Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#8



लाला महिपाल की छवि कोई खास बढ़िया नहीं थी , लोगो को कर्जा देना और फिर ब्याज पर ब्याज वसूलना , सूद का ऐसा चक्रव्यूह चलाता था वो की कोई अभिमन्यु निकल नहीं पाता था फिर बाहर, जो कर्जा नहीं दे पाते थे उनकी बहन-बहुओ को लाला के बिस्तर में जाना पड़ता. शहर में कुछ कपडे के शोरुम थे उसके, पर अब ये दवा का धंदा मेरी समझ में नहीं आ रहा था . खैर, वैसे तो जीवन में हर किसी को तरक्की करने का अधिकार है पर जैसे कर्म थे लाला के उस हिसाब से मुझे शंका हो गयी थी.







दिमाग में एक साथ हजारो चीजे चलने लगी थी, लाला, सरोज, कौशल्या और रूपा. मैंने रूपा से कहा था की दोपहर में वो मुझे मेरे खेत पर आके मिले. दोपहर होने में कुछ समय था तो मैं खेतो की तरफ चल दिया. धुप होने के बावजूद भी ठंडी थी . .झोपडी में बैठा मैं सोचने लगा की इतने सालो बाद क्यों मेरा परिवार मुझे बुला रहा था.



रूपा का इंतज़ार था पर वो आई ही नहीं तो मन उदास हो गया . मैं खेत से निकल कर नहर की तरफ घुमने चल दिया . मैंने देखा की विक्रम और लाला की घरवाली शकुन्तला वहां थे.



“ये क्या कर रहे है यहाँ ” मैंने सोचा और आगे बढ़ा, उनकी बाते सुनने की उत्सुकता सी हुई मुझे.



सड़क किनारे बड़े बड़े झुंडे उगे थे मैं उनकी आड़ लेकर थोडा और आगे बढ़ा



“मैं समझता हूँ तुम्हारी बात पर देव को आज नहीं तो कल मालूम ही होगा न , तुम्हे तो पता है की महिपाल को पसंद नहीं करता वो ” विक्रम बोला



शकुन्तला- जानती हूँ पर तुम अपने स्तर पर ये काम कर सकते हो , और फिर तुम्हे मुनाफा भी तो होगा.



विक्रम- बात मुनाफे की नहीं है , देव की है .



शकुन्तला- देखो विक्रम, वैसे भी तो हम साथ धंधा करते ही हैं न , तुम्हारी सब्जिया , गेहू हमारे गोदाम में आते है या नहीं . . २५% की पार्टनर शिप कम नहीं है . कब तक छोटे दुकानदार रहोगे सेठ बनो,



विक्रम- तुम समझती नहीं हो , हम अपने अंगूर तुम्हारी शराब फैक्ट्री में भेजते है देव उस से ही नाराज है , और अफीम , गांजा उगाना ये तो बड़ा मुश्किल होगा



शकुन्तला- क्या मुश्किल होगा, सब कुछ तो तुम सँभालते ही हो , हमारा भरोसा भी है आपस में







विक्रम- मुझे थोडा समय दो सोचने का .







विक्रम वहां से चला गया , शकुन्तला थोड़ी देर और वही रही . उसने आस पास देखा जब कोई नहीं दिखा तो उसने अपनी साडी ऊपर की , कच्छी सरकाई और मूतने बैठ गयी. मैंने कभी किसी औरत को मुतते नहीं देखा था . बेहद गोर चुतड , और गहरे काले बालो से भरी हुई उसकी चूत , जो थोडा दूर से काली दिख रही थी पर बेहद मस्त नजारा था .



शकुन्तला बेहद हसीं औरत थी, सुख में रहती थी तो और गदरा गयी थी . और उसकी चूत देखने के बाद मैं जैसे पागल सा हो गया था , सीटी मारती चूत से पेशाब की धार निकल कर धरती पर गिर रही थी . मैं सोच रहा था की काश सामने से देख पाता पर फिलहाल उसका पिछवाडा ही देखना लिखा था नसीब में.



मूतने के बाद वो भी चली गयी. और मेरे लिए रह गए कुछ सवाल, गांजा, अफीम की खेती, लाला की दवा की फक्ट्री, बात साफ़ थी , दवा की आड़ में नशीला कारोबार करना चाहता था वो.



शकुन्तला को इस हालत में देखने के बाद मेरा दिमाग भन्ना गया था पिछले दो चार रोज में मेरे आस पास हुस्न चक्कर काट रहा था , मुझे मालूम हुआ था की दो प्यासी औरते पास में ही हैं और अब ये सेठानी. मैंने सोच तो लिया था की इसे चोदना है पर कैसे, जबकि हमारे सम्बन्ध आपस में बिगड़े हुए थे .



मैं घर आकर सो गया करने को कुछ था भी तो नहीं, शाम को मुझे सरोज ने जगाया ,



“देव, उठो अब देखो मौसम ख़राब हुआ है खेत पर भी चलना है . ” सरोज ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा



“कट्टु को ले जाओ ” मैंने अलसाई आवाज में कहा



सरोज- वो नहीं है यहाँ, तुम उठो जल्दी .



अब आँखे खोलनी ही पड़ी. सूट-सलवार पहना था उसने . टाइट सूट में एक दम तनी हुई चुचिया, जिसके मोटे निप्पल बता रहे थे की पक्का उसने ब्रा नहीं पहनी है.



“काकी, सोने दो न ”



सरोज- देव, खिड़की से बाहर देखो जरा, कैसी घटा छाई है , विक्रम शायद इसी तूफ़ान की बात कर रहा था . हमें अभी खेत पर चलना होगा, क्योंकि ये तूफ़ान समय से पहले आ गया , हमें मौका नहीं मिला .



मैं- ठीक है .



मैंने ट्रेक्टर चालू किया और सरोज को लेके खेत पर आ गया . एक तो ठण्ड का मौसम ,ऊपर से सांझ सर्दियों में वैसे भी अँधेरा जल्दी हो जाता है पर चूँकि आज आसमान पर काले बादलो ने कब्ज़ा कर लिया था . खेत पर पहुँचते ही मेरा दिमाग भन्ना गया .



मैं- ये तो बहुत ज्यादा है



सरोज- कम से कम तीन ट्रोली तो होंगी ही .



हम दोनों ने जल्दी जल्दी पोटलिया ट्रोली में भरना चालू किया. मौसम बिगड़ने लगा था . दूसरी ट्रोली जब हम घर लेकर आये तब तक बारिश गिरने लगी थी



“बरसात होने लगी है काकी, यही रुकते है ” मैंने कहा



सरोज- नहीं, थोड़ी ही पोटलिया बची है , बस जाना है और आना है



मैं- भीग गए तो कही तबियत ख़राब न हो जाये



सरोज- किसान सबसे पहले फसल का सोचता है देव,



सरोज की जिद थी तो हम फिर से खेत पर चल दिए. गाँव से बाहर आते ही बारिश तेज पड़ने लगी , हवा भी मचल रही थी .



