उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के अपने साथियों सहित पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने की सूचना मैने मंत्री के बेटे सूरज चौधरी व उसके तीनो साथियों को भी दे दी। चारो इस ख़बर को सुन कर बिलकुल असहाय से हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्मों में जान ही न रह गई हो। चारो की हालत वैसे भी बहुत ही दयनीय हो चुकी थी। भरपेट खाना न मिलने की वजह से तथा शारीरिक व मानसिक यातनाओं के चलते वो चारो ही बेहद कमज़ोर लगने लगे थे। दूसरे कमरे में मंत्री की बेटी को भी रितू दीदी ने उसके बाप के संबंध में सूचित कर दिया था। रचना चौधरी इस ख़बर से बुत बन कर रह गई थी। किन्तु जब उसके मुख से लफ्ज़ निकले तो बड़े अजीब थे। उसका कहना था कि मेरे बाप भाई ने जितने पाप कर्म किये थे उसका अंजाम तो यही होना था न।
सूरज चौधरी व उसके तीनो दोस्त हर तरह से टूट चुके थे। मौत की भीख माॅग रहे थे चारो मगर मौत मिलना इतना आसान नहीं था। इस बीच मैने फैंसला किया कि इन सबको यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। उन चारो की हालत देख कर मुझे इस बात का बोध हो चुका था कि वो पश्चाताप की आग में जल रहे हैं। बड़े से बड़े अपराध के लिए भी इंसान को क्षमा कर दिया जाता है और उसे सुधरने का एक मौका दिया जाता है। दूसरी बात, ये सब करके मुझे मेरी विधी तो मिलनी नहीं थी। उसके साथ हुए अत्याचार का मैने बदला ले लिया था इन लोगों से।
उन चारों को आज़ाद कर देने वाले मेरे फैंसले से थोड़ी न नुकुर के बाद आख़िर सब राज़ी हो गए थे। किन्तु सवाल ये था कि वो आज़ाद होने के बाद जाएॅगे कहाॅ? क्योंकि मंत्री का बॅगला तो पुलिस द्वारा सील कर दिया गया था। इस सवाल का जवाब रितू दीदी ने दिया, ये कह कर कि ये सब चिमनी में अपने पुश्तैनी घर जा सकते हैं। रितू दीदी की इस बात से समस्या का समाधान हो चुका था। अतः अब यही फैंसला हुआ कि इन सबको बेहोश करके चिमनी भेज दिया जाए।
मैने मौसा जी को फोन करके सारी बात बताई और उनसे आग्रह किया कि क्या वो इन चारो को चिमनी भेजने का काम करवा सकते हैं? मेरी इस बात पर वो हॅस कर बोले इसमें संकोच की क्या बात है बेटा? थोड़ी ही देर में केशव जी अपने कुछ आदमियों को लेकर हमारे पास आ गए। मैने और आदित्य ने चारो को बेहोश कर दिया और केशव की गाड़ी में उन सबको डलवा दिया। उनके साथ ही रचना को भी बेहोश करके डाल दिया था। ये सब होने के बाद केशव जी अपने आदमियों के साथ चिमनी गाॅव के लिए निकल गए।
उन सबको आज़ाद करने के बाद मन को थोड़ा शान्ति सी मिल गई थी। इस वक्त ड्राइंग रूम में मैं रितू दीदी तथा आदित्य बैठे हुए थे। नैना बुआ व सोनम दीदी नीलम के पास उसके कमरे में थीं।
"चलो मंत्री और उसके बच्चों से छुटकारा मिल गया आख़िर।" सहसा आदित्य ने कहा___"अब हम सारा फोकस तुम्हारे ताऊ पर लगा सकते हैं। वैसे मुझे तो लगता है कि अब हमें खुल कर हवेली में उसके सामने ही चले जाना चाहिए और फिर उन सबका भी काम तमाम कर देना चाहिए। अजय सिंह मौजूदा हालात में कुछ भी कर सकने की पोजीशन में नहीं है। उसकी आख़िरी उम्मीद निःसंदेह मंत्री ही था जोकि अब वो भी कानून की लम्बी चपेट में आ चुका है। दूसरी बात उसके जितने भी आदमी थे उन सबको भी पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अजय सिंह निहत्था व असहाय अवस्था में है। हम बड़ी आसानी से उसे लपेटे में ले सकते हैं और उसका हिसाब किताब कर सकते हैं।"
