Incest घर-पड़ोस की चूत और गांड़, घर के घोड़े देंगे फाड़

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अपडेट-9...…
जमुना प्रसाद........
अपने बड़े भाई से सीखकर जमुना प्रसाद ने भी पशुपालन अपना लिया। जमुना प्रसाद खेती के काम तो संभाल देता था लेकिन पशुपालन के काम में हाथ नही बटा पाता था क्योंकि वह बैल खरीदने बेचने का भी काम करता था । प्रत्येक बुधवार को जब गांव से सात किलोमीटर दूर एक गांव में बाजार लगती तो वह पैदल ही बैलों को ले जाता था। कई बैलों को अपने खेत में चलाकर सुधारता था फिर उनके अच्छे दाम लगते थे। गांवों में एक कहावत मशहूर है भैंस के साथ भैंसा बनना पड़ता है मतलब भैंस पालना बहुत ही मेहनती काम है। यही हाल जमुना का था बैलों को ले जाना अनजान बैलों को ले आना नियंत्रित करना । इन्ही सब कारणों से उसकी शरीर भी बैल जैसी हो गई थी। दूध दही, घी का सेवन खूब करता था तभी तो बैल लेकर सात किलोमीटर पैदल चला जाता था और वापस आ जाता था। और अपने बच्चों को भी घी के सेवन की सलाह कतिपय दे ही देता था। पशुओं का काम सविता ही संभालती थी ज्यादातर। बाद में सविता ने किरन को भी इस काम में लगाना शुरू कर दिया। बांधने चराने का काम तो अंबर कर ही देता था। जमुना सविता को कुछ दिनों के अंतराल पर चोदता था शायद इसलिए कि इससे वीर्य अधिक इकट्ठा हो जाता था और सविता की चूत भी तंग हो जाती थी यही कारण था कि सविता कभी कभार गरमी में रहती थी इस वजह से ही उसके संवाद में गालियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ था वरना प्रेमा तो इससे अधिक उम्र की थी फिर भी सविता ने ही प्रेमा को गालियों के मिश्रण से संवाद को निखारना सिखाया था। सविता तो गोबर कांछते समय, चारा डालते समय बछियों को भी गाली दे दिया करती थी। उसे पशुओं से संबंधित अनुभव भी खूब था, किसी भी गाय या बछिया को देख कर बता देती थी कि गाभिन है या नहीं वह भी सांड या कृत्रिम गर्भाधान के केवल एक महीने बाद। एक बार जमुना एक बछड़ा लेकर आया था जो खेत में बिल्कुल भी चलना नही जानता था और अभी तक उसका बधियाकरण (नपुंसक बनाने की विधि) भी नहीं किया गया था। जमुना सोचने लगा मिला तो कम दाम ने है लेकिन इसकी जोड़ी किससे लगाऊं।
सविता: क्या सोच रहे हो।
जमुना: यही की इस बछड़े का क्या करूं?
सविता: इसे तो राजू के बछड़े के साथ नाध दो।
जमुना: ठीक है तुम बात कर लेना । मै एक बार खेत की ओर जा रहा हूं।
सविता: ठीक है।
सविता: राजू के माई का कर रही हो।
प्रेमा: कुछ नही अपनी सुनाओ क्या खबर लेकर आई हो।
सविता: किरन के पापा एक बछड़ा लेकर आए हैं, मै सोच रही थी तुम्हारे बछड़े के साथ जोड़ लग जाए ।........... या फिर सांड बनाओगी उसे।
प्रेमा: काहे का सांड बनाऊंगी। तू सही कह रही है वैसे भी दिन भर खों खोँ करता रहता है।
सविता: हां कद काठी में ज्यादा नहीं है लेकिन कई साल का हो गया है।
सविता: ठीक है फिर किरन के पापा से बोल दूंगी वह मेरी पशुशाला में बांध देंगे।
प्रेमा (मन में): हामी तो भर ली लेकिन मेरी योजना अधूरी रह जाएगी।
प्रेमा: तू क्यों परेशान होगी चारा मै ही डाल दूंगी अपने बछड़े को जब खेत में ले जाना हो ले जाएंगे किरन के पापा........सब एक ही तो है....चाहे यहां बंधा रहे चाहे तुम्हारे यहां। और एक साथ बांधने पर हो सकता है दोनो लड़ने लग जाएं दोनो में से एक भी बधिया नही किया गया है।
सविता: ठीक जैसी मर्जी तुम्हारी।
जमुना दूसरे दिन ही इन बैलों को सुधारने के लिए ले जाने की तैयारी करने लगा।
जमुना: सविता ! जा राजू का बछड़ा लेते आ।
सविता गई बछड़ा खोलने पहले तो वह भड़क गया लेकिन थोड़ी देर गला सहलाने के बाद सविता उसे खोलने के लिए जैसे ही झुकी उसने आगे दोनो पैर उठाए और चढ़ गया डेढ़ फुट का नुकीला लंड लहराते हुए हालांकि इतने में सविता खड़ी हो गई जिससे बछड़े का लौड़ा गांड़ के उपरी छोर से लेकर पीठ तक रगड़ खा गया। सविता की साड़ी भीगे भीगी महसूस हुई।
सविता ने एक डंडा लिया फिर रस्सी खोली और बाहर ले जाने लगी। आधे रास्ते में ही बछड़ा सविता से छुड़ा कर भाग निकला । फिर जमुना ने उसे कंट्रोल किया।
शुरू में दोनो बछड़े एक दूसरे को देख कर घूरते रहे उसके बाद दोनो ने पेशाब किया । धीरे धीरे जमुना ने नियंत्रित करके उन्हें खेत जोत दिया, प्रारंभ में उन्होंने काफी नाटक किया लेकिन कुछ देर बाद धीमे धीमे चलना शुरू किया।
गांव में एक मात्र मुस्लिम परिवार था। सदस्य अनवर उसकी पत्नी सजिया बेटा हैदर बेटी फिजा। अनवर को जब गांव में आय का स्रोत नही नजर आया तो वह बॉम्बे चला गया एक साल बाद उसने अपने बेटे को भी वहीं बुला लिया बेटी फिजा यहीं साजिया के साथ रह गई।जब अनवर परदेस गया तब उसकी उम्र यही कोई 33-34 वर्ष रही होगी । सजिया की जिंदगी में अकेलेपन का अंधकार छा गया समय बिताना मुश्किल हो गया और तो और उसका वजन भी बढ़ गया।
29 की उमर में उसकी जवानी सुलगने लगी और आग लगाने का काम किया उसके खान पान ने (मांसाहार ने) ।
सविता : सजिया!
सजिया को लगा तो किसी ने बुलाया लेकिन वह आवाज का पीछा विपरीत दिशा की ओर करते हुए आगे बढ़ने लगी।
प्रेमा और सविता एक स्वर में: ओ सजिया!
सजिया का जैसे ही ध्यान गया वह घूम गई। आई बहन।
सविता: तू तो सुनती भी नही ।
सजिया: न बहन ऐसी बात न है। मुझे लगा कोई किसी और को बुला रहा है।
प्रेमा: बैठ! वैसे कहां जा रही थी।
सजिया: मै तो खेत की ओर टहलने जा रही थी सोचा थोड़ा वजन कम कर लूं।
सविता: ऐसे टहलने से क्या होगा। मरद बाहर रहता है, तो समय बिताने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा एक दो बकरी रख ले....तालाब की चराने निकल जाया कर....तेरी गांड़ की भी चर्बी न निकल गई तो बताना।
सजिया: क्या बोल रही हो बहन।
सजिया को सुझाव अच्छा लगा और उसने एक बकरी का प्रबंध कर लिया। हालांकि बकरी को तालाब किनारे ले जाने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन 29 बरस की उमर में भी सजिया शरीर को ढीला नही पड़ने देना चाहती थी।
इधर किरन, अंजली और कंचन को तो जानवर चराने से छुट्टी दे ही दे गई थी।
बाबाजी को अब कभी कभार भी गांड़ का दर्शन नही होता था।
समय बदला और सजिया उसी रस्ते से रोजाना गुजरती थी।
एक दिन बाबाजी विश्राम कर रहे थे तभी सजिया आई और नल चलाकर पानी पीने लगी । जब तक नल के मुहाने पर हाथ लगाती तब तक पानी आना बंद हो जाता ।
बाबाजी ने सिर्फ लंगोट पहन रखा था उठे और एक लाल गमछा बदन डाल लिया ।
सजिया देखते ही डर गई और मुंह पर दुपट्टा डाल लिया।
बाबाजी: डरो मत, पानी पिलाना तो पुण्य का कार्य है बेटी। और नल चलाने लगे .....
सजिया बैठकर पानी पीने लगी और बाबाजी सजिया के कामुक गदराए बदन का मूल्यांकन करने लगे।
उसके बाद झट से कुटिया में जाकर छेद पर आंख गड़ा ली सजिया मूतेगी।
अंजली, किरन और कंचन तो तीन जनी थी किसी न किसी के पेशाब लग ही जाती थी।
लेकिन सजिया को पेशाब नही लगी थी इससे बाबजी निराश हो गए।
एक अन्य दिन
बाबाजी: बिटिया कहां से आती हो किसके घर से आती हो? गांव में अभी तक तो किसी ने बकरी नही रखी थी।
सजिया: मै हैदर की अम्मी। उसके पापा परदेस रहने लगे तो समय बिताने के लिए रख लिया ।
हैदर कौन है? उसके पिता का नाम बताओ तब तो मालूम भी पड़े।
सजिया (धीमी आवाज में): अनवर।
बाबाजी: अच्छा अच्छा अनवर । सही है बेटी तुम्हारा पति कमाने गया है वरना यहां तो कोई रोजगार है नही खेती और पशु पालने के अलावा।
सजिया इन सब चीजों से अनजान थी बाब सन्यास तपस्या आदि इसलिए जिज्ञासा वश पूछ बैठी।
सजिया: आप यहां अकेले में क्या करत हैं। शुरुआत में तो मुझे लगा यहां कोई नहीं रहता।
बाबाजी: मै यहां प्राचीन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता हूं, मैंने गृह का त्याग कर दिया है वानप्रस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूं।
सजिया: भोजन कौन पकाता है बाबाजी।
बाबा: मै स्वयं ही पकाता हूं।
सजिया: क्यों आपकी पत्नी नहीं रहती साथ।
बाबा (हंसते हुए): अरे बेटी! वानप्रस्थ जीवन में पत्नी का सवाल ही पैदा नहीं होता। मैने शादी ही नही की है।
सजिया की नजर बाबा के लंगोट पर गई उसने देखा नीचे सामान्य से तीन चार गुना उभार था गोल गोल ....तनाव भी था।
सजिया (पाने गटकते हुए): फिर भी आप कपड़े पहन लिया करो बाबा मुझे असहज लगता है।
बाबा: बेटी मेरा यही वस्त्र है। मुझसे तो परदा भी करना व्यर्थ है।
सजिया ने जैसे ही बाबा के उभार की कल्पना बड़े लिंग से की उसके शरीर में झुरझुरी छूट गई। आज उसे पेशाब लग गई।
बाबाजी को आज सजिया के गांड़ का दर्शन करने का मौका मिल ही गया। बाबाजी इतनी सुंदर, मांसल गांड़ देखकर पागल हो गए। बाबाजी का लौड़ा फनफनाने लगा। उछलकर बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया।
वैसे तो सजिया दीवार की ओट में मूत रही थी लेकिन मूतते हुए उसे लगा कहीं कोई देख न रहा हो कहीं बाबाजी ने देख लिया तो। इसी ख्याल से उसकी पेशाब रूक गई उसकी शरीर में गर्मी बढ़ गई। मूतने में दोगुना टाइम लगा।
बाबाजी की समस्या ये थी शुरुआत कैसे की जाए। शादीशुदा औरत से कुछ कह दिया और गांव वालों को पता चल गया तो गांव वाले अस्मिता का सवाल बनाकर जान से मार डालेंगे। अब गेंद सजिया के पाले में थी।
लेकिन सजिया तो जवानी की आग में जल ही रही थी लंबे समय में बाबाजी से उसका लगाव बढ़ गया और उसे लगने लगा कि अगर बाबाजी का लंड मिल जाए तो यह तो वानप्रस्थ जीवन बिता रहे हैं इनपर कोई शक भी नहीं करेगा और मेरी चूत की खुजली भी मिट जाएगी।
 
