Fantasy जीवित मुर्दा व बेताल (Completed)

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अब्बा आपको यह काम अपने ऊपर नहीं लेना था । "

" क्या करूं बेटा पेट का सवाल है और तो और ऊपर से यह काम जमींदार साहब ने दिया है । अगर मना कर दूँ तो जीना हराम हो जाएगा । "

अमावस्या की रात है । चारों तरफ देखने से ऐसा लग रहा है कि मानो किसी ने आसमान पर कालिख मल दिया है ।
जमीन पर कहीं भी एक बूंद रोशनी नहीं है । हालांकि एक लालटेन टिम टिम करते हुए रोशनी फैलाने की व्यर्थ कोशिश कर रहा है लेकिन इस गहरे अंधकार के सामने वह कुछ नहीं ।
जमील मांझी और उसका लड़का नाव लेकर आगे बढ़ चले हैं । नाव के एक तरफ जलता लालटेन ही इस अंधेरे में रोशनी का एकमात्र स्रोत है ।

सुवर्णरेखा नदी के किनारे महोबा नामक एक छोटा गांव है । इस गांव में बहुत ज्यादा लोग नहीं रहते लेकिन एक पूर्ण गांव के लिए जो कुछ भी चाहिए सब कुछ यहां पर है । प्रकृति मानो विशाल खाद्य भंडार के साथ यहां विराजमान है ।
रामनाथ गांव के सबसे धनवान व्यक्ति हैं इसीलिए वो इस गांव के कर्ताधर्ता व जमींदार हो गए हैं । उनका बहुत बड़ा मछली का व्यापार है । शहर के बड़े बड़े मछली व्यापारियों के साथ उनका लेन - देन चलता है । गांव के बहुत से लोग उनके इस कारोबार में काम करते हैं इसीलिए एक प्रकार वो यहां गांव वालों के लिए अन्नदाता हैं । स्वभाव - चरित्र से भी वो एक अच्छे आदमी हैं । जमील मांझी की तरह और भी बहुत सारे मांझी उनके लिए काम करते हैं । इनका काम है गांव से नदी के द्वारा शहर में मछली ले जाना । स्थल मार्ग की तुलना में नदी के द्वारा माल परिवहन करने का दो कारण हैं । पहला स्थल मार्ग के द्वारा माल भेजने का खर्चा ज्यादा है और समय भी ज्यादा लगता है । लेवल गर्मी में जब सुवर्णरेखा की जलधारा कम हो जाती है तब स्थल मार्ग का सहारा लिया जाया है ।

रामनाथ अपने गांव वालों के लिए प्रजा वत्सल हैं । गरीब लोगों के प्रति उनका अत्यधिक स्नेह है । सभी की सहायता के लिए वो हमेशा चले आते हैं और समस्या समाधान करने की कोशिश करते हैं ।
लेकिन इस समय किसी कारण से वो हमेशा बीमार रहते हैं शायद इसीलिए उनके चरित्र में कुछ बदलाव देखा गया है । अब लोगों के साथ ज्यादा मिलते - जुलते नहीं, ज्यादातर अकेला रहना ही पसंद करते हैं । अपने कारोबार पर भी उन्हें अब ज्यादा ध्यान नहीं है ।
इतने अच्छे आदमी के अंदर अचानक से ऐसा परिवर्तन क्यों आया ? यही प्रश्न सभी गांव वालों के अंदर है ।
रामनाथ ठाकुर का लड़का दिनेश अबतक शहर में रहकर पढ़ाई करता था । पिछड़े साल ही वह अपने पढ़ाई को खत्म करके गांव लौट आया है । लेकिन दिनेश अपने पिता की तरह नहीं है । स्वभाव तथा चरित्र से वह अपने पिता से पूरी तरह उलट है । शराब व नारी के लिए वह पागल है । इसी बीच उसने गांव में अपने जैसे कई और मनचले लड़कों का जुगाड़ भी कर लिया है ।
अब अपने पिता के बीमारी के चलते कारोबार की पूरी जिम्मेदारी जब उसके पास आई तो उसे मानो पूरा साम्राज्य मिल गया । तथा एक-एक कर उसके सभी गलत कामों की सूची सिर चढ़कर बोलने लगा । धीरे - धीरे दिनेश और उसके दोस्त गांव की लड़की और महिलाओं के सरदर्द का कारण बन गए ।

गहरा अंधेरा , छप - छप की आवाज करते हुए धीरे-धीरे जमील मांझी का नाव आगे बढ़ रहा है । मांझी नाव के एक तरफ बैठा है और ठीक उसके दुसरे तरफ उसका लड़का बैठकर पतवार चला रहा है ।
नदी के बाएं तरफ घना जंगल है । वहां से कुछ रात जागने वाले पंक्षी आवाज करते हुए इधर-उधर उड़ रहे हैं । अंधेरे में इन पेड़ों को देखकर ऐसा लग रहा है कि दानवों का समूह खड़ा है ।

