Update 2
सोनू अपने हाथो से उसके गांड को मसलते हुए-- हाय ये बड़ी अम्मा तेरी मोटी गांड देखकर शरम भुल गया, देख ना कैसे मेरा लंड फड़फड़ा रहा है, तेरी बुर के लिये,
सुनहरी-- आह बेटा, ऐसा मत कर सब निचे बैठे है,
सोनू-- अपनी साड़ी उठा के झुक जा ना बड़ी अम्मा जल्दी से चोद लू तुझे,
सुनहरी-- नही तू बेरहम है, तू मेरी चोद चोद के हालत खराब कर देगा, उस तीन रात को जब तू मेरी चुचींया बेरहमी से मसल रहा था, तभी मै जान गयी थी की तू रहम करने वालो में से नही है,
सोनू-- नही बड़ी अम्मा, आराम आराम से चोदूगा तूझे,
तभी निचे आवाज आती है, दिदी अरे ओ दीदी कहा हो तुम,
सुनहरी अपने आप को सोनू से छुड़ाती हुइ और हंसते हुए निचे भाग जाती है,
सोनू मन में- भाग साली कीतना भागेगी एक दीन तो तेरी बुर मैं ऐसे फाड़ुगां की तुझे पता चलेगा,
और फीर सोनू भी छत से नीचे आ जाता है,
बेचन अपनी औरत झुमरी के पास बैठा था,
बेचन-- कुछ आराम है, झुमरी
झुमरी-- हां डाक्टर साहीबा ने जब से दवा दीया है, आराम है,
बेचन--चल ठीक है कल अस्पताल चल कर एक बार डाक्टर साहिबा को दीखा देंगें॥
तभी बेचन की बेटी सीमा वहा आ जाती है,
(सीमा को बचपन से पोलीयो हुआ था, उसके सारे अग तो कमाल के थे, उसकी बड़ी बड़ी गोरी चुचीया, बड़ी और चौड़ी गांड, बस खाली उसके पैरों का विकास नही हुआ)
सीमा--बापू अब अम्मा की तबीयत कैसी है, वो निचे ज़मीन पर बैठे बैठे चल रही थी, और अपने बापू के करीब आ गयी,
बेचन-- अब थोड़ा ठीक है, कल एक बार अस्पताल मे दिखाने ले कर जाना है,
सीमा-- अच्छा बापू,
बेचन-- ये लो फीर से बारीश होने लगी,
सीमा-- हा बापू दो तीन दीन से तो मौसम ही खराब हो गया है,
अंधेरा होने लगा था, और ठंडी अपनी औकात पर थी, बेचन घर के ओसार में अपने औरत के पास बैठा था, और उसकी बेटी सीमा नीचे जमीन पर बैठी थी,
बेचन 40 साल का आदमी पिछले कुछ दीनो से उसकी औरत झुमरी की तबियत खराब होने के वजह से उसे चोद नही पा रहा था, उसका लंड भी सो चुका था,
तभी उसकी नज़र सीमा की बड़ी बड़ी चुचीयों पर पड़ी जो उसके कमीज मे कसी हुइ थी,
तभी बेचन की मां वहां आ जाती है,
सुखीया(बेचन की मां-- अरे बेचन झुमरी को उठा खाना बना ली हैं मैने चलो सब लोग खा लो,
बेचन- ठीक है मां, और वो झुमरी को उठाता है,
झूमरी उठ कर बैठ जाती है, सुखीया उसे खाना दे देती है,
सुखीया-- सीपा तू जमीन पर ही खायेगी क्या, बेचन बेटा इसे उठा कर खाट पर बिठा जरा,
बेचन जैसे ही सीमा को गोद में उठाता है, वैसे ही बीजली चली जाती है,
सुखीया-- हे भगवान ये बिजली भी रोज यही समय पर जाती है, रुक मैं लालटेन लेके आती हू,
बेचन सीमा को अपनी बाहों मे उठाये वैसे ही खड़ा था, सीमा की बड़ी बड़ी चुचीयां बेचन के सीने पर दबी थी, जिससे बेचन का सोया हुआ लंड खड़ा होने लगता है,
सीमा बेचन के कान में-- बापू मुझे कब तक गोद में लीये रहोगे, निचे उतारो ना।
बेचन उसे गोद में लिये खाट पर बैठ जाता है, और उसके कान में कहता है,
बेचन-- बीटीया मैं तुझे जिदंगी भर गोद में लिये रहना चाहता हूं॥
सीमा बेचन के कान में-- तो लीये रहो ना बापू मना कीसने कीया है,
इतना सुनते ही बेचन का लंड फड़फड़ा कर खड़ा हो जाता है,
वो खाट पर बैठे अपना मुह सीमा के मुह में सटा देता है, उसे ताज्जुब होने लगता है, की सीमा खुद उसके मुह को जोर जोर से अपने मुह में भर कर चुसने लगती है,
तभी सुखीया लालटेन लेकर आ जाती है, बेचन और सीमा दोनो एक दुसरे में खोये हुए थे, उन दोनो को इतना भी नही पता की सुखीया आ चुकी है,
सुखीया जोर से-- बेचन,
बेचन हकपकाया और सीमा को अपने बगल खाट में बिठा कर उठ जाता है,
अच्छा हुआ झुमरी वापस से रज़ाइ ओढ़ कर लेट गयी थी, और वो ये सब नही देखी,
