Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"वाह भाई वाह क्या लच्छेदार बात कही है मेरे मादरचोद बेटे ने।" बापू की प्रशंशा में डूबी हुई आवाज़__"ये तो कमाल ही हो गया। इतनी बड़ी और इतनी गहरी बात मेरे दिमाग़ में नहीं आई। जबकि तूने साबित कर दिया कि तू इस संसार का सबसे बड़ा वाला कमीना इंसान है।"

"बापू तारीफ़ करने का भला ये कौन सा तरीका है?" मदन ने हॅसते हुए कहा___"जगन ने ग़लत क्या कहा भला? सारी बातों को सोच कर उसने इस सबसे बचने की जो तरकीब बताई है वो यकीनन लाजवाब है। इस लिए अब हमें बिलकुल भी देर नहीं करना चाहिए। बल्कि तुरंत ही जगन की इस तरकीब पर अमल करना चाहिए।"

"सही कह रहा है तू।" बापू की आवाज़___"इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास। अतः अब हम जगन की इस तरकीब के अनुसार ही काम शुरू करते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

उधर वो सब तरकीब पर अमल करने की बातें कर रहे थे जबकि इधर मेरे गुस्से की जैसे इंतहां हो गई थी। इतनी घटिया सोच और ऐसे पापी लोगों का इस समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। मेरे दिलो दिमाग़ उन सबके लिए घृणा और नफ़रत में निरंतर इज़ाफा होता चला गया था। मैं तुरंत ही अपनी जगह से हिला और लकड़ी की उस बाउंड्री के इस पार से चलते हुए घर के सामने की तरफ आया और सामने से अंदर की तरफ बढ़ चला।

बरामदे के बाहरी तरफ दीवार पर टेक लगा कर रखी हुई कुल्हाड़ी पर मेरी नज़र पड़ी। मेरे जिस्म में दौड़ते हुए लहूॅ में जैसे एकदम से उबाल आ गया। मैं तेज़ी से उस कुल्हाड़ी की तरफ बढ़ा और उसे दाहिने हाॅथ से उठा कर बरामदे की तरफ बढ़ा। अंदर दाखिल होते ही मुझे जगन और मदन मेरी तरफ पीठ किये खड़े नज़र आए। इससे पहले कि कोई कुछ महसूस कर पाता मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की तरह चला और खचाऽऽक से जगन की गर्दन पर पड़ा। कुल्हाड़ी वार लगते ही जगन की गर्दन आगे की तरफ झूल गई। उसके कटे हुए धड़ से खून का मानो फब्बारा सा उठ गया। इधर मैं इतने पर ही नहीं रुका। बल्कि किसी के होश में आने से पहले ही एक बार पुनः मेरा कुल्हाड़ी वाला हाॅथ बिजली की सी तेज़ी से चला और इस बार मदन के सीने में गड़ता चला गया। सीने में इस लिए कि वो ऐन वक्त पर मेरी तरफ घूम गया था।

पल भर में इस सबको देखते ही मेरी दोनो बहनों के हलक से चींखें निकल गई। बापू के सामने ही उसके पैरों के पास जगन मृत अवस्था में खून से लथ पथ पड़ा था। ये देख कर बापू को जैसे लकवा सा मार गया था। उसकी घिग्घी बॅध गई थी। इधर मेरी एक बहन मीना बाहर की तरफ तेजी से भागी। मैने पलट कर तेज़ी से कुल्हाड़ी चला दी। कुल्हाड़ी उड़ते हुए मीना की पीठ पर गड़ती चली गई और वो प्रहार के वेग में मुह के बल ज़मीन पर गिरी। वो मछली की तरह कुछ देर तड़पी और फिर शान्त पड़ गई। मैने आगे बढ़ कर उसकी पीठ से एक ही झटके में कुल्हाड़ी को खींच लिया।

उधर रीना के चिल्लाने से जैहे बापू को होश आया। अतः वो तुरंत उठा और कमरे के अंदर की तरफ शोर मचाते हुए भागा। उसके पीछे ही रीना भी भागी। कमरे के अंदर जा कर दोनो ने दरवाजे को बंद कर अपने अपने हाॅथों से दरवाजे पर ताकत से दबाव बढ़ा दिया।

"दरवाजा खोल बापू।" मैं कुल्हाड़ी लिए शेर की तरह गरज उठा था___"आज मेरे हाॅथों तुम सबकी मौत निश्चित है।"
"ये तूने किया शंकर?" अंदर से बापू की भय से काॅपती हुई आवाज़ आई___"तूने अपने हाॅथों अपने ही भाई और बहन को काट कर मार डाला। आख़िर ऐसा क्या हो गया है तुझे कि तूने ये नरसंघार कर दिया?"

"मुझसे क्या पूछता है हरामज़ादे?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"इस सबका कारण तो तू ही है। मैने तेरी और तेरे इन पिल्लों की सारी बातें सुन ली हैं। तूने अपने मतलब के लिए मेरी अम्मा को कुएॅ में गिरा कर मार डाला। उसके बाद तूने मेरी मासूम चंदा के भोले भाले बाप को फॅसा कर उसकी बेटी से ब्याह किया। सिर्फ इस लिए कि तू उस मासूम और निर्दोष के साथ मज़े कर सके और ये सब तूने उस मादरचोद जगन के कहने पर किया। ये बता कि तुझे एक बार भी नहीं लगा कि जो ते कहने जा रहा है वो सबसे बड़ा पाप है? अपनी ही बेटियों के साथ तू मुह काला करता है। तेरे दोनो बेटे अपनी ही बहन के साथ नाजायज़ संबंध बनाते हैं। इतना ही नहीं तू खुद भी उन के साथ ये सब करता है। अरे तुझसे बड़ा इस संसार में कौन होगा बापू? तूने दो पल के मज़े के लिए रिश्तों को भी नहीं बक्शा। मेरी देवी जैही माॅ को मार डाला तूने और तेरे इन पिल्लों ने।"

"ये सब झूॅठ है शंकर भाई।" रीना रोते बिलखते हुए चिल्ला पड़ी___"तुम जो समझ रहे हो वैसे कुछ भी नहीं है।"
"तू चुप कर बदजात लड़की।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया था, बोला___"तुझे तो अपनी बहन कहते हुए भी मुझे शर्म आती है ऐ बेहया। तुझमें इतनी ही हवश की आग भरी हुई थी तो कहीं भाग जाती किसी के साथ। कम से कम रिश्तों पर कलंक तो न लगता। मगर नहीं, तू अपने बाप और भाई की राॅड बन गई न। नहीं छोंड़ूॅगा, किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा। दरवाजा खोल वरना इसी कुल्हाड़ी से इस दरवाजे को काट काट कर टुकड़े टुकड़े कर दूॅगा और फिर वैसे ही टुकड़े तुम दोनो नाली के कीड़ों के करूॅगा।"

"हमें माफ़ कर दे शंकर।" बापू ने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा___"हमसे सच में बहुत बड़ा पाप हो गया है। लेकिन आख़िरी बार माफ़ कर दे हमें। अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करेंगे हम। देख तूने अपने ही दो भाई और एक बहन को मार डाला। अब कम से कम हमें तो छोंड़ दे।"

"तू बाहर निकल बेटीचोद।" मैने चिल्लाया___"उसके बाद बताता हूॅ कि कैसे माफ़ करता हूॅ मैं?"
"भगवान के लिए भाई।" रीना बुरी तरह रो रही थी__"बस एक बार माफ़ कर दे। सच कहती हूॅ जीवन भर तेरी टट्टी खाऊॅगी मैं।"

"मैं आख़िरी बार कह रहा हूॅ कि दरवाजा खोल।" मैं गुस्से में चीखा___"वरना दरवाजे को काटने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा। उसके बाद मैं तुम दोनो का क्या हस्र करूॅगा तुम सोच भी नहीं सकते।"
"बेटा माफ़ कर दे न।" बापू गिड़गिड़ाया___"अरे मैं तेरा बाप हूॅ रे। तुझे बचपन से पाल पोष कर बड़ा किया है।"

"तो कौन सा बड़ा काम किया है तूने?" मैने कहा__"तू मुजे बचपन में ही मार देता तो अच्छा होता। कम से कम आज ये सब देखने सुनने को तो न मिलता। मेरी मासूम सी चंदा को तुम लोगों ने रौंद रौंद कर मार डाला। मेरी देवी जैसी अम्मा को मार डाला तुम लोगों ने। अगर तुम लोग मेरी अम्मा और चंदा को वापस मुझे लाकर दे दो तो माफ़ कर दूॅगा। वरना भूल जाओ कि मैं माफ़ कर दूॅगा तुम दोनो को।"

अंदर से कोई वाक्य न फूटा उन दोनों के मुख से। बस दोनो के रोने की आवाज़ें गूॅजती रही। मेरा गुस्सा प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था। मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैं कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करने लगा। मेरे ऐसा करते ही रीना और बापू ज़ोर ज़ोर से चीखने लगे और रहम की भीख माॅगने लगे। मगर मैं न रुका बल्कि लगातार कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर करता चला गया। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही देर में लकड़ी का वो दरवाजा कट कट कर टुकड़ों में निकलने लगा। थोड़ी ही देर में मुझे रीना का हाॅथ नज़र आया जो दरवाजे पर टिका हुआ था। मैने गुस्से में आव देखा न ताव, कुल्हाड़ी का वार सीधा उसके हाॅथ पर किया। खचाऽऽऽच की आवाज़ के साथ ही रीना का हाॅथ उसकी कलाई से कट गया। खून का तेज़ फब्बारा उछल कर फैल गया। कलाई से हाॅथ कटते ही रीना की हृदय विदारक चीख गूॅज गई। वो दरवाजे से हट कर अपने दूसरे हाॅथ से कटे हुए हाॅथ को पकड़े पीछे हटती चली गई। उसका ये हाल देख कर बापू भी मारे डर के पीछे की तरफ भागा। दोनो के जाते ही दरवाजे पर से उन दोनो का दबाव हट गया।

मैने दरवाजे पर ज़ोर से एक लात मारी तो दरवाजा खुलता चला गया और इसके साथ ही उन दोनो की चीखना चिल्लाना भी बढ़ गया। मैं दरवाजे के अंदर दाखिल हुआ और उन दोनो की तरफ बढ़ने ही वाला था कि मेरी नज़र बगल से रखी चारपाई पर आधी लटकी हुई चंदा की नंगी लाश पर पड़ी। मेरे अंदर पीड़ा की तीब्र लहर दौड़ती चली गई। मेरी मोहब्बत का ये हाल किया था इन लोगों ने। ये देख कर ही मेरे अंदर भयंकर गुस्सा भर गया। मैं तेज़ी से उन दोनो की तरफ बढ़ा।

बापू और रीना रोने और चीखने की मशीन बन गए थे। उन दोनो के चेहरे मौत के डर से पीले ज़र्द पड़ गए थे। कमरे में हर तरफ रीना के कटे हुए हाॅथ का खून फैला हुआ था। मैं आखे बढ़ते हुए बापू के क़रीब गया यो बापू मेरे पैरों में गिर पड़ा। मैने अपने उस पैर को ज़ोर से झटक दिया जिस पैर पर बापू गिरा पड़ा था। झटका खाते ही बापू उछल कर पिछली दीवार से टकराया। मैं आगे बढ़ कर उसके पास गया और एक हाथ से उसके सिर के बालों को पकड़ कर उठा लिया। मैने देखा बापू के चेहरे पर मौत का भय साक्षात ताण्डव करता नज़र आ रहा था।

"अब बता मेरे हरामी बापू।" मैं गुर्राया___"इस कुल्हाड़ी से तेरे कितने टुकड़े करूॅ?"
"नहीं नहीं शंकर।" बुरी तरह काॅपते हुए कहा बापू बिलबिला उठा___"मुझे माफ़ कर दे बेटा। मैं तेरा बाप हूॅ। अपने आस पापी बाप को बस एक बार माफ़ कर दे।"

खचाऽऽऽक! कुल्हाड़ी का वार बिजली की सी तेज़ी से हुआ और कुल्हाड़ी का फल बापू की जाॅघ में घुस गया। बापू के हलक से हलाल होते बकरे जैसी आवाज़ निकली। जाॅघ से भल्ल भल्ल करके खून बहने लगा। तभी एक चीख मुझे अपने पीछे की तरफ सुनाई दी। मैं तेज़ी से पलटा तो देखा अपनी कलाई थामें रीना बाहर की तरफ भागी जा रही थी। उसके बाहर निकलते ही मैं भी पलट कर उसके पीछे भागा किन्तु तभी बाहर से कुछ लोग आ गए और मुझे पकड़ लिए। मैं उन लोगों की पकड़ से छूटने के लिए ज़ोर आजमाईश करने लगा। साथ ही चीखते हुए कहे भी जा रहा था कि___"मुझे छोंड़ दो वरना तुम सबको काट डालूॅगा इस कुल्हाड़ी से।"

मगर वो मुझे छोंड़ नहीं रहे थे। देखते ही देखते मेरे उस घर में लोगों का ताॅता लग गया। हर ब्यक्ति मेरे घर के इस भयानक दृष्य को देख कर आश्चर्यचकित था। उनकी ऑखें हैरत से फटी पड़ी थीं। मुझे पकड़े हुए लोग मुझसे पूछे जा रहे थे कि ये सब क्या है? मैने ये सब क्यों किया? मैने चीखते हुए उन सबको सारी बात संक्षेप में बताई। जिसे सुन कर हर कोई हक्का बक्का रह गया। कुछ लोगों की नज़र कमरे के अंदर कराह रहे बापू पर पड़ी तो वो भागते हुए बापू के पास गए। लोगों को देखते ही बापू की जान में जान आई और वो डर व भय से एक ही बात रटने लगा। वो ये कि मुझे इस लड़के से दूर ले चलो। ये मुझे मार डालेगा, काट डालेगा।

कुछ लोगों ने मिल कर बापू को सहारा देकर उठा लिया और कमरे से बाहर ले गए। इधर मैं काफी देर तक उन लोगों के चंगुल से निकलने की कोशिश करता रहा मगर निकल न सका। थक हार कर मैंने ज़ोर आजमाईश करना बंद कर दिया। ऐसे ही वो दिन गुज़र गया।

उस दिन गाॅव में इतना बड़ा संगीन काण्ड हुआ मगर किसी ने भी इस सबकी सूचना पुलिस को न दी। मैं हैरान भी था कि ऐसा लोगों ने क्यों किया? कुछ लोग रीना के पीछे भी गए थे मगर वो लोग खाली हाॅथ वापस आ गए। उन्हें रीना कहीं भी न मिली थी। बापू को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल ले गए थे कुछ लोग। मेरे दोनो भाई और एक बहन मीना की लाश को एक जगह लिटा कर उन्हें सफेद क़फन से ढॅक दिया गया था। कुछ औरतें कमरे के अंदर जाकर चंदा के नंगे जिस्म को किसी तरह ढॅक दिया था।

गाॅव वालों ने मुझसे सबकी चिता को आग देने के लिए कहा तो मैंने सिर्फ चंदा की चिता को आग लगाई जबकि अपने दोनो भाई व बहन को चिताग्नि देने से ये कह कर साफ मना कर दिया कि ये मेरे कोई नहीं थे। मेरे ऐसा कहने पर गाॅव के मेरी ही बिरादरी के एक आदमी ने आग दी थी। उस दिन पूरा दिन मेथे घर में लोगों की भीड़ रही। मैं एक जगह गुमसुम बैठा था। ख़ैर धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को चले गए।

उसी रात मैने वो गाॅव और वो घर हमेशा हमेशा के लिए त्याग दिया था। मुझे नहीं पता मैं कहाॅ कहाॅ बेवजह भटकता रहा? धीरे धीरे समय गुज़रा और इस घटना को घटे पाॅच साल गुज़र गए। मैं इन पाॅच सालों में कुछ हद तक सम्हल गया था। दो वक्त की रोटी के लिए जैसा भी काम मिलता तो करता और दो वक्त की रोटी खाकर दिन काटने लगा था।

ऐसे ही एक दिन एक ऐसे आदमी से मेरी मुलाक़ात हुई जो फौज में मेजर की पोस्ट से रिटायर होकर आया था। मुझमें अब तक काफी बदलाव आ गया था। सब कुछ भुला कर मैं अपने मन मर्ज़ी से जी खा रहा था। ख़ैर, उस मेज़र से मुलाक़ात हुई तो मैने उससे काम माॅगा। दरअसल मैं हर जगह भटकते भटकते उकता सा गया था इस लिए चाहता था कि कहीं ऐसी जगह कोई काम मिल जाए जिससे मुझे बार बार जगह न बदलना पड़े। मेरे काम माॅगने पर मेजर ने मेरी तरफ ग़ौर से देखा। मेरी कद काठी ठीक ठाक ही थी। वो मुझे देख कर मुस्कुराया और पूछा क्या काम कर सकते हो? मैने कहा कि मैं दुनियाॅ का हर काम कर लूॅगा लेकिन कोई ग़लत काम तो मैं हर्गिज़ भी न करूॅगा भले ही चाहे भूॅखा मर जाऊॅ।

मेरी इस बात से मेजर प्रभावित हुआ और मुझे अपने घर ले गया। मेजर का घर घर जैसा नहीं बल्कि कोई बॅगला दिख रहा था। मेजर ने मुझसे कहा कि आज से तुम इस बॅगले की देख रेख करोगे। फिर क्या था मैं मेजर के कहे अनुसार बॅगले की देख रेख करने लगा। बॅगले से कुछ दूरी पर सर्वेन्ट क्वार्टर बना हुआ था जहाॅ पर मुझे रहने के लिए मेजर ने कह दिया था। मेजर के अपने परिवार में उसकी एक जवान बेटी बस ही थी। उसकी बीवी कुछ साल पहले भगवान को प्यारी हो गई थी। उसने दूसरी शादी नहीं की थी। उसके लिए उसकी बेटी ही सब कुछ थी। मेजर का और भी परिवार था जैसे कि उसके बड़े भाई वगैरा।

मेजर ने मुझे बंदूख चलाना सिखा दिया था और चूॅकि वो फौजी बंदा था इस लिए उसके नियम कानून भी शख्त और पक्के थे। हर सुबह चार बजे उठना और फिर उसके साथ एक्सरसाइज़ करना, उसके साथ दौड़ लगाना। ये सब जैसे एक रुटीन सा बन गया था। मुझे अपने आप में ऐसा महसूस होता जैसे मैं भी मेजर की तरह एक फौजी आदमी था। मेजर की बेटी बहुत ही प्यारी बच्ची थी। रुपये पैसे का ज़रा भी घमंड नहीं था उसे। मैं भले ही छोटी जाति का था मगर कोई भी मुझे कहीं आने जाने से रोंकता नहीं था। एक तरह से मैं भी उस घर का सदस्य बन गया था। मेजर की बेटी मुझे दिन भर चाचू चाचू कह कर पुकारती रहती थी। पता नहीं उसे मुझमें ऐसा क्या नज़र आता था जिसकी वजह से वो मुझे बहुत स्नेह देती थी। वो बिलकुल किसी गुड़िया की तरह थी। मैं शुरू शुरू में उससे ज्यादा बात नहीं करता था। इसकी वजह ये थी कि मुझे लड़की व औरत जात से नफ़रत सी हो गई थी।

धीरे धीरे ऐसे वक्त गुज़रने लगा और मेजर के यहाॅ रहते हुए मुझे चार साल गुज़र गए। इन चार सालों में मैं मेजर और उसकी बेटी से इतना घुल मिल गया था कि मुझे लगता ही नहीं था कि मैं इनके लिए कोई पराया हूॅ। मेजर की बेटी को मैं अपनी बेटी की तरह मानता था और हर पल उसे खुश रहने की भगवान हे दुवाएॅ करता रहता था। उसे देख कर हर दुख दूर हो जाता था। मैं तो जैसे अपने अतीत का हर किस्सा भूल गया था। मगर फिर से एक बार मेरे नसीब में बुरा दिन आ गया। मेजर के बड़े भाई का लड़का पढ़ाई के सिलसिले में आया और फिर मेजर के ही बॅगले पर रहने लगा। मुझे उसकी शक्ल देख कर अजीब सा एहसास होता। हलाॅकि वो देखने में सुंदर गबरू जवान था किन्तु उसकी ऑखों में जाने ऐसा क्या था कि मुझे वो खटकने लगा था। ख़ैर, कुछ ही दिनों में मुझे समझ आ गया कि मुझे ऐसा क्यों लगता था।

मेजर का भतीजा बड़ा ही शातिर किस्म का लड़का था। वो मेजर के सामने उससे बहुत ही सलीके से बातें करता और ऐसा दर्शाता कि उसके जैसा संस्कारी लड़का दुनियाॅ जहाॅन में कहीं ढूॅढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। किन्तु मेजर के न रहने पर वो हमेशा मेजर की बेटी को जो कि खुद उसके सगे चाचा की ही बेटी थी यानी कि उसकी बहन थी तो वो उसे ताड़ता रहता था। उसकी ऑखों में हवस स्पष्ट दिखाई देती थी। मैं दिन में ज्यादातर बॅगले के बाहर मुख्य द्वार पर ही रहता था। बीच बीच में मैं इधर उधर का चक्कर लगाता और कभी कभी बॅगले के अंदर भी घूम आता। यही मेरे काम का तरीका नियम बद्ध था।

मैं मेजर के उस भतीजे के चलते मेजर की बेटी कुमुद के लिए बेहद चिंतित व परेशान होने लगा था। मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि उस नामुराद लड़के की नीयत कुमुद बेटिया पर ख़राब हो चुकी थी। मैने इस बारे में मेजर से इस लिए कुछ भी नहीं बताया था क्योंकि मेरे पास उस लड़के के खिलाफ़ कीई सबूत नहीं था। मेजर अपने भतीजे के प्रति मेरी वो सब बातें कभी न मानता बल्कि उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता और मुझे काम से भी निकाल देता। इस लिए मैं बस बेबस हो चुका था किन्तु मेरी पूरी कोशिश थी कि मेरे रहते वो लड़का अपने नापाक़ इरादों कभी कामयाब न हो सके। इस लिए वो जब भी अपने स्कूल या काॅलेज से वापस बॅगले में आता तो मैं कुछ देर के अंतराल में बॅगले के अंदर का चक्कर ज़रूर लगा आता और जाॅच परख लेता कि सब ठीक है कि नहीं।

ऐसे ही एक दिन की बात है कि वो लड़का अपने काॅलेज से जल्दी ही आ गया। मुझे उसके जल्दी आ जाने पर हैरानी तो हुई किन्तु मैं कर भी क्या सकता था। पर मुझे ऐसा आभास ज़रूर हुअ जैसे आज कुछ होने वाला है। ख़ैर, उसके अंदर जाने के कुछ देर बाद ही मैं भी अंदर चला गया। मैने बड़े एहतियात से हर जगह का मुआयना किया। मैं ये महसूस करके चौंका कि लड़का अपने कमरे में नहीं है। ये महसूस होते ही मैं सीधा कुमुद के कमरे की तरफ बढ़ गया। कुमुद के कमरे के पास आकर मैने देखा कि कमरे का दरवाजा हल्का खुला हुआ है। ये देख कर मैं चौंका। आमतौर पर कुमुद के कमरे का दरवाजा बंद ही रहता था। मैने हल्के खुले हुए दरवाजे से अंदर की तरफ झाॅका तो मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी। मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि वो लड़का कुमुद के कमरे के अटैच बाथरूम के दरवाजे के पास खड़ा है। उसका एक हाॅथ दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर था जबकि दूसरा हाथ नीचे की तरफ था। मुझे उसके दूसरे हाॅथ की कुहनी हिलती हुई प्रतीत हो रही थी। मेरे दिमाग़ ने काम किया। मैं समझ गया कि वो कमीना कुमुद बिटिया को नहाते हुए देख रहा है। बस इसके आगे मुझसे बरदास्त न हुआ। मुझे बेहद गुस्सा आ गया उस पर। मैं झटके से दरवाजा खोल कर अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा।

कमरे के अंदर आहट महसूस होते ही वो लड़का बुरी तरह चौंक कर पलटा और मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत सिर्फ कुछ पलों तक ही रही। उसके बाद उसने इस तरह से अपना रंग बदला कि भला गिरगिट क्या बदलता होगा। यहाॅ पर उसने इस कहावत को पूरी तरह सिद्ध कर दिया कि "उल्टा चोर कोतवाल को डाॅटे"। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाहिए था वही सब वो मुझे ऊॅची आवाज़ में कहने लगा था। उसके मुख से अपने लिए ये सब सुन कर मैं भौचक्का सा रह गया। हैरत व अविश्वास से मेरा मुह तथा मेरी फट पड़ी थी। जबकि वो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही देर में बाथरूम से कुमुद बिटिया कपड़े पहन कर बाहर निकली। मैने उसकी तरफ देखा तो चौंक गया, उसका चेहरा ऑसुओं से तर था और वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे बिना कुछ बोले ही ऑखों से कह रही हो कि___"क्यों चाचू, ऐसा क्यों किया तुमने? मैं तो आपकी बेटी जैसी ही हूॅ और आपको अपने पिता जैसा ही सम्मान देती हूॅ। फिर आपने मुझ पर गंदी नज़र डाली। क्यों चाचू क्यों? क्या आप हवस में इतने अंधे हो गए कि आपको मुझमें आपकी कुमुद बिटिया की जगह एक ऐसी लड़की दिखने लगी जिसके साथ अपनी हवस को मिटाया जाए?"

उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह दिया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई ज़रूरत नहीं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात समझ गया था। उसके चेहरे पर तुरंत ही हिकारत के भाव उभरे तथा उसमें शामिल हो गई घृणा। जिसके तहत उसने तुरंत ही अपना मुह फेर लिया जैसे अब वो मुझे देखना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दुनियाॅ बरबाद हो गई। चार सालों का मेरा विश्वास मेरा प्यार व स्नेह एक पल में ही जैसे नेस्तनाबूत हो गया था।

ये एहसास होते ही मेरे अंदर तीब्र पीड़ा हुई। मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। मैने अपनी सफाई में कुछ भी कहना गवाॅरा न किया और मैं आगे भी कहना नहीं चाहता था। क्योंकि सबसे बड़ा होता है विश्वास। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मुझे तक़लीफ इसी बात पर हुई कि उस लड़की ने ये कैसे यकीन कर लिया कि मैंने उस पर गंदी नज़र डाली थी? उसे अपने भाई पर संदेह क्यों न हुआ जिसने सचमुच ही वो काम किया था। क्या सिर्फ इस लिए कि वो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?

वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बॅगले से निकल जाने के लिए कह दिया। मैं भी दुखी मन से उठा और अपनी बंदूख सम्हाले बॅगले से बाहर निकल गया। किन्तु मैं बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब के आने का इन्तज़ार था। मुझे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही वहाॅ से जाकर ये साबित नहीं करा देना चाहता था कि मैं वास्तव में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने जाकर ये दर्शाना चाहता था कि मैं गुनहगार नहीं हूॅ।

शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बॅगले पर लौट कर आए। मैं सारा दिन भूखों प्यासा मुख्य दरवाजे पर किसी गुलाम की तरह खड़ा रह गया था। रह रह कर मेरे मन में ख़याल आता कि यहाॅ से कहीं ऐसी जगह चला जाऊॅ जहाॅ से कोई इंसान दुबारा वापस नहीं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को अपना चेहरा दिखाना एक बार। मेरे अंदर औरत जात के प्रति जो नफ़रत कहीं खो सी गई थी वो फिर से उभर कर आ गई थी। ख़ैर, मेजर साहब आए और बॅगले के अंदर चले गए। मुझे पता था कि वो लड़का और कुमुद मेजर साहब को मिर्च मशाला लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। लेकिन मुझे परवाह नहीं थी अब। मुझे उम्मीद थी कि मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हर्गिज़ भी नहीं सोच सकते। आख़िर देश दुनियाॅ देखी थी उन्होंने। उनको इंसानों की पहचान थी।

मगर मेरी उम्मीदों पर बिजली उस वक्त गिरी जब मेजर साहब ने मुझे बुलाया और मुझे डाॅटना शुरू किया।
"हमें तुमसे ऐसे गंदे कर्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी शंकर।" मेजर साहब ने कड़ी आवाज़ में कहा___"हमें तुम पर कितना भरोसा था। हम तुम्हें कभी ग़ैर नहीं समझते थे। मगर तुमने अपनी ज़ात दिखा दी। शुरू में जब तुमने कहा था कि तुम दुनियाॅ का हर काम कर सकते हो लेकिन कोई ग़लत काम नहीं करोगे भले ही चाहे भूॅखों मर जाओ तो हम तुम्हारी उस बात से बेहद प्रभावित हुए थे। मगर आज जो कुछ तुमने किया है उससे हमें बहुत दुख पहुॅचा है। हमारी बेटी तुम्हें हमारे जैसा ही पिता का सम्मान देती थी और तुमसे लाड प्यार करती मगर तुमने उस पर ही गंदी नज़र डाल दी। मन तो करता है कि तुमसे ये बंदूख छीन कर इसकी सारी गोलियाॅ तुम्हारे सीने में उतार दें मगर नहीं करेंगे ऐसा। इतने साल की वफ़ादारी का अगर यही इनाम लेना तो कोई बात नहीं।
मगर अब तुम्हारे लिए यहाॅ कोई जगह नहीं है। निकल जाओ यहाॅ से और दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना हमें वरना हमसे ये उम्मीद न करना कि हम तुम्हें ज़िंदा छोंड़ देंगे।"

बस, मेजर साहब की ये बातें सुन कर मैं बुरी तरह अंदर से टूट कर बिखर गया। मैं अब एक पल भी यहाॅ लुकना नहीं चाहता था। इस लिए घुटनों के बल बैठ कर मैने अपने कंधे से बंदूख निकाली और मेजर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड़ कर नमस्कार किया और फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया। मेरे अंदर ऑधी तूफान मचा हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार कर रोऊॅ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू किया हुआ था। खड़े होकर मैने एक बार कुमुद बिटिया की तरफ देखा तो उसने जल्दी से अपना मुह फेर लिया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टूट कर हाल के फर्श पर गिर गया।

उसके बाद मैं एक पल के लिए भी नहीं रुका। वहाॅ से बाहर आकर मैं सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ अपने कमरे में गया और वहाॅ से अपना सामान एक थैले में भर कर कमरे से बाहर आ गया। बॅगले के मुख्य द्वार से बाहर निकल कर मैं एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके बाद बॅगले में क्या हुआ इसका मुझे कुछ पता नहीं। वहाॅ से आने के बाद मैं एक सुनसान जगह पर दिन भर यूॅ ही दुखी मन से बैठा रहा। ये संसार बहुत बड़ा था मगर इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसे मैं अपना कहता। जो मुझे समझता और मेरे दुखों को महसूस करता। वर्षों पहले एक दुख से उबरा था, आज फिर एक दुख ने मुझे वहीं पर ले जाकर पटक दिया था। ख़ैर, समय का काम है बदलना। इस लिए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भूलने की कोशिशें करने लगा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। मैं कोई न कोई काम कर लेता जिससे मुजे दो वक्त की रोटी मिल सके और रातों को कहीं भी लेट कर सो जाता। यहीं मेरी ज़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक दिन हरिया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने मुझमें ऐसा क्या देखा कि ये मुझे यहाॅ ले आया और फिर मैं तब से यहीं का रह गया। यहाॅ पर हरिया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। बिंदिया भाभी में मुझे एक माॅ की झलक दिखने लगी और रितू बिटिया के रूप में एक ऐसी नेक दिल लड़की मिल गई जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मुझे उसमें अपनी बेटी ही नज़र आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपूर परिवार ही मिल गया है। लेकिन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि किसी दिन मेरी किस्मत और सबका वो भगवान फिर से न मुझसे रूठ जाए और मुझे फिर से उसी दुख दर्द में ले जाकर पटक दे जहाॅ से उबरने में मुझे एक युग लग जाता है।"

अपने गुज़रे हुए कल की दुख भरी कहानी बता कर शंकर ने गहरी साॅस ली और अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसुओं को पोंछा। उसके सामने ही खड़े हरिया व रितू की ऑखों में भी ऑसू थे। शंकर की कहानी में वो इतना डूब गए थे कि उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही वो सब घट रहा था।

हरिया को जाने क्या सूझा कि वो झपट कर शंकर को अपने गले से लगा लिया और फूट फूट कर रो पड़ा। शंकर उसे इस तरह रोता देख मुस्कुराया। ये अलग बात थी कि उसकी ऑखें भी बह चली थी। रितू आगे बढ़ कर उन दोनो को एक दूसरे से अलग किया।

