तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 1
शादी निपटने के बाद हम दिल्ली लौट आये, पिताजी ने काम संभाला और मैंने थोड़ी मस्ती और पढ़ाई करनी शुरू की| साल दर साल हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव जाया करते, मैं बड़ा होने लगा था तो अब वहाँ की बोली-भाषा समझने लगा था और कुछ-कुछ बोलने भी लगा था| इस तरह तीन साल निकल गए और फिर वो समय आया जब भाभी का गौना हुआ| मुझे लगा था की बहुत बड़ा समारोह होगा जिसमें बहुत सारे लोग आएंगे, पार्टी होगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नहीं| खेर गौना बड़ा ही शांत तौर पर हुआ और नई भाभी के आते ही सारी औरतें उन्हें घेर कर बैठ गईं| मैं अब 7 साल का हो गया था और मेरे कुछ दोस्त गाँव में बन गए थे जिनके साथ मैं खेलता था| कुछ देर बाद बड़की अम्मा ने मुझे और गट्टू दोनों को बुलाया और नई भाभी से मिलवाया|
मैं और गट्टू दोनों ही बड़े घर पहुँचे, गट्टू तो पूरे आत्मविश्वास से खड़ा था और मैं शर्म से लाल हो गया था| सफ़ेद कुरता पजामा पहने हुए मैं अपने हाथ पीछे बांधे खड़ा था, मेरी नजरें सबसे पहले भाभी पर पड़ी जो लाल साडी पहने, डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े आँगन के बीचों बीच बैठी थीं| उस एक पल के लिए मेरे मन में नजाने क्यों मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थीं| पूरा घर औरतों से भरा हुआ था और मुझे बहुत ज्यादा ही शर्म आ रही थी इसलिए भाभी को घूँघट में देखने के बाद मेरी नजरें झुक गई| बड़की अम्मा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सब औरतों के बीच से होते हुए भाभी के सामने खड़ा कर दिया| गट्टू मेरी बाईं तरफ खड़ा था और उत्सुकता भरी आँखों से उन्हें देख रहा था| मेरी नजरें बस जमीन में गाड़ी हुई थीं, मानो यहाँ दुल्हन भाभी नहीं मैं हूँ!
अम्मा ने पहले गट्टू का परिचय भाभी से कराया, बड़की अम्मा के कहने पर उसने भाभी के पाँव छुए और फिर बाहर चला गया| अब बारी थी मेरी; " दुल्हिन! ई तोहार सबसे छोट देवर है!" इतना कह कर बड़की अम्मा ने मुझे उनकी बगल में बिठा दिया और मैं शर्म से सर झुकाये बैठ गया| भाभी ने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और अपने दाहिने हाथ को मेरे गाल पर फेरा| ये भाभी और मेरा पहला स्पर्श था, उनका तो मुझे नहीं पता पर मेरे शरीर में जर्रूर कुछ अजीब सा हुआ था जिसे उस समय व्यक्त कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था| वहाँ बैठी सभी औरतें हँसने लगी और कहने लगीं की कितना शर्मिला लड़का है, इतनी देर से बैठा पर इसने आँख उठा कर किसी को देखा तक नहीं! बड़की अम्मा ने सबसे मेरी बड़ी तारीफ करते हुए कहा की ये यहाँ के बच्चों की तरह नहीं है, बड़ा ही संस्कारी लड़का है जो किसी से लड़ाई-झगड़ा या गाली-गलौज नहीं करता! मेरी तारीफ सुन जहाँ माँ को बड़ा गर्व हो रहा था वहीं मेरे गाल और भी लाल हो रहे थे| जब कुछ औरतें इधर-उधर हुईं तो मैं माँ के पास चला गया, माँ को लगा की मैं दूध पीने आया हूँ तो उन्होंने मुझे कमरे में दूध पिलाना शुरू कर दिया| वहाँ मौजूद जिस किसी ने भी ये देखा वो हैरान था क्योंकि गाँव में बच्चे माँ का दूध ज्यादा दूध नहीं पीते थे| बुआ ने फिर से माँ को टोका तो बड़की अम्मा बीच में बोल पड़ीं; "दीदी रहय दिओ! बच्चा है, धीरे-धीरे