Adultery गांड बचा के आये हैं

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हम दोनों लगे हुए थे की किसी तरह से सीमा शांत हो जाये...लगभग दोपहर होने को आई थी....तभी घर का दरवाजा खुला और नेहा अन्दर आई.....मैंने देखा की उसके दोनों हाथों में झोले थे...जिसमे सब्जी जैसी कुछ चीजें थी.....सीमा ने उसे देखा और दौड़ के उसके पास चली गयी और रोते रोते ही शिकायत करने लगी की वो बिना बताये कहाँ चली गयी थी...नेहा ने उसे समझाते हुए कहा की घर में कुछ खाने को नही था तो बाजार से कुछ सामान लेने के लिए गयी थी,....नेहा के लिए बहुत आसान था सीमा को समझा लेना..हम दोनों तो हार मान चुके थे...लेकिन हमें समझाना उतना आसान नहीं था नेहा के लिए ....मैंने और माँ ने नोटिस किया था की नेहा का बैग ना तो घर में था और ना ही वापस आते समय उसके हाथ में था....हालाँकि उसके कपडे अलमारी में थे....खैर....उस समय बहस करना ठीक नहीं समझा हमने...मैं दूकान आ गया और फिर अपने रूटीन में लग गया......लेकिन बार बार मेरे दिमाग में ये आ रहा था की कल जो हुआ वो बहुत ही अजीब था...इस तरह से माँ ने नेहा को थप्पड़ मारे...इतना बुरा सलूक किया उसके साथ जैसे उसे किसी बात का सबूत दे रही हो....नेहा ने भी तो हद पार कर दी थी लेकिन ऐसा तो वो पहले भी कई बार कर चुकी है...कल क्या ख़ास बात थी....मुझे ये भी लगने लगा की मैं तो दिन भर दूकान में रहता हूँ...घर में तो दोनों माँ बेटी ही रहती हैं..मेरे सामने तो उनमे आपस में नहीं के बराबर बात होती है लेकिन मेरे जाने के बाद क्या होता है...क्या उनके बीच का अबोला मेरे पीठ पीछे भी वैसा ही है...मुझे इसके पहले कभी ये ख्याल क्यों नहीं आया की मेरे पीठ पीछे उन दोनों के बीच रिश्ता कैसा है...कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो दोनों मुझसे छुपा रहे हों...कहीं ऐसा तो नहीं की दोनों का आपस में अबोला मेरे सामने किया जाने वाला एक नाटक हो....कहीं ये दोनों मेरे पीठ पीछे सीमा को मेरे खिलाफ भड़का तो नहीं रहे हैं.....कहते हैं न की शक का कोई इलाज नहीं होता....गलत कहते हैं. शक का बहुत सही इलाज है जा के पता कर लेना....हाँ जिसमे पता कर लेने का जिगर नहीं होता तो इस तरह की उलटी सीधी बातें कहते हैं...मैंने भी तय किया की आज इन दोनों को अपने सामने बैठा के बात करनी ही होगी....रात में घर लौटते समय मुझे लगा की जो मैंने सोचा है उस काम को सही तरीके से करने के लिए मुझे किसी और की जरुरत भी होगी...ये मैं अकेले नहीं कर पाउँगा...मुझे सपोर्ट चाहिए होगा......और यही सोच के मैंने रास्ते में तीन बोतल सपोर्ट खरीद लिया....महंगा वाला...विदेशी सपोर्ट.....


रात में जब सीमा सो गयी और नेहा कमरे का दरवाजा खोल के बाहर आई तो मैं सोफे से उठ के बैठा....उसे इशारा किया तो वो अपनी माँ को बुला लायी,...मैंने छुपा के रखे सपोर्ट के तीनो बोतल निकाल लिए....वो दोनों वहीँ एक एक कुर्सी ले के बैठ गए....नेहा शराब पीती थी की नहीं ये मुझे पता नहीं था..लेकिन मैंने सोचा था की जब ये बुर से बुर घिस सकती है तो शराब तो पीती ही होगी....आज अचानक माँ भी शराब देख के थोडा हैरान भी हुई और खुश भी हुई....वो तो नम्बरी शराबी थी लेकिन पूजा पीने नहीं देती थी....मैंने एक एक पेग बनाया सबके लिए....अब तक माहौल एकदम खामोश था...हम कल की रात को भूले नही थे..लेकिन उसके बारे में बात भी नही कर रहे थे....पहला पेग ख़त्म होने के बाद मैंने ही बात शुरू की...

मैं – पूजा के जाने के बाद आज पहली बार घर में शराब आई है.मैंने तो सोचा था की हमेशा के लिए पीना बंद कर दूंगा लेकिन अब हालात ऐसे हैं की बात किये बिना रास्ता नहीं निकलेगा और बात ऐसी है की पीये बिना बात नहीं निकलेगी. आज मैं आप दोनों से ये विनती कर रहा हूँ की जिसके मन में जो जो है सब खोल के कह दे....एक एक बात....सब कुछ...आज हम तीनो एक दुसरे से अपने मन की पूरी भड़ास निकाल लें...ताकि कल की सुबह हमें पता रहे की इस घर में कौन रह रहा है कौन जा रहा है और हमारे बीच रिश्ता क्या है.......मैं जनता हूँ नेहा की सबसे ज्यादा परेशानी हैरानी तकलीफ तुम्हें ही हुई है. लेकिन तुम्हारी तकलीफ सिर्फ मेरे और माँ के रिश्ते को ले के है. तुम बहुत सालों से घर से बाहर रह रही हो.तुम निश्चित ही अपनी माँ और दीदी को बहुत प्यार करती थी लेकिन इधर पिचले कुछ चार पांच सालों में इस घर में जो जो हुआ है उसमे मैं तुमसे ज्यादा शामिल रहा हूँ. तुमने उन चीजों को न तो देखा है ना ही जाना है. तुमने उस दिन जो देखा वो तुम्हारे लिए हजम कर पाना बहुत मुश्किल था.लेकिन उसके बाद से तुम्हारा हमारे प्रति जो रवैया है वो हजम कर पाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है. कल नौबत हाथापाई तक आ गयी.मैं नही चाहता की बात और बढ़े...इसलिए बेहतर है की हम तुम एक दुसरे से पूरी बात साफ़ कर लें...
 
