#8
लाला महिपाल की छवि कोई खास बढ़िया नहीं थी , लोगो को कर्जा देना और फिर ब्याज पर ब्याज वसूलना , सूद का ऐसा चक्रव्यूह चलाता था वो की कोई अभिमन्यु निकल नहीं पाता था फिर बाहर, जो कर्जा नहीं दे पाते थे उनकी बहन-बहुओ को लाला के बिस्तर में जाना पड़ता. शहर में कुछ कपडे के शोरुम थे उसके, पर अब ये दवा का धंदा मेरी समझ में नहीं आ रहा था . खैर, वैसे तो जीवन में हर किसी को तरक्की करने का अधिकार है पर जैसे कर्म थे लाला के उस हिसाब से मुझे शंका हो गयी थी.
दिमाग में एक साथ हजारो चीजे चलने लगी थी, लाला, सरोज, कौशल्या और रूपा. मैंने रूपा से कहा था की दोपहर में वो मुझे मेरे खेत पर आके मिले. दोपहर होने में कुछ समय था तो मैं खेतो की तरफ चल दिया. धुप होने के बावजूद भी ठंडी थी . .झोपडी में बैठा मैं सोचने लगा की इतने सालो बाद क्यों मेरा परिवार मुझे बुला रहा था.
रूपा का इंतज़ार था पर वो आई ही नहीं तो मन उदास हो गया . मैं खेत से निकल कर नहर की तरफ घुमने चल दिया . मैंने देखा की विक्रम और लाला की घरवाली शकुन्तला वहां थे.
“ये क्या कर रहे है यहाँ ” मैंने सोचा और आगे बढ़ा, उनकी बाते सुनने की उत्सुकता सी हुई मुझे.
सड़क किनारे बड़े बड़े झुंडे उगे थे मैं उनकी आड़ लेकर थोडा और आगे बढ़ा
“मैं समझता हूँ तुम्हारी बात पर देव को आज नहीं तो कल मालूम ही होगा न , तुम्हे तो पता है की महिपाल को पसंद नहीं करता वो ” विक्रम बोला
शकुन्तला- जानती हूँ पर तुम अपने स्तर पर ये काम कर सकते हो , और फिर तुम्हे मुनाफा भी तो होगा.
विक्रम- बात मुनाफे की नहीं है , देव की है .
शकुन्तला- देखो विक्रम, वैसे भी तो हम साथ धंधा करते ही हैं न , तुम्हारी सब्जिया , गेहू हमारे गोदाम में आते है या नहीं . . २५% की पार्टनर शिप कम नहीं है . कब तक छोटे दुकानदार रहोगे सेठ बनो,
विक्रम- तुम समझती नहीं हो , हम अपने अंगूर तुम्हारी शराब फैक्ट्री में भेजते है देव उस से ही नाराज है , और अफीम , गांजा उगाना ये तो बड़ा मुश्किल होगा
शकुन्तला- क्या मुश्किल होगा, सब कुछ तो तुम सँभालते ही हो , हमारा भरोसा भी है आपस में
विक्रम- मुझे थोडा समय दो सोचने का .
विक्रम वहां से चला गया , शकुन्तला थोड़ी देर और वही रही . उसने आस पास देखा जब कोई नहीं दिखा तो उसने अपनी साडी ऊपर की , कच्छी सरकाई और मूतने बैठ गयी. मैंने कभी किसी औरत को मुतते नहीं देखा था . बेहद गोर चुतड , और गहरे काले बालो से भरी हुई उसकी चूत , जो थोडा दूर से काली दिख रही थी पर बेहद मस्त नजारा था .
शकुन्तला बेहद हसीं औरत थी, सुख में रहती थी तो और गदरा गयी थी . और उसकी चूत देखने के बाद मैं जैसे पागल सा हो गया था , सीटी मारती चूत से पेशाब की धार निकल कर धरती पर गिर रही थी . मैं सोच रहा था की काश सामने से देख पाता पर फिलहाल उसका पिछवाडा ही देखना लिखा था नसीब में.
मूतने के बाद वो भी चली गयी. और मेरे लिए रह गए कुछ सवाल, गांजा, अफीम की खेती, लाला की दवा की फक्ट्री, बात साफ़ थी , दवा की आड़ में नशीला कारोबार करना चाहता था वो.