बेचन अपना सर झुकाये, वही खड़ा रहता है,
बेचन अपना सर झुकाये, वही खड़ा रहता है,
सुखीया-- अब खड़ा ही रहेगा या झुमरी को उठायेगा, और वो बेचन और सीमा को गुस्से से देखने लगती है,
बेचन झुमरी को उठाता है, और फीर सब लोग खाना खाते है....और फीर बिस्तर पर चले जाते है॥
आधी रात को सोनू की निंद खुलती है, तो पाता है की कोइ औरत उसके उपर लेटी उसके कान में सोनू उठ बेटा धिरे धिरे बोल रही थी,
सोनू-- तू आ गयी बड़ी अम्मा,
सुनहरी-- हां आ गयी,
सोनू सुनहरी की गांड पर जोर का थप्पड़ जड़ देता है,
सुनहरी-- आह बेरहम धिरे, नही तो फिर कोई आ जायेगा,
सोनू-- साली, मादरचोद पहले ये बता की तु छत पर से भागी क्यू थी,
सुनहरी सोनू के गाल पर चुमते हुए-- अरे मेरे राजा , तभी सब घर पर थे,
सोनू सुनहरी के बालो को कसकर खीचता हुआ, एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पर जड़ देता है,
सुनहरी-- आह, बेटा
सोनू-- कुतीया बोल अब कभी भागेगी,
सुनहरी-- नही बेटा, मेरे बाल आह, दर्द हो रहा है,
सोनू-- सुन कुतीया, कल दोपहर को सोहन के घर आ जाना वही चोदूगां तुझे,
सुनहरी-- मुझे अभी तेरा लंड चाहीये, बहुत दिन से लंड नही गया है मेरी बुर मे,
सोनू-- तू यहां मेरा लंड नही ले पायेगी, कुतीया जैसी चिल्लायेगी तो सब उठ जायेगें,
सुनहरी-- मुझे कुछ नही पता मुझे अभी तेरा लंड चाहीये,
सोनू- साली तूझे लंड चाहीए , चल नंगी हो जा फीर
सुनहरी झट से अपने साड़ी खोल देती है, और नंगी हो जाती है,
सोनू भी अपनी लूगीं उतार कर नगां हो जाता है,
सोनू सुनहरी को खाट पर लिटा देता है, और उसके दोनो टांगे चौड़ी कर हवा में उठा देता है, रात के अंधेरे में कुछ दिख नही रहा था,
सुनहरी -- फाड़ दे बेटा अपनी बड़ी अम्मा की बुर,
सोनू उसकी टांगे उपर की तरह मोड़ता अपना लंड सुनहरी के बुर पर टीकाता है, और सुनहरी को मजबुती से पकड़ अपना मुह उसके मुह मे जकड़ कर जोर का धक्का मारता है,
सुनहरी को बुर खुलती जाती है, वो छटपटा भी रही थी लेकीन सोनू उसे मजबुती से पकड़े धक्के पर धक्का लगा रहा था, सुनहरी के नाक और मुह से जोर जोर से गूं गु गु की आवाज आ रही थी,
सोनू उसे जोर जोर से रात के अंधेरे मे चोद रहा था, और सुनहरी अपनी टागें उठाये सोनू का मोटा लंड झेल रही थी,
पुरे कमरे में खाट की आवाज़ और सुनहरी के पैरों के पायल की आवाजे आ रही थी,
सोनू अपना लंड पेले जा रहा था, तभी सुनहरी की बुर उसके लंड को जकड़ने लगी शायद सुनहरी झड़ रही थी, लेकीन सोनू उसे चोदता गया,
करीब 10 मिनट और चोदता रहा सुनहरी की बुर सोनू के लंड को दो बार और जकड़ी फीर अंत मे सोनू अपना लंड पुरा निकाल सुनहरी के बुर मे जोर का धक्का लगाते अपना पुरा गाढ़ा पानी उसके बुर में भरने लगता है,
अपना पुरा पानी नीकालने के बाद सोनू उसके उपर ही गीर जाता है,
सुनहरी-- आह मां, सोनू बेटा मेरी बुर तुने फाड़ डाली रे, कीतना बड़ा और मोटा है, ऐसा मज़ा तो मुझे आज तक नही आया था,
सोनू-- साली तेरी बुर भी तो कसी कसी थी,
सुनहरी-- आह बेटा, तेरी मा की बुर मुझसे भी कसी है,
सोनू-- चुप कर रंडी, वो मेरी मां है,
सुनहरी-- अरे बेरहम, ऐसे चोदेगा तो सारी औरते तेरी रंडी ही बनेगी,
सोनू-- चल जा अब कल आ जाना सोहन के घर पर,
सुनहरी-- सोनू के गाल पर चुमती है, और कपड़े पहन अपने कमरे में चली जाती है....॥
सुबह सुनहरी आंख खुली वो जैसे ही खाट पर से उठ रही थी, उसके बुर में उसे दर्द महसूस हुआ, वो उठकर मुतने के लीये आगंन की ओर जाने लगी,
वो भचक भचक कर चल रही थी, तभी आगन मे झाड़ू लगाती सुनीता की नज़र सुनहरी पर पड़ी,
सुनीता--क्यां हुआ दीदी , ऐसे क्यू चल रही हो?
