Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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आशा दीदी का दूध सा गोरा चेहरा ऑसुओं से तर था। नज़रें झुकी हुई थी उनकी। मैं हैरान इस बात पर हुआ था कि मेरे पूछने पर कि "दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन" का जवाब भी उन्होंने यही दिया कि "सिर्फ मैं"। जबकि अक्सर यही होता था कि इस सवाल पर वो यही कहती कि शैतना तुम दोनो ही हो। मैं तो मासूम हूॅ। लेकिन आज उन्होंने खुद को ही शैतान कह दिया था।

"ये तो कमाल हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज आपने खुद को ही कह दिया कि आप ही सबसे शैतान हो। आज आपने ये नहीं कहा कि मैं और पवन ही सबसे ज्यादा शैतान हैं। आप तो मासूम ही हैं।"
"हाॅ तो क्या हुआ?" दीदी ने सहसा तुनक कर कहा___"आज मैं शैतान बन जाती हूॅ। तुम दोनो मासूम बन जाओ।"

मैं उनकी इस बात को सुन कर मुस्कुराया। दीदी ने ये बात बिलकुल वैसे ही अंदाज़ में कही थी जैसा अंदाज़ उनका आज से पहले हुआ करता था। दीदी को भी इस बात का एहसास हुआ और फिर एकाएक ही उनकी रुलाई फूट गई।

"अरे अब क्या हुआ दीदी?" मैने उनको अपने से छुपका कर कहा___"देखो अब रोना नहीं। मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि आप मेरी इतनी प्यारी सी दीदी को बात बात पर इस तरह रुला दो। चलो अब जल्दी से रोना बंद करो और अपनी वही मनमोहक मुस्कान और नटखटपना दिखाओ मुझे ताकि मेरे मन को सुकून मिल जाए।"

"अब तू आ गया है न तो अब मैं नहीं रोऊॅगी राज।" आशा दीदी ने कहा___"तुझे पता है मैं तुझे कितना मिस करती थी। हम तीनो का वो बचपन जाने कहाॅ गुम हो गया था? तुम दोनो मेरे खिलौने थे जिनके साथ मैं हॅसती खेलती रहती थी।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा___"मगर आप तो जानती हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है। ख़ैर, छोंड़िये ये सब और मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप हमेशा खुश रहेंगी। अपने चेहरे पर वो उदासी और किसी भी तरह के दुख के भाव नहीं आने देंगी।"

"हम्म।" दीदी ने हाॅ में सिर हिलाया।
"अब बताइये आपको अपने इस भाई से क्या तोहफ़ा चाहिए?" मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
"तू आ गया है मेरे पास।" दीदी ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से सहला कर कहा___"इससे बड़ा तोहफ़ा मेरे लिए और क्या होगा?"

"पर मैं तो आपके लिए आपकी मनपसंद चीज़ लेकर ही आया हूॅ।" मैने कहा__"अब अगर आपको नहीं चाहिए तो ठीक है मैं उसे किसी और को दे दूॅगा।"
"ख़बरदार अगर किसी और को दिया तो।" दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"ला दे मेरी चीज़ मुझे। वैसे क्या लेकर आया है राज?"

"सोचिये।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"क्या हो सकती है वो चीज़?"
मेरी ये बात सुनकर आशा दीदी सोच में पड़ गईं। मैने देखा कि इस वक्त उनके चेहरे पर वही चंचलता और वही बिंदासपन आ गया था। उनका चेहरा एकदम से अब खिला खिला लग रहा था।

"सोच लिया मैने।" आशा दीदी एकदम से उछलते हुए बोली___"कि तू मेरे लिए कौन सी चीज़ लेकर आया है?"
"अच्छा तो बताइये।" मैने हॅस कर कहा__"ज़रा मैं भी तो जानूॅ कि आपने क्या सोच लिया है?"

"तू न मेरे लिए।" आशा दीदी ने धीरे धीरे और आराम आराम से कहना शुरू किया__"तू न मेरे लिए......एक प्यारी सी, सुंदर सी सोने की घड़ी लेकर आया है। जिसे मैं अपने इस हाॅथ में पहनूॅगी। अब बता बच्चू, मैंने सही कहा न? हाॅ...बोल बोल।"

मैं दीदी की इस बात पर और उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा उठा। उन्होने जो कहा वो यकीनन सच ही तो था। मैं उनके लिए एक सोने की घड़ी लेकर ही आया था। मुझे याद है जब वो मेरे हाथ की कलाई में एक आम सी घड़ी देखती तो यही कहती कि__"अरे ये तो मामूली सी घड़ी है बेटा, आशा रानी तो अपने हाॅथ में सोने की घड़ी पहनेगी एक दिन। देख लेना। वरना सारी उमर घड़ी ही नहीं पहनेगी।
मैं और पवन उनकी इस बात पर अक्सर हॅसने लगते। हमारे हॅसने पर उन्हें लगता कि हम दोनो उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं। इस लिए वो मुह फुला कर एक तरफ बैठ जाती। उसके बाद हम दोनो फिर से उन्हें उसी तरीके से मनाने लगते और वो खुश हो जाती। ऐसी थी आशा दीदी। वो हम लोगों से उमर में तीन चार साल बड़ी थी मगर हमारे साथ वो हमसे भी छोटी बन जाती थी।

ये सब सोच कर सहसा मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। आशा दीदी ने मेरी ऑखों से छलके ऑसूॅ को देखा तो। उन्होंने मुझे खुद से छुपका लिया।
"ओये ये क्या है अब?" फिर उन्होंने कहा__"अभी तक तो बड़ा मुजसे कह रहा था कि अब से मैं खुद को न रुलाऊॅ और अब तू क्यों रोने लगा? चल रोना नहीं वरना मैं भी रो दूॅगी।"

"ये तो खुशी के ऑसू हैं दीदी।" मैं उनसे अलग होते हुए बोला___"कुछ यादें ऐसी होती हैं जिनके याद आने से बरबस ही ऑखें छलक पड़ती हैं। ख़ैर, ये लीजिए आपकी घड़ी। देख लीजिए सोने की ही है न?"

"मुझे पता है कि मेरा भाई मेरी कलाई में सोने के अलावा कोई और घड़ी नहीं पहनाएगा।" दीदी ने कहा मुस्कुराकर कहा___"उसे पता है कि मैने क्या प्रण किया था?"
"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा__"मैं आपके प्रण को कैसे भुला सकता हूॅ? जब मैं वहाॅ से चलने वाला था तो मुझे आपकी याद आई और फिर सबकुछ याद आया। इस लिए मैं गया और ज्वैलरी की दुकान से आपके लिए ये घड़ी खरीद लाया।"

मेरी बात से दीदी मुस्कुरा दी और फिर उस पैकिट को खोलने लगी जिसमें मैं उनके लिए घड़ी लेकर आया था। कुछ ही देर में पैकेट खोल कर उन्होने उस घड़ी को निकाल कर देखा। वो सचमुच सोने की ही घड़ी थी। घड़ी देख कर दीदी की ऑखें फिर से भर आईं।

"राज, आज मैं बहुत खुश हूॅ।" फिर उन्होने कहा___"इस लिए नहीं कि तू घड़ी लेकर आया है बल्कि इस लिए कि तू यहाॅ आया और तुझे अपनी दीदी के प्रण का ख़याल था। मुझे खुशी है कि तेरे जैसा लड़का मेरा भाई है।"

"मुझे भी तो खुशी है दीदी।" मैने कहा__"कि आप मेरी सबसे प्यारी बहन हो। आपको मैं गुड़िया(निधी) की तरह ही प्यार करता हूॅ।"
"हाॅ ये मैं जानती हूॅ।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"अच्छा राज, इस घड़ी को तू ही पहना दे न मुझे।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी इच्छा।"

मैने उनके हाॅथ से घड़ी ल। दीदी ने अपने बाएॅ हाथ की कलाई मेरी तरफ बढ़ा दी। मैने उनकी खूबसूरत कलाई पर उस घड़ी को डाल कर पहना दी। ये देख कर आशा दीदी खुश हो गई और एकदम से मुझसे लिपट गई।

"कितनी अच्छी लग रही है न राज?" वो खुशी से मानो चहकती हुई बोली___"अच्छा ये बता कि इसके अंदर पानी तो नहीं जाएगा न?"
"नहीं जाएगा दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"ये फुल वाटरप्रूफ है।"
"फिर ठीक है।" दीदी ने मुझसे अलग होकर कहा___"अब न मैं इसे कभी भी अपनी कलाई से नहीं उतारूॅगी।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी मर्ज़ी। अच्छा दीदी अब मैं चलता हूॅ और हाॅ याद है न....अब से आप खुद को उदास या दुखी नहीं रखेंगी।"
"हाॅ हाॅ याद है बाबा।" दीदी ने हॅस कर कहा___"और अब तो मेरे भाई ने मेरी पसंद की चीज़ भी दे दी। फिर किस लिए खुद को उदास या दुखी रखना?"

"ये हुई न बात।" मैने दीदी के माथे पर हल्के से चूमा और फिर पलट कर वापस दरवाजे की तरफ चल दिया। अभी मैं दो ही क़दम दरवाजे की तरफ बढ़ा था कि मेरी नज़र दरवाजे पर खड़े पवन और माॅ पर पड़ी। मैं उन्हें देख कर पहले तो चौंका फिर हौले से मुस्कुरा दिया। दरवाजे बाहर आकर मैने दरवाजे के दोनो पाटों को आपस में सटा कर चल दिया।

मेरे पीछे पीछे पवन और माॅ भी आने लगे। माॅ के कमरे में आकर मैं एक जगह बैठ गया।
"तो बहन को खुश कर दिया उसके भाई ने?" माॅ ने ऑखों से अपने ऑसू पोंछते हुए कहा___"आज काफी समय बाद उसे इतना खुश और चहकते हुए देखा है मैने।"

"अब से वो हमेशा खुश ही रहेंगी माॅ।" मैने कहा___"और हाॅ बहुत जल्द मैं उनके लिए एक अच्छा सा रिश्ता तलाश करूॅगा। उनकी शादी एक ऐसे घर में और एक ऐसे लड़के से करूॅगा जो उन्हें दुनियाॅ की हर खुशी देगा।"
"अब मुझे उसकी शादी की चिंता नहीं है बेटे।" माॅ ने कहा___"उसका भाई आ गया है तो अब सब वहीं सम्हालेगा।"

मैने पवन की तरफ देखा वो अपनी ऑखों में ऑसू लिये एक तरफ खड़ा था। मैं उसके पास जाकर उससे बोला___"तूने मुझे बुला कर बहुत अच्छा किया है भाई। मगर आज जो कुछ भी रास्ते में हुआ है उस सबसे बहुत जल्द एक नई मुसीबत सामने आने वाली है। बड़े पापा को पता लगाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा कि वो सब किसने किया उनके आदमियों के साथ? वो ये भी पता कर लेंगे कि मैं यहाॅ किसके यहाॅ रुका हुआ हूॅ। इस लिए अब तुम ये भी समझ लो कि इस घर में रहते हुए तुममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" माॅ ने चकित भाव से कहा___"क्या हुआ है आज रास्ते में?"
मैने माॅ को संक्षेप में सबकुछ बता दिया। मेरी बात सुन कर माॅ सकते में आ गई। उनके चेहरे पर एकदम से डर व भय के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे।

"ये तो बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है बेटा।" माॅ ने सहमे हुए लहजे में कहा___"तुमने अजय सिंह के आदमियों को मार कर अच्छा नहीं किया। अजय सिंह इस सबका बदला ज़रूर लेगा।"
"ये तो होना ही था माॅ।" मैने कहा___"आप खुद सोचिए कि अगर मैं और आदित्य ये सब नहीं करते तो उनके आदमी हमें अपने साथ ले जाकर बड़े पापा के हवाले कर देते। उस सूरत में बड़े पापा हमारे साथ क्या करते इसका अंदाज़ा आप नहीं लगा सकती माॅ। वो मुझे बंधक बना कर मुझसे ज़बरदस्ती मेरी माॅ बहन और अभय चाचा को मुम्बई से यहाॅ बुलवा लेते। उसके बाद क्या होता ये आप सोच कर देखिये।"

"राज सही कह रहा है माॅ।" पवन ने कहा__"रास्ते में इसके बड़े पापा के आदमी इसे पकड़ने के लिए ही आए थे और अगर वो लोग इसे पकड़ कर ले जाते तो सचमुच बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता। इस लिए अजय चाचा के आदमियों को मारने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं था इसके पास।"

"पर इसने अजय सिंह के उतने सारे आदमियों को कैसे खत्म कर दिया?" माॅ के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"आपको नहीं पता माॅ।" पवन कह रहा था___"इसने और आदित्य ने पाॅच मिनट में उन सबका काम तमाम कर दिया था। मैने वो सब अपनी ऑखों से देखा था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही राज है जो इतना शान्त और भोला भाला हुआ करता था।"

"ये सब छोड़ो।" मैने कहा___"मैं ये कह रहा हूॅ कि बड़े पापा को इस बात का पता बहुत जल्द चल जाएगा कि मैं यहाॅ पवन के घर में रुका हुआ हूॅ। इस लिए वो आप सबको भी अपना दुश्मन समझ लेंगे और आप लोगों के साथ कुछ भी बुरा कर सकते हैं। अतः अब आप लोगों का यहाॅ रहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।"

"बात तो तुम्हारी ठीक ही है भाई।" पवन ने कहा___"लेकिन हम तेरे बड़े पापा के डर से अपना ये घर छोंड़ कर भला कहाॅ जाएॅगे?"
"मुम्बई।" मैने कहा___"हाॅ पवन। अब आप लोगों का यहाॅ रहना खतरे से खाली नहीं है। इस लिए अब आप लोग मेरे साथ मुम्बई चलोगे। तुम्हें पता है, अभय चाचा ने भी मुझे कुरुणा चाची और उनके बच्चों को मुम्बई ले आने को कहा है। क्योंकि उन्हें भी पता है कि करुणा चाची और दिव्या व शगुन सुरक्षित नहीं हैं।"

"लेकिन बेटा।" माॅ ने झिझकते हुए कहा___"हम सब वहाॅ तेरे लिए बोझ बन जाएॅगे। इतने सारे लोग वहाॅ कैसे रह पाएॅगे?"
"ये कह कर आपने मुझे पराया कर दिया माॅ।" मैने दुखी भाव से कहा___"भला आप ऐसा कैसे सोच सकती हैं कि मेरे लिए आप लोग बोझ बन जाएॅगे?"

माॅ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ इस लिए उन्होंने मुझे अपने गले से लगा कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था बेटा। मैं तो बस ये कहना चाहती थी कि वहाॅ पर हम सब इतने सारे लोग कैसे रहेंगे?"
"आप इस बात की फिक्र मत कीजिए माॅ।" मैने कहा___"मुम्बई में जहाॅ मैं रहता हूॅ वो एक बहुत बड़ा बॅगला है। वहाॅ पर सौ आदमी भी रहेंगे न तब भी जगह बच जाएगी।"

"क्या????" माॅ ने हैरानी से कहा___"क्या इतना बड़ा गर है वहाॅ?"
"हाॅ माॅ।" मैने कहा__"इसी लिए तो कह रहा हूॅ कि आप रहने की चिंता मत कीजिए। बस यहाॅ से फौरन चलने की तैयारी कीजिए। आप सब अपना ज़रूरी सामान ले लीजिए, और चलने के लिए तैयार हो जाइये जल्दी।"

"क्या हम आज ही यहाॅ से चल देंगे?" सहसा पवन ने कुछ सोचते हुए कहा था।
"जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी हमें से निकल लेना चाहिए भाई।" मैने कहा__"यहाॅ ज्यादा समय तक रुकना ठीक नहीं है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"पर हम यहाॅ से इतने सारे सामान को लेकर जाएॅगे कैसे?"
"तू किसी भी तरह से किसी ऐसे वाहन का इंतजाम कर जिसमे सारा सामान भी आ जाए और हम सब उसमें आराम से बैठ भी जाएॅ।" मैने कहा___"और ये काम तुझे बहुत जल्द करना है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"मैं कोशिश करता हूॅ ऐसे किसी वाहन को लाने की।"
ये कह कर पवन कमरे से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद मैने माॅ से कहा कि वो भी अपना सब ज़रूरी सामान इकट्ठा करके उसे पैक कर लें। मेरे कहने पर माॅ ने हाॅ में सिर हिलाया और कमरे से बाहर चली गईं। मैं भी बाहर आकर बैठक की तरफ बढ़ गया।
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उधर हास्पिटल में एकाएक ही रितू का मोबाइल बजा। उसने मोबाइल को पाकेट से निकाल कर देखा। स्क्रीन पर पवन लिखा आ रहा था। ये देख कर रितू के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वो मोबाइल को लिए विधी के पास से उठ कर बाहर की तरफ आ गई। फिर मोबाइल पर आ रही काल को रिसीव कर कानो से लगा लिया उसने।

"हाॅ भाई बोलो।" फिर उसने कहा__"सब रेडी है न?"
".............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"ये तुम क्या कह रहे हो पवन?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"तुम सब लोग राज के साथ मुम्बई जाने वाले हो?"

"............।" उधर से पवन फिर कुछ कहा।
"हाॅ मुझे पता चल गया उस बारे में।" रितू ने कहा___"मेरे आदमियों ने फोन पर बताया है सब कुछ। ये भी बताया कि उन लोगों ने डैड के आदमियों को ठिकाने लगा दिया है। राज और उसके दोस्त ने सबको खत्म कर दिया था। अगर उन दोनो के बस का न होता तो मेरे वो पुलिस के आदमी उन सबको गोलियों से भून कर रख देते। मेरा उनके लिए यही आदेश था। ख़ैर, सबसे अच्छी बात यही हुई कि तुम लोग सकुशल घर गए। लेकिन खतरा अभी टला नहीं है पवन। डैड अपने आदमियों की खोज ख़बर लेने ज़रूर इधर उधर जाएॅगे। राज ने सही फैसला लिया है तुम लोगों को अपने साथ ले जाने का। मगर उसका क्या होगा जिसके लिए मैने राज की तुम्हारे द्वारा बुलवाया था?"

"............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ भाई।" रितू ने ज़ोर दे कर कहा___"तुम एक काम करो, राज की लेकर यहाॅ आ जाओ। मैं तुम लोगों को यहाॅ से सुरक्षित जाने का बंदोबस्त कर दूॅगी।"
"............।" उधर से पवन ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" रितू ने कहा___"तुम उसे लेकर आओ। मैं अभी किसी वाहन का इंतजाम करती हूॅ। तुम किसी भी प्रकार की चिंता मत करो। बस उसे लेकर आ जाओ। यहाॅ मैने उसकी सुरक्षा का सारा इंतजाम किया हुआ है। रास्तों पर भी पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में मौजूद हैं।"

".........।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"तुम बेफिकर रहो भाई।" रितू ने कहा___"उसे कुछ नहीं होने दूॅगी मैं। अपनी जान पर खेलकर भी मैं उसकी हिफाज़त करूॅगी। यहाॅ आने के बाद जो कुछ भी होगा उसकी देखभाल भी मैं कर लूॅगी। तुम बस उसे लेकर आ जाओ। अब इंतज़ार नहीं होता मेरे भाई। जबसे तुमने बताया है कि राज आ गया है तब से उससे मिलने के पागल हुई जा रही हूॅ मैं। दिल तो करता है कि अभी भाग कर तुम्हारे घर आ जाऊॅ और अपने भाई को अपने सीने से लगा कर खूब रोऊॅ। मगर, उससे मिलने का सबसे पहला हक़ विधी का है मेरे भाई। मैने उसे वचन दिया है कि मैं उसके महबूब से उसे मिलाऊॅगी। इस लिए भाई, जल्दी से उसे लेकर आजा। मेरे वचन की लाज रख ले। विधी को उसके महबूब से मिला दे जल्दी।"

".........।" उधर से पवन ने कुच कहा।
"ठीक है भाई जल्दी आना।" रितू ने कहा और फिर फोन कट कर दिया। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। फोन को पाॅकेट में डालने के बाद वह वापस गैलरी की तरफ चल पड़ी। रास्ते मे एक तरफ उसे श्री कृष्ण का छोटा सा मंदिर दिखा तो वह उसी तरफ बढ़ गई। मंदिर के पास पहुॅच कर वह घुटनों के बल बैठ गई।

"हे कृष्णा अब सब कुछ आपके ही हवाले है।" रितू ने ऑखों में ऑसू लिए तथा दोनो हाॅथ जोड़े कहा___"सब कुछ ठीक कर देना कान्हा। मेरा भाई जब विधी से मिले तो उसकी हालत को देख कर वो खुद को सम्हाल सके। उसके दिल को मजबूत बनाए रखना कन्हैया। वो अपनी प्रेयसी से मिलने आ रहा है। उसे हर दुख दर्द सहने की शक्ति देना कृष्णा। मेरा भाई भी इस वक्त कृष्ण ही है जो अपनी राधा से मिलने आ रहा है।"

इतना कहने के बाद रितू उठी और कृष्ण की मूर्ती के पास थाली में रखे फूलों से कुछ फूल उठा कर कृष्ण के चरणों में अर्पण कर दिया।

"सब कुछ तुम ही तो करते हो कन्हैया। इस संसार में सब कुछ तुम्हारे ही इशारे से हो रहा है।" रितू ने कहा___"ये भी कि मेरा भाई जिसे टूट कर प्रेम करता है उस लड़की को ब्लड कैंसर के लास्ट स्टेज पर पहुॅचा दिया आपने। ये कैसी लीला है कृष्णा? लोग कहते हैं कि जो कुछ भी तुम करते हो वो सब अच्छे के लिए ही करते हो, तो बताओ मुझे कि ऐसा करके कौन सा अच्छा कर रहे हो तुम? लेकिन ख़ैर कोई बात नहीं। मैं तुमसे यहाॅ इस सबकी शिकायत नहीं कर रही हूॅ। हाॅ इतनी विनती ज़रूर कर रही हूॅ कि मेरे भाई को कभी कुछ न हो। वो यहाॅ आए तो विधी की हालत देख कर वो खुद को सम्हाल सके। बस यही प्रार्थना करती हूॅ तुमसे।"

इतना कहने के बाद रितू अपने ऑसू पोंछते हुए कृष्णा को प्रणाम कर विधी के कमरे की तरफ बढ़ गई। उसका मन बहुत भारी हो गया था। रह रह कर उसके मन में आने वाले वक्त के प्रति घबराहट सी बढ़ती जा रही थी।
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उधर घर में पवन मुझे लिए बाहर आया। मैने देखा कि बाहर एक मोटर साइकिल खड़ी थी। पवन ने मुझसे कहा कि मैं अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लूॅ। मैं उसकी बात सुन कर चौंका। उससे पूछा कि कहाॅ जा रहे हैं हम मगर उसने मुझे कुछ न बताया। बल्कि मोटर साइकिल में बैठ कर से स्टार्ट किया और मुझे पीछे बैठने को कहा। मैं उसकी इस आनन फानन वाली क्रिया से हैरान था। बड़ा अजीब सा ब्यौहार कर रहा था वो।

ख़ैर, उसके बार बार ज़ोर देने पर मैं उसके पीछे मोटर साइकिल पर बैठ गया। आदित्य दरवाजे पर खड़ा हैरानी से ये सब देख रहा था। उसने भी कई बार पवन से पूछा कि वो मुझे लेकर कहाॅ जा रहा है मगर पवन ने कुछ न बताया। बल्कि उससे यही कहा कि वो यहीं रहे, हम थोड़ी देर में आते हैं। आदित्य बेचारा हैरानी से देखता रह गया था उसे। माॅ और आशा दीदी अंदर सामान पैक करने में लगी हुईं थी। उन्हें इस सबका कुछ पता ही नहीं था। आशा दीदी को जब पता चला कि वो सब लोग मेरे साथ मुम्बई चल रहे हैं तो वो बड़ा खुश हुई थी।

इधर मेरे बैठते ही पवन ने मोटर साइकिल को आगे बढ़ा दिया। जहाॅ तक मुझे पता था पवन के पास कोई साइकिल तक नहीं थी, इसका मतलब वो ये मोटर साइकिल किसी जान पहचान वाले से माॅग कर ही लाया था।

"अब तो बता दे मेरे बाप कि हम कहाॅ जा रहे हैं?" रास्ते में मैने ये बात पवन से खीझते हुए कही थी, बोला___"साले तूने इस सवाल पर ऐसे अपना मुह बंद कर रखा है जैसे अगर तू बता देगा तो क़यामत आ जाएगी।"

"ऐसा ही समझ ले तू।" पवन ने कहा__"अब चुपचाप बैठा रह। कितना बोलने लगा है तू आजकल?"
"क्या कहा तूने?" मैने हैरत से देखते हुए उसे पीछे से उसकी पीठ पर हल्के से मुक्का मारा, फिर बोला___"मैं बहुत बोलने लगा हूॅ। हाॅ, और तू जैसे मौनी बाबा ही बन गया है न।"


पवन मेरी इस बात पर मुस्कुरा कर रह गया। मगर सिर्फ एक पल के लिए। अगले ही पल उसके चेहरे पर संजीदगी के भाव नुमायाॅ हो गए। जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो। मैने एक बात नोट की थी कि वो जब से मुझे मिला था तब से मैने उसे संजीदा ही देखा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसकी क्या वजह थी। मुझे याद आया कि उसने मुझे सीघ्र मुम्बई से आने के लिए कहा था। इसका मतलब ये मुझे उसी काम से लिए जा रहा है। लेकिन आख़िर किस काम से? साला दिमाग़ का दही हो गया मगर मुझे कोई वजह समझ में नहीं आई।

लगभग दस मिनट बाद पवन ने जिस जगह पर मोटर साइकिल रोंकी उस जगह को देख कर मैं चौंका तो ज़रूर मगर मुझे समझ में न आया कि पवन मुझे हास्पिटल लेकर क्यों आया है? सहसा मेरे ज़हन में एक बार फिर करुणा चाची और उनके बच्चों का चेहरा नाच गया। मन में सवाल उभरा कि क्या करुणा चाची या उनके बच्चों में से किसी को कुछ हो गया था जो वो यहाॅ हास्पिटल में शायद एडमिट हैं? मगर इस बात को मुझसे छिपाने की भला क्या ज़रूरत थी?

मोटर साइकिल के खड़े होते ही मैं उतर गया। मेरे बाद पवन भी उतर गया और मोटर साइकिल को स्टैण्ड पर खड़ा कर वो मेरी तरफ देखा और बोला____"तू यहीं रुक मैं आता हूॅ दो मिनट में।"

"अरे अब कहाॅ जा रहा है तू मुझे यहाॅ पर अकेला छोंड़ कर?" मैंने हैरानी से पूछा।
"मैने कहा न यहीं रुक।" पवन ने शख्ती से कहा___"मैं आता हूॅ अभी।"

ये तो हद ही हो गई। पवन ने मुझे शख्ती से रुकने को कहा था। मेरा दिमाग़ घूम गया। ये साला हो क्या रहा है? मैने देखा कि पवन हास्पिटल की सीढ़ियाॅ चढ़ कर ऊपर वाली सीढ़ी के पास जाकर रुक गया। उसके बाद उसने अपने पैन्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर उससे किसी को फोन किया। मोबाइल को कान से लगा कर उसने सामने वाले से जाने क्या बात की। एक मिनट भी नहीं लगे उसे बात खत्म करने में। मोबाइल को पुनः जेब के हवाले कर उसने मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी तरफ आने का हाथ से इशारा किया।

उसके इस इशारे पर मैं फिर चौंका। मगर कर भी क्या सकता था? मैं अपने मन में हज़ारों तरह के विचार लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही देर में सीढ़ियाॅ चढ़ कर उसके पास पहुॅच गया।

"साला इतना ज्यादा सस्पेन्स तो किसी जासूसी उपन्यास में भी मैने नहीं देखा जितना तू क्रियेट कर रखा है।" ऊपर उसके पास पहुॅचते ही मैने कहा उससे___"मेरे दिमाग़ का कचूमर निकाल दिया तूने कसम से। अच्छा है तू किसी जासूसी उपन्यास का राइटर नहीं बन गया। वरना पाठकों के दिमाग़ की नसें ही फट जाती।"

"ज्यादा बकवास न कर।" मेरी बात पर पवन ने भावहीन स्वर में कहा___"और अब चल मेरे साथ।"
"जो हुकुम माई बाप।" मैने अदब से सिर को झुकाते हुए कहा और चल दिया उसके पीछे।

पवन के पीछे चलते हुए मैं हास्पिटल के अंदर की तरफ आ गया। मेरा मन अंजानी आशंका के चलते ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। पता नहीं क्यों पर मैं मन ही मन भगवान से दुवा कर रहा था कि यहा हर कोई ठीक ही हो। ख़ैर, पवन के साथ चलते हुए मैने देखा कि पवन एक कमरे के सामने आकर रुक गया।

कमरे के दरवाजे के पास रुक कर पवन ने कुछ पल कुछ सोचा फिर मेरी तरफ पलट कर कहा___"तू जानना चाहता था न कि मैने तुझे इतना जल्दी यहाॅ आने के लिए क्यों कहा था?"
"वो तो मैं तुझसे कब से पूछ रहा हूॅ?" मैने उससे कहा___"मगर तू बता ही नहीं रहा था।"

"बताने की ज़रूरत नहीं है मेरे यार।" सहसा पवन की आवाज़ भर्रा गई, बोला___"तू इस कमरे में जा और सब कुछ अपनी ऑखों से देख सुन ले। लेकिन उससे पहले तू मुझसे वादा कर कि अंदर सब कुछ देखने सुनने के बाद तू खुद को सम्हाल कर रखेगा।"

"इस बात का क्या मतलब हुआ?" मैंने सहसा चौंकते हुए कहा___"ऐसा क्या है अंदर कि मुझे उसे देख कर खुद को सम्हालना पड़ेगा?"
"अब जा तू।" पवन ने कहने के साथ ही मुह फेर लिया मुझसे, दो चार क़दम चलने के बाद मेरी तरफ पलट कर बोला___"मैं बाहर ही तेरा इन्तज़ार करूॅगा।"

बस इसके बाद वो एक पल के लिए भी नहीं रुका। बल्कि तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए बाहर की तरफ चला गया। मुझे कुछ समझ न आया कि ये सब क्या चल रहा है यहाॅ? पवन जब मेरी नज़रों से ओझल हो गया तो मैं उस कमरे के दरवाजे की तरफ पलटा जिस कमरे के अंदर जाने के लिए पवन ने मुझसे कहा था।

कुछ पल तक मैं उस दरवाजे को घूरता रहा। मेरा दिल अनायास ही बड़ी तेज़ी से धड़कने लगा था। मन में तरह तरह के ख़याल उछल कूद मचाने लगे थे। मैने अपने हाॅथों को दरवाजे की तरफ बढ़ाया। मैने देखा मेरे वो हाॅथ काॅप रहे थे। पता नहीं मगर, इन कुछ ही पलों में मेरी अजीब सी हालत हो गई थी। ख़ैर, मैने दरवाजे पर हाॅथ रख कर उसे अंदर की तरफ आहिस्ता से धकेला तो दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया।

खुल चुके दरवाजे अंदर की तरफ मेरी नज़र पड़ी तो सामने दीवार के पास एक टेबल रखा दिखा मुझे जिस पर कुछ दवाइयाॅ और कुछ पेपर जैसे रखे हुए थे। बाॅकी कुछ न दिखा मुझे। मेरे मन में सवाल उभरा कि इस कमरे में ऐसा क्या है जिसे देखने के लिए कदाचित पवन ने मुझे अंदर जाने को कहा था?

अपने मन में उठे सवाल की खोज के लिए मैंने दरवाजे के अंदर की तरफ अपने क़दम बढ़ाए। दो ही क़दमों में मैं कमरे के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आकर मैने इधर उधर देखा तो दाहिनी तरफ एक बेड दिखा जिस पर कोई पड़ा हुआ था। बेड के बगल से ही दो सोफा सेट रखे हुए थे किन्तु उन पर कोई बैठा हुआ नज़र न आया मुझे। बाॅकी पूरा कमरा खाली था। ये देख कर मेरा दिमाग़ हैंग सा हो गया। कुछ समझ न आया कि यहाॅ मुझे क्या दिखाने के लिए पवन ने भेजा है?

बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति पर मेरी नज़र पुनः पड़ी। उसका चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं जान न सका बेड पर कौन पड़ा हुआ है? किन्तु इतना ज़रूर अब समझ आ गया था कि शायद बेड पर पड़े हुए इंसान को देखने के लिए ही मुझे पवन ने यहाॅ भेजा है। अतः मैं धड़कते हुए दिल के साथ बेड की तरफ बढ़ा।

कुछ ही क़दमों में मैं बेड के समीप पहुॅच गया। किन्तु बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति का चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं इस तरफ से चलते हुए उस तरफ उस ब्यक्ति के चेहरे की तरफ बढ़ गया। मैने महसूस किया कि कमरे हीं नहीं बल्कि पूरे हास्पिटल में सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा सन्नाटा कि अगर कहीं सुई भी गिरे तो उसके गिरने की आवाज़ किसी बम के धमाके से कम न सुनाई दे।

बेड पर पड़े ब्यक्ति के चेहरे की तरफ आकर मेरी नज़र जिस चेहरे पर पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। हैरत और आश्चर्य से मेरी ऑखें फट पड़ीं। किन्तु फिर जैसे एकदम से मुझे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गुज़रा हुआ वो कल घूमने लगा जिसमें मैं था एक विधी नाम की लड़की थी और उस लड़की के साथ शामिल मेरा प्यार था। फिर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी विधी नाम की लड़की का धोखा था, उसकी बेवफाई थी। उसी तस्वीर में मेरा वो रोना था वो चीखना चिल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब चीज़ें मेरी ऑखों के सामने कई बार तेज़ी से घूमती चली गई।

मेरे चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। दुख दर्द और नफ़रत के भाव एक साथ आकर ठहर गए। ऑखों में ऑसूॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर लिया। दिल में एक तेज़ गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में चिंगारियाॅ सी जलने बुझने लगीं।

मेरे दिल की धड़कने और मेरी साॅसें तेज़ तेज़ चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकल रहे थे। किन्तु ये सच है कि कुछ कहने के लिए मेरे होंठ फड़फड़ा रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि या तो मैं खुद को कुछ कर लूॅ या फिर बेड पर ऑखें बंद किये आराम से पड़ी इस लड़की को खत्म कर दूॅ। किन्तु जाने कैसे मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जूझ ही रहा था कि सहसा बेड पर आराम से करवॅट लिए पड़ी उस बला ने अपनी ऑखें खोली जिस बला को मैने टूट टूट कर चाहा था।
दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 45 》


अब आगे,,,,,,,,,

उथर, अभय चाचा की ससुराल में।
करुणा चाची इस वक्त अपने कमरे में आराम कर रही थी। दोपहर हो चुकी थी। सब लोगों के खाना खा लेने के बाद उन्होंने भी खाया और फिर आराम करने के लिए अपने कमरे में चली गईं। करुणा चाची के मायके वालों का परिचय देने की यहाॅ पर कदाचित कोई ज़रूरत तो नहीं है पर फिर भी पाठकों की जानकारी के लिए दे ही देता हूॅ।

चन्द्रकान्त सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के दादा जी हैं। इनकी उमर इस समय पैंसठ के ऊपर है। ये एक फौजी आदमी हैं। फौज में मेजर थे ये। अब तो ख़ैर सरकारी पेंशन ही मिलती है इन्हें किन्तु खुद भी घर परिवार और ज़मीन जायदाद से सम्पन्न हैं ये।

हेमलता सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की दादी हैं। ये बाॅसठ साल की हैं। चन्द्रकाॅत सिंह और हेमलता सिंह के तीन लड़के और एक लड़की थी।

उदयराज सिंह राजपूत, ये चन्द्रकाॅत सिंह के बड़े बेटे थे जो कुछ साल पहले गंभीर बीमारी के चलते भगवान को प्यारे हो चुके हैं।
सुभद्रा सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की माॅ हैं। उमर यही कोई पचास के आस पास। विधवा हैं ये। इनके दो ही बच्चे हैं। सबसे पहले करुणा चाची उसके बाद हेमराज सिंह राजपूत। हेमराज सिंह की भी शादी हो चुकी है और उसके दो बच्चे हैं।

मेघराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के चाचा हैं। इनकी उमर पचास के आस पास है। पढ़े लिखे हैं ये। मगर अपनी सारी ज़मीनों पर खेती बाड़ी का काम करवाते हैं। इनकी पत्नी का नाम सरोज है जो कि पैंतालीस साल की हैं। इनके दो बेटे हैं जो शहर में रह कर पढ़ाई करते हैं।

गिरिराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के छोटे चाचा हैं। ये पैंतालीस साल के हैं और शहर में ही रहते हैं। शहर में ये एक बड़ी सी प्राइवेट कंपनी में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनकी पत्नी का नाम शैलजा है। इनके दो बच्चे हैं जो शहर में ही रहते हैं अपने माॅ बाप के साथ।

पुष्पा सिंह, ये करुणा चाची की इकलौती बुआ हैं। उमर यही कोई चालीस के आस पास। इनके पति का नाम भरत सिंह है। ये पेशे से सरकारी डाक्टर हैं। पुष्पा बुआ के दो बच्चे हैं। एक बच्चा पढ़ाई करके एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है जबकि दूसरा बेटा अपने बाप की तरह डाक्टर बनना चाहता है इस लिए डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है।

तो ये था करुणा चाची के मायके वालों का संक्षिप्त परिचय। अब कहानी की तरफ चलते हैं।
करुणा चाची अपने कमरे में बेड पर पड़ी किसी गहरे ख़यालों में गुम थी। कल उनके पास उनके पति अभय का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि विराज किसी काम से गाव आया है, इस लिए वो बच्चों को लेकर उसके साथ ही मुम्बई आ जाए। अभय ने करुणा को पहले ही बता दिया था कि वो मुम्बई में विराज के साथ ही रह रहा है। उसने सारी राम कहानी करुणा को बता दिया था।

करुणा अपने पति से असलियत जान कर बहुत हैरान हुई थी और बेहद दुखी भी। उसने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि एक भाई अपने भाई को इस तरह जान से मार सकता है। अपनी जेठानी प्रतिमा के चरित्र का सुन कर उसे लकवा सा मार गया था। उसके मन में प्रतिमा के प्रति घृणा व नफ़रत पैदा हो गई थी। उसे याद आता कि कैसे प्रतिमा उसके पास आकर उससे अश्लील बातें किया करती थी।

करुणा को अब समझ में आया था कि उसकी जेठानी उससे ऐसी अश्लील बातें क्यों किया करती थी। उसका एक ही मकसद होता था कि वो करुणा से ऐसी बातें करके उसके अंदर वासना की आग को भड़का दे ताकि करुणा उस आग में जलते हुए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। करुणा ये सब सोच सोच कर हैरान थी कि उसकी जेठानी उसके साथ क्या करना चाहती थी।

करुणा ने भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा किया कि अच्छा हुआ कि वो अपनी जेठानी की उन बातों से खुद को सम्हाले रखा था। वरना जाने कैसा अनर्थ हो जाता। अभय ने उसे सब कुछ बता दिया था। उसने करुणा को बता दिया था कि उसका भतीजा विराज अब बहुत बड़ा आदमी बन गया है। उसने बताया कि कैसे एक ग़ैर इंसान ने उसे अपना बेटा बना लिया और उसके नाम अपनी अरबों की संपत्ति कर दी। करुणा ये सब जान कर बहुत खुश हुई थी। उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े थे ये सब जान कर।

अभय ने जब उससे कहा कि वो बच्चों को लेकर विराज के साथ मुम्बई आ जाए तो वो इस बात से बड़ा खुश हुई थी। उसे लग रहा था कि कितना जल्दी वो मुम्बई पहुॅच जाए और बड़ी बहन के समान अपनी जेठानी गौरी से मिले। उससे मिल कर वो अपने बर्ताव के लिए माफ़ी मागना चाहती थी और उससे लिपट कर खूब रोना चाहती थी। जब से उसे अभय के द्वारा सारी सच्चाई का पता चला था तब से वह अकेले में अक्सर ऑसू बहाती रहती थी। उसे अपनी जेठानी गौरी के साथ बिताए हर पल याद आते। उसे याद आता कि कैसे गौरी उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और उससे प्यार करती थी। उसे कोई काम नहीं करने दिया करती थी। वो हमेशा यही कहती कि तुम पढ़ी लिखी हो इस लिए तुम्हारा काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना है। घर के सारे काम वो खुद कर लेगी।

बेड पर पड़ी करुणा ये सब सोच सोच कर ऑसू बहा ही रही थी कि सहसा उसका मोबाइल बज उठा। वो ख़यालों के अथाह सागर से बाहर आई और सिरहाने रखे मोबाइल को उठाकर उसकी स्क्रीन में फ्लैश कर रहे 'अभय जी' नाम को देखा तो तुरंत ही उसने काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

"...........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"क्या???" करुणा हल्के से चौंकी____"आज ही निकलना होगा मुझे? मगर बात क्या है जी? आप तो कह रहे थे कि कल जाना है।"
"........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"ये क्या कह रहे हैं आप?" करुणा के चेहरे पर एकाएक ही चिंता के भाव आ गए___"ऐसा कैसे हो सकता है?"

