Incest जालिम बेटे ने की घर की सभी औरतो कि चुदाई

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Update 7





सुनीता पारुल के आगे हाथ जोड़ती हुइ -- डॉक्टर साहिबा पता नही ये अहसान मैं आपका कैसे चुका पाऊंगी । आपने अपना खून दे के मेरे बेटे की जान बचाई ।

पारुल-- अरे सुनीता जी ये तो मेरा फर्ज था ।(और मन में सोचती की अगर मैने ब्लड नही दीया होता तो मेरी बेटी मुझे जान से मा .र देती.)

ये कहते हुए पारुल वापा अपने केबिन में चली जाती है।

अस्पताल में आज , सुनीता के साथ साथ अनीता और राजू बैठे थे।
तभी वहां फातीमा भी आ जाती है

फातिमा---- अरे सुनीता क्या हुआ सोनू को,।

फातिमा काफी घबराई हुई दिख रही थी ,

सुनीता फातिमा को देखते ही रोने लगती है।
फातिमा-- अ रे क्या हुआ कुछ बताएगी भी।

पारुल-- उन्हें थोड़ा आराम करने दीजिए, उनको थोड़ा सदमा लगा है। और सोनू अब बिल्कुल खतरे से बाहर हैं।

ये सुनते ही फातिमा को भी तसल्ली मिली.........।

तभी पारुल के फोन की घंटी बजी ट्रिंग ट्रिंग........... पारुल ने फोन उठाया ये फोन किसी और ने नहीं बल्कि वैभवी का था।

पारुल-- हा मेरा बेटा कहा तक पहुंची।
वैभवी-- अरे कहां तक पहुंची मा, मेरा तो मन कर रहा है वापस लौट आऊं।

पारुल-- अरे ३ महीने की तो बात हैं, जैसे ही एक्साम्स खत्म होंगे चली आना।

वैभवी-- मा कुछ अच्छा नहीं लग रहा है......। सोनू दिखा था आपको?

ये सुनते ही पारुल थोड़ा घबराई वो नहीं चाहती थी की सोनू के इस हादसे के बारे में वैभवी को बताए नहीं तो ठीक से अपना एक्सामस भी नहीं दे पाएगी।

पारुल-- हा...... हा दिखा था, थोड़ा उदास था, लेकिन जब तू आएगी तो वो उदासी भी उसकी गायब हो जाएगी।

वैभवी (ठंडी आहे भरते हुए)-- हा.... ठीक कहा मा, लेकिन ये तीन महीना मुझे तीन सौ साल के बराबर लग रहा है।

पारुल-- ओ हो, बड़ी बसब्र हो रही है मेरी गुड़िया........
वैभवी--- क्या...... मा , तुम भी ना, चलो अब मै फोन रखती हूं।

पारुल-- ठीक हैं बेटा पहुंच कर कॉल कर देना।
वैभवी-- ओक , मा और फोन डिस्कनेक्ट कर देती हैं।


इधर पारुल जैसे ही अपने कान से फोन हटती है,।

नर्स--- मैडम , उनको होश आ गया।

पारुल ये सुन कर की खुश हो जाती हैं और अपने केबिन से बाहर निकलते हुए सीधा सुनीता के पास जाती हैं।


पारुल-- सुनीता जी अब रोना बंद कीजिए , सोनू को होश आ गया है।

रो रों कर लाल पड़ चुका सुनीता का खूबसूरत चेहरा, अपने बेटे के होश में आने की बात सुनकर उसने जान आ जाती है..... जैसे एक मुरझाए हुए पेड़ में पानी पड़ने से उसमे जान आने लग जाती हैं.... उसी तरह सुनीता भी अपने आंख के आंसू पोच्छते हुए पारुल से बोली।


सुनीता-- के..क्या मै देख सकती हूं अपने बेटे को ?

पारुल--- हा..... हा सुनीता जी, जाकर मील लो,
। सुनीता ये सुन कर सीधा भागते हुए, सोनू के वार्ड में पहुंची..... सोनू अपनी आंखे खोल छत की तरफ उपर देख रहा था।


सुनीता सोनू के पास आकर बैठ जाती है, अपने बेटे के सर में बंधी पट्टी को देख कर उसका दिल मानो जोर जोर से रोने लगता हैं।

सुनीता की आंखो से लगातार पानी की आंसू बह रहे थे और उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था।

सुनीता (कांपते हुए)--- बे.... टा।

लेकिन सोनू को कोई फर्क ही नहीं हुआ.... उसकी नजर जहा थी वहीं गड़ी रही, उसने अपनी मां की आवाज़ सुन कर भी नजर अंदाज़ कर दिया, उसने एक बार अपनी मा की तरफ देखा भी नहीं।

सुनीता अब तक चार पांच बार सोनू को आवाज़ दे चुकी थी.... लेकिन शायद सोनू ही अपने मा से बात नहीं करना चाहता था।

सुनीता--- देख मुझसे ऐसे नाराज़ मत हो, नहीं तो में जी नहीं पाऊंगी, तेरे सिवा और कोई है भी नहीं मेरा.....( सुनीता भचक bhachak कर रों रही थी)

लेकिन सोनू को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा, उसे उसके मा के आंसू भी बेकार से लग रहे थे।

सुनीता-- सुन... ना, ए मेरे लाल, मत रूठ अपनी मां से। तू.... तू चाहे तो वो डंडा लेकर मुझे भी मार ले, लेकिन एक बार मुझसे बात कर ले..... उसकी लगातार आंखो से आंसू निकलते निकलते सुर्ख लाल हो चुके थे...... सुनीता अब तक ये समझ चुकी थी की सोनू उससे एकदम रूठ चुका है..... लेकिन उसे ये बात सताए जा रही थी की ये रुसवाई कब तक की है..... कहीं मेरा ज़िन्दगी भर मुझसे बात नहीं किया तो.... अपने मन में ढेर सारे सवालों की झड़ी लगाकर वो खुद से ही पूछ रही थी और रोते हुए अपना हाथ सोनू के हाथ पर रख देती है।

तभी वहां पारुल आ जाती है.........।

पारुल--- कैसे हो सोनू अब, कैसा लग रहा है?

सोनू--- अब ठीक लग रहा है मैडम जी, लेकिन मेरा सर बहुत तेज दर्द कर रहा है। ऐसा लग रहा है मुझे अब आराम करना चाहिए?

पारुल-- हा... हा , सोनू तुम आराम करो, सुनीता जी अब चलिए थोड़ा सोनू को आराम करने दीजिए.....।
लेकिन सुनीता को जैसे पारुल की आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी , वो अपना एक हाथ सोनू के हाथ पर रख उसके मासूम चेहरे में खोई हुई थी।

तभी पारुल ने सुनीता को थोड़ा झिंझोड़ कर बोला-- सुनीता जी।

सुनीता जैसे नींद के आगोश से बाहर निकली.....।

सुनीता-- ह..... हा।

पारुल--- कहां खो गई आप, वो ठीक है अब, सोनू को थोड़ा आराम करने दीजिए, चलिए अब चलते है।

सुनीता--- डॉक्टर साहिबा म.... मै यहां सिर्फ बैठी रहूंगी, उससे बात भी नहीं करूंगी, लेकिन मै अभी मेरे बच्चे को छोड़ कर जाना नहीं चाहती।

पारुल-- मै आप की भवनावो को समझ सकती हूं, लेकिन आप यहां रहोगी तो उसे नींद नहीं आएगी..... समझिए थोड़ा।

सुनीता ना चाहते हुए भी अपने दिल पर पत्थर रख वो बाहर की तरफ चल देती है... बाहर जाते हुए सुनीता ने कई बार पीछे मुड कर सोनू की तरफ देखा, लेकिन सोनू ने एक बार भी नहीं अपनी मा की तरफ तांका।


आज झुमरी खाट पर से कई दिनों के बाद उठी थी, शायद अब वो बिल्कुल ठीक थी।
वो आंगन में बने गुसल खाने में नहा रही थी....... गूसल खाना भी एकदम ना के बराबर ही था, बस थोड़ी थोड़ी इंट की दीवारें उठी थी सर के बराबर तक दरवाजे का नामो निशान भी नहीं था।
। झुमरी नहाते हुए..... अपने ब्लाउस की दो बटन खोल देती है।


और अपनी साड़ी निकाल कर, नीचे रख देती है, झुमरी अपनी पेटीकोट थोड़ा अपनी जांघ तक सरका कर, रगड़ रगड़ कर नहा रही थी.... उसकी मोटी मोटी गोरी जांघं इतनी मांसल थी की अगर कोई उसकी जांघ देख ले तो बीना झुमरी को चोदे रह नहीं सकता।

झुमरी अपनी जांघो को मसलते मसलते उस रात हुई धमाके दार चुदाईई को याद करने लगी, जब उसका मर्द बेचैन अपनी मां को हुमच हुमाच कर चोद रहा था..... और सुगना भी उसे और जोर जोर से चोद ने के लिए उकसा रही थी......।

अनायास ही ये सब सोच झुमरी का हाथ पेटीकोट से होते हुए उसके बूर पर पर पहुंच गई।
झुमरी की बूर पनिया चुकी थी.... अपना एक हाथ झुमरी ने अपने बड़ी बड़ी चूचियों पर रख मसलते लगती है.... और नीचे पेटीकोट के अंदर अपने बूर में दो उंगलियां घुसा कर अन्दर बाहर कर रही थी।

अब झुमरी की सिसकारी निकलने लगी और मन में बड़बड़ाती हुई.....।

झुमरी----। सी ईईईईई.... आह, कुत्ता जब मुझे चोदने को होता है, तो आह.... उसके लन्ड की ताकत खत्म हो जाती है... और अपनी मां को उछल उछल कर चोद रहा था।

झुमरी अपनी मस्ती में मस्त अपनी चूचियां और बूर मसल रही थी... वो शायद भूल चुकी थी कि उसने बाहर का दरवाजा बंद नहीं किया है.......।


बाहर शेशन जो कि बेचन का बड़ा भाई है.... वो खेत के झोपड़े की चाभी लेने, सीधा घर के अंदर घुस गया..... उसे ओसार में कोई नहीं दिखा तो वो बैचन को आवाज़ लगते आंगन में चला आया.....।

आंगन में पहुंचते ही शेशान ने जो नज़ारा देखा देखते ही, उसके पैर वहीं थम्हे के थाम्हे रह गए.... झुमरी अपनी मस्ती में मस्त अपना एक हाथ पेटीकोट में डाल कर, अपनी बूर में कचाकच उंगलियां पेल रही थी.... और एक हाथ से अपनी ब्लाउस के उपर ही चूचियां दबा रही थी..... इतना कामुक नज़ारा देख शेसन की हालत को लकवा मार जाता है.... उसके बदन में तो सरसराहट होती है.... लेकिन उसके लन्ड को कोई फर्क नहीं पड़ता।

शेसान अब करीब ७० साल का हो गया था उसके, लंड्ड ने उसका साथ छोड़ दिया था..... वो ये नज़ारा देख कर अपने मन में खुद को गाली देते हुए बाहर निकाल जाता है।

शेसंन---- साला आज अगर लंड खड़ा होता तो , झुमरी बहू को चोद देता..... और यही सोचते सोचते जैसे ही घर में पहुंचा, उसे उसके कमरे से कुछ आवाज़ सुनाई दी। ये आवाज़ इतनी धीमी थी की समझ में नहीं आ रहा था की क्या बाते हो रही है।