सीख जाई!" और बुआ को अपने साथ ले गईं, मैं मन ही मन सोच रहा था की दूध मैं अपनी माँ का पी रहा हूँ और मिर्ची इन्हें लग रही है?! पर सब औरतों को बात करने के लिए एक नया विषय मिल गया था तो सबने अपने-अपने नुस्खे बताने शुरू कर दिए| कोई कहता की माँ अपने स्तन पर मिर्ची लगा ले तो कोई कहता की गोबर लगा लें| माँ ने कहा भी की ये एक ऐसी जिद्द है जो इसने अभी तक नहीं छोड़ी है, पिताजी ने कितनी बार डाँटा पर मैं नहीं माना और खूब रोने लगता तो हार कर उन्हें दूध पिलाना पड़ता है| भाभी आंगन में बैठी ये सब सुन रही थी और घूँघट के अंदर से मुस्कुराये जा रही थी| खेर भाभी के सामने अपनी बेइज्जती करवा कर मैं बाहर भाग आया और खेलने लगा| वो पूरा दिन मैं भाभी के आस-पास भी नहीं भटका, बस अपने मौसा, मामा या बुआ के बच्चों संग खेलता रहा| मौसा और मामा सब बड़की अम्मा की तरफ के थे पर मुझसे बिलकुल वैसे ही प्यार करते थे जैसा वो बड़की अम्मा के बच्चों से करते थे| इधर चन्दर भैया अपनी सुहागरात के लिए मरे जा रहे थे, दिन भर वो अपने दोस्तों के साथ खेतों में पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर बैठे थे| वहाँ उनकी अपनी ही अलग महफ़िल सजी हुई थी जिससे मुझे दूर रखा गया था| गाँव में एक कमरे और आँगन के साथ हमारा पुराण घर था, जिसे अब चन्दर भय का निजी घर बना दिया गया था| भाभी को वहीं बिठाया गया था और उनके पास आस-पड़ोस की भाभियाँ बैठी थीं| खेर रात हुई और खाना खाने के बाद चन्दर भैया उस घर में घुसे और दरवाजा बंद हुआ| बाकी सब तो प्रमुख आँगन में फैले पड़े थे और औरतें बड़े घर में सोइ थीं|
अगली सुबह हुई, मेरे लिए तो ये एक आम सुबह थी पर भाभी और मेरे रिश्ते की शुरुआत आज ही के दिन से हुई थी| मैं आज कुछ ज्यादा लेट उठा था, उठते ही मैं नहाया-धोया और प्रमुख आंगन में चारपाई पर बैठ गया| कुछ देर बाद भाभी ने खाना बनाया और सब आदमियों और बच्चों ने बैठ कर खाया, सब ने भाभी को पहली रसोई के लिए बहुत आशीर्वाद दिए! शाम होने तक सब अपने-अपने घर को जा चुके थे और अब घर में केवल माँ-पिताजी, बड़के दादा-बड़की अम्मा, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया, अनिल भैया, गट्टू, मैं और भाभी ही रह गए थे| रात के भोजन के समय मैं रसोई के पास छप्पर के नीचे चुप चाप बैठा था| भाभी ने मेरी तरफ घूँघट किये हुए देखा और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं मुस्कुराता हुआ उठा और भाभी के सामने जा कर शर्म से सर झुका बैठ गया| मुझे देखते ही भाभी की हँसी छूट गई और आज मुझे घूँघट के भीतर से भाभी के गुलाबी होंठ और मोती से सफ़ेद दांतों का दीदार हुआ| "तुम्हारा नाम क्या है?" भाभी ने धीरे से पुछा| उनकी मिश्री सी मीठी आवाज सुन मैं कुछ पल के लिए खामोश हो गया और फिर अनायास ही मुँह से निकला; "मानु"| भाभी को मेरा नाम बहुत पसंद आया जो उनकी मुस्कराहट से पता चल रहा था| "तुम शहर में पढ़ते हो?" भाभी ने पुछा तो मैंने बस हाँ में गर्दन हिलाई| "कौन सी क्लास में हो?" भाभी ने अपनी मधुर आवाज में पुछा और जवाब में मैंने; "फर्स्ट क्लास में" कहा| इतने में माँ आ गई और भाभी से बोली; "दुल्हिन देवर से बतुआत हो?" ये सुन भाभी बोलीं; "चाची ये कछु बोलते नहीं!" ये सुन माँ मुस्कुराने लगी और बोलीं; "तोह से सरमात है!" इसके आगे भाभी कुछ बोलती मैं उठ कर भाग गया| आज भाभी की बात सुन कर दिल में अजीब सी गुदगुदी हुई थी, ऐसी गुदगुदी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी|
