Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#15

बैग में एक ब्लैक एंड वाइट तस्वीर थी जो काफी पुरानी लगती थी , पर चूँकि उसे सहेज कर रखा गया था तो हालत ठीक थी , वो तस्वीर शायद किसी रात में खींची गयी थी , आसमान में बादल थे , चाँद था, और एक काली स्याह हवेली थी . मैंने कहा तस्वीर खींची गयी थी , नहीं वो तस्वीर कैमरा की नहीं नहीं थी, उसे किस चित्रकार ने बनाया होगा, हाँ ऐसा ही था वो बनाई गयी तस्वीर थी .

“कुछ तो खास बात है इस तस्वीर में ” मैंने अपने आप से सवाल किया क्योंकि गाड़ी में पैसे भी थे पर मोना को फ़िक्र थी इस तस्वीर की . फिलहाल के लिए तो मैंने तस्वीर को वापिस बैग में डाला और गाँव की तरफ चल दिया. वैध जी को गाड़ी वापिस की कुछ पैसे दिए और मैं घर के लिए मुड गया .

रस्ते में मुझे कौशल्या मिल गयी .

मैं- कहा से आ रही हो काकी

काकी- लाला के घर से .

मैं- हम्म, सुन काकी तेरे से एक बहुत जरुरी काम है तू आज रात खेत पर मिल सकती है क्या .

मेरी बात सुन कर कौशल्या की आँखों में चमक आ गयी .

कौशल्या- तू रहने दे लला , तू फिर गच्चा दे जायेगा. मेरे अरमानो की आग बुझा नहीं सकता तो उसमे घी भी मत डाल .

मैं- तेरी चूत को आज अपने लंड के पानी से सींच दूंगा आ तो सही , पर चूत के आलावा मूझे एक काम और है

कौशल्या- बता तो सही

मैं- वहीँ बताऊंगा , तू वहां पहुँच जाना

कौशल्या- पक्का

मैंने कौशल्या से करार किया और फिर घर आया, रात की नींद तो थी ही कुछ देर के लिए सो गया . शाम से कुछ पहले मैं फिर सरोज के घर गया , मुझे देखते ही उसके गालो पर लाली आ गयी .

“करतार कहाँ है ” मैंने पूछा

सरोज- खेलने गया है

मैं- चाचा

सरोज- मंडी

इतना सुनते ही न जाने मुझे क्यों ख़ुशी सी हुई. मैंने सरोज से एक कप चाय बनाने को कहा और खुद बाहर जाकर दरवाजा बंद कर आया. फिर मैं रसोई में गया . सरोज की पीठ मेरी तरफ थी मैंने जाते ही सरोज को पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया, पर वो चौंकी नहीं शायद उसे भी अहसास था .

जैसे ही उसके नितम्ब मेरे अगले हिस्से से छुए , मेरे लंड में उत्तेजना का ज्वार चढने लगा. सरोज खड़ी थी मैं निचे बैठा उसके लहंगे को उठाया और उसकी कच्छी को पैरो के निचे सरका दिया. सरोज के मस्त कुल्हे मेरी आँखों के सामने थे , मैंने बड़े प्यार से उनको सहलाया और अपने होंठ सरोज की चूत पर लगा दिए. सरोज ने अपनी गांड को पीछे की तरफ कर लिया और अपने हाथो को स्लैब पर रख कर सामने को झुक गयी .

मुझे नहीं लगता की झुकी औरत से ज्यादा सेक्सी कोई और पोजीशन होगी , मैंने थोडा और फैलाया उसके चूतडो को और अपनी जीभ को चूत से लेकर गांड के छोटे से छेद तक फेरा .स

“सीईई ” सरोज ने एक आह सी भरी . रुई के गुब्बारों से नितम्बो को मसलते हुए मैं उसकी चूत चाटने लगा था . सरोज बहुत प्यासी औरत थी और फिर अक्सर बड़ी उम्र की औरते छोटे लडको से सेक्स करते समय ज्यादा ही उत्तेजित हो जाती है तो सरोज भी आहे भरने लगी थी .

जब जब मेरी जीभ उसकी गांड के छेद पर रगड़ खाती सरोज की टांगो में बहुत तेज कम्पन होता, कुछ देर उसके दोनों छेद चूसने के बाद मैंने अपनी चेन खोली और लंड पर थूक लगाकर सरोज की एक टांग को फैलाया और लंड को चूत के गीले छेद पर टिका दिया. पुच की आवाज आई और सरोज का बदन एक पल को अकड़ गया



दो झटको में ही मैंने लंड चूत के अन्दर सरका दिया था ब्लाउज के ऊपर से उसकी चुचियो को दबाते, मसलते हुए मैं सरोज को चोदने लगा, कुछ ही पलो में हम दोनों चुदाई के आसमान में उड़ान भरने लगे थे , मैं उसका ब्लाउज खोलना चाहता था पर उसने मना किया. फच फच की आवाज रसोई के हर कोने में गूँज रही थी .

सरोज अब स्लैब से हट कर रसोई के बीचो बीच अपने घुटनों पर हाथ टिकाये झुकी हुई थी , सरपट सरपट लंड चूत में अन्दर बाहर हो रहा था किसी भी पल हम दोनों अपने अपने सुख को पा सकते थे पर तभी बीच में भांजी मार दी नसीब ने

बाहर से बिक्रम चाचा की आवाज आई तो हम दोनों के होश उड़ गए , सरोज ने जल्दी से मुझे अलग किया और अपनी कच्छी को जांघो पर चढाते हुए बाहर दरवाजे की तरफ भागी, मैंने भी अपनी हालत ठीक की और रसोई से बाहर आकर बैठ गया .

“बिल्ली दो चार दिन से अन्दर घुस जाती है तो दरवाजा बंद करना पड़ा, ” सरोज ने विक्रम चाचा को बताया और उसके लिए भी चाय बनाने रसोई में चली गयी . विक्रम मेरे पास चला गया .

मैं- आजकल शहर के बहुत दौरे हो रहे है .

विक्रम-बेटा, धंधा फैला रहे है , बड़े होटलों में आजकल देसी सब्जी की बड़ी डिमांड है तो अपन लोग सप्लाई दे रहे है .

मैं- आपको ठीक लगे तो सब्जिया ही उगा लेते है जमीन के एक बड़े हिस्से में ,

विक्रम- मेरा भी यही ख्याल है , मैं दो चार दिन में किसान केंद्र जाऊंगा वहां से मदद लूँगा किस प्रकार हम बढ़िया पैदावार कर सकते है .

मैं- चाचा आपको जो ठीक लगे आप कर लिया करो . वैसे वो मोटर साईकिल के बारे में क्या सोचा आपने

विक्रम- देखो बेटा मैं अपना फैसला तुम्हे बता चूका हूँ, मुझे बड़ा डर लगता है , कभी कभी तुम और करतार गाड़ी चलाते हो तभी मेरा जी घबरा जाता है , तुम्हे चाहे पैसे को आग लगानी है तुम लगा दो, जो करना है करो सब तुम्हारा ही है , पर मोटर साईकिल के बारे में मेरा फैसला नहीं बदलेगा. मैं अपने बेटो को मौत का साधन नहीं खरीद कर दूंगा.

मैं- कोई न चाचा मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था .

फिर रात को खाने तक हम बाते करते रहे, सरोज की आँखों में मैंने अधूरी चुदाई की कसक देखि पर विक्रम और करतार के आगे थोड़ी न हम कुछ कर सकते थे . खाना खाने के बाद मैंने अपना कम्बल ओढा और घर वालो को बता कर की मैं खेत पर जा रहा हूँ मैं चल पड़ा. पर किस्मत मेरी या कौशल्या की बदकिस्मती गाँव से बाहर पीपल के पास आते ही मैं जान गया की एक बार फिर कौशल्या मेरा इंतज़ार करते ही रह जायेगी. .....................
 
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#16

बेशक सर्द हवा ने मुझे कम्बल को और कसने को मजबूर कर दिया था , पर सामने से आती उस सूरत को देख कर मुझे कम्बल की जरुरत रह नहीं गयी थी . मैंने लालटेन की लौ और थोड़ी तेज कर दी, अँधेरी रात में एक लौ लालटेन की थी और एक उस चेहरे का नूर था जिसने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था .

“तू जब देखो मुझे रास्तो में मिल ही जाता है ” रूपा ने सवाल किया

मैं- यही बात तुझसे भी कह सकता हु मैं

रूपा- हाँ बिलकुल कह सकते हो .

मैं- कहाँ इतने अँधेरे

रूपा- अरे आज सोमबार है , आज दिन में दिया जलाने नहीं जा पायी तो सोचा हो आती हूँ

मैं- तुझे कितनी बार कहा है अकेले मत निकला कर खासकर रात को ,

रूपा- मेरी आड़ मेरे साथ है तो क्या फ़िक्र मुझे

उसकी हंसी सीधा कलेजे में उतरती थी मेरे .

मैं- फिर भी ध्यान रखा कर

वो- जैसा तू कहे

मैं और रूपा मजार वाले रस्ते हो लिए.

“जाड़े की राते भी बड़ी लम्बी होती है मुसाफिर ” बोली रूपा

मैं- सो तो है , और बता सब ठीक ठाक

रूपा- बस गुजारा हो रहा है

मैं- मेरी बात पर विचार किया तूने

रूपा- तुझसे पैसे नहीं ले सकती मैं

मैं- क्या मैं तेरे लिए इतना भी नहीं कर सकता

रूपा- जहाँ पैसा बीच में आ जाता हैं न फिर उस रिश्ते की मिठास कम हो जाती है मुसाफिर

मैं- चल छोड़ फिर इस बात को ,

रूपा- छोड़ना ही बेहतर

मै- कभी आ जा मेरे घर , बरसो से मेरे सिवा कोई और आया नहीं वहां

रूपा - तेरा घर गाँव के बीच में है ,ऐसे अकेली आउंगी तो लोग क्या कहेंगे

मैं- तो बता तू, तुझे कैसे ले चलू मेरे घर ,

रूपा- चल उदास मत हो , कभी उधर से गुजरूंगी तो पक्का आउंगी .

