एक अधूरी प्यास

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शीतल के फोन काटने के बाद उसकी कही बात पर गौर करने लगी कि वह किस तरह से एकदम बेशर्मों की तरह ऊससे शुभम से चुदने की बात कर रही थी,, क्या सच में वह ऐसा कर सकती है अभी तक उसके कोई भी संतान नहीं है हो सकता है संतान की लालच में वह ईस तरह के कदम उठा ले और तभी उसकी कही वह बात याद आने लगी थी मां बेटे के बीच शारीरिक संबंध को लेकर कभी भी किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा वह सच ही कह रही थी कि बेटा अपने मुंह से तो यह नहीं कहूंगा कि वह अपनी मां को चोदता है और ना ही मा ही कहेगी कि अपने बेटे से चुदवाती है।

इस बात पर गौर करके निर्मला के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई वह काफी देर से उस कुर्सी पर बैठी रही, उसे नहा कर खाना बनाना था तभी उसे ध्यान आया कि शुभम भी शायद अपने कमरे में अभी तक सो ही रहा है। इसलिए वह उठकर शुभम के कमरे में जाकर उसे जगाने की सोची और वह शुभम के कमरे तक पहुंच भी गई, कमरे का दरवाजा खुला हुआ था इसलिए वह दरवाजे पर बिना दस्तक दिए कमरे में प्रवेश कर गई

कमरे में प्रवेश करते ही जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी तो वह बिस्तर का नजारा देख कर एकदम से उत्तेजित हो गई,, शुभम एकदम गहरी नींद में था उसका पजामा जांघो तक सरका हुआ था और उसका लंड पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था जिसे उसने नींद में भी अपने हाथों से पकड़ा हुआ था।

खड़े लंड को देख कर एक बार फिर से निर्मला की बुर में सुरसुराहट होने लगी, एक बार फिर से उसकी जवानी हिलोरे मारने लगी, रात को अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेकर उसकी प्यास बुझने की बजाए और ज्यादा बढ़ गई थी।


निर्मला अपने बेटे के कमरे में खड़े-खड़े अपने बेटे के टनटनाए हुए लंड को देख कर चुदवासी हुए जा रही थी। कार के अंदर अपने बेटे से जबरदस्ती चुदाई का वह एहसास अभी भी उसके मन में ताजा था वह जानती थी कि उसके बेटे का मोटा लंड उसकी बुर में एकदम रगड़ता हुआ अंदर बाहर होता था। जिसकी रगड़ की गर्मी में उसकी बुर की अंदरूनी दीवारे पसीज पसीज कर पानी छोड़ रही थी।

अपने बेटे के लंड को देखकर उसका जोर-जोर से कमर हिलाना याद आ गया जो कि बिना रुके अपनी गति को बिना परिवर्तित कीए एक ही लय में उसकी बुर में अंदर बाहर डालते हुए उसे चोद रहा था। शुभम की जबरजस्त कमर हिलाई से ही वह समझ चुकी थी कि उसके बेटे में बहुत दम है। क्योंकि इस तरह के जबरदस्त प्रहार के साथ आज तक अशोक ने कभी भी उसकी चुदाई नही किया था,, अशोक का लंड को बुर की पूरी तरह से गहराई भी कभी नहीं नाप पाया था और शुभम हर धक्के के साथ निर्मला की बुर की गहराई में उतर जाता था। उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि सुबह इतनी जबरदस्त धक्कों के साथ उसकी चुदाई करेगा और इतनी देर तक टिका भी रहेगा वरना अशोक तो पत्ते की महल की तरह दो चार धक्को मेही ढेर हो जाता था।


निर्मला की सांसो की गति गति तीव्र गति से चल रही थी बड़ा ही मोहक और मादक नजारा कमरे का बना हुआ था शुभम बिस्तर पर पीठ के बल एकदम चित लेटा हुआ था, उसका लंड नींद में होने के बावजूद भी पूरी तरह से छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।

निर्मला के बदन में हलचल सी मची हुई थी उसकी बुर उत्तेजना के मारे पानी पानी हुए जा रही थी पेंटी पूरी तरह से गीली होने लगी थी। निर्मला की बुर में चीटियां रेंगने लगी थी एक ही दिन में यह दूसरी बार था जब उसका मन चुदवाने को व्याकुल हुए जा रहा था। निर्मला की सांसे बड़ी ही तीव्र गति से चल रही थी।

रिश्तो के बीच की मर्यादा की डोरी को उसने रात को ही कार के अंदर तोड़ चुकी थी, मान मर्यादा संस्कार सब कुछ पीछे छुट़ चुका था। शुभम के कुंवारेपन को खुद उसकी मां ही तोड़ चुकी थी।
 
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शुभम के मन में कोई भी पछतावा नहीं था इसलिए तू एकदम गहरी नींद में बेफिक्र होकर वह सो रहा था और निर्मला थी की, एक बार फिर से उसके मन में चुदवाने की कसक जगने लगी थी। वैसे भी वह कर भी क्या सकती थी चुदाई का सुख होता है इतना बेहतरीन और आनंद दायक कि इंसान उस सुख को पाने के लिए हमेशा लालायित रहता है।


एक बार निर्मला ने अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में ले चुकी थी इसलिए सारी सरमाया दूर हो चुकी थी लेकिन थोड़ी सी झिझक अभी भी उसके मन में थी। क्योंकि उस समय तो मौसम भी कुछ हद तक बेईमानी पर उतर आया था दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति आकर्षण का बल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। जो कि धीरे-धीरे वह आकर्षण संभोग में तब्दील हो गया पर यहां तो शुभम गहरी नींद में सो रहा था। लेकिन उसका लंड पूरी तरह से ऐसा खड़ा था कि मानो किसी की चुदाई करने जा रहा हो, तभी निर्मला को ख्याल आया कि कुछ ही घंटे पहले शुभम ने उसकी जमकर चुदाई किया था हो सकता है अभी भी उसके सपने में वह उसे ही चोद रहा हो तभी तो उसका लंड इस तरह से टनटना कर खड़ा है। जैसे कि उस रात वह शुभम से चुदने का सपना देख रही थी।



