Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 62 》


अब आगे,,,,,,,

बड़ा ही सनसनीखेज मंज़र था।
ये कोई फार्महाउस था जो कि शहर की आबादी से दूर था। फार्महाउस काफी बड़ा था। बीचो बीच दो मंजिला इमारत बनी हुई थी। चारो तरफ हट्टे कट्टे तथा काली वर्दी पहने गनधारी तैनात थे। इमारत के सामने विशाल मैदान में कई कार व जीपें खड़ी हुई थी। किन्तु इस बीच सबसे सनसनीखेज बात ये थी कि इमारत के बगल से बने गेस्टहाउस के आकार का जो घर बना था उसके सामने की दीवार पर कुछ लोग रस्सियों में बॅधे खड़े थे। सबके हाॅथ आपस में बॅधे ऊपर की तरफ घर की रेलिंग से झूलती रस्सियों पर बॅधे हुए थे।

विराज, गौरी, निधी, अभय, करुणा, दिव्या, शगुन, आशा, रुक्मिणी, आदित्य, रितू, सोनम, नीलम, नैना, बिंदिया तथा शंकर व हरिया ये सब मोटी मोटी रस्सियों में बॅधे हुए छटपटा रहे थे। विराज, रितू व आदित्य के चेहरों पर जहाॅ कठोरता के भाव थे वहीं बाॅकी सबके चेहरे दहशत से भरे पड़े थे। जबकि इन सबके सामने खड़े थे अजय सिंह, प्रतिमा, शिवा तथा उनके कई सारे हथियारबंद आदमी। सबके होठों पर जानदार व विजयात्मक मुस्कान छाई हुई थी। अजय सिंह कुछ देर पहले ही ज़ोर ज़ोर से अट्ठहास लगा रहा था। किन्तु उसके तुरंत बाद ही उसका चेहरा गुस्से से आग बूबला नज़र आने लगा था। यही हाल प्रतिमा व शिवा का भी था। इन तीनों के चेहरों पर इस वक्त गुस्सा व नफ़रत के बेशुमार भाव गर्दिश कर रहे थे।

"हर ब्यक्ति से चुन चुन के हिसाब लूॅगा।" वातावरण में मानो अजय सिंह की दहाड़ गूॅजी___"बहुत तड़पाया है तुम सबने मुझे। मेरे दिन का चैन व रातों की नींद हराम कर रखी थी तुम लोगों ने। सबका हिसाब सूद समेत लूॅगा मैं।" कहने के साथ ही अजय सिंह विराज के नज़दीक आया फिर उसके जबड़े को अपने दाहिने हाॅथ से शख्ती से पकड़ते हुए कहा___"क्या समझता था तू अपने आपको? दो चार बार मुझे करारी शिकस्त क्या दे दी साला अपने आपको जेम्स बाॅण्ड का बाप समझने लगा। अरे तेरे जैसे जेम्स बाण्ड तो मेरे कच्छे के अंदर पाये जाते हैं समझा? देख लिया न, एक ही झटके में चारो खाने चित्त कर दिया है तुम सबको मैने। मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तुम सबके साथ जो चाहूॅ वो कर सकता हूॅ, और करूॅगा भी। अपने हर नुकसान का बदला लूॅगा मगर उससे पहले अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करूॅगा मैं। मेरी ख्वाहिशों के बारे में तो तुम सब बहुत अच्छी तरह जानते हो न।"

"एक बार मेरे ये हाॅथ खोल कर देखो बड़े भइया।" सहसा अभय गुस्से से उबलता हुआ बोल पड़ा___"अकेले तुम तीनों का राम नाम सत्य न कर दिया तो ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद न कहलाऊॅ।"

"यही, बस यही।" अजय सिंह तपाक से बोला___"यही अकड़ तो तुम सबकी निकालनी है मुझे। तुम सबके गुरूर और स्वाभिमान को अपने पैरों के तले रौंदना है मुझे। उसके बाद यहाॅ सबके सामने तुम सबके साथ ऐसा नंगा नाच करूॅगा कि ऊपर बैठे फरिश्तों का कलेजा भी दहल जाएगा।"

"डैड आपको जो भी करना है करिये।" सहसा अजय सिंह के पीछे से आता हुआ शिवा बोल उठा____"किन्तु अब मुझसे बरदास्त नहीं हो रहा। आप तो जानते हैं कि मेरी ख्वाहिश क्या है। अतः आप मुझे मेरी इस जाने बहार निधी का जी भर के रस पान करने की इजाज़त दीजिए।"

"अरे इजाज़त क्यों माॅगता है शहज़ादे?" अजय सिंह ने ज़ोर का ठहाका लगाते हुए कहा____"ये सब तो यहाॅ आए ही इसी सबके लिए हैं। तुझे जो पसंद आए उसे भोगना शुरू कर दे। मेरा शिकार तो ये गौरी है। कसम से इसे पाने के लिए मैं कितना तड़पा हूॅ ये तो सिर्फ मैं ही जानता हूॅ।"

"हरामज़ादे।" रस्सियों से बॅधा विराज बुरी तरह दहाड़ते हुए चिल्ला उठा____"अगर मेरी माॅ बहनों को हाॅथ लगाने की कोशिश की तो समझ लेना तेरे हाॅथ उखाड़ कर कुत्तों के सामने डाल दूॅगा।"

"चिल्ला मेरे भतीजे।" अजय सिंह ज़ोर से हॅसा___"और ज़ोर से चिल्ला। क्योंकि अब तू सिर्फ यही कर सकता है। जबकि मैं और मेरा बेटा यहाॅ मौजूद हर औरत व लड़की का रसपान करेंगे। उसके बाद यहाॅ मौजूद मेरे सभी आदमी उन्हें जी भर के भोगेंगे। उफ्फ! बाद मुद्दत के ये दिन आया है जिसका मुझे शिद्दत से इन्तज़ार था।"

अजय सिंह की इस बात पर रस्सियों में बॅधे विराज, आदित्य, अभय, हरिया व शंकर जैसे मर्द बुरी तरह छटपटा कर रह गए। गुस्सा, अपमान, व जलालत का कड़वा घूॅट पी जाने के सिवा जैसे उनके पास कोई दूसरा चारा ही नहीं था। जबकि अजय सिंह की बात तथा उसके मंसूबों का देख कर सभी औरतों व लड़कियों की रूह तक फना हो गई।

इधर ज़ोरदार कहकहे लगाते हुए अजय सिंह व शिवा अपने अपने पसंदीदा शिकार की तरफ बढ़ चले। रस्सियों में बॅधे सबके सब बुरी तरह छटपटा रहे थे। औरतों व लड़कियों की हालत पल भर में ख़राब हो गई। कुछ ही पलों में अजय सिंह व शिवा अपने अपने शिकार यानी कि गौरी व निधी के पास पहुॅच गए।

"उफ्फ।" निधी के क़रीब पहुॅचते ही शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"मेरी राॅड बहन तो पहले से और भी ज्यादा खूबसूरत हो गई है। लगता है मुम्बई का पानी काफी सूट किया है तुझे। चल ये तो और भी बहुत अच्छा हुआ। तेरी इस मादक किन्तु कच्ची जवानी का रसपान करने में अब और भी मज़ा आएगा।"

"हरामज़ादे कुत्ते।" विराज पूरी शक्ति से बंधनों को खींचते हुए चिल्लाया____"मेरी बहन से इस तरह बात करने का अंजाम बहुत भयंकर होगा। अगर अपनी खैरियत चाहता है तो दूर हट जा गुड़िया से वरना माॅ कसम यहीं ज़िंदा गाड़ दूॅगा तुझे।"

"ये गीदड़ भभकी किसी और को देना बेटा।" शिवा ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"चिन्ता मत कर, तेरा भी हिसाब करना है मुझे। तूने उस समय मुझ पर हाॅथ उठाया था न। उसका हिसाब तो ज़रूर लूॅगा तुझसे। मगर उससे पहले अपनी जाने जिगर से अपना मूड तो बना लूॅ।"

शिवा की बात पर विराज बुरी तरह छटपटा कर रह गया। उसे अपनी बेबसी पर बेहद क्रोध भी आ रहा था और रोना भी। उधर अजय सिंह भी गौरी के पास पहुॅच चुका था। उसने गौरी को बहुत ही नज़ाकत से ऊपर से नीचे तक कई बार देखा और फिर उसकी ऑखों में देखते हुए मुस्कुराया।

"सचमुच।" फिर अजय सिंह ने मानो मंत्रमुग्ध हो चुके भाव से कहा___"आज भी वैसी ही हो जैसे तब थी जब मैने तुम्हें पहली बार देखा था। वही सादगी, वही तीखे नैन नक्श, वही साॅचे में ढला हुआ मदमस्त कर देने वाला गदराया हुआ जिस्म। कसम से गौरी, तुम्हें अगर हज़ार बार भी भोग लूॅ तो मेरी तिश्नगी न बुझेगी। तुम्हें पता है, तुम वो दूसरी स्त्री हो जिससे मुझे सचमुच का प्यार हो गया था। मैं चाहता था कि तुम खुशी खुशी मेरी आगोश में आ जाओ। मगर जब तुम नहीं आई तो मुझे हर वो रास्ता अख्तियार करना पड़ा जिसके तहत मुझे लगता था कि तुम मेरी आगोश में आ सकती हो। पर कदाचित मैं ग़लत था गौरी या फिर मेरे प्यार में वो बात ही नहीं थी जिसके तहत तुम मेरी हो जाती।"

"भाभी से तमीज़ से बात करो बड़े भइया।" अभय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___"इतनी भी नीचता मत दिखाओ कि ईश्वर को भी शर्म आ जाए।"
"ओहो।" अजय सिंह ने ब्यंगात्मक भाव से उसे देखते हुए कहा___"तो मेरा छोटा भाई भी अब मुझसे इस ज़ुबान में बात करेगा। लगता है गौरी ने थोड़ा बहुत अपनी मदमस्त जवानी का स्वाद चखा दिया है तुम्हें।"

"ख़ाऽऽऽमोश।" अभय सिंह पूरी शक्ति से दहाड़ा था, बोला____"अपनी ज़बान को लगाम दे बेशर्म इंसान। बस एक बार मुझे इस बंधन से आज़ाद कर दे। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूॅ तेरा।"

"इस तरह चिल्लाने का कोई फायदा नहीं है छोटे।" अजय सिंह ने पूरी ढिठाई से कहा____"क्योंकि अब यहाॅ पर वही होगा जो सिर्फ और सिर्फ मैं चाहूॅगा। तुम सबकी ऑखों के सामने हम दोनो बाप बेटे एक एक औरत व एक एक लड़की की इज्ज़त का मर्दन करेंगे।"

इतना कहने के साथ ही अजय सिंह पलटा और पुनः गौरी के समीप आ गया। उसने जैसे ही हवस भरी ऑखों से गौरी की तरफ देखा वैसे ही गौरी ने नफरत व घृणा से उसके चेहरे पर थूॅक दिया। ये देख कर अजय सिंह तो आग बबूला हुआ ही किन्तु इस बीच गौरी के समीप तेज़ी से आकर प्रतिमा ने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया।

"साली कुतिया।" प्रतिमा किसी शेरनी की भाॅति गुर्राते हुए बोली___"तेरी हिम्मत कैसे हुई अजय के चेहरे पर थूॅकने की? अपने आपको बड़ी सती सावित्री समझती है न। अभी यहीं सबके सामने तेरे इस जिस्म को नुचवाती हूॅ। अपने रूप और सौंदर्य का बहुत घमंड है न तुझे, रुक ऐसा हाल करवाऊॅगी कि सब थूॅकेंगे तुझ पर।" कहने के साथ ही प्रतिमा एक झटके से अजय सिंह की तरफ पलटी, फिर गुस्से से फुंफकारते हुए बोली____"देख क्या रहे हो अजय? आगे बढ़ो और चीर फाड़ कर फेंक दो इस रंडी के जिस्म से इसके सारे कपड़े। ज़रा भी रहम न करना इस दो टके की राॅड पर।"

प्रतिमा का भभकता हुआ चेहरा तथा उसकी बातें सुन कर अजय सिंह पर तुरंत प्रतिक्रिया हुई। वह झटके से आगे बढ़ा और गौरी के जिस्म पर मौजूद सफेद साड़ी के ऑचल को पकड़ कर एक झटके से अपनी तरफ खींच लिया। जिससे गौरी का ऊपरी जिस्म अर्धनग्न सा हो गया। सफेद ब्लाउज पर कसे हुए उसके बड़े बड़े उन्नत उभार सबकी नज़रों में आ गए। उधर अजय सिंह की इस हरकत से वातावरण में कई सारी चीखें गूॅज गईं। गौरी तो लाज व शर्म की वजह से चिल्लाई ही थी किन्तु उसके साथ ही विराज आदि सब भी चीख पड़े थे। एकदम से जैसे वातावरण में कोलाहल सा मच गया था।

"हरामज़ादे।" विराज के सब्र का बाॅध मानो टूट गया। भयंकर गुस्से में भभकते हुए उसने अपने दोनो हाॅथों को नीचे की तरफ पूरी ताकत से खींचा। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ता चला गया। कुछ ही पलों में रस्सी टूटती चली गई। रस्सी के टूटते ही वह तीव्र वेग से नीचे ज़मीन पर गिरा और फिर गुलाटियाॅ खाता चला गया। किन्तु तुरंत ही बिजली की स्पीड से उठ कर खड़ा भी हो गया। उसके दोनो हाॅथ आपस में अभी भी रस्सी से बॅधे हुए थे। वह उसी हालत में अजय सिंह की तरफ दौड़ पड़ा।

पलक झपकते ही वह अजय सिंह के ऊपर छलांग चुका था। अजय सिंह के ऊपर विराज का जिस्म बड़े वेग से टकराया था जिसके परिणाम स्वरूप वो भरभरा कर वहीं ज़मीन पर गिरा। विराज पहले तो उसके ऊपर ही था किन्तु ज़मीन पर दोनो के गिरते ही विराज उसके ऊपर से दूसरी तरफ लुढ़कता चला गया था। किन्तु वह फौरन ही उठा और पल भर में अजय सिंह के सीने में सवार हो गया। उसके सीने पर सवार होते ही वह अपने दोनो बॅधे हाथों का दुहत्थड़ उसके सीने पर पूरे वेग से मारने लगा। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ देर तक तो कोई कुछ समझ भी न पाया। हर कोई हक्का बक्का रह गया था।

सबको होश तो तब आया जब वातावरण में अजय सिंह की दर्द भरी चीखें गूॅजने लगी थी। चारो तरफ तैनात गनमैन तुरंत ही हरकत में आ गए। वो एक साथ उस तरफ बढ़े जहाॅ पर विराज अजय सिंह के ऊपर चढ़ा हुआ उस पर दुहत्थड़ बरसाए जा रहा था।

"आज तुझे ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा हरामज़ादे।" विराज मारने के साथ साथ गुस्से में बोलता भी जा रहा था___"तूने मेरी देवी जैसी माॅ का अपमान किया है। उन पर अपनी गंदी दृष्टि डाली है। तुझ जैसे पापी का इस दुनियाॅ में जीने का कोई अधिकार नहीं है।"

विराज अभी ये सब बोल ही रहा था कि तभी चारो तरफ से दौड़ते हुए आए गनमैनों ने उसे पकड़ कर अजय सिंह के ऊपर से खींच कर दूर कर दिया। गनमैनों के बंधन में जकड़ा हुआ विराज बुरी तरह चीखे जा रहा था तथा खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने के लिए पूरी ताकत लगाए जा रहा था। किन्तु चारो तरफ से हाॅथ पैर पकड़े गनमैनों की पकड़ से वह छूट नहीं पा रहा था। ये अलग बात थी कि गनमैनों को उसे सम्हालने में काफी ज़ोर आजमाईश करनी पड़ रही थी।

इधर विराज के हटते ही अजय सिंह ज़मीन से उठा और तमतमाया हुआ वह गनमैनों द्वारा पकड़े विराज की तरफ बढ़ा और फिर जल्दी जल्दी उसने विराज पर लात घूॅसों की बौछार कर दी। अजय सिंह यहीं पर ही नहीं रुका बल्कि उसने झपट कर एक गनमैन से उसकी गन छीनी और दो कदम दूर हटते हुए उसने विराज की तरफ गन का दहाना खोल दिया। परिणामस्वरूप दो पल के भीतर ही गन से निकली गोलियाॅ विराज के जिस्म को छलनी करती चली गईं। वातावरण कई सारे गलों से निकली चीख़ व चिल्लाहट से गुंजायमान हो उठा। उधर गोलियों से छलनी हो गए विराज का समूचा जिस्म उसके ही लाल सुर्ख खून से नहाता चला गया।

"राऽऽऽऽऽऽज।" अपने कमरे में बेड पर गहरी नींद में सोई पड़ी गौरी पूरी शक्ति से चिल्लाते हुए हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसकी इस चीख से रात के गहरे सन्नाटे में डूबा समूचा बॅगला मानो झनझना कर रह गया। बेड पर बदहवाश सी बैठी गौरी विछिप्त सी हालत में इधर उधर देखे जा रही थी। उसका चेहरा भय व दहशत से पीला ज़र्द पड़ा हुआ था। समूचा जिस्म पसीने से तर बतर था। बुरी तरह हाॅफे जा रही थी वह।

गौरी की इस भयानक चीख़ से बॅगले के अंदर अपने अपने कमरों में बेड पर सोया हुआ हर इंसानी जीव बुरी तरह उछल कर उठ बैठा था। जैसे ही उन्हें ये एहसास हुआ कि चीख़ गौरी के कमरे से आई है तो सब के सब अपने अपने कमरों से दौड़ पड़े। किसी को होश भी नहीं था कि कौन किस हालत में बेड पर सोया हुआ था?