शेसन धीरे धीरे क़दमों से उस कमरे तक पहुंचा, और अपना कान दरवाजे से सटा दिया।

अन्दर से आवाज़ आ रही थी...... शीला भाभी मान जाओ ना एक बार अपना ये मखहन जैसा बदन मेरे नाम कर दो कसम से मज़ा आ जाएगा।

ये सुनते ही शेसन के पैरो तले ज़मीन खिसक गई... क्यूकी ये आवाज़ बेचन की थी, उसके छोटे भाई की।
ओ हड़बड़ा गया और उसके दिमाग का पारा बहुत तेज़ होने लगा था, उसने नज़र इधर उधर घुमाई उसे एक मोटा डंडा दिखा, ओ डंडे को उठाकर सोचा की आज तो बेचन को जान से मार दूंगा.... और जैसे ही दरवाजा खोलने को हुआ, उसे उसकी औरत शीला की आवाज़ सुनाई पड़ी।


वो बोल रही थी.... क्या देवर जी आह... क्या करते हो, शर्म नहीं आती इतने जोर से मसलते हो.... आह, दर्द होता है। छोड़िए मुझे आप, नहीं करना है ये सब मुझे... आह।

शेसंन का हाथ दरवाज़े तक पहुंच कर रुक जाता है..... वो सोचने लगा की शीला आह उह क्यों कर रही है, आखिर ये बेचन कर क्या रहा है शीला के साथ..... यही उत्सुकता और मन में गुस्से से भरा शेसन्न बगल में लगी सीढ़ियों के सहारे खिड़की से अन्दर जैसे ही झांकता है उसके रौंगटे खड़े हो जाते है......।

खिड़की से झांकते हुए पाया की, उसका भाई बेचन उसकी औरत शीला को अपनी बाहों में जकड़े हुए उसकी एक चूची को अपने हाथ के मुट्ठी में एक दम से दबोचे हुए था। और शीला छटपटा कर उसे छोड़ने को क रही थी।

अद्भुद नज़ारा था , शीला की उम्र लगभग 55 साल की होगी लेकिन फिर भी इस उम्र में गजब की भरी हुई बदन लिए हुए किसी भी जवान मर्द का पानी निकाल सकती थी।

शीला-- आह.. छोड़िए ना देवर जी, क्या कर रहे हो, आपके भईया अगर आ गए ना तो हम दोनों की खैर नहीं।


बेचन(शीला की चूचियों को मसलते हुए)-- आह भाभी लगता है भईया तुझे कुछ ज्यादा ही मजा देते है... जो तुझे अपने इस देवर पर तरस नहीं आ रहा है.... और कहते हुए शीला की चूचियों को जोर से दबा दिया।

शीला......- आ.......ह, देवर जी, मार डालोगे क्या।
शीला बेचन की बाहों में किसी खिलौने की तरह पड़ी हुई थी, जिसे बेचन बड़े मजे ले ले कर उसकी चूचियां मसल रहा था।



बेचन--- एक बार पुरी नंगी हो जा ..... भाभी , बस एक बार।

शीला की बची खुची जवानी बेचन के इस तरह मसलने से रंग लाने लगी थी, वो जानबूझ कर नाटक कर रही थी।
शीला-- नहीं देवर जी छोड़िए मुझे, ये सब अच्छा नहीं लगता अब इस उम्र में। आपके भईया अगर......
बेचन बीच में ही बात काटते हुए-- अरे भाभी आप तो भईया के उपर ही अटकी पड़ी हो कब से.... तभी बेचन ने शीला की ब्लाउस अपनी उंगलियों में पकड़ जोर से खींच कर फाड़ दिया।
शीला -- हाय री दाईया.... ये क्या किया आपने देवर जी... और अपने दोनों हाथो से अपनी चूचियों को छुपाने लगी।



बेचन,-- क्यू तड़पा रही है भाभी , देख ना तेरी ये मस्त चूचियां देख कर मेरे लंड की क्या हालत हो गई है।

अनायास ही शीला की नजर बेचन के पजामे पर पड़ी जो अब तक वहां पर तम्बू बना था..... ये देख शीला शर्मा गई और अपनी आंखे नीचे कर ली।

बेचन शीला को इस कदर शरमाते देख उसकी हिम्मत बढ़ गई वो झट से खाट पर से उठा और शीला को अपनी बांहों में कस कर दबोच लिया।
बेचन-- क्या हुआ भाभी लगता है पसंद नहीं तुझे?
शीला कुछ बोल नहीं पाई और अपना सर नीचे ही झुका कर रखी रही।

बेचन-- भाभी अब सहा नहीं जाता... निकाल दे अपनी ये साड़ी और बन जा अपने देवर की रखैल...।
शीला ये सुनते ही पूरी की पूरी अंदर तक हिल गई..... उसके जांघो के बीच काफी सा लो से वो झनझनाहट जो आनी बंद हो गई थी, बेचैन के एक शब्द ने उसके बूर को आखिर गुदगुदा ही दिया,,।

शीला-- देवर जी आप जाओ यहां से,
शीला बोल ही रही थी कि उसने नजर उठा कर जैसे ही बेचन की तरफ देखा बेचन ने अपना पायजामा निकाल कर अपना लंड हाथ में ले लिया था और उसे धीरे धीरे आगे पीछे कर रहा था।
६ इंच का लंड देख शीला की जवानी बेकाबू होने लगी, थोड़ा सा शर्म और इज्जत की मारी शीला अपनी नजर झुकाए वहीं खड़ी रही...।

ये देख बेचन की हालत और खराब होने लगी उसका लंड तो पहले से ही उफान मार रहा था। जब से अपनी मां को चोदा था उसने और अब अपनी बिटिया सीमा का बूर खोलने की खुशी उसके तन बदन दोनों को आग लगा रही थी।

बेचन--- अरे भाभी, देख ना मेरा लंड खड़ा है और तू है कि अपनी मुंडी झुकाए खड़ी है।
चल आजा मेरी जान अपने देवर का लंड अपने मुंह में ले के चूस......।

शीला तो मानो जैसे पानी पानी हो गई थी क्युकी आज तक ऐसी बाते उसके मर्द ने भी उससे नहीं करी थी, और लंड चूसने का सुन कर तो तो उसके भोसड़े में तो जैसे तहलका मच गया हो, क्युकी लंड चूसना तो आज तक वो सिर्फ गाली गलौच के समय ही सुनी थी लेकिन कभी चूसा नहीं था।

शीला के लिए लंड चूसने का ये पहला अहेसास था, लेकिन मारे शर्म से वो खुल नहीं पा रही थीं।
शीला ये सब सोच ही रही थी कि तभी बेचन ने आगे बढ़कर उसकी साड़ी के पल्लू को पकड़ लिया और एक झटके में खींचने लगा जिससे शीला चारो तरफ नाचने लगी और उसकी साड़ी देखते देखते ही उसके बदन पर से उतरने लगी......।

शीला--- नहीं देवर जी ऐसा मत करो, ये ग़लत है।
लेकिन बेचन ने आखिर उसकी साड़ी को पूरा उतार ही दिया, अब शीला सिर्फ पेटीकोट में और एक नीले रंग के ब्लाउज में खड़ी थी।
अपनी मोटी मोटी कमर लिए शीला अपनी दोनों हाथो से अपने ब्लाउज के ऊपर हाथ रख उसे छुपाने की कोशिश कर रही थी।

और इधर बेचन शीला की बड़ी बड़ी चूचियां और मोटी गांड़ देख पागल हुए जा रहा था।

बेचन--- आह भाभी, कसम से क्या गांड़ है तेरी, मज़ा आ जाएगा जब तेरी गांड़ में मेरा लंड घुसेगा तो।

शीला ऐसी बाते सुनकर और शर्मा जाती लेकिन उसे ऐसी बातों में मजा भी बहुत आ रहा था।

शीला--- आप बहुत गंदे हो देवर जी, ऐसी गंदी बातें कर के आप को शर्म नहीं आ रही है?

बेचन(अपने लंड को मसलते हुए)---- आह , मेरी शीला रानी.... भईया नहीं करते क्या तुझसे ऐसी बाते?

शीला--- वो तुम्हारी तरह गंदे थोड़ी है, वो ऐसी गंदी बाते कभी नहीं करते।

बेचन ने शीला को फिर से एक बार अपनी बाहों में कस कर भर लिया... और शीला का पेटी कोट उपर उठाते हुए उसके दोनों बड़ी बड़ी चूतड़ों को अपनी हथेलियों में दबोच उसे जोर जोर से मसलने लगा।

शीला--- हाय..... राम, क्या..... आ.... कर रहे हो.... दर्द हो रहा है...। छोड़ दो देवर..... जी।

बेचन--- अरे शीला रानी, तेरी गांड़ हैं ही इतनी मस्त, पता नहीं वो भंडवा मेरा भाई तेरी गांड़ की नथ क्यू नही उतार पाया।

शीला--- आह.... देवर जी...धीरे.... करो।
बेचन-- भईया ने कभी नहीं दबाया तेरी इन मस्त चूतड़ों को?

शीला-- बेचन की बाहों में पड़ी... आह न.... नहीं।
बेचन-- तू चिंता मत कर शीला रानी, अब से तेरी गांड़ की सेवा में करूंगा, तेरी इस मोटी गांड़ में अपना लंड डाल कर खूब तेरी गांड़ करूंगा। क्यू मरवाएगी ना अपनी ये गांड़ मुझसे?

शीला को बहुत ज्यादा शर्म आ रही थी, ऐसी बाते उसके बदन में आग भी लगा रही थी और उसकी शर्म उसे रोक रही थी, वो भी चाहती थी की पूरा खुल कर मजे लू लेकिन गांव की औरतं इतनी जल्दी भला कैसे बेशर्म हो सकती है।


शीला को बहुत ज्यादा शर्म आ रही थी, ऐसी बाते उसके बदन में आग भी लगा रही थी और उसकी शर्म उसे रोक रही थी, वो भी चाहती थी की पूरा खुल कर मजे लू लेकिन गांव की औरतं इतनी जल्दी भला कैसे बेशर्म हो सकती है।

शीला-- आह हटो, आप इतनी गंदी गंदी बात कर रहे हो, मुझे शर्म आती है, आप तो बेशर्म हो कर मेरी मसले जा रहे हो और पूछते हो की।

बेचन- - क्या मसले जा रहा हूं भाभी?
शीला-- आप मसल रहे हो, तो आ....ह, आप को नहीं पता क्या?