निर्मला को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कमरे का माहौल पूरी तरह से गरमा चुका था एक तरफ उसका बेटा पूरी गहरी नींद में लेटा हुआ था जिसका लंड तनकर एकदम छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था। और दूसरी तरफ निर्मला उसके बिस्तर के करीब खड़ी होकर उसके लंबे लंड को ही देखे जा रही थी और एक बार फिर से उसकी बुर कुबुलाने लगी थी अपने बेटे के लंड को पूरी तरह से अपने अंदर उतारने के लिए। निर्मला की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी इसलिए उसने अपने साड़ी पूरी तरह से कमर तक उठा कर पैंटी के ऊपर से ही अपनी बुर को रगड़ना शुरु कर दी थी जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।


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निर्मला घर आने पर अपने कपड़े चेंज नहीं की थी । यह वही उत्तेजक कपड़े थे जिसे देखकर शुभम का मनं डगमगाने लगा था। उसकी आंखों में अपनी मां के बदन से संसर्ग करने लिए एक चमक सी नजर आने लगी थी। निर्मला के साड़ी का पल्लू उसके कंधे से नीचे गिर चुका था जिससे उसकी भारी भरकम छातियां शुभम के होश उड़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी वह अभी नींद में था निर्मला को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसे जगाना ठीक रहेगा या नहीं। क्योंकि उसे इस तरह से गहरी नींद में जगाने से कहीं उसका जोस ठंडा ना हो जाए यही सोचकर उस ने उसे नींद से नहीं जगाई।



लेकिन अपनी उत्तेजना अपनी प्यास कैसे बुझाएं यह भी उसे समझ में नहीं आ रहा था। धीरे-धीरे उत्तेजना के मारे उसने अपनी पैंटी को जांघो तक सरका दी थी। उसकी चिकनी रसीली बुर फुल कर गरम रोटी की तरह हो गई थी जो कि उसमें से मालपुआ के समान रस टपक रहा था।


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यह मालपुआ का रस मर्दों के लिए किसी अमृत से कम नहीं था जिसे वह किसी बर्तन से नहीं बल्कि खुद ही अपनी जीभ लगा कर उसके स्वाद का रसपान करने के लिए तड़पते रहते हैं। मर्द औरत के मालपुआ में से टपक रहे मदन रस का रसपान किस तरह से करते हैं उसका अनुभव अभी तक पूरी तरह से निर्मला को भी नहीं था क्योंकि उसने अभी तक अशोक द्वारा एक कला का उपयोग पूरी तरह से नहीं कर के देखी थी शुरु शुरु में इस तरह की कला का प्रदर्शन अशोक द्वारा जरुर हुआ था लेकिन उस समय के माहौल के अनुसार इस समय का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था जो कि उसके मानस पटल पर से पूरी तरह से बिसर चुके थे।



वह धीरे धीरे अपनी बुर में अपनी उंगली को उतारना शुरू कर दी, साथ ही जैसे जैसे वह अपनी उंगली को अंदर बाहर करते जा रही थी,, उसकी सांसो की गति और भी ज्यादा तीव्र होती जा रही थी।


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निर्मला अपनी बुर की प्यास बुझाने के लिए पूरी तरह से तड़प रही थी व्याकुल हुए जा रहे थे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था तभी उसने कुछ ऐसा कर डाला जिसके बारे में उसने कभी सोची भी नहीं थी और ना ही कभी आज तक ऐसा की थी।



निर्मला धीरे धीरे करके अपनी पेंटि को पूरी तरह से अपनी लंबी चिकनी टांगो से बाहर कर दी और साड़ी को भी उतार फेंकी। साड़ी को उतार ने के बाद वह अपनी पेटीकोट की डोरी को खोलकर पेटीकोट को भी नीचे फर्श पर फेंक दी।


उसे अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए जल्दी-जल्दी अपने ब्लाउज के बटन को खोलकर ब्रा सहित उसे भी उतार फेंकी, निर्मला इस समय बिल्कुल नंगी हो चुकी थी किस तरह से उसने अब तक शर्म की चादर ओढ़ कर अपनी संस्कार को अपने अंदर से कभी भी दूर नहीं होने दी थी उसी तरह से आज उसने अपने संस्कार और शर्म की चादर को अपने ऊपर से पूरी तरह से उतार कर पूरी तरह से बेशर्म हो चुकी थी।


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निर्मला का यह रूप आज तक किसी ने नहीं देखा था खुद शुभम भी उसका नया और कामी रुप देख कर हैरान होता, लेकिन अपनी मां के इस नए रूप को देखकर क्रोध करने की जगह वह इस कामुक रूप देखकर पूरी तरह से प्रशन्न और उत्तेजित हो चुका होता।


अगर इस समय वह जाग रहा होता तो शायद जिस तरह का वाक्या रात को दोनों के बीच घट चुका था उसे देखते हुए इस समय निर्मला को कुछ भी करने की जरूरत नहीं थी जो भी करना था वह शुभम खुद ही करता। वह खुद ही अपनी मां की साड़ी को उतारता उसकी ब्लाउज के बटन को खोलता उसकी पेटीकोट की डोरी को खोलकर उस की पेटीकोट को नीचे सरका देता और उसकी गीली पेंटी को उतार कर कब अपने मुसल जेसे लंड को उसकी बुर में उतार देता इसका अंदाजा शायद निर्मला को भी नहीं था। लेकिन अभी शुभम सो रहा था इसलिए जो भी करना था वह निर्मला को ही करना था निर्मला एक बार अपनी दूर को अपनी हथेली से रगड़ी और अगले ही पल अपने बेटे के बिस्तर पर चढ़ गई।


और देखते ही देखते निर्मलां घुटनों के बल आगे बढ़ते हुए उसकी कमर के करीब पहुंच गई और एक घुटने को आगे बढ़ाकर उसकी कमर के बगल में रखी और दूसरे घुटने को आगे की तरफ करके शुभम के कमर के इर्द गिर्द अपनी पोजीशन को ठीक तरह से बना ली वह एक नजर अपने बेटे पर डाली तो बड़ी मासूमियत के साथ वह गहरी नींद का आनंद ले रहा था जिसे देखकर उसके होठों पर मुस्कान खिल गई।


