Incest जालिम बेटे ने की घर की सभी औरतो कि चुदाई

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Update 1

वैसे तो हर कीसी मां का सपना होता है , की उसका बेटा अच्छा हो, कभी कोइ गलत काम ना करे, और दुनीया वाले उसे इज्जत दे, और वो खुश रहे ,

तो यही कहानी है, जिसमे एक मां जो अपने शादी के करीब 5 साल बाद एक बच्चे को जन्म देती है, और उसका नाम रखती है, (सोनू)

सुनीता......(40) साल, सोनू की मां
सुनीता की शादी 18साल की उम्र में हो गयी थी, 18 साल की उम्र में सुनीता की लम्बाइ करीब 5.6 की थी, लेकीन थोड़ी पतली, खुबसुरत तो वो थी ही, क्यूकीं पूरा गांव जो उसके पिछे मडराता रहता था, तो उसके घरवालो ने उसकी शादी करना ठीक समझा....करीब 5 साल तक सुनीता को कोइ बच्चा नही पैदा हुआ.... उसकी दो देवरानी और एक जेठानी थी, जो उसे सान्तांवना देती रहती, आखीर वो दिन आ ही गया जब सुनीता की भी गोद भरी पुरे 5 साल बाद उसे एक लड़का पैदा हुआ...नाम (सोनू)

राजेश.....(29) साल सुनीता का पति

उस दिन राजेश बहुत खुश था क्युकीं वो बाप जो बना था, राजेश एक बहुत ही इमानदार और होनहार आदमी था, दिन भर खेतो में अपने भाइयो के साथ काम करता , सोनू के पैदा होने के 3 साल के बाद ही राजेश की मौत हो गयी....घर की बिजली खराब होने पर राजेश उसे बना रहा था और अचानक से बिजली आइ और राजेश उस बिजली के तार से लटका रह गया,

सुनेहरी.....(45) सुनीता की जेठानी
मदमस्त हथीनी जैसी चाल, बड़ी बड़ी चुचीयां और गांड तो ऐसी उठी हुइ की गावं वालो का लंड उसके गांड ने ही खड़ा कीया रहता है,

कस्तुरी....(38)....सुनीता की छोटी देवरानी
रंग सांवला लेकीन मोहीत कर देने वाली गजब की अदाए थी उसके पास, उसे चुदाई जैसे खेलो में बहुत दिलचस्पी थी,

अनीता.......(35) सुनीता की सबसे छोटी देवरानी,
एकदाम शांत स्वभाव वाली औरत , घर में सबकी चहेती थी,

अनन्या...(21) सुनेहरी की बेटी,
राजू.....(18) सुनेहरी का बेटा,

आरती....(21) कस्तुरी की बेटी,
कीरन....(18) कस्तुरी की दुसरी बेटी,

सोनू......(19) सुनीता का बेटा,
सोनू के पिता की मौत के बाद पुरे घर की जिम्मेदारी उसके हाथो में थी, उसके एक चाचा लखन जो हमेशा शराब मे डुबे रहते है, और दुसरे चाचा सोसन जो शहर कमाने गये थे 3 साल पहले तो आज तक नही लौटे ढुढने की बहुत कोशीश की पुलीस मे रपट भी कीया लेकीन कुछ पता नही चला,
सोनू के बड़े पापा रजीन्दर कस्तुरी का मरद ही सोनू के साथ काम मे लगा रहता है.......,


सोनू रात के 9 बजे खेत के बने झोपड़े मे पंपुसेट मे पानी की पाइप लगा कर, खेतो में फैला रहा था....जाड़े के दिन दथे और गेहु के खेत की पहली सीचांइ थी, सोनू खेत में पाइप फैला चुका था, और वो वापस झोपड़े में आया तो देखा उसके बड़े पापा रजिंदर खाट पर बैठे थे,

