Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"बड़ी हैरत व बड़ी अजीब कहानी है।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इसका मतलब उन लोगों ने तुमें ऐसी जगह छोंड़ा था जहाॅ से अगर कोई वाहन मिलता भी तो वो तुमसे भाड़े के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी लिए उन लोगों ने तुम्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल दिये थे ताकि तुम आराम से यहाॅ तक पहुॅच सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।"

"कमाल तो हो ही गया।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा___"मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे वो टैक्सी वाला भी साला उन्हीं का आदमी था। क्योंकि जिस रास्ते पर वो मिला था उस रास्ते पर डेढ़ घंटे इन्तज़ार करने के बाद ही उस टैक्सी के रूप में वाहन मिला था। टैक्सी पर कोई दूसरी सवारी नहीं थी बल्कि ड्राइवर के अलावा सारी टैक्सी खाली ही थी।"

"बिलकुल ऐसा हो सकता है अजय।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ था, बोली___"यकीनन वो टैक्सी और वो टैक्सी ड्राइवर उन लोगों का ही आदमी था। अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कि पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था तुम्हारे पास वो वापस वहीं लौट भी गया। क्या कमाल का गेम खेला है उन लोगों ने।"

"उन लोगों ने नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उस हरामज़ादे विराज ने। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि वो सब विराज के आदमी हैं और विराज के ही हुकुम पर उन लोगों ने ये संगीन कारनामा अंजाम दिया था। तुम ही बताओ प्रतिमा क्या तुम सोच सकती हो कि कल का छोकरा कहीं पर बैठे बैठे ऐसा कोई कारनामा कर सकता है?"

"बेशक नहीं सोच सकती अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर शुरू से लेकर अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ऐसी रही हैं कि अब अगर वो कुछ भी अविश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साबित होती है कि वो कोई मामूली चीज़ नहीं रह गया है। या तो उसे किसी पहुॅचे हुए ब्यक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या फिर सच में वो इतना क़ाबिल हो गया है कि वो आज के समय में हर चीज़ अफोर्ड कर सकता है।"

"यही तो हजम नहीं हो रहा प्रतिमा।" अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___"इतने कम समय में आख़िर उसने ऐसा क्या पा लिया है जिसके बलबूते पर वो कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और नेकी कक राह पर चलते हुए इतनी बड़ी चीज़ अथवा कामयाबी नहीं पाई जा सकती। ज़रूर वो कोई ग़लत काम कर रहा है। हाॅ प्रतिमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बड़ी बड़ी चीज़ें हाॅसिल होती हैं, फिर भले ही चाहे उन बड़ी बड़ी चीज़ों की ऊम्र छोटी ही क्यों न हो।"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कहा___"ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बड़े सवाल का जवाब तो अभी तक नहीं मिला न।"
"कौन सा सवाल?" अजय सिंह चौंका।
"यही कि उसने तुम्हारे साथ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब है कि उसने तुम्हें नकली सीबीआई वालों के द्वारा गिरफ्तार करवा के दो दिन तक किसी गुप्त कैद में रखा तो इसमें उसका क्या मकसद छिपा था? आख़िर उसने तुम्हें कैद करवा के अपना कौन सा उल्लू सीधा किया हो सकता है? हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है अजय। आख़िर पता तो चलना ही चाहिए इस सबका।"

"पता चलना तो चाहिए।" अजय सिंह ने कहा___"मगर कैसे पता चलेगा? हमारे पास ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबूत या क्लू नहीं है जिसके आधार पर हम कुछ जान सकें।"
"एक सवाल और भी है अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा___"जो कि कुछ दिनों से मेरे दिमाग़ में चुभ सा रहा है।"

"ऐसा कौन सा सवाल है भला?" अजय सिंह के माथे पर शिकन उभरी।
"यही कि हमारी बेटी रितू।" प्रतिमा ने कहा___"जब से हमसे खिलाफ़ हुई है तब से वो घर वापस नहीं आई। तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई ऐसी जगह ज़रूर है जहाॅ पर वो नैना और विराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है?"

प्रतिमा की इस बात से अजय सिंह उसे इस तरह देखता रह गया था मानो प्रतिमा के सिर पर अचानक ही दिल्ली का लाल किला आकर खड़ा हो गया हो। फिर जैसा उसे होश आया।

"सवाल तो यकीनन वजनदार है।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर संभव है कि वो यहीं कहीं आस पास ही किसी के घर में कमरा किराये पर लिया हो और हमारे पास रह कर ही वो हमारी हर गतिविधी पर बारीकी से नज़र रख रही हो।"

"हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बेवकूफी वो हर्गिज़ भी नहीं कर सकती जबकि उसे बखूबी अंदाज़ा हो कि पकड़े जाने पर उसके साथ साथ नैना और विराज का क्या हस्र हो सकता है। इस लिए इस गाॅव में वो किसी के घर में पनाह नहीं ले सकती।"

"इस गाॅव में न सही।" अजय सिंह बोला___"किसी ऐसे गाॅव में तो पनाह ले ही सकती है जो हमारे इस हल्दीपुर गाॅव के करीब भी हो और वो बड़ी आसानी से हमारी हर मूवमेन्ट को कवरप कर सके।"
"हाॅ ये हो सकता है।" प्रतिमा ने कहा___"किसी दूसरे गाॅव में वो यकीनन रह रही है और हम पर बारीकी से नज़र रखे हुए है। ख़ैर छोंड़ो ये सब बातें, मैं ये कह रही हूॅ कि आज तुम्हारे ससुर जी आ रहे हैं।"

"क क्या???" अजय सिंह उरी तरह चौंका___"स ससुर जी? मतलब कि तुम्हारे पिता जगमोहन सिंह जी??"
"हाॅ डियर।" प्रतिमा ने सहसा खुश होते हुए कहा___"आज वर्षों बाद मैं अपने पिता जी से मिलूॅगी। मगर अजय मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा ही नहीं पाऊॅगी। तुम तो जानते हो कि मैने तुमसे शादी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर तथा उनसे हर रिश्ता तोड़ कर की थी। इतने वर्षों के बीच कभी भी मैने उनसे न मिलने की कोशिश की और ना ही कभी उनसे फोन पर बात करने की। ये एक अपराध बोझ है अजय जिसके चलते मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं अपने पिता का सामना कर सकूॅ।"

"पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।" अजय सिंह ने चकित भाव से कहा___"कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपनी बेटी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का विचार कैसे आया उनके मन में?"
"ये सब मेरी वजह से ही हुआ है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"दरअसल जब तुम्हें सीबीआई के वो लोग गिरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परेशान व घबरा गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैं तुम्हें सीबीआई की कैद से आज़ाद कराऊॅ? तब पहली बार मुझे अपने पिता का ख़याल आया। हाॅ अजय, तुम तो जातने हो कि मेरे पिता जी बहुत बड़े वकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अंडर में आने के बाद उनका मुवक्किल बाइज्ज़त बरी ही होता है। इस लिए मैने सोचा कि तुम्हें कानून की उस गिरफ्त से छुड़ाने के लिए मुझे अपने पिता से ही मदद लेनी चाहिए। मगर चूॅकि मैने उनसे अपने हारे संबंध वर्षों पहले ही तोड़ लिये इस लिए हिम्मत नहीं हो रही थी उनसे बात करने की।"

"ओह।" अजय सिंह हैरत से बोला___"फिर क्या हुआ?"
अजय सिंह के पूछने पर प्रतिमा ने सारा किस्सा बता दिया उसे। ये भी कि कैसे उसके चक्कर खा कर गिरने पर शिवा ने रिऐक्ट किया जिसके तहत उसके पिता जी भी घबरा गए और फिर उन्होंने तुरंत यहाॅ आने के लिए कहा। उनके पूछने पर ही शिवा ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सुन कर अजय सिंह अजीब सी हालत में सोफे पर बैठा रह गया।

"ये तुमने अच्छा नहीं किया प्रतिमा।" फिर अजय सिंह मानो गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना बोला___"मैं इस बात से दुखी नहीं हुआ हूॅ कि मेरे सुसर और तुम्हारे यहाॅ आ रहे हैं बल्कि दुखी इस बात पर हुआ हूॅ कि ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है। तुमें तो सब पता ही है डियर हमारे हालातों के बारे में। तुम्हारे पिता एक तेज़ तर्रार व क़ाबिल वकील हैं तथा उनका दिमाग़ तेज़ गति से काम करता है। इस लिए अगर इस हालातों के संबंध में कोई एक बात शुरू हुई तो समझ लो कि फिर उस बात से और भी बहुत सी बातें शुरू हो जाएॅगी। उस सूरत में हमारी हालत और भी ख़राब हो सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कि हमारी असलियत उनके सामने फ़ाश हो जाए?"

"तुम सच कह रहे हो अजय।" प्रतिमा को भी जैसे वस्तु- स्थिति का एहसास हुआ___"इस बारे में तो मैने सोचा ही नहीं था। सोचने का ख़याल ही नहीं आया अजय। हालात ही ऐसे थे कि मुझे मजबूर हो कर अपने पिता डी से बात करनी पड़ी और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह दिया। दूसरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि तुम आज वापस इस तरह आ जाओगे। वरना मैं अपने पिता को फोन ही नहीं करती।"

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।

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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है।
 
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अपडेट........《 54 》


अब आगे,,,,,,,,

उधर पुलिस वालों की कार से मैं और आदित्य भी सुरक्षित रितू दीदी के पास फार्महाउस पर पहुॅच गए थे। सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से भिड़ना था। एक तो अपने ताऊ अजय सिंह से और दूसरा मंत्री से। रितू दीदी ने मुझे मंत्री के संबंध में सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खुश था कि रितू दीदी के पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं कि वो जब चाहे उस मंत्री और उसके साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ने पर बिवश कर दें। इधर वही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय सिंह के खिलाफ़ ऐसे सबूत थे कि उन सबूतों के आधार पर अजय सिंह पलक झपकते ही कानून की ऐसी गिरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर निकलना उसी तरह नामुमकिन था जैसे किसी नदी के दो किनारोउअं आपस मिलना नामुमकिन ही नहीं असंभव होता है।

मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल भी आता था कि इस खेल को एक पल में खत्म कर दूॅ। यानी ग़ैर कानूनी धंधा करने और अवैध गैर कानूनी ऐसा पदार्थ रखने के जुर्म में अजय सिंह ऊम्र भर का लिए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदार्थ किसी भी इंसान की ज़िंदगी खत्म करने के लिए काफी थे। मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था बल्कि मैं तो अजय सिंह को खुद अपने हाथों से ऐसी सज़ा देना चाहता था कि वो मौत के लिए गिड़गिड़ाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।

मुझे इस बात का भी एहसास था कि आज भले ही मंत्री सच्चाई को पूरी तरह न जानता हो मगर देर सवेर उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा बल्कि कुछ तो ऐसा करेगा ही कि उसके गले में फॅसी हुई हड्डी निकल सके और उसके बच्चे सही सलामत उसे वापस मिल सकें। मुझे एहसास था कि ये दोनो ही ताकतें बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है हमारे लिए। हम अभी तक इसी लिए सेफ रह सके थे क्योंकि हमने खुल कर तथा सामने आकर कोई काम नहीं किया था। बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एवं छुप कर किया था। मगर हालात ज्यादा दिन तक ऐसे ही नहीं बने रह सकते थे। इस लिए इन सब बातों पर विचार करके मुझे सबसे पहले अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना था।

फार्महाउस पर हमें छोंड़ कर वो पुलिस के आदमी वापस चले गए थे। रितू दीदी मुझे वापस आया देख कर बेहद खुश हो गई थी। आदित्य तो सीधा कमरे की तरफ चला गया था जबकि मैं और कुछ देर वहीं ड्राइंगरूम में बैठा सबसे बातें करता रहा। नैना बुआ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पूछा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे के अटैच बाथरूम में मैं मस्त ठंडे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा कर मैं टावेल लपेटे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो बेड पर आराम से बैठी रितू दीदी पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस वक्त सिर्फ एक टावेल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा जिस्म नंगा ही था मेरा। रितू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शर्म सी महसूस हुई।

"ओहो क्या बात है राज।" सहसा रितू दीदी की चहकती हुई आवाज़ मेरे कानों से टकराई___"क्या बाॅडी शाॅडी बना रखी है तुमने। ओहो सिक्स पैक भी है। पक्का जिम करते होगे तुम, है न?"

"हाॅ थोड़ा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शर्माते हुए कहा।
"अरे तुम शर्मा क्यों रहे हो राज?" रितू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे किस बात की शरम भाई? मैं तो तेरी बहन हूॅ कोई ग़ैर लड़की नहीं जिससे तू शरमाए।"

"पर दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नहीं आया न। इस लिए मुझे थोड़ी शरम आ रही है।"

मेरी ये बात सुन कर रितू दीदी बेड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और फिर मेरे चेहरे को अपनी हॅथेलियों के बीच लेते हुए कहा___"ओए ये क्या बात हुई भला? तू मेरा सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तुझे मुझसे किसी भी तरह से शरमाने की या झिझकने की ज़रूरत नहीं है। तुझे पता है राज, अब तक मैं ऐसे रिश्तों के बीच थी जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अंदर पाप और गंदगी भरी हुई थी। ऐसे लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है अब। दुनियाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो वो है तू। मेरी ज़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और वो है तेरे साथ ग़लत करने वालों सर्वनाश करना और तुझे संसार की हर खुशी देना। मेरा दिल करता है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो जाऊॅ मेरे भाई, फना हो जाऊॅ तुझ पर।"

"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि आज आप अपने ही माता पिता के खिलाफ़ हो गई हैं और अपने माता पिता के सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही हैं। मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आपने मेरे लिए अपने माता पिता से बगावत की है बल्कि इस बात की खुशी है कि मैं जिस रितू दीदी से बात करने के लिए अब तक तरस रहा था वो आज मेरे पास हैं।"

"काश ये सब मैं पहले ही सोच लेती राज।" रितू दीदी एकदम से दुखी होकर मुझसे लिपट गईं। फिर भारी स्वर में बोलीं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दूर न रहती और ना ही ऐसे हालात पैदा होते।"

"हालात तो तब भी ऐसे ही पैदा होते दीदी।" मैने कहा___"क्योंकि इंसानों की फितरत कभी नहीं बदलती। वो अपनी फितरत से मजबूर होकर पहले भी वही करता जो आज कर रहा है।"
"माना कि मेरे पिता अपनी फितरत के चलते वही सब करते जो आज कर रहे हैं।" रितू दीदी ने कहा___"मगर मैं तेरी बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो मिल जाता न? मेरी वजह से तेरे दिल को इतनी तक़लीफ तो न होती जितनी अब तक हुई थी।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गुज़र गया उसे भूल जाइये और आज की बात करिये तथा आज के माहौल में खुश रहिए।"
"तू साथ है तो अब मैं खुश ही रहूॅगी राज।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"तुझे पता है राज, इसके पहले मैं कभी किसी लड़के के क़रीब नहीं गई। पता नहीं क्यों पर मुझे हर लड़के से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लड़का लड़की एक दूसरे के जाने कितने क़रीब आ जाते हैं मगर मुझे इन सब बातों से बेहद चिढ़ थी। मगर विधी से मिलने के बाद और उसकी प्रेम कहानी सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। मैं बहुत खुश थी मेरे भाई कि ऐसा इंसान मेरा अपना भाई ही है और फिर मुझे एहसास हुआ कि कितनी ग़लत थी मैं जो तुझे बचपन से ही ग़लत समझती आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो तेरे लिए मेरे हृदय में और भी जगह हो गई भाई। मेरी अंतर्आत्मा से बस एक ही आवाज़ आती है और वो ये कि अब तुझसे ही मेरी हर खुशी है और दुख भी।"

"जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नहीं सकता कि इस बात से मैं कितना खुश हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर सबको लेकर जाना भी ज़रूरी था। लेकिन वहाॅ से वापस आपके पास आ जाने के लिए मैं उतावला हो रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं पलक झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊॅ।"

"ऐसी बातें मत कर राज।" रितू दीदी की आवाज़ काॅप सी गई। वो मुझसे कस के लिपट गईं और फिर बोली___"तुझे नहीं पता कि तेरी ऐसी बातों से मैं कितनी कमज़ोर हो सकती हूॅ। कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं तेरे बिना एक पल भी रह न पाऊॅ।"

"तो क्या हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही तो रहेंगे। फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"
"तू नहीं समझेगा राज।" रितू दीदी ने सहसा बेचैनी से पहलू बदला___"ख़ैर छोंड़ ये सब। मैं ये कह रही हूॅ कि विधी के माता पिता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी मिल लेना तुम।"

"मैं आपसे एक ज़रूरी बात जानना चाहता हूॅ।" मैने दीदी से कहा___"और वो ये कि ये फार्महाउस आपके पास कैसे है?"
"ये फार्महाउस डैड ने मेरे नाम बहुत पहले ही कर दिया था।" रितू दीदी ने कहा___"ऐसे ही दो फार्महाउस और हैं। एक नीलम के लिए और दूसरा शिवा के लिए। पर तू ये क्यों पूछ रहा है राज?"

"इसका मतलब।" राज को झटका सा लगा था___"इस फार्महाउस के बारे में बड़े पापा जानते हैं। जाने भी क्यों न आख़िर दिया तो उन्होंने ही है आपको। इस लिए अब आप ये भी जान लीजिए कि यहाॅ पर रहना भी हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है।"

"क्या????" रितू दीदी भी बुरी तरह हिल गईं, कदाचित उन्हें भी अब तक इस बात का एहसास नहीं था। किन्तु अब हो गया था___"ये तो यकीनन सच कहा तूने। ओह माई गाड मुझे इस बारे में पहले ही सोच लेना चाहिए था। सचमुच राज यहाॅ हममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है। ये तो अच्छा हुआ कि अभी तक डैड का ध्यान फार्महाउस की तरफ नहीं गया है। मगर इसमें अब ज़रा भी शक नहीं कि बहुत जल्द उन्हें इस फार्महाउस का ख़याल आ सकता है। वो सोच सकते हैं कि मैं और तुम यहाॅ छुपे हो सकते हैं। अतः वो ज़रूर इसका पता लगाएॅगे। अब क्या होगा राज?"

"फिक्र मत कीजिए।" मैने कहा___"सारे रास्ते मैं यही सोच रहा था और फिर मैने इसका बंदोबस्त भी किया है।"
"बंदोबस्त??" रितू दीदी हैरान।

"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"इसका तो मुझे भी अंदाज़ा था कि ये फार्महाउस आपके पास बड़े पापा की वजह से ही आया हो सकता है। इस लिए इसका ख़याल देर सवेर उन्हें आ ही जाएगा। अतः मैने फौरन ही अपने एक दोस्त को फोन किया। मेरा वो दोस्त आजकल इंदौर में है अपने माता पिता व भाई बहन के साथ। घर से और दौलत से भी सम्पन्न है वो। उसके पापा इन्कमटैक्स के बड़े ऑफिसर हैं तथा उसका बड़ा भाई पुलिस में एसीपी है। गुनगुन से क़रीब दस किलोमीटर पहले ही उसका गाॅव है रेवती। जहाॅ पर उसका बड़ा भारी पुश्तैनी घर है। किन्तु उस घर में कोई नहीं रहता है। घर की देख रेख के लिए एक दो केयरटेकर रखे हुए हैं उसके डैड ने। मैने अपने उसी दोस्त से बात की थी तथा उसको सारी बातें भी बताई और कहा कि कुछ समय के लिए मुझे उसके घर की ज़रूरत है रहने के लिए। मेरी सारी बातें सुनकर उसने अपनी माॅम से बात किया। उसकी माॅम मुझे अपने बेटे की तरह ही चाहती थी। शेखर ने जब अपनी माॅ से मेरी सारी कहानी बताई तो वो मेरे लिए चिंतित हो गईं और फौरन ही उन्होंने कह दिया कि मुझे आज ही उनके घर में शिफ्ट हो जाना चाहिए। उन्होंने घर के केयरटेकर को फोन करके मेरे बारे में बता दिया है। एक काम उन्होंने ये भी किया कि अपनी बहन को जो कि रेवती में ही रहती हैं भी सूचित कर दिया है। उनसे कहा कि वो अपने पति को किसी ऐसे वाहन के साथ मेरे पास भेज दें जिसमें हम सब और हमारा सामान आराम से आ सके।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने खुश होकर मेरे गाल पर चुम्बन जड़ दिया___"तूने सचमुच बहुत ही कमाल का और होशियारी का काम किया है। मगर एक समस्या भी है।"
"कैसी समस्या दीदी?" मैं चकराया।
"यही कि हम सब और हमारा सामान वगैरह तो यहाॅ से वहाॅ शिफ्ट हो जाएगा।" रितू दीदी ने कहा___"मगर हम तहखाने में मौजूद उस मंत्री के पिल्लों को कैसे ले जाएॅगे और वहाॅ उन्हें कैसे रखेंगे? यहाॅ तो तहखाना था जहाॅ पर मैने उन सबको कैद किया हुआ है जबकि वहाॅ पर ऐसा कोई तहखाना नहीं हो सकता।"

"कोई ज़रूरी तो नहीं कि उन सबको तहखाने में ही रखा जाए।" मैने कहा___"हम उन लोगों को किसी कमरे में भी वैसे ही बाध कर रख सकते हैं। बस इस बात का ख़याल रखना होगा कि वो चीख चिल्ला न सकें। वरना उनकी आवाज़ से बाहरी लोगों को पता भी लग सकता है।"

"हाॅ ये भी सही है।" रितू दीदी ने कहा___"और हाॅ हरिया काका और शंकर काका भी हमारे साथ ही जाएॅगे। वो बेचारे मुझे अपनी बेटी की तरह ही चाहते हैं। मेरे लिए वो कुछ भी कर सकते हैं। वो दोनो अच्छे इंसान है राज। यहाॅ पर उन्हें अकेले छोंड़ चले जाना कतई उचित नहीं है।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"हम उन्हें भी साथ ले चलेंगे। मगर यहाॅ से चलने की फौरन तैयारी कीजिए। मेरे दोस्त शेखर का कभी भी फोन आ सकता है ये बताने के लिए कि उसके मौसा वाहन लेकर हमारे पास पहुॅचने ही वाले हैं।"

"क्या हमें आज ही यहाॅ से निकलना होगा?" रितू दीदी ने हैरानी से कहा था।
"बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"हम एक पल की भी देरी नहीं कर सकते। बड़े पापा का कुछ पता नहीं कि उनके मन में किस पल इस फार्महाउस का ख़याल आ जाए और वो फौरन हम सबका पता लगाने के लिए यहाॅ आ धमकें। इस लिए बेहतर यही है कि उनके यहाॅ धमकने से पहले ही हम लोग यहाॅ से कूच कर जाएॅ।"

"सही कह रहा है तू।" रितू दीदी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए कहा___"वक्त और हालात का कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"अब आप जाइये और सबको बता दीजिए। मैं भी कपड़े पहन कर आता हूॅ हाथ बटाने।"

"चल ठीक है।" दीदी ने कहा और फौरन ही कमरे से बाहर निकल गईं। उनके जाने के बाद मैने भी आनन फानन में कपड़े पहने। तभी मेरा आई फोन बजा। (यहाॅ पर मैं आप सबको (खास कर नैना जी को) ये बता दूॅ कि आई फोन सिर्फ रितू दीदी के पास ही नहीं था बल्कि मेरे और गुड़िया (निधी) के पास भी है)

मैने मोबाइल उठाकर देखा तो शेखर का ही काल था। मैने तुरंत ही काल रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया। उधर से शेखर ने बताया कि उसके मौसा कुछ ऐसे आदमियों को भी साथ में लेकर आ रहे जो तुम सबकी सुरक्षा का भी ख़याल रखेंगे। मैं उसकी बात सुन कर मुस्कुराया और उसे इसके लिए धन्यवाद दिया। उसने बताया कि दस से बीस मिनट के बीच उसके मौसा मेरे पास पहुॅच जाएॅगे। उसके बाद काल कट हो गई।

मैं फौरन ही कमरे से निकल कर नीचे आया और सबके साथ सामान को इकट्ठा कर उसे पैक करवाने लगा। मैने आदित्य से कहा कि वो हरिया काका को भी इस बात का बता दे और उससे कहे कि वो तहखाने से उन चारों पिल्लों को तथा मंत्री की बेटी को बेहोश कर तहखाने से बाहर निकालने की तैयारी करें। मेरी बात सुनकर आदित्य फौरन ही हरिया काका के पास चला गया। इधर नैना बुआ तथा विधी के माता पिता भी सारे सामान को पैक करने में लगे हुए थे। रितू दीदी ने बताया कि पवन का सामान भी पैक रखा हुआ है जिसे साथ ही यहाॅ से ले चलना है।