वो धीरे से एक हाथ नीचे ले जाकर अपने बेटे के खड़े लंड को पकड़ ली, लंड की गर्माहट उसके बदन को पूरी तरह से झन झनाकर रख दी। उत्तेजना के मारे निर्मला का गला सूख रहा था, वह जिस तरह की हिम्मत आज दिखाने जा रही थी इस तरह की हिम्मत के बारे में कभी उसने ना कल्पना की थी और ना ही अशोक के साथ ऐसी हिम्मत दीखाने की कोशिश ही की थी जिस के साथ वह चुदाई का पूरी तरह से मजा ले सकती थी। लेकिन उस समय संस्कार और मर्यादा की दीवार इतनी ज्यादा लंबी थी कि वह उस दीवार को लांघने की सोच भी नहीं सकती थी लेकिन इस समय उसके बदन पर वासना के पर लग चुके थे जिससे वह इस तरह की दीवारें लांघने में पूरी तरह से सक्षम हो चुकी थी।


निर्मला अपने बेटे का लंड थामें नजरें झुका कर अपनी बुर की गुलाबी छेंद की तरफ देख रही थी और लंड के सुपाड़े से टटोल कर अपनी गुलाबी बुर का सुराग ढूंढ रही थी और जैसे ही सुपाड़े का स्पर्श बुर के गुलाबी छेद पर हुआ वैसे ही तुरंत निर्मला के बदन में जैसे करंट दौड़ गया हो,, उसका बदन पूरी तरह से एक अजीब से ऊन्माद में सिहर उठा।


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निर्मला को शुभम के लंड का ठिकाना मिल चुका था,, वह एक पल की भी देरी किए बिना तुरंत अपना पूरा दबाव शुभम के लंड पर बढ़ाने लगी। बुर पूरी तरह से गिली थी और एक बार शुभम निर्मला की बुर में लंड डालकर पूरी तरह से चोद चुका था।

जिससे निर्मला की बुर का आकार शुभम के लंड के जितना बन चुका था इसलिए बड़े ही आराम से जिसे जिसे निर्मला अपनी भारी भरकम गांड का दबाव लंड पर बढ़ा रहीे थीे वैसे वैसे धीरे धीरे शुभम लंड ऊसकी मां की बुर मे धंसता चला जा रहा था।


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धीरे धीरे करके निर्मला अपने बेटे का लंड पूरी तरह से अपनी बुर के अंदर उतार ली और उसकी जांघों पर बैठ गई निर्मला के बदन में पूरी तरह से उत्तेजना बढ़ चुकी थी।उसकी सांसे बड़ी तीव्र गति से चल रही थी और सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी। बड़ा ही उत्तेजक नजारा था निर्मला अपने बेटे का लंड पूरा अपने बुर में उतार चुकी थी लेकिन सुबह के बदन में जरा भी हरकत नहीं हो रही थी वह पूरी तरह से गहरी नींद में था।



निर्मला से अब बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था वह धीरे-धीरे शुभम के लंड पर उठने बैठने लगी। निर्मला के बदन में उत्तेजना की लहर अपना असर दिखा रही थी निर्मला को बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी।


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धीरे-धीरे निर्मला अपनी गति को बढ़ाना शुरू कर दी उसे बहुत ही ज्यादा मजा आया था वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि इस तरह से अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है। हालांकि अशोक ने शुरुआती दौर में निर्मला के साथ ऐसे आसन को करने की कोशिश कर चुका था लेकिन निर्मला होते शर्मीले स्वभाव के कारण निर्मला ही इनकार कर दी, इसलिए ना तो ऐसे आसन का सुख अशोक ही भोग पाया और ना ही निर्मला को ऐसे आसन में मिलने वाली सुख की अनुभूति हो पाई इसलिए तो आज इस तरह का आसन आजमाकर वह बेहद आनंद की अनुभुती कर रही थी। उसकी गति अब बढ़ने लगी थी।वह अब जोर-जोर से शुभम की लंड पर कुदने लगी थी।ऊसकी बड़ी बड़ी चुचीयां हवा मे झुल रही थी।


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शुभम की नींद भाग चुकी थी वह अपनी मां की हरक़त देखकर पूरी तरह से उत्तेजना मे सरोबोर हो चुका था। वह कुछ भी बोल नहीं पाया बस उत्तेजना के मारे उसका मुंह खुला का खुला रह गया था।


निर्मला शुभम की दोनों हाथ को पकड़कर उस की हथेलियों को अपनी दोनो चुचियों पर रख दि और शुभम भी मौके की नजाकत को समझते वह जोर जोर से दबाने लगा जैसे कि पके हुए आम को दबा रहा हो।


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मां बेटे दोनों के बीच किसी भी प्रकार का वार्तालाप नहीं हो रहा था दोनों एक दूसरे की आंखों में डूबते जा रहे थे। शुभम भी रह रह कर नीचे से धक्के लगा दे रहा था। निर्मला के ईस तरह से उछलने से पूरा पलंग हचमचा जा रहा था। दोनों को बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी दोनों इसने रिश्ते से बेहद खुश नजर आ रहे थे।


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थोड़ी ही देर बाद निर्मला की सांसे और तेज चलने लगी उसका बदन अकड़ने लगा, शुभम का भी यही हाल था उसकी सांसे तेज चल रही थी और नीचे से जोर जोर धक्के लगा रहा था।


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थोड़ी ही देर में दोनों एक साथ हांफते हुए झड़ने लगे। कुछ ही घंटों के अंतराल में शुभम और निर्मला का यह दूसरी चुदाई जो की दोनो को सम्पुर्ण संतुष्टी का एहसास करा गई थी।
 
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निर्मला अपने बेटे के लंड के ऊपर सवार होकर भल भला कर झड़ने के बाद उसके ऊपर से उतर कर उसे से नजरें मिलाए बिना ही अपने कपड़े समेटे और उसे बिना पहने ही उसके कमरे से बाहर निकल गई लेकिन जिस तरह से निर्मला अपने कपड़ों को समेट कर ले कर जा रही थी बिस्तर पर लेटे लेटे शुभम अपनी मां को जाते हुए देख रहा था उसकी प्यासी नजर निर्मला की मटकती हुई गोल गांड पर ही टिकी हुई थी जो कि इस समय बेहद मादकता से भरा हुआ प्याला लग रहीे थी।


निर्मला अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम और उसके सिवा इस समय घर पर कोई भी नहीं था इसलिए वह बेझिझक अपने कपड़े पहने बिना ही वह कपड़ों को समेट कर कमरे से बाहर निकल गई और बिल्कुल नंगी ही चहल कदमी करते हुए बाथरुम के अंदर घुस गई।


घर का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था मां बेटे का रिश्ता अब वासना के समंदर में गोते लगाता हुआ ना जाने किस साहिल से टकरा रहा था या तो ना निर्मला ही जानती थी और ना ही शुभम,, लेकिन दोनों इस नए रिश्ते से बेहद खुश हैं क्योंकि उनके चेहरे से साफ मालूम पड़ रहा था।