थोड़े ही समय में सबके सब गौरी के कमरे के दरवाजे पर ऑधी तूफान की तरह पहुॅचे। अभय व पवन ने दरवाजे को पूरी ताकत से थपथपाया। किन्तु दरवाजा तो खुलता चला गया। यानी कि दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। शायद गौरी को दरवाजा बंद करने का ख़याल ही नहीं आया था। आता भी कैसे, उसके ख़यालों में तो हर पल उसका बेटा रहता था। जो उसकी ऑखों का तारा था, उसके जीने का आख़िरी सहारा था। उसे पता था कि वो इस समय मौत के मुह में है। ख़ैर, दरवाजे को खुलता देख पवन ने जल्दी से दरवाजे को पूरा धकेला और फिर सबके सब कमरे में दाखिल हो गए।

कमरे में दाखिल होते ही सबकी नज़र एक साथ बेड पर पागलों की सी हालत में बैठी गौरी पर पड़ी। गौरी को इस वक्त किसी बात का होश नहीं था और ना ही उसे अपनी हालत का ख़याल था। उसकी सफेद साड़ी का ऊपरी हिस्सा बेड शीट पर ही एक तरफ गिरा हुआ था। उसकी इस हालत को देख कर करुणा तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ी और उसने उसके ऑचल को उसके सीने पर ढॅकते हुए खुद भी बेड के किनारे बैठ कर उसे दोनो हाॅथों से सम्हाल लिया।

"क्या हुआ दीदी???" करुणा सहसा दुखी भाव से गौरी के बुत बने जिस्म को झकझोरते हुए बोली___"आप इतनी ज़ोर से क्यों चीखी थी? बताइये न दीदी, क्या हुआ है?"
"र..र..रा..ज।" सहसा गौरी के थरथराते हुए लबों से बड़ी अजीब सी आवाज़ निकली___"मे..मेरे..बेटे..को मार दिया उन लोगों ने। उन हत्यारों ने मेरे जिगर के टुकड़े को गोलियों से भून दिया। मेरा बेटा खून से लथपथ हो गया है। वो रो रहा है...वो माॅ माॅ कह कर मुझे पुकार रहा है। हाय रे...मेरे बेटे को जान से मार दिया उन कंजरों ने।" कहने के साथ ही गौरी दहाड़ें मार मार कर रो पड़ी___"मुझे मेरे बेटे के पास जाना है। मुझे मेरे बेटे के पास पहुॅचा दो। मुझे अपना बेटा जीवित चाहिए। ईश्वर मेरे बेटे को मुझसे नहीं छीन सकता। अगर ऐसा हुआ तो उसे मेरी बद्दुवा लगेगी। मुझे मेरे बेटे के पास जाना है।"

इतना सब कहने के साथ ही गौरी को चक्कर सा आ गया और वह करुणा की बाहों में अचेत सी लुढ़क गई। गौरी की इन बातों ने सबको जैसे सकते में ला दिया। सबके पैरों तले से मानों ज़मीन गायब हो गई। सबके सब उसकी बात सुन कर इस तरह अवाक से अपनी अपनी जगह खड़े रह गए थे मानों सबको एक साथ ही लकवा मार गया हो। होश तब आया जब करुणा की करुण चीखें सबके सुन्न पड़ चुके कानों में पड़ी।

कुछ ही पल पहले मानो वक्त ठहर सा गया था। करुणा की चीख ने मानो सबके जिस्मों में प्राणों का संचार कर दिया था। वस्तुस्थित का एहसास होते ही सबसे पहले निधी के हलक से आवाज़ निकली। वह रोते हुए गौरी की तरफ दौड़ पड़ी और उससे लिपट कर रोने लगी। उसके बाद तो सब के सब अपनी अपनी भावनाओं के साथ गौरी के पास पहुॅच गए थे। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? गौरी की इस हालत ने सबको मानों विवेकहीन सा कर दिया था। रुक्मिणी व आशा ने आगे बढ़ कर गौरी को सम्हाला और उसे ध्यान से देखा।

"जल्दी से कोई पानी ले आओ।" फिर रुक्मिणी ने दुखी भाव से लगभग ज़ोर से चिल्ला कर कहा___"इसे चक्कर आया हुआ है। इसने ज़रूर कोई बहुत ही बुरा सपना देखा है। उसी की वजह से यह इतनी ज़ोर से चीखी थी।"

रुक्मिणी की बात सुन कर पवन जो पास ही खड़ा था वो तुरंत कमरे से बाहर की तरफ दौड़ते हुए गया और कुछ ही पलों में एक स्टील के मग में पानी ले कर आ गया। अभय ने आगे बढ़ कर उससे पानी से भरा स्टील का मग लिया और उससे चुल्लू में पानी डाल कर गौरी के चेहरे पर छिड़कने लगा। अभय सिंह की ऑखों में ऑसू व चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। कदाचित अपनी देवी समान भाभी की इस हालत से वह खुद भी बेहद दुखी हो गया था।

जगदीश ओबराय बॅगले में नहीं था। वो शाम के लगभग सात बजे ही कहीं बाहर चला गया था। उसने बताया था कि वह बिजनेस के संबंध में किसी ज़रूरी काम से जा रहा है। ख़ैर, कुछ ही देर में गौरी को पुनः होश आ गया। होश में आते ही वह रोते हुए राज राज चिल्लाने लगी। उसे यूॅ रोता देख सबकी ऑखें छलक पड़ीं। बड़ी मुश्किल से उसे सम्हाला सबने। वो बार बार यही कहती कि उसे अपने बेटे के पास जाना है। उसके बेटे को हत्यारों ने गोलियों से छलनी कर दिया है।

काफी देर तक सबके समझाने बुझाने के बाद आख़िर वह कुछ शान्त हुई। सबने उसे समझाया और यकीन दिलाया कि उसके बेटे को किसी ने कुछ नहीं किया है बल्कि उसका बेटा पूर्णतया सुरक्षित है। सबने अपने अपने तरीके से गौरी को समझाया तो था और तसल्ली भी दी थी किन्तु माॅ का हृदय पूरी तरह से शान्त न हो सका था। उसका अंतर्मन संतुष्ट नहीं था। मगर सबको दिखाने के लिए वह शान्त ज़रूर हो गई थी। कदाचित उसने भी सोचा कि ये महज एक ख्वाब ही था और इसकी वजह से उसे सबको दुखी या चिंतित नहीं करना चाहिए।

लगभग एक घंटे बाद सब अपने अपने कमरों में चले गए। गौरी के पास केवल रुक्मणि रह गई थी। अपनी माॅ की इस हालत से निधी भी काफी ब्यथित हो गई थी। खास कर इस बात को सुन कर कि उसके भाई को या यूॅ कहिए कि उसके प्यार को गोलियों से छलनी कर दिया है हत्यारे ने। गौरी के इस स्वप्न ने सबको झकझोर कर रख दिया था। उस रात फिर कोई भी ठीक से सो नहीं पाया था। कदाचित इस लिए भी कि एक ये सच्चाई तो थी ही कि विराज मौत के मुह में था। रितू तथा रितू की पुलिस भले ही उसके साथ थी किन्तु दुर्भाग्य कभी किसी को बता कर नहीं आता। हर कोई विराज के लिए चिंतित था और हर वक्त उसकी सलामती के लिए भगवान से दुवाएॅ कर रहा था।
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मैं और आदित्य बाहर से घूम फिर कर शाम को लगभग सात बजे घर पहुॅचे। अंदर आते ही आदित्य ने कहा वो फ्रेश होने अपने कमरे में जा रहा है। उसके जाने के बाद मैं सीधा नीलम के कमरे में उसको देखने के लिए चला गया। नीलम के कमरे का दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था बल्कि थोड़ा सा खुला हुआ था। मैने उस खुले हुए हिस्से के पास चेहरा ले जाकर पहले सोनम दीदी को आवाज़ दी। किन्तु जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो मैं कुछ पल सोचने के बाद खुद ही दरवाजा खोल कर कमरे के अंदर आ गया।

कमरे में रखे शानदार बेड पर नीलम करवॅट के बल लेटी हुई थी। उसकी ऑखें बंद थी इस वक्त। कदाचित सो रही थी या फिर ऑखें बंद करके आराम कर रही थी। मैं उसके क़रीब जा कर बेड के पास ही खड़ा हो गया। मेरी नज़र उसके मासूम व खूबसूरत से चेहरे पर पड़ी। इस वक्त वो किसी छोटी सी बच्ची की भाॅति मासूम दिख रही थी। मुझे उसकी इस मासूमियत पर बेहद प्यार आया। मेरे होठों पर मुस्कान फैल गई। तभी अचानक मेरे मन में उसे छेंड़ने का ख़याल आया मगर फिर मैंने अपने मन से उसे छेंड़ने का ख़याल झटक दिया। मुझे लगा इस वक्त इसे आराम से सोने देना चाहिए। ये सोच कर मैं उसके चेहरे के क़रीब झुका और प्यार से उसके माॅथे पर हौले से चूॅम लिया। उसके बाद मैं पुनः सीधा खड़ा हुआ और फिर बिना कुछ बोले ही पलट कर कमरे से बाहर की तरफ जाने के लिए बढ़ा ही था कि सहसा तभी मैं चौंक पड़ा। पीछे से नीलम ने उसी वक्त मेरी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया था।

उसके इस तरह मेरी कलाई पकड़ लेने पर मैं बरबस ही मुस्कुरा उठा। मेरे दिमाग़ में तुरंत ही ये बात आई कि नीलम ने कदाचित मुझे छेंड़ने के लिए ही मेरी कलाई पकड़ ली है। अतः ये सोचते हुए मैं पूर्वत मुस्कुराते हुए उसकी तरफ पलटा। नीलम ने अपने एक हाॅथ से मेरी कलाई को पकड़ा हुआ था, किन्तु उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वो बस मुझे एकटक देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में कुछ था जो फिलहाल मेरी समझ में नहीं आया कि वो क्या था?

"क्या बात है बंदरिया?" मैने उसे इस तरह देखते देख छेंड़ने वाले भाव से कहा___"क्या मुझसे पंगा लेने का इरादा है? देख अगर ऐसा है तो फिलहाल अपने ज़हन से इस ख़याल को निकाल दे। क्योंकि इस हालत में तुझको मुझसे पंगा लेना भारी पड़ जाएगा। इस लिए मेरी बात मान पहले तू ठीक हो जा। उसके बाद तू शौक से मुझसे जैसे चाहे पंगे ले लेना।"

"ऐसी कोई बात नहीं है राज।" नीलम ने सहसा गंभीरता से कहा___"तुमसे तो मैं इस हाल में भी पंगा लेने को तैयार हूॅ और यकीन मानो मुझे पंगे के भारी पड़ने की कोई फिक्र नहीं है। मगर मैं इस वक्त तुमसे कुछ और ही बात कहना चाहती हूॅ।"

"ओह आई सी।" मैने उसे गंभीर हालत में देखते हुए ज़रा खुद भी कुछ गंभीरता का नाटक करते हुए कहा___"तो ये बात है। फरमाइए, क्या कहना चाहती हैं आप?"
"कहने को तो बहुत कुछ है मेरे दिल में।" नीलम की आवाज़ सहसा लड़खड़ा सी गई, किन्तु तुरंत ही जैसे उसने खुद को मजबूती से सम्हालते हुए कहा___"मगर सिर्फ यही कहना चाहती हूॅ कि मेरी रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखना। मैं नहीं चाहती कि उनका मोम का बन चुका दिल फिर से पत्थर में तब्दील हो जाए।"

"क्या मतलब???" मैं नीलम की इस बात से एकदम से चकरा सा गया, बोला___"ये क्या ऊल जुलूल बोल रही हो तुम?"
"एक गुजारिश भी है तुमसे।" नीलम ने मेरी बात पर ज़रा भी ध्यान न देते हुए फीकी मुस्कान से कहा___"इतने कम समय में भी मुझे एहसास हो चुका है कि तुम्हारे दिल में हम सबके लिए बेपनाह प्यार व सम्मान की भावना है। इस लिए मेरी गुज़ारिश है कि हमेशा ऐसे ही बने रहना। चाहे जैसी भी परिस्थितियाॅ आ जाएॅ मगर तुम खुद को नहीं बदलना।"

"ये तुम कैसी बातें कर रही हो नीलम?" मैं नीलम की इन बातों से बुरी तरह हैरान व चकित रह गया था, फिर बोला___"देखो किसी भी तरह की पहेलियाॅ मत बुझाओ। जो भी बात है उसे साफ साफ कहो।"

"अब इससे ज्यादा साफ साफ नहीं कह सकती मेरे भाई।" नीलम ने भारी आवाज़ में कहा___"मुझे पता है कि तुम बेहद समझदार हो, इस लिए मैं उम्मीद करती हूॅ कि तुम मेरी बातों को समझ जाओगे।"

"देखो अगर तुम्हारे ये सब कहने का मतलब।" मैने इस बार ज़रा गंभीर भाव से कहा___"इस बात से है कि इस सबके बाद क्या होगा तो तुम इस बात से बेफिक्र रहो। मैं जानता हूॅ कि इस जंग का अंत यकीनन बेहद दुखदायी होगा। मगर होनी तो अटल है न। पाप और बुराई का अंत तो निश्चित है। किन्तु उसके बाद हम सब साथ मिल कर एक नया संसार बनाएॅगे। उस नये संसार में हम सब एक साथ ढेर सारी खुशियों का हिस्सा होंगे। मैं तुमसे वादा करता हूॅ कि जीवन में कभी भी किसी को मैं उदास या दुखी होने का मौका नहीं दूॅगा।"

"मुझे पता है राज।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं जानती हूॅ कि तुम्हारे रहते कोई भी जीवन में दुखी नहीं हो पाएगा। किन्तु मेरे ये सब कहने का मतलब इन सब बातों से नहीं था भाई, बल्कि मैं तो बस रितू दीदी के लिए वो सब कह रही थी।"

"क्या मतलब??" मेरे चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे।
"यही तो बिवसता है राज।" नीलम ने बेबस भाव से मेरी तरफ देखा___"कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें मुख से नहीं कहा जाता बल्कि सामने वाले को खु ही समझ जाना होता है और मैं तुमसे यही उम्मीद करती हूॅ कि तुम बिना कुछ बताए सब कुछ समझ जाओगे।"

"कमाल है।" मैं चकित भाव से कह उठा____"भला ये क्या बात हुई? मैं कोई अंतर्यामी हूॅ क्या जो किसी के बताए बिना ही सब कुछ जान लूॅगा या फिर समझ लूॅगा?"
"क्यों नहीं राज।" नीलम ने बड़े ग़ौर से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तुम यकीनन बिना कुछ बताए सब कुछ समझ सकने की काबीलियत रखते हो और मुझे ऐसा लगता भी है कि तुम सब कुछ समझते भी हो।"

"अब ये क्या बात हुई यार?" मैं बुरी तरह चौंका।
"पता नहीं क्यों?" नीलम ने पूर्वत मेरी तरफ बड़े ग़ौर से देखते हुए ही कहा___"पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम जानते समझते सब कुछ हो मगर प्रत्यक्ष रूप में ज़ाहिर यही करते हो कि तुम्हें सामने वाले की कोई भी बात समझ में नहीं आई है। है ना?"

"और मुझे ऐसा लग रहा है।" मैने कहा___"कि जैसे तुम मुझसे पंगा लेने के मूड हो। क्योंकि तुम्हारी ये बेसिर पैर की बातें इसी बात का इशारा करती हैं। मगर मिस नीलम, जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूॅ तुमसे कि तुम इस वक्त मुझसे पंगा लेने की हालत में नहीं हो। इस लिए बेहतर होगा कि अपने ज़हन से पंगा लेने वाले ख़याल निकाल दो।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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मेरी इस बात से नीलम कुछ न बोली। बस एकटक देखती रही मेरी तरफ। मैं खुद भी उसी की तरफ देख रहा था। उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवागवन चालू था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात के लिए उसे अपने आपसे काफी ज़द्दो जहद करनी पड़ रही हो। एकाएक ही उसने मेरे चेहरे से अपनी नज़रें हटाईं और अपने सिर को दूसरी तरफ कर लिया। मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि दूसरी तरफ सिर किये नीलम की ऑखों से ऑसू छलक पड़े थे। मुझे कुछ समझ न आया किन्तु इतना ज़रूर हुआ कि उसकी ऑखों से इस तरह ऑसू छलकते देख मैं बेचैन हो गया।

"अरे ये क्या मेरी प्यारी सी बहन की ऑखों से ऑसू क्यों छलक पड़े?" मैं एकदम से उसके समीप ही बेड के किनारे पर बैठ गया और फिर उसके हाॅथ को अपने हाॅथ में लेकर बोला___"देख अगर तुझे मेरी किसी बात से बुरा लगा हो तो मुझे माफ़ कर दे। मैं तुझे इस तरह ऑसू बहाते नहीं देख सकता। तू तो जानती ही है कि मैं कितना बेवकूफ हूॅ। मुझमें किसी की भावनाओं को समझने का ज्ञान नहीं है। अतः अगर तुझे मेरी किसी बात से तक़लीफ हुई है तो प्लीज माफ़ कर दे मुझे।"

"ऐसा मत कह राज।" नीलम एकदम से मेरी तरफ पलट कर सिसक उठी____"तू तो ऐसा है जो भूल से भी किसी को कोई तक़लीफ नहीं दे सकता। मुझे खुशी है दुनियाॅ में सबसे खूबसूरत दिल का लड़का मेरा भाई है। ये ऑसू तो फक़त ऐसी ही खुशी के तहत छलके हैं। मैं नहीं जानती कि किसके जीवन में क्या क्या खोना और पाना लिखा है मगर मेरी हसरत तो यही है कि मेरी रितू दीदी को हर वो चीज़ मिल जाए जिस चीज़ की उन्होंने रज़ा की हो।"

"मेरे रहते मेरी बहनों को कभी भी किसी चीज़ की कमी का एहसास तक नहीं होगा नीलम।" मैने कहा___"मैं बहनें मेरी जान हैं, उनके लिए कुछ भी कर सकता हूॅ मैं। रितू दीदी ही बस क्यों मैं तो अपनी सभी बहनों को बराबर प्यार व सम्मान दूॅगा।"

"जैसा तुम्हें अच्छा लगे वैसा करना राज।" नीलम ने गहरी साॅस ली____"अब तुम जाओ और नैना बुआ या सोनम दीदी में से किसी को भेज दो। मेरा सिर ज़रा भारी भारी सा लग रहा है।"

"सिर भारी लग रहा है???" मैं चौंका___"इतनी सी बात के लिए उनको क्यों कष्ट देना? लाओ मैं तुम्हारे सिर की मालिश कर देता हूॅ। इतना तो मैं भी कर सकता हूॅ।"
"तुम रहने दो राज।" नीलम ने कहा___"तुम परेशान न हो। सोनम दीदी को भेज देना।"

"ओये चिंता मत कर यार।" मैं सहसा मुस्कुराया___"सिर की मालिश ही करूॅगा, तेरा गला नहीं दबाऊॅगा मैं।"
"काश! तू मेरा गला ही दबा दे भाई।" नीलम की आवाज़ एक बार पुनः जाने क्या सोच कर भर्रा गई___"तेरे पास तेरी ही बाहों के दरमियां इस दुनियाॅ से रुख़्सत हो जाऊॅगी।"

"ज्यादा बकवास मत कर।" मैने सहसा कठोर भाव से कहा___"वरना कान के नीचे एक लगाऊॅगा तो सारा सेन्टिमेंट निकल जाएगा तेरा। अब अगर कुछ बोला तो देखना फिर।"

मेरी बात सुन कर नीलम बस मुस्कुरा कर रह गई। जबकि मैं उसके सिरहाने के क़रीब ही बैठ कर उसके माॅथे पर हाॅथ से मालिश का दबाव आहिस्ता आहिस्ता करने लगा और साथ ही सोचने लगा कि नीलम ने आख़िर ऐसी बात क्या सोच कर कही हो सकती है? अभी मैं नीलम की बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी कमरे में नैना बुआ व सोनम दीदी एक साथ ही आ गईं। मुझे इस तरह नीलम का सिर दबाते देख वो दोनो ही चौंकते हुए एक जगह ठिठक गईं।

"ओहो।" फिर सहसा नैना बुआ ने मुस्कुराते हुए कहा___"क्या बात है राज, अपनी लाडली बहन की बड़ी सेवा कर रहे हो तुम। वैसे मैने सुना है कि तुम दोनो आपस में बड़ा लड़ते झगड़ते हो। फिर ये सेवा भाव कैसे?"