लगभग बीस मिनट बाद ही दो इनोवा कार तथा उसके पीछे एक टैम्पो फार्महाउस में दाखिल हुए। मैं ये देख कर हैरान रह गया कि इतने सारे वाहन शेखर ने भेजवा दिये थे। कदाचित उसे अंदाज़ा था कि सबको लाने में इतने ही वाहनों की ज़रूरत पड़ सकती थी। टैम्पो में सारा सामान और दोनो कारों में हम सब लोग बैठ कर आराम से यहाॅ से जा सकता थे। ख़ैर सामान तो पैक हो ही चुका था। अतः मैं और आदित्य जल्दी जल्दी सारे सामान को टैम्पो में लोड करने लगे। इस काम में मौसा के साथ आए हुए चार पाॅच आदमी भी लग गए। कुछ ही देर में सारा सामान टैम्पो में लोड हो गया।

हरिया काका और शंकर काका ने उन चारों पिल्लों और उस पिल्ली को भी टैम्पो में ही ठूॅस दिया और खुद भी उसी टैम्पो में चढ़ गए। मौसा के तीन आदमी भी टैम्पो में चढ़ गए। टैम्पो का पिछला फटका लगा कर ऊपर से मोटी तिरपाल को ढॅक दिया गया। जिससे अंदर का कुछ भी देखा नहीं जा सकता था।

उसके बाद मैने विधी के माता पिता, नैना बुआ, तथा बिंदिया काकी को एक इनोवा में बैठा दिया। उस इनोवा में मौसा का एक आदमी भी आगे की शीट पर हाॅथ में बंदूख लिए बैठ गया। दूसरी इनोवा में मैं आदित्य और रितू दीदी बैठ गए। आगे की शीट पर आख़िरी बचा बंदूकधारी भी बैठ गया। उसके बाद सारा क़ाफिला चल दिया वहाॅ से। इसके पहले हमने अच्छी तरह से चेक कर लिया था कि हमारी कोई ऐसी चीज़ तो नहीं छूट गई जो ज़रूरी हो।

रितू दीदी ने रास्ते में किसी को फोन लगाया और उससे कहा कि उसके फार्महाउस से पुलिस जिप्सी अपने साथ ले जाकर थाने में खड़ा कर दें। फार्महाउस में एक और जीप थी जो कि अजय सिंह की ही थी उसे वहीं खड़े रहने दिया था। लगभग आधा घंटे बाद हम रेवती पहुॅच गए। इस बीच रास्ते में हमें इक्का दुक्का वाहन तो मिले मगर उनमें कोई मंत्री या अजय सिंह का आदमी नहीं था। रेवती में शेखर के मकान के सामने ही हमारा क़ाफिला रुका। घर के बाहर ही दो केयरटेकर खड़े दिखे। वाहनों के रुकते ही वो हमारे पास आ गए।

हम सब वाहनों से उतर कर बाहर आए तो वो दोनो केयर टेकर हमें घर के अंदर की तरफ ले गए। मैं और आदित्य बाहर ही थे। टैम्पो से पहले उन पाॅचों कैदियों को निकाल कर घर के अंदर एक ऐसे कमरे में ले आए जो सबसे अलग और आख़िर में था। उसके बाद हम सबने मिल कर टैम्पो से सारा सामान उतार कर अंदर ले गए। उन बंदूखधारियों हमारी बड़ी मदद की।

शेखर के मौसा, जिनका नाम केशव शर्मा था वो बड़े ही खुशदिल इंसान थे। मुझे उनका नेचर बड़ा पसंद आया था। वो अंत तक हमारे पास ही रहे और हमारी हर ब्यवस्था के बारे में देखते सुनते रहे तथा हमारी हर ज़रूरों की लिस्ट बनाते रहे। दरअसल यहाॅ रहता तो कोई था नहीं। दो केयरटेकर थे जो कि घर से अलग एक तरफ बने सर्वेन्ट क्वार्टर में रहते थे। वो सारा दिन सारे सामान को जमाने में और रखने में चला गया। इस बीच शेखर की माॅम सुगंधा ऑटी का फोन भी आया था। उन्होंने मुझसे बड़े प्यार से बात की और ये भी कहा कि मैं यहाॅ पर किसी भी चीज़ के लिए संकोच न करूॅ। ये घर अपना ही है और हर चीज़ का उपयोग बड़े शौक से कर सकते हैं हम। मैं सुगंधा ऑटी से बात करके मुतमईन हो गया था और खुश भी। उसके बाद मैं और आदित्य मौसा जी के साथ मार्केट चले गए। जहाॅ से हमें राशन पानी तथा और भी कई सारी चीज़ें लेनी थी। मौसा जी ने कहा कि गैस सिलेण्डर वो अपने यहाॅ से हमे दे देंगे।

सारी ब्यवस्था और सब कुछ सही करवाने के बाद मौसा जी ये कह कर अपने घर चले गए कि हमें जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो हम बेझिझक उनसे फोन बता सकते हैं। उन्होंने कहा कि वो बीच बीच में आते रहेंगे हाल चाल के लिए। मौसा जी का घर रेवती में ही था किन्तु मुख्य सड़क के पीछे था। पैदल चल कर जाने में लगभग दस मिनट से भी कम का समय लगता था।

शेखर का ये घर दो मंजिला था तथा काफी बड़ा था। आज के समय का बना ये घर वेल डेकोरेटेड था। अंदर से ऐसा लगता था जैसे कोई बॅगला हो। हलाॅकि मुम्बई वाले मेरे बॅगले के मुकाबले ये कुछ भी नहीं था। होता भी कैसे उस बॅगले की कीमत भी तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये थी। ख़ैर रात हो चुकी थी इन सब कामों में। अतः बिंदिया काकी ने अपनी रसोई सम्हाल ली थी। उनकी मदद के लिए नैना बुआ भी साथ थी। विधी की माॅ भी खाना बनाने में मदद करना चाहती थी मगर नैना बुआ ने साफ कह दिया था कि वो बस आराम करें। उन्हें यहाॅ पर कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है।

रात का डिनर करने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चल दिये। विधी के माता पिता ग्राउण्ड फ्लोर पर ही बने कमरे को चुना था अतः वो उसी कमरे में चले गए। नीचे तीन कमरे और भी थे। जिनमे से एक पर हरिया काका व बिंदिया काकी तथा दूसरे पर शंकर काका सोने के लिए चले गए। जबकि ऊपर के कमरों में मैं आदित्य नैना बुआ व रितू दीदी चले गए।

इन सब कामों से हम सब काफी थक चुके थे अतः बेड पर लेटते ही नींद को आन् ही था। किन्तु मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरे मन में कई सारी बातें चल रही थी। फार्महाउस से यहाॅ शिफ्ट हो जाने से अब किसी का ख़तरा नहीं था। बल्कि अब तो खुल कर हम कोई काम कर सकते थे। मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे ऐसा लगा जैसे दरवाजे पर बाहर से किसी ने दस्तक दी हो। मैं ये सोचते हुए बेड से उठ कर दरवाजे की तरफ चल दिया कि इस वक्त कौन हो सकता है?
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उधर हवेली में प्रतिमा का बाप व अजय सिंह का ससुर जगमोहन सिंह उस वक्त हवेली पहुॅचा जब अजय सिंह फ्रेश होने के बाद खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल के चारो तरफ लगी कुर्सियों में से मुख्य कुर्सी पर बैठा था। जगमोहन सिंह को हवेली के बाहर तैनात अजय सिंह का एक आदमी अंदर लेकर आया था।

अपने ससुर को आज वर्षों बाद देख कर अजय सिंह फौरन ही अपनी कुर्सी से उठ कर जगमोहन की तरफ बढ़ा और उसके पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अभी अजय सिंह अपने ससुर के पाॅव छू कर खड़ा ही हुआ था कि तभी प्रतिमा भी किचेन से हाॅथ में थाली लिए आई। प्रतिमा की नज़र जब अपने पिता पर पड़ी तो वो एकदम से मानो बुत बन गई। काफी देर बाद उसकी तंद्रा तब टूटी जब अजय सिंह ने उससे कहा कि देखो प्रतिमा पापा जी आ गए।

हाॅथ में ली हुई थाली को प्रतिमा ने डायनिंग टेबल पर रखा और फिर भाग कर जगमोहन की तरफ बढ़ी और अपने पिता के गले से लग गई। भावनाओं और जज़्बातों ने मानो प्रबल रूप धारण कर लिया जिसके प्रभाव से उसकी ऑखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे थे। प्रतिमा अपने पिता के सीने से छुपकी ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। जगमोहन खुद भी बेहद ग़मगीन हो गया था और हो भी क्यों न आख़िर प्रतिमा उसकी लाडली बेटी जो थी। अपनी बेटी को अपने कलेजे से लगाए जगमोहन को आज असीम सुख शान्ति मिल रही थी। वर्षों से उसके अंदर दर्द से भरी हुई टीस कम हो गई थी।
 
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कितनी ही देर तक प्रतिमा अपने पिता के गले लगी रही उसके बाद जब उसके अंदर का गुबार खत्म हुआ तो वो अपने पिता से अलग हुई और अपने पिता से उनका हाल चाल पूछने लगी। कुछ देर बाद अजय सिंह ने प्रतिमा और अपने ससुर से कहा कि वो फ्रेश हो लें ताकि हम साथ में बैठ कर ही खाना खाएॅ। अजय सिंह की बात पर जगमोहन सिंह बोले कि वो बेटी के घर का अन्न कैसे खा सकते हैं? इस पर अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा कि पापा जी आप भी क्या बाबा आदम के रीति रिवाज लिए बैठे हैं। आज के समय के सबसे बड़े वकील होते हुए भी ऐसी बात करते हैं। आख़िर अपने दामाद और बेटी के बार बार कहने पर जगमोहन सिंह को अजय सिंह के साथ बैठ कर खाना ही पड़ा।

खाना खाने के बाद ससुर दामाद के बीच ढेर सारी बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह प्रतिमा को बता कर अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गया। काफी दिन से फैक्ट्री नहीं गया था वह। वैसे भी वो चाहता था कि वर्षों के बाद बाप बेटी मिले हैं तो वो फ्री होकर एक दूसरे से बातें करें। अजय सिंह प्रतिमा को किनारे पर बुला कर उससे एक बार पुनः ये कहा कि वो या कोई भी जगमोहन जी से हमारे हालातों के संबंध में कोई बात न करे। सब कुछ समझा बुझा कर अजय सिंह हवेली से बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसे शिवा इस तरफ ही आता दिखाई दिया। अजय सिंह उसे देख कर ठिठक गया। अपनी ही धुन में मस्ती से आता हुआ शिवा अपने बाप को देख कर हैरान रह गया और फिर एकदम से झपट कर उसके गला लग गया।

"ओह डैड आप आ गए।" शिवा खुशी से झूमता हुआ बोला था।
"मैं तो आ ही गया बर्खुरदार।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम इस वक्त कहाॅ से इस तरह मस्ती में डूबे चले आ रहे थे?"
"वो मैं गेस्टहाउस की तरफ से आ रहा था डैड।" शिवा ने कहा___"दरअसल आपके बिजनेस संबंधी दोस्तों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए यहाॅ भेज गए थे। इस लिए मैं उन्हीं के पास बैठा हुआ था। माॅम ने कहा था कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन सबका ख़याल रखूॅ।"

"ओह आई सी।" अजय सिंह आदमियों का सुन कर सहसा चौंक पड़ा था फिर बोला___"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे। मुझे खुशी हुई कि तुम अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हो। ख़ैर मैं ये कह रहा हूॅ कि आज तुम्हारे नाना जी आए हुए हैं इस लिए तुम या कोई भी उनके सामने हमारे हालातों के संबंध में कोई भी बात नहीं करोगे। और हाॅ, तुम भी ज़रा सम्हल कर उनसे बात करना। वो बहुत ही जहीन इंसान हैं। इंसान को पहचानने में उन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा। अतः सोच समझ कर और होशियारी से उनके सामने जाना। ऐसा न हो कि तुम्हारे हाव भाव से उन्हें ऐसा प्रतीत हो जाए कि तुम किस टाइप के लड़के हो? तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूॅ?"

"डोन्ट वरी डैड।" शिवा ने कहा___"मेरी वजह से नाना जी को कुछ और सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा और न ही उन्हें हमारे हालातों का कुछ पता चलेगा।"
"गुड ब्वाय।" अजय सिंह मुस्कुराया___"अब जाओ तुम। मैं भी ज़रा उन आदमियों से मिल लूॅ, उसके बाद मुझे थोड़ी देर के लिए फैक्ट्री भी जाना है।"
"ओके बाय डैड।" ये कह कर शिवा हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

शिवा का जाने के बाद अजय सिंह भी गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया। अभी वो कुछ क़दम ही चला था कि सहसा पीछे से उसे प्रतिमा की आवाज़ सुनाई दी। उसने पलट कर देखा तो प्रतिमा हवेली के मुख्य दरवाजे पर खड़ी थी। अजय सिंह के पलटते ही प्रतिमा ने उसे बताया कि लैण्डलाइन फोन पर किसी का काल आया हुआ है और वो उससे बात करना चाहता है। प्रतिमा की बात सुन कर अजय सिंह वापस हवेली के अंदर की तरफ चल दिया। उसे याद आया कि उसके मोबाइल पर तो सिम कार्ड है ही नहीं।

"हैलो।" अपने कमरे में रखे लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही अजय सिंह ने अपनी आवाज़ को प्रतभावशाली बनाते हुए कहा था।
"ठाकुर।" उधर से किसी की स्पष्ट आवाज़ उभरी__"हम इस प्रदेश के मंत्री दिवाकर चौधरी बोल रहे हैं।"

"म..मंत्री???" अजय सिंह उधर ईआ वाक्य सुन कर बुरी तरह चौंका था, फिर लरजते हुए स्वर में बोला____"क्या सच में आप मंत्री जी ही बोल रहे हैं?"
"हाॅ ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने खास अंदाज़ में कहा___"क्या तुम्हें हमारे मंत्री होने पर शक़ है?"

"न..न..नहीं नहीं मंत्री जी।" अजय सिंह बुरी तरह सकपकाया___"म मैं तो बस इस लिए ऐसा कह गया क्योंकि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि प्रदेश की इतनी बड़ी शख्सियत का फोन मेरे पास आ सकता है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान हूॅ कि भला मुझसे मंत्री जी का क्या काम हो सकता है जिसके तहत आपने मुझे फोन किया है।"

"कुछ तो खास वजह होगी ही ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने कहा___"वरना इस फानी दुनियाॅ में बेमतलब कोई भी किसी को याद नहीं करता।"
"हाॅ ये बात तो बिलकुल सच है मंत्री जी।" अजय सिंह के दिमाग़ के घोड़े बड़ी तेज़ी से ये पता लगाने के लिए दौड़ रहे थे कि मंत्री ने उसे किस वजह से फोन किया हो सकता है? किन्तु प्रत्यक्ष में बोला___"आज के समय में हर इंसान मतलबी बन चुका है। ख़ैर आप बताइये मेरे लिए क्या आदेश है आपका?"

"दोस्तों को आदेश नहीं देते ठाकुर।" उधर से चौधरी ने कहा___"बल्कि साफ शब्दों में कह दिया जाता है जो कहना होता है। ख़ैर हम ये कह रहे है कि हम तुमसे मिलना चाहते हैं। मिलने के बाद ही तसल्ली से हमारे बीच बात चीत होगी और ये भी कि वो खास वजह क्या है जिसके तहत हमने तुम्हें फोन किया है?"

"जैसा आप कहें मंत्री जी।" अजय सिंह मंत्री के मुख से दोस्तों शब्द सुन कर सोचने पर मजबूर हो गया था। हलाॅकि मंत्री का उसे फोन करना मौजूदा हालात के हिसाब से उसके लिए कहीं न कहीं राहत और खुशी की बात थी। उसे भी पता था कि मंत्री दिवाकर चौधरी क्या चीज़ है। फिर बोला___"बताइये मुझे कब और कहाॅ मिलने आना होगा आपसे?"

"वैसे समय तो अभी भी है ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"क्योंकि अभी शाम भी नहीं हुई है। इस लिए चाहो तो अभी हमारे यहाॅ आ सकते हो। इस वक्त हम गुनगुन में ही अपने आवास पर मौजूद हैं। किन्तु अगर तुम्हारे पास इस वक्त टाइम नहीं है तो कोई बात नहीं कल सुबह आ जाना। हमें कोई परेशानी नहीं है।"

"ये कैसी बात कर रहे हैं मंत्री जी?" अजय सिंह ने चापलूसी वाले अंदाज़ से कहा___"आप मुझे अपना समझ कर इतनी इज्ज़त से बुलाएॅ और मैं तत्काल न आऊॅ ऐसा कैसे हो सकता है भला? मैं तो अपने सारे ज़रूरी काम छोंड़ कर आपके पास ही दौड़ा चला आऊॅगा चौधरी साहब। बस कुछ देर तक इंतज़ार कर लीजिए। मैं फौरन ही अपने गाॅव हल्दीपुर से गुनगुन में आपके आवास पर आने के लिए निकल रहा हूॅ।"

"ओके हम इन्तज़ार कर रहे हैं ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"तुम हमारे दोस्त की तरह ही हो इस लिए अपने दोस्त का वैलकम भी हम शानदार तरीके से ही करेंगे।"
"ये तो मेरी खुशनसीबी है मंत्री जी।" अजय सिंह एकदम से खुश होते हुए बोला___"जो आप मुझे अपना दोस्त कह रहे हैं वरना मेरी आपके सामने भला क्या औकात?"

"ऐसी कोई बात नहीं है ठाकुर।" मंत्री ने कहा___"हर इंसान अपनी जगह पर औकात वाला ही होता है। तुम भी अपनी जगह किसी से कम नहीं हो। हमें सब पता है तुम्हारे बारे में। ख़ैर छोंड़ो ये सब। आओ फिर मिलकर ही बाॅकी बातें होंगी।"
"जी ठीक है चौधरी साहब।" अजय सिंह के ऐसा कहते ही उधर से काल कट गई।

रिसीवर को हाॅथ में पकड़े अजय सिंह किसी बुत की मानिंद खड़ रह गया था। उसकी ऑखें ऐसी चमकने लगी थी जैसे उसकी ऑखों के अंदर हज़ारों वाट के बल्ब एकाएक ही रौशन हो उठे थे। चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। कुछ देर तक अजय सिंह इसी तरह रिसीवर हाॅथ में खड़ा रहा फिर जैसे उसे होश आया। उसने मुस्कुरा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रखा और फिर कमरे में ही एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ चला।

आलमारी से उसने अपने सबसे अच्छे और सबसे कीमती कपड़े निकाले। अपने जिस्म पर पहले से ही पहने हुए कपड़ों को निकाला उसने और फिर उन कपड़ों को पहनना शुरू किया जिन्हें उसने आलमारी से निकाला था। उसके चेहरे पर इस वक्त एक अलग ही चमक दिख रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में वह कपड़ों को पहन कर एक तरफ दीवार से सटे आदमकद आईने के सामने आया और उसमें खुद को देखने लगा। कीमती कोट पैन्ट में इस वक्त वो काफी जॅच रहा था और लग भी रहा था कि वो कोई बहुत बड़ा आदमी है। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद वो मुस्कुराते हुए ही कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

ड्राइंगरूम में बैठे जगमोहन सिंह, प्रतिमा व शिवा की नज़र जैसे ही अजय सिंह पर पड़ी तो जगमोहन सिंह को छोंड़ कर प्रतिमा व शिवा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। जबकि जगमोहन सिंह के चेहरे पर ये सोच कर खुशी के भाव उभरे कि उसका दामाद वाकई में एक शख्सियत वाला तथा प्रभावशाली ब्यक्तित्व रखने वाला इंसान है। उसे पहली बार लगा कि उसकी बेटी ने अपने पति के रूप में ग़लत चुनाव नहीं किया था। यहाॅ आने के बाद उसने इतनी बड़ी हवेली और अंदर बाहर इतने सारे नौकर चाकर देखे तो उसे समझ आ गया था कि उसका दामाद वास्तव में कोई ऐरा ग़ैरा नहीं था। बल्कि इस गाॅव का राजा था वो।

"प्रतिमा मैं ज़रा मंत्री जी के पास जा रहा हूॅ।" अजय सिंह ने ये बात कुछ इस अंदाज़ से कही थी कि सोफे पर बैठे जगमोहन सिंह पर अपना एक खास असर डाल सके और ऐसा हुआ भी। जबकि अजय सिंह बोला___"अभी उन्हीं का फोन आया हुआ था। उन्होने मुझे किसी ज़रूरी काम से याद किया है। अतः हो सकता है कि मुझे वापस आने में देर हो जाए तो तुम पापा जी का अच्छे से ख़याल रखना।"

"ठीक है आप जाइये।" प्रतिमा ने अपने पिता की मौजूदगी में अजय सिंह से आप कह कर बात की, बोली___"मैं पापा का बहुत अच्छे से ख़याल रखूॅगी।"
"इसमें ख़याल रखने की क्या बात है बेटा?" सहसा जगमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"ये तो मेरा भी अपना ही घर है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हुई तो मैं खुद ही ले लूॅगा। क्यों बेटी?"

"जी आपने बिलकुल ठीक कहा पापा।" प्रतिमा ने खुशी से मुस्कुराते हुऐ कहा।
"फिर तो ठीक है पापा।" अजय सिंह भी मुस्कुराया__"मुझे आपकी ये बात बहुत अच्छी लगी। ख़ैर मैं जल्दी वापस आने की कोशिश करूॅगा और फिर आपसे ढेर सारी बातें होंगी। अच्छा अब चलता हूॅ।"

अजय सिंह के कहने पर जगमोहन सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि अजय सिंह फौरन ही हवेली से बाहर की तरफ बढ़ चला। उसके मन में इस वक्त मंत्री से मिलने की बड़ी ब्याकुलता पैदा हो गई थी। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि प्रदेश का मंत्री उसे दोस्त मान कर उससे मिलना चाहता है। मंत्री से संबंध होना उसके लिए कितना फायदेमंद हो सकता था इसका बखूबी अंदाज़ा था उसे। इसी लिए तो वो जल्द से जल्द मंत्री के पास पहुॅच जाना चाहता था।

बाहर एक तरफ खड़ी अपनी मर्सडीज कार के पास पहुॅच कर उसने कार का दरवाजा खोला और ड्राइंविंग शीट पर बैठ गया। कुछ ही पलों में उसकी कार गुनगुन के लिए रवाना हो गई थी।
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उधर गुनगुन में अपने आवास पर मंत्री दिवाकर चौधरी अपने दो दोस्तों और एक रखैल दोस्त यानी सुनीता के साथ ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठा था। इस वक्त ड्राइंग रूम में इन चारों के अलावा और कोई नहीं था। मंत्री के सुरक्षा गार्ड सब बाहर ही तैनात थे।

"वैसे आपको क्या लगता है चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा कह उठा___"वो ठाकुर हमारी इस मामले में क्या सहायता कर सकता है? जबकि उसकी खुद की बेटी ही उसके खिलाफ़ है।"

"इन्हीं सब चीज़ों के बारे में तो जानना है अशोक।" मंत्री ने सोचते हुए कहा___"मुझे लगता है कि इस मामले से जुड़ी हर चीज़ ठाकुर को क्राॅस करती है। हमने ये तो समझ लिया कि हमारे मामले जो हो रहा है वो कौन और क्यों कर रहा है मगर हम ये भी जानना चाहते हैं कि जो हमारा दुश्मन है उसने या उसकी माॅ बहन ने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से ठाकुर ने उन तीनों को हवेली से ही नहीं बल्कि सारी ज़मीन जायदाद से भी बेदखल कर दिया है? सबसे महत्वपूर्ण बात हमें ये भी जानना है कि ऐसा क्या हुआ है जिसके तहत ठाकुर की अपनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई है?"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"किन्तु इससे निष्कर्श क्या निकलेगा? मेरा मतलब है कि इससे हमारा फायदा क्या होगा?"

"नफ़ा नुकसान तो अपनी जगह है ही अशोक।" चौधरी ने कहा___"किन्तु इस मामले में कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में पक्के तौर पर जानना बहुत ज़रूरी है। तुमने कहा था कि ठाकुर की बेटी जो थानेदारनी है और अपने पैरेन्ट्स के खिलाफ़ है वो हमारे दुश्मन और ठाकुर के भतीजे की मदद इस लिए नहीं कर सकती क्योंकि वो भी उससे अपने माॅ बाप की तरह नफ़रत करती है। ये बातें एक दूसरे से मैच नहीं खा रही हैं अथवा ये भी कह सकते हैं कि जॅच नहीं रही हैं।"

"जी मैं कुछ समझा नहीं चौधरी साहब।" अशोक मेहरा के माॅथे पर उलझनपूर्ण भाव आए___"कौन सी बातें नहीं जॅच रही आपको?"