मैं मुस्कुरा दिया . बाते करते करते हम मजार तक आ पहुचे , इक्का दुक्का लोग ही थे अब बाबा भी नहीं था .

“चल दिया जलाते है ” रूपा ने कहा

मैं- तू जला

रूपा- अरे आ न , मैंने सुना है जोड़े से मांगी दुआ जल्दी ही कबूल होती है

मैं- और कहीं मैं दुआ में तेरा जोड़ा ही न मांग बैठू

रूपा-वो तेरा नसीब मुसाफिर . रूपा का भाग तो बस मजदूरी, गरीबी में बीत रहा है , भाग में तेरा साथ हुआ तो वो भी देखूंगी पर अभी तो दुआ मांगते है .

रूपा ने अपने सर पर चुन्नी ओढ़ी, और इबादत में बैठ गई, मैंने उसके साथ दिया जलाया. दिल जैसे उड़ने लगा था . बहुत बेहतर लगने लगा था , फिर हम बाहर आकर बैठ गए. मेरी माँ के पेड़ के निचे . रूपा ने अपना झोला खोला और एक डिब्बे से कुछ बलुस्याही निकाली

“ले खा ” बोली वो

मैंने एक टुकड़ा तोडा.

मैं- जानती है ये पेड़ किसका है

रूपा- हाँ , ये पेड़ सुहासिनी ठकुराइन ने लगाया था ऐसा मेरा बाबा कहते है , जानता है इस पेड़ की खास बात क्या है

मैं- नहीं तू बता

रूपा- आजतक चाहे जो मौसम रहे , ये पेड़ हरा ही है , वैसे एक खास बात और है

मैं- जानता हु , ये मेरी माँ का पेड़ है .

रूपा बस हलके से मुस्कुराई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- मैं जानती हूँ मैं समझती हूँ तेरे मन की बात तुझे कहने की कोई जरुरत नहीं तेरे दिल को अपने सीने में महसूस करती हु मैं .

मैंने अपना कम्बल और टाइट कर लिया .

“मैं अपने माँ-बाप के बारे में जानना चाहता हु रूपा, पर कोई भी मुझे बताता नहीं है न जाने क्यों ”

रूपा- तो मालूम कर ,अपने लोगो से जुड़, तेरे परिवार काका- ताऊ से मेल झोल कर तुझे कुछ तो जरुर मालूम होगा . लोग कहते है एक ज़माने में तेरे दादा का सिक्का चलता था , पर तेरे बाकि परिवार वाले उतने रुतबेदार नहीं निकले, मेरे बाबा कहते है की सुहासिनी ठकुराइन बहुत भली थी , कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था उनके यहाँ से मेरे बाबा की बहुत मदद की थी उन्होंने,

“तेरे जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी , किसने की, किसलिए की सब बाते बस राज बनकर रह गयी , पर ऐसा कहते है लोग की तेरे पिता की मौत से पहले बाप-बेटे का खूब झगड़ा हुआ था . ” रूपा ने कहा

मैं- सुना मैंने भी , पर रूपा मुझे इसलिए भी डर लगता है की कहीं गड़े मुर्दे उखाड़ने के चक्कर में आने वाला कल न उलझ जाये .

रूपा- सब तक़दीर के लेख है मुसाफिर, लिखे हुए को कौन मिटा सके है .

मैंने रूपा का हाथ पकड़ा , सर्दी में ठंडा हुआ पड़ा था

“तू देगी साथ मेरा ” मैंने पूछा

रूपा- हाँ पर मेरी भी कुछ मजबुरिया है मेरे कंधे पर बुजुर्ग बाप की जिमीदारी है

मैं- तो मेरी बात क्यों नहीं मान लेती, तेरा कर्जा मैं उतार देता हु न

रूपा- मेरे कंधे बेशक गरीबी से झुके है पर जमीर है मुझमे , तुझसे पैसे ले लुंगी न तो ये दोस्ती फिर लालच वाली हो जाएगी, पर हाँ जब भी मुझे मदद चाहिए होगी मैं सबसे पहले तेरे दर पर आउंगी. चल अब समय हुआ चलते है .

चलते चलते हम उसी मोड़ पर आये जहाँ से हमारी राहे जुदा होती थी ,

मैं- घर तक छोड़ आऊ तुझे ,

रूपा मेरे पास आई और बोली- घर पर ले चलना .......

उसने हौले से मेरे गाल को चूमा और अपने रास्ते पर चल पड़ी. मैं खड़ा रह गया उसी मोड़ पर . फिर मुझे याद आया की कौशल्या मेरी राह देख रही होगी तो मैं तेज कदमो से खेत की तरफ चल पड़ा.
 
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#17

मैंने देखा कौशल्या रजाई ओढ़े सोयी पड़ी थी मैंने उसे जगाया .

“मैंने तो सोच लिया था आज फिर धोखा दे गया लड़का ” कौशल्या ने अंगड़ाई लेते हुए कहा .

मैं- काकी, तेरी चूत लेने नहीं बुलाया तुझे कम से कम आज तो नहीं ले रहा मैं तेरी

कौशल्या- तो फिर किसलिए बुलाया मुझे

मैं- तुझसे एक बात करनी थी , देख मेरे कुछ काम है तू वो कर बदले में मैं तेरे कर्जे की जितनी भी रकम है लाला महिपाल को चूका दूंगा

काकी- क्या करवाना चाहता है मुझसे तू

मैं- बस थोडा मजा और थोड़ी जानकारी जो तू लाकर देगी मुझे

काकी- समझी नहीं मैं

मैं- सुन ध्यान से , सबसे पहले तो मुझे शकुन्तला के पल पल की खबर चाहिए वो क्या करती है , कहाँ आती जाती है , कौन दोस्त है कौन दुश्मन है उसके .

काकी- तुझे क्या करना है ये जानकार

मैं- वो तेरा मतलब नहीं .

काकी- और दूसरा काम

मैं- तुझे सोना पड़ेगा करतार के साथ ,

काकी- बावला हुआ है क्या

मैं- मेरे साथ सो सकती है उसके साथ नहीं , देख मैं जानता हु तुझे लंड की बहुत जरुरत है , करतार को दे, ये दोनों काम कर मैं महिपाल से बात करूँगा , ,मैं जानता हु तेरी चूत में बहुत आग है करतार संग लग जा .

काकी- सोचती हूँ

मैं- सोचने का समय नहीं है

काकी पर आज तो कर ले मेरे साथ , देख इतना तो तू भी कर ही सकता है मेरे लिए.

मैंने कुछ सोच कर कौशल्या से हाँ कह दी ,

चुदाई के बाद नींद सी आ गई , सुबह मैं करतार के साथ कालेज गया . दो तीन क्लास लेने के बाद मैं चंदू के पास चला गया .

चंदू- और भाई कैसे हो

मैं- बढ़िया कुछ खिला दे यार .

चंदू कुछ समोसे और चाय ले आया .

चंदू- भाई , रोज नहीं आते तुम

मैं- बस ऐसे ही पढाई में मन नहीं है करतार के साथ आ जाता हूँबस

फिर मुझे कुछ याद आया तो मैंने चंदू से पूछा - यार ये मुड्कियो की थोड़ी डिटेल चाहिए मुझे

चंदू ने घुर कर देखा मुझे और बोला- जानते हो न कितने खतरनाक है वो

मैं- अपने दोस्त के लिए इतना नहीं करेगा तू

चंदू- दोस्ती की है निभानी तो पड़ेगी ही . अभी परसों की बात है तुम नहीं आये थे उस दिन छोटे मुडकी ने कालेज में एक लड़के को इतना पीटा , उसका पाँव तोड़ दिया .

मैं - किसलिए

चंदू- मुदकी ने लड़के से कहा की उसके जूते को जीभ से चाटे , उसने मना किया तो उसका ऐसा हाल किया.. कोई रोकने टोकने वाला तो हैं नहीं . बाप के खौफ का पूरा फायदा उठाता है ये .

मैं- इसकी बहन जज है न

चंदू- हाँ , अपने इधर ही है कचहरी में, पर वो इन जैसी नहीं है बहुत अलग और सज्जन है , बल्कि वो काफी समय से अलग ही रहती है , उसने अपने भाई को ही सजा सुना दी थी .

मैं- तू जानता है उसे

चंदू- नहीं भाई, अपना क्या संपर्क बड़े लोगो से बस मैंने भी खबरे सुन ली लोगो से

मैं - और बता क्या चल रहा है

चंदू- क्या बताऊ बड़ी मुश्किल है भाई , सोचता हूँ कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाये तो अच्छा रहे, कहने को तो मैं और मेरी माँ ही है परिवार में पर दो समय की रोटियों के भी लाले पड़े है .

मैं- तेरा भाई किसलिए है फिर , मुझे बताना था न फिर .

मैंने जेब से पैसे निकाले और चंदू को दिए.

चंदू- अरे नहीं यार, ये सब नहीं

मैं- छोटा भाई है मेरा ,बड़े भाई के नाते दे रहा हूँ रख ले .

शाम को मैं गाँव पहुंचा तब तक अँधेरा घिर चूका था , मैंने हाथ पांव धोये ही थे की सरोज आ गयी.

सरोज- तुमने कुछ किया क्या, कुछ हुआ तुमसे

मैं- नहीं तो ,क्या हुआ

सरोज- आज एक पुलिसवाला आया था , कह गया की तुम्हे सेसन हाउस बुलाया है

मैं- अच्छा

सरोज- सेसन हाउस क्या होता है थाने को अंग्रेजी में कहते है क्या, देव सच बताओ मुझे .

मैं - ऐसा कुछ नहीं है , मेरा एक दोस्त बना है उसके पिता बड़े अधिकारी है वो पुलिसवाला उनका सुरक्षा गार्ड है तो उसके हाथ संदेस भेजा होगा .

