Fantasy जीवित मुर्दा व बेताल (Completed)

Well-known member
1,167
1,335
143
शारदा एक - एक कर उस रात के भयानक दृश्यों को देखती रही । एक धुएँ का गोला शारदा के चारों तरफ फैला है उसी में जमील मांझी के अंतिम समय के दृश्य चल रहे हैं ।

आखिर यह शारदा कौन है और उसे इतनी सारी शक्ति कैसे मिली ? अब थोड़ा शारदा के बारे में जान लेते हैं ।...

मुखिया जगन्नाथ सिन्हा , लक्ष्मीपुर गांव के दक्षिण तरफ पुराने बड़े जमींदार घर में अब वो अकेले ही रहते हैं । दादा व पिता के बाद यह तीसरी जमींदार पीढ़ी है । वंश परंपरा में उन्हें यह जमींदारी का कार्य मिला लेकिन उन्हें इस पर जरा भी रुचि नहीं था इसीलिए धीरे - धीरे जमीन जायदाद उनके हाथ से जाते रहे । अब केवल यही एक जमींदार महल उनके पास है । लेकिन यह घर भी ठीक-ठाक नहीं है , कहीं-कहीं दीवार खराब हो गया , कमरे की खिड़कियां
टूटकर झूल रही हैं तथा सभी जगह मकड़ियों का जाल फैला हुआ है । केवल उत्तर दिशा वाला कमरा अच्छी तरह है , उसी कमरे में जगन्नाथ सिन्हा रहते हैं । घर की ऐसी हालत है लेकिन मुखिया साहब का इस पर कोई ध्यान नहीं । बचपन से ही उन्हें ऐतिहासिक वस्तुएं पसंद थी , यही उनका शौक है। बहुत सारा पैसा खर्च करके उन्होंने देश के कई जगहों से ऐतिहासिक दुर्लभ वस्तुओं को मंगवाया है। वो इन्हीं सब में इतना मशगूल रहते थे कि अपने वंश का चिराग जलाना भी भूल गए । अब उनका उम्र 60 वर्ष पार कर चुका है लेकिन कभी उन्होंने अकेला महसूस नहीं किया । जब भी उन्हें लगा कि वह अकेले हैं उसी वक़्त अपने संग्रहालय में चले जाते और अपने बहुमूल्य वस्तुओं को निहारते रहते। लेकिन पिछले कुछ सालों से किसी कार्य में वह बहुत ही व्यस्त हैं । आजकल घर से बाहर नहीं निकलते तथा पहले की तरह लोगों से मिलते - जुलते भी नहीं। दिन के अधिकांश वक्त एक कमरे में न जाने क्या करते रहते हैं । शायद बहुत ही गोपनीय कुछ जिसे पूरी दुनिया से छुपाकर रखना चाहते हैं । इसीलिए आजकल उन्हें कुछ ज्यादा ही पढ़ना पड़ रहा है । अपना पूरा दिन वह विभिन्न किताब व पोथी को पढ़ने में बिता देते हैं और फिर दिन का उजाला समाप्त होते ही अपने उस विशेष कमरे में चले जाते हैं । ऐसा क्या है इस कमरे में और वहाँ मुखिया साहब करते क्या हैं ?
शारदा के मन में इस बारे में बहुत ही कौतूहल है। रामदयाल इस जमींदार घर का रख - रखाव संभालते थे , उनके दादा व पिता के बाद वह भी इस जमींदार वंश के सेवा कार्य को करते थे। शारदा इसी रामदयाल की लड़की
है । उसने अपनी लड़की की शादी करवाई थी लेकिन किसी बूढ़े के साथ , एक साल बीतते ही वह बूढ़ा स्वर्ग सिधार गया । इसीलिए रामदयाल ने शारदा को ससुराल में न रखकर अपने पास बुला लिया । इसके बाद मुखिया साहब के यहां काम पर लगवा दिया ।
रामदयाल को मरे हुए कुछ साल बीत गए , इसके बाद से इस जमींदार घर का सभी कार्य शारदा के ऊपर है।
मुखिया साहब के संग्रहालय पर शारदा की नजर हमेशा है। पिछले एक दो सालों में मुखिया साहब में बहुत सारा परिवर्तन आया है , शारदा की नजर इस पर भी है । लेकिन किस कारण से ऐसा हुआ शारदा को इस बारे में कुछ भी नहीं पता । उस कमरे में मुखिया साहब आखिर ऐसा क्या करते हैं जिसके बारे में वो किसी को भी नहीं बताते । शारदा के मन में कौतूहल दिन पर दिन बढ़ता ही रहा। पिछले कुछ दिनों से मुखिया साहब ने नहाना - खाना भी लगभग छोड़ दिया है । हमेशा न जाने क्या बड़बड़ाते रहते । कहीं यह आदमी पागल तो नहीं हो गया ?
एक दिन दोपहर के समय उन्होंने शारदा को बुलाकर कहा
" शारदा आज और तुम्हें कोई काम नहीं करना है , तुम्हें तीन दिन की छुट्टी देता हूं। तीन दिन बाद फिर आना । "
छुट्टी किसे पसंद नहीं इसीलिए शारदा को भी बुरा नहीं लगा लेकिन उसके दिमाग़ में कुछ सवाल अवश्य दौड़ रहे थे ।

इसके 3 दिन बाद की घटना है । प्रतिदिन सुबह 10 बजे मुखिया साहब को नाश्ता बनाकर देना पड़ता है इसीलिए शारदा साढ़े आठ बजे ही जमींदार घर में आ गई । घर का गेट खोलकर अंदर जाते ही सड़न की बदबू शारदा की नाक में आई । जमींदार घर के चारों तरफ वातावरण में कुछ सड़ा हुआ गंध मिला हुआ है । शारदा अपने नाक को कपड़े से दबाकर घर के अंदर जाने लगी। एक काला अदृश्य अंधेरा मानो पूरे घर के चारों तरफ घूम रहा है । अंदर मुखिया साहब का कोई अता पता नहीं । वह पहले रसोई घर में गई तथा वहां पर धूल जमा हुआ देखकर समझ गई कि 3 दिनों से यहां पर कोई भी नहीं आया ।
इसका मतलब क्या मुखिया साहब कुछ दिन घर में नहीं थे ?
अब शारदा मुखिया साहब को बुलाते हुए उनके कमरे में गई लेकिन वहां भी वह नहीं मिले । कई बार बुलाने के बाद भी जब मुखिया साहब नहीं दिखे तो उसने सोचा शायद वह घर के पास वाले बाग में गए होंगे ।
इधर सड़न की बदबू अब और भी तीव्र हो गया था , अब शारदा को उस कमरे के बारे में याद आया । वह रहस्य में कमरा जहां पर मुखिया साहब दिन का अधिकांश वक्त बिताते थे ।
मुखिया जगन्नाथ सिन्हा केकमरे के पास एक गली है। उसी गली नुमा जगह से सीधा जाने पर बाएं तरफ एक छोटा सा सीढ़ी है । शारदा उसी तरफ गई , उसे थोड़ा डर भी लग रहा है। सीढ़ी पर बहुत ही अंधेरा हैं और यहां से सड़न की बदबू भी और बढ़ गया । शारदा ने नाक को कपड़े से ढककर धीरे - धीरे सीढ़ी से नीचे उतरने लगी।
वहाँ नीचे एक कमरा है लेकिन उसका दरवाजा बंद है ।
शारदा जान गई कि सड़न की बदबू इसी कमरे से आ रही है । उसने जल्दी से दरवाजा खोल दिया । दरवाजे को खोलते ही जो दृश्य उसके सामने आया वह देख शारदा पूरी तरह सुन्न हो गई । दौड़ते हुए वह कमरे से बाहर जाने वाली थी लेकिन उसी वक़्त उसके अंदर का साहस जाग गई । वह धीरे - धीरे कमरे के और अंदर गई । वहां पूरे कमरे में कई प्रकार के सामान बिखरे हुए थे । जैसे कि बाल, बंदर का हाथ ,नाखून का टुकड़ा , कंकाल की खोपड़ी इसके अलावा कई जगह राख फैला हुआ है । और कमरे के बीचो - बीच मुखिया साहब का मृत शरीर पड़ा हुआ है। उनका मृत शरीर सड़ने की वजह से दुर्गन्ध आ रहा था । मुखिया साहब के शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं है लेकिन उनके फैले हुए अचंभित आंखों को देखकर समझा जा सकता है कि उन्होंने कुछ इतना भयानक देखा कि उनके दिल का धड़कन ही जवाब दे गया । मुखिया साहब के मृत शरीर के पास ही रखे एक विशेष मूर्ति की तरफ शारदा की नजर गई । यह तो वही मूर्ति है , मुखिया साहब के संग्रहालय में रखे सभी वस्तुओं में शारदा को यही मूर्ति सबसे ज्यादा पसंद है । यह मूर्ति देखने में बहुत ही सुंदर है ऐसी कोई बात नहीं लेकिन उसमें बहुत ही तेज आकर्षण है। यह मूर्ति पूरी तरह काला है । मूर्ति के दो हाथ तथा दोनों हाथों से किसी सरीसृप की तरह दो आदमी को पकड़ रखा है । मूर्ति में पुरुष व स्त्री उभय रूप से वर्णित है लेकिन मूर्ति का चेहरा बकरे के जैसा है । सिर के दो सींग ऊपर उठकर पीछे की तरफ मुड़ा हुआ है । पूरी मूर्ति एक मीटर के जितना लम्बा है ।
उस मूर्ति को अपने पास रखने की चाहत शारदा को हमेशा से ही थी और आज उसके पास बढ़िया मौका है ।
मूर्ति को उठाते वक्त शारदा ने देखा कि उसके पास ही एक लाल रंग का छोटा कॉपी रखा हुआ है । ना जाने क्या सोच शारदा ने मूर्ति के साथ उस कॉपी को भी उठा लिया
फिर मूर्ति व कॉपी को साड़ी से छुपाकर जल्दी ही जमींदार घर से निकल अपने घर की तरफ चली गई ।
 