"काका आपने अपने अंदर इतना बड़ा दुख छुपा के रखा हुआ था।" रितू ने दुखी मन से कहा___"जिसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही दुखदायी था। मगर आप चिंता मत कीजिए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दुख में जाने नहीं दूॅगी जिससे आपको जीने में तक़लीफ हो।"

"भगवान करे ऐसा ही हो बिटिया।" शंकर ने कहा__"मैं भी तुम लोगों को छोंड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। तुम सबसे इतना लगाव हो गया है कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो यकीनन ये दुख सहन नहीं कर पाऊॅगा मैं।"
"अरे तू फिकर काहे करथै ससुरे?" हरिया ने कहा__"हम अइसन अब कउनव सूरत मा न होंय देब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खुश रख। अउर हाॅ ई हमरा वादा हा कि हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुंदर लड़की से करब जउन तोहरी ऊ ससुरी बिंदिया भौजी जइसनै होई।"

हरिया की ये बात सुन कर शंकर और रितू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा रितू को कुछ याद आया।
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कहानी ज़ारी है अभी,,,,,,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........ 《 51 》


कहानी अब आगे,,,,,,,,,

उधर हवेली में!
कई सारी गाड़ियाॅ हवेली के बाहर विसाल मैदान में आकर रुकीं। सभी गाड़ियों के सभी दरवाज़े एक साथ खुले और उनमें से कई सारे अजनबी लोग बाहर निकले। सभी आदमियों में ज्यादातर आदमी हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डथ टाइप के थे। जबकि कुछ आदमी साधारण कद काठी के थे। वो सब हट्टे कट्टे आदमियों से घिरे हुए थे।

हवेली के बाहर अजय सिंह के कुछ आदमी हाॅथों में बंदूख लिए खड़े थे। उन लोगों ने जब इतने सारे आदमियों को एक साथ हवेली की तरफ आते देखा तो उनके चेहरों का रंग सा उड़ने लगा। उन्हें लगने लगा अब ये कौन सी नई मुसीबत आ गई यहाॅ? सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे थे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि ये सब क्या है? किन्तु जवाब किसी के पास नहीं था।

"ठाकुर साहब से कहो कि हम लोग उनके कहे अनुसार अपने आदमियों को यहाॅ लेकर आ गए हैं।" एक आदमी ने अजय सिंह के एक आदमी से कहा___"हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। इस लिए अभी हमें जाना होगा किन्तु हमारे ये आदमी उनके किसी भी आदेश का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेंगे।"

उस आदमी की ये बात कदाचित गार्ड की समझ में न आई थी। इसी लिए वह मूर्खों की तरह उस आदमी को देखता रह गया। उसके चेहरे पर उलझन के से भाव उभर आए थे।

"अरे भाई ऐसे क्यों देख रहे हो हमें?" आदमी ने चौंकते हुए कहा__"हम सब ठाकुर साहब के बिजनेस वाले फ्रैण्ड्स हैं। अतः जल्दी जाओ और उन्हें बताओ कि मिस्टर कमलनाथ और उनके साथ सभी उनके दोस्त यहाॅ आए हुए हैं।"

गार्ड के चेहरे पर फैले उलझन के भाव कम तो न हुए किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि पाॅकिट से मोबाइल निकाल कर किसी को फोन लगाया। उधर से काल रिसीव करते ही उसने कहा___"मालकिन, कुछ लोग मालिक से मिलने आए हैं। कह रहे हैं कि उनके बिजनेस से संबंधित फ्रैण्ड्स हैं। मेरे लिए क्या आदेश है मालिकन?"
"............।" उधर से कुछ कहा गया और इसके साथ ही काल कट हो गई।

"आप कृपया एक मिनट रुकिये।" फिर उस गार्ड ने बड़ी विनम्रता से कहा___"मालकिन आ रही हैं बाहर।"
"ओके नो प्राब्लेम।" उस आदमी ने कहा और दूसरी तरफ पलट कर इधर उधर देखने लगा।

कुछ ही देर में हवेली का दरवाजा खुला और प्रतिमा उसमे से बाहर निकली। उसके पीछे ही उसका बेटा शिवा भी था। हवेली के बाहर इतनी सारी गाड़ियाॅ और इतने सारे लोगों को देख कर वो चौंकी। मनो मस्तिष्क में एक ही बात चकरघिन्नी की तरह नाचने लगी कि 'कहीं फिर से कोई सीबीआई वाले नहीं आ गए यहाॅ'।

प्रतिमा की देखते ही गार्ड ने उस आदमी के पास जाकर उसे बताया कि मालकिन आ गई हैं। वो आदमी पलट कर प्रतिमा के पास आया।
"नमस्कार भाभी जी।" उस आदमी ने खुशदिली से हाॅद जोड़ कर नमस्कार करते हुए बोला__"हम सब ठाकुर साहब के फ्रैण्ड सर्कल के लोग हैं। ठाकुर साहब से कल मीटिंग में हमारी कुछ बातें हुई थी। जिसके तहत उन्होंने हमसे हमारे कुछ बेहतरीन आदमियों की माॅग की थी। सो इस वक्त हम उसी सिलसिले में यहाॅ आए हैं। हमारे पास ज्यादा समय नहीं है इस लिए हम ठाकुर साहब से मिल कर तुरंत ही यहाॅ से जाना चाहेंगे। उसके बाद ये उनका काम है कि वो हमारे इन आदमियों के द्वारा क्या काम लेते हैं?"

प्रतिमा उस आदमी की बातों से समझ गई कि कल अजय सिंह किसी ज़रूरी मीटिंग में था इसी लिए शाम को देर से आया था। तो इसका मतलब मीटिंग इस सबके लिए थी। किन्तु समस्या ये थी कि ये लोग जिससे मिलने आए थे उसे तो सीबीआई वाले सुबह ही अपने साथ ले गए थे। इस लिए अब वो इन्हें क्या जवाब दे यही उसकी समझ में नहीं आ रहा था। सच्चाई बताने पर संभव है कि बात बिगड़ जाती। अगर इन लोगों को अभी पता चल जाए कि अजय सिंह को सीबीआई वाले ले गए हैं तो ये लोग तुरंत ही यहाॅ से रफूचक्कर हो जाएॅगे।

"क्या बात है भाभी जी?" उस आदमी ने कहा___"आप किसी गहरी सोच मे डूबी हुई प्रतीत हो रही हैं। कहिए सब ठीक तो है न? ठाकुर साहब को बुलाइये हम उनसे मिलना चाहते हैं।"
"ठाकुर साहब तो इस वक्त हवेली के अंदर नहीं हैं।" फिर प्रतिमा को बहाना बनाना पड़ा___"सुबह ही कहीं चले गए थे। कहाॅ गए हैं इस बारे में कुछ बताया भी नहीं उन्होंने।"

"ओह आई सी।" उस आदमी ने कहा___"कोई बात नहीं भाभी जी। हम फोन पर बात कर लेंगे उनसे। अच्छा अब हम चलते हैं। हम अपने इन आदमियों कों यहीं पर छोंड़े जा रहे हैं।"
"अरे ऐसे कैसे चले जाएॅगे आप लोग?" प्रतिमा ने औपचारिकता के भाव से कहा___"अंदर आइये और कम से कम चाय या काॅफी तो पीकर ही जाइये। वरना आपके ठाकुर साहब मुझे ही डाॅटेंगे कि मैने आप लोगों को बिना चाय पानी करवाए ही जाने दिया।"

"इसकी ज़रूरत नहीं है भाभी जी।" आदमी ने हॅसते हुए कहा___"आपने कह दिया इतना ही बहुत है हमारे लिए। अच्छा अब हम चलते हैं, नमस्कार।"
"नमस्कार जी।" प्रतिमा ने भी प्रत्युत्तर में अभिवादन किया।

इसके बाद वो जितने भी साधारण कद काठी के आदमी सूट बूट पहने आए थे वो सब गाड़ियों में सवार होकर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद प्रतिमा ने बाॅकी बचे हट्टे कट्टे व बाॅडी बिल्डर आदमियों की तरफ देखा।

"बेटा इन सबको सर्वेंट क्वार्टर में ले जाओ।" फिर प्रतिमा ने शिवा से कहा___"और इनके रहने का इंतजाम करो। तब तक मैं सविता(नौकरानी) से कह कर इन लोगों के लिए चाय पानी का उचित बंदोबस्त कराती हूॅ।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और हवेली की सीढ़ियाॅ उतर कर नीचे आ गया उन लोगों के पास।

उन सबको लेकर शिवा हवेली के पूर्व दिशा की तरफ बने सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गया। ये सर्वेंट क्वार्टर अजय सिंह ने साल भर पहले ही बनवाया था। उन लोगों के जाने के बाद प्रतिमा भी अंदर की तरफ चली गई। उसके चेहरे पर सहसा गहन चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। उसे पता था कि अजय सिंह के जो बिजनेस संबंधी दोस्त आए थे वो अजय सिंह से फोन पर ज़रूर बात करेंगे। लेकिन जब अजय सिंह का फोन नहीं लगेगा तो वो सब परेशान भी हो जाएॅगे। उस सूरत में उनका क्या रिऐक्शन होगा इसका कुछ भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

प्रतिमा को समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वो क्या करे? उसने मदद के उद्देश्य से ही अपनी इंस्पेक्टर बेटी रितू को फोन लगाया था किन्तु उसने काल को रिसीव न करके कट कर दिया था। ये प्रतिमा के लिए शायद आख़िरी सबूत था कि उसकी बेटी ने सचमुच ही अपने माॅ बाप के खिलाफ़ बगावत कर दी थी।

अंदर प्रतिमा ने सविता को उन आदमियों के लिए चाय का कह दिया और खुद आकर ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे से चिन्ता व परेशानी के भाव जा ही नहीं रहे थे। वो कुछ भी करके अजय सिंह को सीबीआई के चंगुल से बाहर निकालना चाहती थी। हलाॅकि उसे पता था कि ऐसे मामलों में अपराधी का कानून की गिरफ्त से बाहर आना बेहद मुश्किल काम होता है किन्तु इसके बावजूद प्रतिमा अजय सिंह को बाहर निकालना चाहती थी।

सहसा प्रतिमा को अपने पिता जगमोहन सिंह का ख़याल आया। प्रतिमा का बाप जगमोहन सिंह आज कल इलाहाबाद हाई कोर्ट में बतौर क्रिमिनल लायर था। ऊम्र से ज्यादा अधेड़ नहीं लगता था। कहा जाता है कि जगमोहन सिंह बहुत ही काबिल व तेज़ तर्रार वकील था। चाहे जैसा भी केस हो, मुहमाॅगी फीस मिलने पर वह अपने मुवक्किल को बाइज्ज़त बरी करा लेता था। मगर यहाॅ पर प्रतिमा के लिए सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो अपने बाप से मदद माॅगे तो माॅगे कैसे?

दरअसल, जब प्रतिमा ने अपने बाप को बताया कि वह अजय सिंह से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती है तो जगमोहन सिंह बुरी तरह भड़क गया। उसे प्यार शब्द से ही नफ़रत थी। पता नहीं ऐसा क्या था कि प्रेम प्रसंग होने पर वह आपे से बाहर हो जाता था। उसके घर में नियम कानून बड़े शख्त थे। उसकी दो ही बेटियाॅ थी। जिनमें से प्रतिमा छोटी वाली थी। जबकि पहली बेटी मुम्बई में रहती थी, जहाॅ आजकल अजय सिंह की बेटी नीलम रहती है।
जगमोहन सिंह को कोई बेटा नहीं था। धन दौलत की शुरू से ही कोई कमी नहीं थी। ख़ैर, बाप के साफ इंकार कर देने पर प्रतिमा ने पहली बार अपने बाप से मुहज़ुबानी की थी और साफ शब्दों में कह दिया था कि वो शादी करेगी तो अजय सिंह से ही वरना वो कभी किसी से शादी नहीं करेगी। जगमोहन को अपनी इस बेटी की धृष्टता पर बेहद गुस्सा आया और उसने उसी वक्त कह दिया उससे कि आज के बाद वो उसके लिए मर गई है। बस प्रतिमा ने आव देखा न ताव, बाप का घर छोंड़ दिया और सीधा अजय सिंह के पास पहुॅच गई। अजय सिंह के साथ ही वह रहने लगी। इस बीच वो प्रग्नेन्ट हो गई तो आनन फानन में अजय सिंह और प्रतिमा ने आपस में कोर्ट मैरिज कर ली थी।

तब से लेकर अब तक प्रतिमा ने कभी भी अपने बाप से कोई मतलब नहीं रखा था और ना ही उसके बाप जगमोहन ने। प्रतिमा की इस बगावत से उसकी बड़ी बहन को धक्का तो ज़रूर लगा था किन्तु वो कर भी क्या सकती थी? ऐसे ही समय गुज़रता गया। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन से फोन पर ही हाल समाचार ले लिया करती थी। दोनो बहनें वर्षों से एक दूसरे से न मिली थी।

ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा इन्हीं सब यादों में खोई थी। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। माॅ का साया तो पहले ही उसके सिर से उठ गया था। दोनो बहनों में ये सबसे ज्यादा लाड प्यार में पली पढ़ी थी और शायद यही वजह थी कि जिद्दी हो गई थी। जिसका नतीजा ये हुआ था कि उसने अपने बाप के खिलाफ़ जाकर अजय सिंह से शादी कर ली थी। मगर आज के हालात बहुत और तब के हालात में बहुत फर्क़ हो गया था। आज के हालात में प्रतिमा किसी के भी सामने झुकने और किसी के भी नीचे लेटने को तैयार थी। बदले में उसे अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त से बाहर चाहिए था।

प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो दुबारा अपने बाप से बात कर सके। शादी वाली बात को तो वर्षों हो गए थे। किन्तु इन वर्षों में उसने एक बार भी अपने बाप से बात करना ज़रूरी नहीं समझा था। और आज जब बुरा वक्त आया तो उसे अपने बाप का ख़याल आया और उससे मदद माॅगने का भी। प्रतिमा को पहली बार लगा कि उसे अपने बाप से इस तरह मुहज़ुबानी नहीं करनी चाहिए थी और ना ही तैश में आकर इस तरह बाप के घर की दहलीज़ को छोंड़ देना चाहिए था। मामले को प्यार से और समझा बुझा कर भी सुलझाया जा सकता था। आज अगर ग़ौर किया जाए तो दो दो बेटियाॅ होने के बाद भी उसका बाप घर में अकेला ही था। सोचने वाली बात है कि उतने बड़े घर में उसका बाप पिछले कितने ही वर्षों से अकेला रह रहा है। क्या उसे अपने उस अकेलेपन से दुख नहीं होता होगा? क्या उसे इस बात का दुख नहीं होगा कि उसकी बेटी ने आज तक उसकी सुधि तक न ली। अपनी खुशियों को गले लगा कर अपने बाप को अकेला छोंड़ दिया। तन्हाई इंसान को जीते जी मार डालती है। मगर उसने कभी अपनी इस बेटी को फोन करके उस सबका गिला न किया था।

प्रतिमा को बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि उससे कितनी बड़ी भूल हुई है। कहते हैं कि माॅ बापप का गुस्सा या नाराज़गी जीवन भर के लिए नहीं होती। आख़िर बाप को औलाद के आगे हार जाना ही होता है। मगर यहाॅ तो जगमोहन दोनो तरफ से हारा हुआ बाप बन चुका था। प्रतिमा की ऑखों से पश्चाताप के ऑसू बह रहे थे। उसे इस बात का बखूबी एहसास था कि भले ही उसके बाप ने उसे त्याग दिया था मगर आज भी वो अपनी बेटियों के मंगलमय जीवन की कामना करता होगा। ये सब सोच सोच कर प्रतिमा को भारी दुख हो रहा था। उसे अपनी अज्ञानता और अपने छोटेपन का शिद्दत से एहसास हो रहा था मगर अब रोने से क्या हो सकता था? पच्चीस साल का वक्त थोड़ा सा नहीं होता अपने बाप से अनबन किये हुए।

प्रतिमा को लगने लगा कि ये जो कुछ भी आज उसके और उसके परिवार के साथ हो रहा है वो सब उसी का फल है जो उसने इतने वर्षों से बाप को दुखी किया हुआ है। ये सब सोच कर ही प्रतिमा को चक्कर सा आने लगा। उसने अपना सिर दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। तभी ड्राइंग रूम में शिवा दाखिल हुआ। अपनी माॅम को इस तरह पीड़ा में देख वह घबरा सा गया। तुरंत ही प्रतिमा के पास पहुॅचा वह और उसे उसके कंधों से पकड़ कर झकझोरा।

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने घबरा कर कहा___"आप ठीक तो हैं न माॅम? प्लीज़ बताइये न क्या हुआ है आपको?"
"कुछ नहीं बेटा।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"बस थोड़ा चक्कर सा आ गया था।"
"आप इतना टेंशन क्यों लेती हैं माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के चेहरे को दोनो हथेलियों में लेकर कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। डैड बहुत जल्द वापस आ जाएॅगे।"

"हाॅ बेटा।" प्रतिमा ने कहीं खोए हुए से कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। तेरे डैड जल्द ही हमारे पास वापस आ जाएॅगे।"
"आप चलिये माॅम।" शिवा ने प्रतिमा को उठाते हुए कहा___"अपने कमरे में आराम कीजिए आप और हाॅ ज्यादा सोच विचार मत किया कीजिए।"

शिवा की बात का प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया और कमरे की तरफ शिवा के साथ बढ़ गई। कमरे में बेड पर प्रतिमा को लेटा कर शिवा रसोई की तरफ बढ़ गया। रसोई में सविता चाय बनाकर केतली में डाल रही थी। ये देख कर शिवा वापस बाहर की तरफ आया और हवेली से बाहर आ गया। बाहर उसने एक आदमी को बुलाया और अंदर ले गया उसे। अंदर आकर उसने सविता से कहा कि वो चाय नास्ता काका को पकड़ा दे। सविता ने वैसा ही किया। शिवा और वो आदमी दोनो ही चाय नास्ता का सामान लिये सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़ गए।
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उधर फार्महाउस पर!
शंकर काका की कहानी से माहौल थोड़ा गंभीर सा हो गया था किन्तु हरिया काका की मज़ेदार बातों से फिर से खुशनुमा हो गया था। रितू को सहसा कुछ याद आया तो उसने हरिया काका की तरफ देखा।

"अरे काका।" फिर उसने कहा___"इन सब बातों के बीच हम ये तो भूल ही गए कि तहखाने में मंत्री की बेटी कैद है और वो कल से भूखी प्यासी भी होगी।"
"हाॅ बिटिया।" हरिया काका के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे___"ई ता सही मा हम भुलाय दीन्हें रहे। ऊ ससुरी मंत्रीवा की छोकरिया अबे तक ता ज़रूरै भूख पियास से मरत होई।"

"आप भी कमाल करते है काका।" रितू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे आप उस बेचारी को ऐसे ही मार देंगे। जबकि अभी तो मुझे उसके अंदर की गर्मी निकालनी है। चलिये देखें तो सही क्या हाल चाल हैं उसके?"
"हाॅ हाॅ चला बिटिया।" हरिया काका ने बंदूख को शंकर के हाथ में थमाते हुए कहा___"अब ता देखहिन का पड़ी कि ऊ ससुरी अबे ज़िंदा बा के मर गईल है।"

रितू हरिया की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने की तरब बढ़ गई। उसके पीछे पीछे हरिया भी चल रहा था। कुछ ही देर में वो दोनो तहखाने के दरवाजे के पास खड़े थे। हरिया ने चाभी हे तहखाने का दरवाजा खोला और एक साइड हट गया। रितू दरवाजे के अंदर की तरफ दाखिल हो गई। अभी वो दो तीन सीढ़ियाॅ ही नीचे उतरी थी कि सहसा उसे रुक जाना पड़ा और जल्दी से पैन्ट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुह व नाॅक पर रखना पड़ा।

तहखाने में तेज़ दुर्गंध फैली हुई थी। मतलब साफ था अंदर मौजूद सूरज और उसके दोस्त या फिर सूरज की बहन में से किसी का टट्टी पेशाब छूट गया था जिसकी वजह हे अंदर दुर्गंध फैली हुई थी। रितू से बर्दास्त न हुआ तो वो वापस तहखाने से बाहर आ गई।

"काका इन लोगों ने तो यहाॅ गंध फैला रखी है।" रितू ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"ऐसे में अंदर जाया नहीं जाएगा। इस लिए सबसे पहले आप तहखाने का हाल सही करवाइये। उसके बाद ही आगे का कार्यक्रम होगा।"
"ठीक है बिटिया।" हरिया ने कहा___"हम इहाॅ की सफाई करवाता हूॅ तब तक तू बाहर रहा।"
"ठीक है काका।" रितू ने कहा___"मैं कुछ देर के लिए कमरे में जा रही हूॅ। जब यहाॅ का सब ठीक हो जाए तो आप मुझे बुला लीजिएगा।"

ये कह कर रितू वहाॅ से बाहर आकर इस तरफ से अंदर गई और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर रितू बेड पर लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि नैना बुआ भी कमरे में आ गई और बेड के किनारे भाग में बैठ गई।

"आइये बुआ।" रितू ने अधलेटी अवस्था में कहा__"आप भी आराम से लेट जाइये।"
"चल ठीक है तू कहती है तो लेट जाती हूॅ।" नैना ने रितू के इस तरफ आते हुए कहा___"अच्छा ये बता कि तेरे इस फार्महाउस पर और क्या क्या होता है?"
"क्या मतलब??" रितू बुरी तरह चौंकी___"यहाॅ क्या क्या होता है से आपका क्या मतलब है?"

"इतनी नासमझ व बुद्धू नहीं हूॅ मैं जितना तू समझ रही है मुझे।" नैना ने कहा___"यहाॅ आए मुझे कुछ समय तो हो ही गया है। मैने महसूस किया है कि ये फार्महाउस असल में मुजरिम लोगों के लिए एक ऐसी जेल की तरह है जिसकी कैद से मुजरिम का निकल पाना नामुमकिन ही नहीं बल्कि असंभव है। कह दे भला कि मैं झूॅठ कह रही हूॅ?"

रितू चकित भाव से देखती रह गई अपनी बुआ को। किन्तु फिर तुरंत ही सम्हल भी गई। चेहरे पर शशंक भाव लाते हुए बोली___"ये सब आपने खुद महसूस किया है या ये सब बातें किसी के द्वारा पता चली है आपको?"

"बात अगर सच है तो इस बात से कोई मतलब ही नहीं रह जाता मेरी बच्ची कि मुझे ये सब कैसे पता चला?" नैना ने स्पष्ट भाव से कहा___"दूसरी बात मुझे इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं है कि तू इस फार्महाउस पर क्या कर रही है। बल्कि खुशी है कि मुजरिमों को उचित सज़ा दे रही है तू। मगर मैं बस यही कहूॅगी कि ऐसे कामों में अपनी जान का ख़तरा भी बहुत होता है इस लिए अपना भी ख़याल रखना।"

"ख़तरा तो हर इंसान के जीवन में होता है बुआ।" रितू ने कहा___"चाहे वो कोई आम इंसान हो या फिर कोई ऐसा इंसान जो हर वक्त ख़तरों के बीच ही रहता है। मैं इस फार्महाउस पर इसके पहले कभी भी किसी मुज़रिम को कानून अपने हाॅथ में लेकर नहीं आई बुआ और नाही ऐसा करने का मैने कभी सोचा था। मगर ये सब तो मैने तब किया जब विधी का मामला आया। हमारे देश में किसी मुजरिम को उसके संगीन से भी संगीन अपराध के लिए कोई शख्त सज़ा नहीं हो पाती। इसकी कई सारी वजहें हैं मगर मुख्य वजहें ये हैं कि हमारा कानूनी सिस्टम बहुत कमज़ोर व ढीला है। कोर्ट में आज भी लाखों ऐसे संगीन अपराधों के केस फाइलों के नीचे दबे हुए हैं जिनकी समयावधी का पता चलते ही हमारा कानून पर से विश्वास उठने लगता है। दूसरी बात हमारा यही कानूनी सिस्टम बड़े लोगों और मंत्री मिनिस्टरों के हाॅथ की कठपुतली बना हुआ है। जबकि सच्चाई ये है कि कानून की नज़र में कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता। अगर अपराध देश के सबसे बड़े ब्यक्ति ने किया है तो उसे भी वैसी ही सज़ा मिलनी चाहिए जो किसी आम मुजरिम को मिलती है। मगर ये सब कहने की बातें हैं बुआ, हकीक़त में ऐसा होता नहीं है। कानून के इसी कमज़ोर सिस्टम की वजह से एक शरीफ आदमी मजबूरीवश जुर्म का दामन थाम बैठता है।"

"तुम जिन चीज़ों की बात कर रही हो बेटा।" नैना ने गहरी साॅस ली___"वो हमेशा ऐसी ही रहेंगी। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इससे भी बदतर बन जाएॅगी। इस लिए इस विषय पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। तुमने कहा कि विधी का मामला जब सामने आया तब तुमने ऐसा क़दम उठाया। विधी के बारे में भी तुमने ही मुझे बताया था कि उसके साथ चार ऐसे लड़कों ने घिनौना कुकर्म किया था जो बड़े बाप की पैदाईश हैं। मैं ये कहना चाहती हूॅ कि ऐसे बड़े बाप की औलादों को यहाॅ लाकर और उनको सज़ा देने से कहीं तुम पर तो कोई ख़तरा नहीं आ जाएगा। आख़िर सवाल तो बड़े लोगों का है न। जिनके ये बच्चे हैं उन्हें अगर पता चल जाए कि उनके बच्चों को तुमने क्या और कैसे सज़ा दी है तो यकीनन वो बड़े लोग तुझ पर बिजली बन कर गिरेंगे।"

"फिक्र मत कीजिए बुआ।" रितू ने सहसा कठोर भाव से कहा___"मैंने उन सबका अच्छा खासा इंतजाम किया हुआ है। आप यूॅ समझिये कि उन बड़े बड़े खलीफाओं की जान मेरी मुट्ठी में कैद है। आज की डेट में वो सब ऐसी कठपुतलियाॅ बने हुए हैं जो सिर्फ मेरे ही इशारे पर नाचने के लिए मजबूर हैं। वो अपनी मर्ज़ी से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो मुझे पसंद ही न आए।"

"ऐसा तेरे पास उनके खिलाफ क्या है?" नैना ने चकित भाव से पूछा___"जिसकी वजह से वो सब बड़े बड़े सूरमा तेरे इशारों पर नाचने के लिए मजबूर बन गए हैं?"

नैना के पूछने पर रितू ने कुछ पल सोचा और फिर उसने वीडियो वाली सारी बात बता दी उसे। ये भी बताया कि उसने खुद मर्द की आवाज़ में फोन पर मंत्री से बात भी की थी और कल तो वो मंत्री की बिगड़ैल बेटी को भी पकड़ कर ले आई है जो इस वक्त तहखाने में बंद है। सारी बातें जानने के बाद नैना का मुह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।

"हे भगवान!।" फिर उसके मुख से निकला___"ये तू क्या कर रही है रितू? लड़कों की बात तक तो ठीक था और लड़कों के बापों तक भी ठीक था किन्तु लड़की को क्यों कैद कर किया तूने? ये ठीक नहीं है मेरी बच्ची। उन लोगों ने घृणित कर्म किया क्योंकि वो उनकी फितरत थी मगर तेरी फितरत तो ऐसी नहीं है न बेटा? इस लिए मेरी बात मान और मंत्री की बेटी को छोंड़ दे तू।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
1,621
5,930
143
"आपने बहुत दूर तक का सोच लिया बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"जबकि मेरा ऐसा करने का कोई इरादा ही नहीं है। मेरा मकसद तो बस ये है कि मैं उन्हें भी उस चीज़ का एहसास कराऊॅ जिस चीज़ को करने में उन्हें सबसे ज्यादा मज़ा आता है। मैं उन्हें दिखाना चाहती हूॅ बुआ कि जब वैसा ही सब कुछ अपने साथ होता है तब कैसा प्रतीत होता है? जब अपने ऊपर वैसा जुल्म होता है तो कितनी तक़लीफ़ होती है? हाॅ बुआ यही, बस यही एहसास कराना चाहती हूॅ मैं उन सबको।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" नैना ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"जो भी करना इस बात का ख़याल रखते हुए करना कि तुम एक अच्छे संस्कारों वाली लड़की हो जो किसी का भी बुरा नहीं कर सकती।"
"अच्छा अब आप आराम कीजिए बुआ।" रितू ने बेड से उतरते हुए कहा___"मैं ज़रा तहखाने में उन सबका हाल चाल देख लूॅ।"
"ठीक है जाओ।" नैना ने कहा और आराम से लेट गई।

रितू कमरे से निकल कर बाहर आ गई। उसने अपने आईफोन के बाईब्रेशन को महसूस किया था। वो समझ गई थी कि हरिया काका ने ही उसे मिस काल दिया था। मतलब साफ था कि उसने तहखाने की गंदगी को साफ कर दिया था। ख़ैर, कुछ ही देर में रितू तहखाने में पहुॅच गई। अब वहाॅ पर कोई गंध नहीं थी। बल्कि सबकुछ एकदम से साफ सुथरा हो गया था।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ!
इस वक्त मंत्री के सभी साथी ड्राइंगरूम में जमा हुए बैठे थे। सबके बीच ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। अभी थोड़ी देर पहले ही मंत्री दिवाकर चौधरी अपने आवास पर अपने साथियों के साथ आया था। दिवाकर चौधरी कल शाम से चिंतित व परेशान था। कल शाम को ही आया ने बताया था कि रचना बेटी जिम से नहीं लौटी है। चौधरी को पहले इस बात पर ज्यादा चिंता की बात नज़र नहीं आई थी। उसे लगा था कि रचना अपनी फ्रैण्ड्स के साथ होगी। किन्तु जब आधी रात गुज़र जाने पर भी रचना न आई तो चौधरी को चिंता सताने लगी। उसने रचना की जान पहचान वाली सभी लड़कियों को फोन लगा कर रचना के बारे में पूॅछा था। मगर सबने यही कहा कि रचना उनके पास नहीं है। एक लड़की ने बताया कि शाम को जिम से बाहर आते समय रचना उसके साथ ही थी किन्तु फिर वो अपनी स्कूटी लेकर घर के लिए निकल गई थी।

दिवाकर चौधरी को कल सारी रात नींद नहीं आई थी। अपनी बेटी के लौटने के इंतज़ार में वह जागता ही रहा था। मगर रात गुज़र गई और अब ये दूसरा दिन शुरू होकर दोपहर भी हो रही थी। फिर भी रचना के बारे में कोई ख़बर न मिली थी उसे। चौधरी के लिए चिंता वाली सबसे ज्यादा बात ये थी कि रचना का मोबाइल फोन कल से लगातार बंद बता रहा था। दिवाकर चौधरी को अब अपनी बेटी की बहुत ज्यादा चिंता सता रही थी। उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली थी मगर रचना को ढूॅढ़ पाने में वह नाकाम रहा था। दूसरी चिंता की बात ये थी कि उसका बेटा और बेटे के तीनों दोस्तों का भी कहीं कोई पता नहीं चल रहा था। ये सब बातें चौधरी की रातों की नींद उड़ाए हुई थी।

"बड़ी हैरत की बात है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"पहले हम अपने बच्चों के लिए चिंतित व परेशान थे। उसके बाद हम अपने लिए परेशान हो गए उन वीडियोज़ की वजह से और अब रचना बेटी के लिए परेशान हो गए हैं। पिछले कुछ समय से ये सब हमारे साथ क्या होने लगा है इसका अंदाज़ा भी है किसी को?"

