Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

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फ्लैशबैक अब आगे_______

विजय सिंह खाना पीना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके दिलो दिमाग़ से आज की घटना हट ही नहीं रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी माॅ समान भाभी उसके साथ इतनी गिरी हुई तथा नीचतापूर्ण हरकत कर सकती है। उसकी ऑखों के सामने वो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रतिमा ने उसके लंड को अपने मुह में लिया हुआ था। विजय सिंह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के चकराते ही बहुत अजीब सा महसूस करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी के प्रति तीब्र घृणा और नफ़रत भरती जा रही थी।

उधर अजय सिंह और प्रतिमा को ये डर भी सता रहा था कि विजय सिंह आज की इस घटना का ज़िक्र कहीं किसी से कर न बैठे। हलाॅकि उसकी फितरत के हिसाब से उन दोनो को यही लग रहा था कि वो इस बारे में किसी से कुछ कहेगा नहीं। पर कहते हैं न कि अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका दिमाग़ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता। वही हाल प्रतिमा व अजय सिंह का था। दोनो ने फैसला कर लिया था कि कल ही अपने बच्चों को लेकर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पुरानी हो जाएगी तो फिर उस हिसाब से देखा जाएगा।

रात को सारे कामों से फुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे क्योंकि अब बड़े हो गए थे इस लिए वो सब अब अलग कमरों में सोते थे। निधि हमेशा की तरह अपने भइया विराज के साथ ही सोती थी।

गौरी जब कमरे में पहुॅची तो विजय सिंह को बेड पर पड़े हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ पाया। वो खद भी पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि विजय सिंह काफी उदास व परेशान सा रहने लगा है। उसके द्वारा पूछने पर भी उसने कुछ न बताया था।

"पिछले कुछ दिनो की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान नज़र आ रहे हैं आप।" गौरी ने बेड के किनारे पर बैठते हुए किन्तु विजय के चेहरे पर देखते हुए कहा___"मैं जब भी आपसे इस परेशानी की वजह पूछती हूॅ तो आप टाल जाते हैं विजय जी। क्या आप पर मेरा इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"

"ऐसा क्यों कहती हो गौरी?" विजय ने चौंक कर कहा था___"तुम्हारा तो मुझ पर सारा हक़ है। मेरे दिल में और मेरे मन में भी। लेकिन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तुम्हारे पूछने पर हर बार मैं टाल देता हूॅ, यकीन मानो मुझे तुम्हारी बातों का जवाब न दे पाने पर बेहद दुख होता है। पर मैं क्या करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी वो सब तुम्हें बता नहीं सकता।"

"अगर आप बताना नहीं चाहते हैं विजय जी तो कोई बात नहीं।" गौरी ने गंभीरता से कहा___"मैं तो बस इस लिए जानना चाहती थी कि मैं आपको इस तरह उदास और परेशान नहीं देख सकती। हर वक्त सोचती रहती हूॅ कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके चेहरे का वो नूर खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"

"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" विजय ने गहरी साॅस ली___"ये तो बदलता ही रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इंसान से जुड़ी हर चीज़ भी बदलने लगती है।"

"आपने कहा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कि ऐसी भला कौन सी बातें हैं जिनके बाहर आ जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धर्म पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक किसी का कोई राज़ राज़ नहीं रहा फिर क्या बात है कि आज कोई बात मेरे सामने राज़ ही रख रहे हैं?"

"मैं जानता हूॅ गौरी कि जब तक तुम उस बात को जान नहीं लोगी तब तक तुम्हारे मन को शान्ति नहीं मिलेगी।" विजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"इस लिए मैं तुम्हें वो सब बता ही देता हूॅ लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।"

"वचन??" गौरी के माॅथे पर बल पड़ा___"कैसा वचन चाहते हैं आप मुझसे?"
"यही कि जो कुछ मैं तुम्हें बताने वाला हूॅ उस बात को कभी किसी से कहोगी नहीं।" विजय सिंह ने कहा___"वो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही वचन चाहिए तुमसे।"

"ठीक है विजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको वचन देती हूॅ कि आपके द्वारा कही गई किसी भी बात का ज़िक्र मैं कभी किसी से नहीं करूॅगी।"
गौरी के वचन देने पर विजय सिंह कुछ पल तक उसे देखता रहा फिर एक लम्बी व गहरी साॅस लेकर उसने वो सब कुछ गौरी को बताना शुरू कर दिया। उसने गौरी से कुछ भी नहीं छुपाया। शुरू से लेकर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी को विस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सुन कर गौरी की हालत किसी निर्जीव पुतले की मानिन्द हो गई। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे इन सारी बातों पर ज़रा सा भी यकीन न हो रहा हो।

"आज की इस घटना ने तो मुझे अंदर से बुरी तरह हिला कर रख दिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा___"समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूॅ मैं? मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घटिया हरकत भी कर सकती थी।"

"ये सब मेरी वजह से हुआ है विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं बीमार ना होती तो कभी भी वो औरत खेतों में आपको खाने का टिफिन देने न जा पाती। आज तो मैं खुद ही आपको खाना लेकर आने वाली थी लेकिन उसने ही मुझे जाने नहीं दिया। कहने लगी कि अभी मुझे और आराम करना चाहिये। भला मैं क्या जानती थी कि उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही थी?"

"इसका चरित्र तो निहायत ही घटिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा__"ये बहुत शातिर औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में फॅसाया रहा होगा। मेरे भइया तो ऐसे नहीं हैं। वो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"

"आपके बड़े भाई का चरित्र भी कुछ ठीक नहीं है विजय जी।" गौरी ने कहा___"हो सकता है कि आपको मेरी इस बात से बुरा लगे मगर सच्चाई तो यही है कि आपके बड़े भाई साहब खुद भी आपकी भाभी की तरह ही चरित्रहीन हैं।"

"ये क्या कह रही हो तुम गौरी?" विजय सिंह ने हैरतअंगेज लहजे में कहा___"बड़े भइया के बारे में तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नहीं बताया था कि आपको बुरा लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चरित्र का वर्णन किया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चरित्र के बारे में बताने का सोच लिया।"

"आख़िर ऐसा क्या किया है बड़े भइया ने तुम्हारे साथ?" विजय सिंह का लहजा एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मुझे सबकुछ साफ साफ बताओ गौरी।"

गौरी ने विजय सिंह को शुरू से लेकर अब तक की बात बता दी। सुन कर विजय सिंह ठगा सा बैठा रह गया बेड पर। ऑखों में आश्चर्य के साथ साथ दुख के भाव भी नुमायां हो गए थे।

"पहले मुझे लगा करता था कि ये सब शायद मेरा वहम है।" गौरी धीर गंभीर भाव से कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि ये वहम नहीं बल्कि सच्चाई है। जेठ जी की नीयत में ही खोट है। वो अपने छोटे भाई की बीवी पर ग़लत नीयत से हाॅथ डालना चाहते हैं।"

"ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया गौरी?" विजय सिंह ने कहा___"भगवान जानता है कि मैंने कभी भूल से भी अपने बड़े भाई व भाभी का कभी बुरा नहीं सोचा। बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान किया है। मगर मुझे क्या पता है कि ये दोनो राम व सीता जैसे कभी थे ही नहीं। मैं कल ही बाबू जी से इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नहीं है जिसे चुपचाप सहन करते रहें। हमारे आदर सम्मान देने को वो लोग हमारी कमज़ोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाहिए कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू कैसी सोच रखते हैं?"

"नहीं विजय जी।" गौरी बुरी तरह घबरा गई थी, बोली___"भगवान के लिए शान्त हो जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से बिलकुल भी नहीं बताएॅगे। बड़ी मुश्किल से तो उन्हें ऐसा दिन देखने को मिला है जब उनके बड़े बेटे और बहू खुशी खुशी हम सबसे मिल जुल रहे हैं। इस लिए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करेंगे।"

"क्यों न बताऊॅ गौरी?" विजय सिंह ने आवेश में कहा___"ये ऐसी बात नहीं है जो अगले दिन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कि ये आगे चलती ही रहेगी। जब किसी का मन इन बुरी चीज़ों से भर जाता है तो वो ब्यक्ति किसी के लिए फिर अच्छा नहीं सोच सकता। अभी तो ये शुरूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे हालात होंगे?"

"सब ठीक हो जाएगा विजय जी।" गौरी ने समझाने वाले भाव से कहा___"आप बस उनसे दूर रहियेगा। माॅ बाबूजी से आप इस सबका ज़िक्र नहीं करेंगे।"
"ज़िक्र तो होगा गौरी।" विजय सिंह ने निर्णायक भाव से कहा___"अब तो रात काफी हो गई है वरना अभी इस बात का ज़िक्र होता। मगर सुबह सबसे पहले इसी बात का ज़िक्र होगा।"

"आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है विजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे।"
"मेरे बेटे की कसम देकर तुमने ये ठीक नहीं किया गौरी।" विजय सिंह असहाय भाव से कहा था।

"मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी तो सोचना चाहिए था न। सोचना चाहिये था कि इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्या गुज़रेगी जब उन्हें ये पता चलेगा कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू क्या करतूत कर रहे हैं?"

विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि बेड पर एक तरफ करवॅट लेकर लेट गया। गौरी को समझते देर न लगी कि विजय सिंह उससे नाराज़ हो गया है। आज जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि विजय सिंह गौरी से नाराज़ हो गया था।

कुछ देर गौरी उसे एकटक देखती रही फिर वह भी उसके बगल में लेट गई। ऑखों में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कि मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।
सुबह जब गौरी की नीद खुली तो बगल में विजय सिंह को न पाया उसने। वह समझ गई कि हर दिन की तरह विजय सिंह खेतों पर चले गए हैं। मगर तुरंत ही उसे रात की बायों का ख़याल आया। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसे आशंका हुई कि विजय सिंह कहीं अपनी कसम तोड़ कर माॅ बाबू जी से वो सब बताने तो नहीं चले गए? ये सोच कर गौरी झट से बेड से उठी। अपनी सारी को दुरुस्त करके वह बिना हाॅथ मुॅह धोए ही कमरे से बाहर निकल गई।

नीचे आकर देखा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कहीं पर भी कुछ महसूस न हुआ कि जैसे कुछ बात हुई हो। ये देख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खुशी के भाव भी जागृत हो गए, ये सोच कर कि विजय जी ने बेटे की कसम नहीं तोड़ी।

हवेली के मुख्य द्वार की तरफ जाकर उसने बाहर लान में देखा तो चौंक पड़ी। बाहर अजय सिंह प्रतिमा व उसके बच्चे सब कार में बैठ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते देर न लगी कि वो लोग इतना जल्दी क्यों यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कि जब भी उसके जेठ व जेठानी शहर जाते थे तब वह उनके पाॅव छूकर आशीर्वाद लेती थी। मगर आज उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि दरवाजे से तुरंत ही पलट गई वह, ताकि किसी की नज़र न पड़े उस पर। जेठ जेठानी के लिए उसके मन में नफरत व घृणा सी भर गई थी अचानक। वह पलटी और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,
 
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अपडेट.........《 35 》



वर्तमान अब आगे________

रितू विधी से मिलने के बाद शाम को अपने घर हवेली पहुॅची। विधी की कहानी और उसकी बातों ने उसे सच में अंदर तक हिला दिया था। वह प्यार मोहब्बत जैसी चीज़ों को बकवास ही मानती थी। किन्तु विधी से मिलने के बाद उसे इस प्यार मोहब्बत की अहमियत समझ आई थी। उसे समझ आया कि कैसे लोग किसी के प्यार में इस क़दर पागल से हो जाते हैं कि अपने महबूब की खुशी के लिए वो कोई भी काम किस हद से बाहर तक कर सकते हैं। विधी से मिलकर और उसके प्यार की सच्चाई व गहराई को जानकर उसे एहसास हुआ कि आज के युग में भी अभी ऐसे लोग हैं जो प्यार के लिए क्या नहीं कर डालते?

विधी की हालत और उसके प्यार की दास्तां ने रितू के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था। एक तेज़ तर्रार लड़की जो खुद को किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं समझती थी आज विधी की असलियत ने उसके दिल को छू लिया था। उसके हृदय में विधी के प्रति पीड़ा जाग गई थी और जिस पीड़ा ने उसकी ऑखों से ऑसू छलका दिये थे।

वह आज तक नहीं समझ पाई और ना ही कभी समझने की कोशिश की कि क्यों वह अपने चाचा चाची के लड़के विराज से नफ़रत करती थी? क्यों उसने कभी उससे बात करना ज़रूरी नहीं समझा? क्यों उसने हमेशा विराज को अपना भाई नहीं समझा? आख़िर क्या अपराध किया था उसने उसके साथ? जहाॅ तक उसे याद था जब कभी भी विराज उससे बात किया था तो बड़ी इज्ज़त से किया था। हमेशा उसे दीदी और आप कह कर संबोधित करता था।

विधी से मिलने के बाद रितू हवेली में जाकर सीधा अपने कमरे में बेड पर लेट गई थी। उसकी माॅ ने तथा उसकी छोटी बुआ नैना ने उससे बात करना चाहा था मगर उसने सबको ये कह कर अपने पास से वापस लौटा दिया था कि वह कुछ देर अकेले रहना चाहती है।

बेड पर पड़ी हुई रितू ऊपर छत के कुंडे पर लगे हुए पंखे को घूर रही थी अपलक। उसकी ऑखों के सामने विधी का वो रोता बिलखता हुआ चेहरा और उसकी वो करुण बातें घूम रही थी।
"मेरी आपसे एक विनती है दीदी।" फिर विधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों से कहा।
"विनती क्यों करती है पागल?" रितू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्या कहना है तुझे?"

"मु मुझे एक बार।" विधी की रुलाई फूट गई, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा___"मुझे बस ए एक बार वि..विरा...ज से मिलवा दीजिए। मुझे मेरे महबूब से मिलवा दीजिए दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने किये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे बताना चाहती हूॅ कि मैं बेवफा नहीं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टूट टूट कर प्यार करती हूॅ। उसे बुलवा दीजिए दीदी। मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा अगर दम निकले तो उसकी ही बाहों में निकले। मेरे महबूब की बाॅहों में दीदी। आप बुलवाएॅगी न दीदी? मुझे एक बार देखना है उसे। अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती हूॅ मैं। अपने महबूब की सुंदर व मासूम सी तस्वीर।"

"बस कर रे।" रितू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं तेरी ऐसी करुण बातें सुन सकूॅ। मैं तुझसे वादा करती हूॅ कि तेरे महबूब को मैं तेरे पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगी विधि और उसे ढूॅढ़ कर तेरे सामने हाज़िर कर दूॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का इंतज़ार करना।"
ये सब बातें रितू की ऑखों के सामने मानो किसी चलचित्र की तरह बार बार चलने लगती थी। जितनी बार ये दृष्य उसकी ऑखों के सामने से गुज़रता उतनी बार रितू के अंदर एक हूक सी उठती और उसके समूचे अस्तित्व को हिला कर रख देती।

"क्या सचमुच प्यार ऐसा होता है विधी?" रितू ने सहसा करवॅट बदल कर मन ही मन में कहा___"क्या सचमुच प्यार में लोग अपने महबूब की खुशी के लिए इस हद से बाहर तक गुज़र जाते हैं? तुम्हें देख कर और तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है विधी। तुम सच में बहुत महान हो विधी। मेरे उस भाई से तुमने इस हद तक प्यार किया जिस भाई से मैं बात तक करना अपनी शान के खिलाफ़ समझती थी। और एक वो था कि हमेशा मुझे इज्ज़त देता था, मुझे दीदी कहते हुए उसका मुह नहीं थकता था। जब भी वो मुझसे बात करने की कोशिश करता तो हर बार मैं उसे दुत्कार देती थी। मुझे याद है विधी, जब मैं उसे दुत्कार कर भगा देती थी तब उसकी ऑखों में ऑसू होते थे। जिन्हें वह ऑखों से छलकते नहीं देता था बल्कि उन्हें ऑखों में ही जज़्ब कर लेता था। मैने तेरे विराज को बहुत दुख दिये हैं विधी। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"

एकाएक ही रितू की ऑखों से ऑसू छलक कर उसके कपोलों को भिगोने लगे। सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। वह तुरंत ही बेड से उठी और तेज़ी से बगल में दीवार से सटी हुई आलमारी के पास पहुॅची। उसने आलमारी का हैण्डल घुमाया लेकिन वो न घूमा। मतलब साफ था कि आलमारी लाॅक थी।

रितू दूसरी साइड रखे एक टेबल की तरफ बढ़ी और उसकी कबड को खोल कर उसमें से एक चाभी का गुच्छा निकाला। गुच्छा लेकर वह तुरंत आलमारी के पास वापस पहुॅची और गुच्छे से एक चाभी को चुन कर उसने आलमारी के की-होल पर डाल कर घुमाया। आलमारी एकदम से अनलाॅक हो गई। रितू ने हैण्डल पकड़ कर घुमाया और फिर आलमारी के दोनो फटकों को दोनो साइड खोल दिया।

आलमारी के अंदर कई सारे पार्ट्स थे जिनमें कुछ पर कपड़े व कुछ पर कुछ किताबें व फाइलें रखी हुई थी। किन्तु रितू की नज़र उन सब पर नहीं बल्कि आलमारी के अंदर मौजूद एक और लाॅकर पर थी। उसने एक दूसरी चाभी से उस लाकर को खोला। उसके अंदर भी कुछ काग़जात जैसे ही थे। एक प्लास्टिक का डिब्बा था। रितू ने उन काग़जातों को एक ही बार में सारा का सारा बाहर निकाल लिया।

उन सबको निकाल कर वह पलटी और बेड पर उन सभी काग़जातों को फैला दिया। उनमें कुछ रसीदें थी, कुछ एग्रीमेंट जैसे काग़जात थे और कुछ लिफाफे थे। रितू ने झट से एक लिफाफा उठा लिया। उसे खोल कर देखा तो उसमें कुछ फोटोग्राफ्स थे। रितू ने लिफाफे से सारे फोटोग्राफ्स निकाल लिये और फिर एक एक कर देखने लगी। पाॅच छः फोटोग्राफ्स को देखने के बाद रितू एक दम से रुक गई। एक फोटोग्राफ्स पर उसकी नज़र जैसे गड़ सी गई थी। कुछ देर देखने के बाद उसने बाॅकी सारे फोटोग्राफ्स को बेड पर गिरा दिया और बस एक फोटोग्राफ्स को लिए वह बेड पर एक साइड बैठ गई।

फोटोग्राफ्स में उसके माॅम डैड, नीलम, शिवा एवं वह खुद भी थी। किन्तु रितू की नज़र उन सबके पीछे कुछ दूरी पर खड़े विराज पर टिकी हुई थी। ये फोटोग्राफ्स कुछ साल पहले का था। हवेली में कोई कार्यक्रम था तब ही शहर से किसी फोटोग्राफर को बुलवाया गया था और ये तस्वीरें खींची गई थी। अन्य तस्वीरों में बाॅकी सबकी तस्वीरें थी लेकिन विजय सिंह गौरी व उनके बच्चों की कोई तस्वीरें नहीं थी। इस तस्वीर में भी ग़लती से ही विराज की फोटो आ गई थी। रितू को याद आया कि शिवा बार बार विराज से इस बात पर लड़ पड़ता था कि वो उसके साथ फोटो न खिंचवाए। मगर उत्सुकतावश वो आ ही जाता था।

"वि..राज मेरे भाई।" रितू ने अपने एक हाॅथ से तस्वीर में विराज के चेहरे पर हाॅथ फेरा। उसकी ऑखों से ऑसू बह चले, बोली__"मैं जानती हूॅ कि तुझे भाई कहने का भी मुझे कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। मगर बस एक बार मुझे मिल जा भाई। अपनी इस दीदी के लिए नहीं बल्कि अपनी उस विधी के लिए जिसे तू आज भी उतना ही प्यार करता होगा मैं जानती हूॅ। मुझे पता है कि आज भी अगर तू मुझे मिल जाए तो तू मुझे उतनी ही इज्ज़त से के साथ दीदी कहेगा जैसे पहले कहा करता था। और सच कहूॅ तो मुझे नाज़ है तुझ पर कि मेरा भाई है। एक मेरा है जिसने मुझे इज्ज़त तो दी लेकिन उसकी उस इज्ज़त में भी कितनी इज्ज़त होती है ये मुझसे बेहतर भला और कौन जानता होगा भाई। पर ये तो मेरी सोच और मेरे नसीब की बात है मेरे भाई कि जिसने मुझे सच में इज्ज़त दी उसे मैने हमेशा दुत्कारा और जिसकी इज्ज़त में भी गंदगी भरी थी उसे अपने सीने से लगा कर भाई कहा। ख़ैर, ये सब छोड़ भाई। ये बता कि कहाॅ है तू? मुम्बई में ऐसी कौन सी जगह पर है जहाॅ से मुझे तेरा पता मिल जाए? मैने तेरी विधी से वादा किया है भाई कि मैं उसके सामने तुझे ले आऊॅगी। इस लिए भाई मुझे किसी तरह से मिल जा।"

रितू उस तस्वीर से जाने क्या क्या कहे जा रही थी मगर भला वो तस्वीर उसको विराज का पता कैसे बताती?

"मैने कभी इस बात पर ग़ौर नहीं किया भाई कि क्यों मेरे अंदर तेरे लिए ये नफ़रत थी? क्यों मैं तुझसे हमेशा मुह मोड़ लेती थी?" रितू करुण भाव से कह रही थी___"इसकी वजह शायद ये हो सकती है कि बचपन से ही मेरे माॅम डैड ने मुझे और मेरे भाई बहनों को तुझसे और तेरे माता पिता व बहन से दूर ही रहने की शिक्षा दी। वो हमेशा हमें यही बताते थे कि तुम लोग अच्छे लोग नहीं हो। बचपन से हमें यही सब सिखाया पढ़ाया गया था भाई, इस लिए हम भी उनके कहे अनुसार तुम लोगो से दूर ही रहे। और जब चाची पर वो सब इल्जाम लगा और उन्हें हवेली से निकाल दिया गया तो हम बच्चों के मन में और भी ये बात बैठ गई कि तुम लोग वाकई में अच्छे लोग नहीं हो। मगर आज जब मैंने विधी से उसके और तुम्हारे प्यार के बारे में जाना तो जाने क्यों ऐसा लगा कि तुम उतने बुरे तो नहीं हो सकते मेरे भाई जितना कि आज तक हम तुम्हें समझते आ रहे थे। अगर होते तो कोई भी लड़की तुम्हारे लिए प्यार में इस हद तक अपनी कुर्बानी नहीं देती। इंसान की बुराई कभी किसी से नहीं छिपती भाई। अगर तुम वास्तव में बुरे होते तो क्या ये बात विधी को कभी पता न चलती? ज़रूर चलती भाई, मगर ऐसा नहीं था। वो पागल तो कह रही है कि वो तुम्हारी ही बाॅहों में अपनी आख़िरी साॅस लेना चाहती है। आख़िर कुछ तो खूबी होगी ही न तुझमें भाई। मैने कभी तुझे समझा ही नहीं भाई...मुझे माफ़ कर दे विराज।"

रितू उस तस्वीर को अपने सीने से लगा कर रोए जा रही थी। इस वक्त उसे इस हालत में देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये वही तेज़ तर्रार रितू है जो अकेले चार चार हट्टे कट्टे लड़कों धूल चटा देती है। हौंसले ऐसे बुलंद कि आसमान की बुलंदी भी क्या चीज़ है।

तभी उसका मोबाइल बजा। उसने देखा बेड के एक साइड पर रखे आईफोन की स्क्रीन पर कोई नम्बर फ्लैश कर रहा था। रितू ने फोन उठाया और काल रिसीव कर उसे कनपटी से सटा कर कहा___"हैलो।"

"..............." उधर से कुछ कहा गया।
"ये क्या कह रहे हो तुम?" रितू के चेहरे पर चेहरे पर चौंकने वाले भाव थे।
"..............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"पूरी बात बताओ साफ साफ।" रितू ने कहा।
".............." उधर से कुछ देर तक बताया गया।
"ओह चलो ठीक है।" रितू ने कहा__"तुमने बहुत अच्छा काम किया है। अब एक काम और तुम्हें दे रही हूॅ। और वो काम क्या है ये तुम्हें तुम्हारे फोन पर मेरे द्वारा भेजे गए मैसेज से पता चल जाएगा। सारे काम छोंड़ कर तुम्हें ये काम करना है। तुम्हारे पास सिर्फ और सिर्फ आज रात बस का समय है। कल मार्निंग में मेरी ऑख तुम्हारे फोन करने पर ही खुले। ये बात भूलना मत।"

रितू ने कहा और फोन काट दिया। उसने बेड पर बिखरे हुए काग़जातों की तरफ देखा और फिर उसकी नज़र विराज वाली तस्वीर पर पड़ी। उस तस्वीर को एक तरफ रख कर बाॅकी सारी चीज़ें उसने उठा कर वापस उसी लाॅकर के अंदर रख दी और आलमारी बंद कर दी। विराज वाली तस्वीर को तकिये के नीचे सरका वह बेड से नीचे उतरी और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वह सिर्फ पैन्टी और ब्रा में थी। कपड़े उतारने में उसे थोड़ी तक़लीफ हुई थी। क्योंकि पीठ पर चाकू का लछा चीरा आज ही का तो था। वह ब्रा पैन्टी में किसी हालीवुड की सुपर माॅडल से कम नहीं लग रही थी। उसने तुरंत ही बाथरूम की तरफ रुख़ किया। बाथरूम से फ्रेश होने के बाद वह पुनः कमरे में आई और दूसरे कपड़े पहन कर वह कमरे से बाहर निकल गई। बेड से मोबाइल फोन उठाना नहीं भूली थी वह। पीछे साइड कमर में सर्विस रिवाल्वर छुपा हुआ था उसके।

कुछ ही देर में वह डायनिंग हाल में पहुॅच कर एक कुर्सी पर बैठ गई।
"माॅम अगर खाना रेडी हो तो जल्दी से दे दीजिए मुझे।" उसने किचेन की तरफ मुह करके ज़रा ऊॅची आवाज़ में कहा था।
"बस दो मिनट बेटी।" किचेन से प्रतिमा की आवाज़ आई।

ठीक दो मिनट बाद ही रितू के सामने बड़ी सी टेबल पर एक थाली रख दी गई। थाली लाने वाली नैना थी।
"तो अकेले रहने से उकता गई हमारी पुलिस वाली रितू बेटी?" नैना ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा था।

"कुछ चीज़ों के लिए तन्हाॅई सबसे अच्छी होती है बुआ।" रितू ने रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए कहा___"अगर यही तन्हाई हमें काटती है तो यही तन्हाई कभी कभी हमें बड़ा सुकून भी देती है।"

"ओहो क्या बात कही है तुमने।" नैना ने हैरानी से कहा___"इतनी गहरी बात यूॅ ही तो तुम्हारे दिमाग़ में नहीं आई होगी? आई नो कुछ तो वजह है इसकी। इस लिए अगर उचित समझो तो अपनी इस बुआ को बताओ फिर।"

"ज़रूर बताऊॅगी बुआ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"पर आज नहीं। पहले मैं खुद भी तो इसकी वजह समझ लूॅ। आख़िर मुझे भी तो समझ आए कि इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में आई कैसे? क्योंकि ये सब बातें तो उनके ही दिमाग़ में आती हैं जो ज़रा गंभीर तबीयत का होता है फिर सबसे अलग रहना पसंद करता है।"

"ओहो अनादर वन।" नैना मुस्कुराई___"सच सच बता किसी लड़के से कोई चक्कर वक्कर तो नहीं चल गया? वैसे जहाॅ तक मैं तुझे समझती हूॅ तो ऐसा प्वासिबल है नहीं। कोई पागल ही होगा जो तुमसे प्यार का राग अलापेगा। वरना अपने हाॅथ पैर की हड्डियाॅ तो सबको प्यारी ही होती हैं।"

"व्हाट डू यू मीन बुआ?" रितू की ऑखें फैल गई___"मतलब आप ये समझती हैं कि मैं कोई बैंडिड क्वीन हूॅ जो किसी की भी हड्डियाॅ तोड़ दूॅगी?"
"अरे तुम तो नाराज़ हो गई मेरी डाल।" नैना ने हॅस कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था रे। आई वाज जस्ट किडिंग डियर।"

"कोई बात बेवजह ही मुख से नहीं निकला करती बुआ।" रितू सहसा गंभीर हो गई__"हर बात के पीछे उसका कोई न कोई मतलब भी छिपा होता है। और ये बात भी आपने मेरे कैरेक्टर को देख कर ही कही है। मैं मानती हूॅ बुआ कि मुझे लड़के लड़कियों के बीच की ये चोंचलेबाज़ी शुरू से ही पसंद नहीं थी मगर ये भी सच है बुआ कि मेरे सीने में भी एक दिल है। जो धड़कना जानता है। उसको भी ये एहसास होता है कि प्यार क्या है और नफ़रत क्या है?"