निर्मला की बुर से निकला मादक रस और शुभम के लंड से निकला पानी का फव्वारा दोनों मिलकर शुभम के लंड को पूरी तरह से भी हो चुके थे। शुभम अपने लंड की तरफ देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसे अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि जिस बंदे को अपनी मुट्ठी में भरकर आगे पीछे हिलाते हुए अपनी ही मां को चोदने की कल्पना करते हुए पानी निकालता था आज वही लंड हकीकत में उसकी मां की बुर के अंदर सैर सपाटा कर के बाहर आ चुका था। अपनी मां की मटकती हुई गांड को याद करके शुभम अपने लंड पर लगे मदन रस को चादर से साफ करने लगा।


दोनों के बीच अब कोई भी रिश्ते और मर्यादा की दीवार नहीं बची थी सारे रिश्ते नाते संस्कारों और मर्यादा की दीवार को दोनों एक साथ लांघ चुके थे। निर्मला का बदन संतुष्टि और प्रसन्नता के कारण और भी ज्यादा निखर चुका था। आज दोनों की छुट्टी थी क्योंकि रात भर की थकान के कारण सुबह स्कूल जाना संभव नहीं था इसलिए अपने बेटे का प्यार पाकर निर्मला बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होकर अपने बेटे के लिए खाना बनाई।
 
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थोड़ी देर बाद शुभम भी नहा धोकर तैयार होकर नीचे आ गया लेकिन वह अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था। और मिलाता भी कैसे क्योंकि कुछ ऐसा दोनों के बीच हो गया था कि दोनों एक दूसरे से नजर मिलाने में कतरा रहे थे लेकिन दोनों बार चुदाई का सुख बराबर हासिल करने के लिए एक दूसरे के बदन में समा जाने तक की ताकत लगा दिए थे।

दोनों टेबल पर बैठ कर खाना खा रहे थे और एक दूसरे को कनखियों में देख रहे थे अपनी मां के बदन पर शुभम की नजर रह-रहकर घूम जा रहे थे जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव फिर से बढ़ने लगा था। निर्मला की बुर एक बार फिर से पिचक रही थी। इसमें दोनों का कोई दोष नहीं था मौसम का सावन तो था नहीं कि साल में बस एक ही बार आए,, यह तो आकर्षण और रिश्तो के बीच बासना का तूफान था जोंकि बार-बार आना था।


दो दो बार अपने बेटे के लंड से चुदने के बाद भी उसकी बुर की खुजली नहीं मिली थी और मिटती भी कैसे उसकी बुर तो बरसों से प्यासी थी। जिसकी खुजली एक दो बार की चुदाई से नहीं जाने वाली थी। निर्मला खाना खाते हुए अपने बेटे के चेहरे की तरफ देखे जा रही थी जिसे देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता था कि उसने ही दो बार में उसकी बुर के आकार को बदल कर रख दिया है।


निर्मला से तो रहा नहीं जा रहा था वह तो चाहती थी कि खाना खाते समय भी शुभम उसकी बूर में अपना लंड डालकर उसे चोदे लेकिन शुभम तो इतना शर्मा रहा था कि उसे से ठीक से नजरें तक नहीं मिला पा रहा था। निर्मला उससे कुछ कह पाती इससे पहले ही वह जैसे तैसे करके अपना खाना खत्म किया और बिना बोले ही घर से बाहर निकल गया निर्मला प्यासी नजरों से उसे जाता हुआ देखती रह गई लेकिन उसे रोकने के लिए आवाज नहीं दे पाई।


निर्मला इस बात से बेहद खुश थी कि अब उसे बिस्तर पर प्यासी रहकर अपनी एड़िया नहीं रगड़नी पड़ेगी उसकी प्यास बुझाने वाला उसके घर में ही मौजूद था अब अशोक पर पूरी तरह से उसे आश्रित नहीं रहना पड़ेगा। जो कि खुद उस ने आज तक उस की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझा पाया था। वह मन ही मन सोच रही थी कि घर में अशोक शुभम और उसके सिवा कोई भी नहीं था और यही तो उसके लिए पूरी तरह से लाभदायक था क्योंकि अशोक अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं घर पर सिर्फ शुभम और निर्मला ही रह जाते थे। निर्मला ऐसे में जब चाहे तब अपने बेटे के लंड से अपनी प्यास बुझा सकती थी ना किसी को कभी भी कोई शक होगा और ना ही किसी को पता चलेगा और तो और अशोक महीने में एकाद दो बार बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं रात रंगीन करने का उसके पास पूरा मौका था। यही सब सोचकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न हुए जा रहेी थी।
 
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वह टेबल पर से झूठे बर्तन को समेटकर किचन में ले गई और वहां पर उसे साफ करने लगी। उसकी बुर की कुलबुलाहट बढ़ती जा रही थे वह फिर से अपने बेटे से चुद़ना चाहतीे थी। उसे ऐसा लग रहा था कि अभी थोड़ी देर बाद उसका बेटा घर पर आएगा तब वह एक बार फिर से अपने बेटे से चुदवाएगी इसलिए वो जल्दी जल्दी घर का सारा काम करके अपने कमरे में बैठकर अपने बेटे का इंतजार करने लगी।


घड़ी की सूई अपनी धुरी पर घूमती रही समय रेत की तरह निर्मला के हाथ से फिसलता रहा,, इंतजार कर कर के निर्मला की तड़प बढ़ती जा रही थी। वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी,,, लेकिन शुभम घर पर वापस नहीं आया वह बाहर ही अपने दोस्तों के साथ खेलता रहा क्योंकि घर आने में उसे शर्म महसूस हो रहे थे भले ही वह ताबड़तोड़ अपने लंड का प्रहार करते हुए अपनी मां की जबरदस्त चुदाई कर चुका था । लेकिन वहां उस समय का बासना का तूफान था जो कि रोकने से भी रुक नहीं पाता, लेकिन इस समय खेल के मैदान में उसका दिमाग शांत हो चुका था इसलिए बीती बातों को याद करके वह मन ही मन शर्म सा महसूस कर रहा था कि कैसे वह अपनी मां से आंख मिलाएगा केसेे वह उससे बातें करेगा।

