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फ्लैशबैक अब आगे_______
विजय सिंह खाना पीना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके दिलो दिमाग़ से आज की घटना हट ही नहीं रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी माॅ समान भाभी उसके साथ इतनी गिरी हुई तथा नीचतापूर्ण हरकत कर सकती है। उसकी ऑखों के सामने वो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रतिमा ने उसके लंड को अपने मुह में लिया हुआ था। विजय सिंह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के चकराते ही बहुत अजीब सा महसूस करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी के प्रति तीब्र घृणा और नफ़रत भरती जा रही थी।
उधर अजय सिंह और प्रतिमा को ये डर भी सता रहा था कि विजय सिंह आज की इस घटना का ज़िक्र कहीं किसी से कर न बैठे। हलाॅकि उसकी फितरत के हिसाब से उन दोनो को यही लग रहा था कि वो इस बारे में किसी से कुछ कहेगा नहीं। पर कहते हैं न कि अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका दिमाग़ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता। वही हाल प्रतिमा व अजय सिंह का था। दोनो ने फैसला कर लिया था कि कल ही अपने बच्चों को लेकर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पुरानी हो जाएगी तो फिर उस हिसाब से देखा जाएगा।
रात को सारे कामों से फुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे क्योंकि अब बड़े हो गए थे इस लिए वो सब अब अलग कमरों में सोते थे। निधि हमेशा की तरह अपने भइया विराज के साथ ही सोती थी।
गौरी जब कमरे में पहुॅची तो विजय सिंह को बेड पर पड़े हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ पाया। वो खद भी पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि विजय सिंह काफी उदास व परेशान सा रहने लगा है। उसके द्वारा पूछने पर भी उसने कुछ न बताया था।
"पिछले कुछ दिनो की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान नज़र आ रहे हैं आप।" गौरी ने बेड के किनारे पर बैठते हुए किन्तु विजय के चेहरे पर देखते हुए कहा___"मैं जब भी आपसे इस परेशानी की वजह पूछती हूॅ तो आप टाल जाते हैं विजय जी। क्या आप पर मेरा इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"
"ऐसा क्यों कहती हो गौरी?" विजय ने चौंक कर कहा था___"तुम्हारा तो मुझ पर सारा हक़ है। मेरे दिल में और मेरे मन में भी। लेकिन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तुम्हारे पूछने पर हर बार मैं टाल देता हूॅ, यकीन मानो मुझे तुम्हारी बातों का जवाब न दे पाने पर बेहद दुख होता है। पर मैं क्या करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी वो सब तुम्हें बता नहीं सकता।"
"अगर आप बताना नहीं चाहते हैं विजय जी तो कोई बात नहीं।" गौरी ने गंभीरता से कहा___"मैं तो बस इस लिए जानना चाहती थी कि मैं आपको इस तरह उदास और परेशान नहीं देख सकती। हर वक्त सोचती रहती हूॅ कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके चेहरे का वो नूर खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"
"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" विजय ने गहरी साॅस ली___"ये तो बदलता ही रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इंसान से जुड़ी हर चीज़ भी बदलने लगती है।"
"आपने कहा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कि ऐसी भला कौन सी बातें हैं जिनके बाहर आ जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धर्म पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक किसी का कोई राज़ राज़ नहीं रहा फिर क्या बात है कि आज कोई बात मेरे सामने राज़ ही रख रहे हैं?"
"मैं जानता हूॅ गौरी कि जब तक तुम उस बात को जान नहीं लोगी तब तक तुम्हारे मन को शान्ति नहीं मिलेगी।" विजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"इस लिए मैं तुम्हें वो सब बता ही देता हूॅ लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।"
"वचन??" गौरी के माॅथे पर बल पड़ा___"कैसा वचन चाहते हैं आप मुझसे?"