Well-known member
1,167
1,335
143
मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के अद्भुत मृत्यु की खबर शारदा ने ही जाकर पुलिस थाने में बताया था। रोते हुए उसने पूरी घटना पुलिस को बताई थी। उसके बात और चेहरा को देखकर पुलिस को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ। इसके अलावा अगर शारदा पुलिस थाने में ना आकर कहीं भाग जाती तब पुलिस उसके बारे में कुछ सोच सकते थे कि जमींदार घर के मूल्यवान वस्तुओं को चुराने के लिए शारदा ने मुखिया साहब का खून कर भाग गई । पुलिस ने मुखिया साहब के संग्रहालय में छानबीन की लेकिन वहां से यह पता चला कि शारदा ने वहां से कुछ भी हाथ साफ नहीं किया है। उसने केवल अपने मालिक के मृत्यु की खबर पुलिस थाने तक पहुंचा दिया था। हालांकि सत्य भी यही है कि केवल उस अद्भुत मूर्ति के अलावा शारदा ने कुछ भी नहीं लिया लेकिन इस बारे में पुलिस को कैसे पता चले। इसके अलावा क्योंकि मुखिया जगन्नाथ सिन्हा का कोई भी रिश्तेदार नहीं है इसीलिए पुलिस ने इस मृत्यु पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । पुलिस ने गांव में कुछ दिन छानबीन किया फिर जब उन्हें कुछ भी सुराग नहीं मिला तो छानबीन बंद कर दिया तथा संग्रहालय का सभी सामान सरकार ने जब्त कर लिया ।

इधर शारदा के जीवन ने परिवर्तन शुरू हो गया है । अब वह घर से बाहर ज्यादा नहीं निकलती , काम में उसकी कोई रुचि नहीं । गांव के एक कोने में उसका घर है , पूरे दिन घर में रहकर वह उस मूर्ति व लाल कॉपी के साथ न जाने क्या करती रहती ? हालांकि यह लाल कॉपी कोई साधारण कॉपी नहीं है। हिंदू शास्त्र के विभिन्न तंत्र - मंत्र व काले जादू के बारे में पूर्ण बातें उसमें लिखी हुई है ।
बचपन में उसमें थोड़ी बहुत पढ़ाई - लिखाई की थी , इसके अलावा मुखिया जगन्नाथ सिन्हा को प्रतिदिन समाचार पत्र वही पढ़कर सुनाती इसीलिए उसमें लिखें तंत्र - मंत्र को पढ़ने में शारदा को ज्यादा समस्या नहीं हुई ।
एक दिन शाम के वक्त शारदा उस मूर्ति को इधर उधर से देख रही थी । मनुष्य के शरीर पर ऐसे बकरे का सिर लगा हुआ क्या यह किसी देवता की मूर्ति है या शिल्पकार ने अपने मन मुताबिक कुछ भी बना दिया ? मूर्ति देखने में अच्छा नहीं है लेकिन न जाने क्यों वह मूर्ति शारदा को अपनी तरफ आकर्षित करती है ?
शारदा यही सब सोच रही थी कि अचानक मूर्ति उसके हाथ से फिसलकर नीचे गिर गई । तुरंत ही मूर्ति का सिर एक तरफ और शरीर दूसरी तरफ चला गया। मूर्ति के शरीर वाले हिस्से के अंदर पीला कागज का टुकड़ा था ।
शारदा जल्दी से नीचे बैठ गई , अब उसने मूर्ति को उठाकर देखा तो वह अंदर से खोखले थी । शारदा ने उस पीले कागज के टुकड़े को बाहर निकाला फिर मूर्ति के अलग हुए सिर को उसके धड़ पर लगाकर थोड़ा सा दबाते ही 'ठक्क ' की आवाज के साथ मूर्ति पहले जैसी बन गई।
शारदा समझ गई कि यह मूर्ति किसी छोटी डब्बे की तरह बनाई गई है जिसमें मूर्ति का सिर ढक्कन है । कुछ भी हो मूर्ति नहीं टूटा यह देख शारदा का मन थोड़ा शांत हुआ ।
अब वह उस कागज को देखना लगी । पूरे कागज पर हल्दी लगा हुआ है तथा लाल रंग से लिखा हुआ था " सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में "।
शारदा को इस बात का अर्थ समझ नहीं पाई लेकिन यह किसने लिखा है वह जानती है । ऐसी लिखावट मुखिया जगन्नाथ सिन्हा की है ।
उस पूरी रात शारदा लिखे हुए बात का अर्थ क्या है इस बारे में सोचती रही । जमींदार घर के बारे में मुझसे जो कुछ भी पता है उस बारे में सोचती रही ।
सोचते हुए ना जाने कब वह सो गई । ब्रह्ममुहूर्त में उसने एक सपना देखा । वह लालटेन हाथ में लेकर एक खिड़की पर खड़ी है तथा उस वक़्त आधी रात , चारों तरफ सन्नाटा केवल झींगुर की आवाज के आलावा और कोई आवाज़ नहीं। वह जिस खिड़की पर खड़ी है वहां से बाहर का छोटा बाग जैसा जंगल चांद की रोशनी के कारण साफ दिख रहा है। उसी रोशनी में शारदा ने देखा कि एक महिला पूरे बाग में इधर-उधर घूम रही है । उस महिला की नजर नीचे जमीन पर है तथा सभी पेड़ के नीचे कुछ खोज रही है । अब वह महिला एक मोटे से पेड़ के सामने आकर खड़ी हो गई तथा कुछ देर उस पेड़ के सामने खड़ी रहने के बाद उस महिला ने अचानक से खिड़की की तरफ देखा , जहाँ पर शारदा खड़ी थी । बाग में खड़ी वह महिला हुबहू शारदा के जैसी थी । चांद की इस हल्की रोशनी में उस महिला का चेहरा और भी फीका लग रहा था ।सुबह नींद से जागने के बाद शारदा कुछ देर बैठी रही । आज उसमें जो सपने देखा उसे पूरी तरह याद नहीं आ रही । उस सपने में कुछ इशारा था । आखिर क्या ?
अपने मन को स्थिर करके कुछ देर सोच - विचार करने के बाद अचानक शारदा के दिमाग में बिजली चमका । जमींदार घर का नाम याद आया , घर के अंदर जाते वक्त गेट के बाएं तरफ एक पत्थर के पट पर उसने यह नाम बहुत बार देखा है । वहाँ पर ' सिंह भवन ' लिखा है ।
धीरे-धीरे शारदा के दिमाग में सब कुछ स्पष्ट होने लगा । उसे याद आया कि मुखिया साहब बोलते थे कि उत्तर दिशा की हवा मेरे शरीर व मन दोनों चंगा कर देता है ।
जिस खिड़की के पास मुखिया जगन्नाथ सिन्हा बैठकर आराम करते थे शारदा सपने में उसी खिड़की पर खड़ी थी । आज सब कुछ उसके सामने साफ है इसीलिए वह जमींदार घर की ओर चल पड़ी । शारदा जानती है कि उसे कुछ तो मिलने वाला है ।
जमींदार घर के उत्तर की तरफ वाले बाग में एक बड़ा मोटा सा आम का पेड़ है इस बारे में वह जानती थी लेकिन अब उसे याद आया कि उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है। ' सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में ' अर्थात सिंह भवन के उत्तर उस आम के पेड़ की जड़ में खोखली जगह के अंदर मुखिया साहब ने अवश्य ही कुछ छुपाकर रखा है ।
कुछ देर बाद शारदा जमींदार घर के सामने पहुंच गई । पूरा घर सुनसान है कहीं किसी की आवाज़ नहीं। पहले शारदा को थोड़ा डर लगा लेकिन डरने से कुछ नहीं होगा , इस रहस्य का समापन उसे करना ही होगा । कुछ देर जमींदार घर के सामने पर खड़ी रही फ़िर बाग की तरफ गई । चारों तरफ झाड़ी और बड़े-बड़े घास से यह बाग भरा हुआ है लेकिन शारदा सीधे उस आम के पेड़ के सामने आकर खड़े हुई। उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है । शारदा में डरते हुई उस खोखली जगह में अपनी हाथ को डाला लेकिन उसके हाथ में कुछ भी नहीं आया शायद अंदर खोखले की गहराई ज्यादा थी । डरते हुए उसने और ज्यादा अपने हाथ को अंदर डाला तथा तुरंत ही अपने हाथ को झटके में बाहर निकाल लिया । उसकी हाथों ने ठंडा कुछ स्पर्श किया था । पहले उसे लगा कि कोई सांप या कौन जंतु तो अंदर नहीं बैठा इसीलिए एक डंडे को खोखले में डालकर पहले कुछ देर देखा। नहीं अंदर कोई भी जन्तु या सांप जैसा कुछ नहीं था । शारदा ने हाथ डालकर उस ठंडी वस्तु को निकाला वह एक छोटा सा लोहे का डिब्बा था । उसने एक बार चारों तरफ देखा और फिर उस लोहे के डिब्बे को आंचल से छुपाकर अपने घर की ओर चल पड़ी । चलते हुए उसने अनुभव किया कि यह लोहे का डिब्बा कुछ ज्यादा ही ठंडा है । .....