" अब्बा , मुझे डर लग रहा है । "

" डरो मत बेटा डरो मत हमें यह काम करना ही होगा । इसके अलावा कोई उपाय नहीं है । हमारे ठाकुर साहब अब पहले के जैसे नहीं रहे । अब बदल गए हैं वरना ऐसा कभी नहीं करते । अपने लड़के का कांड लोगों के सामने न आए इसके लिए साहब अब कुछ भी कर सकते हैं । "

" अब्बा उस दिन क्या हुआ था ? "

" अभी यह सब नहीं बता सकता तू जल्दी हाथ चला । "

" नहीं अब्बा , क्या हुआ था बताइए । "

इसके बाद जमील मांझी ने अपने लड़के को जो घटना बताई वह कुछ इस प्रकार था ।,,,

पिछले दिन जब बारिश - हल्की आंधी रूकी उस वक्त रात के लगभग एक बज रहे थे । जमींदार साहब के गुणवान लड़के को शराब पीने की नशा जागी । अपने पिता के कारण वह घर में शराब लाकर नहीं रख सकता इसीलिए चुपचाप घर से निकल अपने एक दोस्त के घर की तरफ चल पड़ा ।
1 घंटे के बाद दिनेश और उसके चार दोस्त शराब के नशे में झूमते हुए जमींदार घर की तरफ ही लौट रहे थे । दिनेश ने कुछ ज्यादा ही पी लिया था इसीलिए उसके दोस्त उसे घर छोड़ने आ रहे थे ।
इसी तरह नशे में झूमते हुए वो सभी मंदिर के सामने वाले रास्ते की तरफ चल पड़े । रात गहरे अंधेरा वाला है इसीलिए सभी के हाथों में एक टॉर्च था । हालांकि उन सभी के टॉर्च की रोशनी से रास्ता चलने लायक नहीं था क्योंकि नशे में वो सही से रास्ते पर टॉर्च नहीं दिखा रहे
थे ।
उस रात को बारिश से बचने के लिए भोला पागल मंदिर के चौखट पर ही सो रहा था । इतनी रात को दिनेश और उसके दोस्तों को रास्ते से आते देख उसके दिमाग में एक शैतानी बुद्धि आ गया । उन सभी को डराने के लिए वह मंदिर के चौखट से सीधे रास्ते पर उनके सामने कूद पड़ा ।
पहले वो सभी यह देख डर से इधर - उधर गिर पड़े । भोला पागल यह दृश्य देखकर बहुत खुश हुआ और रास्ते पर खड़े होकर लगातार हँसता रहा । इसके बाद सभी नशेड़ी थोड़ा सम्भलकर जब सामने टॉर्च जलाया तो देखा भोला पागल खिलखिलाते हुए हँस रहा है ।
यह देख उनके मन का डर खत्म हो गया और उसके जगह एक तीव्र गुस्से व बदले की भावना ने अपना जगह बना लिया । वो सभी उस पागल को पकड़कर मारने लगे लेकिन भोला पागल का हंसी नहीं रुका । अब दिनेश झपटकर मारते हुए पागल के सीने पर बैठ उसके गले को जोर से दबाया । बाकी सभी पागल के छटपटाते हाथ - पैर को पकड़े रखा । कुछ ही समय में भोला पागल के हंसने की आवाज बंद हो गया । धीरे-धीरे उसका
छटपट करता शरीर शांत हो गया । नशे में दिनेश और उसके दोस्तों ने भोला पागल की हत्या कर डाला ।...

जमील मांझी का लड़का बोला,
" वो सभी कितने हरामी हैं । केवल इतनी सी बात के लिए एक आदमी को मार डाला । "

" चुप कर बेटा चुप कर ऐसी बातें नहीं कहते । वो सभी हमारे अन्नदाता हैं । "

गांव के लोगों के बीच अगर यह बात फैल जाती तो वह दिनेश को हत्या के लिए प्रश्न पूछते । रामनाथ पिता होकर अपने लड़के को क्या ही सजा देंगे । लेकिन अगर वह भी चुप रहे तो गांव वालों के सामने अपना सम्मान खो सकते हैं इसीलिए बेटे के स्नेह में अंधा पिता अपने लड़के को बचाने के लिए चुपचाप भोला पागल के लाश को कहीं ठिकाने लगाने का निर्णय लिया ।
इस गांव में ज्यादा लोग नहीं रहते इसीलिए गांव के पास वाले श्मशान में दाह संस्कार करने पर लोगों के मन में कई सारे प्रश्न उठ सकते हैं । इसीलिए बहुत कुछ सोचकर रामनाथ ने एक रास्ता निकाला ।
अपने सबसे भरोसेमंद जमील मांझी को बुलाया व उसे पूरी घटना बताकर इस लाश के दाह संस्कार का जिम्मा उसे दिया ।
अमावस्या की रात को इसीलिए सभी से छुपकर चुपचाप जमील मांझी व उसका लड़का भोला पागल के शरीर को लेकर जल मार्ग से चल पड़े हैं । उनका गंतव्य 5 मील दूर नदी के किनारे एक सुनसान श्मशान है वहीं पर इस लाश का दाह संस्कार करेंगे । हालांकि यह काम करने के लिए मांझी पहले राजी नहीं था लेकिन बहुत सारे पैसों का लालच दिखाने पर वह अंत में तैयार हो गया ।