"इस बात का एहसास तो उसे भी हो ही गया होगा मेरे यार।" मैने कहा___"वो भी इस बात को समझता होगा कि मौजूदा हालात में हम उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे? इस लिए वो पूरी कोशिश करेगा कि वो हमारी सोच को सही साबित न होने दे। यानी कि वो कुछ ऐसा ज़रूर करेगा जिससे हम उसके सामने इस तरह न जा सकें जिस तरह की तुम बात कर रहे हो।"
"राज बिलकुल सही कह रहा है आदित्य।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेकर कहा___"मैं अपने डैड को बहुत अच्छी तरह से जानती हूॅ। वो इस परिस्थिति में भी कोई ऐसा जुगाड़ कर ही लेंगे कि हम उनके पास इस तरह से उनका तिया पाॅचा करने न पहुॅच सकें।"
"तुम्हारे हिसाब से वो ऐसा क्या जुगाड़ कर सकता है अब?" आदित्य ने पूछा___"जबकि मौजूदा हालात साफ शब्दों में बता रहे हैं कि वो अब कुछ भी करने की पोजीशन में नहीं रह गया है।"
"इस बारे में मैं कुछ कह नहीं सकती।" रितू दीदी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"किन्तु उनके संबंध कई ऐसे लोगों से रहे हैं अथवा ये कहूॅ कि हैं जो ऊॅचे दर्ज़े के अपराधी हैं। अतः संभव है कि डैड अपने ऐसे ही किन्हीं अपराधी दोस्तों से मौजूदा हालात में मदद की गुहार लगाएॅ।"
"चलो ये मान लिया कि तुम्हारे डैड के ऐसे लोगों से संबंध हैं और वो उन लोगों से इस समय मदद माॅग सकते हैं।" आदित्य ने कहा___"किन्तु यहाॅ पर मैं एक सलाह देना चाहता हूॅ, और वो सलाह ये है कि तुम्हारे डैड को उस आधार पर भी तो बड़ी आसानी से भीगी बिल्ली बना कर अपने पास बुलाया जा सकता है जो आधार इस वक्त राज के पास मौजूद है, यानी कि अजय सिंह का ग़ैर कानूनी सामान। उस सामान के आधार पर अजय सिंह यकीनन भीगी बिल्ली बन कर हमारे पास खुद ही आ जाएगा।"
"ऐसा नहीं हो सकता आदी।" मैने कहा___"क्योंकि अब तक ये बात मेरे ताऊ को भी ताई के समझाने पर समझ आ ही गई होगी कि मैं उन्हें उनके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई क्षति नहीं पहुॅचाना चाहता बल्कि अपने बलबूते पर ही अपने व अपने परिवार के साथ हुए हर अत्याचार का बदला लेना चाहता हूॅ। अगर मुझे उस सामान के आधार पर ही अपने ताऊ का क्रियाकर्म करना होता तो मैं ये काम बहुत पहले ही कर चुका होता। इस लिए इस बात पर सोचने का कोई मतलब ही नहीं है दोस्त।"
"मैं तुम्हारी बातों से पूर्णतया सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"किन्तु उन्हें ये भी तो पता होगा न कि अगर तुम अपने बलबूते पर अपने ताऊ का कोई भी बाल बाॅका न कर पाए तो फिर तुम्हारे पास अंतिम चारा वो ग़ैर कानूनी सामान ही तो होगा। यानी कि तुम उस सामान के आधार पर ही आख़िरी चारे के रूप में अपने ताऊ का काम तमाम करोगे। कहने का मतलब ये कि इस वक्त अगर तुम उसी ग़ैर कानूनी सामान की धमकी देकर अपने ताऊ को भीगी बिल्ली बना कर अपने पास आने पर मजबूर करोगे तो वो यही समझेंगे कि शायद तुम्हारे पास अब यही एक चारा रह गया था जिसके तहत तुमने अजय सिंह के उस ग़ैर कानूनी सामान का सहारा लिया है और उसे अपने पास इस तरह बुला रहे हो।"
"मनोविज्ञान की दृष्टि से तुम्हारा ये सोच कर कहना यकीनन सही है।" मैने कहा___"किन्तु मत भूलो कि उस तरफ बड़ी माॅ हैं जो खुद दिमाग़ के मामले में हम सबसे बीस ही हैं। कहने का मतलब ये कि सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद वो इसी नतीजे पर पहुॅचेंगी कि इतना कुछ होने के बाद तो हमारा पक्ष पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गया है, तो फिर अचानक ये गैर कानूनी सामान को आधार बना कर अजय सिंह को हम क्यों अपने पास बुला रहे हैं?"