सुनहरी को कुछ समझ में नही आ रहा था की, क्या बहाना मारे
सुनहरी-- पता नही क्यूं, एड़ीयो में दर्द सी उठ रही है,
सुनीता-- लगता है, मोच आ गयी है,
सुनहरी-- हां मुझे भी यही लग रहा है, और कहकर अपनी साड़ी उठाकर आग्न के नरदे के पास बैठ मुतने लगती है,
सोनू की निदं तब खुलती है, जब उसे कस्तुरी जगाने जाती है, सोनू उठकर बाहर आता है, और हाथ मुह धो के वही बाहर बैठ जाता है,
सुबह के 10 बज गये थे, लेकीन अभी तक ओस की चादर ओढ़े दीन नही निकला था, गलन इतनी ज्यादा थी की, सोनू को घर के अंदर वापस आना पड़ा।
सोनू जैसे ही ओसार में आता है, घर की चारो औरतें आग के पास बैठी हाथ सेंक रही थी,
सोनू भी एक कम्बल ओढ़ कर खाट पर बैठ जाता है, सुनहरी की नज़र जैसे ही सोनू से टकराती है, वो शर्मा जाती है,
तभी बाहर बादल गरजने लगता है,
कस्तुरी-- ये लो दीदी, कुछ देर में फीर से बारीश चालू हो जायेगी,
सोनू मन में-- अरे यार सोनू, तुझे यहां तो कुछ मिलने वाला नही है, पुरे दीन ये लोग साथ में ही बैठी रहेगी, एक तो मौसम भी खराब है, तो ये लोग घर से बाहर भी नही निकलेगीं,
मुझे अभी सोहन के घर निकलना होगा, फीर पुरे दीन उसकी गांड मारने का मजा लूगां,
यही सोचते सोचते वो खाट पर से उठा, और पैर मे चप्पल डालता हुआ बाहर निकल जाता है,...
रास्ते में चलते चलते अचानक से बारीश होने लगती है, वो भागकर जल्दी से सोहन के घर मे घुस जाता है,
सोहन घर पर लेटा हुआ था, उसने जैसे ही सोनू को देखा उसकी आखो में चमक आ गयी,
सोहन-- क्या बात है, आज मेरे राजा को मेरे घर की याद कैसे आ गयी,
सोनू-- सोनी मेरी जान तेरे घर की नही, तेरी गांड की याद आ गयी,
सोहन-- हाय रे, परसो रात भर मेरी गांड मार कर मन नही भरा,
सोनू-- तेरी गांड से मन नही भरेगा रे, साले और खाट पर लेट जाता है,
सोहन-- अपने कपड़े उतार कर नंगा हो जाता है, और सोनू का पैटं निचे खीसका देता है,
अब सोहन जैसे ही, सोनू की चड्ढ़ी खीसकाता है, उसका मोटा लंड फनफनाने लगता है,
सोनू का लंड सोहन चुसने लगता है, तभी अचानक से घर का दरवाजा खुलता है, सामने मालती अपने हाथो में कपड़े लिये खड़ी थी, वो पूरी भीग गयी थी, मालती को देख दोनो के रंग उड़ जाते है,
मालती--हाय राम ये क्या कर रहे हो आप लोग,
सोहन उठ कर दरवाजा बंद कर देता है,
सोहन--देख म...मालती, तू कीसी को कुछ बताना मत,
मालती-- अरे सोहन भाइ, सोनू तो अभी बच्चा है, कम से कम आप तो समझते थे,
सोहन-- मालती देख, मै मर्द नही हू, बल्की एक हिंजड़ा हू,
मालती अपनी नज़र निचे सोहन के लंड पर गड़ाती है. तो हैरान हो जाती है,
मालती-- थोड़ा हसते हुए, हा रे तु तो सच में,
सोहन--तो तू ही बता, सब मजे करते है, थोड़ा सा मैने कर लीया तो क्या गलत कीया,
मालती-- अच्छा ठीक है, मैं कीसी को नही बताउगीं, और सोनू के लंड की तरफ देखने लगती है,
मालती-- अरे सोनू अब अपना वो तोपेगा भी,
सोनू-- मालती काकी एक बार कर लू, फिर तोपूगा॥
मालती-- हे भगवान तू कीतना बिगड़ गया चल तेरी मां को बताती हू,
सोनू--ठीक है काकी , बता देना पहले दरवाजा तो बंद कर दे,
मालती-- मुझे जाने दे, फीर जो करना है वो करना,
सोनू--तो फीर जा ना काकी,
मालती-- देख नही रहा बारीश हो रही है,
सोनू-- तो ठीक है तू बारिश रुकने का इतजांर कर, तब तक मै, इसे लेता हु।
मालती-- कीतना कमीना है,
सोनू-- चल आ जा साले, और चुस इसे।
सोहन फट से खाट पर चढ़ जाता है, और सोनू के लंड को अपने मुह में डालकर चुसने लगता है,
मालती चुपके चुपके उन दोनो को देख रही थी, मालती की आंखे तब फटती है जब सोनू का सोया लंड अपने आकार में आता है,
मालती मन मे-- हे भगवान, इसका लंड है या घोड़े का,
सोनू को पता था की मालती ये सब बगल नजरो से देख रही है,