रजिंदर-- सोनू बेटा जा तू घर पर खाना खा ले, और आज वही रुक जा, ठंडी बहुत है, मै खेत की सिचाइ कर लूगां
सोनू-- ठीक है, बड़े पापा और सोनू खेत पर बने मेड़ पर अपने कदम चलाने लगता है, वो अपने घर के पिछवाड़े पहुचा ही था की उसे एक औरत दिखाइ दी जो अपनी साड़ी उपर कर के शायद मुत रही थी,
सोनू घर के पिछे झाड़ीयो में छिप गया और देखने लगा, वो औरत अपनी बड़ी बड़ी गांड लिये अपने बुर से बड़ी मोटी धार निकाल कर मुत रही थी, सोनू के घर के आंगन मे लगा बल्ब की रौशनी उस औरत की गांड पर पड़ रहा था, उसकी चौड़ी और गोल गांड देखकर सोनू का लंड खड़ा होने लगता है,

सोनू मन मे-- आय हाय क्या गांड है, कसम से मिल जाये तो मार मार के फाड़ दू, लेकीन ये औरत है कौन? थोड़ी देर रुकता हू पता चल जायेगा,
वो औरत मुतने के बाद खड़ी हो जाती है और जैसे ही जाने के लिये घुमती है, सोनू उस औरत का चेहरा देख सकपका जाता है,

सोनू मन मे-- अरे बाप रे ये तो सुनहरी (बड़ी मां) है, बाप रे बड़ी मां की गांड तो जबरदस्त है, तो बुर कैसा होगा....यही सब सोचते हुए सोनू झाड़ीयो से उठा और घर पर आ जाता है.....और वैसे भी सोनू सब का चहेता था.....,

घर के अंदर जैसे ही सोनू जाता है,
सुनहरी-- अरे आ गया मेरा बेटा, आजा मेरे पास
सोनू जा कर सुनहरी के बगल खाट पर बैठ जाता है,
सुनहरी-- अरे मेरा बेटा बैठा क्यूं है, इतना काम करता है, थक गया होगा आजा मेरी गोद में सर रख कर थोड़ा लेट जा,
सोनू खाट पर लेटे लेटे अपना सर सुनहरी की गोद में रख देता है,
सोनू अपना सर बड़ी मां के गोद मे रखे उस दृश्य को याद करने लगता है जो आज उसने घर के पिछवाड़े अपनी बड़ी की बड़ी गांड को देखा था, सोनू का लंड बेकाबू होने लगा और अपनी औकात पर खड़ा हो गया....॥

सुनहरी--हाय रे मेरा बेटा, दिन भर काम करता रहता है, अगर तू ना होता तो हमारा पता नही क्या होता,
सोनू-- मैं ना होता तो क्या होता बड़ी मां,
सुनहरी-- तब क्या होता बेटा, सारा काम हम औरतो को करना पड़ता,

सोनू-- जबतक मै हू बड़ी मां तुम लोग को कोइ दिक्कत नही होने दुगां॥
सुनहरी-- हाय रे मेरा बेटा, और झुक कर एक चुम्बन सोनू के गाल पर दे देती है, झुकने की वजह से सुनहरी की बड़ी बड़ी चुचींया सोनू के छाती पे दब जाती है, जिससे सोनू को एक अलग ही आनंद का अनुभव होता है,
सुनहरी जैसे ही चुम्बन दे के सामान्य अवस्था मे होती है....
सुनीता-- अरे दिदी अब वो बच्चा नही रहा, जो तुम उसे चुम्मीया दे रही हो,
सुनहरी-- अरे ये कीतना भी बड़ा हो जाये लेकीन हमारे लिये तो बच्चा ही रहेगा,
तभी अंदर से कस्तुरी आवाज लगाती है, दिदी खाना ले कर आती हू,

सुनहरी-- हां ले के आजा , चल सोनू बेटा खाना खा ले,

कस्तुरी खाना ले के आती है, और सब खाना खाते है, खाना खाने के बाद सोनू बिस्तरे पर चला जाता है,

कस्तुरी-- आरती तू चल मेरे कमये में सो जा ,
सुनहरी-- क्यूं खाट बनी नही क्यां?

कस्तुरी- नही दिदी, सोनू बेटा खाली ही नही था, तो कौन बनायेगा खाट ऐसे ही टुटी पड़ी है, सुनीता दिदी अनन्या के कमरे में गयी सोने, अब एक खाट है मेरे साथ आरती सो लेगी तूम सोनू के खाट पर सो जाओ आज...