"यही कि एक तरफ तो तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी उस विराज नाम के अपने भाई से नफ़रत करती है।" मंत्री ने कहा___"इस लिए वो उसकी मदद नहीं कर सकती। जबकि दूसरी तरफ तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की वही थानेदारनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ है। सोचने वाली बात हैं अशोक कि ऐसा कैसे हो सकता है? आम तौर पर बच्चे वही करते हैं जो उनके माॅ बाप उन्हें सीख देते हैं अथवा करने को कहते हैं। यहाॅ सोचने वाली बात ये है कि अगर वो थानेदारनी अपने माॅ बाप की सीख अथवा कहे के अनुसार अपने चचेरे भाई से नफ़रत करती है तो फिर अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ वो किस वजह से हो गई है?"

"आपकी इन सब बातों में ज़बरदस्त प्वाइंट है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते ठाकुर की बेटी उसके खिलाफ़ है? संभव है कि उसे कोई ऐसी बात अपने माॅ या पिता की पता चल गई हो जिसके चलते उसने अपने माॅ बाप से किनारा कर लिया हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि सोच या विचारों के चलते थानेदारनी अपने पैरेन्टस् से दूर हो।"

"ये सब तो महज संभावनाएॅ हैं अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जो सही भी और ग़लत भी हो सकती हैं मगर हमें वो बात पता करना है जो सिर्फ और सिर्फ सच हो। ख़ैर फिक्र की कोई बात नहीं है, हमने ठाकुर को बुलाया है। वो आता ही होगा हमारे पास। उसी से पूछेंगे कि सच्चाई क्या है?"

"लेकिन चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने एक बार पुनः हस्ताक्षेप किया___"सवाल तो एक बार फिर खड़ा हो जाता है कि इस सबसे हमारा फायदा क्या होगा? हम ये तो जानते ही हैं कि हमारा दुश्मन ठाकुर का वो भतीजा है जिसका नाम विराज है और वो मुम्बई में रहता है। फिर अचानक आप ठाकुर और उसकी बेटी को बीच में कैसे ले आए? इस मामले में ये कहाॅ से आ गए? ठाकुर की बेटी अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है ये उनका आपसी मैटर है। इस लिए हमें इससे क्या लेना देना भला? हमें तो अपने टार्गेट पर फोकस रखना है ना?"

"तुम बात को या तो अनसुना कर गए हो अशोक या फिर बात को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हो।" मंत्री ने स्पष्ट भाव से कहा___"जबकि तुम्हें सबसे पहले ये सोचना चाहिए कि हम बेवजह फालतू की बकवास करने का शौक नहीं रखते हैं। ख़ैर, बात दरअसल ये कि अगर ठाकुर की बेटी सचमुच में अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ है तो वो अपने उस भाई की मदद क्यों नहीं कर सकती जो अपने माॅ बाप की तरह ही उस लड़के से नफ़रत करती थी? संभव है कि उसे उस वजह का पता चल गया हो जिस वजह के चलते उसके बाप ने विराज और विराज की माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल किया था। उसे पता चल गया हो कि जिस वजह से विराज को बेदखल किया था उसके बाप ने वो वजह वास्तव में बेवजह ही थी। यानी विराज व विराज की माॅ बहन अपनी जगह सही रहे हों। उस सूरत में संभव है कि रितू ने उस संबंध में अपने पैरेंट्स से बात की हो और उनसे कहा हो कि विराज और उसकी माॅ बहन को बेदखल करके उसने अच्छा नहीं किया। वो अगर बेक़सूर हैं तो उन्हें उनका हक़ मिलना ही चाहिए। इस संबंध में अपनी बेटी की ये बात शायद ठाकुर को पसंद न आई हो और उसने विराज का हक़ देने से साफ इंकार कर दिया हो। इस वजह से थानेदारनी अपने माॅ बाप से अलग हो गई और संभव है कि इसी के चलते वो अपने उस चचेरे भाई के प्रति अपनी नफ़रत को मिटा कर उसकी मदद भी करने लगी हो। हलाॅकि ये सब भी महज संभावनाएॅ ही हैं किन्तु हो सकता है कि यही सच हो।"

अशोक मेहरा ही नहीं बल्कि वहाॅ बैठे अवधेश व सुनीता भी चौधरी की इन संभावना भरी बातें सुन कर चकित रह गए थे। एक बेटी का अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ होने की क्या खूब वजह सोच कर बयान किया था उसने।

"अगर आपकी संभावनाएॅ सच हैं।" फिर अवधेश ने कहा___"तो यकीनन वो थानेदारनी विराज की मदद कर सकती है। मैं सब समझ गया चौधरी साहब, आपने यही सब सोच कर ठाकुर को यहाॅ बुलाया है।"

"बिलकुल।" चौधरी मुस्कुराया___"किन्तु इस वजह के अलावा भी एक महत्वपूर्ण वजह है।"
"वो क्या चौधरी साहब?" तीनो एक बार फिर चौंके।
"अगर ठाकुर ने सचमुच ही विराज और उसकी माॅ बहन को बेवजह ही हर चीज़ से बेदखल किया है।" चौधरी ने कहा___"तो ये भी सच ही होगा कि विराज अपने ताऊ को दुश्मन समझता होगा और ये भी चाहता होगा कि उसका हक़ किसी भी सूरत में उसे मिले। ठाकुर ने अगर धन दौलत अथवा सारी प्रापर्टी को हथियाने की गरज से उसे बेदखल किया होगा तो फिर ये पक्की बात है कि ठाकुर किसी भी कीमत में वो प्रापर्टी अथवा उस प्रापर्टी में से विराज का हक़ नहीं देगा। कहने का मतलब ये कि विराज को अपना हक़ आसानी से नहीं मिलने वाला। इस लिए वो ऐसा कुछ ज़रूर करेगा जिसके तहत उसे अपने ताऊ से अपना हक़ वापस मिल सके।"

तीनो मुह फाड़े देखते रह गए चौधरी को। किसी के मुख से कोई बोल न फूट सका था। जबकि चौधरी उन सबके चेहरों पर मॅडराते भावों को देखते हुए पुनः कहना शुरू किया____"हलाॅकि ये भी महज संभावनाएॅ ही हैं दोस्तो जो ग़लत भी हो सकती हैं। मगर हमें कहीं न कहीं ऐसा आभास भी हो रहा है कि हमारी इन संभावनाओं पर कुछ न कुछ तो सच्चाई ज़रूर है। हमने ठाकुर, ठाकुर की बेटी, तथा विराज, इन तीनों पर ग़ौर किया है और इनके बीच पैदा हुए हालातों पर भी ग़ौर किया है। इसके बाद ही हमारे दिमाग़ में इन संभावनाओं का आगमन हुआ है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश कह उठा___"कि आपने उन तीनों का ऑपरेशन कर दिया है। आपकी संभावनाओं में कहीं पर भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उनमें कहीं कोई लोचा है।"

"ठाकुर की बेटी का अपने माॅ बाप से भले ही चाहे जो पंगा हो अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस ली___"जिसके तहत वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है। मगर ये बात तो सच ही समझो कि ठाकुर और विराज का छत्तीस का ऑकड़ा है। ज़र ज़ोरू ज़मीन ये कभी किसी की नहीं हुई। इसने जाने जाने कितने पाक़ रिश्तों को नेस्तनाबूत किया होगा अब तक इसका हममें से कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता। विराज व ठाकुर के बीच हक़ की लड़ाई है ये पक्की बात है और जब तक इस लड़ाई का अंत नहीं होगा दोनो में से कोई भी चैन से नहीं बैठेगा। ख़ैर, तुमने सुना होगा कि हमने फोन पर ठाकुर को दोस्त कहा था। वो इसी लिए कहा था कि मौजूदा हालात में हम दोनो का एक ही टार्गेट है-----विराज। इस लिए हमने उसे दोस्त कहा। हम उससे विराज के संबंध में सारी जानकारी हासिल करेंगे और फिर उस हिसाब से आगे की रणनीति बनाएॅगे।"

अभी चौधरी ने ये कहा ही था कि सहसा तभी ड्राइंग रूम में एक आदमी दाखिल हुआ। उसने बड़े अदब से चौधरी को बताया कि बाहर कोई आदमी आपसे मिलने आया है। वो आदमी अपना नाम ठाकुर अजय सिंह बता रहा है। उस आदमी की बात सुन कर चौधरी मुस्कुराया और अपने उस आदमी से कहा कि उसे इज्ज़त से अंदर ले आओ। चौधरी की बात सुन कर वो आदमी पहले अदब से सिर झुकाया फिर वापस बाहर की तरफ चला गया।

कुछ ही देर में उसी आदमी के साथ अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। उसे देखते ही चौधरी अपने सोफे से उठा हलाॅकि वो प्रदेश का मंत्री था और अजय सिंह के लिए उठना उसकी शान के खिलाफ़ था किन्तु फिर भी वो उठा ही। उसकी देखा देखी बाॅकी सब भी उठ गए।

"मोस्ट वेलकम ठाकुर।" चौधरी ने गर्मजोशी से तथा मुस्कुराते हुए अजय सिंह से हाॅथ मिलाया और फिर एक अन्य खाली सोफे की तरफ बैठने का इशारा किया और खुद भी अपनी जगह पर आ कर बैठ गया।

"बहुत बहुत शुक्रिया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने अपने अंदर ही हड़बड़ाहट पर काबू पाते हुए किन्तु बड़ी शालीनता से कहा___"आज तो मेरे भाग्य ही खुल गए है जो आपके दर्शन हो गए।"

"ऐसा कुछ भी नहीं है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"इस वक्त हम किसी मंत्री की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम इंसान तथा एक दोस्त की हैसियत से तुमसे मिल रहे हैं। और वैसे भी ये तो हमें भी पता चला है कि हमसे पहले जो मंत्री थे उनसे तुम्हारे बहुत गहरे ताल्लुकात थे। सारा पुलिस महकमा ही तुम्हारी मुट्ठी में होता था। किन्तु हमने सुना कि रात भर में सारा कुछ बदल गया था। इस सबका बड़ा हो हल्ला भी हुआ था। मगर किसी की समझ में न आया कि ऐसा क्यों हुआ था। आज भी ये रहस्य ही बना हुआ है।"
 
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दिवाकर चौधरी की इस बात से अजय सिंह तो चौंका ही मगर उसके साथ साथ अशोक, अवधेश व सुनीता आदि भी चौंके थे। किन्तु उन लोगों ने बीच में कहा कुछ नहीं।

"हाॅ ये तो आपने सच कहा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने सहसा गहरी साॅस ली___"एक वक्त था जब हर चीज़ मेरे लिए आसान थी मगर एक ऑधी आई और सब कुछ उड़ा कर ले गई। अब उन जगहों पर गहन ख़ामोशी के सिवा कुछ भी शेष नहीं रहा।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि वो सारा कुछ तुम्हारी वजह से बदल गया था?" इस बार चौंकने की बारी मानो चौधरी की थी। हैरत से बोला___"मगर आख़िर ऐसा हुआ क्या था ठाकुर? यकीनन कोई बड़ी वजह थी क्योंकि इतना बड़ा सिस्टम यहाॅ तक कि प्रदेश के मंत्री का तबादला हो जाना कोई मामूली बात नहीं है। उस सबसे तो हर कोई हैरान रह गया था। आज जबकि तुम्हारे मुख से ही पता चला कि वो सब तुम्हारी वजह से हुआ था तो इस सबको जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई है।"

अजय सिंह समझ सकता था कि उसे मंत्री को इस सबके बारे में बताना ही पड़ेगा। वो भी चाहता था कि किसी वजह से ही सही मगर उसे मंत्री का साथ मिल जाए। अतः उसने संक्षेप में अपनी फैक्ट्री में लगी आग वाले केस के संबंध में बता दिया। ये भी कि बाद में उसे ये पता चल ही गया कि फैक्ट्री में लगी आग के पीछे उसके अपने ही भतीजे विराज का हाॅथ था। मंत्री ये जान कर हैरान रह गया कि विराज ने इतना बड़ा काण्ड किया हुआ है अपने ताऊ के साथ। अजय सिंह ने मंत्री को ये भी बताया कि मंत्री का तबादला और सारे पुलिस महकमे को बदल देने में भी विराज का ही हाॅथ था। ये बात सुन कर तो चौधरी की गाॅड में कीड़े ही कुलबुलाने लगे। वो सोचने पर मजबूर हो गया कि विराज आख़िर चीज़ क्या है जो मंत्री और सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट तक को इधर से उधर कर देने की क्षमता रखता है? चौधरी जैसा ही हाल वहाॅ बैठे बाॅकी सबका भी था।

"तुम्हारी कहानी तो वाकई में हैरतअंगेज है यार।" चौधरी ने चकित भाव से कहा___"मगर ये समझ नहीं आया कि तुम्हारे भतीजे विराज ने ऐसा किया क्यों?"

मंत्री ने जानबूझ कर ये सवाल किया था। उसे पता तो था किन्तु वो अजय सिंह के मुख से सच्चाई सुनना चाहता था।

"बड़ी लम्बी कहानी है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ते हुए कहा___"कभी कभी हमारे साथ वो सब भी हो जाता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती है। दरअसल बात ये थी मैने अपने मॅझले भाई की बीवी और उसके दोनो बच्चों को घर और ज़मीन जायदाद से बेदखल कर दिया था। इसकी वजह ये थी कि मेरे भाई की बीवी गौरी एक चरित्रहीन औरत थी। जवानी में ही उसके पति की मौत हो गई थी जिसकी वजह से उससे अपने अंदर की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई। शुरू शुरू में तो सब ठीक था मगर फिर उसके चाल चलन दिखने शुरू हुए। मैं जो कि उसका जेठ लगता था और गाॅवों में रिवाज है कि छोटे भाई की बीवी अपने जेठ के सामने सिर खुला नहीं रखती और ना ही उसे छूती है। मगर गौरी अपनी वासना और हवश की वजह से मुझ पर ही डोरे डालने लगी। मैं उसकी उस हरकत से हैरान था। हमारे खानदान कभी ऐसा नहीं हुआ था। हर कोई छोटे बड़े की मान मर्यादा का ख़याल रखता था। उधर दिनप्रति गौरी की हरकतों से मेरा दिमाग़ खराब होने लगा। मैने उसकी हरकतों के बारे में सबसे पहले अपनी पत्नी को बताया और उससे कहा भी कि वो गौरी को समझाए बुझाए कि ये सब कितना ग़तना ग़लत और पाप कर रही है। मेरी पत्नी ने गौरी को बहुत समझाया। मगर गौरी तो जैसे वासना और हवश में अंधी हो चुकी थी। जिसका नतीजा ये निकला कि एक दिन वो मुझे मेरे कमरे में अकेला देख कर आ धमकी और ज़बरदस्ती मुझसे सेक्स संबंध बनाने को कहने लगी। मैं उसकी उस हरकत और बातों से बहुत गुस्सा हुआ। जबकि वो मुझसे लपटी पड़ी थी। तभी इस बीच मेरी पत्नी आ गई। उसने गौरी को मुझसे छुड़ाया और उसे घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई। मेरी पत्नी ने उस सबके कैमरे द्वारा फोटोग्राफ्स भी निकाले थे। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर हम गौरी की इन हरकतों के बारे में घर में किसी से बताते तो कोई भी हमारी बात पर यकीन ही न करता। क्योंकि सब गौरी को बहुत ही ज्यादा संस्कारी और आदर्श औरत मानते थे। ख़ैर उस दिन हमारे पास सबूत भी था इस लिए सबको मानना ही पड़ा और फिर सबकी सहमति से ही मैने उसे और उसीए बच्चों को हवेली से बाहर निकाल दिया। हवेली से बाहर मैने उसे खेतों पर बने मकान में रहने की रियायत ज़रूर दे दी थी।
ऐसा इस लिए क्योंकि वो आख़िर थी तो हमारे खानदान की बहू ही। हमने सोचा था कि हवेली से दूर खुतों पर बने मकान में रहेगी तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। मगर हमारा ऐसा सोचना भी ग़लत हो गया। क्योंकि वो खेतों पर काम कर रहे मजदूरों पर ही वासना और हवस के चलते डोरे डालने लगी थी। एक दिन हमारे एक मजदूर ने इस बारे में मुझसे डरते हुए बताया। उसकी बात सुनकर मुझे गौरी पर हद से ज्यादा गुस्सा आया। उसके बाद मैने फैसला कर लिया कि अब उसे और उसके बच्चों को मैं उस गाॅव में नहीं रहने दूॅगा। क्योंकि इससे हमारी और हमारे खानदान की बहुत बदनामी होती। अतः मैने उसे हर चीज़ से बेदखल कर दिया। गौरी का लड़का थोड़ा बहुत समझदार था मगर वो भी अपनी माॅ की बातों को ही सच मानता था। उसे लगता था कि हमने उसकी माॅ को बेवजह ही हवेली से निकाला था। वो अपना और अपनी माॅ बहन का घर खर्चा चलाने के लिए मुम्बई में कहीं नौकरी करने चला गया था। जबकि उसके पीछे यहाॅ उसकी माॅ ये सब गुल खिला रही थी। ख़ैर, एक दिन बाद पता चला कि विराज अपनी माॅ व बहन को अपने साथ मुम्बई ले गया। उसके बाद अभी कुछ समय पहले से ही ये सब शुरू हुआ। यानी विराज ये सोच कर मुझसे बदला ले रहा है कि मैने उसके और उसके परिवार के साथ ग़लत किया है।"

"ओह तो ये हैं सारी बातें।" सब कुछ सुनने के बाद चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"लेकिन इतना कुछ हुआ और तुमको अंदाज़ा भी न हुआ कि ये सब तुम्हारे भतीजे ने ही किया है?"

"अंदाज़ा तो तब होता चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"जब मुझे उससे इस सबकी उम्मीद होती। मैं तो यही समझता था कि वो लड़का निहायत ही सीधा सादा और भोला है। भला मुझे क्या पता था कि वो किसी डायनामाइट से कम नहीं है।"

"ख़ैर।" चौधरी ने पहलू बदला___"हमने सुना है कि तुम्हारी अपनी बेटी जो कि पुलिस इंस्पेक्टर है वो आजकल तुम्हारे खिलाफ़ हो चुकी है। ये क्या चक्कर है?"
"चक्कर वक्कर कुछ नहीं है चौधरी साहब।" अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका था किन्तु चेहरे पर चौंकने के भावों को आने न दिया था, बोला___"दरअसल बात ये है कि हमें उसका पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं था। जबकि पुलिस की नौकरी करना उसका शौक था बचपन से ही। मैने और मेरी पत्नी प्रतिमा ने उससे कहा कि ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दो, भला उसे नौकरी करने ज़रूरत ही क्या है? उसे जिस चीज़ की भी ज़रूरत होती है हम उसके बोलने से पहले ही वो चीज़ लाकर उसके क़दमों में डाल देते हैं। मगर वो हमारी बात सुनती ही नहीं। बचपन से ही ज़िद्दी थी वो। एक दिन उसकी माॅ ने कदाचित कुछ ज्यादा ही कड़े शब्दों में कह दिया था। जिसकी वजह से वो गुस्सा हो गई और कहने लगी कि उसे हमारी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। वो अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर लेगी। बस उस दिन के बाद से वो ना तो मुझसे बोलती है और ना ही अपनी माॅ से। यहाॅ तक कि घर भी नहीं आती।"

"बड़ी अजीब बात है।" दिवाकर चौधरी ने कहा__"भला तुम लोगों को उसका नौकरी करने से एतराज़ क्यों है? आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस टेक्नालाॅजी में सम्मिलित है। वो खुद पर और अपने टैलेन्ट के बल पर ही जीवन जीना चाहते हैं। अतः तुम दोनो का उसका नौकरी करने से ऐतराज़ करना सरासर ग़लत था। ख़ैर, जैसा कि तुमने बताया कि उस दिन से वो घर भी नहीं आती है तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है फिर? क्या तुमने पता करने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारी लड़की रहती कहाॅ है? दिन का तो चलो ठीक है कि वो पुलिस में अपनी ड्यूटी के चलते कहीं न कहीं ब्यस्त ही रहती होगी मगर रात को? रात को कहाॅ रहती होगी वो?"

"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"

अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।

"क्या सोचने लगे ठाकुर?" उसे सोचों में गुम देख कर चौधरी ने कहा___"ख़ैर छोंड़ो यार, ये तुम्हारे घर की बात है तुम्हें जो उचित लगे वो करो। अच्छा एक बात बताओ।"
"ज जी????" अजय सिंह चौंका___"प..पूछिए।"

"क्या ऐसा हो सकता है।" चौधरी ने बड़े ग़ौर से अजय सिंह को देखते हुए कहा___"तुम्हारी बेटी और तुम्हारा भतीजा विराज एक हो गए हों? क्या ऐसा हो सकता है कि विराज ने तुम्हारी बेटी को अपने साथ मिला लिया हो??"

"प..प.पता नहीं।" अजय सिंह के ऊपर जैसे एकाएक सारा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा था। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए कहा उसने___"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं चौधरी साहब? जबकि ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता। इसकी वजह ये है कि मेरे तीनो ही बच्चे उसकी माॅ की हरकतों की वजह से उससे और उसकी माॅ बहन से कभी कोई बात करने की तो बात दूर बल्कि उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते।"

"ऐसा तुम सोचते हो ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा___"जबकि अक्सर ऐसा हो जाया करता है जिसकी हमें पूरी उम्मीद होती है कि ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता।"

"क्या मतलब???" अजय सिंह चकरा सा गया।
"मतलब साफ है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"तुम ये सोच कर ये नहीं मान रहे हो कि तुम्हारी बेटी विराज को देखना तक पसंद नहीं करती इस लिए वो उससे मिल नहीं सकती जबकि ऐसा हो भी सकता है कि वो उससे मिल ही गई हो। विराज की कारगुजारियों से इतना तो पता चल ही गया है कि वो कितना शातिर दिमाग़ रखता है और कितनी ऊॅची पहुॅच भी रखता है। अतः अगर वो अपने शातिर दिमाग़ के चलते तुम्हारी बेटी को अपनी तरफ कर भी ले तो हैरत की बात नहीं होगी। संभव है कि उसने रितू को ऐसा कोई पाठ पढ़ा दिया हो जिसके चलते तुम्हारी बेटी का ब्रेन वाश हो गया हो और अब वो उसे सही मान रही हो और तुम्हें यानी कि अपने बाप को ग़लत।"

अजय सिंह मंत्री की सूझ बूझ तथा उसकी दूरदर्शिता की मन ही मन दाद दिये बिना न रह सका। सच्चाई भले ही कुछ और थी मगर जितना उसने उहे बताया था उस हिसाब से कड़ियों को जोड़ कर सच्चाई के रूप में अपनी संभावनाएॅ इस तरह बयां करना आसान बात न थी। सहसा उसे ख़याल आया कि जबसे वो यहाॅ आया है तब से मंत्री सिर्फ उसी के संबंध में बातें पूछ रहा है जबकि उसे अब तक यही समझ में नहीं आया था कि मंत्री ने आख़िर उसे बुलाया किस लिए था??

"भगवान जाने चौधरी साहब।" फिर उसने पहलू बदलने की गरज से कहा___"कि सच्चाई है इस संबंध में। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि इस नाचीज़ को किस लिए बुलाया था आपने?"

अजय सिंह द्वारा अचानक ही इस तरह पहलू बदल लेना चौधरी को मन ही मन चौंकाया मगर उसने उसे ज़ाहिर न किया। बल्कि उसके पूछने पर वह मुस्कुराया और सेन्टर टेबल पर सजे फल फूल व मॅहगी शराब की तरफ इशारा किया।

"ये तो कमाल हो गया ठाकुर।" फिर चौधरी ने मुस्कुराते हुए ही कहा___"तुम आज यहाॅ पहली बार आए और हमने बातों के चक्कर में ये भी ख़याल नहीं रखा कि घर आए मेहमान का आतिथ्य भी किया जाता है।"

"मैं कोई मेहमान नहीं हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने भी मुस्कुराते हुए कहा___"आपने मुझे दोस्त कह कर मेरा मान बढ़ा दिया है यही बहुत है मेरे लिए। इस नाते अब तो ये भी अपना ही घर हुआ और अपने ही घर में भला कोई मेहमान कैसा हो सकता है?"

