Thriller ✧ Double Game ✧(completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 02
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इंसान जब किसी चीज़ से आज़िज़ आ जाता है तो वो अक्सर ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जो यकीनन ग़लत होता है किन्तु अगर किसी इंसान को वक़्त रहते सही ग़लत या गुनाह जैसे कर्म की गंभीरता का एहसास हो जाए तो फिर शायद वो ऐसा करने का अपना विचार ही त्याग दे।

अपनी समझ में मैंने हर पहलू के बारे में बहुत सोचा और आख़िर में इसी नतीजे पर पहुंचा कि एक अच्छी शुरुआत के लिए उस चीज़ को ख़त्म कर देना बेहतर होता है जिसकी वजह से आप ये समझ रहे हैं कि वो आपकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पनौती है। माता पिता के गुज़र जाने के बाद मैं चाहता तो रूपा को तलाक़ दे देता या उसे उसके माँ बाप के पास वापस भेज देता लेकिन ऐसा न करने के भी कुछ कारण थे। मैं उसे तलाक नहीं देना चाहता था, क्योंकि अब तक तो सारा गांव जान चुका था कि मेरी बीवी से मेरे कैसे सम्बन्ध हैं इस लिए अगर मैं उसे तलाक़ देता तो लोग तरह तरह की बातें करते या फिर ऐसा भी हो सकता था कि उसके माँ बाप व भाई मुझ पर उल्टा केस कर देते। ऐसे में मेरी ज़िन्दगी और भी बदतर हो जाती। रूपा को उसके माँ बाप के घर वापस नहीं भेज सकता था क्योंकि इससे सारी ज़िन्दगी उसके माँ बाप मुझ पर इस बात का दबाव बनाते रहते कि मैं उसे अपने पास ही रखूं जो कि मैं किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था। मेरी नज़र में इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने का बस एक ही सही तरीका था कि कुछ ऐसा करो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

मैंने अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने की शुरुआत कर दी थी। मैंने साढ़े चार सालों में पहली बार रूपा से इस बात के लिए माफ़ी मांगी कि मैंने अब तक उसके साथ जो कुछ किया है उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं और उसे पूरा हक़ है कि वो मुझे इसके लिए जो चाहे सज़ा दे दे। असल में ऐसा करना भी मेरे प्लान का एक हिस्सा था। मैं चाहता था कि मेरे और रूपा के बीच वैसे ही सम्बन्ध बन जाएं जैसे एक खुशहाल पति पत्नी के बीच होते हैं। ख़ैर जब मैंने रूपा से बहुत ही गंभीर हो कर ये कहा तो उसके चेहरे पर आश्चर्य का सागर स्वाभाविक रूप से तांडव करता नज़र आने लगा। आँखों में यकीन नाम का कहीं कोई नामो निशान नहीं था। उसकी ये हालत देख कर मुझे लगा कि कहीं मेरा मंसूबा बेकार न चला जाए। इस लिए अपनी गरज़ में मैंने फिर से उससे अपनी बात दोहराई और उसके जवाब की उम्मीद में मैं उसकी तरफ ख़ामोशी से देखने लगा था।

जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि हर चीज़ का एक दिन अंत भी होता है इस लिए इसका भी अंत हुआ। कहने का मतलब ये कि देर से ही सही किन्तु रूपा को ये एहसास और ये यकीन हो ही गया कि मैं सच में अपने किए पर शर्मिंदा हूं और अब चाहता हूं कि हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी पति पत्नी के रूप में अपनी ज़िन्दगी की न‌ई शुरुआत करें। मैंने अपने चेहरे पर ऐसे भाव भी एकत्रित कर लिए थे ताकि रूपा को मेरी बातों का यकीन होने में ज़रा भी देर न लगे और ना ही उसे किसी बात का शक हो। हालांकि मेरा ख़याल था कि इन साढ़े चार सालों में वो भी तो इस सबके बारे में कुछ न कुछ सोचती ही रही होगी और यकीनन उसके मन के किसी कोने में ये उम्मीद भी बनी रही होगी कि एक दिन ऐसा वक़्त ज़रूर आएगा जब उसका पति उसे अपनी बीवी का दर्ज़ा दे कर उसे अपना लेगा। अब जब कि ऐसा वक़्त आ गया था तो भला वो कैसे इसके लिए इंकार कर सकती थी? वैसे इंकार करने की भी कोई वजह नहीं थी।

मेरे दिलो दिमाग़ में उसके प्रति भले ही ज़हर भरा हुआ था या मैं भले ही उसे ज़रा भी पसंद नहीं करता था लेकिन अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए मैंने ऐसा दर्शाया जैसे अब मेरे दिल में उसके लिए बेपनाह प्रेम है और मैं उस प्रेम के वशीभूत हो कर उसको दुनियां की हर ख़ुशी देना चाहता हूं।

हमारे बीच जब सब कुछ सही और सहज हो गया तो सबसे पहले मैं उसे हर उस जगह लेकर जाने लगा जिस जगह जाने के बारे में नया नया शादी शुदा जोड़ा सोचता है। उसे शहर घुमाता, सिनेमा में ले जा कर फिल्में दिखाता, और मॉल में ले जा कर उसकी पसंद के अनुसार ही उसे शॉपिंग करवाता। हप्ते दस दिन में ही हमारे बीच ऐसा प्यार दिखने लगा जैसे ऐसा प्यार हमारे बीच हमेशा से ही रहा हो। रूपा अपने प्रति मेरा ये प्यार देख कर बेहद खुश थी, ऐसा लगता था जैसे उसे संसार भर की खुशियां मिल गईं थी। जबकि उसे इस तरह खुश देख कर मैं अंदर ही अंदर ये सोच कर जल उठता कि भगवान ने इसे आख़िर किस तरह बनाया है कि इतना खुश होने के बाद भी ये मुझे सुन्दर नज़र नहीं आती?

ये एक नेचुरल बात है कि जब दो लोगों के बीच प्यार इस तरह से बढ़ता है तो एक दिन उस प्यार को एक दूसरे से इज़हार करने का भी वक़्त आ जाता है। हालांकि हमारे लिए तो वैसे भी इज़हार करना अब बहुत ज़रूरी हो गया था क्योंकि शादी को साढ़े चार साल गुज़र गए थे और हमने अब तक अपनी सुहागरात नहीं मनाई थी। मेरा ख़याल है कि सुहागरात एक ऐसी चीज़ है जिसके प्रति एक मर्द से ज़्यादा लड़की के मन में क्रेज होता है। ऊपर से लड़की अगर रूपा जैसी हो तो क्रेज की पराकाष्ठा ही हो जाती है।

मैंने इसके लिए उसे वक़्त दिया। वैसे भी मेरे पास वक़्त की कोई कमी नहीं थी। जब मैंने महसूस कर लिया कि इन सारी ख़ुशियों के बाद अब रूपा के दिल में बस एक उसी ख़ुशी की हसरत रह गई है जिसे सुहागरात कहते हैं तो मैंने भी उसकी ख़ुशी का ख़याल रखते हुए उसकी सुहागरात को उसके लिए एक यादगार सुहागरात बना देने का सोचा।

सबसे पहले एक दिन हम दोनों मंदिर में जा कर पंडित जी से मिले और उस पंडित जी से कोई अच्छा सा शुभ मुहूर्त निकलवाया। ऐसा करने के पीछे मेरी बस यही सोच थी कि इन मामलों में ऐसा करने से बीवी पर ख़ास प्रभाव पड़ता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा प्रभाव पड़ता है जब हमारे बीच पिछले साढ़े चार सालों से ऐसा आलम रहा हो। ख़ैर पंडित जी ने शुभ मुहूर्त निकाला तो मैंने अपने ऑफिस से एक हप्ते की छुट्टी ले ली और ये एक हप्ते मैंने रूपा के नाम कर दिए।

मैंने सब कुछ रूपा की इच्छानुसार ही करने का सोचा था और उसे भी कह दिया था कि उसका जिस तरह से दिल करे उस तरह से वो हर चीज़ करे। सुहागरात वाले दिन रूपा न‌ई नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई थी। अपनी समझ में उसने सोलह नहीं बल्कि बत्तीस श्रृंगार किए थे लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो मुझे सुन्दर नहीं लग रही थी। ख़ैर अपने को तो वैसे भी इस सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। मैं तो बस वही कर रहा था जो मेरे प्लान और मेरे मंसूबों के लिए बेहद ज़रूरी था।

सुहागरात को मैंने हर काम रूपा की मर्ज़ी से ही किया। उसकी उम्मीद से ज़्यादा मैंने उसे प्यार दे कर खुश किया, बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि उसे खुशियां दे कर तृप्त कर दिया। एक ही कमरे में और एक ही बेड पर सुहागरात मनाने के बाद हम दोनों दुनियां जहान से बेख़बर सो गए थे। रूपा मेरे सीने से छुपकी वैसी ही सो गई थी जैसे अब उसने मुकम्मल जहां पा लिया हो।

एक हप्ते की छुट्टी में मैंने रूपा को हद से ज़्यादा तृप्त कर दिया, लेकिन इस बात का ख़ास ख़याल रखा था कि उसके गर्भ में मेरा बीज न ठहर जाए जिसकी वजह से मेरे लिए एक नई समस्या पैदा हो जाए जोकि मैं सपने में भी नहीं चाहता था। एक हप्ते बाद मैं फिर से अपने ऑफिस जाने लगा। मैंने उसके साथ ऐसा ताल मेल बना के रखना शुरू कर दिया था कि उसे ज़रा भी ये न लगे कि हमारे बीच जो कुछ भी अब तक हुआ है या अभी हो रहा है वो महज एक सपना है या दिखावा है।

रूपा को मैंने पहले ही एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल ख़रीद कर दे दिया था। मैं चाहता था कि वो अपनी बदली हुई ज़िन्दगी और किस्मत के बारे में अपने माँ बाप को भी खुश हो कर बताए ताकि उनके दिलो दिमाग़ में भी ये बात बैठ जाए कि उनकी बेटी की तपस्या पूरी हो चुकी है और अब उनकी बेटी और दामाद के बीच सब कुछ अच्छा हो गया है। वो तो ये सोच भी नहीं सकते थे कि इतना कुछ हुआ ही इस लिए था कि इसके बाद अब अगर कुछ और हो जाए तो वो उस बारे में ना तो सोच सकें और ना ही किसी बात का शक कर सकें।

मैंने अपने प्लान के पहले चरण को बिलकुल वैसे ही पार कर लिया था जैसा मैं चाहता था। अब मुझे अपने प्लान के दूसरे चरण को शुरू करना था। हालांकि इसकी शुरुआत भी मैंने तभी कर दी थी जब मेरे प्लान का पहला चरण शुरू हुआ था। मेरे लिए एक समस्या ये थी कि ईश्वर ने मुझे बीवी ही ऐसी दी थी जिसकी शक्लो सूरत बहुत ही भद्दी थी। हालांकि सोचने वाली बात तो ये भी थी कि अगर बीवी सुन्दर मिली होती तो इतना कुछ होता ही क्यों?

