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अपडेट-9...…
जमुना प्रसाद........
अपने बड़े भाई से सीखकर जमुना प्रसाद ने भी पशुपालन अपना लिया। जमुना प्रसाद खेती के काम तो संभाल देता था लेकिन पशुपालन के काम में हाथ नही बटा पाता था क्योंकि वह बैल खरीदने बेचने का भी काम करता था । प्रत्येक बुधवार को जब गांव से सात किलोमीटर दूर एक गांव में बाजार लगती तो वह पैदल ही बैलों को ले जाता था। कई बैलों को अपने खेत में चलाकर सुधारता था फिर उनके अच्छे दाम लगते थे। गांवों में एक कहावत मशहूर है भैंस के साथ भैंसा बनना पड़ता है मतलब भैंस पालना बहुत ही मेहनती काम है। यही हाल जमुना का था बैलों को ले जाना अनजान बैलों को ले आना नियंत्रित करना । इन्ही सब कारणों से उसकी शरीर भी बैल जैसी हो गई थी। दूध दही, घी का सेवन खूब करता था तभी तो बैल लेकर सात किलोमीटर पैदल चला जाता था और वापस आ जाता था। और अपने बच्चों को भी घी के सेवन की सलाह कतिपय दे ही देता था। पशुओं का काम सविता ही संभालती थी ज्यादातर। बाद में सविता ने किरन को भी इस काम में लगाना शुरू कर दिया। बांधने चराने का काम तो अंबर कर ही देता था। जमुना सविता को कुछ दिनों के अंतराल पर चोदता था शायद इसलिए कि इससे वीर्य अधिक इकट्ठा हो जाता था और सविता की चूत भी तंग हो जाती थी यही कारण था कि सविता कभी कभार गरमी में रहती थी इस वजह से ही उसके संवाद में गालियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ था वरना प्रेमा तो इससे अधिक उम्र की थी फिर भी सविता ने ही प्रेमा को गालियों के मिश्रण से संवाद को निखारना सिखाया था। सविता तो गोबर कांछते समय, चारा डालते समय बछियों को भी गाली दे दिया करती थी। उसे पशुओं से संबंधित अनुभव भी खूब था, किसी भी गाय या बछिया को देख कर बता देती थी कि गाभिन है या नहीं वह भी सांड या कृत्रिम गर्भाधान के केवल एक महीने बाद। एक बार जमुना एक बछड़ा लेकर आया था जो खेत में बिल्कुल भी चलना नही जानता था और अभी तक उसका बधियाकरण (नपुंसक बनाने की विधि) भी नहीं किया गया था। जमुना सोचने लगा मिला तो कम दाम ने है लेकिन इसकी जोड़ी किससे लगाऊं।
सविता: क्या सोच रहे हो।
जमुना: यही की इस बछड़े का क्या करूं?
सविता: इसे तो राजू के बछड़े के साथ नाध दो।
जमुना: ठीक है तुम बात कर लेना । मै एक बार खेत की ओर जा रहा हूं।
सविता: ठीक है।
सविता: राजू के माई का कर रही हो।
प्रेमा: कुछ नही अपनी सुनाओ क्या खबर लेकर आई हो।
सविता: किरन के पापा एक बछड़ा लेकर आए हैं, मै सोच रही थी तुम्हारे बछड़े के साथ जोड़ लग जाए ।........... या फिर सांड बनाओगी उसे।
प्रेमा: काहे का सांड बनाऊंगी। तू सही कह रही है वैसे भी दिन भर खों खोँ करता रहता है।
सविता: हां कद काठी में ज्यादा नहीं है लेकिन कई साल का हो गया है।
सविता: ठीक है फिर किरन के पापा से बोल दूंगी वह मेरी पशुशाला में बांध देंगे।
प्रेमा (मन में): हामी तो भर ली लेकिन मेरी योजना अधूरी रह जाएगी।
प्रेमा: तू क्यों परेशान होगी चारा मै ही डाल दूंगी अपने बछड़े को जब खेत में ले जाना हो ले जाएंगे किरन के पापा........सब एक ही तो है....चाहे यहां बंधा रहे चाहे तुम्हारे यहां। और एक साथ बांधने पर हो सकता है दोनो लड़ने लग जाएं दोनो में से एक भी बधिया नही किया गया है।