...
 
Well-known member
1,167
1,335
143
मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के अद्भुत मृत्यु की खबर शारदा ने ही जाकर पुलिस थाने में बताया था। रोते हुए उसने पूरी घटना पुलिस को बताई थी। उसके बात और चेहरा को देखकर पुलिस को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ। इसके अलावा अगर शारदा पुलिस थाने में ना आकर कहीं भाग जाती तब पुलिस उसके बारे में कुछ सोच सकते थे कि जमींदार घर के मूल्यवान वस्तुओं को चुराने के लिए शारदा ने मुखिया साहब का खून कर भाग गई । पुलिस ने मुखिया साहब के संग्रहालय में छानबीन की लेकिन वहां से यह पता चला कि शारदा ने वहां से कुछ भी हाथ साफ नहीं किया है। उसने केवल अपने मालिक के मृत्यु की खबर पुलिस थाने तक पहुंचा दिया था। हालांकि सत्य भी यही है कि केवल उस अद्भुत मूर्ति के अलावा शारदा ने कुछ भी नहीं लिया लेकिन इस बारे में पुलिस को कैसे पता चले। इसके अलावा क्योंकि मुखिया जगन्नाथ सिन्हा का कोई भी रिश्तेदार नहीं है इसीलिए पुलिस ने इस मृत्यु पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । पुलिस ने गांव में कुछ दिन छानबीन किया फिर जब उन्हें कुछ भी सुराग नहीं मिला तो छानबीन बंद कर दिया तथा संग्रहालय का सभी सामान सरकार ने जब्त कर लिया ।

इधर शारदा के जीवन ने परिवर्तन शुरू हो गया है । अब वह घर से बाहर ज्यादा नहीं निकलती , काम में उसकी कोई रुचि नहीं । गांव के एक कोने में उसका घर है , पूरे दिन घर में रहकर वह उस मूर्ति व लाल कॉपी के साथ न जाने क्या करती रहती ? हालांकि यह लाल कॉपी कोई साधारण कॉपी नहीं है। हिंदू शास्त्र के विभिन्न तंत्र - मंत्र व काले जादू के बारे में पूर्ण बातें उसमें लिखी हुई है ।
बचपन में उसमें थोड़ी बहुत पढ़ाई - लिखाई की थी , इसके अलावा मुखिया जगन्नाथ सिन्हा को प्रतिदिन समाचार पत्र वही पढ़कर सुनाती इसीलिए उसमें लिखें तंत्र - मंत्र को पढ़ने में शारदा को ज्यादा समस्या नहीं हुई ।
एक दिन शाम के वक्त शारदा उस मूर्ति को इधर उधर से देख रही थी । मनुष्य के शरीर पर ऐसे बकरे का सिर लगा हुआ क्या यह किसी देवता की मूर्ति है या शिल्पकार ने अपने मन मुताबिक कुछ भी बना दिया ? मूर्ति देखने में अच्छा नहीं है लेकिन न जाने क्यों वह मूर्ति शारदा को अपनी तरफ आकर्षित करती है ?
शारदा यही सब सोच रही थी कि अचानक मूर्ति उसके हाथ से फिसलकर नीचे गिर गई । तुरंत ही मूर्ति का सिर एक तरफ और शरीर दूसरी तरफ चला गया। मूर्ति के शरीर वाले हिस्से के अंदर पीला कागज का टुकड़ा था ।
शारदा जल्दी से नीचे बैठ गई , अब उसने मूर्ति को उठाकर देखा तो वह अंदर से खोखले थी । शारदा ने उस पीले कागज के टुकड़े को बाहर निकाला फिर मूर्ति के अलग हुए सिर को उसके धड़ पर लगाकर थोड़ा सा दबाते ही 'ठक्क ' की आवाज के साथ मूर्ति पहले जैसी बन गई।
शारदा समझ गई कि यह मूर्ति किसी छोटी डब्बे की तरह बनाई गई है जिसमें मूर्ति का सिर ढक्कन है । कुछ भी हो मूर्ति नहीं टूटा यह देख शारदा का मन थोड़ा शांत हुआ ।
अब वह उस कागज को देखना लगी । पूरे कागज पर हल्दी लगा हुआ है तथा लाल रंग से लिखा हुआ था " सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में "।
शारदा को इस बात का अर्थ समझ नहीं पाई लेकिन यह किसने लिखा है वह जानती है । ऐसी लिखावट मुखिया जगन्नाथ सिन्हा की है ।
उस पूरी रात शारदा लिखे हुए बात का अर्थ क्या है इस बारे में सोचती रही । जमींदार घर के बारे में मुझसे जो कुछ भी पता है उस बारे में सोचती रही ।
सोचते हुए ना जाने कब वह सो गई । ब्रह्ममुहूर्त में उसने एक सपना देखा । वह लालटेन हाथ में लेकर एक खिड़की पर खड़ी है तथा उस वक़्त आधी रात , चारों तरफ सन्नाटा केवल झींगुर की आवाज के आलावा और कोई आवाज़ नहीं। वह जिस खिड़की पर खड़ी है वहां से बाहर का छोटा बाग जैसा जंगल चांद की रोशनी के कारण साफ दिख रहा है। उसी रोशनी में शारदा ने देखा कि एक महिला पूरे बाग में इधर-उधर घूम रही है । उस महिला की नजर नीचे जमीन पर है तथा सभी पेड़ के नीचे कुछ खोज रही है । अब वह महिला एक मोटे से पेड़ के सामने आकर खड़ी हो गई तथा कुछ देर उस पेड़ के सामने खड़ी रहने के बाद उस महिला ने अचानक से खिड़की की तरफ देखा , जहाँ पर शारदा खड़ी थी । बाग में खड़ी वह महिला हुबहू शारदा के जैसी थी । चांद की इस हल्की रोशनी में उस महिला का चेहरा और भी फीका लग रहा था ।सुबह नींद से जागने के बाद शारदा कुछ देर बैठी रही । आज उसमें जो सपने देखा उसे पूरी तरह याद नहीं आ रही । उस सपने में कुछ इशारा था । आखिर क्या ?
अपने मन को स्थिर करके कुछ देर सोच - विचार करने के बाद अचानक शारदा के दिमाग में बिजली चमका । जमींदार घर का नाम याद आया , घर के अंदर जाते वक्त गेट के बाएं तरफ एक पत्थर के पट पर उसने यह नाम बहुत बार देखा है । वहाँ पर ' सिंह भवन ' लिखा है ।
धीरे-धीरे शारदा के दिमाग में सब कुछ स्पष्ट होने लगा । उसे याद आया कि मुखिया साहब बोलते थे कि उत्तर दिशा की हवा मेरे शरीर व मन दोनों चंगा कर देता है ।
जिस खिड़की के पास मुखिया जगन्नाथ सिन्हा बैठकर आराम करते थे शारदा सपने में उसी खिड़की पर खड़ी थी । आज सब कुछ उसके सामने साफ है इसीलिए वह जमींदार घर की ओर चल पड़ी । शारदा जानती है कि उसे कुछ तो मिलने वाला है ।
जमींदार घर के उत्तर की तरफ वाले बाग में एक बड़ा मोटा सा आम का पेड़ है इस बारे में वह जानती थी लेकिन अब उसे याद आया कि उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है। ' सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में ' अर्थात सिंह भवन के उत्तर उस आम के पेड़ की जड़ में खोखली जगह के अंदर मुखिया साहब ने अवश्य ही कुछ छुपाकर रखा है ।
कुछ देर बाद शारदा जमींदार घर के सामने पहुंच गई । पूरा घर सुनसान है कहीं किसी की आवाज़ नहीं। पहले शारदा को थोड़ा डर लगा लेकिन डरने से कुछ नहीं होगा , इस रहस्य का समापन उसे करना ही होगा । कुछ देर जमींदार घर के सामने पर खड़ी रही फ़िर बाग की तरफ गई । चारों तरफ झाड़ी और बड़े-बड़े घास से यह बाग भरा हुआ है लेकिन शारदा सीधे उस आम के पेड़ के सामने आकर खड़े हुई। उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है । शारदा में डरते हुई उस खोखली जगह में अपनी हाथ को डाला लेकिन उसके हाथ में कुछ भी नहीं आया शायद अंदर खोखले की गहराई ज्यादा थी । डरते हुए उसने और ज्यादा अपने हाथ को अंदर डाला तथा तुरंत ही अपने हाथ को झटके में बाहर निकाल लिया । उसकी हाथों ने ठंडा कुछ स्पर्श किया था । पहले उसे लगा कि कोई सांप या कौन जंतु तो अंदर नहीं बैठा इसीलिए एक डंडे को खोखले में डालकर पहले कुछ देर देखा। नहीं अंदर कोई भी जन्तु या सांप जैसा कुछ नहीं था । शारदा ने हाथ डालकर उस ठंडी वस्तु को निकाला वह एक छोटा सा लोहे का डिब्बा था । उसने एक बार चारों तरफ देखा और फिर उस लोहे के डिब्बे को आंचल से छुपाकर अपने घर की ओर चल पड़ी । चलते हुए उसने अनुभव किया कि यह लोहे का डिब्बा कुछ ज्यादा ही ठंडा है । .....