सोनू-- चुस साले, मादरचोद, हा ऐसे ही चुस मजा आ रहा है, भोसड़ी के,
सोहन और जोर से लंड चुसने लगता है,
अब मालती की भी हालत खराब होने लगी थी, मालती की बुर भी फड़फड़ाने लगी थी,
सोनू-- चल भोसड़ी, गांड खोल और झुक जा,
सोहन ने खाट पकड़ कर अपनी गाडं पीछे की तरफ उठा दीया,
सोनू सोहन के पिछे आता है, और उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है,
सोनू-- मालती काकी देख मैं इसकी गांड कैसे मारता हू,
मालती-- मुझे नही देखना, तू ही कर ऐसे गंदे काम,
सोनू-- अच्छा थोड़ा अपने मुह में ले के गीला कर दे इसे, नही तो इसे बहुत तकलीफ होगी,
मालती-- मै भल क्यूं मुह में लेने लगी,
सोनू-- सोनी मेरी जान, तू कुछ बोलेगा या, डालू तेरे गांड मे,
सोहन-- मालती गीला कर दे, नही तो बड़ी बे रहमी से गांड मारेगा ये,
मालती-- मैं नही लूगीं इसका मोटा मुसल,
सोहन--मालती मेरे खातीर एक बार डाल ले ना मुह में,
मालती-- नही मैं नही लूगीं,
सोनू सोहन के गांड पर एक थप्पड़ लगाता हुआ अपना लंड उसके गांड के सुराख पर रख देता है, और उसकी कमर पकड़े जोर का धक्का मारता है, और पुरा लंड सरसराता घुस जाता है,
सोहन चिल्लाते हुए खाट पर गिर जाता है, लेकीन सोनू उसके उपर चढ़ जातअ है, और जोर जोर से उसकी गांड मारने लगता है,
सोहन इतना जोर जोर चिल्ला रहा था, की मालती की हालत खराब होने लगी, उसका दिल की एक बार ये चुदाइ देखने का,
उसने पिछे मुड़ कर देखा तो उसकी आंखे फटी रह गयी, सोनू का लबां और मोटा लंड सटासट उसके गांड मे घुस रहा था, और सोहन की गांड चोड़ी हो गयी थी,
सोहन की गांड का होल इतना बड़ा हो गया था की मालती वही देख कर उसका बुर पानी छोड़ने लगी, और इधर सोनू ने भी अपना पानी उसके गांड मे छोड़ दीया,
पुरा पानी छोड़ने के बाद वो सोहन के गांड पर एक थप्पड़ मारता है, और बोला चल सोनी रानी मैं जाता हू, बाद मे फीर आ
उगा, और तेरी गांड और बुरी तरह फाड़ुगां,
सोहन अभी भी रो रहा था,
सोनू-- चलो काकी चलते है,
मालती-- हा च...चल,
रास्ते में मालती के दिमाग मे वही दृशय आ रहा था, कैसे सोनू का लंड उसके गाड को बुरी तरह फाड़ रहा था,
सोनू-- क्या हुआ काकी कुछ सोच रही हो,
मालती-- न...नही बेटा,
सोनू-- कैसी लगी मेरी गांड मराई,
मालती--धत बेशरम मुझसे क्या पुछता है,
सोनू-- कसम से काकी , साले की गांड बहुत कसी थी,
मालती-- इसीलीये इतनी बुरी तरह कर रहा था,
सोनू-- मैं तो ऐसे ही करता हू काकी, कभी तू भी करवा ले मुझसे एक बार,
मालती-- नही रे बाबा मुझे मरना थोड़ी है, तेरे मुसल से॥
सोनू-- कसम से काकी तेरी गांड और बड़ी अम्मा की गांड क्या मजा आयेगा,
मालती-- अपनी बड़ी मां की भी गांड देखता है तू, शरम नही आती,
सोनू-- अगर शरम करता तो कल रात को उसको कैसे चोदता,
मालती-- हाय राम तुने अपनी बड़ी मां को भी,
सोनू-- हा, काकी अब बस तुझे चोदने का मन हो रहा है,
मालती-- मुझे नही चुदाना है, (हालाकी मालती की बुर तो कब से तैयार थी सोनू के लंड के लीये लेकीन मालती इतनी जल्दी नही देना चाहती थी)
सोनू-- सोच ले काकी, अगर मेरा मन हट गया तो तुझे देखुगां तक नही,
मालती-- मत देख मेरा क्या?
सोनू--ठीक है, तो तू ऐसे ही मस्त रह मै चला अब नही आंउगां तेरी गलीयो में, और सोनू चला जाता है॥
मालती हसते हुए-- बदमाश कही कां, और वो भी अपने रास्ते चल देती है,
सोनू अपने घर की तरफ चला आता है, तभी गांव के पुलीया पर एक 19 साल की लड़की खड़ी अपनी दोनो बाहे फैलाये आख बंद कर सांस ले रही थी,
सोनू इतनी खुबसुरत लड़की आज तक कभी नही देखी थी, देवा वही खड़े उसे एकटक देखता रहता है,
तभी उस लड़की की नज़र सोनू पर पड़ती है,
तभी उस लड़की की नज़र सोनू पर पड़ती है,
लड़की--हैलो, कौन हो तुम ? और मुझे ऐसे क्यूं घुर रहे हो?