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नेहा – मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है दिनकर...

माँ – तुमसे??? तुम दिनकर को आप कहोगी नेहा. उसका स्थान इस घर में तुमसे बड़ा है. उसे तुम नहीं आप कहो.

नेहा – नहीं. आज सच की बात हो रही है तो फिर सब सच सच ही होने दो. ये बेकार के नाटक ढकोसले नहीं. पहले मैं दिनकर को आप ही कहती थी लेकिन उस दिनके बाद से उसे आप कहना मेरे लिए संभव नहीं है. मैं दिनकर को नाम से ही बुलाऊंगी .

मैं – कोई बात नहीं है. चलता है. हाँ तो नेहा तुम कह रही थी....

नेहा – हाँ तो मैं कह रही थी की मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है दिनकर...मुझे परेशानी है अपनी माँ से और अपनी दीदी से....दीदी तो अब रही नहीं...अगर होती तो वो तुम्हें बताती की मैंने कई बार दीदी से कहा है की तुमसे शादी कर के उसने गलती की है. कहाँ दीदी और कहाँ तुम...तुम दोनों का कोई मेल नहीं...

मैं – ये बात पहले भी हो चुकी है. तुम्हारी दीदी भले ही मुझसे लाख बेहतर थी लेकिन मेरे साथ रहकर वो दुखी नही थी. खुश थी. बेहद खुश थी.

नेहा – हो सकता है. हो सकता है की खुश रही हो....शायद इसीलिए मैंने भी स्वीकार कर लिया था की तुम अब घर में ऊँचे स्थान पर हो...और इस बात से तुम इनकार नहीं कर सकते की तुमको मैंने बकायदे इजात दी है.

मैं – हाँ. दी है. तुमने हमेशा एक लिहाज बना के रखा. और उसका पालन किया.

नेहा – लेकिन तुमने क्या किया दिनकर ? मैंने तो लिहाज किया. पर तुमने क्या किया. जरा मुझे अपने मुंह से बताओ की तुम माँ के साथ क्या कर रहे थे...वो सब क्या था...

मैं – वो सब जो भी था तुम्हारी दीदी के सामने था...उसकी सहमती से था..उससे छुपा हुआ नहीं था...उसकी ख़ुशी थी उसमे इसलिए था..

नेहा – ऐसा रिश्ता होता है कहीं ? दीदी कहती की कुएं में कूद जाओ तो कूद जाते तुम ?

मैं – हाँ.

नेहा – नहीं. ये कहने वाली बात है. हर आदमी किसी की बात सिर्फ तब तक मानता है जब तक उसमे उसका अपना खुद का स्वार्थ हो.खुद का फायदा हो. तुम दीदी के होते हुए भी माँ से सम्बन्ध बना रहे थे क्योंकि तुम्हारी नियत ख़राब थी. यदि तुम्हारे मन में खुद कभी ऐसा ख्याल नहीं आया होता तो तुम दीदी के कहने पर भी कभी इसके लिए राजी नहीं होते. तुम ऐसा चाहते थे. तुम चाहते थे की ऐसा हो तुम्हें ये मौका मिले. इसलिए जब दीदी ने ऐसा कुछ कहा तो तुमने दौड़ के वो मौका पकड़ लिया होगा. दीदी ने ऐसा क्यों कहा ये तो मैं नही जानती. लेकिन ये जानती हूँ की अपनी बीवी के होते हुए भी अपनी सास पर इस तरह की नजर रखने वाला कोई भला आदमी नहीं हो सकता.

माँ – नेहा तुम्हें पूरी बात पता नहीं है. तुम बिना जाने ही इल्जाम लगा रही हो...

नेहा – मैं आप से भी बात करुँगी...आप रुकिए...अभी दिनकर की बारी है....हाँ तो दिनकर तुम एक लीचड़ किस्म के आदमी हो ये बताने के लिए किसी को वैज्ञानिक होने की जरुरत नहीं है.तुम्हारे हाव भाव तुम्हारे रहन सहन बोली भाषा से ये बात साफ़ दिखती है. पापा के जाने के बाद माँ और दीदी पर क्या मुश्किलें आई ये मुझे कभी पता नहीं चला. इन दोनों ने मुझे हमेशा इस तरह की बातों से दूर रखा,...वो मुझे अच्छी जिंदगी देना चाहते थे जिसमे कोई परेशानी ना हो...लेकिन मैं इतना तो समझ ही सकती थी की बिना मर्द के एक घर कैसे चलता रहा होगा....सब झेल के माँ और दीदी ने मुझे सब आराम दिए इसके लिए मैं हमेशा उनकी सराहना करुँगी लेकिन इसमें तुम्हारी एंट्री कैसे हो गयी ये मुझे समझ नही आया....पता नहीं क्या मजबूरी रही होगी उन दोनों की जो तुमको हमारी जिंदगी में आने का मौका मिला....कभी अकेले में सोचना यदि मेरी माँ और दीदी के साथ सब ठीक होता तो क्या तुम उनकी जिंदगी में होते...नहीं होते. तुम्हारी नियत ख़राब थी. तुमने मेरी दीदी और माँ का फायदा उठाया और उनसे नाजायज रिश्ते रखे...इसलिए मुझे तुमसे नफ़रत है....और अपनी माँ और दीदी से शिकायत है की उन्होंने मुझे सुख देने की कोशिश में मुझे ही अपनी जिंदगी से ही बाहर निकाल दिया....एक बार मुझसे कह के देखा होता माँ की बेटी इस महीने पैसे नही भेज सकते हैं...मैंने नहीं मांगती आपसे....वैसे भी आपके दिए लगभग पूरे पैसे ही बचा लेती थी मैं...खैर....आपने और दीदी ने मुझे अपनी जिंदगी से अलग कर दिया इसलिए मुझे आपसे शिकायत है.
 