...
 
Well-known member
1,167
1,335
143
घर पहुंचकर उस छोटे लोहे के डिब्बे को खोलते ही शारदा ने देखा उसमें एक कागज रखा हुआ है जिसे मोड़कर लाल धागे द्वारा बांधा गया था । देख कर ही जाना जा सकता है कि इसमें कुछ विशेष है । पुराने समय में पोथी या लिपि लिखने के लिए जिस तरह की कागज का प्रयोग किया जाता था यह ठीक उसी प्रकार का कागज है । उस कागज को देखकर ही समझा जा सकता था कि वह बहुत ही प्राचीन है । शारदा ने सावधानी से लाल धागे को खोल कर कागज को अपने सामने फैलाकर देखा लेकिन वह उसमें लिखा कुछ भी शब्द समझ नहीं पाई । लिखावट और उसमें बने कुछ चिन्हो देखकर शारदा को पता चल गया कि इसमें बहुत ही मूल्यवान कुछ लिखा हुआ है ।
शारदा सही थी । उन पीले कागजों में कुछ विशेष पद्धति का उल्लेख था जोकि भारतीय तंत्र शास्त्र एवं विदेशी काले जादू से प्रेरित था ।
असल में यह मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के संग्रहालय का ही कोई वस्तु है। लेकिन बाद में उन्होंने जब तंत्र मंत्र के बारे में कुछ जाना तब इस कागज में क्या लिखा है इस बारे में उन्हें पता चल चुका था । जिसके कारण उन्होंने इसे छुपा कर रखने का निर्णय लिया लेकिन उन्होंने एक तरफ से यह भी व्यवस्था कर दिया था कि कोई अगर तंत्र - मंत्र के इस अंधेरे पथ पर बढ़ना चाहता है तो वह अवश्य ही इस विशेष कागज को खोज लेगा । जिसके फलस्वरूप अब यह शारदा के हाथ में है ।
इसके कुछ दिनों बाद शारदा कंधे पर एक पोटली और उसमें यही सब रखकर रातो रात गांव से बाहर निकल पड़ी। तंत्र साधना के प्रति आकर्षण और अलौकिक शक्ति को पाने की कोशिश में शारदा देश के विभिन्न जगहों पर घूमती रही । कई बड़े-बड़े साधक व साधिकाओं से मिली तथा कई विद्याओं को सीख लिया। जहां भी वह गई उसे आदर और सम्मान मिला केवल उस पीले कागज की वजह से , हालांकि कुछ लोगों ने उससे यह लूटने की बहुत कोशिश की लेकिन चतुर बुद्धि और साहस की वजह से शारदा सभी परेशानियों से बाहर निकल गई ।
अंत में पश्चिम भारत के एक सिद्ध साधक के सानिध्य में आकर शारदा उस कागज में लिखें बातों का असल अर्थ जान सकी। कागज में कई सारे विभिन्न तंत्र साधनाओं के बारे में बताया गया है । इतने सालों में शारदा ने उन सभी साधनाओं में सिद्धि प्राप्त किया है अब केवल एक विशेष साधना बाकी है जिसे करने पर वह बहुत ही शक्तिशाली हो जाएगी । लेकिन इस शक्ति को पाने का पथ इतना आसान नहीं है । लेकिन शारदा पीछे नहीं हटने वाली , कई सालों तक देश के इधर - उधर घूमने के बाद वह फिर अपने राज्य के गावों में लौट आई क्योंकि इस पद्धति में लगने वाला सामान उसे यहां आसानी से प्राप्त हो जाएगा ।
इसीलिए सुनसान श्मशान में बैठ धुएँ के गोले के अंदर जमील मांझी को खाते उस भयानक शैतान को देखकर शारदा की आंखें चमक उठी । उसके दिमाग में एक उपाय सुझा और होंठ पर एक कुटिल हंसी देखने को मिला।.......



इधर महोबा गांव में संजय के रहस्यमय मृत्यु के बाद गांव वालों में डर का माहौल है । हालांकि संजय के खराब व्यवहार की बात सभी जानते थे तथा इसके ऊपर जमींदार के लड़के दिनेश का साथ रहने के बाद से वह और भी बिगड़ गया था । इसीलिए उसके मौत से गांव वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन उसके सूखे हुए रक्तहीन शरीर के दृश्य को सोचकर गांववाले कांप उठते ।
संजय की मृत्यु कैसे हुई थी इस बारे में गांववाले कुछ सोच भी नहीं पा रहे थे ।
इस घटना को 3 दिन हो गया है । दिनेश और उसके दोस्त अपने साथी को खोने का मातम खत्म कर फिर से नशे में डूब गए हैं ।
उधर जमींदार साहब की चिंता और भी बढ़ गई है । आजकल हमेशा गंभीर रहते हैं । दिनेश को घर से बाहर जाते देख कभी-कभी उसे रोककर कहते हैं ,
" बेटा दिनेश फिर कहां चले ? आज क्या घर में ही नहीं रह सकते । "
लेकिन दिनेश अपने पिता की एक भी ना सुनता और किसी भी तरह उन्हें चिंता करने में मजबूर कर देता ।
शायद दिनेश और उसके दोस्तों ने संजय की मौत को साधारण मौत समझ लिया था । लेकिन जमींदार रामनाथ
जानते हैं कि उन्हें ही लक्ष्य बनाकर विपत्ति के दिन आने वाले हैं ।....रात के कितने बज रहे हैं यह बताना मुश्किल है । गहरे नींद में मुकेश ने सुना कि कोई उसे बुला रहा है । कुछ देर आवाज आने के बाद वह अचानक उठ बैठा और ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा ।

" मुकेश , अबे ओ मुकेश ,बाहर आ भाई जरूरी काम है । "

वह बिस्तर छोड़ कर उठ खड़ा हुआ । इस आवाज को वह पहचानता है , दिनेश बुला रहा है । कभी-कभी वह रात के वक्त चला आता है । इससे पहले भी कई बार वह मुकेश के घर रात को शराब की खोज में आ चुका है । रात को उसे नशा चढ़ जाता है और बिना शराब के वह रह नहीं पाता। आज भी शायद इसीलिए चला आया है ।
यही सोचकर मुकेश आँख रगड़ते हुए दरवाजा खोल बाहर आया । उसने देखा कि सचमुच बाहर कुछ दूरी पर दिनेश खड़ा है ।
" क्या यार तुझे फिर से रात को नशे ने पेल दिया । "
दिनेश कुछ नहीं बोला । आसमान में शुक्ल पक्ष का चांद है । उसी रोशनी में जितना दूर दिख रहा है उससे देखकर लगा कि आज दिनेश को नशा का वासना नहीं है । वह केवल एकटक मुकेश के तरफ देखते हुए खड़ा है ।