फिर रात हुई और खाना खाने के बाद सब अपनी-अपनी जगह लेट गए, चन्दर भैया और भाभी अपने घर में थे की तभी कुछ ही देर में मुझे लड़ाई-झगड़े की आवाज सुनाई दी| घर के सारे लोग उठ गए थे और मैं भी, चीखने की आवाज सिर्फ चन्दर भैया की थी और वो भाभी को गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे थे| बड़की अम्मा अंदर पहुँची और चन्दर भैया को बाहर ले आईं, बड़के दादा और पिताजी ने बहुत पुछा की क्या हुआ पर भैया ने कुछ नहीं बताया| मेरे कदम अनायास ही मुझे भाभी के घर की तरफ ले जा रहे थे की तभी माँ बीच में आ गई और मुझे पिताजी के पास जाने को बोला|मैं चुप-चाप पिताजी के पास खड़ा हो गया तो उन्होंने मुझे गट्टू के साथ दूर जाने को कहा क्योंकि वहाँ होने वाली बात सुनने के लिए मैं परिपक्व नहीं हुआ था| धीरे-धीरे बात सुलझी और चन्दर भैया रात को बाहर सोये और सुबह होते ही मामा के घर निकल गए| इधर मैं सुबह आँख मलता हुआ उठा और माँ-पिताजी के पाँव छू कर दैनिक कार्यों से निपटा और रसोई में आया| भाभी वहाँ चाय बना रही थी, उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चाय दी और फिर बड़की अम्मा के पास चली गईं| मैं चाय पी कर बासी खा कर गट्टू के साथ गाय चराने निकल गया|
हमारे गाँव में सुबह नाश्ता बनाना का रिवाज नहीं है, बल्कि रात का बासी खाना ही नाश्ते के रूप में खाया जाता है| ये बासी सभी नहीं खाते, केवल छोटे बच्चे ही खाते हैं| बड़े लोग चाय पी कर, या कभी दही-चिवड़ा खा कर ही खेतों पर काम करने चले जाते हैं| छोटे बच्चे खेतों में काम नहीं करते, बल्कि वो गाय-भैंस चराने जाते थे, मैं भी सभी बच्चों के साथ गाय चराने चला जाता था| गाय बेचारी चरती रहती और हम सारे गिल्ली-डंडा या क्रिकेट खेलते रहते| दोपहर को जब मैं गाय चरा कर आया तो खाना खाने के बाद भाभी ने मुझे आवाज दे कर अपने पास बुलाया| मैं और भाभी पुराने घर के आंगन में बैठे थे, भाभी ने अब भी घूँघट कर रखा था और मैं उनके सामने सर झुका कर बैठा था|
भाभी: मानु आप मुझसे बात क्यों नहीं करते? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?
मैं: नहीं...ऐसा तो कुछ नहीं!
भाभी: फिर?
मैं: वो....वो मुझे ....शर्म....आती है!
भाभी: अरे मुझसे कैसा शर्माना?
मैं: हम्म्म्म....
भाभी: तुमने तो अभी तक मेरा नाम तक नहीं पुछा?
मैं: मुझे पता है|
मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा|
भाभी: अच्छा? क्या नाम है मेरा?
मैं: भौजी !!!
मैंने गर्दन उठा कर भाभी की तरफ देखते हुए कहा| मेरे मुँह से भौजी सुन कर भाभी एक दम से खामोश हो गईं| दरअसल मैं उस वक़्त इतना सीधा था की मुझे माँ-पिताजी जो रिश्ता बता देते मेरे लिए वही नाम हो जाता था| अगर पिताजी ने कहा की ये तुम्हारे भैया हैं तो मैं उनसे उस व्यक्ति का नाम तक नहीं पूछता था और उस व्यक्ति को बस भैया कह कर सम्बोधित करता था| इसीलिए जब बड़की अम्मा ने मुझे कहा की ये तेरी भौजी हैं तो मेरे मन में बस वही नाम बस गया|
भाभी: ये मेरा नाम थोड़े ही है? ........ पर आज से तुम मुझे यही कह कर बुलाना|
मुझे ये सुन कर थोड़ा अजीब लगा क्योंकि मेरे आलावा बाकी सब भैया भी भाभी को भौजी ही कहते थे!