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मैं – तुम्हारी माँ और दीदी ने जो देखा सहा वो उनका विषय है...उस पर जो भी कहना है वही कहें तो ठीक है. मैं सिर्फ इतना जनता हूँ की नियत किसी की भी ख़राब रही हो..मन किसी का भी किया हो लेकिन जब मेरा तुम्हारी माँ से पहली बार सम्बन्ध बना उस समय पूजा भी हमारे साथ थी. हम तीनो आपस में बहुत खुश थे. हमें किसी की जरुरत नहीं थी. हम किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुचा रहे थे. हमारे रिश्ते से तुम्हें क्या पूरी दुनिया को परेशानी होगी...होनी भी चाहिए...ये रिश्ता सामान्य नहीं है. समाज में इस तरह के रिश्ते के लिए जगह नहीं है. लेकिन हम अपने इस रिश्ते को बखूबी समाज से छुपाये हुए थे...किसी को कुछ पता नहीं था. हम अपनी छोटी सी दुनिया में सुखी थे. उस दिन तुम्हें जब पता चला तो तुम्हें इस तरह से बदहवास नहीं होना चाहिए था. तुमने थोडा संयम से काम लिया होता तो आज पूजा हमारे साथ होती.

नेहा – संयम ?? मैं संयम से काम लेती ?? एक पत्नी के होते हुए दूसरी औरत के साथ सोने से पहले तुम्हें संयम याद नहीं आया ?? तुम इन्हें माँ कहते हो.....अपनी माँ के साथ नंगे थे तुम एक ही बिस्तर में..तब तुम्हें संयम याद नहीं आया लेकिन तुम्हें उस हालत में देख के मुझे संयम से काम लेना था...वाह दिनकर.....

मैं – तुम्हें इतनी ही नफरत है हमसे तो यहाँ क्यों रह रही हो....तुम तो नौकरी भी कर रही थी न कहीं....वहीँ वापस जा सकती हो...तुम जानती हो की मैं और माँ वापस अपनी जिंदगी वैसे ही जियेंगे जैसे पहले जी रहे थे...या तो तुम इसे स्वीकार कर सकती हो या यहाँ से जा सकती हो..लेकिन इसे बदल नहीं सकती...

नेहा – यहाँ मैं तुम लोगों के लिए नहीं हूँ...यहाँ मैं सीमा के लिए रुकी हुई हूँ...कुछ सालों में जब वो बड़ी हो जाएगी और अपना ख्याल खुद रखने लायक हो जाएगी तो मैं ख़ुशी ख़ुशी यहाँ से चली जाउंगी...क्योंकि मैं ये तो समझ गयी हूँ की तुम जैसा लीचड़ आदमी अपनी बेटी से ज्यादा अपनी माशूका पर ध्यान देगा...मेरी माँ भी अपने शरीर के सुख में इतनी पागल हो गयी है की वो सीमा को ठीक से पालेगी इसकी उम्मीद कम ही है...

मैं – तो तुम यहाँ रह के हम सब पर एहसान कर रही हो...

नेहा – यही समझ लो. दीदी को खोने का जितना दुःख तुम्हें है उतना मुझे भी है. तुमको इनकी जिंदगी में आये कितने दिन हुए हैं...कुछ साल बस....मैं पैदा हुई हूँ इनके बीच...दीदी के साथ बचपन देखा है..जवानी देखि है...सब कुछ....मैं और दीदी एक दुसरे के जितना करीब थे उतना तुम कभी नहीं हो सकते..मेरी माँ मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी...लेकिन आज वो तुम जैसे आदमी की लौंडिया बन्ने के लिए अपनी बेटी को भूज जाना चाहती है...

मैं – समाज के हिसाब से तुम्हारे हिसाब से जो भी है...सही या गलत..उससे मुझे लेना देना नहीं है...मैं सिर्फ इतना जनता हूँ की पूजा को इससे कोई दिक्कत नहीं है....मैं घर का पालन पोषण कर सकता हूँ....माँ ख़ुशी से मेरे साथ है....जिसको तकलीफ होती है होती रहे...

नेहा – सीमा को क्या बताओगे दिनकर ? कल को जब सीमा बड़ी होगी....और अपने दोस्तों से उसको पता चलेगा की किसी और के घर में उसके पापा और नानी एक ही बिस्तर पर नहीं सोते हैं तो क्या समझोगे सीमा को की हमारे घर में ऐसा क्यों होता है ?

मैं – जब वो समय आएगा तब देखेंगे....आज ये सवाल नहीं है.

नेहा – तो क्या सवाल है आज ?

मैं – तुम मुझे और माँ को एकांत दोगी या नहीं...

नेहा – क्या करोगे एकांत में ?

