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"वाह भाई वाह क्या लच्छेदार बात कही है मेरे मादरचोद बेटे ने।" बापू की प्रशंशा में डूबी हुई आवाज़__"ये तो कमाल ही हो गया। इतनी बड़ी और इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में नहीं आई। जबकि तूने साबित कर दिया कि तू इस संसार का सबसे बड़ा वाला कमीना इंसान है।"
"बापू तारीफ़ करने का भला ये कौन सा तरीका है?" मदन ने हॅसते हुए कहा___"जगन ने ग़लत क्या कहा भला? सारी बातों को सोच कर उसने इस सबसे बचने की जो तरकीब बताई है वो यकीनन लाजवाब है। इस लिए अब हमें बिलकुल भी देर नहीं करना चाहिए। बल्कि तुरंत ही जगन की इस तरकीब पर अमल करना चाहिए।"
"सही कह रहा है तू।" बापू की आवाज़___"इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास। अतः अब हम जगन की इस तरकीब के अनुसार ही काम शुरू करते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"
उधर वो सब तरकीब पर अमल करने की बातें कर रहे थे जबकि इधर मेरे गुस्से की जैसे इंतहां हो गई थी। इतनी घटिया सोच और ऐसे पापी लोगों का इस समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। मेरे दिलो दिमाग़ उन सबके लिए घृणा और नफ़रत में निरंतर इज़ाफा होता चला गया था। मैं तुरंत ही अपनी जगह से हिला और लकड़ी की उस बाउंड्री के इस पार से चलते हुए घर के सामने की तरफ आया और सामने से अंदर की तरफ बढ़ चला।
बरामदे के बाहरी तरफ दीवार पर टेक लगा कर रखी हुई कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ी। मेरे जिस्म में दौड़ते हुए लहूॅ में जैसे एकदम से उबाल आ गया। मैं तेज़ी से उस कुल्हाड़ी की तरफ बढ़ा और उसे दाहिने हाॅथ से उठा कर बरामदे की तरफ बढ़ा। अंदर दाखिल होते ही मुझे जगन और मदन मेरी तरफ पीठ किये खड़े नज़र आए। इससे पहले कि कोई कुछ महसूस कर पाता मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की तरह चला और खचाऽऽक से जगन की गर्दन पर पड़ा। कुल्हाड़ी वार लगते ही जगन की गर्दन आगे की तरफ झूल गई। उसके कटे हुए धड़ से खून का मानो फब्बारा सा उठ गया। इधर मैं इतने पर ही नहीं रुका। बल्कि किसी के होश में आने से पहले ही एक बार पुनः मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की सी तेज़ी से चला और इस बार मदन के सीने में गड़ता चला गया। सीने में इस लिए कि वो ऐन वक्त पर मेरी तरफ घूम गया था।
पल भर में इस सबको देखते ही मेरी दोनो बहनों के हलक से चींखें निकल गई। बापू के सामने ही उसके पैरों के पास जगन मृत अवस्था में खून से लथ पथ पड़ा था। ये देख कर बापू को जैसे लकवा सा मार गया था। उसकी घिग्घी बॅध गई थी। इधर मेरी एक बहन मीना बाहर की तरफ तेजी से भागी। मैने पलट कर तेज़ी से कुल्हाड़ी चला दी। कुल्हाड़ी उड़ते हुए मीना की पीठ पर गड़ती चली गई और वो प्रहार के वेग में मुह के बल ज़मीन पर गिरी। वो मछली की तरह कुछ देर तड़पी और फिर शान्त पड़ गई। मैने आगे बढ़ कर उसकी पीठ से एक ही झटके में कुल्हाड़ी को खींच लिया।
उधर रीना के चिल्लाने से जैहे बापू को होश आया। अतः वो तुरंत उठा और कमरे के अंदर की तरफ शोर मचाते हुए भागा। उसके पीछे ही रीना भी भागी। कमरे के अंदर जा कर दोनो ने दरवाजे को बंद कर अपने अपने हाॅथों से दरवाजे पर ताकत से दबाव बढ़ा दिया।
"दरवाजा खोल बापू।" मैं कुल्हाड़ी लिए शेर की तरह गरज उठा था___"आज मेरे हाॅथों तुम सबकी मौत निश्चित है।"
"ये तूने किया शंकर?" अंदर से बापू की भय से काॅपती हुई आवाज़ आई___"तूने अपने हाॅथों अपने ही भाई और बहन को काट कर मार डाला। आख़िर ऐसा क्या हो गया है तुझे कि तूने ये नरसंघार कर दिया?"
"मुझसे क्या पूछता है हरामज़ादे?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"इस सबका कारण तो तू ही है। मैने तेरी और तेरे इन पिल्लों की सारी बातें सुन ली हैं। तूने अपने मतलब के लिए मेरी अम्मा को कुएॅ में गिरा कर मार डाला। उसके बाद तूने मेरी मासूम चंदा के भोले भाले बाप को फॅसा कर उसकी बेटी से ब्याह किया। सिर्फ इस लिए कि तू उस मासूम और निर्दोष के साथ मज़े कर सके और ये सब तूने उस मादरचोद जगन के कहने पर किया। ये बता कि तुझे एक बार भी नहीं लगा कि जो ते कहने जा रहा है वो सबसे बड़ा पाप है? अपनी ही बेटियों के साथ तू मुह काला करता है। तेरे दोनो बेटे अपनी ही बहन के साथ नाजायज़ संबंध बनाते हैं। इतना ही नहीं तू खुद भी उन के साथ ये सब करता है। अरे तुझसे बड़ा इस संसार में कौन होगा बापू? तूने दो पल के मज़े के लिए रिश्तों को भी नहीं बक्शा। मेरी देवी जैही माॅ को मार डाला तूने और तेरे इन पिल्लों ने।"
"ये सब झूॅठ है शंकर भाई।" रीना रोते बिलखते हुए चिल्ला पड़ी___"तुम जो समझ रहे हो वैसे कुछ भी नहीं है।"
"तू चुप कर बदजात लड़की।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया था, बोला___"तुझे तो अपनी बहन कहते हुए भी मुझे शर्म आती है ऐ बेहया। तुझमें इतनी ही हवश की आग भरी हुई थी तो कहीं भाग जाती किसी के साथ। कम से कम रिश्तों पर कलंक तो न लगता। मगर नहीं, तू अपने बाप और भाई की राॅड बन गई न। नहीं छोंड़ूॅगा, किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा। दरवाजा खोल वरना इसी कुल्हाड़ी से इस दरवाजे को काट काट कर टुकड़े टुकड़े कर दूॅगा और फिर वैसे ही टुकड़े तुम दोनो नाली के कीड़ों के करूॅगा।"
"हमें माफ़ कर दे शंकर।" बापू ने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हमसे सच में बहुत बड़ा पाप हो गया है। लेकिन आख़िरी बार माफ़ कर दे हमें। अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करेंगे हम। देख तूने अपने ही दो भाई और एक बहन को मार डाला। अब कम से कम हमें तो छोंड़ दे।"
"तू बाहर निकल बेटीचोद।" मैने चिल्लाया___"उसके बाद बताता हूॅ कि कैसे माफ़ करता हूॅ मैं?"