सरोज- मुझे फ़िक्र रहती है तुम्हारी

मैं- समझता हूँ

मोना सिंह ने बुलवाया था मुझे , मैंने कल जाने का सोचा. मैं मजार की तरफ चल पड़ा. दरसल मजार तो अब बहाना थी मेरा मकसद रूपा का दीदार होता था . बस कुछ ही मुलाकातों में अपनी लगने लगी थी वो , उसके साथ दो सूखी रोटिया भी पकवानों से बेहतर लगती थी मुझे.



रूपा के बारे में सोचते हुए मैं बेफिक्र चला जा रहा था , की मोड़ पर मैंने कुछ ऐसा देखा की मेरा कलेजा जैसे सीने से बाहर आने को हो गया . ऐसी चीज़ बल्कि यु कहू ऐसा द्रश्य मैंने तो क्या किसी ने भी नहीं देखा होगा.

कच्ची सड़क के बीचो बीच , एक बड़े से सांप ने नीलगाय को जकड़ा हुआ था , नीलगाय तड़प रही थी , कितना बड़ा सांप था वो कम से कम दस फूट से ऊपर का , रहा होगा, उसकी मोटाई भी बड़ी ज्यादा था , अँधेरे में इतना साफ़ नहीं दिख रहा था पर आँखे उसे देख पा रही थी .

नीलगाय बड़ी तकलीफ में थी , मैंने सड़क से कुछ पत्थर उठाये और सांप के ऊपर फेंके, कुछ असर नहीं हुआ अबकी बार मैंने कुछ बड़े पत्थर उठाये और फिर से फेंके, इस बार शायद मेरा पत्थर उसे जोर से लगा. एक अजीब सी चीख मैंने सुनी,

और फिर मैंने उस सांप को पलटते हुए देखा, चीखते हुए वो मेरी तरफ पलटा ........

और जब वो ऊपर उठा तो मेरी बारी थी चीखने की , पर मेरी आवाज मेरे गले में ही घुट गयी , घुटने कांप गए वो सांप, वो सांप.............
 
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क्या वो मेरी नजरो का धोखा था या सच था , ये जो भी था मेरी आँखे देख रही थी पर दिल मान नहीं रहा था , मैंने देखा उसका धड बड़े सांप का था और ऊपर का तन इन्सान का , लम्बे बाल जो खून से लथपथ थे, अँधेरे में चेहरा नहीं दिख रहा था पर उसकी पीली आँखे जुगनू सी चमक रही थी .

अजीब सी आवाज करते हुए उसने अपनी पूँछ मेरी तरफ पटकी, जैसे किसी भारी पत्थर ने मुझे ठोकर मारी हो , मैं दर्द के मारे जमीं पर गिर गया , चिंघाड़ते हुए वो जीव मेरे पास आया , उसके बालो से टपकता खून मेरे जिस्म पर गिरने लगा. मैं जैसे बुत बन गया था , वो साया मेरे ऊपर झुकते जा रहा था किसी भी पल वो मुझे खा सकता था, वार कर सकता था , डर के मारे मेरी आँखे बंद होने लगी . पर कुछ देर बाद मुझे अहसास हुआ ख़ामोशी का .

मैंने आँखे खोली, कुछ नहीं था , सिवाय मेरे और उस नीलगाय की लाश के जो सबूत थी की मैंने अभी अभी कुछ ऐसा देखा था जो देख कर भी अनदेखा था . थोडा समय लगा उखड़ी साँसों को सँभालने में , मैं भागते हुए सीधा मजार पर गया और बाबा को सारी बात बताई , बाबा के माथे पर बल पड़ गए.

बाबा- कितनी बार तुझे समझाया है अंधेरो में मत घुमा कर पर तू सुनता नहीं, ये दुनिया बड़ी जालिम है मुसफिरा, यहाँ आईने है , हकीकते है , छलावे है , ऐसे ही किसी छलावे को देख आया है तू. ये धरती अपने अन्दर न जाने कितने राज छुपाये हुए बैठी है , ये रेत न जाने कितनी कहानियो का हिस्सा रह चुकी है .

मैं- बाबा, पर वो था क्या

बाबा- एक बुरा ख्वाब . पर तू भूल नहीं सकता उस खवाब को ,

बाबा ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और बोले- तेरा नसीब गोते खा रहा है , ख़ुशी तेरी दहलीज पर खड़ी है पर ........

बाबा ने बात अधूरी छोड़ दी .

मैं- पर क्या बाबा

बाबा- मैंने कहा था न मौसम बदल रहा है तेरी आँखों में इश्क देखता हु मैं

मैं-नहीं बाबा . ऐसा कुछ नहीं

बाबा- मुझसे झूठ बोल सकता है नसीब से नहीं .

बाबा ने फिर कुछ नहीं बोला. बस अपना इकतारा बजाने लगा. मैं वापिस जाने को हुआ पर उसने मुझे वही रहने का इशारा किया . रात भर वो इकतारा बजाता रहा मैं उसके पास बैठा रहा .

अगले दिन कालेज के बाद मैं सीधा सेशन हाउस गया. मोना सिंह से मिलने. मुझे देखते ही उसके चेहरे पर जैसे ख़ुशी आ गयी .

“देव, कैसे हो तुम ” पूछा उसने

मैं- आप कैसी है , तबियत ठीक है

मोना- बेहतर हु, पैर टुटा है तो टाइम लगेगा ठीक होने में , खैर ये बताओ क्या लोग चाय, काफी, ठंडा , कहना क्या मैं मंगवा ही लेती हु .

कुछ ही देर में नाशता आ गया . मैंने थोडा सा खाया

मैं- सीधा काम की बात पर आते है .

मोना ने सर हिलाया

मैंने वो बैग मोना के सामने रखा उसने वो तस्वीर देखि और बैग को अपने पास रख लिया.

मोना- थैंक्स, इसकी हिफाजत करने के लिए.

मैं- कुछ ख़ास है इस तस्वीर में क्या , मैंने देखा आपको पैसे की फ़िक्र नहीं थी बस इस तस्वीर की थी .

मोना- ये किसी की अमानत है देव,

मैं- कीमती है क्या ये तस्वीर

मोना- नहीं , दरअसल ये किसी का घर है पर ये हैं कहाँ ये कोई नहीं जानता , ऐसी कहानी है की इसे छुपाया गया है .

मैं- ऐसा हो सकता है .

मोना-मैं भी ये जानना चाहती हु,

मैं- आप जज है , काफी पढ़ी लिखी हैं आप इन बातो पर विश्वास करती है ,

मोना- मैं जहाँ से हूँ न देव, वहां पर हर कोई विश्वास करता है , तुमने जूनागढ़ का नाम सुना है

मैं- हाँ सुना है ,

मोना- वो खिड़की से परदे हटाओ जरा .

मैंने वैसा किया.

मोना- किसी ने तुम्हे बताया की जूनागढ़ और तुम्हारे गाँव का क्या सम्बन्ध है .

मैं- मालूम नहीं ,

मोना- बरसो पहले तुम्हारे गाँव का एक लड़का , जूनागढ़ की लड़की को भगा ले गया था मंडप से,

मैं- तो

मोना- उस घटना ने दोनों गाँवों के भाईचारे को समाप्त कर दिया.

मैं- मुझे क्यों बता रही है .

मोना- क्योंकि तुमने मेरी मदद की , तुम्हे मेरे बारे में जानना चाहिए

मैं- वो इसलिए की इन्सान ही इन्सान के काम आता है , मुझे तो मालूम भी नहीं था की आप कौन हो , क्या हो, कहाँ की हो .

मोना- इसलिए मैं प्रभावित हुई हु, तुमसे ,

मैं मुस्कुरा दिया.

मोना- देव, कभी कोई काम हो तो मुझे कह सकते हो .

मैं- जी, शुक्रिया

मोना- कभी भी किसी भी समय तुम मुझसे मिलने आ सकते हो , बस मैं कोर्ट में न रहू उस समय

मैंने सर हिला दिया .

मैं वापिस जाने को उठा की मुझे कुछ याद आया

मैं- एक बात पुछू

मोना- हाँ

मैं- वो हवेली किसकी है वैसे

मोना- एक मुसाफिर की .

मोना की बात सुनकर मैं फिर मुस्कुरा पड़ा

मोना- क्या हुआ .

मैं- जी कुछ नहीं .

मोना से विदा लेकर मैं वापिस अपने गाँव की बस में बैठ गया . रस्ते भर मैं उस तस्वीर के बारे में सोचता रहा , किसी मुसाफिर की थी वो हवेली और एक मुसाफिर मैं भी था , क्या वो मेरी थी , एक मिनट ताऊ ने मुझे जो चाबी दी, क्या वो उस हवेली की ही थी . सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा.

मैं सीधा अपने खेत पर गया . तो देखा की रूपा वहां पहले से मोजूद थी .

रूपा- तेरा ही इंतज़ार कर रही थी मैं

मैं- किसलिए

रूपा- किसलिए का क्या मतलब , क्या मैं तेरा इंतजार नहीं कर सकती

मैं- अरे नाराज क्यों होती है बस ऐसे ही पूछा मैंने

रूपा- आज हलवा बनाया था मैंने तो तेरे लिए लायी हु

मैं- एक मिनट मैं हाथ पाँव धो लू जरा

मैं वापिस आया तब तक रूपा ने चूल्हा जला दिया था .

रूपा- ठण्ड बहुत है चाय बस बनी ही

मैंने डिब्बा उठाया और हलवा खाने लगा. कसम से रूपा बड़ा स्वादिष्ट खाना बनाती थी .

“ले चाय ” उसने मुझे कप दिया.