सोनू-- मैडम जी पहली बात तो मैं आपको घुर नही देख रहा था, क्यूकीं आपसे खुबसुरत लड़की मैने आज तक देखी नही, और दुसरी बात ये की मैं कौन हू तो मै तो इसी गांव का रहने वाला हू, आप नयी नयी दीख रही है इस गांव में,
लड़की-- तुमसे मतलब, तुम अपना काम करो, मैं कौन हू ये तुम्हे जानने की जरुरत नही है,
सोनू-- अच्छा ठीक है, मैडम जब आपका दील करे तब बता देना,
लड़की-- अच्छा सुनो यहां अस्पताल कहां है,
सोनू-- बस मैडम जी थोड़ा सा आगे है,
लड़की-- अच्छा ठीक है, और वो अपनी स्कुटी चालू करती है, और चल देती है॥
सोनू-- हे भगवान इतनी खुबसुरत लड़की, हमारे गांव मे जरुर ये डाक्टर की लड़की होगी, कसम से क्या बला की खुबसुरत है,
और यही सोचते सोचते वो घर की तरफ चल देता है,
पारुल अस्पताल में अपने चेयर पर बैठी थी, सामने बेचन और झुमरी बैठे थे,
तभी आवाज आती है, हाय मॉम,
पारुल अपनी नजर उठा कर देखती है, सामने उसे एक लड़की दिखती है,
पारुल-- हाय बेटा,
पारुल-- बेचन जी ये मेरी बेटी वैभवी है,
बेचन-- नमस्ते बिटीया,
वैभवी-- नमस्ते अंकल,
बेचन-- डाक्टर साहिबा, बिटीया पढ़ाइ करती है,
पारुल-- जी बेचन जी, मुबंइ में ही पढ़ती है, कालेज की छुट्टी है, तो घुमने आइ है,
बेचन-- जी अच्छा, बिटीया गांव में थोड़ा सभंल कर रहना यहा के लड़के थोड़े हरामी है,
वैभवी-- अरे क्या बच कर रहु काका, एक सरफीरा मिला भी था रास्ते में घुर घुर कर देख रहा था,
बेचन- बिटीया मुझे बताना, मैं उसकी खबर लूगां
वैभवी-- ठीक है काका, अगर अब दीखा तो आपको जरुर बताउगीं
बेचन-- अच्छा डाक्टर साहीबा हम चलते है,
पारुल-- ठीक है, बेचन जी,
और फीर बेचन और झुमरी चले जाते है.....
पारुल-- अरे बेटा, कौन था वो लड़का जो तुझे घुर घुर कर देख रहा था॥
वैभवी-- अरे मां मुझे कैसे पता होगा की वो कौन था, मैं यहा सालो से थोड़ी रह रही हूं॥
पारुल-- कुछ बोला तो नही, तुझे
वैभवी (पागल कर देने वाली अदाओ से)-- तारी...फ़ कर रहा था आपकी बेटी की, बोल रहा था इतनी खुबसुरत लड़की आज तक नही देखी मैने,
पारुल-- आह बेटा तेरी ये अदाये थोड़ा कम कर , कही दो चार लड़के मर ना जाये,
वैभवी-- वैसे आप भी कुछ कम नही है, मॉम
पारुल शर्मा जाती है....और वैभवी हसने लगती है.,
॥सोनू जैस ही घर पहुंचता है, घर में उसे सब बैठे हुए मीलते है, और राजू भी आ गया था।
सुनीता-- कहां था तू? सुबह से नीकला था, और अभी आ रहा है, (सुनीता थोड़े गुस्से में)
सोनू अपनी मां को गुस्सा हुता देख उसकी फट जाती है,
सोनू थोड़ा डरते हुए-- वो...वो मां मैं थोड़ा सोहन काका के यहां गया था..।
सुनीता-- चल ठीक है, ज्यादा इधर उधर मत घुमा कर,। "खाना खा ले और कब से भैंस चिल्ला रही हैं लगता है, गरम हो गयी है, तू खाना खाने के बाद भैंस को भानू काका के घर ले के जा। और सुनीता बोलते हुए कस्तुरी को आवाज़ लगाती है, की खाना ले के आ जाये,
+सोनू को अपनी मां का गुस्सा शांत होते देख उसके जी में जी आता है।
"तब तक कस्तुरी खाना ले के आ जाती है, और सोनू को देती है,
सोनू (खाना खाते हुए)-- मां इतनी ठंडी में भैस कैसे गरम हो गयी? लगता है उसे ठंढी लग गयी है। और उसे बुखार हो गया है, तो डाक्टर को बुला लाता हूं, भैंस को भानू काका के यंहा क्यूं ले के जाना?
'ये सुनकर पास में खड़ी कस्तुरी, अनिता और सुनीता तीनो हंसने लगती है।
तभी राजू-- अरे भइया, भैंस 'गरम' हो गयी मतलब उसे भानू काका के साँड के पास ले जाना है,
इतना सुनना था की सुनीता कस्तुरी और अनिता अपस में एक दुसरे को देखते शरमा जाती है।
सुनीता-- देख राजू बेटा कीतना सयाना हो गया, और तू रह गया बुद्धु का बुद्धु। खेत में काम कर कर के तू बैल बुद्धी बन गया है, कुछ सीख राजू से।
सोनू कुछ नही बोलता और खाना खाने के बाद भैंस को खुटे में से खोल चल देता है....