“कही फंस न जाए ” मैंने कहा



खेत पहुँचते पहुँचते बरसात हद से ज्यादा तेज हो गयी थी , मेरे दांत ठण्ड से किटकिटाने लगे थे. ऐसा ही हाल सरोज काकी था. चारो तरफ से पछाड़ गिर रही थी . उपर से अँधेरा भी घर चूका था . मैंने ट्रेक्टर की लाइट जला दी और पोटलिया भरने लगे.



वापसी में एक गड़बड़ और हो गयी. ट्रेक्टर गीली मिटटी में फंस गया . पहिये फिसलने लगे.



मैं- हो गया स्यापा.



अब सरोज मेरा मुह देखे मैं उसका



सरोज- ठीक करो इस को



मैं- अब कुछ नहीं हो सकता



हम दोनों बुरी तरह से भीग रहे थे . मैंने महसूस किया की काकी को बहुत ठण्ड लग रही है.



मैं- काकी अब क्या करे.



सरोज- फंस गए मेरी ही गलती है , अब कहाँ जाये , क्या करे



मैंने सरोज का हाथ पकड़ा और ट्यूबवेल की तरफ इशारा करते हुए कहा - कमरे में कम से कम भीगना तो नहीं पड़ेगा.



भीगते हुए हम वहां तक पहुंचे देखा ताला लगा था .



सरोज- सत्यानाश



मैं-चाबी कहा है .



सरोज- घर पर .



मैंने आस पास देखा एक पत्थर था मैं ताला तोड़ने जा ही रहा था की तभी जोर से बिजली कडकी लगा की पास ही गिरेगी, भय से सरोज ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे सीने में अपना मुह छुपा लिया. एक दम से मैं भी घबरा गया मेरे हाथ उसके नितम्बो पर कस गए.
 
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#9



सरोज को अपनी बाँहों में भरना ऐसा अहसास था जैसे हलवाई के गर्म तवे पर घी का पिघलना, भरी बरसात में वो मेरी बाँहों में सिमट गयी थी . उसकी तनी चुचियो को मैंने अपने सीने में घुसता महसूस किया. मेरे हाथो ने उसके कुल्हो को कस कर दबाया. वक्त जैसे ठहर सा गया था . आसमान पुरे जोरो से गरजने लगा था, गर्म गोश्त पर ठन्डे पानी की फुहारे आज न जाने क्या करवाने वाली थी .



पर बारिश में भी ज्यादा देर नहीं रुक सकते थे मैंने फिर ताले को पत्थर से तोडा और सरोज के साथ अन्दर आ गया. शुक्र है अन्दर मुझे लालटेन मिल गयी , थोड़ी रौशनी होने से जैसे जी सा आ गया . अन्दर कुछ खास नहीं था एक कोने में चारपाई थी जिस पर बिस्तर पड़ा था . मैंने इधर उधर देखा , सोचा था की सुखी लकडिया होंगी तो आलाव जला लूँगा पर लकडिया नहीं थी.



हम दोनों के बदन गीले थे, ठण्ड से कांप रहे थे . मैंने अपने कपडे उतारना शुरू किये. सरोज कांपते हुए मेरी तरफ देख रही थी . कपडे उतार कर मैंने उन्हें खूँटी पर टांक दिए .



“तुम भी कपडे उतार दो काकी, गीले कपड़ो से बुखार न हो जाये. ” मैंने कहा



“मैं कैसे, मेरे पास तो दुसरे कपडे भी नहीं है . ” सरोज ने कहा .



मैं- इसके सिवा और कोई चारा भी तो नहीं है , अब न जाने मेह कब थमे मुझे नहीं लगता सुबह तक हम घर पहुँच पाएंगे तो थोडा एडजस्ट करना ही पड़ेगा. एक काम करो मैं लालटेन बुझा देता हु तुम्हे शर्म नहीं आएगी फिर .



सरोज- शर्म की बात तो हैं पर समस्या कपडे उतारने की नहीं है समस्या ये है की बिना कपड़ो के कैसे रहूंगी, और तो और बिस्तर भी एक ही है और हालात ऐसी है की हम दोनों की ही जरुरत है .



मैं सरोज के पास गया और बोला- ये कपडे तुम्हारी तबियत से ज्यादा जरुरी नहीं है ,



मैंने सरोज के कुरते को पकड़ा और उठा दिया. लालटेन की रौशनी में भीगी ब्रा में क्या खूब लग रही थी वो , उसके हुस्न की सबसे बढ़िया बात थी उसके उरोज जो हमेशा तने रहते थे . लाज के मारे सरोज ने आँखे बंद कर ली . मैंने जब उसके नाड़े को पकड़ा तो उंगलिया उसके पेट , नाभि से टकराई, सरोज के बदन में दहक लग गयी .







और मैं अपने दिल का हाल क्या बताऊ, मैंने वो नाडा पकड़ तो लिया था पर मेरे बदन में जैसे भूकंप सा आ गया हो, मेरे हाथ ऐसे कांप रहे थे की लकवा तो नहीं आ गया हो, और धड़कने कोई ताज्जुब नहीं होता अगर दिल उस लम्हे में सीना फाड़ कर बाहर आ गिरता तो . हिम्मत करके मैंने आखिर नाड़े की गाँठ खोल ही दी.







सलवार सरोज की जांघो को चुमते हुए उसके पैरो में आ गिरी. लालटेन की मद्धम रौशनी में सरोज का हुस्न उस छोटी सी कच्छी और ब्रा में मेरे बिलकुल सामने था. मैं दो कदम आगे बढ़ा और सरोज को अपने आगोश में भर लिया. उसके बदन की थिरकन को मैंने अपनी बाँहों में महसूस किया .



कल तक जिसे काकी काकी कहते घूमता था आज वो इस हालत में मेरी बाँहों में थी . सर्द रात में गिरती बरसात में एक दुसरे से लिपटे दो जिस्म , क्या आज एक नयी कहानी लिखने वाले थे. मैं अपने हाथ पीछे ले गया और सरोज की ब्रा के हुक खोल दिए. “सीईईइ ” सरोज ने एक आह सी भरी. उसकी छातियो का स्पर्श मैंने मेरे सीने पर महसूस किया.







मैं भी जानता था की सरोज बहुत प्यासी है विक्रम ठीक से उसकी चुदाई नहीं कर पाता था या फिर करना नहीं चाहता था . नंगी पीठ से होते हुए मेरे हाथ उसके नितम्बो पर पहुच गए, इस बार मैंने उनको कस कर दबाया और अपनी उंगलिया कच्छी की इलास्टिक में फंसा दी .