नैना कुछ बोल न सकी बल्कि आश्चर्य से रितू को देखती रह गई। उसे अहसास हुआ कि उसकी बड़ी भतीजी आज गंभीर है। और शायद बहुत ज्यादा गंभीर है। पर किस लिए ये उसे समझ न आया।

"क्या बातें हो रही हैं बुआ भतीजी के बीच ज़रा मुझे भी बताओ?" प्रतिमा ने किचेन से आते हुए कहा था।
"कुछ नहीं माॅम।" रितू ने सहसा सामान्य होकर कहा___"बुआ पूछ रही थी कि अब रात में मैं कहाॅ जा रही हूॅ?"

"क्या???" प्रतिमा तो चौंकी ही लेकिन नैना उससे ज्यादा चौंकी थी, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम इस वक्त अब कहाॅ जा रही हो?"
"कुछ ज़रूरी काम है माॅम।" रितू ने सामान्य भाव से कहा___"आप तो जानती हैं कि पुलिस की नौकरी में किसी भी वक्त कहीं भी जाना पड़ जाता है।"

"मुझे तो तुम्हारा ये पुलिस की नौकरी करना शुरू से ही नापसंद था बेटी।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"मगर मेरी बात मानता ही कौन है यहाॅ? जिसे जो करना है करे।"
"शुरू से आपकी और डैड की बात मानते ही तो आ रहे हैं माॅम।" रितू के मुह से जाने ये कैसे निकल गया__"अब अगर एक काम मैने अपनी खुशी से कर लिया तो क्यों ऐतराज़ हो गया आपको?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा ने हैरानी से ऑखें फैला कर कहा___"और ये किस लहजे में बात कर रही हो तुम? दिमाग़ तो सही है ना तुम्हारा?"
"पता नहीं माॅम।" रितू ने हाॅथ धोते हुए अजीब भाव से कहा___"कभी कभी सोचती हूॅ कि इसी हवेली के अंदर कभी परिवार के सारे लोग कितना हॅसी खुशी से रहा करते थे। मगर जाने ऐसा क्या हो गया कि आज इस हवेली में सिर्फ हम रह गए। बाॅकियों को ये ज़मीन खा गई या फिर आसमान निगल गया कुछ समझ ही नहीं आया आजतक?"

"आज ये क्या हो गया है तुझे?" प्रतिमा की हवा निकल गई थी अंदर ही अंदर, बोली__"ये कैसी फालतू की बातें कर रही है तू?"
"कमाल है न माॅम?" रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आज आपको अपनी ही बेटी की बात फालतू लग रही है। सुना है कि कोई अगर ग़लती कर दे तो उसे आख़िर में माफ़ ही कर दिया जाता है। मगर कुछ ऐसे भी बेचारे बदनसीब होते हैं जिनको कोई माफ़ भी नहीं करता। सुना तो ये भी है माॅम कि परिवार अगर किसी कारण से एक दूसरे से अलग हो जाता है या बिखर जाता है तो परिवार के मुखिया हर संभव यही प्रयास करता है कि उसका बिखरा हुआ परिवार फिर से जुड़ जाए। कदाचित तभी एक सच्चे मुखिया के दिल को सुकून मिलता है। कहते हैं कि हर परिवार के बीच कभी न कभी कोई न कोई अनबन हो ही जाती है मगर उसका मतलब ये तो नहीं होता न कि फिर उनसे हर रिश्ता ही तोड़ लिया जाए? या फिर उस अनबन को दूर ही न किया जाए।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"तू आख़िर कहना क्या चाहती है?" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा___"क्या चल रहा है तेरे मन में? अगर कोई बात है तो उसे साफ साफ कह। यूॅ घुमा फिरा कर कहने का क्या मतलब है तेरा?"

"जाने दीजिए माॅम।" रितू कुर्सी से उठते हुए बोली___"मैं क्या कह रही हूॅ वो आप समझ तो गई ही हैं न? फिर साफ साफ कहने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर चलती हूॅ माॅम। बाय डियर बुआ जी।"
"बाय बेटा।" नैना ने रुॅधे हुए गले से कहा। उसकी ऑखों में ऑसू तैर रहे थे।

"पुलिस की नौकरी क्या करने लगी इसका सारा दिमाग़ ही ख़राब हो गया है।" प्रतिमा भुनभुनाते हुए टेबल से थाली उठाते हुए कहा___"पता नहीं कहाॅ से ऐसी बेकार की बातें सीख कर आती है ये?"

"सच ही तो कह रही थी वो।" नैना ने गंभीरता से कहा___"भला ऐसा किस परिवार में होता है भाभी कि अगर परिवार में किसी से कोई ग़लती हो जाए तो उसे कभी माफ़ ही न किया जाए? कितनी खुशियाॅ थी इस घर में। हम सब कितना हॅसी खुशी से रहते थे सबके साथ। परिवार में सबकी एकता को देख कर माॅ बाबूजी कितना खुश थे। मगर आज इस घर में न वो खुशियाॅ हैं और न ही खुशियाॅ फैलाने वाला परिवार का कोई बाॅकी सदस्य। विजय भइया की मौत क्या हुई मानो इस घर से खुशियाॅ ही चली गई। माॅ बाबू जी आज भी कोमा से बाहर नहीं आए। अगर कोई पूछे कि इस सबका जिम्मेदार कौन है तो किसका नाम लिया जाए?"

"अभी एक यही राग अलाप कर गई है और अब तुम भी यही राग अलापने लगी नैना?" प्रतिमा की भृकुटी तन गई__"और ये क्या कह रही हो तुम कि इस सबका जिम्मेदार कौन है और किसका नाम लिया जाए? इस बात का क्या मतलब हुआ? क्या तुम ये कहना चाहती हो कि इस सबके जिम्मेदार हम हैं?"

"मैने ऐसा तो नहीं कहा भाभी।" नैना ने अधीरता से कहा___"पर एक बात तो सही है न कि जो परिवार का बड़ा सदस्य होता है उसे सबको एक साथ में लेकर चलना चाहिए? घर के मुखिया तो अजय भइया और आप ही हैं। गाॅव समाज के लोग तो यही कहेंगे न कि छोटे अगर नासमझ थे या कोई ग़लती कर रहे थे तो ये बड़े का फर्ज़ था कि छोटे को उसकी ग़लती पर एक बार माफ़ ही कर देना चाहिये था। लोग तो कहेंगे न भाभी कि किसी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा नहीं देना चाहिए कि छोटे से हर रिश्ता तोड़ कर उसे घर से बेदखल ही कर दिया जाए।"

"कुछ ग़लतियाॅ ऐसी होती हैं नैना जिनके लिए कोई मुआफ़ी नहीं होती।" प्रतिमा ने ठोस लहजे में कहा___"बल्कि अगर उन ग़लतियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए तो उससे सब कुछ बरबाद हो जाता है। तुम्हारे भइया ने क्या नहीं किया इस परिवार के लोगों को एक करने के लिए मगर हुआ क्या? नैना, हमारी अच्छाईयाॅ और कुर्बानियाॅ कोई नहीं देखेगा बल्कि सिर्फ यही देखेगा कि हम परिवार को एक नहीं कर पाए।"

"कल पड़ोस की वो कमला भाभी मुझे मिली थी आते वक्त।" नैना ने कहा___"मुझे देख कर उसने आवाज़ दी मुझे। उससे थोड़ी देर बातें हुई। उसकी बातों का असल मुद्दा हमारे परिवार से ही था।"

"क्या कह रही थी वो?" प्रतिमा के कान खड़े हो गए।
"कह रही थी कि मझली ठकुराईन(गौरी) तो ऐसी थी ही नहीं।" नैना ने कहा___"वो दोनो मियां बीवी तो बड़े धर्मात्मा इंसान थे। दूर दूर तक उनकी अच्छाई और उनके उच्च आचरण की चर्चा होती थी। आज भी कोई यकीन नहीं करता कि मझली ठकुराइन ने ऐसा कोई नीच काम अपने जेठ के साथ किया होगा।"

"उस कलमुही को क्या पता?" प्रतिमा ने सहसा गुस्से में कहा___"वो क्या यहाॅ देखने आई थी कुतिया? जबकि मैने अपनी ऑखों से देखा है। पहले भी कई बार मैने गौरी को ऐसे ही चोरी चोरी अजय के कमरे में जाते देखा था। मैने इस बारे में अजय से भी बताया था और अजय से ये भी कहा था कि उससे दूर रहना। पति मर गया है तो अब उससे अपने जिस्म की गरमी बर्दास्त ही नहीं हो रही है। इसी लिए अब वो मेरे पति पर डोरे डाल रही है। एक दिन तो मैने अपने कमरे ही उसे सारी उतारे हुए अपने भोसड़े में उॅगली करते हुए पकड़ लिया था। वो तो अच्छा था कि मैं कमरे में पहुॅच गई थी वरना अगर कहीं तुम्हारे भइया पहुॅच गए होते तो क्लेश ही हो जाना था उस दिन। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि गौरी को उसकी इस नीच हरकत करने से कैसे रोंकूॅ? किसी से कह भी नहीं सकती थी। क्योंकि कोई मेरी बातों का यकीन ही नहीं करता। उल्टा मुझ पर ही दोषारोपण लग जाता। इस लिए मैने सोचा कि इस बार जब गौरी ऐसी कोई हरकत करेगी तो मैं उसकी इस नीचता का सबूत तैयार करूॅगी।
अजय शिवा के लिए एक कैमरा लाए थे। कुछ दिन बाद ही मुझे फिर से गौरी की हरकत का पता चल गया। मैं जब कमरे में गई तो अंदर से आवाजें आ रही थी। मैने कमरे को हल्का अंदर की तरफ धकेल कर देखा तो गौरी अजय के ऊपर चढ़ी हुई थी। जबकि अजय उसे डाॅटे जा रहे थे और उसे अपने से दूर कर रहे थे। मैने सोचा इससे बड़ा सबूत और क्या होगा। मैं तुरंत शिवा के कमरे में गई और उसका कैमरा उठा लाई। अपने कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने अंदर चल रहे काण्ड की फोटो खींची। मैं और भी फोटो खींचना चाहती थी। मगर कैमरे में रील खत्म हो चुकी थी। शायद शिवा ने पहले ही सारी रील खत्म कर दी थी। शुकर था लास्ट की एक बची थी। उसमें एक ही फोटो खींची मैने। उसके बाद फिर मैं अंदर गई और उस गौरी की चुटिया पकड़ कर उसे अजय के ऊपर से खींच कर नीचे लाई। मैं बहुत गुस्से में थी इस लिए पहले मैने उसे वहीं पर पीटा फिर बाहर लेकर आई। साली कितनी कमीनी और निर्लज्ज थी कि वैसा नीच काम करने के बाद भी उल्टा यही बोले जा रही थी कि मैने कुछ नहीं किया मुझे फॅसा रहे हैं ये सब मिलकर। तो ये थी उस जलील और कुलटा औरत की करतूत।"

नैना प्रतिमा की ये लम्बी चौड़ी बात सुन कर हैरान नहीं हुई क्योंकि ये बात प्रतिमा पहले भी सबसे बता चुकी थी। पर उसे न पहले उसकी बात पर यकीन था और ना ही आज यकीन हो रहा था। मगर वो इसके खिलाफ़ कुछ कह नहीं सकती थी। क्योंकि उसके खिलाफ़ कुछ बोलने के लिए भी कोई न कोई आधार के रूप में सबूत चाहिए था जो कि उसके पास भला कैसे हो सकता था। नैना और सौम्या दोनो बहनों को तो ये सब बाद में बताया गया था।

"ये बात तो वो कमला भाभी भी कह रही थी कि मझली ठकुराईन को जान बूझ कर फॅसाया गया था।" नैना ने कहा___"वो कह रही थी गाॅव का हर ब्यक्ति यही कहता है कि उन्हें फॅसाया गया था।"

"भला उसे कोई क्यों फॅसाएगा नैना?" प्रतिमा ने झुॅझला कर कहा___"वो हमारी कोई दुश्मन तो नहीं थी और ना ही हमारा उससे कोई बैर था। फिर भला उसे क्यों कोई जान बूझ कर फॅसाएगा? गाॅव के लोगों को तो बस बातें बनाना आता है नैना। ये किसी के भी बारे में अच्छा नहीं सोच सकते।"

"ख़ैर जाने दीजिए भाभी।" नैना भला अब क्या कहती___"सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए। जो जैसा करेगा वो उसका फल तो पाएगा ही।"
"ये अजय अब तक नहीं आए।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"वो भी आ जाते तो हम सब मिल कर डिनर कर लेते।"
"आते ही होंगे भाभी।" नैना ने कहा___"फैक्टरी को रिन्यू कराने में काफी ब्यस्त हैं वो आजकल।"

इनके बीच बस ऐसी ही थोड़ी देर बातें होती रही। कुछ देर बाद ही अजय सिंह आ गया था।
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उस वक्त रात के नौ बजे थे जब रितू पुनः अपने फार्महाउस पर पहुॅची थी। लोहे वाले गेट पर दो बंदूखधारी ब्यक्ति खड़े। रितू की कार को देखते ही दोनो ने गेट को खोल दिया। गेट के खुलते ही रितू ने कार को गेट के अंदर की तरफ बढ़ा दिया और फिर वो सीधा पोर्च में ही रुकी। कार से बाहर आ कर रितू ने कार को लाॅक किया। तब तक वो दोनो बंदूखधारी भी आ गए।

"क्या समाचार है काका?" रितू ने एक से पूछा।
"समाचार बढ़िया है बिटिया।" काका ने कहा___"जैसा तुमने कहा था वैसा ही कर दिया है हमने। वो सब वहीं तहखाने मा रस्सी से बॅधे हुए हैं। कुछ देर पहले ही हम जाकर देखे थे तो सब होश में आ गए थे। सबने जब खुद को अजनबी जगह पर इस तरह रस्सियों से बॅधा हुआ पाया तो सब के सब रोने लगे बिटिया। हमका देख के पूछन लगे कि ये हमें कहाॅ ले आया गवा है और ई तरह रस्सी से काहे बाॅथा गवा है?"

"अच्छा, चलो फिर उनको जवाब भी दे देते हैं न काका।" रितू ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा___"क्या विचार है आपका?"
"हम तो एक ही बात जानत हैं बिटिया कि ऐसे ससुर के नातियों को बीच चौराहे पर नंगा करके गोली मार दैं।" काका ने गर्मजोशी से कहा___"ऐसे लोगन का जीयै का कौनव अधिकार नहीं है।"

"बात तो आपकी बिलकुल दुरुस्त है काका।" रितू ने कहा___"लेकिन ये तो बहुत आसान मौत होगी न उन सबके लिए?"
"हाॅ ई बात तो है बिटिया।" शंकर काका ने कहा___"तो फिर ऐसा करत हैं कि ससुरों को तड़पा तड़पा के मारते हैं।"

"शंकर काका ये तो आपने बिलकुल ठीक कहा।" रितू मुस्कुराई___"हरिया काका तो एक ही बार में गोली मार देने को कह रहे थे।"
"अरे ऊ ता हम जल्दबाज़ी मा अउर एकदम से गुस्से मा कह दिये रहे बिटिया।" हरिया काका ने झेंपते हुए कहा___"वरना ई बात ता हम ई सरवा शंकर से पहले ही कह देते।"

"चलो कोई बात नहीं काका।" रितू ने कहा__"अब तो कह दिये न आप? अब चलो उनको देखे ज़रा।"
"अउर कुछू साथ मा लेके चलैं का है का बिटिया?" हरिया काका झट बोल पड़ा था।
"और क्या ले चलना है भला?" रितू चकराई।
"अरे बाल्टी मा पानी ले चलत हैं ना बिटिया।" हरिया ने कहा__"ऊ का है ना, हमका अइसन लागत है कि उहाॅ जाइके तुम उन सबको बहुतै धुनाई करोगी। ता थुनाई मा कउनौ सारे बेहोश होई गै तो? उनका होश मा लाने की खातिर पानी ता चाहिए ना बिटिया।"

"क्या बात है काका।" रितू हॅस पड़ी___"क्या दिमाग़ लगाया है आपने। मानना पड़ेगा आपको। दिमाग़ बहुत तेज़ है आपका।"

रितू की प्रसंसा पाने से हरिया काका तन कर चलने लगा। वह शंकर को इस तरह देखने लगा था जैसे अब उसके सामने उसकी कोई औकात ही नहीं है। शंकर उसे इस तरह अकड़ते हुए चलते देख बुरा सा मुह बना कर रह गया।

"पर काका।" रितू ने कहा___"मुझे लगता है कि आपका ये दिमाग़ काकी की वजह से तेज़ हुआ है।"
"अरे का बात करती हो बिटिया?" हरिया काका ने नागवारी भरे भाव से कहा___"ऊ ससुरी तो शुरू से ही दिमाग़ से पैदल है। हमरे साथ रह रह के ही तो थोड़ा बहुत दिमाग़ आ गवा है उसमे।"

"ओए तूने भाभी जी को ससुरी बोला?" शंकर ने झड़प कर कहा हरिया से___"रुक अभी जा के बताता हूॅ उनसे।"
"अबे रुक जा बे खबीस।" हरिया काका की सारी अकड़ तेल लेने चली गई___"सरवा मरवाएगा का हमका?"

"हाॅ तो भाभी जी को ससुरी क्यों बोला?" शंकर अभी भी उसे घुड़कता बोला__"और क्या बोला कि तेरे साथ रह रह कर ही उनमें थोड़ा बहुत अकल आई है। साला झूॅठा कहीं का।"
"तू ना अब मुह बंद ही कर ले समझा।" हरिया भी ताव खा गया___"वरना उल्टा तुझे ही पिटवा दूॅगा मैं उस ससुरी से।"

"वो कैसे भला?" शंकर बुरी तरह हैरान।
"अरे हम कह देंगे कि ये शंकरवा तुझे कहत रहा कि अब भौजी ससुरी बुड्ढी होई गई है।" हरिया ने कहा___"अउर ये भी कह देंगे कि मोटी भैस जइसन होई गई है।"

"ओये ये मैने कब कहा?" शंकर परेशान।
"नहीं कहा ता का हुआ?" हरिया बोला__"हम ता कह देंगे न कि ई शंकरवा अइसनै कहत रहा।"
"देखा रितू बिटिया।" शंकर ने मानो रितू से गुहार लगाई___"ये जबरदस्ती मुझे अपनी जोरू से पिटवाना चाहता है।"

"चिन्ता मत कीजिए काका।" रितू ने कहा___"सिर्फ आप ही बस नहीं पिटेंगे बल्कि आपके साथ साथ हरिया काका भी काकी से पिटेंगे।"
"अरे ई का कहत हो बिटिया?" हरिया काका ने हड़बड़ा कर कहा___"हम भला काहे पिटेंगे ऊ ससुरी से?"

"वो इस लिए कि मैं काकी से बताऊॅगी कि काका आपको जब देखो तब दिमाग़ से पैदल और ससुरी ससुरी कहते रहते हैं।" रितू ने कहा___"आपकी तो कोई इज्ज़त ही नहीं करते ये दोनो। फिर देखना काका, कैसे आप दोनो का हाल बनाएॅगी काकी।"
"अरे हमका माफ़ कर दो बिटिया।" काका ने दोनो हाॅथ जोड़ लिए बोला___"ई सब ना ई शंकरवा की कारण होई जात है। वरना हम ता बिंदिया की बहुत इज्जत करत हैं। ऊ ता हमरी जान है, प्राण प्यारी है बिटिया।"

"अच्छा छोड़ो ये सब।" रितू ने कहा__"अब चलिये उन सबका हाल चाल भी तो देखना है।"
"ठीक है बिटिया चलो।" हरिया ने कहा और फिर वो रितू के पीछे चल दिया। जबकि शंकर लोहे वाले गेट की तरफ बढ़ गया।

कुछ ही देर में रितू और हरिया काका तहखाने में पहुॅचे। तहखाना काफी बड़ा था। वहाॅ पर सामान तो कुछ नहीं था बस ज़मीन पर सीलन जैसा प्रतीत होता था। दीवार के चारो तरफ बल्ब लगे हुए थे। एक तरफ की दीवार से सटे वो चारो रस्सी में बॅधे खड़े थे। सभी के हाॅथों को ऊपर करके बाॅधा गया था और पैरों को नीचे विश्राम की पोजीशन में चारों लड़कों के पैरों से जोड़ते हुए बाॅधा गया था। लेकिन उनमें से कोई भी अपने पैरों को हिला नहीं सकता था। दोनो तरफ की दीवारों पर एक एक तरफ से पैरों में बॅधी रस्सी को खींच कर बाॅधा गया था।

उन चारों की हालत बहुत ही अजीब हो गई थी। डर और दहशत से उन सभी का बुरा हाल था। पहले से ही रितू की मार से लहू लुहान थे वो चारो और अब इस डर व भय ने उनकी हालत खराब कर दी थी जाने वो यहाॅ कैसे और क्यों लाए गए हैं। ये तो वो भी समझ चुके थे कि उनके साथ कुछ बहुत ही बुरा होने वाला है।

तहखाने में दो तरफ के बल्ब जल रहे थे। इस लिए तहखाने में काफी रोशनी थी। पसीने तथपथ उन चारों के चेहरों को बखूबी देखा जा सकता था। रितू और हरिया काका जैसे ही तहखाने में पहुॅचे तो उन चारो ने उनकी आहट से अपनी अपनी गर्दन उठा कर सामने देखा। रितू पर नज़र पड़ते ही सबकी घिग्घी बॅध गई। चेहरे पर डर के मारे हल्दी सी पुत गई। जूड़ी के मरीज़ की तरफ एकदम से काॅपने लगे थे वो चारो।

"काका इन लोगों की खातिरदारी नहीं की क्या आपने?" रितू ने उन चारों को एक एक नज़र देखने के बाद हरिया से कहा था।
"अरे हमरा मन ता बहुत रहा बिटिया।" हरिया ने कहा___"लेकिन ऊ का है न हमका परमीशॅनवा ही मिला था। वरना हम ता इन ससुरन की अइसन पेलाई करते कि ई ससुरे यहीं पषर टट्टी कर देते।"

"चलो अच्छा हुआ काका जो मैने आपको परमीशन नहीं दी थी।" रितू ने कहा___"वर्ना अगर ये टट्टी कर देते तो साफ भी तो आपको ही करना पड़ता न?"
"अरे हाॅ बिटिया।" हरिया ने हैरानी से कहा___"ई ता हम सोचे ही नहीं। पर कउनव बात नहीं बिटिया। हम ता साफ न करते लेकिन ई सब ससुरे लोग जरूर साफ करते। अउर ना करते तो हम ई ससुरन का अउर अच्छे से पेलते।"

रितू ने हरिया की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया बल्कि वह ऑखों में आग लिए उन चारो की तरफ बढ़ी। उन सबकी हालत बड़ी ही दयनीय हो गई। उन सबकी टाॅगें इस तरह काॅपने लगी थी जैसे उन पर अब उनका कोई ज़ोर ही न रह गया हो।

"क्या सोचा था तुम सबने? रितू के मुख से शेरनी की सी गुर्राहट निकली___"इतने सारे गुनाह करके तुम सब बड़े मज़े में रहोगे?? कोई तुम्हारा बाल बाॅका कर ही नहीं सकता?"