"हाॅ तो सही कहा तुमने।" चौधरी हॅसा और फिर बगल से ही बैठे अशोक, अवधेश व सुनीता की तरफ इशारा करते हुए कहा___"इनसे मिलो ठाकुर, ये सब भी हमारे गहरे दोस्त हैं। बल्कि यूॅ समझो कि ये तीनो हमारे दोस्तों की लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और आज से तुम भी शामिल हो गए हो।"

"ये तो मेरा सौभाग्य है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने खुश होते हुए कहा___"जो आपने मुझे अपने दोस्त का दर्ज़ा दिया है। मैं पूरी कोशिश करूॅगा कि इस दोस्ती पर खरा उतर सकूॅ।"
"चलो फिर इसी बात पर एक एक जाम हो जाए।" चौधरी ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हमारी दोस्ती को सेलीब्रेट किया जाए।"

"जी बिलकुल।" अजय सिंह हॅसा और उन तीनों की तरफ देख कर उन तीनो से हैलो किया तथा हाॅथ भी मिलाया। चौधरी के कहने पर सुनीता ने सबके लिए जाम बनाया और साक़ी बन कर सबको पिलाया भी। इस बीच चौधरी ने अजय सिंह को बताया कि सुनीता उसके साथ साथ बाॅकी उन दोनो को भी हर तरह से खुश रखती है। अजय सिंह ये जान कर हैरान भी हुआ था। मगर फिर ये सोच कर मुस्कुराया भी कि चौधरी भी उसी की तरह ही औरतबाज है।

लगभग आधा घंटे से ऊपर तक जामों का दौर चलता रहा। सब के सब हल्के नशे के सुरूर में आ चुके थे। उसके बाद बातों का सिलसिला फिर से शुरू हुआ। अजय सिंह सबसे काफी खुल चुका था। बाॅकी सब भी अजय सिंह से खुल चुके थे। सुनीता को अजय सिंह की पर्शनाल्टी पहली नज़र में ही भा गई थी और वो उसके नीचे लेटने के लिए बेक़रार हो उठी थी। मगर अभी उसको भी पता था कि उसकी ये बेक़रारी शान्त नहीं होने वाली है। यानी कुछ समय तक इन्तज़ार करना पड़ेगा उसे।

"मज़ा आ गया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने नशे के हल्के सुरूर में मुस्कुराते हुए कहा___"आप सच में बहुत अच्छे हैं। एक पल के लिए भी मुझे ऐसा नहीं लगा जैसे इसके पहले आप मेरे लिए ग़ैर थे। सच कहता हूॅ आपसे मिल कर और आपका दोस्त बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत दिनों बाद ऐसे खुश होने का मौका मिला है मुझे।"

"अभी तो इससे भी ज्यादा मज़ा आएगा ठाकुर।" चौधरी ने भी नशे के हल्के सुरूर में कहा___"हमारी दोस्ती में और हमारे साथ में ऐसा ही होता है। हमें वही इंसान अच्छा लगता है जो हमसे वफ़ा करे। वफ़ादार ब्यक्ति के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।"

"मैं ज़रूर आपका वफ़ादार रहूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"आप जब भी मुझे याद करेंगे मैं आपके सामने हर काम छोंड़ कर हाज़िर हो जाऊॅगा। मुझे भी वफ़ादार इंसान ही अच्छे लगते हैं जो दोस्त के लिए कुछ भी कर जाए मगर...।"

"मगर क्या ठाकुर।" चौधरी ने सिर उठा कर अजय सिंह की तरफ देखा___"तुम्हारे स्वागत में हमसे कोई कमी हो गई है क्या? अगर ऐसा है तो बेझिझक बोल दो यार। जो बोलोगे वो मिलेगा तुम्हें। ये दिवाकर चौधरी का वचन है।"

"न नहीं नहीं चौधरी साहब।" अजय सिंह ने हड़बड़ाते हुए कहा___"आपने किसी बात की कमी नहीं की है। मेरे कहने का मतलब ये था कि आपने मुझे बताया नहीं कि आपने मुझे किस वजह से यहाॅ बुलाया था? देखिए अब तो हम दोनो दोस्त बन गए हैं न। इस लिए अगर कोई बात है आपके मन में तो बेझिझक कहिए। मैं वादा करता हूॅ कि अगर मेरे लिए आपका कोई आदेश है तो मैं जान देकर भी उसे पूरा करूॅगा।"

अजय सिंह की बात इस पर चौधरी ने उसे बड़े ध्यान से देखा जैसे जाॅच रहा हो कि उसकी बात पर कितना दम है। फिर अपने हाॅथ में लिए शराब के प्याले को मुह से लगा कर शराब का हल्का सा घूॅट लिया उसके बाद अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"आदेश तो कुछ भी नहीं है ठाकुर। बस ये समझो कि आज के समय में जो तुम्हारा दुश्मन है वही हमारा भी दुश्मन है।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब?" अजय सिंह ने ऑखें फैलाते हुए कहा____"मेरा दुश्मन तो मेरा वो हरामज़ादा भतीजा बना हुआ है किन्तु वो आपका दुश्मन कैसे बन गया? बात कुछ समझ में नहीं आई चौधरी साहब।"

"तुमने कुछ समय पहले किसी लड़की के सामूहिक रेप के बारे में तो सुना ही होगा न?" चौधरी ने कहा।
"र रेप के बारे में???" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। फिर सहसा जैसे उसे याद आया___"ओह हाॅ हाॅ सुना था। आप उसी रेप स्कैण्डल की बात कर रहे हैं न जिस पर कुछ समय पहले काफी हो हल्ला हुआ था? मगर फिर सब कुछ शान्त हो गया था। उसके बाद कुछ पता ही नहीं चला कि क्या हुआ? मगर आपका उस रेप केस से क्या संबंध?"

"दरअसल वो रेप हमारे बच्चों की करतूत का नतीजा था ठाकुर।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"तुम्हारे गाॅव के ही पास की एक विधी नाम की लड़की थी जिसके साथ हमारे बच्चों ने मिल कर रेप किया था। वो लड़की हमारे बच्चों के ही काॅलेज में पढ़ती थी। उस रेप केस पर हो हल्ला तो ज़रूर हुआ था किन्तु उस पर कोई शख्त ऐक्शन इस लिए नहीं लिया गया था क्योंकि मामला हमारे बच्चों का था। यहाॅ का पुलिस कानून हमारे खिलाफ कोई क़दम उठा ही नहीं सकता था। ये बात उस लड़की के घरवालों को भी समझ आ गई थी। इसी लिए लड़की के घरवालों ने भी कोई केस नहीं किया था और इसी वजह से मामला शान्त पड़ गया था। मगर....।"

"मगर????" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"मगर रेप के तीसरे दिन हमारे बच्चे हमारे ही फार्महाउस से गायब हो गए।" चौधरी कह रहा था___"और अब तक उनका कहीं कुछ पता नहीं चल सका है। उन बच्चों में एक हमारा बेटा है और तीन लड़कों में से एक अशोक का है दूसरा अवधेश का और तीसरा सुनीता का। हमने सब कुछ करके देख लिया मगर आज तक कहीं भी बच्चों का पता नहीं चला। सबसे गज़ब तो तब हो गया जब हमारी बेटी भी गायब हो गई।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब??" अजय सिंह हक्का बक्का नज़र आने लगा था, बोला___"मगर आपके बच्चों को गायब किसने किया हो सकता है? और अगर बच्चे अगर रेप के बाद से ही गायब हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें उसी ने गायब किया होगा जिसके साथ उन बच्चों ने अहित किया है। लेकिन गायब करने वाले का आपके पास कोई फोन या किसी तरह की सूचना तो आनी ही चाहिए थी। सीधी सी बात है कि अगर ये सब उसने बदला लेने के उद्देष्य से किया है तो वो देर सवेर ये ज़रूर सूचित करता कि आपके बच्चे उसके कब्जे में हैं।"

"बिलकुल सही कहा तुमने ठाकुर।" चौधरी एकाएक कह उठा__"उसे ज़रूर सूचित करना चाहिए था और उसने ऐसा किया भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका___"मेरा मतलब है कि क्या सूचित किया उसने?"

"उसने फोन पर हमें बताया कि हमारे बच्चे उसके कब्जे में ही हैं।" चौधरी ने कहा___"और ये भी बताया कि वो उनके साथ क्या करेगा? शुरू शुरू में तो हमें समझ ही नहीं आया कि ऐसा कौन कर सकता है, क्योंकि हमें यही पता नहीं था कि हमारे बच्चों ने किस लड़की के साथ वो सब किया था? दूसरी बात हम ये सोच रहे थे कि अगर मामला इतना बड़ा था तो पुलिस केस ज़रूर होता। इस लिए ये जानने के लिए हमने यहाॅ के पुलिस कमिश्नर से भी बात की थी मगर उसने बताया कि पुलिस ने कोई केस नहीं बनाया। पुलिस केस भी तभी बनाती जब लड़की के घर वाले एफआईआर कराने थाने में जाते। मगर लड़की के घर वाले तो पुलिस की दहलीज़ पर गए ही नहीं थे। हमने भी यही समझा था कि वो हमसे डर गए होंगे इसी लिए पुलिस केस नहीं किया। मगर फिर उस किडनैपर से और अशोक के द्वारा ही समझ में आया कि ऐसा कौन और क्यों कर सकता है?"

"ओह तो फिर क्या समझ आया आपको?" अजय सिंह ने पूछा।
"रेप पीड़िता के घर वाले तो ऐसा कर नहीं सकते।" चौधरी ने कहा___"क्योंकि उन्हें पता था कि पुलिस केस से कुछ होने वाला नहीं है और ऐसा करने की क्षमता उनमें थी नहीं। मगर अशोक ने अपने तरीके से पता लगाया कि एक शख्स और है ऐसा जो हमारे बच्चों को इस संबंध में किडनैप कर सकता है।"

"ऐसा शख्स भला कौन हो सकता है चौधरी साहब?" अजय सिंह चौंका।
"तुम्हारा भतीजा विराज।" चौधरी ने मानो अजय सिंह के सिर पर बम्ब फोड़ा।
"क्या????" अजय सिंह इस तरह उछला था जैसे औसके पिछवाड़े पर किसी ने चुपके से गर्म तवा रख दिया हो। फिर हैरत से ऑखें फाड़े हुए बोला___"ये आप क्या कह रहे हैं? भला विराज ऐसा क्यों करेगा?"
 
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"इसकी बहुत बड़ी वजह है ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"दरअसल जिस लड़की का रेप किया था हमारे बच्चों ने उस विधी नाम की लड़की से तुम्हारा भतीजा विराज प्रेम करता था। जब उसे अपनी प्रेमिका के साथ हुए उस भयावह रेप का पता चला तो वो आग बबूला हो गया होगा और फिर मुम्बई से यहाॅ आ कर उसने अपनी प्रेमिका के साथ हुए रेप का बदला लेने के लिए ये सब कारनामा अंजाम दिया। हलाॅकि ये एक संभावना है ठाकुर क्योंकि हमारे पास अभी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि विराज ही ये सब कर रहा है। संभावना इस लिए है क्योंकि ये काम या तो विधी के घर वाले कर सकते या फिर विराज। दोनो के ही पास ये सब करने की मजबूत वजह थी। ख़ैर जब हमें अशोक की तहकीक़ात से ये पता चला कि विधी किसी विराज नाम के लड़के से प्रेम करती थी तो हमने विराज के बारे में भी जानकारी हाॅसिल की। उसी जानकारी के तहत ये पता चला कि तुम्हारा भी विराज के साथ ऐसा ही कुछ हाल है। इस लिए हमने सोचा तुमसे मिल कर ही इस संबंध में बात की जाए।"

"सच कहूॅ तो ये बात मेरे लिए निहायत ही नई और चौंकाने वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह के मस्तिष्क में धमाके से हो रहे थे। उसके दिमाग़ की बत्ती भी एकाएक जल उठी थी। अब उसे समझ आया था कि विराज मुम्बई से यहाॅ किस लिए आया था? इसके पहले वो सोच सोच कर परेशान था कि विराज यहाॅ किस वजह से आया रहा होगा। ख़ैर उसने इन सब बातों को अपने दिमाग़ से झटका और फिर बोला___"मुझे तो पता क्या बल्कि इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था कि मेरे भतीजे का किसी लड़की से प्रेम संबंध भी हो सकता है और वो उसके चक्कर में आपके साथ इतना कुछ कर सकता है।"

"दूसरी बात ये कि हम तुम्हारी बेटी के विराज से मिल जाने की बात इस लिए कह रहे हैं क्योंकि वो एक पुलिस ऑफिसर थी।" चौधरी कह रहा था___"उसके थाना क्षेत्र के अंतर्गत रेप की वो वारदात हुई थी। इस लि ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे उस वारदात का पता ही न चला हो। बल्कि ज़रूर चला होगा और जब उसने विधी को उस हालत में देखा होगा तो खुद ही कानूनन कोई ऐक्शन लेने का सोचा होगा। मगर ऐक्शन वो बिना आला ऑफिसर की अनुमति से कैसे ले सकती थी अथवा बिना पीड़िता के घर वालों द्वारा दर्ज़ करवाई गई एफआईआर के कैसे लेसकती थी? कमिश्नर ने उसे इस केस को बनाने से शख्त मना कर दिया होगा। ख़ैर, क्योंकि वो भी पुलिस वाली के साथ साथ एक लड़की थी इस लिए उसे उस रेप पीड़िता विधी से हमदर्दी हुई होगी। जिसके तहत वो उसी हमदर्दी के तहत विधी से मिलने भी गई होगी। उधर विधी के साथ हुई उस घटना की जानकारी किसी तरह विराज को भी हुई और वो फौरन ही मुम्बई से अपनी प्रेमिका के पास आ गया होगा। अतः संभव है कि इसी दौरान विराज की मुलाक़ात तुम्हारी बेटी से हुई हो और उसे भी ये पता चल गया हो कि विधी और विराज दरअसल प्रेमी कॅपल थे। ऐसी मार्मिक घटना के बीच किसी के अंदर मौजूद नफ़रत अगर प्यार में परिवर्तित हो जाए तो कोई हैरत की बात नहीं। ठाकुर, बस इसी वजह से हम कह रहे हैं कि तुम्हारी बेटी इन हालातों में विराज से मिल गई होगी। बाॅकी सच्चाई क्या है ये तो ईश्वर ही बेहतर तरीके से जानता है।"

अजय सिंह चौधरी की संभावना से भरी बातों को सुन कर बुरी तरह चकित था। उसे लगा कहीं यही सब सच तो नहीं? चौधरी की बातों में उसे सच्चाई की बू आ रही थी। हलाॅकि उसे तो पता ही था कि उसकी बेटी विराज का साथ दे रही है आजकल। उसने ये बात चौधरी से बताई नहीं थी, इसकी वजह ये थी कि फिर उसे और भी सारी बातें बतानी पड़ती जिनका हक़ीक़त से संबंध था। मगर अजय सिंह हक़ीक़त बता नहीं सकता था। उसे लगता था कि हक़ीक़त बताने से उसका कैरेक्टर चौधरी के सामने नंगा हो कर रह जाएगा।

"आपकी बातें और आपकी संभावनाएॅ सच भी हो सकती हैं चौधरी साहब।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर क्योंकि महज संभावनाओं के आधार पर ही तो नहीं चला जा सकता न। इस लिए हमें साथ मिल कर सारी बातों का पता लगाना होगा।"

"हम भी यही कहना चाहते हैं तुमसे।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मगर हमारे सामने समस्या ये है कि इस मामले में हम कोई भी क़दम खुल कर नहीं उठा सकते। क्योंकि तुम्हारे भतीजे ने साफ शब्दों में धमकी दी है कि अगर हमने कुछ उल्टा सीधा करने की कोशिश की तो वो हमें ही नहीं बल्कि इन तीनों को भी बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा देगा।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" अजय सिंह चौधरी की ये बात सुन कर बुरी तरह हैरान रह गया था, बोला__"भला वो ऐसा कैसे कर सकता है?"
"दरअसल।" चौधरी ने ज़रा झिझकते हुए कहा___"उसके पास हम सबके खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं जो अगर पब्लिक के सामने आ जाएॅ तो हम चारों का बेड़ा गर्क हो जाएगा।"

चौधरी की बात सुन कर अजय सिंह चौधरी को इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही उसके सिर पर गधे का सिर नज़र आने लगा हो। अजय सिंह ये सोच कर भी हक्का बक्का रह गया था कि विराज के पास उसके खिलाफ़ तो उसका बेड़ा गर्क कर देने वाला सबूत था ही और अब चौधरी के खिलाफ़ भी ऐसा सबूत है उसके पास। अजय सिंह को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा ये जान कर मगर फिर उसने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। उसे ये भी समझ आ गया कि जिस उम्मीद से और खुशी से वह चौधरी के पास आया था वो चौधरी तो खुद ही विराज के सामने भीगी बिल्ली बना बैठा है। ये सोचते ही अजय सिंह का सारी उम्मीद और सारी खुशी एक ही पल में नेस्तनाबूत हो गई।

"ये तो बहुत ही गजबनाक बात कह रहे हैं आप।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"बड़े आश्चर्य की बात है चौधरी साहब कि आप जैसा इंसान सब कुछ करने की क्षमता रखते हुए भी कुछ नहीं कर सकता है।"

"ये सच है ठाकुर।" चौधरी ने गंभीर भाव से कहा___"जब तक उसके पास हमारे खिलाफ़ वो सबूत हैं तब तक हम कोई ठोस क़दम उठाने का सोच भी नहीं सकते हैं। दूसरी बात उसके कब्जे में हमारे बच्चे भी हैं जिनके साथ वो कुछ भी उल्टा सीधा कर सकता है। ऐसे हालात में हम उसके खिलाफ भला कोई कठोर क़दम कैसे उठा सकते हैं? इस लिए हमने सोचा कि हमारा जो दुश्मन है वही तुम्हारा भी है तो तुम ज़रूर इस मामले में कोई ठोस कार्यवाही कर सकते हो। यकीन मानो ठाकुर, अगर तुम उस नामुराद का पता करके तथा उसके कब्जे से हमारे बच्चों के साथ साथ उस सबूत को भी लाकर हमारे हवाले कर दो तो हम जीवन भर तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। तुम जिस चीज़ की हसरत करोगे वो चीज़ हम लाकर तुम्हें देंगे।"

मंत्री की ये बात सुन कर अजय सिंह चकित रह गया था। उसके मुख से कोई लफ्ज़ न निकल सका था। चौधरी उससे मदद की उम्मीद किये बैठा था जबकि उसे पता ही नहीं था कि इस मामले में तो वो खुद भी पंगु हुआ बैठा है। कितनी अजीब बात थी दोनो एक दूसरे से मदद की उम्मीद कर रहे थे जबकि दोनो ही एक दूसरे की कोई मदद नहीं कर सकते थे। अजय सिंह को एकाएक ही उसका भतीजा किसी भयावह काल की तरह लगने लगा था। उसके समूचे जिस्म में मौत की सी झुरझुरी दौड़ गई थी।

"क्या सोचने लगे ठाकुर।" उसे चुप देख कर चौधरी पुनः बोल पड़ा___"तुमने हमारी बात का कोई जवाब नहीं दिया। जबकि हम तुमसे इस मामले में मदद की बात कर रहे हैं।"
"मैं तो ये सोचने लगा था चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"कि एक पिद्दी से लड़के ने प्रदेश की इतनी बड़ी हस्ती का जीना हराम कर दिया है। अभी तक तो मैं यही सोच रहा था कि उसने तो सिर्फ मेरा ही जीना हराम किया हुआ था मगर हैरत की बात है कि उसने अपने निशाने पर आपको भी लिया हुआ है।"

"सब वक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं जिनके तहत उसका पलड़ा बहुत भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नहीं होते तो हम उसे बताते कि हमारे साथ ऐसी ज़ुर्रत करने की क्या सज़ा मिल सकती थी उसे? ख़ैर छोंड़ो, तुम बताओ कि क्या तुम इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नहीं?"

"मैं पूरी कोशिश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"कि मैं इस मामले में आपके लिए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कि आपको मैं बता ही चुका हूॅ कि वो नामुराद मुझे भी अपना दुश्मन समझता है और मुझसे बदला ले रहा है तो उस हिसाब से ये भी सच है कि मैं भी यही चाहता हूॅ कि जल्द से जल्द वो मेरी पकड़ में आ जाए। एक बार पता चल जाए कि वो कमीना किस कोने में छुपा बैठा है उसके बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खूबसूरत ढंग से करूॅगा।"

"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कि उसके ठिकाने का पता किसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे लिए कोई क़दम उठाना भी आसान हो जाएगा।"
ऐसी ही कुछ देर और कुछ बातें होती रहीं। शाम घिर चुकी थी और अब रात होने वाली थी। इस लिए अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर वापस हल्दीपुर के लिए निकल चुका था। सारे रास्ते वह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भतीजा इतना बड़ा सूरमा हो सकता है कि वो प्रदेश के मंत्री तक को अपनी मुट्ठी में कैद कर ले। उसने मंत्री से कह तो दिया था कि वो इस मामले में उसकी मदद करेगा मगर ये तो वही जानता था कि वो उसकी कितनी मदद कर सकता था? ख़ैर थका हारा व परेशान हालत में अजय सिंह अपनी हवेली पहुॅच गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद अपने तथा चौधरी के लिए अब क्या करे?
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.......《 55 》



अब आगे,,,,,,,,

मैंने दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी थी। मेरे द्वारा दरवाजा खुलते ही वो मुझे देख कर पहले तो मुस्कुराई फिर जैसे ही उन्हें देख कर मैं एक तरफ हुआ तो वो दरवाजे से अंदर की तरफ कमरे में आ गईं। उन्हें कमरे में आते देख मुझे समझ न आया कि रितू दीदी रात में सोने की बजाय इस वक्त यहाॅ मेरे पास किस वजह से आई हैं?

दरवाजा बंद करके मैं पलटा और बेड की तरफ आ गया। रितू दीदी बेड पर ही एक किनारे पर बैठी हुई थी। इस वक्त उनके खूबसूरत बदन पर नाइट ड्रेस था। मैं खुद भी एक हाफ बनियान और शार्ट्स में था। हलाॅकि मुझे उनके यहाॅ इस वक्त आने पर कोई ऐतराज़ नहीं था बल्कि मैं तो खुश ही हुआ था मगर सोचने वाली बात तो थी ही कि इस वक्त उनके यहाॅ आने की क्या वजह हो सकती है?

"कहीं मैने तुझे डिस्टर्ब तो नहीं किया न राज?" मुझे बेड की तरफ आते देख सहसा रितू दीदी ने बड़ी मासूमियत से कहा___"कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने यहाॅ आ कर तेरी नींद में खलल डाल दिया हो?"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं उनके पास ही बेड पर बैठते हुए बोला___"भला आपकी वजह से मैं कैसे डिस्टर्ब हो जाऊॅगा? बिलकुल भी नहीं दीदी, मुझे भी अभी नींद नहीं आ रही थी।"

"अच्छा भला वो क्यों?" रितू दीदी ने सहसा मेरे चेहरे की तरफ ग़ौर से देखते हुए कहा___"क्या विधी की याद आ रही थी?"
"उसकी याद आने का तो सवाल ही नहीं है।" मैने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि मैं उसे एक पल के लिए भी भूलता ही नहीं हूॅ। दूसरी बात याद तो उन्हें करते हैं न जिन्हें हम भूले हुए होते हैं?"

"ओह राज।" रितू दीदी ने एकदम से मेरा चेहरा अपनी हॅथेलियों के बीच ले लिया, और फिर भारी स्वर में मुझसे बोली___"मैं जानती हूॅ कि तू विधी को इतनी आसानी से भूल नहीं सकता है। आख़िर तुम दोनो ने एक दूसरे से टूट कर मोहब्बत जो की थी, ऊपर से वो सब हो गया। मगर भाई, उस सबको याद करने से भी भला क्या होगा? बल्कि होगा ये कि तू हर पल उसे याद करके दुखी होता रहेगा। इस लिए तू खुद को सम्हाल मेरे भाई और उस सबसे बाहर निकल। तुझे पता है न कि मैं तुझे अब किसी भी सूरत में दुखी होते हुए नहीं देख सकती हूॅ। अगर तू खुश नहीं रहेगा तो मैं भी खुश नहीं रहूॅगी। अब तो तेरे ही खुशी में मेरी खुशी है राज और तेरे दुख में मेरा दुख है।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैंने उदास भाव से कहा___"मगर क्या करूॅ? यादों पर मेरा कोई अख़्तियार ही नहीं है। दिन तो गुज़र जाता है किसी तरह मगर ये रात.....ये रात और रात की ये तन्हाई जाने कहाॅ से मेरे दिल को दुखी करने के लिए उसकी यादें ले आती हैं? बस उसके बाद सब कुछ ऐसा लगने लगता है जैसे इस संसार में अब कुछ भी नहीं रह गया ऐसा जिसकी वजह से मैं खुश हो सकूॅ।"

"ऐसा मत कह मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुझे एकदम से खुद से छुपका लिया और फिर दुखी भाव से बोली___"हम सब भी तो हैं न जिनकी वजह से तू खुश हो सकता है। क्या सिर्फ विधी ही ऐसी थी जिसकी वजह से तू खुश हो सकता था? क्या गौरी चाची और गुड़िया कुछ भी नहीं जिनके लिए तू खुश रह सके?"