"अरे तो उनके नतीजों से हमें क्या लेना देना भाई?" आदित्य ने कहा___"वो सारे हालातों पर ग़ौर करके क्या नतीजा निकालती हैं इससे हमें क्या फर्क़ पड़ता है? हमें तो अपने काम से मतलब है, फिर चाहे वो जैसे भी हो।"
"और मेरे सिद्धान्तों व उसूलों का क्या?" मैने आदित्य की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा___"हम सच्चाई व धर्म की राह पर चल रहे हैं दोस्त। हम भले ही अब तक धोखे से या किसी चाल से यहाॅ तक पहुॅचे हैं किन्तु प्यार व जंग में ये जायज था। मगर यहाॅ पर एक नियम अथवा एक सिद्धान्त तो मैंने उन्हें जता ही दिया था कि मैं अजय सिंह के खिलाफ उसके ग़ैर कानूनी सामान के आधार पर कोई ऐक्शन नहीं लूॅगा, बल्कि सब कुछ अपने बलबूते पर ही करूॅगा। इस बात को मैं अब तक निभाता भी आया हूॅ और आगे भी इसे निभाना चाहता हूॅ। ये मेरे जिगर व मेरी मर्दानगी का सबूत भी होगा भाई कि मैने अपने बलबूते पर ही सब कुछ किया। इसके विपरीत अगर मैने जंग के आख़िर में ये क़दम उठाया तो फिर मेरी साख़ का क्या औचित्य रह जाएगा? मेरा ताऊ इस बात को भले ही न समझ पाए मगर मुझे यकीन है कि मेरी इस मनोभावना को बड़ी माॅ ज़रूर समझेंगी, और मैं चाहता भी हूॅ कि उनके मन में मेरे कैरेक्टर का ये मैसेज जाए। दूसरी बात, हमे ऐसा करने की ज़रूरत भी क्या है दोस्त? आप दोनो के रहते तो मैं सारी दुनिया को फतह कर सकता हूॅ।"
"एक सच्चा इंसान तथा एक सच्चा वीर ऐसा ही होना चाहिए।" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों देखते हुए कहा___"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरे भाई। मेरा दिल करता है कि तेरे लिए अपनी अंतिम साॅस तक निसार कर दूॅ।"
"ऐसा मत कहिए दीदी।" मैने सहसा भावुकतावश उनकी तरफ देखते हुए कहा___"अभी तो हम सबको एक साथ बहुत सारी खुशियाॅ बाॅटनी हैं। इस सबके बाद हम एक नये संसार का शुभारम्भ करेंगे। उस नये संसार में बेपनाह प्यार और बेपनाह खुशियाॅ होंगी।"
"और मुझे अपनी उन खुशियों से किनारा कर दोगे क्या तुम लोग?" आदित्य मुस्कुराते हुए बोल पड़ा___"ऐसा सोचना भी मत राज। वरना देख लेना तुम्हारे घर के बाहर धरना देकर बैठ जाऊॅगा।"
"ऐसा मत करना दोस्त।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"गाॅव के लोग धरने के रूप में एक ही आदमी को बैठा देखेंगे तो उसे कुछ और ही समझ लेंगे।"
"ओ हैलो।" आदित्य ने ऑखें दिखाई___"क्या मतलब है तुम्हारा? क्या समझ लेंगे गाॅव के लोग___भिखारी?? चल कोई बात नहीं यार। तुम्हारे लिए ये भी बन जाऊॅगा।"
"तुम्हें बाहर धरने पर बैठने की ज़रूरत नहीं है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"रक्षाबंधन आने वाला है। इतने वर्षों में पहली बार मैं राज को राखी बाधूॅगी। राज की तरह तुम भी मेरे भाई ही हो। मैं और भी बहुत खुश हो जाऊॅगी कि तुम्हारे जैसा एक नेक दिल इंसान मेरा भाई बन जाएगा।"