".......।" उधर से अभय कुछ देर तक उससे कुछ कहता रहा।
"ठीक है आप चिंता मत कीजिए।" करुणा ने कहा__"मैं हेमराज के साथ ही बच्चों को लेकर यहाॅ से निकलूॅगी। उसके बाद मैं रेलवे स्टेशन पर विराज से मिल लूॅगी।"

"..........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"जी ठीक है।" करुणा ने कहा___"मैं अभी माॅ और दादा जी से बात करती हूॅ। सामान कुछ ज्यादा नहीं है। बस एक बैग ही है। बाॅकी जैसा आप कहें।"
"..........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" करुणा ने सिर हिलाया___"मैं सामान ज्यादा नहीं लूॅगी। आप हेमराज को समझा दीजिएगा।"

उधर से अभय ने कुछ और कहा जिस पर करुणा ने हाॅ कह कर सिर हिलाया उसके बाद काल कट हो गई। काल कट होने के बाद करुणा ने गहरी साॅस ली और फिर बेड से उतर कर कमरे से बाहर आ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इधर हास्पिटल में।
मेरे दिलो दिमाग़ में ऑधी तूफान चल रहा था। मुझ पर नज़र पड़ते ही बेड पर पड़ी विधी के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वह मुझे देख कर एकदम से स्टेचू में तब्दील हो गई हो। एकटक मेरी तरफ देखे जा रही थी वह। फिर सहसा उसके चेहरे के भाव एकाएक ही बदले। उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव उभर आए। पथराई हुई ऑखों ने अपने अंदर से किसी टूटे हुए बाॅध की तरह ऑसुओं को बाहर की तरफ तेज़ प्रवाह से बहाना शुरू कर दिया।

उसके चेहरे के बदले हुए उन भावों को देख कर भी मेरे अंदर की नफ़रत और आक्रोश में कोई कमी नहीं आई। मेरी ऑखों के सामने कोई और ही मंज़र घूम रहा था। गुज़रे हुए कल की तस्वीरें बार बार ऑखों के सामने घूम रही थीं। अभी मैं इन सब तस्वीरों को देख ही रहा था कि तभी बेजान हो चुके विधी के जिस्म में हल्का सा कंपन हुआ और उसके थरथराते हुए होठों से जो लड़खड़ाता हुआ शब्द निकला उसने मुझे दूसरी दुनियाॅ से लाकर इस हकीक़त की दुनियाॅ में पटक दिया।

"र..राऽऽऽज।" बहुत ही करुण भाव से मगर लरज़ता हुआ विधी का ये स्वर मेरे कानो से टकराया। हकीक़त की दुनियाॅ में आते ही मेरी नज़र विधी के चेहरे पर फिर से पड़ी तो इस बार मेरा समूचा अस्तित्व हिल गया। विधी की ऑखों से ऑसू बह रहे थे, उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव थे। ये सब देख कर मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। पल भर में मेरे अंदर मौजूद उसके प्रति मेरी नफ़रत घृणा और गुस्सा सब कुछ साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया। मेरे टूटे हुए दिल के किसी टुकड़े में दबा उसके लिए बेपनाह प्यार चीख उठा।

मैने देखा कि करवॅट के बल लेटी विधी का एक हाॅथ धीरे से ऊपर की तरफ ऐसे अंदाज़ में उठा जैसे वो मुझे अपने पास बुला रही हो। मेरा समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि अंदर की आत्मा तक में एक झंझावात सा हुआ। मैं किसी सम्मोहन के वशीभूत होकर उसकी तरफ बढ़ चला। इस वक्त जैसे मैं खुद को भूल ही चुका था। कुछ ही पल में मैं विधी के पास उसके उस उठे हुए हाॅथ के पास पहुॅच गया।

"त तुम आ गए राज।" मुझे अपने करीब देखते ही उसने अपने उस उठे हुए हाथ से मेरी बाॅई कलाई को पकड़ते हुए कहा___"मैं तुम्हारे ही आने का यहाॅ इन्तज़ार कर रही थी। मेरी साॅसें सिर्फ तुम्हें ही देखने के लिए बची हुई हैं।"

मेरे मुख से उसकी इन बातों पर कोई लफ्ज़ न निकला। किन्तु मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर बुरी तरह चौंका ज़रूर। हैरानी से उसकी तरफ देखा मैने। मगर फिर अचानक ही जाने क्या हुआ मुझे कि मेरे चेहरे पर फिर से वही नफ़रत और गुस्सा उभर आया। मैने एक झटके से उसके हाॅथ से अपनी कलाई को छुड़ा लिया।

"अब ये कौन सा नया नाटक शुरू किया है तुमने?" मेरे मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"और क्या कहा तुमने कि तुम मेरा ही इन्तज़ार कर थी? भला क्यों कर रही थी मेरा इन्तज़ार? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें पता चल गया हो कि इस समय मैं फिर से रुपये पैसे वाला हो गया हूॅ? इस लिए पैसों के लिए फिर से मुझे बुला लिया तुमने। वाह क्या बात है जवाब नहीं है तेरा। अब समझ में आई सारी बात मुझे। मुझे मुम्बई से बुलाने के लिए मेरे ही दोस्त का इस्तेमाल किया तूने। क्या दिमाग़ लगाया है तूने लड़की क्या दिमाग़ लगाया है। मगर तेरे इस दिमाग़ लगाने से अब कुछ नहीं होने वाला। मैं तेरे इस नाटक में फॅसने वाला नहीं हूॅ अब। इतना तो सबक सीख ही लिया है मैने कि तुझ जैसी लड़की से कैसे दूर रहा जाता है। मुश्किल तो था मगर सह लिया है मैने, और अब उस सबसे बहुत दूर निकल गया हूॅ। अब कोई लड़की मुझे अपने रूप जाल में या अपने झूठे प्यार के जाल में नहीं फॅसा सकती। इस लिए लड़की, ये जो तूने नाटक रचा है न उसे यहीं खत्म कर दे। अब कुछ नहीं मिलने वाला यहाॅ। मेरा यार भोला था नासमझ था इस लिए तेरी बातों के जाल में फॅस गया और मुझे यहाॅ बुला लिया। मगर चिंता मत कर मैं अपने यार को सम्हाल लूॅगा।"

मैने ये सब बिना रुके मानो एक ही साॅस में कह दिया था और कहने के बाद उसके पास एक पल भी रुकना गवाॅरा न किया। पलट कर वापस चल दिया, दो क़दम चलने के बाद सहसा मैं रुका और पलट कर बोला___"एक बात कहूॅ। आज भी तुझे उतना ही प्यार करता हूॅ जितना पहले किया करता था मगर बेपनाह प्यार करने के बावजूद अब तुझे पाने की मेरे दिल में ज़रा सी भी हसरत बाॅकी नहीं है।"

ये कह कर मैं तेज़ी से पलट गया। पलट इस लिए गया क्योंकि मैं उस बेवफा को अपनी ऑखों में भर आए ऑसुओं को दिखाना नहीं चाहता था। मेरा दिल अंदर ही अंदर बुरी तरह तड़पने लगा था। मुझे लग रहा था कि मैं हास्पिटल के बाहर दौड़ते हुए जाऊॅ और बीच सड़क पर घुटनों के बल बैठ कर तथा आसमान की तरफ चेहरा करके ज़ोर ज़ोर से चीखूॅ चिल्लाऊॅ और दहाड़ें मार मार कर रोऊॅ। सारी दुनियाॅ मेरा वो रुदन देखे मगर वो न देखे सुने जिसे मैं आज भी टूट कर प्यार करता हूॅ।

"तुम्हारी इन बातों से पता चलता है राज कि तुम आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करते हो।" सहसा विधी की करुण आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी____"और सच कहूॅ तो ऐसा तुम्हें करना भी चाहिए। मुझे इसके लिए तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मैने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया था उसके लिए कोई भी यही करता। मगर, मेरा यकीन करो राज मेरे मन में ना तो पहले ये बात थी और ना ही आज है कि मैने पैसों के लिए ये सब किया।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" मैने पलट कर चीखते हुए कहा था, बोला___"तेरी फितरत को अच्छी तरह जानता हूॅ मैं। आज भी तूने मुझे इसी लिए बुलवाया है क्योंकि तुझे पता चल चुका है कि अब मैं फिर से पैसे वाला हो गया हूॅ। पैसों से प्यार है तुझे, पैसों के लिए तू किसी भी लड़के के दिल के साथ खिलवाड़ कर सकती है। मगर, अब तेरी कोई भी चाल मुझ पर चलने वाली नहीं है समझी? मेरा दिल तो करता है कि इसी वक्त तुझे तेरे किये की सज़ा दूॅ मगर नहीं कर सकता मैं ऐसा। क्योंकि मुझसे तेरी तरह किसी को चोंट पहुॅचाना नहीं आता और ना ही मैं अपने मतलब के लिए तेरे साथ कुछ करना चाहता हूॅ। तुझे अगर मैं कोई दुवा नहीं दे सकता तो बद्दुवा भी नहीं दूॅगा।"

मेरी बातें सुन कर विधी के दिल में कदाचित टीस सी उभरी। उसकी ऑखें बंद हो गई और बंद ऑखों से ऑसुओं की धार बह चली। मगर फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और मेरी तरफ कातर भाव से देखने लगी। उसे इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर एक बार मैं फिर से हिल गया। मेरे दिल में बड़ी ज़ोर की पीड़ा हुई मगर मैने खुद को सम्हाला। आज भी उसके चेहरे की उदासी और ऑखों में ऑसू देख कर मैं तड़प जाता था किन्तु अंदर से कोई चीख कर मुझसे कहने लगता इसने तेरे प्यार की कदर नहीं की। इसने तुझे धोखा दिया था। तेरी सच्ची चाहत को मज़ाक बना कर रख दिया था। बस इस एहसास के साथ ही उसके लिए मेरे अंदर जो तड़प उठ जाती थी वो कहीं गुम सी हो जाती थी।

"तुमने तो मुझे कोई सज़ा नहीं दी राज।" सहसा विधी ने पुनः करुण भाव से कहा___"मगर मेरी ज़िदगी ने मुझे खुद सज़ी दी है। ऐसी सज़ा कि मेरी साॅसें बस चंद दिनों की या फिर चंद पलों की ही मेहमान हैं। किस्मत बड़ी ख़राब चीज़ भी होती है, एक पल में हमसे वो सब कुछ छीन लेती है जिसे हम किसी भी कीमत पर किसी को देना नहीं चाहते। किस्मत पर किसी का ज़ोर नहीं चलता राज। ये मेरी बदकिस्मती ही तो थी कि मैने तुम्हारे साथ वो सब किया। मगर यकीन मानो उस समय जो मुझे समझ में आया मैने वही किया। क्योंकि मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था। भला मैं ये कैसे सह सकती थी कि मेरी छोटी सी ज़िदगी के साथ तुम इस हद तक मुझे प्यार करने लगो कि मेरे मरने के बाद तुम खुद को सम्हाल ही न पाओ? उस समय मैने तुम्हें धोखा दिया मगर उस समय के मेरे धोखे ने तुम्हें इतना भी टूट कर बिखरने नहीं दिया कि बाद में तुम सम्हल ही न पाते। मैं मानती हूॅ कि दिल जब किसी के द्वारा टूटता है तो उसका दर्द हमेशा के लिए दिल के किसी कोने में दबा बैठा रहता है। मगर, उस समय के हालात में तुम टूटे तो ज़रूर मगर इस हद तक नहीं बिखरे। वरना आज मेरे सामने इस तरह खड़े नहीं रहते। आज तुम जिस मुकाम पर हो वहाॅ नहीं पहुॅच पाते।"

विधी की बातें सुन कर मुझे कुछ समझ न आया कि ये क्या अनाप शनाप बके जा रही है? मगर उसके लहजे में और उसके भाव में कुछ तो ऐसा था जिसने मुझे कुछ हद तक शान्त सा कर दिया था।

"तो तुम क्या चाहती थी कि मैं टूट कर बिखर जाता और फिर कभी सम्हलता ही नहीं?" मैने तीके भाव से कहा___"अरे मैं तो आज भी उसी हालत में हूॅ। मगर कहते हैं न कि इंसान के जीवन में सिर्फ उसी बस का हक़ नहीं होता बल्कि उसके परिवार वालों का भी होता है। मेरी माॅ मेरी बहन ने मुझे प्यार ही इतना दिया है कि मैं बिखर कर भी नहीं बिखरा। मैने भी सोच लिया कि ऐसी लड़की के लिए क्या रोना जिसने प्यार को कभी समझा ही नहीं? रोना है तो उनके लिए रोओ जो सच में मुझसे प्यार करते हैं।"

"ये तो खुशी की बात है कि तुमने ऐसा सोचा और खुद को सम्हाल लिया।" विधी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"मैं भी यही चाहती थी कि तुम उस सबसे खुद को सम्हाल लो और जीवन में आगे बढ़ जाओ। किसी एक के चले जाने से किसी का जीवन रुक नहीं जाता। समझदार इंसान को सबकुछ भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए। वही तुमने किया, इस बात से मैं खुश हूॅ राज। यही तो चाहती थी मैं। यकीन मानो तुम्हें आज इस तरह देख कर मेरे मन का बोझ उतर गया है। मैं तुमसे ये नहीं कहूॅगी कि तुम मुझे उस सबके लिए माफ़ कर दो जो कुछ मैने तुम्हारे साथ किया था। अगर तुम ऐसे ही खुश हो तो भला मैं माफ़ी माॅग कर तुम्हारी उस खुशी को कैसे मिटा सकती हूॅ? अब तुम जाओ राज, जीवन में खूब तरक्की करो और अपनों के साथ साथ खुद को भी खुश रखो। और हाॅ, जीवन में मुझे कभी याद मत करना, क्योंकि मैं याद करने लायक नहीं हूॅ।"

विधी की इन विचित्र बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आज इसे हो क्या गया है? ये तो ऐसी बातें कह रही थी जैसे कोई उपदेशक हो। मेरे दिलो दिमाग़ में तरह तरह की बातें चलने लगी थीं।

"जाते जाते मेरी एक आरज़ू भी पूरी करते जाओ राज।" विधी का वाक्य मेरे कानों से टकराया___"हलाॅकि तुमसे कोई आरज़ू रखने का मुझे कोई हक़ तो नहीं है मगर मैं जानती हूॅ कि तुम मेरी आरज़ू ज़रूर पूरी करोगे।" कहने के बाद विधी कुछ पल के लिए रुकी फिर बोली___"मेरे पास आओ न राज। मैं तुम्हें और तुम्हारे चेहरे को जी भर के देखना चाहती हूॅ। तुम्हारे चेहरे की इस सुंदर तस्वीर को अपनी ऑखों में फिर से बसा लेना चाहती हूॅ। मेरी ये आरज़ू पूरी कर दो राज। इतना तो कर ही सकते हो न तुम?"

विधी की बात सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में धमाका सा हुआ। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। पेट में बड़ी तेजी से जैसे कोई गैस का गोला घूमने लगा था। दिमाग़ एकदम सुन्ना सा पड़ता चला गया। कानों में कहीं दूर से सीटियों की अनवरत आवाज़ गूॅजती महसूस हुई मुझे। पल भर में मेरे ज़हन में जाने कितने ही प्रकार के ख़याल आए और जाने कहाॅ गुम हो गए। बस एक ही ख़याल गुम न हुआ और वो ये था कि विधी ऐसा क्यों चाह रही है?

किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ मैं इस तरह विधी की तरफ बढ़ चला जैसे मुझ पर किसी तरह का सम्मोहन हो गया हो। कुछ ही पल में मैं विधी के करीब उसके चेहरे के पास जा कर खड़ा हो गया। मेरे खड़े होते ही विधी ने किसी तरह खुद को उठाया और बेड की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया। अब वो अधलेटी सी अवस्था में थी। चेहरा ऊपर करके उसने मेरे चेहरे की तरफ देखा। उसकी ऑखों में ऑसुओं का गरम जल तैरता हुआ नज़र आया मुझे। मैने पहली बार उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखा और अगले ही पल बुरी तरह चौंक पड़ा मैं। मुझे विधी के चेहरे पर मुकम्मल खिज़ा दिखाई दी। जो चेहरा हर पल ताजे खिले गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहा करता था आज उस चेहरे पर वीरानियों के सिवा कुछ न था। ऐसा लगता था जैसे वो शदियों से बीमार हो।

उसे इस हालत में देख कर एक बार फिर से मेरा दिल तड़प उठा। जी चाहा कि अभी झपट कर उसे अपने सीने से लगा लूॅ मगर ऐन वक्त पर मुझे उसका धोखा याद आ गया। उसका वो दो टूक जवाब देना याद आ गया। मुझे भिखारी कहना याद आ गया। इन सबके याद आते ही मेरे चेहरे पर कठोरता छाती चली गई। एक बार फिर से मेरे अंदर से नफ़रत और गुस्सा उभर कर आया और मेरे चेहरे तथा ऑखों में आकर ठहर गया।

"मैं तुम्हें दुवा में ये भी नहीं कह सकती कि तुम्हें मेरी उमर लग जाए।" तभी विधी ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा___"बस यही दुवा करती हूॅ कि तुम हमेशा खुश रहो। जीवन में हर कोई तुम्हें दिलो जान से प्यार करे। कभी किसी के द्वारा तुम्हारा दिल न दुखे। खुदा मिलेगा तो उससे पूछूॅगी कि मैने ऐसा क्या गुनाह किया था जो उसने मुझे ऐसी ज़िंदगी बक्शी थी? ख़ैर, अब तुम जाओ राज, मैने तुम्हारी तस्वीर को इस तरह अपनी ऑखों में बसा लिया है कि अब हर जन्म में मुझे सिर्फ तुम ही नज़र आओगे।"

विधी की इस बात से एक बार फिर से मेरे चेहरे पर उभर आए नफ़रत व गुस्से में कमी आ गई। मैंने उसे अजीब भाव से देखा। मेरे अंदर कोई ज़ोर ज़ोर से चीखे जा रहा था कि इसे एक बार अपने सीने से लगा ले राज। मगर मैने अपने अंदर के उस शोर को शख्ती से दबा दिया और पलट कर कमरे के बाहर की तरफ चल दिया। मैने महसूस किया कि मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे हमेशा के लिए दूर हुई जा रही है। मेरे दिल की धड़कने अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगी। मनो मस्तिष्क में बड़ी तेज़ी से कोई तूफान चलने लगा था। अभी मैं दरवाजे के पास ही पहुॅचा था कि.....

"रुक जाओऽऽ।" ये वाक्य एक नई आवाज़ के साथ मेरे कानों से टकराया था। दरवाजे के करीब बढ़ते हुए मेरे क़दम एकाएक ही रुक गए। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा। कमरे में ही बेड के पास खड़ी जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर मैं हक्का बक्का रह गया। आश्चर्य और अविश्वास से मेरी ऑखें फटी की फटी रह गईं। मुझे अपनी ऑखों पर यकीन नहीं हुआ कि जिस शख्सियत को मेरी ऑखें देख रही हैं वो सच में वही हैं या फिर ये मेरी ऑखों का कोई भ्रम है।

"मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी राज।" सहसा ये नई आवाज़ फिर से मेरे कानों से टकराई___"तुम इस तरह कैसे यहाॅ से जा सकते हो? इतनी बेरुख़ी तो कोई अपने किसी दुश्मन से भी नहीं जाहिर करता जितनी तुम विधी को देख कर ज़ाहिर कर रहे हो।"

इस बार मैं बुरी तरह चौंका। ये तो सच में वही हैं। यानी रितू दीदी। जी हाॅ दोस्तो, ये वही रितू दीदी हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी मुझे भाई नहीं माना और ना ही मुझसे बात करना ज़रूरी समझा। मगर मैं इस बात से हैरान था कि वो यहाॅ कैसे मौजूद हो सकती हैं? जब मैं आया था इस कमरे में तब तो ये यहाॅ नहीं थी, फिर अचानक ये कहाॅ से यहाॅ पर प्रकट हो गईं?

"प्लीज़ दीदी।" तभी बेड पर अधलेटी अवस्था में बैठी विधी ने रितू दीदी से कहा___"कुछ मत कहिए उसे।"
"नहीं विधी।" रितू दीदी ने आवेशयुक्त भाव से कहा__"मुझे बोलने दे अब। माना कि तूने जो किया वो उस समय के हिसाब से ग़लत था मगर इसका मतलब ये नहीं कि बिना किसी बात को जाने समझे ये तुझे इस तरह बोल कर यहाॅ से चला जाए।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"नहीं दीदी प्लीज़।" विधी ने विनती करते हुए कहा___"ऐसा मत कहिए उसे। मुझे किसी बात की सफाई नहीं देना है उससे। आप जानती हैं कि मैं उसे किसी भी तरह का दुख नहीं देना चाहती अब।"
"क्यों करती है रे ऐसा तू?" रितू दीदी की आवाज़ सहसा भारी हो गई, ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"ऐसा मत कर विधी। वरना ये ज़मीन और वो आसमान फट जाएगा। तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े? फिर क्यों अब इस सबसे मुकर रही हो तू? अब तक तो तड़प ही रही थी न तो अब अपने अंतिम समय में क्यों इस तड़प को लेकर जाना चाहती है? नहीं नहीं, मैं ऐसा हर्गिज़ नहीं होने दूॅगी।"

रितू दीदी की बातें सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर विष्फोट हुआ। ऐसा लगा जैसे आसमान से कोई बिजली सीधा मेरे दिल पर गिर पड़ी हो। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई। दिमाग़ में हर बात बड़ी तेज़ी से घूमने लगी। एक एक बात, एक एक दृष्य मेरे ज़हन से टकराने लगे। पवन का मुझे फोन करके यहाॅ अर्जेन्ट बुलाना, मेरे द्वारा वजह पूछने पर उसका अब तक चुप रहना। हास्पिटल के इस कमरे के बाहर से ये कह कर चले जाना कि मैं यहाॅ जो कुछ भी देखूॅ सुनूॅ उसे देख सुन कर खुद को सम्हाले रखूॅ। हास्पिटल के इस कमरे के अंदर विधी का मुझसे मिलना, उसकी वो सब विचित्र बातें और अब रितू दीदी का यहाॅ मौजूद होकर ये सब कहना। ये सब चीज़ें मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी घूमने लगी थी।

मुझे अब समझ आया कि असल माज़रा क्या है। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू कर दिया और अब मुझे सब कुछ समझ में आने लगा था। दरअसल विधी को कुछ हुआ है जिसके लिए पवन ने मुझे यहाॅ बुलाया था। मगर विधी को ऐसा क्या हो गया है? रितू दीदी ने ये क्या कहा कि____ "तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े?" हे भगवान! ये क्या कहा रितू दीदी ने?

"नननहींऽऽऽऽ।" अपने ही सोचों में डूबा मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था, पल भर में मेरी ऑखों से ऑसुओं का जैसे कोई बाॅध टूट पड़ा। मैं भागते हुए विधी के पास आया। इधर मेरी चीख से रितू दीदी और विधी भी चौंक पड़ी थी।

मैं भागते हुए विधी के पास आया था, बेड के किनारे पर बैठ कर मैने विधी को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रो पड़ा। मैं विधी को अपने सीने से बुरी तरह भींचे हुए था। मेरे मुख से कोई बोल नहीं फूट रहा था। मैं बस रोये जा रहा था। मुझे समझ में आ चुका था कि विधी को कुछ ऐसा हो गया है जिससे वो मरने वाली है। ये बात मेरे लिए मेरी जान ले लेने से कम नहीं थी।

"नहीं राज।" विधी मुझसे छुपकी खुद भी रो रही थी, किन्तु उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"इस तरह मत रोओ। मैं अपनी ऑखों के सामने तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकती। प्लीज़ चुप हो जाओ न।"
"नहीं नहीं नहीं।" मैंने तड़पते हुए कहा___"तुम मुझे छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे लिए कितना तड़पा हूॅ मैं। पर अब और नहीं विधी। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूॅगा।"

"पागल मत बनो राज।" विधी ने मेरे सिर को सहलाते हुए कहा___"खुद को सम्हालो और जीवन में आगे बढ़ो।"
"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने सिसकते हुए कहा___"मैं फिर से तुम्हें खोना नहीं चाहता। मुझे बताओ कि क्या हुआ है तुम्हें? मैं तुम्हारा इलाज़ करवाऊॅगा। दुनियाॅ भर के डाक्टरों को तुम्हारे इलाज़ के लिए पल भर में ले आऊॅगा।"

"अब कुछ नहीं हो सकता राज।" विधी ने सहसा मुझसे अलग होकर मेरे चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"मैने कहा न कि मेरा सफर खत्म हो चुका है। मुझे ब्लड कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज का। मेरी साॅसें किसी भी पल रुक सकती हैं और मैं भगवान के पास चली जाऊॅगी।"

"ननहींऽऽऽ।" विधी की ये बात सुनकर मुझे ज़बरदस्त झटका लगा। ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। हर चीज़ जैसे किसी शून्य में डूबती महसूस हुई मुझे। कानों में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था मुझे। दिल की धड़कने रुक सी गई और मैं एकदम से अचेत सी अवस्था में आ गया।

"राऽऽऽज।" विधी के हलक से चीख निकल गई, वो मेरे चेहरे को थपथपाते हुए बुरी तरह रोने लगी। पास में ही खड़ी रितू दीदी भी दौड़ कर मेरे पास आ गईं। मुझे पीछे से पकड़ते हुए मुझे ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें लगाने लगीं। सब कुछ एकदम से ग़मगीन सा हो गया था। वक्त को एक जगह ठहर जाने में एक पल का भी समय नहीं लगा।

वो दोनो बुरी तरह रोये जा रही थी। रितू दीदी के दिमाग़ ने काम किया। पास ही टेबल पर रखे पानी के ग्लास को उठा कर उससे मेरे चेहरे पर पानी छिड़का उन्होंने। थोड़ी ही देर में मुझे होश आ गया। होश में आते ही मैं विधी से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगा।

"क्यों विधी क्यों?" मैने बिलखते हुए उससे कहा___"क्यों छुपाया तुमने मुझसे? क्या इसी लिए तुमने मेरे साथ वो सब किया था, ताकि मैं तुमसे दूर चला जाऊॅ? और मैं मूरख ये समझता रहा कि तुमने मेरे साथ कितना ग़लत किया था। कितना बुरा हूॅ मैं, आज तक मैं तुम्हें भला बुरा कहता रहा। तुम्हारे बारे में कितना कुछ बुरा सोचता रहा। मैने कितना बड़ा अपराध किया है विधी। हाय कितना बड़ा पाप किया मैने। मुझे तो भगवान भी कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"नहीं राज नहीं।" विधी ने तड़प कर मुझे अपने से छुपका लिया, बोली___"तुमने कोई अपराध नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। तुमने तो बस प्यार ही किया है मुझे, हर रूप में तुमने मुझे प्यार किया है राज। मुझे तुम पर नाज़ है। ईश्वर से यही दुवा करूॅगी कि हर जन्म में मुझे तुम्हारा ही प्यार मिले।"

"अपने आपको सम्हालो राज।" सहसा रितू दीदी ने मुझे पीछे से पकड़े हुए कहा___"ईश्वर इस बात का गवाह है कि तुम दोनो ने कोई पाप नहीं किया है। विधी ने उस समय जो किया उसमें भी उसके मन में सिर्फ यही था कि तुम उससे दूर हो जाओ और एक नये सिरे से जीवन में आगे बढ़ो। तुम खुद सोचो राज कि जो विधी तुम्हें दिलो जान से प्यार करती थी उसने तुम्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को कैसे पत्थर दिल बनाया होगा? उसका दिल कितना तड़पा होगा? मगर इसके बाद भी उसने तुम्हें खुद से दूर किया। उस समय का वो दुख आज के इस दुख से भारी नहीं था।"

"लेकिन दीदी इसने मुझसे ये बात छुपाई ही क्यों थी?" मैने रोते हुए कहा___"क्या इसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मैं इसके इलाज़ के लिए धरती आसमान एक कर देता और इसको इस गंभीर बिमारी से बचा लेता।"

"नहीं राज।" दीदी ने कहा___"तुम उस समय भी कुछ न कर पाते क्योंकि तब तक कैंसर इसके खून में पूरी तरह फैल चुका था। पहले इस बात का इसे पता ही नहीं था और जब पता चला तो डाक्टर ने बताया कि इसके इलाज में ढेर सारा पैसा लगेगा और इसका इलाज हमारे देश में हो पाना भी मुश्किल था। उस समय ना तो तुम इतने सक्षम थे और ना ही इसके माता पिता जो इसका इलाज करवा पाते। इस लिए विधी ने फैंसला किया कि वो तुमसे जितना जल्दी हो सके दूर हो जाए। क्योंकि तब तुम्हें इस बात का भी दुख होता कि तुम इसका इलाज नहीं करवा पाए। सब कुछ हमारे हाॅथ में नहीं होता राज। कुछ ईश्वर का भी दखल होता है।"

"कुछ भी कहिये दीदी।" मैने कहा___"कम से कम मैं अपनी विधी के साथ तो रहता। उसे खुद से अलग करके उसे दुखों के सागर में डूबने तो न देता।"
"नहीं राज तुम इस सबसे दुखी मत हो।" विधी ने कहा___"सब कुछ भूल जाओ। मैं बस ये चाहती हूॅ कि तुम मुझे खुशी खुशी इस दुनियाॅ से अलविदा करो। आज तुम्हारी बाहों में हूॅ तो मेरे सारे दुख दर्द दूर हो गए हैं। मेरी ख्वाहिश थी कि मेरा दम निकले तो सिर्फ मेरे महबूब की बाहों में। तुम्हारी सुंदर छवि को अपनी ऑखों में बसा कर यहाॅ से जाना चाहती थी। इस लिए दीदी से मैने अपनी ये इच्छा बताई और दीदी ने मुझसे वादा किया कि ये तुमको मेरे पास लेकर ज़रूर आएॅगी।"

मैं विधी की इस बात से चौंका। पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा तो रितू दीदी की नज़रें झुक गईं। उनके चेहरे पर एकाएक ही ग्लानि और अपराध बोझ जैसे भाव उभर आए।

"राज, तुम्हारी रितू दीदी अब पहले जैसे नहीं रहीं।" सहसा विधी ने मुझसे कहा___"ये तुमसे बहुत प्यार करती हैं। इन्हें कभी खुद से दूर न करना। इन्होंने जो कुछ किया उसमे इनका कोई दोष नहीं था। इन्होंने तो वही किया था जो इन्हें बचपन से सिखाया गया था। आज हर सच्चाई इनको पता चल चुकी है इस लिए अब ये तुम्हें ही अपना भाई मानती हैं। तुम इन्हें माफ़ कर देना। इनका मुझ पर बहुत बड़ा उपकार है राज। ये मुझे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार देती हैं। जब से ये मुझे मिली हैं तब से मुझे यही एहसास होता रहा है जैसे कि तुम मेरे पास ही हो।"

विधी की इन बातों से मुझे झटका सा लगा। मैने एक बार फिर से पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा। उनका सिर पूर्व की भाॅति ही झुका हुआ था। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनके चेहरे को लेकर उनके चेहरे को ऊपर उठाया। जैसे ही उनका चेहरा ऊपर हुआ तो मुझे उनका ऑसुओं से तर चेहरा दिखा। मेरा कलेजा हिल गया उनका ये हाल देख कर। मैने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। मेरे सीने से लगते ही रितू दीदी की रुलाई फूट गई। वो फूट फूट कर रोने लगी थी। जाने कब से उनके अंदर ये गुबार दबा हुआ था और अब वो इस रूप में निकल रहा था।

"ये क्या दीदी?" मैने उनके सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा___"चुप हो जाइये दीदी। अरे आप तो मेरी सबसे प्यारी और बहादुर दीदी हैं। चलिये अब चुप हो जाइये।"
"तू इतना अच्छा क्यों है राज?" रितू दीदी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था____"तुझे मुझ पर गुस्सा क्यों नहीं आता? मैने तुझे कभी अपना भाई नहीं माना। हमेशा तेरा दिल दुखाया मैने। मुझे वो सब याद है मेरे भाई जो कुछ मैने तेरे साथ किया है। जब जब मुझे वो सब याद आता है तब तब मुझे खुद से घृणा होने लगती है। मुझे ऐसा लगने लगता है कि मैं अपने आपको क्या कर डालूॅ।"

"नहीं दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करके उनके ऑसुओं को पोंछते हुए कहा___"ऐसा कभी सोचना भी मत। मेरे मन में कभी भी आपके प्रति कोई बुरा ख़याल नहीं आया। कहीं न कहीं मुझे भी इस बात का एहसास था कि आप वही कर रही हैं जो आपको सिखाया जाता था।"

"ये सब तू मेरा दिल रखने के लिए कह रहा है न?" रितू दीदी ने कहा___"जबकि मुझे पता है कि तुझे मेरे उस बर्ताव से कितनी तक़लीफ़ होती थी।"
"हाॅ बुरा तो लगता था दीदी।" मैने कहा___"मगर उस सबके लिए आप पर कभी गुस्सा नहीं आता था। हर बार यही सोचता था कि इस बार आप मुझसे ज़रूर बात करेंगी।"

"और मैं इतनी बुरी थी कि हर बार तेरी उन मासूम सी उम्मीदों को तोड़ देती थी।" रितू ने सिर झुका लिया, बोली___"तू उस सबके लिए मुझे सज़ा दे मेरे भाई। तेरी हर सज़ा को मैं हॅसते हुए कुबूल कर लूॅगी।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"आपकी सज़ा यही है कि अब से आप ये सब बिलकुल भी नहीं सोचेंगी और ना ही ये सब सोच कर खुद को रुलाओगी। यही आपकी सज़ा है।"

मेरी ये सज़ा सुन कर रितू दीदी देखती रह गईं मुझे और सहसा फिर से उनकी ऑखों से ऑसू बह चले। वो मुझसे लिपट गईं। वो इस तरह मुझसे लिपटी हुई थी जैसे वो मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हों।

विधी अपना ऑसुओं से तर चेहरा लिए हम दोनो बहन भाई को देख रही थी। उसके होठों पर मुस्कान थी। सहसा तभी उसे ज़ोर का धचका लगा। हम दोनो बहन भाई का ध्यान विधी की तरफ गया। विधी को आए उस ज़ोर के धचके से अचानक ही खाॅसी आने लगी। मैं बुरी तरह चौंका। उधर विधी को लगातार खाॅसी आने लगी थी। मैं ये देख कर बुरी तरह घबरा गया। मेरे साथ साथ रितू दीदी भी घबरा गई। मैने विधी को अपनी बाहों में ले लिया।

"विधी, क्या हुआ तुम्हें?" मैं बदहवाश सा कहता चला गया___"तुम ठीक तो हो न? ये खाॅसी कैसे आने लगी तुम्हें। डाक्टरऽऽऽ.....डा डाक्टर को बुलाओ कोई।"

मैं पागलों की तरह इधर उधर देखने लगा। मेरी नज़र रितू दीदी पर पड़ी तो मैं उन्हें देख कर एकाएक ही रो पड़ा___"दीदी, देखो न विधी को अचानक ये क्या होने लगा है? प्लीज़ दीदी जल्दी से डाक्टर को बुलाइये। जाइये जल्दी.....डाक्टर बुलाइये। मेरी विधी को ये खाॅसी कैसे आने लगी है अचानक?"