मैं: आपको तो अशोक भैया, अजय भैया और गट्टू भैया भी आपको भौजी ही कहते हैं, तो .....
मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;
भौजी: तुम्हारी बात अलग है, तुम्हारे मुँह से भौजी शब्द बड़ा मीठा लगता है!
मैंने भाभी की बात निर्विरोध मान ली, ये सोच कर की शायद मैं दिल्ली से आया हूँ और मेरे मुँह से भौजी सुनने में उन्हें अच्छा लगता है| खेर भाभी ....मतलब भौजी ने मुझे अपना असली नाम नहीं बताया और न ही मैंने उनसे उनका नाम पुछा| मैंने उस दिन से उन्हें भौजी बुलाना शुरू कर दिया|
मैं: भौजी..... ये....घूँघट.....जर्रूरी है?
भौजी: ये लाज के लिए है, अपने से बड़ों का मान रखने के लिए|
मैं: पर मैं तो आपसे छोटा हूँ? मेरे से भी आपको लाज़ आती है?
मैंने उत्सुकतावश सवाल पुछा पर भौजी को लगा की मैं उनका चेहरा देखना चाहता हूँ|
भौजी: मेरे छोटे देवर को मेरा चेहरा देखना है?
मैं: वो....मैं....
ये सुन कर मेरे मुँह से शब्द नहीं फुट रहे थे और भाभी को इसमें बड़ा मजा आ रहा था इसलिए वो हँसने लगीं| भाभी को हँसता हुआ देख मेरा सर फिर शर्म से झुक गया| भाभी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और मेरी नजरें उनके घूँघट पर टिक गईं, भाभी ने अपना घूँघट उठाया और तब मुझे उनके हुस्न का दीदार हुआ| माँग में लाल सिन्दूर, आँखों में काजल, नाक में नथनी, गुलाबी होंठ ये देख कर दिल में अचानक ही हलचल पैदा हो गई| मुँह सूखने लगा और जुबान जैसे पत्थर की बन गई, आँखों को मिलने वाला ये सुख इतना अद्भुत था की उसे बताने के लिए शब्द नहीं! उस समय मैं नहीं जानता था की प्रेम क्या होता है? अगर जानता होता तो कह देता की भौजी मुझे आपसे पहली नजर में प्रेम हो गया है!
जब मैं बिना कुछ बोले भाभी को इस कदर देखने लगा तो भाभी से ये ख़ामोशी बर्दाश्त नहीं हुई और वो बोल पड़ीं;
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?
मेरे पास उनकी बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैंने शर्म से फिर अपना सर झुका लिया| पर भाभी को मेरे मुँह से जवाब सुन्ना था;
भौजी: बोलो ना? क्या देख रहे थे?
मैं: वो....आप.....
मैं सर झुकाये हुए ही बोला, पर भाभी को जवाब चाहिए था सो उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और बोलीं;
भौजी: मेरी आँखों में देखो और कहो?
मैं: आप....बहुत सुन्दर हो!
इतना कह कर मेरे गाल और कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए और मैने गर्दन फिर से झुका ली|
भौजी: सच?
मैंने सर झुकाये हुए ही हाँ कहा|
भौजी: तो मुझे मुँह दिखाई में क्या दोगे?
भौजी ने अचानक से कहा और मैं सोच में पड़ गया की मैं उन्हें क्या दूँ? मेरे पास तो कुछ था नहीं? बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनकी तरफ देखा और कहा;
मैं: भौजी....मेरे पास तो कुछ नहीं! मैं माँ से ले आऊँ?
इतना कह कर मैं उठने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे जाने से रोक दिया|भौजी: पहले सुन तो लो की मुझे चाहिए क्या?