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अपडेट-10
बाबाजी ने सजिया की आशा में एक गद्देदार नरम बिस्तर तैयार कर लिया था और निश्चय किया था कि इस बार मौका मिला तो प्रेमा की तरह जल्दबाजी की बजाय आराम से धीरे धीरे चुसूंगा, चाटूंगा चोदूंगा। किंतु लंबा समय बीत जाने के बाद बाबाजी निराश हो गए थे।
बाबाजी सजिया को इतने दिनों से पानी पिलाते थे और सजिया ने बाबाजी जी के साथ सहवास का भी सपना संजो लिया था .......हालांकि यह लगाव केवल कामुक ही नही था बल्कि इसमें जिज्ञासा कौतूहल आदि भी था......सजिया मुस्लिम थी और दुर्लभ ही है कि किसी महिला को एक वानप्रस्थ बाबा को इतने निकट से जानने समझने का मौका मिले। सजिया तमाम प्रकार के प्रश्न बाबाजी से पूछा करती थी.....जैसे आपने किस आयु में गृह त्याग किया?....क्या आप पुनः गृहस्थ नहीं बन सकते?....आप जैसे सभी हो जाएं तो मानव सभ्यता का क्या होगा?......क्या आपने गृहस्थ जीवन का त्याग करके अपने मां बाप के साथ सही किया?....क्या आपने अन्य धर्मों की भी धार्मिक पुस्तकें पढ़ीं हैं ?......इसी तरह भांति भांति की जिज्ञासाएं बाबाजी से प्रश्न पूछकर सजिया शांत करती थी।.... और बाबाजी भी बिलकुल शांत चित्त से उत्तर दिया करते थे.....एक प्रकार से सजिया को बाबाजी से लगाव हो गया था।
एक दिन भोर में ही बाबा बबूल की दातून लाने गए थे दातून तोड़ी कांटे भरी डाली फेंकी और दातून करते हुए ही वापस कुटिया की ओर आने लगे रास्ते में कांटे से बचने के चक्कर में बाबाजी ने पैर उठाया और दूसरी ओर रखने वाले थे कि शरीर का संतुलन बिगड़ गया क्योंकि दूसरी ओर भी कुछ कांटे बिखरे हुए थे। इतना बाबाजी के लिए क्या था खेलते हुए बच्चे के गिरने जैसा बाबाजी तुरंत उठ खड़े हुए। ....उठते ही बाबाजी को एहसास हुआ एक कांटा पैर बचाने के चक्कर में हाथ में चुभ गया और एक लिंग में हाथ का कांटा बाद में बाबाजी ने संभल कर निकाल लिया। लेकिन फुर्ती से उठने के कारण लिंग वाला कांटा टूट गया हालांकि लिंग में कांटे की बहुत ही मामूली लंबाई शेष रह गई थी क्योंकि ऊपर लंगोट था। किंतु बबूल के कांटे से खून शायद ही कभी निकल लेकिन दर्द तेज होता है । बाबा कुछ देर के लिए फिर से बैठ गए लंगोट खोली कांटे को निकालने का प्रयास किया लेकिन व्यर्थ रहा ।
संयोग से सजिया उसी दिन बकरियों को घर की ओर हांकते हुए आ पहुंची। नल चलाया आवाज हुई लेकिन आज बाबाजी बाहर नहीं निकले।
सजिया बाबाजी के न आने का कारण जानने के लिए कुटिया के चौखट से ही झांकने लगी। उसे डर था कहीं गैर हिन्दू को बाबाजी टोक न दें । आहट मात्र से बाबाजी की स्वान निद्रा टूटी।
बाबा धीमी आवाज में : सजिया बिटिया अंदर आ जाओ बाहर से क्यों झांक रही हो। ......धीमे आवाज का कारण था से कर उठने के बाद कांटे का तीव्र दर्द.......सजिया बाबाजी का पास जाकर हाल जानना तो चाहती थी। किंतु
सजिया: नही बाबा मै बाहर ही ठीक हूं।
जिस तरह सजिया हमेशा ही बाबाजी को उत्साह में देखती थी आज वैसी स्थिति नही थी। इसलिए सजिया को लगा बाबा किसी गंभीर कष्ट में हैं।
बाबा: सजिया बेटी अगर मेरी चौखट पर कोई आकर बिना कुटिया में तनिक भी विश्राम किए वापस लौट जाए तो मेरा जीवन व्यर्थ है । तुम्हे अंदर आना होगा।
सजिया अंदर गई बाबाजी का हाल जाना तो पता चला कुछ नही हुआ हाथ में एक कांटा चुभ गया था। (बाबाजी ने असली बात छिपा ली हाथ का कांटा तो वो निकाल चुके थे)। थोड़ी देर के बाद सजिया अपने घर चली की ओर चल दी।
तीन दिन बाद फिर से सजिया का आगमन हुआ ।.......बाबाजी आज नल के पास पहुंचे तो लेकिन मंद गति से।
सजिया: अब क्या हुआ बाबा? हाथ तो ठीक हो गया आपका? ये इतना धीरे और छोटे कदम क्यों रख रहे हो आप?
बाबा: हां बेटी हाथ तो ठीक हो गया। कुछ नही बेटी बस कमर में दर्द है।
अब सजिया अकारण भी बाबाजी का हाल जानने पानी के बहाने आ जाया करती थी।
लेकिन बाबाजी जितना सोच रहे थे कांटा उतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहा था। लिंग का मध्य भाग टपटपाने (जैसे कोई फुंसी शुरुआत में पकती है) लगा तरीका भी केवल यही था कांटा पक कर ही निकल सकता था। एड़ियों की तरह दूसरे कांटे से खोदकर तो नही निकाला जा सकता था।
बाबाजी कई दिन छिपाते रहे। लेकिन जब सजिया एक दिन पीछे ही पड़ गई तो उन्हें सच्चाई बतानी पड़ी। सजियाने भी तीन चार दिन इंतजार किया लेकिन कांटा बहुत ही धीरे धीरे पक रहा था। सजिया को लगा बाबाजी जब मुझसे इतने दिन छिपाते रहे और इसी तरह करते रहे तो यह इनके पूरे लिंग को चपेट में ले सकता है।
सजिया ने सोचा कांटा तो अपनी रफ्तार से पकेगा लेकिन अगर यह पहले ही फूट जाए तो बह कर हफ्ते भर में ठीक हो जाएगा। उसने दिल कठोर किया और एक दिन बाबाजी की कुटिया में सीधे घुस गई।
सजिया: बाबाजी मै आज एक नुस्खा लाई हूं। काम हो गया तो अच्छी बात है न हुआ तो भी आपको कोई हानि नहीं होगी।
बाबाजी: लाओ बेटी नुस्खा कहां है?
सजिया: पहले आंख बंद करो बाबा?
बाबा ने आंख बंद की ........ सजिया ने अपनी कमीज उतार दी और वक्षस्थल को दुपट्टे से ढक दिया।
तेज धड़कन के साथ सजिया: आंख खोलो बाबाजी।
बाबाजी ने आंख खोली.......उन्हे सर्वप्रथम सजिया के गोरे पेट और नाभि का दर्शन हुआ ......कई दिनों से से रहे लंड ने सजिया का सलवार और नाड़ा देखकर उसे खोलने की चेष्टा करने लगा......लेकिन बाबाजी कराहने लगे.....किंतु सजिया के मांसल और दुग्ध से भरपूर चूंचियों को देखने की चेष्टा कम न कर सके. सजिया ने बाएं वक्षस्थल से दुपट्टा हटा दिया......अब बाबाजी को लंगोट खोलना पड़ गया लेकिन उन्होंने लिंग को लंगोट से ढके रखा। सजिया ने अंतिम दांव चला और पूरा दुपट्टा हटा दिया । बाबाजी ने गोल बड़ी दूध से भरी चूंचियां जिनमे तनिक भी ढीलापन न था देखी होश खो बैठे, कराहते भी रहे, लंगोट से कपड़ा हटा और उनका लंड फूलते इस स्तर पर पहुंच गया कि बाबाजी जोर से चिल्लाए उनका कांटे वाला भाग फूट गया और थोड़ी मवाद के साथ बह गया।
सजिया का नुस्खा काम कर गया इसलिए खुश तो हुई लेकिन बाबाजी का 12 फूट लंबा और चार इंच मोटा का लंड देखकर डर गई । बाबाजी को जब आराम मिला तो उन्होंने दूध पीने की इच्छा प्रकट की।
सजिया के तंग हो चूके चूचकों में से दूध बाहर आने को ही था इसलिए सजिया भी तैयार हो गई।
बाबाजी ने पहले सजिया के चूचकों की टोह ली फिर करीब दस मिनट तक दोनो चूंचियों को मींजते (मसलते) रहे। .....बाबाजी को सजिया की देंह से निकल रही गरमी महसूस हो रही थी सचमुच बेहद गरम बदन था शायद लंबे समय तक संभोग न करने और मांसाहार का सेवन की वजह से (हालांकि बाद में वह केवल अंडे का सेवन करती थी)।
सजिया खुद को बहुत संभालती रही कि कामुक आवाजें न निकलें लेकिन उससे रहा नही गया और मसलते समय आह आह करने के बाद पीते समय बाबाजी जी की पीठ सहलाती रही ।
बाबाजी (चूसते हुए): आ उम बहुत मीठे हैं तुम्हारे दूध सजिया पहले क्यों नही चखाया तुमने।उसके बाद बाबाजी ने दोनों चूचकों से करीब चार- चार सौ मिलीलीटर दूध खींचा । सजिया की चूत भी रिसने लगी थी लेकिन बाबाजी के लंड से डरी सजिया: आह आह आह बाबाजी अब चलती हूं सांझ हो गई है। कपड़े पहने और घर लौट आई। सजिया घर आई लेकिन उसे आज रात करीब डेढ़ बजे तक नींद नही आई उसके मन में कुलबुलाहट थी कि मैंने आज अपने पति से धोखा कर दिया....किंतु मैंने तो सिर्फ बाबाजी का इलाज किया था....भांति भांति के विचार.....लेकिन जब बाबाजी के लंड की छवि उसके मन में उभरती उसकी चूत चोक लेने लगती गांड़ के छिद्र सिकुड़ने लगते पुनः दोगुनी उत्तेजना से ढीले होते ...इस तरह आखिरकार सजिया सो ही गई।
सजिया के सामने दुविधा थी एक ओर उसकी चूत बाबाजी के साथ संभोग करके पति की कमी पूरा कर लेना चाहती थी वहीं मन उसका इतने बड़े लंड के साथ संभोग की गवाही नहीं दे रहा था।
अब सजिया बाबाजी से करीबी को दूरी में बदलना चाह रही थी क्योंकि वह बाबाजी के लंड से सचमुच डर गई थी अब बातें भी गांव, गोरू और अध्यात्म की अधिक करने लगी। लेकिन बाबाजी ने जो दूध पिया था वह दो दिन में फिर बन गया जबकि सजिया न तो किसी बच्चे को दूध पिलाती थी न ही गर्भवती थी।
करीब पंद्रह दिन इस घटना को गुजर गए बाबाजी का लंड ठीक हो गया।
बाबाजी: सजिया उस दिन तुम्हारा नुस्खा काम कर गया मै तो फिर से चंगा हो गया। लगता है तुम्हारा दूध काम कर गया।
सजिया: नही बाबाजी वह तो मुझसे भूल हो गई थी।
बाबाजी: भूल किस बात की तुमने तो मुझ पर एहसान किया है सजिया। मै भी तुम्हारे लिए कुछ करना चाहिए।
आओ चलो बैठो थोड़ी देर कुटिया में। सजिया ने पहले मना किया लेकिन बाबाजी के हठ करने पर चली गई बाबाजी जी ने गुड़ और चबैना (देसी चावल की लाई) दिया सजिया ने खाया और बाबाजी का दिया हुआ पानी पिया । बाबाजी अर्धनग्न रहते थे इसलिए करीब बैठी महिला का उत्तेजित होना लाजमी तो था ही बाबाजी जो पहले से ही संभोग का विचार बनाए हुए थे का भी लंड लंगोट के भीतर गुलाटी मारने लगा।
बाबाजी ने डरी हुई धीमी आवाज में कहा: सजिया आज फिर दूध पिला दो। और सिर नीचे झुका लिया। सजिया बाबाजी के लंड से डरी हुई थी लेकिन उसे बाबाजी पर तरस आ गया और उसने सोचा उस दिन की तरह ही दूध पिला कर चली जाऊंगी। यह सोचते ही उसके चूचक कड़े हो गए चूंचियां तन गईं शरीर से धाह निकलने लगी उसके कमीज उठाते ही बाबाजी टूट पड़े दोनो चुचियों को मसल डाला । लंड लंगोट में नहीं समा रहा था।इसलिए अलथी पालथी मार कर बैठ गए और उसे भी सामने पहले तो आलथी पालथी बैठाया लेकिन दूध चूसने में हो रही दिक्कत के कारण उसके दोनो पैर अपने पैरों के उस पार रख कर सजिया के साथ आमने सामने सट कर बैठ गए। बाबाजी ने दोनो चूचकों में से दूध पिया मसल तो पहले ही दिया था। सजिया होश खो बैठी थी । बाबाजी ने दूध चूसने के बाद उसका पेट चाटना शुरू कर दिया जिससे वह अपना भार पीछे की ओर रखकर लेट गई। बाबाजी ने नाभि से होते हुए अपने हाथ को सलवार के नाड़े के पास रखा । बाबाजी के हाथ को अत्यधिक तेज जलन महसूस हुई। बाबाजी ने अचानक सलवार के अंदर हाथ डाल दिया बाबाजी का हाथ भीग गया । सजिया ने बाबाजी का हाथ पकड़ कर निकाल दिया और उठना चाही लेकिन उसकी चूत ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया और लेटी रही। बाबाजी का लंड जो अभी तक लंगोट के अंदर गुलाटी मार रहा था लंगोट के ढीला होने के कारण बाहर आ गया । बाबाजी ने आव देखा न ताव सजिया का नाड़ा खींच लिया सजिया ने अपनी चूत पर हाथ रख कर उसे छिपा लिया लेकिन उसकी उठने की हिम्मत न हुई।बाबाजी ने नाभि के निचले हिस्से को सहलाते हुए उसके हाथ को हटा दिया सजिया की आंखे बंद हो गईं। सजिया की छोटी छोटी झांटों के बीच बने छिद्र से पानी रिस रहा था जो उसके नीचे बने एक और सांवले छिद्र तक जाता था उसके बाद सलवार से लग कर उसे गीला कर रहा था। बाबाजी ने सोचा इसकी सलवार गीली हो गई तो घर कैसे जायेगी यह द्रव्य तो बहुत ही चिपचिपा है पता नहीं सूखेगा भी या नहीं कहीं दाग न पड़ जाए। और उन्होंने सजिया की चूत की भगशिश्निका को रगड़ते हुए धीरे धीरे सलवार को उतार कर दें दिया अभी तक कुटिया का दरवाजा बिल्कुल खुला हुआ था । बाबाजी दरवाजे पर बांस से बने दरवाजे को रखने के लिए उठे वापस बैठते समय सजिया ने आंख खोल ली थी । बाबाजी का बड़ा काला नाग जैसा झूलता लंड सजिया ने देख लिया।
सजिया डरते हुए: मै इसे नही ले पाऊंगी....मुझ पर रहम कर दो जाने दो।
बाबाजी: सजिया तुम तो ख्वामखाह ही डर रही हो। मुझे दूध पीना था मैने पी लिया अब तुम जा सकती हो मै कोई जोर जबरदस्ती थोड़ी करूंगा।
बाबाजी सजिया के बगल आ कर लेट गए। अंदर से बहुत कष्ट था लेकिन उसे सलवार वापस पहनाने लगे। जैसे ही बाबाजी का हाथ सजिया की चूत के पास पहुंचा इतनी देर से उत्तेजना को दबाए बैठी सजिया चूत जोर जोर से खुजलाने लगी और उसने बाबाजी का हाथ वही दबा दिया और कस कस के रगड़ने लगी और बाबाजी के होंठ पीने लगी । बाबा जी की दो उंगलियां सजिया की चूत में घुस गईं कुछ देर में सजिया झड़ गई .....बहुत ही अधिक योनिरस निकला था बाबाजी का हाथ भीग गय बाबाजी की लिंग अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। सजिया तो पड़ गई थी उसे आज कही महीनों बाद पुरुष के स्पर्श से झड़ने का मौका मिला था। बाबाजी ने सजिया को फिर से उत्तेजित करने के लिए इस बार गांड़ का सहारा लिया बाबा ने सजिया की गांड़ सहलानी शुरू की तो सजिया ने दोनो पैर फैलाने शुरू किए बाबाजी ने गांड़ में दो उंगलियां डाल दीं उसके बाद एक ही हाथ का अंगूठा चूत में और दो उंगलियां गांड़ में चलाने लगे । चूत और गांड़ एक साथ चोक लेने लगी सजिया के दोनो पैर खुल गए। सजिया फिर से डी उत्तेजित हो गई आप लोगों को पता होगा कोई एक बार झड़ कर फिर से उत्तेजित हो जाए तो दोबारा झड़ने में बहुत समय लगता है।
सजिया: आह आह आ आ आह आज क्या होगा बाबाजी
बाबाजी: जो तुम्हारी इजाजत होगी।
सजिया: डाल दो बाबाजी अब और बर्दास नहीं होता।
बाबाजी ने अपना लंड पकड़ा जो कि अभी तक रिस रिस के भीग गया था और सजिया की चूत पर पटकने लगे सजिया सिसकारियां लेने लगी।बाबाजी ने लिंग को चूत में प्रवेश करने जा प्रयास किया लेकिन चूत और लिंग दोनो के भीगे होने के कारण लिंग फिसल गया। लिंग अपने पूरे आकार में था बाबाजी ने हाथ से पकड़ के लंड को चूत पर लगाया और आधा इंच अंदर कर दिया। सजिया छटपटाने लगी पलट कर खुद को बाबाजी से अलग कर लिया। बाबाजी को लंड चूत के मुंहाने तक पहुंचने के बाद हटाना पड़ा था बाबाजी को कुछ नही सूझा और उन्होंने सजिया से कहा अगर यह तुम्हारी चूत में नही जा सकता तो इसे मुंह से ही शांत कर दो और सजिया के कुछ न बोलने पर उसके मुंह में डाल दिया। सजिया का मुंह भर गया लेकिन बाबाजी जोश में थे उन्होंने गचा गच मुंह में चोदने लगे जब सजिया की सांस फूलने लगी तो बाहर निकालकर उसके चेहरे पर पट पट मारने लगे फिर से अंदर किया ढाई मिनट तक अनियंत्रित गति से चोदने के बाद जब बाबाजी के लंड ने वीर्य उगला लंड थोड़ा पीछे आया तो सजिया की अटकी सांस के साथ पूरा वीर्य अंदर चला गया लेकिन लंड से वीर्य बहता रहा सजिया पीती रही करीब दो सौ एमएल वीर्य निकला होगा।
बाबाजी: मैने आज तुम्हे भी दूध पिला दिया सजिया।
सजिया (खांसते हुए): बच गई मैं नहीं तो मेरी जान निकल जाती।
अब बाबाजी बिस्तर पर लेट गए। लेकिन सजिया की चूत की खुजली बढ़ती जा रही थी।
बाबाजी ने कहा: मुझे लगता है आज अगर हम दोनो संभोग नही कर लेते तब तक दोनो में से किसी को भी चैन सुकून नहीं मिलेगा।
सजिया: बात तो सही है आपकी लेकिन ये जाएगा कैसे आपका मूसल और ये इतना बड़ा और मोटा कैसे हो गया है?
बाबाजी: मेरे गुरु जी ने दिया था किसी और काम के लिए लेकिन मै भी इसका कैसा उपयोग कर.... सजिया ये बात किसी और दिन .....
सजिया: ठीक है बाबाजी कोई उपाय जल्दी ढूंढों।
बाबाजी: अभी मेरे लिंग शांत है इसे अपने दोनो हाथों से जबरदस्ती धकेल धकेल के घुसा लो फिर धीरे धीरे कोशिश करेंगे तो हमे विजय जरूरी मिलेगी ।
सजिया: ये तरीका सही सुझाया आपने लेकिन जल्दी करो आज इस चूत की प्यास मिटा दो सींच दो इसे वीर्य से ।
बाबाजी और सजिया आपसी सहमति से एक दूसरे में पैर डालकर बैठ गए सजिया और बाबाजी के प्रयास से करीब चार इंच लंड अंदर गया होगा कि बाबाजी का लंड उत्तेजित होने लगा बाबाजी ने सजिया की पीठ हाथ से बांध ली और लिंग को अंदर घुसाने लगे बाबाजी को पता था इस बार नही गया तो कभी नहीं जाएगा। सजिया पहले कसमसाई फिर छटपटाने लगी बाबाजी ने सजिया के होंठ पर होंठ रखकर लंड को एक झटके में पूरा अंदर कर दिया सजिया जोर से चिल्लाई हाय अल्ला रे सिवान में दूर तक आवाज गूंज गई उसके दोनो आंखों के किनारों से आंसू छलकने लगे बेचारी रोने लगी हाथ पटकने लगी बाबाजी मूर्त रूप में बैठकर सजिया के पीठ पर हाथ बांधे रक्खा। सजिया रोते रोते बोली हाय अल्ला मर गई आज और उसे चक्कर आ गया उसकी चूत की दीवारें जो योनिरस से तरबतर थीं वह भी छलनी हो गईं उनमें दरार आ गई खून रिसने लगा उसकी चूत हलाल हो गई । किंतु प्रेमा की चुदाई की तरह ही बाबाजी को विश्वास था कि हमारा संभोग पूर्णता को जरूर प्राप्त करेगा। बाबाजी ने चक्कर के दौरान ही बेरहमी से लंड को चलाकर जगह बना डाली खड़े लंड को बाहर निकाला सजिया की चूत का खून पोंछा जल्दी जल्दी में कुछ हरी टहनियां तोड़कर बकरियों को देकर दरवाजा पुनः ढक दिया बकरियां अपनी मालकिन के इंतजार में दरवाजे के बिलकुल बाहर बैठ गईं थी समय ज्यादा होने पर वे भी मिमियाने लगी थीं। खैर बाबाजी वापिस आए सजिया की चूत पर ठंडा लेप लगाया शरीर पर मटके का शीतल जल छिड़का तब जाकर सजिया उठी उसका दर्द तो गायब हो गया था लेकिन जब उसने अपने चूत की हालत देखी तो उसकी आंख से फिर से आंसू ढुलकने लगे जो बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे । सजिया को बाबाजी ने बाहों में भर लिया गांड़ पर हाथ लगाकर लंड को उसपार कर दिया ताकि उसे चुभे न और सजिया को सहलाने लगे।
बाबाजी: सजिया तुम कितनी प्यारी हो । मेरे पास अपर कोई उपाय भी नही था । मुझे माफ करदो सजिया।
सजिया कुछ नही बोली उसके आंसू नहीं रुक रक रहे थे। तब बाबाजी ने उसके होंठों पर होंठ रख कर चूसा उसकी चूंचियों को सहलाया (इस बार मसला नहीं) बाबा का लंड जो कि सजिया की गांड़ के नीचे से उस पार झांक रहा था उसे सजिया की भावनाओं को कोई कदर नही थी उसके मुंह पर तो खून भी अभी तक लगा हुआ था वह बार उठक बैठक लगाए हुए था जिससे सजिया की गांड़ में रगड़ के कारण गुदगुदी हो रही थी जो उत्तेजना का संकेत (सिग्नल) चूत को भी भेज रही अचानक सजिया की बुर पनियाने लगी सजिया का हाथ स्वयं ही बाबाजी के लंड को पकड़कर चूत के पास ले जाने लगा बाबाजी का खड़ा लंड तो यही चाह रहा था। बाबाजी ने लंड को अंदर किया ठंडे लेप का असर था ही चूत में दर्द तो होना नही था लेकिन हलाल होने से कौन बचा सकता था बाबाजी अनियंत्रित गति से लंड को अंदर बाहर करने लगे ।कचा कच भचा भच फचा फच की तो एक लय छोटी सी कुटिया में गूंजने लगी। सजिया भी इस बार साथ दे रही थी उसकी गरमी अब दिख रही थी वह अपनी गरमी के बल पर ही बाबाजी जैसे मर्द को टक्कर दे रही थी टक्कर ऐसी थी की पहली बार बाबाजी खड़े उसके दो मिनट बाद सजिया (हालांकि बाबाजी पहले इस बार खड़े क्योंकि उनका लंड काफी देर से खड़ा था) ।लेकिन सजिया उस समय चिल्लाने लगती जब चूत की कोई नई कोशिका फट जाती हालांकि ज्यादातर कोशिकाएं पिछले बार ही फट गईं थी जो लंड की राह में रुकावट पैदा कर रहीं थीं।
सजिया: आह आ आ आअ आऽऽऽह मार दो इस बुरचोदी को आज रात दिन कुलबुलाऽऽऽतीऽऽऽऽरहतीऽऽऽहै आ आई आई आह आऽऽऽआह और जोर से आह आईईई ऊह आह । सिसकारियों का सिलसिला चलता रहा पूरे पैंतीस मिनट की चुदाई में बाबाजी तीन बार झड़े तीन बार सजिया भी झड़ी । अंतिम बार सजिया ने वीर्य पीने की इच्छा जताई और पूरा वीर्य पी गई। दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए ही बिस्तर पर ही गिर पड़े। दोनो की कामरस की थैलियां पर्याप्त खाली हो गईं थी। दोनो उठे एक दूसरे के जननांगों को दोनो ने साफ किया । दोनो के अंगो में पुनः थोड़ी मात्रा में उत्तेजना आई किंतु बाबाजी ने अपने नागराज को लंगोट में बंद कर दिया तो वहीं सजिया ने अपनी कामदेवी को सलवार में कैद कर दिया। बाबाजी ने सजिया को पौष्टिक पंजीरी खिला कर शरबत पिलाया ताकि उसमे ऊर्जा आ सके किंतु सजिया उठते कर बाहर जैसे ही आई लंगड़ाने लगी बाबाजी ने दौड़कर कंधा दिया फिर से कुटिया में बैठाया । दोनो बाहर के वातावरण से बेखबर थे बाहर निकले तो समय ज्यादा हो गया था पर्याप्त अंधेरा छा गया था सजिया का जी कचोटने लगा अपनी बिटिया फिजा के बारे में सोचकर जो सजिया के आने के बाद पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलती थी उसका दिल रोने लगा कि उसने देंह की आग बुझाने के लिए बेटी को भूल गई......किंतु एक खयाल और सजिया के मन में उठ रहा था कि अगर बिटिया ने दिया नही जलाया होगा और डरकर किसी और के घर रुक गई होगी तो सबको पता चल जाएगा ...कैसे मुंह दिखाऊंगी लोगों को....और इन बकरियों के साथ तो जाना बिलकुल ठीक नही....ये चिल्लाकर सभी को बता देंगी । बाबाजी की टॉर्च का सेल खतम था लेकिन नाम मात्र का बचा था । समस्या पर समस्या खड़ी हो गई कि सजिया घर कैसे जायेगी रास्ते में उसे डर लगेगा बकरियों को सियार परेशान करेंगे वगैरह वगैरह ।बाबाजी ने दिमाग लगाया और दोनो बकरियों के मुंह पर कपड़ा बांध दिया। सजिया को घोड़इयां (पीठ पर) बैठाया और चल दिया गांव की ओर गांव अधिक दूर तो था नहीं बाबाजी जी गांव के करीब पहुंच गए गनीमत थी कि सजिया का घर गांव के बीच में नही था उसके घर का एक दरवाजा बाहर की ओर तो दूसरा उसके घर से सटे घरों के दरवाजे की दिशा में खुलता था। बाबाजी ने सजिया से बकरियों के बांधने का स्थान पूछा और चुपके से बांध कर वापस आ गए । अब जाकर दोनों की सांस में सांस आई ......लेकिन सजिया का जी बेटी में ही लगा रहा । बाबाजी ने टॉर्च बुझाकर सजिया को घर के और करीब किया ताकि वहां से अगर वह न जा पाए तो कोई बहाना बना सके। इतनी दूर से पैदल चल कर आए थे बाबा सो मन बहलाने के लिए बाबाजी ने सजिया की गांड़ में हाथ लगाकर उठा लिया। सजिया: बाबाजी आप भी एकदम बेशरम हो। बाबा: अच्छा सजिया मैं चलता हूं अपना खयाल रखना।
सजिया रेंगते हुए किसी तरह घर पहुंची । देखा तो उसकी बेटी ने दिया जला दिया था और सो रही थी लेकिन उसका बिस्तर सिर के आस पास भीगा हुआ था सजिया समझ गई उसकी बेटी उसके इंतजार में घर पर ही रह गई होगी और जब बाहर अंधेरा हो गया होगा तब डर के मारे किसी के यहां न जा सकी और रो रोकर सो गई मेरी प्यारी बिटिया । उसने खाट के पास बैठकर बिटिया को एक चुम्मी ली उसके बाद बिना जगाए किसी तरह कपड़े बदलकर, हाथ मुंह पैर धुलकर खाना बनाने लगी । खाना बनाकर अपनी बिटिया को जगाया तो उसकी बिटिया तेज तेज रोने लगी सजिया ने उसे छाती से लगा लिया फिर भी वह रह रहकर रोती रही किसी तरह चुप कराया खाना खिलाया । थकी मांदी बेचारी अपनी बिटिया के साथ ही सो गई ।
 