"हमसे सबसे बड़ी ग़लती ये हुई कि हमने हर चीज़ को तुच्छ व ग़ैरमामूली समझा।" अशोक मेहरा ने कहा__"पर अब हमें गंभीरता से इस सबके बारे में सोचना पड़ेगा चौधरी साहब। हमें शुरू से हर घटना पर ग़ौर करना होगा। हमारे साथ राहू कुतू का ये चक्कर तब से शुरू हुआ जबसे हमारे बच्चों ने उस लड़की का रेप किया था। उस रेप के बाद से ही हमारे बच्चे गायब हुए हैं और अब तक हमें उनकी कोई खोज ख़बर नहीं लगी है। उसके बाद उस अंजान ब्यक्ति का हमें वो वीडियोज़ भेजना, साथ ही उसकी वो धमकी भरी बात। और अब रचना बेटी का अकस्मात गायब हो जाना। ये सारी घटनाएॅ इस बात की तरफ स्पष्ट रूप से इशारा करती हैं कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है। दूसरा कोई शख्स ऐसा करने का सोच भी नहीं सकता है।"

"मैं अशोक की इन बातों से पूरी तरह सहमत हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"ये सच है कि सारी घटनाओं का केन्द्र बिन्दु उस लड़की के रेप वाली वो घटना ही है। ऐसे मामलों में आम तौर पर वही होता है जो ऐसे हर रेपिस्ट के साथ होता है। यानी रेप पीड़िता के घरवाले पुलिस में एफआईआर दर्ज़ करवाते हैं और अदालत से इंसाफ की गुहार लगाते हैं। हलाॅकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि कोई भी शरीफ ब्यक्ति अपनी बदनामी नहीं कराना चाहता इस लिए केस को रफा दफा करवा लेता है किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदनामी से नहीं डरते और इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा पार कर जाते हैं। मगर हैरत की बात है कि जिस लड़की के साथ हमारे बच्चों ने रेप किया उस पर किसी ने कोई ऐक्शन ही नहीं लिया। जबकि कानून के ही डर से हमारे बच्चे शायद कहीं छुप गए और आज तक लौट कर घर नहीं आए। दूसरी बात ये कि हमने भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि रेप के बाद उस लड़की का क्या हुआ? जबकि हमें ऐसे मामले की पल पल की ख़बर रखनी चाहिए थी। आज उस घटना को घटे क़रीब क़रीब दो हप्ते हो गए होंगे।"

"ये सच है कि हमने हर चीज़ को मामूली ही नहीं समझा बल्कि उसे नज़रअंदाज़ भी किया।" दिवाकर चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने को मिल रहा है। मगर, अब भी शायद कुछ नहीं बिगड़ा है। हमें इस मामले में अपनी तरफ से जाॅच पड़ताल करनी चाहिए। सबसे ज्यादा उस लड़की के बारे में, क्योंकि घटनाओं का सिलहिला उस रेप से ही शुरू हुआ है। संभव है कि हमें कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे हमें सारी बातों का पता चल जाए। हलाॅकि हमने उस दिन पुलिस कमिश्नर से फोन पर पूॅछा था कि हमारे बच्चों के लापता होने में अगर पुलिस का हाॅथ हुआ तो अच्छा नहीं होगा। इस पर कमिश्नर ने साफ साफ कहा था कि हमारे बच्चों पर कानून का हाॅथ तभी पड़ सकता था जबकि रेप पीड़िता के घरवालों ने थाने में एफआईआर दर्ज़ करवाया होता। इस लिए जब ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है तो हमारे बच्चों पर कानून कोई कार्यवाही कैसे कर देगा? इस लिए ये तो साफ है कि हमारे बच्चों के गायब होने में नुलिस या कानून का कोई हाॅथ नहीं है। मगर बच्चे गायब हैं ये सच बात है। इस लिए अब इसका पता लगाना बेहद ज़रूरी है कि ये सब किसने किया है हमारे बच्चों के साथ? दूसरा मामला वो वीडियो भेजने वाला है। वीडियो भेजने वाले ने उस दिन फोन पर स्पष्ट कहा था कि उसके पास हमारे खिलाफ ऐसे ऐसे सबूत हैं जिनके बेस पर वो हमें जब चाहे बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। उसकी इस बात पर हमने ये निष्कर्श निकाला था कि संभव है कि उसी ने हमारे बच्चों को पकड़ा हो और फिर उन्हें टार्चर करके उनसे हमारे खिलाफ़ उन वीडियो के रूप में सबूत प्राप्त किया होगा।"

"फिर तो ये साबित हो गया चौधरी साहब कि इन सभी घटनाओं का कर्ता धर्ता एक ही ब्यक्ति है।" अशोक मेहरा बीच में बोल पड़ा___"आपकी बातों में यकीनन ठोस सच्चाई है। यकीनन हमारे बच्चे उस वीडियों भेजना वाले के पास ही हैं। इस बात से ये भी सोचा जा सकता है कि रचना बेटी को भी उसी ने किडनैप किया होगा।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"अभी तक हमें वस्तुस्थित का ज़रा भी एहसास नहीं था किन्तु अब हो रहा है और समझ में भी आ रहा है कि वोडियो भेजने वाला हमसे चाहता क्या है?"

"क्या चाहता है वह??" दिवाकर चौधरी फिरकिनी की मानिंद अवधेश की तरफ घूम कर पूछा था।
"हो सकता है कि इन मामलों के तहत उस वीडियो भेजने वाले के संबंध में जो थ्यौरी मेरे दिमाग़ में बनी है वो ग़लत भी हो।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"किन्तु फिर भी प्रकट कर रहा हूॅ। बात उस लड़की के रेप से ही शुरू हुई। रेप पीड़िता के घरवालों को जब इस बात का पता चला होगा कि रेप करने वाले लड़के बड़े बाप की औलाद हैं तो वो समझ गए कि पुलिस में एफआईआर दर्ज़ कराने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि बड़े लोगों के प्रभाव से सीघ्र ही इस केस को इतना कमज़ोर बना दिया जाएगा कि उसमें कोई दम नहीं रह जाएगा। बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उल्टा लड़की को ही कोर्ट में चरित्रहीन और बदचलन साबित कर दिया जाए। उस सूरत में इंसाफ तो मिलने से रहा ही ऊपर से समाज के बीच उनकी जो इज्ज़त खाक़ में मिलेगी उसकी भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं हो सकती थी।
इस लिए लड़की के घरवालों ने अपनी बेटी के साथ हुए रेप का बदला लेने के लिए दूसरा तरीका अपनाया। दूसरा तरीका ये था कि किसी तरह वो हमारे बच्चों को पकड़ लें और फिर अपने तरीके से जो चाहे सज़ा दें उन्हें। अब तक वो इसी लिए अपने हर काम में सफल रहे क्योंकि हमने इन सब चीज़ों की तरफ ध्यान ही न दिया था। ध्यान तो तब आया जब मामला हमारे हाॅथ से निकल गया। हाॅ चौधरी साहब, मामला हमारे हाॅथ से निकल ही तो गया है। क्योंकि उस ब्यक्ति के पास हमारे खिलाफ जो सबूत है वो हमें किसी भी पल बीच चौराहे पर नंगा होकर दौड़ने पर मजबूर कर देगा।"

"तो तुम्हारे हिसाब से ये सब लड़की के घरवालों ने किया है?" चौधरी ने कहा___"मतलब कि उन लोगों ने हमारे बच्चों को पकड़ा और उनसे हमारे खिलाफ़ सबूत भी प्राप्त कर लिए?"
"जी बिलकुल।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"आप खुद सोचिए कि ऐसा करने की उनके सिवा भला किसके पास वजह थी? ये तो एक यथार्थ सच्चाई है न चौधरी साहब कि बेवजह कभी कुछ नहीं होता है। इस लिए ये सब करने की वजह सिर्फ और सिर्फ रेप पीड़िता के घरवालों के पास थी। दूसरा ब्यक्ति ऐसा करने का शौक तो नहीं रख सकता न?"

"चलो मान लिया कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों ने किया है।" चौधरी ने कहा___"किन्तु सवाल ये है कि उन्हें हमारी बेटी को भी किडनैप या पकड़ने की क्या ज़रूरत थी? हमारी बेटी ने तो कोई गुनाह नहीं किया था न? फिर क्यों उसे पकड़ा उन्होंने?"

"संभव है कि रचना बेटी के ज़रिये।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"वो हमें ये एहसास दिलाना चाहते हों कि जब वैसा ही रेप केस हमारे साथ हो तो हमें कैसा लगेगा? हमें उससे कितनी तक़लीफ़ होगी?"

अवधेश श्रीवास्तव के इस तर्क से दिवाकर चौधरी कुछ बोल न सका। जैसे निरुत्तर हो गया था वह या फिर कदाचित उसे बात समझ में आ गई थी कि अवधेश का तर्क बिलकुल सही था। ख़ैर, अवधेश श्रीवास्तव की उस बात से कुछ देर सन्नाटा छाया रहा।

"तो अब क्या किया जाए?" सहसा अशोक मेहरा ने उस सन्नाटे को चीरते हुए कहा___"अगर हम सही लाइन पर हैं तो हमारा अगला क़दम अब क्या होना चाहिए?"
"बड़ा सीधा व सरल जवाब है अशोक।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारा अगला क़दम ये होना चाहिए कि हमें जल्द से जल्द उस रेप पीड़िता लड़की के घरवालों को धर लेना चाहिए। उसके बाद खुद ही हम अपने तरीके से उनका क्रिया कर्म करेंगे।"

"तुम तो ऐसे कह रहे हो अवधेश जैसे कि ये सब वैसा ही आसान काम हो जैसे थाली से दाल चावल का निवाला बना कर उसे खा लेना आसान होता है।" अशोक ने कहा___"जबकि हमें इस बात पर भी ज़रा ग़ौर कर लेना चाहिए कि जिस ब्यक्ति को हम धर लेने के लिए अपने क़दम बढ़ाने जा रहे हैं उसने क्या इस सबके बारे में नहीं सोचा होगा? बल्कि ज़रूर सोचा होगा भाई, उसे भी इस बात का अच्छी तरह से पता है कि हम क्या चीज़ हैं। अगर वो हमारे बच्चों को धर लेगा तो सबसे पहले हमारा शक़ उसी पर ही जाएगा। उस सूरत में हम उसकी उस धृष्टता के लिए उसका क्या हस्र करेंगे ये बात भी उसने ज़रूर सोची होगी। अब सोचने वाली बात ये है कि जब उसने ये सब सोचा होगा तो अपने बचाव का कोई न कोई रास्ता भी सोचा होगा। ऐसे ही तो नहीं कोई साॅप के बिल में अपना हाॅथ डाल देता है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में दम है।" अवधेश श्रीवास्तव ने जैसे स्वीकार किया__"और उसके जिस बचाव वाले रास्ते की तुम बात कर रहे हो वो यकीनन यही हो सकता है कि आज की डेट में उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत के रूप में वो वीडियो रूपी ब्रम्हास्र है।"

"बिलकुल ठीक समझे।" अशोक ने कहा__"इस लिए अब हम अगर कोई क़दम भी उठाएॅ तो ज़रा सोच समझ कर उठाएॅ। क्योंकि अगर उसे पता चल गया कि हम उसके खिलाफ़ कुछ करने जा रहे हैं तो संभव है कि अगले ही पल वो हम पर क़यामत बरपा दे।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि हम कुछ कर ही नहीं सकते।" सहसा चौधरी आवेश में कह उठा__"उस साले ने हमें पंगु बना कर रख दिया है। मगर ऐसा कब तक चलेगा यार? हमें कुछ तो करना ही पड़ेगा न? वरना वो दिन दूर नहीं जबकि हम चारों किसी चौराहे पर नंगे दौड़ लगा रहे होंगे।"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नुकसान तो दोनो तरफ से होना ही है। इस लिए कुछ करके ही नुकसान झेलते हैं। शायद ऐसा भी हो जाए कि सारा खेल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तुमने।" चौधरी ने कहा___"मगर सवाल ये है कि हम करेंगे क्या?"

"वही जो करने का सजेशन थोड़ी देर पहले अवधेश भाई ने दिया था।" अशोक ने कहा___"मगर उसमें थोड़ा चेंज करना पड़ेगा। वो ये कि लड़की के घरवालों को पहले हम दिलेरी से धरने जा रहे थे जबकि अब वही काम हम इस तरीके से करने की कोशिश करेंगे कि उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अवधेश श्रीवास्तव बोला__"मगर मुझे लगता है कि हमें एक बार ये सब करने से पहले फिर से इस बारे में सोच लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम खुद ही धर लिए जाएॅ।"
"कायर व डरपोंक जैसी बातें मत करो अवधेश।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब हम चुप भी नहीं बैटना चाहते हैं। साला हिंजड़ा बना कर रख दिया है उसने हमें। मगर अब और नहीं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे फैंसला सुना दिया था। किसी में भी इस फैंसले के खिलाफ़ जाने की हिम्मत न थी। इस लिए अब इस काम को अंजाम देने की समय सीमा पर विचार विमर्ष किया गया और उसके बाद अशोक और अवधेश अपने अपने घर चले गए। मगर आगे किसके साथ क्या होने वाला है ये किसी को कुछ पता न था।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........ 《 52 》


अब आगे,,,,,,,

उधर तहखाने में रितू जब पहुॅची तो वहाॅ की साफ सफाई देख कर खुश हो गई। अब यहाॅ पर पहले जैसी गंद नहीं थी। एक तरफ सूरज और उसके तीनो दोस्त हाथ ऊपर किये रस्सी से बॅधे खड़े थे। रितू को तहखाने में आया देख कर उन चारों की निगाह स्वयमेव ही उस तरफ उठती चली गई थी। चेहरों पर घबराहट के भाव एकाएक ही उजागर हो गए थे। चारों की हालत काफी ख़राब हो चुकी थी। ठीक से भोजन न मिलने की वजह से उनके जिस्म कमज़ोर से दिखाई दे रहे थे। दाढ़ी मूॅछें बढ़ गई थी जिससे पहचान में नहीं आ रहे थे वो। वहीं दूसरी तरफ दीवार के पास ही लकड़ी की एक कुर्सी पर मंत्री की बेटी रचना बैठी हुई थी। उसके दोनो हाॅ तथा दोनो पैर कुर्सी से इस तरह बॅधे हुए थे कि वह हिल डुल भी नहीं सकती थी।

"वाह काका।" तहखाने के फर्श पर चलते हुए रितू ने हरिया की तरफ देख कर कहा___"आपने तो कमाल ही कर दिया है। यहाॅ की साफ सफाई देख कर लगता ही नहीं है कि अभी थोड़ी देर पहले यहाॅ गंदगी का कितना बड़ा साम्राज्य कायम था।"

"ई सुसरे लोगन ने इहाॅ बड़का वाला गंदगी फेरे रहे बिटिया।" हरिया काका ने कहा___"यसे साफ तो करइन का परत ना। बस थोड़ी दिक्कत ता हुई पर हम सब बहुत अच्छे से कर लिया हूॅ।"
"हाॅ वो तो दिख ही रहा है काका।" रितू ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा___"ख़ैर, इन लोगों की ख़ातिरदारी अच्छी चल रही है न?"

"अरे बिटिया।" हरिया ने अजीब भाव से कहा___"ई कइसन सवाल हा? ई बात ता ई ससुरा लोगन का देख के ही समझ मा आ जई कि हम कितना अच्छे से ई लोगन केर खातिरदारी किया हूॅ। बस ई ससुरी छोकरिया बहुतै उछलत रही।"

"ऐसा क्यों काका?" रितू चौंकी।
"अरे ऊ का है ना बिटिया।" हरिया ने ज़रा नज़रें झुकाते हुए कहा___"ई चारो लोगन के जइसन एखरौ टट्टी पेशाब छूट गइल रहे। एसे हमका एखर नीचे का कपड़ा उतारैं का परा। पर हम सच कहत हूॅ बिटिया। हम एखे बदनवा का कछू नाहीं देखेन। एखे बावजूदव ई ससुरी चिल्लात रही यसे हम भी गुस्सा मा एक लाफा दै दिये इसको। ससुरी बहुतै गंदा गरियावत रही हमका। पर हमहू तबहिनै माने जब एखर सब कुछ साफ कर के चकाचक कर दिहे।"

"ओह तो ये बात है।" रितू मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली___"कोई बात नहीं काका। आपने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। वरना तो ये सब गंद फैलाते ही रहते न?"
"एक बार मेरे हाॅथ पैर को इस रस्सी से आज़ाद कर के देख कुतिया।" सहसा रचना ने एकाएक बिफरे हुए अंदाज़ से चीखते हुए कहा___"तेरे हाथ पैर तोड़ कर तेरे हाॅथ में न दे दूॅ तो कहना।"

रचना की इस बात से जहाॅ हरिया का पारा गरम हो गया था वहीं रितू उसे देख कर बस मुस्कुरा कर रह गई। फिर उसने सूरज और उसके दोस्तों की तरफ इशारा करते हुए रचना से कहा___"इन चारों को ग़ौर से देखो और पहचानो कि ये चारो कौन हैं?"

"मुझे नहीं पहचानना किसी को।" रचना ने पूर्व की भाॅति ही तीखे भाव से कहा___"ये सब तेरे यार हैं तू ही पहचान इन्हें।"
"मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तेरी इस गंदी ज़ुबान को काट कर तेरे पिछवाड़े में डाल दूॅ।" रितू के मुख से शेरनी की भाॅति गुर्राहट निकली___"मगर उससे पहले तुझे ये दिखाना चाहती हूॅ और बताना चाहती हूॅ कि तू जिनके दम पर इतना उछल रही है न उनकी औकात मेरे सामने कीड़े मकोड़ों से भी बदतर है। ग़ौर से देख इन चारों को। इनमें तेरा ही कोई अपना नज़र आएगा।"

रितू की ये भात सुन कर रचना ने पहले तो उसे आग्नेय नेत्रों से घूरा उसके बाद उसने उन चारों की तरफ अपनी निगाह डाली। सूरज अपनी बहन को ग़ौर से अपनी तरफ देखते देख बुरी तरह घबरा गया। वो नहीं चाहता था कि उसकी बहन उसे पहचाने। क्योंकि उसे पता था कि उस सूरत में उसकी बहन भयभीत हो जाएगी। उसने जब पहली बार ऑखें खोल कर रचना को देखा था तो बुरी तरह चौंका था साथ ही डर भी गया था। उसे रितू से इस सबकी उम्मीद नहीं थी। हलाॅकि रितू ने उससे कहा ज्ररूर था कि वो उसकी बहन को भी यहाॅ ले आएगी और वो सब उसके साथ बलात्कार करेंगे। मगर उसे लगा था कि ये सब रितू महज गुस्से में कह रही थी। जबकि ऐसा वो करेगी नहीं। मगर अब उसे समझ आ गया था कि रितू ने उस समय कोई कोरी धमकी नहीं दी थी बल्कि सच ही कहा था। जिसका प्रमाण इस वक्त रचना के रूप में उसके सामने कुर्सी पर बॅधा हुआ मौजूद था। ख़ैर उधर,

रितू की ये बातें सुन कर रचना ने जब ग़ौर से उन चारों की तरफ देखा तो एकाएक ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव आए और फिर जैसे एकाएक ही जैसे उसके दिलो दिमाग़ में विष्फोट हुआ। उसने पलट कर रितू की तरफ देखा।

"तेरे चेहरे के ये भाव चीख़ चीख़ कर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि तूने इन चारों को पहचान लिया है।" रचना के देखते ही रितू ने अजीब भाव से कहा___"और अब जब तूने पहचान ही लिया है तो पूछ इन चारों से कि ये सब यहाॅ कैसे और क्यों मौजूद हैं?"

रितू की इस बात का असर रचना पर तुरंत ही हुआ। उसके चेहरे पर एकाएक ही ऐसे भाव उभरे जैसे उसे उन चारों को इस हालत में देख कर बेहद दुख हुआ हो। ऑखों में पानी तैरता हुआ नज़र आने लगा था उसके।

"भ भाई।" फिर उसके मुख से लरज़ता हुआ स्वर निकला___"ये सब क्या है? आप चारो यहाॅ कैसे??"

रचना के इस सवाल पर सूरज चुप न रह सका। बल्कि ये कहना चाहिए कि अब उसके सामने कोई चारा ही नहीं रह गया था। इस लिए उसे अब अपनी बहन के सामने अपनी यहाॅ पर मौजूदगी का कारण बताना ही था। इस लिए चेहरे पर दुख के भाव लिए वह रचना को अपनी राम कहानी शुरू से लेकर अंत तक बताता चला गया। सारी बातें जानने के बाद रचना भौचक्की सी रह गई थी।

"और हम सब ये समझ रहे थे कि आप लोग उस घटना के चलते कहीं ऐसी जगह छुप गए हैं जहाॅ पर आप पुलिस व कानून की पहुॅच से दूर होंगे।" सारी बातें सुनने के बाद रचना ने आहत भाव से कहा___"मगर आप तो यहाॅ हैं भाई। ख़ैर, देख लिया न भाई बुरे का काम का बुरा अंजाम। कितना कहती थी आप लोगों को कि इस तरह किसी की ज़िंदगियों से मत खेलो। मगर आप लोग कभी मेरी बात नहीं सुनते थे। बल्कि हमेशा यही कहते थे कि लाइफ को एंज्वाय करो और मस्त रहो। मुझे भी ऐसा ही करने की नसीहत देते थे। मगर इससे हुआ क्या भाई? आज आप चारो यहाॅ इस हालत में मौजूद हैं। डैड को तो ख़्वाब में भी ये उम्मीद नहीं है कि उनके साहबज़ादे किस जगह किस हाल में हैं इस वक्त?"

"तूने सच कहा मेरी बहन।" सूरज ने रुॅधे हुए गले के साथ बोला___"ये सब मेरे पापों का ही प्रतिफल है। मैने कभी इस बारे में नहीं सोचा था कि जो कुछ मैं कर रहा था उसका अंजाम ऐसा भी होगा। हमेशा वही करता था जिसे करने में कदाचित मुझे दुनियाॅ का सबसे बड़ा और ज्यादा आनंद आता था। ख़ैर, मुझे अपने इस अंजाम का दुख नहीं है रचना क्योंकि ये मैने खुद ही कमाया है। दुख तो इस बात का है कि मेरी वजह से आज तू भी यहाॅ आ गई है और मैं ये सोच कर ही अंदर से बुरी तरह भयभीत हुआ जा रहा हूॅ कि जाने तेरे साथ ये इंस्पेक्टरनी क्या करेगी?"

"ये कुछ नहीं करेगी भाई।" रचना ने सहसा पुनः तीखे भाव अख़्तियार कर लिए___"इसे पता नहीं है कि इसने किसके बच्चों पर हाॅथ डाला है? इसने अब तक जो कुछ भी आपके और मेरे साथ किया है उसका अंजाम इसे ज़रूर भुगतना पड़ेगा। इसे इस बात का ज़रा सा भी एहसास नहीं है कि इसके साथ क्या क्या होगा?"

"रस्सी जल गई पर बल नहीं गया अब तक।" रितू ने रचना के सिर के बालों को पकड़ कर झटका दिया__"मुझे पता है कि तू ये सब किसके दम पर बोल रही है। मगर तुझे पता ही नहीं है कि तू जिसके दम पर ये राग अलापे जा रही है वो खुद बहुत जल्द यहाॅ तेरे सामने हाज़िर होने वाला है। मैने तेरे बाप दिवाकर चौधरी और उसके उन सभी दोगले दोस्तों को वो वीडियोज़ भेज दिये हैं जिन वीडियोज़ पर उनकी काली करतूतों का सामान मौजूद है। कितनी मज़े की बात है कि एक बेटा अपने ही बाप की ऐसी अश्लील वीडियो बना कर रखे हुए था जो अगर किसी के हाॅथ लग जाएॅ तो वो बड़ी आसानी से इसके बाप को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा दे।"

रितू की ये बात सुन कर रचना तो चौंकी ही साथ ही साथ सूरज और उसके दोस्त भी बुरी तरह चौंक पड़े थे। पलक झपकते ही उनके चेहरों पर से रहा सहा रंग भी उड़ गया।

"कुछ समझ आया तुझे?" इधर रितू ने रचना के बालों को ज़ोर से खींचा___"सारे शहर को अपनी मुट्ठी में रखने वाला तेरा बाप और उसके दोस्त अब मेरी गुलामी करने पर मजबूर हैं। मैं अगर उसे कहूॅ कि टट्टी खा तो उसे खाना पड़ेगा। अब बता किसके दम पर इतना उछल रही है तू? जबकि मैने तो यहाॅ तक सोचा हुआ कि जिस दिन तेरा बाप और दोस्त यहाॅ आएॅगे तो उनके स्वागत में तुझे ही नंगी करके उनके सामने डाल दूॅगी। फिर देखूॅगी कि नंगी और गोरी चमड़ी को उस हालत में देख कर कैसे उनके खून में उबाल आता है?"

"नहींऽऽ।" रितू की बात को समझते ही तहखाने में रचना के साथ साथ सूरज और उसके दोस्तों का आर्तनाद गूॅज उठा, जबकि सूरज गिड़गिड़ाया___"प्लीज ऐसा मत करना इंस्पेक्टर। मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ता हूॅ। हर चीज़ के अपराधी मैं और मेरा बाप है ये सच है मगर मेरो बहन बेकसूर है। उसे इस सबमें मत घसीटो प्लीज।"

"हाहाहाहाहा ई का?" सहसा वहीं पर खड़ा हरिया ज़ोर से हॅस पड़ा___"ई का बिटिया। ई सरवा ता एतने मा ही गला फाड़ै लाग। कउनव सच ही कहे रहा कि जब बात ससुरी अपने मा आवथै तबहिन समझ मा आवथै कि ओसे का मज़ा मिलथै? ई ससुरन के साथ ता इहै होय का चाही बिटिया। हम भी देखूॅगा कि ऊ सबसे ई लोगन केर का हाल होथै?"

"बिलकुल काका।" रितू ने कहा___"ये काम भी आपको ही करना है और कैसे करना है ये आप जानो।"
"अरे चिंता न करा बिटिया।" हरिया अंदर ही अंदर खुशी से झूमता हुआ बोल पड़ा___"ई काम ता हम बहुतै अच्छे से करूॅगा। कउनव शिकायत ना होई तोहरा के, ई तोहरे हरिया काका के वादा बा। ऊ ससुरे मंत्रीवा केर ओखे ई छोकरिया के साथ बहुतै अच्छे से ख़ातिरदारी करूॅगा हम।"

"शाबाश काका।" रितू मुस्कुराई___"मुझे आपसे यही उम्मीद है। मुझे पता है आप अपना काम बहुत अच्छे से करते हैं।"
"हाॅ ई ता हा बिटिया।" हरिया काका गर्व से अकड़ते हुए बोला___"हम आपन काम बहुतै अच्छे से करता हूॅ। कउनव परकार केर शिकायत का मौका नाहीं देता हूॅ। समय आवैं ता पहिले फेर तू देख लीहा। हम ई ससुरन के नानी केर नानी ना याद दिलाई ता कहना।"

"नहीं नहीं।" रचना तो भयभीत होकर चीखी ही किन्तु सूरज बुरी तरह भयभीत होकर रो पड़ा था___"ये सब मत करो इंस्पेक्टर। ये आदमी बहुत ज़ालिम है। प्लीज मेरी बहन के साथ कुछ भी ऐसा वैसा मत करो। जो कुछ करना है हमारे साथ करो।"

"और चीखो।" रितू बिजली की तरह सूरज के पास पहुॅची थी, गरजते हुए बोली___"और तड़पो। मगर कोई फायदा नहीं होगा। मैं तुम सबका वो हाल करूॅगी कि किसी भी जन्म में ये सब करने के बारे में सोचोगे भी नहीं और अगर सोचोगे भी तो कर नहीं पाओगे। क्योंकि नामर्द कुछ कर नहीं सकते और तुम सब हर जन्म में नामर्द ही पैदा होगे।"

"अगर ये बात है।" सहसा सूरज ने अजीब भाव से कहा___"तो मुझमें और तुममें क्या फर्क़ रह गया इंस्पेक्टर? हर अपराध की तो यकीनन सज़ा होती है मगर उस सज़ा में वो सब तो नहीं होता न जिस सज़ा को पाप कहा जाए या उसे अनैतिक करार दिया जाए? तुमने जो कुछ करने का सोचा हुआ है वो तो हर तरह से अनैतिक है, पाप है।"

"तुम्हारे मुख से अनैतिक व पाप पुन्य की ये बातें अच्छी नहीं लगती मिस्टर।" रितू ने कहा___"मुझे तुमसे ज्यादा इन चीज़ों का ज्ञान है। मुझे पता है कि मैं क्या करने जा रही हूॅ। तुम्हें इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि तुम तो अनैतिक व पाप कर्म करने के आदी हो। इस लिए बस खुली ऑखों से उस सबको देखने के लिए तैयार हो जाओ जो बहुत जल्द यहाॅ दिखने वाला है।"

"इस कुतिया के सामने मत गिड़गिड़ाओ भाई।" सहसा रचना बोल पड़ी___"ये खुद भी वैसा ही कर्म करने वाली लगती है, वरना ऐसी बातें इसके दिमाग़ आती ही नहीं। पुलिस वाली है न, इस लिए हर किसी के नीचे लेट जाती होगी। ऐसी नौकरी में होता ही यही है आहहहहह।"

"तोहरी माॅ को चोदूॅ छिनाल।" रचना की बात सुनते ही हरिया आग बबूला होकर उसको धर दबोचा था___"तोहरी ई हिम्मत की हमरी बिटिया के बारे मा अइसन कहथो। रुक अबहिन हम तोहरा का बताथैं कि कउन केखर सामने लेटत है?" हरिया ने सहसा रितू की तरफ देखा__"बिटिया तू जा इहाॅ से। हम एखर ई ज़बान बोलैं का अंजाम दिखावथैं।"

"नहीं प्लीज उसे छोंड़ दो।" रितू के कुछ कहने से पहले ही सूरज चीख पड़ा था___"उसकी तरफ से मैं माफ़ी माॅगता हूॅ। प्लीज इंस्पेक्टर इस आदमी को कहो कि मेरी बहन को कुछ न करे।"
"काका इसे बस थोड़ा सा डोज देना।" रितू ने सूरज की बात की तरफ ध्यान दिये बिना हरिया से कहा___"बाॅकी इसके साथ आग़ाज़ तो इसका बाप करेगा। आप समझ रहे हैं न मेरी बात?"

"हम सब समझ गया हूॅ बिटिया।" हरिया ने कहा__"अब तू जा इहाॅ से। हम ई ससुरी का बतावथैं कि तोहसे अइसन बोलैं का अंजाम का होथै?"
"मेरे साथ अगर कोई बद्दतमीजी की तो अंजाम अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए।" रचना चीखी___"छोंड़ दो मुझे। वरना बहुत पछताओगे तुम सब।"

रितू ने उसकी तरफ हिकारत भरी दृष्टि से देखा और तहखाने के बाहर की तरफ चली गई। उसके इस तरह जाते ही सूरज गला फाड़ कर चिल्लाने लगा था। बार बार कह रहा था कि उसकी बहन को छोंड़ दो। मगर रितू न रुकी। जबकि रितू के जाते ही हरिया ने लपक कर तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर वापस पलट कर सूरज की तरफ बढ़ा।

"का रे मादरचोद।" हरिया ने सूरज के पेट में एक लात जमाते हुए कहा___"काहे अइसन गला फाड़ रहा है? अब बता तोहरी ई राॅड बहन केर का खातिरदारी करूॅ हम? हमरा ता बहुतै मन करथै कि तोरी ई बहनिया केर मदमस्त जलानी केर मजा लूॅ मगर हमरी बिटिया ने ऊ सब केर इजाजत ना दिये रही। एसे अब हम तोरे साथै आपन ऊ पसंद वाला काम करूॅगा।"

"नहीं नहीं प्लीज काका।" हरिया की बात समझ कर सूरज बुरी तरह हिल गया, बोला___"वो सब मत करो। मैं अपनी बहन के सामने वो सब नहीं करना चाहता।"
"अबे बुड़बक।" हरिया ने सूरज के चेहरे पर अपनी हथेली फेरते हुए कहा___"हम ससुरे तोहरी इच्छा थोड़ी न पूछत हूॅ। हम ता अपनी पसंद केर बात करत हूॅ। अउर ऊ ता होबै करी बछुवा काहे से के ऊ हमरी ख्वाहिश केर बात हा। एसे चल अपना पिछवाड़ा खोल।"

सूरज नहीं नहीं करता ही रह गया मगर हरिया भला कहाॅ मानने वाला था। उसने सूरज की रस्सी को ऊपर से छोरा और मजबूती से पकड़ कर उसके कच्छे को एक हाॅथ से नीचे सरका दिया। रचना ये सब अपनी खुली ऑखों से देख रही थी। जैसे ही हरिया ने उसके भाई के कच्छे को नीचे किया वैसे ही उसे झटका लगा। आश्चर्य से उसकी ऑखें फटी रह गईं। फिर सहसा जैसे उसे होश आया उसने झट से अपनी ऑखें बंद कर ली। भला वो अपने भाई को नग्न हालत में कैसे देख सकती थी?

