हम दोनों लगे हुए थे की किसी तरह से सीमा शांत हो जाये...लगभग दोपहर होने को आई थी....तभी घर का दरवाजा खुला और नेहा अन्दर आई.....मैंने देखा की उसके दोनों हाथों में झोले थे...जिसमे सब्जी जैसी कुछ चीजें थी.....सीमा ने उसे देखा और दौड़ के उसके पास चली गयी और रोते रोते ही शिकायत करने लगी की वो बिना बताये कहाँ चली गयी थी...नेहा ने उसे समझाते हुए कहा की घर में कुछ खाने को नही था तो बाजार से कुछ सामान लेने के लिए गयी थी,....नेहा के लिए बहुत आसान था सीमा को समझा लेना..हम दोनों तो हार मान चुके थे...लेकिन हमें समझाना उतना आसान नहीं था नेहा के लिए ....मैंने और माँ ने नोटिस किया था की नेहा का बैग ना तो घर में था और ना ही वापस आते समय उसके हाथ में था....हालाँकि उसके कपडे अलमारी में थे....खैर....उस समय बहस करना ठीक नहीं समझा हमने...मैं दूकान आ गया और फिर अपने रूटीन में लग गया......लेकिन बार बार मेरे दिमाग में ये आ रहा था की कल जो हुआ वो बहुत ही अजीब था...इस तरह से माँ ने नेहा को थप्पड़ मारे...इतना बुरा सलूक किया उसके साथ जैसे उसे किसी बात का सबूत दे रही हो....नेहा ने भी तो हद पार कर दी थी लेकिन ऐसा तो वो पहले भी कई बार कर चुकी है...कल क्या ख़ास बात थी....मुझे ये भी लगने लगा की मैं तो दिन भर दूकान में रहता हूँ...घर में तो दोनों माँ बेटी ही रहती हैं..मेरे सामने तो उनमे आपस में नहीं के बराबर बात होती है लेकिन मेरे जाने के बाद क्या होता है...क्या उनके बीच का अबोला मेरे पीठ पीछे भी वैसा ही है...मुझे इसके पहले कभी ये ख्याल क्यों नहीं आया की मेरे पीठ पीछे उन दोनों के बीच रिश्ता कैसा है...कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो दोनों मुझसे छुपा रहे हों...कहीं ऐसा तो नहीं की दोनों का आपस में अबोला मेरे सामने किया जाने वाला एक नाटक हो....कहीं ये दोनों मेरे पीठ पीछे सीमा को मेरे खिलाफ भड़का तो नहीं रहे हैं.....कहते हैं न की शक का कोई इलाज नहीं होता....गलत कहते हैं. शक का बहुत सही इलाज है जा के पता कर लेना....हाँ जिसमे पता कर लेने का जिगर नहीं होता तो इस तरह की उलटी सीधी बातें कहते हैं...मैंने भी तय किया की आज इन दोनों को अपने सामने बैठा के बात करनी ही होगी....रात में घर लौटते समय मुझे लगा की जो मैंने सोचा है उस काम को सही तरीके से करने के लिए मुझे किसी और की जरुरत भी होगी...ये मैं अकेले नहीं कर पाउँगा...मुझे सपोर्ट चाहिए होगा......और यही सोच के मैंने रास्ते में तीन बोतल सपोर्ट खरीद लिया....महंगा वाला...विदेशी सपोर्ट.....
रात में जब सीमा सो गयी और नेहा कमरे का दरवाजा खोल के बाहर आई तो मैं सोफे से उठ के बैठा....उसे इशारा किया तो वो अपनी माँ को बुला लायी,...मैंने छुपा के रखे सपोर्ट के तीनो बोतल निकाल लिए....वो दोनों वहीँ एक एक कुर्सी ले के बैठ गए....नेहा शराब पीती थी की नहीं ये मुझे पता नहीं था..लेकिन मैंने सोचा था की जब ये बुर से बुर घिस सकती है तो शराब तो पीती ही होगी....आज अचानक माँ भी शराब देख के थोडा हैरान भी हुई और खुश भी हुई....वो तो नम्बरी शराबी थी लेकिन पूजा पीने नहीं देती थी....मैंने एक एक पेग बनाया सबके लिए....अब तक माहौल एकदम खामोश था...हम कल की रात को भूले नही थे..लेकिन उसके बारे में बात भी नही कर रहे थे....पहला पेग ख़त्म होने के बाद मैंने ही बात शुरू की...
