन ही अपने कमरे की तरफ भागता हुआ आया था। इधर मेरी धड़कनें और भी बुरी तरह से ये सोच कर बढ़ गईं थी कि मेरा पति उसकी हत्या उसी के कमरे में ये सोच कर करना चाहता है ताकि बाद में सबको यही लगे कि मैं उसके कमरे में थी और वहीं पर मैंने उसकी हत्या की थी।

निशांत जैसे ही मेरी आँखों के सामने से गुज़रा तो मैं भी जल्दी से आगे बढ़ चली। हलांकि उस वक़्त मैं चाहती तो वहां से चुप चाप अपने फ़्लैट पर लौट जाती और निशांत की हत्या के बाद अगर उसकी हत्या का इल्ज़ाम मेरे ऊपर आता तो मैं पुलिस को साफ़ साफ़ बता देती कि असली हत्यारा मेरा पति ही है और इसका सबूत उसके बैग में मौजूद उसी की लिखी डायरी है। डायरी मिलने के बाद पुलिस को सब कुछ समझ में आ जाता और मेरे ऊपर कोई इल्ज़ाम नहीं लगता लेकिन मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं करना चाहती थी। मैं उस जैसे इंसान का अपने हाथों से खून करना चाहती थी। उस बेगैरत इंसान को अपने हाथों से उसके किए की सज़ा देना चाहती थी। उसके लिए अगर मुझे अदालत में मौत की सज़ा भी सुना दी जाती तो मुझे कोई ग़म नहीं होता।

मैं अभी कमरे के थोड़ा ही पास पहुंची थी कि तभी मेरे कानों में एक अजीब सी चीख़ सुनाई पड़ी। ऐसा लगा जैसे किसी ने किसी का गला घोंट दिया हो। दरवाज़े पर जैसे ही मैं पहुंची तो मैंने देखा कि विशेष जी की पीठ मेरी तरफ थी और वो निशांत के पेट में चाक़ू का वार किए हुए थे। ये देख कर पहले तो मैं एकदम से घबरा ही गई थी लेकिन फिर जल्दी ही खुद को सम्हाला। एक बेक़सूर की हत्या कर के उस हत्या में वो इंसान मुझे फ़साने वाला था। मारे गुस्से के मेरा जिस्म कांपने लगा था। निशांत को चाकू मारने के बाद वो उसी की तरफ देखते हुए पीछे दरवाज़े की तरफ उल्टे क़दमों से खिसकने लगा था। मैंने पिस्तौल वाला हाथ ऊपर उठाया और उस पर गोली चला दी। दो बार तेज़ आवाज़ हुई और दो गोलियां विशेष नाम के उस इंसान की पीठ पर घुस गईं। उसके जिस्म से खून बहने लगा था। मेरा निशाना ठीक तो नहीं था लेकिन फिर भी गोलियां उसकी पीठ के अलग अलग हिस्से में ज़रूर जा लगीं थी।

दर्द से कराहते हुए विशेष पीछे की तरफ पलटा और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी आँखें फ़ैल ग‌ईं। जैसे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उस वक़्त वहां हो सकती हूं और उसे इस तरह गोली मार सकती हूं। वो लड़खड़ाते क़दमों से मेरी तरफ बढ़ने लगा। ये देख कर मैं थोड़ा घबरा गई। हालांकि मेरी हवा तो पहले ही शंट हो चुकी थी और मेरे हाथ पाँव कांपने लगे थे। अभी वो दरवाज़े के पास ही पंहुचा था कि वो बुरी तरह लड़खड़ा कर वहीं पर गिर गया। पेट के बल ज़मीन पर गिरे हुए उसने अपना एक हाथ उठा कर मेरी तरफ देखा। कुछ कहने के लिए उसने कोशिश की लेकिन आवाज़ ठीक से नहीं निकल रही थी।

"तेरे जैसे नीच इंसान को अपने हाथों सज़ा दे कर मेरी रूह को बड़ा सुकून मिला है।" मैं उसकी तरफ देखते हुए सहसा गुर्राते हुए बोल उठी थी____"वास्तव में ख़ुशी क्या होती है ये अब जाना है मैंने। जो प्यार और जो खुशियां तूने मुझे दी थीं वो सब इस ख़ुशी के आगे फीकी पड़ ग‌ईं हैं। जानता है क्यों? क्योंकि जो प्यार और जो खुशियां तू मुझे दे रहा था उनमें दुनिया भर का फ़रेब शामिल था। ख़ैर अब तू मरने के बाद भी ये सोचता रहेगा कि आख़िर तेरे साथ ऐसा कैसे हो गया?"