उधर हरिया ने सूरज को पकड़े ही उसे रचना के पास खींच कर लाया और उसके सामने लाकर रचना की तरफ देख कर बोला___"ई देख ससुरी हम तोहरे ई भाई के साथ का करथूॅ। हम चाहूॅ ता अबहिन दुई मिनट मा तोहरे भाई का ई दुई इन्च का लौड़ा तोहरी चूॅत मा पाल दूॅ मगर पेलूॅगा नाहीं। ऊ ता तोहरा बाप अपने लौड़ा से तोहरी चूत का पेलेगा। ई बखत ता हम तोहरे ई भाई की गाड पेलूॅगा। ई देख।"

हरिया की बातों ने रचना के होश उड़ा दिये थे। उसे पहली बार एहसास हुआ कि वो कितनी खतरनाक जगह पर आ गई है। यहाॅ पर उसकी उसके भाई की और उसके बाप की चलने वाली नहीं थी। ये सोच सोच कर ही वह थरथर काॅपे जा रही थी। उसने शख्ती से अपनी ऑखें बंद की हुई थी। उधर सूरज शर्म की इंतेहां की हद से गुज़र रहा था। आत्मग्लानी और अपमान में डूबा था वह। वह बुरी तरह हरिया से छूटने की मसक्कत कर रहा था। किन्तु छूट नहीं पा रहा था। उसमें अब इतनी ताकत भी न बची थी कि वो कोई ज़ोर आजमाइश कर सके।

हरिया ने मजबूती से पकड़ कर उसे आगे की तरफ झुका दिया और अपनी धोती को एक साइड कर अपने हलब्बी लौड़े को बाहर निकाल लिया। एक हाथ से अपने लौड़े को पकड़ कर उसने सूरज की गाड में निशाना लगा दिया। इसके साथ ही सूरज की हृदय विदारक चीख तहखाने में गूॅज गई। सूरज के लाख प्रयासों के बावजूद उसके हलक से चीख निकल गई थी और वो हो गया जिसे वह किसी सूरत में होने नहीं देना चाहता था। इधर अपने भाई की इतनी भयानक चीख सुनकर रचना बुरी तरह डर गई। उसने पट्ट से अपनी ऑखें खोल कर अपने भाई की तरफ देखा और ये देख कर तो उसकी ऑखें ही बाहर की तरफ उबल पड़ी कि उसके भाई की गाड में हरिया का मोटा तगड़ा लौड़ा जड़ तक घुसा पड़ा था। जबकि सामने की तरफ झुका हुआ उसका भाई झटके खा रहा था। उसकी ऑखों से ऑसू बह रहे थे। रचना को अपने भाई की इस दसा पर बड़ा अजीब सा लगा। उसकी अंतर्आत्मा तक काॅप गई थी ये भयावह मंज़र देख कर। उसे एकाएक ही एहसास हुआ कि उसके भाई की ये दसा उसकी वजह से ही हुई है। अगर उसने रितू को वो सब न कहा होता तो शायद ये सब न होता। उसे खुद पर बेहद गुस्सा आया। मगर अब क्या हो सकता था। अपने भाई को इस दीनहीन दसा में देख कर उसकी ऑखों से ऑसू बहने लगे।

उधर हरिया थोड़ी देर रुकने के बाद अपनी कमर को झटका देना शुरू कर दिया था। सहसा उसने अपने सिर को ज़रा सा घुमा कर रचना की तरफ देखा। रचना और हरिया की ऑखें आपस में टकरा गईं। रचना ने घबरा कर तुरंत ही अपनी ऑखें बंद कर अपने सिर को झुका लिया। ये देख कर हरिया मुस्कुरा उठा। उसके बाद तो जैसे तहखाने में हरिया के झटकों से निकलती थाप थाप की आवाज़ें और सूरज की घुटी घुटी सी गूॅजती रहीं। जहाॅ एक तरफ अपने दोस्त की इस दसा पर उसके तीनो दोस्त बेहद दुखी थे वहीं दूसरी तरफ रचना अपने भाई की इस दसा पर थरथर काॅपे जा रही थी।
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तहखाने से बाहर आकर रितू तेज़ तेज़ क़दमों के साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ गई थी। कमरे में आते ही उसने आलमारी से अपना वो मोबाइल निकाला जिसे उसने अपने एक मुखबिर से खरिदवाया था। उस फोन को अपनी पाॅकेट में डाल कर उसने अपने आईफोन को स्विच ऑफ किया और उसे भी अपनी जेब में डाल लिया। उसके बाद उसने आलमारी से अपना सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे चेक किया तत्पश्चात उसे भी अपनी जीन्स की बेल्ट में खोंस लिया। टाप के ऊपर उसने एक लेदर की जाकेट पहना और टेबल से जिप्सी की चाभी लेकर वह कमरे से बाहर निकल गई।

बाहर लान में एक तरफ खड़ी जिप्सी में बैठ कर उसने जिप्सी को स्टार्ट किया और मेन गेट से बाहर आ गई। इस बार उसकी जिप्सी का रुख पुल की तरफ न होकर उस तरफ था जिस तरफ फार्महाउस के बगल से एक अन्य रास्ता किसी दूसरी जगह की तरफ जाता था। रितू ने इस रास्ते को जानबूझ कर चुना था क्योंकि उसे पता था कि नहर पर बने पुल की तरफ वाले रास्ते पर आगे ख़तरा था। उसके बाप के आदमी कहीं भी उसे मिल सकते थे। हलाॅकि रितू को पता था कि उसके बाप को सीबीआई वाले ले गए थे। किन्तु फिर भी उसे ये तो एहसाह था ही कि उसके बाप के आदमी खुले घूम रहे हैं।

लगभग दस मिनट बाद रितू ने जिप्सी को एक ऐसी जग। पर रोंका जहाॅ पर एक पवन चक्की लगी थी। दाहिने तरफ दूर एक पहाड़ था जो कि गेरुए रंग का था। बाॅकी दूर दूर तक सुनसान इलाका पड़ा हुआ था। पवन चक्की से लगभग पचास गज की दूरी पर ही रितू ने मेन सड़क हे उतार कर जिप्सी को रोंका हुआ था। कुछ देर आस पास का जायजा लेने के बाद उसने अपने जीन्स की पाॅकेट से नये मोबाइल को निकाला और उसे स्विच ऑन किया। स्विच ऑन होते ही उसने उस पर कोई नंबर डायल कर उसने मोबाइल को कान से लगा लिया।

"क्या हाल चाल हैं तेरे मंत्री?" उधर से फोन उठाते ही रितू ने मर्दाना आवाज़ में कहा था।
"मेरे हाल की छोंड़।" उधर से मंत्री का लगभग तीखा स्वर उभरा__"तू अपने हाल की चिन्ता कर।"
"ओहो ऐसा क्या?" रितू ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"मेरे हाल का क्या होने वाला है भला?"

"चिंता मत कर।" उधर से मंत्री ने कहा___"बहुत जल्द तेरा हाल बेहाल करने वाला हूॅ मैं। मुझे पता चल गया है कि मेरे साथ ऐसा दुस्साहस करने वाला तू कौन है। इस लिए अब मैं तेरा वो अंजाम करूॅगा जो आज तक किसी ने ना तो सोचा होगा और ना ही सुना होगा।"

मंत्री दिवाकर चौधरी की इस बात से रितू बुरी तरह चौंकी। उसके मन में सवाल उभरा कि मंत्री को भला उसके बारे में कैसे पता चल गया? क्या कमिश्नर साहब ने उसे उसके बारे में बताया? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। कमिश्नर साहब उसके बारे में उसको तो क्या बल्कि किसी को भी कुछ नहीं बता सकते। उन्हें पता है कि मंत्री इस प्रदेश के लिए कितना हानिहारक है। उन्होंने मंत्री के खिलाफ़ इस जंग को अंजाम तक पहुॅचाने का खुद हुक्म दिया था। फिर भला वो कैसे उसके बारे में उसे बता देंगे? नहीं नहीं ऐसा संभव नहीं है। तो फिर मंत्री को उसके बारे में कैसे पता चल गया? रितू का दिमाग़ तेज़ी से इधर उधर भाग दौड़ कर रहा था। मगर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सहसा उसके मन में ख़याल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके ही पुलिस डिपार्टमेन्ट का कोई पुलिस वाला मंत्री को सब कुछ बताया हो। मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्योंकि ये केस बहुत ही गोपनीय था। इसके बारे में कमिश्नर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था। सहसा रितू को उन पुलिस वालों की याद आई जिन्हें उसने सूरज के फार्महाउस में सूरज से लड़ाई करने के बाद सस्पेण्ड किया था। रितू की लगा कि यकीनन उन्हीं ने मंत्री को सब कुछ बताया होगा। क्योंकि उन्हें तो पता ही था कि उसने सूरज और उसके दोस्तों से फार्महाउस पर लड़ाई की थी और उन चारों को अधमरा कर दिया था। रितू को यकीन हो गया कि उन पुलिस वालों ने ही मंत्री को सब कुछ बताया है और अब मंत्री उसके लिए काल बन कर अपना क़हर बरसाने वाला है।

"क्या हुआ चौहान के बच्चे?" रितू को इतनी देर से ख़ामोश जान कर उधर से मंत्री ने चहकते हुए कहा___"हवा निकल गई क्या तेरी?"

मंत्री का ये वाक्य सुन कर रितू के ज़हन में जैसे विष्फोट सा हुआ। सारा मामला पल भर में उसकी समझ में आ गया। उसे समझ में आ गया कि मंत्री ने उस रेप पीड़िता लड़की यानी विधी के चलते ये पता लगाया है। उसने पता किया होगा कि उसके बच्चों ने जिस लड़की के साथ रेप को अंजाम दिया था वो लड़की विधी थी जो उसके ही बच्चों के काॅलेज में पढ़ती थी। मंत्री ने अपनी तरफ से छानबीन की होगी कि इस मामले में पुलिस ने तो अपना हाॅथ नहीं डाला और ना ही कोई केस वगैरह हुआ। मगर लड़की के साथ जो कुछ हुआ उसे उसके घर वाले सहन नहीं कर सके। इस लिए संभव है कि लड़की के बाप ने अपनी बेटी के साथ हुए इस अत्याचार का बदला लेने के लिए ये सब किया है। रितू ने स्वीकार किया कि मंत्री का सोचना एकदम जायज़ है। क्योंकि उसके साथ ये सब करने की वजह सिर्फ और सिर्फ विधी के बाप के पास ही थी और अब वह इस मामले को जान कर विधी के घर वालों के ऊपर क़हर बन कर टूटने वाला है।

रितू ने राहत की साॅस तो ली किन्तु उसे अब विधी के माॅ बाप की चिंता सताने लगी थी। वो जानती थी कि इस केस से विधी के घर वालों का कोई लेना देना नहीं है। वो बेचारे तो बेक़सूर हैं। रितू विधी के पैरेन्ट्स के लिए फिक्रमंद हो उठी थी। मगर फिर जैसे उसे ख़याल आया कि उसे इतना चिंता करने की क्या ज़रूरत है? उसके पास तो मंत्री और उसके साथियों के खिलाफ़ सबूत के रूप में ऐसा डायनामाइट है जो अगर पब्लिक के सामने आ जाए तो मंत्री और उसके साथी एक ही पल में उस डायनामाइट के विष्फोट से तहस नहस हो जाएॅगे। इस ख़याल के आते ही रितू के खूबसूरत होठों पर मुस्कान फैल गई। जबकि,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"लगता है तेरे सभी देवता कूच कर गए हैं चौहान।" उधर से मंत्री का ठहाका गूॅजा___"तुझे समझ आ गया होगा कि अब तेरे साथ क्या होने वाला है। मगर चिंता मत कर। मैं तुझे एक सुनहरा मौका देता हूॅ। सुना है कि तेरी बीवी बहुत सुंदर है, बिलकुल वैसी ही जैसी तेरी वो बेटी थी जिसे हमारे बच्चों ने रगड़ रगड़ कर पेला था। हो भी क्यों न, आख़िर खूबसूरत माॅ की कार्बन काॅपी जो थी। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि अगर तुझे अपनी और अपने परिवार की ज़रा सी भी फिक्र है तो तू अपनी उस खूबसूरत बीवी को हमारे हरम में ले आ। अगर तेरी बीवी ने मुझे और मेरे सभी साथियों को खुश कर दिया तो सोचूॅगा कि तुझे तेरी इस हिमाक़त के लिए माफ़ कर दूॅ।"

"ज्यादा उड़ मत रंडी की औलाद।" रितू ने मर्दाना आवाज़ में गरजते हुए कहा___"तूने अगर मेरे बारे में ऐसा वैसा सोचने की कोशिश की तो सोच लेना कि तेरी बेटी मेरे कब्जे में ही है। उसके साथ मैं क्या क्या करूॅगा ये तू सोच भी नहीं सकता। मुझे अपनी ज़रा सी भी परवाह नहीं है क्योंकि मैं छोटा आदमी हूॅ और बेटी के मरने के बाद वैसे भी अब मुझमें जीने की कोई ख्वाहिश नहीं है। मगर तेरा क्या होगा नाली के कीड़े? तू तो इस प्रदेश की नाॅक और कान है न। तेरे वो रंगीन वीडियो अभी भी मेरे पास हैं। मैं चाहूॅ तो इसी वक्त उन्हें सोसल मीडिया पर डाल कर तेरी और तेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ा दूॅ। उसके बाद तेरे पीछे प्रदेश की जनता और पुलिस इस तरह कुत्तों की तरह दौड़ पड़ेगी कि साले तुझे कहीं पर छुपने की जगह भी न मिलेगी।"

रितू की इन खतरनाक बातों से उधर सन्नाटा सा छा गया। ऐसा लगा जैसे मंत्री को साॅप सूॅघ गया हो। सच ही तो था। उसे कदाचित इस बात का ध्यान ही नहीं रह गया था कि उसके सबसे बड़े रक़ीब के पास उसके खिलाफ़ कितना बड़ा डायनामाइट मौजूद है।

"अब बोलता क्यों नहीं हरामज़ादे?" रितू ने पुनः दहाड़ते हुए कहा___"तेरी अम्मा मर गई क्या? एक बात कान खोल कर सुन ले। तू ये मत समझना कि मैं यहाॅ पर अकेला हूॅ और तेरे आदमी मुझे पल भर में हजम कर जाएॅगे। इतना कमज़ोर भी नहीं हूॅ मैं। मुझे तेरे क्रिया कलाप की पल पल की ख़बर है और मैने अपने चारो तरफ गुप्त रूप से ऐसे आदमी लगा रखे हैं जो मुझे सुरक्षा भी प्रदान करते हैं और ये भी बताते हैं कि तेरा अगला क़दम क्या होने वाला है। इस लिए तू कुछ भी करने या सोचने से पहले ये ज़रूर सोच लेना कि तेरी कोई भी छोटी बड़ी हरकत तेरा वो अंजाम कर देगी जिसके बारे में अभी मैने तुझे बताया था। तेरी बेटी और वो चारो लड़के मेरे कब्जे में हैं और मैं चाहूॅ तो तेरी बेटी के साथ तेरे ही बच्चों की वैसी वीडियो क्लिप बना कर तुझे भेज दूॅ जैसी वीडियो तेरे पास मैं पहले भी भेज चुका हूॅ। यकीन न हो तो बोल, मुझे तेरी बेटी की हाॅट वीडियो बनाने में ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा।"

"नहीं नहीं प्लीज ऐसा ग़ज़ब मत करना।" उधर से मंत्री का गिड़गिड़ाहट से भरा स्वर उभरा___"मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ता हूॅ। मुझसे ग़लती हो गई जो मैने तुम्हें वो सब कहा। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूॅगा जिससे मुझे खुद ही गर्त में डूब जाना पड़े। मगर,,,,

"अटक क्यों गया हिजड़े?" रितू गुर्राई___"बोल न, मगर क्या?"
"मगर मैं ये जानना चाहता हूॅ।" मंत्री ने कहा___"कि ये सब कब तक चलेगा? मेरा मतलब है कि तुम्हें जो चाहिए वो मैं बिना सोचे समझे देने को तैयार हूॅ। मगर तुम मेरे बच्चों को कुछ भी नहीं करोगे।"

"तू मेरे सामने कोई कंडीशन रखने की पोजीशन में कहाॅ है कुत्ते?" रितू ने कहा___"और तू भला मुझे देगा क्या? तेरी औकात क्या है मुझे कुछ देने की? तू तो साले खुद ही भिखारी है। हर पाॅच साल में भिखारी की तरह जनता के सामने हाॅथ फैलाए पहुॅच जाता है। ये अलग बात है कि जनता की भीख का तू गंदे तरीके से फल देता है। उसी का अंजाम तो भुगतना है तुझे। इस प्रदेश से तेरे जैसे लोगों की सल्तनत ही नहीं बल्कि नामो निशान तक मिटाने का सोच लिया है मैने। और हाॅ, किसी भी तरह की रियायत की उम्मीद मत करना। क्योंकि वो तेरे जैसों के लिए मेरी अदालत में है ही नहीं।"

"मैं मानता हूॅ कि मेरे बच्चों ने तुम्हारी बेटी के साथ बहुत बुरा सुलूक किया था।" उधर से मंत्री का धीर गंभीर स्वर उभरा___"और ये भी मानता हूॅ कि मैने अपने कार्यकाल में प्रदेश की जनता के साथ बहुत बुरा किया है। मगर जो गुज़र गया उसे तो लौटाया नहीं जा सकता न? हाॅ इतना वचन ज़रूर देता हूॅ कि आइंदा से प्रदेश की जनता के साथ कुछ भी बुरा नहीं करूॅगा बल्कि हर दम हर पल अच्छा करने की कोशिश करेगा। मैने जिसका जो भी बुरा किया है उसका नुकसान मैं दोगुने भाव से भरूॅगा।"

"तू क्या भरेगा दोगले इंसान।" रितू ने फटकार सी लगाते हुए कहा___"तू तो सिर्फ जनता का खून चूसना जानता है। आज ये सब इस लिए बक रहा है क्योंकि मैने तेरे पिछवाड़े में डंडा घुसाया हुआ है। वरना तू अपनी वही औकात दिखाता जो हमेशा से सबको दिखाता आया है। मैं तेरी किसी भी बातों पर आने वाला नहीं हूॅ। तेरा और तेरे साथियों का अंजाम मेरे द्वारा लिखा जा चुका है चौधरी। इस लिए मुझसे रहम की भीख मत माॅग। बल्कि मरने से पहले अगर कुछ अच्छा करना चाहता है तो उन मजलूम लोगों के कुछ कर जिनका तूने खाया है और जिन पर तूने अत्याचार किया है। संभव है कि तेरे ऐसा करने पर मैं तेरे अंजाम को बदतर न होने की सूरत पर विचार करूॅ।"

"मैं करूॅगा चौहान।" उधर से मंत्री के स्वर में राहत के भावों की झलक दिखी___"ज़रूर करूॅगा मैं। मैं हर उस ब्यक्ति का भला करूॅगा जो मेरे द्वारा किसी भी तरह से सताया गया है और ये काम मैं आज से ही नहीं बल्कि अभी से करना शुरू कर दूॅगा। बस तुम मेरे बच्चों के साथ कुछ बुरा मत करना।"

"पहले जो कह रहा है उसे करके तो दिखा चौधरी।" रितू ने कहा___"अगर मुझे नज़र आया कि तेरी वजह से प्रदेश की समूल जनता खुश हो गई है तो यकीन मान तेरे अंजाम की स्थित में ज़रूर कुछ कमी कर दूॅगा।"
"ओह बहुत बहुत शुक्रिया चौहान।" मंत्री ने खुश होकर कहा___"मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूॅ कि बहुत जल्द तुम प्रदेश की इस जनता को मेरी वजह हे खुश होते हुए देखोगे।"
"ओके बेस्ट ऑफ लक।" रितू ने कहा और काल कट कर दी।

मंत्री दिवाकर चौधरी से बात करने के तुरंत बाद ही रितू ने उस मोबाइल फोन को स्विच ऑफ कर दिया था। इस वक्त उसके चेहरे पर असीम राहत के भाव थे। राहत के भाव इस लिए कि उसने विधी के माॅ बाप को चौधरी के क़हर से किसी तरह बचा लिया था। मगर उसे पता था कि चौधरी बहुत ही दोगला इंसान है। संभव है कि उसने उसे झूॅठा आश्वासन दिया हो। जबकि वो करे वही जो उसने उससे शुरू में कहा था। अतः रितू का अब पहला काम यही था कि किसी तरह से विधी के माॅ बाप को मंत्री के क़हर से सुरक्षित करे। मगर समस्या ये थी कि कैसे? क्योंकि विधी का गाॅव हल्दीपुर के बाद पड़ता था। जिसका रास्ता दो तरफ से था। एक हल्दीपुर से तो दूसरा नहर के पास से जो दूसरा रास्ता गया था। ये दोनो रास्ते ऐसे थे जिन पर मौजूदा हालात में जाना ख़तरे से खाली नहीं था। क्योंकि रितू को पता था कि उसका बाप भले ही इस वक्त सीबीआई के सिकंजे में था मगर उसके साथी और उसके आदमी तो आज़ाद ही थे जो हर तरफ फैले हुए होंगे।

रितू के लिए आज बस का दिन और रात किसी तरह गुज़ारनी थी। कल तो उसका भाई विराज आ ही जाएगा। हलाॅकि वो चाहती तो पुलिस प्रोटेक्शन ले सकती थी और धड़ल्ले से कहीं भी आ जा सकती थी किन्तु वह अपने प्यारे भाई राज की बात को टालना नहीं चाहती थी। उसने भी तो वादा किया था उससे कि वो ये जंग उसके साथ ही मिल कर लड़ेगी। मगर अब चूॅकि विधी के माॅ बाप की सुरक्षा का सवाल था तो उसे कुछ तो करना ही था। इस लिए अब वो यही सोच रही थी कि विधी के माॅ बाप को किस तरह से सुरक्षित करे?

पवन चक्की के पास जिप्सी में बैठी रितू कुछ देर तक इस समस्या के बारे में सोचती रही। उसके बाद उसने इस सबको अपने दिमाग़ से झटका और जिप्सी को स्टार्ट कर वापसी के लिए मुड़ गई।
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उधर हवेली में!
सुबह से दोपहर और दोपहर से अब शाम होने वाली थी। प्रतिमा अपने कमरे में बेड पर पड़ी हुई थी। सारा दिन उसने इसी सोच विचार में गुज़ार दिया था कि वो अपने बाप से कैसे बात करे? हलाॅकि इस बीच उसने मुम्बई में अपनी बड़ी बहन से फोन पर अपने बाप जगमोहन सिंह का मोबाइल नंबर ले लिया था। उसकी बहन इस बात से हैरान भी हुई थी। उसके पूछने पर प्रतिमा ने उसे सारी बातें बता दी थी कुछ बातों को छोंड़ कर। किन्तु अपने बाप का मोबाइल नंबर लेने के बाद भी प्रतिमा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपने पिता को फोन लगाए।

उसकी इस हालत से शिवा भी परेशान था। उसने उन आदमियों का गेस्ट हाउस में रहने का इंतजाम भी कर दिया था। चिंतित व परेशान तो वो खुद भी था अपने बाप के लिए मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद ऐसा क्या करे जिससे सारी समस्याएॅ खत्म हो जाएॅ।

इस वक्त भी वो अपनी माॅ के कमरे में ही आया हुआ था और कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर बैठा हुआ था। उसकी नज़रें अपनी माॅ के मुरझाए हुए चेहरे पर केन्द्रित थीं। उसे इस बात से तक़लीफ भी हो रही थी कि वो कुछ कर नहीं पा रहा था। उसे आज समझ आ रहा था कि खुद कोई काम करना कितना मुश्किल होता है। आज तक तो वह बनी बनाई जलेबी ही खा रहा था। मगर जब खुद ही जलेबी बनाने का नंबर आया तो उसका दिलो दिमाग़ जैसे कुंद सा पड़ गया था। उसे पहली बार लगा कि बेबसी क्या होती है? सब कुछ होते हुए भी कुछ न कर पाना किसे कहते हैं?

"ऐसे कब तक हताश बैठी रहेंगी माॅम?" फिर उसने प्रतिमा को देखते हुए ही कहा___"ये तो आपको भी पता है कि हम अगर कुछ करना भी चाहें तो नहीं कर सकते। इस लिए अगर नाना जी के द्वारा हमारी समस्या का समाधान हो सकता है तो क्यों नहीं बात करती आप उनसे? दोपहर से देख रहा हूॅ मैं आपको। आप इसी तरह गहरी सोच में डूबी बैठी हुई हैं। इस तरह भला कब तक बैठी रहेंगी आप? आप जानती हैं कि डैड को सीबीआई के चंगुल से निकालना कितना ज़रूरी है। डैड के बिजनेस से संबंधित साथियों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए भेज दिये हैं। अब उनको हम यूॅ ही तो चुपचाप यहाॅ नहीं बैठाए रह सकते न? इस लिए माॅम आप अपने दिमाग़ से सारी बातों को निकालिए और नाना जी को फोन लगा कर उनसे बात कीजिए।"

"कैसे फोन लगा दूॅ बेटा?" प्रतिमा ने सहसा हताश भाव से कहा___"और किस मुह से फोन लगाऊॅ अपने बाप को?"
"क्या मतलब माॅम??" शिवा चकराया।
"तुम इस सब को जितना आसान समझते हो न वो इतना आसान नहीं है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा सोचो कि अपने बाप से संबंध तोड़े मुझे कितने साल हो गए। अपनी खुशी व अपने स्वार्थ के लिए मैने अपने उस पिता को त्याग दिया था जिनका इस दुनियाॅ में हम दोनो बहनों के सिवा दूसरा और कोई नहीं था। मैं ही सबसे ज्यादा अपने पिता की लाडली थी और मैने ही उन्हें सबसे ज्यादा दुख दिया और निराश भी किया। आज मुझे इस बात का बखूबी एहसास है बेटा कि अपनी औलाद की बेरुखी के चलते एक बाप ने आज तक कितनी तक़लीफ़ और कितना दुख सहा होगा। ये सवाल तो उठेगा ही बेटा कि इसके पहले मुझे अपने बाप की याद क्यों नहीं आई? इसके पहले मैने क्यों ये जानना भी ज़रूरी नहीं समझा कि जगमोहन सिंह नाम का कोई ब्यक्ति जो कि मेरा बाप है वो ज़िंदा भी है या कि मर गया है? आज अगर मुझ पर ये मुसीबत न आती तो ज़ाहिर है कि आइंदा भी मैं अपने बाप से बात करने के बारे में सोचती भी नहीं। ये ऐसी बात है बेटा जिसकी वजह से मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही कि मैं अपने बाप को फोन लगा कर उससे बात कर सकूॅ। जबकि इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी समस्या के बारे में जानकर मेरा बाप मेरी मदद करने से हर्गिज़ भी इंकार नहीं करेगा।"

"ये सच है माॅम कि आपने अपने पिता जी से बात न करके अब तक बहुत बड़ी भूल ही की है।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"मगर ये भी सच है कि इस बारे में सोचते रहने से भी क्या होगा? वो सब अपनी जगह से गायब तो नहीं हो जाएगा। भूल इंसान से ही होती है, आपसे भी हुई है। भले ही आपकी वो भूल माफ़ी के लायक हो या ना हो। मगर किसी भी भूल या अपराध के चलते यूॅ चुप तो नहीं बैठे रहा जा सकता। उसके लिए सबसे पहले अपने अपराधों के लिए नाना जी से माफ़ी माॅगनी होगी आपको। वो जो भी इसके लिए सज़ा दें उसे आपको स्वीकार करना ही पड़ेगा। हलाॅकि मुझे ऐसा लगता है कि नाना जी आपको कोई सज़ा देंगे ही नहीं। मगर औपचारिकता तो करनी ही पड़ेगी आपको। उन्हें भी इस बात का बोध होगा कि चलो मुसीबत में ही सही किन्तु उनकी बेटी को उनका ख़याल तो आया। बस, उसके बाद तो सब कुछ आसान ही हो जाना है माॅम। इस लिए मैं तो यही कहूॅगा कि आप ये सब सोचना छोंड़िये और नाना जी को हिम्मत बाॅध कर फोन लगाइये।"

प्रतिमा अपने बेटे शिवा की इस सूझ बूझ भरी बातें सुन कर चकित रह गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा ऐसी समझदारी भरी बातें भी कर सकता है। मगर चूॅकि शिवा की बातें न्यायपूर्ण व तर्कसंगत थी इस लिए उसे भी इस बात का एहसास हुआ कि इस तरह सोचते रहने से भला क्या होगा? आख़िर बिना फोन किये अथवा बिना बात किये किसी भी समस्या का समाधान तो होने वाला नहीं है। उसके लिए शारीरिक और मानसिक कर्म तो करना ही पड़ेगा।

"तुमने बिलकुल ठीक कहा बेटे।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जो हो गया और जो कुछ मैने किया है उसका सामना तो मुझे करना ही पड़ेगा। अतः मैं अब ज़रूर अपने पिता जी को फोन लगाऊॅगी। उनसे अपने किये की माफ़ी भी मागूॅगी। उनसे कहूॅगी कि अपनी बेटी की इस संगीन भूल को हो सके तो माफ कर दें और अपनी कृपा मुझ पर बरसा दें।"

"ये हुई न बात।" शिवा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"मुझे यकीन है माॅम कि नाना जी आपको कुछ नहीं कहेंगे। दुख तो होगा उन्हें मगर उससे भी ज्यादा खुशी भी होगी उन्हें कि उनकी लाडली बेटी ने आख़िर उन्हें याद करके फोन तो किया।"

"तेरे मुह में घी शक्कर हो बेटा।" प्रतिमा ने प्रसन्नतापूर्ण भाव से कहा___"ईश्वर करे तू जैसा कह रहा है वैसा ही हो।"
"ऐसा ही होगा माॅम।" शिवा ने जोशीले अंदाज़ के साथ कहा___"आप बिलकुल भी इस सबकी चिंता न करें। बस मोबाइल निकालिये और लगा दीजिए नाना जी को फोन।"

प्रतिमा ने अपने बेटे के उस चेहरे को कुछ देर तक देखा जो इस वक्त हज़ार हज़ार वाॅट के बल्बों की तरह रोशन था। फिर बेड के सिरहाने पर ही रखे अपने मोबाइल को एक हाथ से उठाया और अपने पिता का नंबर ढूॅढ़ कर काॅपते हाॅथों से उसे डायल कर दिया। काल लगाते ही प्रतिमा के हृदय की गति असाधारण रूप से तेज़ हो गई। दिलो दिमाग़ में एक अजीब सा एहसास मानो ताण्डव सा करने लगा। मन में एक अंजाना सा भय अपने पाॅव पसारने लगा। उधर काल लगाते ही रिंग जाने की आवाज़ प्रतिमा के कानों में सुनाई देने लगी। उसकी नज़र जब शिवा पर पड़ी तो शिवा को मोबाइल का स्पीकर ऑन करने का इशारा करते हुए पाया। प्रतिमा ने हड़बड़ा कर जल्दी से मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया। तभी,,,,

"यस जगमोहन सिंह स्पीकिंग हियर।" उधर से बहुत ही खुर्राटदार आवाज़ उभरी। प्रतिमा को उस आवाज़ से ही ऐसा लगा जैसे उसकी हवा शंट हो गई हो। प्रत्युत्तर में उसके मुख से कोई लफ्ज़ न फूट सका। जबकि,

"हैलो हू इज देयर?" जगमोहन की आवाज़ पुनः उभरी।
"पि..पिता...जी।" प्रतिमा ने बहुत हिम्मत करके आख़िर टूटे हुए शब्दों से कह ही दिया___"म..मैं आ..आपकी बेटी प्रतिमा बोल..रही हूॅ।"

प्रतिमा की इस बात से उस तरफ सन्नाटा सा छा गया। जबकि उधर के छा गए इस सन्नाटे ने प्रतिमा की हृदय गति को मानो रोंक सा दिया। उसके मनो मस्तिष्क में तरह तरह की आशंकाएॅ पल भर में उत्पन्न हो गईं।

"आ..आपने..सुना पिता जी??" प्रतिमा ने उस तरफ की ख़ामोशी से भयभीत होकर पुनः लरज़ते हुए स्वर में कहा___"मैं..आपकी बेटी प्रतिमा बोल रही हूॅ।"
"हाॅ सुन तो लिया है मैने।" उधर से जगमोहन का अजीब सा अंदाज़ झलका___"मगर सोच रहा हूॅ कि ऐसा कैसे हो सकता है और क्यों हो सकता है?"

"ज जी मैं कुछ समझी नहीं पिता जी।" प्रतिमा का मनो मस्तिष्क जैसे चकरा सा गया।
"समझने की ज़रूरत भी क्या है तुम्हें?" उधर से जगमोहन के लहजे में एकाएक ही जैसे शिकायत और नाराज़गी के भाव एक साथ घुल मिल गए थे___"जब समझने का वक्त था तो तुमने उस वक्त बेहतर तरीके समझ तो लिया ही था। अब और कुछ समझने की भला तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ गई?"