बेचन-- मुझे नहीं पता तू ही बता दे ना मेरी , रखैल ।

शीला-- आप मर्द लोग ऐसे ही होते हो.... आह, खुद तो मजे लेते हो औरतों को मसल मसल कर और दर्द की परवाह तो होती नहीं त आप मर्दों को।

बेचन ने शीला के बूर में अपनी दो उंगलियों को घिसोड़ कचकाच पेलने लगा, शीला की बूर पानी उगलने लगी।

शीला--- आह..... अम्मा. हाय री.... देवर जी, ।
बेचन-- तेरी बूर तो पानी छोड़ रही है भाभी, कसम से बहुत कसी कसी लग रही है।
बेचन खड़े खड़े ही , अपनी उंगलियां शीला की बूर में पेले जा रहा था.... और शीला भी मस्त मज़े में अपनी टांगे चौड़ी कर के उंगलियां पेलवाने का मजा ले रही थी।
पूरे कमरे में शीला की सिसकारियों से आवाज़ गूंज रही थी, और शेशन खिड़की से ये नज़ारा देख पागल हो गया था, वो कभी सोच भी नहीं सकता था की उसकी औरत ये सब भी कर सकती है... शीला जिस तरह बेचन की बाहों में खड़ी अपनी दोनों टांगे चौड़ी कर के अपनी बूर बेचन की उंगलियों से पिलवा रही थी, वो नज़ारा ही एक दम मादक भरा था।
शेशन ने अपनी औरत को कभी भी नंगा नहीं देखा था, रात के अंधेरे में ही उस की चूद्दाई कर देता था, और अब तो उसका लंड भी खड़ा नहीं होता।

बेचन--- (उंगलियां पेलते हुए)--- कैसा लग रहा है भाभी, मजा आ रहा है कि नहीं।

शीला--- आह....म.... देवर जी, आप गंदे हो, आह दैया री... कितना अंदर डालोगे अपनी आह उंगलियां.... फाड़ दोगे क्या अपनी भाभी की बूर।

अपनी औरत के मुंह से ऐसी बात सुनकर शेशन का हाल बेहाल हो गया, क्युकी शीला भी ऐसी बाते कर सकती है उसे पता नहीं था।

और इधर बेचन समझ चुका था , की भाभी की बूर अब लंड मांग रही है, और वैसे भी काफी समय हो गया था उसे लगा उसका भाई कभी भी आ सकता है तो जल्दी से पहले चोद लेता हूं बाद में फिर कभी इत्मीनान से इसे चोदूंगा और वैसे भी अब ये मना नहीं करेगी।

बेचन--- भाभी अपना पेटीकोट उठा कर झुक जा, अब तेरी बूर में अपना लंड डालूंगा और चोदूंगा नहीं तो तेरा bhandwa मर्द आ जायेगा।

शीला--- आह, देवर जी नहीं मत करो ना मत चोदो मुझे... लेकिन शीला ने अपनी पेटीकोट को ऊपर सरका कर खाट पकड़ झुक गई....।

बेचन के सामने अब शीला पूरी नंगी बड़ी बड़ी गांड़ थी, और उसकी झांटों से घिरी बूर बेचन के ६ इंच लंड को और कड़क बना रही थी।
बेचन ने समय का तकाज़ा समझ जल्दी से चोदने का फैसला लिया हालांकि वो शीला को और रगड़ना और मसलना चाहता था लेकिन उसे डर था कि कहीं अगर शेसन आ गया तो गड़बड़ हो जाएगा।


बेचन--- आह भाभी, क्या मस्त गांड़ है.... तेरी गांड़ में ही डाल दूं क्या?
शीला अपनी पेटीकोट उठाए अपनी गांड़ बाहर की तरफ निकले झुकी थी कसम से क्या नज़ारा था जिस तरह से एक ५७ साल की औरत अपनी मदमस्त गांड़ खो ले.... अपने देवर के लंड का इंतजार कर रही थी।

शीला--- नहीं... देवर जी उसमे मत डालो... ।
बेचन(फिर से शीला के बूर में उंगलियां डाल)--- तो कहा डालू रानी.... तेरी इस बूर में डालू, बहुत गरम है... देख कैसे पानी चुआ रही है मेरे लंड के लिए।

शीला से अब रहा नहीं जा रहा था उसका बूर एकदम से गरम हो चुका था और वो थोड़ी भी देरी नहीं करना चाहती थी।

शीला--- आह, देवर जी , कब तक झुकाए रखोगे अपनी रखैल को... डाल भी दो अब।

खिड़की में से झांकता हुए शेसन अपनी औरत के मुंह से बेचन की रखैल वाली बात सुनकर लाल पीला हो गया... वो सोचने लगा वाह री शीला तू इतनी बड़ी छीनाल है मै कभी समझ ही नहीं पाया।

और इधर जैसे ही बेचन ने अपनी भाभी के मुंह से अपनी रखैल शब्द सुना तो पागल हो गया और अपना कड़क लंड शीला के बूर की फांकों में फंसा जोर का धक्का मारा और पूरा लंड एक बार में ही घुसा दिया।

शीला---- हाय री.... मेरी बूर... फाड़ दिया...aaaaaaaaaaaa... निकाल लो बहुत दर्द हो रहा है....आह... नहीं... धी...... रे...।


शीला की चिल्लहट, और बेचन की पागलों जैसी दक्केमारी देख कर शेसन सन्न रह गया.... उसने ऐसी चूदाईई ना कभी देखी थी और ना कभी की थी.... शीला पूरी हिल जाती जब बेचन जोर जोर से शीला की बूर में धक्का मारता... और शीला अपना मुंह खोले चिल्लाती।

बेचन--- आह.... भाभी बहुत मज़ा आ रहा है तेरी बूर में... कैसा लग रहा है तेरे देवर का लंड।

शीला को भी अब मज़ा आने लगा था , शीला बेचन के जोश की दीवानी हो गई थी जीस तरह वो उसे कस कस कर चोद रहा था.... उसे उसके पति ने कभी नहीं चोदा था।

शीला-- आह.... देवर जी, बहुत मज़ा आ रहा है.... आह पहले क्यों नहीं चोदा अपनी भाभी को.... कब से सुख गई थी मेरी बूर... हा... हा... देवर जी ऐसे ही आह.... मा इतना मज़ा कभी नहीं आया था री।

बेचन की रफ्तार और तेज हो गई पूरे कमरे में फच्छ फाच्छ की आवाज़ और शीला की सिसकारियां माहौल को और भी मादक बना रही थी।

बेचन-- आह शीला, पहले ही चोद देता तुझे गलती हो गई... अब ले अपने देवर का लंड ।

शीला--- आह देवर जी..... बहुत अन्दर जा रहा है आपका लंड बहुत मज़ा आ रहा है... मेरा तो... आह पानी निकलने वाला है... चोदो मुझे ऐसे ही, मै गई देवर जी..... आह।

बेचन--- आह भाभी मेरा भी निकलने वाला है... कहा डालू अपना पानी।

शीला--- आ........... मेरी बु..... र में ही डाल दो.... और शीला अपनी का बदन अकड़ने लगा और वो झरने लगी.... और बेचन ने भी एक दमदार धक्का लगाया और अपना पूरा पानी शीला की बूर में भरने लगा।

तूफ़ान गुजर गया था.... दोनों अपनी सांसों को काबू में कर रहे थे.... शीला अब अपना पेटीकोट नीचे कर के खड़ी हो चुकी थी और बेचन अपना ढीला पड़ चुका लंड हाथ में लिए खड़ा बोला।

बेचन--- मज़ा आया भाभी।
शीला तो शर्मा गई.... पूरा।
शीला--- धत बेशरम..... कह कर अपनी साड़ी पहनने लगी।

बेचन--- शीला को पीछे से अपनी बाहों में भर कर उसकी दोनो चूचियां मसलने लगता है।

शीला-- आह.... अभी आपका मन नहीं भरा जो फिर से लग गए।
बेचन-- अरे मेरी जान तू है ही इतनी मस्त की तुझे देख फिर से मन हो जाता है।

शीला--- नहीं.. छोड़ो मुझे, एक तो चोद चोद कर मेरी हालत खराब कर दी आपने और फिर से मन हो रहा है..... अब जाओ नहीं तो आपके भईया आ जाएंगे।

बेचन--- अभी तो जा रहा हूं हूं रानी.... लेकिन फिर कब चुद्वाएगी?
शीला ये सुन शर्मा जाती है..... और बोली।

शीला--- अब तो मै आपकी ही हूं जब मन करे तब चोद लेना।
ये बात सुन कर शेसन एक दम टूट सा गया और कुत्ते जैसा मुंह बनाकर बाहर चला गया........।

और फिर कुछ देर बाद बेचन भी अपने घर पर चल दिया।


हॉस्पिटल में बैठी सुनीता के साथ साथ फातिमा , राजू, और अनीता चुप थे।
सुनीता की हालत तो समझ में ही नहीं आ रही थी दीवार के सहारे अपना सर टिकाए लगातार उपर ताक रही थी..... उसे सोनू के बचपन के दिन याद आ गए... वो सोचने लगी कि एक बच्चे के लिए मै पूरी पांच साल तड़पती रही कहा कहा नहीं गई मंदिरों में हर जगह और जब भगवान ने मुझे एक बच्चा दिया तो मुझे उसकी कद्र ही नहीं.... यही सोचते सोचते उसकी आंखे भर आती है......


सुगंधा को बहुत जोरों से पेशाब लगी हुई थी वह अपने आप पर बहुत ज्यादा संयम रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन u उसके लिए इस समय मोचना बेहद आवश्यक हो चुका था। क्योंकि ज्यादा देर तक वह अपनी पेशाब को रोक नहीं पा रही थी पेट में दर्द सा महसूस होने लगा था। सुगंधा खाट पर से उठी और कुछ देर तक इधर-उधर चहल कदमी करते हुए अपने पेशाब को रोकने की कोशिश करने लगी लेकिन कोई भी इंसान ज्यादा देर तक पेशाब को रोक नहीं सकता था इसलिए सुगंधा को भी मुतना बेहद जरूरी था। इसलिए वह ना चाहते हुए भी अंगूर की डालियों के नीचे से होकर धीरे-धीरे पेशाब करने के लिए जाने लगी और एक जगह पर पहुंच कर वह इधर उधर नजरे दौरा कर देखने की कोशिश करने लगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है लेकिन उस अंगूर के बागान में दूसरा कोई नजर नहीं आ रहा था सुगंधा जहां पर खड़ी थी वहां पर कुछ ज्यादा ही झाड़ियां थी और वहां पर किसी की नजर पड़ने की आशंका बिल्कुल भी नहीं थी और वहीं पास में ही एक छोटी सी झुग्गी बनी हुई थी।

दूसरी तरफ रोहन हेड पंप के पास पहुंचकर वही पर रखे बर्तन में पानी भरने लगा और खुद भी पानी से हाथ मुंह धो कर अपने आप को ठंडा करने की कोशिश करने लगा जब वह वहां से चलने को हुआ तभी उसकी आंखों के सामने से एक खरगोश का बच्चा भागता हुआ नजर आया और रोहन उसके पीछे पीछे जाने लगा रोहन उसे पकड़ना चाहता था उसके साथ खेलना चाहता था इसलिए जहां जहां खरगोश जा रहा था रोहन उसके पीछे पीछे चला जा रहा था।

दूसरी तरफ से सुगंधा अपने चारों तरफ नजर दौड़ा कर संपूर्ण रूप से निश्चिंत होने के बाद धीरे-धीरे अपनी सारी ऊपर की तरफ उठाने लगी और ऐसा करते हुए वह बार-बार अपने चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा ही नजर आ रहा था लेकिन उसे इस बात का डर भी लगा था कि कहीं रोहन उसे ढूंढता हुआ यहां तक ना पहुंच जाए इसलिए वह इससे पहले पेशाब कर लेना चाहती थी वैसे भी पेशाब की तीव्रता उसके पेट में ऐठन दे रही थी सुगंधा धीरे-धीरे अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी यह नजारा बेहद ही कामुकता से भरा हुआ था लेकिन इस नजारे को देखने वाला वहां कोई नहीं था धीरे-धीरे सुगंधा पूरी तरह से अपनी कमर तक अपनी साड़ी को उठा दी थी उसकी नंगी चिकनी मोटी मोटी जांगे पीली धूप में स्वर्ण की तरह चमक रही थी बेहद खूबसूरत और मादकता से भरा हुआ यह नजारा देखने वाला वहां कोई नहीं था और वैसे भी सुगंधा यही चाहती थी कि कोई उसे इस अवस्था में ना देख ले सुगंधा साड़ी को अपनी कमर तक उठा कर एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी धीरे धीरे सुगंधा अपनी पैंटी को अपनी मोटी चिकनी जांघों तक नीचे कर दी और तुरंत नीचे बैठ गई मुतने के लिए।