भौजी ने हँसते हुए कहा|
“मुझे तुम्हारी एक पप्पी चाहिए|” ये सुन कर मेरे कान एक बार फिर लाल हो गए पर दिल ने कहा की एक पप्पी ही तो है, इसलिए मैंने हाँ में सर हिला दिया| भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे धीरे से अपने पास खींचा, फिर अपने बाएँ हाथ को मेरे सर के पीछे रखा और दाएँ हाथ से मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे अपने होठों के नजदीक लाईं| भौजी ने अपना मुँह थोड़ा खोला और मेरे दाएँ गाल को अपने मुँह में भर कर थोड़ा चूसा और फिर धीरे से काट लिया| जैसे ही भाभी ने मेरे गालों को छुआ मेरी आँखें बंद हो गईं, मेरे पूरे जिस्म में जैसे आतिशबाजी शुरू हो गई और पेट में तितलियाँ उड़ने लगी| कुछ सेकण्ड्स बाद उन्होंने मेरे गाल को अपने होटों की गिरफ्त से छोड़ दिया, पर इस एहसास ने मेरे शरीर में क्रान्ति छेड़ दी! जिंदगी में पहले बार किसी ने मुझे इस तरह से चूमा था|
“तुम्हें दर्द तो नहीं हुआ?” भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा, तो मैंने मुस्कुराते हुए ना में गर्दन हिला दी| भाभी ने अपने दाएँ हाथ से मेरे गाल पर लगे उनके रस को साफ़ कर दिया और मुस्कुराने लगी| पर मेरे मन में अब लालच जाग गया था, मुझे मेरे दूसरे गाल पर भी भाभी के होठों की छाप चाहिए थी पर कहूँ कैसे? जब कुछ नहीं सूझा तो मैं एक दम से भाभी की गोद में सर रख कर लेट गया| पर भाभी मेरी हरकत नहीं समझी, या फिर वो मुझे और तड़पाना चाहती थीं| उन्होंने मेरे बालों में ऊँगली फेरना शुरू कर दिया, पहले तो मन किया की उन्हें बोल दूँ पर फिर हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| इसलिए मैं आँख बंद किये हुए लेटा रहा और कुछ ही देर में मेरी आँख लग गई| शाम को 4 बजे गट्टू मुझे बुलाने आया तो भौजी ने उसे इशारे से मना कर दिया और वो अकेला ही गाय चराने निकल गया| 5 बजे चाय बानी और तब मैं आँख मलता हुआ बाहर आया, जब मैंने देखा की गाय नहीं बंधी है तो मैं समझ गया की गट्टू गाय चराने जा चूका है| अब मैं कहाँ जाता इसलिए मैं कुएँ के पास बैठ गया और ढलते हुए सूरज को देखने लगा| कुछ देर बाद भौजी मेरी चाय ले कर आईं; "मानु....चाय पी लो!" भौजी ने मुझे चाय दी और फिर मेरे ही पास बैठ गईं| भाभी को देखते ही मुझे दोपहर का समय याद आ गया और मन में फुलझड़ी छूटने लगी, तभी एक सवाल टूट-फूट के बाहर आया;
मैं: भौजी.....वो ...दोपहर में......वो क्या था?
भौजी: वो ना....एक रस्म होती है! गाल काटने की!
भाभी ने हँसते हुए कहा|
मैं: तो आपने गट्टू को भी.....
मेरी बात पूरी होने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;
भौजी: नहीं...वो सिर्फ....सबसे छोटे देवर के लिए होती है!
भौजी की बात सुन कर मुझे मेरे सबसे छोटे होने पर गर्व होने लगा" मतलब ये ख़ास सुख सिर्फ और सिर्फ मुझे मिलेगा! कुछ देर बाद बड़के दादा और पिताजी खेतों की तरफ से आते हुए दिखाई दिए तो भौजी उठ कर चली गईं| मुझे कुएँ के पास बैठा देख पिताजी ने मुझे डाँट दिया; "तुझे बैठने को कोई और जगह नहीं मिली?" मैं सर झुका कर उठा और रसोई के पास छप्पर के नीचे बैठ गया| कुछ देर बाद गट्टू भैया गाय ले कर आ गए और गाय को पानी पिलाने के बाद मेरे पास बैठ गए| "मुझे साथ क्यों नहीं ले गए?" मैंने थोड़ा गुस्से से पुछा तो वो हैरान होते हुए बोले; "तू सोवत रहेओ!" और भाभी की तरफ इशारा किया| मैं समझ गया की भौजी ने जानबूझ कर मुझे नहीं उठाया था| मैं उस समय चुप रहा और रात को जब भौजी मसाला पीस रही थी तब मैंने भौजी से पुछा;
मैं: भौजी ... गट्टू भैया जब मुझे उठाने आये थे तो आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?