मैं जिस कंपनी में काम करता हूं वहां पर निशांत सोलंकी नाम का मेरा एक सीनियर है। मैं आज तक समझ नहीं पाया कि उसे मुझसे ऐसी कौन सी तक़लीफ है जिसके लिए वो अक्सर मेरे काम पर कोई न कोई नुक्श निकालता ही रहता है और अपनी सीनियरिटी का रौब झाड़ते हुए मुझे सबके सामने बातें सुना देता है। जबकि सब यही कहते हैं कि मेरे काम में कहीं कोई नुक्श जैसी बात नहीं होती थी।

पिछले महीने जब रूपा से पीछा छुड़ाने का मैंने मन बनाया था तो सहसा एक दिन मेरे ज़हन में अपने उस सीनियर के बारे में भी ख़याल आया था। कभी कभी हमारे ज़हन में अचानक से ऐसे ख़याल प्रकट हो जाते हैं जो खुद हमें ही चकित कर देते हैं। मैंने जब इस बारे में गहराई से सोचा तो मेरे होठों पर बड़ी ही जानदार मुस्कान उभर आई थी।

मैं अपने सीनियर निशांत सोलंकी के बारे में एक ख़ास बात जानता था कि वो पक्का लड़कीबाज़ और औरतबाज़ हैं। यहाँ तक कि उसके सम्बन्ध अपने ही कुछ जूनियर्स की बीवियों से थे जिनके बारे में अक्सर मेरा एक साथी बताया करता था। हालांकि उसका कहना तो ये भी था कि वो जूनियर्स अपने फ़ायदे के लिए अपनी बीवियों को उसके नीचे सुलाते थे। उसकी ये बात सुन कर मैं अक्सर सोचता था कि दुनियां में कैसे कैसे लोग हैं जो अपने फ़ायदे अथवा नुक्सान के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। हालांकि इस बात के सोचते ही सहसा मेरे ज़हन में खुद अपना ही ख़याल उभर आया कि मैं भी तो ऐसा ही करने जा रहा हूं।

मैंने अपने उस सीनियर से दोस्ती बनाने के लिए वही सब करना शुरू कर दिया जो उसे पसंद था या जो वो चाहता था। मैं अच्छी तरह जानता था कि अपने फ़ायदे के लिए मैं अपनी बीवी को उसके नीचे नहीं सुला सकता था, क्योंकि मेरी बीवी की मोहिनी सूरत देखते ही उसके मूड का सत्यानाश हो जाना था। इस लिए मैंने इसके लिए एक अलग ही रास्ता चुना। उस रास्ते में भी मेरा मकसद वही था जो उसके बाकी जूनियर्स करते थे लेकिन इसके लिए मैंने एक ख़ास तरीका चुना।

मैंने अपने पर्श पर एक ऐसी शादी शुदा औरत की तस्वीर रखी जो दिखने में ऐसी तो हो ही कि उसे देख कर कोई भी मर्द उस पर लट्टू हो जाए। ख़ैर कुछ ही समय में मेरे सीनियर से मेरी अच्छी बनने लगी। यहाँ तक कि अक्सर लंच टाइम में वो मुझे अपने पास ही लंच करने के लिए बुला लेता था। मेरे कुछ साथी इस बात से थोड़ा हैरान हुए कि मेरा उससे इतना अच्छा ताल मेल कैसे हो गया? एक दिन तो मेरे एक साथी ने मुझे समझाया भी कि भाई इस आदमी से ज़्यादा दोस्ती मत बढ़ाओ क्योंकि ये आदमी सीधा अपने जुनियर्स के घर ही पहुंच जाता है और फिर उनकी बीवियों को फ़साने लगता है। अपने उस साथी की बात सुन कर मैं ये सोच कर मन ही मन मुस्कुराया कि बेटा यही तो मैं चाहता हूं। अब उसे क्या पता कि मैं अपने उस सीनियर को ले कर कौन सा खेल खेलने वाला था।

एक दिन लंच करने के बाद हम दोनों ही अगल बगल कुर्सियों पर बैठे थे। मैं अपने प्लान के अनुसार अपने पर्श में उस औरत की तस्वीर देख रहा था जिसे मैंने अपनी नकली बीवी बना कर रखा था। उस तस्वीर को देखने का मेरा सिर्फ यही मकसद था कि मेरे सीनियर की नज़र उस पर पड़ जाए। मैं क्योंकि जान बूझ कर अपने सीनियर के बगल से ही बैठा था इस लिए वो बड़ी आसानी से मेरे पर्श में मौजूद उस तस्वीर को देख सकता था और ऐसा हुआ भी। निशांत सोलंकी की नज़र उस तस्वीर पर पड़ी तो उसकी नज़रें जैसे उस तस्वीर पर जम सी ग‌ईं। मैंने कनखियों से निशांत की तरफ देखा तो उसे तस्वीर पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए पाया। ये देख कर मैं मन ही मन मुस्करा उठा।

"काफी ख़ूबसूरत है।" सहसा निशांत ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तुम्हारी बीवी है क्या?"
"और क्या मैं किसी और की बीवी की तस्वीर अपने पर्श में रखूंगा?" मैंने मुस्कुराते हुए जब ये कहा तो निशांत हंसते हुए बोला____"हां,‌ ये भी सही कहा तुमने। वैसे किस्मत वाले हो यार। क्या ख़ूबसूरत बीवी मिली है तुम्हें। कभी हमें भी मिलवाओ भाभी जी से।"

"बिल्कुल नहीं।" उसकी उम्मीद के विपरीत मैंने इंकार में सिर हिला कर कहा____"मैं अपनी बीवी को आपसे हर्गिज़ नहीं मिला सकता सर।"
"अरे! पर क्यों भाई?" निशांत ने चकित भाव से पूछा था___"आख़िर तुम मुझे भाभी जी से क्यों नहीं मिला सकते?"

"वो इस लिए कि मुझे आपके करैक्टर के बारे में सब पता है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"अगर मैंने आपको अपनी बीवी से मिलवा दिया तो संभव है कि आप मेरी बीवी को अपना बनाने का सोच लें। देखिए ऐसा है सर कि किस्मत से मुझे इतनी ख़ूबसूरत बीवी मिली है जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं, तो मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि कोई उसे मुझसे छीन ले।"

"हाहाहाहा...तुम भी हद करते हो विशेष।" निशांत ने हंसते हुए कहा____"यार तुम भी लोगों की फैलाई हुई बातों को सच मानते हो, जबकि सच तो ये है कि मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूं।"

"सारी सर।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा था____"लेकिन मैं ये अच्छी तरह समझता हूं कि अपने बारे में सब यही कहते हैं कि मैं बुरा इंसान नहीं हूं। आपके बारे में मैंने यहाँ बहुत सुन रखा है। अब हर कोई तो झूठ नहीं बोल सकता न और फिर भला किसी को आपसे ऐसी क्या दुश्मनी होगी जिससे लोग आपके बारे में ऐसी अफवाह उड़ाएं?"

उस दिन निशान्त को मैंने अपनी बीवी से मिलाने के लिए साफ़ मना कर दिया था। हालांकि मेरा प्लान तो अपनी बीवी से उसे मिलाने का ही था लेकिन मैं उस पर ये ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था कि असल में मेरे अंदर चल क्या रहा है। मैं अच्छी तरह जानता था कि निशांत सोलंकी अब मेरी बीवी की एक झलक पाने के लिए मुझसे बार बार कहेगा। यहाँ तक कि वो इसके लिए मुझे कई तरह के प्रलोभन देने पर भी उतारू हो जाएगा। उसके करैक्टर की यही तो विशेषता थी।

मुझे उसी दिन का इंतज़ार था जब निशांत मुझे किसी तरह का प्रलोभन दे। उस दिन उसने जिस नज़र से मेरी बीवी को देखा था उससे मैं समझ गया था कि उसे वो तस्वीर वाली औरत बेहद ही पसंद आ गई है और अब वो उसको हासिल करने के लिए हर कोशिश करेगा। ख़ैर उस दिन के बाद से निशांत कुछ ज़्यादा ही मुझे भाव देने लगा था और ऐसा भी होने लगा था कि अगर मेरी वजह से कोई काम बिगड़ जाता था तो वो उसके लिए पहले की तरह मुझ पर गुस्सा नहीं होता था। कहने का मतलब ये कि वो मुझे खुश करने के लिए हर तरह से कोशिश कर रहा था। हर रोज़ लंच टाइम में वो मुझसे एक बार ज़रूर मेरी बीवी के बारे में पूछता था और फिर ये कहता कि यार अब तो हम अच्छे दोस्त बन गए हैं, तो अब तो किसी दिन भाभी जी से मिलवा दो लेकिन मैं अपनी बात पर कायम रहा।