"यही कि जो कुछ मैं तुम्हें बताने वाला हूॅ उस बात को कभी किसी से कहोगी नहीं।" विजय सिंह ने कहा___"वो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही वचन चाहिए तुमसे।"
"ठीक है विजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको वचन देती हूॅ कि आपके द्वारा कही गई किसी भी बात का ज़िक्र मैं कभी किसी से नहीं करूॅगी।"
गौरी के वचन देने पर विजय सिंह कुछ पल तक उसे देखता रहा फिर एक लम्बी व गहरी साॅस लेकर उसने वो सब कुछ गौरी को बताना शुरू कर दिया। उसने गौरी से कुछ भी नहीं छुपाया। शुरू से लेकर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी को विस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सुन कर गौरी की हालत किसी निर्जीव पुतले की मानिन्द हो गई। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे इन सारी बातों पर ज़रा सा भी यकीन न हो रहा हो।
"आज की इस घटना ने तो मुझे अंदर से बुरी तरह हिला कर रख दिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा___"समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूॅ मैं? मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घटिया हरकत भी कर सकती थी।"
"ये सब मेरी वजह से हुआ है विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं बीमार ना होती तो कभी भी वो औरत खेतों में आपको खाने का टिफिन देने न जा पाती। आज तो मैं खुद ही आपको खाना लेकर आने वाली थी लेकिन उसने ही मुझे जाने नहीं दिया। कहने लगी कि अभी मुझे और आराम करना चाहिये। भला मैं क्या जानती थी कि उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही थी?"
"इसका चरित्र तो निहायत ही घटिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा__"ये बहुत शातिर औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में फॅसाया रहा होगा। मेरे भइया तो ऐसे नहीं हैं। वो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"
"आपके बड़े भाई का चरित्र भी कुछ ठीक नहीं है विजय जी।" गौरी ने कहा___"हो सकता है कि आपको मेरी इस बात से बुरा लगे मगर सच्चाई तो यही है कि आपके बड़े भाई साहब खुद भी आपकी भाभी की तरह ही चरित्रहीन हैं।"
"ये क्या कह रही हो तुम गौरी?" विजय सिंह ने हैरतअंगेज लहजे में कहा___"बड़े भइया के बारे में तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नहीं बताया था कि आपको बुरा लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चरित्र का वर्णन किया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चरित्र के बारे में बताने का सोच लिया।"
"आख़िर ऐसा क्या किया है बड़े भइया ने तुम्हारे साथ?" विजय सिंह का लहजा एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मुझे सबकुछ साफ साफ बताओ गौरी।"
गौरी ने विजय सिंह को शुरू से लेकर अब तक की बात बता दी। सुन कर विजय सिंह ठगा सा बैठा रह गया बेड पर। ऑखों में आश्चर्य के साथ साथ दुख के भाव भी नुमायां हो गए थे।
"पहले मुझे लगा करता था कि ये सब शायद मेरा वहम है।" गौरी धीर गंभीर भाव से कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि ये वहम नहीं बल्कि सच्चाई है। जेठ जी की नीयत में ही खोट है। वो अपने छोटे भाई की बीवी पर ग़लत नीयत से हाॅथ डालना चाहते हैं।"
"ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया गौरी?" विजय सिंह ने कहा___"भगवान जानता है कि मैंने कभी भूल से भी अपने बड़े भाई व भाभी का कभी बुरा नहीं सोचा। बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान किया है। मगर मुझे क्या पता है कि ये दोनो राम व सीता जैसे कभी थे ही नहीं। मैं कल ही बाबू जी से इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नहीं है जिसे चुपचाप सहन करते रहें। हमारे आदर सम्मान देने को वो लोग हमारी कमज़ोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाहिए कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू कैसी सोच रखते हैं?"
"नहीं विजय जी।" गौरी बुरी तरह घबरा गई थी, बोली___"भगवान के लिए शान्त हो जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से बिलकुल भी नहीं बताएॅगे। बड़ी मुश्किल से तो उन्हें ऐसा दिन देखने को मिला है जब उनके बड़े बेटे और बहू खुशी खुशी हम सबसे मिल जुल रहे हैं। इस लिए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करेंगे।"
"क्यों न बताऊॅ गौरी?" विजय सिंह ने आवेश में कहा___"ये ऐसी बात नहीं है जो अगले दिन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कि ये आगे चलती ही रहेगी। जब किसी का मन इन बुरी चीज़ों से भर जाता है तो वो ब्यक्ति किसी के लिए फिर अच्छा नहीं सोच सकता। अभी तो ये शुरूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे हालात होंगे?"
"सब ठीक हो जाएगा विजय जी।" गौरी ने समझाने वाले भाव से कहा___"आप बस उनसे दूर रहियेगा। माॅ बाबूजी से आप इस सबका ज़िक्र नहीं करेंगे।"
"ज़िक्र तो होगा गौरी।" विजय सिंह ने निर्णायक भाव से कहा___"अब तो रात काफी हो गई है वरना अभी इस बात का ज़िक्र होता। मगर सुबह सबसे पहले इसी बात का ज़िक्र होगा।"
"आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है विजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे।"
"मेरे बेटे की कसम देकर तुमने ये ठीक नहीं किया गौरी।" विजय सिंह असहाय भाव से कहा था।
"मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी तो सोचना चाहिए था न। सोचना चाहिये था कि इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्या गुज़रेगी जब उन्हें ये पता चलेगा कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू क्या करतूत कर रहे हैं?"
विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि बेड पर एक तरफ करवॅट लेकर लेट गया। गौरी को समझते देर न लगी कि विजय सिंह उससे नाराज़ हो गया है। आज जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि विजय सिंह गौरी से नाराज़ हो गया था।
कुछ देर गौरी उसे एकटक देखती रही फिर वह भी उसके बगल में लेट गई। ऑखों में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कि मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।
सुबह जब गौरी की नीद खुली तो बगल में विजय सिंह को न पाया उसने। वह समझ गई कि हर दिन की तरह विजय सिंह खेतों पर चले गए हैं। मगर तुरंत ही उसे रात की बायों का ख़याल आया। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसे आशंका हुई कि विजय सिंह कहीं अपनी कसम तोड़ कर माॅ बाबू जी से वो सब बताने तो नहीं चले गए? ये सोच कर गौरी झट से बेड से उठी। अपनी सारी को दुरुस्त करके वह बिना हाॅथ मुॅह धोए ही कमरे से बाहर निकल गई।
नीचे आकर देखा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कहीं पर भी कुछ महसूस न हुआ कि जैसे कुछ बात हुई हो। ये देख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खुशी के भाव भी जागृत हो गए, ये सोच कर कि विजय जी ने बेटे की कसम नहीं तोड़ी।
हवेली के मुख्य द्वार की तरफ जाकर उसने बाहर लान में देखा तो चौंक पड़ी। बाहर अजय सिंह प्रतिमा व उसके बच्चे सब कार में बैठ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते देर न लगी कि वो लोग इतना जल्दी क्यों यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कि जब भी उसके जेठ व जेठानी शहर जाते थे तब वह उनके पाॅव छूकर आशीर्वाद लेती थी। मगर आज उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि दरवाजे से तुरंत ही पलट गई वह, ताकि किसी की नज़र न पड़े उस पर। जेठ जेठानी के लिए उसके मन में नफरत व घृणा सी भर गई थी अचानक। वह पलटी और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,
विजय सिंह खाना पीना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके दिलो दिमाग़ से आज की घटना हट ही नहीं रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी माॅ समान भाभी उसके साथ इतनी गिरी हुई तथा नीचतापूर्ण हरकत कर सकती है। उसकी ऑखों के सामने वो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रतिमा ने उसके लंड को अपने मुह में लिया हुआ था। विजय सिंह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के चकराते ही बहुत अजीब सा महसूस करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी के प्रति तीब्र घृणा और नफ़रत भरती जा रही थी।
उधर अजय सिंह और प्रतिमा को ये डर भी सता रहा था कि विजय सिंह आज की इस घटना का ज़िक्र कहीं किसी से कर न बैठे। हलाॅकि उसकी फितरत के हिसाब से उन दोनो को यही लग रहा था कि वो इस बारे में किसी से कुछ कहेगा नहीं। पर कहते हैं न कि अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका दिमाग़ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता। वही हाल प्रतिमा व अजय सिंह का था। दोनो ने फैसला कर लिया था कि कल ही अपने बच्चों को लेकर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पुरानी हो जाएगी तो फिर उस हिसाब से देखा जाएगा।
रात को सारे कामों से फुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे क्योंकि अब बड़े हो गए थे इस लिए वो सब अब अलग कमरों में सोते थे। निधि हमेशा की तरह अपने भइया विराज के साथ ही सोती थी।
गौरी जब कमरे में पहुॅची तो विजय सिंह को बेड पर पड़े हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ पाया। वो खद भी पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि विजय सिंह काफी उदास व परेशान सा रहने लगा है। उसके द्वारा पूछने पर भी उसने कुछ न बताया था।
"पिछले कुछ दिनो की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान नज़र आ रहे हैं आप।" गौरी ने बेड के किनारे पर बैठते हुए किन्तु विजय के चेहरे पर देखते हुए कहा___"मैं जब भी आपसे इस परेशानी की वजह पूछती हूॅ तो आप टाल जाते हैं विजय जी। क्या आप पर मेरा इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"
"ऐसा क्यों कहती हो गौरी?" विजय ने चौंक कर कहा था___"तुम्हारा तो मुझ पर सारा हक़ है। मेरे दिल में और मेरे मन में भी। लेकिन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तुम्हारे पूछने पर हर बार मैं टाल देता हूॅ, यकीन मानो मुझे तुम्हारी बातों का जवाब न दे पाने पर बेहद दुख होता है। पर मैं क्या करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी वो सब तुम्हें बता नहीं सकता।"
"अगर आप बताना नहीं चाहते हैं विजय जी तो कोई बात नहीं।" गौरी ने गंभीरता से कहा___"मैं तो बस इस लिए जानना चाहती थी कि मैं आपको इस तरह उदास और परेशान नहीं देख सकती। हर वक्त सोचती रहती हूॅ कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके चेहरे का वो नूर खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"
"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" विजय ने गहरी साॅस ली___"ये तो बदलता ही रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इंसान से जुड़ी हर चीज़ भी बदलने लगती है।"
"आपने कहा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कि ऐसी भला कौन सी बातें हैं जिनके बाहर आ जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धर्म पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक किसी का कोई राज़ राज़ नहीं रहा फिर क्या बात है कि आज कोई बात मेरे सामने राज़ ही रख रहे हैं?"