"क्या बताऊॅ बुआ?" मैने बड़ी मासूमियत से कहा__"मैं इससे चाहे जितना भी लड़ूॅ झगड़ूॅ लेकिन आख़िर है तो ये मेरी प्यारी बहन ही न? बेचारी का सिर भारी भारी सा हो रहा था तो कहने लगी कि मैं आप में से किसी को बुला दूॅ। मैने सोचा कि इतनी सी बात पर भला आप लोगों को क्यों कष्ट देना? अब जब मैं खुद ही यहाॅ पर मौजूद हूॅ तो क्या थोड़ी देर इसके सिर की मालिश करके इसके सिर का भारीपन नहीं दूर कर सकता? बस यही सोच कर सेवा करने लगा था इस बेचारी की मगर हाय रे मेरी किस्मत! ये तो इस हाल में भी मेरा भेजा फ्राई करने पर तुल गई। अच्छा हुआ कि आप दोनो यहाॅ आ गईं, अब आप ही इसे सम्हालिये। मैं तो अब यहाॅ से अब नौ दो ग्यारह ही हो जाऊॅगा।"

"अरे अब बस भी कर राज।" सोनम दीदी हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कह उठीं___"कितना बोलता है तू। हर वक्त उसे बस तंग ही करने का सूझता है तुझे।"
"लो कर लो बात।" मैने कहा___"ख़ैर क्या कहूॅ अब? ठीक है जा रहा हूॅ मैं। अब आप ही देखो इस बंदरिया को। गुड बाॅय।"

इतना कहने के बाद ही मैं पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया। जबकि मुझे इस तरह जाते देख सोनम दीदी व नैना बुआ खिलखिला कर हॅस पड़ीं। नीलम के होठों पर भी फीकी सी मुस्कान थी। किन्तु उसके चेहरे के भावों से ऐसा लगता था जैसे किसी किसी पल वो कहीं खो सी जाती थी।

कमरे से बाहर जैसे ही मैं आया तो मेरे पैंट की जेब में पड़ा हुआ मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैं तेज़ तेज़ क़दमों के साथ चलता हुआ नीचे आया और फिर बाहर की तरफ निकल गया। इस बीच मैने मोबाइल पर आ रही काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया था।
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उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। सारा शहर सोया पड़ा था। कही दूर किसी घंटाघर में लगे हुए घंटे ने बारह बजते ही ज़ोर की आवाज़ दी। खाली पड़ी सड़कों पर अभी कुछ ही देर पहले गहन सन्नाटा छाया हुआ था किन्तु कुछ ही पलों के भीतर इस सन्नाटे को भेदते हुए कई सारी गाड़ियाॅ सड़क पर सरपट दौड़ती हुई आईं और फिर एकाएक ही उन सबकी रफ्तार आश्चर्यजनक रूप से धीमी हो गई। वो लगभग चार गाड़ियाॅ थीं। जिनमें से एक टाटा सफारी थी बाॅकी कि तीनों बुलैरो थीं।

धीमी रफ्तार से चलती हुई वो चारों ही गाड़ियाॅ एक के बाद एक आगे के मोड़ पर दाहिने साइड मुड़ गईं। कुछ ही देर में वो चारो एक ऊॅचे मकान के सामने आकर रुकीं। गाड़ियों के रुकते ही चारो गाड़ियों के दरवाजे एक साथ मगर आहिस्ता से खुले। सभी गाड़ियों के खुल चुके दरवाजों में से एक के बाद एक आदमी बाहर निकले। सभी आदमियों के हाॅथ में पिस्तौल स्पष्ट नज़र आ रही थी। टाटा सफारी से दो आदमी बाहर निकले थे। उनमें से एक आदमी की कद काठी से प्रतीत होता था कि वह कोई युवक ही था किन्तु दूसरा आदमी कुछ एज्ड नज़र आ रहा था।

तीनो बुलैरो गाड़ियों से निकले हुए पिस्तौल धारी आदमी पलक झपकते ही उस ऊॅचे मकान के सामने की दीवार तथा मुख्य दरवाजे के इतर बितर मुस्तैदी से तैनात हो गए। उनकी मुस्तैदी देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी महत्वपूर्ण मिशन पर आए हुए हैं। जबकि टाटा सफारी से निकले हुए वो दोनो ही आदमी आराम से किन्तु बेआवाज़ चलते हुए मुख्य दरवाज़े के क़रीब आ कर खड़े हो गए। दरवाजे के पास खड़े हो कर वो दोनो ही बाएॅ साइड देखने लगे।

बाईं तरफ एक आदमी बड़ी दक्षता से रस्सी को ऊपर की बालकनी की रेलिंग में फॅसा कर ऊपर की तरफ चढ़ता चला जा रहा था। सबकुछ मानो पहले से ही प्लानिंग की गई थी कि यहाॅ पहुॅच कर कौन कब क्या करेगा। ख़ैर, कुछ ही देर में वो आदमी रस्सी के द्वारा ऊपर बालकनी में पहुॅच गया। ऊपर बालकनी से चलता हुआ वो दाईं तरफ की खिड़की के पास पहुॅचा। खिड़की के पास पहुॅच कर उसने बड़े एहतियात से खिड़की के पल्लों को अंदर की तरफ पुश किया। किन्तु खिड़की के पल्ले टस से मस न हुए। ये देख कर उस आदमी ने फौरन ही अपने एक हाॅथ को अपने काले लबादे में डाला और कोई चीज़ बाहर निकाली।

यकीनन वो चीज़ खिड़की के पल्लों पर लगे शीशों को काटने वाला हीरा था। उस आदमी ने बड़े एहतियात से तथा बड़ी सफाई से उस हीरे के द्वारा पल्ले पर लगे शीशे को काटा और उसका कटा हुआ टुकड़ा सावधानी से निकाल कर बालकनी में ही नीचे एक तरफ रख दिया। उसके बाद उसने कटे हुए पल्ले में हाॅथ डाल कर खिड़की के पल्लों की कुण्डी को खोल दिया। कुछ ही देर में खिड़की के दोनो ही पल्ले पूरी तरह अंदर की तरफ खुलते चले गए। अंदर की तरफ यूॅ तो अंधेरा ही था किन्तु खिड़की के अंदर की तरफ से लगे पर्दों को हटा कर उस आदमी ने अंदर किसी भी तरह ही चीज़ की आहट को सुनने के लिए अपने कान खड़े कर दिये थे। कुछ देर तक वह ऐसी ही पोजीशन में रहा फिर वह एकदम से खिड़की पर चढ़ कर अंदर कमरे की तरफ अंदाज़े से अपने पैर आहिस्ता आहिस्ता रखता चला गया।

कमरे में आते ही उसने सबसे पहले अपने लबादे से कोई चीज़ निकाली। कुछ ही पलों में पेंसिल टार्च का मध्यम प्रकाश कमरे के फर्श पर उसके पास ही उत्पन्न होता हुआ दिखा। उस आदमी ने पेंसिल टार्च के फोकस को धीरे धीरे आगे बढ़ाते हुए उस दिशा की तरफ किया जिस तरफ से उसे कुछ देर पहले किसी चीज़ की आवाज़ महसूस हुई थी। पेंसिल टार्च का फोकस बढ़ता हुआ कमरे में एक तरफ रखे शानदार बेड की तरफ पहुॅचा। बेड में दोनो किनारों पर दो दो पैर नज़र आए। आदमी ने टार्च के फोकस को थोड़ा ऊपर किया तो पता चला कि बेड पर दो खूबसूरत लड़कियाॅ गहरी नींद में सोई हुई हैं।

दो लड़कियों को गहरी नींद में सोते देख वो आदमी पहले तो अजीब तरह से मुस्कुराया फिर एकाएक ही वह अपनी एड़ियों पर घूम गया। घूमने के बाद वह बड़ी सावधानी से कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ता चला गया। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने दरवाजे पर लगे हैण्डिल को घुमाया जिससे दरवाजा खुल गया। दरवाजे को हल्का खोल कर उसने पहले बाहर की तरफ हल्का सा सिर निकाल कर इधर उधर देखा, उसके बाद वह दरवाजे को खोल कर बड़े आराम से कमरे से बाहर आ गया।

कमरे के बाहर सफेद ट्यूब लाइट का प्रकाश था। हर चीज़ स्पष्ट देखी जा सकती थी। इस वक्त समूचे मकान में गहन सन्नाटा छाया हुआ था। वो आदमी बड़ी सावधानी से आगे बढ़ता हुआ सीढ़ियों के पास आ कर रुक गया। सीढ़ियों के पास ही एक मोटे से खंभे की आड़ में छिप कर उसने पहले इधर उधर देखा उसके बाद नीचे चारो तरफ बारीकी से देखने लगा। सब कुछ बेहतर समझ कर वह खंभे की ओट से निकल कर सीढ़ियों से नीचे की तरफ बेआवाज़ उतरता चला गया।

सीढ़ियों से नीचे आकर वह दाई तरफ बढ़ा। कुछ ही देर में वह मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गया। मुख्य दरवाजा अंदर की तरफ से बंद था। उस आदमी ने बड़ी सावधानी से मुख्य दरवाजे के मोटे से हैण्डिल को घुमा कर दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही सामने वो दोनो ही आदमी खड़े नज़र आए जो टाटा सफारी से बाहर निकले थे। इतने से काम में ही उस आदमी को लगभग दस से पंद्रह मिनट का समय लग गया था। किन्तु वो सब इस बात से बेफिक्र से नज़र आए।

दरवाजा खुलते ही टाटा सफारी से उतरे हुए वो दोनो आदमी मकान के अंदर की तरफ दाखिल हो गए। उनके साथ ही कुछ और लोग भी अंदर की तरफ दाखिल हुए जबकि कुछ लोग बाहर ही मुस्तैदी से खड़े रहे। मुख्य दरवाजे से अभी वो आठ या दस कदम ही आगे बढ़े होंगे कि तभी किसी चीज़ के गिर कर टूटने की तेज़ आवाज़ हुई। इस आवाज़ ने उन सबकी रूह तक को कॅपकॅपा कर रख दिया। सारी सावधानी सारी सतर्कता धरी की धरी रह गई थी। किन्तु अब क्या हो सकता था?

आवाज़ होने के बाद वो सब काफी देर तक अपनी जगह चुपचाप खड़े रह गए थे। जब उस आवाज़ की वजह से कहीं से कोई भी प्रतिक्रिया न हुई तो ये सब अपनी अपनी जगह से हिले। किन्तु अभी चार कदम ही आगे बढ़े थे कि तभी उन सबके कानों में किसी नारी की आवाज़ पड़ी। जो बाईं तरफ से आती हुई नज़र आ रही थी। आते हुए ही उसने कहा था कि "कौन है वहाॅ"?

चालीस के आस पास की ऊम्र की उस मध्यम कदकाठी व शक्लो सूरत की औरत को देखते ही सबको पहले तो मानो साॅप सा सूॅघ गया किन्तु फिर जैसे अचानक ही बिजली सी कौंधी। पास आ चुकी औरत पर दो पिस्तौल धारी झपट पड़े थे। अचानक हुई इस क्रिया से वो औरत बुरी तरह डर कर अभी भयानक आवाज़ में चीखने ही वाली थी कि तभी एक पिस्तौल वाले के एक हाॅथ की हॅथेली किसी कुकर के ढक्कन की भाॅति उसके मुह से चिपक गई।

मुह पर हॅथेली रूपी ढक्कन चिपकते ही औरत गूॅ-गूॅ करती रह गई। वह उन दोनो से छूटने के लिए बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। तभी एक तीसरा पिस्तौल वाला आदमी उसके पास सामने से पहुॅचा और बेहद धीमें किन्तु खतरनाॅक भाव से बोला____"ज्यादा छटपटा मत वरना देख रही है न, इस पिस्तौल की सारी की सारी गोलियाॅ तेरे भेजे में उतार दूॅगा। पलक झपकते ही तेरी रूह ऊपर बैठे खुदा के दरबार में हाज़िरी बजाती नज़र आएगी।"

उस आदमी के द्वारा कहे गए इन खतरनाॅक वाक्यों का तुरंत ही उस औरत पर असर हुआ। वो एकदम से बुत सी बन गई। मगर मुसीबत अभी टली न थी क्योंकि इधर जैसे ही औरत ने छटपटाना बंद किया वैसे ही उधर इस बार एक मर्दाना आवाज़ उभरी। ये आवाज़ उसी तरफ से आई थी जिस तरफ से ये औरत आई थी। मर्दाना आवाज़ में कहा गया वाक्य ये था कि____"का हुआ रे बिंदिया? ई बखत ससुरी ना खुद सोवत है तू अउर ना हमका सोने देत है।"

इस वाक्य के साथ ही बाॅकी आदमियों की सिट्टी पिट्टी गुम होती नज़र आई। मगर चूॅकि ओखली में तो सिर पड़ ही चुका था इस लिए अब मूसल से क्या डरना वाली बात हो गई थी? कहने का मतलब ये कि जैसे ही वो आदमी ये सब कहते हुए सामने आया वैसे ही उसकी नज़र बिंदिया को पकड़े दो आदमियों पर पड़ी। वह एकदम से हक्का बक्का रह गया। इससे पहले कि वह अपने होशो हवाश में आ पाता दो आदमियों ने फौरन ही उसे दबोच लिया। उसके बाद वैसा ही हाल उसका भी हुआ जैसे अभी कुछ देर पहले बिंदिया का हुआ था।

"ओहो तो तू भी यहीं है हरिया।" टाटा सफारी से आए हुए दो आदमियों में से एक ने आगे बढ़ते हुए बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में कहा____"वाह बहुत खूब। वैसे अच्छा सिला दिया नमक हलाली का। हमने तो समझा था कि हमने अपने सभी फार्महाउस पर बड़े ही वफ़ादार कुत्तों को रखा हुआ है मगर, हमें क्या पता था कि हमारे रखे हुए कुत्ते एक दिन हमें ही काटने पर उतारू हो जाएॅगे। ख़ैर, कोई बात नहीं। इसकी सज़ा तो तुम सबको मिलेगी ही मगर उससे पहले बाॅकी लोगों का भी तो अच्छी तरह से प्रबंध कर लिया जाए।"

वो आदमी यकीनन अजय सिंह था जबकि दूसरा वो युवक खुद उसका ही बेटा शिवा था। हरिया ने अजय सिंह की इस बात का कोई जवाब न दिया। बल्कि अजय सिंह को इस वक्त यहाॅ अपने दलबल के साथ देख कर उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उसके चेहरे से ही पता चल रहा था कि वह बुरी तरह डर गया था।

इधर अजय सिंह अभी पुनः कुछ कहने ही वाला था कि ऊपर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए किसी के आने की आहट हुई। अजय सिंह तथा उसके आदमियों ने फौरन ही इधर उधर होकर छिपने का उपाय किया। सीढ़ियों से नीचे आने वाली नैना थी। इस वक्त उसके जिस्म पर नाइट सूट था। सीढ़ियों से नीचे उतर कर वह अपनी ही धुन में किचेन की तरफ बढ़ती चली गई। अजय सिंह को समझते देर न लगी कि उसे इस वक्त के हालात के बारे में कोई अंदेशा तक नहीं है। अतः अजय सिंह ने फौरन ही अपने एक अन्य आदमी को इशारा किया।

अजय सिंह का इशारा पाते ही वो आदमी बड़ी सावधानी से तथा बेआवाज़ किचेन की तरफ बढ़ता चला गया। कुछ ही देर में जब वो वापस आया तो वह अपनी दोनों बाहों के सहारे उठाए हुए नैना को आता दिखाई दिया। नैना कोई भी हरकत नहीं कर रही थी। मतलब साफ था कि उस आदमी ने नैना को बड़ी सफाई से बेहोश कर दिया था।

"ज्यादा समय नहीं है हमारे पास।" उस आदमी के आते ही अजय सिंह ने धीमे स्वर में कहा___"इस लिए जैसा कहा गया था फौरन ही वैसा करो। उसके बाद जल्दी से यहाॅ निकलना भी है।"

अजय सिंह की इस बात को सुन कर उसके अन्य आदमी फौरन ही हरकत में आ गए। कुछ लोग नीचे की तरफ के कमरों की तलाशी लेने लगे और बाॅकी लोग सीढ़ियों के द्वारा ऊपर की तरफ चले गए। लगभग दस मिनट बाद ही मंज़र ये था कि ऊपर से आने वाले आदमियों के कंधों पर एक एक इंसानी जीव बेहोश अवस्था में लदा हुआ नज़र आ रहा था। नीचे के एक कमरे से एक आदमी शंकर के बेहोश जिस्म को कंधे पर लादे आ रहा था।

उन सबके आते ही अजय सिंह बिंदिया व हरिया को पकड़े आदमियों को भी इशारा किया। इशारा मिलते ही उन आदमियों ने पलक झपकते ही खतरनाॅक हरकत की। जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ ही पलों में बिंदिया व हरिया दोनो ही बेहोश हो चुके थे। सबको लेकर बाहर की तरफ बढ़ चले वो लोग।

कुछ ही देर में सभी बेहोश हो चुके लोगों को बाहर खड़ी गाड़ियों पर भूसे की तरह ठूॅस दिया गया। उसके बाद सभी आदमी अपनी अपनी गाड़ियों पर बैठ गए। टाटा सफारी के चलते ही बाॅकी तीनों गाड़ियाॅ भी उसके पीछे चल दी। गहरी नींद में सोये शहर वासियों को इस सबका ज़रा भी इल्म न हुआ कि रात के सन्नाटे में यहाॅ क्या कुछ हो चुका था? जबकि अजय सिंह सबको लेकर अपने नियत स्थान की तरफ ऑधी तूफान की तरह बढ़ा चला जा रहा था।
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सुबह हुई।
उधर मुम्बई में,
उस वक्त सब लोग सुबह का नास्ता कर रहे थे जब एकाएक ही पवन के मोबाइल फोन की घंटी बजी थी। पवन अपने कमरे से तैयार होकर ही नास्ता करने आया था। नास्ता करने के बाद उसे कंपनी चले जाना था। डायनिंग हाल में कुर्सी पर बैठे पवन का मोबाइल उसकी पैन्ट की जेब में बज रहा था। चारो तरफ कुर्सियों पर बैठे बाॅकी सबका ध्यान भी उसके मोबाइल की रिंगटोन पर गया। सबका ध्यान एक साथ जाने की विशेष बात ये थी कि पवन के मोबाइल की रिंग टोन पर "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोंड़ेंगे" बज रही थी।

पवन पहले तो हड़बड़ाया फिर सबकी तरफ देखते हुए वह कुर्सी से उठा और अपनी बाईं जेब से मोबाइल निकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर "राज" लिखा नज़र आ रहा था। यानी कि उसके मोबाइल पर विराज की काल आ रही थी। ये देख कर पवन के चेहरे पर सहसा खुशी की चमक उभर आई। उसने मुस्कुराते हुए तुरंत ही काल को रिसीव किया और फिर जाने क्या सोच कर उसने मोबाइल का स्पीकर ऑन करके बोला___"आख़िर तुझे इतने दिनों बाद ही सही मगर मेरी याद आ ही गई न राज।"

"हमें तो तुम सबकी ही बहुत ज़ोरों से याद आती है बर्खुरदार।" मोबाइल पर उधर से अजय सिंह की इस आवाज़ को पहचानने में किसी को ज़रा सी भी देर न हुई। सबके सब इस आवाज़ को सुन कर एकदम हक्के बक्के से रह गए। जबकि उधर से स्पीकर पर पुनः अजय सिंह की इस बार ज़रा कठोर आवाज़ उभरी____"मैं अच्छी तरह जानता हूॅ कि इस वक्त इस नंबर से मेरी आवाज़ सुन कर तुम सबके पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई होगी। हर किसी को साॅप सा सूॅघ गया होगा। ख़ैर मुझे लगता है कि तुम में से किसी को भी मुझे ये बताने की या फिर समझाने की ज़रूरत नहीं है कि इस वक्त तुम लोगों का वो मसीहा विराज तथा उसके साथ साथ और भी बाॅकी लोग मेरे रहमो करम पर हैं। इस लिए बेहतर होगा कि बग़ैर मेरी किसी चेतावनी के तुम सब वहाॅ से फौरन मेरे पास या यूॅ कहो कि मेरे सामने आकर घुटनों के बल मेरे पैरों पर झुक जाओ।"

स्पीकर से उभर रहे अजय सिंह के ये वाक्य डायनिंग टेबल पर मौजूद लगभग सभी के मनो मस्तिष्क में ऐसा धमाका कर रहे थे जिसकी भीषण गूॅज से सभी के कानों के पर्दे तक झनझना रहे थे। और फिर ऐसा लगा जैसे एक ही पल में सब कुछ खत्म हो गया हो। चारो तरफ कुर्सियों पर बैठे सबके सब मानो किसी ऋषि के द्वारा दिए गए भयंकर श्राप की वजह से अचानक ही पत्थर की शिला में तब्दील होते चले गए हों। एक ही पल में वक्त मानो ठहर सा गया था। जो जिस हालत में बैठा था वो वैसी ही हालत में स्टेच्यू में तब्दील हो गया था।

सबकी चेतना तब जागृत हुई जब पुनः स्पीकर से अजय सिंह की आवाज़ के साथ साथ ज़ोरों का अट्ठहास गूॅजा था___"देखा, मैने कहा था न कि तुम सबको साॅप सा सूॅघ जाएगा। मगर साॅप सूॅघ जाने से कुछ नहीं होगा मेरे प्यारो बल्कि जो कुछ भी होगा मेरे पास आने के बाद ही होगा। इस लिए फौरन वहाॅ से चले आओ। वरना तुम लोग सोच भी नहीं सकते कि यहाॅ पर मैं तुम्हारे उस मसीहा के साथ साथ बाॅकी सबका भी क्या हस्र कर सकता हूॅ?"