दूसरी तरफ रोहन लड़कपन दिखाते हुए खरगोश के पीछे पीछे भागता चला जा रहा था और तभी खरगोश उसकी आंखों के सामने एक घनी झाड़ियों के अंदर चला गया रोहन उस खरगोश को पकड़ लेना चाहता था इसलिए दबे पांव वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा उसके सामने घनी झाड़ियां थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था उसे मालूम था कि इसी झाड़ियों के अंदर खरगोश दुबक कर बैठा हुआ है इसलिए वह घनी झाड़ियों के करीब पहुंचकर धीरे धीरे पत्तों को हटाने लगा लेकिन उसे खरगोश नजर नहीं आ रहा था वह अपनी चारों तरफ नजर दौड़ाने लगा लेकिन वहां खरगोश का नामोनिशान नहीं था वह निराश होने लगा वह समझ गया कि खरगोश भाग गया है और अब उसके हाथ में नहीं आने वाला लेकिन फिर भी अपने मन में चल रही इस उथल-पुथल को अंतिम रूप देते हुए वह अपने मन की तसल्ली के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ाकर घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से हटाकर देखने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी परिणाम शून्य ही आया वह उदास हो गया वह अपने दोनों हाथों को झाड़ियों पर से हटाने ही वाला था कि उसकी नजर थोड़ी दूर की घनी झाड़ियों के करीब गई और वहां का नजारा देखकर एकदम सन्न रह गया।
रोहन को एक बार फिर से अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी नंगी गांड थी उसका दिमाग काम करना बंद है कर दिया क्योंकि मैं जा रहा है उसके सामने इतना गरमा गरम था कि उसकी सोचने समझने की शक्ति ही खत्म होने लगी थोड़ी देर में उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसकी मां वहां पर बैठकर मुत रही थी।
रोहन बार-बार अपनी आंखों को मलता हुआ उस नजारे की हकीकत को समझने की कोशिश कर रहा था।
उसे अपनी किस्मत पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब तक तो अपनी मां को नंगी देख चुका था लेकिन उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अपनी मां को अपनी आंखों से पेशाब करता हुआ देख रहा है। रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसकी लार टपकने लगी खुशी अपनी किस्मत पर नाज होने लगा क्योंकि कुछ दिनों से उसकी किस्मत उसके पक्ष में चल रही थी जो वह सोचता था उसकी आंखों के सामने वैसा ही होता जा रहा था इस समय रोहन की आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी गांड थी। जिसे सुगंधा हल्के से उठाए हुए थे और सुगंधा की इस हरकत का उसके बेटे पर बुरा असर पड़ रहा था पलभर में ही उसका लंड पजामे के अंदर तन कर लोहे के रोड की तरह हो गया था। जिसे रोहन अपने हाथों से मसलने लगा था सुगंधा की गुलाबी पुर के गुलाबी छेद में से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकल रही थी जिसकी वजह से उसमें से एक सीटी सी बजने लगी थी और इस समय सुगंधा की बुर से निकल रही सीटी की आवाज रोहन के लिए किसी बांसुरी के मधुर धुन से कम नहीं थी रोहन उस मादकता से भरे नजारे और बुर से आ रही है मधुर धुन में खोने लगा सुगंधा अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरतते हुए अपनी चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन अपने पीछे नजर नहीं बढ़ा पा रही थी वह इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत थी कि उसे इस समय पेशाब करते हुए कोई नहीं देख रहा है लेकिन इस बात से अनजान थी कि उसका ही बेटा झाड़ियों के पीछे से चुपके से खड़ा होकर उसे पेशाब करते हुए देख रहा था। थोड़ी देर में सुगंधा पेशाब कर ली लेकिन उठते उठते वह अपनी गुलाबी पुर की गुलाबी पतियों में से पेशाब की बूंद को गिराते हुए हल्के हल्के अपने नितंबों को झटकने लगी।
लेकिन सुगंधा की यह हरकत बेहद ही कामुकता से भरी हुई थी क्योंकि रोहन खुद अपनी मां की इस हरकत को देखकर एकदम से चुदवासा हो गया था और जोर से अपने लंड को मसलने लगा था।
सुगंधा पेशाब करके खड़ी हो गई और एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को ऊपर चढ़ाने लगी रोहन तो यह नजारा देखकर एकदम कामुकता से भर गया थोड़ी ही देर में सुगंधा अपनी साड़ी को नीचे गिरा दी और अपने कपड़े ठीक कर के जाने को हुई ही थी कि झुग्गी मैं से आ रही खिलखिला ने की आवाज सुनकर उसके कदम रुक गए वह एक पल के लिए झुग्गी की तरफ देखने लगी। तुरंत उसकी आंखों में चमक आ गई उसे वह दिन याद आ गया जब वह गेहूं की कटाई वाले दिन खेतों में आई थी और इसी तरह से झुग्गी मैं से आ रही हसने की आवाज सुनकर उत्सुकतावस अंदर झांकने की कोशिश की थी और अंदर का नजारा देखकर एकदम से सन में रह गई थी। उसे उस समय इस बात का बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि झुग्गी के अंदर उनके खेतों में काम कर रहा मजदूर किसी औरत के साथ चुदाई का खेल खेल रहा है और आज ठीक उसी तरह की आवाज सुनकर एक बार फिर से सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा।
दूसरी तरफ रोहन अपनी मां को देखते हुए अपने लंड को मसल रहा था लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां आखिर वापस जाते जाते वहीं रुक क्यों गई उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह उन्हीं झाड़ियों के पीछे छुप कर देखने लगा



सुनीता एक दम से बेसुध अपने बेटे के बारे में ही सोच रही थी कि तभी उसे किसी ने झिंघोडा वो तुरंत ही सकपका कर उठ गई,

राजू-- चाची बहुत देर हो गई है.... आप घर जाओ मैं यहां हॉस्पिटल में हूं भईया के साथ,

पारुल--- हा सुनीता जी , राजू ठीक क रहा है,, आप घर जाओ और वैसे भी आप ज्यादा टेंशन लोगे तो आप की भी तबियत बिगड़ जाएगी.....।

सुनीता... को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था वो तो जैसे सोनू को छोड़ के जाने वाले बात पर ही मुंह उधर कर ली...।
सुनीता-- नहीं मै कहीं नहीं जाऊंगी अपने बेटे को छोड़ कर...।
पारुल-- देखिए सुनीता जी आप बेवजह परेशान हो रही हैं। सोनू एकदम ठीक हैं, और वैसे भी हॉस्पिटल में राजू हैं ना....।
पारुल की बात सुनकर वहां पर खड़ी फातिमा, और अनीता भी ज़ोर देने लगी ।

आखिरकार सुनीता को घर आने के लिए मानना ही पड़ा.... सुनीता अनीता और फातिमा के साथ घर लौट आईं......।

रात के करीब 8 बज गए थे.... सुनसान रास्ते पर सुनीता के साथ अनीता और फातिमा चली आ रही थी।

फातिमा (अनीता से)-- अनीता ये सब कैसे हुआ?

अनीता ने भी फातिमा से पूरी आप बीती सुना डाली.....।
ये सुन फातिमा का चेहरा गुस्से में लाल हो गया हालांकि रात के अंधेरे में फातिमा का चेहरा ना तो सुनीता देख सकती थी और ना ही अनीता....।

सुनीता (गुस्से में)-- जब चुदाने की उसके गांड़ में ताकत नहीं थी तो क्यूं चूद्वाने गई थी साली और तू सुनीता अपने ही बेटे को... छी। कैसी मा हैं तू, भला इसमें सोनू की क्या गलती हैं....।

ये सुन सुनीता रोने लगती है.....।

सुनीता (रोते हुए)-- हा री.... फातिमा ... लेकिन मै क्या करती उस वक़्त मुझे कुछ सूझा नहीं और मैंने ये सब अनजाने में..... और फिर उसकी मूसलाधार आंसुओ कि बारिश होने लगती है....।
फातिमा और अनीता ने सुनीता को संभाला और घर पर ले आई....।

घर पर जैसे ही वो तीनो पहुंचते है .... कस्तूरी अपनी गांड़ टेढ़ किए हुए चल कर आती है..... उसे देख कर ही लग रहा था कि कस्तूरी की गांड़ बड़ी बेरहमी से सोनू ने मारी है। क्युकी उसकी चाल एकदम से बदल गई थी।

कस्तूरी--- .... कैसा है सोनू बेटा?
फातिमा गुस्से में जैसे ही कुछ बोलने जा रही थी कि सुनीता ने फातिमा का हाथ पकड़ लिया और बोली।

सुनीता-- अब ठीक है।
ये सुन कस्तूरी के भी जान में जान आती है....।
कस्तूरी--- हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है.... जो सोनू सही सलामत है.... वरना मै अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाती।

उस रात सुनीता ने बेमन से खाना खाया वो भी फातिमा के इतना कहने पर.... और फिर जैसे तैसे रात काटने के इंतजार में सुनीता खाट पर लेट गई.... नींद तो उसके आंखो से कोषों दूर था, वो तो बस सुबह का इंतज़ार कर रही थी और भगवान से इतना ही प्रार्थना कर रही थी कि मेरा बेटा मुझसे रूठे ना..... खैर जैसे तैसे पूरी रात काट ली सुनीता ने एक झपकी भी नहीं ली सुनीता ने पूरी रात.... सुबह के ६ बज रहे थे।

सुनीता फाटक से खाट पर से उठी और अनीता को जागते हुए....।

सुनीता-- अनीता.... ऐ अनीता।
अनीता नींद से जागती हुई अपनी आंखे खोलते है....।

अनीता-- अरे दीदी क्या हुआ?
सुनीता-- चल हॉस्पिटल चलना है.... मुझे।

अनीता-- हा दीदी वो तो ठीक है.... कुछ खाना पीना भी तो बना कर ले चलना है.... हॉस्पिटल में राजू और सोनू क्या खाएंगे?

