Adultery Interesting and humorous thoughts

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Ik kavita apni fast friend Arushi Dayal di share karn laggi a
प्यार से मुझे सैया ने चौदा
ना वो ही रुके और ना मैंने रोका
मोहब्बत का खेला पूरी रात खेला
सैयां मेरे ने मेरा हर होल पेला
लिपटी रही उनसे मैं बेल बन के
बजी हूं पूरी रात मैं रेल बन के
चुदाई का ऐसी चढ़ी है खुमारी
रोज़ रात करती हूँ लड की स्वारी
बदल गई है रंगत और सूजी है चुत

न जाने कब उतरेगा रोज़ चुदने का भूत
 
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Ik kavita apni fast friend Arushi Dayal di share karn laggi a
प्यार से मुझे सैया ने चौदा
ना वो ही रुके और ना मैंने रोका
मोहब्बत का खेला पूरी रात खेला
सैयां मेरे ने मेरा हर होल पेला
लिपटी रही उनसे मैं बेल बन के
बजी हूं पूरी रात मैं रेल बन के
चुदाई का ऐसी चढ़ी है खुमारी
रोज़ रात करती हूँ लड की स्वारी
बदल गई है रंगत और सूजी है चुत

न जाने कब उतरेगा रोज़ चुदने का भूत
Wow…yaar kamal likhadi hai friend tuhadi. Mazza aa janda padme. Wise mera vi aajkal same hi haal hai.

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सम्भोग के समय स्त्रियों के साथ जबरदस्ती करने वाले नामर्दो को ये नहीं पता होता कि स्त्री जब गर्म हो जाती है तो आपको मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, वो खुद से आपके लिंग को योनि के मुख
छूओ, चूमो, रगड़ो, चाटो हर जगह जब तक पैंटी भीगकर फांकों के बीच जाकर चिपक न जाये फिर तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी खुद ही लिंग निकालकर योनि पर रखकर अंदर डाल लेगी।
 
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चुम्बन की दीर्घता संभोग की गहनता से अधिक रोमांटिक होता है। संभोग संतोष प्रदान कर सकता है किंतु आत्मतोष का साधन होंठो की गुलजार गलियां हैं।
 
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उस रात की बात न पूछ सखी री
क्या क्या जुल्म सितम मेरे साथ हुआ "......

स्नानगृह में नहाने के लिये ,जैसे ही मैं निर्वस्त्र हुई,
मेरे कानों को लगा जैसे,दरवाज़े पर है खड़ा कोई,

20230131-142440


धक्-धक् करते दिल से मैंने, दरवाज़ा खोल के पकड़ लिया
आते ही साजन ने मुझको,अपनी आलिंगन में जकड़ लिया
मेरे यौवन की पा के झलक, जोश का यूँ संचार हुआ,
जैसे कोई कामातुर योद्धा,रण गमन हेतु तैयार हुआ,
उरोजों को हाथों से लेके जोर जोर से मसल दिया,
मेरे गोरे नाजुक अंगो का पल भर में रंगत बदल दिया
फिर साजन ने सुन री सखी,जल का फव्वारा खोल दिया,
भीगे यौवन के अंग-अंग को, उसने काम-तुला में तौल दिया,
कंधे, स्तन,नितम्ब, कमर,कई तरह से पकड़े-छोड़े गए,
गीले स्तन सख्त हाथों से,वस्त्रों की तरह निचोड़े गए,
जल से भीगे नितम्बों को अपने होठों से प्यार किया
अगले पिचले दोनो छेदो पे जिव्हा से प्रहार किया
जल क्रीड़ा से बहकी थी मैं,चुम्बनों से मैं थी दहक गई,
विस्मित सी उन की बाँहों में लिपट चिपट के महक गई,
वक्षों से वक्ष थे मिले हुए,और साँसों से साँसें मिलती थी
परवाने की आगोश में आके,शमाँ जिस तरह पिघलती थी
साजन ने नख से शिख तक,होंठों से अतिशय प्यार किया
मैंने भी बरबस ही झुककर के,साजन का अंग दुलार दिया
चूमत झूमत साजन गिली धरती पर पंजे के बल बैठ गए,
मैं खड़ी रही साजन के लब, नाभि के नीचे तक पैठ गए
मेरे उन गीले नाज़ुक अंग से उसने जी भर रसपान किया,
मैंने कन्धों पर पाँवों को रख, अपने मधुरस का दान दिया
मैं पूरी मस्ती में थी डूबी क्या करती थी ना होश रहा,

प्यासे होठों पे चुत दबा दी अब इसमें मेरा दोष कहां
 

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