अभी स्पीकर पर अजय सिंह का ये वाक्य पूरा ही हुआ था कि सहसा डायनिंग हाल में एक भयंकर चीख़ गूॅज उठी, साथ ही फर्श पर किसी चीज़ के गिरने की ज़ोरदार आवाज़ हुई। इस चीख़ व आवाज़ को सुन कर सबके सब बुरी तरह उछल पड़े। जैसे ही सबने चीख़ की दिशा में देखा तो सबके होश उड़ गए। दरअसल ये चीख गौरी के हलक से खारिज़ हुई थी। वो अपने हाॅथ में बर्तन पर कुछ लिए हुए किचेन से आ रही थी और डायनिंग हाल में आते ही उसने स्पीकर पर उभर रही अजय सिंह की उस आवाज़ के साथ साथ उसके संपूर्ण वाक्य को सुन लिया था। उसके बाद ही उसके हलक से ये भयंकर चीख़ निकली थी।

पवन के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा। उधर गौरी की चीख़ सुन किचेन से रुक्मिणी व करुणा भी भागती हुई डायनिंग हाल की तरफ आ गई थीं। गौरी को डायनिंग हाल के फर्श पर अजीब हालत में लुढ़की पड़ी देख कर भौचक्की सी रह गई वो दोनो। इधर डायनिंग टेबर के चारो तरफ रखी कुर्सियों पर बैठे बाॅकी सब लोग भी अपनी अपनी जगहों से उठ कर गौरी की तरफ दौड़ पड़े थे। देखते ही देखते डायनिंग हाल में रोना धोना शुरू हो गया। यहाॅ का रोना धोना चालू मोबाइल के द्वारा अजय सिंह भी सुन रहा था और ज़ोरों से हॅसे जा रहा था।

"हाहाहाहाहा यही।" उधर से अजय सिंह की आवाज़ पुनः उभरी____"अब यही हाल होगा तुम सबका। मगर जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूॅ इस सबसे कुछ नहीं होगा बल्कि यहाॅ आने पर ही होगा। इस लिए अब मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि तुम सब वहाॅ से फौरन ही मेरे सामने हाज़िर हो जाओ। कल दोपहर तक तुम सब मेरी ऑखों के सामने होने चाहिए। दोपहर तक अगर तुम सब नहीं आए तो समझ लेना कि इसका परिणाम कितना घातक हो सकता है।"

इन वाक्यों के साथ ही अजय सिंह कहकहे लगा कर हॅसा और फिर काल कट हो गई। किन्तु उसके इन वाक्यों को सुनने की हालत में यहाॅ था ही कौन? यहाॅ तो बस रोना धोना तथा चीख़ पुकार ही मचा हुआ था। बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को सम्हाला सबने।

उधर होश में आते ही गौरी दहाड़ें मार मार रोने लगी और चीख़ चीख़ कहने लगी____"मैने कहा था न कि हत्यारे ने मेरे बेटे को मार दिया है। हे भगवान! अब अगर मेरा बेटा ही नहीं तो मैं भला जी कर क्या करूॅगी? मुझे भी मौत दे दे भगवान। मैं अपने बेटे के बग़ैर एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती।"

"शान्त हो जाइये भाभी।" अभय सिंह सिसकते हुए बोल उठा___"हमारे राज को कुछ नहीं होगा। वो मादरजाद तो बस गीदड़ भभकियाॅ ही दे रहा था। जबकि मैं जानता हूॅ कि वो मेरे भतीजे का बाल भी बाॅका नहीं कर सकता। मेरा भतीजा शेर है शेर....ये साले सब गीदड़ हैं भाभी। भगवान के लिए भरोसा कीजिए और शान्त हो जाइये। सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

"कुछ भी ठीक नहीं होगा अभय।" गौरी बुरी तरह बिलखते हुए बोली___"वो हत्यारा मेरे बेटे को गोलियों से छलनी छलनी कर देगा। वो मेरे बेटे के खून प्यासा है। मुझे मेरे बेटे के पास पहुॅचा दो अभय मैं तुम्हारे पाॅव पड़ती हूॅ।"

गौरी पागल सी हो गई थी। सचमुच ही वो अभय के पैरों पर गिर पड़ी। अभय का कलेजा ये देख कर हाहाकार कर उठा। बुरी तरह तड़प उठा वह। तेज़ी से वह पीछे की तरफ हटा और फिर तुरंत ही गौरी को दोनो कंधों से पकड़ कर ऊपर किया।

"क्यों मुझे पाप के सागर में डुबा रही हैं भाभी?" अभय सिंह रो पड़ा____"आप जानती हैं कि मैंने हमेशा आपको अपनी माॅ की तरह समझा है। मेरे पैरों में गिर कर मुझे ऐसे गर्त में मत डुबाइये कि जहाॅ से मैं फिर कभी निकल ही न पाऊॅ।"

"मुझे मेरे बेटे के पास पहुॅचा दो कोई।" गौरी पागलों की तरह सबकी तरफ याचना भरी दृष्टि से देखते हुए बोले जा रही थी___"मेरा बेटा बहुत कष्ट में है। वो सब मिलके उसे मार देंगे। मुझे अभी के अभी मेरे बेटे के पास जाना है और अगर तुम लोग मुझे नहीं पहुॅचाओगे तो मैं खुद ही चली जाऊॅगी। मुझे यहाॅ अब नहीं रहना। मेरे बेटे को मार देंगे वो लोग।"

इतना सब कहने के साथ ही गौरी को चक्कर आ गया और वह रुक्मिणी की गोंद में ही शिथिल पड़ गई। उसकी हालत देख कर हर कोई रो रहा था। निधी की हालत बेहद ख़राब थी। वो अपनी माॅ को अपने बेटे के लिए इस तरह तड़पते देख खुद भी तड़पी जा रही थी। हालत तो सबकी ही ख़राब थी।

"ऐसे कब तक यहाॅ इन्हें रोता तड़पता हुआ देखते रहेंगे अभय चाचू?" सहसा पवन ऊॅचे स्वर में मानो चीख सा पड़ा___"मेरा दोस्त वहाॅ भयंकर संकट में है। मैं खुद भी अब यहाॅ एक पल के लिए भी रुकना नहीं चाहता। उस कसाई का कोई भरोसा नहीं है। वो कुछ भी कर सकता है।"

"सही कहते हो तुम।" अभय सिंह ने सहसा अपने ऑसुओं को पोंछते हुए बोला____"फौरन यहाॅ से चलने की तैयारी करो पवन। गौरी भाभी को अगर राज के पास न ले जाया गया तो ये यहीं पर अपना सिर पटक कर मर जाएॅगी। वैसे भी जिस तरह से उसने चेतावनी देकर हम सबको वहाॅ बुलाया है तो हम सबको फौरन जाना ही पड़ेगा। इसके सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है। मौजूदा हालात में वो कुछ भी कर सकता है। इंसान से राक्षस बन गया है वो। मगर भवानी माॅ की कसम अगर उसने मेरे भतीजे को ज़रा सी भी चोंट पहुॅचाई तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं।"

"ठीक है चाचू।" पवन ने कहा___"आप इन्हें देखिये। मैं तब तक सबकी टिकटों का इंतजाम करता हूॅ। वैसे मुमकिन तो नहीं मगर देखता हूॅ शायद सबके लिए टिकटें मिल ही जाएॅ।"

"आप एक बार जगदीश भाई साहब को भी फोन पर इस बारे में सब कुछ बता दीजिए।" पवन के जाते ही करुणा ने अभय सिंह की तरफ देखते हुए दुखी भाव से कहा___"आख़िर इस बारे में जानकारी तो उन्हें भी होनी ही चाहिए कि हम अचानक यहाॅ से किस वजह से जा रहे हैं?"

"सही कहा तुमने।" अभय सिंह ने कहने के साथ पैन्ट की जेब से अपना मोबाइल निकाला, फिर बोला___"भाई साहब को बताना बेहद ज़रूरी है। वैसे भी वो हमें अपने सगे जैसा ही मानते हैं। उन्हें इस बारे में बताना ही चाहिए। रुको मैं अभी बात करता हूॅ उनसे।"

कहने के साथ ही अभय ने जगदीश ओबराय को फोन लगाया। कुछ देर तक टुक टुक की आवाज़ आती रही, उसके बाद सहसा मोबाइल से आवाज़ उभरी___"आप जिस उपभोक्ता से बात करना चाहते हैं वो इस समय उपलब्ध नहीं है अथवा नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हैं।"

ये सुन कर अभय सिंह परेशान सा हो गया। उसने पुनः नंबर रिडायल कर फोन लगाया। किन्तु फिर से वही जवाब मिला। अभय ने कई बार फोन मिलाया मगर हर बार यही बताया गया कि वो इस समय उपलब्ध नहीं है अथवा नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हैं। अभय को चिंतित व परेशान देख कर करुणा ने उससे पूछा कि क्या हुआ? उसके सवाल पर अभय सिंह ने उसे सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर वो भी चिंता में पड़ गई।

ख़ैर, जितना जल्दी हो सकता था उतना जल्दी किया गया। यानी फौरन ही सबको तैयार कर चलने के लिए कहा गया। किन्तु यहाॅ किसी को भला क्या तैयार होना था? जो जिन कपड़ों में था वो वैसे ही चलने को तैयार हो गया था। लगभग एक घंटे बाद पवन सिंह बॅगले पर आया। उसने बताया कि रिज़र्व में सिर्फ पाॅच ही टिकटों का इंतजाम हो सका है। बाॅकी की सब वेटिंग या आरएसी की टिकटें मिली हैं। पवन की बात सुन कर अभय ने कहा कोई बात नहीं। जाना तो अनिवार्य ही है फिर चाहे भले ही जनरल में ही क्यों न जाना पड़े। पवन ने बताया कि ट्रेन शाम की है। उससे पहले एक और थी जो कि सुबह नौ बजे की थी मगर वो जा चुकी है।

पवन की इस बात ने सबको निराश व मायूस सा कर दिया। सबके सब अतिसीघ्र यहाॅ से जाना चाहते थे। मगर जाने का साधन तो अब शाम को ही मिलने वाला था। अतः शाम का इन्तज़ार करना ही सबकी नियति थी। कहते हैं कि जब हम बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि वक्त गुज़र जाए तब ऐसा कदापि नहीं होता। बल्कि एक एक पल मानो शदियों में तब्दील हो जाता है। कुछ ऐसा ही आलम था यहाॅ पर।

सारा दिन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दुनियाॅ से ही जा चुका हो। डायनिंग टेबल पर नास्ते के लिए परोसी गई थाली व प्लेट सब वैसी की वैसी ही रखी रह गई थी। किसी ने उस तरफ देखा तक न था और ना ही कोई अपने कमरे की तरफ गया था। बॅगले के नौकर चाकर तक संजीदा थे इस सबसे। अभय सिंह सुबह से अब तक हज़ारों बार जगदीश ओबराय को फोन लगा चुका था किन्तु उसका नंबर अभी भी नेटवर्क क्षेत्र के बाहर ही बता रहा था।

बड़ी मुश्किल से ही सही किन्तु वक्त अतिमंद्र गति से गुज़र ही गया। ट्रेन के निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुच गए। रुक्मिणी व करुणा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास व दुखी था। आधे घंटे बाद जब ट्रेन आई तो सब ट्रेन की तरफ लगभग भागते हुए बढ़े। ट्रेन में चढ़ कर हर कोई सीट पर बैठ चुका था। रिज़र्व सीटों पर औरतों और लड़कियों को बैठा दिया गया था। हलाॅकि रिज़र्व में पाच ही सीटें मिली थी। जिनमें गौरी रुक्मिणी करुणा निधी व दिव्या को बैठा दिया गया था। शगुन दिव्या के साथ ही बैठा हुआ था। जबकि पवन अभय व आशा ट्रेन के फर्श पर ही खड़े थे।

गौरी को रुक्मिणी व करुणा ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। सारा दिन रोती रही थी वो जिसकी वजह से उसकी ऑखें लाल सुर्ख पड़ चुकी थीं। चेहरे पर ऐसी वीरानी थी जैसे इस चेहरे ने कभी किसी तरह की खुशियो से भरी बहार को देखा ही न हो। कुछ ही समय बाद ट्रेन अपने गंतब्य स्थान के लिए चल पड़ी। ट्रेन के चल पड़ने से सबके मन में थोड़ी राहत के भाव उभर आए थे। आने वाले समय में किसके साथ क्या क्या होने वाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।
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दोस्तो, अपडेट हाज़िर है।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.......《 63 》


अब आगे,,,,,,,

दूसरे दिन।
उस वक्त दोपहर हो चुकी थी।
अजय सिंह के इस विशाल फार्महाउस पर इस वक्त अलग ही नज़ारा था। ये दृष्य तो गौरी के स्वप्न की तरह ही था किन्तु उससे थोड़ा भिन्न ही था। लम्बे चौड़े फार्महाउस के बीचो बीच दो मंजिला बड़ा सा मकान बना हुआ था। चारों तरफ हरी हरी घाॅस से भरा हुआ विशाल मैदान तथा हर तरफ लगे हुए तरह तरह के पेड़ पौधे यहाॅ की खूबसूरती का एक बड़ा ही सुंदर नज़ारा पेश कर रहे थे। किन्तु इस वक्त इस खूबसूरत नज़ारे में भी जैसे ग्रहण सा लगा हुआ था।

मैदान में लगे पेड़ पौधों के बीच का ही दृष्य था ये। कतार में लगे पेड़ों पर कई सारे लोग रस्सियों से बॅधे जकड़े हुए थे। विराज, रितू, आदित्य, नैना, सोनम, नीलम, बिंदिया, हरिया व शंकर आदि सब कतार से ही पेड़ों से रस्सियों द्वारा बॅधे हुए थे। विशाल मैदान में चारो तरफ काली वर्दी में तैनात गुंडे मवालियों जैसी शक्ल के काफी सारे लोग हाथों में बंदूखें लिए खड़े थे। मैदान में एक तरफ कुछ दूरी पर कई सारी गाड़ियाॅ भी खड़ी हुई थी।

उन्हीं पेड़ों की गहरी छाॅव में अजय सिंह एक कुर्सी पर बैठा हाॅथ में लिए हुए रिवाल्वर को बार बार अपनी उॅगली पर नचा रहा था। उसके पीछे उसका बेटा शिवा खड़ा था। उसकी कमर में भी एक रिवाल्वर ठुॅसा हुआ था। अजय सिंह की पत्नी यानी कि प्रतिमा भी अजय सिंह के पास ही खड़ी हुई थी। वातावरण में चारो तरफ एक अजीब सा भयावह सन्नाटा फैला हुआ था।

"दोपहर तो हो चुकी है ठाकुर साहब।" तभी सहसा एक आदमी अजय सिंह के पास आता हुआ बोला____"किन्तु आपके बाॅकी शिकार तो अभी तक यहाॅ नहीं पहुॅचे। कहीं ऐसा तो नहीं कि वो लोग पुलिस के पास चले गए हों सहायता माॅगने के लिए? अगर ऐसा हुआ तो यकीन मानिए हमारे सारे किये कराए पर पानी फिर जाएगा और हम सब जेल के अंदर चक्की पीसते नज़र आएॅगे।"

"नहीं सहाय।" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"वो लोग पुलिस के पास जाने का सोच भी नहीं सकते हैं। वो जानते हैं कि अगर उन लोगों ने इस मामले में पुलिस को कुछ भी बताया तो उसका अंजाम बहुत ही खतरनाॅक हो सकता है। इस लिए तुम इस बात से बेफिक्र रहो। वो सब सिर के बल भागते दौड़ते हुए रेलवे स्टेशन से सीधा यहीं आएॅगे। उसके बाद क्या होगा ये समझाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"

"हाॅ ये तो सही कहा आपने।" अभिजीत सहाय ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"आज यहाॅ पर एक अनोखा इतिहास लिखा जाएगा। आने वाले बाॅकी शिकार यहाॅ आ तो जाएॅगे मगर तुरंत ही हमारे आदमियों द्वारा धर लिए जाएॅगे और फिर वो सब भी इन लोगों की तरह पेड़ों पर रस्सियों में बॅधे नज़र आने लगेंगे।"

"मुझसे तो अब बरदास्त ही नहीं हो रहा डैड।" शिवा अपने बाप के सामने आते हुए बोला____"एक एक पल कैसे काट रहा हूॅ ये सिर्फ मैं जानता हूॅ। मेरी ऑखों के सामने ही मेरी ये बहने रस्सियों में बॅधी पेड़ों पर चिपकी खड़ी हैं और आप मुझे कुछ करने ही नहीं दे रहे हैं।"

"बस थोड़ी देर और सब्र करो मेरे बेटे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"उसके बाद तुम्हें जो करना हो करते रहना। मज़ा तो तभी आएगा न जब बाॅकी के लोग भी यहाॅ पर हर तरह का तमाशा देखने के लिए पहुॅच जाएॅ।"

"ठीक है डैड।" शिवा ने मन मसोस कर कहा___"आप कहते हैं तो मैं थोड़ी देर और सब्र कर लेता हूॅ।"
"ये हुई न बात।" अजय सिंह मुस्कुराया, फिर सहाय की तरफ देखते हुए बोला___"अपने आदमियों को पूरी तरह से सतर्क रहने का अल्टीमेटम दे दिया है न सहाय तुमने?"

"डोन्ट वरी ठाकुर साहब।" अभिजीत सहाय ने कहा___"हमारे आदमी पूरी तरह से सतर्क हैं। उनकी नज़र से एक परिंदा भी यहाॅ से छूट कर नहीं जा सकेगा।"

"वेरी गुड।" अजय सिंह ने कहा____"उन लोगों के आते ही हमारे आदमी उन सबको धर लेंगे और फिर उन्हें भी इन लोगों की तरह यहाॅ के पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध देंगे। ये फाइनल गेम है सहाय और इस गेम का विनर सिर्फ और सिर्फ हम ही होंगे। असली खिलाड़ी वही है जो सामने वाले को पूरी तरह से पस्त करके उसे नेस्तनाबूत कर दे।"

अभी अजय सिंह ने इतना कहा ही था कि पीछे की तरफ से किसी के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं। चिल्लाने की आवाज़ें सुनते ही सबका ध्यान उस तरफ गया। कई सारे बंदूख धारियों से घिरे हुए अभय, पवन, गौरी, रुक्मिणी, करुणा, आशा, निधी, दिव्या व शगुन, इस तरफ ही चले आ रहे थे। ये सब देख कर अजय सिंह के साथ साथ सहाय, शिवा व प्रतिमा के होंठो पर जानदार मुस्कान उभर आई।

देखते ही देखते कुछ ही देर में सबको अलग अलग पेड़ों पर रस्सियों से बाॅध दिया गया। रस्सियों में जकड़ी गौरी बुरी तरह छटपटाए जा रही थी। उसकी नज़र जैसे ही रस्सियों में बॅधे अपने बेटे विराज पर पड़ी वैसे ही वह बुरी तरह तड़प कर रोने लगी थी। विराज के साथ साथ रितू नीलम सोनम आदित्य आदि को रस्सियों में बॅधे थे, किन्तु इस वक्त ये सब अचेत अवस्था में थे।

"तो आख़िर तुम सब लोग यहाॅ पर मरने के लिए आ ही गए।" अजय सिंह उन सबके बीच ज़मीन पर चहल क़दमी करते हुए कठोर भाव से बोला___"वैसे क्या समझते थे तुम सब लोग कि मेरे क़हर से बचे रहोगे? हाहाहाहा ऐसा कभी नहीं हो सकता। जब तक मेरे द्वारा तुम सबको सज़ा नहीं मिल जाती तब तक तुम लोग किसी भी चीज़ से मुक्त नहीं हो सकते थे।"

"मेरे बेटे को कुछ मत करना।" सहसा गौरी ने रोते हुए कहा____"मैं आपके सामने हाॅथ जोड़ती हूॅ। भगवान के लिए उसे छोंड़ दो। उसके किये की सज़ा मुझे दे लो मगर मेरे बेटे को कुछ मत करना।"