सुनीता-- हा... हा तूने सही कहा चल उठ खाना बनाते हैं.....।

सुनीता , अनीता के साथ फटाफट खाना तैयार करती है दिन अब ८ बज गए थे.... इतनी कड़ाके की ठंडी कोहरे की चादर ओढ़े ओश की बूंदे बनकर टपक रही थी.... हालत खराब कर देने वाली थी ये ठंडी।


सुनीता और अनीता कम्बल ओढ़े अस्पताल की तरफ निकल पड़ते है....।
अभी तक के सभी अपडेट शानदार रहा अच्छा खासा लाइफ सोनू का चाल रहा था मस्त चुटो के मजे ले रहा था की अचानक वैभवी से मुलाकात हो गई और विचार प्यार के सीकांजे में फांस गया फिर वो हुआ जो नहीं होना था कस्तूरी ने अनजाने में वैभवी को गली दिया फिर क्या सोनू मूल रुप में आकर जो तांडव मचा विचारी कस्तूरी की गांड और चूत बेरहमी से फाड़ दिया। सुनीता से देखा नहीं गाया तो विचारी भी भावेश में आकर आपने ही बेटे को चोट पहुंचा दिया। कैर देखते है राजू को सुनीता कैसे मानती है। शेषन क्या करता है क्या बो अपने बीबी और भाई को रोकेगा।
 
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रास्ते में अनीता-- कितनी कड़ाके की ठंडी हैं दीदी, जान ना निकल जाए ऐसी ठंडी में।

सुनीता-- अरे, अनीता जान तो मेरी तब निकाल जाएगी जब मेरा बेटा अगर मुझे देख कर नजरअंदाज करने लगेगा।

अनीता-- अरे दीदी आप भी ना.... ऐसा कुछ नहीं होगा भला एक बेटा अपनी मां से कब तक नाराज़ rahega।

सुनीता-- भगवान करे तेरी बात सच निकले.... क्युकी कल से ही मेरी ममता उजड़ती हुई दिख रही है.... अगर कहीं ऐसा हुआ ना की मेरा बेटा मुझसे अगर नाराज़ रहेगा तो मैं तो जहर खा लूंगी।

अनीता--- तुम भी कैसी बात कर रही हो दीदी ऐसा कुछ नहीं होगा.... सब फिर पहले जैसा हो जाएगा....।
और यही कहते हुए वो दोनो रास्तों पर तेजी से चलने लगते है.....।


सुबह सुबह.... कल्लू उठा तो देखा उसकी मां मालती अभी भी उसके बगल में नंगी लेटी थी.... क्युकी रात भर कल्लू ने मालती की जम कर चुड़ाईई की थी....।
मालती की बड़ी बड़ी चूचियां देख एकबार फिर से कल्लू की लंड में खून की लहर दौड़ती है..... और उसके हाथ सीधा मालती की बड़ी बड़ी चूचियों पर कसते

और इधर मालती भी जैसे ही उसके चूचियों पर कुछ महसूस होता है उसकी आंख खुल जाती है....।

मालती--- आह.... बेशरम। रात भर तो किया अभी मन नहीं भरा तेरा।
कल्लू-- तू चाहती है कि मेरा मन तुझसे भर जाए.... और फिर उसने मालती की चूचियों को कस कर दबा दिया।

मालती--- आ..... नहीं.. रे लेकिन अभी रात भर आई... अम्मा.... तो फाड़ दिया चोद चोद कर।

कल्लू-- तेरी तो मै ऐसे ही फादुंगा.... और जब मन करेगा तब चोदूंगा साली...।

मालती--- आ... मै मना कहा... आ... कर रही हूं, लेकिन थोड़ा आ..... नहीं... नहीं... बेटा दर्द हो... रहा है....।

ये मालती की जो चिखे थी , कल्लू ने अब तक अपना लन्ड उसकी बूर में पेल चुका था और उछल उछाल कर मालती को चोद रहा था।

कल्लू--- साली मुझे पता है, तुझे कोई दर्द वर्द्द नहीं होता.... तू सिर्फ नाटक करती है... ले madarchod अपने बेटे का लंड कूतिया.... फाड़ डालूंगा तेरी बूर चोद चोद कर...।

मालती भी खेली खाई हुई औरत..... दे , बेटा और अन्दर दे अपना लंड मेरी बूर... अा.... ह... चोद दे... बड़ा मज़ा आता है.... जब खुद का बेटा .... आह वहीं बूर में लंड पेले जिसमें से वो निकला है.... आह बेटा... चोद दे जोर जोर से चोद बेटा।

ऐसी बाते सुन कर कल्लू का तो जैसे खून ही गरम हो गया और वो ऐसे झटके देने लगा की मालती की बूर से फाच्च फाच फच की आवाज़ से पूरा कमरा गूंजने लगा....।

कल्लू--- कुति या..... सली तेरी बूर को चोद चोद कर इसका बड़ा भोसड़ा ना बना दिया तो मै असली madarchod nahi सल ई..... गया मै.....।

मालती...- हा ... हा मै भी गई।
और फिर कल्लू का एक जोर का धक्का फिर दोनों जन्नत की सैर करके वापस ज़मीन पर अा गिरते है.... और हाफ्ते हुए एक दूसरे से लिपटे रहते है.....

थोड़ा समय बीतने के बाद........

मालती--- उठिए जनाब.... घर का पूरा काम बचा हैं.... आपको तो सिर्फ चोदना है मुझे दिन रात..... काम तो पूरा मै करू।


कल्लू कुछ बोलता इससे पहले ही उसे बाहर किसी ने आवाज़ दी...।

कल्लू अरे वो कल्लू........।

कल्लू और मालती हड़बड़ आहत में उठ कर अपने कपड़े पहनते हैं और फिर घर का दरवाज़ा खोलते हैं.....।

कल्लू--- अरे, पप्पू तू क्या हुआ...।
पप्पू कल्लू का दोस्त है जो उसके साथ कपड़े विपदे धोने का काम करता है.....

पप्पू-- अरे तेरे लिए खुसखबरी लाया हूं...।

कल्लू-- कैसी खुस्खबरी जल्दी बता...?
पप्पू--- अरे तेरा दुश्मन... जो कभी तेरा जिग्री यार था।
कल्लू-- कौन सोनू?
पप्पू--- हा सोनू।
कल्लू-- क्या बात है बोल?

पप्पू-- बात क्या है.... पड़ा है अस्पताल में....।
ये सुन मालती और कल्लू दोनों की हालत खराब हो जाती हैं....।

कल्लू--- के.. क्या हुआ उसे?
पप्पू-- अरे कुछ भी हो... है तो तेरे लिए खुशी की बात ना....।
कल्लू को इतना सुनना था कि वो गुस्से में लाल एक जोर का तमाचा पप्पू के गाल पे जड़ देता है और अपनी साइकिल उठा कर अस्पताल की तरफ चल देता है.........

इधर सुनिता अनिता के साथ अस्पताल पहुचं चुकी थी, वो सिधा सोनू के वार्ड में जाती जहां सोनू के पास पहले से ही पारूल बैठी उससे बात कर रही थी।

पारुल-- अरे सुनीता जी इतनी सुबह सुबह आ गयी आप?
सुनीता-- जी डाक्टर साहीबा, वो खाना ले कर आना था ना इसलीये।

पारुल-- अच्छा कीया, क्यूकीं सोनू का दवा खाने का टाइम भी हो गया।

सुनीता खाने का डीब्बा खोल कर सोनू को दे देती है, सोनू अपनी मुडीं निचे कीये खाना खाने लगता है, अनीता राजू को खाना देने वार्ड से बाहर राजू के पास थी और पारुर पेशेंट को देखने दुसरे वार्ड में चली जाती है।

सोनू चुपचाप खाना खा रहा था और सुनीता उसके बगल में बैठी उसे निहारे जा रही थी......

सुनीता-- वो.....मुझे लगा तुम्हे आलू के पराठे बहुत पसदं है तो आज यही बना कर लायी......अब पता नही ठीक से बना भी है या नही।

सुनिता अनायास ही ऐसे बोली जबकी खाने में आलू का पराठा था ही नही...

सोनू-- पता नही लोग मुझे चुतीया क्यूं समझते है, शायद मैं हू इसलिये।

सुनीता-- क.....कौन समझता है तुम्हे चुतीया?

सोनू-- अभी तो तू ही समझ रही है।
सुनीता-- हाय रे दइया...भला मैं क्यूं तुम्हे चुतीया समझने लगी?

सोनू-- आलू का पराठा कहां है खाने में दीखा मुझे...अब तू चुतीया नही तो क्या समझ रही है मुझे?

सुनिता-- वो....तो मैं ऐसे ही बोल दीया क्यूंकी तुम मुझसे बात नही कर रहे थे।

सोनू-- क्यूं मैं तेरा मरद हूं क्या जो तुझसे बात करु।

सुनीता-- क्यू क्या एक औरत से उसका मरद ही रुठता है क्या बेटा भी तो रुठ जाता है, तो मनाना तो पड़ता ही है ना..।

सोनू कुछ नही बोलता और चुपचाप खाना खाता है.....

सुनीता-- मुझे पता है मैने गलती की है...और मैने जानबुझ कर नही कीया वो थोड़ा गुस्से में हो गया।

सोनू कुछ नही बोलता और चुपचाप खाना खाता है....खाना खतम कर सोनू वापस बेड पर लेट जाता है तभी पारुल आ जाती है...

पारुल--अरे सोनू पहले दवा खा लो फीर आराम से सोना।
सोनू दवा खाता है और फीर बेड पर लेट जाता है।
सुनीता-- डाक्टर साहीबा सोनू को घर कब ले जा सकते है...
पारुल-- सुनीता जी वैसे तो सोनू अब ठीक है, लेकीन आज यही रहने दो कल सुबह डीसचार्ज कर दुगीं॥
सुनीता-- ठीक है डाक्टर साहीबा...अरे लेकीन आज तो सरपंच के यहा उनकी तेरही है आप नही गयी भोज में॥

पारूल-- अरे सुनीता जी कार्यक्रम तो शाम को है तो शाम को जाउगीं॥
सुनीता-- जी डाक्टर साहीबा.......

अब तक सोनू आराम से सो चुका था। उसका भोला चेहरा देखते हुए सुनीता ने मन ही मन कहा हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है जो मेरा बेटा मुझसे नाराज नही है.....और फीर वार्ड से बाहर चली जाती है क्यूकीं सोनू सो चूका था......।

 
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Update 9





सुनीता एक दम बेसुध अस्पताल में बैठी थी। उसे अपने कीये पर बहुत पछतावा था। लेकीन अब जो होना था वो तो हो गया था।

सुनीता की आंखो से आसूं , सुखने का नाम ही नही ले रहा था।

अस्पताल में सभी लोग मौजुद थे, अनन्या , आरती , कीरन और राजू।

ईन सब को तो ये पता भी नही था की, आखीर सुनीता ने सोनू को कीसलीये मारा!

खैर अनन्या से सुनीता काकी की हालत देखी नही गयी। अनन्या सुनीता के पास जाकर , उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -

अन्नया - अब चुप हो जा काकी, सोनू बील्कुल ठीक है।

सुनीता , अनन्या की बात सुनकर और जोर -जोर से रोने लगती है।

तभी वँहा फातीमा भी आ जाती है। वो कीसी तरह सुनीता को चुप कराके उसे घर ले कर आ जाती है।

सुनीता जैसे ही घर पहुचीं , वो फीर से रोने लगती है।

सुनीता - मुझे मेरे बेटे के पास जाना है।

फातीमा , सुनीता को समझाते हुए बोली-

फातीमा - देख सुनीता, इस समय तेरा सोनू के सामने जाना ठीक नही होगा! वो तूझे देखना भी नही चाहता!

फातीमा की बात सुनकर, सुनीता ने रोते हुए कहा-

सुनीता - हां तो , मैं उसकी मां हूं। अगर गलती से मार दीया तो। क्या वो मुझसे इतना नाराज़ हो जायेगा की बात भी नही करेगा!

फातीमा को सुनीता की बात पर बहुत तेज गुस्सा आया!

फातीमा - जब इतना ही प्यार था तूझे , तो मारने से पहले सोचा नही क्या? और तू कस्तूरी जब गांड मराने की औकात नही थी तो, क्यूं गांड मराने लगी उससे?

फातीमा का गुस्सा देख, सुनीता भी शांत हो गयी। तभी पास में खाट पर लेटी कस्तुरी ने बोला-

कस्तुरी - वो.....वो। फातीमा दीदी मैं तो बुर ही चुदवा रही थी। लेकीन पता नही मेरे मुहं से क्या नीकल गया जीस पर सोनू गुस्सा हो गया!

कस्तुरी की बात सुनकर , सुनीता बोली-

सुनीता - सब मेरी गलती है, जानते हुए भी की ये सब गलत है। फीर भी मैने सोनू को नही रोका लेकीन, अब आगे से वो तुम लोग के नज़दीक भी नही भटकेगा!


इस बात पर फातीमा को कुछ ज्यादा झटका लगा, लेकीन वो भी समझती थी की ॥ इस समय ये सब के उपर बात करना अच्छा नही होगा!