सविता: ठीक जैसी मर्जी तुम्हारी।
जमुना दूसरे दिन ही इन बैलों को सुधारने के लिए ले जाने की तैयारी करने लगा।
जमुना: सविता ! जा राजू का बछड़ा लेते आ।
सविता गई बछड़ा खोलने पहले तो वह भड़क गया लेकिन थोड़ी देर गला सहलाने के बाद सविता उसे खोलने के लिए जैसे ही झुकी उसने आगे दोनो पैर उठाए और चढ़ गया डेढ़ फुट का नुकीला लंड लहराते हुए हालांकि इतने में सविता खड़ी हो गई जिससे बछड़े का लौड़ा गांड़ के उपरी छोर से लेकर पीठ तक रगड़ खा गया। सविता की साड़ी भीगे भीगी महसूस हुई।
सविता ने एक डंडा लिया फिर रस्सी खोली और बाहर ले जाने लगी। आधे रास्ते में ही बछड़ा सविता से छुड़ा कर भाग निकला । फिर जमुना ने उसे कंट्रोल किया।
शुरू में दोनो बछड़े एक दूसरे को देख कर घूरते रहे उसके बाद दोनो ने पेशाब किया । धीरे धीरे जमुना ने नियंत्रित करके उन्हें खेत जोत दिया, प्रारंभ में उन्होंने काफी नाटक किया लेकिन कुछ देर बाद धीमे धीमे चलना शुरू किया।
गांव में एक मात्र मुस्लिम परिवार था। सदस्य अनवर उसकी पत्नी सजिया बेटा हैदर बेटी फिजा। अनवर को जब गांव में आय का स्रोत नही नजर आया तो वह बॉम्बे चला गया एक साल बाद उसने अपने बेटे को भी वहीं बुला लिया बेटी फिजा यहीं साजिया के साथ रह गई।जब अनवर परदेस गया तब उसकी उम्र यही कोई 33-34 वर्ष रही होगी । सजिया की जिंदगी में अकेलेपन का अंधकार छा गया समय बिताना मुश्किल हो गया और तो और उसका वजन भी बढ़ गया।
29 की उमर में उसकी जवानी सुलगने लगी और आग लगाने का काम किया उसके खान पान ने (मांसाहार ने) ।
सविता : सजिया!
सजिया को लगा तो किसी ने बुलाया लेकिन वह आवाज का पीछा विपरीत दिशा की ओर करते हुए आगे बढ़ने लगी।
प्रेमा और सविता एक स्वर में: ओ सजिया!
सजिया का जैसे ही ध्यान गया वह घूम गई। आई बहन।
सविता: तू तो सुनती भी नही ।
सजिया: न बहन ऐसी बात न है। मुझे लगा कोई किसी और को बुला रहा है।
प्रेमा: बैठ! वैसे कहां जा रही थी।
सजिया: मै तो खेत की ओर टहलने जा रही थी सोचा थोड़ा वजन कम कर लूं।
सविता: ऐसे टहलने से क्या होगा। मरद बाहर रहता है, तो समय बिताने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा एक दो बकरी रख ले....तालाब की चराने निकल जाया कर....तेरी गांड़ की भी चर्बी न निकल गई तो बताना।
सजिया: क्या बोल रही हो बहन।
सजिया को सुझाव अच्छा लगा और उसने एक बकरी का प्रबंध कर लिया। हालांकि बकरी को तालाब किनारे ले जाने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन 29 बरस की उमर में भी सजिया शरीर को ढीला नही पड़ने देना चाहती थी।
इधर किरन, अंजली और कंचन को तो जानवर चराने से छुट्टी दे ही दे गई थी।
बाबाजी को अब कभी कभार भी गांड़ का दर्शन नही होता था।
समय बदला और सजिया उसी रस्ते से रोजाना गुजरती थी।
एक दिन बाबाजी विश्राम कर रहे थे तभी सजिया आई और नल चलाकर पानी पीने लगी । जब तक नल के मुहाने पर हाथ लगाती तब तक पानी आना बंद हो जाता ।
बाबाजी ने सिर्फ लंगोट पहन रखा था उठे और एक लाल गमछा बदन डाल लिया ।
सजिया देखते ही डर गई और मुंह पर दुपट्टा डाल लिया।
बाबाजी: डरो मत, पानी पिलाना तो पुण्य का कार्य है बेटी। और नल चलाने लगे .....