" क्या हुआ दिनेश ऐसे क्यों खड़ा है ,कुछ हुआ क्या ? "

दिनेश कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे आवाज में रतन के बारे में कुछ बोलना चाहता था।
" क्या हुआ है रतन को ? "
" मेरे साथ चल , तुझे कुछ दिखाता हूं । "
यह बोलकर सामने रास्ते की ओर चलने लगा ।
मुकेश बोला,
" पहले यह तो बता कि कहां जाना है और रतन को क्या हुआ है ? "
तब तक दिनेश सामने के रास्ते से जल्दी-जल्दी आगे बढ़ चला है । मुकेश भी अब उसके पीछे चल पड़ा । "
" इतनी रात को मुझे कहां ले कर जा रहा है ? "
दिनेश किसी बात का उत्तर नहीं दे रहा। वह केवल जल्दी से आगे चलता ही जा रहा है । मुकेश को अब उसके पीछे एक प्रकार से दौड़ना पड़ा ।
सामने रास्ता दाहिने तरफ मुड़ गया है । दिनेश भी उस रास्ते से दाहिने तरफ मुड़ गया । लेकिन दाहिने तरफ मुड़ते ही मुकेश को रुकना पड़ा । अब तक वह अंधे की तरह दिनेश के पीछे चल रहा था , किधर व कहां जा रहा है इस बारे में उसे होश ही नहीं था । अब उसे होश आया कि
वह गांव के मंदिर के सामने वाले रास्ते पर खड़ा है ।
मंदिर में दीपक जल रहा है तथा मंदिर के पास ही बड़ा पुराना बरगद का पेड़ है । लेकिन रास्ते से मुड़ने के बाद आखिर दिनेश कहां चला गया ?
सामने व चारों तरफ कोई भी नहीं है । दिनेश को बुलाते हुए मुकेश धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा । कहीं पर कोई भी नहीं है । अब उसे थोड़ा बहुत डर लग रहा है ।
कांपते हुए आवाज में वह फिर बोला ,
" दिनेश भाई इतनी रात को ऐसा मजाक अच्छा नहीं लगता । कहां पर है तू ?
इस प्रश्न के उत्तर में पास के पेड़ से कोई पक्षी चिल्लाते हुए उड़ गया । कहीं पर भी क्या कोई नहीं है , तो फिर वह किसके पीछे - पीछे घर से यहां तक आया ? उसने तो साफ-साफ देखा था कि दिनेश उसे बुलाने के लिए घर आया था तथा उसने दिनेश के मुरझाए चेहरे व आवाज को देखा व सुना था । इतनी बड़ी गलती तो उससे नहीं हो सकता । यही सब कुछ सोचते हुए वह मंदिर की तरफ और आगे बढ़ गया है । इसी वक्त पास के बरगद के डाल पर उसकी नजर पड़ी । वहां पर उसने जो दृश्य देखा वह देख उसे अपने आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ ।....
 
Well-known member
1,167
1,335
143
मुकेश धीरे - धीरे मंदिर के पास पहुंचा । वहां पास ही बरगद के पेड़ पर उसने कुछ ऐसा देखा कि उसको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ।
चांद की रोशनी पत्तों के भीतर से हल्की - हल्की नीचे की तरफ आई है उसी हल्की रोशनी में पेड़ के नीचे का अंधेरा थोड़ा कम हो गया है । बरगद के पेड़ से उस वक्त मुकेश की दूरी लगभग 10 गज होगा इसीलिए पूरी तरह साफ न दिखने पर उनसे कुछ तो देखा । उसने ठीक से देखा , एक ऊँचे डाली पर कुछ झूल रहा था । कुछ देर उस तरफ देखने के बाद वह चौंक उठा ।
बरगद के डाली से गले में रस्सी डालकर कोई झूल रहा था लेकिन मुकेश उसके चेहरे को ठीक से देख नहीं पर रहा।
मुकेश अब धीरे-धीरे बरगद के पेड़ के और नजदीक गया । चारों तरफ अंधेरा मानो अब और बढ़ने लगा । एक ठंडी हवा का झोंका मुकेश को छूकर दूर चला गया ।
अब मुकेश उस झूलते शरीर के सामने खड़ा हुआ । लम्बा एक शरीर शिथिल होकर झूल रहा है तथा उसका सिर कंधे पर लटका है । देखकर ही समझा जा सकता है कि शरीर से जान कब का निकल गया लेकिन चेहरा अब भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा ।
मुकेश दो कदम और आगे गया । पेड़ के नीचे अंधेरा कुछ ज्यादा ही है । तभी अचानक पेड़ के एक खुले भाग से थोड़ी रोशनी सीधे झूलते लाश पर पड़ी और तुरंत ही मुकेश हड़बड़ाते हुए पीछे हट गया ।
झूलता शरीर रतन का है । मुकेश और खड़ा नहीं रह सका , आश्चर्य होकर जमीन पर बैठ गया। मोटा रस्सी रतन के गले में मानो धंस गया हो , जिसकी वजह से जीभ व आँख बाहर निकल गया था । रतन का चेहरा बहुत ही वीभत्स लग रहा था । ज्यादा देर तक यह दृश्य ना देख पाने के कारण मुकेश ने अपनी आंखें बंद कर ली ।
आज रात को ही तो रतन और बाकियों के उसने मौज मस्ती किया था । इसी बीच ऐसा क्या हो गया कि रतन को आत्महत्या करनी पड़ी ? इसके अलावा इतने ऊंचे डाली पर रतन ने रस्सी कैसे झूलाई होगी ?
कुछ देर आँख बंद कर मुकेश शायद यही सब सोच रहा था ।
अब आंख खोलकर रतन के झूलते शरीर को मुकेश ने फिर से देखा और इस बार डर व आश्चर्य से उसका पूरा शरीर कांप गया । झूलते रतन का सिर अबतक बाएं कंधे पर था लेकिन अब वह दाएं कंधे पर लटक रहा है ।
यह कैसे संभव है ? क्या मुकेश ने अंधेरे में गलत देखा था ?
दोनों हाथों से आँख रगड़कर मुकेश ने ठीक से देखने की कोशिश की । तभी एक और भयावह दृश्य दिखाई दिया।
रतन का लटका हुआ सिर धीरे - धीरे सीधा हुआ तथा आश्चर्यजनक रूप से बाहर निकला हुआ जीभ क्रमशः लम्बा होने लगा । रतन के झूलते शरीर से मांस गलकर गिरने लगा तथा कुछ ही देर में रतन का शरीर एक कंकाल में परिवर्तित हो गया ।
अचानक देखने से ऐसा लगेगा कि गले में रस्सी डाल मानो किसी कंकाल को झूलाकर रखा गया है ।
मुकेश इस विभत्स दृश्य को देख डर से मानो जम गया था । हिलने - डुलने की शक्ति भी मानो उसमें नहीं है ।
अब मुकेश ने देखा कि झूलते कंकाल रूपी शरीर का चेहरा अब बदल गया है । यह तो भोला पागल का चेहरा है ।
उसका लम्बा जीभ किसी सांप की तरह लपलपा रहा है । चेहरे के एक ओर से मांस गलकर नीचे गिर रहा है । उसके आँखों में बदले की आग साफ दिखाई दे रहा ।

अपने आँखो के सामने रतन के शरीर को भोला पागल में बदलते देख मुकेश की धड़कन लगभग बंद ही होने वाला था लेकिन शरीर में जितना भी शक्ति है उसी को इकट्ठा कर मुकेश वहाँ से भागना चाहा ।
तभी उसने महसूस किया कि उसका शरीर क्रमशः हवा में जमीन से ऊपर जा रहा है । उसी अवस्था में मुकेश ने देखा भोला पागल का कंकाल रूपी शरीर हँसते हुए हवा में इधर - उधर झूल रहा है ।
मुकेश छटपटाने लगा । वह चिल्लाने वाला था लेकिन उसकी आवाज़ गले तक ही रह गई क्योंकि किसी ने उसे अंदर ही रोक दिया है ।
मुकेश का शरीर हवा भोला पागल के कंकाल रूपी शरीर के पास तक पहुंच गया । अब उसने अनुभव किया कि जिस शक्ति ने उसे हवा में उठा कर रखा था उसने अचानक से छोड़ दिया है लेकिन फिर मुकेश का शरीर नीचे न गिर वहीं लटक गया । तुरंत ही उसने गले में एक दवाब महसूस किया , उसका जीभ बाहर निकलने लगा।
हवा के लिए कुछ देर शरीर कंपने के बाद धीरे - धीरे शिथिल होने लगा । उसी अवस्था में मुकेश ने देखा उसके सामने झूलते कंकाल के चेहरे पर एक हंसी खेल रहा है ।
इस हंसी की आवाज़ को मुकेश अच्छी तरह जनता है ।...
 