'' दीन गुजरता गया करीब दस दीन लगे , उसके बाद सोनू को अस्पताल से घर लाया गया!

इन दस दीनो में सुनीता को सोनू से मीलने नही दीया गया! और ये दस दीन सुनीता के लीये दस साल जैसे लगे!


''सुनीता आज बहुत खुश थी, क्यूकीं आज़ सोनू घर जो आने वाला था। इन दस दीनो में कस्तुरी भी खाट पर से उठ तो गयी थी, लेकीन सोनू ने उसकी ऐसी गांड मारी थी की, वो अभी तक अच्छे से चल नही पा रही थी।


खैर, राजू और उसके पापा ने सोनू को अस्पताल से सीधा घर ले कर आयें। सुनीता सुबह से ही कभी अंदर तो कभी बाहर आती जाती.....वो सोनू को देखने के लीये इतना बेताब थी की। जैसे ही सोनू घर पर आया , सुनीता सोनू की तरफ बढ़ी , लेकीन तभी फातीमा ने उसे रोक लीया और ना में सर हीलाते हुए बोली 'अभी नही'

सुनीता की पलके एक बार फीर भीग गयी, और जैसे भीख मागते हुए बोली !

सुनीता - बस एक बार! फातीमा

फातीमा - ठीक है, तेरा ही बेटा है। मैं कौन होती हूं रोकने वाली, लेकीन एक बार उसे खाना खाने दे, फीर मील लेना!

सुनीता बेचारी , मरती क्या ना करती अपनी आंखो में आशूं लीये दुसरे कमरे में चली गयी!

॥ बात तो सच है की, जीतना प्यार मां अपने बेटे से करती है, उसके आगे दुनीया का कोयी भी प्यार फीका है॥ एक औरत अगर वफा कर सकती है तो , सीर्फ मां के रुप में। क्यूकीं इस प्यार में कोयी स्वार्थ नही....ना ही पैसो का और ना ही जीस्म का।

वो तो कुछ नसीब वाले होते है, जीन्हे अपनी मां का प्यार सारी हदें तोड़ने के बाद मील जाता है।


सोनू खाना खाने के बाद, खाट पर लेटा अपनी आंखे बंद कर के, कुछ सोच रहा था की तभी उसके हाथ पर कीसी का हाथ महसुस हुआ।

सोनू ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उसकी 'मां' बैठी थी।

सुनीता बीना कुछ बोलो सोनू को बड़े प्यार से , एकटक नीहारती रही......उसकी पलके अभी भी नम थी......सोनू भी अपनी नज़रे चुराई नही और उसने भी अपनी नज़रें अपनी मां के नज़रो से टकरा ली!

सुनीता - गुस्सा तो बहुत होगा तू मुझपे? लेकीन तेरे गुस्से से कहीं ज्यादा पछतावा मुझे हो रहा है।

सुनीता ने प्यार से सोनू के चेहरे को अपनी हथेलीयौं में भरती हुई फीर बोली-

सुनीता - मुझे माफ़ कर दे मेरे लाल ! कसम खाती हूं, आज के बाद कभी तूझ पर हाथ नही उठाउगीं! तेरे बीना मैं जी नही सकती.....

सोनू थोड़ा उठकर बैठता हुआ बोला-

सोनू - तूने सही कहा मां, तेरे बीना जीने का मतलब ही नही। सीर्फ ये जनम ही नही आने वाले हर जनम में मैं तेरे साथ जीना चाहता हूं। अब हर जनम में मैं तेरा बेटा बनूगां की नही ये तो नही पता। लेकीन सुना है की जो भी जोड़ा सात फेरे लेता है वो सात जनम तक का साथ पाता है। तो इसी लीये मैं अब तेरे साथ सात फेरे लूगां और सात जनम तक तेरे साथ तो जरुर रहूगां॥ भले ही हर जनम में तेरा पहला पती मेरा बाप ही क्यूं ना हो।

सुनीता की आंखे फटी की फटी रह गयी, वो कभी सोच भी नही सकती थी की, सोनू ऐसा भी सोच सकता है। उसके बदन में ना जाने कैसी कपकपीं दौड़ने लगी, मानो ज़मीन पैरो तले खीसक गयी हो।

सुनीता - ये....ये.....तू कैसी बाते कर रहा है। पागल हो गया है क्या....शरम नही आती तूझे?

सोनू थोड़ा मुस्कुराया और फीर बोला-

सोनू - शरम तो तूझे आनी चाहीए, अपने होने वाली पति से कोयी ऐसे बात करता है ?

सोनू ने अभी अपनी बात, पूरी भी नही की थी की- उसके गाल पर जोर का तमाचा सुनीता ने जड़ दीया!

सोनू अपना गाल थामे फीर एक बार मुस्कुराया और बोला-

सोनू - ओ.....हो! अभी कुछ देर पहले तो बड़ी कसमें खायी जा रही थी की, आज के बाद कभी हाथ नही उठाउगीं तो अभी क्या था? अच्छा.........मै भी कीतना पागल हूं! वो कसम तो मां के नाते ना मारने की थी, शायद ये थप्पड़ मेरी होने वाली पत्नी ने मारा है!

सुनीता अपने दोनो हाथो सें अपने कान को दबाती हुई बोली-

सुनीता - चुप.......हो जा.......भगवान के लीये चुप हो जा! ये सब सुनने.........

तभी सोनू ने अपनी मां की बात काटते हुए बोला-

सोनू - पुराना हो गया है!

सुनीता अपने कानो पर से हाथ हटाते हुए बोली !

सुनीता - क्या बोला तूने?
सोनू - यहीं की ये सब पुराना हो गया है!

सुनीता - क्या पुराना हो गया है?
सोनू - यही अभी जो तू बोल रही थी की, ये सब सुनने से पहले मै मर क्यूं नही गयीं.....अगैरा - बगैरा!

सुनीता - हे भगवान! इतनी बड़ी बात कह कर अभी तू मज़ाक कर रहा है। मेरे मार से तेरा उपर का ढीला तो नही हो गया!

सोनू - अरे ऐसा क्या कह दीया मैने?

सुनीता चौकंते हुए) - हे भगवान ! तूने अभी कहा की तू मुझसे शादी करेगा और बोल रहा है की ऐसा क्या कह दीया तूने!

सोनू अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए बोला -

सोनू - हां तो सीर्फ शादी करने के लीये बोला है, ताकी एक बार तू मेरी पत्नी बन जाये तो तू मुझे मार ना सके। नही तो तू मेरी जान ही ले लेगी........बाकी और कुछ गंदा मत सोच तू!


ये सुनते ही सुनीता, इतनी जोर से हसने लगी की, मारे हसीं के ओ कुछ बोल नही पा रही थी। सुनीता को हसता देख सोनू भी हसने लगा!

सुनीता - हे भगवान ! तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी। मुझे लगा की तू........

सोनू बीच में ही बात काटते हुए बोला-

सोनू - तूझे लगा की मैं सच में तूझसे शादी करुगां!

सुनीता - हां !

सोनू - मेरा दीन इतना भी खराब नही है की, मै बुडंढ़ीयों से शादी करुं!

ये बात शायद सुनीता को अच्छा नही लगा, और वो मज़ाक में ही बोली -

सुनीता - अच्छा........अगर बुड्ढ़ीया पसंद नही है, तो फीर फातीमा और कस्तुरी के तलवे क्यूं चाटता है?

सोनू - तूने शायद ध्यान से देखा नही, मै नही बल्की वो लोग चाटती है मेरा ....लं

सोनू आगे कुछ बोलता , इससे पहले ही सुनीता ने उसके मुह पर अपना हाथ रखते हुए बोली-

सुनीता - चुप कर बेशरम, अपनी मां के सामने ऐसी बात करते हुए शरम नही आती!

सोनू - जब मां को देखने में शरम नही आयी, तो भला मुझे बोलने में क्या शरम ?

सुनीता मारे शरम के पानी - पानी हो गयी....लेकीन फीर भी उसने अपना सर नीचे कीये बोली-

सुनीता - मैने क्या देख लीया?

सोनू - क्यूं उस दीन देखा नही तो मारा क्यूं?

सुनीता के पास अब कोयी जवाब''नही था! लेकीन फीर भी शरम करते हुए बोली-

सुनीता - अरे.....वो....'वो ....मैं!

सोनू - क्या ......वो.....वो मैं?

सुनीता अपने गीर हुए बालो के लटो को अपने कानो पर चढ़ाती हुए हीचकीचाते हुए बोली-

सुनीता - वो....तो मैं.....उस दीन पानी लेने आंगन में गयी थी तो, मुझे चीखने चील्लाने की आवाज़ सुनायी दी । तब मैं उपर आयी, नही तो मुझे क्या पड़ी थी?

सोनू - चल अच्छा हुआ मां की तू ''औरत'' नही है,॥

सुनीता ने झट से अपनी नज़रे सोनू के तरफ करते हुए बोली-

सुनीता - तू पागल - वागल हो गया है क्या? मैं औरत नही हूं क्या?

सोनू को आज पहली बार अपनी मां से बात करने में बहुत मज़ा आ रहा था!

सोनू - अगर तू औरत होती तो, तेरा भी मन करता ये सब करने को!

सुनीता को अंदाजा भी न था की, सोनू ये बात भी बोल देगा!

सुनीता - तू तो बेशरम है ही, मुझे भी बना रहा है, लेकीन जब तूझे शरम नही तो भला मै तेरे सामने क्यूं शरम करु। तूझे जानना है ना मेरा मन करता है की नही। अरे पागल मैं भी एक औरत हूं , कभी - कभी मन करता है।


सोनू - तो फीर क्या करती है मां तू (अपना हाथ जगन्नाथ)

ये बोलकर सोनू हंसने लगता है.......इस पर सुनीता बोली-

सुनीता - मतलब क्या है इसका?

सोनू जोर - जोर से हंसते हुए अपनी एक उगंली बंद मुठ्ढी में से खोलकर आगे - पीछे करते हुए इशारा कीया!

ये देखकर सुनीता शरम से लाल हो गयी, वो थोड़ा मुस्कुराते हुए सोनू को मज़ाकीया अँदाज में मारने लगी!

सुनीता - मैं तेरे साथ बात नही कर पाउगीं, इतनी गंदी बात अपने मां से ऐसे कर लेता है की मुझे भी पता नही लगता!

सोनू - हां तो गलत क्या बोल दीया? अब मन करता है तो, पापा तो है नही ! बाहर का तो सवाल ही नही उठता तो बचा तो वहीं ना!

सुनीता - बेटा ये बात तू भी अच्छी तरह से जानता है की पूरे गांव के मर्द मेरे एक इशारे पर क्या-क्या कर सकते है,. (और फीर सुनीता मज़ाकीया अंदाज में) - लेकीन फीर सोचती हूं की, अगर बाहर कही कुछ मैने कर दीया तो , तू कहीं मुह दीखाने लायक नही रहेगा!


सोनू - रुको........ये क्या बात हुई की , मुह तू काला करवाये और बाहर मैं मुह दीखाने लायक नही रहुगां?

सुनीता हंसते हुए बोली - हां बेटा, क्यूकीं बाहर तो तू ही घुमता हे। तो लोग तूझे ताना मारेगें ना की इसकी मां क्या-क्या गुल खीला रही है।


सोनू - तो इसका मतलब, तू मेरे लीये इतना कुछ सहती है मां!

सुनीता नाटकी अंदाज में मुहं बनाते हुए बोली!

सुनीता - और नही तो क्या ?

सोनू - नही मां मैं अब तूझे और नही सहने दे सकता , कल से मैं आ जाउगां रात में ॥ अब तूझे और उंगली करने की जरुरत नही!