शकुन्तला को इस हालत में देखने के बाद मेरा दिमाग भन्ना गया था पिछले दो चार रोज में मेरे आस पास हुस्न चक्कर काट रहा था , मुझे मालूम हुआ था की दो प्यासी औरते पास में ही हैं और अब ये सेठानी. मैंने सोच तो लिया था की इसे चोदना है पर कैसे, जबकि हमारे सम्बन्ध आपस में बिगड़े हुए थे .
मैं घर आकर सो गया करने को कुछ था भी तो नहीं, शाम को मुझे सरोज ने जगाया ,
“देव, उठो अब देखो मौसम ख़राब हुआ है खेत पर भी चलना है . ” सरोज ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा
“कट्टु को ले जाओ ” मैंने अलसाई आवाज में कहा
सरोज- वो नहीं है यहाँ, तुम उठो जल्दी .
अब आँखे खोलनी ही पड़ी. सूट-सलवार पहना था उसने . टाइट सूट में एक दम तनी हुई चुचिया, जिसके मोटे निप्पल बता रहे थे की पक्का उसने ब्रा नहीं पहनी है.
“काकी, सोने दो न ”
सरोज- देव, खिड़की से बाहर देखो जरा, कैसी घटा छाई है , विक्रम शायद इसी तूफ़ान की बात कर रहा था . हमें अभी खेत पर चलना होगा, क्योंकि ये तूफ़ान समय से पहले आ गया , हमें मौका नहीं मिला .
मैं- ठीक है .
मैंने ट्रेक्टर चालू किया और सरोज को लेके खेत पर आ गया . एक तो ठण्ड का मौसम ,ऊपर से सांझ सर्दियों में वैसे भी अँधेरा जल्दी हो जाता है पर चूँकि आज आसमान पर काले बादलो ने कब्ज़ा कर लिया था . खेत पर पहुँचते ही मेरा दिमाग भन्ना गया .
मैं- ये तो बहुत ज्यादा है
सरोज- कम से कम तीन ट्रोली तो होंगी ही .
हम दोनों ने जल्दी जल्दी पोटलिया ट्रोली में भरना चालू किया. मौसम बिगड़ने लगा था . दूसरी ट्रोली जब हम घर लेकर आये तब तक बारिश गिरने लगी थी
“बरसात होने लगी है काकी, यही रुकते है ” मैंने कहा
सरोज- नहीं, थोड़ी ही पोटलिया बची है , बस जाना है और आना है
मैं- भीग गए तो कही तबियत ख़राब न हो जाये
सरोज- किसान सबसे पहले फसल का सोचता है देव,
सरोज की जिद थी तो हम फिर से खेत पर चल दिए. गाँव से बाहर आते ही बारिश तेज पड़ने लगी , हवा भी मचल रही थी .
“कही फंस न जाए ” मैंने कहा
खेत पहुँचते पहुँचते बरसात हद से ज्यादा तेज हो गयी थी , मेरे दांत ठण्ड से किटकिटाने लगे थे. ऐसा ही हाल सरोज काकी था. चारो तरफ से पछाड़ गिर रही थी . उपर से अँधेरा भी घर चूका था . मैंने ट्रेक्टर की लाइट जला दी और पोटलिया भरने लगे.
वापसी में एक गड़बड़ और हो गयी. ट्रेक्टर गीली मिटटी में फंस गया . पहिये फिसलने लगे.
मैं- हो गया स्यापा.
अब सरोज मेरा मुह देखे मैं उसका
सरोज- ठीक करो इस को
मैं- अब कुछ नहीं हो सकता
हम दोनों बुरी तरह से भीग रहे थे . मैंने महसूस किया की काकी को बहुत ठण्ड लग रही है.
मैं- काकी अब क्या करे.
सरोज- फंस गए मेरी ही गलती है , अब कहाँ जाये , क्या करे
मैंने सरोज का हाथ पकड़ा और ट्यूबवेल की तरफ इशारा करते हुए कहा - कमरे में कम से कम भीगना तो नहीं पड़ेगा.
भीगते हुए हम वहां तक पहुंचे देखा ताला लगा था .
सरोज- सत्यानाश
मैं-चाबी कहा है .
सरोज- घर पर .
मैंने आस पास देखा एक पत्थर था मैं ताला तोड़ने जा ही रहा था की तभी जोर से बिजली कडकी लगा की पास ही गिरेगी, भय से सरोज ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे सीने में अपना मुह छुपा लिया. एक दम से मैं भी घबरा गया मेरे हाथ उसके नितम्बो पर कस गए.