"मैं जानता हूॅ गौरी कि जब तक तुम उस बात को जान नहीं लोगी तब तक तुम्हारे मन को शान्ति नहीं मिलेगी।" विजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"इस लिए मैं तुम्हें वो सब बता ही देता हूॅ लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।"
"वचन??" गौरी के माॅथे पर बल पड़ा___"कैसा वचन चाहते हैं आप मुझसे?"
"यही कि जो कुछ मैं तुम्हें बताने वाला हूॅ उस बात को कभी किसी से कहोगी नहीं।" विजय सिंह ने कहा___"वो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही वचन चाहिए तुमसे।"
"ठीक है विजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको वचन देती हूॅ कि आपके द्वारा कही गई किसी भी बात का ज़िक्र मैं कभी किसी से नहीं करूॅगी।"
गौरी के वचन देने पर विजय सिंह कुछ पल तक उसे देखता रहा फिर एक लम्बी व गहरी साॅस लेकर उसने वो सब कुछ गौरी को बताना शुरू कर दिया। उसने गौरी से कुछ भी नहीं छुपाया। शुरू से लेकर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी को विस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सुन कर गौरी की हालत किसी निर्जीव पुतले की मानिन्द हो गई। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे इन सारी बातों पर ज़रा सा भी यकीन न हो रहा हो।
"आज की इस घटना ने तो मुझे अंदर से बुरी तरह हिला कर रख दिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा___"समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूॅ मैं? मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घटिया हरकत भी कर सकती थी।"
"ये सब मेरी वजह से हुआ है विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं बीमार ना होती तो कभी भी वो औरत खेतों में आपको खाने का टिफिन देने न जा पाती। आज तो मैं खुद ही आपको खाना लेकर आने वाली थी लेकिन उसने ही मुझे जाने नहीं दिया। कहने लगी कि अभी मुझे और आराम करना चाहिये। भला मैं क्या जानती थी कि उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही थी?"
"इसका चरित्र तो निहायत ही घटिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा__"ये बहुत शातिर औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में फॅसाया रहा होगा। मेरे भइया तो ऐसे नहीं हैं। वो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"
"आपके बड़े भाई का चरित्र भी कुछ ठीक नहीं है विजय जी।" गौरी ने कहा___"हो सकता है कि आपको मेरी इस बात से बुरा लगे मगर सच्चाई तो यही है कि आपके बड़े भाई साहब खुद भी आपकी भाभी की तरह ही चरित्रहीन हैं।"
"ये क्या कह रही हो तुम गौरी?" विजय सिंह ने हैरतअंगेज लहजे में कहा___"बड़े भइया के बारे में तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नहीं बताया था कि आपको बुरा लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चरित्र का वर्णन किया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चरित्र के बारे में बताने का सोच लिया।"
"आख़िर ऐसा क्या किया है बड़े भइया ने तुम्हारे साथ?" विजय सिंह का लहजा एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मुझे सबकुछ साफ साफ बताओ गौरी।"
गौरी ने विजय सिंह को शुरू से लेकर अब तक की बात बता दी। सुन कर विजय सिंह ठगा सा बैठा रह गया बेड पर। ऑखों में आश्चर्य के साथ साथ दुख के भाव भी नुमायां हो गए थे।
"पहले मुझे लगा करता था कि ये सब शायद मेरा वहम है।" गौरी धीर गंभीर भाव से कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि ये वहम नहीं बल्कि सच्चाई है। जेठ जी की नीयत में ही खोट है। वो अपने छोटे भाई की बीवी पर ग़लत नीयत से हाॅथ डालना चाहते हैं।"
"ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया गौरी?" विजय सिंह ने कहा___"भगवान जानता है कि मैंने कभी भूल से भी अपने बड़े भाई व भाभी का कभी बुरा नहीं सोचा। बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान किया है। मगर मुझे क्या पता है कि ये दोनो राम व सीता जैसे कभी थे ही नहीं। मैं कल ही बाबू जी से इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नहीं है जिसे चुपचाप सहन करते रहें। हमारे आदर सम्मान देने को वो लोग हमारी कमज़ोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाहिए कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू कैसी सोच रखते हैं?"