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अपडेट-11
सजिया शाम को तो खुशी खुशी सो गई क्योंकि वह जो मुंह काला करवाके आई थी उसके बारे में किसी को भनक नहीं लगी। सविता, प्रेमा के साथ लगभग हरदिन बात बतकही करने वाली सजिया जब तीन दिन नही आई तब ।
सविता: प्रेमा! सजिया नही दिखाई दे रही कई दिन से।
प्रेमा: क्या पता उसका मंसेधु (पति) आ गया हो बंबई से।
सविता: उसका भतार (पति) आया होता तो वह भी तो गांव में आते जाते दिखाता।
प्रेमा: चल सविता देख ही आते हैं अकेली रहती है बेचारी क्या पता धूप में जाने के कारण जूड़ी (सर्दी) बुखार आ गया हो।
दोनों उसके घर गईं प्रेमा ने आवाज लगाई: सजिया ओ सजिया क्या बात है हमसे रूठ गई क्या..... किसी बात से...... बता देना ।
सजिया जो खाट पर सलवार घुटने तक करके ऊपर से हल्की चादर रखकर आराम कर रही थी। अचानक से सलवार बांधी।
सजिया: आई दीदी ।
किसी तरह उठकर धीरे धीरे मंद गति से दरवाजे तक आई।
सविता: हे भगवान! क्या हो गया सजिया तुझे तभी मै कहूं आजकल काहे नहीं दिखाई दे रही।
सजिया: आप दोनो अंदर आ जाओ बाहर क्यों खड़ी हो।
प्रेमा: कोई बात नही, बाहर ही ठीक है ।
सजिया: चलो आंगन में बैठ कर बाते करेंगे।
सविता: चल प्रेमा।
सविता: अब बता सजिया क्या हो गया तुझे इतने दिन क्यों नहीं आई।
सजिया: कुछ नही बस कमर चमक गई थी।
प्रेमा: कमर इतने दिन चमकती है कहीं।
सजिया: मेरा मतलब मोच आ गई थी।
सविता: चल खाट पर लेट, तेरी कमर की मालिश कर देती हैं हम दोनों ।
सजिया मुस्कुराते हुए: नही नही अब तो ठीक हो गई हूं।
प्रेमा: ठीक कितनी है तेरी चाल ही बता रही है। चल खाट पर लेट नही तो चोट एक बार घर कर गई तो हर साल सर्दी बरसात में चलने नही पाएगी.....और हां कमर में कैसे मोच आ गई तेरे....तू कौन सा खेत में फावड़ा भांज रही थी तेरे जानवर भी तो छोटे हैं...वह भी तो तुझे नही घसीट सकते।
दोनो को शक होने लगा प्रश्नों की बौछार देखकर सजिया खाट पर लेट गई।
सजिया ने कमर में मोच का बहाना तो बना दिया था लेकिन उसमे कैसी प्रतिक्रिया देनी है इससे अनजान थी। खाट के एक ओर प्रेमा बैठी दूसरी ओर सविता दोनो ने मालिश करना शुरू किया गुदगुदी के मारे सजिया केवल हंसती रही। सविता ने अपने शक को विश्वास में बदलने के लिए बीच बीच में कमर की हड्डियों और मांसपेशियों को तेज दबा देती थी लेकिन सजिया की ओर से किसी दर्द की प्रतिक्रिया नहीं आई। सविता से रहा नही गया और उसने प्रेमा से इशारे में दरवाजा लगाने के लिए कहा जैसे ही प्रेमा वापस आई सविता ने सजिया की सलवार का नाड़ा खींच दिया और सलवार उतारने लगी लेकिन सजिया ने मजबूती से अपनी सलवार पकड़ ली। प्रेमा और सविता ने उसकी सलवार उतार दी।
प्रेमा: हाय दईया! कहां मुंह काला करवाके आ गई अनवर को पता चला तो तुझे घर से निकाल देगा।
सविता: प्रेमा इसकी बुर तो तेरी तरह ही फट गई है चिथड़े निकल गए हैं इसके।
प्रेमा: चुपकर सविता क्या बोल गई।
सविता: कहीं तू उस बाबा के चक्कर में तो नहीं फंस गई ।
सजिया: नही दीदी ये तो मैने जोश में इसमें खीरा डाल लिया था।
प्रेमा: चुपकर अपने हाथ से कोई बदन का एक बूंद खून निकालने में डर जाता है। और तेरी चूत के आस पास की सूजन बता रही है कि उस बाबा ने ही तेरा मुंह काला किया है।
सविता: सच सच बता दे सजिया ताकि हम लोग तेरी मदद कर सकें नही तो किसी और को पता चल गया तो गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी।
सजिया ने अब जाके हामी भरी।
प्रेमा जो ये सब झेल चुकी थी।
प्रेमा: फिर तू घर कैसे आ गई अकेली?
सजिया: बाबाजी छोड़ने आए थे।
सविता: हाय दईया! इस बाबा ने बेचारी सजिया की बुर का भरता बना दिया ।
सजिया: लेकिन बाबाजी के बारे में आपको कैसे पता।
प्रेमा: तुझसे क्या छिपाना सजिया इस गांड़चोदी सविता ने मुझे भी उस बाबा से हलाल करवा दिया था।
सजिया: कैसे कब क्यों कहां?
प्रेमा ने संक्षिप्त वाकया सुना दिया। सविता मुस्कुराए जा रही थी।
प्रेमा: हंस ले और हंस ले किसी दिन मौका मिला न तो तुझे भी नही छोडूंगी। और तू सजिया ये सलवार सूट की बजाय साड़ी ब्लाउज पहन ले चूत को आराम मिलेगा और कम चलाकर जिससे चूत की दोनो फांके रगड़ेंगी नही आपस में और तू जल्दी ठीक हो जाएगी।
सजिया ने प्रेमा की बातों का पालन किया और हफ्ते भर में चूत की फटी कोशिकाएं पपड़ी बनकर निकल गईं उनकी जगह नई कोशिकाओं ने ले ली। अब उसका फिर से प्रेमा और सविता के पास आना जाना प्रारंभ हो गया ।
चुदाई के बाद जब पहली बार सजिया बाबा से मिली तो उसने बाबाजी के सामने सवालों की झड़ी लगा दी। दो सवाल प्रमुख थे कि जब आप वानप्रस्थ सन्यासी बाबा हैं तो आपने उस दिन मेरे साथ सहवास क्यों किया मैं भले ही कितना क्यों न बहक गई रही होऊं? इसका जवाब बाबा को विस्तार देना पड़ा। दूसरा प्रमुख सवाल कि आपका लिंग इतना मोटा और लंबा कैसे है?
बाबाजी: सजिया बेटी
सजिया टोकते हुए: बेटी मत कहो आप
बाबा: बात ऐसी है कि यहीं पहले मेरे गुरुजी रहते थे मै उनसे प्रभावित होकर उनसे उनका शिष्य बनने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने मुझसे पहली बार ही कह दिया था तुम बाबा नही बन सकते इसमें कठोर इंद्रिय वश की जरूरत होती है और तुम्हारी उम्र भी कम है। बहुत हठ करने पर बाबाजी ने मुझे अपना शिष्य बनाया, अनुशासन सिखाया और पंद्रह वर्ष बाद वह नही रहे । वैसे तो उन्होंने मुझे कई औषधियां दी थीं लेकिन उसी के साथ एक दवा दी थी जो मनुष्य के लिंग में वृद्धि करती थी उस समय मैने बाबाजी से पूछा भी था कि इसे आप मुझे क्यों दे रहे हैं? तब उन्होंने मुझे देकर कहा था कि मैने इसका सेवन करके अपना लिंग बेहद लंबा और मोटा कर लिया है लेकिन मेरे सामने किसी नग्न स्त्री को भी खड़ा करदो तब भी मेरा इंद्रिय संयम कायम रहेगा। मैं तुम्हे इस औषधि को दे रहा हूं इसका सेवन करते रहो और इंद्रिय पर संयम रखो अगर तुमने अपनी इंद्रिय पर उस आयु तक संयम बनाए रखा जब तक कि तुम्हारे इंद्रिय का वीर्य समाप्त न हो जाए तब ही खुद को मेरा शिष्य समझना अन्यथा नहीं।
मुझे भी अपने लिंग पर काबू था क्योंकि इस कुटिया के पास कभी कोई स्त्री नही आती थी। जब बाहर जाता तो भी कभी किसी स्त्री के नाजुक अंगों का दर्शन नहीं होता था। किंतु उसके बाद की घटना तो मैने पहले उत्तर में ही सुना दी।
सजिया: क्या वह औषधि आपके पास अभी भी है?
बाबाजी: हां है लेकिन किस काम की वह तो युवावस्था में ही काम करती है।
सजिया: वह औषधि मुझे चाहिए।
बाबा: क्यों किसके लिए?
सजिया: मेरे पुत्र के लिए।
बाबा: नही, तुम्हारी बहू का क्या हाल होगा?
सजिया: आपने उस दिन मेरा क्या हाल किया था? मुझे वह औषधि दे दीजिए।
बाबा: ठीक है ले जाओ जिस औषधि कि वजह से मै अपने गुरु जी का आदर्श शिष्य न बन सका उस औषधि का इस कुटिया में क्या काम? इसे ले जाओ इसे किंतु इसका सेवन दूध के साथ ही करना है घी का सेवन बढ़ा देना है इसका सही असर लगातार 108 दिनो के सेवन पर होता है। यह औषधि ज्यादा है कम से कम दस लोगों के लिए इसका समुचित उपयोग करना बची औषधि को फेंक देना जो तुम्हारी इच्छा हो किंतु यह औषधि मेरी कुटिया में अब नही रहेगी। लेकिन एक बात और बता दूं सजिया इसका कुटिया में सेवन कर रहा था और कुटिया के आस पास दूर दूर तक किसी स्त्री का आगमन नही होता था घर में किसी को सेवन कराओगी तो उसकी कैसी प्रतिक्रिया होगी इस बारे में मुझे तनिक भी अनुभव नहीं उसकी जिम्मेवार तुम होवोगी। सजिया ने औषधि ली और वापिस आने लगी तभी पीछे से बाबाजी ने उसकी गांड़ पकड़ के चूत तक भींच लिया। बाबाजी को एहसास हो गया चूत ठीक होकर फैल गई है।
सजिया घर आ गई औषधि को एक जगह छिपा दिया और सोचने लगी जब मेरा बेटा हैदर आएगा तब उसे बिना बताए दूध में सेवन करा दूंगी ।
किंतु जब अनवर की एक माह तक घर आने की कोई योजना नहीं बनी तो सजिया बाबाजी की दी हुई औषधि की सच्चाई जानने के लिए उसे आजमाने की सोचने लगी।
इस बारे में अपनी सच्ची सहेलियों प्रेमा और सविता से बताया। पहले तो कहने लगी बाबा बेवकूफ बना रहा होगा तुझे। बाद में वह दोनो भी तैयार हो गईं राजू और अंबर पर आजमाने के लिए।
सजिया, प्रेमा सविता तीनों ही अब काम क्रीड़ाओं के मामले में बिलकुल खुल कर बातें करने लगी थीं । किंतु मनुष्य की यह प्रवृत्ति होती है कि पिता हमेशा अपनी बेटियों को बच्ची समझता है कम से कम तब तक जब तक उसके हाथ न पीले करवा दे। यही हाल मांओं का होता है वह अपने बेटों को बच्चा ही समझती हैं जब तक वह बाप न बन जाए। कहने का आशय यह है कि राजू और अंबर पर दवा आजमाने तक सविता और प्रेमा के दिमाग में कौटुंभिक व्यभिचार की कोई विचार मात्र तक नहीं था।
राजू और अंबर की जवानी तो उफान मार ही रही थी प्रारंभ में मुट्ठ मारने की वजह से दोनो का लंड लंबा और पतला हो गया था दोनो शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गए थे किंतु जब उन्हें बालिकाओं से दूर होना पड़ा तो शरीर ने आकार लेना शुरू किया, कंधे चौड़े हो गए, दोनो हाथ और जांघें मांसल हो गईं । दोनो को भाई बहन का रिश्ता भी समझ आ गया था। किंतु इसी बीच उनकी बिना जानकारी के दोनो के साथ औषधि का प्रयोग प्रारंभ हो गया । दो महीने तक तो दोनो को पता नहीं चला, लेकिन उसके बाद जब औषधि ने लंड की मोटाई बढ़ान शुरू की तब उन्हे चड्डी का साइज बदलना पड़ा लेकिन औषधि यहां तक नहीं रुकी जब दोनो के लंड 10 इंच लंबे साढ़े तीन इंच मोटे हो गए तब औषधि ने लंड में वीर्य का संचय बढ़ा दिया। अब राजू और अंबर के बस की भी बात नही थी वीर्य को बाहर निकलने से रोकना। रात्रि को स्वयं ही स्वप्न आ जाते और उत्तेजना में नागराज फन फुला के थूक देते वह स्वप्नदोष का शिकार हो गया को कि लाजमी था क्योंकि उसने मुट्ठ मारना लगभग बंद कर दिया था तो नागराज के पास यही एक विकल्प बचा था। यहां तक भी सहने योग्य था। अक्सर उसके सपने में अनजान सुंदरी आती थी धीरे धीरे झड़ने से पूर्व उसकी नींद खुलने लगी और वह पेट को पीछे खींच कर वीर्य निकलने से रोक देता। अब नागराज हैरान परेशान उन्होंने संकेत (सिग्नल) मस्तिष्क को भेजा और मस्तिष्क ने वीर्य बाहर निकालने के प्रयास जारी कर दिए । एक रात्रि राजू के स्वप्न में उसकी मां आ गई वह भी बहुत ही कामुक अंदाज में सपना छोटा था जिसमे उसे जगने से पांच मिनट पहले तक स्मरण रहा प्रेमा का पेटीकोट चूत से एक फीट नीचे खिसका हुआ था और उसने चूत में लंड डाल के पांच मिनट तक चुदाई की और उसकी नींद खुल गई चड्डी भीग गई रात के तीन बज रहे थे सुबह तक सूखने की कोई आशंका न होते देख उसे उठना पड़ा और चड्डी बदलनी पड़ी।
 