"ह हमें माफ़ कर दो।" सूरज चौधरी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हम किसी के साथ कोई भी ग़लत काम नहीं करेंगे अब।"
"करोगे तो तब जब करने के लिए ज़िंदा बचोगे।" रितू ने बर्फ की मानिन्द ठंडे स्वर में कहा___"अब तो तुम चारों का रिज़र्वेशन हो गया है नरक में जाने का। लेकिन चिन्ता मत करो क्योंकि नरक में यहाॅ से ज्यादा तुम लोगों को यातनाएॅ नहीं सहनी पड़ेगी।"

"नहीं नहीं।" रोहित बुरी तरह रो पड़ा__"हमें कुछ मत करो प्लीज़। हम मरना नहीं चाहते। आ आख़िर किस वजह से तुम हमारे साथ ये सब कर रही हो? हमें यहाॅ से जाने दो इंस्पेक्टर वरना तुम नहीं जानती कि हमें इस तरह यहाॅ बंधक बना कर रखने से तुम्हारा क्या अंजाम हो सकता है?"

"और तुम्हें भी ये अंदाज़ा नहीं है लड़के कि मैं तुम सबके बापों के साथ क्या कर सकती हूॅ?" रितू ने सहसा रोहित के सिर के बाल को मुट्ठी मे पकड़ कर खींचते हुए कहा___"अगर मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तुम्हारे बापों बीच चौराहे पर नंगा करके दौड़ाऊॅ। मगर फिलहाल ये बाद में अभी तो तुम सबके साथ ही हिसाब किताब करना है।"

"हरामज़ादी कुतिया साली हमारे बाप को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ाएगी तू।" सहसा सूरज चौधरी गुर्रा उठा___"एक बार मेरे हाॅथ पैर खोल दे फिर देख तेरा क्या हस्र करता हूॅ मैं?"
"देखा था सुअर की औलाद।" रितू नोंकदार बूट की ठोकर ज़ोर से सूरज के पेट में मारते हुए कहा। सूरज के मुख से हलाल होते बकरे की सी चीखें निकली जबकि रितू बोली__"उस दिन तेरी मर्दानगी भी देखी थी। तुम सबकी देखी थी। उसी का नतीजा है कि आज यहाॅ बॅधे पड़े हो।"

"हमें छोड़ दो इंस्पेक्टर।" किशन ने गुहार लगाते हुए कहा___"आख़िर हमने किया क्या है? किस लिए हमें यहाॅ लाकर हमारे साथ ये सब कर रही हो तुम?"
"काका, इसे पता ही नहीं है कि इसने किया क्या है?" रितू ने कहा___"ये साला ऐसा शरीफ बन रहा है बहनचोद जैसे इसने कभी किसी चींटी तक को चोंट न पहुॅचाई हो।"

"ज़ुबान सम्हाल कर बात करो इंस्पेक्टर।" सहसा सूरज कह उठा___"और याद रखो कि अगर हममें से किसी को भी कुछ हुआ तो उसका खामियाजा तुम्हें और तुम्हारे पूरे खानदान को भुगतना होगा।"

"मेरे खानदान की तू फिक्र मत कर।" रितू ने कहा___"मेरे खानदान तक जाने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि तेरे और तेरे बाप को कुत्ते की मौत मार देने के लिए मैं ही काफी हूॅ। तुम चारों को ऐसा तड़पा तड़पा कर मारूॅगी कि मौत की भीख माॅगोगे मगर मौत दूॅगी नहीं आसानी से।"

"पर ये तो बताओ इंस्पेक्टर।" अलोक वर्मा के तिरपन काॅप गए, बोला___"हमने ऐसा किया क्या है जिसके कारण तुम हमारे साथ ऐसा ब्यौहार कर रही हो?"
"हाॅ हाॅ बताती क्यों नहीं हमें?" किशन ने अलोक की बात में कहा___"हमें भी तो पता चले कि हमने ऐसा किया क्या है?"

"विधी चौहान याद है???" रितू ने अलोक का गिरहबान पकड़ कर झिंझोड़ा___"वही विधी चौहान जो तुम लोगों के साथ ही काॅलेज में पढ़ती थी, और जिसके साथ तुम चारों ने मिल कर गैंग रेप किया था? कुछ याद आया या फिर इतना जल्दी भूल गए सब?"

चारों के दिलो दिमाग़ में जैसे विष्फोट हुआ। दिमाग़ की बत्ती एक साथ सबकी जल उठी। अब समझ आया था उन्हें कि ये सब उनके साथ क्यों हो रहा था। सब कुछ समझ में आते ही चारों के चेहरे पीले पड़ गए। किसी के भी मुख से बोल न फूटा।

"किसी की बहन बेटियों की इज्ज़त से इस तरह खेलने का बहुत शौक है न?" रितू ने गुर्राते हुए कहा___"कितनी लड़कियों की ज़िंदगियाॅ बरबाद कर दी है तुम सब हराम के पिल्लों ने। उन सब लड़कियों की बरबादी का हिसाब देना होगा तुम लोगों को।"

"ये सब झूठ है।" सूरज पूरी शक्ति से चीखा था, बोला___"सरासर झूॅठ है इंस्पेक्टर। हम में से किसी ने भी उसके साथ कुछ नहीं किया। तुम बेवजह ही हमें इस तरह यहाॅ पकड़ कर ले आई हो। हमने कुछ नहीं किया। हमें छोड़ वरना बहुत पछताओगी तुम देख लेना।"

"तू साले रंडी की औलाद मुझे पछताने का बोल रहा है बहनचोद।" रितू ने सूरज के पेट में दो चार घूॅसे एक साथ ही जड़ दिये। सूरज बुरी तरह दर्द से बिलबिलाया था, जबकि रितू ने कहा___"तेरी भी एक बहन है न। मुझे सब पता है। तेरी बहन का नाम रचना चौधरी है न। सुना है वो बहुत ही जवान है। तू चिन्ता मत कर बहुत जल्द वो तेरे सामने यहीं पर होगी और तुम चारो खुद एक एक करके उसका रेप करोगे।"

"इंस्पेक्टर।" सूरज गीदड़ की तरह चीखा___"अगर तूने मेरी बहन को हाॅथ भी लगाया तो देख लेना।"
"क्यों पिछवाड़े में आग लगी क्या तेरे?" रितू ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ सूरज के गाल पर रसीद करते हुए कहा___"और जब तू दूसरों की बहन बेटियों को बरबाद करता तब क्या मज़ा आता है मादरचोद?"

"बिटिया हम का कहत हैं कि ये बाल्टी का पानी जो हम लेके आए हैं।" सहसा हरिया काका ने कहा___"ऊ का बेकार मा लेके आए हैं? हम ता सोचत रहे कि तुम इन ससुरों को मार मार कर बेहोश करती जाओगी अउर हम इन ससुरन का ई पानी से होश मा ले आते रहेंगे।"

"चिन्ता मत करो काका।" रितू गुर्राई__"बहुत जल्द ऐसा भी होने वाला है।
"फेर ता ठीक है बिटिया।" काका ने कहा___"अगर कहौ ता हमहू इन ससुरन का जी भर कै धुन देई? ऊ का है ना हमरा हाॅथ मा बहुतै खुजली होई रही है।"

"तो ठीक है काका आप ही अपने हाॅथ की खुजली मिटा लो।" रितू ने कहा___"मैं इन कुत्तों से कल मिलूॅगी। तब तक आप इनकी अच्छे से खातिरदारी करना। बस इतना याद रहे कि इनमें कोई भी मरने न पाए।"

"अइसनै होई बिटिया।" काका ने खुश होते हुए कहा___"हम ई ससुरन केर अम्मा चोद देब। तुम फिकर ना करो बिटिया। अब जाओ तुम इहाॅ से। अब ई.....डि...अरे बिटिया ऊ का कहत हैं एखा...? अरे हाॅ याद आई गा। अब ई डिपारटमेंट हमरा है। हाॅ डिपारटमेंट।"
"डिपारटमेंट नहीं काका उसे डिपार्टमेन्ट कहते हैं।" रितू ने मुस्कुराकर कहा।

"अरे हाॅ बिटिया उहै।" काका ने कहा___"तुम समझ गई हौ ना। ई है बहुत है।"
"अच्छा काका मैं चलती हूॅ।" रितू ने कहा__"आप सम्हाल लेना ओके?"
"अरे तुम कउनव चिन्ता न करा बिटिया ई ता हमरे बाएं हाथ का चीज है।" काका ने गर्व से कहा___"ई ससुरन का मार मार के हम इनकर टट्टी निकाल देब। अउर का।"

रितू हरिया काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने से बाहर निकल गई। जबकि रितू के जाते ही काका ने तहखाने का गेट बंद किया और फिर अपने दोनो हाॅथ मलते हुए रोहित मेहरा के पास पहुॅचा।

"का रे मादरचोद।" काका ने कहा___"तोरे केतनी अम्मा है अउर केतने बाप हैं?"
"तमीज़ से बात करो ओके।" रोहित डर तो गया था लेकिन फितरत के चलते बोल ही गया था।
"तोरी माॅ की चूत मारूॅ ससुरे के।" काका के हाॅथ में जो मोटा सा लट्ठ था उसने घुमा कर रोहित की टाॅग में ज़ोर से धमक दिया। रोहित दर्द से बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगा। काका तो बहुत देर से सब्र किये बैठा था। उसे इस बात का बेहद गुस्सा भी था कि इन लोगों ने रितू उल्टा सीधा भी बोला था।

हरिया काका उन चारों पर पिल पड़ा। फिर तो तहखाने में बस रोने और चीखने की आवाज़ें ही आ रही थी। हरिया काका तब तक उन सबकी धुनाई करता रहा जब तक कि उसका पेट न भर गया था। धुनाई करने के बाद वह उन चारों को अधमरी हालत में छोंड़ कर तहखाने से बाहर चला गया और बाहर से तहखाने को लाॅक कर दिया।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,
 
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अपडेट.........《 36 》

फ्लैशबैक अब आगे______

गौरी अभी ये सब बता ही रही थी कि सहसा डोर बेल की आवाज़ से सबका ध्यान भंग हो गया। डोर बेल की आवाज़ से ही उन सबको ये एहसास हुआ कि समय कितना हो चुका था। वरना ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठे हुए उन्हें समय का आभास ही न हुआ था। वो सब तो गौरी के द्वारा सुनाए जा रहे अतीत के किस्सों में ही डूबे हुए थे।

"लगता है कि जगदीश भाई साहब आ गए हैं।" गौरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा__"जा गुड़िया दरवाज़ा खोल दे।"
"जी माॅ।" निधी ने भी गहरी साॅस लेकर कहा और सोफे से उठ कर मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गई।

"रात के नौ बज गए हैं।" गौरी ने सामने दीवार पर लगी घड़ी पर देखते हुए कहा___"इस कहानी के चक्कर में रात का खाना बनाना भी रह गया अभय। चलो ये कहानी अब कल बताऊॅगी। अभी खाना बना लूॅ फटाफट। जगदीश भाई साहब को दस बजे तक खाना खाकर सो जाने की आदत है।"

"ठीक है भाभी आप जाइए।" अभय ने गंभीर भाव से कहा था। वो अभी भी उन अतीत के दृष्यों में खोया हुआ लगा। उसके ऐसा कहने पर गौरी उठ कर किचेन की तरफ बढ़ गई।
तभी ड्राइंगरूम में जगदीश ओबराय दाखिल हुआ। उसके पीछे पीछे ही निधी भी आ गई। जगदीश ओबराय की नज़र अभय सिंह पर पड़ी तो उसने बगल से रखे सोफे पर बैठे विराज की तरफ देखा।

"ये मेरे अभय चाचा जी हैं अंकल।" विराज ने जगदीश का आशय समझ कर कहा___"आज सुबह करीब ग्यारह बजे के आस पास आए हैं।"
"ओह ये तो बहुत अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय के चेहरे पर खुशी के भाव नुमायां हुए, फिर उसने अभय की तरफ देखते हुए कहा___"कैसे हैं भाई साहब?"

अभय ने हल्की मुस्कान के साथ पहले उसे नमस्ते किया फिर बोला___"जी मैं ठीक हूॅ आप सुनाइये।"
"मैं तो बहुत ज्यादा ठीक हूॅ भाई साहब।" जगदीश ने हॅस कर कहा___"जब से ये बच्चे और गौरी बहन यहाॅ आए हैं तब से ज़िंदगी खुशहाल लगने लगी है। वर्ना इतने बड़े बॅगले में नौकर चाकर रहने के बाद भी अकेलापन ही महसूस होता था।"

"ऐसा क्यों कहते हैं आप?" अभय सिंह चौंका था___"इसके पहले अकेलापन क्यों महसूस होता था आपको?"
"अरे भाई अब मेरे सिवा मेरा कोई था ही नहीं तो अकेलापन महसूस तो होगा ही।" जगदीश ने कहा___"नसीब और भाग्य बहुत अजीब होते हैं। अच्छा खासा परिवार हुआ करता था मेरा। मगर फिर सब कुछ खत्म हो गया। धन दौलत तो नसीब से बहुत मिली हमें लेकिन उस दौलत को भोगने वालों को नसीब ने छीन लिया हमसे। जी जान से प्यार करने वाली बीवी थी, वो भी हमें छोंड़ कर इस फानी दुनियाॅ को अलविदा कह दिया। एक बेटा और बहू थे तो वो भी चले गए हमें छोंड़ कर। बस तब से अकेले ही थे। मगर फिर शायद भगवान को हमारे अकेलेपन पर तरस आ गया और उसने हमारे उजड़े हुए गुलशन में फिर से बहार लाने के लिए इन सबको भेज दिया। अब लगता है कि अपना भी कोई है।"

अभय सिंह जगदीश ओबराय की बातें सुन कर हैरान था। उसे याद आया कि विराज ने उससे कहा था कि ये सब अब अपना ही है। तो इसका मतलब वो सही कह रहा था। यानी मेरा भतीजा अब करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है? अभय सिंह को यकीन नहीं हो रहा था मगर हक़ीक़त तो उसके सामने ही थी इस लिए यकीन करना ही पड़ा उसे। वह सोचने लगा कि उसका बड़ा भाई यानी अजय सिंह तो अक्सर यही कहता था कि विराज किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर भला वो भी कैसे ये कल्पना कर सकता था कि विराज आज के समय में कितना बड़ा आदमी बन चुका था। वह चाहे तो चुटकियों में उसे और उसकी पूरी प्रापर्टी को खरीद सकता था।

"ये सब भगवान की अजब लीला ही है भाई साहब।" फिर अभय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा___"वो जो कुछ भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। किस इंसान कब कहाॅ और किस चीज़ की ज़रूरत होती है वो उसे उस जगह पहुॅचा ही देता है। हम नासमझ होते हैं जो ये समझ बैठते हैं कि भगवान ने हमें दिया ही क्या है?"

"हाॅ ये बात तो है।" जगदीश ने कहा___"और सच पूछो तो भगवान की इस लीला से मैं खुश हूॅ भाई साहब। पहले ज़रूर उससे शिकायतें थी कि उसने मेरा सब कुछ छीन लिया मगर आज कोई शिकायत नहीं है। ये सब मुझे अपना समझते हैं। मुझे वैसे ही चाहते हैं जैसे कोई सगा अपनों को चाहता है। यूॅ तो इस दुनियाॅ में अपने भी अपनों के लिए नहीं होते। मगर कोई अजनबी भी ऐसा मिल जाता है जो अपनों से कम नहीं होता। चार दिन का जीवन है, इसे सबके साथ खुशी खुशी जी लो तो आत्मा तृप्त हो जाती है। क्या लेकर हम इस दुनियाॅ में थे और क्या लेकर जाएॅगे? ये धन दौलत तो सब यहीं रह जाएगी मगर हमारे कर्म ज़रूर हमारे साथ जाएॅगे।"

"आप ठीक कहते हैं भाई साहब।" अभय ने कहा___"आप तो वैसे भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं वरना कौन ऐसा है जो किसी ग़ैर को अपना सब कुछ दे दे?"
"अगर मैने अपना सब कुछ विराज बेटे को दे दिया है तो उससे मुझे मिला भी तो बहुत कुछ है भाई साहब।" जगदीश ने कहा___"मुझे वो मिला है जिसके लिए मैं वर्षों से तड़प रहा था। मैं किसी अपने के लिए तड़प रहा था, तथा अपनों के बीच रह कर जो खुशी मिलती है मैं उसके लिए तरस रहा था। आज मेरे पास ये सब खुशियाॅ है भाई साहब और ये सब मुझे किसी रिश्वत के चलते नहीं मिला है। बल्कि मेरे नसीब से मिला है। मैं तो विराज को बहुत पहले से अपनी सारी प्रापर्टी का वारिस बनाना चाहता था मगर ये ही मना कर रहा था। एक अच्छे व खुद्दार इंसान का बेटा जो था। किसी की ऐसी मेहरबानी को कबूल कैसे कर सकता था ये? मगर मैं चाहता था कि विराज ही मेरा वारिस बने। क्योंकि इसके चेहरे पर ही मुझे अपने बेटे की झलक दिखती थी। अगर ये मेरी बात नहीं मानता तो मैं इसके सामने अपनी झोली फैला कर भीख भी माॅग लेता भाई साहब।"

अभय सिंह जगदीश की ये सब बातें सुन कर चकित रह गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियाॅ कोई इंसान ऐसा भी हो सकता है। ख़ैर इन दोनों के बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। कुछ समय बाद ही गौरी ने सबको खाने का कहा। सब डायनिंग हाल में आ गए और कुर्सियों में बैठ गए। गौरी ने सबको खाना सर्व किया। सबके खाने के बाद गौरी ने भी खाना खाया और फिर सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चल दिये। रास्ते में चलते समय विराज से गौरी ने पूछा___"तेरा काॅलेज कब से शुरू हो रहा है??"

"कल से माॅ।" विराज ने कहा___"कल सुबह मुझे थोड़ा जल्दी उठा दीजिएगा। ऐसा न हो कि पहले दिन ही मैं लेट हो जाऊॅ।"
"चल ठीक है।" गौरी ने कहा___"मैं तुझे भोर के समय पर ही उठा दूॅगी। अब जा आराम से सो जाना।"

गौरी के कहने पर विराज अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उधर गौरी भी पलट कर अपने कमरे की तरफ चली गई।
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वर्तमान अब आगे______

हरिया काका को उन चारों की खातिरदारी करने का कह कर रितू तहखाने से बाहर आकर सीधा अपने कमरे में चली गई थी। थोड़ी ही देर में हरिया काका की बीवी बिंदिया रितू के कमरे में खाना खाने को पूछने आई तो रितू ने मना कर दिया। बिंदिया के जाने के बाद रितू ने दरवाजा बंद किया और बेड पर जाकर लेट गई। काफी देर तक वह इस सबके बारे में सोचती रही। फिर जाने कब उसकी ऑख लग गई।

सुबह उसकी ऑख उसके मोबाइल फोन के बजने पर खुली। उसने अलसाए हुए से मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नम्बर को देखा तो उसका सारा आलस पल भर में ही दूर हो गया। साथ ही उसके होठों पर एक मुस्कान तैर गई।

"हैलो।" फिर उसने काल रिसीव करते ही कहा।
"................." उधर से कुछ कहा गया।
"वैरी गुड।" रितू ने कहा___"सारी डिटेल मुझे सेन्ड कर दो। एण्ड थैंक्स।"

रितू ने इतना कह कर काल कट कर दी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी। वह तुरंत ही बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ चली गई। करीब आधे घंटे बाद रितू ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठी काॅफी पी रही थी। बिंदिया ने हल्का फुल्का नास्ता बना दिया था उसके लिए। रितू नास्ता और काफी पीकर कर के बाहर निकल गई। लोहे वाले गूट के पास शंकर और हरिया काका बंदूख लिए मिल गए उसे।

"क्या हाल समाचार है काका?" रितू ने हरिया काका की तरफ देख कर कहा___"उन लोगों की खातिरदारी में कोई कमी तो नहीं की न आपने?"
"अइसन होई सकत है का बिटिया?" हरिया काका ने मुस्कुरा कर कहा___"हम ता ऊ ससुरन अइसन पेलेन है कि उन सबकी अम्मा चुद गई है।"

"काका कभी कभी आप बहुत गंदा बोल जाते हैं।" रितू ने बुरा सा मुह बनाया___"आप ये भी नहीं देखते हैं कि मैं आपकी बेटी जैसी हूॅ और आप भी तो मुझे अपनी बेटी जैसी ही मानते हैं न? फिर भला आप कैसे मेरे सामने ऐसे गंदे शब्द बोल सकते हैं?"

"हमका माफ कर दो बिटिया।" हरिया ने तुरंत ही दोनो हाॅथ जोड़ लिये___"ई ससुरी जबान हमरे काबू न रह पावत है। अउर हमहु सरवा जोश जोश मा बोल ही जात हैं। बस अबकी बारी माफ कर दो बिटिया। अगली बारी से अइसन गलती ना होई। हमार कसम।"

"कोई बात नहीं काका।" रितू ने कहा__"अब बताओ उन लोगों का हाल कैसा है अब?"
"कल रात ता खातिरदारी करे रहे हम उनकी ऊके बाद हम अभी तक ना गए हैं।" हरिया ने कहा___"पर ई ता पक्का है बिटिया कि ऊ ससुरन के हाल बेहाल होईगा होई अब तक।"

"चलिए चल कर देखते हैं एक बार।" रितू ने कहा और पलट वापस अंदर की तरफ जाने लगी। हरिया भी उसके पीछे पीछे चल दिया। थोड़ी देर बाद ही वो दोनो तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर पहुॅचे। अंदर पहुॅचते ही रितू और हरिया की नाॅक में बदबू भरती चली गई।

दोनो ने जल्दी से अपने मुह पर रुमाल लगा ली। अंदर का दृश्य बड़ा ही अजीब था। एक तरफ की दीवार पर चारो लड़के बॅधे हुए बेहोशी की हालत में सिर नीचे झुलाए खुद भी झूल से रहे थे। दूसरी तरफ की दीवार में दो बंदूखधारी थे जो सूरज के फार्महाउस पर गार्ड थे।

"काका इन लोगो ने तो यहाॅ गंध फैला रखी है?" रितू ने कहा___"क्या इतनी ज्यादा खातिरदारी की है आपने इन सबकी?"
"अरे ना बिटिया।" हरिया कह उठा__"इनकी खातिरदारी ता हिसाबै से भई रही।"
"तो फिर ये गंध क्यों है यहाॅ?" रितू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे इन लोगों का टट्टी पेशाब सब छूट गया है।"

"वा ता छुटबै करी बिटिया।" हरिया ने कहा___"खुद सोचौ ई ससुरे कल से ईहाॅ बॅधे हैं। अब जब ई ससुरन का टट्टी पेशाब लागी ता का करिहैं ई लोग? कब तक ई सारे ऊ का दबा के रखिहैं? ई चीज़ ता अइसन है बिटिया जे सरकार भी ना रोक पाइहैं, ई ससुरे ता अभी नवा नवा लौंडा हैं।"

"ओह ये तो बिलकुल सही कहा आपने काका।" रितू ने कहा___"लेकिन इन लोगों की इस गंदगी को भी तो दूर करना पड़ेगा वरना ये सब इसी से मर जाएॅगे और मैं इन्हें इतना जल्दी मरने नहीं दे सकती। इस लिए आप यहाॅ की इस गंदगी को हटाने का तुरंत काम शुरू करो।"

"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"पाईप ता लगा ही है। बस मोटरवा का चालू करै का है। ई ता दुई मिनट मा होई जाई बिटिया।"
"ठीक है काका।" रितू ने कहा___"आप ये सब साफ करवा दीजिए मैं पाॅच मिनट में आती हूॅ।"

रितू ये कह कर बाहर निकल गई। उन लोगों की ये दुर्दशा देख कर उसके मन को बड़ी खुशी मिल रही थी। उसने सोचा कि ऐसे हरामियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। पर अभी तो ये शुरूआत है। कुछ देर बाद ही हरिया काका रितू को बुलाने आया। रितू उसके साथ पुनः तहखाने में पहुॅची। इस बार का दृश्य काफी अलग था। तहखाने में जो गंध फैली हुई थी वो अब नहीं थी। काका ने मोटे पाइप से जो पानी का प्रेसर निकलता था उससे तहखाने का पूरा फर्स और दीवारें साफ कर दिया था। फर्स की दीवारों के चारो तरफ किनारे किनारे बड़े बड़े छेंद बने हुए थे। उसमें ही पानी के साथ सारी गंदगी को निकाल दिया था काका ने। उसके बाद तहखाने में रूम फ्रशनर कर दिया था ताकि गंध दूर हो जाए या समझ में न आए।

दीवारों पर रस्सी से बॅधे चारो लड़के और वो दोनो गार्ड्स अब होश में आ चुके थे। रितू ये देख कर चौंकी थी कि उन सभी के जिस्मों पर नीचे कमर से एक लॅगोट टाइप का कपड़ा बाॅध दिया था काका ने बाॅकी पूरा जिस्म नंगा था। ऐसा शायद इस लिए था क्यों कि उन सभी के कपड़े गंदे हो चुके थे और बदबू फैला रहे थे।

इस वक्त वो सभी होश में थे। पाइप के पानी से वो सब नहाए हुए थे। मगर कल से न कुछ खाया था न ही कुछ पिया था उन लोगों ने इस लिए उन सबकी हालत खराब थी।

"हमें छोंड़ दो इंस्पेक्टर।" रोहित ने रोते हुए कहा___"हम तुम्हारे पैर पकड़ते हैं। हमें जाने दो यहाॅ से। हम कसम खाते हैं कि कभी भी किसी लड़की के साथ ऐसा वैसा कुछ नहीं करेंगे।"
"हाॅ हाॅ हम कुछ नहीं करेंगे।" अलोक ने बुरी तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हमें इस नर्क से निकाल दो इंस्पेक्टर। यहाॅ हमारा दम घुटा जा रहा है। कल से हम यहाॅ वैसे के वैसे ही बॅधे हुए हैं। न हमारे पैरों में जान है ना ही हाॅथों में ताकत। हमसे अब और नहीं खड़ा हुआ जा रहा इंस्पेक्टर। प्लीज हमें छोंड़ दो।"

"अभी तो ये शुरूआत है।" रितू ने कठोर भाव से कहा___"मैं तुम लोगों का वो हाल करूॅगी जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा आज तक। तुम लोगों ने जो कुकर्म किया है उसके लिए कानून तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि तुम लोगों के हरामी बाप बड़ी आसानी से तुम लोगों को कानून की गिरफ्त से निकाल लेते। इस लिए मैंने सोचा कि तुम लोगों को कानूनन सज़ा दिलाने से कोई फायदा नहीं होगा बल्कि तुम लोगों को कानून के बाहर आकर ही सज़ा दी जा सकती है। वही मैने किया है। तुम्हारे बाप दादाओं को पता ही नहीं चलेगा कभी कि उनके बच्चे कहाॅ गए हैं?"