सुनीता ये सुनकर हंसने लगी और बोली -

सुनीता - ओ.......हो, जरा इन शाहबजादे को देखो कैसे मौका मार रहे है!

सोनू - इसमे मौका मारने की क्या बात है, जब तू मेरे लीये इतना कर रही है, तो मेरा भी फर्ज़ तो बनता है ना मां!

सुनीता - तो.......तू ही क्यूँ? तू बाहर कीसी के साथ भी तो बोल सकता था ना!

सोनू - क्यूं मुझसे डर लग रहा है?
सुनीता - तुझसे क्यूं डर लगेगा?

सोनू - अरे मेरा मतलब, मेरे उस चीज से!

सुनीता को समझते देर नही लगी, की सोनू अपने लंड के बारे में बात कर रहा है।

सुनीता - बेशरम! कही का, अभी इतना भी बड़ा नही हुआ है तू!

सोनू - अच्छा.......तो इसका मतलब अभी और बड़ा होगा?

सुनीता मरती क्या न करती, इस बात पर जो हंसना चालू कीया तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी.......सोनू भी हस -हस कर थक चुका था!


सोनू - अच्छा.......मां अब तू जा। मुझे थोड़ा आराम करने दे!

सुनीता - क्यूं मन भर गया क्या मां से , बेशरम!
सोनू - नही मां, बस थोड़ा आराम करने का मन कर रहा है।

सुनीता - अच्छा.......ठीक है तू, आराम कर ॥ और हां तूझे बुरा लगा हो तो माफ कर देना!

सोनू - कीस बात का मां?

सुनीता - वही ......बाहर कीसी के साथ मैं चक्कर चलाउ तो, 'उस बात का!

सोनू - और मुझे भी माफ़ कर देना मां !

सुनीता - कीस बात के लीए?

सोनू - वही ........मेरे साथ चक्कर चलाने वाली बात के लीये!


सुनीता कुछ देर तक कुछ नही बोली ॥ लेकीन फीर मुस्कुरा कर बोली!

सुनीता - मां के साथ चक्कर चलाना इतना आसान नही...........!

सोनू - मुश्कील भी नही !

सुनीता - हां......बल्की बहुत मुश्कील है!

सोनू - मुश्कील से हासींल की हुई चीज ही ''सुख देती है।

सुनीता - दुनीया - समाज क्या बोलेगी?

सोनू - मेरी दुनीया तो तू हैं॥

सुनीता - मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर.......तू शादी कर ले!

सोनू - अब तो दुनीया गयी भाड़ में माँ। अब तू ही मेरी पत्नी बनेगी!

सुनीता - बस ........बेटा। सपने मत दीखा......अकेले रहने की आदत हो गयी है। मेरी कीस्मत में जीवनसाथी नही बल्की सुनी राहें है ! बस


सोनू - एक बात पुछुं ?
सुनीता - ह्मम्म्म.....

सोनू - सुनी राहों पर साथ चलने का हक देगी मुझे?

सुनीता - तुझसे अच्छा हमसफर कोई नही। लेकीन इसका हक़ मैं नही दे सकती!

सोनू - अब तू मुझे पागल कर रही है मां, तुझे पता है । मन कर रहा है तूझे बाहों में भरकर अपना बना लू! लेकीन बीना तेरी सहमती के कर भी नही सकता!

सुनीता - तूझे क्या ? तेरे पास तो दो - दो है।

सोनू - पर तेरी बांहो में जो मज़ा है, वो कही नही!

सुनीता - मां ऐसी ही होती है। मां बनकर बाहों में भरे तो सारे दुख समेट ले। और पत्नी बनकर बाहों में ले तो आनंद की चरम पर बीठा दे!

सोनू - तो हमे रोक कौन सी चीज रही है मा।

सुनीता - मा - बेटे का पवीत्र रीश्ता!


सोनू - जीस दीन ये रीश्ते की दीवार टुटी.....उस दीन.!

तभी सुनीता ने अपनी एक उगंली सोनू के मुह पर रख कर चुप कराते हुए बोली-

सुनीता - मुझे पता है....तेरी..............बेरहमी!

सोनू - सह तो लोगी ना .!

सुनीता ने ऐसी शरम की लालीमा अपने चेहरे पर बीखेर कर बोली की .........सोनू का दील धड़कने लगा.!

सुनीता -- वो ........तो हर औरत करती है।

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Update 9





सुनीता एक दम बेसुध अस्पताल में बैठी थी। उसे अपने कीये पर बहुत पछतावा था। लेकीन अब जो होना था वो तो हो गया था।

सुनीता की आंखो से आसूं , सुखने का नाम ही नही ले रहा था।

अस्पताल में सभी लोग मौजुद थे, अनन्या , आरती , कीरन और राजू।

ईन सब को तो ये पता भी नही था की, आखीर सुनीता ने सोनू को कीसलीये मारा!

खैर अनन्या से सुनीता काकी की हालत देखी नही गयी। अनन्या सुनीता के पास जाकर , उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -

अन्नया - अब चुप हो जा काकी, सोनू बील्कुल ठीक है।

सुनीता , अनन्या की बात सुनकर और जोर -जोर से रोने लगती है।

तभी वँहा फातीमा भी आ जाती है। वो कीसी तरह सुनीता को चुप कराके उसे घर ले कर आ जाती है।

सुनीता जैसे ही घर पहुचीं , वो फीर से रोने लगती है।

सुनीता - मुझे मेरे बेटे के पास जाना है।

फातीमा , सुनीता को समझाते हुए बोली-

फातीमा - देख सुनीता, इस समय तेरा सोनू के सामने जाना ठीक नही होगा! वो तूझे देखना भी नही चाहता!

फातीमा की बात सुनकर, सुनीता ने रोते हुए कहा-

सुनीता - हां तो , मैं उसकी मां हूं। अगर गलती से मार दीया तो। क्या वो मुझसे इतना नाराज़ हो जायेगा की बात भी नही करेगा!

फातीमा को सुनीता की बात पर बहुत तेज गुस्सा आया!

फातीमा - जब इतना ही प्यार था तूझे , तो मारने से पहले सोचा नही क्या? और तू कस्तूरी जब गांड मराने की औकात नही थी तो, क्यूं गांड मराने लगी उससे?

फातीमा का गुस्सा देख, सुनीता भी शांत हो गयी। तभी पास में खाट पर लेटी कस्तुरी ने बोला-

कस्तुरी - वो.....वो। फातीमा दीदी मैं तो बुर ही चुदवा रही थी। लेकीन पता नही मेरे मुहं से क्या नीकल गया जीस पर सोनू गुस्सा हो गया!

कस्तुरी की बात सुनकर , सुनीता बोली-

सुनीता - सब मेरी गलती है, जानते हुए भी की ये सब गलत है। फीर भी मैने सोनू को नही रोका लेकीन, अब आगे से वो तुम लोग के नज़दीक भी नही भटकेगा!


इस बात पर फातीमा को कुछ ज्यादा झटका लगा, लेकीन वो भी समझती थी की ॥ इस समय ये सब के उपर बात करना अच्छा नही होगा!



'' दीन गुजरता गया करीब दस दीन लगे , उसके बाद सोनू को अस्पताल से घर लाया गया!

इन दस दीनो में सुनीता को सोनू से मीलने नही दीया गया! और ये दस दीन सुनीता के लीये दस साल जैसे लगे!


''सुनीता आज बहुत खुश थी, क्यूकीं आज़ सोनू घर जो आने वाला था। इन दस दीनो में कस्तुरी भी खाट पर से उठ तो गयी थी, लेकीन सोनू ने उसकी ऐसी गांड मारी थी की, वो अभी तक अच्छे से चल नही पा रही थी।


खैर, राजू और उसके पापा ने सोनू को अस्पताल से सीधा घर ले कर आयें। सुनीता सुबह से ही कभी अंदर तो कभी बाहर आती जाती.....वो सोनू को देखने के लीये इतना बेताब थी की। जैसे ही सोनू घर पर आया , सुनीता सोनू की तरफ बढ़ी , लेकीन तभी फातीमा ने उसे रोक लीया और ना में सर हीलाते हुए बोली 'अभी नही'

सुनीता की पलके एक बार फीर भीग गयी, और जैसे भीख मागते हुए बोली !

सुनीता - बस एक बार! फातीमा

फातीमा - ठीक है, तेरा ही बेटा है। मैं कौन होती हूं रोकने वाली, लेकीन एक बार उसे खाना खाने दे, फीर मील लेना!

सुनीता बेचारी , मरती क्या ना करती अपनी आंखो में आशूं लीये दुसरे कमरे में चली गयी!

॥ बात तो सच है की, जीतना प्यार मां अपने बेटे से करती है, उसके आगे दुनीया का कोयी भी प्यार फीका है॥ एक औरत अगर वफा कर सकती है तो , सीर्फ मां के रुप में। क्यूकीं इस प्यार में कोयी स्वार्थ नही....ना ही पैसो का और ना ही जीस्म का।

वो तो कुछ नसीब वाले होते है, जीन्हे अपनी मां का प्यार सारी हदें तोड़ने के बाद मील जाता है।


सोनू खाना खाने के बाद, खाट पर लेटा अपनी आंखे बंद कर के, कुछ सोच रहा था की तभी उसके हाथ पर कीसी का हाथ महसुस हुआ।

सोनू ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उसकी 'मां' बैठी थी।

सुनीता बीना कुछ बोलो सोनू को बड़े प्यार से , एकटक नीहारती रही......उसकी पलके अभी भी नम थी......सोनू भी अपनी नज़रे चुराई नही और उसने भी अपनी नज़रें अपनी मां के नज़रो से टकरा ली!

सुनीता - गुस्सा तो बहुत होगा तू मुझपे? लेकीन तेरे गुस्से से कहीं ज्यादा पछतावा मुझे हो रहा है।

सुनीता ने प्यार से सोनू के चेहरे को अपनी हथेलीयौं में भरती हुई फीर बोली-

सुनीता - मुझे माफ़ कर दे मेरे लाल ! कसम खाती हूं, आज के बाद कभी तूझ पर हाथ नही उठाउगीं! तेरे बीना मैं जी नही सकती.....

सोनू थोड़ा उठकर बैठता हुआ बोला-

सोनू - तूने सही कहा मां, तेरे बीना जीने का मतलब ही नही। सीर्फ ये जनम ही नही आने वाले हर जनम में मैं तेरे साथ जीना चाहता हूं। अब हर जनम में मैं तेरा बेटा बनूगां की नही ये तो नही पता। लेकीन सुना है की जो भी जोड़ा सात फेरे लेता है वो सात जनम तक का साथ पाता है। तो इसी लीये मैं अब तेरे साथ सात फेरे लूगां और सात जनम तक तेरे साथ तो जरुर रहूगां॥ भले ही हर जनम में तेरा पहला पती मेरा बाप ही क्यूं ना हो।

सुनीता की आंखे फटी की फटी रह गयी, वो कभी सोच भी नही सकती थी की, सोनू ऐसा भी सोच सकता है। उसके बदन में ना जाने कैसी कपकपीं दौड़ने लगी, मानो ज़मीन पैरो तले खीसक गयी हो।

सुनीता - ये....ये.....तू कैसी बाते कर रहा है। पागल हो गया है क्या....शरम नही आती तूझे?

सोनू थोड़ा मुस्कुराया और फीर बोला-

सोनू - शरम तो तूझे आनी चाहीए, अपने होने वाली पति से कोयी ऐसे बात करता है ?