सजिया बैठकर पानी पीने लगी और बाबाजी सजिया के कामुक गदराए बदन का मूल्यांकन करने लगे।
उसके बाद झट से कुटिया में जाकर छेद पर आंख गड़ा ली सजिया मूतेगी।
अंजली, किरन और कंचन तो तीन जनी थी किसी न किसी के पेशाब लग ही जाती थी।
लेकिन सजिया को पेशाब नही लगी थी इससे बाबजी निराश हो गए।
एक अन्य दिन
बाबाजी: बिटिया कहां से आती हो किसके घर से आती हो? गांव में अभी तक तो किसी ने बकरी नही रखी थी।
सजिया: मै हैदर की अम्मी। उसके पापा परदेस रहने लगे तो समय बिताने के लिए रख लिया ।
हैदर कौन है? उसके पिता का नाम बताओ तब तो मालूम भी पड़े।
सजिया (धीमी आवाज में): अनवर।
बाबाजी: अच्छा अच्छा अनवर । सही है बेटी तुम्हारा पति कमाने गया है वरना यहां तो कोई रोजगार है नही खेती और पशु पालने के अलावा।
सजिया इन सब चीजों से अनजान थी बाब सन्यास तपस्या आदि इसलिए जिज्ञासा वश पूछ बैठी।
सजिया: आप यहां अकेले में क्या करत हैं। शुरुआत में तो मुझे लगा यहां कोई नहीं रहता।
बाबाजी: मै यहां प्राचीन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता हूं, मैंने गृह का त्याग कर दिया है वानप्रस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूं।
सजिया: भोजन कौन पकाता है बाबाजी।
बाबा: मै स्वयं ही पकाता हूं।
सजिया: क्यों आपकी पत्नी नहीं रहती साथ।
बाबा (हंसते हुए): अरे बेटी! वानप्रस्थ जीवन में पत्नी का सवाल ही पैदा नहीं होता। मैने शादी ही नही की है।
सजिया की नजर बाबा के लंगोट पर गई उसने देखा नीचे सामान्य से तीन चार गुना उभार था गोल गोल ....तनाव भी था।
सजिया (पाने गटकते हुए): फिर भी आप कपड़े पहन लिया करो बाबा मुझे असहज लगता है।
बाबा: बेटी मेरा यही वस्त्र है। मुझसे तो परदा भी करना व्यर्थ है।
सजिया ने जैसे ही बाबा के उभार की कल्पना बड़े लिंग से की उसके शरीर में झुरझुरी छूट गई। आज उसे पेशाब लग गई।
बाबाजी को आज सजिया के गांड़ का दर्शन करने का मौका मिल ही गया। बाबाजी इतनी सुंदर, मांसल गांड़ देखकर पागल हो गए। बाबाजी का लौड़ा फनफनाने लगा। उछलकर बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया।
वैसे तो सजिया दीवार की ओट में मूत रही थी लेकिन मूतते हुए उसे लगा कहीं कोई देख न रहा हो कहीं बाबाजी ने देख लिया तो। इसी ख्याल से उसकी पेशाब रूक गई उसकी शरीर में गर्मी बढ़ गई। मूतने में दोगुना टाइम लगा।
बाबाजी की समस्या ये थी शुरुआत कैसे की जाए। शादीशुदा औरत से कुछ कह दिया और गांव वालों को पता चल गया तो गांव वाले अस्मिता का सवाल बनाकर जान से मार डालेंगे। अब गेंद सजिया के पाले में थी।
लेकिन सजिया तो जवानी की आग में जल ही रही थी लंबे समय में बाबाजी से उसका लगाव बढ़ गया और उसे लगने लगा कि अगर बाबाजी का लंड मिल जाए तो यह तो वानप्रस्थ जीवन बिता रहे हैं इनपर कोई शक भी नहीं करेगा और मेरी चूत की खुजली भी मिट जाएगी।
जमुना प्रसाद........