"कितनी सुंदर बात कही है तुमने।" आदित्य सहसा किसी गहरे ख़यालों में खोता नज़र आया___"तुम्हारे ही जैसी एक बहन थी मेरी___प्रतीक्षा। मेरी लाडली थी वो, हर साल रक्षाबंधन के दिन मेरी कलाई पर एक साथ ढेर सारी राखियाॅ बाॅध देती थी। फिर कहती कि सभी राखियों का वो अलग अलग पैसा लेगी मुझसे।" कहने के साथ ही आदित्य की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोला___"मगर चार साल पहले अपने प्यार में धोखा खाने की वजह से उसने खुदखुशी की कोशिश की। दो मंजिला मकान की छत से कूद गई वो। हास्पिटल में इलाज चला मगर डाक्टर ने बताया कि वो कोमा में जा चुकी है। आज चार साल हो गए। आज भी वो लाश बनी पड़ी है। जिस लड़के ने उसे धोखा दिया था उसे ऐसी सज़ा दी थी मैने कि वो किसी भी लड़की से संबंध बनाने का सोच ही नहीं सकता अब।"
आदित्य की ये बातें सुन कर मैं और रितू दीदी भी सीरियस हो गए। रितू दीदी उठ कर आदित्य के पास गई और उसे अपने से छुपका लिया। मैं खुद भी आदित्य की दूसरी तरफ बैठ कर उसके कंधे को थपथपा रहा था।
"दुखी मत हो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"प्रतीक्षा जल्द ही ठीक हो जाएगी। चलो अब शान्त हो जाओ। देखो ये ईश्वर का विधान ही तो था कि मैं तुम्हारी बहन के रूप में तुम्हें मिली और चार साल से सूनी पड़ी तुम्हारी कलाई में राखी भी बाधूॅगी।"
"भगवान का बहुत बहुत शुक्रिया।" आदित्य ने रितू दीदी से अलग होते हुए ऊपर की तरफ सिर करके कहा___"जो उसने मुझे बहन के रूप में मेरी प्रतीक्षा को मेरे पास भेज दिया। मैं तुमसे यही कहूॅगा रितू कि तुम भी प्रतीक्षा की तरह मेरी कलाई पर ढेर सारी राखियाॅ बाॅधना।"
"जैसी तुम्हारी इच्छा।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"तुम दोनो बैठो मैं ज़रा काकी(बिंदिया) को चाय बनाने के लिए कहने जा रही हूॅ।"
"ठीक है।" आदित्य ने कहा। उसके बाद रितू दीदी उठ कर अंदर की तरफ चली गईं। जबकि मैं और आदित्य वहीं बैठे रहे।
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उधर मुम्बई में।
जगदीश ओबराय बॅगले के बाहर लान में एक तरफ हरी हरी विदेशी घाॅस के बीचो बीच रखी कुर्सी पर बैठा शाम का अखबार पढ़ रहा था। इस वक्त वह यहाॅ पर अकेला ही था। उसके सामने की बाॅकी सभी कुर्सियाॅ खाली थी। तभी मेन गेट से अंदर आती हुई एक कार की आवाज़ से उसका ध्यान मेन गेट की तरफ गया।
मेन गेट से अंदर दाखिल हुई कार चलते हुए सीधा पोर्च में जाकर रुकी। कार के रुकते ही पैसेंजर सीट की तरफ का गेट खुला और अभय सिंह अपने पैर पोर्च के फर्श पर रखते हुए बाहर निकला। बाहर आते ही उसने लान में एक तरफ कुर्सी में बैठे जगदीश ओबराय की तरफ देखा। जगदीश ओबराय को देखते ही उसके होठों पर मुस्कान उभर आई और वह उस तरफ ही बढ़ता चला गया।
"कहो भाई क्या कहा डाक्टर ने?" अभय के कुर्सी पर बैठते ही जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा___"वैसे तुम्हारे चेहरे की चमक देख कर ज़ाहिर हो रहा है कि रिपोर्ट पाॅजिटिव ही है।"
"बिलकुल सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने खुशी से कहा___"रिपोर्ट एकदम सही है। बस कुछ ही दिनों में सब कुछ सही हो जाएगा और ये सब आपकी वजह से ही संभव हो सका है। इसके लिए मैं आपका हमेशा आभारी रहूॅगा।"
"अरे इसमें मेरा आभारी रहने की क्या बात है भई?" जगदीश ओबराय ने कहा___"सब कुछ करने वाला तो ऊपरवाला है। हम तो बस माध्यम ही होते हैं।"
"ऊपरवाले को भी तो कुछ करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता ही पड़ती है भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा____"ये उसी का नतीजा है कि आप इस सबके लिए माध्यम बने और ये सब हुआ वरना अब तक जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तो हम में से कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था।"