“क्या कर रहे हो देव, ” सरोज कांपते हुए स्वर में बोली



“मालूम नहीं ” बड़ी मुश्किल से बोल पाया मैं और उसकी कच्छी को घुटनों तक सरका दिया. मेरा तना हुआ लंड सरोज की जांघो के बीच में जा टकराया, अगर मैंने कच्छा नहीं पहना होता तो वो सीधा सरोज की चूत में घुस जाता. सरोज ने शर्म के मारे मेरे सीने में अपना मुह छुपा लिया



“लालटेन बुझा दो ” बस इतना बोल पायी वो



मैंने उसे छोड़ा और लालटेन को बुझा दिया. साथ ही अपना गीला कच्छा भी उतार दिया.



“हमें साथ ही सोना होगा आज. ” मैंने कहा और सरोज कुछ जवाब देती उस से पहले ही मैंने उसे अपने साथ रजाई में गिरा लिया. दो नंगे जिस्म एक रजाई में एक साथ उस छोटी चारपाई पर , कुछ मौसम का असर और कुछ असर बेचैन जिस्मो का , सरोज टेढ़ी होकर लेटी थी मेरा लंड उसके चूतडो पर टक्कर मार रहा था,न उसके लिए आसान था न मेरे लिए.



मैंने तो सोच लिया ही था की आज की रात इसे चोद कर ही रहूँगा. मैंने अपने हाथ सरोज की बाह के निचे करते हुए उसके बोबो पर रखे और उन्हें मसलने लगा. वो आहे भरने लगी . संतरे के आकार की चुचिया किसी गुब्बारे सी मेरे हाथो में फिसलने लगी .







रजाई में गर्मी बढ़ने लगी थी , चुचियो को कुछ देर मसलने के बाद मैंने अपना हाथ वहां से हटाया और सरोज के हाथ को पकड़ते हुए अपने लंड पर रख दिया. सरोज ने जैसे ही अपनी मुट्ठी में एक डंडे को महसूस किया साँस रुक गयी उसकी, बेशक वो बहुत प्यासी थी पर फिर भी अपने बेटे जैसे लड़के के साथ कैसे , और वो भी अचानक हुई इस विकट परिस्तिथि में , लाज होना लाजमी था.







पर उसने लंड को छोड़ा नहीं, अपनी मुट्ठी में लिए रखा ये शायद एक इशारा था मैंने उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमाया और सरोज के होंठो पर अपने होंठ रख दिए. नर्म , मुलायम होंठ जैसे मेरे मुह में घुलने लगे थे, मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन था . आज तक मैंने बस अश्लील किताबो में पढ़ा था ऐसी चुदाई की कहानियो में.







पर आज साक्षात् मैं अनुभव कर रहा था , वो तमाम कहानिया जो मैंने पढ़ी थी मुझे इस पल सच्ची लग रही थी , मालूम नहीं ये कैसे हो रहा था पर अच्छा बहुत हो रहा था सरोज के होंठो की मिठास और बढ़ गयी जब उसने अचानक से अपना मुह खोला और मेरी जीभ से अपनी जीभ रगड़ने लगी........



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#10



दो नंगे जिस्म एक दुसरे से इस सर्द मौसम में लिपटे हुए जिस्म की भड़की आग को शांत करने की कोशिश कर रहे थे , न जाने कब मैं सरोज के ऊपर आ चूका था , सरोज ने किस करते करते ही मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया था, बदन में एक अलग तरह की ही फीलिंग आ रही थी . सरोज ने मेरे कुल्हो पर हाथो से दवाब बनाया और मुझे अपने अन्दर खींचने लगी. जिन्दगी में पहली बार मैं चूत मारने जा रहा था , सरोज की चूत के पानी से सना लंड , चूत की फांको को चौड़ी करते हुए अन्दर घुस रहा था .







जैसे कोई सांप किसी बिल में घुसता है ठीक वैसे ही मेरा लंड उस छेद में घुस गया था जिसके पीछे हर मर्द पागल रहता था , मेरे गर्म लंड को अपनी गुफा में महसूस करके सरोज जैसे पागल हो गयी थी उसने और जोरो से होंठ चूसने शुरू कर दिए मेरे कुल्हो को सहलाने लगी, मेरी जिदंगी का पहला सम्भोग मेरी माँ सामान काकी के साथ होना ही लिखा था .



“धीरे धीरे धक्के मार ”



“कैसे ” मैंने कहा



“इसे आगे पीछे कर ” बोली वो



ऐसा नहीं था की मुझे मालूम नहीं था क्या करना है , पर उत्तेजित नारी के मुह से ऐसी अश्लील बात सुन कर उत्तेजना और बढ़ जाती है , ठीक जैसा मैंने उन किताबो में पढ़ा था . सबकुछ वैसा ही हो रहा था . मैंने अपनी कमर आगे पीछे करनी शुरू की सरोज भी कुछ देर बात अपने चूतड उछालने लगी. उसके नाखून मेरी गर्दन के पिछले हिस्से , मेरी पीठ पर रगड़ खा रहे थे . एक ऐसा मजा जिसके बारे में बस पढ़ा ही था मैं महसूस कर रहा था . मेरे हर धक्के के बाद ऐसा लग रहा था की जैसे मैं सरोज के जिस्म में थोडा थोडा करके घुसता जा रहा था .



कमरे में दो तरह की आवाजे गूँज रही थी एक तो हमारी सांसो की और दूसरा सरोज की चूत पर मेरे लंड के धक्को की रजाई हमारे जिस्मो से उतर कर गिर चुकी थी पर अब किसी को सर्दी नहीं लग रही थी . आवेश में हम दोनों एक दुसरे के पुरेचेहरे को चूम रहे थे ,



“आह आह आह ” सरोज की मीठी आहे बेशक बाहर तूफान की आवाज में दब गयी हो पर मैं अपने अन्दर तक उनको सुन पा रहा था ,न जाने कितनी देर बाद मुझे ऐसा अहसास हुआ की शरीर में कुछ हो रहा था , बदन बहुत हल्का हो गया था , बहुत हल्का, सरोज ने अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेट लिया और , मुझे कस लिया अपनी बाँहों में , उसकी चूत का दवाब बहुत बढ़ गया था .



और फिर वो चीखते हुए झड़ने लगी, उसने बुरी तरह जकड़ लिया मुझे और ठीक उसी लम्हे में मैंने भी अपना आपा खो दिया. मेरे वीर्य की पिच्करिया उसकी योनी के अन्दर गिरने लगी. मेरा बदन झटका खाता रहा . सारी दुनिया भूल कर मैं काकी के ऊपर ही लद गया . कमरे में चुदाई का तूफ़ान आकर गुजर गया था, बाहर अभी भी बरसात हो रही थी .