उसकी मां उसके बारे में क्या सोचेगी कि कैसे वह बिना शर्म कि उसकी बुर में अपना लंड पेल कर बिना रुके धड़ाधड़ उसकी चुदाई किए जा रहा था। वह सोचेगी की एक बार भी उसने उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया। लेकिन यदि उसके दिमाग में ख्याल आ रहा था कि जब उसकी मां ने ही खुद को नहीं रोक पाए तो वह क्यों उसे रोके,, उसकी मां भी यही चाहती हो तो वह क्या कर सकता है। अगर इसमें कुछ गलत होता तो उसकी मा ही उसे खुद रोक दी होती।

उसकी मां भी यही चाहती थी कि वहं उसे जमकर चोदे, तभी तो एक बार शायद गलती हो सकती है क्योंकि कार में एकांत का वातावरण भी कुछ हद तक खुद के पक्ष में ही था इसलिए कार के अंदर जो उसकी मां ने उसके साथ चुदवा कर सारी मान मर्यादा भूल गई यह हो सकता है कि माहौल के हिसाब से ना चाहते हुए भी गलत हो गया हो।

लेकिन जो कमरे में हुआ वह गलती से नहीं हो सकता क्योंकि वह अपने कमरे में सो रहा था उसकी मां भी पूरे कपड़े पहनी हुई थी लेकिन जब बिस्तर पर उसके ऊपर चढ़ी थी तो उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। वह पूरी तरह से नंगी थी और खुद ही उसके लंड पर बैठ कर पूरे लंड को अपनी बुर में ले कर उठ बैठकर लंड को अंदर बाहर कर रही थी यह गलती से नहीं बल्कि जानबूझ कर कर रही थी इसका मतलब यही है कि वह उससे चुदना ही चाहती थी।

पूरी तरह से जांच परख लेने के बाद शुभम इसी निष्कर्ष पर आया कि जो भी हो रहा है वह एक तरह से ठीक ही हो रहा है। यह सब सोचकर वह देर से घर पर लौटा शाम ढल चुकी थी।
 
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निर्मला रसोई घर में रसोई तैयार कर रही थी तभी दरवाजे पर बेल बजी,, घंटी की आवाज सुनते ही वह समझ गई कि शुभम खेल कर आ चुका है क्योंकि अशोक ईस समय आता नहीं था वह देर रात को ही आता था। निर्मला जल्दी से जानबूझकर अपने ब्लाउज की दो बटन को खोल दी और साड़ी को पूरी तरह से अस्तव्यस्त कर दी ताकि उसके बदन का ज्यादातर भाग शुभम को दिखाई दे। साड़ी को थोड़ा सा ऊपर करके कमर में खोज दी जिसकी वजह से उसकी गोरी चिकनी टांग नजर आने लगी। सुबह जल्दी से दरवाजे पर गई तब तक शुभम तीन चार बार बटन दबा चुका था। दरवाजा खोलते ही वह बोली।


क्या बेटा मैं खोल तो रही थी तुझे बहुत जल्दी पड़ी है। ठीक से खोल तो लेनें दिया कर,,,( निर्मला दो अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग कर रही थी लेकिन शुभम समझ नहीं पा रहा था पर दरवाजा खुलते ही जो नजारा उसकी आंखों के सामने नजर आया उस नजारे को देखकर उसके लंड में हरकत होने लगी। वह सूख को निकलता हुआ अपनी आंखों को निर्मला की चूचियों पर गड़ाए हुए बोला।


सॉरी मम्मी मुझे लगा कि आप बिजी होंगी तो ध्यान नहीं देंगेी इसलिए मैं दो चार बार बटन दबा दिया


आजकल तुझे दबाने में कुछ ज्यादा ही मजा मिल रहा है। ( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली लेकिन अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम झेंप सा गया और झेंपते हुए बोला


क्या मम्मी


कुछ नहीं तू नहीं समझेगा,, अच्छा अंदर तो आ कि ऐसे ही भूखे भेड़िए की तरह मुझे घूरता रहेगा। ( वह सुभम की नज़रों का पीछा करते हुए बोली क्योंकि वह अभी भी उसकी अधखुलें ब्लाऊज में से झांक रही उसकी चूचियों को ही देख रहा था।)

अपनी मां की बात सुनते ही वह सकपका गया और शरमाकर अपनी नजरें नीची कर के अंदर आ गया। शुभम मन-ही-मन अपनी मां की खुले हुए ब्लाउज के दोनों बटन के बारे में सोच रहा था आखिरकार वह क्यों खुले हुए होते हैं या ऐसा तो नहीं कि उन्हें मम्मी ही खोल देती है। लेकिन पहले तो वह इस तरह से नहीं खोलती थी,, अब क्यों उसके ब्लाउज के दोनों बटन खुले हुए होते हैं कहीं वह जानबूझकर अपनी चूचियों को दिखाती तो नहीं है यही तब सवाल उसके मन में उठ रहे थे।

और अपने मन में उठ रहे सवालों का जवाब भी उसके पास ही मौजूद था। पिछले कुछ दिनों कि अपनी मां के द्वारा हुई गंदी हरकत और अपने दोस्तों की बातों से वह तो इतना समझ ही गया था कि औरत अपने फायदे के लिए ही अपने अंगों को दिखाती है जो कि उसकी मां भी यही कर रही थी और लगभग दो बार उसका फायदा भी उठा चुकी थी जिसमें उसका याद ही नहीं बल्की खुद शुभम का भी फायदा था।

यह सोचते ही उसके मन में और भी ज्यादा जिज्ञासा जगने लगी और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वह मन में यह सोचने लगा कि जब उसकी मां आगे से ही सब कुछ कर चुकी है और आगे भी करने के लिए पूरी तरह से तैयार है तो वह क्यों अपने कदम पीछे हटाए आखिरकार वह भी तो जवान हो रहा बलिष्ठ काठी का लड़का था उसके भी मन में ढेर सारे अरमान उठ़ रहे थे।

यह सब सोचकर उसके लंड का तनाव और भी ज्यादा बढ़ने लगा था वह मन ही मन सोचने लगा था कि उसकी मां ने उसे शरीर सुख का मजा चुदाई का कैसा अद्भुत एहसास बदल में होता है यह सब सिखाई और अपने मदमस्त बदन के साथ पूरी तरह से मस्ती करने का खीमज माता बदन के साथ खेलने का पूरी तरह से मौका उसे दी, वह मन ही मन अपनी मम्मी को शुक्रिया अदा कर रहा था कि जिस अंग के बारे में वह कल्पना ही करता रहता था उस अंग को उसकी मां ने पूरी तरह से खोल कर उस अंग के आकार और भूगोल के साथ उसे रुबरु कराई।