"पर इसमें भी सबसे बड़ा योगदान गौरी बहन का है अभय भाई।" जगदीश ओबराय ने कहा___"उसने करुणा बहन से कुरेद कुरेद कर तथा ज़बरदस्ती पूछा था और तब करुणा ने बताया कि तुममें समस्या क्या है? गौरी बहन ने वो बात बहाने से ही सही किन्तु मुझसे कही। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि तुम में ये समस्या हो सकती है। तुम भी अपने बिना मतलब के स्वाभिमान व शर्म के चलते इस बारे में किसी से कहना नहीं चाहते थे। बेकार की सोच और बेकार के सिद्धान्त लिए बैठे थे। तुम्हें अपनी पत्नी की इच्छाओं का खुशियों का कोई ख़याल ही नहीं था। ख़ैर, जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। अब खुशी की बात ये है कि तुम फिजिकली अब कुछ ही दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाओगे और तुम्हारे पति पत्नी के रिश्तों के बीच फिर से खुशियाॅ भी आ जाएॅगी।"
"सचमुच गौरी भाभी को सबका ख़याल रहता है।" अभय सिंह ने मुग्ध भाव से कहा___"वो यकीनन देवी हैं भाई साहब। कभी कभी सोचा करता हूॅ कि इतने अच्छे लोगों के साथ ईश्वर ऐसा अन्याय कैसे कर देता है? भला क्या बिगाड़ा था किसी का उन्होंने?"
"एक नये अध्याय को शुरू करने के लिए पुराने ख़राब हो चुके अध्याय को खत्म करना ही पड़ता है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"हम आम इंसान ईश्वर के क्रिया कलाप को समझ नहीं पाते हैं जबकि सबसे ज्यादा उसे ही पता होता है कि हमारे लिए क्या अच्छा हो सकता है? ईश्वर ने मेरे साथ क्या कुछ नहीं कर दिया है। आज से पहले अरब पति होते हुए भी मैं इतनी बड़ी सल्तनत में अकेला था किन्तु आज मेरे पास गौरी जैसी बहन है और विराज व निधी जैसे मेरे बच्चे हैं। उनके साथ साथ तुम सब भी मिल गए। इन सभी रिश्तों में मुझे प्यार व सम्मान हद से ज्यादा मिल रहा है। अब इससे ज्यादा क्या चाहिए मुझे? इस दुनियाॅ में हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएॅगे? सब कुछ यहीं रह जाएगा, असली दौलत व असली सुख तो इन्हीं में है। आज ईश्वर के इस न्याय से मैं बहुत खुश हूॅ।"
"सही कहा आपने भाई साहब।" अभय सिंह ने कहा___"काश हर इंसान आप जैसी सोच वाला हो जाए तो ये संसार कितना खूबसूरत हो जाए। एक मेरे बड़े भाई साहब हैं जिन्होंने अपने मतलब के लिए हर रिश्ते की बलि चढ़ा दी तथा अपनों के साथ इतना बड़ा अत्याचार कर डाला। क्या उन्हें ये बात नहीं पता होगी कि उन्होंने जिन चीज़ों के लिए ये सब किया वो चीज़ें मरने के बाद उनके साथ नहीं जाएॅगी। बल्कि उनके इस कर्म से उनके मरने के बाद भी लोग उन्हें बुरा भला ही कहेंगे।"
"इस संसार में हर तरह के इंसानों का होना ज़रूरी है अभय।" जगदीश ने कहा___"ईश्वर हर तरह के प्राणियों की रचना करता है, फिर उन्हीं के द्वारा खेल भी रचाता है और उस खेल का आनंद भी लेता है। उसने हम इंसानो के लिए नियम बनाए और उन नियमों पर चलने के लिए उसने समय समय पर हमें किसी न किसी माध्यम से रास्ता भी बताया। ख़ैर ये प्रसंग तो बहुत बड़ा है भई, इसे समझना और इस पर अमल करना बहुत कठिन है। तुम बताओ क्या कहा डाक्टर ने?"