मेरी बातें सुन कर उस बेगैरत इंसान ने कुछ कहने की कोशिश तो की लेकिन उसके होठों से साफ़ साफ़ कोई शब्द नहीं निकल सके और फिर कुछ ही पलों में उसने वहीं पर दम तोड़ दिया। उसके मर जाने के बाद मैंने कमरे के अंदर टेबल के पास गिरे निशांत सोलंकी की तरफ देखा। खून से लथपथ था वो लेकिन जान अभी भी बाकी थी उसमें। मैं हिम्मत कर के आगे बढ़ी तो उसने अपना हाथ मेरी तरफ उठा कर कुछ कहा लेकिन उसकी आवाज़ मेरे कानों में ठीक से नहीं पड़ी।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 13
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निशांत सोलंकी के पेट में दो बार चाक़ू मारा था मेरे पति ने जिसकी वजह से अब तक वो अपने ही खून में नहा चुका था। कमरे में जो टेबल रखा था उसी में वो पीठ टिका कर और अपने पैरों को लम्बा कर के बैठा हुआ था। मेरी तरफ देखते हुए वो अपना एक हाथ उठा कर बार बार कुछ कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं उस सबकी वजह से डर तो रही थी लेकिन मैं जानना चाहती थी कि आख़िर वो कह क्या रहा है? इस लिए हिम्मत कर के थोड़ा और उसकी तरफ बढ़ी।

"ये...सब...क्या था?" निशांत ने अटकते हुए और दर्द से कराहते हुए मुझसे कहा____"कौन हो तुम और विशेष को क्यों मारा तुमने?"

मैं समझ गई थी कि वो उस सबके बारे में मुझसे पूछ रहा था। शायद वो इसके पहले समझने की कोशिश कर रहा था कि अचानक से वो सब क्यों हो गया था? उसके पूछने पर मैंने उसे बताया कि विशेष मेरा पति था और मैंने उसको इस लिए मारा क्योंकि वो उसकी हत्या के इल्ज़ाम में मुझे फंसा देना चाहता था। कहने का मतलब ये कि संक्षेप में मैंने निशांत को सारी बातें बता दी थी। मेरी बातें सुनने के बाद निशांत आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगा था। उसकी साँसें उखड़ रहीं थी। ज़ाहिर था कि उसके जीवन का आख़िरी वक़्त आ चुका था। उसने बड़ी मुश्किल से अटकते हुए मुझसे कहा कि उसने अपने जीवन में अपने फ़ायदे के लिए जाने कितनी ही लड़कियों और औरतों के साथ बुरा किया है, इस लिए अब वो अपने आख़िरी वक़्त में एक अच्छा काम करना चाहता है।

मुझे निशांत की बात समझ नहीं आई थी लेकिन जब उसने मुझसे पिस्तौल मांगते हुए कहा कि मैं उसके फ्लैट से अपने सारे सबूत मिटा कर चली जाऊं तो मैं बुरी तरह चौंक पड़ी थी। एक अंजान ब्यक्ति मुझसे ऐसा कैसे कह सकता था? भला वो ये क्यों चाहता था कि मैं उसके फ़्लैट से अपने सारे सबूत मिटा कर चली जाऊं? जब कुछ देर तक मैं उसकी तरफ हैरानी से देखती ही रही तो उसने अटकते हुए फिर से मुझसे वही सब कहा। मैंने अपने दिलो दिमाग़ को बड़ी मुश्किल से शांत किया और उसे पिस्तौल देने का सोचा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल आया कि कहीं वो मुझसे पिस्तौल ले कर मुझे गोली ही न मार दे? अपनी इस शंका को जब मैंने उससे ज़ाहिर किया तो उसके होठों पर बड़ी ही फीकी मुस्कान उभरी थी। उसने कहा कि अब ऐसे वक़्त में मुझे गोली मार देने से भला उसे क्या हासिल हो जाएगा? सच तो ये है कि जिसने गुनाह किया था उसे सज़ा मिल चुकी है और जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ दुःख ही सहे हैं उसे क्यों किसी की हत्या के लिए जेल जाना पड़े?