"नहीं नहीं ऐसा मत करो।" किशन रो पड़ा___"हम मानते हैं कि हमने अपराध किया है मगर एक बार माफ़ कर दो। एक बार तो सब कोई माफ़ कर देता है इंस्पेक्टर।"
"अगर तम लोगों ने अपने जीवन में सिर्फ एक ही अपराध किया होता तो ज़रूर तुम लोगों को माफ़ कर देती।" रितू ने कहा___"मगर तुम लोगों ने तो एक के बाद एक संगीन अपराध किये हैं। दूसरों की बहन बेटियों की इज्जत खराब कर उनकी ज़िदगी बरबाद की है तुम लोगों ने। मेरे पास तुम सबका काला चिट्ठा मौजूद है। इतना ही नहीं तुम लोगों के बाप का भी। मेरे पास ऐसे ऐसे सबूत हैं कि तुम लोगों के बापों को मैं सबके सामने नंगा दौड़ा सकती हूॅ।"
रितू की ये बातें सुन कर उन सबकी रूह काॅप गई। उन्हें अपनी स्थित और अपने बापों की स्थित का अंदाज़ा अब हुआ था। उनके बाप तो जानते भी नहीं थे कि उनके बच्चे उनकी ही अश्लील वीडियो बनाए हुए हैं। खुफिया कैमरे से वीडियो बनाई गई थी और इन सबका मास्टर माइंड सूरज चौधरी था।

"काका इन सबको आज का भोजन दे दो।" रितू ने हरिया से कहा___"मगर भोजन भी वही देना जो हम कुत्तों को देते हैं। छलनी में आटा छालने से जो छलनी में बचता है ना उसी की मोटी रोटिया बनवाना और इन चारों को सिर्फ एक एक सूखी रोटी देना। जबकि इन दोनों गार्ड्स को ठीक ठाक भोजन दे देना। क्योंकि इन लोगों इन हरामियों के जैसा कोई अपराध नहीं किया है। ये तो बस गेहूॅ के साथ घुन की तरह यहाॅ पिसने आ गए हैं। इन्हें छोंड़ा नहीं जा सकता वरना ये दोनो उस चौधरी को यहाॅ की सारी बातें बता देंगे।"

"हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे बेटी।" एक गार्ड शालीनता से बोला___"हम इन सबके बारे में सबकुछ जानते हैं। ये लोग सचमुच बहुत ही गंदे लोग हैं। हम तो ग़रीब आदमी हैं। दो पैसों के लिए इनके यहाॅ गार्ड की नौकरी कर रहे थे। ये लोग और इन लोगों के बाप जब भी फार्महाउस आते थे तो उन लोगों के साथ हर बार कोई दूसरी लड़कियाॅ होती थी। रात भर ये लोग अंदर अय्याशियाॅ करते। कुछ लड़कियों को ये लोग जबरदस्ती उठा लाते थे और उनकी इज्जत को तार तार करते थे। ये सब बड़े लोग हैं बेटी। पैसों की गरमी ने इन्हें शैतान बना दिया है।"

"साले हरामजादे हमारा नमक खाता है और हमारे ही बारे में ऐसी बातें करता है?" सूरज गुस्से में चीखा था।
"मेरे हाॅथ बॅधे हैं छोरे।" गार्ड ने कहा___"वरना तुझे बताता कि मुझे हरामजादा कहने का क्या अंजाम होता। नमक खाता था तो मुफ्त का नहीं खाता था समझे। बीस बीस घंटे चौकीदारी करता था तब तेरे बाप का नमक खाता था मैं। बात करता है साला रंडी की औलाद।"

"अपनी जुबान को लगाम दे कुत्ते।" सूरज पूरी शक्ति से चीखा था।
"कुत्ता तो तू है साले गस्ती की औलाद।" गार्ड ने भी ताव खाते हुए बोला___"इसी लिए तेरे लिए ऐसी रोटी बनने वाली है।"

सूरज खून के ऑसू पीकर रह गया। उसकी ऑखों में ज्वाला धधकने लगी थी। रितू उन दोनो की बाते सुन रही थी और सोच भी रही थी कि गार्ड तो बेचारे बेकसूर ही हैं। पर वो उन्हें छोंड़ कर कोई रिश्क नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि ये भी हो सकता था कि वो दोनो अच्छा बनने का नाटक कर रहे हों। यानी सूरज ने उन लोगों को सिखाया पढ़ाया हो कि उसके आते ही हमें आपस में कैसी बातें करनी है। ताकि रितू यही समझे कि गार्ड्स बेकसूर हैं और वो उन्हें छोंड़ देने का विचार करे। और अगर वो छोंड़ देगी तो फिर वो यहाॅ से जाकर सीधा चौधरी को सारी बात बता देंगे। उसके बाद चौधरी रितू का हिसाब किताब कर लेता।

"काका, अभी भी इसमें गरमी बाॅकी है " रितू ने कहा___"इस लिए खिला पिला कर ज़रा अच्छे से फिर खातिरदारी करना। भोजन में कुत्ते वाली सिर्फ एक रोटी ही देना इन्हें। इसके बाद कल ही इन्हें खाना देना। अब चलती हूॅ मैं।"
"ठीक बिटिया।" हरिया खातिरदारी का सुन कर खुश हो गया था।

रितू पलट कर तहखाने के दरवाजे से बाहर निकल गई। उसके जाते ही हरिया ने तहखाने का दरवाजा बंद किया। एक कोने में रखे मोटे डंडे को उठाया और उन चारों की तरफ बढ़ा। हरिया को अपने करीब आते देख उन चारों की रूह काॅप गई।

"का रे मादरचोद।" हरिया ने सूरज की टाॅग में मोटा डंडा घुमा कर जड़ दिया___"बहुतै गरमी चढ़ रखी है न तोही। हम लोगन की गरमी को बहुतै अच्छे से उतारता हूॅ।"
"माफ कर दो काका।" सूरज ने सहसा हरिया से रिश्तेदारी जोड़ते हुए कह उठा___"ग़लती हो गई। अब कुछ नहीं कहूॅगा। प्लीज़ माफ़ कर दो न।"

"माफ़ी ता हम दे दूॅगा बछुवा।" हरिया ने डंडे को सूरज के पिछवाड़े पर हौले हौले सहलाते हुए कहा___"पर एखर कीमत दे का पड़ी। बोल दे सकत है तू कीमत?"
"कैसे कीमत काका?" सूरज ने नासमझने वाले भाव से कहा।

"ऊ का है ना बछुवा।" हरिया ने कहा___"हमका अपने जीवन मा एक बार ता जरूर केहू के गाॅड मारै का मन रहा। जब हमरी तोहरे काकी से शादी हुई ता हम बड़ा खुश हुए। सुहागरात मा हम तोहरे काकी से बोल दिये कि हमका तोर गाॅड मारै का है। पर ऊ ससुरी हमरी ई बात पर बिगड़ गै। फेर ता अइसनै चलत रहा बछुवा अउर हम आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन। एसे हम कहत हैं कि कीमत मा तोही आपन गाॅड हमसे मरावै का पड़ी।"

"नहीं नहीं।" सूरज हरिया की ये बात सुन कर अंदर तक काॅप गया।
"देख बछुवा ई ता तोही करै का पड़ी।" हरिया ने कठोरता से कहा__"ई हमरे खुशी का बात है। सरवा आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन हम। पर आज ता हम तोर गाॅड मार के रहब बछुवा। अब ई तै सोच ले कि तू ई सब खुशी मा करिहे या रोई रोई के। हीहीहीहीही।"

हरिया ज़ोर ज़ोर से हॅसे जा रहा था। उसकी हॅसी ने तहखाने में बड़ा ही भयानक वातावरण पैदा कर दिया था। उन चारी की अंतरआत्मा तक काॅप गई। सूरज तो हरिया को इस तरह देखने लगा था जैसे वह उसका काल हो।
 
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"हमरे बिटिया केर बात ता तू लोग सुन ही लिये हो ना।" हरिया कह रहा था___"तू सब अब इहैं रहने वाले हो। अउर हम अब तू ससुरन के रोज बारी बारी से गाॅड मारब।"
"ऐसा मत करो काका हम तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं प्लीज।" रोहित सहमे हुए से बोला।

"हाॅथ जोड़ै का कौनव फायदा ना होई बछुवा।" हरिया ने कहा___"काहे से के ई हमरे ख्वा....अरे ऊ का कहत हैं...ख्वाहिश...हाॅ ईहैं...हाॅ ता ई हमरे ख्वाहिश का बात है। गाॅड मारै का हमरा बहुतै ख्वाहिश है बछुवा। अब ई बात मा हम कौनव केर बात ना मानब। चल रे पहिले तोरै गाॅड का उद्घाटन हम करब हीहीही।"

सूरज की गाॅड में हरिया ने ज़ोर से मोटा डंडा जड़ दिया। सूरज दर्द के मारे पूरी शक्ति से चीखने लगा था। जबकि हरिया ने सूरज की कमर में बॅधे कपड़े को खोल कर एक तरफ उछाल दिया। सूरज बुरी तरह इधर उधर हो रहा था। मगर दोनो हाथ ऊपर बॅधे थे और दोनो पैर फैलाए हुए चारों के पैरों से बॅधे हुए थे।

"ई का रे रंडी केर दुम।" हरिया सूरज की लुल्ली को देख कर कहा___"ई ता बच्चन जइसन है रे। मादरचोद नामरद है का रे?"
"आहहहहह।" अपनी लुल्ली पर डंडे की हल्की मार पड़ते ही सूरज बिलबिला उठा था।

इधर हरिया ने ऊपर खूॅटी से रस्सी की गाॅठ खोल कर सूरज के ऊपर उठे हुए हाॅथों को नीचे की तरफ कर दिया। सूरज का बाजू बुरी तरह अकड़ गया था। कल से एक ही पोजीशन में बॅधा था वह। इस वक्त वह जन्मजात नंगा था। वह बुरी तरह हिल रहा था और हरिया से अपनी गाॅड न मारने के लिए विनती कर रहा था। मगर हरिया मानने वालों में से नहीं था।

"हमने कहा ना बछुवा।" हरिया ने सूरज की मुंडी पकड़ कर आगे की तरफ झुका दिया, फिर बोला___"हम कौनव बात ना मानब। ई हमरे ख्वाहिश केर बात है। एसे हम तोर गाॅड ता मरबै करब।"

हरिया ने अपनी सफेद धोती की गाॅठ छोरी और धोती को खोल कर ऊपर खूॅटी पर टाॅग दिया। सूरज थर थर काॅप रहा था। उसके हाॅथ आपस में अभी भी बॅधे हुए थे इस लिए वह ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था। इस वक्त वह हरिया से ये सब न करने के लिए गिड़गिड़ाए जा रहा था।

"काहे बछुवा।" हरिया ने सूरज की नंगी गाॅड में ज़ोर से एक थप्पड़ लगाया, बोला___"अब काहे गिड़गिड़ाय रहा है। कछू याद है? अइसनै ऊ लड़कियन लोग भी तोहरे सामने गिड़गिड़ाती रही होंगी। मगर तू उन मा से केहू केर बात न माने रहे होई है ना? ता मादरजोद फेर हमसे कइसन या उम्मीद करत है कि हम तोर बात मान जाब रे वैश्या के जने सारे?"

सूरज के बगल से बॅधे बाॅकी तीनों ये सब डरे सहमे से देख रहे थे। उनकी हालत बहुत खराब थी। वो ये सोच सोच कर मरे जा रहे थे कि सूरज के बाद उनके साथ भी यही सब होगा। कभी स्वप्न में भी उन लोगों ने ये नहीं सोचा था कभी ऐसा भी वक्त उनके जीवन में आएगा।

"आआआहहहहह।" सूरज के मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। हरिया उसके सामने आकर सूरज के सिर के बाल पकड़ कर उठाया था, बोला___"ले देख मादरचोद कि लौड़ा केही कहत हैं। देख न रंडी के पूत। हम चाहू ता अपने ई लौड़े से तुम सबकी एकै बार मा गाॅड फाड़ दूॅ मगर फाड़ूॅगा नहीं। हम ता एक एक करके अउर तसल्ली से तुम चारोन की गाॅड मारब ससुरे लोग।"

हरिया नीचे से नंगा हो चुका था और इस वक्त अपने मोटे तगड़े लौड़े को सूरज के चेहरे के बेहद पास सहला रहा था। सूरज झुका हुआ था क्योकि हरिया ने एक हाॅ से उसके सिर के बाल पकड़ कर उसे नीचे झुकाया हुआ था।

देखते ही देखते हरिया का लौड़ा अकड़ कर खड़ा हो गया। बाॅकी तीनों आश्चर्य से हरिया के लौड़े की तरफ देखे जा रहे थे। उन लोगों की ये सोच कर नानी मर गई कि यही लौड़ा उन लोगों की भी गाॅड मारेगा। हरिया सूरज के पीछे आ गया। अपने पीछे जाते देख सूरज फिर से बुरी तरह हिलने लगा। वह बार बार हरिया से मिन्नतें करने लगता था।

"चिन्ता ना कर बछुवा।" हरिया ने सूरज की गाॅड को फैलाते हुए कहा___"बस एकै बार तीनौ लोकन के दर्शन होई हैं ऊखे बाद ता मजा मिली। अउर हाॅ गाॅड का अपने ढीलै रखिहे नाहीं ता ससुरे फाट जाई ता हमरा दोष ना दीहे।"

सूरज बुरी तरह छटपटाए जा रहा था। मगर हट्टे कट्टे हरिया का एक हाॅथ सूरज के सिर पर था जिसे वह सूरज को नीचे झुके रहने के लिए मजबूर किये हुए था। जबकि दूसरे हाॅथ से वह ढेर सारा थूॅक लेकर उसे अपने लौड़े पर लगाया और फिर लौड़े पकड़ कर सूरज की गाॅड में सेट किया।

तहखाने में मौजूद बाॅकी तीनो वो लड़के और वो दोनो गार्ड्स फटी ऑखों से ये दृश्य देखे जा रहे थे। हरिया ने लौड़ा सेट कर गाॅड की तरब दबाव बढ़ाया।

"आआआहहहहह।" सूरज को दर्द होने लगा। उसकी गाॅड बेहद टाइट थी। जबकि हरिया का लौड़ा मोटा तगड़ा था। हर पल के साथ सूरज की हालत हलाल होते बकरे जैसी होती जा रही थी। वह बुरी तरह छटपटा रहा मगर हरिया की मजबूत पकड़ से वह छूट नहीं पा रहा था। बड़ी मुश्किल से हरिया के लौड़े का टोपा सूरज की गाॅड में घुसा। इतने में ही सूरज गला फाड़े चिल्लाने लगा था।

"सबर कर बछुवा।" हरिया ने कहा___"गला फाड़ने से का होई? ऊ ता हिम्मत रखै से होई। अउर ई ता अबे शुरूआतै हुआ है। अबे ता मंजिल बहुत बाॅकी है बछुवा।"
"आआहहहहहह मममममम्मी रेरेएएएएएए।" हरिया ने ज़ोर का झटका दिया। सूरज की गाॅड को चीरता हुआ हरिया का लौड़ा लगभग आधा घुस गया था। सूरज के मुख से बड़ी भयंकर चीख निकली थी। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा छा गया। सूरज बेहोश हो चुका था। उसकी हालत देख कर बाकी सब के होश उड़ गए। सूरज के दोस्त थर थर काॅपने लगे। वो अनायास ही ज़ोर ज़ोर से पागलों की तरह रोने चिल्लाने लगे।

"अबे चुप करा मादरचोदो वरना ई लौड़ा इसकी गाॅड से निकाल के तुम्हरी गाॅड में घुसेड़ दूॅगा हम।" हरिया गुर्राया तो वो डर के मारे एक दम से चुप हो गए। उनके चुप हो जाने के बाद हरिया ने सूरज की गाॅड में थप्पड़ मारते हुए बोला___"का बे मादरचोद। ससुरे इतने से ही टाॅय बोल गया रे। अभी ता हम पूरा लौड़ा डाला भी नहीं हूॅ।"

हरिया सूरज की गाॅड में धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ वह थोड़ा बहुत लौड़े को सूरज की गाॅड में घुसेड़ता ही रहा था। सूरज बेहोशी की हालत में भी कराह रहा था। हरिया एक बार तेज़े से धक्का लगाया तो एच ज़ोरदार चीख के साथ सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वह बुरी तरह रोने बिलखने लगा। रहम की भीख माॅगने लगा वह। मगर हरिया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका वह। तहखाने में सूरज का रोना और चिल्लाना ज़ारी रहा।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 37 》


उधर मुम्बई में भी सुुुुबह हुई।
गौरी ने सुबह पाॅच बजे ही विराज को उठा दिया था। सुबह उठ कर उसने थोड़ी बहुत एक्सरसाइज की और फिर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। फ्रेश होने के बाद वह कमरे में आया तो देखा कि उसकी बहन निधि बेड पर बैठी हुई है।

"अरे तुझे स्कूल नहीं जाना क्या?" मैने तौलिये से अपने सिर के बालों को पोंछते हुए कहा।
"जाना है।" निधि ने गौर से मेरे शरीर को देखते हुए कहा___"मैं तो बस आपको बेस्ट ऑफ लक कहने आई थी।"

"अच्छा तो ये बात है।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मेरी गुड़िया मेरी जान मुझे बेस्ट ऑफ लक कहने रूम में आई है?"
"हाॅ लेकिन अपने तरीके से।" निधि ने मुस्कुरा कर कहा।
"अपने तरीके से?" मैं उसकी बात से नासमझने वाले अंदाज़ से बोला___"किस तरीके की बात कर रही है तू?"

"वो मैं कर के बताऊॅगी भइया।" निधि ने कहा___"बस आपको अपनी दोनो ऑखें बंद करना पड़ेगा। और खबरदार ग़लती से भी अपनी ऑखें मत खोलियेगा। वरना मैं आपसे बात नहीं करूॅगी। हाॅ नहीं तो।"

"अरे ये क्या कह रही है गुड़िया?" मैं उसकी बात से हैरान हुआ___"आख़िर क्या चल रहा है तेरे मन में?"
"कुछ नहीं चल रहा भइया।" निधि एकाएक ही हड़बड़ा गई थी, बोली___"बस आप अपनी ऑखें बंद कीजिए न।"

मैं उसे ग़ौर से देखता रहा। उसके चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। खूबसूरती में वह बिलकुल मेरी माॅ की कार्बन काॅपी ही थी। हलाॅकि उसका चेहरा और उसका पूरा रंगरूप मेरी माॅ गौरी की तरह ही था। वो माॅ की हमशक्ल टाइप की थी।

"क्या हुआ भइया?" निधि कह उठी___"क्या सोचने लगे आप? बंद कीजिए न अपनी ऑखें।"
"अच्छा ठीक है बंद करता हूॅ।" मैने कहा__"पर कोई उटपटाॅग हरकत मत करना।"
"मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करूॅगी भइया।" निधि ने कहा___"और अगर कर भी दूॅ तो मेरी भूल समझ कर मुझे माफ़ कर देना। हाॅ नहीं तो।"

मैं उसकी नटखट बातों पर मुस्कुरा उठा और अपनी ऑखें बंद कर ली। कुछ पल बाद ही मुझे अपने होठों पर कोई बहुत ही कोमल चीज़ महसूस हुई। अभी मैं कुछ समझ भी न पाया था कि उस कोमल चीज़ ने मेरे होठों को जोर से दबोच कर दो सेकण्ड तक अपने अंदर रख कर उस पर कुछ किया उसके बाद छोंड़ दिया। मेरे दिमाग़ में विस्फोट सा हुआ। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जली। मैने झट से अपनी ऑखें खोल दी। सामने देखा तो निधि भागते हुए कमरे के दरवाजे पर नज़र आई मुझे। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह रुकी और फिर पलटी। उसके बाद मुस्कुराते हुए कहा__"बेस्ट ऑफ लक भइया।" इतना कह कर वह दरवाछे के बाहर की तरफ हवा की तरह निकल गई। जबकि मैं बुत बना खड़ा रह गया।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी बहन ने इन कुछ पलों के भीतर मेरे साथ क्या कर दिया था। वह मेरे होठों को बड़ी चतुराई से चूम कर मुझे बेस्ट ऑफ लक कहा और भाग भी गई। मुझे उससे इस सबकी उम्मीद नहीं थी। फिर मुझे ध्यान आया कि वो मुझसे प्यार करती है जिसका उसने इज़हार भी किया था।

मैं काफी देर तक बुत बना खड़ा रहा। मेरी तंद्रा तब टूटी जब माॅ कमरे में आकर बोली___"तू अभी तक तैयार नहीं हुआ काॅलेज जाने के लिए? चल तैयार होकर आ जल्दी। मैने नास्ता तैयार करके लगा दिया है।"

मैं माॅ की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा था। उसके बाद मैंने माॅ से कहा कि आप चलिए मैं आता हूॅ। मेरे दिमाग़ में अभी तक यही चल रहा था कि गुड़िया ने ऐसा क्यों किया? मुझे अपने होठों पर अभी भी उसके नाज़ुक होठों का एहसास हो रहा था। मैने अपने होठों पर जीभ फिराई तो मुझे मीठा सा लगा। उफ्फ ये क्या है? मेरी गुड़िया के मुख और होठों का लार इतना मीठा था। मुझे अपने अंदर बड़ा अजीब सा रोमाॅच होता महसूस हुआ। मेरा रोम रोम गनगना उठा था।

ख़ैर मैं काॅलेज की यूनीफार्म पहन कर कमरे से बाहर आया और फिर नीचे डायनिंग हाल की तरफ बढ़ गया। डायनिंग टेबल पर इस वक्त सब लोग बैठे हुए थे। जगदीश अंकल, अभय चाचा, गुड़िया और माॅ। मैं भी एक कुर्सी खींचकर बैठ गया। मेरी नज़र निधि पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपना चेहरा झुका लिया। उसके गोरे गोरे और फूले हुए गाल कश्मीरी सेब की तरह सुर्ख हो गए थे लाज और शर्म की वजह से।

"ये बहुत अच्छा किया राज जो तुमने अपनी पढ़ाई जारी कर दी।" सहसा सामने कुर्सी पर बैठे अभय चाचा ने कहा___"मुझे खुशी है कि इतना कुछ होने के बाद भी तुम अपने रास्ते से नहीं भटके। मुझे तुम पर फक्र है राज और मेरा आशीर्वाद है कि तुम हमेशा कामयाबी और सफलता के नये और ऊॅची बुलंदियों को प्राप्त करो।"

"शुक्रिया चाचा जी।" मैने कहा___"भले ही चाहे जो हुआ हो लेकिन मैं जानता था कि आपके दिल में हमारे लिए इतनी भी नफ़रत नहीं होगी जितनी कि बड़े पापा और बड़ी माॅ के दिलों में है हमारे लिए।"

"समय बहुत बलवान होता है राज।" अभय चाचा ने कहा___"और बहुत बेरहम भी। वो हमसे वो सब भी करवा लेता है जिसे करने की हम कभी कल्पना भी नहीं करते। पर कोई बात नहीं बेटे, इंसान वही श्रेष्ठ और महान होता है जो हर तरह के कस्टों को पार करके आगे बढ़ता है।"

"राज बेटा मैने तुम्हारे लिए काॅलेज जाने के लिए एक नई और शानदार कार मगवा दी है जो कि बाहर ही खड़ी है।" जगदीश अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा___"हम चाहते हैं कि तुम अपने नये सफर की शुरूआत उसी से करो।"

"इसकी क्या ज़रूरत थी अंकल?" मैने कहा___"मैं वहाॅ पर पढ़ने जा रहा हूॅ ना कि किसी को अपनी अमीरी दिखाने। माफ़ करना अंकल लेकिन मैं चाहता हूॅ कि मैं भी उसी तरह कालेज जाऊॅ जैसे सभी आम लड़के जाते हैं। बाॅकि ऑफिस के कामों के लिए मैं ये सब यूज करूॅगा। मुझे खुशी है कि आपने मेरे लिए एक नई कार लाकर दी।"

"ठीक है बेटे जैसी तुम्हारी इच्छा।" जगदीश अंकल ने कहा___"मुझे ये जान कर अच्छा लगा कि तुम ऐसी सोच रखते हो।"
"वैसे राज किस काॅलेज में एडमीशन लिया है तुमने?" अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए पूछा।
"..............में चाचा जी।" मैने बताया।
"अरे इस काॅलेज में तो नीलम ने भी एडमीशन लिया हुआ है।" अभय चाचा चौंके थे___"और निश्चय ही तुम्हारी मुलाक़ात उससे होगी ही वहाॅ। वो जब तुम्हें वहाॅ पर देखेगी तो जरूर बड़े भइया को बताएगी कि तुम भी उसी काॅलेज में पढ़ रहे हो जहाॅ पर वो पढ़ रही है। उसके बाद तुम पर ख़तरा भी हो सकता है बेटे। इस लिए ज़रा सम्हल कर रहना।"

"चिन्ता मत कीजिए चाचा जी।" मैने अजीब भाव से कहा___"मैं तो चाहता ही हूॅ कि अब धीरे धीरे बड़े पापा को ये पता लगे कि मैं किस जगह पर हूॅ। उन्होने तो मेरी तलाश में जाने कब से अपने आदमियों को लगाया हुआ है। उनके आदमी आज महीने भर से मेरी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"

"तुम्हें ये सब कैसे पता?" अभय चाचा बुरी तरह चौंके थे।
"मैं उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहा___"आप अभी कुछ नहीं जानते हैं कि मैंने यहाॅ पर बैठे बैठे ही उनकी कैसी कैसी खातिरदारी की है।"

"क्या मतलब?" अभय चाचा के माथे पर बल पड़ता चला गया, बोले___"किस खातिरदारी की बात कर रहे हो तुम?"
"ये सब आपको जगदीश अंकल बता देंगे चाचा जी।" मैने कहा___"फिलहाल तो मैं अभी काॅलेज जा रहा हूॅ। आज मेरा पहला दिन है। इस लिए मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने इस सफर पर कामयाब होऊॅ।"

"मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ ही रहेगा राज।" अभय चाचा ने कहा।
उसके बाद हम सबने नास्ता किया और फिर नास्ता करके मैंने अपना बैग लिया। सबसे आशीर्वाद लेकर मैं निधि को लेकर बाहर आ गया।

मैने गैराज से अपनी बाइक निकाली और निधि को पीछे बैठा कर लान से होते हुए मेन गेट से बाहर निकल गया। निधि मेरे साथ इस लिए थी क्योंकि उसे भी स्कूल जाना था। जोकि मेरे काॅलेज के रास्ते पर ही था। निधि मेरे पीछे चुपचाप बैठी हुई थी। वो कुछ बोल नहीं रही थी। ये बड़ी आश्चर्य की बात थी वरना वह चुप रहने वालों में से न थी।

"तो मैडम आज चुप चुप सी क्यों है भई?" मैने बाइक चलाते हुए कहा___"वैसे आज तो मैडम ने ग़जब ही कर दिया है।"
"आप किससे बात कर रहे हैं भइया?" निधि ने कहा।
"किससे का क्या मतलब है मैडम?" मैने कहा___"आप ही से बात कर रहा हूॅ।"

"अच्छा।" निधि ने कहा___"तो मैं मैडम हूॅ?"
"और नहीं तो क्या।" मैने कहा___"मेरी गुड़िया किसी मैडम से कम है क्या?"
"ओहो ऐसा क्या?" निधि एकदम से सरक कर मुझसे चिपक गई, बोली___"लेकिन आपकी टोन बदली हुई क्यों लग रही है मुझे?"