"बाॅकी का तो आपको पता ही है।" अभय सिंह ने कहा___"उस दिन की रिपोर्ट के अनुसार इलाज शुरू हो चुका था। आज उसने टेस्ट लिया तो रिजल्ट बेहतर निकला। उसने बताया कि बहुत जल्द पहले जैसी बात हो जाएगी।"
"चलो ये तो अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"तुम भी ज़रा संजम और संयम का ख़याल रखना और दवा दारू समय समय पर करते रहना। ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
"जी बिलकुल।" अभय सिंह ने कहा___"अच्छा भाई साहब मैं ज़रा आज की दवाइयों को अंदर रख कर आता हूॅ। वो अभी कार में ही रखी हुई हैं।"
"ओह हाॅ।" जगदीश ओबराय ने कहा___"और हाॅ अंदर गौरी बहन से कहना ज़रा गरमा गरम चाय तो बना कर पिलाए।"
जगदीश ओबराय की बात सुन कर अभय सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया और कुर्सी से उठ कर कार की तरफ बढ़ गया। कार से उसने एक प्लास्टिक की थैली निकाली और उसे लेकर बॅगले के अंदर चला गया।
वहीं एक तरफ निधी के कमरे में निधी और आशा बेड पर बैठी हुई थी। पिछले दिन हुई बातचीत से निधी आशा के सामने आने से थोड़ा असहज सा महसूस करती थी, किन्तु आशा के समझाने पर उसकी झिझक व शर्म बहुत हद तक दूर हो गई थी। आशा पहले भी ज्यादातर उसके पास ही रहती थी किन्तु जब से उसके सामने ये बात खुल गई थी कि निधी विराज से प्यार करती है तब से वो और भी निधी के समीप ही रहती थी। आशा उमर में रितू जैसी ही थी तथा एक समझदार व सुलझी हुई लड़की थी इस लिए वो निधी को एक पल के लिए उदास या मायूस नहीं होने देती थी।
आशा के ही पूछने पर निधी ने उसे बताया कि कैसे उसे अपने भाई से प्यार हुआ और कैसे उसने अपने उस प्यार को विराज के सामने उजागर भी किया था। आशा सारी बातें सुन कर हैरान थी। सबसे ज्यादा इस बात पर कि निधी ने विराज से अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया है। ये अलग बात है कि विराज ने इसे अनुचित व ग़लत कहते हुए उसे इस संबंध में समझाया था। उसने उसे ये भी समझाया था कि इस रिश्ते को दुनियाॅ वाले कभी स्वीकार नहीं कर सकते और ना ही उसके घर वाले। विराज अपनी इस लाडली को जी जान से चाहता था किन्तु एक बहन भाई के रूप में। वो नहीं चाहता था कि उसकी कठोरता से निधी को ज्यादा दुख पहुॅचे। छोटी ऊम्र का आकर्शण कभी कभी ज़िद के चलते इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि अगर उसे समय रहते सम्हाला न गया तो परिणाम गंभीर भी निकल आते हैं।
शुरू शुरू में आशा को भी यही लगा था कि निधी अपने भाई पर महज आकर्षित है। किन्तु जब उसने निधी से इस संबंध में सारी बातों को जाना और उसकी डायरी के हर पेज पर दिल को झकझोर कर रख देने वाले मजमून को पढ़ा तो उसे महसूस हुआ कि ये महज आकर्शण नहीं है बल्कि ये बेपनाह मोहब्बत का प्रत्यक्ष सबूत है। आशा ने निधी की इजाज़त से ही उसकी डायरी को पढ़ना शुरू किया था। यूॅ तो डायरी में लिखी हर बात अपने आप में निधी की तड़प बयां करती थी किन्तु निधी के द्वारा लिखी गई ग़ज़लें ऐसी थीं जो आशा के दिल को बुरी तरह तड़पा देती थी। उसे ऐसा लगता जैसे ग़ज़ल की हर बात में उसी का हाले दिल बयां किया गया है। निधी अपने आपको बहलाने के लिए ज्यादातर किताबों में ही डूबी रहती थी। आशा उसकी पढ़ाई में कोई हस्ताक्षेप नहीं करती थी। किन्तु उसे भी पता था कि किसी चीज़ में अति हानिकारक होती है। इस लिए वो निधी का हर तरह से ख़याल भी रखती थी। इस वक्त भी वह उसके लिए चाय लेकर आई थी।