"नहीं विजय जी।" गौरी बुरी तरह घबरा गई थी, बोली___"भगवान के लिए शान्त हो जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से बिलकुल भी नहीं बताएॅगे। बड़ी मुश्किल से तो उन्हें ऐसा दिन देखने को मिला है जब उनके बड़े बेटे और बहू खुशी खुशी हम सबसे मिल जुल रहे हैं। इस लिए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करेंगे।"
"क्यों न बताऊॅ गौरी?" विजय सिंह ने आवेश में कहा___"ये ऐसी बात नहीं है जो अगले दिन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कि ये आगे चलती ही रहेगी। जब किसी का मन इन बुरी चीज़ों से भर जाता है तो वो ब्यक्ति किसी के लिए फिर अच्छा नहीं सोच सकता। अभी तो ये शुरूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे हालात होंगे?"
"सब ठीक हो जाएगा विजय जी।" गौरी ने समझाने वाले भाव से कहा___"आप बस उनसे दूर रहियेगा। माॅ बाबूजी से आप इस सबका ज़िक्र नहीं करेंगे।"
"ज़िक्र तो होगा गौरी।" विजय सिंह ने निर्णायक भाव से कहा___"अब तो रात काफी हो गई है वरना अभी इस बात का ज़िक्र होता। मगर सुबह सबसे पहले इसी बात का ज़िक्र होगा।"
"आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है विजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे।"
"मेरे बेटे की कसम देकर तुमने ये ठीक नहीं किया गौरी।" विजय सिंह असहाय भाव से कहा था।
"मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी तो सोचना चाहिए था न। सोचना चाहिये था कि इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्या गुज़रेगी जब उन्हें ये पता चलेगा कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू क्या करतूत कर रहे हैं?"
विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि बेड पर एक तरफ करवॅट लेकर लेट गया। गौरी को समझते देर न लगी कि विजय सिंह उससे नाराज़ हो गया है। आज जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि विजय सिंह गौरी से नाराज़ हो गया था।
कुछ देर गौरी उसे एकटक देखती रही फिर वह भी उसके बगल में लेट गई। ऑखों में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कि मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।
सुबह जब गौरी की नीद खुली तो बगल में विजय सिंह को न पाया उसने। वह समझ गई कि हर दिन की तरह विजय सिंह खेतों पर चले गए हैं। मगर तुरंत ही उसे रात की बायों का ख़याल आया। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसे आशंका हुई कि विजय सिंह कहीं अपनी कसम तोड़ कर माॅ बाबू जी से वो सब बताने तो नहीं चले गए? ये सोच कर गौरी झट से बेड से उठी। अपनी सारी को दुरुस्त करके वह बिना हाॅथ मुॅह धोए ही कमरे से बाहर निकल गई।
नीचे आकर देखा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कहीं पर भी कुछ महसूस न हुआ कि जैसे कुछ बात हुई हो। ये देख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खुशी के भाव भी जागृत हो गए, ये सोच कर कि विजय जी ने बेटे की कसम नहीं तोड़ी।
हवेली के मुख्य द्वार की तरफ जाकर उसने बाहर लान में देखा तो चौंक पड़ी। बाहर अजय सिंह प्रतिमा व उसके बच्चे सब कार में बैठ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते देर न लगी कि वो लोग इतना जल्दी क्यों यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कि जब भी उसके जेठ व जेठानी शहर जाते थे तब वह उनके पाॅव छूकर आशीर्वाद लेती थी। मगर आज उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि दरवाजे से तुरंत ही पलट गई वह, ताकि किसी की नज़र न पड़े उस पर। जेठ जेठानी के लिए उसके मन में नफरत व घृणा सी भर गई थी अचानक। वह पलटी और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,