एक तरफ निशांत अपने जुगाड़ में लगा हुआ था और दूसरी तरफ मैं अपने मंसूबों को परवान चढ़ा रहा था। मैंने रूपा से अपने सम्बन्ध बहुत ही अच्छे बना लिए थे। रूपा का चेहरा आज कल चाँद की तरह खिला खिला रहने लगा था। हालांकि वो मुझे किसी भी तरह से सुन्दर नहीं लगती थी और इसका मुझे कोई अफ़सोस भी नहीं था। ख़ैर मेरे प्लान का पहला चरण पूरा हो चुका था और अब प्लान के दूसरे चरण की तरफ मुझे रुख करना था। निशांत अपनी कोशिश में लगा हुआ था लेकिन मुझे इंतज़ार उस दिन का था जब वो मेरी बीवी से मिलने के लिए मुझे किसी तरह का प्रलोभन दे। आज कल किस्मत कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी मुझ पर। निशांत को जब समझ आ गया कि उसकी ऐसी कोशिशों से कुछ नहीं होने वाला तो उसने अपना असली हथकंडा अपनाया और उसके इसी हथकंडे का तो मुझे शिद्दत से इंतज़ार था।


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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 03
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एक दिन ऑफिस की छुट्टी थी तो मैं रूपा को सिनेमा में फिल्म दिखाने ले गया। थिएटर में सलमान खान की फिल्म प्रेम रतन धन पायो लगी थी। मुझे रूपा ने बताया था कि उसे हीरो में सलमान खान बहुत पसंद है। ख़ैर तीन बजे से शाम के छह बजे तक हम दोनों ने सिनेमा हॉल में साथ बैठ कर फिल्म देखी। फिल्म वाकई में बहुत अच्छी थी और रूपा को तो कुछ ज़्यादा ही पसंद आई थी। शाम को बाहर ही हम दोनों ने खाना पीना खाया और फिर हम वापस अपने फ्लैट पर आ ग‌ए। वैसे मेरे लिए रूपा को अपने साथ फ्लैट से बाहर ले जाना ही बहुत बड़ी बात होती थी। वो कुरूप औरत मुझे ज़रा भी पसंद नहीं थी लेकिन क्योंकि मुझे अपने मंसूबों को परवान चढ़ाना था इस लिए इतना कुछ करना जैसे मेरी मज़बूरी थी।

हम दोनों वापस फ्लैट में आए ही थे कि मेरा मोबाइल फोन बजा। मैंने देखा निशांत सोलंकी का कॉल था। मैंने सोचा इस वक़्त उसने मुझे किस बात के लिए कॉल किया होगा? ख़ैर मैंने कॉल उठाया तो उधर से निशांत ने कहा कि मेरे फ्लैट पर आ जाओ, कुछ ज़रूरी काम है। उसकी ये बात सुन कर मैं मन ही मन मुस्कुराया। मैं जानता था कि उसके ज़हन में मेरी वो नकली बीवी बसी हुई है जिसे उसने मेरे पर्श में देखा था। ख़ैर वक़्त ज़्यादा नहीं हुआ था इस लिए मैंने उससे कहा कि ठीक है आ रहा हूं।

रूपा को बता कर मैं उसके घर चल पड़ा। निशांत भी मेरी तरह एक फ्लैट में ही रहता था। कुछ साल पहले क्योंकि उसका तलाक़ हो गया था इस लिए फिलहाल वो अपने फ्लैट पर अकेला ही रहता था। औरतबाज़ वो शुरू से ही था इस लिए जब उसकी बीवी को उसकी इस सच्चाई का पता चला था तो दोनों के बीच रिश्ते ख़राब हो गए थे और फिर बात जब हद से ज़्यादा बढ़ गई तो एक दिन उसकी बीवी ने उससे तलाक़ ले लिया। निशांत ने भी उसे रोकने की ज़्यादा कोशिश नहीं की थी। ख़ैर अभी तो वो अकेला ही रहता था और दूसरी शादी करने के बारे में फिलहाल अभी उसका कोई इरादा भी नहीं था।

जब मैं निशांत के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाज़ा उसी ने खोला। उसके मुँह से शराब की स्मेल आई तो मैं समझ गया कि वो पहले से ही अपना मूड बनाए हुए है। जब से उससे मेरा दोस्ताना सम्बन्ध बना था तब से मैं उसके बुलाने पर उसके फ्लैट में जाने लगा था। ये अलग बात थी कि मैंने अब तक उसे अपने घर आने का निमंत्रण नहीं दिया था। हालांकि निमंत्रण देने का तो सवाल ही नहीं था क्योंकि ऐसा करने का मतलब था अपने ही प्लान को नेस्तनाबूत कर लेना।

मैंने देखा कि उसने टेबल पर शराब की बोतलें सजा रखीं थी और उसके साथ ही कुछ चखना वग़ैरा भी। उसने पहले से ही पी रखी थी और अभी आगे भी उसका पीने का इरादा जान पड़ता था। मुझे पता चला था कि वो पक्का पियक्कड़ भी था। ख़ैर उसने मुझे अपने सामने वाले सोफे पर बैठाया। मैं शराब नहीं पीता था और ये बात वो भी जानता था। जब मैं पहली बार उसके फ्लैट पर आया था तो उसने मुझे शराब ऑफर की थी लेकिन मैंने पीने से साफ़ इंकार कर दिया था।

"आपने मुझे किसी काम से बुलाया है क्या सर?" मैंने उससे पूछा। हालांकि मुझे काफी हद तक पता था कि उसने मुझे क्यों बुलाया था।
"यार कम से कम यहाँ पर तो तुम मुझे सर मत कहो।" उसने अपनी हल्की सुर्ख आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"वैसे भी हम दोनों दोस्त हैं तो तुम्हें मुझे सर वर कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम मेरा नाम लिया करो, इससे मुझे भी अच्छा लगेगा।"

"ये आप क्या कह रहे हैं सर?" मैंने हैरान होने की एक्टिंग की____"आप तो मेरे सर ही हैं इस लिए सर ही कहना पड़ेगा आपको और वैसे भी ऑफिस में अगर मैं आपको सर की जगह आपका नाम लूंगा तो लोग तरह तरह की बातें सोचने लगेंगे। वो समझ जाएंगे कि मेरे और आपके बीच कुछ ऐसा वैसा रिलेशन हो गया है।"

"भाड़ में जाएं लोग।" निशांत ने नशे में झूमते हुए बुरा सा मुँह बनाया____"जिसे जो सोचना है सोचे, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम मेरे दोस्त हो और दोस्त को सर नहीं बोला जाता। अब से तुम मुझे सर नहीं बल्कि मेरा नाम ले कर ही बुलाओगे, समझ गए न?"

"ठीक है जैसा आप कहें।" मैंने इस वक़्त उसके मन की ही करने का सोचते हुए कहा____"अब बताइए आपने मुझे किस लिए बुलाया है यहाँ?"

"यार विशेष मैंने तुम्हें एक बात बताने के लिए बुलाया है यहां।" निशांत ने कांच के गिलास में भरी शराब का एक घूँट हलक के नीचे उतारने के बाद कहा____"कंपनी में कुछ लोगों को प्रमोशन देने की बात चली थी इस लिए मैंने प्रमोशन के लिए उनमें से तुम्हारा नाम भी लिस्ट में जोड़ने का सोचा है। मेरा ख़याल है कि तुम्हें इससे बेहद ख़ुशी होगी।"

प्रमोशन की बात का ये हथकंडा उसका पुराना था। हालांकि प्रमोशन दिलवा देना उसके बस में भी था क्योंकि वो पहुंचा हुआ फ़कीर था। पता नहीं उसके पास ऐसे कौन से सोर्स थे जिसके चलते वो जिसे चाहता था प्रमोशन दिलवा देता था, लेकिन बदले में उसे वही चाहिए होता था जिसका वो रसिया था। ख़ैर मैंने तो उसे इसके लिए कहा ही नहीं था लेकिन मैं जानता था कि एक दिन वो प्रमोशन का हथकंडा अपनाते हुए मुझे इसका लालच ज़रूर देगा। उसे भी पता था कि पिछले साढ़े चार साल से मैं कंपनी में काम कर रहा हूं लेकिन अभी तक मेरा प्रमोशन नहीं हुआ है। अगर मेरे ज़हन में मेरे मंसूबों वाली बात न होती तो मैं उसके इस लालच की तरफ ध्यान भी नहीं देता लेकिन क्योंकि मुझे अपने मंसूबों को परवान चढ़ाना था इस लिए मैंने उसकी बात पर वैसा ही रिऐक्ट किया जैसा कि प्रमोशन पाने के लिए मरे जा रहे किसी एम्प्लोई को करना चाहिए था।

"आपने बिल्कुल सही कहा निशांत।" मैंने इस बार उसका नाम लिया____"प्रमोशन की बात से मैं बहुत खुश हो गया हूं। साढ़े चार साल हो गए मुझे इस कंपनी में काम करते हुए लेकिन अभी तक मेरा प्रमोशन नहीं हुआ। अब अगर आपकी वजह से मुझे प्रमोशन मिल जाएगा तो ये मेरे लिए ख़ुशी की बात तो होगी ही।"

"प्रमोशन के साथ साथ सैलरी भी बढ़ जाएगी।" निशांत ने अपनी समझ में मेरे अंदर और भी ज़्यादा लालच को भरते हुए कहा____"इतना ही नहीं बल्कि कंपनी की तरफ से रहने के लिए तुम्हें एक अच्छा सा फ्लैट और आने जाने के लिए एक कार भी मिल जाएगी।"

"क्या सच में?" मैंने आँखें फाड़ कर इस तरह कहा जैसे उसकी इस बात से मैं बहुत ही ज़्यादा चकित और खुश हो गया होऊं।
"अरे! भाई मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा?" निशांत ने गिलास उठा कर उसमें से फिर से शराब का घूँट लिया____"ख़ैर मैंने तो दोस्त के नाते तुम्हारे लिए इतना कुछ सोच लिया है पर अब तुम्हारी बारी है विशेष।"