सोनू ने अभी अपनी बात, पूरी भी नही की थी की- उसके गाल पर जोर का तमाचा सुनीता ने जड़ दीया!

सोनू अपना गाल थामे फीर एक बार मुस्कुराया और बोला-

सोनू - ओ.....हो! अभी कुछ देर पहले तो बड़ी कसमें खायी जा रही थी की, आज के बाद कभी हाथ नही उठाउगीं तो अभी क्या था? अच्छा.........मै भी कीतना पागल हूं! वो कसम तो मां के नाते ना मारने की थी, शायद ये थप्पड़ मेरी होने वाली पत्नी ने मारा है!

सुनीता अपने दोनो हाथो सें अपने कान को दबाती हुई बोली-

सुनीता - चुप.......हो जा.......भगवान के लीये चुप हो जा! ये सब सुनने.........

तभी सोनू ने अपनी मां की बात काटते हुए बोला-

सोनू - पुराना हो गया है!

सुनीता अपने कानो पर से हाथ हटाते हुए बोली !

सुनीता - क्या बोला तूने?
सोनू - यहीं की ये सब पुराना हो गया है!

सुनीता - क्या पुराना हो गया है?
सोनू - यही अभी जो तू बोल रही थी की, ये सब सुनने से पहले मै मर क्यूं नही गयीं.....अगैरा - बगैरा!

सुनीता - हे भगवान! इतनी बड़ी बात कह कर अभी तू मज़ाक कर रहा है। मेरे मार से तेरा उपर का ढीला तो नही हो गया!

सोनू - अरे ऐसा क्या कह दीया मैने?

सुनीता चौकंते हुए) - हे भगवान ! तूने अभी कहा की तू मुझसे शादी करेगा और बोल रहा है की ऐसा क्या कह दीया तूने!

सोनू अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए बोला -

सोनू - हां तो सीर्फ शादी करने के लीये बोला है, ताकी एक बार तू मेरी पत्नी बन जाये तो तू मुझे मार ना सके। नही तो तू मेरी जान ही ले लेगी........बाकी और कुछ गंदा मत सोच तू!


ये सुनते ही सुनीता, इतनी जोर से हसने लगी की, मारे हसीं के ओ कुछ बोल नही पा रही थी। सुनीता को हसता देख सोनू भी हसने लगा!

सुनीता - हे भगवान ! तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी। मुझे लगा की तू........

सोनू बीच में ही बात काटते हुए बोला-

सोनू - तूझे लगा की मैं सच में तूझसे शादी करुगां!

सुनीता - हां !

सोनू - मेरा दीन इतना भी खराब नही है की, मै बुडंढ़ीयों से शादी करुं!

ये बात शायद सुनीता को अच्छा नही लगा, और वो मज़ाक में ही बोली -

सुनीता - अच्छा........अगर बुड्ढ़ीया पसंद नही है, तो फीर फातीमा और कस्तुरी के तलवे क्यूं चाटता है?

सोनू - तूने शायद ध्यान से देखा नही, मै नही बल्की वो लोग चाटती है मेरा ....लं

सोनू आगे कुछ बोलता , इससे पहले ही सुनीता ने उसके मुह पर अपना हाथ रखते हुए बोली-

सुनीता - चुप कर बेशरम, अपनी मां के सामने ऐसी बात करते हुए शरम नही आती!

सोनू - जब मां को देखने में शरम नही आयी, तो भला मुझे बोलने में क्या शरम ?

सुनीता मारे शरम के पानी - पानी हो गयी....लेकीन फीर भी उसने अपना सर नीचे कीये बोली-

सुनीता - मैने क्या देख लीया?

सोनू - क्यूं उस दीन देखा नही तो मारा क्यूं?

सुनीता के पास अब कोयी जवाब''नही था! लेकीन फीर भी शरम करते हुए बोली-

सुनीता - अरे.....वो....'वो ....मैं!

सोनू - क्या ......वो.....वो मैं?

सुनीता अपने गीर हुए बालो के लटो को अपने कानो पर चढ़ाती हुए हीचकीचाते हुए बोली-

सुनीता - वो....तो मैं.....उस दीन पानी लेने आंगन में गयी थी तो, मुझे चीखने चील्लाने की आवाज़ सुनायी दी । तब मैं उपर आयी, नही तो मुझे क्या पड़ी थी?

सोनू - चल अच्छा हुआ मां की तू ''औरत'' नही है,॥

सुनीता ने झट से अपनी नज़रे सोनू के तरफ करते हुए बोली-

सुनीता - तू पागल - वागल हो गया है क्या? मैं औरत नही हूं क्या?

सोनू को आज पहली बार अपनी मां से बात करने में बहुत मज़ा आ रहा था!

सोनू - अगर तू औरत होती तो, तेरा भी मन करता ये सब करने को!

सुनीता को अंदाजा भी न था की, सोनू ये बात भी बोल देगा!

सुनीता - तू तो बेशरम है ही, मुझे भी बना रहा है, लेकीन जब तूझे शरम नही तो भला मै तेरे सामने क्यूं शरम करु। तूझे जानना है ना मेरा मन करता है की नही। अरे पागल मैं भी एक औरत हूं , कभी - कभी मन करता है।


सोनू - तो फीर क्या करती है मां तू (अपना हाथ जगन्नाथ)

ये बोलकर सोनू हंसने लगता है.......इस पर सुनीता बोली-

सुनीता - मतलब क्या है इसका?

सोनू जोर - जोर से हंसते हुए अपनी एक उगंली बंद मुठ्ढी में से खोलकर आगे - पीछे करते हुए इशारा कीया!

ये देखकर सुनीता शरम से लाल हो गयी, वो थोड़ा मुस्कुराते हुए सोनू को मज़ाकीया अँदाज में मारने लगी!

सुनीता - मैं तेरे साथ बात नही कर पाउगीं, इतनी गंदी बात अपने मां से ऐसे कर लेता है की मुझे भी पता नही लगता!

सोनू - हां तो गलत क्या बोल दीया? अब मन करता है तो, पापा तो है नही ! बाहर का तो सवाल ही नही उठता तो बचा तो वहीं ना!

सुनीता - बेटा ये बात तू भी अच्छी तरह से जानता है की पूरे गांव के मर्द मेरे एक इशारे पर क्या-क्या कर सकते है,. (और फीर सुनीता मज़ाकीया अंदाज में) - लेकीन फीर सोचती हूं की, अगर बाहर कही कुछ मैने कर दीया तो , तू कहीं मुह दीखाने लायक नही रहेगा!


सोनू - रुको........ये क्या बात हुई की , मुह तू काला करवाये और बाहर मैं मुह दीखाने लायक नही रहुगां?

सुनीता हंसते हुए बोली - हां बेटा, क्यूकीं बाहर तो तू ही घुमता हे। तो लोग तूझे ताना मारेगें ना की इसकी मां क्या-क्या गुल खीला रही है।


सोनू - तो इसका मतलब, तू मेरे लीये इतना कुछ सहती है मां!

सुनीता नाटकी अंदाज में मुहं बनाते हुए बोली!

सुनीता - और नही तो क्या ?

सोनू - नही मां मैं अब तूझे और नही सहने दे सकता , कल से मैं आ जाउगां रात में ॥ अब तूझे और उंगली करने की जरुरत नही!

सुनीता ये सुनकर हंसने लगी और बोली -

सुनीता - ओ.......हो, जरा इन शाहबजादे को देखो कैसे मौका मार रहे है!

सोनू - इसमे मौका मारने की क्या बात है, जब तू मेरे लीये इतना कर रही है, तो मेरा भी फर्ज़ तो बनता है ना मां!

सुनीता - तो.......तू ही क्यूँ? तू बाहर कीसी के साथ भी तो बोल सकता था ना!

सोनू - क्यूं मुझसे डर लग रहा है?
सुनीता - तुझसे क्यूं डर लगेगा?

सोनू - अरे मेरा मतलब, मेरे उस चीज से!

सुनीता को समझते देर नही लगी, की सोनू अपने लंड के बारे में बात कर रहा है।

सुनीता - बेशरम! कही का, अभी इतना भी बड़ा नही हुआ है तू!

सोनू - अच्छा.......तो इसका मतलब अभी और बड़ा होगा?

सुनीता मरती क्या न करती, इस बात पर जो हंसना चालू कीया तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी.......सोनू भी हस -हस कर थक चुका था!


सोनू - अच्छा.......मां अब तू जा। मुझे थोड़ा आराम करने दे!

सुनीता - क्यूं मन भर गया क्या मां से , बेशरम!
सोनू - नही मां, बस थोड़ा आराम करने का मन कर रहा है।

सुनीता - अच्छा.......ठीक है तू, आराम कर ॥ और हां तूझे बुरा लगा हो तो माफ कर देना!

सोनू - कीस बात का मां?

सुनीता - वही ......बाहर कीसी के साथ मैं चक्कर चलाउ तो, 'उस बात का!

सोनू - और मुझे भी माफ़ कर देना मां !

सुनीता - कीस बात के लीए?

सोनू - वही ........मेरे साथ चक्कर चलाने वाली बात के लीये!


सुनीता कुछ देर तक कुछ नही बोली ॥ लेकीन फीर मुस्कुरा कर बोली!

सुनीता - मां के साथ चक्कर चलाना इतना आसान नही...........!

सोनू - मुश्कील भी नही !

सुनीता - हां......बल्की बहुत मुश्कील है!

सोनू - मुश्कील से हासींल की हुई चीज ही ''सुख देती है।

सुनीता - दुनीया - समाज क्या बोलेगी?

सोनू - मेरी दुनीया तो तू हैं॥

सुनीता - मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर.......तू शादी कर ले!

सोनू - अब तो दुनीया गयी भाड़ में माँ। अब तू ही मेरी पत्नी बनेगी!

सुनीता - बस ........बेटा। सपने मत दीखा......अकेले रहने की आदत हो गयी है। मेरी कीस्मत में जीवनसाथी नही बल्की सुनी राहें है ! बस


सोनू - एक बात पुछुं ?
सुनीता - ह्मम्म्म.....

सोनू - सुनी राहों पर साथ चलने का हक देगी मुझे?

सुनीता - तुझसे अच्छा हमसफर कोई नही। लेकीन इसका हक़ मैं नही दे सकती!

सोनू - अब तू मुझे पागल कर रही है मां, तुझे पता है । मन कर रहा है तूझे बाहों में भरकर अपना बना लू! लेकीन बीना तेरी सहमती के कर भी नही सकता!

सुनीता - तूझे क्या ? तेरे पास तो दो - दो है।

सोनू - पर तेरी बांहो में जो मज़ा है, वो कही नही!

सुनीता - मां ऐसी ही होती है। मां बनकर बाहों में भरे तो सारे दुख समेट ले। और पत्नी बनकर बाहों में ले तो आनंद की चरम पर बीठा दे!

सोनू - तो हमे रोक कौन सी चीज रही है मा।

सुनीता - मा - बेटे का पवीत्र रीश्ता!


सोनू - जीस दीन ये रीश्ते की दीवार टुटी.....उस दीन.!

तभी सुनीता ने अपनी एक उगंली सोनू के मुह पर रख कर चुप कराते हुए बोली-

सुनीता - मुझे पता है....तेरी..............बेरहमी!

सोनू - सह तो लोगी ना .!

सुनीता ने ऐसी शरम की लालीमा अपने चेहरे पर बीखेर कर बोली की .........सोनू का दील धड़कने लगा.!

सुनीता -- वो ........तो हर औरत करती है।

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Shandar update akhir jaise bhi ho dono ma bete ke bich ka man mautab dur ho gaya
 

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