"हाय! मेरी बुलबुल ये क्या हालत बना ली है तुमने?" अजय सिंह गौरी के क़रीब आते हुए चहका___"यकीन मानो तुम्हारी ये हालत देख कर मेरे दिल को बहुत दुख हो रहा है। अरे तुम तो मेरी जाने बहार हो डियर। कभी मेरे दिल के बारे में भी सोचा होता तो समझ में आता तुम्हें कि कोई किस क़दर चाहता है तुम्हें? मगर तुमने तो कभी मेरे बारे में सोचना तक गवारा न किया। आख़िर क्या कमी थी मुझमें? तुम्हारे उस अनपढ़ गवार पति से तो लाख गुना अच्छा था मैं। उससे कहीं ज्यादा अच्छी हैंसियत भी है मेरी। वो तो खेतों पर दिन रात काम करने वाला महज एक मजदूर था जबकि मैं तो यहाॅ का सम्पन्न राजा था। तुमको दुनियाॅ हर ऐशो आराम व सुख देता। मगर तुमको तो उस मजदूर से ही प्रेम था।"

"कोई भी इंसान धन दौलत से राजा नहीं बन जाता नीच इंसान।" गौरी का लहजा एकाएक कठोर हो उठा___"राजा बनने के लिए दूसरों के प्रति अपनी खुशियों का तथा अपने हर सुखों का त्याग करना पड़ता है। तुझमें तो सिर्फ एक ही खूबी है बेग़ैरत इंसान और वो है हर रिश्तों की मान मर्यादा का हनन करना। तेरे जैसे कुकर्मी के लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा ही हो सकती है।"

"उफ्फ।" अजय सिंह ने बुरा सा मुह बनाया___"मेरे प्रति इतनी घटिया बात कैसे सोच सकती हो तुम? अरे तुम कहती तो मैं तुम्हारे लिए खुद को पूरी तरह बदल भी देता मेरी जान। मैं वो सब बनने को तैयार हो जाता जो तुम मुझे बनने को कहती। मगर तुमने तो मुझसे इस बारे में कभी कुछ कहा ही नहीं। इसमे भला मेरा क्या कसूर है गौरी? मैं तो बस अपने दिल के हाॅथों मजबूर था और वही करता चला गया जो मेरा दिल कहता रहा था। मगर कोई बात नहीं डियर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम कहोगी तो मैं अब भी वैसा ही बन जाऊॅगा जैसा तुम कहोगी। ये समझ लो कि तुम्हारी स्वीकृति से सब कुछ एक पल में बदल जाएगा। कहने का मतलब ये कि तुम अगर अब भी मेरी हो जाओ तो ये सब लोग मेरे क़हर से बच जाएॅगे।"

"तू अपने और अपने इस सपोले के बारे में सोच हरामज़ादे।" होश में आते ही मेरी आवाज़ वातावरण में गूॅज उठी___"तू अगर ये समझता है कि तूने हम सबको रस्सियों में इस तरह बाॅध कर बहुत बड़ा तीर मार लिया है तो इस खुशफहमी में मत रह तू। दुनियाॅ की कोई भी ताकत तुझको मेरे हाॅथों मरने से बचा नहीं सकती।"

"तू अब कुछ नहीं कर सकता भतीजे।" अजय सिंह ने विराज की तरफ देखते हुए कहा___"तेरा सारा उछलना कूदना समाप्त हो चुका है। अब तक तुझे जो कुछ भी करना था वो सब कर लिया है तूने। अब तो मेरी बारी है और यकीन मान मैं अपनी बारी में अब कोई कसर नहीं छोंड़ूॅगा कुछ भी करने में। ख़ैर, अभी तो तुझे ये भी पता नहीं है कि मेरे एक ही झटके में तू और ये सब मेरी कैद में कैसे आ गए? तुझे पूछना चाहिए भतीजे कि मुझे तेरे ठिकाने का कैसे पता चला? और फिर कैसे तुम सब यहाॅ पहुॅच गए?"

अजय सिंह की इस बात पर सन्नाटा सा छा गया। ये सच था कि विराज एण्ड पार्टी को होश आते ही सबसे पहले उनके मन में यही सवाल उभरा था कि वो अचानक यहाॅ कैसे आ पहुॅचे हैं? एक के बाद एक सब कोई होश में आ चुका था। खुद को इस तरह रस्सियों में बॅधे देख वो सब बुरी तरह चौंके थे तथा बुरी तरह छटपटाने लगे थे। किन्तु जब यहाॅ के दृष्य व माहौल पर सबकी नज़र पड़ी तो जैसे सबके पैरों तले से ज़मीन ही गायब हो गई थी। विराज और रितू ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि मुम्बई से बाॅकी सब लोग भी यहाॅ आ चुके हैं और वो सब भी उनकी तरह रस्सियों से बॅधे हुए हैं।

"हाहाहाहाहा क्यों भतीजे ज़बान को लकवा क्यों मार गया तुम्हारे?" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसा___"पूछ न कि ये सब कैसे हुआ? खुद को बड़ा तीसमारखां समझ रहा था न तू? अब पूछ कि ये सब कैसे हो गया? एक ही झटके में तू भी यहाॅ आ गया और मुम्बई में रह रहे तेरे ये सब चाहने वाले भी यहाॅ आ गए। होश में आने के बाद तुझे सबसे पहले यही पूछना चाहिए था।"

"तुम बताने के लिए इतना ही मरे जा रहे हो तो खुद ही बता दो।" आदित्य ने कहा____"वैसे मुझे पूरा यकीन है कि इसमें भी तेरे जैसे कूढ़मगज का अपना कोई दखल नहीं होगा।"

"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता बेटा।" अजय सिंह ने कहा___"जंग में सेना का सारा ही योगदान होता है किन्तु जंग की जीत का सारा श्रेय राजा को ही जाता है। ख़ैर, अगर मेरा भतीजा ये जान जाए कि ये सब कैसे हुआ है तो यकीनन उसे दिल का दौरा पड़ जाएगा।"

"क्या मतलब??" मैं चकरा सा गया।
"छोटे को रस्सियों से मुक्त कर दो सहाय।" अजय सिंह ने अभिजीत सहाय की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे लगता है कि ये खुद ही बताए तो ज्यादा बेहतर होगा।"

अजय सिंह की इस बात से हर कोई भौचक्का रह गया। सचमुच सबके पैरों के तले से ज़मीन खिसक गई किन्तु अभी भी बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई थी। उधर अजय सिंह के कहने पर अभिजीत सहाय ने एक आदमी को इशारा किया तो उसने जा कर अभय सिंह को रस्सियों से मुक्त कर दिया। रस्सी से छूटते ही अभय सिंह मुस्कुराया और फिर अपने कपड़ों को झाड़ता हुआ अजय सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया।

अभय सिंह के होठों पर इस वक्त बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी। मैं ही क्या हम सब भी उसे इस तरह देख कर चकित थे। जबकि अभय सिंह कुछ देर हम सबकी तरफ उसी रहस्यमय मुस्कान के साथ देखता रहा।

"माफ़ करना राज।" अभय सिंह ने मेरी तरफ देखने के बाद माॅ की तरफ देखा___"आप भी मुझे माफ़ कीजिएगा भाभी जी। मगर मैं क्या करता? इस दुनियाॅ में हर कोई सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही तो सोचता है।"

"अ..भय तुम।" गौरी के होठ बुरी तरह थरथरा कर रह गए, बोली___"तुमने ये सब किया है??"
"करने वाले तो बड़े भइया ही हैं भाभी।" अभय सिंह ने मुस्कुरा कर कहा___"मैने तो सिर्फ इन्हें फोन पर राज के ठिकाने के बारे में बताया था। आप सब समझ सकते हैं कि राज के ठिकाने का पता चल जाने के बाद बड़े भइया के लिए ये सब कर लेना कितना आसान रहा होगा।"

"नहींऽऽऽ।" गौरी के कुछ बोलने से पहले ही करुणा बुरी तरह रोते हुए चीख पड़ी____"आप ऐसा नहीं कर सकते। आप ऐसे नीच इंसान का साथ कैसे दे सकते हैं जिसके बेटे ने खुद आपकी पत्नी व बेटी के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी? नहीं नहीं, आप इस नीच आदमी की तरह नहीं हो सकते। भगवान के लिए कह दीजिए कि ये सब आपने नहीं किया।"

हम सब अभय सिंह की इस बात से हक्के बक्के थे। मुख से कोई बोल ही नहीं फूट रहा था। अभय सिंह का इस तरह पलटी मारना हम सबके लिए यकीनन अविश्वसनीय था। किन्तु सच्चाई तो अब सबके सामने ही थी। उसे कैसे कोई नकार सकता था?

"वाह अभय।" गौरी ने हताश भाव से कहा___"क्या खूब बेटे होने का फर्ज़ निभाया है तुमने। कल तक तो बड़ा कह रहे थे कि तुमने हमेशा मुझे अपनी माॅ की तरह समझा है। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि एक झटके में तुम फरिश्ता से राक्षस बन गए? आख़िर मैंने या मेरे बच्चों ने ऐसा क्या बुरा कर दिया था तुम्हारा कि तुमने हम सबको इस आदमी के सामने ला कर इस तरह खड़ा कर दिया?"

"मैने कहा न भाभी।" अभय सिंह ने कहा___"हर कोई सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है। बड़े भइया ने अपने बारे में सोचा था इस लिए उन्होंने वो सब किया। किन्तु क्या किसी ने मेरे बारे में सोचा कभी? भगवान ने एक बेटा दिया वो भी दिमाग़ से डिस्टर्ब। आपके बेटे को अरबपति आदमी ने अपनी संपूर्ण दौलत से नवाज दिया। इस लिए आप भी खुश हो गए। मगर मेरा क्या??? मेरा तो कहीं कोई महत्व ही न रह गया। दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा है, उसका क्या भविष्य हो सकता है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। इस लिए मैने बहुत सोच समझ कर एक सौदा किया।"

"स सौदा???" गौरी के होंठ काॅपे। हम सब के चेहरों पर भी गहन उलझन के भाव उभर आए।
"हाॅ भाभी।" अभय सिंह ने कहा____"मैने बड़े भइया को फोन लगाया और उनसे कहा कि अगर आपको इस जंग में जीत हासिल करनी है तो आपको मेरा कहना मानना पड़ेगा। वरना आप किसी भी तरह से इस जंग में जीत नहीं पाएॅगे। क्योंकि इनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी तो विराज के पास रखा इनका वो सब ग़ैर कानूनी सामान है। उस सामान के तहत विराज इन्हें जब चाहे कानून की गिरफ्त में जीवन भर के लिए डलवा सकता है। ये बात इन्हें भी अच्छी तरह पता है। तब इन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस जंग में क्या कर सकता हूॅ? मैने बताया कि इनका सारा ग़ैर कानूनी सामान आज की तारीख़ में मेरे कब्जे में है। इस सामान की कीमत ये होगी कि ये मेरे बेटे का बेहतर से बेहतर इलाज़ करवाएॅगे, साथ ही ज़मीन जायदाद में आधा हक़ मेरा होगा। इन्हें मेरा वो सौदा मंजूर था, इस लिए बात को आगे बढ़ा दिया गया। ये उसी का नतीजा है कि आज आप सब यहाॅ हैं। कल जगदीश ओबराय का फोन इसी लिए नहीं लग रहा था क्योंकि मैं ग़लत नंबर पर काल लगा रहा था। मैं नहीं चाहता था कि उस सिचुएशन में जगदीश वहाॅ आ जाए और मेरे काम में कोई अड़चन आ जाए। ये मेरी ही स्कीम थी कि सुबह नास्ते के समय में बड़े भइया विराज के फोन से पवन के फोन पर काल करें ताकि वैसे हालात बन जाएॅ। हलाॅकि जैसा मैने सोचा था उससे बेहतर ही माहौल बन गया था। क्योंकि पवन ने अपने मोबाइल का स्पीकर खुद ही ऑन कर दिया था।"

"ओह तो तुमने सिर्फ इस वजह से हम सबके साथ इतना बड़ा धोखा किया है।" गौरी ने कहा____"तुम्हें क्या लगता है कि अभय जिस आदमी के साथ तुमने हम सबका सौदा किया है वो आदमी तुम्हारे लिए इतना कुछ करेगा? अरे जिसने ज़मीन जायदाद के लिए अपने माॅ बाप व भाई तक को जान से मार दिया वो तुम्हें भी तो मार सकता है। रही बात तुम्हारे बेटे के इलाज़ की तो वो हम भी करवा देते। मैने तो इस बारे में सोच भी लिया था। याद करो मैने ही इस बात के लिए ज़ोर दिया था कि तुम खुद की समस्या को भी दूर कर लो। मैने जगदीश भाई साहब से बात की और फिर तुम्हारा इलाज हुआ। मैं नहीं जातनी कि इस सबके बाद भी तुम्हारे अंदर ये बात कैसे आ गई कि हम सबको एक ही झटके में इस तरह मौत के मुह में डाल दिया जाए?"

गौरी की ये बातें सुन कर अभय सिंह तुरंत कुछ बोल न सका। कदाचित गौरी की इस बात ने उसे सोचने पर मजबूर किया कि "एक तो अजय सिंह अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद से गुज़र सकता है दूसरी ये कि वो खुद उसके बेटे के बेहतर इलाज़ के बारे में सोचे बैठी थी"। इधर अभय सिंह को एकदम से चुप हो जाते देख अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका।

"ये औरत तुझे बरगलाने की कोशिश कर रही है छोटे।" अजय सिंह ने तपाक से कहा___"ये ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती जिसकी इस वक्त ये बातें गढ़ रही है। तुम्हारे बेटे का बेहतर इलाज़ मैं करवाऊॅगा। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ज्यादा उचित होगा कि मैंने तो इस बारे में शुरूआत भी कर दी है। तुम अपने बच्चे के लिए बिलकुल भी फिक्र मत करो छोटे। उसका इलाज़ मैं खुद विदेश में करवाऊॅगा।"

"तुम अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो अभय।" गौरी ने कहा___"ईश्वर जानता है कि मैने या मेरे मरहूम पति ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा था। हॅसते खेलते घर में आग लगाने वाला तो सिर्फ यही एक शख्स था। इतना तो अब तुम भी समझ ही गए हो कि इसने अपनी खुशी के लिए तथा अपने स्वार्थ के लिए हम सबके साथ क्या कुछ नहीं किया है। ज़मीन जायदाद और हवेली को हड़पने के चक्कर में इसने अपने ही भाई को ज़हरीले सर्प से डसवा कर मार डाला। उसके बाद अपनी करतूत को छुपाने के लिए इसने माॅ बाबू जी का एक्सीडेन्ट करवाया। आज जब ईश्वर ने इंसाफ किया तो तिलमिला उठा ये। मैं हैरान हूॅ कि तुम सब कुछ जानते बूझते हुए भी इसका साथ देने के लिए अथवा इससे इस तरह का सौदा कैसे कर बैठे? हमें इस बात का दुख नहीं है कि तुमने हम सबको धोखा दिया और फिर यहाॅ ले आए। क्योंकि जीवन में इतना कुछ पा लिया है और सहन कर लिया है कि अब किसी बात से कोई फर्क़ ही नहीं पड़ता। किन्तु हाॅ इस सबके बाद भी तुम्हारे प्रति यही दिल करता है कि तुम ऐसी मुसीबत में न फॅस जाओ जिसके तहत एक बार फिर से ये कहानी दोहरा दी जाए।"

"माॅ की बात सही है चाचा जी।" सहसा मैने भी इस बीच हस्ताक्षेप किया____"दूसरी बात, आपको क्या लगता है कि मैं ये सब अपने हक़ को पाने के लिए कर रहा हूॅ?? नहीं चाचू, आप तो देख ही चुके हैं कि आज के समय में मैं अगर चाहूॅ तो इस पूरे गाॅव को एक पल में खरीद लूॅ। बात ज़मीन जायदाद या किसी प्रापर्टी की नहीं है बल्कि बात है अपने साथ हुए अन्याय की और अत्याचार की। सवाल उठता है कि आख़िर इन्हें किस चीज़ की कमी थी? दादा जी की ज़मीन जायदाद में तो उनके सभी बेटों का बराबर ही हक़ था। ज़मीनों में रात दिन खून पसीना बहा कर मेरे पिता जी ने एक मामूली से घर को इतनी बड़ी हवेली में तब्दील कर दिया। घर में हर सुख सुविधाएॅ हो गईं, यहाॅ तक कि मेरे ही पिता जी के खून पसीने की कमाई से इनके खुद के कारोबार की बुनियाद भी रखी गई। बदले में इन्होंने कभी कुछ दिया नहीं था और ना ही किसी ने इनसे कुछ पाने की आशा की थी कभी। अब सवाल ये उठता है कि ऐसी क्या वजह थी कि इन्होंने एक हॅसते खेलते परिवार को ख़ाक में मिला दिला? अगर इन्हें ज़मीन जायदाद की इतनी ही भूॅख थी तो खुल के कहते। मुझे पूरा यकीन है कि उस समय मेरे पिता जी इनकी भूॅख को शान्त करने की पूरी कोशिश करते। भले ही उन्हें अपने बीवी बच्चों को लेकर घर से निकल जाना पड़ता।"

"देखो तो।" अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह भिन्ना गया था, बोला____"साला आज का छोकरा, कैसी भाषणबाज़ी कर रहा है। इसे तो इतनी भी तमीज़ नहीं है कि जब बड़े आपस में बात कर रहे हों तो बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए।"

"और जब बड़े ही पाप करने की हर सीमा लाॅघ जाएॅ तो उसका क्या?" सहसा रितू दीदी बोल पड़ीं____"इस लड़ाई में किसके साथ क्या होगा इस बात का फैंसला तो ऊपर वाला कर ही देगा। किन्तु यहाॅ पर मैं भी ये कहना चाहती हूॅ कि दुनियाॅ में ऐसा कौन सा बाप है जो अपनी ही बेटियों को अपने नीचे सुलाने का तसव्वुर भी करता हो? आप कहते हैं कि राज को तमीज़ नहीं है बात करने की। जबकि सच्चाई तो ये है कि तमीज़, मान मर्यादा, इज्ज़त इन सब चीज़ों का अगर किसी में हद से ज्यादा अभाव है तो वो सिर्फ और सिर्फ आप में है। इस जन्म में तो किसी तरह ये जीवन काटना ही होगा मुझे, क्योंकि मैने अपना ये जीवन अपने सच्चे भाई राज की सुरक्षा में अर्पण कर दिया है। किन्तु मरने के बाद ईश्वर से सिर्फ यही फरियाद करूॅगी कि किसी ग़रीब बाप की औलाद बना देना मगर आप जैसे किसी पापी की औलाद न बनाना।" कहते कहते रितू दीदी की ऑखें छलक पड़ी थीं, फिर वो अभय सिंह की तरफ देखते हुए बोलीं___"आपसे ये उम्मीद नहीं थी चाचू कि आप अपने बेटे के बेहतर इलाज़ के स्वार्थ में अपने इस नीच व घटिया भाई का साथ देंगे। इससे अच्छा तो यही होता कि आपका बेटा जीवन भर वैसा ही रहा आता।"

"तुम ठीक कहती हो रितू।" करुणा ने रोते हुए कहा___"मेरा बेटा ऐसे ही अच्छा है। मुझे इसका कोई इलाज विलाज नहीं करवाना। इस नीच आदमी के पैसे का एक आना भी अपने बेटे पर नहीं लगाना चाहती मैं।" कहने के साथ ही करुणा ने अभय सिंह की तरफ देखा और फिर बोली____"कितना अभिमान था मुझे कि कम से कम मेरा पति अपने मॅझले भाई की तरह नेक दिल तो है। मगर आज आपने मेरे उस अभिमान को चकनाचूर कर दिया है अभय सिंह। किन्तु एक बात कान खोल कर सुन लो, ये मेरा बेटा है। मैं इसे खुद जान से मार देना पसंद करूॅगी मगर इस आदमी के पाप का पैसा इस पर नहीं लगाऊॅगी। और अगर आपने मुझे मजबूर किया तो देख लेना अच्छा नहीं होगा। मैं अपने बच्चों के साथ खुद ज़हर खा कर जान दे दूॅगी।"

