Bhai behen par ek poem by my poetess friend Arushi Dayal
Bhai behn ka samvad
जवानी का तन पर चढे खुमार,
खिलने लगे हैं मेरे बड़े उभार,
फ्रॉक, टेप औ स्कर्ट की गयी उमर,
अब घाघरा चोली संग होगा समर।
बढ़ती जा रही है मेरी चुच्ची,
बात है ये बिल्कुल सच्ची- मुच्ची,
गाँड़ समाती नहीं अब कच्छी में,
बुर छुपती, घुंघराये केसों की गुच्छी में।
रिसती रहती है जो बुर से लार,
ऐसे में करती उंगली हर बार,
कभी बैगन भी तो कभी ककड़ी,
ऐसे में भैया की नज़रों ने पकड़ी।
शर्म से मैंने आंखें मींची,
भैया ने आकर चादर खींची,
मुझको बिल्कुल अधनंगी पाया,
देखके उनका मन ललचाया।
उसने मुझको गोद में उठाया,
तन से उठा दिया कपड़ो का साया,
अपना काला मोटा लंड दिखाया,
ये नज़ारा मुझको बड़ा भाया
चूस रहे थे वो मेरे आम,
भूल बिसर के सारे काम,
मुझपर छा चुकी थी पूरी मस्ती,
भूल गयी थी भाई-बहन की हस्ती
रात में भैया बन गए सैंया
बहन की पार लगा दी नैया,
शक्ल सूरत से हूँ पूरी भोली,
कल रात पर भैया संग सोली।
पूरी रात भैया ने मुझको चोदा,
कोमल प्यारी बुर को खोदा,
पहले ना तो, लंड से थी चुदवाई,
गाँड़ में भैया की उंगली भी थी समाई
बढ़ते दर्द से अब थोड़ा चिल्लाई
मैं बोली,"इतनी जल्दी क्या है भाई,
तुझे अपना सैंया बनाने की है ठानी,
वो बोले," अबसे तू है मेरे लंड की रानी"
“सूंघी है गुसलखाने में तेरी कच्छी,
आज मेरी किस्मत है बड़ी अच्छी,
तुझको आज चोदूँगा जी भरकर,
सारी रात बाहों में भरकर,
बुर में लंड हर रोज़ पेलूँगा,
तेरी जवानी से रोज़ खेलूंगा,
चुसूंगा तेरा यौवन ये पावन,
ए लैला, मज़े करेंगे इस सावन,
“हाँ भैया, चोद ले अब अपनी बहना,
संभलता नहीं अब यौवन का गहना,
प्यार का एहसास तुमसे ही लूँगी,
तुम्हारा मस्त लंड बुर में खूब लूँगी,
बुर से रिसता है, हरदम पानी,
लंड की प्यासी है, तेरी रानी,
मैं हूँ तेरी गाय, तू है मेरा सांड,
चोदो मुझे भाई, मैं हूँ तेरी रांड,
ना जाने कब होगा मेरा लगन,
दुल्हन बन कब चुदूँगी, हो मगन,
बनो आज मेरे पति, और मैं तेरी लुगाई,
आज है अपनी सुहागरात, करो मेरी ठुकाई”
हो चुकी थी पूरी मदहोश, लेकर बुर में लंड,
भाई चोद रहा था मुझको, जैसे दे रहा हो दंड,
घोड़ी बनाया उसने मुझको, खींच के मेरे बाल,
कोई रहम ना खाया उसने, बुरा था मेरा हाल,
चूतड़ों पर थप्पड़ों की हो रही थी बौछार,
बच्चेदानी के मुहाने तक, घुसा था औज़ार,
दोनों एक दूसरे के मिलन में थे इतने मशगूल,
ख्याल रहा ना हम दोनों को हो गयी भारी भूल,
बुर में ही भाई ने गिरा दिया लंड का पानी,
मैं अनजान, जोश में डूबी होने दी मनमानी,
दोनों होश में जब आये, नंगेपन में नहाये,
एक दूजे के होने की, जीवन में कसमें खाये।
रोज़ लगने लगा यौवन का मेला,
जिस आंगन में हमारा बचपन खेला,
कल तक हमदोनों थे बहन भैया
अकेले में बन चुके थे ab सजनी सैंया।