"भगवान के लिए भाई।" रीना बुरी तरह रो रही थी__"बस एक बार माफ़ कर दे। सच कहती हूॅ जीवन भर तेरी टट्टी खाऊॅगी मैं।"
"मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि दरवाजा खोल।" मैं गुस्से में चीखा___"वरना दरवाजे को काटने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा। उसके बाद मैं तुम दोनो का क्या हस्र करूॅगा तुम सोच भी नहीं सकते।"
"बेटा माफ़ कर दे न।" बापू गिड़गिड़ाया___"अरे मैं तेरा बाप हूॅ रे। तुझे बचपन से पाल पोष कर बड़ा किया है।"
"तो कौन सा बड़ा काम किया है तूने?" मैने कहा__"तू मुजे बचपन में ही मार देता तो अच्छा होता। कम से कम आज ये सब देखने सुनने को तो न मिलता। मेरी मासूम सी चंदा को तुम लोगों ने रौंद रौंद कर मार डाला। मेरी देवी जैसी अम्मा को मार डाला तुम लोगों ने। अगर तुम लोग मेरी अम्मा और चंदा को वापस मुझे लाकर दे दो तो माफ़ कर दूॅगा। वरना भूल जाओ कि मैं माफ़ कर दूॅगा तुम दोनो को।"
अंदर से कोई वाक्य न फूटा उन दोनों के मुख से। बस दोनो के रोने की आवाज़ें गूॅजती रही। मेरा गुस्सा प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था। मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैं कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करने लगा। मेरे ऐसा करते ही रीना और बापू ज़ोर ज़ोर से चीखने लगे और रहम की भीख माॅगने लगे। मगर मैं न रुका बल्कि लगातार कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करता चला गया। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही देर में लकड़ी का वो दरवाजा कट कट कर टुकड़ों में निकलने लगा। थोड़ी ही देर में मुझे रीना का हाॅथ नज़र आया जो दरवाजे पर टिका हुआ था। मैने गुस्से में आव देखा न ताव, कुल्हाड़ी का वार सीधा उसके हाॅथ पर किया। खचाऽऽऽच की आवाज़ के साथ ही रीना का हाॅथ उसकी कलाई से कट गया। खून का तेज़ फब्बारा उछल कर फैल गया। कलाई से हाॅथ कटते ही रीना की हृदय विदारक चीख गूॅज गई। वो दरवाजे से हट कर अपने दूसरे हाॅथ से कटे हुए हाॅथ को पकड़े पीछे हटती चली गई। उसका ये हाल देख कर बापू भी मारे डर के पीछे की तरफ भागा। दोनो के जाते ही दरवाजे पर से उन दोनो का दबाव हट गया।
मैने दरवाजे पर ज़ोर से एक लात मारी तो दरवाजा खुलता चला गया और इसके साथ ही उन दोनो की चीखना चिल्लाना भी बढ़ गया। मैं दरवाजे के अंदर दाखिल हुआ और उन दोनो की तरफ बढ़ने ही वाला था कि मेरी नज़र बगल से रखी चारपाई पर आधी लटकी हुई चंदा की नंगी लाश पर पड़ी। मेरे अंदर पीड़ा की तीब्र लहर दौड़ती चली गई। मेरी मोहब्बत का ये हाल किया था इन लोगों ने। ये देख कर ही मेरे अंदर भयंकर गुस्सा भर गया। मैं तेज़ी से उन दोनो की तरफ बढ़ा।
बापू और रीना रोने और चीखने की मशीन बन गए थे। उन दोनो के चेहरे मौत के डर से पीले ज़र्द पड़ गए थे। कमरे में हर तरफ रीना के कटे हुए हाॅथ का खून फैला हुआ था। मैं आखे बढ़ते हुए बापू के क़रीब गया यो बापू मेरे पैरों में गिर पड़ा। मैने अपने उस पैर को ज़ोर से झटक दिया जिस पैर पर बापू गिरा पड़ा था। झटका खाते ही बापू उछल कर पिछली दीवार से टकराया। मैं आगे बढ़ कर उसके पास गया और एक हाथ से उसके सिर के बालों को पकड़ कर उठा लिया। मैने देखा बापू के चेहरे पर मौत का भय साक्षात ताण्डव करता नज़र आ रहा था।
"अब बता मेरे हरामी बापू।" मैं गुर्राया___"इस कुल्हाड़ी से तेरे कितने टुकड़े करूॅ?"
"नहीं नहीं शंकर।" बुरी तरह काॅपते हुए कहा बापू बिलबिला उठा___"मुझे माफ़ कर दे बेटा। मैं तेरा बाप हूॅ। अपने आस पापी बाप को बस एक बार माफ़ कर दे।"
खचाऽऽऽक! कुल्हाड़ी का वार बिजली की सी तेज़ी से हुआ और कुल्हाड़ी का फल बापू की जाॅघ में घुस गया। बापू के हलक से हलाल होते बकरे जैसी आवाज़ निकली। जाॅघ से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा। तभी एक चीख मुझे अपने पीछे की तरफ सुनाई दी। मैं तेज़ी से पलटा तो देखा अपनी कलाई थामें रीना बाहर की तरफ भागी जा रही थी। उसके बाहर निकलते ही मैं भी पलट कर उसके पीछे भागा किन्तु तभी बाहर से कुछ लोग आ गए और मुझे पकड़ लिए। मैं उन लोगों की पकड़ से छूटने के लिए ज़ोर आजमाईश करने लगा। साथ ही चीखते हुए कहे भी जा रहा था कि___"मुझे छोंड़ दो वरना तुम सबको काट डालूॅगा इस कुल्हाड़ी से।"
मगर वो मुझे छोंड़ नहीं रहे थे। देखते ही देखते मेरे उस घर में लोगों का ताॅता लग गया। हर ब्यक्ति मेरे घर के इस भयानक दृष्य को देख कर आश्चर्यचकित था। उनकी ऑखें हैरत से फटी पड़ी थीं। मुझे पकड़े हुए लोग मुझसे पूछे जा रहे थे कि ये सब क्या है? मैने ये सब क्यों किया? मैने चीखते हुए उन सबको सारी बात संक्षेप में बताई। जिसे सुन कर हर कोई हक्का बक्का रह गया। कुछ लोगों की नज़र कमरे के अंदर कराह रहे बापू पर पड़ी तो वो भागते हुए बापू के पास गए। लोगों को देखते ही बापू की जान में जान आई और वो डर व भय से एक ही बात रटने लगा। वो ये कि मुझे इस लड़के से दूर ले चलो। ये मुझे मार डालेगा, काट डालेगा।
कुछ लोगों ने मिल कर बापू को सहारा देकर उठा लिया और कमरे से बाहर ले गए। इधर मैं काफी देर तक उन लोगों के चंगुल से निकलने की कोशिश करता रहा मगर निकल न सका। थक हार कर मैंने ज़ोर आजमाईश करना बंद कर दिया। ऐसे ही वो दिन गुज़र गया।
उस दिन गाॅव में इतना बड़ा संगीन काण्ड हुआ मगर किसी ने भी इस सबकी सूचना पुलिस को न दी। मैं हैरान भी था कि ऐसा लोगों ने क्यों किया? कुछ लोग रीना के पीछे भी गए थे मगर वो लोग खाली हाॅथ वापस आ गए। उन्हें रीना कहीं भी न मिली थी। बापू को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल ले गए थे कुछ लोग। मेरे दोनो भाई और एक बहन मीना की लाश को एक जगह लिटा कर उन्हें सफेद क़फन से ढॅक दिया गया था। कुछ औरतें कमरे के अंदर जाकर चंदा के नंगे जिस्म को किसी तरह ढॅक दिया था।
गाॅव वालों ने मुझसे सबकी चिता को आग देने के लिए कहा तो मैंने सिर्फ चंदा की चिता को आग लगाई जबकि अपने दोनो भाई व बहन को चिताग्नि देने से ये कह कर साफ मना कर दिया कि ये मेरे कोई नहीं थे। मेरे ऐसा कहने पर गाॅव के मेरी ही बिरादरी के एक आदमी ने आग दी थी। उस दिन पूरा दिन मेथे घर में लोगों की भीड़ रही। मैं एक जगह गुमसुम बैठा था। ख़ैर धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को चले गए।
उसी रात मैने वो गाॅव और वो घर हमेशा हमेशा के लिए त्याग दिया था। मुझे नहीं पता मैं कहाॅ कहाॅ बेवजह भटकता रहा? धीरे धीरे समय गुज़रा और इस घटना को घटे पाॅच साल गुज़र गए। मैं इन पाॅच सालों में कुछ हद तक सम्हल गया था। दो वक्त की रोटी के लिए जैसा भी काम मिलता तो करता और दो वक्त की रोटी खाकर दिन काटने लगा था।
ऐसे ही एक दिन एक ऐसे आदमी से मेरी मुलाक़ात हुई जो फौज में मेजर की पोस्ट से रिटायर होकर आया था। मुझमें अब तक काफी बदलाव आ गया था। सब कुछ भुला कर मैं अपने मन मर्ज़ी से जी खा रहा था। ख़ैर, उस मेज़र से मुलाक़ात हुई तो मैने उससे काम माॅगा। दरअसल मैं हर जगह भटकते भटकते उकता सा गया था इस लिए चाहता था कि कहीं ऐसी जगह कोई काम मिल जाए जिससे मुझे बार बार जगह न बदलना पड़े। मेरे काम माॅगने पर मेजर ने मेरी तरफ ग़ौर से देखा। मेरी कद काठी ठीक ठाक ही थी। वो मुझे देख कर मुस्कुराया और पूछा क्या काम कर सकते हो? मैने कहा कि मैं दुनियाॅ का हर काम कर लूॅगा लेकिन कोई ग़लत काम तो मैं हर्गिज़ भी न करूॅगा भले ही चाहे भूॅखा मर जाऊॅ।