"नहींऽऽऽ करुणा नहीं।" अभय सिंह पूरी शक्ति से चीख़ पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोला____"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी। मुझसे ग़लती हो गई करुणा, प्लीज मुझे माफ़ कर दो। मेरी मति मारी गई थी जो मैने इस आदमी के साथ ऐसा सौदा कर लिया।" कहने के साथ ही अभय सिंह गौरी की तरफ बढ़ा फिर बोला____"मुझे माफ़ कर दो भाभी। आपने मेरे लिए इतना कुछ किया और मेरी जानकारी के बिना भी मेरे बेटे के इलाज़ करवाने का सोचा, और मैं मूरख आप ही के साथ इतना बड़ा पाप कर बैठा। हे भगवान! तू मुझे इस सबके लिए माफ़ न करना।"

अभय सिंह को इस तरह पलटी खाते देख अजय सिंह भौचक्का सा रह गया। किन्तु फिर जल्द ही सम्हल भी गया वह। कदाचित उसे अंदेशा था कि अभय सिंह अपनी बातों से मुकर जाएगा। अतः उसने फौरन ही सहाय की तरफ देखते हुए कहा____"इस नामुराद को फौरन रस्सियों में बाॅधो सहाय। मुझे पता था ये अपनी बात पर कायम नहीं रह पाएगा। शायद इसका भी इन लोगों के साथ ही मरना लिखा है तो यही सही।"

अजय सिंह की बात सुन कर सहाय फौरन ही हरकत में आया। उसने अपने आदमियों को भी इशारा किया और खुद भी अभय सिंह की तरफ लपका। उधर अजय सिंह की ये बात अभय सिंह के भी कानों में पड़ चुकी थी। जैसे ही सहाय उसके पीछे पहुॅचा वैसे ही अभय सिंह तेज़ी से पलटा और पलक झपकते ही उसने एक हाथ से सहाय को उसकी गर्दन से पकड़ कर अपनी बाहों में कसा और दूसरे हाथ में लिए रिवाल्वर को उसकी कनपटी पर रख दिया।

अजय सिंह ये देख कर हक्का बक्का रह गया। उसे समझ न आया कि अभय सिंह के पास रिवाल्वर कहाॅ से और कब आ गया? उधर अभय सिंह के बंधनों में जकड़ा अभिजीत सहाय उससे छूटने के लिए छटपटाए जा रहा था।

"अपने आदमियों से कह सहाय।" अभय सिंह ने खतरनाक भाव से कहा___"कि ये सब अपने अपने हथियार फेंक दें और फिर इन सब को रस्सियों के बंधन से मुक्त कर दें। वरना तेरा काम तमाम करने में मुझे ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"

"फ..फेंक दो।" मौत के डर से थरथराता हुआ सहाय एकदम से चीखा____"अपने अपने हथियार फेंक दो और वही करो जो इसने कहा है।"
"कोई भी अपने हथियार नहीं फेंकेगा सहाय।" अजय सिंह ने कहा___"और हाॅ डरो मत। ये तुम्हें कुछ नहीं करेगा।"

"मैं मरना नहीं चाहता ठाकुर साहब।" सहाय बुरी तरह छटपटाते हुए बोला___"इस आदमी का लहजा बता रहा है कि ये इस वक्त कुछ भी कर सकता है। हाॅ ठाकुर साहब अगर मैने अपने आदमियों को हथियार फेंकने के लिए नहीं कहा तो ये मुझे खत्म कर देगा।"

"बड़े भइया।" अभय सिंह गुर्राया____"आजमाने की कोशिश मत करो। समय की नज़ाकत को देख कर काम करो। और हाॅ एक बात याद रखो, मुझे मरने का कोई डर नहीं है। अब तो बस हर जगह मुझे मौत ही मौत दिखाई दे रही है। इस लिए अगर भलाई चाहते हो तो वही करो जो मैने कहा है।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अजय सिंह अपने छोटे भाई के गुस्से से भलीभाॅति परिचित था। इस लिए उसने उसका कहा मानने में ही अपनी भलाई समझी। वो देख रहा था कि इस वक्य अभय सिंह सहाय को अपने आगे किये हुए है और हर तरफ उसकी पैनी नज़र है। छोटी सी एक ग़लती सहाय का भेजा उड़ा सकती थी और सहाय के मर जाने से उसके आदमी उसका कोई आदेश नहीं मानेंगे।

बहुत ही मजबूर व लाचार भाव से अजय सिंह ने एक बार सबकी तरफ देखा उसके बाद उसने सभी गनमैनों की तरफ देखते हुए हाॅ में अपने सिर को हिलाया। प्रतिमा व शिवा ये सब देख कर बुरी तरह आतंकित से नज़र आने लगे थे। ख़ैर अजय सिंह के इशारे से सभी गनमैनों ने अपने हथियार फेंक दिये।

"अब इन सबके बंधनों को भी खोलो।" अभय सिंह ने गनमैनों को हुक्म सा दिया।
अजय सिंह का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से दौड़ रहा था। वो जानता था कि ऐसे में वह जीती हुई बाज़ी हार जाएगा। अतः वह कोई न कोई जुगत लगाने में लगा हुआ था। उधर अभय सिंह के कहने पर कुछ गनमैन आगे बढ़े और सबके बंधनों को खोलने लगे।

अभय सिंह पूरी तरह सतर्क था। वह सहाय की कनपटी पर रिवाल्वर सटाए हर तरफ देख रहा था। किन्तु ज्यादा देर तक उसकी सतर्कता उसके काम न आ सकी। अचानक ही एक तरफ से धाॅय की आवाज़ हुई थी और फिर अभय सिंह के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। रिवाल्वर की गोली सीधा उसके कान को छू कर गुज़र गई थी। गर्म गर्म शोला कान की लौ को मानो भीषण तपिश देकर गुज़रा था। जिसका असर ये हुआ कि अभय सिंह छिटक कर दूर हट गया था। रिवाल्वर जाने कब उसके हाॅथ से निकल गया था। सहाय उसकी गिरफ्त से छूटते ही एक तरफ को सरपट भागा था।

इधर अभय सिंह के साथ हुए इस हादसे ने अजय सिंह के पलड़े को पुनः मजबूत करने की राह पकड़ ली। सबके बंधनों को छुड़ाने में लगे गनमैन इस हादसे के होते ही फौरन अपनी अपनी गन्स की तरफ लपके। उधर आदित्य, रितू, मैं और पवन जल्दी जल्दी अपने बंधन खोलते जा रहे थे। दरअसल जो गनमैन हमारे बंधनों को खोल रहे थे वो इस हादसे के होते ही उसे वैसी ही हालत में छोंड़ कर अपने अपने हथियारों की तरफ दौड़ पड़े थे।

उधर अभय सिंह जब तक खुद को सम्हालता अजय सिंह उसके पास पहुॅच चुका था। उसने ज़ोर की लात अभय सिंह के पेट में मारी। अभय सिंह लहराता हुआ दूर जा कर गिरा। अजय सिंह इस वक्त हिंसक जानवर की तरह लग रहा था। अफरा तफरी के माहौल को देख कर शिवा का भी दिमाग़ चल गया। वह फौरन ही इधर उधर देखने लगा। तत्काल ही उसकी नज़र सोनम पर पड़ी। वह तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। सोनम के पास पहुॅच कर उसने बेख़ौफ होकर उसकी दाहिनी कलाई को पकड़ लिया फिर बोला___"आओ मेरी जान। हम भी अपना प्रोग्राम बनाते हैं। सोचा था कि दिल की बात मान कर इस सबसे तौबा कर लूॅगा। मगर कदाचित ये मेरी किस्मत में ही नहीं है।"

"छोंड़ दे मुझे।" सोनम ने अपनी कलाई को उससे छुड़ाते हुए कहा____"तेरे जैसा घटियाॅ इंसान तो सारे संसार में भी न होगा। अपनी ही बहन के बारे में इतना गंदा सोचने में तुझे ज़रा भी शर्म नहीं आती।"

"यही तो बात है सोनम।" शिवा अपने से बड़ी ऊम्र की बहन को पूरी ढिठाई से उसके नाम से संबोधित करते हुए कहा___"जब मुझे पता चला कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है तो मैने भी सोचा चलो अच्छा ही हुआ। दुनियाॅ की एक हसींन लड़की से अगर मेरी शादी हो जाएगी तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। मगर जल्द ही समझ में आ गया कि प्यार मोहब्बत साली होती ही उसी से है जो हमें कभी मिलने वाला नहीं होता। मुझे लगा यार इससे अच्छा तो वही था जबकि मैं सिर्फ रासलीला से ही खुश रहता था।"

"मुझे तेरी ये बकवास नहीं सुननी कमीने।" सोनम ने गुस्से में कहा____"मैं कहती हूॅ छोंड़ दे मेरा हाॅथ वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।"
"पर अगर तुम चाहो तो मैं अब भी बदल सकता हूॅ।" शिवा ने उसकी बात पर ध्यान दिये बिना ही बोला___"हाॅ सोनम, तुम मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर लो और मुझसे शादी कर लो। हलाॅकि मैं जानता हूॅ कि हम दोनो के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए एग्री नहीं होंगे। इस लिए हम कहीं दूर चले जाएॅगे। वहीं कहीं एक नया संसार बसाएॅगे। मैने तो सबकुछ सोच भी लिया है सोनम। तुम किसी भी बात की चिन्ता मत करो। धन दौलत बहुत है, उसी में हम जीवन भर ऐश करेंगे। क्या कहती हो...आहहहहह।"

अभी शिवा का वाक्य पूरा ही हुआ था कि तभी उसके गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा था। उसके कान एकदम से झनझना कर रह गए थे। अपने गाल को सहलाता हुआ शिवा जब सीधा हुआ तो उसकी नज़र विराज पर पड़ी। विराज को देखते ही उसकी नानी मर गई।

"इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा बेटा।" मैने उसकी ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"सुना है मुझसे दो दो हाॅथ करने के लिए बड़ा फुदकता था तू। अब आ गया हूॅ सामने तो हो जाए दो दो हाॅथ? क्या कहता है?"

"सब वक्त वक्त की बातें हैं भाई।" शिवा ने सहसा फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"हो सकता है कि मैं पहले भी तुमसे दो दो हाॅथ करने के काबिल न रहा होऊॅ किन्तु फिर भी दो दो हाॅथ करने की हिमाकत ज़रूर करता मगर अब वो बात नहीं रह गई।"

"क्यों क्या हुआ?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"शेर का सामना होते ही सारी हेकड़ी निकल गई?"
"हेकड़ी तो अभी भी है भाई।" शिवा ने कहा___"मगर जैसा कि मैने कहा न कि अब वो बात नहीं रह गई। अब तो बस बात ये है कि किसी से इश्क़ हुआ और हम खुद ही मर गए। अब अगर तुम एक मरे हुए को मारना चाहते हो तो ठीक है लो हाज़िर हूॅ, जो जी में आए कर लो। वादा करता हूॅ कि उफ्फ तक नहीं करूॅगा।"

शिवा की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह हैरान रह गया। मुझे समझ न आया कि ये बद्जात बोल क्या रहा है। जबकि मेरी उलझन को देखते हुए सोनम दीदी ने कहा___"ये कमीना कहता है कि ये मुझसे प्यार करता है और अब शादी भी करना चाहता है।"

"क्याऽऽऽ?????" सोनम दीदी की बात सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। आश्चर्य से शिवा की तरफ देखते हुए बोला___"आख़िर गंदा खून कर भी क्या सकता है? जिसका बाप हमेशा अपने ही घर की बहू बेटियों पर नीयत ख़राब करता रहा हो उसका बेटा भला कैसे दूध का धुला हुआ हो जाएगा?"

"इस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है भाई।" शिवा ने कहा___"क्योंकि इश्क़ जब किसी के सिर चढ़ जाता है न तो फिर उसे ब्रम्हा भी नहीं समझा सकता। अतः तुम इस चक्कर में मत पड़ो। बल्कि उस चक्कर में पड़ो जिसके लिए तुम्हें पड़ना चाहिए। इस वक्त तुम खुद के साथ साथ अपने लोगों की जान की फिक्र करो। एक बात और, मेरी तरफ से बेफिक्र रहना।"

शिवा ने इतना कहा और फिर बड़े ही करुण भाव से सोनम की तरफ देखा। उसके बाद वह एक पल के लिए भी उस जगह नहीं रुका। मैं उसकी इस विचित्र सी हरकत से तथा उसकी बातों से बुरी तरह चकित था। तभी वातावरण में गोलियाॅ चलने की आवाज़ें आने लगी। मैं एकदम से फिरकिनी की मानिंद घूमा।

आदित्य, रितू दीदी व पवन के हाॅथों में गनें थी और वो अधाधुंध गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। पवन का तो निशाना ही नहीं लग रहा था। ये देख कर मैं मुस्कुराया। साले ने जीवन में कभी खिलौने का तमंचा तक न देखा था और आज दोस्ती के लिए गन लिए मौत का ताण्डव कर रहा था। मैने चारो तरफ देखा, मुझे औरतों में कहीं कोई दिखाई न दिया। ये देख कर मैं बुरी तरह चौंक गया। मन में सवाल उभरा कि ये सब कहाॅ गईं? कहीं किसी को कुछ हो तो नहीं गया। मैं सोनम दीदी को छोंड़ कर एक तरफ को भागा।

रितू दीदी, आदित्य व पवन पेड़ों की ओट में पोजीशन लिए हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, अभय चाचा, व सहाय कहीं दिख नहीं रहे थे। संभव है उन्होंने भी किसी पेड़ की ओट में पोजीशन लिया हुआ था। मैं छिपते छिपाते हुए फार्महाउस की इमारत के पिछले भाग में आ गया। यहाॅ आ कर मैने चारों तरफ देखा। कहीं कोई नहीं था। नीचे ज़मीन पर मरे हुए गनमैन अपने ही खून में नहाए पड़े थे।

माॅ लोगों को कहीं न देख कर मैं बहुत ज्यादा चिंतित व परेशान हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इतना जल्दी कहाॅ चले गए? मैं इमारत के पिछले भाग से निकल कर सामने की तरफ आया ही था कि तभी धाॅय की आवाज़ हुई। कहीं से गोली चली थी जो कि मेरे दाहिने बाजू को छू कर निकल गई थी। मैं इस सबसे बेखबर सा हो गया था। मेरे ज़हन में सिर्फ माॅ लोगों का ही ख़याल तारी था।

गोली की आवाज़ से तथा अपनी बाजू में उसकी छुवन से मैं बुरी तरह उछल पड़ा था और इसी उछलाहट में मैं फौरन ही एक पेड़ की ओट में आ गया। ओट से सिर निकाल कर मैंने आस पास का बारीकी से मुआयना किया। तभी मेरे कानों में इमारत के अंदर से कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी। मैं आवाज़ों को सुनने के लिए ग़ौर से ध्यान लगाया। तभी मेरे कानों में मेरी माॅ की आवाज़ पड़ी। वो कह रही थी____"मुझे बाहर जाने दो। वहाॅ मेरा बेटा गोलियों के बीच में खड़ा है और तुम सब कहती हो कि मैं यहीं पर रहूॅ। अरे मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मेरे ज़िन्दा रहने का क्या मतलब रह जाएगा?"

मैं सब समझ गया। मतलब माॅ लोग सब इमारत के अंदर हैं और शायद सुरक्षित भी हैं। वरना वो ऐसी बात उन लोगों को न कहतीं। ये सोच कर मैं फौरन ही जम्प मार कर दूसरे पेड़ की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही एकदम से गोलियों की आवाज़ें आने लगीं। किसी तरह बचते बचते मैं आदित्य के पास पहुॅच ही गया। आदित्य ने मुझे देखा तो इशारे से ही पूछा बाॅकी सब कैसे हैं? तो मैने बताया सब ठीक हैं।

अभी मैं आदित्य को इशारे से ये बताया ही था कि तभी सोनम दीदी की चीख़ गूज उठी। ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई मार रहा हो। मैने फौरन ही उस तरफ देखने की कोशिश की। बाॅई तरफ अजय सिंह सोनम दीदी को उनके सिर के बालों से पकड़े घसीटते हुए लिए आ रहे थे। उनके एक हाॅथ में रिवाल्वर भी था। ये देख कर मैं सकते में आ गया।

"अगर इस लड़की को ज़िन्दा देखना चाहते हो तो तुम सब सामने आ जाओ।" अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___"और हाॅ अपने अपने हथियार फेंक कर ही आना, वरना मैं इस लड़की को गोली मार दूॅगा।"

अजय सिंह की इस धमकी पर हम में से कोई कुछ न बोला। कुछ पलों तक अजय सिंह इधर उधर देखते हुए खड़ा रहा। उसके बाद फिर बोला___"मैं सिर्फ तीन तक गिनूॅगा। अगर मेरे तीन गिनने तक तुम लोग मेरे सामने नहीं आए तो समझ लो ये लड़की अपनी जिंदगी से हाॅथ धो बैठेगी।"

अजय सिंह ने गिनना शुरू कर दिया। पेड़ों की ओट में छुपे हम सब को बाहर निकलना अब अनिवार्य था। अजय सिंह ने जैसे ही तीन कहा हम सब उसके सामने आ गए। हम लोगों को देख कर अजय सिंह मुस्कुराया किन्तु फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव खतरनाॅक रूप से बदले। उसने रिवाल्वर वाला हाॅथ उठाया और बिना कुछ कहे फायर कर दिया। गोली सीधा रितू दीदी के पेट में लगी। फिज़ा में रितू दीदी की हृदयविदारक चीख़ गूॅज गई।

अजय सिंह से अचानक इस कृत्य की कल्पना हम में से किसी ने न की थी। उधर पेट में गोली लगते ही रितू दीदी कटे हुए वृक्ष की तरह लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिरने लगी। मैं बिजली की सी तेज़ी से उनकी तरफ लपका। रितू दीदी को बाॅहों में सम्हाले मैं बुरी तरह रोते हुए चीखने लगा। वो मेरी बाॅहों में थीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के असहनीय भाव थे किन्तु ऑखें मुझ पर स्थिर थीं।

"दीदी, ये क्या हो गया दीदी?" मैं उन्हें सम्हालते हुए वहीं ज़मीन पर उकड़ू सा बैठ गया____"नहीं नहीं, आपको कुछ नहीं हो सकता।"
"अभी जंग खत्म नहीं हुई पगले।" रितू दीदी ने पीड़ित भाव से कहा____"अभी तो इस धरती पर वो इंसान जीवित है जिसने अपना आख़िरी सबूत ये दे दिया है कि उसके दिल में किसी के लिए भी कोई रहम अथवा प्यार नहीं है। ऐसे इंसान को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"मैं उसे ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा दीदी।" मैने सिसकते हुए कहा___"बस आप को कुछ नहीं होना चाहिए। मैं आपको खोना नहीं चाहता।"
"होनी को कौन टाल सकता है राज?" दीदी ने सहसा मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"बड़ी आरज़ू थी कि जीवन भर तेरे साथ रहूॅगी। तुझे खुद से दूर नहीं जाने दूॅगी। मगर देख ले, आज खुद ही तुझसे दूर जा रही हूॅ।"

"नहीं नहीं।" मैने उन्हें खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रोते हुए बोला___"आप कहीं नहीं जा रही हैं। मैं आपको कहीं जाने भी नहीं दूॅगा। मुझे मेरी दीदी सही सलामत चाहिए। मैं आपके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"

"इतना प्यार मत दिखा राज।" रितू दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई____"वरना मरने के बाद भी मुझे शान्ति नहीं मिलेगी। ख़ैर, अभी तू जा मेरे भाई। वरना वो राक्षस फिर किसी को गोली मार देगा। देख तुझे मेरी कसम है, तू जा राज।"

दीदी की कसम ने मुझे मजबूर कर दिया। मैं भारी मन से उन्हें वहीं पर छोंड़ कर पलटा। इधर रितू के साथ हुए इस हादसे ने आदित्य पवन व अभय चाचा को भी अचेत सा कर दिया था। वो सब ठगे से ऑखें फाड़े देखे जा रहे थे।

"अपनी ज़िद व अपने अहंकार में किस किस को मारोगे अजय?" सहसा इस बीच प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए बेहद ही करुण भाव से रोते हुए कहा___"उस दिन भी तुमने नीलम को जान से मार ही दिया था और आज एक और बेटी को जान से मार दिया। आख़िर किस किस को जान से मारोगे तुम? ये दौलत ये ज़मीन जायदाद किसके भोगने के लिए बनाई है तुमने? मुझे भी मार दो, अपनी ऑखों के सामने अपनी बेटियों को इस तरह मरते देख कर भला कैसे चैन से जी पाऊॅगी मैं?"

