अजय सिंह अपने छोटे भाई के गुस्से से भलीभाॅति परिचित था। इस लिए उसने उसका कहा मानने में ही अपनी भलाई समझी। वो देख रहा था कि इस वक्य अभय सिंह सहाय को अपने आगे किये हुए है और हर तरफ उसकी पैनी नज़र है। छोटी सी एक ग़लती सहाय का भेजा उड़ा सकती थी और सहाय के मर जाने से उसके आदमी उसका कोई आदेश नहीं मानेंगे।
बहुत ही मजबूर व लाचार भाव से अजय सिंह ने एक बार सबकी तरफ देखा उसके बाद उसने सभी गनमैनों की तरफ देखते हुए हाॅ में अपने सिर को हिलाया। प्रतिमा व शिवा ये सब देख कर बुरी तरह आतंकित से नज़र आने लगे थे। ख़ैर अजय सिंह के इशारे से सभी गनमैनों ने अपने हथियार फेंक दिये।
"अब इन सबके बंधनों को भी खोलो।" अभय सिंह ने गनमैनों को हुक्म सा दिया।
अजय सिंह का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से दौड़ रहा था। वो जानता था कि ऐसे में वह जीती हुई बाज़ी हार जाएगा। अतः वह कोई न कोई जुगत लगाने में लगा हुआ था। उधर अभय सिंह के कहने पर कुछ गनमैन आगे बढ़े और सबके बंधनों को खोलने लगे।
अभय सिंह पूरी तरह सतर्क था। वह सहाय की कनपटी पर रिवाल्वर सटाए हर तरफ देख रहा था। किन्तु ज्यादा देर तक उसकी सतर्कता उसके काम न आ सकी। अचानक ही एक तरफ से धाॅय की आवाज़ हुई थी और फिर अभय सिंह के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। रिवाल्वर की गोली सीधा उसके कान को छू कर गुज़र गई थी। गर्म गर्म शोला कान की लौ को मानो भीषण तपिश देकर गुज़रा था। जिसका असर ये हुआ कि अभय सिंह छिटक कर दूर हट गया था। रिवाल्वर जाने कब उसके हाॅथ से निकल गया था। सहाय उसकी गिरफ्त से छूटते ही एक तरफ को सरपट भागा था।
इधर अभय सिंह के साथ हुए इस हादसे ने अजय सिंह के पलड़े को पुनः मजबूत करने की राह पकड़ ली। सबके बंधनों को छुड़ाने में लगे गनमैन इस हादसे के होते ही फौरन अपनी अपनी गन्स की तरफ लपके। उधर आदित्य, रितू, मैं और पवन जल्दी जल्दी अपने बंधन खोलते जा रहे थे। दरअसल जो गनमैन हमारे बंधनों को खोल रहे थे वो इस हादसे के होते ही उसे वैसी ही हालत में छोंड़ कर अपने अपने हथियारों की तरफ दौड़ पड़े थे।
उधर अभय सिंह जब तक खुद को सम्हालता अजय सिंह उसके पास पहुॅच चुका था। उसने ज़ोर की लात अभय सिंह के पेट में मारी। अभय सिंह लहराता हुआ दूर जा कर गिरा। अजय सिंह इस वक्त हिंसक जानवर की तरह लग रहा था। अफरा तफरी के माहौल को देख कर शिवा का भी दिमाग़ चल गया। वह फौरन ही इधर उधर देखने लगा। तत्काल ही उसकी नज़र सोनम पर पड़ी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। सोनम के पास पहुॅच कर उसने बेख़ौफ होकर उसकी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया फिर बोला___"आओ मेरी जान। हम भी अपना प्रोग्राम बनाते हैं। सोचा था कि दिल की बात मान कर इस सबसे तौबा कर लूॅगा। मगर कदाचित ये मेरी किस्मत में ही नहीं है।"
"छोंड़ दे मुझे।" सोनम ने अपनी कलाई को उससे छुड़ाते हुए कहा____"तेरे जैसा घटियाॅ इंसान तो सारे संसार में भी न होगा। अपनी ही बहन के बारे में इतना गंदा सोचने में तुझे ज़रा भी शर्म नहीं आती।"