भौजी: क्यों? शहर से तुम यहाँ गाय चराने आये हो? या फिर दिल्ली जा कर गाय खरीदनी है? मैं अभी नई-नई आई हूँ, मेरे से कोई बात करने वाला भी नहीं, खाली बैठे-बैठे ऊब जाती हूँ| मैंने सोचा की तुम मेरे पास बैठोगे कुछ बात करोगे, पर तुम्हें तो गाय चरानी है, ठीक है जाओ कल से नहीं रोकूँगी!
भौजी ने ये बात बड़े हक़ से बोली थी, ऐसा नहीं था की घर में कोई उनसे बात करने वाला नहीं था बल्कि वो खुद हमेशा मा या बड़की अम्मा के पास बैठी रहती थीं, ये बात उन्होंने सिर्फ और सिर्फ मुझे सुनाने के लिए कही थी! मैं इन सब बातों से अनजान था और भाभी की बात मुझे सच्ची लगी| इसलिए जब वो नीचे बैठ कर मसाला पीस रही थीं तो मैं पीछे से जाकर उन पर अपना बोझ डाले झुक गया और अपने हाथों को उनकी गर्दन के आगे कस लिया; "माफ़ कर दो भौजी! अब से मैं सिर्फ और सिर्फ आपके साथ रहूँगा, आपके साथ खाऊँगा, आपके साथ पीयूँगा और आप ही के साथ सोऊँगा|" मैंने एक बच्चे की भाँती ये सब बोला और भाभी मेरा बचपना देख हँस पड़ी|
रात का खाना बना और भाभी ने मुझे भी सब के साथ खाना परोस दिया; "भौजी मैं आपके साथ खाऊँगा!" मैंने बड़े भोलेपन से कहा तो भौजी बड़की अम्मा को देखने लगीं| "ठीक है मुन्ना!" अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा| पर भौजी, मा और बड़की अम्मा को सबसे अंत में खाना था क्योंकि ये ही हमारे गाँव की रीत थी| मैंने बड़े इत्मीनान से सबके खाने का इंतजार किया और अंत में भौजी ने पहले बड़की अम्मा उसके बाद माँ को खाना परोस कर अपना और मेरा खाना एक थाली में लिए हुए मेरे पास बैठ गईं| भौजी के चेहरे पर एक मुस्कराहट थी और वही मुस्कराहट मेरे चेहरे पर भी थी| हम दोनों चुप-छाप खाना खा रहे थे और बीच-बीच में एक दूसरे को देख मुस्कुरा भी रहे थे| तभी भौजी ने मुझे खिलाने के लिए एक कौर मेरी तरफ बढ़ाया| मैंने बिना कुछ सोचे वो कौर खा लिया, भौजी 2 सेकंड के लिए मुझे देखती रही| पर मेरी नजर उन पर नहीं थी, भौजी ने एक और कौर मुझे खिलाया और मैंने वो भी खा लिया पर इस बार जब मैंने भौजी की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर मुझे संतोष नजर आया| ये कैसा संतोष था ये मैं समझ नहीं पाया, पर अब मेरे मन में भी विचार आया की मैं भौजी को एक कौर खिलाऊँ| मैंने अगला कौर उन्हें खिलाया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए खा लिया| बड़की अम्मा की नजर मेरे ऊपर पड़ी तो वो मुस्कुराते हुए बोलीं; "लागत है मानु का नई दुल्हिन भा गई!" ये सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए और माँ, बड़की अम्मा और भौजी हँस पड़े| खाना खाने के बाद सोने की बारी आई, अब मेरा मन भौजी के साथ लग गया था और मुझे अब उनके साथ सोना था| पर ये बड़ी टेढ़ी खीर साबित हुआ क्योंकि चन्दर भैया की गैरमौजूदगी में बड़की अम्मा ने भौजी को अपने और माँ के साथ रसोई के पास छापर के नीचे सोने को कहा| मैंने सोचा की कोई बात नहीं, कल दिन भर तो मुझे भौजी के साथ ही रहना है, ये सोचते हुए मैं सो गया|