सुनहरी-- चल ठीक है,

और फिर आरती के साथ कस्तुरी अपने कमरे में चली जाती है,


सुनहरी सोनू के बगल में लेट जाती है, और रज़ाइ ओढ़ लेती है,

सुनहरी-- सो गया क्या सोनू बेटा?
सोनू सुनहरी को अपनी बाहों में भरता हुआ-- नही बड़ी मां बस ठंड लग रही है,

सुनहरी भी सोनू के कमर पर हाथ रखकर सोनू को अपने से चिपका लेती है,

सुनहरी-- अरे मेरे बेटे को ठंड लग रही है, अब नही लगेगी,

सुनहरी सोनू को ऐसे चिपकाइ थी अपने से जैसे चंदन के पेड़ पर सांप चिपका हो,
सोनु और सुनहरी के होठो के बिच कुछ इंचो का फर्क था, सुनहरी की बड़ी बड़ी चुचींया सोनू के छाती से दबी हुइ थी,
जिसके वज़ह से, उसमें जोश भरने लगा था, और उसका सोया हुआ लंड खड़ा होने लगता है,

सोनू का लंड खड़ा होकर सुनहरी के बुर पर दस्तक देने लगता है, अगर सुनहरी ने कपड़े नहि पहने होती तो सोनु का लंड सुनहरी के बुर में होता,

सुनहरी को तब अहसास होता है जब सोनू का लंड इकदम टाइट होकर उसके बुर पर गड़ने लगता है,

सुनहरी(मन में)-- हे भगवान जो मैं सोच रही हूं क्या ये सोनू का वही हैं, सुनहरी के सोचने मात्र से ही उसकी सांसे तेच होने लगती है, और उसकी गरम सांसे सोनू को महसुस होता है,

सोनू अपनी बड़ी मां से और चिपक जाता है, जिससे उसका लंड सुनहरी के बुर पर सीधा महसुस होने लगता है, सुनहरी की हालत खराब होने लगती है, वो चाह कर भी सोनू से अलग नही हो पा रही थी,

सोनू (मन में)-- आह, बड़ी मां तेरी बुर की गर्मी से मेरे लंड की हालत खराब हो रही है, और सोचते सोचते अपना इक हाथ सुनहरी के बड़ी चुचीं पर रख देता है,

सुनहरी को जैसे ही सोनू का हाथ अपनी चुचींयो पर महसुस होता है, उसका शरीर और गरम होने लगता है, इतनी ठंडी में भी रज़ाइ के अंदर जुन और जुलाई की गरमी पड़ रही थी,

सुनहरी को लगा शायद सोनू अभी जवान हो रहा है, तो इस उमर में लंड का खड़ा होना लाज़मी है, ये तो अभी इस मामले में बच्चा है , और गलती से इसका हाथ मेरी चुचींयो पर आ गया होगा, लेकीन सुनहरी को झटका तब लगता है, जब सोनू के हाथेली उसकी चुचीयों को कसती जाती है,

सुनहरी के तो मानो होश उड़ जाते है, और मन में हे भगवान ये सोनू क्या कर रहा है, मेरे साथ, और वो सबसे ज्यादा हैरान तो वो अब हो रही थी, क्यूकीं सोनू की हथेली उसकी चुचीयों को लगातार कसती चली जा रही थी,

सोनू अपने होश में नही था, उसके उपर हवस सवार था, उसने अपनी बड़ी मां की चुची को अपने अंदाज में दबा रहा था, उसकी हथेली मे एक चुचीं का जितना हिस्सा आ सकता था वो पकड़ कर दबाता चला जा रहा था,

सोनू अब अपनी बड़ी मां की चुची को इकदम जोर से अपने हथेली में पकड़ लिया था, जिसकी वजह से सुनहरी को दर्द होने लगा था, और वो धिरे धिरे सिसक रही थी,

सुनहरी-- आइ...अम्मा...रे और सोनू के कान में कहती है, सो....नू बेटा दर्द हो रहा है,

सोनू-- होने दे,

सुनहरी-- आइ....सोनू इतनी बेरहमी से क्यू दबा रहा है... मेरी चुचीं..आ....आ मैं तेरी बड़ी मां हूं,

सोनू-- अपनी बड़ी अम्मा की चुचीयों को अब और जोर जोर से मसलते हुए-- तू बड़ी अम्मा हो चाहे छोटी अम्मा मुझे तो तेरी चुचीं मसलने में मज़ा आ रहा है,