"जी...मैं कुछ समझा नहीं?" मैंने न समझने की एक्टिंग करते हुए कहा तो उसने कहा____"अरे! भाई, सीधी सी बात है कि अब तुम्हें भी अपने इस दोस्त के बारे में कुछ सोचना चाहिए।"

"ओह! हां।" मुझे जैसे उसकी बात समझ में आ गई____"आप ही बताइए निशांत कि मैं अपने दोस्त के लिए क्या कर सकता हूं? आपने मुझे जो ख़ुशी दी है उसके लिए आप जो कहेंगे मैं वही करुंगा।"

"अच्छी तरह सोच कर बोलो विशेष।" निशांत ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा____"क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि मैं तुमसे जो करने को कहूं वो तुम करने से इंकार कर दो।"

"नहीं करुंगा सर।" उतावलापन और जल्दबाज़ी का प्रदर्शन करते हुए मैंने जल्दी से कहा___"अगर मेरे बस में होगा तो मैं ज़रूर आपके लिए करुंगा। आप एक बार बताइए तो सही।"

"नहीं विशेष मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं है।" निशांत ने मानो गहरी सांस ली____"लेकिन हाँ अगर तुम भाभी जी की कसम खा कर कहो तो मैं मान लूंगा।"

"इसमें भला आपके भाभी की कसम खाने की क्या ज़रूरत है निशांत।" मैंने इस तरह कहा जैसे मुझे उसके इरादों का ज़रा भी अंदाज़ा न हो____"फिर भी अगर आप यही चाहते हैं तो ठीक है। मैं अपनी ख़ूबसूरत बीवी की कसम खा कर कहता हूं कि मैं अपने दोस्त के लिए वही करुंगा जो मेरा दोस्त कहेगा। अब ठीक है न?"

मेरी बात सुन कर निशांत के चेहरे पर हज़ार वाल्ट के बल्ब जैसी चमक आ गई थी। शायद वो ये समझता था कि मैं अपनी बीवी से सच मुच बहुत प्यार करता हूं और उसकी कसम खाने के बाद अब मैं सच में वही करने पर मजबूर हो जाऊंगा जो वो कहेगा। अब भला उसे क्या पता था कि वो मुझे नहीं बल्कि मैं उसे अपने जाल में फंसा रहा था।

"हां अब मुझे यकीन है कि तुम सच में वही करोगे जो मैं कहूंगा।" निशांत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा था।
"तो बताइए सर।" मैंने अपने उसी उतावलेपन को ज़ाहिर करते हुए कहा____"मुझे अपने दोस्त के लिए क्या करना होगा?"

"ज़्यादा कुछ नहीं विशेष।" निशांत ने मेरी तरफ अपनी नशे से भारी हो गई आँखों से देखते हुए कहा____"तुम्हें अपने इस दोस्त के लिए सिर्फ इतना ही करना है कि अपनी ख़ूबसूरत बीवी को मेरे पास एक रात के लिए भेज देना है।"

"क्...क्या???" मैंने बुरी तरह उछल पड़ने की एक्टिंग की और साथ ही फिर गुस्सा होने की____"ये क्या कह रहे हैं आप? आप होश में तो हैं न? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसा कहने की?"

"तुम अपनी बीवी की कसम खा चुके हो विशेष।" निशांत ने सपाट लहजे में कहते हुए जैसे मुझे मेरी कसम याद दिलाई____"इस लिए अब तुम्हें वही करना पड़ेगा जो मैंने कहा है। वैसे भी एक ही रात की तो बात है यार। एक रात में मैं तुम्हारी ख़ूबसूरत बीवी को बस थोड़ा सा प्यार ही तो करुंगा। उसके बदले तुम्हें प्रमोशन के साथ साथ इतना सब कुछ भी तो मिल जाएगा। उसके बाद तुम्हारी लाइफ़ इससे कहीं ज़्यादा बेहतर हो जाएगी।"

"इसका मतलब सच ही कहते थे ऑफिस के वो सब लोग।" मैंने नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"ये कि आप अपने जूनियर्स को फंसा कर उनकी बीवियों के साथ ग़लत करते हैं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो विषेश।" निशांत ने खाली गिलास में शराब डालते हुए कहा____"ग़लत तब होता है जब किसी काम में किसी के साथ ज़बरदस्ती की जाए, जबकि मैं जो करता हूं उसमें ज़बरदस्ती नहीं बल्कि दूसरे ब्यक्ति की सहमति होती है। सिर्फ एक रात की ही बात होती है उसके बाद मैं दुबारा कभी उनके साथ संबंध बनाने के लिए नहीं कहता। मेरे समझदार जूनियर भी ये समझ लेते हैं कि एक रात में भला उनकी बीवियों की और कितना फट जाएगी? अरे! भाई वो ऐसी चीज़ थोड़ी है जो किसी के द्वारा एक बार के घिसने से घिस जाएगी।"

मैं क्योंकि अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के मिशन पर था इस लिए कुछ देर में मैंने अपनी नाराज़गी ये कहते हुए दूर कर ली कि अपनी बीवी की कसम की वजह से मैं अब वही करने को मजबूर हो गया हूं जो उसने कहा है। मैंने ये भी मान लिया कि एक बार के घिसने से सच में मेरी बीवी की घिस नहीं जाएगी। कहने का मतलब ये कि निशांत के अनुसार मैं एक ऐसा बकरा बन गया था जिसे उसने अपनी समझ के अनुसार बड़ी ही खूबसूरती से और ठीक उसी तरह फंसा लिया था जैसे उसने अब तक बाकियों को फंसाया था।

"तो कब भेज रहे हो अपनी बीवी को मेरे पास?" निशांत ने मुस्कुराते हुए पूछा____"भाई अब मुझसे इंतज़ार नहीं होगा। वैसे भी जितना देर तुम करोगे उतनी ही देर लगेगी तुम्हारा प्रमोशन होने में। अब ये तुम पर है कि तुम कितना जल्दी अपना काम करते हो।"

"मुझे थोड़ा समय चाहिए सर।" मैंने गंभीर भाव दिखाते हुए कहा था____"आप भी ये बात समझते हैं कि ये काम इतना आसान नहीं है। इसके लिए तो पहले मुझे अपनी बीवी से बात करनी होगी और उसे इसके लिए राज़ी भी करना होगा।"

"हां ये तो मैं अच्छी तरह समझता हूं भाई।" निशांत ने कहा____"चलो ठीक है। तुम अपनी बीवी से बात करो और उसे इसके लिए राज़ी करो, लेकिन यार ज़्यादा वक़्त जाया मत करना। मैं बता ही चुका हूं कि अब मुझसे इंतज़ार नहीं होगा।"

निशांत सोलंकी से बातें करने के बाद मैं वापस अपने घर आ गया था। मैं खुश था कि मेरे प्लान का दूसरा चरण ठीक वैसा ही कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था जैसा कि मैं चाहता था। अगले दो तीन दिन ऐसे ही गुज़र गए। ऑफिस में निशांत मुझे मिलता तो वो ये ज़रूर पूछता कि मैंने अपनी बीवी से इस बारे में बात की या नहीं। जवाब में मैं मायूस होने का नाटक करते हुए यही कहता कि मैंने अपनी बीवी से बड़ी हिम्मत करके बात तो की है लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हो रही है। बल्कि वो तो मुझसे इस बात से बेहद ही ख़फा हो गई है। निशांत मेरी बात सुन कर यही कहता कि यार किसी तरह अपनी बीवी को इसके लिए राज़ी करो। अगर ज़्यादा देर हुई तो मेरे प्रमोशन का मामला रुक जाएगा। यानि मजबूरन उसे मेरी जगह किसी और का नाम लिस्ट में डलवाना पड़ेगा।

निशांत को भला क्या पता था कि मैं क्या गेम खेल रहा था? वो तो यही समझता था कि मैंने सच में अपनी बीवी से इसके लिए बात की है और वो मेरी ऐसी बातों से मुझसे ख़फा हो गई है। एक दो दिन और ऐसे ही मैंने गुज़ार दिए। असल में मैं हर चीज़ को स्वाभाविक रूप से ही कर रहा था ताकि शक जैसी कोई बात न हो। जब इस बात को एक हप्ता गुज़र गया तो मैंने सोचा कि अब प्लान के अनुसार आगे का काम शुरू करना चाहिए। ये सोच कर मैंने एक दिन निशांत से साफ़ साफ़ कह दिया कि मेरी बीवी इसके लिए बिल्कुल भी राज़ी नहीं हो रही है इस लिए इसके लिए मुझे कोई दूसरा रास्ता चुनना होगा। निशांत ने जब मुझसे दूसरे रास्ते के बारे में पूछा तो मैंने उसे बताया कि इसके लिए मैंने क्या सोचा है किन्तु इस दूसरे रास्ते के लिए मुझे उसकी मदद की ज़रूरत पड़ेगी। निशांत भला मेरी मदद करने से कैसे इंकार कर सकता था? उसके अनुसार फ़ायदा तो उसी का होना था। इस लिए वो मेरी हर तरह से मदद करने के लिए राज़ी हो गया।

कंपनी का हर आदमी मेरे बारे में यही समझता था कि मैं एक बहुत ही शरीफ़ और बहुत ही ईमानदार ब्यक्ति हूं। मैं दुनियादारी से ज़्यादा मतलब नहीं रखता हूं और ना ही मैं ऐसा हूं जो किसी के साथ धोखाधड़ी करने वाले काम करे। कंपनी के लोगों के ज़हन में मेरी छवि बहुत ही साफ़ और शांत स्वभाव वाली थी। निशांत सोलंकी सोच भी नहीं सकता था कि जिसे उसने अपनी समझ में बड़ी आसानी से फंसा लिया था वो असल में अपने अंदर कितना ख़तरनाक मंसूबा पाले बैठा था और ख़ुद उसी को फांस कर उसके साथ क्या करने वाला था।