"क्या बताऊॅ गुड़िया?" मैने कहा___"आज सुबह सुबह एक बिल्ली ने मेरे होठों को काट लिया था।"
"क्या?????" निधि चीख पड़ी___"आपने मुझे बिल्ली कहा? अपनी जान को बिल्ली कहा? जाइए नहीं बात करना आपसे। हाॅ नहीं तो।"

"अरे तो तुम क्यों नाराज़ हो रही हो?" मैने कहा___"मैं तो उस बिल्ली की बात कर रहा हूॅ जिसने आज मेरे होठों को काटा था।"
"फाॅर काइण्ड योर इन्फोरमेशन।" निधि ने कहा___"आप जिसे बिल्ली कह रहे हैं वो मैं ही थी। और आपने मुझे बिल्ली कहा। बहुत गंदे हैं आप। हाॅ नहीं तो।"

"ओह माई गाॅड।" मैने कहा___"तो वो तुम थी?"
"ज्यादा ड्रामें मत कीजिए।" निधि एकाएक मुझसे अलग होकर बाइक में पीछे सरक गई, बोली___"मुझे आपसे बात नहीं करनी बस। आपने अपनी जान को बिल्ली कहा है। ये तो मेरी इनसल्ट है, हाॅ नहीं तो।"

"लेकिन मुझे ये सब अच्छा नहीं लगा गुड़िया।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"तुझे वैसा नहीं करना चाहिए था मेरे साथ। ये ग़लत है।"

मेरी इस बात पर निधि की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न हुई। वो एकदम से चुप थी।
"तू जानती है न कि भाई बहन के बीच ये सब ग़लत होता है।" मैने कहा___"मैने उस दिन भी तुझसे कहा था। फिर आज तूने ऐसा क्यों किया गुड़िया? तुझे पता है अगर ये सब माॅ को पता चल गया तो उन पर क्या गुज़रेगी?"

इस बार भी निधी कुछ न बोली। मैं उसकी चुप्पी देख कर बेचैन व परेशान सा हो गया। मैंने तुरंत ही सड़क के किनारे पर बाइक को रोंक दी और पीछे पलट कर देखा तो चौंक गया। निधि का चेहरा ऑसुओं से तर था। उसकी ऑखें लाल हो गई थी। मैं उसकी इस हालत को देख कर हिल सा गया। वो मेरी बहन थी, मेरी जान थी। उसकी ऑखों में ऑसूॅ किसी सूरत में नहीं देख सकता था मैं। मैं तुरंत बाइक से नीचे उतरा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया।

"ये क्या है गुड़िया?" मैने दुखी भाव से कहा___"तू जानती है न कि मैं तेरी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकता। फिर क्यों तूने अपनी ऑखों को रुलाया? क्या मुझसे कोई ग़लती हो गई है? बता न गुड़िया।"
"ये ऑसू तो अब मेरी तक़दीर में लिखने वाले हैं भइया।" निधि ने भर्राए गले से कहा__"जब से होश सम्हाला था तब से आप ही को देखा था, आपको ही अपना आदर्श माना था। फिर हमारे साथ वो सब कुछ हो गया। आप हमसे दूर यहाॅ नौकरी करने आ गए। मगर दो दिल तो हमेशा रोते रहे। एक अपने बेटे के लिए तो एक अपने भाई की मोहब्बत के लिए। मैं नहीं जानती भइया कि कब मेरे दिल में आपके लिए उस तरह का प्रेम पैदा हो गया। फिर मैने आपकी वो डायरी पढ़ी। जिसमें आपने अपनी मोहब्बत की दुखभरी दास्तां लिखी थी। विधी की बेवफाई से आप अंदर ही अंदर कितना दुखी थे ये मुझे उस डायरी को पढ़ कर ही पता चला था। उस दिन जब हम दोनो घूमने समंदर गए थे। तब आपने वहाॅ शराब पी और अपनी हालत खराब कर ली थी। आपको मेरे चेहरे में विधी नज़र आई और आपने अपने दिल का सारा गुबार निकाल दिया। मैं आपकी उस दशा को देख कर बहुत दुखी हो गई थी। आप तो शुरू से ही मेरी जान थे। मुझे उस दिन लगा कि आपको सहारे की ज़रूरत है। मैंने जो अब तक अपने दिल में उस प्रेम को छुपाया हुआ था उसे बाहर लाने का फैसला कर लिया। मुझे किसी की परवाह नहीं थी कि लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे? मुझे तो बस इस बात की फिक्र थी कि मेरे भइया दुखी न रहें। मैं अपकी खुशी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई थी। इसी लिए उस दिन मैने आपसे अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था। मुझे पता है कि भाई बहन के बीच ये सब नहीं हो सकता इसके बावजूद मैंने ये अनैतिक कदम उठा लिया। आपने भी तो बाद में मुझसे यही कहा था न कि ठीक है तुझे जो करना है कर। मोहब्बत तो किसी से भी हो सकती है। लेकिन आज फिर आपने कह दिया कि ये सब ग़लत है। अब तो ऐसा हाल हो चुका है कि मेरे दिल से आपके लिए वो चाहत जा ही नहीं सकती। मुझे इस बात पर रोना आया भइया कि आप कभी मेरे नहीं हो सकते। ये देश ये समाज कभी मेरी झोली में आपको जायज बना कर नहीं डाल सकता। तो फिर ये ऑसूॅ तो अब मेरी तक़दीर ही बन गए न भइया। इन ऑसुओं पर आज तक भला किसी का ज़ोर चला है जो मेरा चल जाएगा।"

मैं निधि की बातें सुन कर चकित रह गया था। मुझे उसकी हालत का एहसास था। क्योंकि इश्क़ के अज़ाब तो मुझे पहले से ही हासिल थे। जिनका असर आज भी ऐसा है कि दिल हर पल तड़प उठता है। लेकिन मैं अपनी बहन की मोहब्बत को कैसे स्वीकार कर लेता? मेरी माॅ एक आदर्शवादी और उच्च विचारों वाली है। उसे अगर ये पता चल गया कि उसकी अपनी औलादें ऐसा अनैतिक कर्म कर रही हैं तो वो तो जीते जी मर जाएगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किसे चुनूॅ? अपनी बहन की मोहब्बत को या फिर माॅ को?

"सब कुछ समय पर छोड़ दो गुड़िया।" मैने कहा___"और हर पल यही कोशिश करो कि ये सब तुम्हारे दिल से निकल जाए।"
"नहीं निकलेगा भइया।" निधि ने रोते हुए कहा___"मैने बहुत कोशिश की मगर नहीं निकाल सकी मैं अपने दिल से आपको। ख़ैर जाने दीजिए भइया। आप परेशान न होईये। आज के बाद आपको शिकायत का मौका नहीं दूॅगी।"

मैने निधि को ध्यान से देखा। उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव दिखाई देने लगे थे। जैसे उसने कोई फैंसला कर लिया हो। मैने उसकी ऑखों से ऑसू पोछे और फिर वापस बाइक पर आ गया। बाइक स्टार्ट कर मैं आगे बढ़ गया। सारे रास्ते निधि चुप रही। मुझे भी समझ न आया कि मैं क्या बातें करूॅ उससे। थोड़ी ही देर में उसका स्कूल आ गया। मैने उसे स्कूल के गेट पर उतारा और प्यार से उसके सिर पर हाॅथ फेर कर आगे बढ़ गया। निधि के बारे में सोचते सोचते ही मैं काॅलेज पहुॅच गया।
____________________________

पुलिस हेडक्वार्टर गुनगुन।
लम्बी चौड़ी मेज के उस पार पुलिस कमिश्नर बैठा हुआ था। जिसकी वर्दी पर लगी नेम प्लेट में उसका नाम कुलभूषण घोरपड़े लिखा हुआ था। पचास से पचपन के बीच की ऊम्र का वह एक प्रभावशाली ब्यक्तित्व वाला इंसान था। उसके बाएॅ साइड की एक कुर्सी पर इंस्पेक्टर रितू बैठी हुई थी। बाॅकी पूरा ऑफिस खाली था।

रितू ने कमिश्नर से गुज़ारिश की थी कि वो अपनी बात सिर्फ उनसे ही करेगी। उन दोनो के बीच कोई तीसरा नहीं होना चाहिए। कमिश्नर चूॅकि अच्छी तरह जानता था कि रितू हल्दीपुर के बघेल परिवार की ठाकुर अजय सिंह की बेटी है। इस लिए उसकी इस गुज़ारिश को उसने स्वीकार कर लिया था वरना पुलिस की एक मामूली सी इंस्पेक्टर रैंक की ऑफिसर की इस डिमाण्ड को स्वीकार करना कदाचित कमिश्नर की शान में गुस्ताख़ी करने जैसा होता।

"सो ऑफिसर, अब बताओ कि ऐसी क्या खास बात करनी थी तुम्हें जिसके लिए तुमने हमसे ऐसी गुज़ारिश की थी?" पुलिस कमिश्नर ने कहा___"ये तो हम समझ गए हैं कि मामला यहाॅ के मंत्री और उसके बेटे का है। लेकिन ये समझ नहीं आया कि अचानक से तुम्हारा प्लान कैसे बदल गया?"

"आप तो जानते हैं सर कि हमारा कानून आज के समय में बड़े बड़े लोगों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया है।" रितू ने कहना शुरू किया___"मंत्री के जिस बेटे ने अपने दोस्तों के साथ उस मासूम लड़की के साथ वो घिनौना कुकर्म किया था उसके लिए उसे कानूनन कोई सज़ा मिल ही नहीं पाती। क्योंकि उन सभी लड़कों के बाप इस शहर की नामचीज़ हस्तियाॅ हैं। उनके एक इशारे पर हमें पुलिस के लाॅकअप का ताला खोल कर उन लड़कों को छोंड़ देना पड़ता। हमारे पास भले ही चाहे जितने सबूत व गवाह होते मगर हम उन सबूतों और गवाहों के बाद भी उन्हें कानूनी तौर कोई सज़ा नहीं दिला पाते। उल्टा होता ये कि उन पर हाॅथ डालने वालों के साथ ही कुछ बुरा हो जाता। वो लड़की बग़ैर इंसाफ पाए ही इस दुनियाॅ से अलविदा हो जाती। आप नहीं जानते सर, उस लड़की को ब्लड कैंसर है। वह बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। उन दरिंदों को उस पर ज़रा सी भी दया नहीं आई। आप उस लड़की की कहानी सुनेंगे तो हिल कर रह जाएॅगे सर। इस छोटी सी ऊम्र में उसने कितना बड़ा त्याग किया है इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। ऐसे कुकर्मियों का एक ही इलाज़ है सर___सज़ा ए मौत। ऐसे लोगों को हज़ार बार ज़िंदा करके हज़ारों बार तड़पा तड़पा कर मारा जाए तब भी कम ही होगा। इस लिए सर मैने उन सबको ऐसी ही सज़ा देने का फैंसला किया है।"

"देखो ऑफिसर भावनाएॅ और जज़्बात रखना बहुत अच्छी बात है।" कमिश्नर ने कहा___"लेकिन हमारे कानून में भावनाओं और जज़्बातों के आधार पर किसी का फैंसला नहीं हुआ करता। बल्कि ठोस सबूतों और गवाहों के आधार पर ही फैंसला होता है। तुम कानून की एक रक्षक हो तुम्हें इस तरह का गैरकानूनी फैसला लेने का कोई हक़ नहीं है। किसे सज़ा देनी है और कैसे देनी है ये फैसला अदालत करेगी। तुमने अपनी मर्ज़ी से ये जो क़दम उठाया है इसके लिए तुम्हें सस्पेण्ड भी किया जा सकता है। इस लिए बेहतर होगा कि तुम ये सब करने का विचार छोंड़ दो।"

"ये सब मैं आपको बताए बग़ैर भी कर सकती थी सर।" रितू ने कहा___"मगर मैने ऐसा किया नहीं। आपको इस बारे में बताना अपना कानूनी फर्ज़ समझा था मैने। वरना उन लड़कों के साथ कब क्या हो जाता ये कभी कोई जान ही नहीं पाता। ये बात आप भी जानते हैं सर कि मंत्री खुद भी ग़ैर कानूनी काम धड़ल्ले के साथ करता है और हमारा पुलिस डिपार्टमेंट उसके खिलाफ कोई कार्यवाही करने की तो बात दूर बल्कि ऐसा सोचता तक नहीं। ऐसा कौन सा अपराध नहीं है सर जिसे वो चौधरी अंजाम नहीं देता? मगर आज तक उस पर कानून ने हाथ नहीं डाला। सिर्फ इस डर से कि कहीं उसका क़हर हमारे डिपार्टमेंट पर न बरस पड़े। वाह सर वाह, क्या कहने हैं इस पुलिस डिपार्टमेंट के। अरे इतना ही डरते हैं उससे तो पुलिस की नौकरी ही न करनी थी सर।"

"सब तुम्हारे जैसा नहीं सोचते हैं ऑफिसर।" कमिश्नर ने कहा___"और अगर सोचते भी हैं तो बहुत जल्द उनकी वो सोच बदल भी जाती है। क्योंकि डिपार्टमेंट में ऐसे कुछ लोग भी होते हैं जो वर्दी तो पुलिस की पहनते हैं मगर नौकरी उस चौधरी के यहाॅ करते हैं। उसकी जी हुज़ूरी करते हैं। क्योंकि इसी में वो अपना भला समझते हैं। हमें सब पता है ऑफिसर लेकिन कुछ कर नहीं सकते। अगर करना भी चाहेंगे तो दूसरे दिन ही हमारे सामने ट्राॅसफर ऑर्डर आ जाएगा। ये सब तो आम बात हो गई है ऑफिसर।"

"कमाल की बात है सर।" रितू ने कहा___"इस तरह में तो कोई काम ही नहीं हो सकता। पुलिस की अकर्मण्ड्यता से नुकसान किसका होगा? उन मासूम लोगों का जो दिन रात अपने बीवी बच्चों के लिए खून पसीना बहाते हैं, इसके बाद भी भर पेट वो अपने परिवार को खाना नहीं खिला पाते। चरस और अफीम जैसे ज़हर का हर दिन वो इसी तरह शिकार होते रहेंगे। ऐसे ही न जाने कितनी लड़कियों का रेप होता रहेगा। और ये सब कुकर्म करने वाले अपनी हर जीत का जश्न मनाते रहेंगे।"

"कानून ने अपनी ऑखों पर पट्टी बाॅधी हुई है तुम भी ऑखों पर पट्टी बाॅध लो।" कमिश्नर ने कहा___"इसी में इस डिपार्टमेंट का भला है ऑफिसर।"
"हर्गिज़ नहीं सर।" रितू के मुख से शैरनी की भाॅति गुर्राहट निकली। एक झटके से वह कुर्सी से खड़ी हो गई थी, बोली___"मैं इतनी कमज़ोर नहीं हूॅ जो ऐसे गीदड़ों से डर जाऊॅगी। आपको अपनी चिंता है और इस डिपार्टमेंट की तो करते रहिए चिंता। मगर मैं चुप नहीं बैठूॅगी सर। मैं उन हराम के पिल्लों को ऐसी सज़ा दूॅगी की फरिश्तों का भी कलेजा हिल जाएगा।"

"बिहैव योरसेल्फ ऑफिसर।" कमिश्नर ने शख्त भाव से कहा___"तुम कानून को अपने हाथों में नहीं ले सकती।"
"आपने मजबूर कर दिया है सर।" रितू ने आहत भाव से कहा___"बड़ी उम्मीद के साथ आई थी आपके पास। सोचा था कि आप मेरी मदद करेंगे। मगर आप तो.....ख़ैर जाने दीजिए सर। मुझे बस एक सवाल का जवाब चाहिए आपसे। क्या आप नहीं चाहते हैं कि ऐसे लोगों को सज़ा मिले?"

"बिलकुल चाहते हैं ऑफिसर।" कमिश्नर ने कहा___"मगर हमारे चाहने से क्या होता है? हम तो बस मजबूर कर दिये जाते हैं कुछ न करने के लिए।"
"अगर आप सच में चाहते हैं सर।" रितू ने कहा___"तो फिर मेरा साथ दीजिए। आपको करना कुछ नहीं है। बस इतना करना है कि अगर ऊपर से कोई बात आए तो आप यही कहेंगे कि विधी रेप केस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सबूत के तौर पर आप उन्हें फाइलें भी दिखा सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाती हूॅ सर कि आप पर और आपके इस डिपार्टमेंट पर किसी भी तरह की कोई बात नहीं आएगी। क्योंकि मेरे पास उस मंत्री के ऐसे ऐसे सबूत हैं कि वो चाह कर भी हमारा कुछ बुरा नहीं कर सकता। आप बस वो करते जाइये जो मैं कहूॅ। फिर आप देखिए कि कैसे मैं शहर से इस गंदगी और इस अपराध का नामो निशान मिटाती हूॅ।"
 
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"कैसे सबूत हैं तुम्हारे पास?" पुलिस कमिश्नर चौंका था।
"बस आप ये समझिए सर कि उस मंत्री की और उस जैसे लोगों की जान अब मेरी मुट्ठी में है।" रितू ने कहा___"वो सब अपने हाथ पैर चलाना तो चाहेंगे मगर चला नहीं पाएॅगे।"

"अगर ऐसी बात है ऑफिसर तो हम यकीनन तुम्हारे साथ हैं।" कमिश्नर ने एकाएक गर्मजोशी से कहा___"तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारे पास इन लोगों के खिलाफ़ इतने पुख़्ता सबूत हैं?"

"आप मेरी बात ही कहाॅ सुन रहे थे सर।" रितू ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"बस जाने क्या क्या कहे जा रहे थे।"
"ओह साॅरी ऑफिसर।" कमिश्नर हॅसा__"तो अब बताओ क्या करना है आगे?"

"मैंने तो पहले ही करना शुरू कर दिया था सर।" रितू ने कहा___"बस आपको इस बात की जानकारी देना चाहती थी। अब तो आप बस आराम से यहीं पर बैठ कर न्यूज आने का इंतज़ार कीजिए।"
"ओके ऐज योर विश।" कमिश्नर ने कंधे उचकाए___"एण्ड हमें बेहद खुशी हुई कि तुम एक ईमानदार और बहादुर ऑफिसर हो। बेस्ट ऑफ लक।"
"थैंक्यू सर।" रितू ने कहा और फिर कमिश्नर को सैल्यूट कर वह ऑफिस से बाहर निकल गई।

बाहर आकर वह अपनी पुलिस जिप्सी में बैठ कर हैडक्वार्टर से बाहर निकल गई। उसके चेहरे पर इस वक्त खुशी और जोश दोनो ही भाव गर्दिश कर रहे थे। सड़क पर उसकी जिप्सी हवा से बातें करते हुए एक मोबाइल स्टोर की दुकान पर रुकी। लेकिन फिर जाने क्या सोच कर उसने फिर से जिप्सी को आगे बढ़ा दिया।

आधे घंटे से कम समय में ही वह एक मकान के सामने आकर रुकी। उसने अपनी पाॅकेट से अपना आईफोन निकाला और उसमें कोई नंबर डायल किया।

"बाहर आओ।" उसने काल कनेक्ट होते ही कहा, और फिर बिना उधर का जवाब सुने काल कट कर दिया। थोड़ी देर बाद ही उसके पास एक आदमी आकर खड़ा हो गया। वो आदमी यही कोई पच्चीस या तीस की उमर के आस पास का रहा होगा।

"जी मैडम कहिए क्या आदेश है?" उस आदमी ने बड़ी शालीनता से कहा।
"एक काम करो अगर यहाॅ पास में कहीं कोई मोबाइल स्टोर हो तो एक मोबाइल फोन खरीद कर ले आओ।" रितू ने जेब से दो हज़ार के पाॅच नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा__"और एक नई सिम भी। कोशिश करना कि सिम ऐसे ही मिल जाए और तुरंत एक्टिवेट भी हो जाए। तुम समझ रहे हो न?"

"जी मैं समझ गया मैडम।" आदमी ने सिर हिलाते हुए कहा___"आप फिक्र मत कीजिए। यहीं पास में ही एक मोबाइल स्टोर है। मैं अभी दोनो चीज़ें लेकर आता हूॅ।"
"ठीक है।" रितू ने दो नोट और उसकी तरफ बढ़ाए___"इन्हें भी ले लो। अगर कम पड़ें तो लगा देना नहीं तो खुद रख लेना।"

"ठीक है मैडम।" आदमी ने खुश होकर कहा___"मैं अभी लेकर आता हूॅ। आप यहीं पर इंतज़ार कीजिए।"
"ओके ठीक है।" रितू ने कहा।

वो आदमी हवा की तरह वहाॅ से गायब हो गया। रितू उसे यूॅ तेजी से जाते देख बरबस ही मुस्कुरा पड़ी। सड़क के किनारे जिप्सी को खड़े कर वह जाने किन ख़यालों में खो गई। चौंकी तब जब उस आदमी ने वापस आकर उसे आवाज़ दी।

"ये लीजिए मैडम।" आदमी ने एक छोटा सा थैला पकड़ाते हुए कहा___"इसमें सैमसंग का एक मोबाइल है और एक सिम भी। दुकानदार ने कहा है कि आधे घंटे में सिम चालू हो जाएगी"
"ओह वैरी गुड।" रितू ने कहा___"एण्ड थैक्स। अब जाओ तुम।"
"अच्छा मैडम।" आदमी ने सलाम बजा कर कहा और चला गया।

रितू थैले को अपने बगल से रख कर जिप्सी को यू टर्न दिया और आगे बढ़ गई। अब उसकी जिप्सी का रुख शहर से बाहर की तरफ था।
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मैं काॅलेज की पार्किंग में अपनी बाइक को खड़ी कर काॅलेज के अंदर की तरफ बढ़ गया। ये मुम्बई का सबसे बड़ा और टाप क्लास का काॅलेज था। मुझे पता था काॅलेजों में रैगिंग होना आम बात है। इस लिए मैं खुद भी इसके लिए तैयार था। काॅलेज के अंदर काफी सारे स्टूडेंट्स थे। लेकिन मैं ये देख कर थोड़ा हैरान हुआ कि एक जगह काफी भीड़ सी थी।

मैं समझ तो गया कि वो भीड़ किस बात के लिए थी। मुमकिन था कि वहाॅ पर सीनियर लोग किसी जूनियर की रैगिंग ले रहे होंगे। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि इतनी भीड़ क्यों थी वहाॅ पर। उत्सुकतावश मैं उसी तरफ बढ़ता चला गया।

थोड़ी ही देर में मैं उस भीड़ के पास पहुॅच गया। लेकिन भीड़ की वजह से समझ नहीं आया कि भीड़ के अंदर क्या चल रहा है? तभी मेरे कानों में ज़ोरदार चीख सुनाई पड़ी। ये किसी लड़की की चीख़ थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती की जा रही थी। मेरा रोम रोम खड़ा हो गया। किसी कमज़ोर लड़की पर ज़ोर ज़बरदस्ती? मुझसे ये सहा न गया। मैं एकदम से उस भीड़ का हिस्सा बने लोगों को खींच कर दूर हटाने लगा। बड़ी मुश्किल से मैं उन लोगों के बीच से निकलते हुए अंदर की तरफ पहुॅचा। अंदर का दृष्य ऐसा था कि मेरा दिमाग़ खराब हो गया।

अंदर कोई लड़का किसी लड़की के ऊपर चढ़ा हुआ था। नीचे पड़ी लड़की बुरी तरह रोते हुए छटपटा रही थी और चीख रही थी। वो लड़का उस लड़की के कपड़े फाड़ने पर तुला हुआ था। उसके चारो तरफ खड़े कुछ लड़के हॅस रहे थे। मुझे लड़की का चेहरा नज़र नहीं आ रहा था। मगर ये दृष्य देख कर मेरे अंदर गुस्से की आग धधक उठी।

मैने ज़ोर से एक लात उस लड़के के पेट के बगल में मारी। वो उस लड़की से हट कर तथा लहराते हुए भीड़ के पास गिरा। चारो तरफ फैली हुई भीड़ एकदम से छितर बितर हो गई। मैने जिसे लात मारी थी उसके मुख से ज़ोरदार चीख निकल गई थी। मगर वह जल्दी से उठ कर मेरी तरफ पलटा।

"किसकी मौत आई है?" वो लड़का गरजते हुए बोला___"किसकी इतनी हिम्मत हुई कि मुझे मारा? आशू राना पर हाथ उठाया?"
"उस भीड़ की तरफ क्या देख रहा है?" मैने कहा___"ये सब तो नामर्द हैं। नपुंषक लोंग हैं ये। सिर्फ तमाशा देखना जानते हैं। तुझे कुत्ते की तरह मारने वाला मर्द तो इधर खड़ा है।"