अंधेरे की वजह से नदी का पानी भी काला दिख रहा है । जमील मांझी और उसका लड़का नाव चलाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं । उनका नाव आकार में बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है और बहुत छोटा भी नहीं कह सकते । लेकिन इस नाव के बीच लकड़ी व बांस के फट्टे से बना विश्राम टांका घर काफ़ी बड़ा है और दोनों तरफ मखमल के कपड़े से ढंका हुआ है । कभी - कभी जमील मांझी के इस नाव से जमींदार साहब नदी में घूमने जाते थे इसीलिए वह हमेशा नाव पर बने इस घर को सजाकर रखता है । लेकिन उसे कभी ऐसा काम भी करना होगा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था । आज उसके नाव पर बने घर में कोई जीवित मनुष्य नहीं है बल्कि वहाँ आज भोला पागल का लाश रखा हुआ है । लाश में अब धीरे-धीरे सड़न आने लगी है उसके दुर्गंध से उन दोनों का नाक जल रहा है ।
मांझी और लड़के दोनों ने ही नाक पर गमछा लगाया । अभी उन्हें काफ़ी दूर जाना है । इस नदी के हर एक कोने से वो भली भांति परिचित हैं इसीलिए अंधेरे में उन्हें नाव चलाने में कोई दिक्कत नहीं आ रही ।
इसी वक्त नदी के बाएं तरफ जंगल के ऊपर कुछ आग जैसा रोशनी जलकर बुझ गया । इस अंधेरे में उस रोशनी को उन दोनों ने देखा ।मांझी का लड़का तुतलाकर बोला ,
" अब्बा ओ अब्बा वो क्या था ? "

" इधर - उधर मत देख नाव चलाता रह । "

जमील मांझी ने उसके डर को भगाने की कोशिश करना चाहा । लड़के को चुप करा दिया लेकिन उस रोशनी को उसने भी देखा था इसीलिए मन ही मन वह कुरान शरीफ पढ़ने लगा । आज आसमान व चारों तरफ शांत है शायद आज फिर आंधी - बारिश आने की संभावना है ।

" आसमान शांत है शायद बारिश आएगी इसीलिए इधर-उधर ज्यादा मत देख इससे और देर हो जाएगा । "
ये सब बोलकर मांझी अपने लड़के के मन को शांत करना चाहा ।

इसी बीच ना जाने कहां से एक जोरदार हवा आई । लालटेन की आग तुरंत ही बुझ गया । इसी बीच वह हवा टांका घर के एक तरफ के पर्दे उड़ाकर उसके अंदर प्रवेश कर गया । लेकिन अद्भुत तरीके से वह हवा दूसरी तरफ से बाहर नहीं निकली ।
कुछ ही मिनटों में सब कुछ शांत हो गया । अभी कहीं भी थोड़ी तेज हवा नहीं है । इसी बीच मांझी ने फिर लालटेन को जलाया । कुछ मिनट पहले के अद्भुत दृश्य को देख दोनों ही शांत हो गए थे । दोनों कुछ भी नहीं बोल रहे । मांझी का लड़का किसी मशीन की तरह पतवार चला रहा है और मांझी आँख बंद कर मन ही मन कुरान पढ़ रहा है । अब उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि नाव पहले से थोड़ा भारी हो गया है और पानी में कुछ ज्यादा ही डूबा लग रहा है । नदी का पानी नाव के अंदर छलककर गिरने लगा । ऐसा लग रहा है कि नाव के ऊपर बहुत भारी कुछ अचानक ही चढ़ आया है ।

मांझी का लड़का कांपते पर हुए बोला,
" अब्बा , ऐसा क्यों हो रहा है ? "

जमील मांझी के चेहरे पर भी डर की रेखा साफ थी ।
" मुझे नहीं पता । या अल्लाह, अल्लाह का नाम ले । "

इसी वक्त टांका घर के अंदर से एक हंसी की आवाज सुनाई देने लगा । बहुत तेज नहीं कोई धीरे-धीरे हंस रहा है । इस अंधेरी रात को नदी के ऊपर तैरते नाव में दो मनुष्य और एक लाश लेकिन अचानक नाव पर बने घर में कौन है जो हंस रहा है ?........
 
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इसी वक्त नाव घर के अंदर से एक हंसी की आवाज सुनाई देने लगा । बहुत तेज नहीं कोई धीरे-धीरे हंस रहा है । इस अंधेरी रात को नदी के ऊपर तैरते नाव में दो मनुष्य और एक लाश लेकिन अचानक नाव पर बने घर में कौन है जो हंस रहा है ?...