अपने बड़े भाई से सीखकर जमुना प्रसाद ने भी पशुपालन अपना लिया। जमुना प्रसाद खेती के काम तो संभाल देता था लेकिन पशुपालन के काम में हाथ नही बटा पाता था क्योंकि वह बैल खरीदने बेचने का भी काम करता था । प्रत्येक बुधवार को जब गांव से सात किलोमीटर दूर एक गांव में बाजार लगती तो वह पैदल ही बैलों को ले जाता था। कई बैलों को अपने खेत में चलाकर सुधारता था फिर उनके अच्छे दाम लगते थे। गांवों में एक कहावत मशहूर है भैंस के साथ भैंसा बनना पड़ता है मतलब भैंस पालना बहुत ही मेहनती काम है। यही हाल जमुना का था बैलों को ले जाना अनजान बैलों को ले आना नियंत्रित करना । इन्ही सब कारणों से उसकी शरीर भी बैल जैसी हो गई थी। दूध दही, घी का सेवन खूब करता था तभी तो बैल लेकर सात किलोमीटर पैदल चला जाता था और वापस आ जाता था। और अपने बच्चों को भी घी के सेवन की सलाह कतिपय दे ही देता था। पशुओं का काम सविता ही संभालती थी ज्यादातर। बाद में सविता ने किरन को भी इस काम में लगाना शुरू कर दिया। बांधने चराने का काम तो अंबर कर ही देता था। जमुना सविता को कुछ दिनों के अंतराल पर चोदता था शायद इसलिए कि इससे वीर्य अधिक इकट्ठा हो जाता था और सविता की चूत भी तंग हो जाती थी यही कारण था कि सविता कभी कभार गरमी में रहती थी इस वजह से ही उसके संवाद में गालियों का मिश्रण प्रारंभ हुआ था वरना प्रेमा तो इससे अधिक उम्र की थी फिर भी सविता ने ही प्रेमा को गालियों के मिश्रण से संवाद को निखारना सिखाया था। सविता तो गोबर कांछते समय, चारा डालते समय बछियों को भी गाली दे दिया करती थी। उसे पशुओं से संबंधित अनुभव भी खूब था, किसी भी गाय या बछिया को देख कर बता देती थी कि गाभिन है या नहीं वह भी सांड या कृत्रिम गर्भाधान के केवल एक महीने बाद। एक बार जमुना एक बछड़ा लेकर आया था जो खेत में बिल्कुल भी चलना नही जानता था और अभी तक उसका बधियाकरण (नपुंसक बनाने की विधि) भी नहीं किया गया था। जमुना सोचने लगा मिला तो कम दाम ने है लेकिन इसकी जोड़ी किससे लगाऊं।
सविता: क्या सोच रहे हो।
जमुना: यही की इस बछड़े का क्या करूं?
सविता: इसे तो राजू के बछड़े के साथ नाध दो।
जमुना: ठीक है तुम बात कर लेना । मै एक बार खेत की ओर जा रहा हूं।
सविता: ठीक है।
सविता: राजू के माई का कर रही हो।
प्रेमा: कुछ नही अपनी सुनाओ क्या खबर लेकर आई हो।
सविता: किरन के पापा एक बछड़ा लेकर आए हैं, मै सोच रही थी तुम्हारे बछड़े के साथ जोड़ लग जाए ।........... या फिर सांड बनाओगी उसे।
प्रेमा: काहे का सांड बनाऊंगी। तू सही कह रही है वैसे भी दिन भर खों खोँ करता रहता है।
सविता: हां कद काठी में ज्यादा नहीं है लेकिन कई साल का हो गया है।
सविता: ठीक है फिर किरन के पापा से बोल दूंगी वह मेरी पशुशाला में बांध देंगे।
प्रेमा (मन में): हामी तो भर ली लेकिन मेरी योजना अधूरी रह जाएगी।
प्रेमा: तू क्यों परेशान होगी चारा मै ही डाल दूंगी अपने बछड़े को जब खेत में ले जाना हो ले जाएंगे किरन के पापा........सब एक ही तो है....चाहे यहां बंधा रहे चाहे तुम्हारे यहां। और एक साथ बांधने पर हो सकता है दोनो लड़ने लग जाएं दोनो में से एक भी बधिया नही किया गया है।