मैं- तू नहीं पीयेगी

रूपा- कितनी बार बताऊ, दूध पसंद है मुझे ,

उसने अपने कप में दूध भरते हुए कहा

मैं हंस पड़ा

रूपा- तू ऐसे बेमतलब मत हंसा कर

मैंने चाय की चुस्की भरी

रूपा- ये बताने आई थी की कुछ दिन मिल नहीं पाऊँगी तुझे

मैं- क्यों भला सब राजी ख़ुशी तो है

रूपा- मैं जूनागढ़ जा रही हूँ,

मैं- क्यों

रूपा-शादी में

मैं- अपनी रिश्तेदारी है उधर

रूपा- नहीं

मैं- तो कैसे

रूपा- तू क्या करेगा ये जानकार , हर बात बतानी जरुरी तो नहीं

मैं- क्या बात है रूपा , क्या बताना नहीं चाहती तू मुझे

रूपा- क्या बताऊ तुझे , बापू के किसी जान पहचान वाले की शादी है इसलिए जा रहे है बस अब और मत पूछना

मुझे लगा की कुछ तो छुपा रही है रूपा पर मैंने बात को टाल दिया.

मैं- रूपा तू किसी हवेली के बारे में जानती है जो खो गयी .

रूपा के हाथ से कप निचे गिर गया .
 
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#19

“माफ़ करना मेरा ध्यान भटका , क्या कह रहे थे तुम ” बोली रूपा

मैं- तूने किसी खोयी हुई हवेली के बारे में सुना है क्या

रूपा जोर जोर से हंसने लगी, इतना जोर जोर से की उसने अपना पेट पकड़ लिया.

“वाह रे, मजाक करना कोई तुमसे सीखे, जानता भी है हवेलिया कितनी बड़ी होती है , कोई छोटा मोटा सामान है क्या जो खो जाये ” रूपा बोली

मैं- ले ले मजे पर किसी ने मुझे बताया की एक हवेली खो गयी

रूपा- तो बताने वाले को जाके कह की खोयी चीज की रपट दर्ज करवाए थाने में .

इस बार मैं भी मुस्कुरा दिया.

रूपा- बहुत भोला है रे तु, जो भी तुझे बता दे मान लेता है मुझे डर लगता है कही तेरे इस सरल स्वभाव का फायदा दुनिया न उठाये.

“मेरी दुनिया तू है , उठा ले फायदा ” मैंने कहा

रूपा- इतना आगे मत बढ़ मुसाफिर , की पीछे लौट न सके

मैं- डरती है तू मेरे साथ सफ़र करने में

रूपा- डरती हूँ नसीब से,मुसाफिरों के नसीब में बस सफ़र होता है , मंजिले नहीं , मुसाफिर सफ़र करते है हमसफर नहीं बनते . और फिर मेरे चाहने न चाहने से क्या होता है , तू आसमान का तारा मैं धरती की रेत ,

मैं- इस रेत में पानी की बूँद बन कर घुलना चाहता हु मैं , माना की नसीब में सफ़र है पर हमसफर भी तो हैं .

रूपा- फिर कभी करेंगे ये बाते , मैं चलती हु देर हो रही है .

मैं- यही रुक जा न .

रूपा- आजकल बस तेरे साथ ही वक्त गुजर रहा है मेरा, मेरा काम रह जाता है तेरे चक्कर में

मैं- तुझे काम करने की कोई जरुरत नहीं , मेरा सब कुछ तेरा ही तो है

रूपा- जानती हु , पर हम इस बारे में बात कर चुके है ,

मैं- तेरी ये खुद्दारी

रूपा- गरीब के पास होता ही क्या है खुद्दारी के सिवा.

मैंने रूपा का हाथ पकड़ा और बोला- ऐसी बाते न किया कर, तू जानती है मेरा दिल कितना दुखता है , तेरे हाथो के ये छाले जब देखता हूँ न तो कलेजे में आग लगती है .

रूपा- क्या चाहता है तू

मैं- तुझे अपनी बनाना,

रूपा- आशकी में सब ऐसा कहते है

मैं- ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे , तुझे अपना बनाना चाहता हु, मेरे पास एक मकान है उसे घर बनाना चाहता हु, आजतक बस अकेल्रा ही रहा हूँ अब तेरे साथ जीना चाहता हूँ .

रूपा के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आ गयी .

रूपा- देर हो रही है मुझे

मैं- रुक जा न

रूपा- फिर कभी रुक जाउंगी जाने दे मुझे

रूपा उठी और झोपडी से बाहर आई, आसमान से ओस बरस रही थी , ठण्ड बहुत ज्यादा थी , रूपा ने अपनी लालटेन जलाई . रौशनी में उसका सांवला चेहरा जैसे सुबह खिलता कोई ताजा फूल हो .

रूपा- चलती हु, शादी में से आके ही मिलूंगी अब

मैं- तेरी याद आएगी .

रूपा- यादो का क्या करना कुछ दिन में मैं खुद ही आ जाउंगी.

रूपा ने कदम आगे बढ़ाये और अपने रस्ते पर चल पड़ी. कुछ दूर जाकर वो पलटी, मेरी तरफ देखा उसने

मैं दौड़ कर गया उसके पास, बेशक दो चार कदम की दुरी थी पर साँस फूल गयी थी .

“न रोक सरकार , जाने दे मुझे जाना जरुरी है ” रूपा कांपते हुए बोली

मैं अब उसके सामने था , उसके करीब , इतना करीब की हमारी सांसे आपस में उलझने लगी थी , चाँद रात और दिलबर साथ . मैंने देखा रूपा के हाथ में लालटेन कांपने लगी थी .

मैंने रूपा की कमर में हाथ डाला और थोडा सा खींचा , वो मेरी बाँहों में झूल गयी , उसके होंठ मेरे गालो से टकराए.

“जाने दे मुझे ” आधी ख़ामोशी से बोली वो

मैं- तू अकेली नहीं जायेगी मेरी जान भी तो साथ ले जा रही है .

रूपा- ऐसी बाते मत कर, पिघलने लगी हूँ मैं परवाने

मैं- तो फिर जला दे मुझे शम्मा बनकर

रूपा- मज़बूरी समझ मेरी

मैं- अकेलापन समझ मेरा,

मेरे होंठ थोडा सा रूपा के होंठो से टकराए, मुझे ऐसे लगा की बर्फ चख ली मैंने पर उसने मुझे खुद से दूर कर लिया और बोली- जा रही हु मैं .

इस बार उसने मुड कर नहीं देखा , बस चली गयी .पर वो ऐसे ही नहीं गयी थी अपने साथ मेरा दिल भी ले गयी थी.



मैं वापिस आकर बिस्तर पर लेट गया . आँखों में न नींद थी न दिल में करार, खुली आँखों से मैं सपने देखने लगा था , ऐसे सपने जहाँ बस मैं था रूपा थी , पेडो पर डाले झूले में झूलते रूपा, पास बैठा उसे देखता मैं . नजाने कब मुझे नींद आई .

सुबह आँख खुली ,मै बाहर आया तो देखा की कौशल्या चली आ रही है .

मैं- इतनी सुबह कैसे,

कौशल्या- दस बज रहे है

मैं- बड़ी देर तक सोया मैं .

काकी- जाने दे सुन , शकुन्तला खुद तुझसे मिलना चाहती है , बातो बातो में उसने बताया मुझे

मैं- मुझसे पर क्यों

काकी- बड़ी परेशां है वो किसी बात को लेकर, मैंने पूछा पर उसने वो बात बताई नहीं

मैं- कब मिल सकते है

काकी- देख,तू ऐसा कर लाला का हाल पूछने के बहाने उसके घर जा

मैं- पर लाला तो हॉस्पिटल में है

काकी- तभी तो कह रही हूँ, हाल चाल पूछने के बहाने घर जा सकता है तू , और घर से बढ़िया जगह कहाँ रहेगी मिलने को

मैं- ठीक है कल जाता हु

काकी- मेरे कर्जे का क्या हुआ .

मैं- एक दो दिन में पैसे लाकर देता हु तुझे

काकी- ठीक है . और ..

मैं- और क्या

काकी- चोदेगा कब

मैं- दो चार दिन में

काकी-जैसी तेरी मर्जी और सुन बताना भूल गयी सरोज बोल रही थी तुझे, कल सुबह से गायब है तू, चिंता कर रही थी वो घर चले जाना

मैं- ठीक है , वो करतार के बारे में क्या सोचा

काकी- रिझाना शुरू कर दिया है , अभी सीधा टांगे खोल दूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा न

मैं- ठीक है .

कौशल्या के जाने में बाद मैं सोचता रहा की शकुन्तला की कौन सी मज़बूरी है जो वो लालायित है मुझसे मिलने को , पर जबसे उसे मूतते देखा था मैंने भी तो सोच लिया था की उसकी चूत लेनी ही हैं मुझे, मेरा दिल तो उसी दिन आ गया था उस पर . सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल पड़ा.
 
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#20

दिमाग में सवाल इतने थे की सोचते सोचते सरदर्द होने लगा था . मैं सीधा जाकर नहाया और फिर सरोज के पास गया , पीली साडी में सरोज बड़ी कातिल लग रही थी, मुझे देखते ही वो शुरू हो गयी .

सरोज- कहाँ थे तुम , आजकल न जाने क्या हुआ है न दिन की फ़िक्र है न रात की , बीते महीने से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था की तुमने खाना छोड़ा हो, कोई कमी है तो बताओ , मैं तुम्हारी पसंद का खाना बनाती हु फिर भी .

मैं- माफ़ी चाहता हूँ बस मैं आ नहीं पाया रात को , थका हुआ था तो वहीँ पर सो गया .

देखो - ये जानते हुए भी की खेतो पर अकेले सोना खतरनाक है ,फिर भी मैंने तुम्हे रोका नहीं पर अब जब आस पास ऐसी घटनाये हो रही है मुझे फ़िक्र है तुम्हारी, बेशक मैं सो चुकी हु तुम्हारे साथ फिर भी तुम बेटे हो मेरे .

मैंने सरोज की नजरो में अपार ममता देखि .