"तूने मुझे मारा?" आशू राना ने अजीब भाव से ऑखें नचाते हुए कहा___"तुझे पता है मैं कौन हूॅ? अबे मेरे बारे में जान जाएगा न तो मूत निकल जाएगा तेरा, समझा क्या?"
"चल बता फिर।" मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा___"बता कौन है तू? मैं भी तो देखूॅ कि तेरे बारे में जान कर मेरा मूत निकलता है कि नहीं। चल बता जल्दी।"

"ये समझा रे इसे।" आशू राना ने इधर उधर देखते हुए कहा___"इसे समझाओ रे कोई। ये साला आशू राना को नहीं जानता। ओ रहमान समझा बे इसे कि मैं कौन हूॅ? इसे बता कि मेरा बाप कौन है?"
"क्यों तेरे क्या बहुत सारे बाप हैं जो ये बोल रहा है कि तेरा बाप कौन है?" मैं उसके करीब पहुॅच गया था। झपट कर उसकी गर्दन दबोच ली मैने। अपनी गर्दन दबोचे जाने पर वह छटपटाने लगा। मुझ पर अपने दोनो हाॅथों से वार करने लगा।

"ओए खड़े क्या हो सालो।" उसने तिरछी नज़र से अपने साथियों की तरफ देखते हुए कहा___"मारो इसे। इसने मुझ पर हाथ उठाया है। इसका काम तमाम करना ही पड़ेगा अब।"

चारो तरफ खड़े उसके साथी एक साथ मेरी तरफ दौड़ पड़े। मैंने आशू राना की गर्दन को छोंड़ कर एक पंच उसकी नाॅक पर ठोंक दिया। वह बुरी तरह चीखते हुए जमीन पर गिर गया। इधर चारो तरफ से जैसे ही उसके साथी मेरे पास आए तो मैं एकदम से पोजीशन में आ गया। जैसे ही एक मेरी तरफ बढ़ा मैने घूम कर बैक किक उसके चेहरे पर रसीद कर दी। वह उलट कर धड़ाम से गिरा। दूसरे के हाॅथ में मुझे चाकू नजर आया। उसने चाकू वाला हाॅथ घुमा दिया मुझ पर। मैने बाएॅ हाथ से उसके उस वार को रोंका और दहिने हाथ से एक मुक्का उसकी नाॅक में जड़ दिया। उसके नाक से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा। बुरी तरह चीखते हुए वह भी लहराते हुए गिर गया। मैं तुरंत पलटा और जल्दी से नीचे झुक भी गया। अगर नहीं झुकता तो तीसरे वाले का हाॅकी का डंडा सीधा मेरे सिर पर लगता।
मगर मैं ऐन वक्त पर झुक गया था। हाॅकी का वार जैसे ही मेरे सिर के ऊपर से निकल चुका तो मैं सीधा होकर उछलते हुए उसकी पीठ पर एक किक जमा दी। वह मुह के बल जमीन चाटने लगा। फिर तो जैसे वहाॅ पर उन सबकी चीखों का शोर गूॅजने लगा। कुछ ही देर में आशू राना के सभी साथी जमीन पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे। मैं चलते हुए आशू राना के पास गया और झुक कर उसका कालर पकड़ कर उठा लिया।

"अब एक बात मेरी भी सुन तू।" मैने ठंडे स्वर में कहा___"तू चाहे यमराज का भी बेटा होगा न तब भी मैं तुझे ऐसे ही धोऊॅगा। इस लिए आज के बाद किसी लड़की के साथ कुछ बुरा करने की सोचना भी मत। अब दफा हो जा यहाॅ से। आज के लिए इतना काफी है मगर दूसरी बार तू सोच भी नहीं सकता कि मैं तेरा और तेरे इन साथियों का क्या हाल करूॅगा।"

आशू राना के चेहरे पर डर दिखाई दिया मुझे। वो मेरे छोंड़ते ही वहाॅ से भाग लिया। उसके पीछे उसके सभी साथी भी भाग लिए। कुछ दूर जाकर आशू राना रुका और फिर पलट कर बोला___"ये तूने ठीक नहीं किया। इसका अंजाम तो तुझे भुगतना ही पड़ेगा।"
"अबे जा।" मैं दौड़ा उसकी तरफ तो वो सरपट भागा बाहर की तरफ।

उन लोगों के जाने के बाद मैं वापस पलटा। मैने उस लड़की की तरफ देखा। वो दूसरी तरफ सिर झुकाए खड़ी थी। उसका दुपट्टा मेरे सामने कुछ ही दूरी पर जमीन में पड़ा हुआ था। मैं आगे बढ़ कर उसका पीले रंग का दुपट्टा उठाया और उस लड़की की तरफ बढ़ गया।

"ये लीजिए मिस।" मैने पीछे से उसे उसका दुपट्टा देते हुए बोला___"आपका दुपट्टा।"
"जी धन्यवाद आपका।" उसने मेरे हाॅथ से दुपट्टा लिया, और फिर मेरी तरफ पलटते हुए बोली____"अगर आप नहीं आते तो वो न जाने मेरे सा...........।"

उसका वाक्य अधूरा रह गया। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी ऑखे फैल गई। वह आश्चर्यचकित भाव से मुझे देखने लगी। मेरा भी हाल कुछ वैसा ही था। जैसे ही वह मेरी तरफ पलटी तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी। और मैं उसका चेहरा देख कर उछल ही पड़ा था।

"नी..लम???" मेरे मुख से लरजता हुआ स्वर निकला।
"रा......ज।" उसके मुख से अविश्वसनीय भाव से निकला।
"ओह साॅरी।" मैने एकदम से खुद को सम्हालते हुए कहा___"आपका दुपट्टा।"

मैने उसे उसका दुपट्टा पकड़ाया और तुरंत पलट गया। मैं उसके पास रुकना नहीं चाहता था। मैं तेज तेज चलते हुए उस जगह से दूर चला गया। जबकि नीलम बुत बनी वहीं पर खड़ी रह गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 38 》

उधर रितू अपने फार्महाउस पर पहुॅची। हरिया काका से उसने उन चारों का हाल चाल पूछा और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने दरवाजा बंद किया और कमरे में एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी को खोल कर उसने उस बैग को निकाला जिसे वह चौधरी के फार्महाउस से लेकर आई थी। बैग को बेड पर रख कर उसने उसमें से कई सारी चीज़ें निकाल कर बेड पर रखा।

कुछ फोटोग्राफ्स थे उसमें, कुछ लेटर्स और कई सारी पेनड्राइव्स। रितू ने उठ कर आलमारी से अपना लेपटाॅप निकाला। उसे ऑन किया। कुछ देर बाद जब वह ऑन हो गया दिया तो रितू ने उसमें एक पेनड्राइव लगाया। कुछ ही पल में लेपटाॅप की स्क्रीन पर पेनड्राइव को ओपेन करने का ऑप्शन आया। रितू ने उस पर क्लिक किया। पर भर में ही स्क्रीन पर उसे बहुत सारी फोटोज और वीडियोज दिखने लगी।

फोटोज देख कर रितू का दिमाग़ खराब होने लगा। वो सारी फोटो न्यूड रूप में कई सारी लड़कियों की थी। रितू उन लड़कियों को पहचानती तो नहीं थी लेकिन फोटो में उन लड़कियों के पोज से उसे पता चल रहा था कि इन लड़कियों की मर्ज़ी से ही ये फोटोज खींचे गए थे। रितू के चेहरे पर उन लड़कियों के प्रति नफ़रत और घ्रणा के भाव उभर आए।

उसके बाद उसने एक वीडियो पर क्लिक किया। क्लिक करते ही वो वीडियो चालू हो गई। इस वीडियो में जो लड़का था वह रोहित था। वो किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। लड़की अपनी दोनो टाॅगों को कैंची शक्ल देकर रोहित की कमर पर जकड़ा हुआ था। रितू ने फौरन ही वीडियो को बंद कर दिया और दूसरी वीडियो को ओपेन किया। इस वीडियो में अलोक लड़की की चूॅत चाट रहा था। रितू ने तुरंत ही वीडियो बंद कर दिया। उसके अंदर गुस्सा बढ़ने लगा था।

एक एक करके रितू ने सारे वीडियो देख लिए। वो सारे वीडियो इन चारो लड़कों के ही थे जो अलग अलग लड़कियों के साथ बनाए गए थे। रितू ने लेपटाॅप से पेनड्राइव निकाल कर अलग साइड पर रखा और दूसरा पेनड्राइव लेपटाॅप पर लगा दिया। कुछ ही देर में उसने देखा कि इस पेनड्राइव में भी यही चारो लड़के किसी न किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहे थे। रितू ने उस पेनड्राइव को भी अलग रख दिया। इसी तरह रितू एक एक पेनड्राइव को लेपटाॅप पर लगा कर देखती रही। कुछ पेनड्राइव्स में उसने देखा कि इन चारों लड़कों ने लड़कियों को उनकी बेहोशी में उनके सारे कपड़े उतारे और फिर उनके साथ अलग अलग पोजीशन में सेक्स किया था। रितू समझ सकती थी कि इन लड़कियों के साथ इन लोगों ने धोखे से ये सब किया था। ज्यादातर पेनड्राइव्स में इन लड़कों के ही वीडियोज थे।

रितू ने एक और पेनड्राइव लेपटाॅप पर लगाया। इस पेनड्राइव में कई फोल्डर बने हुए थे। जिन पर नाम डाला हुआ था। एक फोल्डर पर लिखा था "डैडी"। रितू ने तुरंत ही इस फोल्डर को ओपेन किया। स्क्रीन पर कई सारे वीडियोज आ गए। एक वीडियो पर क्लिक किया रितू ने। क्लिक करते ही वीडियो चालू हो गई। वीडियो में सूरज का बाप दिवाकर चौधरी किसी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। ये वीडियो सिर्फ एक ही एंगल से लिया गया था। मतलब साफ था कि कहीं पर वीडियो कैमरा छुपाया गया था और दिवाकर चौधरी को इस बात का पता ही नहीं था। वरना वो अपनी ऐसी वीडियो बनाने की सोचता भी नहीं।

रितू ने फौरन ही वो वीडियो काॅपी कर एक अलग से फोल्डर बना कर उसमें डाल दिया। उसके बाद रितू ने एक एक करके सभी वीडियो देखे। सभी वीडियों में दिवाकर चौधरी लड़की के साथ सेक्स कर रहा था। रितू ने दूसरा फोल्डर खोला। उसमें भी वीडियोज थे। रितू समझ गई कि ये उन लोगों के काले कारनामों के वीडियोज हैं जिनका संबंध दिवाकर चौधरी से है।

उन चारो लड़कों बापों के वीडियोज भी इसमें थे। रितू के लिए ये काफी मसाला था दिवाकर चौधरी को काबू में करने के लिए। उसने उन चारो लड़कों के बापों का एक एक वीडियो अपने लैपटाॅप में बनाए गए उस फोल्डर में डाल लिया।

सारे सामान को वापस बैग में भर कर उसने उस बैग को वापस आलमारी में रख कर आलमारी को लाॅक कर दिया। इसके बाद वह पलटी और एक तरफ रखे उस छोटे से थैले को उठाया जिसमें आज का खरीदा हुआ मोबाइल फोन और सिम था। उसने थैले से फोन कि डिब्बा निकाला और उसे खोलने लगी। मोबाइल निकाल कर उसने मोबाइल के चार्जर को भी निकाला। चार्जर में एक अलग से केबल थी। उसने उस केबल को मोबाइल में लगाया और दूसरा सिरा लैपटाॅप में। तुरंत ही लैपटाॅप की स्क्रीन पर एक ऑप्शन आया। मोबाइल की स्क्रीन पर भी शो हुआ। रितू ने सेटिंग सही की और फिर उन वीडियोज को काॅपी कर मोबाइल के स्टोरेज पर पेस्ट कर दिया। चारो वीडियोज कुछ ही देर में मोबाइल में अपलोड हो गई।

इसके बाद रितू ने केबल निकाल कर वापस मोबाइल के डिब्बे पर रख दिया। एक नज़र उसने मोबाइल की बैटरी पर डाली तो पता चला कि मोबाइल पर अभी 27% बैटरी है। रितू ने फौरन ही चार्जर निकाल कर मोबाइल फोन को चार्जिंग पर लगा दिया। इसके बाद वह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।

बाहर आकर उसने काकी से काका को बुलवाया। थोड़ी ही देर में हरिया काका रितू के पास आ गया।
"का बात है बिटिया?" काका ने कहा__"ऊ बिंदिया ने हमसे कहा कि तुम हमका बुलाई हो।"

"हाॅ काका।" रितू ने कहा___"मैने सोचा कि एक नज़र मैं भी देख लूॅ उन चारो पिल्लों को। वैसे उन सबकी खातिरदारी में कोई कमी तो नहीं की न आपने?"
"अइसन होई सकत है का बिटिया?" हरिया काका ने अपनी बड़ी बड़ी मूॅछों पर ताव देते हुए कहा___"तुम्हरे हर आदेश का हम बहुतै अच्छी तरह से पालन किया हूॅ। ऊ ससुरन केर अइसन खातिरदारी किया हूॅ कि ससुरन केर नानी का नानी केर नानी भी याद आ गई रहे।"

"अगर ऐसी बात है तो बहुत अच्छा किया है आपने।" रितू ने कहा___"उनकी खातिरदारी करने की जिम्मेदारी आपकी है। उनकी खातिरदारी के लिए आप शंकर काका को भी बुला लीजिएगा।"

"अरे ना बिटिया।" हरिया काका ने झट से कहा___"ऊ ससुरे शंकरवा केर कौनव जरूरत ना है। हम खुदै काफी हूॅ ऊ ससुरन केर खातिरदारी करैं केर खातिर। ऊ का है ना बिटिया ऊ शंकरवा से ई काम होई नहीं सकत है। ई ता हम हूॅ जो यतनी अच्छी तरह से खातिरदारी कर सकत हूॅ।"

"ओह ऐसी बात है क्या?" रितू मुस्कुराई।
"अउर नहीं ता का।" काका ने सीना तान कर कहा___"हम ता ई काम मा बहुतै एकसपरट हूॅ बिटिया।"
"काका वो एकसपरट नहीं बल्कि एक्सपर्ट होता है।" रितू ने हॅसते हुए कहा।

"हाॅ हाॅ ऊहै बिटिया।" हरिया काका ने झेंपते हुए कहा___"ऊहै एक्सपरट हूॅ।"
"अच्छा चलिए अब।" रितू ने कहा___"मैं भी तो देखूॅ कि आपने कैसी खातिरदारी की है उन लोगों की?"
"बिलकुल चला बिटिया।" काका ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा___"ऊ लोगन का देख के तुम्हरे समझ मा जरूर आ जई कि हम खातिरदारी करैं मा केतना एकसपरट हूॅ हाॅ।"

रितू, काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने में पहुॅची। तहखाने का नज़ारा पहले की अपेक्षा ज़रा अलग था इस वक्त। उन चारों की हालत बहुत ख़राब थी। उन लोगों से ठीक से खड़े नहीं हुआ जा रहा था। सबसे ज्यादा सूरज चौधरी की हालत खराब थी। वह बिलकुल बेजान सा जान पड़ता था। बाॅकी तीनों उससे कुछ बेहतर थे। उन सभी की गर्दनें नीचे झुकी हुई थी। जबकि उनके सामने वाली दीवार पर बॅधे दोनो गार्ड्स की हालत खराब तो थी पर उन चारो जैसी दयनीय नहीं थी। इसकी वजह ये थी कि हरिया या रितू ने उन पर किसी भी तरह से हाॅथ नहीं उठाया था। वो तो बस बॅधे हुए थे।

"काका एक बात समझ में नहीं आई।" रितू ने उन चारों को ध्यान से देखते हुए कहा__"इन चारों में से सबसे ज्यादा इस मंत्री के हरामी बेटे की हालत खराब क्यों हैं जबकि बाॅकी ये तीनों इससे तो ठीक ठाक ही नज़र आ रहे हैं।"

रितू की ये बात सुन कर हरिया काका बुरी तरह हड़बड़ा गया। उससे तुरंत कुछ कहते न बना। भला वह कैसे बताता रितू को कि उसने सूरज चौधरी की गाॅड मार कर ऐसी बुरी हालत की थी जबकि बाॅकी वो तीनो तो उसे देख देख कर ही अपनी हालत ख़राब कर बैठे थे। हरिया ने उन तीनों की अभी गाॅड नहीं मारी थी। उसने सोचा था कि एक दिन में एक की ही तबीयत से गाॅड मारेगा।

"ऊ का है न बिटिया।" हरिया काका ने झट से कहा___"हम ई सोचत रहे कि ई ससुरन केर एक एक करके खातिरदारी करूॅगा। कल ता हम ई ससुरे की खातिरदारी किया हूॅ अउर आज दुसरे केर नम्बर हाय।"
"ओह तो ये बात है।" रितू ने कहा__"चलो ठीक है जैसे आपको ठीक लगे वैसा खातिरदारी करिये। बस इतना ज़रूर ध्यान दीजिएगा कि इनमें से कोई मर न जाए।"

"चिन्ता ना करा बिटिया।" काका ने कहा__"ई ससुरे बिना हमरी इजाजत के मर नाहीं सकत। जब तक हम इन सब केर पेल न लूॅगा तब तक ई कउनव ससुरे मर नाहीं सकत हैं।"
"क्या मतलब?" रितू को समझ न आया।
"अरे हम ई कह रहा हूॅ बिटिया कि जब तक हम ई ससुरन केर अच्छे से खातिरदारी न कर लूगाॅ।" काका ने बात को सम्हालते हुए कहा___"तब तक ई ससुरे कउनव नाहीं मर सकत। काहे से के ई हमरी ख्वाईश केर बात है हाॅ।"

"ख्वाहिश के बात?" रितू चौंकी___"इसमें आपकी कौन सी ख्वाहिश की बात है काका?"
"अरे हमरा मतबल है बिटिया कि खातिरदारी करैं केर ख्वाईश वाली बात।" काका मन ही मन खुद पर गुस्साते हुए और खिसियाते हुए बोला___"ई ता तुमको भी पता है बिटिया कि हमका केहू केर खातिरदारी करैं का केतना शौक है। उहै बात हम करथैं।"

तहखाने में इन लोगों की आवाज़ गूॅजते ही उन चारों को होश आया। दरअसल वो उस हालत में ही ऊॅघ रहे थे। इन लोगों की आवाज़ काॅनों में टकराने से उन लोगों को होश सा आया था। उन चारों ने सिर उठा कर रितू और काका की तरफ देखा। काका को देख कर वो चारो बुरी तरह घबरा गए। लेकिन जैसे ही उनकी नज़र रितू पर पड़ी तो उनमें उम्मीद की कोई आसा नज़र आई।

"इ इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर।" अलोक ने मरी मरी सी आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा___"हमें यहाॅ से निकालो प्लीज़। हमें छोंड़ दो इंस्पेक्टर, हमे यहाॅ जाने दो वरना ये आदमी हमारी जान ले लेगा।"

"हाॅ हाॅ इंस्पेक्टर हमे जल्दी से यहाॅ से निकालो। ये आदमी बहुत खतरनाॅक है।" रोहित मेहरा गिड़गिड़ा उठा___"इसने सूरज की बहुत बुरी हालत कर दी है। प्लीज़ इंस्पेक्टर हमें इस आदमी से बचा लो। हम तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ते हैं। तुम्हारे पैर पड़ते हैं। हमें छोड़ दो प्लीज़।"

"अबे चुप।" हरिया काका इस तरह उन चारों की तरफ देख कर गरजा था जैसे कोई शेर दहाड़ा हो___"हम कहता हूॅ चुप कर ससुरे वरना हमका ता जान गए हो न। ससुरे टेंटुआ दबा दूगा हम तुम सबकेर।"

हरिया की दहाड़ का तुरंत असर हुआ। उन चारों की बोलती इस तरह बंद हो गई जैसे बिजली के स्विच से बटन बंद कर देने पर बजते हुए टेपरिकार्डर का बजना बंद हो जाता है। मगर वो चुप ज़रूर हो गए थे मगर उन सबकी ऑखों में करुण याचना और विनती करने जैसे भाव स्पष्टरूप से दिख रहे थे।

"तुम लोगों के लिए अब कोई रहम नहीं हो सकता समझे?" रितू ने कठोरता से कहा___"तुम लोगों ने जो पाप किया है और जो भी अपराध किया उसके लिए तुम सबको अब यहीं पल पल मरना है।"

"हमें मारना ही है तो एक ही बार में हमारी जान ले लो इंस्पेक्टर।" निखिल ने कहा__"पर इस आदमी के हवाले मत करो हमे। ये आदमी बहुत बेरहम है। इसने सूरज के साथ बहुत बुरा किया है।"

"चिन्ता मत करो।" रितू ने कहा___"अभी इससे भी बुरा होगा तुम सबके साथ। दूसरों की बहन बेटियों की इज्ज़त लूटने का बहुत शौक है न तुम लोगों को तो अब खुद भी भुगतो। तुम सबका वो हाल होगा जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी न की होगी।"

"ई लोगन का का करना है बिटिया?" काका ने उन दो गार्डों की तरफ देखते हुए कहा__"हमका लागत है ई ससुरे फालतू मा ईहाॅ कस्ट उठाय रहे हैं।"
"इन दोनो को छोंड़ नहीं सकते हैं।" रितू ने कहा___"क्योंकि ये दोनो हमारा काम खराब कर देंगे। इस लिए इन लोगों को यहीं पर रहने दो। बस इन पर हाॅथ नहीं उठाना। इन्होने कोई अपराध नहीं किया है।"

"हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे बेटी।" एक गार्ड ने कहा___"हम अपने बाल बच्चों की कसम खाकर कहते हैं कि हम किसी से भी आपके और इन लोगों के बारे में कुछ नहीं बताएॅगे। हम इस शहर से ही बहुत दूर चले जाएॅगे। ताकि इन लोगों के बाप हमें ढूॅढ़ ही न पाएॅ।"

"हम आप दोनो पर कैसे यकीन करें?" रितू ने कहा___"आप खुद सोचिए कि अगर आप हमारी जगह होते तो क्या करते?"
"हम सब समझते हैं बिटिया।" दूसरे गार्ड ने कहा___"मगर यकीन तो करना ही पड़ेगा न बिटिया। क्योंकि हम अगर चाहें भी तो यकीन नहीं दिला सकते। हमारे पास कोई सबूत भी नहीं है जिसकी वजह से हम आपको यकीन दिला सकें। पर आपको सोचना चाहिए बेटी कि कोई बाप अपने बाल बच्चों की झूॅठी क़सम नहीं खाया करता। अधर्मी से अधर्मी आदमी भी अपनी औलाद की झूठी कसम नहीं खाता। हम तो गरीब आदमी है बेटी। दो पैसे के लिए इनके यहाॅ काम करते थे। मंत्री ने हमारे हाॅथ में बंदूखें पकड़ा दी। हम तो उन बंदूखों को चलाना भी नहीं जानते थे।"

दोनो गार्डों की बातें सुन कर रितू और हरिया सोच में पड़ गए। वो दोनो ही इन्हें सच्चे लग रहे थे। उनकी बातों में सच्चाई की झलक थी। मगर हालात ऐसे थे कि उन्हें छोंड़ना भी नीति के खिलाफ़ था। मगर फिर भी रितू ने ये सोच कर उनको छोंड़ देने का फैसला लिया कि जिनसे ये लोग बताएॅगे वो लोग तो खुद ही बहुत जल्द इसी तहखाने में आने वाले हैं।

ठीक है।" रितू ने कहा___"हम तुम दोनो को छोंड़ रहे हैं। सिर्फ इस लिए कि तुम दोनों ने अपने बच्चों की कसम खा कर कहा हैं तुम लोग यहाॅ के बारे में या इन चारों के बारे में किसी से कुछ नहीं कहोगे।"

"ओह धन्यवाद बेटी।" गार्ड ने खुश होते हुए कहा___"हम सच कह रहे हैं हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे। हम आज ही अपने गाव अपने प्रदेश चले जाएॅगे। काम ही तो करना है कहीं भी कर लेंगे।"

"काका इन दोनो को छोंड दो।" रितू ने हरिया से कहा___"और यहाॅ से इन्हें ले जाकर शंकर काका के पास ले जाओ। काका से कहना कि इन्हें नहला धुला कर तथा अच्छे से खाना खिलाकर रेलवे स्टेशन ले जाएॅ और इनके राज्य की तरफ जाने वाली ट्रेन में बैठा आएॅ।"

"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम अभी इनका छोंड़ देता हूॅ।" कहने के साथ ही हरिया आगे बढ़ा और फिर कुछ ही देर में उन दोनो को रस्सियों के बंधन से मुक्त कर दिया। उन दोनो के हाॅथ अकड़ से गए थे। नीचे लाने में थोड़ी तक़लीफ़ हुई।

"बेटी एक चीज़ की इजाज़त चाहते हम।" एक गार्ड ने रितू से कहा था।
"कहो क्या चाहते हो?" रितू ने कहा।
"इन चारों को एक एक थप्पड़ लगाना चाहते हैं हम।" उस गार्ड के लहजे में एकाएक ही आक्रोश दिखा___"ये अधर्मी व दुराचारी लोग हैं। इन लोगों की वजह से सच में कितनी ही मासूम लड़कियों की जिदगी बरबाद हो गई।"

रितू ने उन्हें इजाज़त दे दी। इजाज़त मिलते ही दोनो उन चारों की तरफ बढ़े और फिर खींच कर एक थप्पड़ उन चारों के गालों पर रसीद कर दिया। चारों के हलक से चीखें निकल गई। ऑखों से पानी छलक पड़ा।

"धन्यवाद बेटी।" दूसरे गार्ड ने कहा__"इन लोगों के साथ बदतर से बदतर सुलूक करना। हरिया भाई, आप बिलकुल ठीक कर रहे हैं।"

इसके बाद हरिया उन दोनो को लेकर तहखाने से बाहर निकल गया। रितू खुद भी तहखाने से बाहर आ गई थी। तहखाने का गेट बंद कर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
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नीलम को उसका दुपट्टा पकड़ा कर मैं एक झटके से पलट कर कालेज की कंटीन की तरफ बढ़ता चला गया था। इस वक्त मेरे मन में तूफान चालू था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि आज कालेज में नीलम से मेरी इस तरह से मुलाक़ात होगी। नीलम को देख कर मेरी ऑखों के सामने फिर से पिछली ज़िंदगी की ढेर सारी बातें किसी चलचित्र की मानिन्द दिखती चली गई थी। जिनमें प्यार था, घ्रणा थी, धोखा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से किसी भवॅर में फसता हुआ महसूस हुआ मुझे।

कंटीन में पहुॅच कर मैं एक कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया और अपनी ऑखें बंद कर ली। मुझे अपने अंदर बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मेरा दिल रह रह कर दुखी होता जा रहा था। मेरी ऑखों में ऑसुओं का सैलाब सा उमड़ता हुआ लगा मुझे। मैने अपने अंदर के जज़्बात रूपी तूफान को बड़ी मुश्किल से रोंका हुआ था। मैं नहीं जानता कि मेरे वहाॅ से चले आने के बाद नीलम पर क्या प्रतिक्रिया हुई।

मुझे नहीं पता कि मैं उस हालत में कंटीन पर कितनी देर तक बैठा रहा। होश तब आया जब किसी ने पीछे से मेरी पीठ पर ज़बरदस्त तरीके से वार किया। उस वार से मैं कुर्सी समेत जमीन पर मुह के बल पछाड़ गया। अभी मैं उठ भी न पाया था कि मेरे पेट पर किसी के जूतों की ज़ोरदार ठोकर लगी। मैं उछलते हुए दूर जाकर गिरा।

मगर गिरते ही उछल कर खड़ा हो गया मैं। मेरी नज़र मेरे सामने से आते एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसकी ब्वाडी किसी भी मामले में किसी रेसलर से कम न थी। मुझे समझ न आया कि ये कौन है, कहाॅ से आया है और मुझ पर इस तरह अटैक क्यों किये जा रहा है।

"हीरो बनने का बहुत शौक है न तुझे?" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा___"साले मेरे छोटे भाई पर हाॅथ उठाया तूने। तुझे इसका अंजाम भुगतना ही पड़ेगा। ऐसी ऐसी जगह से तेरी हड्डियाॅ तोड़ूॅगा कि दुनियाॅ का कोई डाॅक्टर तेरी हड्डियों को जोड़ नहीं पाएगा।"

"ओह तो तुम उस हराम के पिल्ले के बड़े भाई हो।" मैने कहा___"और मुझसे अपने छोटे भाई का बदला लेने आए हो। अच्छी बात है, लेना भी चाहिए। मगर, मेरी एक फरमाइश है भाई।"
"क्या बक रहा है तू?" वो आदमी शख्ती से गुर्राया___"कैसी फरमाइश?"