मेरी इस बात से मेजर प्रभावित हुआ और मुझे अपने घर ले गया। मेजर का घर घर जैसा नहीं बल्कि कोई बॅगला दिख रहा था। मेजर ने मुझसे कहा कि आज से तुम इस बॅगले की देख रेख करोगे। फिर क्या था मैं मेजर के कहे अनुसार बॅगले की देख रेख करने लगा। बॅगले से कुछ दूरी पर सर्वेन्ट क्वार्टर बना हुआ था जहाॅ पर मुझे रहने के लिए मेजर ने कह दिया था। मेजर के अपने परिवार में उसकी एक जवान बेटी बस ही थी। उसकी बीवी कुछ साल पहले भगवान को प्यारी हो गई थी। उसने दूसरी शादी नहीं की थी। उसके लिए उसकी बेटी ही सब कुछ थी। मेजर का और भी परिवार था जैसे कि उसके बड़े भाई वगैरा।
मेजर ने मुझे बंदूख चलाना सिखा दिया था और चूॅकि वो फौजी बंदा था इस लिए उसके नियम कानून भी शख्त और पक्के थे। हर सुबह चार बजे उठना और फिर उसके साथ एक्सरसाइज़ करना, उसके साथ दौड़ लगाना। ये सब जैसे एक रुटीन सा बन गया था। मुझे अपने आप में ऐसा महसूस होता जैसे मैं भी मेजर की तरह एक फौजी आदमी था। मेजर की बेटी बहुत ही प्यारी बच्ची थी। रुपये पैसे का ज़रा भी घमंड नहीं था उसे। मैं भले ही छोटी जाति का था मगर कोई भी मुझे कहीं आने जाने से रोंकता नहीं था। एक तरह से मैं भी उस घर का सदस्य बन गया था। मेजर की बेटी मुझे दिन भर चाचू चाचू कह कर पुकारती रहती थी। पता नहीं उसे मुझमें ऐसा क्या नज़र आता था जिसकी वजह से वो मुझे बहुत स्नेह देती थी। वो बिलकुल किसी गुड़िया की तरह थी। मैं शुरू शुरू में उससे ज्यादा बात नहीं करता था। इसकी वजह ये थी कि मुझे लड़की व औरत जात से नफ़रत सी हो गई थी।
धीरे धीरे ऐसे वक्त गुज़रने लगा और मेजर के यहाॅ रहते हुए मुझे चार साल गुज़र गए। इन चार सालों में मैं मेजर और उसकी बेटी से इतना घुल मिल गया था कि मुझे लगता ही नहीं था कि मैं इनके लिए कोई पराया हूॅ। मेजर की बेटी को मैं अपनी बेटी की तरह मानता था और हर पल उसे खुश रहने की भगवान हे दुवाएॅ करता रहता था। उसे देख कर हर दुख दूर हो जाता था। मैं तो जैसे अपने अतीत का हर किस्सा भूल गया था। मगर फिर से एक बार मेरे नसीब में बुरा दिन आ गया। मेजर के बड़े भाई का लड़का पढ़ाई के सिलसिले में आया और फिर मेजर के ही बॅगले पर रहने लगा। मुझे उसकी शक्ल देख कर अजीब सा एहसास होता। हलाॅकि वो देखने में सुंदर गबरू जवान था किन्तु उसकी ऑखों में जाने ऐसा क्या था कि मुझे वो खटकने लगा था। ख़ैर, कुछ ही दिनों में मुझे समझ आ गया कि मुझे ऐसा क्यों लगता था।
मेजर का भतीजा बड़ा ही शातिर किस्म का लड़का था। वो मेजर के सामने उससे बहुत ही सलीके से बातें करता और ऐसा दर्शाता कि उसके जैसा संस्कारी लड़का दुनियाॅ जहाॅन में कहीं ढूॅढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। किन्तु मेजर के न रहने पर वो हमेशा मेजर की बेटी को जो कि खुद उसके सगे चाचा की ही बेटी थी यानी कि उसकी बहन थी तो वो उसे ताड़ता रहता था। उसकी ऑखों में हवस स्पष्ट दिखाई देती थी। मैं दिन में ज्यादातर बॅगले के बाहर मुख्य द्वार पर ही रहता था। बीच बीच में मैं इधर उधर का चक्कर लगाता और कभी कभी बॅगले के अंदर भी घूम आता। यही मेरे काम का तरीका नियम बद्ध था।
मैं मेजर के उस भतीजे के चलते मेजर की बेटी कुमुद के लिए बेहद चिंतित व परेशान होने लगा था। मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि उस नामुराद लड़के की नीयत कुमुद बेटिया पर ख़राब हो चुकी थी। मैने इस बारे में मेजर से इस लिए कुछ भी नहीं बताया था क्योंकि मेरे पास उस लड़के के खिलाफ़ कीई सबूत नहीं था। मेजर अपने भतीजे के प्रति मेरी वो सब बातें कभी न मानता बल्कि उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता और मुझे काम से भी निकाल देता। इस लिए मैं बस बेबस हो चुका था किन्तु मेरी पूरी कोशिश थी कि मेरे रहते वो लड़का अपने नापाक़ इरादों कभी कामयाब न हो सके। इस लिए वो जब भी अपने स्कूल या काॅलेज से वापस बॅगले में आता तो मैं कुछ देर के अंतराल में बॅगले के अंदर का चक्कर ज़रूर लगा आता और जाॅच परख लेता कि सब ठीक है कि नहीं।
ऐसे ही एक दिन की बात है कि वो लड़का अपने काॅलेज से जल्दी ही आ गया। मुझे उसके जल्दी आ जाने पर हैरानी तो हुई किन्तु मैं कर भी क्या सकता था। पर मुझे ऐसा आभास ज़रूर हुअ जैसे आज कुछ होने वाला है। ख़ैर, उसके अंदर जाने के कुछ देर बाद ही मैं भी अंदर चला गया। मैने बड़े एहतियात से हर जगह का मुआयना किया। मैं ये महसूस करके चौंका कि लड़का अपने कमरे में नहीं है। ये महसूस होते ही मैं सीधा कुमुद के कमरे की तरफ बढ़ गया। कुमुद के कमरे के पास आकर मैने देखा कि कमरे का दरवाजा हल्का खुला हुआ है। ये देख कर मैं चौंका। आमतौर पर कुमुद के कमरे का दरवाजा बंद ही रहता था। मैने हल्के खुले हुए दरवाजे से अंदर की तरफ झाॅका तो मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी। मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि वो लड़का कुमुद के कमरे के अटैच बाथरूम के दरवाजे के पास खड़ा है। उसका एक हाॅथ दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर था जबकि दूसरा हाथ नीचे की तरफ था। मुझे उसके दूसरे हाॅथ की कुहनी हिलती हुई प्रतीत हो रही थी। मेरे दिमाग़ ने काम किया। मैं समझ गया कि वो कमीना कुमुद बिटिया को नहाते हुए देख रहा है। बस इसके आगे मुझसे बरदास्त न हुआ। मुझे बेहद गुस्सा आ गया उस पर। मैं झटके से दरवाजा खोल कर अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा।
कमरे के अंदर आहट महसूस होते ही वो लड़का बुरी तरह चौंक कर पलटा और मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत सिर्फ कुछ पलों तक ही रही। उसके बाद उसने इस तरह से अपना रंग बदला कि भला गिरगिट क्या बदलता होगा। यहाॅ पर उसने इस कहावत को पूरी तरह सिद्ध कर दिया कि "उल्टा चोर कोतवाल को डाॅटे"। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाहिए था वही सब वो मुझे ऊॅची आवाज़ में कहने लगा था। उसके मुख से अपने लिए ये सब सुन कर मैं भौचक्का सा रह गया। हैरत व अविश्वास से मेरा मुह तथा मेरी फट पड़ी थी। जबकि वो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही देर में बाथरूम से कुमुद बिटिया कपड़े पहन कर बाहर निकली। मैने उसकी तरफ देखा तो चौंक गया, उसका चेहरा ऑसुओं से तर था और वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे बिना कुछ बोले ही ऑखों से कह रही हो कि___"क्यों चाचू, ऐसा क्यों किया तुमने? मैं तो आपकी बेटी जैसी ही हूॅ और आपको अपने पिता जैसा ही सम्मान देती हूॅ। फिर आपने मुझ पर गंदी नज़र डाली। क्यों चाचू क्यों? क्या आप हवस में इतने अंधे हो गए कि आपको मुझमें आपकी कुमुद बिटिया की जगह एक ऐसी लड़की दिखने लगी जिसके साथ अपनी हवस को मिटाया जाए?"
उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह दिया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई ज़रूरत नहीं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात समझ गया था। उसके चेहरे पर तुरंत ही हिकारत के भाव उभरे तथा उसमें शामिल हो गई घृणा। जिसके तहत उसने तुरंत ही अपना मुह फेर लिया जैसे अब वो मुझे देखना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दुनियाॅ बरबाद हो गई। चार सालों का मेरा विश्वास मेरा प्यार व स्नेह एक पल में ही जैसे नेस्तनाबूत हो गया था।
ये एहसास होते ही मेरे अंदर तीब्र पीड़ा हुई। मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मैने अपनी सफाई में कुछ भी कहना गवाॅरा न किया और मैं आगे भी कहना नहीं चाहता था। क्योंकि सबसे बड़ा होता है विश्वास। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मुझे तक़लीफ इसी बात पर हुई कि उस लड़की ने ये कैसे यकीन कर लिया कि मैंने उस पर गंदी नज़र डाली थी? उसे अपने भाई पर संदेह क्यों न हुआ जिसने सचमुच ही वो काम किया था। क्या सिर्फ इस लिए कि वो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?
वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बॅगले से निकल जाने के लिए कह दिया। मैं भी दुखी मन से उठा और अपनी बंदूख सम्हाले बॅगले से बाहर निकल गया। किन्तु मैं बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब के आने का इन्तज़ार था। मुझे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही वहाॅ से जाकर ये साबित नहीं करा देना चाहता था कि मैं वास्तव में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने जाकर ये दर्शाना चाहता था कि मैं गुनहगार नहीं हूॅ।
शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बॅगले पर लौट कर आए। मैं सारा दिन भूखों प्यासा मुख्य दरवाजे पर किसी गुलाम की तरह खड़ा रह गया था। रह रह कर मेरे मन में ख़याल आता कि यहाॅ से कहीं ऐसी जगह चला जाऊॅ जहाॅ से कोई इंसान दुबारा वापस नहीं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को अपना चेहरा दिखाना एक बार। मेरे अंदर औरत जात के प्रति जो नफ़रत कहीं खो सी गई थी वो फिर से उभर कर आ गई थी। ख़ैर, मेजर साहब आए और बॅगले के अंदर चले गए। मुझे पता था कि वो लड़का और कुमुद मेजर साहब को मिर्च मशाला लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। लेकिन मुझे परवाह नहीं थी अब। मुझे उम्मीद थी कि मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हर्गिज़ भी नहीं सोच सकते। आख़िर देश दुनियाॅ देखी थी उन्होंने। उनको इंसानों की पहचान थी।
मगर मेरी उम्मीदों पर बिजली उस वक्त गिरी जब मेजर साहब ने मुझे बुलाया और मुझे डाॅटना शुरू किया।
"हमें तुमसे ऐसे गंदे कर्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी शंकर।" मेजर साहब ने कड़ी आवाज़ में कहा___"हमें तुम पर कितना भरोसा था। हम तुम्हें कभी ग़ैर नहीं समझते थे। मगर तुमने अपनी ज़ात दिखा दी। शुरू में जब तुमने कहा था कि तुम दुनियाॅ का हर काम कर सकते हो लेकिन कोई ग़लत काम नहीं करोगे भले ही चाहे भूॅखों मर जाओ तो हम तुम्हारी उस बात से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर आज जो कुछ तुमने किया है उससे हमें बहुत दुख पहुॅचा है। हमारी बेटी तुम्हें हमारे जैसा ही पिता का सम्मान देती थी और तुमसे लाड प्यार करती मगर तुमने उस पर ही गंदी नज़र डाल दी। मन तो करता है कि तुमसे ये बंदूख छीन कर इसकी सारी गोलियाॅ तुम्हारे सीने में उतार दें मगर नहीं करेंगे ऐसा। इतने साल की वफ़ादारी का अगर यही इनाम लेना तो कोई बात नहीं।
मगर अब तुम्हारे लिए यहाॅ कोई जगह नहीं है। निकल जाओ यहाॅ से और दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना हमें वरना हमसे ये उम्मीद न करना कि हम तुम्हें ज़िंदा छोंड़ देंगे।"
बस, मेजर साहब की ये बातें सुन कर मैं बुरी तरह अंदर से टूट कर बिखर गया। मैं अब एक पल भी यहाॅ लुकना नहीं चाहता था। इस लिए घुटनों के बल बैठ कर मैने अपने कंधे से बंदूख निकाली और मेजर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड़ कर नमस्कार किया और फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया। मेरे अंदर ऑधी तूफान मचा हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार कर रोऊॅ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था। खड़े होकर मैने एक बार कुमुद बिटिया की तरफ देखा तो उसने जल्दी से अपना मुह फेर लिया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टूट कर हाल के फर्श पर गिर गया।
उसके बाद मैं एक पल के लिए भी नहीं रुका। वहाॅ से बाहर आकर मैं सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ अपने कमरे में गया और वहाॅ से अपना सामान एक थैले में भर कर कमरे से बाहर आ गया। बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर मैं एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके बाद बॅगले में क्या हुआ इसका मुझे कुछ पता नहीं। वहाॅ से आने के बाद मैं एक सुनसान जगह पर दिन भर यूॅ ही दुखी मन से बैठा रहा। ये संसार बहुत बड़ा था मगर इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे मैं अपना कहता। जो मुझे समझता और मेरे दुखों को महसूस करता। वर्षों पहले एक दुख से उबरा था, आज फिर एक दुख ने मुझे वहीं पर ले जाकर पटक दिया था। ख़ैर, समय का काम है बदलना। इस लिए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भूलने की कोशिशें करने लगा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। मैं कोई न कोई काम कर लेता जिससे मुजे दो वक्त की रोटी मिल सके और रातों को कहीं भी लेट कर सो जाता। यहीं मेरी ज़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक दिन हरिया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने मुझमें ऐसा क्या देखा कि ये मुझे यहाॅ ले आया और फिर मैं तब से यहीं का रह गया। यहाॅ पर हरिया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। बिंदिया भाभी में मुझे एक माॅ की झलक दिखने लगी और रितू बिटिया के रूप में एक ऐसी नेक दिल लड़की मिल गई जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मुझे उसमें अपनी बेटी ही नज़र आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपूर परिवार ही मिल गया है। लेकिन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि किसी दिन मेरी किस्मत और सबका वो भगवान फिर से न मुझसे रूठ जाए और मुझे फिर से उसी दुख दर्द में ले जाकर पटक दे जहाॅ से उबरने में मुझे एक युग लग जाता है।"
अपने गुज़रे हुए कल की दुख भरी कहानी बता कर शंकर ने गहरी साॅस ली और अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसुओं को पोंछा। उसके सामने ही खड़े हरिया व रितू की ऑखों में भी ऑसू थे। शंकर की कहानी में वो इतना डूब गए थे कि उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही वो सब घट रहा था।