मैं – जो करते हुए तुमने हमें देखा था...वही करेंगे...और अभी तक तो मैं इस बात का इंतजार करता था की हमें एकांत मिले...लेकिन अगर आईंदा तुम हमारे बीच आई तो मैं रुकुंगा नहीं..मन लिहाज नहीं करूँगा की तुम हमें देख रही हो..

नेहा – मुझे अपनी माँ पर पूरा भरोसा है...वो तुम्हारे साथ कुछ नहीं करना चाहती....पिचले दिनों में शायद तुमने देखा नहीं की हर बार वो तुमसे दूर हो जाती है...वो भी तुम्हारे चंगुल से निकलना चाहती है...इसलिए बेहतरी इसमें है की तुम माँ का ख्याल छोड़ दो...अभी जवान हो..कमा लेते हो...अपने लिए दूसरी जगह देख लो...दूकान चलाओ...और चाहो तो दूसरी शादी कर लो...लेकिन यहाँ रह के मेरी माँ के साथ तुम कुछ नहीं कर सकते....

मैं – लगता है कल के थप्पड़ भूल गयी...
 
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नेहा – याद है. थप्पड़ याद हैं मुझे...लेकिन तुम भी ये मत भूलो की तुम उन्हें सिर्फ माँ कहते हो...मेरी तो वो सच में माँ है....मेरा रिश्ता हमेशा भारी है तुम्हारे रिश्ते से....इसलिए बेहतरी इसी में है की तुम अपनी हरकतें बंद करो...और अपने लिए कोई और प्रबध कर लो...अब तक जो हुआ सो हुआ.

मैं – आपको क्या कहना है इस बारे में माँ?

नेहा – माँ को कुछ नहीं कहना है. कल तुम्हें अंतिम बार माँ से सम्बन्ध बनाने का मौका मिल गया. अब बस. माँ को इस बारे में और कुछ नहीं कहना है.

मैं – तुम उन्हें बोलने दो...वो बोल सकती हैं...माँ आज पूरी बात हर बात खुल के होनी चाहिए....आप क्या सोचती हैं हमारे रिश्ते के बारे में...

नेहा – मैंने कहा न माँ को कुछ नहीं कहना है. मैं जो भी कह रही हूँ माँ की सहमती से ही कह रही हूँ...

(हम लोग एक बोतल ख़त्म कर चुके थे और अब तक की पूरी बात सिर्फ नेहा और मेरे बीच हुई थी....माँ ने ज्यादा कुछ नहीं कहा था...नेहा ने तो हमें स्वीकार करने से साफ़ मना कर दिया था लेकिन अब माँ का बोलना जरुरी था....हमेशा की तरह वो चुप ही थी....लेकिन नेहा के तेवर एकदम से बदल गए थे...जैसे ही मैं माँ से कहता कुछ बोलने को वैसे ही नेहा तुरंत जवाब दे देती थी...मुझे शंका हुआ की शायद नेहा माँ को दबा रही है उस पर दबाव बना रही है....मेरे बार बार जिद करने पर जब माँ ने बोलना शुरू किया तो नेहा ने बात काट दी...और लगभग धमकी देते हुए कहा की जो भी कहना बहुत सोच समझ के कहना.......उसका ये बर्ताव बहुत अजीब था....मैंने आगे बढ़कर माँ का हाथ थाम लिया और उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा की जो भी आपके मन में है वो कहिये...बिना किसी संकोच या डर के...)

माँ – मेरी स्थिति को तुम समझ नही सकते दिनकर....जो नहीं रही वो मेरी बेटी थी तो ये जो मेरे सामने है ये भी मेरी ही बेटी है...सच कहती हूँ तो इसकी बदनामी होगी और झूठ कहूँगी तो उसकी आत्मा को ठेस पहुचेगी...

नेहा – माँ आपको कुछ कहने की जरुरत नहीं है. आपने ज्यादा पी ली है. आपको चढ़ गयी है.

मैं – नेहा....तुम्हारी पूरी बात सुनी मैंने...बर्दाश्त किया...लेकिन अब अगर तुमने माँ को रोका या टोका तो मैं आपा खो दूंगा....आप बोलिए माँ.....

माँ – दिनकर हमारे तुम्हारे बीच क्या था और क्या है ये शायद हम तीनो के सिवा कोई और समझ नही सकता...हम किसी को समझा भी नही सकते....लेकिन ये भी तो मेरी ही बेटी है...मैं इसे भी तो अकेला नहीं छोड़ सकती...,..तुमने मुझसे कभी पूछा नहीं की पूजा के जाने के बाद नेहा के साथ मेरा रिश्ता कैसा है...तुमने कभी हम दोनों को आपस में बात करते नहीं देखा...मैं सोचती रही की तुम कभी न कभी तो पूछोगे मेरा हाल...लेकिन बहुत दिनों तक तुमने कुछ बात ही नहीं की....उन दिनों तुम नाश्ता कर के अपनी दूकान चले जाते थे...नेहा को मैं अकेली मिल जाती थी...और वो मुझ पर अपनी पूरी भड़ास निकालती थी...मेरा तुम्हारे साथ क्या रिश्ता है क्यों है..ऐसा कैसे हुआ...पूजा इसके लिए कैसे राजी हो गयी....जब इस तरह के सारे सवाल इसने मुझसे पूछा लिए तो उसके बाद कोसना शुरू कर दिया....जैसे ही तुम घर से बाहर जाते और जैसे ही सीमा सोती या किसी दूसी चीज में लगी होती वैसे ही ये मुझे कोसना शुरू कर देती थी....तुम अपने काम में मगन थे....मैं अकेली पड़ गयी थी और इसका पूरा फायदा उठाया नेहा ने...जब मैंने उसे डांट के चुप कराने की कोशिश की तो वो धमकी देने लगी की हमारे बारे में सब को बता देगी...