निशांत की बातें सुन कर मुझे एहसास हुआ कि वो यकीनन सच कह रहा है। यानि वो मुझे सच में चले जाने को कह रहा था और चाहता था कि दो दो लोगों की हत्या का इल्ज़ाम मेरे सिर पर न आए। उसने मुझसे कहा कि मैं अपने दुपट्टे से पिस्तौल पर से अपने निशान मिटाऊं और फिर दुपट्टे से ही पकड़ कर उस पिस्तौल को उसके पास रख दूं। उसके बाद मैं उसके फ्लैट में जहां जहां गई थी और जिस जिस चीज़ को मैंने छुआ था उन सब पर से अपने निशान उसी दुपट्टे से मिटा दूं। यहाँ तक कि अपने निशान मिटाते मिटाते ही मैं उसके फ्लैट से बाहर चली जाऊं।

अपने जीवन में मैंने पहली बार इतना संगीन और इतना ख़तरनाक काम किया था। जीने की चाह तो नहीं थी लेकिन निशांत के कहने पर मज़बूरी में मुझे वो सब करना ही पड़ा। मैंने दुपट्टे से साफ़ कर के पिस्तौल को निशांत के पास रख दिया था जिसे उसने हाथ बढ़ा कर उठा लिया था। पिस्तौल ले कर उसने मेरी तरफ देखा और फिर दरवाज़े के पास पेट के बल मृत पड़े मेरे पति को। कुछ पलों तक मैं उसे देखती रही और जब वो मेरे पति की तरफ अपलक देखता ही रह गया तो मैं समझ गई कि अब उसके अंदर से उसके प्राण निकल चुके हैं।

उसके बाद मैंने हर जगह से अपने निशान मिटाने शुरू कर दिए थे। मैं याद करती जा रही थी कि कहां कहां मैं गई थी और किन किन चीज़ों को मैंने छुआ था? मैंने उस टेबल और उसके सभी खन्धों से भी अपने निशान मिटाए। हालांकि उसी टेबल में निशांत पीठ के बल टिका हुआ था, इस लिए उस पर से अपने निशान मिटाने में मुझे बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ा था। उसके बाद मैं दुपट्टे से ही अपने पैरों के निशान मिटाते हुए गैलरी में आई और गैलरी से निशान मिटाते हुए बाहर आ ग‌ई। सीढ़ियों के पास पहुंच कर मैं ठहर गई। मैंने इस बात को अच्छी तरह याद रखा था कि मेरे निशान कहीं पर छूटने न पाएं। हालांकि निशान मिटाने के चक्कर में संभव था कि विशेष के निशान भी गैलरी और सीढ़ियों पर से मिट गए होंगे लेकिन निशांत के फ्लैट में बाकी जगहों पर तो उसके निशाने मौजूद ही रहने थे।

निशांत के फ्लैट से मैं पैदल ही अपने घर तक आई थी। अपने घर आ कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई थी। बाथरूम में जा कर नहाई और अपने कपड़ों को धो कर फैला दिया। उसके बाद मैं कमरे में आ कर चुप चाप बेड पर लेट गई थी। बेड पर लेटी तो पीठ पर मुझे कुछ चुभा, मैंने उठ कर देखा। वो मेरा मोबाइल था जो बेड पर ही पड़ा हुआ था। मोबाइल को देख कर मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अच्छा हुआ कि मैं अपना मोबाइल घर में ही भूल गई थी, वरना अगर वो मेरे साथ ही रहता तो पुलिस को उसकी लोकेशन से पता चल जाता कि मैं निशांत के फ्लैट पर उस वक़्त थी जब निशांत और मेरे पति की हत्या हुई थी। मैंने मन ही मन इसके लिए ऊपर वाले का धन्यवाद दिया। कभी कभी किसी चीज़ की ग़लती या भूल भी हमारे लिए फायदेमंद ही साबित होती है और इसका सबसे बड़ा सबूत मेरा अपना मोबाइल था। अपने पति के साथ जाते वक़्त जल्दी जल्दी में मैं अपना मोबाइल ले जाना भूल गई थी। उसकी डायरी ने मुझे इतना ज्ञान तो दे ही दिया था कि ऐसे मामलों में मोबाइल की क्या अहमियत होती है।

उस रात मैं उसी सब के बारे में सोचती रही थी। मेरी आँखों में नींद का नामो निशान तक नहीं था। इतना कुछ होने के बाद भला मुझे नींद भी कैसे आ सकती थी? दुनियां जहान की बातें मेरे मन में चल रहीं थी। दिल को एक सुकून सा था, हालांकि वो सुकून भी उस दुःख दर्द के आगे बहुत ही छोटा था लेकिन कहीं न कहीं इस बात का एहसास कर के मैं खुद को तसल्ली दे रही थी कि गुनहगार को अपने हाथों से सज़ा दे कर मैंने कोई पाप नहीं किया है। निशांत के कहने पर मैंने भले ही अपने सारे सबूत मिटा दिए थे लेकिन अगर इसके बावजूद पुलिस या कानून मुझे उस सबके लिए दोषी मान कर सज़ा दे देता तो मुझे उसका कोई ग़म नहीं होता।