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Chapter - 01
[ Plan & Murder ]
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Update - 04
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मैंने निशांत सोलंकी को अपने दूसरे रास्ते के बारे में जब बताया था तो वो मुझे इस तरह देखने लगा था जैसे मैं कोई अजूबा था। मैंने भी उसे संतुष्ट करने के लिए यही कहा कि ऐसा मैंने फिल्मों में देखा है और जिस तरह का मेरी बीवी का करैक्टर है उसके लिए यही एक रास्ता है जिसे अपनाना होगा। अब क्योंकि मैं ख़ुद ही ऐसा कह रहा था इस लिए निशांत ने भी सोचा कि चलो अच्छा ही है, यानि काम चाहे जैसे भी बने लेकिन काम होना चाहिए।

मैंने निशांत से उसका मोबाइल ले लिया था। उसने मोबाइल से अपना मेमोरी कार्ड निकाल लिया था। दूसरे रास्ते के बारे में मैंने उसे जो बताया था वही मेरे प्लान के दूसरे चरण का आख़िरी पड़ाव था। निशांत ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि उसने मुझे अपना मोबाइल दे कर मेरा काम कितना आसान कर दिया था। वो तो इसी बात से बेहद खुश था कि मैं प्रमोशन पाने के लिए अब इस हद तक उतर आया था कि खुद ही अपनी बीवी को ब्लैकमेल करने का रास्ता चुन लिया हूं, ताकि मैं उसे निशान्त के पास भेज सकूं। अब भला वो ये कैसे सोच सकता था कि उसका मोबाइल ही तो मेरे प्लान का सबसे बड़ा और ख़ास हिस्सा था।

रात में अपने मन को मार कर और ये सोच कर मैंने रूपा को प्यार किया कि अब इस कुरूप औरत से बहुत जल्द मेरा पीछा छूट जाएगा। ख़ैर प्यार की पारी समाप्त होने के बाद रूपा तो ख़ुशी ख़ुशी गहरी नींद में सो गई थी लेकिन मैं जागते हुए अपने प्लान और अपने मंसूबों के बारे में गहराई से सोचता रहा। मैं हर एक पहलू के बारे में अच्छी तरह से सोच लेना चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि ज़रा सी चूक हो जाने की वजह से मेरे सारे किए कराए पर पानी फिर जाए।

दूसरा दिन मेरे लिए मेरे प्लान के अनुसार बेहद ही ख़ास था। छुट्टी का दिन था इस लिए हमेशा की तरह मैं रूपा को बाहर घूमाने ले जाने वाला था। मैंने रात में ही सोच लिया था कि अगले दिन मुझे क्या करना है। इस लिए सुबह होते ही मैंने रूपा को बता दिया कि आज हमें क्या क्या करना है। रूपा बेहद खुश थी और होती भी क्यों नहीं? साढ़े चार साल की तपस्या का उसे इतना अच्छा फल जो मिल रहा था। उसका पति उसे इतना प्यार और इतना मान जो दे रहा था। उसे अपनी पलकों पर बैठा लिया था और हर दिन नए तरीके से उसे खुश कर रहा था। ऐसी पत्नी को अपने पति से इसके अलावा भला और क्या चाहिए था?

घर से सुबह हम दोनों नास्ता कर के निकले थे। सुबह नौ से बारह सिनेमा हॉल में बैठ कर हम दोनों ने फिल्म देखी। उसके बाद रूपा के ही कहने पर मैं उसे चिड़िया घर दिखाने ले गया। वहां से हम दोनों ढाई बजे एक होटल में पहुंचे। मैंने उसे बताया था कि एक रात हम होटल के एक अच्छे से कमरे में रुकेंगे और वहीं पर एक दूसरे से प्यार करेंगे। रूपा मेरी ये बात सुन कर बेहद खुश हुई थी। अब भला वो ये कैसे सोच सकती थी कि होटल के कमरे में मैं उसे प्यार करने के अलावा और क्या करने वाला था?

दिन भर घूमने के चक्कर में रूपा कुछ ज़्यादा ही थक गई थी इस लिए होटल के कमरे में आते ही वो बेड पर सो गई थी। मैंने भी उसे आराम से सोने दिया, क्योंकि मेरे पास मेरे अपने काम के लिए काफी वक़्त था। कुछ देर मैं अपने प्लान के बारे में सोचता रहा और फिर मैं भी उसके बगल से सो गया। शाम को मेरी आँख खुली तो मैंने उसे जगाया। फ्रेश होने के बाद हम दोनों एक बार फिर घूमने निकल ग‌ए। घूम घाम कर हम वापस आठ बजे होटल आए। पहले तो होटल में हमने डिनर किया और फिर कमरे में आ गए।

डिनर कर के हम दोनों होटल के अपने कमरे में आ गए थे। रूपा बेहद खुश थी। मैंने भी समय बर्बाद न करते हुए रूपा को उसकी उम्मीद से ज़्यादा प्यार दे कर संतुष्ट किया। रूपा संतुष्ट होने के बाद बेड पर निढाल सी आँखें बंद किए पड़ी थी। उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे। मेरी तरह वो भी निर्वस्त्र थी। हालांकि बेड की चादर को उसने अपने पेट तक खींच कर अपने आधे जिस्म को ढँक लिया था। पेट से ऊपर उसके जिस्म का बाकी हिस्सा निर्वस्त्र ही था जिसमें उसकी बड़ी बड़ी लेकिन गहरी सांवली छातियां कमरे में फैले लाइट के दुधिया प्रकाश में चमक रहीं थी।

उसे इस हालत में देख कर सहसा मुझे याद आया कि मुझे अभी अपना असली काम करना है। मैं बहुत ही आहिस्ता से बेड से नीचे उतरा और अपनी पैंट की जेब से निशांत का मोबाइल निकाला। रूपा अभी भी वैसे ही पड़ी हुई थी। मैंने निशांत के टच स्क्रीन मोबाइल से जल्दी जल्दी उसकी कुछ फोटो खींच ली। अब मैं चाहता था कि उसकी कुछ ऐसी फोटो भी लूं जिसमें उसकी आँखें खुली हुई हों और साथ ही वो थोड़ा हंसती मुस्कुराती नज़र आए। मैं ये भी चाहता था कि रूपा को ये न पता चल सके कि मैं उसकी फोटो खींच रहा हूं।

मैंने मोबाइल वाला हाथ पीछे किया और बेड में उसके थोड़ा क़रीब आ कर मैंने उसे पुकारा तो उसने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें खोली। इस बीच मैंने जल्दी से उसकी एक फोटो खींच ली थी और फिर झट से मोबाइल को छुपा लिया था। मैं उससे बातें करने लगा था और वो शरमाते हुए उठ गई थी। बेड की चादर उसके पेट तक ही थी इस लिए जब वो उठी तो वो सरक कर थोड़ा और नीचे हो गई थी। उसने अपनी ब्रा को खोजने के लिए बेड के दूसरी तरफ गर्दन घुमाई तो मैंने जल्दी से उसकी एक और फोटो खींच ली। इस बार मैंने मोबाइल को सामने ही अपने पैरों के पास इस तरह से रख लिया कि उसकी नज़र उस पर न पड़े। आगे की तरफ चादर थी जो उसके उठ जाने से बेड पर सिकुड़ कर थोड़ा ऊपर को उठ गई थी। ऐसे में उसे आसानी से मेरे हाथ में मौजूद मोबाइल नहीं दिख सकता था जबकि मैं नीचे से ही एंगल बना कर उसकी फोटो बड़े आराम से खींच सकता था।

रूपा को बातों में उलझा कर मैंने उसकी चोरी से कई सारी फोटो खींच ली थी। जब मैंने उसके जिस्म से उसके कपड़े उतारे थे तो मैंने जान बूझ कर उसके कपड़े कमरे के फर्श पर फेंक दिए थे ताकि बाद में उन्हें लेने के लिए उसे निर्वस्त्र हालत में ही बेड से नीचे उतरना पड़े और ऐसा हुआ भी। हालांकि रूपा को अपने निर्वस्त्र होने पर बेहद शर्म आ रही थी लेकिन फिर भी उसे कपड़े तो पहनने ही थे इस लिए मजबूरन उसे निर्वस्त्र ही बेड से उतरना पड़ा था। हालांकि मुझे तो ये भी डर था कि कहीं वो बेड की चादर को अपने जिस्म पर न लपेट ले, अगर ऐसा होता तो मेरे लिए समस्या हो जाती लेकिन अच्छा हुआ कि उसने ऐसा नहीं किया था। जब वो अपने कपड़े लेने के लिए बेड से उतर कर फर्श पर आई थी तो मैंने पीछे से उसकी फोटो बड़े आराम से खींच ली थी। उसके बाद अलग पोज़ में भी उसकी फोटो खींची थी। जब वो कपड़े उठाने लगी थी तब भी, और जब वो कपड़े ले कर सीधा खड़ी हुई तब भी। मैं उससे ऐसी बातें करता जा रहा था जिसमें उसके चेहरे पर हंसी भी दिखे और उसका मुस्कुराना भी।

मैं जो चाहता था वो हो चुका था इस लिए इस बात से मैं अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। रूपा को ज़रा भी इस बात की भनक न लग सकी थी कि मैंने उसकी निर्वस्त्र हालत वाली फोटो खींची थी। ख़ैर उसके बाद हम दोनों ही सो गए। दूसरे दिन हम दोनों होटल से वापस अपने घर आ गए।

दूसरे दिन जब मैं ऑफिस गया तो निशांत का मोबाइल भी अपने साथ ही ले कर गया। लंच करते समय निशांत ने मुझसे पूछा कि मैंने अपनी बीवी को फंसाने का काम किया कि नहीं तो मैंने उससे झूठ मूठ कहा कि मेरी बीवी की तबियत ख़राब थी इस लिए उसे नहीं ले जा पाया। निशांत मेरी बात सुन कर मायूस सा हो गया था। उसने अपना मोबाइल माँगा तो मैंने कहा कि मोबाइल मेरे पास ही रहना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि कोई जुगाड़ बन जाए।