कुछ देर बाद सरोज उठी, और नंगी ही बाहर चली गई , मैं भी पीछे गया वो मूत रही थी , मैंने भी मूतना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद हम दोनों चारपाई पर नंगे ही बैठे थे , न वो कुछ बोल रही थी न मैं अँधेरा जैसे हमें खा रहा था , हम दोनों जानते थे की ये एक बहुत बड़ी भूल कर दी है हमने, पर दिल बहलाने का ख्याल इतना ही था की हम दोनों जानते थे की मर्जी से हुआ था ये .







मैंने सरोज का हाथ अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे उसे सहलाने लगा. उसने कोई प्रतिकिर्या नहीं दी. पर कब तक ऐसे ही बैठे रहते ठण्ड लगने लगी थी तो रजाई ओढ़ ली. उस रात एक बार और हमारी चुदाई हुई. सुबह जब आँख खुली तो मैंने देखा बारिश अभी भी हलकी हलकी हो रही थी सरोज मेरी बाँहों में ही सो रही थी , आहिस्ता से उठा मैं और अपने कपडे पहने अभी भी सीले ही थे.



मैं कमरे से बाहर आया. दूर दूर तक खेतो में पानी भर गया था . फसल को नुक्सान हुआ या नहीं बाद की बात थी पर काकी से आँखे मिलाने की हिमत नहीं बची थी मेरे अन्दर , मैं पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा. जगह जगह कीचड़ था , घर आके मैं ठन्डे पानी से ही नहाया और बिस्तर में घुस गया .



दोपहर में करतार ने मुझे जगाया



“भाई , माँ बुला रही है खाने के लिए ”



मैं- तू चल थोड़ी देर में आता हु



कट्टु- साथ ही चलो, पापा भी है बोले की साथ ही खाना खायेंगे



मैं करतार के साथ घर पहुंचा , विक्रम चाचा सब तयारी करके बैठे थे , जल्दी ही सरोज काकी भी आ गयी, गहरे नीली साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थी. व्यवहार हमेशा जैसा ही , ऐसा लगता था की कल रात की चुदाई जैसे हुई ही नहीं .



हम सब खाना खाने लगे, बाते होने लगी,



विक्रम- मैं मिस्त्री को भेज दूंगा ट्रेक्टर को देख लेगा.



मैं- जी



विक्रम- वैसे तुमने सही फैसला किया जो वही रुक गए , तूफ़ान से बहुत नुक्सान हुआ है कितने ही पेड़ उखड़ गए, बारिश से शहर जाने वाली सडक का एक हिस्सा भी टुटा है,



“थोड़ी दाल और लो ” काकी ने मुझे परोसते हुए कहा,



मैंने हाँ में गर्दन हिलाई.



खाने के बाद विक्रम ने बताया की शहर में कुछ बड़े होटल हमारी सब्जिया खरीदना चाहते है क्योंकि आजकल देसी खाद की सब्जिया बहुत पसंद करते है लोग



मैं- ठीक है पर हम इतनी डिमांड पूरी कर पाएंगे



विक्रम- मैं देख लूँगा वो सब



मैं- ठीक है फिर



विक्रम- मुझे अभी शहर के लिए निकलना पड़ेगा क्योंकि मौसम को देखते हुए लगता है फिर खराब होगा.



करतार- पापा, मुझे भी ले चलो साथ मैं कभी बड़े होटल नहीं गया .



चाचा उसे नहीं ले जाना चाहते थे पर करतार ने जिद की और चला गया जाते जाते चाचा ने मुझसे कहा की मैं यही सो जाऊ रात को , सरोज अकेला महूसस नहीं करेगी , मैंने सर हिला दिया .



वो लोग शहर के लिए निकल गए मैं भी सरोज की नजरो से बच कर बाहर जा रहा था की काकी ने मुझे आवाज दी .



“देव, रुको जरा. ”
 
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#11



काकी की आवाज से जैसे मैं जम गया ठण्ड में , मैंने पलट कर देखा .



काकी- शाम को जल्दी घर आ जाना और बनिए की दूकान से कुछ सामान लाना है मैं बता देती हु , लेते आना



मैंने सर हिलाया, कुछ बोल ही नहीं पाया. घर से निकल मैं मैं सीधा बनिए की दुकान पर गया उसको पैसे दिए , सामान तुलवाया और कहा की रख ले मैं शाम को लेता जाऊंगा. घूमते घूमते मैं मजार की तरफ चला गया , पगलेट बाबा आज भी नहीं था न जाने कहाँ गुम था वो . मैंने एक चाय ली और बैठ गया.



मैं जब जब इस पेड़ के साथ होता लगता था की मेरी माँ के आंचल तले ही हूँ मैं , जैसे मेरी माँ की गोद हो ये. पर इस दो पल की ख़ुशी के साथ उम्र भर की बदनसीबी भी मेरा सच थी , की मैं अनाथ था . मैंने एक नजर आसमान पर डाली लगता था की बरसात किसी भी बक्त शुरू होने वाली थी .



मुझे बड़ी कोफ़्त होती थी इन बे मौसम की बारिशो से , कुछ ही देर में हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी तो मैंने साइकिल उठाई और गाँव की तरफ चल दिया पर किस्मत देखो, गाँव का रास्ता जैसे दूर हो गया . कहते हैं न की शिद्दत से किसी चीज की चाह करो तो तकदीर भी साथ देती है . सामने से रूपा चली आ रही थी .



एक पल तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ पर वो ही थी , उसने भी मुझे देख लिया था वो मेरे पास आकर रुकी



“और मुसाफिर कैसे हो ” पूछा उसने



मैं- अब बहुत अच्छा हूँ



वो मुस्कुरा पड़ी .



“लगता है तेज तूफान आएगा ” बोली रूपा



मैं- आ चूका है .



“पर मुझे तो तुम्हारी आँखों में कुछ और दिखता है ” कहा उसने



मैं- क्या दीखता है



रूपा- तन्हाई, तन्हाई और ज़माने भर का दुःख



“तो क्या हुआ, अब सबका जीवन खुशियों से भरा हो ऐसा मुमकिन तो नहीं ” मैंने कहा



रूपा- सो तो है .



बारिश अब तेज होने लगी थी .