अब दिल में जीने की कोई हसरत नहीं रह गई थी। रह रह कर आँखों से आंसू बहने लगते और फिर माँ बाबू जी का चेहरा मेरी आँखों के सामने उजागर हो जाता। दिल में एक हूक सी उठती और मेरी अंतरात्मा तक को हिला देती।

रात में जाने कौन से पहर मेरी आँख लग गई थी। दुबारा जब आँखें खुलीं तो दिन चढ़ गया था। पिछली रात की सारी बातों का ख़याल आते ही मैं एकदम से गुमसुम सी हो गई। कुछ देर तक उसी सब के बारे में सोचती रही उसके बाद मैंने सोचा कि पुलिस को देर सवेर उन दोनों की हत्या की ख़बर मिल ही जाएगी और वो किसी न किसी तरह मेरे घर भी पहुंच जाएगी, इस लिए मुझे उसके लिए ख़ुद को तैयार रखना होगा।

सुबह के दस बज रहे थे। मैंने अपने बाबू जी को फ़ोन लगाया और उन्हें बताया कि उनके दामाद पता नहीं कहां चले गए हैं। मैंने उस वक़्त बाबू जी को सच बताना सही नहीं समझा था। मेरे ज़हन में बार बार निशांत की बातें उभर आतीं थी। वो मुझे उन हत्याओं से बचाना चाहता था। मैंने सोचा अगर ऐसा संभव है तो चलो ये भी देख लेती हूं। इतना तो मैं भी समझती थी कि मेरे पति की डायरी अपने आप में ही इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि वो सब क्यों और किसने किया होगा?

जैसा कि मुझे उम्मीद थी, एक घंटे बाद पुलिस मेरे घर आ धमकी थी। उसने मुझे विशेष और निशांत की हत्या के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया था। पुलिस थाने में उनके पूछने पर मैंने बार बार यही कहा कि मैंने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि मुझे तो ख़ुद ही उनके द्वारा इस सबका पता चला है।

पता नहीं कौन सा भूत सवार हो गया था मुझ पर कि मैं भी अब वैसा ही करना चाहती थी जैसा मेरा पति मेरे साथ कर रहा था। मुझसे महिला पुलिस ने बड़ी शख़्ती से बार बार पूछा था लेकिन मैंने जुर्म कबूल नहीं किया। यहाँ तक कि मैंने पुलिस को अपने पति की डायरी के बारे में भी नहीं बताया था। असल में मैं चाहती थी कि पुलिस उस डायरी तक ख़ुद ही पहुंचे। पुलिस को लगना चाहिए था कि अगर मुझे किसी चीज़ का पता होता या मेरे मन में ऐसी वैसी कोई बात होती तो मैं ख़ुद ही उनसे उस डायरी का ज़िक्र करती।

पुलिस ने मुझसे नंबर ले कर मेरे बाबू जी को भी फ़ोन कर के इस सबके बारे में सूचित कर दिया था। मेरे बाबू जी मेरे भाई को ले कर दूसरे दिन ही पुलिस थाने पहुंच गए थे। मुझे सलाखों में बंद देख कर मेरे बाबू जी और मेरा छोटा भाई बेहद दुखी हो गए थे। वो बार बार पुलिस वालों से कह रहे थे कि उनकी बेटी ने कुछ नहीं किया है। ख़ैर लम्बी पूछतांछ के बाद मुझे तीसरे दिन अदालत में पेश किया गया। अदालत में दोनों पक्षों के वकील जज के सामने अपनी अपनी तरफ से दलीले देने लगे थे। पब्लिक प्रासीक्यूटर अपनी दलील में यही कह रहा था कि मेरा निशांत के साथ नाजायज़ सम्बन्ध था और जब उसने मुझे ब्लैकमेल करना शुरू किया तो मैंने उसकी ये सोच कर हत्या कर दी कि ऐसे संबंधों की वजह से कहीं मेरी ज़िन्दगी बर्बाद न हो जाए। दूसरी दलील में उसका कहना था कि मैंने अपने पति की हत्या इस लिए की क्योंकि मेरे पति को मेरे और निशांत के सम्बन्धों का पता चल गया था, और जब मुझे उस सबकी वजह से कुछ और ना सूझा तो मैंने अपने पति को भी जान से मार डाला। जबकि मेरा वकील ये कह रहा था कि एक औरत भला दो हट्टे कट्टे मर्द की हत्या एक साथ अलग अलग हथियारों से कैसे कर सकती है? अदालत में फॉरेंसिक रिपोर्ट पेश कर दी गई थी और उस रिपोर्ट में साफ़ लिखा था कि दोनों ब्यक्तियों के जिस्म पर कुछ ही मिनटों के अंतर में घाव हुए थे। विशेष को क्योंकि गोली लगी थी इस लिए वो जल्दी ही मर गया था जबकि निशांत चाक़ू लगने के बावजूद कुछ देर तक ज़िंदा रहा था लेकिन दोनों पर जब वार किया गया था तो उसमें बस कुछ ही समय का अंतर था। चाक़ू पर विशेष के और पिस्तौल पर निशांत की उंगलियों के निशान पाए गए थे। कहने का मतलब ये कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार भी मुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं लग रहा था।