मेरी बात सुन कर रितू दीदी को जैसे होश आया। वो बदहवाश सी होकर पहले इधर उधर देखी फिर भागते हुए कमरे से बाहर की तरफ लपकी। इधर मैं लगातार विधी को अपनी बाहों में लिए उसे फुसला रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से जैसे कुंद सा पड़ गया था। उधर विधी को रह रह कर खाॅसी आ रही थी। सहसा तभी उसके मुख से खून निकला। ये देख कर मैं और भी घबरा गया। मैं ज़ोर ज़ोर से डाक्टर डाक्टर चिल्लाने लगा। विधी की हालत प्रतिपल ख़राब होती जा रही थी। उसकी हालत देख कर मेरी जान हलक में आकर फॅस गई थी।

तभी कमरे में भागते हुए डाक्टर नर्सें और रितू दीदी आ गई। उनके पीछे ही विधी के माॅम डैड भी आ गए। उनके चेहरे से ही लग रहा था कि उनकी हालत बहुत ख़राब है। डाक्टर ने आते ही विधी को देखा।

"देखिये इनकी हालत बहुत ख़राब है।" डाक्टर ने विधी को चेक करने के बाद कहा___"ऐसा लगता है कि आज इनका बचना बहुत मुश्किल है।"
"डाऽऽऽऽक्टर।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था___"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर वरना हलक से ज़ुबान खींच कर तेरे हाॅथ में दे दूॅगा समझे? मेरी विधी को कुछ नहीं होगा। इसे कुछ नहीं होने दूॅगा मैं। मैं इसे ठीक कर दूॅगा।"

"बेटीऽऽऽ।" विधी की माॅ भाग कर विधी के पास आई और रोते हुए बोली___"मैं कैसे जी पाऊॅगी अगर तुझे कुछ हो गया तो?"
"ममाॅ।" खाॅसते हुए विधी के मुख से लरजते हुए शब्द निकले___"आज मैं बहुत खुश हूॅ। अपने महबूब की बाहों में हूॅ। कितने अच्छे वक्त पर मेरा दम निकलने वाला है। उस भगवान से शिकायत तो थी मगर अब कोई शिकायत भी नहीं रह गई। उसने मेरी आख़िरी ख्वाहिश को जो पूरी कर दी माॅम। मेरे जाने के बाद डैड का ख़याल रखियेगा।"

"नहीं नहीं।" मैं ज़ार ज़ार रो पड़ा___"तुम्हें कुछ नहीं होगा विधी और अगर कुछ हो गया न तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं। सबको जीवन मृत्यु देने वाले उस ईश्वर से नफ़रत करने लगूॅगा मैं।"
"ऐसा मत कहो राज।" विधी ने थरथराते लबों से कहा___"मरना तो एक दिन सबको ही होता है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई जल्दी मर जाता है तो कोई ज़रा देर से। मगर हर कोई मरता ज़रूर है। मेरे लिए इससे बड़ी भला और क्या बात हो सकती है कि मैं अपने जन्म देने वाले माता पिता के सामने और अपने महबूब की बाहों में मरने जा रही हूॅ। मुझे हॅसते हुए विदा करो मेरे साजन। तुम्हारी ये दासी तुम्हारे इन खूबसूरत अधरों की मुस्कान देख कर मरना चाहती है। मुझसे वादा करों मेरे महबूब कि मेरे जाने के बाद तुम खुद को कभी तक़लीफ़ नहीं दोगे। किसी ऐसी लड़की के साथ अपनी दुनियाॅ बसा लोगे जो तुमसे इस विधी से भी ज्यादा प्यार करे।"

"नहीं विधी नहीं।" मैंने रोते हुए झुक कर उसके माथे से अपना माथा सटा लिया___"मत करो ऐसी बातें। तुम मुझे छोंड़ कहीं नहीं जाओगी। मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता।"
"क्या यही प्यार करते हो मुझसे?" विधी ने अटकते हुए स्वर में कहा___"बोलो मेरे देवता। ये कैसा प्यार है तुम्हारा कि तुम अपनी इस दासी की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर रहे?"

"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा___"मुझे प्यार व्यार कुछ नहीं दिख रहा। मैं सिर्फ इतना जानता हूॅ कि तुम मुझे अकेला छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी बस।"
"अरे मैं तुम्हें छोंड़ कर कहाॅ जा रही हूॅ राज?" विधी ने मेरे चेहरे को सहला कर कहा___"मेरा दिल मेरी आत्मा तो तुममें ही बसी है। तुम मुझे हर वक्त अपने क़रीब ही महसूस करोगे। ये तो जिस्मों की जुदाई है राज, और इस जिस्म का जुदा होना भी तो ज़रूरी है। क्योंकि मेरा ये जिस्म तुम्हारे लायक नहीं रहा। ये बहुत मैला हो चुका है मेरे महबूब। इसका खाक़ में मिल जाना बहुत ज़रूरी हो गया है।"

"दीदी इसे समझाओ न।" मैने पलट कर दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"देखिये कैसी बेकार की बातें कर रही है ये। इससे कहिये न दीदी कि ये मुझे छोंड़ कहीं न जाए। इससे कहिये न कि मैं इसके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"

मेरी बात सुन कर दीदी कुछ बोलने ही वाली थी कि सहसा इधर विधी को फिर से खाॅसी का धचका लगा। मैने पलट कर विधी को देखा। उसके मुख से खून निकल कर बाहर आ गया था।

"रराऽऽज।" विधी ने उखड़ती हुई साॅसों के साथ कहा___"अब मुझे जाना होगा। मुझे वचन दो मेरे हमदम कि तुम मेरे बाद कभी भी खुद को दुखी नहीं रखोगे। अपनी इस दासी को वचन दो मेरे देवता। मुझे हॅसते हुए विदा करो। और....और एक बार अपनी वो मनमोहक मुस्कान दिखा दो न मुझे। मेरे पास समय नहीं है, मेरे प्राण लेने के लिए देवदूत आ रहे हैं। मैं उन्हें अपनी तरफ आते हुए स्पष्ट देख रही हूॅ।"

"नहींऽऽऽ।" मैं बुरी तरह रो पड़ा___"ऐसा मत कहो। मुझे यूॅ छोंड़ कर मत जाओ प्लीऽऽऽज़। मैं मर जाऊॅगा विधी।"
"हठ न करो मेरे महबूब।" विधी को हिचकियाॅ आने लगी थीं, बोली___"मुझे वचन दो राज। मेरी अंतिम यात्रा को आसान बना दो मेरे देवता।"

मेरे दिलो दिमाग़ ने काम करना मानों बंद कर दिया था। मगर विधी की करुण पुकार ने मुझे बिवश कर दिया। मैंने देखा कि उसका एक हाथ मुझसे वचन लेने के लिए हवा में उठा हुआ था। मैने उसके हाॅथ में अपना हाॅथ रख दिया। मेरे हाॅथ को पकड़ कर उसने हल्के से दबाया। उसके निस्तेज पड़ चुके चेहरे पर हल्का सा नूर दिखा।

"अब अपने अधरों की वो खूबसूरत मुस्कान भी दिखा दो राज।" विधी ने बंद होती पलकों के साथ साथ मगर टूटती हुई साॅसों के साथ कहा___"एक मुद्दत हो गई मैने इन अधरों की उस मनमोहक मुस्कान को नहीं देखा। देर न करो मेरे देवता, जल्दी से दिखा दो वो मुस्कान मुझे।"

ये कैसा सितम था मुझ पर कि इस हाल में भी मुझे वो मुस्कुराने को कह रही थी। भला ये कैसे कर सकता था मैं और भला ये कैसे हो सकता था मुझसे? मगर मेरी जान ने ये रज़ा की थी मुझसे। उसकी आख़िरी ख्वाहिश को पूरा करना मेरा फर्ज़ था, भले ही ये मेरे लिए नामुमकिन था। मैने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। रितू दीदी मेरे पीछे ही मुझे पकड़े बैठी हुई थी। सिरहाने की तरफ विधी के माॅम डैड ऑसुओं से तर चेहरा लिए खड़े थे। कुछ दूरी पर वो डाक्टर और नर्स खड़ी थी। जिनके चेहरों पर इस वक्त दुख के भाव गर्दिश कर रहे थे।

मैने देखा कि मेरी बाहों में पड़ी विधी बड़ी मुश्किल से अपनी ऑखें खोले मुझे ही देखने की कोशिश में लगी थी। मेरे ऑखों से रह रह कर ऑसूॅ बह जाते थे। दिलो दिमाग़ के जज़्बात मेरे बस में नहीं थे। मैने खुद को सम्हालने के लिए और अपने अधरों पर मुस्कान लाने के लिए अपनी ऑखें बंद कर बेकाबूॅ हो चुके जज़्बातों पर काबू पाने की नाकाम सी कोशिश की। उसके बाद ऑखें खोल कर मैने विधी की तरफ देखा, मेरे होठों पर बड़ी मुश्किल से हल्की सी मुस्कान उभरी। मेरी उस मुस्कान को देख कर विधी के सूखे हुए अधरों पर भी हल्की सी मुस्कान उभर आई। और फिर तभी.......

मैने महसूस किया कि उसका जिस्म एकदम से ढीला पड़ गया है। हलाॅकि वो मुझे उसी तरह एकटक देखती हुई हल्का सा मुस्कुरा रही थी। उसके जिस्म में कोई हरकत नहीं हो रही थी। अभी मैं ये सब महसूस ही कर रहा था कि तभी मेरे कानों में विधी की माॅ की ज़ोरदार चीख सुनाई दी। उनकी इस चीख़ से जैसे सबको होश आया और फिर तो जैसे चीखों का और रोने का बाज़ार गर्म हो गया। मुझे मेरे कानों में सबका रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था मगर मेरी निगाहें अपलक विधी के चेहरे पर गड़ी हुई थी। मैं एकदम से शून्य में खोया हुआ था।

हास्पिटल के उस कमरे में मौजूद विधी के माॅम डैड और रितू दीदी बुरी तरह विधी से लिपटे रोये जा रहे थे। सबसे ज्यादा हालत ख़राब विधी की माॅम की थी। उसके डैड मानो सदमें में जा चुके थे। मेरे कानों में सबका रोना चिल्लाना ऐसे सुनाई दे रहा था जैसे किसी अंधकूप में ये सब मौजूद हों।

सहसा रितू दीदी का ध्यान मुझ पर गया। मैं एकटक विधी की खुली हुई ऑखों को और उसके अधरों पर उभरी हल्की सी उस मुस्कान को देखे जा रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से सुन्न पड़ा हुआ था। रितू दीदी ने मुझे पकड़ कर ज़ोर से हिलाया। किन्तु मुझ पर कुछ भी असर न हुआ। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, ऐसा लग रहा था जैसे मैं ज़िंदा तो हूॅ मगर मेरे अंदर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है।

"राऽऽऽऽज।" रितू दीदी मुझे पकड़ कर झकझोरते हुए चीखी___"होश में आ मेरे भाई। देख विधी हमे छोंड़ कर चली गई रे। तू सुन रहा है न मेरी बात?"
"शान्त हो जाओ दीदी।" मैने धीरे से उनसे कहा___"मेरी विधी मुझे सुकून से देख रही है। उसे देखने दो दीदी। देखिये न दीदी, मेरी विधी के होंठो पर कितनी सुंदर मुस्कान फैली हुई है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए। अरे....आप सब इतना शोर क्यों कर रहे हैं? प्लीज़ चुप हो जाइये। वरना मेरी विधी को अच्छा नहीं लगेगा। उसे सुकून से मुस्कुराने दीजिए।"

रितू दीदी ही नहीं बल्कि विधी के माॅम डैड भी मेरी इस बात से सन्न रह गए। जबकि मैं बड़े प्यार से विधी के चेहरे पर आ गई उसके बालों की लट को एक तरफ हटाते हुए उसे देखे जा रहा था। मैं उसकी उस मुस्कान को देख कर खुद भी मुस्कुरा रहा था।

सहसा पीछे से रितू दीदी मुझसे लिपट गई और बुरी तरह सिसकने लगीं। विधी की माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से अपना हाॅथ रखा। वो खुद भी सिसक रही थी।
"बेटा, अपने आपको सम्हालो।" वो बराबर मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए सिसक रही थी___"जाने वाली तो अब चली गई है। वो लौट कर वापस नहीं आएगी। कब तक तुम अपनी इस विधी को इस तरह देखते रहोगे?"

"चुप हो जाइये माॅ।" मैने सिर उठाकर बड़ी मासूमियत से कहा___"कुछ मत बोलिए। देखिए न विधी सुकून से कैसे मुझे देख कर मुस्कुरा रही है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए माॅ। इसे डिस्टर्ब मत कीजिए।"

मेरी बातों से सब समझ गए थे कि मुझ पर पागलपन सवार हो चुका है। मैं इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा हूॅ कि विधी अब इस दुनियाॅ में नहीं रही। ये देख कर सबकी ऑखों से ऑसू छलकने लगे। विधी के डैड मेरे पास आए और मुझे उन्होंने अपने से छुपका लिया।

"ये कैसा प्यार है बेटा?" फिर वो रुॅधे हुए गले से बोल पड़े___"तुम दोनो का ये प्रेम हमें पहले क्यों नहीं पता चल पाया? तुम्हारे जैसा दामाद मुझे मिलता तो जैसे मुझे सारी दुनियाॅ की दौलत मिल जाती। हे भगवान कितना बेरहम है तू। मेरे मासूम से बच्चों के साथ इतना बड़ा घात किया तुमने? तेरा कलेजा ज़रा भी नहीं काॅपा?"

विधी के डैड खुद को सम्हाल न सके और वो मुझे अपने से छुपकाए बुरी तरह रो पड़े। पास ही में खड़े डाक्टर और नर्स भी हम सबकी हालत देख कर बेहद दुखी नज़र आ रहे थे। ख़ैर, काफी देर तक यही माहौल कायम रहा। हर कोई मुझे समझा रहा था, बहला रहा था मगर मैं बस यही कहता जा रहा था कि___"आप सब शान्त रहिए, मेरी विधी को यूॅ शोर करके डिस्टर्ब मत कीजिए।"

उस वक्त तो मेरा दिमाग़ ही ख़राब हो गया जब सब लोग मुझे विधी से अलग करने लगे। डाक्टर ने एम्बूलेन्स का इंतजाम कर दिया था। इस लिए विधी के डैड अब अपनी बेटी के मृत शरीर को हास्पिटल से ले जाने के लिए मुझे विधी से अलग करने लगे। मैं विधी से अलग नहीं हो रहा था। सब मुझे समझा रहे थे। विधी की माॅ मेरे इस पागलपन से बुरी तरह रोते हुए मुझे अपने से छुपकाये हुए थी। रितू दीदी मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी।

आख़िर, सबके समझाने बुझाने के बाद और काफी मसक्कत करने के बाद मैं विधी से अलग हुआ। मगर मैने विधी को हाथ नहीं लगाने दिया किसी को। मैने खुद ही उसे अपनी बाहों में उठा लिया और फिर सबके ज़ोर देने पर कमरे से बाहर की तरफ बढ़ चला। मेरे चेहरे पर दुख दर्द के कोई भाव नहीं थे। मैं अपनी बाहों में विधी को लिए बाहर की तरफ आ गया। विधी की जो ऑखें पहले खुली हुई थी उन ऑखों को उनकी पलकों के साथ विधी के डैड ने अपनी हॅथेली से बंद कर दिया था। किन्तु उसके अधरों पर फैली हुई वो मुस्कान अभी भी वैसी ही कायम थी।

थोड़ी ही देर में हम सब हास्पिटल के बाहर आ गए। हास्पिटल के बाहर एम्बूलेन्स खड़ी थी। बाएॅ साइड मोटर साइकिल खड़ी थी जिसके पास ही खड़ा पवन किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ खड़ा था। हास्पिटल के बाहर आते ही जब कुछ शोर शराबा हुआ तो बरबस ही पवन का ध्यान हमारी तरफ गया। उसने पलट कर देखा हमारी तरफ। मेरी बाहों में विधी को इस हालत में देख कर वह सकते में आ गया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। अपनी जगह पर खड़ा वो पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गया।

इधर थोड़ी ही देर में मैं विधी को लिए एम्बूलेन्स में सवार हो गया। मेरे साथ ही रितू दीदी, विधी की माॅ और उसके डैड बैठ गए। हम लोगों के बैठते ही एम्बूलेन्स का पिछला दरवाजा बंद ही किया जा रहा था कि सहसा भागते हुए पवन हमारे पास आया। एम्बूलेन्स के अंदर का दृष्य देखते ही उसके होश फाख्ता हो गए। एक स्ट्रेचर की तरह दिखने वाली लम्बी सी पाटरी पर विधी को सफेद कफन में गले तक ढॅका देखते ही पवन की ऑखें छलछला आईं। वो बुरी तरह मुझे देखते हुए रोने लगा। जबकि मैं एकदम शान्त अवस्था में विधी के होठों पर उभरी उस मुस्कान को देखे जा रहा था।

पवन के रोने की आवाज़ जैसे ही मेरे कानों में पड़ी मैने तुरंत पवन की तरफ देखा और उॅगली को अपने होठों पर रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया। मेरे चेहरे के आव भाव देख कर पवन का कलेजा फटने को आ गया। वो बिना एक पल गवाॅए एम्बूलेन्स में चढ़ कर मेरे पास आ गया और मुझे शख्ती से पकड़ कर खुद से छुपका लिया। उसकी ऑखों से ऑसू रुक ही नहीं रहे थे।

रितू दीदी ने पवन को समझा बुझा कर चुप कराया और उसे घर जाने को कहा। किन्तु पवन मुझे छोंड़ कर जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था। इस लिए रितू दीदी ने उसे समझाया कि उसका घर में रहना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि उसके डैड यानी अजय सिंह का कोई भरोसा नहीं था कि वो क्या कर बैठे। ये तो उसे पता चल ही जाएगा कि राज यहाॅ पर किसके यहाॅ आया है? अगर उसे पता चल गया कि वो पवन के यहाॅ आया है तो उसके घर वालों के लिए ख़तरा हो जाएगा। रितू दीदी के बार बार समझाने पर पवन दुखी मन से एम्बूलेन्स से उतर गया।

पवन के उतरते ही एम्बूलेन्स चल पड़ी। विधी की माॅ अभी भी धीमी आवाज़ में सिसक रही थी। सामने की शीट पर विधी के माॅम डैड बैठे थे और इधर की शीट पर मैं व रितू दीदी। हमारे बीच का पोर्शन जो खाली था उसमें विधी को बड़ी सी स्ट्रेचर रूपी पाटरी पर लिटाया गया था। मैं एकटक उसकी मुस्कान को घूरे जा रहा था। मेरे लिए दुनियाॅ जहान से जैसे कोई मतलब नहीं था।

रितू दीदी को जैसे कुछ याद आया तो उन्होंने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर किसी से कुछ देर कुछ बात की और फिर काल कट करके मोबाइल पुनः अपनी पाॅकेट में डाल लिया। कुछ समय बाद ही एम्बूलेन्स रुकी और थोड़ी ही देर में पिछला गेट खुला तो विधी के माॅम डैड बाहर आ गए। उनके साथ ही रितू दीदी भी एम्बूलेन्स से बाहर आ गई। रितू दीदी ने मेरा हाॅथ पकड़ कर बाहर आने का इशारा किया। मैं बाहर की तरफ अजीब भाव से देखने लगा। सब मुझे ही दुखी भाव से देख रहे थे।

ख़ैर, हास्पिटल से आए दो कर्मचारियों ने उस स्ट्रेचर को बाहर निकाला जिस पर विधी लेटी हुई थी। स्ट्रेचर को बाहर निकाल कर उन्होंने उसे ज़मीन पर रखना ही चाहा था कि मैंने उन्हें पकड़ लिया। जिससे हवा में ही उन लोगों ने स्ट्रेचर को उठाये रखा। मैने विधी को अपनी बाहों में उठा लिया। विधी के माॅम डैड ये देख कर एक बार फिर से रो पड़े।

विधी को लेकर मैं विधी के घर की तरफ बढ़ा तो विधी के माॅम डैड भी आगे आ गए। आस पास के लोगों ने देखा तो कुछ ही समय में वहाॅ भीड़ जमा हो गई। आस पास के जिन लोगों से इनके अच्छे संबंध थे उन लोगों ने ये सब देख कर भारी दुख जताया। लगभग एक घण्टे बाद फिर से विधी को एक लकड़ी की स्ट्रेचर बना कर उसमे लिटाया गया। इन सब कामों के बीच मैं बराबर विधी के पास ही था और मेरे पास रितू दीदी मौजूद रहीं।

उस वक्त दिन के चार बज रहे थे जब मैं विधी के जनाजे को तीन और आदमियों के साथ लिए मरघट में पहुॅचा था। आगे की तरफ मैं और विधी के डैडी अपने अपने कंधे पर जनाजे का एक एक छोर रखा हुआ था। काफी सारे लोग हमारे साथ थे। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इतना कुछ होने के बाद भी मैं आश्चर्यजनक रूप से एकदम शान्त चित्त था। मरघट में पहुॅच कर हमने विधी के जनाजे को वहीं ज़मीन पर रखा। कुछ औरतें साथ आई हुई थी। उन लोगों ने वहाॅ पर कपड़ों के द्वारा चारो तरफ से पर्दा करके विधी को नहलाया धुलाया और फिर उसे कपड़े पहनाए। इसके बाद उसे लकड़ी की चिता पर लेटा दिया गया।

विधी को चिता में लेटे देख सहसा मुझे ज़ोर का झटका लगा। मेरी ऑखों के सामने पिछली सारी बातें बड़ी तेज़ी से घूमने लगीं। चिता के चारो तरफ सफेद कपड़ों में खड़े लोगों पर मेरी दृष्टि पड़ी। उन सबको देखने के बाद मेरी नज़र चिता पर सफेद कपड़ों में लिपटी विधी पर पड़ी। उसे उस हालत में देखते ही सहसा मेरे अंदर ज़ोर का चक्रवात सा उठा।

"विधीऽऽऽऽऽ।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा और भागते हुए चिता के पास पहुॅच गया। सफेद कपड़ों में ऑखें बंद किये लेटी विधी के चेहरे को देख कर मैं उससे लिपट गया और फूट फूट कर रोने लगा। पल भर में मेरी हालत ख़राब हो गई। विधी के चेहरे को दोनो हाॅथों से पकड़े मैं दहाड़ें मार मार कर रोये जा रहा था।

मुझे इस तरह विधी से लिपट कर रोते देख कुछ लोग भागते हुए मेरे पास आए और मुझे विधी के पास से खींच कर दूर ले जाने लगे। मैने उन सबको झटक दिया, वो सब दूर जाकर गिरे। खुद को उनके चंगुल से छुड़ाते ही मैं फिर से भागते हुए विधी के पास आया और फिर से उससे लिपट कर रोने लगा। मुझे इस हालत में ये सब करते देख विधी के डैड और रितू दीदी दौड़ कर मेरे पास आईं और मुझे विधी के पास से दूर ले जाने लगीं।

"खुद को सम्हालो राज।" रितू दीदी बुरी तरह रोते हुए बोली___"ये क्या पागलपन है? तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? तुम अपनी विधी को दिये हुए वचन को कैसे तोड़ सकते हो? क्या तुम भूल गए कि अंतिम समय में विधी ने तुमसे क्या वचन लिया था?"
 
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"दीदी विधी मुझे छोंड़ कर कैसे जा सकती है?" मैं उनसे लिपट कर रोते हुए बोला___"उससे कहो कि वो उठ कर मेरे पास आए।"
"अपने आपको सम्हालो बेटा।" सहसा विधी के डैड ने दुखी भाव से कहा___"इस तरह विलाप करने से तुम अपनी विधी की आत्मा को ही दुख दे रहे हो। ज़रा सोचो, वो तुम्हें इस तरह दुखी होकर रोते हुए देख रही होगी तो उस पर क्या गुज़र रही होगी? क्या तुम अपनी विधी को उसके मरने के बाद भी दुखी करना चाहते हो?"

"नहीं हर्गिज़ नहीं पापा जी।" मैंने पूरी ताकत से इंकान में सिर हिलाया___"मैं उसे ज़रा सा भी दुख नहीं दे सकता और ना ही उसे दुखी देख सकता हूॅ।"
"तो फिर ये पागलपन छोंड़ दो बेटे।" विधी के डैड मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले___"अगर तुम इस तरह दुखी होगे और रोओगे तो विधी को बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा बल्कि उसे बहुत ज्यादा दुख होगा इस सबसे। इस लिए बेटा, अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त करने की कोशिश करो और खुशी खुशी अपनी विधी को चिताग्नि दो। हाॅ बेटे, अब तुम्हें ही उसे चिताग्नि देनी है। तुम दोनो का रिश्ता आत्माओं से जुड़ा हुआ है इस लिए उसे चिताग्नि देने का हक़ सिर्फ तुम्हारा ही है। मेरी बेटी भले ही अब इस दुनियाॅ में नहीं है, मगर मेरे लिए तुम ही मेरे दामाद व बेटे रहोगे हमेशा। अब चलो बेटा और अपनी विधी को चिताग्नि दो।"

"अगर आप खुद इस बात को इस तरह कुबूल करके कहते हैं तो ठीक है पापा जी।" मैने दुखी भाव से कहा___"मगर मैं भी उसे यूॅ ही चिताग्नि नहीं दूॅगा। बल्कि उसे पहले सुहागन बना कर अपनी पत्नी बनाऊॅगा। फिर उसे चिताग्नि दूॅगा।"

मेरी ये बातें सुन कर विधी के डैड की ही नहीं बल्कि हर किसी की ऑखों से ऑसू छलक पड़े। विधी के डैड ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। पंडित वहाॅ पर मौजूद था ही इस लिए सबकी सहमति से मैं विधी के पास गया और एक औरत के हाॅथ में मौजूद सिंदूर की डिबिया से अपनी दो चुटकियों में सिंदूर लिया और फिर उसे विधी की सूनी माॅग में भर दिया। मैंने अपने अंदर के जज़्बातों को लाख रोंका मगर मेरे ऑसुओं ने जैसे ऑखों से बगावत कर दी।

रितू दीदी और विधी के डैड दोनो ने मुझे कंधों से पकड़ा। मैने विधी की माॅग में सिंदूर भर कर उसे सुहागन बनाया, फिर उसके माथे को चूम कर पीछे हट गया। शान्त पड़े मरघट में एकाएक ही तेज़ हवा चली और फिर दो मिनट में ही शान्त हो गई। ये कदाचित इशारा था विधी का कि मेरी इस क्रिया से वह कितना खुश हो गई है।

पंडित ने कुछ देर कुछ पूजा करवाई और फिर उसने मुझसे अंतिम संस्कार की सारी विधि करवाई। तत्पश्चात मेरे हाथ में एक मोटा सा डण्डा पकड़ाया जिसके ऊपरी छोर पर मशाल की तरह आग जल रही थी। पंडित के ही निर्देश पर मैने उस मशाल से विधी को चिताग्नि दी।

देखते ही देखते लकड़ी की उस चिता पर आग ने अपना प्रभाव दिखाया और वह उग्र से उग्र होती चली गई। मैं भारी मन से विधी की जलती हुई चिता को देखे जा रहा था। मेरे पास रितू दीदी और विधी के माॅम डैड खड़े थे। कुछ समय बाद वहाॅ पर मौजूद लोग वहाॅ से धीरे धीरे जाने लगे। अंत में सिर्फ हम चार लोग ही रह गए।

विधी के डैड के ज़ोर देने पर ही मैं उनके साथ घर की तरफ वापस चला। मेरे अंदर भयंकर तूफान चल रहा था। मगर मैने शख्ती से उसे दबाया हुआ था। मुझे लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार मार कर खूब रोऊॅ। उस ऊपर वाले से चीख चीख कर कहूॅ कि वो मेरी विधी को सही सलामत वापस कर दे मुझे। मगर कदाचित ऐसा होना अब संभव नहीं था। ख़ैर भारी मन के साथ ही हम सब घर आ गए।
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इस सब में शाम हो चुकी थी। रितू दीदी के फोन पर पवन का बार बार काल आ रहा था। इस वक्त मैं और रितू दीदी विधी के घर पर ही थे। घर में कोई न कोई बाहरी आदमी आता और शोग प्रकट करके चला जाता। धीरे धीरे शाम का अॅधेरा भी छाने लगा था। विधी के माॅम डैड ने मुझे और रितू दीदी को भी घर जाने को कहा। हम लोगों का वहाॅ से आने का मन तो नहीं था पर मजबूरी थी। इस लिए रितू दीदी मुझे लेकर वहाॅ से चल दी।

रास्ते में रितू दीदी के मोबाइल पर किसी का काल आया तो उन्होने देखा उसे और काल को पिक कर मोबाइल कान से लगा लिया। कुछ देर तक उन्होंने जाने क्या बात की फिर उन्होंने काल कट कर दी।

हास्पिटल के पास आते ही मैने देखा कि उनके सामने एक पुलिस जिप्सी आकर रुकी। रितू दीदी ने मुझे उस पर बैठने को कहा तो मैं चुपचाप बैठ गया। पुलिस जिप्सी से एक आदमी बाहर निकला। उसने दीदी को सैल्यूट किया।
"अब तुम जाओ रामसिंह।" रितू दीदी ने उससे कहा___"बाॅकी लोगों को भी सूचित कर देना कि सावधान रहेंगे और उन पर नज़र रखे रहेंगे।"
"यह मैडम।" उस आदमी ने कहने के साथ ही पुनः सैल्यूट किया और एक तरफ बढ़ गया।

उस आदमी के जाते ही दीदी जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठीं और उसे यूटर्न देकर एक तरफ को बढ़ा दिया। दीदी के बगल वाली शीट पर मैं चुपचाप बैठा था। मेरी ऑखें शून्य में डूबी हुई थी। मुझे पता ही नहीं चला कि जिप्सी कहाॅ कहाॅ से चलते हुए कब रुक गई थी। चौंका तब जब दीदी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने इधर उधर देखा तो पता चला कि ये तो पवन के घर के सामने जिप्सी पर बैठा हुआ हूॅ मैं।

ये देख कर मैं जिप्सी से बिना कुछ बोले उतर गया और पवन के घर के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि सहसा दीदी ने कहा___"मेरी बात सुनो राज।"

दीदी की इस बात से मैने पलट कर उन्हें देखा। वो जिप्सी से उतर कर मेरे पास ही आ गई। तब तक जिप्सी की आवाज़ सुन कर अंदर से पवन और आदित्य भी आ गए थे। पवन और आदित्य मुझे देखते ही मुझसे लिपट कर रोने लगे। शायद पवन ने आदित्य को सारी कहानी बता दी थी। कुछ देर वो दोनो मुझसे लिपटे रोते रहे। उसके बाद रितू दीदी के कहने पर वो दोनो अलग हुए।

"मैं जानती हूॅ कि इस वक्त तुम लोग कहीं भी जाने की हालत में नहीं हो।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"खास कर राज तो बिलकुल भी नहीं। मगर मैं ये भी जानती हूॅ कि तुम लोगों का यहाॅ पर रुकना भी सही नहीं है। इस लिए तुम सब मेरे साथ ऐसी जगह चलो जहाॅ पर तुम लोगों के होने की उम्मीद मेरे डैड कर ही नहीं सकते। हाॅ पवन, तुम सब मेरे फार्महाउस पर चल रहे हो अभी के अभी।"

"शायद आप ठीक कह रही हैं दीदी।" पवन ने बुझे मन से कहा___"मगर इतने सारे सामान के साथ हम सब एकसाथ कैसे वहाॅ जा सकेंगे? और कैसे जा सकेंगे? क्योंकि संभव है कि रास्ते में ही कहीं हमे अजय चाचा या उनके आदमी मिल जाएॅ।"
"उसकी चिंता तुम मत करो भाई।" दीदी ने कहा___"मैने वाहन का इंतजाम कर दिया है। लो वो आ भी गया।"

दीदी के कहने पर पवन ने पलट कर देखा तो सच में एक ऐसा वाहन उसे दिखा जिसे देख कर वो चौंक गया। दरअसल वो वाहन एक एम्बूलेन्स था। मेरी नज़र भी एम्बूलेन्स पर पड़ी तो उसे देख कर अनायास ही मेरा मन भारी हो गया। लाख रोंकने के बावजूद मेरी ऑखों से ऑसू छलक गए। ये देख कर रितू दीदी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया।

"नहीं मेरे भाई।" रितू दीदी ने तड़प कर कहा__"ऐसे मत रो। तू नहीं जानता कि तेरी ऑखों से अगर ऑसू का एक कतरा भी गिरता है तो मेरे दिल में नस्तर सा चल जाता है। मैं जानती हूॅ कि इस सबको भूलना या इससे बाहर निकलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए मगर खुद को सम्हालना तो पड़ेगा ही भाई। किसी और के लिए न सही मगर अपनी उस विधी के लिए जिसको तुमने वचन दिया है।"

"कैसे दीदी कैसे?" मेरी रुलाई फूट गई___"कैसे मैं उस सबको भुला दूॅ? मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा कुछ हो गया है।"
"बस कुछ मत बोल मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___"शान्त हो जा। सब कुछ ठीक हो जाएगा। भगवान जब दुख देता है तो उसे सहने की शक्ति भी देता है। तू अपने अंदर उस शक्ति को महसूस कर भाई।"

मैं कुछ न बोला। मेरी इस हालत से पवन और आदित्य की ऑखों से भी ऑसू बहने लगे थे।
"पवन तुमने ये बात चाची और आशा को तो नहीं बताई न?" दीदी ने पवन से पूछा था।

दीदी के पूछने पर पवन ने अपना सिर झुका लिया। दीदी को समझते देर न लगी कि उसने ये बातें सबको बता दी है। अभी दीदी कुछ कहने ही वाली थी कि अंदर से रोने की आवाज़ें आने लगीं जो प्रतिपल तीब्र होती जा रही थी। रितू दीदी तेज़ी से मुझे लिये अंदर की तरफ बढ़ी। उनके पीछे पवन और आदित्य भी बढ़ चले।

अंदर बैठक तक भी न पहुॅचे थे कि रास्ते में ही पवन की माॅ और बहन रोते हुए मिल गईं। शायद उनको पता चल गया था कि मैं आ गया हूॅ। इस लिए दोनो ही रोते हुए बाहर की तरफ भागी चली आ रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दोनो मुझसे लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं। आशा दीदी की हालत तो बहुत ख़राब थी। वो मुझसे लिपटी बहुत ज्यादा रो रही थी। उन दोनो को देख कर मेरी भी रुलाई फूट पड़ी थी। रितू दीदी ने बड़ी मुश्किल से हम तीनों को चुप कराया। मगर आशा दीदी सिसकती रहीं।

"चाची आप तो समझदार हैं न।" रितू दीदी कह रही थी___"आपको तो समझना चाहिए न कि इस तरह रोने से राज को और भी ज्यादा तक़लीफ़ होगी। ये तो वैसे भी इसी सदमें में डूबा हुआ है। आपको तो इसे सम्हालना चाहिए पर आप दोनो तो खुद रो रो कर इसके दुख को बढ़ा रही हैं।"

रितू दीदी की बात माॅ के समझ में आ गई थी इस लिए उन्होंने जल्दी से अपने ऑसू पोंछ लिए और मुझे अपने से छुपका कर मुझे प्यार दुलार करने लगीं।

"पवन तुम दोनो सामान को जल्दी से उस वाहन पर रखो और जल्द से जल्द यहाॅ से चलने की तैयारी करो।" रितू दीदी ने पवन की तरफ देखते हुए कहा। दीदी के कहने पर पवन और आदित्य दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में जो कुछ भी ज़रूरी सामान पैक कर दिया गया था उसे लाकर बाहर खड़ी एम्बूलेन्स में रख दिया उन दोनो ने।

सामान रख जाने के बाद रितू दीदी ने हम सबको उस एम्बूलेन्स में बैठने को कहा और खुद अकेले जिप्सी में बैठ गईं। घर से बाहर आकर माॅ ने दरवाजे पर ताला लगा दिया और मुझे साथ में लिये एम्बूलेन्स में बैठ गईं। पवन आदित्य और आशा दीदी पहले ही उसमें बैठ चुके थे। हम लोगों के बैठते ही रितू दीदी ने एम्बूलेन्स के ड्राइवर को अपने पीछे आने का इशारा कर दिया।

रितू दीदी के दिमाग़ की दाद देनी होगी, क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ सोच कर वाहन के रूप में एम्बूलेन्स को चुना था। उनकी सोच थी कि एम्बूलेन्स में हम लोगों के बैठे होने की उनके डैड कल्पना भी न कर सकेंगे। और ऐसा हुआ भी। रास्ते में कहीं पर भी हमें अजय सिंह या उसका कोई आदमी नहीं मिला। एक जगह मिला भी पर उन लोगों ने एम्बूलेन्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। एम्बूलेन्स के सौ मीटर की दूरी पर रितू दीदी की जिप्सी आगे आगे चल रही थी। इतनी दूरी इस लिए ताकि कोई ये भी शक न करे कि एम्बूलेन्स रितू दीदी के साथ ही है।

ऐसे ही हम हल्दीपुर गाॅव से बाहर आ गए और उस नहर के पुल के पास से हम लोग पूर्व दिशा की तरफ मुड़ गए। लगभग बीस मिनट बाद हम सब दीदी के फार्महाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चुका था कि मेरे साथ करुणा चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने मेरे फोन से करुणा चाची को फोन कर कह दिया था कि मैं आज नहीं जा रहा बल्कि वो अपने भाई के साथ यहीं पर आ जाएॅ कल।

फार्महाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बूलेन्स से सारा सामान उतरवा कर अंदर रखवा दिया। एम्बूलेन्स के जाने के बाद हम सब अंदर की तरफ बढ़ चले। अंदर ड्राइंगरूम में ही सोफे पर बैठी नैना बुआ पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं हल्के से चौंका। नैना बुआ मुझे देखते ही सोफे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से मुझे अपने सीने से लगा लिया। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने उन्हें छलकने नहीं दिया। अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था उन्होंने। शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता दिया था और समझा भी दिया था कि मुझसे मिल कर वो ज्यादा रोयें नहीं।

ख़ैर, ऐसे माहौल में हम सब बेहद दुखी थे इस लिए उस रात किसी ने अन्न का एक दाना तक अपने मुख में नहीं डाला। रात में मेरे साथ बेड पर मेरे एक तरफ रितू दीदी थीं तो दूसरी तरफ आशा दीदी। सारी रात किसी भी ब्यक्ति को नींद नहीं आई। सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया था। बेड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच लेटा ऊपर घूम रहे पंखे को देखता रहा। सारी रात ऐसे ही गुज़र गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रति दुख छुपाए मुझे अपनी अपनी तरफ से छुपकाए यूॅ ही लेटी रह गईं थी। आने वाली सुबह मेरे जीवन में और कैसे दुख दर्द की भूमिका बनाएगी इसके बारे में वक्त के सिवा कोई नहीं जानता था।
दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,
 
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अपडेट.......《 46 》


अब आगे,,,,,,,,

उधर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई मगर अजय सिंह और शिवा को अपने उन आदमियों का कहीं कोई सुराग़ तक न मिल सका जिन आदमियों ने उन्हें विराज के आने की ख़बर दी थी। कहने का मतलब ये कि भीमा और मंगल आदि में से कोई भी अजय सिंह का भरोसेमंद आदमी अजय सिंह को न मिला। इस बात से दोनो बाप बेटे बेहद परेशान हो चुके थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके आदमी एक साथ सारे के सारे कैसे गायब हो गए?