"हर रिश्ते की अपनी एक अलग अहमियत होती है दीदी।" मैने कहा___"मगर जो दिल का रिश्ता होता है और प्रेम के रिश्ते से जुड़ा होता है उसकी बात ही अलग होती है। हलाॅकि रिश्ता कोई भी हो उसके टूट जाने पर अथवा उसके न रह जाने पर तक़लीफ़ तो होती ही है। हम जिन्हें चाहते हैं तथा जिनसे प्रेम करते हैं वो अगर दुनियाॅ जहाॅन में हैं तो उनसे ताल्लुक न रहने के बाद भी इतनी तक़लीफ़ नहीं होती लेकिन अगर वो इस दुनियाॅ में ही नहों तो ये सोच सोच कर और भी ज्यादा तक़लीफ़ होती है कि अब वो इंसान उसे कभी भी नहीं मिल सकता। इंसान के दुनियाॅ में बने रहने से ये उम्मीद तो बनी ही रहती है कि कभी न कभी उसे वो ब्यक्ति मिलेगा ही। मगर......।"

"बस कर राज।" रितू दीदी फफक कर रो पड़ी___"मैं और कुछ नहीं सुन सकती। मुझे तो इतने से ही इतनी तक़लीफ़ हो रही है जबकि वो सब तो तेरे साथ घटा है तो तुझे कितनी ज्यादा तक़लीफ़ होती होगी। मुझे उस सबका एहसास है मेरे भाई मगर प्लीज....भगवान के लिए खुद को अपनी इस तक़लीफ़ से निकालने की कोशिश कर।"

"फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने दीदी को खुद से अलग कर उनके चेहरे को अपनी हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"ये दुख तक़लीफ़ें लाख असहनीय सही मगर ये मुझे नेस्तनाबूत नहीं कर सकती हैं। इतनी हिम्मत तो और इतनी कूबत तो है मुझमें कि मैं इन सबको जज़्ब कर सकूॅ। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि आप इस वक्त यहाॅ किस वजह से आई थी? क्या कोई काम था मुझसे?"

"क्या मैं तेरे पास बेवजह नहीं आ सकती राज?" रितू दीदी ने पुनः बड़ी मासूमियत से मुझे देखा था__"क्या मुझे अपने भाई के पास आने के लिए किसी वजह की ज़रूरत है?"
"नहीं दीदी ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मैने झेंपते हुए कहा___"बल्कि आप जब चाहें तब मेरे पास आ सकती हैं। मैने तो हालातों के बारे में सोच कर आपसे ऐसा कहा था।"

"हालातों के बारे में बात करने के लिए दिन काफी है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"कम से कम रात में तो उस सबसे दूर होकर हमें सुकून मिले। हर पल उसी के बारे में सोच सोच कर परेशान होना क्या अच्छी बात है?"

"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा___"हर वक्त एक ही चीज़ के बारे में सोच सोच कर परेशान होना बिलकुल भी उचित नहीं है। किन्तु ये भी सच है कि हालात ऐसे हैं कि हम भले ही ये सब सोच कर ऐसा कहें मगर ज़हन से वो सब बातें जाती भी तो नहीं हैं।"

"कोशिश करोगे तो ज़रूर जाएॅगी राज।" रितू दीदी ने कहा___"मगर तुम तो कोशिश ही नहीं करते हो। बस सोचते रहते हो जाने क्या क्या? अच्छा ये बता कि नीलम से क्या बात हुई थी तेरी?"

"बताया तो था आपको।" मैने कहा।
"हाॅ बताया तो था तूने।" रितू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"और ये भी बताया था कि कैसे तुम दोनो ट्रेन में धमाल मचा रखे थे।"
"क्या करता दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसी सबके लिए तो तरसा था मैं। मैं हमेशा ये चाहता था कि नीलम मुझसे लड़ाई करे, हम दोनो के बीच में खूब शैतनी भरा माहौल बना रहा करे। मगर वो सब ख्वाहिशें ही रहीं। आज सुबह जब ट्रेन में नीलम मेरे ऊपर झुकी हुई मुझे देख रही थी तो अचानक ही मेरे मन में वो सब बातें आ गई थी और फिर मैने उसे छेंड़ा। उसके बाद सचमुच वैसा ही हुआ दीदी जैसे की मैं हमेशा आरज़ू किया करता था। उस वक्त मैं बहुत खुश था औरुझे पता था नीलम भी उस सबसे बेहद खुश थी। उसके हाव भाव से ज़ाहिर हो रहा था कि वो भी मेरे साथ वो सब करके उन पलों को एंज्वाय कर रही थी।"

"काश उस वक्त मैं भी वहाॅ होती राज।" रितू दीदी ने सहसा आह सी भरते हुए कहा___"मैं भी नीलम की तरह तेरे साथ वैसी ही मस्ती करती।"
"अरे पर आप कैसे करती दीदी?" मैं दीदी की ये बात सुन कर चौंक पड़ा था___"आप तो मुझसे बड़ी हैं न, जबकि नीलम और मैं एक ही ऊम्र के हैं इस लिए हमारे बीच वैसी मस्ती हो सकती थी।"

"तो क्या हुआ भाई?" रितू दीदी ने कहा___"मैं तुझसे बड़ी हूॅ तो क्या हुआ? क्या मैं बड़ी होने की वजह से अपने भाई के साथ मस्ती नहीं कर सकती? ये किस कानून की किताब में लिखा है मुझे बता तो ज़रा?"

"हाॅ लिखा तो नहीं है मगर।" मैं दीदी की बात सुन कर सकपका गया था___"फिर भी आप मुझसे बड़ी तो हैं ही और मैं आपसे खुल कर वैसी मस्ती नहीं कर सकता था।"
"सीधे सीधे कह दे न कि तुझे मेरे साथ मस्ती करना पसंद ही नहीं आता।" रितू दीदी ने सहसा बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"एक नीलम ही बस तो है जिसके साथ तुझे वो सब करना अच्छा लगता है। जाओ मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।"

रितू दीदी ये कहने के साथ ही मुझसे ज़रा हट कर बैठ गईं और एक तरफ को मुह फुला कर बैठ गईं। मैं ये सब देख कर भौचक्का सा रह गया। मुझे उनसे इस सबकी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी। कदाचित इस लिए क्योंकि उनका कैरेक्टर ही ऐसा था। वो शुरू से ही हिटलर स्वभाव की रही थी। उन्हें ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं था। मगर इस वक्त वो हिटलर दीदी नहीं बल्कि किसी छोटी सी बच्ची की तरह मुह फुला कर एक तरफ बैठ गई थी। उनके चेहरे पर इस वक्त इतनी क्यूट सी नाराज़गी देख कर मैं हैरान भी था और अंदर ही अंदर ये सोच कर खुश भी कि इस वक्त रितू दीदी सच में किसी मासूम सी बच्ची की तरह लग रही थी। मुझे उनके इस तरह रूठ कर मुह फुला लेने से उन पर बेहद प्यार आया। मुझे ऐसा लगा जैसे इस क्यूट सी बच्ची पर मैं सारी दुनियाॅ हार जाऊॅ।

"अरे ये क्या बात हुई दीदी?" फिर सहसा मुझे वस्तुस्थित का बोध हुआ तो मैं उनके क़रीब जाते ही उनके कंधे पर हाॅथ रख कर बोला था मगर....।
"दूर रहो मुझसे।" रितू दीदी ने अपने कंधे से मेरे हाॅथ को झटकते हुए उसी रूठे हुए भाव से कहा___"और हाॅ मुझसे बात मत करो अब। मैं तुम्हारी कोई दीदी वीदी नहीं हूॅ। जाओ उस नीलम के पास।"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं हैरान परेशान सा हो कर कह उठा___"आप तो मेरी सबसे अच्छी व सबसे प्यारी दीदी हैं। भला मैं आपसे कैसे दूर हो सकता हूॅ और आपसे बात न करूॅ ऐसा तो हो ही नहीं सकता।"

"बस बस खूब समझती हूॅ मैं।" रितू दीदी ने उसी अंदाज़ से मगर इस बार ज़रा तीखे भाव से कहा___"मस्का लगाना कोई तुमसे सीखे।"
"मैं मस्का नहीं लगा रहा दीदी।" मैं एक बार से उनके पास खिसक कर गया और फिर बोला___"मैं किसी की भी कसम खा कर कह सकता हूॅ कि आप मेरी सबसे अच्छी दीदी हैं और मेरे दिल में जो स्थान आपका है वो किसी और का नहीं हो सकता।"

मेरी इस बात का मानो तुरंत असर हुआ। रितू दीदी एकदम से मेरी तरफ इस तरह देखने लगीं थी जैसे उन्हें मेरी इस बात से कितनी ज्यादा खुशी हुई हो। फिर सहसा जैसे उन्हें याद आया कि वो तो मुझसे रूठी हुई थीं। इस लिए उनके चेहरे के भाव पलक झपकते ही पहले जैसे हो गए और वो फिर से मुह फुला कर एक तरफ को अपना चेहरा कर लिया। मुझे उनके इस तरह रंग बदल लेने से मन ही मन हॅसी तो आई मगर मैं हॅसा नहीं। वरना मुझे पता था कि उसके बाद कैसे हालात हो जाने थे।

"ठीक है दीदी आप मुझसे मत बात कीजिए।" मैने इमोशनल ब्लैकमेल का नाटक किया___"शायद मेरा नसीब ही ऐसा है कि जिसे भी अपना समझता हूॅ वो मेरा अपना नहीं रहता। एक आप ही तो थी जिन्हें सबसे ज्यादा अपना समझता था और अपनी दुख तक़लीफ़ें दिखाता था मगर....।"

मेरा वाक्य पूरा भी न हो पाया था कि अचानक ही रितू दीदी की एक हॅथेली कुकर के ढक्कन की तरह मेरे मुह पर आकर फिट हो गई। उनकी ऑखों में ऑसू थे। वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे कह रही हों कि आइंदा ऐसी बातें कभी मत करना।

"क्यों ऐसी बातें करता है राज?" फिर दीदी ने सहसा दुखी भाव से कहा___"क्या मैं तुझसे रूठ भी नहीं सकती? मुझे भी नीलम की तरह तुझसे लड़ना झगड़ना है भाई। मुझे भी अपने इस प्यारे भाई के साथ जी भर के मस्ती करनी है। तुझे तो पता है कि मुझे इसके पहले ये सब पसंद ही नहीं था मगर अब मुझे भी लगता है कि मैं तुझसे तेरी बड़ी बहन बन कर नहीं बल्कि तेरी छोटी बहन बन कर रूठूॅ लड़ूॅ और तुझे परेशान करूॅ। मगर तू ही नहीं चाहता कि मुझे भी वैसी खुशी मिले जैसे तुझे और नीलम को वो सब करके मिली थी।"

"ऐसा नहीं है दीदी।" मैने उनको उनके कंधों से पकड़ते हुए कहा___"हमारे पारिवारिक रिश्तों में मेरी और भी कई दीदी होंगी मगर मेरी जो सबसे ज्यादा फेवरेट दीदी है वो सिर्फ आप हो। आपके लिए हॅसते हॅसते अपनी जान भी दे सकता हूॅ मैं। ख़ैर अगर आपकी भी यही इच्छा है तो ठीक है दीदी अब से आप भी मुझसे नीलम की तरह रूठ सकती हैं और लड़ाई झगड़ा कर सकती हैं। मुझे खुशी होगी कि आप भी खुद को इस रूप में खुशी देना चाहती हैं।"

"हाॅ मगर ये तभी होगा न भाई जब तू मुझे भी तुम या तू कह कर संबोधित करे।" रितू दीदी ने कहा___"जैसे तू नीलम से करता है। तभी तो वो सब करने में मज़ा आएगा।"
"ऐसा कैसे हो सकता है दीदी?" मैं दीदी की बात सुन कर बुरी तरह हैरान रह गया था, बोला___"आप मुझसे बड़ी हैं इस लिए मैं उस सबके लिए आपके मान सम्मान को ताक पर नहीं रख सकता।"

"ठीक है मगर उस वक्त तो बोल सकता है न जब हम आपस में वैसी मस्ती करेंगे।" दीदी ने कहा___"बाॅकी आम सिचुएशन में तू वही बोलना जो अब तक बोलता आया है। और हाॅ अब यही फाइनल है। इससे आगे मुझे कुछ नहीं सुनना है, समझ गया न?"

मेरी हालत मरता क्या न करता वाली हो गई थी। मैं अब कुछ नहीं कह सकता था। अगर कहता या कोई ऑब्जेक्शन करता तो निश्चिय ही दीदी नाराज़ हो जाती जो कि मैं कभी नहीं चाह सकता था।

"ठीक है दीदी।" फिर मैने गहरी साॅस ली___"जैसा आपको अच्छा लगे।"
"गुड।" दीदी के चेहरे पर रौनक आ गई___"तो शुरू करें?"
"क्या मतलब??" मैं उनकी इस बात से एकदम से चकरा गया।

"अरे वही भाई।" दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जो तू नीलम के साथ कर रहा था। मैं चाहती हूॅ कि श्रीगणेश हो ही जाए मस्ती का।"
"पर दीदी इस वक्त ये सब??" मैं बुरी तरह घबरा सा गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूॅ?

"इस वक्त क्या??" रितू दीदी ने ऑखें दिखाई।
"आप भी कमाल करती हैं।" मैने कहा___"भला ये भी कोई वक्त है इन सब चीज़ों का? हमारी वजह से बेकार में ही सब लोगों की नींद का कबाड़ा हो जाएगा। वैसे भी आज सब बहुत थके हुए हैं। इस लिए इस वक्त नहीं दीदी हम दिन में किसी वक्त धमाल कर लेंगे।"

"हाॅ ये तो सच कहा तूने।" रितू दीदी ने कहा___"सचमुच सबकी नींद का सत्यानाश हो जाएगा। चल कोई बात नहीं। इस वक्त तो तुझे बक्श दिया मगर याद रख कल छोंड़ूॅगी नहीं तुझे।"

"क्या???" मैं दीदी की इस बात से चौंका। फिर सहसा ऊपर की तरफ देखते हुए बोला___"हे भगवान मुझे शैतान की इस बच्ची से बचा लेना।"
"क्या कहा तूने?" रितू दीदी की ऑखें फैल गईं। वो एकदम से मेरी तरफ पलटीं फिर बोली___"मैं शैतान की बच्ची? रुक बताती हूॅ तुझे।"

इससे पहले कि मैं अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता रितू दीदी मुझ पर झपट पड़ीं। उन्होंने मुझे धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और खुद भी बेड के बीचो बीच आकर मेरे जिस्म के हर हिस्सों पर गुदगुदी करने लगीं। मुझे उनकी गुदगुदी से हॅसी तो नहीं आ रही थी मगर मैं जानबूझ कर हॅसने लगा था और उनसे अपने कहे की माफ़ियाॅ माॅगने लगा था। मगर रितू दीदी मेरे माफ़ी माॅगने पर भी मुझे गुदगुदी करना बंद नहीं कर रही थीं।

"प्लीज बस कीजिए न दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा__"सब लोगों की नींद टूट जाएगी।"
"टूट जाने दे अब।" रितू दीदी ने कहा___"मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है समझे? तूने मुझे शैतान की बच्ची बोला है न तो तुझे अब शैतान की ये बच्ची छोंड़ेगी नहीं।"

"अच्छा जी।" मैने कहा___"ऐसी बात है क्या? लगता है इस बच्ची का इलाज करना ही पड़ेगा।"
"तू कुछ नहीं कर पाएगा भोंदूराम।" रितू दीदी ने कहा___"जबकि मैं तेरी हालत ख़राब कर दूॅगी आज।"
"ओ हैलो।" मैने सहसा दीदी के दोनों हाथ पकड़ लिए फिर बोला___"कहीं ऐसा न हो कि मेरी हालत ख़राब करने के चक्कर में खुद तुम्हारी ही हालत ख़राब हो जाए।"

"अच्छा बच्चू।" दीदी अपने हाॅथों को मेरी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा___"इतनी बड़ी ग़लतफहमी भी है तुझको। शायद तुझे पता नहीं है कि मैं जूड़ो कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हूॅ।"

"फाॅर काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन।" मैने कहा___"मैं भी मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट हूॅ। इतना ही नहीं कुंग फूॅ का भी एक्सपर्ट हूॅ मैं। इस लिए तुम मुझे कम समझने की ग़लती मत करना।"

"चल चल हवा आने दे तू।" रितू दीदी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"बड़ा आया कुंग फू एक्सपर्ट। मेरे सामने तेरा कोई भी आर्ट्स नहीं चलने वाला।"
"और अगर चल गया तो??" मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"चल ही नहीं सकता।" रितू दीदी कहने के साथ ही मेरे ऊपर आ गई___"अब बोल बच्चू। बड़ा कुंग फू एक्सपर्ट बनता है न।"

मैने एकदम से पलटी मारी, रितू दीदी को मुझसे इतनी जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी। परिणाम ये हुआ कि जहाॅ पहले मैं पड़ा हुआ था वहाॅ रितू दीदी पड़ी थी और मैं उनके ऊपर। मेरी इस हरकत से पहले तो रितू दीदी घबरा ही गईं फिर मुझे देखते ही बोली___"ओये ये क्या है? तूने ये कैसे किया?"

"हाहाहाहा क्या हुआ बहना?" मैने उनके दोनो हाॅथ दोनो साइड से बेड पर रख दिया___"हवा निकल गई क्या तुम्हारी? बड़ा जूड़ो कराटे बता रही थी न। अब बोलो क्या करूॅ तुम्हारे साथ?"
"तूने चीटिंग की है।" रितू दीदी मेरी पकड़ से अपने हाॅथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा___"तूने धोखे से मुझे नीचे कर दिया है।"

"अच्छा जब हारने लगी तो चीटिंग का नाम दे दिया।" मैने कहा___"चलो यही सही, लेकिन तुम तो जानती हो न प्यार और जंग में सब जायज है। अब बताओ शैतान की बच्ची कि क्या करूॅ तुम्हारे साथ?"

"ओये ज्यादा दिमाग़ न चला समझे।" रितू दीदी ने एकाएक ही मेरे पीछे से अपनी दोनो टाॅगों को दोनो साइड से ऊपर कर मेरी गर्दन में फॅसा लिया और फिर हल्का झटका दिया। परिणाम ये हुआ कि मैं उनके पैरों की तरफ उलटता चला गया। इधर दीदी पलक झपकते ही बेड से उठ कर फिर से मेरे ऊपर आ गईं।

"क्यों कुंग फू एक्सपर्ट अब क्या हाल हैं तेरे?" रितू दीदी मेरे पेट पर बैठी उछलने लगी थी, उन्होंने अपने दोनो हाथों से मेरे हाथ भी पकड़ रखे थे।
"हाल तो बहुत अच्छा है।" मैने कहा___"आपकी जीत में भी मेरी ही जीत है दीदी।"

मेरे ऐसा कहने पर रितू दीदी एकदम से शान्त पड़ गईं। मेरी ऑखों में एकटक देखने लगी थी वो। फिर जाने क्या उनके मन में आया वो उसी हालत में मेरे ऊपर ही मेरे सीने से लग कर छुपक गईं।

"तूने खेल क्यों बंद कर दिया राज।" फिर दीदी उसी हालत में उदास होकर कहा___"मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था।"
"मुझे पता है दीदी।" मैने उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा___"मगर ऐसी चीज़ों की शुरूआत थोड़ी थोड़ी से ही होती है न। वैसे भी रात काफी हो गई है। इस सबसे कोई भी यहाॅ आ सकता है और हमें ये सब करते देख कर क्या सोचेगा। इस लिए मुझे लगता है इतना बहुत है आज के लिए। अब आपको भी अपने कमरे में जा कर सो जाना चाहिए।"

"क्यों, क्या मैं तेरे कमरे में तेरे साथ नहीं सो सकती?" रितू दीदी ने सहसा मेरे सीने से अपना सिर उठा कर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"बिलकुल सो सकती हैं दीदी।" मैंने मुस्कुरा कर कहा___"पर मैने ऐसा इस लिए कहा कि आपको शायद अपने कमरे में ही बेहतर तरीके से नींद आए और आप कंफर्टेबल महसूस करें।"

"ऐसा कुछ नहीं है मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरे गाल खींचते हुए किन्तु मुस्कुरा कर कहा___"मुझे तो तेरे साथ सोने में और भी अच्छी नींद आएगी और मुझे कंफर्टेबल भी महसूस होगा। ऐसा लगेगा जैसे मैं दुनियाॅ की सबसे सुरक्षित जगह पर हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दीदी।" मैने भी मुस्कुराते हुए कहा___"जैसा आपको अच्छा लगे वैसा कीजिए। अब चलिए सो जाते हैं।"
"ओये क्या तुझे नींद आ रही है?" दीदी ने ऑखें फैलाते हुए कहा था।
"हाॅ लग तो रहा है ऐसा।" मैने कहा।

"ठीक है तू सो जा फिर।" दीदी ने कहने के साथ ही अपना सिर वापस मेरे सीने में रख लिया।
"पर आप तो मेरे ऊपर लेटी हुई हैं न दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"ऐसे में कैसे मैं सो सकूॅगा भला?"
"जिसको सोना होता है न वो कैसे भी सो जाता है।" रितू दीदी ने अजीब भाव से कहा___"मैं तो तेरे ऊपर ही सोऊॅगी। तुझे भी ऐसे ही सोना पड़ेगा आज।"

रितू दीदी की इस बात से मैं हैरान रह गया मगर करता भी क्या? कोई ज़ोर ज़बरदस्ती भी उनसे नहीं कर सकता था। इस लिए चुपचाप अपनी ऑखें बंद कर ली मैने और सोने की कोशिश करने लगा। जबकि मेरे चुप हो जाने पर रितू दीदी जो मेरे सीने पर अपना सिर रखे हुए थी वो मुस्कुराए जा रही थी। उनका पूरा बदन ही मेरे ऊपर था। मुझे बड़ा अजीब भी लग रहा था और असहज भी। असहज इस लिए क्योंकि दीदी के सीने के उभार मेरे सीने के बस थोड़ा ही नीचे धॅसे हुए महसूस हो रहे थे। हलाॅकि मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत भावना नहीं थी मगर सोचने वाली बात तो थी ही। ख़ैर, कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। मुझे नहीं पता दीदी को कब नींद आई थी।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के यहाॅ से आने के बाद अजय सिंह सारे रास्ते सोचों में गुम रहा था। हवेली से जब वह चला था तो सबसे पहले गुनगुन में वो एयरटेल के सर्विस सेन्टर गया था। जहाॅ से उसने अपने पहले वाले नंबर के ही दो सिम कार्ड लिया था और उन्हें अपने मोबाइल फोन पर डाल लिया था। उसे पता था कि फोन बंद होने की वजह से उससे संबंध रखने वाले सभी उसके चाहने वाले परेशान होंगे। रास्ते में ही कई सारे लोगों के फोन आए थे उसे जिनसे उसने बात की और उन्हें बताया कि किस वजह हे उसका फोन बंद था।

अजय सिंह ने अपने उन बिजनेस दोस्तों से भी बात की जिन्होंने उसकी मदद के लिए अपने अपने आदमी भेजे थे। सबसे फारिग़ होकर ही वह अपने घर पहुॅचा था। हवेली पहुॅचते पहुॅचते उसे रात के साढ़े आठ से ऊपर हो गए थे। अंदर उसे ड्राइंगरूम में सब मिल गए। सब आपस में बात चीत कर हॅसे जा रहे थे। नीलम, सोनम, शिवा, तथा प्रतिमा आदि सब जगमोहन सिंह के पास ही बैठ थे।

अजय सिंह को आया देख कर नीलम व सोनम उससे मिली। अजय सिंह ने उन दोनो को प्यार दिया और फिर कपड़े चेन्ज करने का कह कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। प्रतिमा के कहने पर बाॅकी सब भी फ्रेश होने चले गए। रात का डिनर सविता ने तैयार कर दिया था अतः फ्रेश होने के बाद सब एक साथ डायनिंग हाल में आ कर बैठ गए। डिनर के दौरान सबके बीच नार्मल ही बातें हुई। इस बीच जगमोहन सिंह ने कहा कि उसे कल वापस जाना होगा क्योंकि वो इस समय एक ज़रूरी केस के सिलसिले में लखहगा हुआ है। प्रतिमा की हार्दिक इच्छा थी कि उसके पापा अभी कुछ दिन यहाॅ रुकें मगर उसे भी पता था कि उसके पिता एक बहुत बड़े वकील हैं जिनके पास समय का बहुत ही ज्यादा अभाव है।

जगमोहन सिंह ने ये ज़रूर कहा कि अब वो आते रहेंगे यहाॅ। उनकी इस बात से सब खुश हो गए। ख़ैर डिनर के बाद सब सोने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए।

"तो मिल आए तुम मंत्री जी से?" अपने कमरे में आते ही प्रतिमा ने बेड पर लेटे अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"वैसे किस सिलसिले में बुलाया था उसने तुम्हें? क्या कोई खास वजह थी?"