लाला महिपाल की छवि कोई खास बढ़िया नहीं थी , लोगो को कर्जा देना और फिर ब्याज पर ब्याज वसूलना , सूद का ऐसा चक्रव्यूह चलाता था वो की कोई अभिमन्यु निकल नहीं पाता था फिर बाहर, जो कर्जा नहीं दे पाते थे उनकी बहन-बहुओ को लाला के बिस्तर में जाना पड़ता. शहर में कुछ कपडे के शोरुम थे उसके, पर अब ये दवा का धंदा मेरी समझ में नहीं आ रहा था . खैर, वैसे तो जीवन में हर किसी को तरक्की करने का अधिकार है पर जैसे कर्म थे लाला के उस हिसाब से मुझे शंका हो गयी थी.
दिमाग में एक साथ हजारो चीजे चलने लगी थी, लाला, सरोज, कौशल्या और रूपा. मैंने रूपा से कहा था की दोपहर में वो मुझे मेरे खेत पर आके मिले. दोपहर होने में कुछ समय था तो मैं खेतो की तरफ चल दिया. धुप होने के बावजूद भी ठंडी थी . .झोपडी में बैठा मैं सोचने लगा की इतने सालो बाद क्यों मेरा परिवार मुझे बुला रहा था.
रूपा का इंतज़ार था पर वो आई ही नहीं तो मन उदास हो गया . मैं खेत से निकल कर नहर की तरफ घुमने चल दिया . मैंने देखा की विक्रम और लाला की घरवाली शकुन्तला वहां थे.
“ये क्या कर रहे है यहाँ ” मैंने सोचा और आगे बढ़ा, उनकी बाते सुनने की उत्सुकता सी हुई मुझे.
सड़क किनारे बड़े बड़े झुंडे उगे थे मैं उनकी आड़ लेकर थोडा और आगे बढ़ा
“मैं समझता हूँ तुम्हारी बात पर देव को आज नहीं तो कल मालूम ही होगा न , तुम्हे तो पता है की महिपाल को पसंद नहीं करता वो ” विक्रम बोला
शकुन्तला- जानती हूँ पर तुम अपने स्तर पर ये काम कर सकते हो , और फिर तुम्हे मुनाफा भी तो होगा.
विक्रम- बात मुनाफे की नहीं है , देव की है .
शकुन्तला- देखो विक्रम, वैसे भी तो हम साथ धंधा करते ही हैं न , तुम्हारी सब्जिया , गेहू हमारे गोदाम में आते है या नहीं . . २५% की पार्टनर शिप कम नहीं है . कब तक छोटे दुकानदार रहोगे सेठ बनो,
विक्रम- तुम समझती नहीं हो , हम अपने अंगूर तुम्हारी शराब फैक्ट्री में भेजते है देव उस से ही नाराज है , और अफीम , गांजा उगाना ये तो बड़ा मुश्किल होगा
शकुन्तला- क्या मुश्किल होगा, सब कुछ तो तुम सँभालते ही हो , हमारा भरोसा भी है आपस में
विक्रम- मुझे थोडा समय दो सोचने का .
विक्रम वहां से चला गया , शकुन्तला थोड़ी देर और वही रही . उसने आस पास देखा जब कोई नहीं दिखा तो उसने अपनी साडी ऊपर की , कच्छी सरकाई और मूतने बैठ गयी. मैंने कभी किसी औरत को मुतते नहीं देखा था . बेहद गोर चुतड , और गहरे काले बालो से भरी हुई उसकी चूत , जो थोडा दूर से काली दिख रही थी पर बेहद मस्त नजारा था .
शकुन्तला बेहद हसीं औरत थी, सुख में रहती थी तो और गदरा गयी थी . और उसकी चूत देखने के बाद मैं जैसे पागल सा हो गया था , सीटी मारती चूत से पेशाब की धार निकल कर धरती पर गिर रही थी . मैं सोच रहा था की काश सामने से देख पाता पर फिलहाल उसका पिछवाडा ही देखना लिखा था नसीब में.
मूतने के बाद वो भी चली गयी. और मेरे लिए रह गए कुछ सवाल, गांजा, अफीम की खेती, लाला की दवा की फक्ट्री, बात साफ़ थी , दवा की आड़ में नशीला कारोबार करना चाहता था वो.