"ये मेरी कोई नहीं लगती प्रतिमा।" अजय सिंह गुर्राया___"अगर लगती तो आज ये अपने बाप के साथ खड़ी होती ना कि अपने बाप के दुश्मनों के साथ।"

"तो क्या ग़लत किया इन्होंने?" प्रतिमा ने बिफरे हुए लहजे से कहा___"अरे इन लोगों ने तो वही किया जो हर लड़की को करना चाहिए। अपने इज्ज़त और सम्मान की रक्षा करना हर लड़की या औरत का धर्म है। तुम तो उसके बाप हो न, तुम्हें तो खुद अपने घर की इज्ज़त की हर तरह से रक्षा करना चाहिए थी। मगर तुम तो खुद ही अपनी ही बहू बहन व बेटियों की अस्मत को लूटने वाले बन गए।"

"ये तुम कौन सी भाषा बोल रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह की ऑखें फैली____"आज तुम्हारे मुख से ऐसी बातें कैसे निकलने लगीं? क्या सब कुछ भूल गई हो तुम? तुम तो खुद भी उतनी ही गुनहगार हो जितना कि तुम इस वक्त मुझे समझ रही हो। इस लिए ऐसी बात मत करो, क्योंकि ये सब तुम पर शोभा नहीं देती हैं।"

"मैं मानती हूॅ कि मैं इस सबमें बराबर की गुनहगार हूॅ अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये भी एक सच है कि इस सबके लिए भी सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो। मैं तो तुमसे अंधाधुंध प्यार ही करती थी। किन्तु अपने मतलब के लिए तुमने ही मुझे ऐसे काम को करने के लिए प्रेरित किया था। तुम्हारे प्यार में अच्छा बुरा ऊॅच नीच कभी नहीं सोचा मैने। सिर्फ यही सोचा कि मेरे किसी भी काम से सिर्फ तुम खुश रहो। मगर अब ये जो कुछ भी हो रहा है उसने मुझे इस बात का एहसास करा दिया है कि तुमने कभी मुझे प्यार किया ही नहीं था। तुम्हें तो सिर्फ खुद से और अपनी ख़्वाहिशों से ही प्यार था। अगर ऐसा न होता तो आज तुम इस तरह अपनों के दुश्मन न बन गए होते और ना ही इस तरह क्रूरता से अपनी ही बेटियों को जान से मार देने का सोचते। ख़ैर, देर से ही सही मगर मैं ये स्वीकार कर चुकी हूॅ कि मैंने तुम्हारे प्यार के चलते सबके साथ ऐसा गुनाह व पाप किया है जो कदाचित माफ़ी के लायक हो ही नहीं सकता है। मुझे भी किसी से माफ़ी की इच्छा नहीं है। इतना कुछ होने के बाद तो वैसे भी अब जीने का दिल नहीं करता। मेरा वजूद इतना घिनौना हो चुका है कि दुनिया का गिरा से गिरा हुआ इंसान भी कदाचित मेरी तरफ देखना भी पसंद न करे। किन्तु सुना है पश्चाताप करने से और नेक काम करने से मन को शान्ति मिलती है। इसी लिए मैने पश्चाताप के रूप में वो किया जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था।"

"क्या मतलब???" अजय सिंह चौंका____"क..क्या किया है तुमने?"
"अब तक तो दिमाग़ पर दिल ही हावी था अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मगर जब दिल ही टूट कर बिखर गया तो दिमाग़ का ज़ोर पड़ ही गया उस पर। उस शाम जब तुम फोन पर अभय से बातें कर रहे थे तब मैने भी ड्राइंग रूम में रखे फोन पर तुम दोनो की बातें सुनी थी। तुम तो जानते हो कि वो दोनो ही फोन एक ही हैं। अगर एक पर किसी का फोन आएगा तो उस दूसरे फोन के माध्यम से भी दूसरा ब्यक्ति पहले वाले फोन पर हो रही बातचीत को बड़े आराम से सुन सकता है। ख़ैर तुम दोनो की बातें सुनी मैने और तब मुझे पूरी तरह समझ आ गया कि सारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ लुटाने वाली मैं कितनी पापिन थी जो कभी तुम्हारी खुशियों के सिवा किसी और पर होते अत्याचार को न देख सकी थी। तुमने अभय को विश्वास दिलाया कि तुम उसके बेटे का बेहतर इलाज़ करवाओगे और ज़मीन जायदाद में आधा हिस्सा भी दोगे। बदले में तुम्हें तुम्हारा वो ग़ैर कानूनी सामान व विराज के सभी चाहने वाले अपने पास चाहिए। अभय तो अपने बेटे के लिए अपना विवेक खो कर यकीन के साथ तुमसे इतना बड़ा सौदा कर बैठा जबकि मैं जानती थी कि तुम वैसा कभी नहीं करोगे जिस बात के लिए तुमने अभय को विश्वास दिलाया था। अपना मतलब निकल जाने के बाद तुम वही करोगे जो सबके साथ करना चाहते हो।
मैं हैरान थी कि पढ़ा लिखा अभय इतनी बड़ी बेवकूफी व अपनों के साथ सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच कर इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है? लेकिन जल्द ही मुझे समझ आया कि भाई किसका है। मेरे दिमाग़ में ये बात भी आई कि संभव है कि अभय ने कोई दूर की कौड़ी सोची हुई है। कहने का मतलब ये कि इस जंग में अगर तुम्हारे साथ साथ मैं व हमारा बेटा मारे गए या कानून की चपेट में आ गए तो ये विराज को भी किसी तरह अपने रास्ते से हटा देगा। उस सूरत में सारी ज़मीन जायदाद का ये अकेला हक़दार हो जाएगा। ये सब बातें सोच कर मुझे एहसास हुआ कि जिसने इस सारी ज़मीन जायदाद को हीरे की शक्ल दी तथा जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं था उसे उसके भाई ने तो पहले ही मिटा दिया था और अब एक और भाई आ गया उसी इतिहास को दोहराने के लिए। मुझे पहली बार गौरी के बारे में सोच कर उस पर तरस आया। एकाएक ही मेरा हृदय झनझना उठा। अंदर कहीं से कोई बड़े ज़ोर से चीख कर कहा 'इस बेचारी ने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से इसके साथ इतना कुछ हो गया?' इंसान को बदलने के लिए सिर्फ एक ही मामूली सी चीज़ काफी होती है। अगर हम किसी के बारे में एक बार इस तरह से सोच लें तो फिर बहुत मुमकिन है कि फिर हमें उसकी अथवा अपनी वास्तविकता का बोध होने लगता है। वही हुआ मेरे साथ। हृदय परिवर्तन तो अपनी बेटी के साथ हुए हादसे से ही होने लगा था किन्तु उस फोन की वजह से पूरी तरह से ही हो गया। सारी बातों को सोचने के बाद मैने फैंसला कर लिया कि अब वो नहीं होंने दूॅगी जिसके लिए तुमने एक हॅसते खेलते परिवार की बलि चढ़ाई थी। हाॅ अजय, जैसे अभय ने अपने स्वार्थ के लिए अपनों के साथ विश्वासघात कर तुमसे वो सौदा किया उसी तरह मैने भी एक फोन किया।"

"क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका___"कैसा फोन किया तुमने?"
"मेरे पास विराज का नंबर नहीं था।" प्रतिमा ने कहा___"और मेरी बेटी मेरा फोन उठाती ही नहीं थी। तब मैने सीधा पुलिस कमिश्नर को फोन किया। पुलिस कमिश्नर को इस लिए क्योंकि मौजूदा वक्त में जो कुछ भी हुआ उससे ये बात साबित हो चुकी थी कि रितू अपने पुलिस महकमें की सह पर ही वो सब कर रही थी। हलाॅकि मैं पूरी तरह श्योर नहीं थी। किन्तु फिर भी मैने एक बार कमिश्नर से बात करने का ही सोचा और फिर उन्हें फोन लगाया। फोन पर मैने कमिश्नर से साफ साफ शब्दों में बता दिया कि सिचुएशन क्या है। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे एक बार विराज से बात करना है। उन्होंने मेरी बातों को बारीकी से सोचा समझा और फिर रितू को फोन किया और उससे विराज का नंबर लेकर मुझे दिया।"

"उस वक्त मैं और आदित्य बाहर घूमने गए थे जब मेरे फोन पर बड़ी माॅ का फोन आया था।" बड़ी माॅ की बात खत्म होते ही मैने तुरंत कहा___"इन्होंने मुझे फोन पर सारी बातें बता दी। हलाॅकि मुझे शुरू शुरू में इनकी बात पर ज़रा भी यकीन न हुआ। क्योंकि मैं सोच ही नहीं सकता था कि अभय चाचा हमारे साथ ऐसा कर सकते हैं। तब इन्होंने कहा कि ये अपनी बातों का सबूत तो नहीं दे सकती हैं मगर मैं खुद इस बात की जाॅच पड़ताल तो कर ही सकता हूॅ। दूसरी बात मुझे भी कहीं न कहीं लग रहा था कि अपनी बेटी के साथ हुए हादसे के चलते बड़ी माॅ में कुछ तो परिवर्तन आना ही चाहिए था। ख़ैर, इनकी ख़बर के बाद मैने भी वहाॅ पर रितू दीदी आदि को सब कुछ बता दिया और रात में ये सब होने का इंतज़ार करने के लिए कह दिया। वहीं मैने मुम्बई में भी पवन को फोन कर दिया था। उसे मैने समझाया था कि वो इस बारे में किसी से कुछ न कहे किन्तु अगर बड़े पापा का फोन उसके पास आए तो वो फोन का स्पीकर ऑन करके ज़रूर सबको इनकी बात सुनाए। क्योंकि उसके बाद तो उन्हें यहाॅ आना ही था। मैं भी अब खुल के इनके सामने आना चाहता था। किन्तु ये सब बहुत ही ज्यादा खतरनाक भी था। क्योंकि इससे किसी को भी कुछ भी हो सकता था। ख़ैर रितू दीदी ने कमिश्नर से बात की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया और पुलिस प्रोटेक्शन की माॅग भी की। कमिश्नर ने हमें बेफिक्र रहने को कहा। कल रात जब आप अपने दलबल के साथ हमारे ठिकाने पर पहुॅचे तब हम सब जाग रहे थे। आप ये समझ रहे हैं कि आप बड़ी आसानी से हम सबको बेहोश कर यहाॅ ले आए जबकि सच्चाई तो यही है कि आपका काम हमने खुद आसान किया था। वरना आप ही सोचिए कि ऐसे आलम में इतने लापरवाह हम कैसे हो जाएॅगे कि कोई आए और हम सबको बड़ी सहजता से बेहोश करके अपने साथ जहाॅ चाहे ले जाए। जबकि मैं चाहता तो उसी वक्त आप और आपके सभी आदमी मौत के घाट उतर चुके होते। मगर मैने अपने दोस्त शेखर के मौसा जी को उस रात वहाॅ पर सिक्योरिटी रखने से मना कर दिया था। उसके बाद क्या हुआ वो तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं।"
 
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"चलो अच्छा हुआ कि तुमने खुद ही ये सब बता दिया।" अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे से कहने के साथ ही बड़ी माॅ की तरफ देखा___"पर तुमने ये सब करके अच्छा नहीं किया प्रतिमा और इसके लिए तुम्हें मौत से कम सज़ा तो हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती।"

"कितनी आश्चर्य की बात है न अजय।" प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारा हृदय परिवर्तन नहीं हुआ। तुम्हें ज़रा भी एहसास नहीं हुआ कि ये जो कुछ भी तुमने किया है वो कितना ग़लत था। बल्कि अभी भी तुम वही सब करने पर आमादा हो जिसका नतीजा तुम्हारे लिए किसी भी सूरत में अच्छा नहीं हो सकता। आज तुम्हारी इस हालत को देख कर सचमुच मुझे तरस आ रहा है। आज मैं ये सोचने पर मजबूर हूॅ कि पच्चीस साल पहले मैने तुममे ऐसा क्या देखा था कि तुमसे इस क़दर प्यार कर बैठी थी? तुम किसी के नहीं हो सकते अजय, तुम अकेले ही ऐसी मौत मरोगे जिसकी लाश पर कीड़े पड़ेंगे।"

"हरामज़ादी कुतिया।" गुस्से में तिलमिलाए हुए अजय सिंह ने बड़ी तेज़ी से अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को ऊपर हवा में उठाया और फिर___धाॅय।

प्रतिमा के सबसे क़रीब अभय सिंह ही था। माहौल की नज़ाकत का जैसे उसे बखूबी एहसास था तभी तो उन्होंने गोली के चलते ही जम्प लगाई थी। किन्तु गोली की स्पीड ने अपना काम तमाम करने में कोई कसर न छोंड़ी थी। प्रतिमा को बचाने के चक्कर में गोली अभय सिंह के कंधे पर जा लगी थी। फिज़ा में अभय सिंह की दर्द से डूबी चीख़ निकल गई थी। अभय सिंह प्रतिमा को लिए ज़मीन पर उलटता चला गया था।

इधर इस नज़ारे को देख कर मैने भी अजय सिंह पर जम्प लगाई थी। मगर मेरे जम्प लगाने से पहले ही उसने एक और फायर कर दिया था। जिसका नतीजा ये हुआ कि इस बार गोली अभय सिंह के पेट में लगी थी। उस वक्त वो जल्दी से उठने की कोशिश कर रहा था तभी गोली आकर उसके पेट में लग गई थी। एक साथ कई चीखें फिज़ा में गूॅज गई थी। इधर तीसरा फायर करने से पहले ही मैं अजय सिंह के ऊपर आ गिरा था। इस गुत्थम गुत्था में सोनम दीदी भी लोट पोट हो गई थीं। अजय सिंह की पकड़ से छूटते ही सोनम दीदी अभय सिंह व प्रतिमा की तरफ चिल्लाते हुए दौड़ पड़ी थी।

इधर मैने अजय सिंह के उस हाॅथ में एक कराट मारी जिसमें वो रिवाल्वर लिये हुए था। कराट लगते ही अजय सिंह के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर गिर गया। मैने उस पर लात घूॅसों की बरसात कर दी। अजय सिंह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाने लगा। वह खुद भी हाॅथ पैर चला रहा था किन्तु सब ब्यर्थ। मैं उसके ऊपर से उठा और फिर उसे उठा कर पूरी ताकत से दूर फेंक दिया। हवा में लहराते हुए अजय सिंह दूर जा कर गिरा।

जहाॅ पर अजय सिंह गिरा था वहीं पर एक गन पड़ी थी। जिसे देख कर वह अपना हर दर्द भूल गया और झपट कर उसने उस गन को उठा लिया। तभी फिज़ा में पुलिस सायरन की आवाज़ गूॅजने लगी। अजय सिंह गन लेकर तुरंत पलटा और मेरी तरफ देखते हुए गन को ऊपर करने लगा। इससे पहले की वह गन का ट्रिगर दबा पाता कहीं से एक साथ दो फायर हुए। एक गोली सीधा अजय सिंह के सीने में दिल वाले स्थान पर लगी जबकि दूसरी उसके थोड़ा नीचे। पलक झपकते ही उन दोनो जगहों से खून की धार फूट पड़ी और अजय सिंह कटे हुए बृक्ष की भाॅति लहरा कर ज़मीन पर गिरा और फिर एकदम से शान्त पड़ गया।

फायर की आवाज़ से मैं बिजली की तरह पलटा था। अजय सिंह के दाहिनी तरफ कुछ ही दूरी पर शिवा रिवाल्वर लिए खड़ा था। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे। मैं उसे चकित भाव से देखे जा रहा था। जबकि वह अपने बाप को मारने के बाद पलटा और मेरी तरफ देखते हुए बोला____"अपने हाॅथ इस पापी के खून से मत रॅगो भाई। इसे इससे बड़ी सज़ा और क्या मिलेगी कि इसने जिसे सबसे ज्यादा प्यार किया उसी ने इसकी साॅसें छीन ली। नफ़रत के इस पुजारी को मर ही जाना चाहिए था।"

"मगर तूने..।" मेरा वाक्य अधूरा रह गया।
"कुछ मत कहिए भाई।" शिवा की आवाज़ लड़खड़ा गई, बोला___"मैं नहीं जानता कि मुझसे ये सब कैसे हो गया। मगर अंदर से कोई कह रहा है कि बहुत अच्छा किया तुमने। माॅ बाप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार व स्वावलम्बी बनने की सीख देते हैं मगर मेरे इस बाप ने तो मुझे अपनी ही तरह बनने की सीख दी। ख़ैर छोंड़िये भाई, मुझे भी अब खुशी हो रही है कि मैने आज कोई अच्छा काम किया है। ये नियति मैने खुद चुनी है। अपने बाप के कत्ल के इल्ज़ाम में या तो मुझे फाॅसी हो जाएगी या फिर ऊम्र कैद। किसी से बेपनाह इश्क़ भी हुआ मगर सिर्फ मुझे ऊम्र भर तड़पाने के लिए। मैने अपने इस छोटे से जीवन में ही इतने ऊॅचे दर्ज़े के पाप किये हैं जिसके लिए ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"ये तू कैसी बकवास कर रहा पगले?" उसकी बातें सुन मेरा गला रुॅध सा गया। जाने क्यों इस वक्त वो मुझे बहुत प्यारा सा लगा जिसके लिए मेरा दिल रोने लग गया था। हलाॅकि उसने भी अपने बाप की तरह हमें जलील करने में कोई कसर न छोंड़ी थी।

"जाइये भाई।" तभी शिवा ने कहा____"अब तो सब खेल खत्म हो गया है। पुलिस भी आ गई है और अब वो मुझे कानूनन फाॅसी के फंदे पर झुलाने के लिए यहाॅ से ले जाएगी। सबकी देख भाल करना भाई, और सबको ढेर सारी खुशियाॅ देना। एक नया संसार बनाइये और उसमें सबको खुश रखिये।"

अभी शिवा अपनी इन बातों से मुझे चकित ही किये था कि हर तरफ पुलिस के आदमी फैलते हुए आ गए। मेरी नज़र दूर से ही कमिश्नर पर पड़ी। मैने पलट कर देखा तो शिवा अपने बाप के मृत शरीर के पास ही अपने हाॅथ में रिवाल्वर लिए बैठ गया था। मतलब साफ था कि वो पुलिस को दिखाना चाहता था कि उसने खुद ही अपने बाप का खून किया है और अब पुलिस को उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए। बड़ी अजीब बात थी वो चाहता तो खुद को बचा भी सकता था। क्योंकि खून करते हुए पुलिस ने उसे देखा ही नहीं था और हम लोग ये बात पुलिस को बताने के बारे में सोच भी सकते थे या नहीं भी।

कमिश्नर जब शिवा के पास पहुॅचा तो शिवा उसकी तरफ देख कर बोला___"अच्छा हुआ कि आप आ गए। आज इस पापी को इसके ही पापी बेटे ने मौत के घाट उतार दिया है। लीजिए अब मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।"

शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है।
 
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अपडेट.......《 64 》

अब आगे,,,,,,,

ऑधी तूफान बने हम सब आख़िर हास्पिटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी हमने रितू दीदी व अभय चाचा को स्ट्रेचर पर लिटा कर हास्पिटल के अंदर ले गए। कुछ ही देर में उन दोनो को ओटी के अंदर ले जाया गया। उन्हें अंदर ले जाते ही ओटी का दरवाज़ा बंद हो गया और हम सब बाहर ही चिंता व परेशानी की हालत में खड़े रह गए।

हम सब बेहद दुखी थे और भगवान से उन दोनो को सलामत रखने की मिन्नतें कर रहे थे। करुणा चाची के ऑसू बंद ही नहीं हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने पहले ही फोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता दिया था ताकि यहाॅ पर किसी प्रकार की परेशानी न हो सके और जल्द ही उनका इलाज़ शुरू हो जाए।