Well-known member
1,167
1,335
143
अगले दिन सुबह गांव के लोगों ने आकर देखा कि बरगद के पेड़ पर दो लाश आमने सामने झूल रही है । एक मुकेश का और दूसरा रतन ।
संजय के मृत्यु का आतंक खत्म होने से पहले ही दो और मृत्यु से गांव वालों में आतंक और बढ़ गया ।
मुकेश और रतन के घरवाले , उसके दोस्त और दिनेश सभी जानते हैं कि आत्महत्या करने की कोई कारण ही नहीं था लेकिन उन्होंने फिर भी ऐसे फांसी क्यों लगाया इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है । देखने में यह आत्महत्या जरूर लग रहा था लेकिन सभी के मन में यह बात घूम रहा है कि ऐसे आत्महत्या करना संभव नहीं है ।
पेड़ की ऊंची डाली पर रस्सी लगाकर झूलना कोई आसान कार्य नहीं है ।
गांव वालों के मन का आतंक धीरे-धीरे डर में परिवर्तित होने लगा । रात के अंधेरे में घर से कोई भी बाहर नहीं निकलता । सभी काम - काज गांव वाले दिन में ही निपटा कर शाम तक दरवाजे पर कुंडी लगा देते ।
उधर जमींदार साहब चिंता करते करते पागल हो गए हैं । गांव वाले समझ नहीं पा रहे हैं लेकिन जमींदार साहब जानते हैं कि ये सभी मेरी मौत कोई साधारण मौत नहीं है , इसके पीछे बदले की आग धधक रही है । मृत्यु लीला तब तक चलेगी जब तक बदला लेने वाला अपना कार्य पूरा ना कर ले । एक भयानक अभिशाप उन सभी के ऊपर आ गया है । शायद उस अभिशाप की आग में उनके लड़के दिनेश को भी आहुति देना होगा ।
यही सब कुछ सोचकर जमींदार साहब कभी-कभी कांप उठते । दिनेश को भी इस बार डर लगा है इसीलिए उसका बेपरवाह वाला दिमाग़ थोड़ा शांत है । अब वह घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलता तथा अपने पिता की ओर असहाय चेहरे से देखता रहता । जमींदार साहब कभी-कभी उससे डर को भगाने के लिए कंधे पर हाथ रख कर कहते ,
" तुम ज्यादा चिंता मत करो बेटा मैं हूं। देखता हूँ क्या किया जा सकता है । तुम कमरे के अंदर जाओ और भगवान का नाम लो । "

एक दिन जमींदार साहब को खबर मिला कि गांव के मंदिर के पास वाले बरगद के नीचे एक साधिका आई हुई है । मन ही मन जमींदार साहब ऐसे ही किसी मनुष्य को खोज रहे थे । आज कई दिनों बाद उनके चेहरे से चिंता की रेखा कटी है । हाथ जोड़कर उन्होंने भगवान को धन्यवाद किया । समय ज्यादा व्यस्त ना करते हुए वह मंदिर की ओर चल पड़े ।
मंदिर के पास वाला यह बरगद पेड़ बहुत पुराना है । शायद गांव बसने से पहले भी यह ऐसे ही खड़ा था । इसके बाद धीरे - धीरे लोगों ने रहना शुरू किया और यह एक गांव बना । उस वक़्त किसी ने बरगद के चारों तरफ लोगों के बैठने के लिए जगह बना दिया था । गांव के लोग गर्मी के दिनों में खेत से लौटते वक़्त तेज धूप से बचने के लिए यहां आराम करते । लेकिन यह सब बहुत पहले की बात है । बहुत साल बीत गए , गांव में लोगों का वास बढ़ा है और अब तो विद्युत भी आ गया इसलिए अब इसका प्रयोग ज्यादा लोग नहीं करते । इसके अलावा मुकेश और रतन के उस तरह आत्महत्या करने के बाद लोगों ने इस रास्ते पर आना ही छोड़ दिया । लेकिन आज इस तंत्र साधिका के आगमन पर गांव के कुछ लोग यहां पर आएं हैं ।
जटाधारी एक महिला , शरीर का रंग श्याम वर्ण परंतु आंख उज्वलता से भरा हुआ है । उनके पूरे शरीर में शांत भाव है । उनके चेहरे को देखकर गांव वालों के मन का आतंक शायद थोड़ा कम हुआ है । ध्यान मग्न अवस्था में साधिका बैठी हुई है तथा उनके सामने धूनी जल रहा है । धूनी से निकलते धुएँ में चारों तरफ का वातावरण मानो पवित्र हो गया है । धूनी में शायद कुछ मिलाने की वजह से बहुत ही खूबसूरत सुगंध निकल रहा है ।
गांव वाले हाथ जोड़कर सामने ही खड़े हैं। कुछ लोगों ने फल - फूल लाकर साधिका के सामने रख दिया है ।
इसी बीच जमींदार साहब का आते देख सभी थोड़ा बगल हो गए । जमींदार साहब साधिका के सामने हाथ जोड़कर बैठे ।
कुछ देर बाद साधिका का ध्यानमग्न आँख खुला । धीरे-धीरे आंख खोलने के बाद उन्होंने गांव वालों को इशारे से जाने के लिए कहा । सभी के जाने के बाद हाथ जोड़कर बैठे जमींदार साहब से साधिका बोली ,
" नमस्कार जमींदार साहब , मैं शारदा हूं । "जमींदार साहब बोले ,
" देवी मैं बहुत ही विपदा में हूं । देवी मेरी रक्षा करो । "
इतना बोलकर जमींदार साहब शायद और भी कुछ बोलना चाहते थे लेकिन शारदा उन्हें रोकते हुए बोली ,
" चुप कीजिए , आपके सभी कुकर्मों को मैं जानती हूं । गांव में जो कुछ भी हो रहा है यह सब तुम्हारे और तुम्हारे बेटे के कारण हो रहा है । इससे तुम्हें बचाना बहुत ही मुश्किल है । "

" देवी माँ कुछ तो उपाय होगा ? "

जलते हुए धूनी की ओर कुछ देर देखने के बाद गंभीर स्वर में शारदा बोली ,
" उपाय एक है लेकिन बहुत ही कठिन है । तुम नहीं कर पाओगे। "

" देवी आप बताइए , मुझे कुछ भी करना पड़े लेकिन मेरे लड़के को बचाना ही होगा । "

" तो फिर सुनो "
इतना कहकर शारदा ने जमींदार साहब से जो कहा वह इस प्रकार था ।

दिनेश ने जब भोला पागल का खून किया था उस वक्त तिथि - नक्षत्र के विशेष अवस्था के कारण भोला पागल के आत्मा ने काल दोष पाया और बेताल में परिवर्तित हो गया था । इसके बाद समय बढ़ने के साथ-साथ भोला पागल की आत्मा और भी शक्तिशाली होता गया । बेताल एक भयानक प्रेतात्मा है । उसका शक्ति आम आत्माओं से बहुत ही ज्यादा है । कहीं भी कभी भी शरीर धारण कर लेना , हवा में गायब हो जाना अथवा परिचित किसी का रूप धारण कर लेना । यही सब उसकी विशेष शक्तियां हैं । इसके अलावा और भी शक्तियां उसके अंदर मौजूद है ।
बुद्धि में बेताल किसी साधारण मनुष्य से बहुत ही आगे है इसीलिए उससे मुक्ति पाना इतना आसान नहीं है ।
जमींदार साहब अगर चाहें तो शारदा एक विशेष यज्ञ की व्यवस्था कर सकती है । लेकिन उस यज्ञ की समाप्ति के लिए एक विशेष सामग्री की जरूरत है । जमींदार साहब अगर उस सामग्री को ला सके तभी शारदा उस यज्ञ को करेगी ।

" देवी मां वह विशेष सामग्री क्या है ? "

शारदा कुछ देर एकटक जमींदार साहब की ओर देखकर बोली ,
" एक जीवित नारी जो जल्द ही विधवा हुई है । "

जमींदार साहब आश्चर्य में पड़ गए । उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा ।

जमींदार साहब के चेहरे को देख शारदा बोली ,
" मैं जानती थी कि इस सामग्री कोलाना तुम्हारे बस की बात नहीं । "