निशांत को मैंने विश्वास दिला दिया था कि उसका काम हो जाएगा, बदले में उसने भी ये कहा कि जब उसका काम हो जाएगा तभी वो मेरे प्रमोशन के लिए मेरा नाम लिस्ट में डलवाएगा। मेरे लिए ये एक प्लस पॉइंट था। निशांत के पास दूसरा मोबाइल भी था इस लिए उसे अपने मोबाइल की फ़िक्र नहीं थी। वैसे भी उसने अपना वही मोबाइल दिया था जिसका नंबर कंपनी में किसी के पास नहीं था। उसका मोबाइल अपने पास ही रखने का मेरा बस यही मकसद था कि कुछ दिनों तक मैं उसके मोबाइल से रूपा को निशांत बन कर ही मैसेजेस करुंगा।

अपनी कुरूप बीवी को अपनी ज़िन्दगी से हमेशा के लिए दूर करने का मेरा प्लान अब आख़िरी चरण पर था। यानि वो दिन दूर नहीं जब मुझे हमेशा के लिए मेरी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा।

निशांत सोलंकी की हत्या करके उसकी हत्या में अपनी बीवी को फंसा देना ही मेरा असल प्लान था। इतने दिनों से ये जो कुछ भी मैं कर रहा था वो सब इसी बात की भूमिका थी। अब ऐसा तो हो नहीं सकता था कि निशांत सोलंकी मेरी बीवी रूपा पर इतना ज़्यादा फ़िदा हो जाता कि वो ख़ुद उसे फांसने का सोचता। सच तो ये है कि उसके मन में मेरी बीवी को भोगने का अगर ख़याल भी आता तो वो उसे देखते ही अपना ये ख़याल जीवन भर के लिए मिटा देता। उसके बाद मेरे उस मंसूबे का क्या होता जो मैंने बनाया हुआ था? यानि अपनी कुरूप बीवी से हमेशा के लिए छुटकारा पाना। ख़ैर इसी लिए मुझे ये सब करना पड़ा और इस तरीके से करना पड़ा कि निशांत को ज़रा भी इस बात का शक न हो सके कि इस सबके पीछे मेरा मकसद क्या है। कंपनी से जुड़ा कोई भी शख़्स ये नहीं जानता था कि मेरी बीवी दिखने में कैसी है। हालांकि ये तो सब जानते थे कि मैं शादी शुदा हूं लेकिन अगर कभी किसी ने मेरी बीवी की तस्वीर दिखाने की बात भी कही तो मैंने उन्हें कभी नहीं दिखाया। दिखाता भी कैसे? मैं अपने मोबाइल में उसकी तस्वीर रखता ही नहीं था। आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि अगर बीवी की मोहिनी सूरत इस तरह की हो और उसका पति ऐसे ख़यालात वाला हो तो अपनी बीवी की तस्वीर मोबाइल में रखने का सवाल ही नहीं पैदा हो सकता। निशांत को जब मैंने बली का बकरा बनाने का सोचा था तो इसी लिए एक ऐसी सुन्दर औरत की तस्वीर अपने पर्श में रख कर उसकी नज़र में लाया था ताकि उसे देखते ही उसके मन में उसे भोगने की चाहत पैदा हो जाए। उसके बाद का तो सारा काम मुझे ही करना था।

सब कुछ करने वाला तो मैं ही था लेकिन करने वाला असल में निशान्त कहलाता। मुझे ये दिखाना था कि निशांत ही वो शख़्स था जिसने मेरी बीवी को ग़लत इरादे से अपने जाल में फंसाया और इतना ही नहीं बल्कि मेरी बीवी ने खुद भी अपने पति की चोरी से ख़ुशी ख़ुशी उससे सम्बन्ध बना लिया।

मेरी थ्योरी के अनुसार, शुरुआत के कुछ दिन तो बहुत अच्छे गुज़रे लेकिन एक दिन जब निशांत ने उसे अपने अलावा किसी और मर्द का भी बिस्तर गर्म करने के लिए कहा तो रूपा उसकी इस बात से भड़क गई। रूपा को भड़कते देख निशांत ने उसे ब्लैकमेल करने के लिए अपने मोबाइल में उसकी वो फोटो दिखाई जिसमें वो निर्वस्त्र हालत में थी। रूपा अपनी ऐसी फोटो देख कर सकते में आ गई और फिर मजबूर हो कर वो निशांत के कहने पर दूसरे मर्द का बिस्तर गर्म करने के लिए राज़ी हो गई। रूपा ने निशांत से तो कह दिया था कि वो दूसरे मर्द का बिस्तर गर्म करने के लिए तैयार है लेकिन वो भी जानती थी कि ऐसा करना उसके लिए संभव नहीं है। उसे समझ आ गया था कि निशांत के चक्कर में आ कर उसने बहुत बड़ी ग़लती की है। उसे अपने पति से इस तरह बेवफ़ाई नहीं करनी चाहिए थी। ये एहसास होते ही रूपा ने मन ही मन सोच लिया था कि अब वो सब कुछ ठीक करके रहेगी। उसी रात निशांत ने जब रूपा को अपने फ्लैट पर बुलाया तो रूपा अपने पति के सो जाने के बाद आधी रात को निशांत के फ्लैट पर बड़े ही ख़तरनाक इरादे के साथ ग‌ई। अपने घर से वो सब्जी काटने वाला चाकू भी छुपा कर ले गई थी। निशांत के फ्लैट पर पहुंच कर पहले तो उसने निशांत से अपनी उन गन्दी तस्वीरों को मोबाइल से डिलीट करने को कहा और जब निशान्त ने ऐसा करने से इंकार किया तो गुस्से में आ कर रूपा ने छुपा कर लाए हुए उस चाक़ू से निशांत की हत्या कर दी थी। रूपा ने गुस्से में हत्या तो कर दी थी लेकिन जब उसका गुस्सा शांत हुआ तब उसे समझ आया कि ये उसने क्या ग़ज़ब कर दिया है? अपने सामने निशांत को खून से नहाए मरा पड़ा देख वो बुरी तरह डर गई और फिर वो डर कर वहां से भागते हुए वापस घर आ गई थी।

जिस चाकू से उसने निशांत की हत्या की थी वो चाकू भी वो उसके फ्लैट में ही छोड़ आई थी। उस चाकू में उसकी उंगलियों के निशान छप चुके थे। ख़ैर वो उस हत्या से इतना डर गई थी कि उसे निशांत के मोबाइल से अपनी गन्दी तस्वीरों को डिलीट करने का ख़याल भी नहीं रहा था।

उसके बाद सुबह होगी और ज़ाहिर है कि किसी तरह पुलिस को पता चल ही जाएगा कि किसी ने निशांत नाम के आदमी की हत्या कर दी है। पुलिस निशांत के फ्लैट पर जाएगी और हत्या की जांच पड़ताल करेगी। पुलिस को जल्द ही पता चल जाएगा कि वो हत्या किसने की है। पुलिस अपने किसी न किसी माध्यम से सीधा मेरे घर आएगी और रूपा को निशांत की हत्या करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लेगी।

अदालत में बड़ी आसानी से साबित हो जाएगा कि निशांत सोलंकी की हत्या रूपा ने ही की है। निशांत के मोबाइल में उसकी नंगी तस्वीरें, हत्या के औज़ार पर उसके फिंगर प्रिंट्स और साथ ही उसके ख़ुद के मोबाइल में भी निशांत के साथ हुई उसकी बात चीत के मैसेजेस। इतना ही नहीं बल्कि निशांत के मोबाइल की लोकेशन भी पुलिस को बताएगी कि निशांत का मेरे घर आना जाना था। ये सब चीख चीख कर गवाही देंगे कि निशांत की हत्या रूपा ने ही की है। अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर अपनी दलील में चीख चीख कर जज साहब को बताएगा कि रूपा एक बदचलन और पति से बेवफ़ाई करने वाली औरत है। निशांत सोलंकी से उसके नाजायज़ सम्बन्ध थे। जब निशांत ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया तो रूपा के अक्ल के परदे खुल गए और उसे समझ आ गया कि उसने ऐसे ग़लत आदमी से सम्बन्ध बना कर अच्छा नहीं किया। उसे एहसास हुआ कि निशांत के ऐसा करने से उसके पति को उसके ऐसे सम्बन्ध का पता चल जाएगा और फिर ये भी सच ही है कि इससे उसकी शादी शुदा ज़िन्दगी ख़तरे में पड़ जाएगी। ये सब सोच कर रूपा ने पहले तो निशांत से अपनी वो गन्दी तस्वीरें उसके मोबाइल से डिलीट करने की मिन्नतें की होंगी और जब निशांत ने उसकी मिन्नतों को ठुकरा दिया तो उसके पास एक ही चारा रह गया और वो चारा था निशांत सोलंकी की बेरहमी से हत्या कर देना। इस बीच मैं ऐसी स्थिति में खुद को दिखाऊंगा जैसे इस सबसे मुझे कितनी तकलीफ़ हुई है। रूपा अगर मुझसे कुछ कहेगी या मुझसे किसी चीज़ के लिए कुछ कहने को कहेगी तो मैं उसकी ना तो कोई बात मानूंगा और ना ही ऐसी कोई बात कहूंगा जिससे उसकी कोई मदद हो सके। उधर एक तरफ कंपनी के मेरे वो साथी भी इस केस में अपने बयानों के द्वारा अंजाने में ही मेरा पक्ष मजबूत बना देंगे जो मुझे निर्दोष के साथ साथ मासूम बना देंगे।