"मु मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी।" प्रतिमा की ऑखों से सहसा ऑसू छलक पड़े, उसकी आवाज़ एकदम से भारी हो गई, बोली___"मैने आपका बहुत दिल दुखाया है। जबकि मुझे पता है कि बचपन से लेकर युवा अवस्था तक आपने मेरी हर इच्छा को ऑख बंद करके पूरी की थी। बदले में मैने आपको दुख तक़लीफ़ और रुसवाई के सिवा कुछ भी नहीं दिया।"

"अरे ये क्या???" जगमोहन का ऐसा स्वर उभरा जैसे उसे प्रतिमा की इस बात पर ज़रा भी यकीन न आया हो। अतः बोला___"ये मैं क्या सुन रहा हूॅ भई? आज मेरी बेटी के मुख से इस लहजे में ऐसी बातें निकल रही हैं जिन बातों का मेरी बेटी के मुख से निकलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं हो सकता था। सबसे पहले मुझे ये बता कि तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

प्रतिमा कुछ बोल न सकी। अपने पिता की इन बातों में चुपे तंज को समझ कर उसकी रुलाई फूट गई। उसे अपने पिता की इन तंजपूर्ण बातों का ज़रा भी बुरा नहीं लगा था। बल्कि रुलाई तो उसकी इस बात पर फूटी थी आज उसका वही बाप उससे इस लहजे में बात कर रहा था जो बाप इसके पहले उससे सिर्फ प्यार से बातें करता था। बिना माॅ की थी दोनों बहनें। मगर उस बाप नें माॅ बनकर भी अपनी बेटियों की परवरिश की थी। उसने दूसरी शादी नहीं की, बल्कि पना सम्पूर्ण जीवन और अपनी सम्पूर्ण खुशियाॅ अपनी बेटियों पर कुर्बान कर दिया था।
जगमोहन अपनी दोनो बेटियों को जी जान से चाहता था मगर उसकी जान तो जैसे उसकी छोटी बेटी प्रतिमा पर बसती थी। इसका कारण ये था कि प्रतिमा बिलकुल अपनी माॅ पर गई थी। मगर प्रतिमा पर जिसकी जान बसती थी आज वही बाप अपनी बेटी से तंजपूर्ण बातें कर रहा था। प्रतिमा को इस बात का एहसास था कि उसके बाप का ये तंज दरअसल उसके अंदर छुपे दर्द रूपी गुबार का महज एक मामूली सा हिस्सा है।

"ये क्या बेटा?" उधर से जगमोहन का स्वर एकदम से भारी सा हो गया___"अपने बाप के अंदर छिपे दर्द रूपी इस गुबार को क्या ज़रा सा भी नहीं निकलने देना चाहती तू? इसे निकल जाने देती तो कदाचित दिल का दर्द कुछ कम हो जाता। मगर ख़ैर, जाने दे। मैं तो ख्वाब में भी तुझे रुलाने का सोच नहीं सकता, ये तो फिर भी हक़ीक़त है।"

प्रतिमा का हृदय बुरी तरह काॅप कर रह गया। वो ये सोच कर बुरी तरह फफक फफक कर रो पड़ी कि उसके बाप का दिल कितना विसाल है। अपने अंदर छुपे असहनीय दर्द के बावजूद वह अपनी बेटी को रुलाना नहीं चाहता। बाप की इस महानता ने प्रतिमा को इतना छोटा और मामूली बना कर रख दिया कि उसे अपने आप से एकाएक घृणा सी होने लगी। उसकी ऑखों के सामने पल भर में वो सारे मंज़र घूम गए जो अब तक उसने किया था और उस मंज़र को देखते ही प्रतिमा को लगा जैसे दुनियाॅ में उससे बड़ा कोई पापी नहीं है। प्रतिमा का जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें पाताल तक समाती चली जाए। मगर हाए रे किस्मय! ऐसा भी नहीं हो सकता था। उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का इतना भयंकर ज्वारभाॅटा मचल उठा कि उसे लगा कि कहीं उसका दिल उसका सीना फाड़ कर बाहर न उछल पड़े। अगले ही पल उसे ज़ोर का चक्कर आया और वह बेड पर एक तरफ गिर गई।

"माॅऽऽऽम।" शिवा जो एकटक प्रतिमा को ही देख रहा था वो अपनी माॅ को इस तरह चक्कर खा कर गिरते देख बुरी तरह चीखते हुए सोफे से उठ कर प्रतिमा की तरफ लपका था, बदहवाश सा प्रतिमा के चेहरे को थपथपाते हुए बोला___"क्या हुआ माॅम? आप ठीक तो हैं न? प्लीज बताइये न माॅम...क्या हो गया आपको? प पानी..पानी स सविता ऑटी...कहाॅ हैं आप? प्लीज जल्दी से पानी लाइये। डाॅक्टर को बुलाईये।"

शिवा बुरी तरह घबरा गया था और उसी घबराहट में चीखे जा रहा था। वहीं बेड पर ही पड़े प्रतिमा के मोबाइल से भी जगमोहन की घबराई हुई आवाज़ गूॅज रही थी। वो उधर से पूछे जा रहा था___"क्या हुआ बेटी? तू ठीक तो है न? तू चिंता मत कर मेरी बेटी। मैं तुझसे ज़रा सा भी नाराज़ या गुस्सा नहीं हूॅ। अरे तू तो मेरी लाडली बेटी है न।"

उधर शिवा के चिल्लाने का असर जल्द ही हुआ था। सविता जो कि नौकरानी थी वो तुरंत ही हाॅथ में पानी का ग्लास लिए भागते हुए आई। वो खुद भी बुरी तरह घबराई हुई लग रही थी।

"शिवा बेटे क्या हुआ है मालकिन को?" सविता ने पानी का ख्लास शिवा को पकड़ाते हुए बोली थी।
"पता नहीं ऑटी।" शिवा ने दुखी भाव से कहा___"माॅम तो नाना जी से फोन पर बातें कर रही थी। फिर जाने क्या हुआ इन्हें कि चक्कर खा कर बेड पर गिर गई हैं। आप प्लीज जल्दी से डाक्टर को फोन कीजिए और उनसे कहिए कि वो दो मिनट के भीतर यहाॅ आ जाएॅ।"

"ठीह है बेटा।" सविता ने कहा___"मैं अभी डाक्टर साहब को फोन लगाती हूॅ।" ये कह कर सविता वहाॅ से चली गई। जबकि इधर कमरे में मोबाइल में से गूॅजती जगमोहन की आवाज़ पर सहसा शिवा का ध्यान गया। उसने लपक कर मोबाइल उठा लिया।

"नाना जी मैं शिवा बोल रहा हूॅ।" फिर शिवा ने सीघ्रता से कहा___"देखिए न माॅम को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रही हैं। ऐसा क्या कह दिया है आपने जिसकी वजह से मेरी माॅम की ये हालत हो गई है?"
"ब बेटा मैने तो ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा था।" उधर से जगमोहन का भारी स्वर उभरा___"मगर तुम चिंता मत करना बेटे। तुम्हारी माॅ को बस चक्कर आया हुआ है और कुछ नहीं। डाक्टर आएगा वो अच्छे से चेकअप कर लेगा। तुम मुझे बताओ कि कहाॅ से बोल रहे हो? मैं सारे काम धाम छोंड़ कर अभी यहाॅ से तुम लोगों के पास आ रहा हूॅ।"
 
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"नाना जी मैं जिला गुनगुन के हल्दीपुर गाॅव से बोल रहा हूॅ।" शिवा ने मन ही मन खुश होते हुए कहा था___"आप जब यहाॅ पहुॅचेंगे तो किसी से भी पूछ लीजिएगा कि ठाकुर साहब की हवेली जाना है। बस कोई न कोई आपको हवेली तक छोंड़ने ज़रूर आ जाएगा आपके साथ।"
"ओह ठीक है बेटा।" उधर से जगमोहन ने कहा___"बस तुम अपनी माॅ का अच्छे से ख़याल रखना। मैं कल तक तुम्हारे पास हर हालत में पहुॅच जाऊॅगा।"

इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने काल को कट कर दिया। जबकि शिवा के होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने पलट कर प्रतिमा को देखा और ग्लास में भरे पानी को अपनी हथेली में लेकर प्रतिमा के चेहरे पर छिड़कना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में प्रतिमा को होश आ गया। उसने पलकों को लपलपाते हुए अपनी ऑखें खोल दी। शिवा ने उसे बेड पर अच्छे से लिटाया और बेड के किनारे पर ही बैठ गये।

"पि पिता जी।" होश में आते ही प्रतिमा दुखी भाव से कह उठी थी।
"डोन्ट वरी माॅम।" शिवा ने प्रतिमा के हाथ को पकड़ कर हल्का सा दबाया___"इवरीथिंग इज अब्सोल्यूटली फाइन एण्ड फार काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन आपके पिता जी कल यहाॅ आ जाएॅगे।"

"क्याऽऽ???" शिवा की बात सुन कर प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी थी।
"यस माॅम।" शिवा ने मुस्कुराते हुए कहा___"एण्ड यू नो व्हाट आपके इस चक्कर ने कमाल कर दिया।"
"क्या मतलब???" प्रतिमा हैरान।
"मतलब ये कि जो चीज़ बातों में नहीं हो सकती थी वो चीज़ आपके इस चक्कर से हो गई।" शिवा ने उत्साहित भाव से कहा___"क्या सही समय पर आपको चक्कर आया माॅम।"

"ये तू क्या बकवास कर रहा है??" प्रतिमा के चेहरे पर एकाएक शख्त भाव उभर आए___"ये सब तुझे मज़ाक लग रहा है? तुझे मेरे और मेरे पिता की भावनाओं का ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ? कैसा बेटा है तू मेरा? तुझे इस सब में भी एक चाल नज़र आई? मेरा यू चक्कर खाकर गिर जाना भी तुझे किसी कामयाबी का हिस्सा नज़र आया? वाह बेटा वाह...आज तूने साबित कर दिया कि तू सिर्फ और सिर्फ अपने बाप पर गया है। तेरे लिए किसी के जज़्बात किसी के दुख दर्द कोई मायने नहीं रखते। आज अगर मुझे चक्कर की वजह से दिल का दौरा पड़ जाता तब भी शायद तुझे और तेरे बाप को कोई फर्क़ नहीं पड़ता।"

"म माॅम।" शिवा बुरी तरह से झेंपते हुए बोला___"ये आप क्या कह रही हैं?"
"शटअप।" प्रतिमा ज़ोर से चीखी थी। उसकी ऑखों से एकाएक ऑसू बह चले___"क्या नहीं किया मैने और क्या नहीं दिया मैने तुम दोनो बाप बेटों को? मगर मेरे त्याग और बलिदान का कोई मोल नहीं है तुम दोनो की नज़र में। मैने वो काम भी किया जिसके लिए कोई भी भारतीय औरत किसी भी सूरत में तैयार नहीं हो सकती। मैने अपने साथ साथ अपनी आत्मा तक को जहन्नुम में झोंक दिया मगर उसका भी कोई मोल नहीं तुम लोगों की नज़र में। अभी तक तो नहीं मगर अब एहसास हो रहा है कि मेरे कर्मों की सज़ा मुझे मिलनी शुरू हो गई है।"

"आई एम स्वारी माॅम।" शिवा ने सिर झुकाते हुए कहा___"मेरा वो मतलब हरगिज़ भी नहीं था जो आप समझ बैठी हैं। मैं तो.....
"बस।" प्रतिमा ने अपना दाहिना हाथ उठा कर अपने पंजे से उसे रुकने का संकेत देते हुए कहा___"कुछ भी सफाई देने की ज़रूरत नहीं है। मैं कोई बच्ची नहीं हूॅ जिसे किसी भी तरह की बातों से बहला फुसला दिया जाए। मेरे सीने में भी एक दिल है जिसमें प्यार मोहब्बत और ममता का सागर उछाल मारता है। मगर तूने और तेरे बाप ने कभी उसकी कद्र नहीं की।"

"आप बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"जबकि मैं क़सम खा कर कहता हूॅ कि मेरे कहने का वो मतलब नहीं था। हाॅ मैं ये मानता हूॅ कि मैंने वो सब उस समय कह दिया जबकि हालात वैसे नहीं थे। इसी लिए मैं आपसे उसके लिए माफ़ी भी माॅग रहा हूॅ। और दूसरी बात मुझे पहली नज़र में यही लगा कि आपने चक्कर खा कर गिरने का नाटक किया है। इस लिए आपके नाटक को ज़ारी रखने के लिए मैं भी ज़ोर से चीखते हुए आपके पास आकर वो सब आपसे कहने लगा था।
क्योंकि ये तो मुझे पता ही था कि मोबाइल चालू हालत में है और नाना जी को वो सब कुछ साफ साफ सुनाई देगा जो कुछ हम यहाॅ करेंगे और ऐसा हुआ भी। तभी तो जब मैने देखा कि आपके चक्कर खाने से उधर नाना जी भी चिंतित व परेशान हो उठे हैं तो मैने जल्दी से मोबाइल उठा कर उनसे बात की थी और उन्हें आपके बारे में सब कुछ बताया था। उसके बाद उन्होंने यहाॅ आने के लिए कहा और यहाॅ का पता पूछा मुझसे तो मैने बता दिया। बस, यही हुआ था। उसके बाद मुझे लगा कि नाटक खत्म हो गया है तो मैने आपके चेहरे पर पानी छिड़क कर आपको होश में ले आया और आपसे वो सब कहा। मगर आपने तो कुछ और ही मुझे सुना दिया।"

"तभी तो कहती हूॅ कि तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है।" प्रतिमा ने दुखी भाव से कहा__"अगर होता तो उसी वक्त समझ जाते कि वो कोई नाटक नहीं बल्कि हक़ीक़त था। तुम्हें समझना चाहिए था कि वर्षों की बिछड़ी एक बेटी अपने बाप से बात कर रही थी। उस वक्त बाप बेटी के दिलों में भावनाओं का कैसा ज्वार भाॅटा ताण्डव कर रहा होगा? ये उन प्रबल भावनाओ का ही असर था कि मेरा दिल उन भीषण जज़्बातों को सहन न कर पाया और मैं चक्कर खा कर गिर गई थी। मगर, जैसा कि मैने कहा तुम दोनो बाप बेटों को किसी के दुख दर्द का एहसास नहीं है। तभी तो मेरी उस हालत को भी नाटक समझ लिया।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए माॅम।" शिवा ने सहसा भारी लहजे में कहा___"मुझसे सच में बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मगर आइंदा ऐसा नहीं होगा माॅम, ये मेरा वादा है आपसे। आप तो जानती हैं कि आपकी अहमियत मेरी लाइफ में कितनी है। मैं ऐसा कोई काम कर ही नहीं सकता जिससे आपके दिल को ठेस पहुॅचे। बस एक बार माफ़ कर दीजिए न।"

प्रतिमा ने इस वक्त शिवा के चेहरे पर उभरे हुए मासूम से भावों को देखा तो सहसा उसकी ममता जाग गई। उसने तुरंत ही शिवा को पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया और कस कर अपने सीने से भींच लिया। तभी किसी के आने की आहट से दोनो ही अलग हुए। कुछ ही पलों में सविता ने कमरेएं प्रवेश किया। उसने बताया कि डाक्टर साहब आ गए हैं। सविता की बात सुन कर शिवा बेड से उठ कर कमरे से बाहर की तरफ चला गया। थोड़ी ही देर में अजय सिंह का फैमिली डाक्टर अनिल जैन शिवा के साथ कमरे में दाखिल हुआ। अनिल जैन चालीस की उमर का तथा मध्यम कद काठी का ब्यक्ति था। अजय सिंह जैसे इंसान से संबंध रखने वाला ये पहला ऐसा ब्यक्ति था जो शक्ल और सीरत से शरीफ़ था।

शिवा ने अनिल को प्राथमिक बातें बताईं कि क्या हुआ था उसकी माॅम को। उसके बाद अनिल ने चेकअप करना शुरू किया। थोड़ी देर तक प्रतिमा को चेक करने के बाद उसने कुछ दवाईयाॅ दी और उन्हें सेवन करने की विधि बताई। फिर उसने शिवा को अपने साथ बाहर आने का इशारा करते हुए कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

"क्या बात है डाक्टर अंकल?" शिवा ने बाहर आते ही सहसा गंभीरता से पूछा___"मेरी माॅम पूरी तरह ठीक तो हैं न?"
"चिंता की कोई बात नहीं है बेटा।" अनिल ने कहा__"बस थोड़ी कमज़ोरी थी इस वजह से उन्हें चक्कर आया था। ठाकुर साहब आएॅ तो उनसे कहना कि मैने उन्हें याद किया है। अगर उनके पास समय हो तो कुछ समय के लिए मेरे पास ज़रूर आएॅ वो।"
"जी बिलकुल डाक्टर अंकल।" शिवा ने विनम्रता से कहा___"मैं डैड को ज़रूर आपके पास जाने के लिए कहूॅगा।"

उसके बाद डाक्टर अनिल जैन हवेली से अपना थैला लिये चला गया। शिवा भी वापस अपने माॅम के पास आ गया। सविता रात के लिए खाना बनाने चली गई थी। उसे प्रतिमा ने कह दिया था कि कुछ और लोगों को साथ में लेकर उन लोगों के लिए भी खाना बना लेना जो लोग आज गेस्टरूम में ठहरे हुए हैं। कुछ देर अपनी माॅ के पास बैठने के बाद शिवा प्रतिमा के ही कहने पर गेस्टरूम की तरफ चला गया। जबकि प्रतिमा अपने पिता के आने के बाद उससे मिलने के सुनहरे ख़याल बुनने लगी।
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उधर विराज की तरफ!
रात हुई तो विराज और आदित्य ने थोड़ा बहुत खाना खाया। हलाॅकि खाना पीना वो लोग लेकर नहीं चले थे इस लिए एक स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो वहीं इन दोनो ने अपने लिए खाने की कुछ चीज़ें ले लिये थे और फिर ट्रेन में ही दोनो ने बैठ कर खा लिया था।

नीलम की मौजूदगी में मैने इतना ज़रूर किया कि अपनी शीट पर आदित्य को बैठा दिया था और आदित्य की शीट पर मैं बैठ गया था। इससे हुआ ये कि अब नीलम की तरफ मेरी पीठ हो गई थी। हलाॅकि इस तरफ बैठने से मेरी पीठ भी उसे दिखाई नहीं देनी थी। ख़ैर खाना पीना करके हम दोनो ही आराम से लेट कर सो गए थे। नींद भी ज़बरदस्त लगी थी क्योंकि हम दोनो लगातार यात्रा ही कर रहे थे।

रात के किसी प्रहर हमें शोर सा सुनाई दिया। ऐसा लगा जैसे कुछ लोग आपस में झगड़ा कर रहे थे। ये एसी का डिब्बा नहीं था। मैने जानबूझ कर एसी में टिकट बनवाने को नहीं कहा था जगदीश अंकल से। रिजर्वेशन वाले डिब्बे में भी कुछ लोग जनरल डिब्बे की भीड़ देख कर घुस आते थे। ख़ैर, उस शोर शराबे की वजह से हमारी नींद टूट गई और हमारी ऑखें खुल गई।

शोर शराबा मेरे पीछे की तरफ से सुनाई दे रहा था। आदित्य जैसे ही उठ कर अपनी शीट पर बैठा वैसे ही उसकी नज़र मेरे पीछे उस तरफ पड़ी जिस तरफ शोर हो रहा था। आदित्य ने देखा कि चार पाॅच लड़के मेरे पीछे की तरफ वाली शीट के पास फर्श पर खड़े थे और शीट पर बैठे हुए यात्रियों को अनाप शनाप बके जा रहे थे। उन लड़कों की आवाज़ों के बीच कुछ औरतों व लड़कियों की भी आवाज़ें आ रही थी। इस बीच मैं भी उठ कर अपनी शीट पर बैठ गया था। मैने ये सोच कर अपने पीछे की तरफ नहीं देखा कि कहीं नीलम की नज़र मुझ पर न पड़ जाए। किन्तु उस वक्त मैं चौंका जब नीलम की तेज़ तेज़ आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बस रोने ही वाली हो।

ये जान कर मेरे मनो मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। मुझे समझते देर न लगी कि उन लड़कों से नीलम तथा अन्य लोगों की कहा सुनी हो रही है। मुझे ये तो समझ न आया कि आख़िर बात क्या हुई है किन्तु इतना ज़रूर समझ गया कि नीलम इस तरह किसी से झगड़ा करने वाली लड़की नहीं है। उस हालत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि वो ट्रेन में अकेली सफर कर रही हो। मुझे लगा नीलम इस वक्त बेहद परेशान हालत में है। मेरे अंदर का भाई जाग गया। बात भले ही चाहे जो हो मगर मैं ये हर्गिज़ भी बरदास्त नहीं कर सकता था कि कोई ऐरा गैरा मेरी बहन को कुछ उल्टा सीधा कहे या उससे किसी तरह का झगड़ा करे।

मैने आदित्य को इशारा किया। आदित्य मेरा इशारा समझ गया। उसके बाद हम दोनो ही उस तरफ चल दिये। इस बीच मैने जल्दी से अपने मुख और नाक को रुमाल से ढॅक लिया था। कुछ ही पल में हम दोनो उन लड़कों के पास पहुॅच गए। मैने एक लड़के को हल्का सा दबाव देकर एक तरफ किया और शीट की तरफ देखने की कोशिश की। मैं देख कर चौंका कि नीलम अपनी शीट पर बैठी सिसक रही थी। उसके बगल से ही एक और लड़की बैठी हुई थी। उसकी हालत भी नीलम जैसी ही थी। मुझे समझ न आया कि नीलम और वो लड़की सिसक क्यों रही हैं? जबकि उन दोनो के बगल से एक औरत भी बैठी थी जिसके साथ एक दस बारह साल का लड़का था। नीलम की सामने की शीट पर दो आदमी व दो औरतें बैठी हुई थी। उनके चेहरों पर लगभग बारह बजे हुए थे।

"ओये कौन है बे तू?" सहसा उस लड़के ने मुझे धक्का देते हुए कहा जिसे दबाव देकर मैं अंदर शीट की तरफ देखने लगा था, बोला___"और तू मुझे एक तरफ करके अंदर कहाॅ घुसा आ रहा है? क्या तुझे भी ये दोनो लौंडियाॅ पसंद आ गई हैं?"

"पसंद तो आएॅगी ही दिनेश।" एक अन्य लड़के ने हॅस कर कहा___"आख़िर माल तो ज़बरदस्त ही है न।"
"अरे तो पहले हमें तो चखने दे भाई।" दिनेश नाम के उस लड़के ने कहा___"उसके बाद ये भी चख लेगा।"
"कैसे चख लेगा यार?" तीसरे लड़के ने कहा___"हम साले इतनी देर से इन मालों से कह रहे हैं कि बाथरूम चलो मगर ये हैं कि सुनती ही नहीं हैं हमारी बात।"

उन लड़कों की इन बातों से ही ज़ाहिर हो गया था कि माज़रा क्या है। मगर मैं हैरान इस बात पर था कि वहाॅ पर बैठे बाॅकी सब उन लड़कों की बददमीची सहन कैसे कर रहे थे? या फिर वो सब डर रहे थे कि ये लड़के कहीं उनकी औरतों या बेटियों को कुछ कहने न लगें। ये यो हद ही हो गई थी। सबको अपनी फिक्र थी, कोई ये नहीं सोच रहा था कि दूसरी लड़कियाॅ भी तो किसी की बहन बेटी होंगी। इस सबसे मेरा दिमाग़ बेहद ख़राब हो चुका था। मैने पलट कर आदित्य की तरफ देखा। वो मुझे देखते ही समझ गया कि क्या करना है।

"ओ भाई ज़रा बात तो सुन।" मैने अपनी आवाज़ बदलते हुए कहा दिनेश नाम के उस लड़के से कहा___"तेरे अगर और भी साथी इस ट्रेन में हों तो फोन करके बुला ले उन्हें। क्योंकि अब जो तुम लोगों के साथ होने वाला है उसके बाद तुम लोगों हास्पिटल पहुॅचाने वाला भी तो कोई होना चाहिए न।"

"ओये चिकने।" दिनेश से पहले ही उसका एक अन्य साथी बोल पड़ा___"ज्यादा हीरोपंती करने का शौक चढ़ा है क्या तेरे को? चल फूट ले इधर से वरना हम लोगों से पंगा लेने का अंजाम अच्छा नहीं होगा समझा? और हाॅ आपन के और भी छोकरे लोग इस ट्रेन में मौजूद हैं। इस लिए आपन एक ही बार तेरे से बोलेगा कि इधर से खिसक ले तू।"

"किसी ने सच ही कहा है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।" मैने गुस्से से उबलते हुए उस लड़के का कालर पकड़ा और ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया___"तुम जैसे गटर के कीड़ों को मसलना ही बेहतर होता है।"

मैने जैसे ही उस लड़के को अपनी तरफ खींचा तो एक अन्य हरकत में आ गया। अभी वो हरकत में आया ही था कि आदित्य ने धर लिया उसे। इधर मैने उस लड़के के चेहरे पर ज़ोर का पंच जड़ दिया। उनमें से किसी को भी इस सबकी उम्मीद नहीं थी। चेहरे पर ज़ोरदार पंच पड़ते ही उस लड़के की नाक की हड्डी टूट गई और भल्ल करके खून बहने लगा। वो बुरी तरह बिलबिलाते हुए अपनी नाक को अपने दोनो हाॅथों से पकड़ लिया। अचानक हुए इस हमले से दो लड़के जो अभी खाली थे वो भी हरकत में आ गए। आस पास फर्श पर खड़े हुए लोग एकदम से उस जगह से दूर हटते चले गए।

आदित्य ने जिस लड़के को धरा था उसका एक हाॅथ पकड़ कर ज़ोर से उमेठ दिया। जिससे वो दर्द में चीखा। हाॅथ उमेठते ही आदित्य ने पीछे से अपने घुटने का वार उसके पिछवाड़े पर किया तो उसका सिर ऊपर की शीट पर लगे लोहे के पाइप से टकराया। उसके हलक से चीख निकल गई। इधर दो लड़को के हाथ में पलक झपकते ही जाने कहाॅ से चाकू प्रकट हो गया था। मतलब साफ था कि वो चारो पेशेवर अपराधी थे। मगर उन्हें क्या पता था कि आज उनका पाला उनसे भी बड़े खलीफा से पड़ गया था।

एक लड़के ने जैसे ही अपना चाकू वाला हाथ ऊपर हवा में उठा कर मुझ पर चलाया तो मैने उसके उस हाॅथ को एक हाॅथ से हवा में ही रोंका और दूसरे हाॅथ से उसकी कलाई पर कराट का वार किया जिससे उसके हाथ से चाकू छूट कर फर्श पर गिर गया। चाकू के गिरते ही मैने उसके पेट में ज़ोर की लात मारी तो वो झोंक में ही बाएॅ साइड के डंडे से टकरा कर फर्श पर चित्त गिर पड़ा। उधर ऐसा ही हाल आदित्य की तरफ भी था। कहने का मतलब ये कि दो मिनट के अंदर ही वो चारो लड़के ट्रेन के फर्श पर पड़े बुरी तरह कराह रहे थे और हम दोनो से रहम की भीख माॅगने लगे थे।

"जी तो करता है कि।" मैने खूंखार भाव से कहा__"जो घिनौना कर्म तुम लोगों ने किया है उसके लिए तुम सबके हाथ पैर तोड़ कर तुम सबके हाॅथों में दे दूॅ। मगर मैं यहाॅ पर ज्यादा बखेड़ा नहीं करना चाहता। इस लिए जितना जल्दी हो सके यहाॅ से दफा हो जाओ वरना ये भी सोच लेना कि जिस बखेड़े की अभी मैं बात कर रहा हूॅ उससे मैं डरता भी नहीं हूॅ।"

मेरी इस बात का असर फौरन ही हुआ। वो चारो बुरी तरह लड़खड़ाते हुए फर्श से उठे और नौ दो ग्यारह हो गए। उन चारों के जाते ही मैं वापस पलटा और नीलम की देखा तो चौंक गया। वो मुझे ही देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि सहसा वह अपनी जगह से उठी और बिजली की तरह दौड़ कर मुझसे लिपट गई।

"राऽऽज मेरे भाई।" फिर वो मुझसे लिपटी फूट फूट कर रोने लगी थी। उसकी इस क्रिया से जहाॅ मैं भौचक्का रह गया था वहीं शीट पर बैठी वो दूसरी लड़की भी हैरान रह गई थी। तभी मुझे ध्यान आया कि उन लड़कों से लड़ते वक्त जाने कब मेरे मुख से रुमाल निकल गया था। शायद यही वजह दी कि नीलम जान गई थी कि मैं वास्तव में कौन हूॅ।

"ओह राज।" मुझसे लिपटी नीलम रोते हुए कह रही थी___"तुम यहाॅ भी मेरी इज्ज़त बचाने के लिए पहुॅच गए। इतने अच्छे और इतने महान कैसे हो सकते हो तुम? ये सच है कि अगर तुम नहीं होते तो कदाचित वो लड़के मुझे और सोनम दीदी को अपनी उन अश्लील बातों से ही मार देते।"

"बस चुप हो जाओ।" मैने उसे खुद से अलग कर उसके चेहरे को अपने दोनो हाॅथ की हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"कुछ नहीं होता। मैं जब तक ज़िंदा हूॅ तुम्हारा कीई भी बुरा नहीं कर सकता।"

मेरी ये बात सुन कर नीलम एकटक मेरी ऑखों में देखने लगी। कुछ इस तरह जैसे मेरी ऑखों में कुछ तलाश कर रही हो। आस पास मौजूद लोग हमारी तरफ ऑखें फाड़े देख रहे थे। मुझे ये सब बड़ा अजीब सा लगने लगा।

"जाओ अब अपनी शीट पर बैठ जाओ।" मैंने सहसा गंभीर भाव से कहा___"सब लोग अजीब तरह से इधर ही देख रहे हैं।"
"देखने दो राज।" कहने के साथ ही नीलम पुनः मुझसे छुपक गई, फिर बोली___"मुझे किसी की कोई परवाह नहीं। मैं बस इतना जानती हूॅ कि मैं ऐसे शख्स की पनाहों में हूॅ जिसना मेरी अस्मत की दो दो बार रक्षा की है। इस पनाह में आकर मुझे ऐसा एहसास हो रहा है मेरे भाई जैसे ये जगह मेरे लिए दुनियाॅ की सबसे महफूज़ और सबसे सुंदर जगह है। राज, मुझे अपनी इस पनाह से अब कभी जुदा न करना।"

"हाॅ बाबा नहीं करूॅगा।" मैने नीलम को खुद से अलग करके कहा___"अब जाओ अपनी शीट पर बैठ जाओ। और हाॅ मैं अगली शीट पर ही हूॅ। अगर किसी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे आवाज़ लगा देना।"

"तुम भी मेरे पास ही बैठ जाओ न राज।" नीलम ने किसी बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा___"या फिर ऐसा करो कि मुझे भी अपने पास बैठा लो। मैं तुम्हारे पास ही रहना चाहती हूॅ। प्लीज मेरी इतनी सी बात मान जाओ न।"

नीलम की इस बात से मैं एकदम से उसकी तरफ देखता रह गया। फिर मैने चेहरा घुमा कर आदित्य की तरफ देखा और सामने शीट पर बैठी सोनम की तरफ भी। दोनो मुझे ही देख रहे थे। मुझे समझ न आया कि अब मैं क्या करूॅ?

"तुम अपनी सोनम दीदी को अकेला छोंड़ कर कैसे मेरे पास बैठ सकती हो?" मैने कहा___"और उधर मेरे साथ मेरा दोस्त आदित्य भी तो है। मैं उसे अकेला छोंड़ कर तुम्हारे पास भला कैसे बैठ जाऊॅगा? इस लिए ये बेकार की ज़िद छोंड़ो और अपनी शीट पर बैठ जाओ। मैं पास में ही तो हूॅ।"

"हाॅ लेकिन मुझे तब भी तुम्हारे पास ही बैठना है।" नीलम ने बुरा सा मुह बना लिया___"अपने दोस्त से कह दो कि यहाॅ मेरी शीट पर सोनम दीदी के साथ बैठ जाएॅ।"
"ये कैसी ज़िद है नीलम?" मैने हैरान___"अगर सोनम दीदी को इस बात से ऐतराज़ हुआ तो?"

मेरी बात सुन कर नीलम ने झट से पलट कर सोनम की तरफ देखा और फिर कहा___"दीदी, क्या आपको इनके यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है?"
"क क्या मतलब??" नीलम के द्वारा एकाएक ही इस तरह पूछने पर सोनम लगभग हड़बड़ा गई थी।
"मैं ये पूछ रही हूॅ आपसे।" नीलम ने मानो अपने वाक्य को दोहराया___"कि क्या आपको राज के दोस्त के यहाॅ पर बैठने से ऐतराज़ है?"