सविता: ठीक जैसी मर्जी तुम्हारी।
जमुना दूसरे दिन ही इन बैलों को सुधारने के लिए ले जाने की तैयारी करने लगा।
जमुना: सविता ! जा राजू का बछड़ा लेते आ।
सविता गई बछड़ा खोलने पहले तो वह भड़क गया लेकिन थोड़ी देर गला सहलाने के बाद सविता उसे खोलने के लिए जैसे ही झुकी उसने आगे दोनो पैर उठाए और चढ़ गया डेढ़ फुट का नुकीला लंड लहराते हुए हालांकि इतने में सविता खड़ी हो गई जिससे बछड़े का लौड़ा गांड़ के उपरी छोर से लेकर पीठ तक रगड़ खा गया। सविता की साड़ी भीगे भीगी महसूस हुई।
सविता ने एक डंडा लिया फिर रस्सी खोली और बाहर ले जाने लगी। आधे रास्ते में ही बछड़ा सविता से छुड़ा कर भाग निकला । फिर जमुना ने उसे कंट्रोल किया।
शुरू में दोनो बछड़े एक दूसरे को देख कर घूरते रहे उसके बाद दोनो ने पेशाब किया । धीरे धीरे जमुना ने नियंत्रित करके उन्हें खेत जोत दिया, प्रारंभ में उन्होंने काफी नाटक किया लेकिन कुछ देर बाद धीमे धीमे चलना शुरू किया।
गांव में एक मात्र मुस्लिम परिवार था। सदस्य अनवर उसकी पत्नी सजिया बेटा हैदर बेटी फिजा। अनवर को जब गांव में आय का स्रोत नही नजर आया तो वह बॉम्बे चला गया एक साल बाद उसने अपने बेटे को भी वहीं बुला लिया बेटी फिजा यहीं साजिया के साथ रह गई।जब अनवर परदेस गया तब उसकी उम्र यही कोई 33-34 वर्ष रही होगी । सजिया की जिंदगी में अकेलेपन का अंधकार छा गया समय बिताना मुश्किल हो गया और तो और उसका वजन भी बढ़ गया।
29 की उमर में उसकी जवानी सुलगने लगी और आग लगाने का काम किया उसके खान पान ने (मांसाहार ने) ।
सविता : सजिया!
सजिया को लगा तो किसी ने बुलाया लेकिन वह आवाज का पीछा विपरीत दिशा की ओर करते हुए आगे बढ़ने लगी।
प्रेमा और सविता एक स्वर में: ओ सजिया!
सजिया का जैसे ही ध्यान गया वह घूम गई। आई बहन।
सविता: तू तो सुनती भी नही ।
सजिया: न बहन ऐसी बात न है। मुझे लगा कोई किसी और को बुला रहा है।
प्रेमा: बैठ! वैसे कहां जा रही थी।
सजिया: मै तो खेत की ओर टहलने जा रही थी सोचा थोड़ा वजन कम कर लूं।
सविता: ऐसे टहलने से क्या होगा। मरद बाहर रहता है, तो समय बिताने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा एक दो बकरी रख ले....तालाब की चराने निकल जाया कर....तेरी गांड़ की भी चर्बी न निकल गई तो बताना।
सजिया: क्या बोल रही हो बहन।
सजिया को सुझाव अच्छा लगा और उसने एक बकरी का प्रबंध कर लिया। हालांकि बकरी को तालाब किनारे ले जाने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन 29 बरस की उमर में भी सजिया शरीर को ढीला नही पड़ने देना चाहती थी।
इधर किरन, अंजली और कंचन को तो जानवर चराने से छुट्टी दे ही दे गई थी।
बाबाजी को अब कभी कभार भी गांड़ का दर्शन नही होता था।
समय बदला और सजिया उसी रस्ते से रोजाना गुजरती थी।
एक दिन बाबाजी विश्राम कर रहे थे तभी सजिया आई और नल चलाकर पानी पीने लगी । जब तक नल के मुहाने पर हाथ लगाती तब तक पानी आना बंद हो जाता ।
बाबाजी ने सिर्फ लंगोट पहन रखा था उठे और एक लाल गमछा बदन डाल लिया ।
सजिया देखते ही डर गई और मुंह पर दुपट्टा डाल लिया।
बाबाजी: डरो मत, पानी पिलाना तो पुण्य का कार्य है बेटी। और नल चलाने लगे .....