निधी ने चाय पिया और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद वह फिर से किताबों में डूब गई थी। जबकि आशा बेड पर सिरहाने की तरफ रखे पिल्लो के नीचे से निधी की डायरी निकाल कर उसे पढ़ने लगी थी। उसमें एक ग़ज़ल थी जिसे वो बार बार पढ़े जा रही थी।
अब किसी भी बात का यूॅ मशवरा न दे कोई।
इश्क़ गुनाहे अजीम नहीं तो सज़ा न दे कोई।।
अज़ाब तो मोहब्बत के साथ ही मिल जाते हैं,
फिर ग़मों को हमारे घर का पता न दे कोई।।
कैसे समझाएॅ के ऑधियों के बस का भी नहीं,
ये तो दिल के चिराग़ हैं इन्हें हवा न दे कोई।।
दिल की चोंट तो दिलबर से ही रफू होती है,
बेवजह इस दिल की अब दवा न दे कोई।।
इस लिए अपने दिल को समझा लिया हमने,
सरे राह मेरे महबूब का सिर झुका न दे कोई।।
आग लगे इस इश्क़ को के इसकी वजह से,
परेशां हो के मुझको कहीं भुला न दे कोई।।
आशा ने इस ग़ज़ल को बार बार पढ़ा। उसके दिल में अजीब सी हचचल होने लगी थी। काफी देर तक वो उसके बारे में सोचती रही। वो हैरान भी थी कि निधी इतना कुछ कैसे लिख सकती है? पर सबूत तो उसकी ऑखों के सामने ही था। आशा ने निधी से पूछा भी था कि ये किस शायर की लिखी हुई ग़ज़ल है, जवाब में निधी ने बस मुस्कुरा दिया था। जब आशा ने ज़ोर दिया तो उसने बताया कि ये उसके ही दिल की आवाज़ है जिसे उसने शब्दों में पिरो कर ग़ज़ल का रूप दे दिया है। निधी की इस बात पर आशा सोचों में गुम हो गई। फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला। उसकी नज़र डायरी के दाहिने वाले पेज़ पर लिखी एक और ग़ज़ल पर पड़ी। उसने उस ग़ज़ल को भी पढ़ना शुरू किया।
दिल तो दरिया ही था इक ग़म भी समंदर हो गया।
फक़त दर्द से फाॅसला था वो भी मयस्सर हो गया।।
हर वक्त ज़हन में अब उनका ही ख़याल तारी है,
मेरी पलकों के तले हर ख़्वाब सिकंदर हो गया।।
इसके पहले तो बहारे गुल का हर मौसम हरा रहा,
अब खिज़ां क्या आई के हर बाग़ बंज़र हो गया।।
मेरी ज़रा सी आह पर तड़प उठते थे कुछ लोग,
आजकल तो मोम का हर पुतला पत्थर हो गया।।
कितनी हसीं थी ज़िन्दगी मरीज़-ए-दिल से पहले,
अब तो नज़र के सामने बस वीरां मंज़र हो गया।।
अपनी बेबसी का ज़िक्र भला करें भी तो किससे,
बस छुप छुप के रोना ही अपना मुकद्दर हो गया।।
इस ग़ज़ल को पढ़ कर आशा के संपूर्ण जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दिल में इक हूक सी उठी जिसने उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसुओं का सैलाब सा ला दिया। उसने पलट कर चुपके से निधी की तरफ देखा। निधी पूर्व की भाॅति ही किताबों में खोई हुई थी। ये देख कर आशा को ऐसा लगा जैसे उसका दिल एकदम से धड़कना बंद कर देगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपने अंदर के प्रबल वेग में मचलने लगे जज़्बातों को सम्हाला और फिर डायरी को बंद कर बेड पर चुपचाप