मांझी और उसके लड़के का एक ही हाल है । हंसी सुनकर दोनों मानो पत्थर से हो गए हैं । धीरे-धीरे जमील मांझी लालटेन को उठाकर नाव घर की तरफ गया और अल्लाह को याद करते हुए कांपते हाथों से पर्दे को उठाया । उसने अंदर जो दृश्य देखा वह उनके लिए बिल्कुल बुरा था । आश्चर्य भरे आँखों से जमील मांझी ने देखा नाव घर के अंदर भोला पागल की लाश पहले जैसा रखा हुआ है केवल जिस कपड़े से उसे ढक कर रखा गया था वह पूरी तरह अलग हो चुका है । और उस लाश के सिर के पास कोई बैठा है लेकिन वह इस नाव घर के अँधेरे में समाया हुआ है । मांझी के हाथ पैर सुन्न हो रहे थे लेकिन ना जाने क्या सोच लालटेन को उठाकर वह नाव घर के अंदर गया । लालटेन की रोशनी से नाव घर के अंदर का अंधेरा कुछ कम हुआ । जमील ने उस रोशनी में देखा कि लाश के सिर के पास एक कंकाल बैठा हुआ है लेकिन उसके हड्डियों का रंग सफेद नहीं बल्कि काला है । मानो किसी ने हड्डियों पर काला रंग लगा दिया है ।
इतना सब कुछ देखकर जमील मांझी बेहोश ही होने वाला था लेकिन वह फिर से एक और दृश्य देखकर कांप गया ।
अब नीचे लाश रुपी भोला पागल के शरीर पर उस कंकाल ने अपना एक हाथ रखा । तुरंत ही भोला पागल के शरीर से थोड़ा - थोड़ा करके चमड़ा व मांस निकलने लगा । जमील मांझी ने देखा , निकलते चमड़े व मांस धीरे - धीरे कंकाल के शरीर में जाकर जुड़े रहे थे । कुछ ही देर में वह कंकाल एक पूर्ण मनुष्य शरीर में परिवर्तित हो गया केवल चेहरा जुड़ना अभी बाकी है । यह दृश्य देखते हुए जमील मांझी उसी में खो गया है । वह एकटक यही विभत्स दृश्य देखने में व्यस्त है ।
उधर मांझी का लड़का बहुत देर से बुला रहा है । नाव घर के अंदर जाने के बाद से उसे अपने अब्बा का कोई आवाज नहीं सुनाई दिया । अंदर से केवल कुछ आवाजें उसे सुनाई दे रहा है ।इधर आंखों के सामने ऐसे भयानक दृश्य को देखकर जमील मांझी का धड़कन न जाने कब का रुक गया है । दोनों आँख अब भी आश्चर्य से भरे व हाथ में लालटेन लेकिन शरीर में अब जान नहीं है ।
अब लाश के चेहरे का मांस कंकाल से जुड़ते ही वह हूबहू भोला पागल के जैसा दिखने लगा था । उस चेहरे पर अब एक भयानक हंसी खेल रहा है । धीरे-धीरे भोला पागल का नग्न शरीर , मरकर पत्थर हो चुके जमील मांझी के शरीर की तरफ बढ़ा । इसके बाद अपने हाथ से मांझी के सिर को एक ही बार में धड़ से फाड़कर अलग कर दिया । भोला पागल का शरीर मानो एक भयानक शैतानी शक्ति का अधिकारी बनकर लौटा आया है ।
मांझी के सिर को पास में रखकर वह अपने दोनों हाथों से शरीर को पकड़ लिया फिर सिर हीन गले पर मुँह लगाकर
अंतड़ियों को खींचकर बाहर करने लगा । गुस्से में मांझी के शरीर को नाखून से फाड़ने लगा । फिर एक बार हंस कर मांझी के शरीर से मांस फाड़ मुँह के अंदर डालने लगा ।
उधर नाव घर के दूसरी तरफ के पर्दे को हटाकर जमील मांझी के लड़के ने देखा कि जहां भोला पागल का लाश रखा हुआ था वहाँ अब एक कंकाल पड़ा हुआ है और उसके पैरों के पास एक कटा हुआ सिर । हल्की रोशनी में वह सिर को पहचान गया और तुरंत ही उसके मुँह से चिल्लाने की आवाज निकल गई ।
अबतक वह नग्न शरीर जमील मांझी के मांस को खाने में व्यस्त था लेकिन उसके लड़के के आवाज को सुनकर उसने उधर की तरफ देखा । मांझी का लड़का वह डरावना दृश्य देख जमकर पत्थर जैसा हो गया है । आश्चर्य होकर वह देखा कि उसके तरफ भोला पागल देख रहा है । उसके होंठ से लाल खून की धारा निकल रहा है, कोने के दो दाँत बड़े से हो गए हैं । एक बड़े से जीभ को निकालकर वह मांझी के खून को चाट रहा था । अब उसने जीभ को अंदर कर लिया । उसके चेहरे पर अब एक शैतानी हंसी खेल रहा है और उसी के साथ आंखों में बदले की आग भी है ।
लड़के ने एक हाथ से अपने गले के ताबीज को पकड़ लिया । भोला पागल अब पूरी तरह उस लड़के के तरफ
मुड़ा । लड़के के हाथ में नाव का पतवार था तुरंत ही उसने पतवार से भोला पागल के नग्न शरीर पर वार किया । तुरंत ही नग्न शरीर लड़के की तरफ लपका । यह देख मांझी का लड़का नाव से नदी में कूद गया और जल्दी से तैरते हुए किनारे पर जाने की कोशिश करने लगा ।
भोला पागल का नग्न शरीर अब नाव के ऊपर खड़ा हुआ । उसके बाद एक हंसी निकालकर धीरे-धीरे नदी की पानी में उतर गया ।
उधर लड़का लगभग नदी के किनारे पर पहुंच गया है लेकिन उसी वक्त पानी के अंदर से किसी ने उसके पैर को पकड़ खींच लिया । कुछ सेकेण्ड की छटपटाहट फिर लड़के का शरीर पानी के अंदर समा गया । धीरे - धीरे पानी के तरंग शांत हो गए । पानी के अंदर से कुछ हवा के बुलबुलों के साथ लाल खून भी ऊपर आया । मानो अंधेरा मिले हुए नदी पानी के साथ मिलकर उसके अस्तित्व को खत्म कर दिया । हो सकता है दूर पेड़ों पर बैठा कोई निशाचर पक्षी इस घटना का साक्षी होगा ।
कुछ ही देर में चारों तरफ का वातावरण पहले की तरह सामान्य होते ही वो सभी आवाज करते हुए इधर - उधर उड़ गए ।...