हरिया को जाने क्या सूझा कि वो झपट कर शंकर को अपने गले से लगा लिया और फूट फूट कर रो पड़ा। शंकर उसे इस तरह रोता देख मुस्कुराया। ये अलग बात थी कि उसकी ऑखें भी बह चली थी। रितू आगे बढ़ कर उन दोनो को एक दूसरे से अलग किया।
"काका आपने अपने अंदर इतना बड़ा दुख छुपा के रखा हुआ था।" रितू ने दुखी मन से कहा___"जिसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही दुखदायी था। मगर आप चिंता मत कीजिए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दुख में जाने नहीं दूॅगी जिससे आपको जीने में तक़लीफ हो।"
"भगवान करे ऐसा ही हो बिटिया।" शंकर ने कहा__"मैं भी तुम लोगों को छोंड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। तुम सबसे इतना लगाव हो गया है कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो यकीनन ये दुख सहन नहीं कर पाऊॅगा मैं।"
"अरे तू फिकर काहे करथै ससुरे?" हरिया ने कहा__"हम अइसन अब कउनव सूरत मा न होंय देब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खुश रख। अउर हाॅ ई हमरा वादा हा कि हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुंदर लड़की से करब जउन तोहरी ऊ ससुरी बिंदिया भौजी जइसनै होई।"
हरिया की ये बात सुन कर शंकर और रितू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा रितू को कुछ याद आया।
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कहानी ज़ारी है अभी,,,,,,,,,,,,
"बापू तारीफ़ करने का भला ये कौन सा तरीका है?" मदन ने हॅसते हुए कहा___"जगन ने ग़लत क्या कहा भला? सारी बातों को सोच कर उसने इस सबसे बचने की जो तरकीब बताई है वो यकीनन लाजवाब है। इस लिए अब हमें बिलकुल भी देर नहीं करना चाहिए। बल्कि तुरंत ही जगन की इस तरकीब पर अमल करना चाहिए।"
"सही कह रहा है तू।" बापू की आवाज़___"इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास। अतः अब हम जगन की इस तरकीब के अनुसार ही काम शुरू करते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"
उधर वो सब तरकीब पर अमल करने की बातें कर रहे थे जबकि इधर मेरे गुस्से की जैसे इंतहां हो गई थी। इतनी घटिया सोच और ऐसे पापी लोगों का इस समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। मेरे दिलो दिमाग़ उन सबके लिए घृणा और नफ़रत में निरंतर इज़ाफा होता चला गया था। मैं तुरंत ही अपनी जगह से हिला और लकड़ी की उस बाउंड्री के इस पार से चलते हुए घर के सामने की तरफ आया और सामने से अंदर की तरफ बढ़ चला।
बरामदे के बाहरी तरफ दीवार पर टेक लगा कर रखी हुई कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ी। मेरे जिस्म में दौड़ते हुए लहूॅ में जैसे एकदम से उबाल आ गया। मैं तेज़ी से उस कुल्हाड़ी की तरफ बढ़ा और उसे दाहिने हाॅथ से उठा कर बरामदे की तरफ बढ़ा। अंदर दाखिल होते ही मुझे जगन और मदन मेरी तरफ पीठ किये खड़े नज़र आए। इससे पहले कि कोई कुछ महसूस कर पाता मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की तरह चला और खचाऽऽक से जगन की गर्दन पर पड़ा। कुल्हाड़ी वार लगते ही जगन की गर्दन आगे की तरफ झूल गई। उसके कटे हुए धड़ से खून का मानो फब्बारा सा उठ गया। इधर मैं इतने पर ही नहीं रुका। बल्कि किसी के होश में आने से पहले ही एक बार पुनः मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की सी तेज़ी से चला और इस बार मदन के सीने में गड़ता चला गया। सीने में इस लिए कि वो ऐन वक्त पर मेरी तरफ घूम गया था।
पल भर में इस सबको देखते ही मेरी दोनो बहनों के हलक से चींखें निकल गई। बापू के सामने ही उसके पैरों के पास जगन मृत अवस्था में खून से लथ पथ पड़ा था। ये देख कर बापू को जैसे लकवा सा मार गया था। उसकी घिग्घी बॅध गई थी। इधर मेरी एक बहन मीना बाहर की तरफ तेजी से भागी। मैने पलट कर तेज़ी से कुल्हाड़ी चला दी। कुल्हाड़ी उड़ते हुए मीना की पीठ पर गड़ती चली गई और वो प्रहार के वेग में मुह के बल ज़मीन पर गिरी। वो मछली की तरह कुछ देर तड़पी और फिर शान्त पड़ गई। मैने आगे बढ़ कर उसकी पीठ से एक ही झटके में कुल्हाड़ी को खींच लिया।
उधर रीना के चिल्लाने से जैहे बापू को होश आया। अतः वो तुरंत उठा और कमरे के अंदर की तरफ शोर मचाते हुए भागा। उसके पीछे ही रीना भी भागी। कमरे के अंदर जा कर दोनो ने दरवाजे को बंद कर अपने अपने हाॅथों से दरवाजे पर ताकत से दबाव बढ़ा दिया।
"दरवाजा खोल बापू।" मैं कुल्हाड़ी लिए शेर की तरह गरज उठा था___"आज मेरे हाॅथों तुम सबकी मौत निश्चित है।"
"ये तूने किया शंकर?" अंदर से बापू की भय से काॅपती हुई आवाज़ आई___"तूने अपने हाॅथों अपने ही भाई और बहन को काट कर मार डाला। आख़िर ऐसा क्या हो गया है तुझे कि तूने ये नरसंघार कर दिया?"
"मुझसे क्या पूछता है हरामज़ादे?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"इस सबका कारण तो तू ही है। मैने तेरी और तेरे इन पिल्लों की सारी बातें सुन ली हैं। तूने अपने मतलब के लिए मेरी अम्मा को कुएॅ में गिरा कर मार डाला। उसके बाद तूने मेरी मासूम चंदा के भोले भाले बाप को फॅसा कर उसकी बेटी से ब्याह किया। सिर्फ इस लिए कि तू उस मासूम और निर्दोष के साथ मज़े कर सके और ये सब तूने उस मादरचोद जगन के कहने पर किया। ये बता कि तुझे एक बार भी नहीं लगा कि जो ते कहने जा रहा है वो सबसे बड़ा पाप है? अपनी ही बेटियों के साथ तू मुह काला करता है। तेरे दोनो बेटे अपनी ही बहन के साथ नाजायज़ संबंध बनाते हैं। इतना ही नहीं तू खुद भी उन के साथ ये सब करता है। अरे तुझसे बड़ा इस संसार में कौन होगा बापू? तूने दो पल के मज़े के लिए रिश्तों को भी नहीं बक्शा। मेरी देवी जैही माॅ को मार डाला तूने और तेरे इन पिल्लों ने।"
"ये सब झूॅठ है शंकर भाई।" रीना रोते बिलखते हुए चिल्ला पड़ी___"तुम जो समझ रहे हो वैसे कुछ भी नहीं है।"
"तू चुप कर बदजात लड़की।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया था, बोला___"तुझे तो अपनी बहन कहते हुए भी मुझे शर्म आती है ऐ बेहया। तुझमें इतनी ही हवश की आग भरी हुई थी तो कहीं भाग जाती किसी के साथ। कम से कम रिश्तों पर कलंक तो न लगता। मगर नहीं, तू अपने बाप और भाई की राॅड बन गई न। नहीं छोंड़ूॅगा, किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा। दरवाजा खोल वरना इसी कुल्हाड़ी से इस दरवाजे को काट काट कर टुकड़े टुकड़े कर दूॅगा और फिर वैसे ही टुकड़े तुम दोनो नाली के कीड़ों के करूॅगा।"
"हमें माफ़ कर दे शंकर।" बापू ने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हमसे सच में बहुत बड़ा पाप हो गया है। लेकिन आख़िरी बार माफ़ कर दे हमें। अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करेंगे हम। देख तूने अपने ही दो भाई और एक बहन को मार डाला। अब कम से कम हमें तो छोंड़ दे।"
"तू बाहर निकल बेटीचोद।" मैने चिल्लाया___"उसके बाद बताता हूॅ कि कैसे माफ़ करता हूॅ मैं?"