"इस बारे में कुछ न ही पूछो तो अच्छा है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली थी।
"अरे ये क्या बात हुई भला?" प्रतिमा बेड पर आते हुए बोली___"क्या कोई ऐसी बात है जिसे तुम मुझसे बताना नहीं चाहते हो?"

"नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"भला ऐसी कोई बात हुई है अब तक जिसे मैने तुमसे शेयर न किया हो?"
"वही तो।" प्रतिमा ने अजय सिंह से सट कर लेटते हुए कहा___"वही तो डियर, मुझे भी तो पता चले कि मंत्री ने किस वजह से मेरे अजय को बुलाया था?"

"दरअसल बात ऐसी है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"कि तुम सुनोगी तो हजम नहीं कर पाओगी।"
"अरे जाने भी दो।" प्रतिमा मुस्कुराई___"बड़ी से बड़ी बात तुम्हारी ये प्रतिमा हजम कर चुकी है फिर भला ये क्या चीज़ होगी।"

"मंत्री का जब फोन आया।" अजय सिंह ने कहा___"और जब उसने मुझे दोस्त कहा तो ये सच है कि मुझे उस वक्त बेहद खुशी हुई थी। किन्तु उससे मिल कर तथा उसकी बातें सुनकर मेरी सारी खुशी कपूर की तरह काफूर हो गई।"

"ये तुम क्या कह रहे हो अजय?" प्रतिमा के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे___"ऐसी भला क्या बातें कही उसने जिसकी वजह से तुम्हारी उम्मीदों और खुशियों पर पानी फिर गया?"

प्रतिमा के पूछने पर अजय सिंह ने मंत्री का सारा किस्सा उसे सुना दिया। ये भी बताया कि मंत्री उससे खुद मदद की उम्मीद किये बैठा है। सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा का मारे आश्चर्य के बुरा हाल हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अजय सिंह जो किस्सा सुना रहा है उसमें कहीं कोई सच्चाई है। मगर उसे पता था कि अजय सिंह झूठ मूठ का कोई किस्सा उसे हर्गिज़ भी नहीं सुनाएगा। यानी उसके द्वारा कहा हर लफ्ज़ सही था।

"ये तो बड़ी ही हैरतअंगेज बात है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर मौजूद हैरत कम नहीं हो रही थी, बोली___"उस गौरी का वो पिल्ला इस प्रदेश के मंत्री को भी अपने शिकंजे में लिया हुआ है। यकीन नहीं होता कि कल का छोकरा इतने बड़े बड़े काण्ड कर रहा है।"

"गए थे मंत्री के पास उससे मदद की उम्मीद लेकर।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"मगर खुद उसकी उम्मीद बन कर आ गए।"
"तुम्हें मंत्री से साफ साफ कह देना चाहिए था अजय कि तुम इस मामले में उसकी कोई मदद नहीं कर सकते।" प्रतिमा ने कहा___"क्योंकि तुम खुद भी कुछ कर सकने की स्थित में नहीं हो।"

"उसे अपने बारे में सारी सच्चाई नहीं बता सकता था डियर।" अजय सिंह ने कहा___"तुम खुद सोचो कि मैं वो सब उससे कैसे बता देता? इससे तो उसके सामने मेरी इज्ज़त का कचरा हो जाता न। वो क्या सोचता मेरे बारे में कि मैंने अपनी वासना और हवश के चलते अपने ही घर की बहू बेटियों की इज्ज़त पर अपनी नीयत ख़राब ही नहीं की बल्कि उनके साथ वो सब करने के लिए क़दम भी बढ़ाया। नहीं प्रतिमा नहीं, इससे तो उसकी नज़र में कोई वैल्यू ही न रह जाती। वो साला मुझे गंदी नाली का कीड़ा समझने लगता।"

"बात तो तुम्हारी ठीक ही है अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मगर अब क्या करोगे तुम? तुमने तो उससे वादा कर लिया है कि तुम इस मामले में उसकी मदद करोगे। जबकि तुम खुद अच्छी तरह जानते हो कि तुम खुद अपनी ही मदद नहीं कर पा रहे हो, फिर उसकी मदद कैसे कर सकोगे? मंत्री से मदद का वादा करके तुमने एक नई मुसीबत को दावत दे दी है अजय। वो मंत्री अब हर समय तुम्हें फोन करेगा अथवा बुलाएगा ये जानने के लिए कि तुमने उसकी मदद के रूप में अब तक क्या किया है? उस सूरत में तुम उसे क्या जवाब दोगे?"

"मैने उससे मदद का वादा नहीं किया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"सिर्फ ये कहा है कि मैं इस मामले में उसकी मदद के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूॅगा बस। इसमे मुसीबत की बात भला कहाॅ से आ गई? मैने कोई एग्रीमेंट तो किया नहीं है जिसके चलते वो मुझ पर कोई ऐक्शन लेगा। सीधी सी बात है मैने उसकी मदद के लिए अपनी तरफ से कोशिश की मगर उसका काम नहीं हो सका इसमें मैं और ज्यादा क्या कर सकता था?"

"चलो ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस मामले में क्या होता है?" प्रतिमा ने गहरी साॅस ली___"किन्तु हाॅ ये ज़रूर सोचने वाली बात है कि विराज ने मंत्री को इस ढंग से पंगु बनाया हुआ है। हम तो ये सोच सोच कर परेशान थे कि वो यहाॅ आया किस लिए था, पर अब पता चला कि वो अपनी उस प्रेमिका की वजह से यहाॅ आया था।"

"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"मंत्री से मिल कर तथा उसकी बातों से ही इस सच्चाई का पता चला वरना तो हमें पता भी न चलता कि वो साला यहाॅ आया किस वजह से था? इतना ही नहीं उसने मेरे अलावा और किसे अपने मक्कड़ जाल में फॅसा रखा था? मंत्री के जिन लड़कों ने उस विधी नाम की लड़की का रेप किया था वो विराज की प्रेमिका थी और वो गंभीर हालत में हल्दीपुर थाना क्षेत्र में हमारी बेटी रितू के द्वारा पाई गई थी।"

"एक मिनट अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर एकाएक ही चौंकने के भाव उभरे थे, फिर उसने कहा___"मुझे अब सारा मामला समझ आ गया है। ये भी समझ आ गया है कि हमारी बेटी हमारे खिलाफ़ हो कर क्यों उस विराज का साथ देने लगी है जिस विराज की वो अब तक शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी।"

"क्या समझ आ गया है तुम्हें?" अजय सिंह के माथे पर सहसा शिकन उभरी।
"ये मामला विधी के रेप से ही शुरू हुआ है।" प्रतिमा ने कहना शुरू किया___"हाॅ अजय ये सारी कहानी विधी के रेप केस से ही शुरू हुई है। मंत्री के द्वारा बताई गई सारी बातों पर ग़ौर करने के बाद इसकी कड़ियाॅ कुछ इस प्रकार से मेरे दिमाग़ में जुड़ी हैं, ग़ौर से सुनो। विधी नाम की जिस लड़की का रेप हुआ वो गंभीर हालत में हमारी बेटी को मिली। रितू चूॅकि पुलिस वाली थी इस लिए ये उसकी ड्यूटी थी कि वो इस मामले में रेप की गई लड़की के रेपिस्टों की तलाश करे और उन्हें कानूनन सज़ा दिलवाए। किन्तु उससे पहले उसने ये किया होगा कि गंभीर हालत में पाई गई उस लड़की को उसने हास्पिटल में भर्ती कराया तथा लड़की के विषय में जानकारी भी हासिल की होगी। रितू ने विधी से तहकीक़ात के रूप में उस लड़की से उसके साथ हुए उस हादसे की सच्चाई प्राप्त की होगी। इसी सच्चाई के दौरान उसे पता चला होगा कि विधी वो लड़की है जो उसके चचेरे भाई विराज से प्यार भी करती थी और विराज भी उससे प्यार करता था। किन्तु उसे ये समझ में न आया होगा कि दो प्यार करने वाले एक दूसरे से दूर कैसे हैं?
क्योंकि अगर दूर न होते तो विधी के साथ वो हादसा होता ही नहीं। इस लिए रितू ने विधी से उसके और विराज के बीच की दूरियों के बारे में पूछा होगा तब विधी ने उसे बताया होगा कि सच्चाई क्या है। वो सच्चाई ज़रूर ऐसी रही होगी जिसने रितू के दिल में चोंट की होगी। विधी के द्वारा ही उसे पता चला होगा कि विराज असल में कितना अच्छा लड़का है तथा ये भी कि उसके साथ उसके बड़े पापा ने कितना अत्याचार किया है। विधी की बातों ने रितू को सोचने पर मजबूर कर दिया होगा। किन्तु उसे इतना जल्दी इस बात पर यकीन नहीं आया होगा कि हमने विराज व विराज की माॅ बहन के साथ ग़लत किया हो सकता है। अतः उसने अपने तरीके से इस सबका पता लगाने का सोचा होगा। याद करो अजय ये उसी समय की बात है जब नैना यहीं थी और एक रात मैं तुम और शिवा साथ में ही वो मौज मस्ती कर रहे थे। मुझे पूरा यकीन है कि सच्चाई का पता लगाने की राह पर चलते हुए रितू उस रात हमारी वो रास लीला देख ली होगी। मैं ऐसा इस लिए कह रही हूॅ क्योंकि उस रात के बाद से ही रितू का बिहैवियर हमारे प्रति बदला था। याद करो दूसरे दिन कैसे उसने शिवा को खरी खोटी सुना दी थी। उस वक्त हमें पता नहीं था किन्तु अब समझ आ रहा है कि उसने शिवा को इतने गुस्से से क्यों झिड़का था? ख़ैर, उसके बाद वो बड़ी सफाई से नैना को भी यहाॅ से निकाल ले गई। उसको पता चल गया होगा कि तुम अपनी ही बहन को अपने नीचे लेटाने का मंसूबा बनाए बैठे हो। इस लिए वो नैना को बड़ी सफाई से यहाॅ ले गई। इस सबसे उसे और कुछ जानने की ज़रूरत ही नहीं रह गई थी। उसने उस रात हम तीनों की सारी बातें सुन ली होगी और जान गई होगी कि विराज की माॅ के साथ असल में हुआ क्या था? अथवा हमने उसके साथ किया क्या था? इतना सब कुछ काफी था उसका हमारे खिलाफ होने के लिए और विराज के साथ मिल जाने के लिए। इन्हीं सब के दौरान उसने विराज को मुम्बई से बुलाया होगा। किन्तु उसके पास विराज का कोई काॅटेक्ट नहीं था इस लिए उसने विराज के क़रीबी दोस्तों के बारे में पता लगाया होगा। विराज के दोस्त के रूप में उसे पवन मिला, पवन को उसने विधी का वास्ता देकर कहा होगा कि वो विराज को यहाॅ बुला ले। बस उसके बाद क्या क्या हुआ इसका तो पता ही है तुम्हें।"

प्रतिमा की इतनी लम्बी चौड़ी थ्यौरी सुन कर अजय सिंह आश्चर्यचकित रह गया था। काफी देर तक उसके मुख से कोई बोल न फूटा। फिर सहसा उसके चेहरे पर प्रतिमा के प्रति प्रसंसा के भाव उभरे। उसे प्रतिमा की सूझ बूझ और दूरदर्शिता की दाद देनी पड़ी। जबकि....।

"अब रहा सवाल इस बात का कि रितू ने इसके पहले विधी के साथ हुए उस रेप हादसे पर उन रेपिष्टों को कानूनन सज़ा क्यों नहीं दिलवाई?" प्रतिमा ने मानो पुनः कहना शुरू किया___"तो इसका जवाब तुम मंत्री के द्वारा पा ही चुके हो। मंत्री के अनुसार इंस्पेक्टर रितू ने विधी रेप केस के रेपिस्टों को पकड़ कर उन्हें कानूनन सज़ा दिलवाने की ज़रूर कोशिश की हो सकती है किन्तु मामला क्योंकि मंत्री के बच्चों का था इस लिए मंत्री की ताकत व पहुॅच के चलते कानूनन भी कुछ नहीं हो सकता था इस लिए रितू के आला अफसर ने भी रितू को इस मामले में हस्ताक्षेप न करने की सलाह दी होगी। विधी के माॅ बाप को भी यही समझ आया होगा, इसी लिए उन्होंने भी कोई केस करने का ख़याल अपने ज़हन से निकाल दिया होगा। दैट्स इट।"

"तुमने तो इस तरह इन सब बातों को खोल दिया है जैसे कि तुम इन सब चीज़ों का लाइव टेलीकास्ट देख रही थी और उसकी कमेंट्री भी कर रही थी।" अजय सिंह प्रभावित लहजे में बोला___"यकीनन तुम्हारा दिमाग़ काफी शार्प है। ख़ैर यहाॅ पर इसके आगे की कड़ी कुछ इस तरह है। विराज जब मुम्बई से आया और उसने अपनी लवर की वो हालत देखी तो उससे सहन नहीं हुआ। बल्कि उसका खून खौल गया होगा। किन्तु उसे भी समझ आ ही गया होगा कि वो विधी को कानूनन कोई न्याय नहीं दिला सकता। क्योंकि रेप करने वालों के आका बहुत बड़ी हस्ती थे। मगर जवान खून इसके बाद भी शान्त न हुआ होगा। तब उसने खुद उन लड़कों को सज़ा देने का सोचा होगा जिन लड़कों ने उसकी प्रेमिका के साथ वो घिनौना कुकर्म किया था। विराज के फैसले पर रितू ने भी अपनी सहमति दी होगी और उसकी मदद करने का वादा भी किया होगा। मंत्री के ही अनुसार, विराज और रितू मंत्री के फार्महाउस पहुॅचे और वहाॅ से मंत्री के उन बच्चों को धर लिया और वहीं से ही उनके हाथ कुछ ऐसे सबूत भी लगे जो मंत्री को विराज की मुट्ठी में कैद करने के लिए काफी थे दैट्स आल।"

"बिलकुल।" प्रतिमा ने कहा___"मंत्री को जब पता चला कि उसके बच्चों का किडनैपर हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह का भतीजा है तो उसने आज तुम्हें ये सोच कर फोन किया कि तुम इस मामले में उसकी यकीनन मदद कर सकते हो। ये अलग बात है कि तुम खुद भी मंत्री की तरह ही विराज की मुट्ठी में कैद हो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" अजय सिंह चौका___"मैं भला कैसे उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हूॅ?"
"कमाल है डियर।" प्रतिमा मुस्कुराई___"ये बात कैसे भूल सकते हो तुम कि विराज के पास तुम्हारी वो सब चीज़ें हैं जो तुम्हें किसी भी पल कानून की भयानक चपेट में ले लेने के लिए काफी हैं।"

"ओह हाॅ वो न।" अजय सिंह को अचानक ही जैसे सब कुछ याद आ गया और ये भी सच है कि वो सब याद आते ही उसके समूचे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई थी। उससे आगे कुछ कहते न बन सका था।

"बड़ी गंभीर सिचुएशन है अजय।" प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए गंभीरता से कहा___"सबकुछ कर सकने की कूबत होते हुए भी कुछ नहीं कर सकते, न तुम और ना ही वो मंत्री। मगर मुझे एक बात ये समझ नहीं आती कि जब इतना मसाला विराज के पास तुम दोनो के खिलाफ़ मौजूद है तो वो उस मसाले का उपयोग क्यों नहीं करता?"

"किया तो था उपयोग उसने।" अजय सिंह ने कहा___"उस मसाले के आधार पर ही तो उसने नकली सीबीआई वालों को भेजा था मुझे यहाॅ से ले जाने के लिए।"
"अरे हाॅ डियर।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे एकाएक ही बल्ब रौशन हुआ, बोली___"इस नये चक्कर को तो मैं भूल ही गई थी। ये भी तो सोचने का एक जटिल मुद्दा है। आख़िर विराज ने ऐसा किस वजह से किया होगा? नकली सीबीआई वालों को भेज कर उसने तुम्हें ग़ैर कानूनी धंधा करने तथा ग़ैर कानूनी पदार्थ रखने के जुर्म में गिरफ्तार करवाया और फिर दो दिन बाद बिना तुमसे कुछ पूछताॅछ किये छोंड़ भी दिया। सोचने वाली बात है कि इस सबसे उसे क्या मिला होगा? या फिर इससे उसका कौन सा फायदा हुआ होगा?"

"साला ऐसे ऐसे काम करता है कि कुछ समझ में ही नहीं आता।" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"सोचते सोचते दिमाग़ की नशें तक दर्द करने लगती हैं। मगर मजाल है जो कुछ समझ आए। हद हो गई ये तो। साला कल का छोकरा इतना शातिर होगा ये तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था मैने।"

"मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है उसके ऐसा करने का चक्कर।" प्रतिमा ने ये कह कर मानो अजय सिंह के ऊपर बम्ब फोड़ दिया था।
"क..क..क्या समझ आ रहा है तुम्हें?" अजय सिंह बुरी तरह हैरानी से पूछ बैठा था।

"ये तो तुम भी समझते हो न।" प्रतिमा ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"कि विराज की नज़र में ये एक जंग है जो उसने हमारे साथ शुरू की हुई है। जब कोई इंसान किसी से जंग शुरू करता है तब वो सबसे पहले अपनी कमज़ोरियों को अपने प्रतिद्वंदी से या तो छुपाता है या फिर उसकी पहुॅच से बहुत दूर कर देता है।"

"तुम क्या कह रही हो?" अजय सिंह उलझ कर रह गया, बोला___"मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा?"
"याद करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी ने हमें क्या ख़बर दी थी? यही न कि विराज मुम्बई से आए अपने दोस्त के साथ पवन की फैमिली को एम्बूलेन्स में बैठा कर चला गया था और एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी थी। जिसमें कि यकीनन रितू ही थी। यहाॅ पर मेरे कहने का मतलब ये है कि विराज ने ऐसा क्यों किया? आख़िर उसे क्या ज़रूरत थी पवन और उसकी फैमिली को अपने साथ कहीं ले जाने की? इस सवाल के बारे में अगर ग़ौर से सोचोगे तो जवाब ज़रूर मिल जाएगा। मतलब ये कि पवन और पवन की फैमिली विराज की कमज़ोरी थे। उसने सोचा होगा कि देर सवेर हमे इस बात का पता चल ही जाएगा कि उसके दोस्त पवन ने उसकी सहायता की थी और वो यहाॅ उसके ही घर में रुका था। अतः हम इसके लिए उसके दोस्त और उसकी फैमिली को कोई नुकसान भी पहुॅचा सकते हैं। ये सोच कर उसने पवन आदि को सुरक्षित रखना अपना कर्तब्य समझा। किन्तु उसके सामने समस्या रही होगी कि वो पवन आदि को सुरक्षित कैसे करे? उसकी समस्या का समाधान रितू ने किया होगा। उसने उन सब को किसी ऐसी जगह चलने को कहा होगा जहाॅ पर वो सब लोग पूर्णरूप से सुरक्षित रह सकते थे। यहाॅ पर ये भी समझ आ रहा है कि वो लोग एम्बूलेन्स से ही क्यों गए थे? दरअसल एम्बूलेंस ही एक ऐसा किफायती वाहन हो सकता था जिसमें सब लोग बड़े आराम से तथा बिना किसी बाधा के कहीं भी जा सकते थे। हम या हमारे आदमी सोच ही नहीं सकते थे कि वो लोग किसी एम्बूलेंस जैसे वाहन में यहाॅ से जा सकते हैं।एम्बूलेन्स के आगे आगे कुछ फाॅसले पर रितू अपनी जिप्सी में जा रही थी। फाॅसले पर इस लिए ताकि अगर हम या हमारे आदमी रास्ते में कहीं मिलें भी तो वो उस पर शक न कर सकें किसी बात का। कहने का मतलब ये कि रितू की मदद से विराज ने अपनी एक कमज़ोरी को हमारी पहुॅच से दूर कर दिया।"

"मगर इसमें ये कहाॅ फिट बैठता है कि वो इस सबके लिए मुझे ऐसे चक्कर में फॅसा कर बाद में छोंड़ भी दे?" अजय सिंह सहसा बीच में ही बोल पड़ा था___"और वैसे भी ये वाला चक्कर तो उस सबके बहुत बाद अभी हुआ है।"

"मेरी बात तो पूरी होने दो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मैं सब कुछ विस्तार से ही बता रही हूॅ और तुम्हारे सवाल की तरफ ही आ रही हूॅ। विराज के यहाॅ आने पर हमने ये अनुमान लगाया था कि संभव है कि वो यहाॅ पर अभय के बीवी बच्चों को लेने आया हो। हलाॅकि ये भी एक अहम बात है अजय, क्योंकि आज के हालात में विराज की दूसरी कमज़ोरी अभय के बीवी बच्चे भी हैं। इस लिए संभव है कि वो उन्हें भी अपने साथ ही ले गया हो। अभय ने उससे कहा होगा कि अगर संभव हो सके तो वो अपने साथ अपनी चाची व अपने भाई बहन को भी ले आए। विराज मुम्बई से यही सोच कर आया रहा होगा कि वो विधी को देखेगा और फिर अपनी छोटी चाची व उसके बच्चों को साथ ले कर पुनः मुम्बई लौट जाएगा। मगर यहाॅ आने के बाद विधी के मामले में वो एक अलग ही चक्कर में पड़ गया। ऐसे माहौल में वो भला वो कैसे यहाॅ से चला जाता? दूसरी बात यहाॅ पर तो वैसे भी उसके लिए खतरा ही था। अतः अपने साथ साथ अपनी कमज़ोरियों को भी दूर करना उसकी पहली प्राथमिकता थी। रितू के द्वारा उसे कोई सुरक्षित जगह तो ज़रूर मिल गई रही होगी मगर उससे कदाचित वो संतुष्ट न रहा होगा। वो चाहता रहा होगा कि उसकी सभी कमज़ोरियाॅ हमारी पहुॅच से काफी दूर होनी चाहिए और काफी दूर तो मुम्बई ही थी। अतः उसने फैसला किया होगा कि सबको मुम्बई भेज दिया जाए। उधर उसे इस बात का भी एहसास रहा होगा कि रितू अब चूॅकि हमारे खिलाफ होकर उसकी मदद कर रही है इस लिए अब उस पर भी खतरा ही है और वो उसे खतरा के बीच में अकेला छोंड़ भी नहीं सकता था। तब उसने एक प्लान बनाया और वो प्लान यही था कि वो तुम्हें कम से कम दो दिन के लिए सीबीआई की गिरफ्त में डलवा दे। इसका फायदा ये था कि जब तुम ही मैदान पर न होते तो रितू पर खतरे की सीमा न के बराबर ही रह जाती। उधर प्लान के मुताबिक विराज अपनी कमज़ोरियों को लेकर वापस मुम्बई चला गया। मुम्बई में सबको छोंड़ कर वो उसी दिन वापस यहाॅ के लिए चल दिया।"

"तो तुम्हारे हिसाब से विराज ने इसी सबके लिए मुझे ऐसे चक्करें फाॅसा था?" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मगर तुमने ये कैसे कह दिया कि विराज उन सबको लेकर मुम्बई ही गया था?"