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अपडेट-12
आए दिन वीर्यस्खलन से राजू चिड़चिड़ेपन में रहने लगा। इसी बीच एक रात राजू की चड्डी बदलने/ धुलने की उठापटक में प्रेमा की नींद खुल गई उसने झरोखे से देखा तो उसका बेटा राजू रात के साढ़े तीन बजे नल के पास बैठा कोई कपड़ा धुल रहा था। उसने यह सोचकर कि सुबह पूछूंगी अपनी जिज्ञासा को मन में समेटे पुनः नींद की आगोश में सो गई। उधर अंबर ने राजू के चिड़चिड़ेपन से परेशान होकर उससे पूछा।
अंबर: क्या हुआ भाई? अब तुम्हारे चेहरे का तेज कैसे गायब हो गया है?
राजू: कुछ नही बस ऐसे ही?
अंबर: कुछ तो है......हम दोनों अपनी बात आपस में नही साझा करेंगे तो किससे करेंगे।
राजू: अंबर भाई! जब मै रात को सोता हूं तो सुबह करीब साढ़े तीन चार बजे किसी नग्न स्त्री का सपना आता है और मेरा वीर्यस्खलन हो जाता है और मैं कुछ नही कर पाता ।
अंबर: क्या बात कर रहा है! सपने में नग्न स्त्री....
राजू (झूठ बोलते हुए): हद तो तब हो गई जब एक दिन स्वप्न में तेरी मम्मी आ गईं।
अंबर: तू झूठ बोल रहा है ऐसा नहीं हो सकता।
राजू: मै इसीलिए नही बता रहा था तूने ही जिद की थी।
इस संवाद से अंबर के मन में विभिन्न प्रकार की जिज्ञासाएं उत्पन्न हुईं जिसे उसकी कमर के नीचे कुंडली मारकर बैठे नागराज भी महसूस कर रहे थे। यही कारण था कि उसके स्वप्न में भी उसके आसपास के परिवार के सदस्यों आने लगे जैसे जिससे उसे अधिक लगाव था कंचन से । लेकिन स्वप्नदोष किसी तर्क या लॉजिक के आधार पर नही होता इसलिए उसके सपने में किरन और सविता यहां तक कि अंजली और प्रेमा का भी आगमन हुआ। अब उसे राजू की बातों पर विश्वास हो गया।
इधर प्रेमा ने राजू से सवाल किया......प्रेमा: राजू बेटा रात में तीन चार बजे नल पर कपड़े क्यों धुल रहा था दिन में धुल लेता।
राजू जो इस बात से अनजान था कि कपड़े धुलते हुए उसे किसी ने देखा है......हड़बड़ाहट में उसने कहा....….. कुछ नही मां मै गमछा धुल रहा था। प्रेमा: रात में गमछा धुलने की क्या जरूरत आन पड़ी।
राजू: मां वो कल रात पशुओं को बांधते समय गोबर लग गया था। ........प्रेमा ने और कोई प्रश्न न करके अपने बेटे की असहजता खत्म कर दी। .........औषधि या दवा जो उपयोग करता है वह अक्सर उसका उपयोग करना भूल जाता है लेकिन देने वाले को उसका असर देखने की जल्दी रहती है इसीलिए...........एक दिन सजिया, सविता और प्रेमा की नीम की चबूतरे पर जमी महफिल में उस बाबा की दी हुई औषधि का जिक्र किया तो प्रेमा और सविता ने औषधि के नियमित सेवन की बात तो स्वीकारी लेकिन उसके परिणाम के बारे में सजिया को कोई जानकारी न दे सकीं। किंतु प्रेमा के मन में रात की घटना और राजू के गमछा धुलने की बात स्वीकारना पुनः स्मृति में आ गई और अब तो उसे गमछे में मुट्ठ मारने का भी शक हुआ...... उसे औषधि के सेवन से जोड़ना चाहा किंतु किसी ठोस पुष्टि के बगैर उसने इस बात को महफिल से दूर ही रखा और दोनो इस बात पर तैयार हुईं कि राजू और अंबर पर नजर रखकर औषधि के असर को जानना है अन्यथा इसका सेवन बंद कर देना चाहिए ताकि किसी प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सके।
एक दिन शाम को कंचन और किरन के कमरे में कंचन, किरन, अंबर तीनों लूडो खेल रहे थे जिसमे कंचन बार बार हार जाती थी इसलिए वह दोबारा जिद करके खेल प्रारंभ करवाती.....तभी सविता ने डांट लगाई तो किरन रोटी सेंकने चली गई......कुछ देर में वापस आई और दोनो को खाना खाने के लिए कहा.....किंतु कंचन ने जिद करके दोनों का भोजन वहीं मंगा लिया। किरन तो अपना खाना खाकर सो गई.....किंतु ये दोनो खेलते रहे......कब नींद आई दोनो में से किसी को पता नहीं चला। अंबर की नींद तब खुली जब वह करीब सुबह चार बजे कंचन को बाहों में लिए झटके लगाते हुए पैंट गीली कर चुका था वह चुपचाप उठकर अपने बिस्तर की ओर भागा लेकिन उसी समय पेशाब करने उठी सविता ने उसे देख लिया।........ कंचन की नींद खुल गई उसे लगा कोई और है वह डर गई उसने किरन को यह बात बताई। किरन ने चुपके से जाकर यही बात अपनी मां से बताई ताकि उसके पिता की नींद में व्यवधान न उत्पन्न हो। सविता ने मामले की गंभीरता समझते हुए किरन और कंचन को बहला कर सुला दिया........सविता को शक था कि अंबर ने यह जानबूझकर किया है......इसलिए उसी वक्त उसके पास जाकर बोली: अंबर ओ अंबर! अंबर सोने का नाटक करने लगा । सविता का शक और ज्यादा गहरा हो गया । सविता: अंबर नाटक मत कर तू कंचन के कमरे में क्या कर रहा था? अंबर की चड्डी तो गीली थी ही डर के मारे गांड़ भी फट गई.....दांव उल्टा पड़ गया.....जहां शर्म के मारे वह सब कुछ छुपा लेना चाहता था उसे सब कुछ विस्तार से समझाना पड़ा.....अंत में तो सविता ने चुपके से अचानक चादर हटा दिया.....अंबर: मां क्यों परेशान कर रही हो.....सविता: तुझे मैने अपने हाथ से हगाया शौंचाया है तू मुझ से क्या शर्म कर रहा है। सविता को लगा आज उसका बेटा सही मौके से फंस गया है आज इसकी जांच कर ही लेती हूं कि औषधि ने काम किया या नहीं? यही सोच कर सविता ने उसकी चढ्ढी भी नीचे खिसका दी और टॉर्च का फोकस उसी पर कर दिया ....सविता ने जब चड्डी हटाई तो देखा अंबर का लिंग शांत किंतु तनाव में कच्छे के अंदर बैठा है जैसे फिर किसी से लड़ने की मुद्रा में हो और पूरी चड्ढी वीर्य से सन गई थी.....अंबर ने तुरंत ही चढ्ढी फिर से पहन ली ......लेकिन इस बार किसी महिला के निकट होने से नागराज आकर्षित होकर बीच से सिर निकालकर झांकने लगे ......अंबर शर्म के मारे कोशिश करता रहा कि लिंग अंदर हो जाए लेकिन 10 इंच लंबे और साढ़े तीन इंच लंबे नागराज ने फन फुलाए रखा......अंत में अंबर ने उन्हें चादर से ढंक दिया और सविता भी अपने बेटे को और देर असहजता में नही रखना चाहती थी। सविता: ठीक है बेटा सो जा लेकिन चड्डी बदल ले और हां ध्यान रखा कर कंचन और किरन के साथ भूल से मत सोया कर। ......इस घटना से सविता का तो दिमाग ही घूम गया ....वह उत्साहित हो उठी कि औषधि ने तो कमाल कर दिया सजिया को आज ही बताऊंगी।
वहीं राजू दोपहर में खेत में कुछ काम करके आया मां से कुछ खाने को मांगा। प्रेमा अपने बेटे का परिश्रम देखकर खुश हो गई उसे अचार सहित दो पराठे दिए पानी भी लाकर दिया......दोपहर का खाली समय था प्रेमा खुशी के मारे अपने बेटे को खाते हुए देखकर वहीं बैठ गई उसे बेना (पंखी) झलने लगी। राजू: आप ये सब क्यों कर रही हो मुझे इतनी गर्मी नही लग रही है....और ये पानी क्यों ला कर रख दिया...पाने मै खुद ही नल से ले आऊंगा या वहीं जाकर पी लूंगा।
प्रेमा: तू मेरा बेटा है। तेरी सेवा नही करूंगी तो और किसकी करूंगी वह भी तब जब तो खेत के काम में हाथ बंटा कर आया है । राजू भोजन करने के बाद सो गया। लेकिन प्रेमा वहीं बैठी रही। क्योंकि वह हाथ में लोकगीत की एक किताब लेकर पढ़ रही थी और मुस्कुराए जा रही थी क्योंकि उसमे विभिन्न प्रकार के लोकगीत थे भक्ति, श्रृंगार, विरह और गारी (गाली) भी।
जैसे: -
दूल्हा के माई मौसी खुब करवावैं, हाँ खोब करवावैं कि नित करवावैं।
लिकिन काव? अरे सखियन से सोरहो सिंगार रसिया राम लला।
तुहैं गारी कवन विधि देंव रसिया राम लला।।
दुलहा के मम्मी खूब मिंजवावैं, हाँ खूब मींजवावैं कि रोज मिंजवावैं।
लिकिन काव? भला नाउन से बुकवा तेल रसिया राम लला।
तुहैं गारी तुहैँ गारी कवन विधि देंव रसिय राम लला।।
दुलहा के मम्मी जी खूब मरवावैं कि नित मरवावैं
लिकिन काव! श्री के साथे शिकार रसिया राम लला
तुहैं गारीऽ तुहैं गारी कवन विधि देंव रसिया राम लला।
.......प्रेमा लोकगीत पढ़ने में मग्न थी कि तभी उसे लगा कि राजू के बिस्तर पर कुछ हलचल है जब उसने राजू की ओर देखा तो दंग रह गई उसके पजामे में एक बड़ा तंबू बन गया था और उसमें लिंग के झटके दिखाई दे रहे थे तभी प्रेमा उठकर बाहर चली गई थोड़ी देर में वापिस आई । प्रेमा: राजू राजू: हां मां। प्रेमा: सो गया था क्या? राजू: हां मां नींद आ गई थी । प्रेमा: अरे ये बेटा तेरा पायजामा कैसे भीग गया है छी छी। पजामे में ही मूत दिया क्या बचपन की तरह। राजू: नही मां । प्रेमा: उतार ये पजामा दूसरा पहन। राजू: मां बाहर जाओ। प्रेमा: चुपचाप उतार के बदल ले ज्यादा नाटक मत कर मां से। राजू ने पजामा तो उतार दिया लेकिन उससे ज्यादा उसकी चड्डी भीगी हुई थी। वह दूसरा पैंट पहनने लगा तभी उसकी मां ने टोका अरे कच्छा तो बदल ले फिर पैंट बदलने का क्या मतलब रहा। उसने अपनी चड्डी बदलने के लिए तम्हक (लुंगी) पहन ली और गीली चड्डी उतार दी जब लिंग को खुला वातावरण मिला और लिंग में लगे वीर्य में हवा से ठंडक पहुंची तो लिंग ने अकड़ना शुरू कर दिया और ढीली बंधी लुंगी गिर गई । इस तरह होगा प्रेमा को भी आशंका न थी उसने झट से दौड़कर दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई अन्य न देख सके । राजू चूतड़ मां की ओर करते हुए मां मेरा कच्छा बाहर सूख रहा है कृपया लेते आओ। प्रेमा: अच्छा रुक मैं ले आती हूं।
प्रेमा चढ्ढी ले आई राजू के दस इंच लंबे लंड के कारण उसे थोड़ी दूरी बनाकर खड़ा होना पड़ा राजू बेचारा इतनी बेइज्जती होती देख शर्म से लाल हो गया था उसने तुरंत ही चड्डी पहनी लेकिन लंड बिल्कुल खड़ा रहा ....फिर उसने लंड को पेट की ओर करके चढ्ढी बंद कर दी और पैंट पहन लिया। प्रेमा तो चड्डी देकर ही बाहर आ गई थी। वह भी सविता की ही तरह इतना बड़ा और मोटा लंड देखकर चकरा गई और सजिया को सूचित करने के लिए उत्साहित थी ।
नीम के पेड़ के पास महफिल जमी।
सविता: सजिया तेरा बेटा कब आएगा?
सजिया: उसके पिता जी आ रहे हैं अगले सप्ताह तो साथ ही आएगा। क्यों क्या हुआ?
सविता: नही ऐसे ही पूछ लिया मैने कई महीने हो गए बंबई रहते हुए।
सजिया: उस दवा के बारे में कुछ पता चला।
सविता: अरे दवा कमाल की है सजिया.......10 का गया है बस इतना समझ ।
सजिया: सच ।
सविता (धीमी आवाज में): हां बहन मैने अंबर को सूसू करते हुए देखा था 10 इंच लंबा और तीन ईंच से ज्यादा मोटा हो गया है।
सजिया: सच्ची सविता: हां ।
प्रेमा: कहो क्या कानाफूसी चल रही है आपस में।
सजिया: तेरे बेटे राजू की बात चल रही है।
प्रेमा: उसकी क्या बात?
सजिया: उस पर दवा ने असर किया कि नही।
प्रेमा: हां सविता सजिया की दवा ने तो मेरे बेटे को घोड़ा बना दिया 10 लंबा और तीन से जादा मोटा है । सजिया ने तो कमाल कर दिया ऐसी औषधि लाकर दे दी कि बाजार में बेचने लगें तो दुनिया टूट पड़े।
सजिया: सच कह रही हो तुम दोनों।
प्रेमा और सजिया: यकीन न हो तो तुमको भी दर्शन करा दें।
सजिया शर्मा गई लेकिन: तुम दोनों ने दर्शन कर लिया क्या? हा हा हा
प्रेमा: हां री सविता तुझे कैसे पता अब भी अंबर की नुन्नी पकड़कर मुतवाती है क्या?
सविता: तुझे कैसे पता तू इंची टेप लेकर गई थी क्या?
प्रेमा: नही री इतना तो मैं देख कर बता दूं।
सविता: हां तूने कई लंड देखे हैं न।
प्रेमा: हरामजादी क्या बोल रही है।
सविता: बाबाजी का तो देखा है फुट लंबा लंड।
सजिया: चुप रहो दीदी आपस में मत लड़ो कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा।
प्रेमा: मैने तो सोते हुए उसकी चढ्ढी उतार के देखा था। तू बता तूने कैसे देखा?
सविता: मैने तो अंबर को पेशाब करते हुए देखा था।
सजिया: चलो ठीक है औषधि ने काम तो किया मुझे तो उसपर ही संदेह था।
सविता: वह सब छोड़ ये बता अनवर आ रहा है और तू अपनी चूत बाबा से फड़वाके बैठी है उसका क्या करेगी।
सजिया: उसको तो कई महीने हो गए, लेकिन फिर भी जगह तो ज्यादा बन ही गई है क्या करूं आप बताओ।
प्रेमा: खेल चूसकर मत शुरू करना नही तो ढीला लंड बड़ी चूत में जाएगा तो कहीं खो जायेगा सीधा चूत से शुरू करवाना और बाद में चूस देना अपनी चूंची भी बाद में मसलवाना दूध भी बाद में पिलाना नही तो चूत पानी छोड़ेगी नाली नाला बन जाएगी फिर अनवर तेरी गांड़ की ऐसी तैसी करेगा।
इस बहस में अगर कुछ हुआ तो वह ये कि तीनों की चूत में चींटियां रेगने लगीं।
सजिया मन ही मन प्रसन्न हो गई हैदर पर आजमाने के लिए वह भी तो हफ्ते भर में आने वाला था।
 