"भगवान के लिए भाई।" रीना बुरी तरह रो रही थी__"बस एक बार माफ़ कर दे। सच कहती हूॅ जीवन भर तेरी टट्टी खाऊॅगी मैं।"
"मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि दरवाजा खोल।" मैं गुस्से में चीखा___"वरना दरवाजे को काटने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा। उसके बाद मैं तुम दोनो का क्या हस्र करूॅगा तुम सोच भी नहीं सकते।"
"बेटा माफ़ कर दे न।" बापू गिड़गिड़ाया___"अरे मैं तेरा बाप हूॅ रे। तुझे बचपन से पाल पोष कर बड़ा किया है।"
"तो कौन सा बड़ा काम किया है तूने?" मैने कहा__"तू मुजे बचपन में ही मार देता तो अच्छा होता। कम से कम आज ये सब देखने सुनने को तो न मिलता। मेरी मासूम सी चंदा को तुम लोगों ने रौंद रौंद कर मार डाला। मेरी देवी जैसी अम्मा को मार डाला तुम लोगों ने। अगर तुम लोग मेरी अम्मा और चंदा को वापस मुझे लाकर दे दो तो माफ़ कर दूॅगा। वरना भूल जाओ कि मैं माफ़ कर दूॅगा तुम दोनो को।"
अंदर से कोई वाक्य न फूटा उन दोनों के मुख से। बस दोनो के रोने की आवाज़ें गूॅजती रही। मेरा गुस्सा प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था। मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैं कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करने लगा। मेरे ऐसा करते ही रीना और बापू ज़ोर ज़ोर से चीखने लगे और रहम की भीख माॅगने लगे। मगर मैं न रुका बल्कि लगातार कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करता चला गया। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही देर में लकड़ी का वो दरवाजा कट कट कर टुकड़ों में निकलने लगा। थोड़ी ही देर में मुझे रीना का हाॅथ नज़र आया जो दरवाजे पर टिका हुआ था। मैने गुस्से में आव देखा न ताव, कुल्हाड़ी का वार सीधा उसके हाॅथ पर किया। खचाऽऽऽच की आवाज़ के साथ ही रीना का हाॅथ उसकी कलाई से कट गया। खून का तेज़ फब्बारा उछल कर फैल गया। कलाई से हाॅथ कटते ही रीना की हृदय विदारक चीख गूॅज गई। वो दरवाजे से हट कर अपने दूसरे हाॅथ से कटे हुए हाॅथ को पकड़े पीछे हटती चली गई। उसका ये हाल देख कर बापू भी मारे डर के पीछे की तरफ भागा। दोनो के जाते ही दरवाजे पर से उन दोनो का दबाव हट गया।
मैने दरवाजे पर ज़ोर से एक लात मारी तो दरवाजा खुलता चला गया और इसके साथ ही उन दोनो की चीखना चिल्लाना भी बढ़ गया। मैं दरवाजे के अंदर दाखिल हुआ और उन दोनो की तरफ बढ़ने ही वाला था कि मेरी नज़र बगल से रखी चारपाई पर आधी लटकी हुई चंदा की नंगी लाश पर पड़ी। मेरे अंदर पीड़ा की तीब्र लहर दौड़ती चली गई। मेरी मोहब्बत का ये हाल किया था इन लोगों ने। ये देख कर ही मेरे अंदर भयंकर गुस्सा भर गया। मैं तेज़ी से उन दोनो की तरफ बढ़ा।
बापू और रीना रोने और चीखने की मशीन बन गए थे। उन दोनो के चेहरे मौत के डर से पीले ज़र्द पड़ गए थे। कमरे में हर तरफ रीना के कटे हुए हाॅथ का खून फैला हुआ था। मैं आखे बढ़ते हुए बापू के क़रीब गया यो बापू मेरे पैरों में गिर पड़ा। मैने अपने उस पैर को ज़ोर से झटक दिया जिस पैर पर बापू गिरा पड़ा था। झटका खाते ही बापू उछल कर पिछली दीवार से टकराया। मैं आगे बढ़ कर उसके पास गया और एक हाथ से उसके सिर के बालों को पकड़ कर उठा लिया। मैने देखा बापू के चेहरे पर मौत का भय साक्षात ताण्डव करता नज़र आ रहा था।
"अब बता मेरे हरामी बापू।" मैं गुर्राया___"इस कुल्हाड़ी से तेरे कितने टुकड़े करूॅ?"
"नहीं नहीं शंकर।" बुरी तरह काॅपते हुए कहा बापू बिलबिला उठा___"मुझे माफ़ कर दे बेटा। मैं तेरा बाप हूॅ। अपने आस पापी बाप को बस एक बार माफ़ कर दे।"
खचाऽऽऽक! कुल्हाड़ी का वार बिजली की सी तेज़ी से हुआ और कुल्हाड़ी का फल बापू की जाॅघ में घुस गया। बापू के हलक से हलाल होते बकरे जैसी आवाज़ निकली। जाॅघ से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा। तभी एक चीख मुझे अपने पीछे की तरफ सुनाई दी। मैं तेज़ी से पलटा तो देखा अपनी कलाई थामें रीना बाहर की तरफ भागी जा रही थी। उसके बाहर निकलते ही मैं भी पलट कर उसके पीछे भागा किन्तु तभी बाहर से कुछ लोग आ गए और मुझे पकड़ लिए। मैं उन लोगों की पकड़ से छूटने के लिए ज़ोर आजमाईश करने लगा। साथ ही चीखते हुए कहे भी जा रहा था कि___"मुझे छोंड़ दो वरना तुम सबको काट डालूॅगा इस कुल्हाड़ी से।"
मगर वो मुझे छोंड़ नहीं रहे थे। देखते ही देखते मेरे उस घर में लोगों का ताॅता लग गया। हर ब्यक्ति मेरे घर के इस भयानक दृष्य को देख कर आश्चर्यचकित था। उनकी ऑखें हैरत से फटी पड़ी थीं। मुझे पकड़े हुए लोग मुझसे पूछे जा रहे थे कि ये सब क्या है? मैने ये सब क्यों किया? मैने चीखते हुए उन सबको सारी बात संक्षेप में बताई। जिसे सुन कर हर कोई हक्का बक्का रह गया। कुछ लोगों की नज़र कमरे के अंदर कराह रहे बापू पर पड़ी तो वो भागते हुए बापू के पास गए। लोगों को देखते ही बापू की जान में जान आई और वो डर व भय से एक ही बात रटने लगा। वो ये कि मुझे इस लड़के से दूर ले चलो। ये मुझे मार डालेगा, काट डालेगा।
कुछ लोगों ने मिल कर बापू को सहारा देकर उठा लिया और कमरे से बाहर ले गए। इधर मैं काफी देर तक उन लोगों के चंगुल से निकलने की कोशिश करता रहा मगर निकल न सका। थक हार कर मैंने ज़ोर आजमाईश करना बंद कर दिया। ऐसे ही वो दिन गुज़र गया।
उस दिन गाॅव में इतना बड़ा संगीन काण्ड हुआ मगर किसी ने भी इस सबकी सूचना पुलिस को न दी। मैं हैरान भी था कि ऐसा लोगों ने क्यों किया? कुछ लोग रीना के पीछे भी गए थे मगर वो लोग खाली हाॅथ वापस आ गए। उन्हें रीना कहीं भी न मिली थी। बापू को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल ले गए थे कुछ लोग। मेरे दोनो भाई और एक बहन मीना की लाश को एक जगह लिटा कर उन्हें सफेद क़फन से ढॅक दिया गया था। कुछ औरतें कमरे के अंदर जाकर चंदा के नंगे जिस्म को किसी तरह ढॅक दिया था।
गाॅव वालों ने मुझसे सबकी चिता को आग देने के लिए कहा तो मैंने सिर्फ चंदा की चिता को आग लगाई जबकि अपने दोनो भाई व बहन को चिताग्नि देने से ये कह कर साफ मना कर दिया कि ये मेरे कोई नहीं थे। मेरे ऐसा कहने पर गाॅव के मेरी ही बिरादरी के एक आदमी ने आग दी थी। उस दिन पूरा दिन मेथे घर में लोगों की भीड़ रही। मैं एक जगह गुमसुम बैठा था। ख़ैर धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को चले गए।
उसी रात मैने वो गाॅव और वो घर हमेशा हमेशा के लिए त्याग दिया था। मुझे नहीं पता मैं कहाॅ कहाॅ बेवजह भटकता रहा? धीरे धीरे समय गुज़रा और इस घटना को घटे पाॅच साल गुज़र गए। मैं इन पाॅच सालों में कुछ हद तक सम्हल गया था। दो वक्त की रोटी के लिए जैसा भी काम मिलता तो करता और दो वक्त की रोटी खाकर दिन काटने लगा था।
ऐसे ही एक दिन एक ऐसे आदमी से मेरी मुलाक़ात हुई जो फौज में मेजर की पोस्ट से रिटायर होकर आया था। मुझमें अब तक काफी बदलाव आ गया था। सब कुछ भुला कर मैं अपने मन मर्ज़ी से जी खा रहा था। ख़ैर, उस मेज़र से मुलाक़ात हुई तो मैने उससे काम माॅगा। दरअसल मैं हर जगह भटकते भटकते उकता सा गया था इस लिए चाहता था कि कहीं ऐसी जगह कोई काम मिल जाए जिससे मुझे बार बार जगह न बदलना पड़े। मेरे काम माॅगने पर मेजर ने मेरी तरफ ग़ौर से देखा। मेरी कद काठी ठीक ठाक ही थी। वो मुझे देख कर मुस्कुराया और पूछा क्या काम कर सकते हो? मैने कहा कि मैं दुनियाॅ का हर काम कर लूॅगा लेकिन कोई ग़लत काम तो मैं हर्गिज़ भी न करूॅगा भले ही चाहे भूॅखा मर जाऊॅ।