अजय सिंह के बाॅकी के आदमी तो उसे मिले लेकिन उन लोगों को ना तो विराज का कोई सुराग़ मिला था और ना ही उन्हें ये पता था कि भीमा और मंगल के साथ साथ रहे बाॅकी आदमी कहाॅ और कैसे गायब हो गए? हैरान परेशान दोनो बाप बेटे वापस अपने नये वाले फार्म हाउस पर लौट आए थे। अपने बाॅकी बचे आदमियों को शख्त आदेश भी दे आए थे कि विराज के साथ साथ अपने उन गायब हुए आदमियों की भी खोज ख़बर करते रहें।

इस वक्त अजय सिंह और शिवा अपने फार्महाउस के ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर चिंतित व परेशान हालत में बैठे थे। उन दोनो के सामने वाले सोफे पर प्रतिमा भी बैठी हुई थी। उसकी नज़रें दोनो बाप बेटों के चेहरों पर उभरे हुए भावों पर थी। उसे समझते ज़रा भी देर न लगी थी कि दोनो बाप बेटे शिकस्त खाकर आए हैं। पर जाने क्यों प्रतिमा को इस बात का पहले से ही अंदेशा था कि ऐसा ही कुछ होगा।

"ये तो कमाल ही हो गया न अजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"तुम्हारे इतने सारे हट्टे कट्टे आदमियों ने एक बार फिर से तुम्हें नीचा दिखा दिया। तुम्हारी बड़ी बड़ी वो बातें महज कोरी बकवास के सिवा कुछ न थी। तुमने और तुम्हारे आदमियों ने आज तक वो काम किया ही नहीं जिस काम को 'फतह' के नाम से जाना जाता है। हर बार तुम अपने मंसूबों पर नाकामयाब ही हुए हो अजय। तुम्हारे पास पिछला ऐसा कोई काम नहीं है जिसका हवाला देकर तुम ये कह सको कि तुमने उस काम को सफलतापूर्वक किया था।"

प्रतिमा की इन बातों पर दोनो बाप बेटों के चेहरे झुक से गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनो में से किसी में भी बोलने की हिम्मत शेष न हो। ये अलग बात थी कि अजय सिंह के चेहरे पर भूकंप के से भाव अनायास ही गर्दिश करते नज़र आते और फिर वो लुप्त हो जाते।

"एक अदने से लड़के को पकड़ने गए थे तुम्हारे आदमी और खुद ही सारे के सारे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए।" प्रतिमा ने फिर कहना शुरू किया___"इस बात को कौन हजम कर पाएगा अजय? क्या तुम खुद हजम कर पा रहे हो कि तुम्हारे इतने सारे आदमियों के रहते हुए भी वो विराज को पकड़ने की तो बात दूर बल्कि खुद अपना ही ख़याल नहीं रख सके? क्या तुम ये कल्पना कर सकते हो कि अकेले विराज ने तुम्हारे इतने सारे आदमियों को इस तरह से गायब कर दिया कि तुम दोनो बाप बेटे उनका पता भी नहीं लगा सके?"

"यकीनन प्रतिमा।" सहसा अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ये सच है कि इस सबकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। ये सब जो कुछ भी हुआ है और जैसे भी हुआ है उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। मगर, इस सब में अकेले विराज बस का हाॅथ नहीं हो सकता।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा हल्के से चौंकी थी।
"मतलब साफ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मेरे इतने सारे आदमियों को एक साथ गायब कर देना कोई आसान बात नहीं है। मगर ये भी सच है कि ऐसा ही हुआ है। इस लिए इस काम को विराज खुद अकेले नहीं कर सकता। इस काम में ज़रूर उसकी किसी ने मदद की है। तुम खुद सोचो प्रतिमा कि मेरे बारह मुस्टंडे जैसे आदमियों को परास्त करना या उन्हें उस हालत पर ले आना कि वो अधमरे ही हों जाएॅ ये काम कितना मुश्किल हो सकता है? नहीं प्रतिमा नहीं, मैं किसी सूरत में नहीं मान सकता कि ये सब अकेले विराज ने किया है।"

"चलो मान लिया कि ये सब अकेले विराज नहीं कर सकता।" प्रतिमा ने कहा___"बल्कि इस काम में किसी ने उसकी मदद की, मगर सवाल ये है कि किसने की उसकी मदद? यहाॅ पर ऐसा कौन है जो इस तरीके से विराज की मदद कर सकता है?"

"मुझे लगता है कि इस बारे में हमें शुरू से सोच विचार करना चाहिए।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया___"हाॅ प्रतिमा, हमें इस बारे में शुरू से विचार विमर्ष करना होगा, वो भी बड़ी बारीकी से। ग़लती तो यकीनन हुई है हमसे। हमने शुरू से ही विराज को बहुत छोटा समझा था। हमारे मन में ये बात बैठी हुई थी कि वो ये सब कर ही नहीं सकता। हमने हमेशा उसकी औकात पर सवाल उठाया, शायद इसी का ये परिणाम है कि हम शुरू से हर बात में नाकामी का स्वाद चख रहे हैं। मगर अब हमें समझ आ चुका है डियर। हमें समझ आ चुका है कि हमारे साथ ये सब एक खेल ही हो रहा है शुरू से। एक अच्छा खिलाड़ी वही होता है जो अपने प्रतिद्वंदी को कभी भी कम करके न ऑके, बल्कि उसे भी अपनी तरह ही उच्च कोटि का खिलाड़ी समझे। तभी हमें समझ आता है कि अब हमें किस तरह की अब हमें किस तरह की चाल चलना चाहिए? मगर ये सब बातें मैने कभी भी सोचने की जहमत नहीं की।"

"शुकर है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"कि तुम्हें ये बात समझ में आ गई कि तुम्हारा हमेशा से विराज को तुच्छ समझना सरासर ग़लत और नासमझी थी। हलाॅकि इस बारे में मैने तुम्हें पहले भी कहा था कि विराज को तुच्छ समझना निहायत ही ग़लत बात है। क्योंकि मौजूदा हालात में अगर तुम्हारा कोई दुश्मन हो सकता था तो सिर्फ विराज। ख़ैर, अब जब ये बात तुम्हारी समझ में आ ही गई है तो अब क्या सोच विचार करना चाहोगे इस बारे में तुम?"

"सोच विचार करने के लिए बहुत सारी बातें हैं।" अजय सिंह ने शिगार का गहरा कश लेकर उसका धुऑ ऊपर हवा में छोंड़ते हुए कहा___"पर बात चूॅकि शुरू से सोच विचार करने की है इस लिए शुरू से ही शुरू करते हैं। मैं सवाल खड़ा करूॅगा और तुम उस पर अपनी राय ब्यक्त करना।"

"ओके आई एम रेडी।" प्रतिमा ने सम्हल कर बैठते हुए कहा___"यू मे प्रोसीड।"
"हमारे साथ ये खेल फैक्ट्री में आग लगने से शुरू हुआ था।" अजय सिंह ने सोचते हुए कहा___"इसमें कई सवाल हैं, पहला ये कि फैक्ट्री में आग कैसे लगी या किसने लगाई थी? दूसरा सवाल ये कि फैक्ट्री में बने उस गुप्त तहखाने के अंदर मौजूद मेरा वो ग़ैर कानूनी सामान रितू द्वारा छानबीन करने पर क्यों नहीं मिला? वो सारा सामान उस गुप्त तहखाने से किसने गायब किया? यहाॅ ये सवाल नहीं पैदा हो सकता कि वो सब चीज़ें बमों के धमाके से लगी भीषण आग में जल गई होंगी, क्योंकि जली हुई चीज़ के अवशेष ज़रूर मिलते हैं और फाॅरेंसिक जाॅच से ये बात भी पता चल जाती है कि जो चीज़ जली थी वो असल में क्या थी? ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ फैक्ट्री में लगी आग के बारे में और तहखाने से उन सारी चीज़ों के गायब हो जाने के बारे में तुम्हारी क्या राय है?"

"सबसे पहली बात तो ये है कि फैक्ट्री में लगी आग का मामला ज़रा पेंचीदा था।" प्रतिमा ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"पेंचीदा इस लिए क्योंकि उसमें किसी के भी बारे में कोई ठोस निष्कर्श नहीं निकल सकता था। घुमा फिरा कर बात सिर्फ विराज पर ही आकर रुकती थी। हलाॅकि ये बात ग़लत हो ऐसा कम ही लगता था। लेकिन मेरे ज़हन में एक बात ये भी है कि जिस समय फैक्ट्री में आग लगने का मामला आया था उसी समय तुम्हारे पार्टनर सक्सेना ने भी पार्टनरशिप तोड़ने की बात की ही नहीं बल्कि तोड़ ही दी थी। सक्सेना ने पार्टनरशिप तोड़ने की वजह ये बताई थी कि वो विदेश में सेटल होना चाहता है और वहीं पर अपना कोई बिजनेस करना चाहता है। इस बात पर कितना इत्तेफाक़ रखा जा सकता है?"

"तुम आख़िर कहना क्या चाहती हो?" अजय सिंह का दिमाग़ मानो चकरा सा गया था।
"मैं ये कहना चाहती हूॅ कि सक्सेना ने पार्टनरशिप तोड़ने की जो वजह बताई थी उसमें कितनी सच्चाई थी?" फिर प्रतिमा ने कहा___"तुम्हारे अनुसार उसे ये पता नहीं था कि फैक्टरी में कोई गुप्त तहखाना है जहाॅ पर तुम अपना गैर कानूनी सामान छुपा कर रखते थे। जबकि ऐसा भी तो हो सकता है कि ये सब उसे किसी तरह से पता चल ही गया रहा हो। उस सूरत में वो डर गया हो कि ऐसे काम में वह किसी दिन तुम्हारे साथ साथ खुद भी न कानून की गिरफ्त में आ जाए। इस लिए उसने तुमसे पार्टनरशिप तोड़ लेने में ही अपनी भलाई समझी हो, किन्तु उसे लगा होगा कि पार्टनरशिप तोड़ने की कोई माकूल वजह भी होनी चाहिए तभी उसे अपना सारा पैसा तुमसे मिल सकता था।"

"लेकिन इसमें ऐसा तो नहीं हो सकता था न कि सारा हिसाब किताब चुकता होने के बाद सक्सेना मेरी फैक्ट्री में आग लगा देता।" अजय सिंह ने कहा___"सीधी सी बात है डियर, तुम्हारे अनुसार सक्सेना को कानून का डर सताया इस लिए उसने मुझसे पार्टनरशिप तोड़ी और अपना हिसाब किताब चुकता कर लिया। लेकिन इस सबके बाद वो भला मेरी फैक्ट्री में आग क्यों लगाएगा? उसे जिस चीज़ का डर था वो तो पार्टनरशिप टूटते ही दूर हो गया था। अगर तुम ये समझती हो कि फैक्ट्री में आग सक्सेना ने लगाई थी तो मैं इस बात से सहमत नहीं हूॅ।"

"इसका मतलब तुम इस मामले में सक्सेना को क्लीन चिट दे रहे हो?" प्रतिमा ने गहरी नज़र से देखा उसे।
"बेशक।" अजय सिंह ने पूरे आतमविश्वास के साथ कहा।
"और कोई दूसरा ऐसा कर ही नहीं सकता?" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब तुम्हारे किसी बिजनेस कम्पटीटर से है।"

"यस आफकोर्स।" अजय सिंह ने कहा___"मेरा ऐसा कोई बिजनेस कम्पटीटर ही नहीं है जो मेरी फैक्ट्री में आग लगा कर मेरा इतना बड़ा नुकसान कर दे।"
"तो फिर बचा कौन?" प्रतिमा ने कहा।
"क्या मतलब??" अजय सिंह एकाएक ही चौंक पड़ा।

"अरे डियर, हम हर चीज़ के बारे में विचार विमर्ष कर रहे हैं न?" प्रतिमा मुस्कुराई।
"ओह हाॅ।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"ख़ैर, तो फिर बचा कौन का क्या मतलब है तुम्हारा?"
"तुम्हारी लाइफ में तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?" प्रतिमा ने पूछा था।

"विराज और उसकी माॅ बहन।" अजय सिंह के भाव बड़ी तेज़ी से कठोर हो गए थे।
"बिलकुल सही।" प्रतिमा ने कहा___"विराज एक ऐसा शख्स है जो मौजूदा वक्त में तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है। इस लिए अगर फैक्ट्री में लगी आग में सिर्फ और सिर्फ विराज का ही हाॅथ है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।"

"लेकिन सवाल ये है कि उसने इतना बड़ा अविश्वसनीय काम किया कैसे होगा?" अजय सिंह के माथे पर सोच के भाव उभर आए___"दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उसे कैसे पता कि फैक्ट्री में कोई गुप्त तहखाना है और उस तहखाने के अंदर मैने एक अलग ही जुर्म की दुनियाॅ बना रखी है?"

"किसी तरह उसने इस सबका पता तो कर ही लिया होगा माई डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने कहा___"काम जब ऐसे बड़े बड़े करने होते हैं न तो उसके बारे में अपने पास हर चीज़ की जानकारी का होना भी ज़रूरी होता है।"
"यही तो सवाल है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"भला उसे इस बात की जानकारी कैसे हो गई कि फैक्ट्री के अंदर मैने क्या क्या चीज़ें छुपाई हुईं हैं? जबकि ये भी सच है कि वह कभी मेरी फैक्ट्री में गया ही नहीं था। फिर कैसे ये सब पता हो सकता है उसे? दूसरी बात, वो तो मुम्बई में है फिर वो वहाॅ से ये काम कैसे कर सकता है?"

"संभव है कि विराज उस समय मुम्बई से यहाॅ आया रहा हो।" प्रतिमा ने तर्क दिया।
"अगर वो मुम्बई से यहाॅ आता तो क्या वो मेरे आदमियों की नज़र में नहीं आ जाता?" अजय सिंह बोला__"आज भी तो वो मेरे आदमी भीमा की नज़र में आ ही गया था।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कि उसने तुम्हारे आदमियों को चकमा दे दिया रहा हो उस समय।" प्रतिमा ने पुनः तर्क दिया___"क्योंकि बिना उसके यहाॅ आए वह हमारी फैक्ट्री में कैसे आग लगा देता? या फिर ऐसा हो सकता है कि उसके इशारे पर ये काम उसके ही किसी साथी ने किया होगा।"

"हाॅ ऐसा हो सकता है।" अजय सिंह के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ, बोला___"ये यकीनन हो सकता है प्रतिमा। बचपन से जवानी तक वो इस गाॅव में रहा है, इस लिए ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि यहाॅ पर उसका कोई घनिष्ठ दोस्त या मित्र न बना हो, बल्कि ज़रूर बना होगा। सबका कोई न कोई घनिष्ठ मित्र ज़रूर होता है, उसका भी कोई ऐसा ही खास मित्र होगा यहाॅ। इस लिए ये संभव है कि विराज ने ये काम अपने किसी ऐसे ही मित्र द्वारा करवाया हो सकता है। इस बारे में तो हमें पहले ही सोचना चाहिए था डियर। वो भले ही मुम्बई में है लेकिन अपने किसी खास दोस्त के द्वारा वो ज़रूर हमारी पल पल की ख़बर लेता रहा होगा। अब भी ले रहा होगा।"

"आपने बिलकुल सही कहा डैड।" सहसा इतनी देर से चुप बैठा शिवा कह उठा___"उस कमीने के कई दोस्त हैं यहाॅ। लेकिन एक दोस्त तो उसका बहुत ही खास है। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूॅ। कई बार मैने उसके दोस्त को उसके साथ देखा भी था। उसके उस दोस्त का नाम शायद पवन है, यस डैड...पवन सिंह। यही नाम है उसके दोस्त का।"

"वैरी गुड।" अजय सिंह के चेहरे पर बड़ी मुद्दत के बाद राहत के भाव उभरे, बोला___"इसका मतलब वो हरामज़ादा अपने उस दोस्त पवन के ज़रिये ये सब करवा रहा था। नहीं छोंड़ूॅगा उस मादरचोद को। उसके सारे खानदान का नामो निशान मिटा दूॅगा मैं।"

"तुम्हें क्या लगता है अजय?" प्रतिमा ने सहसा अजीब भाव से कहा___"ये कि विराज महामूर्ख है?"
"व्हाट डू यू मीन?" अजय सिंह की ऑखें फैली।
"जिस विराज ने अपने दोस्त को इतने बड़े काम को करने के लिए कहा होगा उसने क्या अपने दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा का ख़याल नहीं रखा होगा?" प्रतिमा एक ही साॅस में कहती चली गई___"ये तो विराज को भी पता है कि अगर वो किसी के द्वारा अपना कोई काम करवाएगा तो देर सवेर तुम्हें इसका पता चल ही जाएगा। उस सूरत में तुम उसके साथ क्या सुलूक करोगे इसका अंदाज़ा उसने पहले ही लगा लिया होगा। हाॅ अजय, विराज ये कभी नहीं चाहेगा कि उसके काम की वजह से उसके दोस्त के साथ साथ उसके दोस्त के परिवार वालों की ज़िंदगी भी ख़तरे में पड़ जाए। इस लिए मेरा ख़याल यही है कि विराज ने अपने दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा के बारे में सोचते हुए कुछ तो ऐसा ज़रूर किया होगा जिससे तुम्हारा क़हर उन पर न टूटने पाए।"

"तुम्हारी इस बात में यकीनन सच्चाई की झलक दिख रही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"मगर एक बार पता तो करना ही चाहिए हमें। क्योंकि अगर एक पल के लिए ये मान लें कि वैसा कुछ किया ही नहीं होगा विराज ने जैसे की तुम बात कर रही हो तो इस वक्त ज़रूर उसका दोस्त इसी गाॅव में अपने घर पर होगा। मैं एक बार इस बात की पक्के तौर पर जाॅच करवा लेना चाहता हूॅ।"

"ज़रूर जाॅच करवाओ अजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"मगर मेरा अनुमान यही है कि तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगने वाला।"
"माॅम ये आप क्या कह रही हैं?" शिवा के स्वर में नाराज़गी थी, बोला___"क्या आप चाहती हैं कि हमारे हाॅथ कुछ न लगे?"

"बात ये नहीं है बेटे कि मैं चाहती नहीं हूॅ।" प्रतिमा ने शख्त भाव से कहा___"बात ये है कि अब तक हाॅसिल भी क्या हुआ है? हर बार तो नाकामी ही हाॅथ लगी है हमें और अब तो ये आलम हो गया है कि किसी भी चीज़ के हाॅसिल होने की उम्मीद ही नहीं होती।"

"मैं तुम्हारे जज़्बातों को समझ सकता हूॅ माई स्वीट डार्लिंग।" अजय सिंह ने कहा___"मैं जानता हूॅ कि हर बार मिली नाकामी से तुम निराश हो गई हो। मगर यकीन मानो डियर, हमेशा ऐसा नहीं होता है। एक दिन ऐसा ज़रूर आता है जब हमें कामयाबी भी मिलती है। तुम देखना कि जिस दिन हमें कामयाबी मिली उस दिन हम अपनी उस कामयाबी को किस किस तरीके से सेलीब्रेट करेंगे?"

अजय सिंह की बात का प्रतिमा ने कोई जवाब न दिया। वो बस अजय सिंह को अजीब भाव से देखती रही। जबकि अजय सिंह ने उसके चेहरे से नज़र हटा कर शिवा से पवन सिंह के घर के बारे में पहले पूॅछा फिर अपनी कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाला। मोबाइल पर उसने किसी को फोन लगाया। दूसरी तरफ से काल रिवीव किये जाने के बाद अजय सिंह ने उसे पवन सिंह के घर का पता बताया और उससे जल्द से जल्द पवन सिंह का पता लगाने का हुक्म दिया। उसके बार उसने काल कट करके मोबाइल को अपने सामने रखी टेबल पर रख दिया।

"तो डिबेट को आगे बढ़ाएॅ डियर?" अजय सिंह ने प्रतिमा की तरफ देख कर कहा___"मैने अपने एक आदमी को पवन सिंह का पता करने के लिए बोल दिया है। वो जल्द ही इस बारे में हमें सूचित करेगा। तब तक हम अपनी डिबेट को आगे बढ़ते हैं।"

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" प्रतिमा ने भावहीन स्वर में कहा___"शुरू करो।"
"यहाॅ पर इन सब बातों को संक्षेप में ये निर्णय निकालते हैं कि बाहरी कोई भी ब्यक्ति मेरे साथ ये सब नहीं कर रहा है।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"बल्कि ये सब करने वाला सिर्फ एक ही शख्स है और वो है विराज। पवन सिंह का नाम जुड़ने से जो बात सामने आई वो ये है कि मुम्बई में रहते हुए विराज ने अपने दोस्त के द्वारा ये सब करवाया। किन्तु यहाॅ सवाल ये है कि विराज के इस काम में उसके और कितने दोस्त शामिल थे? क्योंकि ये काम सिर्फ एक आदमी से तो हो नहीं सकता। इस लिए ये जानना ज़रूरी है उसने किस किस को अपने इस काम पर लगाया हुआ है?"

"तुम एक बात भूल रहे हो अजय।" प्रतिमा ने कहा__"वो ये कि फैक्ट्री में आग लगने से पहले भी एक खेल तुम्हारे साथ खेला गया था। याद है, वो विदेशी ब्यापारी। जो अपनी बीवी के साथ आया था और उसने तुम्हें भारी मात्रा में कपड़ा तैयार करने को कहा था। डील पक्की होने के बाद जब डिलीवरी का समय आया तो उस विदेशी ब्यापारी का कहीं कोई पता ही नहीं था। अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी कि शहर के मशहूर बिजनेस मैन अजय सिंह को किसी विदेशी ब्यक्ति ने करोड़ों का चूना लगाया।"

"ओह हाॅ यार।" अजय सिंह की ऑखों के सामने दो विदेशी पति पत्नी की शक्ल घूम उठी___"उसका तो मुझे ख़याल ही नहीं रहा था।"
"होना चाहिए अजय।" प्रतिमा ने कहा___"क्योंकि तुम्हारे साथ खेल खेलने का आग़ाज़ तो वहीं से शुरू हुआ था न? ख़ैर, मेरा ख़याल ये है कि वो विदेशी ब्यक्ति कोई और नहीं खुद विराज ही था और उसकी पत्नी के रूप में खुद उसकी ही बहन निधी थी।"

"व्हाऽऽऽट???" अजय सिंह उछल पड़ा___"ऐसा तुम यकीन से कैसे कह सकती हो?"
"नायकीनी की भी कोई वजह बता दो मुझे?" प्रतिमा ने बड़े आत्मविश्वास से कहा___"तुम यकीन इस लिए नहीं कर पा रहे क्योंकि तुम अब भी यही समझते हो कि विराज किसी ढाबे या होटल में कप प्लेट धो रहा होगा और उसकी औकात नहीं कि वो ये सब अफोर्ड कर सके। लेकिन मैं इस बात को अलग तरह से सोचती हूॅ अजय। मैं ये सोचती हूॅ कि विराज एक पढ़ा लिखा लड़का है। वो बचपन से ही पढ़ने लिखने में सभी बच्चों से आगे था। उसका माइंड बड़ा शार्प था। कहने का मतलब ये कि जितना वो पढ़ा लिखा था उससे उसे कोई नौकरी मिल जाना कोई मुश्किल काम नहीं था। संभव है कि उसे कोई ऐसी नौकरी मिल गई हो जिसके तहत वो इतना तो अफोर्ड कर ही सके कि वो तुम्हारे साथ ऐसा खेल खेल सके। अगर तुम इस एंगल से सोचोगे अजय तो तुम्हें भी लगने लगेगा कि हाॅ वो लड़का ऐसा कर सकता है।"

प्रतिमा की इन सब बातों से अजय सिंह को भी एहसास हुआ कि प्रतिमा की बात में सच्चाई है। इस बात को उसे भी स्वीकार करना ही पड़ा कि विराज सभी बच्चों में सबसे ज्यादा पढ़ने में तेज़ था। उसे ये भी मानना पड़ा कि उसे कोई ऐसी नौकरी ज़रूर मिल गई रही होगी जिससे वो ये सब कर सके। अजय सिंह की ऑखों के सामने शिवा का वो अधमरी हालत मिलना घूम गया। इस बात से ये साफ ज़ाहिर होता है कि विराज़ के मन में इन लोगों के प्रति आक्रोश और बदले की भावना है। इस लिए उसका तो ये हमेशा प्रयास रहेगा कि वो अपने साथ हुए अत्याचार का बदला ले सके।

अजय सिंह के मनो मस्तिष्क में ये सब बातें बड़ी तेज़ी से चलने लगी थी, जिसका असर ये हुआ कि उसने इस सब को स्वीकार कर लिया कि ये सब कुछ विराज ने ही किया हो सकता है। फिर चाहे उसका वो विदेशी बनना हो या फिर फैक्ट्री में आग लगाना। अभी अजय सिंह ये सब सोच ही रहा था कि सामने टेबल पर रखा उसका मोबाइल बजने लगा। उन तीनों ध्यान एक साथ मोबाइल पर गया।

अजय सिंह ने हाॅथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और उस पर आ रही काल को रिसीव कर उसे कान से लगा लिया। उस तरफ से कुछ देर तक वो कुछ सुनता रहा उसके बाद उसने ये कह कर काल कट कर दिया कि___"अपने सब आदमियों से कहो कि वो सब उन लोगों का पता लगाएॅ। मुझे हर हाल में उन सबका पता चाहिए।"

"क्या बात हुई तुम्हारी अपने उस आदमी से?" प्रतिमा ने पूछा।
"तुम्हारा कहना बिलकुल सही था प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"विराज ने सच में अपने उस दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा का ख़याल रखा हुआ था।"

"आख़िर क्या बताया तुम्हारे आदमी ने?" प्रतिमा ने कहा___"पूरी बात साफ साफ मुझे भी बताओ।"
"मेरा आदमी पवन सिंह के घर पर गया था।" अजय सिंह ने बताना शुरू किया___"किन्तु जब वो पवन ने घर के दरवाजे पर पहुॅचा तो देखा कि वहाॅ बड़ा सा ताला लगा हुआ था। उसके बाद मेरे उस आदमी ने आस पास वालों से पवन और उसके घर वालों के बारे में पूछा तो कुछ लोगों ने उसे बताया कि शाम को पवन के घर के सामने एक एम्बूलेन्स आई थी। उस एम्बूलेन्स में घर के अंदर से कुछ सामान लाकर रखा गया था और फिर उस एम्बूलेन्स में पवन, पवन की विधवा माॅ और उसकी एक बेटी बैठ गईं थी। इन लोगों के साथ दो आदमी और थे। वो दोनो भी उस एम्बूलेन्स में बैठ गए थे। एम्बूलेन्स के आगे ही एक जीप खड़ी थी। उस जीप के चलते ही वो एम्बूलेन्स भी चल पड़ी थी। इसके बाद वो लोग कहाॅ गए इसका किसी को कोई पता नहीं।"

"ओह इसका मतलब उन लोगों को पता था कि तुम्हें देर सवेर ये पता चल ही जाएगा कि विराज मुम्बई से आने के बाद पवन के घर पर ही ठहरा था।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इस लिए, इससे पहले कि उन लोगों तक तुम्हारे आदमी पहुॅचें वो पहले ही वहाॅ से कूच कर गए। ख़ैर, अब तो तुम्हें यकीन आ गया न कि विराज ने ही ये सब किया है?"

"वो सब तो ठीक है डियर।" अजय सिंह के चेहरे पर गहन सोच के भाव थे, बोला___"मैंने मान लिया कि ये सब विराज ने ही किया होगा। मगर सोचने वाली बात है कि ये सब उसने कितना शातिराना ढंग से किया है। पवन और उसकी माॅ बहन को वो वहाॅ से एम्बूलेन्स जैसे वाहन से ले गया। कोई सोच भी नहीं सकता कि एम्बूलेन्स के अंदर कोई मरीज़ नहीं बल्कि ये सब मौजूद हो सकते हैं। मगर यहाॅ पर दो चीज़ें हैं जो समझ में नहीं आ रहीं।"

"कौन सी दो चीज़ें डैड?" शिवा ने चकित भाव से पूॅछा था।
"पहली चीज़ ये कि विराज के पास एम्बूलेन्स कहाॅ से आई?" अजय सिंह ने कहा___"साधारणरूप से यहाॅ पर उसके लिए एम्बूलेन्स का मिलना असंभव नहीं तो नामुमकिन बात तो है ही। दूसरी चीज़ ये कि एम्बूलेन्स के आगे जो जीप थी वो किसकी थी और उसमें कौन बैठा था? ये बात मेरे आदमी को पूछने पर भी किसी ने नहीं बताई कि उस जीप पर कौन कौन बैठा हुआ था? इसका मतलब तो यही हुआ कि पवन सिंह के अलावा भी कोई और है जो विराज की मदद कर रहा है।"

"विराज को एम्बूलेन्स कैसे मिल गई ये तो चलो साधारण बात हो सकती है।" प्रतिमा ने भी मानो अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाए___"हो सकता है कि उसने ज्यादा पैसे देकर एम्बूलेन्स का जुगाड़ कर लिया होगा। मगर सोचने वाली बात तो उस जीप की है। यकीनन ये एक नया प्वाइंट है अजय। तुमने सही पकड़ा। पवन के अलावा भी कोई है जो इस समय विराज की मदद कर रहा है। पर कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति? इस गाॅव में ऐसा कौन है जिसके पास खुद की जीप हो सकती है?"

"तुम्हारा मतलब है कि इस गाॅव में जिसके पास खुद की जीप होगी।" अजय सिंह ने चौंकते हुए कहा___"वही विराज की मदद कर रहा है?"
"हाॅ बिलकुल।" प्रतिमा ने झट से कहा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता?"

"हो तो सकता है डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मगर ये भी तो हो सकता है कि विराज ने वो जीप किराये पर हायर की हुई हो।"
"अगर विराज को अलग से कोई जीप हायर ही करना था तो पवन और उसकी माॅ बहन के साथ खुद भी एम्बूलेन्स से इस गाॅव से निकलने की क्या ज़रूरत थी?" प्रतिमा एक ही साॅस में कहती चली गई___"या तो वो किराये पर ली गई जीप से ही सबको साथ ले जाता या फिर सिर्फ एम्बूलेन्स के द्वारा ही सबको यहाॅ से ले जाता। दो अलग अलग वाहन साथ में रखने का क्या मतलब हो सकता है?"

"बात तो तुम्हारी सही है डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मेरे आदमी ने बताया कि विराज सबको लेकर एम्बूलेन्स में ही बैठ गया था, ऐसा मेरे आदमी के पूछने पर कुछ लोगों ने उसे बताया है। जबकि दूसरी जीप में कौन बैठा था ये पता नहीं चला। इसका मतलब शायद ये भी हो सकता है कि पवन के अलावा जो दूसरा ब्यक्ति विराज की मदद कर रहा है वही उस जीप में था। एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का भी यही मतलब हो सकता है कि वो विराज एण्ड पार्टी को सुरक्षापूर्वक गाॅव से बाहर निकाल देना चाहता था। अब सवाल ये है कि वो जीप वाला दूसरा ब्यक्ति विराज एण्ड पार्टी को लेकर कहाॅ गया हो सकता है? शहर या फिर अपनी ही किसी सुरक्षित जगह पर?"
 
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"सवाल तो ये भी है अजय कि विराज मुम्बई से यहाॅ आया किस लिए था?" प्रतिमा ने कहा___"यहाॅ पर उसका ऐसा क्या ज़रूरी काम था जिसके लिए उसने अपनी जान को भी ख़तरे में डाल दिया? विराज की माॅ गौरी ने उसे यहाॅ आने की इजाज़त कैसे दे दी होगी उसको?"

"संभव है कि वो अभय के बीवी बच्चों को लेने यहाॅ आया हो।" अजय सिंह ने संभावना ब्यक्त की थी।
"अगर उसके आने की यही वजह थी तो वो यहाॅ नहीं बल्कि सीधा अभय की ससुराल जाता।" प्रतिमा ने कहा___"करुणा तो अपने बच्चों के साथ अपने मायके में ही है। विराज सीधा वहीं जाता, और हमें उसके आने का पता भी नहीं चल पाता। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो यहीं आया है। इसका मतलब यही हुआ कि वो जिस किसी भी काम से यहाॅ आया था वो कोई दूसरा ही काम था।"

"अब इसका पता तो खुद विराज ही बता सकता था या फिर उसका दोस्त पवन।" अजय सिंह ने एक नया शिगार सुलगाते हुए कहा___"मेरे आदमी उनकी खोज में लगे हैं। देखते हैं क्या नतीजा सामने आता है? ख़ैर, तब तक हम डिबेट को आगे बढ़ाते हैं।"

"अब कैसी डिबेट अजय?" प्रतिमा के माथे पर बल पड़ता चला गया___"ये बात तो क्लियर हो ही गई न उस सबमें विराज का ही हाॅथ था। उसने ही अपने दोस्त की मदद से वो सब किया था। फिर अब किस बात की डिबेट?"