शकुन्तला को इस हालत में देखने के बाद मेरा दिमाग भन्ना गया था पिछले दो चार रोज में मेरे आस पास हुस्न चक्कर काट रहा था , मुझे मालूम हुआ था की दो प्यासी औरते पास में ही हैं और अब ये सेठानी. मैंने सोच तो लिया था की इसे चोदना है पर कैसे, जबकि हमारे सम्बन्ध आपस में बिगड़े हुए थे .
मैं घर आकर सो गया करने को कुछ था भी तो नहीं, शाम को मुझे सरोज ने जगाया ,
“देव, उठो अब देखो मौसम ख़राब हुआ है खेत पर भी चलना है . ” सरोज ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा
“कट्टु को ले जाओ ” मैंने अलसाई आवाज में कहा
सरोज- वो नहीं है यहाँ, तुम उठो जल्दी .
अब आँखे खोलनी ही पड़ी. सूट-सलवार पहना था उसने . टाइट सूट में एक दम तनी हुई चुचिया, जिसके मोटे निप्पल बता रहे थे की पक्का उसने ब्रा नहीं पहनी है.
“काकी, सोने दो न ”
सरोज- देव, खिड़की से बाहर देखो जरा, कैसी घटा छाई है , विक्रम शायद इसी तूफ़ान की बात कर रहा था . हमें अभी खेत पर चलना होगा, क्योंकि ये तूफ़ान समय से पहले आ गया , हमें मौका नहीं मिला .
मैं- ठीक है .
मैंने ट्रेक्टर चालू किया और सरोज को लेके खेत पर आ गया . एक तो ठण्ड का मौसम ,ऊपर से सांझ सर्दियों में वैसे भी अँधेरा जल्दी हो जाता है पर चूँकि आज आसमान पर काले बादलो ने कब्ज़ा कर लिया था . खेत पर पहुँचते ही मेरा दिमाग भन्ना गया .
मैं- ये तो बहुत ज्यादा है
सरोज- कम से कम तीन ट्रोली तो होंगी ही .
हम दोनों ने जल्दी जल्दी पोटलिया ट्रोली में भरना चालू किया. मौसम बिगड़ने लगा था . दूसरी ट्रोली जब हम घर लेकर आये तब तक बारिश गिरने लगी थी
“बरसात होने लगी है काकी, यही रुकते है ” मैंने कहा
सरोज- नहीं, थोड़ी ही पोटलिया बची है , बस जाना है और आना है
मैं- भीग गए तो कही तबियत ख़राब न हो जाये
सरोज- किसान सबसे पहले फसल का सोचता है देव,
सरोज की जिद थी तो हम फिर से खेत पर चल दिए. गाँव से बाहर आते ही बारिश तेज पड़ने लगी , हवा भी मचल रही थी .
“कही फंस न जाए ” मैंने कहा
खेत पहुँचते पहुँचते बरसात हद से ज्यादा तेज हो गयी थी , मेरे दांत ठण्ड से किटकिटाने लगे थे. ऐसा ही हाल सरोज काकी था. चारो तरफ से पछाड़ गिर रही थी . उपर से अँधेरा भी घर चूका था . मैंने ट्रेक्टर की लाइट जला दी और पोटलिया भरने लगे.
वापसी में एक गड़बड़ और हो गयी. ट्रेक्टर गीली मिटटी में फंस गया . पहिये फिसलने लगे.
मैं- हो गया स्यापा.
अब सरोज मेरा मुह देखे मैं उसका
सरोज- ठीक करो इस को
मैं- अब कुछ नहीं हो सकता
हम दोनों बुरी तरह से भीग रहे थे . मैंने महसूस किया की काकी को बहुत ठण्ड लग रही है.
मैं- काकी अब क्या करे.
सरोज- फंस गए मेरी ही गलती है , अब कहाँ जाये , क्या करे
मैंने सरोज का हाथ पकड़ा और ट्यूबवेल की तरफ इशारा करते हुए कहा - कमरे में कम से कम भीगना तो नहीं पड़ेगा.
भीगते हुए हम वहां तक पहुंचे देखा ताला लगा था .
सरोज- सत्यानाश
मैं-चाबी कहा है .
सरोज- घर पर .
मैंने आस पास देखा एक पत्थर था मैं ताला तोड़ने जा ही रहा था की तभी जोर से बिजली कडकी लगा की पास ही गिरेगी, भय से सरोज ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे सीने में अपना मुह छुपा लिया. एक दम से मैं भी घबरा गया मेरे हाथ उसके नितम्बो पर कस गए.