यह सब सोचकर उसका मन उत्तेजना से भरने लगा । वह मन हीं मन नक्की कर लिया कि अगर ऊसकी मां आगे भी इस तरह का मौका देती रहेगी तो वह इस मौके का फायदा उठाने से बिल्कुल भी नहीं चूकेगा। वह यह सब सोच कर मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था और निर्मला मुस्कुराते हुए अपनी गांड को कुछ ज्यादा ही ऊभारकर मटकते हुए रसोई घर में चली गई निर्मला का यह अंदाज शुभम को पूरी तरह से उसका दीवाना बना गया।

अपनी मां के अंदाज़ और उसकी हरकत को देखते हुए शुभम पूरी तरह से समझ गया कि जो कुछ भी हो रहा है वह अनजाने में नहीं बल्कि जान बूझकर ही हो रहा है। यह ख्याल मन में आते हीै उसके लंड ने ठुनकी मारना शुरू कर दिया। घर में ही चुदाई का सामान पूरी तरह से तैयार होता देख कर उसकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा।
 
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वह अपनी मां के अंदाज को देखने के लिए पानी पीने के बहाने रसोई घर में चला गया और जाते ही फ्रिज खोल कर पानी की बोतल निकाला और पानी पीने लगा निर्मला आटा गूथ रही थी और आटा गूंथते हुए अपनी गोलगोल गांड को अजीब सी थिरकन देते हुए इधर-उधर मटकाने लगी।

अपनी मां की मटकती हुई गांड को देखकर तोे शुभम की सांस ही अटक गई। उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा पेंट में तंबू पूरी तरह से बन चुका था जो कि उसकी मां की नजर में साफ साफ आ सकता था लेकिन वह उसे छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया। क्योंकि वह भी जान चुका था कि उसकी मां जिस तरह की हरकत कर रही है उसे फिर से लंड की जरूरत है।

शुभम पानी पीते हुए ऊपर से नीचे तक अपनी मां के खूबसूरत बदन को देखकर उत्तेजित हुआ जा रहा था निर्मला भी आंटा गुंथते हुए अपने बदन का मदमस्त हिस्सा इस तरह से बाहर को निकली हुई थी कि ऐसा लग रहा था वह अपने खूबसूरत बदन का वह हिस्सा शुभम को परोस रही हो जिसे देखकर शुभम के मुंह में पानी आ जा रहा था। शुभम पानी पीकर बोतल को फिर से फ्रीज में रख दिया लेकिन अपनी मां से कुछ भी बोल पाने की हिम्मत उसमे नहीं हो रही थी।

निर्मला की बुर पानी-पानी हो जा रही थी उसे फिर से अपने बेटे के लंड की जरूरत थी दो बार चुदने के बाद भी उसकी प्यास कम होने की वजाय और भी ज्यादा बढ़ चुकी थी। वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी। उसके जी में तो आ रहा था वह खुद शुभम को बोल दे कि वह तुझसे फिर से चुदना चाहती है तू चोद जमकर चोद,, लेकिन इतना कहने की हिम्मत शायद उसमें भी अभी नहीं थी। दो दो बार संभोग सुख भोग चुके मां बेटे अभी भी आगे बढ़ने से शर्मा रहे थे।

निर्मला इस बात से तो पूरी तरह से आश्वस्त थी की अब वह जब चाहे तब अपने बेटे से चुद सकती है। लेकिन उसके लिए अपनी शर्म को पूरी तरह से त्याग देना पड़ेगा जो कि अभी भी उसके कदम को कुछ हद तक रोके हुए थी। निर्मला तिरछी नजरों से शुभम की तरफ देख रही थी जो कि अभी भी फ्रिज के पास ही खड़ा था और उसके तरफ ही चोर नजरों से देख ले रहा था तभी निर्मला की नजर उसके पैंट में बने तंबू पर पड़ी तो उसके मन का मोर अपने पंख फैला कर नाचने लगा।

उसे यकीन हो चला कि अगर वह चाहे तो किचन में ही अपने बेटे से संभोग सुख का फिर से आनंद ले सकती है। लेकिन केसे यह उसे समझ में नहीं आ रहा था उसे डर था कि कहीं शुभम किचन से बाहर ना चला जाए इसलिए उसे रोकना बहुत जरुरी था। और सच में शुभम भी यही सोच रहा था कि ज्यादा देर तक इस तरह से रूकना ठीक नहीं है इसलिए वह किचन से बाहर निकलने को ही था की झट से निर्मला बोली।


बेटा कहां जा रहे हो आज मेरी मदद नहीं करोगे क्या?


हां हां करूंगा ना मम्मी बताओ ना क्या करना है। ( शुभम झट से जवाब देते हुए बोला वह तो खुद किचन में रुककर अपनी मां की खूबसूरत बदन के दर्शन करना चाहता था।)


बेटा जरा सब्जी तो काट दे मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है। (वह अपने हाथ को शुभम की तरफ दिखाते हुए बोली)


ठीक है मम्मी लाओं में सब्जी काट देता हूं। पर सब्जी कौन सी काटनी है।


दूधी मोटी मोटी और एकदम लंबी,,, एकदम तगड़ी देख ले फ्रीज में रखी होगी (इतना कहकर निर्मला मुस्कुराने लगी शुभम को अब अपनी मां का या मुस्कुराना और उसके बातों का मतलब थोड़ा थोड़ा समझ में आने लगा था।)

वह बिना कुछ बोले फ्रीज में से दुधी निकाल कर किचन पर रख दिया। उसका लंड लगातार पेट में तंबू बनाए हुए था जिस पर बार-बार निर्मला की नजर पड़ रही थी और उसे देखकर निर्मला की बुर फूल पिचक रही थी। उसका बस चलता तो वह खुद ही अपने बेटे के पेंट को निकालकर उसके लंड को अपनी बुर में डलवा कर चुद गई होती लेकिन अभी मजबूर थी। अपने बेटी के साथ चुदवाने के बाद भी अभी भी वह शर्मो हया के पर्दे में कैद थी।
 
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शुभम दूधी को चाकू से काटना शुरु कर दिया जिसे देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली


दुधी कैसी है शुभम?