"इस आधार पर कि उसने तुम्हें दो दिन के लिए ही उस चक्कर में फाॅसा था।" प्रतिमा ने कहा___"इन दो दिनों में वो आराम से मुम्बई जाकर लौट भी सकता है। उसने तुम्हें नकली सीबीआई के जाल में फाॅसा जबकि वो चाहता तो तुम्हें सचमुच में ही रियल सीबीआई की गिरफ्त में पहुॅचा देता। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसका मकसद सिर्फ इतना ही था कि तुम दो दिन के लिए अंडरग्राउण्ड रहो"

"यकीनन ऐसा ही हुआ लगता है।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर, सोचने वाली बात है कि रितू उसकी मदद कर रही है और वो उसे तथा उसके साथ साथ पवन आदि को भी सुरक्षित ले गई थी। मगर सवाल है कि ऐसी कौन सी जगह वो ले गई होगी?"

"किसी ऐसी जगह।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"जहाॅ पर किसी ग़ैर का आना जाना न हो और जहाॅ पर उन्हें किसी के खतरे का भी आभास तक न हो।"
"ऐसी कौन सी जग......।" अजय सिंह कहते कहते एकदम से रुक गया था। उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभर आए और फिर वो सहसा अजीब भाव से बोल पड़ा___"अरे....ओह माई गाड मैं भी न बहुत बड़ा बेवकूफ हूॅ प्रतिमा।"

"क्यों, क्या हुआ?" प्रतिमा उसके मुख से ये सुन कर चौंक पड़ी थी, बोली___"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"
"क्यों न कहूॅ यार?" अजय सिंह एकाएक ही आहत भाव से बोला___"मैं बेवकूफ ही तो हूॅ। इस बारे में तो मुझे पहले ही सोच लेना चाहिए था कि रितू नैना को लिये कहाॅ रह सकती है?"

"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।
"तुम्हें याद है न कि हमने अपने तीनों बच्चों के नाम एक एक फार्महाउस किया था?" अजय सिंह ने आवेशयुक्त भाव से कहा था।
"ओह हाॅ।" प्रतिमा एकदम से उछल पड़ी थी। एकदम से जैसे उसे अजय सिंह की बात समझ में आ गई थी, अतः बोली___"तो क्या तुम ये कह रहे कि रितू....?"
 
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"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह प्रतिमा की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा___"मैं यही कह रहा हूॅ कि रितू उस समय नैना को लिए अपने उसी फार्महाउस पर गई होगी जिस फार्महाउस को मैने उसके नाम किया था। सोचो प्रतिमा वो जगह उन सबके लिए कितनी आसान तथा महफूज हो सकती है। उफ्फ ये बात मेरे ज़हन में पहले क्यों नहीं आई वरना हम पहले ही रितू नैना आदि सबको पकड़ सकते थे। बहुत बड़ी ग़लती हो गई प्रतिमा, मैं खुद अपनी ही ग़लती की वजह से जीती हुई बाज़ी को हार गया।"

"अरे तो अभी भी क्या बिगड़ा है अजय?" प्रतिमा ने कहा___"हो सकता है कि वो सब अभी भी वहीं पर मौजूद हों। तुम्हें तुरंत ही वहाॅ जाना चाहिए।"
"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने पूरी मजबूती से गर्दन को न में हिला कर कहा___"अब कुछ नहीं हो सकता। वो लोग अब हमें फार्महाउस पर नहीं मिलेंगे। क्योंकि ये बात तो वो भी समझते रहे होंगे कि फार्महाउस उनके लिए कुछ समय के लिए ज़रूर सुरक्षित जगह हो सकती है मगर हमेशा के लिए नहीं। ये मत भूलो कि रितू के साथ में विराज भी है। वो कमीना बहुत शातिर है। अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ये बताती हैं कि वो हमसे दो क़दम आगे ही रहता है। हम जिस चीज़ के बारे में सोचते हैं वो शातिर लड़का उस चीज़ को पहले ही अंजाम दे चुका होता है।"

"फिर भी एक बार पता करने में क्या जाता है?" प्रतिमा ने कहा___"हो सकता है वो अभी भी वहीं पर हों। उनके दिमाग़ में ये सोच होगी कि उनके वहाॅ होने का पता तुम्हें ज़रूर चलेगा इस लिए तुम फिर ये सोच कर वहाॅ उनका पता करने नहीं जाओगे कि अब वो वहाॅ हो ही नहीं सकते हैं। ये एक मनोवैज्ञानिक सोच है अजय, इसी के आधार पर वो तुम्हारे दिमाग़ को पढ़ता है और वही करता है जिसकी तुम उम्मीद ही नहीं करते। कहने का मतलब ये कि तुम इस वक्त ये सोच रहे हो कि वो लोग वहाॅ होंगे ही नहीं अतः तुम उनका पता करने नहीं जाओगे जबकि वो तुम्हारी इसी सोच के चलते वहाॅ मौजूद रहेंगे।"

"मनोविज्ञान के रूप में तुम्हारा तर्क अच्छा है और अपनी जगह सही भी है।" अजय सिंह ने कहा___"मगर मुझे नहीं लगता है कि विराज जैसा शातिर दिमाग़ लड़का इतना बड़ा जोखिम उठाएगा। बल्कि संभव है कि उसने कोई दूसरा सुरक्षित ठिकाना ढूॅढ़ लिया होगा। फिर भी अगर तुम्हारा मन नहीं मानता तो ठीक है मैं अभी पता करवा लेता हूॅ।"

ये कह कर अजय सिंह ने सिरहाने की तरफ ही रखे अपने लैण्डलाइन फोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया और उस पर कोई नंबर पंच करने लगा। थोड़ी देर बाद ही उसने अपने किसी आदमी से कहा कि वो फला जगह पर बने उसके फार्महाउस में जाए और पता करे कि वहाॅ इस वक्त कौन कौन मौजूद है? अपने आदमी को हुकुम देने के बाद अजय सिंह ने रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

"थोड़ी ही देर में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मेरा आदमी कुछ ही देर में पता करके मुझे उस सबकी सूचना फोन पर दे देगा।"
"इस बात का यकीन तो मुझे भी है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"वो लोग फार्महाउस में नहीं होंगे मगर इसके बावजूद एक बार पता करना भी कोई हर्ज़ की बात नहीं है। ख़ैर, चलो ये मान के चलते हैं कि वो लोग फार्महाउस पर नहीं होंगे तो सवाल ये है कि उन लोगों ने आख़िर किस जगह पर अपना दूसरा सुरक्षित ठिकाना बनाया होगा?"

"इस बारे में भला क्या कहा जा सकता है?" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"सच कहूॅ तो मेरा अब दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा है। समझ में नहीं आता कि आख़िर ऐसा क्या करूॅ जिससे कि सब कुछ मेरी मुट्ठी में आ जाए?"

"सबसे पहले तो तुम्हें अपनी सोच का दायरा बड़ा करना होगा अजय।" प्रतिमा ने उसे ज्ञान देने वाले अंदाज़ से कहा___"तुम्हें विराज की सोच से दो नहीं बल्कि चार क़दम आगे की सोच रखनी होगी। तभी वो सब संभव हो सकता है जो तुम चाहते हो।"

"सबसे बड़ी समस्या ये है डियर कि उसके पास मेरे खिलाफ वो ग़ैर कानूनी सबूत हैं।" अजय सिंह बेचैनी से बोला___"वो साला उनके आधार पर कभी भी कानून की चपेट में ला सकता है।"

"वो उन सबूतों इस्तेमाल नहीं करेगा अजय।" प्रतिमा ने कहा___"अगर करना ही होता तो वो कब का कर चुका होता। वो सबूत तो उसके पास महज तुरुप के इक्के की तरह मौजूद हैं। यानी जब वो दूसरे किसी तरीके से तुमसे अपना बदला नहीं ले पाएगा तब वो उनका इस्तेमाल करेगा। कदाचित उसके मन में ये सोच है कि वो तुम्हें कानून की सलाखों के पीछे पहुॅचा कर आसान सज़ा नहीं देना चाहता। बल्कि खुद अपने हाॅथों से तुम्हें कोई ऐसी सज़ा देना चाहता है छिसके बारे में तुमने ख्वाब में भी न सोचा हो।"

"यकीनन तुम सही कह रही हो प्रतिमा।" अजय सिंह के जिस्म में झुरझरी सी हुई थी, बोला___"उसके मन में यकीनन यही होगा। वो मुझे खुद अपने हाॅथों से सज़ा देना चाहता है। दूसरी बात, जिस तरह से उसने मुझे फॅसा रखा है उससे वो निश्चय ही अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा। मगर मुझे ये समझ में नहीं आता कि जब उसकी मुट्ठी में सब कुछ है तो वो देर किस बात पर कर रहा है?"

"यही तो सोचने वाली बात है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर सोचों के भाव उभरे___"वो इतना शातिर है कि हम उसकी सोच को समझ हीं नहीं पाते। जबकि वो हमारी उम्मीदों से परे वाला काम कर जाता है। वो चाहे तो यकीनन एक झटके में ऐसा कुछ कर सकता है जिसके तहत हम सब उसके सामने दीन हीन दसा में हाज़िर हो जाएॅ मगर वो ऐसा इस लिए नहीं कर रहा क्योंकि उसे लगता होगा कि ये काम तो वो कभी भी कर सकता है। वो कुछ ऐसा करने की फिराक़ में होगा जो हमारे लिए हद से भी ज्यादा असहनीय हो। यकीनन ऐसा ही हो सकता है अजय और कदाचित वो ऐसा कर भी रहा है।"

"क क्या कर रहा है वो?" अजय सिंह मानो अंदर ही अंदर काॅप कर रह गया था।
"सबसे पहले तो उसने यही किया।" प्रतिमा ने कहा___"कि उसने हमारी बेटी को हमसे अलग कर अपने साथ मिला लिया। क्या ये बड़ी बात नहीं है अजय कि हमारी जो बेटी उसकी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करती थी वो आज शायद विराज को ही सच्चे दिल से अपना भाई मानने लगी है और इतना ही नहीं उसके लिए अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई। अगर उसे हमारी हर असलियत का पता चल चुका है तो ये भी संभव है कि उसने हमसे रिश्ता भी तोड़ लिया हो। सारी बातों को ग़ौर से सोचो तो समझ में आता है कि वास्तव में विराज ने कितना बड़ा तीर मार लिया है।"

"इसमे कोई संदेह नहीं है यार।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"रितू को अपने साथ इस तरह से मिला लेना बहुत बड़ी बात है।"
"और मुझे तो ये भी लगता है अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"कि विराज का अगला क़दम हमारी दूसरी बेटी नीलम को भी अपनी तरफ मिला लेना होगा। नीलम को ज्यादा दुनियादारी का पता नहीं है। किन्तु हाॅ ये सच है कि वो भी अपनी बड़ी बहन की ही तरह सच्चाई की राह पर चलने की सोच रखती है। इस लिए अगर उसे हमारी असलियत के बारे में पता चल गया तो ये निश्चित बात है कि वो भी हमारे खिलाफ़ हो जाएगी। वैसे क्या पता हो ही गई हो।"

"ऐसा तुम कैसे कह सकती हो भला?" अजय सिंह को अपने पैरों तले से मानो ज़मीन खिसकती हुई महसूस हुई, बोला___"नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रही हो तुम?"

"विराज की सोच से अगर चार क़दम आगे चलना है तो ऐसा सोचना ही पड़ेगा डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ऐसा बेवजह ही नहीं कह रही हूॅ बल्कि ऐसा कहने की मेरे पास कुछ पुख्ता वजहें भी हैं।"

"क कैसी वजहें?" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे।
"पिछली दो तीन दिन की घटनाओं पर ज़रा बारीकी से ग़ौर करो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"विराज ने तुम्हें नकली सीबीआई के जाल में फॅसा कर क्यों अंडरग्राउण्ड किया? इसका जवाब ये है कि उसे अपनी कमज़ोरियों को सुरक्षित या तुम्हारी पहुॅच से दूर करना था। किन्तु उसे लगा होगा कि उसके मुम्बई चले से यहाॅ रितू और नैना अकेली पड़ जाएॅगी। हालात ऐसे थे कि उन दोनो पर किसी भी समय तुम्हारे रूप में कोई संकट आ सकता था। अतः विराज ने एक तीर से दो शिकार किया, पहला ये कि तुम्हें नकली सीबीआई की कैद में रख कर सुरक्षित सबको यहाॅ से मुम्बई ले जाएगा और दूसरा ये कि उसके यहाॅ न रहने पर रितू व नैना के ऊपर तुम्हारा कोई संकट भी न रहता।
दो दिन बाद उसने तुम्हें इसी लिए छोंड़ दिया क्योंकि वो मुम्बई से वापस यहाॅ आ गया और फिर आते ही उसने सबसे महत्वपूर्ण काम ये किया कि फार्महाउस से रितू व नैना को अपने साथ किसी दूसरी ऐसी जगह शिफ्ट किया जहाॅ पर तुम्हारा खतरा न के बराबर ही हो। ये उसी दिन की बात है अजय जब तुम्हें सीबीआई वाले ले गए थे, तब मैने रितू को फोन लगाया था तुम्हारे बारे में बताने के लिए मगर उसने मेरा फोन नहीं उठाया बल्कि काट दिया था। तब मैने नीलम को फोन लगाया और उसे बताया कि यहाॅ क्या हुआ है। उसे मैने ये भी बताया कि उसकी बड़ी बहन हमारे खिलाफ हो गई है। मेरी बात सुन कर वो घबरा गई और उसने यहाॅ आने के लिए कहा था। यहाॅ पर ग़ौर करने की बात ये है कि संभव है कि नीलम ने मुझसे बात करने के बाद रितू से बात की हो और उससे पूछा हो कि वो क्यों माॅम डैड के खिलाफ हो गई हैं। उसके पूछने पर संभव है कि रितू ने उसे हमारी सारी सच्चाई बता दी हो। हलाॅकि ऐसा हुआ नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा हुआ होता तो यहाॅ आने के बाद नीलम का बिहैवियर कुछ तो अलग हमें समझ ही आता। किन्तु वो यहाॅ आने पर नार्मल ही थी। इसका मतलब कि रितू ने उसे कुछ नहीं बताया था उस दिन। किन्तु हाॅ ऐसा हो सकता है कि नीलम के द्वारा माॅम डैड के खिलाफ़ हो जाने का कारण पूछने पर रितू ने उससे बस यही कहा हो कि वो खुद सच्चाई का पता लगाए। अतः संभव है कि नीलम अब बड़ी ही सफाई से सच्चाई का पता भी लगा रही हो। दूसरी बात विराज के यहाॅ से जाने के दिन की काॅउटिंग करें तो पता चलता है कि विराज उसी दिन वापस यहाॅ के लिए मुम्बई से चल दिया था जिस दिन हमारी बेटी नीलम वहाॅ से चली थी और फिर आज यहाॅ पहुॅची है। मेरे कहने का मतलब ये है कि ऐसा यकीनन हो सकता है कि विराज और नीलम एक ही ट्रेन से यहाॅ आए हों अथवा ऐसा भी हो सकता है कि ट्रेन में ये दोनो मिले भी हों और उनके बीच कोई बातचीत भी हुई हो।"

"अब बस भी करो यार।" अजय सिंह सहसा खीझते हुए बोल पड़ा था___"तुम तो ऐसी ऐसी बातें नाॅन स्टाप करती चली जा रही हो जो कि अब मेरे सिर के ऊपर से जाने लगी हैं। मुझे समझ में नहीं आता कि ये सब बातें तुम्हारे दिमाग़ में आती कैसे हैं? कभी ऐसा तो कभी वैसा, कभी ये हो सकता है तो कभी वो हो सकता है। व्हाट दा हेल इज दिस यार? तुम तो मेरे दिमाग़ का अपनी बातों से ही दही किये दे रही हो।"

"कमाल करते हो डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा खिलखिला कर हॅसते हुए कहा___"अगर ऐसा नहीं सोचोगे तो कैसे विराज की सोच से आगे जा पाओगे? कैसे उसे अपनी मुट्ठी में कैद कर पाओगे तुम?"

"भाड़ में जाए विराज।" अजय सिंह सहसा गुस्से में बोल पड़ा___"साले ने जीना हराम कर दिया है मेरा। ऊपर से मेरी बेटी को भी अपने साथ मिला लिया उसने। बस एक बार....एक बार मेरे सामने आ जाए वो। उसके बाद मैं बताऊॅगा कि मेरे साथ ऐसी चुहलबाज़ी करने का अंजाम क्या होता है?"

"सोचने वाली बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने अजय सिंह के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा___"जो लड़का बग़ैर सामने आए तुम्हारी ये हालत कर रखा है वो अगर खुल कर सामने आ जाए तो सोचो क्या हो?"

"क्या होगा?" अजय सिंह ताव में बोला___"साले माॅ बहन बीच चौराहे पर चोदूॅगा मैं। एक बार सामने बस आ जाए वो हरामज़ादा।"
"इसका उल्टा भी तो हो सकता है डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"हाॅ डियर इसका उल्टा भी तो हो सकता है। यानी कि तुम तो बीच चौराहे पर उसकी माॅ बहन को न चोद पाओ मगर वो सच में ही तुम्हारे बीवी बच्चों को बीच चौराहे पर रौंद डाले।"

"ये क्या बकवास कर रही हो तुम?" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"होश में तो हो न तुम? ये तुम कैसी वाहियात बातें कर रही हो?"
"सच हमेशा कड़वा ही लगता है मेरे बलम।" प्रतिमा ने अजय सिंह के चेहरे को अपनी एक हॅथेली से सहला कर कहा___"मगर सोचो तो सही। हालात जिस तरह से उसकी मुट्ठी में हैं उससे क्या वो ये सब नहीं कर सकता?"

प्रतिमा की इस बात पर अजय सिंह कुछ बोन न सका। कदाचित उसे एहसास हो गया था कि प्रतिमा सच कह रही थी। सच ही तो था, वो भला क्या कर सकता था विराज का? जबकि विराज अगर चाहे तो यकीनन वो सब कर सकता है जिस चीज़ की बात प्रतिमा कर रही थी। ख़ैर अभी अजय सिंह ये सब सोच ही रहा था कि तभी सिरहाने की तरफ रखा लैण्डलाइन फोन बज उठा। अजर सिंह ने हाथ बढ़ा कर रिसीवर उठाया और कान से लगा लिया। दूसरी तरफ से कुछ देर तक जाने क्या कहा। जवाब में ये कह कर अजय सिंह ने रिसीवर वापस रख दिया कि "चलो कोई बात नहीं"।

"क्या कहा तुम्हारे आदमी ने?" अजय सिंह के रिसीवर रखते ही प्रतिमा ने उससे पूछा था।
"यही कि इस वक्त फार्महाउस पर कोई इंसान तो क्या एक परिंदा तक मौजूद नहीं है।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु हाॅ वहाॅ पर हमारी वो जीप ज़रूर उसे मिली है जो जीप हमारे ही एक आदमी के साथ लापता हो गई थी।"

"इसका मतलब।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव के साथ कहा___"विराज ने मुम्बई से आते ही फार्महाउस से सबको दूसरी किसी सुरक्षित जगह पर शिफ्ट कर दिया है। कदाचित उसे अब ये आभास हो चुका था कि फार्महाउस पर अब एक भी पल रुकना उनके लिए ठीक नहीं है। इस लिए इससे पहले कि तुम्हें उसके वहाॅ होने का पता चले और तुम वहाॅ पहुॅचो उससे पहले ही वो उन सबको लेकर कही दूसरी जगह कूच कर गया। वाकई अजय, बड़ा ही शातिर दिमाग़ है उसका। वरना सोचने वाली बात है कि इतने दिन तक तो वो वहीं पर रहा था। भला एक दिन और वहाॅ रुक जाने में उसे क्या प्राब्लेम हो सकती थी। मगर नहीं, उसे तो आभास हो गया था कि अब वहाॅ पर खतरा बढ़ गया था उन सबके लिए। अतः फौरन ही सबको लेकर चलता बना वो। अब बताओ डियर हस्बैण्ड, उसकी सोच तुम्हारी सोच से दो क़दम आगे है कि नहीं?"

अजय सिंह निरुत्तर सा हो गया था। उसे समझ में ही नहीं आया कि अब वो प्रतिमा की इस बात का क्या जवाब दे? प्रतिमा बड़े ग़ौर से उसके चेहरे की तरफ कुछ देर तक देखती रही। फिर ये कह कर उसके बगल से ही लेट गई कि___"अब सो जाओ माई डियर। ज्यादा सोचने से कुछ नहीं होगा अब। नई सुबह के साथ तथा नई सोच के साथ कुछ नया करने की कोशिश करना।" अजय सिंह को भी लगा कि प्रतिमा ठीक कह रही है। अतः उसने भी अपने ज़हन से इन सारी बातों को झटका और दूसरी तरफ करवॅट लेकर लेट गया। किन्तु दोनो ही इस बात से बेख़बर थे कि सिरहाने के ऊपर ही एक बड़ी सी खिड़की थी जिसका एक पल्ला हल्का सा खुला हुआ था और उस हल्के खुले हुए पल्ले पर दो कान खरगोश की तरह खड़े उन दोनो की अब तक की सारी बातें सुन चुके थे।
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सुबह मेरी नींद खुली तो देखा कि रितू दीदी अभी भी उसी हालत में मेरे ऊपर लेटी हुई हैं। उनका वजन या ये कहिए कि उनका बोझ ज्यादा तो नहीं था मगर क्योंकि वो रात भर मेरे ऊपर ही लेटी रही थीं तो मुझे अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरे ऊपर कितना भारी बोझ रखा हुआ हो। मेरी नींद खुलने का कारण बोझ का एहसास तो था ही किन्तु दूसरा एक कारण ये भी था कि मुझे शूशू आई हुई थी। आप तो जानते ही हैं कि सुबह सुबह शूशू के चलते हमारे महाराज स्टैण्डप पोजीशन में होते हैं।

मुझे महाराज के स्टैण्डप होने का जैसे ही एहसास हुआ मैं एकदम से घबरा सा गया। मुझे लगा कि कहीं अगर रितू दीदी जग गईं और उन्हें भी मेरे महाराज के स्टैण्डप होने का एहसास हो गया तो भारी गड़बड़ हो सकती है। वो मेरे बारे कुछ भी उल्टा सीधा सोच सकती हैं। अतः मुझे उनके जगने से पहले ही अपनी इस हालत को ठीक कर लेना था। मैने हल्का सा सिर उठा कर देखा तो रितू दीदी किसी छोटी सी बच्ची की तरह मेरे सीने पर वैसे ही छुपकी हुई सो रही थी जैसे रात को वो सोई थी।

मैने बहुत ही आहिस्ता से दाहिने तरफ करवॅट लेकर रितू दीदी को बेड पर इस तरह बड़ी सफाई से लेटाया कि उनकी नींद में ज़रा भी खलल न पड़ सके। राइट साइड बेड पर लेटा कर मैने उन्हें ठीक से सीधा कर दिया। हलाॅकि वो सीधी ही थी मगर उनके दोनो हाॅथ मुड़े हुए थे जिन्हें मैने सीधा कर दिया था। मैने देखा रितू दीदी के खूबसूरत चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। उन्हें मेक-अप का ज़रा भी शौक नहीं था। वो बिना मेक-अप के ही बहुत खूबसूरत थी। बड़ी माॅ(प्रतिमा) की तरह ही वो बेहद खूबसूरत थी। किन्तु एक अच्छे नेचर की वजह से उनकी खूबसूरती बड़ी माॅ से लाख गुना ज्यादा थी। मुझे रितू दीदी को देख कर उन पर बेपनाह प्यार आ रहा था। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हौले से एक किस किया और फिर मुस्कुराते हुए मैं पलट कर आहिस्ता से ही बेड से उतर कर कमरे से अटैच बाथरूथ की तरफ बढ़ गया।

कुछ देर बाद जब मैं बाथरूम से सुबह के कामों से फारिग़ हो कर वापस कमरे में बेड के पास आया तो देखा रितू दीदी अभी भी वैसी ही लेटी हुईं थी किन्तु इस वक्त उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर बहुत ही दिलकस मुस्कान फैली हुई थी। ये देख कर मैं चौंका फिर मैं मुस्कुराते हुए आहिस्ता से बेड पर आ कर रितू दीदी के पास ही बैठ गया और उन्हें देखने लगा।

"गुड मार्निंग माई दा मोस्ट ब्यूटीपुल दीदी।" फिर मैने हौले से मुस्कुराते हुए किन्तु उन्हें देखते हुए ही कहा___"मुझे पता है आप जग चुकी हैं। किन्तु ये समझ नहीं आया कि आपके होठों पर ये खूबसूरत मुस्कान किस बात पर फैली हुई है? हलाॅकि आपको सुबह सुबह इस तरह मुस्कुराते हुए देख कर मैं बहुत खुश हो गया हूॅ।"

मेरी इस बात पर रितू दीदी के होठों की उस मुस्कान में और भी इज़ाफा हुआ और उन्होंने पट से अपनी ऑखें खोल दी। कुछ देर तक मुझे वो उसी मुस्कान के साथ देखती रहीं फिर बोलीं____"मेरे होठों पर ये मुस्कान तेरी ही वजह से है राज। मुझे नहीं पता था कि सुबह सुबह मेरा सबसे खूबसूरत और सबसे अच्छा भाई मुझे इतना प्यार से लेटा कर तथा मेरे माॅथे पर चूम कर मुझसे इतना ज्यादा प्यार करने का सबूत देगा। सच कहती हूॅ मेरे भाई, आज की ये सुबह मेरे लिए अब तक की सबसे बेस्ट सुबह थी।"

"ओह तो आप उस वक्त जगी हुई थीं?" मैने चौंकते हुए कहा___"अगर ऐसा था तो फिर आप चुपचाप ऑखें बंद कर सोये होने का नाटक क्यों कर रही थी?"
"अरे बुद्धूराम।" रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"अगर मैं दिखा देती कि मैं जाग चुकी हूॅ तो फिर मुझे तेरा वो प्यार कैसे मिल पाता भला जो तूने मेरे माॅथे पर चूम कर जताया था?"