किसी माँ के लिए इससे बड़ी बेइज्जती क्या होगी की उसकी बेटी उसे उस हालत में देखे...या शायद उससे भी बड़ी बेइज्जती तब है जब उसकी बेटी उसे रंडी कहे...खुल के गालियाँ दे....ये कहे की मैंने अपनी बेटी को खा लिया...मैंने अपनी ही बेटी का सुहाग हड़प लिया....तुम जानते हो दिनकर मैं कितनी कठोर हूँ अन्दर से..मेरी आत्मशक्ति से तुम परिचित हो...दुनिया की बातों का हमला सहना आसान है...लेकिन अपनी ही औलाद के मुंह से अपने लिए ये सब सुनना...बार बार सुनना...इस सबसे मैं बहुत बुरी तरह टूट गयी....मैंने कई बार सोचा की तुमसे कहूं की तुम्हारे जाते ही नेहा मुझसे कैसे पेश आती है...लेकिन फिर लगता की शायद तुम खुद ही मुझसे बात नहीं करना चाहते...मुझे डर था की यदि कभी तुमने भी यही कह दिया की मैं रंडी हूँ तो मैं कहाँ की रहूंगी...मैं चुप रही...और नेहा का बर्ताव बद से बदतर होता गया.....इसे एक अजीब सुख मिलता था मुझे ऐसे कोस के...मैंने सोचा की ये मान लेती हूँ की इसकी बात सच है तो शायद दर्द कुछ कम होगा...और शायद समय के साथ ये खुद ही चुप हो जाये लेकिन ऐसा नहीं हुआ...तुम और मैं एक ही घर में रहते हुए भी दूर दूर थे..मैं तुम्हें दोष नहीं दे रही...तुम भी पूजा को खो कर बदहवास हो गए थे,...लेकिन फिर एक दिन पता नहीं क्यों और कैसे तुम्हारे मन में हिलोरे उठने लगे....
 
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तुमने मुझसे कहा की हम पहले जैसे ही रहने लगेंगे....मुझे लगा की हमारे बीच की दूरी कम होगी तो आगे चल के मैं तुम्हें नेहा के बारे में भी बता सकुंगी...मैंने तुम्हें इनकार नहीं किया....लेकिन मैं सोच भी नहीं सकती थी की मेरी बेटी कितनी नीच हो सकती है....

(वो लगातार बोले जा रही थी....नेहा अब अपना सर झुकाए चुप बैठी हुई थी...उसने एक दो बार उठ के जाने की कोशिश की माँ को चुप करने की कोशिश की लेकिन अब तक मेरा दिमाग सनक चूका था और नेहा को भी इसका अंदाजा था इसलिए उसने चुप रहना ही ठीक समझा था....)

माँ – जिस दिन तुमने मुझे पहली बार छुआ.....तुम्हारे जाने के बाद नेहा मेरे कमरे में आई और उसने मुझे दबोचना शुरू कर दिया....मुझसे गन्दी गन्दी बातें करनी लगी और मुझे कहने लगी की अपनी बेटी को खा लेने के बाद भी मेरी हवस ख़त्म नहीं हुई है और मैं फिर से वही रंडीबाजी करने लगी हूँ अपने दामाद के साथ....वो मुझे पहले से भी ज्यादा गंदे गंदे शब्द बोलती और मुझे जगह जगह दबोचती मेरी कपड़े खोलती मुझे बहुत जलील करती....मैंने तुम्हारा बचाव किया..कहा की दिनकर सिर्फ अपने काम की टेंशन से थोडा हल्का होना चाहता है इसमें कोई बुराई नहीं है....इसने उसका भी गलत मतलब निकाल लिया...जब जब तुम मुझे इसके सामने चूमते या कुछ भी करते तो तुम्हारे जाने के बाद ही ये मुझे जबरन पकड़ के मसलने लगती...मेरे अन्दर हाथ घुसा देती..मेरे कपड़े जबरन खोल देती...मेरे सामने खुद बिना कपड़े के आ जाती और मुझसे कहने लगती की जब अपने दामाद के साथ कर सकती हो तो मेरे साथ भी करो....मैंने बहुत झगड़ा किया...बहुत रोका...बहुत मना किया लेकिन इसने एक नहीं सुनी....इसके पहले ये मुझे धमकी दिया करती थी की ये हमारे राज सबको बता देगी....मुझे धमकाने के लिए इसने सच में मोहल्ले की दो औरतों को हमारे बारे में बता दिया....सिर्फ इसलिए ताकि मैं इससे डर के रहूँ...दिनकर नेहा बहुत ही अजीब है....हम लोग अपने आप को सेक्स में बहुत अडवांस समझते थे लेकिन हमारी सोच विक्रत नहीं थी...इसकी तो सोच ही जानवरों वाली है....अगर मैं नशे में नहीं होती तो शायद कभी कह भी नहीं पाती की इसने क्या क्या किया है मेरे साथ....हमेशा मेरी मर्जी के खिलाफ..हमेशा जबरन......मेरी अपनी ही बेटी मुझे अपनी दासी बना के रखती है घर में...मेरे लिए इसने जो भी कहा मैंने सब सहा...सब सुना...लेकिन कल रात इसने जब तुम्हारी इस तरह से बेइज्जती की तो मुझसे रहा नहीं गया...तुम ही सोचो दिनकर...क्या मैं ऐसी हूँ जो की सेक्स के इतना करीब आ के पलट जाये....नहीं न....लेकिन मेरे मन में नेहा का डर इस कदर भरा हुआ था....मुझे लगता था की जितना ही मैं तुम्हारे साथ रस लूंगी उतना ही तुम्हारे जाने के बाद नेहा मुझे जलील करेगी...पता नहीं कहाँ कहाँ दबोचेगी रगड़ देगी क्या घुसा देगी कहाँ घुसा देगी इसका कुछ भरोसा नहीं था...इसलिए नेहा से बचने के लिए मैं कोशिश करती थी की तुम्हारे साथ तो रहूँ लेकिन ज्यादा देर तक नहीं...सेक्स करून लेकिन पूरा नहीं....पर एक तरह से मुझे ख़ुशी है की कल जो हुआ ठीक हुआ...