पुलिस को निशांत के फ्लैट में कहीं पर भी मेरे निशान नहीं मिले थे इस लिए मेरे वकील का पक्ष मजबूत था। सिर्फ शक के आधार पर फ़ैसला नहीं सुनाया जा सकता था। लंच के बाद जब अदालत दुबारा शुरू हुई तो पुलिस ने अदालत के सामने एक ऐसा सबूत पेश किया जिसका मुझे बड़ी शिद्दत से इंतज़ार था और वो सबूत मेरे पति की डायरी थी। जज साहब की अनुमति से मेरे वकील ने उस डायरी को खोला और उसमें जो कुछ लिखा था उसे ऊँची आवाज़ में सबको सुनाना शुरू कर दिया। जब तक वकील उस डायरी को पढ़ता रहा तब तक अदालत में पैना सन्नाटा छाया रहा। यहाँ तक कि मेरा वकील जब उस डायरी को पढ़ कर चुप हुआ तब भी कुछ देर तक सन्नाटा ही छाया रहा। हर कोई डायरी में लिखी इबारत को सुन कर आश्चर्य चकित था।

मेरे पति की डायरी ने अदालत के सामने सब कुछ साफ़ कर दिया था। हालांकि डायरी में लिखी बातों के बाद पब्लिक प्रासीक्यूटर ने फिर से दलील दी कि मुझे किसी तरह अपने पति की डायरी से पता चल गया था कि मेरा पति असल में मेरे साथ क्या करने वाला था इस लिए मैंने उसी के प्लान पर अपना गेम खेल कर उन दोनों की हत्या कर दी। पब्लिक प्रासीक्यूटर अदालत में बस हवा में ही तीर चला रहा था। अपनी बात को साबित करने के लिए उसके पास ना तो कोई गवाह था और ना ही कोई सबूत। पुलिस ने अदालत में मेरे मोबाइल फ़ोन की लोकेशन और उसके कॉल रिकॉर्ड की सूची भी पेश की थी। उसमें ये ज़रूर दर्ज़ था कि मेरे और निशांत के मोबाइल के द्वारा एक दूसरे को सन्देश भेजे जाते रहे थे लेकिन कॉल पर कभी कोई बात नहीं की गई थी। मेरे मोबाइल की लोकेशन भी यही कहती थी कि मैं कभी भी निशांत के फ़्लैट पर नहीं गई थी। ये सारी चीज़ें मेरी बेगुनाही के सबूत थे और इस बात के भी कि सब कुछ मेरे पति के द्वारा ही किया गया था। इस लिए अदालत ने मुझे बेगुनाह मान कर रिहा कर दिया था।

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रूपा के चुप होते ही कमरे में ख़ामोशी छा गई थी। उसकी माँ अभी भी जैसे अपनी बेटी की कहानी में ही खोई हुई थी। तभी कमरे में रूपा का छोटा भाई अभिलाष दाखिल हुआ। वो रूपा से तीन साल छोटा था। कमरे के दरवाज़े पर खड़ा वो चुप चाप अपनी बहन की बातें सुन रहा था। सारी बातें सुनने के बाद वो भी बुरी तरह अचंभित हुआ था और जब रूपा चुप हो गई तो वो कमरे में दाखिल हो कर उन दोनों के पास आ गया था। अपने भाई को देख कर पहले तो रूपा चौंकी लेकिन फिर सामान्य हो गई थी।