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अपडेट- 13

आखिर अनवर आ ही गया साथ ही हैदर भी आया था । उसके गौण लैंगिक लक्षण जैसे हल्की मूछ दाढ़ी आ गई थी कंधे आकार लेने लगे थे यह देखकर सजिया फूले नहीं समा रही थी वहीं अनवर और हैदर ढेर सारा सामान लेकर आए थे उसे देखकर भी सजिया प्रसन्न थी। वैसे तो सजिया ने सारा इंतजाम कर रखा था लेकिन उसे एक ही चिंता थी सेज पर सेवा कैसे करेगी कई महीने हो गए पति के साथ सेज पर कबड्डी खेले हुए। अनवर ने सजिया का अवलोकन किया तो मन ही मन मुस्कुराने लगा उसकी गाय एकदम पुष्ट भैंस हो गई थी भरे हुए थन भरी हुई कमर ऊपर से नीला सूट ।
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फिर वह सामान्य हालचाल लेने लगा जैसे गांव में सब कुशल मंगल तो है? आते समय अपने गांव का चकरोड पर डामर पड़ रहा है अब तो बारिश में भी ट्रैक्टर आने जाने की समस्या खत्म हो जाएगी। सजिया: हां जी सही कह रहे हो। उस पर काम लगे हुए 20 दिन से ज्यादा हो गया खैर अब काम लगा है तो बन ही जाएगी बारिश में कीचड़ भरी कच्ची रोड से तो सच में निजात मिल जाएगी। अनवर और हैदर ने दोनो को जलपान कराया। फिर दोनो ने तीन घंटे विश्राम करके यात्रा से हुई थकान दूर की सजिया दोनों खाटों के बीच में बैठ कर बेना (पंखी) झलती रही । उसे आज अनवर और हैदर दोनो पर गर्व हो रहा था अनवर कमा कर लौटा था तो वहीं हैदर जवानी में कदम रख कर । करीब साढ़े तीन बजे दोनो गांव में घूमने निकल गए अपने अपने साथी संघातियों से मिलने । .........अनवर ने जमुना और चंद्रभान से भेंट के, एक दूसरे का हालचाल लिया।अनवर: प्रणाम भैया। चंद्रभान: कहो अनवर कैसे हो बड़े दिन बाद दिखाई दिए लगता है बंबई की हवा लग गई। वैसे तुम्हारा सिलाई का काम कैसे चल रहा है? अनवर: ठीकय ठाक चल रहा है केतनो मंदी आ जाए लोगबाग कपड़ा तो पहनेंगे ही तब तक मेरा भी काम रोजगार चलता रहेगा। चंद्रभान: का अनवर तुम तो एक दम हुशियार हो गए एक दम बिजनेस वाले की तरह बतिया रहे हो। अनवर: बस आप सब का और इस गांव की माटी का आशीर्वाद है। ..........वहीं हैदर की मुलाकात अन्य साथियों के साथ ही अंबर और राजू से हुई । अंबर और राजू ने बंबई शहर के बारे में बहुत कुछ जानना चाहा हैदर से कई सवाल किए उसने भी अपनी जानकारी अनुसार जवाब दिया। वहीं सजिया अनवर के लाए हुए सामान को देखने लगी फिजा और उसके लिए कपड़े आदि के साथ ही सजिया के लिए उसने रेडिमेड चोली और कच्छी खरीदी थी। सजिया देखते ही शर्मा गई । इस प्रकार धीरे धीरे सांझ हो गई। सजिया ने तीनों को भोजन करवाया फिजा को सुलाया । अब सजिया और अनवर बिस्तर पर आ गए । सजिया: तुम कपड़े सिलने का काम करते हो तो फिर रेडीमेड चोली लाने की क्या जरूरत थी वह भी इस उमर में। अनवर: तुम्हे पसंद आई।
सजिया शरमाते हुए: हां लेकिन बहुत टाइट है।
अनवर: कोई बात नही दूध ज्यादा इकट्ठा हो गया है जब पी लूंगा तब आ जायेगी ।

सजिया पीठ पर दोनो हाथ रखकर धकेलते हुए धत! और वो कच्छी लेते हुए शरम नही आई उसमे आगे तो सिर्फ एक डोरी जैसी लगी है। फिर अनवर ने सजिया को बाहों में भरकर अपने ऊपर लिटा लिया। सजिया डर रही थी कहीं अनवर को पता न चल जाए उसकी फटी चूत के बारे में इसलिए उसने अनवर के पजामे के नाड़ा पकड़कर खींच दिया लंड बाहर आ गया। सजिया ने अनवर के कान के पास कहा एक बार इसकी खुजली मिटा दो उसके बाद दूध पीना और पीछे हाथ करके सलवार ऊपर खींच दिया अनवर के लंड को जैसे ही सजिया की गांड़ का स्पर्श हुआ वह फनफनाने लगा अनवर भी तैयार हो गया उसने सजिया की सलवार पूरी निकालकर दूर फेंक दी आज पहली बार सजिया को बिना गरम किए चोदने जा रहा था इसलिए उसने लेटे लेटे ही अपने हाथ में थूक लिया और पीछे गांड़ की ओर से सजिया की चूत पे लगा दिया। लंड को चूत पर सेट किया और जोर का धक्का लगाया..... पता नही सजिया की किस्मत अच्छी थी या बुरी......अनवर के ऊपर सजिया का वजन होने और थूक लगे होने से लंड फिसल कर गांड़ में घुस गया साढ़े तीन इंच तक ।
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सजिया: आइ मां मर गई आई ई ईई। .... डर के मारे सजिया की गांड़ कस गई इससे अनवर का लंड हल्का सा छिल गया उसे थोड़ा गुस्सा आया अनवर: साली गांड़ क्यों सिकोड़ रही है... और सजिया की छाती के पीछे पीठ पकड़ी कस कर और पूरा 8 इंच का लंड सजिया की गांड़ में उतार दिया।
सजिया को लगा जैसे किसी ने गरम लोहा गांड़ में डाल दिया हो । आवाज दूर तक न जाए इसलिए वह दर्द सहने लगी लेकिन उसकी आंखों में आसूं आ गए साथ ही गांड़ की मुलायम दीवार से खून रिस आया। अनवर को सजिया पर दया आ गई वह रुक गया । अनवर: सजिया! गांड़ ढीली छोड़ो । सजिया ने गांड़ ढीली छोड़ी और अनवर ने भी पीठ पर से हाथ हटाकर सजिया को आजाद कर दिया.......दोनों टांगे पकड़ कर अपने पेट की ओर खींच लिया जिससे सजिया की गांड़ जितना खुल सकती थी उतना खुल गई।
अब अनवर ने धीरे धीरे गांड़ मारना शुरू किया सजिया के आंसुओ की धार बहती रही .....अब अनवर को आनंद की अनुभूति हुई तो उसने धक्के लगाने शुरू कर दिए सजिया सिसियाने लगी । अनवर ने स्पीड बढ़ा दी इससे सजिया की चूत के आस पास के क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ गया जिससे उसकी गांड़ में ऐसी खुजली हुई कि उसने खुद ही अनवर के लंड पर गांड़ ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया ।
सजिया: आह आह आ आ आह। जब आज इसका उद्घाटन कर ही दिया है तो इसकीईईई खुजली मिटा ही दो आ उई मां बिना बवासीर के इसमें बहुत खुजली रहती है।
अनवर: आह आज तू गजब मेरे लंड को चोद रही है आह आह आह आआआआह। और लंड को गांड़ में सटा कर झड़ गया । लेकिन सजिया तब तक लंड पर गांड़ चलाती रही जब तक कि अनवर का लंड सिकुड़ कर बाहर नही आ गया । लंड बाहर आ गया गांड़ को आराम मिला लगा जैसे कुछ फंसा हुआ था निकल गया। लेकिन गांड़ मराने की वजह से चूत की रक्त वाहिनियों में रक्त संचार जो बढ़ा था उसने और तेजी से पंप करना शुरू कर दिया जैसे मोटर साइकिल का हाथ पकड़ कर साइकिल वाला चल रहा होता है लेकिन हाथ छोड़ते ही साइकिल बहुत तेज अनियंत्रित दिशा में आगे बढ़ती है। सजिया की चूत में चींटियां रेंगने लगी उसे मालूम हो गया था कि अनवर को मात्र दुग्ध पान कराना है लंड फिर से तैयार उसने अपनी चूंचियां अनवर के सामने कर दीं। अनवर जो झड़ने की वजह से थोड़ा थका हुआ था वह तुरंत झपट पड़ा और दूध पीने लगा । अब तो सजिया की हालत खराब हो गई उसकी दोनो ग्रंथियां चूत को उकसाने लगी जिससे वह भी बीच बीच में तरल पदार्थ उगलने लगी।
सजिया: अब डाल दो आह अब नही रहा जाता कई महीने से तड़प रही है आह।
अनवर: घोड़ी बन जा आज तुझे भैंस की तरह चोदूंगा।
सजिया बहुत मोटी तो नही थी लेकिन इतनी पुष्ट थी कि घोड़ी की स्थिति में खड़ा कर दिया जाए तो उसी स्थिति में खड़ी रहेगी यानी सचमुच भैंस थी।
सजिया तुरंत नीचे उतरकर घोड़ी बन गई।
अनवर ने पीछे से उसकी गांड़ टटोली तो उसमे वीर्य लगा हुआ था साथ ही खून भी सूख गया था उसने अपना हाथ चूत पर लगाया तो चूत एकदम जल रही थी एक बार तो अनवर कांप गया लगा जैसे उसका लंड तो इसमें जल जाएगा। साथ ही बुर एक दम पनिया गई थी। अनवर ने लंड चूत पर सेट किया तो सजिया पीछे आने लगी तभी अनवर ने सजिया के दोनों दूध पकड़कर एक्सीलेटर लिया और पूरा लंड सजिया की चूत में उतार दिया। सजिया जानबूझकर चिल्लाई है हाय अल्ला मार दिया निकालो उई मां आह। अनवर: मेरा लंड तो इसमें ऐसे चला गया जैसे घी में उंगली ।
सजिया: वो सब छोड़ो जोर जोर से चोदो इसे फाड़ डालो।
सजिया की चूत बाबाजी के पास दोबारा न जाने से टाइट तो हो गई थी लेकिन अनवर कई महीने बाद आया था उसे इससे ज्यादा उम्मीद थी। उसने चूत में लंड रखकर ही चुदाई बंद कर दी।
अनवर: सच सच बता मेरे न रहते हुए कहां आग बुझाती थी बोल जल्दी।
सजिया को दोहरा करंट लग गया उसकी चूत ये रुकावट बर्दाश्त न कर सकी और सजिया खुद ही आगे पीछे होकर चुदने लगी।
सजिया: ख्वामखाह ही आह आह लड़ाई की जड़ ढूंढतेएए रहते हो ओओह अभी अभी मेरी कुंवारी गांड़ मार दी अब भला मेरी चूत गांड़ के आगे तो भोसड़ा ही लगेगी न।
अनवर: सही कह रही है तू कुछ भी हो लेकिन मजा बहुत आ रहा है जैसे लंड आसमान में गोते खा रहा हो। ले मादरचोद। आह आह आह ।
सजिया: और जोर से आह और जोर से फाड़ डालो इसे इसने मुझे बहुत परेशान किया है आहि रे आह आह उईई आह ।
अनवर ने 15 मिनट चोदने के बाद अनियंत्रित स्पीड में से लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया उधर सजिया भी आगे पीछे हो रही थी इससे परिणामी गति बहुत तेज हो गई थी और पूरे कमरे में फच फच फच फचा फच्च की आवाज आ रही थी इसी बीच सजिया झड़ गई अनवर का लंड इतनी अधिक चिकनाई बर्दाश्त न कर सका और वह भी चूंचियों को खींचते हुए झड़ गया। दोनो का काम रस नीचे बहने लगा सजिया की चूत में तो इतनी गर्मी थी कि करीब एक पाव रजोरस नीचे फैल गया था। अनवर को भी लगा कि सजिया की चूत आज ही चुदी है जाने के बाद। इसके बाद जब अनवर का लंड फिर से खड़ा हुआ तो उसने सजिया के मुंह में डाल दिया, सजिया तो ऐसे लंड चूस रही थी जैसे बछड़ा गाय का दूध पीता है इसी वजह से अनवर का शरीर बहुत जल्दी अकड़ गया और सजिया ने पूरा वीर्य पी लिया। अनवर बहुत ही कामुक था उसका लंड रह रह कर फिर खड़ा हो जाता था इसलिए उसने चार बार फिर सजिया को चोदा एक बार गांड़ मारी और से गया। सजिया आज असीम आनंद पाकर सो गई । सजिया सुबह उठती उससे पहले ही उसकी चूत में लंड पड़ गया था। जब लंड ने चूत की दीवारों पर रगड़ना शुरू किया तब जाकर सजिया की नींद खुली। सजिया: तुम्हे लाज शरम नही आती अभी चार घंटे पहले ही तो सोई हूं।
अनवर: सो तो मैं भी रहा था लेकिन इसका क्या करूं ये मानता ही नहीं है।
सजिया: सो जाओ चुपचाप।
लेकिन अनवर चोदता रहा चूत के आगे सजिया भी हार गई उसे भी साथ देना पड़ा दोनों साथ ही बिस्तर पर गिर कर दोबारा सो गए।
 