मैं- कैसी घटनाये

सरोज- तुम्हे नहीं मालूम, लोग कहते है की लाला के मुनीम को दिल का दौरा नहीं पड़ा था उसे किसी सांप ने काटा था . उसके बाद जुम्मन की भैंस को भी कोई जानवर खा गया , और तो और परसों पीपल वाले रस्ते पर एक आधी खाई नील गाय मिली है . फिर लाला पर हुआ हमला . मेरा जी बड़ा घबराता है जब तुम लोग बे टाइम घर से बाहर रहते हो. न तुम सुनते हो न करतार और न तुम्हारे चाचा .



मैं- ध्यान रखूँगा और कोशिश करूँगा समय से घर आने का .

सरोज- मुझे तो लगता है कोई साया है तुम पर , गाँव वाले बताते है रात रात भर तुम मजार पर उस पागल संग रहते हो. मुझे डर है कहीं वो मेरे बेटे को कुछ खिला पिला न दे.

मैं- अरे काकी, पागल नहीं है वो , मैं अपनी सुना देता हु उसे वो मुझे सुना देता है , मैं मजार पर जाता हु मेरी माँ के पेड़ की वजह से , उसके पास बैठता हु तो लगता है की माँ के आँचल तले हु, इसलिए चला जाता हु .



सरोज फिर आगे कुछ न बोली ,सिवाय इसके की खाना आ रही है वो .

ख़ामोशी से मैंने खाना खाया, मैं थोड़ी देर सोना चाहता था तो करतार के पलंग पर जाके लेट गया . सरोज भी अपना काम करने लगी . मेरा ध्यान दो बातो पर था शकुन्तला से मिलने पर , मोना सिंह की वो तस्वीर और रूपा के साथ घर बसाने को . पर चूँकि रूपा कुछ दिनों के लिए बाहर थी तो मैंने अपने ध्यान फिलहाल के लिए शकुन्तला पर लगाया.

कुछ सोचने के बाद मैं उठा और सीधा अपनी साइकिल लेकर उस जमीं पर आया जिसको खरीदने की ख्वाहिश लाला महिपाल की थी , आखिर इस टुकड़े में क्या ख़ास बात थी , नहर नजदीक थी , सड़क नजदीक थी और महिपाल अपना रकबा बढ़ा सकता था . इस जमीन से हम दो फसल ही लेते थे बाजरा और सरसों या गेहू,

मैंने अनुमान लगाना शुरू किया और कुछ सोचा, मुझे वापिस आते आते शाम के चार पांच बज गए थे , जब मैं लौट रहा था तो रस्ते में मैंने देखा मेरी ताई अपने घर के बाहर ही खड़ी थी , न जाने क्या हुआ मुझे मैं साइकिल से उतर गया और पैदल ही गहर के सामने से गुजरने लगा . ताई ने मुझे देखा और आवाज दी, - देव, बेटे.

मेरी जिन्दगी में ये पहली बार था जब मेरे अपनों ने मुझे आवाज दी थी . मैं रुक गया

“जी, ताईजी ”

ताई- कैसा है मेरा बेटा

मैं- जी ठीक हूँ

ताई- वहां क्यों खड़ा है अन्दर चल तेरा ही घर तो है बेटा

मैं- फिर कभी आऊंगा

ताई- तेरी झिझक समझती हूँ बेटा दोष हमारा ही अपने खून को , अपनी औलाद को आँखों के सामने परायो के जैसे पलता जो देखते रहे,

मैं- वो बात नहीं है ताईजी , मैं आता हु फिर कभी

ताई- तेरी दीदी की शादी है तुझे मालूम तो होगा ही ,आना है तुझे, आना ही क्या रस्मे, शादी के काम सँभालने है , कितने दिनों बाद परिवार में कोई शुभ दिन आ रहा है

मैं- जी बिलकुल, ये भी कोई कहने की बात है

मैंने कहा और अपना रास्ता पकड़ लिया. परिवार, जब भी कोई परिवार की बाते करता था मुझे बड़ी हंसी आती थी , घर आकर भी मेरे पास क्या था करने को , ये खाली चारदीवारी मेरा मजाक उडाती थी , हंसती थी मुझ पर , मेरी बदकिस्मती पर. और मैं हमेशा की तरह मन मसोस कर रह जाता था .

मेरे पास एक चाबी थी , मोना के पास एक तस्वीर थी , एक खोयी हुई हवेली की, उस हवेली और मेरी खुशियों में एक समानता तो थी दोनों ही खोयी हुई थी . मैंने एक कागज लिया और जो तस्वीर मैंने देखि थी वो बनाने लगा. वैसी तो नहीं बनी पर उस जैसी कह सकते है .



अब बस मुझे उस आदमी की तलाश करनी थी जो उस हवेली के बारे में जानता हो . चौपाल पर बैठे कुछ बुजुर्गो से मैंने पूछा पर कुछ ने आना कानी की कुछ ने गर्दन न में हिला दी. दरअसल ये हमेशा से ही था , गाँव के लोग मुझसे दूर ही रहते थे , बाबा ने भी कहा था की मैं लोगो से जुडु पर ये लोग मुझसे ऐसे भागते थे जैसे की मैं कोई संक्रमित जीव होऊ .

खैर मैं घर आया तो मैंने देखा सरोज काकी और करतार में किसी बात को लेकर बात हो रही थी .

मैं- क्या हुआ,

कट्टु- देखो न भाई , माँ हमेशा मुझे ही काम के लिए कहती रहती है

सरोज- तो छोटा कौन है , वो ही करेगा काम

मैं- क्या काम है ऐसा

सरोज- रामेशवर जी की लड़की की शादी है , कन्यादान के लिए कहा है इसे दे आने को पर ये जा नहीं रहा

कट्टु- भाई, रामेश्वर ने अपना मकान नहर पार खेतो में बनाया हुआ है अब तुम ही बताओ कौन जायेगा इतनी दूर, थोडा सा जीमने के लिए मैं तो न जाऊ इतनी दूर .

मैं- बस इतनी सी बात मैं चला जाता हूँ उसमे क्या है

कट्टु और सरोज दोनों ने ही घुर कर मेरी तरफ देखा .

मैं- क्या -

सरोज- आजतक किसी के यहाँ तुम गए भी हो

मैं तो आज चला जाता हूँ उसमे क्या है . करतार मेरे नए कपडे निकाल ला. जरा.

नए कपडे पहन के मैं रामेश्वर की लड़की की शादी में जा पहुंचा, सर्दियों की रात में शादी होना भी बड़ा गजब होता है , मैंने सबसे पहले कन्यादान किया सरोज ने जो जेवर, साड़ी दी थी वो दी, खाना खाया इन सब में मुझे रात के तक़रीबन दस बज गए थे, किसी ने बताया की बारात दरवाजे पर आ पहुंची मैं देखने लगा. थोडा समय और गुजर गया . पर मुझे लौटना था तो मैं चल पड़ा बस नहर की पुलिया के पास पहुंचा तो मैंने देखा की ......................
 
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#21

मैंने दो शांत पीली आँखे देखि , पुलिया के बीचो बीच , बेशक अँधेरा घना था पर वो आँखे जुगनू सी चमक रही थी , मेरे पैर उसे देखते ही थम गए, और इस बार मुझे पक्का यकीन हो गया ये जो भी था इतना जरुर था की मेरा भ्रम नहीं था . पर एक चीज और थी जिस पर मेरा ध्यान अभी नहीं गया था और जब गया तो मैंने अपनी पेंट में गीलापन महसूस किया.

पुलिया के पास चार पांच कटी फटी लाशें पड़ी थी , ठीक उसी तरह से जैसे वो नीलगाय का हाल था इन लाशो का हाल था पर एक बात और थी वो सांप वैसा बिलकुल नहीं था जैसा मैंने उस दिन देखा था बेशक बड़ा इतना ही था पर ये पूरा सांप था , मतलब इसका मुह सांप जैसा था बेशक उसके और मेरे बीच थोड़ी दुरी थी पर इतना जरुर था की वो सांप शायद सो रहा था .



कायदा तो ये था की मुझे रास्ता बदल लेना चाहिए था , मेरा कुछ भी लेना देना नहीं था और पिछली मुलाकात भी कुछ ठीक नहीं थी , पर कहते है न की इन्सान में चुल होती है और यही चुल उस से खुराफात करवाती है . मेरा हाल भी ऐसा ही था , मैं दबे पाँव आगे बढ़ा उस सांप की तरफ, मेरे कुछ कदमो ने हमारे बीच की दुरी और घटा दी थी , और आगे बढ़ते हुए मैं इतना तो जान गया था की ये सांप सो ही रहा था , बस उसकी आँखे खुली थी .

पर वो कहते है न शिकारी अगर सोया भी हो तो घात में सोता है , मेरे पैरो की हलकी सी आवाज हुई और मैंने बस उस बड़े से फन को अपने तरफ आते देखा, वो फन बड़ी जोर से मेरे सीने से टकराया , जैसे किसी पहाड़ की चट्टान आ गिरी हो मुझ पर , चीखते हुए मैं जमीन पर गिर पड़ा.

मेरे कानो ने वो ही तेज चीख सुनी जो मैंने उस दिन सुनी थी , जमीं पर पड़े पड़े ही मैंने महसूस किया की सांप की पूँछ मुझे जकड रही है , मेरे शारीर पर उसका दबाव बढ़ रहा था , और फिर उसने मुझे ऊपर हवा में उठा लिया , मैं अब उन पीली आँखों के सामने था , वो आँखे बड़े गौर से घुर रही थी मुझे ,जकड़ के मारे हड्डिया कद्कड़ाने लगी थी ,



फन से एक लम्बी सी जीभ मेरी तरफ लपलापाई , मेरा चेहरा जैसे किसी गाढे लिजलिजे द्रव से नहा गया , बड़ी गन्दी बदबू थी वो , मेरा सर चकराने लगा. बेहोशी सी छाने लगी , आँखे बंद होने लगी, फिर जैसे सब शांत हो गया . जैसे कुछ हुआ ही न हो.