कस्तुरी-- अरे वाह मेरा राजू बेटा तो कीतना समझदार हो गया हैं 'क्यू दीदी?
सुनीता-- हां अरे राजू बेटा थोड़ा अपने भइया को भी कुछ सीखा दीया कर।
राजू शरमा जाता है और घर से बाहर नीकल जाता है,
कस्तूरी--ये सब तुम्हारी गलती है, दीदी।
सुनीता--मेरी क्या गलती है,
कस्तुरी-- सोनू बेटा 19 साल का हो गया लेकीन अभी है अनाड़ी का अनाड़ी,
सुनीता-- अरे एक बार उसकी शादी हो जायेगी तो सब सीख जायेगा, तू भी बेमतलब का परेशान हो रही है,
कस्तुरी-- अरे दीदी अपने राजू की उमर देखो, कीतना कुछ सीख गया, है। और सच कहु तो अपने सोनू के उमर के लड़के तो लड़कीयो की छेंद खोलने लगते है,
सुनीता-- बस कर, तू भी कीतनी बेशरम है।
कस्तुरी (धिरे से)-- अरे दिदी सच कह रही हू, मुझे तो लगता हैं अपना राजू भी छेंद का मजा ले चुका है।
ये सुनते ही सुनीता का गला सुखने लगता है...
सुनीता-- क...क्या बोल रही है?
कस्तुरी-- अरे हा दिदी, मुझे लगता है, राजू का चक्कर उसकी मामी कुमकुम से चल रहा है,
सुनीता (आश्चर्य से)-- क्या बोल रही है तू,?
कस्तुरी-- सच में दीदी, वो जब पिछले महीने आयी थी तो सोनू उसके पास ही सोता था, "एक रात मेरी निदं खुली तो मुझे उसकी आवाज सुनाइ दी।
सुनीता और अनिता की आखें फटी की फटी रह गयी॥
सुनीता-- क....कैसी आवाज़?
कस्तुरी-- "उस रात मुझे पेशाब लगी तो मैं उठ कर आंगन में जा रही थी, तभी मुझे कुमकुम के खाट पर से उसकी आवाज़ें सुनाइ दी, वो बोल रही थी, आह राजू मेरी बुर गीली हो गयी रे , अब डाल भी दे,
सुनीता और अनिता दोनो आश्चर्य से कस्तुरी की बात को सुने जा रही थी!
सुनीता-- हाय राम, तो तूने बड़ी दीदी को नही बताया क्या?
कस्तुरी-- सुबह होते ही बताया दीदी, लेकीन बड़ी दीदी बोली अब जवान हो रहा है, अब नही करेगा तो कब करेगा, "और वैसे भी ये सब चिजे पहले से पता होनी चाहिए नही तो शादी के बाद औरत को क्या खाक खुश कर पायेगा। फीर वही औरते बाहर ताका झाकी करने लगते है,
मैने कहां अरे दिदी शादी के बाद तो वो अपने औरत के साथ जब चाहे तब कर सकता है, भला औरत बाहर क्यू ताका झाकी करेगी,
सुनीता-- फीर.....,
कस्तुरी-- फीर क्यां दिदी बोली अरे शादी होगी कही 22 और 23 साल बाद तो जो लड़का इतने उमर में कुछ नही कीया, 23 साल के बाद वो अपनी औरत से सीखता ही रहेगा और उसकी औरत का कोइ और घुंघुरु बजा कर चला जायेगा,
कस्तुरी-- वैसे बात सही बोली, जिस लड़के को 22 साल तक कुछ पता ही ना हो वो कीतना शरमीला होगा, और औरते तो मर्द ढुढतीं है, शरमाने वाला नही।
सुनीता-- ह...हां बात तो ठीक कहा तूने,
कस्तुरी-- फीर सोनू की शादी कब करोगी दीदी, और हंसने लगती है॥
सुनीता(मुहं बनाये)-- मेरे बेटे का मज़ाक उड़ा रही है॥
कस्तुरी-- नही दिदी मैं तो ये सोच कर डर रही हू, की अपना सोनू तो इकदम अनाड़ी हैं, कोई और उसकी औरत का घुंघुरु ना,
सुनीता(बात काटती हुइ)-- चुप कर तू॥
तभी फातीमा आ जाती है( फ़ातीमा सुनीता की अच्छी सहेली है, दोनो में बहुत जमती है, पुये गांव मे सीर्फ 5 ,6 घर ही मुस्लिम था, फ़ातिमा 42 सार की खुबसुरत औरत थी, मुस्लिम होने की वजह से गोरा रंग लाज़मी था, लेकीन उसका बदन तो एकदम मस्त कर देने वाला था, बड़ी बड़ी गोल और बेहद कसी चुचीयां, गोल गोल मोटी गांड बिल्कुल सुनीता की तरह,)
पुरे गांव के जवान मर्दो की नज़र इन दो औरतो पर हमेशा रहती, सुनीता तो अपने पती के अलावा कभी कीसी के साथ सोचती भी नही, और अब जब उसका मरद इस दुनियां में नही है। तो उसकी चुदाइ की इच्छा ही जैसे खत्म हो गयी है।
फ़ातिमा का पता नही, लेकीन अगर सुनीता की सहेली थी तो जाहीर सी बात है की वो भी अच्छी औरत होगी,
फातीमा -- अरे क्या बाते हो रही है, *देवरानी और जेठानी में॥
सुनीता-- अरे आ फातीमां बैठ॥
फातीमा बैठ जाती है, तभी कस्तुरी-- कुछ नही दिदी बर सोनू को मर्द बनाने की बाते हो रही थी,
सुनीता-- चुप कर तू।
फातीमा-- मैं समझी नही॥
कस्तुरी-- ऐसे ही सोनू भी नही समझता!