सोनम ने नीलम की इस बात पर बड़े अजीब भाव से उसकी तरफ देखा। नीलम को देखने के बाद मेरी तरफ और फिर आदित्य की तरफ। सबको देखने के बाद पुनः नीलम की तरफ देखते हुए कहा___"अगर तू यही चाहती है तो ठीक है। मुझे कीई ऐतराज़ नहीं है इनके यहाॅ बैठ जाने से।"

"ओह थैंक्यू सो मच दीदी।" नीलम ने खुश होकर कहा___"आप सच में बहुत अच्छी हैं।"
"चल चल अब मस्का मत लगा।" सोनम ने कहा___"जा बैठ जा राज के पास। मगर उसे परेशान मत करना ज्यादा।"
"ओ हैलो।" मैं एकदम से बोल पड़ा___"कोई मेरे दोस्त से भी जानना चाहेगा कि उसे यहाॅ बैठने से ऐतराज़ है कि नहीं?"

मेरी इस बात से नीलम व सोनम एकदम से चुप हो गई। मैने आदित्य की तरफ देखा तो उसे मुस्कुराते हुए पाया। तभी नीलम व सोनम की नज़रें एकदम से आदित्य की तरफ दौड़ गईं। जैसे उसे देख कर ही ऑखों से पूछ रही हों कि आपको ऐतराज़ है क्या यहाॅ बैठने से? आदित्य उनकी ऑखों में उभरे सवाल का आशय समझ कर बोला__"ठीक है मैं सोनम जी के पास ही बैठ जाता हूॅ।"

"लो राज।" आदित्य के मुख से ये सुनते ही नीलम ने मेरी तरफ देख कर कहा___"अब तो किसी को कोई ऐतराज़ नहीं है। सो अब मैं तुम्हारे साथ ही अगली वाली शीट पर बैठूॅगी। चलो अब हम जल्दी से अपनी शीट पर चलते हैं।"
 
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मरता क्या न करता की तर्ज़ पर मैं हैरान परेशान होकर नीलम के साथ वापस अपनी शीट पर आ गया। जबकि आदित्य सोनम के पास ही नीलम वाली शीट पर बैठ गया। इधर मेरी शीट पर आते ही नीलम मेरे बगल से ही धम्म से बैठ गई। बैठते ही उसने अपना एक हाथ मेरी काख से डाल कर मेरा एक हाॅथ मानो अपने कब्जे में ले लिया था।

"अरे अब ये क्या है?" नीलम के ऐसा करते ही मैने हैरानी से कहा___"सोना नहीं है क्या? चलो जाओ ऊपर वाली शीट पर लेट कर सो जाओ।"
"मुझे नींद नहीं आ रही है राज।" नीलम ने एकदम से बच्चियों वाले अंदाज़ से कहा___"तुम भी मत सोना। हम सारी रात ढेर सारी बातें करेंगे। मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं।"

"वो सब तो ठीक है।" मैने एकाएक अजीब भाव से कहा___"मगर क्या तुम्हें ऐसा महसूस नहीं हो रहा कि आज सूरज पश्चिम दिशा से निकल रहा है? ये तो कमाल हो गया न कि जो नीलम मुझसे कभी बात करना तो दूर कभी मुझे देखना तक गवाॅरा नहीं करती थी आज वही नीलम मुझसे सारी रात ढेर सारी बातें करेंगी? यकीन नहीं हो रहा मुझे। ये चमत्कार है या फिर खुली ऑखों का मेरा कोई ख़्वाब?"

मेरी इन बातों से नीलम को झटका सा लगा। अभी तक जो चेहरा एकदम से ताज़े गुलाब की मानिंद खिला हुआ दिख रहा था वो मेरी इन बातों से पलक झपकते ही मुरझा गया था। उसके चेहरे पर पल भर में गहन पीड़ा व दुख के भाव उभर आए और ऑखों में ऑसू रूपी समंदर मानों हिलोरें लेने लगा था। कुछ कहने के लिए उसके होंठ बस थरथरा कर रह गए थे।

"मुझे मेरे उन सभी बुरे कर्मों की सज़ा दो राज।" नीलम ने रुऑसे स्वर में कहा___"यकीन मानो, तुम्हारी हर सज़ा को मैं खुशी खुशी क़बूल कर लूॅगी। मगर अब तुम्हारी किसी भी तरह की बेरुखी सहन नहीं कर पाऊॅगी मैं। मुझे पता है कि मैने तुम्हारे साथ अब तक क्या किया था। किन्तु अगर ग़ौर से सोचोगे तो इस सबमें तुम्हें ज़रूर समझ आएगा कि उस सबमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी। मैने तो वही किया था अब तक जो बचपन से हमें सिखाया गया था। सही ग़लत का पाठ तो हमें हमारे माॅ बाप ने ही बचपन से पढ़ाया था। जबकि वास्तव में सही ग़लत क्या है वो अब समझ आया है मुझे। मैं सच कहती हूॅ मेरे भाई कि मैं अपने उन सभी कर्मों के बारे में सोच सोच कर बेहद दुखी हूॅ। मुझे अपने आप से घृणा होती है।"

"इंसान जिन्हें दिल से चाहता है।" मैने कहा___"वही अगर ऐसा करें तो तक़लीफ़ तो यकीनन होती है नीलम। मैने कभी भी तुम सबके बारे में ग़लत नहीं सोचा था। बल्कि हमेशा यही चाहता था तुम सब मुझसे उसी तरह बातें करो हॅसो बोलो जैसे बाॅकी सब करते थे। मगर मुझे आज तक समझ न आया कि हमने ऐसा कौन सा गुनाह किया था हमें आप सबकी सिर्फ नफ़रत मिली। ख़ैर, ये सब तो कल की बातें है मगर मैं ये जानना चाहता हूॅ कि आज ऐसा क्या हो गया है कि तुम्हें वही राज अपना भाई लगने लगा और इतना ही नहीं बल्कि दुनियाॅ का सबसे अच्छा इंसान भी लगने लगा। क्या सिर्फ इस लिए कि मैने इत्तेफाक़ से दो बार तुम्हारी इज्ज़त की रक्षा की या फिर इसकी कोई दूसरी वजह है?"

"इंसान का चरित्र जैसा भी हो राज।" नीलम ने गंभीर भाव से कहा___"वो दूसरों के सामने उजागर हो ही जाता है। ये अलग बात है कि इसमें थोड़ा बहुत समय लग जाता है। तुम लोगों के जिस चरित्र का पाठ हम भाई बहनों को बचपन से पढ़ाया गया था उसे हमने ये सोच कर यकीन के साथ मान लिया क्योंकि हम यही समझते थे कि कोई भी माॅ बाप अपने बच्चों को ग़लत नसीहत नहीं देते हैं। मगर जो ग़लत होता है उसका भी पर्दाफाश हो ही जाता है एक दिन। तुमने मेरी दो बार इज्ज़त बचाई इसे संयोग समझो या समय का बदलाव, जिसके फलस्वरूप मुझे ये समझ आया कि अपने जिस माॅ बाप से मैने तुम लोगों के चरित्र का पाठ पढ़ा था वो दरअसल झूॅठा भी तो हो सकता था। क्योंकि एक बुरे इंसान से अच्छे कर्म की उम्मीद नहीं की जा सकती। जबकि तुमने जो किया वो निहायत ही अच्छे कर्म की पराकाष्ठा थी। तुम्हारे उस कर्म ने मुझे ये सोचने पर बिवश कर दिया कि तुम वैसे नहीं हो जैसा मेरे माॅ बाप ने अब तक समझाया था। बस, इंसान जब किसी के बारे में गहराई से सोचता है तो उसे कुछ न कुछ तो एहसास होता ही है कि हक़ीक़त क्या है? अब तक तो मैने तुम्हारे बारे में उस तरीके से सोचा ही नहीं था राज मगर उस हादसे के बाद जब मैने तुम्हारे बारे में आदि से अंत तक सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि तुम बुरे नहीं हो सकते।
इंसान को अपनी सफाई में कुछ भी कहने का अधिकार है जबकि हमने तो तुम लोगों की किसी बात को सुनना ही कभी गवाॅरा नहीं किया था। ऐसे में भला हमें कैसे समझ आता कि सच क्या है? हमसे यकीनन ग़लती हुई है राज और मैं इस ग़लती को ज़रूर सुधारूॅगी। घर पहुॅचते ही माॅम डैड से बताऊॅगी कि कैसे तुमने दो दो बार उनकी बेटी की इज्ज़त की रक्षा की है।"

"तुम्हारे बताने से कुछ नहीं होने वाला नीलम।" मैने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"तुम्हें तो अभी सारी असलियत का पता ही नहीं है। मगर मेरा दावा है कि जब तुम्हें सारी सच्चाई का पता चलेगा तो तुम्हारा दिल हाहाकार कर उठेगा।"

"क्या मतलब??" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"तुम्हारी इन बातों का क्या मतलब है राज? तुम किस असलियत की बात कर रहे हो?"
"मैं तुम्हें इस बारे में खुद कुछ नहीं बताऊॅगा।" मैने गंभीर भाव से कहा___"क्योंकि मेरे बताने पर तुम्हें यही लगेगा कि मैं तुम्हारे माॅम डैड के विषय में बेवजह ही अनाश शनाप बक रहा हूॅ। इस लिए इस सबके बारे में तुम्हें खुद ही पता करना होगा नीलम। जब तक तुम्हें खुद सारी बातों का पता नहीं चलेगा या तुम खुद अपनी ऑखों से नही देख लोगी तब तक तुम दूसरे की बताई हुई बात का यकीन नहीं कर सकोगी।"

"आख़िर ऐसी कौन सी बातें हैं राज?" नीलम के चेहरे पर गहन चिंता के तथा सोचने वाले भाव उभरे___"जिनके बारे में तुम बात कर रहे हो? तुम मुझे बताओ राज, मुझे तुम्हारी हर बात पर यकीन होगा।"
"नहीं होगा नीलम।" मैने पुरज़ोर लहजे में कहा__"कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर यकीन करना बेहद मुश्किल होता है। यहाॅ तक कि अगर इंसान खुद अपनी ऑखों से भी देख ले तो यकीन नहीं कर पाता। इस लिए मेरे कुछ भी बताने का कोई मतलब नहीं है। तुम खुद सारी बातों का पता लगाओ और फिर उन पर विचार करो।"

"क्या रितू दीदी भी उन सारी बातों को जानती हैं?" नीलम ने कहा___"जिनके बारे में तुम बात कर रहे हो?"
"हाॅ।" मैने कहा___"रितू दीदी को आरी असलियत का पता है।"
"तो क्या यही वजह है कि।" नीलम ने कहा___"आजकल वो माॅम डैड के ख़िलाफ हैं?"
"हाॅ यही वजह है।" मैने कहा___"अब तुम सोच सकती हो कि भला ऐसी वो क्या बातें होंगी जिसके चलते तुम्हारी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ हो गई हैं?"

मेरी बात सुन कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरफ देखती रही। मैं समझ सकता था कि वो इन सब बातों के चलते अपने दिलो दिमाग़ को विचारों भॅवर में डुबा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। उसके बाद मैने उसे सो जाने का कह दिया। हलाॅकि मैं जानता था कि अब उसे सारी रात नींद नहीं आने वाली थी। वो रात भर इन्हीं बातों को सोचती रहेगी कि आख़िर ऐसी कौन सी सच्चाई है जिसकी मैं बात कर रहा हूॅ और जिस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी अपने ही माॅम डैड के खिलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बर्थ पर लिटाने के बाद मैं भी अपने नीचे वाले बर्थ पर लेट गया और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आख़िर क्या करेगी नीलम जब उसे अपने माॅ बाप और भाई की असलियत का पता चलेगा? वो कैसा रिऐक्ट करेगी जब उसे पता चलेगा कि उसके माॅ बाप ने किस तरह इस हॅसते खेलते परिवार को बरबाद किया था? सब कुछ जानने के बाद क्या नीलम भी अपनी बड़ी बहन की तरह अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था। तभी सहसा मुझे अजय सिंह का ख़याल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश अंकल को फोन करके अजय सिंह के साथ एक धाॅसू खेल खेलने का कह दिया था। ये उसी का परिणाम था कि इस वक्त अजय सिंह सीबीआई की गिरफ्त में था। मगर अब जबकि मैं कल दोपहर तक हल्दीपुर रितू दीदी के फार्महाउस पहुॅच जाऊॅगा तो अजय सिंह को भी सीबीआई की गिरफ्त से आज़ाद कर देने का समय आ जाएगा।

अजय सिंह जब सीबीआई की गिरफ्त से निकल कर अपनी हवेली पहुॅचेगा तब वो प्रतिमा को जो कुछ बताएगा उसे सुन कर सबके पैरों के नीचे से ज़मीन गायब हो जाएगी। अजय सिंह का दिमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते फटने को आ जाएगा मगर उसे कुछ समझ नहीं आएगा। वो इस तरह किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थित में बैठा रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शून्य में खोया हुआ सा रह जाता है।

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दोस्तों, अपडेट हाज़िर है,,,,,,
 
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अपडेट.........《 53 》


अब आगे,,,,,,,,,

उधर रितू मंत्री दिवाकर चौधरी से फोन पर बातें करने के बाद अपने फार्महाउस पहुॅची। उसने जिप्सी को तेज़ रफ्तार से दौड़ाया था और पाॅच मिनट में ही फार्महाउस पहुॅच गई थी। उसे मंत्री की बातों पर ज़रा सा भी ऐतबार नहीं था। हलाॅकि उसने धमकी के रूप में मंत्री को तगड़ी डोज दी थी। मगर इसके बावजूद वो इस बात से संतुष्ट नहीं हो पाई थी कि मंत्री की वजह से विधी के माॅ बाप अब सुरक्षित हैं। उसे पता था कि मौजूदा वक्त में भले ही मंत्री ने उससे वादा कर लिया था कि विधी के माॅ बाप को कुछ नहीं कहेगा मगर वो अपने इस वादे पर ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकता था। क्योंकि वो मंत्री था, वो ये बरदास्त नहीं कर पाएगा कि कोई ऐरा ग़ैरा उसे किसी चीज़ के लिए बिवश करे।

फार्महाउस पर पहुॅच कर रितू तेज़ क़दमों से चलती हुई अपने कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर सबसे पहले उसने अपनी पाॅकेट से उस मोबाइल की निकाल कर आलमारी में रखा जिस नये मोबाइल से उसने मंत्री से बात की थी। उसके बाद उसने अपने आईफोन को स्विच ऑन किया। फोन के स्विच ऑन होते ही उसने पुलिस कमिश्नर को काल लगाया और मोबाइल कान से सटा लिया।

"यस ऑफिसर।" उधर से कमिश्नर का प्रभावशाली स्वर उभरा___"क्या प्रोग्रेस चल रही है तुम्हारे ऑपरेशन की?"
"ऑपरेशन तो अभी सफलता पूर्वक चल ही रहा है सर।" रितू ने सहसा गंभीर भाव से कहा___"मगर इस बीच एक प्रोब्लेम आ गई है।"

"व्हाट??" उधर से कमिश्नर का चौंकता हुआ स्वर उभरा___"कैसी प्रोब्लेम आ गई है? इवरीथिंग ओके न?"
"यस सर।" रितू ने कहा___"बट प्रोब्लेम ये है कि मंत्री दिवाकर चौधरी के साथ जो कुछ मौजूदा समय में हो रहा है उसके वजह का उसने अपने तरीके से पता लगाया है। मेरा मतलब है कि वो ये समझता है कि उसकी इस बरबादी के पीछे विधी के घरवालों का हाॅथ है। उसे लगता है कि उसके बच्चों को विधी के बाप ने किडनैप किया है।"

"ऐसा तो उसे लगेगा ही ऑफीसर।" कमिश्नर का स्वर उभरा___" मऐसे मामले में कोई भी ब्यक्ति सर्व प्रथम विधी के घर वालों पर ही शक करेगा, क्योंकि मंत्री के साथ ये सब करने की वजह सिर्फ विधी के घर वालो के पास ही है। इस लिए अगर मंत्री सारी बातों पर विचार करके ये नतीजा निकाला है कि ये सब उस रेप पीड़िता लड़की के घर वाले ही कर रहें हैं तो उसका सोचना ग़लत नहीं है। ख़ैर, तुम बताओ कि अब तुम क्या चाहती हो?"

"ज़ाहिर सी बात है सर।" रितू ने कहा___"कि मंत्री के इस नतीजे के बाद अब विधी के माॅ बाप पर मंत्री का खतरा हो गया है। आप जानते हैं कि इस मामले में उन बेचारों का दूर दूर तक कोई हाॅथ नहीं है। वो तो बेकार में ही इस मौत रूपी खतरे में फॅस पड़े हैं। इस लिए मैं चाहती हूॅ सर कि विधी के माॅ बाप को जल्द से जल्द सुरक्षा मुहय्या कराएॅ आप।"

"ऐसा करना सही नहीं होगा ऑफिसर।" कमिश्नर ने समझाने वाले भाव से कहा___"क्योंकि अगर हम विधी के माॅ बाप को पुलिस प्रोटेक्शन देंगे तो मंत्री के सामने सारी बातें ओपेन हो जाएॅगी। उस सूरत में उनके ऊपर ख़तरा और भी बढ़ जाएगा। ये ऑपरेशन चूॅकि सीक्रेट है इस लिए इसकी सारी चीज़ें सीक्रेट ही रहें तो बेहतर होगा।"

"मगर सर।" रितू ने कहा___"विधी के घर वालों को सुरक्षित तो ईरना ही होगा हमें। वरना उनके ऊपर मंत्री का क़हर कभी भी टूट पड़ेगा।"
"एक काम करो तुम।" कमिश्नर ने कहा___"विधी के माॅ बाप को भी अपने पास ही रखो।"

"लेकिन सर।" रितू ने कहा___"उन्हें मैं अपने पास लेकर कैसे आऊॅगी? संभव है कि मंत्री ने अपने आदमी उनके आस पास निगरानी में लगा दिये हों। उस सूरत में जब वो देखेंगे कि मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान किसी के द्वार ले जाए जा रहे हैं तो वो ज़रूर उस बात की सूचना मंत्री को दे देंगे और हमारा पीछा भी कर सकते हैं।"

"रिस्क तो लेना ही पड़ेगा ऑफिसर।" कमिश्नर का गंभीर स्वर___"तुम चौहान को फोन करके कहो कि वो तुम्हें किसी ख़ास जगह पर आकर मिलें उसके बाद उस खास जगह पर हमारे पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उन्हें वहाॅ से रिसीव कर लेंगे। पुलिस के वो आदमी चौहान और उनकी पत्नी को किसी खास जगह पर ही लेकर आ जाएॅगे जहाॅ से तुम उन्हें रिसीव कर अपने साथ ले जाना।"

"दैट्स ए गुड आइडिया सर।" रितू ने कहा___"हलाॅकि रिस्की तो ये भी है किन्तु जैसा कि आपने कहा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। इस लिए ऐसा ही करते हैं सर।"
"ठीक है।" कमिश्नर ने कहा___"तुम ऐसा ही करो। मगर होशियारी और सतर्कता से।"
"यस सर।" रितू ने कहा।

इसके साथ ही काल कट गई। रितू के चेहरे पर इसके पहले जहाॅ चिंता व परेशानी के भाव थे वहीं अब राहत के भाव झलकने लगे थे। यद्यपि उसे पता था कि ऐसा करना भी रिस्की ही था। क्योंकि मंत्री ने अगर अपने आदमियों को विधी के माॅ बाप की निगरानी में लगा दिया होगा तो यकीनन वो लोग जान जाएॅगे और पीछा करेंगे। मगर ये भी सच था कि विधी के माॅ बाप को सुरक्षित करना ज़रूरी था। अतः रितू ने मोबाइल में विधी के पापा का नंबर खोज कर काल लगा दिया।

"हैलो अंकल मैं रितू बोल रही हूॅ।" उधर से काल रिसीव किये जाते ही रितू ने कहा था।
"ओह हाॅ रितू बेटा।" उधर से मिस्टर चौहान का तनिक चौंका हुआ स्वर उभरा___"कैसी हो तुम? उस दिन के बाद से फिर आई नहीं तुम। क्या विधी के जाने से सारे रिश्ते खत्म हो गए? मेरा दामाद तो अपनी मरहूम पत्नी की अस्थियाॅ तक लेने नहीं आया। ऐसी उम्मीद तो न थी मुझे उससे।"

"राज की जगह उसके नाम से अस्थियाॅ लेने मैं ही तो आई थी अंकल।" रितू ने कहा___"आप से बताया तो था हालातों के बारे में।"
"ओह हाॅ हाॅ बताया था तुमने बेटा।" उधर से चौहान का स्वर उभरा___"क्या करूॅ बेटी कुछ याद ही नहीं रहता। जब से बेटी हमें छोंड़ कर गई है तब से एकदम अकेले हो गए हैं हम दोनो। सच कहें तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। ये ज़िंदगी तो बस बोझ सी लगने लगी है।"

"ऐसा मत कहिए अंकल।" रितू ने दुखी भाव से कहा___"विधी के चले से आप दुखी मत होइये। मैं भी तो आपकी बेटी ही हूॅ। आप मुझे अपनी विधी ही समझिये अंकल। मैने तो उसी दिन आप सबसे रिश्ता बना लिया था जिस दिन विधी को मैने अपनी छोटी बहन बनाया था। उसके जाने का हम सबको बेहद दुख है मगर ये भी सच है कि इस दुख को लेकर बैठा तो नहीं रहा जा सकता न। आप बिलकुल भी दुखी मत होइये और ना ही ये समझिए कि आप अब अकेले हो गए हैं। हम सब आपके ही तो हैं। आपका हम पर वैसा ही हक़ है जैसा कि विधी पर था आपका।"

"ओह शुक्रिया बेटी।" चौहान का लरज़ता हुआ स्वर उभरा___"तुमने ये कह कर सच में मुझे अकेलेपन के एहसास से मुक्त करवा दिया। मेरे दिल में जीने की चाह जाग उठी है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि अब कैसे हालात हैं वहाॅ पर?"

"हालात तो अभी काबू में ही हैं अंकल।" रितू ने कहा___"मगर एक गंभीर समस्या पैदा हो गई है।"
"क कैसी समस्या बेटा?" चौहान के स्वर में एकाएक चिंता के भाव आ गए थे___"सब ठीक तो है न?"

रितू ने संक्षेप में चौहान को मंत्री से संबंधित सारी बातें बता दी। चौहान ये जान कर चकित था हो गया था कि उसकी बेटी के साथ कुकर्म करने वालों को रितू खुद सज़ा दे रही है। इस बात से चौहान को बड़ी खुशी भी हुई। किन्तु रितू ने मौजूदा हालातों के बारे में जो कुछ भी उसे बताया उससे वो चिंतित भी हो उठा था।

"इस लिए अंकल।" सारी बातें बताने के बाद फिर रितू ने कहा___"मैं चाहती हूॅ कि आप और ऑटी जितना जल्दी हो सके तो घर से निकल कर मेरे पास आने की कोशिश कीजिए।"
"लेकिन बेटा।" उधर से चौहान ने कहा___"उस मंत्री ने हमारे आस पास निगरानी के लिए अपने आदमियों को लगाया होगा तो उस सुरत में हम भला कैसे निकल पाएॅगे यहाॅ से?"

"उसका भी इंतजाम कर दिया है मैने।" रितू ने कहा___"आप बस वो करते जाइये जो मैं कहूॅ।"
"ठीक है बेटा।" चौहान ने कहा___"बताओ क्या करना है हमें?"
"आप अपना ज़रूरी सामान लेकर इसी वक्त तैयार हो जाइये।" रितू ने कहा___"थोड़ी ही देर में मेरे पुलिस डिपार्टमेन्ट के आदमी सादे कपड़ों में आपको लेने आएॅगे। आप उनके साथ चले आइयेगा। उसके बाद का काम मेरे पुलिस के वो आदमी और मैं सम्हाल लेंगे।"

"ठीक है बेटा।" उधर से चौहान ने कहा___"जैसा तुम कहो।"
"ओके फिर आप जल्दी से तैयारी कर लीजिए।" रितू ने कहा___"मैं अपने आदमियों को भेजती हूॅ आपके पास।"

इसके साथ ही रितू ने काल कट कर दी। कुछ पल रुकने के बाद उसने फिर से किसी को फोन लगाया और थोड़ी देर तक किसी से कुछ बातें की। उसके बाद काल कट करके बेड पर आराम से लेट गई। अभी वह लेटी ही थी कि उसका फोन बज उठा। उसने मोबाइल फोन उठाकर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो सहसा उसके चेहरे पर सोचो के भाव उभरे।

"कहो प्रकाश क्या ख़बर है?" रितू ने सोचने वाले भाव से काल रिसीव करते ही पूछा।
"...........। उधर से कुछ कहा गया।
"ओह तो ये बात है।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"वैसे कितने आदमी होंगे वो लोग?"
"...........।" उधर से प्रकाश नाम के आदमी ने फिर कुछ कहा।

"चलो अच्छी बात है।" रितू ने कहा___"और कुछ?"
"...........। उधर से फिर कुछ कहा गया।
"क्या???" रितू चौंकी___"डाक्टर भला किस लिए आया था वहाॅ?"
"...........।" उधर से पुनः कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" रितू ने कहा___"लेकिन माॅम को चक्कर कैसे आ गया था? क्या तुमने पता नहीं किया?"

"..........।" उधर से प्रकाश ने कुछ बताया।
"ओह तो ये बात है।" रितू चौंकने के साथ मुस्कुराई भी___"चलो ठीक है प्रकाश। बहुत अच्छी ख़बर दी है तुमने। ऐसी ही अंदर की ख़बर देते रहना और हाॅ ज़रा होशियार और सतर्क रहना।"

ये कह कर रितू ने फोन काट दिया। उसके चेहरे पर इस वक्त कई तरह के भावों का आवागमन चालू हो गया था। ख़ैर उसके बाद रितू अपने डिपार्टमेन्ट के पुलिस वालों के फोन काल का इन्तज़ार करने लगी। लगभग बीस मिनट बाद रितू का आईफोन बजा। रितू ने तुरंत काल को रिसीव किया। काल पुलिस के आदमियों का ही था। उन्होंने बताया कि वो लोग मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान को लेकर चल दिये हैं और बताई हुई जगह पर आ रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि आस पास ऐसा कोई आदमी नहीं दिखा जिस पर किसी तरह का ज़रा सा भी संदेह किया जा सके।

पुलिस के उस आदमी से बात करने के बाद रितू भी बेड से उठी और जिप्सी की चाभी लेकर कमरे से बाहर की तरफ निकल पड़ी। सीढ़ियों से उतर कर जब वो नीचे आई तो ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर नैना और कुरुणा का भाई बैठा दिखा उसे। रितू नीचे आते देख नैना ने उससे कहा___"रितू बेटा, तुम्हारे ये मामा जी कह रहे हैं कि इन्हें अब अपने घर वापस जाना है। कह रहे हैं बहुत काम बाॅकी है घर में।"

"क्यों मामा जी इतना जल्दी?" रितू ने कहा___"अभी तो हमने आपसे ठीक से बातें भी नहीं की है और आप जाने की बात करने लगे।"
"बातें तो हो ही गई हैं रितू बेटा।" हेमराज ने कहा__"अब मुझे जाने दो। बहुत काम है। तुम्हें तो पता है दूसरे की नौकरी में अपनी मनमर्ज़ी तो नहीं चलती न।"

"ठीक है मामा जी।" रितू ने कहा___"जैसा आपको अच्छा लगे। तो कब जा रहे हैं आप?"
"मैं तो तैयार ही बैठा हूॅ बेटा।" हेमराज ने कहा___"बस तुम्हारे आने का ही इन्तज़ार कर रहा था।"
"ओह।" रितू ने कहा___"चलिए फिर। मैं भी उधर ही जा रही हूॅ। सो आपको भी छोंड़ दूॅगी।"

रितू के कहने पर हेमराज सोफे से उठा और बगल से ही रखे एक छोटे से बैग को पीठ पर लाद कर बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे रितू भी चल दी। थोड़ी ही देर में वो दोनो जिप्सी में सवार सड़क पर चल रहे थे। दोनो के बीच थोड़ी बहुत बात चीत होती रही और फिर वो नहर वाली जगह के पास बने पुल के इसी तरफ रुक गए।

लगभग बीस मिनट बाद सामने से एक टोयटा आती दिखी। रितू को पहचानने में ज़रा भी देरी न हुई कि उस गाड़ी में उसके पुलिस के ही आदमी हैं। कुछ ही देर में वो गाड़ी रितू के पास आकर रुकी। गाड़ी के आगे पीछे के दरवाजे खुले। अगले दरवाजे से पुलिस का एक आदमी उतरा जबकि पीछे के दरवाजे से विधी के माॅ बाप उतरे।

रितू उनके पास जाकर उन्हें नमस्ते किया और उन्हें अपने साथ ला कर अपनी जिप्सी की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उन दोनो के बैठने के बाद रितू ने पुलिस वालों से कहा कि वो हेमराज को हरीपुर छोंड़ आएॅ जो यहाॅ से लगभग तीस किलो मीटर की दूरी पर था। रितू के कहने पर वो पुलिस वाले हेमराज की अपनी गाड़ी में बैठा कर वहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद रितू भी अपनी जिप्सी को स्टार्ट कर वापस फार्महाउस की तरफ चल दी।

विधी के माता पिता की सुरक्षित करके रितू अब बेफिक्र हो चुकी थी। अब वो बेफिक्री से कोई भी काम कर सकती थी। रास्ते में रितू ने विधी के माॅ बाप को विराज के बारे में भी बता दिया कि वो कल दोपहर तक मुम्बई से वापस आ जाएगा। ऐसे ही बातें करते हुए ये लोग कुछ ही समय में फार्महाउस पहुॅच गए। जिप्सी से उतर कर रितू विधी के माता पिता को अंदर ले गई। जहाॅ पर नैना बुआ बैठी थी। रितू ने नैना को विधी के माॅ बाप का परिचय दिया और कहा कि इनके रहने के लिए एक कमरा साफ सुथरा करवा दें। थोड़ी देर ड्राइंग रूम में उन सबसे बातचीत करने के बाद रितू अपने कमरे में चली गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अजीब संयोग था।
जैसा कि रितू को पहले से ही अंदेशा था कि मंत्री अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। कहने का मतलब ये कि जैसे ही मिस्टर एण्ड मिसेस चौहान रितू के फार्महाउस पहुॅचे थे वैसे ही मंत्री ने अपने आदमियों को गुप्त तरीके से विधी के घर के आस पास निगरानी के लिए लगा दिया था। किन्तु मुश्किल से आधे घंटे बाद ही मंत्री के आदमी ने मंत्री को फोन करके बताया कि जिस ब्यक्ति की निगरानी में हम लोग यहाॅ आए थे उसके घर में तो ताला लगा हुआ है। कुछ लोगों ने बताया कि एक सफेद रंग की गाॅड़ी आई थी जिसमे चौहान अपनी बीवी को लिए बैठ गया था। उसके हाॅथ में एक बड़ा सा बैग भी था। उन दोनों के बैठते ही वो सफेद रंग की गाड़ी चली गई थी।

फोन पर अपने आदमी की ये ख़बर सुन कर मंत्री भौचक्का सा रह गया था। वो समझ गया कि भले ही उसने अपने बच्चों के किडनैपर से वादा किया था इसके बाद भी किडनैपर को उसके वादे पर ऐतबार न हुआ था। शायद यही वजह थी कि किडनैपर ने वक्त रहते अपनी सुरक्षा के मद्दे नज़र अपने घर में ताला लगा कर कहीं ऐसी जगह नया ठिकाना बना लिया था जिस जगह के बारे मंत्री को पता तक न चल सके। फोन पर अपने आदमी की ख़बर सुनने के बाद इस वक्त मंत्री अपने उन्हीं तीनों साथियों के साथ ड्राइंगरूम में गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ था।

"शिकार हमारे हाॅथ से बहुत ही आसानी से निकल गया चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उसे आपके वादे के बावजूद पता था कि आप ऐसा कोई क़दम उठाएॅगे। इसी लिए तो उसने फौरन ही अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर लिया। सबसे बड़ी बात ये कि आपको ऐसे वक्त में ऐसा कोई क़दम उठाना ही नहीं चाहिए था। क्योंकि संभव है कि इससे हमें भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाए। दूसरी बात जब आपको पता चल ही गया था तो उस बात को फोन पर उस किडनैपर को बताना ही नहीं चाहिए था बल्कि आपको जो करना था वो उस किडनैपर की जानकारी में आए बग़ैर ही करना चाहिए था।"

"ग़लती तो हमसे यकीनन हो गई है अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने अफसोस भरे भाव से कहा___"हमें लगा कि जब हम उसे बताएॅगे कि उसकी असलियत हम जान गए हैं तो उसके होश उड़ जाएॅगे और अपने बुरे अंजाम का सोच कर वो सब कुछ हमारे हवाले कर देगा जिसके बलबूते पर वो इतना उछल रहा है। इतना ही नहीं वो हमारे बच्चों को भी सही सलामत हमारे पास भेज देगा। इसके बाद वो हमसे अपने उस अपराध की माफ़ी माॅगेगा। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो तो हम पर और भी ज्यादा हावी हो गया था।"

"अब जो होना था वो तो हो ही गया चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा ने कहा___"और इस पर अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है। इस लिए हमें अब ये सोचना चाहिए कि अब आगे हमें क्या करना है? वैसे उस चौहान के अचानक अपने घर से गायब हो जाने से एक बात तो साफ हो गई है कि वो अकेला इस काम में नहीं है। बल्कि कोई और भी है जो उसकी मदद कर रहा है।"

"ये तुम कैसे कह सकते हो?" दिवाकर चौधरी के माथे पर बल पड़ा___"और भला कौन ऐसे मामले में उसकी मदद कर सकता है? जबकि सब जानते हैं कि ये मामला हमसे संबंधित है। भला हमसे दुश्मनी मोल लेने का दुस्साहस दूसरा कौंन कर सकता है?"