"अभी तो बहुत कुछ बाॅकी है माई डियर।" अजय सिंह ने शिगार का गहरा कश लिया, बोला___"विचार विमर्ष के लिए और भी कई बातें शेष हैं।"
"अब और क्या बातें शेष हैं?" प्रतिमा ने पूछा।
"अभी तो एक सवाल ऐसा भी है डियर जिसे हम इग्नोर नहीं कर सकते।" अजय सिंह बोला___"जैसा कि हमारी डिबेट पर ये नतीजा निकला कि फैक्ट्री में आग विराज ने ही लगाई या लगवाई हो सकती है। इसमें भी दो बातें हैं, पहली ये कि क्या विराज को ये भी पता था कि फैक्ट्री में कोई गुप्त तहखाना है जिसके अंदर ग़ैर कानूनी चीज़ों का ज़खीरा मौजूद है? अगर हाॅ तो, क्या उसी ने उस ग़ैर कानूनी ज़खीरे को गायब किया या करवाया? या फिर दूसरी बात ये कि इस सबमें किसी और का भी हाॅथ था? क्योंकि सवाल इसी से निकल रहा है कि विराज को ये बात कैसे पता चली कि फैक्ट्री के अंदर कोई गुप्त तहखाना है जिसके अंदर मेरी ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद हैं?"

"तुम कहना क्या चाहते हो अजय?" प्रतिमा ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा था।
"बहुत साफ बात है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"अगर ये मान कर चलें कि विराज मुझसे बदला लेना चाहता है तो उस सूरत में वो मेरी फैक्ट्री में यकीनन आग लगा सकता है और उस आग में फैक्ट्री के अंदर का सब कुछ जल कर ख़ाक़ में मिल जाएगा। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होगा कि इस सबमें मेरा क्या क्या और कितना नुकसान हो जाएगा? बदला लेने के रूप में ये एक नेचुरल बात हो गई। मगर, तहखाने से उन सब चीज़ों के गायब हो जाने से एक नई और सोचपूर्ण बात सामने आती है कि विराज ने उस सबको क्यों गायब किया और उस सबके बारे में उसे पता कैसे चला? मतलब साफ है डियर कि विराज को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि फैक्ट्री के अंदर एक गुप्त तहखाना है और उस तहखाने के अंदर मेरी एक ग़ैर कानूनी दुनियाॅ मौजूद है। अब सवाल ये उठता है कि विराज को इस सबका कैसे पता था? क्योंकि वो तो कभी फैक्ट्री गया ही नहीं था, दूसरी बात वो मौजूदा वक्त में यहाॅ था भी नहीं तो कैसे उसे इतनी गुप्त बात का पता चल गया? इसका मतलब तो यही हुआ कि कोई ऐसा ब्यक्ति उसे मिला जिसने उसे फैक्ट्री के अंदर की इतनी बड़ी गुप्त बात बताई। वरना क्या उसे कोई ख़्वाब चमका था जिसमें उसने ये सब देख लिया होगा?"

"यकीनन तुम्हारी इस बात में प्वाइंट है।" प्रतिमा ने प्रभावित होने वाले भाव से कहा___"ये एक ज़बरदस्त प्वाइंट है अजय। फैक्ट्री में आग लगने वाले हादसे की कड़ियाॅ ऐसी हो सकती हैं____ विराज को सब कुछ पहले से ही किसी के द्वारा पता चल चुका था कि फैक्ट्री के अंदर मौजूद तहखाने में तुम्हारे द्वारा ग़ैर कानूनी धंधा भी किया जाता है। इस लिए उसने उस हिसाब से ही प्लान बनाया। मतलब ये कि फैक्ट्री में आग लगाने से पहले ही उसने तहखाने से वो सब चीज़ें निकाल कर अपने कब्जे में की, उसके बाद उसने तहखाने में टाइम बम फिट किया। कुछ टाइम बम उसने फैक्ट्री के अंदर उन जगहों पर भी फिट किये जहाॅ पर कपड़ों का स्टाॅक था और मशीनें थी। सारे टाइम बमों के फटने का टाइम एक ही था। सारी क्रिया करने के बाद वो फैक्ट्री के अंदर से बड़ी ही आसानी से बाहर निकल गया। उसके बाद क्या हुआ ये सबको पता ही है।"

"बिलकुल यही हुआ था।" अजय सिंह ने कहा___"अब सवाल यही है कि ऐसा वो कौन शख्स था जिसने विराज को तहखाने से संबंधित जानकारी दी? तहखाने के बारे में मेरे अलावा किसी को भी पता नहीं था। इस बात के पता होने का तो सवाल ही नहीं उठता कि उसके अंदर क्या मौजूद है।"

"कोई तो ऐसा ब्यक्ति ज़रूर था अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"जिसने विराज को इतनी बड़ी गुप्त जानकारी दी। एक मिनट अजय.......जिस दिन फैक्ट्री में वो हादसा हुआ था उसी दिन या रात को तुम्हारा भूतपूर्व पार्टनर विदेश जाने के लिए प्लेन में बैठा था। एक बार इस बारे में फिर से सोचो डियर, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सक्सेना को पता चल गया हो कि फैक्ट्री के अंदर तहखाना भी है और उस तहखाने में तुम क्या धंधा करते हो? ऐसा बिलकुल हो सकता है अजय, सक्सेना के पास दूसरी कोई ठोस वजह नहीं थी यहाॅ से रफूचक्कर हो जाने की। वो तो तुम्हारा जिगरी यार भी था, ऐसा जिगरी कि उससे हमारे बड़े गहरे संबंध थे। उसकी बीवी तौम्हारे नीचे और तुम्हारी ये बीवी यानी कि मैं उसके नीचे। हम सब एक साथ कितना इन सबमें एन्ज्वाय करते थे। ऐसे मज़ेदार रिश्तों को अनायास ही छोंड़ कर विदेश चले जाने का दूसरा और क्या मतलब हो सकता है भला?"

"तुम ये कहना चाहती हो कि सक्सेना को फैक्ट्री के अंदर मौजूद तहखाने से संबंधित सबकुछ पता था।" अजय सिंह बोला___"उसके बाद वो मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए कोई जुगत लगाने लगा। और फिर संयोग से उसकी मुलाक़ात विराज से हुई। उसने विराज को सब कुछ बता दिया और फिर वह मुझसे अपना हिसाब किताब करके यहाॅ से रफूचक्कर हो गया?"

"मेरा मतलब यकीनन यही है डियर हस्बैण्ड मगर इसमें बात इस तरह नहीं हुई जैसी कि तुमने सोच कर बयां की है।" प्रतिमा ने कहा___"बल्कि ऐसी हुई है, मेरी थ्योरी ये है ____विराज को तुमसे किसी भी तरह से बदला लेना था ये एक सच बात है। मगर उसने सोचा कि तुमसे अपना बदला लेने की उसमें क्षमता नहीं है। इस लिए उसने दिमाग़ लगाया। उसने तुमको अंदर से कमज़ोर करने का प्लान बनाया। सबसे पहले उसने अपनी बहन के साथ मिल कर विदेशी बिजनेस मैन का गेटअप बनाया और फिर तुमसे वो डील की। बाद में डिलीवरी के वक्त वो गायब हो गया। इसका नतीजा ये हुआ कि भारी मात्रा में तैयार किया गया कपड़ा बिक नहीं पाया और जो तुमने उसे तैयार करवाने में पैसा लगाया वो वसूल नहीं हो पाया। इससे तुम्हें काफी नुकसान हुआ। इसका एक नुकसान ये भी हुआ कि बिजनेस के क्षेत्र में इस तरह किसी विदेशी के हाॅथों धोखा खा जाने से तुम्हारी रेपुटेशन पर इसका बुरा असर पड़ गया। उसके बाद फैक्ट्री में आग लग जाने से जो भारी नुकसान हुआ उससे तुम पूरी तरह हिल गए। इतना कुछ होने के बाद भी तुम ये नहीं समझ पाए कि ये सब तुम्हारे क्यों और कौन कर रहा है? मगर विराज ने अपनी तरफ से तुम्हारे लिए एक क्लू भी छोंड़ा, वो क्लू ये था कि तहखाने के अंदर से उसने तुम्हारी सारी ग़ैर कानूनी चीज़ें गायब कर दी। यहाॅ उसने तुम्हें ये जता दिया कि ऐसा कैसे और कौन कर सकता है? ये अलग बात है कि ये बात तुम आज समझे हो। ख़ैर, इस बार तो वो खुद ही यहाॅ आया और तुम्हारे इतने सारे आदमियों को आश्चर्यजनक रूप से पता नहीं कहाॅ और कैसे गायब कर दिया?"

"ओह वैरी गुड।" अजय सिंह मुस्कुराया___"यकीनन इस थ्यौरी में दम है डियर। अब ये भी बता दो कि विराज ने तहखाने से मेरी वो सब ग़ैर कानूनी चीज़ें क्यों गायब की? उनसे उसे क्या फायदा हो सकता है भला?"
"कमाल करते हो अजय।" प्रतिमा चौंकी___"इतनी सी बात का मतलब पूछते हो मुझसे। खुद सोचो कि विराज ने वो सब क्यों गायब किया होगा? सीधी सी बात है अजय, वो सब चीज़ें तुम्हारे काले कारनामों का पुख्ता सबूत हैं। विराज अगर चाहे तो आज तुम्हें उन सब चीज़ों के आधार पर जेल पहुॅचवा सकता है। तुम्हें ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि ग़ैर कानूनी धंधा करने के जुर्म में कानून तुम्हें कितनी बड़ी सज़ा सुना सकता है? कहने का मतलब ये कि तुम्हारी स्वतंत्रता विराज के हाॅथों में है। वो अगर चाहे तो तुम कानून की गिरफ्त से दूर रहोगे और अगर वो चाहे तो आज इसी वक्त तुम कानून के शिकंजे में फॅस जाओ। मगर चूॅकि अब तक उसने ऐसा कुछ नहीं किया है इस लिए अभी तुम कानून की पहुॅच से बाहर हो। मगर इसका मतलब ये नहीं है भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा। संभव है कि विराज किसी ऐसे वक्त पर ये सब करे जब उसे लगे कि यही सही वक्त है। दैट्स इट।"

प्रतिमा की ये बातें सुन कर अजय सिंह के समूचे जिस्म में झुरजुरी सी दौड़ गई। बगल से ही सोफे पर बैठे शिवा की ऑखों के सामने उसके बाप के दोनो हाॅथ कानून की हथकड़ी में बॅधे नज़र आए। इस दृष्य के घूमते ही शिवा की धड़कने एकाएक ही बढ़ चली थी। अभी ये सब ये लोग सोच ही रहे थे कि तभी एक बार फिर से अजय सिंह का मोबाइल बज उठा। हड़बड़ा कर अजय सिंह ने मोबाइल की काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

".........।" उधर से कुछ देर तक कुछ कहा गया। जिसे सुन कर अजय सिंह के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे। उधर की बातें सुनने के बाद अजय सिंह ने ये कह कर फोन रख दिया कि____"ठीक है, तुम अपने कुछ आदमियों को गुनगुन रेलवे स्टेशन जाने को बोल दो और बाॅकी के लोग आस पास के क्षेत्र की अच्छे से छानबीन करते रहो।"

"क्या कहा तुम्हारे आदमी ने?" अजय सिंह के फोन रखते ही प्रतिमा ने पूछा था।
"उसने जो कुछ भी मुझे बताया है।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"उसे जान कर मुझे यकीन नहीं हो रहा है प्रतिमा।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"किस बात का यकीन नहीं हो रहा तुम्हें?"

प्रतिमा के पूछने पर अजय सिंह ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि चेहरे पर गंभीरता लिए उसने एक नया शिगार सुलगाया और दो तीन जल्दी जल्दी कश लेने के बाद उसने नाॅक व मुह से ढेर सारा धुआॅ उगला। प्रतिमा और शिवा दोनो ही उसके मुख से जवाब सुनने के लिए बेचैन से होने लगे थे। किन्तु अजय सिंह ने शिगार पी लेने के बाद भी कोई जवाब नहीं दिया। वो किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आया। प्रतिमा उसके चेहरे पर इस तरह सोच के भाव देख कर चौंकी। उसने अजय सिंह को आवाज़ देकर सोच के सागर से निकाला। हक़ीक़त की दुनियाॅ में आकर अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और एक झटके से सोफे पर से उठ कर खड़ा हो गया। उसने शिवा और प्रतिमा दोनो को हवेली चलने को कहा और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया। दोनो माॅ बेटा भौचक्के से देखते रह गए थे अजय सिंह को।
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उधर रितू दीदी के फार्महाउस पर!
सुबह हुई और एक नये दिन तथा एक नये जीवन की शुरूआत हुई। सबके प्यार ने और सबके समझाने का असर ये हुआ था कि पिछले दिन की अपेक्षा आज मेरी हालत में काफी हद तक सुधार था। कल तो मैं सदमे में ही डूबा हुआ था। किसी से कोई मतलब ही नहीं था और ना ही किसी से कोई बात करने का दिल कर रहा था। मगर आज मैं काफी हद तक नार्मल था।

जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा मेरे दोनो तरफ मुझसे छुपकी हुई मेरी दोनो बहनें सुकून से सो रही थी। उन दोनो के खूबसूरत तथा मासूम से चेहरों को देख कर ही मेरा मन खुश सा हो गया। वो दोनो मुझसे ऐसे छुपकी हुई थी मानो उन्हें डर हो कि मैं उन्हें छोंड़ कर कहीं दूर चला जाऊॅगा। मैं काफी देर तक उन दोनो को एकटक देखता रहा। आशा दीदी की तो ख़ैर बात ही अलग थी किन्तु रितू दीदी की बात सबसे जुदा थी। वो इस लिए क्योंकि बचपन से लेकर अब तक मैं उनके मुख से राज या भाई सुनने को तरस गया था। वो मुझे देखना तक गवाॅरा नहीं करती थी बात करने की तो बहुत दूर की बात है। मगर आज मेरी वही रितू दीदी मुझसे छुपकी हुई सो रही थी। उनके दिल में मेरे लिए बेपनाह प्यार व स्नेह था।

उन्हें इस तरह सुकून से सोते देख जाने क्यों मेरी ऑखों में ऑसू भर आए। मेरे दिल में दर्द की एक तेज़ लहर सी दौड़ गई। अभी मैं इस लहर से ब्यथित हुआ ही था कि सहसा रितू दीदी के सम्पूर्ण जिस्म में हरकत हुई और देखते ही देखते उनकी ऑखें खुल गईं। उनकी नज़र सबसे पहले मुझ पर ही पड़ी। मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही वो बेचैन सी नज़र आने लगीं। उन्होंने अपना हाॅथ बढ़ा कर मेरे चेहरे को सहलाया और सिर को ना में हिलाते हुए मुझे इशारा किया कि मैं दुखी न होऊॅ।

इधर आशा दीदी की भी ऑखें खुल गई थी। सिर को ऊपर की तरफ उठा कर उन्होंने मुझे देखा और मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही उन पर भी वही प्रतिक्रिया हुई जो रितू दीदी पर हुई थी। दोनो ने एक साथ ऊपर की तरफ खिसक कर मेरे माथे पर हल्के से चूमा। मैं अपनी दोनो बहनों का ये प्यार देख कर अंदर ही अंदर गदगद सा हो गया। मुझे एक अलग ही तरह का एहसास हुआ। ऐसा लगा कि अब मैं यहाॅ पर अकेला नहीं हूॅ बल्कि यहाॅ भी मेरे अपने हैं, जो मुझे इस हद तक प्यार करते हैं।

"तू इस तरह अब कभी दुखी मत होना राज।" रितू दीदी ने गंभीरता से कहा___"मैं मानती हूॅ कि अभी जो कुछ भी हुआ उससे तुझे गहरा सदमा लगा है। मगर तुझे खुद को सम्हालना होगा मेरे भाई। तू मुझे भाई के रूप में मिल गया है इस लिए मैं चाहती हूॅ कि मेरा भाई हमेशा खुश रहे। तेरे पास किसी भी प्रकार का दुख दर्द न आए। मैने भी ठान लिया है कि मैं तुझे कभी भी दुखी नहीं होने दूॅगी, और इसके लिए मैं किसी भी हद तक गुज़र जाऊॅगी।"

"रितू सही कह रही है राज।" आशा दीदी ने कहा__"अब से हम दोनो बहनें तुझे कभी भी दुखी नहीं होने देंगे। उसके लिए चाहे हमें जो भी करना पड़े हम करेंगे।"
"इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी दीदी।" मैने हल्के से मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि जिसके पास आप जैसी इतना प्यार करने वाली दो दो बहनें हों उसको कोई दुख तक़लीफ कैसे हो जाएगी? आप चिन्ता मत कीजिए धीरे धीरे सब ठी हो जाएगा।"

"ये हुई न बात।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"मुझे पता है कि मेरा स्वीट सा भाई कितना समझदार है। ख़ैर, चल अब तू फ्रेश हो ले। हम दोनो भी फ्रेश हो जाते हैं, उसके बाद नास्ता करेंगे साथ में। मुझे भी थाने जाना पड़ेगा न।"
"मुबारक हो दीदी।" मैने कहा___"आप पुलिस ऑफीसर बन गई हैं। मुझे पता है आपका शुरू से ही ये सपना था कि आप एक दिन पुलिस ऑफिसर बनो। इस लिए इसके लिए आपको ढेर सारी बॅधाईयाॅ दीदी।"

"थैंक्स राज।" दीदी ने कहा___"लेकिन मेरे माॅम डैड को मेरा पुलिस ऑफीसर बनना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा है। आए दिन इस बारे में कोई न कोई बात होती रहती है घर में। मैने भी फैंसला कर लिया है कि अब ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दूॅगी।"

"अरे ऐसा क्यों दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा___"नहीं नहीं आप ऐसा बिलकुल नहीं करेंगी। पुलिस ऑफीसर बनना आपका ख़्वाब था और जब ये ख़्वाब पूरा हो ही गया है तो इसे इस तरह छोड़ कर अंदर ही अंदर हमेशा के लिए दुखी रहने वाला काम मत कीजिए। रही बात बड़े पापा और बड़ी माॅ की तो मुझे पता है वो ऐसा क्यों चाह रहे हैं?"

"अच्छा क्या पता है तुझे?" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर पूछा___"ज़रा मैं भी तो सुनूॅ।"
"जिनके हाॅथ खून से रॅगे हों।" मैने कहा___"और जो जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखता हो, वो तो पुलिस और कानून से डरेगा ही। आप तो वैसे भी एक तेज़ तर्रार पुलिस ऑफीसर हैं। उन्हें भी पता है कि आपको अगर ये पता चल जाए उनके डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं तो आप सेकण्ड भर का भी समय नहीं लगाएॅगी उन्हें कानून की गिरफ्त में लेने में। इस लिए वो नहीं चाहते हैं कि आप पुलिस की नौकरी करें।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी ही नहीं बल्कि आशा दीदी भी बुरी तरह उछल पड़ी थी। रितू दीदी मुझे इस तरह देख रही थीं जैसे मैं कोई अजूबा हूॅ।

"तू ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकता है कि मेरे डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं?" रितू दीदी ने चकित भाव से पूछा था।
"मुझे उनके बारे में हर चीज़ पता है दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और मैं ये भी जानता हूॅ कि आप भी अपने डैड के बारे में बहुत कुछ जान चुकी हैं।"

"क्या मतलब????" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फैल गईं___"मैं बहुत कुछ क्या जान चुकी हूॅ?"
"जाने दीजिए दीदी।" मैने पहलू बदलने की गरज़ से कहा___"उन सब बातों को ज़ुबाॅ पर लाने का कोई मतलब नहीं है। आप ये पूछिये कि मुझे कैसे पता कि आप भी हुत कुछ जानती हैं?"

"हाॅ हाॅ बता न राज।" रितू दीदी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था, बोली___"मैं जानना चाहती हूॅ कि ये सब तुझे कैसे पता है?"
"बड़ी सीधी सी बात है दीदी।" मैने कहा___"सबसे पहले तो यही कि आपका मेरे प्रति इतना प्यार ही ये ज़ाहिर कर देता है कि आपको उनकी असलियत के बारें में कुछ तो ऐसा पता चला ही जिसके तहत आपके दिल में मेरे प्रति प्यार जाग गया। दूसरी बात ये कि आप इस फार्महाउस में नैना बुआ के साथ रह रही हैं। इससे साबित हो जाता है कि आपको अपने माॅम डैड के बारे में कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका है। वरना नैना बुआ को साथ लिए यहाॅ रहने का क्या कारण हो सकता है? तीसरी बात, मेरे दोस्त पवन से कह कर मुझे विधी से मिलाने के लिए मुम्बई से बुलाना। पवन और विधि के द्वारा भी आपको कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका होगा जिससे आपको ये लगने लगा कि मैं और मेरी माॅ बहन इतने बुरे नहीं हो सकते जितना आपको बताया गया था बचपन से।"

रितू दीदी मेरी ये बातें सुन कर हैरान रह गईं। फिर सहसा उनके चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आए। होठों पर हल्की सी मुस्कान भी फैल गई।
"यकीनन तूने बड़ी खूबसूरती से इन सब बातों का अंदाज़ा लगाया है राज।" फिर उन्होंने कहा___"और ये सच है कि मुझे अपने माॅम डैड की असलियत के बारे में पता चल चुका है। किन्तु अभी भी कुछ बातें हैं जिनका मुझे शायद पता नहीं है।"

"डोन्ट वरी दीदी।" मैने कहा___"जब इतना कुछ पता चल गया है तो बाॅकी का भी आपको पता चल ही जाएगा।"
"चल ठीक है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाया___"मैं तो बस इस बात से ही खुश हूॅ कि मुझे मेरा वो भाई मिल गया है जो सच में मुझे अपनी दीदी मानता है और मेरी इज्ज़त करता है। आने वाले समय में क्या होने वाला है ये तो वक्त ही बताएगा। मैं बस ये चाहती हूॅ कि जितने दिन तू यहाॅ है उतने दिन तक तुझ पर किही भी तरह के ख़तरे को न आने दूॅ।"

"आप फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपका ये भाई कोई दूध पीता बच्चा नहीं है जिसे कोई भी चोंट पहुॅचा देगा। इतना तो अब मुझमें सामर्थ है कि मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकूॅ।"
"हाॅ मुझे पता है।" रितू दीदी हॅस कर बोली___"मुझे पता है कि मेरे भाई ने दो मिनट के अंदर मेरे डैड के उतने सारे आदमियों का खात्मा कर दिया था।"

"वो तो बस हो गया दीदी।" मैने कहा___"पर आपके सामने तो कुछ भी नहीं हूॅ मैं। आपने भी तो मेरी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि आप मेरे लिए इतना कुछ कर सकती है।"
"तेरे लिए तो अब कुछ भी कर सकती हूॅ मेरे भाई।" दीदी की आवाज़ भारी हो गई___"बचपन से लेकर अब तक मैने तेरे साथ क्या किया है ये सोच कर ही मुझे खुद से घृणा होने लगती है। इस लिए अब मैं तेरे लिए और अपने भाई के लिए कुछ भी करूॅगी।"

मैने देखा कि ये सब कहते हुए दीदी की ऑखों में ऑसू आ गए थे इस लिए मैने उन्हें खुद से छुपका लिया। वो खुद भी मुझसे किसी जोंक की तरह चिपक गई थी।

"तुम दोनो का हो गया हो तो मेरा भी कुछ ख़याल कर लो।" सहसा आशा दीदी ने कहा___"मुझे तो भुला ही दिया तुम दोनो ने।"
"क्या आप सोच सकती हैं दीदी कि हम आपको भुला देंगे?" मैने आशा दीदी को खुद से छुपकाते हुए कहा था।

ऐसे ही कुछ देर तक हम तीनो भाई बहन एक दूसरे से छुपके रहे फिर हम तीनो अलग हुए। रितू दीदी ने मुझे फ्रेश हो जाने का कहा और खुद भी फ्रेश होने के लिए आशा दीदी को लेकर कमरे से बाहर निकल गईं। उन दोनो के जाने के बाद मैं कुछ देर यूॅ ही बेड पर लेटा किसी सोच में डूबा रहा फिर मैं उठ कर बाथरूम में चला गया।

नास्ते की टेबल पर सब कोई साथ में ही बैठ कर नास्ता कर रहा था। किचेन में हरिया काका की बीवी बिंदिया और पवन की माॅ ने नास्ता तैयार किया था। मैं अपनी नैना बुआ से ठीक तरह से मिला। उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर बहुत प्यार दिया और हमेशा खुश रहने की दुवाएॅ दी।

रितू दीदी ने बताया कि आज करुणा चाची भी बच्चों के साथ यहीं आ रही हैं। उनको सुरक्षा पूर्वक यहाॅ पर लाने की जिम्मेदारी खुद रितू दीदी ने ही ली। हलाॅकि मैने उन्हें समझाया भी कि आप आराम से ड्यूटी जाइये, मैं और आदित्य करुणा चाची को उनके बच्चों के साथ सुरक्षित यहाॅ ले आएॅगे, मगर दीदी नहीं मानी। इस लिए मैने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया। दीदी ने मुझे यहीं पर आराम करने की सलाह दी थी। हलाॅकि मैं चाहता था कि मैं एक बार विधी के घर जाऊॅ और उसके माॅम डैड का हाल चाल देख लूॅ मगर रितू दीदी ने कहा कि वो सब देख सुन लेंगी।

नास्ता करने के बाद रितू दीदी अपनी पुलिस जिप्सी में बैठ कर थाने चली गईं। नैना बुआ, आशा दीदी और पवन की माॅ ये तीनो एक साथ ही बातें करने में लग गईं। जबकि मैं पवन और आदित्य फार्महाउस के बाहर की तरफ आ गए। मैने देखा कि फार्महाउस काफी लंबा चौड़ा था। बाहर फ्रंट गेट पर दो बंदूखधारी खड़े थे। गेट के बगल से ही एक छोटी सी चौकी बनी हुई थी। जो शायद उन दोनो बंदूखधारियों के आराम करने के लिए थी।

हम तीनो एक साथ बाॅई तरफ बढ़ गये। उस तरफ एक सुंदर सा पेड़ था जिसके नीचे हरी हरी घास उगी हुई थी तथा पेड़ के पास ही स्टील की बड़ी बड़ी दो तीन बेंच रखी हुई थी बैठने के लिए। हम तीनो जाकर उन बेंचों पर बैठ गए। कल विधी वाले मैटर के बाद से हम तीनो कुछ बुझे बुझे से थे। मुझे रह रह कर विधी के बारे में वो सब याद आ जाता था जिसकी वजह से मेरा दिल दुखने लगता था।

"वैसे विराज।" सहसा आदित्य ने कहा___"हम यहाॅ से कब निकलने वाले हैं? ये जो कुछ भी हुआ वो यकीनन बहुत दुखद हुआ है मगर ये भी सच है दोस्त कि हमें जीवन में आगे बढ़ना ही होता है। ये सब तुम्हीं ने मुझसे कहा था न? इस लिए दोस्त विधी की खूबसूरत यादों को दिल में ही दबा के रखो और आगे बढ़ो।"

"मैं जानता हूॅ आदित्य।" मैने भारी मन से कहा___"मुझे पता है कि इस सबको लेकर बैठ जाने का कोई मतलब नहीं निकलने वाला है। मगर एक दो दिन मैं यहीं रह कर खुद को और अपने दिल को शान्त कर लेना चाहता हूॅ। मैं नहीं चाहता कि मेरे चेहरे पर छाई उदासी या किसी दुख के भाव को देख कर मुम्बई में मेरी माॅ और बहन को कुछ पता चल जाए। वो मुझे किसी भी कीमत पर दुखी नहीं देख सकती हैं।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"पर ये भी तो सोचो कि यहाॅ पर ज्यादा दिन तुम्हारा रुकना ठीक नहीं है। तुम्हारी जान को हर वक्त ख़तरा बना रहेगा।"
"मैं किसी ख़तरे से नहीं डरता आदित्य।" सहसा मेरे चेहरे पर कठोरता आ गई___"पहले मुझे कुछ पता नहीं था और मैं किसी दूसरे उद्देश्य से यहाॅ आया था इस लिए मैं अजय सिंह या उसके आदमियों से उलझना नहीं चाहता था। मगर अब मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है। मैं भी तो देखूॅ कि अजय सिंह कैसे मेरा बाल बाॅका करता है?"

"ये सब तुम आवेश में कह रहे हो दोस्त।" आदित्य ने कहा___"जबकि तुम भूल रहे हो कि इस वक्त तुम्हारी कई कमज़ोरियाॅ तुम्हारे साथ साथ हैं। अगर तुम अकेले होते तो मान सकता था कि तुम धड़ल्ले के साथ उन सबका मुकाबला कर लेते मगर इस वक्त तुम अकेले नहीं हो। पवन और उसकी माॅ बहन भी तुम्हारे साथ हैं और तुम्हारे अभय चाचा के बीवी बच्चे भी तुम्हारे साथ तुम्हारी कमज़ोरी के रूप में जुड़ जाएॅगे। उस सूरत में तुम खुद की सुरक्षा करोगे या उन लोगों की जो इस वक्त तुम्हारे साथ जुड़ गए हैं?"

"आदित्य सही कह रहा है राज।" पवन ने भी हस्ताक्षेप किया___"इस वक्त तुम किसी से उलझने की पोजीशन में नहीं हो। दूसरी बात ये भी है कि मान लो अगर तुम्हारे बड़े पापा को ये पता चल गया कि तुम्हारे हर काम में तुम्हारी मदद रितू दीदी भी कर रही हैं तो सोचो क्या होगा? अरे रितू दीदी के लिए भी उनका ख़तरा हो जाएगा। भला अजय चाचा ये कैसे बरदास्त कर पाएॅगे कि उनकी बेटी उनके सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही है? जिस तरह का कैरेक्टर तुम्हारे बड़े पापा का है उससे यही बात सामने आती है कि वो ये सब जानने के बाद अपनी बेटी को किसी भी सूरत में माफ़ नहीं करेंगे।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"मैं पवन की इस बात से पूरी तरह सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"तुम अपनी वजह से भला अपनी रितू दीदी की जान को भी संकट में कैसे डाल सकते हो? उनके हित के बारे में सोचना तुम्हारा सबसे बड़ा फर्ज़ होना चाहिए दोस्त। उन्होंने तुम्हारी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है?"

"कभी कभी वक्त और हालात के हिसाब से भी कोई फैंसला लेना चाहिए राज।" पवन ने कहा___"विधी के जाने का दुख हम सबको है मगर खुद विधी भी ये नहीं चाहेगी कि तुम पर या तुम्हारी वजह से किसी और पर कोई ऐसा संकट आए। इस लिए मैं यही कहूॅगा कि जितना जल्दी हो सके हमें यहाॅ से निकल जाना चाहिए। मैं तुम्हें जंग के लिए नहीं रोंक रहा भाई, वो तो तसल्ली से और सबको सुरक्षित करने के बाद भी की जा सकती है।"

"ठीक है यार।" मैने उन दोनो की बातों पर विचार करते हुए कहा___"जैसा तुम दोनो कहोगे मैं वैसा ही करूॅगा। हम सब कल ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेंगे। सबकी टिकटों का इंतजाम करवाता हूॅ मैं।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"सबकी टिकटों का इंतजाम हो गया है। मैने कल ही सर(जगदीश ओबराय) से बात की थी। उन्हें मैने यहाॅ कुछ बातें संक्षेप में बताई थी, और ये भी कहा था कि वो हम सबकी टिकटों का इंतजाम करवा दें। आज सुबह मेरे मोबाइल पर उन्होंने सबकी टिकट की पिक व्हाट्सएप पर भेज दी हैं।"

"चलो ये अच्छा हुआ।" मैने कहा___"लेकिन एक बात अभी भी सोचने वाली है। वो ये कि देर सवेर अजय सिंह को ये पता चल भी सकता है कि रितू दीदी मेरी हर तरह से मदद कर रही थी। इस लिए अगर ऐसा हुआ तो रिते दीदी के लिए भी ख़तरा हो सकता है।"

"तो तुम अब क्या चाहते हो?" आदित्य ने पूछा।
"मैं तो यही चाहूॅगा यार कि रितू दीदी पर कोई संकट न आए।" मैने कहा___"हलाॅकि वो एक पुलिस ऑफिसर हैं और किसी भी ख़तरे से निपटने के लिए वो खुद ही सक्षम हैं मगर फिर भी उन्हें यहाॅ अकेला छोंड़ देने का मेरा दिल नहीं करता है। दूसरी बात उनके साथ नैना बुआ भी तो हैं। रितू दीदी के साथ वो भी तो अजय सिंह के लपेटे में आ सकती हैं।"

"मेरे ख़याल से इस में इतना सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है राज।" पवन ने कहा___"रितू दीदी के रहते ये सब हो जाने का चान्स बहुत ही कम है। फिर भी अगर उन्हें लगेगा कि उन दोनो पर ख़तरा है तो वो अपनी सुरक्षा के लिए अपने आला अधिकारियों से पुलिस प्रोटेक्शन भी ले सकती हैं। मुझे यकीन है कि अजय चाचा उस सूरत में उनका और नैना बुआ का कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।"

"यस पवन इज राइट।" आदित्य ने कहा___"इस लिए तुम्हें रितू दीदी और नैना बुआ की फिक्र नहीं करनी चाहिए।"
"ठीक है भाई।" मैने गहरी साॅस ली___"तो फाइनल हो गया कि हम सब कल यहाॅ से मुम्बई के लिए निकल लेंगे।"

मेरी इस बात से पवन और आदित्य मुस्कुरा कर रह गए। मैंने इधर उधर नज़रें घुमाई तो मेरी नज़र फार्महाउस के गेट पर खड़े दोनो बंदूखधारियों पर पड़ी। वो दोनो हॅस हॅस के कुछ बातें कर रहे थे। एक ब्यक्ति दूसरे वाले की पीठ भी ठोंक रहा था। मुझे समझ न आया कि ये दोनो ऐसी कौन सी बात पर हॅस रहे हैं और दूसरा उसकी पीठ ठोंक रहा है।

ख़ैर, कुछ देर तक हम वहीं बेंच पर बैठे रहे। उसके बाद हम तीनो उठे और वापस अंदर की तरफ बढ़ने लगे। अभी मैं दो चार क़दम ही आगे बढ़ा था कि उन दो बंदूखधारियों में से एक उससे कुछ बोला और फिर एक बार हम तीनों की तरफ सरसरी नज़र से देखा। उसके बाद वो मुस्कुराते हुए ही फार्महाउस के बाएॅ साइड बने एक अलग दरवाजे की तरफ बढ़ गया। मेरी नज़र बराबर उसी पर थी, वो आदमी उस दरवाजे के पास पहुॅच कर एक बार पहले वाले आदमी की तरफ मुस्कुरा कर देखा उसके बाद दरवाजे के अंदर दाखिल हो गया। मेरे मन में उसकी इन सब क्रियाओं से संदेह पैदा हो गया।

मुख्य द्वार के पास पहुॅचते ही मैने पवन और आदित्य को अंदर जाने का कह दिया और खुद बाहर ही थोड़ी देर बैठने का बोल कर वहीं खड़ा रह गया। मेरे कहने पर पवन और आदित्य दोनो ने मुझे अजीब भाव से देखा तो मैने अपनी पलकें झपका कर उन्हें तसल्ली रखने का इशारा किया। मेरे इस इशारे से वो दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। उनके जाने के कुछ देर बाद ही मैंने पहले वाले की तरफ देखा तो वो मुझे गेट के पास बनी चौकी की तरफ मुड़ कर हाॅथों में खैनी मलता नज़र आया। मैं बड़ी तेज़ी से उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया जिस तरफ वो दूसरा आदमी गया था।

दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने आहिस्ता से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला तो वो हल्की सी आवाज़ के साथ खुल गया। दरवाजे के खुलते ही मैं उसके अंदर दाखिल हो गया। अंदर आते ही मैने इधर उधर देखा तो मुझे दाईं तरफ एक गैलरी दिखी तो मैं उस गैलरी में आगे की तरफ बढ़ चला। कुछ ही दूरी पर मुझे एक कमरा नज़र आया जिसका दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैं उस खुले हुए दरवाजे के पास पहुॅच कर उसके खुले हुए भाग से अंदर की तरफ का मुआयना किया और फिर दरवाजे को खोल कर अंदर की तरफ दाखिल हो गया।

इस कमरे में मध्यम सी रोशनी थी। बाईं तरफ एक ऐसा दरवाजा नज़र आया जैसा कि वो किसी ऐसे वोल्ट का हो जिसके अंदर सरकार का बहुत सारा गोल्ड रखा गया हो। ये देख कर मेरे चेहरे पर नासमझने वाले भाव उभरे। उत्सुकतावश मैं उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने ध्यान से उस दरवाजे को देखा तो पता चला कि ये दरवाजा किसी मोटे लोहे से बना बहुत ही मजबूत दरवाजा है। किन्तु मैने देखा कि एक ही तरफ खुलने वाले उस दरवाजे पर भी हल्की सी झिरी थी। इसका मतलब वो आदमी जो अंदर आया था वो इसके अंदर ही गया है।

मेरा दिल ने अनायास ही किसी अंजानी आशंकावश ज़रा तेज़ी से धड़कना शुरू कर दिया था। मैने उस झिरी पर अपने कान सटा दिये। मैं अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था मगर मैं उस वक्त चौंका जब अंदर से किसी के ज़ोर से चीखने की आवाज़ आई। अंदर की तरफ किसी चीख़ की आवाज़ से मेरा दिमाग़ घूम गया। मैंने बिना कुछ सोचे समझे दरवाजे को हाथ बढ़ा कर खोल दिया और अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि अचानक ही मैं एकदम से रुक गया। कारण दरवाजे के अंदर तीन फुट की दूरी पर ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जो कि नीचे की तरफ जा रही थी। इसका मतलब ये कोई तहखाना था।

इस फार्महाउस पर किसी तहखाने के मौजूद होने का देख कर ही मैं सोच में पड़ गया। ख़ैर, मैने खुद को सम्हाला और नीचे की तरफ जा रही सीढ़ियों पर उतरता चला गया। नीचे तहखाने में एक अलग ही नज़ारा दिखा मुझे। जिसे देख कर मैं भौचक्का सा रह गया था।
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उस वक्त दोपहर के एक बज रहे थे जब रितू अपनी पुलिस जिप्सी में बैठी हवेली पहुॅची थी। यहाॅ पर वो आना तो नहीं चाहती थी किन्तु वो ये नहीं चाहती थी कि उसके न आने से उसके माॅम डैड उसके बारे में कोई अलग धारणा बना बैठें। वो इस बात को बखूबी समझती थी कि बहुत जल्द ऐसा कुछ होने वाला है जिससे हवेली का हर ब्यक्ति दहल जाएगा। वो आने वाले उस समय के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर चुकी थी।

जिप्सी से उतर कर रितू हाॅथ में पुलिसिया रुल लिए मुख्य द्वार की तरफ बढ़ चली। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने बंद दरवाजे को उसकी कुंडी से पकड़ कर बजाया। कुछ ही देर में दरवाजा खुला तो उसे अपने सामने शिवा खड़ा नज़र आया। शिवा पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे मगर तुरंत ही उसने उन भावों को दबा कर दरवाजे के अंदर की तरफ बढ़ गई।

कुछ ही पलों में वो ड्राइंगरूम में पहुॅच गई। ड्राइंगरूम में इस वक्त अपने डैड अजय सिंह को बैठे देख वो मन ही मन चौंकी। बगल के सोफे पर प्रतिमा भी बैठी थी। रितू ने खुद को एकदम से नार्मल दर्शाते हुए एक अलग सोफे पर बैठ कर अजय सिंह की तरफ देखा, फिर बोली__"कैसे हैं डैड? आज आप फैक्ट्री नहीं गए?"