"अच्छा जी।" मैं कह तो गया मगर अब ये सोच सोच कर घबराने भी लगा था कि रितू दीदी अगर जग गई थी तो कहीं उन्हें मेरे महाराज के स्टैण्डप होने का बोध तो नहीं हो गया? और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन वो मेरे में ग़लत सोचने लगी होंगी। मैं भगवान से विनती करने लगा कि प्लीज ऐसा कुछ न होने देना। फिर मैने खुद को सम्हालते हुए बोला___"पर आप जगी कब थीं दीदी?"

"मैं तो तेरे जगने से पहले ही जाग गई थी।" ये कह कर रितू दीदी ने जैसे मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा___"पर उठी इस लिए नहीं कि मुझे उस तरह लेटे रहने में बड़ा मज़ा आ रहा था।"
"क्या????" मेरे मुख से मानो चीख सी निकल गई थी, फिर बुरी तरह सकपकाते हुए बोला___"मेरा मतलब आप मेरे जगने से पहले कैसे जग गई थी?"

"अरे ये कैसा सवाल है राज?" रितू दीदी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। ये अलग बात थी कि उनके होठों पर मुस्कान वैसी ही बरकरार थी, बोली___"क्या मैं तेरे जागने से पहले खुद नहीं जाग सकती और तू इस तरह चौंक क्यों रहा है मेरे जगने की बात सुन कर? क्या तुझे मेरे जाग जाने पर कोई प्राब्लेम हुई है?"

"न.न..नहीं तो।" मैं एक बार फिर बुरी तरह सकपका गया। मुझे समझ न आया कि क्या कहूॅ___"ऐसी तो कोई बात नहीं है दीदी।"
"फिर तू इस तरह चौंका क्यों?" रितू दीदी की मुस्कान और भी गहरी हो गई___"अरे ये क्या???"

"क..क.क्या हुआ दीदी?" मैं उनके इस प्रकार कहने पर बुरी तरह डर गया। मेरे चेहरे पर उभरे पसीने में पल भर में इज़ाफा हो गया।
"ये तेरे माॅथे पर सुबह सुबह इतना पसीना कैसे उभर आया राज?" रितू दीदी ने मानो एक और बम्ब मेरे सिर पर फोड़ दिया___"क्या बात है मेरे भाई तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

"त..त.तबीयत???" उनकी इस बात से मेरी हालत पल भर में ख़राब हो गई___"क्या मतलब है आपका? मैं तो एकदम ठीक हूॅ दीदी।"
"तू सच कहा रहा है न?" रितू दीदी ने अजीब भाव से मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा___"और तू सच में ठीक ठाक है न?"

"ओफ्फो दीदी।" मैंने बेचैनी और परेशानी की हालत में कहा___"ये सुबह सुबह क्या अपनी पुलिसगीरी दिखाने लगी हैं आप?"
"पुलिसगीरी??" रितू दीदी चौंकी___"मैं कहाॅ पुलिसगीरी दिखा रही हूॅ तुझे? मैं तो तेरी तबीयत के बारे में ही पूछ रही हूॅ।"

"तो फिर ये पुलिस वालों की तरह तहकीक़ात करने का क्या मतलब है आपका?" मैं अब तक अपनी हालत से काफी हद तक उबर चुका था, बोला___"इतनी देर से देख रहा हूॅ कि आप बाल की खाल निकालने पर तुली हुई हैं। इतना भी नहीं सोचा कि मुझ मासूम पर इस सबसे क्या गुज़रने लगी है, हाॅ नहीं तो।"

मैने ये बात इतने भोलेपन और इतनी मासूमियत से कही थी कि रितू दीदी की हॅसी छूट गई। वो एकदम से बेड पर उठ कर बैठ गई और फिर झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"तू सचमुच बहुत स्वीट है राज।" रितू दीदी ने मेरी पीठ पर अपने दोनो हाथ फेरते हुए कहा___"ऊपर से तेरा आज अपनी इस बात में गुड़िया(निधी) का वो तकिया कलाम यूज करना। उफ्फ जान ही ले गया रे।"

गुड़िया का ख़याल आते ही मेरे अंदर भी एक अजीब सी झुरझुरी दौड़ गई। पलक झपकते ही उसका चेहरा मेरी ऑखों के सामने उभर आया। उस चेहरे में ज़माने भर की उदासी थी, तड़प थी। मेरा दिल एकदम से निधी के लिए बेचैन हो उठा। सुबह सुबह रितू दीदी की जो मुस्कान देख कर मुझे खुशी हुई थी वो गुड़िया का उदास चेहरा मेरी ऑखों के सामने उभर आने से जाने कहाॅ गायब हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि निधी ने अचानक मुझसे बात करना क्यों बंद कर दिया था? बात करना तो दूर बल्कि वो तो मेरे सामने ही नहीं आती थी।

"क्या हुआ राज?" रितू दीदी ने मुझे चुप जान कर मुझसे अलग होते हुए पूछा___"तू एकदम से गुमसुम सा क्यों हो गया? क्या मेरी बातों से तेरा दिल दुख गया है? देख अगर ऐसी बात है तो प्लीज मुझे माफ़ कर दे।"

"नहीं दीदी।" मैने उनके मुख पर अपना हाॅथ रख दिया, फिर बोला___"आपने कुछ नहीं किया है। आप भला कैसे मेरा दिल दुखा सकती हैं? मुझे पता है आप मुझे बहुत प्यार करती हैं।"

"तो फिर क्या बात है?" रितू दीदी ने सहसा गंभीर होकर पूछा___"तू एकदम से ही गुमसुम सा क्यों नज़र आने लगा है? आख़िर किस बात ने तुझे इतना सीरियस कर दिया है? क्या मुझे नहीं बताएगा?"

"मैं दरअसल गुड़िया की वजह से सीरियस हो गया हूॅ दीदी।" मैने गंभीरता से कहा___"पता नहीं क्या बात है जो वो मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि वो मेरे सामने भी नहीं आती। जबकि उसे पता है कि मैं उसकी शरारत भरी बातों के बिना पल भर भी नहीं रह सकता।"

"ऐसा कब से है?" रितू दीदी ने पूछा___"तूने उसे कुछ कहा था क्या? या फिर तूने उसे किसी बात पर डाॅटा होगा। वो तेरी लाडली है इस लिए वो तेरे ज़ारा से भी डाॅट देने पर सीरियस हो सकती है। संभव है ऐसा ही कुछ हो।"

"मैं उसे ख्वाब में भी नहीं डाॅट सकता दीदी।" मैने पुरज़ोर लहजे में कहा___"और ना ही मैने उसे कुछ ऐसा वैसा कहा है जिससे उसे बुरा लग जाए।"
"तो फिर कोई दूसरी वजह होगी।" रितू दीदी ने सोचने वाले भाव से कहा___"कोई ऐसी वजह जिसके बारे में तुम्हें पता ही न हो।"

"ऐसी क्या वजह हो सकती है भला?" मैने कहा___"अगर कोई बात होती तो गुड़िया मुझे ज़रूर बताती।"
"कुछ बातें ऐसी भी होती हैं राज।" रितू दीदी ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"जिन्हें एक बहन अपने भाई से नहीं कह सकती। वैसे इसका पता करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि तू उसे फोन लगा और उससे बात कर।"

"वो मेरा फोन नहीं उठाएगी दीदी।" मैने कहा___"और ना ही मुझसे बात करेगी। अगर करना होता तो अभी जब मैं मुम्बई गया था तो वो मुझसे कुछ तो बात करती। मगर वो तो मेरे सामने आई तक नहीं। आते समय मैं ही उससे मिलने उसके कमरे में गया था। मैने देखा कि कमरे में बेड पर वो ऑखें बंद कर सोने का दिखावा कर रही थी। मतलब साफ था कि वो मुझसे ना तो मिलना चाहती है और ना ही बात करना चाहती है।"

"बड़ी हैरत की बात है ये तो।" रितू दीदी के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे___"चल ठीक है मैं अपने फोन से उसे काल करती हूॅ और मैं उससे बात करती हूॅ।"
"हाॅ ये ठीक रहेगा दीदी।" मैने खुश होते हुए कहा___"पर आप उससे ये मत कहना कि आपने उसे मेरे बातों के चलते फोन किया है और ना ही ये बताना कि मैं आपके ही पास बैठा हुआ हूॅ।"

रितू दीदी ने मेरी बात पर हाॅ में अपना सिर हिलाया और ये कह कर बेड से नीचे उतरने लगी कि वो अपने कमरे से अपना फोन लेकर अभी आती हैं। उनके जाने के बाद मैं बेड पर ही उनके आने का इन्तज़ार करने लगा। बेड के पास ही एक छोटी सी टेबल थी जिसमें मेरा मोबाइल फोन रखा हुआ था। मुझे ख़याल आया कि रितू दीदी के पास तो गुड़िया(निधी) का नंबर है ही नहीं। अतः मैने टेबल से अपना फोन उठा कर उसमे से गुड़िया का नंबर दीदी को देने का सोचा।

मैने अपने फोन को उठा कर मोबाइल के बगल से लगी बटन पर अॅगूठे से पुश किया तो स्क्रीन जल उठी। स्क्रीन जलते ही उसमें मुझे एक मैसेज नज़र आया जो व्हाट्सएप में था और जिसे नीलम ने भेजा था। मैने फोन को अनलाॅक करके उस मैसेज को खोला। नीलम के भेजे गए मैसेज को पढ़ता चला गया मैं। मैं ये जान कर हैरान हुआ कि नीलम ने मैसेज में सच्चाई का पता लग जाने वाली बात कही थी और वो मुझसे मिलना चाहती थी। मैं चकित था कि नीलम ने इतना जल्दी सच्चाई का पता कैसे लगा लिया? उसने मैसेज में सिर्फ इतना ही लिखा था कि___"राज मुझे पता चल गया है कि सच्चाई क्या है और किस वजह से रितू दीदी माॅम डैड के खिलाफ होकर तुम्हारे साथ हो गई हैं। सारी बातें तुमसे मिलने के बाद ही बताऊॅगी इस लिए मुझे तुमसे फौरन ही मिलना है। अब ये तुम बताओ कि मैं तुमसे कब कैसे और कहाॅ मिल सकती हूॅ। मेरे इस मैसेज का जवाब जितना जल्दी हो सके देना। तुम्हारी बहन नीलम परी।"

मैं नीलम के इस मैसेज से हैरान भी था और खुश भी। हैरान इस लिए कि उसने इतनी जल्दी सच्चाई का पता कर लिया था और खुश इस लिए कि अब वो भी कदाचित रितू दीदी की तरह मेरे पास ही रहेगी। अभी मैं ये सब सोच कर खुश ही हो रहा था कि तभी रितू दीदी मेरे कमरे में अपना फोन लिए आ गईं। उनकी नज़र मेरे चेहरे पर मौजूद खुशी के भावों पर पड़ी तो उनके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे।

"ओये होये बड़ा खुश लग रहा है भाई।" फिर वो मुस्कुराते हुए मुझसे बोली___"कोई दूसरी गर्लफ्रैण्ड मिल गई क्या तुझे?"
"अरे नहीं दीदी।" मैं उनकी इस बात से मुस्कुराते हुए बोला___"ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल मेरे फोन पर नीलम का मैसेज आया था रात में। उसके मैसेज को पढ़ कर ही खुश हो रहा था।"

"ओह तो ये बात है।" रितू दीदी बेड पर मेरे पास ही बैठते हुए कहा___"ऐसा क्या लिख कर भेजा है उसने मैसेज में जिसके चलते तू इतना खुश हो रहा है? ज़रा मुझे भी तो सुना उसका मैसेज।"

लीजिए, आप खुद ही पढ़ लीजिए।" मैने मोबाइल उनके हाथ में पकड़ाते हुए कहा___"हो सकता है कि आप भी मेरी तरह उसका मैसेज पढ़ कर खुश हो जाएॅ।"
"उसके लिए मुझे मैसेज पढ़ने की ज़रूरत नहीं है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मुझे देखते हुए कहा___"क्योंकि अगर तू खुश है तो मैं तुझे खुश देख कर ही खुश हो जाऊॅगी।"

मैं उनकी इस बात से बस मुस्कुरा कर रह गया। जबकि ऐसा कहने के बाद दीदी ने नीलम के मैसेज की तरफ देखा और मैसेज को पढ़ने लगीं। मैसेज पढ़ते ही उनके चेहरे पर हैरत और खुशी के मिले जुले भाव उभरे और फिर एकाएक ही उनके चेहरे पर गंभीरता छा गई।

"क्या हुआ दीदी?" मैं उनके चेहरे पर अचानक ही उभर आई उस गंभीरता को देख चौंकते हुए पूछा___"आपको नीलम के इस मैसेज को पढ़ कर खुशी नहीं हुई?"
"खुशी तो हुई राज।" रितू दीदी ने पूर्वत गंभीर भाव से ही कहा___"ये जानकर अच्छा भी लगा कि नीलम को भी सच्चाई का पता चल गया है मगर गंभीरता वाली बात ये है कि कहीं डैड को भी न इस बात का आभास हो जाए कि नीलम को भी सच्चाई पता चल गई होगी। उस सूरत में नीलम पर खतरा भी पैदा हो सकता है।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" मैने हैरानी से कहा__"भला बड़े पापा को इस बात का आभास कैसे हो जाएगा कि नीलम उनकी सच्चाई जान चुकी होगी?"
"तुम मेरी माॅम को नहीं जानते राज।" रितू दीदी ने उसी गंभीरता से कहा___"उन्होंने डैड के साथ ही वकालत की पढ़ाई की थी। उनका दिमाग़ बहुत ही शार्प है। डैड से कई गुना ज्यादा उनका दिमाग़ चलता है। वो पिछले कुछ दिनों की घटनाओं को मद्दे नज़र रखते हुए डैड को ये बात समझा सकती हैं कि नीलम को सच्चाई का पता ज़रूर चल गया होगा अथवा वो सच्चाई का पता लगाने की राह पर चल रही होगी।"

"बात कुछ समझ में नहीं आई दीदी।" मैंने उलझनपूर्ण भाव से कहा___"भला बड़ी माॅ ऐसा क्या सोच कर बड़े पापा को समझाएॅगी?"
"सीधी सी बात है राज।" दीदी ने कहा___"ये तो उन्हें अब तक समझ आ ही गया होगा कि हमने क्या क्या और किस तरीके से किया है? इस लिए उन्हें इस सबकी कड़ियाॅ जोड़ने में कोई मुश्किल नहीं होगी। कहने का मतलब ये कि सारी घटनाओं के बाद वो अब उस दिन की घटनाओं को आपस में मिलाएॅगी जिस दिन डैड को हमारे नकली सीबीआई वाले गिरफ्तार करके ले गए थे और फिर बिना कुछ पूछताॅछ किये उन्हें दो दिन बाद छोंड़ भी दिया था। डैड को ये यो पता चल ही गया था कि वो सब तुम्हारा ही किया धरा था, क्योंकि तुम्हारे उन नकली सीबीआई वाले आदमियों ने अपनी बातों के बीच तुम्हारा ही नाम लिया था। अतः सारी बातें जानने के बाद माॅम को ये सोचने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा कि तुमने डैड को दो दिन के लिए अंडरग्राउण्ड करके अपना कौन सा अहम किया हो सकता है। यानी उन्हें ये तो अंदाज़ा था ही कि तुम अभी यहीं हो और यहीं से ही सारी घटनाओं को अंजाम दे रहे हो। मगर ये भी भूलने वाली बात नहीं है कि तुम्हारे पास पवन और उसकी फैमिली भी है जो कि तुम्हारी कमज़ोरी के रूप में हैं। तुम ये हर्गिज भी नहीं चाहोगे कि तुम्हारी कमज़ोरी डैड के हाॅथ लग जाए। क्योंकि उस सूरत में तुम बहुत ही ज्यादा कमज़ोर पड़ जाओगे और ये भी संभव है कि उस सूरत में तुम मजबूरन डैड के हाॅथ भी लग जाओ। उसके बाद किस्सा खत्म। इस लिए तुम यही चाहोगे कि सबसे पहले तुम अपनी कमज़ोरियों को या तो पूर्णरूप से सुरक्षित कर दो या फिर उन्हें डैड की पहुॅच से बहुत दूर कर दो। माॅम के दिमाग़ में यही बातें होगी और वो सोचेंगी कि तुम ऐसा ही करना चाहोगे। यानी पवन तथा उसकी माॅ बहन को डैड की पहुॅच से दूर मुम्बई भेज देना चाहोगे। किन्तु तुम्हारे पास समस्या ये होगी कि पवन आदि को लेकर जाने के बाद मैं और नैना बुआ यहाॅ अकेली रह जाएॅगी, और हम दोनो पर डैड का खतरा रहेगा। अतः तुम कोई ऐसा जुगाड़ लगाओगे जिससे तुम्हारे दोनो काम आसानी से और सुरक्षित तरीके से हो जाएॅ। तब तुमने सोचा कि डैड के रूप में राजा को ही सह और मात दे दी जाए जिससे ना रहेगा बाॅस और ना ही बजेगी बाॅसुरी वाली बात हो जाएगी। यही तुमने किया भी और जब तुम वापस मुम्बई से लौट आए तो डैड को भी छोंड़ दिया अपने नकली सीबीआई के आदमियों के हवाले से।"

"ये सब तो ठीक है दीदी।" मैने शख्त हैरानी से दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"किन्तु इसमें ये बात कहाॅ से आती है कि उन्हें ये पता चल सकता है कि नीलम भी उनकी सच्चाई को जान चुकी है या फिर सच्चाई जानने की राह पर चल रही होगी?"

"वहीं पर आ रही हूॅ माई डियर ब्रदर।" रितू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"माॅम ये सोचेंगी कि उसी दिन तीन तीन लोग हल्दीपुर कैसे आ गए? मतलब कि डैड तो हवेली आए ही उनके साथ साथ उसी दिन नीलम भी हवेली आ पहुॅची और ये भी उनके ज़हन में होगा कि तुम भी वापस मुम्बई से आ गए होगे और इसी लिए डैड को छोंड़ भी दिया था। तो सोचने वाली बात थी ये तीन लोग संयोगवश तो नहीं आ गए थे यहाॅ। यानी कहीं न कहीं इसमें कोई पेंच या भेद ज़रूर था। माॅम को सोचने और समझने में देर नहीं लगेगी कि जिस ट्रेन से तुम आए उसी ट्रेन से नीलम भी आई होगी और बहुत हद तक ये भी संभव है कि तुम दोनो की मुलाक़ात भी ट्रेन में हुई हो। मुलाक़ात जब होती है तो कुछ न कुछ बात चीत भी होती है। अब चूॅकि हालात ऐसे थे कि तुम दोनो के बीच में नार्मल बातें तो होंगी नहीं यानी कि तक़रार भरी अथवा गिले शिकवे संबंधी बातें हुई होंगी। दूसरी बात माॅम ने मुझे फोन किया था पर मैने उनका फोन उठाया नहीं तब उन्होंने नीलम को फोन किया। नीलम ने मुझे फोन कर मुझसे बात की थी और पूछा था कि मैं अपने ही माॅम डैड के खिलाफ होकर तुम्हारे साथ क्यों हूॅ तब मैने उससे कहा था कि वो सच्चाई का पता खुद लगाए। यही बात माॅम ने भी सोचा होगा। यानी उन्हें ये लगा होगा कि मैने नीलम को सारी बातें बता दी होंगी और अब नीलम सच्चाई जान चुकी है। या फिर अगर मैने नहीं बताया होगा तो इतना तो ज़रूर ही कहा होगा कि मेरे माॅम डैड के खिलाफ़ होने की वजह का पता वो खुद लगाए। इस लिए नीलम वजह या सच्चाई का पता लगाने आई होगी।" रितू दीदी ने इतना कहने के बाद गहरी साॅस ली और फिर बोली___"इन सब बातों की वजह से ही मैं कह रही हूॅ राज कि नीलम पर अब ख़तरा है और उस नादान व नासमझ को इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि वो कितनी बड़ी मुसीबत में फॅस सकती है। उसे उस जगह से निकालना होगा राज वरना सच में अनर्थ हो सकता है। वो हवश के पुजारी मेरी मासूम बहन को बरबाद कर सकते हैं।"

"नहींऽऽ।" मैंने सहसा आवेश में आकर कहा___"ऐसा हर्गिज़ नहीं होगा दीदी और मैं होने भी नहीं दूॅगा। अगर मेरी मासूम बहन को उन लोगों ने छुआ भी तो उन्हें इसका अंजाम बहुत ही भयानक रूप से भुगतना पड़ेगा।"

"नीलम के साथ में सोनम भी है।" रितू दीदी ने गंभीरता से कहा___"उसे भी उन लोगों से दूर करना होगा। मैं उस कमीने शिवा को बहुत अच्छे तरीके से जानती हूॅ। उसे वासना और हवश के चलते रिश्तों का कोई भान नहीं रहेगा और वो सोनम को भी हवश भरी नज़रों से देख रहा होगा। हे भगवान ये नीलम उसे अपने साथ लेकर यहाॅ आई ही क्यों थी?"

"फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने कठोरता से कहा___"उन दोनो को कुछ नहीं होगा। अब मैदान में खुल कर आने का समय आ गया है। आपके डैड को ये बताने का समय आ गया है कि अगर मैं उनके सामने भी आ जाऊॅ तो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।"

"कुछ भी करने से पहले तुम्हें नीलम और सोनम को सुरक्षित वहाॅ से निकालना होगा।" रितू दीदी ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"उसके बाद ही हम कोई ठोस क़दम उठाने में सक्षम हो सकते हैं।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"मैं नीलम से बात करके उसे सब कुछ समझाता हूॅ कि उसे क्या और कैसे करना है। आप भी गुड़िया से बात कर लीजिए। और हाॅ इस बात की बिलकुल भी फिक्र मत कीजिए कि नीलम व सोनम दीदी में से किसी को भी मेरे रहते कुछ होगा। मैं अपनी जान देकर भी उनकी इज्ज़त और जान की हिफाज़त करूॅगा।"

"ऐसा मत कह राज।" रितू दीदी की ऑखें छलक पड़ी, बोली___"तुझे कुछ होने से पहले ही मैं अपनी जान दे दूॅगी। मेरा सबसे प्यारा भाई ही नहीं रहेगा तो मैं इस पापी दुनियाॅ में अकेली जी कर क्या करूॅगी।"

"सब ठीक ही होगा दीदी।" मैने दीदी को अपने से छुपका लिया___"और मैं सब कुछ ठीक करने की पूरी कोशिश भी करूॅगा। चलिए अब आप भी फ्रेश हो लीजिए, सुबह हो गई है। नैना बुआ आपको आपके कमरे में न देखेंगी तो कहीं आपको ढूॅढ़ने न लग जाएॅ। अतः अब आप जाइये और हाॅ गुड़िया से ज़रूर बात कर लीजिएगा।"

मेरे कहने पर रितू दीदी ने मुझसे अलग होकर हाॅ में सिर हिलाया। मैने उन्हें अपने फोन से गुड़िया का नंबर मैसेज किया। उसके बाद दीदी कमरे से चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने गहरी साॅस ली तथा फिर मैने नीलम को मैसेज किया। अपने मोबाइल को हाॅथ में लिए मैं नीलम की तरफ से उसके रिप्लाई का इन्तज़ार करने लगा।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,
 

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