"माफ़ करना दीदी।" अभिलाष ने रूपा के सामने खड़े हो कर कहा____"मैंने छुप कर आपकी सारी बातें सुन ली हैं लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि आपने अपने हाथों से ऐसे घटिया आदमी को सज़ा दी जिसने आपके बारे में कभी ज़रा सा भी नहीं सोचा।"

"सुन तो लिया है तुमने।" रूपा की माँ ने अभिलाष से कहा____"लेकिन ये बातें बाहर किसी को कभी भी मत बताना।"

"मैं बच्चा नहीं हूं माँ जो ऐसी बातें सबको बताता फिरुंगा।" अभिलाष ने कहा____"मुझे भी पता है कि ऐसी बातें किसी को भी नहीं बताई जातीं। यहाँ तक कि ऐसी बातें अपने घर में अपने सामने भी नहीं करनी चाहिए। मेरी दीदी ने जो किया वो सही किया है मां। ऐसे इंसान को ऐसी ही सज़ा मिलनी चाहिए थी। उस समय कितना खुश हुआ था मैं कि मेरी दीदी की ज़िन्दगी से दुःख दर्द के दिन अब हट गए हैं। सच तो आज पता चला कि वो सब उस नीच आदमी का एक घिनौना षड़यंत्र था। अच्छा हुआ कि उसके ग़लत कर्मों की सज़ा दीदी के द्वारा मिल गई उसे।"

"चल अब तू जा यहाँ से।" रूपा की माँ ने उससे कहा____"और अपनी दीदी को आराम करने दे।"
"हां जाता हूं मां।" अभिलाष ने कहा____"लेकिन अपनी दीदी से कुछ पूछना चाहता हूं।"

"मुझसे क्या पूछना चाहता है मेरा भाई?" रूपा ने अभिलाष की तरफ देखते हुए फीकी सी मुस्कान के साथ कहा।

"मैंने पढ़ा है कि पुलिस और फॉरेंसिक वाले ऐसे मामलों में बड़ी बारीकी से जांच पड़ताल करते हैं।" अभिलाष ने कहा____"मेरा मतलब है कि वो लोग हर एंगल से देखते हैं कि गोली चलाने वाले ने किस एंगल से गोली चलाई और जिस पर चलाई उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया हुई? आपने बताया कि विशेष को आपने कमरे के बाहर से गोली मारी थी जबकि पुलिस को वो पिस्तौल निशांत के हाथ में मिला था और उसने यही माना कि उसी ने विशेष पर गोली चलाई थी। अब सवाल है कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस या फॉरेंसिक को असल एंगल का पता ही न चल पाया हो?"

"तू सही कह रहा है भाई।" रूपा ने कहा____"सच जानने के बाद हर आदमी इसी तरह से सोचेगा लेकिन अदालत में रिपोर्ट के अनुसार यही साबित हुआ था कि गोली निशांत ने ही चलाई थी। हालांकि उस रिपोर्ट के बारे में जान कर मैं भी ये सोच कर मन ही मन हैरान हुई थी कि ऐसा कैसे हुआ होगा? क्योंकि असल में तो गोली मैंने ही उस कमीने इंसान को मारी थी। अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर ने जब पुलिस से एंगल और हाइट के बारे में सवाल किया था तो उसने अपनी तहक़ीकात में निकले निष्कर्ष के अनुसार यही बताया था कि विशेष निशान्त को चाक़ू मारने के बाद पलट कर कमरे से जाने लगा था। उसकी समझ में उसने निशांत का काम तमाम कर दिया था लेकिन निशांत उस वक़्त मरा नहीं था, बल्कि जीवित ही था। अपने क़ातिल को इस तरह जाते देख निशांत ने अपने पीछे ही रखे टेबल के खंधे से पिस्तौल निकाला और विशेष पर पीछे से गोली चला दी। विशेष को शायद इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं था कि निशांत के पास पिस्तौल भी हो सकती है और वो उस पिस्तौल से उसको गोली मार देगा। ख़ैर दो दो गोली लगते ही विशेष दरवाज़े के पास ही पेट के बल जा गिरा था। अब क्योंकि पुलिस को निशांत के हाथ से ही वो पिस्तौल बरामद हुआ था इस लिए पब्लिक प्रासीक्यूटर ज़्यादा कुछ कह नहीं पाया था, जिसके चलते अदालत ने पुलिस की थ्योरी को ही सच माना। कहीं न कहीं प्रासीक्यूटर भी ये समझता रहा था कि एक अकेली औरत के लिए दो दो हट्टे कट्टे आदमियों का अलग अलग हथियारों से खून करना संभव नहीं हो सकता था। ख़ैर अदालत ने इसी बात को सच मान कर फ़ैसला सुनाया कि विशेष अपनी कुरूप पत्नी को अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए निशांत की हत्या करने उसके फ़्लैट पर गया लेकिन किसी वजह से बात बिगड़ गई जिसके चलते दोनों के बीच बात विवाद इतना बढ़ गया कि एक ने दूसरे को चाकू मारा तो दूसरे ने पीछे से पहले वाले को गोली मार दी। निशांत के फ़्लैट पर मेरे होने के कोई सबूत नहीं पाए गए इस लिए मेरा उन दोनों की हत्या में कोई हाथ नहीं था। अब भला किसी को ये कैसे पता हो सकता था कि उस रात असल में वो दोनों खून कैसे हुए थे?"