सुनहरी को दर्द तो हो रहा था लेकीन उसे मज़ा भी बहुत आ रहा था, वो सोनू को उकसाते हुए-- हाय राम, कोई इस तरह...आह मसलता है क्या रे,

सोनू-- आह बड़ी अम्मा तेरी जैसी चुचीं हो तो ऐसे ही मसलते है...,

सुनहरी-- मसल ले बेटा...आह...जितना चाहे, मसलना है, कल सुबह तेरी मां को बताउगीं...आह अम्मा धिरे कर थोड़ा,

सोनू-- ठीक है बता दे, मेरी बड़ी अम्मा है मुझे बचा लेगी,

सुनहरी को ये सुनकर अच्छा लगता है की सोनू मुझे कीतना मानता है,

सुनहरी-- अपनी बड़ी अम्मा की ही चुचीं मसल रहा है भला वो क्यू..आह..आह बचायेगी,

सोनू-- क्यूकीं मेरी बड़ी अम्मा अब मेरा ही लंड लेगी जिदंगी भर इस लिये,
ये बात सुनकर सुनहरी की बुर फुदकने लगती है, और उसके अंदर इक अलग ही ख़ुमार छा जाता है,

सुनहरी-- आह तुझे शरम नही आ रही है ना ऐसी बाते..करते हुए..,
सोनू-- साली जब से तेरी गांड देखी है, शरम वरम भुल गया हु मैं,

सुनहरी-- हाय रे.. तूने कब देख ली मेंरी?
सोनू-- गांड
सुनहरी-- हां वही मेरी गांड

सोनू-- आज रात को जब तू घर के पिछवाड़े मुत रही थी,
सुनहरी-- हाय राम...तू छुप कर मेरी गांड देख रहा था,

सोनू--कुछ भी हो, साली तेरी गांड लाजवाब है,
सुनहरी आज पुरा मज़ा लूट रही थी, जिस तरह सोनू के मजबुत हाथ उसकी चुचीयों को मसल रहे थे, रजिंदर ने कभी ऐसा नही मसला था, रजिंदर उसका मरद होने के बाद भी कभी उसे गाली नही दिया था, और सोनू जबकी उसका बेटा उसे गालीयां दे दे के मसल रहा था, जिससे वो और भी गरम हो जाती...,

सुनहरी--हाय रे बेरहम....धिरे दबा...आ....इ................सोनू,

सुनहरी इतनी जोर से चिल्लाइ की, सुनीता, कस्तुरी और आरती उठ गये और भागते हुए सीधा सुनहरी के पास आते है,

सुनीता-- क्यां हुआ दिदी?
सुनहरी-- कुछ नही बुरा सपना देख लिया,

सुनीता-- आरती जरा पानी ले के आ,
आरती पानी लाने चली जाती है, और एक ग्लास पानी लेके सुनहरी को देती है,

सुनहरी उठ कर बैठती है, और पानी पिने लगती है लेकीन तभी उसे अपने साड़ीयो के अंदर कुछ महसुस होता है, सुनहरी को समझते देर नही लगती की ये सोनू ही है,

सुनहरी मन में-- अरे बेरहम थोड़ा सब्र रख तेरी मां यहा है, तब तक सुनहरी की बुर में सोनू का एक उगलीं घुस चुका था,

सुनहरी अपना मुह दबा लेती है, और अंदर रज़ाइ में एक हाथ डालकर सोनू का हाथ पकड़ लेती है,

सोनू रुक जाता है, और अपने होठो से सुनहरी की जांघे चुमने चाटने लगता है, सोनू सुनहरी को इकदम गरम कर चुका था,

सुनीता-- कस्तुरी तू दिदी को अपने कमरे में लेकर जा, मैं यहा सो जाती हू, और आरती तू अनन्या के पास जाकर सो जा,

ये सुनते ही सुनहरी और सोनू दोनो का मुह लटक जाता है,

सुनहरी-- अरे नही ठीक है, सुनीता थोड़ा बुरा सपना था, बस

सुनीता-- अरे दिदी बुरा सपना आने पर जगह बदल कर सोना चाहिए, जाइए आप कस्तुरी के साथ सो जाइए,

सुनहरी मन मे-- ले बेरहम और जोर से दबा ले, और मुह लटका कर चली जाती है,

सुनीता अपने बेटे के बगल में लेट जाती है....और सोनू भी मन मारकर लेटे लेटे निंद की आगोश में चला जाता है......................