"यही तो बात है सोनम।" शिवा अपने से बड़ी ऊम्र की बहन को पूरी ढिठाई से उसके नाम से संबोधित करते हुए कहा___"जब मुझे पता चला कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो मैने भी सोचा चलो अच्छा ही हुआ। दुनियाॅ की एक हसींन लड़की से अगर मेरी शादी हो जाएगी तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। मगर जल्द ही समझ में आ गया कि प्यार मोहब्बत साली होती ही उसी से है जो हमें कभी मिलने वाला नहीं होता। मुझे लगा यार इससे अच्छा तो वही था जबकि मैं सिर्फ रासलीला से ही खुश रहता था।"
"मुझे तेरी ये बकवास नहीं सुननी कमीने।" सोनम ने गुस्से में कहा____"मैं कहती हूॅ छोंड़ दे मेरा हाॅथ वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।"
"पर अगर तुम चाहो तो मैं अब भी बदल सकता हूॅ।" शिवा ने उसकी बात पर ध्यान दिये बिना ही बोला___"हाॅ सोनम, तुम मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर लो और मुझसे शादी कर लो। हलाॅकि मैं जानता हूॅ कि हम दोनो के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए एग्री नहीं होंगे। इस लिए हम कहीं दूर चले जाएॅगे। वहीं कहीं एक नया संसार बसाएॅगे। मैने तो सबकुछ सोच भी लिया है सोनम। तुम किसी भी बात की चिन्ता मत करो। धन दौलत बहुत है, उसी में हम जीवन भर ऐश करेंगे। क्या कहती हो...आहहहहह।"
अभी शिवा का वाक्य पूरा ही हुआ था कि तभी उसके गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा था। उसके कान एकदम से झनझना कर रह गए थे। अपने गाल को सहलाता हुआ शिवा जब सीधा हुआ तो उसकी नज़र विराज पर पड़ी। विराज को देखते ही उसकी नानी मर गई।
"इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा बेटा।" मैने उसकी ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"सुना है मुझसे दो दो हाॅथ करने के लिए बड़ा फुदकता था तू। अब आ गया हूॅ सामने तो हो जाए दो दो हाॅथ? क्या कहता है?"
"सब वक्त वक्त की बातें हैं भाई।" शिवा ने सहसा फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"हो सकता है कि मैं पहले भी तुमसे दो दो हाॅथ करने के काबिल न रहा होऊॅ किन्तु फिर भी दो दो हाॅथ करने की हिमाकत ज़रूर करता मगर अब वो बात नहीं रह गई।"
"क्यों क्या हुआ?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"शेर का सामना होते ही सारी हेकड़ी निकल गई?"
"हेकड़ी तो अभी भी है भाई।" शिवा ने कहा___"मगर जैसा कि मैने कहा न कि अब वो बात नहीं रह गई। अब तो बस बात ये है कि किसी से इश्क़ हुआ और हम खुद ही मर गए। अब अगर तुम एक मरे हुए को मारना चाहते हो तो ठीक है लो हाज़िर हूॅ, जो जी में आए कर लो। वादा करता हूॅ कि उफ्फ तक नहीं करूॅगा।"
शिवा की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह हैरान रह गया। मुझे समझ न आया कि ये बद्जात बोल क्या रहा है। जबकि मेरी उलझन को देखते हुए सोनम दीदी ने कहा___"ये कमीना कहता है कि ये मुझसे प्यार करता है और अब शादी भी करना चाहता है।"
"क्याऽऽऽ?????" सोनम दीदी की बात सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। आश्चर्य से शिवा की तरफ देखते हुए बोला___"आख़िर गंदा खून कर भी क्या सकता है? जिसका बाप हमेशा अपने ही घर की बहू बेटियों पर नीयत ख़राब करता रहा हो उसका बेटा भला कैसे दूध का धुला हुआ हो जाएगा?"
"इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है भाई।" शिवा ने कहा___"क्योंकि इश्क़ जब किसी के सिर चढ़ जाता है न तो फिर उसे ब्रम्हा भी नहीं समझा सकता। अतः तुम इस चक्कर में मत पड़ो। बल्कि उस चक्कर में पड़ो जिसके लिए तुम्हें पड़ना चाहिए। इस वक्त तुम खुद के साथ साथ अपने लोगों की जान की फिक्र करो। एक बात और, मेरी तरफ से बेफिक्र रहना।"
शिवा ने इतना कहा और फिर बड़े ही करुण भाव से सोनम की तरफ देखा। उसके बाद वह एक पल के लिए भी उस जगह नहीं रुका। मैं उसकी इस विचित्र सी हरकत से तथा उसकी बातों से बुरी तरह चकित था। तभी वातावरण में गोलियाॅ चलने की आवाज़ें आने लगी। मैं एकदम से फिरकिनी की मानिंद घूमा।
आदित्य, रितू दीदी व पवन के हाॅथों में गनें थी और वो अधाधुंध गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। पवन का तो निशाना ही नहीं लग रहा था। ये देख कर मैं मुस्कुराया। साले ने जीवन में कभी खिलौने का तमंचा तक न देखा था और आज दोस्ती के लिए गन लिए मौत का ताण्डव कर रहा था। मैने चारो तरफ देखा, मुझे औरतों में कहीं कोई दिखाई न दिया। ये देख कर मैं बुरी तरह चौंक गया। मन में सवाल उभरा कि ये सब कहाॅ गईं? कहीं किसी को कुछ हो तो नहीं गया। मैं सोनम दीदी को छोंड़ कर एक तरफ को भागा।
रितू दीदी, आदित्य व पवन पेड़ों की ओट में पोजीशन लिए हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, अभय चाचा, व सहाय कहीं दिख नहीं रहे थे। संभव है उन्होंने भी किसी पेड़ की ओट में पोजीशन लिया हुआ था। मैं छिपते छिपाते हुए फार्महाउस की इमारत के पिछले भाग में आ गया। यहाॅ आ कर मैने चारों तरफ देखा। कहीं कोई नहीं था। नीचे ज़मीन पर मरे हुए गनमैन अपने ही खून में नहाए पड़े थे।
माॅ लोगों को कहीं न देख कर मैं बहुत ज्यादा चिंतित व परेशान हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इतना जल्दी कहाॅ चले गए? मैं इमारत के पिछले भाग से निकल कर सामने की तरफ आया ही था कि तभी धाॅय की आवाज़ हुई। कहीं से गोली चली थी जो कि मेरे दाहिने बाजू को छू कर निकल गई थी। मैं इस सबसे बेखबर सा हो गया था। मेरे ज़हन में सिर्फ माॅ लोगों का ही ख़याल तारी था।
गोली की आवाज़ से तथा अपनी बाजू में उसकी छुवन से मैं बुरी तरह उछल पड़ा था और इसी उछलाहट में मैं फौरन ही एक पेड़ की ओट में आ गया। ओट से सिर निकाल कर मैंने आस पास का बारीकी से मुआयना किया। तभी मेरे कानों में इमारत के अंदर से कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी। मैं आवाज़ों को सुनने के लिए ग़ौर से ध्यान लगाया। तभी मेरे कानों में मेरी माॅ की आवाज़ पड़ी। वो कह रही थी____"मुझे बाहर जाने दो। वहाॅ मेरा बेटा गोलियों के बीच में खड़ा है और तुम सब कहती हो कि मैं यहीं पर रहूॅ। अरे मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मेरे ज़िन्दा रहने का क्या मतलब रह जाएगा?"