मेरी थ्योरी के अनुसार अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर आसानी से ये साबित कर देगा कि निशांत सोलंकी की हत्या रूपा त्रिपाठी ने ही की है। उसके बाद जज साहब अपने फैंसले में उसे फ़ांसी की अथवा उम्र क़ैद की सज़ा सुना देंगे। यही मेरा प्लान था और यही मेरा मंसूबा था रूपा से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का।


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Chapter - 01
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Update - 05
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दो तीन दिन से मैं हर रोज़ निशांत के मोबाइल से रूपा को मैसेजेस कर रहा था और रूपा उन मैसेजेस से बेहद परेशान सी नज़र आ रही थी। शुरू शुरू में उसने सोचा कि शायद किसी ने ग़लती से उसे मैसेज कर दिया होगा लेकिन जब हर रोज़ उसे उसी नंबर से मैसेजेस आने लगे तो वो एकदम से परेशान हो ग‌ई। उसे डर लगने लगा कि कहीं उसके मोबाइल के ऐसे मैसेजेस ग़लती से मेरी नज़र में न आ जाएं। आख़िर साढ़े चार सालों बाद उसकी तपस्या पूरी हुई थी और उसके पति ने उसे पत्नी के रूप में उसे अपनाया था। इतना ही नहीं बल्कि अब उसे इतना प्यार भी कर रहा था। वो अपने पति और उसके प्यार से बेहद खुश रहने लगी थी। उसने साढ़े चार सालों का अपना सारा दुःख दर्द भुला दिया था लेकिन दो तीन दिन से आ रहे ऐसे मैसेजेस ने उसे गंभीर चिंता में डाल दिया था। हालांकि ऐसी सिचुएशन में उसे करना तो ये चाहिए था कि वो इस बात को फ़ौरन ही मुझे बता देती लेकिन उसने मुझे नहीं बताया। इसकी वजह शायद ये थी कि वो नहीं चाहती थी कि उसके और मेरे बीच इस तरह की कोई बात आए जिससे मेरे मन में एक पल के लिए भी ये ख़याल उभर आए कि कहीं मेरी बीवी का किसी से चक्कर तो नहीं है?

अपनी समझ में रूपा जो कर रही थी वो ठीक कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसके मन में ये ख़याल भी उभर आते थे कि किसी दिन इस सबकी वजह से उस पर कोई भारी मुसीबत न आ जाए। वो उन मैसेजेस से बेहद परेशान हो चुकी थी। मेरे सामने वो खुश रहने का दिखावा करती लेकिन अकेले में वो उन मैसेजेस के बारे में ही सोच कर अंदर ही अंदर परेशान रहती। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस गंभीर समस्या से कैसे छुटकारा पाए? इधर मैं भी मैसेजेस में उसे ऐसी ऐसी बातें लिख कर भेजता था जैसे वो मेरी माशूका हो। माशूका समझ कर मैं उसे वैसे ही मैसेजेस भेज रहा था जैसे आज कल के ठरकी नव जवान भेजते हैं।

ऐसे ही दो तीन दिन गुज़र गए। मैं जब घर पर रूपा के सामने होता तो ऐसा ज़ाहिर करता जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं है। वो ख़ुद भी ऐसा दिखावा कर रही थी जैसे उसे किसी बात की परेशानी नहीं है। मैं तो जानता ही था सब कुछ क्योंकि सब कुछ करने वाला मैं ही था। मैं चाहता था कि रूपा मेरे मैसेजेस का कोई न कोई जवाब ज़रूर दे और मेरी ये चाहत तीसरे दिन पूरी हुई। यानि दो दिनों तक रूपा मेरे ऐसे मैसेजेस को सिर्फ देखती ही रही थी और मैसेजेस पढ़ कर उन्हें डिलीट कर देती थी ताकि ग़लती से भी मेरी नज़र में न आएं।

तीसरे दिन मैं ऑफिस में था और वहीं से निशांत के मोबाइल से उसे मैसेजेस भेज रहा था। अपने मैसेजेस में मैं अब ऐसी बातें लिखने लगा था कि रूपा के लिए उनका जवाब देना मज़बूरी बन जानी थी। ख़ैर तीसरे दिन रूपा ने जवाब में लिखा कि तुम कौन हो और क्यों इस तरह के घटिया मैसेजेस भेजते हो मुझे? रूपा का जवाब के रूप में ऐसा सवाल देख कर मैं मुस्कुराया और उसे मैसेज में बोला कि वो मेरी जानेमन है और मैं उससे प्यार करता हूं और साथ ही मैं चाहता हूं कि वो मेरा प्यार एक्सेप्ट कर के मेरे पास आए, ताकि हम दोनों के जिस्म एक हो जाएं।

रूपा मेरा मैसेज पढ़ कर यकीनन बुरी तरह चौंकी रही होगी लेकिन जवाब में उसने यही लिखा कि अगर उसने मुझे फिर से इसी तरह मैसेजे किए तो इस बार वो पुलिस के पास जा कर मेरी शिक़ायत कर देगी। मुझे रूपा के इस रिप्लाई पर थोड़ा झटका तो ज़रूर लगा था लेकिन मैं जानता था कि वो मुझे सिर्फ खोखली धमकी दे रही थी जबकि सच तो ये है कि ऐसा करने की उसमें हिम्मत ही नहीं हो सकती थी। मैंने भी उसकी हिम्मत को और भी ज़्यादा तोड़ने के इरादे से उसके जवाब में ये लिख कर भेजा कि अगर उसने मेरा कहा नहीं माना तो मैं उसके पति के पास उसकी ऐसी तस्वीर भेज दूंगा जिसमें वो पूरी तरह नंगी है। मेरा ये मैसेज पढ़ कर रूपा का जल्दी ही जवाब आया कि तुम झूठ बोल रहे हो, भला तुम्हारे पास मेरी ऐसी तस्वीर कहां से आ जाएगी। मैंने उसे बताया कि मैं उसके बारे में सब जानता हूं। मैंने उसे बताया कि उसका नाम रूपा है और उसके पति का नाम विशेष त्रिपाठी है।

रूपा मेरा ये मैसेज पढ़ कर यकीनन बुरी तरह चौंकी होगी। मैंने उसे कहा कि अगर उसने इसी वक़्त अपनी एक नंगी फोटो नहीं भेजी तो मैं उसके पति विशेष के पास उसकी वो नंगी फोटो भेज दूंगा। अपनी बात को साबित करने के लिए मैंने उसकी उस फोटो को एडिट कर के भेज दिया जो उस दिन मैंने होटल के कमरे में खींची थी। मैंने उसकी फोटो को एडिट कर दिया था ताकि उसके बैकग्राउंड से उसे पता न चल सके कि उसकी ऐसी फोटो कहां पर खींची गई होगी। ख़ैर अपनी फोटो देख कर यकीनन रूपा के होश उड़ गए रहे होंगे। काफी देर तक उसका कोई जवाब नहीं आया।

अचानक ही जब मेरे अपने मोबाइल पर उसका फ़ोन काल आ गया तो मैं एकदम से बौखला ही गया। मैं समझ गया कि वो इस सबके बाद बहुत बुरी तरह से घबरा गई है और अब शायद उसने सोच लिया था कि वो इस बारे में अपने पति को सब कुछ बता देगी। मैंने सोचा कि उससे बात कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि उसके ज़हन में ये ख़याल उभर आए कि कहीं उसका पति ही तो नहीं ये सब कर रहा है? बात भी सही थी क्योंकि वो सोच सकती थी कि इसके पहले उसका पति साढ़े चार सालों तक उसे त्यागे हुए था।

मैंने फ़ोन उठाया और इस तरह प्यार से उससे हेलो किया जैसे मुझे किसी बात का कुछ पता ही न हो। ज़ाहिर है इस वक़्त मैं उससे ये कैसे ज़ाहिर कर सकता था कि मैं ही वो शख़्स हूं जो उसे पिछले तीन दिनों से ऐसे मैसेजेस के द्वारा परेशान कर के रखा हुआ है? मैंने फ़ोन उठाया तो उसने हड़बड़ाए हुए लहजे में कहा कि उसे मुझको एक बहुत ही ज़रूरी बात बतानी है इस लिए मैं जितना जल्दी हो सके घर आ जाऊं। उसकी ये बात सुन कर मैंने उससे कहा कि इस वक़्त मैं नहीं आ सकता जान क्योंकि ऑफिस में मैं बहुत ही ज़रूरी काम में ब्यस्त हूं। शाम को जब मैं ऑफिस से घर आऊंगा तो हम दोनों बाहर ही किसी अच्छे रेस्टुरेंट में डिनर करेंगे। ये कह कर मैंने फ़ोन कट कर दिया। इस बीच मैं निशांत के मोबाइल से उसको ये मैसेज भेज चुका था कि अब तो तुम्हें यकीन हो गया न मेरी जान। चलो अब जल्दी से इसी तरह की अपनी एक फोटो भेजो और अगर नहीं भेजा तो इसी वक़्त मैं उसकी यही फोटो उसके पति के मोबाइल में भेज दूंगा। उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है।

रूपा बहुत ही बड़े संकट में खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही थी, ये मैं अच्छी तरह समझ सकता था। उसकी आँखों के सामने यकीनन अँधेरा सा छा गया रहा होगा। वो अपने भगवान को याद करते हुए उनसे बार बार यही पूछ रही होगी कि मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है कि तू मुझे इस तरह की सज़ा दे रहा है? वो भगवान से ये भी कहती रही होगी कि बड़ी मुश्किल से तो मेरी ज़िन्दगी में खुशियों ने आ कर दस्तक दी थी तो अब तुझसे मेरी ये खुशियां भी नहीं देखी जा रहीं।