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अपडेट-14
अगले दिन सजिया नीम के पास लगी महफिल में शामिल हो गई ताकि सविता और प्रेमा यह न कह सकें कि बलम के घर आने के बाद से दिखाई नहीं दे रही।......किंतु आते समय उसकी चाल बदली बदली सी लग रही थी सविता व प्रेमा देखते ही भांप गईं......
सविता: आते ही हैदर के पापा ने तेरी जवानी रगड़ दी लेकिन तू ऐसे टेढ़े मेढ़े पैर कैसे रख रही है वह तेरी पहले भी लेता था आज कोई नई बात थोड़ी है।
प्रेमा: सजिया कल रात तो पलंग पर सोने नही पाई होगी रात भर, ये तेरी चाल को क्या हो गया।
सजिया: कुछ नही सही तो चल रही हूं वो पैर में एक कांटा चुभ गया था।
प्रेमा: तू भी सजिया हम दोनो से झूठ बोलती है हम लोगों से क्या छिपाती है ऐसे तो हम भी आगे से कुछ नही बताएंगी।
सजिया: दीदी वो कल थोड़ा ज्यादा हो गया था रात में ।
सविता: दो दो बच्चों की महतारी (मां) हो गई है ....रात में ऐसा क्या हो गया जो तेरी चाल बदल गई।
सजिया: वो कल........कहकर सजिया ने दुपट्टे से अपना मुंह ढक लिया।
प्रेमा: बता बता शरमा क्यों रही है?
सविता (प्रेमा के कान में): कहीं हैदर के पापा ने इसकी गांड़ तो नही मार दी।
प्रेमा: पूछ के देख ले क्या पता इसीलिए शरमा रही हो।
सविता: इतना क्यों शरमा रही है कहीं फिजा के पापा ने तेरी गांड़ तो नही मार दी।
सजिया घूंघट के अंदर से ही धीमी आवाज में: हां
सविता: हे भगवान! तेरा मरद भी बंबई से पता नही क्या क्या सीख के आया है हम सब तो अभी तक सिर्फ गाली में ही इस्तेमाल करते थे उन्होंने तो तेरी सच में ही मार दी वह भी पहली ही रात में ।
प्रेमा: हमारी इतनी उमर हो गई हमने तो किसी से नहीं मरवाई।
सजिया जो इतनी देर से दबाव महसूस कर रही थी एक ही लफ्ज में दोनो को परास्त कर दिया: अब मरवा लो बहुत मजा आएगा।
प्रेमा: हे भगवान! देख रही हो सविता सजिया आज कैसी कैसी बात कर रही है।
सविता: सही तो कह रही है रोज दिन में चार बार गांड़ खुजलाती हो मरवा लो सारी खाज मिट जाएगी।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
आज काल्हि करबू गोरिया नखरा देखइबु दुइ दिन मा माटिया के मोल होइ जइबू।
लड़े लड़ावे में ढली जवनिया तौ पिछवा के रानी बहुत तू रोइबू खूब रोइबू... बहुत तू रोइबू ।
चढ़ली जवनिया के ले ला मजा रानी नाही तौ पिछवाऽऽ बहुत पछितइबू।
पछितइबू ... बहुत पछितइबू।।
प्रेमा: हट हरामजादी तू मरवा ले तुझे ज्यादा खुजली है लेकिन गाना बहुत अच्छा गाया है।
सविता: मै तो मरवा लेती लेकिन अंबर के पापा ने कभी इच्छा नही जताई तो मै भी मन में रखकर रह गई।
प्रेमा: तो हैदर के पापा से मरवा ले।
सजिया: छी! चुप करो अंजली के मम्मी जो मन में आता है बोल देती हो।
प्रेमा: तू इसको भी रोक न ये भी तो ऐसे ही मनमर्जी बोल देती है। और तेरे मरद ने आते ही तेरी गांड़ कैसे मार दी कुछ बताएगी?
सजिया: तुमने ही कहा था शुरुआत में ही चूत में लंड ले लेना मैने वैसे ही किया था चूत सूखी थी तो उन्होंने थूक लगाया लेकिन वो चूत की बजाय गांड़ में लग गया और प्यासा लंड सरक के गांड़ में घुस गया ........
सविता और प्रेमा: फिर!
सजिया: फिर क्या मेरी गांड़ में पहली बार ऐसा कुछ घुसा था मेरी गांड़ ने सिकुड़ के लंड को पकड़ लिया और हैदर के पापा ने जोर का झटका लगाया था उनका लंड रगड़ खा गया वो गुस्सा हो गए और मेरी गांड़ हलाल कर दी।
सविता: अब तू संभल के रहना अब तेरे दोनो छेद खुल गए हैं चूत में आग लग गई तो गांड़ में भी पकड़ लेगी फिर फायर ब्रिगेड बुलानी ही पड़ेगी फिजा के पापा अगर परदेश में रहे तो फायर ब्रिगेड कहां से आएगी?
प्रेमा: वो सब छोड़ तू मौका है हैदर को वह औषधि दे दिया कर जवानी में कदम रखा ही है उसने औषधि बहुत अच्छे से काम करेगी लेकिन उसकी उमर के हिसाब से औषधि के साथ दूध और घी भी सही मात्रा में देना नही तो सारी ताकत नीचे चली जायेगी और तेरा बेटा सूख जाएगा।
सविता: घी न हो तो बता देना मै दे दूंगी।
सजिया: मुझे ध्यान तो था लेकिन मैने सोचा पहले पहले दिन ही देना सही नही है .....आज ही शुरू कर दूंगी।
सजिया वापिस जा रही थी कि राजू और अंबर एक पेड़ की ओट में बैठकर बातें कर रहे थे और रेडियो में कैसेट लगाकर अवधी गाना सुन रहे थे। बोल कुछ इस तरह से था:-

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माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.. का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।

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छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
छिप जाई सोना चांदी जवानी छिप ना पाई... बहियां में आजा रानी रवानी फिर न आई ।
जिन मारा नक्सा हमरा से कइ लेब अरहरिया में लंच हो ।
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी.....................
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
अंखियां तरेरा तारु हो.... लागता फोर देबू बम, हमरा के सीधा साधा समझिहा न मैडम
गांव भरे से ऊपर हई न हमरा जैसन कोई लंठ हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो। 🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
देखा तू आके सढ़ुआइन नजर हमसे लड़ाला नसा मा आके नस गोरिया हमसे सटाला..... दूर दूर तू उड़िला रानी लागल बा तोहरेऽव पंख हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
माल बड़ा तू चोखा हऊ और कबो का लोका हऊ बाकी बनावट टंच हो,
मौका मिली तौ रगड़ देब जवानी का करिहैं मुखिया अउर पंच हो।
सजिया बुदबुदाते हुए निकल गई: इनको शरम भी नही आती कैसे कैसे गाने सुन रहे हैं। लेकिन आगे बढ़ने पर जब गाने का अर्थ समझ आया और पुरानी बातें याद आईं तो सजिया को लगा ये तो सच में किसी की भी जवानी रगड़ सकते हैं लेकिन सजिया ने ध्यान हटाकर हैदर पर केंद्रित कर लिया।
उधर अनवर ने एक महीने तक सजिया का खूब रस चूसा रोज दूध पीता था चूत पीता था तीन दिन में एक दिन गांड़ मारता था। सजिया का दूध ऐसे बनने लगा था जैसे उसका कोई दुधमुंहा बालक हो।
साथ ही अनवर ने जाने से पहले अपनी कमाई से शौचालय भी बनवा दिया ताकि सजिया व उसके बच्चों को बाहर न जाना पड़े शौच करने।
लेकिन जाने से पहले अनवर ने अपने लाए हुए कपड़े पहनाकर सजिया की अंतिम दिन, रात दो बजे तक गांड़ और चूत मार मार के सुजा दी और उसने अपना वीर्य हर बार चूत में ही गिराया उसकी इच्छा थी कि सजिया एक बच्चों की मां और बने तीन वैसे भी कोई ज्यादा नहीं है। सजिया ने अपने अकेलेपन का हवाला देकर दो दिन पहले ही जिद करके हैदर की टिकट रद्द करवा दी थी । सजिया ने आंसू पोंछते हुए उसे विदा कर दिया......तब तक देखती रही जब तक आंखो से ओझल नहीं हो गया..... उसे वह लोकगीत याद आ गया:
रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सहबवा के सैंया मोरे नौकर, रे बलमा मोरे नौकर,
गोली दागै घायल कर जाए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन पिया को लिहे जाय रे!”
इस रात सजिया को नींद नहीं आई ।
फिलहाल उसने संतोष किया कि हैदर तो कम से कम घर पर है। उसने अपना दिमाग अपने बेटे को जवानी में काम आने वाले अस्त्र को पुष्ट करने में लगाया जिसमे धार लगाने के लिए मिली औषधि की भारी कीमत सजिया ने चुकाई थी ।
 