मैं सब समझ गया। मतलब माॅ लोग सब इमारत के अंदर हैं और शायद सुरक्षित भी हैं। वरना वो ऐसी बात उन लोगों को न कहतीं। ये सोच कर मैं फौरन ही जम्प मार कर दूसरे पेड़ की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही एकदम से गोलियों की आवाज़ें आने लगीं। किसी तरह बचते बचते मैं आदित्य के पास पहुॅच ही गया। आदित्य ने मुझे देखा तो इशारे से ही पूछा बाॅकी सब कैसे हैं? तो मैने बताया सब ठीक हैं।
अभी मैं आदित्य को इशारे से ये बताया ही था कि तभी सोनम दीदी की चीख़ गूज उठी। ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई मार रहा हो। मैने फौरन ही उस तरफ देखने की कोशिश की। बाॅई तरफ अजय सिंह सोनम दीदी को उनके सिर के बालों से पकड़े घसीटते हुए लिए आ रहे थे। उनके एक हाॅथ में रिवाल्वर भी था। ये देख कर मैं सकते में आ गया।
"अगर इस लड़की को ज़िन्दा देखना चाहते हो तो तुम सब सामने आ जाओ।" अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___"और हाॅ अपने अपने हथियार फेंक कर ही आना, वरना मैं इस लड़की को गोली मार दूॅगा।"
अजय सिंह की इस धमकी पर हम में से कोई कुछ न बोला। कुछ पलों तक अजय सिंह इधर उधर देखते हुए खड़ा रहा। उसके बाद फिर बोला___"मैं सिर्फ तीन तक गिनूॅगा। अगर मेरे तीन गिनने तक तुम लोग मेरे सामने नहीं आए तो समझ लो ये लड़की अपनी जिंदगी से हाॅथ धो बैठेगी।"
अजय सिंह ने गिनना शुरू कर दिया। पेड़ों की ओट में छुपे हम सब को बाहर निकलना अब अनिवार्य था। अजय सिंह ने जैसे ही तीन कहा हम सब उसके सामने आ गए। हम लोगों को देख कर अजय सिंह मुस्कुराया किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव खतरनाॅक रूप से बदले। उसने रिवाल्वर वाला हाॅथ उठाया और बिना कुछ कहे फायर कर दिया। गोली सीधा रितू दीदी के पेट में लगी। फिज़ा में रितू दीदी की हृदयविदारक चीख़ गूॅज गई।
अजय सिंह से अचानक इस कृत्य की कल्पना हम में से किसी ने न की थी। उधर पेट में गोली लगते ही रितू दीदी कटे हुए वृक्ष की तरह लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिरने लगी। मैं बिजली की सी तेज़ी से उनकी तरफ लपका। रितू दीदी को बाॅहों में सम्हाले मैं बुरी तरह रोते हुए चीखने लगा। वो मेरी बाॅहों में थीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के असहनीय भाव थे किन्तु ऑखें मुझ पर स्थिर थीं।
"दीदी, ये क्या हो गया दीदी?" मैं उन्हें सम्हालते हुए वहीं ज़मीन पर उकड़ू सा बैठ गया____"नहीं नहीं, आपको कुछ नहीं हो सकता।"
"अभी जंग खत्म नहीं हुई पगले।" रितू दीदी ने पीड़ित भाव से कहा____"अभी तो इस धरती पर वो इंसान जीवित है जिसने अपना आख़िरी सबूत ये दे दिया है कि उसके दिल में किसी के लिए भी कोई रहम अथवा प्यार नहीं है। ऐसे इंसान को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"
"मैं उसे ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा दीदी।" मैने सिसकते हुए कहा___"बस आप को कुछ नहीं होना चाहिए। मैं आपको खोना नहीं चाहता।"
"होनी को कौन टाल सकता है राज?" दीदी ने सहसा मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"बड़ी आरज़ू थी कि जीवन भर तेरे साथ रहूॅगी। तुझे खुद से दूर नहीं जाने दूॅगी। मगर देख ले, आज खुद ही तुझसे दूर जा रही हूॅ।"
"नहीं नहीं।" मैने उन्हें खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रोते हुए बोला___"आप कहीं नहीं जा रही हैं। मैं आपको कहीं जाने भी नहीं दूॅगा। मुझे मेरी दीदी सही सलामत चाहिए। मैं आपके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"
"इतना प्यार मत दिखा राज।" रितू दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई____"वरना मरने के बाद भी मुझे शान्ति नहीं मिलेगी। ख़ैर, अभी तू जा मेरे भाई। वरना वो राक्षस फिर किसी को गोली मार देगा। देख तुझे मेरी कसम है, तू जा राज।"
दीदी की कसम ने मुझे मजबूर कर दिया। मैं भारी मन से उन्हें वहीं पर छोंड़ कर पलटा। इधर रितू के साथ हुए इस हादसे ने आदित्य पवन व अभय चाचा को भी अचेत सा कर दिया था। वो सब ठगे से ऑखें फाड़े देखे जा रहे थे।
"अपनी ज़िद व अपने अहंकार में किस किस को मारोगे अजय?" सहसा इस बीच प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए बेहद ही करुण भाव से रोते हुए कहा___"उस दिन भी तुमने नीलम को जान से मार ही दिया था और आज एक और बेटी को जान से मार दिया। आख़िर किस किस को जान से मारोगे तुम? ये दौलत ये ज़मीन जायदाद किसके भोगने के लिए बनाई है तुमने? मुझे भी मार दो, अपनी ऑखों के सामने अपनी बेटियों को इस तरह मरते देख कर भला कैसे चैन से जी पाऊॅगी मैं?"