"मेरी फरमाइश ये है कि एक एक करके आने का कोई मतलब नहीं है।" मैने कहा__"ऐसे में सिर्फ वक्त की बर्बादी होगी। इस लिए एक काम करो। तुम्हारे पास जितने भी आदमी हों उन सबको यहीं पर बुला लो। उसके बाद मुकाबला करें तो थोड़ा मज़ा भी आए।"

"साले बहुत बोलता है तू।" वो आदमी मेरी तरफ बढ़ते हुए बोला___"तेरे लिए मैं ही काफी हूॅ। अभी तेरी हड्डियों का चूरमा बनाता हूॅ रुक।"

वो मेरे पास आते ही मुझ पर अपनी बलिस्ट भुजा का वार कर दिया। मैं तो पहले से ही चौकन्ना हो गया था और जानता भी था कि अगर इसका एक वार भी मुझे लग गया तो मेरी हालत खराब हो जानी थी। ख़ैर, जैसे ही उसने तेजी से अपना दाहिना हाथ घुमाया, मैं फौरन ही नीचे झुक गया। उसका हाथ मेरे ऊपर से निकल गया। उसके सम्हलने से पहले ही मैने उछल कर एक फ्लाइंग किक उसकी कनपटी पर जड़ दी। वो धड़ाम से जमीन पर गिरा। मुझे हैरानी हुई मगर मुझे उसके गिरने का कारण समझ आ गया। गुस्से में यही होता है। मुझे मारने के लिए जब उसने गुस्से से अपना हाथ घुमाया था तो मैं झुक गया था। उसका हाथ जैसे ही मेरे सिर से निकला वैसे ही उछल कर मैने ज़ोरदार फ्लाइंग किक उसकी कनपटी पर जड़ी थी। वो सम्हल नहीं पाया था। अपने ही प्रहार के वेग में वह मेरे प्रहार के लगते ही धड़ाम से गिरा था।

उसके गिरते ही मैंने उछल कर उसके ऊपर जंप मारी मगर वह पलट गया। जैसे ही मेरे दोनो पैर जमीन पर आए उसकी एक टाॅग घूम गई और मेरी एक टाॅग पर लगी। नतीजा ये हुआ कि मैं पिछवाड़े के बल गिर गया मगर पल भर में ही उछल कर खड़ा भी हो गया। और सच कहूॅ तो ये मेरा भाग्य ही अच्छा था कि मैं उछल कर खड़ा हो गया था। क्योंकि जैसे ही मैं गिरा था वैसे ही उसने तेज़ी अपनी दाहिनी कोहनी का वार मेरी छाती की तरफ किया था। मगर मेरे उछल कर खड़े हो जाने पर उसका वो वार जमीन पर तेजी से लगा। कोहनी का तीब्र वार जब पक्की ज़मीन से टकराया तो उसके हलक से चीख निकल गई। अपनी कोहनी को दूसरे हाथ से जल्दी जल्दी सहलाने लगा था वह। ऐसा अवसर छोंड़ना निहायत ही बेवकूफी थी। मैने अपनी दाहिनी टाॅग पूरी शक्ति से घुमा दी। जो कि उसकी कनपटी पर लगी। वो दूसरी कनपटी के बल ज़मीर पर गिर गया। उसका सिर ज़ोर से ज़मीन से टकराया था। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई। निश्चित ही उसकी ऑखों के सामने कुछ पल के लिए अॅधेरा छा गया होगा।

अब मैने रुकना मुनासिब न समझा। मैं एकदम से पिल पड़ा उस पर। लात घूॅसों से उसकी जमकर ठोकाई की मैने। वो बचने के लिए इधर उधर हाॅथ पैर मार रहा था। जबकि मैं बिजली की स्पीड से उस पर वार किये जा रहा था। अचानक ही उसके हाथ में मेरी टाॅग आ गई। उसने मेरी उस टाॅग को पकड़ कर पूरी शक्ति से उछाल दिया। मैं हवा में लहराते हुए एक टेबल पर गिरा। मेरी पीठ पर टेबल का किनारा बड़ी तेज़ी से लगा। मैं चाह कर भी उस दर्द से निकलने वाली चीख को रोंक न सका। तभी मेरी नज़र सामने पड़ी और मैं पलक झपकते ही दर्द को बरदास्त करके टेबल से हट गया। नतीजा ये हुआ कि मेरे हटते ही टेबल पर कुर्सी का तेज़ प्रहार पड़ा और टेबल व कुर्सी दोनो ही टूटती चली गई।
 
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इधर प्रहार करने के बाद वो आदमी सम्हल भी न पाया था कि एक कुर्सी उठा कर मैने बड़ी तेज़ी से उसके सिर पर वार कर दिया। वार ज़बरदस्त था। हाॅथ में टूटी हुई कुर्सी लिए वह सामने टूटी हुई ही टेबल पर मुह के बल गिर गया। सिर से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा था उसके। मुझे समझते देर न लगी कि उसका सिर फट गया है। वह बुरी तरह चीखा था। कंटीन में उसकी चीख गूॅज गई थी। लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने वही कुर्सी एक बार फिर से अपने सिर से ऊपर तक उठा कर उस पर पटक दी। इस बार उसकी पीठ पर कुर्सी लगी थी। लकड़ी की कुर्सी थी वो। उसके दो पाए चटाक से टूट गए। वो आदमी धड़ाम से वहीं पर पसर गया।

अभी मैं उस पर फिर से वार करने ही वाला था कि मैंने देखा कि वो आदमी एकदम से सिथिल पड़ गया था। मैने अपने हाॅथ में ली हुई कुर्सी फेंक दी। झपट कर मैं उसके पर पहुॅचा। वो बुरी तरह खून में नहाये जा रहा था। उसके मुख से कराहटें निकल रही थी। मुझे लगा साला कहीं मर ही न जाए। वरना पंगा हो जाएगा।
मैने देखा उसकी ऑखें बंद होती जा रही थी। मैं ये देख कर बुरी तरह घबरा गया। इधर उधर देखा तो चौंक गया। पूरी कंटीन में लड़के लड़कियों की भीड़ जमा थी। सब लोग फटी फटी ऑखों से देखे जा रहे थे।

"भाईऽऽऽ।" तभी उस भीड़ से आशू राना चीखते हुए आया, बुरी तरह रोने लगा था वह___"ये क्या हो गया भाई तुम्हें? उठो भाई, मेरी तरफ देखो ना भाई।"
"देखो इस तरह रोने से कुछ नहीं होगा समझे।" मैने कहा___"इसे जल्दी से हास्पिटल ले जाना पड़ेगा वरना ये मर जाएगा।"

"तुमने मारा है मेरे भाई को तुमने।" आशू राना ने बिफरे हुए लहजे में कहा___"अगर मेरे भाई को कुछ भी हुआ तो आग लगा दूॅगा मैं इस पूरे काॅलेज में।"
"देखो ये सब बातें तुम बाद में भी कर लेना भाई।" मैने उसके भाई की हालत को देखते हुए कहा___"पहले एम्बूलेंस को बुलाओ।"

"एम्बूलेंस की ज़रूरत नहीं है।" आशू राना ने रोते हुए कहा___"मेरा भाई अपनी गाड़ी से आया था। बाहर खड़ी है।"
"ओह ठीक है फिर।" मैने कहा___"इसे गाड़ी तक ले चलने में मेरी मदद करो। ये बहुत भारी है मैं अकेले इसे कैसे ले जाऊॅगा?"

मेरे कहने पर आशू राना ने अपने भाई को एक तरफ से पकड़ा, दूसरी तरफ से मैंने उसे पकड़ा। काफी मेहनत के बाद आखिर मैं और आशू राना उसके भाई को गाड़ी तक ले आकर उसे कार की पिछली सीट पर लेटा दिया।

"कार की चाभी दो मुझे।" मैने आशू राना से कहा___"तुम अपने भाई को लेकर पीछे बैठ जाओ। मैं कार को जल्दी से हास्पिटल ले चलता हूॅ।"
"पहले तो मेरे भाई को मार कर इस हालत में पहुॅचा दिया और अब उसे हास्पिटल भी ले जा रहे हो।" आशू राना ने गुस्से मे कहा__"ये बहुत अच्छा कर रहे हो तुम, है न? मगर याद रखना कि इसका हिसाब तुम्हें देना होगा।"

"हाॅ ठीक है यार ले लेना हिसाब।" मैने उसके हाथ से चाभी खींचते हुए कहा___"पहले जो ज़रूरी है वो तो करने दो।"

मैं कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार के इग्नीशन में चाभी लगाया और घुमाकर उसे स्टार्ट किया। मैने देखा कि काॅलेज के काफी सारे लड़के लड़कियाॅ बाहर आ गए थे। उनमें एक चेहरा नीलम का भी था। वह मुझे देखकर हैरान थी। मैने उससे नज़र हटाई और कार को एक झटके से आगे बढ़ा दिया।

ऑधी तूफान बनी कार बहुत जल्द हास्पिटल के सामने आकर खड़ी हो गई। मैं झट से गेट खोल कर बाहर आया। पिछला गेट खोल कर मैने आशू राना को बाहर आने को कहा। मैने नज़र घुमा कर देखा तो दो लोग एक खाली स्ट्रेचर को लिए जा रहे थे। मैंने झट से उनको आवाज़ दी। वो मुड़ कर मेरी तरफ देखने लगे।

"अरे जल्दी स्ट्रेचर ले आओ।" मैने चिल्लाते हुए कहा___"इट्स अर्जेन्ट।"
मेरी बात सुनकर वो तुरंत ही हमारी तरफ दौड़ते हुए आए। हम चारों ने आशू राना के भाई को सीट से निकाल कर स्ट्रेचर पर लिटाया। हास्पिटल वाले आदमी उसे उठा कर ले जाने लगे। मैं और आशू राना भी उनके पीछे हो लिए।

कुछ ही देर में वो लोग आशू के भाई को ओटी में ले गए। इधर आशू राना ऑखों में ऑसू लिए हास्पिटल की गैलरी में इधर से उधर बेचैनी और परेशानी में टहलने लगा।

"उम्मीद है कि बहुत जल्द तुम्हारा भाई पहले के जैसा हो जाएगा।" मैने आशू राना की तरफ देख कर कहा था।
"बात मत करो तुम मुझसे।" आशू राना अजीब भाव से गुर्राया___"मेरे भाई की इस हालत के तुम ही जिम्मेदार हो।"

"देख भाई, ये जो कुछ भी हुआ है न उसका जिम्मेदार सिर्फ तू है समझा?" मैने भी शख्त भाव से कहा___"तूने कालेज में उस लड़की की इज्ज़त पर हाथ डाला। इस लिए मैने उस लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए तुझ पर हाथ उठाया। और तूने क्या किया? तू गया तो अपने बड़े भाई को बुला लाया अपनी हार और अपनी मार का बदला लेने के लिए। इस लिए ये तो होना ही था। हम दोनो में से किसी एक के साथ तो ये होना ही था। वक्त और हालात की बात है। मेरा दाॅव चल गया और मैने तेरे भाई की ये हालत बना दी। वरना कोई नहीं सोच सकता था कि तेरे उस मुस्टंडे भाई से मैं बचूॅगा।"

अभी आशू राना कुछ बोलने ही वाला था कि सहसा हमारे पास डाॅक्टर आ गया।
"देखिये सिर पर गहरी चोंट लगी है।" डाक्टर कह रहा था___"सिर फट गया है जिसकी वजह से खून काफी मात्रा में निकल गया है। हमने ब्लड टेस्ट किया तो उनके ग्रुप का ब्लड हमारे हास्पिटल में इस वक्त अवायलेवल नहीं है। जबकि उनको बल्ड चढ़ाना बहुत ज़रूरी है। वरना उनकी जान भी जा सकती है।"

"डाक्टर आप मेरा खून ले लीजिए।" आशू राना ने कहा___"मगर मेरे भाई को बचा लीजिए प्लीज़।"
"ठीक है आइये।" डाक्टर ने कहा___"मैं पहले आपके ब्लड का टेस्ट लूॅगा अगर उनके ब्लड से मैच हो गया तो आपका ही ब्लड उनको चढ़ा देंगे।"

डाक्टर आशू राना को लेकर चला गया। जबकि मैं परेशानी की हालत में आ गया था। मैं भगवान से दुआ करने लगा कि राना के भाई को कुछ न हो। थोड़ी देर में ही डाक्टर के साथ आशू राना बाहर आ गया।

"क्या हुआ डाक्टर साहब?" मैंने हैरानी से देखते हुए कहा___"आप इसे बाहर क्यों ले आए?"
"इनका ब्लड ग्रुप उनके ब्लड ग्रुप से मैच नहीं कर रहा है।" डाक्टर ने कहा___"हमने फोन द्वारा दूसरे हास्पिटलों में भी पता कर लिया है मगर इस वक्त यहाॅ आस पास के किसी भी हास्पिटल में उस ग्रुप का ब्लड उपलब्ध नहीं है।"
"डाक्टर साहब मेरा ब्लड भी चेक कर लीजिए न।" मैने कहा___"शायद मैच हो जाए।"
"ठीक है चलिए।" डाक्टर ने कहा___"आपका भी देख लेते हैं।"

मैं डाक्टर के साथ चला गया। अंदर डाक्टर ने मेरा ब्लड टेस्ट किया और आश्चर्यजनक रूप से मेरा ब्लड मैच कर गया। डाक्टर और मैं दोनो ही खुश हो गए।
"ओह वैरी गुड यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"ये तो कमाल हो गया। आपका ब्लड इनके ब्लड से मैच कर रहा है।"

"तो फिर देर किस बात की है डाक्टर?" मैने कहा___"जल्दी से इसको मेरा खून चढ़ा दीजिए।"
"ओह यस यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"आइये मेरे साथ।"

मैं उस कमरे से निकल कर डाक्टर के साथ उस कमरे में गया जहाॅ पर राना के भाई को बेड पर लिटाया गया था। वहाॅ दो नर्सें मौजूद थी।
"अंकिता।" डाक्टर ने एक नर्स से कहा___"इस यंगमैन का ब्लड ग्रुप इनके ग्रुप से मैच कर रहा है इस लिए फौरन प्रोसेस शुरू करो।"

उसके बाद मुझे भी राना के भाई के बगल वाले बेड पर लेटा दिया गया। मैंने भगवान का शुक्रिया अदा किया और अपनी ऑखें बंद कर ली। कुछ ही देर में मुझे अपने हाॅथ में सुई चुभती महसूस हुई।

लगभग दो घंटे बाद !
डाक्टर ने आकर बताया कि आशू का भाई अब ठीक है। मेरे शरीर से खून की उचित मात्रा लेने के बाद मुझे डाक्टर ने बाहर भेज दिया था। मुझे कमज़ोरी का एहसास हो रहा था। मगर दिल में ये खुशी थी कि मेरे खून से आशू के भाई की जान बच गई थी।

आशू राना जो अब तक मुझसे चिढ़ा चिढ़ा सा था अब वह मुझसे बड़े सलीके से बात कर रहा था। उसने ये स्वीकार किया कि इस सबके लिए सच में वही जिम्मेदार था। डाक्टर ने आशू राना के भाई के सिर पर टाॅके लगा कर उस पर पट्टी कर दी थी।

मैं आशू राना के साथ उस हास्पिटल में तब तक रहा जब तक कि उसके भाई को होश नहीं आ गया था। डाक्टर ने आकर बताया कि राना के भाई को होश आ चुका है तो हम दोनो खुशी खुशी उससे मिलने गए।

कमरे में पहुॅच कर आशू राना अपने भाई को ठीक ठाक देख कर बेहद खुश हुआ। मैं आगे बढ़ कर उसके भाई से बोला___"कैसे हो भाई?"
"अब तो ठीक हूॅ।" उसने कहा___"मुझे डाक्टर ने बताया कि तुमने मुझे बचाने के लिए अपना खून मुझे दिया। ऐसा क्यों किया तुमने भाई? भला क्या लगता था मैं तुम्हारा जो तुमने अपना खून देकर मुझे मरने से बचाया?"

"कोई न कोई रिश्ता तो बन ही गया था हम दोनो के बीच में।" मैने कहा___"फिर चाहे वो दुश्मनी का रिश्ता ही क्यों न हो। सब जानते थे कि मैं तुम्हारे सामने एक पल के लिए भी टिक नहीं पाऊॅगा मगर ये मेरी किस्मत थी कि मुझे कुछ नहीं हुआ बल्कि मैने खुद को कुछ होने से बचा लिया। मगर तुम्हारी किस्मत में ये सब होना था सो हो गया और मजे की बात देखो कि मेरे ही खून से तुम्हें जीवित भी बच जाना था।"

"सच कहा तुमने।" राना के बड़े भाई ने कहा___"ये किस्मत ही तो थी। मैने भी तो यही उम्मीद की थी कि दो मिनट के अंदर तुम्हारी हड्डियाॅ तोड़ कर कालेज से चला जाऊॅगा। मगर क्या पता था कि उल्टा मुझे ही इस हाल में पहुॅच जाना होगा। मैं हैरान था कि एक मामूली सा लड़का मुझे इस तरह कैसे मात दे रहा था। मतलब साफ है कि तुम भी कम नहीं थे।"

"चलो छोड़ो उस बात को।" मैने कहा___"सबसे अच्छी बात ये है कि तुम सही सलामत हो भाई।"
"भाई इस सबका जिम्मेदार मैं हूॅ।" आशू राना ने दुखी भाव से कहा___"सारे फसाद की शुरुआत तो मैने ही की थी। मैं उस लड़की की रैगिंग कर रहा था। मेरी कुछ बातों से उस लड़की को गुस्सा आया और उसने मुझे सबके सामने थप्पड़ मार दिया था। उसके थप्पड़ मारने की वजह से ही मुझे गुस्सा आया हुआ था जिसकी वजह से मैं उसके साथ वो सब कर रहा था। तभी ये भाई आया और मुझे मारने लगा था। इससे मार और मात खा कर ही मैं तुम्हारे पास आया था कि तुम इसे सबक सिखा कर मेरा बदला लो। मगर कुछ और ही हो गया भाई।"

"तुमने ग़लत किया और उस ग़लती में मुझे भी शामिल करवा लिया।" राना के भाई ने कहा__"इसका नतीजा ये तो होना ही था छोटे। कितनी बार तुझे समझाया है कि ऐसे काम मत किया कर बल्कि पढ़ाई किया कर। मगर तू तो पापा पर गया है न। कहाॅ किसी की सुनोगे?"

"अब से सिर्फ तुम्हारी ही बात सुनूॅगा भाई कसम से।" आशू ने कहा___"मैं वो सब ग़लत काम छोड़ दूॅगा।"
"ये सब तो तुमने पहले भी जाने कितनी बार मुझसे कहा था छोटे।" आशू के भाई ने कहा___"मगर क्या तुम कभी अपने फैसले पर अटल रहे? नहीं न? रह भी नहीं सकते छोटे। तुम बिलकुल पापा की तरह हो जैसे उन्हें अपने गुरूर में किसी की परवाह नहीं थी। उसी का नतीजा था कि आज हम बिना माॅ के हैं। तुम भी उनकी तरह ही हो छोटे। आज अगर मैं मर भी जाता तो तुम पर और पापा पर कोई असर नहीं होता।"

"नहीं भाई ऐसा मत कहो प्लीज।" आशू रो पड़ा था, बोला___"मुझे याद है भाई कि आज तक तुमने कैसे मेरी माॅ बन कर मुझे पाला पोषा है। पापा ने तो कभी ध्यान भी नहीं दिया कि उनके बेटे किस हालें हैं। मैं आपकी कसम खा कर कहता हूॅ भाई कि मैं अब से आपका एक अच्छा भाई बन कर दिखाऊॅगा।"

"चल मान ली तेरी ये बात भी।" आशू के भाई ने कहा___"और अगर सचमुच ऐसा हो गया तो मैं तहे दिल से तुम्हारा शुक्रगुजार हूॅ दोस्त कि तुमने मेरी आज ये हालत कर दी। वरना भला कैसे मेरा भाई सही रास्ते पर चलने की बात करता।"

"बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जो कुछ भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"हो सकता है ये जो कुछ भी हुआ आज वो इसी अच्छे के लिए हुआ हो।"
"हाॅ दोस्त।" आशू के भाई ने कहा___"आज से तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और मेरे इस नालायक भाई के भी। इसे अपने साथ ही रखना। और अगर कहीं ग़लती करे तो वहीं पर इसकी धुनाई भी कर देना। मैं कुछ नहीं बोलूॅगा।"

"भाई ये आप क्या कह रहे हैं?" आशू राना की ऑखें फैल गईं___"मुझे इसके साथ रहने को कह रहे हैं? ये हर रोज़ मेरी कुटाई करेगा भाई। प्लीज ऐसा मत कीजिए।"

"यार तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि मैं तुम्हारी कुटाई करूॅगा?" मैने कहा___"तुम आज से मेरे दोस्त हो। हम सब साथ में ही पढ़ेंगे। लेकिन एक बात ज़रूर याद रखना कि भूल से भी किसी के साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं करोगे। वरना सुन ही लिया है न कि भूषण भाई ने क्या कहा है। ख़ैर, मैं तुमसे ये कहना चाहता हूॅ कि एक ऐसा इंसान बनो आशू जिससे हर ब्यक्ति के दिल में तुम्हारे लिए इज्ज़त हो, प्यार हो और सम्मान हो।
किसी का बुरा करने से या सोचने से कभी भी तुम लोगों की नज़र में अच्छे नहीं बन सकते। तुम खुद सोचो कि तुमने अपने ग़लत दोस्तों की शोहबत में अपनी क्या इमेज बना ली है सबके बीच? सब लोग तुमसे दूर भागते हैं। कोई भी अच्छा ब्यक्ति तुमसे किसी तरह का ताल्लुक नहीं रखना चाहता। लोग तुमसे तुम्हारे ग़लत ब्यौहार की वजह से कतराते हैं। किसी को डरा धमका कर तुम ये समझते हो कि लोगों के बीच तुम्हारा दबदबा है। जबकि ऐसी सोच सिरे से ही ग़लत है। क्योंकि वो लोग तुमसे डरते नहीं हैं बल्कि तुम जैसे बुरे इंसान के मुह नहीं लगना चाहते। इस लिए वो सब तुमसे दूर भागते हैं। इस लिए दोस्त ऐसा इंसान बनो जिसमें हर कोई तुम्हारे पास खुद आने के लिए रात दिन सोचे। और ये सब तभी होगा जब तुम सबके लिए अच्छा सोचोगे। किसी को अपने से कमज़ोर नहीं समझोगे।"

"वाह दोस्त।" भूषण राना प्रसंसा के भाव से कह उठा___"कितनी गहरी बातें कही है तुमने। काश तुम्हारी ये बातें मेरे इस छोटे को समझ आ जाएॅ और ये उसी राह पर चल पड़े जिस राह पर चलने से ये एक अच्छा इंसान बन जाए।"

"मैं चलूॅगा भाई।" आशू राना कह उठा__"अब से आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूॅगा। इस भाई की बात मेरी समझ में आ गई है। मुझे एहसास हो रहा है भाई कि इसने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा वो एक कड़वा सच है। सच ही तो कहा है भाई ने कि सब लोग मेरे बुरे आचरण की वजह से मुझसे दूर भागते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा भाई। मैं इसके साथ रह कर एक अच्छा इंसान बनूॅगा और ज़रूर बनूॅगा।"

"ये हुई न बात।" मैने कहा___"चल आजा इसी बात पर गले लग जा मेरे। कितनी बड़ी बात है कि आज काॅलेज के पहले ही दिन में पहले दुश्मनी हुई और फिर दोस्ती भी हो गई।"