अगले दिन सुबह रामनाथ राह ताक रहे हैं कि कब जमील मांझी लौटेगा । धीरे-धीरे दिन खत्म होकर रात होने को आई लेकिन मांझी नहीं लौटा । उधर मांझी की पत्नी आंखों में आंसू लेकर बिना कुछ खाए - पिए अपने पति और बेटे की प्रतीक्षा में आँगन में बैठी हुई है लेकिन मांझी और उसका प्यारा लड़का कोई नहीं लौटा ।
इसके बाद जमींदार साहब ने बहुत खोजबीन करवाया । इधर उधर आदमियों को भेजकर पता लगाया लेकिन जमील मांझी का सुराग कहीं भी नहीं मिला ।
जमींदार साहब ने जमील मांझी की पत्नी को अपने घर में लाकर रखा है । गांव के लोगों के बीच कई प्रश्न और बातों का कौतुहल सिर चढ़ कर बोल रहा है । सभी सोच रहे हैं कि मांझी और उसका लड़का रातोंरात अपने पत्नी को बिना कुछ बताए घर छोड़ कर चले गए । लेकिन जमील मांझी को ऐसा क्या हुआ कि अपने लड़के को लेकर जाना पड़ा ? ऐसे ही कई प्रकार के प्रश्न गांव वालों के मन में हिचकोले खाता रहा । तथा इसी के साथ जमींदार साहब का सम्मान भी उनके बीच और बढ़ गया । बेचारी असहाय मांझी की पत्नी को उन्होंने अपने घर में जगह दिया है सम्मान तो बढ़ेगा ही । लेकिन असली बात से सभी अनजान रह गए । जमींदार साहब ने ही उन दोनों को एक विशेष कार्य के लिए भेजा था यह किसी को पता भी न चला । इधर गांव वाले जिसे जमींदार साहब की अच्छाई सोच रहे हैं उसके पीछे भी एक कूटनीतिक मतलब है । अगर वो मांझी की पत्नी को अपने यहां ना रखते तो वह गांव वालों को पूरी सच्चाई बता भी सकती है क्योंकि मांझी , जमींदार साहब और मांझी के लड़के के अलावा अगर कोई यह सच्चाई जानता है तो वह जमील की पत्नी ही है । अगर उसे जमींदार साहब अपने पास ना रखते तो गांव वालों को असली सच्चाई बता सकती थी जिससे फलस्वरुप जमींदार साहब और उनके गुणवान लड़के दिनेश का कांड सभी के सामने आ जाता । हालांकि गांव वालों के मन का कौतूहल इतनी आसानी से खत्म नहीं हुआ । लगातार दो दिनों में गांव तीन मनुष्य गायब हो गए , पहले भोला पागल और फिर जमील मांझी व उसका लड़का । आखिर वो सभी गए कहाँ ?
गांव के चाय की दुकान , मंदिर के चौखट , शाम के बैठक सभी जगह लोगों के बीच आलोचना का विषय यही है ।