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अपडेट-15
राजू और अंबर की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था उन्हें घर के सभी रिश्ते भी समझ में आ गए थे उन्हें यह भी पता चल गया था कि गांव में किसी के साथ आशिकी या अंतरंग संबंध बनाए तो धोखा हो सकता है मां बाप कि इज्जत मट्टी में मिल जाएगी। लेकिन आयु की वजह से लंड आए दिन रात के दूसरे पहर में उल्टी कर ही देता था लेकिन क्या किया जा सकता है बेचारों ने सह लिया और अपनी किस्मत समझ कर खुद को दिलासा देते रहे। सविता और प्रेमा को भी धीरे धीरे विश्वास हो गया था कि औषधि का सेवन बंद कर दिया गया है लंड की अधिक लंबाई धीरे धीरे उसके बच्चे समायोजित (एडजस्ट) कर लेंगे। जमुना प्रसाद आज फिर दोनो बछड़ों को खेत पर ले जा रहा था प्रेमा किसी काम में लगी थी सविता ने राजू से खोलने को बोल दिया बछड़ा रस्सी खुलते ही राजू को खींचने लगा प्रेमा या सजिया होतीं तो रस्सी छोड़ देतीं लेकिन राजू मर्द था उसने उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन उस बिगड़ैल बछड़े ने एक झटका दिया कि रस्सी राजू के हाथ से छूट जाए लेकिन राजू दुर्भाग्य से झटके में गिर गया और करीब दो मीटर तक घसीट उठा। सविता को शुरुआत में ही लगा था कि रस्सी छोड़ने को बोल दे लेकिन बाद में उसे भरोसा हो गया था कि राजू इसे संभाल लेगा। अचानक हुए घटनाक्रम में सविता ने राजू को हाथ देकर उठाया और चुप रहने का इशारा करते हुए अपने घर ले गई।
सविता: राजू थोड़ी देर बैठ मै आती हूं।
राजू: चाची! सुनो तो......
सविता: कंचन के पापा! राजू का बछड़ा मुझसे रस्सी छुड़ा के भाग लिया।
जमुना: अभी देखता हूं। ई ससुरा बहुत बिगड़ैल है .....खेत में चलना सीख जाए तो जल्दी ही इसको चंद्रभान भइया से पूछकर इसको बेंच आऊंगा।....और जाकर बछड़े को कुछ देर दौड़ाया ताकि थक जाय फिर उसे हाथ से ही दो हाथ मारा क्योंकि खेत में ले जा रहा था इसलिए पीटना सही नही समझा।
सविता भागते भागते वापिस आई।
सविता: हे राजू! राजू: हां चाची.....क्या हुआ?
सविता: कुछ नही रे! तुझे कहीं चोट तो नही लगी?
राजू: कुछ नही दाहिने पैर का घुटना थोड़ा छिल गया है। और बाएं हाथ के बल झटके से गिरने पर ज्यादा जोर आ गया था मरोड़ जैसा दर्द है इसमें। लेकिन आप इतनी क्यों परेशान हो रही हो।
सविता: अरे राजू बेटवा! अगर चोट अंबर को लगी होती तो मैं परेशान नहीं होती । तुम्हारी मम्मी को पता चल जाएगा तो मुझे बहुत सुनाएंगी कि मेरे बेटे को इसी ने चोटिल करवा दिया।
राजू: कुछ नही होगा चाची।
सविता: तुम हाथ की चोट एक दो दिन छिपा लेना बस बाकी घुटने में दर्द होगा नही उसमे भी जल्दी पपड़ी बन कर निकल जाएगी।
राजू: ठीक है चाची मै चलता हूं।
सविता: रुक हल्दी तेल लगा देती हूं। एक घंटे रुक जा फिर हल्दी धुल कर चले जाना और घुटने में एक मरहम है वो लगा देती हूं।
राजू अब जब बड़ा होकर महिलाओं से दूर हुआ था उसके बाद से अचानक आज ही किसी महिला के इतने करीब आया था वह भी कोठरी में जिस बिस्तर पर सविता रात को सोती थी.....हां वहीं ले आई थी सविता सबसे छिपा के जो रखना था । उसने बहुत नियंत्रण की कोशिश की लेकिन उसके नागराज ने चाची के पसीने से चूत तक की खुशबू सूंघ ली थी इसीलिए बाहर झांकने का प्रयास करने लगे । राजू फंस गया था खड़ा लंड लेकर खाट पर से उठ भी नही सकता था और उधर सविता हल्दी तेल लाने गई थी। उसे जैसे ही सविता के कदमों की आहट सुनाई दी उसने अपना पेट खींच कर किसी तरह नागराज को चित कर दिया लेकिन उसने गलती कर दी थी.......वह नागराज के अगले दांव से अनजान था जैसे ही सविता राजू के पास आकर खाट पर बैठी नागराज ने दोगुनी तेजी से सिर उठाया बाहर झांकने के लिए अब एकमात्र बचे विकल्प का इस्तेमाल किया उसने एक हाथ से चुपके से लंड को दबाए रखा लेकिन इस बार दोबारा और बड़ी गलती हो गई दूसरे हाथ में दर्द था ।
सविता: पैंट ऊपर करले बेटा घुटने में मरहम लगा देती हूं।
राजू: पहले हाथ में हल्दी लगा दीजिए।
अगर दाएं हाथ से लंड को नही दबाए होता तो खुद ही हल्दी लगा लेता इसलिए ऊपर लिखे वाक्य को उसने इतने प्यार भरे लहजे में पहली बार बोला था उसमें अजीब आकर्षण और लड़कपन था। सविता जैसे मोहित सी हो गई ।
सविता: ला बेटा पहले हाथ में ही लगा देती हूं।
सविता राजू का ऐसे इलाज कर रही थी जैसे वह वैद्य हो पूरी जिम्मेदारी से, इसीलिए ज्यादा प्यार बरसाने के कारण राजू की निगाहें सविता के वक्षस्थल का अवलोकन करने ही लगीं । सविता ने राजू को शांत देखकर उसका चेहरा देखा तब उसे समझ आया कि वह एक जवान का हाथ मल रही है न कि किसी बच्चे का उसने इस काम को फौरन समेटा और मरहम के लिए पैंट उठाने के लिए बोला। अब उसे बायां हाथ हटाना ही पड़ा, अंदर नागराज तड़फड़ा रहे थे सविता को शक था कि इसके बाएं हाथ में भी चोट है इसलिए उसके हाथ हटाने पर नजर गई तो ऊंचे उभार और कसक को देखकर वह कारण नही समझ सकी कि आखिर इसका लंड खड़ा क्यों है क्या यह मेरे बारे में .........नही नही राजू मेरे अंबर की तरह अच्छा बेटा है ......फिर उसे समझ आया उसे दया आ गई बेचारे गबरू जवान मेरे राजू और अंबर इनकी अभी शादी भी हाल ही में नही होने वाली इनका भी क्या कसूर है ऊपर से सजिया ने और तंग कर दिया।
राजू: ठीक है मैं चलता हूं।
सविता: रुक कहां जा रहा है आराम कर ले ।
राजू: नही चाची चलता हूं देर हो गई अभी मम्मी पूछेंगी कहां था।
सविता: तो क्या कहेगा।
राजू: यही कि अंबर की मम्मी के पास।
सविता मन में ( हे भगवान ये अजीब लड़का है बातें बचकानी करता है और औजार पैंट में नही समा रहा....प्रेमा ये सब सुन गई तो पता नही क्या मतलब निकालेगी)
सविता: नही बेटा कह देना अंबर के साथ बातें कर रहा था।
राजू: लेकिन वह तो मेरी मम्मी के साथ गया है बीज बोने में मदद करने.......वह बराबर दाने छिड़कता है न! मुझसे ज्यादा कम हो जाता है।
सविता निरुत्तर हो गई ।
सविता: ठीक है बेटा फिर तो तू बोल देना मै घर ही था और तेरी मम्मी आ गई हों तो बोल देना यही टहल के आ रहा हूं।
प्रेमा: अंबर! इधर आ बेटा।
अंबर: क्या हुआ बड़की मम्मी।
प्रेमा: मै पूछ रही थी वो खेत में बीज बोना था राजू के पापा रिश्तेदारी गए हैं बीज भिगोया हुआ है सड़ जाएगा फुरसत हो तो साथ चलेगा।
अंबर: क्यों नही चलूंगा? चलो।
बड़ी मम्मी के साथ चलने के कारण अंबर को ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई बड़ी जिम्मेदारी संभालने जा रहा है ।
प्रेमा और अंबर बीज बोने आए थे दोनो के मध्य कोई अश्लील विचार नहीं था किंतु अंबर का बड़ा लंड फास्फोरस का घर था कोई तीली लगा दे तो आग बन जाए उससे तो जवानी इतनी बर्दाश्त नहीं होती थी कि वह सविता को भी चोरी छिपे पेशाब करते हुए देखने की सोचता था लेकिन कभी सफलता हाथ नहीं लगी। कई घंटे बीत गए घर से खाया हुआ खाना पाचन ग्रंथियों ने पचाकर गुर्दे ने पानी अलग कर दिया प्रेमा को पेशाब लग गई बाग दूर था । उसकी बेचैनी से अंबर का अश्लील मस्तिष्क जाग गया वह भांप गया बड़ी मम्मी को पेशाब लगी है आज उसे चुदी चुदाई ही सही किसी बुर के दर्शन तो हो जायेंगे। प्रेमा ने भी अंबर से यह कहने में हिचकिचाहट महसूस की कि बेटा थोड़ा उधर देखना मै पेशाब करती हूं। प्रेमा को लगा कि सामान्यतः पेशाब करूंगी तो अंबर का भी ध्यान नहीं जाएगा।
अंततः प्रेमा कम से कम बीस कदम दूर मेड़ के बगल बैठकर पेशाब करने लगी। अंबर के शातिर दिमाग ने इतनी तेज काम किया कि वह बीज छींटकते हुए मेड़ के किनारे से ही गुजरा हालांकि नजर बिलकुल सीधी थी किंतु तीन सेकंड के लिए उसने नजर प्रेमा की गांड़ पर टिका दी थी लेकिन आधी गांड़ ही दिख रही थी आधी तो साड़ी से ढकी हुई थी। लेकिन पेशाब की धार से पता चल रहा था कि प्रेमा चावल खा कर आई थी तभी उसे पेशाब पहले लग गई और कुकर की सीटी खेत में चूत बजा रहा थी।
अंबर का लंड आधी गांड़ देखकर ही पूरा बाहर आने का प्रयास करने लगा किंतु अंबर तो चल रहा था इसलिए लंड नीचे से बाहर निकलने का असफल प्रयत्न कर रहा था क्योंकि पैर की लंबाई तो बेहद अधिक थी। प्रेमा ने देखा तो सोचा कि ई अंबरवा कौन पेन रखा है जेब में ई तौ बहुत मोटी दिखाई पड़ रही है।
अंबर: राजू के मम्मी चलो हो गया बीज भी खतम हो गया और पूरे खेत में पड़ भी गया।
प्रेमा: एक बात बता ई कौन सा पेन रखा है जेब में छोटा रेडियो है का?
इतना सुनते ही लंड महोदय अंबर की मदद के लिए चुपके से छिप गए।
अंबर: कुछ तो नही है ।
प्रेमा ने दोबारा देखा तो वहां कुछ नही था बेचारी बोल के पछता रही थी।
प्रेमा (मन में): अरे ये तो लिंग था अंबर का प्रेमा तू भी बिना सोचे समझे फट से प्रश्न पूछ बैठती है। लेकिन इसका लिंग खेत में मेहनत करते हुए कैसे सख्त हो सकता है कहीं मेरी गांड़ देखकर तो नही......
प्रेमा ने खेत में मदद करवाई थी इसलिए उसने अंबर को पहले राजू के बिस्तर पर बिठाया बेना ( पंख) झला उसके बाद गुड़ देकर पानी पिलाया ।
प्रेमा: पान सुपाड़ी तो खाता नही होगा बेटा?
अंबर: नही नही आप परेशान मत होओ.
प्रेमा: बेटा थोड़ी देर आराम कर ले तो मुझे भी अच्छा लगेगा संतुष्टि मिलगी ख्वामखाह धूप में तुझे परेशान कर दिया।
आराम के दौरान विश्राम कर रहे लंड महाशय फिर विचरण करने निकल पड़े फूलकर पैंट में ही गुबार बन गए।
प्रेमा (मन में): सजिया तूने तो कमाल कर दिया राजू और अंबर अब किसी घोड़े से कम नहीं बस इन बेचारों की जवानी संभल जाय ।
ये दोनो ही घटनाएं प्रेमा और सविता के लिए सामान्य थीं लेकिन राजू और अंबर के लिए डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था। एक बार मन कह रहा था ये सब गलत है तभी लंड की प्रेरणा से अश्लील मस्तिष्क कहता था भोग तो नही सकता लेकिन एक बार दर्शन करने में क्या हर्ज है फिर मैं अपनी मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की थोड़ी सोच रहा हूं मैं तो राजू की मम्मी / अंबर की मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की सोच रहा हूं।
अरहर में प्रेमा शौच के लिए गई थी कि शौच से निवृत्त होकर बाहर आई अरहर और गेहूं के बीच बने मेढ़ पर चल कर वापिस जा रही थी कि तभी अंबर जो कि शाम की वजह से दूर शौच करने गया था सिर नीचे की ओर करके मस्ती में आ रहा था कि तभी एक नीलबैल (नीलगाय का नर रूप जिसके नुकीले सींग होते हैं) उसकी ओर दौड़ता हुआ दिखाई दिया यह वही नील बैल था जो बाबा की कुटिया के पास गोबर करता था 😀 । दरअसल नीलबैल को किसी ने अपने खेत में चरते हुए देख कर उसे ह् वा ह् वा कर के भगा दिया था रास्ते में छिपने की जगह न पाकर वह अरहर की ओर भागा था लेकिन अंबर को देखकर उसे लगा कि लोग उसे घेर रहे हैं और वह सरपट बाग की ओर भागा । नीलबैल और बाग के बीच ऐसा कोण बन रहा था कि अंबर को लगा वह उसकी ओर आ रहा है। अचानक अंबर गांव की ओर भागा जब प्रेमा से पांच फीट दूरी रह रह गई तब उसका ध्यान प्रेमा की ओर गया।


प्रेमा पीछे मुड़ी राजू ने अपनी रफ्तार पर ब्रेक लगाई और अनियंत्रित होकर प्रेमा को लेकर गेंहू के खेत में ही लोट गया ।

अंबर ऊपर होता तो झट से उठ जाता लेकिन वह नीचे आ गया था ऊपर प्रेमा थी पहले तो दोनो को कुछ समझ ही नही आया प्रेमा का वक्षस्थल अंबर के सीने पर रख उठा वह प्रेमा के उठने का इंतजार करने लगा प्रेमा की साड़ी अस्त व्यस्त हो गई थी ...... दोनों को एक दूसरी के शरीर की गरमी महसूस हो रही थी....जोर लगाकर किसी तरह प्रेमा उठ गई अपना आंचल ठीक किया ।

प्रेमा जब उठने के लिए जोर लगाई तो अंबर का मन कह रहा था कि दोनो हाथ से पकड़ के इसी गेहूं में बेलन की तरह घूम जाए लेकिन हिम्मत नही हुई।

अंबर ने पूरा घटना क्रम सुनाया।

प्रेमा: अंबर बेटा तुझे बुखार है क्या?

अंबर: नही तो।

प्रेमा (मन में): शरीर तो इसकी दहक रही थी।
 
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अपडेट-15 का शेष
सजिया महफिल में शामिल होने दोपहर में जा रही थी । दोपहर मे अक्सर महिलाएं समय व्यतीत करने निकलती हैं तो शृंगार जरूर करके निकलती हैं ....तो सजिया सज धज कर काजल लगा कर निकली थी।
रास्ते में राजू और अंबर एक अवधी गाना सुन रहे थे -
केह पर गाज गिरे भगवान....के...के.. केह पर गाज गिरे भगवान।🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
केह पर गाज गिरे भगवान.... केह...केह.. केह पर गाज गिरे भगवान।🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶
एहरो तनिका देदा ध्यान चला खियाई मीठा पान...बड़ा मशहूर पान बा हो🎶🎶🎶🎶
एहरो तनिका देदा ध्यान चला खियाई मीठा पान
एहरो तनिका देदा ध्यान चला खियाई मीठा पान
सुंदर मुखड़ा चाल शराबी लाल लाल होंठवा गाल गुलाबी काला तिल डिंपल के निशाऽऽऽऽन
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवान।
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवाऽऽऽऽन।🎶🎶🎶🎶🎶
नाजुक नाजुक नॉटी नजरिया ब्यूटीफुल परफेक्ट कमरियाऽऽऽ....... ओये....होये
ओहो.हो..नाजुक नाजुक नॉटी नजरिया ब्यूटीफुल परफेक्ट कमरिया
व्हाइट व्हाइट गाल पै गोरी रेड लिपिस्टिक कय दुइ धरिया
लागे जइसे जवानी के खूंटा से तू हइव पुराऽऽऽऽन
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवान।
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवाऽऽऽऽन .....
केह पर गाज गिरे भगवान....के...के.. केह पर गाज गिरे भगवान।
तिरछी नजर से जब देखात्यु....कसम से दिलवा तूर दिह्यू तू
हां हां ..तिरछी नजर से जब देखात्यु कसम से दिलवा तूर दिह्यू तू
बाली उमरिया रूप सलोना न केहू के लग जाए टोना
पीछे पीछे घूमे दिवाकर हथवा में लइके लोहबाऽऽऽन
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवान।
एहरो तनिका देदा ध्यान चला खियाई मीठा पान
सुंदर मुखड़ा चाल शराबी लाल लाल होंठवा गाल गुलाबी काला तिल डिंपल के निशाऽऽऽऽन
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवान।
बन ठन के कहां चलिउ ज्वान केह पर गाज गिरे भगवाऽऽऽऽन।🎶🎶🎶🎶🎶

शुरआत में तो सजिया ने नजरंदाज किया लेकिन जब 'एहरो तनिका देदा ध्यान चला खियाई मीठा पान' पंक्ति आई तो उसकी नजर राजू और अंबर की ओर चली गई।
उन दोनो ने हंस दिया क्योंकि गाना सजिया से मेल खा रहा था।
सजिया (मन में): ये दोनों पता नही हमेशा गाना सुनते हैं या फिर जब मैं आती हूं तभी?
लेकिन ये दोनों हंस क्यों रहे थे?
अंबर: राजू वो देख माल!
राजू: अरे ये तो हैदर की अम्मी हैं।
अंबर: हां तो किसी माल से कम थोड़ी हैं
राजू: हां दुहने को मिले तो सुबह शाम मिलाकर कम से कम डेढ़ लीटर प्रतिदिन तो देंगी ही।
अंबर: ज्यादा ही देंगी। चूतड़ देख कैसे बाएं दाएं डोल रहे हैं।
राजू: हां भाई! हैदरवा के घर में तो जबरदस्त माल है।
 