आशू मेरे गले लग गया। मैने देखा बेड पर पड़े भूषण राना की ऑखों में खुशी के ऑसूॅ थे। कुछ देर और वहाॅ पर रुकने के बाद मैने भूषण राना से जाने की इजाज़त माॅगी तो उसने पहले मुझसे मेरा फोन नंबर लिया और मैने भी उसका लिया। फिर भूषण के कहने पर आशू मुझे भूषण की कार से काॅलेज तक छोंड़ा। पूरे रास्ते आशू राना का चेहरा खिला खिला नज़र आया मुझे। मैं समझ गया कि ये अब ज़रूर सुधर जाएगा।

काॅलेज के गेट के पास उतार कर आशू वापस लौट गया जबकि मैं पार्किंग की तरफ बढ़ गया अपनी बाइक को लेने के लिए। पार्किंग से अपनी बाइक पर सवार होकर अभी मैने बाइक को स्टार्ट करने के लिए सेल्फ पर अॅगूठा रखा ही था कि मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने पैंट की जेब से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा तो मेरे चेहरे पर सोचने वाले भाव उजागर हो गए।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,
 
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अपडेट.......《 39 》

अब आगे,,,,,,,,

"हम कुछ भी नहीं सुनना जानते कमिश्नर हमारे बच्चे जहाॅ भी हों उन्हें ढूॅढ़ कर हमारे सामने तुरंत हाज़िर करो।" दिवाकर चौधरी फोन पर गुस्से में कह रहा था___"वरना तुम सोच भी नहीं सकते कि हम क्या कर सकते हैं? हमें पता चला है कि बच्चों ने किसी लड़की के साथ रेप किया है। मगर ये सब तो चलता ही रहता है इस उमर में। अगर हमें पता चला कि इस रेप की वजह से ही हमारे बच्चे गायब हैं तो समझ लेना कमिश्नर इस शहर में कोई इंसान ज़िदा नहीं बचेगा।"

".................."उधर से कुछ कहा गया।
"तो अगर पुलिस ने उस लड़की के रेप पर कोई केस नहीं बनाया तो कहाॅ गए हमारे बच्चे?" दिवाकर चौधरी गर्जा___"आज दो दिन हो गए कमिश्नर। अभी तक बच्चों का कहीं कोई अता पता नहीं है।"

"............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"तुम्हारे पास चौबीस घंटे का टाइम है कमिश्नर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"अगर चौबीस घंटे के अंदर हमारे बच्चे हमारी ऑखों के सामने न दिखे तो समझ लेना कि हम क्या करते हैं फिर।"

कहने के साथ ही दिवाकर चौधरी ने फोन के रिसीवर को केड्रिल पर पटक दिया। गुस्से से तमतमाया हुआ आया और वहीं सोफे पर बैठ गया। इस वक्त वहाॅ रखे बाॅकी सोफों पर उसके सभी मित्र यार बैठे हुए थे। सबके चेहरों पर चिंता व परेशानी साफ दिखाई दे रही थी।

"क्या कहा कमिश्नर ने?" अशोक मेहरा ने उत्सुकता से पूछा था।
"क्या उस रेप की वजह से हमारे बच्चे गायब हैं?" सुनीता वर्मा ने कहा___"ज़रूर पुलिस वालों ने ही उन सबको गिरफ्तार किया होगा।"

"पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है सुनीता कि वो हमारे बच्चों को छू भी सके।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मुझे लगता है कि हमारे बच्चे खुद ही अंडरग्राउण्ड हो गए हैं। उन्होंने सोचा होगा कि इस हादसे से कहीं उनको पुलिस न पकड़ ले। इस लिए वो कहीं छुप गए होंगे। उन बेवकूफों का इतना भी दिमाग़ नहीं चला कि उनको किसी से डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। ख़ैर, तुम लोग चिन्ता मत करो। हमारे बच्चे जहाॅ भी होंगे सही सलामत ही होंगे।"

"पर चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उन लोगों को हमें एक बार फोन तो कर ही देना चाहिये था। मगर दो दिन से फोन ही बंद हैं उन सबका। समझ में नहीं आ रहा कि कहाॅ गए होंगे वो। आपके फार्महाउस पर भी नहीं हैं। हमारे आदमी देख आए हैं वहाॅ। लेकिन हैरानी की बात है कि आपके फार्महाउस के वो दोनो गार्ड्स भी वहाॅ नहीं हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"भाग गए होंगे साले कामचोर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उस समय जब उनके हाॅथ में बंदूखें थमाई थी तभी समझ आ गया था कि ये इस काम के लिए बेहद कमज़ोर हैं। ख़ैर छोड़ो। कमिश्नर को हमने डोज दे दी है। वो ज़रूर पता करेगा बच्चों का।"

"आप तो ऐसे बेफिक्र हैं चौधरी साहब जैसे आपको अपने बच्चों की कोई चिंता ही नहीं है।" सुनीता वर्मा ने कहा___"पर मुझे चिंता है। क्योंकि मुझ विधवा का एक वही तो सहारा है। अगर उसे कुछ हो गया तो किसके लिए जियूॅगी मैं?"

"ओफ्फो सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सहसा उसे अपनी तरफ खींच लिया। एक हाॅथ से उसकी ठुड्डी पकड़ कर बोला___"वैसे तो उसे कुछ नहीं होगा। और अगर थोड़े पल के लिए मान भी लिया जाए तो चिंता क्यों करती हो? हम हैं न तुम्हारे सहारे के लिए। अब तक भी तो सहारा ही बने हुए थे हम और आगे भी बने ही रहेंगे।"

"आपको तो बस हर वक्त मस्ती ही सूझती रहती है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा__"जबकि इस वक्त हालात किस क़दर गंभीर हैं इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं है।"
"तुम भूल रही हो सुनीता डार्लिंग कि हम कौन हैं?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"हम इस शहर की वो हस्ती हैं जिसकी इजाज़त के बिना एक पत्त भी नहीं हिल सकता। इस लिए तुम इस बात की चिंता करना छोंड़ दो कि बच्चों के साथ कोई बुरा करेगा।"

"चौधरी साहब बिलकुल ठीक कह रहे हैं सुनीता।" अशोक मेहरा ने कहा___"हमारे बच्चे ज़रूर किसी दूसरे शहर में मौज मस्ती कर रहे होंगे।"
"मौज मस्ती हमें भी तो करनी चाहिए न अशोक?" दिवाकर ने कहा___"बहुत दिन हो गए सुनीता के साथ भरपूर मस्ती नहीं की हमने।"

"आपने तो मेरे मन की बात कह दी चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने मुस्कुराते हुए कहा___"आज हो ही जाए मस्ती।"
"क्या कहती हो डार्लिंग?" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के एक भारी बोबे को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"हो जाए वन टू का फोर?"

"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ कि आप सब मुझे मसल कर रख दो।" सुनीता ने अपने होठों को दाॅतों तले दबाते हुए कहा___"मेरे जिस्म में तो हर वक्त आग लगी रहती है। अलोक का बाप तो कमीना मुझे भरी जवानी में छोंड़ कर मर गया। वो तो भगवान का शुकर था कि आप लोग मेरे जीवन में आ गए वरना जाने क्या होता मेरा?"

"भगवान सब अच्छे के लिए ही करता है मेरी राॅड सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा___"और आज तो हम सब तेरी आगे पीछे दोनो साइड से अच्छे से लेंगे।"

"हाॅ तो ठीक है न।" सुनीता ने अपना हाथ बढ़ा कर दिवाकर के पजामें के ऊपर से ही उसके लौड़े को पकड़ लिया___"मेरा कोई भी छेंद खाली न रखना।"
"आज तो साली तेरी चीखें निकालेंगे हम तीनों।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"चलो भाई लोग अंदर कमरे में चलो। आज इस राॅड को तबीयत से पेलते हैं।"

दिवाकर चौधरी की बात सुन कर बाॅकी तीनो भी मुस्कुराते हुए सोफों से उठ खड़े हुए।
"चौधरी साहब आपकी बेटी तो नहीं है न बॅगले में?" अशोक मेहरा ने पूछा__"वरना उसे पता चल जाएगा कि हम सब क्या कर रहे हैं।"
"नहीं है यार।" दिवाकर ने कहा___"शायद कहीं बाहर गई हुई है।"

अभी वे सब कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि सहसा पीछे से दिवाकर के पीए ने आवाज़ दी।
"चौधरी साहब, चौधरी साहब।" पीए ने बदहवास से लहजे में कहा था।

"क्या बात है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी__"क्यों गला फाड़ रहे तुम? देख नहीं रहे, हम ज़रूरी काम से कमरे में जा रहे हैं?"
"ज़रूर जाइये चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने अजीब भाव से कहा___"लेकिन उससे पहले इसे तो देख लीजिए।"

"क्या है ये?" दिवाकर चौधरी की भृकुटी तन गई, बोला___"तुम हमें मोबाइल देखने का कह रहे हो इस वक्त? दिमाग़ तो ठीक है न तुम्हारा?"
"आप एक बार देख लीजिए न चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने विनती भरे भाव से कहा___"उसके बाद आपको जो करना है करते रहिएगा।"

"दिखाओ क्या है ये?" दिवाकर चौधरी ने मनोहर लाल के हाथ से मोबाइल छींन लिया था। मोबाइल की स्क्रीन पर कोई वीडियो पुश मोड पर नज़र आ रहा था।
"तुमने हमें ये दिखाने के लिए रोंका है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी ने गुस्से से कहा।
"गुस्सा मत कीजिए चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने कहा___"एक बार उस वीडिओ को प्ले तो कीजिए।"

दिवाकर चौधरी ने पहले तो खा जाने वाली नज़रों से मनोहर लाल को देखा फिर मोबाइल की स्क्रीन पर देखते हुए उस वीडिओ को प्ले कर दिया। बड़े से स्क्रीन टच मोबाइल में वीडिओ के प्ले होते ही जो कुछ नज़र आया उसे देख कर दिवाकर चौधरी के होश उड़ गए। दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। ये सच है कि उसके हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। सिर पर एकाएक ही जैसे पूरा आसमान ही भरभरा कर गिर पड़ा था उसके।

चौधरी की हालत एक पल में ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। चेहरा फक्क पड़ गया था उसका। बाॅकी दोनो और सुनीता भी चौधरी की ये दशा देख कर बुरी तरह चौंके। उन्हें समझ न आया कि अचानक चौधरी साहब को क्या हो गया है।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने हैरानी से कहा__"आप इस तरह बुत से क्यों बन गए? क्या है उस मोबाइल में?"
"आं हा, लो तुम भी देख लो।" दिवाकर चौधरी ने मोबाइल पकड़ा दिया उसे।

अवधेश के साथ साथ अशोक व सुनीता ने भी मोबाइल में चालू वीडियो को देखा। और अगले ही पल उनकी भी हालत खराब हो गई।
"ये सब क्या है मनोहर लाल?" अशोक वर्मा ने गुस्से से कहा___"चौधरी साहब का ऐसा वीडियो इस मोबाइल में कहा से आया?"

"ये वीडियो किसी अंजान नंबर से भेजा गया है सर।" मनोहर ने कहा___"अभी पाॅच मिनट पहले ही आया है। इतना ही नहीं अलग अलग चार वीडियो और भी हैं। बाॅकियों को भी प्ले करके देख लीजिए।"

अशोक ने वैसा ही किया। कहने का मतलब ये कि चारो वीडियो अलग अलग ब्यक्तियों के थे। पहला दिवाकर चौधरी का, दूसरा अशोक मेहरा का, तीसरा सुनीता वर्मा का और चौथा अवधेश श्रीवास्तव का।

चारो वीडियो देखने के बाद उन चारों की हालत बेहद खराब हो गई। सबके पैरों तले से ज़मीन कोसों दूर निकल गई थी।

"चौधरी साहब ये सब वीडियो हम लोगों के कैसे बन गए?" अशोक मेहरा ने कहा__"और इन वीडियोज में जो जगह है वो तो आपके फार्महाउस की ही है। मतलब साफ है कि वहीं पर हमारे ऐसे वीडियो बनाए गए। मगर सवाल है कि किसने बनाए ऐसे वीडियो? क्या हमारे बच्चों ने? यकीनन चौधरी साहब, ये उन लोगों ने ही बनाया है।"

"अशोक सही कह रहे हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारे बच्चों ने ही ये वीडियो बनाया। क्योंकि बाहरी कोई वहाॅ जा ही नहीं सकता।"
"ये सब छोंड़ो और ये सोचो कि ये वीडियो किसने भेजा हमारे फोन पर?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"हमारे बच्चे तो ऐसा करेंगे नहीं। क्योंकि ऐसा करने की उनके पास कोई वजह ही नहीं है। उन्होंने ये सोच कर वीडियो बनाया कि हम अपने बाप वोगों की मौज मस्ती अपनी ऑखों से देखेंगे। उनके दिमाग़ में ऐसे वीडियोज हमारे पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति हम बखूबी करते हैं। ये किसी और का ही काम है अवधेश। हमारे फोन में वीडियो भेजने का मतलब है कि सामने वाला हमें बताना चाहता है कि उसके पास हमारी इस करतूत का सबूत है और वो हमें जब चाहे एक्सपोज कर सकता है। अब सवाल ये है कि वो कौन है जिसने ये वीडियो भेजा और किस मकसद के तहत भेजा?"

"मामला बेहद गंभीर हो गया है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा___"हमारे बच्चों ने तो हमें बड़ी भारी मुसीबत में डाल दिया है।"
"मुसीबत तो अब हो ही गई है मगर इससे निपटने का रास्ता तो अब ढूढ़ना ही पड़ेगा न?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"सबसे पहले ये पता करना होगा कि ये वीडियो उसके पास कैसे आए और उसने हमें किस मकसद से भेजा है?

"वीडियो आपके फार्महाउस के उसी कमरे में बनाया गया है चौधरी साहब जिस कमरे में हम लोग अक्सर शबाब का मज़ा लूटा करते हैं।" अशोक ने कहा___"मतलब साफ है वीडियो भेजने वाले को ये वीडियो वहीं से मिले होंगे। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आपके फार्महाउस पर ऐसा कौन ब्यक्ति गया और ये सब वीडियोज वहाॅ से उठा कर चंपत हो गया? आपके फार्महाउस के वो गार्ड्स कहाॅ थे उस वक्त जब कोई बाहरी वहाॅ आकर ये सब काण्ड कर गया?"

अशोक मेहरा की इन बातों से सन्नाटा छा गया हाल में। सबका दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन कय रह गया था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अचानक कौन सी आफत आ गई थी। जिसने उन सब महारथियों को अपंग सा बना दिया था।

"मनोहर लाल पता करो किसने ये हिमाकत की है?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जिस नंबर से ये वीडियोज आईं हैं उस नंबर पर फोन करो।"
"मैने बहुतों बार फोन लगाया चौधरी साहब लेकिन नंबर बंद बता रहा है।" मनोहर लाल ने कहा___"आप कहें तो पुलिस को ये नंबर दे दूॅ वो जल्द ही पता कर लेंगे कि ये नंबर किसका है और किस जगह से इस नंबर के द्वारा ये वीडियोज भेजी गई हैं?"

"तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया मनोहर लाल।" दिवाकर गुस्से से बोला__"ये घटिया ख़याल आया कैसे तुम्हारे ज़हन में? सोचो अगर हमने पुलिस को नंबर दिया तो उसका अंजाम क्या हो सकता है? जिसने भी ये दुस्साहस किया है वो कोई मामूली ब्यक्ति नहीं हो सकता। उसे भी ये पता होगा कि हम उसका पता लगाने के लिए उसका नंबर पुलिस को दे सकते हैं। उसने पुलिस को नंबर न देने की कोई चेतावनी भले ही हमें नहीं दी है मगर हमें तो सोचना समझना चाहिए न? अगर हमने ऐसा किया तो संभव है कि वो हमारे ये वीडियो पुलिस को दे दे या सार्वजनिक कर दे। उस सूरत में हमारा सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा। शहर की जनता और ये पुलिस प्रशासन सब हमारे खिलाफ़ हो जाएॅगे।
इस लिए हमें ठंडे दिमाग़ से इसके बारे में सोचना होगा। बिना मतलब के या बिना मकसद के कोई किसी के साथ ऐसा नहीं करता। उसने ऐसा किया है तो देर सवेर ज़रूर उसका कोई मैसेज या फोन भी आएगा। तब हम उससे पूछेंगे कि वह क्या चाहता है हमसे?"

"इसका मतलब अब हम उस ब्यक्ति के किसी फोन या मैसेज का इंतज़ार करें जिसने ये वीडियोज हमें भेजा है?" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा।
"इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है।" दिवाकर ने कहा___"हमें एक बार उससे बात तो करनी पड़ेगी। आख़िर पता तो चले कि उसने ऐसा किस मकसद से किया है? उसके बाद ही हम कोई अगला क़दम उठा सकते हैं।"

"ठीक है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जैसा आप उचित समझें वैसा कीजिए। मगर ये मैटर ऐसा है कि हम सबके होश उड़ा देगा। सब कुछ बरबाद कर देगा।"
"बस एक बार उसका कोई फोन या मैसेज तो आने दो।" दिवाकर ने कहा___"उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी हरकत करने का अंजाम कितना भयावह होता है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से एक बार फिर हाल में सन्नाटा छा गया। किन्तु सबके मन में जो तूफान उठ चुका था उसे रोंकना उनके बस में न था।
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"चौधरी आज से तेरे बुरे दिन शुरू हो गए हैं। मासूम और मजलूमों पर तूने, तेरे साथियों ने और तेरे हराम के पिल्लों ने जो भी ज़ुल्म ढाए हैं उनका हिसाब देने का समय आ गया है।" रितू की कार ऑधी तूफान बनी फार्महाउस की तरफ दौड़ी जा रही थी। साथ ही मन ही मन वह ये सब कहती भी जा रही थी।

रितू ने ऐसी जगह से अपने नये मोबाइल फोन द्वारा वो वीडियोज चौधरी के मोबाइल पर भेजे थे जिस जगह पर एक नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था। किन्तु इस वक्त वहाॅ पर कोई न था। यहीं से उसने चौधरी को वोडियोज भेजे थे। वीडियो भेजने के बाद उसने फोन को स्विचऑफ कर दिया था। उसका खुद का जो आईफोन था वो पहले से ही स्विचऑफ था। उसके दिमाग़ में हर चीज़ से बचने की भी सोच थी।

ऑधी तूफान बनी उसकी जिप्सी उसके फार्महाउस पर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह तेज़ी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। बाहर मेन गेट पर शंकर काका नज़र आया था उसे किन्तु हरिया काका नज़र नहीं आया था। कमरे में जाकर उसने नया वाला फोन आलमारी में रखा और उसे लाॅक कर तुरंत पलटी।

जिप्सी में बैठी रितू का रुख अब अपने हवेली की तरफ था। उसके दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कई सारी चीज़ें चल रही थी। उसके ज़हन में ये बात हर पल बनी हुई थी कि उसने विधी से वादा किया था कि विराज को उसके पास ज़रूर लाएगी।

रितू के पास विराज का कोई काॅन्टैक्ट करने का ज़रिया न था। इस लिए उसने ये पता लगाने के लिए किसी आदमी को लगाया हुआ था कि उसके किसी दोस्तों के पास विराज का कोई अता पता हो। दूसरे दिन सुबह ही उसके आदमी ने उसे बताया था कि विराज के दो ही लड़के खास दोस्त हुआ करते थे। एक का नाम दिनेश सिंह था जो कि आजकल देश के किसी दूसरे राज्य में नौकरी कर रहा है। दूसरे दोस्त का नाम है पवन सिंह चंदेल। ये विराज का स्कूल के समय से ही दोस्त था। ग़रीब है, आज कल हल्दीपुर में ही बस स्टैण्ड के पास पान की दुकान खोल रखा है। घर में विधवा माॅ के अलावा एक बहन है जो ऊम्र में उससे बड़ी है। मगर आर्थिक परेशानी की वजह से वह अपनी बड़ी बहन की शादी नहीं करा पा रहा है।

रितू के खबरी ने उसे पवन सिंह का नंबर लाकर दिया था। रितू ने पवन को फोन लगा कर उसे अपना परिचय दिया और मिलने का कहा था। खैर, रातू जब पवन से मिली तो उससे विराज के बारे में पूछा तो पवन ने बड़ा अजीब सा जवाब दिया था उसे।

"आप मेरे दोस्त राज की बड़ी बहन हैं इस लिए आप मेरी भी बड़ी बहन के समान ही हैं।" पवन ने कहा था___"आप मेरे घर पर आई हैं, आपका तहे दिल से स्वागत है। लेकिन अगर आप मुझसे मेरे जिगरी यार का पता या फोन नंबर पूछने आई हैं तो माफ़ कीजिएगा दीदी। मैं आपको ना तो उसका पता बताऊॅगा और ना ही उसका फोन नंबर दूॅगा।"

"लेकिन क्यों पवन क्यों?" रितू ने चकित भाव से कहा था___"तुम एक बहन को उसके भाई का अता पता क्यों नहीं बताओगे?"
"बहन.....भाई???" पवन सिंह बड़े अजीब भाव से हॅसा था, उसकी उस हॅसी में रितू ने साफ साफ दर्द महसूस किया____"कौन बहन भाई दीदी? अरे मेरे यार ने तो सबको हमेशा अपना ही माना था मगर उसके खुद के माॅ बाप और बहन के अलावा किसी भी परिवार वाले ने उसे अपना नहीं माना। और और आप???? आप भी बताइये दीदी, आप ने राज को कब अपना भाई माना था? अरे उसे तो आपने बचपन से लेकर आज तक सिर्फ दुत्कारा है दीदी। ख़ैर, जाने दीजिए। आपसे ये सब कहने का मुझे कोई हक़ नहीं है। माफ़ करना दीदी, आपको देख कर जाने कैसे गुस्सा सा आ गया था और दिल का गुबार मुख से निकल गया। मगर, जिस काम के लिए आप यहाॅ आई हैं वो हर्गिज़ नहीं होगा। मुझे सब पता है दीदी, मेरे दोस्त राज और उसकी माॅ बहन को खोजने के लिए आपके डैड ने अपने आदमियों को जाने कब से लगाया हुआ है। मगर कोई भी उनका आदमी उसे ढूॅढ़ नहीं पाएगा।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो पवन।" रितू ने बेचैनी भरे भाव से कहा था___"मैं ये मानती हूॅ कि मैने अपने उस भाई को कभी अपना नहीं माना था लेकिन आज ऐसा नहीं है भाई। आज तुम्हारी ये दीदी बहुत प्यार करने लगी है अपने उस भाई से। इस वक्त अगर राज मेरे सामने आ जाए तो मैं उसके पैरों में पड़ कर उससे अपने किये की मुआफ़ी माॅग लूॅगी। ये सब समय समय की बातें हैं पवन। हम जब बच्चे होते हैं तो बिलकुल कुम्हार के पास रखी हुई उस गीली और कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। हमारे माता पिता कुम्हार की तरह ही होते हैं। वो जैसे चाहें अपने बच्चों को किसी मिट्टी के घड़े की तरह ढाल देते हैं। कहने का मतलब ये कि, मेरे माॅम डैड ने हम बहन भाइयों को बचपन से जो सिखाया पढ़ाया हम उसी को करते चले गए। लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता पवन। हर सच्चाई को एक दिन पर्दे से निकल कर बाहर आना ही पड़ता है। यही उसकी नियति होती है। और सच्चाई क्या है क्या नहीं ये मुझे समझ आ गया है। मुझे पता है पवन कि मेरा भाई राज वो कोहिनूर है जिसका कोई मोल हो ही नहीं सकता।"

"वाह दीदी वाह।" पवन कह उठा___"आज आपके मुख से ये अमृत वाणी कैसे निकल रही है? हैरत की बात है, खैर मुझे क्या है। मगर इतना जान लीजिए कि मैं आपकी इन मीठी बातों के जाल में फॅसने वाला नहीं हूॅ। मेरी वजह से मेरे दोस्त को कोई नुकसान नहीं पहुॅचा सकता। अब आप जाइये दीदी। मुझे आपसे और कोई बात नहीं करनी है।"

"कैसे यकीन दिलाऊॅ पवन?" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"आखिर कैसे तुम्हें यकीन दिलाऊॅ कि मैं अब वैसी नहीं रही? मैं हनुमान जी की तरह अपना सीना चीर कर नहीं दिखा सकती मगर भगवान जानता है कि मेरे सीने में मेरा भाई ज़रूर मौजूद हो गया है। तुम मुझे उसका गुनहगार समझते हो तो चलो ठीक है पवन। तुम मुझे राज का अता पता भी न दो मगर इतना तो उसे बता ही सकते हो न वो कुछ देर के लिए अपनी उस विधी के पास आ जाए जिससे वह आज भी उतना ही प्यार करता होगा जितना पहले करता था।"

"नाम मत लीजिए उस बेवफ़ा का।" पवन ने सहसा आवेशयुक्त लहजे में कहा___"उसी की बेवफ़ाई की वजह से मेरा दोस्त रात रात भर मेरे पास रोता रहता था। कितना चाहता था वो उसे। मगर उस दिन पता चला कि दुनियाॅ भर की कसमें और दलीलें देने वाली वो लड़की कितनी झूठी और मक्कार थी जिस दिन आप लोगों ने मेरे दोस्त को और उसके माॅ बहन को हवेली से बाहर धकेल दिया था। उधर आप लोगों ने हवेली से धकेला और इधर उस कम्बख्त ने मेरे दोस्त को अपने दिल से धकेल दिया। एक पल में गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था उस लड़की ने। रुपये पैसे से मोहब्बत थी उसे ना कि मेरे दोस्त से।"

"सच्चाई क्या है इसका तुम्हें पता नहीं है पवन।" रितू ने दुखी भाव से कहा__"तुम और विराज ही क्या बल्कि नहीं समझ सकता कि उसने ऐसा क्यों किया था?"
"अरे दौलत के लिए दीदी दौलत के लिए।" पवन ने झट से कहा___"उसने मेरे दोस्त की सच्ची मोहब्बत को अपने पैरों तले रौंदा था।"

"ये सच नहीं है पवन।" रितू ने कहा__"अगर सच्चाई जान लोगे न तो पैरों तले से ज़मीन गायब हो जाएगी तुम्हारे। उसने ये सब इस लिए किया था ताकि विराज उससे नफ़रत करने लगे और किसी दूसरी लड़की के साथ प्यार मोहब्बत करने का सोचे। माना कि ये आसान नहीं था मगर वक्त और हालात हर ज़ख्म भर देता और एक नया मोड़ भी जीवन में ले आता है।"
 

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