इधर ऐसी एक घटिया काम करने के बाद भी दिनेश और उसके दोस्तों को कुछ भी फर्क नहीं पड़ा । बल्कि इसके उलट वो सभी और भी बेपरवाह हो गए । गांव के एक विशेष जगह पर रामनाथ से बोलकर दिनेश ने एक अड्डा घर बनवा लिया और वहीं पर पूरे दिन शराब और जुआ चलने लगा । गांव की लड़कियों और महिलाओं को उनके कारण रास्ते पर चलना भी दूभर हो गया ।
गांव के लोगों ने जमींदार साहब के पास इस बारे में कई बार शिकायत की है लेकिन विशेष कुछ काम नहीं हुआ ।
जमींदार साहब अपने लड़की के प्रति इतना दुर्बल हैं कि वो अपने लड़के के साथ ऊंची आवाज में बात भी नहीं कर पाते । दिनेश यह सब अच्छे से समझता है इसीलिए इस कमजोरी का फायदा उठाकर वह दिन पर दिन और बेपरवाह होता जा रहा था ।
इधर गांव में एक नई समस्या शुरू हो गई है । सभी को कभी कभार भोला पागल दिखाई देता । अभी कुछ दिन पहले ही दीनू यादव खेत से घर आने की तैयारी कर रहा था । सूर्य पश्चिम में लगभग अस्त हो चुका है इसीलिए चारों तरफ स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा । दीनू ने देखा मेड़ के ऊपर भोला पागल खड़ा है । इस हल्के अंधेरे में उसका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा लेकिन उसके शरीर गढ़न से दीनू उसे तुरंत पहचान गया । भोला पागल जब खड़ा होता था तो सामने की तरफ झुककर खड़ा होता था । इतने सालों से गांव के लोग उसके इस तरह खड़े होने से परिचित थे इसीलिए दीनू को भी पहचानने में कोई दिक्कत नहीं आई । दीनू ने पूछा ,
" अरे भोला तू लौट आया । बीच में कहाँ गायब हो गया था ? "
इसके उत्तर में एक अद्भुत हंसी के अलावा कुछ नहीं सुनाई दिया । दीनू को थोड़ा डर लगा इसीलिए वह वहाँ से चल पड़ा ।
उसी दिन रात को एक और घटना घटी । सहदेव प्रतिदिन मछली छोड़े गए तालाबों पर पहरा देता है । आसपास के गांव के कुछ लड़के आकर रात को मछली चुराते हैं इसीलिए जमींदार रामनाथ ने पहरे का काम सहदेव को दिया है । हाथ में लाठी और एक में लालटेन लेकर सहदेव प्रतिदिन की तरह इधर-उधर टहलकर देख रहा था । उसी समय उसे जलाशय की पास एक परछाई बैठा हुआ दिखाई दिया । थोड़ा सा पास जाते ही शरीर की बनावट को देखकर सहदेव जान गया कि यह भोला पागल है । सहदेव सोचने लगा कि यह इतनी रात को पानी के पास बैठकर क्या कर रहा है ? यही सोचते हुए वह लाठी उठाकर भोला पागल के तरफ आगे बढ़ा ।
" अबे ओ भोला पगले इतनी रात को वहाँ क्या कर रहा है ? भाग यहां से भाग । "
भोला बिल्कुल नहीं हिला वह बैठा ही रहा । सहदेव उसके पास जाकर खड़ा हो गया । भोला पागल कुछ अद्भुत प्रकार से हँस रहा था । उसके हंसी को सहदेव ने पहले भी सुना था लेकिन आज उसे इस हंसी से डर लगा । अनजाने में ही उसके रोंगटे खड़े हो गए । एक क्षण भी बिना रुके सहदेव वहाँ से मुड़कर जाने लगा । लौटते वक्त सुखदेव ने कुछ खच - खच करके चबाकर खाने की आवाज सुना था । इसका मतलब भोला पागल क्या कच्चा मछली खा रहा है ?

गांव के कई जगहों से ऐसे छोटी-छोटी घटनाएं सभी ने बताना शुरू कर दिया । कोई भोला पागल को देखता और कोई उसके अद्भुत हंसी को सुनता । ऐसी बातें पहले भी हुई है । सभी उसके पागलपन के बारे में जानते हैं लेकिन इस बार जिसने भी उसे देखा सभी को एक डर की अनुभूति हुई ।
इसी तरह एक और दिन बीत गया । एक गांव में एक और नई समस्या आ गई । एक - एक कर गांव से पालतू पशु गायब होने शुरू हो गए । किसी की गाय , किसी की बकरी या मुर्गी को कोई बड़े ही सफाई से चुरा रहा है ।

उधर बगल के गांव में एक और भयानक घटना घट रहा है.....
 