रूपा- मेह तेज हो रहा है चलना चाहिए



मैं- रुक जा थोड़ी देर , तू साथ होती है तो लगता है कोई अपना साथ है



रूपा- ये बाते अच्छी है , दिल बहलाने को पर एक जवान लड़के और लड़की का यु साथ रहना क्या ठीक है कोई देखेगा तो बाते बनाएगा



मैं- बातो से डरती है क्या तू



रूपा- चल छोड़ इन बातो को आ मेरे साथ चाय पिलाती हु तुझे



रूपा मेरी साइकिल के पीछे बैठ गई बोली- चल



मैं- कहा



वो- वही जहाँ हम पहली बार मिले थे. उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा . दिल साला प्रसन्नता से झूम गया . ये बेईमान मौसम और साथ दिलरुबा, कमसेकम मैं तो उसे दिलरुबा मान ही चूका था . जिंदगी में पहली बार लगा था की बारिशो से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता .



भीगते हुए हम दोनों मेरी झोपडी में आये . अन्दर आने के बाद थोड़ी राहत मिली, मैंने अलाव जलाया तब तक रूपा ने चूल्हा सुलगा दिया था . आंच की रौशनी में चूल्हे में फूंक मारती रूपा कसम से कोई दिल क्यों न हार जाये. जल्दी ही चाय की सौंधी खुशबु पूरी झोपडी में फ़ैल गयी



“लो ” उसने चाय का कप मेरे हाथ में दिया .



मैं- तूम भी लो



वो- मुझे दूध पसंद है



उसने अपने गिलास में दूध भरा और झोले से एक छोटा डिब्बा निकाला



“रोटी ” उसने कहा



मैंने डब्बे से एक रोटी ली, घी से चुपड़ी हुई रोटी मसाले से लिपटी हुई



“मिरचो का आचार है ” उसने कहा



मैं- बढ़िया .



बेशक वो रोटी सुबह की बनी होगी पर इस समय गर्म चाय की चुस्कियो के साथ बड़ी लजीज लग रही थी .



“अभी बस ये ही थी झोले में , कभी तेरे लिए बढ़िया खाना भी लाऊंगी ”



“इस से बढ़िया और क्या होगा. ” मैंने कहा



“तू बड़ा जमींदार है मुसफिरा , तू कहाँ ये सूखे टूक खाता होगा. मेरा दिल रखने को बेशक तू कहे ”रूपा ने कहा



मैं- बड़ा जमींदार, हा हा, बड़ा जमींदार, एक काम करते है तू रख ले मेरा सब कुछ , जो भी मेरे पास है तू ले ले , अरे पगली मेरे पास है ही क्या सिवा एक खाली मकान के . कहने को सब कुछ है पर हकीकत में हाथ खाली है , जानती है दिन रात बस क्यों भटकता रहता हु क्योंकि वो घर , घर नहीं है कान तरस गए है वहां मेरे सिवा किसी और की आवाज सुनने को .



मैंने खाली कप पास में रखा



रूपा- सुना मैंने तेरे बारे में , समझती हूँ .



मैं- तो फिर ऐसी बात क्यों कही



रूपा- पर हकीकत तो यही हैं न



“फिलहाल तो हकीकत मेरे सामने बैठी है , और इस हकीकत को देखते रहने की मेरी इच्छा है ” मैंने कहा



रूपा बुरी तरह शर्मा गयी. पर वो मेरे पास आई बहुत पास उसने खाट से एक कम्बल उतारा और मुझे ओढा कर खुद भी सरक आई, रूपा ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया. बहुत करार मिला मुझे, बस कुछ ही मुलाकातों में कोई किसी के इतना करीब आ जाये बड़ी बात थी .



“देख तेरे चक्कर में फंस गयी मैं रात घिर आयी और बारिश भी तेज अब कैसे जाउंगी मैं घर ” रूपा बोली



मैं- ये भी तेरा ही तो घर है .



रूपा- तेरी बाते मेरे कलेजे में उतरती है



मैं- तो इस मुसाफिर को अपने दिल में ठिकाना दे दे, बहुत थका है ये मुसाफिर, बहुत अकेला है ये मुसाफिर, इसे पनाह दे, इस मुसाफिर की साथी बन जा रूपा.



रूपा ने अपनी उंगलिया मेरी उंगलियों में फंसाई और बोली- साथी हूँ तभी तो यहाँ हु. पर अभी कुछ न बोल, थोड़ी देर सुस्ताने दे मुझे, थक गयी हूँ मैं. उसने अपनी आँखे बंद कर ली. मैंने भी वैसा ही किया.



सुबह जब मैं जागा तो मैं अकेला चारपाई पर सोया था , रूपा श्याद चली गयी थी . मैं गाँव की तरफ चल पड़ा .बहुत भीड़ लगी थी वहां पर



“क्या हुआ ” मैंने एक आदमी से पूछा
 
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#12



उसने बोला कुछ नहीं , बस सामने की तरफ इशारा कर दिया. सामने कुछ लाशे पड़ी थी , कुछ नहीं बल्कि बहुत सारी लाशे, कम से कम पन्द्रह-बीस लाशे, मालूम हुआ की ये सब लाला महिपाल के आदमी थे, कल रात किसी ने महिपाल के काफिले पर हमला किया. लाला को भी गहरी चोटे लगी थी पर जान बच गयी थी, बाकि ये आदमी मारे गए थे .



गाँव के लिए ये घटना किसी बड़े हमले जैसे ही थी, क्योंकि गाँव बहुत शांतिप्रिय था यहाँ तो आपस में भी किसी की तू तू मैं मैं भी नहीं होती थी तो ऐसा हमला शक पैदा करने वाला ही था .







मेरा जी घबराने लगा था तो मैं वहां से अपने घर की तरफ चल पड़ा. पर मेरे मन में एक सवाल और आ गया था की इस घटना और लाला के मुनीम की मौत दोनों का आपस में सम्बन्ध जरुर था . सोचते सोचते मैं घर पहुंचा तो पाया की सरोज काकी मेरे घर पर ही थी . काकी को देखते ही मैं सब कुछ भूल गया . हमारी नजरे मिली. काकी ने बेशक सिम्पल घाघरा चोली पहनी थी पर वो कमाल लग रही थी .



“देव, कहाँ थे तुम , मैंने कितनी बार कहा है की ऐसे बिना बताये गायब न हुआ करो, परेशान हो जाती हु मैं ” सरोज बोली



मैं- माफ़ करना मैं कल समय से घर नहीं आ पाया, बारिश ने फंस गया था .



काकी- कोई बात नहीं पर जमाना ख़राब है , कमसे कम रात को तो घर पर रह सकते हो न .



काकी जब बोल रही थी तो उसका सीना जोरो से ऊपर निचे हो रहा था . मेरा मन बेईमान होने लगा , पर मैं अपने अपराध बोध से घबरा रहा था , ऐसा नहीं था की मैं सरोज को दुबारा नही चोद सकता था , एक बार चुदाई होने के बाद बार बार भी हो सकती थी , पर मेरे पास परिवार के नाम पर ये लोग ही तो थे, मैंने कभी अपनी माँ को नहीं देखा था , पर माँ के रूप में सरोज को जरुर देखा था .