जब मुझे होश आया तो मैं खुद को संभाल नहीं पाया बहुत देर तक तो मुझे समझ ही नहीं आया की मैं हु कहाँ , बदन दर्द से तड़प रहा था होश फाख्ता थे, क्या समय था मालूम नहीं था भोर का पहला पहर था शायद , ठण्ड बहुत तेज थी ,

मैंने आस पास का जायजा लिया ,दिमाग पर जैसे बहुत बोझ था , मैं वही पुलिया पर पड़ा था उन लाशो के बीच , जैसे तैसे मैं अपने खेत पर पहुंचा और पानी उडेला खुद पर . दो बार मेरा सामना ऐसे जीव से हुआ था जो लोगो को मार रहा था , पर उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल किसी हथोड़े की तरह मेरे दिल पर चोट कर रहा था .

क्या उस सांप का मुझ से कोई रिश्ता था ? पर कैसे ? कम्बल ओढ़े अलाव को ताकते हुए मैं बस यही सोच रहा था , मैं देव चौधरी, जिसके पास न कोई अतीत था और न कोई भविष्य . न जाने क्यों मुझे डर लगने लगा था , ऐसा डर जो मेरी रीढ़ की हड्डी में बैठ रहा था . छोटी सी हलचल मुझे लगती थी की वो सांप मेरे आसपास है .



कुछ और न सूझा तो मैं मजार वाले बाबा के पास चल दिया. पर वहां जाकर मैंने कुछ और ही देखा. व्हील चेयर पर बैठी मोना मजार पर थी , अपनी आँखे मूंदे जैसे कोई दुआ मांग रही हो वो. और उसका वहां होना मुझे बड़ा अच्छा लगा. मैं बस उसे देखता रहा . कुछ देर बाद उसने आँखे खोली

“देव, तुम यहाँ ” पूछा उसने

मैं- आप भी यहाँ

मोना- इबादत का कहाँ कोई समय होता है

मैं- सो तो है ,

मोना- जूनागढ़ जा रही थी एक शादी के सिलसिले में तो सोचा इधर होती चलू , बड़े दिन बीते इधर से आना ही नहीं हुआ

मैं- अच्छा किया इसी बहाने अपनी मुलाकात हो गयी .

मोना- मुलाकाते तो होती ही रहनी है , और बताओ

मैं- आप बताओ तबियत कैसी है अब

मोना- देख ही रहे हो. अभी तो इस चेयर के सहारे हु, पर जल्दी ही प्लास्टर खुल जायेगा.

मैं- जल्दी से ठीक हो जाओ आप.

मोना- कोशिश तो है .

मोना कोई ३२-३३ साल की औरत थी , शादी नहीं की थी उसने, पर यौवन से भरपूर, एक दम गुलाबी रंगत लिए और इस ठण्ड में वो और गुलाब लग रही थी . जैसे मैं एक पल को उसके रूप में खो ही गया था .

“अब इतनी शिद्दत से मत देखो मुझे देव, ” उसने मुस्कुराते हुए कहा

मैं उसकी बात सुनकर झेंप सा गया . वो मुस्कुराई

मैं- घर चलते है , चाय पियेंगे

मोना- जरुर, पर आज नहीं फिर कभी अभी मुझे निकलना है जूनागढ़ के लिए ,वैसे तुम एक काम क्यों नहीं करते , आ जाओ उधर, मेरा घर है , छुट्टिया भी हैं मेरी, इसी बहाने तुम्हारा एक ट्रिप भी हो जायेगा और मैं भी थोडा टाइम अपने नए दोस्त के साथ बिता सकुंगी.

मैं- पर मैं कैसे ...........

मोना- कैसे, क्या, अब एक दोस्त क्या दुसरे दोस्त के घर नहीं आ सकता क्या

मैं- क्यों नहीं आ सकता .

मोना- तो फिर आ जाओ, मैं परसों गाडी भेज दूंगी तुम्हे लेने .

मैंने सर हिला दिया.

मोना ने मुझे अपने पास बुलाया. मैं उसके पास गया और घुटनों पर बैठ गया उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- दुनिया में सब कुछ मिल जाता है बस अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते है , दुनिया के लिए मैं अफसर हु पर तुम्हारे लिए बस मोना, तुम्हारी दोस्त मोना.

मैं- शुक्रिया .

मैंने खुद मोना की चेयर को गाडी तक छोड़ा .

मोना- परसों

मैं- पक्का.



बेशक ये कुछ मिनट की मुलाक़ात थी पर इसने दिमाग को हल्का कर दिया था , मेरी तक़दीर के मोहरे अपनी चाल चल रहे थे , मैं जूनागढ़ जाने वाला था , मैं कहा जनता था की नसीब का लेख मुझे वहां बुला रहा है , मैं तो ये सोच कर खुश था की रूपा भी होगी वहां .
 
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#22

“आज बड़ी सुबह सुबह आ गया मुसाफिरा,माथे पर कुछ परेशानी लिखी लगती है तेरे ” बाबा ने मेरी तरफ आते हुए कहा

“बाबा, ” मैंने कहा

बाबा- की होया यारा,

मैं- बाबा, मुझे वो सांप दुबारा दिखा ,

बाबा- मालूम हुआ मुझे, नहरी पुलिया पर कुछ बाराती की हत्या हुई

मैं- बाबा एक जानवर लोगो को मार रहा है और गाँव में कोई चर्चा नहीं , लोग कुछ करते क्यों नहीं .

“लोग क्या करेंगे , लोगो को कहाँ फुर्सत है कुछ करने की , तेरे ताऊ का लड़का सरपंच है तू जाके बता उसको ” बाबा ने कहा

मैं- मुझे क्या लेना देना उस से

बाबा- तो फिर लोगो का भी क्या लेना देना

बाबा की से मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ .

बाबा- सबका अपना नसीब है , सबकी डोर इसके हाथ में है ये जब खींचे तब खींचे तू इतना न सोच

बाबा ने मजार की तरफ इशारा करते हुए कहा .

मैं- बाबा मैं जूनागढ़ जाने का सोच रहा हु .

बाबा ने अपनी चिलम सुलगाई और कुछ कश लेने के बाद बोला- जहाँ तेरा नसीब ले जाये जा वहां जाकर मीरा की दूकान पर जाना , बर्फिया बड़ी बढ़िया बनाती है वो .

मैं- जी.

बाबा- और बता मुसाफिरा, क्या चल रहा है

मैं- बस बाबा, कभी कालेज तो कभी खेत पर

बाबा- तू जानता है मैं क्या पूछ रहा हु तुझसे

मैं- जब जानते हो तो पूछते क्यों हो .

बाबा- सवाल अच्छा है पूछते क्यों हो . सुहासिनी भी ऐसा ही कहती थी ,

मैं- आप मुझे बताते नहीं मेरे माँ- बाप के बारे में मैं जानना चाहता हूँ उनके बारे में

बाबा- मैं भी जानना चाहता हूँ मालूम होगा तो बताऊंगा मेरे बच्चे . अपने घर जा , तेरा इंतज़ार वहां खत्म होगा

मैं- घर तो रोज जाता हु मैं

बाबा- मैंने कहा तेरे घर , जहाँ तू रहता है वो तेरा घर नहीं है , वहां तो बस तुझे छोड़ दिया था , तलाश अपने घर को , अपनी सकशियत को. अपने आप को. तुझे मुसाफिर इसलिए ही कहता हु ताकि तू अपने आप को जान सके, अपने सफ़र को मंजिल की तरफ मोड़ सके.

“तुम्हारी ये बाते समझ नहीं आती मुझे बाबा. ” मैंने कहा

बाबा- अक्सर मुझे भी .

बाबा ने चिलम होंठो से लगाई और आँखे मूँद ली , ये उनका तरीका था मुझे बताने का की अब मैं चल दू वहां से . मेरे दिल में सवालो का दरिया था बस कोई पार करवाने वाला नहीं था , खैर मैं घर की तरफ चल पड़ा तो था पर अभी पहुँचने में जरा देर लगने वाली थी .

पीपल के पास मुझे शकुन्तला की गाडी दिखी तो मैं रुक गया . वो पीपल वाले चबूतरे निचे बैठी थी .

“रामराम सेठानी ” मैंने कहा

“छोटे चौधरी , क्या हाल चाल ” सेठानी ने जवाब दिया

मैं- बस बढ़िया तुम बताओ, लालाजी कैसे है अब

शकुन्तला- डॉक्टर कहते है ठीक है पर मुझे तो फर्क दीखता नहीं

मैं- मालूम हुआ किसने किया हमला

सेठानी- नहीं , कुछ नहीं आओ बैठो पास

मैं चबूतरे पर बैठ गया .

सेठानी- मैं मिलना चाहती थी तुम से और देखो इत्तेफाक से तुम ऐसे मौके पर मिले हो हम खुलकर बात कर सकते है .

मैं- जमीन के सौदे के आलावा तुम जो चाहे बात कर सकती हो

सेठानी ने अजीब नजरो से देखा मुझे, और बोली- लालाजी और मुझमे फर्क है , मैं बस एक बात पूछना चाहती हूँ .

मैं- बेशक

सेठानी- उस रात जब मुनीम मरा तो उसके सबसे पास तुम थे , मैं जानना चाहती हु किसने मारा था उसे

मै एक पल को हैरान रह गया सेठानी के सवाल से पर मैंने खुद को संभाला और बोला- वो तो हार्ट अटैक से मरा था न

सेठानी- छोटे चौधरी, ये बात तुम भी जानते हो मैं भी जानती हु की मुनीम की मौत कैसे हुई, किसने मारा बस मेरी दिलचस्पी इसमें है .

मैं- कातिल की तलाश है तो फिर मौत पर पर्दा क्यों डाला, पुलिस में रपट दर्ज क्यों नहीं करवाई, दरोगा अपने आप तलाश लेता कातिल को .

सेठानी- छोटी उम्र में बड़े खेल खेलने सीख गए हो , वैसे तुम्हे मालूम तो होगा न गाँव में एक सांप घूम रहा है जो लोगो को मार रहा है .