सुबह सुनीता की नींद खुलती है, और वो खाट पर से उठ कर कमरे जाती है , और सुनहरी को उठाती है॥

सुनीता-- उठो दिदी,

सुनहरी की नींद खुलती है, उठते ही सुनीता और सुनहरी घर के कामो में लग जाते है, सुनहरी घर के आंगन में झाड़ू लगाते लगाते कल रात के बारे में ही सोच रही थी, उसकी एक तरफ़ की चुचीं अभी दर्द कर रही थी,

सुनहरी मन मे-- मुए ने ऐसा मसला है की अभी तक दर्द कर रहा है, और हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर दौड़ जाती है,

दिन का सुरज निकलता है , लेकीन सोनू अभी तक सो रहा था,

सुनीता-- कस्तुरी....जरा सोनू को उठा दे, कब तक सोयेगा॥

कस्तुरी सोनू को उठाने जाती है,

कस्तुरी-- उठ जा सोनू बेटा, सुरज चढ़ गया तू अभी तक सो रहा है,

सोनू अपनी आंख मिजते हुए उठ जाता है, उठते ही उसकी नज़र बड़ी अम्मा को ढुंढ़ने लगती है,

सुनीता-- अब बैठा ही रहेगा या, उठेगा भी खेत नही जाना है क्या? तेरे बड़े पापा तेरा इंतजार करते होगें,

तब तक आवाज़ आती है अरे क्यूं परेशान कर रही है मेरे बेटे को, सोनू नज़र घुमा कर देखता है, ये और कोइ नही उसकी बड़ी अम्मा थी,

सोनू की नज़र जैसे ही सुनहरी से ट्कराती है, सुनहरी का चेहरा शरम से लाल हो जाती है,

सुनीता-- देखो ना दिदी वहा बड़े भैया इसकी राह देख रहे होगें और ये अभी तक खाट पर से भी नही उठा,

सुनहरी-- अरे तू भी ना, उठ तो गया है, क्या उठते ही भागा जाये क्या?

सुनहरी-- चल बेटा, हाथ मुह धो ले, फीर खेत जाना,

सोनू उठकर बाहर हैडपंप पर मुह हाथ धोने चला जाता है।


भैया आज मैं भी खेत मे चलूंगा आप के साथ, सोनू जैसे ही नज़र घुमाता है उसके सामने राजू खड़ा था,

सोनू-- ठीक है चल,

हाथ मुह धोने के बाद दोनो खेत की तरफ नीकल देते है,





सुबह जब रजिदंर आया तो सोनू को जगाया, सोनू समय देखा तो करीब 11 बजे थे,


सोनू उठकर सिधा घर की तरफ़ चल देता है.....





डाक्टर साहिबा, अरे वो डाक्टर साहीबा एक आदमी आवाज लगाता है,

अंदर से एक खुबसुरत औरत ने दरवाजा खोला, जी कहीये क्या बात है,

डाक्टर साहिबा मेरी पत्नी की हालत बहुत खराब है, अस्पताल गया तो पता चला आप नयी

आयी है,


डाक्टर साहीबा-- जी हा मैं कल से अस्पताल आने वाली हू, लेकीन चलीये आपकी पत्नी की

हालत खराब है तो मेरा तो काम ही यही है, आप रुकीये मै अभी आती हू,



डाक्टर साहिबा अंदर से अपना मेडीकल का सामान ले के आती है, और अपने कार मे उस

आदमी को बिठा कर चल देती है,


बहुत जल्द ही कार गांव मे आके रुकती है, डाक्टर साहीबा उस आदमी के घर में

जाती है,


डाक्टर साहिबा-- अरे इन्हे तो ठंड लग गयी है, डरने की कोइ बात नही है, मैं

इन्हे इजेंक्शन दे देती हु, और ये दवाइया सुबह शाम देते रहना जल्द ही ठीक हो जायेगीं


डाक्टर साहिबा औरत को इजेंक्शन लाकने के बाद दवाइया देती है और औरत से.