"इसका मतलब।" अभिलाष ने कहा_____"ये संयोग ही हुआ कि जब आपने विशेष पर गोली चलाई थी तो वो उस वक़्त निशांत की तरफ देखते हुए ही दरवाज़े की तरफ उल्टे पैर खिसकता जा रहा था। उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि आप उसके पीछे हो सकती हैं और उसको इस तरह से गोली मार सकती हैं? ख़ैर, गोली क्योंकि उसकी पीठ पर लगी थी और वो पिस्तौल निशांत के हाथ में था इस लिए पुलिस ने यही अंदाज़ा लगाया कि विशेष पर गोली चलाने वाली आप नहीं बल्कि निशांत था। रही सही कसर उस दोगले इंसान की उस डायरी ने पूरी कर दी। उसके बाद तो कोई कुछ और सोच ही नहीं सकता था।"

"हां अब तो मुझे भी यही लग रहा है।" रूपा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"तू सही कह रहा है मेरे भाई। ये संयोग ही था कि वो कमीना गोली लगने के बाद मेरी तरफ पलटा था और फिर उसी हालत में लड़खड़ा कर गिर गया था।"

"वो आपकी तरफ शायद इस लिए पलटा था ताकि देख सके कि अचानक से उस पर गोली किसने चला दी?" अभिलाष ने कहा____"उसकी समझ में तो उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला था बल्कि निशांत की हत्या करने के बाद उसकी हत्या के जुर्म में किसी तरह आपको फंसा देना था। ये तो उसका दुर्भाग्य था जो उसकी उम्मीदों के विपरीत ऐसा हो गया। ऊपर वाला भी ऐसे वक़्त में आपके साथ था जिसने कुछ ऐसा किया कि आप पर कोई बात ही न आए। वैसे एक बात और भी है दीदी, और वो ये कि विशेष ने अपनी डायरी में लिखा था कि वो आपको निशांत के फ़्लैट पर ये कह कर लें जाएगा कि उसने आप दोनों को अपने यहां डिनर पर बुलाया है, जबकि उन दोनों की हत्या के बाद वहां पर पुलिस को आपके होने का कोई सबूत नहीं मिला। अब सवाल ये है कि क्या अदालत में प्रासीक्यूटर ने इस बारे में कोई सवाल नहीं उठाया?"

"हां ये सवाल भी उठाया था उसने।" रूपा ने कहा____"लेकिन मेरे पक्ष वाले वकील ने ये तर्क़ दिया था कि हो सकता है कि विशेष ने आख़िरी समय में अपने प्लान पर कोई बदलाव किया रहा हो। अगर ऐसा न होता तो वो मुझे अपने साथ निशांत के फ़्लैट पर ज़रूर ले जाता और वहां पर मेरे होने के पुलिस को सबूत भी मिलते। अब जबकि पुलिस को निशांत के फ़्लैट पर मेरे होने के कोई सबूत ही नहीं मिले थे तो ज़ाहिर है कि मैं वहां ग‌ई ही नहीं थी। इससे ये भी साबित हो जाता है कि मेरा उन दोनों की हत्या में कोई हाथ नहीं था, बल्कि सच यही हो सकता है कि विशेष ने यक़ीनन आख़िरी समय में अपने प्लान में कोई बदलाव किया था।"

"अगर ये मान लें कि उसने सचमुच अपने प्लान में कोई बदलाव किया था।" अभिलाष ने कहा____"तो सोचने वाली बात है कि फिर वो निशांत की हत्या के जुर्म में आपको फंसाता कैसे?"