"ये मेरी कोई नहीं लगती प्रतिमा।" अजय सिंह गुर्राया___"अगर लगती तो आज ये अपने बाप के साथ खड़ी होती ना कि अपने बाप के दुश्मनों के साथ।"
"तो क्या ग़लत किया इन्होंने?" प्रतिमा ने बिफरे हुए लहजे से कहा___"अरे इन लोगों ने तो वही किया जो हर लड़की को करना चाहिए। अपने इज्ज़त और सम्मान की रक्षा करना हर लड़की या औरत का धर्म है। तुम तो उसके बाप हो न, तुम्हें तो खुद अपने घर की इज्ज़त की हर तरह से रक्षा करना चाहिए थी। मगर तुम तो खुद ही अपनी ही बहू बहन व बेटियों की अस्मत को लूटने वाले बन गए।"
"ये तुम कौन सी भाषा बोल रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह की ऑखें फैली____"आज तुम्हारे मुख से ऐसी बातें कैसे निकलने लगीं? क्या सब कुछ भूल गई हो तुम? तुम तो खुद भी उतनी ही गुनहगार हो जितना कि तुम इस वक्त मुझे समझ रही हो। इस लिए ऐसी बात मत करो, क्योंकि ये सब तुम पर शोभा नहीं देती हैं।"
"मैं मानती हूॅ कि मैं इस सबमें बराबर की गुनहगार हूॅ अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये भी एक सच है कि इस सबके लिए भी सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो। मैं तो तुमसे अंधाधुंध प्यार ही करती थी। किन्तु अपने मतलब के लिए तुमने ही मुझे ऐसे काम को करने के लिए प्रेरित किया था। तुम्हारे प्यार में अच्छा बुरा ऊॅच नीच कभी नहीं सोचा मैने। सिर्फ यही सोचा कि मेरे किसी भी काम से सिर्फ तुम खुश रहो। मगर अब ये जो कुछ भी हो रहा है उसने मुझे इस बात का एहसास करा दिया है कि तुमने कभी मुझे प्यार किया ही नहीं था। तुम्हें तो सिर्फ खुद से और अपनी ख़्वाहिशों से ही प्यार था। अगर ऐसा न होता तो आज तुम इस तरह अपनों के दुश्मन न बन गए होते और ना ही इस तरह क्रूरता से अपनी ही बेटियों को जान से मार देने का सोचते। ख़ैर, देर से ही सही मगर मैं ये स्वीकार कर चुकी हूॅ कि मैंने तुम्हारे प्यार के चलते सबके साथ ऐसा गुनाह व पाप किया है जो कदाचित माफ़ी के लायक हो ही नहीं सकता है। मुझे भी किसी से माफ़ी की इच्छा नहीं है। इतना कुछ होने के बाद तो वैसे भी अब जीने का दिल नहीं करता। मेरा वजूद इतना घिनौना हो चुका है कि दुनिया का गिरा से गिरा हुआ इंसान भी कदाचित मेरी तरफ देखना भी पसंद न करे। किन्तु सुना है पश्चाताप करने से और नेक काम करने से मन को शान्ति मिलती है। इसी लिए मैने पश्चाताप के रूप में वो किया जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था।"
"क्या मतलब???" अजय सिंह चौंका____"क..क्या किया है तुमने?"