मैं- अब मैं कोई सपेरा तो हूँ नहीं , और सांप रखने का शौक नहीं मुझे

सेठानी- मेरा वो मतलब नहीं था , मैं बस कुछ अनुमान लगाने की कोशिश कर रही हूँ .

मैं- कैसा अनुमान

सेठानी- यही की मुनीम को भी उसी सांप ने मारा होगा.

मैं- हो सकता है , दरअसल उस रात धुंध बहुत गहरी थी ऊपर से अँधेरा बिजली गुल थी तो अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है . पर तुम्हारे अनुमान क्या है

सेठानी- लालाजी के काफिले पर भी एक सांप ने हमला किया था . और वो कोई मामूली सर्प नहीं था , करीब पंद्रह फूट से भी ज्यादा बड़ा था . हमारी तीन गाडियों का नाश कर दिया उसने, लालाजी की जान बड़ी मुश्किल से बची है हमले के बाद से एक शब्द नहीं बोला है उन्होंने बस शून्य में घूरते रहते है , मेरे लिए मेरा पति सब कुछ है .उसके लिए मैं कुछ भी कर जाउंगी

मैं- सो तो है , पर मुझसे क्या चाहिए इस मामले में .

सेठानी- बस इतना की मेरा परिवार सुरक्षित रहे, मेरे सुहाग पर कोई आंच न आये.

मैं- मैं कैसे तुम्हे ये आश्वाशन दे सकता हु ,

सेठानी- और कौन रोकेगा उसे, तुम्हारे सिवा आखिर वो तुम्हारा सर्प है ,

सेठानी ने जैसे मुझ पर बम सा फोड़ दिया था मेरा सांप

मैं- होश में तो हो न , भला कोई सर्प मेरा कैसे हो सकता है . कुछ नशा वगैरह किया है क्या तुमने

सेठानी- झूठ मत बोलो छोटे चौधरी, सारा गाँव जानता है की वो सर्प खुद तुम्हे तुम्हारे घर की दहलीज पर छोड़ कर गया था , और अब पुरे १८ साल बाद वो लौट आया है . तुम्हे याद नहीं बेशक, पर तुम घायल अवस्था में थे , तुम्हारे घरवाले तुम्हे तभी मार देना चाहते थे पर उसने रक्षा की थी तुम्हारी और तुम्हारे दादा , उनकी हत्या भी तो उसी ने की थी .

शकुन्तला ने एक के बाद एक धमाके कर दिए थे मेरे सामने, मेरे अस्तित्व के लिए एक ऐसा सवाल खड़ा कर दिया गया था की मैं कहू ही क्या .

मैं- चलो मान लिया, पर लालाजी ने भी कुछ तो ऐसा किया होगा जो सर्प ने उन पर हमला किया .

शकुन्तला- वो भला क्या करेंगे.

मैं- लालाजी की छवि के बारे में तो सबको मालूम ही है , और यदि उन्होंने कुछ भी ऐसा किया होगा या किया है जिस से मेरे जीवन पर जरा भी फर्क पड़ा होगा तो सेठानी मेरी कही बात याद रखना .....

सेठानी- देव, तुम मेरी बात समझ नहीं रहे हो . हम सबको फ़िक्र है तुम्हारी . हमें परवाह है तुम्हारी पर मेरे सिंदूर का भी तो सवाल है .मैं बस तुमसे ये गारंटी चाहती हूँ .

मैं-चलो मान लिया की मैं जैसे तैसे तुम्हे ये गारंटी दे भी दू तो बदले में मुझे क्या मिलेगा.

शकुन्तला के सीने को घूरते हुए मैंने कहा .
 
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#23

“तुम्हे क्या चाहिए ” शकुन्तला ने पूछा

मैं- क्या दे सकती हो तुम

शकुन्तला- जो तुम सोच रहे हो वो मुमकिन नहीं

मैं- पर मैंने तो कुछ सोचा ही नहीं

शकुन्तला- कच्ची गोटिया नहीं खेली मैंने छोटे चौधरी, जितनी तुम्हारी उम्र है उस से जायदा साल मुझे चुदते हुए हो गए,

मैं- तो एक बार और चुदने में क्या हर्ज है

शकुन्तला- मैंने कहा न ये मुमकिन नहीं .

अब मैं उसे ये नहीं बताना चाहता था की मैं उतावला हूँ उसे चोदने को और औरत के आगे जितना मर्जी खुशामद करो उतना ही उसके नखरे बढ़ते है , तो मैं बिना उसका जबाब सुने वहां से चल दिया. घर आकर मैंने कपडे बदलने चाहे तो देखा की जिस्म पर गहरे नीले घाव थे, बदन में कही भी कोई दर्द नहीं था पर पुरे सीने, पेट पैरो पर ये नीले निशान थे, ये एक और अजीब बात थी .

मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली, दिमाग में शकुन्तला की कही बाते घूम रही थी ,मेरा उस सर्प से क्या रिश्ता था , और सबसे बड़ी बात शकुन्तला समझ गयी थी की मैं उसकी चूत लेना चाहता था , मेरे परिवार के इतिहास में कुछ तो ऐसे राज़ दफन थे , जिन पर समय की धुल जम चुकी थी मुझे कुछ भी करके उस धुल को साफ़ करना था .



जो भी था या नहीं था , फिलहाल इतना जरुर था की मैंने एक सपना देखा था , उस सपने में एक खेत था सरसों का लहलहाता और आंचल लहराती रूपा , मैं खेत के डोले पर बैठे उसे देख रहा था , पीली सरसों में नीला सूट पहने रूपा बाहें फैलाये मुझे अपनी तरफ बुला रही थी , मैं बस रूपा के साथ जीना चाहता था . मेरे अकेलेपन को अगर कोई भर सकती थी वो थी रूपा.

और किस्मत देखो , मैं भी जूनागढ़ जा रहा था जहाँ वो भी गयी हुई थी . रूपा का ख्याल आते ही होंठो पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी जिसे बस आशिक लोग ही समझ सकते है . मैं उठा और खिड़की खोली, बिजली आ रही थी, डेक चलाया और गाने लगा दिए. दिल न जाने क्यों झूम रहा था .

शाम को मैं सरोज काकी के घर गया तो सबसे पहले वो चाय ले आई.

सरोज- पुरे दिन सेआये नहीं खाना भी नहीं खाया.

मैं- भूख -प्यास अब लगती नहीं मुझे

काकी- वो क्यों भला.

मैं- क्या मालूम

काकी- तो किस चीज की चाह है

मैं- मालूम नहीं , दिल ही जाने

काकी- अच्छा तो बात दिलो तक पहुँच गयी , मुझे बताओ कौन है वो , मैं करती हु तुम्हारे चाचा से बात , मैं भी थक जाती हु घर के कामो में कोई आएगी तो मेरा हाथ भी हल्का रहेगा.

मैं- बड़ी दूर तक पहुंच गयी काकी, ऐसा भी कुछ नहीं है वो तो मैं बस यु ही फिरकी ले रहा था .

काकी- मुझसे झूठ नहीं बोल पाओगे, ये जो चेहरे पर गुलाबी रंगत आई है समझती हु मैं .

मैंने चाय का कप निचे रखा और सरोज के पास जाकर बोला- इस रंगत का कारण तुम हो . जब से तुम्हे देखा है , तुम्हे पाया है एक नयी दुनिया देखि है,

मैंने सरोज की चूची पर हाथ रखा और उसे दबाने लगा.

सरोज- अभी नहीं , करतार बस दूकान तक गया है आता ही होगा. जल्दी ही करती हु तुम्हारे लिए कुछ .

मैं- ठीक है .

सरोज- क्या ख़ाक ठीक है , घर पर रहोगे जब कुछ होगा न, मै देना भी चाहू तो तुम रहते ही नहीं , पहले तो केवल रातो में गुम रहते थे अब दिन में भी गायब . क्या करू मैं तुम्हारा.

मैं- कभी कभी बस हो जाता है .

काकी- खैर, तुम कल दरजी के पास हो आओ, शादी के लिए नए कपडे सिलवा लो

मैं- मैं नहीं जा रहा शादी में

काकी- क्यों देव, ये अच्छा मौका है परिवार से जुड़ने का .

मैं- दरअसल मुझे कही और जाना है और समय पर लौट आया तो पक्का जाऊंगा.

काकी- कहाँ जाना है तुम्हे

मैं- बस यही शहर में

काकी- मुझे बताओ पूरी बात

मैं- कालेज में एक दोस्त बना है बस उसके साथ ही थोडा घुमने जा रहा हु मैं

काकी- जो करना है वो करना ही है तुम्हे , मेरी फ़िक्र क्या मायने रखती है तुम्हारे लिए ,

मैं- इसीलिए तो कह रहा हूँ बस दो चार रोज में आ जाऊंगा वापिस.

काकी- मैं जाने से नहीं रोक रही बस ये पूछ रही हूँ की जा कहाँ रहे हो .

मैं- बताया न दोस्त के साथ उसके गाँव वाले घर पर .

काकी- तुम लाख झूठ बोल लो पर जितना मैं तुम्हे जानती हूँ तुम्हारे हर झूठ को पकड़ ही लुंगी

मैं- सो तो है मेरी सरकार , पर मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ

काकी- बेशक

मैं- क्या कोई सांप मुझे यहाँ छोड़ कर गया था बचपन में

मेरी बात सुनकर सरोज के चेहरे के भाव बदल गए .

“किसने कहा तुमसे ऐसा ” सरोज काकी गुस्से से बोली

मैं- किसी ने नहीं बस मुझे मालूम हो गया .

“मैं जानती हूँ कौन लगा रही है ये आग, जरुर ये लाला की रांड ने तुम्हे कहा होगा. उसके सिवा कोई नहीं करेगा ऐसा, उस हरामजादी की चोटी उखाड़ दूंगी मैं तू देखना ” सरोज का पारा आसमान पर चढ़ गया था .