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Bro show nahi ho rahi update last update 7 November ki ho show ho rhi hai
 
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उस दिन कुछ ज्यादा ही अंधेरा हो गया था । गांव के रास्ते शाम होते ही सुनसान हो जाते हैं तथा जिस कच्चे मिट्टी के रास्ते से गोपाल जा रहा है उसके आसपास थोड़ा झाड़ी व जंगल जैसा है । खेत पार करके थोड़ा आगे जाने पर एक जलाशय है उसी के थोड़ा आगे से घना बांस झाड़ी शुरू होता है । बांस झाड़ी को पार करते ही कुछ दूरी पर गोपाल के पिता का दुकान दिखाई देता है । गोपाल खेत के रास्ते को पार करके जलाशय के पास वाले रास्ते से जा रहा था उसी वक्त उसके नाक में सड़ते मांस जैसा दुर्गन्ध आया । उसने मन ही मन सोचा शायद कुछ मरा हुआ सड़ रहा है उसी का यह दुर्गंध है । लेकिन साधारण सड़ते मांस के साथ कुछ और भी मिला हुआ है । ऐसी दुर्गंध किससे आ सकता है इस बारे में उसे नहीं पता ।
आसमान में आज चाँद थोड़ा और बड़ा हुआ है । चारों तरफ के सन्नाटे में झींगुर की आवाज बिना रुके सुनाई दे रहा है । गोपाल आसमान की तरफ देखते हुए थोड़ा रुक गया । आसमान में इस चाँद को देखना उसे बहुत ही पसंद है । अभी कुछ दिन पहले ही वह अपने घर के आंगन में बैठकर सुंदर गोल चाँद को देख रहा था । गोल चाँद को ध्यान से देखने पर उसपे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो उसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है । गोपाल सोचता है कि शायद यह चाँद उसका दोस्त है क्योंकि जब भी वह चलता है तो चाँद भी उसके साथ ही साथ चलता है लेकिन बीच-बीच में एक काला अंधेरा चाँद को ढक देता है । अपनी मां से उसने पूछा था कि यह शैतान काला अंधेरा क्यों चाँद को ढक देता है ? माँ ने कहा था कि यही प्रकृति का नियम है , इसे अमावस्या कहते हैं ।
आज सुनसान रास्ते पर खड़े होकर चांद को देखते हुए गोपाल यही सब सोच रहा था । अब सामने देखकर फिर से चलना शुरू कर दिया ।
वो सभी छः भाई हैं । गोपाल उनमें सबसे छोटा है । गांव के एक जगह पर उसके पिता का छोटा किराने का दुकान है इसीलिए सप्ताह के 6 दिन उनमें से एक - एक भाई को प्रतिदिन पिता के लिए खाना लेकर जाना पड़ता है । रात को चोरी - डकैती के डर के कारण उनके पिता दुकान पर ही सोते हैं । आज गोपाल की बारी है इसीलिए आज वह खाना लेकर जा रहा है ।
चांद के बारे में सोचते हुए वह दुर्गंध को लगभग भूल ही गया था । झींगुरों का झीं - झीं चलता ही जा रहा है मानो उन्हें कोई थकान नहीं । बीच-बीच में रात को घूमने वाले एक-दो पक्षी की आवाज सुनाई दे रही है । गोपाल इसी रास्ते से अपने पिता के लिए खाना लेकर जाता है । पहले भी वह कई बार गया है लेकिन कोई समस्या नहीं आई ।
जलाशय को पार करके अब वह बांस झाड़ी के तरफ चल पड़ा । लंबे बांस झाड़ी के कारण आसमान यहां थोड़ा ढका हुआ है इसीलिए लालटेन की रोशनी को तेज करके वह तेजी से चलने लगा । एक बार फिर दुर्गंध आने लगी लेकिन इस बार कुछ ज्यादा । बांस झाड़ी के साथ अंधेरा भी यहां कुछ ज्यादा है । गोपाल गांव का लड़का है जंगल - झाड़ी में वह अकेला ही घूमता रहता है इसीलिए उम्र में छोटा होने पर भी वह डरपोक नहीं है । लेकिन फिर भी आज उसका धड़कन थोड़ा तेज हो गया । वह थोड़ा और तेजी से पैर चलाकर कुछ ही देर में अपने पिता के दुकान पर पहुंच गया । दुकान से घर लौटते वक्त वहाँ मांस सड़ा दुर्गंध नहीं था । घर लौटकर उसने अपनी मां से कुछ नहीं पूछा लेकिन अपने बड़े भाइयों से पूछने के बारे में सोचा कि क्या उन्हें वहाँ कोई सड़ा हुआ दुर्गंध मिल रहा था या नहीं ।