बस इस अपराधबोध के कारन ही मैं काकी से नजरे नहीं मिला पा रहा था



“तुम सुन रहे हो न मैं क्या कह रही हूँ ” काकी थोडा जोर से बोली



मैं- हाँ काकी.



सरोज- क्या काकी, करनी तो तुम्हे अपने मन की ही हैं .



मैं- ऐसी बात नहीं है काकी, वो दरअसल परसों रात खेत में जो हुआ .............



मैंने जान बुझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी, दरअसल मैं नहीं चाहता था की हम दोनों में से कोई भी शर्मिंदा हो . पर ये भी सच था की इस सच को अब ज्यादा देर तक हम दोनों ही झुठला नहीं सकते थे.



सरोज- क्या हुआ था , कुछ नहीं हुआ था . वो रात थी बीत गयी , और बीती बातो को दिल पर नहीं लिया करते देव.



मैं- तो क्या आप मुझसे नाराज नहीं है



सरोज- किसलिए नाराजगी होगी मुझे, मेरा मतलब वो कुछ कमजोर लम्हे थे , तुम्हे इतना सोचने की जरुरत नहीं है बस इतना रहे की ये बात हम दोनों के बीच ही रहे.



मैंने सर हाँ में हिलाया. सरोज मेरे पास आकर बैठी और मेरे गाल को हलके से चूम लिया. उसके नर्म होंठो को अपने गाल पर महसूस करते ही मेरे तन में जैसे बिजली दौड़ गयी .



“याद रखना मेरी बात ” उसने कहा और उठने लगी , पर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, थोडा सा जोर लगाया तो वो मेरी गोद में आ गिरी. मैंने उसे अपने आगोश में थाम लिया. सरोज ने आँखे मूँद ली, उसका ऊपर निचे होता सीना किसी धौंकनी सा चल रहा था. कुछ तो कशिश थी उसके बदन में , मैंने अपना चेहरा निचे किया और सरोज के लबो को चूम लिया.



उसने कोई प्रतिकार नहीं किया, मक्खन से होंठ उसके , मेरे मुह में अपनी चिकनाई घोलने लगे थे, मेरे हाथ अपने आप उसकी छातियो को मसलने लगे थे. ,स सारी दुनिया भूलकर हम दोनों एक दुसरे में खो ही गए थे अगर निचे से वो आवाज नहीं आई होती. एक झटके से हम वापिस धरातल पर आये.



वो करतार की आवाज थी . “भाई भाई ”



“ऊपर आजा करतार ” मैंने उसे बुलाया तब तक सरोज भी अपने कपडे ठीक कर चुकी थी .



“भाई , ” कट्टु बोला



मैं- हाँ आगे भी बोल यार



कट्टु- भाई, तुम्हारे ताऊ मिले थे अभी जब मैं आ रहा था ,



मैं- तो



वो- उसने कहा की तुम्हे बता दू आज शाम ६ बजे वो तुम्हारा इंतज़ार करेंगे नदी की पुलिया पर .



मैं- मेरा इंतज़ार किसलिए



कट्टु- मालूम नहीं , पर मुझे वो जगह ठीक नहीं लगी तो मैंने कह दिया की मजार पर आके मिले, और मैं साथ रहूँगा तुम्हारे



मैं- ठीक है , पर तुम्हे ये कहना चाहिए था की यहाँ आकर मिले. आखिर उनके भाई का घर है .



सरोज- पर इस मुलाकात की क्या जरुरत पड़ी, कहीं शादी के लिए तो नहीं



मैं- नहीं काकी, मामला कुछ और है, वर्ना इतने सालो में अचानक अपना कैसे लगने लगा उनको मैं.



मैंने सरोज को चाय के बहाने निचे भेजा और करतार से बोला- सारी बाते छोड़, ये बता लाला पर हमला किसने किया .



कट्टु- मालूम नहीं भाई, पर जिसने भी किया साला चुतिया था पेल ही देता लाला को



मैं- बात तो सही है पर कौन,ये जानना जरुरी है , मुझे लगता है मुनीम की मौत भी इसी कड़ी का हिस्सा है .



कट्टु- पर उसे तो हार्ट अटैक आया था .



मैं- शायद उसने कुछ ऐसा देखा था की कमजोर जिस्म सह नहीं पाया.



कट्टु- तुम भी तो थे तब वहां तुमने देखा कुछ .



मैं- नहीं रे, धुंध बहुत थी वहां , मैं थोडा पीछे था और वो दूसरी तरफ से आ रहा था .



कट्टु- धुंध नहीं होती तो उसी दिन मालूम हो जाता , वैसे कल कालेज चल रहे हो न ,



मैं- हाँ चलेंगे ,



उसके बाद हमने चाय पी , फिर करतार सरोज के साथ अपने घर चला गया , मैंने कपडे बदले और घर से बाहर निकल गया. बस शाम होने का इंतज़ार था . ६ बजने में थोड़ी देर पहले मैं मजार की तरफ निकल गया. बारिश की वजह से मौसम काफी मस्त हो गया था. कच्चे रस्ते पर कीचड था पर किसे परवाह थी,



जब मैं वहां पहुंचा तो ताऊ पहले से ही था . मैंने नमस्ते किया उसने सर हिलाया पर बोला कुछ नहीं , बस मेरे हाथ में एक चाबी रख दी. एक चाबी, छोटी सी, जंग खाई हुई, ....................
 
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#13



मेरे हाथ में एक जंग खाई बेहद पुराणी चाबी थी, मैं ताऊ की तरफ देखू वो मेरी तरफ







“किस चीज़ की चाबी है ताउजी ये ” मैंने पूछा







ताऊ- तुम्हारे पिता के जाने से कुछ दिन पहले वो मेरे पास आया था और मुझे ये देकर बोला की जब मेरा बेटा समझदार हो जाये तो इसे दे देना , वो समझ जायेगा .







मैं- बस







ताऊ- हाँ बस इतना ही .







मैं- ताउजी , आप मुझे बहुत कुछ बता सकते है मेरे माँ-बाप के बारे में, आपने तो देखा था उन्हें, मैंने नहीं देखा, मुझे तो मालूम भी नहीं की वो कैसे दिखते थे , गाँव में कोई भी उनके बारे में नहीं बताता,







ताऊ- क्या बताऊ मैं, बरसो पहले वो घर छोड़ गया था , फिर वापिस नहीं लौटा वो , उसकी राह देखते देखते हमारे बापू-माँ गुजर गए पर वो नहीं लौटा . सबको भुला दिया उसने और फिर एक रात वो आया तुम्हे लेके .







मैं- फिर







ताऊ- वो थोडा परेशां था, हमने परेशानी की वजह पूछी पर उसने कुछ नहीं बताया , बस ये चाबी दे गया .