अगली सुबह हुई और आज मुझे भौजी ने खुद उठाया, मैं आँख मलते हुए उठा और उनका चेहरा देखा पर आज उनके चेहरे पर एक बेचैनी थी| दरअसल चन्दर भैया सुबह ही आ धमके थे, मैं उनसे कुछ पूछ पाता उससे पहले ही भौजी ने मुझे जल्दी से तैयार हो कर आने को कहा| मैं जल्दी से तैयार हो कर आया और भौजी के पास रसोई में घुस गया वो भी चप्पल पहने, भौजी ने मुझे जल्दी से चप्पल दूर उतार आने को कहा| हमारे गाँव में रसोई में बिना नहाये-धोये जाने नहीं दिया जाता, गलती से कोई अगर चप्पल पहन कर रसोई में घुस जाए तो उसे बड़ी डाँट पड़ती है और किसी ने अगर खाना बनाने वाले को बिना नहाये-धोये छू लिया तो वो रसोई घर के बड़े नहीं छूते| जब तक पूरी रसोई गोबर से नहीं लीपी जाती तब तक उसका बना खाना नहीं खाया जाता| माँ ने मुझे चप्पल पहने अंदर जाते देख लिया था इसलिए उन्होंने मुझे बड़ी जोर से डाँटा, तभी अम्मा वहाँ आ गईं और उन्होंने माँ से कहा; "अरे मुन्ना है...छोट है...!" बड़की अम्मा ने मेरा बचाव किया और फिर मुझे अच्छे से समझाया; "मुन्ना ई चूल्हा पूजा जात है, हियाँ बिना नहाये-धोये नहीं आवा जात है! तोहार भौजाई खाना बनात है और अइसे में तू अगर ऊ का छू लिहो तो फिर ई खाना कोई न खाई!" बड़की अम्मा की बात बड़ी सीधी थी तो और मेरे पल्ले पड़ गई, इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और कान पकड़ कर उनसे माफ़ी माँगी| उस दिन के बाद मैं कभी भी रसोई में चप्पल पहन कर या बिना नहाये धोये नहीं घुसा| अब डाँट पड़ी थी इसलिए मैं सर झुकाये रसोई के बाहर बैठ गया|
भौजी: क्या हुआ मानु? तुम्हें पता नहीं था की रसोई में चप्पल पहन कर नहीं आते?
मैं: आज तक मुझे कभी रसोई में आने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी|
भौजी ये सुन कर मुस्कुराने लगी, दोपहर का खाना बना और भौजी ने जानबूझ कर मुझे खाना नहीं परोसा| सब के खाने के बाद मैं और भौजी साथ खाने बैठे और कल रात की ही तरह भौजी ने मुझे खाना अपने हाथ से खिलाया| मैंने भी उन्हें खिलाना चाहा पर उन्होंने बस 1-2 कौर ही खाये| खाने के बाद गट्टू भैया भौजी से बात आकर रहे थे| उस समय मैंने एक बात गौर की, वो ये की भौजी गट्टू से देहाती भाषा में बात की जबकि मेरे से तो वो हिंदी में बात करती थीं?! जब गट्टू भैया चले गए तब मैंने उनसे ये सवाल पुछा;
मैं: भौजी ... आप बाकी सब के साथ तो देहाती भाषा में बात करते हो और मेरे साथ हिंदी में ऐसा क्यों?
भौजी: क्योंकि तुम्हें हिंदी अच्छे से समझ आती है|
भौजी की बात बड़ी साफ़ थी पर मेरा दिल कह रहा था की भौजी का रवैय्या मेरे प्रति कुछ अलग है| मुझसे वो बाकियों के मुक़ाबले बड़े अच्छे से बात करतीं थीं और ये मुझे ख़ास बनाता था|
जारी रहेगा भाग 2 में...