"कोई तो होगा ही चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मैने भी अपने तरीके से उस लड़की के बारे में पता लगाया है।"
"क्या मतलब?" चौधरी के साथ साथ सुनीता व अवधेश भी चौंके थे, जबकि अवधेश ने ही पूछा___"क्या पता लगाया है उस लड़की के बारे में?"

"यही कि वो लड़की हमारे बच्चों के ही कालेज में पढ़ती थी।" अशोक मेहरा कह रहा था___"और हमारे बच्चों की फ्रैण्ड ही थी। किन्तु उसके बारे में एक बात ये भी पता चली कि वो लड़की किसी दूसरे लड़के को चाहती थी और फिर एक दिन अविश्वसनीय तरीके से उस लड़के से प्रेम संबंध तोड़ लिया था। उस लड़के से अलग होने के बाद ही वो सूरज के क़रीब आई थी। सूरज के ही एक दूसरे दोस्त ने इस बारे में बताया कि विधी नाम की वो लड़की उस लड़के से संबंध ज़रूर तोड़ लिया था कि किन्तु अकेले में अक्सर वो उस लड़के की याद में ही रोती रहती थी।"

"लेकिन इस मैटर से उस बात का कहाॅ संबंध है अशोक भाई जिसकी बात तुम कर रहे हो कि चौहान की मदद कोई दूसरा भी कर रहा है?" अवधेश ने कहा था।

"संबंध क्यों नहीं हो सकता भाई?" अशोक मेहरा ने कहा___"खुद सोचो कि जो लड़की अपने प्रेमी से अलग होकर उसकी याद में इस तरह रोती थी तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो फिर से अपने प्रेमी से मिलने की चाह कर बैठे और मिल ही जाए? दूसरी ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि इश्क़ मुश्क कभी दुनियाॅ से नहीं छुपता। संभव है कि विधी और उसके प्रेमी के उन प्रेम संबंधों की ख़बर दोनो के घर वालों को भी रही हो। लेकिन किसी कारणवश मिल न पाएॅ हों वो दोनो या फिर मिलने वाले रहे हों। मगर तभी लड़की के साथ रेप सीन हो गया। लड़की के साथ हुए हादसे का पता विधी के प्रेमी को लगा होगा और उसने अपनी प्रेमिका के साथ हुए इस जघन्य अपराध का बदला लेने के लिए उतारू हो गया हो। जिसका नतीजा आज इस रूप में हमारे सामने है।"

"तम्हारी बातों में वजन तो है अशोक।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"मगर ये महज तुम्हारी संभावनाएॅ हैं जो कि ग़लत भी हो सकती हैं। फिर भी अगर तुम्हारी बातों को मान भी लिया जाए तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारे बच्चों को किडनैप करने वाला चौहान नहीं बल्कि उस लड़की का प्रेमी है।"

"बिलकुल।" अशोक ने कहा___"एक पल के लिए ये सोचा जा सकता है कि लड़की के बाप ने अपनी बेटी के साथ हुए उस कुकर्म का बदला ये सोच कर न लिया कि बदला लेने से वो सब तो वापस मिलने से रहा जो इज्ज़त के रूप में लुट चुका है। या फिर ये भी सोच लिया होगा कि कानूनन भी वो हमारा कुछ नहीं कर पाएगा। मगर लड़की का प्रेमी बदला लेने के सिवा कुछ और सोचेगा ही नहीं और वही वो कर रहा है।"

अशोक मेहरा की इस बात से ड्राइंग रूम में कुछ देर के लिए ब्लेड की धार की मानिंद सन्नाटा छा गया। सभी के चेहरों पर गहन सोचों के भाव नुमायाॅ हो उठे थे।

"मुझे लगता है कि अशोक भाई साहब का ये सोचना एकदम सही है।" सहसा इस बीच पहवी बार सुनीता ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"क्योंकि जिस प्रकार से उसने इतने कम समय में हमारे बच्चों को और हमारी रचना बेटी को किडनैप किया है उस तरह से वो चौहान तो कम से कम कर ही नहीं सकता। वो लड़का जवान है और गरम खून है। रेप केस होने के दूसरे दिन ही जिस तरह से उसने हमारे बच्चों को हमारे ही फार्महाउस से किडनैप किया और इतना ही नहीं बल्कि हमारे खिलाफ़ ऐसा खतरनाक सबूत वहाॅ से प्राप्त किया वो चौहान के बस का तो हर्गिज़ नहीं था। आज जब उसे चौधरी साहब से ये पता चला कि मंत्री महोदय उसकी ये असलियत जान गए हैं कि वो दरअसल चौहान ही है तो उसे चौहान की फिक्र हुई इसी लिए उसने वक्त रहते चौहान को सुरक्षित कर दिया और हमारी पहुॅच से शायद दूर भी कर दिया है।"

"अरे वाह।" दिवाकर चौधरी ने हैरत से ऑखें फैलाते हुए कहा___"क्या खूब दिमाग़ लगाया है मेरी राॅड ने। असलियत भले ही कुछ और ही हो मगर जिस तरह से अशोक और सुनीता ने अपनी बातें रखीं उससे यही लगता है कि ये सब लड़की के उस प्रेमी का ही किया धरा है। ख़ैर, अब सवाल ये है कि लड़की का वह प्रेमी कौन है जिसके पिछवाड़े में इतनी ज्यादा मिर्ची लग गई कि वो अपनी जाने बहार के साथ हुए उस काण्ड का बदला लेने लगा है। आख़िर पता तो चले कि वो किस खेत की पैदाईश है जिसने हम पर हाॅथ डालने का दुस्साहस किया है।"

"मैने उस लड़के का पता भी करवाया है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"वो लड़का हल्दीपुर का है। बड़े घर परिवार से ताल्लुक रखता है किन्तु।"
"किन्तु क्या अशोक?" चौधरी के माथे पर शिकन पैदा हुई।
"पता चला है कि लड़के के ताऊ ने उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर रखा है।" अशोक मेहरा ने कहा___"लड़के के ताऊ का नाम ठाकुर अजय सिंह है। हल्दीपुर में बड़ी भारी किन्तु शानदार हवेली है तथा अच्छी खासी ज़मीन जायदाद भी है। खुद अजय सिंह एक बड़ा कारोबारी इंसान है। परिवार की आपसी कलह की वजह से उसने अपने मॅझले किन्तु स्वर्गवाशी भाई विजय सिंह के उस लड़के को और लड़के की माॅ बहन को हवेली से बेदखल कर दिया है।"

"ओह बड़ी अजीब बात है ये तो।" चौधरी ने सोचने वाले भाव से कहा___"फिर तो वो लड़का दर दर का भिखारी ही है। ऐसी हालत में वो ये सब हमारे साथ कैसे रहा पा रहा है? ये तो हैरत की बात है।"

"हैरत वैरत की कोई बात नहीं है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"ताऊ के द्वारा हवेली से बेदखल होने के बाद वो लड़का आजकल मुम्बई में रहता है अपनी विधवा माॅ और बहन के साथ।"
"अच्छा।" चौधरी ने कहा___"तो क्या वो मुम्बई में रहते हुए ये सब कर रहा है?"

"इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता मगर।" अशोक मेहरा ने कहा___"मगर संभव है कि उसे अपनी प्रेमिका के साथ हुए काण्ड का पता चला हो और वो मुम्बई से यहाॅ आया हो। उसके बाद उसने ये सब शुरू किया हो।"

"ओह।" चौधरी को जैसे बात समझ आ गई___"संभव है ऐसा ही हो। ख़ैर उस लड़के के परिवार में और कौन कौन लोग हैं?"
"लड़के का बाप तीन भाई थे।" अशोक ने कहा___"सबसे बड़ा अजय सिंह, फिर लड़के का बाप विजय सिंह और उसके बाद अभय सिंह। अजय सिंह के दो बेटियाॅ और एक लड़का है। उसकी बड़ी बेटी हल्दीपुर थाने में थानेदार है।"

"क क्या????" चौधरी ही नहीं बल्कि सभी बुरी तरह चौंके थे, फिर चौधरी ने ही कहा___"उस ठाकुर की बेटी थानेदार है। मतलब की पुलिस वाली है वो?"
"हाॅ मगर आप ये हर्गिज़ भी न सोचें कि।" अशोक मेहरा ने कहा____"कि उसका इस मामले में कोई हाथ है।"

"अरे, क्यों नहीं हो सकता ऐसा?" चौधरी से पहले अवधेश बोल पड़ा था___"वो अपने चचेरे भाई की मदद तो यकीनन कर सकती है भाई।"
"ऐसा नहीं है अवधेश भाई।" अशोक ने कहा___"क्योंकि अजय सिंह ही नहीं बल्कि उसकी औलादें भी उस लड़के और उसकी माॅ बहन से नफ़रत करती हैं।"

"एक मिनट अशोक भाई।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव ने कुछ सोचते हुए कहा___"एक मिनट। हमारे बच्चों ने उस लड़की के साथ रेप सीन को अंजाम दिया उसके बाद वो चिमनी में बने अपने फार्महाउस पर चले गए। जहाॅ से उन्हें किडनैप कर लिया गया। चिमनी हल्दीपुर के बाद ही पड़ता है। ख़ैर रेप की वारदात हल्दीपुर के आस पास के ही क्षेत्र में हुई या फिर ऐसा होगा कि हमारे बच्चों ने अपने फार्महाउस पर ही उस लड़की से सामूहिक रेप किया और उसके बाद उसे हल्दीपुर की सीमा के अंदर ले जा कर छोंड़ आए होंगे। ये सब मैं इस लिए कह रहा हूॅ कि वो रेप सीन उस समय काफी फैल गया था उस क्षेत्र में। ख़ैर अब सोचने वाली बात ये है कि अगर रेप पीड़िता लड़की हल्दीपुर की सीमा में पाई गई तो क्या हल्दीपुर के थाने में मौजूद वो थानेदारनी चुप बैठी रही होगी? उसने शुरुआती ऐक्शन तो लिया ही होगा।"

"तुम आख़िर कहना क्या चाहते हो?" अशोक मेहरा ने पूछा___"इस मामले में अचानक तुम इस एंगिल से क्यों सोचने लगे?"
"दरअसल मैं भी तुम्हारी तरह संभावनाएॅ ही ब्यक्त कर रहा हूॅ भाई।" अवधेश ने कहा___"मामला काफी पेचीदा है। मगर मैं इधर उधर की कड़ियाॅ समेटने की कोशिश कर रहा हूॅ।"

"साफ साफ बोलो क्या कहना चाहते हो तुम?" सहसा चौधरी कर उठा___"यूॅ बातों को घुमाने का क्या मतलब है?"
"जैसा कि अशोक भाई ने कहा।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"कि थानेदारनी अपने भाई की मदद नहीं कर सकती क्योंकि वो भी अपने माॅ बाप की तरह ही उससे नफ़रत करती है। मगर सवाल ये है कि थानेदारनी के क्षेत्र में रिप पीड़िता पाई गई तो क्या थानेदारनी ने इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया होगा?"

"अगर उसने कोई ऐक्शन लिया होता तो उसका पता हमें ज़रूर चलता।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"ये तो सच है कि वो रेप स्कैण्डल एक पुलिस केस ही था मगर उस स्कैण्डल का कोई पुलिस केस नहीं बना। इस बात खुलासा कमिश्नर खुद कर चुका है।"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"या फिर ऐसा हुआ होगा कि उस थानेदारनी ने केस बनाने की कोशिश की होगी।" अशोक ने कहा___"मगर कमिश्नर ने उसे केस बनाने या उस वारदात पर कोई ऐक्शन लेने से मना कर दिया होगा। थानेदारनी भला अपने आला अफसर के खिलाफ़ कैसे कोई क़दम उठाती? "

"हाॅ ऐसा भी हो सकता है।" चौधरी ने कहा___"और आम जनता ने इस पर हो हल्ला इस लिए नहीं किया क्योंकि उसे भी पता है कि मामला सीधा मंत्री के बेटे और उसके बेटे के दोस्तों का था। यानी कि हमारे डर की वजह से जनता ख़ामोश रह गई।"

"तो इन बातों का निष्कर्स ये निकला।" सहसा सुनीता ने गहरी साॅस लेने के बाद कहा___"कि वो लड़का जिसे कि उसके ताऊ ने उसकी माॅ बहन के साथ घर से दर बदर किया वही इस सबके पीछे है। यानी वो अपनी प्रेमिका के साथ हुए उस रेप का बदला ले रहा है।"

"बिलकुल।" अशोक ने पुरज़ोर लहजे में कहा__"विधी के माॅ बाप के अलावा वही एक ऐसा है जो ये सब कर सकता है। यानी ये सब करने की वजह उसके पास भी है।"
"अगर ये वाकई सच है।" अवधेश ने कहा___"तो अब हमें उस लड़के का पता लगाना होगा। मगर इस बार पहले जैसी ग़लती हर्गिज़ भी नहीं होनी चाहिए। वरना इस बार इसका खामियाजा हमें भारी कीमत पर चुकाना पड़ सकता है।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी, बोला___"एक पिद्दी से इंसान ने हमें इस तरह अपने शिकंजे में कसा हुआ है कि हम आज़ाद होते हुए भी आज़ाद व बेफिक्र नहीं हैं। वो जब चाहे हम सबको बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है और हम कुछ कर नहीं सकते। सारे प्रदेश में हमारी एकछत्र हुकूमत है। हमारी इजाज़त के बिना इस प्रदेश में कहीं का कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता। मगर कमाल देखो कि हम सब जो खुद को सबसे बड़ा सूरमा समझ रहे हैं आज उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हो कर रह गए हैं। लानत है हम पर और हमारे सूरमा होने पर।"

"आप चिंता मत कीजिए चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी? आज भले ही उस कमीने का पलड़ा हम पर भारी है मगर किसी दिन तो उससे भी कोई चूक होगी जिसके तहत वो हमारे हत्थे चढ़ेगा। उसके बाद हम बताएॅगे कि हमारे साथ इतना बड़ा दुस्साहस करने का कितना खूबसूरत अंजाम होता है।"

"बकवास मत करो अशोक।" चौधरी ने बिफरे हुए से लहजे में लगभग चीखते हुए कहा___"तुम्हारा ये डायलाग हम इसके पहले भी जाने कितनी बार सुन चुके हैं मगर अब तक ऐसा कोई पल नहीं आया जिससे हमें लगे कि हाॅ अब हालात हमारे हक़ में हैं। मादरचोद ने अपाहिज बना के रख दिया है हमे। किसी से ठीक से मिल नहीं सकते। किसी समारोह में नहीं जा सकते। साला हर पल डर लगा रहता है कि ऐसी किसी जगह पर वो हरामज़ादा कोई ऐसी वैसी हरकत न कर दे कि सबके सामने हमारी इज्ज़त का कचरा हो जाए।"

"बुरा मत मानिएगा चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"मगर हमें इतना बेबस बना देने में सबसे बड़ा हाॅथ आपके बेटे सूरज का है।"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" चौधरी एक झटके से अशोक की तरफ घूमते हुए कहा था।

"आप खुद सोचिए।" अशोक ने कहा___"हमारे सभी बच्चों का लीडर कौन है___आपका बेटा ही न?"
"हाॅ तो।" चौधरी चकराया।
"आप ये बताइये कि फार्महाउस पर हमारे ऐसे संबंधों की वीडियो क्लिप बनाने की क्या ज़रूरत थी उसे?" अशोक ने कहा___"क्या उसे इतना भी एहसास नहीं था कि ऐसे वीडियो किसी डायनामाइट से कम नहीं होते। हम जैसे लोगों के हज़ारो प्रतिद्वंदी होते हैं जिन्हें हमारी ऐसी ही किसी कमज़ोरी की तलाश रहती है। आज उन्हीं वीडियोज की वजह से हम इतना बेबस व लाचार बने बैठे हैं। अगर वो वीडियोज बने ही न होते तो आज किसी की हिम्मत ही न होती हमें इतना मजबूर करने की।"

"हाॅ हम जानते हैं कि हमारे बेटे ने ऐसे वीडियोज बना कर बहुत बड़ी ग़लती की है।" चौधरी ने खेद भरे भाव से कहा___"मगर अब जो हो गया उसका कोई कर भी क्या सकता है? हमें तो सारे बच्चों की फिक्र है। जाने उनके साथ कैसा सुलूक कर रहा होगा वो हरामज़ादा?"

"हम खुद तो कुछ कर नहीं सकते हैं।" अवधेश ने कहा___"मगर किसी और को इस काम में ज़रूर लगा सकते हैं।"
"क्या मतलब??" अशोक के माथे पर शिकन उभरी।
"मुझे लगता है कि हमें इस काम के लिए किसी क़ाबिल व बहादुर डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।" अवधेश ने कहा___"जासूस लोग गुप्त तरीके से काम करने में काफी माहिर होते हैं। वो अपने और अपनी गतिविधियों के बारे में किसी को तब तक पता नहीं चलने देते जब तक कि वो खुद न चाहें। अगर यही काम हम अपने आदमियों से कराएॅगे तो हमारी किसी गतिविधी का उस लड़के को पता चलने में देर नहीं लगेगी। अब तक के उसके क्रिया कलाप से ये ज़ाहिर हो चुका है कि वो अपने हर काम में बेहद होशियारी और सतर्कता रखता है और हमारी पल पल की ख़बर रखता है। इस लिए हमें किसी डिटेक्टिव को हायर करना चाहिए।"

"आइडिया बुरा नहीं है।" अशोक ने कहा___"मैं तुम्हारी इस सलाह से सहमत हूॅ। यकीनन इस काम में एक डिटेक्टिव ही कुछ कर सकता है। वो उस लड़के की सारी जन्मकुण्डली भी निकाल लेगा और हमारे बच्चों का पता भी लगा लेगा।"

"तो फिर देर किस बात की है?" चौधरी ने कहा___"अगर तुम दोनों को लगता है कि कोई डिटेक्टिव इस काम को बखूबी सफलतापूर्वक कर सकता है तो फिर ऐसे किसी डिटेक्टिव को फौरन हायर करो।"

"मेरी जानकारी में ऐसा एक डिटेक्टिव है।" अवधेश ने कहा___"मैं आज ही उससे फोन पर बात करता हूॅ और उसे जल्द से जल्द यहाॅ बुलाता हूॅ।"
"अच्छी बात है।" चौधरी ने कहा___"उसे बोलो फौरन हमारे सामने हाज़िर हो जाए। उसको उसके काम की मुहमाॅगी फीस के रूप में रकम मिलेगी।"

अवधेश ने चौधरी की बात सुनकर अपने कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाला और उसमें से किसी को फोन लगाया। थोड़ी देर बात करने के बाद उसने मोबाइल वापस अपनी पाॅकेट में डाल लिया।

"चौधरी साहब।" फिर उसने मंत्री की तरफ देखते हुए कहा___"मैने डिटेक्टिव से बात कर ली है। वो कल तक हमारे पास पहुॅच जाएगा। अब आप किसी बात की फिक्र मत करें। बहुत जल्द हमारा दुश्मन हमारे कब्जे में होगा और हमारे बच्चे हमारे पास होंगे।"

"अच्छी बात है अवधेश।" चौधरी ने कहा___"अब तो हमें तुम्हारे उस डिटेक्टिव पर ही भरोसा करना है। इसके सिवा दूसरा कोई चारा भी नहीं है।"
"आप निश्चिंत हो जाइये चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा___"डिटेक्टिव बहुत ही क़ाबिल ब्यक्ति है। मुझे यकीन है कि बिना कोई नुकसान हुए हमारा हर काम हो जाएगा।"

"इससे ज्यादा हमें और चाहिए भी क्या?" चौधरी ने कहने के साथ ही सहसा सुनीता की तरफ देखा___"इतने दिनों में आज पहली बार एक नई उम्मीद पैदा हुई है। इस लिए हम चाहते हैं कि आज तबीयत खुश कर दो तुम।"
"हाय।" सुनीता ने दाॅतों तले अपने होंठ दबा कर आह सी भरते हुए कहा___"कितनी सुंदर बात कही है मेरे बलम ने। मैं तो कब से इसके लिए तड़प रही हूॅ। अब जब मूड बन ही गया है तो चलिए कमरे में और तबीयत हरी कर लीजिए।"

सुनीता की इस बात से चौधरी तो मुस्कुराया ही उसके साथ अशोक व अवधेश भी मुस्कुरा पड़े। इसके बाद चारो ही सोफों से उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गए।
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सुबह हुई और एक नये जीवन के नये सफ़ की शुरुआत हुई। ट्रेन की शीट पर सोते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर कोई झुका हुआ है। मुजे मेरे चेहरे पर गरम गरम हवा लगती हुई प्रतीत हो रही थी साथ ही किसी औरत के बदन पर लगे परफ्यूम की खुशबू भीमेरे नथुनों में समा रही थी। मेरी नींद टूटने की यही वजह थी। मैने पट से अपनी ऑखें खोल दी और अगले ही पल मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि नीलम मेरे चेहरे के पास झुकी हुई थी।

उधर यही हाल नीलम का भी हुआ था। उसे कदाचित उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह झटके से ऑखें खोल दूॅगा और फिर जैसे ही मैने पट से अपनी ऑखें खोली तो वो एकदम से हड़बड़ा गई थी। मगर हैरत की बात ये हुई कि उसने पलक झपकते ही खुद को सम्हाल भी लिया था।

"गुड माॅर्निंग राज।" फिर उसने मुस्कुराते हुए बड़ी नज़ाक़त से कहा___"सोते हुए कितने मासूम लगते हो तुम। मैं काफी देर से यही देख रही थी कि मेरा भाई सोते वक्त किसी छोटे से बच्चे की तरह मासम व क्यूट सा दिखता है। पहले मैने सोचा कि तुम्हें जगाऊॅ मगर फिर जब मैने देखा कि तुम गहरी नीद में हो और एकदम से मासूम दिख रहे हो तो मैने तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा। बल्कि एकटक तुम्हें देखने लगी थी।"

"अच्छा तो मैं तुम्हें।" मैने उठते हुए किन्तु शरारत से कहा___"छोटा सा बच्चा नज़र आ रहा था सोते वक्त?"
"हाॅ बिलकुल।" नीलम ने मुस्कुराई___"तभी तो उस छोटे से बच्चे की मासूमियत को एकटक निहारे जा रही थी मैं।"
"पर मैने जब तुम्हें देखा रात में।" मैने पुनः शरारत से ही कहा___"तो तुम सोते वक्त ऐसी दिख रही थी जैसे कोई अस्सी साल की बुढ़िया सो रही हो। मैं तो टोटली कन्फ्यूज हो गया था उस वक्त।"

"क्या कहा???" नीलम एकदम से राशन पानी लेकर चढ़ दौड़ी___"मैं तुम्हें बुढ़िया नज़र आ रही थी। रुको अभी बताती हूॅ तुम्हें?"
"अरे नहीं यार।" मैंने एकदम से हड़बड़ाते हुए कहा__"मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम बुढ़िया तो किसी एंगिल से नहीं लगती हो मगर...।"

"मगर क्या???" नीलम ने ऑखें दिखाई।
"मगर दादी माॅ ज़रूर लगती हो।" मैने हॅसते हुए कह दिया।
"क्या बोला???" नीलम एकदम से मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पेट पर बैठ गई, और फिर मेरे सीने में मुक्के मारते हुए बोली___"मैं दादी माॅ लगती हूॅ। रुक बेटा बताती हूॅ अब तुझे मैं।"

नीलम मेरे सीने में मुक्के मारे जा रही थी। मैं भी उससे बचने का कोई खास प्रयास नहीं कर रहा था। मैने तो उसे छेंड़ा ही इस लिए था कि वो ये सब करे। दरअसल इन्हीं सब चीज़ों के लिए तो मैं तरसा था। अब तक तो रितू और नीलम ने कभी मुझे अपना भाई समझा ही नहीं था। भाई बहन के बीच कैसी कैसी शरारतें होती हैं उस सबका मैने कभी स्वाद ही नहीं चखा था। मगर आज और इस वक्त वही सब मेरे और नीलम के बीच हो रहा था। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे बेहद खुशी हो रही थी। दिल में भड़कते हुए जज़्बात जाने क्यों मुझे रुलाने पर उतारू हो रहे थे। मेरा दिल कर रहा था कि इस वक्त भावनाओं में बहते हुए मैं नीलम से लिपट कर खूब रोऊॅ मगर मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। क्योंकि उससे माहौल दुखी सा हो जाता जबकि मैं इस पल को जी भर के जीना चाहता था।

उधर हम दोनो बहन भाई की इस धमा चौकड़ी से आस पास बैठे ट्रेन के सब लोग आश्चर्य से ऑख व मुह फाड़े एकटक देखे जा रहे थे। हम दोनो को भी जैसे उन सबसे कोई मतलब नहीं था और ना ही कोई परवाह थी। नीलम ज़ोर ज़ोर से जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे ऊपर चढ़ी हुई मुझ पर मुक्कों की बरसात किये जा रही थी। उसकी इस आवाज़ और मेरे तेज़ हॅसी को सुन कर पीछे साइड ऊपर नीचे बर्थ पर सो रहे सोनम और आदित्य को भी जगा दिया। वो दोनो फौरन ही भाग कर हमारे पास आ गए और इधर का नज़ारा देख कर हैरान रह गए।

"ये तुम दोनो क्या ऊधम मचा रखे हो?" सहसा सोनम ने लगभग ऊॅची आवाज़ में कहा___"तुम दोनो को कुछ होश भी है कि इस वक्त कहाॅ हो तुम दोनो और तुम दोनो की इस हरकत से आस पास वाले कितना डिस्टर्ब हो रहे हैं।"

"दीदी इसने मुझे दादी माॅ बोला।" नीलम ने मुक्के मारना बंद करके शिकायत भरे लहजे मे कहा___"पहले कह रहा था कि मैं बुढ़िया लगती हूॅ फिर बात बदल कर बोला कि मैं दादी माॅ लगती हूॅ।"
"हाॅ तो क्या हो गया?" सोनम दीदी ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"उसके ऐसा कहने से क्या तुम सच में दादी माॅ लगने लगी? देखो तो अभी उसके ऊपर बैठी हुई है बेशरम। चल उतर राज के ऊपर से वरना दो चार लगाऊॅगी अभी।"

"नहीं उतरूॅगी।" नीलम ने दो टूक भाव से कहा___"इसने मुझे दादी माॅ क्यों कहा? इससे पहले बोलिए कि ये मुझे बोले कि मैं हूर की परी लगती हूॅ। वरना आप भी देखिये कि कैसे मैं इसे मार मार के इसका भुर्ता बनाती हूॅ?"

"हूर की परी और तू???" मैंने सहसा नीलम की खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज़ से कहा___"कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तूने? दादी माॅ तो मैने ऐसे ही कह दिया था तुझे, वरना तो तू बिलकुल बंदरिया लगती है। यकीन न हो तो पूछ ले सोनम दीदी से।"

मेरी इस बात से जहाॅ सोनम दीदी ने अपना सिर पीट लिया वहीं नीलम की त्यौरियाॅ चढ़ गईं। वह एकदम से तमतमाए हुए बोली___"क्या कहा बंदरिया लगती हूॅ? रुक अब तो तुझे सच में नहीं छोंड़ूॅगी। दीदी आप हमारे बीच में मत पड़ना। इसे तो मैं आज छोंडूॅगी नहीं।"

सोनम दीदी चिल्लाती रह गईं जबकि नीलम ने फिर से मुझ पर मुक्कों की बरसात कर दी। मैं महसूस कर रहा था कि वो मुझे मार ज़रूर रही थी मगर बस हल्के हल्के। कदाचित उसे भी इस सबमें मज़ा आ रहा था। किन्तु वो यही ज़ाहिर कर रही थी कि वो मेरी बातों से बेहद गुस्सा हो गई है।

"सोनम दीदी इससे कहिए कि ज्यादा झाॅसी की रानी न बने।" मैने हॅसते हुए कहा___"वरना अगर मैं महाराणा प्रताप बन गया तो फिर ये रोने के सिवा कुछ न कर पाएगी, बंदरिया कहीं की।"
"ओये तू महाराणा प्रताप बन के तो दिखा।" नीलम ने ऑखें निकाली___"मैं भी झाॅसी की रानी से माॅ दुर्गा न बन जाऊॅ तो कहना। बड़ा आया महाराणा प्रताप बनने, बंदर कहीं का।"

"ओये बंदर कौन??" मैने सहसा उसके दोनो हाॅथ पकड़ते हुए कहा___"ठीक से देख आई एम विराज दि ग्रेट।"
"विराज दि ग्रेट माई फुट।" नीलम ने मेरे हाॅथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा___"छोंड़ मेरे हाथ वरना नीलम परी को गुस्सा आ जाएगा और फिर विराज दि ग्रेट को मुर्गा बना देगी समझा?"

"मैं क्यों तेरे हाथ छोंड़ूॅ??" मैने कहा___"तू खुद ही छुड़ा ले न। मैं भी तो देखूॅ कि इस बंदरिया में कितना दम है।"
"ओये तू न दम की बात न कर।" नीलम ने कहा___"मैं चाहूॅ तो दो पल में अपने हाथ छुड़ा लूॅ समझा।"
"अच्छा छुड़ा के तो दिखा।" मैने ताव दिया उसे।

"रहने दे रहने दे।" नीलम ने कहा___"वरना बाद में सब तुझ पर ही हॅसेंगे कि खुद को महाराणा प्रताप कहने वाला एक मासूम सी लड़की से हार गया।"
"कोई बात नहीं।" मैने कहा___"तुझसे हारना मंजूर है। आख़िर तू मेरी प्यारी सी बहन है न।"

"अब ये मस्का क्यों लगा रहा है?" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"क्या नीलम परी से डर गया है?"
"डरता तो मैं उस परवर दिगार से भी नहीं।" मैने नीलम का हाथ छोंड़ कर अपने हाथ की उॅगली को ऊपर की तरफ करते हुए कहा___"मगर मुझे लगता है कि अब बाॅकी सबको बक्श देना चाहिए जो बेचारे हमारी वजह से शायद डिस्टर्ब हो रहे हैं। दूसरी बात सोनम दीदी ने डंडा उठा लिया तो फिर हम दोनो की ख़ैर नहीं रहेगी। कुछ समझ में आया नीलम परी जी?"

"अगर ऐसी बात है।" नीलम ने इस तरह कहा जैसे अहसान कर रही हो___"तो चल बक्श ही देती हूॅ तुझे भी और बाॅकी सबको भी। मगर आइंदा नीलम परी से टकराने की सोचना भी मत वरना खांमाखां बेइज्जती हो जाएगी तेरी।"

"ओये अब ज्यादा उड़ मत समझी।" मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर से उठाते हुए कहा___"चल अब उतर नीचे।"

मेरे ऐसा कहने पर नीलम मुस्कुराते हुए मेरे ऊपर से उतर गई मगर अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे अभी भी जता रही हो कि आइंदा याद रखना। मुझे उसके इस अंदाज़ पर बड़ी ज़ोर की हॅसी आई मगर मैने खुद को रोंक लिया। उधर सोनम दीदी और आदित्य भी ये सब देख कर मुस्कुरा रहे थे। ख़ैर कुछ ही पलों में मैं और नीलम शीट पर आराम से बैठ गए। आदित्य और सोनम भी हमारी ही शीट पर बैठ गए। आस पास बैठे सब लोग अभी भी हमें हैरानी से देख रहे थे। मैने देखा कि नीलम का चेहरा अब एकदम से खिला खिला लग रहा था। उसके होठों पर बहुत ही हल्की सी मुस्कान थी। वो बार बार मेरी तरफ देखने लगती थी। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में?