मैं – हाँ माँ...कल जो हुआ ठीक हुआ...मैं भी अब ये समझ पा रहा हूँ की आपसे बात न करके...आपसे आपके मन का हाल न पूछ के मैंने गलती की...और नेहा ने इसी का फायदा उठा के आपको इतना परेशान किया....खैर...कोई बात नहीं..हम दोनों नेहा को इसलिए बर्दाश्त कर रहे हैं क्योंकि नेहा से सीमा को लगाव है,....और ये बात तो नेहा भी जानती है की सीमा के अलावा और कोई वजह नहीं है इसे यहाँ रहने देने की...

माँ – हाँ...इसने मुझसे कई बार कहा की दिनकर को घर से निकाल दो...ये मेरे साथ मेरी पार्टनर बन के रहेगी...मेरी बॉस बन के...ये सीमा को पालेगी...मुझे लालच देती थी की अपनी सहेलियों को बुला लिया करेगी फिर मैं चहुँ तो उनकी बॉस बन के उनके साथ कुछ भी कर सकती हूँ...लेकिन मुझे ख़ुशी है की अब हम एक हैं...और हमारे बीच कोई मनमुटाव नहीं है....
 
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मैं – हाँ...आप अकेली नहीं हैं...मैंने सब सम्हाल लिया है...और अब आपको भी अकेला नहीं छोडूंगा...रही बात नेहा की तो आज इसका भी हिसाब हमेशा के लिए सेट कर दिया जाये....बोलो नेहा...अभी मुझे तो बहुत भाषण दिया था तुमने....तुम्हें शायद उम्मीद नहीं थी की तुम्हारी माँ तुम्हारी पूरी पोल खोल देगी...अब कहो क्या कहना है तुम्हें...

नेहा – मुझे किसी को कोई सफाई देने की जरुरत नहीं है. मैं बेटी हूँ और इस घर पर माँ की संपत्ति पर मेरा पूरा हक़ है...

मैं – तुम्हारा कोई हक़ नहीं है यहाँ. ये घर मेरा है. इस घर का मालिक मैं हूँ. यहाँ का बॉस मैं हूँ. और ये मत समझना की सीमा का नाम ले के तुम हमें ब्लैकमेल कर लोगी...तुम चली जोगी तो सीमा कितने दिन याद करेगी तुम्हें....दस दिन..बीस दिन...महिना भर...उसके बाद ? उसके बाद हम सम्हाल लेंगे उसे....तो आईंदा सीमा को अपनी ढाल मत समझना....

नेहा – तुम चाहते क्या हो मुझसे?

मैं – मैं तुमसे कुछ नही चाहता...तुमसे मुझे कुछ नहीं चाहिए,....तुम्हारे पास है ही क्या जो तुम मुझे दे सकती हो...

माँ – दिनकर मैं चाहती हूँ की तुम नेहा को घर में ही रहने दो....जो भी हो वो मेरा ही खून है...और जब तक उसकी शादी नही हो जाती वो हमारे साथ ही रहे...मेरी तो यही इच्छा है..बाकी जैसा तुम्हें ठीक लगे...

मैं – ठीक है माँ....मुझे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन यदि नेहा को इस घर में रहना है तो उसे इस घर के नियम कायदे पालन करने होंगे....

माँ – दिनकर मैं नेहा से किसी तरह का बदला नहीं लेना चाहती..मैं नेहा को कोई सजा नहीं देना चाहती...मैं जब खुद को उसकी जगह रख कर देखती हूँ तो समझ सकती हूँ की उसके मन पर क्या असर हुआ होगा...उसकी जगह यदि मैं होती तो शायद मैं भी वही सब करती.,....मुझे नेहा से कोई शिकायत नहीं है.

मैं – अभी आप कह रही थी की नेहा ने आपकी जिंदगी में कैसी दहशत भर दी थी...और अभी कह रही हैं की आपको कोई शिकायत नहीं है...एक तरफ की बात कीजिये माँ...

माँ – नहीं कर सकती दिनकर. नेहा ने मुझे कितना ही जलील क्यों न किया हो लेकिन फिर रहेगी वो मेरी बेटी ही...मैं उसकी माँ ही रहूंगी....मैं उसकी जगह खुद को रख के सोचती हूँ तो समझ पाती हूँ की उसने हमारे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया....इसलिए मैं चाहती हूँ की तुम भी नेहा को माफ़ कर दो...

मैं – मुझे जब पहली बार घर के अन्दर बात घर के बाहर सुनने को मिली...घर के राज बाहरी लोगों से सुनने को मिले उसके बाद से ही मुझे नेहा से एक चिढ सी हो गयी है....मुझे नहीं लगता मैं नेहा को इसके लिए कभी माफ़ कर सकता हूँ...जो भी हो घर घर होता है और घर का हाल बाहर जाए ये बात ठीक नहीं है.