"हाॅ वो आज ज़रा थोड़ा लेट ही जाना था न।" अजय सिंह ने कहा___"इस लिए सुबह नहीं गया। ख़ैर, छोड़ो ये बताओ तुम्हें भी हमारी कुछ ख़ैर ख़बर रहती है कि नहीं?"
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं डैड?" रितू ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा___"भला आपकी ख़ैर ख़बर क्यों नहीं होगी मुझे?"

"अब ये तो तुम ही जानो बेटा।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि पिछले कुछ समय से हर चीज़ बदली हुई नज़र आ रही है मुझे। पता नहीं पर जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे कि मेरे जो अपने हैं वही मुझसे दूर जा रहे हैं।"
"क्या मतलब डैड??" रितू ने मन में एकाएक ही हैरत के भाव उभरे थे___"ये आज आप कैसी बाते कर रहे हैं? कहीं आप उस दिन की बात पर तो ऐसा नहीं कह रहे जब मैने शिवा को दो बातें सुना दी थी?"

"वो सब तो नार्मल बात है बेटा।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"तुमने अपने भाई से जो कुछ कहा वो बड़ी बहन होने के नाते तुम्हारा हक़ था।"
"तो फिर और क्या बात है डैड?" रितू ने कहा___"मुझे बताइये कि आपकी ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके अपने आपसे दूर जा रहे हैं? अगर आपका इशारा मेरी तरफ है तो ये मेरे लिए शर्म की ही बात होगी कि मेरी वजह से आपको ऐसा लगा और आपके मन को ठेस पहुॅची है। प्लीज़ डैड बताइये न कि मुझसे ऐसा क्या हो गया है जिससे आपको मेरे बारे में ऐसा लग रहा है?"

"शायद तुम्हें इस बात का एहसास नहीं है बेटा कि मैं तुम सबसे कितना प्यार और दुलार करता हूॅ।" अजय सिंह ने सहसा भारी आवाज़ में कहा___"बचपन से लेकर अब तक हर वो चीज़ तुम सबके क़दमों में लाकर रखी जिन चीज़ों की तुम लोगों ने मुझसे फरमाईश की थी। इसके बावजूद मेरे प्यार में क्या कमी रह गई कि आज मेरी बेटी अपने ही माॅ बाप और भाई को बेगाना समझने लगी है?"

अजय सिंह की इस बात से रितू तो चौंकी ही मगर अलग अलग सोफों पर बैठे दोनो माॅ बेटा भी चौंक पड़े थे। दोनो कल से पूॅछ रहे थे कि क्या बताया था फोन पर उस आदमी ने मगर अजय सिंह ने उन दोनो के सवाल पर अब तक अपने होंठ सिले हुए थे। कदाचित वो ये सब रितू के आने के बाद ही उससे कहना चाहता था।

"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू ने चकित भाव से कहा___"भला मैं ऐसा क्यों समझने लगूॅगी? मैं तो इस बारे में सोच भी नहीं सकती समझने की तो बात ही दूर है।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता था बेटी।" अजय सिंह ने दुखी भाव से कहा___"मैं भी यही सोचा करता था कि मेरे बच्चे ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते। मगर...मगर मेरी सारी सोच और सारी उम्मीदों को तोड़ दिया है तुमने।"

"नहीं डैड ऐसा मत कहिए प्लीज़।" रितू की ऑखें भर आईं____"अगर आपको मेरा पुलिस की नौकरी करना अच्छा नहीं लगता है तो मैं इस नौकरी को छोंड़ दूॅगी डैड। आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है।"
"बात तुम्हारी नौकरी की नहीं है बैटा।" अजय सिंह ने कहा___"मुझे तुम्हारी पुलिस की नौकरी से कोई परेशानी नहीं है। यहाॅ पर बात हो रही है भरोसे की, विश्वास की। मुझे बहुत भरोसा था कि मेरे बच्चे कभी भी मेरे खिलाफ़ नहीं जा सकते। मगर मेरी ये भरोसा उसी तरह टूट कर बिखर गया जैसे कीई आईना टूट कर बिखर जाता है।"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं डैड?" रितू ने गंभीरता से कहा___"मैने ऐसा क्या कर दिया है जिससे आपका भरोसा टूट गया है? मुझे बताइये डैड, अगर मुझसे कहीं कोई ग़लती हुई है तो मैं उसे सुधार लूॅगी।"
"ये बात तो तुम्हें भी पता चल ही गई होगी।" अजय सिंह ने रितू के चेहरे की तरफ ज़रा गहरी नज़र से देखते हुए कहा___"कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज यहाॅ हल्दीपुर आया हुआ था?"

"वि विराज??" रितू ने चौंकने की लाजवाब ऐक्टिंग की, बोली___"विराज यहाॅ आया? ये आप क्या कह रहे है डैड? भला वो कमीना यहाॅ किस लिए आएगा?"
"ओह, हैरत की बात है।" अजय सिंह ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"मतलब कि इस बारे में तुम्हें कुछ पता ही नहीं है। जबकि मेरे आदमी का स्पष्ट रूप से कहना है कि कल शाम जिस एम्बूलेन्स में बैठ कर विराज, उसका दोस्त, पवन और पवन की माॅ बहन अपने घर से निकले थे उस एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी चल रही थी।"

"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किन्तु प्रत्यक्ष में खुद को सम्हालते हुए कहा___"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
"मैं जिस जीप की बात कर रहा हूॅ बेटा।" अजय सिंह ने सहसा शख्त भाव से कहा___"वो जीप असल में तुम्हारी पुलिस जिप्सी ही थी। इस गाॅव में हमारे अलावा किसी और के पास ऐसी कोई जीप है ही नहीं। हमारे आदमियों का अपनी जीप में बैठ कर विराज की उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर वो जीप किसकी हो सकती थी? हल्दीपुर में ऐसी कोई जीप पुलिस थाने में सिर्फ तुम्हें मिली हुई है। अब तुम सच सच बताओ कि तुम्हारा एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का क्या मतलब था?"

"ये तो हद हो गई डैड।" रितू की ऑखों से ऑसू छलक पड़े____"आप सरासर अपनी बेटी पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही जीप में मैं थी। जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा कुछ करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती हूॅ। सबसे पहली बात तो मुझे यही पता नहीं था कि वो कमीना विराज यहाॅ आया हुआ है जिसने कुछ समय पहले मेरे भाई शिवा को बुरी तरह मारा था। अगर पता होता तो मैं उसे खोज कर सबसे पहले अपने भाई की मार का बदला लेती उससे। उसके बाद उसे आपके हवाले कर देती। और आप कह रहे हैं कि मैं वो जीप मेरी थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। इसका मतलब तो ये हुआ डैड कि आप ये समझ रहे हैं कि मैं उस विराज की पुलिस प्रोटेक्शन दे रही थी। ओह माई गाड....ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप? आप मुझे अपने उस आदमी से मिलवाइये डैड जिसने आपको ये ख़बर दी है। मैं उससे पूछूॅगी कि उसने ये कैसे समझ लिया उस जीप में थी?"

रितू की इस बात से अजय सिंह का दिमाग़ चकरा गया। उसे समझ न आया कि वो किसकी बात पर यकीन करे? अपने उस आदमी की बात पर या अपनी बेटी की बातों पर? ये तो सच बात थी कि उसके आदमी को भी पक्के तौर पर ये पता नहीं चल पाया था कि उस जीप में कौन बैठा था। उसने भी यही सोच कर अनुमान में ही अजय से बताया था कि उस जीप में शायद उसकी बेटी रितू थी। क्योंकि यहाॅ पर अजय सिंह के अलावा अगर किही और के पास कोई जीप थी तो वो सिर्फ पुलिस इंस्पेक्टर रितू के पास। अजय सिंह के आदमी ने यही सोच कर उसे बताया था। पक्के तौर पर उसे भी पता नहीं था। दूसरी बात वो खुद जानता था कि रितू विराज को प्रोटेक्ट करने जैसा काम कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वो विराज से कभी कोई मतलब ही नहीं रखती थी। विराज का ज़िक्र आते ही उसके अंदर गुस्सा भर जाता था।

रितू ने ये सब बातें जिस आत्मविश्वास और भावपूर्ण लहजे में कही थी उससे अजय सिंह को यही लगा कि रितू सच कह रही है। मगर उसके मन में अपने आदमी की भी बातें चल रही थी। इस लिए वो समझ नहीं पा रहा था कि कौन सच बोल रहा है?

"इस बात पर तो मैं भी यकीन नहीं कर सकती अजय कि रितू विराज को प्रटेक्ट करने वाला काम करेगी।" सहसा इस बीच प्रतिमा ने भी कहा___"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम अपने आदमी की उस बात पर यकीन कैसे कर सकते हो? क्या उसने अपनी ऑखों से देखा था कि उस जीप पर रितू ही बैठी थी या फिर ये बात किसी ने पक्के तौर पर पूछने पर किसी ने उसे बताई थी?"

"माॅम, ऐसा संभव ही नहीं है।" रितू ने अपनी माॅ की तरफ देख कर कहा___"मैं सिर पटक कर मर जाना पसंद करूॅगी मगर उस कमीने को प्रोटेक्ट करने के बारे में सोचूॅगी भी नहीं। पता नहीं कैसे उस आदमी की उन फिज़ूल बातों पर यकीन कर लिया डैड ने? क्या आपने अपनी बेटी को इतना ही जाना समझा है डैड?"

"पर बेटा ग़लत वो भी तो नहीं है न।" अजय सिंह ने बात को सम्हालते हुए कहा___"उसने ये सब सिर्फ इसी लिए कहा क्योंकि इस गाॅव में हमारे अलावा सिर्फ तुम्हारे ही पास पुलिस की जीप है। इस लिए उसने सोचा कि शायद तुम ही थी उस एम्बूलेन्स के आगे।"
"कमाल है डैड।" रितू ने मन ही मन राहत की साॅस लेते हुए कहा___"आप पढ़े लिखे और वकालत कर चुके होने के बावजूद भी इतना नहीं सोच सके कि अगर इस गाॅव में किसी के पास जीप नहीं तो क्या उसे कहीं भी जीप नहीं मिलती? ऐसा भी तो हो सकता है कि उस विराज ने शहर से ही किसी जीप को किराये पर हायर किया रहा होगा।"

"चलो मान लिया बेटा कि वो कमबख्त उस जीप को शहर से किराये पर ले आया होगा।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया था, बोला___"मगर उसे लाने की भला क्या ज़रूरत थी? जबकि उसे इस बात का बखूबी अंदाज़ा था कि जीप में वो कहीं हमारे आदमियों द्वारा पकड़ा जा सकता है। एम्बूलेन्स तो उसके लिए सबसे बढ़िया और सुरक्षित वाहन था, जिसमें वो सबको बैठा कर बड़े आराम से हल्दीपुर से निकल जाता। तो फिर अलग से जीप हायर करने का क्या मतलब हो सकता है भला?"

"आपकी ये बात यकीनन काबिले ग़ौर है डैड।" रितू ने सोचने वाले भाव से कहा___"अलग से किसी जीप को हायर करना यकीनन बेवकूफी वाली बात है। मगर मौजूदा हालात में क्या वो ऐसी बेवकूफी कर सकता है?"
"यही तो सोचने वाली बात है बेटा।" अजय सिंह ने शिगार का कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर छोंड़ते हुए कहा___"उससे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं की जा सकती। मगर ये तो सच है न कि उसके आगे आगे जीप चल रही थी।"

"हो सकता है कि ऐसा उसने किसी विशेष प्लान के तहत किया हो डैड।" रितू ने अपने चेहरे पर गहन सोच के भाव दर्शाते हुए कहा___"ये तो आप भी जानते हैं डैड कि वो आपसे खुल कर टकराने की हिम्मत नहीं कर सकता। इस लिए उसने सोचा होगा कि वो हमारे बीच किसी प्रकार की दरार या अविश्वास पैदा कर देगा। उससे होगा ये कि हम आपस में ही एक दूसरे से उलझने लगेंगे। जबकि वो अपना काम करके निकल जाएगा।"
"बात कुछ समझ में नहीं आई बेटी।" प्रतिमा के माथे पर सिलवॅटें उभर आई___"हमारे बीच वो भला कैसे दरार या अविश्वास पैदा कर सकता है?"

"ठीक वैसे ही माॅम।" रितू ने कहा___"जैसे अभी कुछ देर पहले डैड के मन में अपनी बेटी के प्रति हो गया था। ज़रा सोचिए माॅम___ये तो उसे भी पता ही था कि अलग से जीप हायर करने का कोई मतलब नहीं है जबकि एम्बूलेन्स में वो सबको लेकर बड़ी आसानी से यहाॅ से निकल ही जाता। मगर इसके बाद भी उसने ऐसा किया। मतलब कि उसने अलग से एक जीप इस लिए हायर की ताकि जब आपको उसके यहाॅ से जाने का पता चले तो आपके आदमी उसका पता करके आपको उसके बारे में विस्तार से बताएॅ। यानी वो आपको बताएॅ कि एम्बूलेन्स में तो वो अपने साथ सबको लिए बैठा ही था किन्तु उसके आगे आगे अलग से एक जीप भी चल रही थी। जीप का सुन कर आप या आपके आदमी यही सोच बैठेंगे कि जीप तो आपके अलावा सिर्फ मेरे ही पास है, इस लिए उस जीप में मैं ही थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। आप ये जानते हुए भी कि आपकी बेटी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है, ऐसा सोच बैठेंगे और बाद में आप मुझ पर शक़ करते हुए मुझसे इसके बारे में ऐसा सब कुछ कहने लगेंगे या पूछने लगेंगे। यही उसका प्लान हो सकता था डैड। अब आप ही बताइये क्या ऐसा नहीं हो सकता?"

रितू की बातें सुन कर अजय तो अजय बल्कि खुद को दिमाग़ की सूरमा समझने वाली प्रतिमा भी आश्चर्य चकित रह गई थी। दोनो ही मियाॅ बीवी अपनी इंस्पेक्टर बेटी की तरफ ऐसी नज़रों से देखने लगे थे जैसे रितू के सिर पर अचानक ही आगरा का ताजमहल आकर कत्थक करने लगा हो। काफी देर तक दोनो के मुख से कोई बोल न फूटा था। फिर जैसे उन दोनो को होश आया। वस्तुस्थित का एहसास होते ही दोनो के चेहरों पर अपनी बेटी की बुद्धि पर प्रशंसा के भाव उभर आए।

"अगर वो वैसा ही कर सकता है जैसा कि तुमने अभी बताया मुझे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तो फिर यकीनन उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी। हलाॅकि मुझे पहली बार में अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि वो ऐसा सोच सकता है मगर वर्तमान में मैने उसके बारे में जितना विचार किया है उससे यही पता चला है कि यकीनन वो ऐसा सोच भी सकता है और कर भी सकता है।"

"लेकिन डैड वो कमीना यहाॅ आया किस लिए है?" रितू ने जानबूझ कर ऐसा सवाल किया___"और आपको कैसे पता चला कि वो यहाॅ आया है?"
"हमारी हज़ारों ऑखें हैं बेटी।" अजय सिंह ने बड़े गर्व से कहा___"हमें सबकी ख़बर होती है। ख़ैर छोंड़ो ये सब। जाओ तुम भी आराम कर लो। पता नहीं कहाॅ कहाॅ ड्यूटी के चक्कर में घूमती रहती हो तुम? बेटा कुछ अपना भी ख़याल रखा करो। हमे हर वक्त तुम्हारी फिक्र रहती है।"

"जी डैड।" रितू ने कहने के साथ ही सोफे से उठ कर खड़ी हो गई___"पर आप तो जानते हैं न कि पुलिस की नौकरी का कोई टाइम टेबल नहीं होता। इस लिए कहीं न कहीं तो भटकना ही पड़ता है।"

ये कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि वो तीनो उसे जाते हुए देखते रह गए। उसके जाने के बाद अजय सिंह ने एक नया शिगार सुलगा लिया और उसके दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर की तरफ उछाल दिया। चेहरे पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे उसके।

"तुम्हें क्या लगता है अजय?" सहसा प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को रीड करते हुए कहा___"रितू की बातों में कितनी सच्चाई है?"
"मतलब तुम्हें भी इस बात का शक है कि हमारी बेटी हमसे झूॅठ बोल रही है?" अजय सिंह ने भावहीन स्वर में कहा___"ये भी कि उसने बड़ी सफाई से अपनी बात साबित भी कर दी।"

"ये बात तो मैं तुमसे पूछ रही हूॅ डियर।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"तुमने ही तो उससे कहा था कि जीप में वही बैठी थी ऐसा तुम्हारे आदमी ने फोन पर तुमसे कहा था। अब जबकि रितू ने अपनी सफाई दे दी है तो तुम्हें क्या लगता है अब?"
"मुझे यकीन तो नहीं हो रहा प्रतिमा कि रितू ने विराज को प्रोटेक्ट किया होगा।" अजय सिंह ने कहा___"मगर उसके बदले हुए बिहैवियर की वजह से ऐसा सोचने पर मजबूर भी हो गया हूॅ। उसकी बातों में कितनी सच्चाई है इसका पता लगाना भी ज़रूरी है। इस लिए मैने सोच लिया है कि उस पर नज़र रखने के लिए अपने किसी आदमी को उसके पीछे लगा दूॅगा। इससे कोई न कोई सच्चाई तो पता चल ही जाएगी हमे।"

"हाॅ ये सही सोचा है तुमने।" प्रतिमा ने कहा___"इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। ख़ैर, छोंड़ो ये सब। मेरा तो इस सबसे बहुत सिर दर्द कर रहा है अब। इस लिए मैं जा रही हूॅ अपने कमरे में।"
"ठीक है डियर।" अजय सिंह ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं भी फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ।"

ये कह कर अजय सिंह बाहर की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही प्रतिमा ने शिवा की तरफ गहरी नज़रों से देखा और मुस्कुरा दी। शिवा उसकी मुस्कुराहट का मतलब समझ कर खुद भी मुस्कुरा उठा। प्रतिमा सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाने के कुछ देर बाद शिवा भी उसी कमरे की तरफ बढ़ गया था।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.........《 47 》


अब आगे,,,,,,,

तहखाने के अंदर का नज़ारा ही कुछ अलग था जिसे मैं ऑखें फाड़े अपलक देखे जा रहा था। कुछ देर के लिए तो जैसे मेरा दिमाग़ ही कुंद पड़ गया था। तहखाने के अंदर चारो तरफ छत पर लगे सफेद एल ई डी बल्बों की तीब्र रोशनी थी। अंदर मौजूद एक एक चीज़ स्पष्ट देखी जा सकती थी। किन्तु मेरी ऑखें जिस नज़ारे को देख कर हैरत से फट गई थी वो कुछ अलग ही किस्म का था। राइट साइड की दीवार से सटे हुए चार लड़के थे। उन चारों लड़कों के दोनो हाॅथ मजबूत रस्सी से बॅधे हुए जो कि ऊपर ही उठे हुए थे। चारों लड़कों जिस्म पर इस वक्त कपड़े का कोई रेसा तक न था बल्कि वो चारो जन्मजात नंगे थे। उन चारों की शक्ल सूरत से ही पता चल रहा था कि उन चारों ने यहाॅ कितनी दर्दनाक यातनाएॅ सही होंगी।

बाहर से तहखाने में आया हुआ वो आदमी भी इस वक्त पूरी तरह नंगा था और उन चारों में से एक लड़के को उसके सिर के बालों से मजबूती से पकड़ कर अपने लंड पर झुकाया हुआ था। मैं साफ देख रहा था कि वो आदमी उस लड़के के मुख में अपने लंड को ज़बरदस्ती डाले अपनी कमर को आगे पीछे कर रहा था। उसका सिर ऊपर की तरफ था और उसकी दोनो ऑखें मज़े में बंद थी।

ये सब देख कर मेरा दिमाग़ कुछ देर के लिए हैंग सा हो गया था। फिर जैसे मुझे होश आया। मेरे अंदर क्रोध और गुस्से की आग बिजली की सी तेज़ी से बढ़ती चली गई। मेरे जबड़े कस गए और मुट्ठिया भिंच गई। मैं तेज़ी से बढ़ते हुए उस आदमी के पास पहुॅचा और अपनी पूरी शक्ति से एक लात उसके बाजू में जड़ दी। परिणामस्वरूप वो आदमी उछलते हुए पीछे की दीवार से टकराया और फिर भरभरा कर नीचे तहखाने के पक्के फर्स पर गिरा। उसके हलक से दर्द में डूबी हुई चीख़ निकल गई थी।

फर्स पड़ा वो आदमी बुरी तरह कराहने लगा था। उसकी दोनो टाॅगें आपस में जुड़ कर मुड़ गई थी और उसके दोनो हाॅथ उसकी टाॅगों के बीच उसके प्राइवेट पार्ट पर थे। मुझे समझते देर नहीं लगी कि अचानक हुए इस हमले से उसका जो प्राइवेट पार्ट उस लड़के के मुख में था वो झटके से निकल गया था और झटके से निकलने से शायद उसके प्राइवेट पार्ट में उस लड़के के दाॅत गड़ गए होंगे या फिर दाॅतों से उसका लंड छिल गया होगा।

इधर अचानक हुए इस हमले से वो लड़का भी फर्स पर लुढ़क कर गिर गया था, और बाॅकी के तीन लड़के जो दीवार से सटे रस्सियों में बॅधे खड़े थे वो इस सबसे बुरी तरह घबरा गए थे। मेरे अंदर गुस्से की आग धधक रही थी इस लिए उस आदमी को एक लात जड़ने के बाद मैं उसकी तरफ बढ़ा और झुक कर उसके सिर के बालों को पकड़ कर उसे झटके से उठा लिया। वो आदमी फिर से दर्द में कराह उठा। अभी वो सम्हला भी नहीं था कि मैने एक पंच उसके चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो फिर से उछलते हुए दूर जाकर गिरा। मैने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि मैंने तो उसकी धुनाई में कोई कसर ही नहीं छोंड़ी। वो खुद भी अपने हाथ पैर चला रहा था मगर उसकी मेरे सामने एक नहीं चल रही थी। कुछ ही देर में वो अधमरी हालत में पहुॅच गया था। जब मैने देखा कि वो फर्स पर पड़ा अब हिल डुल भी नहीं रहा है तो मैने उसे मारना बंद कर दिया।

मुझे उस पर इस लिए इतना गुस्सा आया हुआ था कि वो उस लड़के के साथ ज़बरदस्ती इतना घिनौना काम कर रहा था। मैं ये भी समझ चुका था कि वो ये काम उस लड़के के अलावा बाॅकी उन तीनों के साथ भी करता होगा। बस इसी बात पर मुझे उसके ऊपर इतना गुस्सा आया था और मैने उसे मारते मारते अधमरा कर दिया था।

उस आदमी के शान्त पड़ने के बाद मैने अपने गुस्से को काबू करने की कोशिश की और फिर तेज़ी से पलटा। मेरी नज़र फर्श पर गिरे उस लड़के पर पड़ी जिसके साथ वो आदमी वो घिनौना काम कर रहा था। मैने देखा कि वो लड़का बुरी तरह डर से काॅप रहा था। मुझे उस पर बड़ा तरस आया और उसकी हालत देख कर उस आदमी पर फिर से गुस्सा आ गया। मगर मैने अपने गुस्से को काबू किया और उस लड़के के पास उकड़ू होकर बैठ गया।

"कौन है ये आदमी?" मैने उस लड़के से पूॅछा___"और वो तुम्हारे साथ इतना घिनौना काम क्यों कर रहा था? मुझे सब कुछ साफ साफ बताओ।"

वो लड़का मेरी ये बात सुन कर कुछ न बोला बल्कि डरी सहमी हुई ऑखों से देखते रहा मुझे। मैं समझ गया कि इन चारों को उस आदमी ने इतना डरा दिया है कि ये लोग अपनी ज़ुबान तक नहीं खोल पा रहे हैं। इस बात पर मुझे उस आदमी पर फिर से बड़ा तेज़ गुस्सा आ गया। मैने अपनी ऑखें बंद कर अपने गुस्से को शान्त किया।

"देखो अब तुम्हें किसी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है समझे?" मैने उससे ज़रा अपनापन दिखाते हुए कहा__"तुम मुझे सब कुछ साफ साफ बताओ कि ये आदमी तुम लोगों के साथ ये सब क्यों कर रहा था और तुम लोग इस तहखाने में कब से कैद हो?"

"प् प्लीज़ हमें बचा लीजिए।" सहसा उस लड़के की ऑखों से ऑसू छलछला आए और वो बुरी तरह रोते हुए बोल पड़ा___"हमें इस नर्क से निकाल दीजिए। इस आदमी ने हम चारो को बहुत बुरी तरह से टार्चर किया है। ये हर रोज़ दिन में चार बार आता है और हमारे साथ यही सब घिनौना काम करके चला जाता है। हम चारो इससे अपने किये की लाखों दफा मुआफ़ी माॅग चुके हैं मगर फिर भी ये आदमी हमारे साथ ये सुलूक करता है। प्लीज़ हमे इस आदमी से बचा लीजिए। हमें यहाॅ से निकाल कर हमें हमारे घर जाने दीजिए। हम आपके पैर पकड़ते हैं, प्लीज़ प्लीज़।"

उस लड़के का ये रुदन देख कर मैं अंदर तक काॅप गया। मैं इस बात की कल्पना कर सकता था कि इन चारों के साथ किस हद तक उस आदमी ने अत्याचार किया होगा। किन्तु सहसा मेरे मन में सवाल उभरा कि वो आदमी इन लोगों के साथ ये सब किस वजह से कर रहा है? जबकि ये फार्महाउस उसका नहीं बल्कि रितू दीदी का है? क्या रितू दीदी को इस सबका पता है? या फिर ये सब उनकी जानकारी में ही हो रहा है? नहीं नहीं, रितू दीदी ऐसे घिनौने काम का सोच भी नहीं सकती हैं। तो फिर उनके फार्महाउस के तहखाने में ये सब कैसे हो सकता है? मेरे मन में हज़ारों सवाल एक साथ आकर खड़े हो गए। मगर जवाब किसी का भी नहीं था मेरे पास।

"मैने तुमसे जो कुछ पूछा है उसका सही सही जवाब दो पहले।" मैने उस लड़के से कहा___"आख़िर किस वजह से ये सब तुम लोगों के साथ कर रहा है वो आदमी? तुम सब कुछ मुझे साफ साफ बताओ। और हाॅ किसी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुमने देखा है न कि मैने कैसे उस आदमी का दो मिनट में काम तमाम कर दिया है? इस लिए तुम अब बेफिक्र रहो कि कोई तुम पर अब दुबारा ऐसा कर सकेगा। मैं तुम्हें यहाॅ से निकाल कर तुम लोगों को घर भी भेजवा दूॅगा। मगर उससे पहले तुम मुझे बताओ कि ये सब क्यों हो रहा है तुम लोगों साथ? ऐसा क्या अपराध किया है तुम लोगों ने? और अगर ये सब तुम लोगों के साथ बेवजह ही हो रहा है तो यकीन मानो मैं अपने हाॅथों से इस आदमी को मौत दूॅगा। चलो अब बताओ सारी बात।"

"ये सच है कि हम चारों ने एक साथ बराबर का अपराध किया था।" उस लड़के ने नज़रें झुका कर कहना शुरू किया___"मगर, उस अपराध के लिए हमें कानूनी तरीके से सज़ा भी तो दिलवाई जा सकती थी, मगर इन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया। बल्कि हम चारों को पकड़ कर यहाॅ ले आए और फिर हर रोज़ हमारे साथ ये घिनौना काम करते रहे। हमने इन लोगों से अपने किये की लाखों दफा मुआफ़ी माॅगी। ये तक कहा कि आप हमें गोली मार कर खत्म कर दो उस अपराध के लिए मगर ये लोग हमारी कोई भी बात नहीं माने और हमारे साथ यही सब करते रहे।"

"ओह आई सी।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"लेकिन तुम लोगों ने आख़िर किस तरह का अपराध किया था जिसकी कीमत तुम लोगों को इस रूप में चुकानी पड़ रही है? और तुमने अभी ये कहा कि "इन लोगों ने" मतलब इस आदमी के अलावा भी कोई है जो तुम लोगों के साथ ये सब कर रहा है? कौन कौन हैं इस आदमी के साथ बताओ मुझे?"

"एक लड़की है।" उस लड़के ने कहा___"उसका नाम रितू है और वो पुलिस में इंस्पेक्टर है। वहीं हम चारों को पकड़ कर यहाॅ लाई थी। उसके बाद उसने इस आदमी को हमारी ख़ातिरदारी करने का काम दे दिया था। बस उसके बाद से ही ये आदमी हमारी ख़ातिरदारी के रूप में हमारे साथ ये सब कर रहा है।"

मैं उसके मुख से रितू दीदी का नाम सुन कर मन ही मन बुरी तरह उछल पड़ा था। मुझे समझ न आया कि रितू दीदी ने इन लोगों को किस लिए पकड़ा होगा और फिर पकड़ कर यहाॅ लाया होगा? अपने आदमी को इन लोगों की ख़ातिरदारी करने का काम सौंप दिया। इसका मतलब रितू दीदी को भी ये पता नहीं होगा कि उनका ये आदमी इन लोगों की कैसी ख़ातिरदारी करता है? मुझे यकीन था कि मुजरिम को सज़ा देने के लिए रितू दीदी भले ही कानून की थर्ड डिग्री का स्तेमाल कर लेतीं मगर ऐसा घिनौना काम करने को अपने आदमी से किसी सूरत में न कहती। अरे कहने की तो बात ही दूर वो तो इस बारे में सोचती ही नहीं। मतलब साफ है कि ख़ातिरदारी की आड़ में ये घिनौना काम दीदी का ये आदमी अपनी मर्ज़ी से ही कर रहा है, जिसका दीदी को पता ही नहीं है। अब सवाल ये था कि इन लड़कों ने ऐसा कौन सा जघन्य अपराध किया था जिसकी वजह से रितू दीदी इन लोगों को कानूनन सज़ा दिलाने की बजाय यहाॅ अपने फार्महाउस के तहखाने में लाकर बंद कर दिया था?

"यकीनन तुम लोगों के साथ बहुत बुरा हुआ है।" फिर मैने उससे कहा___"उस इंस्पेक्टर को ऐसा नहीं करना चाहिये था। उसे तो तुम लोगो को कानून के सामने लेकर जाना चाहिए था। ख़ैर, अब तुम बेफिक्र हो जाओ। ये बताओ कि तुम लोगों एक साथ ऐसा कौन सा अपराध किया था?"

"वो वो हम चारों ने एक साथ एक लड़की की इज्ज़त लूटी थी।" उस लड़के ने नज़रें चुराते हुए कहा___"और फिर उसे शहर के बाहर ऐसे ही अधमरी हालत में फेंक आए थे।"
"क्या?????" उसकी ये बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका___"तुम लोगों ने किसी लड़की की इज्ज़त लूटी थी? वो भी इस तरीके से कि उसे बाद में अधमरी हालत में कहीं फेंक भी आए? ये तो सच में तुम लोगों ने बहुत बड़ा अपराध किया है। ख़ैर, उसके बाद क्या हुआ था? मेरा मतलब कि तुम लोग उस इंस्पेक्टर रितू के द्वारा पकड़े कैसे गए?"

"तीसरे दिन हम चारो दोस्त अपने फार्महाउस पर मौज मस्ती कर रहे थे।" उस लड़के ने कहा___"तभी वो इंस्पेक्टर हमारे उस फार्महाउस पर आ धमकी थी। उसने हम चारों को पहले वहीं पर खूब मारा उसके बाद हम चारों को अपनी जीप में डाल कर यहाॅ ले आई तब से हम यहीं हैं और इस आदमी के द्वारा यातनाएं झेल रहे हैं। प्लीज़ हमें यहाॅ से निकाल लो भाई, हम जीवन भर तुम्हारी गुलामी करेंगे।"

"उस लड़की का क्या हुआ?" मैने उसकी अंतिम बात पर ध्यान न दिया___"जिसकी तुम चारों ने इज्ज़त लूटी थी?"
"इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं है।" उस लड़के ने असहाय भाव से कहा___"हमने उसे उस दिन से देखा ही नहीं है और ना ही किसी ने हमें उसके बारे में बताया।"

"क्या तुम्हें इस बात का एहसास है कि जिस लड़की की तुम लोगों ने इज्ज़त लूटी है?" मैने ज़रा शख्त भाव से कहा___"उस पर क्या गुज़र रही होगी? उसके माॅ बाप पर क्या गुज़र रही होगी? अपनी हवस के लिए तुम लोगों ने किसी की लड़की का जीवन बरबाद कर दिया। तुम लोगों को तो सीधा फाॅसी पर लटका देना चाहिए।"

"हम सबको फाॅसी की सज़ा मंज़ूर है भाई।" उस लड़के ने कहा___"हमें इस बात का एहसास हो चुका है कि हमसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है। जब से जवानी की देहलीज़ पर हमने क़दम रखा था तब से किसी न किसी लड़की का जीवन हमने बरबाद ही तो किया है। इस लिए भाई फाॅसी से भी बढ़ कर अगर कोई सज़ा है तो हम चारों को वो सज़ा भी मंजूर है।"

"बहुत खूब।" मैने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"ऐसी बातें अपराध करते वक्त मन में क्यों नहीं आती हैं? ये तब क्यों समझ में आती हैं जब मौत सिर पर आकर खड़ी हो जाती है या फिर जब वैसा ही कुकर्म खुद के साथ हुआ करता है? ख़ैर, ये बताओ कि ये एहसास अब क्या इस लिये हुआ है कि खुद पर जब वैसा ही गुज़रने लगा या फिर सच में लगता है कि हाॅ तुम लोगों ने ग़लत किया था उस लड़की के साथ?"

"ये तो सच बात है भाई कि इंसान को कोई बात तभी समझ में आती है जब उसे ठोकर लगती है।" उस लड़के ने कहा___"ये बात मुझ पर भी लागू होती है। मगर मुझे इस बात का अब गहरा दुख हो रहा है भाई कि मैने उस लड़की के साथ इतना बड़ा नीच काम किया था। प्यार मोहब्बत दोस्ती ये सब कितनी खूबसूरत चीज़ें हैं जिनके लिए और जिनके आधार पर इंसान कितना कुछ कर जाता है। अगर विश्वास हो तो कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कहीं भी आ जा सकता है या फिर वो आपके भरोसे आपके ऊपर कितनी ही बड़ी जिम्मेदारी सौंप देता है। मगर ये छल कपट और ये धोखा कितनी ख़राब चीज़ें हैं जो प्यार मोहब्बत दोस्ती, और भरोसा आदि सबको नस्ट कर देता है।"

"वाह तुम तो यार किसी बहुत बड़े उपदेशक की तरह बड़ी बड़ी बातें करने लगे।" मैने सहसा ब्यंगात्मक भाव से कहा___"काश! ये सब बड़ी बड़ी बातें तब भी तुम करते और समझते जब तुम किसी लड़की का जीवन नष्ट कर रहे थे। कम से कम इससे तुम दोनो का भला तो होता। वैसे प्यार मोहब्बत दोस्ती और भरोसा जैसी बातें तुम्हारे मन में कैसे आ गईं? क्या तुमने इन्हीं के आधार पर उस लड़की का जीवन बरबाद किया है?"