"चलो सुबह तो हो गई है।" सोनम दीदी ने मानो बातों का सिलसिला शुरू किया___"इस वक्त अगर गरमा गरम चाय या काॅफी मिल जाती तो कितना अच्छा होता।"
"हाॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"मगर यहाॅ पर अभी ये सब कैसे मिल सकता है भला?"

"चिंता मत करो।" मैने कहा___"अगले स्टाप पर जब ट्रेन रुकेगी तो चाय या काॅफी का बंदोबस्त करने की कोशिश करूॅगा मैं।"
"विराज भाई।" सहसा आदित्य ने कहा___"मैं ज़रा फ्रेश होकर आता हूॅ।"

"ओके भाई तुम जाओ।" मैने कहा___"उसके बाद मुजे भी फ्रेश होना है।"
"और हम भी तो फ्रेश होंगे।" नीलम बोल पड़ी___"इस लिए इनके बाद सबसे पहले मैं जाऊॅगी।"
"हर्गिज़ नहीं।" मैने कहा___"आदि के बाद मैं ही जाऊॅगा।"

"तू जा के दिखाना भला।" नीलम ने मानो धमकी सी दी मुझे।
"ऐ अब तुम दोनो फिर से न शुरू हो जाओ।" सोनम दीदी ने कहा था।
"पर दीदी सेकण्ड नंबर पर मैं ही जाऊॅगी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया___"इसे कह दीजिए कि ये मेरे बाद चला जाएगा।"

आदित्य हम दोनो की इस बात से मुस्कुराता हुआ उठ कर फ्रेश होने चला गया। जबकि मैने सोनम दीदी के कुछ बोलने से पहले ही कहा___"हाॅ ठीक है तुम ही चली जाना। वैसे भी मुझे इतनी जल्दी नहीं है तेरे जैसे। पहले बता देती तो आदित्य को रोंक देता।"

"ओये अब तू बकवास न कर समझे।" नीलम ने ऑखे दिखाते हुए कहा___"मुझे भी इतनी जल्दी नहीं है।"
"उफ्फ।" सोनम दीदी कह उठी___"तुम दोनो फिर से शुरू हो गए। ओके फाइन अगर तुम दोनो को इतनी जल्दी नहीं है तो मैं चली जाऊॅगी एण्ड दिस इज क्लियर।"

"ये सही कहा दीदी आपने।" मैने हॅसते हुए कहा___"अब आप ही जाना फ्रेश होने। सबसे लास्ट में यही जाएगी।"
"नहींऽऽ।" नीलम एकदम से हड़बड़ा गई___"आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी।"
"क्यों अब क्या हुआ तुझे?" सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"अभी तो कह रही थी न कि तुझे कोई जल्दी नहीं है तो अब क्या हुआ?"

"मैं कुछ नहीं जानती।" नीलम ने मानो फैंसला सुना दिया___"आदि भैया के बाद मैं ही जाऊॅगी और अगर आपने दोनो ने मुझे नहीं जाने दिया तो मैं यहीं पर हड़ताल कर दूॅगी।"
"उसे हड़ताल नहीं।" मैने हॅसते हुए कहा___"पोट्टी कर देना कहते हैं पगली।"

"ओये चुप कर तू।" नीलम पहले तो सकपकाई फिर घुड़की सी दी मुझे___"ज्यादा चपड़ चपड़ मत कर वरना ट्रेन के नीचे फेंक दूॅगी तुझे।"
" वैसे बात तो राज ने सही कही है।" सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"उसे हड़ताल करना थोड़ी न कहते हैं।"

सोनम दीदी की इस बात से मेरी हॅसी छूट गई और मेरे साथ ही साथ सोनम दीदी भी हॅसने लगी थी। हम दोनो के हॅसने से नीलम का चेहरा देखने लायक हो गया। ऐसा लगा जैसे वो अभी रो देगी। सामने की शीट पर बैठे लोग भी मुस्कुरा उठे थे। मैने जब देखा कि नीलम कहीं सच में ही न रो दे तो मैने अपनी हॅसी रोंक कर झट से उसे खींच कर खुद से छुपका लिया।

"तुम दोनो बहुत गंदे हो।" नीलम मुझसे अलग होने की कोशिश करते हुए किन्तु रूठे हुए भाव से बोली___"जाओ मुझे तुम दोनो से अब कोई बात नहीं करनी।"
"अरे ऐसा मत करना तू।" मैने उसे मजबूती से छुपकाए हुए कहा___"हड़ताल भले ही यहीं पर कर देना।"

मेरी इस बात से इस बार सोनम दीदी की भी ज़ोरदार हॅसी छूट गई। जबकि मैं नहीं हॅसा क्योंकि मुझे पता था कि मेरे इस बार हॅसने से नीलम की हालत ख़राब हो जाएगी। मैं नहीं चाहता था कि उसका दिल दुख जाए। मुद्दतों बाद तो वो मुझे ऐसे मिली थी। नीलम ने थोड़ी देर मुझसे नाराज़गीवश अलग होने की कोशिश की फिर वो खुद ही मुझसे छुपक कर मुझे कस के पकड़ लिया। वो कुछ बोल नहीं रही थी बल्कि उसने अपनी ऑखें बंद कर ली थी।

ऐसे ही हॅसी मज़ाक करते हुए हम चारो ही बारी बारी से फ्रेश हो गए। अगले स्टाप पर ट्रेन रुकी तो मैं और आदित्य ट्रेन से उतर कर उन दोनो के लिए चाय ले आए। हम चारों ने चाय पी और फिर से बातों में मशगूल हो गए। ट्रेन अपनी गति से चलती रही। बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला और सुबह से दोपहर होने को आ गई।
 
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हम गुनगुन स्टेशन के पास पहुॅचने वाले थे। इस बीच नीलम फिर से गंभीर हो गई थी। मैने उसे समझा दिया कि वो सोनम दीदी को लेकर आराम से गाॅव जाए। मैने उसे खासकर ये कहा कि सारी बातों पता वो खुद ही लगाए तो बेहतर होगा। नीलम और सोनम दीदी ने मुझे अपना अपना मोबाइल नंबर दिया और मुझसे भी लिया।

गुनगुन स्टेशन पहुॅच कर ट्रेन रुकी तो हम सब ट्रेन से नीचे उतरने के लिए गेट की तरफ आए। मैने आस पास का मुआयना किया और आदित्य के साथ नीचे उतर आया। हम दोनो के उतरने के बाद नीलम भी सोनम दीदी के साथ उतर आई। मैने नीलम को बता दिया था कि यहाॅ से अब हम साथ नहीं रह सकते क्योंकि यहाॅ से मेरे लिए ख़तरा शुरू था। ख़ैर, उसके बाद मैं और आदित्य बड़ी सावधानी व सतर्कता से स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले। जबकि नीलम व सोनम दीदी हमारे काफी पीछे पीछे आ रही थी।

बाहर आकर मैने आस पास का मुआयना किया तो मुझे एक आदमी हमारी तरफ ही आता दिखा। उसकी निगाह हमारी तरफ ही थी। मैं उसे अपनी तरफ आते देख पहले तो हड़बड़ा सा गया, किन्तु जैसे ही वो कुछ पास आया तो मैं उसे पहचान गया। वो रितू दीदी के पुलिस डिपार्टमेन्ट का आदमी था। पास आते ही उसने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं और आदित्य उसके पीछे चल दिये। मैं आस पास भी नज़रें घुमा रहा था कि कहीं कोई ऐसा आदमी तो यहाॅ मौजूद नहीं है जो अजय सिंह से संबंध रखता हो। मगर मुझे ऐसा कोई नज़र न आया।

उस पुलिस वाले के पीछे चलते हुए हम एक टीयटा कार के पास पहुॅचे। उस आदमी ने हमें कार की पिछली शीट पर बैठने का इशारा किया। उसके इशारे पर हम दोनो कार का पिछला दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गए। इस बीच वो पुलिस वाला भी ड्राइविंग शीट पर बैठ चुका था। कुछ ही पल में कार मंज़िल की तरफ बढ़ चली। कार के अंदर बैठ कर मैने एक बार पीछे मुड़ कर देखा मगर नीलम व सोनम दीदी कहीं नज़र न आईं मुझे। मैं उन दोनों के लिए चिंतित भी था कि वो गाॅव तक कैसे जाएॅगी? हलाॅकि मुझे पता था कि उन्हें लेने कोई न कोई बड़े पापा का आदमी आया ही होगा। मगर मैं एक बार पता कर लेना चाहता था। इस लिए मैने मोबाइल निकाल कर नीलम को फोन लगाया। दूसरी रिंग पर ही नीलम ने फोन उठा लिया। मैने उससे पूछा कि वो कहाॅ है अभी तो उसने बताया कि उसके डैड का एक आदमी जीप लेकर आया है और अब वो उसमें बैठ कर गाॅव जाने वाली है। नीलम की ये बात सुन कर मैं बेफिक्र हो गया और फिर काल कट कर दी।

टोयटा कार तेज़ रफ्तार से मंज़िल की तरफ दौड़ी जा रही थी। मैने रितू दीदी को फोन करके बताया कि मैं उनके द्वारा भेजे गए आदमी के साथ आ रहा हूॅ। रितू दीदी मेरी ये बात सुन कर खुश हो गईं और कहने लगी कि मैं जल्दी आ जाऊॅ। मैने उन्हें नीलम व सोनम दीदी के बारे में भी बताया और ट्रेन में हुई सारी बातों के बारे में भी बताया। सारी बातें सुन कर वो पहले तो ख़ामोश रहीं फिर बोली चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ। रितू दीदी से बात करने के बाद मैने जगदीश अंकल से थोड़ी देर बात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपना वो काम कर दिया है जिसके लिए मैने उन्हें कहा था। जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं आराम से शीट की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर तथा ऑखें बंद कर लगभग लेट सा गया। मेरे दिमाग़ में आने वाले समय की कई सारी बातें चल रही थीं।
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उस वक्त दोपहर के एक या डेढ़ बज रहे थे जब अजय सिंह टैक्सी के द्वारा अपनी हवेली पहुॅचा था। उसका दिलो दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था। उसके अंदर इतना ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था कि अगर उसका बस चले तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दे मगर अफसोस वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। कुछ करे तो तब जब उसे पता हो कि करना किसके साथ है? और जिसके साथ करना भी है तो वो है कहाॅ???

नीलम और सोनम तो बारह बजे ही हवेली पहुॅच गई थीं। प्रतिमा अपनी बड़ी बहन की बेटी को आज पहली बार ऑखों के सामने देख कर बेहद खुश भी हुई थी और थोड़ा दुखी भी। सोनम अपनी मौसी से इस तरह मिली थी जैसे वह उससे पहली बार नहीं बल्कि पहले भी मिल चुकी हो। शिवा तो अपनी मौसी की बेटी सोनम की खूबसूरती और उसके साॅचे में ढले जिस्म को देख कर आहें भरने लगा था। उसे अपनी मौसी की लड़की पहली नज़र में ही भा गई थी। उसका मन कर रहा था कि जाए और उसे अपनी बाहों में उठा कर सीधी बेड पर पटक कर उसके ऊपर चढ़ बैठे मगर ऐसा संभव नहीं था। प्रतिमा अपने बेटे की मनोदशा को तुरंत ही ताड़ गई थी, इस लिए उसे अकेले में ले जाकर समझाया था कि वो ऐसी कोई भी हरकत न करे जिससे उसके साथ साथ हम सबको बाद में पछताना पड़े। प्रतिमा के समझाने पर शिवा समझ तो गया था मगर ये तो वही जानता था कि बहुत देर तक वो प्रतिमा के समझाने पर रह नहीं पाएगा।

सफ़र की थकान के कारण नीलम व सोनम ने नहा धो कर थोड़ा बहुत खाना खाया और नीलम के कमरे में दोनों एक ही बेड पर सो गईं थी। उधर अजय सिंह टैक्सी से उतर कर टैक्सी वाले को उसका भाड़ा किराया दिया। यद्दपि उसके पास पैसे के नाम पर चवन्नी भी नहीं थी मगर जहाॅ से उसे छोंड़ा गया था वहाॅ से उसे इतना तो रुपया दे ही दिया गया था कि वो आराम से अपने घर पहुॅच जाए। उसका मोबाइल फोन भी उसे वापस लौटा दिया गया था। ये अलग बात थी कि उसके फोन से सिम कार्ड निकाल लिया गया था और फोन के कैन्टैक्ट लिस्ट से सारे फोन नंबर्स डिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि उसका मोबाइल फोन फिलहाल महज एक डमी बन कर रह गया था। ना तो वो किसी को फोन कर सकता था और ना ही उसके पास किसी का फोन आ सकता था। यही वजह थी कि अजय सिंह का दिमाग़ बुरी तरह भन्नाया हुआ था।

टैक्सी से जब अजय सिंह उतरा तो हवेली में तैनात उसके आदमी हैरान रह गए। भाग कर उसके पास आए और हाल अहवाल पूछने लगे। मगर भन्नाए हुए अजय सिंह ने सबको डाॅट डपट कर अपने पास से भगा दिया और पैर पटकते हुए मुख्य दरवाजे के पहुॅचा। दरवाजे को ज़ोर से लात मारी उसने। दरवाजा कदाचित अंदर से बंद नहीं था इसी लिए लात का ज़ोरदार प्रहार पड़ते ही उसके दोनो पल्ले खुलते चले गए। दरवाजे के खुलते ही अजय सिंह ज़मीन को रौंदते हुए अंदर की तरफ बढ़ गया।

उधर ड्राइंगरूम में बैठी प्रतिमा बाहर ज़ोर की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ी थी। अभी वह ये देखने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी सहसा उसे ठिठक जाना पड़ा। सामने से आते अजय सिंह पर नज़र पड़ते ही वह हैरत से बुत सी बन गई। जबकि अजय सिंह आते ही सोफे पर धम्म से लगभग गिर सा पड़ा। धम्म की आवाज़ से ही प्रतिमा की तंद्रा टूटी और वह फिरकिनी की मानिंद अपनी एड़ियों पर घूमी। सोफे पर पसरे अपने पति को अस्त ब्यस्त हालत में देख कर एक बार वो पुनः हैरान हुई फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और एकदम से मानो बदहवाश सी होकर अजय सिंह की तरफ तेज़ी से बढ़ी।

"अ...अजय।" अजय सिंह के पास पहुॅचते ही वह लरजते हुए स्वर में बोल पड़ी___"तु..तुम अ आ गए???"
प्रतिमा के इस तरह पूछने पर अजय सिंह कुछ न बोला बल्कि अपनी ऑखें बंद किये सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिकाए अधलेटा सा पसरा रहा। उसके कुछ न बोलने पर प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई। वो झट से अजय सिंह के बगल से बैठी और अजय सिंह के कंधे पर अपना एक हाॅथ रखते हुए बोली___"तुम कुछ बोलते क्यों नहीं अजय? तुम ठीक तो हो न? और...और इस तरह अचानक तुम वहाॅ से कैसे आ गए?"

प्रतिमा के दूबारा पूछने पर भी अजय सिंह कुछ न बोला। उसकी ये ख़ामोशी प्रतिमा की मानो जान लिए जा रही थी। उसका गला भर आया। आवाज़ भारी हो गई तथा ऑखों में ऑसू उमड़ आए।

"अजऽऽऽय।" फिर उसने रुॅधे हुए गले से किन्तु अजय सिंह को झकझोरते हुए लगभग चीख ही पड़ी___"क्या हो गया है तुम्हें? कुछ तो बोलो। तुम इस तरह यहाॅ कैसे आ गए? तुम तो सीबीआई की गिरफ्त में थे न फिर तुम यहाॅ कैसे? कहीं....कहीं तुम उनकी गिरफ्त से भाग कर तो नहीं आ गए हो? अगर ऐसा है तो ये तुमने ठीक नहीं किया अजय। कानून तुम्हें इसके लिए मुआफ़ नहीं करेगा। बल्कि इस तरह भाग कर आने से तुम्हें शख्त से शख्त सज़ा देगा।"

"मैं कहीं से भाग कर नहीं आया हूॅ प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा खीझते हुए कहा___"बल्कि मुझे उन लोगों ने खुद ही छोंड़ दिया है।"
"क..क..क्या????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी___"उन लोगों ने तुम्हें खद ही छोंड़ दिया? ऐसा कैसे हो सकता है? सीबीआई के वो लोग तुम्हें ऐसे कैसे छोंड़ सकते हैं? बात कुछ समझ में नहीं आई अजय। आख़िर ये क्या माज़रा है? क्या चक्कर है ये?"

"सच कहा प्रतिमा।" अजय सिंह अजीब भाव से कह उठा___"ये चक्कर ही तो है।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा चौंकी।
"सच्चाई सुनोगी तो तुम्हारे पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।" अजय सिंह ने कहा___"ये सीबीआई का जो मामला हुआ है न ये सब महज एक चाल थी मुझे किसी मकसद के तहत इस सबसे दूर करके कैद करने की।"

"ये क्या कह रहे तुम अजय?" प्रतिमा की के चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था___"ये सब एक चाल थी? पता नहीं क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम।"
"मैं अनाप शनाप नहीं बोल रहा प्रतिमा।" अजय सिंह ने सहसा आवेश में आकर कहा___"यही सच है। जो सीबीआई वाले मुझे गिरफ्तार करने आए थे वो सब नकली थे। उनका सीबीआई से कोई ताल्लुक नहीं था। जबकि मैं और तुम सब यही समझे थे कि वो सब सीबीआई के ऑफिसर थे।"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने मुख से बेशाख्ता निकल गया___"इतना बड़ा धोखा। अगर वो सीबीआई के लोग नहीं थे तो फिर कौन थे वो? और वो लोग तुम्हें यहाॅ से पकड़ कर क्यों ले गए थे और कहाॅ ले गए थे? आख़िर ये सब करने के पीछे उनका क्या मकसद था? कहीं ये सब हमारी बेटी रितू ने तो नहीं करवाया?"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"ये काम रितू का नहीं है बल्कि ये सब उस हरामज़ादे विराज किया धरा था।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" प्रतिमा बुरी तरह चौंकी थी, बोली___"भला वो ये सब कैसे कर सकता है?"
"क्यों नहीं कर सकता?" अजय सिंह उल्टा प्रतिमा पर ही हवाल लेकर चढ़ बैठा___"तुम्हीं तो कहा करती थी न कि इस सबके पीछे अगर कोई हो सकता है तो वो है विराज। वही है जो हमारा अहित करना चाहता है क्योंकि हमने उसके साथ अत्याचार किया है?"

"हाॅ मगर।" प्रतिमा गड़बड़ा सी गई___"ये सब भी कर सकता है वो ये तो नामुमकिन सी बात है अजय।"
"ये सब उसी ने करवाया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"क्योंकि जिस जगह मुझे रखा गया था वो सब उसी का ज़िक्र कर रहे थे। मैं ये सोच सोच कर आश्चर्यचकित था कि उस नामुराद के ऐसे लोगों से संबंध कैसे हो सकते हैं। आख़िर वो कमीना इतने कम समय में ऐसा कौन सा सूरमा बन गया है जिसके इशारे पर उसका हर काम हो जाए?"

"तुम क्या कह रहे हो अजय मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।" प्रतिमा ने अपने बाल नोंच लेने वाले अंदाज़ से कहा था।
"कमाल की बात है।" अजय सिंह ने कहा___"अपने आपको दिमाग़ की जादूगरनी समझने वाली को आज मेरी ये बातें समझ में ही नहीं आ रहीं। ख़ैर, बात ये है ये जो कुछ भी हुआ है उसमें सिर्फ और सिर्फ उस गौरी के पिल्ले का ही हाॅथ है। मुझे ये नहीं समझ में आ रहा कि उस कमीने ने आख़िर किस मकसद के तहत मुझे दो दिन के लिए सीबीआई के नकली जाल में फॅसा कर कैद में रखा और फिर आज छोंड़ भी दिया।"

"ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है अजय।" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि उसने किस वजह से ऐसा किया होगा? हलाॅकि वो चाहता तो बड़ी आसानी अपना बदला तुम्हारी जान लेकर ले सकता था और तुम यकीनन कुछ नहीं कर सकते थे। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि उल्टा तुम्हें बिना कोई नुकसान पहुॅचाए छोंड़ भी दिया। ये ऐसी बात है अजय जो आसानी से हजम नहीं हो सकती। हम जिस चीज़ को बेतुकी और ना क़ाबिले ग़ौर बात समझ रहे हैं उसमें कुछ तो पेंच ज़रूर है। बेवजह तो औसने ये सब नहीं किया होगा। ज़रूर ये सब करके उसने अपना कोई अहम कार्य सिद्ध किया होगा। कोई ऐसा कार्य जो फिलहाल हमारी सोच क्या कल्पना से भी कोसों दूर है।"

"यकीनन तुम्हारी बात में सच्चाई है।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबसे एक बात ये भी ज़ाहिर होती है कि वो अब भी यहीं है और शायद इस वक्त रितू के साथ ही है।"
"अच्छा ये बताओ।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"कि जो सीबीआई के लोग बन कर आए थे वो लोग तुम्हें लेकर कहाॅ गए थे?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता चल सका।" अजय सिंह ने हताश भाव से कहा था।
"क्या मतलब??" प्रतिमा पुनः बुरी तरह चौंकी थी।

"उन लोगों ने सब कुछ पहले से प्लान किया हुआ था प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"जब वो लोग मुझे यहाॅ से अपनी कार में बैठा कर ले जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से मुझे बेहोश कर दिया था और फिर जब मेरी ऑख खुली तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि मैं किस जगह आ गया हूॅ? वहाॅ जिस जगह पर मैं था वहाॅ एक कमरा था जो कि किसी फाइव स्टार होटल के कमरे से हर्गिज़ भी कम न था। कमरे में दूसरा कोई नहीं था। ऐसा नहीं था कि मैं वहाॅ पर कहीं आ जा नहीं सकता था। बल्कि कहीं भी आ जा सकता था मगर उस जगह से बाहर की दुनियाॅ में जाने का जैसे कोई रास्ता ही नहीं था। कमरे से बाहर जहाॅ भी गया हर तरफ ब्लैक कलर की वर्दी में नकाबपोश अपने हाथों में गन लिए तैनात थे। वो किसी से कोई बात नहीं करते थे। जो सीबीआई के ऑफिसर बन कर आए थे उनका कहीं पता ही नहीं था। मैं उन गनधारी नकाबपोशों से चीख चीख कर पूछता रहा कि मुझे यहाॅ किस लिए लाया गया है मगर कोई कुछ बोलता ही नहीं था। उस दिन तो सारा दिन और रात मैं पागलों की तरह ही उन सबके सामने चीखता चिल्लाता रहा। फिर जब मुझे लगा कि यहाॅ पर मेरे चीखने चिल्लाने का कोई असर नहीं होने वाला तो मैं ख़ामोश हो गया। इतना तो मुझे भी पता था कि वजह कोई भी हो वो मेरे सामने ज़रूर आएगी। इस लिए ये सोच कर मैं वापस कमरे में चला गया और अपने वहाॅ होने की वजह जानने का इन्तज़ार करने लगा। वहाॅ पर जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती वो मुझे मिल जाती थी। मैं आज़ाद तो था मगर फिर भी कैद ही था वहाॅ। मेरा मोबाइल फोन मेरे पास से गायब था। अतः मैं किसी अपने से कोई काॅटैक्ट भी नहीं कर सकता था।"

"ओह तो फिर आज तुम्हें उन लोगों ने कैसे छोंड़ दिया?" प्रतिमा ने पूछा___"क्या तुम्हें पता चला कि उन लोगों ने तुम्हें क्यों पकड़ा था? और सबसे बड़ी बात ये कि तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो सब विराज का किया धरा था?"

"आज ही पता चला।" अजय सिंह ने कहा___"मैं वहाॅ पर कमरे में रखे अलीशान बेड पर लेटा हुआ था कि तभी कमरे में दो गनधारी नकाबपोश आए और मैने पहली बार उनके मुख से उनकी आवाज़ सुनी। उनमें से एक ने कहा कि मैं बाहर आऊ। मुझसे मिलने उनके कुछ साहब लोग आए हैं। मैं उस गनधारी नकाबपोश की ये बात सुनकर जल्दी से बेड पर उठ बैठा। अड़तालीस घंटे में ये पहला अवसर था जब मुझे किसी से ये जानने का अवसर मिलने वाला था कि मुझे यहाॅ क्यों लाया गया है? अतः मैं उन दोनो गनधारियों के साथ कमरे से बाहर आ गया। बाहर लंबे चौड़े हाल के बीचो बीच एक मध्यम साइज़ की टेबल रखी थी तथा उसके चारो तरफ कुर्सियाॅ रखी हुई थी। मैने टेबल और कुर्सियाॅ उस हाल में पहली बार ही देखा था। टेबल के एक तरफ की चारों कुर्सियों पर एक एक कोटधारी आदमी बैठा था। मैं जब उनके पास पहुॅचा तो उनमें से एक ने मुझे अपने सामने बैठने का इशारा किया। ये वही लोग थे जो मुझे यहाॅ से सीबीआई ऑफिसर बन कर ले गए थे। सच कहूॅ तो उस वक्त उन चाओं को देख कर मुझे बेहद गुस्सा आया मगर मैंने फिर खुद पर बड़ी मुश्किल से काबू किया।

"कहो अजय सिंह।" उन चार में से एक ने बड़ी जानदार मुस्कान के साथ मुझसे कहा___"यहाॅ किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं हुई न तुम्हें?"
"मेरी परेशानी की अगर इतनी ही फिक्र होती तुम लोगों को।" मैने आवेशयुक्त भाव से कहा___"तो मुझे इस तरह धोखे से पकड़ कर नहीं लाते यहाॅ।"

"ओह आई सी।" उसने खेद प्रकट करते हुए कहा__"माफ़ करना अजय सिंह। हमें तुम्हारे साथ धोखे के रूप में वो वैसी ज्यादती करनी पड़ी। मगर इसमें भी हमारी कोई ग़लती नहीं थी डियर। दरअसल हमारे विराज सर का ही आदेश था हम तुम्हें इस प्रकार हवेली से गिरफ्तार करके यहाॅ ले आएॅ।"

"वि..विराज..सर???" मैं उसकी ये बात सुन कर एकदम से भौचक्का सा रह गया था।
"अरे तुम हमारे विराज सर को नहीं जानते क्या?" एक अन्य ने मुस्कुराते हुए कहा___"कमाल है अजय सिंह। तुम अपने भतीजे को ही नहीं जातने। ये तो बड़ी हैरत की बात है। जबकि हमारे विराज सर तुमसे इतना स्नेह व लगाव रखते हैं कि वो तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की तक़लीफ़ नहीं देना चाहते थे। उनका शख्त आदेश था कि तुम्हें यहाॅ पर किसी भी तरह की कोई परेशानी न होने पाए। तभी तो हमने उनके कहने पर तुम्हारे लिए यहाॅ फाइव स्टार होटल से भी बेहतर सुविधाएॅ मुहैया कराई थी।"

"तो तुम्हारा मतलब है कि ये सब तुमने विराज के आदेश पर किया है?" मैं मन ही मन हैरान था, किन्तु प्रत्यक्ष में कठोर भाव से पूछ रहा था___"मगर क्यों?"
"तुम्हारे इस क्यों का जवाब तो हमारे पास है ही नहीं अजय सिंह।" उस आदमी ने कहा___"हमने तो बस उतना ही किया है जितना कि विराज सर ने हमें करने के लिए कहा था। इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी ये तो वहीं बेहतर तरीके से बता सकते हैं तुम्हें।"

"अच्छा।" मैने कहा___"तो फिर बुलाओ उसे। मैं उससे पूछना चाहता हूॅ कि उसने क्या सोच कर ये सब किया है?"
"उन्हें यहाॅ बुलाने की हिम्मत तो हममें नहीं है।" एक अन्य ने कहा___"हाॅ मगर एक आदेश और आया है उनका हमारे लिए। वो ये कि तुम्हें बाइज्ज़त यहाॅ से आज़ाद कर दिया जाए। इस लिए अब हम वही करने वाले हैं। यानी कि अब तुम्हें आज़ाद कर दिया जाएगा। मगर क्योंकि हम अपना हर काम सीक्रेट तरीके से करते हैं इस लिए तुम्हें पुनः बेहोश करना पड़ेगा हमें।"

मैं उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह हैरान रह गया। तभी किसी ने पीछे से मेरी नाॅक में कुछ लगा दिया। जैसे ही मैने नाॅक से साॅस ली उसके कुछ ही पलों बाद मैं बेहोशी के समंदर में डूबता चला गया। जब मेरी ऑख खुली तो मैं अब किसी दूसरी जगह पर खुद को मौजूद पाया। मेरे आस पास बड़े बड़े पेड़ पौधे लगे हुए थे। मैं ये देख कर पहले तो चौंका फिर उठ कर आस पास का जायजा लेने लगा। मैं ये देख कर उछल पड़ा कि मैं किसी जंगल के हिस्से पर पड़ा था। बाएॅ तरफ लगभग पचास या साठ गज की दूरी पर ही एक सड़क नज़र आ रही थी।

अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ देर वहीं पर बैठा अपने साथ घटी पिछली सभी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं किसी तरह उठा और कुछ दूरी पर नज़र आ रही सड़क की तरफ चल दिया। मैं ये समझ चुका था कि उन लोगों ने मुझे आज़ाद कर दिया था। मुझे बेहोश इस लिए किया गया था ताकि मैं उस जगह के बारे में कतई न जान सकूॅ कि उन लोगों ने मुझे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चुका था कि मैं चाह कर भी अब उन लोगों तक नहीं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के ऑफिसर बन कर हवेली से मुझे गिरफ्तार करके ले गए थे।

सड़क पर आकर मैं किनारे पर ही खड़ा हो गया और सड़क के दोनो तरफ देखने लगा। मुझा अपने मोबाइल का ख़याल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैंट के दोनो पाॅकेट पर रेंग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कि मोबाइल मेरी बाई पाॅकेट में मौजूद है। मैने जल्दी से उसे निकाला और स्विच ऑन किया। मगर मैं ये देख कर भौचक्का रह गया कि मोबाईल में मौजूद दोनो सिम कार्ड गायब थे। उसमे नेटवर्क होने का सवाल ही नहीं था। मैने फोन में काॅटैक्ट लिस्ट देखा तो मेरे होश उड़ गए। क्योंकि उसमे से सारे नंबर टिलीट कर दिये गए थे। कहने का मतलब ये कि मैं मौजूदा हालत में किसी को ना तो फोन कर सकता था और ना ही मेरे मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ सकता था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। उन लोगों पर मुझे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मुझे फेंक दिया था जहाॅ से किसी वाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।

सड़क पर मैं घंटों खड़ा रहा किसी वाहन के इन्तज़ार में मगर कोई भी वाहन आता जाता नज़र न आया। प्रतिपल उस हालत में मेरे अंदर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद एक टैक्सी आती हुई नज़र आई। उसे देख कर मुझे थोड़ी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कि इस वक्त किसी वाहन में जाने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसके बावजूद मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ फेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पैन्ट की पिछली जेब में मुझे कुछ महसूस हुआ। मैने फौरन ही उस चीज़ को निकाला तो मुझे एक पाॅच सौ का नोट नज़र आया।

पाॅच सौ का नोट उस वक्त मैं इस तरह देख रहा था जैसे मैने कभी उसे देखा ही न हो और सोचने लखा था कि इस प्रकार का ये काग़ज आख़िर है क्या चीज़? ख़ैर, वो टैक्सी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के लिए हाॅथ से इशारा किया। मेरे इशारे पर वो टैक्सी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने देखा कि उसमें जो ड्राइवर था वो कोई पैंतीस के आस पास का काला सा आदमी था। टैक्सी को रुकते ही उसने विंडो से अपना सिर बाहर की तरफ निकाल कर मुझसे पूछा कहाॅ जाना है? मैने उसे पता बताया तो उसने अंदर बैठने का इशारा किया। लेकिन उससे पहले ये बताना न भूला था कि भाड़ा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाड़े का सुन कर मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कि ठीक है भाई ले लेना मगर मुझे बताए गए पते पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।"
 

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