ऑखें बंद करके लेट गई। दिलो दिमाग़ एकदम से शून्य सा हो गया था उसका। उसे निधी के दर्द का बखूबी एहसास हो चुका था। किन्तु दिमाग़ में ये सवाल ताण्डव सा करने लगा कि कोई लड़की इस हद तक कैसे किसी को चाह सकती है कि उसके प्रेम में इस तरह बावरी सी होकर ग़ज़ल व कविता लिखने लग जाए? मन ही मन जाने क्या क्या सोचते हुए आशा को पता ही नहीं चला कि कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया था।
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अजय सिंह तेज़ रफ्तार से कार चलाते हुए शहर की तरफ जा रहा था। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर सी कठोरता विद्यमान थी। उसकी नज़र बार बार कार के अंदर लगे बैक मिरर पर पड़ जाती थी। वह काफी समय से देख रहा था कि उसके पीछे लगभग सौ मीटर के फाॅसले पर एक जीप लगी हुई है। पहले उसे लगा था कि शायद कोई लोकल आदमी होगा जो उसकी तरह ही शहर जा रहा है किन्तु फिर जाने क्या सोच कर अजय सिंह ने उसे परखने का सोचा था? अजय सिंह ने कई बार अपनी कार की रफ्तार को धीमा किया था, ये सोच कर कि पीछे आने वाली जीप उसे ओवरटेक करके उसके आगे निकल जाएगी मगर ऐसा एक बार भी नहीं हुआ था। बल्कि उसकी कार के धीमा होते ही उस जीप की रफ्तार भी धीमी हो जाती थी।
अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि पीछे लगी जीप वास्तव में उसका पीछा कर रही है। इस बात के समझते ही उसे ये भी समझ आ गया कि संभव है ऐसा उसके साथ अब से पहले भी हो चुका हो। उसके मस्तिष्क में दो नाम आए रितू और विराज। यकीनन इन दोनो ने उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखने के लिए कोई आदमी उसके पीछे लगा रखा था। अजय सिंह को अब सब समझ आ गया था कि क्यों वो बार बार मात खा रहा था अपने दुश्मन से। उसके दुश्मन को उसकी हर ख़बर रहती थी तभी तो वो उससे चार क़दम आगे रहता था। अजय सिंह को अपने आप पर बेहद गुस्सा भी आया कि उसने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा था? जबकि ये एक अहम बात थी। उसकी बेटी के लिए ये सब करना महज बाएॅ हाथ का खेल था। वो एक पुलिस वाली थी, जिसके तहत मुजरिमों को खोजने के लिए उसके अपने गुप्त मुखबिर होना लाजमी बात थी। किन्तु अब भला इस बारे में सोचने का क्या फायदा था? जो होना था वो तो हो ही चुका था, मगर अब जो होने वाला था ये उसने सोच लिया था।
अजय सिंह ने अपने पीछे लगी उस जीप को चकमा देने का मन बना लिया था। अब वो अपनी गतिविधियों की जानकारी अपने दुश्मन तक नहीं पहुॅचने देना चाहता था। उसने कार को तेज़ रफ्तार से दौड़ा दिया और कुछ ही समय में शहर के अंदर दाखिल हो गया। बैक मिरर पर उसकी नज़र बराबर थी। वो देख रहा था कि पीछे लगी जीप भी उसी रफ्तार से आ रही थी। अजय सिंह को पता था कि उस जीप को चकमा देने का काम वो शहर में ही कर सकता था। क्योंकि यहाॅ पर आबादी थी तथा कई सारे रास्ते थे जहाॅ पर पल में गुम हो सकता था। अजय सिंह ने ऐसा ही किया, यानी शहर में दाखिल होते ही कई सारे रास्तों से चलते हुए पीछे लगी जीप की पहुॅच से दूर हो गया। इस बीच उसने किसी से फोन पर बात भी की थी।