फातीमा-- मतलब?
कस्तुरी-- अच्छा दिदी, अगर ये मौसम में भैंस चिल्लाये तो क्या मतलब है?
फातीमा- मतलब यही की वो गरम है, और उसे "सांड" की जरुरत है।
कस्तुरी-- हां दिदी लेकीन इनके बेटे का ख्याल कुछ अलक है।
सुनीता(कस्तुरी को घुरते)- तू चुप बैठेगी?
फातीमा-- अरे तू बता कस्तूरी, कैसा ख्याल अलग है?
कस्तुरी-- इनके बेटे का ख्याल है की, भैसं भला इतनी ठंडी में गरम कैसे होगइ, जरुर उसे बुखार हुआ है, भैस को सांड की नही डाक्टर कइ जरुरत है।
ये सुनकर फातीमा और कस्तुरी, अनिता हंसने लगते है। सुनीता मुह बना कर बैठी रहती है।
फातिमा-- कैसा अनाड़ी बेटा जना है, सुनीता ॥ इस उमर के लड़के खुद सांड की तरह अपनी भैंस ढुढतें है। और एक तेरा बेटा है...
कस्तुरी-- सब इनकी ही गलती है,
सुनीता(गुस्से में)-- मेरी क्या गलती है?
कस्तुरी-- जब देखो बेचारा खेत पर फीर खेत से घर, अरे अगर बाहर घुमता टहलता दो चार दोस्त मिलते तो सीखता नही था क्या?
लेकीन तुम्हारे डर की वजह से बेचार कभी बाहर नही जाता।
फातीमां -- अरे कोइ नही मैं सीखा दुंगी उसको थोड़ा बहुत, तू बस आज रात उसे मेरे घर भेज देना।
सुनीता-- सच में फाती मां,
फातीमा- अरे हा रे, नही तो तेरा बेटा अनाड़ी ही रह जायेगा,॥
सुनीता-- उसे बर उपर उपर ही सीखा देना, ज्यादा कुछ करने की जरुरत नही है,
फातीमा-- तू चिंता मत कर मुझे पता है, क्या करना है। चल अच्छा तो मैं चलती हूं॥ और जैसे ही जाने के लिये उठी तभी सोनू भैंस लेकर आ जाता है।
सोनू भैंस को खुटे से बांधता है, और अंदर आ जाता है,
फातीमा-- अरे सोनू बेटा तेरी भैंस भचक भचक कर क्यू चल रही है,
सोनू-- पता नही काकी, जब ले जा रहा था तो बहुत भाग रही थी, लेकीन जब से भानू काका का सांड इस पर चढ़ा तब से ये ऐसी चल रही है।
ये सुनकर सब हंसने लगते है...
फातीमा-- ऐसा ही होता है, बेटा जब सांड चढ़ता है तो चाल बदल ही जाती है...और हंसते हुए चली जाती है।
सोनू-- मां मै खेत जा रहा हूं।
सुनीता-- अरे आज मत जा, और वैसे भी शाम हो गयी है।
सोनू-- ठीक है मां॥
सुनीता-- बेटा तू मुझसे नाराज है ना।
सोनू-- नही तो मां क्यू?
सुनीता-- जो मैं तुझे हमेशा डाटती रहती हू।
सोनू-- नही मां ऐसी कोइ बात नही है।
सुनीता-- अच्छा आज तू फातीमा के यंहा रात रुक जाना।
सोनू-- क्यूं मां?
सुनीता-- अरे नही बस उसका मरद शहर गया है काम से कल आयेगा तो इसलीये॥
सोनू-- ठीक है मां॥
सोनू-- बड़ी अम्मा नही दिखाइ दे रही है।
सुनीता-- वो मायके गयी है, 10 दीन बाद आयेगीं ॥ उनकी मां की तबीयत खराब है।
सोनू-- (मन में) अरे यार एक ही तो बुर थी वो भी चली गयी, अब क्या करु...?
