घर पर पहुंचकर शुभम तो अपने कमरे में चला गया लेकिन निर्मला के लिए तो कहीं भी चैन नहीं था। शीतल की बातों ने उसके बदन में कामाग्नि को पूरी तरह से भड़का चुकी थी और अपने ही काम रस में पैंटी को गीली कर ली थी।
बार बार उसे शीतल की कही हुई वह बहुत याद आ रहे थेी जब वह उसके बेटे की तरफ देख कर उसे जवान लंड की तरफ इशारा कर रही थी। निर्मला अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह इशारे इशारे में क्या कहना चाह रहीे थीे उसका सारा बिल्कुल साफ था। एक तरह से वह निर्मला को अपने ही बेटे के साथ संबंध बनाने के लिए उकसा रहीे थी। जोकि निर्मला के लिए बिल्कुल भी संभव नहीं था।
निर्मला के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे यह सवाल भी बार-बार उसके मन में आ रहा था कि शीतल अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम उसका बेटा है तो वह कैसे कह दी की निर्मला को बैगन की जरूरत नहीं है उसके तो घर में ही जवान लंड है। तो क्या शीतल को इस बात से कभी एतराज नहीं होता कि एक मां और बेटे के बीच शारीरिक संबंध के साथ नाजायज संबंध है। उसे इस तरह के पारिवारिक रिश्ते पर कोई भी एतराज नहीं है। यही सब सोच-सोच कर वहां शीतल के ख्यालात के प्रति हैरान हुए जा रही थी। इन सभी ख्यालों ने उसके बदन में चुदासपन की गजब की लहर चला दी थी।
निर्मला की बुर में आग लगी हुई थी। उसे अपनी बुर में लंड लेने की प्यास बड़ी तेजी से लगी हुई थी। वह मन ही मन अपनी किस्मत को इस बात से कोसने लगी कि औरतें भी अपनी प्यास बुझा लेती है जो की खूबसूरत नहीं होती लेकिन फिर भी वह अपनी बुर की प्यास किसी भी लंड से बुझा लेती हैं और लोग तैयार भी रहते हैं उन्हें चोदने के लिए लेकिन इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी वह प्यासी रह जा रही थी। उस की रसीली बुर एक लंड के लिए तरस जा रहीे थी।
लेकिन वह यह भी जानती थी कि अपने बदन की प्यास वह खुद भी बुझा सकती है। पति न सही कोई और ही सही,,,, लेकिन इसके लिए उसे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती। उसके एक इशारे की देरी थी इशारा मिलते ही ना जाने कितने लोग थे जो कि उसकी प्यास बुझाने के लिए तैयार खड़े थे।
लेकिन ऐसे कामों के लिए उस के संस्कार और उसकी परवरिश गवाही नहीं दे रही थी और इसी बात के लिए अपने संस्कार की वजह से वह अपने आप को कोसे जा रही थी।
बार बार उसे शीतल की कही हुई वह बहुत याद आ रहे थेी जब वह उसके बेटे की तरफ देख कर उसे जवान लंड की तरफ इशारा कर रही थी। निर्मला अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह इशारे इशारे में क्या कहना चाह रहीे थीे उसका सारा बिल्कुल साफ था। एक तरह से वह निर्मला को अपने ही बेटे के साथ संबंध बनाने के लिए उकसा रहीे थी। जोकि निर्मला के लिए बिल्कुल भी संभव नहीं था।
निर्मला के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे यह सवाल भी बार-बार उसके मन में आ रहा था कि शीतल अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम उसका बेटा है तो वह कैसे कह दी की निर्मला को बैगन की जरूरत नहीं है उसके तो घर में ही जवान लंड है। तो क्या शीतल को इस बात से कभी एतराज नहीं होता कि एक मां और बेटे के बीच शारीरिक संबंध के साथ नाजायज संबंध है। उसे इस तरह के पारिवारिक रिश्ते पर कोई भी एतराज नहीं है। यही सब सोच-सोच कर वहां शीतल के ख्यालात के प्रति हैरान हुए जा रही थी। इन सभी ख्यालों ने उसके बदन में चुदासपन की गजब की लहर चला दी थी।
निर्मला की बुर में आग लगी हुई थी। उसे अपनी बुर में लंड लेने की प्यास बड़ी तेजी से लगी हुई थी। वह मन ही मन अपनी किस्मत को इस बात से कोसने लगी कि औरतें भी अपनी प्यास बुझा लेती है जो की खूबसूरत नहीं होती लेकिन फिर भी वह अपनी बुर की प्यास किसी भी लंड से बुझा लेती हैं और लोग तैयार भी रहते हैं उन्हें चोदने के लिए लेकिन इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी वह प्यासी रह जा रही थी। उस की रसीली बुर एक लंड के लिए तरस जा रहीे थी।
लेकिन वह यह भी जानती थी कि अपने बदन की प्यास वह खुद भी बुझा सकती है। पति न सही कोई और ही सही,,,, लेकिन इसके लिए उसे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती। उसके एक इशारे की देरी थी इशारा मिलते ही ना जाने कितने लोग थे जो कि उसकी प्यास बुझाने के लिए तैयार खड़े थे।
लेकिन ऐसे कामों के लिए उस के संस्कार और उसकी परवरिश गवाही नहीं दे रही थी और इसी बात के लिए अपने संस्कार की वजह से वह अपने आप को कोसे जा रही थी।
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