"अब तक तो दिमाग़ पर दिल ही हावी था अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर जब दिल ही टूट कर बिखर गया तो दिमाग़ का ज़ोर पड़ ही गया उस पर। उस शाम जब तुम फोन पर अभय से बातें कर रहे थे तब मैने भी ड्राइंग रूम में रखे फोन पर तुम दोनो की बातें सुनी थी। तुम तो जानते हो कि वो दोनो ही फोन एक ही हैं। अगर एक पर किसी का फोन आएगा तो उस दूसरे फोन के माध्यम से भी दूसरा ब्यक्ति पहले वाले फोन पर हो रही बातचीत को बड़े आराम से सुन सकता है। ख़ैर तुम दोनो की बातें सुनी मैने और तब मुझे पूरी तरह समझ आ गया कि सारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ लुटाने वाली मैं कितनी पापिन थी जो कभी तुम्हारी खुशियों के सिवा किसी और पर होते अत्याचार को न देख सकी थी। तुमने अभय को विश्वास दिलाया कि तुम उसके बेटे का बेहतर इलाज़ करवाओगे और ज़मीन जायदाद में आधा हिस्सा भी दोगे। बदले में तुम्हें तुम्हारा वो ग़ैर कानूनी सामान व विराज के सभी चाहने वाले अपने पास चाहिए। अभय तो अपने बेटे के लिए अपना विवेक खो कर यकीन के साथ तुमसे इतना बड़ा सौदा कर बैठा जबकि मैं जानती थी कि तुम वैसा कभी नहीं करोगे जिस बात के लिए तुमने अभय को विश्वास दिलाया था। अपना मतलब निकल जाने के बाद तुम वही करोगे जो सबके साथ करना चाहते हो।
मैं हैरान थी कि पढ़ा लिखा अभय इतनी बड़ी बेवकूफी व अपनों के साथ सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच कर इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है? लेकिन जल्द ही मुझे समझ आया कि भाई किसका है। मेरे दिमाग़ में ये बात भी आई कि संभव है कि अभय ने कोई दूर की कौड़ी सोची हुई है। कहने का मतलब ये कि इस जंग में अगर तुम्हारे साथ साथ मैं व हमारा बेटा मारे गए या कानून की चपेट में आ गए तो ये विराज को भी किसी तरह अपने रास्ते से हटा देगा। उस सूरत में सारी ज़मीन जायदाद का ये अकेला हक़दार हो जाएगा। ये सब बातें सोच कर मुझे एहसास हुआ कि जिसने इस सारी ज़मीन जायदाद को हीरे की शक्ल दी तथा जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं था उसे उसके भाई ने तो पहले ही मिटा दिया था और अब एक और भाई आ गया उसी इतिहास को दोहराने के लिए। मुझे पहली बार गौरी के बारे में सोच कर उस पर तरस आया। एकाएक ही मेरा हृदय झनझना उठा। अंदर कहीं से कोई बड़े ज़ोर से चीख कर कहा 'इस बेचारी ने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से इसके साथ इतना कुछ हो गया?' इंसान को बदलने के लिए सिर्फ एक ही मामूली सी चीज़ काफी होती है। अगर हम किसी के बारे में एक बार इस तरह से सोच लें तो फिर बहुत मुमकिन है कि फिर हमें उसकी अथवा अपनी वास्तविकता का बोध होने लगता है। वही हुआ मेरे साथ। हृदय परिवर्तन तो अपनी बेटी के साथ हुए हादसे से ही होने लगा था किन्तु उस फोन की वजह से पूरी तरह से ही हो गया। सारी बातों को सोचने के बाद मैने फैंसला कर लिया कि अब वो नहीं होंने दूॅगी जिसके लिए तुमने एक हॅसते खेलते परिवार की बलि चढ़ाई थी। हाॅ अजय, जैसे अभय ने अपने स्वार्थ के लिए अपनों के साथ विश्वासघात कर तुमसे वो सौदा किया उसी तरह मैने भी एक फोन किया।"
"क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका___"कैसा फोन किया तुमने?"