कैसी है मतलब मम्मी मे कुछ समझा नहीं


अरे बुद्धू कैसी है मतलब उसका साइज़ की मोटाई लंबाई कैसी है तभी तो बनने में स्वादिष्ट आएगी। ( शुभम आप अपनी मम्मी का मतलब समझने लगा था लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोला।)


मुझे क्या मालूम मम्मी मैं खाना थोड़े ही पकाता हूं।


हां सही बात है तुम लडको लोगों को कहां पता कि दूधी का मजा औरतों को कैसा लगता है। मर्दों का तो काम ही होता है बस दूधी खरीद कर ले जाओ और उसे घर पर रख दो तुम लोग यह भी नहीं देखते कि दूधी लंबी है कि छोटी है कि मोटी है कितना तगड़ा है यह सब से तुम लोगों को कोई भी मतलब नहीं होता बस अपना फर्ज निभा देते हो और अपना मजा लेने के औरतों को थमा देती हो कभी यह सब भी तो सोचा करो कि औरतों को क्या पसंद है दुधी का साइज कितना होना चाहिए,, दूधी कितनी लंबी होनी चाहिए,, कितनी मोटी होती है तब मजा आता है,,, उसी पकाने में।

( निर्मला पकाना शब्द अपना मतलब निकल जाने के बाद ही बोली थी शुभम पूरी तरह से समझ गया था कि वह दूधी के बहाने उसके लंड के बारे में बात कर रहीे हैं। शुभम को भी अपनी मां के दो अर्थ वाले शब्द को सुनकर मजा आने लगा था। तभी तो वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला


मम्मी क्या सच में ऐसा होता है लेकिन दूध ही वाली बात तो मैं नहीं जानता था कि दुधी के पतले मोटे लंबे तगड़े होने से औरतों को फर्क पड़ता है। आखिर इसे पका कर खाना ही तो है।


तू सच में बुद्धू है शुभम पकाना ही तो है यह तो मुझे अच्छी तरह से मालूम है लेकिन पतली दुबली होने पर उसमें से कुछ निकलता नहीं है बल्कि गर्मी से ही खत्म हो जाता है। और दूधी जब मोटी तगड़ी और लंबी होती है तो उसे पकने में टाइम लगता है करने में टाइम लगता है,,, जरा सी गर्मी पाकर तुरंत पिघल नहीं जाता बल्कि गर्म होकर धीरे-धीरे अपना पानी छोड़ता रहता है। तब जाकर उसे खाने में औरतों को इतना मजा आता है कि तुम लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं होता।

निर्मला खुद नहीं समझ रही थी कि वह क्या कह रही है लेकिन जो भी कह रही थी उस बात को कहने में वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह एकदम से चुदवासी हो गई थी, यही हाल शुभम का भी था।
 
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अपनी मां के दो अर्थ वाली बात को सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाए हुए था। जिस की हालत को निर्मला तिरछी नजर से देख ले रही थी यही सही समय भी था लेकिन कैसे यह नहीं समझ पा रही थी

निर्मला तभी उसके मन में एक ख्याल आया वह आंटे को घूंथते हुए अपने दोनों हथेलीयो को पूरी तरह से गीले आटे में सान ली और अपने पैरों को पटकने लगे वह इस तरह से बर्ताव करने लगी कि जैसे उसकी साड़ी में कोई कीड़ा या चींटी घुस गई हो उसके दोनों हाथ आटे में सने हुए थे और वह जोर जोर से अपने पैरों को पटकते हुए शुभम की तरफ देखने लगी जो की दूधी को काट रहा था। अपनी मां को इस तरह से उछलता हुआ देखकर वह बोला


क्या हुआ मम्मी इस तरह से क्यों उछल रही हो?


लगता है कि कुछ मेरी साड़ी में घुस गया है।


क्या घुस गया है मम्मी


अरे मुझे क्या मालूम धीरे धीरे काट रहा है मुझे डर लग रहा है। (बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली)


तो देख लो ना क्या है?


अरे पागल अगर मेरे दोनों हाथों में आटा ना लगा हुआ होता तो क्या मैं देख नहीं लेती। ( वह जोर-जोर से पैरों को पटकते हुए बोली शुभम को लग रहा था कि शायद सच में कोई कीड़ा होगा जो साड़ी में घुस गया है।)


तो मम्मी जल्दी से हाथ धो कर देख लो कि क्या है


अरे इतना समय नहीं है मेरे पास मुझे गुदगुदी सी हो रही है और धीरे-धीरे लगता है काट भी रहा है। ( वह उसी तरह से उछलते हुए बोली)

लेकिन शुभम की नजर उसकी दोनों चूचियों कर चली गई जो की उछलकूद मचाते हुए ब्लाउज को पूरी तरह से झकझोर दे रही थी। यह नजारा बड़ा ही काम होता जिस तरह से निर्मला उछल-कूद मचा रहे थे उस तरह से तो लग रहा था कि उसकी बड़ी बड़ी दोनो चुचियों के वजन से उसके ब्लाउज के बाकी बचे बटन भी टूट जाएंगे वह वही खड़ा हो कर के अपनी मां को ऊछलता हुआ देखता रहा और उत्तेजित होता रहा। उसके पैंट मे बना तंबु अपनी सीमा को पार कर चुका था। शुभम को यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था। उसकी नजर ब्लाउज के अंदर उछलते हुए गदर मचा रहे दोनों खरबूजे पर टिकी हुई थी। तभी उसकी मां पैर पटकते हुए बोली


बेटा एक काम कर तू ही देख ले की क्या है?