सजिया बैठकर पानी पीने लगी और बाबाजी सजिया के कामुक गदराए बदन का मूल्यांकन करने लगे।
उसके बाद झट से कुटिया में जाकर छेद पर आंख गड़ा ली सजिया मूतेगी।
अंजली, किरन और कंचन तो तीन जनी थी किसी न किसी के पेशाब लग ही जाती थी।
लेकिन सजिया को पेशाब नही लगी थी इससे बाबजी निराश हो गए।
एक अन्य दिन
बाबाजी: बिटिया कहां से आती हो किसके घर से आती हो? गांव में अभी तक तो किसी ने बकरी नही रखी थी।
सजिया: मै हैदर की अम्मी। उसके पापा परदेस रहने लगे तो समय बिताने के लिए रख लिया ।
हैदर कौन है? उसके पिता का नाम बताओ तब तो मालूम भी पड़े।
सजिया (धीमी आवाज में): अनवर।
बाबाजी: अच्छा अच्छा अनवर । सही है बेटी तुम्हारा पति कमाने गया है वरना यहां तो कोई रोजगार है नही खेती और पशु पालने के अलावा।
सजिया इन सब चीजों से अनजान थी बाब सन्यास तपस्या आदि इसलिए जिज्ञासा वश पूछ बैठी।
सजिया: आप यहां अकेले में क्या करत हैं। शुरुआत में तो मुझे लगा यहां कोई नहीं रहता।
बाबाजी: मै यहां प्राचीन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता हूं, मैंने गृह का त्याग कर दिया है वानप्रस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूं।
सजिया: भोजन कौन पकाता है बाबाजी।
बाबा: मै स्वयं ही पकाता हूं।
सजिया: क्यों आपकी पत्नी नहीं रहती साथ।
बाबा (हंसते हुए): अरे बेटी! वानप्रस्थ जीवन में पत्नी का सवाल ही पैदा नहीं होता। मैने शादी ही नही की है।
सजिया की नजर बाबा के लंगोट पर गई उसने देखा नीचे सामान्य से तीन चार गुना उभार था गोल गोल ....तनाव भी था।
सजिया (पाने गटकते हुए): फिर भी आप कपड़े पहन लिया करो बाबा मुझे असहज लगता है।
बाबा: बेटी मेरा यही वस्त्र है। मुझसे तो परदा भी करना व्यर्थ है।
सजिया ने जैसे ही बाबा के उभार की कल्पना बड़े लिंग से की उसके शरीर में झुरझुरी छूट गई। आज उसे पेशाब लग गई।
बाबाजी को आज सजिया के गांड़ का दर्शन करने का मौका मिल ही गया। बाबाजी इतनी सुंदर, मांसल गांड़ देखकर पागल हो गए। बाबाजी का लौड़ा फनफनाने लगा। उछलकर बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया।
वैसे तो सजिया दीवार की ओट में मूत रही थी लेकिन मूतते हुए उसे लगा कहीं कोई देख न रहा हो कहीं बाबाजी ने देख लिया तो। इसी ख्याल से उसकी पेशाब रूक गई उसकी शरीर में गर्मी बढ़ गई। मूतने में दोगुना टाइम लगा।
बाबाजी की समस्या ये थी शुरुआत कैसे की जाए। शादीशुदा औरत से कुछ कह दिया और गांव वालों को पता चल गया तो गांव वाले अस्मिता का सवाल बनाकर जान से मार डालेंगे। अब गेंद सजिया के पाले में थी।
लेकिन सजिया तो जवानी की आग में जल ही रही थी लंबे समय में बाबाजी से उसका लगाव बढ़ गया और उसे लगने लगा कि अगर बाबाजी का लंड मिल जाए तो यह तो वानप्रस्थ जीवन बिता रहे हैं इनपर कोई शक भी नहीं करेगा और मेरी चूत की खुजली भी मिट जाएगी।