नेहा – मैं आगे से ऐसा नहीं करुँगी.
 
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मैं – तुमसे किसी ने नहीं पूछा नेहा....तुम जानती हो जिस दिन तुम्हारी चिट्ठी मिली की तुम घर वालों के साथ रहोगी उस दिन हम कितने खुश थे...याद है माँ...वही दिन तो था न...चिट्ठी आई थी और हम मारे ख़ुशी के पल भर में नंगे हो गये थे...कितना अच्छा माहौल था...लेकिन नेहा की हरकत ने सब बेकार कर दिया..

नेहा – उसमे मेरा दोष नहीं है. मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता..

मैं – मैंने तुमसे नहीं पूछा नेहा...मैं माँ से बात कर रहा हूँ...

माँ – दिनकर क्या हम इस झगडे को यहीं आज ही ख़त्म नहीं कर सकते...भले ही तुम्हें नेहा पसंद नहीं है फिर भी....कई परिवारों में लोग एक दुसरे को पसंद नहीं करते लेकिन रहते तो एक साथ ही हैं न...

मैं – पता नहीं माँ....

हमें बात करते लगभग सुबह हो गयी थी....नेहा के चेहरे पर एक हार का भाव दिख रहा था....उसे सच में उम्मीद नहीं थी की उसकी माँ उसकी पूरी पोल खोल देगी....अब थकन भी होने लगी थी...मैंने नेहा को कहा की वो सब सामान साफ़ करे और मैं माँ को ले के उनके कमरे में जाने लगा....हमें जाते देख नेहा के चेहरे पर फिर से वही सरे सवाल आ गए....लेकिन इस बार माँ के चेहरे पर शिकन नहीं थी...उन्हें अब अकेलेपन का एहसास नहीं था....उन्हें देख के मुझे भी अच्छा लगा...मैं उनकी कमर पर बाहें डाले उन्हें कमरे में ले गया..हम बिस्तर पर लेट गए...माँ मेरे सीने पर सर रख के लेट गयी...इतना थके होने के बाद भी हम सोना नहीं चाह रहे थे....हमने फिर से बात शुरू कर दी...

मैं – माँ जरा बताओ न नेहा ने क्या क्या किया तुम्हारे साथ....

माँ- क्यों....तुम्हें मजा आ रहा है क्या सोच के...

मैं – हाँ शायद...या हो सकता है दारू का असर हो...आज कितने दिनों के बाद हमने इतनी पी है...

माँ – हाँ,....दिनकर क्या कभी तुम्हारे मन में अलग होने का ख्याल आया था...

मैं – हाँ...आया था...मुझे लगा था की मैं आप लोगों के बीच रह के कभी पूजा को भूल नहीं पाउँगा...आपने कभी मेरे सामने नेहा को कुछ कहा नहीं तो मुझे लगता था की आप दोनों की सुलह हो गयी है...

माँ – अब तो पता चल गया न की हमारे बीच कैसे हालात थे..

मैं – हाँ...अब पता चल गया...मुझे अपनी गलती भी समझ में आ गयी...मुझे इस तरह आपको अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था...

माँ – कोई बात नहीं दिनकर...हम सब परेशान थे..हममे से कोई नहीं जनता था की क्या करना चाहिए क्या नहीं...खैर....वो गलती तो ठीक है लेकिन अब एक और गलती हो जाएगी...

मैं – कौन सी गलती...

माँ – इतनी देर से दारू पिला रहे हो....इतनी सारी पी ली है...अब निकालनी भी तो पड़ेगी न...लेकिन शरीर में ताकत नहीं है की उठ के बाथरूम तक चली जाऊ...

मैं – तो क्या फर्क पड़ता है....इसके लिए नेहा है न..
 
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मैंने बिस्तर में पड़े पड़े नेहा को आवाज दी...कुछ देर में नेहा आई...शायद वो सोने जाने ही वाली थी...मैंने उससे कहा की बाथरूम में से एक खाली बाल्टी ले आये....नेहा को समझ तो नहीं आया लेकिन वो जानती थी की सवाल कर नहीं सकती....वो भी दीवार का सहारा ले के चल रही थी..हम सबको भारी सुरूर था...वो बाल्टी ले के बाहर आई..मैंने बिस्तर के किनारे बाल्टी ले के खड़े होने को कहा....फिर माँ को उनकी पीठ से सहारा दे के आधा उठा दिया...बिस्तर के कोने पर पैर रख के माँ उकडू बैठ गयी...अब बाल्टी उनकी बुर के नीचे ही थी...मैंने माँ से कहा की मूत दीजिये...बाल्टी में गिरेगा...माँ ने थोडा जोर लगाया तो एक पतली सी धार उनकी बुर से चिपक के बहती हुई बिस्तर पर ही गिर गयी...मैंने रुकने को कहा....फिर उन्हें बाल्टी दिखा के कहा की इस पर निशाना लगा के मूतिये नही तो बिस्तर गन्दा हो जायेगा....नेहा ये सब देख के चुपचाप खड़ी थी...रोज की तरह आज वो गन्दा गन्दा मुंह नहीं बना रही थी...मैंने माँ की कमरे के पीछे दो तकिये लगा दिए...और थोडा सामने आ के उनकी बुर को छेड़ने लगा....जैसे ही उनकी बुर पर ऊँगली चलायी वो सिहर गयी....मैंने उनके दाने को थोडा सा खीचा और माँ से गन्दी गन्दी बात करने लगा....फिर एक ऊँगली उनके अन्दर घुसा दी...मैं मुंह से उनकी चूची पी रहा था और निचे ऊँगली से बुर को पेल रहा था...जल्दी ही वो उत्तेजित हो गयी.....नेहा हमें देख रही थी...पहले भी देख चुकी थी...हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था...जैसे ही माँ ने उत्तेजित हो के धार निकाली इस बार वो बौछार पूरी बाल्टी पर हुई...नेहा ने भी जिम्मेदारी से बाल्टी को सही तरीके से रखा जिससे कुछ भी बाहर न गिरे...