मैं- आप चाहते तो मुझे अपना सकते थे , आपका अपना खून आपकी आँखों के सामने बेसहारा पला, आप का कलेजा नहीं पसीजा कभी , लोग तो गली के कुत्ते को भी दो रोटी डाल देते है आप जानवर समझ कर ही पाल लेते. जैसा भी था आप का ही खून था न ताउजी







ताऊ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. बस वो मुड कर चल पड़ा, पर मैंने उसे अपनी आस्तीन से आँख के आंसू पोंछते जरुर देख लिया था . कुछ तो ऐसा था जो मुझसे छुपा था , कुछ तो ऐसा था को मैं जानने लायक हो गया था , सवाल बहुत थे पर जवाब कौन दे मुझे.







“मुसाफिर , मेरे बच्चे की सोचदा है ओत्थे खड़े खड़े , आ पास जरा ”



मैंने देखा बाबा लौट आया था . उन्हें देखते ही मेरे चहरे पर रौनक आ गयी . मैं दौड़ कर बाबा से लिपट गया .



“बाबा , कहाँ थे तुम, मैं कितना इंतजार किया तुम्हारा ” मैंने शिकायत करते हुए कहा .



बाबा- ओ यारा, एक काम सी, ओह ही करने गया था , वापसी में थोड़ी देर हुई . ले मिठाई खा तेरे लिए लाया हूँ .



बाबा ने एक पोटली मेरे हाथ में रख दी झोले से निकाल के .



मैंने पोटली खोली बर्फिया थी उसमे, मैंने एक डली खाई, और फिर खाता चला गया .



“तेरे बापू नु भी ये बर्फिया बड़ी पसंद थी यारा, बल्ली हलवाई के यहाँ रोज ही गेडा लगा दिया करता था वो ” बाबा ने चबूतरे पर बैठते हुए कहा



मैं- आप उनके बारे में बताएँगे मूझे .



बाबा- क्या बताऊ मुसफिरा तुझे उसके बारे में , उस जैसा कोई नहीं हुआ फिर ,वो ख़ाली साहब का बेटा नहीं था , युधवीर गोकुल्गढ़ के हर घर का बेटा था , गाँव के हर चूल्हे में उसके नाम की दो रोटी जरुर बनती थी, वो था ही ऐसा, जात-पात क्या थी जानता ही नहीं था , खेत में मजदुर के साथ भी खा लेता था , तो नाली साफ करने वाले के साथ भी , किसान का बैल बन कर हल में जुत जाता था तो गाँव की लडकियों की लाज का रखवाला भी था वो .



बाबा जैसे खो सा गया था .



“तो फिर सबने क्यों भुला दिया उन्हें ” मैंने सवाल पूछा



बाबा ने अपनी आँखे मूँद ली .



मैंने फिर पूछा - तो फिर क्यों भुला दिया सबने उनको



बाबा- किसी ने नहीं भुलाया उसे सिवाय वक्त के , उसके जाने के बाद तेरे दादा ने ढेर लगा दिया था गाँव में लाशो का , न जाने कैसी जवाला थी साहब के सीने में गोकुल्गढ़ जल गया उसमे. तेरे बाप के रुतबे को देखना है तुझे तो कभी किसी दोपहर पेड़ तले बैठे किसी किसान के पास जाना, किसी काकी- ताई जो सर पर चारा ला रही हो उसके पास जाना , तू जान जायेगा मुसफिरा, तू किसका खून है .



“पर आप नहीं बताएँगे कुछ भी मुझे ” मैंने कहा



बाबा- अँधेरा गहरा हुआ, तू घर जा , हवा आजकल ठीक नहीं है तुझे अँधेरे में नहीं घूमना चाहिए. जा घर जा



बाबा ने हाथ के इशारे से मुझे लौटने को कहा, बस यही बात मुझे समझ नहीं आती थी बाबा कभी कुछ कहता था कभी कुछ . पर फिर भी मैंने लौटने का सोचा . और गाँव की तरफ साइकिल मोड़ दी. दिमाग में बस वो चाबी घूम रही थी .



रात को मैं और करतार खाना खाने के बाद लेट रहे थे , करतार के पास अश्लील कहानियो वाली किताब थी ,



करतार- भाई एक बात पुछु



मैं- हाँ



करतार- ये कौन चाची भाभिया होती है इन कहानियो में जो इतनी प्यासी होती है



उसकी बात सुनकर मुझे समझ नहीं आया की मैं कैसे रियेक्ट करू. मेरे दिमाग में सरोज, और कौशल्या की तस्वीर आ गयी .



मैं- होती हैं कुछ औरते ,



करतार- भाई, काश अपनी किस्मत में भी कोई ऐसी आ जाये तो कसम से मजा आ जाये.



मैं- तुझे लेनी है



करतार- दिला दे भाई, तेरे पाँव धोके पियूँगा



मैं-एक हफ्ते में तेरा काम हो जायेगा



करतार- पक्का न



मैं- पक्का यार.



करतार- कोई हैं नजर में



मैं - है तो सही



करतार- कौन



मैं- शकुन्तला



करतार के हाथ से किताब निचे गिर गयी



वो- लाला की घरवाली शकुन्तला



मैं- हाँ वही



करतार- भाई, डाका भी डालने की सोच रहे हो तो कहाँ



मैं- डाका वहीँ डाला जाता है जहाँ माल हो, और तू ही बता कितनी मस्त तो है वो



करतार- सही कहा भाई .



मैं- चल अब बत्ती बुझा और सो जा . सुबह कालेज चलना है



हमने बत्ती बुझाई और सो गए. रात को न जाने कब मेरी आँख खुल गई , रजाई में पसीना पसीना हुआ पड़ा था मैं , उठ कर मैंने पानी पिया . एक बेचैनी सी हो रही थी मुझे, मैं उठ कर घर से बाहर आया और पैदल ही चल पड़ा. गाँव के बाहर मैं शहर को जाने वाली पक्की सड़क पर चल रहा था , चलते चलते मैं बहुत आगे निकल आया . तभी मुझे कुछ पेड़ो के पास रौशनी दिखाई दी , किसी गाडी की रौशनी ..................... मैं उधर गया और मैंने देखा ...............
 
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#14



मैंने देखा एक गाड़ी थी जिसे टक्कर मारी गयी थी गाडी काफी क्षतिग्रस्त थी , अन्दर रौशनी थी मैंने देखा एक औरत लहू लुहान अवस्था में बेहोश पड़ी थी . मैंने दरवाजा तोड़कर उसे बाहर निकाला, साँसे अभी चल रही थी , उसे हॉस्पिटल की सख्त जरुरत थी पर इस समय बिना किसी साधन के कैसे ले जाऊ और इस हालत में उसे बेसहारा मैं छोड़ नहीं सकता था .