मेरी इस बात से मेजर प्रभावित हुआ और मुझे अपने घर ले गया। मेजर का घर घर जैसा नहीं बल्कि कोई बॅगला दिख रहा था। मेजर ने मुझसे कहा कि आज से तुम इस बॅगले की देख रेख करोगे। फिर क्या था मैं मेजर के कहे अनुसार बॅगले की देख रेख करने लगा। बॅगले से कुछ दूरी पर सर्वेन्ट क्वार्टर बना हुआ था जहाॅ पर मुझे रहने के लिए मेजर ने कह दिया था। मेजर के अपने परिवार में उसकी एक जवान बेटी बस ही थी। उसकी बीवी कुछ साल पहले भगवान को प्यारी हो गई थी। उसने दूसरी शादी नहीं की थी। उसके लिए उसकी बेटी ही सब कुछ थी। मेजर का और भी परिवार था जैसे कि उसके बड़े भाई वगैरा।
मेजर ने मुझे बंदूख चलाना सिखा दिया था और चूॅकि वो फौजी बंदा था इस लिए उसके नियम कानून भी शख्त और पक्के थे। हर सुबह चार बजे उठना और फिर उसके साथ एक्सरसाइज़ करना, उसके साथ दौड़ लगाना। ये सब जैसे एक रुटीन सा बन गया था। मुझे अपने आप में ऐसा महसूस होता जैसे मैं भी मेजर की तरह एक फौजी आदमी था। मेजर की बेटी बहुत ही प्यारी बच्ची थी। रुपये पैसे का ज़रा भी घमंड नहीं था उसे। मैं भले ही छोटी जाति का था मगर कोई भी मुझे कहीं आने जाने से रोंकता नहीं था। एक तरह से मैं भी उस घर का सदस्य बन गया था। मेजर की बेटी मुझे दिन भर चाचू चाचू कह कर पुकारती रहती थी। पता नहीं उसे मुझमें ऐसा क्या नज़र आता था जिसकी वजह से वो मुझे बहुत स्नेह देती थी। वो बिलकुल किसी गुड़िया की तरह थी। मैं शुरू शुरू में उससे ज्यादा बात नहीं करता था। इसकी वजह ये थी कि मुझे लड़की व औरत जात से नफ़रत सी हो गई थी।
धीरे धीरे ऐसे वक्त गुज़रने लगा और मेजर के यहाॅ रहते हुए मुझे चार साल गुज़र गए। इन चार सालों में मैं मेजर और उसकी बेटी से इतना घुल मिल गया था कि मुझे लगता ही नहीं था कि मैं इनके लिए कोई पराया हूॅ। मेजर की बेटी को मैं अपनी बेटी की तरह मानता था और हर पल उसे खुश रहने की भगवान हे दुवाएॅ करता रहता था। उसे देख कर हर दुख दूर हो जाता था। मैं तो जैसे अपने अतीत का हर किस्सा भूल गया था। मगर फिर से एक बार मेरे नसीब में बुरा दिन आ गया। मेजर के बड़े भाई का लड़का पढ़ाई के सिलसिले में आया और फिर मेजर के ही बॅगले पर रहने लगा। मुझे उसकी शक्ल देख कर अजीब सा एहसास होता। हलाॅकि वो देखने में सुंदर गबरू जवान था किन्तु उसकी ऑखों में जाने ऐसा क्या था कि मुझे वो खटकने लगा था। ख़ैर, कुछ ही दिनों में मुझे समझ आ गया कि मुझे ऐसा क्यों लगता था।
मेजर का भतीजा बड़ा ही शातिर किस्म का लड़का था। वो मेजर के सामने उससे बहुत ही सलीके से बातें करता और ऐसा दर्शाता कि उसके जैसा संस्कारी लड़का दुनियाॅ जहाॅन में कहीं ढूॅढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। किन्तु मेजर के न रहने पर वो हमेशा मेजर की बेटी को जो कि खुद उसके सगे चाचा की ही बेटी थी यानी कि उसकी बहन थी तो वो उसे ताड़ता रहता था। उसकी ऑखों में हवस स्पष्ट दिखाई देती थी। मैं दिन में ज्यादातर बॅगले के बाहर मुख्य द्वार पर ही रहता था। बीच बीच में मैं इधर उधर का चक्कर लगाता और कभी कभी बॅगले के अंदर भी घूम आता। यही मेरे काम का तरीका नियम बद्ध था।
मैं मेजर के उस भतीजे के चलते मेजर की बेटी कुमुद के लिए बेहद चिंतित व परेशान होने लगा था। मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि उस नामुराद लड़के की नीयत कुमुद बेटिया पर ख़राब हो चुकी थी। मैने इस बारे में मेजर से इस लिए कुछ भी नहीं बताया था क्योंकि मेरे पास उस लड़के के खिलाफ़ कीई सबूत नहीं था। मेजर अपने भतीजे के प्रति मेरी वो सब बातें कभी न मानता बल्कि उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता और मुझे काम से भी निकाल देता। इस लिए मैं बस बेबस हो चुका था किन्तु मेरी पूरी कोशिश थी कि मेरे रहते वो लड़का अपने नापाक़ इरादों कभी कामयाब न हो सके। इस लिए वो जब भी अपने स्कूल या काॅलेज से वापस बॅगले में आता तो मैं कुछ देर के अंतराल में बॅगले के अंदर का चक्कर ज़रूर लगा आता और जाॅच परख लेता कि सब ठीक है कि नहीं।
ऐसे ही एक दिन की बात है कि वो लड़का अपने काॅलेज से जल्दी ही आ गया। मुझे उसके जल्दी आ जाने पर हैरानी तो हुई किन्तु मैं कर भी क्या सकता था। पर मुझे ऐसा आभास ज़रूर हुअ जैसे आज कुछ होने वाला है। ख़ैर, उसके अंदर जाने के कुछ देर बाद ही मैं भी अंदर चला गया। मैने बड़े एहतियात से हर जगह का मुआयना किया। मैं ये महसूस करके चौंका कि लड़का अपने कमरे में नहीं है। ये महसूस होते ही मैं सीधा कुमुद के कमरे की तरफ बढ़ गया। कुमुद के कमरे के पास आकर मैने देखा कि कमरे का दरवाजा हल्का खुला हुआ है। ये देख कर मैं चौंका। आमतौर पर कुमुद के कमरे का दरवाजा बंद ही रहता था। मैने हल्के खुले हुए दरवाजे से अंदर की तरफ झाॅका तो मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी। मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि वो लड़का कुमुद के कमरे के अटैच बाथरूम के दरवाजे के पास खड़ा है। उसका एक हाॅथ दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर था जबकि दूसरा हाथ नीचे की तरफ था। मुझे उसके दूसरे हाॅथ की कुहनी हिलती हुई प्रतीत हो रही थी। मेरे दिमाग़ ने काम किया। मैं समझ गया कि वो कमीना कुमुद बिटिया को नहाते हुए देख रहा है। बस इसके आगे मुझसे बरदास्त न हुआ। मुझे बेहद गुस्सा आ गया उस पर। मैं झटके से दरवाजा खोल कर अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा।
कमरे के अंदर आहट महसूस होते ही वो लड़का बुरी तरह चौंक कर पलटा और मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत सिर्फ कुछ पलों तक ही रही। उसके बाद उसने इस तरह से अपना रंग बदला कि भला गिरगिट क्या बदलता होगा। यहाॅ पर उसने इस कहावत को पूरी तरह सिद्ध कर दिया कि "उल्टा चोर कोतवाल को डाॅटे"। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाहिए था वही सब वो मुझे ऊॅची आवाज़ में कहने लगा था। उसके मुख से अपने लिए ये सब सुन कर मैं भौचक्का सा रह गया। हैरत व अविश्वास से मेरा मुह तथा मेरी फट पड़ी थी। जबकि वो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही देर में बाथरूम से कुमुद बिटिया कपड़े पहन कर बाहर निकली। मैने उसकी तरफ देखा तो चौंक गया, उसका चेहरा ऑसुओं से तर था और वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे बिना कुछ बोले ही ऑखों से कह रही हो कि___"क्यों चाचू, ऐसा क्यों किया तुमने? मैं तो आपकी बेटी जैसी ही हूॅ और आपको अपने पिता जैसा ही सम्मान देती हूॅ। फिर आपने मुझ पर गंदी नज़र डाली। क्यों चाचू क्यों? क्या आप हवस में इतने अंधे हो गए कि आपको मुझमें आपकी कुमुद बिटिया की जगह एक ऐसी लड़की दिखने लगी जिसके साथ अपनी हवस को मिटाया जाए?"
उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह दिया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई ज़रूरत नहीं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात समझ गया था। उसके चेहरे पर तुरंत ही हिकारत के भाव उभरे तथा उसमें शामिल हो गई घृणा। जिसके तहत उसने तुरंत ही अपना मुह फेर लिया जैसे अब वो मुझे देखना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दुनियाॅ बरबाद हो गई। चार सालों का मेरा विश्वास मेरा प्यार व स्नेह एक पल में ही जैसे नेस्तनाबूत हो गया था।
ये एहसास होते ही मेरे अंदर तीब्र पीड़ा हुई। मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मैने अपनी सफाई में कुछ भी कहना गवाॅरा न किया और मैं आगे भी कहना नहीं चाहता था। क्योंकि सबसे बड़ा होता है विश्वास। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मुझे तक़लीफ इसी बात पर हुई कि उस लड़की ने ये कैसे यकीन कर लिया कि मैंने उस पर गंदी नज़र डाली थी? उसे अपने भाई पर संदेह क्यों न हुआ जिसने सचमुच ही वो काम किया था। क्या सिर्फ इस लिए कि वो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?
वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बॅगले से निकल जाने के लिए कह दिया। मैं भी दुखी मन से उठा और अपनी बंदूख सम्हाले बॅगले से बाहर निकल गया। किन्तु मैं बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब के आने का इन्तज़ार था। मुझे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही वहाॅ से जाकर ये साबित नहीं करा देना चाहता था कि मैं वास्तव में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने जाकर ये दर्शाना चाहता था कि मैं गुनहगार नहीं हूॅ।
शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बॅगले पर लौट कर आए। मैं सारा दिन भूखों प्यासा मुख्य दरवाजे पर किसी गुलाम की तरह खड़ा रह गया था। रह रह कर मेरे मन में ख़याल आता कि यहाॅ से कहीं ऐसी जगह चला जाऊॅ जहाॅ से कोई इंसान दुबारा वापस नहीं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को अपना चेहरा दिखाना एक बार। मेरे अंदर औरत जात के प्रति जो नफ़रत कहीं खो सी गई थी वो फिर से उभर कर आ गई थी। ख़ैर, मेजर साहब आए और बॅगले के अंदर चले गए। मुझे पता था कि वो लड़का और कुमुद मेजर साहब को मिर्च मशाला लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। लेकिन मुझे परवाह नहीं थी अब। मुझे उम्मीद थी कि मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हर्गिज़ भी नहीं सोच सकते। आख़िर देश दुनियाॅ देखी थी उन्होंने। उनको इंसानों की पहचान थी।
मगर मेरी उम्मीदों पर बिजली उस वक्त गिरी जब मेजर साहब ने मुझे बुलाया और मुझे डाॅटना शुरू किया।
"हमें तुमसे ऐसे गंदे कर्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी शंकर।" मेजर साहब ने कड़ी आवाज़ में कहा___"हमें तुम पर कितना भरोसा था। हम तुम्हें कभी ग़ैर नहीं समझते थे। मगर तुमने अपनी ज़ात दिखा दी। शुरू में जब तुमने कहा था कि तुम दुनियाॅ का हर काम कर सकते हो लेकिन कोई ग़लत काम नहीं करोगे भले ही चाहे भूॅखों मर जाओ तो हम तुम्हारी उस बात से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर आज जो कुछ तुमने किया है उससे हमें बहुत दुख पहुॅचा है। हमारी बेटी तुम्हें हमारे जैसा ही पिता का सम्मान देती थी और तुमसे लाड प्यार करती मगर तुमने उस पर ही गंदी नज़र डाल दी। मन तो करता है कि तुमसे ये बंदूख छीन कर इसकी सारी गोलियाॅ तुम्हारे सीने में उतार दें मगर नहीं करेंगे ऐसा। इतने साल की वफ़ादारी का अगर यही इनाम लेना तो कोई बात नहीं।
मगर अब तुम्हारे लिए यहाॅ कोई जगह नहीं है। निकल जाओ यहाॅ से और दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना हमें वरना हमसे ये उम्मीद न करना कि हम तुम्हें ज़िंदा छोंड़ देंगे।"
बस, मेजर साहब की ये बातें सुन कर मैं बुरी तरह अंदर से टूट कर बिखर गया। मैं अब एक पल भी यहाॅ लुकना नहीं चाहता था। इस लिए घुटनों के बल बैठ कर मैने अपने कंधे से बंदूख निकाली और मेजर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड़ कर नमस्कार किया और फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया। मेरे अंदर ऑधी तूफान मचा हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार कर रोऊॅ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था। खड़े होकर मैने एक बार कुमुद बिटिया की तरफ देखा तो उसने जल्दी से अपना मुह फेर लिया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टूट कर हाल के फर्श पर गिर गया।
उसके बाद मैं एक पल के लिए भी नहीं रुका। वहाॅ से बाहर आकर मैं सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ अपने कमरे में गया और वहाॅ से अपना सामान एक थैले में भर कर कमरे से बाहर आ गया। बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर मैं एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके बाद बॅगले में क्या हुआ इसका मुझे कुछ पता नहीं। वहाॅ से आने के बाद मैं एक सुनसान जगह पर दिन भर यूॅ ही दुखी मन से बैठा रहा। ये संसार बहुत बड़ा था मगर इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे मैं अपना कहता। जो मुझे समझता और मेरे दुखों को महसूस करता। वर्षों पहले एक दुख से उबरा था, आज फिर एक दुख ने मुझे वहीं पर ले जाकर पटक दिया था। ख़ैर, समय का काम है बदलना। इस लिए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भूलने की कोशिशें करने लगा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। मैं कोई न कोई काम कर लेता जिससे मुजे दो वक्त की रोटी मिल सके और रातों को कहीं भी लेट कर सो जाता। यहीं मेरी ज़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक दिन हरिया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने मुझमें ऐसा क्या देखा कि ये मुझे यहाॅ ले आया और फिर मैं तब से यहीं का रह गया। यहाॅ पर हरिया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। बिंदिया भाभी में मुझे एक माॅ की झलक दिखने लगी और रितू बिटिया के रूप में एक ऐसी नेक दिल लड़की मिल गई जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मुझे उसमें अपनी बेटी ही नज़र आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपूर परिवार ही मिल गया है। लेकिन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि किसी दिन मेरी किस्मत और सबका वो भगवान फिर से न मुझसे रूठ जाए और मुझे फिर से उसी दुख दर्द में ले जाकर पटक दे जहाॅ से उबरने में मुझे एक युग लग जाता है।"
अपने गुज़रे हुए कल की दुख भरी कहानी बता कर शंकर ने गहरी साॅस ली और अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसुओं को पोंछा। उसके सामने ही खड़े हरिया व रितू की ऑखों में भी ऑसू थे। शंकर की कहानी में वो इतना डूब गए थे कि उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही वो सब घट रहा था।
हरिया को जाने क्या सूझा कि वो झपट कर शंकर को अपने गले से लगा लिया और फूट फूट कर रो पड़ा। शंकर उसे इस तरह रोता देख मुस्कुराया। ये अलग बात थी कि उसकी ऑखें भी बह चली थी। रितू आगे बढ़ कर उन दोनो को एक दूसरे से अलग किया।
"काका आपने अपने अंदर इतना बड़ा दुख छुपा के रखा हुआ था।" रितू ने दुखी मन से कहा___"जिसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही दुखदायी था। मगर आप चिंता मत कीजिए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दुख में जाने नहीं दूॅगी जिससे आपको जीने में तक़लीफ हो।"
"भगवान करे ऐसा ही हो बिटिया।" शंकर ने कहा__"मैं भी तुम लोगों को छोंड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। तुम सबसे इतना लगाव हो गया है कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो यकीनन ये दुख सहन नहीं कर पाऊॅगा मैं।"
"अरे तू फिकर काहे करथै ससुरे?" हरिया ने कहा__"हम अइसन अब कउनव सूरत मा न होंय देब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खुश रख। अउर हाॅ ई हमरा वादा हा कि हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुंदर लड़की से करब जउन तोहरी ऊ ससुरी बिंदिया भौजी जइसनै होई।"
हरिया की ये बात सुन कर शंकर और रितू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा रितू को कुछ याद आया।
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कहानी ज़ारी है अभी,,,,,,,,,,,,