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अपडेट- 16
चंद्रभान और जमुना की बड़ी ट्यूबवेल साझे में थी जो खेत दूर था उसके लिए किन्तु घर पर साग सब्जी उगाने के लिए छोटे खेत के लिए केवल चंद्रभान की ट्यूबवेल थी।
उसी ट्यूबवेल से सविता ने राजू को कहकर पानी लगाया था बरसीम का छोटा खेत जल्द ही भर गया बगल के खेत में आलू बोई हुई थी जो कि खोदने लायक हो गई थी......सविता की साड़ी नीचे पैरों के पास भीगी हुई थी....उसने तेजी से चलकर पानी बंद करवाना चाहा.....किंतु साड़ी में पैर अटक गया और वह गिर पड़ी..छपाक से... बरहे (सिंचाई हेतु पानी की नाली) में पूरी क्षमता से पानी जा रहा था और मिट्टी भी पिघल गई थी ......सविता की छातियों और एक तरफ के बाल में भी रेत जैसी मिट्टी घुस गई...... छपाक की आवाज सुनकर राजू दौड़कर आया अपनी चाची को पकड़कर उठाया।
राजू: क्या हुआ चाची कैसे गिर पड़ीं।
सविता: अरे बेटा पानी बंद कर पहले इसी के लिए मै तेज चलके आ रही थी साड़ी की वजह से गिर गई।
राजू जाते हुए: तो आवाज लगा देती दौड़ने की क्या जरूरत थी।
सविता पीछे पीछे आते हुए: बेटा मुझे थोड़ी मालूम था गिर जाऊंगी।
राजू: ठीक है आप जाओ जल्दी से नहा लो।
सविता: इसे ही फिर चला दे न टंकी में ही नहा लूं ....कहां जाऊंगी कीचड़ लपेट कर घर पर भी सब हंसेंगे।
राजू: लेकिन पानी कहां जाएगा?
सविता: इसी छोटे गड्ढे में काट दे पशुओं के लिए भी पानी भर जाएगा फिर पांच मिनट का ही तो काम है।
राजू: चला तो देता मै लेकिन उसमे पानी काट कर मै नहाऊंगा।
सविता: मै नहाऊंगा.....जैसे तू नहाएगा वैसे मै भी नहा लूंगी।
राजू ने पानी चला दिया सविता ने टंकी में डुबकी लगाई लगभग सारी मिट्टी जो ऊपर से दिख रही थी छूट गई।
लेकिन राजू नहाने नही उतरा उसे शरम आ रही थी सविता को लगा मेरी वजह से ही बेचारा नही नहा रहा है अब नल से पानी भर कर नहाएगा और रूष्ट भी हो जाएगा।
सविता टंकी से शरीर की मैल साफ करने की मुद्रा में बाहर निकली राजू को धकेल कर गिरा दिया टंकी में।
सविता: चल बड़ा आया ख्वामखाह ही शरमा रहा है तू नहा ले मै बाहर हूं.....बाहर आ जा मै नहा लूं...बस हो गया ....।
जब राजू अंदर होता तो सविता बिना उसके निकलने का इंतजार किए ही घुस जाती लेकिन झट से राजू बाहर आ जाता....आता भी क्यों न शरम के बहाने स्तन के भी दर्शन हो रहे थे क्योंकि सविता टंकी में घुसकर बालों और चूंचियों में घुसी मिट्टी निकाल रही थी।
राजू ने भी टंकी में गिरने के बाद शर्ट तो उतार दी लेकिन पैंट नही उतारी क्योंकि उसे लंड का कारनामा पता था।
दोनो नहाकर बाहर आए सविता भागते हुए घर गई कपड़े बदलने और राजू ने भीगे कपड़े में ही ट्यूबवेल बंद की और घर चला गया......इस घटना ने राजू के मस्तिष्क में पानी के कारण सविता की बाहर से झलक रही चूंचियों का वास्तविक दर्शन करने की तीव्र इच्छा जगा दी।
चूंकि यह घटना नहाते वक्त घटी थी इसलिए राजू को लगा कि नहाते हुए ही चाची के चूचों के दर्शन किए जा सकते हैं ।
उसने अस्थाई स्नानघर में मौका पाकर झांकना शुरू कर दिया । चूंकि सविता तीन बच्चों की मां थी इसलिए वह नहाते समय इतना ध्यान नहीं देती थी उसे यह उम्मीद भी नही थी कि कोई उसके स्तन देखने के लिए स्नानघर में झांकेगा यही कारण था कि राजू बचता रहा। एक दिन वह ईंट खिसक गई जिस पर खड़ा होकर वह झांकता था तीन चार ईंटें एक साथ गिरीं राजू नौ दो ग्यारह हो गया......सविता झट से बाहर निकली कोई नही दिखा..... चार पांच ईंटें दिखीं लेकिन ये क्या ये ईंटें तो ऐसे लग रहा था जैसे महीनों से रखी हों ....दोबारा आ कर नहाने लगी ....उसे यह तो मालूम हो गया था कि उसे कोई कई दिन से निहार रहा है लेकिन कौन है यह अंदाजा नही लगा पाई......वह अपने स्तन देखकर मुस्कुरा उठी जो धीरे धीरे सख्त हो रहे थे।
सविता भी कम शातिर नही थी ....उसने फिर लापरवाही करनी शुरू कर दी और एक दिन रंगे हाथ पकड़ लिया राजू को।
किंतु सविता ने हो हल्ला करने की बजाय दिमाग से काम लिया उसे पकड़कर अपने शयनकक्ष में ले गई।
राजू: माफ करदो चाची!
सविता: क्या देख रहा था बेटा?
राजू: कुछ नही?
सविता: तू महीने भर से झांक रहा है मुझे पता है सच सच बोल दे वरना तेरी मम्मी से बताऊंगी तब तू सुधरेगा।
राजू: ये देख रहा था।
सविता: ये क्या?
राजू: आपका दूध।
राजू: दोबारा ऐसी गलती नही होगी माफ करदो चाची।
सविता: ठीक है जा दोबारा ऐसी हरकत की तो सीधा तेरी मम्मी से बताऊंगी।
राजू बेचारे ने पहला प्रयास किया था उसमे भी पकड़ा गया।
एक दिन पशुशाला के चढ़े छप्पर पर लगी सब्जी तोड़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन पहुंच नही रही थी पास ही राजू अपनी पशुशाला में चारा पानी दे रहा था।
सविता: राजू चल सब्जी तोड़ दे मैं पहुंच नही रही हूं।
राजू: चलो चाची।
राजू भी नही पहुंच रहा था।
राजू: रुको मैं साइकिल लाता हूं...उस पर चढ़कर तोड़ लेना।
सविता: हां...और मैं गिर गई तो मेरा दांत भी तोड़ लेना। हाथ से ही उठा दे थोड़ी कसर तो रह रही है।
राजू ने कमर पकड़ी और उठा दिया सविता ने सब्जी तोड़ी ...राजू ने पहली बार किसी महिला को अपनी बाहों में पकड़ा था वह उतार ही नही रहा था।
सविता: नीचे उतार बेटा! आज के लिए बहुत हो गई सब्जी।
सविता को आज किसी कुंवारे लड़के के बदन की गर्मी का एहसास हुआ था।
मास्टरमाइंड तो लंड महोदय थे वही ये सब कर रहे थे उन्हें तो सभी बाधाएं पार करके चूत में प्रवेश करना था।
सविता अपने दूर वाले अरहर के खेत में जोंधरी (बाजरे का एक प्रकार जो अरहर के साथ बो दिया जाता है और भुट्टा निकलने पर काटा जाता है) काटने जाया करती थी।
राजू भी दूसरे छोर से प्रवेश कर जाता था सोचकर जाता था कि पीछे से पकड़ लूंगा चाची को लेकिन गांड़ फट जाती थी वापस आ जाता था।
एक दिन सविता ने साड़ी उठाई और मूतने लगी सूर्र सुर्र सूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूू ूूूूर्र सुर्र राजू को सविता की नंगी गांड़ दिख गई गोरी गोरी गोल बड़ी गांड़ लंड को पैंट से बाहर निकाला पीठ दूसरी ओर की दोनो हाथों से मुट्ठ मारने लगा। औरतों की आदत होती है मूतने पहले इधर उधर देखेंगी और मूतने के बाद भी....कोई है तो नही ....पहली बार तो राजू बैठा हुआ था बच गया लेकिन दूसरी बार सविता की गांड़ देखने के लिए खड़ा हो गया था और मुट्ठ मार रहा था सविता ने देख लिया राजू खड़ा है उसका पैंट ढीला है दोनों हाथ आगे पीछे कर रहा है।
सविता (मन में) : हे भगवान मेरा पीछा करते करते यहां तक आ गया .....क्या करूं इसका प्रेमा से बताऊं तो मुझ पर ही शक करेगी, इसके पापा से ये सब कह नहीं पाऊंगी कह भी दिया तो इसकी हड्डी पसली एक कर देंगे। इसी से बात करनी पड़ेगी।
एक दिन राजू अरहर के खेत में छिप कर बैठा था घुटनों के बल हाथ में लंड लिए.....तभी सविता ने आवाज लगा दी राजू बेटा क्या कर रहे हो इसमें शौच मत किया करो इसमें मै जोंधरी काट कर ले जाती हूं। और उसी की ओर आगे बढ़ने लगी उसे तो पता ही था ये शौच करने नही आता।
राजू की फट गई बेचारे ने आज पजामा पहना था जो लंड को संभाल नही पा रहा था और तंबू बन जा रहा था।
राजू: हां ...हां! चाची नहीं आऊंगा ।
और बाहर निकलने लगा।
सविता: रुक बेटा रुक कहां जा रहा है।
राजू रुक गया ।
सविता: अरे बेटा तेरा लोटा कहां है।
राजू: लोटा नही है।
सविता: तो क्या कर रहा था यहां?
राजू: कुछ नही भुट्टा ले जाने आया था चूल्हे में भूनकर खाता हूं।
सविता: तो तेरी हंसिया कहां है? किससे काटेगा?
राजू: हाथ से तोडूंगा।
सविता: चुपकर! मुझे बेवकूफ मत बना । हाथ से तू क्या तोड़ता है मुझे अच्छी तरह मालूम है। सच सच बता यहां क्या करने आता है वरना इस बार सीधे तेरे पापा से बताऊंगी।
राजू: नही नही पापा से मत बताना आपके पांव पड़ता हूं।
सविता: जल्दी बता फिर।
राजू: मुट्ठ मारने आता हूं।
सविता: तो इसके लिए यहां आने की क्या जरूरत है? कलमुहे! घर में मार लिया कर जब जवानी नही संभलती।
राजू: आपके ये देखकर मारने में आनंद आता है।
सविता: ये क्या?
राजू सिर नीचे करते हुए: आपके चूतड़।
सविता (मन में): अब क्या करूं ये तो पीछे ही पड़ गया है आगे वाला छेद देख लिया तो क्या कर बैठेगा कुछ पता नहीं।
सविता कुछ देर के लिए निरुत्तर हो गई । उसे गुस्सा आ गया।
सविता ने ब्लाउज के बटन खोलकर राजू के सामने परोस दिए
सविता: ले देख ले जी भर ले मेरे पीछे क्यों पड़ा है तू ....तेरे साथ साथ मेरे ऊपर भी लांछन लग जाएगा।
राजू को दूध भरी चूंचियां देखकर लालच आ गया आपा खो बैठा और एक चूंची मुंह में भरकर पीने लगा।
सविता का गुस्सा दिखाकर सद्बुद्धि लाने वाला दांव फेल हो गया ....अब वह हटा भी नही सकती थी चूचक में दांत लग जाता....बेचारी सिसियाती रही और राजू एक चूंची तब तक पीता रहा जब तक कि दूध आना बंद नही हो गया।
राजू ने दुग्ध पान करने के बाद रुकना ठीक नही समझा और जाने लगा तभी सविता ने उसका हाथ पकड़ लिया ....सविता को पता था एक चूंची खाली हो गई और एक भरी रह गई तो रात में दर्द करेगी...
सविता: इसे कौन खाली करेगा?
राजू दूसरी चूंची पकड़ कर पीने लगा। इस बार सविता ने कहा था इसलिए वह चूचियों को मसल मसल कर पीने लगा। कुंवारे लड़के के स्पर्श से सविता की दुग्ध ग्रंथियों से लेकर योनि कि रक्तवाहिनियां तक सक्रिय हो गईं उसे पता चल गया था आज चूत राजू का लंड लिए बिना नही मानेगी आग भड़क चुकी थी लेकिन तीली तो स्वयं नहीं मार सकती थी ....वह इंतजार कर रही थी कि राजू कोई पहल करे लेकिन राजू ने इतना बड़ी हिम्मत करके चाची की चूंचियों को चूस लिया था उसकी गांड़ फटी हुई थी उसका लंड भी अब कह रहा था अरहर से बाहर हो जा राजू।
राजू: ठीक है चाची मै चलता हूं।
सविता: बेटा तू यहां क्या करता था पूरा विस्तार से बता तभी जाएगा तूने मेरा दूध भी पी लिया हां।
राजू डरते हुए: बताता हूं चाची।
राजू: मै आपके मूतने का इंतजार करता था।
सविता: उसके बाद।
राजू: आपके चूतड़ देखता था।
सविता पेटीकोट सहित साड़ी उठाकर मूतने लगी।
सविता: फिर क्या करता था।
राजू : अपना लिंग निकालकर आगे पीछे करता था।
सविता: जैसे मैने मूत कर दिखाया वैसे करके दिखा।
राजू ने अपना लंड निकाला जो कि नजदीक से गांड़ के दर्शन करने के बाद उसी छेद में घुसने के लिए लालायित हो गया था......सविता के निर्देश अनुसार .....मुट्ठ मार कर दिखाने लगा ।
सविता अचंभित रह गई 10 इंच लंबा कुंवारा लंड देखकर उसने हाथ में पकड़कर महसूस करना चाहा.....उत्तेजना में आकर राजू ने सविता का हाथ लंड पर पकड़कर आगे पीछे करने लगा ....पांच मिनट तक रगड़ने के बाद सामने बैठी सविता के माथे पर फिर आंख पर नाक पर और रफ्तार कम होने पर होंठ पर वीर्य की पिचकारी फैल गई।
इस बार सविता को सामने का पेटीकोट उठाकर आंख साफ करने लगी तभी राजू को झांटों मध्य ध्यान से देखने पर दो गुलाबी रंग की फलकें दिखाईं दीं जिनके बीच से सफेद द्रव्य की पतली धार लगातार रिस रही थी। उसने उसकी गहराई नापनी चाही इसलिए उसने उसमे बीच वाली उंगली घुसाई उंगली पूरी अंदर घुस गई लेकिन राजू को छेद का अंत नही मिला।
अब जब लंड को अपना अंतिम लक्ष्य एकदम नजदीक दिख रहा था उसने पूरा जोर लगा दिया तड़फड़ाने लगा फन फुलाकर विष छिड़कने लगा।
अब सविता ने अपना दांव चला।
सविता: ठीक है जा बेटा तू जो चाहता था वह सब मैने दिखा दिया अब घर जा और इस तरह की हरकत मत करना।
राजू रूआंसा होकर: चाची एक बार दे दो बस......केवल एक बार।
सविता: क्या दे दूं मेरे पास क्या है?
राजू लंड को सहलाते हुए: अपनी बुर दे दो एक बार।
सविता: कैसे दे दूं निकाल कर खुद को लगवाएगा क्या?
राजू: राजू एक बार ये लंड इस छेद में घुसाने दो बस हाथ जोड़ता हूं ।
सविता: चल ठीक है तेरी खुशी के लिए यह भी सही जल्दी डाल के निकाल।
राजू लंड को हाथ में पकड़कर सीधा किया जो पता नही क्यों पेट की ओर भाग रहा था चूत पर लगाया और धीरे धीरे घुसाना शुरू किया टोपा तो रजोरस से भीगकर अंदर घुस गया लेकिन बाकी लंड अंदर नही जा रहा था।
सविता को पता था यह पहली बार कर रहा है इसलिए मुझे ही सहना पड़ेगा और सिखाना पड़ेगा।
सविता ने चूत को अधिकतम सीमा तक ढीली छोड़ दिया।
सविता: डाल अब देर क्यों कर रहा है?
राजू ने तीन चार बार में लड़ को अंदर कर दिया।
अब जब लंड अंदर प्रवेश कर गया तो प्यासी चूत ने उसे पकड़कर रखने किए कसना चाहा लेकिन चूत की पूरी त्वचा लंड की मोटाई को समायोजित (एडजस्ट) करने में लग गई थी इसलिए जब चूत ने कसना शुरू किया तो उसके किनारे फटने शुरू हो गए ।
सविता को तेज दर्द हुआ लेकिन आस पास खेतों लोगों के काम करने की संभावना थी इसलिए वह सहती रही इसीलिए उसकी आंख से आंसू छलक पड़े । वह यह भी जानती थी कि चाहूं तो एक बार में झटका देकर निकाल दूं लेकिन दोबारा ये फट चुकी चूत लंड नही लेने देगी जबरदस्ती डालने की इसकी हिम्मत होगी नही ।
राजू की पहली चुदाई थी गरम खून था उसने धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया ।
सविता का मन कर रहा था राजू की पीठ को खरोंच दे लेकिन उसने पीठ पकड़कर तेज तेज सहलाना शुरू कर दिया।
राजू कुछ पता नही था उसने प्रेमा को खूब कसकर पकड़ा और उत्तेजना में लंड को तेज गति से आगे पीछे करना शुरू कर दिया।
सविता की चूत के चीथड़े उड़ने लगे उसका सब्र का बांध टूट गया ....उसने राजू की बांह से निकलने का प्रयास किया लेकिन राजू ने बेहद तेजी से पकड़ा हुआ था।
सविता बेहद धीमी और पस्त आवाज में अपना दर्द बयां कर रही थी।
सविता: हे माई रे ई प्रेमा का घोड़ा जान ले लिहिस हमाऽऽऽर..... हाई रे कोई बचा ले इससे आहि रे माई मर गई ... सजिया रंडी का खिला दी लाके .......उसकी गांड़ में यही लंड डालूंगी.... हाय रे....बस कर राजू...चाची समझकर छोड़ दे...
ये आवाजें बेहद धीमी थी राजू को लग रहा था उसकी चाची जोश में बडबडा रही हैं ।
राजू को परम आनंद की अनुभूति हो रही थी उसने चूत को फ़ाड़ दिया था अब चूत से आवाज आ रही फच फ़च फ़च फच्च फच्च ।
करीब पंद्रह मिनट तक चोदने के बाद राजू झड़ गया।
सविता का शरीर अकड़ गया उसकी चूत हलाल होने के बावजूद तीन बार झड़ी थी उसका जो दर्द जोश में थोड़ा बहुत छिप गया था वह जाहिर होने लगा चूत ने ढेर सारा पानी भी छोड़ा ।
राजू ने जब चाची को अलग करना चाहा तब उसे पता चला उसकी चाची को तो चक्कर आ गया था ।
राजू डर गया उसने सविता को धीरे धीरे नीचे बैठाया अपने पैर पर सिर रखकर बिठाया साड़ी पेटीकोट सही किया ।शरीर के लेटने की मुद्रा में आने पर रक्त संचार संतुलित हुआ तो सविता होश में आई।
उसकी आंखों से बहे आंसू देखकर राजू बोला
राजू: क्या हुआ चाची रो क्यों रही हो।
सविता: कुछ नही बेटे। अब तू जल्दी घर जा नही तो समस्या खड़ी हो जाएगी।
राजू: आप कैसे आओगी?
सविता: सुन एक काम कर वो वहां मैने जोंधरी रखी है तू जल्दी जल्दी इतनी और काटकर दूसरी तरफ से जाकर मेरी पशुशाला में रख देना अगर वहां कोई हो तो अपनी में रख लेना बाद में मेरी वाली में रख देना।
सविता: मै किसी तरह आ ही जाऊंगी।
राजू ने अपना काम झटपट निपटा दिया।और सविता चाची का इंतजार करने लगा।
सविता आते हुए रास्ते में दो बार बैठ गई। किसी तरह घर पहुंची खाना भी खुद ही बनाया जबरदस्ती दर्द सहन करके। चुपके से रसोई में तेल गरम करके ठंडा किया अपने बिस्तर पर ले जाकर चूत पर मालिश किया । आज उसे किसी पर गुस्सा आ रहा था तो सजिया पर ।
सजिया और प्रेमा ने तो इससे भी बड़ा और मोटा लंड लिया था लेकिन वहां पर कोई न कोई मदद करने वाला था।
यहां तो सविता अपने दम पर चुदी थी चिल्लाने की भी गुंजाइश नहीं थी। सविता के मन में एक ही खयाल आ रहा था मौका मिला तो इसी लंड से सजिया की गांड़ मरवाऊंगी तब जाकर मुझे इस मामले में संतुष्टि मिलेगी... सजिया रंडी ने हमारे बच्चों को पता नही कौन सी दवा लाकर खिला दी....बेचारा अंबर किस स्थिति से गुजर रहा होगा यह भी देखना पड़ेगा।
 

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