मम्मी में? ( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)


हां तु जल्दी से देख मुझसे रहा नहीं जा रहा

अपनी मां की बात सुनकर शुभम खुश हो गया शुभम तो यही चाहता ही था। अपनी मां की साड़ी उठाकर ऊसके मदमस्त बदन का दीदार करने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिल पाता। वह तो झट से सारा काम छोड़कर अपनी मां के पास पहुंच गया। शुभम ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा था।

और अपने बेटे को अपनी ठीक पीछे खड़ा हुआ देखकर निर्मला के बदन मे गुदगुदी होने लगी। उसकी युक्ति उसे सफल होती हुई दिख रही थी। शुभम की तो दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी वह धीरे से अपनी मां की साडी को पकड़ा और उसे उठाने लगा।

जैसे जैसे साड़ी ऊपर की तरफ उठ रही थी वैसे वैसे उसकी नंगी टांगें अपना जलवा पूरी तरह से बिखेर रही थी। अपनी मां की नंगी पिंडलियों को देखकर शुभम का गला सूखने लगा मोटी मोटी नंगी जांघे उसके होश उड़ा रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी मां की सारी को कमर तक उठा दिया कमर तक साड़ी के उठते ही बड़ा ही उत्तेजक कामोत्तेजना से भरपूर वह नजर आपकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा कि उसका लंड भी उस नजारे को देख कर सलामी भरने लगा।

यह नजारा देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई निर्मला की मखमली गुलाबी रंग की पैंटी शुभम के होश उड़ा रहीे थी। शुभम अच्छी तरह से जानता था कि मखमली गुलाबी रंग की पैंटी में निर्मला की गुलाबी रंग का खजाना छिपा हुआ है।

शुभम तो अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा कर बिना कुछ बोले बस उसकी गोल नितंबों को देखे जा रहा था। निर्मला भी ऊछल कुद मचाना बंद कर दी थी। इतने करीब एक बार फिर से अपने बेटे को पाकर और ऐसी स्थिति में कि उसका बेटा खुद ऊसकी साड़ी उठाकर कमर तक किया हो और उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख रहा हूं इस बात से ही उसका बदन पूरी तरह से उत्तेजना के मारे सरसराने लगा।

कुछ देर तक दोनों यूं ही ऐसे ही खड़े रहे शुभम की आंखें नहीं देख रही थी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीदार करते हुए और निर्मला कसमसा रही थी ऐसी स्थिति में अपने आप को पा कर। निर्मला की सांसो के साथ साथ उसकी बड़ी बड़ी छातिया भी ऊपर नीचे हो रही थी। तभी शुभम हकलाते हुए बोला।


मममम,,,, मम्मी,,,, यहां तो कुछ भी नजर नही आ रहा है।


बेटा मेरी पेंटी मे है

अपनी मां की हर बात सुनते ही उसका बदन उत्तेजना के मारे कांप गया। उसे भला ऐसा करने में क्यो इन्कार होता। वह एक हाथ से अपनी मां की साड़ी पकड़ कर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे अपनी मां की पैंटी को नीचे सरकाने लगा, उसके हाथ उत्तेजना के मारे कांप रहे थे उसका गला सूख रहा था।

धीरे-धीरे करके उसने अपनी मां की पैंटी को एकदम नीचे जांघो तक सरका दिया। वह बड़ी ही प्यासी आंखों से अपनी मां की भरी हुई नितंब को देख रहा था। निर्मला भी अपनी गर्दन घुमा कर अपने बेटे की हरकत को देखकर एकदम खामोश हो चुकी थी। उसकी बुर की मदनरस टपक रहा था गजब का माहौल बन चुका था। बेटा अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी पैंटी को नीचे तक सरका दिया था। वह कुछ पल तक अपनी मां के नितंबो को देखने के बाद बोला।


मम्मी यहां तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।
अब उसकी मां क्या कहती कुछ होता तो ना बताती,, अब बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। निर्मला के बदन में वासना पूरी तरह से बस चुकी थी इसलिए वह अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ लाकर शुभम की पेंट के बटन को खोलते हुए बोली


ऐसे कैसे कुछ नजर नहीं आ रहा है मुझे तो कोई कीड़ा है है जो बहुत तेज काट रहा है।

इतना कहने के साथ ही निर्मला ने अपने बेटे की पेंट के बटन को खोल करो उसके लंड को बाहर निकाल कर अपने हाथ में पकड़ ली। शुभम तो एकदम हैरान रह गया वह कुछ और समझ पाता इससे पहले ही निर्मला ने उसके लंड को अपनी गांड की गहरी दरार में धंसाकर रगड़ने लगी,, अपनी मां की हरकत पर तो शुभम की हालत एकदम से खराब हो गई, उसका गला एकदम से सुख गया उसके मुंह से एक भी शब्द निकल नहीं पा रहे थे।

निर्मला जल्द से जल्द अपने बेटे के लंड को अपनी गुलाबी बुर के छेद का रास्ता दिखा देना चाहती थी लेकिन जिस तरह से वह सीधी खड़ी थी इस तरह से गुलाबी छेद का मिलना बहुत मुश्किल था। इसलिए वो जल्दी से अपना एक पैर उठाकर किचन के टेबल पर रख दें जिससे उसकी गुलाबी रंग का सुराग साफ साफ नजर आने लगा और निर्मला ने अपने बेटे के लंड के सुपाड़े को गुलाबी बुर के छेद पर रखते हुए बोली।

इसी मे घुसा हुआ है कीड़ा अब इसे तुम्हें ही निकालना है।
अपनी मां की इतनी बात सुनकर वह अपने मां के इसारे को समझ गया। दो बार उसने अपनी मां की चुदाई कर चुका था इसलिए उसे मालूम था कि अब क्या करना है। वह तुरंत अपनी मां की गांड को दोनों हाथों से थाम कर अपने लंड को अंदर घुसाना शुरू किया।

बुर पहले से ही पनीया चुकी थी इसलिए लंड को अंदर सरकाने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई और शुभम ने थोड़े से ही झटके में अपने लंड को अपनी मां की बुर की गहराई में उतार दिया। वह समझ गया कि उसकी मां नाटक कर रही थी कोई कीड़ा वीड़ा नहीं था बल्की उसकी बुर में चुदाई का कीड़ा घुसा हुआ था जिसे वह उसके लंड से निकलवाना चाहती थी।

थोड़ी ही देर में निर्मला की सिसकारी छूटने लगी, शुभम एक बार फिर से पहले वाली ही रफ्तार से अपनी मां की चुदाई कर रहा था। निर्मला को भी जैसे अपने बेटे की इस रफ्तार से मजा आने लगा था।

वह भी गरम सिसकारी निकालते हुए अपने बेटे से चुदने का मजा ले रही थी। शुभम का मोटा लंबा लंड बड़ी रफ्तार के साथ उसकी मां की बुर के अंदर बाहर हो रहा था।

करीब बीस मिनट तक वह इसी तरह से अपनी मां को जमकर चोदता रहा, थोड़ी ही देर में दोनो की सांसे तीव्र गति से चलने लगी दोनों का बदन एक साथ अकड़ने लगा और मां बेटे दोनो एकसाथ भलभला कर झड़ने लगे। एक बार फिर निर्मला अपनी प्यास बुझा चुकी थी।
 

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