एक इन्सान जो मेरी आँखों के सामने मौत और जिन्दगी के बीच झूल रही थी , कुछ भी हो मदद करना मेरा फ़र्ज़ बनता था , मैंने उसे अपने कंधे पर लादा और गाँव के बैध के घर पर ले चला, उसका बदन थोडा भारी था , कुछ सर्द रात, जल्दी ही मेरी सांस फूलने लगी पर जैसे भी हो अब इस औरत को वैध के घर पहुँचाना ही था .

कुछ देर बाद मैं वैध के घर पहुंचा , वैध का दरवाजा पीटने लगा . “वैध दादा वैद दादा ”

“कौन है इस वक्त ” अन्दर से अलसाई आवाज आई

“मैं हु देव चौधरी ” मैंने जवाब दिया

दरवाजा खोलते ही मैं अन्दर आया. और औरत को लिटा दिया.

“दादा, ये मुझे घायल मिली , इलाज की जरुरत है इसे ” मैंने एक सांस में कहा

वैद ने भी मामले की गंभीरता समझी, और तुरंत उसे देखने लगा.

“खून बहुत बहा है बेटा, और पाँव की हड्डी टूटी है , शहर के हॉस्पिटल ले जाना होगा , मैंने फौरी जांच की है पर बड़े हॉस्पिटल में ही वो सुविधा है जो इसे चाहिए ” वैध ने कहा

मैं- पर बाबा, इतनी रात को कैसे ले जाऊ इसे, घर से गाड़ी लाने में मुझे थोडा समय लगेगा , इतने तो थाम लोगे न इसे

बैध- मेरी गाड़ी ले जाओ,

वैध ने मुझे चाबी लाकर दी ,

“करतार को सुबह खबर कर देना की शहर में मिले, पैसे ले आये, सबसे पहला जो भी हॉस्पिटल आएगा उसमे मिलूँगा. ”

मैं तुरंत शहर के लिए निकल गया , उसे इमरजेंसी में भर्ती करवाया, पैसे मैंने सुबह जमा करवाने का वादा किया. मैं एक कुर्सी पर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा . कुछ ही देर में पुलिस के बहुत से लोग वहां पर पहुँच गए और पूछताछ करने लगे ,एक अफसर मेरे पास आया.

“तू लेके आया मैडम को यहाँ ” उसने पूछा मुझसे

मैंने हाँ में सर हिलाया, और उसे पूरा किस्सा बताया . अफसर ने मेरा ब्यान एक कागज पर लिखा और वहीँ मेरे पास बैठ गया . आस पास और पुलिस वाले तैनात हो गए, वो बार बार मैडम कह रहे थे तो मैं समझ गया था की कोई बड़ी रसूखदार है ये औरत

“कौन है ये मैडम जी, ” मैंने पुलिस वाले से पूछा

“ये मोना सिंह है , जज अपने शहर की ” उसने कहा

मैं- ओह .

“बड़ी फेमस जज है , सतनाम मुडकी की बेटी है , अपने जूनागढ़ वाले नेताजी, इसने अपने ही भाई को सजा सुना दी थी एक केस में, बड़ा बवाल हुआ था , बाप से अलग हो गयी फिर उसके बाद. ” अफसर ने बताया

सतनाम मुदकी का जिक्र आते ही मुझे कालेज का वो बदतमीज लड़का याद आ गया . पर पुलिस वाले के आगे मैं चुप रहा . करीब दो घंटे बाद डॉक्टर बाहर आया और बोला- हालत काबू में है , सर पर चोट है , पांव टुटा है कुछ अंदरूनी घाव होश आ जायेगा कुछ घंटो बाद.

चूँकि पुलिस वाले ने मेरा नाम लिख लिया था उसने कहा मैं चाहू तो जा सकता हूँ पर मैंने रुकने का सोचा , मैं एक पल उसे होश में आया देख कर जाना चाहता था .

कुर्सी पर बैठे बैठे मेरी नींद सी लग गयी , मैं उठा तो दिन निकल आया था , पुलिस वाले ने मुझे चाय पिलाई, मालूम हुआ मोना सिंह को होश आ गया है, मैंने मिलने को कहा तो कुछ देर बाद मुझे अन्दर बुलाया गया .

मैंने देखा जज साहिबा के बदन पर पलस्तर था पट्टिया थी , नसों में नलकिया लगी थी जो ऊपर टंगी बोतलों से जुडी थी . मैंने नमस्ते कहा वो मुस्कुराई,

“अब कैसी है तबियत, आपकी ” मैंने कहा

मोना-बेहतर, तुमने बचा लिया.

मैं- बस पहुँच गया मैं उधर उस समय

मोना- नाम क्या है तुम्हारा

मैं- दुनिया मुसाफिर कहती है .

मोना- मुसाफिर, इंट्रेस्टिंग , मेरे पास आओ जरा

मैं उसके पास गया .

मोना- मेरी गाड़ी के पास जाओ तुरंत, पिछली सीट के निचे एक काले रंग का छोटा सा बैग है उसे अपने पास रखना . कुछ दिनों बाद मैं ठीक हो जाउंगी तो जज हाउस आना. अभी बस इतना करो मेरे लिए. मैं शुक्रिया तुम्हे बाद में कहूँगी.

मैंने सर हिलाया और बाहर आया तो देखा करतार आ पंहुचा था हम पैसे लेके काउंटर पर गए तो उन्होंने मना कर दिया , जज का इलाज सरकार का मामला था , हम बाहर आये.

मैं और करतार एक नाश्ते की दुकान पर जाके बैठ गए मैंने उसे पूरी बात बताई,

“आजकल भाई तुम, अलग ही मामलो में उलझ रहे हो , क्या नसीब कोई और दिशा में ले जा रहा है , ” पूछा उसने

मैं- रब्ब जाने .

हमने नाश्ता किया और मैं वैध की गाड़ी से ,करतार अपनी गाड़ी से वापिस चल दिए. दिन निकल आया था पर धुंध बड़ी शबनमी थी . सर्द हवा जैसे अपने सामने आने वाली हर चीज को चीर देना चाहती थी . मैं मैडम की गाड़ी के पास पहुंचा और सीट के निचे मुझे वोछोटा बैग मिला. गाड़ी में और भी बहुत कुछ था ,

एक सूटकेस जिसमे नोट भरे थे ,एक पिस्टल . अब मेरी जिज्ञासा जागी , मोना ने मुझे पैसो या पिस्टल का जिक्र तक नहीं किया, मतलब उस छोटे बैग में कुछ बेहद खास था , मैंने ठण्ड से कांपते हाथो से उस बैग को खोला और मैं हैरान हो गया , मेरी जगह कोई भी होता हैरान हो जाता.
 

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