मैं- तो ये सच बात है .

काकी- देव मेरे बच्चे, तू समझने की कोशिश कर दुनिया वैसी नहीं है जैसी तुम समझते हो . , तू वादा कर उस रांड से दूर रहेगा, उसकी किसी भी बात पर विश्वास नहीं करेगा.

मैं- आप कहती हो तो नहीं करूँगा, पर शकुन्तला ने सच ही तो कहा .

काकी- कुछ नहीं पता उस चूतिया की बच्ची को . वो सांप बस इत्तेफाक से वहां पर था जब तुम्हारे दादा को तुम मिले थे .

मैं- और दादा को भी उसी ने मारा था .

काकी- हे भगबान क्या क्या सुन आये हो तुम

मैं- अभी तो तुमसे ही सुनना चाहता हूँ

काकी- तुम्हारे दादा को तुम कभी पसंद नहीं थे,वो तुम्हे तुम्हारे पिता का हत्यारा मानते थे .......

काकी के शब्दों ने बहुत गहरी चोट की थी मुझ पर

“मुझे, मुझे तो याद भी नहीं की मेरे माता-पिता कौन थे , कैसे दीखते थे फिर मैं कैसे ” मैंने कहा

काकी- मैं कहाँ ऐसा कह रही हूँ बस तुम्हारे दादा की सोच थी ये . क्योंकि तुम्हारे जन्म के कुछ महीनो बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी , और आज तक कातिल का कोई पता नहीं मिला.

“क्या मेरी माँ जूनागढ़ की थी ” मैंने पूछा ......
 
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#24

“अब कोई फर्क नहीं पड़ता है की सुहासिनी कहाँ की थी , अब वो नहीं है न ” सरोज काकी ने कहा

मैं- फर्क पड़ता है बहुत फर्क पड़ता है मैं अपनी माँ के बारे में जानना चाहता हूँ , कभी उसे देख तो नहीं पाया पर उसकी यादो को महूसस करना चाहता हु

“यादे तुम्हे कुछ नहीं देंगी सिवाय दर्द के , रुसवाई के सुहासिनी कभी नहीं चाहती की तुम्हे अतीत मालूम हो ” सरोज ने कहा

मैं- ऐसा क्या था अतीत में , जिसने मेरे आज को बदल दिया .

सरोज- मैं नहीं जानती , क्योंकि वो दोनों गाँव छोड़कर चले गए थे , फिर कभी नहीं लौटे, अगर कुछ लौटा तो वो तुम थे , उनकी एकमात्र निशानी , वो तुम थे जिसे अभिशप्त समझा जाता है , वो तुम थे जिसे सबने ठुकरा दिया .

सरोज की बातो ने मेरे दिल को और दुखा दिया पर वो भी वही सब बोल रही थी जो श्याद हुआ होगा.

“तो मैं जाऊ अपने दोस्त के साथ घुमने , दो चार रोज में लौट आऊंगा ” मैंने फिर से कहा

सरोज- ठीक है , पर ऐसा वैसा कुछ न करना जिससे तुम्हे परेशानी हो



मैंने हाँ में सर हिला दिया और वापिस आ गया . मैंने कुछ जोड़ी कपड़े बैग में रख लिए, रूपये रखे और किसी चीज की मुझे जरुरत नहीं थी . बस इंतज़ार था सुबह का जब मन जूनागढ़ जाने वाला था . पूरी रात मैं खूब सोया बाबा के पास भी नहीं गया , सुबह सुबह ही मैं वहां पहुँच गया जहाँ मोना गाड़ी भेजने वाली थी , ठण्ड की सुबह पूरी धुंध से भरी थी और तेज चलती हवा, मौसम श्याद आज फिर बिगड़ने वाला था .

वैसे तो जूनागढ़ की दुरी कोई पंद्रह-बीस कोस ही रही होगी पर फिर भी समय लग गया .



जब मैं वहां पहुंचा तो दिन का उजाला ठीक ठाक हो गया था , बड़ा ही सुन्दर गाँव था , सड़क के दोनों तरफ खेत, फिर कुछ इलाका जंगल जैसा और फिर गाँव, जो बड़े पहाड़ो से घिरा था , मैंने देखा गाँव में ज्यादातर मकान अभी भी पुराने ज़माने के थे , बेशक खेतो में किसी जमींदार ने नयी कोठिया बना ली थी पर फिर अंचल ग्रामीण ही था .

गाँव थोडा सा ही शुरू हुआ था की ड्राईवर ने गाड़ी कच्ची सडक पर ले ली .

मैं- गाँव तो उस तरफ रह गया .

ड्राईवर- साहब, इसी तरफ रहती है ,

कच्चे रस्ते पर दोनों तरफ बड़े पेड़ थे, छायादार इलाका था वो , करीब बीस मिनट बाद मैं एक किले जैसी ईमारत के सामने था , पहली नजर में ही मालूम होता था की किसी ज़माने में बड़ी भव्य रही होगी ये इमारत.

“स्वागत है तुम्हारा देव ” मोना ने मुझसे कहा

मैंने सर हिला कर उसका अभिवादन किया , मोना ने साडी पहनी हुई थी बड़ी दिलकश लग रही थी वो , उसकी तारीफ किये बिना रहा नहीं गया मुझसे

“हुजुर, एक तो ये मौसम बेईमान और एक आप , समझ नहीं आता दो दो बिजलिया कैसे कोई बर्दाश्त करे ” मैंने कहा

मोना- तुम भी न , आओ अन्दर चले.

मैंने नौकर से हटने को कहा और मोना की चेयर को धकाते हुए अन्दर आ गया .

“बड़ी अमीर हो तुम ” मैंने साज सज्जा देखते हुए कहा

मोना- अरे कुछ नहीं , बस पुरखो का मकान है

मैं मुस्कुरा दिया . जल्दी ही खाना आ गया .

“मैंने भी सुबह से कुछ नहीं खाया , तुम्हारा ही इंतज़ार था ” कहा उसने .

मैं- शुक्रिया

बेहद लजीज खाने के बाद मैं और मोना बाते करने लगे.

मोना- मुझे उम्मीद है तुम्हे अच्छा लगेगा यहाँ , तुम साथ हो तो मुझे भी अकेलापन नहीं लगेगा.

मैं- गाँव खूबसूरत है देखना चाहूँगा मैं

मोना- क्यों नहीं , शाम को चलते है , मेरा पैर ठीक होता तो और बेहतर होता.

मैं- कोई नहीं मैं हूँ न सँभालने के लिए .

मोना हंस पड़ी .

मैं- तो तुम बड़े घराने से ताल्लुक रखती हो

मोना-अब तुम्हे तो पता है ही .

मैं- बाकि परिवार कहाँ रहता है,

मोना- गाँव वाले नए घर में, एक घर शहर में भी है पर कही भी रहे मुझे क्या लेना देना , मैं तो अलग हु उनसे

मैं- समझता हु .

हम बाते कर ही रहे थे की नौकरानी मोना की दवाई और पैर में लगाने को कोई मलहम ले आई.

मैंने उस से वो सामान लिया और उसे जाने को कहा

मैंने मोना को दवाई दी . और मलहम हाथ में लिया .

मैं- मैं लगा देता हु

मोना- अरे नहीं तुम मेहमान हो हमारे

मैं- मैं सिर्फ दोस्त हूँ और अपने दोस्त के लिए इतना तो करने का हक़ है ही मुझे

मोना ने मुझे बिस्तर पर लेटाने को कहा .

मैं- पैर में तो ये प्लास्टर है मलहम किधर लगाना है फिर

मोना- बुद्धू ही हो तुम , कमर पर और पीठ पर

मैंने मोना को एडजस्ट किया और उसकी पीठ पर मलहम लगाने लगा. मोना ने अपना ब्लाउज खोल दिया मेरे सामने वो बस गुलाबी ब्रा में थी . पर मैंने ध्यान नहीं दिया. मैं बस उसकी पीठ पर मलहम लगाने लगा. मोना का मादक, मुलायम बदन मेरी कठोर उंगलियों की तान पर नाचने लगा.

“आराम मिल रहा है ” पूछा मैंने

मोना- बहुत बेहतर.

कुछ देर बाद मैं उसकी कमर को मसलने लगा. मोना औंधी सी हुई पड़ी थी तो मैंने उसके कुल्हो में होती थिरकन को साफ़ महसूस किया . दिन बड़ी जल्दी बीत गया शाम को हम दोनों गाँव की सैर के लिए निकल पड़े.

वो मुझे गाँव के बाजार ले गयी .

“बर्फिया बड़ी मशुर है यहाँ की ” मोना ने बताया मुझे तो बाबा की बात याद आई .

मैं- मीरा की दूकान पर ले चलो मुझे .

मोना ने हैरानी से देखा मुझे और बोली- मीरा ने बरसो से मिठाई नहीं बनाई है .

मैं- मैंने सुना की मीरा की बर्फिया बड़ी स्वाद है , मिठाई न सही मिल तो सकते है .

मोना- क्यों नहीं

जल्दी ही हम एक पुराणी की झोपडी के सामने थे , आँगन में एक बुढिया बैठी थी .

मोना- यही है मीरा

मैंने देखा मीरा को ७५-८० साल कु बुजुर्ग औरत थी , मैं उसके पास गया

“रामराम माई ”

मीरा ने मेरा अभिवादन स्वीकार किया

मैं- माई बर्फी चाहिए

मीरा- दूकान बंद किये जमाना हुआ बेटा बाजार जा यहाँ कुछ नहीं

मैं- बड़ी तारीफ सुनी है आपकी बनाई बर्फी की

मीरा- मैंने कहा न बाजार जा

मैं- सुहासिनी को तो कभी बाजार नहीं भेजा , उसके लिए तो बहुत चाव से बर्फिया बनाती थी माई तुम

मेरी बात सुनकर मीरा चौंक गयी . और मोना भी

मीरा- तू कैसे जाने है उसे .

मैं- ........................
 

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