मैं – पूजा के जाने के बाद आज पहली बार घर में शराब आई है.मैंने तो सोचा था की हमेशा के लिए पीना बंद कर दूंगा लेकिन अब हालात ऐसे हैं की बात किये बिना रास्ता नहीं निकलेगा और बात ऐसी है की पीये बिना बात नहीं निकलेगी. आज मैं आप दोनों से ये विनती कर रहा हूँ की जिसके मन में जो जो है सब खोल के कह दे....एक एक बात....सब कुछ...आज हम तीनो एक दुसरे से अपने मन की पूरी भड़ास निकाल लें...ताकि कल की सुबह हमें पता रहे की इस घर में कौन रह रहा है कौन जा रहा है और हमारे बीच रिश्ता क्या है.......मैं जनता हूँ नेहा की सबसे ज्यादा परेशानी हैरानी तकलीफ तुम्हें ही हुई है. लेकिन तुम्हारी तकलीफ सिर्फ मेरे और माँ के रिश्ते को ले के है. तुम बहुत सालों से घर से बाहर रह रही हो.तुम निश्चित ही अपनी माँ और दीदी को बहुत प्यार करती थी लेकिन इधर पिचले कुछ चार पांच सालों में इस घर में जो जो हुआ है उसमे मैं तुमसे ज्यादा शामिल रहा हूँ. तुमने उन चीजों को न तो देखा है ना ही जाना है. तुमने उस दिन जो देखा वो तुम्हारे लिए हजम कर पाना बहुत मुश्किल था.लेकिन उसके बाद से तुम्हारा हमारे प्रति जो रवैया है वो हजम कर पाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है. कल नौबत हाथापाई तक आ गयी.मैं नही चाहता की बात और बढ़े...इसलिए बेहतर है की हम तुम एक दुसरे से पूरी बात साफ़ कर लें...
रात में जब सीमा सो गयी और नेहा कमरे का दरवाजा खोल के बाहर आई तो मैं सोफे से उठ के बैठा....उसे इशारा किया तो वो अपनी माँ को बुला लायी,...मैंने छुपा के रखे सपोर्ट के तीनो बोतल निकाल लिए....वो दोनों वहीँ एक एक कुर्सी ले के बैठ गए....नेहा शराब पीती थी की नहीं ये मुझे पता नहीं था..लेकिन मैंने सोचा था की जब ये बुर से बुर घिस सकती है तो शराब तो पीती ही होगी....आज अचानक माँ भी शराब देख के थोडा हैरान भी हुई और खुश भी हुई....वो तो नम्बरी शराबी थी लेकिन पूजा पीने नहीं देती थी....मैंने एक एक पेग बनाया सबके लिए....अब तक माहौल एकदम खामोश था...हम कल की रात को भूले नही थे..लेकिन उसके बारे में बात भी नही कर रहे थे....पहला पेग ख़त्म होने के बाद मैंने ही बात शुरू की...
मैं – पूजा के जाने के बाद आज पहली बार घर में शराब आई है.मैंने तो सोचा था की हमेशा के लिए पीना बंद कर दूंगा लेकिन अब हालात ऐसे हैं की बात किये बिना रास्ता नहीं निकलेगा और बात ऐसी है की पीये बिना बात नहीं निकलेगी. आज मैं आप दोनों से ये विनती कर रहा हूँ की जिसके मन में जो जो है सब खोल के कह दे....एक एक बात....सब कुछ...आज हम तीनो एक दुसरे से अपने मन की पूरी भड़ास निकाल लें...ताकि कल की सुबह हमें पता रहे की इस घर में कौन रह रहा है कौन जा रहा है और हमारे बीच रिश्ता क्या है.......मैं जनता हूँ नेहा की सबसे ज्यादा परेशानी हैरानी तकलीफ तुम्हें ही हुई है. लेकिन तुम्हारी तकलीफ सिर्फ मेरे और माँ के रिश्ते को ले के है. तुम बहुत सालों से घर से बाहर रह रही हो.तुम निश्चित ही अपनी माँ और दीदी को बहुत प्यार करती थी लेकिन इधर पिचले कुछ चार पांच सालों में इस घर में जो जो हुआ है उसमे मैं तुमसे ज्यादा शामिल रहा हूँ. तुमने उन चीजों को न तो देखा है ना ही जाना है. तुमने उस दिन जो देखा वो तुम्हारे लिए हजम कर पाना बहुत मुश्किल था.लेकिन उसके बाद से तुम्हारा हमारे प्रति जो रवैया है वो हजम कर पाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है. कल नौबत हाथापाई तक आ गयी.मैं नही चाहता की बात और बढ़े...इसलिए बेहतर है की हम तुम एक दुसरे से पूरी बात साफ़ कर लें...