उधर फ़ोन कट होने के कुछ देर बाद ही रूपा का मैसेज आ गया। उसने लिखा था कि भगवान के लिए मेरे साथ ऐसा जुलम मत करो। आख़िर मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा जो तुम मेरे साथ ऐसा कर रहे हो? रूपा के इस मैसेज पर भला मेरा दिल कैसे पसीज सकता था? मैंने उसे आख़िरी वार्निंग देते हुए लिख कर भेजा कि मैं दो मिनट तक इंतज़ार करुंगा। अगर दो मिनट में उसने अपनी नंगी फोटो नहीं भेजी तो मैं उसकी नंगी तस्वीर उसके पति विशेष को भेज दूंगा।

निशांत के रूप में मैंने रूपा को लास्ट वार्निंग का ऐसा मैसेज भेज तो दिया था लेकिन मैं ये सोच कर अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा भी उठा था कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी इस धमकी से डर कर रूपा कोई ऐसा वैसा क़दम न उठा ले जो मेरी सारी मेहनत और मेरे सारे मंसूबों पर पानी फेर दे। यानि वो इस सबसे बुरी तरह घबरा कर आत्म हत्या करने का भी सोच सकती थी जो कि यकीनन अच्छा नहीं हो सकता था।

मैं अपने ऑफिस में साँसें रोके उसके मैसेज के आने का इंतज़ार कर रहा था। एक एक पल मेरे लिए सदियों जैसा भारी लग रहा था और साथ ही इस बात का डर भी मेरी जान लिए जा रहा था कि रूपा कहीं सच में न आत्म हत्या करने का सोच ले। मैं मन ही मन भगवान को याद कर रहा था कि रूपा ऐसा कुछ न सोचे। एक मिनट में ही मेरी बुरी हालत हो गई थी और आगे और भी बुरी हालत हो जाती अगर दो मिनट के अंदर ही रूपा का मैसेज न आ गया होता।

रूपा ने अपनी नंगी तस्वीर भेज दी थी किन्तु तस्वीर में उसका चेहरा नहीं दिख रहा था बल्कि उसकी गर्दन से नीचे का सारा जिस्म बेपर्दा दिख रहा था। मैं समझ सकता था कि इतना कुछ करने के लिए भी उसने बहुत हिम्मत दिखाई है। अभी मैं उसकी उस भयानक फोटो को देख ही रहा था कि तभी उसका एक मैसेज आया। उसने लिखा था कि मैंने ये फोटो बड़ी हिम्मत कर के तुम्हें भेजी है। मेरा दिल मेरी आत्मा तो चीख चीख कर कह रही थी कि मैं ऐसा न करूं, बल्कि ऐसी बदनामी से बचने के लिए मैं अपने जीवन को ही समाप्त कर लूं लेकिन मैंने ऐसा इस लिए नहीं किया क्योंकि वर्षों बाद मुझे अपने पति का प्यार और उनका साथ मिला है। मैं हर सूरत में बस यही चाहती हूं कि मुझे इसी तरह मेरे पति का प्यार मिलता रहे। मेरी तुमसे यही विनती है कि अब इसके बाद मुझे ना तो कोई मैसेज करना और ना ही मुझसे किसी बात की डिमांड करना वरना मेरे पास फिर एक ही चारा बचेगा कि मैं अपनी जान दे दूं।

रूपा के इस मैसेज ने मुझे अंदर तक हिला दिया था। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि उसने आत्म हत्या नहीं कर ली थी। ख़ैर उसकी भावनाओं से तो मुझे वैसे भी कोई लेना देना नहीं था लेकिन उसके मैसेज की आख़िरी बात पढ़ कर मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि अगर ये सच में खुद ही आत्म हत्या कर ले तो ये भी शायद बुरा नहीं होगा। मैंने इस बारे में गहराई से सोचा लेकिन फिर एहसास हुआ कि नहीं अगर उसने आत्म हत्या कर ली तो इससे उसकी मौत में कहीं न कहीं मैं भी फंस सकता हूं।

मैंने रूपा को जवाब में लिखा की ठीक है अब ऐसी डिमांड नहीं करुंगा लेकिन मैं चाहता हूं कि हम दोनों एक दोस्त की तरह कभी कभी एक दूसरे से बात कर लिया करें। रूपा ने इसके लिए साफ़ मना कर दिया। उसके बाद ना तो मैंने उसे कोई मैसेज किया और ना ही उसने कुछ लिख कर भेजा।

शाम को जब मैं घर पहुंचा तो रूपा मुझे देखते ही मुझसे किसी बेल लता की तरह लिपट गई। दिन भर से रोक रखे अपने गुबार को उसने अपने अंदर से निकाल दिया। उसकी हालत देख कर मैंने बुरी तरह हैरान होने का दिखावा किया और अंजान बनते हुए उससे पूछा कि वो रो क्यों रही है? आख़िर बात क्या है? ऐसे न जाने कितने ही सवाल मैंने उससे एक ही सांस में पूछ डाले। जवाब में उसने सिर्फ इतना ही कहा कि उसे मेरी बहुत ही ज़्यादा याद आ रही थी। मैं समझ गया कि मामला ठीक होने के बाद उसने यही फैसला लिया था कि उस मामले के निपट जाने के बाद अब उसका ज़िक्र क्यों अपने पति करे? वो नहीं चाहती थी कि उसका पति इस तरह की किसी भी बातों को उसके बारे में सुने। वो चाहती थी कि उसका पति सिर्फ यही समझे कि उसकी बीवी के मन में उसके अलावा कोई दूसरा ख़्वाब में भी नहीं आ सकता।

रात में डिनर करने के बाद हम दोनों अपने कमरे में आ ग‌ए। आज रूपा के चेहरे में सच मुच की ख़ुशी थी। मैं समझ सकता था कि जिस बात ने उसे इतने दिनों से परेशान कर रखा था उस बात के निपट जाने से अब वो थोड़ा चिंता मुक्त हो गई है। इधर मैंने भी सोचा कि चलो आज इस कुरूप औरत के साथ आख़िरी बार सो लिया जाए क्योंकि इसके बाद तो इससे हमेशा के लिए ही छुटकारा मिल जाएगा।

मैंने जैसा सोचा था बिल्कुल वैसा ही हुआ था। मेरा जो प्लान था उसके हिसाब से मेरा काम हो चुका था और अब प्लान के आख़िरी पड़ाव पर काम करने के लिए मैंने आगे बढ़ने का सोचा। शाम को ऑफिस से चलते समय मैं निशांत से मिला था और उसको बोला था कि उसके काम के लिए मैंने एक दूसरा शानदार तरीका सोचा है। निशांत मेरी बात सुन कर बुरी तरह चौंक पड़ा था।

"अब ये दूसरा तरीका क्यों भाई?" उसने हैरानी से पूछा था____"पहले वाले तरीके का क्या हुआ?"
"असल में बात ये है सर कि उस समय मेरे दिमाग़ में उसके लिए फिल्मों जैसा ही ख़याल आया था।" मैंने गंभीरता दिखाते हुए कहा____"और उस वक़्त मुझे वही तरीका जंचा था। उसके बाद मैं उस तरीके पर काम भी करने लगा था लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि अपनी ही बीवी को इस तरह ब्लैकमेल करना सही नहीं है।"

"हां बात तो तुम्हारी ठीक है विशेष।" निशांत ने सिर हिलाते हुए कहा था____"और सच कहूं तो मैं खुद भी तुम्हारे ऐसे तरीके से उस दिन हैरान हुआ था। ख़ैर तो अब नया तरीका कौन सा है तुम्हारा? वैसे कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम मुझे गोली दे रहे हो? देखो अगर ऐसा है तो तुम सोच भी नहीं सकते कि इसके लिए तुम्हें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।"

"अरे! नहीं नहीं सर।" मैंने इस तरह कहा था जैसे मैं उससे डर गया होऊं____"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।"
"तो साफ़ साफ़ बताओ कि क्या सोचा है इस बारे में तुमने?" निशांत के चेहरे पर नाराज़गी थी।

निशांत के पूछने पर मैंने उसे बताया कि मेरा दूसरा तरीका क्या है। यानि मैं अपनी बीवी से कहूंगा कि मेरे एक दोस्त ने कल हम दोनों को लेट नाईट डिनर पर बुलाया है। मेरी बीवी क्योंकि मेरी कोई बात टालने का सोच ही नहीं सकती इस लिए कल वो मेरे साथ ज़रूर उसके यहाँ लेट नाईट डिनर पर आएगी। उसके बाद मैं उसे डिनर के दौरान बियर वग़ैरा पीने को कहूंगा। पहले तो वो ना नुकुर करेगी लेकिन जब मैं उसे ख़ुशी ख़ुशी प्यार से पीने को कहूंगा तो वो इंकार नहीं कर पाएगी। थोड़ा थोड़ा कर के हम उसे इतनी तो बियर पिला ही देंगे कि उसे नशा चढ़ जाए। बस उसके बाद नशे में जब उसे किसी बात का होश नहीं रहेगा तो फिर उसके साथ कुछ भी किया जा सकता है।

निशांत मेरी ये बातें सुन कर मुझे इस तरह देखने लगा था जैसे मैंने कोई ऐसी बात कह दी हो जिसकी उसने कभी कल्पना भी न की थी। मैंने निशांत को विश्वास दिलाया कि कल रात उसकी मुराद ज़रूर पूरी हो जाएगी। निशांत मेरी बात सुन कर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसने तो आज रात ही डिनर वाला प्रोग्राम बना लेने पर ज़ोर दिया था लेकिन मैंने उसे कहा कि मैं अपनी बीवी को कल की रात ही उसके फ्लैट पर ले कर आऊंगा। मेरी बात सुन कर उसने कहा था कि चलो कल रात को ही सही।

निशांत के बारे में मैं जानता था कि वो हमेशा की तरह कल रात भी अपने फ्लैट में उस वक़्त शराब के नशे में ज़रूर होगा क्योंकि फ्लैट पर आने के बाद वो बिना पिए नहीं रहता था और क्योंकि उसकी समझ में मेरी बीवी उस रात उसे भोगने के लिए मिलने वाली है इस लिए वो इस ख़ुशी में कुछ ज़्यादा ही नशे में होगा।

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