बड़ी माॅ हम सब से अलग एक तरफ गुमसुम सी खड़ी थीं। उनकी माॅग का सिंदूर मिटा हुआ था तथा हाॅथ की चूड़ियाॅ भी कुछ टूटी हुई थीं। मतलब साफ था कि पति की मौत के बाद उन्होंने खुद को विधवा बना लिया था। इस वक्त उनके चेहरे पर संसार भर की वीरानी थी। ऑखों में सूनापन था।

अधर्म पर धर्म की तथा बुराई पर अच्छाई की जीत तो हो चुकी थी किन्तु इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने वाले दो ब्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे। मैं रितू दीदी के लिए सबसे ज्यादा दुखी था। मेरी ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुंदर छवि चमक उठती थी। उनके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे। रितू दीदी ने शुरू से लेकर अब तक मेरा कितना साथ दिया था ये बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर मैं ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस जीत का सारा श्रेय ही उनको जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी। यूॅ तो मैं जीवन भर उनका ऋणी ही बन चुका था किन्तु एक ये भी सच्चाई थी कि मैं उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। मैं बचपन से ही उन्हें बेहद पसंद करता था और उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने की चाहत रखता था। अब तक तो नहीं पर अब लग रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नहीं पाऊॅगा।

आदित्य मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं खुद को सम्हालूॅ और सबको भी सम्हालूॅ। वो खुद भी बेहद दुखी था। उसने हम सबको अपना ही मान लिया था। उसने मुझे समझाया कि मैं खुद को मजबूत करूॅ वरना सब इस सबसे दुखी होते रहेंगे। आदित्य की बात सुन कर मैने खुद को सम्हाला और फिर सबको वहीं एक तरफ लम्बी सी बेंच में बैठ जाने के लिए कहा। मेरे ज़ोर देने पर आख़िर सब लोग बैठ ही गए। मेरी नज़र दूर एक तरफ खड़ी बड़ी माॅ पर पड़ी तो मैं उनके पास चला गया।

बड़ी माॅ कहीं खोई हुई सी खड़ी एकटक शून्य को घूरे जा रही थीं। मैं उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तंद्रा टूटी। उन्होंने मेरी तरफ अजीब भाव से देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से शून्य में देखने लगीं। मैने बड़ी माॅ से भी बैठ जाने के लिए कहा तो वो मेरे साथ ही दूसरी साइड की बेंच की तरफ आईं और बैठ गईं। उनके पास ही मैं भी बैठ गया। हलाॅकि मेरे उनके पास बैठ जाने से सामने ही बेंच पर बैठे सब लोग मुझे घूर कर देखने लगे थे मगर मैने उनके घूरने की कोई परवाह नहीं की।

मेरे मन में बड़ी माॅ की उस वक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे फोन किया था। इतना तो मुझे पता था कि हर इंसान को एक दिन अपने गुनाहों का एहसास होता है। वक्त और हालात इंसान को ऐसी जगह ला कर खड़ा कर देते हैं जब उसे शिद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने लगता है। वही हाल बड़ी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कि उन्होंने अपने पति से ऑख बंद करके तथा बिना कुछ सोचे समझे बेपनाह प्रेम किया था। जिसका सबूत ये था कि उन्होंने अजय सिंह के हर गुनाह में उसका खुशी खुशी साथ दिया था। उन्होंने कभी भी अपने पति से ये नहीं कहा कि वो ग़लत कर रहा है और वो ग़लत में उसका साथ नहीं देंगी। इंसान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ज़मीर ख़ामोश होकर बैठ जाता है। या फिर इंसान ज़बरदस्ती अपने ज़मीर का करुण क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है। फिर चाहे वो जिस रूप में हो। ख़ैर, मेरे मन में बड़ी माॅ से फोन पर हुई वो सब बातें चल रही थीं।

बड़ी माॅ से फोन पर पहले तो मैने कठोरतापूर्ण ही बातें की थी किन्तु जब उन्होंने अभय चाचा की असलियत और अपने पति से उनके द्वारा फोन पर हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हॅसा था, क्योंकि मुझे लगा कि बड़ी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं जिसमें वो अभय चाचा के खिलाफ ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रति शंका या दरार जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि भला उन्हें ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? दूसरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी कीं जिन बातों की मैं उनसे उम्मींद ही नहीं कर सकता था।

काफी समय तक हम सब ऐसे ही बैठे रहे थे। हम सबकी साॅसें हमारे हलक में अटकी हुई थी। ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी ख़याल आ जाते जिनके तहत हमारे जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आख़िर लम्बे इन्तज़ार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बुझा और फिर दरवाजा खुला। दरवाज़ा खुलते ही हम सब एक साथ ही खड़े होकर डाक्टर के पास तेज़ी से पहुॅचे।

"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाव से पूछा___"मेरा बेटा और बेटी कैसी है अब? वो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी बताइये डाक्टर साहब। वो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को देख कर डाक्टर तुरंत कुछ न बोला। ये देख कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर चढ़ दौड़े। करुणा चाची बुरी तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते देख दिव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यथित देख डाक्टर के चेहरे के भाव बदले।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बुलेट निकाल दी है। फिलहाल वो खतरे से बाहर हैं किन्तु खून ज्यादा बह जाने से उनकी हालत अभी बेहतर नहीं है। ख़ैर अभी तो वो दोनो बेहोश हैं। इस लिए आप लोग उनसे बात नहीं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सुन कर हम सबके निस्तेज पड़ चुके चेहरों पर जैसे नई ताज़गी सी आ गई। हम सब एक दूसरे की तरफ देख देख कर एक दूसरे से कहने लगे कि सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद किया। गौरी माॅ को अचानक ही जाने क्या हुआ कि वो पलटी और गैलरी में एक तरफ को लगभग दौड़ते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते देख चौंके तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरफ तेज़ी से बढ़ चले।

कुछ ही देर में हम सब जिस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस जगह का दृष्य देख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल वो गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर था। जिसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े बैठी गौरी माॅ नज़र आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गणेश जी के सामने अपने अपने हाॅथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़े हो कर हम सबने उनकी स्तुति की और उनकी इस कृपा के लिए हम सबने उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद दिया।

जैसा कि डाक्टर ने बताया था कि अभी रितू दीदी व अभय चाचा बेहोश हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे। ख़ैर दिन ढल चुका था। मुझे पता था कि इस सबके चक्कर में किसी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। अतः मैंने आदित्य व पवन को साथ लिया और पास के ही एक होटेल से सबके लिए खाने पीने का प्रबंध किया। मेरे और आदित्य के ज़ोर देने पर आख़िर सबको थोड़ा बहुत खाना ही पड़ा। हलाॅकि इसके लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि आज हमारे परिवार के एक बड़े सदस्य की मौत हो चुकी थी तथा दूसरा अपने पिता के कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार हो चुका था। निश्चय ही उसे या तो फाॅसी की सज़ा होगी या फिर ऊम्र कैद।

वो दोनो बुरे ही सही किन्तु उनसे खून का रिश्ता तो था ही। फार्महाउस पर कदाचित अभी भी अजय सिंह का मृत शरीर पड़ा होगा। हम सब तो रितू दीदी व अभय चाचू को लेकर हास्पिटल आ गए थे। उसके बाद वहाॅ पर अजय सिंह की लाश यूॅ ही लावारिश ही पड़ी रह गई होगी। या फिर ऐसा हुआ होगा कि कमिश्नर ने इस पर कोई कानूनी प्रक्रिया की होगी। जिसके तहत वो अजय सिंह की लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्डम के लिए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक मिली नहीं थी, बल्कि ये महज हम सबका ख़याल ही था।
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उस वक्त रात के दस बज रहे थे जब हास्पिटल की एक नर्स ने आ कर हमें बताया कि रितू दीदी व अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब नर्स की ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और फिर फौरन ही हम सब उस कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर रितू दीदी व अभय चाचू को शिफ्ट किया गया था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत देखा तो जान में जान आई। करुणा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये देख कर माॅ ने उन्हें समझाया कि अब उसे रोना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर दिया है।

मैं रितू दीदी के पास ही बैठ गया था और एकटक उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। वो खुद भी मुझे देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के लिए काॅपे जा रहे थे। ये देख कर मैने उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और फिर झुक कर उनके माथे पर चूम लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बंद हो गईं। ऐसे जैसे कि मेरे ऐसा करने से उन्हें कितना सुकून मिला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा दीदी, निधी व दिव्या पास ही चारो तरफ से घेरे खड़ी थीं।

यहाॅ पर मुझे एक चीज़ बहुत अजीब लग रही थी और वो था बड़ी माॅ का बिहैवियर। वो हम सबसे अलग दूर खड़ी थीं। दूर से ही वो अपनी बेटी रितू को देख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे। उनसे कोई बात नहीं कर रहा था और ना ही वो किसी से बात करने की कोई कोशिश कर रही थीं। उन्होंने तो जैसे खुद को हम सबसे अलग समझ लिया था।

उस रात हम सब हास्पिटल में ही रहे। दूसरे दिन डाक्टर से मिले तो डाक्टर ने कुछ दिन बेड रेस्ट के लिए यहीं रहने का कहा। इस बीच कमिश्नर साहब भी हमसे मिलने आए और सबका हाल अहवाल लिया। रितू दीदी से वो बड़े प्यार से मिले तथा उन्हें ये भी कहा कि उन्हें उन पर नाज़ है। कमिश्नर साहब ने बताया कि अजय सिंह की डेड बाॅडी पोस्टमार्डम के बाद आज दोपहर तक मिल जाएगी। ताकि हम उनका अंतिम संस्कार कर सकें।

अभय चाचा के बार बार ज़ोर देने पर माॅ इस बात पर राज़ी हुई कि वो बाॅकी सबको लेकर गाॅव जाएॅ। अभय चाचा ने बड़ी माॅ से भी आग्रह किया कि वो सबके साथ गाॅव जाएॅ। मैने नैना बुआ आदि को पवन के साथ ही हवेली जाने का कह दिया। जबकि मैं और आदित्य रितू दीदी व अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे।

आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद सब जाने के लिए राज़ी हुए। हास्पिटल से बाहर आकर मैने सबको गाड़ियों में बैठा दिया। मैने केशव जी को फोन करके बुला लिया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो वो हैरान हुए उसके बाद खुश भी हुए। मैने उनके कुछ आदमियों को माॅ लोगों के साथ हल्दीपुर जाने के लिए उनसे कहा। केशव जी मेरी बात तुरंत मान गए और फिर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदमियों बुला लिया।

करुणा चाची जाने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया और कहा कि वो किसी बात की फिक्र न करें। ख़ैर उन सबके जाने के बाद मैने कमिश्नर साहब से शिवा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शिवा से बात की थी कि वो चाहे तो कानून से छूट सकता है। किन्तु शिवा अपनी बात पर अडिग है। उसका कहना है कि वो इस जीवन से मुक्ति चाहता है। उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो वापस सबके बीच रह सके। सारी ज़िंदगी वो सबके सामने शर्म से गड़ा रहेगा और चैन से जी नहीं पाएगा। शिवा के न मानने पर ही कमिश्नर साहब ने केस फाइल किया। अपने बाप की चिता को आग देने के लिए उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पुलिस उसे वापस जेल में बंद कर देगी। अदालत का फैसला क्या होगा इसका पता चलते ही उस पर कानूनी कार्यवाही होगी।

कमिश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आदित्य वापस रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कि मैं इस सबके बारे में अपनी बड़ी बुआ यानी सौम्या बुआ को भी बता दूॅ और यहाॅ बुला लूॅ। फोन पर सारी बातें बताना उचित नहीं था। चाचा की बात सुन कर मैने बुआ को फोन लगाया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से बुआ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्द से जल्द हल्दीपुर आने को कहा। मेरे इस तरह बुलाने पर वो चिंतित होकर पूछने लगीं कि बात क्या है? उनके पूछने पर मैने बस यही कहा कि आप बस आ जाइये।

शाम होते होते कमिश्नर साहब की मौजूदगी में शिवा ने अपने बाप अजय सिंह की चिता को अग्नि दे दी। हल्दीपुर ही नहीं बल्कि आस पास के गाॅव में भी ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल का बड़ा बेटा अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा। शमशान पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। आदित्य को रितू दीदी व अभय चाचू के पास छोड़ कर मैं भी गाॅव आ गया था।

सौम्या बुआ आ चुकी थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का पता चला तो वो दहाड़ें मार मार कर रोने लगी थी। किन्तु बड़ी माॅ ने उन्हें सम्हाल लिया था और कठोर भाव से ये भी कहा कि ऐसे इंसान के मरने का शोक मत करो जिसने अपने जीवन में किसी के साथ कोई अच्छा काम ही न किया हो। बड़ी माॅ की ऐसी बातें सुन कर सौम्या बुआ हतप्रभ रह गई थीं। उन्हें थोड़ी बहुत पता तो था किन्तु सारी असलियत से वो अंजान थीं।

सारी क्रिया संपन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हवेली में हर तरफ एक भयावह सा सन्नाटा फैला हुआ था। हवेली के नौकर चाकर सब संजीदा थे। सौम्या बुआ के साथ उनके पति भी आए थे। मैने उनसे सब का ख़याल रखने का कहा और जीप लेकर वापस गुनगुन आ गया। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। मैं और आदित्य डाक्टर की परमीशन से रितू दीदी व अभय चाचा को हास्पिटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी नाज़ुक ही थी। इस लिए उनकी देख रेख के लिए सब मौजूद थे।

तेरवीं के दिन ब्राम्हणों को भोज कराया गया। सभी नात रिश्तेदार आए हुए थे। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात थी कि ठाकुर खानदान में ये अचानक क्या हो गया है? हलाॅकि इतना तो सब समझते थे कि ठाकुर खानदान में कुछ सालों से ग्रहण सा लगा हुआ था। दबी ज़मान में तो लोग ये भी कहते थे कि अजय सिंह ने घर की खुशियों में खुद आग लगाई थी। ख़ैर, एक दिन कमिश्नर साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि अदालत ने शिवा को ऊम्र कैद की सज़ा सुनाई है। ये जान कर हम सबको बहुत अजीब लगा था। शिवा ने अपनी मर्ज़ी से अपने इस अंजाम का चुनाव किया था, जबकि वो चाहता तो बड़े आराम से वो कत्ल के इल्ज़ाम से बरी हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उस पर कत्ल जैसा कोई इल्ज़ान लगता ही नहीं। मेरे ज़हन में उससे अंतिम मुलाक़ात की वो सब बातें घूम रहीं थी। मैं समझ सकता था कि वह एकदम से जुनूनी हो चुका था। उसकी सोच ऐसी हो चुकी थी कि उसे कोई समझा नहीं सकता था।

अजय सिंह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब कुछ बता दिया था। वो ये जान कर आश्चर्यचकित थे कि अभय चाचा ने इतना बड़ा धोखा किया था हमारे साथ। तेरवीं के दिन जगदीश ओबराय हमारे गाॅव आए थे। एक दो दिन रुक कर वो वापस मुम्बई चले गए थे। साथ ही हम सबको समझाया बुझाया भी था कि अब हम सब एक नये सिरे से जीवन पथ पर आगे बढ़ें। जाते समय वो थोड़ा मायूस लगे मुझे तो मैने और माॅ ने उनसे पूॅछ ही लिया कि क्या बात है? हमारे पूछने पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो अकेले मुम्बई में रह नहीं पाएॅगे। उनकी बातों को हम बखूबी समझते थे। इस लिए उन्हें तसल्ली दी कि वो फिक्र न करें। माॅ ने कहा कि राज और गुड़िया की तो पढ़ाई ही चल रही है अभी। इस लिए वो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे।

जैसा कि आप सबको पता है कि हवेली में तीनों भाइयों का बराबर हिस्सा था तथा हवेली बनाई भी इस तरह गई थी कि सबको बराबर बराबर मिल सके। अतः हवेली में आते ही हम सब अपने अपने हिस्सों में रहने लगे थे। किन्तु इसमें नई बात ये थी कि हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में बनने लगा था। रितू दीदी व अभय चाचा की सेहत में काफी सुधार हो गया था। रितू दीदी हमारे हिस्से पर ही एक कमरे में रह रही थीं। बड़ी माॅ(प्रतिमा) अपने हिस्से पर अकेली रहती थी। वो किसी से कोई बात नहीं करती थी और ना ही किसी के सामने आती थी। सारा दिन और रात वो अपने कमरे में ही रहती। रितू दीदी व नीलम उनसे कोई बात नहीं करती थीं। हलाॅकि ऐसा नहीं होना चाहिए था मगर कदाचित दिलो दिमाग़ से वो सब बातें अभी निकली नहीं थी। इस लिए उनसे कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझता था। हलाॅकि मैं आदित्य व पवन उनसे बात करते थे और उनके लिए दोनो टाइम का खाना व चाय नास्ता मैं ही लेकर उनके पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कि वो खा नहीं लेती थी।

ऐसे ही समय गुज़र रहा था। धीरे धीरे सब नार्मल हो रहे थे। किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसने मुझे दुखी किया हुआ था और वो था गुड़िया(निधी) का मेरे प्रति बर्ताव। इतना कुछ होने के बाद और इतने दिन गुज़र जाने के बाद मैने ये देखा था कि उसने मुझसे कोई बात नहीं की थी और ना ही मेरे सामने आने की कोई ख़ता की थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने दिल की इस धड़कन को कैसे मनाऊॅ? मेरे मन में कई बार ये विचार आया कि मैं उसके पास जाऊॅ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ कि ऐसा क्या हो गया है कि उसने मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि मेरे सामने आना भी बंद कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा कर नहीं पा रहा था क्योंकि गुड़िया के पास हर समय आशा दीदी बनी रहती थी। अपनी इस बेबसी को मैं किसी के सामने ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
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ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।

मेरा ज्यादातर समय या तो रितू दीदी के पास रहने से या फिर आदित्य के साथ ही गुज़र रहा था। एक दिन अभय चाचा ने कहा कि जब तक उनका स्वास्थ सही नहीं हो जाता मैं खेतों की तरफ का हाल चाल देख लिया करूॅ। चाचा की इस बात से मैं और आदित्य खेतों पर गए और वहाॅ पर सब मजदूरों से मिला। खेतों पर काम कर रहे सभी मजदूर मुझे वहाॅ पर इस तरह देख कर बेहद खुश हो गए थे। सबकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे। सब एक ही बात कह रहे थे कि हम अपने जिन मालिक को(मेरे पिता जी) देवता की तरह मानते थे उनके जाने के बाद हम सब बेहद दुखी थे। अजय सिंह ने तो हमेशा हम पर ज़ुल्म ही किया था। किन्तु अब वो फिर से खुश हो गए थे। अपने असल मालिक की औलाद को देख कर वो खुश थे और चाहते थे कि अब वैसा कोई बुरा समय न आए।

एक दिन सुबह जब मैं बड़ी माॅ के लिए चाय नास्ता देने उनके कमरे में गया तो कमरे में बड़ी माॅ कहीं भी नज़र न आईं। उनकी तरफ का सारा हिस्सा छान मारा मैने मगर बड़ी माॅ का कहीं पर भी कोई नामो निशान न मिला। इस बात से मैं भचक्का रह गया। मुझे अच्छी तरह याद था कि जब मैं रात में उनके पास उन्हें खाना खिलाने आया था तब वो अपने कमरे में ही थीं। मैने अपने हाॅथ से उन्हें खाना खिलाया था। हर रोज़ की तरह ही मेरे द्वारा खाना खिलाते समय उनकी ऑखें छलक पड़तीं थी। मैं उन्हें समझाता और कहता कि जो कुछ हुआ उसे भूल जाइये। मेरे दिल में उनके लिए कोई भी बुरा विचार नहीं है।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।

चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।

दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।

"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।

लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।

मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।
ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।

"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"

"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।

कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।

हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।

रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।

अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।
रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।

एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?

सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।

एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।

हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।

डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।

बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।

~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~


दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। हालांकि कहानी इसके आगे भी है किन्तु वो दूसरे भाग में तथा दूसरे शीर्षक में लिखी जाएगी....धन्यवाद!!
 

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