"बिलकुल सही कहा भाई।" उस लड़के ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"मेरे जीवन में लड़कियाॅ तो बहुत आईं थी जिनके साथ मैने अपने इन तीनों दोस्तों के साथ मौज मस्ती की थी। वो सब लड़कियाॅ मेरे पैसों के लालच में अपना सब कुछ खोल कर हमारे सामने बेड पर लेट जाती थीं मगर इस लड़की में बात ही कुछ खास थी। ये एक ऐसे लड़के से बेपनाह प्यार करती थी जिसका नाम विराज था, विराज सिंह बघेल। मैं भी इससे प्यार करता था पर कभी कह न सका था इससे। हलाॅकि दोस्ती के रिश्ते से हमारी हैलो हाय हो जाती थी। एक दिन जाने क्या हुआ इसे कि ये मुझे लेकर उस विराज के पास गई और उससे दो टूट भाव से कह दिया कि वो उससे प्यार नहीं करती थी बल्कि उसकी दौलत से प्यार करती थी। और अब जबकि वो कंगाल हो चुका है तो उसका उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसकी इस बात से मन ही मन हैरान तो था मगर खुश भी हुआ कि चलो अब तो ये मेरे पास ही आएगी। वही हुआ भी। वो अपने एक्स ब्वायफ्रैण्ड को छोंड़ कर मेरे साथ ही कालेज में रहने लगी। मगर मुझे जल्द ही पता चल गया कि ये मेरे साथ रहते हुए भी मेरे साथ नहीं है। मैं अक्सर देखता था कि वो अकेले में बेहद उदास और दुखी रहती थी। मुझे लगा कि ये कहीं फिर से न उस विराज के पास लौट जाए, इस लिए मैने इसे अपने साथ हमेशा के लिए रखने का सोच लिया। मेरे ये तीनो दोस्त बार बार मुझसे कहते कि प्यार व्यार का चक्कर छोंड़ बस मज़े ले और हमें भी मज़ा करवा। मैने भी सोचा कि यार ऐसे प्यार का क्या मतलब जो अपना है ही नहीं। बस उसके बाद मैने वही किया जो अब तक दूसरी अन्य लड़कियों के साथ किया था। अपनी बर्थडे वाली शाम मैने इसे भी इन्वाइट किया था। जब ये उस शाम मेरे फार्महाउस पर आई तो मैने इसको कोल्ड ड्रिंक का वो ग्लास प्यार हे दिया जिस ग्लास में मैने नींद की दवा मिलाई हुई थी। कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही वो नीद के नशे में झूमने लगी। मैने सबकी नज़र बचा कर उसे अपने कमरे में ले गया और उस कमरे में मैने उसके सारे कपड़े उतार कर उसकी इज्ज़त से खूब खेला। मेरा एक दोस्त इस सबकी वीडियो भी बना रहा था। बस उसके बाद तो उसे अपनी ही बने रहना था, इस लिए वो बनी रही और हम जब भी उसे बुलाते तो उसे आना पड़ता और हम सबको खुश रखना पड़ता उसे। यही सब चलता रहा मगर कुछ दिन पहले की बात है। मैने उसे फिर से अपने बर्थडे पर इन्वाइट किया मगर उसने आने से इंकार कर दिया। कहने लगी कि उसकी तबीयत ख़राब है। मैं समझ गया कि वो बहाने बना रही है न आने का। इस लिए मैने उसे फिर से वीडियो को उसके डैड के पास भेज देने की धमकी दी। मेरी इस धमकी से उसे मेरे फार्महाउस पर आना पड़ा। उस दिन भी मैंने अपने इन तीनो दोस्तों के साथ मिल कर उसके साथ सेक्स किया और और उसी हालत में सो गए थे। रात के लगभग तीन या चार बजे के करीब मेरी ऑख खुली तो देखा कि विधी की हालत बहुत ख़राब थी। उसके प्राइवेट पार्ट से ब्लड निकला हुआ था और उसके मुख से भी। ये देख कर मैं बहुत ज्यादा घबरा गया। मुझे लगा कहीं ये मर न जाए। मगर उसे उस हालत में लेकर हम भला उतने समय कहाॅ जाते। इस लिए मैने अपने इन दोस्तो को जगाया और इन लोगों को भी विधी की हालत के बारे में बताया। ये तीनो भी विधी की वो हालत देख कर घबरा गए थे। फिर हम चारों ने सोच विचार करके फैंसला लिया कि इसे कहीं छोंड़ आते हैं। इस फैंसले के साथ ही हम चारों ने विधी को किसी तरह कपड़े पहनाए और उसे उसी हालत में उठा कर बाहर खड़ी अपनी कार की डिक्की में डाल दिया।
उसके बाद हम चारो उस तरफ चल पड़े जिस तरफ पिछले कुछ साल पहले ही एक नये हाइवे का निर्माण हुआ था। रात के उस सन्नाटे में किसी के भी द्वारा देख लिए जाने का कोई ख़तरा नहीं था। हाइवे में पहुॅच कर हमने कुछ दूरी पर सड़क के किनारे झाड़ियों के पास ही विधी को डिक्की से निकाल कर चुपचाप लिटा दिया और फिर हम चारों वहाॅ से वापस फार्महाउस आ गए। उसके बाद क्या हुआ इसका हमें आज तक कुछ भी पता नहीं है।"

"क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूॅ?" उसकी बात सुनने के बाद मैने सहसा कठोर भाव से उससे पूछा___"ठीक से देखो मुझे। मेरा दावा है कि तुम मुझे ज़रूर पहचान जाओगे कि मैं कौन हूॅ?"

मेरी इस बात को सुन कर वो लड़का जो कि वास्तव में सूरज चौधरी ही था मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। उसके चेहरे पर पहले तो उलझन के भाव उभरे थे किन्तु जल्द ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे और फिर एकाएक ही आश्चर्य से मेरी तरफ ऑखें फाड़े देखने लगा। पल भर में उसका चहेरा डर और दहशत से पीला ज़र्द पड़ता चला गया। वह एकदम से ही जूड़ी के मरीज़ की तरह काॅपने लगा था।

"क्या हुआ सूरज चौधरी?" मेरे मुख से एकाएक शेर की सी गुर्राहट निकली___"पहचाना मुझे या मैं खुद अपने तरीके से बताऊॅ तुझे कि मैं कौन हूॅ??"
"वि...वि...विराऽज।" सूरज चौधरी के मुख से दहशत में डूबा स्वर निकला___"तुम वि..विराज हो। वही विराज जिसे वो विधी बेपनाह मोहब्बत करती थी।"

"और जिसके साथ तूने इतना बड़ा वहशियाना कुकर्म किया है।" मैंने गुस्से में आग बबूला होते ही उसे उसके सिर के बालों से पकड़ कर उठा लिया और फिर पीछे से उसकी गर्दन में अपने दोनो हाॅथ जमाते हुए मैने पूरी ताकत से झटका दिया। सूरज चौधरी के हलक से हृदय विदारक चीख निकल गई। दीवार पर कुंडे में बॅधी रस्सी एक झटके में ही टूट गई थी और इधर झटका लगते ही सूरज के दोनो हाॅथों में वो रस्सी गड़ सी गई थी।

"हरामज़ादे।" मैंने कहने के साथ ही सूरज को अपने सिर के ऊपर तक उठा लिया और पूरी ताकत से सामने की दीवार की तरफ उछाल दिया, फिर बोला___"तूने मेरी विधी के साथ इतना घिनौना कुकर्म किया। नहीं छोंड़ूॅगा तुझे....तुम चारों को एक एक करके ऐसी भयावह मौत दूॅगा कि उसे देख कर ये ज़मीन और वो आसमां तक थर्रा जाएॅगे।"

उधर दीवार से टकरा कर सूरज नीचे फर्श पर मुह के बल गिरा। गिरते ही उसके मुख से दर्द भरी चीख निकल गई। उसके दोनो हाथ अभी भी रस्सी से बॅधे हुए थे इस लिए वो सहारे के लिए अपने हाॅथ आगे या इधर उधर नहीं कर सकता था। इधर सूरज का ये हाल देख कर बाॅकी तीनों लड़कों के देवता कूच कर गए। वो मेरी तरफ बुरी तरह घबराए हुए से देखने लगे थे।

आगे बढ़ कर मैने सूरज के सिर के बाल पकड़ कर उसे उठाया और कहा___"तेरी कहानी सुनने से पहले मुझे लग रहा था कि तेरे साथ वो आदमी बहुत ग़लत कर रहा था मगर अब समझ में आया कि वो कितना अच्छा कर रहा था। तू जिस इंस्पेक्टर रितू की बात कर रहा था न वो मेरी बड़ी बहन है। मैं सब कुछ समझ गया अब कि तेरे यहाॅ होने का असल माज़रा क्या था?"

कहने के साथ ही मैने सूरज के पेट में अपने घुटने का ज़बरदस्त वार किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया। उसके झुकते ही मैने उसकी पीठ पर दुहत्थड़ जड़ दिया, जिससे वो फर्श पर मुह के बल गिरा। नीचे झुक कर मैने फिर उसे उसके बालों से पकड़ कर उठाया, फिर बोला___"अब सारी कहानी समझ गया हूॅ मैं। तू अपने इन कमीने दोस्तों के साथ विधी को उस दिन वहाॅ हाइवे के किनारे झाड़ियों के पास छोंड़ आया। सुबह हुई तो हाइवे से गुज़र रहे किसी वाहन में आ रहे ब्यक्ति की नज़र विधी पर पड़ी होगी तो उसने इसकी सूचना पुलिस को दी होगी। ये मामला चूॅकि हल्दीपुर का था इस लिए हल्दीपुर पुलिस थाने में मेरी बड़ी बहन रितू दीदी ही थी, उनको जब इस सबकी सूचना किसी अज्ञात ब्यक्ति द्वारा मिली तो वो उस जगह पर पहुॅच गईं। विधी की उस गंभीर हालत को देख कर दीदी ने विधी को तुरंत ही हल्दीपुर के सरकारी हास्पिटल में एडमिट कर दिया। दीदी को शायद कहीं से ये पता था कि मैं किसी विधी नाम की लड़की से प्यार करता था। इस लिए हास्पिटल में जब दीदी को डाक्टर द्वारा विधी के बारे में पता चला होगा तो उनके दिमाग़ में तुरंत ही ये बात आई होगी कि किसी विधी नाम की लड़की से ही उनका भाई विराज प्यार करता था।
बस उसके बाद ही दीदी का मेरे प्रति भी हृदय परिवर्तन हुआ होगा या फिर खुद विधी ने बताया होगा उन्हें कि सच्चाई क्या है? ख़ैर, उसके बाद विधी ने दीदी से अपनी अंतिम इच्छा की बात कही और दीदी ने उससे वादा किया कि वो उसके महबूब को उसके पास ज़रूर लेकर आएॅगी। दीदी ने मेरी खोज करना शुरू किया और उन्हें मेरा दोस्त पवन मिला। पवन से दीदी ने सारी बातें बताईं होंगी। तभी तो पवन मुझसे वो सब बता नहीं रहा था बल्कि यही कहे जा रहा था कि मैं आ जाऊॅ। वाह रितू दीदी! आप ग्रेट हो दीदी। आपने मुझे मेरी विधी से मिलवाया वरना मैं तो उसे अंतिम समय में भी देख न पाता। आपने ये बहुत बड़ा उपकार किया है दीदी। आज आप मेरी नज़र में बहुत महान हो गईं हैं।"

मैं भावावेश में जाने क्या क्या कहे जा रहा था जबकि मेरे चंगुल में फॅसा सूरज बड़ी मुश्किल से अपनी पलकें उठा कर मेरी तरफ हैरत से देखे जा रहा था। शायद वो मेरी कुछ बातें समझने की कोशिश कर रहा था मगर समझ नहीं पा रहा था।

"इतना कुछ मेरी विधी के साथ हो गया और मुझे इसका आभास तक न था।" मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मेरे दिल में हूक सी उठी। विधी के साथ हुए इस घृणित कुकर्म का सोच कर ही मेरी आत्मा काॅप उठी, मेरा दिल तड़प उठा। एकाएक ही मेरे चेहरे पर गुस्से की आग धधक उठी। मैने सूरज को उसकी गर्दन से पकड़ कर एक ही हाॅथ से ऊपर उठा लिया, फिर बोला___"तेरा और तेरे साथियों का मैं वो हाल करूॅगा कि दुबारा इस धरती पर पैदा होने से मना कर दोगे।"

"मुझे माफ़ कर दो विराज।" सूरज की ऑखें बाहर को निकली आ रही थी, फिर भी किसी तरह बोला__"मैं मानता हूॅ कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है जिसके लिए कोई मुआफ़ी हो ही नहीं सकती। मगर.....
"हरामज़ादे जब जानता है कि कोई मुआफ़ी नहीं हो सकती तो क्यों माॅग रहा है मुआफ़ी?" मैने ऊपर से ही उसे उछाल दिया। वो लहराते हुए उस जगह पर गिरा जिस जगह पर वो आदमी बेहश अवस्था में पड़ा था। सूरज जब फर्श से टकराया तो उसके हलक से चीख निकल गई और उसका बाजू ज़ोर से उस आदमी के जिस्म पर लगा।

उस आदमी के जिस्म में हरकत हुई और वो कुछ ही पलों में होश में आ गया। ऑख खुलते ही उसने अपनी तरफ बढ़ते हुए मुझे देखा तो एकाएक ही उसके चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए। जबकि मेरा ध्यान तो सूरज की तरफ था जो उस आदमी के ही पास पड़ा कराह रहा था। उसके पास पहुॅच कर मैने उसे फिर से उसके बालो से पकड़ कर उठाया।

"तूने मेरी विधी के साथ जो कुकर्म किया है उसके लिए मैं मुआफ़ी कैसे दे दूॅगा तुझे?" मैने गुर्रा कर उसे झकझोरते हुए कहा___"तू ये सोच भी कैसे सकता है कि तुझे मुआफ़ी मिल जाएगी। तुझे अगर कुछ मिलेगा तो सिर्फ वो जिसे तड़प तड़प कर और सड़ सड़ कर मरना कहते हैं।"

दीवार से सटे बाॅकी तीनों लड़कों की ये सब देख कर ही हालत ख़राब थी। मेरे चेहरे पर इस वक्त हिंसक दरिंदे जैसे भाव थे। उधर फर्श पर पड़ा वो आदमी मेरी बातें सुन कर हैरान रह गया था। फिर सहसा उसे खुद का ख़याल आया। वो सूरज की तरह ही जन्मजात नंगा था। ये देख कर वो किसी तरह उठा और एक तरफ रखे अपने कपड़ों की तरफ बढ़ गया। कपड़े उठा कर वो जल्दी जल्दी उन्हें पहनने लगा।

इधर मैने गुस्से में उबलते हुए सूरज के चेहरे पर ज़ोर का घूॅसा मारा तो वो पीछे की दीवार में ज़ोर से टकराया और फिर फर्श पर लुढ़कता चला गया। उसके नाॅक और मुख से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा था। फर्श पर गिरते ही उसकी ऑखें बंद होती चली गई। मैं समझ गया कि ये बेहोश हो चुका है।

बेहोश हो चुके सूरज के जिस्म पर मैने पैर की एक ठोकर जमाई और पलट कर बाएॅ साइड दीवार की तरफ देखा। दीवार से सटे वो तीनो लड़के रस्सियों में बॅधे ऊपर की तरफ हाॅथ किये खड़े थरथर काॅप रहे थे। ऑखों में आग और चेहरे पर ज़लज़ला लिए मैं उनकी तरफ बढ़ा।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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मुझे अपनी तरफ आते देख उन तीनों की हालत ख़राब हो गई। किनारे साइड की तरफ जो बॅधा खड़ा हुआ था उसका डर के मारे पेशाब छूट गया। उनके क़रीब पहुॅच मैने पहले एक एक घूॅसा उन तीनों के जबड़ों पर रसीद किया। तीनो ही दर्द में बिलबिला उठे। मुझसे रहम की भीख माॅगने लगे किन्तु मैं इन लोगों को भला कैसे माफ़ कर सकता था? ये मेरी विधी के रेपिस्ट थे, उसके हत्यारे थे ये। इनको तो अब ऐसी मौत मरना था जिसके बारे में आज तक किसी ने सुना तक न होगा।

"तुम सबको ऐसी मौत मारूॅगा किसके बारे में किसी कल्पना तक न की होगी।" मैने भभकते हुए कहा__"तुम सब ने मेरी मासूम विधी के साथ ऐसा घिनौना अपराध किया है जिसके लिए मैं तुम लोगों को अगर कुछ दूॅगा तो है सिर्फ दर्दनाक मौत। इसके सिवा और कुछ नहीं। रहम के बारे में तो सोचो ही मत। क्योंकि वो मैं ब्रम्हा के कहने पर भी नहीं करने वाला।"

मेरी ये बात सुन कर उन तीनों के चेहरे डर से पीले ज़र्द पड़ गए। पल भर में ऐसी सूरत नज़र आने लगी उन तीनो की जैसे लकवा मार गया हो। इधर मैं पलटा। मेरी नज़र उस आदमी पर पड़ी जो सूरज के मुख में अपना लंड डाले हुए था। वो मेरी तरफ सकते ही हालत में देखे जा रहा था। मैं उसकी तरफ बढ़ा तो वो एकदम से भयभीत सा हो गया।

"मुझे माफ़ कर दो काका।" उसके पास पहुॅचते ही मैने विनम्र भाव से कहा___"मैने बिना कुछ जाने समझे आप पर हाॅथ उठा दिया। उसके लिए आप चाहें तो मुझे सज़ा दे सकते हैं।"
"अ अरे ना ना बेटवा।" हरिया काका हड़बड़ाते हुए एकदम से बोल पड़ा___"ई का कहत हो तुम? तोहरे से कउनव ग़लती ना हुई है। एसे माफी मागे के कउनव जरूरत ना है। हमहू का कहाॅ पता रहे बेटवा कि तुम असल मा हमरे रितू बिटिया के छोट भाई हो।"

"आप बहुत अच्छे हैं काका।" मैने हरिया काका के दाएॅ कंधे पर हाथ रखते हुए कहा___"आपने इन लोगों की वैसी ही ख़ातिरदारी की है जैसी इन लोगों की करनी चाहिए थी।"
"अब का करें बेटवा हमरे मन मा एखे अलावा र कउनव बात आईये न रही।" काका ने कहा___"रितू बिटिया जब हमसे कहा कि ई ससुरन केर अच्छे से ख़ातिरदारी करै का है ता हमरे मन मा इहै बात आई। बस ऊखे बाद हम शुरू होई गयन। ई ससुरन के पिछवाड़े से बजावै मा बड़ी मज़ा आई बेटवा। लेकिन अब एकै बात केर चिन्ता है कि कहीं ई बात रितू बिटिया का पता न चल जाय। ऊ का है ना बेटवा, ई अइसन काम है कि केहू का पता चल जाय ता बहुतै शरम केर बात होई जाथै न। अउर हम ई नाहीं चाही कि ई बात रितू बिटिया का पता चलै। काहे से के ई बात पता चले मा सरवा हमरी इज्जत का बहुतै कचरा होई जाई।"

"चिन्ता मत करो काका।" मैं मन ही मन उसकी बात पर और उसकी भाषा पर मुस्कुराते हुए बोला___"इस बात का पता रितू दीदी को बिलकुल भी नहीं चलेगा। लेकिन एक बात अब आप भी सुन लीजिए। वो ये कि आपने अपना काम कर लिया अब बारी मेरी है। मैं इन्हें ऐसी मौत दूॅगा कि आपने उसके बारे में कभी सोचा भी नहीं होगा। इस लिए अब आप सिर्फ तमाशा देखेंगे।"

"ठीक है बेटवा।" काका ने सिर हिलाया___"हमहू ईहै चाहिथे कि ई ससुरन का कुत्तन जइसन मौत हो। जितना बड़ा अपराध ई लोगन ने किया है न उसके लिए ई लोगन का कौनव परकार केर रियाइत ता मिलबै न करै।"
"ऐसा ही होगा काका।" मैने उन चारों पर एक एक नज़र डालते हुए कहा___"मुझे कुछ सामान चाहिए आपसे। और हाॅ बाॅकी किसी और को मत बताइयेगा कि मैं यहाॅ हूॅ।"

"ठीक है बेटवा।" काका ने कहा___"अउर सामान का चाहै का है तुमका?"
"एक रेज़र ब्लेड।" मैने कहा___"और एक प्लास चाहिए काका।"
"ठीक है बेटवा।" हरिया काका ने कहा___"हम अभी लावथैं दुई मिनट मा।"

कहने के साथ ही हरिया काका तहखाने के दरवाजे से बाहर चला गया। जबकि उनके जाते ही मैं सूरज के पास पहुॅचा और उसे उठा कर फिर से एक अलग रस्सी जोड़ कर उसे वैसे ही बाॅध दिया जैसे बाॅकी तीनो बॅधे हुए थे। सूरज को बाॅधने के बाद मैं पलटा और एक तरफ रखी पानी की बाल्टी से एक मग पानी लेकर सूरज के चेहरे पर ज़ोर से उलट दिया। पानी का तेज़ प्रहार पड़ते ही सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वो दर्द से चीखने लगा।

"तुम हमारे साथ क्या करने वाले हो?" बाॅकी तीन मे से एक ने घबराते हुए पूछा___"देखो, हम मानते हैं कि हमने बहुत बड़ा गुनाह किया है और उसके लिए अगर तुम हमे गोली मार कर जान से मार भी दो तो हमें मंजूर है मगर ऐसे तड़पा तड़पा कर मत मारो भाई। प्लीज़ कुछ तो रहम करो। उस आदमी ने तो वैसे भी हम लोगों के वो सब करके हमें जान से ही मार दिया है। तुम क्या जानो कि उस हवशी ने हमारे पिछवाड़ों की क्या दुर्गत की है?"

"जब अपने पर बीतती है तभी एहसास होता है कि दर्द और तक़लीफ़ क्या होती है।" मैने उससे गुर्राते हुए कहा___"तुम लोगों को तब इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि जिन जिन लड़कियों के साथ तुम सबने कुकर्म किया है उन पर उस वक्त क्या गुज़री रही होगी?"

"सच कहा भाई।" एक दूसरे लड़के ने कहा___"लेकिन अब जो हो गया उसे लौटाया तो नहीं जा सकता न। हमें हमारे गुनाहों की इतनी सज़ाएॅ तो मिल ही चुकी हैं। तुम हमें एक ही बार में जान से मार दो। मगर वो सब न करो भाई जो तुम अपने मन सोचे बैठे हो। प्लीज भाई हम पर रहम करो।"

"शट-अऽऽऽप।" मैं पूरी शक्ति से दहाड़ा___"यहाॅ तुम लोगों की मर्ज़ी से कुछ नहीं होगा, बल्कि वही होगा जो मैं चाहूॅगा। मैं क्या चाहता हूॅ इसका पता जल्द ही तुम चारो को चल जाएगा।"

मैने इतना कहा ही था कि हरिया काका तहखाने में पुनः दाखिल हुए। उनके हाॅथ में वो सामान था जो मैने उनसे मॅगवाया था। यानी कि रेज़र ब्लेड और प्लास। मेरे हाॅथ में सामान पकड़ाने के बाद हरिया काका ने तहखाने का दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर एक तरफ खड़े हो गए। इधर सामान लिए मैं उस सामान को सरसरी तौर पर देख ही रहा था कि मेरा मोबाइल फोन बज उठा।
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हवेली पर!
अपने कमरे में रितू आराम कर रही थी। ऊपर छत के कुण्डे पर घूम रहे पंखे को एकटक घूर रही रितू के चेहरे पर इस वक्त गहन सोचो के भाव थे। उसके मन में कई सारी बाॅतें चल रही थीं। आज जब वह हवेली में आई तो उसका सामना अपने डैड से उस हिसाब से हो ही गया था जिसका उसे अंदेशा था कि देर सवेर ऐसा होगा ही।

उसके डैड ने उससे जो कुछ कहा था उससे अब ये बात खुल ही चुकी थी उनकी बेटी उनके पक्ष में नहीं है। उनके आदमी ने जो ख़बर उसके बारे में उसके डैड को दी थी उसका उसके पास कोई पुख्ता सबूत तो नहीं था किन्तु ज़हन में ये बात तो पड़ ही गई थी कि रितू किस तरफ करवॅट ले सकती है? हलाॅकि उसने अपनी तरफ से अपनी सफाई में अपने डैड को समझा बुझा तो दिया था किन्तु उसे ये भी एहसास था कि मौजूदा हालात में इस वक्त भले ही उसका बाप कोई कठोर क़दम उसके साथ न उठाये मगर जिस वक्त उसे पक्के तुर पर पता चल जाएगा कि उसके आदमी की वो ख़बर यकीनन सच ही थी तो वक्त अजय सिंह कोई भी कठोर क़दम उठा सकता है।

रितू के ज़हन में ये सारी बातें चल रही थीं। उसे इस बात का भी अंदेशा हो चुका था कि अब उसका बाप सच्चाई का पता लगाने के लिए संभव है कि उसके पीछे अपने आदमी लगा दे। उस सूरत में रितू को क्या करना था ये उसने भली भाॅति सोच लिया था। रितू अभी ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसका मोबाइल बज उठा। मोबाइल के बजने से वो सोच के गहरे सागर से हक़ीक़त की दुनियाॅ में आई और सिरहाने रखे मोबाइल को एक हाॅ से उठा कर उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे हरिया काका नाम को देखा तो उसके चेहरे पर सोच के भाव उभर आए।

"कहिए काका क्या बात है?" फिर उसने काल को रिसीव करते ही कहा।
"..........।" उधर से हरिया काका ने उसे जो कुछ बताया उसे सुन कर रितू बुरी तरह चौंक पड़ी थी। उसके चेहरे पर पल भर में चिंता व परेशानी के भाव उभर आए थे।

"ये आपने बहुत अच्छा किया काका।" रितू ने कहा___"जो मुझे फोन कर दिया आपने। ख़ैर, आप बाॅकी सबका ध्यान रखियेगा मैं बात करती हूॅ उससे।"

ये कह कर रितू ने काल कट कर दी। उसके चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव कम नहीं हो रहे थे। हरिया काका ने उसे फोन पर सारी बात बता दी थी कि विराज तहखाने में उन चारों लड़कों के साथ क्या करने वाला है। उसने ये भी बताया कि विराज इस वक्त गुस्से में आग बबूला हुआ पड़ा है और उससे रेज़र ब्लेड के साथ साथ एक प्लास भी मॅगवाया है। हरिया काका से बातें जानने के बाद रितू समझ गई कि विराज को अब सब कुछ पता चल गया है। इस लिए अब उसे डर था कि कहीं विराज उससे इस बात के लिए नाराज़ न हो जाए कि विधी के साथ इतना कुछ हुआ जिसे उसने विराज से नहीं बताया। इस परिस्थिति में वो क्या क़दम उठा लेगा इसका अंदाज़ लगाना मुश्किल था। यही बात थी कि रितू एकाएक चिन्तित व परेशान हो गई थी। काफी देर तक वो इन्हीं सब ख़यालों में खोई रही, उसके बाद उसने मोबाइल पर विराज का नंबर देख कर उसे काल लगा दिया। उसे अंदर से डर भी लग रहा था कि विराज जाने कैसा रियेक्ट करे उससे।

".........।" उधर से काल रिसीव किये जाने पर ही रितू के कानो में विराज की आवाज़ पड़ी। उसने उधर से कुछ कहा।
"तुम्हें मेरी कसम है मेरे भाई।" रितू ने बहुत ही संतुलित लहजे में कहा___"तुम जहाॅ पर हो वहाॅ से किसी को भी कुछ किये बग़ैर वापस बाहर आ जाओ। मैं जब आऊॅगी तो तुम्हें सब कुछ समझा दूॅगी।"

".........।" उधर से विराज ने कुछ कहा।
"प्लीज़ भाई।" रितू ने विनती सी की___"अपनी इस बहन की बात मान जाओ। बस एक बार। उसके बाद मैं खुद तुम्हें उस सबके लिए इजाज़त दे दूॅगी। मगर अभी मेरी बात मान जाओ और वहाॅ से बाहर आ जाओ।"

"..........।" उधर से विराज ने फिर से कुछ कहा।
"अभी तुझे कुछ पता नहीं है मेरे भाई।" रितू ने सहसा गंभार होकर कहा___"तू मेरे आने का इंतज़ार कर मैं तुझे सारी बातें बताऊॅगी और ये भी कि उससे और क्या करना चाहती हूॅ मैं?"

".........।" उधर से विराज ने कुछ कहा।
"हाॅ भाई।" रितू ने कहा___"मैं जल्द ही तेरे पास आ रही हूॅ। मगर फिलहाल तू वहाॅ से बाहर आ जा।"
"...........।" उधर से विराज ने फिर से कुछ कहा।
"थैंक्स मेरे स्वीट भाई।" रितू के चेहरे पर राहत के भाव उभरे___"यू आर सो स्वीट। लव यू सो मच।"

ये कह कर रितू ने मुस्कुराते हौए काल कट कर दी। कुछ देर तक जाने क्या सोचती रही वो। उसके बार वह बेड से उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। लगभग दस मिनट बाद वह बाथरूम से बाहर निकली और फिर पुलिस की यूनीफार्म पहन कर तथा सिर पर पीकैप व हाथ में पुलिसिया रुल लिये वह कमरे से बाहर आ गई।

रितू जैसे ही अपनी जिप्सी में बैठ कर हवेली से बाहर गई वैसे ही इधर प्रतिमा के कमरे की खिड़की से बाहर देखते हुए शिवा ने होठों पर मुस्कान सजाते हुए अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को फोन लगाया। एक मिनट से भी कम समय तक उसने किसी से फोन पर बात की उसने बाद उसने काल कट कर दी।

इधर हवेली से बाहर निकलते ही रितू ने भी किसी को फोन लगाया और उससे कुछ देर बात की। उसकी जिप्सी गाॅव से बाहर की तरफ जा रही थी। गाव से बाहर जाने वाले रास्ते से कुछ दूर जाने पर ही रितू को अपनी जिप्सी के पीछे एकाएक ही एक ब्लैक जीप आती बैक मिरर में दिखी। ये देख कर रितू के होठों पर मुस्कान फैल गई।

सौ मीटर के फाॅसले पर पीछे से आ रही कार रितू को बराबर बैक मिरर में दिख रही थी। हलाॅकि रितू समझ गई थी कि पीछे आ रही जीप में यकीनन उसके बाप का ही कोई आदमी है, लेकिन फिर भी पक्के तौर पर जाॅचने के लिए रितू ने मन बनाया। नहर पर बने पुल के पास पहुॅचते ही रितू ने बाॅए साइड वाले रास्ते की तरफ अपनी जिप्सी की मोड़ लिया। जबकि दाएॅ साइड के रास्ते में आगे उसका फार्महाउस पड़ता था।

सौ मीटर आगे जाने पर ही रितू को मिरर में वो जीप उसी रास्ते की तरफ मुड़ती दिखी। आगे लगभग पाॅच किलो मीटर की दूरी पर मोड़ था और वहीं से दूसरे गाॅव की आबादी शुरू होती थी। जिसकी वजह से मोड़ पर मुड़ने के बाद पीछे वाले को आगे वाला वाहन दिखाई नहीं देता था। आगे कुछ दूरी पर एक चौराहा पड़ता था। रितू ने जिप्सी को चौराहे पर एक साइड रोंका और उतर कर बगल में एक दुकान थी। वो दौकान तरफ बढ़ गई। दुकान से उसने एक पेप्सी की बाट ली और वहीं पर खड़े खड़े पीने लगी।

कुछ ही देर में उसे चौराहे की तरफ आती हुई वो जीप दिखी जिसमें उसके बाप का एक आदमी ड्राइविंग शीट पर बैठा था। चौराहे पर रितू की जिप्सी को देख उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे और फिर वो एकदम से जीप को तेज़ रफ्तार से दौड़ाते हुए चौराहे के पार निकल गया। उसकी इस हड़बड़ाहट को देख कर रितू के होठों पर मुस्कान उभर आई।

पेप्सी को पीकर रितू ने दुकान वाले को पैसे दिये और फिर सामने चौराहे के उस तरफ एक बार सरसरी तौर पर अपनी नज़र दौड़ाई जिस तरफ उसके बाप के आदमी की वो जीप गई थी। उसके बाद वो अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ी तथा उसमें बैठ कर जिप्सी को यू टर्न दिया और फिर वापस उसी रास्ते की तरफ बढ़ चली जिस तरफ से वो आई थी। इस बार रितू की जिप्सी की रफ्तार ज्यादा थी।

पुल के बगल से सीधा जो रस्ता था उसी तरफ उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी जा रही थी। बैक मिरर में उसकी नज़र बराबर थी। उसके पीछे लगी वो जीप उसे कहीं नज़र न आई। पुल से काफी दूर आकर रितू ने जिप्सी को एक ऐसी जगह पर सड़क से अलग करके खड़ी किया जिस जगह पर दाएॅ साइड काफी सारे पेड़ पौधे व झाड़ियाॅ थी। यहाॅ से सड़क पर से चल रहा कीई वाहन देखा तो जा सकता था किन्तु सड़क से इस तरफ का आसानी से देखा नहीं जा सकता था।

जिप्सी से उतर कर रितू ने सबसे पहले होलेस्टर में दबे अपने सर्विस रिवाल्वर को निकाला। रिवाल्वर का चेम्बर खोल कर उसने चेम्बर के सभी खानों को देखा। सभी खानों में गोलियाॅ मौजूद थीं। ये देख कर उसने चेम्बर को वापस बंद कर रिवाल्वर को होलेस्टर के हवाले किया और एक आगे बढ़ कर सड़क के कुछ पास ही एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई। इस वक्त उसके चहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे। बहुत ही धीमी आवाज़ में उसके मुख से निकला____"साॅरी डैड, अब आपका कोई भी आदमी मेरी ख़बर आप तक नहीं पहुॅचा पाएगा। इतना ही नहीं आप वो सब हर्गिज़ भी नहीं कर पाएॅगे जिस किही भी चीज़ के करने का आपने मंसूबा बनाया हुआ है। मेरे भाई के पास पहुॅचने वाले हर शख्स को सबसे पहले मुझसे टकराना होगा।"

चेहरे पर कठोरता और ऑखों में आग लिए रितू चुपचाप पेड़ के ओट में खड़ी उस जीप के आने का इन्तज़ार करने लगी थी। इन्तज़ार करते करते लगभग पन्द्रह मिनट गुज़र गए मगर अभी तक वो जीप इस तरफ आती समझ न आई। रितू को लगा वो जीप में बैठा आदमी आएगा भी या नहीं। किन्तु ऐसा नहीं था, क्योंकि तभी रितू के कानों में किसी वाहन के आने की आवाज़ सुनाई देने लगी थी।

कुछ ही देर में मोड़ से इस तरफ मुड़ती हुई वो जीप दिखी। रितू ने महसूस किया कि जीप की रफ़्तार कम थी। शायद वो आदमी धीमी रफ़्तार से इधर उधर का मुआयना करते हुए आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि जिसका वो पीछा कर रहा था वो इतना जल्दी कहाॅ गायब हो गई? इस तरफ मुड़ने के बाद आगे का रास्ता काफी दूर तक सीधा ही था। उस सीधे रास्ते पर दूर दूर तक उसे रितू दिखाई नहीं दे रही है। ये देखते देखते ही उसने जीप की रफ़्तार कम कर दी। रितू को लगा कि कहीं वो यहीं पर ही न रुक जाए और वही हुआ भी। उस आदमी ने सामने की तरफ देखते हुए ही जीप को एकदम से खड़ी कर दिया।

जीप खड़ी करने के बाद उसने इधर उधर देखा और फिर सहसा उसने अपनी शर्ट की जेब से मोबाइल निकाला। रितू को समझते न लगी कि वो शायद इस बात की सूचना उसके बाप को देना चाहता है कि रितू एकाएक ही उसकी नज़रों से ओझल हो गई है। रितू के मन में ख़याल आया कि उस आदमी को इस बात की सूचना नहीं दे पाना चाहिए। इस ख़याल के आते ही उसने बिजली की सी तेज़ी से ऐक्शन लिया।

जिस जगह पर रितू पेड़ के पीछे खड़ी थी वहाॅ से वो आदमी आगे की तरफ बाएॅ साइड से जीप में बैठा था। जीप ऊपर से पूरी तरह बेपर्दा टाइप की थी। ड्राइविंग शीट पर बैठा वो आदमी दाहिने हाॅथ पर मोबाइल लिए कुछ कर रहा था। रितू समझ गई कि वो उसके बाप को फोन लगाने ही वाला है। ये देख कर रितू ने होलेस्टर से रिवाल्वर निकाल कर निशाना लगाया और फिर.....धाॅयऽऽ।"

अचूक निशाना, रिवाल्वर से निकली गोली सीधा उस आदमी के दाहिने हाॅथ में मौजूद उसके मोबाइल की स्क्रीन के चिथड़े उड़ाती हुई पार होकर सामने जीप के शीशे से टकराई थी। अचानक हुए इस हमले से वो आदमी मानो सकते में आ गया था। दाहिने हाॅथ को अपने बाएॅ हाॅथ से थामे वह उसे सहलाने लगा था। ड्राइविंग शीट पर बैठा वो इधर उधर देखे जा रहा था।

इधर रितू फायर करते ही तेज़ी से जीप की तरफ बढ़ी। कुछ ही देर में वो जीप के पास पहुॅच गई। अपने इतने क़रीब इस तरह अचानक रितू के आ जाने से वो आदमी एकदम से हक्का बक्का रह गया था। चेहरे पर डर और घबराहट के भाव कत्थक करते नज़र आने लगे थे