यादव बस्ती में एक जागृत काली मंदिर है । गांव के लोगों की दुख - दुर्दशा उस मंदिर में जाकर बोलने पर सभी का मानना है कि देवी की कृपा दृष्टि से सब कुछ ठीक हो जाता है । गोपाल कभी-कभी शाम के वक्त उस मंदिर में जाता है । हालांकि उसके जीवन में कोई दुख नहीं है । वह अभी छोटा है दुःख - सुख अभी उसके समझ से परे है लेकिन मंदिर में जाकर उसे शांति का अनुभव होता है । शाम के हल्के अंधेरे में धूप - अगरबत्ती की सुगंध और उसके साथ मंत्र पाठ का यह माहौल उसे बहुत ही पसंद है । प्रतिदिन मंदिर के बाहर सीढ़ी पर बैठकर वह सभी दृश्यों को आँखों में समाहित करता है ।
उस दिन भी एकटक देवी मूर्ति को देखते हुए वह बैठा हुआ था । शाम हो गई है तथा मंदिर की संध्या आरती भी शुरू हो गया है । हालांकि आज वह संध्या आरती को अंत तक नहीं देख पायेगा क्योंकि उसके बाकी बड़े भाई आज किसी दूसरे कार्यों में व्यस्त होने के कारण उसे आज फिर पिता के लिए खाना लेकर दुकान पर जाना होगा ।
वह उठने ही जा रहा था कि कोई बोला ,
" सुनो छोटू "
शाम के हल्के रोशनी में गोपाल ने देखा । एक आदमी जो हल्के भगवा रंग का वस्त्र पहना हुआ , चेहरा बड़े - बड़े दाढ़ी व मूंछ से भरा , शरीर का रंग काला तथा पूरे शरीर पर राख लगा हुआ । एक बार देखकर कोई भी कहेगा कि यह एक पागल है ।
उस आदमी ने फिर बोला ,
" छोटू बेटा हाँ तुमसे ही कह रहा हूं । इधर आओ । "गोपाल की मां ने सिखाया था कि अगर कोई अनजान आदमी बुलाए तो पास बिल्कुल मत जाना इसीलिए वह दूर ही खड़ा रहा ।
" अरे डरो नहीं मेरे पास आओ । मैं पागल नहीं हूं । "
उस आदमी के आँखों में एक दिव्य भाव हैं । वेशभूषा गंदा है परन्तु गंभीर गले का स्वर उनके सुदृढ़ चरित्र की वर्णना कर रहा है । उनको देखकर गोपाल के मन में एक श्रद्धा - भक्ति की उत्पत्ति होने लगा । वह धीरे-धीरे उस आदमी के पास गया ।

" मैं देखता हूं कि तुम अक्सर मंदिर में आकर बैठे रहते हो । बाकी लोग तो यहां पर अपने दुख दुर्दशा को दूर करने के लिए आते हैं तो बताओ इस उम्र में तुम्हें क्या दुख है ? "
" मुझे कोई दुख नहीं है और मैं कुछ मांगने भी नहीं आता । "

" फिर "

" मुझे वो धूप - अगरबत्ती की सुगंध के साथ घंटे की ध्वनि और देवी मूर्ति को देखना अच्छा लगता है । बस इसीलिए मैं यहां पर आता हूं । "

अब वह आदमी थोड़ा सा हंसा , उनके चेहरे पर संतुष्टि की रेखा साफ है ।
" तुम बहुत ही अच्छे लड़के हो । रुको मैं तुम्हें कुछ देता हूं । "
यह बोलकर उस आदमी ने एक छोटी कागज की पोटली
गोपाल के तरफ आगे बढ़ा दिया ।

" क्या है यह ? "

आदमी ने एक हाथ गोपाल के कंधे पर रखते हुए बोला,
" इसे रखो । इसके अंदर राख भरा हुआ है । यह तुम्हारे काम आएगा । "

" राख से मैं क्या करूंगा ? "

" इसे रखो अपने पास मान लेना यह देवी माता का प्रसाद है । जब तुम्हें बहुत ही ज्यादा डर लगे तब इस पोटली को सीने के बीच में दबाकर देवी काली को याद करना । "

गोपाल ने अब उस आदमी के हाथ से छोटी पोटली को लेकर उसे इधर उधर से देखने लगा ।

" अब तुम घर जाओ क्योंकि तुम्हारी मां प्रतीक्षा कर रही है । तुम्हें अपने पिता के लिए खाना जो लेकर जाना है । अब मैं चलता हूं । "

यह बोलकर वह आदमी मंदिर के पीछे वाले जंगल की ओर जाने लगे । इधर अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है इसीलिए गोपाल की आँखे ज्यादा दूर तक उनका पीछा नहीं कर सकी । गोपाल को ऐसा लगा कि वह आदमी मंदिर के पीछे वाले जंगल के अँधेरे में कहीं गायब हो गया । पैंट के जेब में छोटी कागज की पोटली को रखकर वह घर की तरफ चल पड़ा ।
जाते वक्त अचानक उसे याद आया कि वह अपने पिता के लिए खाना लेकर जाएगा इस बारे में उस आदमी को कैसे पता चला । कहीं वह आदमी मन की बातों को तो नहीं पढ़ लेता ? गोपाल रास्ते पर ही खड़ा हो गया और जेब से कागज की पोटली को निकाला । अपने अनजाने में ही उस आदमी के लिए उसके मन में एक श्रद्धा भाव उत्पन्न हुआ है । अब उसने पोटली को माथे से लगाकर मन ही मन उस आदमी को सोचकर प्रणाम किया ।...
 

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