रात को खाना खाने के बाद सोनू फातीमा के घर की तरफ़ नीकल देता है.....।
कस्तुरी-- चलो ना दीदी थोड़ा आपके अनाड़ी बेटे का अनाड़ी पन देखते है।
सुनीता-- अरे शरम कर, तू अपने बेटे जैसे सोनू को वो सब करते देखेगी, तूझे शरम नही आती।
कस्तुरी-- अरे दिदी सिर्फ देखने को कह रही हो...करने को नही। आप रहने दो चल अनिता हम चलते है। और जैसे ही जाने को हुइ
सुनीता-- अच्छा रुक मैं भी चलती हूं॥
सोनू फातीमा के घर पहुचं गया ।
फातीमा-- आ गया बेटा॥ आ बैठ
सोनू खाट पर बैठ जाता है, और फातीमा कमरे में से निकल कर बाहर का दरवाजा बंद करने के लीये गयी ,
वो जैसे ही दरवाजा बंद करने को हुइ उसके सामने सुनीता और कस्तुरी, अनिता खड़ी दीखी।
फातीमा-- अरे तुम लोग।
कस्तुरी-- हा दीदी हम ये देखने आये थे की, कही आप हमारे बेटे सोनू को सीखाने के चक्कर मे, कुछ और ना कर दे।
फातीमा (हंसते हुए)- चलो आ जाओ अंदर
वो लोग अंदर आ जाते है,
फातीमा-- तुम लोग वो कमरे मे जाओ।
कस्तुरी-- अरे दिदी उस कमरे में से कुछ दिखेगा भी या नही,
फातीमा-- अरे सब दिखेगा। अब जाओ।
कस्तुरी-- ओ हो बड़ी उतावली हो रही हो दिदी,
सुनीता-- अब चल,
॥ और फीर वो तीनो दुसरे कमरे चली जाती है।
फातीमां कमरें में जाती है , तो देखती है सोनू खाट पर लेटा हुआ था।
फातीमा-- नीदं आ रही है क्यां सोनू बेटा?
सोनू-- नही काकी, बस ऐसे ही लेटा था।
फातीमां एक लाल कलर की सलवार कमीज पहने हुइ थी। उसके सलवार में उसकी गांड काफी कसी हुइ थी, सोनू की नजर जैसे ही उसकी बड़ी बड़ी और कसी हुइ गांड पर पड़ती है। उसका लंड सलामी देने लगता है।
तभी फातीमा सोनू के बगल में बैठ जाती है, और अपना दुपट्टा हटा कर खाट पर रख देती है।
सोनू के सामने उसकी बड़ी बड़ी गोल चुचींया जो की कमीज में से आजाद होने को चाहती थी देख कर सोनू मस्त हो जाता है।
सोनू की नज़र अभी भी उसकी चुचींयो को ही घुर रही थी।
फातीमां-- क्या देख रहा है सोनू बेटा।
सोनू (भोलू बनते हुए)-- ये आपकी कीतनी बड़ी बड़ी है।
फातीमा-- क्या बड़ी बड़ी है? बेटा
सोनू फातीमां के चुचीयों की तरफ इशारा करते हुए।
फातीमा-- अच्छा मेरी इसकी बात कर रहा है। क्यूं तुझे अच्छी नही लगी?
सोनू-- अच्छी है काकी।
फातीमा-- जब तेरी शादी होगी ना तो तेरी औरत की भी ऐसी ही होगी।
सोनू-- काकी लोग शादी करते है। तो बच्चा पैदा हो जाता है वो कैसे?
फातीमा को पता था की ये अनाड़ी है। और वैसे भी यही सब सीखाने तो सुनीता ने इसे भेजा है॥
फातीमा-- अरे सोनू बेटा सीर्फ शादी करने से बच्चे पैदा नही होते। बल्की कुछ और करना होता है।
सोनू(मन में)-- काकी आज तो तू गयी।
सोनू-- और क्या करना होता है?
फातीमा-- तुझे पता है आज जब तेरी भैंस गरम थी, तब तू उसे भानू के सांड के पास ले गया था।
सोनू-- हां काकी, पता है।
फातीमा-- तो सांड ने क्या कीया?
सोनू-- वो अपना बड़ा सा पता नही क्या नीकाला और भैसं के पीछे डाल कर धक्का मारने लगा।
फातीमा-- हां बेटा, वैसे ही जम मर्द औरत के अंदर डालकर धक्का मारता है। तब वो गर्भवती होती है।
लेकीन उससे पहले औरत को भी गरम करना पड़ता है।
सोनू--काकी ये औरत गरम कैसे होती है,
अंदर कमये में से नजारा देख रही सुनीता , कस्तुरी और अनिता।
कस्तुरी- अब बताओ फातीमा दीदी औरत गरम कैसे होती है।
फातीमा-- बेटा, तूझे कैसे समझाउ मैं की औरत को कैसे गरम करते है।
सोनू-- काकी तू बता मैं समझ जाउगां॥
फातीमा अपने मन में सोचती है की सोनू तो अभी नादान है। तो वैसे भी इसको सीखाना पड़ेगा ही॥
फातीमा-- बेटा औरत को गरम करने के लीये औरत के बदन के साथ खेलना पड़ता है।
सोनू-- काकी मैं समझ नही रहा हू?
फातीमा-- अरे सोनू बेटा, औरत के जीस्म के साथ खेलना मतलब, उसकी चुम्मीया लेना। और अपनी चुचीयों की तरफ इशार करते हुए, उसका ये दबाना ये सब करने से औरत गरम होती है।
सोनू(अपना पासा फेंकते हुए)- क्या काकी तुम झूठ बोल रही है।
फातीमा-- अरे नही बेटा सच कह रही हूं॥
सोनू-- तो मैं एक बार तूझे गरम करना चाहता हू। फीर पता चलेगा काकी तू झूठ बोल रही है या सच।
ये सुनकर फातीमा असमंजस में पड़ जाती है, की ये सोनू ने क्या कह दीया ॥ भला मैं इसके साथ कैसे?
अंदर कमरे में सुनीता के साथ साथ कस्तुरी और अनीता का भी रंग उड़ चुका था।