कुछ देख सब कुछ चुप , अब चारों तरफ हल्का हल्का अंधेरा होने लगा है । इसी बीच झींगुरों ने भी गाना शुरू कर दिया है ।
जमींदार साहब बोले ,
" देवी माता , क्या और कोई उपाय नहीं है ? "

" नहीं, और कोई उपाय नहीं है । मूर्ख हो तुम इसीलिए यह सब बोल रहे हो । "

सिर झुकाकर कुछ देर जमींदार साहब बैठे रहे। इसके बाद गंभीर स्वर में बोले,
" ठीक है देवी मैं व्यवस्था कर दूंगा । "

तुरंत ही शारदा की आंखें चमक उठी । अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए वह बोली ,
" ठीक है तो फिर सुनो , विधवा को आज ही मेरे पास लेकर आना । मैं पूरी रात उसे तैयार करके भोर में यज्ञ शुरू करूंगी । कल रात से पहले मुझे यज्ञ समाप्त करना होगा क्योंकि कल पूर्णिमा है। और पूर्णिमा के वक्त बेताल की शक्तियां और भी बढ़ जाती है। गांव के सभी लोगों को आज रात से ही घर में रहने को बोलना। परसों सुबह होने से पहले कोई भी अपने घर से ना निकले । आप भी मत निकलना वरना भयानक खतरा हो सकता है । "

इतना सुनकर जमींदार साहब उठ खड़े हुए । चारों तरफ उस वक्त अंधेरा हो चुका था । टॉर्च जलाकर वह अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में चलते हुए उन्हें ऐसा लगा मानो कोई उनका का पीछा कर रहा है । बीच-बीच में एक गर्म हवा उन्हें छूकर निकल जाती ।
शारदा के पास से लौटते वक्त एक छोटा काला डिब्बा शारदा ने दिया था । उसके अंदर क्या है यह बताना बहुत ही मुश्किल है लेकिन रास्ते में जितनी बार भी जमींदार साहब को कुछ अद्भुत अनुभव हुआ उन्होंने उस डिब्बे को अपने सीने में दबाए रखा । शायद इसी कारण से वह गर्म हवा उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका। लेकिन पूरे रास्ते पर उन्होंने एक हंसी की आवाज को सुना। इस आवाज को गांव वालों ने भी कई बार सुना है । जमींदार साहब ने अभी तक इस हंसी को नहीं था सुना लेकिन आज सुनकर उनका पूरा शरीर डर से कांप उठा । किसी तरह अपने आप को संभाल कर वो अपने घर पहुंचे ।.....
 
Well-known member
1,167
1,335
143
अपने वंश की रक्षा के लिए जमींदार साहब इतना तुक्ष्य कार्य कर सकते हैं गांव वालों ने कभी सोचा भी नहीं था।
रात को जमील माझी की पत्नी को जमींदार साहब ने बुलवाया ।
माझी की पत्नी ने जमींदार साहब के कमरे में आकर प्रश्न किया,
" मालिक आप मुझे कहां भेज रहे हैं ? "
जमींदार साहब जानते थे कि माझी की पत्नी यह प्रश्न अवश्य पूछेगी इसीलिए उन्होंने उत्तर पहले से ही सोच कर रखा था ।

" आज हमारे मंदिर के पास वाले बरगद के नीचे एक साधिका आई है । उनके साथ मैंने बात किया । साधिका आज रात को एक विशेष यज्ञ करेंगी जिसके फल स्वरुप हमें यह पता चलेगा कि तुम्हारा पति और लड़का कहां पर है । इसीलिए वहां पर तुम्हारा रहना अति आवश्यक है। "

यह सुनकर माझी की पत्नी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी ।
वह अवश्य ही वहां पर जाएगी । यह बात जमींदार साहब को बता कर वह कमरे से बाहर निकल गई ।

माझी की पत्नी के जाते ही जमींदार साहब ने आदमी भेजकर पूरे गांव में आदेश भेज दिया कि आज की रात और अगले दिन कोई भी अपने घर से बाहर ना निकले । तथा यह भी बता दिया कि गांव वालों के कल्याण के लिए साधिका एक यज्ञ करेंगी इसीलिए सभी गांव वाले इस आदेश का पालन करें । इससे उनका ही भला होगा । रात बढ़ते ही कुछ लोग माझी की पत्नी को साधिका के पास पहुंचा आए ।

बरगद के नीचे रात के अंधेरे में जलते दीपक व धुंध परिवेश में शारदा ध्यान मग्न होकर बैठी हुई है । माझी की पत्नी साधिका के सामने हाथ जोड़कर बैठी ।

" क्या वह दोनों मिल जायेंगे ? क्या उन्हें देख पाऊँगी ? "

" हाँ क्यों नहीं , इसीलिए तो मैंने तुम्हें यहां पर बुलाया है । तुम ही तो आज इस यज्ञ की मुख्य विषय हो । "

" मुझे क्या करना होगा । "

" लो इस प्रसाद को खा लो । "
इतना बोलकर शारदा ने एक ताम्बे का ग्लास माझी की पत्नी की ओर बढ़ा दिया ।

माझी की पत्नी ने तुरंत ही उस पानी को पी लिया । इसके बाद कुछ देर वह शांत होकर बैठी रही । शारदा एकटक उसी की तरफ देख रही है । अब चारों तरफ की हल्की रोशनी भी माझी की पत्नी की आंखों से ओझल होती रही । एक बार उसने शारदा की ओर देखा ।

" मुझे ऐसा क्यों हो रहा है ? "

" सब कुछ ठीक हो जाएगा । धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा । "
इतना बोलकर शारदा ने अपना एक हाथ माझी पत्नी के सिर पर रखा । तब तक माझी पत्नी की शरीर मानो मुरझा गई थी ।

°°°°°°°°°°

उधर पिछले कुछ दिन से गोपाल को बहुत सारे अद्भुत सपने दिखाई दे रहा है । गोपाल को समझ आ रहा है कि इन सभी सपने को जोड़ने पर एक घटना बन जाता है तथा यह घटना मानो उसे कुछ इशारा करना चाहता है । एक रात उसने देखा अंधेरे में एक नाव के ऊपर एक शव रखा हुआ है और शव के सिर के पास एक काला कंकाल बैठा हुआ है । फिर उसने देखा कि शव से मांस व चमड़ा निकलकर उस कंकाल में जाकर जुड़ जाता । इस तरह लगभग हर रात एक के बाद एक जमील माझी के साथ घटित घटना व उसके लड़के के मृत्यु सब कुछ गोपाल ने अपने सपने में देखा । सभी सपने मानो कुछ इशारा करना चाहते हैं । सपने के अंत में वह उस अज्ञात आदमी को भी देखता जिसने उसे एक कागज की पुड़िया दिया था ।
गोपाल बार-बार मंदिर जाता और देवी काली की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर अपने मन के सभी बातों को बताता तथा उन अद्भुत सपने के बारे में भी मूर्ति को बताता व सवाल पूछता । देवी माता मानो उसे रास्ता दिखाते हैं ।
लेकिन उस दिन की घटना के बाद गोपाल को वह अज्ञात आदमी कभी नहीं दिखा । मंदिर के पंडित व आसपास लोगों से उसने कई बार पूछा लेकिन सभी ने यही बताया कि इस रूप वाले सन्यासी को उन्होंने कहीं नहीं देखा ।
लेकिन सपने में देखे उस भयानक पिशाच को वह पहचान गया है क्योंकि उस भयानक रात को इसी प्रेत ने उसके सीने पर बैठकर खून - मांस चूसना चाहा था ।

°°°°°°°°°°शारदा को अपने क्रिया के सामान मिल चुका है । गांव वालों के सामने असल सत्य छुपा ही रह गया । सभी को यही लगता है कि शारदा गांव के भले के लिए पूजा कर रही है । उन्हें माझी पत्नी की ऐसी दशा का भनक भी नहीं लगा । जमींदार साहब ने मन ही मन सोच लिया था कि इसके बाद वह गांव में बात फैला देगा कि माझी पत्नी को उसने शहर के किसी आश्रम में भेज दिया है।
लेकिन इन सब में एक और भयानक विचार है जिसके बारे में जमींदार साहब को पता ही नहीं ।
बेताल से छुटकारा पाने के लिए किसी विधवा महिला के आहुति की जरूरत नहीं होती । फिर शारदा ऐसा क्यों कर रही है ?
क्योंकि शारदा बेताल को भगाने या जमींदार साहब के वंश की रक्षा के लिए यहां पर नहीं आई है । बेताल को वश में कर अपना शक्ति बढ़ाने के लिए वह यहां आई है ।
उस पीले कागज का अंतिम क्रिया यही था जिसमें बेताल वशीकरण के बारे में बताया गया है । इस क्रिया में एक जल्द ही विधवा हुई महिला की आवश्यकता होती है , जिसके अंदर वह असीम शक्तिशाली हकिनी का आह्वान कर उसी शक्ति से बेताल को अपने वश में करेगी ।
इसके बाद वह कई गुना और शक्तिशाली हो जाएगी । अपने इस कार्य को पूरा करने के लिए ही शारदा इस गांव में आई है । पिछले कुछ सालों से पूरे भारत में भ्रमण व परिश्रम करके उस पीले कागज में लिखे सभी तंत्र में उसने सिद्धि प्राप्त कर लिया है । अब केवल यही एक बाकी रह गया है । अब बेताल को वश में कर वह अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहती है। अपने तीव्र बुद्धि के बल पर शारदा ने ऐसी कई पक्रिया को पूर्ण किया है । इस बार भी उसके कार्य में कोई बाधा ना दे इसीलिए डराकर गांव वालों को घर के अंदर बंद कर दिया ।
 