रितू ने देर नहीं की बल्कि बिना किसी भूमिका के उसने दोनो हाॅथो से उस आदमी की शर्ट के कालर को पकड़ा और फिर एक झटके मे ही खींच कर ड्राइविंग शीट से बाहर खींच लिया। उस हट्टे कट्टे आदमी को बाहर खींच कर रितू ने उसे वहीं सड़क पर लगभग फटक दिया। आदमी के हलक से चीख़ निकल गई। रितू जानती थी कि उस आदमी ने अगर रितू को अपनी मजबूत बाहों में पकड़ लिया तो फिर उससे छूट पाना आसान नहीं होगा। इस लिए रितू ने उसे सम्हलने का मौका ही नहीं दिया। बल्कि लात घूॅसों पर रख दिया उसे।

सड़क पर गिरे हुए उस आदमी की सिर्फ चीखें निकल रही थी। सहसा उसके हाॅथ में रितू का पाॅव आ गया और उसने झटके से रितू का वो पाॅव पकड़ कर उछाल दिया। नतीजा ये हुआ कि रितू लहराते हुए सड़क पर पीठ के बल गिरी। रितू के मुख दर्द में डूबी हल्की सी चीख निकली। उधर उस आदमी को जैसे मौका मिल गया था। इस लिए वो झट से उठा और सम्हल कर उठ रही रितू के सिर के बाल पकड़ कर उसे जीप की तरफ ही झटके से धकेल दिया। रितू का सिर जीप के किनारे पर लगे मोटे लोहे के पाइप से टकराया। रितू की ऑखों के सामने तारे नाचने लगे और सहसा उसे अपनी ऑखों के सामने अॅधेरा सा दिखने लगा।

लोहे का वो पाइप रितू के सिर पर ज़ोर से लगा था। जिसके कारण तुरंत ही रितू के सिर से खून रिसने लगा था। अभी रितू दर्द को सहते हुए खुद को सम्हाल ही रही थी कि उस आदमी ने एक बार से उसके सिर को उसी लोहे के पाइप पर झटक दिया। रितू की चीख निकल गई। चोंट पर चोंट लगने से खून का रिसाव तेज़ हो गया।

"मैने मालिक से झूॅठ नहीं बोला था लड़की।" उस आदमी ने दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा___"उस दिन तू ही थी उस जीप में जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। मगर पक्के तौर पर चूॅकि किसी को पता नहीं था इस लिए मुझे भी लगा कि शायद उस जीप में तेरे सिवा कोई ही न रहा हो। दूसरी बात हम में से कोई ये सोच ही नहीं सकता था कि हमारे मालिक से गद्दारी करने वाली खुद मालिक की ही छोकरी होगी।"

ये सब कहने के साथ ही उस आदमी ने पीछे से एक मुक्का रितू के पेट के बगल पर रसीद कर दिया। हट्टे कट्टे आदमी का मुक्का लगते ही रितू को भयानक दर्द हुआ। उसकी घुटी घुटी सी चीख फिज़ा में फैल गई।

"तुझे पता है आज मालिक ने मुझे साफ साफ कहा है कि अगर गद्दार के रूप में तू ही निकले तो तुझे मैं खुद ही इस गद्दारी की सज़ा दूॅ।" उस आदमी ने कहा___"मालिक को इस बात से अब कोई मतलब नहीं रह गया है कि गद्दार कौन है। उनके लिए अपना और पराया सब बराबर हैं। इस लिए ऐ छोकरी, तू अब सज़ा पाने के लिए तैयार हो जा। मैं पहले तेरे इस खूबसूरत जिस्म का मज़ा लूटूॅगा और फिर तेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाऊॅगा। हाहाहाहाहा कसम से पहली बार लग रहा है कि मालिक की सेवा करने का कुछ अच्छा फल मिल रहा है।"

रितू के कानों से उस आदमी की ये सब बातें टकराई तो उसके अंदर गस्से की ज्वाला धधक उठी। उसने अपने दाहिने हाॅथ को पीछे ले जाकर उस आदमी के सिर को उसके बालों से पकड़ा और पूरी ताकत से ऊपर से आगे की तरफ खींचा। वो आदमी तो पीछे से आगे न आ पाया क्योंकि वो वजनदार और हट्टा कट्टा था किन्तु सिर के बाल इतनी तेज़ी से खींचे जाने पर उसके मुख से दर्द भरी सीत्कार गूॅज उठी। इसके साथ ही रितू के सिर के बालों पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई।

रितू ने एक पल का भी समय नहीं गवाॅया। उसके हाॅथ के नीचे से निकल कर उसने बिजली की सी तेज़ी से उस आदमी के बगल से आकर अपने दाहिने हाॅथ की कराट ज़ोर से उसकी गर्दन के पिछले भाग पर लगाई। नतीजा ये हुआ कि झोंक में उस आदमी का माॅथा उसी लोहे के पाइप से टकराया जिस पाइप पर अभी कुछ देर पहले रितू का सिर टकराया था। माॅथे पर लोहे का पाइप लगते ही वो आदमी दर्द से बिलबिलाया और दोनो हाॅथों से अपना माॅथा सहलाने लगा। पलक झपकते ही उसके माथे पर एक गोल सा गोला उभर आया जो हल्के नीले रंग का था।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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रितू को तेज़ गुस्सा आया हुआ था। इस बार वो रुकी नहीं बल्कि जूड़ो कराटे और कुंगफू के ऐसे करतब दिखाए कि दो मिनट में ही उस आदमी को धरासाई कर दिया। एक बार पुनः वो हट्टा कट्टा आदमी सड़क पर पड़ा था, किन्तु इस बार वो दर्द से बुरी तरह कराह रहा था।

"तेरे जैसे पालतू कुत्तों का इलाज़ बहुत अच्छी तरह से करना आता है मुझे।" रितू किसी शेरनी की भाॅति गुर्राई___"चल आज तुझे इसका ट्रेलर भी और इसका अंजाम भी दिखाऊॅगी। तेरे जैसे कुत्तों का और अपने उस हरामी बाप का क्या हस्र होगा ये वक्त ही बताएगा।"

रितू की बात उस आदमी ने कोई जवाब न दिया, बल्कि वो जवाब देने की हालत में ही नहीं रह गया था। रितू ने नीचे झुक कर उस आदमी की कनपटी के पास मौजूद एक ऐसी खास जगह पर कराट मारी कि पल भर में वो आदमी बेहोश हो गया। उसके बेहोश होते ही रितू ने उस आदमी के एक हाॅथ को पकड़ कर खींचते हुए सड़क के किनारे पर लगाया और फिर पलट कर उस तरफ बढ़ चली जिस तरफ उसने अपनी जिप्सी को झाड़ियों और पेड़ों के पीछे छुपाया था।

थोड़ी ही देर में रितू जिप्सी को लेकर सड़क पर आ गई। जिप्सी को उस आदमी के पास खड़ी कर वो जिप्सी से नीचे उतरी और फिर उस आदमी के बेहोश जिस्म को किसी तरह उठा कर जिप्सी के पीछे डाल दिया। उसके बाद वो उस जीप के पास गई जिसमें बैठ कर वो आदमी यहाॅ आया था। उस जीप के इग्नीशन से चाभी निकाल कर रितू ने अपनी पैन्ट की पाॅकेट में डाला और वापस जिप्सी के पास आकर ड्राइविंग शीट पर बैठ गई।

उस आदमी को वहीं पर छोंड़ कर रितू ने अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ दौड़ा दिया। ऑधी तूफान बनी जिप्सी कुछ ही समय में फार्महाउस पहुॅच गई। फार्महाउस के मेन गेट पर ही हरिया और शंकर काका खड़े दिखे रितू को। रितू को आते देख शंकर ने लोहे वाला गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी को गेट के अंदर की तरफ बढ़ा दिया। हरिया काका के पास जिप्सी को रोंक कर रितू ने अपनी पैन्ट की पाॅकेट से चाभी निकाली और शंकर की तरफ देखते हुए कहा___"शंकर काका मेरी गाड़ी से इस आदमी को बाहर निकाल कर वहीं तहखाने में डाल कर फटाफट आइये।"

"अच्छा बिटिया।" शंकर ने कहा और अपनी बंदूख को हरिया के हवाले कर जिप्सी के पास आया और उस आदमी को अपनी मजबूत बाहों से खींच कर बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उसे उसने अपने कंधे पर लादा और अंदर तहखाने वाले हिस्से की तरफ बढ़ गया।

"काका आप ये चाभी लीजिए।" रितू हरिया की तरफ चाभी उछालते हुए कहा___"और मेरी इस गाड़ी से शंकर काका को भी साथ ले जाइये। बीच रास्ते पर ही उस आदमी की जीप खड़ी मिलेगी आपको। उसे वहाॅ से यहाॅ लेकर आना है।"

"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम अभी शंकरवा का लइके जाथैं। लेकिन बिटिया ऊ ससुरा आदमी कउन है? अउर कहाॅ से मिल गवा ऊ तुमका?"
"मेरे डैड का पालतू कुत्ता है काका।" रितू ने नफ़रत के भाव से कहा___"मेरे डैड ने उसे मेरे पीछे लगाया हुआ था मेरी निगरानी के लिए। मैने उस कमीने को बीच में ही धर लिया और यहाॅ ले आई। अब आप इसकी भी ख़ातिरदारी कीजिएगा।"

"अरे बिलकुल बिटिया।" हरिया के चेहरे पर एकाएक ही खुशी के भाव उभरे लेकिन फिर जैसे उसे कुछ याद आया तो उसने फिर नार्मल भाव से कहा___"ऊ ससुरे की ख़ातिरदारी हम बहुत अच्छे से करूॅगा।"

तभी शंकर काका आता हुआ दिखाई दिया। उसके पास आते ही रितू ने उसे भी समझा दिया और हरिया के साथ अपनी जिप्सी से भेज दिया। उन दोनो के जाते ही रितू अंदर मकान की तरफ बढ़ चली।
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मैं रितू दीदी के कमरे में बड़ी बेचैनी से इधर से उधर टहल रहा था। रह रह कर सूरज की बातें मेरे ज़हन में ज़हर सा घोल रही थी। मुझे उन चारों पर भयानक गुस्सा आ रहा था। किन्तु दीदी ने फोन करके मुझे तहखाने से बाहर आ जाने के लिए कह दिया था। मुझे इस बात से बेहद तक़लीफ़ हो रही थी कि मेरी विधी के साथ कितना घिनौना कुकर्म किया गया था जिसके बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं था और ना ही ये सब किसी ने मुझसे बताया था। मैं सोच रहा था की अगर इत्तेफाक़ से या संयोगवश मैं हरिया काका के पीछे उस तहखाने में न जाता तो मुझे पता भी न चलता कि मेरी विधी के साथ और क्या हुआ था।

मुझे इस सबके लिए पवन और दीदी दोनो पर गुस्सा भी आ रहा था मगर मैं इस बात से खुद को तसल्ली दिये हुए था कि इन्हीं की वजह से ही तो मैं अपनी विधी को अंतिम बार मिल सका था। उसके त्याग और बलिदान को जान सका था वरना सारी ज़िंदगी मैं उस मासूम व निर्दोष को कोसता रहता। इस लिए ये सब सोच कर मैं अपने गुस्से को शान्त किये हुए था। मैने खुद को बहुत समझाया था तब जाकर मुझे कुछ राहत मिली थी और सबसे ज्यादा रितू दीदी पर प्यार आया कि उन्होंने मेरे और विधी के ख़ातिर कितना कुछ किया था।

मुझे एहसास था कि रितू दीदी अब पहले जैसी नहीं रही थी बल्कि अब वो बदल गई थी। बचपन से लेकर अब तक मेरे प्रति जो उनके अंदर द्वेष या नफ़रत का भाव था वो अब बेपनाह प्यार व स्नेह में परिवर्तित हो गया था। जिस रितू दीदी से बात करने के लिए मैं अक्सर तरसता था आज वही दीदी मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगी हैं। इस बात से मैं बेहद खुश भी था। किन्तु हालात के मद्दे नज़र मैं अपनी इस खुशी को ज़ाहिर नहीं कर पा रहा था। इस वक्त मैं उनके कमरे में टहलते हुए उनके आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रहा था।

तभी कमरे का दरवाजा खुला और पुलिस इन्स्पेक्टर की वर्दी में रितू दीदी ने कमरे में प्रवेश किया। मैं उन्हें आज पुलिस की वर्दी में देख कर देखता ही रह गया। उनके खूबसूरत बदन पर ये पुलिस की वर्दी काफी जॅच रही थी। ऐसा लगता था कि पुलिस की ये वर्दी सिर्फ उन्हीं के लिए ही बनी थी। मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख दीदी के होठों पर मुस्कान उभर आई और फिर सहसा उनके चेहरे पर हया की सुर्खी भी नज़र आने लगी।

"ऐसे क्यों देख रहा है राज?" रितू दीदी ने मीठी सी आवाज़ में नज़रें झुकाते हुए कहा।
"देख रहा हूॅ कि मेरी रितू दीदी इस पुलिस की वर्दी में कितनी खूबसूरत लग रही हैं।" मैने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"ऐसा लगता है कि ये वर्दी दुनियाॅ में सिर्फ आपके लिए ही बनी है।"

"अच्छा जी।" रितू दीदी हॅस दी, बोली___"क्या सच कह रहा है भाई?"
"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"आप तो मेरी वैसे भी दुनियाॅ की सबसे अच्छी और खूबसूरत दीदी हैं, ऊपर से इस पुलिस की यूनीफार्म पहने हुए। कसम से दीदी आप बहुत ही क्यूट और ब्यूटीफुल लग रही हैं। मेरी आपसे गुज़ारिश है कि आपने ये जो पुलिस की नौकरी छोंड़ का सोचा हुआ है उस सोच को आप अपने ज़हन से निकाल दें। मैं आपको हमेशा ऐसे ही पुलिस की इस वर्दी में देखना चाहता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने आगे बढ़ कर मेरे गालों पर सहलाते हुए कहा___"तो फिर अब तेरी ये दीदी पुलिस की नौकरी मरते दम तक नहीं छोंड़ेगी। भले ही चाहे जैसी भी परिस्थिति आ जाए। तुझे पता है राज, मेरी इस नौकरी से मेरे माॅम डैड और वो कमीना शिवा कोई भी खुश नहीं हैं। आज तेरे मुख से ये बात सुन कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं खुश हूॅ कि तुझे मेरा नौकरी करना और पुलिस की इस वर्दी में देखना अच्छा लग रहा है। काश! ये सब मैने बहुत पहले सोचा होता। मैने सोचा होता कभी तेरे बारे में तो कभी भी मैं तुझसे दूर न रहती। भाई क्या होता है ये मुझे अब पता चला है राज। वरना तो भाई के नाम से ही नफ़रत हो गई थी मुझे। तुझसे एक ही विनती है अपनी इस दीदी को कभी खुद से दूर न करना। मैंने अपने उन रिश्तों से नाता तोड़ लिया है जिन रिश्तों के द्वारा मेरा ये वजूद दुनियाॅ में आया है। अब अगर मेरा कोई है तो सिर्फ तू है मेरे भाई। जो गुज़र गया उसे तो मैं लौटा नहीं सकती राज मगर आज जो है और जो आने वाला है उसे सवाॅरने की पूरी कोशिश करूॅगी मैं। बस तू और तेरा साथ बना रहे। बोल न भाई, तू मुझे अपने साथ रखेगा न?"

ये सब कहते हुए रितू दीदी की ऑखों से ऑसू बहने लगे थे। मैने तड़प कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। वो मुझसे कस के लिपट गईं और खुद को ज़ार ज़ार न रोने की नाकाम कोशिश करने लगीं। मैं उन्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकता था। उनका कैरेक्टर हमेशा से ही बहादुर लड़की का रहा था मगर इस वक्त कोई देखे तो किसी कीमत पर यकीन करे कि ये लड़की बहादुर भी सकती है। बाहर से पत्थर की तरह कठोर दिखने वाली इस लड़की के सीने में भी एक नन्हा सा दिल है जो धड़कना भी जानता है अपनों के लिए।

"मत रोइये दीदी।" मैने उनकी पीठ को सहलाते हुए कहा___"आप रोते हुए बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती हैं। आप तो मेरी सबसे ज्यादा बहादुर दीदी हैं। चलिए अब चुप हो जाइये।"
"मुझे रो लेने दे राज।" दीदी मुझसे और भी कस के लिपट गईं, बोलीं____"तुझे नहीं पता कि जब से मुझे असलियत का पता चला है तब से मैं कितना अंदर ही अंदर इन वेदनाओं में झुलस रही हूॅ। वो कैसे लोग हैं मेरे भाई जो अपनी ही बहन बेटी के बारे में इतना गंदा सोच सकते हैं? वो कैसे लोग हैं राज जिनको रिश्तों की कोई क़दर ही नहीं है? सिर्फ अपनी हवस के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार बैठे हैं।"

"अब कुछ मत कहिए दीदी।" मैने दीदी को खुद से अलग कर उनके ऑसुओं से तर चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों के बीच लेकर कहा___"पाप करने वालों की उमर बहुत लम्बी नहीं होती है उनकी नियति में बहुत जल्द सड़ सड़ के मर जाना लिखा होता है। जो गुनाह जो पाप उन्होने किया है उसकी उन्हें ज़रूर सज़ा मिलेगी दीदी। बस वक्त का इन्तज़ार कीजिए।"

"तू उन सबको अपने हाॅथों से मौत की सज़ा देगा।" रितू दीदी ने कहा___"मैंने उन सबको सिर्फ तेरे लिए ही छोंड़ दिया था। मैं चाहती थी कि इन्होंने जिनके साथ पाप किया वही इन्हें अपने हाॅथों से सज़ा दें। और हाॅ, तू अपने मन में पल भर के लिए भी ये ख़याल मत लाना कि तू ऐसा करेगा तो मैं तुझे कुछ कहूॅगी। मैं सच कहती हूॅ राज, मुझे इस बात का ज़रा सा भी दुख नहीं होगा कि तूने मेरे माॅम डैड और शिवा को मौत दी।"

"आप शायद दुनियाॅ की पहली ऐसी लड़की हैं दीदी जिसे इस सबसे कोई दुख नहीं होगा।" मैने दीदी की ऑखों में देखते हुए कहा___"किन्तु आप ऐसा कह रही हैं ये हैरत की बात है मेये लिए।"
"इसमें हैरत कैसी राज?" रितू दीदी ने कहा___"हर इंसान को अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल मिलता है। मेरे घर वालों को भी मिलेगा। तक़लीफ़ तो तब होती है जब अच्छे कर्मों का फल बुरा मिलता है, लेकिन इन लोगों ने तो सिर्फ बुरा कर्म ही किया है अपनी ज़िंदगी में। इन लोगों के मर जाने से मुझे कोई दुख नहीं होगा मेरे भाई, बल्कि इस बात का मलाल ज़रूर रहेगा कि ईश्वर ने मुझे ऐसे माॅ बाप और ऐसा भाई क्यों दिया था?"

रितू दीदी की इन बातों को सुन कर मैं हैरानी से उनकी तरफ देखता रह गया था। मुझे उन पर बड़ा स्नेह आया। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हल्के से चूॅम लिया। मेरे इस तरह चूमने पर वो हौले से मुस्कुराईं।

"तू सच में बड़ा हो गया है राज।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए कहा___"इस बात से मुझे खुशी है कि तू बड़ा हो गया है और समझदार भी। हलाॅकि ये बात तो मैं पहले भी जानती थी कि तू एक समझदार लड़का है। सबके प्रति तेरे दिल में प्यार इज्ज़त व सम्मान की भावना है। ख़ैर छोंड़ इन सब बातों को, ये बता कि तू तहखाने में कैसे पहुॅच गया था?"

"वो हरिका काका के बिहैवियर से मुझे उन पर संदेह हुआ।" मैने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"आप तो जानती ही हैं कि अगर किसी के मन में किसी तरह का संदेह हो जाता है तो वो हर पल यही प्रयास करता रहता है कि उसे जिस चीज़ पर संदेह हुआ है वो उसके सामने साफ तौर पर खुल जाए या उसकी हकीक़त पता चल जाए। बस हरिया काका के मामले में यही हुआ था। मुझे उन पर संदेह हुआ और जैसे ही वो तहखाने वाले रास्ते की तरफ गए तो मैं भी शंकर काका की नज़रों से खुद को छुपा कर हरिया काका के पीछे चला गया। उनके पीछे जाने से तहखाने में जो सच्चाई मुझे पता चली उसने मुझे मुकम्मल तौर पर हिला कर रख दिया। मुझे पता चला कि तहखाने में मौजूद उन चारो हरामज़ादो ने मेरी विधी के साथ क्या किया था? उसके बाद फिर मुझे वही करना था जो ऐसी परिस्थिति में कोई भी करता। मगर ऐन वक्त पर आपका फोन आ गया और मैं उन कमीनों के साथ वो न कर पाया जो करने का मैने फैंसला कर लिया था।"

"मुझे माफ़ कर दे राज।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"पर तुझे नहीं पता कि उन लोगों के साथ साथ मैं और किन किन लोगों के साथ क्या क्या करने वाली हूॅ? इन चारों को आसान मौत मारने का कोई मतलब नहीं है मेरे भाई। मैंने ऐसा कुछ करने का सोचा हुआ है जिसके बारे किसी ने सोचा भी नहीं होगा।"

"क्या करने का सोचा है आपने?" मैने दीदी के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए कहा___"क्या मुझे नहीं बताएॅगी आप?"
"बात कुछ ऐसी है मेरे भाई।" रितू दीदी ने सहसा पलट कर दूसरी तरफ अपना चेहरा करते हुए कहा___"कि मैं तुझे बता नहीं सकती। बस इतना समझ ले कि इन लोगों ने अगर नीचता की हद को पार किया था तो मैं इन्हें सज़ा देने में इनके साथ नीचता की इन्तेहां कर दूॅगी।"

"क्या मतलब???" मैं दीदी की बात सुन कर बुरी तरह चौंका था___"ऐसा क्या करने वाली हैं आप??"
"मैने कहा न राज।" रितू दीदी ने दूसरी तरफ मुॅह किये हुए ही कहा___"कि मैं तुझे इस बारे में कुछ बता नहीं सकती।"
"लेकिन दीदी।" मैं उनके पास जाते हुए बोला___"आपने तो सोच लिया है कि आपको उन चारों को क्या सज़ा देना है लेकिन बात जब नीचता की हो तो मैं ये कैसे सह सकता हूॅ कि मेरी बहन कोई नीचता वाला काम करे? नहीं दीदी आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी। आप मुझे बताइये कि उन चारों के साथ साथ और कौन कौन ऐसे हैं जिनको उनके गुनाहों की सज़ा देनी है? मैं खुद अपने हाॅथों से उन्हें बद से बदतर सज़ा दूॅगा।"

"मुझे मजबूर मत कर मेरे भाई।" रितू दीदी सहसा मेरी तरफ पलट कर मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कहा__"तू मेरा भाई है, इस लिए मैं तुझे वो बात कैसे बता सकूॅगी जिसे बताने में मुझे शर्म आए। दूसरी बात तू भी यही सोचेगा कि तेरी दीदी कैसे गंदे विचारों की है?"

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी।" मैने उनके चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों के बीच लेकर कहा___"मुझे पता है कि आपका मन और दिल गंगा मइया की तरह साफ और निर्मल है। आपने अपने जीवन कभी कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसके लिए आपको किसी के सामने शर्मिंदा होना पड़े। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे आप पर नाज़ है। इस लिए आप मुझे बेझिझक होकर बताइये कि इन लोगों के साथ और कौन कौन हैं जिनको आप ऐसी सज़ा देने का मन बनाया हुआ है?"

"सूरज चौधरी को तो तू जानता ही है कि वो कौन है और किसका कपूत है?" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"इस प्रदेश का मंत्री है वो। सूरज के साथ बाॅकी तीन जो लड़के और हैं वो सब भी किसी न किसी बड़े बाप की औलाद हैं। जब विधी वाला हादसा इन लोगों ने अंजाम दिया और मुझे उन सबके बारे में पता चला तो मुझे ये समझते देर न लगी कि इन लड़कों को कानूनन सज़ा दिलवाने से भी कुछ नहीं होने वाला। क्योंकि इनके सबके बाप बड़े बड़े लोग हैं। सारी कानून ब्यवस्था को इन लोगों ने अपने हाॅथों पर रखा हुआ है। अगर मैं इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल भी देती तो पलक झपकते ही मुझे उन लोगों को छोंड़ना भी पड़ जाता। ऊपर से यही आर्डर आता कि मंत्री साहब का बेटा और उसके तीनो साथियों मैने बेवजह ही गिरफ़्तार कर जेल में बंद किया है। कहने का मतलब ये कि कानूनी तौर पर मैं इन्हें कोई सज़ा दिला ही नहीं पाती। इस लिए मैंने कानून की मुहाफिज़ होते हुए भी कानून को अपने हाॅथ में लेने का मन बना लिया। किन्तु मैं ये भी जानती थी कि ये सब इतना आसान नहीं था। तब मैने अपने आला अफसर से इस संबंध में बात की। उन्हें मैंने इस बात का भी हवाला दिया कि प्रदेश का मंत्री कहने को तो मंत्री है मगर ऐसा कोई गुनाह या अपराध नहीं है जिसे इसने अपने बाॅकी साथियों के साथ मिल कर अंजाम न दिया हो। मेरी बात सुन कर कमिश्नर साहब राज़ी तो हुए मगर मंत्री के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत न होने की वजह से उस पर हाॅथ डालने से मुझे मना भी करने लगे। तब मैने उन्हें बताया कि मेरे पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे ऐसे ठोस सबूत हैं जिनकी बिना पर मैं जब चाहूॅ तब उसे और उसके सभी साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा देने पर मजबूर कर दूॅ। मेरी बातें सुन कर कमिश्नर साहब ने मुझे खुली छूट दे दी और कह दिया कि मेरा जो दिल करे वो मैं कर सकती हूॅ।"

"ओह तो इसका मतलब बात सिर्फ इतनी ही नहीं है जितनी कि मुझे नज़र आ रही है।" मैने चकित भाव से दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"इस सब में प्रदेश का मंत्री और उसके कुछ साथी भी इनवाल्ब हैं?"
"इन्वाल्ब नहीं है राज।" रितू दीदी ने कहा___"बल्कि इस खेल में उन सबको भी लपेटना पड़ा मुझे। मैं चाहती थी कि एक ही काम में दोनो काम हो जाएॅ। सारा प्रदेश उस मंत्री के अत्याचार से भी दुखी है। इस लिए बाप बेटों को एक साथ लपेटने का मन बनाया मैने।"

"तो इसमें ऐसी क्या बात थी दीदी जिसे आप बताना नहीं चाहती थी?" मैने सोचने वाले भाव से कहा।
"ये तो मैने किरदारों के बारे में बताया है तुझे।" रितू दीदी ने कहा___"ये नहीं बताया कि इन सब किरदारों के साथ क्या करूॅगी मैं?"

"ओह आई सी।" मैने कहा___"आप बताना नहीं चाहती तो कोई बात नहीं दीदी। मैं सिर्फ ये चाहता हूॅ कि इस सब में आपको कुछ न हो। आपकी बातों से मैं ये बात समझ गया हूॅ कि जिन लोगों की आपने बात की है वो निहायत ही खतरनाक लोग हैं। इस लिए उन पर हाॅथ डालने से यकीनन बेहद ख़तरा है और मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि ऐसे ख़तरों के बीच मेरी दीदी अकेले फॅस जाएॅ। अच्छा हुआ कि आपने मुझे इस बारे में बता दिया। अब मैं खुद आपको इस ख़तरे के बीच अकेला नहीं रहने दूॅगा। ये लड़ाई अब हम दोनो बहन भाई मिल कर लड़ेंगे और जीत कर दिखाएॅगे दुनियाॅ को।"

"ये तू क्या कह रहा है मेरे भाई?" रितू दीदी एकाएक ही चौंक पड़ी थी, बोली___"नहीं नहीं, तू इस सबसे दूर ही रह। मैं तुझे ऐसे ख़तरे के बीच में आने की इजाज़त हर्गिज़ नहीं दूॅगी। बड़ी मुश्किल से तो मेरा भाई मुझे मिला है। सारी उमर मैने तुझे दुख तक़लीफ़ें दी थी अब और नहीं मेरे भाई। मैं तुझे किसी भी ख़तरे में नहीं डालूॅगी। तू इस सबसे दूर रहेगा और इन सबको साथ लेकर वापस मुम्बई चला जाएगा। तू मेरी फिक्र मत कर राज, तेरी दीदी इतनी कमज़ोर नहीं है कि कोई भी ऐरा गैरा उसे हाथ भी लगा सके।"

"मैं जानता हूॅ कि मेरी दीदी दुनियाॅ की सबसे बहादुर लड़की है।" मैने दीदी को उनके दोनो कंधों से पकड़ कर कहा___"मगर, एक भाई होने के नाते मेरा भी कुछ फर्ज़ बनता है। मैं सक्षम होते हुए भी आपको अकेले ऐसे ख़तरे में कैसे जाने दूॅ? मेरे दिल मेरा ज़मीर हमेशा इस बात के लिए मुझे धिक्कारेगा कि मैंने अकेले आपको इतने बड़े खतरे में जाने दिया और खुद अपनी जान बचा कर मुम्बई चला गया। नहीं दीदी, ऐसा कायर और बुजदिल नहीं है आपका भाई। आप भी तो मुझे मुद्दतों बाद मिली हैं। आप जानती हैं कि बचपन से अब तक मैं आपसे बात करने के लिए तरस रहा था और आज जब मुझे मेरी सबसे प्यारी दीदी मिल गई है तो मैं कैसे आपको यूॅ अकेला मौत के मुह में छोंड़ कर चला जाऊॅगा? कभी नहीं दीदी....कभी नहीं। मैं मर जाऊॅगा मखर आपको यूॅ अकेला छोंड़ कर यहाॅ से कहीं नहीं जाऊॅगा।"

"नहींऽऽऽ।" मेरे मुख से मरने की बात सुन कर तुरंत ही दीदी के मुख से चीख निकल गई। झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया उन्होंने, फिर बोलीं___"ख़बरदार अगर ऐसी अशुभ बात दुबारा कही तो। मरेंगे तेरे दुश्मन। तुझे कुछ नहीं होने दूॅगी मैं।"

"तो फिर मुझे अपने पास रहने दीजिए दीदी।" मैने उनके गले लगे हुए ही कहा___"मुझे अपना फर्ज़ निभाने दीजिए। अपने इस भाई को कायर और बुजदिल मत बनाइये। वरना यकीन मानिये मैं कभी भी सुकून से जी नहीं पाऊॅगा। हम दोनो साथ मिल कर हर ख़तरे का मुकाबला करेंगे। सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब साथ में ही रहेंगे। मुझे आपसे बहुत सारी बातें भी करनी हैं। प्लीज़ दीदी, मुझे अपने साथ रहने दीजिए न।"

"उफ्फ राज।" दीदी ने मुझे कस के पकड़ते हुए कहा___"तू इतना अच्छा क्यों है रे? इतना प्यार क्यों करता है तू अपनी इस दीदी से? क्या तू भूल गया कि ये वही दीदी है जिसने तुझे कभी अपना भाई नहीं माना और हमेशा तुझे जलील करके तेरा दिल दुखाया है। ऐसी दीदी से क्यों इतना प्यार करता है पगले?"

"मुझे आपसे कभी कोई दुख नहीं मिला दीदी।" मैं उनसे अलग होकर तथा उनके खूबसूरत चेहरे को अपनी हॅथेलियों पर लेकर कहा___"और ना ही आपने कभी मुझे कोई दुख दिया है। हर इंसान के जीवन में अच्छा बुरा समय आता है। इस लिए जो बीत गया मुझे उसका लेश मात्र भी रंज़ नहीं है, बल्कि आज इस बात की बेहद खुशी है कि मुझे वो दीदी मिल गई है जिसे मैं सबसे ज्यादा पसंद करता था।"

मेरी बात सुन कर रितू दीदी फफक कर रो पड़ी। उनकी ऑखों से झर झर करके ऑसूॅ बहने लगे। ये देख कर मैं तड़प उठा। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनकी ऑखों से बहते हुए ऑसुओं को पोंछा।

"ऐसी बातें मत कर मेरे भाई।" दीदी ने सिसकते हुए कहा___"मैं अपने अंदर के जज़्बातों को सम्हाल नहीं पाऊॅगी। मेरा दिल धड़कना बंद कर देगा। आज मुझे एहसास हुआ कि सच्चा प्यार व स्नेह कैसा होता है? क्यों इस प्यार में लोग अपने किसी प्रिय के लिए खुद को कुर्बान कर देते हैं? तू प्यार मोहब्बत और प्रेम का जीता जागता प्रमाण है राज। मैं अपने भाई के इस सच्चे प्रेम में बह जाना चाहती हूॅ। मुझे अपने से दूर मत करना मेरे भाई।"

"शान्त हो जाइये दीदी।" मैने दीदी को अपने सीने से लगा लिया फिर बोला___"अब बिलकुल भी आप रोएॅगी नहीं। चलिए जाइये फ्रेश हो जाइये उसके बाद हम सब साथ में खाना खाएॅगे।"
"हम्म।" दीदी ने बस इतना ही कहा और मुझसे अलग हो गईं। उनकी ऑखें रोने से हल्का सूझ गई थी। मेरी खुद की ऑखें भी नम थी।

"वो दीदी, करुणा चाची और उनके बच्चे कब तक आएॅगे यहाॅ?" मैने पहलू बदलते हुए पूछा दीदी से।
"अरे हाॅ मैं तो भूल ही गई थी राज।" रितू दीदी सहसा चौंकते हुए बोलीं___"उन्होंने कल फोन पर बताया था कि वो बच्चों को लेकर मामा जी के साथ आज यहाॅ शाम से पहले लगभग तीन बजे तक हल्दीपुर के पहले जो नहर का पुल है वहाॅ पहुॅच जाएॅगी।"

"ओह ठीक है दीदी।" मैने अपनी कलाई पर बॅधी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा___"अभी तो ढाई बज रहे हैं। मतलब आधे घण्टे में वो लोग पुल के पास पहुॅच जाएॅगे। एक काम करता हूॅ मैं आपकी जिप्सी लेकर उन्हें लेने जा रहा हूॅ।"
"नहीं नहीं।" रितू दीदी झट से बोल पड़ीं___"तू कहीं नहीं जाएगा। मैं हरिया काका को बोल दूॅगी वो ले आएॅगे उनको।"

"आपको नहीं लगता दीदी कि उन्हें लेने हमें खुद जाना चाहिए?" मैने कहा___"आख़िर वो हमारी चाची हैं। हरिया काका के भरोसे कैसे रह सकते हैं हम?"
"तो ठीक है राज।" दीदी ने कहा___"मैं खुद जा रही हूॅ उन्हें लेने।"
"मैं ये कह रहा हूॅ दीदी कि हम दोनो साथ में उन्हें लेने चलते हैं।" मैने कहा___"प्लीज़ दीदी मान जाइये न।"

"अच्छा ठीक है चल।" दीदी के होठों पर उनकी खूबसूरत सी मुस्कान उभर आई___"अपनी ज़िद तो तुझे छोंड़ना है नहीं न।"
"हाॅ तो।" मैने भी इस बार इठलाते हुए कहा___"आपसे छोटा हूॅ तो इतनी ज़िद तो आपसे करूॅगा ही और आपको मेरी ज़िद माननी ही पड़ेगी। हाॅ नहीं तो।"
"अरे तू ये तकिया कलाम कब से करने लगा?" रितू दीदी ने एकाएक ही चौंकते हुए कहा___"ये तकिया कलाम तो गुड़िया(निधी) का है न?"

"हाॅ दीदी।" मेरी ऑखों के सामने एकाएक ही निधी का चेहरा घूम गया___"हर बात में ये बोलना उसकी आदत बन चुकी है और पता है बहुत लाडली हो गई है। अपनी हर बात मनवा लेती है वो।"
"हाॅ वो ऐसी ही थी।" रितू दीदी कहीं खोई हुई सी नज़र आईं, बोली___"कैसी है अब वो?"

"सब कोई अच्छे से हैं दीदी।" मैने कहा___"माॅ गुड़िया और अभय चाचा सब।"
"काश मैं उन्हें देख पाती राज।" दीदी के चेहरे पर पीड़ा के भाव भर आए___"गौरी चाची और गुड़िया से मुआफ़ी माॅग पाती मैं।"
"ओफ्फो दीदी।" मैने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"ये सब आप क्यों कह रही हैं? प्लीज़ ये सब आप अपने ज़हन से निकाल दीजिए। अब इस बारे में आप खुद को दुखी नहीं करेंगी। अब चलिए वरना हम लेट हो जाएॅगे जाने में।"

मेरी बाय सुन कर दीदी ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनके होठों पर अपनी उॅगली रख कर उन्हें चुप करा दिया और उन्हें फ्रेश होने के लिए कह कर मैं कमरे से बाहर आ गया। बाहर आया तो मेरी नज़र दरवाजे के एक साइड खड़ी नैना बुआ पर पड़ी। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। शायद उन्होंने हमारी सारी बातें सुन ली थी। मुझे देखते ही उन्होंने जल्दी से अपनी साड़ी का एक छोर पकड़ कर अपने ऑसुओं को पोंछा। मैं उन्हें ये करते देख वहीं पर खड़ा हो गया।
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दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,
 

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