डाक्टर साहिबा-- आपका नाम क्या है?

औरत-- मेरा नाम झुभरी है,

डाक्टर साहिबा-- और मेरा नाम पारुल है, मै आपके गांव की नयी डाक्टर हूं, अच्छा तो अब

मै चलती हू, इनको ठंड से बचाना और कल एक बार अस्पताल जरुर ले आना,


झुमरी का पती-- ठीक है मैडम, और पारुल का मेडीसीन बाक्स उठा कर बाहर आता है,


बाहर गांव वालो की भीड़ लगी थी, सब गांव वाले पारुल को नमस्ते करते है,


पारुल-- जी नमस्ते मेरा नाम पारुल है, और मै इस गांव की नयी डाक्टर हूं॥

पारुल-- अच्छा तो , आपका नाम

झुमरी का पती-- जी मेरा नाम बेचन है,

पारुल-- अच्छा तो बेचन जी मै चलती हू,

बेचन-- जी डाक्टर साहीबा कीतना पैसा हुआ॥

पारुल-- अरे बेचन जी मै सरकारी डाक्टर हूं, और ये दवाइया ,इलाज ये सब मुफ्त है, हमे सरकार से तनख्वाह मिलती है,


बेचन--लेकीन डाक्टर साहिबा इससे पहले जो डाक्टर था वो तो बिना पैसे का इलाज ही नही करता था॥


पारुल-- तो आप लोगो ने कंम्पलेन नही की॥

बेचन-- अब ये झंझट मे कौन पड़े, लेकीन अच्छा हुआ भगवान ने आपको हमारे गांव

मे भेजा, नही तो हम गरीब उसे पैसे देते देते बरबाद हो जाते,

पारुल-- अच्छा ठीक है, बेचन जी मैं चलती हू और हा कल झुमरी को अस्पताल लाना मत भुलना,

बेचन -- ठीक है डाक्टर साहीबा,

पारुल जाने लगती है तो उसकी कमर कभी इधर कभी उधर डोलती, गांव के पुरे जवान मर्द उसकी कमर ही देख रहे थे,

पारूल कार मैं बैठती है और कार चल देती है....




सोनू घर पहुचं जाता है, और सिधा खाट पर लेट जाता है...

सुनीता-- आ गया बेटा, रुक मैं खाना लाती हू,

सोनू-- अभी नही मां मै नहाने जा रहा हूं,

सुनीता-- ठीक है बेटा,

सोनू नहाने चला जाता है, नहाने के बाद सीधा खाना खाता है और सो जाता है....



सुनीता-- अरे मालती कहां है आज कल तू दिखाइ नही दे रही है,

मालती गांव की धोबन थी,

मालती-- अरे दिदी कपड़े धोने और सुखाने में पुरा वक्त निकल जाता है, कुछ कपड़े है धोने के लिये क्या?


सुनीता-- हा ठहर मैं देखती हू, और सुनीता अंदर से कुछ कपड़े ला कर मालती को देती है,

मालती-- अच्छा दिदी मैं चलती हू...और मालती अपने घर की तरफ़ निकल देती है,


सोनू उठ बेटा शाम हो गयी, सुनीता उसे जगाती है, सोनू सो कर उठता है और हैडंपम्प पर जा कर मुह हाथ धोने लगता है,


तभी सुनहरी वहां आ जाती है...

सुनहरी-- आ गया बेटा,

सुनीता-- हां दिदी वो तो कब का आया है,

सोनू सुनहरी को उसके पिछे आने का इशारा करता है, और वो घर की छत पर चला जाता है,

कुछ देर बाद सुनहरी भी छत पर आ जाती है,

सुनहरी के छत पे आते ही, सोनू उसे छत के कमरे ले के जाता है,

सुनहरी--तू मुझे छत पे क्यूं बुलाय ?
सोनू अपनी बड़ी अम्मा को अपनी बाहों मे भर लेता है,

सोनू-- तेरी लेने बड़ी अम्मा,
सुनहरी--क्या लेने बुलाया है,
सोनू-- तेरी बुर,
सुनहरी-- हे भगवान , तुझे शरम नही आती, अपनी बड़ी मां से ऐसे बात करते हुए,
 
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