Well-known member
1,167
1,335
143
शारदा जानती है कि इस बार भी वह अपने कार्य में सफल होगी परंतु नियति ने कुछ और ही लिखा था ।
शारदा का यह सब क्रियाकलाप छुपकर एक दूसरा व्यक्ति देख रहा था । छुपकर शारदा पर नजर रखने वाले गांव के वृद्ध पंडित शिवचरण जी हैं । गांव में आने के बाद से ही उन्होंने शारदा पर नजर रखा है मानो शारदा के हाव - भाव देखकर उन्होंने पहले ही किसी अशुभ का संकेत लगा लिया था । सभी गांव वालों के जाने के बाद भी पंडित जी मंदिर के अंदर चुपचाप बैठ कर सब कुछ देख रहे थे ।
शारदा खड़ी हो गई उसके हाथ में एक लालटेन है । ना जाने क्या बडबड़ाते ही माझी पत्नी भी उठ खड़ी हुई ।
माझी पत्नी को एक सफेद साड़ी पहनाया गया है । शारदा अब आगे बढ़ चली माझी पत्नी भी उसके पीछे चल पड़ी । माझी पत्नी मानो अपने होश में नहीं , वह किसी स्वचालित गुड़िया की तरह शारदा के वश में होकर आगे बढ़ती जा रही है ।

किसी मंत्र शक्ति से पूरा गांव मानो आज सो रहा है । रात के अंधेरे में दो महिला कच्चे रास्ते से आगे बढ़ रहे हैं । लेकिन अंधेरे में अपने को छुपाकर उनके पीछे भी कोई चल रहा है । शिवचरण पंडित !
शारदा को पता ना चले इसीलिए पंडित जी दूरी बनाकर बिना कोई आवाज़ किए चल रहे हैं । उन्हें पता लगाना ही होगा कि इस साधिका का असल उद्देश्य क्या है ।
शारदा के कंधे पर एक काला पोटली है । मंदिर के सामने नकारात्मक शक्ति का आह्वान नहीं किया जा सकता इसीलिए अपनी सामग्री को लेकर वह गांव के पास वाले श्मशान में जा रही है । इस गांव के पास एक श्मशान भी है इस बारे में शारदा ने शायद पहले से ही पता लगा कर रखा था । यहां पर अब चिता नहीं जलाया जाता इसीलिए यह जगह शारदा के लिए सबसे श्रेष्ठ है ।
शमशान में पहुंच एक उपयुक्त स्थान को चुन शारदा ने अपने क्रिया को शुरू किया । अपने पोटली से कुछ सामग्री को निकाल कर जमीन पर रखा इसके बाद शारदा ने पोटली से दो काले मुर्गे को बाहर निकाला । देखकर समझा जा सकता है कि दोनों मुर्गे पहले ही मर चुके हैं ।
अब शारदा ने लाल सिंदूर से जमीन पर एक उल्टा त्रिभुज बनाया तथा उसके ऊपर सीधा करके एक और त्रिभुज बनाया । यह चिन्ह देखने में एक छः कोने वाले तारे जैसा है । उस चीन के चारों तरफ अब एक वृत्त बना दिया ।
अब शारदा ने चिन्ह के 6 कोनों पर 6 अलग-अलग सामग्री रखी । जैसे कि सांप का कटा पूँछ , घोड़े का खुर , शिशु के पसली की हड्डी , बंदर का हाथ , बंदर का सिर , उल्लू की नोंक इत्यादि ।
अब और अद्भुत दृश्य दिखाई दिया । शारदा ने दोनों मरे हुए मुर्गे को हाथ में लेकर ऊपर उठाया और शैतान के उद्देश्य से कुछ मंत्र पढ़ा । तुरंत ही दिखाई दिया कि दोनों मुर्गे छटपटा रहे हैं , अचानक उनके प्राणहीन शरीर में जान आ गया था । अब दोनों मुर्गे को वृत्त के अंदर बने दोनों त्रिभुजों के बीच में रखकर गले को काट दिया । लाल खून से वृत्त पूरा भर गया तथा खून से सने उस वृत्त के अंदर माझी पत्नी को बैठा दिया । अब पोटली से 1 आसन निकालकर वृत्त के सामने शारदा बैठ गई । पोटली से उसने अब एक अद्भुत मूर्ति को निकाला । वह मूर्ति पूरी तरह काले रंग का है , मूर्ति के दोनों हाथों में दो सरीसृप जैसा प्राणी है । मूर्ति के अंदर पुरुष तथा स्त्री दोनों ही उभय रूप में हैं लेकिन चेहरा बकरे का है तथा माथे पर दो सींग हैं । शारदा ने अब मूर्ति को वृत्त के अंदर रखा तथा अरबी भाषा में कुछ मंत्रों को पढ़ना शुरू किया । इस तरह लगभग आधा घंटा मंत्र पाठ चलता रहा । इसके बाद शारदा आसन छोड़ कर उठ खड़ी हुई तथा आसपास से कुछ सूखी लकड़ी लाकर आग जलाया । उसके ऊपर छोटा सा मिट्टी का बर्तन रख उसके अंदर एक मृत चिड़िया डालकर ढक दिया । अब माझी पत्नी की आंख से आंख मिलाकर शारदा ने मंत्र पाठ फिर शुरू कर दिया ।
कुछ देर बाद मिट्टी के बर्तन को आग से हटा लिया तबतक मृत चिड़िया राख में बदल गया है । उस राख से एक चुटकी लेकर एक विशेष पानी में मिलाया तथा बाकी बचे राख से तिलक बनाकर माझी पत्नी के माथे पर लगा दिया । और राख मिले लाल पानी को शारदा ने खुद पी लिया।एक तीव्र सड़न की बदबू से चारों तरफ भर गया है । शिवचरण पंडित दूर से सब कुछ देख रहे हैं । अब उन्होंने आश्चर्य भरे आंखों से देखा ,
माझी पत्नी का पूरा शरीर हवा में तैर रहा है और दोनों हाथ जोड़कर शारदा को प्रणाम कर रही है । अगले ही क्षण भयानक आवाज़ करते हुए वह फिर वृत्त के अंदर बैठ गई ।
शिवचरण पंडित ने देखा कि शारदा की आंखें ख़ुशी से चमक रही हैं । वह दुनिया की एक शक्तिशाली शक्ति को पाने वाली है ।

°°°°°°°°°°°°°°

उधर आज रात भी गोपाल एक सपना देख रहा है । पहले उसने देखा कि एक कंकाल पानी के नीचे बहुत दिनों से है । कुछ देर बाद फिर उसने देखा कि वह अपने गांव के पास वाले नदी के घाट पर खड़ा है । उसी वक्त पानी के नीचे से वह कंकाल ऊपर आ गया । नदी के उस तरफ गांव का एक पुराना शमशान है बहुत दिनों से वहां पर शवदाह नहीं किया जाता। गोपाल ने अब देखा कि नदी के उस तरफ वही अनजान आदमी खड़ा है और मानो वह कुछ इशारा करना चाहता है । इसके बाद सब कुछ अंधेरा और तुरंत ही गोपाल नींद से जाग गया । वह बिस्तर पर उठ बैठा तथा मन ही मन सोचा कि कल सुबह वह नदी के घाट पर जाएगा । उसके मन में न जाने कैसा हलचल हो रहा है इसीलिए तकिये के नीचे रखी छोटी कागज की पुड़िया निकाल कर देवी माता को याद किया । और मन ही मन बोला ,
" देवी माता ! यह स्वप्न मुझे क्या इशारा दे रहा है । इस बारे में देवी माता मुझे कुछ बताओ । ".......

°°°°°°°°°°°°°°
 

Top