"मेरे पास विराज का नंबर नहीं था।" प्रतिमा ने कहा___"और मेरी बेटी मेरा फोन उठाती ही नहीं थी। तब मैने सीधा पुलिस कमिश्नर को फोन किया। पुलिस कमिश्नर को इस लिए क्योंकि मौजूदा वक्त में जो कुछ भी हुआ उससे ये बात साबित हो चुकी थी कि रितू अपने पुलिस महकमें की सह पर ही वो सब कर रही थी। हलाॅकि मैं पूरी तरह श्योर नहीं थी। किन्तु फिर भी मैने एक बार कमिश्नर से बात करने का ही सोचा और फिर उन्हें फोन लगाया। फोन पर मैने कमिश्नर से साफ साफ शब्दों में बता दिया कि सिचुएशन क्या है। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे एक बार विराज से बात करना है। उन्होंने मेरी बातों को बारीकी से सोचा समझा और फिर रितू को फोन किया और उससे विराज का नंबर लेकर मुझे दिया।"
"उस वक्त मैं और आदित्य बाहर घूमने गए थे जब मेरे फोन पर बड़ी माॅ का फोन आया था।" बड़ी माॅ की बात खत्म होते ही मैने तुरंत कहा___"इन्होंने मुझे फोन पर सारी बातें बता दी। हलाॅकि मुझे शुरू शुरू में इनकी बात पर ज़रा भी यकीन न हुआ। क्योंकि मैं सोच ही नहीं सकता था कि अभय चाचा हमारे साथ ऐसा कर सकते हैं। तब इन्होंने कहा कि ये अपनी बातों का सबूत तो नहीं दे सकती हैं मगर मैं खुद इस बात की जाॅच पड़ताल तो कर ही सकता हूॅ। दूसरी बात मुझे भी कहीं न कहीं लग रहा था कि अपनी बेटी के साथ हुए हादसे के चलते बड़ी माॅ में कुछ तो परिवर्तन आना ही चाहिए था। ख़ैर, इनकी ख़बर के बाद मैने भी वहाॅ पर रितू दीदी आदि को सब कुछ बता दिया और रात में ये सब होने का इंतज़ार करने के लिए कह दिया। वहीं मैने मुम्बई में भी पवन को फोन कर दिया था। उसे मैने समझाया था कि वो इस बारे में किसी से कुछ न कहे किन्तु अगर बड़े पापा का फोन उसके पास आए तो वो फोन का स्पीकर ऑन करके ज़रूर सबको इनकी बात सुनाए। क्योंकि उसके बाद तो उन्हें यहाॅ आना ही था। मैं भी अब खुल के इनके सामने आना चाहता था। किन्तु ये सब बहुत ही ज्यादा खतरनाक भी था। क्योंकि इससे किसी को भी कुछ भी हो सकता था। ख़ैर रितू दीदी ने कमिश्नर से बात की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया और पुलिस प्रोटेक्शन की माॅग भी की। कमिश्नर ने हमें बेफिक्र रहने को कहा। कल रात जब आप अपने दलबल के साथ हमारे ठिकाने पर पहुॅचे तब हम सब जाग रहे थे। आप ये समझ रहे हैं कि आप बड़ी आसानी से हम सबको बेहोश कर यहाॅ ले आए जबकि सच्चाई तो यही है कि आपका काम हमने खुद आसान किया था। वरना आप ही सोचिए कि ऐसे आलम में इतने लापरवाह हम कैसे हो जाएॅगे कि कोई आए और हम सबको बड़ी सहजता से बेहोश करके अपने साथ जहाॅ चाहे ले जाए। जबकि मैं चाहता तो उसी वक्त आप और आपके सभी आदमी मौत के घाट उतर चुके होते। मगर मैने अपने दोस्त शेखर के मौसा जी को उस रात वहाॅ पर सिक्योरिटी रखने से मना कर दिया था। उसके बाद क्या हुआ वो तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं।"