"इस सवाल के जवाब में।" रूपा ने कहा____"मेरे पक्ष वाले वकील ने बस यही कहा था कि इसका जवाब तो खुद विशेष ही दे सकता था कि वो निशांत की हत्या के जुर्म में मुझे किस तरह फंसाता? कहने का मतलब ये कि एक तरह से ये सवाल बाकी सबके लिए रहस्य ही बन कर रह गया है।"

"हां सही कहा आपने।" अभिलाष के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई____"बाकी सबके लिए तो अब ये रहस्य ही बना रहेगा लेकिन एक बात अच्छी हुई कि निशांत ने अपने जीवन के आख़िरी पलों में एक अच्छा काम करके उन संगीन अपराधों की सज़ा मिलने से आपको बचा लिया। अगर उस वक़्त वो वैसा न करता तो यकीनन आपको कोई नहीं बचा सकता था। उसी ने आपको बताया कि वो पिस्तौल उसे दे कर आपको किस तरह उसके फ़्लैट से चले जाना चाहिए था।"

"मुझे अपने अंजाम की कोई परवाह नहीं थी मेरे भाई।" रूपा ने गहरी साँस लेकर कहा____"इतना कुछ होने के बाद सच में जीने की कोई हसरत नहीं रह गई थी। अगर उन दोनों की हत्याओं से अदालत में मुझे फांसी की सज़ा भी सुना दी जाती तो मैं खुशी खुशी फांसी पर झूल जाती।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" अभिलाष ने अधीर होकर रूपा की तरफ देखा____"आप हम सबको छोड़ कर ऐसे कैसे जा सकती थीं? क्या हम सबका प्यार आपके लिए कोई मायने नहीं रखता?"
"नहीं मेरे भाई।" रूपा ने अभिलाष के चेहरे को बड़े स्नेह से सहला कर कहा____"ये तुम सबका प्यार और स्नेह ही तो था जिसकी वजह से मैं वैसा कर ही नहीं पाई।"

"मैं तो ये सोच सोच कर अभी भी हैरान हूं कि वो आदमी मेरी मासूम सी बेटी के साथ कितना बड़ा छल कर रहा था।" रूपा की माँ ने गंभीर भाव से किन्तु कहीं खोए हुए से कहा____"आख़िर किस मिट्टी का बना हुआ था वो जिसके दिल में मेरी बेटी के लिए ज़रा सा भी दया भाव नहीं था? उसने एक बार भी ये नहीं सोचा कि मेरी बेटी ने साढ़े चार सालों में क्या कुछ सहा होगा और किस तरह से उसने अपने दिन रैन गुज़ारे होंगे? आज सच जानने के बाद मैं भी यही कहूंगी कि तूने उसको उसके किए की सज़ा दे कर ठीक ही किया है बेटी। जिसके दिल में किसी के लिए कोई जज़्बात न हों और जो सिर्फ अपने ही बारे में सोचता हो ऐसे इंसान के साथ अपने जीवन के सपने देखना बेकार ही था।"

"मैं अपनी दीदी के लिए कोई ऐसा लड़का खोजूंगा मां।" अभिलाष ने रूपा के गुमसुम से चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"जिसके दिल में सिर्फ और सिर्फ मेरी दीदी के लिए प्यार हो और बिना किसी छल कपट के वो मेरी दीदी को खुशियां दे।"

"नहीं मेरे भाई।" रूपा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"अब तेरी इस दीदी को किसी और का प्यार अथवा किसी और से कोई खुशियां नहीं चाहिए। वो तो अब जीवन भर अपने माँ बाबू जी और तेरे जैसे प्यारे से भाई के पास ही रहना चाहती है। तेरी दीदी को तुम लोगों के सिवा दुनियां का कोई भी इंसान प्यार और ख़ुशी नहीं दे सकता मेरे भाई।"

रूपा की बातें सुन कर जहां उसकी माँ की आँखों से आंसू छलक पड़े वहीं अभिलाष ने दुखी हो कर उसे ख़ुद से छुपका लिया था। कमरे के दरवाज़े के बाहर खड़े रूपा के पिता चक्रधर पांडेय अपनी बेटी की बातें सुन कर गमछे से अपनी आँखों में भर आए आंसुओं को पोंछा और फिर पलट कर चुप चाप बाहर निकल ग‌ए।



✧✧✧ The End ✧✧✧
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Dosto, Is story ke sabhi update post kar diye gaye hain. Ye story complete ho chuki hai. Story kaisi lagi is bare me apni pratikriya zarur dena. Shukriya... :thank-you2:
 

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