जब उनकी बुर सूख गयी तो मैंने उन्हें वापस बिस्तर पर लेटा दिया....नेहा बाल्टी ले के बाथरूम में जाने लगी तो मैंने उसे रुकने को कहा...वो वहीँ बाथरूम के दरवाजे पर ही रुक गयी...मैं बिस्तर पर खड़ा हो गया....नेहा मुझसे कुछ तीन चार फिट की दूरी पर रही होगी...मैंने अपना लंड बाहर निकाला और चमड़ी पीछे खिची....मेरा लंड भी तना हुआ था...और आज तो सुरूर भी था....मैंने बिना कुछ कहे ही मूतना शुरू कर दिया...इतनी दूर तक तो धार जनि नही थी...मैंने नेहा को इशारा किया...और नेहा ने उम्मीद से परे बिना मुंह बनाये आदेश का पालन किय और बाल्टी को मेरी धार के हिसाब से ले के खड़ी हो गयी.....लेकिन अब मुझमे हराम्पंती घुस चुकी थी...नेहा बाल्टी को मूत के हिसाब से पास ले के आई तो मैंने लंड को पकड़ के थोडा उठा दिया....धार नेहा के हाथ पर गिरी...एकदम से उसे घिन से लगी होगी...और वो बाल्टी उसके हाथ से सरकने ही वाली थी की उसने सम्हाल लिया....मैंने अपनी धार जारी राखी...और बाकायदा लंड पकड़ के लहराने लगा...जैसे जैसे मेरी धार बहक रही थी वैसे वैसे नेहा बाल्टी लिए उस धार का पीछा कर रही थी...कुछ बाल्टी में गिर रहा था..कुछ फर्श पर और कुछ उसके ऊपर...जब मेरा भी टैंकर खाली हुआ तब नेहा की छुट्टी हुई...

मेरी हरकत पर माँ ने कोई टिपण्णी नहीं की.....शायद उसे भी मजा आया होगा...पता नहीं...कह नही सकते...तीन तीन बोतल दारू हमारे शरीर में घुसी हुई थी...हमें एक दुसरे के नाम याद थे यही बहुत बड़ी बात थी....मुझे इतना याद है की सोने से पहले मैंने माँ से कहा था की वो पूजा वाला चाबुक खोज लेना....
 
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मेडम – चंदू रहा करे घर में तब ही आया करो. उससे उसका टाइम पूछ लेना आज.

मैं – जी. आगे से ध्यान रखूँगा. केसेट ले आया हूँ. कहाँ रख दूं..

मदम- रोज रोज बताना पड़ेगा कहाँ रखना है. एक बार में याद नहीं रहता क्या...

मैं = जी याद है..मैं रख देता हूँ. पुराणी वाली लेता जाता हूँ.

मेडम – ये आजकल क्या बकवास फ़िल्में देके जाते हो....तुम्हारा मालिक नहीं है क्या? कुछ भी दे जाते हो. उससे पूछ लिया करो. फिर लाया करो.मैं इन बकवास फिल्मो के लिए इतने पैसे नहीं देती.

मैं – जी. समझ गया. ध्यान रखूँगा. वैसे कुछ नयी फ़िल्में आई थी पिछले हफ्त.

मेडम – पिछले हफ्ते आई थी तो अभी तक दी क्यों नहीं.

मैं – जी वो पिछली बार आपको दी थी तो आप गाली दे के चली गयी थी मुझे. मुझे लगा की शायद आपको पसंद नहीं वैसी फिल्म.

मेडम= तुम्हें सोचने के लिए नहीं कहा गया है. और मैंने कब तुम्हें गाली दी..

मैं – जी आप गुस्से में थी तो शायद भूल गयी होंगी. उस दिन आप मुझे साला मादरचोद बोल के चली आई थी..

(मैंने जानबूझ के गाली दी उनके सामने...मेरे मुंह से गाली सुन के वो भी चौंक सी गयी लेकिन उन्होंने गुस्से को काबू में रखा)

मेडम- हाँ तो तुमने जरुर कुछ ऐसा किया होगा. वैसे मैं कभी किसी को गाली नहीं देती. और इस तरह की गन्दी गालियाँ तो कभी नहीं देती.

मैं – जी गलियां तो सभी गन्दी ही होती हैं. अच्छी गाली थोड़ी न होती है कोई. आपने दी इसलिए आपको याद नहीं. मुझे सुन्नी पड़ी इसलिए मुझे याद है.

मेडम= हाँ तो ऐसी हरकतें करोगे तो गाली ही सुनोगे. तुमसे कितनी बार कहा है अपनी लिमिट में रहा करो. नौकर हो नौकर की तरह रहो.

मैं =- जी इसीलिए बिना सोचे समझे जो केसेट हाथ में आ जाती है वो उठा ले आता हूँ. नौकर की तरह.

(उनको ये समझ में आ रहा था की मैं बातें बना रहा हूँ....लेकिन आज वो बात को काट के बंद नहीं कर रही थी..मुझे लगा की मुझे भी बात करते रहना चाहिए...)
Bhosdiki ladkiya jb gndi gaaliya bolti h tb sb madarchod bhadve londebaaz muh faad kr randi ki gaaliya sun te h chutmarike namard khike
 

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